पाँच साल पहले, एक अंधेरी रात ने अक्षिता कपूर की ज़िंदगी तबाह कर दी, एक अजनबी ने उसकी मासूमियत छीन ली, उसके बाद मरा हुआ बच्चा, परिवार का धोखा और पागलखाने की कैद!" जब अक्षिता उसी परिवार के घर लौटती है जिसने उसकी ज़िंदगी बर्बाद की थी। पर इस बार वह ट... पाँच साल पहले, एक अंधेरी रात ने अक्षिता कपूर की ज़िंदगी तबाह कर दी, एक अजनबी ने उसकी मासूमियत छीन ली, उसके बाद मरा हुआ बच्चा, परिवार का धोखा और पागलखाने की कैद!" जब अक्षिता उसी परिवार के घर लौटती है जिसने उसकी ज़िंदगी बर्बाद की थी। पर इस बार वह टूटी नहीं थी, वह लौटी है अपना सबकुछ वापस लेने, उन चीजों को वापस लेगी जो उसके हैं । उसे उसकी मासूम बहन की जगह एक डरावने और रहस्यमयी बिज़नेसमैन, यशवर्धन सिंह राठौड़ की दुल्हन बनने के लिए भेजने का प्लान था। पर सिंह निवास वैसा नहीं है जैसा दिखता है… जंगलों के बीच बना यह महल और अतीत से जुड़ा वो जेड लॉकेट, जो अब भी उसके अंधेरे राज़ को छुपाए है। क्या अक्षिता अपनी बदले की आग में सबको जला पाएगी? आखिर अब अक्षिता का डेस्टिनी क्या होगा? क्या सिंह परिवार की रहस्यमयी दुनिया उसके अतीत के राज़ खोलेगी, या उसे और गहरे अंधेरे में धकेल देगी?
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"नहीं… रुकिए—"
अंधेरे में एक तीखी मर्दाना ख़ुशबू उसके चारों ओर फैल गई। एक अजनबी ने अक्षिता को ज़ोर से बिस्तर पर धकेल दिया । उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, वह उस आदमी को धक्का देने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसके शरीर में जान ही नहीं थी ।
कपड़े फटने की आवाज़ सुनाई दी । अक्षिता के आँसू बेकाबू होकर बहने लगे। "लड़की, तुम्हारा नाम क्या है?" उस अजनबी की रुखी, कर्कश आवाज़ एक अभिशाप जैसी उसके कानों में गूंजी । उसकी साँसें कामुकता से भरी थीं, जो उसके गालों को छूती रहीं ।
"ठीक है, अगर नहीं बताना चाहती तो मत बताओ... मेरा नाम है..."एक तेज़ दर्द उसके पूरे शरीर में फैल गया । अक्षिता का दम घुटने लगा और वह झटके से उठ बैठी ।
उसकी आँखें खुलीं तो वह अपने आप को एक कार की पिछली सीट पर बैठा हुआ पाती है ।
तो ये बस एक सपना था! फिर से… उसे पाँच साल पहले की उस रात का सपना आ गया था। अक्षिता ने भारी साँस ली। उसका चेहरा पीला पड़ गया था, चिंता और बेचैनी उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी ।
वो रात उसे बार-बार सताती थी। उसी रात के बाद वह गर्भवती हो गई थी। उसे नहीं पता था कि बच्चे का बाप कौन था, लेकिन दस महीने बाद… उसे मरा हुआ बच्चा हुआ ।
उसके बाद उसकी माँ और बहन ने उसकी सारी संपत्ति, कंपनी में हिस्सेदारी छीन ली और उसे मानसिक अस्पताल भिजवा दिया । कार की आगे वाली सीट पर बैठे शर्मा अंकल (कपूर परिवार के पुराने नौकर) ने उसकी हरकत महसूस की। अक्षिता के जागते ही उन्होंने ठंडे स्वर में कहा,"अक्षिता बिटिया, हम कपूर विला पहुँचने ही वाले हैं । कृपया तैयार हो जाइए।"
अक्षिता ने कोई जवाब नहीं दिया । उसने खिड़की की तरफ देखा । बाहर अंधेरा घिर आया था। मुंबई पहले से ज्यादा चमकता हुआ दिख रहा था— वो चार साल से ज्यादा समय मानसिक अस्पताल में थी। अब कपूर परिवार उसे वापस इसलिए बुला रहा था, क्योंकि...
उसकी छोटी बहन— प्यारी, भोली, मासूम कियु (कियारा) की शादी होने वाली थी, दूल्हा कौन था?
यशवर्धन सिंह राठौड़, एक बड़ा बिजनेसमैन, लेकिन जिस्म से बीमार और चेहरे से... कुछ लोग कहते थे डरावना। अफ़वाह थी कि उसकी उम्र बस कुछ ही साल की बची है ।
पर मा.. सुधा कपूर— कैसे अपनी प्यारी कियु को ऐसे आदमी से ब्याहने देती?
इसलिए तय हुआ कि अक्षिता को उसकी जगह भेजा देना सही होंगा सौदे की दुल्हन' बनाकर । अक्षिता की आँखें बर्फ़ जैसी ठंडी हो गईं। कोई भाव नहीं, बस एक अजीब ठहराव ।
कार कपूर विला के बाहर रुकी। अक्षिता अकेली अंदर गई।
ड्राइंग रूम में घुसते ही देखा, सुधा कपूर कियारा के बालों में कंघी कर रही थीं। वो दोनों बहुत खुश दिख रही थीं।
"अच्छा हुआ कि अक्षिता उस मनहूस घर में जा रही है। अगर मेरी कियारा को वहाँ भेजना पड़ता, तो मेरा दिल ही टूट जाता," सुधा कह रही थी। कियारा मासूमियत से बोली, "माँ, ऐसा मत कहो। अगर दीदी न होतीं, तो मैं क्या करती? बस डर इस बात का है कि कहीं वो मना न कर दें ।"
राजीव कपूर, जो पास में बैठ कर कुछ कागज़ देख रहे थे, गुस्से से बोले, "कियारा, तुम बहुत भोली हो। भूल गईं कैसे अक्षिता ने तुम्हें पाँच साल पहले बदनाम किया था? वो बेहया लड़की... बिना शादी के प्रेग्नेंट हो गई, और फिर मरा हुआ बच्चा...! अब उसे मौका मिल रहा है शादी करने का, और वो भी इतने बड़े घर में! उसे तो शुक्रगुज़ार होना चाहिए!"
किसने कहा कि मैं इनकार नहीं करूँगी? एक सख़्त आवाज़ ने सबको चौंका दिया। तीनों लोग दरवाज़े की ओर देखने लगे। वहाँ खड़ी थी। अक्षिता कपूर।
अस्पताल की गाउन में, पाँव में स्लिपर, बाल खुले हुए, चेहरा सूना और आँखें बर्फ सी ठंडी। "आह!" कियारा चीख पड़ी और सुधा की गोद में छिप गई।
सुधा ने उसे संभालते हुए कहा, "अक्षिता! ये क्या भूतनी जैसे दिख रही हो? लोगों को डराने आई हो क्या?" अक्षिता चुपचाप अंदर आई। कियारा ने धीरे से गर्दन उठाई और मुस्कुराते हुए बोली, "दीदी, आप आ गईं!"
राजीव कपूर गुस्से में उठा और बोला, "अगर तुमने मना किया, तो मैं तुम्हारी चमड़ी उधेड़ दूँगा!" अक्षिता ने उसकी आंखों में देख कर कहा, "पहले वो शेयर मुझे वापस दो जो तुमने छीने थे। फिर सोचना मैं शादी करूँगी या नहीं।"
राजीव ने थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया, लेकिन अक्षिता ने झुककर. खुद को बचा लिया।" बचने की हिम्मत कैसे हुई?" वो चिल्लाया।
अक्षिता आराम से सोफे पर बैठ गई। आँखों में वही चुनौती भरी नज़र।" अगर मारा, तो शादी की बात खत्म। शेयर भी भूल जाओ।" राजीव का हाथ रुक गया। पाँच साल पहले की अक्षिता अब नाजुक लड़की से सभ्य महिला बन चुकी थी—और अब डरती नहीं थी।
उस वक्त राजीव चाहता था कि अक्षिता किसी बुजुर्ग अमीर आदमी से शादी करे और उससे करोड़ों रुपये का दहेज मिले। लेकिन जब उसकी ‘इज्ज़त’ चली गई, तो कोई उसे अपनाने को तैयार न हुआ। उस हादसे ने कपूर कंपनी को कगार पर ला दिया। अब वही अक्षिता आँखों में आँधियाँ लिए उसे चुनौती दे रही थी।
"मारो ना! मारो! फिर मैं साफ मना कर दूँगी!" अक्षिता गरजी। अक्षिता ने दौड़ कर बीच में आकर पापा का हाथ थाम लिया। "डैड, प्लीज़ नहीं!"
उसे डर लगने लगा था— क्या पता अक्षिता सच में इनकार कर दे। और अगर ऐसा हुआ, तो...उसे खुद यशवर्धन सिंह से शादी करनी पड़ेगी। जब उसने उस आदमी की तस्वीरें देखी थीं, तो डर के मारे उसकी रूह काँप गई थी।
वो अपनी ज़िंदगी यूँ बर्बाद नहीं कर सकती थी! राजीव ने गुस्से से चप्पल फेंकी और खुद जाकर बैठ गया।" तुम्हारी बहन तुम्हारे लिए इतना कर रही है! और तुम हो कि उसे इस हाल में भेजने से भी इनकार कर रही हो?"
"क्या बात है," अक्षिता मुस्कराई, "अगर कियारा इतनी महान है, तो खुद क्यों नहीं जा रही उस घर में? मैं क्यों जाऊँ?" कियारा चुप हो गई। सुधा बीच में कूद पड़ी, "अक्षिता! हम तो तुम्हारे भले के लिए कह रहे हैं! वरना पूरी मुंबई में कौन तुमसे शादी करेगा?"
"ओह, क्या मैं ने कहा था कि मुझे दूल्हा ढूँढ़ दो?" अक्षिता ने बाल पीछे किए, और नज़रों में ठंडक उतर आई,"वैसे... ये भी तो बताओ, कौन था जिसने मुझे पाँच साल पहले किसी अजनबी के बिस्तर पर भेजा? कौन था जिसने मुझे पागलखाने में डलवाया?"
कियारा पीछे हटती गई। अगर सुधा उसे संभाल न लेती, तो वह ज़मीन पर गिर ही जाती ।
उसे पहले से ही अंदेशा था कि अक्षिता इतनी आसानी से शादी के लिए हाँ नहीं कहेगी। लेकिन अब वक़्त बहुत कम था। उसे आज सुबह ही सिंह परिवार में भेजा जाना था। यह सोच कर ही उसके बदन में सिहरन दौड़ गई। नहीं! वह किसी भी हालत में उस ‘कमज़ोर उम्र वाले आदमी’ से शादी नहीं कर सकती थी!
कियारा की हताशा देख सुधा ने धीमे स्वर में कहा, “अक्षिता, पुरानी बातें छोड़ दो। तुम बड़ी बहन हो… क्या कियारा के लिए इतना भी नहीं कर सकतीं? वह तुम्हारी छोटी बहन है ।”
अक्षिता की मुस्कराहट में लोमड़ी जैसी चालाकी थी,
“अगर शेयर मुझे दे दोगे, तो मैं उसकी जगह शादी कर लूंगी। वरना… फिर मत कहना कि मैंने तुम्हें चेताया नहीं ।”
वो शेयर जो दादी माँ ने अक्षिता के नाम किए थे, अब सुधा और कियारा के कब्ज़े में थे। और अक्षिता अब उन्हें वापस लेने आई थी।
“तू… तू तो नालायक निकली!” राजीव कपूर ने गुस्से से घूरा। “तुझे तो शुक्र मनाना चाहिए कि तुझे घर में वापस लिया! और तू है कि फिर से शेयर की बात कर रही है?”
वो काँपते हाथों से बोले, “क्या तू अब भी कपूर परिवार का हिस्सा है या नहीं?”
अक्षिता ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा,“ख़ुद ही तो कहा था कि अब मैं इस परिवार का हिस्सा नहीं हूँ। अब घड़ी देखो… सुबह के तीन बज चुके हैं। और मुझे याद है कि सिंह परिवार की गाड़ी सुबह छह बजे आने वाली है। ज़्यादा वक़्त नहीं बचा!”
“दीदी…” कियारा उसकी तरफ आई और अक्षिता का हाथ पकड़ने की कोशिश की। लेकिन अक्षिता ने उसका हाथ झटक दिया—इतनी ज़ोर से कि कियारा के हाथ की पीछे की तरफ़ हल्की लालिमा आ गई। कियारा ने आँसू रोक लिए।
“अक्षिता! तुमने कियारा का हाथ झटका? क्या जीने की इच्छा नहीं है तुम्हारी?” सुधा चिल्लाई। उसे कियारा की ज़रा सी चोट भी बर्दाश्त नहीं थी।
अक्षिता ने भौंहें उठाईं,“अरे… क्या यही ‘हाथ उठाना’ कहलाता है?”फिर वो एक क़दम आगे बढ़ी और—
चटाक!
उसका हाथ हवा में लहराया और कियारा के गाल पर ज़ोरदार थप्पड़ पड़ा। कमरे में सन्नाटा छा गया ।
कियारा के गाल पर साफ-साफ हथेली का निशान दिख रहा था। उसकी आँखों में आँसू भर आए। उसने अपना गाल पकड़ लिया और ज़मीन पर बैठ गई। उसे समझ ही नहीं आया कि गलती क्या थी।
“अक्षिता!” सुधा चीख़ पड़ी। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था।“तुमने… तुमने मेरी कियारा को थप्पड़ मारा?!”
“क्यों? आपने तो कहा था मैंने उसे मारा… अब दिखा ही देती हूँ असली ‘मारना’ क्या होता है!”अक्षिता की आँखें बर्फ जैसी ठंडी हो गईं।सुधा ने हाथ उठाया उसे मारने के लिए, पर कियारा बीच में आ गई।"मॉम, नहीं!" वह काँपती आवाज़ में बोली।
कियारा जान गई थी—इस बार अक्षिता मज़ाक नहीं कर रही। वो अक्षिता की तरफ पलटी और कहा,
“दीदी… आप जो चाहें ले लो… मैं शेयर आपको दे दूंगी…”
चटाक!"
अक्षिता ने दूसरी तरफ़ का गाल भी बराबरी से लाल कर दिया। अब कियारा के दोनों गालों पर एक-से-सटीक हथेली के निशान थे। सुधा कियारा को खींचते हुए पीछे ले गई,
“क्या कर रही हो अक्षिता?!” वो खुद उस पर हाथ उठाने ही वाली थी, पर फिर से कियारा ने रोक लिया।
“जान लो सुधा कपूर,” अक्षिता बोली, “वो शेयर पहले से मेरे थे। ये तो बस वापसी है। और ज़्यादा ड्रामा मत कीजिए… कोई देखेगा तो समझेगा मैंने कुछ चोरी किया है।”
फिर अक्षिता कियारा की तरफ़ पलटी और ठंडी मुस्कान के साथ बोली,“अब शेयर मेरे नाम कर दो। वरना मैं सिंह परिवार को सब कुछ सच-सच बता दूंगी— कैसे उन्हें धोखे से मुझसे शादी कराने की प्लानिंग बनाई गई थी।”
“तू… तेरी इतनी हिम्मत कैसे हुई ?” राजीव अब तक अपना आपा खो चुका था। वो ग़ुस्से में कांप रहा था, टेबल पर हाथ पटका और सीधा अक्षिता के सामने जा खड़ा हुआ।
उसका हाथ झटका मार रहा था जैसे कभी भी ऊपर उठ जाएगा। “तो उठाओ ना… ज़रा कोशिश करके देखो।” अक्षिता की आँखो मे कोई इमोशन. नहीं थे। ठंडी और बेजान थी
राजीव कुछ पल तक घूरता रहा, फिर हार मानकर फोन निकाला और कंपनी अकाउंट में लॉग इन किया। उसने वो शेयर वापस अक्षिता के नाम ट्रांसफर कर दिए। अक्षिता के फोन पर मैसेज आया ।
उसने मुस्कराकर ‘स्वीकृति’ पर क्लिक किया। फिर वो कियारा की तरफ़ पलटी। “कियारा, एक बात और बाकी है… जो अभी तुमने वापस नहीं की ।”
कियारा आँसू पोंछते हुए बोली,
“दीदी… क्या मतलब?”
कियारा धीरे-धीरे उसके पास आई और उसकी आँखों में सीधा झांकते हुए बोली,“वो जेड का लॉकेट कहाँ है जो मैं पाँच साल पहले लाई थी?”
वही लॉकेट… जो उस रात का एकमात्र सबूत था… जिससे अक्षिता उस रहस्यम आदमी को खोज सकती थी ।
कियारा का चेहरा सन्न रह गया। वह उस लॉकेट की चमक को कभी नहीं भूली थी । वह सामान्य नहीं था— बेहद कीमती था, और उससे कहीं ज़्यादा खास ।
“मुझे… मुझे नहीं पता…” कियारा ने झूठ बोला ।
चटाक!"* चटाक! अक्षिता ने दो और थप्पड़ रसीद किए । अब कियारा के होंठ से खून निकल आया ।
“अगर दो दिन के अंदर वो लॉकेट वापस नहीं मिला… तो तुम जैसी अभी हो, वैसी शायद न रहो ।”
कियारा काँप गई ।
क्या अक्षिता उसे अपाहिज कर देगीवह काँपती हुई ज़मीन पर गिर गई और ‘मूर्छा’ का नाटक कर डाला ।
अक्षिता ने बिना ध्यान दिए सीढ़ियाँ चढ़ीं ।
जब वह ऊपर पहुंची, तो देखा— उसका कमरा अब था ही नहीं। दीवार गिराकर वो कियारा. के लिए कपड़ो वार्डोरूम और कबर्ड बना दी गए थे ।वो अंदर गई, देखा— कीमती गहनों और डिज़ाइनर ड्रेसों से कमरा भरा पड़ा था। उस अंधेरी रात के बाद जब उसे ले जाया गया था, सबकुछ बदल दिया गया ।
उसी समय सुधा भागती हुई आई। “मेकअप आर्टिस्ट आ चुका है । नीचे आकर तैयार हो जाओ!” अक्षिता चुपचाप नीचे आ गई।सुधा ने उसकी हालत देखी और गुस्से से कहा, “ये क्या पहना है? बदलो इसे!”
वो अक्षिता के कमरे से एक नया डिज़ाइनर सूट निकाल लिया जिसकी टैग भी नहीं हटी थी । “ये पहन लो।”
अक्षिता ने अस्पताल की गाउन उतारी और नया कपड़ा पहन लिया। फिर बैठी और मेकअप आर्टिस्ट ने उसका श्रृंगार शुरू किया। जब सबकुछ तैयार हो गया, तो सिंह परिवार की की गाड़ी आ गई।
अक्षिता ने लाल जोड़ा पहना और बाहर कदम रखा ।
मुंबई की गलियों में शहनाइयाँ बज रही थीं । शादी की रौनक थी। तभी…भीड़ में एक बच्चा अचानक ज़मीन पर गिर पड़ा— चेहरा पीला, होश गायब। “अपशगुन!” सुधा ने फौरन कहा, “यह नाटक कर रहा है! हटो इससे दूर!” और वो राजीव का हाथ पकड़कर पीछे हट गई। पर अक्षिता की नज़र उस बच्चे पर टिकी रही।उसके कपड़े साफ़, महंगे और नाप के सिलवाए लग रहे थे। अक्षिता अपनी शादी की पोशाक में ही उसकी ओर बढ़ी… क्योंकि उस वक़्त— भीड़ में कोई उस बच्चे की मदद को आगे नहीं आया ।
अक्षिता धीरे-धीरे उस छोटे लड़के के पास गई, नीचे झुकी और उसकी नब्ज़ देखी ।
आसपास खड़े लोग उसे देखकर फुसफुसाने लगे ।
“अरे लड़की , आप शादी के दिन ऐसी मनहूस चीज़ क्यों देख रही हैं? जल्दी से शादी की कार में बैठ जाइए!”
“हां, ये बच्चा तो बड़ा ही मनहूस लग रहा है। पता नहीं किसका है!” “अगर इसके माँ-बाप ने पैसे ऐंठने की कोशिश की तो बवाल हो जाएगा!”
…
अक्षिता को नब्ज़ से समझ आ गया कि लड़के की हालत गंभीर नहीं थी। लेकिन उसका चेहरा पीला पड़ा था और पसीने से भीगा हुआ था। तभी उसे एक विचार आया।
सुधा ने देखा कि अक्षिता वहाँ से हट नहीं रही है। उसे लगा कि अक्षिता शादी से भागने का बहाना बना रही है। वह गुस्से से उसके पास आई और धीमे स्वर में बोली, “जल्दी से शादी की कार में बैठो। मैं कह रही हूँ, अगर कोई चाल चली तो अंजाम अच्छा नहीं होगा!”
“मुझे शक्कर का घोल लाकर दो!” अक्षिता ने अपना हाथ आगे बढ़ाया।
सुधा ने उसे घूरते हुए पास खड़ी नौकरानी को इशारा किया।
कुछ ही देर में शक्कर घोल आ गया। अक्षिता ने वह छोटे बच्चे को पिलाया और फिर किसी से एम्बुलेंस बुलाने को कहा।
सुधा दांत पीसते हुए खड़ी रही, लेकिन मजबूरी में उसे एम्बुलेंस बुलवानी पड़ी। नौकर से कुर्सी भी मंगवाई, ताकि बच्चा आराम से बैठ सके। उसके बाद वह अक्षिता के पास आई।
“अब ज़्यादा नाटक मत करो। सीधा सिंह परिवार की कार में बैठो!” उसे डर था कि अक्षिता इस मौके का फायदा उठाकर भाग न जाए। वह अपनी प्यारी बेटी कियारा ) की शादी उस मनहूस और अल्पायु लड़के से नहीं करवाना चाहती थी।
अक्षिता ने उसे एक ठंडी नज़र से देखा और फिर चुपचाप सिंह परिवार की कार में बैठ गई।
सिंह परिवार का महल पास ही के जंगलों में था। शहर की सीमा से ही उसके ऊँचे बुर्ज आसमान को छूते नज़र आते थे। दृश्य बहुत ही मनमोहक और रहस्यमयी था ।
लेकिन कहा जाता था कि कोई भी वहां जाने की हिम्मत नहीं करता। सिंह परिवार की सीमा में घुसते ही उनके बॉडीगार्ड लोगों को बाहर निकाल देते थे ।
शादी के जोड़े में अक्षिता अकेले ही सिंह निवास में दाखिल हुई। वहाँ के नौकर हैरान तो हुए, लेकिन उन्होंने उसे आदरपूर्वक ड्रॉइंग रूम में बैठा दिया ।
ड्रॉइंग रूम शाही यूरोपीय शैली में सजा हुआ था। कांच से छनती धूप पूरे कमरे में सोने जैसी चमक फैला रही थी ।
“मिस कपूर, कृपया प्रतीक्षा करें। मैं सिंह परिवार के दूसरे युवा मास्टर को बुलाता हूँ ।”
अक्षिता ने सिर हिलाया। नौकर के जाते ही वह आराम से सोफे पर बैठ गई, अपनी ठुड्डी बाएं हाथ पर टिका ली ।
*क्या सच में सिंह परिवार ने इस रिश्ते को बदकिस्मती दूर करने के लिए चुना था ।
अगर कियारा ) को पता चलता कि अक्षिता शादी के जोड़े में यहां आई और यहां कोई शादी का आयोजन ही नहीं था, तो वह शायद ज़मीन पर गिरकर रो पड़ती ।
**अक्षिता,कपूर परिवार की इकलौती बेटी थी, जो हर परिस्थिति में शांत और संयमित रह सकती थी ।**
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तभी, अक्षिता को अचानक पीछे कुछ अजीब सा अहसास हुआ। वह तुरंत थोड़ी हटी, और तभी एक नीला-हरा जीव उसके पास से हवा की तरह गुज़रा ।
वह एक नीला-हरा अजगर था । छोटा तो था, लेकिन बेहद तेज़। अजगर ने अपनी लाल जीभ बाहर निकाली और ठंडी नज़रों से अक्षिता को घूरा। उसकी शरीर लहराई, जैसे वह यह सोच रहा हो कि उसे कैसे हमला करना है ।
एक झटके में अजगर तीर की तरह अक्षिता की ओर झपटा ।
लेकिन अक्षिता बिल्कुल शांत बैठी रही। उसने अपने दाहिने हाथ से अजगर को ठीक उसकी गर्दन के पास से पकड़ लिया। उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान थी ।
“काफ़ी तेज़ हो तुम! दवा बनाने के लिए एकदम उत्तम!”
“उसे छोड़ दो!”
एक बर्फ़ सी ठंडी आवाज़ पीछे से आई ।
अक्षिता ने मुड़कर देखा — एक बेहद हैंडसम लड़का सफेद शर्ट में खड़ा था। ऊपर के दो बटन खुले हुए थे, और उसपर एक चेहरा जो देखने में ही दम घोंट देने वाला था ।
चेहरे की बनावट नपे-तुले तीखे नक्शों वाली थी। आँखें सितारों की तरह चमक रही थीं — लेकिन उनमें ठंडापन था ।
“तुम कियारा नहीं हो!”
उसकी आवाज़ में खतरे की स्पष्ट झलक थी ।
अक्षिता ने मुस्कुराकर कहा, “मैं उसकी बड़ी बहन हूँ, अक्षिता!”
यशवर्धन के चेहरे पर नाराज़गी दिख रही थी । अक्षिता ने अपने हाथ में पकड़े साँप को झुलाया और बोली, “अच्छा हुआ तुमने वक्त रहते बोल दिया, नहीं तो मैं इसे दवा में बदल देती!”
इतना कहकर अक्षिता ने साँप छोड़ दिया । वह चुपचाप यशवर्धन के कंधे पर चढ़ गया और नीचे सिर झुकाकर जैसे शिकायत कर रहा हो।
यशवर्धन सिंह ने अक्षिता को ध्यान से देखा — वह ज़्यादा लंबी नहीं थी, लेकिन उसकी रूपरेखा नाज़ुक और मोहक थी । उसकी नज़र आखिरकार उसके हाथों पर गई।
नाज़ुक और पतली उंगलियाँ, मानो हवा चलने से टूट जाएं । उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसे नर्म हाथों ने उसके अजगर को इस तरह आसानी से पकड़ लिया ।
यशवर्धन अभी भी यक़ीन नहीं कर पा रहा था की कि जो लड़की इतनी भोली और शांत दिखती है, वो इतनी निडर और सक्षम हो सकती है।
और ऊपर से, उसने तो उनके पालतू साँप को भी दवा बनाने की बात कर डाली थी!
उन्हें साफ़ महसूस हुआ कि धूमिल (नीला-हरा साँप) अब भी गुस्से में था और लड़ने को तैयार था। उन्होंने भौंहें सिकोड़ते हुए धीमे स्वर में कहा,
धूमिल!”
साँप ने बड़े मासूमियत से अपना सिर यशवर्धन की ठुड्डी से रगड़ा — जैसे अपने मालिक को खुश करना चाहता हो। ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई कठपुतली हो।
यशवर्धन ने उसके सिर पर हाथ फेरा, और वह फुर्ती से उनकी कलाई पर लिपट गया, जैसे कोई कड़ा हो। फिर वो अक्षिता की ओर बढ़े और उसकी शादी की ड्रेस को घूरते हुए बोले,
कपूर परिवार की हिम्मत तो देखो, एक नकली दुल्हन भेज दी।”
भले ही यह बात यूं ही कैसुअली कही गई हो, लेकिन अक्षिता को साफ़ अहसास हुआ कि यशवर्धन की मौजूदगी भारी और ठंडी थी।
अगर वो गलत नहीं थीं, तो इस साँप को उन पर छोड़ने का आदेश भी खुद यशवर्धन ने ही दिया होगा।
साँप की सिर मे जो मिलमनी होती उसे निकाल कर दवाई बना दू है। मिस्टर सिंह, आप चाहें तो बना दूँ?"अक्षिता ने उसकी ठंडी निगाहों की परवाह किए बिना कहा।
अक्षिता को घूरते हुए यशवर्धन उसकी ओर बढ़े। न जाने क्यों, अक्षिता के दिमाग़ में पाँच साल पुरानी वो रात कौंध गई — वो अजनबी आदमी… जिसकी शक्ल कुछ-कुछ यशवर्धन जैसी थी।
उसी पल, यशवर्धन ने एक हाथ से उसकी ठुड्डी पकड़कर उसे अपनी ओर घुमा लिया और गहरी आवाज़ में तंज़ कसते हुए कहा,कपूर परिवार ने अपनी ही बेटी को एक ज़िंदा विधवा बना दिया — बस कुछ दहेज के लिए?
अक्षिता का दिमाग़ एकदम उलझा हुआ था, लेकिन चेहरा पूरी तरह शांत। उसने सीधे उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा,माफ कीजिए, मैं विधवा नहीं बनने वाली। और आप भी खुद को कोसना बंद कीजिए — आप मरने वाले नहीं हैं, और मैं विधवा नहीं बनूँगी।”
आप मरने वाले नहीं हैं।
इन शब्दों ने यशवर्धन को कुछ पल के लिए स्तब्ध कर दिया।
अब तक उसकी पूरी ज़िंदगी में सभी ने यही कहा था — कि वह बीस साल की उम्र से ज़्यादा नहीं जी पाएगा।
हालांकि वो दवाओं के सहारे पाँच साल और जी पाया, लेकिन अब उसका शरीर एकदम जवाब दे चुका था।
पर ये लड़की तो जैसे मौत की हदें ही लांघ गई हो — इतनी बेधड़क बोल रही थी।
काफ़ी भोली और निडर लड़की है
यशवर्धन के होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई और उसकी आँखों में चमक लौट आई। उसने उसके चेहरे से बाल पीछे किए और रुचि से पूछा,तुम क्या सोचती हो? क्या तुम मुझे बचा सकती हो?”
पूरी दुनिया में सिंह परिवार को कौन नहीं जानता था? उन्होंने जाने-माने वैद्य, डॉक्टर, हकीम सबको आज़माया था। लेकिन सबने यही कहा — यशवर्धन बीस से ज़्यादा नहीं जी सकेगा।
लेकिन अक्षिता की आँखों में डर नहीं था। उसने गंभीरता से कहा,आपका चेहरा आपकी हालत बता रहा है।”
भारतीय आयुर्वेद में निरीक्षण, श्रवण, प्रश्न और नाड़ी परीक्षण — बीमारी को समझने के चार स्तंभ होते हैं।यशवर्धन की आँखें गहराने लगीं। उसके हाथ पर लिपटा साँप अब धीरे-धीरे अक्षिता की गर्दन की ओर सरक गया।
यशवर्धन ने हाथ खींचा और उसे ऐसे देखा, जैसे वह अब मरने ही वाली हो।लेकिन अक्षिता ने फिर वही किया — उसने सात इंच का साँप बड़ी सहजता से पकड़ लिया। उसकी पकड़ में आते ही साँप पूरी तरह ढीला पड़ गया।
अक्षिता ने साँप को आँखों के सामने लाते हुए प्यार से कहा,
धूमिल, ज़िंदा रहना बुरा नहीं होता। तुम सच में चाहते हो कि मैं तुम्हें दवा बना दूँ? ज़िंदा रहोगे तो पाँच-छह लाख में बिक सकते हो। मरने के बाद तो कुछ भी नहीं बचता। सच में मरना चाहते हो?
फिर उसने धूमिल को बगल के सोफ़े पर फेंक दिया और यशवर्धन की ओर थोड़ा झुकते हुए मुस्कराई,मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ।तुम मेरी मदद करोगी?”यशवर्धन ने हल्की रहस्यमयी मुस्कान के साथ पूछा। उसकी निगाहें अब भी साफ़ और सख़्त थीं, लेकिन कहीं न कहीं, एक कोमलता भी थी।
अगर उसे जीने की कोई उम्मीद मिलती — तो शायद वह जीना चाहता।लेकिन उसने अपने जीवन का सच कब का स्वीकार कर लिया था।क्या तुम कपूर परिवार की खातिर मेरी मदद कर रही हो?
नहीं,” अक्षिता ने सिर हिलाया और उसका हाथ थाम लिया। उसका हाथ ठंडा था — जैसे बर्फ़ में डूबा हो।
यशवर्धन ने हाथ पीछे खींचने की कोशिश की, लेकिन उसने कसकर पकड़ लिया और कहा,अगर मैं यहाँ नहीं रह पाई, तो मेरा परिवार मुझे दोबारा अस्पताल में बंद कर देगा।”
उसके हाथ बेहद गर्म थे — जैसे सर्दियों की धूप।
वह गर्मी धीरे-धीरे यशवर्धन के पूरे शरीर में फैल गई।
उसने चेहरा सख़्त बनाए रखा, लेकिन फिर भी कहा,ये पागलखाने वाली मरीज़ तो बड़ी दिलचस्प निकलीअक्षिता थोड़ी चौंकी — उसे उम्मीद नहीं थी कि वह उसकी असलियत जानता होगा।
उसने नजरें उठाईं, लेकिन यशवर्धन अब कहीं और देख रहा था।उसने हल्के से मुस्कराते हुए अपनी नजरें झुका लीं।
शायद, जो आदमी दुनिया उसे पत्थरदिल और निर्दयी कहती है — वो अंदर से इतना भी कठोर नहीं है।
अक्षिता ने धीरे से यशवर्धन की कलाई छोड़ दी। उसे नहीं पता था कि यशवर्धन को उसके स्पर्श से कुछ ऐसा एहसास हुआ था जिसे छोड़ते हुए उन्हें थोड़ी सी हिचक महसूस हुई।
गंभीर स्वर में, अक्षिता बोली,
आपके शरीर में जो विष है, वो गर्भावस्था के समय आपकी माँ से आया है। और अब ये आख़िरी चरण में पहुँच चुका है।"
आख़िरी चरण?”
यशवर्धन की आँखों में अचानक से मौत का एक खतरनाक तेज़ चमक उठा। उन्होंने नज़रें फेर लीं और उठकर जाने लगे।
मिस्टर सिंह!
अक्षिता ने तुरंत खड़े होकर आवाज़ दी। उसने उसकी पीठ की ओर देखते हुए कहा,लेकिन आपकी बीमारी—
उससे पहले कि वो कुछ और कह पाती, यशवर्धन अचानक ऐसे गिर पड़े जैसे किसी कठपुतली की डोरी कट गई हो।
वो सीधे सोफ़े पर गिरे।
उनकी पलकों ने बोझिल होकर झुकना शुरू किया, साँसें तेज़ हो गईं और शरीर एकदम बेकाबू लगने लगा।
यशवर्धन!”
अक्षिता तुरंत दौड़कर उनके पास पहुँची और उन्हें पलटा।
उनका चेहरा एकदम पीला पड़ गया था, जैसे सारा रक्त सूख गया हो। शरीर बर्फ़ की तरह ठंडा था।
उसी वक्त प्रेरणा कमरे में भागती हुई आई। असल में वो यशवर्धन को बताने आई थी कि लिटिल कियान बेहोश होकर अस्पताल पहुंच गया है, लेकिन यहाँ आकर जो देखा, उससे वो घबरा गई।
दूर हटो!
प्रेरणा चिल्लाई, जब उसने देखा कि अक्षिता अब भी यशवर्धन के पास बैठी थी। उसने उसे पीछे खींचने की कोशिश की, लेकिन तभी उसकी नज़र उस चाँदी की सुई पर पड़ी जो अक्षिता के हाथ में थी।
डर और घबराहट से कांपती हुई, प्रेरणा बोली,
"तुम कर क्या रही हो? हटो वहाँ से! यशवर्धन को कोई पसंद नहीं कि कोई उन्हें छुए!"मैं उनकी जान बचा रही हूँ!अक्षिता ने गुस्से में कहा।बीमारी के ऐसे दौरे बेहद ख़तरनाक हो सकते थे। अगर समय रहते राहत न मिले, तो स्थिति और बिगड़ सकती थी।
प्रेरणा ने फिर से उसे हटाने की कोशिश की। अक्षिता ने झटककर उसे पीछे किया और फिर तेज़ी से धूमिल की ओर देखा, जो पास के सोफ़े पर आराम कर रहा था।
“धूमिल! इस पर नज़र रखो!
जैसे ही प्रेरणा ने दोबारा आगे बढ़ने की कोशिश की, धूमिल फुर्ती से उसके सामने आ गया। उसकी जीभ बार-बार बाहर आ रही थी।
प्रेरणा दो कदम पीछे हट गई।
ये कैसे हो सकता है? धूमिल तो सिर्फ़ यशवर्धन का कहना मानता है...जब उसने दोबारा क़दम बढ़ाने की कोशिश की, धूमिल ने अपने जबड़े खोल दिए।
आह!
प्रेरणा डर के मारे पीछे गिरते-गिरते बची। उसने तो सिर्फ़ टेस्ट करने की कोशिश की थी, उसे नहीं लगा था कि साँप सच में हमला कर देगा। वो तो खुद अक्सर उसे खाना खिलाती थी!
धूमिल अब उसके और यशवर्धन के बीच में बैठ गया — एक सच्चा रक्षक।इस बीच, अक्षिता ने चाँदी की सुई को धीरे-धीरे यशवर्धन के सिर में लगा दिया।
यशवर्धन अब भी होश में थे। उन्होंने सुई की ओर देखा — अजीब बात थी, दर्द कुछ कम लग रहा था।प्रेरणा को अपनी आँखों पर यक़ीन नहीं हो रहा था — यशवर्धन ने उस अनजान लड़की का हाथ पकड़ रखा था! वो जो किसी को छूना तक पसंद नहीं करता था
अक्षिता ने उनकी शर्ट हटाई — नीचे से उभरी हुई आठ-पैक की मांसपेशियाँ ये बता रही थीं कि वो अपनी सेहत को लेकर सजग रहते थे।उनकी साँसें तेज़ थीं, माथे पर पसीना और शरीर ठंडे बर्फ़ सा। जैसे जीवन उनसे धीरे-धीरे दूर जा रहा था।
लेकिन जहाँ-जहाँ अक्षिता की सुई लगी थी, वहाँ थोड़ी गरमी सी महसूस हो रही थी। जैसे उसके भीतर जीवन का कोई हल्का-सा संचार हो रहा हो।आख़िर में, उसने आखिरी सुई भी लगा दी और धीरे से पूछा,अगर आप होश में हैं, तो एक बार पलकें झपकाएं।
यशवर्धन ने पलकें झपकाईंअक्षिता ने राहत की साँस ली और अंतिम सुई उनके हाथ में लगा दी.हो गया।"
अब अक्षिता के माथे पर भी पसीने की बूंदें थीं। जैसे ही वह खड़ी होकर टिशू लेने लगी, उसने महसूस किया कि उसका बायाँ हाथ किसी ने पकड़ा हुआ है।नीचे देखा — यशवर्धन ने उसका हाथ कसकर थाम रखा था।
अक्षिता उसे छुड़ा न सकी, इसलिए वहीं बैठ गई और इंतज़ार करने लगी।अब यशवर्धन की बंद आँखों के पीछे गरमी दौड़ रही थी — एक सुकून, जो शायद उन्हें वर्षों बाद मिला था।
प्रेरणा की आँखों में अचानक एक चमक आ गई —क्या यशवर्धन अब दूसरों को छूने देने लगे हैं।
समय देखकर, अक्षिता ने धीरे-धीरे सुइयाँ निकालनी शुरू कर दीं।अंतिम सुई के साथ ही यशवर्धन ने आँखें खोलीं।
अक्षिता ने फुर्ती से अपना हाथ छुड़ाया और सोफ़े के दूसरे कोने में जाकर बैठ गई। टिशू निकाला और अपने माथे का पसीना पोंछा।
यशवर्धन!"
प्रेरणा तुरंत दौड़कर आई और उनका हाथ पकड़ने को हुई — लेकिन यशवर्धन ने उसका स्पर्श टाल दिया।धूमिल!"
यशवर्धन ने ठंडी आवाज़ में पुकारा।
तभी धूमिल एक परछाईं की तरह हवा में लहराते हुए उनके पास आ गया, और प्रेरणा को घूरते हुए बैठ गया — जैसे कह रहा हो,"दूर रहो!"
यशवर्धन, आप कैसे हैं?”
प्रेरणा की आँखों में आँसू तैर रहे थे। उसने बड़ी लाचारी और उम्मीद के साथ यशवर्धन की ओर देखा।वो समझ नहीं पा रही थी कि यशवर्धन ने उस लड़की (अक्षिता को छूने दिया, लेकिन उससे हमेशा दूरी बना कर रखी।
जैसे-जैसे प्रेरणा सोचती गई, उसके मन में बेचैनी और अजीब पनपने लगे। लेकिन धूमिल सामने खड़ा था, जिससे वह कुछ कर भी नहीं सकी। वह केवल चुपचाप एक कोने में खड़ी रही।
यशवर्धन धीरे-धीरे सीधे बैठे — उनकी पीठ एकदम सीधी थी। उन्होंने अक्षिता की ओर एक गहरा और ठंडी निगाह डाली, फिर चुपचाप ऊपर की ओर चला गया।
धूमिल फुर्ती से चढ़कर उनके हाथ की कलाई पर लिपट गया जैसे कोई साँप नहीं, बल्कि चाँदी का ब्रेसलेट हो।
यशवर्धन ने कमरे में जाकर खुद को आइने में देखा। उनकी शर्ट आधी खुली थी। उन्होंने झटपट शर्ट उतारी और बाथरूम की ओर बढ़े।
अब तक, हर बार बीमारी का दौरा पड़ने पर उन्हें ठीक होने में दो घंटे लगते थे। लेकिन इस बार?
सिर्फ़ दस मिनट?
अक्षिता कपूर..."उन्होंने मन ही मन सोचा।उसकी मेडिकल सिक्ल - वाकई में कमाल की थी।तुम नहीं मरोगे!"अचानक उन्हें अक्षिता के शब्द याद आए।
उनकी आँखों में हलकी सी उदासी आ गई। बाल सुखाते हुए वे बाथरूम से बाहर निकले।
तभी उनका फोन बजा। उन्होंने कॉलर आईडी देखी —
दादी माँ?"lउन्होंने फोन कान पर लगाया।
मैंने तुम्हें दस बार कॉल किया! अब उठाया है?
सिंह परिवार की मुखिया,अवतिका सिंह), नाराज़ स्वर में बोलीं।यशवर्धन ने फोन कान से थोड़ी दूर किया, फिर जब वो चुप हुईं, तो ठंडे स्वर में बोले,क्या बात है?"कियान को चक्कर आया है। हम सब अभी सिंह हॉस्पिटल में हैं...
मैं अभी आता हूँ!"यशवर्धन ने तुरंत बाल पोंछे, कपड़े बदले और बाहर निकल गया।धूमिल बेड पर लेटा हुआ था, लेकिन जैसे ही यशवर्धन निकले, वो भी उनके पीछे जाने लगा।
घर में ही रहो। कहीं और मत जाना!
यशवर्धन की सख़्त निगाहों से डरकर धूमिल सिकुड़ गया। नाखुश होकर उसने अपनी पूंछ पटकी और वापस लेट गया।
नीचे आते हुए यशवर्धन ने देखा कि अक्षिता सोफ़े पर बैठी मोबाइल चला रही थी। बटलर ने अभी-अभी उसे चाय दी थी।
उन्होंने तुरंत ऑडर दिया:मिस अक्षिता के लिए एक गेस्ट रूम तैयार करो!"बटलर ने सिर हिलाया और यशवर्धन को आदरपूर्वक बाहर तक छोड़ा।
जैसे ही यशवर्धन दरवाज़े से बाहर निकले, प्रेरणा जो अब तक अदृश्य जैसी रही थी, दौड़कर उनके पीछे आई। यशवर्धन, चिंता मत करो। डॉक्टर ने कहा है कि बस शुगर कम हो गई थी। कियान ठीक हो जायेगा।
यशवर्धन एक पल के लिए रुके। उन्होंने प्रेरणा की ओर मुड़कर देखा।भौंहें तन गईं। स्वर में बर्फ़ थी"बस शुगर कम?"
प्रेरणा ने उनकी नाराज़गी भाँप ली। उनके अदर डर लगने लगा और. पूरा चेहरा ठंडा पड़ने लगा ।"मुझे माफ कर दो। मैं बस नहीं चाहती थी कि आप परेशान हों...प्रेरणा ने धीरे से कहा, आँखें नम थीं।
सच मे.यशवर्धन की आँखें सिकुड़ गईं। उसके शब्द अब और भी ठंडे हो गए थे ।प्रेरणा सिहर गई। जब तक उसे कुछ समझ आता, यशवर्धन आँगन के गेट तक पहुँच चूका था।
एक तेज़ हवा चली। उसके रोंगटे खड़े हो गए। तभी उसे अहसास हुआ कि वो पसीने में भीग चुकी थी।
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*हॉस्पिटल में...
यशवर्धन VIP वार्ड पहुंचा।
अवंतिका जी बिस्तर के पास बैठी थीं, जहाँ एक चार साल का बच्चा लेटा हुआ था।
"दादी माँ।
यशवर्धन तेज़ी से बिस्तर तक पहुँचे। उन्होंने बच्चे को देखा — उसका चेहरा हूबहू यशवर्धन जैसा था।उनकी आँखों में चिंता चमकी।डॉक्टर ने क्या कहा?"
अवतिका जी ने गहरी साँस ली और कहा,ये बच्चा जानता था कि आज तुम्हारी शादी है। वो भी साथ जाना चाहता था, इसलिए चुपचाप कार की पिछली सीट में छिप गया। फिर रास्ते में बेहोश हो गया — शुगर लो हो गया था।
सारे नौकर बेकार हैं! बच्चे को अकेले कैसे जाने दिया?"यशवर्धन ने कड़कते हुए कहा।"नौकरों की गलती नहीं थी," अवतिका जी बोलीं।मैं खुद बच्चे का ध्यान रख रही थी कियान लेकिन ये।बहना बनकर गए बोला कि वॉशरूम जा रहा हु दादी माँ और फिर चुपचाप निकल गए आपके नन्हें सेतान।"यशवर्धन ने हामी भरी।
और हाँ," अवंतिका जी ने फोन निकाला, "इस लड़की को तुम बाद में ठीक से धन्यवाद देना। इसी ने कियान को बचाया है।"
फोन पर एक वीडियो चल रहा था — एक महिला रेड वेडिंग ड्रेस में धीरे-धीरे बच्चे को ग्लूकोज़ पिला रही थी।
यशवर्धन ठिठक गए।
वो लड़की... अक्षिता कपूर थी।
उसकी आँखे और छोटी हो गईं।क्या ये बस एक इत्तेफाक था?क्या वो सच में बस एक डॉक्टर थी?या फिर — उसका उस ज़हर से कुछ नाता था जो उसके शरीर में पल रहा था यशवर्धन का चेहरा पूरी तरह से एक्सप्रेशनलेस हो गया। अब उस पर बस एक शक का भाव. रह गया था।"
डैडी
एक मासूम सी आवाज़ ने यशवर्धन की के विचारों की डोर तोड़ दी।और उसे अचानक से वास्तविकता में वापस ला दिया।"
“कियान!
आवंतिका ) जी की आँखों में.इमोशन का सैलाब आ गया था। उसने कियान के गोल-मटोल गालों को छूते हुए राहत की साँस ली।तुम आखिरकार उठ गए, दादी बहुत घबरा गई थी!”
फिर उन्होंने झूठ मुठ के अंदाज़ में दो आँसू भी टपकाए।
“दादी, माँ आप मत रोइए!”
कियान ने बच्चे जैसी मासूम आवाज़ में कहा और उठने की कोशिश की।
आवंतिका जी ने जल्दी से उसे नीचे लेटा या और सिर पर प्यार से हाथ फेरा और मुस्कुरा कर कहा,मेरे प्यारे बच्चे, दादी अब नहीं रोएगी।
यशवर्धन ने कोमल स्वर में पूछा,
तुम अकेले क्यों निकल गए थे?”
हर बार जब कियान कोई गलती करता, यशवर्धन उसे डाँटना चाहते लेकिन डाटा ही नहीं पाता उसका गोल मोल मासूम सा चेहरा देखकर उसका दिल पिगल जाता।
कियान थोड़े सहमे सा बोला,मैं बस देखना चाहता था कि मेरी नई मम्मी कैसी दिखती हैं…
यशवर्धन का चेहरा एक पल को इमोशन लेस हो गया।
कियान ने शर्माते हुए सिर झुका लिया और धीमे से कहा,
वो बहुत प्यारी हैं, पापा। जैसे कोई परी। मुझे बहुत अच्छी लगीं।
जब कियान बेहोश हो रहा था, तब भी उसकी आँखें थोड़ी खुली थीं। उसने लाल शादी के जोड़े में एक महिला को देखा था — उसकी नई मम्मी — जो स्वर्ग से आई परी जैसी लग रही थीं बिलकुल ब्यूटीफुल प्रिंसेस जैसी जो उसे उसे धीरे-धीरे शकर पानी पिला रही थीं।
यशवर्धन ने बस “हूँ” कहा, फिर खड़े होकर आवंतिका जी को एक ओर ले गए।“दादी माँ, फिलहाल कियान को घर मत ले जाइए।”यशवर्धन का स्वर गंभीर था।
आवंतिका ने हैरानी से पूछा,
क्यों नहीं?”
*"मैं अभी तक यह नहीं समझ पाया हूँ कि अक्षिता कपूर आखिर आई क्यों है। अगर उसके इरादे ठीक नहीं हुए तो कियान को चोट पहुँच सकती है।"
मैं खुद देखना चाहता हूँ कि वह किस तरह की इंसान है,क्या वो जैसी दिखती है वैसी है की नहीं खास बात ये की क्या वह कियान की माँ बनने के लायक है या नहीं।"
आवंतिका जी ने सहमति में सिर हिलाया,
“बिलकुल सही कह रहे हो। अगर वो लड़की कियान से ठीक से पेश नहीं आई, तो दिक्कत हो सकती है। तुम ध्यान से उसकी जांच पड़ताल करो।”
“जी।” यशवर्धन ने ठंडे स्वर में कहा।
थोड़ी देर कियान के साथ समय बिताने के बाद, यशवर्धन अस्पताल से निकल गए।
कार में..
अक्षिता कपूर की पूरी जानकारी निकालो,”
यशवर्धन ने सामने बैठे अपने सेक्रेटरी करण मिथल से कहा।
“जी, सर।”
करण तुरंत अपने काम में लग गया।
यशवर्धन पीछे की सीट पर बैठ कर खिड़की से बाहर देखते रहे। जैसे-जैसे दृश्य पीछे छूटता गया, उनके मन में वही चेहरा घूमता रहा — मासूम, शांत, और सुंदर — और वे अनायास ही भौंहें सिकोड़ बैठा।
-
सिंह हवेली में..
जैसे ही यशवर्धन घर पहुँचे, उन्होंने प्रेरणा को आँगन में खोई हुई हालत में खड़े देखा।उन्होंने उसकी ओर एक नज़र तक नहीं डाली और सीधे अंदर चले गए।
प्रेरणा ने देखा कि यशवर्धन बिना कुछ कहे चला गया। उसकी भौंहें सिकुड़ गईं।
"मुझे लगा था कि वे मुझसे हाल पूछेंगे, कम से कम कुछ कहेंगे…"पूछे मुझे क्या हुवा मनयेंगे लेकिन.यशवर्धन
बिचारी सारे अमरमानो पे पानी फेर दिया
अब प्रेरणा को घबराहट होने लगी थी।
वो तो हमेशा सोचती थी कि वही यशवर्धन की पत्नी बनेगी। पर अब?और उसके पैसों पर ऐश करेगी लेकिन लगता उसका ये सपना तो पूरा होने से रहा..
"नहीं! ऐसा नहीं होने दूँगी।"
प्रेरणा के चेहरे पर चिंता और ईर्ष्या उभर आई।
कियान ही यशवर्धन की सबसे बड़ी कमजोरी है… और अगर दादी माँ मेरे साथ रहीं, तो मैं ही सिंह परिवार की छोटी बहू बनूँगी!"
यह सोचते ही, प्रेरणा तेज़ी से बाहर निकल गई।
गेस्ट रूम के बाहर..
यशवर्धन ड्राइंग रूम में पहुँचे और पूछा,
“वो कहाँ है?”
बटलर ने सिर झुकाया,
छोटी बहू गेस्ट रूम में आराम कर रही हैं।”
बटलर उन्हें कमरे तक ले गया और दरवाज़े पर दस्तक दी।
“कौन है?”
भीतर से थोड़ा चिढ़ा हुआ स्वर आया। अगले ही पल दरवाज़ा खुला।
अक्षिता , छोटे स्लीव वाली टीशर्ट और डेनिम शॉर्ट्स में सामने खड़ी थीं। बालों से पानी टपक रहा था, और उनकी गर्दन पर भाप सी जम गई थी।
बटलर ने खुद को गैर-ज़रूरी समझते हुए चुपचाप वहाँ से खिसक लिया।
यशवर्धन ने अक्षिता को एक बार देखा, फिर कमरे में दाख़िल हो गए।खिड़की के पास सोफ़े पर बैठते हुए बोले,
मेरे शरीर से ज़हर निकालने की कितनी संभावना है तुम्हारे पास?”
अक्षिता ने बिना जवाब दिए बाल खोल लिए — जिससे उसका गीला शर्ट और भी गीला हो गया, और हल्के से उनके अंडरगारमेंट्स की झलक दिखने लगी।
वो गंभीर स्वर में बोलीं,
ज़हर बहुत गहराई तक है। मैं 70% आश्वस्त हूँ कि ठीक कर सकती हूँ।”
सिर्फ़ 70%?"
यशवर्धन के होंठों पर एक तिरछी मुस्कान उभरी — जैसे कुछ कहे बिना बहुत कुछ कह रहे हों।