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The Billionaire's Surrogate

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Sunshine

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सुहानी, दिल्ली के एक अनाथ आश्रम में पली बड़ी एक आम सी लड़की थी। उसके ज़्यादा बड़े सपने नहीं थे बस एक ही सपना था कि उसे अपने लिए एक छोटा सा घर बनाना था। उसकी ज़िन्दगी आराम से जैसे वो चाह रही थी ठीक वैसे ही कट रही थी कि एक दिन उसकी ज़िन्दगी में अचानक स...

Total Chapters (8)

Page 1 of 1

  • 1. The Billionaire's Surrogate - Chapter 1

    Words: 1818

    Estimated Reading Time: 11 min

    हॉस्पिटल के बड़े से रूम में, बेड पर लेटे दलजीत जी ने अपनी आँखें बंद कर पास में बैठे अपने पी.ए से कहा, “जब तक मैं अपनी आंखों से दीप की बीवी और बच्चे को नहीं देख लेता तब तक ये प्रॉपर्टी मैं उसके नाम नहीं करूंगा! ...चाहे फ़िर मुझे कुछ भी हो जाए और ये सारी प्रॉपर्टी दान में चली जाए!”

    दलजीत जी की बात सुन उनके छोटे बेटे मंजीत की बीवी डिंपी ने गुस्से में अपनी मुट्ठी भींच ली।

    डिंपी ने पास खड़े मंजीत के कान में फुसफुसाते हुए कहा, "जब पापा जी ने सब कुछ दीप के नाम करने का फैसला कर ही लिया है तो हम यहां क्यूं खड़े हैं? चलिए घर चलते हैं!"

    मंजीत जी ने अपनी बीवी का हाथ दबा उसे चुप रहने का इशारा किया तो वो मन मार कर चुप चाप खड़ी हो गई।

    तभी रूम के डोर खुलने की आहट हुई और अगले ही पल डॉक्टर्स की एक टीम के साथ, छह फुट लंबा एक गबरू जवान, नेवी ब्लू कलर के थ्री पीस सूट में उस रूम में एंटर हुआ।

    गोरा रंग उस पर भी चेहरे पर मौजूदा नयन नक्श उसके चेहरे को और भी अधिक आकर्षक बना रहे थे। परफेक्ट जॉ लाइन, जिम में पसीना बहा कर बनाई सुडौल बॉडी जो कि उसकी पर्सनेलिटी में चार चांद लगा रही थी और उसे उस थ्री पीस सूट में भी हृष्ट पुष्ट दिखा रही थी।

    उसके चेहरे पर तेज कुछ ऐसा था मानो किसी राजा के जैसा।

    लड़के ने दुनियां की मोस्ट एक्सपेंसिव वॉचेज में से एक वॉच अपने हाथ में पहनी हुई थी। ब्लैक कलर के शूज़ ऐसे चमचमा रहे थे मानो अभी अभी अनपेक कर पहने हो।

    सच कहें तो उस लड़के का औरा ही वहां मौजूद लोगों से कुछ अलग था।

    ये लड़का और कोई नहीं बल्कि दिल्ली की सबसे बड़ी कंस्ट्रक्शन एंड रियल एस्टेट कंपनी यानि मेहरा कंपनी के मालिक दलजीत मेहरा का बड़ा पोता रणदीप मेहरा था।

    मेहरा कंपनी की बागडोर दलजीत मेहरा ने आज से पांच साल पहले रणदीप के हाथों में सौंप दी थी और रणदीप ने भी इस जिम्मेदारी को बख़ूबी निभाया और कंपनी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया था।

    रणदीप अभी अभी मुंबई से वापस आया था।

    बेड पर आंख मूंद कर लेटे अपने दादा जी यानि दलजीत जी को देख रणदीप आगे बढ़ा और उसने महेश जी जो कि दलजीत जी के पी. ए थे उनसे पूछा, "क्या हुआ दादा जी को?"

    महेश जी ने परेशान होते हुए कहा, "हार्ट अटैक!"

    तभी वहां मौजूद चार डॉक्टर्स में से सीनियर डॉक्टर ने आगे आते हुए कहा, "Mr. रणदीप! हमें Mr. मेहरा की सर्जरी करनी होगी पर ये सर्जरी के लिए मना कर चुके हैं!"

    बेड से कुछ दूरी पर खड़े रणदीप ने एक नज़र आंख बंद कर लेटे दलजीत जी को देख महेश जी की तरफ़ देखते हुए कहा, "मैं दादा जी से अकेले में बात करना चाहता हूं!"

    उसकी बात सुन थोड़ी ही देर में सब लोग बाहर निकल गए और अब बस रूम में मौजूद थे रणदीप और दलजीत जी।

    रणदीप ने उनके पास बैठ उन्हें एक नज़र देख अपनी कठोर आवाज़ में कहा, "क्या प्रॉब्लम है आपकी? क्यूं ड्रामा कर रहे हैं?"

    दलजीत जी ने उसकी मर्दाना आवाज़ सुन अपनी आँखें खोल नाराज़गी में उसे देखते हुए कहा, "ड्रामा नहीं है! मैं सच में सर्जरी नहीं करवाऊंगा!"

    रणदीप ने मुंह से एक सास छोड़ उनसे मुंह फेरा तो दलजीत जी ने उसे देखते हुए कहा, "और तुम भी कान खोल कर सुन लो! ये जो तुम इतना ऐश कर रहे हो इस प्रॉपर्टी पर ये सब मैं दान कर रहा हूं!"

    रणदीप ने सुना तो झट से उनकी तरफ़ मुंह फेरा और उन्हें देखने लगा तो दलजीत जी ने इस बार मुस्कुरा कर कहा, "सही सुन रहे हो! ये सब मैं सरकार को दान कर रहा हूं!"

    रणदीप ने उनकी बात पर रिएक्ट करते हुए कहा, "आपका दिमाग़ ख़राब हो गया है क्या?"

    दलजीत जी ने गुस्से में कहा, "हां हो गया है! और इसका कारण तुम हो!"

    रणदीप ने भी उनकी बात सुन गुस्से में भड़कते हुए कहा, "करके दिखाइए आप! मैं भी देखता हूं कि आप कैसे प्रॉपर्टी दान करते हैं! ...... पांच साल! अपने पूरे पांच साल दिए हैं कंपनी को आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए! ..... मेरी मेहनत लगी है ये इतना बड़ा बिजनेस खड़ा करने में! ऐसे कैसे आप दान कर देंगे?"

    दलजीत जी ने उसकी बात सुन गुस्से में कहा, "पर तुम्हे ये सब मेरी वज़ह से मिला है और मत भूलो कि अभी भी कंपनी मेरी है तुम्हारा इसमें कुछ नहीं है! और तब तक नहीं होगा जब तक तुम मेरी बात नहीं मान लेते!"

    रणदीप ने उनकी बात सुन खड़े हो उन्हें एक नज़र देखते हुए कहा, "वो मैं कभी नहीं मानूंगा! ...... और हां ये बच्चों की तरह जिद्द करना बंद कीजिए! आपकी सर्जरी होगी! और कल ही होगी!"

    इतना कहकर वो वहां से जाने को हुआ था कि दलजीत जी ने गुस्से में लगभग उठ कर उस पर चीखते हुए कहा, "हां तो ठीक है! मैं भी सारी प्रॉपर्टी यशवीर के नाम कर दूंगा!"

    इतना उन्होंने कहा ही था कि दर्द की एक लहर उनके चेहरे पर हो कर गुजरी और उन्होंने अपने दिल पर हाथ रख लिया।

    इधर रणदीप का उनकी बात सुन गुस्से में उनकी तरफ़ पलटना हुआ था कि उनकी हालत देख वो झट से उनके करीब पहुंचा और उसने उन्हें संभाल डॉक्टर को बुलाया।

    थोड़ी ही देर में डॉक्टर्स जल्दी से अंदर आए वो दलजीत जी का चेकअप करने लगे वही रणदीप अब पीछे हट चुप चाप खड़ा हो गया।

    थोड़ी देर बाद,

    डॉक्टर ने दलजीत जी का चेकअप करने के बाद रणदीप से कहा, "Mr. रणदीप! हमें सर्जरी आज ही करनी होगी! Mr. मेहरा की हालत बेहद नाज़ुक है!"

    रणदीप ने अपने दादा जी के पीले पड़ते चेहरे को देख डॉक्टर को अपनी सख़्त आवाज़ में कहा, "जो करना है करो! इन्हें कुछ नहीं होना चाहिए!"

    डॉक्टर ने रणदीप की भारी आवाज़ को सुन उससे कुछ कहना चाहा था मगर उससे पहले वो पलट कर वहां से चला गया।

    ******

    रणदीप रूम से बाहर निकल कर आया तो उसका पी. ए विकास उसके पीछे पीछे चल पड़ा और जैसे ही उनका हॉस्पिटल से बाहर निकलना हुआ तो बाहर खड़ी रणदीप की कार का गेट उसके सबसे भरोसेमंद बॉडीगार्ड यूसुफ ने खोला।

    रणदीप जैसे ही अपनी ब्लैक कलर की रोल्स-रॉयस में बैठा उसके आगे और पीछे की गाड़ियां में ब्लैक कलर का थ्री पीस पहने उसके सिक्योरिटी गार्ड्स अंदर बैठ गए और जैसे ही रोल्स-रॉयस स्टार्ट हुई उसी के साथ रणदीप की सिक्योरिटी में लगी गाड़ियां भी स्टार्ट हो गईं।

    उसकी सुरक्षा में लगी सिक्योरिटी किसी z+ सिक्योरिटी से कम नहीं थी और आख़िर होती भी क्यूं ना वो दिल्ली का सबसे मशहूर और अमीर आदमी था जिसने मात्र 29 वर्ष की उम्र में ही गज़ब की शोहरत हासिल की थी हां वो बात अलग थी कि दिन रात जिस कंपनी के लिए उसने मेहनत की थी वो उसके दादा जी की थी।

    और अगर उसने अब कुछ नहीं किया तो ये सारी दौलत और शोहरत उससे छिन जाने वाली थी।

    रणदीप अपने फ़ोन में बिजी था ऐसे में पैसेंजर सीट पर बैठे विकास ने हिम्मत कर उससे पूछा, "सर! कहां जाना है?"

    रणदीप ने अपनी पलकों को उठा उसे घूर कर देखा तो अगले ही पल विकास ने झेंप कर ड्राइवर से कहा, "ऑफिस चलो!"

    इतना कहकर उसने ये मैसेज यूसुफ को ड्रॉप किया कि उन्हें ऑफिस जाना है।

    मैसेज मिलते ही सारी गाड़ियां ऑफिस जाने वाले रास्ते की तरफ मुड़ गईं।

    ऑफिस में,

    रणदीप अपने बड़े से आलीशान केबिन में पहुंचा तो वहां पर ऑलरेडी उसका दोस्त अबीर महेश्वरी बैठा हुआ था।

    पांच फुट दस इंच हाइट, गेहुंआ रंग पर अच्छे भले नयन नक्श वाला अबीर देखने में रणदीप से ज़्यादा नहीं तो कम भी नहीं था।

    रणदीप के आते ही वो उठ खड़ा हुआ और उसके गले मिलते ही अबीर ने रणदीप से पूछा, "कैसा है?"

    रणदीप ने उससे अलग हो अपनी चेयर पर बैठते हुए कहा, "दादा जी हॉस्पिटलाइज़ हैं!"

    अबीर ने शॉक होते हुए पूछा, "What? कब? कैसे? ..क्या हुआ उन्हें?"

    अबीर ने एक के बाद एक सवाल किए तो रणदीप ने चेयर पर पीछे टिकते हुए कहा, "हार्ट अटैक!"

    अबीर ने फिक्र जताते हुए पूछा, "क्या वो ठीक हैं? और तू यहां क्या कर रहा है? तुझे उनके पास होना चाहिए था!"

    रणदीप ने अपना सिर हिलाते हुए कहा, "पहले तो तू शांत हो जा! उनकी सर्जरी होनी है और वही हो रही है!"

    अबीर ने थोड़ा हैरान होते हुए कहा, "फ़िर भी! तुझे उनके साथ होना चाहिए था!"

    रणदीप ने उसकी बात इग्नोर कर अपना फोन साइड रखते हुए कहा, "तू वो सब छोड़! और मेरी बात सुन!"

    "मुझे कल तक एक लड़की चाहिए!"

    अबीर ने उसकी बात सुन नासमझी से उसे देखते हुए पूछा, "लड़की? कौन लड़की?"

    रणदीप ने सीधे बैठते हुए कहा, "कोई भी! बस एक लड़की चाहिए!"

    अबीर ने हैरानी से पूछा, "क्यूं?"

    रणदीप ने अब अबीर के एक बार फ़िर सवाल पूछने पर चिढ़ कर गुस्से में कहा, "तुझे इससे क्या? मैंने कहा ना मुझे एक लड़की चाहिए!"

    रणदीप का गुस्सा देख अबीर कुछ शांत हुआ तो रणदीप को भी होश आया और उसने अपनी आंखों पर हाथ रख कुछ देर तक शांत रहने के बाद सांस छोड़ते हुए कहा, "तू जानता तो है दादा जी की जिद्द के बारे में! पर इस बार उन्होंने जो कहा वो यहां दिल पर लगा!"

    "उनका कहना है कि अगर मैंने उन्हें अपने बच्चे का चेहरा नहीं दिखाया तो वो सब कुछ यश के नाम कर देंगे!"

    यश कह लो या यशवीर ये रणदीप के चाचा मंजीत का बेटा है जो कि उम्र में तीन साल रणदीप से छोटा है।

    अबीर ने रणदीप की बात सुन चिढ़ते हुए कहा, "तू लड़की तो ऐसे माँग रहा जैसे वो कोई चीज़ हो और उसे ख़रीद कर मैं तेरे सामने पेश कर दूं!"

    रणदीप ने अबीर को देख अपनी कठोर आवाज़ में कहा, "ख़रीद या जो तुझे समझ आए वो कर! मुझे बस एक लड़की चाहिए जो कि मेरे बच्चे को जन्म दे सके!"

    अबीर ने रणदीप की बात सुन कर उससे पूछा, "Do you mean to say that a surrogate?"

    रणदीप ने हां में सिर हिलाते हुए कहा,"हां! जो कि मेरे बच्चे को कैरी कर सके और उसे जन्म दे सके!"

    अबीर ने कुछ सोचते हुए कहा, "हो जाएगा!"

    रणदीप ने उसकी बात सुन उसे टोकते हुए कहा, "पर हां! वो लड़की वर्जिन होनी चाहिए और उसका कोई बॉयफ्रेंड भी नहीं होना चाहिए!"

    अबीर ने थोड़ा हैरान होते हुए कहा, "यार इतनी डिमांड रखेगा तो कैसे मिलेगी कोई? और वर्जिन का तो पता नहीं but बॉयफ्रेंड ना हो ऐसी तो तुझे कोई नहीं मिलेगी!"

    रणदीप ने उसे देखते हुए कहा, "वो तेरी प्रॉब्लम है! कैसे भी ढूंढ! ..तेरे पास कल तक का टाइम है!"

    रणदीप की बात सुन अबीर ने सिर हिलाते हुए कहा, "चल देखता हूं!"

    रणदीप ने उसका ज़वाब सुन अबीर को घूर कर एक नज़र देखा तो अबीर ने हाथ जोड़ते हुए कहा, "अरे बाबा ढूंढता हूं!"

    To be continued ✍️ ✍️ ✍️ 

  • 2. The Billionaire's Surrogate - Chapter 2

    Words: 1428

    Estimated Reading Time: 9 min

    अगले दिन,

    दलजीत जी की सर्जरी सक्सेसफुल रही थी और अब उन्हें ऑपरेशन रूम से नॉर्मल रूम में शिफ्ट कर दिया गया था।

    मंजीत जी ने अभी अभी वहां आए रणदीप को देख उससे पूछा, "दीप! कल कहां थे तुम?"

    रणदीप ने सामने बेड पर लेटे दलजीत जी को देखते हुए कहा, "ऑफिस!"

    मंजीत जी ने उसकी बात सुन नाराज़गी से कहा, "तुम्हें यहां होना चाहिए था! पता भी है कि कल सर्जरी से पहले पापा जी ने तुम्हें कितनी बार याद किया था!"

    रणदीप ने मंजीत जी की बात सुन अपना मुंह फेर लिया ऐसे में मंजीत जी को अब चुप होना पड़ा।

    थोड़ी देर बाद,

    रणदीप के फ़ोन पर विकास का कॉल आया तो कॉल पिक कर थोड़ी बहुत बातचीत के बाद रणदीप नर्स को दादा जी का ख़्याल रखने का बोल वहां से निकल कर चला गया।

    उसके जाते ही वहां बैठी डिंपी जी ने कहा, "देखा! कितने घमंड में रहता है आपसे बोलता तक नहीं और एक आप हैं जो उसके आगे पीछे घूमते हैं!"

    मंजीत जी ने डिंपी जी को चुप करवाते हुए कहा, "अरे तुम जानती तो उसके नेचर को! वो हमेशा से ही कम बोलता है इसमें नई बात क्या है?"

    डिंपी जी ने नाराज़ होते हुए कहा, "आप तो रहने दें! पापा जी का ख़्याल क्या हम लोग नहीं रख सकते थे! पर देखो हमसे एक बार कहने की बजाय इस नर्स से कह कर चला गया!"

    मंजीत जी ने डिंपी जी को समझाते हुए कहा, "हां तो नर्स को इसी बात के पैसे दिए जा रहे हैं तो फ़िर नर्स से ही कहेगा ना! क्यूं तुम छोटी छोटी बातों को दिल पर लेती हो!"

    मंजीत जी ने अब दलजीत जी को देख भावुक होते हुए कहा, ".... वो तो रब दी मेहर है जो पापा जी बिल्कुल सही सलामत हैं!"

    डिंपी जी, मंजीत जी की बात सुन चुप रही।

    वहीं दूसरी तरफ़,

    रणदीप, दलजीत जी के रूम से जैसे ही बाहर निकला विकास ने जल्दी से उसके पास आते हुए कहा, "सर! वो लड़की मिल गई! और आपसे मिलने के लिए तैयार भी है!"

    रणदीप ने अपने फ़ोन में बिजी रहते हुए कहा, "good! ... एक काम करो! उसे मेरे अपार्टमेंट पर ले आओ! मैं उससे वहीं पर मिलूंगा! और हां ख़्याल रहे कि इस बात की किसी को ख़बर ना लगे!"

    विकास ने रणदीप के पीछे पीछे चलते हुए कहा, "इस बात से आप बेफिक्र रहें!"

    रणदीप ने हां में सिर हिलाया और वहां से फुल सिक्योरिटी के साथ आगे बढ़ता चला गया।

    *********

    शाम गहराने लगी थी।
    दिल्ली की सड़कें जाम से भरी थीं और आसमान लगातार गरज रहा था।

    बादलों ने जैसे कोई साज़िश रच रखी थी। अंधेरा समय से पहले उतर आया था।

    तेज़ बारिश सड़कों को धो रही थी, लेकिन एक लड़की इस बारिश में भीगती हुई किसी ठिकाने की तलाश में नहीं, एक सौदे की मंज़िल की तरफ़ बढ़ रही थी।

    वो लड़की थी सुहानी!

    कद पांच फुट चार इंच, गोरा रंग पतला नाज़ुक शरीर, उसने अपने लंबे और मोटे बालों को चोटी बना कर बांधा हुआ था। छोटा मगर खूबसूरत और मासूम सा चेहरा जो इस वक़्त उदासी की चादर ओढ़े हुए था। गुलाबी होंठ जो कि बारिश में भींगते हुए हल्के कांप रहे थे।

    उसकी चप्पलों में पानी भर चुका था, सलवार-कुर्ता बदन से चिपक गया था। हाथ में पिघलती हुई फाइल थी और आंखों में डर, गुस्सा और हिम्मत का अजीब सा मेल। रह-रहकर तेज़ बत्ती चमकती और उसके चेहरे की उदासी को और गहरा कर जाती।

    आख़िरकार, वह एक आलीशान बिल्डिंग के सामने रुकी "Skyline Residency – Tower 9"

    दिल्ली के रईसों का ठिकाना। वहीं ऊपर, 26वीं मंज़िल पर रहता था "रणदीप मेहरा!"

    यह वो नाम था जिसने पिछले 24 घंटों में उसकी ज़िन्दगी को पूरी तरह हिला दिया था। एक फोन कॉल, एक शर्त, और आज की ये मुलाकात.. जिसे न वह टाल सकती थी, न स्वीकार कर पाई थी।

    लिफ्ट के भीतर

    भीगते बदन के साथ वह लिफ्ट के शीशे में खुद को देखती रही

    ख़ुद को देख उसकी आंखों से आंसू निकल आए कितनी मजबूर हो गई थी वो जो अब एक सौदे का हिस्सा बनने जा रही थी।

    लिफ्ट की हर बीप के साथ उसका दिल और तेज़ धड़कने लगा।

    "डिंग!"

    26वीं मंज़िल पर लिफ्ट रुकी।

    दरवाज़ा खुला.....

    दरवाज़ा किसी नौकर ने खोला नहीं, बल्कि खुद रणदीप मेहरा ने खोला।

    सूट पहने, बालों में जरा भी लापरवाही नहीं, चेहरा भावहीन ।

    उसने सुहानी को एक नज़र देखा, सिर से पाँव तक भीगी हुई, कांपती हुई, पर आँखों में सवाल लिए हुए।

    उसने सर्द लहजे में कहा, "अंदर आओ!" 

    सुहानी धीरे से आगे बढ़ अंदर आई।

    घर में दाख़िल होते ही गर्मी का एहसास हुआ, मगर रणदीप की मौजूदगी उतनी ही ठंडी थी जितनी बाहर की बारिश।

    वो सोफे की तरफ इशारा करता है, और उसके हाथ में एक सफेद फोल्डर था।

    "Surrogacy Agreement Contract"

    हर पेज पर कानूनी भाषा, हर शब्द में दिल से ज्यादा दिमाग।

    उस कॉन्ट्रैक्ट को देखती सुहानी को देख रणदीप बोला, "तुम्हारी गलतफहमी दूर करना चाहता हूं कि मैं तुम्हें खरीद नहीं रहा! इसलिए ये कॉन्ट्रैक्ट बनवाया है!

    रणदीप ने कॉन्ट्रैक्ट सुहानी को देते हुए कहा, "मैं एक कॉन्ट्रैक्ट दे रहा हूं तुम्हारी मर्ज़ी से! ये फैसला सिर्फ तुम्हारा है। कोई ज़बरदस्ती नहीं होगी।"

    सुहानी चुप रही। फाइल को खोला नहीं, बस उसे थामे रही।

    अब तक की बातों में रणदीप की आवाज़ में न कोई नरमी थी, न कोई झिझक।

    वहीं सुहानी उसका तो दिल बड़ी जोरों से धड़क रहा था। वो घबराई हुई थी कि तभी ख़ुद को घूर रहे रणदीप से मुंह फेर वो खिड़की से बाहर गिरती बारिश की बूँदें देखने लगी।

    कई पलों तक सन्नाटा छाया रहा। फिर सुहानी ने धीमे से कहा, "क्या मैं फ़िर कभी अपने बच्चे से मिल नहीं सकती!"

    रणदीप ने उसकी बात सुन उसे टोकते हुए कहा, "तुम्हारा नहीं वो सिर्फ़ मेरा बच्चा होगा जिसके जन्म होते ही तुम्हे उसे मुझे सौंपना होगा और फिर कभी उससे मिलना तो दूर तुम्हे उसे देखने की भी इजाज़त नहीं होगी!

    "ये नौ महीने सिर्फ एक सौदा है! उसके बाद रास्ते अलग!," रणदीप ने फ़िर अपनी ठंडी आवाज़ में कहा।

    रणदीप ने सुन्न पड़ चुकी सुहानी को देखते हुए कहा, "और अब ज़्यादा सोचो मत क्योंकि तुम्हारे पास वक़्त नहीं है!"

    कुछ सोच सुहानी ने धीरे से कहा, "ठीक है! मैं तैयार हूं!"

    इतना कहते ही सुहानी की आंखों में आंसू भर आए, मगर उसने पेन उठाया।

    कांपते हाथों से आख़िरी पन्ने पर दस्तख़त किए।

    कुछ देर बाद वह वापस निकली, तो बारिश अब भी जारी थी मगर अब वो सिर्फ उसके बदन को नहीं, उसकी आत्मा को भिगो रही थी।

    ये सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट नहीं था ये उसकी ज़िंदगी में एक तूफ़ान की शुरुआत थी।

    *********

    सुबह की धूप खिड़की के कांच से छनकर रणदीप के चेहरे पर गिर रही थी, लेकिन उसके माथे पर चिंता की लकीरें उस चमक को निगल रही थीं।

    इधर रणदीप के दोस्त अबीर ने गुस्से से फाइल को मेज़ पर फेंकते हुए कहा, "ये क्या कर डाला तूने?"

     अबीर ने हैरानी से कहा, "सरोगेसी कॉन्ट्रैक्ट?"

    उसने रणदीप को याद दिलाते हुए कहा, "तू पागल हो गया है क्या, रणदीप? क्या भूल गया तू गया कि दादा जी ने क्या कहा था!"

    रणदीप उठकर खड़ा हुआ उसके चेहरे पर वही पुराना ठंडापन, मगर आंखों में हल्की झुंझलाहट थी उसने चिढ़ते हुए कहा, "मुझे बच्चा चाहिए, और मुझे उसे बिना किसी इमोशनल ड्रामे के चाहिए था! इसीलिए ये रास्ता चुना।"

    अबीर उसके पास आया, कंधे पर हाथ रखा, रणदीप को समझाते हुए कहा, "लेकिन दोस्त! दादाजी ने सिर्फ बच्चे की बात नहीं की थी, उन्होंने साफ-साफ कहा था कि अगर प्रॉपर्टी चाहिए, तो शादी करके अपना घर बसाओ! एक वैध, कानूनी शादी!"

    रणदीप ने खिड़की से बाहर देखते हुए एक लंबी सांस लेते हुए पूछा, "तो अब क्या?"

    अबीर मुस्कराया, "अब या तो शादी कर, या सब कुछ भूल जा! तेरे नाम कुछ नहीं होगा।"

    अबीर की बात सुन कर रणदीप गहरी सोच में पड़ गया। जिस शादी रूपी जाल में फंसने से वो बचना चाहता था पर उसके दादा जी उसे उसी जाल में फंसा रहे थे।

    उसने अबीर को देखते हुए पूछा, "क्या कोई और रास्ता नहीं?"

    अबीर ने रणदीप को देखते हुए कहा, "है ना! जैसे तू पहले बच्चे के लिए कॉन्ट्रैक्ट कर रहा था अब उसी लड़की से शादी का कॉन्ट्रैक्ट कर! मजबूर है! बेसहारा है तो वो मना भी नहीं कर पाएगी!"

    रणदीप ने अबीर की अपना फ़ोन उठा सुहानी का नंबर डायल कर दिया और जैसे ही कुछ देर में कॉल पिक हुआ, रणदीप ने सुहानी को कुछ बोलने का मौका दिए बग़ैर अपनी ठंडी मगर भारी आवाज़ में कहा, "Meet me at my place in an hour!"

    To be continued ✍️ ✍️ ✍️ 

  • 3. The Billionaire's Surrogate - Chapter 3

    Words: 1556

    Estimated Reading Time: 10 min

    अगली शाम,

    आज बारिश नहीं हो रही थी, मगर हवा में एक अजीब सी घुटन थी।

    सुहानी फिर से उसी दरवाज़े पर खड़ी थी Skyline Residency Tower 9

    रणदीप ने उसे इस बार खुद कॉल करके बुलाया था।

    "आपने बुलाया था। बताइए, क्या बात है?", वो दरवाज़े से अंदर आते ही बोली, थकी और असहज।

    रणदीप इस बार शांत था। उसके हाथ में वही सफेद फाइल थी। लेकिन इस बार ये सिर्फ मेडिकल दस्तावेज नहीं थे।

    रणदीप ने शांत मगर कठोर आवाज में कहा, "बैठो! ... तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं!"

    इतना कहकर रणदीप ने उसके सामने फाइल रखी और सुहानी से उसे खोल कर पढ़ने को कहा तो सुहानी ने फाइल खोली और उसे पढ़ने लगी।

    ' दस महीने की कानूनी शादी',

    'उसकी अवधि के दौरान दोनों पक्षों का आपसी सम्मान',

    'बच्चे के जन्म के बाद तलाक़ और पूरी स्वतंत्रता'

    उसने फाइल को घूरते हुए पूछा, "ये... क्या है?"

    रणदीप ने चेहरे पर बिना किसी भाव को लाए बगैर सपाट लहज़े में कहा, "ये नया कॉन्ट्रैक्ट है! तुम सरोगेसी के लिए तो राज़ी हो गई थीं, लेकिन अब परिस्थितियाँ बदल गई हैं। मैं चाहता हूँ कि हम शादी करें… कॉन्ट्रैक्ट मैरिज।"

    रणदीप ने फाइल उसके हाथ से लेकर कहा, , "मुझे सिर्फ बच्चा नहीं चाहिए। अब मुझे तुमसे दस महीने की शादी भी करनी है।"

    "क्यों?" सुहानी की आवाज़ कांप गई।

    रणदीप कुछ पल चुप रहा, मगर फ़िर उसने सुहानी को घूरते हुए कहा, "ये जानना तुम्हारे लिए ज़रूरी नहीं! ... तुम्हारे लिए इतना जानना ज़रूरी है कि इस सबके लिए मैं तुम्हें मुंह मांगी क़ीमत दूंगा!

    सुहानी हतप्रभ थी। वो उससे एक बच्चा चाहता था। जिसकी कीमत भी देने को राज़ी था पर क्या वो इतनी बुरी मां है जो अपने बच्चे को पैसों के लिए बेच देगी।

    उसने हैरान होते हुए पूछा, "आप मुझे अपनी नक़ली बीवी बनने के लिए कह रहे हैं?"

    रणदीप ने ठंडे स्वर में कहा, "नहीं! शादी असली होगी! मगर सिर्फ कागज़ों पर होगी! ......न कोई रस्में, न कोई मोहब्बत! .... और बच्चे के जन्म के बाद तलाक़! इस दौरान तुम्हें तुम्हारी रकम भी मिलेगी!"

    सुहानी, रणदीप की बात सुन गुस्से से भर गई और उसकी आंखों में आँसू भर आए मगर फ़िर भी उसने हिम्मत कर उससे कहा, "और अगर मैं मना कर दूं?"

    रणदीप उसकी बात सुन मुस्कुराया और उसने सुहानी को देखते हुए पूछा, "क्या तुम ऐसा कर सकती हो? .......और सोचो अगर ऐसा करोगी तो फ़िर तुम्हारी दोस्त का क्या होगा?"

    सुहानी की आंखों से आंसू फिसल कर उसके गाल पर लुढ़के तो रणदीप ने उसके सामने बैठते हुए कहा, "मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है तुम्हारे ना कहने से! मैं कोई और ढूंढ़ लूंगा! ... मगर तुम ख़ुद के बारे में सोचो कि तुम क्या करोगी? .... कैसे बचाओगी अपनी दोस्त को!"

    अपनी दोस्त श्रेया के बारे में सोच सुहानी की आंखों से अब लगातार आंसू बहने लगे रणदीप के सामने उसकी बोलती बंद पड़ गई।

    उसे कल का वो समय याद आ गया जब उसे पता चला था कि ऑफिस जाते वक़्त उसकी दोस्त श्रेया का बहुत बुरा एक्सीडेंट हो गया।

    वो अपना सारा काम छोड़ भागते हुए हॉस्पिटल पहुंची तो डॉक्टर से बात करने के बाद उसे पता चला कि उसके ब्रेन में ब्लीडिंग काफी हद तक बढ़ चुकी थी ऐसे में अगर उसका सही समय पर ऑपरेशन नहीं हुआ तो उसका बचपना नामुमकिन था।

    श्रेया को याद कर सुहानी ने रोते हुए फाइल के पास पड़ा पेन उठाया और अपने कांपते हाथों से फाइल के पन्नों को पलट उस कॉन्ट्रैक्ट पर साइन कर दिया। क्योंकि उसके पास इसके अलावा अब कोई रास्ता नहीं था। सिवाय श्रेया के इस बड़ी सी दुनियां में उसका कोई अपना नहीं था। 

    बचपन में एक बार श्रेया ने उसकी जान बचाई थी और अब उसकी बारी थी।

    अगली सुबह,

     सुबह 11:00 बजे,

    दिल्ली के एक स्थानीय फैमिली कोर्ट का सादा-सा कमरा। दीवारों पर कानून से जुड़ी सूचनाएं लगी थीं पास ही एक वकील और दो गवाह मौजूद थे । पहला गवाह अबीर और दूसरा गवाह कोर्ट क्लर्क था । रणदीप का P.A विकास भी वहां मौजूद था।बाहर हल्की सी धूप फैली थी, लेकिन अंदर एक अजीब-सी ठंडक थी।

    सुहानी ने एक लाल रंग की सुंदर डिज़ाइनर साड़ी पहनी हुई थी जो कि उसे रणदीप ने ही लाकर दी थी। पर श्रृंगार के बावजूद उसका चेहरा भावशून्य था।

    इसलिए जज ने पूछा, "आप दोनों ने शादी के लिए सहमति जताई है? कोई दबाव तो नहीं?"

    सुहानी रणदीप की तरफ देखती है, जो सीधा आगे देख रहा था। ब्लैक कलर के टू पीस सूट में उसका चेहरा भी भावशून्य दिखाई पड़ रहा था। 

    उससे नज़रें हटा सुहानी ने धीमे से कहा, "नहीं... कोई दबाव नहीं!"

    रणदीप ने भी संक्षिप्त और औपचारिक लहजे में कहा, "हाँ, सहमति है!"

    उन दोनों के कागज़ों पर दस्तख़त होते हैं। फिर अबीर दस्तख़त , करता है। उसके बाद कोर्ट का क्लर्क साइन करता है।

    साइन के बाद, जज हल्के से मुस्कुराते हैं और उन्होंने उन दोनों को देखते हुए कहा, "अब आप दोनों पति-पत्नी हैं कानूनी रूप से। शुभकामनाएं।"

    सुहानी एक बार फ़िर रणदीप को देखती है उसका चेहरा अब भी कठोर था। 

    तभी उनके पास खड़े अबीर ने मुस्कराते हुए, हल्के अंदाज़ में रणदीप के गले लग कर कहा, "वाह! आखिरकार दिल्ली का सबसे कूल और सबसे ठंडा दिल इंसान भी शादी के बंधन में बंध ही गया!"

    उसने सुहानी की ओर देखते हुए कहा, "बधाई हो, भाभी! ...रणदीप से निपटना आसान नहीं होगा, पर आपको देख कर लग रहा है कि आप संभाल लेंगी।

    सुहानी हल्के से सिर झुका देती है, मुस्कुराने की कोशिश करती है लेकिन भीतर की उलझनें साफ़ हैं। रणदीप चुपचाप खड़ा था चेहरा निर्विकार।

    रणदीप ने अबीर की ओर देखते हुए, हल्की आवाज़ में कहा, "Formalities ख़त्म हो गई हैं! ....अबीर, thanks for coming."

    अबीर ने रणदीप के एक बार फ़िर गले लगते हुए कहा, "अरे तेरे लिए तो कुछ भी करूंगा! कहीं भी आऊंगा! बस तू बुला कर तो देख!"

    रणदीप ने अपनी घड़ी की में देख फिर बगल में खड़े P.A. विकास को हल्का सा सिर हिलाकर इशारा किया तो विकास ने तुरंत फोन निकाल, कुछ सेकंड में फ़ोन पर बात की और फिर सिर हिला दिया।

    विकास ने धीरे से रणदीप के पास जाकर कहा,"सर, गाड़ी और सिक्योरिटी टीम बिल्डिंग के पीछे वाले रास्ते पर तैयार है! बाहर कोई मीडिया या फोटोग्राफर नहीं है। हम निकल सकते हैं!"

    रणदीप सुहानी की ओर मुड़ता है, उसकी आंखों में कोई भाव नहीं थे उसने अपनी वहीं ठंडी आवाज़ में कहा, "चलो!"

    विकास के साथ वे तीनों बाहर की ओर बढ़ते हैं। कोर्ट के पिछले हिस्से से बाहर निकलते ही दो ब्लैक SUV खड़ी थी एक आगे, एक पीछे। चार बॉडीगार्ड्स ब्लैक सूट और इन-ईयर कम्युनिकेशन में—दोनों तरफ खड़े थे।

    रणदीप, सुहानी के लिए पिछला दरवाज़ा खोलता है। सुहानी थोड़ा हिचकिचा कर बैठती है। वो अब भी इस सब में अजनबी-सी थी। 

    रणदीप ने अब अबीर को बाय कहा तो अबीर भी एक तरफ़ खड़ी अपनी कार की तरफ़ बढ़ गया।

    वहीं गाड़ी में रणदीप सुहानी के बगल में बैठता है। SUV का दरवाज़ा बंद होता है, और बिना शोर-शराबे के दोनों कार अपार्टमेंट की ओर निकल पड़ती हैं।

    वहीं पीछे अब तक खड़ा अबीर मुस्कुराता हुआ उन्हें जाते देखता है, फिर हल्के से सिर हिला कर बुदबुदाया, "ये तो सिर्फ़ शुरुआत है... असली कहानी अब शुरू होगी!"

    रात के समय,

    दस बज चुके थे ऐसे में सुहानी डिनर कर अपने रूम में आ गई थी। रणदीप उसे सुबह ही यहां अपार्टमेंट पर एक मेड जिसका नाम मैथिली था उसके साथ उसे छोड़ कर चला गया था और वो अब तक वापस नहीं लौटा था।

    रणदीप के कहे अनुसार मैथिली ने जो कि लगभग तीस पैंतालीस साल की महिला थी सुहानी को उसका एक अलग से रूम दिया था जिसके चलते सुहानी की थोड़ी घबराहट कम हुई थी।

    सुहानी बेड पर आकर लेटी ही थी कि किसी ने उसका डोर नॉक किया।

    सुहानी ने उठ कर जा कर डोर ओपन करके देखा तो डोर पर मैथिली खड़ी हुई थी।

    मैथिली ने मुस्कराते हुए कहा, "मैडम! सर आपको बुला रहे हैं!"

    रणदीप आ गया था ये जान सुहानी ने झट से बेड से अपना दुपट्टा उठाया और उसे डालते हुए बाहर निकली तो मैथिली ने उसे रणदीप के रूम की तरफ इशारा करते हुए कहा, "वो सर का कमरा है!"

    सुहानी हां में सिर हिलाते हुए रणदीप के रूम के बाहर पहुंची और उसने डोर नॉक किया कि तभी अंदर से रणदीप की आवाज़ आई, "अंदर आ जाओ!"

    सुहानी ने डोर ओपन किया और अंदर जाते ही रणदीप से पूछा, "श्रेया कैसी है? उसका.....!"

    रणदीप ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, "उसका ऑपरेशन हो चुका है! कल सुबह तक उसे होश आ जाएगा तो तुम चाहो तो उससे कल मिलने भी जा सकती हो!"

    ये ख़बर सुनते ही सुहानी का चेहरा खिल उठा और उसने हाथ जोड़ते हुए मन ही मन में भगवान को शुक्रियादा किया और आँखें खोली हीं थी कि तभी रणदीप जो कि सोफे पर बैठा हुआ था अचानक से उठ खड़ा हुआ और उसने सुहानी से कहा, "डोर लॉक करो!"

    रणदीप की बात सुन सुहानी ने हैरानी से पूछा, "जी?"

    इस पर रणदीप ने अपना बाथरोब निकालते हुए इस बार थोड़ी सख़्ती से कहा, "सुनाई नहीं दिया तुम्हें? मैंने कहा कि डोर लॉक करो और जाकर बेड पर लेट जाओ!"

    रणदीप की बात सुन सुहानी को मानो झटका लगा वो रणदीप को देखती रह गई जो कि अपना बाथरोब निकाल अब उसके सामने सिर्फ़ बॉक्सर पहने खड़ा था।

    To be continued ✍️ ✍️ 

  • 4. The Billionaire's Surrogate - Chapter 4

    Words: 1542

    Estimated Reading Time: 10 min

    रणदीप के साउथ दिल्ली के अपार्टमेंट में गहराई पसरी हुई थी। दीवारों पर विदेशी पेंटिंग्स, फर्श पर मख़मली कारपेट, और शीशे की दीवारों से झांकता शहर का रोशन आकाश.... सब कुछ आलीशान और मूक।

    वहीं रणदीप के कमरें में अजीब सी शांति पसरी हुई थी। सुहानी ने उसे अपने सामने बग़ैर कपड़ों के खड़े हुए देख उस शांति को भंग करते हुए तेज़ आवाज़ में उससे पूछा, "क्या कर रहे हैं आप?"

    रणदीप ने आश्चर्य से खीझते हुए पूछा, "क्या मतलब क्या कर रहा हूँ? भूल गईं? हम अब पति पत्नी हैं!"

    सुहानी ने उसे याद दिलाते हुए सख़्त लहजे में कहा, "कैसे पति पत्नी? याद दिला दूं Mr. मेहरा ये शादी एक सौदा है, और इस सौदे में कोई "हक़" नहीं है! सिर्फ़ शर्तें हैं!"

    रणदीप के माथे पर बल पड़ गए। उसे किसी से इस तरह जवाब सुनने की आदत नहीं थी। खासकर किसी औरत से, और वो भी उस औरत से, जिससे वो शादी करके अपनी शर्तें लागू करने आया था।

    रणदीप ने गुस्से में, आवाज़ ऊँची करते हुए कहा, "तमीज़ से बात करो, लड़की! भूल मत जाना कि तुम्हारी हर सांस इस वक़्त मेरी मर्ज़ी से चल रही है!"

    सुहानी की आँखों में आँसू भर आए और उसने भरे गले से कहा, 

    "आपने जो कॉन्ट्रैक्ट साइन कराया है, उसमें ऐसा कहीं नहीं लिखा कि मुझे आपके साथ फिजिकल होना पड़ेगा।"

    सुहानी ने एक बार फिर चींखते हुए कहा, "आपको बच्चा चाहिए ना? IVF करा लीजिए। मैं तैयार हूँ। लेकिन मैं कोई खरीदी गई चीज़ नहीं हूँ, Mr. मेहरा!"

    एक पल को सन्नाटा छा गया। रणदीप की आंखें सुहानी पर टिकी थीं, जैसे पहली बार उसे देख रहा हो। वो लड़की जो एक अनाथ आश्रम से आई थी, अपनी दोस्त के इलाज के लिए कुछ भी सहने को तैयार थी, आज उसकी आंखों में इतनी हिम्मत कैसे थी?

    रणदीप बिना कुछ कहे अपना बाथरोब वापस पहन अब तेज़ क़दमों से कमरे से निकल गया। सुहानी वहीं खड़ी रही, कांपते हाथों से अपने आंसू पोंछती हुई। 

    ********

    "कभी-कभी ख़ामोशी भी चीख़ होती है।"

    रणदीप के बेडरूम में जलती सिल्वर लैम्प की रोशनी कमरे को ठंडा और भव्य बना रही थी, पर इस वक़्त कमरे का माहौल सिसकियों और गूंजते लहजों से भरा था।

    रूम में अजीब सी ख़ामोशी ज़रूर थी मगर फ़िर सुहानी को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसके कानों में अजीब सा शोर बड़ी तेज़ आवाज़ के साथ घुल रहा था। असल में ये शोर उसकी अंतर्रात्मा का शोर था।

    सुहानी फर्श के पास खड़ी थी, उसकी पीठ दीवार से सटी हुई, चेहरे पर डर, आंखों में गुस्सा और दिल में टूटी हुई उम्मीदें।

    तभी रणदीप रूम में वापस आया और उसे देख सुहानी एक बार फ़िर कांप उठी। उसकी नज़र उसके हाथों पर पड़ी तो रणदीप के हाथ में वही कॉन्ट्रैक्ट फाइल थी।

    रणदीप ने आवाज़ में तेज़ी, लहजे में घमंड भर कर कहा, "शायद तुमने कॉन्ट्रैक्ट ध्यान से नहीं पढ़ा था... इसलिए एक बार फ़िर इसे पढ़ो वो भी मेरे सामने!"

    इतना कहकर उसने वो फाइल को खोली और एक पन्ने की ओर इशारा किया।

    सुहानी ने अपनी भीगी हुईं आंखों में से आंसू पोंछ उस पन्ने को पढ़ना शुरू किया - 

    क्लॉज नंबर 7 – “Surrogacy shall be carried out through natural process as per the requirement of the client.”

    और उस क्लाइंट का नाम है — रणदीप मेहरा।

    ये पढ़ते ही सुहानी का चेहरा फक पड़ गया। वो जैसे पत्थर की हो गई। उसे याद आया, उसने कॉन्ट्रैक्ट जल्दबाजी में सिर्फ़ अपनी दोस्त की जान बचाने के लिए स्टार्टिंग के और कुछ आख़िर के क्लॉज पढ़े और साइन कर दिया था.... मगर अब हर शब्द उसके लिए हथकड़ी बन चुका था।

    रणदीप ने आगे बढ़ते हुए, ठंडी बेरुखी से उससे फाइल छीनते हुए पूछा, "और अगर अब तुम इस कॉन्ट्रैक्ट से पीछे हटना चाहती हो... तो याद रहे मैं वो हर एक पैसा वापस मांग लूंगा — हॉस्पिटल का खर्चा, लीगल फीस, और वो बड़ी रकम जो तुम्हारी दोस्त के इलाज के लिए दी गई है! ...तय करो, .... कि तुम क्या वापस कर पाओगी?

    सुहानी के होंठ काँप उठे, उसका चेहरा स्याह पड़ चुका था वो धड़ाम से बिस्तर के कोने पर बैठ जाती है। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे मगर वो खुद को रोकती है, जैसे रोने से कमज़ोर न पड़ जाए।

    सुहानी ने अपनी टूटी हुई आवाज़ में पूछा, "आप ये सब जानते हुए... फिर भी ऐसा कैसे कर सकते हैं? मैं इंसान हूँ, कोई कागज़ी चीज़ नहीं... क्या इसलिए ही आपने मुझसे इतने सवाल पूछे थे कि मेरा बॉयफ्रेंड है या नहीं? मैं वर्जिन हूं या नहीं?"

    रणदीप बिल्कुल शांत, लगभग ठंडा पड़ चुका था। वहीं सुहानी रोते हुए अपना चेहरा अपने हाथों में छुपा गई।

    तभी रणदीप ने अपनी गहरी आवाज़ में कहा, "कागज़ पर ही तो ये रिश्ता बना है! ....और जो कागज़ पर लिखा है, वही निभाना पड़ेगा।

    एक पल को खामोशी छा जाती है। सिर्फ़ घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी।

    सुहानी ने धीरे, हौले से फुसफुसाते हुए कहा,"मैंने अपनी दोस्त को बचाने के लिए अपनी ज़िन्दगी गिरवी रख दी... पर ये गिरवी रखना, क्या उसकी कीमत इतनी बेहिसाब हो सकती है?

    रणदीप उस पर एक पल नज़र डालता है, लेकिन कुछ नहीं कहता। वह मुड़कर बाहर चला जाता है। दरवाज़ा बंद होते ही सुहानी जैसे भीतर से चटक गई हो। वो चुपचाप अपनी हथेलियों को देखती है, फिर बेड पर ही अपने पैर ऊपर कर चेहरा घुटनों में छुपाकर चुपचाप रोने लगती है।

    "कभी-कभी जिस्म से पहले रूह टूटती है..."

    रात के 10:45 बजे,

    बाहर दिल्ली की सड़कों पर रौशनी का सैलाब है, लेकिन रणदीप के अपार्टमेंट में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा है। सब कुछ शांत है, मगर अंदरूनी हलचलें तूफ़ान की तरह चल रही थीं।

    सुहानी रणदीप के कमरे में अकेली बैठी थी

    वो एक रेशमी नाइटगाउन में थी, जिसे मेड मैथिली उसे ये कहकर देकर गई थी कि, "मैम! सर ने ये आपके लिए भेजा है!"

    रेशमी था वो पर वो कपड़ा उसकी त्वचा पर बोझ जैसा लग रहा था। शीशे के सामने खड़ी होकर वह खुद को निहार रही थी। पर उस लड़की को पहचान नहीं पा रही थी जिसे वो रोज़ आईने में देखती थी। आँखें सूजी हुई थीं, होंठ सूखे, और चेहरा बेहरंग।

    टेबल पर वो कॉन्ट्रैक्ट पड़ा था, खुले पन्नों के साथ… जैसे याद दिलाने के लिए कि ये रात एक सौदे का हिस्सा है।

    हां! उसने रणदीप की सभी शर्तें मान लीं थीं क्यूं? .... क्योंकि उसके पास अब और कोई चारा नहीं था। वो वाकई ख़ुद को बेच चुकी थी।

    तभी दरवाज़े पर एक धीमी दस्तक होती है।

    आवाज़ सुन सुहानी का दिल ज़ोर से धड़क उठता है। उसकी साँसें थम सी गईं।

    कुछ पल बाद दरवाज़ा खुलता है। रणदीप अंदर आया और उसने अब भी वो बाथरोब पहना हुआ था उसके बाल ज़रा-से बिखरे हुए थे पर चेहरे पर वही पुरानी ठंडी नज़ाकत थी।

    रणदीप ने धीमे मगर स्पष्ट स्वर में उससे पूछा, "तुम तैयार हो?"

    सुहानी ने कुछ नहीं कहा बस गर्दन झुका ली और धीरे से सिर हिला दिया। चुप्पी उसकी सहमति नहीं, उसकी मजबूरी थी। वो शब्दों में विरोध नहीं कर सकी, क्योंकि उसके पास अब कुछ खोने को नहीं बचा था... सिवाय अपने आप को।

    रणदीप रूम लॉक कर धीमे कदमों से उसके पास आता है। उसकी आंखों में कोई मोहब्बत, कोई चाह नहीं थी..... सिर्फ़ एक अधिकार था, जो उसने एक दस्तख़त के बदले हासिल किया था।

    रणदीप ने एक बार फ़िर अपना बाथरोब निकाल कर वहीं सोफे पर फेंकते हुए कहा, "बेड पर जा कर लेट जाओ!"

    सुहानी ने उसकी बात सुन आपस में अपने होंठ भींच लिए ताकि उसकी रुलाई ना फूटे और वो धीमे मगर सहमी सी चाल चलते हुए बेड पर जा बैठी।

    तभी रूम में जल रही वो सिल्वर लैंप भी बुझ गई और अब रूम में चारों तरफ़ सिर्फ़ अंधेरा ही अंधेरा था।

    तभी सुहानी को एहसास हुआ कि वो उसके क़रीब ही बैठ चुका था और उसने सुहानी की ठंडी हथेलियों को छुआ तो अचानक से उसकी छुअन को महसूस कर वो पीछे हट गई। 

    पर अगले ही पल अपनी ग़लती का एहसास होते ही उसने कांपते स्वर में माफ़ी मांगते हुए कहा, "सॉरी!"

    रणदीप ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि उसे लेकर बेड पर लेटा तो सुहानी की आंखों से आंसू बहने लगे।

    वहीं रणदीप ने इस बात की परवाह किए बग़ैर सीधा हाथ उसकी क़मर पर रख सुहानी की नाइटगाउन की नॉट को खोल दिया।

    जिसका एहसास होते ही सुहानी ने अपनी आँखें भींच लीं।

    कुछ ही देर में, सुहानी की नाइटगाउन उसके शरीर से अलग हो कर नीचे फर्श पर पड़ी हुई थी और वो रणदीप के नीचे दबी हुई थी। रणदीप के हाथ उसके शरीर के हर नाज़ुक हिस्सों को छू रहे थे जिसकी वजह से सुहानी का कमज़ोर सा वजूद कांप रहा था।

    थोड़ी देर बाद, उसने रणदीप के हाथों को अब अपने पैरों पर महसूस किया और जैसे जैसे उसके हाथ ऊपर बढ़ने लगे तो दिल में अजीब सी हलचल के साथ उसका दिल ज़ोर जोर से धक धक करने लगा और अगले पल वो हुआ जिसके कारण सुहानी के चेहरे पर दर्द की लहर दौड़ गई और उसके मुंह से चींख निकल गई।

    रणदीप उसमें समा चुका था ऐसे में उसकी बढ़ती हरक़त सुहानी के लिए काफी दर्द भरी थीं। दर्द

     को सहते हुए उसने रणदीप से पूछा, "Mr. मेहरा क्या मैं आपको पकड़ सकती हूं?"

    To be continued ✍️✍️✍️ 

  • 5. The Billionaire's Surrogate - Chapter 5

    Words: 1588

    Estimated Reading Time: 10 min

    रणदीप ने सुहानी की बात सुन धीरे से कहा, "हां!"

    उसकी हां सुनते ही सुहानी ने उसके गले में अपनी पतली सी बाहें डाली और वो उसके क़रीब हो उसके गले लग गई क्योंकि उससे दर्द बर्दाश नहीं हो रहा था। 

    पर उसके गले लगते ही रणदीप को अपने शरीर में एक अजीब सी झुनझुनाहट महसूस हुई। वो एक पल के लिए रुक गया और सुहानी को देखने की कोशिश करने लगा।

    वो जानता था कि सुहानी का ये पहली बार है पर फ़िर भी अपनी आदत से मजबूर वो उसके साथ जेंटल नहीं हो पा रहा था। उसके हाथ इस वक़्त सुहानी की पतली क़मर को पकड़े हुए उसे अपने नीचे घेरे हुए थे। वहीं उसके होंठ उसके गले पर निशान छोड़ रहे थे।

    कमरें में इस वक्त दो दिलों के तेज़ धड़कने का शोर था और साथ ही सुहानी की सिसकियों का शोर बढ़ता जा रहा था क्योंकि रणदीप वो अब एक बार फ़िर उस पर पूरी तरह हावी हो रहा था।

    कुछ देर बाद थक कर चूर हो वो रुका तो ना जाने किस एहसास के चलते उसने सुहानी के ऊपर से उठने की बजाय उसके चेहरे पर झुक कर उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए।

    सुहानी उसके होठों का स्पर्श अपने होठों पर पा कर जड़ हो गई और तभी उसे महसूस हुआ कि रणदीप उसके निचले होंठ को बड़े ही आराम से प्यार से चूम रहा था।

    धीरे धीरे वो किस को और गहरा करने लगा था कि तभी अचानक से वो रुका और उसके ऊपर से उठ उसके बगल से लेट गया।

    थोड़ी देर बाद, 

    रणदीप ने हल्की नाराज़गी से पास लेटी सुहानी से कहा, "तुम अब अपने रूम में जा सकती हो!"

    सुहानी ने उसकी बात का जवाब देते हुए धीरे से मगर रोते हुए कहा, "पर मुझसे नहीं उठा जा रहा!"

    ये सच था वरना उसने तो रणदीप के अलग होते ही उठना चाहा था मगर उसके पैरों ने, उसके शरीर ने उसका साथ नहीं दिया।

    रणदीप खामोश हुआ और अब उससे मुंह फेर कर लेट गया। वहीं सुहानी में अब इतनी भी शक्ति नहीं बची थी कि वो उठ कर अपना नाइटगाउन वापस पहन सके ऐसे में वो यूंही बेजान सी बिस्तर पर पड़ी रही और उसने धीरे से पैरों के पास पड़े ब्लैंकेट को खींच अपने शरीर को ढक लिया।

    ***********

     रात के दूसरे पहर में सुहानी की आंख खुली तो रणदीप को गहरी नींद में सोता पाया। उसने अब भी उससे मुंह फेरा हुआ था। ये देख सुहानी की आंखों में नमी बन आई और उसने उठने की कोशिश की तो वो उठ पाई थी। सुहानी ने चुपचाप उठकर अपना बिखरा हुआ अस्तित्व समेटा और वापस से नीचे पड़ा अपना नाइटगाउन पहना फ़िर धीरे धीरे चलते हुए डोर पर पहुंच रूम से बाहर निकल गई।

    सच कहें तो ना जाने क्यूं सुहानी को रणदीप का उसे छूना बुरा नहीं लगा था पर जिस तरह से उसने उसे अपने कमरें से निकल जाने को कहा उस बात ने सुहानी के दिल को ठेस पहुंचाई थी।

    वो उसके लिए एक खरीदी हुई चीज़ से ज़्यादा कुछ नहीं थी। एक ऐसा खिलौना जिससे उसने अपना मन बहलाया और फ़िर उसे दूर फेंक दिया।

    अपने रूम में आ सुहानी पेट के बल लेट गई और ना जाने कब तक वो बस यूंही रोती रही।

    "दोनों के बीच जिस्म का रिश्ता बना, पर दिल अब भी अजनबी थे..."

    ********

    अगली सुबह,

    रणदीप की सुबह हुई तो सबसे पहले उसने अपने बगल में नज़रें दौड़ाई। वो उसके पास से उठ कर जा चुकी थी।

    रणदीप भी अब ब्लैंकेट हटा कर उठा तो नज़र सफ़ेद बेडशीट पर पड़े खून के धब्बों पर पड़ी।

    रणदीप ने उन धब्बों पर वापस से ब्लैंकेट डाला और उठ खड़ा हुआ।

    चेहरा उसका अभी भी इमोशनलेस ही था। अपने डेली रूटीन को फॉलो कर अब जब वो नहाने के लिए शावर के नीचे आ खड़ा हुआ तो एक बार फ़िर दिमाग़ में रात की कुछ हल्की झलकियां दिखाई पड़ी।

    उसने गुस्से से अपनी मुट्ठी भींच शावर की वॉल पर दे मारी।

    आज से पहले ना जाने अपनी शारीरिक जरूरतों के चलते वो कितनी लड़कियों के साथ हमबिस्तर हुआ था मगर उसने कभी किसी लड़की को किस नहीं किया था तो फ़िर कल रात ऐसा क्या हुआ था जो वो ऐसा बहका कि उसने सुहानी के होठों को अपने होठों में भींच लिया।

    "Why? Why did I kiss her?", वो चिल्लाया।

    उसे रात में भी ख़ुद पर और ना जाने क्यूं अपनी की हुई इस हरक़त के बाद सुहानी पर भी गुस्सा आया था इसलिए उसने बेरूखी से उसे जाने को कह दिया था।

    काफ़ी देर तक यूंही शावर के नीचे भींगते रहने के बाद वो बाहर आया और रेडी होकर अपने रूम से बाहर निकल सीढ़ियां उतरता नीचे हॉल में पहुंचा तो देखा मैथिली डाइनिंग टेबल पर ब्रेकफास्ट लगा रही थी।

    रणदीप ने इधर उधर देखा और जब सुहानी उसे कहीं भी दिखाई नहीं दी तो अपने हाथ में पहनी हुई वॉच में टाइम चेक किया। 

    सुबह के नौ बजने को थे ऐसे में रणदीप ने मैथिली से कहा, "जाकर उस लड़की को बुला कर लाओ!"

    मैथिली ने हां में सिर हिलाया और जाने को हुई थी कि तभी रणदीप ने उसे रोकते हुए कहा, "स्टॉप! एक काम करो! तुम जाकर पहले मेरे रूम की सफ़ाई करो! और हां बेडशीट भी चेंज कर देना!"

    मैथिली उसका ऑर्डर मान ऊपर जा रणदीप के रूम की तरफ़ बढ़ गई और रणदीप वो भी ऊपर आते हुए सुहानी के रूम की तरफ चल दिया।

    वहीं सुहानी के रूम में, 

    सुबह की रोशनी कमरे में धीरे-धीरे भर रही थी, पर सुहानी के कमरे के परदे अब भी गिरे हुए थे। बिस्तर के सिरहाने बैठी वह चुपचाप दीवार को घूर रही थी। उसकी आँखें लाल थीं, रात नींद नहीं आई थी… या शायद उसने सोने की हिम्मत ही नहीं की।

    कल रात की हर हलचल अब भी उसकी त्वचा पर दर्ज थी, जैसे वो एक खामोश चीख थी जो उसके भीतर से उठ रही थी… मगर बाहर कोई सुनने वाला नहीं था।

    वो एक कड़वा पल था जब रणदीप, अपने 'हक़' की पूर्ति के बाद, बगैर कुछ कहे, उसे कमरे से जाने को कह गया था।

    "तुम अब अपने रूम में जा सकती हो,"

    बस इतना ही कहा था उसने। और फिर पीठ मोड़ ली थी।

     वो अभी भी कल की यादों में खोई हुई थी कि तभी किसी ने उसके डोर पर नॉक किया।

    इधर, बाहर डोर पर खड़े रणदीप ने आवाज़ देते हुए कहा, "5 मिनिट में बाहर आओ! ब्रेकफास्ट रेडी है!"

    भीतर चुप्पी थी मगर कुछ सेकंड की खामोशी के बाद दरवाज़ा खुला.... हल्का-सा, पर पूरा नहीं

    सुहानी ने बाहर झांकते हुए सपाट स्वर में, बिन किसी भाव के कहा, "माफ़ कीजिए... मुझे भूख नहीं है।"

    पर रणदीप को तो जैसे आदेश की आदत हो इसलिए उसने बेरूखी से ऑर्डर देते हुए कहा, "मैंने कहा है तो नीचे आओ!"

    इतना कहकर वो वहां से चला गया।

    कुछ देर बाद, 

    सुहानी नहा कर फ्रेश होने के बाद अपने रूम से बाहर निकल धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतर रही थी। चेहरे पर थकान, चाल में संकोच, और आँखों में वो उदासी जो रात के ज़ख़्मों से गहराई थी। उसने हल्का सा सूती कुर्ता पहन रखा था .... न ज्यादा सजा-संवरा, न पूरी तरह बिखरा हुआ। वो ऐसे लग रही थी जैसे उसके भीतर कोई शोर है, मगर वो उसे ज़ाहिर नहीं करना चाहती।

    डाइनिंग टेबल पर पहले से ही नाश्ता लगा था... फलों की प्लेट, टोस्ट, अंडे, और कॉफी। उसके सामने बैठे रणदीप ने उसे आते देखा, लेकिन चेहरे पर कोई अफ़सोस, कोई शर्म या कोई मुलायमियत नहीं थी.... वही सख्त और संयमित चेहरा।

    रणदीप ने उसे एक नज़र देखते हुए कहा, "बैठो! नाश्ता ठंडा हो रहा है!"

    सुहानी चुपचाप कुर्सी खींचती हुई बैठ गई और कुछ पल तक दोनों के बीच कोई बात नहीं होती। रणदीप अपनी कॉफी पीता है, फिर बिना उसकी ओर देखे रणदीप ने कहा, "आज दोपहर तुम्हें मेरे दादाजी से मिलना है।"

    सुहानी का हाथ हल्के से रुक जाता है, वो चौंकती है जैसे उसकी उम्मीद के दायरे से ये बात बाहर हो।

    सुहानी ने धीमे स्वर में पूछा, "आपके दादाजी?"

    रणदीप ने सपाट लहजे में कहा, "हां मेरे दादा जी!"

    सुहानी की नज़र रणदीप के चेहरे पर जाती है... वो जानना चाहती है कि ये “मुलाक़ात” एक पारिवारिक औपचारिकता है या एक और इम्तिहान। मगर रणदीप का चेहरा अब भी पत्थर जैसा था।

    रणदीप ने फर्क न पड़ने वाले लहजे में कहा, "1 बजे तक तैयार हो जाना। ड्राइवर तुम्हें नीचे से ले लेगा। ड्रेस वॉर्डरोब में रखी है जो पहननी है, पहन लेना।"

    सुहानी की आंखों में फिर से वो वही सवाल उभरते हैं... क्या उसे हर मोड़ पर आदेश की तरह जीना होगा?

    सुहानी का ध्यान अब नाश्ते पर गया तो उसने अपना बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा, "मैं ये नहीं खाती! प्योर वेजिटेरियन हूं!"

    सन्नाटा फिर से पसर जाता है। सुहानी चुपचाप अपनी प्लेट की तरफ देखती है, उसे सच में भूख लगी थी इसलिए जब रणदीप ने उससे कुछ नहीं कहा तो वो अंडे छोड़ ब्रेड और कॉफी उठा लेती है।

    ये देख रणदीप ने उसे देखते हुए कहा, "मुझे सपने नहीं होते कि तुम्हें क्या पसंद है खाने में क्या नहीं? या तुम क्या खाती हो क्या नहीं! ... इसलिए आइंदा जो भी खाना हो वो तुम मैथिली से कह सकती हो!"

    सुहानी उसकी आवाज़ सुन थोड़ा सहम गई पर फ़िर उसने धीरे से हां में सिर हिलाया तो रणदीप अब उठ खड़ा हुआ और वहां से जाने को हुआ कि तभी सुहानी ने उसे आवाज़ देते हुए रोका, "Mr. मेहरा!"

    To be continued ✍️ ✍️ ✍️ 

    हैलो डियर रीडर्स, 

    स्टोरी पसंद आ रही है तो प्लीज़ सभी लोग कमेंट करें 🙏🙏🙏

  • 6. The Billionaire's Surrogate - Chapter 6

    Words: 1904

    Estimated Reading Time: 12 min

    सुबह 11:45 बजे,  

    कमरे के एक कोने में सजे रैक पर डिजाइनर ड्रेसेस करीने से टंगे थे...... रेशम, शिफॉन, और नेट के जटिल काम वाले आउटफिट्स, जो किसी भी “बिजनेस टायकून की पत्नी” की शोभा के लायक थे।

    मगर सुहानी की आंखें वहां से हट चुकी थीं। वो वॉर्डरोब में नीचे रखे अपने छोटे से सूटकेस तक पहुंची जो वह यहां अपने साथ लाई थी। उसमें पड़े सलीके से तह किए गए कुछ सादे सूट थे। उसने हल्के आसमानी रंग का एक कॉटन का सूट निकाला, जो ना ज़्यादा चटक था ना फीका बस एक आम लड़की की तरह शालीन।

    उसने उसे ही पहना और खुद को शीशे में देखा। न माथे पर बिंदी, न मांग में सिंदूर। कानों में छोटे से मोती के टॉप्स और बाल पीछे बांधे हुए। सादगी उसके चेहरे पर ऐसे खिल रही थी जैसे ज़मीन पर गिरा एक शांत बादल।

    बाहर, दोपहर 12:30 बजे,

    ड्राइवर ने जैसे ही इंटरकॉम से कॉल किया, सुहानी नीचे उतर आई। रणदीप की गैरमौजूदगी में उसे अकेले निकलने में थोड़ा हिचक महसूस हुआ, मगर उसने खुद को समेटा और गाड़ी में बैठ गई।

    गाड़ी दक्षिण दिल्ली के सबसे पुराने और भव्य बंगलों में से एक, “मेहरा मेंशन” की ओर बढ़ रही थी। ये वही जगह थी जहाँ दलजीत मेहरा रहते थे, रणदीप के दादा जी। शहर में उनका नाम आज भी रसूख और सियासत दोनों में गूंजता था।

     मेहरा मेंशन, 

    लोहे के बड़े गेट के पार, हल्के क्रीमी से संगमरमर की बनी हवेली के आगे गाड़ी रुकी। ड्राइवर ने दरवाज़ा खोला और सुहानी ने झिझकते हुए कदम बाहर रखे।

    वो गेट की ओर बढ़ ही रही थी कि एक दूसरी कार तेज़ी से आकर वहीं रुकी। दरवाज़ा खुला और रणदीप बाहर निकला।

    रणदीप ने उसके बगल से खड़े होकर सपाट लहजे में कहा, "चलो!""

    सुहानी ने सिर हिलाया इस दौरान दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई, पर वो एक साथ मेंशन के बड़े से एंट्रेंस डोर की ओर बढ़े। डोर पहले से ही खुला था, जैसे उनका इंतज़ार हो रहा हो।

    रणदीप ने पहले ही सबको कॉल कर बता दिया था कि उसने शादी कर ली और वो अपनी वाइफ के साथ यहां सबसे मिलने आ रहा है।

    भीतर प्रवेश करते ही उनकी मुलाक़ात सबसे पहले हुई... रणदीप की चाची, डिंपी मेहरा से।

    ऊँची बंधी साड़ी, माथे पर चौड़ा सिंदूर, और होंठों पर मीठे ज़हर की परत लिए वो सीढ़ियों से नीचे उतरीं। जैसे ही उनकी नज़र सुहानी पर पड़ी, उनके चेहरे पर एक जानी पहचानी तिरछी मुस्कान उभर आई।

    डिंपी ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा, "अरे वाह! तो ये हैं हमारी नई बहू?"

    आँखों से ऊपर से नीचे तक सुहानी को देखती हुई डिंपी ने अब एक बार फ़िर तीर सुहानी पर छोड़ते हुए कहा, "नई नवेली दुल्हन हो कर आई हो बहू… और न माथे पर बिंदी, न मांग में सिंदूर? कोई गहना नहीं, ना काजल, ना लिपस्टिक? ऐसा क्यों? ... कहीं तुम दोनों शादी का ढोंग तो नहीं कर रहे ना?"

    सुहानी चुप खड़ी रही। उसके चेहरे पर कोई हड़कंप नहीं, कोई लाज नहीं बस एक शांत दृढ़ता। उसने सिर झुकाया, मगर उसकी आँखों में कोई शर्म नहीं थी, सिर्फ़ स्वाभिमान था।

    रणदीप ने एक पल के लिए अपनी चाची की ओर देखा, फिर सुहानी की ओर।

    रणदीप ने सीधा, लेकिन बिना भाव के कहा, "चाची, ये मेरी बीवी है! हमारी शादी हो चुकी है! ...बाकी बातों के लिए मेरे पास टाइम की कमी है इसलिए पहले दादा जी से मिल लूं!"

    डिंपी के चेहरे पर तमतमाहट सी आई, पर रणदीप की टोन से वो ज़्यादा कुछ नहीं कह सकीं। उन्होंने सिर घुमा लिया, और धीमे कदमों से किचिन की तरफ बढ़ गईं।

    सुहानी ने पहली बार रणदीप की तरफ़ देखा। जैसे उस बर्फ़ जैसे इंसान में थोड़ी सी ढाल दिखी हो। मगर वो तुरंत नज़रें फेर लेती है।

    इसी के साथ दोनों नीचे ही मौजूद दादा जी के कमरें की तरफ़ बढ़ गए।

    दोनों रूम में पहुंचे तो सुहानी ने बेड पर लेटे दादा जी को देख एक नज़र कमरें पर दौड़ाई।

    कमरा हल्की धूप से भरा हुआ था, खिड़की के पास नीले परदे हल्के-हल्के हिल रहे थे। दीवारों पर रामायण और गीता के श्लोकों के फ़्रेम, एक तरफ मॉनिटर से जुड़ा हार्ट रेट मशीन, और सिरहाने बैठी एक नर्स… सब इस बात की तस्दीक कर रहे थे कि इस कमरे का रौब तो वही था, लेकिन अब शरीर थक चुका था।

    दलजीत मेहरा, रणदीप के दादा, बिस्तर पर टिके तकियों के सहारे बैठे थे। चहेरे पर वही तेज़ जो ज़िन्दगी भर उनकी पहचान रहा, लेकिन शरीर अब बोलता नहीं, सिर्फ़ महसूस करता था। कुछ दो तीन दिन पहले उनकी सर्जरी हुई थी और डॉक्टरों ने सख़्त आराम की सलाह दी थी।

     रणदीप ने दादा जी के पैर छुए तो वहीं सुहानी ने दादा जी को प्रणाम किया। 

    दादा जी ने उसे एक नज़र देख पास बैठने का इशारा किया और साथ ही नर्स को भी बाहर जाने को कहा। सुहानी पास ही पड़ी कुर्सी खींच कर बैठ गई।

    रणदीप अब भी पास खड़ा, मोबाइल पर हल्का सा स्क्रॉल करता हुआ शांत था।

    सुहानी को भी समझ आ गया था कि दादा जी की तबियत ठीक नहीं है ऐसे में उसने धीरे से पूछा, "कैसी तबियत है दादा जी?"

    दलजीत जी ने मुस्कुरा कर कहा, "तबियत अब ठीक है मेरी… बस डॉक्टर ने सख़्त हिदायत दी है कि कोई टेंशन नहीं लेनी! ... पर क्या करूं पुत्तर मेरे इस लाल की टेंशन तो मुझे हर वक्त लगी रहती है.... मगर अब तुम आ गई हो तो टेंशन थोड़ी कम हो गई!"

    इतना कहकर वो चुप हुए तो कुछ सेकंड तक सुहानी उन्हें देखती रही।

    दलजीत जी ने एक बार फ़िर मुस्कुरा कर कहा, "तुम्हें देखकर अच्छा लगा पुत्तर! .... जैसी मुझे अपने दीप के लिए लड़की चाहिए थी ....बिल्कुल वैसी ही हो!"

    सुहानी उनकी बात सुन हल्की मुस्कान देती है। वाकई दलजीत जी को वो पसंद आई थी।

    दलजीत जी थोड़ी देर चुप रहते हैं, फिर रणदीप की ओर देखते हैं। और अब उनके चेहरे पर वो भाव आता है जो सीधे-सीधे बात न कहकर इशारे में कहता है।

    दलजीत जी ने धीरे से कहा, "दीप, जब तूने फोन पर कहा कि शादी कर ली है… तो मैं बहुत खुश हुआ था! पर दिल है बेटा, थोड़ी बेचैनी अब भी है।"

    रणदीप चौंकता नहीं, बस आंखें उठाकर दादा को देखता है।

    रणदीप ने शांत स्वर में कहा, "दादा जी! अब तो आप मिल भी चुके हैं। फिर कैसा शक? कैसी बेचैनी?"

    दलजीत जी ने गंभीर स्वर में कहा, "शक नहीं… तसल्ली चाहिए और वो तसल्ली मुझे तब मिलेगी जब तुम दोनों की शादी पूरे रीति-रिवाज़ से मेरी आंखों के सामने होगी!"

    कमरे में अचानक सन्नाटा छा जाता है। सुहानी की आंखें चौंकती हैं। रणदीप के चेहरे पर हल्की सी बेचैनी तैर गई लेकिन वह उसे छुपा लेता है।

    रणदीप ने धीमे स्वर में कहा, "दादाजी , शादी तो… हो चुकी है! क़ानूनी तौर पर सब कुछ वैध है!"

    दलजीत जी ने धीरे से लेकिन तीखे लहजे में कहा, "शादी सिर्फ़ काग़ज़ों से नहीं होती दीप! ...वो तब होती है जब सात फेरे हों, अग्नि साक्षी हो, और परिवार का आशीर्वाद हो। मुझे मेरे जीते जी तुम्हारे फेरे देखने हैं। बस!"

    फिर वो सुहानी की ओर देखते हैं... पहली बार उनके चेहरे पर एक स्नेहिल मुस्कान होती है।

    दलजीत जी ने सुहानी से कहा, "तैयार रहना बहू… अगले सोमवार के बाद शुभ मुहूर्त है। तुम्हारी शादी की तैयारी मैं खुद करवाऊंगा।"

    सुहानी चुप रही और उसने हल्का मुस्कुराने की कोशिश की। वहीं रणदीप भी खामोश रहा पर उसकी उंगलियाँ फड़क रही थी। उसे किसी के सामने इस तरह बात मनवाना कभी पसंद नहीं रहा, लेकिन इस बार सामने उसके दादा जी थे और उसके पास कोई उपाय भी नहीं था। 

    ऐसे में उसने सुहानी को बिना देखे कहा, "बाहर वेट करो मेरा! दादा जी से बात करके आता हूं!"

    सुहानी ने हां में सिर हिलाया और एक बार फ़िर दादा जी से नमस्ते करते हुए वो बाहर निकल गई।

    रणदीप ने संयम, पर आंखों में हल्की खीझ और बेचैनी के साथ दादा जी से कहा, "मैं शादी करने को तैयार हूँ…लेकिन मेरी भी कुछ शर्तें हैं।"

    दलजीत जी ने सिर उठाकर रणदीप की ओर देखा। वो कुछ नहीं बोले, बस इशारे से कहा कि बोलो।

    रणदीप ने स्पष्ट स्वर में कहा, "ये शादी सिर्फ़ फैमिली के बीच होगी। कोई रिश्तेदार, कोई दोस्त, कोई प्रेस या सोशल मीडिया नहीं! ....ना ही इस शादी को लेकर कोई तमाशा होगा।"

    दलजीत जी मुस्कुराए जैसे उन्हें ये उम्मीद थी।

    दलजीत जी ने धीमे मगर गूंजते लहजे में कहा, "ठीक है! जैसा तुम चाहो! ...शादी घरवालों के बीच ही होगी,.मुझे नाम नहीं, रिश्ता चाहिए.... पर क्या जान सकता हूं तुम इतनी ख़ामोशी से शादी क्यूं करना चाहते हो?"

    रणदीप ने थोड़ी राहत की सांस लेते हुए कहा, "क्योंकि मुझे ख़ामोशी पसंद है... और हां! मैं सिर्फ़ फेरे लूंगा! मुझे और कोई ड्रामा नहीं चाहिए!"

    दलजीत जी ने हां में सिर हिलाया पर जैसे अगला वार तय हो उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा, "लेकिन… जब तक शादी नहीं हो जाती, तुम दोनों यहीं, हमारे साथ रहोगे।"

    रणदीप का चेहरा ठंडा पड़ गया। कुछ पल के लिए उसकी ज़ुबान साथ नहीं देती।

    उसने कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला ही था कि दलजीत जी ने उसकी बात काटते हुए अपनी रौबदार आवाज़ में कहा, "और ये मैं तुम्हें बता नहीं रहा हूं बल्कि आदेश दे रहा हूं!"

    रणदीप जानता था, अब इस पर बहस नहीं हो सकती थी। उसने चुपचाप गर्दन झुकाई और बाहर निकल गया।

    ********

    रात का समय,

    कमरा भव्य था, मगर इस वक्त वहाँ दो लोग थे जिनके बीच एक सर्द दीवार खड़ी थी।

    सुहानी चुपचाप बेड के एक कोने पर जाकर बैठ गई। वहीं रणदीप वार्डरोब में कुछ निकाल रहा था।

    उसके चेहरे पर एक झुंझलाहट थी। 

    सुहानी ने कुछ नहीं कहा। बस खुद को कम्बल में लपेट लिया, और रणदीप की ओर पीठ कर ली। उसकी आंखें भर आई थीं, मगर आंसू नहीं गिरे। अब वो भी थक चुकी थी खुद को बार-बार समझाते हुए।

    डिनर भी उसने बुझे मन से किया था। दोनों ने रूम में ही डिनर किया था। पता नहीं क्यूं रणदीप ने उसे सबके साथ डिनर करने से मना कर दिया था। 

    और वैसे भी क्या फर्क पड़ता है। 

    सच कहें तो वो इस समय बहुत उदास थी उसे इस शादी से कोई उम्मीद नहीं थी पर फ़िर भी उसे इस शादी का बोझ ढोना था।

    "ये क्या कर रही हो?"

    वो अपनी सोच में गुम थी कि तभी पीछे से रणदीप की आवाज़ उसके कानों में पड़ी।

    सुहानी उसकी तरफ़ मुड़ी तो रणदीप ने बेरहम होते हुए कहा, "तुम यहां अपनी नींद पूरी करने के लिए मेरे साथ नहीं हो!"

    सुहानी उसकी बात सुन नासमझ सी उठ कर बैठी तो रणदीप ने कहा, "शावर लेकर आता हूं फ़िर हम शुरू करेंगे!"

    सुहानी ने नासमझी में उससे पूछा, "क्या शुरू करेंगे?"

    रणदीप ने पलट कर उसे घूरते हुए पूछा, "तुम सच में मेरे मुंह से सुनना चाहती हो?"

    सुहानी को अब कुछ कुछ समझ आया था कि तभी रणदीप ने अपनी कठोर आवाज़ में कहा, "मैं जल्द से जल्द बच्चा चाहता हूं.... तुम्हें ज्यादा दिन बर्दाश नहीं कर सकता! "

    इतना कहकर वो बाथरूम की तरफ़ जाने को हुआ कि तभी सुहानी अचानक से हल्का सा चिल्लाई, "नहीं!"

    रणदीप ने पलट कर देखा तो सुहानी ने उसकी आंखों में देख धीरे से कहा, "मेरा मतलब है आज नहीं!"

    रणदीप ने अपनी भौंहें सिकोड़ते हुए पूछा, "क्यूं?"

    तो सुहानी ने अपना सिर झुका शर्म से लाल पड़ते हुए धीरे से कहा, "मुझे बहुत दुखता है !"

    ये कहते हुए उसकी आँखें भर आईं।

    To be continued ✍️ ✍️ 

  • 7. The Billionaire's Surrogate - Chapter 7

    Words: 2075

    Estimated Reading Time: 13 min

    रणदीप ख़ामोशी की चादर ओढ़े उसे कुछ देर तक देखता रहा पर फ़िर उसने एक बार फ़िर अपने उसी ठंडे लहज़े में कहा, "तुम दुनिया की पहली लड़की नहीं हो जो ये सब फील कर रही हो!"

    सुहानी ने सिर उठा कर रणदीप को देखा तो उसकी आंखों में झिलमिलाते मोती यानी आंसुओं से भरी उसकी आँखें देख रणदीप ने उससे मुंह फेरते हुए कहा, "फर्स्ट टाइम होता है! .... रेस्ट करो हम कल ट्राय करेंगे!"

    सुहानी ने झट से हां में सिर हिलाया और जैसे ही लेटने लगी तो कुछ याद आते ही उसने उठ कर पूछा, "श्रेया को होश आ गया?"

    रणदीप ने बाथरूम की तरफ जाते हुए कहा, "हां!"

    इतना कहकर वो बाथरूम में चला गया।

    ********

    जब वो बाथरूम से बाहर निकल कर आया तो उसने सुहानी को बेड पर बैठा पाया। वो सोई नहीं थी।

    टॉवेल से अपने बालों को पोंछ वो रूम में इधर से उधर टहला और फ़िर कुछ करने लगा। थोड़ी देर बाद वो अपने फोन को चेक करने लगा इस दौरान उसकी तिरछी नज़रें सुहानी पर ही थीं जो कि उसे घूर रही थीं।

    अपना फ़ोन रख उसने सुहानी की नज़रों से चिढ़ते हुए पूछा, "क्या प्रॉब्लम है तुम्हारी? अब सोती क्यों नहीं? "

    सुहानी उसकी तेज़ आवाज़ सुन थोड़ा झेंप गई पर फ़िर उसने सहमते हुए पूछा, "आपने कहा था ना कि श्रेया को होश आ जाए तो मैं उससे मिल सकती हूं! तो क्या कल मैं...."

    फ़ोन साइड रख वो बिस्तर में आया और उसने लाइट ऑफ कर बैठी हुई सुहानी से मुंह फेरते हुए कहा, "हां! जा सकती हो!"

    सुहानी की सांस में सांस आई और उसने ख़ुश हो रणदीप का अंधेरे में ही कंधा पकड़ते हुए कहा, "Thank you! Thank you so much Mr. Mehra!"

    वहीं सुहानी के छूने भर से रणदीप के शरीर में मानो करेंट सा दौड़ गया। उसे कुछ अजीब फील हुआ जिसने उसकी दिल की धड़कनों को बढ़ावा दिया जो कि रणदीप को पसंद नहीं आया और उसने अगले ही पल सुहानी से अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से में कहा, "हद में रहो अपनी! जब तक कहां ना जाए... छूने की कोशिश भी मत किया करो!"

    सुहानी का उसकी बात सुन दिल टूट कर रह गया। क्या उसका छूना उसे इतना बुरा लगता है। ये सब सोच सुहानी बेड से उठ गई। उसे अब ख़ुद भी उसके साथ बेड शेयर करने का कोई मन नहीं था।

    पर अंधेरे में कहां जाए और रूम से बाहर जा नहीं सकती थी। ऐसे में अंधेरे में ही सम्भल कर चलते हुए वो रूम में मौजूद दो छोटे छोटे सोफे को पकड़ कर खड़ी हो गई।

    काफी देर तक जब उसे कुछ ना समझ आया तो उनमें से एक पर ही सिकुड़ कर सो गई।

    "क्योंकि जिस जगह दिल नहीं होता, वहाँ बिस्तर साझा नहीं होते…”

    ********

    कमरे में हल्की सुबह की रौशनी परदों की दरारों से भीतर झांक रही थी। मेंशन के बाकी हिस्सों में अब भी गहरी नींद पसरी थी, मगर इस कमरे में एक ठहराव था..... जैसे रात भर सन्नाटे ने पहरा दिया हो।

    रणदीप की आंखें धीरे-धीरे खुलीं। वो हमेशा की तरह एकदम संयमित था। सोने और जागने की आदतें बिल्कुल तय थीं, ठीक उसके बिज़नेस स्केड्यूल की तरह। पर आज सुबह कुछ अलग था।

    उसने करवट बदली… और बेड के दूसरे हिस्से को देखा जहाँ किसी और की गर्माहट होनी चाहिए थी।

    मगर बिस्तर खाली था। चादरें बिल्कुल सीधी थीं, तकिया जस का तस।

    रणदीप ने धीमे से बड़बड़ाते हुए कहा, "सुबह से पहले ही उठ गई?

    वो उठ बैठा, और तभी उसकी नजर उस कोने की ओर गई, जहाँ कमरे में दो छोटे से सोफे थे। हल्का स्लांट, बिना किसी कम्फर्ट के।

    वो वहीं, सिकुड़ी हुई पड़ी थी। उसका दुपट्टा आधा नीचे गिरा हुआ, बाजू से सिर टिकाए हुए, दोनों पैर मोड़े हुए.... जैसे किसी ने उसे वहाँ बिठाया नहीं, बल्कि ज़िन्दगी ने वहाँ फेंका हो।

    उसके माथे पर बाल चिपके हुए थे, और होंठ थोड़े सूखे से थे मगर चेहरे पर वही ठहरी हुई मासूमियत थी, जिसमें शिकायतें नहीं, सिर्फ़ थकावट थी।

    रणदीप कुछ पल तक उसे देखता रहा। कोई आवेश नहीं था, कोई भावुकता नहीं पर शायद पहली बार उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था।

    वो धीरे से बड़बड़ाता हुआ, "बिस्तर था… फिर भी इस तंग जगह में क्यों?"

    वो उठकर बाथरूम की ओर बढ़ने लगा, लेकिन फिर दो कदम पीछे लौटा। सुहानी की तरफ़ एक बार फिर देखा और फिर कुछ सोच बाथरूम की तरफ़ बढ़ गया।

    *********

    रणदीप का स्केड्यूल फ़िक्स था ऐसे में वो ब्रेकफास्ट कर सीधा अपने ऑफिस के लिए निकल गया मगर सुहानी के लिए वो कार छोड़ कर गया था साथ ही एक ड्राइवर भी।

    *********

    समय दोपहर 2:45 बजे,

    सुहानी इस समय, दिल्ली के प्रतिष्ठित "Birla Super Speciality Hospital"

    सात मंज़िला आलीशान इमारत, चमचमाती कांच की दीवारें, बाहर खड़ी बेशुमार लग्ज़री गाड़ियाँ और अंदर घूमते हाई-एंड टेक्नोलॉजी से लैस वाइट कोट्स, Birla Hospital दिल्ली के सबसे महंगे और बेहतरीन हॉस्पिटल्स में शुमार था।

    यह वही जगह थी जहाँ सिर्फ़ दौलत नहीं, ‘पहचान’ भी इलाज तय करती थी और यहाँ ICU से लेकर प्राइवेट रूम तक हर सुविधा श्रेया को दी जा रही थी।

    रूम नंबर: 509 स्पेशल प्राइवेट रूम,

    दीवारें हल्के नीले रंग की थीं। एयर प्यूरीफायर लगातार चलता, खिड़कियों पर मोटे पर्दे, और सिरहाने एक डिजिटल स्क्रीन – जहाँ श्रेया की पहले हर धड़कन दर्ज हो रही थी।

    लेकिन श्रेया अब धीरे-धीरे ठीक हो रही थी। वह उठकर बैठ पा रही थी। उसके हाथ में लगी पतली सलाइनों से पता चलता था कि हालात अब भी पूरी तरह सामान्य नहीं हुए हैं, मगर वो ख़तरे से बाहर थी।

     सुहानी रूम का डोर खोल अंदर दाख़िल आई । उसने आज भी सादे सलवार-सूट पहने हुए थे। चेहरे पर घबराहट और आंखों में भारीपन। हाथ में एक कागज़ की थैली थी जिसमें कुछ फल और फूल थे।

    “जिसकी जान की कीमत चुकानी पड़ी हो, उससे नज़रें मिलाना सबसे कठिन होता है…”

    सुहानी, श्रेया से नज़रें नहीं मिला पा रही थी क्योंकि जानती थी कि अगर उसे सच्चाई पता चली तो वो बर्दाश नहीं कर पाएगी।

    श्रेया ने उसे आते देख धीमे स्वर में, मुस्कराते हुए पूछा, “तू आ गई…! कितना बोर हो रही थी मैं यहां! ”

    सुहानी ने नज़रे मिलाए बिना, बगल की कुर्सी पर बैठते हुए कहा, “तुम्हारे सिवाय कहीं और जाऊँ भी कहाँ…”

    श्रेया ने उसका हाथ थामा, और ध्यान से उसके चेहरे को देखा। वहाँ थकावट थी, एक तरह की चुप क्रूरता जो भीतर से खाए जा रही थी।

    श्रेया ने धीरे से पूछा, “सुहानी… मेरा इलाज… ये सब… ये तो…?

    .... मैंने डॉक्टर से पूछा तो वो कह रहे थे कि इतने महंगे ट्रीटमेंट के लिए तुरन्त पेमेंट हो गया था… ICU, प्राइवेट रूम, स्पेशल मेडिकेशन… सुहानी… तूने ये सब कैसे किया ?”

    सुहानी ने धीरे से कहा, “रणदीप मेहरा…”

    श्रेया की साँस अटक जाती है। सुहानी की आवाज़ बहुत शांत थी जैसे सब कह चुकी हो पहले से अपने भीतर।

    सुहानी ने धीरे से कहा, “ICU, डॉक्टर अग्रवाल की टीम, दिन-रात की नर्सिंग…सब कुछ Mr. मेहरा ने किया है।"

    श्रेया ने सुहानी का चेहरा देखा जो एक पल को सख़्त हो जाता है, लेकिन फिर वो नज़रें झुका लेती है। उसकी आवाज़ बेहद संयमित है जैसे पहले से तैयार की गई हो।

    सुहानी ने धीरे से आगे बताते हुए कहा, “Mr. मेहरा से मैंने कर्जा लिया है…!”

    श्रेया ने चौंककर पूछा, “कर्ज़ा?”

    श्रेया की आंखें फैल जाती हैं। उसकी आवाज़ हल्की घबराहट में डूब गई और उसने धीरे से कहा, “सुहानी… ये बड़े आदमी लोग इंसान की आत्मा तक गिरवी रख लेते हैं। तूने उनसे क्यों…? ऐसे कैसे उन्होंने तुझे कर्जा दे दिया होगा? .... सच सच बता ... तू मुझसे कुछ छुपा रही है ना?”

    सुहानी ने उसकी बात बीच में ही रोकते हुए जल्दी से कहा, “नहीं! मैं कुछ नहीं छुपा रही! सच कह रही हूं! तुझे बचाने के लिए मुझे कोई और रास्ता नज़र नहीं आया, श्रेया! उन्हें मेरी ज़रूरत नहीं थी… सिर्फ़ पैसे की ज़रूरत थी मुझे। उन्होंने उधार दिया है… मैं चुका दूँगी… किसी न किसी तरह।”

    श्रेया उसकी आंखों में झाँकने की कोशिश करती है। लेकिन सुहानी की निगाहें कहीं और थीं। खिड़की के पार, बहुत दूर… जैसे अपने सच को वहीं फेंक आई हो।

    श्रेया ने धीरे से कहा, “तू कुछ छुपा रही है, ना?”

    सुहानी ने हल्की मुस्कान में दर्द छुपाते हुए कहा, “हाँ… तुझसे तेरा मौत के मुंह से लौटना छुपा नहीं सकी, तो कुछ तो मुझे भी छुपाने का हक़ है ना?”

    श्रेया की आंखें भर आती हैं, लेकिन वो आगे कुछ नहीं पूछती। और सुहानी पहली बार खुद को टूटा हुआ महसूस करती है, किसी अपने से झूठ बोलकर। पर अगर वो ऐसा नहीं करती तो ना जाने श्रेया सच जान कर क्या करती और फ़िर कहीं ये सब बातें उसके दिमाग़ पर बुरा असर ना डालती।

    डॉक्टर ने अभी साफ़ तौर पर मना किया है कि उसे श्रेया से अभी ऐसी कोई भी बात नहीं करनी जो उसके दिमाग़ पर ज़ोर दे। क्योंकि उसे सर में वाकई गहरी चोट आई थी।

    काश उस दिन, श्रेया को सामान लाने के लिए भेजने की बजाय वो ख़ुद गई होती तो कम से कम उसकी दोस्त तो सही सलामत होती।

    मन में अजीब अजीब ख़्याल आ रहे थे मगर उन्हें किनारे कर उसने श्रेया से हल्की फुल्की बातें की और फ़िर उसे हॉस्पिटल से जाना पड़ा क्योंकि अभी डॉक्टर ने श्रेया को ज़्यादा बोलने से मना किया हुआ था।

    वो उसे कल आने का बोल चली गई।

    हॉस्पिटल से निकल सुहानी यूंही इधर उधर घूम कर अपने मन को शांत करने की कोशिश कर रही थी। उसे रणदीप का सख़्त रवैया डराता था। उसे डर था कि एक बार फ़िर उसे उस आदमी के पास वापस जाना होगा।

    मन शांत नहीं हुआ तो वो अब मंदिर चली गई।

    ********

    दिन ढल चुका था और मेंशन के लॉन में पीली बत्तियाँ जगमगा उठी थीं। हवा में रजनीगंधा की हल्की खुशबू फैली थी। सुहानी मेंशन के बाहर कार से उतरी, आंखों में थकावट, चाल में धीमापन और चेहरा बिना किसी सजावट के, फिर भी वही सादगी जो किसी को भी पल भर में बाँध सकती थी।

    उसने गेट पार किया ही था कि सामने से आवाज़ आई —

    "हे हाय!"

    सुहानी ठिठकी। सामने से एक लंबा, मुस्कुराता हुआ नौजवान तेज़ क़दमों से आता दिख रहा था जिसने इस वक्त नीली डेनिम और सफेद शर्ट में पहनी हुई थी। उम्र लगभग 24-25 के आसपास।

    यह था यशवीर मेहरा उर्फ यश!

    रणदीप का छोटा भाई और डिंपी- मंजीत का बेटा।

    यशवीर ने मुस्कुरा कर सुहानी की तरफ़ झुकते हुए धीरे से कहा, “हाय भाभीजी! मैं यशवीर… दीप भैया छोटा भाई ! आपने मुझे शायद पहचाना नहीं…होगा ! मैं आज ही स्वीजरलैंड से लौटा हूँ।”

    सुहानी ने हल्की मुस्कान दी, और सिर हिलाकर नम्रता से कहा, 

    “माफ़ कीजिए! मैं आपके बारे में कुछ नहीं जानती… पर फ़िर भी बहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर।”

    यश ने आत्मीयता से हाथ जोड़े, लेकिन फिर खुद को संभालते हुए बोला, “मतलब... अब तक शादी तो नहीं हुई ना? यानी अभी मैं ‘भाभीजी’ नहीं कह सकता… चलो, तब तक दोस्त कह देता हूँ!”

    सुहानी मुस्कुराई, इस बार थोड़ी खुलकर। यश का अंदाज़ चुलबुला था, लेकिन उसमें शराफ़त थी। वो बेतकल्लुफ़ था, मगर हद में।

    तभी उसके पीछे पीछे एक और लड़का वहां आया मगर अगले ही पल सामने खड़ी सुहानी को देख वो मानो कही गुम गया। वो सुहानी की ओर कुछ इस तरह देख रहा था जैसे दुनिया की बाकी चीज़ें गायब हो चुकी हों।

    यह लड़का था तेजस सिंह, यश का करीबी दोस्त। उम्र में यश जितना ही, पर मिज़ाज में बिल्कुल उल्टा।

    रेजर शार्प हेयरस्टाइल, महंगे ब्रांड्स से ढका हुआ बदन और आंखों में वही बेशर्म चमक जो अक्सर शिकार करने से पहले आती है।

    तेजस की निगाहें सुहानी पर जैसे अटक ही गई थीं। वो उसकी सादगी में लिपटी मासूमियत को पढ़ नहीं पाया, बस उसे देखता रहा, बिल्कुल बेधड़क।

    यशवीर ने तेजस को आते देख सुहानी से कहा, “फ्रेंड ! ये तेजस है। मेरा जिगरी दोस्त! कभी-कभी ज़ुबान से नहीं, आँखों से बात करता है।”

    तेजस ने हल्की मुस्कान दी, मगर उसकी आंखें अब भी सुहानी पर थीं। वो अब थोड़ा आगे बढ़ा और धीमे मगर तीखे लहजे में उसने सुहानी की तरफ़ हाथ बढ़ाते हुए कहा, “हाय… तेजस!"

    सुहानी ने अपना हाथ आगे बढ़ा उसके हाथ में अपना हाथ देना चाहा था कि तभी सुहानी के पीछे से एक भारी मर्दाना हाथ आगे आया और उसने तेजस से हाथ मिलाते हुए कहा, "कैसे आना हुआ तेजस?"

    ये और कोई नहीं रणदीप था जो कि आज अपने समय से पहले घर आया था।

    To be continued ✍️✍️✍️ 

    डियर रीडर्स,

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  • 8. The Billionaire's Surrogate - Chapter 8

    Words: 1506

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुहानी ने आगे आते रणदीप को देखा जो कि अब तेजस से बात कर रहा था। 

    उन दोनों के बीच से निकलते हुए सुहानी ने धीरे से कहा, "excuse me!"

    इतना कहकर वो अब वहां से चली गई। उसे जाते हुए रणदीप ने एक नज़र देखा और फिर तेजस को जो कि सुहानी को ही देख रहा था। 

    रणदीप को गुस्सा आया पर उसने अपना गुस्सा दबाते हुए तेजस से अपनी कठोर आवाज़ में कहा, "चलो बाद में मिलता हूं तुमसे!"

    तेजस ने हां में सिर हिलाया तो रणदीप अब वहां से चला गया। उसके जाते ही तेजस ने सांस लेते हुए यश से कहा, "यार ये तेरा भाई भी ना किसी दिन हार्ट अटैक करवा कर मानेगा!"

    इस पर यश ने कहा, "और तू पिट कार मानेगा! ....at least सुहानी को तो बख़्श दे यार!"

    तेजस ने हँसते हुए कहा, "अरे यार मैंने क्या किया? ग़लती उसकी है ....she is so beautiful! ....वैसे ये है कौन?"

    यश ने उसे सुहानी की असलियत छुपा उसे बताते हुए कहा, "दादू की कोई दूर की रिश्तेदार है!"

    असल में, दादा जी ने यश को भी बताया था कि फिलहाल वो सुहानी के बारे में किसी बाहर वाले से कुछ ना कहे।

    _________

    इधर, सुहानी जैसे ही रूम में पहुंची थी कि उसके पीछे पीछे रणदीप भी रूम में एंटर हुआ।

    उसने सुहानी को अजीब सी नज़रों से घूरा तो सुहानी ने कुछ सोचते हुए उससे अपनी आँखें फेर लीं और बाथरूम की ओर जाने को हुई थी कि अगले ही पल रणदीप ने उसे उसकी बाजू से पकड़ अपने सामने करते हुए गुस्से में पूछा, "नीचे क्या कर रही थी तुम?"

    रणदीप को इस कदर गुस्से में देख सुहानी थोड़ी घबराई और उसने मिमियाते हुए कहा, "कुछ नहीं!"

    तो रणदीप ने उसका जवाब सुनते ही गुस्से में उसकी बाजू पर पकड़ मज़बूत करते हुए पूछा, "कुछ नहीं तो उस तेजस से क्या तुम्हारा भूत बात कर रहा था? .... देखो लड़की! मुझे गुस्सा मत दिलाओ! .... और कान खोल कर सुन लो तुम मेरी ज़िंदगी में सिर्फ़ मेरे बच्चे को लाने का एक जरिया हो! .... यहां पर तुम सिर्फ़ मेरे लिए आई हो.... रिश्ते बनाने नहीं! ...इसलिए बस तुम्हें सिर्फ़ मुझसे मतलब होना चाहिए! ... समझी ?"

    सुहानी ने रणदीप की मज़बूत गिरफ्त में दर्द सहते हुए कहा, "समझ गई!"

    उसकी गर्दन को हिलता देख रणदीप ने अब उसे छोड़ा और जैसे ही मुड़ने को हुआ था कि उसने रुक कर उससे पूछा, "अब दर्द ठीक है?"

    सुहानी समझ गई थी कि वो किस दर्द कि बात कर रहा है। मगर वो कैसे हां कहे?

    एक दर्द को भुला नही पाई थी कि रणदीप ने उसे दूसरा दर्द दे दिया।

    उसे अब रणदीप पर जरा भी भरोसा नहीं था। क्या पता वो उसके ना कहने पर उसके साथ जबरदस्ती करने लगे ऐसे में ये सोच वो डर से कांपती हुई सिर उठा रणदीप की आंखों में देखने को हुई कि उसकी सर्द आंखों ने उसे और अधिक डरा दिया तो सुहानी ने झट से कांपते हुए ही हां में सिर हिला दिया।

    उसे एक नज़र देख रणदीप ने कहा, "good! ..Be ready after dinner!"

    सुहानी ने धीरे से हां में सिर हिला दिया और उसके जाते ही सुहानी की आंखों से अनगिनत आंसू बहने लगे। उसे अपनी हालत पर अब गुस्सा आ रहा था मगर इसकी जिम्मेदार वो ख़ुद थी।

    रात के खाने बाद,

    सुहानी ने आज फ़िर रूम में ही डिनर किया था बल्कि आज तो रणदीप भी उसके साथ नहीं था। रणदीप का इस तरह उसे अपने फैमिली से दूर रखना आज सुहानी को बुरा नहीं लगा था क्योंकि उसने साफ़ शब्दों में तो नहीं मगर अपनी बातों से ये स्पष्ट कर दिया था कि वो उससे उसकी फैमिली से दूर रहने की कह रहा था।

    थोड़ी देर बाद, बालकनी में छोटी सी वॉक करने के बाद सुहानी रूम में आई तो बेड पर उसे रणदीप बैठा हुआ मिला था। वो उसे देख एक बार फ़िर सिहर उठी थी।

    वहीं रणदीप ने उसे आते देखा तो अब अपना फ़ोन साइड रख उठ खड़ा हुआ।

    सुहानी छोटे कदमों से धीरे धीरे चलकर उसके पास पहुंची थी मगर रणदीप ने उसे साइड कर पहले जाकर बालकनी के डोर क्लोज़ कर पर्दे डाले।

    इस बीच सुहानी के दिल की धड़कन बढ़ चुकी थी। वो रणदीप के अगले क़दम का इंतजार कर रही थी।

     कि तभी वो उसके पीछे आ खड़ा हुआ और उसने धीरे से सुहानी के पेट पर हाथ ले जा उसकी नाइट गाऊन की नॉट को खोल आहिस्ता से उसका श्रृग उतार कर दूर सोफे पर फेंका तो सुहानी के रोंगटे खड़े हो गए।

    मगर आगे बढ़ने की बजाय रणदीप ने सुहानी की लाल बाजू को देखते हुए पूछा, "ये कैसे हुआ?"

    सुहानी पहले तो उसकी आवाज़ सुन कर ही डर गई मगर जब उसे रणदीप की बात का मतलब समझ आया तो वो ख़ुद को संभाल नहीं पाई और उसने रोते हुए कहा, "पता नहीं! शायद अपने आप हो गया!"

    रणदीप ने अपने दांत भींचते हुए कहा, "ये अपने आप कैसे हो गया..?"

    उसने आगे कुछ कहना चाहा था कि उसे याद आया कि अभी शाम को उसने ही तो..... 

    उसे सब याद आ गया तो ऐसे में सुहानी से अलग हो उसने ड्रॉअर से फर्स्ट एड किट निकाल उसमें से एक ऑइंटमेंट निकाल उसे दिखाते हुए कहा, "सोने से पहले इसे लगा लेना!"

    सुहानी ने अपने आंसू पोंछ मना करते हुए कहा, "नहीं इसकी ज़रूरत नहीं!"

    रणदीप ने थोड़े गुस्से में कहा, "जो कह रहा हूं वो करो! ... और हां ....Sorry for that!"

    सुहानी ने सिर उठा रणदीप को घूर कर देखा तो रणदीप ने ऑइंटमेंट बेड के साइड में रखते हुए कहा, "आगे से ऐसा नहीं होगा! ... पर ध्यान रहे मुझे ज़रा भी नहीं पसंद की कोई मेरी किसी भी चीज़ को छुए! आइंदा से तेजस से दूर रहना!"

    सुहानी को अब रणदीप की बात सुन कर गुस्सा आ गया और उसने चिढ़ते हुए कहा, "Mr. मेहरा! मैं आपकी कोई चीज़ नहीं हूं और ना ही मुझे किसी के पास जाने का शौक है! वो लड़का खुद मेरे पास आया था!"

    इतना कहकर वो रणदीप के पास से निकल कर जाने को हुई थी पर रणदीप ने वापस से उसे उसकी उस लाल पड़ चुकी बांह से पकड़ते हुए अपनी गहरी आवाज़ में झुक कर उसके कान में कहा, "चीज़ ना सही! पर हो तो तुम मेरी ही ना!"

    सुहानी ने रणदीप की आंखों में नफ़रत से देखा, सच कहें तो उसे इस इंसान से अब नफ़रत सी होने लगी थी। कितना बेदर्द था वो उसे उसके दर्द से फर्क ही नहीं पड़ता था।

    दोनों एक दूसरे की आंखों में गुस्से से देख रहे थे कि तभी रणदीप ने झुक कर एक झटके में सुहानी को अपनी गोद में उठाते हुए कहा, "मुझे पूरी रात बहस करने में नहीं गुजारनी है!"

    सुहानी ने उसे देखते हुए कहा, "बहस आप कर रहे थे! ... मुझे आप कुछ बोलने का मौका ही कब देते हैं?"

    रणदीप ने सुहानी को लगभग बेड पर फेंकते हुए कहा, "oh really! तो अभी ये कौन बोल रहा है?"

    सुहानी ने उसकी बात का कोई जवाब देना चाहा मगर उससे पहले ही रणदीप ने उस पर झुक कर उसके होठों को अपने होठों की गिरफ्त में ले लिया।

    ये दोनों शायद पहले ऐसे कपल थे जिनका मिलन भी हो रहा था तो गुस्से में। ना तो इन लम्हों में मोहब्बत थी, ना ही कोई और भावना।

    तो फ़िर था क्या कि उसके इस स्पर्श से ही सुहानी की आँखें ख़ुद ब खुद बंद हुईं और धीरे धीरे रणदीप उसे आज गहराई से चूमने लगा।

    रणदीप की ख़ुद भी आँखें इस वक्त बंद हो चुकी थीं और धीरे धीरे वो किस .....पैशनेट किस में बदला मगर सिर्फ़ रणदीप की तरफ़ से।

    "तन्हा तो दोनों ही थे अपने एहसासों में,

    पर ये लम्हा ज़रा ज़्यादा बेवकूफ निकला।

    ना मोहब्बत थी, ना नफ़रत मुकम्मल,

    फिर भी जिस्मों ने एक-दूजे को चुन लिया!"



    सुहानी की साँसें तेज़ थीं। उसकी आँखों में सवाल थे, पर होंठ अब भी रणदीप की जकड़ में बंधे हुए थे।

    वो पीछे हटने लगी, पर रणदीप ने उसकी कलाई थाम ली।

    कुछ मिनिट बीतने के बाद रणदीप जब रुका तो वे दोनों ही अब हांफने लगे थे और तेज़ तेज़ सांसे लेने की कोशिश कर रहे थे।

    कुछ देर बाद, 

    सामान्य होने के बाद, रणदीप ने कटाक्ष करते हुए पूछा, "तो.... बोलती बंद हो गई?"

    इस पर सुहानी ने उससे मुंह फेरते हुए कहा, "लाइट ऑफ कर दीजिए!"

    रणदीप ने कुछ हैरानी से पूछा, "क्यूं?"

    तो सुहानी ने चिढ़ते हुए कहा, "मुझे कोई शौक नहीं आपको बग़ैर कपड़ों के देखने का!"

    रणदीप ने ये सुनते ही कहा, "अच्छा! बट मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है तुम्हारे सामने कपड़े उतारने में!"

    सुहानी ने गुस्से में कहा, "आप तो है ही बेशर्म!"

    रणदीप ने सुहानी का मुंह पकड़ अपने सामने कर उसके निचले होंठ को अपने अंगूठे से दबा उसे देखते हुए कहा, "आज बहुत ज़्यादा नहीं बोल रही हो?"

    एक बार फ़िर उसकी वही सर्द आवाज़ को सुन सुहानी अंदर तक कांप उठी उसने अपना थूक निगला और डर से अपनी आँखें भींच लीं कि ना जाने आगे अब वो क्या करने वाला था।

    To be continued ✍️ ✍️ ✍️