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Hukum Rani sa - tale of love

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यह कहानी रुद्राक्ष और आद्या की प्रेमगाथा है 🌍♥️ एक ऐसी दुनिया में जहाँ शक्ति, प्रतिष्ठा और जुनून एक-दूसरे से टकराते हैं, वहाँ दो ऐसी आत्माएँ हैं जो एक-दूसरे के लिए बनी हैं - रुद्राक्ष और आद्या। उनका प्रेम किसी कहानी से कम नहीं, एक ऐसा बंधन जो समय,...

Total Chapters (14)

Page 1 of 1

  • 1. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 1

    Words: 1137

    Estimated Reading Time: 7 min

    रुद्राक्ष प्रताप सिंह राणावत: एक तूफान का आगमन
    राजस्थान की पहचान बन चुकी 80-मंज़िला "राणावतर्स" में सुबह के 9 बजते ही हलचल बढ़ जाती है। कांच की चमकती दीवारों और कलात्मक मूर्तियों से सजी लॉबी में भी एक अजीब-सी खामोशी छाई रहती है, जैसे किसी बड़े तूफान से पहले का सन्नाटा। कर्मचारी फुसफुसाते हुए अपने डेस्क की ओर भागते हैं, उनकी आँखों में डर और सम्मान का मिश्रण साफ झलकता है।
    "आज सर ऑफिस में ही हैं," एक ट्रेनी ने दूसरी से दबे स्वर में कहा, "लगता है आज फिर कोई बड़ा फ़ैसला होने वाला है।"
    दूसरी ने कांपते हुए जवाब दिया, "हाँ, कल रात से यहीं हैं। सुना है उन्होंने पूरी रात बोर्ड मीटिंग ली थी।"
    राणावत इंडस्ट्रीज़ के कर्मचारी जानते थे कि रुद्राक्ष प्रताप सिंह राणावत जब ऑफिस में हों, तो माहौल पल भर में बदल सकता है। वह सिर्फ एक बॉस नहीं, बल्कि एक ऐसी शक्ति थे जिसके सामने बड़े-बड़े निवेशक भी घुटने टेक देते थे।
    ठीक उसी पल, लिफ्ट का दरवाजा खुला। भीतर से एक ऐसी आकृति बाहर निकली जिसने पल भर में पूरे माहौल को अपने अधीन कर लिया। यह थे रुद्राक्ष प्रताप सिंह राणावत।
    उनकी कद-काठी ऐसी थी कि कोई भी उनसे नज़रें नहीं हटा पाता था। नीली आँखों में इस्पात-सी कठोरता थी, जो हर देखने वाले को अपनी गिरफ्त में ले लेती थी। उनके चौड़े कंधों पर कस्टम-मेड इटैलियन सूट बेदाग लग रहा था, जो उनके शक्तिशाली शरीर को और भी उभार रहा था। जैकेट के नीचे से उनकी 8-पैक एब्स की झलक मिलती थी, जो इस बात का सबूत थी कि यह व्यक्ति सिर्फ दिमाग से नहीं, बल्कि शरीर से भी पूरी तरह अनुशासित और नियंत्रित है। हर कदम में एक आत्मविश्वास था, एक शाही अकड़ थी जो सदियों पुराने राजपूताना खून की गवाही देती थी। उनके बाल करीने से सँवारे हुए थे, और उनकी दाढ़ी उनके चेहरे के तीखे नैन-नक्श को और भी प्रभावशाली बना रही थी। वह एक व्यापारी कम और युद्ध के मैदान का विजेता ज़्यादा लगते थे।
    एक पल के लिए लगा जैसे राणावत टावर्स की हवा थम गई हो। हर कोई अपनी जगह पर स्थिर हो गया, किसी में हिम्मत नहीं थी कि वह उनसे आँख मिला सके। उनके सहायक, विक्रम, उनके पीछे चलते हुए, उनकी हर ज़रूरत का ध्यान रखने के लिए तैयार थे। रुद्राक्ष की नज़रें किसी पर टिकी नहीं, लेकिन हर कोई महसूस कर सकता था कि उनकी उपस्थिति से पूरा वातावरण बदल चुका है।
    वह सीधे अपने विशाल ऑफिस की ओर बढ़े, जहाँ से पूरी दिल्ली उनके इशारों पर नाचती हुई प्रतीत होती थी। उनकी कंपनी, राणावत इंडस्ट्रीज़, केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर 500 से अधिक क्षेत्रों में अपना वर्चस्व रखती थी। शिपिंग से लेकर सॉफ्टवेयर तक, रियल एस्टेट से लेकर रक्षा उपकरणों तक, उनके व्यापारिक साम्राज्य की कोई सीमा नहीं थी। वह दुनिया के सबसे बड़े व्यापारिक साम्राज्य के इकलौते वारिस और वर्तमान स्वामी थे। अरबों डॉलर की डील उनके एक इशारे पर हो जाती थी, और उनकी क्रूर व्यावसायिक रणनीति ने उन्हें प्रतिद्वंद्वियों के बीच एक खूंखार नाम दे रखा था।
    आज भी, उनके ऑफिस में कदम रखते ही, उनके दिमाग में अगले बड़े अधिग्रहण की योजनाएँ चलने लगीं। रुद्राक्ष प्रताप सिंह राणावत सिर्फ एक व्यक्ति नहीं थे, वह एक संस्थान थे, एक शक्ति थे, जो अपनी शर्तों पर दुनिया को झुकाने की क्षमता रखते थे। और उन्हें सिर्फ एक चीज़ चाहिए थी – जीत।

    राणावत टावर्स के शीर्ष तल पर स्थित रुद्राक्ष के विशाल कार्यालय में, रात के सन्नाटे में केवल उसके टैबलेट पर डेटा स्क्रॉल होने की हल्की आवाज़ गूँज रही थी। दिन भर की हलचल अब शांत हो चुकी थी, लेकिन रुद्राक्ष के भीतर का तूफान अभी भी अपने चरम पर था। कुछ ही देर पहले, उसने एक ऐसे जटिल अधिग्रहण को अंतिम रूप दिया था, जिसने उसके व्यापारिक साम्राज्य को और भी विशाल बना दिया था। यह सिर्फ एक और जीत नहीं थी, यह एक बयान था – रुद्राक्ष प्रताप सिंह राणावत को कोई नहीं हरा सकता।
    उसकी नीली आँखों में एक ठंडी चमक थी, जो उसकी निर्दयी प्रकृति का प्रतीक थी। वह किसी भी भावना से अछूता प्रतीत होता था। खुशी, दुख, दया – ये शब्द उसकी डिक्शनरी में थे ही नहीं। उसके लिए सिर्फ परिणाम मायने रखते थे, और परिणाम हमेशा उसकी जीत होती थी।
    तभी, उसके सहायक विक्रम ने सावधानी से दरवाज़ा खटखटाया। "सर, फाइनेंस टीम ने वो रिपोर्ट सबमिट कर दी है जिसकी आप प्रतीक्षा कर रहे थे।"
    रुद्राक्ष ने बिना पलक झपकाए सिर हिलाया। उसने टैबलेट पर रिपोर्ट खोली। जैसे-जैसे वह डेटा स्कैन करता गया, उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आया, लेकिन उसकी आँखें और भी संकरी होती गईं। रिपोर्ट में उन कुछ कर्मचारियों के नाम थे जिन्होंने कंपनी के फंड्स में हेरफेर करने की कोशिश की थी। यह कोई बड़ी चोरी नहीं थी, लेकिन रुद्राक्ष के लिए यह एक अक्षम्य अपराध था – विश्वासघात।
    "इन्हें तुरंत बर्खास्त कर दो," उसकी आवाज़ शांत थी, लेकिन उसमें एक ऐसी कठोरता थी जो बर्फ को भी पिघला दे। "और सुनिश्चित करो कि इन्हें भविष्य में कहीं भी नौकरी न मिले। इनकी पेशेवर ज़िंदगी यहीं खत्म होनी चाहिए।"
    विक्रम थोड़ा हिचकिचाया। "सर, उनमें से एक... उसकी माँ की तबियत ठीक नहीं है।"
    रुद्राक्ष ने अपना सिर उठाया और उसकी नीली आँखें सीधे विक्रम की आँखों में गड़ीं। "क्या मैंने तुम्हें अपनी माँ की बीमारी की कहानियाँ सुनने के लिए रखा है, विक्रम? या मेरे आदेशों का पालन करने के लिए?" उसकी आवाज़ अब भी धीमी थी, लेकिन उसमें एक चेतावनी थी जिसने विक्रम को तुरंत सीधा कर दिया।
    "माफ़ करना सर," विक्रम ने तुरंत कहा। "अभी करवाता हूँ।"
    विक्रम के जाने के बाद रुद्राक्ष ने अपनी मुट्ठी भींच ली। उसका हृदयहीन (heartless) स्वभाव उसके फैसलों में साफ झलकता था। उसके लिए, कंपनी और उसकी अखंडता सर्वोपरि थी। जो कोई भी इसे चुनौती देने की हिम्मत करता, उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते।
    अगले दिन, राणावत टावर्स में एक नया नियम घोषित किया गया: "राणावत इंडस्ट्रीज़ में धोखाधड़ी या विश्वासघात करने वाले किसी भी व्यक्ति को न केवल तुरंत नौकरी से निकाला जाएगा, बल्कि उसे व्यापारिक दुनिया से हमेशा के लिए बाहर कर दिया जाएगा। हम अपने कर्मचारियों से वफादारी की उम्मीद करते हैं, और जो इस उम्मीद को तोड़ेंगे, उन्हें इसकी सबसे क्रूर सज़ा मिलेगी।"
    यह केवल एक चेतावनी नहीं थी, यह रुद्राक्ष प्रताप सिंह राणावत की क्रूर (ruthless) और भावनाशून्य (emotionless) प्रकृति का प्रमाण था। उसकी जीत सिर्फ व्यापारिक सौदों तक सीमित नहीं थी; वह हर उस व्यक्ति पर जीत हासिल करता था जो उसके रास्ते में आता था या उसके खिलाफ जाने की सोचता था। रुद्राक्ष की दुनिया में, केवल एक ही राजा था, और उसकी सत्ता को चुनौती देने वाला कोई नहीं था। उसका साम्राज्य कठोर नियमों पर आधारित था, और उन नियमों को तोड़ने वालों के लिए कोई दया नहीं थी।


    ये तो हो गया हमारे हिरो कि पहली झलक आप मुझे फालो कर मेरा साथ दे !
    इस कहानी मे बने रहें !

  • 2. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 2

    Words: 546

    Estimated Reading Time: 4 min

    राणावत टावर्स की ऊँची, आधुनिक दीवारों को पीछे छोड़, रुद्राक्ष प्रताप सिंह राणावत अपनी लग्जरी कार में जयपूर राजस्थान की ओर बढ़ रहा था। रासतों के विशाल टीलों और प्राचीन अरावली की चोटियों के बीच स्थित था उनका पुश्तैनी निवास – राणावत महल। यह सिर्फ एक घर नहीं था, बल्कि सदियों पुराने इतिहास, गौरव और कुछ अनसुलझे तनावों का प्रतीक था।
    सूरज ढल रहा था, और नारंगी रोशनी में डूबा महल दूर से किसी परी कथा जैसा लग रहा था। यह वही जगह थी जहाँ रुद्राक्ष का बचपन बीता था, लेकिन आज भी उसे वहाँ एक अजनबी-सा महसूस होता था। राणावत परिवार विशाल और प्रभावशाली था, लेकिन उनके बीच की दूरियाँ उतनी ही गहरी थीं।
    महल के भव्य द्वार से प्रवेश करते ही, रुद्राक्ष ने देखा कि पूरा परिवार आँगन में इकट्ठा था। उसके दादा-दादी, सुगंधा और वीरप्रताप, जो कभी खुद राजा और रानी थे, आज भी अपनी गरिमा और राजसी अंदाज़ से सबका सम्मान पाते थे। सुगंधा देवी का व्यक्तित्व उतना ही शांत था जितनी उनकी साड़ी की रेशमी चमक, जबकि वीरप्रताप सिंह की आँखों में आज भी एक राजा का प्रताप झलकता था।
    उसके चाचा विक्रम और चाची सुनैना उसे देखकर मुस्कुराए। ये दोनों ही रुद्राक्ष को परिवार में सबसे ज़्यादा प्यार और समर्थन देते थे। उनके बच्चे, जुड़वाँ रिया और अंश, जो अब 24 साल के थे, अपने-अपने रास्ते चुन रहे थे – रिया एमबीए कर रही थी और अंश लॉ की पढ़ाई। दोनों ही रुद्राक्ष को अपना आदर्श मानते थे, शायद इसलिए क्योंकि रुद्राक्ष ने अपनी राह खुद बनाई थी।
    और फिर थे उसके माता-पिता, वर्तमान राजा और रानी, मीरा और आदित्य। उनके चेहरों पर एक औपचारिक मुस्कान थी, लेकिन रुद्राक्ष जानता था कि यह मुस्कान कितनी खोखली थी। उसका छोटा भाई, अक्षत, जो 26 साल का था और अब फैमिली बिज़नेस का सीईओ था, भी वहीं खड़ा था। अक्षत ने हमेशा परिवार की परंपरा का पालन किया था, लेकिन रुद्राक्ष ने नहीं।
    दरअसल, रुद्राक्ष और उसके परिवार के बीच की दरार बहुत पुरानी थी। यह तब शुरू हुई थी जब रुद्राक्ष ने फैमिली बिजनेस को संभालने के बजाय, अपना खुद का साम्राज्य खड़ा करने का फ़ैसला किया था। उसने परिवार के समर्थन के बिना, शून्य से शुरुआत की थी। उस समय, किसी ने उस पर भरोसा नहीं किया, यहाँ तक कि उसके माता-पिता ने भी नहीं। उन्होंने उसे "राणावत" नाम का इस्तेमाल न करने की चेतावनी दी थी, अगर वह अपनी अलग पहचान बनाना चाहता था। इस अकेलेपन और अस्वीकृति ने ही रुद्राक्ष को वह क्रूर और निडर व्यक्ति बनाया था जो वह आज था।
    आज, जब वह दुनिया का नंबर एक बिजनेस टाइकून बनकर लौटा था, तो परिवार के लिए उसे स्वीकार करना मुश्किल था। वे उसकी सफलता पर गर्व करते थे, लेकिन शायद उस तरीके पर नहीं जिससे उसने यह सफलता हासिल की थी। राणावत महल की पुरानी दीवारों के भीतर, यह अनकहा तनाव हमेशा मौजूद रहता था। रुद्राक्ष जानता था कि इस महल में सिर्फ रिश्ते नहीं, बल्कि उम्मीदें, शिकायतें और एक अनसुलझा अतीत भी रहता था।
    उसने सबके सामने एक औपचारिक अभिवादन किया, उसकी नीली आँखों में कोई खास भावना नहीं थी। वह जानता था कि इस विशाल परिवार के बीच भी, वह अकेला ही था।

    क्या आप रुद्राक्ष और उसके परिवार के बीच के इस तनाव को और जानना चाहेंगे, या कहानी को आगे बढ़ाना चाहेंगे?

  • 3. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 3

    Words: 520

    Estimated Reading Time: 4 min

    महल में कदम रखते ही, दादा वीरप्रताप सिंह की आवाज़ गूँजी, "स्वागत है, रुद्राक्ष! घर वापसी पर हार्दिक अभिनन्दन।" उनकी आँखों में चमक थी, एक ऐसी चमक जो रुद्राक्ष की सफलता पर गर्व से ज़्यादा, उसके वापस आने की खुशी दिखा रही थी।

    रात के भोजन के समय, जब पूरा परिवार एक साथ बैठा था, तो दादा वीरप्रताप ने गंभीर स्वर में कहा, "रुद्राक्ष, अब समय आ गया है कि तुम अपनी असली जगह वापस लो। मैं चाहता हूँ कि तुम यह राजशाही और राणावत की गद्दी संभालो।" उनके इन शब्दों ने कमरे में सन्नाटा ला दिया। सभी जानते थे कि यह रुद्राक्ष के लिए कितना बड़ा फ़ैसला होगा।

    मीरा और आदित्य, रुद्राक्ष के माता-पिता, एक-दूसरे को देखने लगे। उनके चेहरों पर पश्चाताप के भाव साफ झलक रहे थे। आदित्य ने धीरे से कहा, "बेटा, हमें अफ़सोस है कि हमने उस समय तुम्हारा साथ नहीं दिया। हमें तुम्हारी क्षमता पर विश्वास करना चाहिए था।" मीरा की आँखें नम थीं। "हमने गलती की, रुद्राक्ष। क्या तुम हमें माफ़ नहीं करोगे?"

    रुद्राक्ष ने उनकी ओर देखा। उसकी नीली आँखों में कोई नरमी नहीं थी। "माफ़ी?" उसकी आवाज़ में एक कड़वाहट थी जिसे वह छिपा नहीं पाया। "माफ़ करना आसान होता है, जब चोट इतनी गहरी न हो।" उसने सीधे अपने माता-पिता की ओर देखा। "जब मुझे सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, तब आप लोग कहाँ थे? मैंने जो कुछ भी बनाया है, अपनी मेहनत और अकेले दम पर बनाया है। उसमें आपका कोई योगदान नहीं।" उसकी बातों में वह दर्द था जो कई सालों से उसके भीतर दबा हुआ था। परिवार के सदस्यों के चेहरों पर निराशा साफ दिख रही थी।

    इस माहौल को हल्का करने के लिए, उसके छोटे भाई अक्षत ने धीरे से कहा, "भाई, तुम हमारे लिए हमेशा एक प्रेरणा रहे हो। हम सब तुम्हें बहुत प्यार करते हैं।" रिया और अंश भी उसकी हाँ में हाँ मिलाने लगे। अक्षत ने रुद्राक्ष के कंधे पर हाथ रखा, "भाई, तुम लौट आए, यही बहुत है।" उनके चेहरे पर असली अपनापन था, जो रुद्राक्ष के दिल को छू तो रहा था, लेकिन उसके ज़ख्मों को भरने के लिए काफी नहीं था।

    तभी दादा वीरप्रताप ने फिर बात उठाई। "रुद्राक्ष, राजतिलक से पहले, तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए। एक रानी की भी ज़रूरत है इस राजघराने को।"

    रुद्राक्ष ने बिना किसी हिचकिचाहट के जवाब दिया, "मुझे अभी शादी की कोई इच्छा नहीं है, दादाजी। मेरा पूरा ध्यान मेरे व्यापारिक साम्राज्य पर है। मैं किसी भी तरह के बंधन में बंधना नहीं चाहता।" उसकी नीली आँखों में एक बार फिर वही दृढ़ता झलक रही थी, जो उसे दुनिया का सबसे सफल व्यवसायी बनाती थी।

    उसने अपनी कुर्सी से उठते हुए कहा, "मैं अभी अपने कमरे में जा रहा हूँ। मुझे कुछ महत्वपूर्ण काम निपटाने हैं।" इतना कहकर, वह बिना किसी को और मौका दिए, अपने कमरे की ओर बढ़ गया। राणावत परिवार एक बार फिर रुद्राक्ष की बेबाकी और उसके अधूरेपन का सामना कर रहा था। महल के भव्य कमरों में एक बार फिर खामोशी छा गई, जहाँ प्यार, पश्चाताप और अनकहे शब्द हवा में तैर रहे थे।

    क्या आप जानना चाहेंगे कि रुद्राक्ष के इस फ़ैसले का परिवार पर क्या असर हुआ ?

  • 4. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 4

    Words: 802

    Estimated Reading Time: 5 min

    अगले दिन सुबह, रुद्राक्ष ने महल के बाहर जनता से मिलने का फ़ैसला किया। सदियों पुरानी यह परंपरा राणावत परिवार की पहचान थी। जब वह बाहर निकला, तो उसे देखकर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। उसकी आँखों में एक पल के लिए आश्चर्य था। लोग नारे लगा रहे थे, "महाराजा रुद्राक्ष प्रताप सिंह राणावत ज़िंदाबाद! हमारे राजा वापस आ गए!"

    एक वृद्ध महिला ने उसके हाथ पर प्यार से हाथ फेरा, "बेटा, हमने तुम्हें बचपन से देखा है। हमें पता था तुम एक दिन इतना बड़ा नाम करोगे।" एक युवा लड़का हाथ जोड़कर बोला, "सर, आप हमारी प्रेरणा हैं। हम सब आपसे बहुत प्यार करते हैं।"

    रुद्राक्ष ने महसूस किया कि इस अपार प्यार और अपनत्व के पीछे कोई स्वार्थ नहीं था। ये लोग उसे सच में अपना मानते थे। उसकी नीली आँखों में पहली बार एक हल्की सी नमी आई, जो उसने किसी के सामने नहीं दिखाई थी। उसने सभी से हाथ मिलाया, उनकी बातें सुनी और उनके दुख-दर्द बांटने का नाटक किया। हालाँकि, उसके हृदयहीन स्वभाव ने उसे अंदर से किसी भावना में बहने नहीं दिया, लेकिन उसने लोगों को यह एहसास दिलाया कि वह उनके साथ है।

    अक्षत की सगाई: एक चौंकाने वाला रहस्य

    शाम को, जब रुद्राक्ष अपने कमरे में था, अक्षत उसके पास आया। उसके चेहरे पर उत्साह और घबराहट दोनों थी।

    "भाई," अक्षत ने कहा, "मुझे तुमसे कुछ बहुत ज़रूरी बात करनी है।"

    रुद्राक्ष ने उसे बैठने का इशारा किया। "कहो।"

    "मेरी सगाई होने वाली है।" अक्षत ने कहा और उसके चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान आ गई। "अगले हफ्ते दिल्ली में। और... वह... मेरी कॉलेज गर्लफ्रेंड है।"

    रुद्राक्ष की भौंहें तन गईं। वह जानता था कि अक्षत का रिश्ता था, लेकिन सगाई की बात उसके लिए नई थी। "कौन है वो?" उसकी आवाज़ में वही ठंडापन था।

    "आराध्या," अक्षत ने उत्साह से कहा, "दिल्ली की मुख्यमंत्री की बेटी।"

    यह नाम सुनते ही रुद्राक्ष के अंदर एक अजीब सी लहर दौड़ गई। आराध्या! यह वही नाम था जो उसके दिमाग के किसी कोने में दफ़न था। उसकी कॉलेज की दोस्त, जिसने एक समय पर उसकी ज़िंदगी में हलचल मचा दी थी। उसे याद आया आराध्या की चंचल हँसी, उसकी तेज़ बुद्धि, और उसकी वो खूबसूरत आँखें। रुद्राक्ष ने अपनी भावनाओं को तुरंत नियंत्रित कर लिया।

    "मुझे बताया क्यों नहीं?" रुद्राक्ष ने पूछा, उसकी आवाज़ में अब कोई भाव नहीं था।

    "मैं तुम्हें चौंकाना चाहता था," अक्षत ने कहा, "और मैं चाहता था कि तुम मेरी सगाई में रहो, भाई। यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है।"

    रुद्राक्ष ने सिर हिलाया। "ठीक है। मैं आऊँगा।" उसने कोई और सवाल नहीं पूछा, अक्षत के चेहरे पर कोई खुशी नहीं पड़ने दी, लेकिन उसके अंदर कुछ बदल गया था। आराध्या! यह नाम उसके कठोर कवच में एक छोटी सी दरार डाल गया था।

    सगाई समारोह और रुद्राक्ष का प्रस्थान

    अगले हफ़्ते दिल्ली में सगाई समारोह भव्य रूप से हुआ। मुख्यमंत्री की बेटी की सगाई थी, इसलिए पूरा राजनीतिक और व्यापारिक जगत मौजूद था। रुद्राक्ष वहाँ एक गंभीर लेकिन प्रभावशाली व्यक्तित्व के रूप में मौजूद था। उसने अक्षत और आराध्या को बधाई दी। जब आराध्या ने रुद्राक्ष को देखा, तो उसकी आँखों में एक पल के लिए हैरानी थी, लेकिन रुद्राक्ष ने उसे कोई संकेत नहीं दिया। वह अपनी भावनाओं को छुपाने में माहिर था।

    समारोह के बाद, राणावत परिवार के लिए एक विशेष रात्रिभोज का आयोजन किया गया था। खाने की मेज़ पर, दादा वीरप्रताप ने कहा, "यह देखकर अच्छा लगा कि अक्षत अब अपना घर बसा रहा है। अब रुद्राक्ष, तुम्हारी बारी है।"

    रुद्राक्ष ने चाकू और काँटे को एक किनारे रखते हुए कहा, "दादाजी, मैं आप सबको एक बात बताने आया हूँ। मैं अगले दो महीने के लिए दुनिया के सबसे बड़े लंदन कॉन्फ़्रेंस में जा रहा हूँ। यह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। मेरी कंपनी का भविष्य इस पर निर्भर करता है।"

    उसके माता-पिता और दादा-दादी एक-दूसरे को देखने लगे। "दो महीने?" मीरा ने चिंतित स्वर में पूछा।

    "हाँ," रुद्राक्ष ने दृढ़ता से कहा, "और मैं आज रात ही निकल रहा हूँ।"

    पूरा परिवार हक्का-बक्का रह गया। अक्षत ने उसे रोकने की कोशिश की, "भाई, अभी तो तुम आए हो।"

    लेकिन रुद्राक्ष ने किसी की नहीं सुनी। वह अपनी कुर्सी से उठा। "मुझे अपना काम करना है। आप सब अपनी ज़िंदगी एंजॉय करें।"

    उसने औपचारिक रूप से सबको अलविदा कहा और बिना किसी से और बात किए, सीधा अपने सुरक्षाकर्मियों और सहायक विक्रम के साथ निकल गया। राणावत महल में एक बार फिर खामोशी छा गई, जहाँ रुद्राक्ष के जाने की खबर ने सब पर गहरी छाप छोड़ी। उसके इस फ़ैसले ने यह साफ कर दिया कि उसके लिए निजी रिश्ते और पारिवारिक अपेक्षाएँ उसके व्यापारिक लक्ष्यों से कहीं कम महत्वपूर्ण थीं।

    क्या आप जानना चाहेंगे कि रुद्राक्ष के इस अचानक लंदन जाने का अक्षत और आराध्या के रिश्ते पर क्या असर हुआ, या क्या आराध्या और रुद्राक्ष के बीच का अतीत कुछ नया मोड़ लेगा?

  • 5. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 5

    Words: 593

    Estimated Reading Time: 4 min

    लंदन की उड़ान में बैठा रुद्राक्ष, अपनी पिछली मुलाक़ातों और भविष्य के व्यापारिक सौदों के बीच, अनायास ही आराध्या के बारे में सोचने लगा। उसका नाम सुनते ही, हार्वर्ड में बिताए गए सालों की परतें हटने लगीं और कॉलेज के दिनों की एक कड़वी याद ताज़ा हो गई।

    रुद्राक्ष और आराध्या कॉलेज में गहरे दोस्त थे। उनकी दोस्ती सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे एक-दूसरे के साथ हंसते, बहस करते और भविष्य के सपने देखते थे। रुद्राक्ष, जो उस वक्त राणावत परिवार के साए से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था, आराध्या में एक सच्चा साथी पाता था। उसे लगता था कि आराध्या उसकी ज़िंदगी की एकमात्र शख्स है जो उसे बिना किसी स्वार्थ के समझती है।

    लेकिन फिर वह कड़वी सच्चाई सामने आई। कॉलेज के पहले साल में, आराध्या और उसकी कुछ दोस्तों के बीच एक शर्त (bet) लगी थी। शर्त यह थी कि क्या आराध्या रुद्राक्ष जैसे गंभीर और अंतर्मुखी लड़के को अपने प्यार में फंसा सकती है। और आराध्या ने उस शर्त को जीतने के लिए रुद्राक्ष की दोस्ती का इस्तेमाल किया। जब यह बात रुद्राक्ष को पता चली, तो उसका दिल टूट गया। उसे लगा जैसे उसकी दुनिया ही बिखर गई हो। उस विश्वासघात ने उसे अंदर तक झकझोर दिया। जिस इंसान पर उसने सबसे ज़्यादा भरोसा किया था, उसी ने उसे सबसे गहरा घाव दिया था।

    ठीक उसी दौरान, रुद्राक्ष का हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में चयन हो गया। बिना कुछ सोचे-समझे, और उस दर्दनाक याद से दूर भागने के लिए, वह तुरंत भारत छोड़कर चला गया। उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, और उस घटना ने उसके अंदर की भावनाओं को पूरी तरह से सुन्न कर दिया। यहीं से उसका क्रूर, हृदयहीन और भावनाहीन व्यक्तित्व पनपना शुरू हुआ।


    उधर, रुद्राक्ष के जाने के बाद, आराध्या को अपने किए पर गहरा पश्चाताप हुआ। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसने एक सच्चे दोस्त और शायद एक सच्चे प्यार को खो दिया था। समय के साथ वह बदल चुकी थी। उसने अपनी उस बचकानी गलती से सबक सीखा था और अब वह एक संवेदनशील, समझदार और अच्छी इंसान बन गई थी। वह अब एक डॉक्टर थी और पिछले तीन सालों से रुद्राक्ष के छोटे भाई अक्षत से प्यार करती थी।

    जब उसने अक्षत के भाई के रूप में रुद्राक्ष को सगाई समारोह में देखा, तो वह पूरी तरह से हैरान रह गई। उसे उम्मीद नहीं थी कि नियति उसे इस तरह रुद्राक्ष के सामने लाएगी। उसकी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं, और उसके अंदर का पश्चाताप फिर से जाग उठा। वह जानती थी कि उसे यह बात अक्षत को बतानी होगी।

    एक शाम, जब वे दोनों साथ बैठे थे, आराध्या ने हिम्मत करके अक्षत को अपने और रुद्राक्ष के अतीत के बारे में सब कुछ बता दिया। उसने अपनी गलती स्वीकार की, अपनी शर्त के बारे में बताया और यह भी बताया कि उसे अपने किए पर कितना अफ़सोस है।

    अक्षत ने ध्यान से उसकी बात सुनी। वह थोड़ा उदास हुआ, लेकिन आराध्या की ईमानदारी ने उसे प्रभावित किया। उसने आराध्या का हाथ थामा और कहा, "मुझे पता है आराध्या, तुम बदल चुकी हो। मुझे तुम पर पूरा भरोसा है। मैं तुम्हें माफ़ करता हूँ।" अक्षत ने मुस्कुराते हुए कहा, "लेकिन एक बात याद रखना, तुम्हें भाई से माफ़ी मांगनी पड़ेगी। वह आसानी से किसी को माफ़ नहीं करते।"

    आराध्या ने राहत की साँस ली। वह जानती थी कि रुद्राक्ष से माफ़ी मांगना आसान नहीं होगा, लेकिन अब वह तैयार थी। उसे उम्मीद थी कि शायद एक दिन रुद्राक्ष भी उसे माफ़ कर देगा।

    क्या आप जानना चाहेंगे कि लंदन में रुद्राक्ष के साथ क्या हुआ ?

  • 6. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 6

    Words: 966

    Estimated Reading Time: 6 min

    न्यूयॉर्क शहर की गगनचुंबी इमारतों में से एक, 'एलीगेंस' (Elegance) के कॉर्पोरेट मुख्यालय में, बोर्डरूम का माहौल तनावपूर्ण था। बड़ी-बड़ी स्क्रीन पर जटिल वित्तीय ग्राफ्स और मार्केटिंग रणनीतियों के आंकड़े चमक रहे थे। कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी, अपने-अपने लैपटॉप पर झुके हुए, एक महत्वपूर्ण निर्णय का इंतजार कर रहे थे – वह निर्णय जो वैश्विक फैशन उद्योग का भविष्य तय करेगा।

    तभी, कमरे का भारी ओक का दरवाज़ा खुला। एक पल के लिए, सारी बातचीत थम गई। भीतर प्रवेश किया एक ऐसी शख्सियत जिसने अपनी उपस्थिति मात्र से पूरे कमरे को अपने अधीन कर लिया। यह थी आद्या, 'एलीगेंस' की सीईओ, दुनिया की नंबर एक फैशन कंपनी की निर्विवाद महारानी।

    उसकी एंट्री किसी राजसी जुलूस से कम नहीं थी। उसने एक हाई-स्लिट ब्लैक-ब्राउन लॉन्ग कोट पहन रखा था, जो उसके आत्मविश्वास और शक्ति को दर्शाता था। कोट के नीचे से उसकी लंबी, सुडौल टाँगों की झलक दिख रही थी, जो उसके बोल्ड और निडर व्यक्तित्व का प्रमाण थी। उसके बाल करीने से सँवारे हुए थे, और उसकी काली आँखें इतनी गहरी थीं कि उनमें एक पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ प्रतीत होता था। उन आँखों में एक तीक्ष्ण बुद्धि और अडिग दृढ़ता थी, जो यह साफ बताती थी कि वह किसी से नहीं डरती।

    आद्या के हर कदम में एक सहज राजसी आभा (aura) थी। वह सिर्फ एक बिजनेसवुमन नहीं थी, बल्कि फैशन की दुनिया की एक ट्रेंडसेटर, एक दूरदर्शी नेता थी जिसने 'एलीगेंस' को एक छोटे से बुटीक से खरबों डॉलर के साम्राज्य में बदल दिया था। उसके फैसलों में निडरता (fearless) थी, उसकी रणनीतियों में क्रूरता (ruthless) थी, और उसके काम के प्रति समर्पण (dedicated) ऐसा था कि वह दिन-रात एक कर देती थी।

    जैसे ही वह बोर्डरूम के केंद्र में स्थित विशाल मेज़ की ओर बढ़ी, हर कोई अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया। उसके आगमन पर कोई शोर नहीं हुआ, बस एक गहरी चुप्पी थी – डर और सम्मान का मिश्रण। वह अपनी कुर्सी पर बैठी, और उसकी नज़रें एक-एक करके बोर्ड के सदस्यों पर घूमीं। उसकी आँखों का वह सीधा संपर्क ही काफी था यह बताने के लिए कि अब कोई भी ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

    "तो," उसकी आवाज़ शांत लेकिन शक्तिशाली थी, "हम कहाँ थे?"

    उसकी आवाज़ में एक ऐसा अधिकार था कि किसी को भी जवाब देने में देरी करने की हिम्मत नहीं हुई। आद्या सिर्फ एक सीईओ नहीं थी, वह एक ऐसी शक्ति थी जिसने अपनी कड़ी मेहनत और अटूट दृढ़ संकल्प से अपना साम्राज्य खड़ा किया था। वह जानती थी कि उसे क्या चाहिए, और उसे पाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती थी। वह अपनी दुनिया की रानी थी, और उसकी सत्ता को चुनौती देने वाला कोई नहीं था।

    न्यूयॉर्क की तेज़ रफ़्तार के बीच, आद्या ने अपने बोर्ड मीटिंग में एक साहसिक फ़ैसला लिया। 'एलीगेंस' के अगले वैश्विक कदम के लिए, उसने लंदन कॉन्फ़्रेंस में व्यक्तिगत रूप से शामिल होने का निर्णय लिया। यह सिर्फ एक उपस्थिति नहीं थी, बल्कि दुनिया को यह संदेश देना था कि आद्या हर बड़े मंच पर अपनी छाप छोड़ने के लिए तैयार है। उसके इस फ़ैसले ने कमरे में बैठे सभी सदस्यों को स्तब्ध कर दिया, क्योंकि वह व्यक्तिगत रूप से ऐसे किसी इवेंट में बहुत कम जाती थी। यह उसकी कार्य के प्रति अटूट निष्ठा और अदम्य इच्छाशक्ति का प्रमाण था।

    मीटिंग के बाद, आद्या ने अपनी निजी जेट से भारत के लिए उड़ान भरी। वह सीधे अपने मुंबई स्थित आलीशान घर पहुँची। यह कोई महल तो नहीं था, लेकिन किसी आधुनिक कला संग्रहालय से कम भी नहीं था। विशाल कांच की दीवारें, न्यूनतम साज-सज्जा और हर कोने में बिखरी हुई महंगी कलाकृतियाँ उसकी बेमिसाल पसंद का परिचय देती थीं।

    घर में कदम रखते ही एक अजीब-सी शांति ने उसे घेर लिया। इतनी बड़ी हवेली में केवल उसकी सुनायना काकी ही मौजूद थीं, जो सालों से उसकी देखभाल कर रही थीं। काकी ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया, लेकिन आद्या के चेहरे पर हमेशा की तरह कोई भाव नहीं था। उसकी आँखें हर जगह कुछ ढूँढ रही थीं, लेकिन उसे वह मिला नहीं जो वह चाहती थि

    रात का खाना खाने के बाद, आद्या अपने स्टडी रूम में चली गई। कमरे की एक दीवार पर उसके माता-पिता की बड़ी तस्वीर लगी थी। यह तस्वीर उसके बचपन की याद दिलाती थी, जब यह घर खुशियों और हँसी से भरा रहता था। उसकी आँखें तस्वीरों पर टिकीं, और एक पल के लिए उसके कठोर चेहरे पर एक हल्की सी उदासी की परत दिखाई दी।

    उसे याद आया कि कैसे उसके माता-पिता ने 'एलीगेंस' की नींव रखी थी, और कैसे उन्होंने उसे फैशन की दुनिया के दांव-पेच सिखाए थे। उनकी असामयिक मृत्यु के बाद, उसने इस साम्राज्य को अपने कंधों पर लिया था और उसे इस मुकाम तक पहुँचाया था। यह उनके लिए उसकी श्रद्धांजलि थी, और इसी वजह से वह अपने काम के प्रति इतनी समर्पित और क्रूर थी। उसके लिए, यह केवल एक व्यवसाय नहीं था, बल्कि उसके माता-पिता का सपना था जिसे उसे पूरा करना था, चाहे कुछ भी हो जाए।

    भावुकता का वह पल क्षणभंगुर था। आद्या ने गहरी साँस ली और अपनी मेज पर रखे लैपटॉप को खोला। उसने लंदन कॉन्फ़्रेंस के लिए ज़रूरी प्रेजेंटेशन और नोट्स पर काम करना शुरू किया। रात बीतती गई, लेकिन आद्या की एकाग्रता में कोई कमी नहीं आई। उसकी काली आँखें स्क्रीन पर टिकी थीं, और उसके हाथ तेज़ी से कीबोर्ड पर चल रहे थे।

    वह रात भर काम करती रही, क्योंकि उसके लिए आराम से ज़्यादा काम महत्वपूर्ण था। 'एलीगेंस' का हर फ़ैसला, हर रणनीति, उसकी अपनी खून-पसीने की कमाई थी। वह कोई गलती नहीं कर सकती थी। सुबह की पहली किरणें जब कमरे में दाखिल हुईं, तो आद्या अभी भी अपनी मेज पर बैठी थी, उसके सामने लंदन कॉन्फ़्रेंस की पूरी तैयारी तैयार थी। उसकी निडरता, निर्दयता और काम के प्रति समर्पण उसके हर फ़ैसले और हर एक्शन में साफ झलक रहा था !

  • 7. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 7

    Words: 1301

    Estimated Reading Time: 8 min

    दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर, एक ही समय में दो शक्तिशाली शख्सियतें अपनी लंदन उड़ानों का इंतजार कर रही थीं। आद्या, अपनी निजी जेट की ओर बढ़ते हुए, अचानक एक अजीब सा खिंचाव महसूस करती है। उसे लगा जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे अपनी ओर खींच रही हो। उसने अनजाने में पलट कर देखा, लेकिन भीड़ में कुछ खास दिखाई नहीं दिया। उसके चेहरे पर हल्की सी उलझन आई, लेकिन वह तुरंत अपने काम में व्यस्त हो गई।

    कुछ ही दूरी पर, रुद्राक्ष भी अपनी उड़ान के लिए सिक्योरिटी चेक से गुज़र रहा था। उसे भी कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ – एक पल के लिए उसे लगा जैसे हवा में कोई जानी-पहचानी खुशबू घुल गई हो, या कोई जानी-पहचानी ऊर्जा उसके करीब से गुज़री हो। उसने भी आसपास देखा, लेकिन उसकी नीली आँखें किसी को पहचान नहीं पाईं। दोनों ही अपनी-अपनी दुनिया में इतने लीन थे कि नियति ने उन्हें इस बार एक-दूसरे से मिलने नहीं दिया। दोनों अपने-अपने काम की धुन में वापस खो गए।

    आद्या की अकेली दुनिया और एक पुरानी दोस्त की वापसी

    लंदन पहुँचकर, आद्या सीधे अपने होटल की ओर बढ़ी। यह लंदन के सबसे आलीशान होटलों में से एक था, जहाँ उसकी कंपनी ने उसके लिए एक पूरा फ्लोर बुक कर रखा था। होटल के कमरे में पहुँचते ही, उसने फ़ोन उठाया और किसी को कॉल किया।

    "शालिनी? तुम कब आ रही हो?" आद्या की आवाज़ में एक हल्की सी बेसब्री थी, जो आमतौर पर उसमें नहीं दिखती थी।

    शालिनी, आद्या की इकलौती और सबसे पुरानी दोस्त थी, जिसने आद्या के जीवन के हर उतार-चढ़ाव में उसका साथ दिया था। वह आद्या की अकेली दोस्त थी जो उसकी कठोर बाहरी परत के पीछे की भावनाओं को समझती थी।

    शालिनी कुछ देर बाद ही होटल पहुँची। दोनों ने गले लगाया, और आद्या के चेहरे पर एक दुर्लभ मुस्कान आई। "कैसी हो?" शालिनी ने पूछा।

    "वही, काम और बस काम," आद्या ने कहा। "तुम बताओ, सब ठीक?"

    दोनों ने देर तक बातें कीं, पुरानी यादें ताज़ा कीं। शालिनी ही वह इंसान थी जिसके साथ आद्या अपनी सच्ची भावनाएँ साझा कर सकती थी, अपनी अंदरूनी दुनिया को खोल सकती थी, जो अक्सर उसकी एकलौती और काम के प्रति समर्पित ज़िंदगी में बंद रहती थी।

    रुद्राक्ष और आद्या की पहली आधिकारिक मुलाकात: विद्रोह और आकर्षण

    लंदन कॉन्फ़्रेंस का मुख्य कार्यक्रम शुरू हो चुका था। दुनिया भर के सबसे बड़े उद्योगपति, निवेशक और मीडिया दिग्गज एक ही छत के नीचे मौजूद थे। रुद्राक्ष प्रताप सिंह राणावत ने अपनी उपस्थिति से पहले ही एक हलचल मचा रखी थी। उसका हर कदम, हर फ़ैसला, सुर्खियों में था।

    लेकिन उस दिन की असली हलचल तब मची जब 'एलीगेंस' की सीईओ, आद्या स्टेज पर अपनी प्रस्तुति देने के लिए आईं। उसकी एंट्री किसी भी हॉलीवुड दिवा से कम नहीं थी। उसने एक ऐसी ड्रेस पहन रखी थी जो उसकी निडर (fearless) और शक्तिशाली (powerful) शख्सियत को दर्शाती थी। उसके हर हावभाव में एक खतरनाक आभा (dangerous aura) थी, एक ऐसा आत्मविश्वास जो उसे भीड़ से अलग करता था। उसकी आँखें सीधी और आत्मविश्वास से भरी हुई थीं, जैसे वह किसी से भी आँखें मिलाने को तैयार हो।

    जब आद्या ने बोलना शुरू किया, तो उसकी आवाज़ में एक ऐसा दृढ़ संकल्प था जिसने हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उसने फैशन उद्योग के उन पुराने नियमों को चुनौती दी, जिनके बारे में कोई बात नहीं करता था। उसने 'एलीगेंस' के भविष्य के लिए एक ऐसी नई दिशा का प्रस्ताव रखा जो रूढ़िवादी सोच को पूरी तरह से पलट देगी। उसके शब्द तीखे, उसके विचार क्रांतिकारी और उसकी प्रस्तुति विद्रोही (rebel) थी। उसने खुलेआम कुछ स्थापित कंपनियों की नीतियों पर सवाल उठाए, जिससे पूरे हॉल में खलबली मच गई।

    रुद्राक्ष, जो हॉल में पहली पंक्ति में बैठा था, आद्या की हर बात को ध्यान से सुन रहा था। उसकी नीली आँखों में एक अजीब सी चमक थी। वह उसकी निडरता, उसकी अदम्य शक्ति और उसकी खतरनाक आभा से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। उसने कई शक्तिशाली महिलाओं को देखा था, लेकिन आद्या जैसी विद्रोही, इतनी बेखौफ और इतनी प्रभावशाली महिला उसने पहले कभी नहीं देखी थी। उसके कठोर चेहरे पर एक ऐसी भावना आई जिसे पहचानना मुश्किल था – शायद admiration, शायद intrigue। वह जानता था कि यह महिला कोई साधारण महिला नहीं है।

    आद्या ने अपनी प्रस्तुति समाप्त की, और पूरे हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी। उसने एक पल के लिए रुद्राक्ष की ओर देखा, और उनकी आँखें मिलीं। एक पल के लिए दोनों के बीच एक अनकहा कनेक्शन महसूस हुआ, एक चिंगारी जो भविष्य के तूफानों का संकेत दे रही थी।


    लंदन कॉन्फ़्रेंस में मिले नए प्रोजेक्ट ने रुद्राक्ष और आद्या को एक साथ ला खड़ा किया। यह एक ऐसा महत्वाकांक्षी वैश्विक उद्यम था जिसमें 'राणावत इंडस्ट्रीज़' और 'एलीगेंस' दोनों की विशेषज्ञता की ज़रूरत थी। जब अगले दिन प्रोजेक्ट की पहली मीटिंग शुरू हुई, तो हॉल में तनाव महसूस किया जा सकता था। दो व्यापारिक दिग्गज, जो अपनी-अपनी दुनिया के बेताज बादशाह थे, अब एक साथ काम करने वाले थे।

    आद्या ने कमरे में प्रवेश किया, उसकी हमेशा की तरह आत्मविश्वास से भरी चाल और उसकी आँखों में वही दृढ़ता थी। उसकी नज़र सीधी मेज के दूसरे छोर पर बैठे व्यक्ति पर पड़ी – रुद्राक्ष प्रताप सिंह राणावत। यह पहली बार था जब आद्या ने रुद्राक्ष को इतनी नज़दीक से, इतने स्पष्ट रूप से देखा था।

    उसकी निगाहें रुद्राक्ष की नीली आँखों पर टिक गईं। वे आँखें इतनी गहरी और तीव्र थीं कि आद्या एक पल के लिए उनमें खो-सी गई। उनमें एक अजीब सा सम्मोहन था, एक ऐसी शक्ति जो उसे अपनी ओर खींच रही थी। उसने अपनी भावनाओं को तुरंत नियंत्रित किया, लेकिन उसके अंदर एक अनदेखी हलचल हुई थी। रुद्राक्ष भी उसे देख रहा था, और उनकी आँखें एक पल के लिए मिलीं, जिसमें एक अनकहा आकर्षण था !

    मीटिंग लंबी और गहन थी। दोनों ने प्रोजेक्ट के हर पहलू पर अपनी राय रखी, उनके विचार अक्सर टकराते थे लेकिन उनके समाधान हमेशा प्रभावशाली होते थे। रुद्राक्ष की तीक्ष्ण बुद्धि और आद्या की रचनात्मक दूरदर्शिता मिलकर एक अविश्वसनीय ऊर्जा पैदा कर रही थी।

    मीटिंग ख़त्म होने के बाद, जब बाकी सब लोग जाने लगे, तो रुद्राक्ष ने आद्या को रोक लिया। "आद्या," उसकी आवाज़ गहरी और नियंत्रित थी, "आपके विचारों में दम है। मैंने आज तक ऐसा कोई नहीं देखा जो इतने आत्मविश्वास से स्थापित नियमों को चुनौती दे।"

    आद्या ने पलट कर देखा, उसकी काली आँखों में कोई भाव नहीं था, लेकिन उसके अंदर एक अजीब सा सुखद अनुभव हो रहा था। "और मैंने भी ऐसा कोई नहीं देखा, मिस्टर राणावत," उसने कहा, उसकी आवाज़ में वही आत्मविश्वास था, "जो इतनी तेज़ी से किसी भी चुनौती को स्वीकार कर ले।"

    रुद्राक्ष के होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान आई, जो शायद ही कभी किसी ने देखी हो। "मुझे लगता है यह साझेदारी दिलचस्प होने वाली है।"

    "मैं भी यही उम्मीद करती हूँ," आद्या ने जवाब दिया।

    दोनों कुछ पल के लिए शांत रहे, हवा में एक अनकहा खिंचाव था। उन्हें एक-दूसरे की उपस्थिति में अच्छा लग रहा था, एक ऐसी सहजता जो उनके कठोर व्यक्तित्व के अनुरूप नहीं थी। रुद्राक्ष, जो आमतौर पर लोगों से दूरी बनाकर रखता था, आद्या की निडरता और उसकी बुद्धिमत्ता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। वहीं आद्या, जिसे किसी से प्रभावित करना मुश्किल था, रुद्राक्ष की शांत शक्ति और उसकी अदम्य उपस्थिति से प्रभावित हुई थी।

    उनके बीच शब्दों का आदान-प्रदान कम था, लेकिन आँखों से बहुत कुछ कहा जा चुका था। यह सिर्फ एक व्यावसायिक शुरुआत नहीं थी, बल्कि दो शक्तिशाली आत्माओं के बीच एक नए रिश्ते की चिंगारी थी। वे दोनों जानते थे कि यह प्रोजेक्ट उनकी व्यावसायिक दुनिया को बदल सकता है, लेकिन शायद यह उनकी निजी दुनिया में भी एक गहरा असर डालेगा।

    क्या आप जानना चाहेंगे कि उनकी यह साझेदारी आगे कैसे बढ़ती है और वे एक-दूसरे के करीब कैसे आते हैं, या कहानी में अक्षत और आराध्या के रिश्ते पर वापस जाना चाहेंगे?

  • 8. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 8

    Words: 1166

    Estimated Reading Time: 7 min

    लंदन कॉन्फ़्रेंस के दूसरे दिन, रुद्राक्ष ने आद्या को डिनर पर आमंत्रित किया। यह सिर्फ एक व्यावसायिक मीटिंग नहीं थी, बल्कि दो शक्तिशाली हस्तियों के बीच बढ़ती हुई केमिस्ट्री का संकेत था। लंदन के सबसे एक्सक्लूसिव रेस्तरां में, आद्या और रुद्राक्ष ने एक-दूसरे को जानने की कोशिश की। बातचीत हल्के-फुल्के विषयों से शुरू हुई, लेकिन धीरे-धीरे उनके व्यापारिक सिद्धांतों और जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण पर केंद्रित होती गई। आद्या को रुद्राक्ष की तीक्ष्ण बुद्धि और उसके निर्दयी व्यापारिक दांव-पेचों के पीछे की सोच समझ आने लगी, और रुद्राक्ष आद्या की रचनात्मकता और उसके निडर फैसलों से और भी प्रभावित होता चला गया। डिनर के दौरान, दोनों ने एक-दूसरे में एक अनकही समानता पाई – काम के प्रति उनका जुनून, उनकी अदम्य इच्छाशक्ति, और उनका अपनी दुनिया पर राज करने का स्वभाव।

    डिनर के बीच में ही, आद्या का फ़ोन बजा। उसने एक नज़र स्क्रीन पर डाली और उसके चेहरे पर क्रोध के भाव उभर आए। यह उसकी लंदन स्थित 'एलीगेंस' के हेड ऑफिस से कॉल था। उसने तुरंत कॉल उठाया और कुछ ही पलों में उसकी आवाज़ में गुस्सा भर गया।

    "क्या? तुम क्या कह रहे हो? फंड्स में हेराफेरी?" उसकी आवाज़ इतनी तीखी थी कि रेस्तरां में कुछ लोगों ने उसकी ओर देखा। आद्या का चेहरा लाल हो गया था, उसकी काली आँखें अंगारों-सी जल रही थीं। "तुमने यह कैसे होने दिया? अभी के अभी मैं वहाँ आ रही हूँ! उस व्यक्ति को मेरे सामने पेश करो!"

    उसने बिना किसी से कुछ कहे, फ़ोन काटा और रुद्राक्ष की ओर देखा। "मुझे अभी निकलना होगा," उसकी आवाज़ में वही क्रूरता थी जो उसके बिज़नेस में देखने को मिलती थी। "कोई कर्मचारी धोखाधड़ी कर रहा है।"

    रुद्राक्ष ने सिर्फ सिर हिलाया। वह आद्या के इस अदम्य और खतरनाक रूप को पहली बार देख रहा था। उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था, सिर्फ गुस्सा और अपने साम्राज्य को बचाने की एक तीव्र इच्छा थी।

    आद्या की लंदन हवेली

    आद्या तुरंत रेस्तरां से निकली और अपनी कार में बैठकर तेज़ी से 'एलीगेंस' के लंदन ऑफिस की ओर रवाना हो गई। यह बहुमंजिला इमारत लंदन की स्काईलाइन में एक शान से खड़ी थी, जो 'एलीगेंस' के वैश्विक प्रभुत्व का प्रतीक थी। यह सिर्फ एक ऑफिस नहीं था, बल्कि एक आलीशान किला था जहाँ आद्या का राज चलता था।

    ऑफिस पहुँचते ही, आद्या का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसने तुरंत उस कर्मचारी को अपने सामने बुलाया, जिसने फंड्स में हेराफेरी करने की कोशिश की थी। बिना किसी हिचकिचाहट के, उसने उस व्यक्ति को सबके सामने क्रूर और निर्दयी सज़ा दी। उसने न केवल उसे तुरंत नौकरी से निकाला, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि उसे दोबारा फैशन उद्योग में कहीं नौकरी न मिले। उसकी आँखें गुस्से से लाल थीं, और उसके हर शब्द में एक चेतावनी थी जो किसी को भी दोबारा ऐसी गलती करने से रोकती। ऑफिस के सभी कर्मचारी यह सब देखकर काँप रहे थे। वे जानते थे कि आद्या अपने काम और कंपनी के प्रति कितनी समर्पित और कठोर थी।

    रात काफी हो चुकी थी, और आद्या का गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ था। उसे होटल के कमरे में जाकर सोने का मन नहीं किया। उसने ड्राइवर को अपने लंदन स्थित विला ले जाने का आदेश दिया। यह विला कोई साधारण घर नहीं था, बल्कि एक महल से कम नहीं था। समुद्र किनारे बसा यह आलीशान विला अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए जाना जाता था। इसमें कई बेडरूम, विशाल हॉल और एक निजी बीच एक्सेस था।

    विला पहुँचकर, आद्या सीधे अपने कमरे में चली गई। उसने बिना कुछ कहे, अपने कपड़े बदले और खिड़की के पास खड़ी हो गई। समुद्र की लहरों की आवाज़ और रात की ठंडी हवा उसके गुस्से को शांत करने की कोशिश कर रही थी। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और गहरी साँसें लीं, कोशिश कर रही थी कि उसके भीतर का तूफान शांत हो जाए। वह जानती थी कि उसे अब अगले दिन के व्यापारिक सौदों और रुद्राक्ष के साथ अपनी साझेदारी पर ध्यान केंद्रित करना होगा ।

    होटल में

    आद्या के अचानक डिनर छोड़कर जाने के बाद, रुद्राक्ष होटल वापस आ गया था, लेकिन उसका मन कहीं और ही था। उसे आद्या की चिंता हो रही थी। यह भावना उसके लिए नई थी। वह अक्सर लोगों की परवाह नहीं करता था, खासकर तब जब मामला व्यावसायिक हो। लेकिन आद्या के गुस्से और उसकी आँखें में दिखी आग ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया था। उसने डिनर के बाद आद्या के होटल के कमरे में कॉल किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। रात गहराती गई और उसकी चिंता बढ़ती गई।

    तभी उसने एक फ़ैसला किया जो उसने पहले कभी नहीं किया था। रुद्राक्ष ने पहली बार आद्या को व्यक्तिगत रूप से फ़ोन किया। कुछ देर की रिंग के बाद, आद्या ने फ़ोन उठाया, उसकी आवाज़ में अभी भी थकान और हल्की सी झुंझलाहट थी।

    "हेलो?" आद्या ने कहा।

    "मैं रुद्राक्ष प्रताप सिंह राणावत बोल रहा हूँ," रुद्राक्ष ने कहा, उसकी आवाज़ में वही नियंत्रित गंभीरता थी। "तुम ठीक हो? होटल में नहीं मिली।"

    आद्या एक पल के लिए हैरान हुई। उसे उम्मीद नहीं थी कि रुद्राक्ष उसे फ़ोन करेगा। "मैं ठीक हूँ, मिस्टर राणावत। मैं अपने लंदन वाले विला में हूँ।" उसकी आवाज़ में अब थोड़ी नरमी थी।

    "क्या सब कुछ सुलझ गया?" रुद्राक्ष ने पूछा।

    आद्या ने एक गहरी साँस ली। "हाँ। उस धोखेबाज को उसकी सज़ा मिल गई।" उसकी आवाज़ में एक बार फिर वही कठोरता लौट आई। रुद्राक्ष जानता था कि "सज़ा" का क्या मतलब होगा – व्यापारिक दुनिया से उसका पूरी तरह से सफ़ाया। आद्या का निर्दयी (ruthless), हृदयहीन (heartless), भावनाहीन (emotionless) रूप, जिसने उसे अपने कर्मचारियों के प्रति शून्य दया दिखाते हुए धोखा देने वालों को पूरी तरह से तबाह कर दिया था, रुद्राक्ष को प्रभावित किए बिना नहीं रह सका। उसने ऐसे कई लोगों को खत्म किया था जिन्होंने उसके साथ धोखा किया था।

    "अच्छा," रुद्राक्ष ने कहा, "तो तुमने खाना खाया?"

    रुद्राक्ष के इस अचानक सवाल पर आद्या एक पल के लिए ठिठक गई। किसी ने उसे सालों में यह सवाल नहीं पूछा था। उसके अंदर एक अपनत्व का एहसास हुआ, एक ऐसी भावना जो उसे बहुत पहले छोड़ चुकी थी। "नहीं," उसने धीरे से कहा, "मुझे भूख नहीं थी।"

    "ठीक है। कुछ खा लेना। कल सुबह मिलते हैं।" रुद्राक्ष ने कहा और फ़ोन काट दिया।

    आद्या ने फ़ोन नीचे रखा और उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई। यह छोटी सी बातचीत, और रुद्राक्ष का यह मामूली सा सवाल, उसके लिए बहुत मायने रखता था। सालों बाद, किसी ने उसकी परवाह की थी, भले ही वह सिर्फ एक सवाल ही क्यों न था। यह उनके बीच दोस्ती की शुरुआत थी, एक ऐसी दोस्ती जो उनके व्यावसायिक रिश्ते से कहीं ज़्यादा गहरी होने वाली थी। रुद्राक्ष को भी आद्या से बात करके अच्छा लगा था, और उसे महसूस हुआ कि यह महिला सिर्फ एक व्यावसायिक प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि उससे कहीं ज़्यादा कुछ और थी।

    अब जब रुद्राक्ष और आद्या के बीच एक नई दोस्ती की शुरुआत हुई है, क्या आप जानना चाहेंगे कि उनकी अगली मुलाकात कैसी रहती है, या उनके बीच की केमिस्ट्री कैसे आगे बढ़ती है?

  • 9. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 9

    Words: 702

    Estimated Reading Time: 5 min

    आद्या लंदन में रुद्राक्ष के भव्य ऑफिस में थी। 50वीं मंज़िल पर बनी उनकी केबिन तक पहुँचते ही आद्या का दिल कुछ और ही तेज़ी से धड़कने लगा। रुद्राक्ष की विशाल केबिन, जो पूरी तरह से शीशे की दीवारों से बनी थी, लंदन का अद्भुत नज़ारा पेश कर रही थी। रुद्राक्ष अपनी कुर्सी पर बैठा था, उसकी निगाहें कंप्यूटर स्क्रीन पर थीं, लेकिन आद्या को देखते ही उसने एक सुकून भरी मुस्कान दी।

    परियोजना पर चर्चा करने के बाद, दोनों के सहायक लंच के लिए बाहर चले गए। आद्या भी उनके साथ जाने के लिए उठी, तभी रुद्राक्ष ने उसका हाथ थाम लिया।

    आद्या ने उसकी तरफ देखा। रुद्राक्ष की आँखों में एक अजीब सी गहराई थी, एक खिंचाव था जो उसे अपनी ओर खींच रहा था। वह उन आँखों में खो गई। समय थम सा गया था। कुछ पल बाद, रुद्राक्ष ने अपना हाथ हटा लिया, पर आद्या अभी भी वहीं खड़ी थी।

    उस पल की चुप्पी को तोड़ते हुए रुद्राक्ष ने कहा, "लंच मेरे साथ करो।"

    एक वेटर कमरे में दो प्लेटें और एक ही सोफे पर बैठने के लिए एक टेबल लेकर आया। उन्होंने बिना ज़्यादा बातचीत किए एक-दूसरे के साथ खाना खाया। उनके बीच की ख़ामोशी अब असहज नहीं रही थी, बल्कि सुकून देने लगी थी। उनके दिलों में एक-दूसरे के लिए एक अजीब सा अपनापन महसूस हो रहा था।

    रात को ऑफिस में, एक अधूरी डील पर दोनों काम कर रहे थै।

    रात के 11 बजे हैं. ऑफिस खाली है, बस अध्या और रुद्र अपनी-अपनी कैबिन में काम कर रहे हैं. एक बड़ी डील में कोई अड़चन आ गई है और दोनों उसे सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं.

    अध्या अपने लैपटॉप पर काम करते हुए झुंझला जाती है. रुद्र उसके कैबिन में आता है, चुपचाप उसकी कुर्सी के पीछे खड़ा होकर उसके कंधे पर हाथ रखता है. वो उसे बताता है कि कभी-कभी पीछे हटकर सोचना ज़रूरी होता है. वो एक साथ बैठकर एक ही लैपटॉप पर काम करते हैं, उनके सिर एक दूसरे से टकराते हैं. इस दौरान, काम से ज़्यादा उनकी नज़दीकियां बढ़ जाती हैं. जब डील सुलझ जाती है, तो वो एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं. उस मुस्कान में सिर्फ जीत की खुशी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के लिए पनप रहे जज़्बात भी नज़र आते हैं.।

    अगले दिन आफिस में

    दोनों एक मीटिंग के बाद ऑफिस की प्राइवेट पैंट्री में कॉफ़ी पीने आते हैं. रुद्र को कॉफ़ी ज़्यादा पसंद नहीं है, लेकिन अध्या के साथ पीने के लिए वो बहाना बनाता है.।

    रुद्र देखता है कि अध्या अपने काम में पूरी तरह डूबी हुई है. उसकी काफी ठंडी हो रही है, लेकिन उसका ध्यान नहीं है. रुद्र धीरे से उसकी काफि में थोड़ी और गरम काफी डाल देता है. जब अध्या ध्यान देती है, तो वो उसे मुस्कुराकर कहता है, "ठंडी काफि पीना सेहत के लिए अच्छा नहीं है." अध्या थोड़ी शरमाती है और रुद्र को थैंक्स कहती है. ये छोटा सा जेश्चर बताता है कि रुद्र उसकी परवाह करता है.।

    अगले दिन ।

    ऑफिस के आखरी समय में, अध्या और रुद्र दोनों ही एक ही लिफ्ट में जाते हैं. लिफ्ट में कोई नहीं है और अचानक लिफ्ट रुक जाती है.

    पहले तो दोनों थोड़ा असहज महसूस करते हैं, लेकिन फिर माहौल शांत हो जाता है. रुद्र अपनी जैकेट उतारकर अध्या को दे देता है. वो कहता है, "यहां थोड़ी ठंड है." अध्या को बहुत अच्छा लगता है. अंधेरे में, जब लिफ्ट की इमरजेंसी लाइट जलती है, तो उनकी आंखों में एक-दूसरे के लिए एक नया एहसास दिखता है. वे चुपचाप खड़े रहते हैं, लेकिन उनकी चुप्पी बहुत कुछ कह जाती है.।

    फिर दोनों मि़टिंग में चले जाते हैं।

    अध्या और रुद्र, एक मीटिंग के बाद, शाम को ऑफिस की छत पर जाते हैं. ठंडी हवा चल रही है और शहर की रोशनी दिख रही है.

    वे दोनों अपनी-अपनी कहानियाँ एक-दूसरे को बताते हैं, कि कैसे उन्होंने अपनी पहचान बनाई‌ हैं. रुद्र बताता है कि वह डील जीतने से ज़्यादा, अध्या को और बेहतर तरीके से जानना चाहता है. अध्या, जिसे लगता था कि रुद्र सिर्फ एक बिज़नेस पार्टनर है, अब उसे एक सच्चे इंसान के रूप में देखती है. इसी बीच, रुद्र उसके उलझे बालों को ठीक करता है.।

    ये इनकि नई कहानी कि शूरूवात है।

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    धन्यवाद ♥️

  • 10. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 10

    Words: 456

    Estimated Reading Time: 3 min

    हाँ, ज़रूर! यहाँ रुद्र और अध्या के बीच फ़ोन कॉल पर कुछ रोमांटिक बातचीत के सीन दिए गए हैं. ये सीन दिखाते हैं कि कैसे उनके बीच की दूरियाँ भी नज़दीकियों में बदल रही हैं.
    1. रात का आख़िरी कॉल: एक अधूरी मुलाकात
    सीन: रुद्र अपने घर पहुँच गया है और अध्या अभी भी गाड़ी में है. वो दिन में हुई मीटिंग के बारे में बात करते हुए घर की तरफ़ जा रही है.
    रुद्र: "आज की मीटिंग बहुत अच्छी रही, लेकिन तुम इतनी चुप क्यों हो?"
    अध्या: "बस सोच रही थी कि काश ये दिन थोड़ा और लंबा होता."
    रुद्र: (मुस्कुराते हुए) "क्यों? क्या कुछ छूट गया?"
    अध्या: "हाँ. तुमसे और बातें करना."
    (दोनों कुछ देर के लिए चुप हो जाते हैं, बस एक-दूसरे की साँसों की आवाज़ सुनते हैं.)
    रुद्र: "अध्या, मैं तुम्हें देख नहीं पा रहा हूँ, लेकिन महसूस कर रहा हूँ. तुम्हारी आवाज़ में जो सुकून है, वो कहीं और नहीं मिलता."
    अध्या: "रुद्र, तुम हमेशा मेरे दिमाग में रहते हो... भले ही तुम मेरे सामने न हो."
    2. फ़ोन पर झगड़ा और फिर सुलह
    सीन: दोनों के बीच किसी प्रोजेक्ट को लेकर थोड़ी बहस हो गई है. अध्या ने गुस्से में फ़ोन काट दिया था, लेकिन कुछ देर बाद रुद्र उसे दोबारा कॉल करता है.
    रुद्र: (नर्म आवाज़ में) "क्या तुम अभी भी मुझसे नाराज़ हो?"
    अध्या: "नहीं... बस मुझे लगा कि शायद मैं कुछ ज़्यादा बोल गई थी."
    रुद्र: "तुम कुछ भी बोलो, तुम्हारी आवाज़ मुझे हमेशा अच्छी लगती है... और तुम्हारा गुस्सा भी."
    (अध्या मुस्कुराने लगती है.)
    रुद्र: "मैं बस ये कहना चाहता था कि हमारी लड़ाई काम तक ही है. तुम मेरे लिए उससे ज़्यादा मायने रखती हो."
    अध्या: "रुद्र, मैं जानती हूँ... और मुझे भी."
    रुद्र: "तो क्या अब हम इस पर हँस सकते हैं?"
    अध्या: "हाँ... (हँसते हुए) मुझे पहले ही हँस लेना चाहिए था."
    3. अचानक हुआ एक फ़ोन कॉल
    सीन: यह रात के 2 बजे का समय है. अध्या को नींद नहीं आ रही और वह गलती से रुद्र को कॉल कर देती है.
    रुद्र: (उनींदी आवाज़ में) "अध्या? सब ठीक है?"
    अध्या: (घबराकर) "ओह, माफ़ करना, मुझे लगा कोई और है. मैंने ग़लती से तुम्हें कॉल कर दिया. तुम सो जाओ."
    रुद्र: "नहीं, कोई बात नहीं. मुझे लगता है, तुम सो नहीं पा रही हो?"
    अध्या: "हाँ... पता नहीं क्यों. क्या तुम भी?"
    रुद्र: "मैं तुम्हारी सोच रहा था... और देखो, तुम्हारा कॉल आ गया."
    (अध्या का दिल तेज़ी से धड़कने लगता है.)
    रुद्र: "तुम परेशान मत हो... मैं तुम्हारे साथ हूँ. तुम बस अपनी आँखें बंद करो और मेरी आवाज़ सुनो. मैं तुम्हारे लिए हूँ."
    ये सीन उनकी दोस्ती को प्यार में बदलते हुए दिखा सकते हैं, और यह भी कि दूर रहते हुए भी वे एक-दूसरे से कितना जुड़े हुए हैं.

  • 11. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 11

    Words: 504

    Estimated Reading Time: 4 min

    ज़रूर! रुद्र और अध्या के बीच बातचीत के कुछ और रोमांटिक और भावनात्मक सीन यहाँ दिए गए हैं, जो उनकी कहानी को आगे बढ़ा सकते हैं.
    1. एक साथ, एक शांत सुबह में
    सीन: यह सीन तब का है जब दोनों एक शहर से बाहर किसी क्लाइंट से मिलने जाते हैं और उन्हें एक ही होटल में रुकना पड़ता है. सुबह की पहली चाय या कॉफ़ी के लिए, वे होटल के कमरे में बातचीत कर रहे हैं.
    अध्या: (खिड़की से बाहर देखते हुए) "ये सुबह की धूप कितनी सुकून भरी है, है ना?"
    रुद्र: (मुस्कुराते हुए) "हाँ. लेकिन मुझे लगता है, इसकी वजह धूप नहीं, बल्कि तुम्हारे साथ होना है."
    अध्या: (हल्का शर्माते हुए) "तुम बहुत फ़्लर्ट करते हो."
    रुद्र: "नहीं. यह फ़्लर्ट नहीं, एहसास है. जब तुम मेरे साथ होती हो, तो हर जगह ख़ूबसूरत लगती है."
    अध्या: "मुझे यकीन नहीं होता कि हम दोनों जो हमेशा डील और मुनाफे की बात करते थे, आज यहाँ बैठकर ऐसी बातें कर रहे हैं."
    रुद्र: "ज़रूरी नहीं कि हर रिश्ता सिर्फ़ काम से ही हो. कुछ रिश्ते दिल से भी शुरू होते हैं."
    2. बारिश में, अनचाहा ठहराव
    सीन: वे ऑफिस से लौट रहे हैं और अचानक तेज़ बारिश शुरू हो जाती है. वे अपनी गाड़ी रोककर एक पुरानी, सुनसान बस स्टॉप पर रुक जाते हैं.
    रुद्र: (बारिश में भीगते हुए) "लगता है, आज ऊपर वाले ने हमें कुछ देर के लिए रोक लिया."
    अध्या: (हँसते हुए) "हाँ. वरना तुम तो हमेशा समय से आगे भागते हो."
    रुद्र: "लेकिन तुम्हारे साथ मैं कहीं रुकना चाहूँगा... यहाँ, इसी बारिश में, हमेशा के लिए."
    अध्या: (आँखों में देखती है) "तुम्हें पता है, रुद्र... तुम बहुत बदल गए हो."
    रुद्र: "शायद. जब कोई इंसान तुम्हारे जैसा मिलता है, तो वो बदल ही जाता है."
    3. देर रात की ड्राइव
    सीन: एक लंबे दिन के काम के बाद, रुद्र अध्या को उसके घर छोड़ने जा रहा है. गाड़ी में हल्की-फुल्की संगीत बज रहा है.
    अध्या: "आज का दिन थका देने वाला था... लेकिन अच्छा भी."
    रुद्र: "तुम्हें पता है, मैं ये ड्राइव इसलिए करता हूँ क्योंकि मुझे पता है कि ये दिन का वो आख़िरी पल है जब हम साथ होते हैं."
    अध्या: "क्या तुम अकेले घर जाते हुए अकेला महसूस नहीं करते?"
    रुद्र: "नहीं. मैं तुम्हें सोचता हूँ. तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारी बातें... और फिर मुझे अकेलापन महसूस नहीं होता."
    अध्या: "मैं भी. ऐसा लगता है जैसे तुमने मेरे लिए एक दुनिया बना दी है, जहाँ सिर्फ़ हम दोनों हैं."
    4. ऑफिस में, एक अचानक गले लगाना
    सीन: एक मुश्किल प्रोजेक्ट की सफलता के बाद, दोनों अपने कैबिन में हैं. रुद्र बहुत खुश है.
    रुद्र: (अचानक अध्या के पास जाकर, उसे पीछे से गले लगाकर) "यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है."
    अध्या: (हैरान होकर, लेकिन खुश होकर) "रुद्र... यह क्या है?"
    रुद्र: "यह मेरा शुक्रिया है... और मेरी खुशी. यह सब सिर्फ़ मेरा नहीं, बल्कि हमारा है."
    ये सभी सीन रुद्र और अध्या के रिश्ते को और भी गहराई दे सकते हैं, दिखाते हुए कि उनकी प्रोफेशनल ज़िंदगी के बीच भी उनका प्यार किस तरह पनप रहा है.

  • 12. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 12

    Words: 415

    Estimated Reading Time: 3 min

    ज़रूर! यहाँ रुद्र और अध्या के बीच लंबी दूरी पर रहते हुए, एक-दूसरे को याद करने के रोमांटिक सीन दिए गए हैं. ये सीन उनकी दूरियों को भी भावनाओं से भर देते हैं.
    1. वीडियो कॉल पर, एक अधूरा एहसास
    सीन: अध्या अपने होटल के कमरे में है और रुद्र अपने घर पर है. रात का समय है. दोनों वीडियो कॉल पर हैं.
    रुद्र: "तुम बहुत थकी हुई लग रही हो."
    अध्या: "हाँ, लेकिन तुम्हें देखकर सारी थकान उतर गई."
    रुद्र: (मुस्कुराते हुए) "काश, मैं तुम्हारे पास होता और तुम्हारे लिए कॉफ़ी बना पाता."
    अध्या: "मुझे लगता है, तुम्हारी मौजूदगी ही काफ़ी है."
    (अध्या अपने लैपटॉप को पास खींचती है, ताकि रुद्र की तस्वीर और साफ़ दिखे.)
    रुद्र: "तुम्हें पता है, जब मैं तुम्हें ऐसे देखता हूँ, तो लगता है कि ये दूरी कुछ भी नहीं है. बस एक स्क्रीन है, जिसके पीछे तुम हो."
    अध्या: "और मैं भी यही सोच रही हूँ. ये दूरी हमें एक-दूसरे के और क़रीब ला रही है."
    2. फ़ोन पर, सुबह की पहली आवाज़
    सीन: सुबह का समय है. अध्या अभी उठी है और रुद्र का कॉल आता है.
    अध्या: (उनींदी आवाज़ में) "हैलो."
    रुद्र: "गुड मॉर्निंग. मैंने सोचा, तुम्हारी आवाज़ सुने बिना मेरा दिन शुरू नहीं हो सकता."
    अध्या: "रुद्र, तुम हमेशा सही वक़्त पर कॉल करते हो... मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है."
    रुद्र: "मुझे भी. मैं तुम्हें सामने से गुड मॉर्निंग बोलना चाहता था... तुम्हारी बालों को ठीक करना चाहता था."
    अध्या: "मैं भी तुम्हारे साथ सुबह की चाय पीना चाहती थी."
    रुद्र: "जल्द ही... बहुत जल्द हम फिर मिलेंगे. तब तक, मैं तुम्हें अपने दिल में रखता हूँ."
    3. एक-दूसरे के लिए लिखा गया मैसेज
    सीन: दोनों अपने-अपने काम में व्यस्त हैं, लेकिन एक-दूसरे के लिए मैसेज भेजते हैं.
    अध्या: "काम बहुत है... लेकिन हर दस मिनट में तुम्हारा मैसेज चेक करती हूँ."
    रुद्र: "मुझे पता है. तुम्हारी तस्वीर मेरे डेस्कटॉप पर है... और तुम मेरे हर फ़ैसले में शामिल हो."
    अध्या: "क्या तुम भी मुझे याद कर रहे हो?"
    रुद्र: "तुम्हें याद करना बंद ही कब किया था? तुम मेरे हर ख़्याल में हो. तुम्हारी बातें, तुम्हारी हँसी... सब यहाँ है."
    (रुद्र अपनी छाती पर हाथ रखता है, ये बताने के लिए कि वो अध्या को अपने दिल में रखता है.)
    अध्या: (कुछ देर बाद) "क्या तुम्हें पता है, तुम इतने अच्छे क्यों हो?"
    रुद्र: (जवाब में) "क्योंकि तुम मुझे बनाती हो."
    ये सीन दिखाते हैं कि लंबी दूरी पर होने के बावजूद, रुद्र और अध्या का रिश्ता कितना मज़बूत और गहरा है.

  • 13. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 13

    Words: 456

    Estimated Reading Time: 3 min

    ज़रूर, यहाँ अध्या के पीरियड पेन के दौरान रुद्र का ख्याल रखने और बातचीत के कुछ भावनात्मक और प्रोटेक्टिव सीन दिए गए हैं. ये सीन उनकी देखभाल और प्यार को दर्शाते हैं.
    1. ऑफिस में, एक अचानक दर्द
    सीन: अध्या अपने कैबिन में काम कर रही है और अचानक उसे पेट में तेज़ दर्द होता है. वह अपना सिर पकड़कर आँखें बंद कर लेती है. रुद्र उसके कैबिन में आता है और उसे ऐसे देखकर परेशान हो जाता है.
    रुद्र: (नरमी से, उसके पास जाकर) "अध्या, क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?"
    अध्या: (दर्द से कराहते हुए) "कुछ नहीं... बस थोड़ा... पेट में दर्द है."
    रुद्र: (तुरंत समझ जाता है) "तुम्हें डॉक्टर के पास चलना चाहिए."
    अध्या: "नहीं, ये ठीक हो जाएगा. बस... हर महीने ऐसा ही होता है."
    रुद्र: (उसकी बात अनसुनी कर देता है, फ़ोन निकालकर) "चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ. और सुनो, आज कोई मीटिंग नहीं है. तुम्हारा काम मैं देख लूँगा."
    अध्या: "लेकिन..."
    रुद्र: (उसका हाथ पकड़कर) "अभी 'लेकिन' नहीं. तुम्हारी सेहत से बढ़कर कुछ नहीं है. चलो."
    2. घर पर, देखभाल और प्यार
    सीन: रुद्र अध्या को उसके घर छोड़ देता है. वह उसे जबरदस्ती घर के अंदर ले जाता है और उसे बेड पर आराम करने के लिए कहता है.
    रुद्र: (उसे कंबल ओढ़ाते हुए) "तुम यहीं आराम करो. मैं तुम्हारे लिए कुछ बनाता हूँ."
    अध्या: "रुद्र, तुम्हें जाने की ज़रूरत नहीं है."
    रुद्र: "मैं तुम्हें इस हालत में अकेला नहीं छोड़ सकता."
    (वह किचन में जाकर उसके लिए गरम पानी की बोतल और अदरक वाली चाय बनाता है. वापस आकर वह गरम पानी की बोतल उसके पेट पर रखता है.)
    रुद्र: (उसके माथे पर हाथ फेरते हुए) "अगर दर्द बहुत ज़्यादा हो तो मुझे बताना. तुम बस आराम करो."
    अध्या: (आँखों में आँसू के साथ) "तुम इतने अच्छे क्यों हो?"
    रुद्र: "क्योंकि तुम मेरे लिए हो. तुम्हारी परवाह करना मेरे लिए सबसे ज़रूरी है."
    3. फ़ोन कॉल पर, रात को
    सीन: रात हो गई है. रुद्र अपने घर पर है, लेकिन अध्या के बारे में सोचकर उसे कॉल करता है.
    रुद्र: "अब कैसा महसूस कर रही हो?"
    अध्या: "काफ़ी बेहतर. तुम्हारी गरम पानी की बोतल और चाय ने बहुत आराम दिया."
    रुद्र: "तुमने कुछ खाया?"
    अध्या: "हाँ, थोड़ा सा."
    रुद्र: "देखो, अध्या... मैं जानता हूँ ये एक आम बात है, लेकिन तुम्हारी तकलीफ़ मेरे लिए आम नहीं है. अगर अगली बार तुम्हें ऐसा हो, तो मुझे बताने में हिचकिचाना मत."
    अध्या: (आवाज़ में प्यार और आभार के साथ) "रुद्र... तुम मेरे लिए सिर्फ़ एक बिज़नेस पार्टनर नहीं हो."
    रुद्र: "और तुम भी मेरे लिए सिर्फ़ एक दोस्त नहीं हो."
    यह सीन दिखाते हैं कि कैसे रुद्र अपनी व्यावहारिकता को छोड़कर अध्या के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है, और उसकी देखभाल को अपनी प्राथमिकता बनाता है.

  • 14. Hukum Rani sa - tale of love - Chapter 14

    Words: 0

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