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His Unwanted Dulhan

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Simran Ansari

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ये कहानी है दीवान‌‌ परिवार के बेटे आरांश दीवान और तारा वर्मा की, तारा एक खुश मिजाज आर्ट स्टूडेंट है जो कि आर्ट्स में मास्टर्स कर रही है और अपने फाइनल ईयर में उसे पता चलता है कि उसके घर वालों ने उसकी शादी आरांश के साथ फिक्स करती है जो कि अपने जुड़वा भ...

Total Chapters (36)

Page 1 of 2

  • 1. His Unwanted Dulhan - Chapter 1

    Words: 1641

    Estimated Reading Time: 10 min

    1

    इंदौर शहर के बहुत ही अच्छे पाॅश इलाके में बने हुए बड़े खूबसूरत "दीवान विला" की रौनक ही आज लग लग रही थी क्योंकि शाम के इस वक्त रंग बिरंगी रोशनी से नहाया हुआ वह महंगे सफेद मार्बल से बना हुआ विला कुछ ज्यादा ही जगमगा रहा था और वैसे ही सुनहरी सफेद और हर रंग की रोशनी उस विला के संगमरमर के फर्श पर बिखरी पड़ी थी।

    विला के मुख्य द्वार पर रंग-बिरंगी फूलों की मालाओं से सजा हुआ एक भव्य तोरणद्वार था, जहां से अंदर आते ही मेहमानों को मानों एक अलग ही दुनिया में आऊ करने का एक्सपीरियंस हो रहा था। उस विला बगीचे के हर कोने में सफेद और सुनहरे रंग की रोशनी झिलमिला रही थी। हवा में गुलाब और मोगरे की खुशबू तैर रही थी, जो माहौल को और भी सुगंधित बना रही थी।

    मेन गेट पर लाल रंग के गुलाब के फूलों से सजा हुआ बड़ा सा दिल बनाकर दीवार में दोनों साइड पर लगा हुआ था और बीच में वाइट कलर के फूलों से उस पर लिखा हुआ था –

    "आरांश weds तारा"

    उसी विला के अंदर जाने पर हाॅल एरिया में बीचों-बीच एक बड़ा सा मंडप बना हुआ था, जो चारों ओर से लाल और सुनहरे रेशमी कपड़ों और फूलों से सजा हुआ था। मंडप के चारों खंभो पर चमचमाते लटकन और बेलों की सजावट थी। आस-पास के पेड़ों पर रंग-बिरंगी लाइटें और फूलों की लड़ियां झूल रही थीं, जो रात होने पर माहौल को और भी जादुई बना रही थी। मेहमान भी आज होने वाली उस भव्य शादी में शामिल होने के लिए धीरे-धीरे इकट्ठा हो रहे थे, उनकी हंसी और बातचीत का शोर भी वहां गूंज रहा था।

    मंडप के आसपास परिवार के सारे लोग खड़े थे और बीच में रखे हुए अग्नि कुंड में आग जल रही थी और पंडित जी वहां पर किनारे बैठे हुए थे और बेल-पत्र से गंगाजल लेकर मंडप के चारों ओर छिड़कते हुए मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे।

    "दूल्हा और दुल्हन को बुलाइए! शादी का मुहूर्त हो गया है।" - इतना बोलकर पंडित जी दोबारा से पहले की ही तरह मंत्र उच्चारण में लग गए और उनकी बात सुनकर साइड में बैठी हुई दोनों औरतों ने एक दूसरे की तरफ देखा और अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई।

    उनमें से एक ने पंडित जी की तरफ देखते हुए कहा, "हां, हम लेकर आते हैं।"

    इतना बोलकर वो दोनों घर में अलग-अलग तरफ बने हुए दो कमरों की तरफ गई और कुछ एक-दो मिनट के बाद ही दो लड़कियों के साथ बीच में चलती हुई बहुत ही खूबसूरत सी दुल्हन वहां से बाहर आई और वह काफी खुश लग रही थी उसके चेहरे की खुशी बता रही थी कि वह अपनी शादी में बहुत ही ज्यादा खुश है और उसकी वह खुशी की चमक उसके चेहरे को और भी ज्यादा खूबसूरत बना रही थी दुल्हन ने गुलाबी रंग का लहंगा पहना हुआ था जिस पर मल्टी कलर एंब्रॉयडरी वर्क था और माथापट्टी और बाकी सारी ज्वेलरी भी पिंक और मल्टी कलर की थी जो कि उसके लहंगे के साथ बहुत अच्छे से मैच हो रही थी और उसका बहुत ही प्यारा मैचिंग दुल्हन वाला ब्राइडल मेकअप किया गया था।

    उसके साथ दो लड़कियां चल रही थी जिन्होंने उनके कान में कुछ कहा जिस की वजह से दुल्हन हंसने लगी और वह दोनों लड़कियां भी आपस में बात करती हुई हंस रही थी और वह दुल्हन को लेकर मंडप तक आईं और फिर उसे मंडप में बिठाते हुए उनमें से एक ने कहा, "तारा अब हंसना बंद कर, ऐसे दांत दिखाएंगी ना तो सब तुझे बेशर्म दुल्हन बोलेंगे। थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन शर्माने की एक्टिंग ही कर ले, यार!"

    अपनी सहेली की यह बात सुनकर दुल्हन जो अब तक खुश थी और हंस रही थी, मुस्कुरा रही थी वह एकदम ही शांत हो गई और सीरियस चेहरा बनाने की कोशिश करने लगी जो कि उसके लिए शायद काफी मुश्किल था।

    उस्सकी सहेलियां भी दोनों उसके साइड में बैठ गई और उसने अपने राइट साइड पर हल्का सा झुक कर वहां बैठी हुई लड़की के कान में कहा, "अरे यार! अदिति, क्या करूं मैं पहली बार ही शादी हो रही है ना इसलिए एक्साइटमेंट की वजह से बस थोड़ी सी खुश हूं लेकिन अब मैं स्माइल नहीं करूंगी। वैसे भी मम्मी बोलती है ज्यादा हंसो तो फिर नज़र लग जाती है और फिर बाद में उतना ही रोना भी पड़ता है!"

    फिलहाल अभी बाकी लोग दुल्हन और उसकी सहेलियों से थोड़ा दूर पीछे होकर बैठे हुए थे इसलिए उनकी बात और किसी को सुनाई नहीं दी लेकिन फिर भी अदिति ने धीरे से तारा के कंधे पर हाथ मारते हुए कहा, "चुप कर तू! कुछ भी बकवास मत कर ऐसा कुछ नहीं होता, वह आंटी बस तुझे ऐसे ही समझाने के लिए बोलती हैं लेकिन हां अभी थोड़ी देर के लिए अपनी एक्साइटमेंट को कंट्रोल कर ले बस कुछ देर की ही बात है। ऐसे अच्छा नहीं लगता ना, दांत दिखाती हुई दुल्हन, तेरी सारी फोटोस भी वैसी ही आएंगे फिर!"

    अदिति की बात सुनकर तारा का मुंह बन गया और वह अपनी जगह पर सीधी होकर बैठ गई और इधर-उधर देखने लगी, वह अपने दूल्हे का इंतजार कर रही थी जो कि अब तक नहीं आया और इस बात से इरिटेट होकर उसने दोबारा अपनी फ्रेंड से कहा, "यार अदिति! यह आरांश जी कहां रह गए। बताओ दुल्हन रेडी हो गई है दूल्हा ऐसा भी क्या रेडी हो रहा है। लगता है वह मुझसे भी ज्यादा एक्साइटेड है जो अब तक तैयार ही नहीं हो पाए।"

    इतना बोलते हुए तारा फिर से अपने चेहरे पर हाथ रख कर हंसी तो इस बार दूसरी साइड पर बैठी हुई उसकी बड़ी बहन प्राची दीदी ने उन दोनों को डांटते हुए कहा, "चुप करो तुम दोनों और तारा तुम 2 मिनट शांत नहीं बैठ सकती क्या? सबकी नज़रें तुम पर ही हैं और फिर भी तुम ऐसे..."

    अपनी बहन की डांट सुनने के बाद तारा दोबारा से अपनी जगह पर एकदम सीधा होकर बैठ गई और उसने धीमी आवाज में कहा, "सॉरी दीदी! मैं तो बस बात कर रही थी, अब नहीं करूंगी।"

    इतना बोलकर वह फिर से सामने की तरफ ही देखने लगी लेकिन आदत से मजबूर वह ज्यादा देर तक सीरियस और सीधा होकर बैठ नहीं पाई और फिर से सिर्फ घूम कर इधर-उधर चारों तरफ देखने लगी, अभी तक उसका दूल्हा मंडप में नहीं आया था इस बात को सोचकर वह थोड़ी सी बेचैन भी हो रही थी लेकिन फिलहाल अभी उसने यह बात किसी और से नहीं कही।

    वहीं दूसरी तरफ, हमारे दूल्हे यानी कि आरांश को बुलाने के लिए उसकी मां और बड़ी बहन निवेदिता गई हुई थी लेकिन आरांश ने दरवाजा तक नहीं खोला और ना ही कमरे के अंदर से वह उन दोनों की बात का कोई जवाब दे रहा था।

    उसकी मां ने दरवाजा खटखटाते हुए बाहर से कहा, "आरांश दरवाजा खोलो बेटा! फेरों का वक्त हो गया है! क्या कर रहे हो तुम अभी तक!"

    फिर भी अंदर से कोई जवाब नहीं आया और ना ही उस कमरे का दरवाजा खुला तो वो दोनों ही बहुत परेशान हो गईं।

    आरांश की मां, ममता जी ने अपनी बेटी निवेदिता की तरफ़ देखते हुए कहा, "देख ना यह क्या करने पर तुला है तेरा भाई! सारे मेहमान आ गए हैं यहां तक दुल्हन भी तैयार होकर मंडप में आ गई है और पता नहीं क्या चलता रहता है इस लड़के के दिमाग में?"

    यह बात बोलते हुए ममता जी बहुत ही ज्यादा परेशान लग रही थी और उनकी बात सुनकर निवेदिता ने कहा, "मम्मी देखिए! इसमें पूरी तरह से तो गलती आरांश की भी नहीं है क्योंकि आप लोगों ने ही उसे मजबूर किया है यह शादी करने के लिए नहीं तो..."

    निवेदिता की बात सुनते ही ममता जी एकदम भड़कते हुए बोली, "नहीं तो क्या अकेला रह रहकर वह भी मर जाता एक दिन, यही चाहती है क्या तू अपने भाई के लिए, तूने देखा नहीं उसने अपनी हालत कैसी कर ली है और उसके लिए यह ज़रूरी था इसीलिए हमने इतना जोर दिया है नहीं तो अब तक हमने भी तो कुछ नहीं बोला था। आखिर और कितना वक्त चाहिए उसे इन सब से निकलने के लिए सारी जिंदगी तो नहीं अकेला रह सकता है ना और वैसे भी हम उसका भला चाहते हैं। कोई दुश्मन नहीं है हम उसके।"

    यह बात बोलते हुए ममता जी की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने अपनी साड़ी के पल्लू अपने चेहरे पर रख लिया और किसी तरह अपने आंसू रोकने की कोशिश करने लगी।

    अपनी मां की बात सुनकर और उन्हें ऐसे इमोशनल होते देख कर निवेदिता ने अपनी मां का हाथ पकड़ते हुए कहा, "हां मम्मी मुझे पता है और मैं भी यही चाहती हूं कि आरांश की लाइफ में कोई आए जो उन्हें उनकी डार्कनेस से निकालकर वापस रोशनी में ले आए और मुझे पता है तारा भाभी ये बहुत अच्छे से कर पाएंगी इसीलिए मैं भी चाहती हूं उनकी शादी हो लेकिन अगर भाई राजी हुए थे तो फिर ऐसा क्यों कर रहे हैं?"

    इतना बोलते हुए निवेदिता ने एक गहरी सांस ली और फिर दरवाजे की तरफ मुड़ गई और दोबारा दरवाजे पर हाथ मारते हुए तेज आवाज में बोली, "आरांश दरवाजा खोलो, मुहूर्त का टाइम हो रहा है।"

    इतना बोलते हुए निवेदिता ने बार-बार दरवाजे पर अपना हाथ मारा, जिससे की तेज़ आवाज़ हुई।

    उसके इस तरह दरवाजा खटखटाना की आवाज कमरे के अंदर भी जा रही थी और शायद बाहर बैठे लोगों को भी सुनाई दे रही थी इसलिए सभी उस तरफ देखने लगे थे।

    To Be Continued

    क्या कहना चाहती है निवेदिता और आरांश क्यों नहीं आ रहा है मंडप में? और वो आएगा या फिर नहीं क्या लगता है आप लोगों को बताइए कमेंट में वह आएगा या फिर नहीं और कैसी लगी आपको हमारी प्यारी तारा, एकदम चमकती हुई सी है ना, अपने नाम की तरह वैसे देखते हैं उसकी ये चमक कब तक रह पाती है?

  • 2. His Unwanted Dulhan - Chapter 2

    Words: 1621

    Estimated Reading Time: 10 min

    2

    आरांश की मां, और निवेदिता दोनों ही काफी देर से उसके कमरे का दरवाजा खटखटा रहे थे और लगभग 10 मिनट के बाद उन दोनों को एक रिस्पांस मिला।

    हल्की सी क्लिक के साउंड के साथ दरवाजा हल्का सा खुला और जैसे ही दरवाजा थोड़ा सा खुला निवेदिता ने तुरंत ही दरवाजे पर हाथ रखा और पूरा दरवाजा खोल कर वह कमरे के अंदर चली गई और उसके पीछे ही उसकी मां भी कमरे के अंदर गई।

    कुछ देर के बाद, क्रीम कलर की शेरवानी जिस पर गोल्डन वर्क था पहने हुए एक लड़का उसी कमरे सेबाहर आया जिसके गले में शेरवानी पर पहनने वाला दुपट्टा पड़ा हुआ था शेरवानी की जेब के ऊपर काफी महंगा डायमंड का ब्रोच लगा हुआ था। उस लड़के के ब्राउन बाल और डार्क ब्राउन कलर की आंखें थी वह बहुत ही ज्यादा हैंडसम लग रहा था लेकिन उसका फेस एकदम एक्सप्रेशन लैस था, उसे देखकर यह भी समझ नहीं आ रहा था कि वह खुश है या फिर दुखी गुस्से में है या फिर इरिटेट।

    वह उस कमरे से बाहर निकाला और उसके साथ ही उसके पीछे एक और लड़का जो लगभग भागते हुए उसके पीछे आया क्योंकि दूल्हा भी काफी स्पीड से चलता हुआ मंडप तक आया और आकर दुल्हन के बगल में चुपचाप ही बैठ गया। उसने ना किसी से कुछ बोला और ना ही कुछ कहा यहां तक उसने साइड में बैठी हुई दुल्हन की तरफ एक नज़र भी नहीं देखा और बस सामने की तरफ देखा हुआ वहां पर किसी पत्थर की तरह बैठा रहा।

    तारा को उसका बर्ताव बहुत ही अजीब लगा लेकिन वह पहले ही दो बार डांट खा चुकी थी इसलिए उसकी बिल्कुल भी हिम्मत नहीं हुई कि वह आगे जाकर झांकते हुए उसका चेहरा या एक्सप्रेशन देखने की कोशिश करें या फिर कुछ भी बोले इसलिए वह भी चुपचाप सारी रस्मों को निभाने लगी।

    पंडित ने मंदिर पढ़ने शुरू किया और एक-एक कर सारी रस्में शुरू हुई और वह लड़का यानी कि हमारा दूल्हा आरांश बिना अपनी होने वाली दुल्हन की तरफ देखे ही सारी रस्में करता गया और आखिर में सात फेरे पूरे होने के बाद पंडित जी ने जैसे ही कहा, "विवाह संपन्न होता है, अब से आप दोनों पति-पत्नी हैं। घर के बड़ों का आशीर्वाद लेकर अपने नए जीवन की शुरुआत करिए।"

    इतना बोलते हुए पंडित जी ने अपने हाथ में पकड़े हुए बेलपत्र से गंगाजल उन दोनों के ऊपर छिड़का लेकिन आरांश एकदम ही अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और उसके खड़े होते ही तारा को भी उठकर खड़े होना पड़ा क्योंकि वह इस तरह बैठे नहीं रह सकती थी उन दोनों का गठबंधन हुआ था और तारा के दुपट्टे को आरांश के गले में पड़े हुए साफा से बांध दिया गया था।

    लेकिन आरांश ने तुरंत ही उसे अपने गले से निकाल कर वहीं जमीन पर फेंक दिया और इससे पहले की कोई कुछ बोल पाता या उसे रोक पाता वह तुरंत ही वहां से चला गया।

    आरांश हो इस तरह से जाते देख उसकी मां ने उसके पीछे आते हुए कहा, "अरे बेटा रुको तो..."

    लेकिन उसने अपनी मां की एक बात भी नहीं सुनी और बाकी सारे लोग एकदम ही हैरान रह गए। उसका ऐसा बर्ताव देखकर क्योंकि कितनी देर इंतजार करने के बाद तो वह वहां पर मंडप में आया था दुल्हन के आने के आधे घंटे के बाद और शादी की रस्मों में आधा घंटा लगा होगा और फेरे खत्म होते ही वह इस तरह तुरंत वहां से चला गया तो सब लोग आपस में बातें करने लगे इस बीच को लेकर और तारा को भी आरांश का ऐसा बर्ताव बहुत अजीब लगा, उसका खिला हुआ चेहरा एकदम ही उतर गया क्योंकि उसने ऐसा कुछ बिल्कुल भी नहीं सोचा था।

    तारा का उतरा हुआ चेहरा आरांश की बहन ने नोटिस कर लिया और बात संभालने के लिए वह तुरंत ही तारा के बगल में आकर खड़ी हुई और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, "भाभी! आप ज्यादा मत सोचिए वह भाई की ना तबीयत ठीक नहीं है कल रात से ही उन्हें सर में दर्द था शायद इसीलिए जल्दी चले गए क्योंकि तबीयत की वजह से शादी तो कैंसिल नहीं कर सकते थे ना, आई होप आप समझोगी इस बात को और मेरे भाई को भी।"

    निवेदिता ने बहुत ही उम्मीद से यह बात कही तो तारा ने भी हल्की सी मुस्कुराहट के साथ बस अपना सिर हिला दिया और फिर उसने अकेले ही सब लोगों का आशीर्वाद लिया और बाकी की बची हुई रस्में भी उसने अकेले ही निभाई।

    विदाई के वक्त, उसका पूरा परिवार ही उसे वहां छोड़कर चला गया क्योंकि शादी लड़के वालों के घर में ही हो रही थी और तारा बस थोड़ा सा उदास थी लेकिन वह बिल्कुल भी रोई नहीं क्योंकि अपनी नई जिंदगी शुरू करने को लेकर वह बहुत खुश थी और उसे लगा था कि जैसे उसका सपना पूरा हो गया हमेशा से ही उसे शादी करने का शौक था और आज जब से वह दुल्हन बनी थी तब से ही उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपना सपना जी रही है लेकिन आरांश के बर्ताव ने अब उसे थोड़ा सोचने पर मजबूर कर दिया था लेकिन फिर भी अपने स्वभाव के हिसाब से उसने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा और इस बात को भी सीरियस नहीं लिया उसे लगा कि शायद उसकी बहन ठीक कह रही थी उसकी तबीयत ठीक नहीं होगी।

    कुछ देर के बाद, निवेदिता ही तारा को उसके कमरे में छोड़कर गई और इस बीच आरांश उसे कहीं भी नहीं दिखा। तारा जब उस कमरे के अंदर आए तो उसने देखा वह कमरा बहुत ही बड़ा था, उस के घर के तो दो तीन कमरे उसके अंदर आ जाए। इतना बड़ा कमरा देख कर वह काफी एक्साइटेड हो गई थी।

    कुछ देर के बाद, निवेदिता ही तारा को उसके कमरे में छोड़कर गई और इस बीच आरांश उसे कहीं भी नहीं दिखा। तारा जब उस कमरे के अंदर आए तो उसने देखा वह कमरा बहुत ही बड़ा था, उस के घर के तो दो तीन कमरे उसके अंदर आ जाए। इतना बड़ा कमरा देख कर वह काफी एक्साइटेड हो गई थी।

    पूरे कमरे का इंटीरियर पिक और गोल्ड कलर का था जो कि एकदम नया लग रहा था जैसे कि अभी कुछ दिनों पहले ही सब कुछ चेंज करवाया गया हो दीवारों के कलर से लेकर पूरा इंटीरियर बेड फर्नीचर सब कुछ एकदम नया और ब्रांड न्यू लग रहा था इसके अलावा कमरे के बीच में रखे हुए उसे किंग साइज बेड पर भी व्हाइट और पिक फ्लोरल बेडशीट बिछी हुई थी और पूरे बेड पर बहुत ही खूबसूरत मोगरा और गुलाब के फूलों से सजावट की गई थी।

    वह सजावट देख कर तारा के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कुराहट आ गई और सब कुछ सोचते हुए उसका चेहरा भी एकदम लाल हो गया था और उसे ऐसे देखकर उसके साइड में खड़ी हुई निवेदिता ने उसे छेड़ते हुए कहा, "क्या हुआ भाभी? क्या सोच कर लाल हुई जा रही हो?"

    निवेदिता की बात सुनकर अपनी मुस्कुराहट छुपाते हुए तारा ने धीरे से बस नहीं में अपना सिर हिला दिया।

    निवेदिता भी तारा को ज्यादा अनकंफरटेबल नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने बात बदलते हुए कहा, "अच्छा ठीक है भाभी! वैसे आप यह बताओ आपके कमरे की डेकोरेशन और इंटीरियर सब कुछ आपको पसंद तो आया ना बस एक हफ्ते पहले ही सब कुछ चेंज करवाया है हमने और आपको पिंक कलर पसंद है ना बस इसीलिए ये सब कुछ हमने आपकी पसंद का करवा दिया क्योंकि ज्यादातर तो अब आपको ही रहना है ना यहां पर।"

    तारा को तो जैसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसके ससुराल वाले सच में इतने अच्छे थे उसके आने से पहले उन्होंने उसकी पसंद और ना पसंद का इतना ध्यान रखा हुआ था।

    कमरे की सजावट और सुंदरता देखकर पहले ही उसका मुंह खुला का खुला रह गया था और अभी अपनी ननद की बातें सुनकर वह और भी ज्यादा हैरान रह गई।

    उसने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, "हां दीदी! यह सब कुछ बहुत अच्छा है, मुझे तो बहुत पसंद आया लेकिन सब कुछ आपने सिर्फ मेरी पसंद का क्यों करवा दिया! आपके भाई को यह सब पसंद नहीं आया तो.."

    निवेदिता ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, "अरे क्यों नहीं आएगा अब आप आ गई हो ना तो आप उनकी पसंद चेंज करवा देना और उन्हें भी थोड़ा चेंज कर देना अपनी तरह बना देना हमेशा पॉजिटिव और खुश रहने वाला।"

    निवेदिता की इस बात पर तारा कंफ्यूज हो गए और उसने कहा, "क्या मतलब है आपका?"

    निवेदिता ने हंसते हुए कहा, "नहीं, कुछ नहीं भाभी! मैं बस मज़ाक कर रही थी, अभी मैं चलती हूं भाई आते ही होंगे।"

    इतना बोलकर निवेदिता वहां उसके कमरे से बाहर चली गई और उसके जाने के बाद तारा बेड के एक साइड में कॉर्नर पर बैठ गई और जैसे ही वह वहां पर बैठे उसकी नज़र वही साइड टेबल पर रखे हुए एक फोटो फ्रेम पर पड़ी और उस फोटो फ्रेम में आरांश की तस्वीर लगी हुई थी!

    To Be Continued

    कैसा लगा आज का एपिसोड और कैसी लगी ये शादी? वैसे Unwanted शादी है तो दूल्हे का ऐसा रिएक्शन तो बनता ही है क्योंकि हमारी दुल्हन तो पहले से ही इतनी खुश थी लेकिन अब आप लोग बताइए कमेंट में अपने ओपिनियन 🥰 तारा को कब पता चलेगा आरांश का सच, क्या वह खुद बताएगा उसे या फिर उस की फैमिली में से कोई और तारा के परिवार वालों ने कुछ भी रिएक्शन क्यों नहीं दिया क्या उन लोगों को पहले से ही पता था इस बारे में, जब तारा को पता चलेगा तो क्या होगा उसका रिएक्शन क्या आप लोगों को पता है आरांश के ऐसे बर्ताव के पीछे की वजह अगर नहीं पता तो डिस्क्रिप्शन पढ़ लीजिए आपको पता चल जाएगा।

  • 3. His Unwanted Dulhan - Chapter 3

    Words: 1611

    Estimated Reading Time: 10 min

    3

    तारा को कमरे के अंदर लाकर छोड़ने के बाद निवेदिता वहां उस कमरे से बाहर चली गई और उसके जाने के बाद तारा बेड के एक साइड में कॉर्नर पर बैठ गई और जैसे ही वह वहां पर बैठे उसकी नज़र वही साइड टेबल पर रखे हुए एक फोटो फ्रेम पर पड़ी और उस फोटो फ्रेम में आरांश की तस्वीर लगी हुई थी!

    जिसे देखते ही तारा ने अपने हाथ में उठा लिया और उस फोटो फ्रेम की तरफ देखते हुए बोली, "आपने ऐसा क्यों किया आरांश जी! मुझे मंडप में अकेले छोड़ कर चले गए इतनी भी क्या जल्दी थी वहां से भागने की, बताइए ज़रा! और आपने तो एक बार मेरी तरफ़ देखा तक नहीं और ना ही शादी से पहले मुझसे मिलने के लिए हां नहीं की थी, ऐसा क्यों? ऐसा क्यों करते हैं आप?"

    तारा यह सब कुछ बोल ही रही थी इस तरह से जैसे कि वह फोटो सच में उसे कोई जवाब देने वाली है उसकी बातों का लेकिन तभी दरवाजा खुलने की आहट हुई और उसका ध्यान दरवाज़े की तरफ़ हुआ और एकदम ही लड़खड़ाते हुए आरांश एकदम से अंदर आया जैसे कि कमरे के बाहर से अंदर उसे किसी ने धक्का दिया हो।

    वह गिरते गिरते बचा, उसने साइड की दीवार पर अपना हाथ लगाया और फिर दरवाजे की तरफ़ गुस्से में घूर कर देखते हुए बोला, "क्या बदतमीजी है यह? मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है यह सब और आप लोग?"

    इसके आगे वह कुछ भी बोल पाता इससे पहले ही दरवाजा एकदम से ही बाहर से बंद कर लिया गया और दरवाजा बंद होने की एक तेज़ आवाज़ हुई।

    दरवाजा बंद होते ही उसने कसकर अपनी आंखें बंद की और गुस्से में अपने दांत पीस लिए क्योंकि वह आगे कुछ बोल नहीं पाया और दरवाजा भी बाहर से लॉक कर दिया गया था!

    दरवाजे के हैंडल पर हाथ रखते ही जैसे उसने दरवाजा खोलने की कोशिश की वैसे ही उसे की बात समझ आ गई कि दरवाजा बाहर से लॉक है जो की अंदर से तो नहीं खुलने वाला।

    आरांश को वहां दरवाजे पर खड़ा देखकर तारा भी तुरंत अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई और वह फोटो फ्रेम उसने वहीं बेड पर छोड़ दिया, इतना ध्यान नहीं दिया क्योंकि आरांश अभी भी दरवाजे की तरफ मुंह करके खड़ा हुआ था।

    तारा ने सोचा कि वह उसकी तरफ देखकर कुछ तो बोलेगा लेकिन आरांश पीछे मुड़कर उसकी तरफ आया और एक पल के लिए वहां पर रुक गया क्योंकि तारा के चेहरे पर इस वक्त हल्की सी स्माइल थी और उसे तरह स्माइल करते हुए वह उसकी तरफ ही देख रही थी और बहुत ही खूबसूरत लग रही थी, आरांश ने आज पहली बार ही उसकी तरफ देखा था और कुछ पल के लिए जैसे उसके खूबसूरती में खो गया था।

    तारा भी एकदम कंफ्यूज होकर उसकी तरफ देख रही थी और उसके एकदम सामने ही खड़ी हुई थी आरांश पहले से ही गुस्से में था और तारा के इस तरह रास्ते में खड़े होने पर उसने गुस्से में दांत पीसकर उसकी तरफ देखा और बिना कुछ बोले साइड से निकलकर जाने लगा, लेकिन तभी तारा ने खुद ही पहल करते हुए बोला, "आरांश जी! अब आपकी तबीयत कैसी है वह निवेदिता दीदी ने बताया कि आपकी तबीयत ठीक नहीं थी इसलिए आप वैसे ही वहां पर मुझे मंडप में छोड़कर चले गए थे।"

    आरांश काफी देर से खुद को कंट्रोल कर रहा था क्योंकि उसे गुस्सा आ रही थी खुद पर वह जब तारा की तरफ देखते हुए अपने मन में उसके बारे में सोचने लगा था वह ऐसा नहीं चाहता था और इसीलिए उसे इग्नोर करके साइड से निकाल कर जा रहा था जिससे कि उसे अवॉयड कर पाए।

    लेकिन जैसे ही तारा ने यह बात बोली वह भी अब और चुप नहीं रह पाया और उसने एकदम से कहा, "कुछ नहीं हुआ है मुझे, मेरी तबीयत बिल्कुल ठीक है और निवेदिता दीदी ने तुमसे झूठ बोला है क्योंकि वह लोग नहीं चाहते कि तुम सच जानो। मैं जानबूझकर वहां से चला गया था क्योंकि मुझे यह शादी नहीं करनी थी मैंने बस अपने घर वालों के प्रेशर में आकर यह शादी की है और मैं बिल्कुल भी तुमसे ये शादी नहीं करना चाहता था।"

    जैसे अपनी फ्रस्ट्रेशन निकलते हुए आरांश ने एकदम से यह सारी बात बोल दी तो तारा के चेहरे पर जो प्यारी सी स्माइल थी, वह एकदम ही गायब हो गई और उसने कहा, "क्या.. क्या मतलब है आपकी इस बात का आप.. आप मजाक कर रहे हैं ना हां, मज़ाक ही कर रहे होंगे क्योंकि अगर आपको शादी नहीं करनी होती तो फिर आप ये शादी करते ही क्यों और शादी तो अपने की है ना, लेकिन आप उसके बाद तुरंत ही चले गए थे।"

    तारा उसकी बात मानने को तैयार नहीं थी इसलिए आरांश का गुस्सा और बढ़ गया और उसने इस बार थोड़ी तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, "तुम्हें कम समझ में आता है क्या या फिर सुनाई नहीं देता है मैं सितम साफ-साफ शब्दों में तुम्हें बताया है कि मैंने तुमसे शादी की नहीं मुझे शादी करनी पड़ी और तुम बस मेरे लिए एक अनचाही बीवी हो जिसे मेरे पल्ले बांध दिया गया है और यह शादी भी मेरे लिए उतनी जबरदस्ती की है जितनी कि तुम। मैं ना तो यह शादी चाहता था और ना ही तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में। इसलिए इस बात को याद रखना और मुझसे जितना हो सके दूर रहना।"

    तारा उसकी बात मानने को तैयार नहीं थी इसलिए आरांश का गुस्सा और बढ़ गया और उसने इस बार थोड़ी तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, "तुम्हें कम समझ में आता है क्या या फिर सुनाई नहीं देता है मैंने सब साफ-साफ शब्दों में तुम्हें बताया है कि मैंने तुमसे शादी की नहीं मुझे शादी करनी पड़ी और तुम बस मेरे लिए एक अनचाही बीवी हो जिसे मेरे पल्ले बांध दिया गया है और यह शादी भी मेरे लिए उतनी जबरदस्ती की है जितनी कि तुम। मैं ना तो यह शादी चाहता था और ना ही तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में। इसलिए इस बात को याद रखना और मुझसे जितना हो सके दूर रहना।"

    वह इतना बोल कर आरांश उसके साइड से निकाल कर अपनी अलमारी की तरफ बढ़ गया और अपने रात में चेंज करने वाले कपड़े निकाल कर तुरंत ही वॉशरूम में चला गया और वॉशरूम का दरवाजा उसने एक तेज आवाज के साथ पटक कर बंद किया, जिसकी वजह से तारा का ध्यान टूटा और उसने सामने की तरफ देखा और उसे अभी भी आरांश की कही बातों पर यकीन नहीं हो रहा था लेकिन उसकी कहीं बातें तारा के कानों में गूंज रही थी।

    "तुम मेरे लिए बस एक अनचाही पत्नी हो, एक जबरदस्ती का रिश्ता जिसमें मुझे बांध दिया गया है!" - यह शब्द बार-बार उसे सुनाई दे रहे थे उसे ऐसा लग रहा था जैसे अभी भी कोई उसके कानों में यह बातें बोल रहा हो।

    तारा ने ऐसा कुछ कभी सपने में भी इमेजिन नहीं किया ताकि उसके साथ ऐसा कुछ होने वाला है इसलिए वह एकदम ही अपना सिर पकड़ कर दम से वही बेड पर बैठ गई और उसने खुद से कहा, "नहीं, नहीं मेरे साथ इतना बुरा नहीं हो सकता। मैं किसी की अनचाही पत्नी नहीं बनना चाहती थी क्योंकि मैं तो पूरे दिल से इस रिश्ते को चाहती थी और इस शादी को भी तो फिर क्यों? क्यों मेरे साथ ही ऐसा हुआ! नहीं आरांश जी आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते।"

    कुछ देर के बाद आरांश अपने रात में पहनने वाले कपड़े चेंज करके वॉशरूम से बाहर निकाला और उसने देखा कि तारा अपने ही ख्यालों में डूबी हुई वहीं बैठ के साइड में बैठी हुई थी, उसकी तरफ देखकर आरांश एक ठंडी सांस छोड़ी और बेड की दूसरी साइड पर आकर खड़ा हो गया और बेड पर पड़े हुए सारे फूलों की पंखुड़ियां को अपने हाथ से झाड़ कर हटाने लगा क्योंकि उसे वह सारी सजावट फूल और कैंडल्स सब बहुत इरिटेट कर रहे थे अपने बेड के साइड पर रखे हुए साइड टेबल पर वाले कैंडल्स जो जल रहे थे वह भी उसने फूंक मार कर बुझा दिए।

    कैंडल्स की डेकोरेशन की वजह से कमरे की सारी लाइट्स पहले ही ऑफ थी सिर्फ नाइट लैंप ही जल रहे थे इस वजह से अब कमरे में काफी ज्यादा अंधेरा हो गया लेकिन फिर भी कुछ रोशनी थी।

    आरांश ने एक नज़र तारा की तरफ देखा और अपने मन में कहा, "पता नहीं क्या चल रहा होगा इसके मन में, लेकिन मैं इसे कोई झूठी उम्मीद नहीं देना चाहता लेकिन क्योंकि जब उम्मीद टूटती है तो दर्द और ज्यादा होता है। वो दर्द तुम कभी बर्दाश्त नहीं कर पाओगी और ना ही मैं तुम्हें उस दर्द में देखना चाहता हूं। अपनी गलतियों की सजा सिर्फ मैं खुद को जो देना चाहता हूं और किसी को अपने साथ जोड़कर और किसी पर उन अंधेरों का साया भी नहीं पड़ने देना चाहता।"

    अपने मन में इतना बोलते हुए बेड की दूसरी साइड पर बैठ गया क्योंकि वह तारा से कोई भी बात या बहस नहीं करना चाहता था, उसे लगा था कि उसने अपनी बात कह दी है जो कि तारा को समझ में भी आ गई होगी इसलिए अभी फिलहाल वह थोड़ा सा रिलैक्स था।

    To Be Continued

    क्या लगता है आपको तारा विश्वास करेगी आरांश की बातों का और आरांश क्यों सबका गुस्सा निकल रहा है बेचारी तारा पर इसके बाद कैसी होने वाली है उनकी फर्स्ट नाइट क्या लगता है आप लोगों को क्योंकि आरांश ने तो पहले ही बोल दिया है उससे दूर रहने को लेकिन क्या तारा उसकी बात मानेगी, जैसी अब तक तारा की पर्सनैलिटी रही है उस हिसाब से क्या लगता है आप लोगों को क्या करेगी अब वो, बताइए कमेंट में 👇👇

  • 4. His Unwanted Dulhan - Chapter 4

    Words: 1644

    Estimated Reading Time: 10 min

    4

    वहीं दूसरी तरफ़, जैसे ही आरांश बेड पर बैठा वैसे ही तारा को बेड के दूसरी साइड पर कुछ भार महसूस हुआ तो उसने नज़र घुमा कर उस तरफ़ देखा और फिर अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई लेकिन चेहरा उसका अभी भी आरांश की तरफ़ था और उसने कहा, "आपने सिर्फ अपनी बात बोल दी, हमारी बात तो सुनी ही नहीं।"

    उसकी तरफ आते हुए तारा ने यह बात बोली तो आरांश इधर-उधर देखते हुए कहा, "क्या? तुम मुझसे बात कर रही हो क्या?"

    आरांश के इस सवाल पर तारा ने अपनी आइस रोल करते हुए कहा, "और कोई नज़र आ रहा है क्या आपके यहां पर क्योंकि दीवारों और बिस्तर से बात करने का शौक तो है नहीं मुझे फिलहाल..."

    आरांश ने ने भी उसी तरह एटीट्यूड में जवाब दिया, "हां तो मुझ से बात करने का शौक भी मत ही पालो तो अच्छा होगा तुम्हारे लिए क्योंकि मुझे जो कहना था मैंने कह दिया और मुझे तुम्हारी कोई भी बात नहीं सुननी।"

    इतना बोल कर आरांश अपने सामने पड़ा हुआ कंबल खींचकर बेड पर लेटने ही वाला था कि तभी तारा ने उसका हाथ पकड़ कर उसे लेटने से रोका और उसकी तरफ देखते हुए बोली, "ऐसे कैसे नहीं सुननी। मैंने भी तो आपकी बात सुनी ना तो आपको मेरी भी बात सुननी होगी और आप चाहे मुझे पत्नी माने या नहीं लेकिन मैं आपको यह बता दूं कि हमारी शादी हुई है आप मेरे पति हैं और मैं आपकी पत्नी हूं आपके मानने या ना मानने से कुछ नहीं होता है, मैं तो आपको पति मानूंगी क्योंकि आप मेरे पति हैं और आपको अब पतियों वाला ट्रीटमेंट ही मिलेगा इसलिए तैयार रहिए आपकी वाइफ आपकी लाइफ में आ चुकी है, तो अब पहले जैसी लाइफ भूल जाइए।"

    तारा ने पूरा हक जताते हुए यह बात बोली जबकि आरांश को उसकी तरफ से ऐसी किसी भी बात की उम्मीद नहीं थी उसे लगा था कि वह रोएगी धोएगी या फिर ड्रामा करेगी और उसकी बात पर खुद को बेचारी की तरह दिखाएंगे लेकिन यह सब तो उसकी उम्मीद के एकदम उलट हो गया तो आरांश को इन सब पर यकीन नहीं हुआ और वह एकदम हैरानी से तारा की बातें सुनकर उसकी तरफ देख रहा था।

    तारा ने अभी भी एकदम मजबूती से उसका हाथ पकड़ा हुआ था और यह सारी बातें जो बोल रही थी उसे देखकर लग नहीं रहा था कि वो कोई झूठ बोल रही है या फिर ऐसे ही यह सब कह रही थी।

    आरांश ने एकदम सीरियस रहने की कोशिश करते हुए उसकी तरफ देखकर कहा, "अजीब जबरदस्ती है जब मैं कह रहा हूं कि मैं इस रिश्ते को नहीं मानता तो फिर क्यों तुम जबरदस्ती यह सब बोल कर पत्नी वाला हक जाता रही हो मैं तुम्हें कोई हक नहीं दे सकता इस बात को जितनी जल्दी मान लो उतना तुम्हारे लिए बेहतर होगा। और हाथ छोड़ो मेरा.."

    इतना बोलते हुए आरांश ने उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो तारा ने उसके हाथ को और भी कस कर पकड़ लिया और उसकी आंखों में देखते हुए बोली, "तारा कोई भी हाथ छोड़ने के लिए नहीं पकड़ती और आपका हाथ तो मैंने जिंदगी भर के लिए पकड़ लिया है इतनी आसानी से तो नहीं छोड़ने वाली मैं, ना आपको और ना ही आपके हाथ को।"

    तारा की ऐसी बातें सुनकर आरांश को अपना गला सूखता हुआ सा महसूस हुआ और उसने थूक निगल कर गला गिला करते हुए तारा की तरफ़ देखा और जैसे ही उन दोनों की नज़रें मिली आरांश को पता नहीं क्यों उसकी नजरों में एक अलग ही कॉन्फिडेंस नजर आया जिसे देखकर उसे थोड़ी घबराहट होने लगी इसीलिए वह इधर-उधर देखने लगा और फिर उसने एक झटके से अपना हाथ खींचा और क्योंकि आरांश और तारा के बॉडी वेट में काफी ज़्यादा फर्क था तो उसके इस तरह से खींचने पर तारा संभल नहीं पाई और एक झटके से ही उस के ऊपर आ गिरी और उसके ऊपर जाकर गिरते ही तारा का होंठ आरांश के होठों से टच हो गया।

    तारा आरांश का हाथ छोड़ने को तैयार नहीं थी इसलिए उसने एक झटके से अपना हाथ खींचा और क्योंकि आरांश और तारा की बॉडी में काफी ज़्यादा फर्क था तो उसके इस तरह से खींचने पर तारा एक झटके से ही उसके ऊपर आ गिरी और उसके ऊपर जाकर गिरते ही तारा का होंठ आरांश के होठों से टच हो गया।

    तारा को अपनी बॉडी में जैसे 440 वोल्ट का करंट महसूस हुआ क्योंकि उसने ऐसा कुछ कभी फील नहीं किया था किसी आदमी के इतना करीब और वह भी उसका पति उसका दिल ट्रेन के इंजन की तरह जोरो से धड़क रहा था और इतनी तेज आवाज से सुनाई दे रही थी कि उसने आंख बंद करके तुरंत ही अपने दिल पर हाथ रख लिया जबकि आरांश तो जैसे थोड़ी देर के लिए सदमे चला गया उसे कुछ भी समझ नहीं आया और जैसे ही वह अपने सेंस में वापस आया उसने तारा के कंधे पर हाथ रखते हुए तुरंत ही उसे पीछे पुश करते हुए खुद से दूर किया और सीधा होकर बैठ गया तारा भी उसके सामने सीधे होकर खड़े हो गई और थोड़ा सा ऑकवर्ड फील करते हुए इधर-उधर देखने लगी।

    आरांश ने उस पर चिल्लाते हुए कहा, "क्या कर रही हो? पागल हो क्या, तुम्हें कुछ भी तमीज नहीं है या फिर कुछ ज्यादा ही शौक चढ़ा है इस तरह से करीब आकर पत्नी वाला हक जताने का?"

    इतना बोलते हुए वह तुरंत ही अपने हाथ से होठों को उंगली से रगड़ कर इस तरह से साफ करने लगा इस तरह से जैसे कि उसके होंठों पर कुछ गंदगी लग गई हो और तारा नहीं जैसे ही उसे ऐसे करते देखा वह गुस्से में उसके एकदम नजदीक आई और बोली, "मैंने क्या किया, आपने खुद ही मेरा हाथ अपनी तरफ खींचा था और अगर किस हो भी गई तो इसमें इतना क्या गलत है? आप तो ऐसे रिएक्ट कर रहे हैं जैसे मैं कोई अछूत हूं।"

    तारा की बातें सुनकर आरांश हड़़बड़ाते हुए बोला, "क्या मतलब है तुम्हारा कोई किस नहीं की है मैंने तुम्हें बस हमारे लिप्स टच हुए थे वह भी गलती से और कुछ नहीं हुआ, इसलिए कोई भी ऐसी वैसी बात अपने दिमाग में मत लाओ।"

    तारा ने इस तरह गुस्से में मुंह फुला कर आरांश की तरफ देखते हुए कहा, "मैं कोई दिमाग नहीं लगा रही मैं बस इतना बोल रही थी कि वैसे भी हम हस्बैंड वाइफ है तो शादी की पहली रात अगर हमने किस कर भी लिया तो क्या? ऐसा भी क्या गलत हो गया जो आप यह ऐसा रिएक्ट कर रहे हैं।"

    आरांश ने इरिटेशन से कहा, "ओ प्लीज़ मुझे तुम्हें किस करने में क्या तुम्हारे करीब आने में कोई भी इंटरेस्ट नहीं है हमारे लिप्स बस गलती से टच हुए हैं इस बात को तुम समझ जाओ और मुझसे दूर रहो बस, इसके अलावा मुझे तुमसे और कोई बात नहीं करनी।"

    अपनी बात बोलकर आरांश फिर से अपनी जगह पर एकदम सीधा लेट गया और उस ने कंबल को पूरा अपने सिर तक खींच लिया वैसे तो वह उस कमरे में ही रुकना नहीं चाहता था लेकिन उसे पता था कि दरवाजा बाहर से लॉक कर दिया गया है और काफी सारे लोगों की नज़र भी उसके कमरे के दरवाजे पर होगी तो अगर किसी तरह से दरवाजा खोलकर वह बाहर निकल भी गया तो सब के सवाल शुरू हो जाएंगे बस इसीलिए उसे आज की रात यहां पर ही बितानी थी लेकिन तारा के रहते हुए उसके लिए अब यह काफी मुश्किल हो रहा था।

    आरांश ने जैसा सोचा था वैसा बिलकुल भी नहीं हुआ क्योंकि तारा बिल्कुल भी वैसी मामूली लड़कियों की तरह नहीं थी वह सबसे बिल्कुल अलग थी और आरांश कि कहीं कोई भी बात मानने के लिए तैयार नहीं थी।

    तारा को भी उसके ऐसे बर्ताव पर गुस्सा तो आ रहा था लेकिन फिलहाल वह ज्यादा कुछ बोल नहीं पाई, उसे अपनी शादी की रात ऐसे होने की उम्मीद तो बिल्कुल भी नहीं थी ना जाने कितना कुछ सोचा था उसने कितने सपने सजाए थे और खास कर जब से उसने आरांश की फोटो देखी थी वह तो जैसे उसे पर फिदा हो गई थी और न जाने क्या-क्या सोच लिया था उसने उसे ऐसा लगा था आरांश बहुत ही अच्छा इंसान होगा, शादी के बाद एक हैप्पी मैरिड लाइफ जिएंगे एकदम आइडल कपल की तरह और वह अपने सारे सपने पूरे करेगी जो भी उसने अपने पार्टनर के साथ सोचे थे लेकिन अभी आरांश कैसे बेरुखी बर्ताव के बाद तो उसके सारे सपने जैसे एकदम ही टूट कर बिखर गए थे लेकिन वह टूटकर बिखरने वालों में से नही थी।

    इसलिए अपनी कमर पर हाथ रखकर उसने बेड पर लेटे हुए आरांश की तरफ देखकर कहा, "बात नहीं करनी तो फिर शादी क्यों की? आपको मुझसे बात करनी होगी मैं तो करूंगी और तुम्हें भी करनी पड़ेगी ऐसे कैसे नहीं बात करोगे। वाइफ हूं अब तुम्हारी पूरा हक है मेरा हर चीज पर तुम्हारी, यह बात याद रखना।"

    वह वही उसके सिर के पास खड़ी होकर यह सारी चीज बोल रही थी और वही कंबल के अंदर आरांश ने अपने आप से बात करते हुए कहा, "अजीब मुसीबत है यह लड़की भी, कहां फंस गया मैं? इसीलिए ही नहीं कर रहा था मैं शादी अब यह ऐसे ही सिर पर खड़ी रहेगी। कसम से मैंने सोचा था इस तरह से मना करूंगा तो रोएगी रोएगी उदास हो जाएगी लेकिन यह तो अलग ही पीस है, इसे तो कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा।"

    To Be Continued

    वैसे जिस जिस को तारा के लिए बुरा लगा होगा लास्ट एपिसोड में अब आज का एपिसोड पढ़ने के बाद उन सबको आरांश के लिए बुरा लग रहा होगा ना 🤭🤭🤭 क्योंकि हमारी तारा डर कर हार मानने वालों में से तो है नहीं और लास्ट में जो कुछ भी हुआ इस तरह से अचानक इस पर क्या होगा दोनों का रिएक्शन बताइए आप सब कमेंट में 👇🥰

  • 5. His Unwanted Dulhan - Chapter 5

    Words: 1655

    Estimated Reading Time: 10 min

    5


    आरांश ने तारा की बात का कोई जवाब नहीं दिया वह बस अपने आप से ही बात कर रहा था तो तारा को गुस्सा आ गया और उसने एकदम ही उसका पूरा कंबल खींचकर साइड में ज़मीन पर फेंक दिया।

    उसके ऐसा करने पर आरांश एकदम ही बेड पर उठकर बैठ गया और बोला, "what the hell? दिमाग खराब है क्या तुम्हारा? जितना मैं बोल रहा हूं मुझसे दूर रहो मुझसे बात मत करो उतना ही तुम करीब आती जा रही हो! समझ नहीं आता क्या तुम्हें और कौन से हक की बात कर रही हो? जब मैं इस शादी को ही नहीं मानता और ना ही तुम्हें अपनी वाइफ मानता हूं तो कौन सा हक?"

    आरांश ने गुस्से में यह सब कहा तो तारा भी उसी तरह मुंह फुलाते हुए बोली, "हां लेकिन मैं तो मानती हूं ना जैसे आप अपनी बात पर अड़े हैं वैसे ही मैं अपनी बात पर अड़ी रहूंगी। देखती हूं कब तक नहीं मानते आप और वैसे भी अब शादी हो चुकी है हमारी तो आप कुछ नहीं कर सकते। आप ज़िद्दी है तो मैं आपसे 10 गुना ज्यादा ज़िद्दी बनकर दिखा दूंगी इसलिए कोई फायदा नहीं है क्या बेकार की बातें करने का, हमारी नई लाइफ की शुरुआत हुई है तो आज की रात उसी बारे में बात करते हैं कुछ।"

    इतना बोलते हुए तारा ने उसकी तरफ देखकर स्माइल की तभी आरांश के दिमाग में एक खुराफाती आइडिया आया और वह अपनी जगह से उठकर एकदम ही खड़ा हुआ और तारा की तरफ ही बढ़ने लगा और उसकी तरफ़ देखते हुए बोला, "अच्छा तो शादी के बाद नई लाइफ शुरू करनी है तो मैं वह भी मेरे साथ और इतनी ही ज्यादा डेसपरेट हो तो ठीक है, चलो फिर शुरू करते हैं।"

    बिना किसी एक्सप्रेशन के एकदम ही सीरियस होते हुए आरांश ने यह बात कही तो तारा एकदम ही कंफ्यूज हो गई यह सोच करके एकदम अचानक से ही उसके सुर कैसे बदल गए लेकिन आरांश को इस तरह अपने नजदीक आते देख वह धीरे से एक दो कदम पीछे हटी लेकिन आरांश अपनी जगह पर नहीं रुका और उसके करीब ही आने लगा।

    आरांश जानबूझकर ऐसा कर रहा था जिससे कि तारा खुद ही उससे दूर हो जाए, लेकिन तारा उससे दूर होना नहीं चाहती थी। उसे कहीं न कहीं आरांश पर भरोसा था कि वह खुद से उसके इतना नजदीक नहीं आएगा, क्योंकि अब तक जैसा उसने बर्ताव किया था, तारा उसे काफी हद तक समझ चुकी थी। इसीलिए वह पीछे नहीं हुई और वह इससे ज्यादा पीछे हो भी नहीं सकती थी क्योंकि पीछे हटते-हटते वह दीवार के एकदम नजदीक आ गई थी। उसके पीछे दीवार थी और वह वहां पर रुक गई।

    लेकिन आरांश नहीं रुका वो उसके और ज्यादा नज़दीक आया और तारा के एकदम सामने आते हुए हल्का सा झुककर अपना चेहरा तारा के चेहरे के सामने एक लेवल पर किया और उसकी आंखों में देखते हुए बोला, "अच्छा, तो तुम्हें पत्नी होने का हक चाहिए, है ना?"

    आरांश के इस सवाल पर तारा एकदम हड़बड़ा गई और उसे समझ नहीं आया कि वह इस बात का क्या जवाब दे। उसे आरांश के मुंह से ऐसे सवाल की भी उम्मीद नहीं थी। यह एकदम अनएक्सपेक्टेड था, तो वह इधर-उधर देखते हुए बगलें झांकने लगी।

    उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था तो उसने कहा, "हाँ, हाँ, शादी हुई है तो मैं आपकी वाइफ हूँ। आप ऐसा कैसे बोल सकते हैं कि आप मुझे पत्नी नहीं मानते? आपने एक बार भी नहीं सोचा कि मुझे बुरा लगेगा, मेरा दिल टूट जाएगा।"

    यह सारी बातें बोलते हुए तारा लगातार अपना चेहरा इधर-उधर कर रही थी। एक बार भी उसने अपना चेहरा उठाकर सामने खड़े हुए आरांश की तरफ नहीं देखा। तारा की उसकी आँखों में देखने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी।

    उसे ऐसा करते देख आरांश ने उसके दोनों साइड की दीवार पर अपना हाथ रखा और उसे अपनी बाहों के बीच कैद करते हुए कहा, "बहुत ज्यादा शौक है तुम्हें वाइफ बनने का, चलो ठीक है। फिर आज Husband - Wife तो बन ही जाते हैं सही मायनों में। वैसे मुझे लगा नहीं था कि तुम इतनी desperate हो मेरे करीब आने के लिए क्योंकि हम दोनों एक-दूसरे को जानते तक नहीं। हमारे Parents ने हमारी शादी arrange की है और मैं तो ये शादी करना भी नहीं चाहता था। मैंने बस तुमसे सच बोला। अब अगर तुम्हें इसके लिए बुरा लगता है या भला, मैं उसमें कुछ नहीं कर सकता।"

    इतना बोलते हुए आरांश ने एक हाथ से उसके दोनों गालों को एकदम कसकर पकड़ा। तारा को हल्का सा दर्द महसूस हुआ और उसने नजर उठाकर आरांश की तरफ देखते हुए कहा, "ये क्या कर रहे हैं आप? मेरे कहने का यह मतलब नहीं था आपको भी अच्छी तरह से पता है।"

    तारा की बात सुनकर आरांश तंज कसते हुए बोला, "अच्छा ये नहीं तो फिर और क्या मतलब था तुम्हारा? मैं यहाँ पर तुम्हारी बातों का मतलब समझने और समझाने नहीं बैठा हूँ, क्योंकि तुम्हें भी तो मेरी बात समझ नहीं आ रही, तो फिर मैं क्यों समझूं तुम्हें? और वैसे भी तुम्हें कोई problem भी नहीं है ना अगर मैं तुम्हें kiss करूं या फिर उससे भी आगे बढ़ जाऊं आज की रात? क्योंकि वैसे भी हमारी सुहागरात है और तुम तो पूरी तरह से तैयार ही लग रही हो इन सबके लिए।"

    आरांश ने तारा की आँखों में एकदम गहराई से देखते हुए कहा, तो तारा ने उसकी बात पर कहा, "हाँ, हाँ, तो क्या हुआ, वैसे भी यह बात सच है कि आज हमारी सुहागरात है और आप मेरे पति हैं, तो आपका हक है मुझ पर। ठीक है, आप मुझे kiss कर सकते हैं या फिर जो भी आप करना चाहें।"

    इतना बोलते हुए तारा ने अपने एक हाथ की मुट्ठी एकदम कसकर बंद कर ली और उसने मुट्ठी इतनी कसकर बंद की थी कि उसके हाथों के नाखून खुद ही उसकी हथेली में चुभने लगे थे। लेकिन उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और फिर आरांश को करीब आते देख उसने अपनी आंखें भी कसकर बंद कर लीं। आरांश उसके नजदीक और नजदीक आया।

    उसके नजदीक आते हुए आरांश ने अपने मन में कहा, "क्या लड़की है यह मुझे बिल्कुल भी नहीं रोक रही सच में से कोई फर्क नहीं पड़ता है क्या? मैं तो बस इसे डराने के लिए यह सब बोल रहा था लेकिन यह तो शायद सीरियस हो गई है।"

    आरांश का चेहरा अब तारा के चेहरे के एकदम सामने था, इतना नज़दीक कि तारा को उसकी सांसें अपने चेहरे पर महसूस हो रही थीं और तभी आरांश ने एकदम सीरियस आवाज में कहा, "मुझे तुम में कोई भी interest नहीं है लेकिन मुझे यह बिल्कुल भी नहीं पता था कि तुम सच में इतनी आसानी से मान जाओगी और पहले से ही रेडी हो सच में, इतनी ज्यादा desperate लड़की मैंने आज तक नहीं देखी और अब मुझे अपना decision एकदम सही लग रहा है। तुम बिल्कुल भी मेरी wife बनने के लायक नहीं हो और मैं कभी तुम्हें अपनी wife की जगह और हक नहीं देने वाला, चाहे तुम जो भी कर लो। मुझे तुममें जरा भी interest नहीं है और ना ही कभी होगा।"

    इतना बोलते हुए उसने तारा के कंधे पर हाथ रखकर उसे साइड में धकेल दिया। उसके ऐसा करते ही तारा थोड़ा सा लड़खड़ा गई और आरांश की ऐसी बातें और इलज़ाम सुनकर ना चाहते हुए भी उसकी आँखों में आँसू आ गए, लेकिन आरांश उसे वहीं पर छोड़कर अब तक वापस अपने बेड पर जा चुका था।

    बेड पर बैठते ही उसने अपनी साइड की लाइट बंद की और जमीन पर पड़ा हुआ अपना कंबल उठाया और उसे ओढ़कर दोबारा से अपनी जगह पर लेट गया। उसके वहाँ से चले जाने पर तारा ने राहत की सांस ली और अपने दिल पर हाथ रखते हुए कहा, "अब तुम्हें क्या हो गया है? इतनी जोर से क्यों धड़क रहे हो? कोई भी नहीं लगता है, वह मेरा। उसने खुद ही तो कहा, तो फिर क्यों? रिजेक्शन पर भी इतनी तेज दिल धड़कता है क्या किसी का? या फिर मैं सच में पागल हूँ? और कोई बात नहीं। मिस्टर हस्बैंड, मुझे पता था आप ऐसा कुछ नहीं करने वाले हैं। बस इसीलिए मैं इस बात के लिए राजी हो गई थी। मुझे पता था, आप मेरे नज़दीक नहीं आएंगे। आप बस मुझे डराने के लिए ही ऐसा कर रहे थे, लेकिन आपको नहीं पता, तारा किसी से भी नहीं डरती है।"

    इतना बोलते हुए तारा ने खुद पर बहुत ही प्राउड फील किया और वहीं बेड की एक साइड पर लेटे हुए आरांश की तरफ देखा।

    तारा अभी भी अपने शादी वाले लहंगे और गहनों में थी, तो उसे थोड़ा असहज महसूस हो रहा था। इसके अलावा, जो भी बातें उन दोनों के बीच हुई थीं, वह भी एकदम अनएक्सपेक्टेड थीं।

    तारा को इतना समझ में आ गया था कि आरांश गुस्से में था और तारा उसके गुस्से को और बढ़ाने का काम कर रही थी। लेकिन तारा को इन सारी बातों से फर्क नहीं पड़ता था। उसने मन ही मन तय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो, वह अपनी बात पर अड़ी रहेगी और आरांश को एकदम पतियों वाला ट्रीटमेंट ही देगी।

    वह चाहे कुछ भी करें उसे कितना भी दूर जाने की कोशिश करें लेकिन तारा ने अब फैसला कर लिया था कि वो उसके ज़िद और गुस्से को अपने प्यार के सामने हरा कर रहेगी।

    तारा ने अपने मन ही मैन खुद से बात करते हुए कहा, "आपको क्या लगता है आप मुझे यह सब कहेंगे तो मैं डर जाउंगी हस्बैंड जी ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला अब आपको भी पता चलेगा, तारा क्या चीज है? मैं डरने वालों में से नहीं डराने वालों में से हूं।"

    To Be Continued

    हमारी स्मार्ट और स्ट्रांग तारा के आगे आरांश का प्लान तो फ्लॉप हो गया वो उसे डराने चला था और खुद ही घबरा कर अपने कंबल में सो गया, क्या लगता है दोनों में से किसकी चलेगी इनकी मैरीड लाइफ में? बताइए कमेंट में 🥰👇

  • 6. His Unwanted Dulhan - Chapter 6

    Words: 1606

    Estimated Reading Time: 10 min

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    तारा भी उसी किंग साइज बेड के एक किनारे पर बैठी हुई थी और उसने आंख बंद करके लेटे हुए आरांश की तरफ देखकर अपने मन में कहा, "मैं भी देखती हूँ, आखिर कब तक आप यह सारी बातें दोहराते हैं। मैं आपको बदल कर रहूँगी और आप खुद ही मुझे अपनी वाइफ एक्सेप्ट करेंगे और मुझमें इंटरेस्ट भी लेंगे, क्योंकि मैं तो हूँ ही इतनी इंटरेस्टिंग।"

    इतना बोलते हुए तारा के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई। आरांश की इतनी बातें सुनने के बाद भी उसने ऐसा दिखाया जैसे कि तारा को रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा।

    आरांश की बातों को तारा ने सीरियसली नहीं लिया था। उल्टा, अब तो आरांश उसे और भी इंटरेस्टिंग लगने लगा था और उसे आरांश के बारे में सब कुछ जानना था।

    तारा ने अब तक यह सारी बातें आरांश के सामने नहीं बोली थीं, क्योंकि इससे आरांश को और मौका मिल जाता उससे दूर जाने का। तारा ऐसा नहीं चाहती थी, क्योंकि जैसे भी हो, वह आरांश को सच में अपना पति मान चुकी थी। पूरे दिल से उसे एक्सेप्ट भी कर चुकी थी। उसके लिए शादी कोई मजाक नहीं थी, बल्कि एक बहुत ही बड़ा पवित्र रिश्ता था।

    आरांश आंख बंद करके उसी तरह लेटा रहा और वह अपनी जगह से जरा भी नहीं हिला।

    उसने मुंह तक कंबल ओढ़ रखा था लेकिन वह सो नहीं रहा था कंबल के अंदर को जाग रहा था और अपनी कमरे में जो कुछ भी हुआ वह सब उसके मन में भी चल रहा था लेकिन उसने अपने आप से कहा, "कुछ भी हो जाए कुछ भी कहे वह लड़की, या कुछ भी करें मैं अब इस कंबल से बाहर नहीं निकलने वाला। चाहे कुछ भी हो जाए।"

    आरांश ने ये तय कर लिया था और उसी तरह बिना हिले डुले वो चुपचाप अपनी जगह पर लेटा था।

    तारा समझ गई कि वह अब उससे कुछ भी नहीं बोलने वाला, तो तारा भी अब उसके नजदीक जाकर उससे कुछ नहीं बोली क्योंकि अगर वह ऐसा करती, तो आरांश की कही बातें सही साबित हो जातीं और वह सच में काफी डेस्परेट लगती।

    तारा ने खुद को ही समझाया और फिर अपनी जगह से उठी और चेंज करने के लिए चली गई। उसके सारे कपड़े पहले ही वहाँ पर आ गए थे और आरांश की बहन ने उसके कपड़े भी अलमारी में सेट कर दिए थे।

    तारा ने आलमारी खोली और उसे आसानी से अपने कपड़े मिल गए। उसने रात में पहनने के लिए कुर्ती और पजामा सूट निकाला और उसे लेकर चेंज करने के लिए चली गई। जाने से पहले उसने सारे जेवर उतारकर वहीं ड्रेसिंग टेबल पर रख दिए थे। चेंज करके जब वह वॉशरूम से बाहर निकली, तो उसका लहंगा काफी ज्यादा हैवी था, इसीलिए अब चेंज करके उसे काफी अच्छा महसूस हो रहा था। उसने लहंगा वहीं सामने वाले सोफा पर रख दिया और आरांश आकर बिस्तर के दूसरी साइड पर लेट गई।

    फिर वह करवट लेकर आरांश के चेहरे की तरफ ही देखने लगी और उसने अपने मन में कहा, "कुछ तो है ऐसा जो आप मुझसे छुपा रहे हैं। कोई बात नहीं, हर बात पता करने के सौ तरीके होते हैं और मैं तो बहुत जल्द सब कुछ पता लगा लूंगी और पूरी तरह आपको अपना भी बना लूंगी। मुझे पता है, आप ज़्यादा दिन मुझसे दूर नहीं रह सकते। देखती हूँ, आखिर कब तक आप ऐसे अजनबी बन कर रह पाएंगे। मेरे सामने तो अच्छे-अच्छे पिघल जाते हैं।"

    इतना बोलते हुए तारा बहुत ही खुश हो गई और उसके चेहरे पर बड़ी सी स्माइल आ गई। वह हमेशा ही अपनी तारीफ करती रहती थी और खुद अपनी तारीफ करके खुश भी हो जाती थी।

    वह काफी देर तक आरांश की तरफ देखकर उसकी कही सारी बातों के बारे में सोचती रही। धीरे-धीरे अब उसे आरांश का सारा बर्ताव समझ में आ रहा था। जिस तरह वह शादी के तुरंत बाद उसे मंडप में छोड़कर चला गया था और फिर आरांश की बहन ने जो बातें कहीं, वह सब आपस में जुड़ कर उसे समझ आ रही थीं। इन्हीं सारी चीजों के बारे में सोचते-सोचते काफी देर के बाद तारा को नींद आई और वह भी वहीं पर सो गई।

    अगली सुबह दरवाजा खटखटाने की आवाज से तारा की आंख खुली और उसने बिस्तर पर उठकर बैठते ही सामने की खुली खिड़की से आ रही तेज धूप अपनी आंखों पर महसूस की।

    तेज धूप आंखों पर लगने की वजह से उसने दोबारा से अपनी आंखें बंद कर लीं, लेकिन बाहर से दरवाजा खटखटाने की आवाज तेज होती जा रही थी। उसने अपने आप से कहा, "क्या है यार, इतनी सुबह-सुबह? खिड़की खोल दी किसी ने और ऊपर से दरवाजा भी पीट रहे हैं। सोने क्यों नहीं देता कोई मुझे? मम्मी!!"

    आखिरी में मम्मी का नाम पुकारते हुए उसने थोड़ी तेज आवाज में चिल्लाया।

    "भाभी, आपकी मम्मी तो नहीं हैं यहां पर लेकिन कुछ देर में भी अगर आप बाहर नहीं आई तो मेरी मम्मी जरुर आफत कर देगी।" - बाहर से आवाज आई।

    बाहर से आती वह आवाज सुनकर तारा ने अपने चारों ओर देखा तो उसे समझ आया कि वह अपने ससुराल में है, न कि अपने घर में। उस की शादी हो चुकी थी।

    सोते वक्त वह सब कुछ भूल जाती थी और अभी भी नींद में थी। उसने समय देखा तो सुबह के 10:00 बजे थे। आमतौर पर वह 10:00 बजे ही सो कर उठती थी, लेकिन उसकी मां ने उसे समझा-बुझाकर भेजा था कि "बेटा, ससुराल में जल्दी उठ जाना।"

    लेकिन तारा कहां किसी की सुनने वालों में से थी। ऊपर से कल रात को उसे नींद भी नहीं आ रही थी। आरांश की कही बातें उसके दिमाग में घूम रही थीं। आरांश का ध्यान आते ही उसने इधर-उधर देखा, लेकिन उसे कमरे में अपने अलावा और कोई नहीं दिखा। उसने ठंडी सांस छोड़ते हुए कहा, "मैं भी कहां उम्मीद कर रही हूं। उसे जैसे ही पहला मौका मिला होगा, वैसे ही भाग गया होगा कमरे से। खैर, कोई बात नहीं, कब तक भाग पाओगे? घूम-फिर कर आना तो वापस यहां ही है, हमारे पास।"

    इतना कहकर अंगड़ाई देते हुए तारा अपने बेड से उठी और दरवाजे की तरफ बढ़ी।

    फिर उसने जम्हाई लेते हुए हाथ से मुंह ढककर दरवाजा खोला। उसके सारे बाल बिखरे हुए थे, और उसने अभी भी रात वाले कपड़े पहने हुए थे। उसके हाथों में चूड़ियां नहीं थीं और न ही उसने कोई जेवर पहना हुआ था, क्योंकि रात में गर्मी लगने की वजह से उसने सब कुछ उतार दिया था। उसके सारे जेवर ड्रेसिंग टेबल पर रखे हुए थे।

    दरवाजा खोलते ही सामने खड़ी निवेदिता ने उसे देखा और हैरान होते हुए कहा, "आप अभी तक नहीं उठीं? मुझे लगा शायद आप रूम में नहीं होंगी, इसीलिए इतनी देर लग रही है।"

    निवेदिता की बात का जवाब देते हुए तारा ने कहा, "नहीं, मैं तो सो रही थी।"

    इतना बोलते हुए तारा ने अपने मुंह पर हाथ रखते हुए फिर से जम्हाई ली तो निवेदिता ने कहा, "क्या बात है भाभी अभी भी नींद पूरी नहीं हुई क्या इतनी देर तक सोने के बाद लगता है भैया ने आपको सोने नहीं दिया पूरी रात।"

    इतना बोलकर वह हंसने लगी तो तारा का चेहरा एकदम ही उतर गया और उसने कहा, "काश! ऐसा कुछ होता लेकिन आपके भैया तो हमसे पहले ही सो गए थे।"

    निवेदिता उसे छेड़ने के लिए ऐसे ही यह बात बोल रही थी उसे पता नहीं था तारा एकदम सीरियस होकर सच ही बोल देगी तो फिर निवेदिता झेंप गई और उसे समझ नहीं आया वह आगे क्या बोले तो उसने बात बदलते हुए कहा, "अच्छा भाभी आप जल्दी से रेडी होकर नीचे आ जाइए सब आपका इंतजार कर रहे हैं।"

    तारा ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, "ठीक है, मैं बस आधे घंटे में आती हूं।"

    निवेदिता वहां से चली गई और तारा वापस अपने रूम के अंदर आ गई उसका दोबारा से सोने का मन कर रहा था लेकिन उसे रेडी होकर नीचे भी जाना था इसलिए वह अपने कपड़े निकाल कर सीधा वॉशरूम में चली गई।

    तारा भी उसी किंग साइज बेड के एक किनारे पर बैठी हुई थी और उसने आंख बंद करके लेटे हुए आरांश की तरफ देखकर अपने मन में कहा, "मैं भी देखती हूँ, आखिर कब तक आप यह सारी बातें दोहराते हैं। मैं आपको बदल कर रहूँगी और आप खुद ही मुझे अपनी वाइफ एक्सेप्ट करेंगे और मुझमें इंटरेस्ट भी लेंगे, क्योंकि मैं तो हूँ ही इतनी इंटरेस्टिंग।"

    इतना बोलते हुए तारा के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई। आरांश की इतनी बातें सुनने के बाद भी उसने ऐसा दिखाया जैसे कि तारा को रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा।

    आरांश की बातों को तारा ने सीरियसली नहीं लिया था। उल्टा, अब तो आरांश उसे और भी इंटरेस्टिंग लगने लगा था और उसे आरांश के बारे में सब कुछ जानना था।

    तारा ने अब तक यह सारी बातें आरांश के सामने नहीं बोली थीं, क्योंकि इससे आरांश को और मौका मिल जाता उससे दूर जाने का। तारा ऐसा नहीं चाहती थी, क्योंकि जैसे भी हो, वह आरांश को सच में अपना पति मान चुकी थी। पूरे दिल से उसे एक्सेप्ट भी कर चुकी थी। उसके लिए शादी कोई मजाक नहीं थी, बल्कि एक बहुत ही बड़ा पवित्र रिश्ता था।

    आरांश आंख बंद करके उसी तरह लेटा रहा और वह अपनी जगह से जरा भी नहीं हिला।

    To Be Continued

    कैसा होने वाला है तारा का ससुराल और उसके ससुराल के बाकी लोग वैसे अब तक उसकी ननद से ही मिल पाए हैं आप लोग और वह तो अच्छी है लेकिन उसका पति... और कैसी लग रही है स्टोरी आप लोग कमेंट में जरूर बताइए क्योंकि आप लोगों के कमेंट पढ़कर जल्दी एपिसोड लिखने की मोटिवेशन मिलती है यार!

  • 7. His Unwanted Dulhan - Chapter 7

    Words: 1685

    Estimated Reading Time: 11 min

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    तारा ने बेबसी से आरांश से की तरफ देखा उसे पता था वह बस सोने का नाटक कर रहा है, सो नहीं रहा लेकिन फिर भी उस वक्त तारा ने उसे कुछ नहीं कहा और चुपचाप दरवाजे की तरफ बढ़ गई।

    तारा अपने कमरे से बाहर निकली और सीढ़ियां उतर कर नीचे लिविंग एरिया में आई और नजर घुमा कर चारों तरफ देखने लगी क्योंकि कल शादी के फंक्शन की वजह से वह कुछ भी ध्यान से नहीं देख पाई थी लेकिन आज उसने नोटिस किया कि वो घर जो अब उसका ससुराल है वह बहुत ही बड़ा विला था और उसके इंटीरियर भी एकदम मॉडर्न टाइप के थे सब कुछ तारा को बहुत ही अच्छा और इंप्रेसिव लगा।

    सीढ़ियां उतारते हुए उसने चारों तरफ देखकर खुद से बात करते हुए कहा, "इनका घर तो मेरे घर से भी कितना बड़ा है और सब कुछ काफी अच्छा बना हुआ है अभी तो डेकोरेशन भी हुई है कल की शादी की वजह से लेकिन फिर भी सब कुछ ठीक है सिवाय मेरे दूल्हे के पता नहीं उन्हें क्या हुआ है?"

    इतना बोलते हुए वह वहां पर घर के हाल एरिया में आई तो उसने देखा वहां पर काफी भाग दौड़ मची हुई थी और उसकी सास ने लगभग चिल्लाते हुए कहा, "देखो बहू आ भी गई है लेकिन यह आरांश कहां रह गया, उसे भी बुला कर लाओ अच्छी तरह से पता है ना सबको नए शादीशुदा जोड़े कोई यह पूजा करनी होती है।"

    निवेदिता ने थोड़ा परेशान होते हुए अपनी मां की बात का जवाब दिया, "मां मैंने सब जगह पर देख लिया है भाई घर में कहीं भी नहीं है और सुबह से ही वह मुझे कहीं भी नहीं दिखे।"

    उन लोगों की बात सुनते हुए तारा भी अब तक वहां पर आकर खड़ी हो गई थी उसने लाइट ब्लू कलर की सिंपल सी साड़ी पहनी हुई थी जिसका सिल्वर कलर का बॉर्डर था वह साड़ी बहुत ज्यादा हैवी नहीं थी लेकिन तारा ने हाथ में चूड़ा पहने हुआ था बालों को खुला छोड़ा हुआ था माथे पर बिंदी और सिंदूर लगाने के बाद उसने गले में मंगलसूत्र भी पहना हुआ था इसके अलावा गोल्ड के इयररिंग्स भी उसने पहन लिए थे क्योंकि उसे वही सामने नजर आए और वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी लेकिन सब कुछ समझने की कोशिश करते हुए सब तरफ देख रही थी।

    तारा को वहां पर आते देख निवेदिता ने वहां आते हुए कहा, "अरे भाभी आप तो इतनी जल्दी रेडी होकर आ भी गई चलो आप भी पहले ब्रेकफास्ट कर लो।"

    तारा को भी काफी भूख लगी थी तो नहीं भेजता की बात पर उसने मुस्कुरा कर धीरे से अपना सिर हिला दिया और उसके साथ ही आगे जाने लगी।

    तभी पीछे से तारा की सास ने कहा, "अरे रुको तुम दोनों और ब्रेकफास्ट कैसे कर सकती है अभी ये?"

    तारा को अपनी सास की इस बात का मतलब समझ नहीं आया तो उसने उनकी तरफ देखा और फिर आगे बढ़कर उनके पैर छूने लगी तो उन्होंने तारा को रोका और कहा, "इसकी कोई जरूरत नहीं है बेटा खुश रहो सदा सुहागन रहो।"

    उन्होंने काफी खुश होकर तारा को आशीर्वाद दिया तो तारा और भी ज्यादा कंफ्यूज हो गई कि जब वो गुस्से नाराज नहीं थी तो फिर उसकी सास ऐसा क्यों बोल रही थी।

    तारा कन्फ्यूजन से उनकी तरफ देखा और वह कुछ बोल पाती उससे पहले ही निवेदिता ने कहा, "लेकिन क्यों मन इतना टाइम हो गया है पहले ही भाभी को भूख लगी होगी और अब तक उन्होंने कुछ खाया भी नहीं है और भाई नहीं आए और पूजा नहीं हो पाई तो वह कब तक भूखी रहेगी।"

    निवेदिता की मां ने कहा, "हां लेकिन पूजा के बाद ही खाना होता है बस इसीलिए मैं बोल रही थी आरांश को ढूंढ कर लाओ कहीं से भी। उसे फोन करो, कैसे भी बुलाओ मैं नहीं जानती।"

    तारा ने अपनी सास की बात का जवाब देते हुए कहा, "कोई बात नहीं मां जी वैसे भी मैं अब उनकी पत्नी हूं तो उनकी जगह पर मैं अकेले भी तो पूजा कर सकती हूं अगर वह नहीं है तो हो सकता है किसी ज़रूरी काम से बाहर गए हो।"

    तारा की बात का जवाब देते हुए उसकी सास ने कहा, "नहीं बेटा! कोई जरूरी काम नहीं होता उसे वह तो ऑफिस भी नहीं जाता है सारा काम घर से करता है बस कभी-कभी बहुत जरूरी होता है या उसके पापा की तबीयत ठीक नहीं होती बस तब ही जाता है और वैसे भी शादी के अगले दिन अपनी बीवी और पूजा से जरूरी काम क्या हो सकता है?"

    उनकी बातें सुनकर तारा को एकदम साफ समझ में आ रहा था कि वह अपने बेटे पर बहुत ही गुस्सा है क्योंकि वह इस वक्त गायब हो गया जब उन दोनों को साथ में भगवान की पूजा करनी थी उसे घर में ही काफी बड़ा सा मंदिर बना हुआ था और वहां पर लगभग सारी तैयारियां भी पूरी हो चुकी थी लेकिन सिर्फ आरांश के वहां पर न होने की वजह से वह पूजा अब तक रुकी हुई थी।

    अपनी मां की बातें सुनकर निवेदिता ने कहा, "क्या मां आप भी, अभी से भाभी के सामने..."

    निवेदिता की मां अपना सिर पकड़ते हुए बोली, "कुछ नहीं, बस तेरे भाई ने ही मेरा दिमाग खराब करके रखा हुआ है।"

    तारा तुरंत ही उनके पास आई और बोली, "मम्मी जी आप क्यों टेंशन ले रही है वैसे भी अब हम दोनों की शादी हो गई है ना तो हम दोनों में से कोई भी पूजा करें क्या फर्क पड़ता है मैं कर लेती हूं ना,बताइए क्या करना है?"

    तारा ने अपनी आदत और स्वभाव के अनुसार सारी चीजों को एकदम पॉजिटिव और लाइटली लेते हुए कहा वह कभी भी किसी बात का ज्यादा लोड नहीं लेती थी वह हमेशा से ही ऐसी थी।

    उसकी बातें सुनकर निवेदिता और उसकी मां दोनों की ही आंखें चमक गई और फिर उसकी सास ने उसे पूजा करने का पूरा प्रोसेस बता दिया जिस तरह से भी उसे करनी थी और तारा ने अकेले ही वह पूजा की और सभी बहुत खुश हो गए थे उस पूजा में घर के सब लोग शामिल हुए लेकिन पूजा होने के बाद तारा ने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा तो एकदम लाइट कलर की साड़ी पहने हुए एक लड़की एकदम कोने में खड़ी हुई थी जो की उम्र में उसे कुछ दो-तीन साल बड़ी होगी वह तुरंत ही वहीं से वापस चली गई तारा उसे भी प्रसाद देना चाहती थी लेकिन दे नहीं पाए उसने बाकी सब को प्रसाद दिया और घर के बाकी लोगों से मिली।

    निवेदिता ने उसे अपने हस्बैंड हिमांशु से भी मिलाया जो की बहुत ही अच्छे और हंसमुख इंसान थे तारा को उनका नेचर बहुत पसंद आया और उसने घर के सारे लोगों के पैर छुए और फिर आशीर्वाद लिया वह नई नवेली दुल्हन के रूप में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी और इस इतनी अच्छी तरह से पूजा और सारी रस्में निभाकर उसने पहले ही सबका दिल जीत लिया था।

    उसके बाद तारा ने निवेदिता के साथ बैठकर ब्रेकफास्ट किया क्योंकि अभी तक उसने भी कुछ नहीं खाया था।

    तारा का ध्यान आरांश में भी लगा हुआ था क्योंकि जिस तरह उसे लेकर घर के सारे लोग परेशान थे वह यह तो समझ गई थी कि आरांश किसी को भी बता कर नहीं गया था और अभी तक वापस भी नहीं आया था।

    नाश्ता खत्म करते हुए तारा ने साइड में रखा हुआ जूस उठाकर पिया अभी तक तो सब तारा के साथ काफी अच्छा बर्ताव कर रहे थे तो तारा को भी बहुत अच्छा फील हो रहा था उसे बिल्कुल भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वह नए घर में आई है सब उसे अपनी फैमिली की तरह ही लग रहे थे सब ने उसे एक्सेप्ट कर लिया था तो तारा ने भी सबको पूरे दिल से अपनाया था लेकिन नाश्ता करते वक्त उसे फिर से आरांश का ध्यान आया और उसने अपने मन में कहा, "पता नहीं आरांश जी ने नाश्ता किया भी होगा कि नहीं? और कहां चले गए वह कल रात को भी ऐसा बर्ताव कर रहे थे।"

    अपने मन में यह सब सोचते हुए वह थोड़ा सा टेंशन में आ गई लेकिन फिर हाल वह वहां पर सबके बीच बैठी हुई थी तो उसने अपने चेहरे पर वह टेंशन नजर नहीं आने दी और जबरदस्ती मुस्कुराते हुए उसने अपना ब्रेकफास्ट खत्म किया और फिर निवेदिता के साथ पूरा घर देखने लगी।

    निवेदिता के साथ पूरा घर देखते हुए तारा एक साइड पर आई और एक दीवार पर उसने देखा कि एक काफी बड़ी सी फोटो लगी हुई थी और उस पर हर चढ़ा हुआ था बिल्कुल उसे तरह से जैसे कि किसी मरे हुए इंसान की फोटो पर लगाते हैं और वह फोटो और किसी की नहीं बल्कि आरांश की थी तो उसे देखते ही तारा ने एकदम तेज आवाज में चिल्लाया, "यह क्या है मेरे हस्बैंड की फोटो पर हार किसने चढ़ा दिया? अभी कल ही मेरी इनसे शादी हुई थी और तब तक तो यह जिंदा थे।"

    तारा ने अब तक वह नोटिस नहीं किया था लेकिन जैसे ही उसने ये नोटिस किया उसे बहुत ही अजीब लगा और आगे बढ़कर वह तुरंत ही उसे फोटो से हार उतारने लगी और बोली, "क्या मम्मी जी! मुझे पता नहीं था आप इतनी नाराज़ हो गई है अपने बेटे से! अगर वह बिना बताए कहीं चले गए इसका मतलब यह थोड़ी ना है कि आप उन्हें मरा हुआ समझ लेंगी। कल ही मेरी शादी हुई है और आज आप लोग मुझे विधवा बनाने पर तुले हैं। ज़िंदा आदमी की फोटो पर हर कौन चढ़ाता है अपने बेटे की।"

    इस तरह तेज आवाज में यह सब चिल्लाते हुए तारा आगे बढ़कर उस फोटो से हार उतारने ही वाली थी कि तभी एक औरत ने बीच में आकर उसका हाथ पकड़ लिया।

    To Be Continued

    कहां गायब है आरांश और क्या वह तारा के सामने आएगा या फिर नहीं आखिर ऐसे कब तक भागता रहेगा वह क्या लगता है आप लोगों को तारा कब तक पॉजिटिव रह पाएगी, ऐसी सिचुएशन में? कौन है वो औरत जिसने ऐसे तारा का हाथ पकड़ा है और क्या सच में वह फोटो आरांश की है, बताइए कमेंट सेक्शन में 🥰👇👇

  • 8. His Unwanted Dulhan - Chapter 8

    Words: 1679

    Estimated Reading Time: 11 min

    8

    तारा आगे बढ़कर उस फोटो से हार उतारने ही वाली थी कि तभी एक औरत ने बीच में आकर उसका हाथ पकड़ लिया।

    वह वही औरत थी जिसे थोड़ी देर पहले तारा ने पूजा के वक्त देखा था और उसने एकदम सिंपल लाइट पिंक कलर की साड़ी पहनी हुई थी चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था और ना ही उसे औरत ने कोई ज्वेलरी पहनी हुई थी, फिर भी वह बहुत सुंदर लग रही थी।

    उसने तारा का हाथ पकड़ते हुए कहा, "यह तुम्हारे पति नहीं, मेरे पति हैं।"

    उसे औरत की यह बात सुनकर तारा बहुत ही ज्यादा कंफ्यूज होकर उसकी तरफ देखने लगी और बोली, "क्या बकवास कर रही है तुम? अभी कल मेरी शादी हुई है आरांश जी से यह तो मत बोलना कि तुम उनकी पहली वाइफ हो! इतना बड़ा धोखा तो नहीं हो सकता मेरे साथ और वैसे भी यह जिंदा है तो क्यों तुम मुझे हार हटाने नहीं दे रही? हो सकता है किसी नौकर ने गलती से..."

    तारा अपनी बात पूरी कर पाती उससे पहले ही उसके सामने खड़ी औरत ने थोड़ी तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, "कोई गलती नहीं है मैंने कहा ना यह तुम्हारे पति नहीं यह मेरे पति हैं आरांश नहीं, यह आयांश की तस्वीर है।"

    "क्या बोल रही हो तुम और तुम हो कौन?" - इतना बोलते हुए तारा ने उसकी तरफ देखा और तब तक निवेदिता भी वहां पर आ गई और उसने तारा को समझाते हुए कहा, "भाभी यह मेरे दूसरे भाई की तस्वीर है, आयांश भाई और वह अभी इस दुनिया में नहीं है और यह आयांश भाई की वाइफ हैं प्रीत भाभी!"

    निवेदिता की बात सुनकर तारा ने इस तस्वीर की तरफ उंगली दिखाते हुए बहुत ही मासूमियत से पूछा, "लेकिन यह तस्वीर में इनका चेहरा यह तो बिल्कुल आरांश जी की तरह है! ऐसा कैसे हो सकता है और क्या हुआ था इन्हें?"

    तारा ने जैसे ही यह सवाल किया उसने देखा सामने खड़ी प्रीत की आंखों में आंसू आ गए! उसने अपने पति की तस्वीर पर चढ़ा हुआ वह हार ठीक किया और आपने साड़ी के पल्लू से मुंह छुपाते हुए वह वापस साइड में बने हुए एक कमरे के अंदर चली गई।

    प्रीत को ऐसे वहां से जाते देख कर तारा को उसके लिए बहुत ही बुरा लगा और उसने कहा, "अरे रुकिए! सॉरी, मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था और एकदम सेम दिखते हैं दोनों भाई तो किसी को भी गलतफहमी हो सकती है।"

    निवेदिता तारा को समझाते हुए बोली, "कोई बात नहीं भाभी आपकी भी गलती नहीं है और प्रीत भाभी भाई से बहुत प्यार करती थी वह आज भी उन्हें याद करके रोती रहती हैं भले ही उनकी डेथ को 2 साल हो गए हैं लेकिन वह आज तक उन्हें भूल नहीं पाई है।"

    तारा ने दोबारा से सवाल किया, "लेकिन दोनों एक जैसे कैसे दिख सकते हैं बिल्कुल भी फर्क नहीं लगा मुझे तो आरांश जी और इस तस्वीर में मुझे लगा कि उनकी ही तस्वीर है।"

    इस बार उसकी सास तारा के सवाल का जवाब देती हुई बोली, "वह इसलिए क्योंकि आरांश और आयांश दोनों जुड़वा भाई थे। मेरे दोनों बेटे एक दूसरे से बहुत ही ज्यादा प्यार करते थे बहुत ही क्लोज थे एक दूसरे से और इसी वजह से आरांश ऐसा हो गया है बहुत प्यार करता था वह अपने भाई से और उसकी डेथ की बात से उसने भी जीना जैसे छोड़ दिया है और हम सब से कटा कटा रहता है।"

    यह बात बोलते बोलते उनकी आंखों से आंसू आ गए और तारा को समझ आया कि आरांश ऐसा क्यों है और क्यों उसने उसे इस तरह से बात की लेकिन तारा ने आरांश की उन बातों को इतना दिल पर नहीं लिया था बल्कि उन सब घर वालों के जज़्बातों को समझते हुए वह उनके बीच बैठकर बोली, "सॉरी मम्मी जी! मुझे पता नहीं था और मैं शादी के दूसरे दिन ही इस बारे में बात कर दी लेकिन आप लोगों ने भी पहले कुछ नहीं बताया था ना बस इसीलिए फोटो पर हार चढ़ा देखकर मुझे गलतफहमी हो गई थी।"

    तारा की बात सुनकर अपने साड़ी के पल्लू से आंसू पूछते हुए उसकी सास ने कहा, "कोई बात नहीं, बेटा! वैसे हम तुमसे माफी मांगते हैं आरांश ने अगर तुम्हारे साथ बुरा बर्ताव किया हो या तुम्हें कुछ भी ऐसा वैसा बोला हो प्लीज तुम उसकी बातों को दिल से मत लगाना और अभी वह तुम्हारे साथ भी नहीं है शादी के दूसरे ही दिन वह इस तरह से गायब है।"

    उनकी ऐसी बात सुनकर तारा उनका हाथ पकड़ते हुए बोली, "नहीं मम्मी जी! कैसी बातें कर रही है आप एक तरफ बेटा भी बोल रही हैं और फिर अपने बच्चों से कोई माफी मांगता है क्या वैसे भी मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगा आरांश जी ने मुझे ऐसा कुछ भी नहीं कहा और वो यहां पर नहीं है तो क्या हुआ आप लोग तो है ना मैं फैमिली के साथ थोड़ा टाइम स्पेंड कर लूंगी।"

    तारा ने वहां सामने खड़ी अपनी सास और नंद की तरफ देखा वहीं पर पीछे उसके ससुर जी भी बैठे हुए उसकी ननद के पति से बात कर रहे थे लेकिन तारा का ध्यान अभी भी प्रीत में लगा हुआ था वह उससे भी बात करना चाहती थी लेकिन प्रीत वहां पर ज्यादा देर रुकी ही नहीं उन सबके बीच..

    इसलिए तारा ने खुद ही प्रीत के बारे में उन लोगों से पूछा तो वह लोग भी उसे बताने लगे कि लगभग ढाई साल पहले उन दोनों की शादी हुई थी और उनकी शादी को सिर्फ 6 महीने ही हुए थे जब उनके बेटे की डेथ हो गई। उनकी शादी भी एक अरेंज मैरिज थी।

    यह सब सुनकर तारा को प्रीत के लिए बहुत ही बुरा लगा और उसे हमदर्दी भी महसूस हुई इसलिए वह उससे बात करने के लिए उसके कमरे की तरफ ही जाने लगी तो निवेदिता ने उसे रोकते हुए कहा, "भाभी! वो प्रीत भाभी जल्दी किसी से बात नहीं करती है मेरा मतलब है भाई के जाने के बाद से उन्हें अकेला रहना ही पसंद होता है कभी-कभी बस अपने मायके ही जाती हैं ।"

    निवेदिता ने तारा को रोकते हुए प्रीत के बारे में यह सब बताया तो फिर तारा ने मुस्कुराकर कहा, "कोई बात नहीं, मैं एक बार कोशिश करके देखती हूं वैसे भी आखिर इंसान कब तक अकेला रह सकता है?"

    इतना बोलकर तारा मुस्कुराते हुए सीधे प्रीत के कमरे की तरफ ही चली गई।

    निवेदिता के मना करने के बाद भी अपनी आदत से मजबूर तारा, प्रीत के कमरे की तरफ गई लेकिन जब वह कमरे के दरवाजे तक पहुंची तो उसे पता चला कि कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था।

    तारा ने एक गहरी सांस ली और कमरे के दरवाजे पर अपना हाथ रख उसने एकदम धीरे से दरवाजा खटखटाते हुए कहा, "भाभी! दरवाजा खोलिए मुझे आपसे बात करनी है!"

    तारा ने दरवाजा खटखटाया और कमरे के अंदर दरवाजे से लग कर खड़ी हुई रो रही प्रीत को उसकी आवाज भी एकदम साफ सुनाई दी लेकिन वह उसी तरह अपने चेहरे पर हाथ रखकर रोती रही और रोते-रोते वहीं दरवाजे के पास जमीन पर बैठ गई लेकिन उसने दरवाजा नहीं खोला और ना ही तारा की बात का कोई जवाब दिया तो 2 मिनट के बाद तारा खुद ही वहां से वापस आ गई।

    तारा ने एक गहरी सांस ली और वह काफी मायूस लग रही थी तो उसे ऐसे देखकर उसकी सास ने कहा, "बेटा तुम बुरा मत मानना जब से आयांश की डेथ हुई है तब से ही वह ऐसी हो गई है। नहीं तो पहले वह भी एकदम तुम्हारी तरह थी हमेशा खुश रहने वाली प्यारी सी लड़की जो बस खुशियां बांटती थी लेकिन उसकी जिंदगी की खुशियों को ही नजर लग गई।"

    निवेदिता ने भी तारा को पूरी बात बताते हुए कहा, "हां भाभी! मम्मी बिल्कुल ठीक कह रही है आयांश भाई क्या गए अपने साथ जैसे प्रीत भाभी और आरांश भाई को भी लेकर चले गए। उनकी डेथ के बाद से ही दोनों ऐसे हो गए हैं क्योंकि आरांश भाई सबसे ज्यादा आयांश भाई से ही क्लोज थे। उन के अलावा वह पहले भी किसी से ज्यादा बातें नहीं करते थे लेकिन उनके बाद से तो जैसे दूसरी दुनिया में रहने लगे हैं और प्रीत भाभी के लिए तो हम सबको बुरा लगता है इतनी कम एज में वह विधवा हो गईं।"

    तारा काफी ध्यान से उन लोगों की बातें सुन रही थी और निवेदिता की बात सुनकर तारा ने अपने मन में कहा, "अच्छा तो यह रीजन है जुड़वा भाई बहनों का रिश्ता और बॉन्ड वैसे भी सबसे अलग होता है और आरांश जी इतना ज्यादा क्लोज थे अपने भाई से शायद इसीलिए अभी वह ऐसे हो गए हैं, सच में यह बहुत बड़ी वजह है मैं शायद उनका दर्द इमेजिन भी नहीं कर सकती लेकिन बांटने की कोशिश ज़रूर करूंगी।"

    पिछली रात आरांश का बेरुखा बर्ताव याद करते हुए तारा ने अपने मन में कहा और वह यही सब अपने मन में सोच रही थी तभी निवेदिता ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, "क्या हुआ भाभी! क्या सोचने लगी आप?"

    निवेदिता की बात सुनकर तारा ने उसकी तरफ देखा और वह कुछ बोल पाती उससे पहले ही उसकी सास ने काफी ज्यादा इमोशनल होते हुए कहा, "हां बहू तुम यही सोच रही होगी ना कि हमने तुम्हारे साथ गलत किया। यह सब कुछ बिना बताए तुम्हारी शादी आरांश से करवा दी और वह इतना चुप और उदास रहता है लेकिन सच कहूं तो मुझे बस ऐसा लगा था कि तुम ही उसे उसकी इस उदासी भरी दूसरी दुनिया से वापस हमारे दुनिया में ला सकती हो हां हम अपने बेटे के लिए थोड़े स्वार्थी हो गए थे लेकिन वह बहुत अच्छा इंसान है और वह तुम्हें बहुत खुश भी रखेगा बस अगर वह चाहे तो.."

    To Be Continued

    क्या प्रीत बात करेगी तारा से और आयांश की डेथ की वजह से ही इतना बदल गया है आरांश क्या इस बात को समझ पाएगी तारा और क्या वह समझ पाएगी आरांश और प्रीत के दर्द को? क्या लगता है आप लोगों को क्या कुछ चेंज होगा तारा के आने से उन दोनों की लाइफ में? बताइए कमेंट में 👇👇👇🥰

  • 9. His Unwanted Dulhan - Chapter 9

    Words: 1682

    Estimated Reading Time: 11 min

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    तारा ने बहुत ही समझदारी से कहा, "नहीं मम्मी जी! अपने बच्चों के बारे में सोचना गलत नहीं होता और आपने आरांश जी के बारे में सोचा वैसे भी आप सब ही तकलीफ में होंगे। मैं तो जानती नहीं आयांश जी को लेकिन वह आपके परिवार का हिस्सा थे और आप सब पर ही कुछ ना कुछ इफेक्ट पड़ा है लेकिन आरांश जी उनके जुड़वा भाई थे तो शायद इस वजह से उन पर कुछ ज्यादा ही असर हुआ है लेकिन कोई बात नहीं, मैं आ गई हूं ना मैं उन्हें समझाऊंगी और हमेशा उनका साथ दूंगी, चाहे जो भी सिचुएशन हो।"

    तारा की ऐसी पॉजिटिव बातें सुनकर उन सभी को काफी तसल्ली मिली और कुछ देर के लिए वहां का माहौल थोड़ा अच्छा हो गया, अब सभी थोड़े खुश लग रहे थे लेकिन आरांश के वापस घर ना आने पर सभी थोड़ा परेशान थे।

    शाम का वक्त;

    तारा अपने कमरे में अकेली थी इसलिए वह अपना बाकी बचा हुआ सारा सामान सेटअप करने लगी तभी उसने एक बैग के अंदर रखा हुआ एक वाइट कलर का बॉक्स निकाला और उसे निकाल कर वही साइड टेबल पर रख दिया।

    और फिर वहीं सामने काउच पर बैठकर उसे बॉक्स को खोलकर देखने लगी उसे बॉक्स में उसका सारा पेंटिंग और स्केचिंग का सामान था, वो अभी पूरा सामान तो वह अपने घर से यहां नहीं ला पाई थी लेकिन जितना भी जरूरी सामान था वह सब उसने अपने सामान के साथ पैक कर लिया था क्योंकि पेंटिंग और स्केचिंग करना तारा को बहुत पसंद था और वह उसका शौक भी था। वह इसी में अपना प्रोफेशन भी बनना चाहती थी और उसके मम्मी पापा उसे पूरा सपोर्ट करते थे इसीलिए वह आर्ट से मास्टर्स कर रही थी इसी बीच उसकी शादी हो गई अभी उसके फाइनल एग्जाम भी नहीं हुए थे।

    अपने सामने रख आर्ट्स के वह सारे सामान पर तारा ने हाथ फेरते हुए एक गहरी सांस ली और फिर से वो बॉक्स बंद कर दिया और अपना मोबाइल फोन उठा कर कमरे की खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई वह किसी को फोन कॉल करने ही वाली थी कि तभी घर के अंदर एक कर इंटर हुई उसके कमरे की खिड़की से विला का एंट्री गेट एकदम साफ नजर आता था।

    वह देख कर तारा रुक गई और कर रुकते ही उसमें से आरांश बाहर निकाल कल की तरह आज भी वह काफी उदास सा लग रहा था और उसके चेहरे पर कोई भी एक्सप्रेशन नहीं थे कर का दरवाजा खोलते हुए वह एकदम से ही बाहर निकाला और घर के अंदर आने लगा लेकिन उसे आते देख कर तारा के चेहरे पर खुशी की चमक नजर आने लगी और उसने अपने मन में कहा, "चलो फाइनली घर तो वापस आए मुझे तो लगा था कि कहीं भाग न गए हो ये?"

    तारा ने अपने आप से कहा और फिर वो आरांश के कमरे में ही आने का वेट करने लगी लेकिन काफी देर बीत गई और अब तक वह कमरे के अंदर नहीं आया तो तारा काफी मायूस हो गई और उसने कहा, "कहां रह गए आरांश जी? एक तो सुबह से गायब थे और अब वापस आए भी हैं तो पता नहीं कहां चले गए कब से वेट कर रही हूं मैं और उन्हें तो कोई फिक्र ही नहीं है मेरी! शादी करके जैसे भूल गए हैं मुझे तो!"

    इतना बोलते हुए तारा ने मुंह फुला लिया और वही बेड के एकदम किनारे पर आकर बैठ गई । उसकी नज़रें कमरे के दरवाजे पर ही टिकी हुई थी इस उम्मीद में की अभी वह दरवाजा खुलेगा लेकिन आधे घंटे बाद भी कमरे का दरवाजा नहीं खुला और तारा को अपनी उम्मीदों पर पानी फिरता हुआ सा नजर आया तो वह फिर खुद ही दरवाजा खोल कर बाहर निकले और इधर-उधर देखते हुए आगे की तरफ जाने लगी।

    वहां विला के फर्स्ट फ्लोर पर उनके अलावा और किसी का भी रूम नहीं था साइड में एक स्टडी रूम था और एक और कमरा था जो बंद रहता था।

    कुछ देर पहले ही निवेदिता के साथ तारा ने जब पूरा घर देखा था तब ही उसने वह सारे कमरे देख लिए थे इसलिए वह धीरे-धीरे आगे बढ़ी और कुछ देर पहले जो स्टडी रूम का दरवाजा भी बाहर से बंद था वह तारा को खुला हुआ नज़र आया तो अपनी आदत से मजबूत तारा उसके अंदर झांक कर देखने लगी, लेकिन उसे ज्यादा कुछ नजर नहीं आया क्योंकि स्टडी रूम में काफी डिम लाइट जल रही थी।

    स्टडी रूम में इतना अंधेरा देख कर तारा ने धीमी आवाज में बुदबुदाते हुए कहा, "यह स्टडी रूम में इतनी धीमी रोशनी होने का क्या मतलब है ऐसे अंधेरे में कौन काम कर रहा होगा यहां पर?"

    इतना बोलते हुए तारा झांक कर उस कमरे के अंदर देखने लगी और फिर ना चाहते हुए वह कमरे के अंदर ही आ गई।

    उस स्टडी रूम का दरवाजा आधा खुला हुआ था इसलिए दरवाजे पर हाथ रखकर तारा अंदर की तरफ ही झांक रही थी और तभी उसने दरवाजे पर हाथ रखा और दरवाजा अंदर की तरफ होते हुए पूरा खुल गया तो वह एकदम ही लड़खड़ा गई और संभाल नहीं पाई।

    दरवाजे का सहारा लेते हुए वह किसी तरह गिरने से तो बच गई लेकिन दरवाजा इस तरह खुलने पर थोड़ी सी घबरा गई और उसके मुंह से चीख निकल गई "आउच!"

    जिसे सुनकर अंदर कमरे की लाइट एकदम ही ऑन हो गई और वहां स्टडी रूम में पड़े हुए एक बड़े से सिंगल काउच पर आरांश अपने सिर पर हाथ रख कर बैठा हुआ था‌।

    उसने तुरंत ही दरवाजे की तरफ देखा तो तारा उसे वहां पर सीधी होकर खड़ी होती नजर आई जो कि अपनी साड़ी का पल्लू और बाल ठीक कर रही थी, उसके इस तरह लड़खड़ाने की वजह से बाल और कपड़े थोड़े से खराब और मेसी हो गए थे।

    तारा को सामने देखकर आरांश ने एकदम गुस्से में कसकर अपने हाथों की मुट्ठियां बांधी और बेबसी से अपना सिर हिलाया।

    तारा एकदम सीधी होकर खड़ी हो गई और सामने खड़े आरांश की तरफ देखकर वो जबरदस्ती मुस्कुराई उसे समझ नहीं आया था कि वह क्या करें क्योंकि वह इस तरह तो कमरे के अंदर नहीं आना चाहते और उसे बिल्कुल भी कोई आईडिया नहीं था कि आरांश यहां पर इस स्टडी रूम के अंदर होगा।

    तारा ने अभी तक कुछ नहीं बोला तो आरांश ने अपनी आंखें कसकर बंद करते हुए गुस्से में कहा, "तुम! तुम यहां क्या कर रही हो? जाओ यहां से, अभी के अभी!"

    आरांश ने उसे वहां से जाने के लिए कहा लेकिन उसके बाद के उलट तारा कमरे के अंदर आते हुए उसकी तरफ देखकर बोली, "क्यों जाऊं मैं यहां से और वैसे यह सवाल तो मैं भी आपसे कर सकती हूं कि आप यहां पर क्या कर रहे हैं एक तो आप सुबह से गए थे उसकी वजह से सब लोग परेशान थे और फिर अब वापस आए हैं तो यहां पर बैठे हुए हैं आप क्या कर रहे हैं यहां चलिए वापस अपने कमरे में!"

    इतना बोलते हुए तारा आगे आई और वह आरांश का हाथ पकड़ने ही वाली थी कि तभी आरांश अपना हाथ पीछे कर दिया और बोला, "अपनी हद में रहो! तुम्हें समझ नहीं आता है क्या मैंने कहा है तुम मुझसे दूर रहो करो फिर भी मेरे पीछे-पीछे यहां तक आ गई और हिम्मत तो देखो हाथ भी पकड़ रही हो।

    तारा अपनी कमर पर हाथ रख कर उसकी तरफ देखते हुए बोली, "हां तो अपने हस्बैंड का हाथ पकड़ रही हूं कौन सा किसी और के हस्बैंड का पकड़ रही हूं जो आपको इतनी प्रॉब्लम हो रही है। और बस साथ आने के लिए ही तो बोल रही हूं चलिए।"

    इतना बोलते हुए तारा ने आखिर उसका हाथ पकड़ ही लिया और आरांश का गुस्सा और भी ज्यादा बढ़ गया उसने एक झटके से अपना हाथ उसके हाथ से छुड़ा लिया और पीछे होते हुए बोला, "कम समझ आता है ना तुम्हें या फिर सुनाई नहीं देता है क्या प्रॉब्लम क्या है तुम्हारी नहीं आना मुझे उस कमरे में जहां पर तुम रहती हो। इरिटेट करती हो तुम मुझे नहीं देख सकता मैं अपने कमरे में किसी और को मुझे बिल्कुल आदत नहीं है किसी के साथ रहने की।"

    उसके इस तरह गुस्से से बोलने पर भी तारा पर कोई फर्क नहीं पड़ा तारा ने उसका हाथ तो छोड़ दिया लेकिन वह अपनी जगह पर ही खड़ी रही और अपने दोनों हाथ सामने की तरफ बांधते हुए तारा ने आरांश की तरफ देखकर कहा, "आदत नहीं है तो आदत डाल लीजिए, बहुत टाइम है आपके पास और आपकी आदतें तो मैं बदलवा दूंगी!"

    आरांश ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा, "नहीं बदलना मुझे कुछ भी जाओ तुम यहां से।"

    उसके ऐसे गुस्सा करने का भी तारा पर कोई असर नहीं हुआ और वो उसी तरह कॉन्फिडेंस से बोली, "कहीं नहीं जा रहीं मैं, पहले आप मुझे यह बताइए कि आप कहां थे सुबह से जब से मैं सो कर मुझे आप कमरे में भी नहीं दिया और पूरा दिन आपको पता है पूजा थी मैंने आपके बिना ही पूजा की जो हमें साथ में करनी थी और उसके बाद.."

    उसकी बात बीच में ही काटते हुए आरांश झल्लाकर बोला, "मुझे कुछ भी नहीं जानना है और ना ही कुछ सुनना है तुम्हें समझ नहीं आता है क्या मैं तुमसे यहां से जाने के लिए बोल रहा हूं और तुम हो कि बेवजह की बकवास मेरे सामने किया जा रही हो मुझे इन सब बातों में इंटरेस्ट नहीं है और ना ही तुम में कोई चीज भी है इसलिए इस बात को तुम जितनी जल्दी समझ जाओ उतना बेहतर होगा और मुझसे दूर रहो बस..."

    तारा ने उसकी बात सुनकर कहा, "नहीं, जैसे आपको मेरी बातें बकवास लगती है वैसे ही मुझे भी आपकी यह सारी बातें एकदम बेकार की लगती है मुझे कुछ भी नहीं सुनना समझना तो दूर की बात है इसलिए आपको चुपचाप अभी मेरे साथ चल रहे हैं नहीं तो फिर मैं घर में सबको बुलाकर बता दूंगी क्या आप यहां पर अकेले बैठे हुए हैं अपनी नई नवेली दुल्हन को छोड़कर।"

    आरांश अपने माथे पर हाथ रख झुंझलाते हुए बोला, "अजीब मुसीबत हो तुम भी, आखिर चाहती क्या हो?"

    To Be Continued

  • 10. His Unwanted Dulhan - Chapter 10

    Words: 1605

    Estimated Reading Time: 10 min

    10

    आरांश अपने माथे पर हाथ रख झुंझलाते हुए बोला, "अजीब मुसीबत हो तुम भी, आखिर चाहती क्या हो?"

    तारा एकदम से उसकी बात का जवाब देते हुए बोली, "आपको..."

    उसका जवाब सुनकर आरांश चौंकते हुए बोला, "क्या?"

    तारा बात संभालते हुए बोली, "मेरा मतलब है आपका साथ और भला क्या चाहूंगी मैं! चलिए अब.. या फिर बुलाऊं मैं सबको निवेदिता दीदी, जीजाजी और मम्मी पापा को भी!"

    उसकी बात सुनकर आरांश ने अपने मन में कहा, "अजीब सिर दर्द है यह लड़की भी, इसे समझ क्यों नहीं आता मैं इसे अपनी लाइफ में इसे खुद से दूर करना चाहता हूं बस और इसमें जरा सी भी सेल्फ रिस्पेक्ट नहीं है क्या इस लड़की में। चाहे कुछ भी बोल दूं बुरा भी नहीं लगता क्या इसे चाहे जितनी बुरी तरह से बर्ताव करूं मैं?"

    तारा की तरफ देखते हुए आरांश अपने मन में यह सब सोच रहा था और तभी तारा ने उसकी तरफ देखा तो वह चुपचाप उसके साथ स्टडी रूम से बाहर निकल गया अपने कमरे की तरफ बढ़े,

    तारा आगे चल रही थी और आरांश उसके पीछे था। जैसे ही तारा कमरे के अंदर नहीं आ रहा है उसको एकदम से कुछ सुझाव कुछ कदम आगे आया और उसने एकदम से दरवाजा अपनी तरफ खींच लिया और दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया।

    तारा काफी खुश होकर कमरे के अंदर आई थी लेकिन जैसे ही उसने दरवाजा बंद होने की आवाज सुनी उसने पीछे मुड़कर देखा और दरवाजे पर हाथ मारते हुए बोली, "आरांश जी किस तरह का मज़ाक़ है यह... दरवाजा खोलिए आप?"

    आरांश ने दरवाजा बंद किया और उसी तरह की आवाज भी सुनाई दे रही थी जो उसे दरवाजा खोलने के लिए बोल रही थी लेकिन आरांश कुछ भी नहीं बोला, उसने ना हीं उसकी बात का कोई जवाब दिया और ना ही कोई रिएक्ट किया और वह वहां से वापस स्टडी रूम की तरफ आकर अपने मन में पूरा अब कम से कम कुछ देर मैं यहां पर सुकून से रह पाऊंगा।

    इतना बोलते हुए वह अपनी जगह से आगे बढ़ा लेकिन फिर पीछे मुड़कर उसने दरवाजे की तरफ देखा तारा अभी भी अंदर से चिल्ला रही थी, उसकी आवाज काफी धीमी बाहर आ रही थी जिसकी वजह से उसे पता था नीचे बाकी लोगों तक तो उसके आवाज नहीं जाएगी तो फिर एक गहरी सांस लेकर आरांश वापस स्टडी रूम की तरफ ही बढ़ गया।

    12

    तारा को अपने रूम में बंद करने के बाद स्टडी रूम की तरफ आता हुआ आरांश अपना सिर पकड़ कर परेशान होते हुए बोला, "क्यों नहीं समझ आता इस लड़की को इतनी बार बोल चुका हूं तब भी दूर नहीं रहती मुझसे! मैं नहीं चाहता यह मेरी लाइफ में इंवॉल्व हो इसे क्यों समझ नहीं आता, I don't deserve her I don't deserve anyone I don't deserve any happiness I only deserve this darkness with me forever।"

    इतना बोलते हुए वह स्टडी रूम के अंदर आया और आते ही उसने अपने रूम का दरवाजा भी अंदर से बंद कर लिया जिससे कि उसे तारा की आवाज देना सुनाई दे जो कि यहां तक आते हुए पहले ही एकदम धीमी पड़ चुकी थी।

    वहीं दूसरी तरफ कमरे के अंदर, तारा भी अब तक चुप हो चुकी थी क्योंकि उसे बंद जगह या अंधेरे का ऐसा कोई डर नहीं था उसे बस बहुत ही अजीब लगा था आरांश का ऐसा बर्ताव उसने बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि आरांश इस तरह से उसे रूम में बंद करके भाग जाएगा।

    रूम का दरवाजा बंद देख कर तारा ने धीरे से अपना सिर हिलाया और फिर थोड़ा इरिटेट होती हुई अपने आप से बोली, "क्या बचकानी हरकत है, यह इस तरह कौन बाहर से कमरा बंद करता है ऐसा तो मैं स्कूल टाइम में करती थी।"

    इतना बोलते हुए तारा ने एक गहरी सांस ली और फिर अपने बेड पर आकर काफी आरांश बैठ गई उसने वहां सामने टेबल पर पड़ा हुआ अपना बॉक्स देखा जो थोड़ी देर पहले को निकाल कर रख रही थी वह अभी भी वैसे ही रखा हुआ था तारा आगे उसने अपना बॉक्स खोल और उसमें से एक स्केच बुक निकाल और उसका एकदम ब्लैंक पेज खोलकर बैठ गई उसने अपनी कुछ पेंसिल भी निकाली और एक हाथ में पेंसिल पकड़ कर और स्केच बुक लिए हुए वह एक पल के लिए अपनी आंखें बंद करके कुछ याद करने लगी और फिर एकदम ही वो उसे ब्लैंक पेपर पर कुछ स्केच बनाने लगी।

    अभी शुरुआत में बनाते वक्त कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि तारा क्या और किस चीज़ का स्कैच बना रही थी और अभी उसे कुछ देर ही हुई थी वह काफी शांत लग रही थी फिलहाल और उसके हाथ चलते हुए दिख रहे थे और माथे पर बल पड़े हुए थे जैसे कि काफी गहराई से वह कुछ सोच रही हो और तभी एकदम से दरवाजा खुलने का क्लिक साउंड हुआ जिससे कि उसका ध्यान दरवाजे की तरफ ही हो गया।

    दरवाजा खुलते देख कर तारा ने जल्दी वह सारा सामान तकिया के नीचे छुपा कर कंबल से ढक दिया और अपने हाथ पीछे करके उसे तरफ ही देखने लगी!

    वह सामने दरवाजे पर खड़ी निवेदिता ने तारा की तरफ़ देखकर पूछा, "भाभी! आप क्या कर रही हो?"

    तारा ने बेड से उठकर खड़े होते हुए कहा, "नहीं, कुछ नहीं मैं मैं वह बस अपना सामान सेट कर रही थी।"

    इतना बोलते हुए उसने पीछे मुड़कर देखा और तसल्ली की उसका कोई समान नजर नहीं आ रहा था तो उसने राहत की सांस ली।

    कभी निवेदिता ने उससे कहा, "ऐसे रूम लॉक करके? मेरा मतलब है रूम तो बाहर से लॉक था आपको बाहर से किसने लॉक किया‌ । आपको पता भी था या नहीं?"

    निवेदिता का यह सवाल सुनकर तारा को एकदम ही याद आ गया किस तरह लगभग 1 घंटे पहले आरांश ने उसे धोखे से कमरे के अंदर करके बाहर से दरवाजा लॉक कर दिया था जिससे कि वह उसे परेशान ना कर पाए तो वह सब याद करके तारा थोड़ी सी मायूस हो गई!

    और फिर उसने जैसे आरांश की शिकायत करते हुए निवेदिता से कहा, "सब आपके भाई का किया धरा है उन्होंने मुझे जानबूझकर कमरे के अंदर बंद किया और खुद पता नहीं कहां चले गए मेरे सामने ही नहीं आना चाहते हैं पता नहीं इतना कौन शर्माता है वह भी अपनी पत्नी से?"

    इतना बोलते हुए तारा ने मुंह फुला लिया और वह बहुत ही ज्यादा क्यूट लगने लगी।

    निवेदिता ने उसकी बातें सुनी तो उसे बहुत ही बुरा लगा और उसने अपने भाई की तरफ से माफी मांगते हुए कहा, "आई एम रियली सॉरी भाभी! हमें नहीं पता था भाई ऐसा कुछ करेंगे चलो कोई बात नहीं मैं आपको चाबियां दे दूंगी जिससे कि दरवाजा अंदर से भी खुल जाएगा और आप इसे अपने पास रखना भाई को बिल्कुल मत देना नहीं तो वह रूम अंदर से लॉक करके बैठे रहते थे पहले जब आयांश भाई की डेथ हुई थी उस वक्त, तभी मम्मी ने सारी चाबियां लेकर अपने पास रख ली थी।"

    निवेदिता की यह बात सुनकर तारा को बहुत बुरा लगा वह यह बात ही इमेजिन भी नहीं कर पा रही थी कोई इंसान खुद ही अपना कमरा अंदर से लॉक करके घंटे अकेले बैठा रह सकता था।

    क्या सच में किसी का ना होना किसी को इतना इफेक्ट कर सकता है शायद हां आरांश के केस में ऐसा था क्योंकि आयांश उसका जुड़वा भाई था और वह दोनों हमेशा ही साथ रहते थे शायद इस वजह से उसको इतना ज्यादा फर्क पड़ा होगा और उस वक्त तो तारा भी उसके साथ नहीं थी तो शायद वह इमेजिन भी नहीं कर सकती उसका दुख दर्द और तकलीफ़ें इसीलिए वह किसी भी तरह से उसे दोषी नहीं ठहरा रही थी।

    उसकी बात समझते हुए तारा ने कहा, "हां हां ठीक है तुम मुझे बस एक चाबी दे देना, मैं उसे अपने पास ही रखूंगी कम से कम इस तरह से लॉक तो नहीं हो जाऊंगी अपने ही रूम में वैसे अच्छा किया तुमने जो बाहर से खोल दिया।"

    निवेदिता ने उसकी फिक्र करते हुए कहा, "बट भाभी आप मुझे यह घर में किसी को कॉल भी तो कर सकते थे ना बाहर निकालने के लिए मैं आकर आपके रूम का दरवाजा खोल देती।"

    निवेदिता की यह बात सुनते ही तारों को एकदम से याद आया और वह साइड में रखा हुआ अपना मोबाइल फोन उठाकर निवेदिता की तरफ बढ़ाते हुए बोली, "अरे हां, मैं कर तो सकती थी लेकिन मेरे पास तुम में से किसी का भी नंबर नहीं है अभी तक को यह लो मेरा फोन और इसमें सब लोगों के नंबर सेव कर देना स्पेशली अपने भाई का।"

    आखिरी बात जानबूझकर तारा ने थोड़ी सी धीमी आवाज में बोली लेकिन निवेदिता ने उसकी बात सुन ली और उसका मोबाइल फोन अपने हाथ में लेते हुए कहा, "हां ठीक है लाइए मैं डिनर के बाद सबके नंबर सेव कर दूंगी वैसे पहले अपने नंबर पर मिस कॉल कर लेती हूं आपका नंबर भी मेरे पास नहीं है शायद.."

    इतना बोलते हुए निवेदिता उसका फोन लेकर उसमें अपना फोन नंबर डायल करने लगी और फिर वह दोनों ही वहां से बाहर निकाल कर डिनर के लिए चली गई लेकिन नीचे सीढ़ियां उतरते वक्त तारा ने पीछे मुड़कर स्टडी रूम की तरफ देखा और बोली, "दीदी! लेकिन आरांश जी वह नहीं आएंगे हमारे साथ खाना खाने? मैं उनके बिना खाना नहीं खाऊंगी।"

    To Be Continued

    कैसा लगा आज का एपिसोड धीरे-धीरे तारा को आरांश के बारे में सब कुछ जानने का मौका मिल रहा है तो ऐसे में क्या करेगी वह कैसे समझाएगी आरांश को? क्या तारा को सिर्फ उसे हमदर्दी हो रही है या फिर कोई और भी फीलिंग है उसके मन में अपने पति को लेकर और क्या इस बात को वह समझ पाएगा।

  • 11. His Unwanted Dulhan - Chapter 11

    Words: 1607

    Estimated Reading Time: 10 min

    11

    सीढ़ियां उतरते वक्त तारा ने पीछे मुड़कर स्टडी रूम की तरफ देखा और बोली, "दीदी! लेकिन आरांश जी वह नहीं आएंगे हमारे साथ खाना खाने? मैं उनके बिना खाना नहीं खाऊंगी।"

    तारा की बात सुनते ही निवेदिता उसे टोकते हुए बोली, "अरे नहीं भाभी! प्लीज सोच समझ कर बोलिए अगर आप ऐसा कुछ बोलेंगी ना, तो फिर आपको महीने में 20 दिन भूखा ही रहना होगा आरांश भैया तो बाहर से खाकर आते हैं या फिर वह जल्दी खाना खाते ही नहीं हैं और हमारे साथ तो बहुत ही कम शायद महीने में चार-पांच बार ही खाना खाते होंगे। बाकी वह अपने रूम में ही कहते हैं पता नहीं खाते भी हैं या..."

    इतना बोलते हुए निवेदिता चुप हो गई तो फिर तारा ने कहा, "ऐसे कब तक चलेगा 2 साल हो चुके हैं आप लोगों को उन्हें समझना चाहिए पूरी जिंदगी तो ऐसे नहीं रह सकते ना? उन्हें भी एक्सेप्ट करना चाहिए कि उनके भाई अब इस दुनिया में नहीं है वह वापस नहीं आने वाले।"

    तारा की यह बात सुनकर निवेदिता आगे कुछ नहीं बोल पाई और फिर तारा उसके साथ उतरते हुए नीचे डायनिंग एरिया में आई लेकिन उसने उन सब के साथ बैठकर खाना नहीं खाया। उसने एक प्लेट में अपना और आरांश का खाना लगाया और उसे लेकर ऊपर की तरफ ही चली गई।

    तारा प्लेट में खाना लेकर ऊपर आई लेकिन अपने कमरे में जाने की बजाय वह सीधा स्टडी रूम की तरफ ही चली गई क्योंकि उसे पता था आरांश वहां पर ही था और उसका रूम एकदम खाली था।

    तारा को पता था उसने डिनर नहीं किया था और बाकी सब ने भी उसे यही बताया था वह तब से कमरे से बाहर ही नहीं निकला था।

    तारा काफी देर तक दरवाजे के पास खड़ी होकर दरवाजा खटखटाती रही लेकिन अंदर से उसे कोई भी रिस्पांस नहीं मिला और ना ही दरवाजा खुला तो थोड़ी देर के बाद थक हार कर हो वापस रूम में चली गई उसने खान की प्लेट साइड टेबल पर रखकर ढक दी और फिर बेड पर लेट गई क्योंकि उसका सच में खाना खाने का मन नहीं हो रहा था।

    अगली सुबह,

    तारा की आंख खुली और जम्हाई लेते हुए वह बेड पर उठकर बैठ गई उसने इधर-उधर अपने बेड के दोनों साइड पर देखा तो उसका बेड पर उसके अलावा कोई नहीं था जिसे उसकी आंखें ढूंढ रही थी, वह तो बिल्कुल भी नहीं था इसलिए तारा ने उस कमरे में खुद को अकेले पाकर अपने आप से कहा, "मुझे शायद इतनी उम्मीद रखनी ही नहीं चाहिए यह वैसे भी कोई इंसान एक दिन में तो चेंज नहीं हो सकता ना ठीक है उन्हें जितना भी टाइम देना है मैं दूंगी वैसे भी अभी दो दिन ही हुए हैं हमारी शादी को।"

    इतना बोलते हुए तारा ने हमेशा की तरह पॉजिटिव सोचते हुए खुद को हिम्मत दी और फिर अपने बाल लपेटते हुए वह सीधा वॉशरूम की तरफ ही बढ़ गई और कुछ देर के बाद वह फ्रेश होकर शावर लेकर रूम से बाहर निकल कर आई।

    तारा ब्रेकफास्ट के लिए नीचे आई तो उसने देखा कि निवेदिता अपने हस्बैंड हिमांशु के साथ एकदम रेडी खड़ी थी उसने अपने सारे बैग भी पैक कर लिए थे और वह दोनों शायद वहां से निकलने की तैयारी कर रहे थे। बाकी सारे मेहमान तो शादी की अगली सुबह ही अपने-अपने घर जा चुके थे सिर्फ निवेदिता ही रुकी हुई थी लेकिन आप उसे भी अपने घर जाना था।

    उन दोनों के ऐसे बैग पैक देखकर तारा ने वहां पर आते हुए कहा, "दीदी जीजू! कहां जा रहे हैं आप दोनों की बैग क्यों पैक कर रखे हैं आप लोगों ने इतनी सुबह-सुबह।"

    निवेदिता ने आगे आते हुए कहा, "अरे भाभी अच्छा हुआ आप आ गई मैं आपसे मिलने ही आने वाली थी वह हम दोनों वापस जा रहे हैं अपने।"

    तारा ने दोबारा सवाल किया, "हां वह तो ठीक है लेकिन आप लोग जा कहां रहे हैं?"

    तारा की सास ने उसकी बात का जवाब दिया, "अपने घर जा रही है बेटा उसकी भी तो शादी हुई है उन दोनों का भी अपना घर है सास ससुर है जेठ देवर ननद सब हैं काफी बड़ा परिवार है हिमांशु का।"

    उनकी बात सुनकर तारा हल्के से मुस्कुराई और आगे जाकर निवेदिता के गले लगाते हुए बोली, "हां लेकिन इतनी भी क्या जल्दी है दीदी आप थोड़े दिन और तो रुक सकती है ना मैं आपको बहुत याद करूंगी अब तक सबसे ज्यादा बातें मैंने आपसे ही की हैं।"

    गले लगने के बाद निवेदिता ने भी तारा की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "याद तो मुझे भी बहुत आएगी आपकी भाभी सच में इतने कम दिन में भी आपने मेरे दिल में अपनी जगह बना ली है जरूर आप भाई के दिल में भी अपनी जगह बना लोगी।"

    आरांश के बारे में बात होते ही तारा हल्का सा मुस्कुराई लेकिन वह आगे कुछ बोल नहीं पाई और कुछ देर के बाद निवेदिता वहां से निकलने लगी क्योंकि ट्रेन के टिकट पहले ही बुक हो गए थे और उसका ससुराल दूसरे शहर में था जो की एक गांव और कस्बे की तरह था उतना ज्यादा बड़ा शहर नहीं था इसलिए वहां पर दिन में सिर्फ एक ही ट्रेन जाती थी और एक ही रेलवे स्टेशन भी था वहां पर इसीलिए उन लोगों को टाइम से निकलना था नहीं तो अगर वह लोग लेट हो जाते तो फिर अगली उन्हें कोई भी ट्रेन नहीं मिलती और उन्हें फिर अगले दिन ही जाना पड़ता।

    निवेदिता शादी की वजह से 10 15 दिन पहले से ही यहां पर आकर अपने मायके में ही रुकी हुई थी हिमांशु भी 5 दिन पहले आ गया था और तब से अब तक उन दोनों को 8-10 दिन हो गए थे वह दोनों ही यहां पर थे और निवेदिता को तो 20 दिन से भी ज्यादा हो गए थे।

    उसकी सास का भी बार-बार फोन आ रहा था इसलिए ही आज उन दोनों ने जाने का प्लान बना लिया बड़े ही भारी मन से सभी ने उन दोनों को विदा किया और तारा ने दरवाजे पर आकर देखा कि आरांश वहां पर कर के पास ही खड़ा था और निवेदिता हिमांशु के आते ही उसने उन दोनों को कर में बिठाया और फिर उनके साथ ही कर में बैठकर वहां से निकल गया उसने किसी से कुछ नहीं बोला और ना ही वह किसी से मिला लेकिन तारा को इतना तो समझ आ गया था कि वह निवेदिता को स्टेशन छोड़ने जा रहा था।

    तारा ने कुछ नहीं कहा वह वापस घर के अंदर आ गई उसे ज्यादा कुछ समझ नहीं आ रहा था उसने नाश्ता करने के बाद थोड़ी देर इधर-उधर टहल कर टाइम बिताया थोड़ी देर उसने अपनी सास से बात भी की और वह उनसे भी एकदम नॉर्मल बात कर रही थी तारा को किसी से भी बात करने में प्रॉब्लम नहीं होती थी वह हर किसी को अपनी बातों से अट्रैक्ट कर ही लेती थी।

    प्रीत भाभी भी निवेदिता को छोड़ने दरवाजे तक आई थी लेकिन वह एकदम किनारे खड़ी थी निवेदिता खुद ही जाकर उनसे गले लगी थी और प्रीत भाभी ने कुछ भी नहीं बोला था तारा उन्हें भी नोटिस कर रही थी इसलिए सबके जाने के बाद तारा ने देखा की प्रीत भाभी किचन की तरफ जा रही थी तो तारा भी उनके पीछे आ गई।

    वहां पर पक रहे खाने को स्मेल करते हुए तारा ने एकदम से कहा, "वाओ! क्या बना रहे हो भाभी स्मेल तो बहुत अच्छी आ रही है।"

    तारा की आवाज सुनते ही प्रीत एकदम हर बढ़ती हुई पीछे मुड़कर उसकी तरफ देखते हुए बोली, "हां वह वो तुम यहां तुम यहां पर क्या कर रही हो अभी तक तो तुम्हारी पहली रसोई की रस्म भी नहीं हुई तो तुम्हें रसोई में नहीं आना चाहिए।"

    यह पहले इतना बड़ा सेंटेंस था जो प्रीत ने तारा के सामने या फिर उससे बोला था क्योंकि वह जल्दी किसी से बात ही नहीं करती थी पिछले दो-तीन दिनों से बहुत ही काम तारा ने उसे अपने कमरे से बाहर देखा था नहीं तो वह जाकर अपने कमरे में ही रहती थी।

    इसीलिए प्रीत की यह बात सुनकर भी तारा ने उसकी कहीं बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वो आगे आ गई और उसने कहा, "पहली रसोई का तो मुझे नहीं पता लेकिन अभी रसोई में जो खाने की खुशबू आ रही है वह सच में दिल खुश हो गया बताइए ना क्या बना रही हैं आप?"

    प्रीत ने पीछे मुड़कर उसकी तरफ देखते हुए कहा, "कटहल की सब्जी और पुलाव बना रही हूं तुम्हें पसंद है या फिर नहीं अगर नहीं पसंद हो तो बताओ तुम्हारे लिए कुछ और भी बना दूंगी वैसे दाल और कद्दू की सब्जी भी बन रही है।"

    तारा ने खुश होते हुए उसकी बात का जवाब दिया, "नहीं मैं तो सब कुछ खा लेती हूं मतलब ज्यादातर चीज मुझे पसंद है और आप जरूर बहुत ही टेस्टी खाना बनाती हो कि तो आपके हाथ का तो मैं सब कुछ ट्राई करना चाहूंगी वैसे मैं भी खाना बना लेती हूं शायद आपकी जितना अच्छा नहीं लेकिन ठीक-ठाक।"

    तारा ने अपनी तरफ से यह सारी बातें प्रीत को बताई तो उसकी बात सुनकर प्रीत हल्का सा मुस्कुरा दी तो तारा को ऐसा लगा जैसे कि उसने पहली जंग तो जीत ली कम से कम उसकी बात सुनकर प्रीत ने कोई रिएक्शन तो दिया।

    To Be Continued

    क्या लगता है आप लोगों को आरांश के साथ कैसे आगे बढ़ेगा तारा का रिश्ता क्या आरांश उसे कोई भी मौका देगा अपने नजदीक आने का और तारा आखिर कब तक हार नहीं मानेगी, और वह कब तक पॉजिटिव रहेगी क्या उसके मन में कोई नेगेटिव थॉट नहीं आएंगे और कैसी होने वाली है प्रीत और तारा की बॉन्डिंग? बताइए कमेंट सेक्शन में 👇🥰

  • 12. His Unwanted Dulhan - Chapter 12

    Words: 1713

    Estimated Reading Time: 11 min

    12

    तारा वहीं पर खड़ी होकर प्रीत से बात करने लगी और तभी उसकी सास वहां पर आई और उन दोनों को बात करते देखा वह हल्का सा मुस्कुरा दी और फिर उन्होंने उन दोनों के सामने आते हुए कहा, "तारा बेटा! अच्छा हुआ तुम यहां पर आ गई हो तो हम सबके लिए कुछ मीठा बना दो। मैं तुमसे यह बात बोलते ही वाली थी तुम्हारी पहली रसोई की रस्म की बात लेकिन निवेदिता की जाने की वजह से कह नहीं पाई।"

    प्रीत भी इसी बारे में बात कर रही थी तारा ने उनकी तरफ देखा और कहा, "मम्मी जी! क्या बना दूं हलवा या फिर खीर?"

    तारा ने मुस्कुराते हुए उनसे यह बात पूछी तो उसकी सास ने आगे जाकर तारा के सिर पर हल्के से हाथ रखते हुए कहा, "जो भी तुम्हारा मन हो बेटा प्रीत तुम्हें सारा सामान दे देगी और समझा देगी तो मैं कोई हेल्प चाहिए तो भी तुम उससे ही बोल देना।"

    तारा ने कभी खुश होते हुए कहा, "ठीक है, मम्मी जी मैं आप सबके लिए बादाम का हलवा बनाती हूं कुछ दिन पहले ही मेरी मम्मी ने सिखाया था बोला था ससुराल में काम आएगा तो पहली बार मैं वही बनाती हूं।"

    उसकी बात सुनकर प्रीत ने नज़र उठा कर उसकी तरफ देखा क्योंकि शायद तारा वह पहली लड़की होगी जो खुद से इतना खुश होकर अपनी शादी की रस्मों के बारे में बात कर रही थी वही प्रीत जब शादी होकर आई थी तब तो वह कुछ बोलती ही नहीं थी, एकदम चुप चुप रहती थी और शुरुआत में उसे ज्यादा कुछ काम करना भी पसंद नहीं था।

    अपने पति आयांश की डेथ के बाद से ही वह काफी बदल गई थी और जानबूझकर खुद को काम में लगाकर बिजी रखती थी जिससे कि उसे आयांश की याद ना आए।

    प्रीत ने हैरानी से तारा की तरफ देखा और तारा पहले से ही मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देख रही थी और तारा की सास उसे इतना बात कर वहां किचन से बाहर चली गईं।

    प्रीत को ऐसे अपनी तरफ देखते हुए पा कर तारा ने कहा, "क्या हुआ भाभी! आप मुझे ऐसे क्यों देख रही हैं, कुछ गलत कहा क्या मैंने?"

    प्रीत ने उसकी तरफ से अपनी नज़रें हटाते हुए पूछा, "नहीं, नहीं, कुछ नहीं! यह बताओ तुम्हें क्या सामान चाहिए और क्या हेल्प करूं मैं तुम्हारी?"

    तारा मुस्कुरा कर उसकी बात का जवाब देते हुए बोली , "उम्म्! अभी के लिए तो आप बस मुझे सारा सामान निकाल कर दे दीजिए अभी मुझे पता नहीं है लेकिन मैं देख लूंगी कहां पर क्या रखा है तो फिर मुझे याद रहेगा।"

    इतना बोलते हुए तारा मुस्कुराई तो प्रीत ने उसे हलवा बनाने का सारा सामान निकाल कर दे दिया और अपनी साड़ी के पल्लू को कमर में लपेटते हुए तारा ने हलवा बनाना शुरू किया और कुछ ही देर में उसने हलवा बना लिया, प्रीत अब तक वहां से चली गई थी और तारा अकेले ही वहां पर थी।

    पूरा हलवा बनाकर फिनिश करने के बाद तारा ने सबके लिए कटोरियों में हलवा निकल और एक ट्रे में सबके लिए लेकर वह किचन से बाहर आ गई उसके माथे पर पसीने की बूंदे थी लेकिन बाहर निकलने से पहले उसने अपनी ही साड़ी के पल्लू से पसीना पूछ लिया और साड़ी को भी ठीक कर लिया।

    अभी सुबह का वक्त ही था तो उसके ससुर जी भी घर पर ही थे नहीं तो ज्यादातर वह ऑफिस के लिए निकल जाते थे उसके साथ और ससुर दोनों लिविंग एरिया में बैठकर किसी बारे में बात कर रहे थे लेकिन जैसे ही उन दोनों ने तारा को आते हुए देखा तो चुप हो गए तारा ने उन दोनों के आगे एक-एक कटोरी रखी और फिर झुककर उनका पैर छूने लगी तभी उसके ससुर ने सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "सदा सुहागन रहो बेटा, हमेशा खुश रहो।"

    उनका आशीर्वाद सुनकर तारा मुस्कुराई और बोली, "आप दोनों खाकर बताइए कैसा बना है जब तक मैं यह भाभी को भी खिला कर आता हूं।"

    इतना बोलकर तारा उस ट्रे में बची हुई दो कटोरियां लेकर प्रीत के कमरे की तरफ ही चली गई।

    प्रीत के कमरे के दरवाजे के पास पहुंची तो उसने देखा कि दरवाजा खुला हुआ था तो वह ऐसे ही अंदर आ गई क्योंकि हाथ में उसने ट्रे पड़ी हुई थी और एक हाथ से वह अपनी साड़ी संभाले हुए थी तो उसका हाथ बिल्कुल भी खाली नहीं था कि वह दरवाजा नाॅक कर पाए।

    तारा को अंदर आते देख प्रीत अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई तो तारा ने कहा, "अरे भाभी! फॉर्मेलिटी करने की ज़रूरत नहीं है मैं तो बस आपके लिए हलवा लेकर आई थी खाकर बताइए ना कैसा बना है?"

    प्रीत का बिल्कुल भी मन नहीं था उस वक्त कुछ भी खाने का लेकिन वह तब पता नहीं क्यों तारा को मना नहीं कर पाई और उसमें तारा के हाथ से वह कटोरी ले ली और एक चम्मच खाकर स्माइल करते हुए बोली, "काफी अच्छा बना है।"

    उसकी यह बात सुनकर तारा भी वहां पर उसके सामने वाले बेड पर बैठ गई और कटोरी अपने हाथ में लेते हुए बोली, "ठीक है, फिर मैं भी टेस्ट करके देखती हूं कहीं आप ऐसे ही तारीफ़ तो नहीं कर रही मुझे खुश करने के लिए।"

    इतना बोलते हुए तारा ने खुद ही अपनी कटोरी में से हलवा खाया और बोली, "उम्म्! यम.. यह तो सच में बहुत टेस्टी बना है! पहली बार मैंने जब घर पर बनाया था तब भी इतना अच्छा नहीं बना था।"

    उसे ऐसे हलवा इंजॉय करके खाते हुए देखकर प्रीत हल्का सा मुस्कुराई और वह भी उसके सामने ही बैठ गई और तभी मौका देख कर तारा ने कहा, "भाभी! मुझे आपसे कुछ बात भी करनी थी अगर मैं आपसे कुछ पूछूंगी तो क्या आप मुझे बताएंगी?"

    तारा ने जैसे ही यह सवाल किया तो प्रीत थोड़ी सी अनकंफरटेबल हो गई और वह इधर-उधर देखने लगी, उसने तारा की बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपने मन में सोचने लगी, "पता नहीं क्या पूछेगी तारा मुझसे और क्या बताऊंगी मैं उसे?"

    वह अपने मन में यह सब बोल ही रही थी तभी तारा ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, "भाभी प्लीज़! आपके अलावा यहां पर और कोई भी नहीं है जिससे मैं अपने मन की बात कर पाऊं मम्मी पापा कितने बड़े हैं उम्र में और आरांश जी तो मुझसे बात ही नहीं करते।"

    इतना बोलते हुए तारा का मुंह बन गया तो प्रीत को उसके लिए थोड़ा सा बुरा लगा क्योंकि वह नई नवेली दुल्हन थी अभी 2 दिन पहले ही उसकी शादी हुई थी और सबको नजर आ रहा था आरांश जिस तरह उसे इग्नोर कर रहा था।

    प्रीत भले ही इन सब चीजों से दूर रहती थी लेकिन फिर भी इतना तो उसे भी समझ आ रहा था और एकदम से उदास हुआ तारा का चेहरा उसे देखा नहीं गया तो उसने कहा, "अच्छा ठीक है, क्या पूछना है पूछो? मुझे पता होगा तो मैं तुम्हें बता दूंगी वैसे भी तुम्हारा हक बनता है सब कुछ जानने का, कम से कम अपने पति के बारे में।"

    प्रीत में जैसे ही यह बात कही तो तारा के चेहरे पर मुस्कुराहट फिर से वापस आ गई और उसने कहा, "वो मुझे आरांश जी के बारे में ही बात करनी है वह ऐसे क्यों है और आपकी शादी कैसे हुई थी मेरा मतलब है अरेंज मैरिज या फिर लव मैरिज और आपके हस्बैंड की डेथ, वह कैसे हुई? मुझे कुछ भी पता नहीं है मैं सच में बहुत आउटसाइडर जैसा फील कर रही हूं क्योंकि कोई मुझे ठीक तरह से कुछ बात भी नहीं रहा है और सब से मैं पूछ भी नहीं सकती तो इसीलिए मैंने आपसे पूछा।

    तारने की बात बोली तो उसकी बात पर प्रीत ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "हां अभी ही तो तुम घर में आई हो शायद इसीलिए सब तुम्हें पूरी बात नहीं बता रहे और मेरी और आयांश जी की भी अरेंज मैरिज ही हुई थी जैसे तुम्हारी और आरांश भैया की हुई है लेकिन आयांश जी आरांश भैया से एकदम अलग थे हमेशा से ही उनकी बस शक्ल सूरत एक जैसी थी बाकी नेचर में वह दोनों एक दूसरे से एक दम अलग थे। हमेशा से ही।"

    पर इतने जैसे ही बोलना शुरू किया तारा बहुत ही ध्यान से उसकी तरफ़ देखते हुए उसकी पूरी बात सुनने लगी और काफी इंटरेस्ट से वह उसकी पूरी बात सुन रही थी।

    शाम का वक्त;

    अभी कुछ देर पहले ही तारा की ऐसे ही बैठे-बैठे आंख लग गई थी लेकिन कमरे के बाहर से आती हुई तेज़ आवाजों की वजह से उसकी आंख खुल गई और आंख खुलते ही उसने इधर-उधर देखते हुए कहा, "यह कैसी आवाजें आ रही है सब ठीक तो है ना नीचे?"

    इतना बोलते हुए वह एकदम हड़बड़ा कर बेड से उठी और कमरे से बाहर ही निकाल कर जाने लगी वह सीढ़ियों तक ही पहुंची थी कि उन्हें सीढ़ियों से ऊपर आता हुआ आरांश उसे नजर आया जो कि हाॅल में खड़े अपने मम्मी पापा को इग्नोर करता हुआ सीधा ऊपर ही चल कर आ रहा था और सीढ़ियां उतर कर नीचे आती हुई तारा की तरफ़ भी उसने नहीं देखा और साइड से निकलकर वह ऊपर चला गया।

    पीछे से उसकी मम्मी उस पर चिल्ला रही थीं लेकिन उसने उनकी एक बात भी नहीं सुनी और उनकी तेज़ आवाज़ से ही तारा की आंख खुली थी।

    तारा ने एक नज़र उन लोगों की तरफ देखा और फिर ऊपर जाते हुए आरांश की तरफ, उसे ज्यादा कुछ समझ नहीं आया तो वो भी तुरंत ही आरांश के पीछे ऊपर आ गई और आरांश कमरे के अंदर आया ही था कि तारा भी उसके पीछे कमरे के अंदर आ गई और बोली, "वो मम्मी आपको बुला रही थी, आपने उनकी बात सुनी नहीं और ऊपर आ गए।

    तारा ने उसकी तरफ आते हुए यह बात कही लेकिन आरांश ने उसकी बात को भी इस तरह से इग्नोर कर दिया जैसे कि उसे तारा की बात सुनाई ही नहीं दे रही थी।

    To Be Continued

    कैसा लगा आप लोगों को आज का एपिसोड क्या तारा को सब कुछ पता चल पाएगा आरांश के बारे में और उसके ऐसे बिहेवियर के पीछे का रीजन और उसके बाद क्या करेगी तारा? जानने के लिए पढ़ते रहिए रेगुलर यह स्टोरी His Unwanted Dulhan और कमेंट में जरूर बताइए कैसी लग रही है आपको अब तक की स्टोरी!

  • 13. His Unwanted Dulhan - Chapter 13

    Words: 1601

    Estimated Reading Time: 10 min

    13

    आरांश कमरे के अंदर आया ही था कि तारा भी उसके पीछे कमरे के अंदर आ गई और बोली, "वो मम्मी जी आपको बुला रही थी, आपने उनकी बात सुनी नहीं और ऊपर आ गए।

    तारा ने उसकी तरफ आते हुए यह बात कही लेकिन आरांश ने उसकी बात को भी इस तरह से इग्नोर कर दिया जैसे कि उसे तारा की बात सुनाई ही नहीं दे रही थी।

    तारा ने फिर से उसका नाम लेकर बुलाया, "आरांश जी! क्या हुआ है क्या मम्मी से आपका झगड़ा हुआ है किसी बात को लेकर?"

    आरांश ने फिर भी उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और वो अपना कुछ सामान अलमारी से निकाल रहा था, तभी तारा को एकदम से कुछ सूझा और उसने पीछे मुड़कर तुरंत ही कमरे के दरवाजे को बंद कर दिया और निवेदिता में जाने से पहले उसे उसके कमरे की चाबी दे दी थी तो उस चाबी से तारा ने तुरंत ही दरवाज़ा अंदर से लॉक कर दिया।

    आरांश ने जैसे ही दरवाजा बंद होने की आवाज सुनी तो उसने तुरंत ही दरवाजे की तरफ देखा तो तारा उसे दरवाजे के पास खड़ी हुई नजर आए और उसे ऐसा करते देखकर आरांश ने एकदम से कहा, "क्या कर रही हो तुम यह? दरवाजा क्यों लॉक किया है खोलो दरवाजा।"

    आरांश ने पहली बार इतना बोला क्योंकि अब तक तारा जो कुछ भी बोल रही थी वह सिर्फ उसकी बातें चुपचाप सुन रहा था और कोई जवाब नहीं दे रहा था इसलिए जब आरांश ने ये बात बोली तो तारा तुरंत ही हल्का सा मुस्कुराई क्योंकि वह उसकी तरफ पीठ करके खड़ी थी और उसकी ट्रिक कम कर गई थी।

    तारा ने चाबी अपने हाथ में एकदम कसकर पकड़ते हुए हाथ की मुट्ठियां बंद कर ली और पीछे मुड़कर आ रहा है उसकी तरफ देखते हुए बोली, "क्यों सिर्फ आप ही दरवाजा लॉक कर सकते हैं क्या?"

    आरांश इधर-उधर देखते हुए कहा, "मुझे कोई बहस नहीं करनी। दरवाजा खोलो बस, मुझे यहां से बाहर जाना है। मैंने कहा था ना मुझे किसी के साथ रूम शेयर करने की आदत नहीं और तुम यहां पर होती हो तो मुझे बहुत अजीब लगता है।"

    यह बातें बोलते हुए आरांश तारा से नज़रें भी नहीं मिला रहा था तो तारा खुद ही उसके सामने आकर खड़ी हो गई और उसके चेहरे की तरफ देखते हुए बोली, "पत्नी हूं मैं आपकी, अग्नि को साक्षी मानकर आपने मेरे साथ सात फेरे लिए हैं तो साथ क्यों नहीं रहना? रहना पड़ेगा हर जगह पर आपकी मर्जी नहीं चलेगी।"

    तारा की बात सुनकर आरांश ने धीमी आवाज में बुदबुदाते हुए कहा, "मेरी मर्जी चलती ही कब है?"

    उसने यह बात भले ही बहुत धीमी आवाज में कही थी लेकिन तारा उसके सामने और उसके एकदम नजदीक आकर खड़ी हुई थी इसलिए उसको यह बात सुनाई दे गई और वह बोली, "अच्छा.. जब से हमारी शादी हुई है तब से लेकर आज तक अपनी मर्जी का ही तो कर रहे हैं आप और आपकी मर्जी नहीं चलती, तो क्या मेरी चलती है?"

    तारा की यह बात सुनते ही आरांश ने अपना गुस्सा कंट्रोल करने के लिए एकदम कसकर अपनी आंखें बंद की और फिर दांत पीसते हुए तारा की तरफ देखकर बोला, "मेरी मर्जी चलती तो मैं तुमसे कभी शादी भी नहीं करता। मैं तुम्हें जनता तक नहीं हूं और तुम हो कि बेवजह गले पड़ रही हो।"

    आरांश की यह बात सुनकर तारा हंसते हुए बोली, "गले पड़ नहीं रही हूं मैं आरांश जी, गले पड़ चुकी हूं और अपने खुद ही मेरे गले में यह मंगलसूत्र डाला था ना बस तब से ही गले पड़ चुकी हूं मैं आपके और आप मेरे। अब कुछ नहीं हो सकता इस बात का इसलिए बेहतर यही होगा कि जितनी जल्दी आप हमारे रिश्ते और इस शादी को एक्सेप्ट कर ले उतना ही आसान हम दोनों के लिए इस रिश्ते को आगे बढ़ना होगा।"

    इतना बोलते हुए वह आरांश की तरफ बढ़ने लगी तो वो भी उल्टे कदमों से चलते हुए हड़बड़ाकर पीछे की तरफ जाने लगा और बोला, "क्.. क्या कर रही हो तुम? अपनी जगह पर रुको। तुम इस तरह मेरे करीब आने की ज़रूरत नहीं है।"

    "आपके नहीं तो क्या फिर पड़ोसी के करीब जाऊंगी मैं?" - इतना बोलते हुए तारा ने आगे आते हुए अपनी बांहें उसके गले में डाल दी और आरांश एकदम ही जैसे अपनी जगह पर जम गया।

    उसे शायद तारा के इतना ज्यादा बोल्ड होने की उम्मीद नहीं थी लेकिन तारा उसकी तरफ ही देख रही थी, वही आरांश के माथे पर पसीना आ चुका था और उसे बहुत ही अनकंफरटेबल फील हो रहा था इसलिए वह इधर-उधर देख रहा था उसने एक बार भी तारा के चेहरे की तरफ देखने की हिम्मत नहीं की लेकिन तारा उसे इस तरह घबराते देखकर बहुत ही खुश हो रही थी और उसने अपने मन में कहा, "ये आरांश जी मेरे करीब आने पर ऐसे क्यों घबराते हैं? जैसे मैं इन्हें कच्चा ही खा जाऊंगी?"

    इतना सोचते हुए सवालिया निगाहों से वह आरांश की तरफ़ ही देखने लगी लेकिन तभी आरांश उसका हाथ अपने गले पर से हटाते हुए बोला, "अपनी हद में रहो। तुम्हें कम समझ आता है क्या और इसीलिए मैं यहां पर कमरे में तुम्हारे साथ रहना नहीं चाहता मुझे पता था तुम ऐसा कुछ करोगी वैसे शायद पता तो नहीं था लेकिन तुम इतनी ज्यादा उतावली क्यों हो मेरे नजदीक आने के लिए?"

    आरांश की यह बात सुनकर तारा ने अपनी आंखें छोटी करके उसकी तरफ देखते हुए कहा, "तो क्या करूं फिर मैं आपकी तरह मैं भी दूसरे कमरे में चली जाऊं और कमरा अंदर से बंद करके सोया करूं। हम दोनों एक दूसरे का चेहरा भी नहीं देखेंगे अलग-अलग रहेंगे तो फिर क्या ही फायदा है इस शादी का, क्यों बंधे हम इस रिश्ते में? क्यों है यह पति-पत्नी का रिश्ता क्यों है मेरे गले में यह मंगलसूत्र और मांग में यह सिंदूर और यह चूड़ियां?"

    तारा के यह सारे सवाल सुनकर आरांश ने धीरे से अपनी आंख बंद करके एक गहरी सांस ली और फिर दूसरी तरफ चेहरा करते हुए बोला, "मुझे नहीं पता ये सब, मुझे बस इतना पता है कि मैं इस शादी के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था और मैं तुम्हें पहले भी बता चुका हूं कि मेरे मम्मी पापा ने मुझे इमोशनल ब्लैकमेल करके मेरी शादी तुमसे करवा दी मैं तुम्हें जानता तक नहीं, और ना ही मुझे तुम में कोई इंटरेस्ट है तो बस मुझसे दूर रहो और अपना काम करो। इस तरह मेरे करीब आने की कोशिश मत करना बस और मुझे जाने दो यहां से।"

    आरांश की कही बातों का तारा पर जरा सा भी फर्क नहीं पड़ा और वह भी जैसे अपना फैसला सुनाते हुए बोली, "नहीं। कहीं नहीं जाने दूंगी मैं यह आपका कमरा है और अब हमारा कमरा है आपको यहां पर ही रहना होगा कम से कम रात भर तो सुबह तो वैसे भी मेरे उठने से पहले ही आप भाग जाते हैं। शादी वाली रात से अब आज रात को आप कमरे में आए हैं।"

    तारा की यह बात सुनते ही आरांश तुरंत अपनी तरफ से सफाई देते हुए बोला, "वो.. वो मैं बस अपना कुछ सामान लेने आया था इसलिए तुम ज्यादा कोई गलतफहमी मत पालो कि मैं तुम्हारे लिए.."

    वह अपनी बात पूरी कर पाता उससे पहले ही तारा उसकी बात काटते हुए काफी मायूसी से बोली, "हां हां मुझे पता है मेरे लिए कुछ भी नहीं करने वाले आप, लेकिन मैं करूंगी आपके लिए हर वो चीज़ जो मुझे करनी चाहिए।"

    आखिरी बात बोलते बोलते तारा के अंदर उसकी एनर्जी एकदम वापस आ गई थी और उसने काफी प्यार भरी निगाहों से आरांश की तरफ देखा और उसे ऐसे अपनी तरफ देखते हुए पाकर आरांश तुरंत ही इधर-उधर देखने लगा और वह अभी भी बस कैसे भी करके वहां से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ रहा था।

    तारा ने उनके कमरे का दरवाजा अंदर से लॉक कर लिया था और आरांश को पता था अगर वह उसे चाबियां मांगेगा तो भी वह उसे नहीं देगी इसलिए आरांश ने कोशिश भी नहीं किया और वह चुपचाप वहीं बेड के एक कोने पर बैठा हुआ अपना मोबाइल फोन स्क्रोल कर रहा था लेकिन तारा उसके सामने वाले काउच पर बैठी हुई उसकी तरफ ही देख रही थी।

    तारा की तरफ नजर उठा कर देखे बिना भी आराम को फील हो रहा था कि तारा की नजर उसे पर ही जमी हुई थी लेकिन बस वह उसे पूरी तरह से इग्नोर करने के लिए इस तरह प्रिटेंड कर रहा था जैसे कि उसे कुछ भी नहीं पता और वह अपने में ही बिजी था।

    तारा उसकी तरफ देखते हुए अपने मन में सोच रही थी, "क्या यार! कैसे हस्बैंड मिले हैं मुझे? इतनी भी बुरी नहीं दिखती हूं मैं कि नज़र उठा कर एक बार भी मेरी तरफ नहीं देख रहे! इतना भी क्या इंटरेस्टिंग है इसके मोबाइल फोन में?"

    तारा ने आरांश की तरफ देखते हुए अपनी एक आईब्रो अप करते हुए उसने एकदम से ही बोला, "आरांश जी, क्या कर रहे हैं आप मोबाइल फोन में?"

    To Be Continued

    क्या लगता है आप लोगों को क्या आरांश तारा से बचकर वहां से बाहर निकल पाएगा वैसे एक तरह से तो तारा ने उसे कैद कर लिया है वैसे अच्छा है ऐसा हस्बैंड हो तो ऐसा ही करना चाहिए क्या लगता है आप लोगों को तारा डिफरेंट है ना सारी लड़कियों से नॉर्मल ऐसी सिचुएशन में लड़कियां रोने धोने लगती है या फिर हस्बैंड की बात मानकर बिल्कुल वैसा ही करती है जैसा उनके पति कहता है, या फिर ज्यादातर कहानियों में तो लड़कियां ही आरांश की तरह होती है जो शादी नहीं करना चाहती। सही बोला ना हमने बताइए आप लोग अपना ओपिनियन इस बारे में कमेंट करके 👇 🥰

  • 14. His Unwanted Dulhan - Chapter 14

    Words: 1681

    Estimated Reading Time: 11 min

    14

    तारा ने आरांश की तरफ देखते हुए अपनी एक आईब्रो अप करते हुए उसने एकदम से ही बोला, "आरांश जी, क्या कर रहे हैं आप मोबाइल फोन में?"

    तारा ने सीधे ही उससे पूछ लिया लेकिन आरांश ने उसकी बात को पूरी तरह से अनसुना कर दिया और तभी तारा ने अपने मन में कहा, "कहीं किसी और लड़की से चैटिंग तो नहीं कर रहे। कहीं ऐसा तो नहीं इनका किसी के साथ अफेयर चल रहा हो। पहले से ही कोई गर्लफ्रेंड हो इसीलिए यह मुझ में इंटरेस्टेड नहीं हैं। हां ये हो सकता है?"

    इतना बोलते हुए तारा काफी ज़्यादा घबरा गई वो एकदम ही अपनी जगह से उठी और आरांश की तरफ आते हुए एकदम से ही उसके मोबाइल फोन में झांक कर देखने लगी।

    आरांश ने पहले तो उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया लेकिन जैसे ही उसे महसूस हुआ कि कोई उसके एकदम नजदीक खड़ा था तो फिर उसने एकदम नजर उठा कर देखा और तारा को साइड में खड़े होकर अपने मोबाइल फोन में जाते हुए देखकर किलसते हुए बोला, "पागल हो क्या तुम? यहां क्या कर रही हो और अभी तो तुम वहां सामने बैठी थी एक सेकंड पहले तक?"

    आरांश ने जैसे ही यह बात बोली तो तारा ने कहा, "किससे बात कर रहे हैं आप? दिखाइए मुझे, आपकी कोई गर्लफ्रेंड है क्या इसलिए आप शादी को नहीं मानते हैं ना अगर ऐसा था तो फिर आपने क्यों मुझसे शादी की जैसे आप अब मुझे भागते रहते हैं! वैसे ही शादी वाले दिन भाग जाते अपनी गर्लफ्रेंड के साथ।"

    तारा ने एकदम ही गुस्से में यह बात कही तो उसकी बातें सुनकर आरांश का मुंह हैरानी से खुला रह गया और उसने कहा, "क्या बकवास कर रही हो तुम? कुछ भी बोलती हो, भला किससे बात करूंगा मैं? किसी से भी बात नहीं कर रहा! यह लो देख लो।"

    इतना बोलते हुए उसने अपना मोबाइल फोन तारा के हाथ में ही दे दिया और तारा ने देखा तो वह ऐसे ही मोबाइल में रैंडम वीडियो स्क्रोल कर रहा था।

    आरांश ने उसे अपना मोबाइल फोन दे दिया और साथ ही यह बात बोली तो फिर तारा ने भी नोटिस किया और थोड़ी सी शर्मिंदा होते हुए बोली, "सॉरी वह आप इतना ज्यादा इंटरेस्ट से मोबाइल फोन यूज़ कर रहे थे तो बस मुझे ऐसा लगा और मैं सामने बैठी हुई थी फिर भी मेरी तरफ नहीं देखा आपने क्या इतनी बुरी दिखती हूं मैं?"

    तारा की बातें सुनकर आरांश ने एकदम से कहा, "अच्छा बुरा मुझे कुछ नहीं पता और मैं लोगों को ऐसे जज नहीं करता। मुझे कोई ज़रूरत भी नहीं है और ना ही मेरी कोई गर्लफ्रेंड है इसलिए कभी यह मत सोचना कि मैं कोई चीटर हूं क्योंकि मुझसे एक वाइफ तो झेली नहीं जा रही, एक और गर्लफ्रेंड कहां से रखूंगा मैं?"

    यह सारी बातें बोलते हुए वह बहुत ही परेशान लग रहा था लेकिन उसे ऐसे परेशान देखकर भी तारा ने बिल्कुल इग्नोर करते हुए उससे पूछा, "अच्छा तो क्या आपकी शादी से पहले भी कोई गर्लफ्रेंड नहीं रही?"

    आरांश ने हमेशा की तरह एकदम बेरुखी से कहा, "क्यों, तुम्हें क्यों जानना है इन सब के बारे में और मुझे बात नहीं करनी। क्यों फालतू किसी भी बात का टॉपिक शुरु करती हो और बहुत हो गया अब दरवाज़ा खोलो तुम मुझे बस बाहर जाना है।"

    इतना बोलकर वह दरवाजे की तरफ़ ही जाने लगा।

    तारा ने घूम कर उसकी तरफ देखते हुए मुंह बनाकर कहा, "आपको बात नहीं करनी तो मुझे भी दरवाजा नहीं खोलना चाहिए बैठकर ऐसे ही मोबाइल फोन देखते रहिए सारी रात वैसे भी खाना तो आप खाते हैं नहीं घर पर और मैंने पहले ही खा लिया था शाम को तो मुझे भूख लगी नहीं है इसलिए अब दरवाजा तो कल सुबह ही खुलेगा‌।"

    इतना बोलते हुए तारा अपनी जगह पर आकर बेड पर ही बैठ गई और उसे बेड पर बैठते देख आरांश तुरंत ही बेड से उठकर खड़ा हो गया और वह बेड के एक साइड पर पड़े हुए काउच जाकर लेट गया।

    आरांश को तारा के वहां पर रहते नींद तो नहीं आने वाली थी लेकिन फिर भी उसने अपनी आंखों पर अपना हाथ रखकर आंखे बंद कर दी लेकिन तभी 10 सेकंड बाद ही उसे अपने एक साइड पर थोड़ा वेट फील हुआ तो उसने तुरंत ही आंखें खोल कर उस साइड देखा तो काउच में बची हुई एकदम जरा सी जगह पर तारा जाकर एकदम उसके बगल में लेट गई थी और उसे देखते आरांश एकदम हड़बड़ा गया और उठने की कोशिश करते हुए बोला, "त..तुम तुम यहां क्या कर रही हो? वो इतना बड़ा बेड है तो कम पड़ गया क्या तुम्हें?

    तारा ने उसे उसकी जगह से उठने नहीं दिया और एकदम जिद्दी बच्चे की तरह कहा, "नहीं, मुझे भी यहां पर ही लेटना है काउच पर आपके साथ?"

    उसकी बात सुनकर आरांश गुस्से में बोला, "क्या बकवास कर रही हो यह एक लोग के लेटने के लिए भी इनफ नहीं है, काउच बैठने के लिए होता है और ऊपर से अब तुम्हें भी यहां लेटना है और मेरे साथ का क्या मतलब है?"

    तारा ने उसके ऊपर अपना हाथ रखते हुए कहा, "आपके साथ मतलब अपने हस्बैंड के साथ! मुझे पता है अभी मैं आपको बेड पर आने बोलती तो आप आते नहीं इसीलिए यहां पर मैंने जगह देखी तो मैं खुद आ गई इसलिए अब चुपचाप लेटे रहिए! जैसे पहले लेटे थे मैं एडजस्ट कर लूंगी।"

    आरांश बड़बड़ाया, "क्या मुसीबत है!"

    तारा की यह बात सुनकर आरांश को समझ ही नहीं आया कि वह उसकी बात के जवाब में क्या कहें और तारा उसे एकदम दबाकर उसके ऊपर अपना हाथ रखकर वहां लेट गई थी और आरांश को पता था अगर उसने ज़्यादा हिलने डुलने ने की कोशिश की तो सबसे पहले तारा ही जमीन पर गिर जाएगी और कहीं ना कहीं उसे उसकी थोड़ी फिक्र हो रही थी इसलिए वह भी अपनी जगह से नहीं हिला और चुपचाप वैसे ही लेटा रहा, तारा ने भी मुस्कुराते हुए अपनी आंखें बंद कर ली। वह दोनों एक दूसरे के नजदीकी को महसूस कर पा रहे थे लेकिन फिलहाल इस बारे में कुछ भी नहीं बोल रहे थे।

    आरांश से उसकी तरफ देखा और किसी तरह खुद को शांत करते हुए बोला, "बहुत मजा आ रहा है ना तुम्हें यह सब करके, मुझे परेशान करके, उठो यहां से, हम ऐसे सो नहीं पाएंगे हम दोनों में से कोई भी सो नहीं पाएगा‌।"

    इतना बोलते हुए आरांश ने तारा की तरफ देखा लेकिन तारा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया इस तरह चुपचाप बंद करके लेटी रही और अब वो पहले की तरह मुस्कुरा भी नहीं रही थी।

    आरांश को अच्छे से पता था कि वह सिर्फ सोने का नाटक कर रही है क्योंकि इतनी जल्दी कोई भी नहीं सोता लेकिन तारा ने फिर भी कोई जवाब नहीं दिया और उसी तरह से लेटी रही, उसके इस तरह से आगे लेटने पर आरांश अपनी जगह से उठ नहीं पाया क्योंकि तारा ने उसे पकड़ा हुआ था और उसके ऊपर अपना हाथ रखा था। या फिर शायद वह खुद भी वहां से उठकर जाना नहीं चाहता था।

    अगली सुबह, तारा की आंख खुली और उसने जम्हाई लेते हुए अपने मुंह पर हाथ रखा और फिर पूरी आंख खोलते हो उसे जैसे ही अपने साइड में देखा तो आरांश गुस्से में घूर कर उसकी तरफ देख रहा था।

    तारा को यह समझ में नहीं आया कि आरांश उससे पहले जाग गया या फिर रात भर सोया ही नहीं लेकिन यह सब सोचे बिना तारा ने बहुत ही प्यारी स्माइल के साथ कहा, "गुड मॉर्निंग!"

    उसके इस तरह प्यार से गुड मॉर्निंग विश करने से आरांश और भी ज्यादा चिढ़ गया उसने एकदम से कहा, "तुम्हारी ही होगी गुड मॉर्निंग, ऐसे मेरे ऊपर लेटी हुई थी मुझे तो नींद भी नहीं आई पूरा एक साइड सुन्न पड़ गया है मेरा, उठो!"

    आरांश इस तरह से चिल्लाने पर तारा एकदम हड़बड़ा कर उठ गई लेकिन ऐसे हड़बड़ाने की वजह से वह ठीक से खड़ी नहीं हो पाई और वही काउच से जमीन पर गिर गई लेकिन वहां जमीन पर भी कारपेट बिछा हुआ था तो उसे ज्यादा चोट नहीं लगी और वो वही बैठ गई।

    तभी उसने आरांश की तरफ़ देखते हुए कहा, "सॉरी सॉरी! वो मुझे पता नहीं क्या हो गया था कल रात? मुझे लगा था कि मैं बस आपको ऐसे परेशान करूंगी तो आप मुझसे कुछ बात करेंगे लेकिन फिर वो मुझे सच में काफी अच्छी नींद आ गई इतनी सी जगह में भी। "

    वही काउच पर उठकर बैठे हुए आरांश ने अपना हाथ झटकते हुए कहा, "और मुझे एक पल के लिए भी नींद नहीं आई तुम्हारी वजह से। क्या मिलता है तुम्हें यह सब करके दूर नहीं रह सकती क्या बस सिंपल सी एक चीज मांगता हूं मैं तुमसे और वह भी तुम्हें समझ नहीं आती।"

    तारा सारी रात उसके हाथ पर ही कर रख कर लेती हुई थी इसलिए पूरी रात उसका हाथ एक पोजीशन में ही था आरांश ने भी अपना हाथ नहीं निकला क्योंकि उसे सोती हुई तारा बहुत ही प्यारी लग रही थी और उसे देखकर ही वो समझ सकता था कि वह कितने सुकून की नींद सो रही थी ऐसे में वह अगर अपना हाथ हिलाता डुलाता तो तारा की नींद खराब हो जाती बस इसीलिए उसने अपना हाथ वैसे ही रहने दिया था उसे खुद भी नहीं पता था कि क्यों वह तारा के बारे में इतना सोच रहा था और पूरी रात वह उसके खूबसूरत चेहरे को ही निहारता रहा और कहीं ना कहीं तारा के इतने नजदीक होने से उसे भी थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन बहुत अच्छा महसूस हो रहा था बस वो इस बात को एक्सेप्ट नहीं करना चाहता था।

    To Be Continued

    क्या लगता है आप लोगों को कितने लोग होते हैं तारा की तरह जिद्दी बेशर्म और अपने से ज्यादा दूसरे के बारे में सोचने वाले वैसे तो बहुत ही कम लोग होते हैं शायद इसलिए मेरी तारा बिल्कुल यूनिक है, क्या लगता है वह आरांश की अंधेरे से भरी लाइफ में भी खुशियों की चमक भर पाएगी? पता चलेगा आपको आगे के एपिसोड में जब तक पढ़कर कमेंट करती रही और बताइए कैसी लग रही है आपको यह कहानी

  • 15. His Unwanted Dulhan - Chapter 15

    Words: 1661

    Estimated Reading Time: 10 min

    15

    काउच पर उठकर बैठे हुए आरांश ने अपना हाथ झटकते हुए कहा, "और मुझे एक पल के लिए भी नींद नहीं आई तुम्हारी वजह से। क्या मिलता है तुम्हें यह सब करके दूर नहीं रह सकती क्या बस सिंपल सी एक चीज मांगता हूं मैं तुमसे और वह भी तुम्हें समझ नहीं आती।"

    उसके इस तरह से चिल्लाने पर तारा बोली, "कितनी दूर रहूं मैं इतनी या फिर इतनी?"

    तारा अपनी जगह पर ही उठकर खड़ी हुई और फिर दो कदम पीछे जाते हुए उसने कहा, "ये इतना ठीक है?"

    उसकी ऐसी बात सुनकर आरांश ने अपने सिर पर एक हाथ रखा और थोड़े से गुस्से में बोला, "तुम्हें यह सब मज़ाक लगता है?

    तारा ने भी एकदम सीरियस आवाज में कहा, "मैं भी कोई मज़ाक नहीं कर रही आप ने ही तो कहा दूर रहने को कहा, तो बस पूछ रही हूं कितना दूर क्योंकि अब इस कमरे से बाहर तो जा नहीं सकती ना मैं। रहना तो हम दोनों को यहां पर ही है तो फिर और वैसे भी आप मेरे हस्बैंड है तो इससे ज्यादा दूर मैं नहीं जा सकती। एक बात मैंने आपकी मानी और एक बात मेरी आपको माननी होगी।"

    आरांश ने हिचकिचाते हुए पूछा, "कौन सी बात?"

    तारा ने भी शर्त रखते हुए कहा, "देखिए! मैं आपके कहने पर आपसे दूर रहूंगी लेकिन आपको भी रोज वापस कमरे में आना होगा! अगर आप वहां पर स्टडी रूम में अकेले रहे ना तो फिर मैं वहां पर भी आ जाऊंगी और इस बार हम यह ऐसे काउच पर नहीं बोल जो सिंगल सोफा है ना उसे पर दोनों साथ में बैठेंगे।"

    आरांश ने परेशान होते हुए कहा, "यह कौन सी शर्त हुई और क्यों नहीं रह सकता मैं ऑफिस रूम में, मैं सारा काम वहीं से करता हूं ज्यादातर.."

    उसकी बात सुनकर तारा ने सवाल किया, "आप ऑफिस क्यों नहीं जाते ऑफिस जाकर आपको काम करना चाहिए और फिर जब वापस आएंगे ना तो वहां पर नहीं सीधे यहां इस कमरे में आना है आपको ये आपका कमरा है, मैं आपको याद दिला दूंगी आप ये अच्छे से समझ जाइए।"

    आरांश उससे नज़रें चुराते हुए कहा, "किसने कहा मैं ऑफिस नहीं जाता, मैं जाता हूं जब कोई इंपॉर्टेंट काम होता है तब नहीं तो बाकी के काम में घर से भी कर सकता हूं और वैसे भी वहां पर जाओ तो सब लोग"

    इतना बोलते हुए वो चुप हो गया तो तारा समझ गई कि जरूर से कुछ तो याद आ गया है जो उसे ऐसे में परेशान कर रहा है इसलिए फिर तारा ने आगे सवाल नहीं किया।

    उसने बात बदलते हुए कहा, "ठीक है, मैं आपके कपड़े निकाल देती हूं।

    आरांश ने मना करते हुए कहा, "कोई ज़रूरत नहीं है, मुझे अपने काम खुद करने की आदत है।"

    तारा उसकी बात का जवाब देती हुई बोली, "हां तो मैंने तो पहले दिन ही कहा था आपकी आदतें सारी बदलवा दूंगी मैं एक-एक करके, तो यहीं से शुरुआत करते हैं मैं निकलती हूं कपड़े आप जाकर फ्रेश हो जाइए जब तक।"

    इतना बोलते हुए तारा वहां से अलमारी की तरफ चली गई और आरांश भी उससे ज्यादा बहस नहीं करना चाहता था इसलिए वह सीधा वॉशरूम के अंदर चला गया।

    कुछ देर बाद जब वह बाहर निकाला तो उसने देखा कि उसके कपड़े वहां पर निकले हुए रखे थे आरांश कपड़ों की तरफ देखा लेकिन उसने खुद अलमारी खोली और अपने लिए दूसरे कपड़े निकाले और वो पहनकर रेडी होने लगा।

    तारा अब तक रूम से बाहर चली गई थी उसके लिए ब्रेकफास्ट रेडी करने उसने सोचा था। आज वो उसकी मां से पूछ कर आरांश पसंद का ही ब्रेकफास्ट बनाएगी और तारा को ऐसे एफर्ट करते थे आरांश की मां को बहुत अच्छा लग रहा था और उन्होंने तारा से कहा, "बेटा आरांश को तो आलू के पराठे बहुत पसंद थे लेकिन अभी उतना टाइम नहीं बचा है आलू मैंने उबाल दिए हैं तो तुम एक काम करो, सैंडविच बना दो।"

    "नहीं मम्मी जी! मैं परांठे बना लूंगी इतने टाइम में भी!" - इतना बोलते हुए कल की तरह ही तारा ने अपनी साड़ी को कमर में लपेटा और तुरंत ही पराठे के लिए आटा लगाने लगी।

    उसने आटा लगाकर साइड में रखा और फिर तैयारी करने लगी कुछ ही देर में उसने सबके लिए परांठे बना लिए और आरांश रेडी होकर वहां ब्रेकफास्ट टेबल पर आया और जैसे ही वह बैठा तारा प्लेट में उसके लिए आलू के परांठे लेकर आई।

    तारा ने आलू के परांठे की प्लेट उसके सामने रखी और बहुत ही खुश होते हुए बोली, "यह आलू के परांठे मैंने आपके लिए बनाए हैं खाकर बताइए कैसे बने हैं?"

    तारा ने कहा तो आरांश एक नजर प्लेट में रखे हुए पराठे की तरफ देखा और फिर एकदम से बोला, "सुबह-सुबह इतना हैवी ब्रेकफास्ट कौन करता है मुझे बिल्कुल मन नहीं है परांठे खाने का और तुमने बनाया है तो तुम खुद ही खा लेना मैं सिर्फ जूस पी लेता हूं।"

    इतना बोलते हुए उसने सामने रख जूस के गिलास को उठाया और जूस पीने लगा।

    तारा को उसके इस तरह से मना करने पर थोड़ा बुरा तो लगा लेकिन वह कुछ नहीं बोली और चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ वहां साइड में ही चुपचाप खड़ी रही।

    उसके इस तरह परांठे ना खाने पर उसकी मां ने कहा, "तुझे तो इतनी पसंद है आलू के परांठे को तो कभी मना नहीं करता था फिर क्यों नहीं खा रहा है?"

    आरांश बड़बड़ाया, "मम्मी प्लीज़ पहले ही आप लोग मेरी लाइफ इतनी कंट्रोल करते हो। अब क्या मेरी खाने पीने की चीज़ों को भी कंट्रोल करोगे? मैं आपके अकॉर्डिंग खाऊं पीऊं भी, मेरा मन नहीं है तो क्या जबरदस्ती है कोई और मैंने नहीं कहा था इससे आलू पराठे बनाने के लिए।"

    तारा को कहीं ना कहीं समझ आ रहा था कि आरांश यह सब कुछ जानबूझकर कर रहा था इसीलिए उसने भी अपने मन में कहा, "कोई बात नहीं, आज नहीं तो कल एक दिन तो आप बहुत ही शौक से उंगलियां चाट कर खाओगे मेरे हाथों के पराठें।"

    तारा ने इतना कहा और तब तक आरांश के पापा भी वहां पर आ गए उन्होंने तारा के हाथ के बने हुए परांठे खाए और तारीफ भी की।

    आरांश का भी बहुत मन हो रहा था उसके बनाए हुए परांठे खाने का क्योंकि वह वैसे भी उसके फेवरेट थे और तारा ने जो बनाए थे, काफी टेस्टी दिख रहे थे लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों उसने खुद को रोक लिया और फिर उसने अपने पापा से कहा, "पापा मैं भी आज से ऑफिस से ज्वाइन कर रहा हूं।"

    उसकी यह बात सुनकर उसके घर वालों को बहुत ही हैरानी हुई लेकिन यह कहीं ना कहीं तारा की बातों का असर था लेकिन आरांश अपने मन में खुद को यह बोलकर समझाया था कि कम से कम वह दिन भर ऑफिस में रहेगा तो उतनी देर तारा उसे परेशान नहीं कर पाएगी इसलिए ही वह आज से ऑफिस जा रहा था।

    तारा की शादी को एक हफ्ता बीत चुका था और इस बीच वो अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही थी लेकिन आरांश अभी भी एकदम वैसे का वैसा ही था। वह तारा से ज्यादा बात नहीं करता था और उनके बीच बात तब ही होती थी जब तारा जबरदस्ती उसका रास्ता रोककर उससे कुछ ना कुछ बात करती थी। तब भी वह बहुत कम शब्दों में जवाब देता था और उससे दूर जाने के बारे में ही सोचता रहता था और वह ज्यादातर उसे इग्नोर करता था।

    उसकी इन सब हरकतों के बाद भी तारा अभी जरा सा नहीं बदली थी, वह रोज रात को जबरदस्ती उसके साथ ही बेड पर सोती थी और हर सुबह जब वो नहाने के लिए जाता था तो उसके कपड़े भी निकाल कर रख देती थी लेकिन आरांश उसके निकले हुए कपड़ों और सामान को टच भी नहीं करता था। वो सब कुछ अपने लिए फिर से निकलता और अरेंज करता था तारा उसके लिए उसकी पसंद का रोज अलग-अलग ब्रेकफास्ट बनती थी और ब्रेकफास्ट टेबल पर उसका वेट भी करती थी लेकिन वह या तो सिर्फ फ्रूट्स और जूस खा पीकर निकल जाता था या फिर ज्यादातर वह ब्रेकफास्ट ही स्किप कर देता था।

    तारा रोज रात के खाने पर भी उसका इंतजार करती थी लेकिन वह खाने के लिए भी कोई ना कोई बहाना बना देता था, एक दो बार ही उसने उसके साथ खाना खाया होगा वह भी अकेले नहीं जब पूरी फैमिली साथ में बैठी थी और वह टाइम पर घर आ गया था।

    इसके बाद वह जानबूझकर देर से ही घर वापस आने लगा था जिससे कि सारे लोग डिनर कर ले और उसके बाद ही पहुंचे लेकिन तारा फिर भी उसका इंतजार करती हुई डाइनिंग टेबल के पास वाली चेयर पर ही सो जाती थी आरांश उसे सोता हुआ देखा था लेकिन बिना कुछ बोले वहां से निकल जाता था।

    आरांश किसी भी तरह से उसे अपनी लाइफ में इंवॉल्व नहीं होने देना चाहता था वह नहीं चाहता था कि जिसे डार्कनेस में वह जी रहा था तारा भी उसमें उसे ज्वॉइन करें वह उसे इन सब चीजों से दूर रखना चाहता था और खासकर खुद से क्योंकि उसे लगता था वह तारा के लिए बिल्कुल भी सही इंसान नहीं है और वह उससे कहीं बेटर डिजर्व करती है।

    लेकिन तारा कोई इन सब से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसके लिए रिश्ते और शादी मजाक नहीं होती, इसलिए आरांश के ऐसे अजीब और बेरुखी बर्ताव के बाद भी वह उसे पूरे दिल से एक्सेप्ट करके अपना हस्बैंड मान चुकी थी और इसीलिए वह उसे हस्बैंड की तरह ही ट्रीट करती थी और उसे थोड़ा बुरा लगता था। जब आरांश उसके लिए एफर्ट की तरफ एक नजर देखा तक नहीं था लेकिन उसने डिसाइड कर लिया था कि उसके ऐसा करने पर भी वह इतनी जल्दी हार तो नहीं मानेगी।

    To Be Continued

    आपका फेवरेट ब्रेकफास्ट क्या है बताइए कमेंट में और कैसा लगा आज का एपिसोड और आरांश क्यों कर रहा है ये सब? क्या वह ओवर रिएक्ट करता है या फिर सच में ऐसा हो सकता है किसी की डेथ की वजह से? शेयर करिए अपने ओपिनियन...

  • 16. His Unwanted Dulhan - Chapter 16

    Words: 1645

    Estimated Reading Time: 10 min

    16

    एक हफ्ते बाद, आज भी तारा जल्दबाजी में आरांश के लिए ब्रेकफास्ट तैयार कर रही थी क्योंकि उसे आज सोकर उठने में थोड़ा लेट हो गया था और आरांश पहले ही नहाने चला गया था उसके बाद तारा उठकर आई इसीलिए वह काफी जल्दबाजी में सारा काम कर रही थी लेकिन तभी प्रीत वहां पर आई और उसे इस तरह हड़बड़ाते हुए देखकर बोली, "तारा! तुम सब्जी बनाओ मैं पुरियां तल देती हूं जल्दी हो जाएगा।"

    प्रीत ने उसकी हेल्प करने के मकसद से कहा तो तारा ने भी उसकी बात मान ली और प्रीत उसकी हेल्प करने लगी दोनों ने मिलकर जल्दी ही नाश्ता रेडी कर लिया।

    तारा जब वह प्लेट में नाश्ता सर्व कर रही थी तब प्रीत ने उसका हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा, "क्यों कर रही हो तुम यह सब? आरांश तुम्हारे बनाए हुए नाश्ते को हाथ तक नहीं लगाता है फिर भी तुम रोज उसके लिए नाश्ता लगती हो वह खाता भी नहीं है तुम्हारे हाथ पर बना हुआ नाश्ता फिर भी तुम रोज इतनी मेहनत करती हो, तुम्हें बुरा नहीं लगता।"

    प्रीत का सवाल सुनकर तारा ने मुस्कुराते हुए कहा, "हां भाभी! बिल्कुल बुरा नहीं लगता मुझे क्योंकि मुझे पता है वह भी यही चाहते हैं और जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं कि उनके ऐसा करने पर मुझे बुरा लगे और मैं यह सब करना बंद कर दूं और उनकी तरह मैं भी उनसे दूर हो जाऊं! लेकिन उन्हें नहीं पता कि तारा को उनका मास्टर प्लान पहले से ही पता है और उनका ये प्लान तो मैं कामयाब नहीं होने दूंगी।"

    यह बात बोलते हुए तारा बहुत ही खुश और पॉजिटिव लग रही थी और उसकी बातों में एक अलग ही कॉन्फिडेंस नजर आ रहा था।

    प्रीत को उसकी बातें सुनकर बहुत हैरानी हुई और उसे एक पल के लिए तो जैसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ और उसने अपने मन में कहा, "कोई इतना ज्यादा पॉजिटिव कैसे हो सकता है इतनी बड़ी बात को लेकर भी, सच में तारा कुछ अलग ही है।"

    यह बात सोचते हुए प्रीत ने मुस्कुराकर तारा की तरफ देखा और बोली, "अच्छा ठीक है यह आचार भी रख लो प्लेट में इसके साथ अच्छा लगेगा।"

    प्रीत को थैंक्स बोलते हुए तारा ने उसके हाथ से अचार की कटोरी ले ली और फिर उसे भी प्लेट में ही साइड में रखती हुई बोली, "थैंक्स भाभी! मैं यह देकर आती हूं उन्हें। खाएंगे नहीं, कम से कम देख ही लेंगे मेरे हाथों का बनाया हुआ खाना कितना टेस्टी होता है और वह क्या मिस कर रहे हैं बाद में तो बहुत पछताएंगे।"

    इतना बोलते हुए हो इस तरह प्यारी सी स्माइल के साथ किचन से बाहर चली गई क्योंकि उसने देख लिया था आरांश वहां ब्रेकफास्ट टेबल पर आकर बैठ गया था।

    तारा को इस तरह बाहर जाते हुए देखकर प्रीत ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, "दोनों भाई इस मामले में बिल्कुल एक जैसे हैं लेकिन मैं उम्मीद करती हूं तुम्हें तुम्हारे हिस्से की सारी खुशियां मिले तारा, जो मुझे नहीं मिल सकी वह भी!"

    इतना बोलते हुए प्रीत ने मन ही मन तारा के लिए दुआ मांगी वहीं दूसरी तरफ तारा को नाश्ते की प्लेट के साथ आते देख कर आरांश तुरंत ही हड़बड़ा कर अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया और वहां से बाहर वाले दरवाजे की तरफ ही बढ़ गया।

    तारा ने उसे ऐसे उठकर जाते देखा एक गहरी सांस ली और बोली, "कुछ ज्यादा ही अनलकी हैं यह तो मेरा बनाया हुआ खाना टेस्ट करना तो दूर देखना भी नहीं है उनके नसीब में, पर चलो कोई बात नहीं पैक करके भिजवा दूंगी लंच में, रोज की तरह वहां तो खा लेते हैं।"

    इतना बोलते हुए तारा वह प्लेट लेकर वापस चली गई।

    कुछ देर के बाद तारा अपने कमरे में बैठी हुई थी और उसने अपना पेंटिंग और आर्ट से रिलेटेड सारा सामान बेड पर फैला रखा था वह सारी चीज जगह पर रख रही थी अभी तक उसका सारा सामान सेट नहीं हो पाया था वह अपना सामान कभी-कभी रख देती थी तो कभी-कभी और फिर खुद ही भूल जाती थी।

    सबसे ज्यादा उसे अपने पेंटिंग के समान से प्यार था और फिलहाल के लिए वह सारा सामान भी वह फैला कर बैठी थी क्योंकि अभी कुछ देर पहले तक वो वही कमरा की जमीन पर बैठकर कुछ पेंट कर रही थी।

    तभी उसका मोबाइल फोन रिंग हुआ और उसने साइड में रखे हुए मोबाइल फोन को उठाने से पहले अपना हाथ एक गीले कपड़े से पोंछा क्योंकि उसके हाथों पर भी पेंट लगा हुआ था और फिर मोबाइल फोन उठाकर तारा ने स्क्रीन की तरफ देखा तो वहां पर 'नीरव' नाम लिखा हुआ था।

    वह नाम देखकर तारा के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई और उसने तुरंत ही फोन कॉल रिसीव कर लिया और दूसरी तरफ से एक लड़के की शिकायत भरी आवाज आई, "सुना था शादी के बाद सब बदल जाते हैं और तूने यह प्रूफ भी कर दिया कहां गायब है 8 10 दिनों से?"

    वह आवाज सुनते ही तारा एकदम से बोली, "अरे नहीं यार! बताओ तुम सब कैसे हो? वह एक्चुअली में एक असाइनमेंट ही कंप्लीट कर रही थी मुझे याद है 2 दिन बाद सबमिट करना है ना?"

    दूसरी साइड से फिर से इस तरह की आवाज आई, "हां, असाइनमेंट तो याद है लेकिन हम दोस्तों को जो भूल गई! वह बोल रहा था मैं अब तू बात मत बदलना।"

    फिर से शिकायत सुनकर तारा ने माफी मांगते हुए कहा, "अच्छा ठीक है सॉरी! वह बस यहां पर सेटल होने में ही थोड़ा सा टाइम लग गया और किसी को कॉल नहीं कर पाई। सच में मेरी तो मम्मी से भी बात एक दो बार ही हुई है, लेकिन परसों कॉलेज में मिलते हैं ठीक है।"

    उसे लड़के ने भी काफी कैजुअली बोला, "हां, चल ठीक है। मैं बाकी सब को भी इन्फॉर्म कर दूंगा।"

    और फिर तारा ने कॉल डिस्कनेक्ट करके मोबाइल फोन साइड में रख दिया और गहरी सांस लेती हुई बोली, "चलो अब कॉलेज जाउंगी तो बाकी सब से मिलना हो जाएगा शादी के बाद से तो सच में मैं किसी से नहीं मिली और ना मैंने किसी को फोन किया सब नाराज होंगे मुझसे तो लेकिन कोई बात नहीं तारा से आखिर कितनी देर तक ही नाराज रह पाएंगे, 2 मिनट में मना लूंगी मैं सबको।"

    इतना बोलते हुए तारा के चेहरे पर एक प्यारी सी स्माइल आ गई और फिर वह अपना बाकी सारा सामान अरेंज करके रखने लगी।

    आरांश शाम को जब घर वापस आया तो आज उसे तारा वहां पर घर के लिविंग एरिया या फिर डायनिंग एरिया में उसका इंतजार करते हुए नजर नहीं आई तो आरांश ने एक गहरी सांस लेते हुए अपने आप से कहा, "चलो अच्छी बात है, कम से कम आज इंतजार तो नहीं कर रही मेरा बेवजह ही रोज जागती रहती थी।"

    इतना बोलते हुए वह ऊपर अपने बेडरूम की तरफ आया और उसने देखा कि तारा पहले ही बेड पर सो चुकी थी और फिर आरांश टाइम देखा तो रात के 10:00 बज रहे थे आज उसे आने में काफी लेट हो गया था क्योंकि उसका घर आने का मन ही नहीं करता था और वह रोज वहां से ऑफिस से निकलने के बाद कहीं ना कहीं चला जाता था और घंटों तक किसी पार्क में या फिर अपनी कर के अंदर ही अकेले बैठा रहता था और अपने भाई को याद करता रहता था ऐसा कोई दिन नहीं था जब उसे अपने भाई की याद ना आती हो क्योंकि वह दोनों बचपन से ही साथ रहे थे और वह अब उसके साथ नहीं है इस बात को वह अभी तक एक्सेप्ट नहीं कर पाया था।

    वहां बेड पर सोती हुई तारा बहुत ही ज्यादा प्यारी लग रही थी, ना चाहते हुए भी आरांश की नज़रें उसे पर टिक गई और उसने एक नजर भरकर उसकी तरफ देखा और कुछ देर तक अपनी पत्नी को निहारने के बाद आरांश फ्रेश होने के लिए चला गया और फिर सोने वाले कपड़े पहन कर बाहर निकाला और वही साइड में लेट गया।

    पता नहीं क्यों? क्योंकि अगर वह चाहता तो स्टडी रूम में भी जा सकता था या फिर साइड में पड़े हुए काउच पर लेट जाता क्योंकि तारा पहले ही सो चुकी थी तो कोई भी नहीं था जो जिद करता उसके वहां बेड पर लेटने की लेकिन पता नहीं क्यों वह खुद से ही आकर तारा के साइड में पड़ी हुई खाली जगह पर लेट गया और फिर धीरे से उसने अपनी आंखें बंद कर ली।

    अगली सुबह;

    आरांश जब सो कर उठा तो उसने देखा कि रोज की तरह उसके कपड़े निकले हुए रखे हैं और उसका बाकी सारा सामान भी तारा जैसे रोज रखती थी बिल्कुल वैसे ही निकाल कर रख कर गई थी लेकिन आज वह उसे कमरे में कहीं नजर नहीं आ रही थी।

    ज्यादातर आरांश तारा से पहले सो कर उठता था और जब वह नहा धोकर निकलता था तब उसे ऐसे कपड़े रखे हुए मिलते थे लेकिन आज उसे सो कर उठने के बाद ही वह सब देखने को मिल गया तो उसे लगा शायद आज वह उठने में लेट हो गया इसलिए उसने तुरंत ही साइड में रखी हुई अलार्म क्लॉक में टाइम देखा तो अभी सुबह के 7:00 बजे थे और वह रोज इस टाइम पर ही उठता था।

    टाइम देखकर आरांश अपने आप से कहा, "मैं तो टाइम पर ही उठा हूं लेकिन यह लड़की आज मुझसे पहले कैसे उठ गई?"

    इतना बोलते हुए वह वॉशरूम की तरफ बड़ा क्योंकि उसे लगा तारा शहर वॉशरूम में हो सकती है लेकिन वह भी खाली था और वह वहां पर कहीं भी नहीं थी।

    To Be Continued

    कैसा लगा आज का एपिसोड और आरांश का बिहेवियर समझने के लिए आप लोगों को डिस्क्रिप्शन और शुरू से स्टोरी पढ़नी होगी आप सबको समझ आ जाएगा कि वह ऐसा क्यों है लेकिन क्या लगता है हमारी तारा के साथ कब तक ऐसा कर पाएगा और तारा को कितना टाइम लगेगा उसे अपनी तरह बनाने के लिए?

  • 17. His Unwanted Dulhan - Chapter 17

    Words: 1651

    Estimated Reading Time: 10 min

    17

    आरांश सुबह उठते ही तारा को वहां बेडरूम में ढूंढने लगा क्योंकि शादी के बाद आज यह पहली सुबह थी जब उठते ही उसे तारा अपने आसपास कहीं भी नजर नहीं आई थी तो उसे थोड़ा अजीब लगा।

    आरांश को सुबह उठकर उसका चेहरा देखने की आदत पड़ चुकी थी इसलिए आज उसे कुछ अधूरा सा लग रहा था लेकिन फिर भी इन सारी बातों को इग्नोर करते हुए वह रोज की तरह ही फ्रेश होने चला गया और जब बाहर आया तो नाश्ते पर भी उसे वहां तारा आसपास कहीं भी नहीं देखी ना ही किचन में और ना ही डायनिंग एरिया में वह उसके लिए नाश्ता लेकर आई।

    आरांश की नज़रें उसे ही ढूंढ रही थी लेकिन उसने पूछा नहीं तो उसे किसी ने बताया भी नहीं क्योंकि सब उसे ही नाराज थे और सबको लग रहा था वह तारा के साथ बहुत गलत कर रहा है लेकिन तारा खुद कभी शिकायत नहीं करती थी बस इसी वजह से कोई आरांश को भी कुछ सीधे नहीं बोल पाता था।

    आज सारा नाश्ता आरांश की मां और प्रीत ने उसे सर्व किया तो उसने चुपचाप सारा नाश्ता खत्म कर लिया लेकिन बिना कुछ बोले ही वह वहां से जाने वाला था और जाने से पहले एक बार फिर से वह इधर-उधर देख रहा था कि शायद उसे तारा कहीं पर तो दिख जाए क्योंकि वह कमरे में भी नहीं थी तो उसे अब तारा की थोड़ी फिक्र हो रही थी कि आखिर वह इतनी सुबह-सुबह कहां चली गई।

    प्रीत काफी देर से उसे नोटिस कर रही थी इसलिए आरांश जब फिर से इधर-उधर देखने लगा तो उसने आगे आते हुए कहा, "तारा को ढूंढ रहे हो तो वह नहीं दिखेगी तो मैं यहां क्योंकि वो..."

    प्रीत अपनी बात पूरी कर पाती उससे पहले ही आरांश उसकी बात काटते हुए बोल पड़ा, नहीं मैं क्यों ढूंढूंगा उसे वैसे ही इतना इरिटेट करती है अच्छा हुआ आज सामने नहीं आई।"

    इतना बोल कर वह वहां से चला गया लेकिन अब उसे पछतावा हो रहा था कि जब प्रीत खुद से उसे तारा के बारे में बता रही थी तो उसने पूरी बात क्यों नहीं सुनी लेकिन फिर उसने अपने आप से कहा, "ठीक है ना, अच्छा तो है मैं आखिर यही तो चाहता था कि वह मुझसे दूर रहे अब अगर दूर रह रही है तो क्यों मुझे उसके बारे में नहीं सोचा है वैसे भी हम दोनों एक दूसरे के लिए नहीं बने हैं।"

    इतना बोलते हुए आरांश अपनी कर में आया और उसने खुद ही अपनी कार ड्राइव की और वहां घर से बाहर निकल गया।

    वहीं दूसरी तरफ तारा भी रास्ते में थी, वो भी एक ड्राइवर के साथ कर से ही कॉलेज गई थी क्योंकि उसके घर में भी करती और अपने मायके से भी वह कर में ही कॉलेज जाती है तो उसे आदत नहीं थी बस या फिर पब्लिक ट्रांसपोर्ट से ट्रैवल करने की और उसके ससुराल वालों को भी कोई प्रॉब्लम नहीं थी उन लोगों ने खुद ही बोला था कि तारा कोई भी कर लेकर जा सकती है।

    तारा की ससुराल में सब ही उसके लिए काफी ज्यादा सपोर्टिव और केयरिंग थे, सिर्फ़ उसके पति को छोड़कर लेकिन यह बात अभी तारों को इतनी बुरी नहीं लगती थी क्योंकि अभी उनकी शादी को कुछ दिन हुए थे और शुरू से लेकर अब तक आरांश का बर्ताव ऐसा ही था तो शायद उसने ज्यादा उम्मीद नहीं रखी थी।

    तारक कॉलेज इंदौर शहर का सबसे बड़ा आर्ट्स कॉलेज था जहां पर उसे उसके अच्छे मार्क्स और टैलेंट की वजह से एडमिशन मिल गया था क्योंकि उसे आर्ट और पेंटिंग का शौक था और उसकी पेंटिंग को एक बार देखते ही सेलेक्ट कर लिया गया था और अपने बैच में उसने टॉप किया था।

    यहां उसके काफी सारे दोस्त बने थे जिन्होंने उसकी शादी भी अटेंड की थी उन सब को तारा की शादी के बारे में पता था लेकिन शादी के बाद से तारा अपने दोस्तों से ना तो मिल पाई थी और ना ही किसी से उसकी ज्यादा बात हो पाई थी आज वह अपनी शादी के 10 दिनों बाद उन लोगों से मिलने के लिए आई थी और साथ ही उसे कॉलेज में अपना असाइनमेंट भी जमा करना था वह पेंटिंग जो उसने कल ही कंप्लीट की थी।

    शाम का वक्त, तारा काफी देर पहले ही कॉलेज से घर वापस आ चुकी थी और घर में बाकी सब से वह इस बारे में बात भी कर रही थी।

    आज काफी दिनों के बाद वह कॉलेज गई थी और वहां पर अपने सारे दोस्तों से मिली थी तब उसे उसके पति और ससुराल वालों के बारे में पूछ रहे थे जो कि नॉर्मल होता है किसी भी शादीशुदा लड़की से मिलने के बाद उसके फैमिली फ्रेंड से सब यही सवाल करते हैं।

    आरांश उसके साथ चाहे जैसा भी बर्ताव करे लेकिन तारा ने सबसे यही बताया कि उसकी ससुराल और पति सब ही उसके साथ बहुत अच्छे हैं और जैसे ही उसने यह बात कही तो सब उसके हस्बैंड से मिलने की जिद करने लगे शादी पर सब ने आरांश की बस एक झलक देखी थी और जिस तरह वह उसे मंडप में ही छोड़कर चला गया था उसे बात को लेकर भी लोग उस से सवाल कर रहे थे तब तारा ने बताया था कि शादी वाले दिन आरांश की तबीयत ठीक नहीं थी और किसी तरह उसने अपने दोस्तों को समझा लिया था।

    अभी घर पर आने के बाद से तारा, प्रीत और अपनी सास सबको अपने कॉलेज की बातें बता रही थी काफी ज्यादा खुश होकर और वह लोग भी काफी दिलचस्पी से उसकी बात सुन रही थी। तारा के आने के बाद से प्रीत भी घर में सबके साथ बैठने और बातचीत करने लगी थी और थोड़ा बहुत हंसी मुस्कुराती भी थी।

    इसी वजह से आरांश के मम्मी पापा को भी बहुत उम्मीद मिल रही थी कि तारा इसी तरह एक दिन आरांश को भी बदल देगी और उसे भी पहले की तरह खुश रहना सिखा देगी।

    इसी बीच आरांश वहां पर घर वापस आया उसने जैसे ही तारा को वहां लिविंग एरिया में बैठे हुए देखा तो उसके मन को थोड़ी राहत महसूस हुई क्योंकि आज सुबह से उसने तारा का चेहरा तक नहीं देखा था लेकिन अभी सामने घरवालों से बात करते हुए तारा के चेहरे पर बड़ी सी स्माइल देखकर आरांश को भी काफी अच्छा फील हुआ लेकिन फिर भी वह चुपचाप साइड से निकाल कर ऊपर की तरफ जाने लगा और इस तरह से बर्ताव कर रहा था जैसे कि उसने तारा और बाकी सब को नोटिस ही नहीं किया हो।

    घर के ज्यादातर लोग अब तक आरांश ऐसे बर्ताव के आदी हो चुके थे इसलिए उन लोगों को इतना अजीब नहीं लगा और पिछले 10 दिनों में तारा भी उसे समझ चुकी थी इसलिए उनमें से किसी ने भी आरांश को नहीं टोका और ना ही उसे वहां पर रुकने के लिए कहा, और पहले की तरह वो लोग आपस में बात करते रहें।

    डिनर के बाद, रात का वक्त, आरांश अपने पूरे कमरे में कुछ ढूंढ रहा था और तारा वही साइड में बेड पर बैठी हुई अपने हाथ में मोबाइल फोन लिए हुए उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी उसका ध्यान अपने मोबाइल फोन पर कम ही था लेकिन वो सीधे ही आरांश की तरफ नहीं देखना चाहती थी इसलिए उसने मोबाइल फोन बस कवर अप के लिए ही हाथ में पकड़ा हुआ था।

    आरांश को उसका लैपटॉप नहीं मिल रहा था जो की शाम को आने के बाद उसने वहां पर कमरे में ही रखा हुआ था लेकिन अभी उसे अपना पूरा लैपटॉप बैग ही कहीं नज़र नहीं आ रहा था‌ वह पूरे कमरे में और स्टडी रूम में सब जगह पर ढूंढ चुका था लेकिन वह उसे कहीं भी नहीं मिला वह काफी परेशान हो चुका था।

    पिछले आधे घंटे से वैसे ही वह सारा सामान इधर-उधर फेंकता हुआ अपना लैपटॉप ढूंढ रहा था लेकिन एक बार भी उसने लैपटॉप का नाम नहीं लिया और ना ही तारा से इस बारे में पूछना ज़रूरी समझा।

    तो अपनी आदत के अनुसार तारा ने खुद ही बोलते हुए उससे पूछा, "अरे ऐसा भी क्या खो गया है आपका? मुझे बता दीजिए मैं ढूंढ कर दे देती हूं। वैसे कहीं आपकी आवाज़ तो नहीं खो गई है ना?"

    इतना बोलते हुए तारा हंसने लगी तो आरांश ने गुस्से में उसकी तरफ देखकर कहा, "हा हा वेरी फनी! तुम्हें लगता है तुम बहुत अच्छे जोक्स क्रैक कर लेती हो लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।"

    आरांश के बोलने पर तारा ने तुरंत ही कहा, "चलो, आवाज़ तो मिल गई आपकी लेकिन अब अगर आपके पास सेंस ऑफ ह्यूमर और हंसी की कमी है तो मैं उसमें कुछ नहीं कर सकती क्योंकि जोक्स तो मेरे अच्छे ही होते हैं।"

    इतना बोलते हुए वह अपना मोबाइल साइड में रखकर वहां बैठ से उठकर खड़ी हो गए और उसकी तरफ से ही आने लगी लेकिन आरांश वहां से साइड हट गया और एकदम कोने में जाकर अलमारी के सारे ड्रॉअर खोलता हुआ फिर से वैसे ही ढूंढने लगा वह उसे जगह पर पहले भी दो बार ढूंढ चुका था।

    आरांश के ऐसे बर्ताव पर तारा भी उसके पीछे-पीछे आते हुए बोली, "बार-बार एक ही जगह ढूंढने पर वह सामान वहां पर आ थोड़ी ना जाएगा? बताइए मुझे क्या चाहिए मैं दे देती हूं! हो सकता है मैंने कहीं पर रख दिया हो, कल शाम को अपना सामान सेट किया था ना मैंने!"

    आरांश ने उसकी बात के जवाब में बस इतना कहा, "लैपटॉप! मेरा लैपटॉप नहीं मिल रहा है।"

    To Be Continued

    वैसे देखा जाए तो आज के एपिसोड में तारा से ज्यादा आरांश का पॉइंट ऑफ व्यू पढ़ने को मिला शायद हो सकता है इसलिए आप लोगों को यह थोड़ा बोरिंग लगी हो लेकिन यह जरूरी भी था अगर हीरोइन के हिसाब से ही स्टोरी लिखते रहेंगे तो हमारे हीरो के दिल का हाल कैसे पता चलेगा आप लोगों को इसलिए दोनों ही जरूरी होते हैं। इसलिए कमेंट में बताइए कैसा लगा आप लोगों को यह पार्ट?

  • 18. His Unwanted Dulhan - Chapter 18

    Words: 1678

    Estimated Reading Time: 11 min

    18

    आरांश के ऐसे बर्ताव पर तारा भी उसके पीछे-पीछे आते हुए बोली, "बार-बार एक ही जगह ढूंढने पर वह सामान वहां पर आ थोड़ी ना जाएगा? बताइए मुझे क्या चाहिए मैं दे देती हूं! हो सकता है मैंने कहीं पर रख दिया हो, कल शाम को अपना सामान सेट किया था ना मैंने!"

    आरांश ने उसकी बात के जवाब में बस इतना कहा, "लैपटॉप! मेरा लैपटॉप नहीं मिल रहा है।"

    उसकी यह बात सुनकर तारा ने दूसरी तरफ देखते हुए कहा, "ओह अच्छा वो लैपटॉप ढूंढ रहे हैं वैसे वह तो शायद मिलेगा भी नहीं।"

    तारा की यह बात सुनकर आरांश की भौंहै चढ़ गई और उसने तारा की तरफ देखते हुए पूछा, "क्यों.. क्यों नहीं मिलेगा ऐसे क्यों बोल रही हो तुम?"

    तारा बहुत ही ऑकवर्ड स्माइल के साथ बोली, "नहीं, वह क्या है ना वह आपका लैपटॉप इतना ज़रूरी है क्या? मेरा मतलब है मुझे तो पता ही था कि वो इतना ज़रूरी है आपके लिए इसलिए तो मैंने छुपाया है।"

    उसकी ऐसी बात सुनकर आरांश ने अपना सिर पीट लिया और उसका मुंह भी खुला का खुला रह गया और उसने लगभग चिल्लाते हुए कहा, "क्या? तुम.. तुम पागल वागल हो क्या? लैपटॉप कौन छुपाता है तुम्हें और कोई चीज नहीं मिली अपनी हाइड एंड सीक के लिए? वापस करो मुझे मेरा लैपटॉप अभी के अभी! मुझे इंपॉर्टेंट मेल चेक करने हैं सोने से पहले।"

    तारा ने अपनी कमर पर हाथ रखते हुए कहा,"नहीं मिलेगा! मैंने कहा ना वह उससे पहले आपको मेरी एक बात सुननी होगी मेरा मतलब माननी होगी जो भी मैं बोलूं तब ही आपको वह वापस मिलेगा।"

    इतना बोलते हुए तारा ने अपने चेहरा दूसरी तरफ घूम लिया इस तरह दिखते हुए कि वह एकदम जिद कर थी।

    आरांश उसकी जिद पूरी नहीं होने देना चाहता था इसलिए एकदम लापरवाही से बोला, "मैं तुम्हारी कोई भी फालतू बात नहीं मानने वाला, और इस तरह से लैपटॉप छुपाने पर तुम्हें क्या लगता है मैं दूसरा लैपटॉप नहीं ले सकता जाओ लिए रहो वह लैपटॉप, मैं दूसरा लेपटॉप खरीद लूंगा और उसमें अपनी आईडी ओपन कर दूंगा।"

    इतना बोलते हुए आरांश वहां कमरे से बाहर जाने लगा क्योंकि उसे पता था तारा के साथ ज्यादा बहस करने का कोई भी फायदा नहीं था, अगर उसने लैपटॉप को छुपाया है तो ज़रूर सोच समझ कर ही उसने ऐसा किया होगा और आरांश को इस बात कभी अंदाजा नहीं था कि वह आखिर किस बात के लिए बोलने वाली थी।

    आरांश की यह बातें सुनकर तारा ने अपने मन में कहा , "अरे ये तो मेरा पैसा मुझ पर ही उल्टा पड़ गया मुझे शायद कुछ और ही सोचना चाहिए था यह बात मेरे ध्यान में क्यों नहीं आई इतने तो अमीर है एक लैपटॉप खरीदना कौन सी बहुत बड़ी बात होगी इनके लिए सच में इतनी बेवकूफ कैसे हो सकती है तू तारा?"

    तारा ने मन ही मां अपने आप को ही डांटते हुए कहा लेकिन जब तक आरांश दरवाजे के पास पहुंच गया था और वह कमरे के बाहर निकल पाता उससे पहले ही तारा उसके पीछे और उसका हाथ पकड़ कर रोकते हुए बोली, "अरे आरांश जी! अब इतनी रात को कहां जाएंगे आप लैपटॉप खरीदने, वह तो वैसे भी कल सुबह खरीदेंगे ना और आपको अभी काम है मैं आपको दे सकती हूं आप बस एक बार मेरी बात सुन तो लीजिए, प्लीज़!"

    तारा ने रिक्वेस्ट करते हुए एकदम मासूम सा चेहरा बनाकर कहा और जैसे ही आरांश ने उसकी तरफ देखा तो पता नहीं क्यों वो उसे मना नहीं कर पाया जबकि वह ना तो वहां पर रुकना चाहता था और ना ही तारा की कोई बात सुनना चाहता था उसकी बात मानना तो बहुत दूर की बात थी!

    आरांश ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, "अच्छा ठीक है बोलो!"

    आरांश ने जैसे ही यह कहा तारा की आंखों में एकदम खुशी की चमक नजर आने लगी और उसने एकदम से कहा, "वो.. आपको इस संडे मेरे साथ कहीं चलना होगा और आप मना नहीं करेंगे प्लीज़, देखिए प्रॉमिस करिए और उसके बाद ही मैं आपको लैपटॉप दूंगी।"

    आरांश ने मना करते हुए कहा, "मैं कहीं नहीं जाता।"

    उसकी यह बात सुनकर तारा का चेहरा एकदम ही उतर गया लेकिन वह इतनी जल्दी हार मानने वालों में से तो नहीं थी।

    आरांश के ऐसे सीधे ही मना कर देने पर तारा को थोड़ा बुरा लगा और उसका चेहरा उतर गया।

    उसकी तरफ देखते हुए आरांश अपने मन में कहा, "तुम मुझसे कहीं बेहतर डिजर्व करती हो तारा क्यों मेरे पीछे पड़ी हूं मैं चाहता हूं तुम मुझसे नफरत करो तुम मेरे जैसा इंसान डिजर्व नहीं करती हो अपनी लाइफ में इसलिए मैं जानबूझकर ऐसा कर रहा हूं दूर रहो मुझसे प्लीज मेरे लिए मुश्किल मत बनाओ।"

    लेकिन तारा ने अपने मन में कहा, "आप चाहे जितना भी मना करें मुझे पता है मैं आपको मना लूंगी मेरे पास और भी तरीके हैं। मुझे पता है आप यह सब जानबूझकर कर रहे हैं लेकिन तारा हर रिश्ते को पूरे दिल से निभाती है और यह तो मेरी लाइफ का सबसे अनमोल रिश्ता है आपके साथ, इसे मैं ऐसे कैसे छोड़ सकती हूं।"

    इतना बोलते हुए तारा मुस्कुराई तो आरांश ने हैरानी से कहा, "पागल हो क्या, मुस्कुरा क्यों रही हो मैंने मना किया है साथ आने के लिए और तुम मुझे लैपटॉप दे रही हो या फिर मैं जाऊं यहां से?"

    तारा ने एकदम हड़बड़ा कर कहा, "अरे नहीं नहीं कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है बस आपको हां बोलना है कि आप मेरे साथ आओगे संडे को और मैं अभी आपके लैपटॉप दे दूंगी।"

    कोई और रास्ता ना देख कर आरांश ने आखिर उसकी बात मानते हुए कहा, "अच्छा ठीक है, लेकिन सिर्फ पहले और आखिरी बार उसके बाद तुम मुझसे ऐसी कोई शर्त नहीं रखोगी।"

    तारा इधर-उधर देखते हुए बोली, "उम्म्! ऐसा कोई प्रॉमिस नहीं कर सकती मैं, सिचुएशन हुई तो मैं फिर से कर सकती हूं।"

    इतना बोलते हुए तारा ने अपने दांत दिखाए तो आरांश अविश्वास घूर कर उसकी तरफ देखा क्योंकि उसके इतना ज्यादा पुश करने के बाद भी था जिस तरह तारा उससे दूर नहीं जाती थी उसका ऐसा बर्ताव आरांश की समझ से बिल्कुल परे था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह तारा को खुद से दूर करने के लिए क्या करें क्योंकि उसके तो सारे तरीके तारा के आगे काम ही नहीं करते थे।

    आरांश अपने मन में यह सब सोच ही रहा था तभी उसने देखा कि तारा बेड की तरफ बढ़ी और जहां पर वह बैठी थी वहां सिरहाने दो बड़ी-बड़ी तकिया रखी हुई थी और उसके आगे ही अभी कुछ देर पहले तक तारा बैठी हुई थी।

    तारा ने एक-एक कर वह दोनों तकिया हटाई और उसके नीचे ही आरांश का लैपटॉप बैग नजर आया जिसे देखकर आरांश का मुंह हैरानी से खुला रह गया उसने सोचा भी नहीं था तारा ऐसे अपनी तकिया के नीचे लैपटॉप बैग रख कर बैठी होगी और वहां पर तारा बैठी थी तो उस तरफ आरांश एक बार भी अपना लैपटॉप नहीं ढूंढा था।

    तारा ने चुपचाप लैपटॉप बैग वहां से उठाया और उसे लेकर आरांश की तरफ ही आने लगी।

    आरांश ने तुरंत ही उसके हाथ से वह लैपटॉप बैग ले लिया और वह कुछ नहीं बोला और तारा भी कुछ बोल पाती इससे पहले ही वह वहां से बाहर चला गया उसके जाने के बाद तारा ने गहरी सांस ली और कहा, "चलो, कम से कम अपने साथ आने के लिए हां तो किया।"

    इतना बोलते हुए वह मुस्कुराई और काफी खुश नज़र आ रही थी फिर वह जाकर बेड पर अपनी जगह पर लेट गई और जब तक वह जाग रही थी तब तक आरांश जानबूझकर कमरे में वापस नहीं आया लेकिन तारा के सोने के बाद वह जाकर अपनी साइड पर लेट गया क्योंकि इतने दिनों में उसे भी वहां सोने की आदत पड़ चुकी थी इसलिए अब उसे अकेले स्टडी रूम में नींद नहीं आ रही थी।

    अगली सुबह,

    खिड़की से आती हुई तेज धूप आंख में लगने की वजह से तारा की आंख खुली और आंख खुलते ही उसने अंगड़ाई ली और उसे अपने पेट पर कुछ भारी सा महसूस हुआ उसने आंख खोलकर अपने लेफ्ट साइड में देखा तो वहां पर उसे बहुत ही खूबसूरत नज़ारा देखने को मिला जो उसे रोज सुबह देखने को नहीं मिलता था क्योंकि हर रोज आरांश उससे पहले ही जाग जाता था।

    तारा ने देखा साइड में लेटा उसका हस्बैंड आरांश उसके पेट पर हाथ रखकर उसके एकदम नजदीक लेटा हुआ था। तारा ने ध्यान नहीं दिया लेकिन रात को वो खुद ही उसकी साइड पर आ गई थी और आरांश भी शायद सो चुका था इसलिए उस ने भी तारा को खुद से दूर नहीं किया और वह दोनों इस तरह एक दूसरे के एकदम नज़दीक लेते हुए थे। तारा उसे नज़र भरकर देख रही थी लेकिन वह ज़्यादा देर देख पाती।

    उससे पहले ही उसे एक तेज झटका महसूस हुआ क्योंकि आरांश जाग गया था और जागते ही तारा का चेहरा अपने सामने देख कर उसने तारा को खुद से दूर पुश करते हुए कहा, "इतना बड़ा बेड है फिर भी तुम्हें मेरी साइड पर आकर ही सोना होता है क्या?"

    आरांश के बातें सुनने पर तारा ने भी मुंह फूलते हुए कहा, "गुड मॉर्निंग ना कुछ बस सुबह-सुबह डांटने लगते हैं बेवजह..."

    ऐसे मुंह फुला कर पाउट बनाते हुए वहां बेड पर बैठी तारा उसे बहुत ही क्यूट लग रही थी इसलिए आरांश वहां पर ज्यादा देर नहीं रुका और उठकर वह तुरंत ही फ्रेश होने के लिए वॉशरूम में चला गया या फिर शायद जानबूझकर तारा को इग्नोर करने के लिए...

    आरांश को ऐसे बिना कुछ बोले वहां से जाते देखकर तारा ने एक गहरी सांस ली लेकिन फिर वो भी बेड से उठकर खड़ी हो गई और ड्रेसिंग मिरर के सामने आकर जम्हाई लेती हुई अपने बाल समेटने लगी।

    To be continued

    क्या लगता है आप लोगों को क्या तारा आरांश को मनाने की अपने साथ जाने के लिए और संडे को वह उसे कहां लेकर जाने वाली है और क्या आ रहा है जाएगा उसके साथ बस यह लैपटॉप छुपाने जैसा काम हमारी तारा के अलावा और कोई नहीं कर सकता। उसके पास बहुत तरीके हैं अपनी बात मनवाने के 🤭🤭😍

  • 19. His Unwanted Dulhan - Chapter 19

    Words: 1672

    Estimated Reading Time: 11 min

    19

    तीन दिन बाद,

    तारा ने पूरी फैमिली को अपनी तरफ करके किसी तरह आरांश को अपने साथ ले जाने के लिए मना ही लिया था और आज संडे था वह उसे अपने दोस्तों से मिलवाने के लिए जाने वाली थी।

    आरव से एकदम बेमन से तैयार हो रहा था लेकिन तारा बहुत ही खुश थी कि आज पहली बार आरांश के साथ कहीं घर से बाहर जाने वाली थी। नहीं तो जब से उनकी शादी हुई थी वह दोनों साथ में कहीं भी नहीं गए थे और तारा भी सिर्फ अपने मायके, दोस्तों से मिलने या फिर कॉलेज ही जाती थी इसके अलावा वह भी और कहीं नहीं गई थी ।

    इसलिए वह काफी ज्यादा एक्साइटेड लग रही थी वह काफी अच्छे से तैयार हुई उसने ब्लैक कलर की नेट की साड़ी पहने जिसका सिल्वर बॉर्डर था वह साड़ी काफी सिंपल थी। फिर भी बहुत एलिगेंट लग रही थी और तारा के ऊपर तो वह सारी कुछ ज्यादा ही अच्छी लग रही थी और तारा ने कान में सिंपल व्हाइट पर्ल इयररिंग्स भी पहने थे।

    उसने अपने बालों को खुला रख कर एकदम हल्का सा मेकअप किया और फिर मैचिंग हील पहन ली और पर्स लेकर वह कमरे से बाहर आई ऑरेंज काफी देर पहले ही रेडी हो गया था को कोई इतना ज्यादा इंटरेस्ट से तैयार नहीं हुआ था उसने एकदम नॉर्मल जींस शर्ट ही पहनी हुई थी और ऊपर से जैकेट भी पहनने के लिए अभी उसने साइड में रखी हुई थी।

    लिविंग एरिया के हाल में बैठा हुआ तारा के वहां पर आने का इंतजार करता हुआ बैठा था और ऐसे दिखा रहा था जैसे कि वह बहुत ही बोर हो रहा हो और उसे बिल्कुल भी इंटरेस्ट नहीं था, तारा के साथ जाने में और ना ही उसका इंतजार करने में लेकिन बस घर वालों के बोलने पर उसे जाना पड़ रहा था क्योंकि इसके लिए पिछले तीन दिनों में उसने बहुत बातें सुनी थी।

    तारा जब पूरा रेडी होकर सीढ़ियों से उतरकर नीचे आई और आरांश की नजर उस पर पड़ी तो वह उसे देखा ही रह गया लेकिन वह एकदम ऑबवियस नहीं लगना चाहता था पर कुछ देर के लिए तो उसकी नज़रें तारा पर टिक गई थी इसके अलावा तारा के चेहरे पर वह प्यारी सी स्माइल उसे और भी ज़्यादा खूबसूरत बना रही थी और उसे इस तरह मुस्कुराते हुए देखकर आरांश कहा पता नहीं कितने दिनों तक तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट रह पाएगी और मैं नहीं चाहता कि मेरे चेहरे पर स्माइल लाने की कोशिश में तुम अपने चेहरे की यह प्यारी से मुस्कुराहट खो दो।

    अपने मन में यह बात आते ही आरांश जो अभी एक पल के लिए तारा को देखकर थोड़ा सा खुश हुआ था दोबारा से उदास हो गया और उसका चेहरा उतर गया साथ ही वह फिर से अपने मोबाइल फोन में देखने लगा और उसने इस तरह से दिखाया जैसे कि उसने तारा को नोटिस ही नहीं किया और यह बात तो सोच कर तारा थोड़ी सी मायूस हो गई लेकिन फिर वह खुद ही उसके सामने आकर खड़ी होती हुई बोली, "चलिए, मैं रेडी हो गई हूं।"

    आरांश ने भी उठकर खड़े होते हुए कहा, "चलो, फाइनली तुम रेडी टू हो गई। मुझे तो लगा था शायद आज का प्लान कैंसल होकर कल को ना शिफ्ट हो जाए।"

    आरांश की इस बात पर तारा ने बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया उसने आरांश का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ लगभग खींचते हुए घर के बाहर लेकर जाने लगी और उन दोनों को इस तरह से जाते देखकर आरांश की मां, प्रीत और उसके पापा तीनों ही बहुत ज्यादा खुश हुए क्योंकि इतने दिनों में आज पहली बार ही आरांश इस तरह से कहीं बाहर जा रहा था।

    22

    एक बहुत ही ज्यादा भीड़ भाड़ वाला कैफे, जहां पर लगभग सारी चेयर टेबल भरी हुई थी, वो कैफे बहुत ज्यादा बड़ा या फिर फैंसी कैफे नहीं था ना ही फाइव स्टार लग रहा था लेकिन फिर भी वहां पर काफी सारे लोग थे वहां का सीटिंग अरेंजमेंट अच्छा था और स्टाफ भी काफी अच्छे से सबको हैंडल कर रहा था और डेकोर भी एक मिडिल रेंज रेस्टोरेंट के हिसाब से काफी अच्छा था।

    आरांश ऐसी किसी जगह पर पहले कभी भी नहीं आया था वह तो जल्दी किसी भी जगह पर नहीं जाता था जब से उसके भाई की डेथ हुई थी तब से उसने जैसे बाहर की जगह की शक्ल देखना ही छोड़ दिया था और वह यह सब कुछ एकदम भूल चुका था लेकिन फिर भी इतनी भीड़ बढ़ वाली जगह कभी भी उसका प्रेफरेंस नहीं रहती थी वह हमेशा शांत और प्राइवेट टाइप वाली जगह पर जाना पसंद करता था पहले भी लेकिन उसका जुड़वा भाई जो कि उससे एकदम ऑपोजिट था वह हमेशा ही उसे अपने साथ खींचकर हर जगह पर ले जाया करता था और आरांश उसकी डेथ के बाद से यह सब कुछ बहुत मिस करता था और आज भी उसे यहां पर आने के बाद आयांश की याद आ गई और उसकी आंखों में आंसू भर आए।

    तारा ने भी उसे ऐसे मायूस होते हुए नोटिस कर लिया और बोली, "क्या हुआ आपको? जगह पसंद नहीं आई क्या वैसे यह जगह मेरे कॉलेज से काफी पास है और हम सारे लोग ज्यादातर यहां पर ही आते थे तो हमारे लिए यह जगह काफी जानी पहचानी और कंफर्टेबल है पता है यहां के स्टाफ तो हमारा नाम तक जान चुके हैं इतनी बार आते हैं हम यहां पर।"

    आरांश ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि तारा खुद ही आगे इतना सब कुछ बोलते जा रही थी। वह जल्दी किसी को बोलने का मौका देती भी नहीं थी और आरांश बोलना चाहता भी नहीं था।

    कुछ देर के बाद, एक सिक्स चेयर वाली बड़ी सी टेबल पर एकदम मिडिल विली चेयर में आरांश बैठा हुआ था और उसके साइड में तारा और उसे घेर कर तारा के चार - पांच दोस्त बैठे हुए थे।

    एक ने एक्स्ट्रा चेयर वहां पर लगाई हुई थी तो अब वहां पर टोटल सात चेयर थी जिन सातों पर लोग बैठे हुए थे और सब घूर घूर कर आरांश की तरफ ही देख रहे थे जो कि चुपचाप एक एक सिप लेकर अपनी कॉफी पी रहा था और काफी ऑकवर्ड फील कर रहा था, इतने सारे लोगों की नजर अपने ऊपर महसूस करके, अभी कुछ देर पहले ही वह सारे लोग वहां पर आए थे और आपस में बात कर रहे थे उन लोगों ने आरांश भी बोलने की कोशिश की लेकिन आरांश ने बस सबको हेलो बोला और उसके बाद से वह उन सब की बातें बस सुन रहा था।

    तारा की एक फ्रेंड अर्चना ने कहा, "क्या यार जीजू इतना कम बोलते हैं या फिर तू उन्हें डरा धमका कर यहां पर लाई है कि हम सब के सामने उन्हें चुप रहना है ताकि वह तेरी कोई पोल ना खोल दें।"

    इतना बोल कर वह हंसने लगी और उसकी बात सुनकर बाकी सारे दोस्त भी हंसने लगे लेकिन आरांश ने धीरे से अपना सिर हिलाया और तारा ने उसके कान में कहा, "देखिए क्या बोल रहे हैं यह सब लोग, कम से कम अब तो कुछ जवाब दीजिए इतनी देर से सब आपसे बात करना चाहते हैं और आप इन्हीं लोगों से तो मिलने आए हैं ऐसे चुपचाप बैठेंगे तो..."

    तारा की यह बात सुनकर आरांश बस एक नज़र देखा और कुछ भी नहीं कहा तारा ने एक गहरी सांस ली और वह समझ गई की चाहे वह जितनी भी कोशिश कर ले आरांश उसके दोस्तों से ज़्यादा कोई बात नहीं करने वाला तो फिर उसने ही बात संभालते हुए कहा, "नहीं वह आरांश जी असल में बहुत कम ही बोलते हैं और फिर पहली बार तुम लोगों से मिल रहे हैं ना शायद इसीलिए थोड़ा ऑकवर्ड हैं बाद में एक दो बार और मिलेंगे तो नॉर्मल हो जाएंगे।"

    नीरव बोला, "हां लगता है इंट्रोवर्ट है जीजू!"

    तारा की दूसरी फ्रेंड कृति ने कहा,"अगर इतना ही कम बोलते हैं तो तारा तू कैसे एडजस्ट करती है मतलब तू तो चुप ही नहीं रह सकती एक भी मिनट और जीजू तो ऐसे चुप है जैसे कि उनकी काॅफी में किसी ने फेवीक्विक मिला दिया हो।"

    उसकी यह बात सुनकर सब उसे हाई-फाई देते हुए हंसने लगे तो तारा ने अपने सिर पर हाथ मारा और अपने मन में परेशान होती हुई बोली, "क्या करूं मैं अपने दोस्तों का? बेवकूफ हैं सब के सब और आरांश जी तो सच में ऐसे चुपचाप बैठे हैं जैसे गूंगे बहरे हो चलो बोल नहीं रहे हैं कोई बात नहीं लेकिन उन सब की बातें तो सुनाई दे रही होगी ना, तो जवाब में कुछ तो बोल सकते हैं उन लोगों को अब मैं कहां तक कवर अप करूं!"

    तारा के दोस्त शिवम ने आरांश से पूछा, "वैसे जीजू आपको हमारी तारा कैसी लगी? मेरा मतलब है वह तो सबको पसंद आ जाती है वैसे कुछ लोगों को थोड़ी इरिटेटिंग भी लगती है लेकिन फाइनली अच्छी ही लगती है तो आप अपनी भी कुछ राय बताइए कम से कम अपनी वाइफ के बारे में.."

    वह सब तारा के काफी अच्छे दोस्त थे और उस से काफी ज्यादा क्लोज़ भी थे उन सब में तारा की शादी की सबसे पहले हुई थी इसलिए काफी ज्यादा एक्साइटेड भी थे।

    उसके हस्बैंड से मिलने को लेकर और उन लोगों को लगा था कि तारा का हस्बैंड भी उन सब की ऐज का ही है तो हो सकता है वह आसानी से उन लोगों के साथ घुल मिल जाए और उनके साथ भी दोस्त बन जाए लेकिन आरांश को देखकर तो उनके सब की सारी उम्मीदें ही टूट गई थी लेकिन फिर भी अपने नेचर के हिसाब से वह सब कुछ ना कुछ बात करने की कोशिश कर रहे थे।

    To Be Continued

    वैसे हमारी तारा तो सारी सिचुएशन कितनी अच्छी तरह से संभाल लेती है क्या आरांश को रियलाइज होगा कि जैसा कि उसके दोस्त कह रहे हैं सच में वह दोनों एक दूसरे के लिए परफेक्ट है और तारा उसके लिए एकदम परफेक्ट मैच क्या वह इस बात पर ध्यान देगा आज के बाद क्या लगता है आप लोगों को बताइए कमेंट में और पढ़ते रहिए यह स्टोरी 🥰👇

  • 20. His Unwanted Dulhan - Chapter 20

    Words: 1628

    Estimated Reading Time: 10 min

    20

    उसके हस्बैंड से मिलने को लेकर और उन लोगों को लगा था कि तारा का हस्बैंड भी उन सब की ऐज का ही है तो हो सकता है वह आसानी से उन लोगों के साथ घुल मिल जाए और उनके साथ भी दोस्त बन जाए लेकिन आरांश को देखकर तो उनके सब की सारी उम्मीदें ही टूट गई थी लेकिन फिर भी अपने नेचर के हिसाब से वह सब कुछ ना कुछ बात करने की कोशिश कर रहे थे।

    शिवम के इस सवाल पर तारा भी बड़ी उम्मीद के साथ आरांश की तरफ ही देखने लगी और आरांश थोड़ा सा घबरा गया उसे समझ नहीं आया कि इस बात का वह क्या जवाब दे क्योंकि उसने तो अब तक इस बारे में सोचा ही नहीं था वह अब तक बस तारा को खुद से दूर करने में ही लगा रहता था।

    वह कैसी है, कैसी नहीं है, उसे कैसी लगती है? यह सारी चीजें तो अब तक जैसे उसके मन में आई ही नहीं थी इसलिए तारा के दोस्त शिवम का यह सवाल सुनने के बाद उसने एक नज़र भरकर तारा की तरफ देखा और एकदम से बोला, "बहुत अच्छी!"

    उसने भले ही बस दो शब्द बोले लेकिन फिर भी तारा की आंखें एकदम तारों की तरह ही चमकने लगी और एक प्यारी सी मुस्कुराहट उसके होठों पर आ गई क्योंकि उसके सारे दोस्त उसे छेड़ने लगे थे और तभी उसके साइड में बैठी ज्योति ने कहा, "ओहो! क्या बात है तारा, बहुत अच्छी लगती हो तुम हमारे जीजू को मतलब उन्होंने तो पास कर दिया तुम्हें वो भी अच्छे नंबरों से, अब तुम बताओ।"

    तारा के सारे दोस्तों को ऐसे एक्साइटेड होते देखकर आरांश अपनी बात को कवर अप करने की कोशिश करते हुए कहा, "अरे मेरा मतलब है मेरी वाइफ है तो अच्छी ही होगी।"

    आरांश की यह बात सुनते ही कृति बोल पड़ी, "अरे बस करिए जीजू! सच तो वैसे भी सामने आ गया लेकिन सच बताऊं तो आप दोनों साथ में बहुत अच्छे लग रहे हो और एकदम परफेक्ट हो एक दूसरे के लिए! हमारी तारा एक्सट्रोवर्ट है ना, तो आप इंट्रोवर्ट हो वह इतना बोलती है कि लोगों के कान से खून निकल आए और आप तो बिल्कुल भी नहीं बोलते, अच्छा है वह आपके हिस्से का भी बोल लेती है।"

    अर्चना ने उन दोनों की साथ में बलाए लेते हुए कहा, "हां और क्या एकदम राम मिलाई जोड़ी है, बस किसी की नज़र ना लगे।"

    उन सब की ऐसी बातें सुनकर आरांश कुछ भी बोल नहीं पाया और तारा भी बस मुस्कुराते हुए शर्मा रही थी लेकिन थोड़ी देर बाद जब उसे लगा कि थोड़ा ज्यादा हो रहा था तो फिर वह सब को चुप कर आते हुए बोली, "अच्छा-अच्छा ठीक है, बस करो अब इतनी ज्यादा मेरी तारीफ़ करने की ज़रूरत नहीं है तुम लोग तो कुछ ज़्यादा ही ओवर बताते हो हर चीज़ इतना भी नहीं बोलती मैं, है ना आरांश जी?"

    इतना बोलकर तारा ने जैसे कंफर्मेशन के लिए आरांश की तरफ देखा तो आरांश ने ना चाहते हुए भी बस धीरे से अपना सिर हिला दिया।

    आरांश को ऐसे तारा की साइड लेते देख कर नीरव बोला, "हां जीजू तो अपनी वाइफ की ही साइड लेंगे ना, सही है।"

    भले ही आरांश ने ज्यादा कुछ नहीं बोला था लेकिन फिर भी वह लोग तारा की वजह से उसके हस्बैंड से मिलने के लिए इतना एक्साइटेड थे और मिलकर वह सारे लोग काफी खुश भी थे क्योंकि उनमें से कोई भी आरांश जैसा नहीं था वो सब एकदम तारा के जैसे थे, उसी की तरह हंसमुख और मिलनसार पर्सनैलिटी वाले। और हर सिचुएशन में खुश रहने वाले इसलिए उनमें से किसी ने भी आरांश को जज नहीं किया।

    वहां पर उन सब लोगों के बीच बैठा हुआ आरांश अब तक काफी ज्यादा इरिटेट हो गया था वहां पर वह जाना भी नहीं चाहता था लेकिन तारा और अपने घर वालों की जिंदगी वजह से उसे जाना पड़ा और अभी इरिटेशन उसके चेहरे पर एकदम साफ नजर आ रही थी सारे लोगों उन दोनों को बाय बोलकर वहां से चले गए और जैसे ही वह लोग वहां से निकले आरांश भी तुरंत ही उठकर खड़ा हो गया जबकि तारा वहां पर कुछ देर उसके साथ भी टाइम स्पेंड करना चाहती थी लेकिन आरांश एक सेकंड के लिए भी वहां पर नहीं रुका और तुरंत ही वहां उसे कैफे बाहर निकल आया।

    तारा ने अभी-अभी उन दोनों के लिए जो स्नैक्स और ड्रिंक ऑर्डर की थी उसने तुरंत ही वह कैंसिल की और आरांश के पीछे ही भागते हुए बाहर आ गई।

    वह आरांश को आवाज लगाते हुए वहां पर उसके पीछे आई लेकिन आरांश उसकी बात नहीं सुनी और सीधे कार की तरफ ही बढ़ गया तो फिर तारा को भी वहां पर आना पड़ा।

    तारा भी भागते हुए वहां पर आई और इस तरह दौड़कर आने की वजह से उसकी सांस थोड़ी चढ़ी हुई थी तो उसी तरह तेज चलती सांसों के बीच उसने बोला, "क्या हुआ आरांश जी, आप इतनी जल्दी क्यों बाहर आ गए, मैं आपको आवाज़ भी दे रही थी आपने मेरी आवाज़ भी नहीं सुनी।"

    आरांश उसकी बात का जवाब नहीं देना चाहता था लेकिन तारा ने उसके एकदम सामने खड़े होकर यह बात पूछी तो आरांश थोड़े गुस्से से कहा, "इतनी देर से तुम्हारी ही आवाज़ तो सुन रहा हूं कान पक गए हैं मेरे भी अब, जैसा तुम्हारा दोस्त बोल रहे थे सच में तुम उससे भी ज्यादा बकवास करती हो और जल्दी लग रहा है यह तुम्हें हम पिछले 5-6 घंटे से यहां पर बैठे हैं मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे जन्मों से और मुझे आदत नहीं है इन सब चीजों की इसलिए प्लीज मुझे फोर्स मत करो।"

    आज इतने दिनों में पहली बार ही आरांश ने उसे इतना कुछ एक बार में बोला था भले ही वह उसे बातें सुन रहा था लेकिन तारा को इस बात से फर्क नहीं पड़ता था आरांश एक साथ में इतनी सारी बातें बोली कि उसके लिए बहुत हैरानी की बात थी और वह अपने मुंह पर हाथ रखकर आरांश की तरफ देखते हुए एकदम सदमे से बोली, "हां क्या सच में, आपको इतना बोलना भी आता है, मुझे तो लगा ही नहीं था इतना कुछ बोला कैसे आपने एक सांस में? सच में यह आप की अब तक की सबसे लंबी लाइन है हमारी शादी से लेकर अब तक जो आपने मुझसे बोली है।

    आरांश ने उसे इतना कुछ सुनाया और तारा को उन सब से कुछ भी फर्क नहीं पड़ा और ना ही उसे एक भी परसेंट बुरा लगा, उल्टा वह इस बात को लेकर खुश हो रही थी कि आरांश ने आज पहली बार उससे इतनी ज्यादा बात की।

    भले ही वह उसे डांट रहा था या फिर उसे बातें सुना रहा था इस बात पर तो उसका ध्यान ही नहीं गया या फिर शायद जानबूझकर उसने इग्नोर किया, जो भी हो लेकिन आरांश का फ्रस्ट्रेशन और भी ज्यादा बढ़ गया और उसने एकदम गुस्से में कार का दरवाजा खोला और कर के अंदर बैठे हुए बोला, "You're unbelievable!"

    इतना बोलकर बहुत ही डिसएप्वाइंटमेंट से अपना सिर हिलाते हुए वो कार के अंदर बैठने लगा और बैठने के बाद वह कर का दरवाजा बंद कर पाता उससे पहले ही तो तारा भी उसी साइड से कार के अंदर आ गई और उसके बगल में बची हुई एकदम जरा सी जगह पर घुस कर बैठने की कोशिश करती हुई बोली, "डिफरेंट और यूनिक भी बोल सकते हैं उसको, आपको ना बिल्कुल भी किसी की तारीफ करना नहीं आता है। कोई बात नहीं, मैं सिखा दूंगी लेकिन पहले मुझे थोड़ी जगह दीजिए।"

    तारा की बात सुनकर आरांश बोला, "तुम दूसरी साइड से भी आ सकती थी, बट लीव इट!"

    लेकिन वह तारा को बात बढ़ाने का और मौका नहीं देना चाहता था इसलिए चुपचाप दूसरी साइड पर एकदम ही किनारे खिसक गया, तारा को बैठने के लिए लगभग पूरी सीट देते हुए लेकिन फिर भी तारा आगे आते हुए खिसककर उसके एकदम बगल में ही बैठ गई और अब उन दोनों के बीच में ज़रा सी भी जगह नहीं बची थी।

    आरांश के साइड में भी अब और ज्यादा जगह नहीं बची थी कि वह और ज्यादा उससे दूर जा पाता और तारा को तो हमेशा ही मजा आता था आरांश का ऐसा इरिटेट होता चेहरा देखकर तो अभी भी वह उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी और तभी आरांश ड्राइवर से कार स्टार्ट करके सीधा घर चलने के लिए बोल दिया तारा चुपचाप उसके साइड में ही बैठी हुई थी और कुछ देर के बाद वह लोग घर वापस आ गए।

    उन दोनों को घर वापस आते देख घर के बाकी सारे लोग भी काफी खुश हो गए क्योंकि इतने दिनों में आज पहली बार ही आरांश इतनी ज़्यादा देर के लिए घर से बाहर गया था। वह भी किसी के साथ! नहीं तो वह ज्यादातर अकेले ही घर से गायब रहता था और वह तारा के साथ ही वापस भी आया जिसकी शायद किसी को भी उम्मीद नहीं थी!

    उन लोगों को लगा था कि शायद कुछ ही देर में तारा से परेशान होकर वह उसे वहां पर छोड़कर ही वापस आ जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो सभी को काफी अच्छा लग रहा था लेकिन आरांश जैसे ही घर वापस आया उसने किसी से कुछ भी नहीं कहा बस सब लोगों की तरफ एक नजर देखा और कोई भी उससे कुछ बोल पाता या पूछ पाता उससे पहले ही वह सीधा अपने कमरे में चला गया।

    To Be Continued

    क्या आज आरांश तारा के साथ डिनर करेगा और तारा किस मिट्टी की बनी है जो उसे किसी बात का बुरा नहीं लगता बस क्या लगता है आप लोगों को ऐसा कोई होता है जिसे इतना कुछ सुनाने के बाद भी बुरा ना लगे और वह हर चीज को बस पॉजिटिव में लेता जाएं? रियल लाइफ में देखा है ऐसा कोई?

    देखा हो तो बताइए कमेंट में 👇👇🥰