(dark romance but innocently) ये कहानी है अवनी और अरमान की । अवनी जो बहत सिंपल और सीधी साधी लड़की थी । उस की शादी अर्जुन खुराना से होने वाला था । पर लास्ट मूमेंट पर कुछ ऐसा हुआ कि अवनी की शादी अर्जुन के जगह उस के बड़े भाई अरमान से हो गया । अरमान जो द... (dark romance but innocently) ये कहानी है अवनी और अरमान की । अवनी जो बहत सिंपल और सीधी साधी लड़की थी । उस की शादी अर्जुन खुराना से होने वाला था । पर लास्ट मूमेंट पर कुछ ऐसा हुआ कि अवनी की शादी अर्जुन के जगह उस के बड़े भाई अरमान से हो गया । अरमान जो दिखने में तो बड़ा था । पर दिमाग से एक छोटे बच्चे जैसा मासूम था । क्या अवनी इस नये रिश्ते को निभा पाएगी? क्या वह अरमान को समझ पाएगी और उसकी मासूमियत को स्वीकार करेगी? क्या अरमान, अपनी बचकानी हरकतों से बाहर आकर अवनी को एक सच्चे जीवनसाथी का सुख दे पाएगा? क्या अवनी और अरमान के बीच प्यार पनप पाएगा? या अवनी अर्जुन के विश्वासघात की छाया में जीती रहेगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी "My Innocent Husband"
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गाँव की उस पुरानी हवेली में आज एक अलग-सी रौनक थी। हवेली की दीवारें, जो समय के साथ पीली पड़ चुकी थीं, आज जैसे सूरज की किरणों के साथ मुस्कुरा रही थीं। सूरज की पहली सुनहरी किरणों ने जब खपरैल की छत को छुआ, तो हवेली जैसे पुरानी यादों को गुनगुनाने लगी।
आँगन में गुलाबी, नारंगी और सुनहरे रंग की झालरें हवा के हल्के झोंकों के साथ लहरा रही थीं, मानो कोई अनकहा गीत गा रही हों। सफेद चादर पर रंग-बिरंगे कुशन बिछे थे, और बीचोंबीच एक बड़ी-सी पीतल की थाली सजी थी, जिसमें हल्दी, चंदन, चावल और अनु के नाम की मेहंदी पहले से सजाकर रखी गई थी।
थाली के चारों ओर गेंदे के फूलों की माला थी, जो हवा में हल्की-सी सुगंध बिखेर रही थी।
आँगन में औरतों की हँसी और गीतों की लय गूँज रही थी। बुज़ुर्ग महिलाएँ पुराने पारंपरिक गीतों में ताल दे रही थीं, उनकी आवाज़ में वो गहराई थी जो पीढ़ियों से चली आ रही थी। “हाय रे, मेहंदी है रचने वाली, हाथों में गहरी लाली…”—ये गीत हवा में तैर रहा था।
जवान लड़कियाँ अपने फोन में हर पल को कैद करने में लगी थीं, कोई सेल्फी ले रहा था, कोई रील बना रहा था, और कोई चुपके से सहेलियों के साथ मज़ाक कर रहा था। रसोई में लगातार बर्तनों की खनक सुनाई दे रही थी।
कोई बेसन घोलकर पकौड़े तल रहा था, कोई गुलाब जामुन के गोले बना रहा था, और कोई आलू-प्याज़ काटते-काटते हर दो मिनट में बाहर झाँककर चिल्ला रहा था, “अरे, मेहंदी वाली अब तक आई कि नहीं? देर कर रही है, सूरज ढल जाएगा!”
हवेली का बरामदा आज खासा सजा हुआ था। वहाँ बैठे अनु के पिताजी के चेहरे पर एक अजीब-सा मिश्रण था—चिंता की रेखाएँ और बेटी की नई ज़िंदगी की शुरुआत का उल्लास। “कन्यादान का वक्त नज़दीक आ रहा है,” ये ख्याल उनके दिल को भारी कर रहा था।
उनकी आँखों में वो पल तैर रहे थे जब अनु छोटी-सी थी, उनके कंधों पर बैठकर हवेली के आँगन में दौड़ती थी। लेकिन आज वो उसी बेटी को पराये घर भेजने की तैयारी कर रहे थे। उनके बगल में बैठे कुछ रिश्तेदार शादी की तैयारियों की बातें कर रहे थे, कोई बारात की बात, कोई दहेज की, और कोई ये तारीफ कर रहा था कि हवेली को कितने सुंदर तरीके से सजाया गया है।
इस शोर-शराबे, हँसी-मज़ाक और प्यार भरे माहौल के बीच, हवेली की एक पुरानी खिड़की के पीछे अनु खड़ी थी। उसकी पीली साड़ी पर हल्दी की चमक थी, गालों पर हल्की लाली और आँखों में एक अनजाना डर, एक अनकही खुशी और अनगिनत ख्वाब। उसकी सहेलियाँ उसके इर्द-गिर्द मंडरा रही थीं।
कोई उसकी साड़ी का पल्लू ठीक कर रहा था, कोई उसके बालों में गजरा लगाने की कोशिश कर रहा था, और कोई चुपके से उसके कान में फुसफुसा रहा था, “अनु, कल से तू परायी हो जाएगी, कैसा लग रहा है? सच बता, अर्जुन से मिलने की जल्दी है ना?” अनु बस हल्के से मुस्कुरा देती, पर उसकी आँखें कुछ और कह रही थीं।
हवेली सिर्फ़ दीवारों और रंगों से नहीं सजी थी। हर कोना किसी याद, किसी रस्म, और किसी रिश्ते के रंग में रंगा था। ये अनु की शादी का हफ्ता था—एक बेटी के बचपन से दुल्हन बनने का आखिरी पड़ाव, और एक नई कहानी की पहली सुबह।
अनु का दिल उसकी चूड़ियों की खनक और पायल की मधुर झंकार के साथ थिरक रहा था। उसकी आँखों में अर्जुन की तस्वीर तैर रही थी—वही अर्जुन, जिसके साथ वो कॉलेज के दिनों से प्यार में थी।
अर्जुन का अंदाज़ थोड़ा फिल्मी था। उसे कैमरे से प्यार था, और एक्टिंग उसका जुनून थी। कॉलेज के दिनों में वो अक्सर अनु को टेरिस पर ले जाकर अपनी बनाई छोटी-छोटी फिल्में दिखाता। उसकी आँखों में एक चमक होती थी जब वो अपने सपनों की बात करता—मुंबई, थिएटर, बड़े पर्दे की दुनिया।
अनु को उसकी वो चमक बहुत प्यारी लगती थी। उसे बस इतना पता था कि वो अर्जुन से बेपनाह मोहब्बत करती थी। उसे लगता था कि अर्जुन के साथ ज़िंदगी हर पल एक खूबसूरत फिल्म की तरह होगी—कभी हँसी, कभी रोमांस, और कभी ड्रामा।
पर उसे नहीं पता था कि इस फिल्म में एक ऐसा ट्विस्ट आने वाला था, जो उसके सारे दृश्य बदल देगा।
हल्दी की रस्म
शादी से तीन दिन पहले हल्दी की रस्म थी। अनु को उसके ससुरालवालों ने एक छोटी-सी बारात के साथ हल्दी चढ़वाने के लिए बुलाया था। बारात में कुछ रिश्तेदार, ढोलक की थाप, और शहनाइयों की मधुर धुन थी। हवेली का आँगन और भी रंगीन हो उठा था। रस्में पुरानी थीं, पर हर चेहरे पर एक नई चमक थी।
औरतें गा रही थीं, “नंदलाल की जोड़ी बनी है प्यारी, अनु बनेगी अब दुल्हन हमारी…” गीतों की लय में ढोलक की थाप थी, और हवा में हल्दी और गुलाब की मिश्रित खुशबू। अनु की माँ की आँखें नम थीं, पर होंठों पर एक गर्वीली मुस्कान थी। हर दिल में एक ही नाम गूँज रहा था—अर्जुन।
लेकिन अर्जुन कहीं और था। वो हवेली की रौनक से कोसों दूर, अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था। बाहर शहनाइयों की आवाज़ थी, ढोलक की थाप गूँज रही थी, रिश्तेदार हँसी-मज़ाक में डूबे थे, पर अर्जुन की आँखें खाली थीं। उसकी आँखें किसी ठहरी हुई झील की तरह थीं—सतह शांत, पर अंदर लहरें बेकरार। उसकी माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखा और धीमे स्वर में पूछा,
“बेटा, सारा घर खुशियों में डूबा है, और तू यहाँ अकेला क्यों बैठा है? जैसे तुझे इस शादी की कोई ख़ुशी ही नहीं।”
अर्जुन ने जबरन एक मुस्कान चेहरे पर लाने की कोशिश की, “माँ, बस थोड़ा थक गया हूँ… सब कुछ इतना जल्दी-जल्दी हो रहा है, साँस लेने की फुर्सत नहीं।”
माँ ने उसके माथे पर प्यार से हाथ फेरा, “अरे, थकान तो हर दूल्हे को होती है। पर ये देख, अनु कितनी प्यारी लग रही है। तू उसका ध्यान रखना, बस यही मेरी दुआ है।”
पर अर्जुन का दिल जानता था—ये सिर्फ़ थकान नहीं थी। उसे मुंबई से एक फोन आया था—उस नामी थिएटर ग्रुप से, जिसके लिए वो पिछले तीन साल से रातों को जागकर रिहर्सल करता था। ऑडिशन का बुलावा आया था, ठीक उसी दिन, जब उसे अनु का दूल्हा बनना था। वो मौका, जिसके लिए उसने अपने दिन-रात एक कर दिए थे, अब उसके सामने था—लेकिन अनु और इस शादी के बीच।
रात को, जब हवेली की रौनक थम चुकी थी और सिर्फ़ टिमटिमाते दीयों की रोशनी बची थी, अर्जुन अपने कमरे में अकेला बैठा था। उसने अपनी पुरानी डायरी निकाली, जिसके हर पन्ने पर उसके सपनों के किरदार बिखरे थे—कभी राजा, कभी फकीर, कभी कवि, कभी विद्रोही। हर किरदार में कहीं न कहीं अर्जुन खुद था।
उसने एक पन्ना पलटा, और एक कोने में लिखी इबारत पढ़ी:
“सपनों को छूने के लिए, कभी-कभी अपनों से दूर जाना पड़ता है।”
उसने उस लाइन पर बार-बार उँगलियाँ फिराईं, और मन ही मन बुदबुदाया, “अगर मैं अब नहीं गया, तो शायद कभी नहीं जा पाऊँगा… और ये अर्जुन, जो आज है, हमेशा के लिए खो जाएगा।”
उधर, हवेली के दूसरे कोने में अनु बैठी थी। उसका चेहरा दुल्हन की तरह चमक नहीं रहा था। उसके माथे पर शिकन थी, और दिल में एक अजीब-सी हलचल। उसने अपनी सबसे करीबी सहेली से धीरे से कहा, “अर्जुन आज कुछ बदला-बदला सा क्यों लग रहा है? वो मेरे सामने होते हुए भी जैसे कहीं और खोया हुआ है…”
सहेली ने हँसकर बात टालने की कोशिश की, “अरे, शादी से पहले दूल्हे ऐसे ही होते हैं। तुझे याद करके घबराया होगा!”
पर अनु का दिल कुछ और कह रहा था। ये वो खोया होना नहीं था, जो प्यार में डूबे लोग महसूस करते हैं। ये वो खोया होना था, जो कोई अपने सपनों के पीछे भागते वक्त महसूस करता है।
अगली सुबह
अगली सुबह अनु की आँखें जल्दी खुल गईं, पर चेहरे पर वो निखार नहीं था, जो एक दुल्हन के चेहरे पर होना चाहिए। रात की बेचैनी उसकी आँखों के नीचे स्याह गोलों में उतर आई थी। उसने अर्जुन को फोन किया, बस एक बार सुनना चाहा, “तू ठीक है ना?” पर अर्जुन ने फोन उठाया, और फिर… कॉल काट दी। पहली बार।
अनु की साँस जैसे रुक गई। उसका दिल जैसे किसी ने मुठ्ठी में जकड़ लिया हो। “शायद व्यस्त है,” उसने खुद को तसल्ली दी, पर उसका मन मानने को तैयार नहीं था। उसने फिर से फोन लगाया, पर इस बार फोन बंद था। अनु चुप हो गई। उसके अंदर एक दरार-सी पड़ गई थी, पर उसने किसी से कुछ नहीं कहा।
हवेली में मेहंदी की रस्म की तैयारियाँ चरम पर थीं। आँगन में रंगीन चादरें बिछ चुकी थीं, सजी हुई कुर्सियों की कतारें थीं, और बीच में एक छोटी-सी चौकी, जहाँ अनु को मेहंदी लगनी थी। ढोलक की थाप पर गीत गूँज रहे थे, “मेहंदी है रचने वाली, हाथों में गहरी लाली…” औरतें हँसी-ठिठोली में डूबी थीं, “देखो, दुल्हन के गाल कैसे लाल हो रहे हैं!” पर कोई नहीं जानता था कि वो लाली शर्म की नहीं, उलझन की थी।
अनु ने अपनी हथेलियाँ मेहंदी वाली के सामने फैलाईं। मेहंदी वाली ने नफासत से डिज़ाइन बनाना शुरू किया—पत्तियाँ, बेलें, फूल। अनु की नज़रें हर बेल, हर पत्ते पर सिर्फ़ एक चीज़ ढूँढ रही थीं—‘अ’… अर्जुन का पहला अक्षर।
उसकी होंठों पर हल्की-सी मुस्कान थी, पर आँखें काँप रही थीं। किसी ने हँसकर कहा, “दुल्हन की मेहंदी जितनी गहरी चढ़े, प्यार उतना ही गहरा होता है।” अनु ने हल्के से सिर हिलाया, पर मन में वही सवाल गूँज रहा था, “शायद व्यस्त है।”
अर्जुन अपनी डायरी, अपने सपनों, और एक भारी मन के साथ निकल पड़ा—मुंबई की ओर, जहाँ उसका सपना इंतज़ार कर रहा था। उसने सोचा था कि वो अनु को बाद में समझा देगा, कि उसका जाना कितना ज़रूरी था। उसने अपने पिताजी को एक छोटा-सा मैसेज भेजा, “प्लीज़ मुझे माफ करना। मैं लौटकर सब ठीक कर दूँगा।” और फिर वो गायब हो गया।
जब ये खबर हवेली में पहुँची, तो जैसे समय ठहर गया। अनु की माँ बेहोश हो गईं, पिताजी को दिल का दौरा पड़ते-पड़ते बचा। रिश्तेदारों में खुसर-पुसर शुरू हो गई। कोई बोला, “लड़का भाग गया, अब क्या होगा?” कोई ताने मारने लगा, “लड़की की शादी नहीं हुई, तो समाज क्या कहेगा?” हवेली की रौनक एक पल में सन्नाटे में बदल गई।
सबसे ज्यादा टूटने वाली थी अनु। वो शादी का जोड़ा पहनकर तैयार बैठी थी। उसकी आँखों में काजल बह चुका था, पलकें सूख चुकी थीं, और चेहरे पर सवाल ही सवाल थे। “क्या मेरा प्यार इतना कमज़ोर था?” “क्या मेरे सपने अर्जुन के करियर से छोटे थे?” उसने अपनी हथेलियों पर लगी मेहंदी को देखा, जो अभी पूरी तरह सूखी भी नहीं थी। उसमें अर्जुन का नाम कहीं नहीं था।
तभी किसी ने धीमे स्वर में सुझाव दिया, “मान को मंडप में बैठा दो।” मान—अर्जुन का बड़ा भाई। उम्र में बड़ा, पर दिल से मासूम। वही, जो खिलौनों से खेलता था, जो हर वक्त हँसता रहता था, जिसे दुनिया की समझ कम थी। वो हमेशा अपने छोटे भाई अर्जुन को देखकर मुस्कुराता था, जैसे अर्जुन उसका हीरो हो।
अनु के पिताजी ने पहले तो सिरे से इंकार कर दिया। “ये क्या बेहूदा बात है?” उन्होंने गुस्से में कहा। पर रिश्तेदारों ने दबाव बनाया, “समाज की इज्ज़त का सवाल है। अगर शादी टूटी, तो गाँव में क्या मुँह दिखाएँगे?” अनु की माँ ने रोते हुए कहा, “मेरी बेटी का क्या होगा? उसका घर कैसे बसेगा?” हालात और समाज के सामने पिताजी को झुकना पड़ा।
अनु चुप थी। उसने न हाँ कहा, न ना। उसकी आँखें खाली थीं, जैसे उसका दिल किसी ने खाली कर दिया हो। उसने बस अपना आँचल संभाला, सिर झुकाया, और मंडप की ओर चल पड़ी। मान वहाँ बैठा था—उसके चेहरे पर वही मासूम मुस्कान, जैसे उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा हो। वो बार-बार अपने हाथों में पकड़ा हुआ खिलौना घुमा रहा था, और बीच-बीच में अनु की ओर देखकर हल्के से हँस देता था।
क्या अनु अपनी टूटी उम्मीदों और इस अनचाहे रिश्ते के साथ मान को स्वीकार कर पाएगी?
क्या मान की मासूमियत अनु के टूटे दिल को जोड़ पाएगी?
अर्जुन का जाना सिर्फ़ एक हादसा था, या इसके पीछे कोई गहरा राज़ छुपा है?
क्या मान उस ज़िम्मेदारी को समझ पाएगा, जो अब उसके कंधों पर आ गई है?
क्या ये अनोखा रिश्ता, जो दर्द और मजबूरी से शुरू हुआ, कभी प्यार में बदल पाएगा?
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सुबह की पहली किरण
सुबह की पहली किरणों ने जब हवेली की चौखट को छुआ, तो वहाँ बिछी रंगोली जैसे रंगों का जादू बिखेर रही थी। गेंदे के फूलों और चावल के दानों से बनी रंगोली में हर रेखा, हर बिंदु एक नई शुरुआत का वादा कर रहा था।
हवेली के पुराने लकड़ी के दरवाजों पर आम के पत्तों और गुलाब की मालाओं से बने तोरण बंधे थे, जो हवा के हल्के झोंकों में लहरा रहे थे। अंदर आँगन में गृहप्रवेश की तैयारियाँ जोरों पर थीं। हवेली की दीवारें, जो समय के साथ पीली पड़ चुकी थीं, आज जैसे नई बहू के स्वागत के लिए मुस्कुरा रही थीं।
शादी की रात एक तूफान की तरह बीत चुकी थी। अर्जुन का अचानक चले जाना, उसका वो मैसेज—“प्लीज़ मुझे माफ करना, मैं लौटकर सब ठीक कर दूँगा”—हर किसी के दिल में एक काँटा बनकर चुभ गया था। लेकिन घरवालों ने जैसे उस तूफान को भूलने की ठान ली थी। अब हर नज़र इस बात पर थी कि नई बहू को कैसे स्वागत के साथ घर में लाया जाए।
आँगन में सफेद चादर बिछी थी, उस पर रंग-बिरंगे कुशन सजे थे, और बीच में एक छोटी-सी चौकी रखी थी, जहाँ गृहप्रवेश की रस्म होनी थी। हवा में गुलाब और चंदन की मिश्रित सुगंध थी, और ढोलक की हल्की थाप के साथ औरतों के गीत गूँज रहे थे, “आज लक्ष्मी आएगी, घर में सुख लाएगी…”
मान, जो अब तक किसी जिम्मेदारी से कोसों दूर रहा था, सिर पर सेहरा बांधे, हाथ में अनु की डोल पकड़े खड़ा था। उसकी आँखों में एक अजीब-सी जिज्ञासा थी, जैसे किसी बच्चे को नया खिलौना मिल गया हो।
उसका चेहरा मासूम था, और उसकी हर हरकत में एक अनजानी मासूमियत थी। वो बार-बार अपने सेहरे को ठीक करता, फिर अनु की ओर देखकर हल्के से मुस्कुरा देता, जैसे उसे समझ नहीं आ रहा हो कि अब क्या करना है।
अनु, घूंघट में छुपी हुई, चुपचाप हर रस्म को निभाने को तैयार थी। उसकी पीली साड़ी पर हल्दी की चमक अभी भी थी, और माथे का सिंदूर उसे किसी और की पहचान दे रहा था। उसका मन खाली था, जैसे कोई समंदर जिसके तट पर लहरें आना भूल गई हों।
उसका चेहरा शांत था, लेकिन आँखों में एक गहरा सूनापन छुपा था, जिसे कोई पढ़ नहीं पा रहा था। वो हर रस्म को यंत्रवत निभा रही थी, जैसे कोई नाटक का किरदार जो अपनी स्क्रिप्ट भूल चुका हो।
दरवाजे पर मान की माँ ने आरती की थाली उठाई। थाली में दीया जल रहा था, और उसकी लौ हवा में हल्के से काँप रही थी। उन्होंने मान और अनु को द्वार पर रोककर कहा, “पहले लक्ष्मी जी के पैर घर में पड़ें, फिर हमारा बेटा अपनी नई ज़िंदगी की शुरुआत करे।” उनकी आवाज़ में प्यार था, लेकिन कहीं न कहीं एक हल्की-सी चिंता भी थी, जैसे वो जानती थीं कि ये रिश्ता सामान्य नहीं है।
अनु ने धीरे-धीरे पाँव आगे बढ़ाए। उसने पीतल के कलश को छुआ, और उसे हल्के से गिराया। चावल के दाने ज़मीन पर बिखर गए, और हर दाने में जैसे उसकी टूटी उम्मीदों की कहानी बिखर रही थी। लेकिन आँगन में मौजूद लोगों को क्या दिखता? किसी ने तालियाँ बजाईं, किसी ने शगुन की आवाज़ की—“शुभम, शुभम!” घर में रौनक लौट आई थी, जैसे वो तूफान कभी आया ही न हो।
मान ने अनु की ओर देखा और एक भोली, मासूम मुस्कान दी, जिसमें कोई छल नहीं था, कोई सवाल नहीं था, बस एक साफ़-सुथरा अपनापन था। उसकी आँखों में वो चमक थी, जो बच्चों में होती है—जो दुनिया को बिना किसी फ़िल्टर के देखते हैं। अनु ने उसकी मुस्कान देखी, और एक पल के लिए उसका मन हल्का हुआ, पर फिर वही सूनापन लौट आया।
गृहप्रवेश के बाद घर के बड़े-बुज़ुर्गों ने मान और अनु को एक साथ पूजा के लिए बिठाया। पंडित जी ने मंत्र पढ़े, और हवन की आग की लपटें हवा में ऊँची उठ रही थीं। अनु के हाथों में पूजा की थाली थी, और मान बार-बार उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रहा था, जैसे उसे ये सब एक खेल लग रहा हो। पूजा के बाद वो रस्म आई, जिसका सबको इंतज़ार था—अंगूठी ढूँढने की रस्म।
एक बड़ी-सी पीतल की थाली में दूध, गुलाब की पंखुड़ियाँ, और हल्दी घोली गई थी। उसमें दोनों की शादी की अंगूठियाँ डाली गईं। औरतें हँसी-मज़ाक में डूब गईं। “जो पहले अंगूठी निकालेगा, उसी की चलेगी!” एक चाची ने चुटकी ली। “अरे, नई बहू को मौका दो, दूल्हा तो पहले ही जीत चुका है!” दूसरी ने हँसते हुए कहा।
अनु ने चुपचाप अपने हाथ थाली में डाले। उसकी उँगलियाँ दूध में डूबीं, लेकिन उसका मन कहीं और था। उसे अर्जुन की वो आखिरी बात याद आ रही थी, जब उसने कहा था, “अनु, तुम मेरे लिए हमेशा खास रहोगी।” वो शब्द अब जैसे खोखले लग रहे थे।
उधर, मान ने पहले चारों ओर देखा, जैसे उसे समझ नहीं आ रहा हो कि क्या करना है। फिर उसने धीरे-धीरे उँगलियाँ दूध में डुबाईं। वो थोड़ा घबरा गया था। गुलाब की पंखुड़ियों को हटाते हुए वो अंगूठी तलाशने लगा, लेकिन हर बार उसकी उँगलियाँ अनु की उँगलियों से टकरा जातीं।
वो झेंप जाता, हल्के से मुस्कुराता, और फिर कोशिश करता। अनु को ये सब अजीब लग रहा था। उसकी ज़िंदगी की सबसे गंभीर घड़ी में ये खेल उसे बेमानी-सा लग रहा था। लेकिन मान की मासूम कोशिशें उसे कुछ पल के लिए उस दर्द से दूर ले गईं, जो उसके दिल में चुभ रहा था।
आखिरकार, मान की उँगलियों में अनु की अंगूठी फँसी। उसने उसे ऊपर उठाकर सबको दिखाया, और पूरा आँगन तालियों से गूँज उठा।
“दामाद जी की चलेगी!” एक चाची ने मज़ाक किया। “लगता है बहुत होशियार हैं!” दूसरी ने हँसते हुए कहा। मान ने अनु की ओर देखा, उसकी आँखों में एक चमक थी, जैसे उसने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली हो। अनु ने पहली बार उसकी आँखों में गौर से झाँका। वहाँ सिर्फ़ मासूम जिज्ञासा थी—कोई बनावट नहीं, कोई डर नहीं, बस एक साफ़-सुथरी उम्मीद।
रात का माहौल
रस्मों के बाद रात का समय आया। कमरे को फूलों, सुगंधित दीपों, और तकियों से सजाया गया था। गुलाब की पंखुड़ियाँ बिस्तर पर बिखरी थीं, और दीवारों पर दीयों की छाया नाच रही थी। बाहर औरतें मज़ाक में कह रही थीं, “अब दूल्हे राजा को अपनी रानी को गोद में उठाकर अंदर ले जाना पड़ेगा।” मान पहले सकपकाया।
उसकी आँखों में हल्का-सा डर था, जैसे उसे यकीन नहीं था कि वो ये रस्म निभा पाएगा। लेकिन जब उसकी माँ ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा, “जा बेटा, ये रीति है,” तो वो धीमे क़दमों से अनु की ओर बढ़ा।
अनु साड़ी का पल्लू सँभालते हुए चुपचाप खड़ी थी। उसने एक पल पीछे देखा, जैसे कोई रास्ता ढूँढ रही हो। लेकिन हवेली के सारे दरवाज़े जैसे बंद हो चुके थे।
मान ने झिझकते हुए उसके पास आकर धीरे से कहा, “मैं तुम्हें गिराऊँगा तो हँसना नहीं, ठीक है?” उसकी मासूम बात पर अनु का चेहरा पहली बार हल्का-सा मुस्कराया। उस मुस्कान में थोड़ा दर्द था, थोड़ी राहत थी।
मान ने उसे गोद में उठाया—धीरे से, संभलकर, जैसे कोई नाज़ुक चीज़ थाम रहा हो। उसके चेहरे पर डर और विश्वास दोनों थे। घर की औरतों ने शोर मचाया, “वाह! हमारा दूल्हा तो शेर निकला!” मान, अनु को लिए कमरे की ओर बढ़ चला।
दरवाजे तक पहुँचते-पहुँचते अनु का सिर उसके कंधे पर टिक चुका था—शायद थकावट से, या शायद उस मासूमियत से, जो उसे थोड़ा सुकून दे रही थी।
कमरे में पहुँचकर मान ने अनु को धीरे से पलंग पर बिठाया और खुद एक कोने में बैठ गया। वो कुछ नहीं बोला, बस मुस्कराता रहा। कमरे की दीवारों पर गुलाब की छाया थी, और बीच में दो अनजाने लोग थे—एक, जिसने सब कुछ खोकर ये रिश्ता निभाना चुना था, और दूसरा, जिसने कुछ समझे बिना ये रिश्ता पाया था। दोनों खामोश थे, लेकिन उस खामोशी में एक नई शुरुआत की हल्की-सी आहट थी।
अगली सुबह
सुबह की पहली किरण जब खिड़की की हल्की-सी दरार से कमरे में घुसी, तो सन्नाटा एक धीमी रोशनी से भर गया। फूलों की मुरझाई पंखुड़ियाँ ज़मीन पर बिखरी थीं, और तकिए इधर-उधर खिसके हुए थे, जैसे रात ने धीरे से एक नई कहानी लिखी हो। अनु की नींद टूटी, तो उसने देखा कि मान अब भी सो रहा था।
उसका चेहरा शांत था, जैसे कोई बच्चा माँ की गोद में थककर सो गया हो। उसकी आँखों के नीचे हल्की-सी मुस्कान रुकी हुई थी। अनु कुछ देर उसे देखती रही, जैसे पहली बार ये समझने की कोशिश कर रही हो कि इस अजनबी के साथ उसे पूरी ज़िंदगी बितानी है।
वो चुपचाप उठी, अपनी चुनरी ठीक की, और कमरे से बाहर निकल गई। दहलीज़ पर कदम रखते ही घर की बहुओं ने उसे घेर लिया। “नई बहू की पहली सुबह मुबारक हो!” किसी ने माथे पर टीका लगाया, किसी ने पूजा की थाली थमाई।
अनु ने चुपचाप सब निभाया, जैसे कोई नाटक का किरदार हो, जिसे अपनी भूमिका निभानी ही है। उसकी मुस्कान में शिष्टता थी, लेकिन आँखों में वही सूनापन। उसने रसोई की ओर देखा, जहाँ पहले से सब तैयार था, लेकिन वो जान गई कि अब उसे इस घर की ज़िम्मेदारियों का हिस्सा बनना होगा।
जब तक अनु पूजा और बाकी रस्में निभा रही थी, मान की नींद टूटी। उसने बिस्तर के चारों ओर देखा और सबसे पहले आवाज़ लगाई, “अनु… तुम?” उसकी मासूम आवाज़ में थोड़ी घबराहट थी, जैसे उसे डर था कि अनु कहीं चली गई हो। फिर वो जल्दी से उठा और दरवाज़े तक पहुँचकर बाहर झाँका। अनु की साड़ी की झलक देखकर उसने चैन की साँस ली। फिर वो मुस्कराया और धीरे-धीरे रसोई तक पहुँच गया, जहाँ औरतें उसे देखकर हँस पड़ीं।
“दूल्हे राजा तो चाय माँगने चले आए!” एक चाची ने मज़ाक किया। मान झेंप गया, लेकिन फिर बोला, **“मैं चाय नहीं, अनु को देखने आया हूँ। वो ठीक है ना?”** सब हँसने लगे, और अनु ने पहली बार खुलकर मुस्कराया। उस मुस्कान में एक कोना ऐसा था, जहाँ दर्द था, लेकिन मान की मासूमियत ने उस दर्द पर हल्का-सा मरहम लगाया था।
अनु चाय की ट्रे लेकर आँगन की ओर बढ़ी, और मान उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। दोनों की ये खामोश चाल, कुछ कहे बिना भी बहुत कुछ कह रही थी। आँगन में बैठकर जब उन्होंने साथ में पहली बार चाय पी, तो हवाओं में कुछ नया था—एक धीमी, सच्ची शुरुआत।
दिन का माहौल
दिन भर घर में मेहमानों की आवाजाही लगी रही। कुछ लोग अनु को देखकर फुसफुसाते, “बेचारी… अर्जुन की जगह किस्मत ने ये दिया।” तो कुछ कहते, “मान को देखो, कितना भोलाभाला है। बस प्यार की ज़रूरत है।” हर बात अनु के कानों तक पहुँचती, लेकिन उसने सब अनसुना करने की आदत डालनी शुरू कर दी थी।
शाम को जब मेहमान चले गए और घर फिर से शांत हो गया, अनु ने कमरे में आकर खुद को आईने में देखा। माथे का सिंदूर और गले का मंगलसूत्र उसे अब भी अजनबी लग रहे थे। उसी वक्त मान पीछे से आया और धीरे से बोला, “तुम थक गई हो ना? चाहो तो मैं बाहर सो जाऊँ।” उसकी आवाज़ में कोई बनावट नहीं थी—बस एक साफ़- सुथरा ख्याल, जैसे उसे सचमुच अनु की फिक्र थी।
अनु ने एक पल उसे देखा, फिर सिर झुका लिया। वो नहीं जानती थी कि इस मासूम से क्या कहे, कैसे बात करे। मान पलंग के कोने में बैठ गया और बोला, “मुझे नहीं पता शादी का क्या करना होता है… लेकिन मैं तुम्हें तकलीफ़ नहीं देना चाहता।” ये शब्द सुनकर अनु की आँखों में एक पल को नमी तैर गई। उसने बिना कुछ कहे अपना पल्लू ठीक किया और पास की कुर्सी पर बैठ गई।
कमरे में एक लंबी चुप्पी छा गई, जिसमें सिर्फ़ दीवार घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी। लेकिन उस चुप्पी में मान की मासूम भावनाएँ और अनु की उलझी सोच जैसे एक-दूसरे से बात कर रही थीं। रात फिर से उसी पलंग पर आई, जहाँ दो लोग थे—एक जो बस निभा रहा था, और एक जो समझने की कोशिश में उलझा था। बाहर चाँद बादलों में छिप रहा था, जैसे उनकी भावनाओं की उलझनों में खो गया हो।
- क्या अनु मान की मासूमियत में अपने टूटे दिल का सुकून ढूँढ पाएगी?
- क्या मान सच में सिर्फ़ मासूम है, या उसकी मासूमियत के पीछे कोई गहरा सच छुपा है?
- क्या ये रिश्ता वक्त के साथ मजबूत होगा, या सिर्फ़ समझौते में सिमट जाएगा?
- क्या अनु कभी अर्जुन को भूल पाएगी, या उसकी परछाई उनके रिश्ते पर हमेशा बनी रहेगी?
- क्या मान अपने बचपने से बाहर आकर एक सच्चे पति की भूमिका निभा पाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए ये कहानी…
रात की खामोशी
हवेली की उस रात में एक अजीब-सी खामोशी पसरी थी। कमरे की दीवारों पर गुलाब की पंखुड़ियों की छाया अब धीरे-धीरे मुरझा रही थी, और दीयों की लौ थककर काँपने लगी थी। अनु ने बिना कुछ कहे अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया, जैसे अपनी बिखरी हुई भावनाओं को समेटने की कोशिश कर रही हो।
सिर झुकाए वो धीरे-धीरे कमरे के कोने में रखी पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर बैठ गई। उसका चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था, लेकिन उसकी उँगलियाँ पल्लू के किनारे को बेचैनी से मरोड़ रही थीं—एक अनजानी घबराहट और असमंजस की निशानी।
कमरे में सन्नाटा था। सिर्फ़ दीवार पर लगी पुरानी घड़ी की टिक-टिक हर पल ये एहसास दिला रही थी कि वक़्त तो चल रहा है, लेकिन अनु और मान की ज़िंदगी जैसे किसी अनकहे मोड़ पर अटक गई थी। मान पलंग के एक कोने में बैठा था, पीठ दीवार से टिकी हुई।
उसकी आँखें छत की ओर टिकी थीं, जैसे कोई अदृश्य जवाब तलाश रही हों। वो कुछ कहना चाहता था—शायद बहुत कुछ—लेकिन शब्द जैसे उसके गले में अटक गए थे। उसकी उँगलियाँ बार-बार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को छू रही थीं, जैसे वो समय को थामने की कोशिश कर रहा हो।
अनु के मन में सवालों का तूफान था। “क्या मैं सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी हूँ? क्या इस रिश्ते में कभी कोई एहसास जागेगा? क्या ये बस एक समझौता है, या कहीं कोई उम्मीद छुपी है?”
उसकी सोच उस कमरे की चुप्पी से टकरा रही थी, जवाबों की तलाश में। दोनों के बीच कुछ फीट की दूरी थी, लेकिन दिलों के बीच मीलों का फासला।
रात गहराती गई। बाहर हवाओं में नमी घुल गई थी। कहीं दूर कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आई, फिर सब शांत हो गया। मान ने धीरे से करवट ली। उसने देखा कि अनु अब भी वैसे ही बैठी है, पल्लू को मरोड़ते हुए।
वो कुछ कहना चाहा, लेकिन फिर चुप रह गया। कुछ देर बाद, जैसे थक हार कर, अनु चुपचाप उठी और पलंग के दूसरे किनारे पर लेट गई। उनके बीच कोई तकिया नहीं था, लेकिन एक दीवार थी—अल्फाज़ों की कमी, भावनाओं की उलझन, और अर्जुन की परछाई की।
बत्ती बुझ गई, लेकिन दोनों के भीतर के सवाल अब भी जाग रहे थे।
सुबह की शुरुआत
सुबह की धूप खिड़की के झीने पर्दों से छनकर कमरे में फैल रही थी। हल्की-सी रोशनी जैसे धीरे-धीरे कमरे को जगा रही थी। दीवार पर लगी घड़ी की सुइयाँ एक नई शुरुआत का संकेत दे रही थीं। अनु धीरे-धीरे जागी। उसकी पलकें भारी थीं, लेकिन दिल में एक अजीब-सी हलचल थी—नया घर, नई ज़िम्मेदारियाँ, और एक अजनबी रिश्ता जो अब उसका था।
उसने आँखें मलते हुए चारों ओर देखा। कमरे की हर चीज़ नई थी—पुरानी लकड़ी की अलमारी, दीवार पर टँगी एक सादी-सी पेंटिंग, और बिस्तर पर बिखरी मुरझाई पंखुड़ियाँ। लेकिन सबसे नया था वो एहसास, जो अब इस घर का हिस्सा बन चुका था।
उसकी नज़र मान पर पड़ी, जो सिरहाने बैठे हुए नींद में हल्की-सी मुस्कान के साथ सो रहा था। उसका चेहरा शांत था, जैसे किसी सपने में खोया हो। वो मुस्कान इतनी मासूम थी कि अनु के दिल को छू गई। एक पल के लिए उसकी सारी उलझनें थम गईं। “क्या ऐसा ही होता है… जब इंसान दिल से थक जाए, तो मुस्कान सपनों में मिलती है?” उसने मन ही मन सोचा।
वो चुपचाप उठी, अपने बिखरे दुपट्टे को ठीक किया, और धीरे से अलमारी की ओर बढ़ी। उसने काँच की चूड़ियाँ निकालीं, और जैसे ही उन्हें पहना, उनकी खनक ने कमरे की खामोशी को तोड़ दिया। फिर वो आईने के सामने खड़ी हुई और अपनी माँग में सिंदूर भरा—धीरे-धीरे, सावधानी से, जैसे ये सिंदूर सिर्फ़ एक रस्म नहीं, बल्कि खुद से किया गया एक वादा हो।
उसने खुद को आईने में देखा। माथे का सिंदूर और गले का मंगलसूत्र अब भी उसे अजनबी लग रहे थे, लेकिन कहीं न कहीं एक हल्का-सा विश्वास जाग रहा था।
वो पलंग से नीचे उतरी और दरवाज़े की ओर बढ़ी। आज उसकी पहली रसोई की रस्म थी, जहाँ उसे पूरे परिवार के लिए खाना बनाना था।
पहली रसोई
रसोई में पहले से हलचल थी। बुआ जी कुछ निर्देश दे रही थीं, और मामी जी बेसब्री से नाश्ते का इंतज़ार कर रही थीं। अनु ने धीरे से कहा, “मैं कुछ बना लूँ?” उसकी आवाज़ में हल्की-सी झिझक थी। बुआ जी मुस्कराईं और बोलीं, “आज पहली रसोई है, बहू। कुछ मीठा ज़रूर बनाना। ये घर की रीत है।” अनु ने सिर हिलाया और रसोई के स्लैब पर रखे बर्तनों को एक-एक कर सहेजने लगी। उसके अंदर एक अजीब-सी ऊर्जा थी—डर, उत्साह, और एक अनकहा आत्मबल।
उसके हाथों में चूड़ियों की खनक, माथे पर सिंदूर की लाली, और आँखों में एक नई उम्मीद थी। उसने हलवा बनाना शुरू किया। गंध फैलते ही रसोई में एक अलग-सी रौनक आ गई। बुआ जी ने पास आकर कहा, “सुंदर खुशबू आ रही है, बहू। लगता है तू इस घर को जल्दी अपना लेगी।” अनु ने हल्के से मुस्कुराया, लेकिन उसकी आँखों में वही सूनापन था।
जब हलवा तैयार हुआ, तो उसे थाली में सजाया गया। पूरा परिवार डाइनिंग टेबल पर इकट्ठा हो गया। सबने अनु के बनाए हलवे की तारीफ़ की। मान ने तो दो बार लिया और बच्चों की तरह बोल पड़ा, “इतना टेस्टी! तुम रोज़ बना सकती हो?” उसकी मासूमियत पर सब हँस पड़े। अनु की आँखों में पहली बार आत्मविश्वास की एक हल्की-सी चमक आई। लेकिन उस चमक के पीछे अब भी एक छाया थी—अर्जुन की। हर बार जब कोई मुस्कुराता, उसे याद आता कि वो ये सब अर्जुन के साथ करने का सपना देखती थी।
दिन बीतते गए, और हर दिन अनु और मान के बीच एक नई बातचीत होती। मान उसके सामने अपनी पुरानी कहानियाँ सुनाता—कभी स्कूल के दिन, कभी अपने खिलौनों की बातें, और कभी मासूम सवाल पूछता, “अनु, तुम मेरे साथ पतंग उड़ाओगी?” अनु कभी मुस्कुरा देती, कभी चुप रहती। उसके मन में एक युद्ध चल रहा था—क्या वो मान को पति मान सकेगी, या वो हमेशा एक बच्चे की तरह ही रहेगा उसकी नज़रों में?
एक दिन मान ने उसे एक ड्रॉइंग दिखाई। उसमें दो लोग थे, हाथ में हाथ डाले, और पीछे एक बड़ा-सा दिल बना था। “ये हम हैं,” उसने बड़ी मासूमियत से कहा। अनु ने ड्रॉइंग को देखा, और उसके मन में हलचल-सी हुई। वो सोचने लगी—क्या सच में मान उसे खुश रख पाएगा? क्या इस मासूमियत में वो प्यार छुपा है, जिसकी उसे तलाश है?
परिवार अब धीरे-धीरे अनु को स्वीकार कर रहा था। दादी ने एक दिन अपने गहनों का डिब्बा लाकर उसके सामने रखा और कहा, “ये अब तेरे हैं।” अनु ने थोड़ी देर देखा, फिर हाथ जोड़ लिए, “दादी, अभी नहीं।” दादी मुस्कुराईं और मन ही मन सोचा, “समझदार है, अच्छा है।”
उसी शाम माँ जी ने उसे चाय के साथ बुलाया और प्यार से कहा, “हम जानते हैं, ये रिश्ता तुम्हारे लिए आसान नहीं है। लेकिन हम सब तुम्हारे साथ हैं।” ये शब्द अनु के दिल तक पहुँचे। उसे पहली बार लगा कि शायद ये रिश्ता उतना बोझ नहीं है, जितना उसने सोचा था।
लेकिन हर रात, जब वो बिस्तर पर जाती और मान उसके पास लेटता, वो असहज हो जाती। मान कभी कुछ गलत नहीं करता था, लेकिन उसकी मासूम मौजूदगी भी अनु के अंदर की टूटन को हिला देती थी।
एक रात मान ने पूछा, “क्या मैं तुम्हारा दोस्त बन सकता हूँ?” अनु ने थोड़ी देर चुप रहकर कहा, “शायद… वक़्त के साथ।” उस जवाब में एक उम्मीद थी, लेकिन उस उम्मीद के पीछे अर्जुन की परछाई अब भी थी।
एक दिन अनु ने अपनी सहेली को चुपके से फोन लगाया और कहा, “पता नहीं, ये रिश्ता सही है या नहीं… लेकिन मान की आँखों में कुछ है, जो बहुत सच्चा है।” उसी दिन शाम को मान उसे बगिया में ले गया। वहाँ एक छोटा-सा गुलाब का पौधा था, जिसे उसने खुद लगाया था। “ये तुम्हारे लिए,” उसने मासूमियत से कहा।
“तुम रोज़ इसे देखना।” अनु ने हैरानी से उसकी ओर देखा। एक पल को उसे अर्जुन की जगह मान दिखा—एक ऐसा इंसान, जो अपने तरीके से कोशिश कर रहा था। शायद यही प्यार की शुरुआत थी—जहाँ कोई बिना माँगे तुम्हारे लिए कुछ करता हो।
रात को जब सब सो चुके थे, अनु कमरे की बालकनी में खड़ी थी। ठंडी हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, और मन में सवालों का मेला था। तभी पीछे से मान आया, एक कंबल लेकर। उसने बिना कुछ कहे कंबल अनु के कंधों पर डाल दिया और पास खड़ा रहा। उस चुप्पी में एक सहारा था, एक अपनापन, जो शायद अब तक अनु ने महसूस नहीं किया था।
तो आप सब को क्या लगता है,
- क्या अनु सच में मान के लिए अपने दिल के दरवाज़े खोल पाएगी?
- क्या मान एक दिन उस ज़िम्मेदारी को समझेगा, जिसे एक पति निभाता है?
- क्या अर्जुन का अतीत हमेशा उनके रिश्ते के बीच रहेगा?
- क्या अनु और मान के बीच सिर्फ़ दोस्ती होगी, या वक़्त के साथ मोहब्बत भी पनपेगी?
- अगर अर्जुन एक दिन लौट आया, तो क्या होगा? क्या अनु मान को छोड़कर अर्जुन को अपनाएगी, या तब तक वो मान के साथ इतना आगे बढ़ चुकी होगी कि अर्जुन सिर्फ़ एक याद बनकर रह जाए?
जानने के लिए पढ़ते रहिए ये कहानी…
शाम की हल्की धूप अब सुनहरी हो चली थी। हवाओं में मिट्टी की सोंधी महक घुली थी, जैसे धरती से कोई प्यारा-सा वादा आसमान की ओर उड़ रहा हो। हवेली की बगिया में गुलाब के पौधे हल्के से हिल रहे थे, और उनके बीच एक छोटा-सा नया पौधा अपनी जगह बना रहा था। मान ने चुपचाप अनु का हाथ थामा और उसे बगिया की ओर ले गया। उसका हाथ पकड़ना जबरदस्ती का नहीं था—बस एक नरम-सी खामोशी, जैसे कोई हल्के से पुकारे, “चलो, कुछ दिखाना है।”
बगिया के एक कोने में वो रुका। वहाँ ताज़ा मिट्टी में एक छोटा-सा गुलाब का पौधा लगा था, और उसके पास एक लकड़ी की पट्टी पर सफेद रंग से लिखा था—“Anu’s Rose.” मान ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैंने गुलाब लगाया है तुम्हारे लिए… तुम रोज़ देखना।” उसकी आवाज़ में एक बच्चे-सी उत्सुकता थी, लेकिन आँखों में एक गहरा अपनापन।
अनु की आँखें पल भर को रुकीं। उसने मान की ओर देखा, जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रही हो। उसे वो दिन याद आ गए जब अर्जुन बेवजह उसके लिए फूल लाया करता था—कभी गुलाब, कभी चमेली, और हर बार उसकी मुस्कान के साथ। लेकिन आज… मान उसके सामने खड़ा था—कम बोलने वाला, थोड़ा उलझा हुआ, मगर शायद… धीरे-धीरे उसके दिल से जुड़ता हुआ। एक अनकहा एहसास उसके मन में सिर उठाने लगा था। शायद यही प्यार होता है—जहाँ कोई तुम्हारे लिए वो करता है, जो तुमने कभी माँगा ही नहीं।
रात गहराने लगी थी। हवाओं में हल्की ठंडक घुल गई थी। हवेली के सारे कमरे अंधेरे में डूबे थे, बस चाँदनी बालकनी में फैली थी। अनु बालकनी की रेलिंग पकड़कर खड़ी थी। उसकी साड़ी का पल्लू हवा में हल्का-सा लहर रहा था, जैसे उसका मन—कुछ थमा हुआ, कुछ बहता हुआ। उसके भीतर सवालों की भीड़ थी—“क्या मैं उसे समझ पाऊँगी? क्या ये रिश्ता सिर्फ़ समझौता बनकर रह जाएगा?” लेकिन आज उस गुलाब के पौधे ने उसके दिल में कुछ तो बदला था।
तभी पीछे से हल्के कदमों की आहट आई। अनु ने पलटकर नहीं देखा। मान आया, उसके हाथ में एक ऊनी कंबल था। उसने बिना कुछ बोले कंबल अनु के कंधों पर रख दिया—धीरे, सहेजकर, जैसे उसकी थकान को ओढ़ा रहा हो। अनु ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसकी पलकें हल्के से झुकीं। दिल की दीवारों पर पहली बार कोई दस्तक-सी महसूस हुई। मान उसके पास खड़ा रहा—बिलकुल चुप। न कोई सवाल, न कोई जवाब। बस एक साथ खड़ा होना… किसी के पास होना।
उस चुप्पी में आवाज़ नहीं थी, लेकिन बहुत कुछ था—एक सहारा, एक कोशिश, और शायद… प्यार की शुरुआत। उस रात ठंडी हवा सिर्फ़ बदन को नहीं छू रही थी, वो दिल की तहों तक जा रही थी—जहाँ टूटे सपनों की किरचें थीं, और नई उम्मीदों की गूँज। मान की खामोश उपस्थिति कोई सवाल नहीं कर रही थी, कोई दावा नहीं कर रही थी—वो बस वहाँ था, जैसे किसी टूटी दीवार को सहारा दे रहा हो, बिना छुए, बिना बोले।
उस रात अनु को पहली बार एहसास हुआ—रिश्ते बनाए नहीं जाते, वो बुन लिए जाते हैं… एक गुलाब के पौधे से, एक कंबल की गर्मी से, और एक चुप्पी की साझेदारी से।
सुबह की पहली किरण जैसे उसी सोच को उजास देने आई थी। अनु ने आँखें बंद कीं और मन ही मन एक वादा किया—“अब मैं इस रिश्ते को सिर्फ़ निभाऊँगी नहीं… अपनाऊँगी। जो बीत गया, उसे वहीं छोड़ दूँगी। और जो है… उसे पूरे दिल से जीऊँगी।”
कमरे में मान अब भी उसी तरह बैठा था—पलंग के एक कोने पर। टीवी पर ‘टॉम एंड जेरी’ चल रहा था, और वो बच्चों की तरह हँस रहा था, दूध के ग्लास में बिस्किट डुबाकर। पहले अनु को ये सब बचकाना लगता था। वो सोचती थी—कैसा आदमी है ये? न गंभीरता, न समझ। लेकिन आज… उसी मासूमियत में उसे एक गहरा अपनापन महसूस हुआ। शायद यही उसकी सबसे बड़ी ताकत थी—बिना कहे किसी को जोड़ लेना।
अनु धीरे से उसके पास आई। उसकी नज़रों में अब कोई भ्रम नहीं था, बस एक साफ़-सुथरा अपनापन। वो उसके पास बैठी और प्यार से उसके बालों में उंगलियाँ फिराईं। मान ने चौंककर उसकी ओर देखा, फिर उसकी मुस्कान में कुछ ऐसा था जो उसने पहले कभी नहीं देखा था। अनु ने धीमे स्वर में कहा, “आज से तुम्हारी हर ज़िम्मेदारी मेरी है, मान।”
मान की आँखें कुछ पल को फैलीं, फिर धीरे-धीरे उसकी मासूम मुस्कान लौट आई। “फिर तो आज तुम मेरे साथ पतंग उड़ाओगी ना?” उसने बच्चों जैसी उत्सुकता से पूछा। अनु की हँसी निकल पड़ी—बहुत दिनों बाद इतनी हल्की, इतनी सच्ची। “पहले नाश्ता करो, फिर चलेंगे,” उसने मुस्कुराकर कहा, और बिस्किट का एक टुकड़ा खुद उसके दूध में डाल दिया।
दिन की शुरुआत अब पहले जैसी नहीं थी। अब अनु अलार्म की आवाज़ से पहले जाग जाती थी। मान की पसंद का ब्रेकफास्ट क्या होगा, उसके कपड़े किस रंग के होंगे, उसका टिफिन कितनी सफाई से पैक होना चाहिए—ये सब अब ज़िम्मेदारी नहीं, रिश्ते की मिठास बन चुके थे। पहले वो अलमारी में बिखरे कपड़ों को देखकर झुंझला जाती थी, लेकिन अब वो बड़े प्यार से उन्हें तह लगाकर रखती, हल्का-सा परफ्यूम छिड़कती, और सोचती, “उसे अच्छा लगेगा।”
मान की नादान हरकतें, उसकी बच्ची-सी बातें—जो पहले चुभती थीं—अब उसके चेहरे पर मुस्कान छोड़ जाती थीं। एक दोपहर, जब वो दोनों बालकनी में बैठे थे, मान ने चाय की प्याली में बिस्किट डुबोते हुए अचानक पूछा, “अगर मैं बीमार हो गया, तो तुम मुझे अपनी गोद में सुलाओगी?” अनु ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में चमक थी—बिलकुल बच्चे-सी। वो मुस्कराई और बोली, “नहीं, सिर्फ़ गोद में नहीं सुलाऊँगी। दवा भी दूँगी, लोरी भी गाऊँगी… ताकि तुम जल्दी ठीक हो जाओ।”
मान ने तालियाँ बजाईं, जैसे उसे कोई बड़ा पुरस्कार मिल गया हो। “पक्की बात ना? फिर तो मैं बीमार होने की एक्टिंग कर सकता हूँ?” अनु हँस पड़ी। “एक्टिंग करोगे तो दवा नहीं, कड़वा काढ़ा दूँगी!” उसने आँखें तरेरने की कोशिश की, लेकिन मुस्कान उसके होठों से हट नहीं सकी। उस दिन अनु को एक नई समझ आई—शायद प्यार बड़े लम्हों से नहीं, इन छोटे-छोटे पलों से बनता है। जहाँ कोई पूछे, “क्या तुम मेरा ख्याल रखोगी?” और आप दिल से जवाब दें, “हमेशा!”
एक दिन बुआ जी चाय की चुस्कियों के बीच माँ जी से बोलीं, “बहू तो अब पूरे घर की जान बन गई है। इतने प्यार से हर बात समझती है… मान के साथ भी कितनी सहज हो गई है।” माँ जी ने मुस्कराकर सिर हिलाया, “मान को ऐसी ही जीवनसंगिनी चाहिए थी—जो उसके रंग में ढल जाए, लेकिन खुद को खोए बिना।”
वाकई, अनु ने खुद को खोया नहीं था। उसने खुद को पाया था—एक नए रूप में, एक नए रिश्ते में, और एक नए विश्वास के साथ। वो अब उस अनु से अलग थी, जो कभी सिर्फ़ अर्जुन की यादों में उलझी रहती थी। उसने अपने अतीत को स्वीकार कर लिया था—ना शर्मिंदगी के साथ, ना पछतावे के साथ, बस एक शांत स्वीकृति के साथ। और भविष्य को उसने पूरे दिल से अपनाना शुरू कर दिया था—जिसमें मान था।
एक शाम, जब हल्की गुलाबी रौशनी बगिया पर उतर रही थी, मान झूले पर बैठा था, पास में एक बच्चे को अपने खिलौनों से खेलते देख रहा था। अनु उसके पास आई और धीरे से बोली, “चलो, घूमने चले?” मान ने चौंककर उसकी ओर देखा, “तुमने तो कहा था कि तुम्हें बाहर जाना पसंद नहीं!” अनु ने उसकी हथेली थाम ली। उसकी मुस्कान में एक सच्चाई थी, एक अपनापन। “अब तुम्हारे साथ सब अच्छा लगता है।”
दोनों पास के पार्क पहुँचे। वहाँ मान ने ज़िद करके अनु को झूले पर बिठाया। अनु हँसते-हँसते झूले की रस्सी थामे झूलने लगी—शायद सालों बाद। फिर मान ने आइसक्रीम की गाड़ी से उसके लिए वनीला और अपने लिए स्ट्रॉबेरी फ्लेवर लिया। दोनों बेंच पर बैठकर आइसक्रीम खाने लगे, जैसे दो बच्चे—बिना बोझ, बिना सवाल। ये पल साधारण थे, लेकिन उनके लिए अनमोल। अनु अब मान की ज़रूरत को सिर्फ़ ज़िम्मेदारी नहीं मानती थी। वो जान गई थी कि उसकी मासूम सवालों में, उसकी आँखों की चमक में, एक सच्चा साथी छुपा है—जो शायद बोल नहीं सकता, लेकिन महसूस करवा सकता है।
एक रात जब मान को बुखार हो गया, अनु पूरी रात उसके माथे पर गीली पट्टियाँ बदलती रही, दवा देती रही, और बिना सोए उसका सिर सहलाती रही। सुबह जब मान की तबीयत थोड़ी ठीक हुई, उसने धीमे से कहा, “तुम बहुत अच्छी हो।” अनु की आँखों से आँसू बह निकले—खुशी के, अपनाए जाने के, और शायद… प्यार के भी।
उस दिन अनु ने अपने हाथों से मान के लिए एक शर्ट सिली। पहली बार उसने किसी के लिए अपने मन से कुछ बनाया था। जब मान ने वो शर्ट पहनी और शीशे में खुद को देखा, तो बोला, “मैं हीरो लग रहा हूँ ना?” अनु ने सिर हिलाया और उसकी पीठ थपथपाई, “तुम हमेशा से मेरे हीरो हो।” मान शरमा गया और दौड़कर बाहर चला गया।
अब हर सुबह अनु खुद मान को तैयार करती—उसके बाल सँवारती, मोज़े ढूँढती, और उसे स्कूल जैसी गंभीरता से बाहर भेजती, भले ही वो कहीं नहीं जा रहा हो। उनके बीच अब एक ऐसा रिश्ता बन चुका था, जो शब्दों से परे था, नज़रों और एहसासों में बसा था।
एक शाम दोनों छत पर खड़े थे। आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे। मान ने अचानक पूछा, “तुम अर्जुन को याद करती हो?” अनु थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, “कभी-कभी… लेकिन अब तुम्हें ज़्यादा सोचती हूँ।” मान कुछ नहीं बोला, बस उसका हाथ पकड़ लिया। उस एक स्पर्श में न कोई शक था, न कोई सवाल—बस भरोसा था, और उम्मीद थी।
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- क्या मान की मासूमियत हमेशा वैसी ही रहेगी, या वक़्त के साथ उसमें बदलाव आएगा?
- क्या अनु का ये समर्पण उसे कभी पछतावा नहीं देगा?
- क्या समाज उनकी इस अनोखी शादी को पूरी तरह स्वीकार कर पाएगा?
- अगर एक दिन अर्जुन लौट आया, तो क्या होगा? क्या अनु मान को छोड़कर अर्जुन को अपनाएगी, या तब तक वो मान के साथ इतना आगे बढ़ चुकी होगी कि अर्जुन सिर्फ़ एक याद बनकर रह जाए?
- क्या ये रिश्ता, जो मासूमियत और समझौते से शुरू हुआ, सच्चे प्यार में बदल पाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए ये कहानी…
अब हर सुबह की एक नई आदत बन चुकी थी—जिसमें न अलार्म की ज़रूरत थी, न ही किसी घड़ी की। मान की आँख खुलते ही अनु उसके पास होती। मुस्कराती हुई, जैसे उसकी सुबह उसी मुस्कुराहट से शुरू हो। वो उसके बालों को धीरे-धीरे सँवारती, अपनी उँगलियों से कंघी करती, और बीच-बीच में उसके माथे पर हल्की-सी थपकी देती।
“सीधे बैठो,” अनु कहती, एक मास्टरनी की तरह, लेकिन उसकी आवाज़ में एक नरम प्यार था।
मान चुपचाप बैठा रहता, उसकी आँखें कभी अनु के चेहरे को निहारतीं, तो कभी उसके होठों की हल्की थरथराहट पढ़तीं। वो उसके लिए मोज़े ढूँढती, शर्ट ठीक करती, कॉलर सीधा करती, और फिर बड़े गर्व से कहती, “जाओ, अब तुम तैयार हो।”
मान थोड़ा हँसकर कहता, “कहाँ जाऊँ?”
“जहाँ दिल ले जाए,” अनु जवाब देती, लेकिन खुद जानती थी कि उसका दिल तो अब यहीं बंध चुका है—मान से।
वो दोनों अब जान चुके थे कि उनका रिश्ता शब्दों का मोहताज नहीं रहा। बातें अब आँखों से होती थीं, जवाब इशारों में मिलते थे, और खामोशियों में सुकून था। कभी रसोई में मिलते, कभी बरामदे में; बस हल्की मुस्कानें और अनकहे एहसास चलते रहते।
एक शाम, जब दिन ढल चुका था और छत पर हल्की ठंडी हवा बह रही थी, दोनों एक-दूसरे के पास खड़े थे। आसमान अब नीला नहीं, काला हो चुका था, और उसमें टिमटिमाते तारे उनकी गवाही दे रहे थे।
मान ने कुछ देर चुप रहकर पूछा, “तुम अर्जुन को याद करती हो?” उसका सवाल मासूम था, बिना किसी जलन या ताने के—बस एक चाह थी ये जानने की कि क्या वो अब अनु की पूरी दुनिया बन चुका है।
अनु थोड़ा चौंकी, जैसे किसी पुराने दरवाज़े की चाभी फिर से घूम गई हो। उसने आँखें बंद कीं, एक गहरी साँस भरी, और आसमान की ओर देखा। “कभी-कभी…” वो धीमे से बोली, “लेकिन अब तुम्हें ज़्यादा सोचती हूँ।”
मान ने कुछ नहीं कहा। उसने बस धीरे से अनु का हाथ अपने हाथों में ले लिया। उस एक स्पर्श में बहुत कुछ था—न कोई शक, न कोई कसक, न अतीत का पछतावा, न भविष्य की बेचैनी। सिर्फ़ एक सुकून था, एक भरोसा कि जो है, वही सबसे सच्चा है।
कपूर विला की उस सुबह में कुछ अलग-सी चमक थी। सूरज की किरणें जैसे किसी खास मेहमान के स्वागत में ज़्यादा दमक रही थीं। हल्की हवा में मोगरे की खुशबू तैर रही थी। ड्राइंग रूम की खिड़की के पास बैठीं सुमित्रा जी चाय का प्याला लिए बाहर के दरवाज़े को निहार रही थीं।
“लगता है अंशुमन आ गया,” उन्होंने धीमी, मुस्कुराती आवाज़ में कहा। जैसे ही ये शब्द उनके होठों से निकले, दरवाज़े की घंटी बजी—टन टन टन।
मान, जो अभी तक अपने कमरे में था, उस आवाज़ पर ऐसे दौड़ा जैसे कोई बच्चा अपनी सबसे पसंदीदा चीज़ को देखने भागता है। दरवाज़ा खोला, और सामने वही चेहरा था, जिसकी यादों में वो बीते कई महीनों से जी रहा था।
अंशुमन।
लंबा कद, हल्के नीले कुर्ते में, कंधे पर स्लिंग बैग, थोड़ी बिखरी ज़ुल्फें, और वही पुरानी, अपनापन भरी मुस्कान।
“अंशुमन!” मान ने खुशी से चिल्लाकर उसे गले से लगा लिया।
“अरे भाई!” अंशुमन ने भी उसी जोश से उसे बाँहों में भर लिया। वो लम्हा कुछ सेकंड का था, लेकिन उस आलिंगन में सालों की दूरियाँ और अधूरी बातें समा गई थीं।
सरोज बुआ रसोई से निकलकर आईं और माथे पर कुमकुम का टीका लगाते हुए बोलीं, “अब की बार ज़्यादा दिन रुकना है बेटा, बार-बार का आना-जाना अब बंद।”
ब्रिजेश जी, जो हमेशा गंभीर दिखते थे, उनकी आँखों में भी एक अलग चमक थी। उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “घर में रौनक लौट आई।”
सुमित्रा जी ने आगे बढ़कर अंशुमन का हाथ थामा और माँ की ममता से भरी आवाज़ में बोलीं, “तुम्हारा कमरा जस का तस रखा है बेटा, जैसे तुम कल ही निकले हो।”
अंशुमन की आँखें भर आईं, लेकिन उसने खुद को सँभालते हुए मुस्कुराकर कहा, “माँ, अब तो पढ़ाई पूरी हो गई है… अब तो घर ही घर है।”
तभी रसोई की ओर से धीमे कदमों की आहट हुई। अनु—हल्के गुलाबी सूट में, बाल पीछे बंधे, हाथ में पानी का गिलास लिए झिझकते हुए बाहर आई। उसकी आँखों में शराफत थी, और चेहरे पर एक सौम्य मुस्कान।
अंशुमन की नज़र उस पर पड़ी और उसने हल्के से हाथ जोड़ते हुए कहा, “नमस्ते भाभी जी, मैं अंशुमन।”
अनु ने नज़रें झुकाकर जवाब दिया, “नमस्ते। आपसे मिलकर अच्छा लगा।” उसने पानी का गिलास टेबल पर रखा और थोड़ी दूरी बनाकर खड़ी हो गई।
मान बीच में आया, “ये मेरी वाइफ है, अनु!” उसके लहजे में एक मासूम-सा गर्व था, जैसे कोई बच्चा अपनी सबसे प्यारी चीज़ सबको दिखा रहा हो। उसकी आँखों में चमक थी, जो अनु के चेहरे की उलझनों से बिलकुल उलट थी। अनु की आँखों के नीचे थकावट के हल्के घेरे थे, माथे पर सलवटें, और नज़रों में असमंजस।
अंशुमन ने एक नज़र में सब पढ़ लिया—मान की मासूम खुशी और अनु की चुप उलझन। वो मुस्कराया और बोला, “भाभी, ये भाई बड़ा लकी है।”
अनु ने चौंककर उसकी ओर देखा। पहली बार किसी ने उसे ‘भाभी’ कहकर पुकारा था। एक हल्की मुस्कान उसके चेहरे पर तैर गई, मानो अनजाने में किसी ने उसे उसका नया अस्तित्व दे दिया हो।
उस दिन दोपहर को सभी बड़े डाइनिंग टेबल पर एक साथ बैठे थे। गर्मागर्म पूरियाँ, सब्ज़ी, रायता, और मीठे में हलवा। सबके चेहरों पर घर की रौनक थी। अंशुमन मज़ाकिया अंदाज़ में पुराने किस्से सुना रहा था।
“याद है मम्मी, ये मान स्कूल में हर दौड़ में सबसे पीछे आता था, लेकिन जब मोहल्ले की किसी लड़की को गुलाब देना होता था, तो सबसे आगे भागता था!”
सब हँस पड़े। मान शरमा गया और बोला, “भैया झूठ बोल रहे हैं!”
अंशुमन ने आँख मारी, “अरे भाभी, आप पूछ लो… प्यार के मामले में आपका पति हमेशा चैंपियन रहा है।”
मान फिर हँसने लगा। अनु ने चुपचाप सबको देखा। वो बोल नहीं रही थी, लेकिन उसके अंदर कुछ पिघलने लगा था। पहली बार उसे ये जगह सिर्फ़ “घर” नहीं, थोड़ा “अपना” लगने लगी थी।
रात ढल चुकी थी। घर में सब सो चुके थे। टेबल साफ़ हो गया था, रसोई का दरवाज़ा बंद, और हॉल की लाइट मंद। कमरे में घड़ी की टिक-टिक और रात की नीरवता गूँज रही थी।
मान अपने कमरे में तकिए के ढेर से खेल रहा था जब दरवाज़ा धीरे से खुला। अंशुमन अंदर आया, हल्की मुस्कान के साथ। उसके हाथ में दूध का गिलास था, जो उसने मान को पकड़ा दिया।
“भाई,” उसने कहा और एक कुर्सी खींचकर बैठ गया।
मान ने मुस्कराते हुए दूध पीना शुरू किया।
अंशुमन ने उसकी ओर देखा और गंभीर हो गया। “तू अब शादीशुदा है, जानता है इसका मतलब क्या होता है?”
मान ने बिना कुछ कहे सिर हिला दिया, उसकी मासूम आँखों में सवाल था।
“वो अब मेरी वाइफ है… हम साथ में रहते हैं… मैं उसे बहुत प्यार करता हूँ,” मान ने बच्चों जैसी मासूमियत से कहा।
अंशुमन ने एक गहरी साँस ली और कहा, “शादी सिर्फ़ साथ रहने का नाम नहीं है… ये उस इंसान की ज़िम्मेदारी लेने का नाम है जो अब तुझसे जुड़ चुकी है। जब वो थक जाए, तो तू उसका साया बन। जब वो रोए, तो तू उसका कंधा बन। जब दुनिया उससे सवाल करे, तो तू उसका जवाब बन।”
मान अब सचमुच ध्यान से सुन रहा था, शायद पहली बार किसी ने उसे इतने भावों में इतना गंभीर कुछ कहा था।
अंशुमन की आँखों में एक भाई का प्यार था, और एक बड़े की सलाह। “और सबसे ज़रूरी बात…” उसने धीरे से कहा, “प्यार सिर्फ़ महसूस करने के लिए नहीं होता, जताने के लिए भी होता है। वो हर दिन ये जाने कि तू उसके साथ है—हर हाल में।”
मान ने एकदम से पूछा, “अनु रोई थी क्या?”
अंशुमन कुछ पल चुप रहा, फिर बोला, “हर नई दुल्हन रोती है… लेकिन फर्क ये पड़ता है कि उसका पति उसके आँसू पोंछता है या वजह बनता है।”
मान की आँखें भर आईं। उसने धीरे से कहा, “मैं उसे कभी रोने नहीं दूँगा भैया… वादा करता हूँ।”
अंशुमन मुस्कराया, उठा, और मान के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला, “बस यही वादा निभा देना, बहुत है।” वो कमरे से बाहर चला गया, पीछे छोड़ गया—एक सोच में डूबा मासूम पति और एक लंबी रात, जिसमें अब शायद समझ की एक लौ जलने लगी थी।
### अगली सुबह
अगले दिन सुबह का उजास कमरे में हल्के-हल्के फैल रहा था। खिड़की की झिरी से आती धूप ने जैसे मान के चेहरे को हल्के से छुआ, तो वो कुनमुनाते हुए उठ बैठा। अपने बालों को उँगलियों से पीछे करते हुए, उसने धीमे से नज़र घुमाई। सामने ड्रेसिंग टेबल पर बैठी अनु अपने बाल सुलझा रही थी। उसकी आँखों के नीचे हल्की थकान की रेखाएँ थीं, पर चेहरे पर एक अलग-सी शांति थी—जैसे किसी तूफ़ान के बाद पहली बार आसमान साफ़ हुआ हो।
मान चुपचाप कुछ देर उसे देखता रहा… फिर धीरे से बोला, “तुमने कुछ खाया?”
अनु ने चौंककर उसकी ओर देखा—ये पहली बार था जब मान ने यूँ अपनेपन से कुछ पूछा था। उसकी आँखों में हल्का-सा विस्मय था, लेकिन जब उसने मान की मासूम आँखों में सच्ची चिंता देखी, तो एक धीमी मुस्कान उसके होठों तक चली आई।
“हाँ, खा लिया था,” उसने नरम आवाज़ में कहा।
तभी मान ने कुछ ऐसा कहा, जिससे अनु हैरान रह गई। “मैं चाहता हूँ कि तुम हमेशा मेरे साथ हँसो… और अगर तुम रोओ, तो मैं तुम्हारे आँसू पोंछूँ।”
अनु की साँसें जैसे एक पल के लिए थम गईं। उसकी आँखें मान के चेहरे पर टिक गईं। उस मासूम चेहरे में, जो हमेशा बच्चों जैसा लगता था, आज एक नई गहराई थी। ये वही मान था, जो टॉम एंड जेरी देखकर हँसता था, जो बिस्किट दूध में डुबाकर खाता था, लेकिन आज उसकी आवाज़ में एक वादा था, एक ज़िम्मेदारी का एहसास।
अनु की आँखें नम हो गईं। उसने धीरे से मान का हाथ थामा और बोली, “तुम्हें ये सब किसने सिखाया?”
मान ने शरमाते हुए कहा, “अंशुमन भैया… लेकिन ये बात मेरे दिल से निकली है।”
अनु की हँसी और आँसू एक साथ छलक पड़े। उसने मान के गाल पर हल्के से हाथ रखा और बोली, “तुम सचमुच मेरे हीरो हो।”
उस सुबह के बाद, मान और अनु के बीच का रिश्ता और गहरा हो गया। मान अब सिर्फ़ मासूम सवाल नहीं पूछता था; वो छोटी-छोटी चीज़ों में अनु का ध्यान रखने लगा। कभी वो रसोई में उसकी मदद करता, कभी बगिया में गुलाब के पौधे को पानी देता और अनु को बुलाकर कहता, “देखो, तुम्हारा गुलाब बड़ा हो रहा है!”
अनु अब उसकी हर बात में एक नया मतलब ढूँढने लगी थी। वो जान गई थी कि मान की मासूमियत उसकी ताकत थी, और उसकी सादगी में एक ऐसा प्यार था जो बिना शर्तों के था।
एक दिन, जब अनु रसोई में चाय बना रही थी, मान चुपके से पीछे आया और बोला, “मैंने कुछ बनाया है तुम्हारे लिए।” उसने एक छोटा-सा कागज़ का दिल निकाला, जिस पर टेढ़ी-मेढ़ी लिखावट में लिखा था, “अनु, तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड हो।”
अनु ने वो कागज़ लिया, और उसकी आँखें फिर नम हो गईं। उसने मान को गले लगाया और बोली, “और तुम मेरे बेस्ट हीरो।”
- क्या मान की मासूमियत हमेशा वैसी ही रहेगी, या वक़्त के साथ वो और ज़िम्मेदार बन जाएगा?
- क्या अनु का ये समर्पण उसे कभी पछतावा देगा, या ये प्यार और गहरा होता जाएगा?
- क्या समाज उनकी इस अनोखी शादी को पूरी तरह स्वीकार कर पाएगा?
- अगर एक दिन अर्जुन लौट आया, तो क्या होगा? क्या अनु मान को छोड़कर अर्जुन को अपनाएगी, या मान के साथ बिताए ये पल उसे इतना बदल देंगे कि अर्जुन सिर्फ़ एक याद बनकर रह जाए?
- क्या अंशुमन की सलाह मान को एक नया रास्ता दिखाएगी, या वो अपनी मासूमियत में ही अनु का साथी बनेगा?
**जानने के लिए पढ़ते रहिए ये कहानी…**
“हाँ, खा लिया था,” अनु ने नरम आवाज़ में कहा।
मान ने सिर हिलाया, फिर धीरे से मुस्कुराया और बोला, “ठीक है… फिर मुझे भी भूख लगी है। साथ में खाओगी?”
अनु का मन जैसे एक पल को रुक गया। यह कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन मान का यह छोटा-सा प्रयास—साथ बैठकर खाना खाने का—उसके मन में एक हल्की-सी उमंग भर गया। वो कुछ नहीं बोली, बस धीरे से सिर हिलाया।
उसी वक़्त बालकनी में खड़ा अंशुमन चाय की चुस्की लेते हुए यह सब देख रहा था। उसके चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान थी। वो जानता था कि यह सफ़र आसान नहीं होगा, पर जिस रिश्ते की शुरुआत एक उलझन से हुई थी, अब उसमें धैर्य और अपनापन के बीज अंकुरित होने लगे थे। उसने मन ही मन सोचा, “बीज बो दिया है… अब वक़्त के साथ ये रिश्ता भी एक मजबूत दरख्त बनेगा… बस उन्हें एक-दूसरे का साथ निभाना सीखना होगा।”
सुबह की उस शांति में, मान और अनु के बीच एक नई शुरुआत हो रही थी—बिना किसी शोर के, पर गहराई से।
### मंदिर का सफ़र और नई समझ
शाम की हल्की ठंडी हवा चल रही थी। आसमान हल्का-सा नारंगी हो चला था, जब अंशुमन ने मान के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “चल, मंदिर चलते हैं। थोड़ा मन शांत होगा।”
मान ने बिना कोई सवाल किए सिर हिलाया और दोनों पैदल ही मंदिर की ओर बढ़ चले। रास्ते भर अंशुमन बात करता रहा। उसकी आवाज़ में वो स्नेह और अनुभव था जो एक बड़े भाई में होता है—न सिखाने की ज़िद, न जताने की कोशिश, बस एक गहरी समझ।
“शादी सिर्फ़ एक बंधन नहीं होती, मान,” वो कहने लगा, “ये भरोसे की डोर है… जिसमें एक भी गाँठ आई, तो दोनों की साँस अटक जाती है।”
मान चुपचाप सुन रहा था, उसकी आँखें सामने सड़क पर, लेकिन ध्यान कहीं और था।
“अनु अब सिर्फ़ तेरी वाइफ नहीं रही,” अंशुमन ने आगे कहा, “अब वो तेरी ज़िम्मेदारी है। वो हँसे तो तू सुकून पाए, और अगर वो रोए… तो तुझसे पहले कोई आँसू न देखे उसके चेहरे पर। यही असली रिश्ता होता है।”
मान की उंगलियाँ आपस में जकड़ गईं, जैसे कुछ थामने की कोशिश कर रहा हो। कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने धीमे से कहा, “मैं उसे खुश रखूँगा, भाई…” उसकी आवाज़ में कोई वादा नहीं था, बल्कि एक भाव था—गहराई से निकला हुआ, आत्मा की ज़मीन से उपजा हुआ।
अंशुमन मुस्कराया, उसका कंधा थपथपाया और बोला, “बस यही बात दिल में रखना। हर रोज़… हर साँस में।”
दोनों मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ गए। आरती की घंटियाँ बज रही थीं, और शायद कहीं भीतर मान के मन में भी कोई आरती गूँजने लगी थी—एक नई शुरुआत की, एक नई समझ की।
घर लौटकर मान ने पहली बार खुद से कहा, “मैं उसका हसबैंड हूँ।” इन पाँच शब्दों का अर्थ अब उसके लिए वही नहीं रहा था जो शादी वाले दिन था। अब इनका वजन था—ज़िम्मेदारी का, स्नेह का, और अपनत्व का।
जब वो कमरे में पहुँचा, अनु खिड़की के पास बैठी थी, कुछ पढ़ रही थी। लेकिन उसकी आँखें किताब में नहीं, विचारों में उलझी थीं। मान उसके पास गया और बिना कुछ कहे, एक गिलास दूध उसके सामने रख दिया।
अनु ने उसकी ओर देखा—उसकी आँखों में कोई शिकवा नहीं था, बल्कि एक शांत-सी भावनात्मक लहर थी। “तुमने खुद से बनाया?” उसने धीमे से पूछा।
मान ने बस सिर हिला दिया।
अनु की आँखें भर आईं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि एक छोटे-से इशारे में इतनी गर्माहट कैसे समा सकती है।
उसी वक़्त अंशुमन बालकनी से यह सब देख रहा था। उसने कोई दखल नहीं दिया, बस हल्के से मुस्कुराया।
रात के खाने के बाद वो अनु के पास बैठा। उसने बिना कोई भारी बात किए, बस कुछ हल्की-फुल्की बातें कीं। “अब कैसे लग रहा है यहाँ?”
अनु ने सिर झुका लिया, “ठीक…”
अंशुमन ने धीरे से कहा, “तुम्हारा मन अगर कभी उलझे… तो बताना मुझे। मैं तुम्हारे लिए हूँ, किसी भाई जैसा… एक दोस्त जैसा।”
अनु ने उसकी ओर देखा। वो आँखें जो सब समझ रही थीं—बिना सवाल पूछे, बिना जवाब माँगे। उस दिन के बाद, अंशुमन हर दिन अनु से दो-चार बातें करता। ज़्यादा नहीं, बस इतना कि उसे लगे—वो अकेली नहीं है। और शायद, यहीं से अनु की असली हीलिंग शुरू हुई।
उस शाम जब अंशुमन किचन में था, अनु चुपचाप उसके पास आई। उसकी आँखों में कृतज्ञता थी। “भाई जैसे हो तुम,” उसने धीमे स्वर में कहा।
अंशुमन ने पलटकर उसकी ओर देखा, हल्की मुस्कान के साथ। “और तुम मेरी छोटी बहन,” उसने हँसते हुए उसका माथा छुआ। “पर अब तुम्हें बड़ी ज़िम्मेदारी उठानी है… सिर्फ़ अपने लिए नहीं, मान के लिए भी।”
अनु ने धीरे से सिर हिलाया। “हाँ, मैं समझती हूँ। अब मुझे पीछे नहीं देखना, बस उसके साथ आगे बढ़ना है।”
अंशुमन ने उसके लिए एक कप चाय बनाई और उसे थमाते हुए बोला, “उसके साथ वक़्त बिताना, बात करना… यही सबसे ज़रूरी है अभी। डर लगे, तो भी बोलना… खामोशी सबसे बड़ी दूरी बनाती है।”
अनु की आँखें भर आईं। “शुक्रिया,” वह बस इतना ही कह पाई।
अंशुमन ने उसका हाथ थामा और मुस्कराकर कहा, “हम सब साथ हैं… तुम अकेली नहीं हो।”
### तीन महीने बाद
तीन महीने बीत चुके थे। शादी के बाद की हलचलें अब थम चुकी थीं। घर में अब वो उत्सव जैसा माहौल नहीं था, लेकिन एक शांति थी—सधी हुई, सहज-सी शांति। रोज़मर्रा की ज़िंदगी अपनी रफ्तार पकड़ चुकी थी। सुबह की चाय, अख़बार की ख़बरें, मान की धीमी मुस्कान, और अनु की वो अनकही चुप्पियाँ, जो अब शोर नहीं करती थीं।
पहले दिन जब अनु इस घर में दुल्हन बनकर आई थी, तो उसके चेहरे पर मुस्कान कम और उलझन ज़्यादा थी। मान की भोली हरकतें, उसके मासूम सवाल उसे झुंझलाहट से भर देते थे। लेकिन अब… सब कुछ बदलने लगा था।
मान अब भी वैसा ही था—मासूम, बच्चों की तरह बेफिक्र, भावनाओं से भरा हुआ। पर अब उसकी मासूमियत अनु को चुभती नहीं थी। अब वो उसके दिन की सबसे प्यारी शुरुआत बन गई थी। हर रोज़ जब मान उसे देखकर मुस्कुराता, तो अनु को लगता जैसे कोई सुबह की ओस से भीगी नरमी उसके दिल पर गिर रही हो।
वो पल—जब मान खाने के दौरान अपनी पसंद की सब्जी चुपके से उसकी थाली में रख देता, या जब वो उसकी नींद खुलने से पहले खामोशी से कमरे से बाहर चला जाता ताकि उसकी नींद खराब न हो—ये अब अनु के लिए सिर्फ़ हरकतें नहीं थीं, ये इशारों में लिपटा अपनापन था।
कई बार वो खुद को आईने में देखती और सोचती, “क्या मैं वही अनु हूँ जो इस रिश्ते को नाम देने से भी डरती थी?” अब उसे समझ आ गया था कि प्यार हमेशा तेज़ बारिश बनकर नहीं आता—कभी-कभी वो ओस की बूंदों सा गिरता है, धीरे-धीरे, मगर ठहराव के साथ।
### छोटे-छोटे पल
एक शाम जब अनु बालकनी में खड़ी थी, सामने डूबते सूरज की किरणें उसके चेहरे पर पड़ रही थीं। तभी पीछे से मान आकर बोला, “अनु… देखो, चिड़िया का बच्चा फिर से आया है।”
वो पल छोटा था, मगर अनु की आँखों में नमी आ गई। उसे समझ आ गया—यह वही ‘घर’ था, जिसका सपना हर लड़की देखती है। अब मान की बातें उसे बच्चों जैसी नहीं लगती थीं; वो उनमें भावनाओं की गहराई देखने लगी थी। मान अब उसके लिए एक ज़िम्मेदारी नहीं, एक एहसास बन गया था।
उसे अब हर दिन के साथ यह महसूस होने लगा था कि प्यार जब मजबूरी से नहीं, समझ से जन्म ले… जब वो धीरे-धीरे दिल में उतरता है—तब वह सबसे मजबूत रिश्ता बनता है। जैसे किसी बर्फ़ से ढके पहाड़ पर जब धूप की पहली किरणें गिरती हैं, तो सब कुछ चमक उठता है—वैसे ही मान की मौजूदगी अब अनु की ज़िंदगी को रोशन करने लगी थी।
मान अब पहले से कहीं ज़्यादा अनु का ख्याल रखने लगा था। वह न सिर्फ़ उसके लिए चाय बनाकर लाता, बल्कि यह भी ध्यान रखता कि वह कब थकी हुई है, कब उसका सिर दर्द कर रहा है, और कब उसे बस थोड़ी-सी तसल्ली चाहिए। कई बार जब अनु किचन में काम कर रही होती, मान चुपके से उसके पीछे आकर खड़ा हो जाता और कहता, “मैं हेल्प करूँ?” उसका मासूम चेहरा और वो चमकती आँखें, जिनमें कोई छल नहीं था—अनु के दिल को छू जातीं।
एक शाम जब अनु थकी हुई थी, मान धीरे-से उसके पास आया और बोला, “तेल लगाऊँ?” पहले तो अनु ने आश्चर्य से देखा, लेकिन फिर सिर झुका लिया। मान बेहद स्नेह से उसके बालों में तेल लगाने लगा। उसके छोटे-छोटे हाथ कभी बालों में उलझते, कभी माथे तक आ जाते। अनु की आँखें बंद हो गईं। वह नहीं जानती थी कि ये पल इतना सुकून दे सकते हैं।
### पिकनिक की योजना
एक दिन दोपहर के खाने के बाद सुमित्रा जी ने सबको चौंकाते हुए कहा, “हम सब कहीं बाहर चलेंगे। बहुत दिन हो गए हैं घर में बैठे-बैठे। एक छोटी-सी पिकनिक करेंगे।”
मान ने उछलकर तालियाँ बजाईं, “मैं भी चलूँगा! झूला झूलूँगा! पानी में पत्थर फेंकूँगा! भुट्टा खाऊँगा!” उसकी खुशी देखने लायक थी। घर का हर कोना उसकी मुस्कान से भर गया। सुमित्रा जी हँस दीं, अंशुमन मुस्कराया, और अनु का मन जैसे किसी अनकहे सुख से भीग गया। उसे लगा जैसे कोई भूला-बिसरा सपना फिर से मुस्कुरा उठा हो।
उस दिन उसे पहली बार महसूस हुआ कि मान का बचपना कोई बोझ नहीं, बल्कि एक ऐसा निर्मल रिश्ता है जो उसे हर दिन थोड़ा और इंसान बना रहा है—थोड़ा और सच्चा, थोड़ा और शांत।
### पिकनिक का दिन
पिकनिक का दिन आया। कपूर परिवार एक पास के नदी किनारे के बगीचे में गया। वहाँ पेड़ों की छाँव, नदी की लहरों की आवाज़, और हल्की हवा ने माहौल को और ख़ूबसूरत बना दिया था। मान ने उत्साह से एक चटाई बिछाई और अनु को बुलाया, “यहाँ बैठो, अनु! देखो, कितना अच्छा है!”
अनु मुस्कराई और चटाई पर बैठ गई। मान ने पास से एक छोटा-सा पत्थर उठाया और नदी में फेंका। “देखा, कितना दूर गया!” उसने बच्चों की तरह खुशी से कहा। अनु हँस पड़ी। उसने भी एक पत्थर उठाया और फेंका। मान ने तालियाँ बजाईं, “वाह! तुम तो मुझसे बेहतर हो!”
उस पल में अनु को लगा जैसे वो सालों बाद फिर से बच्ची बन गई हो—बेफिक्र, हल्की, और खुश। अंशुमन दूर बैठा ये सब देख रहा था। उसने सुमित्रा जी की ओर देखा और धीरे से कहा, “लगता है, ये दोनों अब सचमुच एक-दूसरे के हो गए हैं।”
सुमित्रा जी ने सिर हिलाया, “वक़्त और प्यार… ये हर जख़्म को भर देते हैं।”
### नई गहराई
पिकनिक के बाद, अनु और मान के बीच का रिश्ता और गहरा हो गया। मान अब सिर्फ़ मासूम सवाल नहीं पूछता था; वो छोटी-छोटी चीज़ों में अनु का ध्यान रखने लगा। कभी वो रसोई में उसकी मदद करता, कभी बगिया में गुलाब के पौधे को पानी देता और अनु को बुलाकर कहता, “देखो, तुम्हारा गुलाब बड़ा हो रहा है!”
अनु अब उसकी हर बात में एक नया मतलब ढूँढने लगी थी। वो जान गई थी कि मान की मासूमियत उसकी ताकत थी, और उसकी सादगी में एक ऐसा प्यार था जो बिना शर्तों के था। एक दिन, जब अनु रसोई में चाय बना रही थी, मान चुपके से पीछे आया और बोला, “मैंने कुछ बनाया है तुम्हारे लिए।” उसने एक छोटा-सा कागज़ का दिल निकाला, जिस पर टेढ़ी-मेढ़ी लिखावट में लिखा था, “अनु, तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड हो।”
अनु ने वो कागज़ लिया, और उसकी आँखें नम हो गईं। उसने मान को गले लगाया और बोली, “और तुम मेरे बेस्ट हीरो।”
— क्या ये मासूम रिश्ता कभी एक सच्चे पति-पत्नी के रिश्ते में बदल पाएगा? क्या अरमान वाकई समझ पाएगा प्यार और साथ का मतलब? और क्या अनजाने में Anshuman की मौजूदगी इस रिश्ते को गहराई देगी… या फिर किसी और मोड़ की ओर ले जाएगी?
पिकनिक की तैयारियाँ और उत्साह
अगले दिन सुबह कपूर विला में एक अलग ही चहल-पहल थी। सूरज की किरणें खिड़कियों से छनकर आ रही थीं, और घर में एक उत्सव-सा माहौल था। सुमित्रा जी रसोई में व्यस्त थीं, उनके हाथों से पूरी-सब्ज़ी, खट्टी इमली की चटनी, और मीठे पराठों की खुशबू पूरे घर में फैल रही थी। हर सब्ज़ी में उनकी ममता घुली थी, जैसे वो इस पिकनिक को सिर्फ़ खाने से नहीं, प्यार से सजाना चाहती थीं।
अंशुमन ने चटाई, बैडमिंटन सेट, और एक छोटा-सा ब्लूटूथ स्पीकर संभाला, ताकि माहौल में गाने की मस्ती भी शामिल हो। मान, अपनी मासूम उत्सुकता के साथ, टोकरी में सामान जमाने में जुटा था—बिस्किट, नमकीन, पानी की बोतलें, और कुछ चॉकलेट्स, जो उसने चुपके से अपनी जेब से निकालकर डालीं। हर बार वो टोकरी को देखकर मुस्कुराता, जैसे कोई बच्चा अपनी सबसे प्यारी चीज़ों का खज़ाना बना रहा हो।
“मान, ज़रा धीरे!” सुमित्रा जी ने हल्के से डाँटा, जब उसने गलती से एक पैकेट नमकीन गिरा दिया। लेकिन उनकी आँखों में प्यार था, और मान ने शरमाते हुए पैकेट उठाया और फिर से टोकरी में रख दिया।
अनु रसोई के एक कोने में चुपचाप फल काट रही थी—सेब, केले, और कुछ अंगूर। उसने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहना था, जिसके साथ उसकी चुन्नी हवा में हल्के-हल्के लहरा रही थी। उसके चेहरे पर अब पहले जैसी उलझन नहीं थी; एक शांत मुस्कान थी, जो धीरे-धीरे उसकी आँखों तक पहुँच रही थी।
जब सब तैयार हो गए, तो दो गाड़ियों में सवार होकर पास के एक हरियाले बगीचे की ओर रवाना हुए। मौसम जैसे उनके उत्साह का साथ दे रहा था—न ज़्यादा गर्मी, न ठंड, बस एक सौम्य ठंडी हवा और धूप की हल्की किरणें, जो पेड़ों की पत्तियों के बीच से छनकर ज़मीन पर सुनहरे पैटर्न बना रही थीं।
रास्ते में अंशुमन ने पुराने गाने चलाए, और मान ने बच्चों की तरह गाना गुनगुनाना शुरू कर दिया। अनु खिड़की के पास बैठी बाहर देख रही थी, लेकिन उसकी मुस्कान बता रही थी कि वो इस पल का हिस्सा बन रही है।
बगीचे में पहुँचते ही सबके चेहरों पर बच्चों-सी चमक आ गई। हरे-भरे पेड़, फूलों की क्यारियाँ, और दूर तक फैली घास ने माहौल को जादुई बना दिया था। अंशुमन ने सबसे पहले चटाई बिछाई और उस पर रंग-बिरंगे तकिए रखे।
मान ने ज़िद की, “मैं झूला पहले झूलूँगा!” और वो दौड़कर पेड़ के नीचे लगे लकड़ी के झूले पर जा बैठा। उसकी हँसी हवा में गूँज रही थी, और अनु एक कोने में खड़ी, उसे देखकर मुस्कुरा रही थी।
अनु ने आज नीली सलवार-कुर्ता पहना था, जिसमें वो बेहद प्यारी लग रही थी। उसके खुले बाल हवा में लहरा रहे थे, कानों में छोटे-से झुमके, और हाथों में काँच की चूड़ियाँ—जैसे प्रकृति के बीच कोई सादा पर खूबसूरत तस्वीर बन गई हो। मान का सफेद कुर्ता-पायजामा और उसकी मासूम चमक उसे और भी खास बना रही थी।
सुमित्रा जी ने उसे देखकर कहा, “बेटा, आज तो तू किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा!” मान शरमाया और बोला, “माँ, राजकुमार तो अनु है!” सब हँस पड़े, और अनु की गालों पर हल्का-सा गुलाबी रंग छा गया।
थोड़ी देर बाद सब खाना खाने बैठे। सुमित्रा जी की बनाई पूरी, आलू की सब्ज़ी, और इमली की चटनी की खुशबू ने सबको ललचा दिया। अचार का स्वाद और मीठे पराठों की मिठास ने माहौल को और स्वादिष्ट बना दिया।
सब हँसते-बोलते खाना खा रहे थे, और मान ने एक रोटी उठाकर मज़ाक में कहा, “ये सबसे बड़ी है, ये मेरी!” उसकी मासूमियत पर सब हँस पड़े। अनु ने चुपके से उसकी थाली में एक और पूरी डाल दी, और मान ने उसे देखकर एक चमकती मुस्कान दी।
खाने के बाद, अंशुमन ने मान को साथ लिया और क्रिकेट खेलने का प्लान बनाया। एक छोटा-सा बल्ला और रबर की गेंद निकाली गई। मान खुशी-खुशी तैयार हो गया। पहली गेंद अंशुमन ने फेंकी, और मान ने जोश में बल्ला घुमाया। गेंद हवा में उछली और दूर जा गिरी—ठीक अनु के पास।
“अनु भाभी! आपकी बारी!” अंशुमन ने मुस्कुराते हुए कहा।
अनु ने शर्माते हुए गेंद उठाई और हल्का-सा नाटक करते हुए बोली, “अगर मैं आउट कर दूँ तो?”
सब एक साथ हँस पड़े। मान ने चुटकी ली, “तो मैं आउट ही नहीं होऊँगा!”
अंशुमन ने तालियाँ बजाते हुए कहा, “अब देखना, भाभी की बॉलिंग से तुम कैसे बचते हो।”
अनु ने अपनी चुन्नी ठीक की, और जैसे ही गेंद फेंकी, मान झिझक गया—और आउट हो गया। उसका चेहरा लटक गया, लेकिन फिर वो हँसते हुए अनु के पास दौड़ा और बोला, “तुम तो बहुत तेज़ हो!” सबकी हँसी हवा में गूँज उठी। उस दिन जैसे सिर्फ़ एक पिकनिक नहीं हुई थी—रिश्तों की सारी दूरियाँ हँसी-मज़ाक में पिघल गई थीं।
### झील किनारे की शांति
खेल के बाद, सब झील के किनारे आकर बैठे। पानी की सतह पर सूरज की किरणें झिलमिल रही थीं, जैसे कोई सुनहरा सपना बुन रही हों। चाय के कप, मूँगफली के दाने, और हँसी की गूँज ने दोपहर को परफेक्ट बना दिया था। सुमित्रा जी ने अपनी जवानी की एक कविता सुनाई:
“वो सावन की पहली फुहार थी,
कुछ चुप-सी, कुछ बेकरार थी,
जो बात लबों पे आ न सकी,
वो आँखों से इज़हार थी…”
सारे चेहरे उस पल शांत हो गए। कविता की पंक्तियाँ हवा में तैर रही थीं, और हर कोई अपने-अपने ख़यालों में डूब गया। मान ने धीरे से अपनी जगह से हाथ बढ़ाया और अनु की उंगलियों को अपनी उंगलियों में थाम लिया। अनु चौंकी नहीं। अब उसे उसकी पकड़ से डर नहीं लगता था।
“मज़ा आया ना?” मान ने धीमे से पूछा, उसकी आवाज़ में एक मासूम-सी उम्मीद थी।
अनु ने कुछ नहीं कहा। बस उसकी तरफ देखा, फिर हल्का-सा सिर हिलाया। लेकिन उसकी मुस्कान—वो मुस्कान सब कुछ कह गई। उसमें आज़ादी थी, अपनापन था, और शायद… थोड़ा-थोड़ा विश्वास भी।
पिकनिक के बाद कुछ बदल गया था। झील किनारे बिताए वो घंटे जैसे मान और अनु के बीच की आखिरी दीवार तोड़ गए थे। अब अनु रोज़ की तरह घर के कोनों में अकेली नहीं बैठती थी। वो अक्सर आँगन में नज़र आती, जहाँ मान पहले से मौजूद होता—कभी किसी फूल को हाथ में लिए, कभी कोई कहानी सुनाने को बेताब।
“अनु, देखो! ये फूल सुबह-सुबह तोड़ा तुम्हारे लिए!” मान की आँखों में वही चमक होती, जो किसी बच्चे को अपना बनाया तोहफा दिखाते वक्त होती है। अनु पहले चुप रहती, बस हल्की मुस्कान देती। लेकिन अब वो मुस्कान उसकी आदत बन गई थी, और मान की मौजूदगी उसका सुकून।
एक दोपहर, जब हवाओं में हल्की ठंडक थी, अनु अपनी पसंदीदा जगह—खिड़की के पास—बैठी थी। बाहर पेड़ की टहनियों पर गिलहरियाँ खेल रही थीं, और धूप की किरणें उसके चेहरे पर गिर रही थीं। पीछे से नर्म कदमों की आहट हुई—वो आवाज़ जो अब उसे पहचान में आने लगी थी।
“अनु…” मान की धीमी, साफ़ आवाज़ आई।
अनु ने गर्दन घुमाई भी नहीं थी कि उसने सुना, “तुम बहुत सुंदर लग रही हो।”
एक पल को न हवा हिली, न कोई पत्ता। अनु चौंकी नहीं। उसने पहले की तरह घबराकर नज़रें नहीं चुराईं। वो बस मुस्कुराई—धीमे से। उसके होठों की कोरों पर एक शर्मीली-सी रेखा खिंच गई, और आँखों में एक चमक आ गई—जो कह रही थी, “मैं सुन रही हूँ, और मैं समझ रही हूँ।”
रातें अब अनु के लिए वैसी नहीं थीं। जब सब सो जाते, वो नींद की बजाय अपने दिल की बातें सुनती। मान की मासूमियत, उसकी बच्चों जैसी हँसी, उसके छोटे-छोटे इशारे—ये सब अब उसके सीने में घर कर चुके थे। वो अब अक्सर अपना दिल टटोलती, और हर बार उसे लगता… कुछ बदल रहा है—धीरे-धीरे, चुपचाप, लेकिन पूरी तरह से।
एक साँझ, जब आसमान बादलों से ढका था और धीमी बारिश ने माहौल को एक भावुक ग़ज़ल-सा बना दिया था, अनु रसोई में खड़ी थी। उसकी नज़र बालकनी की ओर गई। वहाँ मान, अपने भीगे बालों और मासूम मुस्कान के साथ, बारिश में भीग रहा था। उसकी बाहें फैली थीं, चेहरा आसमान की ओर—जैसे वो बारिश को अपनी पूरी रूह से महसूस कर रहा हो।
अनु का माथा सिकुड़ गया। वो तेज़ी से वहाँ पहुँची और गुस्से में बोली, “मान! भीग क्यों रहे हो? बीमार हो जाओगे!”
मान ने उसकी ओर देखा। बालों से पानी टपक रहा था, और चेहरे पर वही मासूम मुस्कान थी जो अनु का दिल चुरा लेती थी। वो धीरे से बोला, “तुम चिंता करती हो ना?”
बस… इतना कहना था। अनु के होठ थरथरा गए। वो कुछ कह नहीं पाई। गुस्सा जैसे एक पल में उड़ गया। उसकी पलकों पर बारिश की बूँदें नहीं, शायद आँखों की नमी थी। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
उसने बिना कुछ बोले, मान का हाथ थामा और उसे अंदर खींच लाई। एक तौलिया उठाया और बिना बोले उसके भीगे बाल पोंछने लगी। हर बार जब उसके हाथ मान के चेहरे को छूते, उसका दिल और ज़्यादा उलझने लगता। अब वो खुद से छुपा नहीं सकती थी।
हाँ… उसे मान से प्यार हो गया था। धीरे-धीरे, हर मासूम मुस्कान से, हर बेफिक्र नज़र से, हर बच्चे जैसी ज़िद से। ये प्यार झूठ नहीं था—सच्चा था, गहरा था। मान अब उसका फ़र्ज़ नहीं, उसका एहसास बन चुका था।
रात गहरा रही थी। घर की बत्तियाँ धीमे-धीमे बुझ चुकी थीं। सब अपने कमरों में थे, सिवाय अनु के। वो कमरे के कोने में खड़ी, बिस्तर पर गहरी नींद में सोए मान को देख रही थी। उस मासूम चेहरे पर एक सुकून था—बिलकुल बच्चे जैसा। हल्की मुस्कान उसके होठों पर थी, जैसे कोई सपना देख रहा हो।
धीरे से, बिना आवाज़ किए, अनु पास आई। वो बैठी और एक नर्म हथेली से मान के माथे पर हाथ फेरा। उसका माथा गर्म नहीं था, लेकिन उस स्पर्श में एक अलग गर्मी थी—मोहब्बत की, अपनापन की। वो पल बहुत शांत था। कोई शोर नहीं, कोई बेचैनी नहीं। बस दो धड़कनों के बीच की दूरी, और उस पर रखा एक कोमल एहसास।
अनु की आँखों में नमी-सी चमक उठी। वो कुछ नहीं बोली, लेकिन मन ही मन मान लिया—अब वो मान से दूर नहीं है। वो हर रोज़ थोड़ा और करीब होता जा रहा है, और हर रात उसे अपने अंदर समेटता जा रहा है।
अगले दिन, अंशुमन कमरे में आया। उसने देखा—मान आँगन में खिलखिलाकर हँस रहा था, हाथ में कुछ फूल लिए, जो शायद अनु के लिए तोड़े थे। वो मुस्कराया, फिर धीरे से अनु के पास आया, जो रसोई में कुछ रख रही थी।
“भाभी… वो अब बदल रहा है… और शायद आप भी,” अंशुमन ने धीरे, गहराई से कहा।
अनु एक पल के लिए ठिठक गई। उसके हाथ की थाली हिलते-हिलते थम गई। उसने धीरे से सिर झुका लिया, जवाब नहीं दिया। लेकिन उसके गालों पर जो गुलाबी रंग उभर आया था—वो हर जवाब से ज़्यादा सच्चा था।
अंशुमन मुस्कराकर चला गया। अब घर की दीवारों में एक नई कहानी साँस लेने लगी थी—मोहब्बत की, भरोसे की, और दो टूटे दिलों के धीरे-धीरे जुड़ने की।
क्या सच अनु को मान से प्यार होने लगा है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी…
सरोज बुआ की सालगिरह
सरोज बुआ की सालगिरह का दिन कपूर विला में एक छोटे-से उत्सव की तरह था। घर को फूलों और रंगीन बल्बों से सजाया गया था—गेंदे की मालाएँ, गुलाब की पंखुड़ियाँ, और हल्की-हल्की रूमानी लाइट्स हर कोने में रौनक बिखेर रही थीं। हॉल में अगरबत्तियों की खुशबू तैर रही थी, और धीमा-सा म्यूज़िक—कोई पुराना-सा बॉलीवुड गीत—माहौल को और सजीव बना रहा था। सुमित्रा जी ने सुबह से ही रसोई संभाल रखी थी, और उनके हाथों से बनी मिठाइयाँ और नमकीन की थालियाँ मेहमानों के स्वागत के लिए तैयार थीं।
अंशुमन ने हॉल में एक छोटा-सा मंच सजाया था। बीच में एक गोल मेज़ पर केक रखा था, जिस पर लिखा था, “हैप्पी एनिवर्सरी सरोज बुआ & राजीव जी”। केक के चारों ओर छोटी-छोटी मोमबत्तियाँ जल रही थीं, और पास में एक गुलदस्ता था, जो मान ने सुबह बगीचे से चुना था।
सबके चेहरे मुस्कुरा रहे थे, लेकिन अनु का ध्यान कहीं और था। वो कभी मान की ओर देखती, जो बच्चों की तरह मेहमानों के बीच हँस-बोल रहा था, तो कभी अपने दिल को टटोलती, जहाँ अब एक नई उलझन और एक नया सुकून एक साथ जन्म ले रहे थे। उसने एक सलवार-कुर्ता पहना था—हल्का हरा, जिसके साथ उसकी चुन्नी पर चाँदी की कारीगरी चमक रही थी। उसके चेहरे पर अब वो पुरानी उदासी नहीं थी; उसकी जगह एक शांत-सी चमक थी, जो मान की हर हरकत के साथ और गहरी हो रही थी।
### मान का सरप्राइज़
केक कटने के बाद, जब मेहमान तालियाँ बजा रहे थे और सरोज बुआ व राजीव जी एक-दूसरे को मिठाई खिला रहे थे, अंशुमन ने माइक उठाया। उसकी आँखों में शरारत और मुस्कान थी। “अब एक छोटा-सा सरप्राइज़… हमारे मान भैया की तरफ़ से!”
सब चौंक गए। मान? गाना? वो तो हमेशा चुपचाप कोने में बैठने वाला, अपनी दुनिया में मस्त रहने वाला लड़का था। मेहमानों के बीच खुसर-पुसर शुरू हो गई। अनु की साँसें जैसे रुक गईं; उसकी आँखें मान की ओर टिक गईं।
मान धीरे-धीरे मंच पर गया। उसने हल्का नीला कुर्ता पहना था, बाल थोड़े बिखरे हुए, और आँखों में एक शरारती-सी चमक। वो आज बिलकुल अलग लग रहा था—न सिर्फ़ मासूम, बल्कि एक नई गहराई लिए हुए। उसने माइक पकड़ा, एक गहरी साँस ली, और सीधे अनु की आँखों में देखा।
बैकग्राउंड में म्यूज़िक शुरू हुआ—“तू जो मिला…”। और फिर मान ने गाना शुरू किया:
“तू जो मिला… तो हो गया सब हासिल…”
उसकी आवाज़ में थोड़ी घबराहट थी, लेकिन हर शब्द में एक ऐसी सच्चाई थी जो दिल को छू रही थी। वो सुर में कम, भावनाओं में ज़्यादा गा रहा था। हर शब्द जैसे अनु के लिए था—उसकी ज़िंदगी की अनकही कहानी, उसके दिल की अनसुनी धड़कनें।
सब तालियाँ बजा रहे थे, लेकिन अनु जैसे वहीं थम गई थी। उसकी आँखें भर आईं। वो पल उसके लिए सिर्फ़ एक गाना नहीं था; वो मान का दिल था, जो उसने सबसे सामने खोल दिया था। जब गाना ख़त्म हुआ, मान की नज़रें अब भी अनु पर टिकी थीं। अनु की पलकों पर एक चमक थी—भावनाओं की, मोहब्बत की।
उसी पल, मान ने महसूस किया कि अब वो अकेला नहीं है। और अनु ने मन ही मन मान लिया—वो अब सिर्फ़ मान की पत्नी नहीं, उसकी हमसफ़र बन चुकी है।
### छत पर तारों की बात
रात गहरा चुकी थी। हवाओं में हल्की ठंडक और सन्नाटा था, जो किसी पुराने गीत की तरह दिल को छू रहा था। पूरी हवेली नींद की आगोश में थी, सिवाय छत के, जहाँ दो दिल जाग रहे थे—मान और अनु।
छत की मुंडेर से उनकी पीठ टिकी थी, और आँखें आकाश की ओर—जहाँ अनगिनत तारे टिमटिमा रहे थे। चाँदनी उनकी झिलमिलाती निगाहों पर बिछी थी, जैसे आसमान भी उनकी खामोश बातों को सुन रहा हो।
मान ने चुप्पी तोड़ी, “क्या तारे भी प्यार करते होंगे?” उसकी आवाज़ में अब वो बच्चा नहीं था जो चॉकलेट के लिए रोता था। उसमें एक गहराई थी—जैसे उसने खुद से कोई लंबी लड़ाई लड़ी हो और अब सवालों के ज़रिए अपनी भावनाओं को टटोल रहा हो।
अनु ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में चाँदनी का अक्स था और होठों पर हल्की-सी मुस्कान। “हाँ,” उसने धीरे से कहा, “लेकिन सिर्फ़ उन तारों से, जो बिना शोर किए, हमेशा उनके साथ होते हैं।”
मान उसकी बात को पूरी तरह नहीं समझ पाया। उसने सिर हिलाया और हल्के से मुस्कुरा दिया। लेकिन अनु समझ गई थी—वो मुस्कुराहट अब सिर्फ़ मासूमियत की नहीं थी। वो एक जज़्बात थी, जो जन्म ले रहा था—धीरे-धीरे, बिना कहे, बिना माँगे।
उस मुस्कान में उस मान की झलक थी, जो किसी को खो देने से नहीं, किसी को पा लेने से डरता था। और अनु… वो अब सिर्फ़ मान के लिए ज़िम्मेदारी नहीं थी। वो उसकी ज़रूरत बन रही थी—उसके सवालों का जवाब, उसकी तन्हाइयों की आवाज़, और उसकी अधूरी दुनिया की सबसे खूबसूरत शुरुआत।
दोनों छत पर पड़े-पड़े तारों को देखते रहे। शब्द ख़त्म हो चुके थे, लेकिन शायद यही प्यार की पहली पहचान होती है।
### अनु का बदलता मन
अनु की ज़िंदगी में पहली बार ऐसा हो रहा था कि वो अपने दिल की आवाज़ को साफ़-साफ़ सुन रही थी। पहले उसके हर फैसले पर समाज की उम्मीदों की धूल जमी रहती थी, परिवार की मर्यादाएँ उसकी सोच को सीमित करती थीं, और ज़िम्मेदारियों का बोझ उसकी धड़कनों को दबा देता था। लेकिन मान की नज़दीकी ने जैसे उन सारी परतों को एक-एक करके उतार दिया था।
जब वो मान की आँखों में झाँकती थी, तो उसे कोई मजबूरी नहीं दिखती थी—बस एक सच्चा-सा सवाल होता था: “क्या तुम मुझे ऐसे ही अपनाओगी, जैसे मैं हूँ?” और अनु अब उस सवाल का जवाब खुद से छुपा नहीं पा रही थी। उसका मन बार-बार कहता, “ये बच्चा नहीं है… ये मेरा पति है। मेरा अधूरा हिस्सा, जो अब धीरे-धीरे मुझे पूरा कर रहा है।”
मान की मासूम हँसी, उसका सिर अनु के कंधे पर रख देना, उसका पल भर को उसकी गोद में सो जाना—ये सब अब उसे ज़िम्मेदारी नहीं, एक आत्मीय रिश्ते की तरह लगने लगा था। ऐसा रिश्ता जो न परिभाषाओं में बंधा था, न समाज की कसौटियों पर खरा उतरने की कोशिश कर रहा था। वो रिश्ता अब उसे हर दिन अपनाने लगा था, और अनु ने भी, अनकहे ही सही, उसे अपना कहना शुरू कर दिया था।
### सुबह की चाय
सुबह की हल्की धूप रसोई की खिड़की से झाँक रही थी। चाय का उबाल धीमे-धीमे उफान पर था, और अनु उसमें इलायची डाल रही थी, जैसे हर बार डालती थी। लेकिन आज कुछ अलग था—शायद रात की वो छत वाली बात अब भी उसके दिल में हलचल मचा रही थी। तभी पीछे से एक जानी-पहचानी, लेकिन इस बार थोड़ी गहरी आवाज़ आई:
“आज तुम्हारे हाथ की चाय पीने का मन है।”
अनु ने पलटकर देखा—मान खड़ा था, हल्के से मुस्कुराता हुआ। उसकी आँखों में वही भोलापन था, लेकिन आज उसमें एक नर्म-सी संजीदगी थी—जैसे कोई मासूम बच्चा अब धीरे-धीरे दुनिया को महसूस करना सीख रहा हो।
अनु ने मुस्कुराकर उसकी तरफ देखा और बिना कुछ कहे, कप में चाय उँडेलने लगी। उसने ध्यान से मान का पसंदीदा नीला मग उठाया—वही, जिसमें वो हर बार दूध पीना पसंद करता था। लेकिन आज उसमें चाय जा रही थी—पहली बार।
मान ने मग हाथ में लिया, और चाय का पहला घूँट लिया। फिर आँखें बंद करके जैसे उस स्वाद को महसूस किया। जब उसने आँखें खोलीं, तो उनमें एक अलग-सी चमक थी। “अब समझ आया मम्मी क्यों कहती थीं कि तुम सबका इतना ध्यान रखती हो… तुम्हारे हाथ में तो सच में जादू है।”
उसके शब्दों में कोई बनावट नहीं थी—बस एक सच्ची, भोली-सी स्वीकारोक्ति थी। अनु कुछ पल उसे देखती रही—उस मासूम चेहरे को, जो अब उसके दिल की सबसे सुकूनभरी जगह बनने लगा था। वो सोचने लगी, क्या हर रिश्ता समझ से शुरू नहीं होता… और फिर बिना शर्त, बिना परिभाषा के बस “महसूस” बन जाता है?
### मान का बदलाव
दिन बीतते गए, और जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, मान की नज़रों में अनु के लिए कुछ बदलने लगा था। अब वो उस बचपने वाली ज़िद में नहीं उलझता था कि “अनु मेरी है, सिर्फ़ मेरी।” अब उसके अंदर एक हल्की-सी समझदारी आने लगी थी, जिसे शब्दों में बयाँ करना मुश्किल था।
हर छोटी बात में अब अनु उसकी पहली पसंद बन गई थी। सुबह उठते ही वो पूछता, “अनु, कौन-से कपड़े पहनूँ आज? लाल वाला टी-शर्ट या नीला?”
अनु हँसकर कहती, “लाल वाला। वो रंग तुम्हारे चेहरे पर खिलता है।” और वो बिना किसी बहस के वही पहन लेता।
कभी दोपहर में स्केच बनाता और तुरंत उसके पास दौड़ आता, “अनु, देखो ये मेरी नई ड्रॉइंग। इसमें तुम हो और मैं भी… अच्छा बनाया है ना?”
अनु मुस्कराकर उसका सिर सहला देती, “बहुत अच्छा बनाया है, अब तुम पहले से भी बेहतर हो गए हो।” ये सुनते ही उसके चेहरे पर बच्चे-सी चमक आ जाती।
रात के खाने से पहले वो पूछता, “आज खाना क्या बनेगा? मेरी पसंद चलेगी या तुम्हारी?”
अनु कहती, “तुम्हारी पसंद बनेगी, लेकिन तुम मेरे हाथ से खाओगे।”
वो तुरंत मुस्कराता, “तुम्हारे हाथ का खाना तो मम्मी से भी अच्छा लगता है अब।”
इन सारी बातों के बीच अंशुमन चुपचाप ये बदलाव देखता रहा। एक दिन, जब मान और अनु साथ बैठकर कोई पुराना फोटो एल्बम देख रहे थे और उनकी हँसी पूरे कमरे में गूँज रही थी, अंशुमन ने पास से गुजरते हुए हल्के से मुस्कराकर कहा, “भाई बड़ा हो रहा है…”
उसके चेहरे पर गर्व था और एक संतोष।
### अंशुमन की सलाह
उस रात, जब मान अपने कमरे में बैठा था, अंशुमन वहाँ आया। उसने बिना किसी भूमिका के कहा, “मान, पत्नी का मतलब सिर्फ़ वो लड़की नहीं होती जो तुम्हारे साथ सोती हो, या जिसे तुम ज़िद से पा लो। पत्नी तुम्हारी बराबरी की साथी होती है। उसका सम्मान करना, उसकी पसंद-नापसंद समझना, और उसे वो सुकून देना जिससे वो खुद को सुरक्षित महसूस करे—यही असली पति का फ़र्ज़ होता है।”
मान कुछ नहीं बोला। उसने बस ध्यान से अपने भाई की हर बात सुनी। उसकी आँखों में कोई सवाल नहीं था—बल्कि एक गहराई थी, जैसे हर शब्द को दिल में दर्ज कर रहा हो।
### अनु की हैरानी
एक शाम, जब अनु कमरे में आई, तो उसे कुछ ऐसा मिला जिसने उसे हैरान कर दिया। बिस्तर पर एक छोटा-सा डिब्बा रखा था, जिसके ऊपर एक कागज़ का टुकड़ा था। उस पर टेढ़ी-मेढ़ी लिखावट में लिखा था: “अनु, मेरी बेस्ट फ्रेंड, मेरी दुनिया।”
अनु ने डिब्बा खोला। उसमें एक जोड़ी छोटी-सी चाँदी की पायल थी—सादी, लेकिन बेहद खूबसूरत। पास में एक और छोटा-सा नोट था: “ये तुम्हारे लिए। तुम जब चलती हो, तो मुझे तुम्हारी चूड़ियों की आवाज़ बहुत अच्छी लगती है। अब ये पायल भी बजेगी।”
अनु की आँखें नम हो गईं। उसने पायल हाथ में ली, और उसकी खनक ने जैसे उसके दिल की धड़कनों को और तेज़ कर दिया। वो जानती थी कि ये मान की कोशिश थी—उसकी मासूमियत, उसका प्यार, और उसकी समझ का एक छोटा-सा इज़हार।
उसने पायल पहनी, और कमरे से बाहर निकलकर मान को ढूँढा। वो आँगन में बैठा था, अपने स्केचबुक में कुछ बना रहा था। अनु के कदमों की खनक सुनकर उसने सिर उठाया, और उसकी आँखें चमक उठीं। “तुमने पहन लिया!” उसने बच्चों की तरह उछलते हुए कहा।
अनु ने बस मुस्कुराकर सिर हिलाया, और फिर धीरे से बोली, “तुम्हें कैसे पता कि मुझे पायल पसंद है?”
मान ने शरमाते हुए कहा, “मैंने देखा था… तुम एक बार मम्मी से कह रही थीं कि तुम्हें पायल की आवाज़ अच्छी लगती है।”
अनु की आँखें फिर नम हो गईं। उसने मान के पास बैठकर उसका हाथ थामा और कहा, “तुम सचमुच मेरे लिए खास हो।”
तो आप सब को क्या लगता है,
क्या मिला होगा अवनी को?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी…
तुम्हारी बराबरी की साथी होती है। उसका सम्मान करना, उसकी पसंद-नापसंद समझना, और उसे वो सुकून देना जिससे वो खुद को सुरक्षित महसूस करे — यही असली पति का फ़र्ज़ होता है।"
मान कुछ नहीं बोला।
उसने बस ध्यान से अपने भाई की हर बात को सुना।
उसकी आँखों में कोई सवाल नहीं था — बल्कि एक गहराई थी, जैसे हर शब्द को दिल में दर्ज कर रहा हो।
अंशुमन की बातें मान के दिल में गहरे उतर गई थीं। “पत्नी तुम्हारी बराबरी की साथी होती है। उसका सम्मान करना, उसकी पसंद-नापसंद समझना, और उसे वो सुकून देना जिससे वो खुद को सुरक्षित महसूस करे—यही असली पति का फ़र्ज़ होता है।” मान ने कुछ नहीं कहा था, लेकिन उसकी आँखों में एक नई गहराई थी, जैसे हर शब्द उसके मन की किताब में दर्ज हो गया हो।
एक शाम, कपूर विला के लॉन में मान और अंशुमन पतंग उड़ा रहे थे। आसमान में लाल-नीली पतंग हवा के साथ नाच रही थी, और मान की हँसी उसकी उड़ान के साथ गूँज रही थी। “भैया, देखो! कितनी ऊँची जा रही है!” मान ने जोश में कहा, और अंशुमन ने हँसते हुए उसका कंधा थपथपाया।
उधर, ऊपर कमरे में अनु मान की अलमारी में कुछ ज़रूरी कागज़ात ढूँढ रही थी। अलमारी मान के मन की तरह थी—बिखरी हुई, लेकिन हर कोने में उसकी मासूमियत छुपी थी। किताबें, रंग-बिरंगे स्केचबुक, क्रेयॉन्स, और कुछ अधूरी ड्रॉइंग्स—सब कुछ उसी में बेतरतीब ढंग से रखा था। तभी अनु की उंगलियाँ एक हल्की-सी नीली डायरी पर ठहर गईं। किनारे थोड़े घिसे हुए थे, लेकिन डायरी अब भी साफ़ और संभाली हुई लग रही थी।
कुछ अनजाने आकर्षण में, अनु ने डायरी खोल ली। अंदर टेढ़ी-मेढ़ी, गोल-मटोल लिखावट थी, जो मान की मासूमियत को जैसे शब्दों में उकेर रही थी। पन्ना पलटते ही उसकी नज़र एक वाक्य पर अटक गई:
“अनु मुझे अच्छी लगती है… बहुत ज़्यादा।”
शब्दों के ठीक नीचे एक पेंसिल स्केच था—एक लड़की, बाल पीछे बाँधे, मुस्कुरा रही थी, और पास में एक लड़का, उसकी ओर टेढ़ा झुका हुआ, जैसे कुछ कह रहा हो। अनु की साँसें थम गईं। ये वही दृश्य था, जब वो और मान छत पर तारों के नीचे बैठे थे—उस रात, जब मान ने पूछा था, “क्या तारे भी प्यार करते होंगे?” उसकी मुस्कुराहट का मतलब अब अनु को समझ आया।
उसके लिए ये सिर्फ़ एक स्केच नहीं था; ये मान का दिल था, जो उसने कागज़ पर उतार दिया था। अनु की आँखें नम हो गईं। ये कोई बच्चा नहीं था, जो बस चीज़ें पसंद करता था। ये एक मासूम दिल था, जो अपने तरीके से प्यार को महसूस कर रहा था, और उसे धीरे-धीरे शब्द और रंग दे रहा था।
उसने डायरी को बहुत धीरे से बंद किया, जैसे कोई अनमोल खज़ाना तहखाने में वापस रख रही हो। उस पल में कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं थी। अनु के दिल में एक मीठा-सा दर्द उभर आया—एक एहसास, जो न सवाल करता था, न जवाब माँगता था, बस चुपचाप उसके भीतर बस गया था।
शाम का वक़्त था। बाहर बारिश अपनी पूरी रफ़्तार में थी। छत पर गिरती बूँदों की टप-टप और खिड़कियों से आती ठंडी हवा ने घर को एक अलग ही सुकून से भर दिया था। अचानक बिजली चली गई। सुमित्रा जी ने मोमबत्तियाँ जलाईं, और उनकी हल्की-हल्की लौ ने ड्राइंग रूम की दीवारों पर नाचती परछाइयाँ बना दीं।
सब एक घेरे में बैठ गए। सरोज बुआ ने पुराने गानों की धुन छेड़ी, और ब्रिजेश जी गुनगुनाने लगे, “कुछ तो लोग कहेंगे… लोगों का काम है कहना…” माहौल में हल्कापन और अपनापन घुल गया था। हँसी, बातें, और बारिश की खुशबू ने जैसे किसी पुराने किस्से की शाम रच दी थी।
तभी मान, जो अब तक कोने में बैठा सबको देख रहा था, अचानक बोला, “मैं एक कहानी सुनाऊँ?”
सबने एक साथ कहा, “हाँ!”
उसके चेहरे पर चमक आ गई, जैसे कोई बच्चा अपनी बनाई तस्वीर दिखाने को बेताब हो। उसने धीमे-धीमे शुरू किया:
“एक लड़की थी… बहुत सुंदर। उसकी मुस्कान देखकर लगता था जैसे फूल खिल गए हों। और एक लड़का था… थोड़ा मासूम, लेकिन दिल से सच्चा। वो कभी झूठ नहीं बोलता था, और न किसी का दिल दुखाता था। शुरू में लड़की उसे बस जानती थी… लेकिन फिर… वो उसे पसंद करने लगी… नहीं, उससे प्यार करने लगी… क्योंकि उसे लगा, दुनिया में सब बदल सकते हैं, लेकिन वो मासूम लड़का… हमेशा सच्चा रहेगा।”
कहानी सुनते ही सब हँसने लगे। सरोज बुआ ने चुटकी ली, “अरे वाह, मान! ये कहानी तो कहीं सुनी-सुनाई लग रही है!” ब्रिजेश जी ने भी हँसकर कहा, “हाँ बेटा, ये लड़की कहीं हमारे घर में तो नहीं?”
सबके चेहरों पर मुस्कान थी, लेकिन अनु चुप थी। उसके हाथ में मोमबत्ती थी, जिसकी लौ हल्के-हल्के काँप रही थी। उसकी आँखें सिर्फ़ मान पर टिकी थीं। वो देख रही थी, सुन रही थी, और महसूस कर रही थी कि ये कहानी सिर्फ़ कहानी नहीं थी। उसके दिल के अंदर बारिश की बूँदों की तरह कोई धीमी-धीमी धुन बज रही थी—एक अनकहा सच, जो मोमबत्ती की नर्म रौशनी में और साफ़ दिखने लगा था।
### अंशुमन की विदाई
कुछ दिनों बाद, सुबह का समय कपूर विला में उत्साह से भरा था। अंशुमन को उसकी पहली नौकरी का ऑफ़र लेटर मिला था—एक बड़े शहर में, एक प्रतिष्ठित कंपनी में। सुमित्रा जी ने मिठाई का डिब्बा निकाला, सरोज बुआ ने हलवा बनाया, और ब्रिजेश जी बार-बार कह रहे थे, “देखा, मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।”
उस शाम घर में एक छोटी-सी विदाई की रस्म रखी गई। मोमबत्ती की हल्की रौशनी, हँसी-मज़ाक, और मिठाइयों की खुशबू माहौल में घुली थी। सबने बारी-बारी से अंशुमन के लिए कुछ कहा। ब्रिजेश जी ने आशीर्वाद दिया, सरोज बुआ ने आँखों में नमी के साथ दुआएँ दीं, और मान ने मासूमियत से बोला, “तू जल्दी वापस आना, हम पतंग फिर से उड़ाएँगे।”
अंत में, अंशुमन ने नज़रें अनु की ओर मोड़ीं। वो एक पल चुप रहा, फिर नर्म आवाज़ में बोला, “अब तुम्हारे और भाई के बीच कोई पर्दा नहीं है… अब बस एक-दूसरे का साथ निभाना है।”
उसके शब्दों में कोई भारीपन नहीं था, लेकिन एक सच्चाई थी, जो सीधे दिल में उतर गई। अनु ने सिर्फ़ हल्का-सा सिर हिलाया, लेकिन उसके अंदर एक अजीब-सी खामोशी गूँजती रही।
अगले दिन अंशुमन चला गया। लेकिन जाते-जाते, वो सिर्फ़ खाली कमरा नहीं छोड़ गया—उसने अपने शब्द अनु और मान के दिल में बसा दिए थे।
### मान का नया रंग
अंशुमन के जाने के बाद, मान की आदतें बदलने लगीं। पहले वो अनु से छोटी-छोटी बातों पर राय लेता था—“ये रंग अच्छा है ना?”—लेकिन अब उसके सवाल बदल गए थे। अब वो पूछता, “तुम्हें लगता है, मुझे ये करना चाहिए?” या “अगर तुम होती तो क्या करती?” उसकी आँखों में अब एक अलग-सी गहराई थी—जैसे वो अनु को सिर्फ़ पसंद नहीं करता, बल्कि उसकी मौजूदगी को ज़रूरी मानता था।
अनु ने महसूस किया कि ये रिश्ता अब सिर्फ़ रोज़मर्रा की आदत नहीं रहा। ये धीरे-धीरे एक गहरी साझेदारी में बदल रहा था। मान अब सिर्फ़ मासूम सवाल नहीं पूछता था; वो अनु की राय को, उसकी भावनाओं को, और उसकी मौजूदगी को महत्व देने लगा था।
### रात का नर्म स्पर्श
एक रात, पूरा घर नींद में डूबा था। बाहर कहीं दूर से बारिश की हल्की-सी आवाज़ आ रही थी, और कमरे में सिर्फ़ टेबल लैंप की कोमल रौशनी जल रही थी। अनु दिनभर के काम से थक चुकी थी। वो पलंग के कोने पर बैठी, अपनी साड़ी का पल्लू ठीक कर रही थी, उसकी आँखों में थकान थी, लेकिन मन में एक अजीब-सा सुकून भी।
तभी हल्के कदमों की आहट हुई। मान चुपचाप पास आया और बिना कुछ कहे पलंग के किनारे बैठ गया। उसने धीरे से अनु के पैर अपनी गोद में रख लिए और दोनों हथेलियों से उन्हें सहलाने लगा, फिर धीरे-धीरे दबाने लगा।
अनु चौंकी, “मान… रहने दो, मैं ठीक हूँ।” उसकी आवाज़ में हल्का-सा विरोध था, लेकिन थकान की लकीरें साफ़ थीं।
मान ने कुछ नहीं कहा। उसने बस ऊपर देखा, उसकी आँखों में वही पुरानी मासूमियत थी, लेकिन इस बार उसमें एक सच्चा अपनापन और समर्पण का भाव था। जैसे वो कहना चाहता हो, “तुम मेरी हो, और तुम्हारी थकान भी मेरी है।”
अनु ने फिर कुछ नहीं कहा। वो चुपचाप उसे देखती रही—उसकी उंगलियों का हल्का दबाव, उसका ध्यान, और उसका चेहरा… वो चेहरा, जो अब उसकी ज़िंदगी का सबसे सच्चा हिस्सा बन चुका था। उस पल में किसी ने “पति-पत्नी” की परिभाषा नहीं दी, लेकिन जो एहसास उनके बीच बह रहा था, वही असल रिश्ता था—बिना शर्त, बिना दिखावे का।
कमरे में एक अजीब-सी खामोशी पसरी थी। न कोई हलचल, न कोई आवाज़—बस उनकी साँसों की धीमी सरसराहट। लैंप की हल्की रौशनी में मान ने चुपचाप अनु का हाथ अपने हाथ में लिया। उसकी हथेली की गर्माहट जैसे सारी थकान को सोख रही थी।
वो अनु के कंधे से लगकर बैठ गया—इतना पास कि उसकी धड़कनें साफ़ सुनाई देने लगीं। कोई शब्द नहीं थे, कोई औपचारिक वादा नहीं, लेकिन उस स्पर्श में एक गहरा अपनापन था—एक भरोसा, जो किसी भी कसम से ज़्यादा मजबूत था।
अनु ने पहली बार बिना झिझक के उसका सिर सहलाया। उस एहसास में एक अजीब सुकून था—जैसे उसने अपनी पूरी दुनिया थाम ली हो। मान की पलकें भारी होने लगीं, और वो धीरे-धीरे आँखें बंद कर गया। वो अनु के कंधे से टिक गया—बिलकुल वैसे, जैसे कोई मासूम बच्चा अपनी माँ की गोद में सुकून ढूँढता है, बिना किसी डर के, पूरी तरह निश्चिंत होकर।
अनु की नज़रें उस पर टिकी रहीं। वो पल बीत रहा था, लेकिन उसके लिए जैसे समय थम गया था। उसकी उंगलियाँ अब भी मान के बालों में उलझी थीं, और उसके दिल में एक ही बात गूँज रही थी—“शायद यही मेरा घर है।”
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क्या अब अनु अपने इस प्यार को ज़िंदगी भर निभा पाएगी?
क्या मान की मासूम चाहत अब एक समझदार, गहरे रिश्ते में बदल रही है?
और क्या अंशुमान की सीख सचमुच दोनों को एक नई दिशा देने में सफल हो पाएगी?
आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी " My Innocent Husband" ………
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कपूर विला की छत उस शाम जैसे एक अनकही कहानी का आलम लिए थी। नीली-सी चाँदनी बिखरी हुई थी, लेकिन चाँद अधूरा था—कभी बादलों के पीछे छिपता, कभी हल्का-सा झाँकता, ठीक वैसे ही जैसे अनु की भावनाएँ—कभी खुलकर सामने आतीं, कभी अपने ही खोल में सिमट जातीं। हवा में हल्की ठंडक थी, जो गालों को छूकर गुजर रही थी, लेकिन अनु के दिल की बेचैनी उस ठंड से कहीं ज़्यादा तीखी थी।
वो छत के एक कोने में बैठी थी, घुटनों को बाँधकर, नज़रें दूर टिमटिमाते तारों पर टिकीं। उसका मन एक समुंदर की तरह था, जिसमें लहरें बार-बार मान की मासूम मुस्कान से टकरा रही थीं। वो याद कर रही थी—कैसे मान की छोटी-छोटी हरकतें, जैसे उसके लिए पानी का गिलास भरना, उसके बाल बिगाड़कर हँस देना, या उसकी ओर देखकर बच्चों-सी चमक के साथ कुछ कहना, उसके होठों पर अनजाने में मुस्कान ला देती थीं। लेकिन उसी मुस्कान के पीछे उसका अतीत, उसकी चुप्पियाँ, और अर्जुन की धुंधली यादें बार-बार लौट आती थीं।
उसके भीतर दो धड़कनें थीं। एक, जो मान की हर बात पर खिल उठती थी—उसकी मासूम हँसी, उसकी बेफिक्र बातें, और उसका बिना शर्त का स्नेह। दूसरी, जो अपने ही सवालों से जूझ रही थी—“क्या मैं सच में बदल रही हूँ? या बस इस रिश्ते की लय में बह रही हूँ?” वो अपने दिल को टटोल रही थी, लेकिन हर बार मान की एक नई हरकत उसे और गहरे तक खींच ले जाती थी।
वो अपनी उलझनों में डूबी थी, तभी पीछे से हल्के कदमों की आहट हुई। उसने धीमे से मुड़कर देखा—मान था। उसने सफेद टी-शर्ट और पायजामा पहना था, बाल हल्के बिखरे हुए, और चेहरे पर वही निश्छल चमक, जो अनु का दिल हर बार चुरा लेती थी। उसके हाथ में दो कॉफी के मग थे, जिनसे भाप हल्के-हल्के ऊपर उठ रही थी, जैसे कोई कोमल सा सपना हवा में तैर रहा हो।
“तुम अकेली बैठी हो… सोचा, तुम्हें कंपनी दूँ,” मान ने धीमे से कहा, उसकी आवाज़ में एक मासूम उत्साह था। उसने एक मग अनु की ओर बढ़ाया और बिना कुछ और कहे, उसके पास बैठ गया। अनु ने हल्की मुस्कान के साथ मग थाम लिया। कॉफी की गर्माहट उसकी ठंडी उंगलियों में धीरे-धीरे उतर रही थी, लेकिन उसके दिल की धड़कन अब भी अपनी रफ़्तार में थी, जैसे कोई अनजाना तूफ़ान उसमें हलचल मचा रहा हो।
दोनों ने एक साथ कॉफी के घूँट लिए, और फिर बस ख़ामोशी। वो ख़ामोशी अजीब नहीं थी—वो किसी पुराने, भरोसेमंद गीत की तरह थी, जिसमें शब्दों की ज़रूरत नहीं होती। बस पास बैठने की आहट, कॉफी की भाप, और हवा में पत्तों की सरसराहट। चारों ओर चाँदनी की नरम रौशनी और बारिश की हल्की बूँदों की आवाज़ ने माहौल को और गहरा बना दिया था।
अचानक हवा का एक हल्का झोंका आया। अनु के कुछ बाल उसके चेहरे पर बिखर गए—काले, रेशमी, नर्म लटें, जो उसकी आँखों को ढकने लगीं। मान ने बिना सोचे, सहजता से अपना हाथ बढ़ाया। उसकी उंगलियाँ बहुत हल्के से उन लटों को उसके कान के पीछे सरकाने लगीं। उसका स्पर्श इतना नर्म था कि अनु को लगा जैसे कोई हल्की-सी लहर उसके चेहरे को छूकर गुजर गई हो। और तभी… उनकी नज़रें मिलीं।
जैसे किसी ने पूरे आसमान को एक पल के लिए थाम लिया हो। मान की उंगलियों का वो हल्का-सा स्पर्श अनु के दिल में कहीं गहराई तक उतर गया—एक अनजानी सरगर्मी की तरह। वो साधारण-सा पल था, लेकिन उसमें कुछ ऐसा था जो बता रहा था कि ये रिश्ता अब सिर्फ़ नाम का नहीं रहा। अनु की साँसें धीमे-धीमे तेज़ हो रही थीं। मान का हाथ अब भी उसके गाल के पास था, और उनकी आँखों में झिझक, अपनापन, और एक अनकहा जादू था—जो अगर कोई हिलाता, तो शायद टूट जाता।
अनु ने बिना सोचे, बिना झिझके, मान के गालों को अपनी हथेलियों में थाम लिया—न बहुत कसकर, न बहुत ढीले, बस इतना कि उसकी गर्माहट महसूस हो सके। मान की साँसें हल्के-हल्के काँप रही थीं, और उसकी आँखों में मासूमियत अब थोड़ी उलझन में बदल गई थी। अनु ने उसकी नज़रों में गहराई से देखा, जैसे वो उस मासूमियत की हर परत को पढ़ लेना चाहती हो। उसका दिल तेज़ धड़क रहा था, लेकिन इस बार उसने उस धड़कन को रोका नहीं—उसने उसे महसूस किया।
धीरे-धीरे, वो उसके और करीब आई, और एक नर्म, हल्का-सा चुंबन मान के होठों पर रख दिया। वो चुंबन जैसे अनु के अंदर की सारी जमी हुई बर्फ को पिघला गया। वो अब सही-गलत नहीं सोच रही थी; वो बस उस पल में थी। धीरे-धीरे, उसने अपना माथा मान के माथे से लगा लिया। उनकी साँसें एक-दूसरे में घुलने लगीं।
मान की पलकों ने एक बार झपककर अनु की आँखों में झाँका, जैसे वो पूछ रहा हो, “ये क्या हो रहा है?” अनु ने सिर्फ़ फुसफुसाकर कहा, “कुछ भी… पर झूठा नहीं।”
और फिर, उसने उसे और करीब खींच लिया—इतना करीब कि उनके बीच अब न सवाल थे, न जवाब, बस एक अनकहा भरोसा और एक नई शुरुआत का एहसास।
उस पल में जैसे पूरी दुनिया थम गई थी। बारिश की हल्की बूँदों की सरसराहट और उनके बीच का गहराता एहसास ही बाकी था। अनु का चेहरा मान के इतना करीब था कि उसकी हथेलियाँ उसके गालों की गर्माहट को पूरी तरह महसूस कर रही थीं। मान पहले तो जैसे ठिठक गया—उसकी साँसें रुक-सी गईं, आँखों में एक मासूम हैरानी थी। लेकिन फिर, जैसे किसी ने उसके भीतर की सारी झिझक पिघला दी हो, उसने अपनी पलकें बंद कर लीं और खुद को उस पल के हवाले कर दिया।
अनु के होठों की नर्मी और उनमें भरा अपनापन मान के सीने में एक अनजाने संगीत की तरह गूँज रहा था। उसने धीरे-धीरे अपना हाथ बढ़ाकर अनु की कमर को थाम लिया—न ज़ोर से, न ढीले, बस इतना कि उसे यकीन रहे कि ये पल उनका है। बारिश की ठंडी हवा उनके गीले बालों से खेल रही थी, लेकिन उनके बीच का तापमान सिर्फ़ बढ़ता जा रहा था।
वो चुंबन अब सिर्फ़ एक स्पर्श नहीं था—वो एक रिश्ता था, जो बिना शब्दों के अपनी परिभाषा लिख रहा था। अनु को लगा कि वो मान से दूर नहीं रह सकती। उसकी हर मासूम हरकत, हर भोली बात अब उसे और करीब ला रही थी। उसने अपनी बाहें मान के गले में डाल दीं और उसे और कसकर थाम लिया।
मान ने भी उसे हल्के से अपनी ओर खींचा। वो अब सिर्फ़ एक मासूम बच्चा नहीं लग रहा था; वो एक पुरुष था, जो अपने तरीके से, अपनी गति से प्यार महसूस कर रहा था। उस रात की चुप्पी में सिर्फ़ उनके दिलों की धड़कनें गूँज रही थीं। दोनों की साँसें तेज़ थीं, लेकिन डर नहीं था—उसमें अब भरोसा था।
अनु ने धीरे से अपना माथा मान के माथे से सटाया। उसकी उंगलियाँ अब भी मान की आँखों पर टिकी थीं, जैसे उस मासूम उलझन को सहला रही हों। मान ने पलकों के पीछे से उसकी गर्मी महसूस की और उसकी हथेलियों को थाम लिया। अनु के होठों पर एक कोमल मुस्कान थी—वो मुस्कान जो सिर्फ़ स्वीकार नहीं, बल्कि एक वादा थी। उसकी आँखें जैसे कह रही थीं, “ये रिश्ता अब मेरा है… पूरी तरह।”
तभी मान ने कुछ ऐसा किया, जिसने अनु को हैरान कर दिया। उसने अपनी जेब से एक छोटा-सा कागज़ का टुकड़ा निकाला। उस पर टेढ़ी-मेढ़ी लिखावट में लिखा था: “अनु, तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो। लेकिन आज मैंने तुम्हें और ज़्यादा चाहा।” कागज़ के नीचे एक स्केच था—दो लोग, हाथ में हाथ लिए, चाँद के नीचे खड़े।
मान ने शरमाते हुए कहा, “मैंने ये आज सुबह बनाया था… तुम्हें देना चाहता था।” उसकी आवाज़ में एक मासूम घबराहट थी, लेकिन आँखों में सच्चाई चमक रही थी। अनु की आँखें फिर नम हो गईं। उसने कागज़ को अपने सीने से लगाया, जैसे वो सिर्फ़ एक स्केच नहीं, मान का दिल था।
उस पल में अनु को यकीन हो गया—ये रिश्ता अब सिर्फ़ ज़िम्मेदारी या मासूमियत नहीं था। ये प्यार था, जो हर छोटे इशारे, हर नर्म स्पर्श, और हर अनकहे शब्द में गहराता जा रहा था। उसने मान की ओर देखा और धीरे से कहा, “तुम मेरे हो।”
अनु का दिल हल्के-हल्के धड़क रहा था, जैसे तूफ़ान के बाद की ठंडी हवा। उसकी पलकों पर अब भी उस चुंबन की गर्माहट थी। लेकिन मान की हालत उलट थी। उसकी साँसें अनियमित और तेज़ थीं, जैसे किसी ने उसके सीने में आग भर दी हो। उसकी छाती हर साँस के साथ ऊपर-नीचे हो रही थी, मानो उसके दिल का सारा जज़्बा बाहर निकलने को बेक़रार हो।
उसकी आँखों में चाह का तूफ़ान था, जिसमें हल्का-सा पागलपन भी झलक रहा था। उसकी नज़रें अनु के चेहरे पर अटकी थीं, जैसे वो उस पल को हमेशा के लिए थाम लेना चाहता हो। अनु ने अनजाने में नज़रें झुका लीं, लेकिन उसके भीतर एक अजीब-सी गुदगुदाहट थी—डर, खुशी, और हल्का-सा नशा, सब एक साथ।
मान की धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि अनु को वो साफ़ सुनाई दे रही थीं—जैसे कोई ढोल उसके कानों के पास बज रहा हो। उसने धीरे से मान का हाथ थामा, और उसकी उंगलियाँ मान की हथेली की गर्माहट में डूब गईं। उस पल में कोई शब्द नहीं थे, बस एक अनकहा वादा था—एक भरोसा, जो किसी भी कसम से ज़्यादा मजबूत था।
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कपूर विला की छत उस रात एक अनकही कहानी का गवाह बनी थी। नीली चाँदनी बिखरी थी, लेकिन चाँद बादलों के पीछे छिपा हुआ था, जैसे अनु का मन—कभी खुलकर सामने आता, कभी अपनी ही उलझनों में खो जाता। हवा में ठंडक थी, जो गालों को छूकर गुजर रही थी, लेकिन अनु के दिल की बेचैनी उस ठंड से कहीं ज़्यादा तीखी थी।
वो छत के कोने में बैठी थी, घुटनों को सीने से लगाए, नज़रें तारों पर टिकीं। उसका मन एक समुंदर था, जिसमें मान की मासूम मुस्कान की लहरें बार-बार टकरा रही थीं। उस चुंबन का पल, जो कुछ देर पहले उनके बीच हुआ था, अब भी उसके होठों पर एक गुनगुनाहट की तरह बाकी था। वो पल अनु के लिए सुकून और चाहत का मिश्रण था, लेकिन मान की आँखों में वो अजीब-सा डर… वो उसे समझ नहीं आ रहा था।
अनु ने ध्यान से मान को देखा था। उसके होठों पर ज़रा-सी भी मुस्कान नहीं थी। वो पल, जो अनु ने सोचा था कि खुशी और सुकून से भरा होगा, अब एक अजीब-सी बेचैनी में डूब गया था। मान की आँखों में वो मासूमियत तो थी, लेकिन उस मासूमियत के पीछे एक अंधेरा था—एक अनजाना भय, जो उसे किसी गहरे जाल में जकड़े हुए था।
उसके माथे पर पसीने की नन्ही बूँदें चमक रही थीं। वो बार-बार होठ भींच रहा था, जैसे खुद को काबू में रखने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन अंदर से टूट रहा था। उसकी साँसें इतनी तेज़ थीं कि जैसे हवा भी उसके सीने में फँसकर उसे घुटन दे रही हो। अनु ने धीमे से उसका नाम पुकारा, “मान…?”
उसकी आवाज़ में चिंता थी, लेकिन वो शब्द मान के कानों तक जाते-जाते खो गए। उसकी साँसें और तेज़ हो गईं, जैसे हर धड़कन चीख-चीखकर कह रही हो, “कुछ ग़लत हो गया है… और इसे मैं सँभाल नहीं पाऊँगा।” उसके चेहरे पर एक पल के लिए ऐसा भाव आया, मानो उसका सबसे बड़ा डर सामने खड़ा हो।
अगले ही पल, मान ने झटके से अनु को धक्का दिया और नीचे की ओर भाग खड़ा हुआ।
अनु वहीं छत पर जड़-सी खड़ी रह गई। उसके चारों ओर ठंडी हवा बह रही थी, लेकिन उसके भीतर सब कुछ सन्नाटे में जम गया था। उसके होठों पर अब भी मान की पहली मासूम छुअन की गर्माहट थी—वो पल जो अभी-अभी उसकी ज़िंदगी का सबसे सुंदर एहसास बना था, अब किसी ने एक झटके में तोड़ दिया था।
उसके दिल में सवालों का तूफ़ान उठने लगा—“अचानक ऐसा क्यों किया उसने? मैंने… क्या मैंने कुछ गलत किया?” वो उसे पुकारने ही वाली थी, लेकिन उसके होठ जैसे सिले रह गए। उसके कदम ज़मीन में गड़ गए, जैसे शरीर ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया। उसकी आँखों में नमी उतर आई, और दिल की धड़कन तेज़ और भारी हो गई।
मान का चेहरा बार-बार उसके सामने घूम रहा था—वही चेहरा, जिसमें मासूमियत थी, लेकिन उस मासूमियत के पीछे आज एक और चेहरा छिपा था—डर से भरा, घबराया हुआ, जैसे किसी अनदेखे साए ने उसे जकड़ लिया हो। अनु समझ गई थी कि वो धक्का गुस्से का नहीं था। वो धक्का था एक गहरे डर का, जो मान के भीतर कहीं गहराई में पैठ चुका था—एक ऐसा डर, जिसे वो देख तो सकती थी, लेकिन छूकर मिटा नहीं सकती थी।
### मान का डर
मान तेज़ कदमों से, लगभग दौड़ता हुआ, सीढ़ियाँ उतर गया। हर कदम के साथ उसका दिल इतनी जोर से धड़क रहा था, जैसे कोई उसे सीने से बाहर निकाल लेगा। उसके कानों में कुछ सुनाई नहीं दे रहा था—न हवा की सरसराहट, न नीचे से आती आवाज़ें—बस अपनी ही अनियंत्रित धड़कनों की धमक। वो सीधे अपने कमरे में घुसा, दरवाज़ा धड़ाम से बंद किया, और पीठ टिकाकर खड़ा रह गया।
एक पल को लगा, जैसे उसके पैरों में जान ही नहीं बची। वो लड़खड़ाते कदमों से बिस्तर की ओर गया और लगभग गिरते हुए उस पर लुढ़क गया। एक झटके में उसने कम्बल उठाया और खुद को पूरी तरह उसमें लपेट लिया—जैसे बाहर की दुनिया से, लोगों की नज़रों से, और अपने ही एहसास से छुपना चाहता हो।
कमरे में अंधेरा था, और कम्बल की घुटन में उसका चेहरा पसीने से भीगा हुआ था। उसकी साँसें इतनी तेज़ थीं कि वो खुद को सुनाई दे रही थीं। वो साँस रोककर सोने का नाटक करने लगा—मानो अगर वो हिलेगा, तो सब सच हो जाएगा, और उसका दिल उसी पल फट पड़ेगा। लेकिन कम्बल के अंदर भी, उसकी आँखों के सामने बार-बार अनु का चेहरा घूम रहा था—वो नज़र, जिसमें अनजानी कोमलता और गहरी चाह थी।
मान उस भावना को समझ नहीं पा रहा था, जो कुछ देर पहले उसे छूकर गई थी। पहली बार किसी ने उसे इस तरह छुआ था, और वो छुअन उसके सीने से होते हुए पूरे वजूद में फैल गई थी—मानो उसकी नस-नस में कोई अजनबी लहर दौड़ गई हो। लेकिन मान… प्यार नहीं समझता था। न उसकी परिभाषा जानता था, न उसका मतलब। उसके लिए ये एहसास किसी अनजान, डरावनी किताब के पहले पन्ने जैसा था—जिसे पढ़ने की हिम्मत वो जुटा नहीं पा रहा था।
उसके मन में एक पुरानी याद उभर आई—वो दिन, जब वो छोटा था और उसकी माँ ने उसे बताया था, “मान, किसी को बहुत चाहने में डर नहीं लगता। लेकिन उसे समझने में वक़्त लगता है।” लेकिन अब, उस चाहत का एहसास इतना तीव्र था कि वो उसे डरावना लग रहा था। उसने अनु को धक्का क्यों दिया? वो गुस्सा नहीं था—वो डर था। डर कि ये नया एहसास उसे बदल देगा, उसे उसकी मासूम दुनिया से दूर ले जाएगा, जहाँ वो हमेशा सुरक्षित रहा था।
### अनु की उलझन
उधर, अनु धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतर रही थी। उसके कदम इतने भारी थे, मानो हर पायदान के साथ उसकी ताक़त छिन रही हो। कमरे तक पहुँचते-पहुँचते उसकी टाँगों में जैसे जान ही नहीं बची। वो दरवाज़ा बंद करके पलंग के किनारे बैठ गई। उसकी आँखें बार-बार उसी पल को याद कर रही थीं—जब मान ने उसे देखा था, उसकी आँखों में वो डर, वो घबराहट।
उसके मन में एक ही सवाल गूँज रहा था—“क्या मैंने उसे डरा दिया?” जवाब कोई नहीं था, लेकिन उस सवाल ने उसके सीने में एक भारी बोझ डाल दिया। अनु की आँखों से आँसू चुपचाप बह निकले। उसे लगा, शायद उसने अपनी भावनाओं का भार मान पर लाद दिया, जो वो उठाने के लिए तैयार ही नहीं था। वो अपने घुटनों को सीने से लगाकर बैठ गई, जैसे खुद को छोटा करके दुनिया से छुपाना चाहती हो।
अनु का मन बार-बार उस चुंबन के पल में लौट रहा था। वो नर्म, मासूम स्पर्श, जो उसने मान को दिया था, उसके लिए एक वादा था—एक भरोसा कि वो अब उसकी है। लेकिन मान की प्रतिक्रिया ने उस भरोसे को हिलाकर रख दिया था। क्या वो बहुत जल्दी में थी? क्या उसने मान की मासूमियत को समझने में गलती की?
उसने अपनी डायरी उठाई और उसमें लिखा: “मैंने सोचा था कि मेरा प्यार उसे सुकून देगा। लेकिन शायद… मैंने उसे डरा दिया।” आँसू डायरी के पन्नों पर टपक गए, और स्याही धब्बों में फैलने लगी।
### सुबह की चुप्पी
अगली सुबह, कपूर विला में एक अजीब-सी खामोशी थी। अनु ने नाश्ता तैयार किया, लेकिन मान ने एक निवाला भी नहीं खाया। “मुझे भूख नहीं है,” उसने कहा, उसकी आवाज़ डरी हुई और टूटती-सी थी। अनु बस उसे देखती रही—कुछ बोले बिना। लेकिन उसकी चिंता हर पल गहराती जा रही थी।
दिन भर मान अपने कमरे में बंद रहा। अनु को दरवाज़े के पीछे से उसकी हल्की-हल्की आहट सुनाई देती थी—जैसे वो वहाँ था, लेकिन उससे मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। अनु ने कई बार दरवाज़ा खटखटाने की सोची, लेकिन हर बार रुक गई। उसे डर था कि कहीं उसकी एक और कोशिश मान को और दूर न कर दे।
वो बरामदे में खड़ी थी, जब सुमित्रा जी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। “बेटी, क्या हुआ? तुम और मान दोनों आज चुप-चुप से क्यों हो?”
अनु ने सिर झुका लिया। “माँ, मैंने शायद कुछ गलत कर दिया। मान… वो मुझसे डर रहा है।” उसकी आवाज़ में दर्द था।
सुमित्रा जी ने उसका चेहरा ऊपर उठाया। “बेटी, मान का दिल साफ़ है, लेकिन वो अभी बच्चा है। उसे वक़्त दो। वो तुम्हें समझेगा।”
अनु ने सिर्फ़ सिर हिलाया, लेकिन उसके मन में सवालों का भंवर और गहरा हो गया।
### अंशुमन की वापसी
शाम ढल रही थी, तभी घर में एक परिचित, खुशमिज़ाज आवाज़ गूँजी—“भाई! कहाँ हो?”
अंशुमन कपूर विला लौट आया था। छह महीने पहले वो अपनी नौकरी के लिए शहर गया था, और अब लौटकर सबसे पहले अपने छोटे भाई को ढूँढ रहा था। मान बाहर नहीं आया। अंशुमन सीधा उसके कमरे में गया और उसे कम्बल में लिपटा देखकर हँस पड़ा—“अबे, क्या हुआ? डरपोक बन गया क्या?”
मान ने धीरे से कम्बल से चेहरा निकाला। “भैया… मेरा दिल…” उसकी आवाज़ काँप रही थी।
“क्या हो गया तेरे दिल को?” अंशुमन ने मजाकिया अंदाज़ में पूछा।
“बहुत तेज़ धड़क रहा है… मैं मर जाऊँगा क्या?” मान की आँखें सच्चे डर से भरी थीं।
अंशुमन को पहले हँसी आई, लेकिन उसने मान का माथा छूकर देखा—“अरे, बुखार तो नहीं है। तू इतना डरा क्यों हुआ है?”
मान ने टुकड़ों में उसे छत वाली घटना बताई—कैसे अनु ने उसे छुआ, कैसे उसका दिल तेज़ धड़का, और कैसे वो डर के मारे भाग आया। अंशुमन सुनता रहा, फिर हल्की मुस्कान के साथ बोला, “तो तू बड़ा हो गया, भाई।”
“नहीं! मैं नहीं चाहता ये सब। मुझे डर लगता है,” मान ने लगभग चीखते हुए कहा।
“प्यार डर नहीं है, मान… वो तो सबसे प्यारी चीज़ है,” अंशुमन ने समझाया। “जब कोई तुम्हें इतना चाहता है कि तुम्हारा दिल तेज़ धड़कने लगे, तो वो डर नहीं, बल्कि एक नया एहसास है।”
“क्या मैं… मर जाऊँगा?” मान ने फिर पूछा, उसकी आँखें अब भी डर से भरी थीं।
“अरे पगला! प्यार में कोई नहीं मरता। बस थोड़ा बदल जाता है,” अंशुमन ने हँसकर कहा और उसकी पीठ थपथपाई। “चल, बाहर चल। सब तुझे मिस कर रहे हैं।”
लेकिन मान ने सिर हिला दिया—“नहीं, मैं यहीं रहूँगा।”
अंशुमन ने समझ लिया—अभी उसे समय चाहिए। वो बाहर आया और बरामदे में खड़ी अनु को देखा। धीरे से बोला, “वो डरा हुआ है। लेकिन मैं हूँ ना, धीरे-धीरे सब समझा दूँगा।”
अनु ने सिर झुका लिया, उसकी आँखों में नमी थी। “मैंने शायद उसे बहुत जल्दी अपने पास बुला लिया, भैया।”
अंशुमन ने उसके कंधे पर हाथ रखा। “तुमने कुछ गलत नहीं किया, अनु। मान का दिल साफ़ है, लेकिन उसे अभी प्यार का मतलब समझने में वक़्त लगेगा। तुम बस उसका साथ मत छोड़ना।”
### रात का सन्नाटा
रात गहराने लगी। मान फिर से कम्बल में लिपट गया—जैसे बाहर की दुनिया से खुद को काट रहा हो। अनु कमरे के बाहर खड़ी थी, मन में अनगिनत सवाल लिए। लेकिन उसके भीतर एक अडिग विश्वास भी था—एक दिन मान समझेगा कि प्यार डर नहीं, अपनापन है।
उसने खुद से वादा किया—“अब मैं पीछे नहीं हटूँगी।” वो चुपचाप दरवाज़े के बाहर बैठ गई, सिर्फ़ इंतज़ार में। उसके हाथ में वो कागज़ था, जिस पर मान ने लिखा था, “अनु, तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो। लेकिन आज मैंने तुम्हें और ज़्यादा चाहा।” उसने कागज़ को फिर से पढ़ा, और उसकी आँखों में एक हल्की-सी मुस्कान आई। वो जानती थी कि मान का डर उसका प्यार नहीं, बल्कि उसकी अनजान भावनाएँ थीं।
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तो आप सब को क्या लगता है—
क्या मान उस मासूम डर को पार कर पाएगा?
क्या अंशुमान उसे सिखा पाएगा कि प्यार डर नहीं, अपनापन होता है?
क्या अनु के सब्र और प्रेम से भरे कदम उसे उसके पति तक पहुँचा पाएँगे?
आगे क्या हुआ, जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी कहानी …
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आज के लिए इतना ही…
मिलते हैं अगले चैप्टर में एक नए मोड़ के साथ।
अगली सुबह सूरज की हल्की किरणें बालकनी में सुनहरी चादर-सी बिछा रही थीं।
मान हमेशा की तरह वहाँ बैठा था—अपने खिलौनों को बड़े ध्यान से इधर-उधर रखता, फिर बदल देता, जैसे कोई गंभीर खेल खेल रहा हो।
लेकिन आज उसके चेहरे पर कुछ और ही लिखा था—भौंहों के बीच हल्की-सी सिलवट, आँखों में उलझन, होंठों पर चुप्पी।
अंशुमान ने बरामदे से ही उसे देख लिया।
उसने मुस्कुराकर पास आकर कुर्सी खींची और मान के बगल में बैठ गया।
"क्या हुआ, भाई? आज इतने चुप क्यों हो?" उसने प्यार से पूछा, जैसे किसी बच्चे को मनाना हो।
मान ने खिलौना धीरे से जमीन पर रखा और धीमे स्वर में बोला,
"कुछ समझ नहीं आ रहा… कल रात अनु ने मुझे चूमा… मेरा दिल बहुत जोर से धड़कने लगा था… मुझे बहुत डर लगा… मैं मर तो नहीं जाऊँगा ना?"
उसकी आँखों में सच्चा डर था, मानो वो सच में अपनी जान को लेकर चिंतित हो।
अंशुमान के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आ गई—लेकिन वो मुस्कान मजाक की नहीं थी, बल्कि अपने छोटे भाई के भोलेपन पर स्नेह की थी।
वो समझ गया था कि इस डर के पीछे कोई गलतफहमी नहीं, बल्कि एक अनछुआ अनुभव है।
वो थोड़ा और नज़दीक खिसक आया, उसके कंधे पर हाथ रखा और कोमल आवाज़ में बोला—
"अरे नहीं पगले, ऐसा कुछ नहीं होता। जो हुआ… वो बहुत प्यारा और बिल्कुल सही था।"
मान ने चौंककर उसकी तरफ देखा—
"सही था?"
अंशुमान ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और कुछ छोटे, साफ-सुथरे वीडियो खोलने लगा।
वीडियो में पति-पत्नी के बीच छोटे-छोटे स्नेहिल पल थे—सुबह का एक प्यारा ‘गुड मॉर्निंग’ हग, साथ बैठकर चाय पीना, माथे पर कोमल चुंबन, हँसी-मज़ाक।
मान स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए रहा।
कभी उसके चेहरे पर हैरानी आती, कभी हल्की मुस्कान, और कभी वो गहरी सोच में पड़ जाता।
हर वीडियो के बाद अंशुमान उसे सरल शब्दों में समझाता—
"देख, ये सब बहुत स्वाभाविक है। पति-पत्नी के बीच ऐसे प्यार जताने से रिश्ता और मजबूत होता है। इसमें डरने या गलत महसूस करने की कोई बात नहीं।"
थोड़ी देर बाद उसने सीधा सवाल किया—
"तू अनु से बहुत प्यार करता है ना?"
मान ने बिना झिझके सिर हिलाया, आँखों में मासूम चमक के साथ बोला—
"हाँ।"
"तो उसे अपना प्यार जताना गलत नहीं है। चूमना, गले लगाना, ये सब सामान्य है। तूने कुछ गलत नहीं किया।"
मान कुछ पल चुप बैठा रहा।
फिर उसकी आवाज़ धीमी, लेकिन बेहद मासूम थी—
"तो… क्या मैं भी अनु को चूम सकता हूँ?"
अंशुमान ने उसकी तरफ देखा—उसकी आँखों में ना कोई संकोच था, ना कोई चालाकी… बस सच्चा, बच्चा-सा प्यार।
अंशुमान ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया—
"हाँ, बिल्कुल। जब तुम्हें लगे कि अनु भी तैयार है और उसे अच्छा लगेगा… तब तुम उसे प्यार से चूम सकते हो।"
मान के चेहरे पर जैसे एक सूरज उग आया।
मासूम-सी खुशी उसके चेहरे पर दौड़ गई—वो चमक जो केवल बच्चों के चेहरे पर किसी मनपसंद खिलौने या चॉकलेट मिलने पर आती है।
उसकी आँखें चमक उठीं, जैसे अंशुमान ने उसे कोई अनमोल खज़ाना दे दिया हो।
वो पल उसके लिए किसी रहस्य के खुलने जैसा था—एक मीठा, अनजाना ज्ञान जो उसके दिल में बस गया।
अंशुमान ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा—
"याद रखना, भाई… प्यार में जल्दी नहीं करते। सब सही समय पर, सही एहसास के साथ होता है।"
मान ने जोर-जोर से सिर हिलाया, जैसे उसने कोई बड़ा वादा कर लिया हो।
---
इस पूरे संवाद से अनु अनजान थी।
वो अपने कमरे में बैठी थी—आँखें खिड़की के बाहर थीं, लेकिन दिमाग कहीं और।
पिछली रात का हर पल उसकी यादों में गूंज रहा था—
मान की मासूम नज़र, वो हल्का धक्का, भाग जाना, और खुद को चादर में छुपा लेना।
पहले तो उसने इसे ठेस की तरह महसूस किया था, लेकिन अब समझ आ रहा था कि ये मान का डर था, न कि कोई इंकार।
उसके दिल में एक स्नेहिल दृढ़ता जन्म ले चुकी थी—
"उसे धीरे-धीरे समझाना पड़ेगा… कदम-कदम पर, बिना दबाव डाले।"
---
शाम ढलने लगी थी।
कपूर विला में हल्की-हल्की रौशनी जल चुकी थी।
किसी खास आयोजन की तैयारी नहीं थी, बस हर कोई अपने-अपने कामों में लगा हुआ था—रसोई से बर्तनों की खनक, बरामदे में पंखे की धीमी आवाज़, और कहीं-कहीं से आती हल्की बातचीत।
रात का खाना खत्म होने पर मान और अनु अपने कमरे की ओर बढ़े।
मान आज ज़रा चुप था, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग-सी चमक थी।
वो बार-बार चोरी-चोरी अनु की तरफ देख रहा था, जैसे कुछ कहने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन हिम्मत जुटा नहीं पा रहा था।
अनु उसकी नजरों की वो हल्की गर्माहट महसूस कर पा रही थी—कुछ नर्म, कुछ संकोची, जैसे हवा में कोई अनकहा वादा तैर रहा हो।
लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
वो जानती थी—मान के दिल में कोई बात है, जो शायद वो जल्दी ही कह देगा।
---
रात गहरा चुकी थी।
दोनों अपने-अपने पलंग पर लेट गए।
कमरे में बस पंखे की घुमती हुई पंखुड़ियों की आवाज़ थी।
मान करवट लेकर अनु की तरफ देख रहा था—आँखों में वही मासूम चमक और होंठों पर हल्की-सी मुस्कान।
अनु ने महसूस किया कि उसकी नज़रों में आज डर कम था, और जिज्ञासा ज़्यादा।
वो चुपचाप उसकी तरफ पीठ किए लेटी रही, लेकिन उसके होंठों पर भी अनजानी-सी मुस्कान थी।
दोनों के बीच कोई शब्द नहीं बोले गए… लेकिन चुप्पी में भी एक रिश्ता गहरा रहा था।
कमरे में घना अंधेरा था, बस खिड़की से आती चाँदनी पतले पर्दों के पार छनकर कमरे में बिखर रही थी।
पर्दे हवा से हल्के-हल्के हिल रहे थे, और दीवार पर चाँदनी की परछाइयाँ नाच रही थीं।
दोनों चुप थे, लेकिन हवा में एक अनकहा तनाव और बेचैनी तैर रही थी।
मान अपनी जगह करवटें बदल रहा था।
उसका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था, आँखें बंद थीं लेकिन दिमाग में अंशुमान की बातें गूँज रही थीं—
"जब लगे कि वो तैयार है और उसे अच्छा लगेगा… तब प्यार से चूम लेना।"
कई मिनटों तक वो खुद को मनाता रहा, फिर धीरे-धीरे उठकर बैठ गया।
उसने अनु की तरफ देखा—वो नींद की हल्की झपकी में थी, चेहरा चाँदनी में नहाया हुआ।
उसके होंठों पर हल्की-सी थकान भरी मुस्कान थी, और साँसें धीमी, स्थिर।
मान कुछ पल बस उसे देखता रहा—जैसे पहली बार सच में उसे गौर से देख रहा हो।
फिर धीरे-धीरे, बहुत हिचकिचाते हुए, उसकी ओर खिसक आया।
उसके हाथ हल्के-हल्के काँप रहे थे, लेकिन उसकी आँखों में अजीब-सी चमक थी—डर और चाह का मिला-जुला रंग।
वो अनु के पास बैठा और धीरे से उसका हाथ छुआ।
अनु की पलकें फड़कीं, और उसने नींद में ही आँखें खोलीं।
उसने देखा—मान बिल्कुल पास था।
उसके चेहरे पर मासूम घबराहट और अनजानी हिम्मत का मिश्रण था।
वो कुछ पूछने ही वाली थी कि तभी…
मान ने झुककर बहुत धीरे से उसके माथे पर अपने होंठ रख दिए।
अनु की साँस जैसे वहीं अटक गई।
एक पल को उसकी धड़कन इतनी तेज़ हो गई कि वो खुद सुन सकती थी।
मान ने फिर उसकी आँखों में गहराई से देखा—जैसे कोई अनुमति मांग रहा हो।
अगले ही क्षण उसने हल्के से उसके गाल को चूम लिया।
वो छुअन इतनी कोमल थी कि अनु का पूरा शरीर सिहर उठा।
अनु कुछ समझ पाती, उससे पहले ही…
मान और करीब झुक गया।
उसके होंठ अनु के होंठों से बहुत धीरे, बहुत मासूमियत से टकराए।
ये चुम्बन छोटा था, संकोच से भरा था, लेकिन उसमें एक नई, अनजानी गर्माहट छुपी थी—
एक एहसास जो दोनों के लिए नया था।
मान तुरंत पीछे हट गया, मानो डर हो कि उसने कुछ गलत कर दिया हो।
उसकी साँसें तेज़ थीं, और आँखें अनु की प्रतिक्रिया पढ़ने की कोशिश कर रही थीं।
पहले तो अनु बिल्कुल स्तब्ध रह गई।
मान का ये मासूम चुम्बन उसके लिए अप्रत्याशित था—जैसे किसी सूखी ज़मीन पर अचानक बारिश की पहली बूंद।
लेकिन अगले ही पल, उसके भीतर जो भावनाएँ महीनों से दबी हुई थीं, वो जैसे ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ीं।
उसने बिना कुछ कहे मान को अपने करीब खींच लिया—इतना करीब कि उनके बीच की सारी दूरी मिट गई।
उसके हाथ मान की गर्दन के पीछे कस गए और उसने उसे एक गहरे, भावनाओं से भरे चुम्बन में समा लिया।
अनु के होंठों में एक अधीर चाह थी, उसकी सांसें गर्म और तेज़ थीं।
वो अब खुद को रोक नहीं पा रही थी—उसका प्यार, उसकी चाह, उसकी दबी हुई तड़प… सब एक साथ बाहर आ गए थे।
मान की आँखें अचानक बड़ी हो गईं।
उसके कानों में अपने ही दिल की धड़कन गूँज रही थी—तेज़, बेकाबू, जैसे कोई ढोल बज रहा हो।
अनु की आँखों में उसे प्यार नज़र आ रहा था, लेकिन उसके अपने सीने में डर ने घर बना लिया था।
"ये क्या हो रहा है? मैं… मैं संभाल क्यों नहीं पा रहा?"
वो मन ही मन बुदबुदाया।
उसे सच में लगने लगा—उसका दिल अब सीने में नहीं रहेगा… बाहर आकर गिर जाएगा।
उसके पूरे शरीर में झटके-सी बेचैनी फैल गई, और अगले ही क्षण, उसने खुद को झटका देकर अलग कर लिया।
वो पल भर में उठ खड़ा हुआ, लगभग भागते हुए अपनी जगह गया और blanket अपने ऊपर खींच ली।
उसका चेहरा पसीने से भीग चुका था, सांसें भारी थीं।
कम्बल के अंदर, वो खुद से ही बातें करने लगा—
"क्या मुझे कुछ होने वाला है? ये धड़कन इतनी तेज़ क्यों हो रही है? पर… अंशुमान ने तो बोला था कि ये हर पति-पत्नी के बीच होता है… तो फिर मेरा दिल ऐसे क्यों दौड़ रहा है, जैसे अभी मेरे सीने से निकल जाएगा?"
वो करवट लेकर आँखें कसकर बंद कर लेता है—मानो अगर वो सो गया, तो ये एहसास भी कहीं गायब हो जाएगा।
लेकिन उसके सीने में धड़कन अब भी तेज़ थी… और अनु की गर्माहट उसकी साँसों में बसी हुई थी।
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तो आप सब को क्या लगता है
क्या मान फिर से अनु से दूर हो जाएगा?
क्या करेगी अब अनु मान के इस रिएक्शन पर?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी .....
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अरमान चुपचाप लेटा हुआ था। छत को निहारते हुए उसकी आँखों में अजीब सी हलचल थी — जैसे कोई अधूरा सपना उसे सोने नहीं दे रहा हो। उसके दिमाग में अंशुमान की वो बात लगातार घूम रही थी:
"ऐसा सबके साथ होता है, इससे कुछ नहीं होगा... ये तो पति-पत्नी के बीच सामान्य है।"
"तो क्या मैं भी अब...?"
उसने मन ही मन खुद से सवाल किया, और फिर नजरें अवनी की ओर घुमा दीं।
अवनी अपनी ही दुनिया में सोई थी, पीठ उसकी ओर किए, उसकी साँसों की धीमी आवाज़ उस कमरे की एकमात्र ध्वनि बन चुकी थी। चाँद की नर्म रोशनी खिड़की से आकर उसके चेहरे और बालों पर पड़ी थी, जिससे उसका चेहरा और भी शांत, और भी कोमल लग रहा था।
अरमान ने धीरे से हाथ बढ़ाया, फिर एक पल को ठिठक गया। उसकी उंगलियाँ हवा में ही थम गईं — जैसे मन कर रहा हो छूने का, लेकिन इजाज़त माँगने की आदत अभी भी ज़िंदा थी।
"क्या मुझे अवनी को छूना चाहिए?"
उसका मासूम दिल धीरे-धीरे नई भावनाओं की दहलीज पर कदम रख रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि प्यार सिर्फ हँसी-मज़ाक और बातें करने से ज़्यादा भी कुछ होता है।
उसने साहस बटोर कर धीरे से अवनी की चुन्नी को पकड़ा, फिर अपनी साँसें थाम लीं। अवनी के कंधे के पास उसकी उंगलियाँ जाकर थमीं।
"मुझे अच्छा लग रहा है…"
उसने खुद से कहा, जैसे खुद को समझा रहा हो कि ये गलत नहीं है।
अरमान ने हल्की आवाज़ में पूछा, "अवनी… सो गई क्या तुम?"
लेकिन कोई जवाब नहीं आया। शायद वो सचमुच सो गई थी... या शायद उसे लगा कि अरमान कुछ कहना चाहता है।
वो थोड़ा और पास सरक आया। अब उसका चेहरा अवनी की पीठ से कुछ ही इंच की दूरी पर था।
उसके दिल की धड़कनें खुद उसे सुनाई दे रही थीं — धक… धक… धक…
उसकी आँखों में शरारत थी, पर उस शरारत के पीछे एक मासूम सी जिज्ञासा भी छुपी थी।
उसने धीरे से तकिए पर से सिर उठाया, आधा बैठते हुए अवनी की ओर झुक गया — वैसे ही जैसे वो वीडियो में देखता था, जिसमें पति अपनी पत्नी के पास आता है, उसे प्यार से जगाता है, उसके माथे या होंठों पर हल्का सा स्पर्श देता है।
अब अरमान अवनी के इतने करीब था कि उसकी साँसें अवनी की गर्दन को छू रही थीं।
उसके होंठ काँप रहे थे — डर से नहीं, बल्कि उस पहली बार को लेकर जो वो आज करने जा रहा था।
उसकी आँखों में कुछ नया करने की चाहत थी — एक जिज्ञासा, एक एहसास जिसे वो खुद भी ठीक से समझ नहीं पा रहा था।
उसने झुकते-झुकते अपने होंठ अवनी के होंठों पर रख दिए — बेहद हल्के से, जैसे कोई पंख छू गया हो।
अवनी नींद और जाग के बीच थी।
उसे पहले तो कुछ समझ ही नहीं आया — ये अहसास क्या था?
एक पल को वो ठिठकी।
पर जैसे ही उसे एहसास हुआ कि क्या हुआ है… उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।
उसने धीरे से आँखें खोलीं… और उसकी साँस अटक गई।
उसके सामने अरमान था… उसकी आँखें बंद थीं…
वो बहुत धीरे-धीरे, बहुत मासूमियत से अपने होंठ हिला रहा था — जैसे कोई बच्चा पहली बार प्यार करना सीख रहा हो।
अवनी की धड़कनें बेकाबू हो गईं।
ये… पहली बार था…
जब अरमान ने ऐसा कुछ किया था — बिना समझे, बिना किसी योजना के, सिर्फ अपने दिल की आवाज़ पर।
अवनी कुछ पल के लिए बिल्कुल स्थिर हो गई।
उसका मन स्तब्ध था… और शरीर भी।
दिल धक-धक करता हुआ, जैसे कोई अनजाना तूफ़ान उसकी छाती में उठ रहा हो।
उसे समझ नहीं आ रहा था —
क्या वो इसे रोक दे?
या…
इस मासूम एहसास को बस एक बार खुद पर हावी होने दे?
अरमान को किसी चीज़ का अंदाज़ा नहीं था।
वो अब भी वही मासूम-सा चेहरा लिए, आँखें बंद किए, धीरे-धीरे अपने होंठ हिला रहा था — जैसे उसने फिल्मों में देखा था, या सुना था कि प्यार ऐसे ही जताया जाता है।
उसके होंठ काँप रहे थे…
साँसें जैसे उलझ गई थीं किसी डर और चाहत के बीच।
पर उसने खुद को रोका नहीं — क्योंकि उसके भोले मन ने यही सीखा था कि
पति-पत्नी के बीच ये सब “सही” होता है।
अवनी की आँखें नमी से भरने लगीं।
पर ये आँसू दुख के नहीं थे —
ये भावनाओं के सैलाब थे, जो अरमान की मासूमियत के स्पर्श से उसकी सारी दीवारें बहा ले गए।
धीरे से, बहुत धीरे से…
उसने अपनी पलकें मूंदी।
साँस को गहराई से भीतर खींचा…
और खुद को उस पल में बहने दिया — जैसे कोई बंधन टूट रहा हो… कोई कैद खुल रही हो।
अरमान के होंठ अब भी उसके होंठों पर थे — बेहद नर्म, बेहद हल्के।
और तभी…
अवनी ने अपने हाथ उठाए…
काँपते हुए, पर नर्म स्पर्श के साथ उन्हें अरमान के गले में डाला।
अरमान चौंका नहीं, डराया नहीं — शायद उसने अवनी की बाँहों का एहसास उसी मासूम सुकून से किया जैसे कोई बच्चा माँ की गोद महसूस करता है।
अब वही अवनी —
जो कल तक उलझनों से भरी थी,
जो खुद को कर्तव्यों की जंजीरों में बाँधे हुए थी,
आज उस पल में बस बह रही थी…
उसने अपनी सारी उलझनों को पीछे छोड़ दिया था।
आज वो पहली बार
अरमान को “महसूस” कर रही थी — पूरे दिल से।
अवनी और अरमान की साँसें अब एक-दूसरे के चेहरे पर महसूस हो रही थीं।
वो पल जैसे थम गया हो।
ना कोई शब्द थे, ना कोई आवाज़ — बस नज़दीकियाँ थीं, दिल की धड़कनों की गूंज और आँखों की बात।
अरमान के मासूम चेहरे पर एक अलग ही चमक थी —
वो पहली बार किसी के इतने करीब था, और ये क़रीबियाँ उसे बिल्कुल भी डर नहीं रही थीं।
बल्कि उसके अंदर कुछ बहुत गहरा, बहुत मीठा सा जन्म ले रहा था।
उसकी आँखें अवनी को ऐसे देख रही थीं जैसे वो कोई सपना हो, जिसे छू लेने से टूट जाने का डर हो।
अवनी की साँसें अब अनियंत्रित हो चुकी थीं।
उसके चेहरे पर एक अनकही घबराहट थी —
एक ऐसी घबराहट जो इस नए एहसास से थी,
इस पल से थी,
और सबसे ज़्यादा, खुद से थी।
वो चाहती थी कि ये पल ठहर जाए, पर साथ ही डर भी रही थी कि कहीं कुछ ऐसा ना हो जाए जिससे सब कुछ बदल जाए।
उसने धीरे से अपने दोनों हाथों से अरमान के कंधे को हल्के से छुआ,
उसका मासूम चेहरा देखा,
और बहुत कोमलता से उसे थोड़ा पीछे किया।
उसके स्पर्श में ना कोई झिझक थी, ना कोई गुस्सा — बस एक हल्की सी विनती थी,
“थोड़ा रुक जाएं, थोड़ा समझ लें खुद को…”
अरमान बिना विरोध किए सीधा हो गया, लेकिन उसकी नज़रों में कोई उलझन नहीं थी।
उसकी आँखों में अब भी वही मासूम चमक थी,
वो अब भी अवनी को वैसे ही देख रहा था जैसे कुछ पल पहले —
प्यारी सी मुस्कान के साथ,
बिल्कुल निःस्वार्थ।
दोनों कुछ देर तक एक-दूसरे को चुपचाप देखते रहे।
उनके बीच अब शब्दों की कोई ज़रूरत नहीं रह गई थी।
उस सन्नाटे में भी बहुत कुछ कहा जा रहा था —
साँसों की लय में,
आँखों की भाषा में,
दिल की धड़कनों में।
अवनी का दिल अब भी काँप रहा था।
उसका गला सूख चुका था, पर होंठ कुछ कहने के लिए बार-बार हिल रहे थे।
तभी अरमान ने एक बार फिर झुक कर अपने होठ अवनी के होठों पर रख दिए।
इस बार उसमें हिचक नहीं थी, डर नहीं था — बस एक मासूम, सच्ची चाहत थी।
कोई जल्दबाज़ी नहीं, कोई उथलापन नहीं…
जैसे उसकी आत्मा पहली बार किसी को इस तरह छू रही हो।
अवनी की आँखें हैरानी से खुली की खुली रह गईं।
उसके लिए यह पल अप्रत्याशित था, लेकिन अरमान की मासूमियत, उसकी आँखों की साफ़गोई और उस स्पर्श की कोमलता…
सबकुछ उस पर विश्वास करने लायक था।
इस बार, वो उसे रोक नहीं सकी।
अरमान के होठ अब बहुत धीरे-धीरे, बेहद नर्मी से हिल रहे थे —
जैसे हर एक पल को अपनी धड़कनों में कैद कर लेना चाहता हो।
वो उसे छू नहीं रहा था, वो महसूस कर रहा था — अवनी को, उस पल को, उस एहसास को।
अवनी के गालों पर हल्की गुलाबी लाली फैल चुकी थी।
उसकी पलकों ने धीरे-धीरे आँखों को ढंक लिया,
और उसके चेहरे पर एक शांति सी उतर आई थी।
उसकी साँसें अब भी तेज़ थीं, लेकिन उनमें कोई घबराहट नहीं थी —
बल्कि एक गर्माहट थी, जैसे पहली बार किसी ने उसे पूरी तरह स्वीकारा हो।
अरमान अब पूरी तरह उसमें खो चुका था।
उसके लिए ये एक नया अनुभव था —
एक ऐसा अनुभव जिसमें ना कोई सिखाने वाला था, ना कोई समझाने वाला,
बस दिल था… और उसकी सच्ची भावना।
उसका मासूम मन अब धीरे-धीरे एक नए भाव को छू रहा था —
प्यार का,
अपनापन का,
और सबसे बढ़कर… किसी के होने का।
और अवनी…
वो अब बस उसे देख रही थी —
उसके स्पर्श को, उसकी नज़रों को, उसकी मासूमियत को।
उसने धीरे से अपनी उंगलियाँ अरमान की हथेली पर रख दीं —
जैसे वो कह रही हो —
"मैं यहीं हूँ… अब हमेशा के लिए।"
उस पल में कुछ बदला नहीं था —
लेकिन सबकुछ बदल गया था।
______
तो आप सब को क्या लगता है
क्या अब अरमान और अवनी के रिश्ते की दिशा बदलने वाली है?
क्या अरमान समझ पाएगा कि ये एहसास सिर्फ़ एक किस से कहीं ज़्यादा है?
क्या अवनी अब अपने दिल की बात अरमान से कह पाएगी?
या फिर ये मासूम सी शुरुआत किसी बड़ी उलझन का कारण बनेगी?
क्या ये मासूम रिश्ता अब सचमुच एक गहरा प्यार बन पाएगा?
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अरमान अब पूरी तरह अवनी में खो चुका था।
उसकी आँखों में सिर्फ़ वही थी — उसकी साँसों में, उसके दिल की हर धड़कन में बस अवनी ही थी।
उसके लिए ये सबकुछ नया था…
छूना, महसूस करना, इतना करीब आना —
लेकिन इस नयेपन में कोई घबराहट नहीं थी,
बल्कि एक अजीब सा सुकून था, जैसे उसे खुद की अधूरी दुनिया का एक टुकड़ा मिल गया हो।
उसके मासूम मन में अब एक नया भाव जन्म ले रहा था —
प्यार का, जो शोर नहीं करता, बस महसूस होता है…
अपनापन का, जो बिना कहे ही दिल को यकीन दिला देता है कि “तू अब अकेला नहीं।”
और अवनी…
वो बस चुपचाप अरमान को देख रही थी।
उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी,
आँखों में एक गहराई — जो कह रही थी, “मैं समझ रही हूँ… सब कुछ।”
उसने कभी सोचा भी नहीं था कि किसी मासूम से दिखने वाले लड़के की आँखों में इतना गहरा प्यार, इतनी सच्चाई होगी।
वो न सिर्फ़ उसे देख रही थी, बल्कि उस एहसास को जी रही थी —
जो अब तक शब्दों से परे था।
वो पल…
शब्दहीन, शांत…
लेकिन किसी रिश्ते की सबसे खूबसूरत शुरुआत बन चुका था।
अवनी की साँसें तेज़ थीं।
उसका दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था जैसे कोई तूफ़ान उसके भीतर दस्तक दे रहा हो।
सामने अरमान था — बिल्कुल शांत, स्थिर…
लेकिन उसकी आँखों में वो मासूम सी मुस्कान अब एक नया रंग ले चुकी थी —
थोड़ी सच्ची, थोड़ी बड़ी, और पूरी तरह अवनी के लिए।
और फिर…
अवनी खुद को रोक नहीं सकी।
उसने झटके से अरमान को अपनी ओर खींच लिया।
अरमान एक पल को चौंका जरूर, लेकिन उसमें कोई घबराहट नहीं थी —
बस एक हल्की सी उत्सुकता, और शायद… इंतज़ार।
अवनी ने उसके कंधों पर हाथ रखे, फिर उसकी पीठ पर अपनी हथेलियाँ रखकर उसे और पास कर लिया।
उसके चेहरे पर एक गहरी संजीदगी थी —
जैसे अब वो कुछ भी सोचने के बजाय महसूस करना चाहती थी।
उसने झुककर उसके होठों को फिर से छू लिया —
इस बार नर्मी कम, चाहत ज़्यादा थी।
वो पहले से ज़्यादा बेसब्र थी… और पूरी तरह सच।
अरमान थोड़ी देर तक शांत रहा —
शायद वो अब भी यक़ीन कर रहा था कि ये सब सच है।
लेकिन जब अवनी के होठों ने चलना शुरू किया,
जब वो पूरी तरह इस एहसास में डूब गई,
तो अरमान का दिल भी साथ चल पड़ा।
उनके बीच अब सिर्फ़ गर्म साँसें थीं,
कंपकंपाते होंठ थे, और दिलों की नमी।
अरमान की हथेलियाँ अब धीरे-धीरे अवनी की पीठ पर फिसल रही थीं,
बहुत नर्मी से, बहुत सहेजते हुए —
जैसे वो उस पल को सहेजना चाहता हो।
फिर उसने हल्के से उसे बाँहों में भर लिया।
कोई कसाव नहीं,
बस इतना कि अवनी को ये महसूस हो —
"तू मेरी है… और अब मैं तुझे जाने नहीं दूँगा।"
कमरे में अब सिर्फ़ उनकी साँसों की आवाज़ गूंज रही थी।
हर सेकंड जैसे कोई नई दुनिया गढ़ रहा था — सिर्फ़ उनके लिए, सिर्फ़ उस पल के लिए।
अवनी ने अपनी बाहों में उसकी गर्दन को भर लिया।
वो अरमान को इतनी नज़दीक चाहती थी कि उसके और खुद के बीच कुछ भी बाकी न बचे।
उसकी उंगलियाँ अब अरमान के बालों में उलझ रही थीं —
धीरे-धीरे, बड़े स्नेह से… जैसे वो उसकी हर परत को महसूस करना चाहती हो।
उस पल में अवनी बस खो जाना चाहती थी —
या शायद खुद को पूरी तरह अरमान में समर्पित कर देना चाहती थी।
और अरमान…
उसकी आँखों में अब कोई डर नहीं था।
न हिचक, न उलझन — बस सच्चा, निःस्वार्थ अपनापन।
उसके चेहरे पर अब भी वही मासूम जिज्ञासा थी,
जैसे वो हर एहसास को अपने अंदर बसा लेना चाहता हो,
हर पल को अपने होने का हिस्सा बनाना चाहता हो।
अवनी ने झुककर उसके माथे पर एक धीमा, गहरा चुम्बन दिया।
उस स्पर्श में वादा था, सुकून था… और शायद पहली बार पूर्णता थी।
वो किस अब रुकने का नाम नहीं ले रहा था —
न वो जो लबों पर था,
और न वो जो दिलों के बीच चल रहा था।
समय जैसे थम गया था —
करीब आधा घंटा बीत चुका था,
लेकिन दोनों को इसका कोई अंदाज़ा नहीं था।
अब दोनों थक चुके थे —
शारीरिक रूप से नहीं,
बल्कि भावनाओं से सराबोर होकर।
पर वो एक-दूसरे से अलग नहीं हुए।
बस चुपचाप एक-दूसरे की बाँहों में सिमटे,
सिर एक-दूसरे के सीने पर टिकाए…
उन दिलों की धड़कनों को सुनते रहे,
जिन्होंने आज पहली बार एक साथ धड़कना सीखा था।
कमरे में हल्की सी खामोशी छाई हुई थी,
लेकिन उस खामोशी के भीतर ढेर सारी बातें थीं —
अलिखी, अनकही… लेकिन पूरी तरह महसूस होती।
अवनी ने उसकी ओर देखा —
अरमान अब भी मुस्कुरा रहा था,
वो वही मासूम मुस्कान थी, लेकिन आज उसमें एक नई समझदारी जुड़ गई थी।
अवनी ने खुद को थोड़ा सीधा किया और धीरे से अरमान को हिलाया,
“उठिए ज़रा…” उसकी आवाज़ में शरारत और अपनापन दोनों था।
अरमान हड़बड़ाकर बैठ गया — आँखों में हल्की सी घबराहट, जैसे कुछ ग़लती कर दी हो।
अवनी थोड़ी और करीब आई और मुस्कुराते हुए बोली,
“कल तो आप मेरे किस से डर गए थे…”
“तो फिर आज… खुद से कैसे कर लिया?”
अरमान थोड़ा सकपकाया।
उसने नज़रें चुराते हुए धीरे से कहा,
“वो… अंशुमान भैया ने बोला था…”
“क्या?” अवनी चौंकी।
अरमान ने मासूमियत से सिर हिलाया,
“हाँ… उन्होंने कहा कि ये सब नॉर्मल है।
हर पति-पत्नी के बीच होता है।
तो मैं… थोड़ा समझा… और फिर…”
अवनी की आँखें हैरानी से फैल गईं।
उसका चेहरा शर्म से गुलाबी हो गया।
वो कुछ पल तक कुछ बोल ही नहीं पाई।
“मतलब... आपने हमारे बीच जो कुछ भी हुआ... वो सब... अंशुमान भैया को बता दिया?”
अरमान ने भोलेपन से सिर झुका लिया,
“मैं डर गया था… तो उनसे पूछ लिया। माफ़ करना…”
अवनी ने गहरी साँस ली, खुद को संभाला।
फिर उसका हाथ थामते हुए बहुत नरमी से बोली,
“अरमान जी… ये बातें बहुत पर्सनल होती हैं।
हर किसी से शेयर नहीं की जातीं। समझे आप?”
अरमान की मुस्कान धीमी पड़ गई।
उसने धीरे से सिर हिलाया, “माफ़ कर दो… मुझे नहीं पता था…”
अवनी ने उसके हाथ पर हल्का सा दबाव डाला और मुस्कराते हुए कहा,
“ठीक है… मैं जानती हूँ आप मासूम हो।
लेकिन अब धीरे-धीरे सीखना होगा… इन रिश्तों की गरिमा और निजता को।”
अरमान की आँखों में हल्की सी बेचैनी थी, लेकिन उसमें एक सच्चा वादा भी था।
“मैं सीख जाऊँगा,” वो बोला, “तुम जो कहोगी, मैं मानूंगा।
मैंने कभी किसी को इतना नहीं समझा जितना तुम्हें समझना चाहता हूँ।”
अवनी की आँखों में नमी तैर गई —
खुशी की, अपनापन की।
उसने हल्के से सिर हिलाया,
“बस अगली बार, कुछ भी बताने से पहले मुझसे पूछ लेना… ठीक?”
अरमान ने मुस्कराते हुए कहा, “पक्का!”
और फिर आगे बढ़कर उसका माथा चूम लिया।
अवनी कुछ पल तो स्तब्ध रही…
फिर खुद ही उसके सीने से लग गई।
उसका चेहरा अरमान के दिल पर टिक गया,
और मन ही मन उसने कहा —
"शायद… अब मैं आपकी इस मासूमियत से प्यार करने लगी हूँ…"
अरमान ने कुछ नहीं कहा,
बस अपनी बाँहों को कसकर उसकी कमर के चारों ओर बाँध लिया —
जैसे कह रहा हो, “मैं यहीं हूँ… और हमेशा रहूँगा।”
उस रात…
दोनों चुपचाप एक-दूसरे की बाँहों में सिमटे रहे।
ना कोई बात, ना कोई वादा —
बस दिलों की धड़कनों का साथ…
और एक नए रिश्ते का बेहद मासूम सा आग़ाज़।
अगले दिन,
रसोई में हल्का सा उजाला था।
अवनी गैस पर दूध गरम कर रही थी।
घर के बाक़ी लोग अपने-अपने कमरों में थे।
सन्नाटा था, सिर्फ़ दूध की उबालने की आवाज़ आ रही थी।
अचानक पीछे से कदमों की आहट सुनाई दी।
अवनी ने बिना पीछे देखे ही कहा, “अरमान जी, बाहर जाइए… दूध गिर जाएगा।”
लेकिन पीछे से कोई जवाब नहीं आया।
सिर्फ़ नर्म सांसों की आहट पास आती महसूस हुई।
अगले ही पल, अरमान धीरे-धीरे उसके पास आ गया।
उसने बिना कुछ कहे, गैस बंद कर दी।
अवनी ने चौंक कर उसकी तरफ देखा।
“क्या कर रहे है अरमान जी?” उसने फुसफुसाते हुए पूछा।
अरमान ने मासूम सा चेहरा बना कर कहा, “मुझे किस चाहिए।”
अवनी की आँखें हैरानी से फैल गईं।
“क्या?” वो बस इतना ही बोल पाई।
अरमान ने सिर झुकाकर फिर से कहा, “किस चाहिए… जैसे रात को हुआ था।”
अवनी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
लेकिन उसने खुद को संयमित किया।
“अरमान जी, सब लोग हैं घर में…”
“तो? यहां तो कोई नहीं है…” अरमान ने धीरे से कहा।
उसकी बात सुनकर अवनी का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
अरमान अब एकदम उसके पास खड़ा था।
उसकी मासूम आंखों में ज़िद थी।
लेकिन उस ज़िद में मोहब्बत भी साफ झलक रही थी।
“एक छोटी सी कर दो न…”
उसने होंठों पर उंगली रखते हुए कहा।
अवनी ने नज़रें झुका लीं।
“अरमान जी, नहीं… ये जगह नहीं ठीक।”
“तो कौन सी जगह ठीक है?”
उसने भोलेपन से पूछा।
अवनी को हँसी भी आई और प्यार भी।
उसका मन किया कि उसे सीने से लगा ले।
“अभी नहीं, बाद में…”
“मुझे अभी चाहिए…” अरमान का ज़ोर देने का अंदाज़ प्यारा था।
“आप ज़िद्दी हो गए हो अब…”
“मुझे नहीं पता। मुझे अभी और इस वक्त किस चाहिए मतलब चाहिए।"
उसकी ये बात सुनकर अवनी हैरान रह गई।
“किसने समझाया ये?”
तो आप सब को क्या लगता है
क्या सच में किसी ने अरमान को ये समझाया है?
क्या अवनी अरमान को किस करेगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....
मेरे दूसरे कहानियों को भी अपना प्यार देते रहिए।
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“अभी नहीं, बाद में…” अवनी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, जैसे वो जानती हो कि सामने खड़ा शख़्स मानने वाला नहीं है।
लेकिन अरमान ने अपनी भौंहें सिकोड़ते हुए, होंठों पर हल्की सी शरारती मुस्कान के साथ कहा—
“मुझे अभी चाहिए…”
उसके लहज़े में ज़ोर था, लेकिन आँखों में वो बच्चा सा मासूमपन भी था, जो ना कहे जाने पर और भी ज़िद पकड़ ले।
अवनी ने नकली नाराज़गी दिखाते हुए कहा—
“आप ज़िद्दी हो गए हो अब…”
अरमान ने बिना पलक झपकाए उसकी आँखों में देखते हुए कहा—
“मुझे नहीं पता। मुझे अभी… और इसी वक्त किस चाहिए, मतलब चाहिए।”
आख़िरी शब्द पर उसने और भी जोर डाल दिया, जैसे ये कोई बहस नहीं बल्कि उसका हक़ हो।
अवनी उसकी बात सुनकर एक पल को सच में हैरान रह गई।
“किसने समझाया ये सब?” उसने हल्की सी भौं उठाकर पूछा।
अरमान ने बिल्कुल मासूम चेहरा बनाया, जैसे कुछ गलत कर दिया हो पर पकड़े जाने पर भी डर नहीं—
“किसी ने नहीं…”
अवनी ने आँखें तरेरीं और आधी-नाराज़गी में कहा, “कहीं आपने अंशुमान भैया को तो नहीं बताया?”
अरमान ने सीधे-सीधे न में सिर हिला दिया। उसकी आँखों में झलकती मासूम सच्चाई देख कर अवनी का माथा थोड़ा सा सिकुड़ गया—फिर भी उसने तेज़ से पूछा, “तो फिर आज ये — किस क्यों?”
अरमान के होंठों पर हल्की-सी शरारती मुस्कान आई। उसने धीरे-से कहा, “वो… मुझे तुम्हें किस करने का मन कर रहा है।”
ये शब्द जैसे हवा में फिसल कर सीधा अवनी के दिल पर गिरे। उसका गाल झट से लाल हो गया, सांस एक पल के लिए थम-सी गई। वह चाहकर भी नहीं हँस पाई, और न ही तुरंत पलट कर कुछ कह सकी।
“आप अब बच्चे नहीं रहे…” अवनी ने आवाज़ धीमी कर दी, आंखों में बचपने की शरारत और बेहिसाब गर्माहट दोनों समेटे हुए।
अरमान ने कदम बढ़ाए और उसके हाथ को अपने हाथों में ले लिया—हाथ गर्म, उँगलियाँ हल्की-सी कच्ची, पर पकड़ में एक अटूट निश्चय था। उसने उसकी हथेली पर अपनी अंगुलियों से नर्म-सा द़बाव दिया, मानो हर बार यही द़बाव उसे सच बताता हो।
“हाँ, मैं छोटा बच्चा नहीं हूँ,” उसने कहा, चेहरे पर एक झपकी सी मुस्कान। “इसीलिए तो मेरी शादी हुई है—तुम्हारे साथ। छोटे बच्चे थोड़े ही शादी करते हैं।” वह हँसा, और हँसी में वो वही नादानपन भी था जो उसे हमेशा अलग बनाता था।
अवनी उसकी मासूमियत में खो गई—उसकी हरकतों में, उसकी थपकी में, उसकी आवाज़ की गांठ में। दिल खेलने लगा, सांसें बेवजह गरमा गईं। फिर अचानक एक ख्याल आया — शालीनता, समय, और उस मीठे इंतज़ार की कशिश। उसने खुद को संकुचित मुस्कान दे कर रोका।
तभी अरमान और निकट आकर धीमे से बोला, “फिर एक किस दो ना… प्लीज़…”
उसमें इतनी बेचैनी थी कि अवनी झट से कुछ समझाने लगी, “नहीं—हम…” पर अरमान की जिद ने उसे बीच में ही रोक दिया; उसकी आँखों में एक निश्चय था जिसे झटकना मुश्किल लगता था।
अवनी हार मान कर धीरे से बोली, “ठीक है… पर सिर्फ़ एक।”
अरमान की आँखें झट से चमक उठीं। “सच?” उसने जैसे किसी खज़ाने की खोज पाकर पूछा।
“तो फिर… जल्दी करो…” अवनी ने हकलाकर कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में डर नहीं—बस बड़ी सी गर्माहट।
अरमान ने झुक कर पहले हल्का सा स्पर्श किया—उसका होंठ अवनी के होंठों को छूते ही जैसे सारी दुनिया ठहर सी गई। वह हल्का, नाज़ुक स्पर्श कुछ सेकंड में गहराने लगा; होंठों की मुलायम टक्कर अब धीरे-धीरे खुलने लगी। अवनी ने आँखें बंद कर लीं—उसके पास अब केवल वो गर्म साँसें, अरमान की नर्म उँगलियाँ जो उसकी कमर पर टिक गई थीं, और दिल की तेज़ धड़कनें थीं।
किचन की नर्मी और गरमी के बीच, दो दिल एक पल में जुड़ रहे थे।
अरमान अब गहराई से किस करने लगा था।
उसकी मासूमियत अब धीरे-धीरे नज़दीकियों में बदल रही थी।
अवनी ने भी खुद को रोकना छोड़ दिया।
उसने अरमान की पीठ पर हाथ रखा।
अरमान और करीब आ गया।
उसकी सांसें तेज़ हो रही थीं।
अवनी की भी धड़कनें बेकाबू हो रही थीं।
कुछ सेकंड के लिए सब कुछ रुक सा गया।
सिर्फ़ उनकी साँसे चल रही थीं।
अरमान ने धीरे से खुद को अलग किया।
वो हांफ रहा था।
अवनी भी गहरी साँस ले रही थी।
दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे।
नज़रें मिलीं, तो शब्द खो गए।
अरमान को अब ये किस बहुत अच्छा लग रहा था।
अवनी कुछ कहने ही वाली थी।
लेकिन उससे पहले, अरमान ने फिर से उसके होंठों को छू लिया।
इस बार ज़रा ज़्यादा गहराई से।
अवनी ने कोई विरोध नहीं किया।
उसने खुद को उस पल में बहने दिया।
अरमान अब हर बार और गहराई से उसके पास आता जा रहा था।
हर बार उसकी ज़िद में प्यार बढ़ता जा रहा था।
अवनी भी अब रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
कुछ देर बाद दोनों फिर से एक-दूसरे से अलग हुए।
साँसे तेज़ थीं।
चेहरे गर्म थे।
और दिल बहुत पास।
अरमान ने उसके चेहरे पर अब भी फैली हल्की लाली और आँखों में तैरती चमक देख कर एक शरारती मुस्कान दी। उसने थोड़ा सिर झुकाकर, मानो अपनी जीत की पुष्टि लेते हुए, धीमे से पूछा—
“अब ठीक किया ना?”
अवनी ने उसकी बात का सीधा जवाब देने के बजाय, होंठों पर एक छोटी सी शरारती मुस्कान सजाई और उँगलियों से उसकी नाक पर हल्की सी चपत मारी।
“हां, अब आप जाइए, फ्रेश हो जाइए… फिर ब्रेकफास्ट भी तो करना है न,” उसने नकली सख़्ती में कहा, लेकिन आवाज़ में वो गर्माहट थी जिसे छुपाने की कोशिश भी नाकाम रही।
अरमान ने एक पल उसे देखा, जैसे कुछ और कहना चाहता हो, मगर फिर सिर हिलाते हुए ‘हां’ कहा और धीरे-धीरे किचन से बाहर चला गया। जाते-जाते भी उसकी निगाहें दरवाज़े के पास से मुड़कर एक बार फिर अवनी पर ठहर गईं—वो मुस्कान, जिसमें एक नन्हा-सा ‘अभी खत्म नहीं’ का वादा छुपा था।
जैसे ही उसके कदम कमरे की ओर मुड़े और उसकी मौजूदगी की हल्की-सी खुशबू भी हवा में बिखर गई, अवनी के होंठों पर अपने आप मुस्कान आ गई। उसने सिर हल्का सा झटका और खुद से बुदबुदाई,
“ये अरमान जी भी न… बहुत ज़िद्दी हो गए हैं अब।”
वो कुछ पल वहीं खड़ी रह गई—दिल की धड़कनें अब भी थोड़ी तेज़, गालों की गर्माहट अब भी बाकी। फिर धीरे-धीरे खुद को संभालते हुए उसने अपने हाथ में पकड़ा चम्मच उठाया, गैस पर रखी कड़ाही में हिलाया और फिर पूरे मन से बाकी का काम करने लगी। लेकिन भीतर ही भीतर, उसकी सोच में अब सिर्फ़ उसी पल का स्वाद था—जो शायद उसके पूरे दिन का सबसे मीठा हिस्सा बनने वाला था।
अवनी ने रसोई का काम निपटाकर हाथ धोए और अपने कमरे की ओर बढ़ी। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, सामने का नज़ारा देखकर उसके होंठों पर अनायास ही मुस्कान खिंच आई—अरमान बेड के किनारे बैठा था, बाल अब भी भीगे हुए, और हाथ में टॉवेल लेकर बेढंगे अंदाज़ में उन्हें सुखाने की कोशिश कर रहा था। उसके माथे से पानी की बूँदें लुढ़ककर गाल तक आ रही थीं।
अवनी धीरे-धीरे चलकर उसके पास आई और बिना कुछ कहे, टॉवेल उसके हाथ से ले लिया। “लाइए, दीजिए… मैं पोंछ देती हूँ,” उसने हल्की, स्नेहभरी आवाज़ में कहा।
अरमान ने एक पल के लिए उसकी आँखों में देखा, फिर बिना बहस किए चुपचाप टॉवेल उसके हवाले कर दिया। अवनी उसके पीछे खड़ी होकर बालों को हल्के-हल्के पोछने लगी—उसके हाथ बेहद नर्म थे, और हर हरकत में देखभाल की एक अजीब सी मिठास थी।
बाल पोछते समय अरमान भी चुप नहीं रहा—कभी किसी बचपन की याद छेड़ देता, कभी किसी मज़ेदार किस्से का जिक्र कर देता, तो कभी बस यूँ ही तंग करता, “इतना धीरे क्यों? और तेज़ करो न।” अवनी मुस्कुराती रही, कभी हल्की-सी डाँट देती, कभी उसकी बातों में हाँ-में-हाँ मिलाती।
जब उसके बाल सूख गए, अवनी ने टॉवेल बेड पर रखकर कहा, “अब जाइए, अपने कपड़े चेंज कर लीजिए। ये शर्ट भी गीली हो गई है।”
अरमान ने आज्ञाकारी अंदाज़ में सिर हिलाया, “ठीक है,” और चेंजिंग रूम की तरफ चला गया।
वो अंदर गया तो अवनी भी उठकर बाथरूम चली गई। ठंडे पानी से चेहरा धोकर, हल्का सा मेकअप ठीक किया और वापस आई तो देखा—अरमान ड्रेस बदलकर ताज़गी भरे अंदाज़ में खड़ा था।
दोनों एक साथ कमरे से बाहर निकले। सीढ़ियाँ उतरते हुए, उनकी चाल लगभग एक जैसी थी—बीच-बीच में हल्की मुस्कानें और नज़रें मिलाना, जैसे कोई अनकहा राज़ हो।
नीचे हॉल में बैठे परिवार के लोग उन्हें देखते रह गए। किसी के होंठों पर तारीफ़ थी, किसी की आँखों में बस अपनापन। सचमुच, दोनों साथ में ऐसे लग रहे थे जैसे एक-दूसरे के लिए ही बने हों—रंग, अंदाज़, और उस पल का सहज तालमेल… सब कुछ बिल्कुल परफेक्ट।
जिन्हें देख अरमान की दादी उन दोनों की दूर से ही नजर उतारते हुए बोलती है," नजर न लगे मेरे दोनों बच्चों को। भगवान करे हमेशा ऐसे ही एक साथ रहे।"
वहीं उनके इस बात पर सभी मुस्कुरा देते है। अवनी और अरमान आ कर बैठते है। तो सर्वेंट सभी को खाना परोस देते है। ऐसे ही ब्रेकफास्ट खत्म होता है और सभी अपने अपने काम में चले जाते है।
शाम को,
शाम का वक्त था। हवाओं में हल्की ठंडक और आंगन में खिलौनों की खनखनाहट गूंज रही थी। अरमान अकेले अपने खिलौनों के साथ खेल रहा था—कभी गाड़ी चला रहा था, कभी टेडी बियर से बात कर रहा था।
तभी अंशुमान कमरे में आया और मुस्कुराते हुए बोला, “क्या कर रहे हो भाई?”
अरमान ने खुशी से कहा, “आओ न अंशुमान, बैठो न मेरे साथ खेलो।”
अंशुमान भी ज़मीन पर बैठ गया और दोनों खेलने लगे।
कुछ देर बाद अंशुमान ने मुस्कुराते हुए पूछा, “आपका और भाभी का रिश्ता अब कितना आगे तक गया?”
अरमान ने भोलेपन से जवाब दिया, “हम दोनों तो ठीक हैं।”
अंशुमान ने थोड़ी गंभीरता से पूछा, “मतलब... आप दोनों के बीच और भी कुछ हुआ? किस वगैरह?”
तो आप सब को क्या लगता है,
क्या अरमान अंशुमान को बता देगा उसके और अवनी के बीच क्या हुआ था?
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शाम का वक्त था। हल्के नारंगी सूरज की किरणें आंगन की दीवारों से टकरा रही थीं। हवा में हल्की ठंडक थी। अरमान ज़मीन पर बैठा था—चारों ओर उसके खिलौने बिखरे हुए थे। वो कभी अपनी लाल रंग की कार को घुमाता, कभी अपने टेडी बियर से बातें करता।
तभी दरवाज़े से अंशुमान की एंट्री हुई। उसके चेहरे पर हमेशा की तरह हल्की सी शरारती मुस्कान थी।
"क्या कर रहे हो भाई?" — उसने पूछा, झुकते हुए।
अरमान ने खुशी से सिर उठाया, आँखों में चमक थी, “आओ न अंशुमान, बैठो न मेरे साथ खेलो।”
अंशुमान हँसते हुए ज़मीन पर बैठ गया। दोनों ने मिलकर गाड़ियों की रेस करवाई, टेडी बियर को डॉक्टर बनाया, और एक नकली स्कूल भी सजाया।
कुछ देर बाद खेल थमा तो अंशुमान ने उसकी तरफ देखा और थोड़ा झुककर मुस्कुराते हुए पूछा—
“आपका और भाभी का रिश्ता अब कितना आगे तक गया?”
अरमान ने एक पल को रुककर उसकी तरफ देखा।
फिर धीरे से बोला, “हम दोनों... एक-दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे हैं। वो मुझे अच्छे से देखती हैं, खाना खिलाती हैं... कभी-कभी मेरे लिए चुपचाप रो भी देती हैं।”
अंशुमान समझ गया कि अरमान को उसकी बात शायद समझ नहीं पाया।
अंशुमान ने अपनी मुस्कान थोड़ी गंभीरता में बदली। आवाज़ थोड़ी धीमी कर ली, जैसे कोई राज़ की बात हो— “मतलब... आप दोनों के बीच और भी कुछ हुआ? किस वगैरह?”
ये सुनते ही अरमान थोड़ी देर चुप हो गया।
उसकी आँखें नीचे झुक गईं। उसने हाथ में पकड़ा टेडी बियर ज़रा कसकर थामा, जैसे उस खिलौने में उसे सुकून मिलता हो।
फिर वह बोला, आवाज़ में हिचक थी—
“मैं नहीं बताऊंगा… अवनी ने बोला था, ऐसी बातें किसी को नहीं बताते।”
अंशुमान ने मुस्कुराते हुए उसका कंधा थपथपाया, “अरे, पर मैं कोई और थोड़े ही हूं। मैं तो तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त हूं न?”
अरमान ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन अब भी कुछ असमंजस में था।
अंशुमान थोड़ा और पास खिसका और फुसफुसाकर बोला,
“अगर तुम मुझे नहीं बताओगे, तो मैं तुम्हें कैसे सिखाऊंगा कि भाभी को और कैसे खुश किया जा सकता है? पिछली बार जो मैंने कहा था, कि उसे धीरे से किस करना… वो किया था ना? वो खुश हुई थी?”
अरमान की झिझक अब थोड़ी ढीली पड़ी। उसकी मुस्कान में अब शरम और सच्चाई दोनों थे।
“हां… तुम सही बोल रहे हो… वो मुस्कुराई थी। फिर मेरे बाल सहलाए थे।”
“बस! तो अब भी मुझ पर भरोसा रखो,” अंशुमान ने आंख दबाते हुए कहा। “भाभी को बताना मत कि तुमने मुझे बताया, ठीक है?”
अरमान ने सिर हिलाया। थोड़ी हिचकिचाहट के बाद उसने वो सब कहना शुरू किया जो उस रात हुआ था। उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन उसमें भावनाओं की गहराई थी। कभी वो बीच में रुकता, कभी हल्का मुस्कुराता, कभी आंखें झुका लेता। उसके शब्दों में कोई गंदगी नहीं थी—बस मासूम सा अपनापन, कुछ नया जानने की उलझन और एक रिश्ता निभाने की ईमानदारी थी।
अंशुमान पूरी गंभीरता से सुन रहा था। कोई मज़ाक नहीं, कोई हंसी नहीं। उसके चेहरे पर इस बार दोस्त वाला ठहराव था।
फिर वो चुपचाप अपना फोन निकालता है।
कुछ सेकंड्स बाद, स्क्रीन पर कुछ रोमांटिक मूवीज़ के छोटे-छोटे सीन्स दिखाई देने लगे। लेकिन अरमान का चेहरा थोड़ी देर बाद हल्का सा असहज हो गया। वो दृश्य, जो अंशुमान के लिए सामान्य थे, अरमान के लिए शायद थोड़े ज़्यादा हो रहे थे।
अंशुमान ने समझा और तुरंत मूवी बंद करके टीवी सीरियल्स के कुछ रोमांटिक पर कोमल पल चलाने लगा—जैसे हल्के से गाल छूना, आंखों में देखना, धीमा डायलॉग, थोड़ी सी शर्म।
अब अरमान आराम से देखने लगा। उसकी आंखें फोन से चिपकी थीं। कभी मुस्कुराता, कभी खुद में खो जाता। उसके लिए ये सिर्फ सीन नहीं थे—ये सबक थे, सीख थी, और उस दुनिया की झलक थी जिसमें वो धीरे-धीरे कदम रख रहा था।
वीडियो देखते-देखते अरमान की आंखों में एक अलग सी चमक थी। पर्दे पर चल रहे रोमांटिक पलों को देखकर वो थोड़ा सोच में डूब गया।
अरमान ने थोड़ी देर तक अंशुमान की बातें ध्यान से सुनीं, फिर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें झपकाते हुए मासूमियत से पूछा,
“ये करने से अवनी खुश हो जाएगी?”
अंशुमान के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आई। उसने सिर धीरे-से हिलाते हुए कहा,
“बहुत ज़्यादा… तुम्हें देखकर उन्हें लगेगा कि तुम सिर्फ़ उनसे नहीं, बल्कि उनके हर पल से, उनके हर छोटे-बड़े एहसास से प्यार करते हो।”
उसके स्वर में अपनापन भी था और एक तरह की समझदारी भी, जो अरमान के मन में तुरंत बैठ गई।
लेकिन अगला वाक्य कहते हुए अंशुमान का चेहरा थोड़ा गंभीर हो गया। उसने धीमी आवाज़ में, लगभग फुसफुसाते हुए कहा,
“पर ये सब किसी को बताना मत… खासकर भाभी को नहीं। ये हमारा सीक्रेट है।”
उसकी आँखों में एक शरारती चमक भी थी, जैसे उसे पता हो कि ये छोटा-सा राज़ ही आगे का मज़ा बढ़ा देगा।
अरमान ने ज़ोर से सिर हिलाया, इतनी ताक़त से जैसे कोई बच्चा अपनी सबसे प्यारी चीज़ की हिफाज़त का वादा कर रहा हो। उसके होंठों पर एक हल्की, भोली-सी मुस्कान थी और आँखों में चमक—जैसे उसने कोई बड़ा मिशन अपने ऊपर ले लिया हो।
“ठीक है! सीक्रेट…” उसने होंठों पर उंगली रखकर फुसफुसाया।
अंशुमान हँस पड़ा और उसके कंधे पर दोस्ताना थपकी दी। फिर वह मुड़कर चला गया, कदम धीमे लेकिन चेहरे पर संतोष की झलक थी—क्योंकि उसे यक़ीन था कि अब अरमान जो भी करेगा, उसमें अवनी के लिए सिर्फ़ प्यार ही होगा।
अरमान कुछ देर वहीं खड़ा रहा, दिमाग़ में अंशुमान की बातें बार-बार घूमती रहीं। उसके मन में अब सिर्फ़ एक ही ख़याल था—
“अवनी को खुश करना है… बहुत खुश।”
शाम 7 बजे,
अवनी किचेन में खाना बना रही थी। तभी अरमान ने दरवाज़े से झांकते हुए कहा,
“अवनी… ज़रा आना।”
अवनी, उसकी आवाज़ सुनकर मुस्कुराई। वह एक सर्वेंट को काम सौंपा और अरमान के कमरे की ओर बढ़ी। कमरे में कदम रखते ही उसने पूछा—
“बताइये, क्या काम है?”
अरमान ने कुछ नहीं कहा, बस धीरे से उसका हाथ पकड़ा।
अवनी थोड़ी चौंकी, पर उसके चेहरे पर गुस्सा नहीं था, सिर्फ जिज्ञासा थी ये जानने की - क्यों अरमान ने उसे बुलाया है।
अरमान ने उसे धीरे से खींचते हुए ड्रेसिंग टेबल के सामने ला खड़ा किया। अवनी अब शीशे में खुद को देख रही थी—और अपने पीछे खड़े अरमान को भी।
अरमान ने बहुत हल्के से ड्रेसिंग टेबल पर रखा एक गुलाब उठाया, जो उसने शाम को गार्डन से तोड़ा था—बस अवनी के लिए।
फिर बहुत ही प्यार और आदर से उसके बालों में वो फूल लगा दिया।
अवनी की सांस थोड़ी थमी। उसकी आंखें शीशे में थी, लेकिन मन... उस गुलाब की नर्मी में अटका था।
हर रोज़ अरमान उसके लिए फूल लाता था। लेकिन आज कुछ अलग था। आज फूल के साथ उसके हाथों में एक हल्की सी कंपन थी, आंखों में थोड़ी सी चमक, और चेहरे पर वो मासूम सी उम्मीद।
अवनी ने मिरर में उसकी तरफ देखते हुए धीमे से मुस्कुराया। उसने कुछ कहा नहीं, पर उसकी मुस्कान ने सब कह दिया।
अवनी अब भी मिरर में अरमान को देख रही थी—उसकी आंखों में मासूमियत थी, और उस मासूमियत में कहीं छुपा एक चाहत का बीज।
तभी उसे एक एहसास हुआ।
अरमान ने धीरे से अपने दोनों हाथ उसकी कमर पर रख दिए थे। स्पर्श नाज़ुक था, पर असर गहरा। फिर वो हाथ थोड़े और आगे बढ़े—बहुत धीमी गति से—और आकर उसके पेट पर टिक गए।
इस तरह, वो अब अवनी को अपनी बाँहों में भर चुका था। एक ऐसा आलिंगन जो न तो अचानक था, न ही अनजाना—लेकिन इस बार उसमें कुछ नया था।
वैसे तो अरमान ने कई बार उसे गले लगाया था। हर रात जब वो उसके सीने से लगकर सो जाता था, तब अवनी उसकी गर्म सांसों और मासूम स्पर्श की आदी हो चुकी थी। पर आज पहली बार, जब अरमान के हाथ उसके साड़ी के नीचे कोरे पेट को छू रहे थे—एक सीधा, अनछुआ स्पर्श—तो अवनी के पूरे शरीर में एक सिहरन दौड़ गई।
वो कुछ पलों तक बस खड़ी रही, सांसें धीमी होने की बजाय और तेज़ होती चली गईं।
पीछे से अरमान की बाँहें अब और कस गई थीं।
वो पूरी तरह से उससे सट गया था। उसके जिस्म की गर्माहट अब अवनी अपनी पतली सिल्क की साड़ी के आर-पार महसूस कर रही थी। उस गर्म स्पर्श से उसका तन ही नहीं, मन भी कांप उठा।
अरमान का चेहरा उसके कंधे के पास था। उसकी सांसें अवनी की गर्दन से टकरा रही थीं।
उसके पास खड़े उस मासूम ने, जाने-अनजाने, एक भावनात्मक सीमारेखा को धीरे-धीरे पार कर दिया था।
अवनी की आंखें अब भी मिरर में थीं, लेकिन वो खुद को उसमें नहीं देख रही थी—वो बस महसूस कर रही थी। खुद को, अरमान को, और उनके बीच पलती उस बारीक सी रेखा को जो धीरे-धीरे मिट रही थी।
मदहोशी की उस हल्की सी चुप्पी में, अवनी ने भी धीरे से अपने हाथ अरमान के हाथों पर रख दिए। और फिर—एक धीमे, अनकहे इकरार की तरह—वो थोड़ी और उसके करीब हो गई।
उस पल, न कोई शब्द थे, न कोई वादा।
सिर्फ दो धड़कनों की टकराहट थी, और दो आत्माओं का स्पर्श—मौन, मगर बहुत गूंजता हुआ।
अरमान और अवनी अब एक-दूसरे के बेहद करीब थे। उनके बीच की गर्माहट, सांसों की रफ्तार और धड़कनों की आवाज़ सब कुछ जैसे तेज़ हो गया था।
अरमान अवनी के होंठों पर अपने होठ रख दिए और बेहद प्यार से चूम रहा था, एक पल के लिए भी अलग नहीं हो रहा था। उसकी मासूमियत अब धीरे-धीरे चाहत में बदलती जा रही थी, लेकिन उसमें अब भी एक नज़ाकत थी।
अवनी ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं, और खुद को पूरी तरह अरमान की बाहों में छोड़ दिया था। अरमान ने चूमते हुए अवनी के गालों, ठुड्डी और फिर धीरे से उसकी गर्दन को छूना शुरू किया। हर चुम्बन के साथ, अवनी का बदन सिहर उठता था।
वो कभी उसकी कमर पर अपनी पकड़ मज़बूत करता, तो कभी उसकी पीठ को हल्के से सहलाता। अवनी की सांसें अब बेकाबू हो चली थीं। उसके होंठों से धीमे धीमे सिसकारियाँ निकल रही थीं।
वो चाहती थी कि ये पल कभी खत्म न हो। अरमान ने अचानक उसे अपनी गोद में उठा लिया। अवनी ने चौंक कर उसकी तरफ देखा, लेकिन अरमान की आँखों में इस बार आत्मविश्वास था।
वो उसे लेकर धीरे-धीरे बेड की तरफ बढ़ा। कमरे की रौशनी हल्की थी, और पर्दों से छनती चाँदनी उनकी परछाइयों को एक में मिला रही थी।
अरमान ने अवनी को बेड पर बिठाया, और खुद उसके सामने बैठ गया। उसने धीरे से अवनी की चूड़ियाँ उतारनी शुरू की।
हर हरकत बेहद धीमी, लेकिन बेहद गहरी थी। अवनी ने उसकी आँखों में देखा — वहाँ अब मासूमियत के साथ एक अनकही तड़प भी थी।
अरमान ने उसके हाथों को अपने हाथों में लिया, और हल्के से चूमा। फिर उसने अवनी के माथे पर एक लंबा चुम्बन दिया।
"अवनी..." उसने धीमे से कहा। अवनी ने उसकी तरफ देखा, उसकी पलकों में नमी और होंठों पर हल्की सी मुस्कान थी।
अरमान ने फिर एक बार उसे अपनी बाहों में लिया, और इस बार वो दोनों खुद को रोक नहीं सके। एक लहर-सी उठी, जो उन्हें एक-दूसरे में पूरी तरह डुबो ले गई। हर पल, हर स्पर्श, अब एक नई अनुभूति दे रहा था।
अरमान की उंगलियाँ अब अवनी के चेहरे, उसकी गर्दन, और उसकी पीठ को छू रही थीं। अवनी ने भी अपना हाथ उसके सीने पर रखा, और उसकी धड़कनों को महसूस करने लगी।
वो धड़कनें जो उसके लिए ही तेज़ हो रही थीं। उनके बीच अब कोई दीवार नहीं बची थी। अरमान ने धीरे से अवनी की साड़ी का पल्लू किनारे किया, और उसकी खुली पीठ पर होंठ रख दिए।
अवनी की साँसें और तेज़ हो गईं, उसका बदन काँप उठा। अरमान ने उसकी पीठ पर कई चुम्बन दिए, और हर चुम्बन अवनी को एक नई दुनिया में ले जा रहा था।
अवनी ने अपनी आँखें बंद कर लीं, और अपना चेहरा उसके कंधे पर रख दिया। अब वो बस महसूस कर रही थी, अपने अरमान को, अपनी धड़कनों में। अरमान अब अवनी के बालों में अपनी उंगलियाँ फिरा रहा था।
हर स्पर्श के साथ, अवनी का शरीर और भी सेंसिटिव होता जा रहा था। उसने धीरे से अरमान का हाथ पकड़ा और अपने सीने से लगा लिया।
अरमान ने उसकी आँखों में देखा — वहाँ अब सिर्फ प्यार था, और एक तलब... जो सिर्फ उसके लिए थी। उसने फिर से अवनी के होंठों को चूमा, लेकिन इस बार और गहराई से।
उसकी पकड़ अब पहले से ज़्यादा मज़बूत हो चुकी थी। अवनी की साँसे और भी गर्म हो चली थीं, उसकी धड़कनों की आवाज़ तक सुनाई दे रही थी।
अरमान ने अवनी को धीरे से बिस्तर पर लिटाया। वो उसके ऊपर झुका और उसके माथे से लेकर नाभि तक हर जगह चुम्बन देता गया।
अवनी ने कभी महसूस नहीं किया था कि कोई उसे इस तरह छू सकता है — इतनी सच्चाई, इतनी मासूमियत और इतनी चाहत से।
उसकी आँखों से एक आँसू बह निकला, लेकिन वो दर्द का नहीं था — वो तो सुकून का आँसू था। अरमान ने तुरंत उसका आँसू पोंछा और उसके गाल पर हल्का सा किस किया।
"तुम रो क्यों रही हो?" उसने धीरे से पूछा।
अवनी बस मुस्कुरा दी, "खुश हूँ बहुत।"
अरमान उसकी इस बात पर और भी ज़्यादा भावुक हो गया।
उसने अब अवनी को अपने सीने से चिपका लिया।
दोनों अब एक-दूसरे की धड़कनों में डूबे हुए थे।
अरमान ने धीरे से उसके कानों में फुसफुसाया, " तुम्हे अच्छा लगा मेरा ऐसा करना। "
तो अवनी बस अपनी आँखें बंद कर हां में सर हिला देती है।
जिसे देख अरमान बोलता है, "अब मैं हर रोज़ तुम्हें ऐसे ही प्यार करूँगा।"
अवनी ने हल्की हँसी के साथ उसकी गर्दन को चूमा।
दोनों अपनी चाहतों में पूरी तरह खोए हुए थे।
अरमान की बाँहों में बंधी अवनी की साँसें तेज़ हो रही थीं, और अरमान का दिल हर बीतते पल के साथ तेज़ धड़कने लगा था।
माहौल में सिर्फ उनके सांसों की आवाज़ और बढ़ती हुई तलब गूंज रही थी।
अचानक, अपने अंदर की आग को अब और कंट्रोल ना कर पाने वाली अवनी ने अरमान को हल्के से नीचे सुला दिया।
अरमान हैरान सा उसकी तरफ देख ही रहा था कि अवनी धीरे से उस पर झुक गई और उसके शर्ट के बटन खोलने लगी।
एक-एक कर उसने अरमान के सारे बटन खोले, और फिर शर्ट को पूरी तरह उतार दिया।
उसके सामने अरमान का मजबूत और परफेक्ट चेस्ट और एब्स थे, जिन्हें देख अवनी खुद को रोक नहीं पाई और धीरे-धीरे उसे किस करने लगी।
अरमान की बॉडी किसी बड़े मर्द जैसी थी—कसी हुई मसल्स, सख्त सीने और खूबसूरत एब्स।
अरमान सिर्फ अपने मासूम माइंड से बच्चा था, लेकिन अब उस मासूमियत में धीरे-धीरे मैच्योरिटी की झलक भी आने लगी थी।
अवनी अब पूरी तरह अरमान के प्यार में डूब चुकी थी।
उसने खुद को और अरमान को कसकर अपनी बाहों में भर रखा था।
अरमान की गर्म साँसें उसकी गर्दन पर महसूस हो रही थीं।
अवनी अब खुद को पूरी तरह अरमान के करीब महसूस कर रही थी।
उसकी उंगलियाँ अरमान के बालों में उलझी हुई थीं और होठ एक बार फिर अरमान के होठों से मिल चुके थे।
किस धीरे-धीरे गहराता जा रहा था, दोनों की साँसें तेज़ थीं, और कमरा उस पल की गर्माहट से भर गया था।
अरमान की पकड़ भी मजबूत होती जा रही थी, जैसे वो अब उस पल को पूरी तरह महसूस कर रहा हो।
किस करते हुए कई मिनट बीत गए थे।
अवनी अरमान के इस नए रूप को देखकर खुद को रोक नहीं पा रही थी।
हर पल जैसे उसे और करीब खींच रहा था।
लेकिन तभी अवनी को कुछ अजीब महसूस हुआ।
कैसा लगा आज का चैप्टर कमेंट कर के जरूर बताना।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या महसूस हुआ होगा अवनी को?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी....
अवनी अब खुद को पूरी तरह अरमान के करीब महसूस कर रही थी।
उसकी उंगलियाँ नर्मी से अरमान के बालों में उलझी हुई थीं, जैसे हर लट को अपने स्पर्श में कैद कर लेना चाहती हों।
उसके होठ एक बार फिर अरमान के होठों से मिल चुके थे—गर्म, जीवंत, और चाहत से भरे।
किस धीरे-धीरे गहराता जा रहा था।
हर गुजरते पल के साथ उनके दिलों की धड़कनें तेज़ हो रही थीं, साँसें एक-दूसरे में घुलती जा रही थीं, और कमरा उस पल की गर्माहट और चाहत से भरा जा रहा था।
अरमान की पकड़ भी पहले से कहीं ज़्यादा मजबूत हो गई थी, मानो वो इस पल को अपनी हथेलियों में बंद कर लेना चाहता हो, ताकि यह कभी खत्म न हो।
कई मिनट तक वो एक-दूसरे की दुनिया में खोए रहे, जैसे बाहर की हर चीज़ का अस्तित्व मिट चुका हो।
अवनी की आँखों में एक अलग चमक थी—अरमान के इस नए, बेखौफ रूप ने उसे भीतर तक हिला दिया था।
वो उसके हर स्पर्श, हर आहट में खुद को डूबो देना चाहती थी।
लेकिन तभी… एक हल्की-सी बेचैनी ने उसके दिल को छू लिया।
उसने महसूस किया कि अरमान के होठ अचानक स्थिर हो गए थे।
वो गर्माहट, जो अभी कुछ पल पहले तक उसके भीतर आग की तरह फैल रही थी, अब ठंडी-सी लगने लगी।
अवनी की पलकें झपकीं, साँसों का तालमेल टूटा, और उसका दिल जैसे एक बीट मिस कर गया।
उसने हल्के से किस तोड़ा और उसकी नज़रें अरमान के चेहरे पर ठहर गईं।
उसके होठ अब पूरी तरह शांत थे, शरीर भी एकदम स्थिर, और उसकी आँखें गहरी नींद में बंद थीं।
अवनी का दिल अचानक जोर से धड़क उठा—क्या हुआ उसे? एक पल के लिए डर उसकी रगों में दौड़ गया।
लेकिन अगले ही क्षण, जब उसकी नज़र अरमान के चेहरे पर पड़ी, तो बेचैनी पिघलने लगी।
अरमान बिल्कुल शांत और निश्चिंत था, जैसे कोई थका हुआ बच्चा माँ की गोद में सुकून पा कर सो गया हो।
उसके चेहरे पर हल्की-सी मासूमियत थी, मानो इस पल में उसे पूरी दुनिया की हर खुशी मिल गई हो।
अवनी के होंठों पर एक धीमी, कोमल मुस्कान फैल गई—वो मुस्कान जो सिर्फ़ तब आती है, जब दिल सच में किसी को अपना मान ले।
वो झुककर धीरे से उसके माथे पर एक लंबा, प्यार भरा किस छोड़ देती है, जैसे किसी अनमोल खज़ाने पर अपनी मुहर लगा रही हो।
अरमान की नींद बहुत गहरी थी, लेकिन उसके होठों के कोने पर एक नन्ही-सी मुस्कान अब भी खेल रही थी, मानो अवनी की मौजूदगी उसे सपनों में भी महसूस हो रही हो।
अवनी ने धीरे से उसका हाथ थामा, उसकी उंगलियों को अपनी उंगलियों में पिरो दिया, फिर बिना कोई आवाज़ किए थोड़ी दूरी बना ली, ताकि उसकी नींद न टूटे।
वो चुपचाप उसके पास लेट गई—बस उसकी साँसों की लय सुनती, उसकी नींद का सुकून देखती, और सोचती कि शायद यही वो पल है, जिसका उसने हमेशा सपना देखा था।
कमरे में एक सुखद, सुकून भरी खामोशी थी, जिसमें सिर्फ़ उनकी साँसों की हल्की-हल्की आवाज़ घुल रही थी।
यह खामोशी किसी बोझ की नहीं, बल्कि उस अपनापन की थी, जो दो दिलों को बिना शब्दों के भी करीब ले आती है।
अवनी चाहकर भी इस पल को तोड़ना नहीं चाहती थी।
उसे डर था कि कहीं उसकी हल्की-सी हलचल भी अरमान की मीठी नींद छीन न ले।
इसलिए वो धीरे-धीरे अपने शरीर को थोड़ा पीछे खिसका लाई, लेकिन उसकी नज़रें अब भी अरमान पर ही टिकी रहीं—मानो उसकी आँखों को कोई और मंज़िल न हो।
कुछ ही पलों में, जैसे अरमान के दिल को अहसास हो गया कि वो उसके पास नहीं है।
उसने बिना आँखें खोले ही करवट बदली और नींद में ही धीरे-धीरे उसकी ओर खिसक आया।
उसका एक हाथ आकर अवनी के पेट पर ठहर गया, और दूसरा पाँव उसके पाँव के ऊपर आकर टिक गया—जैसे नींद में भी उसे यकीन चाहिए कि अवनी उसके साथ है।
अवनी के होंठों पर एक हल्की, बेतकल्लुफ़ मुस्कान आ गई।
उसने धीरे से उसकी उंगलियों को सहलाया और मन ही मन सोचा—
“ये आदमी नींद में भी मुझे छोड़ना नहीं जानता…”
सुबह की हल्की धूप कमरे की खिड़की से छनकर अंदर आ रही थी।
नरम सी रौशनी अरमान के चेहरे पर पड़ी, तो उसकी पलकें धीरे-धीरे हिलने लगीं।
उसने खुद को खींच कर कुछ और करीब किया और पाया कि वो अब भी अवनी के बेहद पास है।
उसका चेहरा अब भी शांत था, जैसे सपनों में भी वो बस अवनी को ही महसूस कर रहा हो।
अवनी पहले से जाग चुकी थी, पर वो उसकी नींद खराब नहीं करना चाहती थी।
वो हल्के हाथों से अरमान के बालों को सहला रही थी, जैसे कोई माँ अपने बच्चे को थपकियाँ देती है।
उसकी नज़रें अरमान के मासूम चेहरे पर थीं, और होंठों पर एक सुकून भरी मुस्कान।
पिछली रात का हर लम्हा उसकी यादों में ताज़ा था — वो गहराई, वो चाहत, वो मासूमियत।
अरमान ने आँखें खोलीं तो सबसे पहले उसकी नज़र उसी पर पड़ी—अवनी, जो चुपचाप उसे निहार रही थी, आँखों में सारा अपनापन और होंठों पर वो प्यारी-सी मुस्कान लिए, जो सीधे दिल को छू जाती थी।
"अवनी..." उसकी आवाज़ धीमी, गहरी और थोड़ी-सी उनींदी थी, जैसे किसी मीठे सपने से जगाया गया हो।
अवनी ने बस हल्के से "हूँ" कहा और झुककर उसके गाल पर एक नर्म, लंबे पल तक ठहर जाने वाला चुम्बन दे दिया।
उसकी साँसों की गर्मी अरमान के दिल तक उतर गई।
"मैं तुम्हारे साथ हूँ," उसने फुसफुसाकर कहा, आवाज़ में ऐसा यकीन था जैसे पत्थर पर भी उकेरा जा सके, "हमेशा।"
अरमान ने एक पल के लिए उसे ऐसे देखा, मानो पहली बार उसकी आँखों में उतर रहा हो, जैसे हर भाव, हर रेखा, हर अहसास को अपने भीतर कैद कर लेना चाहता हो।
फिर उसने बिना एक शब्द कहे अपनी दोनों बाँहों में उसे भर लिया, कसकर, जैसे उसे खोने का डर अब भी कहीं भीतर छिपा हो।
"मुझे अच्छा लगता है जब तुम मेरे पास होती हो," उसने मासूमियत और सच्चाई से कहा।
अवनी की पलकों में नमी उतर आई, लेकिन उसके होंठ अब भी उसी नर्म मुस्कान से सजे रहे।
उसने अपनी उंगलियों से उसके चेहरे को छुआ, फिर हल्के से उसकी नाक को अपनी नाक से छुआते हुए बोली,
"अब से मैं हर सुबह तुम्हारे साथ ही उठना चाहती हूँ।"
अरमान ने खुशी से सिर हिलाया और फिर उसके सीने से लग गया।
दोनों कुछ पल यूँ ही लेटे रहे — बिना कुछ कहे, बस एक-दूसरे की मौजूदगी को महसूस करते हुए।
वो सुबह बस एक नई शुरुआत थी — प्यार, भरोसे और अपनापन से भरी।
सुबह का नाश्ता बनाने की तैयारी चल रही थी।
घर के बाकी लोग अपने-अपने कमरों में थे, और अवनी किचन में खड़ी सबके लिए पराठे बना रही थी।
वो आटे को बेलने में व्यस्त थी, कि तभी पीछे से किसी ने उसकी कमर पकड़ ली।
अवनी हल्के से चौंकी, लेकिन जैसे ही पीछे मुड़कर देखा — अरमान खड़ा था, हल्की सी मुस्कान और भोली सी निगाहें लिए।
"अरमान, क्या कर रहे हो? कोई देख लेगा," अवनी ने फुसफुसा कर कहा।
अरमान ने मासूमियत से कहा, "किचन में कोई नहीं है ना, और मुझे तुमसे कुछ चाहिए।"
अवनी ने मुस्कुरा कर पूछा, "क्या चाहिए?"
अरमान ने उसका हाथ पकड़ा और धीरे से कहा, "एक किस... जैसे कल रात किया था।"
अवनी कुछ पल को उसकी आँखों में देखती रह गई — उसमें अब मासूमियत के साथ-साथ एक भोली चाह भी दिख रही थी।
"अभी नहीं... सब घर पर हैं," अवनी ने थोड़ी शर्माते हुए कहा।
लेकिन अरमान तो ज़िद पर उतर आया था।
"बस एक... छोटा सा।"
अवनी ने सिर झुकाया, लेकिन दिल से वो भी इंकार नहीं कर पा रही थी।
उसने जल्दी से गाल आगे किया, "लो, जल्दी करो।"
पर अरमान ने हल्के गुस्से में कहा, "गाल पर नहीं... होठों पर।"
अवनी के चेहरे का रंग गुलाबी हो गया, वो शर्म से थम गई।
"अरमान..." वो कुछ कह पाती उससे पहले ही अरमान ने झुककर उसके होठों पर एक हल्का सा चुम्बन ले लिया।
अवनी आँखें बंद किए बस वही खड़ी रही, साँसें जैसे थम सी गई थीं।
अरमान पीछे हटकर मुस्कुरा दिया, "अब बनाओ खाना, मुझे भूख लगी है।"
अवनी उसे देख कर रह नहीं पाई, और उसने हँसते हुए उसे एक चम्मच आटे का गोला उसके गाल पर लगा दिया।
"अब बोलो किस किस चाहिए?"
अरमान ने मुंह बना लिया, "बुरा किया... अब मैं नहीं बोलूंगा।"
फिर दोनों एक-दूसरे की ओर देखकर हँसने लगे — उस हँसी में प्यार था, शरारत थी, और एक ऐसा अपनापन जो अब और भी गहरा होता जा रहा था।
ऐसे ही थोड़ी देर में खाना तैयार हुआ और अवनी सभी को सर्वेंट के मदद से खाना सर्व करती है।
शाम का वक्त,
शाम के वक़्त घर के सभी लोग लिविंग रूम में बैठे थे।
बुआ टीवी पर सीरियल देख रही थीं, पापा अख़बार पढ़ रहे थे, और मम्मी कुछ सिलाई में लगी थीं।
अंशुमान मोबाइल पर कुछ स्क्रॉल कर रहा था, और तभी अरमान तेज़ी से सीढ़ियों से उतरता हुआ आया।
उसकी आँखें पूरे हॉल में किसी को ढूंढ रही थीं — “अवनी कहाँ है?” वो ज़ोर से बोला।
अवनी किचन से बाहर आई, हाथ में पानी का गिलास था।
“यहाँ हूँ, क्या हुआ?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
तभी अंशुमान कुछ कहता है जिस से अवनी का चेहरा लाल हो जाता है।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या कहा होगा अंशुमान ने?
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अरमान तेज़ कदमों से, लगभग दौड़ते हुए, अवनी के पास आया। उसकी आँखों में एक चमक थी, जैसे कोई बच्चा अपना पसंदीदा खिलौना दिखाने के लिए बेचैन हो।
“तुम्हें दिखाना है कुछ!” उसने हाँफते हुए कहा।
अवनी ने हैरानी से उसकी ओर देखा, “अभी? और… सबके सामने?”
“हाँ! सबके सामने… सबको दिखाना है कि तुम मेरी हो,” अरमान की आवाज़ में वो मासूमियत और सच्चाई थी, जो सीधे दिल को छू जाए। इस बार उसका अंदाज़ सिर्फ़ प्यारा नहीं था, बल्कि गहराई से इमोशनल भी था।
पूरा घर अब उनकी ओर देख रहा था। अंशुमान ने शरारती मुस्कान के साथ टीवी म्यूट कर दिया। पापा ने धीरे से अपना चश्मा उतारा और ध्यान से अरमान की तरफ़ देखने लगे।
अवनी के दिल की धड़कन थोड़ी तेज़ हो गई—सबकी निगाहें उस पर थीं—लेकिन न जाने क्यों, उसकी आँखों में डर से ज्यादा एक अजीब-सा यकीन था, जैसे जो होने वाला है, वो उसे सही लगता हो।
अरमान ने अपनी शर्ट की जेब में हाथ डाला और एक मुड़ा-तुड़ा सा छोटा कागज़ निकाला।
उसने उसे धीरे-धीरे खोला, और सबके सामने पढ़ने लायक पकड़कर कहा,
“इसमें मैंने लिखा है… ‘Avni is my best friend and my wife. I love her.’”
उसकी आवाज़ में गर्व भी था और प्यार भी।
फिर उसने सबको देखते हुए जोड़ा, “मैंने खुद लिखा है… और कोई spelling mistake नहीं है!”
एक पल को पूरा घर चुप हो गया—जैसे इस मासूम से इज़हार को समझने में सबको एक साँस का वक़्त लग गया हो।
फिर बुआ ने मुस्कुराते हुए ताली बजाई और बोलीं, “वाह! अब तो हमारा अरमान सच में बड़ा हो गया है।”
बाकी सबके होंठों पर भी हल्की मुस्कान आ गई, लेकिन अवनी के दिल में तो ये पल हमेशा के लिए बस चुका था।
मम्मी की आँखें हल्की-सी नम हो गईं। उन्होंने धीमे, लेकिन दुआ से भरे स्वर में कहा,
“भगवान करे, ऐसा ही बना रहे।”
अरमान ने बिना हिचकिचाए सबके सामने अवनी का हाथ थाम लिया। उसकी पकड़ में कोई दिखावा नहीं था—सिर्फ़ अपनापन और सच्चाई थी।
बड़ी मासूमियत से उसने कहा,
“मैंने ना… भगवान से दुआ की थी कि मुझे ऐसी friend मिले जो मुझे हर दिन hug करे, प्यार करे और मेरे साथ खेले। और देखो, वो दुआ सच हो गई।”
अवनी के दिल में जैसे किसी ने गर्म रोशनी भर दी हो।
उसकी आँखों के कोनों में नमी थी, लेकिन होंठों पर हल्की-सी मुस्कान भी।
ये भोला, बच्चा-सा इंसान अब उसके दिल का सबसे सुरक्षित, सबसे प्यारा कोना बन चुका था—जहाँ कोई डर नहीं, बस सुकून था।
वो चुपचाप उसका हाथ थामे रही, उसकी उंगलियों की गर्मी महसूस करते हुए, और बस उसकी आँखों में गहराई तक झाँकती रही।
घर वाले अब भी हँस रहे थे, कोई चुटकी ले रहा था, तो कोई मुस्कुरा रहा था, लेकिन उस भीड़ में उनकी नज़रों का मिलना जैसे एक अलग ही कहानी बुन रहा था—
जहाँ शब्दों की ज़रूरत नहीं थी, सिर्फ़ एहसास काफी था।
उसके बाद अवनी किचेन में चली जाती है डिनर बनाने के लिए। किचन में हल्की रौशनी जल रही थी। बाहर हलकी ठंडक और भीतर मसालों की खुशबू धीरे-धीरे हवा में घुल रही थी।
अवनी किचन में डिनर की तैयारी कर रही थी। गैस पर दाल चढ़ी थी, बगल में सब्जियाँ काटी जा रही थीं। तभी पीछे से आवाज आई — “मैं भी हेल्प करूँ?” — अरमान का वही मासूम और उत्साहित स्वर।
अवनी पलटी और उसे देखकर मुस्कुरा दी। “अच्छा? खाना बनाना आता है क्या?”
अरमान ने सिर झटके से हिलाया, “नहीं… पर सीख जाऊँगा। तुम्हारे साथ रहूँगा तो सब सीख जाऊँगा।”
अवनी का दिल एक बार फिर उसके इस भोलेपन पर पिघल गया।
“ठीक है... तो आटा गूंथना है। करोगे?” — अवनी ने चुटकी लेते हुए कहा।
अरमान ने बड़े कॉन्फिडेंस से हाथ बढ़ा दिया, “हाँ... बताओ कैसे करते हैं?”
अवनी ने थाली में आटा डाल दिया और पानी डालकर समझाने लगी, “ऐसे हाथ घुमाते हुए आटे में पानी मिलाना है… धीरे-धीरे...”
अरमान ने कोशिश शुरू कर दी। लेकिन आटे के साथ उसके हाथ चिपकने लगे। वो दोनों हाथ ऊपर उठा कर बोला, “अरे… ये तो भाग रहा है! ये क्यों नहीं मान रहा?”
अवनी हँस पड़ी, “ये भाग नहीं रहा… तुम गलत कर रहे हो। देखो...”
उसने पीछे से आकर अरमान के हाथों पर अपने हाथ रख दिए। दोनों के हाथ अब आटे में थे। अरमान को उसकी मुलायम उंगलियों का स्पर्श महसूस हुआ तो वो एक पल के लिए ठहर सा गया।
अवनी उसके इतना करीब थी कि उसकी जुल्फें अरमान के गालों को हल्के-हल्के छू रही थीं। दोनों के बीच एक मीठी सी खामोशी छा गई। सिर्फ आटे के गूंथने की आवाज और दोनों की हल्की तेज़ होती साँसों की आहट।
अरमान ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, “अगर रोज़ ऐसे ही साथ खाना बनाएंगे... तो मैं रोज़ बनाऊँगा।”
अवनी ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में वही मासूम चाहत, वही भोला सा प्यार।
उसने धीरे से कहा, “पागल... पहले सीख तो लो।”
अरमान ने चुपके से उसके गाल पर आटे से भरा उंगली का टच कर दिया।
“अब तो तुम्हारे चेहरे पर भी आटा लग गया। अब तो तुम भी बन गई किचन वाली।”
अवनी ने झट से हाथ में आटा लिया और उसके गाल पर लगा दिया।
“अब बराबर हो गए।” — वो खिलखिलाकर हँसी।
दोनों अब एक-दूसरे को देख कर हँसने लगे। उस हँसी में प्यार था, दोस्ती थी, और साथ जीने का एक मासूम वादा। डाइनिंग टेबल सज चुका था। किचन से गर्मागर्म खाने की खुशबू पूरे घर में फैल रही थी।
अवनी और अरमान ने मिलकर खाना तैयार किया था। हाँ, अरमान की मदद थोड़ी अजीब-सी थी — कभी ज्यादा आटा गिरा देना, कभी प्याज काटते वक्त आँसू बहाना — लेकिन उसकी मासूम कोशिशों ने अवनी के चेहरे पर मुस्कान लाने का काम बखूबी किया।
डाइनिंग टेबल पर पूरा परिवार बैठा था। पापा अखबार एक तरफ रखकर प्लेट में रोटियाँ निकाल रहे थे। बुआ सब्ज़ी की कटोरी थाली में रख रहीं थीं। मम्मी सलाद सजा रहीं थीं। और अंशुमान पानी की बोतलें टेबल पर रख रहा था।
अरमान ने बड़े गर्व से कहा, “देखो... ये रोटी मैंने बेली है!”
बुआ ने प्लेट में रोटी डालते हुए रोटी को देखा — ना गोल, ना चाँद जैसी... बल्कि न जाने कौन-सी शेप थी। फिर भी मुस्कुरा के बोलीं, “वाह! अब तो बहू की किस्मत चमक गई। इतना होशियार पति जो है।”
पापा ने मुस्कुरा कर कहा, “रोटी का शेप देख कर तो यही लगता है कि या तो भूख बहुत ज़्यादा थी, या रोटी ने बनाने वाले से लड़ाई कर ली।”
सब ठहाके मारकर हँस पड़े।
अंशुमान ने रोटी तोड़ते हुए बोला, “वैसे सच बताऊँ तो आज का खाना स्पेशल टेस्ट कर रहा है। लगता है इसमें कुछ एक्स्ट्रा मिला है।”
बुआ ने मुस्कुरा कर कहा,
“हाँ... एक्स्ट्रा प्यार। सही पकड़ा बेटा।”
सबकी हँसी, बातें और वो घर का गरमाहट भरा माहौल — जैसे हर किसी के दिल में एक प्यारी सी याद बन रहा था।
अरमान बार-बार अवनी की तरफ देखता। बीच-बीच में वो उसके लिए रोटी तोड़ कर देता या सब्ज़ी की कटोरी बढ़ा देता। और अवनी भी, बिना कुछ कहे, उसकी प्लेट में ध्यान से सब कुछ परोसती रहती।
पूरा डिनर हँसी-खुशी में बीता — जैसे खाना नहीं, प्यार परोसा जा रहा हो।
रात के करीब साढ़े दस बज चुके थे। पूरा घर शांत था, और सब अपने-अपने कमरों में थे। अवनी कमरे में आई, तो देखा अरमान पहले से ही बेड पर बैठा उसका इंतज़ार कर रहा था।
वो मुस्कराया और बोला, “अवनी... एक किस चाहिए।”
अवनी ने पलंग के पास जाकर चप्पल उतारी और उसकी ओर देखा।
“अरमान, अब रोज़-रोज़ तुम किस की ज़िद करने लगे हो,” उसने हल्के से कहा।
अरमान ने मासूमियत से होंठ सिकोड़ लिए, “तो क्या हुआ? तुम मेरी वाइफ हो ना...”
अवनी बैठ गई और बोली, “हां हूं, लेकिन हर दिन एक ही बात... कमरे में तो समझ आता है, लेकिन आज तो तुम किचन में भी ज़िद कर रहे थे।”
वो थोड़ा रुककर बोली, “अगर मम्मी ने देख लिया होता तो? तुम्हें समझना होगा कि हर जगह ये सही नहीं लगता।”
अरमान का चेहरा धीरे-धीरे उतरने लगा।
उसने अपनी नज़रें नीचे कर लीं और धीमे से कहा, “मत दो… किस नहीं चाहिए…”
अवनी को एहसास हुआ कि उसकी बात ने अरमान को चोट पहुँचाई है, लेकिन वो चाहती थी कि अरमान थोड़ा समझे।
“अरमान, मैं नाराज़ नहीं हूं, बस तुम्हें थोड़ा समझना होगा,” अवनी ने कोमलता से कहा।
लेकिन अरमान चुपचाप उठा और कमरे से बाहर चला गया।
अवनी ने पीछे से आवाज़ दी, “अरमान… सुनो तो…” पर वो नहीं रुका।
वो सीधे बालकनी में चला गया और रेलिंग के पास जाकर खड़ा हो गया। रात की ठंडी हवा उसके बालों को छू रही थी, पर उसका चेहरा भावहीन था। उसकी आँखें सामने अंधेरे में खोई हुई थीं, जैसे किसी उलझन में डूब गया हो।
अवनी धीरे-धीरे उसके पीछे आई और कुछ दूरी पर खड़ी हो गई। वो कुछ बोल नहीं रही थी, बस उसे देख रही थी।
अरमान ने एक पल को उसकी ओर देखा, फिर तुरंत नज़र फेर ली। उसकी आँखों में नमी थी, लेकिन वो मुस्कराने की कोशिश कर रहा था।
तभी अरमान कुछ ऐसा कहा जिसे सुन कर अवनी हैरान रह जाती है।
तो आप सब को क्या लगता है,
क्या कहा होगा अरमान ने जिस से अवनी हैरान हो जाती है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी....
Thank you Shahbaz and ritika for your lovely comments.
अवनी धीरे-धीरे उसके पीछे आई और कुछ दूरी पर खड़ी हो गई। वो कुछ बोल नहीं रही थी, बस उसे देख रही थी।
अरमान ने एक पल को उसकी ओर देखा, फिर तुरंत नज़र फेर ली। उसकी आँखों में नमी थी, लेकिन वो मुस्कराने की कोशिश कर रहा था।
“शायद मैं अच्छा हसबैंड नहीं हूं...” उसने फुसफुसाकर कहा।
अवनी का दिल उस पल जैसे कांप उठा।
अवनी की आँखें भर आई थीं।
उसने कभी नहीं सोचा था कि उसकी बातों से अरमान इतना आहत हो जाएगा।
धीरे-धीरे वो उसके और करीब आई और उसके बिल्कुल पीछे खड़ी हो गई।
फिर उसने धीरे से अपने हाथ अरमान की पीठ पर रखे।
“तुम बहुत अच्छे हसबैंड हो, अरमान,” उसने धीरे से कहा।
अरमान बिना उसकी ओर देखे बोला, “नहीं... अच्छे हसबैंड ऐसे नहीं होते... जो अपनी वाइफ को बार-बार परेशान करें... जो उसे शर्मिंदा करें।”
अवनी ने उसकी पीठ से हाथ हटाकर उसके कंधों को थामा और हल्के से झुककर उसके कान के पास बोली,
“तुमने मुझे कभी परेशान नहीं किया... बल्कि तुमने मुझे हर रोज़ मुस्कुराना सिखाया है।”
अरमान ने उसकी बात सुनी, पर अब भी उसकी नज़रें सामने अंधेरे में थीं।
अवनी अब उसके सामने आकर खड़ी हो गई।
उसने उसके दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और प्यार से उसकी आँखों में देखा।
“तुम्हारी मासूमियत मेरी ताकत है, अरमान... और तुम्हारी हर छोटी-छोटी ज़िद मुझे अपनी लगती है,” उसने कहा।
अरमान की आँखें नम थीं, लेकिन अब उनमें हल्की सी चमक आ रही थी।
अवनी ने उसकी हथेली को चूमा और बोली, “कभी-कभी डांट सिर्फ प्यार दिखाने का तरीका होता है... लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं तुम्हें कम चाहती हूं।”
अरमान ने धीरे से पूछा, “तो तुम मुझसे नाराज़ नहीं हो?”
अवनी ने तुरंत उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और कहा, “नाराज़गी सिर्फ दो पल की होती है, लेकिन तुम्हारे लिए मेरा प्यार हमेशा रहेगा।”
अरमान की आँखों से एक आंसू गिरा, और अवनी ने उसे तुरंत अपनी उंगली से पोंछ दिया।
फिर उसने आगे बढ़कर अरमान को अपनी बाहों में भर लिया।
अरमान ने भी कसकर उसे पकड़ लिया — जैसे वो डर रहा था कि कहीं वो फिर दूर न चली जाए।
अवनी ने उसके बालों में उंगलियाँ फिराई और फुसफुसाई,
“अगर तुम्हें किस चाहिए, तो मांगना बंद करो... बस नज़रों से कहना... मैं सब समझ जाऊंगी।”
अरमान ने मुस्कराकर उसकी ओर देखा और धीरे से पूछा, “तो अब भी किस मिलेगा?”
अवनी ने हँसते हुए उसकी नाक पर अपनी उंगली रख दी और कहा,
“घर के अंदर चलो... फिर सोचूँगी।”
अरमान ने तुरंत उसका हाथ पकड़ा और बोला, “तो चलो! जल्दी!”
दोनों मुस्कुराते हुए कमरे की ओर बढ़े — रात की ठंडी हवा अब और भी मीठी लगने लगी थी।
उनकी परछाइयाँ साथ-साथ चल रही थीं — बिल्कुल वैसे ही जैसे अब उनकी ज़िंदगी एक हो रही थी।
कमरे में हल्का सा अंधेरा था।
सिर्फ खिड़की से आती चाँदनी और एक कोने की नाइट लैम्प जल रही थी।
अरमान और अवनी कमरे में लौटे, तो दोनों के चेहरों पर एक सुकून था — जैसे कोई तूफ़ान अब शांत हो चुका हो।
अरमान ने चुपचाप जाकर बेड पर बैठते हुए कहा, “मैं अब कभी नाराज़ नहीं होऊँगा... बस तुम दूर मत होना।”
अवनी मुस्कुराई और उसके पास बैठ गई, “और तुम भी समझदारी दिखाओगे, तो मैं कभी दूर नहीं जाऊँगी।”
अरमान ने उसका हाथ पकड़ा और धीरे से अपनी हथेली पर रख लिया।
“क्या अब... मुझे बिना माँगे एक किस मिल सकती है?” उसने शरमाते हुए पूछा।
अवनी उसकी मासूमियत पर फिर से पिघल गई।
वो थोड़ा झुकी, और उसके गाल पर एक कोमल चुम्बन दे दिया।
“बस इतना?” अरमान ने मुंह बनाते हुए पूछा।
अवनी ने हँसते हुए उसकी शर्ट की कॉलर पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा और उसके होठों पर एक लंबा, गहरा चुम्बन दे दिया।
कुछ पल तक दोनों बिना कुछ बोले, सिर्फ एक-दूसरे को देख रहे थे।
उनकी साँसें मिली हुई थीं, और दिलों की धड़कनें एक लय में बज रही थीं।
अरमान ने धीरे से पूछा, “तुम क्यों इतना अच्छा महसूस कराती हो?”
अवनी ने उसके बालों में उँगलियाँ फेरते हुए कहा, “क्योंकि तुम इस दुनिया के सबसे मासूम इंसान हो, अरमान।”
फिर दोनों धीरे से लेट गए, आमने-सामने।
अरमान ने खुद को धीरे से अवनी की बाँहों में छुपा लिया, जैसे किसी सुरक्षित दुनिया में आ गया हो।
वो उसके सीने से लगकर बोला, “अब मैं हर रात बस तुम्हारे पास रहना चाहता हूँ।”
अवनी ने हल्के से उसके माथे को चूमा और कहा, “मैं भी।”
अरमान की साँसें अवनी की गर्दन से टकरा रही थीं।
उसकी गर्म साँसों से अवनी के पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई।
उसने खुद को थोड़ा और अरमान के करीब खींच लिया — अब उनके बीच कोई दूरी नहीं थी।
अरमान ने एक हाथ से अवनी की कमर को कसकर पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसके बालों को पीछे किया।
फिर उसने उसके गले पर धीरे से होंठ रखे — एक लंबा, गीला और सच्चा चुम्बन।
अवनी की पलके अपने आप ही झुक गईं और होंठ कांपने लगे।
वो लम्हा ऐसा था जहाँ शब्दों की कोई जगह नहीं थी — सिर्फ साँसे थीं, एहसास था और दो दिलों की धड़कन।
अरमान अब धीरे-धीरे अवनी की गर्दन से होते हुए उसके कॉलर बोन तक पहुँच गया और वहाँ रुककर उसकी त्वचा को अपनी उँगलियों से छूने लगा।
अवनी अब खुद को रोक नहीं पा रही थी — वो खुद को उसकी बाँहों में छोड़ चुकी थी।
उसने अरमान को नीचे किया और खुद उसके ऊपर आ गई।
उसके हाथ धीरे-धीरे अरमान की सीने पर घूम रहे थे — जैसे वो हर लकीर को अपनी उंगलियों से महसूस करना चाहती हो।
अरमान की साँसें गहरी हो चुकी थीं, उसकी आँखें बंद थीं, और उसकी उँगलियाँ चादर की मुट्ठियों में बदल रही थीं।
अवनी ने उसकी शर्ट के बटन एक-एक कर बेहद धीरेपन से खोले — जैसे हर बटन खोलते वक्त वो अरमान की झिझक को भी मिटा रही हो।
जब आखिरी बटन खुला, तो उसने हल्के से शर्ट के दोनों पल्ले अलग किए — अरमान की छाती अब उसके सामने खुल कर थी।
वो कुछ देर वहीं ठहरी रही — उसकी नज़रें अरमान के चेस्ट और नीचे तक जाते एब्स पर अटक गई थीं।
अरमान की बॉडी किसी जवान मर्द जैसी मज़बूत और शेप में थी — सीना चौड़ा, कॉलर बोन उभरी हुई, और पेट पर हल्के कट्स उभरते हुए।
उसकी त्वचा गर्म थी — और उस पर चाँद की हल्की रोशनी पड़ रही थी।
अवनी ने पहले उसकी छाती पर झुककर अपने होंठ टिकाए — एक लंबा, कोमल चुम्बन दिया।
फिर वो धीरे-धीरे नीचे खिसकी — उसकी उँगलियाँ अब अरमान के पेट के ऊपर थी, और होंठ उसके एब्स के करीब।
अरमान की साँस अब तेज़ी से चल रही थी — उसके पेट की मांसपेशियाँ उसके अंदर के कंपन को साफ ज़ाहिर कर रही थीं।
अवनी ने पहले अपनी उँगलियों से उसके एब्स की रेखाओं पर गोल-गोल घुमाते हुए स्पर्श किया।
फिर उसने बहुत धीरे, बहुत सावधानी से, अपने होंठ नीचे झुकाए और अरमान के नाभि के ठीक ऊपर एक धीमा, लंबा और गहरा किस किया।
उसके बाद वह थोड़ा और नीचे गई, और उसके दाईं ओर के एब्स पर दो हल्के चुम्बन दिए — जैसे वो हर हिस्से को महसूस कर लेना चाहती हो।
उसकी साँसें उसके पेट की त्वचा से टकरा रहीं थीं — जिससे अरमान की पूरी बॉडी में करंट की तरह एक सिहरन दौड़ रही थी।
वो अब बेहोशी की हालत में था — ना बोल पा रहा था, ना खुद को हिला पा रहा था।
अवनी उसकी तरफ ऊपर देखते हुए मुस्कराई — उस मासूम चेहरे पर अब चाहत की गहराई थी।
फिर उसने बीच के एब्स पर अपना चेहरा टिकाया, उसकी गर्म साँसें उस हिस्से को और भी संवेदनशील बना रही थीं।
अरमान की हल्की सी सिसकी निकली, और उसने एक हाथ से अवनी के बालों को हल्के से पकड़ा।
वो जैसे खुद को संभालने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन अब वो पूरी तरह अवनी के प्यार में बह रहा था।
उस पल दोनों के बीच शब्दों की कोई ज़रूरत नहीं थी — सिर्फ अहसास, साँसे और छुअन की भाषा बोल रही थी।
अवनी अभी भी अरमान के एब्स पर अपना चेहरा टिकाए हुई थी।
उसकी साँसें अब भी अरमान की त्वचा से टकरा रही थीं — और वो हल्की सी थकान के साथ उसे महसूस कर रही थी।
अरमान की आँखें बंद थीं, लेकिन उसका मन पूरी तरह जाग रहा था।
फिर अचानक अरमान ने अपना सिर उठाया और मासूम सी आवाज़ में कहा,
“अवनी... अब मेरी बारी है ना?”
अवनी थोड़ी चौंकी, “क्या मतलब?”
अरमान थोड़ा ऊपर उठा और उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में लिया।
“तुमने मुझे इतने अच्छे से प्यार किया... अब मैं भी तुम्हें प्यार करना चाहता हूं, किस करना चाहता हूँ...”
उसकी आँखों में अब बच्ची जैसी ज़िद नहीं, बल्कि एक चाह थी — एक प्यारी, मासूम सी इच्छा।
अवनी ने उसके चहरे पर उंगलियाँ फेरते हुए मुस्कुराकर कहा, “तो करो ना... किस कौन रोक रहा है?”
ये सुनते ही अरमान ने एक लंबी सांस ली, जैसे किसी बड़ी मंज़िल की ओर बढ़ने से पहले कोई तय करता है।
फिर वह धीरे-धीरे आगे झुका — उसके होंठ अब अवनी के होंठों के बेहद करीब थे।
अवनी की पलकें अपने आप झुक गईं — जैसे वो खुद को अरमान के हवाले कर रही हो।
अरमान ने पहले बेहद हल्के से, एक रुक-रुक कर किया गया पहला चुम्बन उसके निचले होंठ पर रखा।
फिर उसने दोनों हाथों से अवनी की कमर को खींचकर उसे पूरी तरह अपने पास कर लिया।
अब उसके होठों ने अवनी के होंठों को पूरे एहसास से, पूरे भरोसे से चूमा — जैसे वो कहना चाहता हो,
“अब मैं भी जानता हूँ... कैसे प्यार करते हैं।”
अवनी का बदन कांप गया — क्योंकि अरमान की इस बार की किस में डर नहीं, हिचक नहीं... बस चाहत थी।
धीरे-धीरे अरमान के होठ अब चलने लगे — पहले अपर लिप पर, फिर लोअर लिप पर... अवनी भी अब पूरी तरह उसमें डूब चुकी थी।
दोनों के शरीर की गर्मी अब एक-दूसरे को महसूस कर रही थी।
अरमान की उंगलियाँ अवनी की पीठ पर हल्के-हल्के घूम रही थीं और उसकी साँसे अब तीव्र हो रही थीं।
ये किस छोटी नहीं थी — ये उन तमाम रातों का जवाब थी जहाँ अरमान ने सिर्फ आँखों से चाहा था।
अब वो सब कुछ होठों से कह रहा था, बिना डरे, बिना हिचके।
अवनी अब खुद को रोक नहीं पा रही थी — उसने दोनों हाथ उसकी गर्दन में डाल दिए और उसे और पास खींच लिया।
अरमान की जिद अब पूरी हो चुकी थी — पर साथ ही साथ, उसने पहली बार अपने अंदर की मर्दानगी को महसूस किया।
उनकी साँसे तेज़ थीं, होंठ थमे नहीं थे — ये किस पाँच मिनट से ऊपर चल रही थी।
और दोनों, इस पल में — वक़्त को रोक देना चाहते थे।
तभी अरमान कुछ कहता है जिस से अवनी के दिल की धड़कन एक पल के लिए रुक सी गई।
तो आप सब को क्या लगता है
ऐसा क्या कहा अरमान ने?
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अवनी अब खुद को रोक नहीं पा रही थी — उसने दोनों हाथ उसकी गर्दन में डाल दिए और उसे और पास खींच लिया।
अरमान की जिद अब पूरी हो चुकी थी — पर साथ ही साथ, उसने पहली बार अपने अंदर की मर्दानगी को महसूस किया।
उनकी साँसे तेज़ थीं, होंठ थमे नहीं थे — ये किस पाँच मिनट से ऊपर चल रही थी।
और दोनों, इस पल में — वक़्त को रोक देना चाहते थे।
किस के बाद दोनों कुछ पल वैसे ही एक-दूसरे की बाहों में चुपचाप लेटे रहे।
साँसे अब भी तेज़ थीं, होंठ गर्म थे और दिलों की धड़कनें अजीब सी लय में चल रही थीं।
अरमान ने धीरे से अपनी उंगलियाँ अवनी की हथेली में फँसाईं और फिर हल्की सी मुस्कान के साथ बोला,
“अवनी…”
उसकी आवाज़ में एक अलग ही मिठास थी — वो न तो डर था, न हिचक… बस एक बच्चा सा प्यार।
अवनी ने धीमे से “हूँ?” कहा, और उसकी आँखों में झाँकने लगी।
अरमान ने मासूमियत से उसकी उंगलियाँ चूमते हुए कहा,
“जब तुम मुझे ऐसे प्यार करती हो ना… तो मन करता है तुम मुझे कभी छोड़कर कहीं मत जाओ…”
फिर एक सेकेंड रुककर, वो थोड़ा और पास आ गया और फुसफुसाया,
“मैं चाहता हूँ… हर रात तुम मुझे ऐसे ही प्यार करो… वरना मैं नहीं सो पाऊँगा।”
ये सुनते ही अवनी की साँस एक पल को थम गई।
उसकी आँखों की पुतलियाँ कुछ देर तक अरमान के चेहरे पर ही रुकी रहीं —
उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये वही अरमान था… जो कभी उसके सामने डर जाता था।
उसका दिल ज़ोर से धड़का — और एक बीट मिस भी हो गई।
अरमान के शब्दों में ना कोई चालाकी थी, ना कोई बनावट —
बस एक प्यारा-सा बच्चा था, जो अब सिर्फ अपनी पत्नी के प्यार का भूखा था।
अवनी ने उसकी ठोड़ी उठाकर उसकी आँखों में देखा और हल्की हँसी के साथ कहा,
“इतना प्यारा कौन ज़िद करता है, हाँ?”
अरमान ने शरमाते हुए आँखें झुका लीं, लेकिन फिर भी बोले बिना नहीं रह सका —
“मैं कर रहा हूँ… क्योंकि अब तुम सिर्फ मेरी हो।”
अवनी अब खुद को रोक नहीं सकी — उसने अरमान को ज़ोर से गले लगा लिया।
उसके सीने पर सिर रखते हुए बस इतना कहा,
“हाँ… सिर्फ तुम्हारी…”
अवनी अब भी अरमान की बाँहों में थी, जब उसने महसूस किया कि अरमान अचानक उससे थोड़ा दूर हो गया।
वो पल भर को ठिठक गई।
जो लड़का अभी कुछ पल पहले कह रहा था कि "तुम मुझे ऐसे ही प्यार करो,"
वो अब खुद ही एक अजीब से संकोच के साथ पीछे हट गया था।
अवनी ने अपनी भूरी आँखों से उसे चुपचाप देखा — उसकी नज़रों में सवाल थे,
“अभी तो मुझे छोड़ने की बात नहीं कर रहे थे... फिर अचानक क्या हुआ?”
अरमान ने कुछ नहीं कहा, बस धीरे से उसकी बाहें खोलीं और उसे बड़े प्यार से तकिए पर लिटा दिया।
फिर, बिना कुछ बोले, वो उसके ऊपर इस तरह से चढ़ आया जैसे कोई बच्चा अपनी माँ के ऊपर चढ़ जाता है —
न कोई संकोच, न कोई लिहाज़… बस मासूम जिद और अपनापन।
अवनी को उसकी ये हरकत अजीब भी लगी और प्यारी भी।
उसने हँसते हुए हल्की डांट में कहा, “अरे वाह! ये क्या कर रहे हो आप? उठिए, ऐसे नहीं करते।”
पर अरमान कहाँ मानने वाला था।
वो बोला, “नहीं! आज मैं तुम्हारे ऊपर ऐसे ही सोऊँगा।”
उसके चेहरे पर वही मासूम ज़िद थी, जैसे उसे लगे कि यही उसका सबसे आरामदायक तकिया है।
अवनी हैरान होकर उसकी हरकतों को देख रही थी।
उसने उसे थोड़ा धकेलने की कोशिश की, “अरमान… प्लीज़, ऐसा मत कीजिए। बहुत भारी लग रहे हैं।”
लेकिन अरमान, बिना उसकी बात पर ध्यान दिए, अपना सिर धीरे-धीरे अवनी के सीने की ओर ले जाने लगा।
उसका मासूम चेहरा अब हल्का गर्म होने लगा था — उसपर शरारत और संकोच का अजीब सा मेल था।
जैसे ही वो सिर रखता, उसकी नजर अचानक अवनी के आँचल पर पड़ी —
जो अब उनकी नज़दीकियों के कारण थोड़ा सरक चुका था, और उस आँचल से अवनी के उभरे हुए स्तन की हल्की झलक दिखाई दे रही थी।
अरमान की आँखे एक पल को अटक गईं।
वो दृश्य उसके लिए नया था — अनदेखा और कुछ समझ में न आने वाला,
पर साथ ही दिल को तेजी से धड़काने वाला।
उसकी साँस कुछ तेज़ हुई, और उसकी मासूम आँखों में कुछ अलग चमक आ गई —
जैसे उसे कुछ महसूस हो रहा हो, पर वो समझ नहीं पा रहा कि ये कैसा एहसास है।
अरमान की निगाहें अब अवनी के सीने पर अटक गई थीं।
वो पल भर को चुप हो गया… उसकी साँस हल्की तेज़ थी, पर आँखों में डर नहीं था —
बल्कि वो मासूम जिज्ञासा थी, जैसे किसी छोटे बच्चे को कोई नई चीज़ दिख जाए।
उसने धीरे से अपना सिर उठाया, और एकदम शांत स्वर में पूछा, “अवनी… ये क्या है?”
उसके सवाल में कोई शर्म नहीं थी, न कोई बेशर्मी —
बस वही भोलापन, जो एक अनजान दिल में तब आता है जब वो पहली बार कुछ अलग देखता है।
अवनी की साँस जैसे रुक सी गई।
उसका चेहरा एक पल में लाल पड़ गया,
हाथ तेजी से अपने आँचल को ऊपर खींचा और खुद को ठीक किया।
उसने अरमान की आँखों में देखा — वहाँ कोई बुरी नीयत नहीं थी,
बस एक छोटा-सा बच्चा अपनी बीवी से कुछ पूछ रहा था, जैसे पूछे — "ये खिलौना क्या करता है?"
अवनी को न चाहते हुए भी मुस्कान आ गई।
उसका दिल चाहा कि ज़ोर से हँसे… लेकिन आँखें हल्की भीग भी गईं।
उसने धीरे से कहा,
“ये… कुछ नहीं अरमान… ये... लड़कियों के शरीर का हिस्सा होता है… और सिर्फ उनके पति को छूने की इजाज़त होती है।”
अरमान ने मासूमियत से पूछा, “मतलब मैं?”
अवनी की पलकों ने झपकना बंद कर दिया था। उसकी धड़कन फिर से एक बीट मिस कर गई।
वो कुछ पल तक कुछ नहीं बोल पाई… फिर धीरे से कहा, “हाँ… सिर्फ तुम।”
अरमान की मुस्कान बड़ी सी हो गई — जैसे उसे कोई खजाना मिल गया हो।
उसने फिर से धीरे से खुद को अवनी के सीने पर रख दिया, और बोला, “तो मैं अब यहाँ ही सो जाऊँ?”
बिलकुल उसी टोन में, जैसे कोई बच्चा कहता हो — "अब यहीं घर बनाऊँ क्या?"
अवनी की आँखें झुक गईं, होंठों पर हल्की मुस्कान तैर गई। उसने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, “सो जाओ… लेकिन सिर्फ सोना है… समझे?”
अरमान ने एक हल्की “हूँ” की आवाज़ दी और आँखें मूँद लीं।
(अरमान और अवनी का सोने का पोजीशन मैंने wp channel में डाल दिया है। देखना जरूर सब।)
अगली सुबह,
सुबह की हल्की धूप खिड़की से कमरे में फैल चुकी थी।
सफेद परदों से छनती किरणें जैसे बिस्तर पर कोई सुनहरी चादर बिछा रही थीं।
अवनी की आँखें धीरे-धीरे खुलीं।
उसने खुद को बिस्तर पर फैला हुआ पाया — लेकिन कुछ अलग था।
उसके ऊपर अरमान की बाँह थी — कस कर लिपटी हुई।
वो एकदम उसके करीब था, इतना कि उसकी गर्म साँसें अब भी अवनी की गर्दन को सहला रही थीं।
उसकी टांगें उलझी हुई थीं अवनी की टांगों में, और उसका चेहरा… ठीक अवनी की जॉलाइन के पास।
अवनी हौले से मुस्कुराई।
उसे याद आया, कल रात वो उस पर चढ़कर सो गया था, बिल्कुल बच्चे की तरह।
लेकिन अब वो सिर्फ सो नहीं रहा था — उसकी उंगलियाँ… हल्के-हल्के अवनी की कमर को सहला रही थीं।
अवनी ने धीरे से पूछा, “अरमान… जाग गए क्या?”
अरमान ने मुँह उसके गले में छुपा लिया और फुसफुसाया, “नहीं… बस तुम्हें महसूस कर रहा हूँ।”
अवनी का दिल फिर से ज़ोर से धड़क उठा।
इस बार अरमान की आवाज़ में सिर्फ मासूमियत नहीं, एक हल्की सी मदहोशी भी थी।
वो कुछ कहती, उससे पहले अरमान ने अपना सिर उठाया और हल्के से उसके माथे को चूमा।
फिर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला, “कल रात जब तुमने मुझे गले लगाया ना… तो लगा जैसे मुझे सारी दुनिया मिल गई।”
अवनी कुछ बोल नहीं पाई।
अरमान अब उसका चेहरा धीरे-धीरे अपने दोनों हाथों में ले आया था।
“अवनी…” वो थोड़ा पास आया। “मैं तुम्हें अब हर रोज़ इसी तरह उठाना चाहता हूँ। तुम्हारे गले से लगकर… तुम्हें चूमकर…”
अवनी की आँखें भर आईं, उसने कहा, "आप तो अब बहुत रोमांटिक होते जा रहे हैं।”
अरमान ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा,न“ये सब तुम्हारी वजह से है। तुम जब मुझे प्यार करती हो ना… तो मैं सीखता हूँ।”
अवनी अब खुद को रोक नहीं सकी।
उसने झुककर अरमान के होंठों पर एक प्यारा-सा चुम्बन दिया और बोली, “अगर तुम ऐसे ही सीखते रहे… तो मैं हर रोज़ तुम्हें कुछ नया सिखाऊँगी।”
अरमान ने आँखें चमकाकर पूछा, “तो आज क्या सिखाओगी?”
अवनी ने मुस्कुराकर कहा, “पहले नहा लो… फिर बताऊँगी।”
अरमान बच्चों की तरह मुँह बनाते हुए बोला, “फिर मत कहना… मैं रोज़ ज़िद करता हूँ।”
ये सुन अवनी मुस्कुराते हुए हां में सर हिलाती है और अपने कपड़े ले कर बाथरूम चली जाती है।
अवनी के जाते ही अरमान तुरंत उठ कर बैठ गया। बाल थोड़े बिखरे थे और आँखों में नींद बाकी थी।
बिस्तर से कूदते ही वह नंगे पैर गार्डन की तरफ दौड़ा। रोज़ की तरह उसने सबसे ताज़ा गुलाब चुना — जो सबसे ज्यादा खिला था।
उसने उस फूल को मुस्कुराते हुए अपनी हथेलियों में रखा और फूंक मारी, “अब इसे अवनी के बालों में लगाऊँगा। वो बहुत खुश होगी।”
वो फूले नहीं समा रहा था। धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ते हुए कमरे की ओर बढ़ा।
लेकिन जैसे ही कमरे में पहुँचा — कमरे में एक अजीब सी खालीपन की खामोशी थी।
चारों तरफ नज़र दौड़ाई, पर अवनी कहीं नहीं थी।
उसका चेहरा एकदम लटक गया।
“सेट... वो तो चली गई,” उसने धीरे से कहा।
फूल को देखता रहा… जैसे वो खुद से सवाल कर रहा हो — “अब मैं इसे कैसे लगाऊँ…?”
उसके चेहरे पर उदासी थी — मासूम सी और सच्ची।
वो बिस्तर पर बैठ गया, फूल को अपनी उँगलियों से घुमाने लगा।
थोड़ी देर तक सोचता रहा… फिर खुद से बोला, “कोई बात नहीं… मैं बाद में लगाऊँगा… जब वो फिर आएगी।”
फिर तुरंत उठ खड़ा हुआ और बोला, “अब पहले मैं नहा लेता हूँ… फिर तैयार हो जाता हूँ… ताकि वो मुझे देख कर मुस्कुरा दे।”
उसका मूड फिर थोड़ा ठीक हो गया था।
वो सीटी बजाते हुए बाथरूम की ओर चल दिया — लेकिन हाथ में अब भी वो फूल था, जैसे वो उसे खुद से अलग नहीं करना चाहता।
नहाने के बाद अरमान बाथरूम से बाहर निकला। उसके बाल भीगे हुए थे, गाल गुलाबी हो रखे थे, और आँखों में वही चमक थी जो किसी बच्चे को चॉकलेट मिलने पर होती है।
उसने अलमारी से अपनी पसंदीदा शर्ट निकाली — जो उसने उसी दिन पहनी थी जब अवनी ने उसे “हँडसम” कहा था।
वो बार-बार आईने में खुद को देखता और खुद से कहता, “अवनी बोलेगी — आप बहुत अच्छे लग रहे हैं।”
फूल अब भी उसकी एक जेब में रखा था — वो उसे बार-बार देखता और मुस्कुराता।
कुछ देर बाद जैसे ही उसे पता चला कि अवनी किचन में है,
वो चुपचाप दबे पाँव कमरे से बाहर निकला।
अवनी रसोई में दूध उबाल रही थी।
वो अपने ही ख्यालों में थी कि तभी किसी के पैरों की आहट सुनाई दी।
वो पलटी — तो देखा, अरमान धीरे-धीरे आगे आ रहा था,
चेहरे पर शरारती मुस्कान और हाथ पीछे छुपा हुआ।
“अब क्या चाल है?” अवनी ने मुस्कुराकर पूछा।
“कुछ नहीं…” अरमान शर्माते हुए बोला, “बस एक सरप्राइज है।”
अवनी हाथ पोंछती हुई उसकी ओर बढ़ी — “सरप्राइज? किसलिए?”
अरमान अब उसके करीब आ गया था। उसने जेब से फूल निकाला और जैसे ही बालों में लगाने गया…
तभी कुछ ऐसा हुआ जिसे देख अवनी घबरा गई।
तो आप सब को क्या लगता है
ऐसा क्या हुआ जिस से अवनी घबरा गई?
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Good night friends.