अरुण दीवान..." नाम बेहिसाब दौलत, शोहरत और हैंडसम चेहरे का... लेकिन फिर भी—अकेला! क्यों टूटा उसका दिल...? किस हादसे ने उजाड़ दी उसकी दुनिया...? शादी की रात दुल्हन क्यों छोड़ गई उसे...? कौन है जो उसके प्यार... या जान का दुश्मन बन गया है? क्य... अरुण दीवान..." नाम बेहिसाब दौलत, शोहरत और हैंडसम चेहरे का... लेकिन फिर भी—अकेला! क्यों टूटा उसका दिल...? किस हादसे ने उजाड़ दी उसकी दुनिया...? शादी की रात दुल्हन क्यों छोड़ गई उसे...? कौन है जो उसके प्यार... या जान का दुश्मन बन गया है? क्या बचा पाएगा अरुण खुद को इस तूफ़ान से...? या डूब जाएगा बेइंतहा दर्द, मोहब्बत और बदले की इस आग में...?दीवान इंटरप्राइजेज का सीईओ अरुण दीवान बचा पाएगा खुद को इन सबसे?? क्या मिल पाएगा अपनी सच्ची मोहब्बत से?? क्या बचा पाएगा खुद को टूटने से या बह जाएगा इस बेइंतहा दर्द में??? जिसकी गिरफ्त में आते वह सिगरेट का बेइंतहा हो गया तलबगार... जानने के लिए पढ़िए — "बेइंतहा" — मोहब्बत, नफ़रत और जुनून की एक कहानी...
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खूबसूरत दौड़ता सिडनी शहर मानो रेशमी पंखो से उड़ जाना चाहता था| चमकीली रेत पर उमड़ उमड़ कर आता समंदर किसी जुनूनी आशिक मानिंद लगता जो अपना इश्क और रश्क एकसाथ मानो जी लेना चाहता हो| किसी ख्वाब सा शहर हर आँखों को एक नशीला सपना थमाता जब झूम रहा होता तब उसके किसी नीरव एकांत में वह नौजवान सबसे तनहा बैठा होता|
वह था सूरत के नंबर वन टेक्सटाइल बिजनेसमैन दिवान इन्डेस्ट्री का छोटा बेटा या कहे मोस्ट एलिजबल स्मार्ट डैसिंग अरुण दिवान पर अपने सबसे रूमानी दिनों में वह सबसे कटा हुआ अकेले अपने आलीशान मेंशन की टेरिस में बैठा दूर समंदर की चमकीली लहरों में घुलते आसमान को निहार रहा था| पिछले चार साल से लेकर आज सिडनी की आखिरी रात भी उसकी कुछ अलग नही थी| वही तन्हाई और वही समंदर में घुलता आसमान, कुछ फर्क नही आया उसके इन चार सालो में और वही उसकी उँगलियों में फसी सिगरेट जिसका गहरा कश लेकर उसे दर्द की तरह बार बार होंठो के कोने से वह बाहर उझेल देता पर उसी रफ़्तार से दुबारा कोई दर्द उसके दिल में अपना जमावड़ बना लेता| इसी क्रम में वह अबतक नौ सिगरेट पी गया था और इस रात की आखिरी सिगरेट को पीकर वह उसी तन्हाई में लिपटा अपने बिस्तर पर सोने चला जाता है|
सब जैसे रोजाना की दिनचर्या सा तय था| उसके साथ साथ रहने वाला राजबीर को पता था अब उसे क्या करना है| वह बिन आवाज के उसके कमरे में आता अरुण के जूते खोलता हुआ उसे ओढाकर लाइट ऑफ़ करके चला जाता है|
अगली सुबह की पहली फ्लाइट से वह पूरे चार साल की पढाई के बाद अपने देश अपने शहर सूरत को वह लौटने वाला था पर न उसके चेहरे पर इस रूमानी शहर को छोड़ने की कोई खलिश थी और न अपने शहर पहुँच जाने की उत्सुकता| वह बस अपने पिता की हर आज्ञा की तरह इसे भी उनका अगला हुकुम मानकर बस पालन कर रहा था|
इसके विपरीत उसके आने के इंतजार में सूरत की विशाल कोठी अभी भी यूँ शांत थी मानो वहां कोई हो ही न| अरुण को जिस दिन आना था वह उससे दो दिन पहले अपने शहर पहुँच रहा था| ये प्रोग्राम उसने अपने मन से परिवर्तित किया था जबकि उसके परिवार वालो को उसके लौटने की दो दिन बाद की तारिख पता थी|
सिडनी से उसके जरुरी कागजात समेटवाने के लिए एक नया मेनेजिंग ऑफिसर भेजा गया था जिसे राजबीर के साथ साथ रहना था| वह यहाँ आने और अरुण से मिलने से पहले बहुत सारी उपकल्पना उसके बारे में बनाकर आया था पर अरुण को देखते उसकी वे सारी उपकल्पना मानो हवा हो गई| आज के ज़माने में इतना रिच और हैंडसम यंग ऐसे भी रहता है क्या !! न लड़की न शराब का दौर न पार्टी न लोगो की अथाह भीड़ जैसे ज़माने की भीड़ के बीच कोई साधू हो गया हो !!
वह हैरानगी से देख रहा था जबकि राजबीर इन सबका आदि था और सहजता से मुस्कराकर उसे लेकर चलता हुआ कहता है – “अभी तो और भी आश्चर्य बचे है – माधव जी अपना आश्चर्य जरा बचा कर रखिए |”
“हाँ लग तो यही रहा है – आखिर इन्हें परेशानी क्या है – सभी कुछ तो है इनके पास – फिर ये अकेलापन और तन्हाई किस बात की – इनके तो आस पास लड़कियों की भीड़ नज़र आती – बस एक बार नज़र उठाकर इशारा तो करते फिर ऐसा क्यों.....!!”
“यही बात तो हमारे छोटे सरकार की उन्हें सबसे अलग करती है – इस चार सालो में पढाई के लिए आते ऐसे नौजवान यहाँ जाने कितनी रंगरेलियां मनाते पर हमारे छोटे सरकार तो किसी लड़की की ओर नज़र उठाकर देखते भी नही – बस एक गलत आदत के अलावा कोई एब नही मिलेगा उनमे |”
“एक गलत आदत.....हम्म....वही तो कहू कुछ तो होना ही चाहिए – आखिर ये पैसा अपने साथ एब न लाया तो इसका अर्थ ही खत्म हो जाएगा |” अबकी माधव राजबीर की बातों पर दिलचस्पी लेता हुआ कहता है|
“सिगरेट पीना – पता नहीं क्या जूनून है इसे लेकर – देखकर मन मेरा जलता है पर जानता हूँ वे इसके बिना नही रह सकते इसलिए कुछ भी हो जाए लेकिन उनकी सिगरेट का इंतजाम मुझे हर जगह रखना पड़ता है – बस यही एक एब है जिसे देखकर मन दुखी होता है|”
“क्या !!! बस यही एक एब !! मैंने तो न जाने क्या क्या सोच लिया था – मैं तो इनके बड़े भाई आकाश दिवान जी को भी मिल चुका हूँ – उन्हें मिलने के बाद इन्हें देखना बिलकुल वैसा ही है जैसे दो विपरीत धारा को देखना -|”
“हाँ तो सही ही है – वे जमी आसमान से विपरीत है इसलिए वे अपने परिवार में अनोखे है – यही देख लो आज से दो दिन बाद भारत जाना था पर कल जा रहे है – पता है क्यों ?”
“क्यों ??”
“क्योंकि आज से दो दिन बाद मेरी बहन की मंगनी है |”
“मैं कुछ समझा नही – तुम्हारी बहन की मंगनी से उनका जाने का क्या सम्बन्ध ?”
राजबीर मुस्कराते हुए कहता है – “यही तो अनोखी बात है हमारे साहब में – मेरी बहन की मंगनी मतलब मुझे वहां होना चाहिए पर बड़े साहब ने मुझे छोटे साहब के साथ ही वापसी का हुकुम दिया था इसलिए वे उनके विपरीत जाकर मुझे छुट्टी तो नही दे सके इसलिए खुद दो दिन पहले ही भारत पहुँच रहे है जिससे मैं अपने परिवार की ख़ुशी में शामिल हो सकू – दिल तो उनका खरा सोना है बस गलत परिवार में जन्म ले लिया – कोई समझता कहाँ है उन्हें – पर वे सबको समझते है – खैर चलो अब जाने की तैयारी करते है – सिर्फ दो दिन के लिए जाने के अरेंजमेंट में कितना बदलाव करना पड़ा पर मेरे बारे में पता चलते सब चुटकियों में कर लिया |”
“हाँ तो तुम उनके साथ साए की तरह रहते हो न !”
“देखते जाओ – धीरे धीरे सब पता चल जाएगा – हीरा अपनी चमक सिर्फ जौहरी पर ही नहीं दुनिया पर छोड़ता है -| हँसते हुए राजवीर अपनी बात कहता अब सोने की व्यवस्था करने लगता है|
........तो क्या है दास्ताँ इस नए सफ़र की पता करने बने रहे मेरे साथ..

क्रमशः ..........
फ्लाइट अपने सुनिश्चित समय पर भारत की सरजमी पर उतरती है और साथ ही अपने शहर में उतरता है अरुण दिवान भी वो भी पूरे चार साल बाद| सिविल फ्लाइट से आने से उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी एक निजी कंपनी द्वारा संभाली जा रही थी जिससे उसके आगे पीछे एक सुरक्षात्मक घेरा बनाकर वे चल रहे थे जबकि अरुण इन सब तरह के तामझाम पर हमेशा अपनी नाराजगी दर्ज कराता इस कारण वे सभी अरुण से थोड़ा दूरी बनाकर चल रहे थे|
राजवीर और माधव भी उससे दूरी बनाकर उसके पीछे पीछे चल रहे थे| अभी वह एग्जिट पॉइंट से निकला ही था कि कोई शख्स चुपचाप उसके पीछे पीछे होता उसकी ओर बढ़ने लगा पर उन पर माधव की नज़र पड़ गई| वह देखता है कि वह शख्स किसी भी तरह से अरुण के पास पहुँच जाना चाहता था|
वह उसे बस टोकने ही वाला था कि राजवीर उसे ऐसा करने से रोक देता है जिससे वह आश्चर्य से उसकी ओर फिर उस शख्स की ओर देखता है| वह शक्स अब तक अरुण का सुरक्षात्मक घेरा तोड़ता उसके पास पहुँचते उसे पीछे से धौल जमा चुका था| जिससे सुरक्षाकर्मी बस उसकी ओर मुड़ने ही वाले थे कि अरुण उस शख्स की ओर मुड़ता हुआ कसकर मुस्करा उठा|
“योगेश..!”
“और तू क्या समझता है – तू चार साल बाद चुपचाप शहर आएगा और मुझे पता भी नही चलेगा |”
इस पर अरुण दोस्ताने अंदाज में उसकी ओर हाथ मिलाते उसके गले लग जाता है| वे सभी समझ गए थे कि वह अरुण का परिचित है इसलिए उसके आस पास ठहर जाते है|
“इतना भी तुझसे नही होता कि बता देता कि दो दिन पहले आ रहा है पर मैं भी निकला न घाग – पकड़ ही लिया तुझे |”
जिगरी दोस्त से मिलकर अरुण प्रसन्नता जाहिर करता हुआ कहता है – “हाँ अचानक प्रोग्राम में चेंज आया |”
अब वे साथ में बाहर की ओर बढ़ने लगे थे|
“तो इसका मतलब तूने घर पर भी किसी को नही बताया होगा – आई नो |”
“इसकी जरुरत भी नही |”
“तू न कभी नही सुधरने वाला – कम से कम भाभी को तो बताया होता - !!”
इस पर हमेशा वाली हलकी मुस्कान उसके चेहरे पर दिखाई पड़ आई| योगेश अपनी बात कहता कहता देखता है कि अरुण बाहर निकलते अब अपनी जेब में कुछ टटोलने लगा था|
अरुण बस सिगरेट निकालने ही वाला था कि अचानक कोई धुन उसके कानो से टकराई और वह एग्जिट पॉइंट पर मूर्ति बना ठहरा रह गया| उसके बाहर आते उसकी नज़रो के सामने एक कार रूकती है जिसके पिछले दरवाजे से एक एक करके एक दो तीन चार फिर पूरे पांच बैंड वाले उतरते हुए कोई सुरीला बैंड बजाने लगते है| और सबसे आकर्षण का उस बैंड के ठीक आगे गले में छोटा ढोल लिए बजाता एक सात आठ साल का बच्चा जो पूरी मस्ती में खड़ा ढोल बजा रहा था जो उस सुरीली धुन में कुछ अलग ही मालूम पड़ रहा था पर फिर भी सबका ध्यान बस उसी पर टिका था|
अरुण तो बस सीने पर हाथ बांधे उस दृश्य को प्यार भरी नज़र से देखता रहा और वही नही बल्कि वहां से गुजरते सभी इस दृश्य को नजर भर कर देखे बिना न रहे| वह प्यारा सा बच्चा अपने साफ शालीन कपड़ो में भी मस्तमौला लग रहा था और उसे निहारते डैसिंग अरुण पर भी एक बार को सबकी नज़र घूम जाती|
ये सब देख योगेश धीरे से अरुण के कान के पास आता कह रहा था – “दो लोग है दुनिया में जो कभी भी कुछ भी कर सकते है – एक अरुण दिवान और दूसरा उसका भतीजा क्षितिज दिवान – इन्हें कोई नहीं रोक सकता|”
अब अरुण क्षितिज के पास आता उसे प्यार से अपनी गोद में उठाने लगता है तो ढोल बंद करते हुए वह कहता है – “अरे चाचू – सबके सामने मुझे गोद में मत उठाओ – मैं अब बड़ा हो गया हूँ |”
“वो तो दिख ही रहा है|” वह मुस्कराते हुए उसके फूले गाल प्यार से चूम लेता है|
अरुण क्षितिज को लेते राजवीर को इशारा करता है और वह इशारे में सब समझता हुआ तुरंत उन बैण्ड वालो को नगद देता हुआ उन्हें विदा कर देता है|
अभी वे साथ में मिलकर बस आगे बढ़ने ही वाले थे कि एक काली शानदार कार आकर ठीक उसके सामने रूकती है| जिस तेजी से वह कार उसके सामने आकर रुकी थी उसी तेजी से उस कार की ड्राइविंग सीट से एक आकर्षित महिला भी तुरंत बाहर निकलती है| अब सबकी नज़र बस उसी की ओर घूम गई ही|
गहरे भूरे रंग की सादी साडी में लिपटी उस महिला की समृद्धि उसके हर चाल से झलक रही थी| उसकी सादगी में भी उसका वैभव प्रकट हो रहा था| मानो वह कोई मुट्ठी में बंद हीरा थी| वह तेजी से अरुण की ओर बढ़ रही थी और उसी रफ़्तार से अपनी आँखों का काला चश्मा वह अपने सर की ओर करती कसे हुए भाव से अरुण को देख रही थी|
अरुण भी उसे देखता बस अपनी जगह थम सा गया जबकि क्षितिज उसकी गोद से उतरता हुआ उस महिला को भी सपाट भाव से देख रहा था जो तेज कदमो से उनके बीच का फासला तय करती उनके पास तक पहुँच गई थी|
“कोई जरुरत नही थी न मुझे बताने की – आखिर मैं हूँ ही कौन - |”
वह महिला उन पर तीखी नज़र डाले नाराज हो रही थी और दोनों भी किसी अपराधी की तरह बस नज़र झुकाए खड़े थे|
“जो जी में आए करो – ठीक है – फिर मैं यहाँ आई ही क्यों – मुझे तो बिलकुल यहाँ होना ही नही चाहिए – क्यों है न !!”
वह महिला अभी भी उन्हें तीखे हाव भाव से उन्हें घूर रही ही जबकि अरुण और क्षितिज बुझे भाव से एकदूसरे का चेहरा देख रहे थे और वहां उपस्थित बाकी उनका चेहरा देख रहे थे जैसे जानना चाहे थे कि वे अब क्या करेंगे !!
वह अभी भी कहे जा रही थी – “मैं वहां स्कूल जाती हूँ तो पता चलता है क्षितिज बाबा कहाँ गए किसी को नहीं पता और यहाँ ये छोटे नवाब चुपचाप चले आए और किसी को बताना तो इनकी जिम्मेदारी के अन्दर आता ही नहीं – जिसे पता करना हो खुद पता करो – ठीक – तो दो प्यार करने वाले मिल लिए फिर मेरी तो कोई जरुरत ही नहीं यहाँ – मैं जा रही यहाँ से – अभी |”
वह गुस्से में पैर पटकती बस पलटने ही वाली थी कि अरुण और क्षितिज आँखों आँखों में एकदूसरे को जाने का इशारा करते है और पल में सबकी निगाह बस उनकी ओर ही घूम जाती है|
क्या होगा आगे !! और कौन है ये महिला जानने के लिए बस करे एक दिन का इंतजार....और हाँ आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया...इस यात्रा में साथ चलने के लिए....

क्रमशः ...........................
सबकी निगाह का दृश्य अब पूरी तरह से बदल चुका था| वह महिला भी मुंह पर हाथ रखे बस अपनी जगह खड़ी स्तब्ध रह गई थी| उसके सामने ही सड़क पर अरुण और नन्हा क्षितिज अपने अपने कान पकड़े उठक बैठक लगाने लगते है| सब हैरान होकर उस लाजवाब दृश्य पर से अपनी नज़र ही नही हटा पा रहे थे|
आखिर किसका डर उन दो राजकुमारों पर अपना असर दिखा रहा था कि एक जवान लड़का और एक नन्हे बच्चे में कोई फर्क नही रह गया था| सबकी हैरान नज़रे अब दिलचस्पी में बदल गई और ये मंजर देखते वह महिला लगभग भागती हुई दोनों का एकसाथ हाथ पकड़े एक ओर उन्हें खींचकर लाती हुई लगभग उनपर बरस ही पड़ी –
“बस तुम दोनों के पास यही आखिरी हथियार है – कर लो मुझे ब्लैकमेल – कुछ और भी बचा हो तो वो भी कर लो – आखिर पूरा सूरत देखे तो इन दिवान परिवार के नौनिहालों की सूरत !”
“सॉरी मम्मा |”
“सॉरी भाभी...|”
दोनों बारी बारी से बोलते अभी भी किसी अपराधी की तरह उसके सामने खड़े थे और वो जो उनके सामने खड़ी थी वह थी दिवान परिवार की बड़ी बहु और आकाश दिवान की पत्नी भूमि जो असल में थी तो सिर्फ क्षितिज की माँ पर अरुण के लिए भी उसकी भाभी माँ से कम नही थी|
“अब तुम दोनों का ड्रामा कम्प्लीट हो गया हो तो चले घर !”
भूमि की बात सुनते अरुण और क्षितिज एकदूसरे को देखते आंख मारते हुए भूमि को देखते हुए किसी मासूम बच्चे की तरह हामी में सर हिला देते है|
“वैसे अरुण आते ही तुमने सूरत में बढ़िया पिक्चर बना ली बस शुक्र मनाओ कोई रिपोटर नही हो यहाँ वरना तुम्हारी अंकल के सामने पेशी होने से कोई नही रोक सकता |” तबसे उनके ड्रामे का मजा लेते योगेश ने जल्दी से उनके बीच आते हुए कहा तो सभी फसी सी हंसी हँस पड़े|
“अरे योगेश !! तुम कब अब्रोड से आए ?” भूमि अब योगेश की ओर देखती हुई पूछती है|
पर योगेश हिचकिचाता हुआ कह उठता है – “मैं – मैं तो कही नही गया भाभी – मैं तो यही सूरत में था|”
“ओह चार साल से दिखे नही न इसलिए पूछ लिया|”
योगेश समझ गया था कि भाभी की हाज़िर जवाबी से बचना उसका मुश्किल है| भूमि की बात समझते अब योगेश झेपता हुआ फसी सी हंसी से कह उठा – “ओह सॉरी भाभी – वो मेडिकल में बीजी रहा इसलिए |”
“हाँ क्यों नही दोस्त के आते अब तुम क्या वर्तिका भी नज़र आने लगेगी – बस किसी को भाभी से ही नही मिलना होता |”
“अच्छा है न मैं अपनी प्यारी भाभी माँ किसी से शेअर भी नही करना चाहता |” अबकी अरुण अपनी भाभी का कन्धा पकड़ते हुए कहता है|
“हाँ हाँ बस – अब चलो भी घर |” भूमि मुस्कराती हुई क्षितिज की उंगली थामती हुई कहती है|
“भाभी मैं योगेश के साथ आता हूँ – आप चलिए |” अरुण के कहते भूमि हाँ में सर हिलाती अपनी कार की ओर बढ़ जाती है और उसकी बगल की सीट पर क्षितिज जाकर बैठ जाता है|
वही योगेश की कार में बैठते ही अरुण अपनी पॉकेट तलाशते हुए सिगरेट निकालते हुए बड़े इत्मिनान से उसे सुलगाते उसका एक गहरा कश लेता है| ड्राइविंग सीट पर बैठा योगेश ये देखते चिढ़ते हुए बोलता है – “हाँ तो अब समझ आया इसलिए तू भाभी के साथ नही गया – तू इन चार साल में भी बिलकुल नही बदला – तू और ये तेरी लत |”
“तो कौन कमबख्त बदलने गया था वो तो डैड का हुकुम था जिसे सजा की तरह काटकर बस वापस आ गया|”
“अब फिर वही सब बाते – ये तू और तेरा एटीट्यूड फिर तेरा अंकल से जरुर कोई पंगा कराएगा – अरे चिल यार क्या कमी है तेरी लाइफ में – क्यों बेवजह अपनी जिंदगी खराब करने में लगा है और ये तेरे फेफड़े है क्यों बेदर्दी से इन्हें फूक रहा है ?” लगातार सिगरेट के गहरे कश लेते देखते हुए योगेश कहता है|
“हाँ ये मेरे है इसलिए तो इतना हक़ है नहीं तो अगर ये डैड के दिए होते तो वही बताते कि इसमें कितनी साँसे भरनी है और कितनी निकालनी|” कहता हुआ अरुण ठसक भरी हंसी से हँस पड़ता है|

"चल छोड़ न यार – अच्छा ये बता कल पार्टी करे ? क्योंकि परसों तो तेरे लिए दिवान मेंशन में पार्टी रखी गई है – जल्दी बता फिर सब अरेंजमेंट मैं करता हूँ – वैसे भी वर्तिका तो है नही यहाँ |”
“वर्तिका !! कहाँ है वह ?” अब अरुण दूसरी सिगरेट सुलगा रहा था|
“क्या पता उसके भैया का तो पता है न कितने सीक्रेट इंसान है – कुछ दिन पहले मिली थी तभी बता रही थी कि उसके भैया ने उसके साथ कही आउटिंग का प्रोग्राम बनाया है – कहाँ ये खुद वर्तिका को भी नही पता – कितने मेसेज भेज चुका हूँ – लगता है तेरी तरह मोबाईल इस बार कही छोड़ रखा है उसने भी – नही तो तू आज आया अगर उसे पता होता तो सारे प्रोग्राम छोड़ छाड कर आ जाती तेरे को रिसीव करने |”
इस पर अरुण बस हलके से मुस्करा देता है|
जबकि योगेश हमेशा की तरह लगातार बोलता हुआ कार ड्राइव कर रहा था – “तेरे आने से लग रहा है जैसे अपने स्कूल के दिन फिर से वापस आ गए - कॉलेज तो हम तीनो एक साथ एक साल ही पढ़ पाए – इधर तू सिडनी चला गया और मैं अपनी मेडिकल की पढाई में बीजी हो गया फिर बहुत कम मौका ऐसा मिलता जब वर्तिका मुझसे मिलने आती – अब तू आ गया है न – देखना जमकर इन चार साल की कसर निकालेंगे |”
योगेश अपनी बात कहता और खुद ही हँस पड़ता पर अरुण जो सामने से अपने शहर को निहारता हुआ मन ही मन कही गुम था| ये भीड़ भरा शहर फिर से उसमे या वह उसमे शामिल होने आ पहुंचा है| हर बार वह भीड़ में यूँही गुम होता कही खो जाता| अब उसे इस तरह से खो जाने की आदत सी हो गई थी पर मन बार बार बुद्ध होना चाहता| उसका मन कही दूर चला जाना चाहता| इस वैभव भरी गलियों में उसे चुभन होती पर उसकी चुभन को समझने वाला कोई नही था, उसके अकेलपन को जानने वाला कोई नही था बस एक था उसका अपना तनहा मन और तनहा एकांत जहाँ अक्सर वह बड़ी ख़ामोशी से घंटो पड़ा रहता और अपनी साँसों को नदी का बहता हुआ यूँही महसूसता|
आखिर क्या इति है उसके इस अकेलेपन की !! आखिर क्या चाहत है उसके जीवन की !! बिन मकसद के बस अपने पिता की बनाई दुनिया का वह एक कठपुतली मात्र है जिसे वह अपनी उँगलियों पर ज़माने के सामने नचाता हुआ देखना चाहते जबकि हर बार इस टीस के साथ एक बगावत का बीज उसके अन्दर अंकुरित हो जाता|
आखिर कब तक वह इस नन्हे बीज को उनकी कर्कश दुनिया से बचाकर रख सकेगा ? कब उसकी बनाई अपनी दुनिया होगी ? आखिर कब इन्तहा होगी इस बेइंतहा दर्द की.....
क्रमशः ...........................
विशाल गेट की बाधा को पार करते उस शानदार बंगले के ठीक सामने के पोर्च पर आकर योगेश की कार रूकती है| अरुण उतरने से पहले योगेश को देखता हुआ पूछता है – “चलो – क्या तुम नही आ रहे ?”
“हाँ यार – नर्सिंग होम से आधे घंटे का बोल कर आया था और तेरा इंतजार करते एक घंटा बीत गया – अभी चलता हूँ – कल का प्रोग्राम बनाकर रात में कॉल करता हूँ |”
“ठीक है |” योगेश को कहता अरुण कार से बाहर आ जाता है|
अरुण ज्योंही कार से नीचे आया कोई तेज कदम उसकी ओर बढ़ते उसके पैरो से लिपट जाते है| इस अचानक के व्यव्हार पर भी अरुण के चेहरे पर कोई आश्चर्य नही दौड़ता बल्कि वह उसकी ओर झुक गया था|
“लो आ गया बच्चा तुम्हारा |” ठसककर हँसता हुआ योगेश उन्हें वही छोड़ता हुआ कार वापसी को मोड़ लेता है|
वह लैब्राडोर डॉग था जो अपनी श्रद्धा से अरुण के पैरो से लिपटकर अपना प्यार अभिव्यक्त कर रहा था| अरुण भी उसे प्यार से सहलाते वही सीढ़ियों में बैठ जाता है|
“कैसा है मेरा बच्चा – कितना बड़ा हो गया |” वह उसका मुंह अपनी हथेली में भरे हिलाते हुए कहता है| बदले में वह भी अपनी अतीव स्वामिभक्ति दिखाते हुए अपना मुंह उसकी गोद में समाने लगता है| शब्दों के आभाव में भी एक निशब्द जीव अपना प्यार दिखाने अपना समस्त भाव उसे प्रेषित किए दे रहा था| अरुण भी उसे अपने में समेटे जैसे उसके अभिवादन का प्रतिउत्तर दे रहा था|
“छोटे..मालिक..!!” एक आदमी भागता हुआ आता ठीक उनके पास रुकता अपनी साँसों को सँभालते हुए कह रहा था – “आप आ गए !! हफ हफ - सबसे पहले तो इसे ही पता चला – हफ हफ – पीछे बैकयार्ड में था और पता नही क्या हुआ कि हवा की रफ़्तार से सीधा यहाँ पहुँच गया -|”
इसपर अरुण मुस्कराते हुए उसे अपने अंक में लेता हुआ कहता है – “तभी तो तेरा नाम बडी रखा था – सच्चा साथी है मेरा – न मेरे जाने पर कोई शिकायत है तुझे न आने पर उलाहना – बस बेशुमार प्यार है तुम्हारा मेरे प्रति|”
बडी भी अरुण की गोद में समाता मुंह से यूँ आवाज निकालने लगता हा मानो उसे अपने मालिक की बात अक्षरश समझ आ रही हो|
भूमि अभी यहाँ पहुंची नही थी इसलिए अभी तक अरुण के पहुँचने की खबर भी कोठी तक नही पहुंची थी|
अरुण की मौजूदगी से अब धीरे धीरे घर के नौकरों तक उसके आने की खबर मिलते वे सभी बाहर तक दौड़े चले आते है|
“छोटे साहब..!!”
आवाज पर अरुण का ध्यान सामने की ओर जाता है जहाँ हिरामन काका हकबक उसे देखते आ रहे थे|
“कैसे हो काका ?”
अरुण की इतनी इज्जत अफजाई पर वह अदना का कर्मचारी क्या कहता बस हाथ जोड़े सर हिला देता है|
“छोटे साहब आए है |” माली काम करता छोड़ अरुण का अभिनन्दन करने आ जाता है| ऐसे धीरे धीरे करते घर के बीसों नौकरों की फ़ौज अरुण को मिलने आ पहुँचती है| वह सबका हाल लेता अंदर आ गया|
अरुण अब बडी को छोड़कर उठकर अन्दर जाने लगता है| बडी भी एक समझदार डॉग की तरह अरुण को छोड़कर किनारे अपने सेवक के पास खड़ा उसे जाता हुआ देखने लगता है| ये बेजुबान जीव की सबसे अद्भुत बात है कि बिना कहे सब समझ रहा था जिसे कभी कभी इंसानों को कहकर भी नही समझाया जा सकता|

“और देवेश कैसे हो – अब तो घर में कोई नही सताता तुम्हे ?”
अरुण अंदर आते आते घर के दूसरे नौकर के कंधे पर हाथ रखे उसका हाल पूछ रहा था और जवाब में वह दुबला लड़का संकोच से सर न में हिलाता हुआ कह उठता है – “नही साहब – अपने भाई भाभी का घर छोड़ दिया – अब आराम से हूँ |”
“ठीक किया – अब भई सबको मेरी भाभी जैसी भाभी नही मिलती |” कहता हुआ अरुण ऐसे ही सभी से हाल चाल लेता आगे बढ़ता रहा| यही एक बात उसे अपने घर भर से अलग कर देती और उसके पिता के सामने दोषी क्योंकि उनकी नज़र में छोटे लोगो और उनके बीच बहुत बड़ा फासला है जिसे किसी भी संवाद से तोडा नही जा सकता है पर अरुण इसी तरह अपने पिता के उसूलो को एक एक करके लांघते हर सीमा पार करता उनके लिए उनकी दुखती रग बनता जाता|
हिरामन काका आगे बढ़कर अरुण को कहते है – “छोटे मालिक चलिए – देखिए आपका कमरा ठीक वैसा ही है जैसा आप छोड़ कर गए थे – हर रोज उस कमरे को साफ़ करता जैसे आप बस अभी लौट आएँगे |”
अरुण उन बूढी हो चली आँखों में झिलमिलाती बुँदे स्पष्ट देख पा रहा था जिसे वे आंखे झपकाते बार बार पीछे धकेल देने की भरसक कोशिश कर रहे थे|
“आपके लिए मैं गया ही कहाँ था काका - आपका प्यार चंद शब्द नही है – मैंने आजतक जितनी बार डैड नही बोला होगा उससे कही गुना काका बुलाया है आपको |” कहता हुआ अरुण बढ़कर उन्हें अपने गले से लगा लेता है|
हिरामन काका के शब्द भी जैसे अब पानी से बह निकले थे| वह निशब्द अरुण को देखते रहे जैसे उसे बचपन से बड़ा होता हुआ आज तक देखते आ रहे थे| वह इस घर के सबसे पुराने नौकर थे और एक वही थे जो अपनी बात सीधे बड़े मालिक को कह सकते थे बाकी किसी को भी उनसे सीधी बात करने की इज़ाज़त नही थी|
तभी एक नौकर हाथो में फूलो की प्लेट लिए लिए ही अरुण को अभिवादन करने आ पहुँचता है|
उन फूलो को देखते अरुण समझ गया कि शाम की आरती के लिए ये फूल वह दादा जी के कमरे तक पहुँचाने जा रहा होगा| वह मौन ही उससे प्लेट लेता एक सुनिश्चित कमरे की ओर बढ़ जाता है|
उस बड़े कमरे में प्रवेश करते पहला अहसास ही यही हुआ जैसे वह कोई मंदिर में प्रवेश कर रहा है| अरुण अपने जूते वही उतारकर थाली लिए अंदर प्रवेश करता है| प्रवेश से ही मंदिर स्पष्ट दिखाई हो आया था जहाँ पूजा करने के हाव भाव लिए प्रतिमा के सामने एक वयोवृद्ध सफ़ेद वस्त्रो में बैठे थे|
“ए जिगना – कहाँ रह गया – फूल लाने गोपी तालाब चला गया क्या !”
अरुण ठीक उनके पीछे पहुंचकर फूलो की प्लेट उनकी ओर बढ़ा देता है और वे भी प्लेट उससे ले लेते है|
“ये क्या फिर गुलाब – बोला था न अरुण आ रहा है – अब से गुलाब नही लाना – उसे एलर्जी है न |”
उनके कहते तबसे उनके पीछे खड़े अरुण से बहुत देर अपनी नाक नही बंद रखी गई और वह छीक ही उठा |
“अरुण ...!” वे तुरंत ही पलटते हुए देखते है अरुण दुबारा छीकता है|
“मेरा बच्चा कब आया |” वे अपनी बांह खोले उसे निहारते रहे|
“बस अभी...|” वह दुबारा छीक वाला था उससे पहले ही दादा जी उसे अपने अंक में लेते अपने अंगोछे से उसका चेहरा साफ करते हुए कहते है – “चुप रहा था न मुझसे – लेकिन तेरी छीक ने बता दिया |”
अरुण भी उनकी गोद में बच्चे सा समा जाता है बिलकुल वैसा ही जब बचपन में माँ की कमी और पिता की अनुभूति के आभाव में वह अक्सर दादा जी के पास यूँही उनके सानिध्य में सिमट आता था|
“कितने दिन बाद आया – बरस लगा दिए – वहां दादा की याद थोड़े आती होगी !”
“जिन्हें भूला ही नहीं उन्हें याद कैसे करूँ - |”
“हाँ बस अब बात बनाता रह – फिर इन चार सालो में आया क्यों नही ?” प्यार से उसका सर सहलाते हुए वे कहते है|
“आ जाता तो डैड का एक और नियम टूट जाता और सुनने को मिलता कि भईया से सीखो अपनी पढाई छोड़कर कभी बीच में नही आया – तब आप ही मुझे वापस भेज देते |”
“अच्छा अच्छा ठीक है तू ही सही – पर क्या करूँ तुझे हर रोज सुबह देखने की आदत जो तूने लगा दी थी फिर सोच कैसे ये चार साल की सुबह काटी होगी मैंने ?”
उनकी भीगी आवाज अरुण के मन को भी द्रवित कर गई और वह अपने दादा जी हाथ पकड़े सहलाता हुआ कहता है - “वक़्त तो मैं भी काट रहा हूँ इस नियमो के पिजरे में कि कब इन बंधन को तोड़ खुद ही उड़ान भर सकूँ |”
अपना आखिरी शब्द अरुण धीरे से कहता फिर तेजी से कहता है – “चलिए अब से फिर वही नियम – सुबह तैयार हो जाइएगा – फिर चलेंगे सैर पर |”
“हाँ हाँ क्यों नही |”
वे कसकर मुस्करा उठे|
.......इसी तरह आगे बढ़ते आपको किसी नेरेटर की तरह नही बल्कि किरदारों को किरदारों के जरिए मिलाती चल रही हूँ ताकि पाठक हर किरदार को अपनी नज़र से समझे और जाने......
क्रमशः ...........................
ये वो कोठी थी जो अंदर से ढेरो कमरों में तब्दील हो जाती थी| मानो वे कमरे न होकर ढेरों रास्ते हो जिस पर चलते हर शक्स की अलग अलग राहें थी फिर भी कुछ अहसास शेष थे यहाँ अरुण के लिए जिसके कारण उसकी बगावत कभी वह अपना ज्यादा सर नही उठाती थी और अपने पिता के बनाए नियमो के ढर्रे पर चुपचाप वह चलता जाता था|
अरुण अपने कमरे में आते तुरंत सिगरेट जलाते उसके जल्दी जल्दी गहरे गहरे कश लेने लगता है| अभी पहली सिगरेट खत्म करते दूसरी होठ से लगाई ही थी कि कमरे के दरवाजे के खुलने की आवाज के साथ अपनी भाभी की आवाज सुनते झट से सिगरेट अपने पीछे फेंक कर जल्दी से जूते से उसे मसलते हुए हवा में हाथ हिलाते हुए सिगरेट का धुँआ हटाने लगता है|
“अरुण – ये क्या – अभी तक ऐसे ही खड़े हो और ये महक...!!” अन्दर आते ही भूमि हवा को सूंघती हुई अंदर आती है और उसके पीछे पीछे एक नौकर ट्रे में नाश्ता लिए आता वही टेबल पर उसे करीने से सजाने लगता है|
अरुण भाभी की बात पर तुरंत नौकर की ओर बढ़ता हुआ पानी का गिलास लेता हुआ बिस्तर पर बैठकर उसे एक सांस में हलक में उतारते हुए कहता है – “ओह थैंक्स – तब से इसी की तलब थी मुझे |”
भूमि चलती हुई अब अरुण के बगल में बैठती हुई उसके सर पर हाथ फेरती हुई धीरे से कहती है – “जो तलब सेहत पर भारी पड़ जाए वो ठीक नही अरुण |”
इस पर अरुण फसी सी हंसी के साथ उनकी ओर देखता हुआ झट से उनकी गोद में सर रखे लेटता हुआ कहता है – “तलब तो आपके प्यार की है – नही तो कबका मन की करता ये घर छोड़ चुका होता |”
“फिर वही बात !! कोई अपना घर छोड़ने की बात करता है क्या !! अब देखना तुम इतने समय बाद वापस आए हो तो डैडी जी तुम्हे जरुर तुम्हारे हिसाब से चलने देंगे – आखिर मेनेजमेंट की डिग्री हासिल की है तुमने – अब तुम्हारा अनुभव भी कोई कम नही होगा – इसलिए अब से इस तरह की बात बिलकुल नही – समझा न |” वे प्यार से उसके सर के बाल हौले से खींचती हुई कहती मुस्कराती है|
“लेट्स सी |”
नौकर अपना काम खत्म करके जा रहा था तभी कोई छरहरी युवती धड्धडाती हुई अंदर प्रवेश करती ठीक उनकी नज़रो के सामने खड़ी होती हुई अपनी भरपूर मुस्कान से उन्हें देखती है| अब भूमि और अरुण की निगाह भी उसी पर थी| इससे पहले की भूमि कुछ कहती अरुण जल्दी से कहता है –
“ये कौन है – मैं पहचान नही पा रहा !”
अरुण के ऐसा कहते जहाँ भूमि के होंठो पर मुस्कान थिरक आती है वही वह युवती पैर पटकती उसके बीच जबरन घुसकर भूमि की गोद में अपना सर भी रखकर लेटती हुई कहती है – “खुद चार साल बाद आए है और मुझे नही पहचानते |”
“हाँ अब कुछ कुछ पहचान पा रहा हूँ – कुछ आवाज आ गई इस गूंगी गुडिया में – थोड़ा थोड़ा अक्ष बन रही है मेरा – सुना है बगावत की शुरुवात तुमने भी कर दी |”
अरुण की बात पर भूमि के हाव भाव अब गंभीर हो जाते है| वह जल्दी से कहती है – “अरुण अब से ये शब्द कहना बंद कर दे – जब जब इसे तुम्हारे मुंह से सुनती हूँ तो पता नही कैसा अनजाना सा डर सताने लगता है मुझे |”
“आप क्यों डरती हो भाभी – आपसे दूर थोड़े कही जाऊंगा – बस डैड के नियमो वाली दीवारों से निकलकर बाहर का सूरज देखना चाहता हूँ बस – क्यों मेनका कैसा लगा पहला नियम तोड़ कर |”
अरुण की बात सुनती भूमि सोचती सोचती अब दोनो हाथ से उन दोनों के सर सहलाती हुई कहती है – “पंचगनी से मैंने इसे वापस बुलाया – ये खुद नही आई|”
“क्या सच में मेनका ?”
अबकी अरुण अपनी गर्दन घुमाकर उस युवती को देखता हुआ पूछता है जिससे वह हिचकिचाती हुई कहने लगती है -
“हाँ भईया – मेरा मन नही लग रहा था वहां इसलिए भाभी को बोला तब डैडी ने आने दिया वापस |”
“चलो इसी तरह ही सही |” अरुण फीकी हंसी के साथ कहता है|
“सच में मेरा मन ही नही लग रहा था भाभी के बिना और मैं अपनी पढाई यहाँ भी तो कर सकती हूँ फिर पता नही क्यों डैडी को लगता है कि घर से दूर रहकर ही हम पढ़ सकते है|” मेनका अपनी बात थोड़ा उदासी से कहती है|
“उनके लगने पर लगाम ही कहाँ है – वे तो बस हुकुम सुनाते है – चलो अच्छा ही है – यही रहो |”
अरुण की बात पर अब वह झट से चहकती हुई कहने लगी – “थैंक्स भैया – चलिए एक आप तो मेरी बात समझ गए नही तो तब से बड़े भईया अलग मुझसे खफा है मेरे वापस आने पर – शुक्र है आप उनके जैसा नही हो – वरना कौन घर में दो दो डैडी के बाद तीसरे डैडी को झेल पाता |”
इस एक बात पर तीनो कसकर ठहाका मारकर हँस पड़ते है|
“अरे क्षितिज कहाँ है भाभी ?”
अरुण अब उठते हुए पूछता है|
“वो ! अरे तभी तो लौटने ,में देर हो गई – अपनी स्पेशल वाली जगह पर ही जनाब को आइस्क्रीम खानी है और फिर एक आइस्क्रीम बडी के लिए भी लाया है – बस उसी को खिलाने गया है –|”
“हाँ ठीक है – नही तो भईया के आते उस बेचारे बडी पर भी पहरे लग जाते है -|”अरुण फिर तंज भरी हंसी के साथ अपनी बात कहता है|
वे जानते थे कि आकाश को कुत्ते कितने नापसंद थे पर अरुण और क्षितिज की जिद्द के कारण ही बडी इस मेंशन में था और जब तक आकाश मेंशन में रहता तब तक बडी को भी जंजीर में जकड़े रहना पड़ता था|
ऐसी ही दुनिया का राजकुमार था अरुण जहाँ उसकी चाहते और नज़रे सबसे बिलकुल अलग थी पर कुछ वजह थी जिनके कारण से उसके लिए ये मेंशन थोड़ा घर बना हुआ था|
अब वे तीनो साथ में मुस्करा रहे थे|
दिवान लिमेटेड का सीईओ और दिवान परिवार का बड़ा बेटा आकाश दिवान अपने ऑफिस से निकलकर फोरेन डेलिकेसी संग मीटिंग के लिए अपने आलीशान ऑफिस की बिल्डिंग ससे निकलकर पोर्च में ज्योंही खड़ा हुआ तुरंत ही एक शानदार कार उसके आगे लग गई और उसके साथ खड़ा उसका पीए दीपांकर तुरंत पीछे का गेट खोलकर उसके बैठते तुरंत ही आगे की सीट पर बैठ जाता है|
कार अभी वही खड़ी थी और दीपांकर आकाश की ओर करीने से झुका हुआ उसे मीटिंग का एजंडा समझा रहा था पर आकाश की नज़र अब कार के शीशे के पार बिल्डिंग के फ्रंट की ओर लगी थी| जहाँ एक फेस्नेबल युवती अभी अभी अपनी जल्दबाजी में गिर गई थी पर जल्दी ही खुद को संभालती हुई वह अपनी मिनी स्कर्ट ठीक करती हुई अपनी फाइल सँभालने लगती है| आकाश की निगाह बस उसे ही घूर रही थी|
दीपांकर अपनी बात कहता कहता अब चुप होकर आकाश की ओर देखने लगा जो अपने सपाट भाव से उससे पूछ रहा था – “कौन है ये लड़की ?”
आकाश के इशारे पर दीपांकर अब मुड़कर उस लड़की को नजरो से तलाशता हुआ देखता है फिर आकाश की ओर देखता हुआ धीरे से कहता है – “सर वो हमारे नए प्रोजेक्ट वाले होटल के रिसेप्सनिस्ट का इंटरव्यू है आज – शायद उसी के लिए आई होगी |”
“मुझे शायद नही कम्फर्म बात पसंद है |” बिना भाव के आकाश कहता है|
जिससे दीपांकर सकपकाता हुआ तुरंत अपने मोबाईल से कही कॉल लगाता है और उसके अगले ही पल आकाश को धीरे से कहता है – “यस सर कंफर्म है – ये इंटरव्यू के लिए ही आई है|”
दीपांकर की बात पर आकाश एक गहरा शवांस चुपचाप भीतर खींचता हुआ फिर एक बार बाहर उसे नज़रो से तलाशता है जो अब सिक्योरटी वाले से कुछ बहस कर रही थी और बीच बीच में अपनी कसी हुई स्कर्ट धीरे से ठीक कर लेती| देखकर लग रहा था जैसे उसने पहली बार इस तरह के कपड़े पहने है पर कपड़े उसके तन से चिपके उसकी काया अच्छे से दर्शा रहे थे|
दीपांकर रुकी कार में बैठा आकाश के अगले निर्देश का इंतजार करता अब सामने देख रहा था|
“इसे नौकरी पर रख लो|”
आकाश के इतना कहते दीपांकर तुरंत यस कहता मोबाईल पर दूसरी ओर किसी को निर्देश देता है|
“लेट्स गो – वी आर लेट फॉर द मीटिंग |”
आकाश के निर्देश पर कार अब सड़क पर अपनी रफ़्तार से भागने लगती है|
यूँही अपना साथ बनाए रहिए और जुड़े रहे इस नए सफर से...
क्रमशः ...........................

सबसे मिलने के बाद अब अरुण की पेशी अपने पिता यानि घनश्याम दिवान के सामने होनी थी उनसे मिलना उसके लिए किसी पेशी से कम नही था| उसे बाकायदा उनके पीए द्वारा मिलने का समय दिया गया और उसी निश्चित समय पर उसे उनसे मिलने पहुंचना था|
रात के नौ बजे जब घनश्याम दिवान किताबो के बीच अपनी इजीचेअर पर बैठे सिगार का अंतिम सिरा एस्ट्रे में बुझा रहे थे तब अरुण उनके सामने सपाट भाव से खड़ा था वे भी निर्लिप्त भाव से उसे देखते हुए उसे बैठने का इशारा करते है|
वह बैठ जाता है|
“सो वैल तुम दो दिन पहले आ गए – कोई खास वजह?” वे कहते कहते अपनी सख्त आंखे उस पर गडाए हुए उसे बोलने का मौका न देते हुए अपनी बात कहते रहे – “सोचा था ये चार साल तुममे कुछ तो बदलाव लाएँगे पर शायद नही |”
उनकी सख्त नज़र पर वह दूसरी ओर देखने लगा था|
“अरुण जिंदगी हमे सीखने का हर बार मौका देती है पर उसी वक़्त अगर हम चूक जाते है तो मौका भी हमारे हाथ से चुक जाता है – मैंने तुम्हे खुलकर आजादी दी ताकि जिंदगी को तुम जानो, पहचानो, उसे खंगालो पर लगता है तुमने इससे कुछ नही सीखा - |” कहते कहते वे तेजी से उसकी ओर झुकते हुए कहते है – “अगर सीखा होता तो तुम उस छोटे आदमी के लिए अपना धन और समय दोनों नही बर्बाद करते |” वे अपना आखिरी शब्द तेज स्वर में बोलते हुए अरुण को घूरते हुए आगे कहते है – “बोलते क्यों नही – क्या सोचकर किया तुमने ऐसा ?”
उनके उकसावे में तब से शांत बैठा अरुण अब उनकी आँखों की सीध में देखता हुआ धीरे से कहता है – “सोचता हूँ कही मेरे बोलते आपको कुछ बुरा न लग जाए !”
“बोलो – मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हे कि इन चार सालो का क्या निचोड़ है ?”
“तो डैड मुझे लगा चार साल के लम्बे समय बाद राजवीर का परिवार उसका कितना दिल से इंतजार कर रहा होगा – फिर उसकी बहन की शादी है – सबकी आँखों में उसके इंतजार का सैलाब होगा – इसलिए दो दिन पहले आकर देखना चाहता था कि किसी परिवार को उसके अपने को अचानक देखकर कैसा लगता है – क्या राजवीर अपने पिता के सीने से लग गया होगा !! उसकी बहन तो फूट कर रो पड़ी होगी – और माँ उनके जज्बात की तो मैं कल्पना भी नही कर सका – बस कभी कभी किसी लागत की सही कीमत नही आंक पाता मैं – बस मेरे चार साल का यही निचोड़ है |” बेहद सपाट भाव से कहता अरुण अभी भी अपने पिता की नज़रो में सीधा देख रहा था जबकि वे उससे नज़र बचाते सिगार बॉक्स से सिगार निकालते हुए सिगार कटर से उसका अगला सिरा काटने की कोशिश कर रहे थे पर बार बार उनका हाथ कांप जाता ये देख अरुण धीरे से हाथ बढाकर उनके हाथ से सिगार काटने में मदद कर देता है इससे वे सर हिलाते लाइटर उठाने लगते है|
सिगार जलाकर उसका गहरा धुआ फेंकते हुए वे बिना अरुण की ओर देखते हुए कहते है – “बहुत रात हो गई है सो जाओ – कल बोर्ड ऑफ मेंबर से मिलने के लिए दस बजे तक ऑफिस पहुँच जाना -|”
उनके ऐसा कहते अरुण समझ गया कि उनकी ओर से बात खत्म हो गई तो वह ओके कहता हुआ उठकर जाने लगा| तभी पीछे से आवाज लगाते वे कहते है –
“अरुण – उम्मीद है कल तुम समय पर आओगे – मैं चाहता हूँ कि हमारे नए होटल प्रोजेक्ट का एस्क्युटिव डाइरेक्टर तुम्हे बनाया जाए |”
उनकी बात पर अरुण बस दो पल ठहर कर हाँ में सर हिलाता हुआ तुरत ही आगे बढ़ जाता है|
अरुण जा चुका था पर जैसे बहुत देर तक उसकी मौजूदगी को महसूस करते वे अभी भी उसी अवस्था में बैठे सिगार का धुँआ उगल रहे थे| ये उनके अहम् की सबसे मजबूत दीवार थी जिसे न वे खुद लांघते थे और न कोई और उसे लांघ पाता था|
सुबह अपने निश्चित वादे के साथ अरुण दादा जी को लिए उनके मनपसंद आश्रम तक उन्हें ले आया था जो किसी बड़े तालाब के किनारे बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला था पर वातावरण वहां का इतना निर्मल था कि उसके निकास से अन्दर तक पहुँचने का डेढ़ किलोमीटर का रास्ता भी चुटकियों में कट जाता था| दादा जी पैदल ही जाना चाहते थे इसलिए अरुण उनका हाथ पकड़े उन्हें अंदर तक लाता है| वहां उनके जैसे बहुत बहुत वयोवृद्ध थे जो शायद उनके मित्र होंगे इसलिए उन्हें आता देख वे मुस्करा कर उनका स्वागत करते है|
अरुण उन्हें उनके सहज वातावरण में छोड़कर बाहर आ जाता है| क्योंकि साथ में वह बडी को भी सैर कराने लाया था| सुबह का वक़्त था इससे वहां बड़ी निर्मल हवा चल रही थी| अरुण दादा जी के लौटने का समय काटने कुछ देर इधर उधर टहलते हुए सिगरेट फूक रहा था और बडी आज अपने सेवक की बात को बिलकुल न मानते हुए अरुण के आगे पीछे दौड़ लगा रहा था| वह इस वक़्त आश्रम से बाहर था क्योंकि वह अच्छे से जानता था कि आश्रम के अन्दर वह सिगरेट नही पी सकता था और बडी के लिए भी ये जगह कुछ अलग और नई थी जिससे वह कुछ ज्यादा ही खुश था|
कार के बोनट पर पीठ टिकाए सुबह की लालिमा को आसमान में घुलता हुआ वह बड़ी ख़ामोशी से देख रहा था कि उसे किसी का हाथ अपने कंधे पर महसूस हुआ| वह पलटकर देखता है|
“योगेश !! तुम यहाँ – क्यों मरीजो ने लात मार के निकाल दिया क्या ?” उसे देखते अरुण हलकी हंसी के साथ उसे देखता हुआ कहता है|
“लात तो तूने मेरी जिंदगी को मार रखी है |” योगेश की बात पर अरुण उसे चौंककर देखता है जो अभी भी कह रहा था – “सुबह से दस फोन कर चुका हूँ पर छोटे सरकार हमेशा की तरह बिना मोबाईल के घर से निकल जाते है फिर अगर किसी को कोई मेसेज देना हो तो जाओ और उन्हें खोजो और तब उन्हें मेसेज दो – और मैं तो दुनिया का सबसे फालतू आदमी हूँ जो तेरे पीछे पीछे चला आया |”
अपनी गलती पर अरुण होठ सिकोड़ लेता है|
“अच्छा हो गया बस – तुझे पता है न मोबाईल मुझसे नही रखा जाता – लगता है जैसे हर पल कोई मुझे ट्रैक कर रहा है |”
“हाँ तो तुझे कौन ट्रैक कर सकता है – आप को तो एक दिन उन्मुक्त परिदा जो बनना है – कभी देखा है किसी परिंदे के पास मोबाईल फोन |”
योगेश कुछ इस तरह अपनी बात कहता है कि अरुण हलके से हँस पड़ता है|
“हाँ हाँ हँस ले बे – मेरी हालत हँसने वाली ही है |”
अच्छा अब ड्रामा बंद कर और बता कि क्यों सुबह सुबह मुझे खोजता फिर रहा है – पूरे सूरत के लोग स्वस्थ हो गए है क्या ?” अबकी अरुण फिर हंसी की फुलझड़ी छोड़ता है|
“तो तू मुझे डॉक्टर समझता भी है - नहीं तो इस तरह मेरे सामने खड़ा अपने फेफड़े नही फूंक रहा होता |” कहता हुआ योगेश उसकी उंगलियों में फसी सिगरेट एकदम से छीनता हुआ फेंक देता है|
“अब बोल भी |”
“आज दोपहर तीन बजे से फुल रात तक का पार्टी का प्रोग्राम बनाया है – तुझे पता नही कितना मेनेज किया है मैंने इसके लिए – अगर कोई इमरजेंसी नही आती तो अपन दोस्त मिलकर फुल मस्ती करेंगे और तब फूक लिजीओ अपना फेफड़ा |”
“और कहाँ ?”
“तेरे फार्म हाउस में और कहाँ – इंतजाम सब मेरा बस डेस्टिनेशन तेरा |”
अबतक बडी दूर से दौड़ता हुआ वापस आता अरुण के पैरो के पास लोट रहा था और अरुण भी उसकी ओर झुका उसकी गर्दन प्यार से थपथपा रहा था|
“बस इतनी सी बात कहने के लिए बीस किलोमीटर तेरा पीछा करते मुझे आना पड़ा इसलिए तो कहा लात मार रखी है तूने मेरी जिंदगी की – अगर इतना किसी लड़की के पीछे गया होता तो अबतक चार बच्चो का बाप होता मैं |”
“तो जा न किसने रोका है |”
“तेरी दोस्ती ने रोका है – तू कोई लफड़ा करता नही और तुझे अकेला छोड़ा नही जाता मुझसे |”
“तू डॉक्टरी छोड़कर नाटक में क्यों नही भरती हो जाता तेरा ड्रामा न हाउसफुल चलेगा – बात करता है – तुझे न बहुत अच्छे से जानता हूँ मैं – अब तक बीस गर्ल फ्रेंड बनाकर छोड़ चुका है – खुद कही टिकता है कही |”
“अच्छा अच्छा ठीक है – अब मैं चलता हूँ – बस तू टाइम पर पहुँच जाइयो |” अपनी कलाई घड़ी देखता हुआ योगेश जिस तेजी से आया था उसी तेजी से निकल भी जाता है|
अरुण भी बडी को साथ आए नौकर के भरोसे छोड़कर आश्रम के अंदर चल देता है|
.....इस कहानी के पार्ट जल्दी जल्दी मिलेंगे और जब तक मैं फ्री रहूंगी सबके पार्ट आते रहेंगे इसलिए जरा जल्दी जल्दी आते रहना मेरी गली....
क्रमशः ...........................
असाधारण धन, वैभव, शक्ति का मिला हुआ समरूप था दिवान लिमिटेड जिसने कभी टैक्सटाईल व्यवसाय से सूरत में शुरुवात की थी और आज कितने ही बड़े बड़े उद्योगों में उसके शेअर मौजूद थे| आज उनकी गिनती देश के पचास अरबपतियो में होती थी बल्कि ग्लोबल लिस्ट में भी दिवान्स का परचम था| कुल मिला कर देश की जीडीपी में उनकी अच्छी खासी भागीदारी थी| ये सेठ घनश्याम दिवान की अकेली की पिछले चालीस साल की मेहनत थी| जब मध्यप्रदेश के छोटे से गाँव से सौ रूपए लेकर उन्होंने सूरत में अपना पहला कदम रखा था और इस बड़े उद्योग की नींव रखी थी फिर उसके बाद उनके बढ़ते कदमो ने किसी भी अड़चन को अपनी तरक्की में बाधा नही बनने दिया जिसका परिणाम है आज दिवान्स इंटरप्राइजेज| और उसकी सबसे मजबूत कमान है उनका बाद बेटा आकाश दिवान जिसके ऑफिस में उसके सामने बैठा अरुण अपने पिता से मिलने से पहले के लेक्चर का प्रथम प्रारूप उससे ले रहा था|
आकाश उसे बता रहा था कि बिजनेस से लेकर हर जगह उनकी क्या स्थिति है और उस स्थिति से जरा भी छेड़छाड़ उनके पिता कभी बर्दाश्त नही करेंगे इसलिए वह क्या चाहता है इससे उनका कोई लेना देना नही है बिजनेस की क्या डिमांड है वही उसे करना है|
अरुण हमेशा की तरह उसके लेक्चर से उबता हुआ पेपर वेट घुमा रहा था|
“तुम सुन रहे हो न जो मैं कह रहा हूँ ?” अबकी तीखे स्वर में वह अरुण को कहता है|
“हाँ सुन रहा हूँ |” जबकि अरुण बेहद शांत भाव से हामी भरता है|
जबकि उसके रवैये से आकाश में गुस्सा भर रहा था| तभी नॉक करके एक सेवक हाथ में ट्रे लिए वहां प्रवेश करता है| वह बेहद शालीनता से झुकता हुआ उनके बीच चाय का कप रखने लगता है| वह अरुण की तरफ नही देखता पर अरुण उसे देखता हुआ अचानक कुछ मुस्कराते हुए उससे बोलता है – “अरे केशव कैसे हो ?”
अरुण के इतना पूछते वह कुछ घबरा जाता है एक तरफ अरुण की सादगी भरी मुस्कान उसे देख रही थी तो दूसरी ओर आकाश की चढ़ी हुई नज़रे उसे घूरने लगी| वह डर से दोनों में से किसी की ओर बिना देखे बस अच्छा हूँ साहब कहता हुआ ट्रे लेकर जाने लगता है|
“टेबल पर की एशट्रे कहाँ है ?”
आकाश की कर्कश आवाज सुनते केशव अब तुरंत पलटकर आता डरते हुए मेज पर एशट्रे ढूंढने लगता है तो उसके बीच आकाश गुर्राते हुए उसपर भड़क रहा था – “बेवकूफ तुम्हे पता है न मुझे मेरे सामान के साथ जरा भी छेड़छाड़ नही पसंद – क्या मैं तुम्हारे एशट्रे ढूँढने का इंतजार करूँ !!”
आकाश अपने हाथ में पकड़ी सिगरेट की आखिरी जली बड को उसकी ओर लहराता हुआ चीख रहा था जिससे वह अब एशट्रे ढूँढना छोड़कर जल्दी से अपनी हथेली उसके सामने फैला देता है जिसमे आकाश उस आखिरी सुलगी बड को फेकता हुआ उसे हडकाता है - “गेट आउट यू इडियट |”
केशव सर झुकाए उस गर्म बड को मुठी में भींचे चुपचाप चला जाता है| तब से ये सब देखते अरुण का चेहरा अब गुस्से से भर आया था| वह जानता था उसका भाई अपने पिता की परछाई ही है और उससे इससे ज्यादा कुछ की उम्मीद भी नही की जा सकती थी|
लेकिन इतना सब होने पर अब आकाश के चेहरे पर एक शांत मुस्कान खेल रही थी जबकि अरुण का चेहरा सख्त हो चला था|
“तो अब मेरे ख्याल से तुम समझ चुके होगे कि तुम्हे अब किस तरीके से ऑफिस में काम करना है ?”
अरुण आकाश की बात का कोई जवाब न देकर अब इधर उधर देखने लगता है इससे आकाश फिर आगे कहता है –
“माय डियर ब्रदर अगर ककून से रेशम चाहिए तो उसपर दया नही की जाती बल्कि उसे खौलते पानी में डाल दिया जाता है – अपनी इस दया को अपने लिए बचा कर रखो – अगर बिजनेस में जरा भी ऊँच नीच हुआ तो डैड के कहर से बचने में ये तुम्हारे काम आएगी |”
आकाश की तीखी नज़र को अब घूरते हुए अरुण कहता है – “वैसे भी ये शब्द आपके लिए बने भी नहीं है – सो कैन आई लीव नाव !” कहता हुआ अरुण उठकर बाहर निकल जाता है ये देखे बिना कि आकाश उसे खा जाने वाली नज़र से घूर रहा था|
न चाहते हुए भी ऑफिस के बोझिल समय को पार करते अरुण आखिर समय पर अपने फॉर्म हाउस पहुँच रहा था| जबकि अभी उसका कही जाने का मन नही था पर वह अपने एकमात्र दोस्त योगेश को नाराज़ भी नही करना चाहता था|
शहर से बाहर के खुले प्राकृतिक पर्यावरण में आते अब अरुण को कुछ बेहतर लगने लगा था| उसे शहर की आपाधापी बिलकुल नही सुहाती थी इसलिए कभी कभी अकेला ही वह यहाँ चला आता था और बहुत देर तनहा यहाँ अपना वक़्त बिताता था|
वह मुख्य गेट से प्रवेश करता अपने सफ़ेद चमचमाती कार पोर्च पर रोकता हुआ अन्दर जाता है| अब तक गेट मैन के अलावा उसे कोई नौकर नज़र नही आया था जरुर योगेश ने सबको कही भेजा होगा| वह अपने हॉल से प्रवेश करता ही है कि योगेश की आवाज उसे मिलती है –
“अब कही रुक नहीं – पहले से ही तू लेट है – आजा स्विमिंग पूल में |”
योगेश की आवाज से ही उसकी मस्ती मूड का उसे पता चल रहा था, इस पर अरुण मुस्कराते हुए वही से चेंजिंग रूम में चला जाता है|
अगले पल ही वह योगेश के सामने था जो खुद स्विमिंग पूल में फ्लोटिंग चेअर में लेटा जूस का मजा ले रहा था|
“तो ये है तेरी पार्टी – अच्छा है – कभी कभी अपने पैरो के नीचे हिलती हुई धरती महसूस करनी चाहिए |” कहता हुआ अरुण एक डाई लगाता हुआ पानी में आ जाता है|
“अबे ये तो पार्टी की शुरुवात है – असल पार्टी तो वो है |” कहता हुआ योगेश अपनी नज़र से किसी एक ओर इशारा करता है|
उसके इशारे पर के स्थान को देखते अरुण के चेहरे पर के भाव बदल जाते है| वह एक नज़र बेहद मुस्कराते हुए योगेश को देखता है तो अगली नज़र पूल के किनारे आराम कुर्सी पर बैठी दो तीन कमसिन बालाओ पर डालता है जिन्होंने स्विमिंग के हिसाब से भी बहुत कम कपड़े पहने थे|
“ये सब क्या है योगेश ?” अरुण अपनी घूरती नज़र से योगेश को देखता हुआ अब स्विमिंग पूल से बाहर आता हुआ ऊपर से बाथरोब पहनता हुआ उन लड़कियों की ओर बढ़ रहा था|
“अरे तू थका आया है तो ये बस मसाज देंगी – बस थोड़े एंटरटेनमेंट के अलावा कोई इरादा नही है मेरे भाई |”
“लड़कियां एंटरटेनमेंट नही होती – समझा |” कहता हुआ वह पड़ी हुई टोवल उन लड़कियों की ओर बढाता हुआ कहता है|
योगेश समझ गया था और उन लड़कियों के सामने अपनी किरकिरी होने से बचने के लिए वह उन्हें आँखों के इशारे से जाने को कहता है| इससे वे कंधे उचकाती हुई तुरंत ही बाहर चली जाती है|
उनके जाते ही अरुण अब बेहद सख्त आवाज में कहता है – “तू जानता है न मुझे ये सब पसंद नही है – फिर भी तूने ऐसा किया ?”
“अरे यार – वो क्या है मैं तुझे टेस्ट कर रहा था कि इन चार साल में शायद तू कुछ तो बदल गया होगा पर नही तू तो मेरा वही खरा सोना ही निकला |” एक गहरा उच्छ्वास छोड़ते हुए वह कहता है|
“मुझे न तेरे कहने पर आना ही नही चाहिए था |”
“अरे अरे – रुक न – अब वो चली गई न – तो मुझसे क्या नाराजगी है – अब आ भी यार |”
अरुण एक पल रूककर योगेश को घूरता है फिर आखिर उसकी बात मानता हुआ फिर से पूल में उतर जाता है|
अब दोनों दोस्त साथ में तैर रहे थे| पानी की तरावट कुछ देर में ही अरुण का गुस्सा छू कर देती है और वह अगले ही पल साथ में पानी के अंदर कौन ज्यादा देर रहेगा इसका कम्पीटीशन करने लगते है| कुछ इस तरह से मस्ती करते अब किनारे पर आधे पानी में डूबे वे साथ में मुस्करा रहे थे|
....आप जब कहानी के किरदारों को कहते उनकी भावनाए समझते है तो उसी पल से ये किरदार आपके भी उतने ही हो जाते है जितने रचनाकार के.....

क्रमशः ...........................
स्विमिल पूल में दोनों दोस्त बहुत देर मस्ती करने के बाद अब किनारे पर आधे पानी में डूबे उस तरावट को मन तक उतार रहे थे|
“वैसे यार अरुण तेरी जिंदगी का फलसफा मेरी समझ से परे है – कभी कभी तो मैं समझ ही नही पाता कि आखिर इस जिंदगी से तू चाहता क्या है –|”
योगेश की बात पर अरुण बस धीरे से मुस्करा देता है|
“जब तेरे एक इशारे पर लड़कियां तेरे आगे पीछे नाच सकती है तब तू सबसे तनहा वक़्त काट रहा है – स्कूल कॉलेज कही भी तूने कोई गर्लफ्रेंड नही बनाई जबकि हर जगह मोस्ट एलिजबल रहा तू – अब विदेश भी हो आया पर क्या तुझे कही कोई तेरे लायक लड़की नही मिली – ऐसे कैसे पोसिबल है ?”
“तो क्या जरुरी है कि मैं अपनी जिंदगी किसी लड़की के साथ ही काटू |”
“हाँ जरुरी ही समझ – तो क्या तेरा इरादा साधू बनकर हिमालय जाने का है क्या ?”
“क्या मन का सुकून हिमालय में ही है क्या ?”
“मतलब ?”
“मुझे लगता है आधे से ज्यादा तो हिमालय अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए चले जाते होंगे – सच्चा सुकून तो किसी के लिए कुछ करने में है – दुनियादारी से भागने में नही |”
“अब तूने मुझे और उलझा दिया – अब तक मुझे यही लगता था कि ये सुख सुविधा तुझे सुकून नही देती और अब तू इसी में रहने का बोल रहा है – मुझे न तू बहुत ही काम्प्लेक्स लगता जा रहा है|”
इस पर एक ठसक भरी हंसी से हँसता हुआ अरुण कहता है – “भाई मैं बहुत ही सिम्पल व्यक्ति हूँ काम्प्लेक्स नहीं – कोई भी मुझे पढ़ सकता है – बस तकलीफ इसी बात की है कि कोई मेरा मन पढता ही नहीं है|”
“भाई पढ़ तो मैं भी नहीं पा रहा तेरा मन – तू ही बता दे कि तू इस जिंदगी से चाहता क्या है ?”
“मैं अपने लिए कुछ नही चाहता हूँ बल्कि मैं दूसरो की चाहते पूरी करना चाहता हूँ – बहुत ज्यादा इम्बेलेंस है इस दुनिया है – किसी के पास जो चीज बेहिसाब है तो किसी के पास वही चीज जरुरत भर भी नहीं – बस इसे संतुलित करना चाहता हूँ – अगर यही कर लिया इस जीवन में तो सोचूंगा कि सफल हो गया जीवन |”
अरुण की बात पर होंठ सिकोड़ते योगेश खुद को ताली बजाने से नही रोक पाता और खुश होता हुआ कहता है – “तभी तो तू सबसे अलग है |”
तभी मोबाईल की रिंग से योगेश का ध्यान टूटता है और वह बडबडाता हुआ पानी से बाहर निकलते हुए कहता है – “जरुर नर्सिंग होम से होगा – ये लोग डॉक्टर को जिन्दा नही रहने देंगे – सब कुछ बता कर आया हूँ पर देखता फोन उठाते यही पूछेंगे कहाँ है डॉक्टर साहब !! – घास चरने गए है डॉक्टर साहब – चर लेंगे तो वापस आ जाएँगे |” बुरी तरह भुनभुनाते हुए योगेश अपना मोबाईल उठा कर उसे स्पीकर में लगा देता है|
और वाकई उस ओर से यही आवाज सुनाई देती है – “कहाँ है डॉक्टर साहब ?”
ये सब देखता हुआ अरुण अपनी हंसी नही रोक पाता वही योगेश फोन को बुरी तरह घूरते हुए जबरन अपना स्वर दबाते हुए जवाब देता है – “डॉक्टर साहब बाथरूम में फिसलकर गिर गए इसलिए आज वे अपना चोट दिवस मनाएँगे और क्लिनिक कल आएँगे |”
पर योगेश ने नहीं सोचा था कि उसकी बात का प्रतिउत्तर कुछ ऐसा मिलेगा| उधर से आवाज आती है – “तो डॉक्टर साहब बाथरूम में हवाई चप्पल नही पहने थे क्या ?”
इस पर योगेश बुरी तरह से मुंह बनाता हुआ किसी तरह से अपने गुस्से में काबू करता हुआ कहता है – “हाँ हवाई चप्पल ही पहने थे इसलिए तो हवा में टंग गए |” कहता हुआ फोन डिस्कनेक्ट करता हुआ अरुण की ओर देखता है जो उसकी हालत पर अब बुरी तरह से हँस रहा था|
“ये न डॉक्टर को जीने नही देंगे – जैसे हम डॉक्टर तो इन्सान होते ही नही – न हमे छुट्टी चाहिए न हॉलिडे – हमे तो रोज रुई डिटोल से खेलना चाहिए बस – लगता है देर तक नही रुक पाउँगा शाम तक जाना ही पड़ेगा |”
अरुण भी योगेश की बात पर मुस्कराता हुआ पूल पर से निकलकर टेबल पर से सिगरेट उठाकर उसे सुलगा कर फिर आधा पानी में उतर जाता है|
“मैं कुछ ड्रिंक लेकर आता हूँ |” कहता हूँ योगेश अंदर की ओर चल देता है|
अरुण अपने ख्याल में डूबा कश लगाता हुआ गहरे पानी की ओर पीठ करे था कि तभी किसी के नर्म स्पर्श से वह अचानक से चौकता हुआ पलटता है| उसकी नज़रो के सामने और उसके बेहद करीब कोई कमसिन युवती बेहद आकर्षक अंदाज में उसे देख रही थी|
“वर्तिका – तुम – तुम कब आई – पता ही नही चला ?” अरुण सकपकाता हुआ पानी में ही उससे कुछ दूर हो जाता है जबकि वह उसी प्रकार उसके पास बनी रहती है|
“जैसे ही पता चला तुम आए हो बस भागी चली आई – तुमने मुझे क्यों नही बताया कि तुम दो दिन पहले आ रहे हो|” वह अरुण के और पास तैर कर आती हुई रूठी हुई आवाज में कहती है|
“सब कुछ अचानक डिसाइड हुआ - |”
“चलो अच्छा है – नही तो मुझे लगा था कि तुमसे पहली मुलाकात पार्टी में ही होगी |”
“पार्टी !! नही वहां भी शायद मैं न जाऊ |” अरुण अब उचककर ऊपर बैठ जाता है|
“क्यों – वो तुम्हारे ऑनर में पार्टी है और तुम्ही उसमे नही जाओगे – भला क्यों ?” वह युवती संशय से पूछती है|
“पार्टी नही है मेरी सेल लगेगी – फला फला लोगो से जबरन मुस्करा कर मिलो – या फला फला अमिर लडकियों संग दोस्ती करो – जबरन का मेरा ऐड करना है मेरा उन्हें |” गहरे कश के साथ अरुण अब सिगरेट उँगलियों में फंसाए कही और देखने लगा था|
इससे उसे पता ही नही चला कि कब वर्तिका उसके पास आकर बैठती हुई उसकी उंगलियों में फसी सिगरेट निकालकर खुद उसका गहरा कश लेती हुई कहती है – “इसलिए तो कहती हूँ – मेरे संग चक्कर चला लो तो इन सब पचड़ो से तुम्हे छुटकारा भी मिल जाएगा और तुम्हारे डैड की अमिर घर की लड़की से शादी करने की ये इच्छा भी पूरी हो जाएगी और रंजीत इंटरप्राइजेज और दिवान्स का मिलाप होकर वे साथ में नंबर वन हो जाएँगे |”
“ये नम्बर वन का खेल तब भी नही रुकेगा और तुम कब से सिगरेट पीने लगी ?” कहता हुआ उसके हाथ से सिगरेट लेता हुआ पूछता है|
“जस्ट नाव – तुम्हारा साथ देने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ |” कहती हुई वह अपनी भीगी देह उसके खुले जिस्म के पास लाती हुई उसके कंधे पर झुक जाती है|
पर अरुण उसका सर उठाकर अपने से दूर करता हुआ कहता है – “अब हम बच्चे नही है वर्तिका !”
“तभी तो कह रही हूँ कि तुम कब ये फील करोगे कि हम बच्चे नहीं है |”
वर्तिका भी उसी अंदाज में कहती अपनी गहरी गहरी आंखे उसकी आँखों में डालती हुई कहती है इससे अरुण कुछ असहज हो जाता है तभी वहां आते योगेश की आवाज उन्हें सुनाई देती है -
“अरे ये बार बार के फोन ने मेरी जान लेकर रखी है – मन तो करता है – समंदर में फेंक दूँ – अरे वर्तिका कब आई – लगा तुम कल ही आओगी |” अपनी बात कहता कहता वर्तिका की ओर देखता है जो बिलकुल करीब ही अरुण के बैठी थी|
“बस जैसे ही तुम्हारा मेसेज देखा तुरंत ही चली आई – वरना कैसे पता चलता कि यहाँ अकेले अकेले पार्टी चल रही है |”
वर्तिका की बात पर क्रेड उठाकर उनके बीच रखता हुआ कहता है – “पार्टी तो कबकी बर्बाद हो गई|” कहता हुआ वह एक नज़र अरुण की ओर डालता है फिर उसके घूरने पर वह तुरंत ही बात पलटते हुए आगे कहता है – “पार्टी वार्टी क्या अब तो लगता है अभी ही क्लिनिक जाना पड़ेगा |”
“ओह - |” दुखी भाव प्रदर्शित करती वर्तिका योगेश की ओर देखती है|
“तो मेरे ख्याल से तुम दोनों यहाँ रुको – मैं चलता हूँ |” वह बियर का कैन उठाकर उसके दो तीन लम्बे घूँट में खत्म करता हुआ कहता है|
इस पर वर्तिका कुछ मुस्करा कर अरुण की ओर देखती है| पर उसकी आशा के विपरीत अरुण खड़ा होता हुआ कहता है – “मैं भी चलूँगा |”
“तुम किस लिए ?” योगेश चौकता हुआ पूछता है|
वर्तिका भी उसे गौर से देखने लगी थी|
“तेरे को बताया था न क्षितिज को बाहर ले जाना है नही तो रूठ जाएगा मुझसे |”
“कब बताया तूने ?” योगेश धीरे से बोलता है|
योगेश को जाना था वो चला गया साथ ही अरुण भी उसके साथ ही अपनी कार से निकल गया पीछे छूटी वर्तिका इससे रुआंसी हो उठी और गुस्से में एक बियर का कैन उठाकर चलती चलती उसे पीती हुई अपनी कार की ओर बढ़ जाती है|
.................तेरी दुनिया नही मेरे पास तो क्या तेरा भ्रम मेरे पास है....
क्रमशः ...........................
शहर की चहल पहल से दूर शांतिकुंज की घनी बस्ती के एक चरमराते घर की रुखी जमीन पर एक वृद्ध पड़ा था| वह शायद चलते हुए लडखडाकर चारपाई से नीचे जमीन पर गिर पड़ा था| उस वक़्त उसके शरीर पर एक मैली धोती के सिवा कोई वस्त्र नही था| उस वृद्ध की शारीरिक अवस्था ऐसी थी कि उसकी खाल सिकुड़ती मानो उसकी हड्डियों से जा चिपकी हो| उस घर की हालत बेहद बेज़ार थी पर उससे भी अधिक उस वृद्ध की बुरी स्थिति थी|
बहुत देर तक वह वृद्ध एक ही अवस्था में पड़ा शून्य में ऐसे ताकता रहा मानो जिसका उसे इंतजार हो वह अभी उसके सामने आ खड़ा होगा| उसके जेहन में बार बार आवाजो का तुफान उठता रहा उसी क्रम में उसकी आँखों के सामने एक साथ कई आकृतियाँ घूमने लगी| देखते देखते उस वृद्ध के चेहरे पर नफरत और घृणा के भाव उभर आए|
ऐसा करते एकाएक जाने कहाँ से उसमे बिजली सी फुर्ती आ गई कि वह एकाएक उठ बैठा और अपने लड़खड़ाते कदमो से बाहर जाते हुए चीखने लगा – “बेटा मैं आता हूँ – रुक जा मैं आ रहा हूँ |”
अभी वह कुछ कदम भी नही चल पाया था कि लड़खड़ा कर गिर पड़ा| अब उसका सर दरवाजे की दहलीज पर था तो बाकी का शरीर झोपड़ी की खुरदरी जमीन पर अचेत पड़ा था|
वृद्ध की चीख सुनकर एक आदमी दौड़ता हुआ आता है|
“बाबा – बाबा तुम क्यों उठे – मैंने कहा था कि तुम्हारा बेटा बाहर गया हुआ है – जब वह आएगा मैं तुम्हे बता दूंगा – चलो अभी उठो – आराम करो |” कहता हुआ वह आदमी अपने बाजुओ का सहारा देकर उस वृद्ध को उठाकर पुनः चारपाई पर लेटा देता है|
वृद्ध फिर किसी लाश की भांति एक ही अवस्था में पड़ा रहता है| वृद्ध को लेटाकर वह आदमी उसे अपनी भीगी पलकों से देखने लगता है| फिर घुटनों के बल बैठकर अपना सर चारपाई से बाहर लटकते वृद्ध के हाथ को स्पर्श करता मन ही मन जैसे कोई शिकायत वक़्त में दर्ज करता बुदबुदाता है – ‘मुझे नही पता बाबा कि मैं क्यों रोज एक सी झूठी दिलासा देता हूँ तुम्हे – क्यों मैं तुम्हे रोजाना झूठी आस देता हूँ कि एक दिन तुम्हारा बेटा वापस आएगा – जरुर आएगा जबकि मैं खुद नही जानता कि वह कहाँ है !! वह जिन्दा भी है या नहीं फिर भी एक उम्मीद लगाए बैठा हूँ कि काश कभी वो वापस आए और तुम्हारे सारे दुःख दूर कर दे फिर देखना तुम मुझे बिलकुल भूल जाओगे – हाँ देखना बाबा वह एक दिन जरुर आएगा -|’ उसकी बहती आँखों को पता नही चला कि कितनी देर वह बुदबुदाता रहा जबकि वह वृद्ध को कबका सो चुका था पर उसकी बाते वहां की खामोशियाँ सुन रही थी|
***
शहर का सबसे ऊँचा और महंगा होटल जिसका मालिक था आकाश दिवान और इस वक़्त वह अपने तय समय के अनुसार उस होटल के एक खूबसूरत लग्जरी स्वीट रूम में था| वह कई कमरों वाला इस होटल का सबसे शानदार रूम था| यूँ तो वह होटल ही अपनी बेहद उम्दा कारीगरी और आकर्षण से लबरेज था जिसमे लाल सफ़ेद पत्थरों का बढ़िया मेलजोल करके उसे ऐसा भव्य रूप दिया गया था कि सूरत आने वाला हर विदेशी और प्रभुत्व व्यक्ति इस होटल में रुकना अपनी शान समझता था|
ये दिवान्स का होटल व्यवसाय से जुड़ने का सबसे पहला होटल था इसी तरह से उनके लगभग हर लाभकारी व्यवसाय में अच्छी खासी भागीदारी थी| इस होटल का ये रूम आकाश की खास पसंद था| वह अक्सर अपना निजी समय इस रूम में व्यतीत करता था|
इस वक़्त भी वह इस होटल में अपना निजी समय बिताता सबसे महंगी शराब का लुफ्त उठा रहा था जबकि उसका पीए दीपांकर होटल स्टाफ के पास कुछ जरुरी निर्देश दे रहा था और आकाश के रूम सर्विस के जाने का हुकुम सुना रहा था| जिससे हमेशा की तरह एक सोमियर महिला अपने चुस्त कपड़ो के साथ सबसे उम्दा वाइन के साथ जाने को तैयार थी| उसके हाव भाव बता रहे थे कि वे इस काम को करने को खुद ही बहुत उत्सुक थी पर उसके अगले ही पल दीपांकर उसे रुकने का संकेत करता किसी अलग की लड़की को इशारे से उसे भेजने को कहता है जिससे स्किल्ड सोमियर महिला चिहुक कर उस युवती की ओर यूँ देखती है जैसे उसकी स्थिति उसके आगे कुछ खास हो ही न पर दीपांकर के निर्देश पर अब वह खुद उस युवती को जरुरी निर्देश देती हुई उस वाइन के साथ सही रूम नंबर बता कर उसे एक वेटर के साथ भेजने लगती है|
वह युवती कुछ पल हिचकती है फिर इसे होटल का ही जरुरी हिस्सा समझकर हामी भरती जाने को तैयार हो जाती है|
अब वह लिफ्ट से होती हाथ में ट्रे लिए उस स्वीट रूम तक जा रही थी जहाँ आकाश दिवान ठहरा था| वेटर उसे रूम के बाहर छोड़कर वापस चला जाता है| वह युवती एक पल को अपने भीतर सांस के जरिए समस्त ऊर्जा खींचती हुई धीरे से नॉक करती हुई रूम का दरवाजा खोलकर अन्दर प्रवेश करती है|
अंदर आते वह दरवाजे पर ही दो पल को ठहरी रह जाती है| उसकी नज़रो के सामने भव्य और आलीशान कमरा नही जैसे कोई जन्नत का रास्ता खुल गया हो| उसकी आंखे दो पल को उस आकर्षण में ये भूल ही गई कि आखिर वह यहाँ क्यों आई थी| उसे यकीन नही आ रहा था कि अभी कुछ दिन पहले गली गली नौकरी के लिए भटकते उसे अचानक से इतने आलीशान होटल में काम मिल जाएगा और ऊपर से पहली बार में ही उसे उस होटल के मालिक के सामने भी जाने का मौका मिलेगा ये सोचते वह मन ही मन मुस्करा लेती है|
वह धीरे धीरे संभलकर अंदर कदम रखती है कि गुस्से में चीखती हुई कोई आवाज उसके कानो से टकराती है और वह अपनी जगह खड़ी खड़ी काँप जाती है|
आकाश फोन पर किसी पर बुरी तरह नाराज होता हुआ फोन पटककर पीछे मुड़ता है और उसके सामने वह युवती दिखती है जिसे अपने ऑफिस के बाहर देखते उसी ने उसे नौकरी पर रखने का हुकुम सुनाया था|
वह युवती अभी भी कांपती हुई उसके सामने खड़ी थी फिर अगले ही पल अपनी स्थिति का अहसास होते वह तुरंत ही ट्रे टेबल पर रखती हुई आकाश से वाइन परोसने का पूछती है जिसपर वह उसी पर नज़र गडाए गडाए हामी भरता है|
वह पूरे सलीके से वाइन गिलास में निकालकर उसकी ओर बढाती है जिसे आकाश उसके हाथो को अच्छे से स्पर्श करता हुआ लेते हुए कहता है – “जब उम्मीद से ज्यादा मिल जाए तब खुद की जिम्मेदारी होती है उसे सँभालने की – उम्मीद है बहुत जल्दी तुम समझ जाओगी कि यहाँ किसी भी काम को करने से इंकार का मतलब यहाँ से निकल जाना होता है – तुम समझ गई न !” आकाश गिलास पकड़े पकड़े उसे घूरता हुआ कहता है जिससे हिचकती हुई वह सहमति में सर हिलाती है|
आकाश के गिलास लेते वह युवती बुत की तरह उसके सामने खड़ी थी जिसे भरपूर नज़र से निहारते हुए वह पूछता है – “क्या नाम है तुम्हारा ?”
“ज जी – रूबी – सर |”
“ओके यू में गो नाउ |”
सर झुकाकर हाँ कहती वह वापस चली जाती है इससे बेखबर कि आकाश की दिलचस्प नज़र दरवाजे तक उसका पीछा करती रही|
वह बाहर निकलकर जा ही रही थी कि दीपांकर को वह किसी स्टाइलिश लड़की के साथ उस रूम में प्रवेश करते जाते देखती है| पर अगले ही पल उससे नज़र हटाकर वह तुरंत ही वहां से निकल जाती है|
क्रमशः ...........................
आज दीवान मेंशन में रात की पार्टी की तैयारी हो रही थी| आज शहर, प्रदेश और देश के बहुत सम्मानित और प्रभुत्व व्यक्ति शामिल होने वाले थे उसमे इसलिए सेठ घनश्याम को जरा भी गलती बर्दाश्त नही थी यही कारण है कि कई इवेंट मेनेजर इस पार्टी को सफल बनाने के लिए पूरी मशकत से लगे हुए थे|
आज की पार्टी की शान अरुण था जबकि वह इस पार्टी में जाने को बिलकुल भी उत्सुक नही था| भाभी उसे मनाती हुई अभी अभी समझा कर गई थी कि वह अपने डैड को बेवजह नाराज़ न करे| अरुण न चाहते हुए भी उनकी बात पर हामी भर देता है क्योंकि वह अपनी भाभी की बात से इंकार नही कर सकता था|
शावर लेकर आते अरुण बाथरोब उतारते उतारते एक सरसरी नज़र कोट स्टैंड पर टंगे पार्टी सूट की ओर डालता है कि तभी कोई बांह तेजी से उसकी गर्दन पर लिपट जाती है इससे अरुण अचकचाते हुए देखता है कि वह वर्तिका थी जो मुस्कराती हुई उसके सीने से लगी थी|
“क्या है वर्तिका ?” कहता हुआ वह उसकी बांह को अपनी गर्दन से छुडाते हुए उसे खुद से दूर करता हुआ अपने बाथरोब का फीता कसने लगता है|
जबकि वर्तिका खिलखिलाती हुई बिस्तर पर अर्धलेटी उसे देखती हुई कह रही थी – “ओहो मुझसे क्या शर्माना – अब तो हमे एकदूसरे को करीब से जान लेना चाहिए न !”
अरुण उसकी बात से उबता हुआ डेस्क पर से सिगरेट उठाकर जलाता हुआ अन्यत्र देखने लगता है जबकि वर्तिका बिस्तर पर अंगड़ाई लेती हुई अपनी बात कहती रही – “इतना नखरा मारना भी सही नही समझे – जब शादी होगी न हमारी तब क्या करोगे – मैं पहले ही बता देती हूँ – मैं तुम्हे एक पल के लिए भी अपने से दूर नही जाने दूंगी – तुम्हारे संग हर जगह जाउंगी – ऑफिस, घर हर जगह क्योंकि मैं तुम्हारे बिना रह ही नही सकती |” कहती हुई वह तेजी से उठती हुई अरुण की बांह थामती हुई कहने लगती है जिसका ध्यान उसकी ओर था ही नही – “अरुण तुम्हे पता भी है ये चार साल मैंने कैसे बिताए – तुम्हे क्या पता !! तुमने तो एकबार भी मेरी खोज खबर तक नही ली पर मैं ही जानती हूँ कि हर साल एक सदी की तरह गुजर रहा था – इस बेचैनी की कुछ तो कीमत अदा करो |” कहती कहती वह उसकी बांह को धीरे धीरे अपने करीब लाती एकबार फिर उससे लिपटने लगती है|
जबकि अरुण अपनी बांह झटकते हुए कहता है – “तुम अगर मुझे ऐसे ही परेशान करती रही तो मैं नही आ रहा पार्टी में |”
अरुण के ऐसा कहते वर्तिका तुरंत उसकी बांह से दूर होती हवा में हाथ जोडती हुई कहती है – “नहीं नही प्लीज़ ऐसा गजब मत करना – पता है आज भईया को पार्टी में आने के लिए मैंने कितना मनाया है – आज तो तुम्हारा आना बहुत ही जरुरी है|”
इस बात पर अरुण प्रश्नात्मक भाव से उसकी ओर देखने लगता है|
“आखिर जब तुम्हारे डैड और मेरे भईया आपस में मिलेंगे तभी तो हमारी बात शुरू होगी और लगता है तभी तुम अपने प्यार वाला नारियल फोड़ोगे – चलो मैं इंतजार करुँगी उस पल का भी कयामत तक|” बेहद नशीले अंदाज में कहती हुई एकबार फिर वह अपनी नज़रे अरुण की आँखों में डालती हुई कहती है|
“तो क्या अब मैं तैयार हो सकता हूँ ?”
“हाँ तो तैयार हो न और मुझसे क्या शर्माना – अब तो हमे एकदूसरे को ऐसे देखने की आदत डाल लेनी चाहिए – मैं तो तुम्हारे सामने भी चेंज कर सकती हूँ |”
इस पर फिर से अरुण एक उबाहट भरी सांस बाहर छोड़ता हुआ बैठ जाता है |
“ओको ओके – मैं जाती हूँ - तो सच्ची मे जाऊं मैं !!”
“हाँ सच में |” वह झींकते हुए कहता है|
इस पर खिलखिलाती हुई वर्तिका उठकर जाने लगती है ये देख अरुण कोट की ओर हाथ बढ़ाने लगता है कि तभी वह पलटती हुई अरुण को आवाज लगाती हुई कहती है – “वैसे तुम ऐसे भी बड़े डैसिंग दिखते हो – अच्छा तुमने नही बताया कि मैं कैसी लग रही हूँ – मैंने आज ये पार्टी गाउन ख़ास आज के दिन के लिए सलेक्ट किया है|”
“ओके नाईस – सो कैन आई गेट रेडी ?”
उसके झीकने पर भी वह खिलखिलाती हुई हाँ में सर हिलाती हुई बाहर निकल जाती है| उसके बाहर निकलते अरुण सबसे पहले बढ़कर कमरे का दरवाजा लॉक करता हुआ फिर डेस्क के पास आता अगली सिगरेट सुलगाता हुआ बाथरोब में ही आराम कुर्सी पर बैठ जाता है|
***
पार्टी अपने पूरे शबाब में थी जहाँ डांसिंग फ्लोर में कुछ नाच रहे थे तो वही बार भी लोगो से गुलजार था| सबके आस पास से गुजरते वेटर उनकी खिदमत में लगे थे| कोई मौके का भरपूर फायदा उठाता अपनी बिजनेस डील कर रहा था| सेठ घनश्याम दिवान भी अपने विदेशी मेहमानों से घिरे उनसे आकाश और भूमि को मिलवा रहे थे| वे भी पूरे सलीके से उनसे मिल रहे थे| उस पल दोनों दुनिया के सबसे उम्दा जोड़े के रूप में नज़र आ रहे थे|
अब सभी को अरुण को इंतजार था जो अपने तय वक़्त में भी अभी तक आया नही था| इस पर सेठ घनश्याम दिवान स्थिति सँभालते हुए हँसते हुए कह रहे थे – “धीमन भाई – अब ये जवान खून है – इनकी पार्टी अपने तरह की होती है – बस वही से अपनी अभी आता होगा – अब आप तो जानते ही है आज कल उनकी पार्टी हमारी जैसी थोड़े होती है |” कहते हुए वे जबरन हंसी का फव्वारा छोड़ते है|
फिर मौका देखकर आकाश को अरुण को जल्दी लाने को कहते है| आकाश अपने पिता के हुकुम की तामील करता जाने ही वाला था कि योगेश आगे बढ़कर अरुण को लाने का जिम्मा लेता हुआ उसके कमरे की ओर निकल जाता है|
और जैसा की उम्मीद थी वह अभी भी वैसा ही बैठा तीन से चार सिगरेट फूंक चुका था पर मन का सैलाब था कि सीने से निकलता ही नही था| अजब तूफान और बेचनी उसके मन में उमड़ रही थी और उसे पता था कि इस तरह की पार्टी उसके मन की हालत और बिगाड़ने वाली होगी|
लेकिन योगेश के आते अरुण जाने से इनकार न कर सका और पल में तैयार होकर उसके साथ ही पार्टी की ओर चल दिया|
सभी की नजरे जैसे उसी का इंतजार कर रही थी| वह देखता है कि सबकी भीड़ के सामने उसके पिता आज कुछ ज्यादा ही पोलाईट हो चले थे और उसके कंधे पर हाथ रखे उसे ख़ास ख़ास मेहमानों से मिला रहे थे| अरुण ने महसूस किया कि वे खासकर उनसे मिलवा रहे थे जिसकी बेटियां भी वहां किसी प्रोडक्ट की तरह सजी संवरी मौजूद थी| ये सब बाते फिर उसके अंदर जल्द ही उकताहट भरने लगी और वह वहां से निकलने को बुरी तरह से छटपटा उठा|
सूरत में अगर कोई दो प्रभुत्वशाली व्यवसायी थे तो एक सेठ घनश्याम दिवान तो दूसरे रंजीत कुमार| उनकी व्यवसायिक रेस और टक्कर किसी से छुपी नही थी| एक तरह से दोनों मार्किट में एकदूसरे को टक्कर देने को अग्रसर रहते थे इसलिए बहुत कम ऐसा अवसर आता कि वे दोनों एकदूसरे की पार्टी में शिरकत करते|
लेकिन दूसरा सच ये भी था कि रंजित कुमार की जान उनकी इकलौती बहन वर्तिका में बसती थी जिसके लिए वे सच में आसमान से तारे ही नही पूरा का पूरा आसमान ही जमीं में खींचकर ला सकते थे और इसका यही परिणाम था कि वे न चाहते हुए भी दिवान्स की पार्टी में आज मौजूद थे|
वर्तिका भी कबसे आंखे बिछाए अरुण का इंतजार कर रही थी और वह पल आ भी गया| वर्तिका भी अरुण को देखती दौड़ती हुई उसके पास पहुँच जाती है| वह सबसे पहले उसे अपने भईया से मिलवाना चाहती थी लेकिन उससे पहले ही आकाश उसे लिए अपने पिता की ओर बढ़ जाता है|
इससे वह कुछ उदास होती किनारे खड़ी हो जाती है पर तब से अपने भाई की नज़र में कैद उसकी परेशानी उसके भाई द्वारा समझ ली जाती है और वह उसकी ओर आते हुए उसके कंधे पर अपनी बांह फैलाते हुए कहते है – “आज तो मेरी गुडिया किसी परी से कम नजर नही आ रही – जरा देखूं तो |” कहता हुआ वह उसे अपनी नजरो के सामने लाता प्यार से उसका चेहरा निहारते हुए कहता है – “हम्म – आज तो नज़र उतरवानी ही पड़ेगी – कही भाई की नजर ही न लग जाए|”
“भईया |” अपने भाई की बात सुन आखिर वर्तिका मुस्काए बिना नही रह पाती|
फिर तुरंत ही अरुण का ख्याल आते वह भरी उदासी से कह उठती है - “भईया मुझे आपसे अरुण को मिलवाना था|”
“हाँ तो फिर मिल ल्रेंगे – जब चाहे घर बुला लो – इसमें परेशान होने की क्या बात है – एन्जॉय करो और मुझे जाने की परमिशन दो |”
“क्यों !! अभी तो आप आए है और फिर अरुण..!” वह फिर अरुण का राग छेड़ती है मानो उसके सिवा कोई बात ही न हो उसके पास|
“मैंने कहा न मिल लेंगे अरुण से – तुम्हारा दोस्त है जब बुलाओगी तो आएगा नही क्या !! तब उससे मिल लूँगा पर अभी मुझे सच में जरुरी काम से जाना है मेरी गुडिया – अब जिद्द मत करना – वरना तेरा भाई सारी रात यही डटा बैठा रहेगा चाहे जो नुक्सान हो जाए|”
इस पर वह फिर से मुस्कराती हुई कह उठती है – “ओके ठीक है – आप जा सकते है |” वह किसी राजकुमारी की तरह हुकुम सुनाती हुई कहती है तो रंजित भी किसी सेवक की तरह सर झुकाकर ‘हो हुकुम मल्लिका’ कहता मुस्कराता हुआ कहता है| इसपर वह फिर खिलखिलाकर हँस पड़ती है|
रंजित जाते हुए अभी मुड़ा ही था कि कुछ ध्यान आते वह वर्तिका से कहता है – “अच्छा हाँ सेल्विन को छोड़ रहा हूँ – उसी के साथ वापस आना – रात में खुद से ड्राइव नहीं करोगी |”
“नो भईया मुझे अगर कही जाना हुआ तो !!”
“तो चली जाना पर सेल्विन तुम्हारी सुरक्षा के लिए साए की तरह तुम्हारे साथ रहेगा तो मुझे भी तुम्हारी चिंता नही रहेगी – अब ये एक और आखिरी बात मान लो |”
इस पर बंद होंठ से हाँ कहती वह सर हाँ में हिला देती है|
..............यूँही जुड़ते रहे बेइंतहा की दुनिया से
क्रमशः ...........................
कुछ देर यूँही इंतज़ार में काटते जब वर्तिका को अरुण नही दिखा तो वह उसे पार्टी में खोजने लगी| योगेश उसे डांसिंग फ्लोर में किसी अन्य लड़की संग झूमता दिख गया पर अरुण उसे कही नही दिखा| वह काफी देर इधर उधर देखने के बाद जब उसे नही पाती तो भूमि भाभी के पास अरुण को पूछने चल देती है पर वह कही बहुत जल्दी जल्दी जा रही थी| ये देख वर्तिका भी उनके पीछे पीछे चल देती है| वे मेंशन के पीछे के हिस्से में बने सर्वेंट क्वाटर और मेंशन के बीच के हरे भरे मैदानी स्थान की ओर बहुत जल्दी जल्दी जा रही थी|
ये सब वर्तिका को अजीब लग रहा था पर वह जानती थी कि इस वक़्त वे ही जानती होगी कि अरुण कहाँ है?
मेंशन के पीछे के हिस्से में ही डॉग हाउस बना था जिसके आगे पीछे काफी हरा भरा स्थान था वही उसे बडी के साथ किसी की परछाई दिखी जिसके पास आती हुई भूमि जल्दी से कहती है – “मुझे पता था – तुम यही मिलोगे – अरुण सब वहां तुम्हारा इंतजार कर रहे है – कुछ और देर तो रुक जाते |”
अरुण बडी को बड़े प्यार से अपनी गोद में लिए उसे सहलाते हुए अपनी भाभी की ओर बिना देखे ही कह रहा था – “आपको पता है भाभी कि जितनी देर मैं वहां रहा वही मेरे लिए बहुत है -|”
“फिर भी अरुण – वहां सभी को तुम्हारा इंतजार है |” वे फिर जिद्द करती हुई कहती है|
“नही भाभी किसी को मेरा इंतजार नही है – सभी को अरुण दिवान का इंतजार है – सभी जैसे मुझे किसी बिकाऊ प्रोडक्ट की तरह देख रहे है – डैड चाहते है मैं उनके खास मेहमानों की बेटियों से मिलूं तो वर्तिका अपने भाई से मिलवाना चाहती है – सब कुछ न कुछ मुझसे चाहते है पर कोई नही जानना चाहता कि मैं क्या चाहता हूँ !! मैं इन सबको रोक तो नही सकता पर थोड़ी देर के लिए इनसे दूर तो जा ही सकता हूँ न |”
एक उसकी भाभी ही थी जिनसे अरुण सीधे अपने मन की बात कह पाता था पर इस वक़्त उसे पता नही था कि उनके पीछे खड़ी वर्तिका भी ये सब सुन रही है जिससे उसका चेहरा बस रुआंसा हो आया था और आगे न सुनने के लिए वह तुरंत ही वहां से चली जाती है|
भूमि अरुण की तकलीफ समझती थी देखा जाए तो इस दिखावे से वह भी कभी कभी ऊब जाती पर उसके ऊपर इस परिवार की नैतिक जिम्मेदारी थी तो कैसे वह इन सब चीजो से आसानी से पल्ला झाड लेती| अरुण की बात सुनने के बाद अब उसका मन भी नही हुआ कि वह उसे आने को वह कहे पर तभी उसे उनकी ओर आता हुआ दीपांकर दिखा जो शायद भूमि को ही पूछते पूछते वहां आ पहुंचा था|
वह जानती थी कि दीपांकर आकाश का खास आदमी है तो उसी का हुकुम के चलते वह अरुण के बारे में उससे पूछने आ रहा होगा| भूमि उसे देख चुकी थी फिर भी उसे अनदेखा करती अब थोड़ी तेज आवाज में अरुण से कहने लगती है – “ये बात थी तो बताना था न – ऐसे बिना कहे चले आए तो सभी को फ़िक्र हो गई न – तुम्हारा हेडेक हो रहा है तब भी तुम पार्टी में आए – लेकिन अब मैं तुमसे कहती हूँ अब बिलकुल भी पार्टी में आने की जरुरत नही है – अगर डैडी जी ये सुनते तो वे भी तुमसे यही कहते – चलो अब तुम कमरे में चलो मैं वही दवाई भिजवाती हूँ |”
कहती हुई भूमि जानकर दीपांकर की ओर बिना ध्यान दिए वापस चली गई पर वह अच्छे से जान चुकी थी कि जिस तक वह जो सन्देश पहुँचाना चाहती थी वह उस तक पहुंचा चुकी थी|
दीपांकर को भी अब कुछ कहते पूछते न बना तो वह भी चुपचाप वापसी की ओर मुड गया|
अरुण भाभी की बात भलेही न समझा हो पर उसे पता था कि भाभी ने जरुर एक बार फिर अपनी ममता की छाव से उसे बचा लिया होगा| वह कही और जाने के मूड में बिलकुल नही था उसे उस बेजुबान के संग ही अच्छा लग रहा था| अब वह उस घास के मैदान में बडी संग लेटा ऊपर उन्मुक्त आसमान निहारने लगा था| आज वहां का अँधेरा उसे उन कृत्रिम रौशनी से कही ज्यादा भला लग रहा था| कम से कम ये सच्चा तो था बिलकुल उसके मन की गहन गुफाओ सा|
***
आज के दिन के लिए वर्तिका ने बहुत कुछ मन ही मन प्लान कर रखा था पर सब एक ही पल में पानी हो जाएगा ये उसने सोचा नही था| न मिलता उसके भईया से कम से कम उसके साथ तो होता अरुण| अपने एज ग्रुप में भी जाने कितनी बड़ी बड़ी बातें वह अरुण को लेकर कर चुकी थी पर अब क्या कहती !! वही लड़कियां उस पर हंसती| ये सोचती हुई वह पार्टी छोड़कर बाहर जाने ही वाली थी कि उसकी तरह एक अन्य लड़की उसे अकेला देख लहकती हुई उसके पास आती है|
“ओह डियर – कब से मैं अरुण को ढूंढ रही थी – सोचा तुम्हारे संग ही होगा पर तुम तो खुद ही अकेली खड़ी हो – च्च च्च |” मुंह से बेचारगी की आवाज निकालती हुई वह अपना ग्लास उसकी आँखों के सामने लहराती हुई कहती है|
वर्तिका को जिस बात का डर था वही हुआ| वह जिन आँखों से बचकर निकलना चाहती थी वही उसे घूरने को तैयार हो गई| अब तक वह सभी को अरुण की गर्लफ्रेंड ही कहती आ रही थी पर जब इसे दिखाने का वक़्त आया तो वह अकेली नज़र आई|
वर्तिका से उस लड़की से कुछ कहते न बना जबकि वह अपनी चढ़ी हुई आँखों से उसे अभी भी घूर रही थी| आखिर उसने भी ओरो की तरह खुद को आज के दिन के लिए बहुत तैयार किया था पर अरुण ने तो एक नज़र उनकी ओर देखा भी नही|
तभी वेटर वहां से ड्रिंक लेकर गुजरा तो मारे गुस्से के वर्तिका उसे रोककर जिन के गिलास पर गिलास लम्बे लंबे घूंट में खाली करने लगी ये देखते वह लड़की हंसी उड़ाने के अंदाज में उसकी ओर अपनी आखिरी नज़र फेंकती हुई अपनी स्लिट ड्रेस में भी भरसक तेज कदमो से वहां से चली गई|
वर्तिका काफी हद तक नशा कर चुकी थी फिर भी किसी तरह खुद को संभालती हुई बाहर की ओर निकलने लगी| वह बार बार चलती हुई लड़खड़ा जाती फिर भी किसी तरह से वह पार्किंग की ओर पहुँच गई|
सेल्विन रंजित का सबसे भरोसे वाला आदमी था| वह उसका ड्राईवर नही था पर रंजित के लिए वह सब कुछ बन जाता था| पूरा भरा पूरा मस्सल्स वाला वह जवान लड़का था| वह पिछले कई सालो से रंजित का सबसे विश्वस्त आदमी था इसलिए कई बार वर्तिका को वह उसके भरोसे छोड़कर अपनी बहन की सुरक्षा की ओर से वह आश्वस्त हो लेता|
सेल्विन दूर से ही वर्तिका को देख लेता है जिससे वह दौड़ता हुआ वर्तिका की ओर आता उसे संभालता हुआ कार की ओर ले जाने लगता है| जिन का अत्यधिक नशा वर्तिका पर हावी था जिससे चलती चलती वह बार बार वह अपना होश खो देती थी लेकिन सेल्विन पूरे सलीके से उसे संभाले कार तक लाता पीछे की सीट पर उसे लेटा देता है|
कार अब रंजित हाउस की ओर चल दी थी तभी वर्तिका कुछ होश में आती हुई धीरे से सेल्विन को पुकारती हुई उसे घर जाने के बजाये समंदर किनारे चलने का निर्देश देती है| निर्देश का पालन करता सेल्विन उसे समंदर किनारे ले चलता है|
कुछ समय की ड्राइविंग के बाद वे समन्दर किनारे किसी सुनसान स्थान पर कार रोकता है| वह धीरे से वर्तिका को पुकारता हुआ उसे पहुँचने की इत्तिला देता कार से उतरकर कुछ दूर खड़ा होता उसे उसका एकांत दे देता है|
वर्तिका कार की खिड़की से भरा पूरा गहरा नीला आसमान देखती है साथ ही खामोश समन्दर की आवाजो का शोर भी उसे सुनाई देता है लेकिन नशे की वजह से वह बाहर निकलने की हिम्मत न कर सकी जिससे वही बैठी बैठी चिल्ला कर अरुण का नाम लेती फूट फूट कर रोने लगती है| वह घर जाकर अपना दर्द बहाने के बजाए इस एकांत में उसे खाली कर देना चाहती थी ताकि अपने भाई से वह अपनी हालत छुपा सके|
कुछ दूर खड़े सेल्विन को उसकी आवाज मिली पर वह इससे निर्लिप्त बना चुपचाप खड़ा रहा| कुछ देर तक रोने के बाद जब अचानक आवाज शांत हो गई तो सेल्विन समझ गया शायद वर्तिका सो गई होगी| वह वापस आता उसे देखता है| वह सच में सो चुकी थी| ये देखते वह तुरंत ड्राइविंग सीट पर बैठता कार रंजित हाउस की ओर मोड़ लेता है|
क्रमशः ...........................
ऐसी पार्टी खत्म नही होती बल्कि खत्म कर दी जाती है क्योंकि सभी अपने अपने सुरूर में डूबे रहते है| भूमि घरेलू पार्टी में मौजूद तो होती थी पर बहुत देर तक वह भी नही रूकती थी| वह खुद एक बड़े सम्मानित व्यवसायी की इकलौती बेटी थी पर इस घर से अलग उसके घर का माहौल था| उसके पिता बिजनेस के साथ सदकर्म में भी गहरी दिलचस्पी रखते थे|
उनके घर से कभी कोई खाली हाथ नही गया यही कारण था कि भूमि में भी इसी तरह के संस्कार थे और वह अपनी समझदारी की उम्र से ही अपने पिता के साथ उनके व्यवसाय के साथ साथ जरुरतमंदो की मदद के कार्यो में भी उनका सहयोग करती थी| पर इस घर का राग कुछ अलग ही था यहाँ आकाश अपने पिता की छाया बनता उसके जैसा ही था जिनके लिए पैसे से बढ़कर कोई उनका भगवान नही था|
ये सब भूमि को अंतरस तोड़ देता फिर भी उसके संस्कार ऐसे थे कि पति संग आत्मीयता न होने पर भी उसका घर वह पूरी श्रद्धा से संभालती थी| आकाश का कोई भी काम भूमि से छिपा नही था| वह अच्छे से जानती थी कि आकाश से बहस करने के बजाये वह खुद को बाहर दुनिया में व्यस्त रखती और घर पर उसकी दुनिया क्षितिज होता|
पार्टी के बाद भूमि और आकाश एकसाथ अपने कमरे में प्रवेश करते जो सब लोगों की नज़र में एक कमरा होता पर अंदर जाते वह दो हिस्सों में बंट जाता उनके मन की तरह जहाँ वे एकदूसरे से बिना किसी संपर्क के अपनी अपनी दुनिया में मग्न रहते| सालो बीत गए उनका आपस में किसी भी तरह का कोई संपर्क किए पर इसे भूमि ने कभी बाहर जाहिर नही होने दिया क्योंकि वह जानती थी कि इस बात का फर्क क्षितिज के नन्हे मन पर बुरा पड़ सकता था|
***
“चाचू उठो न – उठो न चाचू -|” नन्हा क्षितिज अरुण के बगल में बैठा उसे उठाने के लिए लगातार उसे झंझोड़ रहा था|
“चाचू उठो – मैं हूँ - |”
“क्षितिज मुझे तंग मत कर |” कहते हुए अरुण ने करवट बदल ली|
“चाचू अगर आप अभी नही उठे तो फिर मैं आपसे नाराज़ हो जाऊंगा और फिर कभी आपसे बात नही करूँगा |” क्षितिज ने बड़ी मासूमियत से कहा|
कुछ देर तो अरुण चुपचाप शांत लेटा रहा फिर अनमने ढंग से उठकर उसके सामने बैठते हुए कहता है – “अच्छा ! तो क्षितिज अपने चाचू से नाराज भी हो सकता है !!”
“जाओ चाचू मैं आपसे बात नही करता |” गाल फुलाते हुए क्षितिज अरुण से दूर सरक गया|
“ओफ्फो – अच्छा बाबा क्षितिज महाराज अब माफ़ भी कर दो |” अरुण मुस्कराते हुए क्षितिज की तरफ झुकते हुए अपने कान पकड़ता हुआ कहता है – “माफ़ भी कर दो – देखो मैंने कान भी पकड़ लिए – अब क्या उठक बैठक भी लगाऊ ?”
इस पर हाथ बांधे क्षितिज दूसरी ओर मुंह घुमा लेता है तो अरुण थोड़ा और उसकी ओर सरक आता है|
“तो आप यूँ नही मानेगे – लगता है थैर्ड डिग्री अपनानी ही पड़ेगी –|” कहता हुआ अरुण झूठमूठ का हवा में अपनी आस्तीन ऊपर करता हुआ कहता है – “तो हमला..|” अरुण क्षितिज की ओर झुकता हुआ उसे गुदगुदी करने लगा तो क्षितिज नन्ही कली की भांति खिलखिलाकर हंस पड़ता है|
“चाचू – छोड़ो न – ही ही – चाचू – मैं – मैं नाराज़ नही हूँ – ही ही |” हँसता हुआ क्षितिज अरुण की गोद में जाकर बैठ जाता है|
“अच्छा अब जल्दी से बताओ कि तुमने अपने चाचू को इतनी सुबह सुबह क्यों जगाया ?”
“आज मेरे स्कूल में पैरेंट्स मीटिंग है – आपको चलना है |”
“पर मैं ही क्यों !! टीचर शिकायत करने वाली है क्या ?”
“नही चाचू – मुझे तो इस बार अपने सारे यूनिट टेस्ट में ए ग्रेड मिला है पर किसी के पास मेरे लिए टाइम ही नही है तो मैं किसे अपना टेस्ट बुक दिखाऊ चाचू ?” उस मासूम चेहरे पर अब उदासी छा जाती है|
“अरे तो कोई बात नही मेरे पास अपने ब्रेव क्षितिज के लिए टाइम ही टाइम है तो चलो जरा मुस्कराओ – यस दैट्स लाइक माय गुड बॉय – जाओ फिर जल्दी से तैयार हो जाओ – मैं भी झट से तैयार हो जाता हूँ – हूँ खुश !!”
अरुण की बात पर क्षितिज सच में खुश होता हामी में सर हिलाता हुआ तुरंत बाहर निकल जाता है| उसके जाते अरुण सिगरेट के पैकेट की तरफ अपना हाथ बढ़ा देता है|
***
“हैरी काका – हैरी काका – कहाँ है आप?” हरिमन काका को आवाज लगाता हुआ क्षितिज रसोई की ओर भागता हुआ आता है|
“क्या क्षितिज बाबा ?” हरिमन काका जानते थे क्षितिज उनका नाम सही से न पुकार पाने से उन्हें हैरी कहता इसलिए वह तुरंत ही उसकी पुकार पर उसके पास भागते हुए आते है|
“काका जल्दी से नाश्ता लगाइए |” बड़ो की तरह वह निर्देश देता है|
“अभी तो बिटवा तुमने नाश्ता किया था – क्या फिर से भूख लगी है – चलो हम फिर से नाश्ता लगाए देते है|”
“ओफ्फो काका - |” क्षितिज हौले से हथेली सर पर मारते हुए बोला – “मैं अपने लिए नही चाचू के लिए बोल रहा हूँ |”
“अच्छा ..|” हँसते हुए काका रसोई की ओर मुड जाते है|
“अरे रुकिए तो काका – मैं आपको बताता हूँ नाश्ते में क्या क्या लगाना है – जूस मत रखना काका क्योंकि वो चाचू को बिलकुल पसंद नही और...|”
हरिमन काका हँसते हुए क्षितिज की तरफ झुकते हुए कहते है – “अरे बिटवा – मुझे यहाँ पच्चीस बरस हो रहे है – मैं सबकी पसंद नापसंद खूब अच्छे से जानता हूँ |”
“पच्चीस - |” सोचता हुआ क्षितिज उंगलियों में गिनता सोचता हुआ कहता है – “मतलब ट्वंटी फाइव – ये तो बहुत सारा समय होता है|” मुस्कराते हुए हरिमन काका के सामने खड़ा क्षितिज नटखटपन में सर खुजाते हुए कहता है|
“बाबा आपके स्कूल का टाइम ही गया |”
अबकी एक मेड सुनीता आती हुई क्षितिज को पुकारती हुई कहती है जिसपर ध्यान जाते क्षितिज तुरंत कहता है –
“पता है सुनीता आंटी मैं आज अपने चाचू के संग अपने स्कूल जाऊंगा – तब देखता मैं अपने सारे दोस्तों को बताऊंगा कि मेरे चाचू कितने बेस्ट है|”
क्षितिज के भोलेपन पर मौजूद सभी सर्वेंट अब मुस्कराकर उसकी ओर देखने लगते है|
***
भाषण के समाप्त होते पूरा हॉल तालियों की गडगडाहट के साथ गूंज उठा| स्टेज में एक लम्बी मेज के उस पार समाज के कई प्रतिष्ठत लोगो के बीच भूमि और आज की मुख्य अतिथि शहर की मेयर मौजूद थी| उस वक़्त भूमि के चहरे पर कुछ अलग ही शालीनता, सौम्यता की आभा नज़र आ रही थी| भूमि की आँखों में गरिमायुक्त चमक और सर पर आदर्श का पल्लू था और यही समाज में उसकी वास्तविक पहचान थी|
आज उसके द्वारा स्थापित बाल महिला संरक्षण संगठन की पंद्रहवी वर्षगाठ थी जिसके उपलक्ष्य में उसे सभी जरुरतमंदों को कपड़े और जरुरी सामान वितरित करने थे साथ ही न्यूज वाले उसकी तस्वीर लेने को भरपूर दिलचस्प नज़र आ रहे थे|
यही भूमि की बाहरी दुनिया थी जिसमे समाज के हित के काम में वह खुद को व्यस्त रखती जिसके चर्चे अक्सर खबरों की सुर्खियाँ बने रहते|
बेइंतहा के हीरो से तो मिल लिए क्या आपको उसकी हिरोइन का इंतजार है....सोचिए कैसे मिलेंगे ये !! क्योंकि अभी वक़्त लगेगा उसके सामने आने में....
क्रमशः ...........................
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योगेश अपने नर्सिंग होम में था जब एकदम से दनदनाती हुई वर्तिका उसके केबिन में घुसी तो उसके हाथ से कॉफ़ी का कप गिरते गिरते बचा|
“योगेश ..|”
“अरे हाँ यही तो हूँ फिर इतना हडबडाते हुए आने की क्या जरुरत है ?” योगेश धीरे से कप टेबल पर रखते हुए वर्तिका को अपने सामने बैठते हुए देखता है| वर्तिका आई तो जैसे बहुत कुछ कहने पर अब बिलकुल शांत बैठी दीवार को घूरने लगी थी|
“वैसे कल की पार्टी बहुत मस्त रही – तभी तो आज क्लिनिक आने में ही मुझे देर हो गई – बाहर देखा अभी सौ मरीज निपटा कर जस्ट बैठा ही हूँ और तब भी सौ और आदमी बैठे है बाहर – खैर कल मजा बहुत आया – वो रेड वाली थी न उसमें क्या बात थी मेरे साथ सारी रात डांस करती रही – और जो सिल्वर कलर का स्लिट पहने थी उसने तो आज रात की अपनी पार्टी के लिए मुझे इनवाईट भी कर लिया – अपना तो पार्टी में बड़ा वाला चक्कर चल गया – अरे हाँ उसका नाम तो पूछा ही नहीं – चलो आज रात पूछ लूँगा |” अपने में डूबा खुश होता हुआ योगेश कुर्सी की पुश्त से पीठ सटाता हुआ वर्तिका की बुझी हुई आँखों को देखता हुआ कहता है – “लग रहा है कल सारी रात तुमभी नही सोयी – वैसे लगता है तुम्हारा कल अरुण संग चक्कर चल ही गया तभी तो तुम दोनों को ढूंढता रहा मैं – जाने कहा साथ में गायब थे तुम लोग – हुन्न !”
दिलचस्पी से देखता हुआ योगेश कुछ ज्यादा ही मुस्करा रहा था|
जबकि वर्तिका उसी बुझे अंदाज में धीरे से कहती है – “कल मैं जल्दी घर वापस चली गई थी |”
“क्यों !! तो फिर अरुण !!”
अबकी रुआंसी होती हुई एकदम से उसके सामने खड़ी होती हुई कहती है – “एक चीज बताओ – मुझमे तुम्हे कोई खामी नज़र आती है देखो मुझे ध्यान से – क्या मैं आकर्षक नही हूँ !!”
वर्तिका के पूछते थोडा हिचकिचाते हुए योगेश कहता है – “नही किसने कहा – कल उन सब लड़कियों में तुम्हारा जलवा कुछ कम नही था |”
“फिर क्यों अरुण मुझे नही देखता – क्यों वह मेरे इतना करीब जाने पर भी कुछ महसूस नही करता – आखिर क्यों ?”
“कल उससे कुछ बात हुई तुम्हारी ?”
“बात करता तो ठीक था – कुछ नही कहता – बस मुझसे जैसे दूर भागता रहता है – कही योगेश उसके जीवन में कोई और तो नही आ गई और हमे पता ही न हो |” अचानक से उलझी हुई वह योगेश से पूछती है|
“अरे सौ प्रतिशत इसका जवाब नही है – कुछ भी ऐसा होता तो मुझसे छुपने वाला नही था – वैसे उसकी बात को इतना सीरियस लेने की जरुरत नही है – हो सकता है कल उसका मूड न हो – तो आज जाकर मिलो – यार हम तीनो एकदूसरे को स्कूल समय से जानते है फिर भी तुम उसकी हर बात पर इतना रियक्ट करती हो -|”
“योगेश उस वक़्त और इस वक़्त में बहुत फर्क है – तुम शायद समझना नही चाह रहे या समझ नही रहे – जब सब कुछ हमारे बीच सिमिलर है तब बस उसकी एक हाँ के लिए मैं तरस रही हूँ जबकि मैं उसके प्रति अपना सब समर्पण करने को तैयार हूँ बस एक बार वह मुझे नज़र भरकर देख ले बस |”
“अच्छा रुको – मैं आज ही उससे बात करता हूँ और उसके दिल के सारा राज़ निकलवाता हूँ कि बॉस का माजरा क्या है – तब तक तुम आराम से घर जाओ – मैं हूँ न - ओके |”
“थैंक्स योगेश – तुम कम से कम दोस्ती तो निभा रहे हो – अरुण तो मुझसे बेगानों की तरह व्यवहार करता है - उसका ऐसा बिहेवियर मुझसे हज़म ही नही होता |”
“डोंट वरी – चिल मारो यार और ये लो – खाओ |” कहता हुआ वह उसके हाथ में कोई गुलाबी टेबलेट रखता हुआ कहता है|
“ये क्या है ?”
“डाईजिन - |”
“!!!”
“अरे अभी तुमने ही तो कहा हज़म नही होता |” कहता हुआ योगेश खुलकर हंस पड़ा|
उसकी इस हरकत पर वर्तिका नाराज़ होती टेबलट उसकी मेज पर वापस पटकती हुई उठ जाती है|
उसे अब गुस्से में जाता हुआ देख योगेश पीछे से हँसता हुआ कहता रहा – “अरे मजाक कर रहा था – वर्तिका – सुनो तो – लो चली गई – यार योगेश तुझपर ये मस्ती किसी दिन भारी न पड़ जाए इसलिए बी सीरियस – समझा न|” खुद को समझाता हुआ योगेश टेबल पर रखी बेल बजा देता है|
***
अपने केबिन में बैठा आकाश बुरी तरह से पस्त हाव भाव के साथ अपने मोबाईल की स्क्रीन देख रहा था| अभी अभी जो कॉल डिस्कनेक्ट हुई थी शायद उसी के कारण उसके चहरे के हाव भाव बदले हुए थे|
अब तुरंत ही मोबाईल रखकर टेबल पर रखे इस्टूमेंट से कही कॉल लगाता है| फोन तुरंत ही उठा लिया जाता है और दूसरी ओर से बहुत ही हलके हाव से पुछा जाता है –
“हाँ कौन बे ?”
“मैं बोल रहा हूँ इडियट -|”
“ओह आकास सर – वो क्या है न इसमें नंबर नही दीखता इसलिए पता ही नही चलता कि किसने फोन मिलाया – नही तो आपकी आवाज तो मैं सपने में भी पहचान लूं !”
“अपनी बकवास मत सुनाओ मुझे – मेरी बात ध्यान से सुनो – उस बिच ने मुझे अभी भी परेशान कर रखा है और तुम अब तक उसका पता भी नही लगा सके – आखिर मैं तुम्हे बोटियाँ किस बात की डालता हूँ |” आकाश बुरी तरह दांत पीसते हुए कहता है|
“कौन बिच – ओह सर जी वो स्टैला – सर बस दो दिन की और मोहलत दे दो – जिन्दा नही तो मुर्दा उसे आपके सामने पेश कर देंगे – भरोसा रखो सर जी – आपका काम कभी रुका है !”
आवाज से लग रहा था कि वह बहुत खुश होता हुआ कह रहा था जबकि आकाश के तेवर चढ़ते जा रहे थे|
“रुका नही पर खराब जरुर करते हो काम – अबकी कोई गड़बड़ हुई न तो मेरी गोली सीधे तुम्हारे इस सडे हुए भेजे को चीरती हुई निकलेगी – समझे |”
“अ अरे सर – ऐसा क्यों बोलते है – अपन तो आपका गुलाम है – बस आप देखते जाओ – अबकी कोई गड़बड़ होने ही नही देंगे |”
“ठीक है – ऐसा ही होना चाहिए |” गुस्से में आखिरी वाक्य बोलता हुआ रिसीवर पटक देता है|
आकाश के रिसीवर रखते वह गुंडा टाइप आदमी अपनी नज़रो के सामने पंचर बनाते हुए दूसरे आदमी को आवाज लगाता हुआ कहता है – “चल बे पंटर अपने काम पर लग जा |”
ये सुनते वह आदमी झट से ट्यूब छोड़कर खड़ा होता हुआ कहता है -“बताओ बॉस किसको उड़ाना है ?”
“अबे घासलेट के ढक्कन – हरदम उड़ाने में ही लगा रहता है – पता लगाना है उसका जिसकी तस्वीर दी थी तुझे – समझे – और जो तूने कोई गड़बड़ की न तो याद रखना मेरी गोली सीधे तुम्हारे इस सडे हुए भेजे को चीरती हुई निकलेगी – समझे |”
“है बॉस – ये तो नया डायलोग मारे हो |”
“हाँ नया है और तुझसे ही शुरुवात भी करूँगा – चल हट |”
वह उसे इस तरह हड्काता है जिससे वह तुरंत टायर उठाकर गाडी की ओर तेजी से भागने लगता है|
***
बाहर से आते मेनका सीधे अपने कमरे में चली गई| बहुत देर तक तकिया में मुंह ढापे रोती रही पर घर के किसी भी सदस्य का उसका ध्यान ही नही गया| सभी अपने में मशगूल रहते थे| घर के नौकर चाकरों ने मेनका को रोते देखा पर किसी की हिम्मत नही हुई उसके पास जाने की और ऐसा कोई पहली नही हुआ इस घर में हमेशा ही सबकी अपनी दुनिया होती जिसमे वे हमेशा ही व्यस्त रहते| बस वार्षिक त्योहारों या घरेलू पार्टीज में सभी एक साथ एकत्र होते क्योंकि घर को जोड़ने वाली श्रृंखला अब कमजोर हो चली थी| दादा जी – वे सेठ घनश्याम के चाचा जी थे और उनके माता पिता के बाद से उनका ध्यान रखते आ रहे थे और इस कारण उन्होंने कभी शादी भी नही की|
परिवार के बीच रहते हुए भी वे किसी सन्यासी की तरह रहते बस अरुण ही था जो उनके पास रोजाना आता और उन्हें सुबह एकबार जरुर अपने साथ बाहर ले जाता| उसे दादा जी के साथ समय बिताना अच्छा लगता| दादा जी भी उसपर अपनी जान छिड़कते थे| यही कारण था कि ये चार साल उन्होंने बस अरुण के इंतजार में ही काट दिए|
हिरामन काका से नही रहा गया तो वे दादा जी को मेनका के बारे में बता देते है| ये सुनते वे छड़ी टेकते मेनका के कमरे तक चल देते है|
“कौन है – कहा न मुझे कुछ नही चाहिए – मुझे अकेला छोड़ दो |” दरवाजे की दस्तक पर मेनका लेटे लेटे ही चीखती है|
“मैं हूँ तेरा दादा बिटिया |”
आवाज सुनते मेनका फुर्ती के साथ उठती है और दादा जी को सहारा देते हुए उन्हें आराम से बैठाती हुई कहती है – “आप सीढियां चढ़कर ऊपर क्यों आए – मुझे बुलवा लिया होता – आपको डॉक्टर ने सीढियां चढने से मना किया है न |”
वह प्यार से उनका हाथ पकडे हुए कहती है|
“अरे डॉक्टर का तो काम ही है मना करना – वो बेड रेस्ट को बोलेगा तो क्या बिस्तर पर ही पड़ा रहूँगा – बड़े दिन से तुझसे मिलने की इच्छा थी सो चला आया – तुझे तो अपने दादा जी की याद आती ही नही|”
“ऐसा नही है दादा जी |” जल्दी से उनके हाथ को पकडती हुई कहती है – “वो नया कॉलेज है न तो थोडा समय ज्यादा लग जाता है|” वह सर नीचे किए कहती है|
“अच्छा हाँ पंचगनी छोड़ दिया था न – अच्छा ही किया – सब घर में रहते है तो हलचल बनी रहती है – भलेही न मिले पर लगता है सब घर पर तो है – अच्छा कॉलेज बदला तो पढाई भी संभालती पड़ती होगी - अभी परीक्षा चल रही होगी न ?”
मेनका कही खोयी हुई जमीन को घूर रही थी पर अनुभवी आंखे जैसे उसके मन का हाल सब समझ रही थी| वे प्यार से उसका सर सहलाते हुए कहते रहे – “मन परेशान हुआ करे तो आ जाया करो बिटिया – और अगर लगे अपने दादा से कुछ मन की बाँट सकती हो तो कह दिया करो – मन में यूँही रखने से मन भारी हो जाता है न – समझो घड़ा है जो भरते भरते कभी कभी उफन ही पड़ता है |”
मेनका चुपचाप ख़ामोशी से उनकी बात सुनती रही और वे भी कहते रहे – “आंसुओ की अपनी कोई भाषा नही होती वरना वे आँखों से बहते हुए खुद ही अपना दर्द कह सुनाते इसलिए हमे ही अपने मन की व्यथा को बताना पड़ता है – इस घुटन से खुद को खुद ही निकालना पड़ता है – इसलिए जब लगे कुछ मन की बाँट सकती हो तो बाँट लेना चाहिए – अच्छा होता है इससे मन |”
“दादा जी – बात कुछ नही होती – फिर भी कभी कभी मन इतना भर आता है कि आँख अपने आप भर आती है – मुझे यहाँ बहुत घुटन महसूस होती है – कहने को परिवार में सभी है पर किसी के पास आपस में कहने सुनने का वक़्त ही नही – मुझे तो लगता है इससे अच्छा तो मैं होस्टल में थी – कम से लगता तो था कि मैं अजनबियों के बीच हूँ |”
दादा जी मेनका का दर्द समझ रहे थे और अच्छे से जानते थे इस घर की व्यथा को भी कि बस किसी मृगतृष्णा पीछे सब भाग रहे है और हासिल कुछ नही है| सोचते हुए वे गहरी साँस भीतर लेते है| मेनका अब उनकी गोद में सर रखे चुपचाप दो बूंद गालो से लुढ़का लेती है|
क्रमशः ...........................
अरुण क्षितिज के स्कूल से बाहर आकर कुछ देर तक खड़ा बच्चो को स्कूल जाते हुए देखता रहा| वह शहर का सबसे नामी स्कूल था तो जाहिर सी बात है बच्चो के आने के साथ शानदार गाड़ियों की कतार, सजे धजे चमकते चेहरे ज्यादातर नज़र आ रहे थे| पर अरुण को तो उन मासूम बच्चो की स्वछन्द खिलखिलाहट सुनाई दे रही थी| वह उन्ही के भोलेपन को निहारता हुआ कुछ सोच रहा था| अरुण अपनी कार का टेक लिए सीने पर हाथ बांधे खड़ा था|
तभी मोबाईल की रिंग से उसकी तन्द्रा टूटती है और वह पलटकर आवाज की ओर देखता है| अब ठीक उसके बगल में उसे राजवीर दिखता है जिसके हाथ का मोबाईल अभी भी बज रहा था|
वह अरुण की ओर मोबाइल बढ़ा देता है जिसे उठाते ही उस पार से आकाश की आवाज गूंजती है जो उसे तुरंत ऑफिस आने का बोल रहा था|
पर अरुण उसकी बात का विरोध करते हुए कह रहा था – “भईया मैं थोड़ी देर में ऑफिस आता हूँ – अभी मैं जीएस कालोनी जाना चाहता हूँ |”
जीएस कालोनी का नाम सुनते निश्चित रूप से आकाश भड़क उठा था|
“आप चाहते है तो मैं यही बात डैड से भी पूछ लेता हूँ पर मुझे वही जाना ही है|”
फोन शायद काट दिया गया उसके बाद उसी मोबाईल से वह अपने डैड को कॉल लगाने लगता है, कुछ देर उनका निजी नंबर बिजी जाता रहा फिर उसके द्वारा फोन उठाते ही वे कहते है – “तुम कही भी जाना चाहते हो बाद में जाना – अभी तुरंत ऑफिस आओ |”
उनके हुक्म के बाद अरुण अब मोबाईल राजवीर को पकड़ाते हुए कहता है – “तुम यहाँ कैसे आए राजवीर ?”
“वो बड़े साहब ने आपके साथ रहने को कहा है – आपका मोबाईल भी नही था आपके पास इसलिए आपको ढूँढता यहाँ चला आया |”
“ओह तो डैड तुम्हे मेरा मोबाईल बनाकर मुझे ट्रैक करना चाहते है - |” अरुण समझ चुका था कि उसका अकेले कही भी खुद ड्राइव करके चले जाना उसके पिता को कभी नही सुहाता था| न ही वह मोबाईल रखता और न ड्राईवर यहाँ तक कि किसी भी सुरक्षा मानक का पालन भी नही करता| शायद इसी कारण वे किसी भरोसे वाले आदमी को उसके साथ हमेशा रखते थे|
“तो चलो पालन करो बड़े साहब का हुक्म |” फीकी हंसी से कहता हुआ अरुण पीछे जाकर बैठ जाता है और राजवीर ड्राइविंग सीट संभाल लेता है|
राजवीर के कार स्टार्ट करते ही अरुण कहता है – “राजवीर मैं जीएस कालोनी जाना चाहता हूँ |”
राजवीर ब्रेक पर पैर लगाए लगाए ही धीरे से हिचकते हुए कहता है – “वो बड़े साहब का हुकुम था कि आपको सीधे ऑफिस लाया जाए |”
इस पर खुद पर ही हँसता हुआ अरुण सिगरेट सुलगाते एक गहरा कश भीतर से लेकर बाहर छोड़ते हुए कहता है – “ले चलो जहाँ – हम भी तुम्हारी तरह हुक्म के गुलाम ही है|” कहते हुए अरुण ठसक भरी हंसी लेता जल्दी जल्दी कश लेता रहा क्योंकि स्कूल के सामने खड़े होने से वह बहुत देर तक सिगरेट भी नही निकाल पाया था|
राजवीर सच में बड़े साहब के हुक्म का गुलाम था इसलिए वह इस वक़्त चाहकर भी अरुण के मनचाहे गंतव्य नही ले जा सका| अब वह ऑफिस की ओर कार मोड़ लेता है|
“और राजवीर तुम्हारी बहन की मंगनी ठीक से हो गई ?”
“अरे सर आपको याद रहा - हाँ सर – सब आपकी वजह से ठीक से हो गया – आपने तो मुझे छुट्टी देने के साथ पैसो से ही इतनी मदद कर दी कि किस मुंह से आपको धन्यवाद् कहूँ वो भी कम है |”
“वो सब छोड़ो – अब शादी की तैयारी करो – उसमे कोई कमी नही रहनी चाहिए -|”
राजवीर स्टेरिंग घुमाता घुमाता मुस्काते हुए हामी भरता है|
इस वक़्त आकाश अपने पिता के केबिन में मौजूद था और मौजूदा कोई मुश्किल उन्हें बता रहा था|
“डैड उसका नाम कुबेर है और नाईट शिफ्ट के वक़्त उसके भाई का एक हाथ मशीन में आने से वह घायल हो गया – शायद उसकी उँगलियाँ काटनी पड़ी – हमने भी तुरंत कम्पेंशेसन ग्राउंड पर उसका इलाज कराया और उसे बीमा के रूपए भी दिलाए पर बात अब कुछ और हो चुकी है – इससे पिछली बार भी उसी मशीन में किसी अन्य मजदूर का हाथ आया था और सेम उसकी उंगलियाँ काटनी पड़ी थी ताकि जहर उसके जिस्म में न फैले – अब ये सब उस मशीन को ही अभिशप्त मानने लगे है और कोई भी उस मशीन पर काम नही करना चाहता – कुछ उसे बदलने का मेनेजमेंट पर जोर दे रहे है जबकि वह मशीन हमने योरोप से माँगा कर लगवाई हुई है और कुबेर इसी बात पर सबसे ज्यादा हंगामा मचा रहा है|”
आकाश की बात बहुत ध्यान से सुनने के बाद सेठ धनश्याम बेहद शुष्क भाव से कहते है – “तो क्या चाहता है वो ?”
“हम उस मशीन को बदल दे |”
“हूँ ! कौड़ियों में जीने वाला मजदूर चाहता है कि हम उसके लिए करोडो की मशीन बदल दे – मुर्ख है सब – आकाश उसका इंतजाम कर दो क्योंकि मजदूर एक के बदले चार मिल जाएंगे और उस मशीन पर नई भर्ती लगाओ |”
“डैड मैंने सोचा है अगर मेनेजमेंट की ओर से उसे छटनी में निकाल दिया जाए तो वह कुछ कर भी नही पाएगा |”
“हाँ तो कर दो मुश्किल क्या है ?”
“मेनेजिंग कमिटी में अरुण भी है और वह किसी भी हाल में इसपर साइन नही करेगा |” बेहद सख्त भाव से आकाश अपनी बात खत्म करता है|
इस पर शांत होते वे कुछ सोचते रहे तभी फिर आकाश अपनी बात आगे कहता है – “और ऊपर से इस वक़्त जीएस कालोनी जाने की जिद्द लगाए बैठा है – वो तो मुझे सही समय पर पता चल गया और मैंने उसे तुरंत यहाँ बुलवा लिया – इसके लिए तो वो आपको भी फोन कर रहा था पर उससे पहले ही मैंने आपको बता दिया|”
इस बात पर सेठ घनश्याम कुछ ज्यादा ही परेशान हो गए और जल्दी से कह उठे – “नही नही आकाश उसे वहां जाने से रोको – बड़ी मुश्किल से चार साल अब्रोड रखकर उसकी मानसिकता बदलने की कोशिश की पर लगता है सब बेकार रहा – अब अगर वहां गया तो जरुर कुछ न कुछ बुरा होगा |”
“पर आपको लगता है डैड हम उसे रोक पाएँगे ?” आकाश प्रश्न करता अपने पिता की ओर देखता रहा और वे अजीब भाव से इधर उधर देखते खुद को सयंत करते रहे|
क्रमशः ...........................
जब सेठ घनश्याम असहज हो जाते तब तुरंत ही वे सिगार सुलगाकर उसके कश से अपने भीतर के इन्सान को काबू करने की कोशिश करने लगते और इस वक़्त भी उनका यही हाल था| अरुण की जिद्द और उसका स्वभाव उन्हें ऐसे ही कई बार असहज कर जाता|
इस बार वह जीएस कालोनी जाना चाहता था जो वे बिलकुल नही चाहते थे| जीएस कालोनी असल में घनश्याम कालोनी थी जिसे उन्होंने ही मजदूरों के लिए बसाया था| वहां उनके लिए हेल्थ सेंटर से लेकर प्राथमिक विद्यालय तक था पर फिर भी थी तो वह गरीबी और लाचारी की बस्ती जहाँ वे अरुण जैसे संवेदनशील लड़के को कतई नही जाने देना चाहते थे| उन्हें अच्छे से आभास था कि वहां का माहौल कही फिर से अरुण के अंदर के भावात्मक इन्सान को पूरी तरह से न जगा दे जिसे बड़ी मुश्किल से वे हमेशा दबा कर रखते थे| उनकी नज़र में गरीबी, लाचारी, मज़बूरी सब किसी लाईलाज बीमारी की तरह थी जिसे उसे उसके हाल पर ही छोड़ देना चाहिए क्योंकि आज तक किसी ने भी इसे बदलने की कोशिश नही की| उनका निजी अनुभव कहता था कि ये सब बस वक़्त में फायदा उठाने की चीज है और अगर ऐसा न होता तो आज तक नेताओ की वोटो की राजनीती हो या उद्योगों की भरमार सब इनसे फायदा ही उठती आ रही है पर किसी ने इसे बदलने या खत्म करने की असलकोशिश कभी की ही कहाँ पर अरुण अलग था इसलिए कभी कभी उसको लेकर वे डर जाते कि उसकी मानसिक अवस्था पर ये सब असर न डाल दे कही !!
केबिन में दस्तक के साथ अरुण वहां दाखिल होता है|
“आओ – हम तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे|” उसके पिता जबरन अपने चेहरे के भाव सहज करते उसे बैठने का संकेत करते है|
“हम बस तुम्हारी ही बात कर रहे थे – एक करोड़ो का प्रोजेक्ट है और हम चाहते है कि तुम उसे पूरी तरह से लीड करो – आखिर सिडनी से हाईली मेनेजमेंट की डिग्री लेकर लौटे हो तुम – तो करोडो को अरबो में बदलना बखूबी सीखा होगा तुमने |” उसके पिता बेहद दिलचस्पी से अपनी बात रखते है|
आकाश भी अपने पिता की हाँ में हाँ मिलाता हुआ कहता है – “हाँ अरुण – बहुत बेहतरीन प्रोजेक्ट है – देखना एक बार शुरू करोगे तो खो जाओगे उसमे |”
“मैं खुद को खोना ही तो नही चाहता हूँ पाना चाहता हूँ |” अरुण बेहद गंभीर भाव से कहता हुआ बारी बारी से अपने पिता और भाई की ओर देखता हुआ आगे कहता है – “मैं चाहता हूँ कि इस करोड़ को अरबो में बदलने के बजाये हम इस पैसो को ह्यूमन वेल फेयर के लिए लगाए तो ज्यादा बेहतर होगा |”
“ह्युमन वेल फेयर !! क्या मतलब ?” आकाश मुड़कर उसे घूरता हुआ कहता है जबकि उसके पिता सिगार का धुँआ उगलते हुए कही सोच में गुम हो गए थे|
“हाँ ह्युमन वेल फेयर – और इसकी शुरुवात मैं जीएस कालोनी के अपने मजदूरो के लिए करना चाहता हूँ – ताकि उनके बच्चो को हाईली एडुकेशन के लिए भटकना न पड़े – ये उन्हें किसी अधिकार की तरह मिले – उसका स्वास्थ बेहतर हो – अगर किसी मजदूर का परिवार इस तरह खुशहाल होगा तो उसका मानसिक स्तर अपने आप बेहतर हो जाएगा – मैं उनके लिए कुछ करना चाहता हूँ |”
“तो क्या कमी है वहां पर – सब कुछ तो दिया हुआ है उन्हें |”
आकाश की बात का विरोध करता हुआ कहता है – “मैं प्राथमिक जरूरतों की नही बल्कि उनकी अंतरिम जरूरतों की कर रहा हूँ|”
अब अरुण की बात से आकाश अपने पिता की ओर देखता है जो अभी भी सिगार के धुए में कुछ सोचने में लगे थे|
“ये सब ब...|”
आकाश की बात अधूरी काटते हुए अब उनके पिता बीच में जल्दी से बोल उठते है – “हाँ आकाश ये सब बहुत बेहतर है – तो क्यों न हम इसकी शुरुवात के लिए इस प्रोजेक्ट डील को यही केंसिल कर दे – लो तुम इस पेपर पर साइन कर दो – इससे ये प्रोजेक्ट कैंसिल हो जाएगा फिर तुम उसके बाद अपने मन की कर सकते हो अरुण |”
आकाश को अपने पिता द्वारा इस तरह अरुण की बात मान लेने पर बेहद आश्चर्य हो रहा था पर वह कहता भी क्या| वह देखता है कि उनकी बात से अरुण के चेहरे पर एक शांत मुस्कान आ गई थी जिससे वह अपने पिता द्वारा दीए किसी पेपर पर चुपचाप साइन भी कर देता है|
“थैंक्स डैड – मुझे लगा नही था कि आप इतनी जल्दी मेरी बात मान जाएँगे |”
अरुण की बात पर उसके पिता सिगार बुझाते हुए कहते है – “क्यों नही – बहुत अच्छी सोच है - |”
“इसलिए डैड मैं एकबार जीएस कालोनी जाना चाहता था ताकि उनकी जरूरतों को मैं नजदीक से समझ सकूँ तभी उसके लिए मैं कुछ बेहतर कर पाउँगा |”
“ठीक है – चले जाओ बल्कि साथ में आकाश भी जाएगा तुम्हारे – क्यों आकाश ?
“जी जी बिलकुल |” आकाश एकदम से अपने पिता के बदले रूप से आश्चर्य चकित हो रहा था उसे यकीन नही आ रहा था कि उसके पिता अरुण की इस बकवास पर कैसे इतनी आसानी से हामी भर सकते है ?
“पर उससे पहले मैं चाहता हूँ कि तुम अपना नया केबिन देखो – मैंने बहुत मन से उसे तुम्हारे लिए तैयार करवाया है – आकाश तुम दीपांकर को बुलवा कर पहले उसे उसका केबिन दिखवा दो और वहां एक घंटा तो लग ही जाएगा फिर उसके बाद तुम जीएस कालोनी अरुण में साथ चले जाना – क्यों अरुण – अब ठीक है ?”
अपने पिता के सहज भाव से हर्षित होता अरुण हाँ में सर हिलाता हुआ उठ जाता है| आकाश तब तक दीपांकर को बुलाकर अरुण को उसके साथ भेज देता है|
उनके जाते अब फिर से पिता पुत्र अकेले थे उस केबिन में | पर अब जहाँ आकाश के चेहरे पर ढेरो प्रश्नात्मक प्रश्न चिन्ह तैर रहे थे वही उसके पिता अब कुछ सामान्य नज़र आ रहे थे|
आखिर मन का गुबार निकालता हुआ वह कह ही देता है – “मुझे बिलकुल उम्मीद नही थी कि डैड आप !! आप अरुण की बेतुकी बात मान जाएँगे ?”
इस पर वे इत्मिनान से कुर्सी से पीठ टिकाते हुए एक पेपर उसकी ओर बढ़ाते हुए कहते है – “पहले ये देखो |”
आकाश उस पेपर को देखता है जिसपर अभी अभी अरुण का साइन उन्होंने लिया था|
“ये तो डैड..!”
“हाँ जो काम हम अरुण से आसानी से करवा सकते है उससे जिद्द करके नही करवा सकते – अब जब वो खुद इस पेपर पर अपना साइन कर चुका है तो अब आसानी से उस मजदूर को निकाल बाहर कर सकते हो – और रही बात जीएस कालोनी जाने की तो मैं आज रोक सकता हूँ पर कल तो नहीं – वह कभी भी वहां जा सकता है और अगर मैं इसमें अपनी परमिशन जोड़ दूँ तो कम से वह जो कुछ भी करेगा उसकी हमे खबर तो होगी – इसलिए मैंने उसे केबिन देखने में इंगेज किया ताकि तब तक तुम वहां कुछ भी ऐसा न रहने दो जो उसके संवेदनशील मन पर अपना फर्क डाल सके – तुम समझ रहे हो न मैं क्या कह रहा हूँ |”
“यस डैड – बिलकुल समझ गया अच्छे से – इसलिए तो मैं मानता हूँ कि मेनेजिंग की असल पढाई तो मैंने आप से ही सीखी है जिसमे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे – और फिर कल को अगर अरुण तक वह मजदूर पहुँच भी गया तो हम उसी का साइन किया पेपर उसे दिखा देंगे कि सब कुछ उसकी मर्जी से भी हुआ है -|”
इस बात पर दोनों एकदूसरे को मुस्करा कर देख लेते है|......
क्रमशः ...........................
जीएस कालोनी में आकाश को याद नही कभी वह गया भी हो| उसके लिए ये गन्दी बस्ती थी जहाँ उसके जैसे व्यक्ति को होना ही नही चाहिए लेकिन आज अरुण की वजह से वह वहां आया था|
उसने अपने आदमियों के जरिए अरुण के पहुँचने से पहले ही बीमार, बुड्ढे और शिकायती लोगो को हटवा दिया था क्योंकि वह किसी भी तरह का झंझट नही चाहता था| उसने पहले से ही उस बड़ी कॉलोनी के अपने जाने की दिशा तय कर रखी थी कि वहां तक कार से वह अरुण को सभी का मुआयना करवा देगा|
कार में आगे ड्राईवर और उसके बगल में दीपांकर था तो पीछे आकाश और अरुण बैठे थे| यूँ तो आकाश कभी अपनी सिक्योरटी टीम के बिना कहीं नही जाता इसी कारण उसके साथ एक अन्य कार जरुर रहती पर अरुण आज इन सब तामझाम के साथ वहां नही जाना चाहता था तो न चाहते हुए भी आकाश को भी सब कुछ छोड़ना पड़ा|
आकाश कॉलोनी में घुसते ही उसे वह चमकता हुआ बोर्ड दिखाता है जिसमे कॉलोनी का नाम बोल्ड अक्षरों में छपा था उसका मानना था कि बाहरी छवि हमेशा उत्तम होनी चाहिए उसके बाद वह हेल्थ सेंटर से भी कार निकलवाता है जहाँ से गुजरते दो डॉक्टर तुरंत बाहर आकर उनका अभिवादन करते है साथ ही कुछ आदमी तुरंत ही कॉलोनी के रख रखाव पर कसीदा पढ़ने लगते है|
अरुण जिस विश्वास से अपने भाई के साथ उन नज़ारे को देख रहा था वह नही जानता था कि ये बस उसे दिखाए जाने वाले नज़ारे है वास्तविक नही| मुस्कराते चेहरे, साफ़ सुथरे कपड़ो में ख्रेलते बच्चे, खिलखिलाती औरते, काम से संतुष्ट वर्कर फिर दुःख तकलीफ तो दिखी ही नही वहां|
“तो अरुण अब चले – जो तुम्हे देखना था देख लिया तुमने |” एक आखिरी नज़र वह बाहर की ओर डालता हुआ अपने बगल में बैठे अरुण से कहता है जो कार के रुके होने पर बच्चो को पार्क में खेलता हुआ देख रहा था| उसने आकाश की बात सुनी ही नही और झट से कार से उतर गया| आकाश उसे रोकता ही रह गया और वह पल में उन बच्चो के पास पहुँच गया जो उन्मुक्त होकर पार्क की मिटटी में फिसलपट्टी से होकर गिर जाते थे और कसकर खिलखिला उठते|
अरुण उन्हें देखकर मुस्करा उठा| एक लड़के पर उसकी नज़र जाती है जो अपनी छोटी बाहन को बड़े प्यार से झूला झुलाकर मुस्करा रहा था तो वहीँ किनारे एक महिला एक नन्हे बच्चे को बहला बहलाकर खाना खिला रही थी पर बच्चा बार बार इधर उधर मुंह घुमाकर माँ को तंग करने लगता|
वह महिला देख भी नही पायी और अरुण उसके पास आता उस बच्चे को अपनी गोद में उठा लेता है| जहाँ वह बच्चा और उसकी माँ हैरान रह जाते है वही आकाश के इशारे पर दीपांकर भागता हुआ आता है लेकिन अरुण के इशारे पर उसे पीछे हटना पड़ता है|
वह महिला हैरानगी से मुंह खोले खड़ी रह गई| ये दृश्य उसकी कल्पना की कल्पना से भी परे था| मालिक के साफ़ कपड़ो में उस बच्चे के गंदे धूल भरे पैर के निशान पड़ गए थे ये देखते वह बुरी तरह घबरा गई पर इन सबके विपरीत अरुण उस बच्चे को बड़े प्यार से गोद में उठाए अपने रुमाल से उसका चेहरा पोछता हुआ उसकी माँ के हाथ से कौर लेकर बड़े प्यार से उसके मुंह में रख देता है| वह बच्चा भी चुपचाप वह कौर ले लेता है| पता नही हैरानगी थी या डर वह बच्चा मुंह में कौर तो ले लेता है पर जैसे चबाना भूल ही गया था|
आकाश ये सब तमाशा की तरह देख रहा था उसका तो अपना सर धुनने का जी हो आया जिन छोटे लोगो को वह अपने बगल से गुजरने नही दे सकता था और अरुण ने तो उसे अपने गोद में उठा लिया| अरुण की यही सब बातें दोनों भाइयों को बहुत दूर कर देती|
अब उसे यहाँ घुटन हो रही थी| वह जल्दी से जल्दी यहाँ से निकलना चाहता था| वह फिर कसकर घूरकर दीपांकर को देखता है और दीपांकर किसी तरह से हिम्मत करता अरुण के पास आता उस बच्चे को उसकी गोद से लेता हुआ उसे उसकी माँ को सौंपता हुआ जबरन की मुस्कान के साथ कहता है – “बहुत प्यारा बच्चा है – लो खिलाओ इसे – बिचारा थोड़ा डर गया है|”
अब अरुण की ओर देखता हुआ कहता है – “सर अब स्कूल देख लीजिए -|”
“हाँ ठीक है |” कहता हुआ अरुण पैदल ही आगे चलने लगा ये देख आकाश की हालत और खराब होने लगी, वह पल भर भी अपने एयर कंडीशन माहौल से निकलना नही चाहता था पर क्या करता आज तो अरुण की वजह से उसे भी पैदल जाना पड़ रहा था|
वे तीनो साथ में स्कूल जाने लगते है तो कार थोड़ा आगे पार्क करता ड्राईवर वही ठहर जाता है| आकाश उस माहौल पर अपनी सख्त नज़र को छुपाने अब काला चश्मा अपनी आँखों में चढ़ा लेता है|
दीपांकर उनके आने की सूचना पहले ही दे चुका था इससे सभी टीचर और बच्चे उसका स्वागत करने पहले से ही तैयार थे| अरुण आगे था और उसके पीछे आकाश जबकि दीपांकर बाहर खड़ा था|
अरुण के अंदर जाते आकाश कुछ दूर कोई हलचल महसूस करते दीपांकर को उधर भेजकर अरुण के पास चल देता है| अरुण अब बच्चो के बीच पहुंचकर उनके जैसा हो गया था, कोई बच्चा अतिउत्साह से उसे अपनी कॉपी दिखा रहा था तो कोई कविता सुनाने लगा| अरुण भी अपनी ओर से बढ़ चढ़ कर उनका उत्साहवर्धन कर रहा था जबकि आकाश इन सबसे बुरी तरह उकताया हुआ था पर चाहकर भी इसे जाहिर नही कर पा रहा था कि तभी दीपांकर आकर उसके कान में कुछ कहता है जिसे सुनते उसके चेहरे के हाव भाव बदल जाते है|
आकाश और अरुण का आना सुनकर कुबेर और उसके जैसे दूसरे वर्कर अपनी शिकायत सीधी दर्ज कराने आ रहे थे| इस स्थिति से निपटने आकाश तुरंत भूमिका बनाते हुए अरुण के पास पहुँचता है जो अब अपने साथ लाया सामान उनमे वितरीत करता कह रहा था –
“बच्चो ये किताबे नही सौगाते है – यही तुममे नई सोच और नए उत्साह का संचार करेगी – तुम्हारी दुनिया का विस्तार करेगी इसलिए खूब पढो और आगे बढ़ो - |”
अरुण की बात पर आकाश बीच में आता तुरंत कहने लगता है – “हाँ हाँ पढो – और इसके बाद तुम लोगो की जो भी जरूरते रह गई है वो सब भी जल्दी पूरी कर दी जाएगी – अब हम चलते है ताकि तुम लोग अपना क्लास कंटिन्यु कर सको|”
आकाश पूरे नाटकीय भाव से अपनी बात कहता अरुण को भी वापस लौटने का संकेत देता है|
“आप आए तो हमे बहुत अच्छा लगा – आप फिर से आएगे न ?” एक बच्चा आगे बढ़कर अरुण की ओर देखता हुआ कहता है तो अरुण भी उसके सामने झुककर बैठता हुआ दोनों हाथ से उसके चेहरे को थामते हुए कहता है – “बिलकुल बेटा – जरुर आएँगे और इस बार तुम्हारे लिए कुछ बढ़िया सरप्राईज भी होगा - |”
अरुण की आँखों की स्नेहपूर्ण विदाई बच्चो का मन जीत ले गई जबकि आकाश अपनी बात कहकर कबका आगे निकल चुका था| आकाश की जल्दबाजी से अरुण को भी उसके साथ तुरंत ही निकलना पड़ा|
***
जेलर एम् खान के चेहरे के सारे भाव शांत थे| वे किसी फ़ाइल को बड़े ध्यान से पढ़ रहे थे कि एक सिपाही ने आकर सैल्यूट किया| ध्यान भंग न होने पर सिपाही पुनः और तेजी से सैल्यूट करता है|
इससे उनका ध्यान सिपाही की ओर गया पर बिना सर उठाए वे कहते है – “तीन सौ अड़तीस को ले आओ|”
कुछ देर में सिपाही के पीछे तीन सौ अड़तीस नंबर का कैदी था| सिपाही उसे छोड़कर जा चुका था| एम् खान अभी भी फ़ाइल में लगे थे|
“नमस्ते सर |”
“ओह विवेक !”
एम खान अब सर उठाकर अपने सामने खड़े एक नौजवान को गौर से देखते हुए कहते है – “आओ विवेक बैठो |”
वह उनके इस अकस्मात् व्यवहार पर चौंक जाता है जिसे समझते हुए जेलर आगे कहते है –
“तुम यही सोच रहे होगे कि हमेशा की तरह मैंने तुम्हे तीन सौ अड़तीस क्यों नही बुलाया ?”
“जी हाँ |” उसका स्वर बेहद शुष्क था|
“इसलिए कि आज से तुम कैदी नहीं रहे – तुम्हे आजादी मिल गई है |”
इससे पहले कि विवेक कुछ पूछ पाता वे आगे कहने लगते है – “तुम्हारे अच्छे बर्ताव और तुम्हारे विधि में प्रथम श्रेणी आने से सरकार ने तुम्हे पन्द्रह दिन पहले ही तुम्हे मुक्त कर दिया -|”
“क्या मेरा रिजल्ट आ गया ?”
“हाँ – मैं खुद बहुत हैरान हूँ – तुम्हारे जैसा मेधावी, शांत इन्सान किसी के क़त्ल के इल्जाम में कैसे आ सकता है – क्या इसके पीछे कोई कहानी है ?” जेलर अब टहलते हुए विवेक के बिलकुल पीछे आ गए थे और अपनी नज़र उसी पर गडाए थे पर विवेक पूरी तरह से खामोश बना हुआ था|
“ठीक है तुम कुछ नही कहना चाहते हो तो कोई बात नही – ये तुम्हारे कपड़े, रूपए और किताबे है|”
सभी सामान मेज पर रखते हुए वे कहते रहे – “विवेक तुमने अपने इन तीन सालो में कानून का खूब अध्ययन किया जिसमे तुम प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण भी हुए तो कम से कम कानून तुमसे यह उम्मीद तो कर ही सकता है कि तुम अब कानून का उलंघन कभी नही करोगे |”
सामान उठाते हुए विवेक बेहद संजीदगी से कहता है – “जी बिलकुल – अब कानून को अच्छे से समझने के बाद अब मैं जो भी करूँगा कानून के दायरे में रह कर करूँगा|”
“वैसे अब आगे के लिए क्या सोचा है विवेक ?”
वे पुनः अपने स्थान पर बैठते हुए पूछते है|
“ये तो मैं अभी खुद भी नही जानता जेलर साहब – बस मुझे तो पहले वहां जाना है जहाँ मेरा अतीत अपनी अधूरी कहानी के साथ खड़ा है|” कहते कहते उसकी आंखे सोचने के ढंग से सिकुड़ती चली गई|
“आगे के लिए गुड लक विवेक |” कहते हुए जेलर उसकी फ़ाइल को दराज में डाल देते है|
विवेक खुले गगन के नीचे आजादी का अपना पहला कदम रखता हुआ मन ही मन बुदबुदाता है – ‘मैं वापस आ रहा हूँ दिवान्स तुम्हे बर्बाद करने |’
मुड़कर वह एक आखिरी नज़र जेल की तरफ देखता है लेकिन जल्दी ही वह पलटकर चौड़ी सड़क पर तेज कदमो से चल देता है|
क्रमशः ...........................
दिन भर की व्यस्त दिनचर्या के बाद अरुण कमरे में आते गर्दन में कसी टाई खींचकर एक किनारे फेंककर कोट शर्ट को खुद से अलग करता उन्मुक्त होता बिस्तर पर लेटा था| उसके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था पर शुरुवात कैसे करे अभी इस पर सोचते हुए उसने सिगरेट की ओर हाथ बढ़ाया ही था कि कमरे में तेजी से क्षितिज प्रवेश करते अरुण की तरफ आता है| उसकी मौजूदगी होते अरुण पैकेट तकिया के नीचे सरका देता है|
“चाचू !”
“क्षितिज बेटा अभी मैं आराम करूँगा तो थोड़ी देर बाद मिलता हूँ तुमसे |” अरुण अपनी तन्हाई में अपनी सिरगेट की तलब के लिए व्यग्र हो रहा था|
“चाचू मैं तो आपको ये बताने आया था कि इस बार भी मुझे मेरे सोशल इंट्रकशन में ग्रेड ए नही मिला|”
क्षितिज रूठा हुआ था उसके बगल में मुंह फुलाए बैठ जाता है इस पर अरुण उसे अपनी बाहों के बीच समेटता हुआ कहता है – “क्यों बेटा !! मैं तो गया था न तुम्हारे स्कूल |”
“हाँ चाचू यही मैंने अपनी मैम से भी पूछा – तब उन्होंने कहा कि जब तक डैडी और मम्मा साथ में नही आते तब तक इसमें ए ग्रेड नही मिलता -|” कहता कहता नन्हा क्षितिज रुआंसा होता हुआ कहने लगा – “चाचू – वे साथ में क्यों नही आते ? हमेशा मम्मा जाती है अकेली – आपके आने से भी नही मिला मुझे ए ग्रेड – वो रोहन है न उसे हमेशा ए ग्रेड मिलता है – उसके डैडी मम्मा हमेशा साथ में आते है – चाचू डैडी क्यों नही आते |”
“क्योंकि आपके डैडी बहुत बिजी रहते है न – वो बहुत बड़ा बिजनेस सँभालते है इसलिए बेटा पर मैं अबकी उनको बता दूंगा कि अगली बार वे जरुर जाए ताकि मेरे चैम्पियन क्षितिज को सबमे ए ग्रेड मिले – ओके – अब मुस्कराओ मेरा बच्चा |”
इस पर वह नन्हा फूल सच में खिल उठा जबकि अरुण जानता था कि ये उसके लिए झूठा आश्वासन ही है|
जाते जाते अचनाक कुछ याद करते हुए क्षितिज कहता है – “अच्छा चाचू आप चॉकलेट वाली आंटी को जरुर फोन कर लेना – देखो उन्होंने आज मुझे बहुत बहुत सारी चॉकलेट दी है – कल मैं अपने सारे फ्रेंड्स के साथ उन्हें शेयर करूँगा|”
“चॉकलेट वाली आंटी !! कौन !!” अरुण चौंकते हुए पूछता है|
“वही जो आपकी स्कूल फ्रेंड है न – ओहो चाचू आप भी न कितने भुलक्कड़ हो !” अपने माथे पर हाथ मारते हुए वह भोलेपन से कहता है|
अरुण समझ गया कि जरुर वर्तिका की बात कर रहा होगा|
“चाचू आप उनसे बात कर लो न – अबकी उन्होंने मुझसे प्रोमिस किया है कि नेक्स्ट हॉलिडे में वे मुझे और मेरे फ्रेंड्स को एमुयुजिंग पार्क ले जाएंगी|”
“ओको ओके मैं कर लूँगा फोन - |”
“ओके बाय चाचू |” अपनी बात कहता हुआ क्षितिज फट से कमरे से बाहर हो जाता है|
अभी क्षितिज के जाते अरुण ने सिगरेट के कुछ गहरे कश लिए ही थे कि नौकर अगली दस्तक के साथ आता उसे बता रहा था – “छोटे मालिक – वो वर्तिका दीदी आई है आपसे मिलने|”
वर्तिका का नाम सुनते अरुण तुरंत ही चौंकता हुआ करवट लेता बोल उठा – “तो कह दो मैं हूँ ही नही |”
“पर मैंने तो कह दिया कि आप हो |”
“उफ्फो – तो आब कह दो कि मैं सो रहा हूँ |”
“कोई बात नही मैं जगाए देती हूँ |” आवाज के साथ दोनों दरवाजे की ओर देखते है जहाँ से वर्तिका अन्दर प्रवेश कर रही थी| वर्तिका को देखते जहाँ अरुण उठकर बैठ गया वही नौकर बीच में न पड़ता चुपचाप नौ दो ग्यारह हो जाता है|
“तुम्हे नींद से जगाने ही तो आई हूँ |” बहकती हुई कहती वह अरुण के नजदीक आकर बैठती उसके कंधे से लग जाती है|
“अ हाँ – वो जस्ट अभी नींद खुली तुम्हारी आवाज से |” अरुण सकपकाते हुए उससे दूर होता मज़बूरी में सिगरेट एशट्रे के सुपुर्द कर देता है|
“अरुण कल कहाँ थे तुम – पता है कल रात कितना मिस किया मैंने तुम्हे – कितना कुछ प्लान कर रखा था मैंने हमारे लिए – चलो आज वही सब करते है – अभी बाहर चलो मेरे साथ |” कहती हुई उसकी बाजू पकड़ती हुई उसे अपनी ओर खींचने लगती है|
“अरे पहले ये बताओ – क्या लोगी – चाय !”
“तुम्हारा पूरा समय |”
“कॉफ़ी !!”
“अपने दिल में थोड़ी सी जगह दे दो अरुण और कुछ नही चाहिए मुझे |” वह अपनी गहरी गहरी आंखे उसकी आँखों में डालती हुई उसकी ओर झुकती हुई कहती है|
जबकि अरुण उससे बचने पीछे की ओर झुकते हुए कहता रहा – “ओके – मैं जूस मंगवाता हूँ तुम्हारे लिए |”
कहता हुआ अरुण तेजी से उसकी पकड़ से अलग होता हुआ अब खड़ा था| वर्तिका हैरान उसे देखती रही क्योंकि अरुण तेजी से कमरे से बाहर जा रहा था|
अरुण तेजी से अपने कमरे से बाहर निकल ही रहा था कि दूसरी ओर की सीढियों से उसे मेनका आती हुई दिखी जिसे देखते तुरंत उसके पास आता हुआ अरुण उसे पकड़ते हुए कह रहा था – “मेरी प्यारी बहन – मेरी एक हेल्प कर दे – वो वर्तिका आई है उसके पास थोड़ी देर चली जाओ – वो क्या है मुझे बहुत जरुरी काम याद आ गया तो मुझे जाना पड़ रहा है – वो बैठी बैठी बोर हो जाएगी न |”
कहता हुआ अरुण बेख्याली में आगे बढ़ते हुए नौकर द्वारा लायी टीशर्ट झट से पहनता हुआ उसी तेजी से चलता हुआ बाहर जाने लगता है|
जबकि अपनी जगह खड़ी मेनका इससे हैरान थी क्योंकि उसकी नज़रो के सामने वर्तिका उदासी से खड़ी उन्हें ही देख रही थी|
***
विवेक बस स्टैड पर खड़ा लोकल बस का इंतजार कर रहा था| वह अपनी धुन में सामने सडक पर दौड़ते शहर को देख रहा था जो बेपरवाह की तरह बस भागे जा रहा था जैसे हर किसी को कही न कही पहुँच जाने की जल्दी हो पर उसे कहाँ जाना है उसे खुद ही नही पता था !! उसकी मंजिल तो अभी खोयी हुई थी !!
वह अपने ख्याल में डूबा सामने देख रहा था|
“खावो अवो सींग दाना ...मस्त सींग दाना |”
अचानक से आवाज पर उसका ध्यान अपनी बगल से गुजरते एक लड़के पर जाता है जो गर्दन में टोकरी फंसाए वहां घूम रहा था| एक नज़र उसे देखने के बाद विवेक दुबारा अपने ख्याल में खो जाता है लेकिन वह लड़का आवाज देता उसके आस पास घूमता रहता है|
उस वक़्त बस स्टॉप पर विवेक के अलावा कोई था नही और एक बार उसकी ओर देख लेने से शायद से उस लड़के को उससे कुछ उम्मीद बन गई थी इसलिए बार बार आवाज देता वह उसके आस पास घूम रहा था|
विवेक उसका मर्म समझ रहा था| आखिर अभाव में उम्मीद की एक जरा भी रौशनी किस तरह उनका भूखा पेट भरती है ये उससे बेहतर कौन जानता होगा |
उसका मन नही था फिर भी वह अपनी जेब टटोलता हुआ एक बीस का नोट निकालकर उसकी ओर बढ़ाता है| ये देखते वह लड़का जैसे इसी बात का इंतजार कर रहा था| वह खुश होता हुआ बोलता है – “खूब मस्त बनावो साब – एक बार खाओगे तो दुबारा मुन्ना भाई को ढूंढते आओगे – ये लो साब एक्स्ट्रा मसाला एक्स्ट्रा टेस्टी |” कहता हुआ वह अपने अभ्यस्त हाथ से सींग दाना बनाता हुआ एक पोंगी उसकी ओर बढ़ा देता है|
विवेक उसे ले लेता है| उसक मन तो नही था पर बस के आने की देरी और उबाऊ वक़्त काटने वह पोंगी को देखने लगता है कि तभी उसे लगता है जैसे उसने कुछ देखा है और पल में वह पोंगी खोल देता है जिससे सारे सींग दाने वही जमीं पर बिखर जाते है|
लड़का अभी वहां से गया नही था इसलिए ये सब देखता वह भी हैरान रह जाता है जबकि विवेक अब उस कागज के टुकडे को खोलकर घूरते हुए उसे देख रहा था|
“दिवांस के बढ़ते कदम |” हैड लाइन देखते जैसे उसकी आँखों में खून उतर आया और अगले ही पल वह कागज को मुट्ठी में भींचते हुए उसे कोने के कचरे की ओर फेंक देता है तभी वहां सवारी से खचा खच भरी बस आती है जिसपर चढ़ने के लिए विवेक उसकी ओर बढ़ जाता है|
क्रमशः ...........................
अरुण अपनी भाभी को क्षितिज के मन की बात बता देता है जिसे आंख झुकाए भूमि चुपचाप सुन लेती है| बाकि उसके मन में कैसा तूफान उठने लगा था ये हर बार वह सबसे छिपा ले जाती थी|
हमेशा की तरह आधी रात में आकाश अपने कमरे मे लौटा था| नशे में चूर आते वह बिस्तर पर गिर पड़ा था| भूमि यूँ तो न उसका अब कभी इंतज़ार करती थी और न वे साथ होकर भी साथ रहते| हालाँकि आज क्षितिज के लिए वह आकाश का इंतजार कर रही थी लेकिन उसकी तो बात करने लायक हालत भी नही थी| भूमि एक नज़र उसकी हालत देखती है फिर मनमसोजे वापस अपने कमरे में चली जाती है|
***
रंजित नाम था ऊँचाइयों का चाहे वह बिजनेस में हो या समाज से छिपे अपने स्मगलिंग के काम में| इस कारण उसका अच्छा खासा खौफ सबमे बना रहता था और इसमें उसका सीधा हाथ था सेल्विन नाम का हैडसम जवान बन्दा जो रंजित का चलता फिरता दिमाग था| उसके हर काले सफ़ेद काम का पूरा जानकर और हमराज़ भी| उसके बिना न रंजित कुछ सोचता था और न करता था|
अभी वे अपने नए कन्साइन्मेन्ट ऑर्डर पर बात कर रहे थे तभी रंजित के घर की एक नौकरानी रूपा आकर उसे वर्तिका के बारे में बताती है कि दिन से उसने न कुछ खाया है और न कमरे से बाहर ही निकली है| रंजित ने रूपा को खास वर्तिका की देख रेख के लिए रखा था साथ ही उसे ही बस इस बात की इजाज़त थी कि वह कभी भी आकर उसे वर्तिका के बारे में खबर कर सकती थी| वह एक प्रौढ़ स्त्री थी और काफी समय से वर्तिका की रेख्रेख में लगी थी|
उससे वर्तिका का हाल सुनते अब रंजित का रुकना असम्भव हो गया और वह तुरंत उसके कमरे तक पहुंचा| कमरा खुला था| वह लॉक घुमाकर अंदर प्रवेश करता है| वह घर का सबसे शानदार और बड़ा कमरा था| लेकिन आज अंदर प्रवेश करते एक नज़र कमरे को देखते उसके होश ही उड़ गए थे| ऐसा लग रहा था जैसे कमरे में कोई भूचाल आया हो| हर एक सामान इधर उधर बिखरा पड़ा था| साफ़ नज़र आ रहा था कि किस तरह वर्तिका के कोप का भाजन बना था वह कमरा| दीवार की टंगी पेंटिंग से लेकर कोने कोने सजे सजावटी सामान, कबर्ड के कपड़े, यहाँ तक कि कांच की मेज भी पूरी तराह से क्षतिग्रस्त हुई पड़ी थी|
रंजित फर्श में पड़े कांच से बचता हुआ अंदर के कमरे में जाता है जहाँ बिस्तर पर पड़ी वर्तिका अभी तक सुबक रही थी| ऐसा लग रहा था जैसे बहुत देर रोने के बाद की नींद में भी वह अभी तक हिचकी ले रही थी| उसकी हर आहट उसका दर्द बयां कर दे रही थी|
ये सब रंजित के लिए दिल दहला देने वाला दृश्य था| अपनी दिल की टुकड़ा बहन जिसका एक आंसू वह नही देख सकता था वह आज आंसुओं की नदी में गोता लगा रही थी| अब तो इसकी वजह जानने को वह वर्तिका के पास पहुँचता उसके बगल में बैठता प्यार से उसका सर सहलाने लगता है|
“मेरी गुड़िया - |” वह उसका सर सहलाता उसे पुकारता है|
वर्तिका भी जैसे उखड़ी नींद सोयी थी रंजित का स्पर्श पाती तुरंत आंख खोल बैठती है| और बेसब्र होकर उसका हाथ पकड़े फिर से बिलख कर रो पड़ती है| उसकी ऐसी हालत पर रंजित अब उसका चेहरा दोनों हाथ में लेता प्यार से देखता हुआ कह रहा था –
“क्या हुआ बच्चा – तुम्हे ये सब पसंद नही रहा – कोई बात नही - मुझे भी अब ये दो साल पुराना इंटीरियर बेकार लगने लगा था – कल ही देखना तुम्हारे कमरे को एक नया लुक देने मैं बेस्ट इंटीरियर डेकोर को बुलवाता हुआ – फिर मेरी बहन जो चाहेगी वही उसके कमरे में रहेगा – बस एक बार बता भर दो कि मेरी प्यारी गुड़िया को क्या चाहिए – कही भी होगी वो चीज – वादा है वो मेरी वर्तिका के पास ही होगी – बोलो क्या चाहिए – बताओ बच्चा – तुम बस उस चीज का नाम भर ले लो – मैं लाकर दूंगा उस चीज को....|”
“अरुण...|” रंजित की अधूरी बात के बीच काटते हुए वर्तिका अपनी भीगी आवाज में कह उठी|
रंजित जानता तो था पर वर्तिका उसे लेकर इतना आकुल होगी ये उसे अंदाजा नही था| पर नाम लिया है तो वो उसे देना ही होगा आखिर यही वादा रहा था उसका अपनी बहन के लिए खुद से |
“बस इतनी सी बात - |”
इस पर वर्तिका रोना बंद करती हैरान नज़रे अपने भाई की ओर डालती है जो अभी भी बड़े प्यार से उसका सर सहलाते हुए कह रहा था –
“ये तो बहुत छोटी सी चीज है – वैसे भी ऐसी कोई चीज बनी ही नही जो मेरी बहन की पहुँच से दूर हो |”
“भईया – आप – समझ नही रहे |” हिचकती हुई वर्तिका कहती है|
“तेरा एक शब्द ही मेरे लिए पूरी की पूरी कहानी होता है –|” वह मुस्कराते हुए उसका सर अपनी गोद में रखते हुए कह रहा था – “बस दो दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ और लौटते ही तुरंत सेठ घनश्याम से मीटिंग रखता हुआ और उसके तुरंत बाद बस शादी पक्की |”
“सच भईया !”
“और क्या – मेरी बात टाल सके अभी ये किसी में दम नही – झट मंगनी पट शादी होगी देखना – और देखना ऐसी धूम से करूंगा अपनी लाडली की शादी कि सालों लोग याद रखेंगे – दुनिया की सबसे बेस्ट दुलहन बनेगी मेरी गुड़िया |”
रंजित कहते कहते जैसे किसी ख्वाब में जीने लगा था वही वर्तिका की आँखों में दुबारा चमक लौट आई थी|
“बस यही दुःख रहेगा कि उसके बाद किसका मुंह देखकर तेरा भाई दिन की शुरुवात करेगा – तू ही तो मेरी सारी दुनिया है|”
“भईया |” कहती हुई अपने भाई से लिपट कर वर्तिका एकबार फिर बिलख पड़ती है|
रंजित अभी भी उसका सर सहलाते उसकी शादी का खवाब आँखों में बुनना शुरू भी कर चुका था|
***
बहुत रात हो चुकी थी लेकिन सडकों पर गाड़ियों की आवाजाही अभी भी बनी हुई थी| देख कर लग रहा जैसे शहर की रात दिन में तब्दील हो गई हो| क्लबो, होटलों के बाहर गाड़ियों का हुजूम सा नजर आ रहा था| उन सबके बीच विवेक थके कदमो से भी भरसक तेजी से सड़क के किनारे किनारे चला जा रहा था| अब वह उन साफ साफ़ रास्तो को पार करता उनसे काफी दूर निकल आया था जहाँ दूर दूर तक घनी बस्ती का संसार फैला हुआ था| जहाँ फुटपाथ में गरीबी ओढ़े बिछाए तकदीर के मारे सोए रहे थे| अब चारों ओर उसे घोर सन्नाटा छाया हुआ दिखाई पड़ रहा था| ये दुनिया का वह शोर और सन्नाटे का विभाजन था जो पल में अमीर गरीब को अलग कर देते थे| जहाँ चमकता शहर अपनी रौनक में डूबा था वही आभाव के मारे अपनी दुनिया में गुमनाम कही गुम थे|
चलता हुआ वह शांति कुञ्ज के उसी चरमराते हुए घर के बाहर खड़ा था जिसके अंदर वह कभी अपने पिता को उनकी बेबसी के साथ छोड़कर चला गया था| एक नज़र में उस बिखरे घर को देखता वह घर के अंदर आता है| प्रवेश करते ही उसकी नज़र चारपाई पर पड़े वृद्ध देह पर जाती है जो एक ओर को लेटे बेसुध पड़े थे|
बहुत देर तक वह यूँही खड़ा उसी ओर अपलक देखता रहा ऐसा करते रहने से उसकी आँखों में खारा समन्दर उमड़ आया था|
“पिता जी – पिताजी देखिए मैं आपका बेटा वापिस आ गया |” चारपाई की ओर झुकता हुआ विवेक उसके बहुत पास था|
“आप कुछ कहते क्यों नही पिता जी – क्या नाराज है मुझसे – होना ही चाहिए आखिर आपको बिना बताए जो चला गया था|” विवेक भरी आँखों से उन्हें देखता अपना हाथ उनके सर पर रखता हुआ कहता रहा – “कुछ तो बोलिए – आंखे खोलकर मुझे देखिए तो – अब मैं वादा करता हूँ कि आपको छोड़कर कही नही जाऊंगा – आपके पास ही रहूँगा – पिताजी मैं जानता हूँ आप मुझे बहुत प्यार करते है जो ज्यादा देर मुझसे नाराज़ नही रह पाएँगे – कुछ तो बोलिए – देखिए आपका माथा कैसा ठंडा पड़ गया है – आपको ठण्ड लग रही होगी |” कहता हुआ वह एक चादर अपने पिता को ओढाने लगता है|
“पिता जी !!”
“वे अब कुछ नही बोलेंगे |”
अचानक की आवाज पर विवेक मुड़कर पीछे देखता है|
“बहुत इंतजार किया तुम्हारा – रात दिन तुम्हे ही याद करते रहे पर जाने अचानक तुम कहाँ चले गए थे ?”
विवेक के चेहरे पर दर्द का सैलाब उमड़ आया था|
वह आदमी अभी भी कह रहा था – “काश कुछ क्षण पहले आ जाते तो वे भी तुम्हे आखिरी नज़र देख पाते |”
“नही...|” विवेक बुरी तरह चीत्कार पड़ा|
अब विवेक की नज़र उस आदमी के हाथों पर जाती है जिसमे वह सफ़ेद कफ़न पकडे था|
“तो क्या – तो क्या – वे मुझे अकेला छोड़कर चले गए |” विवेक बुरी तरह चीखता रहा – “मैं जानता हूँ सब उस कमीने की वजह से हुआ है – उसी ने बर्बाद कर दिया मेरा सब कुछ – मैं उसे जिन्दा नही छोड़ने वाला – मैं ऐसी दुनिया को आग लगा दूंगा जहाँ ऐसे वहशी दरिन्दे खुलेआम घूमते है – नही छोडुंगा – किसी को नही छोडुंगा|” बदहवासी में चीखता हुआ विवेक बाहर जाने को आतुर होता है| अब तक उसकी चीख से आस पास कुछ लोगो की भीड़ जमा हो चुकी थी जो उसके तेवर देख घबरा जाते है| वहां इकठ्ठा हुए लोग उसे पकड़े थे और विवेक अपनी बदहवासी में अभी भी चीखे जा रहा था| उसका बदन ढेरों पसीना छोड़ रहा था| उसकी हालत बिलकुल पागलों जैसी हो गई थी|
क्रमशः ...........................
वर्तिका को शांत करते उसके सोने के बाद ही रंजीत कमरे से बाहर निकला| इस वक़्त एक अलग की उद्वेद का भाव उसके हाव भाव में छाया था| सुबह उसे अपने निजी काम से शहर से बाहर जाना था| लेकिन अब उसका समस्त ध्यान तो दो दिन बाद की सेठ घनश्याम से होने वाली मुलाकात पर टिका था|
सुबह होते ही सेल्विन उसकी खिदमत में हाजिर था| तब रंजीत फोन पर अपने मेनेजर को अगले टेंडर पर जरुरी निर्देश दे रहा था| अपनी बात खत्म करते अब वह सेल्विन की ओर देखता हुआ कहता है –
“सेल्विन – मेरे लौटते ही मैं पहली मुलाकात सेठ घनश्याम दीवान से करूँगा – उसका इंतजाम करके रखना - |”
“हो जाएगा सर |” फिर कुछ पल रूककर वह दबे स्वर में आगे पूछता है – “अगर इज़ाज़त हो तो एक बात पूछना चाहता हूँ ?”
“पूछो सेल्विन वैसे तुम्हे कब से मेरी परमिशन की जरुरत पड़ने लगी|”
“आप जानते है ये सरकारी टेंडर आपके लिए और आपके बिजनेस के लिए एक स्वर्णिम मौका है फिर आप उसे वापस लेने को क्यों बोल रहे थे – जबकि आप जानते है कि एक आप ही है उनके लिए कडा मुकाबला और आपके हटते वह टेंडर दिवांस की झोली में आराम से गिर जाएगा – फिर ?”
“बहुत अच्छे से जानता हूँ ये बात – पर मेरी एक ही कमजोर कड़ी है आज उसकी इच्छा के लिए ऐसे एक क्या हजारो टेंडर कुर्बान कर सकता हूँ – खैर सेल्विन मैं बहुत जल्दी इस नए कन्साइन्मेन्ट को निपटाकर वापस लौटना चाहता हूँ |”
“सर कोशिश रहेगी – मैं तो आपको परेशान भी नही होने देता पर बहुत जरुरी था आपका चलना - |”
“ठीक है सेल्विन – तुमने कहा है तो इसीलिए मैं चल रहा हूँ |”
“सर आज कल पुलिस की गश्त समंदर पर बहुत हो गई है इसलिए आप चलेंगे तो सब काम थोड़ा आसान हो जाएगा – पार्टी का विश्वास भी हम पर रहेगा |”
सेल्विन की बात पर सहमति देता रंजीतउसके साथ तुरंत ही बाहर निकल जाता है|
***
सारी रात भूमि ने आकाश से क्षितिज की बात कहने की बेचैनी में काटी| एक तरह से बहुत दिनों का गुबार था उसके मन में जो आज शायद तूफान सा मन से निकलने को बेचैन हो उठा था|
आकाश कमरे में आरामकुर्सी पर बैठा ब्लैक कॉफ़ी पीते पीते किसी बिजनेस मैगजीन में मग्न था|
“मुझे तुमसे कुछ बात करनी है|” भूमि उसके समीप खड़ी होती बेहद सपाट स्वर में कहती है|
आकाश बिना उसकी ओर देखते कप हवा में उठाता मौन ही उसे कहने के लिए कहता है|
“क्षितिज के बारे में !”
“सुन रहा हूँ |”
“क्षितिज के स्कूल की सोशल एक्टिविटी में वह चाहता है कि कम से कम एकबार उसके पेरेंट्स उसमे हिस्सा ले |”
“तो प्रोब्लेम क्या है जाओ |” अभी भी वह उस मैगजीन को देखता हुआ शुष्क भाव से कहता है|
“शायद तुमने सुना नही ध्यान से मैं पेरेंट्स की बात कर रही हूँ – उसकी टीचर चाहती है कि एक बार उसके पेरेंट्स साथ में आए |”
“पहले ये तय करो कि ये चाहता कौन है !! क्षितिज, टीचर या तुम !! क्षितिज तो बच्चा है और टीचर उसकी इतनी औकात नही कि वह आकाश दीवान को बुलाए और वह उसके सामने हाजिर हो जाए और रही बात तुम्हारी तो तुम्हे तो किसी की जरुरत ही कहाँ है – तुम तो सुपर वुमेन हो -|” ठसक भरी हंसी से हँसता हुआ आकाश मैगजीन का अगला पन्ना पलट लेता है पर एक बार भी भूमि की ओर नही देखता|
इससे भूमि खीज उठी और अपना धैर्य खोती उसके हाथ से मैगजीन छीनकर आवेश में उसके चीथड़े चीथड़े कर डालती है|
इस पर आकाश एकदम से उसकी ओर मुड़ता गुस्से में चीखा –
“ये क्या हरकत है – पागल हो गई हो क्या ?” आकाश भूमि की बांह पकडे उसे धकेलने लगता है|
तिसपर उसकी पकड़ से वह छूटती हुई उसपर चीखती है – “डोंट टच मी |”
“क्यों मेरे छूते तुम्हे कांटे लगते है !!” वह दांत पीसता हुआ उसे घूरता है|
“तो तुम क्या समझते हो – मैं तुम्हारी हरकतों से नावाकिफ हूँ – मैं तुम्हे खूब समझती हूँ आकाश – बस मेरी ख़ामोशी को मेरी कमजोरी मत समझ लेना तुम |”
“ओह तो क्या नज़र रखे हो तुम मुझपर !”
“मुझे तुमपर नज़र रखने की कोई जरुरत नही है – न तुमसे बहस करते उलझने की – पर बात क्षितिज की थी इसलिए तुम्हे तुम्हारा फर्ज याद दिला रही थी – कम से कम तुम्हारी इस व्यस्त दुनिया में से कुछ पल का तुम्हारा बेटा तो अधिकारी है ही |”
“रबिश – एक जरा सी बात का बतंगड़ बना रही हो – और मुझे अच्छे से पता है कि मुझे मेरे बेटे के लिए क्या करना चाहिए – इसके लिए मुझे तुम्हारी राय की कोई जरुरत नही है - उसकी हर जरुरत पूरी की है मैंने – और भी जो होंगी वो भी खरीद ली जाएंगी – सो प्लीज़ स्टॉप बोदरिंग मी |”
“यही तो मुश्किल है कि तुम्हे उसकी जरूरतों का अहसास ही कहाँ है – अपनी जरूरतों से ऊपर उठो – तभी तो पता चलेगा |”
अबकी मुड़कर वह अपनी तीखी नज़र उसपर डालता हुआ कहता है – “अपनी हद में रहो भूमि |”
“हद तो तुम रोजाना जाने किन किन के संग पार करते हो |”
“भूमि !!” आकाश ने तेज किस्म की सरगोशी की|
“अगर ऐसा ही था तो शादी क्यों की मुझसे – क्यों की मेरी जिंदगी बर्बाद – सिर्फ इसलिए कि अपने पिता की करोडो की सम्पति की मैं अकेली वारिस थी !”
अचानक आकाश का मुंह धुँआ हो उठा जैसे जोर का झटका लगा हो|
“इससे तुम्हारा क्या मतलब है ?”
“क्यों बात चुभ गई !! पर क्या करूँ सच कडुवा ही होता है मिस्टर आकाश |”
“शटअप - |” कहता हुआ आकाश भूमि की ओर गुस्से से हाथ उठा देता है|
पर क्या पता था कि भूमि उसके बढे हाथ को रोककर झटकती हुई चीखने लगती है – “ऐसी गलती कभी दुबारा करने की सोचना भी नही |”
अपना हाथ झटकते आकाश रक्ताभ आँखों से उसे देखता हुआ बोला – “तुमसे जो करते बनता है करो – मेरे संग सर फोड़ने की जरुरत नही है – मुझे तुम्हारी बकवास सुननी ही नही है |”
आकाश झुंझलाता हुआ कमरे से बाहर निकलने लगता है|
“हाँ मत सुनो – क्योंकि तुम्हारे मेरे बीच अब कहने सुनने को कुछ है भी नही – वक़्त आने पर मैं तुम्हे वो तमाशा दिखाउंगी कि तुम याद रखोगे और इस गुमान में मत रहना कि मैं घूँघट में मुंह छिपाए भाग्य का रोना रोती रहूंगी – सुना तुमने !”
आकाश कमरे से जा चुका था और पीछे भूमि चीखती मन का गुबार निकालती रही| भूमि की आँखों में अब अंगारे सैलाब बन चुके थे|
***
सभी मजदूर फैक्ट्री की ओर बढ़ रहे थे उनमे कुबेर भी था पर तभी उसे फैक्ट्री का चौकीदार मुख्य गेट पर ही रोक देता है और उसे नोटिस बोर्ड की ओर देखने की ओर इशारा करता है|
कुबेर हैरान नज़रो से उस नोटिस की ओर देखता है जिसमे सभी कुछ अंग्रेजी में लिखा था पर उसके टर्मिनेशन का ऑर्डर सिर्फ हिंदी में लिखा था| वह औचक कुछ पल तक उस कागज को देखता रहा| उसके हाथ में पकड़ा टिफिन और उसकी साँसे जैसे वही माहौल में ठहरी रह गई थी| बाकि भीड़ उसकी हालत से बेखबर फैक्ट्री में समाती रही|
...........क्रमशः..........
अरुण रोजाना की तरह तैयार होकर दादाजी को लेकर उनके आश्रम के लिए निकलने वाला था| वह सुनश्चित समय पर उनके पास खड़ा था| पर उनको तैयार न पाकर वह घबराकर पूछता है – “क्या हुआ दादाजी – आपकी तबियत तो ठीक है न !!”
“हाँ हाँ बेटा मैं ठीक हूँ पर आज आश्रम जाने का कोई फायदा नही – सुना है वहां कोई नेता आ रहा है तो बहुत ज्यादा भीड़ होगी और जानते ही हो बेटा भीड़ में मेरा दम घुटने लगता है – अब भीड़ सहन नही होती |”
आगे बढ़कर दादाजी के कंधे पकड़ते हुए कहता है – “तो कोई बात नही आश्रम न सही कही और ही चलेंगे पर आपकी सैर तो होगी ही – आप तैयार हो जाइए हम बीच पर चलेंगे |”
इस बात पर खुश होते वे सहमति देते अपना कुर्ता बदलने लगते है| उनका इंतजार करते अरुण बाहर आ जाता है|
“अरे राजवीर इतनी सुबह कैसे – मैंने तो नही बुलाया तुम्हे ?” अरुण सामने से आते राजवीर को देखता है जो उसे विश करता हुआ उसके सामने खड़ा था|
“वो क्या है मैं घर गया ही नही सर – बड़े साहब का हुक्म था कि आपके साथ साथ रहना है मुझे |”
“पर आज नही – आज मैं बीच पर दादाजी को लेकर जा रहा हूँ और हाँ बड़े साहब को बता देना कि मैं समय पर ऑफिस भी पहुँच जाऊंगा |”
“पर सर कार मैं ड्राइव करके ले चलता हूँ न |”
अबकी अरुण कुछ अलग भाव से उसका चेहरा देखता हुआ कहता है – “चिंता मत करो राजवीर अपने बड़े साहब से मिलना तो बता देना कि मैं अपने अतीत और गलती दोनों का सामना खुद कर सकता हूँ – ड्राइव मैं ही करूँगा और जब तुम्हारी जरुरत होगी तब तुम्हे बुलवा लूँगा |”
राजवीर फिर कुछ न कह सका और अरुण आगे बढ़ गया| वह ड्राईवर द्वरा पोर्च पर पार्क कार की ड्राइविंग सीट का दरवाजा खोलता ही है कि किसी का हाथ अपनी पीठ पर महसूस करता वह पलटकर पीछे देखता है और उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है|
“तुम्हे रंगे हाथो पकड़ने का इससे अच्छा मौका नही – मैंने सोचा दादाजी के साथ निकल रहे होगे बस पहुँच जाना उसी टाइम |”
“मुझे छोड़ अपनी बता – पार्टी के बाद से तो तू ही गायब चल रहा है|” योगेश को देखता हुआ वह अरुण कहता है|
इस पर एक बड़ी अंगड़ाई लेता हुआ योगेश कहता है - “आहा क्या बताऊ पार्टी का साइड इफेक्ट चल रहा है पर तेरी समझ की बात नही – तू छोड़ |”
“हाँ बखूबी समझता हूँ तेरा साइड इफेक्ट |” कहता हुआ अरुण अब ड्राइविंग सीट पर बैठते सीट बेल्ट लगाने लगता है|
“दादा जी प्रणाम |”
वहां दादाजी को आते देख अब योगेश झट से उनके पास पहुँचता उनका अभिवादन करता है तिस पर वे भरपूर मुस्कान से आर्शीर्वाद में हाथ उठाते हुए कहते है -
“कैसे हो योगेश – चलो अरुण के बहाने नज़र तो आए |”
“अरे आप तो खूब फिट नज़र आ रहे है – मैंने कहा था न यहाँ अरुण आया और आप दुरुस्त हुए |”
“हाँ ये मुझे कहाँ अकेला छोड़ता है – इसका साथ ही मेरी ऊर्जा है|” कहते हुए वे एक नौकर की सहायता से गाड़ी के पीछे बैठने लगते है|
उनके बैठते बडी भी अपने सेवक के साथ वहां लपकता हुआ आ जाता है| असल में रोजाना बडी और दादाजी के साथ के लिए वह सुबह उन्हें सैर पर जरुर ले जाता| सभी पीछे बैठ गए तो योगेश अरुण के साथ वाली सीट पर बैठते हुए कहने लगा -
“इसका क्या भरोसा – फिर चला गया तो – मैं कहता हूँ कुछ परमानेंट उपाये कर डालिए इसका |” योगेश अपनी सीट बेल्ट लगाता हुआ दादाजी की ओर झुकता हुआ कह रहा था|
“!!!” वे बात नही समझे|
अरुण समझ गया कि ये बराबर पकाने वाला है इसलिए वह इंजन स्टार्ट करता कार को रेस देता वहां से निकलने लगता है|
योगेश अपनी रौ में कहता रहा - “शादी – शादी कर दीजिए इसकी – फिर ये न कही भागेगा और न आप अकेले रहेंगे – बस समस्या छू|”
इस पर बड़ी तगड़ी तौर पर अरुण उसे घूरता हुआ देखता है| वही दादाजी उसकी बात पर हंस रहे थे|
“अच्छा दादा जी कहिए मैंने कुछ गलत कहा क्या – हमेशा यूँही मुझे घूरता हुआ मुझे चुप करा देता है और मैं इसके आगे कुछ बोल ही नहीं पाता हूँ |”
“हो गया तेरा – या कुछ और रायता फैलाना है !!”
“नही बस आज का कोटा पूरा –|” कहता हुआ जहाँ योगेश मुस्करा रहा था वही दादा जी हंस पड़े थे, साथ बैठा नौकर भी चुपचाप हंस रहा था| बडी भी पूछ हिलाता जैसे इस बात पर अपना समर्थन दे रहा था|
रास्ते भर योगेश यूँही बातो के छल्ले उडाता रहा और रास्ता भी इससे बस यूँही पल में कट गया|
“और ये क्या !! तब से ये इन्स्टूमेंटल बज रहा है – तू भी न बिना बोल के संगीत की दुनिया में जी रहा है – कुछ तरंग के साथ कुछ गीत भी होना चाहिए |” कहता हुआ अपनी पसंद का जैश लगाकर आंखे बंद किए झूमने लगता है|
“वैसे हम जा कहाँ रहे है ?”
योगेश की बात पर अरुण होंठो के विस्तार के साथ कहता है – “बड़ी जल्दी पूछ लिया तूने ?”
“हाँ तो तू मेरा किडनैप थोड़े कर लेगा – अपना कीमती समय निकालकर मिलने आया हूँ तेरे से – पर तुझे मेरी कीमत ही कहाँ है – हाँ वैसे भी हीरे की कीमत जौहरी को ही होती है – तभी बस बिचारी लड़कियां ही मेरे समय की कीमत समझती है – कभी मेरे साथ अपना टाइम वेस्ट नही करती बस इन्वेस्ट करती है|” अपनी बात खत्म करते दांत दिखाता हुआ व्यू मिरर सीधा करता अपनी शक्ल चेक करता है|
उसकी इस हरकत पर अरुण व्यू मिरर का एंगल ठीक करता हुआ उसे दुबारा घूरता है|
कुछ ही देर में वे सभी सूरत शहर से बाहर के सुवली बीच पर मौजूद थे| वहां पहुँचते ही एक अलग सी तरावट मन में अपना जमावड़ ज़माने लगती है|
पर बीच को देखते योगेश फिर शुरू हो जाता है – “ए लो बीच भी ऐसा चुना जहाँ कम लोग ही आते है – तुझे इंसानों से एलर्जी है क्या |”
“भीड़ पसंद नही |” कहता हुआ पीछे देखता हुआ कहता है – “दादाजी आप यही रुकिए मैं पार्किंग में लगाकर आता हूँ |”
“ठीक है बेटा |” दादाजी के साथ साथ बडी और उसका सेवक भी उतर जाता है|
अब वे सभी समन्दर की ओर बढ़ रहे थे जबकि अरुण कार घुमाता हुआ पार्किंग की ओर ले जा रहा था| योगेश अभी भी साथ में बैठा था जो कह रहा था –
“भीड़ क्या तुझे तो अपने बचपन के दोस्तों से भी अब एलर्जी होने लगी है|”
इस पर अरुण स्टेरिंग घुमाते घुमाते कहता है -
“क्या कहना चाहता है सीधा बोल – फालतू में बात को घुमा घुमाकर चक्करघिन्नी न बना|”
“वर्तिका |”
“!!”
“यार तेरी प्रॉब्लम क्या – वो तुझे कितना चाहती है – हर दस शब्द में से पांच शब्द बस तेरे नाम के होते है – तो क्यों नही तू उसकी भावना को समझता है – और फिर तेरी उसकी शादी में तो कोई समस्या भी नही आने वाली – एक जैसा स्टेटस है तुम दोनों का – फिर बात क्या है जो तू उससे कटता रहता है – कही सच में तेरा सन्यास लेने का कोई इरादा तो नही !”
अब वे कार के बोनट का टेक लगाए खड़े थे| अरुण सिगरेट सुलगाता हुआ उसका गहरा कश हवा में छोड़ता हुआ कहता है -
“मुझे नही पता बस अपने पास उसे महसूसते मुझे बहुत अनकम्फर्टेबल महसूस होता है |” वह फिर एक लम्बा कश भीतर से लेता बाहर की ओर छोड़ता है|
“अबे तो तू नजदीक ही कितने लड़की के गया होगा – तुझे स्कूल के टाइम से देखता आ रहा हूँ मैं - जब मैं अपना दसवा ब्रेकअप सेलिब्रेट करता ग्यारहवी लड़की पटा रहा था तब भी तू अकेला ही था |”
“हाँ तो तेरा जैसा हो जाऊं !”
“नही गुरुदेव वो तो इस जन्म में पोसिबल नही – बट मेरे भाई वर्तिका पर कंसेसट्रेट तो कर |” योगेश हाथ जोड़ने का अभिनय करता हुआ कहता है|
“क्या कंसेसट्रेट करूँ जब ऐसा कुछ फील ही नही होता – तो जबरजस्ती उससे रिश्ता बनाऊ|” उसकी बात पर बुरी तरह झींकता हुआ वह आखिरी बड रेत में मसलते हुए अगली सिगरेट जलाने लगता है|
इस पर योगेश उसे ध्यान से देखता हुआ कहता है – “अच्छा छोड़ वर्तिका को - ये बता तुझे कैसी लड़की पसंद है ?”
“कोई नही |” कहता हुआ लाइटर अपनी पॉकेट के हवाले करता हुआ सर न में हिलाता है|
“ऐसा मैं मान ही नहीं सकता |” अबकी अपनी हथेली पर अपना दूसरा हाथ मारते हुए योगेश कहता है – “कोई तो फैंटसी होगी तेरी – कुछ तो सोचा होगा कि वैसी लड़की तुझे पसंद आए – बता - आज जब तक तू मुझे ये नही बताएगा – मैं कही नही जाने वाला – यही धरना देता पूरा दिन तेरा दिमाग चाटता रहूँगा - बता भी |”
योगेश अरुण का चेहरा गौर से देख रहा था तो अरुण जलती सिगरेट कुछ देर हवा में लिए लिए एक नज़र समन्दर की ओर देखकर दूसरी नज़र योगेश की ओर देखता है|
“बता भी कि सस्पेंस में ही मार डालेगा ?”
“बिलकुल मेरे जैसी |” कहता हुआ अरुण अब सिगेरेट का कश न लेता बल्कि मुंह घुमाकर हलके से मुस्करा रहा था| पहली बार अपने दोस्त के चेहरे पर ह्या की छाया देख योगेश हैरान था|
“गई भैंस पानी में – एक तो तू ही अनोखा है दुनिया के लिए फिर तुझे अपने लिए अपनी तरह की अनोखी रानी चाहिए – तो भाई ये न हो पाएगा – ऐसी बंदी न है और न होगी – तो ऐसा कर तेरा पहला वाला आइडिया ठीक था – तू पकड़ कमंडल और निकल जा जंगल में – भाई तेरे से प्यार व्यार न हो पाएगा |”
योगेश बुरी तरह से हवा में हाथ नचाता हुआ उसे बोल रहा था| तभी भौकने की आवाज से उन दोनों का ध्यान बडी पर जाता है जो योगेश की ओर देखता हुआ उस पर भौंक रहा था| ये बेजुबान जीव की आत्मिक शक्ति थी उसे लगा योगेश उसके मालिक पर नाराज़ हो रहा है इसलिए वह योगेश पर भौंकने लगा|
ये देख योगेश पीछे हटता हुआ बडी को भगाने लगा – “ए कुत्ता है तो कुत्ते की तरह रह – क्यों फालतू में मुझपर भौंक रहा है – देख मैं डॉक्टर हूँ – मेरे साथ ऐसा नही कर सकता – ए |” बडी योगेश के उछलने पर और तेजी से उसपर भौंकने लगा था जबकि ये नज़ारा देखता अरुण ठोड़ी पर उंगली रखे उसपर हंसने लगा था|
“मुझे पता है अगर मैं वैनर्निरी डॉक्टर होता तब देखता तू मुझपर कैसे भौंकता – बहुत हुआ बडी – नही नही मेरे पास नही – ए अरुण रोक न इसको – नही तो अगली बार घोड़े के इंजेक्शन लेकर मिलूँगा इस बडी से - ओ कुत्ते |”
कहता हुआ योगेश उससे दूर तेज भागने लगता है तो बडी भी मस्ती में उसके पीछे भागने लगता है ये देख अरुण भी अब उन दोनों के पीछे भागने लगता है|
अब ये एक खेल हो गया था बडी जानकर योगेश से इतना पीछे भाग रहा था जितना में वह उसे पकड़ न सके और बस भगाता रहे|
यूँही मस्ती में भागते भागते तीनो रेत पर ठहर पर सांस लेने लगते है| अरुण अब बडी को अपने से लिपटाए रेत पर उन्मुक्त लेट जाता है| वह काली रेत पर पड़ा उन्मुक्त आसमान निहारने लगा था| ऐसा करते कुछ अलग ही रंगत उसकी आँखों में समां गई थी मानो योगेश ने सहसा आज उसके मन के सितार में कोई अनजानी तरंग छेड दी थी| वही योगेश बडबडाते हुए दादाजी की ओर चल देता है जो अभी किसी अजनबी इन्सान संग बड़ी आत्मीयता से खड़े थे मानो बरसो बाद उससे वे मिले हो|
क्रमशः.......