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My Innocent husband

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arohi behera

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(dark romance but innocently) ये कहानी है अवनी और अरमान की । अवनी जो बहत सिंपल और सीधी साधी लड़की थी । उस की शादी अर्जुन खुराना से होने वाला था । पर लास्ट मूमेंट पर कुछ ऐसा हुआ कि अवनी की शादी अर्जुन के जगह उस के बड़े भाई अरमान से हो गया । अरमान जो द...

Total Chapters (44)

Page 1 of 3

  • 1. My Innocent husband - Chapter 1 अनचाही शादी

    Words: 1565

    Estimated Reading Time: 10 min

    गाँव के पुराने हवेलीनुमा घर में हल्की-हल्की हलचल नहीं, बल्कि एक मीठी-सी खुमारी छाई हुई थी। जैसे ही सूरज की पहली किरणों ने पीली पड़ चुकी हवेली की खपरैल छत को छुआ, वहाँ की दीवारें जैसे मुस्कुरा उठीं।

    गुलाबी और नारंगी रंग की झालरें हवाओं के संग लहराते हुए अपने ही गीत गा रही थीं। आँगन में बिछी सफेद चादर पर रंग-बिरंगे कुशन रखे गए थे, और बीचोंबीच सजे पीले फूलों के घेरे में बड़ी-सी पीतल की थाली रखी थी—जिसमें हल्दी, चंदन, चावल और दुल्हन के नाम की मेहंदी पहले ही से सजी थी।

    औरतों की हँसी पूरे आँगन में गूंज रही थी। बुज़ुर्ग महिलाएँ पारंपरिक गीतों की लय में ताली बजा रही थीं, तो जवान लड़कियाँ अपने फोन में रिकॉर्डिंग का बटन दबाकर पलों को कैद करने में लगी थीं।

    हवा में एक अलग सी मिठास थी—मिठास उन रिश्तों की जो हर शादी में फिर से खिल उठते हैं।

    रसोई में हर वक्त किसी ना किसी बर्तन से खनकती आवाज़ आती। कोई बेसन घोल रहा था, कोई गुलाब जामुन के गोले तल रहा था, तो कोई आलू-प्याज़ काटते-काटते हर दो मिनट में बाहर झाँक लेता, “अरे मेहंदी वाली आई के नहीं अब तक?”

    बाहर बरामदे में बैठे पिताजी के चेहरे पर चिंता और मुस्कान दोनों साथ-साथ थे—"कन्यादान का वक़्त नज़दीक आ रहा है", ये बात उनके दिल को भारी कर रही थी, लेकिन उनकी बेटी की नई ज़िंदगी की शुरुआत का उल्लास भी कम न था।

    और इस पूरे शोर-गुल, हलचल और प्यार भरे माहौल के बीच, हवेली की एक खिड़की के पीछे अवनी खड़ी थी—हल्दी लगी पीली साड़ी में, चेहरे पर हल्की लाली और आँखों में एक अनजाना डर, एक अनकही खुशी और न जाने कितने ख़्वाब।

    उसकी सहेलियाँ उसके इर्द-गिर्द मंडरा रही थीं, कभी बाल सजा रही थीं, कभी कानों में झुमके डाल रही थीं, और कभी चुपके से पूछ रही थीं—“अब तू कल से परायी हो जाएगी, कैसा लग रहा है?"

    हवेली में सिर्फ़ दीवारें ही नहीं सजी थीं… हर कोना किसी याद, किसी रस्म और किसी रिश्ते के रंग में रंगा हुआ था।

    ये दिन कोई आम दिन नहीं था। ये अवनी की शादी का हफ्ता था।

    एक बेटी के बचपन से दुल्हन बनने तक के सफ़र का आख़िरी पड़ाव… और एक नई कहानी की पहली सुबह।

    हर तरफ एक अजीब सी रौनक थी, जो घर को जीवंत बना रही थी। अवनी, जो बचपन से एक सपनीली शादी की कल्पना करती आई थी, आज खुद उसी पल की ओर बढ़ रही थी। हाथों में चूड़ियाँ खनकती थीं, पाँवों में पायल मुस्कुराती थी और आँखों में अर्जुन की तस्वीर तैरती थी।

    अर्जुन... वही जिसके साथ वह कॉलेज के दिनों से प्यार में थी, जिसके साथ वो हर शाम टेरिस पर बैठकर भविष्य के सपने बुनती थी। अर्जुन का अंदाज़ थोड़ा फिल्मी था, उसे कैमरे से लगाव था और एक्टिंग का जुनून।

    लेकिन अवनी को उससे बस इतना मतलब था कि वह अर्जुन से बेपनाह मोहब्बत करती थी। उसे लगता था कि अर्जुन के साथ ज़िंदगी हर दिन एक फिल्म की तरह खूबसूरत होगी।

    वह नहीं जानती थी कि इस फिल्म में एक ऐसा ट्विस्ट भी आने वाला है, जो उसके सारे दृश्य बदल देगा। शादी से तीन दिन पहले हल्दी की रस्म थी।

    अवनी को उसके मायके से उसके ससुरालवालों ने एक छोटी बारात के साथ हल्दी चढ़वाने बुलाया था। रस्में पारंपरिक थीं, लेकिन सबकी आँखों में एक अलग सी चमक थी।

    औरतें गा रही थीं, “नंदलाल की जोड़ी बनी है प्यारी, अवनी बनेगी अब दुल्हन हमारी…” अवनी की माँ की आँखें नम थीं, पर होठों पर मुस्कान थी। हर किसी के दिल में एक ही नाम था—अर्जुन। घर की खुशियाँ जैसे उसी से जुड़ी थीं।

    लेकिन अर्जुन कहीं और था—अपने ही ख्यालों में, अपनी ही दुनिया में। बाहर शहनाइयों की आवाज़ थी, ढोलक पर थाप पड़ रही थी, रिश्तेदार हँसी-मजाक में लगे थे, लेकिन अर्जुन की आँखें खाली थीं। एक ठहरी हुई झील सी… जिसकी सतह शांत थी, लेकिन अंदर लहरें बेकाबू थीं।

    अर्जुन की माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “बेटा, सब कुछ तैयार हो रहा है… और तू? ऐसा लग रहा जैसे तुझे फर्क ही नहीं पड़ रहा।”

    अर्जुन ने जैसे जबरन मुस्कुराया, “थक गया हूँ माँ… सब कुछ बहुत जल्दी हो रहा है।”
    माँ ने उसके बालों में उंगलियाँ फेर दीं, “जल्दी नहीं बेटा, सही वक्त पर हो रहा है।”

    लेकिन अर्जुन जानता था—ये वक्त 'सही' नहीं था। उसे मुंबई से फोन आया था, एक नामचीन थिएटर ग्रुप से, वो ऑडिशन जिसके लिए वो पिछले तीन साल से रातों में जागकर रिहर्सल करता रहा, वही आज मिला था… उसी दिन जब उसकी शादी थी।

    उसी वक्त जब वह किसी और के लिए 'पति' कहलाने वाला था, खुद के लिए 'कलाकार' बनने का सबसे बड़ा मौका खोने वाला था।

    रात को, चुपचाप अपने कमरे में बैठकर वो अपनी पुरानी डायरी निकाल लाया। हर पन्ना किसी किरदार की तलाश में लिखा गया था—राजा, फ़कीर, कवि, विद्रोही… और हर किरदार में कहीं न कहीं अर्जुन खुद था।

    उसने पन्ना पलटा, और एक कोने में लिखी इबारत पढ़ी—
    “सपनों को छूने के लिए, कभी-कभी अपनों से दूर जाना पड़ता है।”
    उसने उस लाइन पर कई बार ऊँगली फिराई, और मन ही मन बोला,
    “अगर मैं अब नहीं गया, तो शायद कभी नहीं जा पाऊँगा…”

    उधर, हवेली के दूसरे कोने में बैठी अवनी का चेहरा एक दुल्हन की तरह नहीं चमक रहा था। उसके माथे पर शिकन थी, दिल में हलचल।

    उसने अपनी सबसे करीबी सहेली से धीरे से कहा, “अर्जुन थोड़ा अलग सा क्यों लग रहा है आज? वो मेरे सामने होते हुए भी जैसे बहुत दूर है…”

    सहेली ने हँसकर कहा, “शायद तेरी यादों में खोया होगा… दूल्हा-दुल्हन दोनों ऐसे ही होते हैं।”

    लेकिन अवनी जानती थी… ये खोया होना कुछ और था।
    ये वो खोया हुआ नहीं था जो प्यार में होता है,
    ये वो खोया हुआ था जो कोई अपने सपनों के छूटने से पहले महसूस करता है।

    अगली सुबह अवनी की आँखें जल्दी खुल गई थीं, लेकिन चेहरे पर वह निखार नहीं था जो एक दुल्हन के चेहरे पर होना चाहिए।

    रात की बेचैनी उसकी आँखों के नीचे उतर आई थी। उसने कोशिश की थी कि अर्जुन से बात करे, सिर्फ एक बार… सिर्फ एक ‘तू ठीक है ना?’ सुन ले।

    लेकिन अर्जुन ने फोन उठाकर… कॉल काट दी थी।
    इतिहास में पहली बार।

    वो चुप हो गई थी, लेकिन अंदर एक दरार-सी पड़ गई थी। फिर भी… उसने किसी से कुछ नहीं कहा।
    "शायद वो व्यस्त होगा… शायद…" – इस ‘शायद’ से ही खुद को समझाती रही।

    उधर, हवेली की रौनक अपने चरम पर थी। आँगन में रंगीन चादरें बिछ चुकी थीं, सजे हुए कुर्सियों की कतारें थी, और बीच में छोटी-सी चौकी जहाँ अवनी को मेहंदी लगनी थी।
    ढोलक पर उंगलियाँ पड़ रही थीं…
    “मेहंदी है रचने वाली, हाथों में गहरी लाली…”

    औरतें हँसी-ठिठोली कर रही थीं—"देखो दुल्हन के गाल कैसे लाल हो रहे हैं!"
    लेकिन कोई नहीं जानता था कि वो रंग शर्म का नहीं था… उलझन का था।

    अवनी ने हथेलियाँ फैलाईं। मेहंदी वाली ने नफासत से डिज़ाइन बनाना शुरू किया।
    लेकिन उसकी निगाहें हर पत्ते, हर बेल पर सिर्फ एक चीज़ ढूंढ रही थीं —
    ‘अ’… अर्जुन का पहला अक्षर।

    उसके चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन होंठ कांप रहे थे।
    किसी ने कहा—"दुल्हन की हथेली में अगर मेहंदी गहरी चढ़े तो प्यार भी गहरा होता है।"
    अवनी ने हल्के से मुस्कराकर सिर हिलाया… और मन में एक सवाल फिर गूंज उठा— "शायद बिजी हो।"

    वो अपनी डायरी, अपने सपने और एक भारी मन लेकर निकल पड़ा था—उस जगह जहां उसे अपना सपना सच करना था। उसे लगा था कि एक दिन वह अवनी को समझा पाएगा, कि उसका जाना कितना जरूरी था। उसे लगा था कि उसका सपना

    उनके रिश्ते से बड़ा नहीं है, लेकिन फिलहाल उसे उस सपने को पकड़ना ज़रूरी लगा। अवनी के पिताजी ने जब अर्जुन को फोन किया, तो उसने एक छोटा सा मैसेज भेजा—“प्लीज़ मुझे माफ करना। मैं लौटकर सब ठीक कर दूँगा।”

    और बस, इतना कहकर अर्जुन गायब हो गया। जब ये बात घरवालों तक पहुँची, तो सन्नाटा छा गया। अवनी की माँ बेहोश हो गई, पिताजी को दिल का दौरा पड़ते-पड़ते बचा।

    सबसे ज्यादा टूटने वाली थी अवनी… जो उस वक़्त शादी का जोड़ा पहनकर तैयार बैठी थी। आँखों में काजल बह चुका था, पलकें सूख चुकी थीं, और चेहरे पर सवाल ही सवाल थे।

    “क्या मेरा प्यार इतना कमजोर था?” “क्या मेरा सपना किसी के करियर से छोटा था?” घर के बड़े अब इज्जत की बात करने लगे। रिश्तेदारों ने ताने देना शुरू कर दिया। और तभी किसी ने कहा, “अगर लड़की की शादी नहीं हुई, तो समाज क्या कहेगा?”

    किसी ने धीमे से सुझाव दिया, “अरमान को बैठा दो मंडप में।” अरमान—अर्जुन का बड़ा भाई। उम्र में थोड़ा बड़ा, लेकिन दिमाग से मासूम। वही जो हमेशा खिलौनों से खेलता था, जो हर वक्त मुस्कराता रहता था, जिसे दुनिया की समझ नहीं थी। अवनी के पिता ने पहले तो इंकार किया।

    लेकिन समाज, रिश्तेदार और हालात के सामने उन्हें झुकना पड़ा। और सबसे बड़ी बात—अवनी की चुप्पी। उसने ना हाँ की, ना ना की। बस चुपचाप अपना आँचल संभाल लिया… और फेरों के लिए मंडप की ओर चल दी।

    क्या अवनी अपनी टूटी उम्मीदों के साथ इस नए रिश्ते को स्वीकार कर पाएगी? क्या अरमान की मासूमियत अवनी के दिल को छू पाएगी?
    अर्जुन का जाना सिर्फ एक हादसा था, या कोई राज़ छुपा है पीछे?
    क्या अरमान उस ज़िम्मेदारी को समझ पाएगा, जो अब उसके कंधों पर आ गई है?
    क्या यह अनोखा रिश्ता दर्द से शुरू होकर मोहब्बत में बदल सकेगा?

  • 2. My Innocent husband - Chapter 2 अरमान का अवनी को अपने गोद में उठाना

    Words: 1598

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुबह की पहली किरणों के साथ हवेली की चौखट पर रंगोली बिछ चुकी थी। दरवाजे पर तोरण बांधे जा चुके थे, और अंदर आँगन में गृहप्रवेश की तैयारी जोरों पर थी।

    शादी की रात एक तूफान की तरह बीती थी, लेकिन घरवालों ने जैसे उस तूफान को भूलने की ठान ली थी। अब हर किसी की नज़र इस बात पर थी कि नई बहू को कैसे स्वागत के साथ अंदर लाया जाए।

    अरमान, जो अब तक किसी जिम्मेदारी से दूर रहा था, सिर पर सेहरा बांधे, हाथ में अवनी की डोल पकड़े खड़ा था। उसकी आँखों में जिज्ञासा थी, जैसे किसी बच्चे को नया खिलौना मिला हो।

    वहीं अवनी, घूंघट में छुपी हुई, चुपचाप हर रस्म को निभाने को तैयार थी। उसका मन खाली था, लेकिन चेहरा शांत। किसी को उसकी उदासी का अंदाज़ा तक नहीं था। दरवाजे पर माँ ने आरती की थाली उठाई।

    अरमान और अवनी को द्वार पर रोककर बोलीं, “पहले लक्ष्मी जी के पैर घर में पड़ें, फिर हमारा बेटा अपने जीवन की शुरुआत करे।”

    अवनी ने धीरे-धीरे पाँव आगे बढ़ाए, पीतल के कलश को छूकर उसे गिराया, जिससे चावल ज़मीन पर बिखर गए। हर बिखरे चावल के दाने में उसकी टूटी उम्मीदों की कहानी थी, लेकिन किसी को क्या दिखता? किसी ने तालियाँ बजाईं, किसी ने शगुन की आवाज़ की। घर में रौनक सी लौट आई थी।

    अरमान उसकी ओर देखकर मुस्कराया—एक भोली, मासूम मुस्कान, जिसमें कोई छल नहीं था, कोई सवाल नहीं था, बस अपनापन था। गृहप्रवेश के बाद घर के बड़े बुज़ुर्गों ने दोनों को एक साथ पूजा के लिए बिठाया। पंडित ने मंत्र पढ़े, और फिर वो रस्म आई जिसका सबको इंतज़ार था—अंगूठी ढूँढने की रस्म।

    एक बड़ी सी पीतल की थाली में दूध, गुलाब की पंखुड़ियाँ और हल्दी घोली गई। उसमें दोनों की शादी की अंगूठियाँ डाली गईं। सभी औरतें हँसी-मजाक करने लगीं, “जिसकी अंगूठी पहले निकलेगी, उसी की चलेगी!”

    अवनी ने चुपचाप हाथ थाली में डाला, जबकि अरमान ने पहले एक बार चारों ओर देखकर धीरे-धीरे उँगलियाँ डुबाईं। वह इस रस्म को लेकर थोड़ा घबरा गया था। पंखुड़ियों को हटाकर वो धीरे-धीरे तलाश करने लगा, पर हर बार उसकी उँगली अवनी की उँगलियों से टकरा जाती।

    वह झेंप जाता, मुस्कराता, और एक बार पीछे हटकर फिर कोशिश करता। अवनी को यह अजीब लग रहा था। उसकी ज़िंदगी की सबसे गंभीर घड़ी में यह खेल जैसे बेमानी लग रहा था, लेकिन अरमान की मासूम कोशिशें उसे कुछ पल के लिए सच्चाई से दूर ले गईं।

    वह हार मान चुकी थी, लेकिन अरमान की उँगलियों में जब उसकी अंगूठी फँसी और उसने ऊपर उठाकर सबको दिखाई, तो पूरा घर तालियों से गूँज उठा।

    "दामाद जी की चलेगी!" किसी चाची ने चुटकी ली, तो किसी ने कहा, “लगता है बहुत होशियार हैं।”

    अरमान ने अवनी की ओर देखा, उसकी आँखों में उम्मीद थी, जैसे उसने कोई बड़ी जंग जीत ली हो।

    अवनी ने पहली बार उसकी आँखों में झाँका—वहाँ मासूम जिज्ञासा के सिवा कुछ नहीं था। रस्मों के बाद रात का समय आया।

    कमरे को सजाया गया था—फूलों से, सुगंधित दीपों से, और तकियों से भरे उस पलंग से जिस पर दो अजनबी एक नई शुरुआत करने वाले थे।

    बाहर औरतें मजाक में कह रही थीं, “अब तो दूल्हे राजा को अपनी रानी को गोद में उठाकर अंदर ले जाना पड़ेगा।” अरमान पहले सकपका गया।

    वो खुद को इस काबिल नहीं समझ रहा था। पर जब माँ ने प्यार से सिर सहलाया और कहा, “जा बेटा, यही रीति है,” तो वह धीमे क़दमों से अवनी की ओर बढ़ा।

    अवनी साड़ी के पल्लू को सँभालते हुए चुपचाप खड़ी थी। उसने एक पल को पीछे देखा, जैसे कोई रास्ता ढूँढ रही हो—लेकिन सब दरवाज़े बंद थे।

    अरमान ने झिझकते हुए उसके पास आकर धीरे से कहा, “मैं गिरा तो मत हँसना।” उसकी इस मासूम बात पर अवनी का चेहरा पहली बार थोड़ा सा मुस्कराया।

    अरमान ने उसे गोद में उठाया—धीरे से, संभलकर, जैसे कोई नाज़ुक चीज़ थाम रहा हो। उसके चेहरे पर ग़ौर से देखने पर डर भी था, और विश्वास भी।

    घर की औरतों ने शोर मचाया, “वाह! हमारा दूल्हा तो शेर निकला!” और अरमान, अवनी को लिए अपने कमरे की ओर बढ़ चला।

    कमरे के दरवाजे तक पहुँचते-पहुँचते अवनी का सिर उसके कंधे पर टिक चुका था—थकावट से या थोड़ी सी राहत से, खुद वो भी नहीं जानती थी। अंदर पहुंचते ही अरमान ने धीरे से उसे पलंग पर बिठाया, और खुद एक कोने में बैठ गया।

    कुछ नहीं बोला, बस मुस्कराता रहा। कमरे की दीवारों पर गुलाब की छाया थी, और बीच में दो अनजाने लोग थे—जिनमें से एक ने सब कुछ खोकर रिश्ता निभाना चुना था, और दूसरा जिसने कुछ समझे बिना रिश्ता पाया था। दोनों खामोश थे, लेकिन एक नयी शुरुआत की हल्की आहट कहीं आस-पास थी।

    अगली सुबह,

    सुबह की पहली किरण जब खिड़की की हल्की सी दरार से कमरे में घुसी, तो कमरे का सन्नाटा एक धीमी सी रोशनी से भर गया। फूलों की मुरझाई हुई पंखुड़ियाँ ज़मीन पर बिखरी पड़ी थीं और तकिए इधर-उधर खिसके हुए थे, जैसे रात ने धीरे से एक नई कहानी लिखी हो।

    अवनी की नींद टूटी तो उसने पाया कि अरमान अब भी सो रहा था—बिलकुल उसी तरह जैसे कोई बच्चा थक कर माँ की गोद में सो जाता है।

    उसका चेहरा शांत था, आँखों के नीचे हल्की सी मुस्कान रुकी हुई थी। अवनी कुछ देर यूँ ही उसे देखती रही, जैसे पहली बार वो समझने की कोशिश कर रही हो कि इस अजनबी के साथ उसे पूरी ज़िंदगी बितानी है।

    वो चुपचाप उठी और अपनी चुनरी को ठीक करते हुए कमरे से बाहर निकली। दहलीज़ पर कदम रखते ही, घर की बहुओं ने उसे देखकर स्वागत किया, “नई बहू की पहली सुबह मुबारक हो!”

    किसी ने माथे पर टीका लगाया, तो किसी ने हाथों में पूजा की थाली थमाई। अवनी ने चुपचाप सब निभाया, जैसे किसी नाटक की भूमिका हो जिसे निभाना ही है।

    उसकी मुस्कान में शिष्टता थी, मगर आँखों में एक गहरा सूनापन। उसने रसोई की ओर देखा, जहाँ पहले से सब कुछ तैयार था, पर एक नज़र में वो जान गई कि अब उसे भी इस घर की ज़िम्मेदारियों में शामिल होना होगा। जब तक अवनी पूजा और बाकी रस्में निभा रही थी, अरमान की नींद टूटी।

    उसने बिस्तर के चारों ओर देखा, और सबसे पहले आवाज़ लगाई, “अवनी... तुम?” उसकी मासूम आवाज़ में थोड़ी घबराहट थी, जैसे स्कूल में पहली बार उठकर जवाब देना पड़ गया हो।

    फिर वो जल्दी से उठकर दरवाज़े तक पहुँचा और बाहर झाँका। उसे अवनी की साड़ी की झलक दिखी, तो चैन की साँस ली। फिर वो मुस्कराया, और धीरे-धीरे चलते हुए रसोई तक पहुँच गया, जहाँ औरतें उसे देखकर हँस पड़ीं।

    “दूल्हे राजा तो खुद चले आए हैं चाय मांगने!” किसी ने मज़ाक किया। अरमान झेंप गया, लेकिन फिर भी बोला, “मैं तो अवनी को देखने आया हूँ।” सब हँसने लगे, और अवनी ने पहली बार खुलकर मुस्कराया।

    उस मुस्कान में एक कोना ऐसा भी था जहाँ दर्द था, पर शायद अरमान की मासूमियत ने उस दर्द पर हल्का सा मरहम लगाया था। वह चाय की ट्रे लेकर आँगन की ओर बढ़ी, और अरमान उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।

    दोनों की यह खामोश चाल, कुछ कहे बिना भी बहुत कुछ कह रही थी। आँगन में बैठकर जब उन्होंने साथ में पहली बार चाय पी, तो हवाओं में कुछ नया था—कोई बहुत धीमी शुरुआत, मगर सच्ची। दिन भर घर में मेहमानों की आवाजाही लगी रही।

    कुछ लोग अवनी को देखकर फुसफुसाते, “बेचारी... अर्जुन की जगह किस्मत ने ये दिया।” तो कुछ कहते, “अरमान को देखो, कितना भोलाभाला है, बस प्यार की ज़रूरत है।”

    हर बात अवनी के कानों तक पहुँचती रही, लेकिन उसने सब कुछ अनसुना करने की आदत डालनी शुरू कर दी थी। शाम को जब सब थक चुके थे और घर फिर से शांत हो गया था, तब अवनी ने कमरे में आकर खुद को आईने में देखा।

    उसके माथे का सिंदूर उसे अब भी अजनबी लग रहा था, और गले का मंगलसूत्र जैसे किसी और की पहचान हो।

    उसी वक्त अरमान पीछे से आया, और बोला, “तुम थक गई हो न? चाहो तो मैं बाहर सो जाता हूँ।” उसकी आवाज़ में कोई बनावट नहीं थी—बस एक सीधा सा प्रस्ताव, जैसे उसने सचमुच महसूस किया हो कि अवनी को आराम चाहिए।

    अवनी ने एक पल उसे देखा, फिर सिर झुका लिया। वो नहीं जानती थी कि इस मासूम से कैसे बात करे, क्या कहे, क्या समझाए।

    अरमान पलंग के कोने में बैठ गया, और बोला, “मुझे नहीं पता शादी का क्या करना होता है... लेकिन मैं तुम्हें तकलीफ़ नहीं देना चाहता।”

    ये शब्द सुनकर अवनी की आँखों में एक पल को नमी सी तैर गई। उसने बिना कुछ कहे अपना पल्लू ठीक किया और पास ही एक कुर्सी पर बैठ गई।

    कमरे में एक लंबी चुप्पी छा गई, जिसमें केवल दीवार घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी। लेकिन उस चुप्पी में भी अरमान की मासूम भावनाएँ और अवनी की उलझी सोच जैसे एक-दूसरे से बातें कर रही थीं।

    रात फिर से उसी पलंग पर आई, जहाँ दो लोग थे—एक जो बस निभा रहा था, और एक जो समझने की कोशिश में उलझा हुआ था। बाहर चाँद धीरे-धीरे बादलों में छिप रहा था, जैसे उनकी भावनाओं की उलझनों में खो गया हो।

    क्या अवनी अरमान की मासूमियत में अपने टूटे हुए दिल का सुकून ढूंढ पाएगी?
    क्या अरमान सच में सिर्फ मासूम है, या उसकी मासूमियत के पीछे कुछ और भी छुपा है?
    क्या यह रिश्ता वक़्त के साथ मजबूत होगा, या बस समझौते में ही सिमट जाएगा?
    क्या अवनी कभी अर्जुन को भूल पाएगी, या उसकी परछाई उनके रिश्ते पर हमेशा बनी रहेगी?
    क्या अरमान अपने बचपने से बाहर आकर एक सच्चे पति की भूमिका निभा पाएगा?

    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी "My Innocent Husband"

  • 3. My Innocent husband - Chapter 3 पहली रसोई

    Words: 1511

    Estimated Reading Time: 10 min

    उसने बिना कुछ कहे अपने साड़ी के पल्लू को ठीक किया, जैसे अपनी बिखरी हुई भावनाओं को समेट रही हो। सिर झुकाए वो धीरे-धीरे चलकर कमरे के कोने में रखी कुर्सी पर बैठ गई। उसका चेहरा साफ नहीं दिख रहा था, पर उसकी उंगलियाँ पल्लू के किनारे को मरोड़ रही थीं — एक अनजानी घबराहट और असमंजस की निशानी।

    कमरे में एक अजीब सी खामोशी पसरी हुई थी। कोई कुछ नहीं कह रहा था। बस दीवार पर लगी घड़ी की टिक-टिक हर पल यह एहसास दिला रही थी कि वक़्त चल रहा है, पर दोनों की ज़िंदगी वहीं अटक गई है — एक अनकहे मोड़ पर।

    अरमान पलंग के एक कोने में बैठा था, पीठ दीवार से टिकाई हुई। उसकी आंखें छत पर टिकी थीं, जैसे किसी अदृश्य उत्तर को खोज रही हों। वह कुछ कहना चाहता था, बहुत कुछ... लेकिन शब्दों की ज़ुबान जैसे उसके गले में कहीं अटक गई थी।

    वहीं, कुर्सी पर बैठी अवनी के मन में जैसे सैकड़ों सवाल एक साथ उठ रहे थे। "क्या मैं सिर्फ एक ज़िम्मेदारी हूं? या कभी कोई एहसास भी था उसके भीतर? क्या ये रिश्ता सिर्फ एक समझौता है या कहीं कुछ और भी छुपा है?" उसकी उलझी सोच उस कमरे की दीवारों से टकरा रही थी, जवाबों की तलाश में।

    दोनों के बीच कुछ फीट की दूरी थी, मगर दिलों के बीच कई मील का फासला था।

    रात गहराती गई। हवाओं में नमी सी घुल गई। बाहर कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आई, फिर सब शांत हो गया।

    अरमान ने धीरे से करवट ली। उसने देखा, अवनी अब भी वैसे ही बैठी है। उसने कुछ कहना चाहा, पर फिर वही खामोशी...

    कुछ देर बाद, जैसे थक हार कर, अवनी चुपचाप उठी और पलंग के दूसरे किनारे पर लेट गई। उनके बीच एक तकिया नहीं था, पर दीवार से भी बड़ी एक दीवार खड़ी थी—अल्फाज़ों की कमी, भावनाओं की उलझन और अतीत की परछाइयों की।

    रात फिर से उसी पलंग पर आई थी, जहाँ दो लोग थे—
    एक जो बस निभा रहा था, अपनी समझ और परिस्थिति के हिसाब से,
    और एक जो समझने की कोशिश में उलझा हुआ था—दिल से, उम्मीदों से, और खुद से भी।

    बत्ती बुझ गई, मगर दोनों के भीतर जो सवाल थे, वो अब भी जागते रहे।

    सुबह की धूप खिड़की के झीने पर्दों से छनकर कमरे में फैल रही थी। हल्की-हल्की रौशनी जैसे धीरे से कमरे को जगा रही थी। दीवार पर लटकी घड़ी की सुइयाँ भी जैसे एक नई शुरुआत का संकेत दे रही थीं।

    अवनी धीरे-धीरे जागी। पलकें भारी थीं, लेकिन दिल में एक अजीब सी हलचल थी—नया घर, नई ज़िम्मेदारियाँ और एक अजनबी रिश्ता जो अब उसका अपना था। उसने आंखें मलते हुए चारों ओर देखा। कमरे की हर चीज़ नई थी, लेकिन सबसे नया था एहसास, जो हर दीवार में बस चुका था।

    उसकी नजर अरमान पर पड़ी, जो सिरहाने बैठे हुए नींद में हल्की सी मुस्कान के साथ सो रहा था। उसका चेहरा शांत था, जैसे किसी सपने में खोया हो। वो मासूम मुस्कान जैसे अवनी के दिल को छू गई। कुछ पल को उसकी सारी उलझनें थम गईं।
    “क्या ऐसा ही होता है… जब इंसान दिल से थका हो, तब मुस्कान सपनों में मिलती है?” — अवनी ने मन ही मन सोचा।

    वो चुपचाप उठी, पैरों में बिछे दुपट्टे को ठीक किया। धीरे से अलमारी में रखी अपनी चूड़ियाँ निकालीं। काँच की चूड़ियों की खनक ने जैसे कमरे की खामोशी को तोड़ दिया। फिर उसने आईने के सामने खड़े होकर अपनी मांग में सिंदूर भरा—धीरे-धीरे, सावधानी से, जैसे यह सिंदूर सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि खुद से एक वादा हो।

    फिर वो पलंग से नीचे उतरी और दरवाज़े की ओर बढ़ी।

    आज अवनी की पहली रसोई की रस्म थी, जहाँ उसे पूरे परिवार के लिए खाना बनाना था । किचन में पहले से हलचल थी, बुआ जी कुछ निर्देश दे रही थीं और मामी जी बेसब्री से नाश्ते का इंतज़ार कर रही थीं ।

    अवनी ने धीरे से कहा, "मैं कुछ बना लूं?" बुआ जी मुस्कराईं और कहा, "आज पहली रसोई है बहू, मीठा जरूर बनाना । "

    अवनी ने सिर हिलाया और किचन के स्लैब पर रखे बर्तनों को एक-एक कर सहेजने लगी। अंदर एक अजीब सी ऊर्जा थी—डर भी, उत्साह भी और एक अनकहा आत्मबल भी।

    उसके हाथों में खनकती चूड़ियों की आवाज़, सिंदूर की हल्की सी लाली और आँखों में एक नई उम्मीद थी।
    शायद… वो इस रिश्ते को निभाने के लिए तैयार हो रही थी।

    वह सोच रही थी कि क्या यह सब उसका है? क्या यह उसका घर है? या सिर्फ एक नई जिम्मेदारी का बोझ? क्या वो अरमान को पति के रूप में स्वीकार कर पाएगी? जब उसने हलवा बनाकर थाली में सजाया, तो पूरा परिवार डाइनिंग टेबल पर इकट्ठा हो गया ।

    सबने पहली बार अवनी के बनाए खाने की तारीफ की । अरमान ने तो दो बार लिया और बच्चों की तरह बोल पड़ा, "इतना टेस्टी, तुम रोज बना सकती हो?" सब हँस पड़े, और अवनी की आँखों में पहली बार आत्मविश्वास की हल्की सी चमक आई ।

    लेकिन उस चमक के पीछे अब भी एक छाया थी—अर्जुन की । हर बार जब कोई मुस्कुराता, उसे याद आता कि वो यह सब अर्जुन के साथ करने का सपना देखती थी ।

    दिन बीतते गए, और हर दिन अवनी और अरमान के बीच एक नई बातचीत होती । अरमान उसके सामने स्कूल की कहानियाँ सुनाता, कभी अपने पुराने खिलौनों के बारे में बताता, और कभी उससे पूछता, "क्या तुम मेरे साथ पतंग उड़ाओगी?" अवनी कभी मुस्कुरा देती, कभी बस चुप रहती ।

    उसके मन में एक युद्ध चल रहा था—क्या वो अरमान को पति मान सकेगी, या वो हमेशा एक बच्चे की तरह ही रहेगा उसकी नज़रों में? अरमान ने एक दिन उसे एक ड्रॉइंग दिखाई जिसमें वह दोनों हाथ में हाथ डाले खड़े थे, पीछे दिल बना हुआ था । "ये हम हैं," उसने बड़ी मासूमियत से कहा ।

    अवनी ने जब उस ड्रॉइंग को देखा तो उसके मन में हलचल सी होने लगी । वो सोचने लगी—क्या सच में अरमान उसे खुश रख पाएगा? क्या इस मासूमियत में छुपा है वो प्यार जिसकी उसे तलाश है?

    परिवार अब धीरे-धीरे अवनी को स्वीकार कर रहा था । दादी ने एक दिन अपने गहनों का डिब्बा लाकर उसके सामने रखा और कहा, "ये अब तेरे हैं । " अवनी ने थोड़ी देर देखा, फिर हाथ जोड़ लिए, "दादी, अभी नहीं । "

    दादी मुस्कराते हुए सोचती है, "समझदारी दिखा रही है, अच्छा है । " उसी शाम मम्मी जी ने उसे चाय के साथ बुलाया और बहुत प्यार से बोलीं, "हम जानते हैं कि ये रिश्ता तुम्हारे लिए आसान नहीं है, लेकिन हम तुम्हारे साथ हैं । " ये शब्द अवनी के दिल तक पहुंचे ।

    उसे पहली बार लगा कि शायद ये रिश्ता इतना बोझ नहीं है जितना उसने सोचा था । लेकिन फिर, हर रात जब वो बिस्तर पर जाती, और अरमान उसके पास लेटता, तो वो असहज हो जाती ।

    अरमान कभी कुछ गलत नहीं करता, लेकिन उसकी मासूम मौजूदगी भी अवनी के अंदर की टूटन को हिला देती ।

    एक रात अरमान ने पूछा, "क्या मैं तुम्हारा दोस्त बन सकता हूँ?" अवनी ने थोड़ी देर चुप रहकर कहा, "शायद... वक़्त के साथ । "

    अवनी अब धीरे-धीरे घर के कामों में रमने लगी थी, लेकिन जब भी कोई अर्जुन का नाम लेता, उसके भीतर कुछ टूट जाता । उसे याद आता अर्जुन का हाथ थामना, उसके साथ बिताए सपने, उसकी बातें ।

    लेकिन फिर जब वो अरमान को देखती, तो उसे लगता, "क्या मैं सही थी?" एक दिन उसने अपनी सहेली को चुपचाप फोन लगाया और कहा, "पता नहीं, ये रिश्ता सही है या नहीं... लेकिन अरमान की आँखों में कुछ है, जो बहुत सच्चा है । "

    उसी दिन शाम को अरमान उसे बगिया में ले गया और बोला, "मैंने गुलाब लगाया है तुम्हारे लिए । तुम रोज देखना । "

    अवनी ने हैरानी से उसकी ओर देखा । एक पल को उसे अर्जुन की जगह अरमान दिखा—एक ऐसा इंसान जो कोशिश कर रहा है, अपने तरीकों से । शायद यही तो प्यार की शुरुआत होती है—जहाँ कोई तुम्हारे लिए बगैर मांगे कुछ कर रहा हो ।

    रात को जब सब सो चुके थे, अवनी कमरे की बालकनी में खड़ी थी । ठंडी हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, और मन में कई सवाल उठ रहे थे ।

    तभी पीछे से अरमान आया, एक कंबल लेकर, और बिना कुछ कहे उसके कंधों पर डाल दिया । उसने कुछ नहीं कहा, बस पास खड़ा रहा । उस चुप्पी में एक सहारा था, एक अपनापन, जो शायद अब तक महसूस नहीं हुआ था ।

    क्या अवनी सच में अरमान के लिए अपने दिल के दरवाज़े खोल पाएगी? क्या अरमान एक दिन उस ज़िम्मेदारी को समझेगा, जिसे एक पति निभाता है? क्या अर्जुन का अतीत हमेशा उनके रिश्ते के बीच रहेगा? क्या अवनी और अरमान के बीच सिर्फ दोस्ती होगी, या वक़्त के साथ मोहब्बत भी पनपेगी? अगर कभी अर्जुन लौट आया, तो क्या होगा? क्या अवनी अरमान छोड़ कर अर्जुन को अपना लेगी या तब तक वो अरमान के साथ आगे बढ़ गई होगी ? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी "my Innocent husband" …

  • 4. My Innocent husband - Chapter 4 नया रिश्ता, नई शुरुआत

    Words: 1625

    Estimated Reading Time: 10 min

    शाम की हल्की धूप अब सुनहरी हो चली थी। हवाओं में मिट्टी की सोंधी महक घुली थी, जैसे कोई प्यारा सा वादा धरती से निकलकर आसमान की ओर उड़ रहा हो।

    अरमान ने चुपचाप अवनी का हाथ थामा और बगिया की ओर ले गया। उसका हाथ पकड़ने में कोई जबरदस्ती नहीं थी, बस एक नरम सी खामोशी थी, जैसे किसी ने हल्के से पुकारा हो — "चलो, कुछ दिखाना है।"

    बगिया के एक कोने में जाकर वो रुका। वहाँ ताज़ा मिट्टी में एक छोटा सा गुलाब का पौधा लगा था, जिसके पास एक छोटी सी लकड़ी की पट्टी पर सफेद रंग से लिखा था—"Avni's Rose."

    अरमान ने मुस्कुराते हुए कहा,
    "मैंने गुलाब लगाया है तुम्हारे लिए... तुम रोज देखना।"

    अवनी की आँखें पल भर को रुकीं। उसने उसकी ओर देखा, जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रही हो।
    उसे वो दिन याद आ गया जब अर्जुन उसके लिए फूल लाया करता था, बेवजह।
    पर आज... अरमान खड़ा था उसके सामने—कम बोलने वाला, उलझा हुआ, मगर शायद… धीरे-धीरे जुड़ता हुआ।

    एक अनकहा एहसास मन में सिर उठाने लगा था।
    शायद यही तो प्यार होता है... जहाँ कोई तुम्हारे लिए वो करता है जो तुमने कभी माँगा ही नहीं।

    रात गहराने लगी थी। हवाओं में हल्की ठंडक थी। घर के सारे कमरे अंधेरे में डूबे हुए थे, बस चांदनी बालकनी में फैली थी।

    अवनी बालकनी की रेलिंग पकड़कर खड़ी थी। उसकी साड़ी का पल्लू हवा में हल्का-सा लहर रहा था, जैसे उसका मन — कुछ थमा हुआ, कुछ बहता हुआ।

    उसके भीतर सवालों की भीड़ थी — "क्या मैं उसे समझ पाऊँगी? क्या ये रिश्ता सिर्फ समझौता नहीं रहेगा?"
    पर आज के गुलाब ने कुछ तो बदला था उसके भीतर।

    तभी पीछे से हल्के कदमों की आहट आई। उसने पलटकर नहीं देखा।

    अरमान आया, उसके हाथ में एक ऊनी कंबल था।
    उसने बिना कुछ बोले वह कंबल अवनी के कंधों पर रख दिया—धीरे, सहेजकर… जैसे कोई उसकी थकान ओढ़ा रहा हो।

    अवनी ने कुछ नहीं कहा, पर उसकी पलकें हल्के से झुकीं। दिल की दीवारों पर पहली बार कोई दस्तक सी महसूस हुई।

    अरमान उसके पास खड़ा रहा—बिलकुल चुप।
    ना कोई सवाल, ना कोई जबाब।
    बस एक साथ खड़ा होना… किसी के पास होना।

    उस चुप्पी में आवाज़ नहीं थी, पर बहुत कुछ था—
    एक सहारा, एक कोशिश, और शायद... प्यार की शुरुआत।

    उस रात बालकनी की ठंडी हवा सिर्फ बदन को नहीं छू रही थी, वो दिल की तहों तक जा रही थी—जहाँ कुछ टूटे हुए सपनों की किरचें थीं, और कुछ नई उम्मीदों की गूँज।

    अरमान की खामोश उपस्थिति कोई सवाल नहीं कर रही थी, कोई दावा नहीं कर रही थी—वो बस वहाँ था, जैसे किसी टूटी दीवार को सहारा दे रहा हो, बिना छुए, बिना बोले।

    उस रात पहली बार अवनी को अहसास हुआ—रिश्ते बनाए नहीं जाते, वो बुन लिए जाते हैं…
    एक गुलाब के पौधे से,
    एक कंबल की गर्मी से,
    और एक चुप्पी की साझेदारी से।

    सुबह की पहली किरण जैसे उसी सोच को उजास देने आई थी।
    अवनी ने आँखें बंद कीं और मन ही मन एक वादा किया—
    "अब मैं इस रिश्ते को सिर्फ निभाऊँगी नहीं… अपनाऊँगी। जो बीत गया, उसे वहीं छोड़ दूँगी। और जो है… उसे पूरे दिल से जीऊँगी।"

    कमरे में अरमान अब भी उसी तरह बैठा था—पलंग के एक कोने पर। टीवी पर ‘टॉम एंड जेरी’ चल रहा था, और वो बच्चों की तरह हँस रहा था, दूध के ग्लास में बिस्किट डुबाकर।

    पहले अवनी को ये सब बचकाना लगता था। वो सोचती थी—कैसा आदमी है ये? ना गंभीरता, ना समझ।

    लेकिन आज… उसी मासूमियत में उसे एक गहरा अपनापन महसूस हुआ।
    शायद यही उसकी सबसे बड़ी ताकत थी—बिना कहे किसी को जोड़ लेना।

    अवनी धीरे से पास आई। उसकी नज़रों में अब कोई भ्रम नहीं था, बस एक अपनापन था।

    वो उसके पास बैठी, और प्यार से उसके बालों में उंगलियाँ फिराईं।
    अरमान ने चौंक कर उसकी तरफ देखा, फिर उसकी मुस्कान में कुछ ऐसा था जो उसने पहले कभी नहीं देखा था।

    अवनी ने धीमे स्वर में कहा,
    "आज से तुम्हारी हर ज़िम्मेदारी मेरी है, अरमान।"

    अरमान की आँखें कुछ पल को फैलीं, फिर धीरे-धीरे उसकी मासूम सी मुस्कान लौट आई।
    "फिर तो आज तुम मेरे साथ पतंग उड़ाओगी ना?"
    उसने बच्चों जैसी उत्सुकता से पूछा।

    अवनी की हँसी निकल पड़ी, जो खुद उसे भी अनजानी लगी—बहुत दिनों बाद इतनी हल्की, इतनी सच्ची।

    "पहले नाश्ता करो, फिर चलेंगे,"
    उसने मुस्कुराकर कहा, और बिस्किट का एक टुकड़ा खुद उसके दूध में डाल दिया।

    दिन की शुरुआत अब पहले जैसी नहीं रही।
    अब अलार्म की आवाज़ से पहले अवनी जाग जाती थी—अरमान की पसंद का ब्रेकफास्ट क्या है, उसके कपड़े किस रंग के होंगे, और उसका टिफिन कितनी सफाई से पैक होना चाहिए—ये सब बातें अब उसके लिए एक ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि रिश्ते की मिठास बन चुकी थीं।

    पहले वो अलमारी में पड़े बिखरे कपड़ों को देख झुंझला जाती थी, लेकिन अब वो बड़े प्यार से उन्हें तह लगाकर रखती, उस पर हल्की सी खुशबू वाला परफ्यूम छिड़कती, और सोचती—"उसे अच्छा लगेगा।"

    अरमान की नादान हरकतें, उसकी बच्ची जैसी बातें—जो पहले चुभती थीं, अब वो उसके चेहरे पर मुस्कान छोड़ जाती थीं।

    एक दोपहर, जब वे दोनों बालकनी में बैठे थे, अरमान ने चाय की प्याली में बिस्किट डुबोते हुए अचानक पूछा,
    "अगर मैं बीमार हो गया तो तुम मुझे अपनी गोद में सुलाओगी?"

    अवनी ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में चमक थी—बिल्कुल बच्चे जैसी।
    वो मुस्कराई, और बोली,
    "नहीं सिर्फ गोद में नहीं सुलाऊँगी, तुम्हें दवा भी दूंगी, और लोरी भी गाऊँगी... ताकि तुम जल्दी ठीक हो जाओ।"

    अरमान ने तालियाँ बजाईं जैसे उसे कोई बहुत बड़ा पुरस्कार मिल गया हो।
    "पक्की बात ना? फिर तो मैं बीमार होने की एक्टिंग कर सकता हूँ?"

    अवनी हँस पड़ी।
    "एक्टिंग करोगे तो दवा नहीं मिलेगी, सीधा कड़वी काढ़ा दूंगी!"
    उसने आँखें तरेरने की कोशिश की, मगर मुस्कान उसके होठों से हट नहीं सकी।

    उस दिन अवनी को एक नई समझ आई—
    शायद प्यार बड़े लम्हों से नहीं, इन छोटे-छोटे पलों से बनता है।
    जहाँ कोई आपको पूछे—"क्या तुम मेरा ख्याल रखोगी?"
    और आप दिल से जवाब दें—"हमेशा!"

    एक दिन बुआजी चाय की चुस्कियों के बीच मम्मीजी से बोलीं,
    "बहू तो अब पूरे घर की जान बन गई है। इतने प्यार से हर बात समझती है… अरमान के साथ भी कितनी सहज हो गई है।"

    मम्मीजी ने मुस्कराकर सिर हिलाया,
    "अरमान को ऐसी ही जीवनसंगिनी चाहिए थी—जो उसके रंग में ढल जाए, लेकिन खुद को खोए बिना।"

    वाकई, अवनी ने खुद को खोया नहीं था।
    उसने खुद को पाया था—नए रूप में, नए रिश्ते में, और एक नए विश्वास के साथ।

    अब वो उस अवनी से अलग थी, जो कभी सिर्फ अर्जुन की यादों में उलझी रहती थी।
    अब वो अपने अतीत को स्वीकार कर चुकी थी—ना शर्मिंदगी के साथ, ना पछतावे के साथ… बस एक स्वीकृति के साथ।
    और भविष्य को उसने पूरे दिल से अपनाना शुरू कर दिया था—जिसमें अरमान था।

    शाम को, जब हल्की गुलाबी रौशनी बगिया पर उतर रही थी, अरमान वहीं झूले पर बैठा था, अपने खिलौनों से खेलते एक बच्चे को देख रहा था।

    अवनी उसके पास आई, और धीरे से बोली,
    "चलो घूमने चले?"

    अरमान ने चौंककर उसकी ओर देखा,
    "तुमने तो कहा था कि तुम्हें बाहर जाना पसंद नहीं है!"

    अवनी ने उसकी हथेली थाम ली।
    उसकी मुस्कान में एक सच्चाई थी, एक अपनापन।
    "अब तुम्हारे साथ सब अच्छा लगता है।"

    अरमान की आँखों में चमक आ गई। उसने तुरंत खड़े होकर कहा,
    "तो चलो! मैं तुम्हें मेरी फेवरेट जगह दिखाता हूँ!"

    दोनों साथ में पास के पार्क पहुँचे।
    वहाँ अरमान ने ज़िद करके झूले पर बैठाया, तो अवनी हँसते-हँसते झूले की रस्सी थामे झूलने लगी—शायद सालों बाद।

    फिर अरमान ने आइसक्रीम की गाड़ी से उसके लिए वनीला और अपने लिए स्ट्रॉबेरी फ्लेवर लिया।
    बैठकर दोनों वहीं बेंच पर आइसक्रीम खाने लगे, जैसे दो बच्चे—बिना बोझ, बिना सवाल।

    ये सब भले ही साधारण था, पर उनके लिए ये पल अनमोल थे।

    अवनी अब अरमान की ज़रूरत को सिर्फ 'जिम्मेदारी' नहीं मानती थी। वो जान गई थी कि उसके मासूम सवालों में, उसकी आँखों की चमक में, एक सच्चा साथी छुपा है—जो शायद बोल नहीं सकता, पर महसूस करवा सकता है।

    एक रात जब अरमान को बुखार हो गया, तो अवनी पूरी रात उसके माथे पर पट्टियाँ बदलती रही, दवा देती रही, और बिना सोए उसका सिर सहलाती रही। सुबह जब अरमान की तबीयत थोड़ी ठीक हुई, तो उसने धीमे से कहा, "तुम बहुत अच्छी हो।"

    अवनी की आँखों से आंसू बह निकले—खुशी के, अपनाए जाने के, और शायद... प्यार के भी।

    उस दिन उसने खुद अपने हाथों से अरमान के लिए एक शर्ट सिलाई। पहली बार उसने किसी के लिए कुछ अपने मन से बनाया था। जब अरमान ने वो पहनी और शीशे में खुद को देखा तो बोला, "मैं हीरो लग रहा हूँ ना?"

    अवनी ने सिर हिलाया और उसकी पीठ थपथपाई, "तुम हमेशा से ही मेरे हीरो हो।" अरमान शरमा गया, और दौड़कर बाहर चला गया।

    अब हर सुबह अवनी खुद अरमान को तैयार करती, उसके बाल बनाती, उसकी मोज़े ढूंढती, और उसे स्कूल जैसी seriousness में बाहर भेजती—even though he wasn't going anywhere. उनके बीच अब एक ऐसा रिश्ता बन चुका था जो शब्दों से परे था, बस नजरों और एहसासों में बसा था।



    एक शाम दोनों छत पर खड़े थे, आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे। अरमान ने पूछा, "तुम अर्जुन को याद करती हो?" अवनी थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, "कभी-कभी... लेकिन अब तुम्हें ज़्यादा सोचती हूँ।" अरमान कुछ नहीं बोला, बस उसका हाथ पकड़ लिया। उस एक स्पर्श में न कोई शक था, न कोई सवाल—बस भरोसा था, और उम्मीद थी।



    क्या अरमान की मासूमियत अब भी हमेशा वैसी ही रहेगी, या वक़्त के साथ उसमें भी कुछ बदलाव आएँगे?

    क्या अवनी का यह समर्पण उसे कभी पछताना नहीं देगा?

    क्या समाज उनकी इस अनोखी शादी को पूरी तरह स्वीकार कर पाएगा?

    और अगर एक दिन अर्जुन लौट आया... तब क्या होगा?

  • 5. My Innocent husband - Chapter 5 अंशुमान ने समझाया अरमान को

    Words: 1616

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब हर सुबह की एक नयी आदत बन चुकी थी — जिसमें न अलार्म की ज़रूरत होती, न ही किसी घड़ी की। अरमान की आंख खुलते ही अवनी उसके पास होती। मुस्कराती हुई, जैसे उसकी सुबह उसी मुस्कुराहट से शुरू हो। वो उसके बालों को धीरे-धीरे संवारती, अपनी उंगलियों से कंघी करती और बीच-बीच में उसके माथे पर हल्की सी थपकी देती।

    "सीधे बैठो," अवनी कहती, एक मास्टरनी की तरह।

    अरमान चुपचाप बैठा रहता, बस उसकी आँखें चलतीं—कभी अवनी के चेहरे को निहारतीं, तो कभी उसके होठों की थरथराहट पढ़तीं।

    वो उसके लिए मोज़े ढूंढती, शर्ट ठीक करती, कॉलर सीधा करती, और फिर बड़े गर्व से बोलती, "जाओ, अब तुम तैयार हो।"

    अरमान थोड़ा हँसकर कहता, "कहाँ जाऊँ?"

    "जहाँ दिल ले जाए," अवनी जवाब देती, पर खुद जानती थी कि उसका दिल तो अब यहीं बंध चुका है—अरमान से।

    वो दोनों जान चुके थे कि ये रिश्ता अब शब्दों की मोहताज नहीं रहा। अब वो बातें आँखों से होती थीं, इशारों में जवाब मिलते थे, और खामोशियों में सुकून था। कभी रसोई में मिलते, कभी बरामदे में; बस हल्की मुस्कानें और अनकहे एहसास चलते रहते।

    एक शाम, जब दिन ढल चुका था और छत पर हल्की ठंडी हवा बह रही थी, दोनों एक-दूसरे के पास खड़े थे। आसमान नीला नहीं था अब, काला हो चुका था, और उसमें चुपचाप टिमटिमाते तारे उनकी गवाह बन चुके थे।

    अरमान ने कुछ देर तक चुप रहकर पूछा, "तुम अर्जुन को याद करती हो?"

    उसके सवाल में कोई जलन नहीं थी, कोई ताना नहीं — बस एक मासूमियत थी, और एक चाह थी जानने की कि क्या अब वो अवनी की पूरी दुनिया बन चुका है।

    अवनी थोड़ा चौंकी, जैसे किसी पुराने दरवाज़े की चाभी फिर से घूम गई हो। उसने आंखें बंद कीं, सांस भरी, और आसमान की ओर देखा।

    "कभी-कभी..." वो धीमे से बोली, "लेकिन अब तुम्हें ज़्यादा सोचती हूँ।"

    अरमान ने कुछ नहीं कहा। बस धीरे से उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया।

    उस एक स्पर्श में बहुत कुछ था — न कोई शक, न कोई कसक। ना ही किसी खोए हुए अतीत का पछतावा और न ही भविष्य की कोई बेचैनी। सिर्फ एक सुकून था, एक भरोसा था कि अब जो है, वही सबसे सच्चा है।

    Kapoor Villa की उस सुबह में कुछ अलग सी चमक थी। मानो सूरज की किरणें भी अपने खास मेहमान के स्वागत में ज़्यादा दमक रही थीं। हल्की हवा में मोगरे की खुशबू तैर रही थी, और ड्राइंग रूम की खिड़की के पास बैठीं सुमित्रा जी हाथ में चाय का प्याला लिए बाहर के दरवाज़े को निहार रही थीं।

    “लगता है Anshuman आ गया,” उन्होंने धीमी पर मुस्कुराती आवाज़ में कहा। जैसे ही ये शब्द उनके होंठों से निकले, दरवाज़े की घंटी बज उठी — टन टन टन।

    अरमान — जो अभी तक अपने कमरे में था — उस आवाज़ पर ऐसे दौड़ा जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी सबसे पसंदीदा चीज़ को देखने के लिए भागता है। दरवाज़ा खोला और सामने वही चेहरा था, जिसकी यादों में वो बीते कई महीनों से जी रहा था।

    Anshuman।

    लंबा कद, हल्के नीले रंग का कुर्ता, कंधे पर स्लिंग बैग, थोड़ी बिखरी हुई ज़ुल्फें और वही पुरानी, अपनापन भरी मुस्कान।

    “Anshuman!” अरमान ने खुशी से चिल्लाकर कहा और झट से उसे गले से लगा लिया।

    “अरे भाई!” Anshuman ने भी उसी जोश से उसे बाँहों में भर लिया। वो लम्हा कुछ सेकंड्स का था, पर उस आलिंगन में सालों की दूरियाँ और तमाम अधूरी बातें समा गई थीं।

    सरोज बुआ रसोई से निकलकर आयीं और माथे पर कुमकुम का टीका लगाते हुए बोलीं, “अब की बार ज़्यादा दिन रुकना है बेटा, बार-बार की आना-जाना अब बंद।”

    ब्रिजेश जी, जो हमेशा गंभीर दिखते थे, उनकी आँखों में भी एक अलग चमक थी। उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाते हुए कहा, “घर में रौनक लौट आई।”

    सुमित्रा जी ने आगे बढ़कर उसका हाथ थामा और माँ की ममता से भरी आवाज़ में कहा, “तुम्हारा कमरा जस का तस रखा है बेटा, जैसे तुम कल ही निकले हो।”

    Anshuman की आँखें भर आईं, लेकिन उसने खुद को सँभालते हुए हौले से मुस्कुराकर कहा, “मां, अब तो पढ़ाई पूरी हो गई है… अब तो घर ही घर है।”

    तभी रसोई की ओर से धीमे-धीमे कदमों की आहट हुई।

    अवनी — हल्के गुलाबी सूट में, बाल पीछे बंधे हुए, हाथ में पानी का गिलास लिए झिझकते हुए बाहर आई। उसकी आँखों में शराफत थी और चेहरे पर एक सौम्य मुस्कान।

    Anshuman की नज़र उस पर पड़ी और उसने हल्के से हाथ जोड़ते हुए कहा, “नमस्ते भाभी जी, मैं Anshuman।”

    अवनी ने नज़रे झुकाकर जवाब दिया, “नमस्ते। आपसे मिलकर अच्छा लगा।” और पानी का गिलास टेबल पर रखकर थोड़ी दूरी बनाकर खड़ी हो गई।

    अरमान बीच में आया, “ये मेरी वाइफ है Avni!”

    उसके लहजे में एक मासूम-सा गर्व था, जैसे कोई बच्चा अपनी सबसे प्यारी चीज़ सबको दिखा रहा हो। उसकी आंखों में चमक थी, एक ऐसी चमक जो अवनी के चेहरे की उलझनों से बिलकुल उलट थी। अवनी की आंखों के नीचे थकावट के हल्के से घेरे थे, माथे पर सलवटें, और नज़रों में असमंजस।

    Anshuman ने एक नज़र में सब पढ़ लिया — अरमान की मासूम खुशी और अवनी की चुप उलझन।

    वो मुस्कराया और बोला, “भाभी, ये भाई बड़ा lucky है।”

    अवनी ने चौंककर उसकी तरफ देखा — पहली बार किसी ने उसे उस नाम से पुकारा था, ‘भाभी’। एक हल्की मुस्कान उसके चेहरे पर तैर गई, मानो अनजाने में किसी ने उसे उसका अस्तित्व दे दिया हो।

    उस दिन दोपहर को…

    सभी लोग बड़े डाइनिंग टेबल पर एक साथ बैठे थे। गर्मागर्म पूरियाँ, सब्ज़ी, रायता और मीठे में हलवा। सबके चेहरों पर घर की रौनक थी।

    Anshuman मज़ाकिया अंदाज़ में घर के पुराने किस्से सुना रहा था।

    “याद है मम्मी, ये अरमान स्कूल में हर दौड़ में सबसे पीछे आता था, लेकिन जब मोहल्ले की किसी लड़की को गुलाब देना होता था, तो सबसे आगे भागता था!”

    सब हँस पड़े।

    अरमान शर्मा गया और बोला, “भैया झूठ बोल रहे हैं!”

    Anshuman ने आंख मारी, “अरे भाभी, आप पूछ लो खुद… प्यार के मामले में आपका पति हमेशा चैंपियन रहा है।”

    अरमान फिर हँसने लगा। अवनी ने चुपचाप सबको देखा… वो बोल नहीं रही थी, लेकिन उसके अंदर कुछ पिघलने लगा था। पहली बार उसे ये जगह सिर्फ “घर” नहीं, शायद थोड़ा “अपना” लगने लगी थी।

    रात ढल चुकी थी…

    घर में सब सो चुके थे। टेबल साफ़ हो गया था, रसोई का दरवाज़ा बंद, और हॉल की लाइट मंद। कमरे में घड़ी की टिक-टिक और रात की नीरवता गूँज रही थी।

    अरमान अपने कमरे में तकिए के ढेर से खेल रहा था जब दरवाज़ा धीरे से खुला।

    Anshuman अंदर आया, हल्की मुस्कान के साथ। उसके हाथ में दूध का गिलास था, जो उसने अरमान को पकड़ा दिया।

    “भाई,” उसने कहा और एक कुर्सी खींचकर बैठ गया।

    अरमान ने मुस्कराते हुए दूध पीना शुरू किया।

    Anshuman ने उसकी तरफ देखा और गंभीर हो गया — “तू अब शादीशुदा है, जानता है इसका मतलब क्या होता है?”

    अरमान ने बिना कुछ कहे सिर हिला दिया, उसकी मासूम आंखों में सवाल था।

    “वो अब मेरी वाइफ है… हम साथ में रहते हैं… मैं उसे बहुत प्यार करता हूँ,” अरमान ने बच्चों जैसी मासूमियत से कहा।

    Anshuman ने एक गहरी साँस ली और कहा, “शादी सिर्फ साथ रहने का नाम नहीं है… ये उस इंसान की ज़िम्मेदारी लेने का नाम है जो अब तुझसे जुड़ चुकी है… जब वो थक जाए, तो तू उसका साया बन… जब वो रोए, तो तू उसका कंधा बन… जब दुनिया उससे सवाल करे, तो तू उसका जवाब बन।”

    अरमान अब सचमुच ध्यान से सुन रहा था, शायद पहली बार किसी ने उसे इतने भावों में इतना गंभीर कुछ कहा था।

    Anshuman की आंखों में एक भाई का प्यार था, और एक बड़े की सलाह।

    “और सबसे ज़रूरी बात…,” उसने धीरे से कहा, “प्यार सिर्फ महसूस करने के लिए नहीं होता, जताने के लिए भी होता है… वो हर दिन ये जाने कि तू उसके साथ है — हर हाल में।”

    अरमान ने एकदम से पूछा, “अवनी रोई थी क्या?”

    Anshuman कुछ पल चुप रहा, फिर बोला, “हर नई दुल्हन रोती है… लेकिन फर्क ये पड़ता है कि उसका पति उसके आंसू पोछता है या वजह बनता है।”

    अरमान की आंखें भर आईं। उसने धीरे से कहा, “मैं उसे कभी रोने नहीं दूँगा भैया… वादा करता हूँ।”

    Anshuman मुस्कराया, उठा, और अरमान के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बस यही वादा निभा देना, बहुत है।”

    और वह कमरे से बाहर चला गया, पीछे छोड़ गया — एक सोच में डूबा मासूम पति और एक लंबी रात… जिसमें अब शायद, कोई समझ की लौ जलने लगी थी।

    अगले दिन सुबह का उजास कमरे में हल्के-हल्के फैल रहा था। खिड़की की झिरी से आती धूप ने जैसे अरमान के चेहरे को हल्के से छुआ, तो वह कुनमुनाते हुए उठ बैठा। अपने बालों को उंगलियों से पीछे करते हुए, उसने धीमे से नज़र घुमाई। सामने ड्रेसिंग टेबल पर बैठी अवनी अपने बाल सुलझा रही थी। उसकी आंखों के नीचे हलकी थकान की रेखाएं थीं, पर चेहरे पर एक अलग ही शांति थी — जैसे किसी तूफ़ान के बाद पहली बार आसमान साफ़ हुआ हो।

    अरमान चुपचाप कुछ देर उसे देखता रहा… फिर धीरे से बोला,

    "तुमने कुछ खाया?"

    अवनी ने चौंक कर उसकी ओर देखा — यह पहली बार था जब अरमान ने यूँ अपनेपन से कुछ पूछा था। उसकी आँखों में हलका सा विस्मय था, पर जब उसने अरमान की मासूम आंखों में सच्ची चिंता देखी, तो एक धीमी मुस्कान होठों तक चली आई।

    "हाँ, खा लिया था," उसने नरम आवाज़ में कहा।

    तभी कुछ ऐसा कहा अरमान ने जिससे अवनी हैरान रह गई।

    तो आप सब को क्या लगता है ,

    ऐसा क्या कहा अरमान ने?

    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी "My Innocent Husband" sirf aur sirf storymania par.

  • 6. My Innocent husband - Chapter 6 अरमान का अवनी की केयर करना

    Words: 1712

    Estimated Reading Time: 11 min

    "हाँ, खा लिया था," उसने नरम आवाज़ में कहा।

    अरमान ने सिर हिलाया, फिर धीरे से मुस्कुराया और बोला,

    "ठीक है… फिर मुझे भी भूख लगी है। साथ में खाओगी?"

    अवनी का मन जैसे एक पल को रुक गया। यह कोई बड़ी बात नहीं थी, पर अरमान का यह छोटा-सा प्रयास — साथ बैठकर खाना खाने का — उसके मन में एक हल्की-सी उमंग भर गया। वो कुछ नहीं बोली, बस धीरे से सिर हिलाया।

    उसी वक़्त बालकनी में खड़ा Anshuman चाय की चुस्की लेते हुए यह सब देख रहा था। उसके चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान थी। वो जानता था कि यह सफ़र आसान नहीं होगा, पर जिस रिश्ते की शुरुआत एक उलझन से हुई थी, अब उसमें धैर्य और अपनापन के बीज अंकुरित होने लगे थे।

    उसने मन ही मन सोचा,

    "बीज बो दिया है… अब वक्त के साथ ये रिश्ता भी एक मजबूत दरख्त बनेगा… बस उन्हें एक-दूसरे का साथ निभाना सीखना होगा।"

    सुबह की उस शांति में, अरमान और अवनी के बीच एक नई शुरुआत हो रही थी — बिना किसी शोर के, पर गहराई से।

    शाम की हल्की ठंडी हवा चल रही थी। आसमान हल्का-सा नारंगी हो चला था, जब Anshuman ने अरमान के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,

    “चल मंदिर चलते हैं। थोड़ो मन शांत होगा।”

    अरमान ने बिना कोई सवाल किए सिर हिलाया और दोनों पैदल ही मंदिर की ओर बढ़ चले। रास्ते भर Anshuman बात करता रहा। उसकी आवाज़ में वो स्नेह और अनुभव था जो एक बड़े भाई में होता है—न सिखाने की ज़िद, न जताने की कोशिश, बस एक गहरी समझ।

    “शादी सिर्फ़ एक बंधन नहीं होती, अरमान,” वो कहने लगा, “ये भरोसे की डोर है... जिसमें एक भी गांठ आई ना, तो दोनों की साँस अटक जाती है।”

    अरमान चुपचाप सुन रहा था, उसकी आँखें सामने सड़क पर, लेकिन ध्यान कहीं और था।

    “Avni अब सिर्फ तेरी वाइफ नहीं रही,” Anshuman ने आगे कहा, “अब वो तेरी जिम्मेदारी है। वो हँसे तो तू सुकून पाए, और अगर वो रोए... तो तुझसे पहले कोई आंसू न देखे उसके चेहरे पर। यही असली रिश्ता होता है।”

    अरमान की उंगलियाँ आपस में जकड़ गईं, जैसे कुछ थामने की कोशिश कर रहा हो।

    कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने धीमे से कहा,

    “मैं उसे खुश रखूँगा, भाई...”

    उसकी आवाज़ में कोई वादा नहीं था, बल्कि एक भाव था—गहराई से निकला हुआ, आत्मा की ज़मीन से उपजा हुआ।

    Anshuman मुस्कराया, उसका कंधा थपथपाया और बोला,

    “बस यही बात दिल में रखना। हर रोज़... हर सांस में।”

    दोनों मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ गए। आरती की घंटियाँ बज रही थीं, और शायद कहीं भीतर अरमान के मन में भी कोई आरती गूंजने लगी थी—एक नई शुरुआत की, एक नई समझ की।

    घर लौटकर अरमान ने पहली बार खुद से कहा, “मैं उसका हसबैंड हूँ।”
    इन पाँच शब्दों का अर्थ अब उसके लिए वही नहीं रहा था जो शादी वाले दिन था। अब इनका वजन था — ज़िम्मेदारी का, स्नेह का, और अपनत्व का।

    जब वो कमरे में पहुँचा, अवनी खिड़की के पास बैठी थी, कुछ पढ़ रही थी। लेकिन उसकी आँखें किताब में नहीं, विचारों में उलझी थीं। अरमान उसके पास गया और बिना कुछ कहे, एक गिलास दूध उसके सामने रख दिया।

    अवनी ने उसकी ओर देखा — उसकी आँखों में कोई शिकवा नहीं था, बल्कि एक शांत-सी भावनात्मक लहर थी।

    “तुमने खुद से बनाया?” उसने धीमे से पूछा।

    अरमान ने बस सिर हिला दिया।

    अवनी की आँखें भर आईं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि एक छोटे-से इशारे में इतनी गर्माहट कैसे समा सकती है।

    उसी वक़्त Anshuman बालकनी से यह सब देख रहा था। उसने कोई दखल नहीं दिया, बस हल्के से मुस्कुराया।

    रात के खाने के बाद वो अवनी के पास बैठा। उसने बिना कोई भारी बात किए, बस कुछ हल्की-फुल्की बातें कीं।

    “अब कैसे लग रहा है यहाँ?”

    अवनी ने सिर झुका लिया, “ठीक…”

    Anshuman ने धीरे से कहा, “तुम्हारा मन अगर कभी उलझे… तो बताना मुझे। मैं तुम्हारे लिए हूँ, किसी भाई जैसा… एक दोस्त जैसा।”

    अवनी ने उसकी ओर देखा। वो आँखें जो सब समझ रही थीं — बिना सवाल पूछे, बिना जवाब मांगे।

    उस दिन के बाद, Anshuman हर दिन अवनी से दो-चार बातें करता। ज्यादा नहीं, बस इतना कि उसे लगे — वो अकेली नहीं है।
    और शायद, यहीं से healing की असली शुरुआत हुई।

    अवनी अब Anshuman के इस सहयोग को एक भाई जैसा मान रही थी। वह जानती थी कि उसे अब अरमान के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना है।

    उस शाम जब अंशुमान किचन में था, अवनी चुपचाप उसके पास आई। उसकी आँखों में कृतज्ञता थी।
    "भाई जैसे हो तुम," अवनी ने धीमे स्वर में कहा।

    Anshuman ने पलटकर उसकी ओर देखा, हल्की मुस्कान के साथ।
    "और आप मेरी छोटी बहन," उसने हँसते हुए उसका माथा छुआ।
    "पर अब आपको बड़ी ज़िम्मेदारी उठानी है... सिर्फ अपने लिए नहीं, अरमान के लिए भी।"

    अवनी ने धीरे से सिर हिलाया।
    "हाँ, मैं समझती हूँ। अब मुझे पीछे नहीं देखना, बस उसके साथ आगे बढ़ना है।"

    अंशुमान ने उसके लिए एक कप चाय बनाई और उसे थमाते हुए बोला,
    "उसके साथ वक़्त बिताना, बात करना... यही सबसे ज़रूरी है अभी। डर लगे, तो भी बोलना… खामोशी सबसे बड़ी दूरी बनाती है।"

    अवनी की आँखें भर आईं।
    "शुक्रिया," वह बस इतना ही कह पाई।

    Anshuman ने उसका हाथ थामा और मुस्कराकर कहा,
    "हम सब साथ हैं… आप अकेली नहीं है।"

    तीन महीने बीत चुके थे।

    शादी के बाद की हलचलें अब थम चुकी थीं। घर में अब वो उत्सव जैसा माहौल नहीं था, लेकिन एक शांति थी — एक सधी हुई, सहज सी शांति। रोज़मर्रा की ज़िंदगी अब अपनी रफ्तार पकड़ चुकी थी। सुबह की चाय, अख़बार की ख़बरें, अरमान की धीमी मुस्कान, और अवनी की वो अनकही चुप्पियाँ, जो अब शोर नहीं करती थीं।

    पहले दिन जब अवनी इस घर में दुल्हन बनकर आई थी, तो उसके चेहरे पर मुस्कान कम और उलझन ज़्यादा थी। अरमान के भोले सवाल, उसकी मासूम हरकतें उसे झुंझलाहट से भर देती थीं। लेकिन अब... अब वो सब कुछ बदलने लगा था।

    अरमान अब भी वैसा ही था — मासूम, बच्चों की तरह बेफिक्र, भावनाओं से भरा हुआ। पर अब उसकी मासूमियत अवनी को चुभती नहीं थी। अब वो उसके दिन की सबसे प्यारी शुरुआत बन गई थी।

    हर रोज़ अरमान जब उसे देख मुस्कुराता, तो अवनी को लगता जैसे कोई सुबह की ओस से भीगी नर्मी उसके दिल पर गिर रही हो।
    वो पल — जब अरमान खाने के दौरान अपनी पसंद की सब्जी चुपके से उसकी थाली में रख देता... या फिर जब वह उसकी नींद खुलने से पहले खामोशी से कमरे से बाहर चला जाता ताकि उसकी नींद खराब न हो — ये सब अब अवनी के लिए सिर्फ़ क्रियाएं नहीं थीं, ये अब इशारों में लिपटा अपनापन था।

    कई बार वो खुद को आईने में देखती और सोचती — "क्या मैं वही अवनी हूँ जो इस रिश्ते को नाम देने से भी डरती थी?"
    अब उसे समझ आ गया था कि प्यार हमेशा तेज़ बारिश बनकर नहीं आता — कभी-कभी वो ओस की बूंदों सा गिरता है, धीरे-धीरे, मगर ठहराव के साथ।

    एक शाम जब वह बालकनी में खड़ी थी, सामने डूबते सूरज की किरणें उसके चेहरे पर पड़ रही थीं। तभी पीछे से अरमान आकर बोला, “अवनी... देखो, चिड़िया का बच्चा फिर से आया है।”
    वो पल बहुत छोटा था, मगर अवनी की आँखों में नमी आ गई। उसे समझ आ गया — यह वही ‘घर’ था, जिसका सपना हर लड़की देखती है।

    अब अरमान की बातें उसे बच्चों जैसी नहीं लगती थीं, अब वो उनमें भावनाओं की गहराई देखने लगी थी। अरमान अब उसके लिए एक ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि एक एहसास बन गया था।

    उसे अब हर दिन के साथ यह महसूस होने लगा था कि प्यार जब मजबूरी से नहीं, बल्कि समझ से जन्म ले... जब वो धीरे-धीरे दिल में उतरता है — तब वह सबसे मजबूत रिश्ता बनता है।
    जैसे किसी बर्फ़ से ढके पहाड़ पर जब धूप की पहली किरणें गिरती हैं, तो सब कुछ चमक उठता है — वैसे ही अरमान की मौजूदगी अब अवनी की ज़िंदगी को रोशन करने लगी थी।

    अरमान अब पहले से कहीं ज़्यादा अवनी का ख्याल रखने लगा था। वह न सिर्फ़ उसके लिए चाय बनाकर लाता, बल्कि यह भी ध्यान रखता कि वह कब थकी हुई है, कब उसका सिर दर्द कर रहा है, और कब उसे बस थोड़ी सी तसल्ली चाहिए।

    कई बार जब अवनी किचन में काम कर रही होती, अरमान चुपचाप उसके पीछे आकर खड़ा हो जाता और कहता, "मैं हेल्प करूँ?" उसका मासूम चेहरा और वो चमकती आँखें, जिनमें कोई छल नहीं था — अवनी के दिल को छू जातीं।

    एक शाम जब अवनी थकी हुई थी, अरमान धीरे-से उसके पास आया और बोला, “तेल लगाऊँ?” पहले तो अवनी ने आश्चर्य से देखा, लेकिन फिर सिर झुका लिया। अरमान बेहद स्नेह से उसके बालों में तेल लगाने लगा। उसके छोटे-छोटे हाथ, कभी बालों में उलझते, कभी माथे तक आ जाते। अवनी की आँखें बंद हो गईं। वह नहीं जानती थी कि ये पल कभी इतना सुकून दे सकते हैं।

    अनशुमन की दी गई समझाइशें — "प्यार एक जिम्मेदारी नहीं, अपनापन होता है," — अब अरमान के बर्ताव में दिखने लगी थीं। और अवनी के मन में भी कुछ बदल रहा था। उसे लगने लगा था कि अरमान के साथ जीवन मुश्किल नहीं, बस थोड़ा अलग है।

    एक दिन दोपहर के खाने के बाद सुमित्रा जी ने सबको चौंकाते हुए कहा, “हम सब कहीं बाहर चलेंगे। बहुत दिन हो गए हैं घर में बैठे-बैठे। एक छोटी सी पिकनिक करेंगे।”

    अरमान ने उछलकर तालियाँ बजाईं, “मैं भी चलूँगा! झूला झूलूँगा! पानी में पत्थर फेकूँगा! भुट्टा खाऊँगा!”

    उसकी खुशी देखने लायक थी। घर का हर कोना उसकी मुस्कान से भर गया। सुमित्रा जी हँस दीं, अनशुमन मुस्कराया और अवनी का मन जैसे किसी अनकहे सुख से भीग गया। उसे लगा जैसे कोई भूला-बिसरा सपना फिर से मुस्कुरा उठा हो।

    उस दिन उसे पहली बार महसूस हुआ कि अरमान का बचपना कोई बोझ नहीं, बल्कि एक ऐसा निर्मल रिश्ता है जो उसे हर दिन थोड़ा और इंसान बना रहा है — थोड़ा और सच्चा, थोड़ा और शांत।

    — क्या ये मासूम रिश्ता कभी एक सच्चे पति-पत्नी के रिश्ते में बदल पाएगा? क्या अरमान वाकई समझ पाएगा प्यार और साथ का मतलब? और क्या अनजाने में Anshuman की मौजूदगी इस रिश्ते को गहराई देगी… या फिर किसी और मोड़ की ओर ले जाएगी?

  • 7. My Innocent husband - Chapter 7 पिकनिक

    Words: 1560

    Estimated Reading Time: 10 min

    अगले ही दिन सुबह-सुबह सब लोग तैयारी में जुट गए थे। घर में एक अलग ही चहल-पहल थी — सुमित्रा जी खुद अपने हाथों से पूरी-सब्ज़ी बना रही थीं, साथ में खट्टी इमली की चटनी और मीठे पराठे भी। अंशुमान ने चटाई और बैडमिंटन सेट संभाला, वहीं अरमान हर चीज़ को एक-एक करके टोकरी में जमाकर रख रहा था — बिस्किट, नमकीन, पानी की बोतल, और ढेर सारी हँसी।

    जब सब तैयार हो गए, तो दो गाड़ियों में बैठकर पास के एक हरियाले बग़ीचे की ओर रवाना हुए। मौसम भी जैसे उनके साथ था — न ज्यादा गर्मी, न ठंड, बस एक खुशनुमा सी ठंडी हवा और हल्की-सी धूप जो पत्तों के बीच से छनकर आ रही थी।

    बग़ीचे में पहुँचते ही बच्चों की तरह सबका मन खिल उठा। अंशुमान ने सबसे पहले चटाई बिछाई, वहीं अरमान ने ज़िद की — "मैं झूला पहले झूलूँगा!" और बच्चों की तरह दौड़कर पेड़ के नीचे लगे झूले पर जा बैठा। अवनी एक कोने में मुस्कुरा रही थी — अब उसका चेहरा पहले से कहीं ज़्यादा सुकून भरा था।

    उसने आज नीली सलवार-कुर्ता पहन रखी थी, जिसमें वो बेहद प्यारी लग रही थी। उसके खुले बाल, कानों में झुमके और हाथों में हल्की सी चूड़ियाँ — जैसे प्रकृति के बीच कोई सादा पर खूबसूरत तस्वीर बन गई हो। अरमान ने सफेद कुर्ता-पायजामा पहना था, और उसके चेहरे पर वही मासूम, बच्चा-सा उत्साह था।

    थोड़ी देर बाद सब मिलकर खाना खाने बैठे — सुमित्रा जी की बनाई सब्ज़ियाँ, पराठे, और अचार की खुशबू हवा में घुल रही थी। सब हँसते-बोलते खाना खा रहे थे, और अरमान ने एक रोटी उठाकर मज़ाक में कहा, "ये सबसे बड़ी है, ये मेरी!" और सब उसकी इस मासूमियत पर हँस पड़े।

    खाने के बाद, अंशुमान ने अरमान को साथ लिया और क्रिकेट खेलने का प्लान बनाया। अरमान खुशी-खुशी तैयार हो गया। पहली गेंद अंशुमान ने फेंकी, अरमान ने खेली — और गेंद दूर जा गिरी, ठीक अवनी के पास।

    "अवनी भाभी! आपकी बारी!" अंशुमान ने मुस्कुराते हुए कहा।

    अवनी ने शर्माते हुए गेंद उठाई, और थोड़ी नाटक करते हुए बोली, “अगर मैं आउट कर दूँ तो?”

    यह सुनते ही सब एक साथ हँस पड़े, और अरमान ने चुटकी ली, “तो मैं आउट ही नहीं होऊँगा!”

    अंशुमान ने तालियाँ बजाते हुए कहा, “अब देखना, भाभी की बॉलिंग से तुम कैसे बचते हो।”

    फिर अवनी ने अपनी चुन्नी को ठीक किया, और जैसे ही गेंद फेंकी, अरमान झिझक गया — और आउट हो गया।

    सबके चेहरों पर खुशी थी, और हवा में खिलखिलाहट तैर रही थी। उस दिन जैसे सिर्फ एक पिकनिक नहीं हुई थी — बल्कि रिश्तों के बीच की दूरियाँ थोड़ी और कम हो गई थीं।

    खेल के बाद जब सब झील के किनारे आकर बैठे, तो माहौल शांत और आत्मीय हो गया। पानी की सतह पर सूरज की किरणें झिलमिला रही थीं। चाय के कप, मूँगफली के दाने और हँसी की गूँज — एक परफेक्ट दोपहर बन चुकी थी।

    सुमित्रा जी ने अपनी जवानी की एक कविता सुनाई —

    “वो सावन की पहली फुहार थी,
    कुछ चुप सी, कुछ बेक़रार थी,
    जो बात लबों पे आ न सकी,
    वो आँखों से इज़हार थी…”

    सारे चेहरे उस पल शांत हो गए। फिर तालियाँ बजीं।

    अरमान ने धीरे से अपनी जगह से हाथ बढ़ाया, और अवनी की उंगलियों को अपनी उंगलियों में थाम लिया। वह चौंकी नहीं। अब उसे उसकी पकड़ से डर नहीं लगता था।

    “मज़ा आया ना?” अरमान ने धीमे से पूछा, उसकी आवाज़ में एक मासूम सी उम्मीद थी।

    अवनी ने कुछ नहीं कहा। बस उसकी तरफ देखा, फिर हल्का सा सिर हिलाया।

    लेकिन उसकी मुस्कान — वो मुस्कान सब कुछ कह गई।
    उस मुस्कान में आज़ादी थी। अपनापन था। और शायद…
    थोड़ा-थोड़ा विश्वास भी।

    पिकनिक के बाद… कुछ बदल गया था।

    वो शाम, झील के किनारे बिताए वो कुछ घंटे — जैसे अरमान और अवनी के बीच की दीवार को तोड़कर कुछ नया रच गए थे। अब अरमान पहले जैसा नहीं था — और शायद अब अवनी भी नहीं रही थी वही।

    अब रोज़ की तरह घर के कोनों में अकेली बैठी रहने वाली अवनी, अक्सर आँगन में नज़र आती — जहाँ अरमान पहले से मौजूद होता, किसी फूल को हाथ में लिए, या बस एक कहानी लिए बैठा होता।

    "अवनी देखो! ये फूल सुबह-सुबह तोड़ा तुम्हारे लिए!"

    अरमान की आँखों में वही चमक होती, जो किसी बच्चे को अपना बनाया तोहफा दिखाते वक्त होती है।

    अवनी पहले कुछ नहीं कहती, बस हल्की मुस्कान दे देती। पर अब वो मुस्कान धीरे-धीरे उसकी आदत बन गई थी। और अरमान की मौजूदगी, एक सुकून।

    एक दिन दोपहर में, जब हवाओं में हल्की ठंडक थी, अवनी अपनी पसंदीदा जगह — खिड़की के पास बैठी थी। बाहर पेड़ की टहनियों पर गिलहरियाँ खेल रही थीं, और धूप के किरणें उसके चेहरे पर गिर रही थीं।

    पीछे से नर्म कदमों की आहट हुई — वो आवाज जो अब उसे पहचान में आने लगी थी।

    "अवनी…" अरमान की धीमी, लेकिन साफ़ आवाज आई।

    अवनी ने गर्दन घुमाई भी नहीं थी कि उसने सुना —

    "तुम बहुत सुंदर लग रही हो।"

    एक पल को न तो हवा हिली, न कोई पत्ता।

    अवनी चौंकी नहीं। उसने पहले की तरह घबरा कर नज़रें नहीं चुराई। वो बस मुस्कुराई — धीमे से।
    उसके होंठों की कोरों पर एक शर्मीली सी रेखा खिंच गई, और आँखों में एक चमक आ गई — जो कह रही थी, "मैं सुन रही हूँ, और मैं समझ रही हूँ।"

    अब वो रातों में, जब सब सो जाते, तो नींद नहीं आती थी — वो बस लेटी रहती, आँखें खोले।

    सोचती — अरमान की बातें, उसकी मासूमियत, उसका भोलापन, वो बच्चों जैसी हँसी — जो अब सीने में घर कर चुकी थी।

    वो अब अक्सर अपना दिल टटोलती थी, और हर बार उसे लगता...
    शायद कुछ बदल रहा है... धीरे-धीरे, चुपचाप — लेकिन पूरी तरह से।

    एक दिन, सांझ का वक्त था। आसमान बादलों से ढका हुआ था। धीमी-धीमी बारिश ने पूरे माहौल को जैसे एक भावुक ग़ज़ल में बदल दिया था। हवाओं में नमी थी, पर दिलों में कुछ और ही तूफ़ान चल रहा था।

    अवनी रसोई में खड़ी थी, जब उसकी नज़र बालकनी की ओर गई। वहाँ... अरमान, अपने भीगे बालों और मासूमियत से भरी मुस्कान के साथ, बारिश में भीग रहा था। उसकी बाहें फैली हुई थीं, चेहरा आसमान की ओर था — जैसे वो इस बारिश को पूरी रूह से महसूस कर रहा हो।

    अवनी का माथा सिकुड़ गया।

    वो तेज़ी से वहाँ पहुँची और गुस्से में बोली —

    "अरमान! भीग क्यों रहे हो? बीमार हो जाओगे!"

    अरमान ने उसकी ओर देखा। बालों से पानी टपक रहा था। चेहरे पर वो ही मासूम मुस्कान थी, जो अवनी का दिल अक्सर चुपके से चुरा लेती थी।

    वो धीरे से बोला —

    "तुम चिंता करती हो ना?"

    बस… इतना कहना था।

    अवनी के होंठ थरथरा गए। वो कुछ कह नहीं पाई। ग़ुस्सा जैसे एक पल में उड़ गया। उसकी पलकों पर बारिश की बूँदें नहीं, शायद अब आँखों की नमी थी।

    उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।

    उसने बिना कुछ बोले, अरमान का हाथ थामा और उसे अंदर खींच लायी। एक तौलिया उठाया और बिना बोले उसके भीगे बाल पोंछने लगी। हर बार जब उसके हाथ अरमान के चेहरे को छूते, उसका दिल और ज़्यादा उलझने लगता।

    अब वह खुद से छुपा नहीं सकती थी।

    हाँ… उसे अरमान से प्यार हो गया था।

    धीरे-धीरे... हर मासूम मुस्कान से।
    हर बेफिक्र नज़रे से।
    हर बच्चे जैसी जिद से।

    और अब... यह प्यार झूठ नहीं था।

    ये सच्चा था। गहरा था।

    अरमान अब उसका फ़र्ज़ नहीं, उसका एहसास बन चुका था।

    रात गहराती जा रही थी। घर की बत्तियाँ धीमे-धीमे बुझ चुकी थीं। सब अपने-अपने कमरों में थे, सिवाय अवनी के।
    वो कमरे के कोने में खड़ी, बिस्तर पर गहरी नींद में सोए अरमान को देख रही थी। उस मासूम से चेहरे पर एक सुकून था — बिल्कुल बच्चे जैसा। हल्की मुस्कान उसके होंठों पर थी, जैसे कोई सपना देख रहा हो।

    धीरे से, बिना आवाज़ किए, अवनी पास आई। बैठी, और एक नर्म हथेली से अरमान के माथे पर हाथ फेरा।
    उसका माथा गर्म नहीं था, लेकिन उस स्पर्श में एक अलग ही गर्मी थी — मोहब्बत की, अपनापन की।

    वो पल बहुत शांत था। कोई शोर नहीं, कोई बेचैनी नहीं। बस दो धड़कनों के बीच की दूरी, और उस पर रखा एक कोमल एहसास।
    अवनी की आंखों में नमी सी चमक उठी। वो कुछ नहीं बोली, लेकिन मन ही मन उसने मान लिया —
    अब वो अरमान से दूर नहीं है। वो हर रोज़ थोड़ा और करीब होता जा रहा है। और हर रात, उसे अपने अंदर समेटता जा रहा है।

    अगले दिन…

    अंशुमान कमरे में आया, देखा — अरमान आंगन में खिलखिलाकर हँस रहा था। हाथ में कुछ फूल थे जो शायद अवनी के लिए तोड़े थे।
    वो मुस्कराया, फिर धीरे से अवनी के पास आया, जो रसोई में कुछ रख रही थी।

    अंशुमान (धीरे, गहराई से):
    “भाभी... वो अब बदल रहा है... और शायद आप भी।”

    अवनी एक पल के लिए ठिठक गई। उसके हाथ की थाली हिलते-हिलते थम गई।
    उसने धीरे से सिर झुका लिया, जवाब नहीं दिया।

    पर उसके गालों पर जो गुलाबी रंग उभर आया था — वो शायद हर जवाब से ज़्यादा सच्चा था।

    अंशुमान मुस्कुरा कर चला गया।
    अब घर की दीवारों में भी एक नई कहानी साँसें लेने लगी थी — मोहब्बत की, भरोसे की... और दो टूटे दिलों के धीरे-धीरे जुड़ने की।

    क्या सच अवनी को अरमान से प्यार होने लगा है?
    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी…

  • 8. My Innocent husband - Chapter 8 अरमान में आ रहे बदलाव

    Words: 1638

    Estimated Reading Time: 10 min

    सरोज बुआ की सालगिरह का दिन था। घर को फूलों और रंगीन बल्बों से सजाया गया था। हर कोने में रौनक थी, और परिवार के सभी सदस्य एक अलग ही खुशी में डूबे हुए थे। हॉल में हल्की-हल्की रूमानी लाइट्स, धीमा म्यूज़िक, और खुशबूदार अगरबत्तियों की महक पूरे माहौल को सजीव बना रही थी।

    अंशुमान ने मंच की व्यवस्था की थी और छोटा सा केक रखा था — जिस पर लिखा था, "हैप्पी एनिवर्सरी सरोज बुआ & राजीव जी"।

    सबके चेहरे मुस्कुरा रहे थे, पर अवनी का ध्यान कहीं और था — वो कभी अरमान को देखती, कभी अपने दिल को संभालती।

    केक कटने के बाद, अंशुमान ने माइक उठाया और मुस्कुराते हुए बोला,
    “अब एक छोटा सा सरप्राइज़… हमारे अरमान भैया की तरफ़ से!”

    सब चौक गए।

    अरमान...? गाना...?
    वो तो हमेशा चुपचाप रहने वाला, साइड में बैठने वाला लड़का था।

    पर उस दिन कुछ बदल गया था।

    अरमान धीरे-धीरे मंच पर गया। हल्के नीले कुर्ते में, बाल थोड़े बिखरे हुए, आँखों में शरारती सी चमक… वो बिल्कुल अलग लग रहा था।

    उसने माइक पकड़ा, और हल्की सी मुस्कान के साथ सीधे अवनी की आँखों में देखा।
    फिर बैकग्राउंड म्यूज़िक शुरू हुआ — “तू जो मिला…”
    और अरमान ने गाना शुरू किया।

    "तू जो मिला… तो हो गया सब हासिल..."

    उसकी आवाज़ में थोड़ी घबराहट थी, पर भावनाएँ साफ थीं।
    वो सुर में नहीं, दिल से गा रहा था।
    हर एक शब्द जैसे अवनी के लिए था — उसकी ज़िंदगी की अनकही कहानी।

    सब लोग तालियाँ बजा रहे थे, पर अवनी तो जैसे वहीं थम गई थी।
    उसकी आँखें भर आईं… और उस रात पहली बार, उसने बिना कोई शब्द कहे, सब कुछ कह दिया।

    जब गाना खत्म हुआ, अरमान की नजरें अब भी उसी पर टिकी थीं।
    और अवनी की पलकों पर एक चमक थी — भावनाओं की, मोहब्बत की।

    उसी पल…
    शायद पहली बार अरमान ने महसूस किया कि अब वो अकेला नहीं है।
    और अवनी ने मान लिया — अब वो सिर्फ अरमान की पत्नी नहीं, उसकी हमसफ़र बन चुकी है।

    रात गहरा चुकी थी। हवाओं में हल्की सी ठंडक और सन्नाटा था, जो किसी पुराने गीत की तरह दिल को छू रहा था। पूरी हवेली नींद की आगोश में थी, बस छत पर दो दिल जाग रहे थे — अरमान और अवनी।

    छत की मुंडेर से टिकी उनकी पीठ, आंखें आकाश की ओर — जहां अनगिनत तारे टिमटिमा रहे थे। चांदनी उनकी झिलमिलाती निगाहों पर बिछी हुई थी, जैसे आसमान भी उनकी खामोश बातों को सुन रहा हो।

    अरमान ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा,
    "क्या तारे भी प्यार करते होंगे?"

    उसकी आवाज़ में अब वो बच्चा नहीं था जो चॉकलेट के लिए रोता है। उसमें एक गहराई थी — जैसे उसने खुद से कोई लंबी लड़ाई लड़ी हो और अब सवालों के ज़रिये अपनी ही भावनाओं को टटोल रहा हो।

    अवनी ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में चाँदनी का अक्स था और होठों पर हल्की सी मुस्कान।
    "हाँ," उसने धीरे से कहा, "लेकिन सिर्फ उन तारों से जो बिना शोर किए, हमेशा उनके साथ होते हैं।"

    अरमान उसकी बात को पूरी तरह नहीं समझ पाया। उसने सिर हिलाया और हल्के से मुस्कुरा दिया।

    पर अवनी समझ गई थी —
    वो मुस्कुराहट अब सिर्फ मासूमियत की नहीं थी।
    वो एक जज़्बात थी, जो जन्म ले रहा था —
    धीरे-धीरे, बिना कहे, बिना मांगे।

    उस मुस्कान में उस अरमान की झलक थी जो किसी को खो देने से नहीं, किसी को पा लेने से डरता था।

    और अवनी... वो अब सिर्फ अरमान के लिए जिम्मेदारी नहीं थी।
    वो उसकी जरूरत बन रही थी —
    उसके सवालों का जवाब, उसकी तन्हाइयों की आवाज़,
    और उसकी अधूरी दुनिया की सबसे खूबसूरत शुरुआत।

    छत पर पड़े-पड़े दोनों बस यूँ ही तारों को देखते रहे,
    शब्द ख़त्म हो चुके थे,
    पर शायद —
    प्यार की यही पहली पहचान होती है।

    अवनी की ज़िंदगी में पहली बार ऐसा हो रहा था कि वह अपने दिल की आवाज़ को महसूस कर रही थी — वह आवाज़ जो बहुत धीमी थी, लेकिन अब बेहद साफ़ सुनाई देने लगी थी। अब तक उसके हर फैसले पर समाज की उम्मीदों की धूल जमी रहती थी, परिवार की मर्यादाएँ उसकी सोच को सीमित करती थीं, और ज़िम्मेदारियों का बोझ उसके दिल की हर धड़कन को दबा देता था। लेकिन अरमान की नज़दीकी ने जैसे एक-एक करके उन तमाम परतों को उतार दिया था।

    वो अरमान की आंखों में झाँकती थी, तो उसे कोई मजबूरी नहीं दिखती थी... बस एक सच्चा सा सवाल होता था — "क्या तुम मुझे ऐसे ही अपनाओगी, जैसे मैं हूँ?" और अवनी अब खुद से जवाब नहीं छुपा पा रही थी।

    उसका मन बार-बार कहता — "ये बच्चा नहीं है... ये मेरा पति है। मेरा अधूरा हिस्सा, जो अब धीरे-धीरे मुझे पूरा कर रहा है।"

    अरमान की मासूम हँसी, उसका सिर उसके कंधे पर रख देना, उसका यूँ ही पल भर को उसकी गोदी में सो जाना — ये सब अब उसे किसी ज़िम्मेदारी की तरह नहीं, बल्कि एक आत्मीय रिश्ते की तरह लगने लगा था। ऐसा रिश्ता जो न तो परिभाषाओं में बंधा था, न ही समाज की कसौटियों पर खरा उतरने की कोशिश कर रहा था।

    वो रिश्ता अब उसे हर दिन अपनाने लगा था — और अवनी ने भी, अनकहे ही सही, उसे अपना कहना शुरू कर दिया था। अब अरमान सिर्फ उसकी ज़िम्मेदारी नहीं रहा, वह उसका साथी, उसका हमसफ़र बन रहा था — और सबसे बढ़कर, उसका प्यार।

    सुबह की हल्की धूप रसोई की खिड़की से भीतर झाँक रही थी। चाय का उबाल धीमे-धीमे उफान पर था और अवनी उसमें इलायची डाल रही थी, जैसे हर बार डालती थी — पर आज कुछ अलग था। शायद रात की वो छत वाली बात अब भी उसके दिल में हलचल मचा रही थी। तभी पीछे से एक जानी-पहचानी, लेकिन इस बार थोड़ी और गहराई लिए आवाज़ आई —

    "आज तुम्हारे हाथ की चाय पीने का मन है।"

    अवनी ने पलटकर देखा — अरमान खड़ा था, हल्के से मुस्कुराता हुआ। उसकी आँखों में अब भी वही भोलापन था, पर आज उसमें एक नर्म सी संजीदगी थी — जैसे कोई मासूम बच्चा अब धीरे-धीरे दुनिया को महसूस करना सीख रहा हो।

    अवनी ने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा और फिर बिना कुछ कहे, कप में चाय उंडेलने लगी। उसने ध्यान से अरमान का पसंदीदा नीला मग उठाया — वही, जिसमें वो हर बार दूध पीना पसंद करता था। मगर आज उसमें चाय जा रही थी — पहली बार।

    अरमान ने मग हाथ में लिया, और चाय का पहला घूंट लिया। फिर आँखें बंद करके जैसे उस स्वाद को महसूस किया। और जब आँखें खोलीं, तो उनमें एक अलग सी चमक थी।

    "अब समझ आया मम्मी क्यों कहती थीं कि तुम सबका इतना ध्यान रखती हो… तुम्हारे हाथ में तो सच में जादू है।"

    उसके शब्दों में कोई बनावट नहीं थी — बस एक सच्ची, भोली सी स्वीकारोक्ति थी, जिसमें न तारीफ़ छुपी थी, न किसी किस्म का इरादा… बस दिल से निकली एक सीधी बात।

    अवनी कुछ पल के लिए बस उसे देखती रही — उस मासूम चेहरे को, जो अब धीरे-धीरे उसके दिल की सबसे सुकूनभरी जगह बनने लगा था।
    वो सोचने लगी, क्या हर रिश्ता समझ से शुरू नहीं होता… और फिर बिना शर्त, बिना परिभाषा के बस "महसूस" बन जाता है?

    अवनी ने पहली बार गौर से उसकी आँखों में देखा — उनमें अब सिर्फ बचपन नहीं था, एक चाहत थी… एक ऐसी सच्ची चाहत, जो बिना कहे बहुत कुछ कह गई।

    दिन बीतते गए… और जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया, अरमान की नज़रों में अवनी के लिए कुछ बदलने लगा था। अब वो उस बचपने वाली जिद में नहीं उलझता था, कि "अवनी मेरी है, सिर्फ मेरी।"
    अब उसके अंदर एक हल्की सी समझदारी आने लगी थी, जिसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल था।

    हर छोटी बात में अब अवनी ही उसकी पहली पसंद बन गई थी —
    सुबह उठते ही पूछता, "अवनी, कौन-से कपड़े पहनूं आज? लाल वाला टी-शर्ट या नीला?"
    अवनी हँसकर कहती, "लाल वाला। वो रंग तुम्हारे चेहरे पर खिलता है।"
    और वो बिना किसी बहस के वही पहन लेता।

    कभी दोपहर में स्केच बनाता और तुरंत उसके पास दौड़ आता,
    "अवनी, देखो ये मेरी नई ड्रॉइंग। इसमें तुम हो और मैं भी… अच्छा बनाया है ना?"
    अवनी मुस्कराकर उसका सिर सहला देती, "बहुत अच्छा बनाया है, अब तुम पहले से भी बेहतर हो गए हो।"
    ये सुनते ही उसके चेहरे पर बच्चे-सी चमक आ जाती।

    रात के खाने से पहले भी वो पूछता,
    "आज खाना क्या बनेगा? मेरी पसंद चलेगी या तुम्हारी?"
    अवनी कहती, "तुम्हारी पसंद बनेगी, लेकिन तुम मेरे हाथ से खाओगे।"
    वो तुरंत मुस्कराता, "तुम्हारे हाथ का खाना तो मम्मी से भी अच्छा लगता है अब।"

    इन सारी बातों के बीच अंशुमान चुपचाप ये बदलाव देखता रहा।
    एक दिन, जब अरमान और अवनी साथ बैठकर कोई फोटो एल्बम देख रहे थे और दोनों की हँसी पूरे कमरे में गूंज रही थी,
    अंशुमान ने पास से गुजरते हुए हल्के से मुस्कराकर कहा —
    "भाई बड़ा हो रहा है…"

    उसके चेहरे पर गर्व भी था और एक संतोष भी।

    उस दिन रात को, जब अरमान अपने कमरे में बैठा था, अंशुमान वहाँ आया।
    उसने बिना भूमिका के कहा —
    "अरमान, पत्नी का मतलब सिर्फ वो लड़की नहीं होती जो तुम्हारे साथ सोती हो, या जिसे तुम ज़िद से पा लो।
    पत्नी तुम्हारी बराबरी की साथी होती है। उसका सम्मान करना, उसकी पसंद-नापसंद समझना, और उसे वो सुकून देना जिससे वो खुद को सुरक्षित महसूस करे — यही असली पति का फ़र्ज़ होता है।"

    अरमान कुछ नहीं बोला।
    उसने बस ध्यान से अपने भाई की हर बात को सुना।
    उसकी आँखों में कोई सवाल नहीं था — बल्कि एक गहराई थी, जैसे हर शब्द को दिल में दर्ज कर रहा हो।

    एक शाम की बात अवनी जब कमरे में आई। तो उसे कुछ ऐसा मिला जिसे देख वो हैरान रह गई।

    तो आप सब को क्या लगता है,
    क्या मिला होगा अवनी को?
    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी…

  • 9. My Innocent husband - Chapter 9 अवनी मुझे अच्छी लगती है… बहुत ज़्यादा

    Words: 1594

    Estimated Reading Time: 10 min

    तुम्हारी बराबरी की साथी होती है। उसका सम्मान करना, उसकी पसंद-नापसंद समझना, और उसे वो सुकून देना जिससे वो खुद को सुरक्षित महसूस करे — यही असली पति का फ़र्ज़ होता है।"

    अरमान कुछ नहीं बोला।

    उसने बस ध्यान से अपने भाई की हर बात को सुना।

    उसकी आँखों में कोई सवाल नहीं था — बल्कि एक गहराई थी, जैसे हर शब्द को दिल में दर्ज कर रहा हो।

    एक शाम…

    अरमान नीचे लॉन में अंशुमान के साथ पतंग उड़ा रहा था, और अवनी ऊपर कमरे में उसकी अलमारी में कुछ जरूरी कागज़ात ढूंढ रही थी। किताबें, पुराने रंग-बिरंगे स्केचबुक, ड्राइंग की क्रेयॉन्स, और कुछ अधूरी कलाकृतियाँ — सब कुछ उसी में बिखरा था, जैसे अरमान का मन।

    तभी उसकी उंगलियाँ एक हल्की सी नीली डायरी पर ठहर गईं — किनारों से थोड़ी घिसी हुई, पर अब भी साफ़। बस यूँ ही, न जाने क्यों, उसने वो डायरी खोल ली।

    अंदर की लिखावट देखकर वो मुस्कुरा दी — टेढ़े-मेढ़े, गोल-मटोल अक्षर, जिनमें कहीं कोई बाल सुलभ मासूमियत थी। पन्ना पलटते ही एक जगह उसकी नज़र अटक गई।

    "अवनी मुझे अच्छी लगती है… बहुत ज़्यादा।"

    शब्दों के ठीक नीचे एक पेंसिल से बना स्केच था — लड़की बालों को पीछे किए मुस्कुरा रही थी, और पास में एक लड़का बैठा था — उसकी तरफ़ टेढ़ा झुका हुआ, जैसे कुछ कह रहा हो।

    अवनी ने एक पल को सब कुछ छोड़ दिया — अपनी सांस, अपनी धड़कन… सब थम सा गया।

    ये वही दृश्य था, जब पिछली बार वो दोनों छत पर बैठे थे — अरमान ने उसे बिना कुछ कहे देखा था, और मुस्कुराया था।

    उस मुस्कुराहट का मतलब अब समझ आया था।

    अवनी की आँखों में नमी उतर आई। ये कोई बच्चा नहीं था जिसे बस चीजें अच्छी लगती थीं। ये एक मासूम दिल था, जो अपने तरीके से प्यार को महसूस कर रहा था… और उसे धीरे-धीरे शब्द दे रहा था।

    उसने वह पन्ना बहुत धीरे से बंद कर दिया, जैसे कोई अनमोल खज़ाना वापस तहख़ाने में रख रही हो।

    कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं थी।

    बस दिल में कहीं एक मीठा सा दर्द उभर आया — एक एहसास, जो न सवाल करता था, न जवाब मांगता था… बस चुपचाप एहसास बनकर बैठ गया था।

    शाम का वक्त था…

    बाहर बारिश अपनी पूरी रफ़्तार में थी। छत पर गिरती बूंदों की टप-टप, खिड़कियों से आती ठंडी हवा, और घर के अंदर एक अलग ही सुकून का माहौल। अचानक बिजली चली गई।

    सुमित्रा जी ने मोमबत्तियाँ जलाईं — उनकी हल्की-हल्की लौ ने ड्राइंग रूम की दीवारों पर परछाइयाँ बना दीं।

    सब एक घेरे में बैठ गए। सरोज बुआ ने पुराने गानों की धुन छेड़ी और ब्रिजेश जी गुनगुनाने लगे —

    "कुछ तो लोग कहेंगे… लोगों का काम है कहना…"

    माहौल में हल्कापन और अपनापन दोनों घुल चुके थे। हँसी, बातें, और बारिश की खुशबू… सब मिलकर जैसे किसी पुराने किस्से की शाम बना रहे थे।

    तभी अरमान, जो अब तक कोने में बैठा सबको देख रहा था, अचानक बोला —

    "मैं एक कहानी सुनाऊँ?"

    सबने एक साथ कहा — "हाँ!"

    उसके चेहरे पर चमक आ गई, जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी बनाई तस्वीर सबको दिखाने वाला हो।

    उसने धीमे-धीमे शुरू किया —

    "एक लड़की थी… बहुत सुंदर। उसकी मुस्कान देखके लगता था जैसे फूल खिल गए हों।

    और एक लड़का था… थोड़ा मासूम… लेकिन दिल से सच्चा। वो कभी झूठ नहीं बोलता था, और न किसी का दिल दुखाता था।

    शुरू में लड़की उसे बस जानती थी… लेकिन फिर… वो उसे पसंद करने लगी… नहीं, उससे प्यार करने लगी…

    क्योंकि उसे लगा… दुनिया में सब बदल सकते हैं… लेकिन वो मासूम लड़का… हमेशा सच्चा रहेगा।"

    कहानी सुनते ही सब हँसने लगे।

    सरोज बुआ ने चुटकी ली — "अरे वाह, अरमान! ये कहानी तो कहीं सुनी-सुनाई लग रही है!"

    ब्रिजेश जी ने भी हँसकर कहा — "हाँ बेटा, ये लड़की कहीं हमारे घर में तो नहीं?"

    सबके चेहरों पर मुस्कान थी, लेकिन…

    अवनी चुप थी।

    उसके हाथ में मोमबत्ती थी, जिसकी लौ हल्के-हल्के कांप रही थी।

    उसकी आँखें सिर्फ अरमान पर टिकी थीं —

    वो देख रही थी, सुन रही थी… और महसूस कर रही थी कि ये कहानी सिर्फ कहानी नहीं थी।

    उसके दिल के अंदर कहीं… बारिश की बूंदों की तरह कोई धीमी-धीमी धुन बज रही थी।

    एक अनकहा सच… जो मोमबत्ती की उस नर्म रौशनी में और साफ़ दिखने लगा था।

    कुछ दिनों बाद…

    सुबह का समय था, कपूर विला में हर तरफ़ उत्साह था। अंशुमान को उसकी पहली नौकरी का ऑफ़र लेटर मिल गया था — एक बड़े शहर में, एक बेहतरीन कंपनी में।

    सुमित्रा जी ने मिठाई का डिब्बा निकाला, सरोज बुआ ने हलवा बनाया, और ब्रिजेश जी बार-बार कह रहे थे — "देखा, मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।"

    उस शाम घर में एक छोटी-सी विदाई की रस्म रखी गई। मोमबत्ती की हल्की रोशनी, हँसी-मज़ाक, और मिठाइयों की खुशबू माहौल में घुली हुई थी।

    सबने बारी-बारी से अंशुमान के लिए कुछ कहा — ब्रिजेश जी ने आशीर्वाद दिया, बुआजी ने आँखों में नमी के साथ दुआएँ दीं, और अरमान ने मासूमियत से बोला —

    "तू जल्दी वापस आना, हम पतंग फिर से उड़ाएँगे।"

    अंत में, अंशुमान ने नज़रें अवनी की ओर मोड़ीं।

    वो एक पल चुप रहा, फिर नर्म आवाज़ में बोला —

    "अब तुम्हारे और भाई के बीच कोई पर्दा नहीं है… अब बस एक-दूसरे का साथ निभाना है।"

    उसके शब्दों में कोई भारीपन नहीं था, लेकिन उसमें एक सच्चाई थी, जो सीधे दिल में उतर गई।

    अवनी ने सिर्फ हल्का सा सिर हिला दिया, लेकिन उसके अंदर कुछ देर तक अजीब-सी खामोशी गूँजती रही।

    अगले दिन अंशुमान चला गया।

    लेकिन जाते-जाते, वो अपने पीछे सिर्फ खाली कमरा नहीं छोड़ गया — उसने अपने शब्द अवनी के दिल में जैसे बसा दिए थे।

    अब अरमान की आदतें बदलने लगीं।

    वो पहले भी अवनी से राय लेता था — "ये रंग अच्छा है ना?" — लेकिन अब उसके सवाल बदल गए थे।

    अब वो पूछता — "तुम्हें लगता है, मुझे ये करना चाहिए?", "अगर तुम होती तो क्या करती?"

    उसकी आँखों में अब एक अलग-सी गहराई थी — जैसे वो अवनी को सिर्फ पसंद नहीं करता, बल्कि उसकी मौजूदगी को ज़रूरी मानता है।

    अवनी ने महसूस किया — ये रिश्ता अब सिर्फ रोज़मर्रा की आदत नहीं रहा, ये धीरे-धीरे एक गहरी साझेदारी में बदल रहा था।

    एक रात…

    पूरा घर नींद में था। बाहर कहीं दूर से बारिश की हल्की सी आवाज़ आ रही थी, और कमरे में सिर्फ़ टेबल लैंप की कोमल रोशनी जल रही थी।

    अवनी दिन भर के काम के बाद बेहद थकी हुई थी। वो पलंग के कोने पर बैठी चुपचाप अपनी साड़ी का पल्लू ठीक कर रही थी।

    तभी पीछे से हल्के कदमों की आहट आई।

    अरमान चुपचाप पास आया, बिना कुछ कहे पलंग के किनारे बैठ गया।

    उसने धीरे से अवनी के पैर अपनी गोद में रख लिए और दोनों हथेलियों से उन्हें सहलाने लगा, फिर धीरे-धीरे दबाने लगा।

    अवनी चौंकी, "अरमान… रहने दो, मैं ठीक हूँ।"

    उसकी आवाज़ में हल्का-सा विरोध था, लेकिन उसमें थकान की लकीरें साफ़ थीं।

    अरमान ने कुछ नहीं कहा — बस ऊपर देखा, उसकी आँखों में वही पुरानी मासूमियत थी… लेकिन इस बार उसमें एक सच्चा अपनापन और पूरी तरह से समर्पण का भाव भी था।

    जैसे वो कहना चाहता हो — "तुम मेरी हो, और तुम्हारी थकान भी मेरी है।"

    अवनी ने फिर कुछ नहीं कहा।

    वो बस चुपचाप उसे देखती रही — उसकी उँगलियों का हल्का दबाव, उसका ध्यान, और उसका चेहरा… वो चेहरा, जो अब उसकी ज़िंदगी का सबसे सच्चा हिस्सा बन चुका था।

    उस पल में, किसी ने “पति-पत्नी” की परिभाषा नहीं दी… लेकिन जो एहसास दोनों के बीच बह रहा था, वही असल रिश्ता था — बिना शर्त, बिना दिखावे का।

    कमरे में एक अजीब-सी खामोशी पसरी हुई थी।

    न कोई हलचल, न कोई आवाज़… बस उनके बीच बहती हुई साँसों की धीमी सरसराहट।

    लैंप की हल्की रोशनी में अरमान ने चुपचाप उसका हाथ अपने हाथ में लिया। उसकी हथेली की गर्माहट, जैसे सारी थकान को धीरे-धीरे सोख रही हो।

    वो अवनी के कंधे से लगकर बैठ गया — इतना पास कि उसकी धड़कनें साफ़ सुनाई देने लगीं।

    कोई शब्द नहीं थे, कोई औपचारिक वादा नहीं, लेकिन उस स्पर्श में एक गहरा अपनापन था… एक भरोसा, जो किसी भी कसम से ज़्यादा मजबूत था… एक अनकहा वादा कि "मैं हमेशा यहीं रहूँगा।"

    अवनी ने पहली बार बिना किसी झिझक के उसका सिर सहलाया।

    उस एहसास में एक अजीब सुकून था — जैसे उसने अपनी पूरी दुनिया थाम ली हो, जैसे उसके हाथों में किसी का पूरा जीवन आकर ठहर गया हो।

    अरमान की पलकें भारी होने लगीं, और वो धीरे-धीरे अपनी आँखें बंद कर गया।

    वो अवनी के कंधे से टिक गया — बिल्कुल वैसे, जैसे कोई मासूम बच्चा अपनी माँ की गोद में सुकून ढूंढता है, बिना किसी डर के, पूरी तरह निश्चिंत होकर।

    अवनी की नज़रें बस उसी पर टिकी रहीं।

    वो पल बीत रहा था, लेकिन उसके लिए जैसे समय थम गया था।

    उसकी उंगलियाँ अब भी अरमान के बालों में उलझी हुई थीं, और उसके दिल में एक ही बात गूंज रही थी —

    "शायद यही मेरा घर है।"

    --

    क्या अब अवनी अपने इस प्यार को ज़िंदगी भर निभा पाएगी?

    क्या अरमान की मासूम चाहत अब एक समझदार, गहरे रिश्ते में बदल रही है?

    और क्या अंशुमान की सीख सचमुच दोनों को एक नई दिशा देने में सफल हो पाएगी?

    आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी " My Innocent Husband" ………

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  • 10. My Innocent husband - Chapter 10 वो अनकहा एहसास और पहली किस

    Words: 1523

    Estimated Reading Time: 10 min

    कपूर विला की छत उस शाम जैसे अपने भीतर एक अनकही कहानी समेटे थी।
    नीली-सी चाँदनी बिखरी हुई थी, लेकिन चाँद अधूरा था—कुछ बादलों में छिपा, कुछ झाँकता हुआ… बिल्कुल वैसे जैसे अवनी की भावनाएँ, जो कभी सामने आतीं, कभी खुद में छिप जातीं।

    हवा में हल्की ठंडक थी, जो गालों को छूकर गुजर रही थी, लेकिन अवनी के दिल की बेचैनी उस ठंड से कहीं ज़्यादा तीखी थी।
    वो छत के कोने पर बैठी थी, घुटनों को बाँधकर, नज़रें दूर आसमान पर टिकाए—मानो उन तारों में अपने जवाब ढूँढ रही हो।

    उसके भीतर जैसे दो अलग-अलग धड़कनें चल रही थीं।
    एक धड़कन, जो अरमान की मासूम हँसी पर खिल उठती… और दूसरी, जो खुद पर झुंझलाकर सवाल करती—“क्या मैं सच में बदल रही हूँ… या बस बह रही हूँ?”

    उसकी सोचों का समुंदर बार-बार अरमान की मुस्कान की लहर से टकरा रहा था।
    वो याद कर रही थी, कैसे कभी उसकी छोटी-सी हरकत—गिलास में उसके लिए पानी भरना, उसके बाल बिगाड़कर हँस देना—उसके होंठों पर अनजानी मुस्कान ला देती थी।
    और फिर, उसी मुस्कान के पीछे कहीं उसका अपना अधूरापन, उसका अतीत, उसकी चुप्पियाँ… सब लौट आते थे।

    वो अपनी ही उलझनों में डूबी थी, जब पीछे से किसी के आने की आहट हुई।
    उसने धीमे से मुड़कर देखा—अरमान था।
    सफेद टी-शर्ट, बिखरे बाल, और चेहरे पर वही निश्छल चमक…
    उसके हाथ में दो कॉफी के मग थे, जिनसे भाप हल्के-हल्के ऊपर उठ रही थी।

    वो पास आकर बोला,
    "तुम अकेली बैठी हो… सोचा, तुम्हें कंपनी दूँ।"
    उसने एक मग उसकी तरफ बढ़ाया, और बिना कुछ कहे उसके पास बैठ गया।

    अवनी ने हल्की मुस्कान के साथ कप थाम लिया। कॉफी की गर्माहट जैसे उसकी ठंडी उंगलियों में धीरे-धीरे उतर रही थी, लेकिन दिल की धड़कन अब भी अपनी ही रफ्तार में चल रही थी।
    दोनों ने एक साथ कप होंठों से लगाया, और फिर बस चुप… न कोई सवाल, न कोई जवाब।

    वो ख़ामोशी अजीब नहीं थी—वो किसी पुराने, भरोसेमंद गीत की तरह थी, जिसमें कोई शब्द नहीं होते, लेकिन फिर भी दिल समझ लेता है।
    बस पास बैठने की आहट, कॉफी के कप से उठती भाप, और कभी-कभी हवा में पत्तों की सरसराहट।

    अचानक एक हल्की हवा का झोंका आया।
    अवनी के कुछ बाल उसके चेहरे पर बिखर गए—काले, रेशमी, नर्म लटें, जो उसकी आँखों को ढकने लगीं।
    अरमान ने बिना सोचे, बिल्कुल सहजता से, अपना हाथ बढ़ाया। उसकी उंगलियाँ बहुत हल्के से उन लटों को उसके कान के पीछे सरकाने लगीं।

    और तभी… उनकी नज़रें मिलीं।
    जैसे किसी ने पूरे आसमान को एक पल के लिए थाम लिया हो।

    अरमान की उंगलियों का वो हल्का सा स्पर्श अवनी के दिल में कहीं गहराई तक उतर गया—एक अनकही, अनजानी सरगर्मी की तरह।
    वो एक साधारण सा पल था, पर उसमें कुछ ऐसा था जो उसे समझा रहा था कि अब ये रिश्ता सिर्फ नाम का नहीं रहा।

    अवनी की साँसें धीमे-धीमे तेज़ हो रही थीं।
    अरमान का हाथ अब भी उसके गाल के पास था, और उनकी आँखों में कुछ था—झिझक, अपनापन, और वो जादू… जो अगर किसी ने ज़रा भी हिलाया, तो टूट जाएगा।

    दोनों बस एक-दूसरे को देख रहे थे, और उस नज़र में वो सब था जो अब तक शब्दों में नहीं कहा गया था।
    शायद कहने की ज़रूरत भी नहीं थी…

    अगले ही पल, अवनी के हाथों का वो स्पर्श अरमान को पूरी तरह थाम चुका था।
    उसके दोनों हाथ उसके गालों पर थे — न बहुत कसकर, न बहुत ढीले — बस इतना कि उसके चेहरे की गर्माहट महसूस हो सके।

    अरमान की साँसें हल्की-हल्की काँप रही थीं, और आँखों में वो मासूमियत अब थोड़ी उलझन में बदल गई थी।
    अवनी ने उसकी नज़रों में गहराई से देखा — जैसे वो उस मासूमियत में छिपी हर परत को पढ़ लेना चाहती हो।
    उसका अपना दिल भी तेज़ धड़क रहा था, लेकिन इस बार उसने उस धड़कन को रोका नहीं…
    बल्कि, महसूस किया।

    उस हल्के, अनजाने लिप किस ने मानो उसके अंदर की सारी जमी हुई बर्फ को पिघला दिया था।
    वो अब सोच नहीं रही थी कि ये सही है या गलत — वो बस उस पल में थी।

    धीरे-धीरे उसने अपना माथा उसके माथे से लगा लिया।
    दोनों की साँसें एक-दूसरे में घुलने लगीं।
    अरमान की पलकों ने एक बार झपक कर उसकी आँखों में झाँका, जैसे वो पूछ रहा हो — "ये क्या हो रहा है?"

    अवनी ने सिर्फ फुसफुसाकर कहा,
    "कुछ भी… पर झूठा नहीं।"

    और फिर, उसने उसे अपने करीब खींच लिया —
    इतना करीब कि उनके बीच अब न सवाल थे, न जवाब,
    बस एक अनकहा भरोसा… और एक नई शुरुआत का एहसास।

    उस पल में जैसे पूरी दुनिया थम गई थी।
    चारों तरफ़ बस बारिश की हल्की बूंदों की सरसराहट थी, और उनके बीच वो गहराता हुआ एहसास।

    अवनी का चेहरा अरमान के बेहद करीब था, उसकी हथेलियाँ उसके गालों को ऐसे थामे थीं जैसे वहाँ से सारा सुकून खींच लेना चाहती हों।
    उसकी उंगलियों का हल्का-सा दबाव अरमान की धड़कनों को और तेज़ कर रहा था।

    अरमान पहले तो जैसे ठिठक गया—उसकी सांसें रुक सी गईं, आँखों में एक मासूम हैरानी थी।
    लेकिन फिर, जैसे किसी ने उसके भीतर की सारी झिझक धीरे-धीरे पिघला दी हो, उसने पलकों को बंद कर लिया और खुद को उस पल के हवाले कर दिया।

    अवनी के होंठों की नर्मी और उनमें भरा अपनापन, अरमान के सीने में गूंजते एक अनजाने संगीत जैसा था।
    उसने धीरे-धीरे अपना हाथ बढ़ाकर अवनी की कमर को थाम लिया—ना ज़ोर से, ना ढीला—बस इतना कि उसे यकीन रहे कि ये पल उनका है और कोई उसे छीन नहीं सकता।

    बारिश की ठंडी हवा उनके गीले बालों से खेल रही थी, लेकिन उनके बीच का तापमान सिर्फ बढ़ता जा रहा था।
    वो चुंबन अब सिर्फ एक अनजाना स्पर्श नहीं था—वो एक रिश्ता था, जो बिना शब्दों के अपनी परिभाषा खुद लिख रहा था।

    उस पल में अवनी को लगा कि वो अरमान से दूर नहीं रह सकती। उसकी हर मासूम हरकत, हर भोली बात अब उसे और करीब ला रही थी। उसने अपनी बाँहें उसके गले में डाल दीं और उसे खुद से भी ज़्यादा कसकर थाम लिया।

    अरमान ने भी उसे हल्के से अपनी ओर खींचा। वो अब बच्चा नहीं लग रहा था, वो एक पुरुष था जो प्यार महसूस कर रहा था — अपने तरीके से, अपनी गति से।

    उस रात की चुप्पी में सिर्फ दिलों की धड़कनें गूंज रही थीं। दोनों की साँसें तेज़ थीं, लेकिन डर नहीं था। उसमें अब भरोसा था।

    अवनी ने धीरे से अपना माथा अरमान के माथे से सटाया। उसकी उंगलियाँ अब भी अरमान की आँखों पर टिकी थीं, जैसे उस मासूम उलझन को सहला रही हों।
    अरमान ने पलकों के पीछे से उसकी गर्मी महसूस की, और हल्के से उसकी हथेलियों को थाम लिया।

    अवनी के होंठों पर एक कोमल मुस्कान थी—वो मुस्कान जो सिर्फ स्वीकार नहीं, बल्कि एक वादा थी। उसकी आँखें जैसे कह रही हों, "ये रिश्ता अब मेरा है… पूरी तरह।"

    अरमान की सांसें स्थिर हो रही थीं, पर उसकी छाती के अंदर दिल अब भी तेज़ी से धड़क रहा था।
    वो कुछ समझ नहीं पा रहा था, लेकिन उसे इतना अहसास था कि अवनी का ये स्पर्श अलग है—पहले जैसा नहीं। इसमें अपनापन था, सच्चाई थी, और एक अजीब-सी ताक़त भी।

    अवनी ने मन ही मन ठान लिया—अब वो अपने दिल की आवाज़ को दबाकर नहीं रखेगी।
    वो अरमान के साथ हर कदम चलेगी, उसे संभालेगी, और उसे उस प्यार की गहराई तक ले जाएगी जो धीरे-धीरे, लेकिन पूरी सच्चाई से पनप रहा है।

    उसने अपनी हथेलियाँ उसके गालों तक खिसकाईं, एक आख़िरी बार उसकी आँखों में गहराई से देखा… और बस इतनी सी फुसफुसाहट की—
    "तुम मेरे हो।"

    उस चुंबन ने उन दोनों के बीच की सारी अदृश्य दीवारें तोड़ दी थीं। जैसे किसी ने वक्त को थाम लिया हो, और सारी दुनिया उनके लिए थम-सी गई हो। अवनी को लग रहा था मानो वह किसी खूबसूरत ख्वाब में हो, जहाँ कोई रोक-टोक, कोई झिझक नहीं — बस वही और अरमान।
    उसका दिल हल्के-हल्के धड़क रहा था, साँसें अब धीरे-धीरे शांत हो रही थीं, जैसे तूफ़ान के बाद की ठंडी हवा। उसकी पलकों पर अब भी चुंबन की गरमाहट चिपकी हुई थी।

    लेकिन अरमान… उसकी हालत तो जैसे अवनी से बिलकुल उलट थी। उसकी साँसें अनियमित और तेज़ थीं, जैसे किसी ने अभी-अभी उसके सीने में आग भर दी हो। उसकी छाती हर सांस के साथ ऊपर-नीचे हो रही थी, मानो दिल के अंदर का सारा जज़्बा बाहर निकलने को बेक़रार हो।

    इतना तेज़, इतना गहरा… कि अवनी को भी वो धड़कन साफ़ सुनाई दे रही थी — जैसे कोई ढोल उसके कानों के पास बज रहा हो।

    अरमान की आँखों में चाह का तूफ़ान था, जिसमें हल्की-सी पागलपन की चमक भी झलक रही थी। उसकी नज़रें अवनी के चेहरे पर अटकी थीं, होंठों पर जैसे अभी भी उस चुंबन का स्वाद बाकी था।
    अवनी ने अनजाने में नज़रें झुका लीं, लेकिन उसके भीतर एक अजीब-सी गुदगुदाहट थी — डर, खुशी, और हल्का-सा नशा… सब एक साथ।

    तभी अरमान ने कुछ ऐसा किया... जो अवनी ने कभी सोचा भी नहीं था।

    तो आप सब को क्या लगता है,
    क्या करेगा अरमान?

    आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी " My Innocent Husband"

    Thank you for reading this chapter ।

  • 11. My Innocent husband - Chapter 11 उलझन की चुप्पी

    Words: 1626

    Estimated Reading Time: 10 min

    अवनी ने ध्यान से देखा—अरमान के होंठों पर ज़रा-सी भी मुस्कान नहीं थी। वो पल जो उसने सोचा था कि खुशी और सुकून से भरा होगा, उसमें एक अजीब-सी बेचैनी तैर रही थी। उसकी आँखों में झाँकते ही अवनी को वो मासूमियत दिखी, जो हमेशा से वहाँ थी… लेकिन आज उस मासूमियत के पीछे एक अंधेरा था, एक अनजाना भय।

    अरमान जैसे किसी गहरे जाल में फँसा हो, जहाँ से बाहर निकलने का रास्ता उसे नज़र नहीं आ रहा था। उसके सीने में धड़कन इतनी तेज़ हो चुकी थी कि जैसे हर धड़कन कह रही हो—“कुछ ग़लत हो गया है… और इसे मैं सँभाल नहीं पाऊँगा।”

    उसके माथे पर पसीने की नन्ही बूंदें चमकने लगीं। वो बार-बार होंठ भींच रहा था, जैसे खुद को काबू में रखने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन अंदर से टूट रहा था। अवनी ने धीमे से उसका नाम पुकारा—

    "अरमान…?"

    उसकी आवाज़ में चिंता थी, लेकिन वो शब्द अरमान के कानों तक जाते-जाते खो गए।

    उसकी साँस और भी तेज़ हो गई, जैसे हवा भी उसके सीने में फँसकर उसे घुटन दे रही हो। उसके चेहरे पर एक पल के लिए ऐसा भाव आया मानो उसका दिल फट जाएगा, जैसे उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा डर सामने खड़ा हो।

    अगले ही पल, उसने झटके से अवनी को धक्का दिया और नीचे की ओर भाग खड़ा हुआ।

    अवनी वहीं छत पर जड़-सी खड़ी रह गई। उसके चारों ओर ठंडी हवा बह रही थी, लेकिन उसके भीतर मानो सब कुछ सन्नाटे में जम गया हो।

    उसके होंठों पर अब भी अरमान की वह पहली मासूम छुअन की हल्की-सी गुनगुनाहट बाकी थी—वो पल जो अभी-अभी उसकी जिंदगी का सबसे सुंदर एहसास बना था—लेकिन अब, उसी पल की मिठास किसी ने एक झटके में तोड़ दी थी।

    उसके दिल में सवालों का तूफ़ान उठने लगा—“अचानक ऐसा क्यों किया उसने? मैंने… क्या मैंने कुछ गलत किया?”

    वो उसे पुकारने ही वाली थी, लेकिन उसके होंठ जैसे सिले रह गए।

    उसके कदम ज़मीन में ऐसे गड़ गए, जैसे शरीर ने उससे आगे बढ़ने से इंकार कर दिया हो।

    उसकी आँखों में नमी उतर आई, दिल की धड़कन तेज़ और भारी हो गई।

    उसके सामने बार-बार अरमान का चेहरा घूम रहा था—वही चेहरा, जिसमें अब भी मासूमियत थी, लेकिन उस मासूमियत के पीछे आज एक और चेहरा छिपा था… डर से भरा, घबराया हुआ, जैसे किसी अनदेखे साए ने उसे जकड़ लिया हो।

    अवनी समझ पा रही थी कि वो धक्का गुस्से से भरा नहीं था।

    वो धक्का था… किसी ऐसे डर का, जो अरमान के अंदर गहराई तक पैठ चुका था।

    एक ऐसा डर, जिसे वो देख तो सकती थी, लेकिन छूकर मिटा नहीं सकती थी।

    वहीं अरमान तेज़ कदमों से, लगभग दौड़ता हुआ, सीढ़ियाँ उतर गया। हर कदम के साथ उसके सीने में धड़कन इतनी जोर से गूँज रही थी, मानो उसका दिल खुद चीख रहा हो।

    उसके कानों में कुछ सुनाई नहीं दे रहा था—ना हवा की सरसराहट, ना नीचे से आती आवाज़ें—बस अपनी ही अनियंत्रित धड़कनों की धमक।

    वो सीधे अपने कमरे में घुसा, दरवाज़ा धड़ाम से बंद किया और पीठ टिकाकर खड़ा रह गया।

    एक पल को लगा, जैसे उसके पैरों में जान ही नहीं बची।

    बिना इधर-उधर देखे, वो लड़खड़ाते कदमों से बिस्तर की तरफ गया और लगभग गिरते हुए उस पर लुढ़क गया।

    एक झटके में उसने कम्बल उठाया और खुद को पूरी तरह उसमें लपेट लिया—जैसे बाहर की दुनिया से, लोगों की नज़रों से और… अपने ही एहसास से छुपना चाहता हो।

    अंधेरा और घुटन भरा कम्बल अब उसकी पनाह बन चुका था, लेकिन उसमें भी उसका चेहरा पसीने से भीगा हुआ था।

    उसकी साँसें इतनी तेज़ थीं कि खुद को ही सुनाई दे रही थीं।

    वो सांस रोककर सोने का नाटक करने लगा—मानो अगर वो हिलेगा, तो सब सच हो जाएगा, और उसका दिल उसी पल फट पड़ेगा।

    लेकिन कम्बल के अंदर भी, उसकी आँखों के सामने बार-बार वही चेहरा घूम रहा था—अवनी का।

    वो नज़र, जिसमें अनजानी कोमलता और कोई गहरी चाह थी।

    अरमान उस भावना को समझ नहीं पा रहा था, जो कुछ देर पहले उसे छूकर गई थी।

    पहली बार किसी ने उसे इस तरह छुआ था, और वो छुअन उसके सीने से होते हुए पूरे वजूद में फैल गई थी—मानो उसकी नस-नस में कोई अजनबी लहर दौड़ गई हो।

    लेकिन अरमान… प्यार नहीं समझता था।

    ना उसकी परिभाषा जानता था, ना उसका मतलब।

    उसके लिए ये एहसास किसी अनजान, डरावनी किताब के पहले पन्ने जैसा था—जिसे पढ़ने की हिम्मत वो जुटा नहीं पा रहा था।

    ठीक है, मैं इस पूरे हिस्से को और भी विस्तार, भावनाओं की गहराई और माहौल के साथ लिखता हूँ, ताकि ये अध्याय और भी प्रभावी और जीवंत लगे—

    ---

    उधर, अवनी धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतर रही थी।

    उसके कदम ऐसे भारी थे, मानो हर पायदान के साथ उसकी ताक़त उससे छिन रही हो।

    कमरे तक पहुँचते-पहुँचते उसकी टाँगों में जैसे जान ही नहीं बची।

    वो दरवाज़ा बंद करके पलंग के किनारे बैठ गई।

    उसकी आँखें बार-बार उसी पल को याद कर रही थीं—जब अरमान ने उसे देखा था।

    वो मासूम चेहरा… लेकिन आज उसमें कुछ और था।

    मासूमियत के नीचे छुपा हुआ डर, जो साफ़ झलक रहा था।

    उसके मन में एक ही सवाल गूँज रहा था—

    “क्या मैंने उसे डरा दिया?”

    जवाब कोई नहीं था, लेकिन उस सवाल ने उसके सीने में एक भारी बोझ डाल दिया।

    अवनी की आँखों से आँसू चुपचाप बह निकले।

    उसे लगा शायद उसने अपनी भावनाओं का भार अरमान पर लाद दिया, जो वो उठाने के लिए तैयार ही नहीं था।

    वो अपने घुटनों को सीने से लगाकर बैठ गई, जैसे खुद को छोटा करके दुनिया से छुपाना चाहती हो।

    ---

    दूसरी ओर, अरमान अपने कमरे में कम्बल में लिपटा काँप रहा था।

    उसके होंठ सूख चुके थे, आँखें बंद थीं, लेकिन अंदर तूफ़ान मचा था।

    उसके कानों में अब भी अपनी ही तेज़ धड़कनों की आवाज़ गूँज रही थी।

    “क्या मुझे बुखार हो गया है? मेरे दिल को क्या हो रहा है?”

    वो बुदबुदाया, लेकिन खुद ही चौंक गया।

    उसे नहीं पता था कि ये कोई बीमारी नहीं—ये तो बस दिल की धड़कन थी, जो आज पहली बार किसी के लिए इतनी तेज़ हो रही थी।

    उसने अपने सीने पर हाथ रखा—दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, जैसे भागकर आया हो।

    कुछ पल यूँ ही बैठा रहा, फिर थककर वापस लेट गया।

    कमरे में अंधेरा था, और चुप्पी इतनी गहरी कि उसके भीतर का शोर और ज़्यादा सुनाई दे रहा था।

    ---

    वहीं, अवनी ने खुद को समेटकर बैठा लिया। वो अब जान चुकी थी कि अरमान प्यार को नहीं समझता। लेकिन अब उसके पास पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं था।

    उसने मन ही मन ठान लिया— "अब मैं ही उसकी दुनिया बनूँगी।"

    ---

    अगली सुबह, अरमान पहले से भी ज्यादा चुप था। उसकी आँखों में किसी से मिलने की हिम्मत नहीं थी। अवनी ने नाश्ता तैयार किया, लेकिन उसने एक निवाला भी नहीं खाया।

    "मुझे भूख नहीं है," उसने कहा—आवाज़ डरी हुई और टूटती-सी। अवनी बस उसे देखती रही—कुछ बोले बिना। लेकिन उसकी चिंता हर पल गहराती जा रही थी।

    दिन भर अरमान अपने कमरे में बंद रहा। अवनी को दरवाज़े के पीछे से उसकी हल्की-हल्की आहट सुनाई देती थी—ये जानने के लिए कि वो वहाँ है।

    ---

    शाम ढल रही थी कि अचानक घर में एक परिचित, खुशमिज़ाज आवाज़ गूँजी—

    "भाई! कहाँ हो?"

    अंशुमान कपूर विला लौट आया था।

    छह महीने पहले वो पढ़ाई के लिए बाहर गया था, और अब लौटकर सबसे पहले अपने छोटे भाई को ढूँढ रहा था।

    अरमान बाहर नहीं आया। अंशुमान सीधा उसके कमरे में गया और उसे कम्बल में लिपटा देखकर हँस पड़ा— "अबे, क्या हुआ? डरपोक बन गया क्या?"

    अरमान ने धीरे से कम्बल से चेहरा निकाला। "भाई… मेरा दिल…" उसकी आवाज़ काँप रही थी।

    "क्या हो गया तेरे दिल को?" अंशुमान ने मजाकिया अंदाज़ में पूछा।

    "बहुत तेज़ धड़क रहा है… मैं मर जाऊँगा क्या?"

    अंशुमान को पहले तो हंसी आई, लेकिन उसने उसका माथा छूकर देखा— "अरे, बुखार तो नहीं है। तू इतना डरा क्यों हुआ है?"

    अरमान ने टुकड़ों में उसे छत वाली घटना बताई। अंशुमान सुनता रहा, फिर हल्की मुस्कान के साथ बोला— "तो तू बड़ा हो गया, भाई।"

    "नहीं! मैं नहीं चाहता ये सब। मुझे डर लगता है।" अरमान की आँखें सच्चे डर से भरी हुई थीं।

    "प्यार डर नहीं है, अरमान… वो तो सबसे प्यारी चीज़ है।" अंशुमान ने समझाया, लेकिन अरमान ने आँखें मूँद लीं—जैसे वो सुनना ही नहीं चाहता।

    "क्या मैं… मर जाऊँगा?"

    "अरे पगला! प्यार में कोई नहीं मरता। बस थोड़ा बदल जाता है।"

    अंशुमान ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा— "चल, बाहर चल। सब तुझे मिस कर रहे हैं।"

    लेकिन अरमान ने सिर हिला दिया— "नहीं, मैं यहीं रहूँगा।"

    अंशुमान ने समझ लिया—अभी समय देना होगा। वो बाहर आया और बरामदे में खड़ी अवनी को देखा। धीरे से बोला— "वो डरा हुआ है। लेकिन मैं हूँ ना, धीरे-धीरे सब समझा दूँगा।"

    अवनी ने सिर झुका लिया—उसकी आँखों में नमी थी।

    ---

    रात गहराने लगी।

    अरमान फिर से कम्बल में लिपट गया—जैसे बाहर की दुनिया से खुद को काट रहा हो। अवनी कमरे के बाहर खड़ी थी—मन में अनगिनत सवाल लिए। लेकिन उसके भीतर एक अडिग विश्वास भी था— एक दिन अरमान समझेगा कि प्यार क्या होता है।

    उसने खुद से वादा किया— "अब मैं पीछे नहीं हटूँगी।"

    वो चुपचाप दरवाज़े के बाहर बैठ गई—सिर्फ इंतज़ार में।

    ---

    तो आप सब को क्या लगता है—

    क्या अरमान उस मासूम डर को पार कर पाएगा?

    क्या अंशुमान उसे सिखा पाएगा कि प्यार डर नहीं, अपनापन होता है?

    क्या अवनी के सब्र और प्रेम से भरे कदम उसे उसके पति तक पहुँचा पाएँगे?

    आगे क्या हुआ, जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी कहानी …

    ---

    Thank you for reading this chapter!

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    आज के लिए इतना ही…

    मिलते हैं अगले चैप्टर में एक नए मोड़ के साथ।

  • 12. My Innocent husband - Chapter 12 अरमान ने किया अवनी को किस

    Words: 1673

    Estimated Reading Time: 11 min

    अगली सुबह सूरज की हल्की किरणें बालकनी में सुनहरी चादर-सी बिछा रही थीं।

    अरमान हमेशा की तरह वहाँ बैठा था—अपने खिलौनों को बड़े ध्यान से इधर-उधर रखता, फिर बदल देता, जैसे कोई गंभीर खेल खेल रहा हो।

    लेकिन आज उसके चेहरे पर कुछ और ही लिखा था—भौंहों के बीच हल्की-सी सिलवट, आँखों में उलझन, होंठों पर चुप्पी।

    अंशुमान ने बरामदे से ही उसे देख लिया।

    उसने मुस्कुराकर पास आकर कुर्सी खींची और अरमान के बगल में बैठ गया।

    "क्या हुआ, भाई? आज इतने चुप क्यों हो?" उसने प्यार से पूछा, जैसे किसी बच्चे को मनाना हो।

    अरमान ने खिलौना धीरे से जमीन पर रखा और धीमे स्वर में बोला,

    "कुछ समझ नहीं आ रहा… कल रात अवनी ने मुझे चूमा… मेरा दिल बहुत जोर से धड़कने लगा था… मुझे बहुत डर लगा… मैं मर तो नहीं जाऊँगा ना?"

    उसकी आँखों में सच्चा डर था, मानो वो सच में अपनी जान को लेकर चिंतित हो।

    अंशुमान के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आ गई—लेकिन वो मुस्कान मजाक की नहीं थी, बल्कि अपने छोटे भाई के भोलेपन पर स्नेह की थी।

    वो समझ गया था कि इस डर के पीछे कोई गलतफहमी नहीं, बल्कि एक अनछुआ अनुभव है।

    वो थोड़ा और नज़दीक खिसक आया, उसके कंधे पर हाथ रखा और कोमल आवाज़ में बोला—

    "अरे नहीं पगले, ऐसा कुछ नहीं होता। जो हुआ… वो बहुत प्यारा और बिल्कुल सही था।"

    अरमान ने चौंककर उसकी तरफ देखा—

    "सही था?"

    अंशुमान ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और कुछ छोटे, साफ-सुथरे वीडियो खोलने लगा।

    वीडियो में पति-पत्नी के बीच छोटे-छोटे स्नेहिल पल थे—सुबह का एक प्यारा ‘गुड मॉर्निंग’ हग, साथ बैठकर चाय पीना, माथे पर कोमल चुंबन, हँसी-मज़ाक।

    अरमान स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए रहा।

    कभी उसके चेहरे पर हैरानी आती, कभी हल्की मुस्कान, और कभी वो गहरी सोच में पड़ जाता।

    हर वीडियो के बाद अंशुमान उसे सरल शब्दों में समझाता—

    "देख, ये सब बहुत स्वाभाविक है। पति-पत्नी के बीच ऐसे प्यार जताने से रिश्ता और मजबूत होता है। इसमें डरने या गलत महसूस करने की कोई बात नहीं।"

    थोड़ी देर बाद उसने सीधा सवाल किया—

    "तू अवनी से बहुत प्यार करता है ना?"

    अरमान ने बिना झिझके सिर हिलाया, आँखों में मासूम चमक के साथ बोला—

    "हाँ।"

    "तो उसे अपना प्यार जताना गलत नहीं है। चूमना, गले लगाना, ये सब सामान्य है। तूने कुछ गलत नहीं किया।"

    अरमान कुछ पल चुप बैठा रहा।

    फिर उसकी आवाज़ धीमी, लेकिन बेहद मासूम थी—

    "तो… क्या मैं भी अवनी को चूम सकता हूँ?"

    अंशुमान ने उसकी तरफ देखा—उसकी आँखों में ना कोई संकोच था, ना कोई चालाकी… बस सच्चा, बच्चा-सा प्यार।

    अंशुमान ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया—

    "हाँ, बिल्कुल। जब तुम्हें लगे कि अवनी भी तैयार है और उसे अच्छा लगेगा… तब तुम उसे प्यार से चूम सकते हो।"

    अरमान के चेहरे पर जैसे एक सूरज उग आया।

    मासूम-सी खुशी उसके चेहरे पर दौड़ गई—वो चमक जो केवल बच्चों के चेहरे पर किसी मनपसंद खिलौने या चॉकलेट मिलने पर आती है।

    उसकी आँखें चमक उठीं, जैसे अंशुमान ने उसे कोई अनमोल खज़ाना दे दिया हो।

    वो पल उसके लिए किसी रहस्य के खुलने जैसा था—एक मीठा, अनजाना ज्ञान जो उसके दिल में बस गया।

    अंशुमान ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा—

    "याद रखना, भाई… प्यार में जल्दी नहीं करते। सब सही समय पर, सही एहसास के साथ होता है।"

    अरमान ने जोर-जोर से सिर हिलाया, जैसे उसने कोई बड़ा वादा कर लिया हो।

    ---

    इस पूरे संवाद से अवनी अनजान थी।

    वो अपने कमरे में बैठी थी—आँखें खिड़की के बाहर थीं, लेकिन दिमाग कहीं और।

    पिछली रात का हर पल उसकी यादों में गूंज रहा था—

    अरमान की मासूम नज़र, वो हल्का धक्का, भाग जाना, और खुद को चादर में छुपा लेना।

    पहले तो उसने इसे ठेस की तरह महसूस किया था, लेकिन अब समझ आ रहा था कि ये अरमान का डर था, न कि कोई इंकार।

    उसके दिल में एक स्नेहिल दृढ़ता जन्म ले चुकी थी—

    "उसे धीरे-धीरे समझाना पड़ेगा… कदम-कदम पर, बिना दबाव डाले।"

    ---

    शाम ढलने लगी थी।

    कपूर विला में हल्की-हल्की रौशनी जल चुकी थी।

    किसी खास आयोजन की तैयारी नहीं थी, बस हर कोई अपने-अपने कामों में लगा हुआ था—रसोई से बर्तनों की खनक, बरामदे में पंखे की धीमी आवाज़, और कहीं-कहीं से आती हल्की बातचीत।

    रात का खाना खत्म होने पर अरमान और अवनी अपने कमरे की ओर बढ़े।

    अरमान आज ज़रा चुप था, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग-सी चमक थी।

    वो बार-बार चोरी-चोरी अवनी की तरफ देख रहा था, जैसे कुछ कहने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन हिम्मत जुटा नहीं पा रहा था।

    अवनी उसकी नजरों की वो हल्की गर्माहट महसूस कर पा रही थी—कुछ नर्म, कुछ संकोची, जैसे हवा में कोई अनकहा वादा तैर रहा हो।

    लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।

    वो जानती थी—अरमान के दिल में कोई बात है, जो शायद वो जल्दी ही कह देगा।

    ---

    रात गहरा चुकी थी।

    दोनों अपने-अपने पलंग पर लेट गए।

    कमरे में बस पंखे की घुमती हुई पंखुड़ियों की आवाज़ थी।

    अरमान करवट लेकर अवनी की तरफ देख रहा था—आँखों में वही मासूम चमक और होंठों पर हल्की-सी मुस्कान।

    अवनी ने महसूस किया कि उसकी नज़रों में आज डर कम था, और जिज्ञासा ज़्यादा।

    वो चुपचाप उसकी तरफ पीठ किए लेटी रही, लेकिन उसके होंठों पर भी अनजानी-सी मुस्कान थी।

    दोनों के बीच कोई शब्द नहीं बोले गए… लेकिन चुप्पी में भी एक रिश्ता गहरा रहा था।

    कमरे में घना अंधेरा था, बस खिड़की से आती चाँदनी पतले पर्दों के पार छनकर कमरे में बिखर रही थी।

    पर्दे हवा से हल्के-हल्के हिल रहे थे, और दीवार पर चाँदनी की परछाइयाँ नाच रही थीं।

    दोनों चुप थे, लेकिन हवा में एक अनकहा तनाव और बेचैनी तैर रही थी।

    अरमान अपनी जगह करवटें बदल रहा था।

    उसका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था, आँखें बंद थीं लेकिन दिमाग में अंशुमान की बातें गूँज रही थीं—

    "जब लगे कि वो तैयार है और उसे अच्छा लगेगा… तब प्यार से चूम लेना।"

    कई मिनटों तक वो खुद को मनाता रहा, फिर धीरे-धीरे उठकर बैठ गया।

    उसने अवनी की तरफ देखा—वो नींद की हल्की झपकी में थी, चेहरा चाँदनी में नहाया हुआ।

    उसके होंठों पर हल्की-सी थकान भरी मुस्कान थी, और साँसें धीमी, स्थिर।

    अरमान कुछ पल बस उसे देखता रहा—जैसे पहली बार सच में उसे गौर से देख रहा हो।

    फिर धीरे-धीरे, बहुत हिचकिचाते हुए, उसकी ओर खिसक आया।

    उसके हाथ हल्के-हल्के काँप रहे थे, लेकिन उसकी आँखों में अजीब-सी चमक थी—डर और चाह का मिला-जुला रंग।

    वो अवनी के पास बैठा और धीरे से उसका हाथ छुआ।

    अवनी की पलकें फड़कीं, और उसने नींद में ही आँखें खोलीं।

    उसने देखा—अरमान बिल्कुल पास था।

    उसके चेहरे पर मासूम घबराहट और अनजानी हिम्मत का मिश्रण था।

    वो कुछ पूछने ही वाली थी कि तभी…

    अरमान ने झुककर बहुत धीरे से उसके माथे पर अपने होंठ रख दिए।

    अवनी की साँस जैसे वहीं अटक गई।

    एक पल को उसकी धड़कन इतनी तेज़ हो गई कि वो खुद सुन सकती थी।

    अरमान ने फिर उसकी आँखों में गहराई से देखा—जैसे कोई अनुमति मांग रहा हो।

    अगले ही क्षण उसने हल्के से उसके गाल को चूम लिया।

    वो छुअन इतनी कोमल थी कि अवनी का पूरा शरीर सिहर उठा।

    अवनी कुछ समझ पाती, उससे पहले ही…

    अरमान और करीब झुक गया।

    उसके होंठ अवनी के होंठों से बहुत धीरे, बहुत मासूमियत से टकराए।

    ये चुम्बन छोटा था, संकोच से भरा था, लेकिन उसमें एक नई, अनजानी गर्माहट छुपी थी—

    एक एहसास जो दोनों के लिए नया था।

    अरमान तुरंत पीछे हट गया, मानो डर हो कि उसने कुछ गलत कर दिया हो।

    उसकी साँसें तेज़ थीं, और आँखें अवनी की प्रतिक्रिया पढ़ने की कोशिश कर रही थीं।

    पहले तो अवनी बिल्कुल स्तब्ध रह गई।

    अरमान का ये मासूम चुम्बन उसके लिए अप्रत्याशित था—जैसे किसी सूखी ज़मीन पर अचानक बारिश की पहली बूंद।

    लेकिन अगले ही पल, उसके भीतर जो भावनाएँ महीनों से दबी हुई थीं, वो जैसे ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ीं।

    उसने बिना कुछ कहे अरमान को अपने करीब खींच लिया—इतना करीब कि उनके बीच की सारी दूरी मिट गई।

    उसके हाथ अरमान की गर्दन के पीछे कस गए और उसने उसे एक गहरे, भावनाओं से भरे चुम्बन में समा लिया।

    अवनी के होंठों में एक अधीर चाह थी, उसकी सांसें गर्म और तेज़ थीं।

    वो अब खुद को रोक नहीं पा रही थी—उसका प्यार, उसकी चाह, उसकी दबी हुई तड़प… सब एक साथ बाहर आ गए थे।

    अरमान की आँखें अचानक बड़ी हो गईं।

    उसके कानों में अपने ही दिल की धड़कन गूँज रही थी—तेज़, बेकाबू, जैसे कोई ढोल बज रहा हो।

    अवनी की आँखों में उसे प्यार नज़र आ रहा था, लेकिन उसके अपने सीने में डर ने घर बना लिया था।

    "ये क्या हो रहा है? मैं… मैं संभाल क्यों नहीं पा रहा?"

    वो मन ही मन बुदबुदाया।

    उसे सच में लगने लगा—उसका दिल अब सीने में नहीं रहेगा… बाहर आकर गिर जाएगा।

    उसके पूरे शरीर में झटके-सी बेचैनी फैल गई, और अगले ही क्षण, उसने खुद को झटका देकर अलग कर लिया।

    वो पल भर में उठ खड़ा हुआ, लगभग भागते हुए अपनी जगह गया और blanket अपने ऊपर खींच ली।

    उसका चेहरा पसीने से भीग चुका था, सांसें भारी थीं।

    कम्बल के अंदर, वो खुद से ही बातें करने लगा—

    "क्या मुझे कुछ होने वाला है? ये धड़कन इतनी तेज़ क्यों हो रही है? पर… अंशुमान ने तो बोला था कि ये हर पति-पत्नी के बीच होता है… तो फिर मेरा दिल ऐसे क्यों दौड़ रहा है, जैसे अभी मेरे सीने से निकल जाएगा?"

    वो करवट लेकर आँखें कसकर बंद कर लेता है—मानो अगर वो सो गया, तो ये एहसास भी कहीं गायब हो जाएगा।
    लेकिन उसके सीने में धड़कन अब भी तेज़ थी… और अवनी की गर्माहट उसकी साँसों में बसी हुई थी।

    _______

    तो आप सब को क्या लगता है

    क्या अरमान फिर से अवनी से दूर हो जाएगा?

    क्या करेगी अब अवनी अरमान के इस रिएक्शन पर?

    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी .....

    ________

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  • 13. My Innocent husband - Chapter 13 मदहोशी में डूबे अवनी और अरमान

    Words: 1635

    Estimated Reading Time: 10 min

    अरमान चुपचाप लेटा हुआ था। छत को निहारते हुए उसकी आँखों में अजीब सी हलचल थी — जैसे कोई अधूरा सपना उसे सोने नहीं दे रहा हो। उसके दिमाग में अंशुमान की वो बात लगातार घूम रही थी:

    "ऐसा सबके साथ होता है, इससे कुछ नहीं होगा... ये तो पति-पत्नी के बीच सामान्य है।"

    "तो क्या मैं भी अब...?"
    उसने मन ही मन खुद से सवाल किया, और फिर नजरें अवनी की ओर घुमा दीं।

    अवनी अपनी ही दुनिया में सोई थी, पीठ उसकी ओर किए, उसकी साँसों की धीमी आवाज़ उस कमरे की एकमात्र ध्वनि बन चुकी थी। चाँद की नर्म रोशनी खिड़की से आकर उसके चेहरे और बालों पर पड़ी थी, जिससे उसका चेहरा और भी शांत, और भी कोमल लग रहा था।

    अरमान ने धीरे से हाथ बढ़ाया, फिर एक पल को ठिठक गया। उसकी उंगलियाँ हवा में ही थम गईं — जैसे मन कर रहा हो छूने का, लेकिन इजाज़त माँगने की आदत अभी भी ज़िंदा थी।

    "क्या मुझे अवनी को छूना चाहिए?"
    उसका मासूम दिल धीरे-धीरे नई भावनाओं की दहलीज पर कदम रख रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि प्यार सिर्फ हँसी-मज़ाक और बातें करने से ज़्यादा भी कुछ होता है।

    उसने साहस बटोर कर धीरे से अवनी की चुन्नी को पकड़ा, फिर अपनी साँसें थाम लीं। अवनी के कंधे के पास उसकी उंगलियाँ जाकर थमीं।

    "मुझे अच्छा लग रहा है…"
    उसने खुद से कहा, जैसे खुद को समझा रहा हो कि ये गलत नहीं है।

    अरमान ने हल्की आवाज़ में पूछा, "अवनी… सो गई क्या तुम?"
    लेकिन कोई जवाब नहीं आया। शायद वो सचमुच सो गई थी... या शायद उसे लगा कि अरमान कुछ कहना चाहता है।

    वो थोड़ा और पास सरक आया। अब उसका चेहरा अवनी की पीठ से कुछ ही इंच की दूरी पर था।
    उसके दिल की धड़कनें खुद उसे सुनाई दे रही थीं — धक… धक… धक…

    उसकी आँखों में शरारत थी, पर उस शरारत के पीछे एक मासूम सी जिज्ञासा भी छुपी थी।
    उसने धीरे से तकिए पर से सिर उठाया, आधा बैठते हुए अवनी की ओर झुक गया — वैसे ही जैसे वो वीडियो में देखता था, जिसमें पति अपनी पत्नी के पास आता है, उसे प्यार से जगाता है, उसके माथे या होंठों पर हल्का सा स्पर्श देता है।

    अब अरमान अवनी के इतने करीब था कि उसकी साँसें अवनी की गर्दन को छू रही थीं।
    उसके होंठ काँप रहे थे — डर से नहीं, बल्कि उस पहली बार को लेकर जो वो आज करने जा रहा था।
    उसकी आँखों में कुछ नया करने की चाहत थी — एक जिज्ञासा, एक एहसास जिसे वो खुद भी ठीक से समझ नहीं पा रहा था।

    उसने झुकते-झुकते अपने होंठ अवनी के होंठों पर रख दिए — बेहद हल्के से, जैसे कोई पंख छू गया हो।

    अवनी नींद और जाग के बीच थी।
    उसे पहले तो कुछ समझ ही नहीं आया — ये अहसास क्या था?
    एक पल को वो ठिठकी।
    पर जैसे ही उसे एहसास हुआ कि क्या हुआ है… उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।

    उसने धीरे से आँखें खोलीं… और उसकी साँस अटक गई।

    उसके सामने अरमान था… उसकी आँखें बंद थीं…
    वो बहुत धीरे-धीरे, बहुत मासूमियत से अपने होंठ हिला रहा था — जैसे कोई बच्चा पहली बार प्यार करना सीख रहा हो।

    अवनी की धड़कनें बेकाबू हो गईं।

    ये… पहली बार था…
    जब अरमान ने ऐसा कुछ किया था — बिना समझे, बिना किसी योजना के, सिर्फ अपने दिल की आवाज़ पर।

    अवनी कुछ पल के लिए बिल्कुल स्थिर हो गई।
    उसका मन स्तब्ध था… और शरीर भी।
    दिल धक-धक करता हुआ, जैसे कोई अनजाना तूफ़ान उसकी छाती में उठ रहा हो।
    उसे समझ नहीं आ रहा था —
    क्या वो इसे रोक दे?
    या…
    इस मासूम एहसास को बस एक बार खुद पर हावी होने दे?

    अरमान को किसी चीज़ का अंदाज़ा नहीं था।
    वो अब भी वही मासूम-सा चेहरा लिए, आँखें बंद किए, धीरे-धीरे अपने होंठ हिला रहा था — जैसे उसने फिल्मों में देखा था, या सुना था कि प्यार ऐसे ही जताया जाता है।

    उसके होंठ काँप रहे थे…
    साँसें जैसे उलझ गई थीं किसी डर और चाहत के बीच।
    पर उसने खुद को रोका नहीं — क्योंकि उसके भोले मन ने यही सीखा था कि
    पति-पत्नी के बीच ये सब “सही” होता है।

    अवनी की आँखें नमी से भरने लगीं।
    पर ये आँसू दुख के नहीं थे —
    ये भावनाओं के सैलाब थे, जो अरमान की मासूमियत के स्पर्श से उसकी सारी दीवारें बहा ले गए।

    धीरे से, बहुत धीरे से…
    उसने अपनी पलकें मूंदी।
    साँस को गहराई से भीतर खींचा…
    और खुद को उस पल में बहने दिया — जैसे कोई बंधन टूट रहा हो… कोई कैद खुल रही हो।

    अरमान के होंठ अब भी उसके होंठों पर थे — बेहद नर्म, बेहद हल्के।

    और तभी…
    अवनी ने अपने हाथ उठाए…
    काँपते हुए, पर नर्म स्पर्श के साथ उन्हें अरमान के गले में डाला।

    अरमान चौंका नहीं, डराया नहीं — शायद उसने अवनी की बाँहों का एहसास उसी मासूम सुकून से किया जैसे कोई बच्चा माँ की गोद महसूस करता है।

    अब वही अवनी —
    जो कल तक उलझनों से भरी थी,
    जो खुद को कर्तव्यों की जंजीरों में बाँधे हुए थी,
    आज उस पल में बस बह रही थी…

    उसने अपनी सारी उलझनों को पीछे छोड़ दिया था।

    आज वो पहली बार
    अरमान को “महसूस” कर रही थी — पूरे दिल से।

    अवनी और अरमान की साँसें अब एक-दूसरे के चेहरे पर महसूस हो रही थीं।
    वो पल जैसे थम गया हो।
    ना कोई शब्द थे, ना कोई आवाज़ — बस नज़दीकियाँ थीं, दिल की धड़कनों की गूंज और आँखों की बात।

    अरमान के मासूम चेहरे पर एक अलग ही चमक थी —
    वो पहली बार किसी के इतने करीब था, और ये क़रीबियाँ उसे बिल्कुल भी डर नहीं रही थीं।
    बल्कि उसके अंदर कुछ बहुत गहरा, बहुत मीठा सा जन्म ले रहा था।
    उसकी आँखें अवनी को ऐसे देख रही थीं जैसे वो कोई सपना हो, जिसे छू लेने से टूट जाने का डर हो।

    अवनी की साँसें अब अनियंत्रित हो चुकी थीं।
    उसके चेहरे पर एक अनकही घबराहट थी —
    एक ऐसी घबराहट जो इस नए एहसास से थी,
    इस पल से थी,
    और सबसे ज़्यादा, खुद से थी।
    वो चाहती थी कि ये पल ठहर जाए, पर साथ ही डर भी रही थी कि कहीं कुछ ऐसा ना हो जाए जिससे सब कुछ बदल जाए।

    उसने धीरे से अपने दोनों हाथों से अरमान के कंधे को हल्के से छुआ,
    उसका मासूम चेहरा देखा,
    और बहुत कोमलता से उसे थोड़ा पीछे किया।
    उसके स्पर्श में ना कोई झिझक थी, ना कोई गुस्सा — बस एक हल्की सी विनती थी,
    “थोड़ा रुक जाएं, थोड़ा समझ लें खुद को…”

    अरमान बिना विरोध किए सीधा हो गया, लेकिन उसकी नज़रों में कोई उलझन नहीं थी।
    उसकी आँखों में अब भी वही मासूम चमक थी,
    वो अब भी अवनी को वैसे ही देख रहा था जैसे कुछ पल पहले —
    प्यारी सी मुस्कान के साथ,
    बिल्कुल निःस्वार्थ।

    दोनों कुछ देर तक एक-दूसरे को चुपचाप देखते रहे।
    उनके बीच अब शब्दों की कोई ज़रूरत नहीं रह गई थी।
    उस सन्नाटे में भी बहुत कुछ कहा जा रहा था —
    साँसों की लय में,
    आँखों की भाषा में,
    दिल की धड़कनों में।

    अवनी का दिल अब भी काँप रहा था।
    उसका गला सूख चुका था, पर होंठ कुछ कहने के लिए बार-बार हिल रहे थे।

    तभी अरमान ने एक बार फिर झुक कर अपने होठ अवनी के होठों पर रख दिए।
    इस बार उसमें हिचक नहीं थी, डर नहीं था — बस एक मासूम, सच्ची चाहत थी।
    कोई जल्दबाज़ी नहीं, कोई उथलापन नहीं…
    जैसे उसकी आत्मा पहली बार किसी को इस तरह छू रही हो।

    अवनी की आँखें हैरानी से खुली की खुली रह गईं।
    उसके लिए यह पल अप्रत्याशित था, लेकिन अरमान की मासूमियत, उसकी आँखों की साफ़गोई और उस स्पर्श की कोमलता…
    सबकुछ उस पर विश्वास करने लायक था।
    इस बार, वो उसे रोक नहीं सकी।

    अरमान के होठ अब बहुत धीरे-धीरे, बेहद नर्मी से हिल रहे थे —
    जैसे हर एक पल को अपनी धड़कनों में कैद कर लेना चाहता हो।
    वो उसे छू नहीं रहा था, वो महसूस कर रहा था — अवनी को, उस पल को, उस एहसास को।

    अवनी के गालों पर हल्की गुलाबी लाली फैल चुकी थी।
    उसकी पलकों ने धीरे-धीरे आँखों को ढंक लिया,
    और उसके चेहरे पर एक शांति सी उतर आई थी।

    उसकी साँसें अब भी तेज़ थीं, लेकिन उनमें कोई घबराहट नहीं थी —
    बल्कि एक गर्माहट थी, जैसे पहली बार किसी ने उसे पूरी तरह स्वीकारा हो।

    अरमान अब पूरी तरह उसमें खो चुका था।
    उसके लिए ये एक नया अनुभव था —
    एक ऐसा अनुभव जिसमें ना कोई सिखाने वाला था, ना कोई समझाने वाला,
    बस दिल था… और उसकी सच्ची भावना।

    उसका मासूम मन अब धीरे-धीरे एक नए भाव को छू रहा था —
    प्यार का,
    अपनापन का,
    और सबसे बढ़कर… किसी के होने का।

    और अवनी…
    वो अब बस उसे देख रही थी —
    उसके स्पर्श को, उसकी नज़रों को, उसकी मासूमियत को।
    उसने धीरे से अपनी उंगलियाँ अरमान की हथेली पर रख दीं —
    जैसे वो कह रही हो —
    "मैं यहीं हूँ… अब हमेशा के लिए।"

    उस पल में कुछ बदला नहीं था —
    लेकिन सबकुछ बदल गया था।

    ______

    तो आप सब को क्या लगता है
    क्या अब अरमान और अवनी के रिश्ते की दिशा बदलने वाली है?
    क्या अरमान समझ पाएगा कि ये एहसास सिर्फ़ एक किस से कहीं ज़्यादा है?
    क्या अवनी अब अपने दिल की बात अरमान से कह पाएगी?
    या फिर ये मासूम सी शुरुआत किसी बड़ी उलझन का कारण बनेगी?
    क्या ये मासूम रिश्ता अब सचमुच एक गहरा प्यार बन पाएगा?

    _______

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  • 14. My Innocent husband - Chapter 14 अरमान की किस की जिद

    Words: 1580

    Estimated Reading Time: 10 min

    अरमान अब पूरी तरह अवनी में खो चुका था।
    उसकी आँखों में सिर्फ़ वही थी — उसकी साँसों में, उसके दिल की हर धड़कन में बस अवनी ही थी।
    उसके लिए ये सबकुछ नया था…
    छूना, महसूस करना, इतना करीब आना —
    लेकिन इस नयेपन में कोई घबराहट नहीं थी,
    बल्कि एक अजीब सा सुकून था, जैसे उसे खुद की अधूरी दुनिया का एक टुकड़ा मिल गया हो।

    उसके मासूम मन में अब एक नया भाव जन्म ले रहा था —
    प्यार का, जो शोर नहीं करता, बस महसूस होता है…
    अपनापन का, जो बिना कहे ही दिल को यकीन दिला देता है कि “तू अब अकेला नहीं।”

    और अवनी…
    वो बस चुपचाप अरमान को देख रही थी।
    उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी,
    आँखों में एक गहराई — जो कह रही थी, “मैं समझ रही हूँ… सब कुछ।”

    उसने कभी सोचा भी नहीं था कि किसी मासूम से दिखने वाले लड़के की आँखों में इतना गहरा प्यार, इतनी सच्चाई होगी।
    वो न सिर्फ़ उसे देख रही थी, बल्कि उस एहसास को जी रही थी —
    जो अब तक शब्दों से परे था।

    वो पल…
    शब्दहीन, शांत…
    लेकिन किसी रिश्ते की सबसे खूबसूरत शुरुआत बन चुका था।


    अवनी की साँसें तेज़ थीं।
    उसका दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था जैसे कोई तूफ़ान उसके भीतर दस्तक दे रहा हो।
    सामने अरमान था — बिल्कुल शांत, स्थिर…
    लेकिन उसकी आँखों में वो मासूम सी मुस्कान अब एक नया रंग ले चुकी थी —
    थोड़ी सच्ची, थोड़ी बड़ी, और पूरी तरह अवनी के लिए।

    और फिर…
    अवनी खुद को रोक नहीं सकी।
    उसने झटके से अरमान को अपनी ओर खींच लिया।
    अरमान एक पल को चौंका जरूर, लेकिन उसमें कोई घबराहट नहीं थी —
    बस एक हल्की सी उत्सुकता, और शायद… इंतज़ार।

    अवनी ने उसके कंधों पर हाथ रखे, फिर उसकी पीठ पर अपनी हथेलियाँ रखकर उसे और पास कर लिया।
    उसके चेहरे पर एक गहरी संजीदगी थी —
    जैसे अब वो कुछ भी सोचने के बजाय महसूस करना चाहती थी।

    उसने झुककर उसके होठों को फिर से छू लिया —
    इस बार नर्मी कम, चाहत ज़्यादा थी।
    वो पहले से ज़्यादा बेसब्र थी… और पूरी तरह सच।

    अरमान थोड़ी देर तक शांत रहा —
    शायद वो अब भी यक़ीन कर रहा था कि ये सब सच है।
    लेकिन जब अवनी के होठों ने चलना शुरू किया,
    जब वो पूरी तरह इस एहसास में डूब गई,
    तो अरमान का दिल भी साथ चल पड़ा।

    उनके बीच अब सिर्फ़ गर्म साँसें थीं,
    कंपकंपाते होंठ थे, और दिलों की नमी।

    अरमान की हथेलियाँ अब धीरे-धीरे अवनी की पीठ पर फिसल रही थीं,
    बहुत नर्मी से, बहुत सहेजते हुए —
    जैसे वो उस पल को सहेजना चाहता हो।

    फिर उसने हल्के से उसे बाँहों में भर लिया।
    कोई कसाव नहीं,
    बस इतना कि अवनी को ये महसूस हो —
    "तू मेरी है… और अब मैं तुझे जाने नहीं दूँगा।"

    कमरे में अब सिर्फ़ उनकी साँसों की आवाज़ गूंज रही थी।
    हर सेकंड जैसे कोई नई दुनिया गढ़ रहा था — सिर्फ़ उनके लिए, सिर्फ़ उस पल के लिए।

    अवनी ने अपनी बाहों में उसकी गर्दन को भर लिया।
    वो अरमान को इतनी नज़दीक चाहती थी कि उसके और खुद के बीच कुछ भी बाकी न बचे।
    उसकी उंगलियाँ अब अरमान के बालों में उलझ रही थीं —
    धीरे-धीरे, बड़े स्नेह से… जैसे वो उसकी हर परत को महसूस करना चाहती हो।

    उस पल में अवनी बस खो जाना चाहती थी —
    या शायद खुद को पूरी तरह अरमान में समर्पित कर देना चाहती थी।
    और अरमान…
    उसकी आँखों में अब कोई डर नहीं था।
    न हिचक, न उलझन — बस सच्चा, निःस्वार्थ अपनापन।

    उसके चेहरे पर अब भी वही मासूम जिज्ञासा थी,
    जैसे वो हर एहसास को अपने अंदर बसा लेना चाहता हो,
    हर पल को अपने होने का हिस्सा बनाना चाहता हो।

    अवनी ने झुककर उसके माथे पर एक धीमा, गहरा चुम्बन दिया।
    उस स्पर्श में वादा था, सुकून था… और शायद पहली बार पूर्णता थी।

    वो किस अब रुकने का नाम नहीं ले रहा था —
    न वो जो लबों पर था,
    और न वो जो दिलों के बीच चल रहा था।

    समय जैसे थम गया था —
    करीब आधा घंटा बीत चुका था,
    लेकिन दोनों को इसका कोई अंदाज़ा नहीं था।

    अब दोनों थक चुके थे —
    शारीरिक रूप से नहीं,
    बल्कि भावनाओं से सराबोर होकर।

    पर वो एक-दूसरे से अलग नहीं हुए।
    बस चुपचाप एक-दूसरे की बाँहों में सिमटे,
    सिर एक-दूसरे के सीने पर टिकाए…
    उन दिलों की धड़कनों को सुनते रहे,
    जिन्होंने आज पहली बार एक साथ धड़कना सीखा था।

    कमरे में हल्की सी खामोशी छाई हुई थी,
    लेकिन उस खामोशी के भीतर ढेर सारी बातें थीं —
    अलिखी, अनकही… लेकिन पूरी तरह महसूस होती।

    अवनी ने उसकी ओर देखा —
    अरमान अब भी मुस्कुरा रहा था,
    वो वही मासूम मुस्कान थी, लेकिन आज उसमें एक नई समझदारी जुड़ गई थी।

    अवनी ने खुद को थोड़ा सीधा किया और धीरे से अरमान को हिलाया,
    “उठिए ज़रा…” उसकी आवाज़ में शरारत और अपनापन दोनों था।

    अरमान हड़बड़ाकर बैठ गया — आँखों में हल्की सी घबराहट, जैसे कुछ ग़लती कर दी हो।

    अवनी थोड़ी और करीब आई और मुस्कुराते हुए बोली,
    “कल तो आप मेरे किस से डर गए थे…”
    “तो फिर आज… खुद से कैसे कर लिया?”

    अरमान थोड़ा सकपकाया।
    उसने नज़रें चुराते हुए धीरे से कहा,
    “वो… अंशुमान भैया ने बोला था…”

    “क्या?” अवनी चौंकी।

    अरमान ने मासूमियत से सिर हिलाया,
    “हाँ… उन्होंने कहा कि ये सब नॉर्मल है।
    हर पति-पत्नी के बीच होता है।
    तो मैं… थोड़ा समझा… और फिर…”

    अवनी की आँखें हैरानी से फैल गईं।
    उसका चेहरा शर्म से गुलाबी हो गया।
    वो कुछ पल तक कुछ बोल ही नहीं पाई।

    “मतलब... आपने हमारे बीच जो कुछ भी हुआ... वो सब... अंशुमान भैया को बता दिया?”

    अरमान ने भोलेपन से सिर झुका लिया,
    “मैं डर गया था… तो उनसे पूछ लिया। माफ़ करना…”

    अवनी ने गहरी साँस ली, खुद को संभाला।
    फिर उसका हाथ थामते हुए बहुत नरमी से बोली,
    “अरमान जी… ये बातें बहुत पर्सनल होती हैं।
    हर किसी से शेयर नहीं की जातीं। समझे आप?”

    अरमान की मुस्कान धीमी पड़ गई।
    उसने धीरे से सिर हिलाया, “माफ़ कर दो… मुझे नहीं पता था…”

    अवनी ने उसके हाथ पर हल्का सा दबाव डाला और मुस्कराते हुए कहा,
    “ठीक है… मैं जानती हूँ आप मासूम हो।
    लेकिन अब धीरे-धीरे सीखना होगा… इन रिश्तों की गरिमा और निजता को।”

    अरमान की आँखों में हल्की सी बेचैनी थी, लेकिन उसमें एक सच्चा वादा भी था।
    “मैं सीख जाऊँगा,” वो बोला, “तुम जो कहोगी, मैं मानूंगा।
    मैंने कभी किसी को इतना नहीं समझा जितना तुम्हें समझना चाहता हूँ।”

    अवनी की आँखों में नमी तैर गई —
    खुशी की, अपनापन की।

    उसने हल्के से सिर हिलाया,
    “बस अगली बार, कुछ भी बताने से पहले मुझसे पूछ लेना… ठीक?”

    अरमान ने मुस्कराते हुए कहा, “पक्का!”
    और फिर आगे बढ़कर उसका माथा चूम लिया।

    अवनी कुछ पल तो स्तब्ध रही…
    फिर खुद ही उसके सीने से लग गई।
    उसका चेहरा अरमान के दिल पर टिक गया,
    और मन ही मन उसने कहा —
    "शायद… अब मैं आपकी इस मासूमियत से प्यार करने लगी हूँ…"

    अरमान ने कुछ नहीं कहा,
    बस अपनी बाँहों को कसकर उसकी कमर के चारों ओर बाँध लिया —
    जैसे कह रहा हो, “मैं यहीं हूँ… और हमेशा रहूँगा।”

    उस रात…
    दोनों चुपचाप एक-दूसरे की बाँहों में सिमटे रहे।
    ना कोई बात, ना कोई वादा —
    बस दिलों की धड़कनों का साथ…
    और एक नए रिश्ते का बेहद मासूम सा आग़ाज़।

    अगले दिन,

    रसोई में हल्का सा उजाला था।
    अवनी गैस पर दूध गरम कर रही थी।
    घर के बाक़ी लोग अपने-अपने कमरों में थे।
    सन्नाटा था, सिर्फ़ दूध की उबालने की आवाज़ आ रही थी।

    अचानक पीछे से कदमों की आहट सुनाई दी।
    अवनी ने बिना पीछे देखे ही कहा, “अरमान जी, बाहर जाइए… दूध गिर जाएगा।”
    लेकिन पीछे से कोई जवाब नहीं आया।
    सिर्फ़ नर्म सांसों की आहट पास आती महसूस हुई।

    अगले ही पल, अरमान धीरे-धीरे उसके पास आ गया।
    उसने बिना कुछ कहे, गैस बंद कर दी।
    अवनी ने चौंक कर उसकी तरफ देखा।
    “क्या कर रहे है अरमान जी?” उसने फुसफुसाते हुए पूछा।

    अरमान ने मासूम सा चेहरा बना कर कहा, “मुझे किस चाहिए।”
    अवनी की आँखें हैरानी से फैल गईं।
    “क्या?” वो बस इतना ही बोल पाई।
    अरमान ने सिर झुकाकर फिर से कहा, “किस चाहिए… जैसे रात को हुआ था।”

    अवनी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
    लेकिन उसने खुद को संयमित किया।
    “अरमान जी, सब लोग हैं घर में…”
    “तो? यहां तो कोई नहीं है…” अरमान ने धीरे से कहा।

    उसकी बात सुनकर अवनी का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
    अरमान अब एकदम उसके पास खड़ा था।
    उसकी मासूम आंखों में ज़िद थी।
    लेकिन उस ज़िद में मोहब्बत भी साफ झलक रही थी।

    “एक छोटी सी कर दो न…”
    उसने होंठों पर उंगली रखते हुए कहा।
    अवनी ने नज़रें झुका लीं।
    “अरमान जी, नहीं… ये जगह नहीं ठीक।”

    “तो कौन सी जगह ठीक है?”
    उसने भोलेपन से पूछा।
    अवनी को हँसी भी आई और प्यार भी।
    उसका मन किया कि उसे सीने से लगा ले।

    “अभी नहीं, बाद में…”
    “मुझे अभी चाहिए…” अरमान का ज़ोर देने का अंदाज़ प्यारा था।
    “आप ज़िद्दी हो गए हो अब…”
    “मुझे नहीं पता। मुझे अभी और इस वक्त किस चाहिए मतलब चाहिए।"

    उसकी ये बात सुनकर अवनी हैरान रह गई।
    “किसने समझाया ये?”

    तो आप सब को क्या लगता है
    क्या सच में किसी ने अरमान को ये समझाया है?
    क्या अवनी अरमान को किस करेगी?
    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....

    मेरे दूसरे कहानियों को भी अपना प्यार देते रहिए।

  • 15. My Innocent husband - Chapter 15 अरमान ने किया kiss के लिए जिद

    Words: 1650

    Estimated Reading Time: 10 min

    thank you ritika and arita for your comment.

    “अभी नहीं, बाद में…” अवनी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, जैसे वो जानती हो कि सामने खड़ा शख़्स मानने वाला नहीं है।

    लेकिन अरमान ने अपनी भौंहें सिकोड़ते हुए, होंठों पर हल्की सी शरारती मुस्कान के साथ कहा—

    “मुझे अभी चाहिए…”

    उसके लहज़े में ज़ोर था, लेकिन आँखों में वो बच्चा सा मासूमपन भी था, जो ना कहे जाने पर और भी ज़िद पकड़ ले।

    अवनी ने नकली नाराज़गी दिखाते हुए कहा—

    “आप ज़िद्दी हो गए हो अब…”

    अरमान ने बिना पलक झपकाए उसकी आँखों में देखते हुए कहा—

    “मुझे नहीं पता। मुझे अभी… और इसी वक्त किस चाहिए, मतलब चाहिए।”

    आख़िरी शब्द पर उसने और भी जोर डाल दिया, जैसे ये कोई बहस नहीं बल्कि उसका हक़ हो।

    अवनी उसकी बात सुनकर एक पल को सच में हैरान रह गई।

    “किसने समझाया ये सब?” उसने हल्की सी भौं उठाकर पूछा।

    अरमान ने बिल्कुल मासूम चेहरा बनाया, जैसे कुछ गलत कर दिया हो पर पकड़े जाने पर भी डर नहीं—

    “किसी ने नहीं…”

    अवनी ने आँखें तरेरीं और आधी-नाराज़गी में कहा, “कहीं आपने अंशुमान भैया को तो नहीं बताया?”

    अरमान ने सीधे-सीधे न में सिर हिला दिया। उसकी आँखों में झलकती मासूम सच्चाई देख कर अवनी का माथा थोड़ा सा सिकुड़ गया—फिर भी उसने तेज़ से पूछा, “तो फिर आज ये — किस क्यों?”

    अरमान के होंठों पर हल्की-सी शरारती मुस्कान आई। उसने धीरे-से कहा, “वो… मुझे तुम्हें किस करने का मन कर रहा है।”

    ये शब्द जैसे हवा में फिसल कर सीधा अवनी के दिल पर गिरे। उसका गाल झट से लाल हो गया, सांस एक पल के लिए थम-सी गई। वह चाहकर भी नहीं हँस पाई, और न ही तुरंत पलट कर कुछ कह सकी।

    “आप अब बच्चे नहीं रहे…” अवनी ने आवाज़ धीमी कर दी, आंखों में बचपने की शरारत और बेहिसाब गर्माहट दोनों समेटे हुए।

    अरमान ने कदम बढ़ाए और उसके हाथ को अपने हाथों में ले लिया—हाथ गर्म, उँगलियाँ हल्की-सी कच्ची, पर पकड़ में एक अटूट निश्चय था। उसने उसकी हथेली पर अपनी अंगुलियों से नर्म-सा द़बाव दिया, मानो हर बार यही द़बाव उसे सच बताता हो।

    “हाँ, मैं छोटा बच्चा नहीं हूँ,” उसने कहा, चेहरे पर एक झपकी सी मुस्कान। “इसीलिए तो मेरी शादी हुई है—तुम्हारे साथ। छोटे बच्चे थोड़े ही शादी करते हैं।” वह हँसा, और हँसी में वो वही नादानपन भी था जो उसे हमेशा अलग बनाता था।

    अवनी उसकी मासूमियत में खो गई—उसकी हरकतों में, उसकी थपकी में, उसकी आवाज़ की गांठ में। दिल खेलने लगा, सांसें बेवजह गरमा गईं। फिर अचानक एक ख्याल आया — शालीनता, समय, और उस मीठे इंतज़ार की कशिश। उसने खुद को संकुचित मुस्कान दे कर रोका।

    तभी अरमान और निकट आकर धीमे से बोला, “फिर एक किस दो ना… प्लीज़…”

    उसमें इतनी बेचैनी थी कि अवनी झट से कुछ समझाने लगी, “नहीं—हम…” पर अरमान की जिद ने उसे बीच में ही रोक दिया; उसकी आँखों में एक निश्चय था जिसे झटकना मुश्किल लगता था।

    अवनी हार मान कर धीरे से बोली, “ठीक है… पर सिर्फ़ एक।”

    अरमान की आँखें झट से चमक उठीं। “सच?” उसने जैसे किसी खज़ाने की खोज पाकर पूछा।

    “तो फिर… जल्दी करो…” अवनी ने हकलाकर कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में डर नहीं—बस बड़ी सी गर्माहट।

    अरमान ने झुक कर पहले हल्का सा स्पर्श किया—उसका होंठ अवनी के होंठों को छूते ही जैसे सारी दुनिया ठहर सी गई। वह हल्का, नाज़ुक स्पर्श कुछ सेकंड में गहराने लगा; होंठों की मुलायम टक्कर अब धीरे-धीरे खुलने लगी। अवनी ने आँखें बंद कर लीं—उसके पास अब केवल वो गर्म साँसें, अरमान की नर्म उँगलियाँ जो उसकी कमर पर टिक गई थीं, और दिल की तेज़ धड़कनें थीं।

    किचन की नर्मी और गरमी के बीच, दो दिल एक पल में जुड़ रहे थे।

    अरमान अब गहराई से किस करने लगा था।

    उसकी मासूमियत अब धीरे-धीरे नज़दीकियों में बदल रही थी।

    अवनी ने भी खुद को रोकना छोड़ दिया।

    उसने अरमान की पीठ पर हाथ रखा।

    अरमान और करीब आ गया।

    उसकी सांसें तेज़ हो रही थीं।

    अवनी की भी धड़कनें बेकाबू हो रही थीं।

    कुछ सेकंड के लिए सब कुछ रुक सा गया।

    सिर्फ़ उनकी साँसे चल रही थीं।

    अरमान ने धीरे से खुद को अलग किया।

    वो हांफ रहा था।

    अवनी भी गहरी साँस ले रही थी।

    दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे।

    नज़रें मिलीं, तो शब्द खो गए।

    अरमान को अब ये किस बहुत अच्छा लग रहा था।

    अवनी कुछ कहने ही वाली थी।

    लेकिन उससे पहले, अरमान ने फिर से उसके होंठों को छू लिया।

    इस बार ज़रा ज़्यादा गहराई से।

    अवनी ने कोई विरोध नहीं किया।

    उसने खुद को उस पल में बहने दिया।

    अरमान अब हर बार और गहराई से उसके पास आता जा रहा था।

    हर बार उसकी ज़िद में प्यार बढ़ता जा रहा था।

    अवनी भी अब रुकने का नाम नहीं ले रही थी।

    कुछ देर बाद दोनों फिर से एक-दूसरे से अलग हुए।

    साँसे तेज़ थीं।

    चेहरे गर्म थे।

    और दिल बहुत पास।

    अरमान ने उसके चेहरे पर अब भी फैली हल्की लाली और आँखों में तैरती चमक देख कर एक शरारती मुस्कान दी। उसने थोड़ा सिर झुकाकर, मानो अपनी जीत की पुष्टि लेते हुए, धीमे से पूछा—

    “अब ठीक किया ना?”

    अवनी ने उसकी बात का सीधा जवाब देने के बजाय, होंठों पर एक छोटी सी शरारती मुस्कान सजाई और उँगलियों से उसकी नाक पर हल्की सी चपत मारी।

    “हां, अब आप जाइए, फ्रेश हो जाइए… फिर ब्रेकफास्ट भी तो करना है न,” उसने नकली सख़्ती में कहा, लेकिन आवाज़ में वो गर्माहट थी जिसे छुपाने की कोशिश भी नाकाम रही।

    अरमान ने एक पल उसे देखा, जैसे कुछ और कहना चाहता हो, मगर फिर सिर हिलाते हुए ‘हां’ कहा और धीरे-धीरे किचन से बाहर चला गया। जाते-जाते भी उसकी निगाहें दरवाज़े के पास से मुड़कर एक बार फिर अवनी पर ठहर गईं—वो मुस्कान, जिसमें एक नन्हा-सा ‘अभी खत्म नहीं’ का वादा छुपा था।

    जैसे ही उसके कदम कमरे की ओर मुड़े और उसकी मौजूदगी की हल्की-सी खुशबू भी हवा में बिखर गई, अवनी के होंठों पर अपने आप मुस्कान आ गई। उसने सिर हल्का सा झटका और खुद से बुदबुदाई,

    “ये अरमान जी भी न… बहुत ज़िद्दी हो गए हैं अब।”

    वो कुछ पल वहीं खड़ी रह गई—दिल की धड़कनें अब भी थोड़ी तेज़, गालों की गर्माहट अब भी बाकी। फिर धीरे-धीरे खुद को संभालते हुए उसने अपने हाथ में पकड़ा चम्मच उठाया, गैस पर रखी कड़ाही में हिलाया और फिर पूरे मन से बाकी का काम करने लगी। लेकिन भीतर ही भीतर, उसकी सोच में अब सिर्फ़ उसी पल का स्वाद था—जो शायद उसके पूरे दिन का सबसे मीठा हिस्सा बनने वाला था।

    अवनी ने रसोई का काम निपटाकर हाथ धोए और अपने कमरे की ओर बढ़ी। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, सामने का नज़ारा देखकर उसके होंठों पर अनायास ही मुस्कान खिंच आई—अरमान बेड के किनारे बैठा था, बाल अब भी भीगे हुए, और हाथ में टॉवेल लेकर बेढंगे अंदाज़ में उन्हें सुखाने की कोशिश कर रहा था। उसके माथे से पानी की बूँदें लुढ़ककर गाल तक आ रही थीं।

    अवनी धीरे-धीरे चलकर उसके पास आई और बिना कुछ कहे, टॉवेल उसके हाथ से ले लिया। “लाइए, दीजिए… मैं पोंछ देती हूँ,” उसने हल्की, स्नेहभरी आवाज़ में कहा।

    अरमान ने एक पल के लिए उसकी आँखों में देखा, फिर बिना बहस किए चुपचाप टॉवेल उसके हवाले कर दिया। अवनी उसके पीछे खड़ी होकर बालों को हल्के-हल्के पोछने लगी—उसके हाथ बेहद नर्म थे, और हर हरकत में देखभाल की एक अजीब सी मिठास थी।

    बाल पोछते समय अरमान भी चुप नहीं रहा—कभी किसी बचपन की याद छेड़ देता, कभी किसी मज़ेदार किस्से का जिक्र कर देता, तो कभी बस यूँ ही तंग करता, “इतना धीरे क्यों? और तेज़ करो न।” अवनी मुस्कुराती रही, कभी हल्की-सी डाँट देती, कभी उसकी बातों में हाँ-में-हाँ मिलाती।

    जब उसके बाल सूख गए, अवनी ने टॉवेल बेड पर रखकर कहा, “अब जाइए, अपने कपड़े चेंज कर लीजिए। ये शर्ट भी गीली हो गई है।”

    अरमान ने आज्ञाकारी अंदाज़ में सिर हिलाया, “ठीक है,” और चेंजिंग रूम की तरफ चला गया।

    वो अंदर गया तो अवनी भी उठकर बाथरूम चली गई। ठंडे पानी से चेहरा धोकर, हल्का सा मेकअप ठीक किया और वापस आई तो देखा—अरमान ड्रेस बदलकर ताज़गी भरे अंदाज़ में खड़ा था।

    दोनों एक साथ कमरे से बाहर निकले। सीढ़ियाँ उतरते हुए, उनकी चाल लगभग एक जैसी थी—बीच-बीच में हल्की मुस्कानें और नज़रें मिलाना, जैसे कोई अनकहा राज़ हो।

    नीचे हॉल में बैठे परिवार के लोग उन्हें देखते रह गए। किसी के होंठों पर तारीफ़ थी, किसी की आँखों में बस अपनापन। सचमुच, दोनों साथ में ऐसे लग रहे थे जैसे एक-दूसरे के लिए ही बने हों—रंग, अंदाज़, और उस पल का सहज तालमेल… सब कुछ बिल्कुल परफेक्ट।

    जिन्हें देख अरमान की दादी उन दोनों की दूर से ही नजर उतारते हुए बोलती है," नजर न लगे मेरे दोनों बच्चों को। भगवान करे हमेशा ऐसे ही एक साथ रहे।"

    वहीं उनके इस बात पर सभी मुस्कुरा देते है। अवनी और अरमान आ कर बैठते है। तो सर्वेंट सभी को खाना परोस देते है। ऐसे ही ब्रेकफास्ट खत्म होता है और सभी अपने अपने काम में चले जाते है।

    शाम को,

    शाम का वक्त था। हवाओं में हल्की ठंडक और आंगन में खिलौनों की खनखनाहट गूंज रही थी। अरमान अकेले अपने खिलौनों के साथ खेल रहा था—कभी गाड़ी चला रहा था, कभी टेडी बियर से बात कर रहा था।

    तभी अंशुमान कमरे में आया और मुस्कुराते हुए बोला, “क्या कर रहे हो भाई?”

    अरमान ने खुशी से कहा, “आओ न अंशुमान, बैठो न मेरे साथ खेलो।”

    अंशुमान भी ज़मीन पर बैठ गया और दोनों खेलने लगे।

    कुछ देर बाद अंशुमान ने मुस्कुराते हुए पूछा, “आपका और भाभी का रिश्ता अब कितना आगे तक गया?”

    अरमान ने भोलेपन से जवाब दिया, “हम दोनों तो ठीक हैं।”

    अंशुमान ने थोड़ी गंभीरता से पूछा, “मतलब... आप दोनों के बीच और भी कुछ हुआ? किस वगैरह?”

    तो आप सब को क्या लगता है,

    क्या अरमान अंशुमान को बता देगा उसके और अवनी के बीच क्या हुआ था?

    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी....

  • 16. My Innocent husband - Chapter 16 रोमांटिक मूवीज़

    Words: 1530

    Estimated Reading Time: 10 min

    शाम का वक्त था। हल्के नारंगी सूरज की किरणें आंगन की दीवारों से टकरा रही थीं। हवा में हल्की ठंडक थी। अरमान ज़मीन पर बैठा था—चारों ओर उसके खिलौने बिखरे हुए थे। वो कभी अपनी लाल रंग की कार को घुमाता, कभी अपने टेडी बियर से बातें करता।

    तभी दरवाज़े से अंशुमान की एंट्री हुई। उसके चेहरे पर हमेशा की तरह हल्की सी शरारती मुस्कान थी।

    "क्या कर रहे हो भाई?" — उसने पूछा, झुकते हुए।

    अरमान ने खुशी से सिर उठाया, आँखों में चमक थी, “आओ न अंशुमान, बैठो न मेरे साथ खेलो।”

    अंशुमान हँसते हुए ज़मीन पर बैठ गया। दोनों ने मिलकर गाड़ियों की रेस करवाई, टेडी बियर को डॉक्टर बनाया, और एक नकली स्कूल भी सजाया।

    कुछ देर बाद खेल थमा तो अंशुमान ने उसकी तरफ देखा और थोड़ा झुककर मुस्कुराते हुए पूछा—

    “आपका और भाभी का रिश्ता अब कितना आगे तक गया?”

    अरमान ने एक पल को रुककर उसकी तरफ देखा।

    फिर धीरे से बोला, “हम दोनों... एक-दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे हैं। वो मुझे अच्छे से देखती हैं, खाना खिलाती हैं... कभी-कभी मेरे लिए चुपचाप रो भी देती हैं।”

    अंशुमान समझ गया कि अरमान को उसकी बात शायद समझ नहीं पाया।

    अंशुमान ने अपनी मुस्कान थोड़ी गंभीरता में बदली। आवाज़ थोड़ी धीमी कर ली, जैसे कोई राज़ की बात हो— “मतलब... आप दोनों के बीच और भी कुछ हुआ? किस वगैरह?”

    ये सुनते ही अरमान थोड़ी देर चुप हो गया।

    उसकी आँखें नीचे झुक गईं। उसने हाथ में पकड़ा टेडी बियर ज़रा कसकर थामा, जैसे उस खिलौने में उसे सुकून मिलता हो।

    फिर वह बोला, आवाज़ में हिचक थी—
    “मैं नहीं बताऊंगा… अवनी ने बोला था, ऐसी बातें किसी को नहीं बताते।”

    अंशुमान ने मुस्कुराते हुए उसका कंधा थपथपाया, “अरे, पर मैं कोई और थोड़े ही हूं। मैं तो तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त हूं न?”

    अरमान ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन अब भी कुछ असमंजस में था।

    अंशुमान थोड़ा और पास खिसका और फुसफुसाकर बोला,
    “अगर तुम मुझे नहीं बताओगे, तो मैं तुम्हें कैसे सिखाऊंगा कि भाभी को और कैसे खुश किया जा सकता है? पिछली बार जो मैंने कहा था, कि उसे धीरे से किस करना… वो किया था ना? वो खुश हुई थी?”

    अरमान की झिझक अब थोड़ी ढीली पड़ी। उसकी मुस्कान में अब शरम और सच्चाई दोनों थे।

    “हां… तुम सही बोल रहे हो… वो मुस्कुराई थी। फिर मेरे बाल सहलाए थे।”

    “बस! तो अब भी मुझ पर भरोसा रखो,” अंशुमान ने आंख दबाते हुए कहा। “भाभी को बताना मत कि तुमने मुझे बताया, ठीक है?”

    अरमान ने सिर हिलाया। थोड़ी हिचकिचाहट के बाद उसने वो सब कहना शुरू किया जो उस रात हुआ था। उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन उसमें भावनाओं की गहराई थी। कभी वो बीच में रुकता, कभी हल्का मुस्कुराता, कभी आंखें झुका लेता। उसके शब्दों में कोई गंदगी नहीं थी—बस मासूम सा अपनापन, कुछ नया जानने की उलझन और एक रिश्ता निभाने की ईमानदारी थी।

    अंशुमान पूरी गंभीरता से सुन रहा था। कोई मज़ाक नहीं, कोई हंसी नहीं। उसके चेहरे पर इस बार दोस्त वाला ठहराव था।

    फिर वो चुपचाप अपना फोन निकालता है।

    कुछ सेकंड्स बाद, स्क्रीन पर कुछ रोमांटिक मूवीज़ के छोटे-छोटे सीन्स दिखाई देने लगे। लेकिन अरमान का चेहरा थोड़ी देर बाद हल्का सा असहज हो गया। वो दृश्य, जो अंशुमान के लिए सामान्य थे, अरमान के लिए शायद थोड़े ज़्यादा हो रहे थे।

    अंशुमान ने समझा और तुरंत मूवी बंद करके टीवी सीरियल्स के कुछ रोमांटिक पर कोमल पल चलाने लगा—जैसे हल्के से गाल छूना, आंखों में देखना, धीमा डायलॉग, थोड़ी सी शर्म।

    अब अरमान आराम से देखने लगा। उसकी आंखें फोन से चिपकी थीं। कभी मुस्कुराता, कभी खुद में खो जाता। उसके लिए ये सिर्फ सीन नहीं थे—ये सबक थे, सीख थी, और उस दुनिया की झलक थी जिसमें वो धीरे-धीरे कदम रख रहा था।

    वीडियो देखते-देखते अरमान की आंखों में एक अलग सी चमक थी। पर्दे पर चल रहे रोमांटिक पलों को देखकर वो थोड़ा सोच में डूब गया।

    अरमान ने थोड़ी देर तक अंशुमान की बातें ध्यान से सुनीं, फिर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें झपकाते हुए मासूमियत से पूछा,
    “ये करने से अवनी खुश हो जाएगी?”

    अंशुमान के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आई। उसने सिर धीरे-से हिलाते हुए कहा,
    “बहुत ज़्यादा… तुम्हें देखकर उन्हें लगेगा कि तुम सिर्फ़ उनसे नहीं, बल्कि उनके हर पल से, उनके हर छोटे-बड़े एहसास से प्यार करते हो।”
    उसके स्वर में अपनापन भी था और एक तरह की समझदारी भी, जो अरमान के मन में तुरंत बैठ गई।

    लेकिन अगला वाक्य कहते हुए अंशुमान का चेहरा थोड़ा गंभीर हो गया। उसने धीमी आवाज़ में, लगभग फुसफुसाते हुए कहा,
    “पर ये सब किसी को बताना मत… खासकर भाभी को नहीं। ये हमारा सीक्रेट है।”
    उसकी आँखों में एक शरारती चमक भी थी, जैसे उसे पता हो कि ये छोटा-सा राज़ ही आगे का मज़ा बढ़ा देगा।

    अरमान ने ज़ोर से सिर हिलाया, इतनी ताक़त से जैसे कोई बच्चा अपनी सबसे प्यारी चीज़ की हिफाज़त का वादा कर रहा हो। उसके होंठों पर एक हल्की, भोली-सी मुस्कान थी और आँखों में चमक—जैसे उसने कोई बड़ा मिशन अपने ऊपर ले लिया हो।

    “ठीक है! सीक्रेट…” उसने होंठों पर उंगली रखकर फुसफुसाया।
    अंशुमान हँस पड़ा और उसके कंधे पर दोस्ताना थपकी दी। फिर वह मुड़कर चला गया, कदम धीमे लेकिन चेहरे पर संतोष की झलक थी—क्योंकि उसे यक़ीन था कि अब अरमान जो भी करेगा, उसमें अवनी के लिए सिर्फ़ प्यार ही होगा।

    अरमान कुछ देर वहीं खड़ा रहा, दिमाग़ में अंशुमान की बातें बार-बार घूमती रहीं। उसके मन में अब सिर्फ़ एक ही ख़याल था—
    “अवनी को खुश करना है… बहुत खुश।”

    शाम 7 बजे,
    अवनी किचेन में खाना बना रही थी। तभी अरमान ने दरवाज़े से झांकते हुए कहा,
    “अवनी… ज़रा आना।”

    अवनी, उसकी आवाज़ सुनकर मुस्कुराई। वह एक सर्वेंट को काम सौंपा और अरमान के कमरे की ओर बढ़ी। कमरे में कदम रखते ही उसने पूछा—

    “बताइये, क्या काम है?”

    अरमान ने कुछ नहीं कहा, बस धीरे से उसका हाथ पकड़ा।

    अवनी थोड़ी चौंकी, पर उसके चेहरे पर गुस्सा नहीं था, सिर्फ जिज्ञासा थी ये जानने की - क्यों अरमान ने उसे बुलाया है।

    अरमान ने उसे धीरे से खींचते हुए ड्रेसिंग टेबल के सामने ला खड़ा किया। अवनी अब शीशे में खुद को देख रही थी—और अपने पीछे खड़े अरमान को भी।

    अरमान ने बहुत हल्के से ड्रेसिंग टेबल पर रखा एक गुलाब उठाया, जो उसने शाम को गार्डन से तोड़ा था—बस अवनी के लिए।

    फिर बहुत ही प्यार और आदर से उसके बालों में वो फूल लगा दिया।

    अवनी की सांस थोड़ी थमी। उसकी आंखें शीशे में थी, लेकिन मन... उस गुलाब की नर्मी में अटका था।

    हर रोज़ अरमान उसके लिए फूल लाता था। लेकिन आज कुछ अलग था। आज फूल के साथ उसके हाथों में एक हल्की सी कंपन थी, आंखों में थोड़ी सी चमक, और चेहरे पर वो मासूम सी उम्मीद।

    अवनी ने मिरर में उसकी तरफ देखते हुए धीमे से मुस्कुराया। उसने कुछ कहा नहीं, पर उसकी मुस्कान ने सब कह दिया।

    अवनी अब भी मिरर में अरमान को देख रही थी—उसकी आंखों में मासूमियत थी, और उस मासूमियत में कहीं छुपा एक चाहत का बीज।

    तभी उसे एक एहसास हुआ।

    अरमान ने धीरे से अपने दोनों हाथ उसकी कमर पर रख दिए थे। स्पर्श नाज़ुक था, पर असर गहरा। फिर वो हाथ थोड़े और आगे बढ़े—बहुत धीमी गति से—और आकर उसके पेट पर टिक गए।

    इस तरह, वो अब अवनी को अपनी बाँहों में भर चुका था। एक ऐसा आलिंगन जो न तो अचानक था, न ही अनजाना—लेकिन इस बार उसमें कुछ नया था।

    वैसे तो अरमान ने कई बार उसे गले लगाया था। हर रात जब वो उसके सीने से लगकर सो जाता था, तब अवनी उसकी गर्म सांसों और मासूम स्पर्श की आदी हो चुकी थी। पर आज पहली बार, जब अरमान के हाथ उसके साड़ी के नीचे कोरे पेट को छू रहे थे—एक सीधा, अनछुआ स्पर्श—तो अवनी के पूरे शरीर में एक सिहरन दौड़ गई।

    वो कुछ पलों तक बस खड़ी रही, सांसें धीमी होने की बजाय और तेज़ होती चली गईं।

    पीछे से अरमान की बाँहें अब और कस गई थीं।

    वो पूरी तरह से उससे सट गया था। उसके जिस्म की गर्माहट अब अवनी अपनी पतली सिल्क की साड़ी के आर-पार महसूस कर रही थी। उस गर्म स्पर्श से उसका तन ही नहीं, मन भी कांप उठा।

    अरमान का चेहरा उसके कंधे के पास था। उसकी सांसें अवनी की गर्दन से टकरा रही थीं।

    उसके पास खड़े उस मासूम ने, जाने-अनजाने, एक भावनात्मक सीमारेखा को धीरे-धीरे पार कर दिया था।

    अवनी की आंखें अब भी मिरर में थीं, लेकिन वो खुद को उसमें नहीं देख रही थी—वो बस महसूस कर रही थी। खुद को, अरमान को, और उनके बीच पलती उस बारीक सी रेखा को जो धीरे-धीरे मिट रही थी।

    मदहोशी की उस हल्की सी चुप्पी में, अवनी ने भी धीरे से अपने हाथ अरमान के हाथों पर रख दिए। और फिर—एक धीमे, अनकहे इकरार की तरह—वो थोड़ी और उसके करीब हो गई।

    उस पल, न कोई शब्द थे, न कोई वादा।
    सिर्फ दो धड़कनों की टकराहट थी, और दो आत्माओं का स्पर्श—मौन, मगर बहुत गूंजता हुआ।

    तभी कुछ ऐसा हुआ जिसको महसूस करते ही अवनी की धड़कने उसके काबू में न रहा।

    क्या हुआ ऐसा जिस से अवनी की धड़कने बढ़ गई?
    आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी....

  • 17. My Innocent husband - Chapter 17 एक किस... जैसे कल रात किया था...

    Words: 1588

    Estimated Reading Time: 10 min

    अवनी अब खुद को पूरी तरह अरमान के करीब महसूस कर रही थी।

    उसकी उंगलियाँ नर्मी से अरमान के बालों में उलझी हुई थीं, जैसे हर लट को अपने स्पर्श में कैद कर लेना चाहती हों।

    उसके होठ एक बार फिर अरमान के होठों से मिल चुके थे—गर्म, जीवंत, और चाहत से भरे।

    किस धीरे-धीरे गहराता जा रहा था।

    हर गुजरते पल के साथ उनके दिलों की धड़कनें तेज़ हो रही थीं, साँसें एक-दूसरे में घुलती जा रही थीं, और कमरा उस पल की गर्माहट और चाहत से भरा जा रहा था।

    अरमान की पकड़ भी पहले से कहीं ज़्यादा मजबूत हो गई थी, मानो वो इस पल को अपनी हथेलियों में बंद कर लेना चाहता हो, ताकि यह कभी खत्म न हो।

    कई मिनट तक वो एक-दूसरे की दुनिया में खोए रहे, जैसे बाहर की हर चीज़ का अस्तित्व मिट चुका हो।

    अवनी की आँखों में एक अलग चमक थी—अरमान के इस नए, बेखौफ रूप ने उसे भीतर तक हिला दिया था।

    वो उसके हर स्पर्श, हर आहट में खुद को डूबो देना चाहती थी।

    लेकिन तभी… एक हल्की-सी बेचैनी ने उसके दिल को छू लिया।

    उसने महसूस किया कि अरमान के होठ अचानक स्थिर हो गए थे।

    वो गर्माहट, जो अभी कुछ पल पहले तक उसके भीतर आग की तरह फैल रही थी, अब ठंडी-सी लगने लगी।

    अवनी की पलकें झपकीं, साँसों का तालमेल टूटा, और उसका दिल जैसे एक बीट मिस कर गया।

    उसने हल्के से किस तोड़ा और उसकी नज़रें अरमान के चेहरे पर ठहर गईं।

    उसके होठ अब पूरी तरह शांत थे, शरीर भी एकदम स्थिर, और उसकी आँखें गहरी नींद में बंद थीं।

    अवनी का दिल अचानक जोर से धड़क उठा—क्या हुआ उसे? एक पल के लिए डर उसकी रगों में दौड़ गया।

    लेकिन अगले ही क्षण, जब उसकी नज़र अरमान के चेहरे पर पड़ी, तो बेचैनी पिघलने लगी।

    अरमान बिल्कुल शांत और निश्चिंत था, जैसे कोई थका हुआ बच्चा माँ की गोद में सुकून पा कर सो गया हो।

    उसके चेहरे पर हल्की-सी मासूमियत थी, मानो इस पल में उसे पूरी दुनिया की हर खुशी मिल गई हो।

    अवनी के होंठों पर एक धीमी, कोमल मुस्कान फैल गई—वो मुस्कान जो सिर्फ़ तब आती है, जब दिल सच में किसी को अपना मान ले।

    वो झुककर धीरे से उसके माथे पर एक लंबा, प्यार भरा किस छोड़ देती है, जैसे किसी अनमोल खज़ाने पर अपनी मुहर लगा रही हो।

    अरमान की नींद बहुत गहरी थी, लेकिन उसके होठों के कोने पर एक नन्ही-सी मुस्कान अब भी खेल रही थी, मानो अवनी की मौजूदगी उसे सपनों में भी महसूस हो रही हो।

    अवनी ने धीरे से उसका हाथ थामा, उसकी उंगलियों को अपनी उंगलियों में पिरो दिया, फिर बिना कोई आवाज़ किए थोड़ी दूरी बना ली, ताकि उसकी नींद न टूटे।

    वो चुपचाप उसके पास लेट गई—बस उसकी साँसों की लय सुनती, उसकी नींद का सुकून देखती, और सोचती कि शायद यही वो पल है, जिसका उसने हमेशा सपना देखा था।

    कमरे में एक सुखद, सुकून भरी खामोशी थी, जिसमें सिर्फ़ उनकी साँसों की हल्की-हल्की आवाज़ घुल रही थी।

    यह खामोशी किसी बोझ की नहीं, बल्कि उस अपनापन की थी, जो दो दिलों को बिना शब्दों के भी करीब ले आती है।

    अवनी चाहकर भी इस पल को तोड़ना नहीं चाहती थी।

    उसे डर था कि कहीं उसकी हल्की-सी हलचल भी अरमान की मीठी नींद छीन न ले।

    इसलिए वो धीरे-धीरे अपने शरीर को थोड़ा पीछे खिसका लाई, लेकिन उसकी नज़रें अब भी अरमान पर ही टिकी रहीं—मानो उसकी आँखों को कोई और मंज़िल न हो।

    कुछ ही पलों में, जैसे अरमान के दिल को अहसास हो गया कि वो उसके पास नहीं है।

    उसने बिना आँखें खोले ही करवट बदली और नींद में ही धीरे-धीरे उसकी ओर खिसक आया।

    उसका एक हाथ आकर अवनी के पेट पर ठहर गया, और दूसरा पाँव उसके पाँव के ऊपर आकर टिक गया—जैसे नींद में भी उसे यकीन चाहिए कि अवनी उसके साथ है।

    अवनी के होंठों पर एक हल्की, बेतकल्लुफ़ मुस्कान आ गई।

    उसने धीरे से उसकी उंगलियों को सहलाया और मन ही मन सोचा—

    “ये आदमी नींद में भी मुझे छोड़ना नहीं जानता…”

    सुबह की हल्की धूप कमरे की खिड़की से छनकर अंदर आ रही थी।

    नरम सी रौशनी अरमान के चेहरे पर पड़ी, तो उसकी पलकें धीरे-धीरे हिलने लगीं।

    उसने खुद को खींच कर कुछ और करीब किया और पाया कि वो अब भी अवनी के बेहद पास है।

    उसका चेहरा अब भी शांत था, जैसे सपनों में भी वो बस अवनी को ही महसूस कर रहा हो।

    अवनी पहले से जाग चुकी थी, पर वो उसकी नींद खराब नहीं करना चाहती थी।

    वो हल्के हाथों से अरमान के बालों को सहला रही थी, जैसे कोई माँ अपने बच्चे को थपकियाँ देती है।

    उसकी नज़रें अरमान के मासूम चेहरे पर थीं, और होंठों पर एक सुकून भरी मुस्कान।

    पिछली रात का हर लम्हा उसकी यादों में ताज़ा था — वो गहराई, वो चाहत, वो मासूमियत।

    अरमान ने आँखें खोलीं तो सबसे पहले उसकी नज़र उसी पर पड़ी—अवनी, जो चुपचाप उसे निहार रही थी, आँखों में सारा अपनापन और होंठों पर वो प्यारी-सी मुस्कान लिए, जो सीधे दिल को छू जाती थी।

    "अवनी..." उसकी आवाज़ धीमी, गहरी और थोड़ी-सी उनींदी थी, जैसे किसी मीठे सपने से जगाया गया हो।

    अवनी ने बस हल्के से "हूँ" कहा और झुककर उसके गाल पर एक नर्म, लंबे पल तक ठहर जाने वाला चुम्बन दे दिया।

    उसकी साँसों की गर्मी अरमान के दिल तक उतर गई।

    "मैं तुम्हारे साथ हूँ," उसने फुसफुसाकर कहा, आवाज़ में ऐसा यकीन था जैसे पत्थर पर भी उकेरा जा सके, "हमेशा।"

    अरमान ने एक पल के लिए उसे ऐसे देखा, मानो पहली बार उसकी आँखों में उतर रहा हो, जैसे हर भाव, हर रेखा, हर अहसास को अपने भीतर कैद कर लेना चाहता हो।

    फिर उसने बिना एक शब्द कहे अपनी दोनों बाँहों में उसे भर लिया, कसकर, जैसे उसे खोने का डर अब भी कहीं भीतर छिपा हो।

    "मुझे अच्छा लगता है जब तुम मेरे पास होती हो," उसने मासूमियत और सच्चाई से कहा।

    अवनी की पलकों में नमी उतर आई, लेकिन उसके होंठ अब भी उसी नर्म मुस्कान से सजे रहे।

    उसने अपनी उंगलियों से उसके चेहरे को छुआ, फिर हल्के से उसकी नाक को अपनी नाक से छुआते हुए बोली,

    "अब से मैं हर सुबह तुम्हारे साथ ही उठना चाहती हूँ।"

    अरमान ने खुशी से सिर हिलाया और फिर उसके सीने से लग गया।

    दोनों कुछ पल यूँ ही लेटे रहे — बिना कुछ कहे, बस एक-दूसरे की मौजूदगी को महसूस करते हुए।

    वो सुबह बस एक नई शुरुआत थी — प्यार, भरोसे और अपनापन से भरी।

    सुबह का नाश्ता बनाने की तैयारी चल रही थी।

    घर के बाकी लोग अपने-अपने कमरों में थे, और अवनी किचन में खड़ी सबके लिए पराठे बना रही थी।

    वो आटे को बेलने में व्यस्त थी, कि तभी पीछे से किसी ने उसकी कमर पकड़ ली।

    अवनी हल्के से चौंकी, लेकिन जैसे ही पीछे मुड़कर देखा — अरमान खड़ा था, हल्की सी मुस्कान और भोली सी निगाहें लिए।

    "अरमान, क्या कर रहे हो? कोई देख लेगा," अवनी ने फुसफुसा कर कहा।

    अरमान ने मासूमियत से कहा, "किचन में कोई नहीं है ना, और मुझे तुमसे कुछ चाहिए।"

    अवनी ने मुस्कुरा कर पूछा, "क्या चाहिए?"

    अरमान ने उसका हाथ पकड़ा और धीरे से कहा, "एक किस... जैसे कल रात किया था।"

    अवनी कुछ पल को उसकी आँखों में देखती रह गई — उसमें अब मासूमियत के साथ-साथ एक भोली चाह भी दिख रही थी।

    "अभी नहीं... सब घर पर हैं," अवनी ने थोड़ी शर्माते हुए कहा।

    लेकिन अरमान तो ज़िद पर उतर आया था।

    "बस एक... छोटा सा।"

    अवनी ने सिर झुकाया, लेकिन दिल से वो भी इंकार नहीं कर पा रही थी।

    उसने जल्दी से गाल आगे किया, "लो, जल्दी करो।"

    पर अरमान ने हल्के गुस्से में कहा, "गाल पर नहीं... होठों पर।"

    अवनी के चेहरे का रंग गुलाबी हो गया, वो शर्म से थम गई।

    "अरमान..." वो कुछ कह पाती उससे पहले ही अरमान ने झुककर उसके होठों पर एक हल्का सा चुम्बन ले लिया।

    अवनी आँखें बंद किए बस वही खड़ी रही, साँसें जैसे थम सी गई थीं।

    अरमान पीछे हटकर मुस्कुरा दिया, "अब बनाओ खाना, मुझे भूख लगी है।"

    अवनी उसे देख कर रह नहीं पाई, और उसने हँसते हुए उसे एक चम्मच आटे का गोला उसके गाल पर लगा दिया।

    "अब बोलो किस किस चाहिए?"

    अरमान ने मुंह बना लिया, "बुरा किया... अब मैं नहीं बोलूंगा।"

    फिर दोनों एक-दूसरे की ओर देखकर हँसने लगे — उस हँसी में प्यार था, शरारत थी, और एक ऐसा अपनापन जो अब और भी गहरा होता जा रहा था।

    ऐसे ही थोड़ी देर में खाना तैयार हुआ और अवनी सभी को सर्वेंट के मदद से खाना सर्व करती है।

    शाम का वक्त,

    शाम के वक़्त घर के सभी लोग लिविंग रूम में बैठे थे।

    बुआ टीवी पर सीरियल देख रही थीं, पापा अख़बार पढ़ रहे थे, और मम्मी कुछ सिलाई में लगी थीं।

    अंशुमान मोबाइल पर कुछ स्क्रॉल कर रहा था, और तभी अरमान तेज़ी से सीढ़ियों से उतरता हुआ आया।

    उसकी आँखें पूरे हॉल में किसी को ढूंढ रही थीं — “अवनी कहाँ है?” वो ज़ोर से बोला।

    अवनी किचन से बाहर आई, हाथ में पानी का गिलास था।

    “यहाँ हूँ, क्या हुआ?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा।

    तभी अंशुमान कुछ कहता है जिस से अवनी का चेहरा लाल हो जाता है।

    तो आप सब को क्या लगता है

    क्या कहा होगा अंशुमान ने?

    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी....

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  • 18. My Innocent husband - Chapter 18 अरमान का मासूम इजहार

    Words: 1532

    Estimated Reading Time: 10 min

    अरमान तेज़ कदमों से, लगभग दौड़ते हुए, अवनी के पास आया। उसकी आँखों में एक चमक थी, जैसे कोई बच्चा अपना पसंदीदा खिलौना दिखाने के लिए बेचैन हो।

    “तुम्हें दिखाना है कुछ!” उसने हाँफते हुए कहा।

    अवनी ने हैरानी से उसकी ओर देखा, “अभी? और… सबके सामने?”

    “हाँ! सबके सामने… सबको दिखाना है कि तुम मेरी हो,” अरमान की आवाज़ में वो मासूमियत और सच्चाई थी, जो सीधे दिल को छू जाए। इस बार उसका अंदाज़ सिर्फ़ प्यारा नहीं था, बल्कि गहराई से इमोशनल भी था।

    पूरा घर अब उनकी ओर देख रहा था। अंशुमान ने शरारती मुस्कान के साथ टीवी म्यूट कर दिया। पापा ने धीरे से अपना चश्मा उतारा और ध्यान से अरमान की तरफ़ देखने लगे।

    अवनी के दिल की धड़कन थोड़ी तेज़ हो गई—सबकी निगाहें उस पर थीं—लेकिन न जाने क्यों, उसकी आँखों में डर से ज्यादा एक अजीब-सा यकीन था, जैसे जो होने वाला है, वो उसे सही लगता हो।

    अरमान ने अपनी शर्ट की जेब में हाथ डाला और एक मुड़ा-तुड़ा सा छोटा कागज़ निकाला।

    उसने उसे धीरे-धीरे खोला, और सबके सामने पढ़ने लायक पकड़कर कहा,

    “इसमें मैंने लिखा है… ‘Avni is my best friend and my wife. I love her.’”

    उसकी आवाज़ में गर्व भी था और प्यार भी।

    फिर उसने सबको देखते हुए जोड़ा, “मैंने खुद लिखा है… और कोई spelling mistake नहीं है!”

    एक पल को पूरा घर चुप हो गया—जैसे इस मासूम से इज़हार को समझने में सबको एक साँस का वक़्त लग गया हो।

    फिर बुआ ने मुस्कुराते हुए ताली बजाई और बोलीं, “वाह! अब तो हमारा अरमान सच में बड़ा हो गया है।”

    बाकी सबके होंठों पर भी हल्की मुस्कान आ गई, लेकिन अवनी के दिल में तो ये पल हमेशा के लिए बस चुका था।

    मम्मी की आँखें हल्की-सी नम हो गईं। उन्होंने धीमे, लेकिन दुआ से भरे स्वर में कहा,

    “भगवान करे, ऐसा ही बना रहे।”

    अरमान ने बिना हिचकिचाए सबके सामने अवनी का हाथ थाम लिया। उसकी पकड़ में कोई दिखावा नहीं था—सिर्फ़ अपनापन और सच्चाई थी।

    बड़ी मासूमियत से उसने कहा,

    “मैंने ना… भगवान से दुआ की थी कि मुझे ऐसी friend मिले जो मुझे हर दिन hug करे, प्यार करे और मेरे साथ खेले। और देखो, वो दुआ सच हो गई।”

    अवनी के दिल में जैसे किसी ने गर्म रोशनी भर दी हो।

    उसकी आँखों के कोनों में नमी थी, लेकिन होंठों पर हल्की-सी मुस्कान भी।

    ये भोला, बच्चा-सा इंसान अब उसके दिल का सबसे सुरक्षित, सबसे प्यारा कोना बन चुका था—जहाँ कोई डर नहीं, बस सुकून था।

    वो चुपचाप उसका हाथ थामे रही, उसकी उंगलियों की गर्मी महसूस करते हुए, और बस उसकी आँखों में गहराई तक झाँकती रही।

    घर वाले अब भी हँस रहे थे, कोई चुटकी ले रहा था, तो कोई मुस्कुरा रहा था, लेकिन उस भीड़ में उनकी नज़रों का मिलना जैसे एक अलग ही कहानी बुन रहा था—

    जहाँ शब्दों की ज़रूरत नहीं थी, सिर्फ़ एहसास काफी था।

    उसके बाद अवनी किचेन में चली जाती है डिनर बनाने के लिए। किचन में हल्की रौशनी जल रही थी। बाहर हलकी ठंडक और भीतर मसालों की खुशबू धीरे-धीरे हवा में घुल रही थी।

    अवनी किचन में डिनर की तैयारी कर रही थी। गैस पर दाल चढ़ी थी, बगल में सब्जियाँ काटी जा रही थीं। तभी पीछे से आवाज आई — “मैं भी हेल्प करूँ?” — अरमान का वही मासूम और उत्साहित स्वर।

    अवनी पलटी और उसे देखकर मुस्कुरा दी। “अच्छा? खाना बनाना आता है क्या?”

    अरमान ने सिर झटके से हिलाया, “नहीं… पर सीख जाऊँगा। तुम्हारे साथ रहूँगा तो सब सीख जाऊँगा।”

    अवनी का दिल एक बार फिर उसके इस भोलेपन पर पिघल गया।

    “ठीक है... तो आटा गूंथना है। करोगे?” — अवनी ने चुटकी लेते हुए कहा।

    अरमान ने बड़े कॉन्फिडेंस से हाथ बढ़ा दिया, “हाँ... बताओ कैसे करते हैं?”

    अवनी ने थाली में आटा डाल दिया और पानी डालकर समझाने लगी, “ऐसे हाथ घुमाते हुए आटे में पानी मिलाना है… धीरे-धीरे...”

    अरमान ने कोशिश शुरू कर दी। लेकिन आटे के साथ उसके हाथ चिपकने लगे। वो दोनों हाथ ऊपर उठा कर बोला, “अरे… ये तो भाग रहा है! ये क्यों नहीं मान रहा?”

    अवनी हँस पड़ी, “ये भाग नहीं रहा… तुम गलत कर रहे हो। देखो...”

    उसने पीछे से आकर अरमान के हाथों पर अपने हाथ रख दिए। दोनों के हाथ अब आटे में थे। अरमान को उसकी मुलायम उंगलियों का स्पर्श महसूस हुआ तो वो एक पल के लिए ठहर सा गया।

    अवनी उसके इतना करीब थी कि उसकी जुल्फें अरमान के गालों को हल्के-हल्के छू रही थीं। दोनों के बीच एक मीठी सी खामोशी छा गई। सिर्फ आटे के गूंथने की आवाज और दोनों की हल्की तेज़ होती साँसों की आहट।

    अरमान ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, “अगर रोज़ ऐसे ही साथ खाना बनाएंगे... तो मैं रोज़ बनाऊँगा।”

    अवनी ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में वही मासूम चाहत, वही भोला सा प्यार।

    उसने धीरे से कहा, “पागल... पहले सीख तो लो।”

    अरमान ने चुपके से उसके गाल पर आटे से भरा उंगली का टच कर दिया।

    “अब तो तुम्हारे चेहरे पर भी आटा लग गया। अब तो तुम भी बन गई किचन वाली।”

    अवनी ने झट से हाथ में आटा लिया और उसके गाल पर लगा दिया।

    “अब बराबर हो गए।” — वो खिलखिलाकर हँसी।

    दोनों अब एक-दूसरे को देख कर हँसने लगे। उस हँसी में प्यार था, दोस्ती थी, और साथ जीने का एक मासूम वादा। डाइनिंग टेबल सज चुका था। किचन से गर्मागर्म खाने की खुशबू पूरे घर में फैल रही थी।

    अवनी और अरमान ने मिलकर खाना तैयार किया था। हाँ, अरमान की मदद थोड़ी अजीब-सी थी — कभी ज्यादा आटा गिरा देना, कभी प्याज काटते वक्त आँसू बहाना — लेकिन उसकी मासूम कोशिशों ने अवनी के चेहरे पर मुस्कान लाने का काम बखूबी किया।

    डाइनिंग टेबल पर पूरा परिवार बैठा था। पापा अखबार एक तरफ रखकर प्लेट में रोटियाँ निकाल रहे थे। बुआ सब्ज़ी की कटोरी थाली में रख रहीं थीं। मम्मी सलाद सजा रहीं थीं। और अंशुमान पानी की बोतलें टेबल पर रख रहा था।

    अरमान ने बड़े गर्व से कहा, “देखो... ये रोटी मैंने बेली है!”

    बुआ ने प्लेट में रोटी डालते हुए रोटी को देखा — ना गोल, ना चाँद जैसी... बल्कि न जाने कौन-सी शेप थी। फिर भी मुस्कुरा के बोलीं, “वाह! अब तो बहू की किस्मत चमक गई। इतना होशियार पति जो है।”

    पापा ने मुस्कुरा कर कहा, “रोटी का शेप देख कर तो यही लगता है कि या तो भूख बहुत ज़्यादा थी, या रोटी ने बनाने वाले से लड़ाई कर ली।”

    सब ठहाके मारकर हँस पड़े।

    अंशुमान ने रोटी तोड़ते हुए बोला, “वैसे सच बताऊँ तो आज का खाना स्पेशल टेस्ट कर रहा है। लगता है इसमें कुछ एक्स्ट्रा मिला है।”

    बुआ ने मुस्कुरा कर कहा,

    “हाँ... एक्स्ट्रा प्यार। सही पकड़ा बेटा।”

    सबकी हँसी, बातें और वो घर का गरमाहट भरा माहौल — जैसे हर किसी के दिल में एक प्यारी सी याद बन रहा था।

    अरमान बार-बार अवनी की तरफ देखता। बीच-बीच में वो उसके लिए रोटी तोड़ कर देता या सब्ज़ी की कटोरी बढ़ा देता। और अवनी भी, बिना कुछ कहे, उसकी प्लेट में ध्यान से सब कुछ परोसती रहती।

    पूरा डिनर हँसी-खुशी में बीता — जैसे खाना नहीं, प्यार परोसा जा रहा हो।

    रात के करीब साढ़े दस बज चुके थे। पूरा घर शांत था, और सब अपने-अपने कमरों में थे। अवनी कमरे में आई, तो देखा अरमान पहले से ही बेड पर बैठा उसका इंतज़ार कर रहा था।

    वो मुस्कराया और बोला, “अवनी... एक किस चाहिए।”

    अवनी ने पलंग के पास जाकर चप्पल उतारी और उसकी ओर देखा।

    “अरमान, अब रोज़-रोज़ तुम किस की ज़िद करने लगे हो,” उसने हल्के से कहा।

    अरमान ने मासूमियत से होंठ सिकोड़ लिए, “तो क्या हुआ? तुम मेरी वाइफ हो ना...”

    अवनी बैठ गई और बोली, “हां हूं, लेकिन हर दिन एक ही बात... कमरे में तो समझ आता है, लेकिन आज तो तुम किचन में भी ज़िद कर रहे थे।”

    वो थोड़ा रुककर बोली, “अगर मम्मी ने देख लिया होता तो? तुम्हें समझना होगा कि हर जगह ये सही नहीं लगता।”

    अरमान का चेहरा धीरे-धीरे उतरने लगा।

    उसने अपनी नज़रें नीचे कर लीं और धीमे से कहा, “मत दो… किस नहीं चाहिए…”

    अवनी को एहसास हुआ कि उसकी बात ने अरमान को चोट पहुँचाई है, लेकिन वो चाहती थी कि अरमान थोड़ा समझे।

    “अरमान, मैं नाराज़ नहीं हूं, बस तुम्हें थोड़ा समझना होगा,” अवनी ने कोमलता से कहा।

    लेकिन अरमान चुपचाप उठा और कमरे से बाहर चला गया।

    अवनी ने पीछे से आवाज़ दी, “अरमान… सुनो तो…” पर वो नहीं रुका।

    वो सीधे बालकनी में चला गया और रेलिंग के पास जाकर खड़ा हो गया। रात की ठंडी हवा उसके बालों को छू रही थी, पर उसका चेहरा भावहीन था। उसकी आँखें सामने अंधेरे में खोई हुई थीं, जैसे किसी उलझन में डूब गया हो।

    अवनी धीरे-धीरे उसके पीछे आई और कुछ दूरी पर खड़ी हो गई। वो कुछ बोल नहीं रही थी, बस उसे देख रही थी।

    अरमान ने एक पल को उसकी ओर देखा, फिर तुरंत नज़र फेर ली। उसकी आँखों में नमी थी, लेकिन वो मुस्कराने की कोशिश कर रहा था।

    तभी अरमान कुछ ऐसा कहा जिसे सुन कर अवनी हैरान रह जाती है।

    तो आप सब को क्या लगता है,

    क्या कहा होगा अरमान ने जिस से अवनी हैरान हो जाती है?

    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी....

  • 19. My Innocent husband - Chapter 19 तुम्हें प्यार करना चाहता हूं

    Words: 1849

    Estimated Reading Time: 12 min

    Thank you Shahbaz and ritika for your lovely comments.

    अवनी धीरे-धीरे उसके पीछे आई और कुछ दूरी पर खड़ी हो गई। वो कुछ बोल नहीं रही थी, बस उसे देख रही थी।

    अरमान ने एक पल को उसकी ओर देखा, फिर तुरंत नज़र फेर ली। उसकी आँखों में नमी थी, लेकिन वो मुस्कराने की कोशिश कर रहा था।

    “शायद मैं अच्छा हसबैंड नहीं हूं...” उसने फुसफुसाकर कहा।

    अवनी का दिल उस पल जैसे कांप उठा।

    अवनी की आँखें भर आई थीं।
    उसने कभी नहीं सोचा था कि उसकी बातों से अरमान इतना आहत हो जाएगा।
    धीरे-धीरे वो उसके और करीब आई और उसके बिल्कुल पीछे खड़ी हो गई।
    फिर उसने धीरे से अपने हाथ अरमान की पीठ पर रखे।

    “तुम बहुत अच्छे हसबैंड हो, अरमान,” उसने धीरे से कहा।

    अरमान बिना उसकी ओर देखे बोला, “नहीं... अच्छे हसबैंड ऐसे नहीं होते... जो अपनी वाइफ को बार-बार परेशान करें... जो उसे शर्मिंदा करें।”

    अवनी ने उसकी पीठ से हाथ हटाकर उसके कंधों को थामा और हल्के से झुककर उसके कान के पास बोली,
    “तुमने मुझे कभी परेशान नहीं किया... बल्कि तुमने मुझे हर रोज़ मुस्कुराना सिखाया है।”

    अरमान ने उसकी बात सुनी, पर अब भी उसकी नज़रें सामने अंधेरे में थीं।

    अवनी अब उसके सामने आकर खड़ी हो गई।

    उसने उसके दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और प्यार से उसकी आँखों में देखा।

    “तुम्हारी मासूमियत मेरी ताकत है, अरमान... और तुम्हारी हर छोटी-छोटी ज़िद मुझे अपनी लगती है,” उसने कहा।

    अरमान की आँखें नम थीं, लेकिन अब उनमें हल्की सी चमक आ रही थी।

    अवनी ने उसकी हथेली को चूमा और बोली, “कभी-कभी डांट सिर्फ प्यार दिखाने का तरीका होता है... लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं तुम्हें कम चाहती हूं।”

    अरमान ने धीरे से पूछा, “तो तुम मुझसे नाराज़ नहीं हो?”

    अवनी ने तुरंत उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और कहा, “नाराज़गी सिर्फ दो पल की होती है, लेकिन तुम्हारे लिए मेरा प्यार हमेशा रहेगा।”

    अरमान की आँखों से एक आंसू गिरा, और अवनी ने उसे तुरंत अपनी उंगली से पोंछ दिया।

    फिर उसने आगे बढ़कर अरमान को अपनी बाहों में भर लिया।

    अरमान ने भी कसकर उसे पकड़ लिया — जैसे वो डर रहा था कि कहीं वो फिर दूर न चली जाए।

    अवनी ने उसके बालों में उंगलियाँ फिराई और फुसफुसाई,
    “अगर तुम्हें किस चाहिए, तो मांगना बंद करो... बस नज़रों से कहना... मैं सब समझ जाऊंगी।”

    अरमान ने मुस्कराकर उसकी ओर देखा और धीरे से पूछा, “तो अब भी किस मिलेगा?”

    अवनी ने हँसते हुए उसकी नाक पर अपनी उंगली रख दी और कहा,
    “घर के अंदर चलो... फिर सोचूँगी।”

    अरमान ने तुरंत उसका हाथ पकड़ा और बोला, “तो चलो! जल्दी!”

    दोनों मुस्कुराते हुए कमरे की ओर बढ़े — रात की ठंडी हवा अब और भी मीठी लगने लगी थी।

    उनकी परछाइयाँ साथ-साथ चल रही थीं — बिल्कुल वैसे ही जैसे अब उनकी ज़िंदगी एक हो रही थी।

    कमरे में हल्का सा अंधेरा था।
    सिर्फ खिड़की से आती चाँदनी और एक कोने की नाइट लैम्प जल रही थी।
    अरमान और अवनी कमरे में लौटे, तो दोनों के चेहरों पर एक सुकून था — जैसे कोई तूफ़ान अब शांत हो चुका हो।

    अरमान ने चुपचाप जाकर बेड पर बैठते हुए कहा, “मैं अब कभी नाराज़ नहीं होऊँगा... बस तुम दूर मत होना।”
    अवनी मुस्कुराई और उसके पास बैठ गई, “और तुम भी समझदारी दिखाओगे, तो मैं कभी दूर नहीं जाऊँगी।”

    अरमान ने उसका हाथ पकड़ा और धीरे से अपनी हथेली पर रख लिया।
    “क्या अब... मुझे बिना माँगे एक किस मिल सकती है?” उसने शरमाते हुए पूछा।
    अवनी उसकी मासूमियत पर फिर से पिघल गई।
    वो थोड़ा झुकी, और उसके गाल पर एक कोमल चुम्बन दे दिया।

    “बस इतना?” अरमान ने मुंह बनाते हुए पूछा।
    अवनी ने हँसते हुए उसकी शर्ट की कॉलर पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा और उसके होठों पर एक लंबा, गहरा चुम्बन दे दिया।

    कुछ पल तक दोनों बिना कुछ बोले, सिर्फ एक-दूसरे को देख रहे थे।
    उनकी साँसें मिली हुई थीं, और दिलों की धड़कनें एक लय में बज रही थीं।

    अरमान ने धीरे से पूछा, “तुम क्यों इतना अच्छा महसूस कराती हो?”
    अवनी ने उसके बालों में उँगलियाँ फेरते हुए कहा, “क्योंकि तुम इस दुनिया के सबसे मासूम इंसान हो, अरमान।”

    फिर दोनों धीरे से लेट गए, आमने-सामने।
    अरमान ने खुद को धीरे से अवनी की बाँहों में छुपा लिया, जैसे किसी सुरक्षित दुनिया में आ गया हो।

    वो उसके सीने से लगकर बोला, “अब मैं हर रात बस तुम्हारे पास रहना चाहता हूँ।”
    अवनी ने हल्के से उसके माथे को चूमा और कहा, “मैं भी।”

    अरमान की साँसें अवनी की गर्दन से टकरा रही थीं।
    उसकी गर्म साँसों से अवनी के पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई।
    उसने खुद को थोड़ा और अरमान के करीब खींच लिया — अब उनके बीच कोई दूरी नहीं थी।

    अरमान ने एक हाथ से अवनी की कमर को कसकर पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसके बालों को पीछे किया।
    फिर उसने उसके गले पर धीरे से होंठ रखे — एक लंबा, गीला और सच्चा चुम्बन।
    अवनी की पलके अपने आप ही झुक गईं और होंठ कांपने लगे।

    वो लम्हा ऐसा था जहाँ शब्दों की कोई जगह नहीं थी — सिर्फ साँसे थीं, एहसास था और दो दिलों की धड़कन।
    अरमान अब धीरे-धीरे अवनी की गर्दन से होते हुए उसके कॉलर बोन तक पहुँच गया और वहाँ रुककर उसकी त्वचा को अपनी उँगलियों से छूने लगा।

    अवनी अब खुद को रोक नहीं पा रही थी — वो खुद को उसकी बाँहों में छोड़ चुकी थी।
    उसने अरमान को नीचे किया और खुद उसके ऊपर आ गई।

    उसके हाथ धीरे-धीरे अरमान की सीने पर घूम रहे थे — जैसे वो हर लकीर को अपनी उंगलियों से महसूस करना चाहती हो।
    अरमान की साँसें गहरी हो चुकी थीं, उसकी आँखें बंद थीं, और उसकी उँगलियाँ चादर की मुट्ठियों में बदल रही थीं।

    अवनी ने उसकी शर्ट के बटन एक-एक कर बेहद धीरेपन से खोले — जैसे हर बटन खोलते वक्त वो अरमान की झिझक को भी मिटा रही हो।
    जब आखिरी बटन खुला, तो उसने हल्के से शर्ट के दोनों पल्ले अलग किए — अरमान की छाती अब उसके सामने खुल कर थी।

    वो कुछ देर वहीं ठहरी रही — उसकी नज़रें अरमान के चेस्ट और नीचे तक जाते एब्स पर अटक गई थीं।
    अरमान की बॉडी किसी जवान मर्द जैसी मज़बूत और शेप में थी — सीना चौड़ा, कॉलर बोन उभरी हुई, और पेट पर हल्के कट्स उभरते हुए।
    उसकी त्वचा गर्म थी — और उस पर चाँद की हल्की रोशनी पड़ रही थी।

    अवनी ने पहले उसकी छाती पर झुककर अपने होंठ टिकाए — एक लंबा, कोमल चुम्बन दिया।
    फिर वो धीरे-धीरे नीचे खिसकी — उसकी उँगलियाँ अब अरमान के पेट के ऊपर थी, और होंठ उसके एब्स के करीब।

    अरमान की साँस अब तेज़ी से चल रही थी — उसके पेट की मांसपेशियाँ उसके अंदर के कंपन को साफ ज़ाहिर कर रही थीं।
    अवनी ने पहले अपनी उँगलियों से उसके एब्स की रेखाओं पर गोल-गोल घुमाते हुए स्पर्श किया।
    फिर उसने बहुत धीरे, बहुत सावधानी से, अपने होंठ नीचे झुकाए और अरमान के नाभि के ठीक ऊपर एक धीमा, लंबा और गहरा किस किया।

    उसके बाद वह थोड़ा और नीचे गई, और उसके दाईं ओर के एब्स पर दो हल्के चुम्बन दिए — जैसे वो हर हिस्से को महसूस कर लेना चाहती हो।
    उसकी साँसें उसके पेट की त्वचा से टकरा रहीं थीं — जिससे अरमान की पूरी बॉडी में करंट की तरह एक सिहरन दौड़ रही थी।
    वो अब बेहोशी की हालत में था — ना बोल पा रहा था, ना खुद को हिला पा रहा था।

    अवनी उसकी तरफ ऊपर देखते हुए मुस्कराई — उस मासूम चेहरे पर अब चाहत की गहराई थी।
    फिर उसने बीच के एब्स पर अपना चेहरा टिकाया, उसकी गर्म साँसें उस हिस्से को और भी संवेदनशील बना रही थीं।

    अरमान की हल्की सी सिसकी निकली, और उसने एक हाथ से अवनी के बालों को हल्के से पकड़ा।
    वो जैसे खुद को संभालने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन अब वो पूरी तरह अवनी के प्यार में बह रहा था।

    उस पल दोनों के बीच शब्दों की कोई ज़रूरत नहीं थी — सिर्फ अहसास, साँसे और छुअन की भाषा बोल रही थी।

    अवनी अभी भी अरमान के एब्स पर अपना चेहरा टिकाए हुई थी।
    उसकी साँसें अब भी अरमान की त्वचा से टकरा रही थीं — और वो हल्की सी थकान के साथ उसे महसूस कर रही थी।
    अरमान की आँखें बंद थीं, लेकिन उसका मन पूरी तरह जाग रहा था।

    फिर अचानक अरमान ने अपना सिर उठाया और मासूम सी आवाज़ में कहा,
    “अवनी... अब मेरी बारी है ना?”

    अवनी थोड़ी चौंकी, “क्या मतलब?”
    अरमान थोड़ा ऊपर उठा और उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में लिया।

    “तुमने मुझे इतने अच्छे से प्यार किया... अब मैं भी तुम्हें प्यार करना चाहता हूं, किस करना चाहता हूँ...”
    उसकी आँखों में अब बच्ची जैसी ज़िद नहीं, बल्कि एक चाह थी — एक प्यारी, मासूम सी इच्छा।

    अवनी ने उसके चहरे पर उंगलियाँ फेरते हुए मुस्कुराकर कहा, “तो करो ना... किस कौन रोक रहा है?”
    ये सुनते ही अरमान ने एक लंबी सांस ली, जैसे किसी बड़ी मंज़िल की ओर बढ़ने से पहले कोई तय करता है।

    फिर वह धीरे-धीरे आगे झुका — उसके होंठ अब अवनी के होंठों के बेहद करीब थे।
    अवनी की पलकें अपने आप झुक गईं — जैसे वो खुद को अरमान के हवाले कर रही हो।

    अरमान ने पहले बेहद हल्के से, एक रुक-रुक कर किया गया पहला चुम्बन उसके निचले होंठ पर रखा।
    फिर उसने दोनों हाथों से अवनी की कमर को खींचकर उसे पूरी तरह अपने पास कर लिया।

    अब उसके होठों ने अवनी के होंठों को पूरे एहसास से, पूरे भरोसे से चूमा — जैसे वो कहना चाहता हो,
    “अब मैं भी जानता हूँ... कैसे प्यार करते हैं।”

    अवनी का बदन कांप गया — क्योंकि अरमान की इस बार की किस में डर नहीं, हिचक नहीं... बस चाहत थी।
    धीरे-धीरे अरमान के होठ अब चलने लगे — पहले अपर लिप पर, फिर लोअर लिप पर... अवनी भी अब पूरी तरह उसमें डूब चुकी थी।

    दोनों के शरीर की गर्मी अब एक-दूसरे को महसूस कर रही थी।
    अरमान की उंगलियाँ अवनी की पीठ पर हल्के-हल्के घूम रही थीं और उसकी साँसे अब तीव्र हो रही थीं।

    ये किस छोटी नहीं थी — ये उन तमाम रातों का जवाब थी जहाँ अरमान ने सिर्फ आँखों से चाहा था।
    अब वो सब कुछ होठों से कह रहा था, बिना डरे, बिना हिचके।

    अवनी अब खुद को रोक नहीं पा रही थी — उसने दोनों हाथ उसकी गर्दन में डाल दिए और उसे और पास खींच लिया।
    अरमान की जिद अब पूरी हो चुकी थी — पर साथ ही साथ, उसने पहली बार अपने अंदर की मर्दानगी को महसूस किया।

    उनकी साँसे तेज़ थीं, होंठ थमे नहीं थे — ये किस पाँच मिनट से ऊपर चल रही थी।
    और दोनों, इस पल में — वक़्त को रोक देना चाहते थे।

    तभी अरमान कुछ कहता है जिस से अवनी के दिल की धड़कन एक पल के लिए रुक सी गई।

    तो आप सब को क्या लगता है
    ऐसा क्या कहा अरमान ने?
    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....
    आज का चैप्टर पूरे 1.8k+ के है। तो कमेंट कर के जरूर बताना।

  • 20. My Innocent husband - Chapter 20 इसे सिर्फ उनके पति को छूने की इजाज़त होती है

    Words: 1972

    Estimated Reading Time: 12 min

    अवनी अब खुद को रोक नहीं पा रही थी — उसने दोनों हाथ उसकी गर्दन में डाल दिए और उसे और पास खींच लिया।
    अरमान की जिद अब पूरी हो चुकी थी — पर साथ ही साथ, उसने पहली बार अपने अंदर की मर्दानगी को महसूस किया।

    उनकी साँसे तेज़ थीं, होंठ थमे नहीं थे — ये किस पाँच मिनट से ऊपर चल रही थी।
    और दोनों, इस पल में — वक़्त को रोक देना चाहते थे।

    किस के बाद दोनों कुछ पल वैसे ही एक-दूसरे की बाहों में चुपचाप लेटे रहे।
    साँसे अब भी तेज़ थीं, होंठ गर्म थे और दिलों की धड़कनें अजीब सी लय में चल रही थीं।

    अरमान ने धीरे से अपनी उंगलियाँ अवनी की हथेली में फँसाईं और फिर हल्की सी मुस्कान के साथ बोला,
    “अवनी…”
    उसकी आवाज़ में एक अलग ही मिठास थी — वो न तो डर था, न हिचक… बस एक बच्चा सा प्यार।

    अवनी ने धीमे से “हूँ?” कहा, और उसकी आँखों में झाँकने लगी।

    अरमान ने मासूमियत से उसकी उंगलियाँ चूमते हुए कहा,
    “जब तुम मुझे ऐसे प्यार करती हो ना… तो मन करता है तुम मुझे कभी छोड़कर कहीं मत जाओ…”
    फिर एक सेकेंड रुककर, वो थोड़ा और पास आ गया और फुसफुसाया,
    “मैं चाहता हूँ… हर रात तुम मुझे ऐसे ही प्यार करो… वरना मैं नहीं सो पाऊँगा।”

    ये सुनते ही अवनी की साँस एक पल को थम गई।
    उसकी आँखों की पुतलियाँ कुछ देर तक अरमान के चेहरे पर ही रुकी रहीं —
    उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये वही अरमान था… जो कभी उसके सामने डर जाता था।

    उसका दिल ज़ोर से धड़का — और एक बीट मिस भी हो गई।

    अरमान के शब्दों में ना कोई चालाकी थी, ना कोई बनावट —
    बस एक प्यारा-सा बच्चा था, जो अब सिर्फ अपनी पत्नी के प्यार का भूखा था।

    अवनी ने उसकी ठोड़ी उठाकर उसकी आँखों में देखा और हल्की हँसी के साथ कहा,
    “इतना प्यारा कौन ज़िद करता है, हाँ?”
    अरमान ने शरमाते हुए आँखें झुका लीं, लेकिन फिर भी बोले बिना नहीं रह सका —
    “मैं कर रहा हूँ… क्योंकि अब तुम सिर्फ मेरी हो।”

    अवनी अब खुद को रोक नहीं सकी — उसने अरमान को ज़ोर से गले लगा लिया।
    उसके सीने पर सिर रखते हुए बस इतना कहा,
    “हाँ… सिर्फ तुम्हारी…”

    अवनी अब भी अरमान की बाँहों में थी, जब उसने महसूस किया कि अरमान अचानक उससे थोड़ा दूर हो गया।
    वो पल भर को ठिठक गई।
    जो लड़का अभी कुछ पल पहले कह रहा था कि "तुम मुझे ऐसे ही प्यार करो,"
    वो अब खुद ही एक अजीब से संकोच के साथ पीछे हट गया था।

    अवनी ने अपनी भूरी आँखों से उसे चुपचाप देखा — उसकी नज़रों में सवाल थे,
    “अभी तो मुझे छोड़ने की बात नहीं कर रहे थे... फिर अचानक क्या हुआ?”

    अरमान ने कुछ नहीं कहा, बस धीरे से उसकी बाहें खोलीं और उसे बड़े प्यार से तकिए पर लिटा दिया।
    फिर, बिना कुछ बोले, वो उसके ऊपर इस तरह से चढ़ आया जैसे कोई बच्चा अपनी माँ के ऊपर चढ़ जाता है —
    न कोई संकोच, न कोई लिहाज़… बस मासूम जिद और अपनापन।

    अवनी को उसकी ये हरकत अजीब भी लगी और प्यारी भी।
    उसने हँसते हुए हल्की डांट में कहा, “अरे वाह! ये क्या कर रहे हो आप? उठिए, ऐसे नहीं करते।”

    पर अरमान कहाँ मानने वाला था।

    वो बोला, “नहीं! आज मैं तुम्हारे ऊपर ऐसे ही सोऊँगा।”
    उसके चेहरे पर वही मासूम ज़िद थी, जैसे उसे लगे कि यही उसका सबसे आरामदायक तकिया है।

    अवनी हैरान होकर उसकी हरकतों को देख रही थी।
    उसने उसे थोड़ा धकेलने की कोशिश की, “अरमान… प्लीज़, ऐसा मत कीजिए। बहुत भारी लग रहे हैं।”

    लेकिन अरमान, बिना उसकी बात पर ध्यान दिए, अपना सिर धीरे-धीरे अवनी के सीने की ओर ले जाने लगा।
    उसका मासूम चेहरा अब हल्का गर्म होने लगा था — उसपर शरारत और संकोच का अजीब सा मेल था।

    जैसे ही वो सिर रखता, उसकी नजर अचानक अवनी के आँचल पर पड़ी —
    जो अब उनकी नज़दीकियों के कारण थोड़ा सरक चुका था, और उस आँचल से अवनी के उभरे हुए स्तन की हल्की झलक दिखाई दे रही थी।

    अरमान की आँखे एक पल को अटक गईं।

    वो दृश्य उसके लिए नया था — अनदेखा और कुछ समझ में न आने वाला,
    पर साथ ही दिल को तेजी से धड़काने वाला।

    उसकी साँस कुछ तेज़ हुई, और उसकी मासूम आँखों में कुछ अलग चमक आ गई —
    जैसे उसे कुछ महसूस हो रहा हो, पर वो समझ नहीं पा रहा कि ये कैसा एहसास है।

    अरमान की निगाहें अब अवनी के सीने पर अटक गई थीं।
    वो पल भर को चुप हो गया… उसकी साँस हल्की तेज़ थी, पर आँखों में डर नहीं था —
    बल्कि वो मासूम जिज्ञासा थी, जैसे किसी छोटे बच्चे को कोई नई चीज़ दिख जाए।

    उसने धीरे से अपना सिर उठाया, और एकदम शांत स्वर में पूछा, “अवनी… ये क्या है?”

    उसके सवाल में कोई शर्म नहीं थी, न कोई बेशर्मी —
    बस वही भोलापन, जो एक अनजान दिल में तब आता है जब वो पहली बार कुछ अलग देखता है।

    अवनी की साँस जैसे रुक सी गई।

    उसका चेहरा एक पल में लाल पड़ गया,
    हाथ तेजी से अपने आँचल को ऊपर खींचा और खुद को ठीक किया।

    उसने अरमान की आँखों में देखा — वहाँ कोई बुरी नीयत नहीं थी,
    बस एक छोटा-सा बच्चा अपनी बीवी से कुछ पूछ रहा था, जैसे पूछे — "ये खिलौना क्या करता है?"

    अवनी को न चाहते हुए भी मुस्कान आ गई।
    उसका दिल चाहा कि ज़ोर से हँसे… लेकिन आँखें हल्की भीग भी गईं।

    उसने धीरे से कहा,
    “ये… कुछ नहीं अरमान… ये... लड़कियों के शरीर का हिस्सा होता है… और सिर्फ उनके पति को छूने की इजाज़त होती है।”

    अरमान ने मासूमियत से पूछा, “मतलब मैं?”

    अवनी की पलकों ने झपकना बंद कर दिया था। उसकी धड़कन फिर से एक बीट मिस कर गई।

    वो कुछ पल तक कुछ नहीं बोल पाई… फिर धीरे से कहा, “हाँ… सिर्फ तुम।”

    अरमान की मुस्कान बड़ी सी हो गई — जैसे उसे कोई खजाना मिल गया हो।

    उसने फिर से धीरे से खुद को अवनी के सीने पर रख दिया, और बोला, “तो मैं अब यहाँ ही सो जाऊँ?”

    बिलकुल उसी टोन में, जैसे कोई बच्चा कहता हो — "अब यहीं घर बनाऊँ क्या?"

    अवनी की आँखें झुक गईं, होंठों पर हल्की मुस्कान तैर गई। उसने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, “सो जाओ… लेकिन सिर्फ सोना है… समझे?”

    अरमान ने एक हल्की “हूँ” की आवाज़ दी और आँखें मूँद लीं।

    (अरमान और अवनी का सोने का पोजीशन मैंने wp channel में डाल दिया है। देखना जरूर सब।)

    अगली सुबह,

    सुबह की हल्की धूप खिड़की से कमरे में फैल चुकी थी।
    सफेद परदों से छनती किरणें जैसे बिस्तर पर कोई सुनहरी चादर बिछा रही थीं।

    अवनी की आँखें धीरे-धीरे खुलीं।
    उसने खुद को बिस्तर पर फैला हुआ पाया — लेकिन कुछ अलग था।

    उसके ऊपर अरमान की बाँह थी — कस कर लिपटी हुई।

    वो एकदम उसके करीब था, इतना कि उसकी गर्म साँसें अब भी अवनी की गर्दन को सहला रही थीं।
    उसकी टांगें उलझी हुई थीं अवनी की टांगों में, और उसका चेहरा… ठीक अवनी की जॉलाइन के पास।

    अवनी हौले से मुस्कुराई।

    उसे याद आया, कल रात वो उस पर चढ़कर सो गया था, बिल्कुल बच्चे की तरह।
    लेकिन अब वो सिर्फ सो नहीं रहा था — उसकी उंगलियाँ… हल्के-हल्के अवनी की कमर को सहला रही थीं।

    अवनी ने धीरे से पूछा, “अरमान… जाग गए क्या?”

    अरमान ने मुँह उसके गले में छुपा लिया और फुसफुसाया, “नहीं… बस तुम्हें महसूस कर रहा हूँ।”

    अवनी का दिल फिर से ज़ोर से धड़क उठा।
    इस बार अरमान की आवाज़ में सिर्फ मासूमियत नहीं, एक हल्की सी मदहोशी भी थी।

    वो कुछ कहती, उससे पहले अरमान ने अपना सिर उठाया और हल्के से उसके माथे को चूमा।

    फिर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला, “कल रात जब तुमने मुझे गले लगाया ना… तो लगा जैसे मुझे सारी दुनिया मिल गई।”

    अवनी कुछ बोल नहीं पाई।

    अरमान अब उसका चेहरा धीरे-धीरे अपने दोनों हाथों में ले आया था।

    “अवनी…” वो थोड़ा पास आया। “मैं तुम्हें अब हर रोज़ इसी तरह उठाना चाहता हूँ। तुम्हारे गले से लगकर… तुम्हें चूमकर…”

    अवनी की आँखें भर आईं, उसने कहा, "आप तो अब बहुत रोमांटिक होते जा रहे हैं।”

    अरमान ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा,न“ये सब तुम्हारी वजह से है। तुम जब मुझे प्यार करती हो ना… तो मैं सीखता हूँ।”

    अवनी अब खुद को रोक नहीं सकी।

    उसने झुककर अरमान के होंठों पर एक प्यारा-सा चुम्बन दिया और बोली, “अगर तुम ऐसे ही सीखते रहे… तो मैं हर रोज़ तुम्हें कुछ नया सिखाऊँगी।”

    अरमान ने आँखें चमकाकर पूछा, “तो आज क्या सिखाओगी?”

    अवनी ने मुस्कुराकर कहा, “पहले नहा लो… फिर बताऊँगी।”

    अरमान बच्चों की तरह मुँह बनाते हुए बोला, “फिर मत कहना… मैं रोज़ ज़िद करता हूँ।”

    ये सुन अवनी मुस्कुराते हुए हां में सर हिलाती है और अपने कपड़े ले कर बाथरूम चली जाती है।

    अवनी के जाते ही अरमान तुरंत उठ कर बैठ गया। बाल थोड़े बिखरे थे और आँखों में नींद बाकी थी।

    बिस्तर से कूदते ही वह नंगे पैर गार्डन की तरफ दौड़ा। रोज़ की तरह उसने सबसे ताज़ा गुलाब चुना — जो सबसे ज्यादा खिला था।

    उसने उस फूल को मुस्कुराते हुए अपनी हथेलियों में रखा और फूंक मारी, “अब इसे अवनी के बालों में लगाऊँगा। वो बहुत खुश होगी।”

    वो फूले नहीं समा रहा था। धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ते हुए कमरे की ओर बढ़ा।

    लेकिन जैसे ही कमरे में पहुँचा — कमरे में एक अजीब सी खालीपन की खामोशी थी।

    चारों तरफ नज़र दौड़ाई, पर अवनी कहीं नहीं थी।

    उसका चेहरा एकदम लटक गया।

    “सेट... वो तो चली गई,” उसने धीरे से कहा।

    फूल को देखता रहा… जैसे वो खुद से सवाल कर रहा हो — “अब मैं इसे कैसे लगाऊँ…?”

    उसके चेहरे पर उदासी थी — मासूम सी और सच्ची।

    वो बिस्तर पर बैठ गया, फूल को अपनी उँगलियों से घुमाने लगा।

    थोड़ी देर तक सोचता रहा… फिर खुद से बोला, “कोई बात नहीं… मैं बाद में लगाऊँगा… जब वो फिर आएगी।”

    फिर तुरंत उठ खड़ा हुआ और बोला, “अब पहले मैं नहा लेता हूँ… फिर तैयार हो जाता हूँ… ताकि वो मुझे देख कर मुस्कुरा दे।”

    उसका मूड फिर थोड़ा ठीक हो गया था।

    वो सीटी बजाते हुए बाथरूम की ओर चल दिया — लेकिन हाथ में अब भी वो फूल था, जैसे वो उसे खुद से अलग नहीं करना चाहता।

    नहाने के बाद अरमान बाथरूम से बाहर निकला। उसके बाल भीगे हुए थे, गाल गुलाबी हो रखे थे, और आँखों में वही चमक थी जो किसी बच्चे को चॉकलेट मिलने पर होती है।

    उसने अलमारी से अपनी पसंदीदा शर्ट निकाली — जो उसने उसी दिन पहनी थी जब अवनी ने उसे “हँडसम” कहा था।

    वो बार-बार आईने में खुद को देखता और खुद से कहता, “अवनी बोलेगी — आप बहुत अच्छे लग रहे हैं।”

    फूल अब भी उसकी एक जेब में रखा था — वो उसे बार-बार देखता और मुस्कुराता।

    कुछ देर बाद जैसे ही उसे पता चला कि अवनी किचन में है,
    वो चुपचाप दबे पाँव कमरे से बाहर निकला।

    अवनी रसोई में दूध उबाल रही थी।
    वो अपने ही ख्यालों में थी कि तभी किसी के पैरों की आहट सुनाई दी।

    वो पलटी — तो देखा, अरमान धीरे-धीरे आगे आ रहा था,
    चेहरे पर शरारती मुस्कान और हाथ पीछे छुपा हुआ।

    “अब क्या चाल है?” अवनी ने मुस्कुराकर पूछा।

    “कुछ नहीं…” अरमान शर्माते हुए बोला, “बस एक सरप्राइज है।”

    अवनी हाथ पोंछती हुई उसकी ओर बढ़ी — “सरप्राइज? किसलिए?”

    अरमान अब उसके करीब आ गया था। उसने जेब से फूल निकाला और जैसे ही बालों में लगाने गया…

    तभी कुछ ऐसा हुआ जिसे देख अवनी घबरा गई।

    तो आप सब को क्या लगता है
    ऐसा क्या हुआ जिस से अवनी घबरा गई?
    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी....
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    Good night friends.