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Raktbandhan: The Devil’s Bride

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Ink Of Darkness

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जब मासूमियत और अंधकार का संगम होता है, तो जन्म लेता है रक्तबंधन। अंधेरी हवेली के गहरे कोनों में, एक रहस्यमय वारिस उभरता है—जिसकी मुस्कान मासूम लगती है, पर उसकी रगों में बहता है शैतानी खून। प्रेम, धोखा, और प्राचीन शाप के जाल में बंधी यह कहानी आपको...

Total Chapters (36)

Page 1 of 2

  • 1. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 1 "रक्त की पहली रात"

    Words: 1543

    Estimated Reading Time: 10 min

    एपिसोड 1: "रक्त की पहली रात"

    "शादी के मंडप में सात फेरों के बाद जब सब मुस्कुरा रहे थे…अद्या की रूह काँप रही थी — क्योंकि उसका दूल्हा… इंसान नहीं था।"

    अद्या के कानों में शहनाई की धीमी, बोझिल धुन गूँज रही थी। यह धुन उसके दिल पर पड़ते हुए हथौड़े की तरह महसूस हो रही थी, जो उसके हर स्पंदन के साथ एक भयावह भविष्य की भविष्यवाणी कर रही थी।

    मंडप में बैठी, लाल जोड़े में, वह खुद को एक जीवंत लाश की तरह महसूस कर रही थी, जिसका एकमात्र उद्देश्य एक ऐसी बलि का हिस्सा बनना था जो उसे हमेशा के लिए ख़त्म कर देगी। उसकी आँखें नीचे झुकी हुई थीं, ताकि वह उस चेहरे को न देख पाए जो उसके सामने अग्नि की परिक्रमा कर रहा था — वियान। वह जानती थी कि अगर उसने एक पल के लिए भी उसकी आँखों में देखा, तो वह पूरी तरह से बिखर जाएगी।

    वियान की परछाई तक में एक अजीब, डरावनी ख़ामोशी थी। जब उसने अद्या के हाथ को थामा, तो अद्या को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसकी कलाई को बर्फ़ में जमा दिया हो, उसकी हथेली में कोई गर्माहट नहीं थी, बल्कि एक ठंडी, बेजान ऊर्जा थी जो सीधे उसकी आत्मा तक पहुँच रही थी।

    यह स्पर्श किसी प्रेम का नहीं, बल्कि एक शैतानी जकड़न का था, जो उसके अस्तित्व को धीरे-धीरे मिटा रहा था। अद्या को याद आया, उसके पिता ने कल रात रोते हुए उससे कहा था, "बेटी, इस शादी से हमारा कर्ज़ उतर जाएगा।" उस समय उसे लगा था कि वह अपने परिवार के लिए एक बड़ा त्याग कर रही है, लेकिन अब उसे एहसास हो रहा था कि यह त्याग नहीं, बल्कि एक बलि थी। उसके माता-पिता ने एक इंसान को नहीं, बल्कि एक शैतान को अपनी बेटी सौंपी थी, और बदले में अपनी वित्तीय समस्याओं से मुक्ति की उम्मीद कर रहे थे।

    जैसे ही सात फेरे पूरे हुए और वियान ने उसकी माँग में सिंदूर भरा, अद्या के सिर में एक अजीब सी लहर दौड़ी। यह लहर ख़ुशी की नहीं, बल्कि दर्द और भय की थी। सिंदूर की लालिमा उसे ख़ून की तरह महसूस हुई, जैसे किसी ने उसके मस्तक पर उसके भविष्य का ख़ून लिख दिया हो। वह हक़ीक़त से दूर होती जा रही थी।

    बारात बहुत शाही थी, लोग वियान की शान-ओ-शौकत की तारीफ़ कर रहे थे, लेकिन कोई नहीं जानता था कि ये बारात शैतानों के स्वागत का जश्न मना रही थी। कोई नहीं जानता था कि यह कोई साधारण शादी नहीं, बल्कि रक्तविवाह था — एक शापित बंधन, जो इंसान और डेमन के बीच स्थापित हो रहा था।

    विदाई के बाद, जब अद्या वियान की गाड़ी में बैठी, तो हवेली की दिशा में जा रही थी, जिसकी दीवारों से चीखने की आवाज़ें आ रही थीं। वियान ने गाड़ी में एक भी शब्द नहीं कहा। उसकी ख़ामोशी ने अद्या को और भी ज़्यादा डरा दिया। वह अपनी मुट्ठी कसकर पकड़े हुए थी, उसके नाखून उसकी हथेली में गड़ रहे थे, लेकिन दर्द का कोई एहसास नहीं हो रहा था। उसके शरीर में एक अजीब सी सुन्नता थी, जैसे उसके भीतर का जीवन धीरे-धीरे ख़त्म हो रहा हो।

    हवेली के क़रीब पहुँचते ही, अद्या को लगा जैसे वो किसी क़ब्रिस्तान में आ गई है। हवेली की पुरानी, स्याह दीवारें चीख रही थीं, उनकी दरारों से सदियों का दर्द और अनकही कहानियाँ बह रही थीं। जैसे ही वो हवेली के दरवाज़े से अंदर आई, एक अजीब सी, घुटन भरी गंध ने उसके फेफड़ों को भर दिया। यह लोबान की गंध थी, लेकिन उसमें मांस और सड़े हुए फूलों की दुर्गंध भी मिली हुई थी, जो उसके मन में एक भयानक छवि बना रही थी।

    वियान ने बिना कुछ कहे उसे एक कमरे में धकेल दिया। वह कमरा सिर्फ़ एक दीये की लौ से जगमगा रहा था, लेकिन उसकी परछाई हर कोने में ख़ौफ़ पैदा कर रही थी, जैसे वहाँ परछाइयाँ नहीं, बल्कि किसी अज्ञात शक्ति की आँखें थीं जो उसे देख रही थीं।

    अद्या को उस कमरे में लाल चुनरी ओढ़े बैठा दिया गया। उसके मन में कई सवाल थे, लेकिन उसका गला सूख चुका था, और होठों से कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी। जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ, अद्या का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे वह इस डरावने सच से बचना चाहती हो। लेकिन जब उसने आँखें खोली, तो वियान को अपने सामने खड़ा पाया।

    वह धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा, उसकी चाल में कोई इंसानियत नहीं थी, बल्कि जानवरों जैसी भूख थी, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार के क़रीब आ रहा हो। उसने अपनी उँगलियों से उसकी चुनरी को धीरे-धीरे उठाया, जैसे कोई पर्दा हटा रहा हो, जिसके पीछे एक ख़तरनाक राज़ छुपा हो। अद्या की आँखें डर से भर गईं, वह अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रही थी, जैसे किसी अज्ञात शक्ति ने उसे जकड़ रखा हो।

    “डरो मत अद्या,” वियान की आवाज़ में कोई दया नहीं थी, बल्कि लावा था, जो उसकी हर बात को जलाकर राख कर रहा था, “यह पहली रात नहीं… यह तुम्हारा पहला इम्तिहान है।”

    अद्या के होंठ काँपने लगे। वह समझ नहीं पा रही थी कि वह किस इम्तिहान की बात कर रहा है। वियान ने उसकी चुनरी पूरी तरह से हटा दी और उसके गले में अपना हाथ डालकर उसे अपनी ओर खींच लिया। उसका स्पर्श एक ठंडी, बेजान जकड़न की तरह था।

    "मुझे तेरे खून की पहली बूँद चाहिए… वरना तू मेरी नहीं होगी, और मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूँगा।"

    यह सुनकर अद्या की साँसें अटक गईं। उसके दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया। उसने वियान के चेहरे को देखा। उसकी आँखें लाल हो रही थीं, और उसके होंठों पर एक ऐसी शैतानी मुस्कान थी, जो उसने पहले कभी नहीं देखी थी। उसने एक धारदार, काली ब्लेड निकाली, जिस पर अजीबोगरीब निशान बने हुए थे।

    "ये ब्लेड नहीं… ये वही है जिससे मेरी माँ ने ख़ुद को मारा था। और आज, इससे मैं तुझे अपना बनाऊँगा..."

    वियान ने उसकी उंगली पर कट लगाया। अद्या की चीख उसके गले में ही अटक गई। खून की पहली बूँद उसकी उंगली से निकली और वियान ने उसे अपनी जीभ पर लगा लिया। जैसे ही खून उसके होठों को छू गया, उसकी आँखें पूरी तरह से लाल हो गईं। उसकी साँसें गर्म हो गईं, जैसे उसके अंदर कोई आग भड़क रही हो।

    उसी पल, अद्या की रगों में एक अजीब सा करंट दौड़ने लगा। उसका शरीर काँपने लगा। उसे ऐसा लगा जैसे उसके अंदर की कोई शक्ति जाग रही हो। उसकी आँखों के सामने एक धुँधली सी तस्वीर आई — एक पुराना महल, सैकड़ों औरतें जलती हुई, और एक देवता जो नर्क के सिंहासन पर बैठा था।

    अद्या ने ख़ुद को खो दिया। उसे ऐसा लगा जैसे वो अद्या नहीं, कोई और बन गई हो। जैसे उस खून में उसकी कोई पुरानी पहचान जाग रही हो।

    "अद्या नहीं... रुद्राणी..."

    "तू लौटी है… मेरी रुद्राणी।"

    यह आवाज़ उसके दिल में गूँज उठी। यह आवाज़ वियान की नहीं थी, बल्कि एक ऐसी आवाज़ थी जो सदियों पुरानी थी। उस रात, उनके बीच एक अजीब सा एहसास हुआ — शरीर, खून, और आत्मा का मिलन। एक ऐसा मिलन, जहाँ प्यार नहीं, सिर्फ़ शैतानी वासना और बदला था।

    रात के अंतिम पहर में जब अद्या बेहोश हो गई, तो उसे एक सपना आया। एक महल जो जल रहा था, जहाँ से सैकड़ों औरतों की चीखें आ रही थीं। उसने एक देवी को देखा, जो चिल्ला रही थी।

    "मैंने उसे चाहा, पर उसने मुझे शाप दिया…

    मेरी औलाद राक्षसों से पैदा होगी!"

    अद्या चौंक कर उठी। उसका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था, और… उसकी आँखों के नीचे एक लाल चिन्ह उभर चुका था — जो इंसानों में नहीं पाया जाता। वह बाथरूम में गई और शीशे में ख़ुद को देखकर सिहर गई। उसके गले पर वियान के दाँतों के निशान थे — जैसे किसी पिशाच ने उसे चूमा हो, काटा हो…

    और तब उसे एहसास हुआ — उसकी शादी नहीं हुई… उसकी बलि दी गई थी।


    अचानक बाथरूम का दरवाज़ा खुला और वियान अंदर आया। उसकी आँखों में अब भी वही लालच और शैतानी चमक थी।

    वियान मुस्कुराता हुआ उसके पास आया और उसे धीरे से गले लगाया।

    "अब तू मेरी है, अद्या…

    तेरी आत्मा, तेरा खून, तेरा सब कुछ —

    जब तक तू जिंदा है, मैं अधूरा हूँ…

    और जब तू मरेगी, तभी मैं पूर्ण शैतान बनूँगा।"

    अद्या ने डर से काँपते हुए पूछा, "तुम कौन हो?"

    वियान मुस्कुराया। उसकी मुस्कान में कोई ख़ुशी नहीं, बल्कि एक गहरी, भयावह साज़िश थी। उसने अद्या के चेहरे पर अपनी उँगलियाँ फेरीं, जो बर्फ़ की तरह ठंडी थीं।

    "मैं वही हूँ जिसे तुम पूजती हो… वो शैतान, जिसने तुम्हारी देवी को श्राप दिया था।और तुम… तुम वही देवी हो जो अब मेरे ख़ून की प्यासी है।"

    अद्या की आँखें फैल गईं। उसे अपनी रूह में एक अजीब सी हलचल महसूस हुई। क्या वह सच में रुद्राणी थी? क्या वह सच में एक डेमन की दुल्हन थी?उसकी आँखें धीरे-धीरे लाल होने लगीं।

    क्या अद्या का दूसरा जन्म हो गया है?क्या वह सच में रुद्राणी है?क्या वियान सच में शैतान है? आखिर ये कौनसा खेल है? और वियान ने क्यों बनाया है उसे अपनी दुल्हन ? ऐसा कौनसा राज है जो आगे खुलेगा? इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहे रक्तबंधन: शैतान की दुल्हन एक ऐसी कहानी जो खून से लिखी है क्योंकि यहां दूल्हा आम इंसान नहीं शैतान है !

  • 2. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 2 "रक्तबंदी"

    Words: 1517

    Estimated Reading Time: 10 min

    एपिसोड 2: "रक्तबंदी"

    "अद्या के शरीर में रात के ख़ून का ज़हर धीरे-धीरे फैल रहा था। वह शैतान की दुल्हन बनने के लिए नहीं, बल्कि एक युद्ध के मैदान के लिए तैयार हो रही थी — जहाँ उसकी आत्मा और अस्तित्व दांव पर थे।

    अद्या के शरीर में रात के ख़ून का ज़हर धीरे-धीरे फैल रहा था। जैसे ही सुबह की पहली किरणें कमरे के शीशों से छनकर उसके चेहरे पर पड़ीं, उसने गहरी साँस ली, जैसे कोई लंबे समय के बाद पानी से बाहर आया हो। सिर में एक अजीब सा दर्द था, जो किसी शारीरिक चोट का नहीं, बल्कि आत्मा के ज़ख्मी होने का एहसास दिला रहा था।

    यह दर्द सिर से शुरू होकर दिल तक एक गहरी, स्याह लकीर खींचता जा रहा था। उसने आँखें खोलीं और कमरे को देखा। सब कुछ सामान्य लग रहा था — एक शानदार चारपाई, शाही पर्दे, और कमरे की हर चीज़ पर एक अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी। लेकिन उसकी आत्मा के भीतर एक घना अंधेरा था, और यह अंधेरा सिर्फ़ एक व्यक्ति से जुड़ा था — वियान।

    रात को क्या हुआ था, यह सब एक भयानक सपने जैसा लग रहा था, लेकिन उसके गले पर वियान के दाँतों के निशान इस बात का सबूत थे कि वह कोई सपना नहीं, बल्कि एक हकीकत थी। उसने महसूस किया कि वियान ने रात को अपने ख़ून से उसकी रगों में कुछ भर दिया था, और अब वह हर पल उस ख़ून के असर से घिरी हुई थी। यह ख़ून सिर्फ़ एक तरल पदार्थ नहीं, बल्कि एक बंधन था, एक क़ैद थी, जिसने उसकी आत्मा को वियान से जोड़ दिया था।

    अद्या बेमन से उठकर खिड़की की ओर बढ़ी। बाहर का नज़ारा भी सामान्य था — पक्षियों की चहचहाहट, दूर से आती हुई लोगों की हल्की आवाज़ें। लेकिन यह सब उसे एक नाटक की तरह लग रहा था। वह जानती थी कि इस हवेली में, और ख़ासकर वियान के इर्द-गिर्द, कुछ भी सामान्य नहीं था। उसकी चेतना में एक घनी धुंध छाई हुई थी, जिसमें वह अपनी पहचान खोती जा रही थी। उसे लग रहा था कि वह अब अद्या नहीं रही, बल्कि कोई और बन गई है — एक ऐसा अस्तित्व, जिसे वियान रुद्राणी कह रहा था।

    वह गुस्से से अपने कमरे में घूमने लगी। वह चिल्लाना चाहती थी, पूछना चाहती थी कि यह सब क्यों हो रहा है। लेकिन उसके भीतर की एक आवाज़ उसे रोक रही थी, "यह सब तेरे लिए नहीं, बल्कि तेरे अतीत के लिए हो रहा है।" वियान की बातें अब भी उसके कानों में गूँज रही थीं।

    "तू मेरी होगी… यह रक्त का बंधन है, और तू मेरी दुल्हन बनेगी।"

    अद्या ने ख़ुद को शीशे में देखा। उसकी आँखें, जो कल तक मासूमियत से भरी हुई थीं, अब एक अजीब सी चमक लिए थीं। उसके चेहरे पर रात का ख़ौफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था। उसने अपने गले पर हाथ रखा, जहाँ वियान के दाँतों के निशान थे। उस स्पर्श से उसे एक ठंडी सिहरन महसूस हुई। उसे लगा जैसे उसके भीतर की कोई शक्ति जाग रही है, एक ऐसी शक्ति जिसका वह कोई हिस्सा नहीं बनना चाहती थी।

    वियान अपनी घर की छत पर बैठा था, जहाँ से वह अद्या की हर हलचल पर नज़र रख सकता था। उसका चेहरा ख़ामोश था, लेकिन उसकी आँखों में एक ऐसी गहरी सोच थी, जिसे कोई पढ़ नहीं सकता था। वह जानता था कि अद्या के अंदर अभी भी संघर्ष और आत्मा का विकार था, लेकिन उसे पूरा यक़ीन था कि वह अपने रक्तविवाह में उसे पूरी तरह से समर्पित कर लेगा। उसके दिल में इस रहस्यमय दुल्हन को काबू करने की ख़्वाहिश थी, लेकिन उसके भीतर का शैतान उसे और भी ज़्यादा भड़काता था।
    उसे याद आया, जब उसकी माँ ने उसे बताया था,

    "तेरी शादी रुद्राणी से होगी, तभी तेरे शाप का अंत होगा।"

    वियान जानता था कि रुद्राणी का मतलब केवल एक राक्षस की दुल्हन नहीं था, बल्कि वह कभी लौटने वाली देवी थी, जो समय और स्थान से परे जाकर शैतान को समाप्त कर सकती थी। लेकिन उसकी माँ ने उसे यह नहीं बताया था कि रुद्राणी का ख़ून उसे शाप से मुक्त करने के साथ-साथ उसकी शक्ति को भी बढ़ाएगा। वियान ने अपनी मुट्ठी कस ली। उसके लिए यह सिर्फ़ एक शादी नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व को बचाने और अपनी शक्ति को बढ़ाने का एक ज़रिया था।

    वियान की परछाई में एक गहरा राज़ छुपा था। उसके परिवार पर एक सदियों पुराना शाप था, जो उनके खून को ठंडा और उनकी आत्मा को ख़ामोश कर देता था। यह शाप तभी टूट सकता था, जब कोई रुद्राणी से शादी करके उसके रक्त को अपने में समा ले। लेकिन रुद्राणी कौन थी? यह एक ऐसा राज़ था जिसे वियान के परिवार ने पीढ़ियों से छुपाकर रखा था। अद्या, एक साधारण लड़की, जिसके माता-पिता कर्ज़ में डूबे थे, वह रुद्राणी कैसे हो सकती थी?

    वियान को अचानक याद आया, जब उसने अद्या के जन्म के बारे में सुना था। एक अजीब घटना हुई थी, जब एक देवी ने अद्या की नानी को एक ख़ासतौर पर दिया गया आशीर्वाद दिया था। उस आशीर्वाद में एक देवी की शक्ति थी, जो रुद्राणी के रूप में अद्या के शरीर में मौजूद थी।

    वियान ने अद्या से धीरे-धीरे संपर्क करना शुरू किया। वह जानता था कि सीधे-सीधे उस पर हावी होना सही नहीं होगा, बल्कि उसे धीरे-धीरे अपने जाल में फँसाना होगा। उसने अद्या की आँखों में डर देखा, लेकिन उसे यह डर एक प्यारी सज़ा जैसा लगता था। अद्या का हर पल उस पर आश्रित हो रहा था, और इस बंधी हुई स्थिति को वियान अपने अगले कदम के तौर पर देखता था।

    एक दिन, जब अद्या बगीचे में पानी दे रही थी, वियान उसके पास आया, और उसके कंधे पर हाथ रखा। अद्या की त्वचा जल रही थी, उसकी आत्मा चिल्ला रही थी, लेकिन वह सुध-बुध खो चुकी थी। वियान की बातों में वह मायावी आकर्षण था, जो उसके शरीर में हर तरह की उत्तेजना भर देता था। उसने अद्या को धीरे-धीरे अपनी ओर खींचा, और दोनों की निकटता अब और भी बढ़ गई थी।

    वियान ने कहा,"रुद्राणी, तू मेरे पास है। तू मेरे रक्त से जुड़ी है, और अब हमारी आत्माएँ हमेशा के लिए एक हो जाएंगी।"

    यह प्रेम नहीं था, बल्कि यह किसी शाप का परिणाम था, जिसे कोई भी नहीं रोक सकता था। वियान जानता था कि अगर उसे अपना शाप तोड़ना है, तो उसे अद्या की आत्मा का मिलन अपने साथ करना होगा। यह मिलन सिर्फ़ शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक था। वह दोनों की आत्माओं का मिलन चाहता था — एक अजीब और अंधेरे तरीके से।

    अद्या के भीतर कुछ टूट चुका था। उसकी आत्मा अब पहले जैसी नहीं रही थी। उसे महसूस हुआ कि उसके भीतर कुछ और जागृत हो रहा है। एक जटिलता, एक पुराना भय, और उसे अब एक ऐसी दुनिया से संपर्क बनाना था, जिसमें उसका वजूद असत्य था।

    वियान से एक खौफ़नाक एहसास ने उसे घेर लिया था — वियान के साथ उसका रिश्ता केवल रक्त का रिश्ता नहीं था, बल्कि वह अतीत के बंधन में बंध चुकी थी। उसने महसूस किया कि उसकी माँ और वियान की माँ के बीच एक पुराना रक्त संबंध था। अद्या की नानी ने एक दिन उसकी माँ से कहा था।

    "तुम्हारे ख़ून में जो आशीर्वाद था, वह रुद्राणी को कभी सज़ा नहीं दे सकता।"

    अद्या की नानी का मतलब था कि उसका रुद्राणी से रिश्ते का अतीत, और रक्तविवाह अब उस पर चढ़ चुका था। वह नहीं जानती थी कि अब वह एक देवता नहीं, बल्कि एक शैतान का अधूरा रूप बन चुकी थी।


    अद्या की रुद्राणी की छवि अब पूरी तरह से प्रकट हो रही थी। वह जब अपनी आँखों में देखती थी, तो उसे समझ आता था कि वह अब उस दुनिया में नहीं थी, जहाँ उसे अपनी पहचान मिलनी थी। वह अब ख़ुद को अद्या नहीं मान सकती थी। वह जानती थी कि उसे अब केवल वियान के साथ अपनी आत्मा का मिलन करना था।

    फिर एक दिन, जब वह अंधेरे जंगल की ओर बढ़ी, उसे महसूस हुआ कि वह खुद को कहीं खो चुकी है। लेकिन तभी उसे काले बादल दिखाई दिए, और एक पुरानी हँसी गूंजने लगी, जैसे ही वह आवाज़ उसकी आत्मा में समाई, उसे एहसास हुआ कि उसका आध्यात्मिक युद्ध अब शुरू होने वाला था।

    वियान ने अद्या को अपने पास खींचा और उसके कान में धीरे से कहा,
    "तुम मेरे ख़ून से हो, तुम मेरी धड़कनों में समाई हो…
    और अब… हम दोनों के बीच कोई दूरियाँ नहीं बची।
    एक बार रुद्राणी पूरी तरह से लौट आएगी,और हम उस दिन देवताओं के ख़िलाफ़ युद्ध करेंगे।"

    अद्या की आँखें धीरे-धीरे लाल होने लगीं, और उसके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान आई, जो उसकी नहीं थी। यह मुस्कान रुद्राणी की थी, जो अब जाग चुकी थी।

    अब अद्या को अपने भीतर के दो अस्तित्वों से लड़ना होगा। उसे वियान की पहली शैतानी परीक्षा का सामना करना होगा, जो उसके शरीर और आत्मा को हिला देगी।

    क्या अद्या पूरी तरह से रुद्राणी बन चुकी है?
    क्या वियान का असली मकसद सिर्फ़ शाप तोड़ना है, या कुछ और भी बड़ा?
    क्या अद्या अपनी इंसानियत बचा पाएगी, या शैतान की दुल्हन बनकर देवताओं के ख़िलाफ़ खड़ी हो जाएगी?
    पढ़िए, क्योंकि यह तो बस शुरुआत है…

  • 3. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 3 देह का सौदा

    Words: 1641

    Estimated Reading Time: 10 min

    एपिसोड 3: देह का सौदा

    "अद्या की आत्मा चीख रही थी, लेकिन उसकी देह शैतान के हर स्पर्श को स्वीकार कर रही थी। यह शरीर और आत्मा के बीच का एक भयावह युद्ध था, जिसकी पहली लड़ाई आज रात होने वाली थी।"

    अद्या उस रात को भूल नहीं पा रही थी, जब वियान ने अपने ख़ून से उसके अस्तित्व को अपने साथ बाँध लिया था। हर बार जब उसकी आँख बंद होती, उसके शरीर में कुछ काँप जाता। वियान की छुअन, उसका चुंबन, वह रक्त की गर्मी — सब उसकी त्वचा में घुल चुका था। वह खुद को आईने में देखती, तो खुद से नज़रें चुराती। वह अब वह मासूम अद्या नहीं थी जो पहले हुआ करती थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो डर और विद्रोह दोनों से भरी हुई थी।

    आज रात हवेली में एक अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी। दिए बुझ चुके थे, और लालटेन की लौ काँप रही थी, जैसे किसी अनहोनी का संकेत दे रही हो। अद्या अपने कमरे में बैठी हुई थी, और उसके दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी। उसे लगा जैसे कोई उसे बुला रहा हो। वह आवाज़ उसके भीतर से आ रही थी, लेकिन उसे लगा जैसे कोई अज्ञात शक्ति उसे खींच रही हो।

    तभी हवेली के एक कमरे का दरवाज़ा खुला — वह कमरा जहाँ पहले किसी को जाने की इजाज़त नहीं थी। वह कमरा जो हमेशा बंद रहता था। अद्या उस कमरे की ओर खिंचती चली गई, जैसे कोई कठपुतली हो, जिसकी डोर किसी और के हाथ में हो।

    जब वह दरवाज़े के पास पहुँची, तो वहाँ वियान खड़ा था — काले रेशमी कपड़ों में, उसके बाल खुले, और उसकी आँखें ऐसे चमक रही थीं जैसे किसी शिकारी की जो अपने शिकार को जाल में फँसता देख रहा हो। उसकी आँखों में कोई प्यार या चाहत नहीं थी, सिर्फ़ एक गहरी, शैतानी वासना और अधिकार की भावना थी।

    वियान: “आ गई मेरी दुल्हन...
    आज तुझे पहली परीक्षा देनी है…
    और इस बार… ये इम्तिहान रूह से नहीं, देह से होगा।”

    अद्या काँपने लगी। वह समझ चुकी थी कि यह परीक्षा कोई साधारण परीक्षा नहीं है। यह उसके शरीर की, उसकी पवित्रता की परीक्षा थी। वियान ने उसे कमरे के अंदर आने का इशारा किया। कमरे में कोई दीया नहीं था, बस धूप, चंदन और कुछ तांत्रिक रेखाएँ ज़मीन पर बनी थीं। कमरे का तापमान इतना गर्म था कि अद्या को लगा जैसे उसका शरीर पिघल रहा हो।

    वियान ने एक कटोरी में लाल तरल उठाया —
    “ये मेरा रक्त है, और तुझमें समाने से पहले…मैं चाहता हूँ तू ये पी ले। इसके बाद... तू आधी मेरी हो जाएगी।”

    अद्या ने काँपते हाथों से कटोरी थामी। उसकी आत्मा ने उसे ऐसा करने से मना किया, लेकिन उसकी देह पर वियान का जादू चल रहा था।

    “अगर मैंने ये पी लिया तो?”

    “तो तेरा जिस्म तेरा नहीं रहेगा।और अगर नहीं पिया… तो मैं तुझे अपनी मर्ज़ी से ले लूंगा।”

    ये कोई विकल्प नहीं था। यह सिर्फ़ एक शुरुआत थी। अद्या जानती थी कि उसे यह करना ही होगा, वरना वियान उसे अपनी मर्ज़ी से ले लेगा। उसने हिम्मत जुटाकर वह रक्त पी लिया — उसका स्वाद लौंग और आग जैसा था। अगले ही पल उसकी साँसें तेज़ हो गईं। उसकी त्वचा तपने लगी। उसके कपड़े उसकी त्वचा से चिपक गए, और रूह उसकी देह के बाहर उतरती सी महसूस हुई। उसे लगा जैसे उसकी आत्मा अपने शरीर से अलग हो रही हो।

    वियान पास आया — उसने अद्या की कमर पर हाथ रखा, और उसे अपनी ओर खींचा।

    वियान (धीरे से): “तू अब मेरी है।तेरी साँसें मेरी… तेरी सिसकियाँ भी मेरी।”

    यह कोई प्यार का इज़हार नहीं था, बल्कि यह एक शैतानी अनुबंध था, जो वियान ने उसके साथ किया था। उसने अद्या को बिस्तर की ओर धकेला, और बिना उसकी इजाज़त के, उसका चेहरा अपने हाथों में लिया। अद्या ने मुँह मोड़ा, लेकिन उसका शरीर साथ नहीं दे रहा था।
    उसका शरीर वियान की हर हरकत को स्वीकार कर रहा था। वह चुंबन नहीं था — वह आग थी। वह उसकी गर्दन को चूमता गया, और अपनी उँगलियाँ उसकी पीठ पर फिराता रहा। उसकी हर हरकत, अद्या के शरीर को पिघला रही थी।

    “मेरी रुद्राणी… तेरे इस तन में जो आग है,उसे मैं ही बुझा सकता हूँ।”

    उस रात… उन दोनों के बीच सिर्फ़ देह का नहीं, बल्कि आत्मा का सौदा हुआ। अद्या ने अपनी देह को वियान को सौंप दिया, लेकिन उसके साथ ही उसने अपनी आत्मा को भी उसके हवाले कर दिया।

    अगली सुबह अद्या उठी, तो उसे अपने गले और कंधों पर काले निशान मिले — जैसे किसी ने शाप की स्याही से शरीर पर कुछ लिख दिया हो। उसने शीशे में देखा, तो एक छाया उसके पीछे खड़ी थी। वह कोई और नहीं, वियान की माँ थी — मृत, फिर भी बोलने वाली।

    “तू जो कर रही है, वो रुद्राणी की आत्मा को फिर से मुक्त करेगा…लेकिन तू खुद को खो देगी, बेटी।”

    अद्या की आँखों से आँसू बह निकले। उसे लगा जैसे कोई उसे चेतावनी दे रहा हो। लेकिन वह चेतावनी वियान के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि उसके ख़िलाफ़ थी। वह अपने आप को खोने के डर से काँप उठी।

    रात को हवेली में ज़ोरदार आँधी आई। सभी दरवाज़े अपने आप खुलने लगे। अद्या को अपने कमरे में एक किताब मिली — "विवाह के सात रक्त रहस्य"। उस किताब में लिखा था।

    “रक्तबंधन सिर्फ़ शारीरिक मिलन नहीं होता। हर बार जब शैतान दुल्हन को छुएगा,एक आत्मा मरेगी। और सात आत्माओं के बाद – शैतान पूर्ण हो जाएगा… और दुल्हन… राख बन जाएगी।”

    अद्या ने किताब को ज़मीन पर फेंका।
    "नहीं… मैं सिर्फ़ उसकी दुल्हन नहीं हूँ… मैं रुद्राणी हूँ…"

    अद्या की आँखों में अब डर नहीं, बल्कि आग थी। उसने फैसला कर लिया था कि वह अपनी आत्मा को शैतान के हाथों में नहीं जाने देगी।


    अद्या अपनी आँखों में आग लिए ख़ुद से बोली,
    “अब खेल सिर्फ़ वियान का नहीं होगा…
    इस बार दुल्हन… खेल बदलेगी।”





    अद्या की आत्मा ने अब अपने डर को त्याग दिया था। वह एक शिकार नहीं, बल्कि एक शिकारी बन चुकी थी। और शैतान की दुल्हन, अब अपने तांडव के लिए तैयार थी।

    उस रात अद्या अकेली नहीं थी। उसके भीतर कुछ जाग रहा था — कोई पुरानी शक्ति, जो उसके लहू में दबे हुए राज़ को उगलना चाहती थी। जब वह आईने के सामने खड़ी थी, तभी उसकी आँखें पलटीं और… एक छवि उभरी। एक महिला… चमकीले लाल वस्त्र, माथे पर तीसरा नेत्र, हाथ में त्रिशूल… और होंठों पर वही निशान… जो अद्या के कंधे पर था।

    "मैं रुद्राणी हूँ," वह आवाज़ आई, "तू मेरा पुनर्जन्म है। और तुझे अब सिर्फ़ एक दुल्हन नहीं, एक तांडव की देवी बनना है।"

    अद्या के भीतर काँप उठी। यह आवाज़ उसके भीतर से आ रही थी, लेकिन फिर भी वह उसकी नहीं थी। यह आवाज़ उसे एक नई पहचान दे रही थी। वह अब अद्या नहीं थी, वह रुद्राणी थी। उसकी आँखों में अब डर की जगह एक नई चमक थी, एक ऐसी चमक जो किसी युद्ध के मैदान में जल रही हो।

    वियान, जो अब तक अद्या को एक शिकार समझ रहा था, उसने आज पहली बार उसके भीतर का बदलता तापमान महसूस किया। वह हवेली के खुले बरामदे में खड़ा था, उसके सामने अद्या लाल साड़ी में, खुलते बालों के साथ चली आ रही थी। उसकी चाल में डर नहीं था… बल्कि एक शेरनी जैसा रौद्र आकर्षण था।

    "तू आज इतनी शांत क्यों है?" वियान ने पूछा।

    "क्योंकि तूने मेरे जिस्म से खेला… अब मैं तेरी आत्मा से खेलूँगी।" अद्या की आवाज़ में बिजली थी।

    वियान ने पहली बार एक एहसास किया — वो अब केवल शिकारी नहीं, कभी भी शिकार बन सकता था। उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं, लेकिन उसने अपने चेहरे पर कोई डर नहीं दिखाया। वह जानता था कि यह लड़ाई अब सिर्फ़ शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक भी है।
    अद्या ने उसी रक्त किताब को फिर से खोला। उसने सातों अनुष्ठानों के बारे में पढ़ा। हर अनुष्ठान में उसे एक बार देह समर्पण करना था… लेकिन हर बार उसके भीतर की रुद्राणी अधिक प्रबल होती जाएगी।

    "अगर सात बार मैं वियान को छुऊँ… तो वो पूर्ण शैतान बनेगा।"

    "लेकिन अगर मैं छठी बार में ही उसे बाँध दूँ… तो मैं उसे अपने वश में कर सकती हूँ।"

    अद्या को अब शारीरिक नज़दीकियों से डर नहीं था, अब वह उन्हें हथियार बनाने जा रही थी। उसने फैसला कर लिया था कि वह अपनी आत्मा को शैतान के हाथों में नहीं जाने देगी।

    उसने खुद ही वियान को कमरे में बुलाया। कमरा सुगंधित था। उसने धीमी रोशनी में वियान की आँखों में देखा।
    "तू मुझे चाहता है ना?"
    "तू मुझे सात जन्मों तक पाना चाहता है?"
    "तो ले मुझे…"
    "लेकिन इस बार… मेरी शर्तों पर।"

    अद्या ने उसकी शर्ट फाड़ी, उसके होंठों को दबाया, उसकी छाती पर अपनी उँगलियाँ चलाईं… और अपने बालों से उसके चेहरे को ढक लिया। वियान कुछ बोलना चाहता था… लेकिन अब पहली बार वो बेबस था।

    यह प्यार नहीं था — यह एक ऐसा देह-युद्ध था, जिसमें रुद्राणी का पहला वार पड़ा। और जैसे ही वे जुड़े — हवेली की दीवारों पर भभकती आग सी लहर उठी।

    तड़के, हवेली के नीचे बने तांत्रिक कक्ष से आवाज़ें आने लगीं। एक अघोरी प्रकट हुआ, जिसका नाम था "कालीनाथ" — वह वियान के बंधन में बंधा था।

    "तू मूर्ख है वियान…"

    "वह लड़की अब अद्या नहीं… रुद्राणी बन चुकी है।"

    "उसका हर छुअन तुझे शाप देगा…"

    "और सातवाँ मिलन… तुझे मृत्यु देगा।"

    वियान की आँखों में डर नहीं था, बल्कि एक खतरनाक हँसी थी।

    "अगर उसकी रूह मेरी न हुई… तो मैं पूरी दुनिया जला दूँगा।"

    अद्या अपनी आँखों में लपटें लिए ख़ुद से बोली,
    “अब खेल बदल गया है…अब तुझे मेरा तन नहीं…
    मेरी आग सहनी पड़ेगी।”


    अब कहानी अब एक नए पड़ाव पर पहुँच गई है, जहाँ से रोमांच और डर और भी ज़्यादा बढ़ने वाला है। यह कहानी अब जुनून से नहीं, युद्ध से भरी है — और शैतान की दुल्हन… अब राक्षसी रूप में खिल रही है।

  • 4. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 4 शापित सौतन

    Words: 1847

    Estimated Reading Time: 12 min

    एपिसोड 5: शापित सौतन

    सुबह... अद्या के कमरे से वियान बाहर निकला। उसके बाल बिखरे हुए थे, चेहरे और बदन पर कई जगह खरोंच के गहरे निशान थे, और उसकी आँखें हैरानी और अनिश्चितता से भरी हुई थीं। ऐसा लग रहा था कि उसने किसी युद्ध से वापसी की है, और वह युद्ध उसने जीता नहीं, बल्कि उसमें उसकी हार हुई है।

    वह पहली बार किसी औरत के सामने हारता हुआ महसूस कर रहा था। उसकी सदियों की ताक़त, उसका अहंकार, सब कुछ कल रात अद्या के सामने डगमगा गया था। उसने सोचा था कि रक्तबंधन के बाद अद्या का शरीर और आत्मा पूरी तरह से उसके अधीन हो जाएगी, लेकिन कल रात का अनुभव पूरी तरह से अलग था। हर बार जब वह अद्या को अपनी मर्ज़ी से छूने की कोशिश करता, उसका शरीर प्रतिरोध करता।

    "वो अब मेरी अद्या नहीं रही…" उसने धीमी, काँपती हुई आवाज़ में कहा। वह महसूस कर सकता था कि अद्या की आत्मा अब जाग रही थी, और उसके शरीर में एक नई शक्ति का संचार हो रहा था। "वो हर बार मुझे छूती है, लेकिन मेरी गिरफ्त से फिसल जाती है।"

    वियान को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। वह अद्या के भीतर की उस शक्ति को महसूस कर सकता था, जो उसकी अपनी शक्ति का मुकाबला कर रही थी। "क्या रुद्राणी जाग चुकी है…?" यह सवाल उसके मन में एक तूफ़ान की तरह घूम रहा था।

    उसने अपनी हथेली पर एक काले निशान को देखा। यह निशान कोई साधारण निशान नहीं था, बल्कि एक शाप था। रात अद्या ने जब उसे चूमा था, तब उसे वहाँ जलन सी हुई थी। वह चुंबन नहीं था, वह शाप था। अद्या की आत्मा ने उसकी देह को शापित कर दिया था, और वह शाप वियान के अहंकार पर एक गहरा घाव छोड़ गया था।

    रात को हवेली में एक अजीब सी उदासी और बेचैनी छाई हुई थी। हवेली के पुराने शयनकक्ष में एक तेज़ हवा चलने लगी। दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुला और एक परछाईं अंदर दाख़िल हुई। उस परछाईं के पैर ज़मीन पर नहीं थे, वह हवा में तैर रही थी। वह लाल लिपस्टिक, काले वस्त्रों और खुले घने बालों वाली एक रहस्यमयी स्त्री थी। उसके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान थी, जो ख़ुशी की नहीं, बल्कि नफ़रत और बदले की थी।

    "वियान…" उसने कहा। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी ठंडक थी, जो हड्डियों तक को कंपा देने वाली थी।

    "इतने सालों बाद भी… तुझे कोई और चाहिए?"
    वियान ने उसकी ओर देखा, और उसकी साँसें रुक गईं।

    यह वही थी: "अनाया" — वियान की पहली दुल्हन। एक शापित राक्षसी, जिसे उसने सदियों पहले ठुकरा दिया था। वह अनाया को भूला नहीं था, बल्कि उसने उसे जानबूझकर भुला दिया था। लेकिन आज वह वापस आ गई थी।

    "तू वापस क्यों आई?" वियान की आवाज़ में क्रोध और डर दोनों थे।

    अनाया ज़ोर से हँसी। "क्योंकि तूने जो आग मेरे भीतर छोड़ी थी, वो अब अद्या को जलाने लगी है।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी कड़वाहट थी। "तू भूल गया, वियान — मैं वो औरत हूँ, जो तेरे स्पर्श से मर कर भी अमर हो गई।"


    अनाया अब अद्या को देख चुकी थी। उसकी ईर्ष्या की आग उसके भीतर भड़क रही थी। "कमज़ोर सी दिखती है… पर उसकी आँखों में कुछ है। शायद वही जिसे तू तांत्रिक विवाह के लिए चुन रहा है।" अनाया ने अद्या के बारे में कहा। "लेकिन याद रख — मैं तेरी पहली सौतन हूँ, और मुझे कोई दूसरा बाँट नहीं सकता।" उसकी आँखों से काली धुँआ निकलने लगी, जो उसकी भयंकर ईर्ष्या का प्रतीक थी।

    वियान ने पीछे हटकर कहा, "अब अद्या को कोई छू नहीं सकता — क्योंकि वो अब सिर्फ़ मेरी दुल्हन नहीं… मेरी आत्मा का दूसरा हिस्सा है।" वियान को भी अब यह एहसास होने लगा था कि अद्या सिर्फ़ एक दुल्हन नहीं, बल्कि उसके अस्तित्व का एक हिस्सा बन चुकी थी।

    अनाया ज़ोर से हँसी। "तू भूल गया — जब तूने मुझे छोड़ा था, मैंने तेरे हर प्रेम को शापित किया था।" उसकी हँसी में एक भयानक शैतानी आनंद था, जैसे वह वियान को तड़पता हुआ देखना चाहती थी।


    अगली रात, अद्या गहरी नींद में सो रही थी। अचानक उसकी आँख खुली। कमरे में धुँध थी और बिस्तर पर काले फूल बिखरे थे, जो किसी अशुभ संकेत की तरह लग रहे थे। जैसे ही वह उठने लगी, किसी ने उसकी गर्दन को पकड़ लिया। यह अनाया थी।

    "शुभ रात्रि, रुद्राणी…" अनाया ने एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहा। "कभी सुना है… दो औरतें एक शैतान की दुल्हन नहीं बन सकतीं?" अद्या के गले से आवाज़ नहीं निकली। वह पूरी तरह से असहाय महसूस कर रही थी।

    अनाया ने उसके गले पर अपने नाखून रखे… और बोली: "तू मुझे छीनना चाहती है?" "तो पहले अपने शरीर की राख से उठकर दिखा।" उसने अद्या को बिस्तर पर फेंक दिया। अद्या के होठों से खून निकलने लगा। रक्त की पहली सज़ा शुरू हो चुकी थी।


    जैसे ही अनाया उसे खत्म करने लगती है, अद्या की आँखें पलट जाती हैं — उसकी सांसें आग बन जाती हैं। अनाया को लगा जैसे वह किसी आग के गोले के पास खड़ी है। रुद्राणी जाग जाती है।

    अद्या एक ज़ोरदार धक्का देकर अनाया को दूर कर देती है। "तेरा शाप… अब नहीं चलेगा। तू भले ही उसकी पहली दुल्हन हो, लेकिन मैं उसकी अंतिम रानी बनूँगी!" अद्या की आँखों से सफेद रोशनी निकलती है। उसके शरीर के हर अंग से दिव्य रेखाएं फैलती हैं, जो उसकी शक्ति को दर्शाती हैं।

    वह अनाया को खींचकर दीवार से दे मारती है। रक्त दीवारों पर उड़ता है। अनाया डरती है। "ये… तू नहीं हो सकती…" "तू रुद्राणी है?" "तेरे जागरण का समय अभी नहीं आया था…"

    अनाया के चेहरे पर डर और हैरानी के भाव थे। वह उस शक्ति से अनजान थी, जो अद्या के भीतर छिपी हुई थी।


    अद्या (रुद्राणी रूप में) अपनी आँखों में आग लिए ख़ुद से बोली, "अब रानी वापस आ चुकी है… और अब से… इस हवेली की हर रात, मेरे नियमों पर चलेगी।"


    तीन दिन तक हवेली में कोई दरवाज़ा नहीं खुला। चारों ओर एक गहरी, डरावनी खामोशी छाई हुई थी। यह वह ख़ामोशी नहीं थी जो शांति लाती है, बल्कि वह ख़ामोशी थी जो तूफ़ान से पहले की होती है। अद्या को यह ख़ामोशी महसूस हो रही थी, उसे अहसास था, कुछ बड़ा, कुछ भयानक आने वाला है। उसकी आत्मा और शरीर दोनों उस अनहोनी के लिए तैयार हो रहे थे।

    फिर एक दिन, वियान ने उसे एक लाल मखमली डिब्बा थमाया। उसकी आँखें रहस्यमयी थीं, और उसकी मुस्कान में एक नया आत्मविश्वास था। डिब्बे में रखी थी: एक काले रंग की साड़ी, जिस पर सिर्फ़ लाल रेशमी धागों से एक मंत्र लिखा था — "मृत्यु के बाद ही जीवन होता है"। यह मंत्र अद्या के दिल में एक नई ख़ुद को खोजने की जिज्ञासा जगाता है।

    वियान: "आज रात तू मेरी बनेगी… पर केवल मेरी नहीं… बल्कि राक्षसी कुल की रानी बनेगी।" उसकी आवाज़ में आदेश और अधिकार दोनों थे। "रक्त मेला" में तुझे पहनना है ये वस्त्र… और सामने आने हैं देवताओं, तांत्रिकों और मृतात्माओं के।”

    अद्या काँप उठी। उसे समझ आ गया था कि यह रात उसके लिए एक साधारण रात नहीं है, बल्कि उसके जीवन का सबसे बड़ा इम्तिहान है।


    रक्त मेला, एक ऐसी जगह, जहाँ धरती के नीचे छिपे राक्षसों का मेला लगता है। यह एक ऐसी जगह थी, जहाँ की हवा में मौत की बदबू और शक्ति की लालसा घुली हुई थी। यहाँ हर दुल्हन को खुद को साबित करना पड़ता है।
    जब अद्या वहाँ पहुँची, तो आसमान पर चंद्रग्रहण था, जो किसी बड़े बदलाव का संकेत था।

    ज़मीन पर खून से खींचे गए तंत्र-चक्र, चारों तरफ बैठे थे तांत्रिक, पिशाच, अग्निकाय, अघोरी राक्षस, और सबसे आगे… अनाया।

    अनाया की आँखों में नफ़रत और जलन साफ़ झलक रही थी। वह अद्या को घूर रही थी, जैसे वह उसे अपनी आँखों से ही जला देना चाहती हो।

    सफ़ेद झील के बीचों-बीच एक मंच था, जहाँ वियान ने अद्या को खड़ा किया। वियान ने सबको संबोधित करते हुए कहा, "आज रुद्राणी इस कुल की रानी बनेगी।" "लेकिन उससे पहले… उसे तीन रक्त-परीक्षाएँ देनी होंगी।"



    अद्या को बिना कुछ बोले, एक त्रिभुज रेखा पर खड़ा किया गया। उसके पैरों में बंधी हुई थीं रक्त-बूंदों से सिंचित पायलें, जो हर कदम पर एक अजीब सी ध्वनि निकाल रही थीं। उसे करना था: "रक्त-नृत्य" — एक ऐसा तांत्रिक नृत्य जिससे उसकी आत्मा जागेगी… या जल जाएगी।

    जब संगीत शुरू हुआ, अद्या ने अपने बाल खोले, आँखें बंद की, और अपने शरीर को मंत्रों की ताल पर बहने दिया। हर कदम पर उसके वस्त्र बदलते, उसकी पीठ से आग निकलती, और उसकी आँखों में उतर आती देवी रुद्राणी की झलक। पूरा सभा-स्थान काँप उठा। अद्या का नृत्य सिर्फ़ एक नृत्य नहीं था, बल्कि वह अपनी आत्मा का जागरण कर रही थी।


    अब वियान ने उसके सामने एक पिंजरा लाया — जिसमें बंद था एक बच्चा — वह कोई और नहीं, बल्कि अद्या की आत्मा का मासूम अंश था। वियान ने कहा, “अगर तू इस बच्चे को बलिदान देती है, तो तू इस दुनिया की सबसे शक्तिशाली रानी बन सकती है।”

    अद्या के हाथ में एक चाकू थमा दिया गया। सभा में सब चिल्ला उठे — "बलिदान… बलिदान… बलिदान!!"
    लेकिन अद्या के हाथ काँप गए। उसने चाकू को उठाया, लेकिन वह उस मासूम अंश को नहीं मार सकी।

    "मैं शैतान की दुल्हन बन सकती हूँ, पर माँ नहीं बन सकती जो अपने बच्चे को मार दे।" उसने यह कहकर चाकू ज़मीन पर फेंक दिया। उसकी आवाज़ में एक दृढ़ता थी, जो वियान के राक्षसी दुनिया के नियमों से परे थी। एक गूंज उठती है — "रानी असफल रही…!"


    अब आखिरी परीक्षा थी — सबके सामने वियान और अद्या का राक्षसी मिलन। "इसमें डर कैसा?" वियान ने कहा। "तूने तो पहले भी उसे छुआ है, अब बस सब देखेंगे।" पर इस बार… यह सिर्फ़ एक शारीरिक मिलन नहीं था, बल्कि आत्मा और रूह को सबके सामने उघाड़ देने जैसा था।

    अद्या को मंच के केंद्र में खड़ा किया गया, और वियान ने उसका हाथ पकड़कर कहा: “तेरा समर्पण मुझे पूर्ण बना देगा… और तुझे मेरी रानी।”

    अद्या ने उसे देखा। उसकी आँखें अब चमक रही थीं। “मैं तुझसे डरती नहीं… पर अगर तू मुझे पाना चाहता है, तो पहले मुझे बराबरी से स्वीकार कर।”

    और तब पहली बार… वियान ने घुटने टेके। उसने अद्या को अपनी बराबरी पर स्वीकार किया, और चुपचाप उसकी मांग में खून का तिलक लगाया। “रुद्राणी… अब तू मेरी नहीं, बल्कि मैं तेरा हूँ।”

    सभा सन्न थी। किसी ने भी ऐसा नहीं सोचा था कि वियान एक स्त्री के सामने झुकेगा।


    अनाया (दाँत पीसते हुए): “अगर ये विवाह पूर्ण हो गया… तो मेरी आत्मा भस्म हो जाएगी।” “मगर नहीं… अभी एक रुकावट बाकी है…” “अगली रात, जब चंद्र रक्तमय होगा, मैं खुद अद्या के शरीर में उतरूँगी…!”

    क्या अनाया अद्या के शरीर में प्रवेश करने की तांत्रिक योजना बनाएगी? और क्या वो अपनी जलन और नफ़रत की आग से उसे भस्म करने की कोशिश करेगी? पर अद्या, जो रुद्राणी के रूप में जाग चुकी है, वियान से दूर जाने लगेगी — क्योंकि हर मिलन अब उसकी रूह को खा रहा है।

    याद रखें, यह कहानी अब आग से नहीं —
    रक्त, रूह और अधूरी वासना से जल रही है… 🔥

  • 5. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 5 राक्षसी गर्भ

    Words: 1566

    Estimated Reading Time: 10 min

    एपिसोड 5: राक्षसी गर्भ

    अनाया के शाप ने अद्या की देह को अपना घर बना लिया था। अब वियान की दुल्हन उसके सामने थी, लेकिन उसकी आँखें किसी और की थीं, और उसके दिल में किसी और का इंतकाम जल रहा था।

    रक्त मेले की रात बीते सिर्फ़ 24 घंटे हुए थे। हवेली के हर कोने में मौत की गंध, और एक अजीब सी, भारी ख़ामोशी छाई हुई थी, जो इतनी गहरी थी कि साँस लेना भी दूभर लग रहा था। अद्या अपने कमरे में अकेली थी। वियान किसी तांत्रिक युद्ध में गया था, जिसने उसे अपनी नव-विवाहिता पत्नी के पास रहने की मोहलत नहीं दी थी। वह अपनी "रानी" को पीछे छोड़ गया था... लेकिन बिल्कुल असुरक्षित। अद्या बिस्तर पर लेटी थी, उसकी आँखें खुली थीं, लेकिन वे किसी एक बिंदु पर टिकी नहीं थीं। उसका शरीर थकान से चूर था, लेकिन उसकी आत्मा में एक अजीब सी बेचैनी थी। उसे महसूस हो रहा था कि कुछ होने वाला है, कुछ ऐसा जो उसके अस्तित्व को हिला देगा।

    उसकी खुली आँखों के सामने, बीते हुए पल किसी फ़िल्म की तरह चल रहे थे। वियान के साथ शादी के फेरे, सिन्दूर... और फिर अनाया का वह शाप जो उसके कानों में गूँज रहा था, "तेरी रूह तो मेरी हो चुकी है..." यह सिर्फ़ एक शाप नहीं था, बल्कि एक भयंकर चेतावनी थी, जिसे अद्या तब पूरी तरह समझ नहीं पाई थी। अब उसकी साँसें भारी हो रही थीं। उसके भीतर कुछ जल रहा था।

    एक अजीब सी आग, जो उसकी रूह को झुलसा रही थी।

    अद्या ने आँखें बंद कीं और अचानक उसके गले में जलन होने लगी। ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके होंठों को ज़हर से चूम लिया हो। उसकी साँसें अटक गईं। उसने हिम्मत करके आईने में देखा — उसकी आँखें अब धीरे-धीरे काली हो रही थीं, और उसके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान थी जो उसकी अपनी नहीं थी। वह अपने ही शरीर को पहचान नहीं पा रही थी।

    "ये मैं नहीं हूँ..." उसने अपने अंदर से कहा। आवाज़ उसके होंठों से नहीं, बल्कि उसकी आत्मा से निकली थी।

    "ये कोई और है... कौन है मेरे अंदर?"

    उसकी आवाज़ काँपती हुई थी, जैसे कोई अपनी ही मौत का ऐलान कर रहा हो। आईना चटक गया, जैसे वह भी इस सच को सह नहीं पा रहा था कि अद्या की देह अब उसकी नहीं रही थी।

    इसी पल, हवेली के नीचे बने शमशान तंत्रकक्ष में, अनाया ने खुद को एक उलटी हुई त्रिशूल की नोक पर लटका रखा था। उसके शरीर से बहता हुआ ख़ून नीचे बने तंत्र-मंडल में गिर रहा था, और हर बूँद के साथ, एक भयानक शब्द गूँज रहा था:

    "अब तू उसकी आत्मा से नहीं, उसके शरीर से खेलेगी। उसका तन तेरा हो, उसकी रातें तेरे!"

    यह अनाया का अंतिम तांत्रिक कर्म था। उसने अपनी देह को दाँव पर लगा दिया था, ताकि वह हमेशा के लिए अद्या के शरीर पर कब्ज़ा कर सके। तांत्रिक जप समाप्त होते ही, तंत्र-मंडल से एक काले धुएँ की लहर उठी, जिसने पूरी हवेली को अपनी चपेट में ले लिया। यह लहर अद्या के कमरे में पहुँची और उसके शरीर में समा गई।

    अब अद्या के भीतर दो रूहें थीं — एक रुद्राणी, जिसने वियान से प्यार किया था, और एक शापित सौतन, अनाया, जो सिर्फ़ बदले की भूखी थी। अद्या की आँखें अब पूरी तरह से काली हो चुकी थीं, और उसकी मुस्कान में एक अजीब सी क्रूरता थी, जैसे वह किसी शैतान की कठपुतली हो। वह अपने ही कमरे में उठकर खड़ी हुई, उसके पैर जमीन से नहीं, बल्कि किसी अदृश्य शक्ति के इशारे पर उठ रहे थे।

    रात को वियान लौटा। वह युद्ध से थककर चूर हो चुका था, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी वही शैतानी चमक थी। जैसे ही वह कमरे में दाखिल हुआ, उसने एक अजीब सी बेचैनी महसूस की। कमरे में रोशनी कम थी, और अद्या, जो अब अनाया बन चुकी थी, धीमे कदमों से उसकी ओर बढ़ी। उसने वही काले वस्त्र पहन रखे थे, जो वियान की प्रथम वासना की रात में अनाया ने पहने थे। यह वियान को चौंका गया।

    "आज कुछ अलग है," वियान ने महसूस किया। अद्या का स्पर्श, उसकी गंध, उसकी आँखें... सब कुछ अलग था। "तू चुप क्यों है, मेरी रुद्राणी?" वियान ने पूछा, उसकी आवाज़ में एक संदेह था।

    "क्योंकि आज रुद्राणी नहीं... तेरी भूखी अनाया तुझसे बात कर रही है..." अनाया ने अद्या के होठों से फुसफुसाया।

    वह वियान के गले में बाँहें डालती है। एक चुम्बन... जो देह को जलाता है, और आत्मा को घायल करता है। वियान का शरीर जवाब देने लगा, पर तभी...
    अंदर कहीं... असली अद्या, अपने ही शरीर में क़ैद थी।

    उसे सब कुछ महसूस हो रहा था। अनाया के स्पर्श से वियान का टूटता हुआ शरीर, और उसकी अपनी बेबसी।
    "ये मैं नहीं हूँ! कोई मेरे वियान को छू रहा है... मेरे हाथों से! कोई मेरी सांसें चुरा रहा है... और मैं बस देख रही हूँ!" अद्या की आत्मा भीतर ही चीख रही थी, लेकिन उसकी आवाज़ बाहर नहीं आ पा रही थी।

    रुद्राणी का स्वरूप जागता है। अद्या अपने भीतर ही अनाया से लड़ती है।

    "तू मेरी रूह को चाहे जितना जकड़ ले, लेकिन मेरा वियान सिर्फ़ मेरा है!" उसकी आत्मा अनाया पर हावी होने की कोशिश करती है।

    "और तुझसे पहले... मैं खुद को जला दूँगी!" यह अद्या का अंतिम विद्रोह था।

    अनाया-वश अद्या, वियान को चूमती है, उसके शरीर से मिलती है, पर जैसे ही वियान उसकी आँखों में देखता है — उसे एहसास होता है।

    "ये... मेरी अद्या नहीं है... ये उसकी गंध नहीं... ये स्पर्श... मुझे बर्बाद कर देगा।"
    वह अद्या को धक्का देता है, लेकिन अब देर हो चुकी थी। वियान के सीने पर काले नाखूनों के पाँच गहरे निशान पड़ चुके थे। उसके होंठों से ख़ून बहने लगा।

    वियान (लहूलुहान):
    "जिसे मैंने अपनी दुल्हन बनाया... उसी के भीतर अब मेरी मौत बैठी है।"

    अनाया (अद्या के शरीर में):
    "अब देखना... वियान... तेरी रुद्राणी तेरे ही हाथों तुझे मार डालेगी।"

    अद्या की आँखें बंद थीं, लेकिन उसका मन एक दहकती भट्टी में जल रहा था। वियान लहूलुहान पड़ा था, और उसके सीने से उठता धुआँ बताता था — कि ये कोई आम चोट नहीं थी। यह एक ऐसा ज़ख्म था जो किसी शैतानी नाखून ने दिया था, और जिसका ज़हर धीरे-धीरे उसकी रगों में फैल रहा था।

    अद्या के भीतर अनाया अब पूरी तरह हावी हो चुकी थी।
    "तेरा गर्भ अब मेरा है, रुद्राणी," अनाया की आवाज़ उसके भीतर गूँज रही थी। "इस बार मैं सिर्फ़ उसकी दुल्हन नहीं, उसके बच्चे की माँ बनूँगी।"

    अनाया, अपने प्रतिशोध में अंधी हो चुकी थी। वह जानती थी कि अगर वह वियान के बच्चे की माँ बन गई, तो वह हमेशा के लिए वियान पर हावी हो जाएगी।

    वियान, अपने दर्द को अनदेखा करते हुए, घसीटता हुआ पुराने गुप्त कक्ष तक पहुँचा — जहाँ एक भस्म तांत्रिक, जिसे "निशाचार्य" कहा जाता था, ध्यान में लीन था। निशाचार्य ने आँखें खोलीं और वियान को देखा।
    "वो अब केवल तेरी दुल्हन नहीं… वो एक राक्षसी यज्ञ का पात्र बन चुकी है।"

    निशाचार्य की आवाज़ में एक अजीब सी चेतावनी थी। वियान काँप गया।

    "अगर उसका गर्भ फूट गया, तो जो जन्मेगा… वो न तेरा होगा, न उसका… वो स्वयं 'काल' होगा।"

    वियान के मन में डर समा गया। वह जानता था कि निशाचार्य सच कह रहा था।

    तंत्र की अग्नि में अद्या की असली आत्मा अपने भीतर की आग को भड़काती है।

    "तेरा राक्षसी बीज मेरे अंदर पल रहा है?" अद्या की आत्मा अनाया से लड़ती हुई कहती है, "तो ठीक है, मैं उसे तेरे साथ जला दूँगी!"

    अद्या खुद को आग के पास ले जाती है, और वहाँ, पहली बार उसके गर्भ से एक अस्पष्ट परछाई निकलती है — उसकी आँखें जलती हैं, और उसकी हँसी… पूरी हवेली को थर्रा देती है।

    अद्या के भीतर अब वियान की दुल्हन नहीं, बल्कि एक राक्षसी रानी जन्म ले रही थी। वह वियान को खींचकर अपने पास लाती है, और कहती है।

    "मुझे रोको मत… आज मैं तुझे पूरा भोगूँगी, और जो जन्मेगा… वो तुझे खा जाएगा।"
    यह मिलन प्रेम का नहीं था — बस वासना, तंत्र और श्राप था। वियान उस स्पर्श से टूट रहा था… अद्या उस मिलन से बचाने की कोशिश में मर रही थी।

    निशाचार्य कहता है:
    "तुझे अपनी दुल्हन की आत्मा को उसके शरीर से अलग करना होगा। लेकिन उसके लिए… तुझे उसे एक बार और चूमना होगा — पर ये चुम्बन प्रेम का नहीं, बलिदान का होगा।"

    वियान दोबारा उसके पास जाता है। अद्या अब पूरी तरह अनाया है। वह उसे चूमता है… लेकिन उस चुम्बन में अपनी आत्मा का एक टुकड़ा सौंप देता है।

    अद्या काँपती है… उसकी आँखों से ख़ून निकलता है… और फिर…

    "वियान… मैं… वापस… आ गई…"

    उसका स्वर टूटा, काँपता हुआ था।

    वियान उसकी कोख की ओर देखता है — वो अब काली नहीं, लाल हो चुकी थी। लेकिन अभी शांत नहीं थी।

    वियान:"तेरा बच जाना ही जीत नहीं, अद्या… अब तेरे भीतर जो बचा है, वो हम दोनों को मार सकता है।"

    अद्या (सहमी हुई):"क्या मैं सच में माँ बनने वाली हूँ… या सिर्फ़ एक… राक्षसी योनि?"

    अद्या का गर्भ अभी भी रहस्य बना है — क्या वहाँ कोई बच्चा है? या कोई दैत्य?

    वियान करेगा एक और विवाह, पर इस बार एक मृत आत्मा से… तांत्रिक रक्षा के लिए।

    एक तंत्र-महायुद्ध होने वाला है, जहाँ गर्भ की रक्षा या विनाश का निर्णय होगा।

    "Raktbandhan: The Devil’s Bride" अब सिर्फ़ एक शादी नहीं...
    यह अब जन्म, मृत्यु और बर्बादी की किताब बन चुकी है। 🔥
    आपको कहानी कैसी लगी जरुर बताना।

  • 6. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 6 निशाचर विवाह

    Words: 1521

    Estimated Reading Time: 10 min

    एपिसोड 6: निशाचर विवाह

    "जिस रात्रि को विवाह कहा जाए, और जिसके मंत्रों में मृत्यु हो —वह निशाचर विवाह होता है। और दुल्हन… राक्षसी होती है।"

    यह सिर्फ़ एक कहावत नहीं थी, बल्कि वियान की ज़िंदगी का कड़वा सच बन चुका था। जिस रात उसने अद्या से प्रेम विवाह किया था, उसी रात उसे पता चला कि उसका प्यार एक शैतानी साज़िश का हिस्सा है। अब, जब उसकी दुल्हन, अद्या, एक राक्षसी गर्भ की वेदी बन चुकी थी, तो उसे एक और विवाह करना था—एक ऐसा विवाह जो न प्रेम का था, न समर्पण का, बल्कि एक बलि का था।


    रात के तीसरे प्रहर में, हवेली की दीवारों से काली रेखाएँ टपक रही थीं। ये सिर्फ़ सीलन नहीं थी, बल्कि तांत्रिक क्रियाओं से रिसता हुआ ख़ून था, जो हवेली की आत्मा को धीरे-धीरे ज़हर दे रहा था। वातावरण में एक अजीब सी सड़ांध थी, जो ताज़े रक्त और सड़े हुए फूलों की थी।

    अद्या अपने कमरे में नहीं, बल्कि अब हवेली के सबसे गुप्त कक्ष में थी, जहाँ उसे एक पुराने, काले कफ़न में लपेटकर एक आसन पर बिठाया गया था। उसकी आँखें बुझी हुई थीं, जैसे अंदर कोई रोशनी बची ही न हो। उसकी साँसें धीमी थीं, पर उसके भीतर कुछ हिलता हुआ महसूस हो रहा था। हर हिलने के साथ, अद्या की देह पर एक नई पीड़ादायक रेखा उभर आती थी। यह एक गर्भ का विकास नहीं था, बल्कि एक शैतानी बीज का अंकुरण था।

    वियान पास आता है। उसका चेहरा डर, थकान और क्रोध से फटा हुआ था। वह अद्या के करीब आया और देखा कि अद्या की पीठ पर प्राचीन राक्षसी लिपि से कुछ लिखा हुआ है — “ध्रुवाक्षर”। ये कोई मामूली निशान नहीं थे। निशाचार्य ने बताया था कि ये लिपि तब प्रकट होती है जब कोई राक्षसी वंश की देवी गर्भवती हो। इसका मतलब था कि अद्या के अंदर पल रही चीज़ को वह अब वियान के बच्चे के रूप में नहीं, बल्कि एक राक्षसी के उत्तराधिकारी के रूप में देखे।

    वियान ने अद्या के माथे पर हाथ रखा। उसका स्पर्श ठंडा था, जैसे वह कोई जीवित इंसान नहीं, बल्कि एक पत्थर की मूर्ति हो। वियान को महसूस हुआ कि उसकी अद्या कहीं बहुत दूर चली गई है, एक ऐसी दुनिया में जहाँ वह उसे कभी वापस नहीं ला पाएगा।

    निशाचार्य, जो अब तक बस एक छाया की तरह हवेली में घूमता था, पहली बार अपने पूर्ण तांत्रिक रूप में प्रकट हुआ। उसका शरीर भस्म से सना हुआ था, और उसकी आँखें अँधेरे में भी चमक रही थीं।

    निशाचार्य ने अद्या और वियान की ओर देखा और उसकी आवाज़ किसी गहरी गुफ़ा से आती हुई गूँजी:
    "तेरी दुल्हन अब दुल्हन नहीं… एक यज्ञ की वेदी है। उसके गर्भ को बंद करने के लिए तुम्हें ‘निशाचर विवाह’ करना होगा। लेकिन ये विवाह, उसके देह से नहीं… आत्मा से होगा। और इसके लिए तुझे अपने प्राणों का एक अंश देना होगा।”

    वियान ने चौंककर पूछा, "प्राणों का अंश? इसका क्या मतलब है?"

    निशाचार्य ने समझाया, "अनाया ने उसके शरीर पर कब्ज़ा करने के लिए अपनी आत्मा का बलिदान दिया है। अब तुम्हें भी उसी तरह अपनी आत्मा का एक हिस्सा अद्या को देना होगा, ताकि उसकी आत्मा फिर से अपनी देह पर राज कर सके।"

    वियान का दिल बैठ गया। वह जानता था कि अपनी आत्मा का एक टुकड़ा देना मतलब अपनी ज़िंदगी का एक हिस्सा खोना था। वह कमज़ोर हो जाएगा, उसकी शक्तियाँ घट जाएँगी, और शायद वह कभी पहले जैसा न बन पाएगा।

    निशाचर विवाह कोई साधारण अनुष्ठान नहीं था। यह बलिदान का एक भयानक रास्ता था, जिसमें वियान को तीन सबसे पवित्र चीज़ों का त्याग करना था।

    प्रथम समर्पण: स्मृति का विसर्जन

    "प्रथम समर्पण, अपनी सबसे पवित्र स्मृति का विसर्जन है," निशाचार्य ने कहा। "तुम्हें अपनी सबसे पहली और सबसे पवित्र स्मृति को त्यागना होगा।"
    वियान की आँखों के सामने उसकी माँ का चेहरा आ गया। उसकी माँ की गोद में खेलते हुए, माँ के हाथों का स्पर्श... वह अपनी सबसे पवित्र स्मृति थी, जिसे वह कभी नहीं भूल सकता था।

    वियान ने एक ताम्र-पिंड में अपनी माँ की अंतिम स्मृति डाली। ताम्र-पिंड में डालते ही वह स्मृति एक धुंधले धुएँ में बदल गई।

    तांत्रिक मंत्र बोला: "मां के स्पर्श को मैं त्यागता हूँ, ताकि अपनी राक्षसी दुल्हन को बचा सकूँ।"

    वियान ने महसूस किया कि जैसे उसके दिमाग से एक हिस्सा खींच लिया गया हो। उसकी माँ का चेहरा धुंधला हो गया, उसकी आवाज़ गुम हो गई। वह अब अपनी माँ की उस स्मृति को महसूस नहीं कर पा रहा था।

    द्वितीय समर्पण: रक्त का दान

    "दूसरा समर्पण, रक्त का दान है," निशाचार्य ने कहा। "तुम्हें अपने शरीर की तीन सबसे प्रबल नाड़ियों से रक्त निकालकर तंत्र-कुण्ड में अर्पित करना होगा।"

    वियान ने अपनी कलाई, गर्दन और छाती से खून निकाला। खून की हर बूँद में उसकी शैतानी शक्ति थी, जो अब तंत्र-कुण्ड में गिरकर जल रही थी।

    वियान का शरीर कमज़ोर होने लगा, उसकी आँखें लाल हो गईं, और उसके माथे पर पसीना आ गया। लेकिन वह रुका नहीं। उसे पता था कि अद्या को बचाने का यही एक रास्ता था।

    तृतीय समर्पण: प्रेम का खंडन

    "तीसरा समर्पण सबसे कठिन है," निशाचार्य ने कहा। "तुम्हें अद्या के सामने खड़ा होकर अपने प्रेम का खंडन करना होगा।"

    वियान ने चौंककर निशाचार्य को देखा। "यह कैसे संभव है? मैं उससे प्रेम करता हूँ।"

    "उसका शरीर अनाया के कब्जे में है। अगर तुमने प्रेम का खंडन नहीं किया, तो तुम्हारी आत्मा का टुकड़ा अनाया की आत्मा को और मजबूत कर देगा," निशाचार्य ने समझाया।

    वियान अद्या के चेहरे के सामने खड़ा होता है। उसकी आँखों में दर्द था, लेकिन वह जानता था कि उसे यह करना होगा।

    "मैं तुझसे प्रेम नहीं करता, अद्या," वियान ने अपनी आवाज़ में सारी कठोरता लाकर कहा।

    "मैं बस तुझसे बंधा हूँ… क्योंकि तू मेरी मृत्यु बन चुकी है।"
    अद्या काँपती है, पर बोल नहीं पाती। उसकी रूह भीतर चीख रही थी, पर उसकी आँखें अनाया की थीं। उसकी आँखों से आँसू गिरने की बजाय, ख़ून की बूँदें टपक रही थीं।

    एक त्रिकोण तांत्रिक मंडल बनता है, जिसे तंत्र की सबसे पवित्र अग्नि से बनाया गया था।
    अद्या को बीच में रखा जाता है। उसकी पीठ पर बने ध्रुवाक्षर अब चमक रहे थे।

    चारों दिशाओं से जलती हुई काली मशालें, जो इंसान की हड्डियों से बनाई गई थीं — एक शैतानी अग्निविवाह की गवाही दे रही थीं।

    निशाचार्य मंत्र बोलता है:
    "अब तुझ वियान को, अपने प्राण का एक अंश इस दुल्हन की आत्मा को देना होगा,
    ताकि राक्षसी तत्व का गर्भ पर अधिकार समाप्त हो सके।"

    वियान ने अपनी आँखें बंद कीं और अपने अंदर की ऊर्जा को इकट्ठा किया। उसने महसूस किया कि उसकी आत्मा एक तेज रोशनी में बदल रही है।

    वियान अद्या के पास झुकता है।
    उसकी आँखों में अब भी अनाया है, जो उसे देख रही है, लेकिन उसकी आँखें अब डर से भरी हुई थीं। अनाया समझ चुकी थी कि यह कोई प्रेम का चुम्बन नहीं, बल्कि एक बलिदान था, जो उसकी ताक़त को खत्म कर देगा।
    वियान ने अद्या को चूमता है… लेकिन उस चुम्बन में एक ज्वालामुखी सी ऊर्जा निकलती है।

    “मेरे जीवन का अंश… मैं तुझे दे रहा हूँ… लेकिन सिर्फ़ तुझे मुक्त करने के लिए।”

    अद्या की रूह काँपती है। उसकी आँखों से रक्त की दो धारें गिरती हैं… और फिर… वो फट जाती हैं, जैसे कोई चीज़ टूट गई हो।

    अचानक अद्या की देह थरथराने लगती है। उनके शरीर मैं कंपन शुरू हो गया।उसके गर्भ से एक बार फिर परछाई निकलती है… लेकिन इस बार शांत है।

    “अनाया चली गई…” अद्या की आवाज़ फुसफुसाती है, "…लेकिन जो उसने छोड़ा है… वो अभी भी मेरे भीतर है…”

    वियान अद्या को बाहों में लेता है, लेकिन उसकी धड़कनें बहुत धीमी हैं। उसके शरीर का एक हिस्सा ख़त्म हो चुका था।

    "मैं ज़िंदा हूँ…" अद्या कहती है, "…पर मेरी कोख अब ज़िंदा नहीं… वो जाग चुकी है…"


    निशाचार्य गर्भ पर हाथ रखता है और कहता है:
    “ये न बच्चा है, न दैत्य… ये ‘कर्म-बीज’ है —
    हर वो पाप, जो तुम दोनों ने किया है… अब ये उसके रूप में जन्मेगा।”

    वियान चौंकता है:
    “तो ये हमारा नहीं… हमारी सज़ा है?”

    अद्या फुसफुसाती है:
    "अगर मैं माँ बनी… तो सिर्फ़ उस राक्षसी की… जिसने मेरे प्रेम को जलाया था…"


    हवेली की सबसे ऊपरी मीनार में, एक प्राचीन दस्तावेज़ अपने आप खुलता है —

    उसमें लिखा है:
    “वह दुल्हन जो मरे हुए से विवाह करेगी… उसका गर्भ न जन्म देगा, न मृत्यु…बल्कि ‘रक्त-उत्तराधिकारी’ — जो नरक, स्वर्ग और पृथ्वी — तीनों पर राज्य करेगा।”

    अद्या और वियान विवाह-वृत्त से बाहर निकलते हैं। दोनों ने एक परीक्षा तो पार कर ली पर और नई चुनौतियां उनके जीवन मैं आगे आने वाली थी । जो उनकी जिंदगी तहशनहस कर सकती थी।

    अद्या अब शांत है… लेकिन उसकी परछाई में दो आँखें दिखती हैं।

    वो आँखें अनाया की नहीं… बल्कि उस अभी-अनजन्मे रक्त-बालक की थीं। जो कौन होगा ये तो समय ही बता सकता है ।

    अद्या ने धीरे से कहा ,"अब मैं उसकी माँ हूँ…
    लेकिन सवाल ये नहीं कि वो कौन है…
    सवाल ये है — मैं कौन बनूँगी? देवी… या राक्षसी?"


    क्या अद्या मुक्त हो गई? या कोई और राज छुपा है ? क्या अद्या एक आत्मा को मुक्त करने के लिए, एक शैतान को आत्मा देंगी?

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहे।

  • 7. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 7 कफ़न का श्राप

    Words: 1548

    Estimated Reading Time: 10 min

    एपिसोड 7: कफ़न का श्राप

    "हर मृत्यु एक लिबास छोड़ जाती है... और हर कफ़न एक कहानी। लेकिन यह कफ़न... अब भी सांस लेता है।"


    रात्रि का चौथा प्रहर, जब प्रकृति भी अपनी गहरी नींद में होती है और दुनिया सपनों की चादर ओढ़ लेती है। हवेली के पूरब वाले शयनकक्ष में, एक अकेली दीपक की लौ धीमी-धीमी जल रही थी। उसकी हल्की रोशनी में अद्या अपने पलंग पर लेटी थी। उसकी आँखें बंद थीं, चेहरा शांत था, लेकिन एक भयावह खामोशी उसके चारों ओर पसरी थी। वह सो रही थी... लेकिन उसकी परछाई जाग रही थी।

    दीवार पर बनी अद्या की परछाई में एक अजीब सी हलचल थी। वह सामान्य परछाई की तरह स्थिर नहीं थी। वह कभी लंबी हो जाती, कभी सिकुड़ जाती, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे भीतर से खींच रही हो। परछाई के हाथ धीरे-धीरे हिलने लगे, और उसकी उंगलियां दीवारों पर कुछ लिखने लगीं।

    तभी, वियान कमरे में दाखिल हुआ। वह अद्या के पास आना चाहता था, उसे छूना चाहता था, उसे महसूस करना चाहता था। लेकिन जैसे ही उसकी नज़र अद्या पर पड़ी, उसके कदम ठिठक गए। अद्या अब वैसी नहीं थी, जैसी वह कुछ दिन पहले थी। उसके चेहरे पर एक अपरिचित सा भाव था। उसके नाखून थोड़े बढ़े हुए थे, जो हल्के पीले रंग से काले होते जा रहे थे। उसके होंठ, जो कभी गुलाब की पंखुड़ियों जैसे थे, अब हल्के काले पड़ गए थे, जैसे उन पर कोई सूखी स्याही लगा दी गई हो।

    लेकिन सबसे भयावह था उसकी गर्दन पर लिपटा हुआ काला धागा। यह वही धागा था जो कफ़न से निकला था, और अब वह उसकी त्वचा में समा गया था, जैसे कोई जड़ पकड़ रहा हो।

    वियान धीरे से , “ये धागे... मैंने क्यों नहीं हटाए अब तक?”

    वियान खुद से ये सवाल करता है। शायद डर ने उसे रोक दिया था। शायद वह जानता था कि इन धागों को हटाना अब उसके बस में नहीं था। तभी, उसकी नज़र दीवार पर पड़ी, जहाँ अद्या की परछाई अभी भी कुछ लिख रही थी। परछाई की उंगलियाँ हवा में चलती रहीं और दीवार पर खून के अक्षरों में एक वाक्य उभरा— “मैं अधूरी नहीं मरी थी।”

    वियान का दिल जोर से धड़कने लगा। वह समझ गया था कि यह केवल एक परछाई नहीं थी। यह कोई और था, जो अद्या के भीतर से बोल रहा था, जो उसके शरीर का उपयोग कर रहा था। वह डर गया था। यह डर अद्या के लिए था, उसके प्रेम के लिए था। वह जानता था कि अब उसे कुछ करना होगा।


    वियान ने रात भर जागकर अपनी रक्तविज्ञान की किताबों को खंगाला। वह जानता था कि इस समस्या का समाधान किसी साधारण विज्ञान में नहीं मिल सकता था। उसे कुछ और खोजना था, कुछ ऐसा जो इस रहस्यमयी घटना की व्याख्या कर सके।

    सुबह की पहली किरणें हवेली में फैलने लगीं, और वियान को अपनी किताबों के पीछे एक पुरानी, धूल भरी तांत्रिक-पुस्तिका मिली। उस पर लिखा था, “कर्णिका तांत्रम”।

    उसने डरते-डरते उस पुस्तक को खोला। उसके पन्ने पीले पड़ चुके थे, और उनमें से एक अजीब सी, मिट्टी की गंध आ रही थी। जैसे ही उसने पुस्तक खोली, उसकी नज़र एक अध्याय पर पड़ी: "शापित विवाहों की वस्त्रगाथा"।
    उसने उत्सुकता से पढ़ना शुरू किया।

    वहाँ लिखा था:
    "एक स्त्री — कर्णिका — जिसने अपने पति को मारकर उसकी आत्मा से विवाह किया था, उसका कफ़न अब भी उस ‘शैतानी प्रेम’ की स्मृति को ढोता है। जो उस कफ़न को ओढ़ेगा, उसका शरीर उसकी… आत्मा मेरी।"

    वियान काँप उठा। उसकी साँसें रुक गईं। कर्णिका... कर्णिका का कफ़न। उसे याद आया कि जब उसने अद्या को बचाने के लिए उसे लपेटा था, तब वह वही कफ़न था। एक कफ़न जो किसी मृत आत्मा का नहीं, बल्कि एक शैतानी प्रेम का लिबास था। वियान को अपने किए पर पछतावा हुआ, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। श्राप अपना काम कर रहा था।

    अगले दिन, हवेली के निचले हिस्से में रहने वाली तांत्रिक नौकरानियाँ, जिन्हें बालाएँ कहा जाता था, अचानक एक दिन अद्या के कमरे में आ गईं। वे सभी काली साड़ी में थीं, और उनके चेहरों पर एक अजीब सी श्रद्धा थी। वे सभी एक साथ अद्या के सामने झुक गईं।

    “माँ कर्णिका लौट आई है…”

    उनके मुंह से ये शब्द सुनकर वियान स्तब्ध रह गया।
    वे सभी बालाएँ एक-एक कर अद्या के पास गईं। उनमें से एक ने अपने हाथ से अपनी उंगली काट ली और उससे निकले रक्त से अद्या के माथे पर टीका लगाया। उसके पैरों के नीचे काले कमल के फूल बिछाए गए, जो हवेली के पीछे के श्मशान में उगते थे।

    बाला:“ये वही है… जिसने अपने शाप से देवों की नींद तोड़ी थी।”

    वियान बाहर खड़ा यह सब देख रहा था। उसके चेहरे पर डर और क्रोध का अजीब मिश्रण था। वह अपनी अद्या को एक राक्षसी देवी के रूप में नहीं देख सकता था।


    समय बीतता गया। अद्या अब पहले जैसी नहीं रही थी। उसके हाथ हर समय ठंडे रहते थे, जैसे उनमें कोई जीवन ही न हो। वह वियान से बात करती थी, लेकिन उसकी भाषा बदल गई थी। वह 'प्रेम' नहीं, 'स्वामित्व' की भाषा बोलती थी।

    “तू मुझे अब भी छू सकता है… पर मेरी आत्मा अब तुझे नहीं पहचानती।”

    यह कहते हुए उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो वियान को डरा रही थी। वह जानता था कि उसकी अद्या कहीं खो गई है, और उसकी जगह किसी और ने ले ली है।

    रात के तीसरे पहर, जब वियान उसके बगल में सोया हुआ था, अद्या धीरे-धीरे कुछ बड़बड़ाती है:

    “तू मेरा पहला नहीं…मैं पहले भी एक शैतान की दुल्हन थी… और अब फिर हूँ।”

    वियान धीरे से पीछे हटता है।
    “ये अद्या नहीं… ये कर्णिका है।” — वह फुसफुसाता है।


    एक दिन, अद्या के नाखूनों से खून टपकने लगा। वह बेसुध होकर दीवार पर कुछ लिखने लगी। वियान ने देखा कि वह जो लिख रही थी, वह कोई साधारण भाषा नहीं थी। वह वही रक्तलिपि थी जो कभी 'ध्रुवाक्षर' में उसकी पीठ पर उभरी थी।

    दीवार पर खून से लिखा था— “शाप कभी मरता नहीं… वह बस रूप बदलता है…”

    वियान ने अपनी पुस्तक 'कर्णिका तांत्रम' से उस लिपि का मिलान किया।
    “ये वही लिपि है जो ‘शापित देवियों’ की पहचान मानी जाती थी।”

    यह लिपि एक शाप का प्रतीक थी, एक शाप जो अद्या के भीतर अब पूरी तरह से जड़ पकड़ चुका था।

    एक रात, हवेली की हर कोठरी, हर गलियारे में जल रहे दीपक अचानक बुझ गए। घोर, स्याह अँधेरा छा गया, इतना गहरा कि अपनी ही हथेली भी दिखनी बंद हो गई। हवा में एक अजीब सी ठंडी, सड़ी हुई गंध फैल गई, जैसे सदियों पुरानी कब्रों को खोल दिया गया हो। वियान अपने कमरे में बैठा था, जब उसने महसूस किया कि अद्या के शरीर में कुछ हलचल हो रही है। उसने देखा, अद्या अचानक अपने सीने पर हाथ रखती है, उसकी आँखें हैरानी से फैल जाती हैं।

    “कुछ… हिला है… मेरे भीतर।”


    वियान, अँधेरे में ही टटोलता हुआ उसके पास जाता है। वह अद्या के गर्भ की ओर देखता है, और अँधेरे में भी उसे कुछ महसूस होता है। जैसे कोई अदृश्य, काली शक्ति उसके भीतर सर्प की तरह कुलबुला रही हो। वहाँ एक काली लकीर हिलती है, जैसे कोई साँप रेंग रहा हो, और उसके माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगती हैं।

    “ये बच्चा नहीं…” अद्या की आवाज में एक भयानक ठहराव था, जैसे कोई और बोल रहा हो।

    “ये रक्तबीज है…” — अद्या बुदबुदाती है।

    वियान का शरीर काँप उठा। ये बच्चा नहीं था... ये कोई बीज था, जो अब उसके भीतर अंकुरित हो रहा था। अद्या को एक भयावह झटका लगता है, जैसे कोई बिजली का झोंका उसके शरीर से गुजरा हो, और वह कहती है:
    “मैं अब माँ नहीं… मैं अब बीजभूमि हूँ…”



    इसी भयावह क्षण के बाद, हवेली के एक पुराने दर्पण में, जो सदियों से धुंधला था, अचानक एक स्त्री का चेहरा दिखता है। उसकी आँखें काली थीं, उसके होंठ पर लाल रंग की कोई धार बह रही थी, और उसके बाल हवा में उड़ रहे थे। यह कर्णिका थी।

    वह अद्या से बोलती है:
    “तू मेरी देह को जगा चुकी है, अद्या।
    अब मैं तेरी आत्मा माँगती हूँ।
    दे… और तू मुक्त हो जाएगी।”

    अद्या दर्पण की ओर भागती है और चिल्लाती है:
    “मैं अपनी नहीं रही… तो तुझे क्या दूँ?”

    वियान पीछे से दौड़कर आता है और गुस्से और डर के साथ दर्पण को तोड़ देता है। लेकिन आवाज़ आती रहती है, गूंजती हुई, “तो तुझे क्या दूँ?”


    अद्या अब पूरी तरह शांत है। उसकी आँखें शून्य में हैं। वह एक चट्टान पर बैठी है, जैसे किसी शिला की मूर्ति हो।

    वियान उसके पास जाता है और कहता है:
    “तू अब भी मेरी अद्या है?”

    वह मुस्कुराती है, लेकिन उसकी मुस्कान में कोई प्रेम नहीं है, केवल एक अजीब सी क्रूरता है। और उसकी आवाज दो आती है, एक मीठी, अद्या की, और एक तीखी, कठोर, कर्णिका की।

    "मैं अद्या भी हूँ… और कर्णिका भी। और जो मेरे भीतर है… वह हम दोनों का उत्तराधिकारी है। लेकिन वियान… तू उसका पिता नहीं रहेगा… तू उसका पहला शिकार बनेगा।"

    ध्वनि कटती है, और हवेली की सभी दीवारों से कफ़न के काले धागे लटकने लगते हैं।


    अद्या (धीरे से):
    "अब मैं सिर्फ़ एक औरत नहीं… अब मैं मृत्यु का वस्त्र हूँ… और मेरा गर्भ, उसका भविष्य है।"

    आगे क्या होगा? क्या आद्या इस खेल मैं उलझ जाएगी? वियान क्या करेगा? कर्णिका का अगला कदम क्या होगा?

  • 8. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 8 रक्तबीज का प्रथम स्पंदन

    Words: 1551

    Estimated Reading Time: 10 min

    एपिसोड 8: रक्तबीज का प्रथम स्पंदन

    हवेली की दीवारों पर अब केवल कफ़न के काले धागे ही नहीं, बल्कि हर कोने से एक अजीब सी, घुटन भरी नमी टपक रही थी। ये धागे किसी मकड़ी के जाल की तरह पूरे घर को अपनी गिरफ्त में ले चुके थे, जिसने हवेली को बाहर की दुनिया से पूरी तरह काट दिया था। हवा में एक अजीब सा सड़ांध भरा अहसास था, जैसे कोई मृत शरीर अपनी आखिरी साँस ले रहा हो।

    वियान, जो फर्श पर घुटनों के बल बैठा था, उसके चेहरे पर पसीना और आँसुओं का मिला-जुला सैलाब था। उसकी हथेलियाँ काँप रही थीं, लेकिन उसकी आँखें अद्या पर टिकी थीं, जो अब एक जीवित शिला की तरह बैठी हुई थी। उसकी आँखें खुली तो थीं, पर वो इस दुनिया की नहीं, किसी और ही लोक की बातें कर रही थीं।

    कमरे की दीवारों से एक धीमी, स्थिर धड़कन की आवाज़ आ रही थी, जैसे कोई दिल बहुत गहराई में, बहुत दूर... धड़क रहा हो। यह धड़कन अद्या के गर्भ से आ रही थी, जो अब केवल एक स्त्री का गर्भ नहीं, बल्कि एक भयावह भविष्य का गर्भगृह बन चुका था।

    अचानक अद्या बुदबुदाई, “वो जाग गया है…” उसकी आवाज में एक अजीब सी गूँज थी, जैसे वह किसी कुएँ के भीतर से बोल रही हो। उस आवाज़ में अद्या की कोमलता नहीं, एक प्राचीन कठोरता थी।

    वियान, जो डर के मारे काँप रहा था, फुसफुसाया, “कौन?”

    अद्या के स्वर में अब कोई स्त्री नहीं, एक प्राचीन, तांत्रिक देवी बोल रही थी, “जो मृत्यु से उपजा है… जो प्रेम से नहीं, प्रतिशोध से जन्मेगा…” अद्या का शरीर अब उसका अपना नहीं रहा था। उसकी आँखें काली होने लगीं, और उसके होंठों पर एक भयानक मुस्कान उभर आई।


    यह सब देखकर वियान ने हिम्मत जुटाकर अपनी पुस्तक 'कर्णिका तांत्रम' के आखिरी अध्याय की ओर बढ़ने का फैसला किया। जैसे ही उसने पुस्तक को छुआ, पन्ने ख़ुद-ब-ख़ुद पलटने लगे, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे मजबूर कर रही हो। पुस्तक के पन्ने किसी सूखे पत्ते की तरह खड़खड़ा रहे थे।

    “रक्तबीज — वह जो स्त्री के गर्भ में नहीं, आत्मा में बोया जाता है। उसका जन्म किसी तिथि से नहीं, किसी चेतना की टूटन से होता है। जब स्त्री 'स्व' को त्याग दे, और एक 'शाप' को अंगीकार करे—तब वह मातृत्व नहीं… अभिशप्त भविष्य की वाहक बनती है।”

    वियान के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उसने सोचा, "तो क्या अद्या… अब माँ नहीं रही?" यह केवल एक सवाल नहीं था, बल्कि एक भयावह सत्य था जिसका सामना उसे करना था। वह समझ गया था कि अद्या केवल एक शरीर है, जिसमें किसी और की आत्मा बस चुकी है। उसकी अपनी अद्या कहीं खो चुकी है।


    रात के तीसरे पहर, जब अँधेरा अपने चरम पर था, और हवेली की हवा में एक अजीब सी खामोशी थी, अचानक अद्या के पेट की त्वचा पारदर्शी होने लगी। यह कोई कल्पना नहीं थी, बल्कि एक भयानक दृश्य था।

    वियान को उसके भीतर एक अपरिपक्व शिशु की आकृति दिखी, लेकिन उसकी आँखें पहले ही खुल चुकी थीं। वे काली थीं… और उनमें कर्णिका की झलक थी। वह भ्रूण गर्भ में होकर भी… अद्या को देख रहा था। वियान को पहचान रहा था। उस भ्रूण की आँखों में न तो मासूमियत थी, न जीवन का स्पंदन। उनमें केवल प्रतिशोध की ज्वाला जल रही थी।

    फिर… उस भ्रूण के मुँह के पास से एक काला धुआँ उठता है, जो अँधेरे में भी साफ़ दिखाई देता है। यह धुआँ दीवारों पर जाकर एक शब्द लिखता है— "पुनर्जन्म का बलिदान अभी अधूरा है।" वियान की साँसें रुक जाती हैं। वह समझ जाता है कि कर्णिका की आत्मा ने अद्या के गर्भ को अपने पुनर्जन्म का माध्यम बनाया है।


    वियान अब समझ चुका था कि यह कोई साधारण जीवन नहीं, बल्कि “पुनर्जन्म का दंश” था। कर्णिका की अधूरी आत्मा अब अद्या के गर्भ में एक नया जीवन रच रही थी, एक ऐसा जीवन जो मृत्यु से भी बदतर होगा। वियान को याद आया, "कर्णिका तांत्रम" में लिखा था कि कर्णिका को शांति देने का एक ही उपाय है—उसकी देह को, जो अब भी अधूरी है, अग्नि में प्रवाहित करना।

    उसने साहस जुटाकर हवेली के नीचे बने "गर्भतल" में जाने का फैसला किया। यह वह स्थान था जहाँ वर्षों पहले हवेली की स्त्रियाँ गुप्त यज्ञ करती थीं, और जहाँ की दीवारों पर अब भी प्राचीन मंत्रों के धुंधले निशान थे। वहाँ, उसे एक भस्म-पात्र मिला—जिसमें पुराने कफ़नों की राख थी। यह राख केवल राख नहीं, बल्कि सदियों की कहानियों, मंत्रों और बलिदानों का प्रतीक थी।

    उसने काँपते हाथों से पात्र को छुआ। एक पल के लिए उसे लगा कि वह अपनी अद्या को हमेशा के लिए खो देगा। उसकी आँखों में आँसू थे, "क्या मैं अद्या को भी खो दूँगा…?"

    यह एक ऐसा सवाल था जिसका जवाब उसे मृत्यु और जीवन के बीच खोजना था। उसे यह तय करना था कि क्या वह अद्या को बचाने के लिए "अपना प्रेम जला दे" या उसे खो दे। यह एक ऐसा द्वंद्व था, जिसमें दोनों ही रास्तों का अंत दर्दनाक था।

    सुबह की पहली किरणें अभी हवेली की दीवारों तक नहीं पहुँची थीं, जब वियान की आँखें खुलीं। उसकी नींद टूटी, लेकिन मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। उसने करवट बदली, अद्या को अपने बगल में नहीं पाया। उसके दिल की धड़कन बढ़ गई। उसने घबराहट में पूरे कमरे में अद्या को खोजा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली। फिर वह पूरे घर में उसे पुकारता हुआ दौड़ने लगा। हवेली की हर दीवार, हर गलियारा उसे डराने लगा।

    अंत में, जब वह पूरी तरह थककर एक कोने में बैठ जाता है, तो उसे अद्या की आवाज़ सुनाई देती है। उसकी आवाज़ में एक अजीब सा खोखलापन था, जैसे वह किसी और के होंठों से बोल रही हो।

    "तुम कौन हो?"

    वियान ने मुड़कर देखा। अद्या दरवाज़े पर खड़ी थी, उसकी आँखें एकदम साफ़ थीं, लेकिन उनमें कोई पहचान नहीं थी, कोई भावना नहीं थी। वे खाली थीं, जैसे कोई उसे अंदर से पूरी तरह से खाली कर चुका हो। वियान समझ जाता है— "रक्तबीज" ने उसकी यादें निगल ली हैं। उसकी अपनी अद्या का अस्तित्व, उसका प्रेम, उसकी यादें... सब कुछ मिटा दिया गया था।

    वियान दर्द से तड़प उठता है। वह उसके पास जाता है, और उसकी आँखों में देखकर अपना नाम बोलता है। वह उम्मीद करता है कि उसका नाम सुनकर अद्या को कुछ याद आ जाए।

    "तुम मेरा नाम क्यों रो रहे हो?" अद्या पूछती है, उसके चेहरे पर एक अजीब सी बेबसी थी। वह वियान को ऐसे देख रही थी, जैसे वह कोई अजनबी हो, जिसकी आँखों में पानी देखकर उसे अजीब लग रहा हो। वियान की आँखों में आँसू आ जाते हैं। वह अपनी ही अद्या के लिए एक अजनबी बन चुका था।

    वियान उसकी ओर बढ़ता है, लेकिन जैसे ही वह उसका हाथ पकड़ता है, अद्या चीख उठती है। उसकी हथेली से लपटें निकलती हैं। यह आग उसे जलाती नहीं, बल्कि एक अजीब सी ऊर्जा का एहसास कराती है। जलन नहीं होती… लेकिन वियान की उंगलियों पर काले धागे चिपक जाते हैं। ये धागे उसकी त्वचा में समा जाते हैं, जैसे किसी अदृश्य घाव को सील रहे हों।

    “हर बार तू मुझे छुएगा… तेरे जीवन से एक साल कम हो जाएगा।” कर्णिका की आवाज़ गूँजती है। वियान दर्द से चिल्लाता है। उसे यह आभास हो जाता है कि अब हर स्पर्श, हर पल अद्या के साथ बिताना, उसकी अपनी उम्र कम कर रहा है। उसका प्रेम अब उसकी मौत का कारण बन रहा था।


    हवेली की बालाएँ, जो अब तक वियान की गुलाम थीं, अब पूरी तरह से "रक्तबीज" के अधीन हो गई थीं। वे अद्या को “रक्तमातृ” कहकर पुकारने लगती हैं, जिसका अर्थ है "रक्त की माता"। वे उसे एक रुद्राक्ष की माला पहनाती हैं, जिसका हर मनका किसी स्त्री की अधूरी मृत्यु का प्रतीक है। ये मालाएँ केवल गहने नहीं, बल्कि एक अभिशाप का बोझ थीं।

    हवेली का माहौल पूरी तरह बदल चुका था। हवा में अब किसी मृत शरीर की नहीं, बल्कि जले हुए कफन की गंध थी। तांत्रिक अनुष्ठानों की शुरुआत होती है। बालाएँ अजीब तरह से गाती हैं, उनकी आवाज़ किसी और दुनिया से आ रही थी।

    “जो जीवन को गर्भ में रोके,
    वही मृत्यु को जनम देती है।
    रक्तबीज की माता को प्रणाम—
    जो अंत के पहले, प्रारंभ लाए!”

    अद्या अब हर रात जागती है—और दीवारों पर वह रक्तलिपि लिखती है… जिसमें एक मंत्र बार-बार आता है: “कर्णिका को पूर्ण कर, और फिर शाप को जन्म दे।” यह मंत्र हवेली की दीवारों पर खून से उकेरा जाता है, जिससे हर आने-जाने वाले की रूह काँप जाए।

    वियान पूरी तरह से टूट चुका था। वह इस उम्मीद में हवेली के पुराने, टूटे हुए दर्पण के सामने बैठ जाता है कि शायद उसे कोई रास्ता मिल जाए। दर्पण में दरारें थीं, लेकिन उनमें एक नया दृश्य प्रकट होता है। वहाँ वियान को एक तांत्रिक गुरु दिखाई देता है—उसके माथे पर चंद्र-भस्म, गले में साँप की अस्थियाँ। गुरु की आँखों में एक भयानक चमक थी, जो वियान को डरा रही थी।

    गुरु वियान से कहता है:
    “यदि तू अपनी प्रेमिका को पुनः पाना चाहता है…
    तो रक्तबीज के पहले शिकार से पहले
    ‘प्रेम का अंतिम यज्ञ’ कर।
    वरना वह बच्चा तुझसे नहीं, तुझ पर जन्मेगा।”

    वियान की आँखों में डर के साथ-साथ एक दृढ़ संकल्प भी जाग उठता है। उसे अब अपने जीवन का सबसे कठिन निर्णय लेना था। क्या वह अपने प्रेम को बचा पाएगा, या उसे बलिदान करना पड़ेगा?


    आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़ते रहे।

  • 9. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 9 प्रेम का अंतिम यज्ञ

    Words: 1898

    Estimated Reading Time: 12 min

    एपिसोड 9: प्रेम का अंतिम यज्ञ

    "प्रेम यदि शुद्ध है... तो वह मृत्यु से नहीं डरता। लेकिन यदि प्रेम शापित हो... तो वह जन्म भी विनाश लाता है।"

    हवेली के प्राचीन, धूमिल दर्पण से निकली आकृति ने धीरे-धीरे एक ठोस रूप ले लिया। यह कोई साधारण तांत्रिक नहीं, बल्कि समय से परे यात्रा कर रहा एक ज्ञानी था। उसकी आँखें युगों की कहानियों से भरी थीं। उसने वियान की आँखों में सीधे झाँकते हुए कहा, “तू उसे बचा सकता है... लेकिन सिर्फ तब, जब तू अपने प्रेम को जला सके।”

    गुरु के शब्दों ने वियान के दिल में एक ज्वाला सी प्रज्वलित कर दी। “मैं सब करूँगा... उसे वापस लाने के लिए।” वियान की आवाज़ में दृढ़ता थी, लेकिन उसके मन के भीतर एक तूफान उठ रहा था। गुरु ने एक फीकी मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखों में कोई चमक नहीं थी। उसकी आँखें बुझी हुई थीं, जैसे राख का ढेर।

    “इस यज्ञ में तू अपना प्रेम नहीं देगा... उसकी स्मृति देगा—जो एक बार चली गई, वो फिर कभी नहीं लौटेगी। तू उसे बचाएगा... लेकिन वो तुझे नहीं पहचानेगी।”

    वियान का चेहरा पत्थर बन गया। यह सिर्फ एक बलिदान नहीं था, यह उसके अस्तित्व का ही अंत था। अद्या के साथ बिताया हर पल, हर स्पर्श, हर अधूरी बात... सब कुछ राख होने वाला था। उसके होंठ काँपे, लेकिन उसने खुद को संभाला। “अगर यही कीमत है... तो मैं अपना पूरा वजूद भी दे दूँगा।” उसकी आवाज़ अब सिर्फ एक प्रतिज्ञा थी, एक ऐसी प्रतिज्ञा जो पत्थर की तरह अचल थी।



    गुरु ने हवेली के बीचों-बीच बने वृत्ताकार चबूतरे को एक विशाल यज्ञस्थल में बदल दिया। चारों ओर लाल और काले कफ़न बाँधे गए, जो जीवन और मृत्यु के बीच की पतली रेखा को दर्शा रहे थे। यह सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं था, यह एक युद्ध था। बीच में एक कांसे की थाली रखी गई, जिसमें अद्या की तीन सबसे व्यक्तिगत वस्तुएं रखी गईं।

    उसका पुराना बालों का क्लिप: एक मामूली सी वस्तु, जो उसकी बेफ़िक्र हंसी और मासूमियत की याद दिलाती थी।
    एक कागज़ जिस पर उसने कभी लिखा था — "मैं तुम्हारी हूँ": ये शब्द अब एक वादे से ज़्यादा एक शाप की तरह महसूस हो रहे थे।और… वह काला धागा जो कफ़न से निकला था: यह धागा उस शाप की शुरुआत थी, जिसने अद्या को एक चलती-फिरती कब्र बना दिया था।

    वियान के हाथ में उसकी अपनी अंगूठी थी — वही अंगूठी जो वह अद्या को देना चाहता था, पर कभी हिम्मत नहीं जुटा पाया। यह सिर्फ एक आभूषण नहीं था, बल्कि उसका अधूरा प्रेम, उसका अनकहा वादा था। गुरु ने गंभीर आवाज़ में कहा, “यज्ञ की आहुति, तेरे प्रेम की आखिरी साँस होगी।”

    यज्ञ की अंतिम आहुति के साथ ही, हवेली के ऊपर एक तेज़, गड़गड़ाहट वाली बिजली गिरी। मानो आसमान ने भी इस बलिदान की गूँज को महसूस किया हो। हवेली की दीवारों पर टँगे काले कफ़न के धागे एक-एक कर जल उठे, जैसे शाप की अंतिम निशानी भी भस्म हो रही हो। फ़र्श पर ख़ून से बने रक्तलिपि-चिह्न धीरे-धीरे मिटने लगे, जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उन्हें पोंछ दिया हो।

    अद्या के भीतर, रक्तबीज की शक्ति संकुचित हो गई। वह अब सिर्फ एक अचेतन ऊर्जा थी। उसकी चीख हवेली की दीवारों से गूंज उठी, "तूने मुझे धोखा दिया! मैं प्रेम के गर्भ से जन्मा था—और तूने ही उसे आग दे दी!" उसकी आवाज़ में क्रोध नहीं, बल्कि एक बच्चे का बेबस क्रंदन था, जिसे उसके जन्म से पहले ही मार दिया गया हो।

    वियान कुछ नहीं बोला। वह बस मौन खड़ा था, उसकी आँखें शून्य थीं। उसके चेहरे पर न दुख था, न खुशी। वह सिर्फ़ एक दर्शक था, जिसने अपनी कहानी का अंत खुद लिख दिया था। उसका दिल अब खाली था, जैसे किसी पुराने घर से सारा सामान निकाल लिया गया हो। वह जानता था कि उसने अद्या को बचा लिया है, लेकिन उस बचाए हुए हिस्से में, उसके लिए अब कोई जगह नहीं थी।

    अगली सुबह, अद्या अपनी ही हवेली के बिस्तर पर जागती है। सूरज की पहली किरणें उसकी त्वचा को धीरे-धीरे सहलाती हैं। उसके पेट पर न कोई लकीर थी, न कोई गर्माहट। वह कुछ क्षण के लिए चुप रहती है... और फिर अपनी हथेलियों को देखती है। उसे लगता है जैसे वह पहली बार खुद को देख रही है।

    वह धीरे से फुसफुसाती है, “मैं कौन हूँ?” उसकी आवाज़ में एक अजीब सी मासूमियत थी, जैसे एक नवजात शिशु दुनिया को पहली बार देख रहा हो।

    हवेली अब शांत थी। दर्पण में कोई छाया नहीं थी, न ही कोई शाप। बालाएँ जा चुकी थीं, जैसे उनका काम पूरा हो गया हो। ऐसा लगता था, मानो हवेली ने अपना पुराना अतीत धो दिया हो।

    वियान कमरे में आता है, लेकिन अद्या उसे देखकर सिर झुकाती है। उसकी आँखों में कोई पहचान नहीं थी, सिर्फ एक अजीब सी जिज्ञासा थी। “क्या हम पहले कभी मिले हैं...?” उसकी आवाज़ में एक अनजानापन था, जो वियान के दिल को छलनी कर गया।

    वियान मुस्कुराता है—एक ऐसी मुस्कान, जो दर्द और मुक्ति दोनों को दर्शाती है। उसकी आँखों में आँसू हैं, जो उसके हृदय के हर खोए हुए टुकड़े का हिसाब दे रहे थे। “नहीं... शायद अब हम पहली बार मिल रहे हैं।”

    उनका अतीत अब सिर्फ़ एक कहानी थी, जिसे कोई नहीं जानता था। वियान ने अपना प्यार जलाकर उसे आज़ाद कर दिया था, लेकिन अब वह खुद एक ऐसी दुनिया में अकेला रह गया था, जहाँ उसकी सबसे प्यारी यादें भी नहीं थीं। उनका भविष्य एक खाली पन्ना था, जिसे वे अब पहली बार एक साथ लिखने वाले थे। लेकिन इस बार, यह कहानी प्रेम की नहीं थी, बल्कि एक नए रिश्ते की शुरुआत थी, जहाँ सिर्फ एक-दूसरे को जानने की चाह थी, और कोई पुरानी यादें नहीं थीं।

    हवेली की दीवारों में अब सन्नाटा था। एक अजीब सी शांति, जैसे किसी तूफान के बाद सब कुछ थम गया हो। अद्या हर सुबह बग़ीचे में अकेली टहलती थी। उसे कुछ याद नहीं था, लेकिन कभी-कभी उसकी उँगलियाँ अनजाने में अपने बालों के क्लिप को तलाशती थीं, जो अब सिर्फ एक राख बन चुका था। यह एक अनकहा दर्द था, जिसे वह समझ नहीं पा रही थी।

    वियान एक कमरे में पुरानी किताबों और काग़ज़ों के ढेर में उलझा हुआ था। वह हर उस कोने को तलाश रहा था, जहाँ से इस शाप की जड़ का पता चल सके। अंततः, उसे तहखाने में छुपी एक पुरानी अलमारी मिली। उसने उसे खोला और एक नया, चमड़े से बना कपालपत्र निकाला। काग़ज़ पर सिर्फ़ दो पंक्तियाँ थीं, लेकिन उन्हें पढ़ते ही हवा काँप उठी:

    "यज्ञ की अग्नि ने देह को मुक्त किया है, पर आत्मा की राख अभी भी इस हवेली की साँसों में अटकी है।"

    वियान की साँस थम गई। यह सिर्फ़ एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक भयावह सत्य था। कर्णिका मरी नहीं थी। वह सिर्फ़ एक शरीर से दूसरे शरीर में गई थी। उसका अस्तित्व अब भी इस हवेली की दीवारों में, हवा में, और सबसे बढ़कर... अद्या में जीवित था।

    एक रात, अद्या अपने कमरे में बैठी थी। उसे नींद नहीं आ रही थी। वह आइने के सामने बैठी थी और उसने महसूस किया कि उसकी नाक से कुछ टपक रहा है। उसने उँगलियों से पोंछा—खून। लेकिन वह लाल नहीं था—वह गाढ़ा, काला, भारी खून था, जैसे राख में सना हुआ हो। उसकी आँखें भय से फैल गईं।

    अगले ही पल, उसने आइने में अपनी परछाईं नहीं देखी। वहाँ कर्णिका खड़ी थी, उसकी आवाज़ आइने से आ रही थी, "मेरा शरीर जल गया, अद्या... लेकिन मेरी इच्छा अब भी तुम्हारे गर्भ में साँस ले रही है।"

    यह सिर्फ़ एक भ्रम नहीं था, बल्कि एक भयावह हक़ीकत थी। कर्णिका ने खुद को एक शापित बीज में बदल दिया था, जो अब अद्या के भीतर पल रहा था।

    अगली सुबह, हवेली की दीवारों पर राख की रेखाएँ दिखने लगीं। मानो किसी ने उँगलियों से लिखा हो:
    "प्रेम अधूरा रहा... अग्नि अधूरी रही... अब पूर्णता मृत्यु लाएगी।"

    वियान घबरा गया। वह दौड़कर अद्या के पास गया—लेकिन उसे देखकर रुक गया। अद्या, राख से भरी खिड़की के पास बैठी थी... और मुस्कुरा रही थी। उसकी मुस्कान में एक अजीब सी उदासीनता थी।

    "मैंने एक सपना देखा, वियान..." उसने कहा, "जिसमें मैं एक दूसरी औरत थी... और तुम... तुम मुझे जला रहे थे।"

    वियान का गला सूख गया। यह सिर्फ़ एक सपना नहीं था, यह अद्या के अवचेतन मन में कर्णिका की यादें थीं।

    उस रात, अद्या को तेज़ बुखार हुआ। वह सोई नहीं—बस काँपती रही। सुबह जब वियान ने उसे देखा, तो उसकी पीठ पर राख के हस्तचिह्न बने थे—जैसे किसी ने पीछे से उसे थामा हो... किसी और जन्म से।

    गुरु की आवाज़ उसके कानों में गूंजी: "राख सिर्फ़ समाप्ति नहीं लाती... वो आवृत्ति का द्वार होती है। कर्णिका अब अद्या को नहीं छोड़ेगी... जब तक कि एक आखिरी यज्ञ न हो जाए—लेकिन इस बार अग्नि नहीं... राख को जलाना होगा।"

    गुरु ने बताया कि "कपालकुण्डली तंत्र" में एक विधि है—"शव-राख यज्ञ", जिसमें उस आत्मा की राख को ही अग्नि दी जाती है, जो मृत्यु के बाद भी संसार में भटक रही हो। लेकिन समस्या ये थी: "कर्णिका की राख कहीं नहीं है... क्योंकि वह शरीर कभी जलाया ही नहीं गया।"
    वियान की आँखों में भय और संकल्प दोनों चमके। "तो हमें उसका शरीर खोजना होगा।" यह एक असंभव काम था, लेकिन अब यह उनकी एकमात्र आशा थी।


    तीन रात बाद, वियान और गुरु हवेली के सबसे गहरे तहख़ाने में पहुँचे, जहाँ सदियों से बंद एक कमरा था—जिसके बाहर खून से लिखा था: "न खोले जो अब तक बंद रहा है... वहाँ मृत नहीं, अधमरे रहते हैं।"

    कमरा खोला गया। वहाँ लकड़ी का एक ताबूत रखा था। गुरु ने सिर झुका लिया: "यह वही देह है... जो कभी जलाई नहीं गई। कर्णिका ने स्वयं को इस हवेली के नीचे छुपा लिया था।"

    ताबूत खोला गया—और उसके भीतर... कर्णिका की अधजली देह, जिसकी आँखें अब भी खुली थीं। उसकी देह पर कई तरह के निशान थे, जैसे वह अपने आप को खा रही हो।

    गुरु ने शव को श्मशान की तरह तैयार किया। हवेली के भीतर ही एक चबूतरा बनाया गया। लेकिन समस्या अब यह थी: "इस राख को जलाना, यानी आत्मा को पूरी तरह से मुक्त करना... पर यह तभी संभव है, जब किसी ने उस आत्मा से प्रेम किया हो... और अब स्वयं उसे भूलने को तैयार हो।"

    वियान ने चुपचाप सिर झुका दिया। "दूसरी बार?" गुरु ने पूछा।

    "हाँ..." वियान बोला, "इस बार मैं अपने भीतर के शेष प्रेम को भी जला दूँगा—कर्णिका के लिए नहीं... अद्या के लिए।"

    जैसे ही राख अग्नि को समर्पित की गई, आसमान में काले परिंदों का एक झुंड मंडराने लगा। अद्या अपने कमरे में काँप रही थी—उसे अपनी देह में कुछ टूटता हुआ महसूस हो रहा था।

    और फिर... हवेली की छत से एक चीख़ गूंजी: "तूने मुझे दो बार मारा वियान!" "लेकिन तीसरी बार... मैं तेरे बच्चे बनकर लौटूँगी।"

    आग भड़क उठी। राख की लपटों में एक चेहरा दिखा—कर्णिका, जो अब भी मुस्कुरा रही थी... जैसे वह मरने नहीं, बीज बनकर राख में मिलने आई हो।

    अगले दिन... अद्या ने पहली बार आइने में खुद को देखा। और खुद को पहचाना। उसने आइने को छुआ... और हल्के से मुस्कुराई, "मुझे लगता है, मैं अब पूरी हूँ..."

    वियान पीछे खड़ा था... लेकिन इस बार अद्या ने मुड़कर उसे देखा—पहचानते हुए। "हमें पहले कभी कुछ हुआ था... है ना?" "मुझे नहीं पता क्या... लेकिन तुम्हारे पास खड़े होने पर कुछ शांत सा लगता है।"

    वियान ने मुस्कुरा दिया। लेकिन हवेली की दीवारों पर अब भी राख के कण चिपके थे। यह एक प्रतीक था कि अतीत को पूरी तरह से कभी नहीं मिटाया जा सकता।

  • 10. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 10 अमरणी की कोख

    Words: 2249

    Estimated Reading Time: 14 min

    एपिसोड 10: अमरणी की कोख

    “प्रेम ने उसे जन्म दिया था… लेकिन अब वह जन्म ले रहा है — सिर्फ़ इसलिए कि प्रेम उसे न रोके।”


    रात का पहला पहर। चाँद की ठंडी, नीली रोशनी हवेली के बंद दरवाज़ों के बीच से छनकर आ रही थी, जैसे अँधेरे को चीरकर कोई रहस्य झाँक रहा हो। अद्या ने बिस्तर पर करवट ली, उसकी बेचैनी इतनी गहरी थी कि उसकी साँसों की लय टूट रही थी। उसकी छाती पर एक अदृश्य, भारी पत्थर रखा था जो उसे सांस लेने से रोक रहा था। तभी वह सपना शुरू हुआ, जिसने उसकी रूह को उसकी ही देह में क़ैद कर दिया।

    वह हवेली के उसी बग़ीचे में खड़ी थी, जहाँ सुबह-सुबह तितलियाँ अपने पंखों पर सुबह का रंग लेकर आती थीं। लेकिन अब वहाँ सब कुछ बदल गया था। फूलों की महक की जगह मिट्टी और पुरानी, सूखी हड्डियों की गंध भरी थी। हवा में एक अजीब-सी सिहरन थी, जैसे कोई अदृश्य शक्ति चारों ओर मौजूद हो। सामने एक कपालकुण्डली रखी थी — शिशु की छोटी, भंगुर हड्डियों से बनी हुई।

    उसके अंदर गहरा सन्नाटा था, लेकिन अद्या की आँखों को एक अजीब आकर्षण महसूस हुआ। उसकी आँखें चाहकर भी उस भयानक दृश्य से हट नहीं पा रही थीं।

    उसने डरते-डरते कपाल के भीतर झाँका। वहाँ कोई दिमाग या खोखलापन नहीं था, बल्कि एक काला, धड़कता हुआ बीज था। वह बीज किसी हृदय की तरह धड़क रहा था, और उसकी हर धड़कन के साथ हवेली की दीवारों से एक गहरी, धीमी गूँज निकल रही थी।
    अचानक उस बीज से एक धीमी, थरथराती हुई साँस निकली, जो एक शब्द में ढल गई।

    “मा…”

    अद्या का पूरा शरीर ठिठक गया। उसकी आँखों में भय और अस्वीकार का भाव था। यह शब्द उसके दिल में नहीं, बल्कि सीधे उसकी आत्मा में गूँजा था।
    “नहीं… मैं… माँ नहीं…”

    उसकी आवाज़ हवा में घुल गई, जैसे उसने किसी ग़लत मंत्र का उच्चारण कर दिया हो। उसकी इस अस्वीकृति ने उस बीज को और भी शक्तिशाली बना दिया। उसकी साँसें तेज़ होती गईं, धड़कनें उग्र हो गईं।

    हवेली के सारे दर्पण, जो अब तक अतीत की कहानियाँ छिपाए हुए थे, धीरे-धीरे धुँधले होने लगे। जैसे कोई चीज़ उन्हें भीतर से निगल रही हो। उनकी चिकनी सतहों पर बर्फ़ की तरह एक धुंध छा गई, जिसने हर प्रतिबिंब को मिटा दिया। यह सिर्फ़ प्रतिबिंबों का मिटना नहीं था, बल्कि अद्या की अपनी पहचान का धीरे-धीरे मिटना था।


    सुबह की पहली किरणें जब हवेली पर पड़ीं, तो वे एक नए, भयानक संकेत पर जाकर ठहर गईं। हवेली के एक कोने में, जहाँ दीवार पर काई जमी हुई थी, एक पतली, टेढ़ी रक्तरेखा उभर आई थी। वह किसी बच्चे की उँगली से खींची गई पहली लकीर जैसी थी, लेकिन उसमें एक भयानक स्पंदन था।

    रक्त की हर बूंद में एक जीवन था, जो जीवन की बजाय मौत की तरफ़ इशारा कर रहा था।
    वियान, जो सुबह की हवा में टहल रहा था, की नज़र उस पर पड़ी। उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। उसने उस लकीर को छुआ। वह नम थी और उसमें एक अजीब-सी गर्मी थी। जैसे कोई ताज़ा घाव हो।

    “यह फिर शुरू हो रहा है।”

    वह बुदबुदाया, जैसे हवा में किसी अदृश्य उपस्थिति से बात कर रहा हो। हवा की नमी में अचानक एक ठंडी, अप्राकृतिक उदासी घुल गई।

    अद्या पीछे से आई। वह थकी हुई लग रही थी, और उसकी आँखें नींद की कमी से भारी थीं। उसकी नज़र दीवार पर पड़ी। एक पल के लिए उसने उसे सिर्फ़ एक दरार समझा, लेकिन फिर उस रक्त की गंध ने उसे अपनी ओर खींचा। वह दीवार के पास गई, उसे देखा और अचानक उसका सिर घूमने लगा। उसने अपना पेट पकड़कर खुद को संभाला।

    “मुझे चक्कर क्यों आ रहे हैं…?”

    वियान ने उसकी आवाज़ सुनी और तेज़ी से उसकी ओर दौड़ा। उसने अद्या को पकड़ा और उसका माथा छुआ। वह गर्म नहीं था। लेकिन जब वियान ने अपना हाथ उसके माथे पर रखा, तो उसे अपनी उँगलियों के नीचे एक धीमी, अनियमित धड़कन महसूस हुई — जो उसकी खुद की धड़कन से बिल्कुल अलग थी। यह धड़कन किसी जीवित प्राणी की नहीं थी, बल्कि एक शांत, स्थिर कंपन था।
    वियान की आँखों में भय उतर आया।

    “इस बार… यह कोई जीवित चीज़ नहीं। यह कोई… शाप है, जो बच्चा बनकर लौट रहा है।”

    वियान फुसफुसाया, जैसे कोई भयानक रहस्य उसके कान में कह रहा हो। यह बात अद्या के पेट में एक ठंडे ज़हर की तरह उतर गई।


    हवेली की छत पर, जहाँ कभी तांत्रिक गुरु ने अंतिम बार अपना कर्म किया था, अब सिर्फ़ हवा थी। लेकिन जब हवा तेज़ चली, तो एक कोने में रखी राख की एक छोटी परत उड़ गई। उस राख के उड़ते ही, नीचे की ज़मीन पर एक शब्द उभर आया — जैसे उसे किसी ने राख से ही लिखा हो।

    "अमरणी"

    वियान और अद्या ने एक साथ उस शब्द को देखा।
    “ये किसका नाम है?”

    अद्या ने पूछा, जिसकी आवाज़ में एक अजीब-सी बेचैनी थी।

    वियान का पूरा शरीर काँप गया। उसकी आँखें फैल गईं, जैसे उसने किसी भयानक भविष्यवाणी को पढ़ लिया हो।
    “यह उसका नाम है… जो कभी मरी नहीं… कभी पूरी तरह जन्मी नहीं… और अब तीसरी बार लौट रही है।”

    वियान की आवाज़ में एक निराशा थी। उसने समझ लिया कि यह खेल अब सिर्फ़ एक प्रेतात्मा का नहीं था, बल्कि एक ऐसी सत्ता का था जो जीवन और मृत्यु के नियमों से परे थी।


    अद्या फिर से उसी बग़ीचे में बैठी थी। अब तितलियाँ वहाँ नहीं आती थीं। फूलों ने अपनी सुगंध खो दी थी। वह अपने हाथों को देख रही थी, जैसे वहाँ कोई जवाब मिल जाएगा। तभी उसकी हथेली पर एक ठंडी बूंद गिरी।
    “ये क्या…?”

    उसने देखा। वह पानी नहीं था, बल्कि लाल, ताज़ा रक्त था। वह चौंकाने वाली बात यह थी कि यह रक्त किसी घाव से नहीं, बल्कि हवा में से टपका था। अद्या ने ऊपर देखा, लेकिन वहाँ कुछ नहीं था।

    उसी क्षण, उसके पैरों के पास की मिट्टी फट गई। और वही काला, धड़कता हुआ बीज, जो उसने सपने में देखा था, अब बाहर था। वह धड़क नहीं रहा था, बल्कि काँप रहा था। एक अजीब-सी, शांत कंपन थी उसमें, जैसे कोई आत्मा शरीर में प्रवेश करना चाहती हो, लेकिन शरीर पूरी तरह से तैयार न हो।

    वह बीज एक बच्चे की तरह काँप रहा था, जो जन्म लेना चाहता है, लेकिन जिसकी इच्छा शक्ति अभी पूरी तरह से जागृत नहीं हुई। वह उम्र से पहले, और अपनी नियति से परे, जन्म लेने का प्रयास कर रहा था।


    रात हो चुकी थी। हवेली में अजीब-सी खामोशी थी। अद्या और वियान एक-दूसरे के सामने बैठे थे। अद्या की आँखों में गहरा सवाल था।

    “अगर कोई बच्चा… माँ की कोख में आए बिना भी जन्म लेना चाहे — तो क्या वह सचमुच जीवित होगा?”

    अद्या ने सवाल पूछा, जैसे वह किसी और के दर्द को शब्दों में ढाल रही हो।

    वियान का चेहरा फीका पड़ गया। वह जानता था कि इस सवाल का जवाब सिर्फ़ एक ही हो सकता है।
    “वह जीवित नहीं होगा… वह सिर्फ़ बदला होगा।”

    वियान के शब्दों ने हवेली की हवा को और भी भारी कर दिया।
    और तभी, हवेली के सबसे बड़े दर्पण से एक आवाज़ गूँजी। यह कर्णिका की आवाज़ नहीं थी, बल्कि उससे भी अधिक ठंडी और शक्तिशाली थी।

    “मैं लौट रही हूँ… क्योंकि तुमने मुझे आग में नहीं, प्रेम में जलाया था।”

    अमरणी की आवाज़ थी यह। प्रेम की आग में जलकर वह राख नहीं हुई थी, बल्कि एक नया, भयानक रूप ले चुकी थी। और अब वह अपनी वापसी के लिए तैयार थी, एक ऐसी वापसी जो प्रेम को ही ख़त्म कर देगी।
    हाँ, हम अमरणी की कोख में प्रवेश करते हैं। यह कहानी अब सिर्फ़ एक पुनर्जन्म की नहीं, बल्कि स्मृति और देह के बीच के युद्ध की है।


    अद्या की देह अब थक चुकी थी। बगीचे के बाद से वह लगातार बेहोश हो रही थी, जैसे उसकी आत्मा और शरीर के बीच की डोर धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ रही हो। उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन उसके चेहरे पर अजीब सी बेचैनी थी, जैसे अंदर ही अंदर कोई तूफ़ान चल रहा हो।

    वियान उसे उठाकर हवेली के सबसे निचले, अनदेखे तहख़ाने तक पहुँचा। यह वही जगह थी जहाँ सदियों पहले तांत्रिक ने कर्णिका की आत्मा को एक पिशाचिनी तांत्रिक के शाप से बचाने के लिए बाँधा था। इस तहख़ाने को पूरी तरह कभी खोला नहीं गया था, क्योंकि वहाँ की हवा में ही एक अलग तरह का अँधेरा समाया हुआ था।
    जैसे ही वियान ने ज़ंग लगे दरवाज़े को खोला, एक पुरानी, सड़ी हुई गंध बाहर आई, लेकिन उसमें जलती हुई कपूर की राख की एक तीखी, पवित्र महक भी मिली हुई थी। यह गंध पुरानी और नई दोनों थी, जैसे दो अलग-अलग युग एक ही साँस में समाए हों।

    वियान ने धीमी आवाज़ में कहा, जैसे वह किसी अज्ञात शक्ति से बात कर रहा हो:
    “यह कोख है… लेकिन किसी स्त्री की नहीं।”

    अद्या की बंद आँखों के पीछे से एक धीमी, थरथराती आवाज़ निकली:
    “तो किसकी?”

    “किसी अनकहे यज्ञ की… जहाँ शरीर नहीं, स्मृति को रचा जाता है।”

    वियान ने जवाब दिया। वह जानता था कि यह कोई प्राकृतिक प्रक्रिया नहीं थी। यह एक तांत्रिक क्रिया थी, जहाँ जन्म का आधार रक्त नहीं, बल्कि यादें थीं।

    तहख़ाने के बीचों-बीच, ज़मीन पर एक गोल पात्र रखा था। यह लोहे का बना था और काला पड़ चुका था। उसके अंदर राख और सूखे रक्त का एक गहरा, काला मिश्रण भरा था, जो अपनी जगह पर शांत था, लेकिन जिसमें एक भयानक शक्ति छिपी हुई थी।

    चारों दीवारों पर संस्कृत में उल्टे मंत्र लिखे थे, जैसे उन्हें पीछे से पढ़ा जाना चाहिए। यह मंत्र थे, लेकिन उनका उद्देश्य जीवन देना नहीं, बल्कि जीवन को उलटा करना था।

    वियान ने अद्या को उस पात्र के पास बहुत धीरे से बिठाया। अद्या की आँखें अब भी बंद थीं, लेकिन उसके होंठ बिना किसी आवाज़ के हिल रहे थे।

    “वह बोल रही है… लेकिन उसकी आवाज़ उसकी नहीं है।”

    वियान ने फुसफुसाया।

    और तभी अद्या के गले से एक कर्कश, भारी आवाज़ फूटी, जैसे वह आवाज़ किसी और की हो, जो अद्या के शरीर को इस्तेमाल कर रही हो:

    “या देवि सर्वभूतेषु… स्मृति रूपेण संस्थिता…”

    यह देवी के उस रूप की वंदना थी, जो सब भूतों में स्मृति के रूप में वास करती है। अमरणी, जो खुद को देवी के इस रूप में देख रही थी, अब अद्या की देह को अपनी नई कोख बना रही थी।

    अद्या के शरीर के चारों ओर की हवा में एक कंपन शुरू हो गया, जो धीरे-धीरे तेज़ होने लगा। अद्या का शरीर धीरे-धीरे पीछे की ओर झुकने लगा, जैसे कोई अदृश्य हाथ उसे खींच रहा हो। उसके माथे पर एक नई रक्तरेखा उभर आई — यह किसी पुराने शाप का नहीं, बल्कि नए जन्म का निशान था।

    वियान यह देखकर चीख़ना चाहता था, लेकिन उसकी आवाज़ गले में ही अटक गई। वह जानता था कि अब कुछ भी करना ख़तरनाक हो सकता है।

    "अगर अब रोका, तो यह अधूरा रह जाएगा… और अधूरा जन्म… पूरी मौत बन सकता है।"

    वह मन ही मन बुदबुदाया। उसे पता था कि अमरणी की यह प्रक्रिया अब बीच में नहीं रोकी जा सकती।
    अचानक अद्या की आँखें खुलीं। लेकिन उन आँखों में अद्या की कोमल मुस्कान नहीं थी, बल्कि एक शांत, गहरी और भयावह शक्ति थी।

    वियान ने काँपते हुए पूछा:
    “तू कौन है?”

    उसने वियान को देखा, और उसके होंठ धीरे से हिले।
    “अमरणी।”

    “तू अद्या की देह में क्यों है?”

    “क्योंकि यादें देह से अलग नहीं मरीं… वे जन्म लेना चाहती हैं — इस बार बिना मनुष्य हुए।”

    उसकी आवाज़ में कोई भाव नहीं था, सिर्फ़ एक उद्देश्य था।


    इसी क्षण, तहख़ाने की दीवार से एक पुराना, काठ का ग्रंथ नीचे गिरा। वियान ने उसे उठाया और खोला। वह एक तांत्रिक विधि थी — एक स्मृति-शिशु को बाँधने की प्रक्रिया।

    “तू चाहे, तो मुझे रोक सकता है।”

    अमरणी की आवाज़ में एक चुनौती थी।
    “कैसे?”

    “तू पिता बन जा — प्रेम से मुझे बाँध… या तांत्रिक बन — अग्नि से मुझे भस्म कर दे।”

    अमरणी ने वियान को एक भयानक दुविधा में डाल दिया। अगर वह प्रेम से उसे अपना लेता, तो वह अमरणी को जन्म दे देता, और अगर वह तांत्रिक विधि अपनाता, तो वह अद्या को खो सकता था।

    वियान का चेहरा शून्य हो गया। उसने अमरणी से पूछा:
    “अगर मैं पिता बना… तो तू क्या बनेगी?”
    “एक बच्ची। लेकिन… ऐसी, जो कभी मर नहीं पाएगी।”

    यह भयानक सत्य था। अगर वह पिता बनता, तो वह अमरणी को एक ऐसी अमरता दे देता, जो मानवता के लिए एक बड़ा ख़तरा बन सकती थी।

    वियान ने ग्रंथ उठाया और उसे पात्र के पास रखी एक जलती हुई मशाल से अग्नि में डाल दिया। ग्रंथ जलने लगा, और उसकी राख हवा में फैल गई। उसने तांत्रिक का मार्ग छोड़ दिया।

    फिर वह अद्या के पास आया, जिसके शरीर में अब अमरणी वास कर रही थी। उसने धीरे से उसके पेट पर हाथ रखा। उसका हाथ गर्म नहीं था, बल्कि उसमें एक अजीब-सी ऊर्जा थी।

    “अगर तू जन्म लेना चाहती है… तो तू मेरी इच्छा से नहीं, मेरे उत्तरदायित्व से जन्म लेगी।”

    वियान ने कहा। यह प्रेम का वचन नहीं था, बल्कि एक पिता के दायित्व का वचन था।

    जैसे ही वियान ने यह कहा, पात्र की आग बुझ गई। हवा स्थिर हो गई, और अद्या की देह पर एक नया चिन्ह उभर आया।

    यह चिन्ह तीन बिंदुओं से बना था, एक त्रिकोण के रूप में, जिसके बीच में एक छोटा-सा चक्र था।
    “त्रिजन्मा” — वह जो तीन बार जन्मी।

    यह अमरणी के तीसरे जन्म का नाम था। इस बार वह प्रेम की उपज नहीं थी, बल्कि एक दायित्व की उपज थी, जो मानवता और अमरता के बीच एक नए युद्ध की शुरुआत थी।

  • 11. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 11 कर्णिका का शेष जन्म

    Words: 1982

    Estimated Reading Time: 12 min

    एपिसोड 11: कर्णिका का शेष जन्म

    यह नींद नहीं थी। यह एक अवस्था थी जब शरीर और स्मृति, रंग और गंध, अतीत और भविष्य सब एक ही रंग में बहने लगते हैं। अद्या ने अपनी आँखें खोलीं, लेकिन यह उसकी आँखें नहीं थीं। वह खुद को एक जलते हुए सरोवर के किनारे खड़ा पाती है। पानी का रंग अग्नि जैसा था, पर उसमें गर्मी नहीं, बल्कि एक गहरी शांति थी। जैसे, समय खुद जल रहा हो, और उसके भीतर की शांति महसूस की जा सके।

    उसने पानी के भीतर देखा। एक छोटी बच्ची उसे देख रही थी। उसकी आँखें अद्या जैसी थीं, पर उनमें एक अज्ञात गहराई थी। एक ऐसी गहराई जो सदियों की नींद से जागी हो।

    "तू कौन है?" अद्या ने पूछा। उसकी आवाज़ उसके होंठों से नहीं, बल्कि सीधे उसके विचार से निकली थी, जैसे एक मौन प्रतिध्वनि।

    बच्ची मुस्कराई, लेकिन बोली नहीं। उसकी मुस्कान में एक अजीब सा अपनापन था, जो अद्या को एक ही पल में विस्मित और भयभीत कर रहा था। जैसे कोई अपने ही हिस्से को पहली बार देख रहा हो।

    उसने केवल एक शब्द अद्या के मस्तिष्क में उकेरा: "हम।"

    "क्या तू त्रिजन्मा है?"

    "हाँ," त्रिजन्मा ने उत्तर दिया। उसकी आवाज़ हवा की सरसराहट जैसी थी, जैसे बहुत दूर से आती हुई कोई धुन। "लेकिन मैं सिर्फ़ तू नहीं हूँ। मैं कर्णिका भी हूँ। और… मैं वो भी हूँ जो अभी पूरी बनी नहीं है।"

    त्रिजन्मा ने धीरे से सरोवर के पानी में हाथ डाला। पानी का रंग बदला और उसमें हवेली के अतीत के दृश्य उभरने लगे। वही दृश्य जो अद्या ने अपनी रक्त रेखा में देखे थे।


    अद्या ने बच्ची को गले लगाना चाहा, लेकिन उसका हाथ पानी में गया... और फिर समय में। उसे याद आया—वो क्षण जब हवेली में तितली पहली बार बैठी थी, वो रक्तरेखा जो उसने अपने ही शरीर पर देखी थी, और वो कपालकुण्डली, जो उसके अतीत की सबसे गहरी भूल थी।

    हर दृश्य दोहराया जा रहा था, लेकिन अब त्रिजन्मा की आँखों से। त्रिजन्मा सिर्फ़ देख नहीं रही थी, वो उसे महसूस कर रही थी।

    "तू मेरे भीतर कैसे बोल रही है?" अद्या ने पूछा।

    "क्योंकि मैं तेरे 'बोल' नहीं, तेरे 'अनकहे' में हूँ," त्रिजन्मा ने जवाब दिया। "तूने मुझे अपने भय से जन्म दिया। तूने मुझे अपनी चिंता से पाला। और अब, मैं तेरे अस्तित्व में साँस ले रही हूँ।"

    "और तू सपना क्यों देख रही है?"

    "क्योंकि मैं अब सो रही हूँ—ताकि कर्णिका जाग सके।"
    अचानक सरोवर के पानी में एक हलचल हुई, और अद्या की दृष्टि एक गहरे दर्पण की ओर मुड़ गई। दर्पण में कोई छाया हिल रही थी, एक अस्पष्ट, धुँधली सी आकृति। अद्या को लगा, जैसे वो उसी छाया को पहचानती है।

    "यह कर्णिका है," त्रिजन्मा ने बताया। "वह पूरी तरह से शांत नहीं हुई है। उसका अस्तित्व अभी भी इस हवेली की दीवारों में कैद है।"

    "पर तुमने कहा था कि तुम उसे अपने भीतर लेकर जन्म ले रही हो?" अद्या ने पूछा।

    "हाँ। लेकिन मेरी चेतना में," त्रिजन्मा ने कहा। "उसकी आत्मा अभी भी बंटी हुई है। उसका एक हिस्सा मेरे भीतर है और दूसरा, इस दुनिया में, इस हवेली में, और उस दर्पण में।"


    इसी समय, बाहर, वियान अद्या के पास बैठा था। अद्या गहरी नींद में थी। उसके माथे पर पसीने की बूंदें थीं, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। उसकी देह से धीमे-धीमे, धूप जैसी गंध उठने लगी थी। यह वही गंध थी जो वियान ने हवेली में पहली बार कर्णिका के आने पर महसूस की थी।

    वियान ने हैरानी से अद्या के माथे को छुआ। उसका शरीर बिलकुल ठंडा था। जैसे उसकी सारी गर्मी, सारी ऊर्जा, किसी और जगह जा रही हो।

    उसने पास के एक पुराने दर्पण में देखा। दर्पण पर फिर वही नाम उभरा: "कर्णिका"।

    "यह त्रिजन्मा का सपना नहीं है," वियान काँपते हुए बुदबुदाया। "यह कर्णिका की नींद है—जो अब त्रिजन्मा की चेतना में लौट रही है।"

    यह सिर्फ़ एक नाम नहीं था। यह एक प्रतिज्ञा थी। एक अधूरी कहानी, जो फिर से लिखी जा रही थी।


    सरोवर के पानी में हलचल होने लगी। त्रिजन्मा की आँखें गंभीर हो गईं। उसने अद्या की ओर देखा, और उसकी आवाज़ में एक नई दृढ़ता थी।

    "माँ... मैं जीवित रह सकती हूँ—लेकिन तभी, जब तू मुझे सिर्फ़ अपने अतीत से नहीं... अपने निर्णय से स्वीकार करेगी।"

    "मतलब?" अद्या ने पूछा।

    "अगर तू डर से मुझे अपनाएगी," त्रिजन्मा ने कहा, "तो मैं कर्णिका बन जाऊँगी। मैं तेरा भूतकाल बन जाऊँगी, जो तुझे बार-बार डराएगा। मैं तेरा कल बन जाऊँगी, जो सिर्फ़ पुनरावृत्ति है।"

    "और अगर तू मुझे प्रेम से अपनाएगी, तो मैं त्रिजन्मा रहूँगी। मैं तेरा वर्तमान बनूँगी, जो हर पल नया है। मैं तेरी चेतना बनूँगी, जो जागकर निर्णय लेती है।"

    अद्या ने गहरी साँस ली। उसे लगा जैसे वो एक अनजानी गुत्थी सुलझा रही है, जिसका कोई अंत नहीं था। उसे अपनी सारी ज़िंदगी में कभी इतना डर नहीं लगा था, जितना इस पल लगा था। पर इस डर से भी ज़्यादा, उसे एक नई जिम्मेदारी का एहसास हो रहा था। यह जिम्मेदारी सिर्फ़ एक माँ की नहीं थी। यह एक आत्मा की जिम्मेदारी थी, जो दूसरी आत्मा को राह दिखा रही थी।

    "मैं तुझे जन्म नहीं दूँगी," अद्या ने कहा। उसकी आवाज़ में एक नया साहस था, एक नई शक्ति थी। "मैं तुझे जागने दूँगी।"


    अचानक सरोवर की अग्नि शांत हो गई, और पानी की जगह एक गहरा, शांत, काला रंग उभर आया। अद्या ने आँखें खोलीं। वियान की ओर देखा।

    "क्या हुआ?" वियान ने पूछा।

    "कुछ भी नहीं," अद्या ने कहा। "सब कुछ बदल गया।"
    वह पहली बार अपनी आवाज़ में इतना आत्मविश्वास महसूस कर रही थी। उसने वियान का हाथ थामा और पहली बार कहा: "मैं माँ बनने को तैयार नहीं हूँ... लेकिन मैं अब पीछे नहीं हटूँगी।

    वियान ने उसकी आँखों में देखा। उसे लगा कि यह वो अद्या नहीं थी जिसे वो जानता था। यह एक नई अद्या थी, जो अपने आप में पूरी थी।

    "तब त्रिजन्मा जागेगी," वियान ने कहा। "और कर्णिका... स्थिर हो जाएगी।"

    और जैसे ही वियान ने ये शब्द कहे, हवेली के दर्पण में उभरा हुआ नाम, एक धीमी, सुनहरी रोशनी में बदल गया... और फिर गायब हो गया।



    रात की तीसरी प्रहर थी। हवेली की हवा में एक अजीब सी शांति थी, जैसे पूरी प्रकृति किसी महत्वपूर्ण घटना का इंतजार कर रही हो। त्रिजन्मा, अद्या के शरीर में, अब पूरी तरह चेतन थी। उसकी आँखें बंद थीं, पर उसकी आत्मा जाग चुकी थी। वियान, अद्या के पास बैठा, उसकी हथेलियों को सहला रहा था। उसकी अपनी साँसें धीमी थीं, जैसे वह भी इस ब्रह्मांडीय नाटक का एक हिस्सा हो, जहाँ एक आत्मा दूसरे के लिए अपने अस्तित्व का बलिदान कर रही थी।

    तभी, हवेली का दर्पण फिर थरथराया। यह कंपन इतना गहरा था कि वियान को लगा जैसे दीवारों में दरारें पड़ रही हों। दर्पण में एक गहरी, काली छाया घूम रही थी, जो कर्णिका की अधूरी आत्मा का प्रतीक थी।

    "मैं अब और नहीं रुक सकती," त्रिजन्मा ने भीतर से कहा। उसकी आवाज़ अद्या के होठों से नहीं, बल्कि वियान के हृदय से निकल रही थी। "कर्णिका को या तो मुक्त करना होगा... या पूरी तरह समेटना होगा।"
    वियान ने अद्या के चेहरे की ओर देखा। उस चेहरे पर एक अजीब सी गंभीरता थी। यह न तो खुशी थी, न ही दुःख, बल्कि एक निर्णायक शांति थी।

    "क्या तू कर सकती है ऐसा?" अद्या ने पूछा। उसकी आवाज़, उसकी अपनी थी, पर उसमें एक गहरा दर्द था।

    "नहीं... तू कर सकती है," त्रिजन्मा ने उत्तर दिया। उसकी आवाज़ में एक स्पष्टता थी, जो अद्या को चौंका रही थी।

    "क्योंकि तेरे निर्णय में ही कर्णिका की मृत्यु पूर्ण होगी।"

    "लेकिन क्यों?" अद्या ने पूछा। "मैं ही क्यों?"

    "क्योंकि तेरे प्रेम में वह शक्ति है, जो मेरे भीतर की आग को भी शांत कर सकती है," त्रिजन्मा ने कहा। "कर्णिका का जन्म भय से हुआ था, और उसकी मृत्यु प्रेम से होगी। और तू, माँ... तू ही वह प्रेम है।"

    अचानक अद्या को एहसास हुआ कि वह अब सिर्फ एक स्त्री नहीं थी। वह अब एक ऐसी माँ थी जो सिर्फ एक शिशु को जन्म नहीं देने वाली थी, बल्कि एक अधूरी आत्मा को मुक्ति देने वाली थी।

    अद्या ने आँखें बंद कीं। उसने अपने पूरे शरीर को शांत होने दिया। उसने अपने मन की सभी भावनाओं को एक किनारे रख दिया। और फिर, वह अपनी चेतना के साथ दर्पण के भीतर चली गई।

    दर्पण के भीतर एक अलग दुनिया थी। यह दुनिया न तो प्रकाश की थी, न ही अंधकार की। यह एक ऐसा स्थान था जहाँ समय स्थिर हो गया था। वहाँ कर्णिका बैठी थी, ठीक वैसी, जैसी अंतिम बार देखी गई थी - काले वस्त्र में, माथे पर रक्त-बिंदु के साथ। लेकिन अब वह रो नहीं रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। वह इंतज़ार कर रही थी।

    अद्या को वहाँ देखकर कर्णिका के चेहरे पर एक मुस्कान आई। यह मुस्कान दुख की नहीं थी, बल्कि एक गहरी समझ की थी।

    "मैं अब और नहीं जन्म लेना चाहती," कर्णिका बोली। उसकी आवाज़ में एक थकान थी, जो सदियों की प्रतीक्षा से उत्पन्न हुई थी।

    "लेकिन तू तो अधूरी थी..." अद्या ने कहा। "तूने तो अपना जीवन पूरा नहीं किया था।"

    "अब नहीं हूँ," कर्णिका ने उत्तर दिया। "क्योंकि त्रिजन्मा... मेरे भीतर जो शेष था, उसे जी रही है। मेरे अधूरे सपने अब उसके भीतर पूरे होंगे। मेरी अधूरी कहानियाँ अब उसकी जुबान पर होंगी। मैं अब अधूरी नहीं हूँ, मैं पूर्ण हूँ।"

    "तो तू क्या चाहती है?" अद्या ने पूछा।

    "मुक्ति," कर्णिका ने कहा। "लेकिन प्रेम से। भुलाकर नहीं... समझकर। मैं नहीं चाहती कि मेरी कहानी सिर्फ एक भूत बनकर रहे, जिसे हर कोई डर से देखे। मैं चाहती हूँ कि मेरी कहानी एक सबक बनकर रहे, जिसे हर कोई प्रेम से याद करे।"

    "मैं तुझे कैसे मुक्त कर सकती हूँ?" अद्या ने पूछा।
    "मुझे स्वीकार कर ले," कर्णिका ने कहा। "जिस तरह तूने त्रिजन्मा को स्वीकार किया है, उसी तरह मुझे भी स्वीकार कर। मुझे एक ऐसी आत्मा मान ले, जो सिर्फ एक माँ के प्रेम का इंतज़ार कर रही थी, ताकि वह शांति से मर सके।"


    अद्या ने धीरे से कर्णिका की ओर हाथ बढ़ाया। इस बार, कोई डर नहीं था। इस बार, कोई चिंता नहीं थी। इस बार, सिर्फ प्रेम था।

    अचानक कर्णिका की देह राख हो गई। राख हवा में उड़ने लगी, और उसकी जगह एक सुंदर, सुनहरी रोशनी दिखाई दी। लेकिन उसका चेहरा नहीं। चेहरा... त्रिजन्मा की ओर घूम गया।

    "जी ले मुझे," उसने कहा। उसकी आवाज़ एक गहरी फुसफुसाहट थी। "लेकिन मेरे जैसे मत बनना। डर से नहीं, बल्कि प्रेम से जीना।"

    और फिर, वह सुनहरी रोशनी भी त्रिजन्मा के भीतर समा गई।


    अचानक, हवेली में एक तेज कंपन हुआ। यह कंपन इतना गहरा था कि हवा भी कांप रही थी। त्रिजन्मा की बंद आँखें खुलीं। उसकी आँखों में एक अजीब सा तेज था, जैसे उसने तीन जन्मों की कहानियाँ एक ही पल में जी ली हों।

    और उसके गले से निकली एक प्रथम चीख़। यह चीख़ न तो शिशु की थी, न स्त्री की, बल्कि एक कथा की थी। यह चीख़ उस आत्मा की थी, जिसने सदियों की प्रतीक्षा के बाद अपना अंतिम विश्राम पाया था।

    वियान ने अद्या का हाथ पकड़ा। वह कांप रहा था। "क्या हुआ?" उसने पूछा।

    अद्या ने मुस्कुराते हुए कहा, "कुछ भी नहीं। सिर्फ एक कहानी पूरी हुई है।"


    अद्या की आँखें खुलीं। वह वियान के पास थी, और त्रिजन्मा, अब उसके भीतर शांत थी।

    "क्या अब सब ठीक हो गया?" वियान ने पूछा।
    अद्या ने कहा, "नहीं। लेकिन अब कुछ भी अधूरा नहीं है।"

    कर्णिका की आत्मा को मुक्ति मिल चुकी है, और त्रिजन्मा अब अद्या के भीतर पूरी तरह से चेतन हो चुकी है। अब अद्या, सिर्फ अपनी नहीं, बल्कि त्रिजन्मा की भी चेतना है। क्या अद्या अपने इस नए अस्तित्व को स्वीकार कर पाएगी?
    क्या यह नया जन्म उसे एक नई शक्ति देगा? या यह सिर्फ एक और चुनौती है, जिसे उसे पार करना है? और इस सब के बीच, हवेली में आने वाला खतरा क्या होगा?
    क्या त्रिजन्मा, अपनी नई चेतना के साथ, उस खतरे का सामना कर पाएगी?

  • 12. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 12 त्रिजन्मा पहला सपना

    Words: 1587

    Estimated Reading Time: 10 min

    एपिसोड 12: त्रिजन्मा पहला सपना

    अद्या के शरीर में, त्रिजन्मा पहली बार सोई थी। लेकिन यह कोई सामान्य नींद नहीं थी। यह एक गहरी, शांत अवस्था थी, जहाँ शरीर की थकान नहीं, बल्कि आत्मा की मुक्ति का अनुभव होता है। उसने ना तो अद्या की देह में, ना कर्णिका की छाया में, बल्कि अपने स्वप्नलोक में प्रवेश किया। यह स्वप्नलोक न तो प्रकाश से भरा था, न ही अंधकार से। यह एक ऐसा स्थान था जहाँ विचार आकार लेते थे और भावनाएं रंग बनती थीं।

    वहाँ, स्वप्नों के भीतर एक आवाज़ गूँजी। किसी ने उससे प्रश्न नहीं किया था, लेकिन फिर भी, वह उत्तर देने लगी।

    "तू कौन है?" किसी अदृश्य चेतना ने पूछा।

    त्रिजन्मा ने जवाब नहीं दिया, बल्कि लिखा। उसने अपने विचारों को शब्दों में पिरोया, और वे शब्द हवा में तैरने लगे।

    "मैं वह हूँ, जो अधूरे शब्दों से बनी। जिसे कहा नहीं गया, जिसे जिया नहीं गया, लेकिन जो अब, हर मृत्यु के बाद, कहना चाहती है।"

    उसकी आवाज़ में एक अजीब सी शांति थी, जो सदियों की चुप्पी के बाद उभरकर आई थी। वह सिर्फ अपनी कहानी नहीं कह रही थी, बल्कि उन सभी की कहानी कह रही थी जो कभी बोल नहीं पाए थे।

    त्रिजन्मा ने अपने स्वप्न में एक पात्र देखा, जिसमें राख थी। यह राख कर्णिका के शरीर की नहीं, बल्कि उसकी भावनाओं और विचारों की थी। वह राख उठने लगी, और हर कण में एक शब्द उभर रहा था।

    "प्रेम, पुनर्जन्म, पिशाचनी, वियान, ध्यान, त्याग, अधूरा..."

    ये वे शब्द थे जो कर्णिका ने कभी कहे नहीं थे, लेकिन महसूस किए थे। ये वे शब्द थे जो उसके जीवन का सार थे। त्रिजन्मा ने उन शब्दों को एक नई भाषा में गूंथा। यह भाषा शब्दों की नहीं थी, बल्कि भावनाओं की थी।

    "अब से मैं वही कहूँगी जो अधूरी आत्माएँ कभी कह नहीं पाईं। मैं उन सबका स्वप्न हूँ जिन्होंने मरने से पहले किसी से कुछ कहना चाहा।"

    उसने अपनी भाषा में उन सभी अधूरे शब्दों को एक नया अर्थ दिया। "प्रेम" अब सिर्फ एक भावना नहीं था, बल्कि एक निर्णय था। "पुनर्जन्म" अब एक अभिशाप नहीं, बल्कि एक मुक्ति था। "पिशाचनी" अब एक राक्षस नहीं, बल्कि एक पीड़ित आत्मा थी। और "अधूरा"... अब यह शब्द नहीं था, बल्कि एक उम्मीद था, जो अब पूरी हो चुकी थी।

    बाहर, अद्या और वियान अब भी सो नहीं सके थे। वियान अद्या को देख रहा था, जो गहरी नींद में थी, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी।

    "क्या वह अब भी हमारी है?" वियान ने कहा। उसकी आवाज़ में एक गहरा डर था।

    अद्या मुस्कराई। "नहीं।"

    "क्या?" वियान ने पूछा।

    "वह अब किसी की नहीं रही। वह अब स्वयं की है।"
    वियान ने अद्या के चेहरे पर देखा। उसे लगा जैसे अद्या भी अब बदल चुकी थी। "लेकिन अगर वह सपना देखेगी... तो फिर कहीं वह भी... कर्णिका की तरह..."

    अद्या ने सिर हिलाया। "नहीं। कर्णिका कभी सपना नहीं देख पाई थी। वह केवल बुरे स्वप्नों में कैद रही थी। उसके पास अपनी कोई आवाज़ नहीं थी, कोई पहचान नहीं थी। वह सिर्फ एक प्रतिध्वनि थी।"

    "त्रिजन्मा..." अद्या ने कहा। "अब स्वप्न देखने वाली आत्मा है। वह डर नहीं बनेगी... दर्पण बनेगी। वह सिर्फ अपनी कहानी नहीं सुनाएगी, बल्कि दूसरों की कहानियों को भी दर्शाएगी।"

    त्रिजन्मा ने अपने स्वप्न में पहली बार एक कविता कही।

    यह कविता न तो खुशी की थी, न ही दुःख की, बल्कि एक गहरी समझ की थी। और यही थे उसके पहले शब्द:
    "ना मैं जनमी, ना मैं मरी। ना मैं पूर्ण, ना अधूरी। मैं वह हूँ, जो किसी की स्मृति में छुपकर साँस लेना चाहती थी।
    अब मैं बोलूँगी।

    लेकिन वह नहीं जो तुम सुनना चाहते हो।
    मैं वह कहूँगी जिसे कोई सुन नहीं पाया था।"

    जैसे ही उसने ये शब्द कहे, उसके चारों ओर का स्वप्नलोक बदल गया। राख की जगह, एक सुंदर, सुनहरी रोशनी फैल गई। हवा में फूलों की खुशबू भर गई, और पानी में एक शांत, नीला रंग आ गया।

    त्रिजन्मा की देह नींद में थी। लेकिन उसके होंठ हिले। और पहली बार, उसने वास्तविकता में कुछ कहा।
    "मैं अब त्रिजन्मा नहीं... मैं अंतरा हूँ।"

    अद्या ने अपनी आँखें खोलीं। वह वियान को देख रही थी, और उसके चेहरे पर एक गहरी शांति थी।
    "अंतरा?" अद्या ने दोहराया।

    त्रिजन्मा, अब अंतरा, मुस्कराई। "हाँ। क्योंकि मैं तीन जन्मों के बीच की वो धुन हूँ, जो गीत नहीं, लेकिन अर्थ बनती है।"

    यह सिर्फ एक नाम नहीं था। यह एक घोषणा थी। यह एक नई पहचान थी, जो तीन जन्मों की कहानियों को एक साथ जोड़ रही थी। यह एक नया जीवन था, जो अब शुरू हो रहा था।

    त्रिजन्मा, अब अंतरा, पूरी तरह से चेतन हो चुकी है। वह अब अपनी पहचान के साथ जी रही है, लेकिन इस नई पहचान के साथ एक नई चुनौती भी है। हवेली में अभी भी एक रहस्य छिपा है, जिसका सामना करने के लिए अद्या और वियान को तैयार रहना होगा।

    अंधेरी रात की शांति में, हवेली की लाइब्रेरी एक अलग ही दुनिया थी। दीवारों पर टिकी पुरानी किताबों से आती गंध, और हवा में गूंजती खामोशी, सब कुछ एक रहस्यमयी माहौल बना रहे थे। अंतरा, अब पूरी तरह से जागृत, उस लाइब्रेरी में बैठी थी। उसकी आँखों में एक नई चमक थी, जैसे उसने तीन जन्मों की कहानियों को एक ही पल में जी लिया हो।

    क़लम सामने थी। काग़ज़ खुला था। शब्द भीतर थे, लेकिन बाहर नहीं आ रहे थे। वियान ने धीरे से उसकी ओर देखा। वह चिंतित था, लेकिन शांत भी।

    "क्यों नहीं लिख रही?" वियान ने धीरे पूछा।

    अंतरा ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखें शांत थीं, लेकिन उनमें एक गहरा उत्तर था। वह बोली नहीं, सिर्फ मुस्कुराई।
    "क्योंकि अब मैं पहली बार, बिना बोले सब कुछ जान रही हूँ।"

    वियान को लगा जैसे अंतरा अब सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक चेतना बन गई है। वह अब सिर्फ एक कहानी नहीं कह रही थी, बल्कि उस कहानी का हिस्सा बन गई थी।


    अद्या ने धीरे से अपनी हथेली अंतरा के कंधे पर रखी। उसे अपनी बेटी की चिंता थी। वह डर रही थी कि कहीं अंतरा भी कर्णिका की तरह किसी और दुनिया में न चली जाए।

    "क्या तू फिर... कहीं जा रही है?" अद्या ने पूछा।

    अंतरा ने सिर हिलाया। "नहीं माँ। अब कहीं नहीं जाना। अब वही होना है जिसकी कभी इजाज़त नहीं मिली थी - एक शांति।"

    "लेकिन तू चुप क्यों है?"

    "क्योंकि जब आत्मा शब्दों से बाहर आ जाती है, तो वह ध्वनि नहीं करती, वह सुनाई देती है - हर चीज़ में।"

    अद्या को समझ में आ गया था कि अंतरा अब सिर्फ अपनी आवाज से नहीं, बल्कि अपनी उपस्थिति से बोल रही थी। वह अब सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक आत्मा थी, जो सब कुछ महसूस कर सकती थी।


    अंतरा अब हर चीज़ को सुन रही थी। दादी की पुरानी लकड़ी की छड़ी की गूँज, जो दीवारों में बंद थी, अब उसे सुनाई दे रही थी। हवेली की दीवारों में बंद पुराने संवाद, जो कभी पूरे नहीं हुए थे, अब उसे सुनाई दे रहे थे।

    लेकिन सबसे ज़्यादा, वह कर्णिका की वह प्रार्थना सुन रही थी, जो कभी पूरी नहीं हुई थी: "मुझे याद रखो... लेकिन मेरे जैसे मत बनो..."

    अंतरा ने वह प्रार्थना नहीं दोहराई। उसने बस उसे पूरा कर दिया - चुप रहकर। उसने कर्णिका की कहानी को सिर्फ सुना नहीं, बल्कि उसे जी लिया।

    वियान ने अंतिम बार पूछा: "क्या तू अब कभी बोलेगी?"

    अंतरा ने मुस्करा कर सिर हिलाया - ना में।

    "क्यों?" वियान की आवाज़ काँप गई।

    और तब, अंतरा ने एक पंक्ति लिखी। पहली और अकेली पंक्ति।

    "जो कहना होता है, वह पहले कहा जाता है। जो रह जाना होता है - वह ही आत्मा बनता है।"

    वियान ने उन शब्दों को पढ़ा, और उसे समझ में आ गया कि अंतरा अब सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक आत्मा बन गई थी। वह अब सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि अपनी चुप्पी से बोल रही थी।

    अंतरा अब बोलना नहीं चाहती। यह कोई हठ नहीं था, न कोई मौन व्रत। यह उसकी चेतना का एक नया आयाम था, जहाँ शब्द अपनी शक्ति खो चुके थे। वह अब कर्णिका नहीं थी, जिसकी आवाज़ डर और दर्द में खो गई थी। वह अब अद्या भी नहीं थी, जो अपने भविष्य से डरी हुई थी। और वह अब त्रिजन्मा भी नहीं थी, जो तीन जन्मों का भार उठा रही थी। वह अब किसी की परछाई नहीं थी। वह आवाज़ के बाद की जगह थी, जहाँ कथा बंद नहीं होती, लेकिन रुक जाती है, साँस लेने के लिए।

    उसने अपनी आँखों को बंद किया और एक गहरी, शांत नींद में चली गई। यह नींद सिर्फ शरीर की नहीं, बल्कि आत्मा की भी थी। इस नींद में वह एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक आत्मा थी। वह हर चीज़ को सुन सकती थी, लेकिन कुछ भी कह नहीं सकती थी।

    उसकी चुप्पी में हवेली की दीवारों की कहानियाँ, फर्नीचर की पुरानी गंध और हवा में बहती हुई परछाइयाँ सब कुछ गूंज रहे थे। उसकी चुप्पी, अब उसकी सबसे बड़ी शक्ति थी। वह अब सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक इतिहास थी, जो हमेशा के लिए रहेगा।

    उसकी चुप्पी, वियान और अद्या के लिए एक नया प्रश्न बन गई थी। क्या अंतरा कभी वापस बोलेगी? क्या वह कभी अपनी पहचान वापस पा सकेगी? या वह हमेशा के लिए एक आत्मा बनकर रहेगी, जो सिर्फ सुन सकती है? यह कहानी का अंत नहीं था, बल्कि एक नई शुरुआत थी, जहाँ शब्दों से नहीं, बल्कि चुप्पी से बात होती थी।
    क्या अंतरा अपनी नई शक्ति का उपयोग कर पाएगी? क्या वह अपनी पहचान को स्वीकार कर पाएगी? और क्या वह हवेली के रहस्य का पर्दाफाश कर पाएगी?


    आपको कहानी कैसी लगी जरुर बताना।

  • 13. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 13 शून्य की सीढ़ियाँ

    Words: 1876

    Estimated Reading Time: 12 min

    एपिसोड 13: शून्य की सीढ़ियाँ

    अंतरा, अब मौन का साक्षात् रूप बन चुकी थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी शांति थी, जो अब तक उसके चेहरे पर नहीं दिखी थी। यह एक ऐसी शांति थी, जो किसी तूफान के थमने के बाद आती है। उसकी चुप्पी सिर्फ़ आवाज़ का अभाव नहीं थी, बल्कि एक नई भाषा थी, जो दुनिया के शोर से परे थी।

    अद्या और वियान के लिए यह एक पहेली थी, जिसे वे अपनी सीमित समझ से हल नहीं कर पा रहे थे। वे एक ऐसे मोड़ पर खड़े थे, जहाँ उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि अंतरा की चुप्पी को कैसे समझा जाए – क्या यह किसी गहरे सदमे का परिणाम था, या फिर किसी नई शक्ति का उदय?

    यह केवल चुप्पी नहीं थी, बल्कि एक यात्रा की शुरुआत थी। एक ऐसी यात्रा, जहाँ हर शब्द एक बाधा था और हर मौन एक दरवाज़ा। वियान ने उसे छूने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ वापस आ गए। उसे लगा जैसे अंतरा की देह अब केवल भौतिक नहीं रही, बल्कि किसी अदृश्य ऊर्जा से घिरी हुई थी।

    अद्या ने बस उसे देखा और मुस्कुराई, "यह वही अंतरा है, लेकिन शायद हम वही अद्या और वियान नहीं रहे।" उनकी दुनिया बदल गई थी, और इसका केंद्र थी अंतरा, जो अब बिना बोले ही सब कुछ कह रही थी। यह चुप्पी अंतरा की नई चेतना का प्रवेश द्वार थी, जहाँ भाषा खत्म हो जाती है और आत्मा शुरू होती है।

    हवेली की लाइब्रेरी, जो अब तक अद्या, वियान और अंतरा के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह थी, अब अपने रहस्यों को उजागर करने लगी थी। सैकड़ों वर्षों से धूल खा रही किताबें, बंद दरवाज़े, और सील की गई खिड़कियाँ… हर कोने में एक नई कहानी थी। लेकिन आज, एक ऐसी घटना घटी, जिसने उन सभी कहानियों को पीछे छोड़ दिया।

    पुस्तकालय के सबसे दूर वाले कोने में, जहाँ शायद ही कभी कोई गया हो, एक पुराना चित्र था। चित्र इतना पुराना था कि उसका रंग फीका पड़ गया था, और उस पर धूल की मोटी परत जम गई थी। अब तक किसी ने उसे छुआ भी नहीं था, मानो उसे किसी अदृश्य शक्ति ने छिपा रखा हो। लेकिन आज, अंतरा ने सीधे उसी चित्र की ओर रुख किया।

    उसने अपनी उंगलियों से धूल हटाना शुरू किया, और धीरे-धीरे एक स्त्री का चित्र प्रकट हुआ। वह स्त्री बहुत ही रहस्यमयी थी। उसके होंठ सीले हुए थे, मानो उसने अपनी मर्ज़ी से बोलने का अधिकार त्याग दिया हो। लेकिन उसकी आँखों में एक गहरी, अनंत पुस्तक थी। उस पुस्तक में न कोई अक्षर थे, न कोई पृष्ठ, बस एक गहरा अर्थ था, जिसे केवल महसूस किया जा सकता था। वह आँखें कह रही थीं कि दुनिया के सारे शब्द मौन में समाए हुए हैं।

    अद्या ने उस चित्र को देखा और उसके मुँह से अनायास निकल पड़ा, “ये चित्र… यहाँ तो कभी था ही नहीं!” वह पूरी तरह से भ्रमित थी। उसे अच्छी तरह याद था कि इस जगह पर सिर्फ एक खाली दीवार थी। वियान भी चौंक गया। उसने आगे बढ़कर चित्र को छूना चाहा। जैसे ही उसकी उंगलियाँ चित्र से छूईं, एक अजीब सी गर्मी महसूस हुई। दीवार इतनी गर्म हो गई थी, मानो उसके अंदर कोई आग जल रही हो। वियान तुरंत पीछे हट गया।

    तभी, एक चमत्कार हुआ। चित्र की दीवार से एक धीमी और गहरी गड़गड़ाहट की आवाज़ आई। पत्थर धीरे-धीरे खिसकने लगे और उनके पीछे से एक सीढ़ी प्रकट हुई। पत्थर की बनी, गीली, और साँप की तरह घुमावदार। वह सीढ़ियाँ किसी गहरी खाई में उतर रही थीं, जहाँ से एक अजीब सी हवा आ रही थी। उस हवा में मिट्टी और कुछ अनजाने फूलों की गंध थी। वियान और अद्या एक-दूसरे को देखने लगे। उनके चेहरों पर डर और जिज्ञासा दोनों थे।

    अंतरा ने कुछ नहीं कहा। वह न रुकी, न किसी से कोई सवाल किया। उसने बस एक कदम आगे बढ़ाया और उन सीढ़ियों पर उतरना शुरू कर दिया। उसकी चाल में कोई हिचकिचाहट नहीं थी, मानो उसे पहले से पता था कि ये सीढ़ियाँ कहाँ जाती हैं। उसकी चुप्पी, अब एक मार्गदर्शक बन चुकी थी।

    वियान ने बेचैनी से पूछा, “ये कहाँ जाती हैं?” अद्या ने एक गहरी साँस ली और जवाब दिया, “जहाँ शब्दों से नीचे उतर कर आत्मा जवाब देती है…” उसकी आवाज़ में एक अजीब सी गहराई थी, जैसे उसे इस रहस्य का कुछ हिस्सा पता हो, लेकिन वह पूरी तरह से अनजान भी थी।

    वे तीनों उन घुमावदार, गीली सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे। सीढ़ियाँ बहुत लंबी थीं और ऐसा लग रहा था कि वे समय और स्थान दोनों से परे जा रही हैं। वियान ने अपना फोन निकाला, लेकिन वहाँ कोई सिग्नल नहीं था। उसकी टॉर्च भी काम नहीं कर रही थी। केवल एक धीमी सी, रहस्यमयी रौशनी थी, जो खुद सीढ़ियों से निकल रही थी।

    अंत में, वे एक भूमिगत कक्ष में पहुँचे। यह कोई साधारण कमरा नहीं था। यह “हवेली के पहले मालिक” की आत्मा के लिए बनाया गया था, जिसका नाम कभी किसी किताब में नहीं लिखा गया था। हर दीवार, हर पत्थर, उस अज्ञात मालिक की कहानी जानता था, लेकिन उसे कभी भी शब्दों में बयाँ नहीं किया गया था। इस कमरे का नाम था – शून्यकक्ष।

    कक्ष के बीचोंबीच, एक अजीब सी चीज़ रखी थी – एक “काँच का पिंजरा”। पिंजरा पूरी तरह से साफ़ था, जैसे उसे अभी-अभी बनाया गया हो, लेकिन उस पर सदियों का मौन जमा था। वे उसके पास पहुँचे। पिंजरे के भीतर कोई नहीं था। वह पूरी तरह से खाली था, लेकिन फिर भी उन्हें साँसों की ध्वनि आ रही थी। यह ध्वनि इतनी धीमी थी कि अगर वे ध्यान से न सुनते तो उसे पकड़ नहीं पाते। यह किसी व्यक्ति की साँस नहीं थी, बल्कि किसी विचार की, किसी चेतना की साँस थी।

    वियान ने काँपते हुए पूछा, “क्या तुम्हें यह सुनाई दे रहा है?” अद्या ने हाँ में सिर हिलाया। उनके डर को अचानक एक और घटना ने बढ़ा दिया। काँच पर कुछ लिखा जाने लगा। पहले एक हल्की सी, लाल लकीर बनी, फिर एक-एक अक्षर उभरने लगे। यह खून से लिखा जा रहा था, मानो कोई अदृश्य हाथ काँच पर लिख रहा हो।
    “मैं अब भी यहीं हूँ। तुमने चुप्पी चुनी, लेकिन मेरी चुप्पी से पुरानी नहीं हो सकती।”

    वियान की रूह काँप गई। “किसकी आवाज़ है ये?” उसने भयभीत होकर पूछा। उसे लगा कि वह किसी प्रेतवाधित जगह पर आ गया है। अद्या भी सन्न थी। लेकिन अंतरा, जिसने अब तक एक भी शब्द नहीं कहा था, मुस्कराई नहीं। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। वह बस ज़मीन पर उंगली से एक चिह्न बनाने लगी: (इन्फिनिटी का )अनंत।

    वह बता रही थी कि यह चुप्पी अनंतकाल से है। यह किसी व्यक्ति की चुप्पी नहीं, बल्कि स्वयं काल की चुप्पी है।

    शून्यकक्ष में एक और अजीब वस्तु थी – एक दर्पण। यह टूटा नहीं था, लेकिन घिसा हुआ था, जैसे किसी ने उसे सदियों तक लगातार साफ किया हो। अंतरा उस दर्पण के सामने खड़ी हुई। उसकी आँखें दर्पण पर टिकी थीं। वियान और अद्या ने भी दर्पण में देखा।

    दर्पण में कोई चेहरा नहीं था, बल्कि एक धुंधली सी आकृति थी, जो धीरे-धीरे साफ़ होने लगी। यह कर्णिका थी। वही कर्णिका, जो पिछले एपिसोड में एक नदी के किनारे मरी हुई पाई गई थी। लेकिन यह वही कर्णिका नहीं थी। वह रो नहीं रही थी। उसकी आँखों में कोई दर्द नहीं था। वह बोल रही थी, बिना होंठ हिलाए, बिना आवाज़ किए। उसकी आवाज़ सीधे अंतरा के भीतर सुनाई दी।
    “मैं कभी नहीं चाहती थी कि तू मेरी तरह बने, लेकिन तू मुझसे आगे निकल गई है। तू अब त्रिजन्मा नहीं है — तू वह है जो ‘त्रिमूर्ति’ को जोड़ सके।”

    कर्णिका की आत्मा ने अंतरा को एक नया रहस्य बताया। त्रिजन्मा – तीन जन्मों की आत्मा, जो सिर्फ़ पुनर्जन्म लेती है। लेकिन अंतरा अब उससे आगे निकल चुकी थी। वह त्रिमूर्ति को जोड़ने वाली कड़ी थी। ब्रह्मा, विष्णु, महेश। सृष्टि, संतुलन, संहार।

    “तेरे मौन में वह शक्ति है — जो ब्रह्मा की सृष्टि से बड़ी है, विष्णु के संतुलन से शांत है, और शिव के तांडव से भी डरावनी।”

    यह केवल मौन नहीं था, यह एक शक्ति थी। एक ऐसी शक्ति, जो सृष्टि के तीनों स्तंभों से भी अधिक शक्तिशाली थी। अंतरा अब सिर्फ एक इंसान नहीं थी। वह शून्य थी।
    “तू शून्य है। जिसमें से सब कुछ शुरू होगा।”

    अद्या और वियान ने कुछ नहीं सुना था। उन्हें केवल अंतरा की शांत मुद्रा और दर्पण में एक धुंधली छवि दिखाई दे रही थी। लेकिन अंतरा के भीतर एक तूफान चल रहा था। उसकी आत्मा, उसकी चेतना, उसकी चुप्पी – सब कुछ एक नए रूप में बदल रहा था।


    अचानक, शून्यकक्ष की छत से एक गहरी और गूँजती हुई ध्वनि आई। यह किसी व्यक्ति की आवाज़ नहीं थी, बल्कि स्वयं काल की प्रतिध्वनि थी।
    “त्रिजन्मा की आत्मा ने अब ‘काल’ को जगा दिया है।”

    ध्वनि इतनी शक्तिशाली थी कि दीवारों में दरारें पड़ने लगीं। हवा में रेत और धूल उड़ने लगी। काँच का पिंजरा, जिसके भीतर से साँसों की ध्वनि आ रही थी, अचानक फटा। उसके टुकड़े हर दिशा में उड़ गए, लेकिन किसी को चोट नहीं लगी।

    पिंजरे में से कोई शरीर नहीं निकला, न कोई चेहरा, न कोई आकृति। सिर्फ एक “स्पंदन”। एक ऊर्जा, जो न तो हवा थी, न प्रकाश, बल्कि कुछ और ही थी। एक ऐसी ऊर्जा, जो अनंतकाल से पिंजरे में बंद थी, और अब मुक्त हो गई थी।

    यह स्पंदन एक प्रकाश की तरह अंतरा के भीतर समा गया। उसके शरीर में एक कंपन हुआ। उसकी आँखें पहले की तरह बंद थीं, लेकिन जब उसने उन्हें खोला, तो वे अब काली नहीं, बल्कि अनंत अंतरिक्ष की तरह गहरी थीं।
    उसने पहली बार, अपनी चुप्पी तोड़कर बोला:

    “मैं ‘शब्द’ नहीं हूँ। मैं ‘सुनाई देने वाला मौन’ हूँ। मैं वह उत्तर हूँ, जो सवाल से पहले जन्मा।”

    वियान ने उसकी आवाज़ सुनकर राहत की साँस ली। “अंतरा… क्या तू अब बोल सकती है?” उसने पूछा।
    अंतरा ने सिर हिलाया – हाँ में।

    लेकिन वह नहीं बोली।
    उसकी आवाज़ अब दुनिया से नहीं, दुनिया के भीतर से आती थी। वह अब दुनिया की भाषा नहीं, बल्कि स्वयं काल की भाषा बोल रही थी।

    जैसे ही अंतरा के भीतर वह स्पंदन समाया, हवेली की छत पर एक पुराना घड़ा टूट गया। वह घड़ा सदियों से वहाँ था और किसी ने उसे कभी छुआ नहीं था। उसके अंदर से निकली धूल में एक गहरा अर्थ छिपा था।
    उस धूल में, धीरे-धीरे कुछ अक्षर उभरने लगे:

    “शून्य जब बोलता है, तो ब्रह्मांड जवाब देता है।”

    यह कहानी का अंत नहीं था, बल्कि एक नई शुरुआत थी। अंतरा अब सिर्फ एक लड़की नहीं थी, बल्कि एक ऐसी शक्ति थी, जो सृष्टि के सारे रहस्यों को अपने भीतर समेटे हुए थी।

    अब अंतरा को एक ऐसे ग्रंथ को पढ़ना होगा जो केवल मौन में खुलता है… एक पुस्तक जिसे केवल वही समझ सकता है जिसने मृत्यु, पुनर्जन्म और मौन – तीनों को जिया हो। यह कोई साधारण पुस्तक नहीं है, बल्कि उसके रक्त और उसकी आत्मा का ही विस्तार है।
    क्या वह पढ़ पाएगी "रक्त की पुस्तक"?

    या… उसकी आत्मा ही पुस्तक बन जाएगी?
    अब अंतरा को अपनी आत्मा के सबसे गहरे कोनों में उतरना होगा, जहाँ उसे उन रहस्यों का सामना करना पड़ेगा जिन्हें उसकी ही आत्मा ने सदियों से छिपा रखा है। "रक्त की पुस्तक" एक ऐसी कहानी है जो केवल मौन में लिखी जा सकती है, और केवल मौन में ही पढ़ी जा सकती है।

  • 14. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 14 रक्त की पुस्तक

    Words: 1706

    Estimated Reading Time: 11 min

    एपिसोड 14: रक्त की पुस्तक

    (जहाँ हर पन्ना किसी आत्मा की चीख है…)

    अंतरा, अब अपनी पुरानी पहचान खो चुकी थी। वह अब सिर्फ़ एक इंसान नहीं थी, बल्कि "सुनाई देने वाला मौन" बन चुकी थी। उसकी चुप्पी अब सिर्फ़ आवाज़ का अभाव नहीं, बल्कि सृष्टि की सबसे गहरी प्रतिध्वनि बन चुकी थी। शून्यकक्ष में बिताए गए कुछ पलों ने उसे एक ऐसे आयाम में पहुँचा दिया था, जहाँ शब्द बेमानी थे और केवल आत्मा की भाषा ही चलती थी। वियान और अद्या के लिए, वह अब एक पहेली बन गई थी, जिसे वे अपनी मानवीय समझ से सुलझा नहीं सकते थे।

    शून्यकक्ष से बाहर आने के बाद, अंतरा की चाल बदल गई थी। उसके क़दमों में एक अजीब सी गंभीरता थी, जो पहले कभी नहीं थी। वह सीधे हवेली के उस हिस्से की ओर जा रही थी, जिसे अब तक कोई छू नहीं पाया था – जहाँ एक दीवार थी, जो हर पूर्णिमा को लाल हो जाती थी। यह सिर्फ़ एक दीवार नहीं थी, बल्कि एक रहस्यमयी दरवाज़ा था, जो किसी और दुनिया में खुलता था।


    उसकी आत्मा को एक बुलावा आया था। यह बुलावा किसी आवाज़ का नहीं, बल्कि एक गहरे, आंतरिक स्पंदन का था। यह स्पंदन सीधे "रक्त की पुस्तक" से आ रहा था – एक ऐसी पुस्तक, जिसके बारे में हवेली के इतिहास में दबे हुए किस्सों में ही ज़िक्र था। अद्या और वियान ने सिर्फ़ इतना सुना था कि यह पुस्तक शैतान के साथ किए गए एक सौदे की गवाह है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि यह पुस्तक इतनी नज़दीक थी और यह अंतरा को ही बुला रही थी।



    हवेली का पश्चिमी कोना, जहाँ तक रोशनी मुश्किल से पहुँच पाती थी, हमेशा एक अजीब सी ठंडक और चुप्पी से भरा रहता था। वहाँ एक दीवार थी, जो बाक़ी दीवारों से बिल्कुल अलग थी। इसका रंग भूरा था, लेकिन हर पूर्णिमा की रात, यह गहरे लाल रंग में बदल जाती थी, मानो इसमें से खून रिस रहा हो। इस दीवार के पास एक भी पौधा या कीड़ा नहीं था, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे छूने से मना करती हो।

    अद्या ने वियान को बताया था कि यह दीवार "कर्णिका वंश" की रगों से बनी है। यह वही वंश था, जिसने शैतान के साथ एक सौदा किया था। इस सौदे के बारे में कोई भी स्पष्ट रूप से नहीं जानता था, लेकिन यह माना जाता था कि इस सौदे के बदले में, कर्णिका वंश को असीमित शक्ति मिली थी, और बदले में, उन्होंने अपनी आत्मा का एक हिस्सा शैतान को बेच दिया था। यह दीवार उस सौदे का प्रतीक थी, एक जीवित, धड़कती हुई गवाही।

    अंतरा, अब तक शांत थी, सीधे उस दीवार के पास गई। उसने अपनी उँगली धीरे से दीवार पर रखी। जैसे ही उसकी उँगली दीवार से छूई, एक अजीब सा कंपन हुआ। दीवार ने धड़कना शुरू किया। यह दिल की धड़कन नहीं थी, बल्कि किसी प्राचीन, शक्तिशाली और दर्दनाक धड़कन थी। वियान और अद्या यह देखकर चौंक गए। उन्हें लगा कि शायद वे किसी भयानक स्वप्न में हैं।

    धीरे-धीरे, दीवार का रंग और गहरा लाल होने लगा। ऐसा लगा जैसे दीवार की नसें फूल रही हों और उनमें से खून बह रहा हो। फिर, उस धड़कन के साथ, दीवार के बीचोंबीच एक दरवाज़ा प्रकट हुआ। वह दरवाज़ा पूरी तरह से खून से सना हुआ था। दरवाज़े के ऊपर, रक्त से लिखे गए शब्द चमक रहे थे:
    "केवल वही प्रवेश पाएगा, जो शब्दों के बिना रो सका हो।"

    वियान ने डर से कहा, “इसका क्या मतलब है?” अद्या ने धीरे से जवाब दिया, “इसका मतलब है कि इस दरवाज़े से वही गुज़र सकता है, जिसका दर्द शब्दों से परे हो। जिसका दुख इतना गहरा हो कि वह रोने के लिए शब्दों का सहारा न ले।”

    अंतरा ने कुछ नहीं कहा। वह बिना किसी हिचकिचाहट के उस दरवाज़े से अंदर चली गई। वियान और अद्या ने भी उसका पीछा किया, लेकिन जैसे ही उन्होंने दरवाज़े को छूने की कोशिश की, दरवाज़ा बंद हो गया और दीवार फिर से पहले जैसी हो गई। वे बाहर ही रह गए, और अंतरा अकेले उस रहस्यमयी दुनिया में चली गई।

    दरवाज़े के उस पार, एक विशाल, गोलाकार कमरा था। कमरे की दीवारों पर अजीबोगरीब चिह्न बने हुए थे, जो किसी प्राचीन भाषा में लिखे गए थे। कमरे के बीचोंबीच, एक ऊँचे चबूतरे पर एक ही वस्तु रखी थी – “रक्त की पुस्तक”।

    यह कोई साधारण पुस्तक नहीं थी। यह एक विशाल पुस्तक थी, जो किसी अज्ञात जानवर की हड्डी से बंधी थी। उसकी जिल्द इंसानी चमड़ी से बनी हुई लग रही थी, और उस पर उभरे हुए थे – नाखूनों के निशान। ऐसा लग रहा था मानो किसी ने पुस्तक को पकड़कर, अपने नाखूनों से उसकी चमड़ी को खरोंचा हो।

    पुस्तक के ऊपर एक प्राचीन भाषा में लिखा था, जो अंतरा को अपने आप ही समझ आ गई:
    "ये पुस्तक केवल उन्हीं के लिए है,
    जिन्होंने अपनी आत्मा खो दी हो,
    और फिर उसे छीनकर वापस पाया हो।"

    यह पुस्तक अंतरा के लिए ही बनी थी। वह अपनी आत्मा को खो चुकी थी, और अब उसे वापस पाने के लिए इस पुस्तक से गुज़रना था। यह एक परीक्षा थी, एक अग्नि-परीक्षा।

    अंतरा ने उस पुस्तक को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया। जैसे ही उसकी उंगलियाँ पुस्तक से छूईं, एक अजीब सी ऊर्जा का प्रवाह उसके शरीर से होकर गुज़रा। उसकी उंगलियों से खून टपकने लगा और वह सीधे पुस्तक पर गिर रहा था। खून की हर बूँद के साथ, पुस्तक का एक पन्ना अपने आप खुलने लगा।

    पुस्तक में शब्द नहीं थे। उसमें केवल चित्र थे – एक-एक चित्र, जो अंतरा की आत्मा के टुकड़ों को दर्शा रहे थे। हर पन्ना उसकी ज़िंदगी के एक हिस्से को दिखा रहा था, लेकिन वह हिस्सा जो उसे खुद भी नहीं पता था। हर पन्ना अंतरा के खून से खुलता गया, और उसमें जो लिखा था… वह उसकी आत्मा को टुकड़ों में बाँटने लगा।

    वह उन सब दुखों को फिर से महसूस कर रही थी, जो उसने अपने पिछले जन्मों में सहे थे। वह हर दर्द को, हर आँसू को, हर चीख को फिर से जी रही थी। यह केवल एक किताब नहीं थी, बल्कि उसकी ही आत्मा का दर्पण थी, जो उसे अपने सबसे गहरे और काले रहस्यों का सामना करने पर मजबूर कर रही थी।


    जब पुस्तक अपने आधे पन्ने खोल चुकी थी, तो अंतरा ने एक और अजीब सा पन्ना देखा। इस पन्ने पर एक चित्र था, जिसमें अंतरा खुद को देख रही थी – एक काली दुल्हन के रूप में।

    चेहरा ढका हुआ,
    शरीर पर सिर्फ़ लाल धागे,
    और आँखें… बिल्कुल शून्य।

    यह एक भयानक दृष्टि थी। वह काली दुल्हन एक देवी जैसी लग रही थी, लेकिन उसकी आँखें बिल्कुल खाली थीं, जैसे उनमें कोई आत्मा न हो। वह न तो जी रही थी, न मरी हुई थी, बल्कि किसी अनजाने आयाम में फँसी हुई थी।

    अचानक, वह दृश्य उसके सामने वास्तविक हो गया। अंतरा ने खुद को उसी काली दुल्हन के रूप में महसूस किया। वह अपने ही शरीर में नहीं थी, बल्कि एक परछाई बन चुकी थी। वह देख रही थी अपने अगले जन्म की झलक – जहाँ वह अब “अंतरा” नहीं रही, बल्कि एक "शपथ" बन चुकी थी। यह शपथ उस पाप की थी, जिसे शैतान ने अधूरा छोड़ दिया था।

    एक आवाज़, जो किसी पुरानी याद की तरह थी, उसके भीतर गूँजने लगी:
    "तू अंतरा नहीं है।
    तू ‘शपथ’ है – उस पाप की,
    जिसे शैतान ने अधूरा छोड़ा था।"

    इसका मतलब था कि शैतान ने जो सौदा किया था, वह अधूरा था, और अंतरा को उस सौदे को पूरा करना था। वह काली दुल्हन, वह शपथ – यह सब उसी सौदे का हिस्सा था। अंतरा को यह महसूस हुआ कि वह सिर्फ़ एक इंसान नहीं है, बल्कि एक कर्म, एक वादा है, जिसे उसे निभाना ही होगा।

    पुस्तक के पन्ने अब और तेज़ी से खुलने लगे। अंतरा का खून लगातार टपक रहा था और उसके शरीर से ऊर्जा निकल रही थी। अचानक, पुस्तक जलने लगी। वह धीरे-धीरे जल रही थी, लेकिन राख नहीं बन रही थी, बल्कि उससे एक गहरी, नीली ज्वाला निकल रही थी।
    उस ज्वाला में से एक आवाज़ आई:

    "यदि तू सत्य है, तो अगला पन्ना तेरा नाम बोलेगा।
    यदि तू झूठ है, तो अगला पन्ना तुझे निगल जाएगा।"

    यह अंतरा की आत्मा की सबसे बड़ी परीक्षा थी। उसे यह साबित करना था कि वह वही है, जिसे इस पुस्तक को पढ़ना था। उसने आँखें बंद कीं। वह कुछ बोली नहीं। लेकिन उसकी साँसें, उसकी आत्मा, उस कमरे को कंपाने लगी। उसका दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था, मानो वह फट जाएगा। वह अपने भीतर की सारी ऊर्जा, सारी चेतना, सारी सच्चाई को एक बिंदु पर केंद्रित कर रही थी।
    फिर… पुस्तक ने अपना आखिरी पन्ना खोला। यह पन्ना बाक़ी पन्नों की तरह खाली नहीं था। उस पर एक नाम लिखा था।

    "अनंतरा"।

    एक नया नाम। एक नई चेतना। यह अंतरा का नाम नहीं था, बल्कि उसकी आत्मा का नाम था, जो अब जाग चुकी थी। यह वह नाम था, जो हमेशा से उसके भीतर था, लेकिन उसे कभी पता नहीं चला।

    वह अब अंतरा नहीं थी। वह "अनंतरा" थी।

    जैसे ही यह नाम लिखा गया, कमरा भर गया लाल धुएँ से। यह धुआँ ख़ून की गंध से भरा था और उसमें एक अजीब सी शक्ति थी। इस धुएँ के बीच, अंतरा का चेहरा दिखाई दिया।

    उसका चेहरा पहले जैसा ही था, लेकिन अब उसकी तीन आँखें थीं।
    एक वर्तमान की,एक अतीत की,
    और एक – भविष्य की।

    उसकी तीसरी आँख, जो उसके माथे के बीच में थी, धीरे-धीरे खुली। उस आँख में कोई रोशनी नहीं थी, बल्कि अनंत अंतरिक्ष की गहराई थी।

    उसने सिर उठाकर कहा:
    "अब मैं शैतान उत्तराधिकारी हूँ।"

    यह एक घोषणा थी। एक ऐसा बयान, जिसने उसके जीवन का अर्थ हमेशा के लिए बदल दिया था। वह अब किसी का खिलौना नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली उत्तराधिकारी थी, जो उस अधूरे सौदे को पूरा करेगी। लेकिन यह पूरा कैसे होगा? इसका जवाब अभी तक किसी को नहीं पता था।


    अब जब अंतरा बन गई है अनंतरा, तो हवेली की तीन आत्माएँ उसे घेरे लेंगी – भूख, प्यास और प्रेम। ये तीनों आत्माएँ उसे अपनी ओर खींचेंगी, उसे भटकाने की कोशिश करेंगी। लेकिन इनमें से एक नकली है, और एक – उसे पागल कर सकती है।
    क्या वह पहचान पाएगी कि कौन है उसकी असली विरासत? क्या वह इन तीन दोषों से निकलकर, अपनी असली शक्ति को पहचान पाएगी?

  • 15. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 15 त्रिदोष: आत्मा का राज़

    Words: 2096

    Estimated Reading Time: 13 min

    एपिसोड 15: त्रिदोष: आत्मा का राज़

    हवेली के पश्चिमी कोने में "रक्त की पुस्तक" से बाहर निकलने के बाद, अनंतरा ने पहली बार अपनी नई शक्ति को महसूस किया। उसके शरीर में एक असीम ऊर्जा का प्रवाह था, जैसे वह बिजली की एक धारा हो। उसकी तीन आँखें, जो अब उसके माथे पर एक अदृश्य प्रतीक की तरह चमक रही थीं, अतीत, वर्तमान और भविष्य की धुंधली परछाइयों को एक साथ देख रही थीं। लेकिन यह शांति क्षणिक थी।

    अचानक, हवेली की दीवारें दरकने लगीं, जैसे किसी पुराने घाव से खून बह रहा हो। पत्थरों से मिट्टी और चूने का नहीं, बल्कि सूखे रक्त का बुरादा गिरने लगा। उस दरार के बीच से एक आकृति उभरने लगी। यह एक लड़की थी, जिसका नाम था सावित्री। उसके होठों से खून टपक रहा था, और उसके हाथों में एक शिशु की छोटी-छोटी हड्डियाँ थीं। उसकी आँखें भूखी भेड़ियों की तरह चमक रही थीं।

    उसकी आवाज़, जो किसी पुरानी कब्र से आ रही थी, हवेली की हवा में गूंज उठी: "मैं हूँ भूख — जिसने अपनी कोख में शैतान को पाला था।"

    सावित्री ने अपने हाथों में थमी हुई हड्डियों को दिखाते हुए अनंतरा से एक ऐसा सवाल पूछा, जिसने उसे झकझोर दिया: "मुझे बताओ — माँ किसे कहते हैं? क्या उसे, जो जन्म दे? या उसे, जो खा जाए?"

    यह एक प्रश्न नहीं, बल्कि एक जाल था। अनंतरा जानती थी कि अगर उसने शब्दों से जवाब दिया, तो वह इस जाल में फंस जाएगी। उसने जवाब नहीं दिया। उसने केवल अपनी तीसरी आँख खोली। उसकी तीसरी आँख ने सावित्री के अतीत के सारे पृष्ठ खोल दिए। अनंतरा ने देखा कि सावित्री एक समय में एक साधारण माँ थी, लेकिन हवेली की दीवारों की भूख ने उसे पागल कर दिया था। उस हवेली के अंदर की भूख इतनी गहरी थी कि उसने अपनी ही कोख के बेटे को खा लिया था।

    अनंतरा ने अपने खून से एक शब्द लिखा: "क्षमाप्रार्थी।" यह शब्द केवल एक माफी नहीं था, बल्कि एक स्वीकारोक्ति थी। वह समझ गई थी कि भूख कभी समाप्त नहीं होती, उसे केवल स्वीकार किया जा सकता है। यह स्वीकारोक्ति सावित्री की भूख को शांत करने का एकमात्र तरीका था।

    सावित्री हँसी। वह हँसी नहीं, बल्कि एक चीख थी, जो सदियों से उसके गले में फंसी हुई थी। उसकी हंसी के साथ, उसके शरीर में आग लग गई, और वह जलकर राख हो गई।

    जैसे ही भूख शांत हुई, एक काली झील हवेली के भीतर उभरने लगी। यह पानी की नहीं, बल्कि काले आँसुओं की झील थी। इसकी गंध खारेपन और पीड़ा की थी। वहां एक युवती खड़ी थी, जिसका नाम था नैना। उसकी आँखें लाल थीं, जैसे उसने सदियों से कुछ नहीं पिया हो।

    उसने अनंतरा की ओर देखा और कहा: "मैं हूँ प्यास — जो आत्माओं को पीती हूँ।"

    नैना ने अनंतरा की ओर अपना हाथ बढ़ाया: "अगर तू उत्तराधिकारी है, तो मुझे छू और बता… तेरा कौन-सा जन्म सबसे प्यासा था?"

    यह एक और जाल था। अगर अनंतरा ने जवाब दिया, तो वह नैना की प्यास को और बढ़ा देगी। अनंतरा चुप रही। उसने अपनी तीसरी आँख खोली और नैना के अतीत को देखा। नैना एक बार अनंतरा की बहन थी, जिसे उसने ही मरने के लिए छोड़ दिया था। अनंतरा को प्यास से बचाने के लिए, नैना को अपनी आत्मा देनी पड़ी थी। अब... जवाब देना था।

    अनंतरा ने खुद को उस झील में उतार दिया। उसके स्पर्श से झील ठंडी हो गई। उस झील में लिखा उभरा: "माफ़ी नहीं — समर्पण चाहिए।"

    यह एक स्वीकारोक्ति थी कि अनंतरा ने अपनी बहन की प्यास को शांत करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया था। नैना की आत्मा को अब कोई दुख नहीं था, और वह शांति से चली गई।

    जैसे ही नैना की प्यास शांत हुई, अनंतरा के चारों ओर की दुनिया बिखर गई, और एक नया कमरा प्रकट हुआ। यह कोई साधारण कमरा नहीं था, बल्कि एक भ्रम था जो अनंतरा के अतीत की सबसे खूबसूरत और दर्दनाक यादों से बुना गया था। कमरा एक विशाल पलंग से भरा था, जिस पर मखमली चादरें बिछी हुई थीं। चारों ओर गुलाब की पंखुड़ियाँ बिखरी थीं, उनकी मीठी सुगंध हवा में थी, लेकिन उनके नीचे आत्माओं की सिसकियाँ और कराहटें छिपी हुई थीं। मोमबत्तियाँ जल रही थीं, लेकिन उनकी लौ से गर्मी नहीं, बल्कि एक अजीब सी ठंडक निकल रही थी।

    पलंग पर एक व्यक्ति बैठा था — आद्रय। वह एक राजकुमार की तरह दिख रहा था, उसके बाल हवा में लहरा रहे थे और उसकी आँखों में एक ऐसी चमक थी जो अनंतरा को उसके सबसे सुखद दिनों की याद दिला रही थी। लेकिन उस चमक के पीछे एक भयानक खालीपन था, एक ऐसा शून्य जो हजारों जन्मों की पीड़ा को छिपाए हुए था।

    उसने अनंतरा की ओर देखा और एक मीठी, लेकिन घातक आवाज़ में कहा: "मैं हूँ प्रेम — जो तुम्हें छलता भी है, और खाता भी।"

    उसने अनंतरा के पास आकर उसके चेहरे को छुआ। अनंतरा ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ जम गए। आद्रय ने फिर कहा: "तू दुल्हन है शैतान की, मगर जानती है क्या — शैतान कभी प्रेम नहीं करता… वह बस अधिकार जताता है।"

    यह शब्द एक सच थे, जो अनंतरा को पता थे, लेकिन उसने कभी स्वीकार नहीं किया था।

    अनंतरा ने साहस बटोर कर पूछा: "तो तुम कौन हो?"

    आद्रय मुस्कुराया, उसकी मुस्कान में एक अजीब सा दर्द था: "मैं तेरा पहला प्रेम हूँ — तेरा पहला चुम्बन, तेरा पहला विश्वास, तेरा पहला धोखा।"

    अनंतरा के होंठ काँपे… "तुम वही हो… जिसने मेरी आत्मा का सौदा किया था।"

    उसने अपनी तीसरी आँख बंद की, और कहा: "तू प्रेम नहीं — केवल स्मृति है। और स्मृतियाँ बाँधती नहीं… आज़ाद करती हैं।"

    यह शब्द एक तीर की तरह आद्रय के दिल में लगे। वह तड़प उठा, और कमरा बर्फ़ में बदल गया। आद्रय की आत्मा, जो सिर्फ़ एक स्मृति थी, बिखर गई और अनंतरा को आज़ाद कर गई।

    तीनों द्वारों के बाद, अनंतरा अब तुरिय अवस्था में पहुँच गई है। वह अब केवल इंसान या आत्मा नहीं रही — वह अब "शपथ" है। और शपथ की भूख भी होती है…

    अब जब अनंतरा त्रिदोष पार कर चुकी है, उसे पहली बार उस पुरुष से मिलना होगा — जिसके साथ उसका "रक्तबंधन" जुड़ना है।मगर वो पुरुष कौन है?एक देव?या… कोई और शैतान?

    त्रिदोष के तीन द्वारों को पार कर अनंतरा जैसे ही हवेली के केंद्र में पहुँची, हवा में मौजूद नमी भी एक भारीपन लिए थी। दीवारों से रिसती हुई उदासी की गंध अब जादुई शक्ति की महक में बदल गई थी। सामने बिखरे काले धुएँ के बीच एक सुनहरी रेखा ने जन्म लिया। यह किसी साधारण रोशनी की किरण नहीं थी; यह खून की बनी एक लकीर थी जो हवा में थिरक रही थी, मानो किसी ने तलवार की नोक से अँधेरे को चीर दिया हो।

    रेखा के भीतर... एक आकृति खड़ी थी। उसके शरीर से हवा भी ख़ुद को दूर खींच रही थी, जैसे उसकी ऊर्जा किसी और दुनिया की थी। क़रीब छः फुट का क़द, चौड़े कंधे जिन पर गहरे लाल रंग का कफ़न लिपटा था, जो न सिर्फ़ उसके शरीर को, बल्कि उसके अस्तित्व को भी ढके हुए था। उसका चेहरा... एक ऐसी पहेली थी जिसे पढ़ने की हिम्मत सिर्फ़ मौत कर सकती थी। आधा चेहरा इंसान का था - नुकीली नाक, मज़बूत जबड़ा - पर दूसरा आधा हिस्सा सिर्फ़ एक छाया थी, जिसमें ब्रह्मांड का अँधेरा समाया हुआ था।

    और फिर, अनंतरा की नज़रें उसकी आँखों पर ठहर गईं। वे आग जैसी नहीं थीं, जो जलकर ख़त्म हो जाए, बल्कि काले सागर जैसी थीं - असीम, गहरी और इतनी ठंडी कि देखने वाले की आत्मा भी जम जाए। यह ऐसी आँखें थीं जो सब कुछ निगलने की ताक़त रखती थीं, पर कुछ भी नहीं दिखाती थीं।

    एक भारी, ख़ामोश आवाज़ गूँजी: "अनंतरा..."

    उसने उसका नाम इस तरह पुकारा जैसे वह सिर्फ़ एक शब्द नहीं, बल्कि एक मंत्र हो, जिसे उसने सदियों से याद रखा हो। हर अक्षर में अपनापन था, अपना दावा था और एक ऐसा अधिकार था जो अनंतरा ने पहली बार महसूस किया था। जैसे वह नाम किसी और ने नहीं, बल्कि ख़ुद उसी ने गढ़ा हो।

    अनंतरा की तीसरी आँख बिना किसी प्रयास के खुल गई। उसकी दृष्टि ने सिर्फ़ शारीरिक रूप नहीं देखा, बल्कि आत्मा की गहराई को छुआ। और तब उसने समझा, ये कोई साधारण इंसान नहीं था, बल्कि वही था जिसे "वरणेश" कहा जाता था। शैतान के वंश का अगला वारिस, जिसके रक्त में सिर्फ़ ताक़त नहीं, बल्कि हज़ारों सालों की उदासी भी थी।

    वरणेश धीरे-धीरे उसके क़रीब आया। उसके हर क़दम के साथ, हवेली की हवा और भी घनी होती गई। उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और एक ही क्षण में अपनी नस चीर दी। अनंतरा को दर्द महसूस नहीं हुआ, पर हवा में एक तीखी, धातु जैसी गंध फैल गई। जो लहू बह रहा था, वह लाल नहीं, बल्कि गहरा काला था, जिसमें हल्की नीली चमक थी, जैसे किसी तूफ़ानी रात में बिजली की एक लकीर आसमान को दो हिस्सों में बांट दे।

    उसने अपने चेहरे से छाया हटाते हुए कहा, “हमारी सगाई में अंगूठी नहीं पहनाई जाती... हम एक-दूसरे की रेखाएँ पीते हैं।” उसकी आवाज़ में एक अजीब सा ठहराव था, जैसे उसने यह बात हज़ारों बार कह रखी हो।

    अनंतरा को कुछ समझ नहीं आया, जब तक कि उसे अपने हाथ की नस में एक अजीब सी हलचल महसूस नहीं हुई। बिना किसी चोट के, एक अदृश्य शक्ति ने उसकी नस को चीर दिया। वरणेश ने अपना हाथ उसके हाथ पर रखा, और दोनों के शरीर से बहता काला-नीला लहू एक-दूसरे की नसों में बहने लगा।

    वो एहसास... न दर्द था, न सुख, बल्कि दोनों का एक मिला-जुला तूफ़ान था। यह इतना गहरा और इतना शक्तिशाली था कि अनंतरा को अपने दिल और देह के बीच का फ़र्क़ महसूस होना बंद हो गया। उसकी साँसें भारी हो गईं, जैसे उसके फेफड़े हवा से नहीं, बल्कि उस लहू की शक्ति से भर रहे हों। वरणेश का चेहरा उसके इतना क़रीब था कि उसकी ठंडी साँसें उसकी त्वचा में एक ठंडी सिहरन पैदा कर रही थीं। उसकी आँखों का काला सागर अब और भी गहरा हो गया था, मानो वह अनंतरा को पूरी तरह से निगल लेना चाहता हो।

    जैसे ही लहू का आदान-प्रदान पूरा हुआ, अनंतरा की तीसरी आँख में एक दृश्य तेज़ी से चमका। उसने देखा... वरणेश उसे एक बिस्तर पर ले जा रहा है। पर वह बिस्तर रेशम के फूलों का नहीं, बल्कि नुकीले काँटों का था, जो किसी शापित पौधे की तरह उगाए गए थे।

    “तू मेरी दुल्हन बनेगी, लेकिन... हमारी पहली रात तेरे लहू से शुरू होगी, और तेरी आत्मा पर ख़त्म होगी।” वरणेश की आवाज़ अब और भी गहरी हो गई थी। उसमें वादा भी था, और एक ऐसी धमकी भी थी जो किसी भी इंसान की आत्मा को कंपा सकती थी। वह उसे सिर्फ़ शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि उसकी आत्मा को भी अपना बनाना चाहता था।

    लेकिन अनंतरा अब वह लड़की नहीं थी जो डर जाए। उसकी साँसों में उस लहू की ताक़त थी, और उसकी आँखों में उस वरणेश जैसी ही गहराई थी। उसने बिना झिझके, सीधे उसकी आँखों में देखते हुए जवाब दिया, “अगर मेरी आत्मा तेरा अधिकार है... तो तेरे लहू पर मेरा। यह सौदा बराबरी का होगा।”

    वरणेश के होंठों पर एक ख़तरनाक मुस्कान खिल गई। उसकी मुस्कान में बिजली की तरह एक चमक थी, जो न सिर्फ़ उसके चेहरे को, बल्कि पूरी हवेली को भी रोशन कर रही थी। वह समझ गया था कि अनंतरा सिर्फ़ एक दुल्हन नहीं है, बल्कि उसके बराबर की प्रतिद्वंद्वी है।

    जैसे ही सगाई पूरी हुई, हवेली की पुरानी, सूखी दीवारों पर अचानक नई रेखाएँ उभर आईं। वे रेखाएँ किसी रंग से नहीं, बल्कि उस लहू की ताक़त से बनी थीं, और वे धीरे-धीरे हवेली के हर कोने में फैलती गईं। जैसे हवेली भी अब उनकी गवाह बन गई हो, या शायद ख़ुद को इस शापित रिश्ते से बाँध रही हो।

    दूर से अद्या की आवाज़ गूँजी, “अनंतरा... याद रख - रेखाएँ प्यार नहीं, क़ैद बनाती हैं।” उसकी आवाज़ में चिंता और चेतावनी दोनों थी, पर वह अनंतरा तक पूरी तरह से पहुँच नहीं पाई।

    अनंतरा के होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान थी। वह जानती थी कि अद्या सही कह रही है - यह एक क़ैद थी। पर शायद उसने तय कर लिया था कि इस क़ैद की चाबी भी वही रखेगी। यह सिर्फ़ वरणेश की दुनिया नहीं थी, अब यह उसकी भी दुनिया थी, और इस दुनिया के नियम भी वही बनाएगी।

    जहाँ वरणेश और अनंतरा की पहली रात शुरू होगी... एक ऐसी रात जो सिर्फ़ देह का मिलन नहीं, बल्कि दो शापित वंशों का संगम होगा। क्या अनंतरा अपनी आत्मा को बचा पाएगी, या वह भी वरणेश के क़ैद में पूरी तरह से चली जाएगी? जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड...

  • 16. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 16 काँटों की रात

    Words: 1958

    Estimated Reading Time: 12 min

    एपिसोड 16: काँटों की रात

    सगाई की रस्म खत्म होते ही हवेली की हवा में एक भारीपन छा गया। यह सिर्फ़ ठंड नहीं थी; यह सदियों से सोई हुई एक शक्ति की जागृति थी। दरवाज़ों और खिड़कियों पर लगे पुराने पर्दे हवा के बिना ही डरावनी छायाओं की तरह हिलने लगे। फर्श की दरारों से एक गाढ़ा, लाल धुआँ उठना शुरू हुआ, जिसमें सल्फर और गीली मिट्टी की गंध थी। यह धुआँ धीरे-धीरे पूरे हॉल में फैल गया, और इसके स्पर्श से दीवारों पर लगी पेंटिंग्स के रंग और भी गहरे हो गए।

    वरणेश ने अपनी उंगलियों से अनंतरा की कलाई पकड़ी। उसकी पकड़ लोहे की जंजीर जैसी थी, लेकिन उतनी ही हल्की थी। उसके स्पर्श में एक अजीब-सी सिहरन थी, जैसे ठंडी बर्फ़ के अंदर सुलगती आग। "अब यहाँ से वापस जाने का कोई रास्ता नहीं, अनंतरा," उसने फुसफुसाया। "यह सिर्फ़ हवेली नहीं, यह हमारी दुनिया का प्रवेश द्वार है। और आज रात... तू मेरी दुनिया का हिस्सा बनने वाली है।"

    अनंतरा ने अपनी नज़रें उसकी गहरी, अंधेरी आँखों से नहीं हटाईं। उसने डरने की बजाय, अपने अंदर एक नई ताकत को महसूस किया। यह वही ताकत थी जो सदियों से उसके वंश में छिपकर बैठी थी, और अब वरणेश के स्पर्श से जाग रही थी।

    जैसे ही वे सीढ़ियों की ओर मुड़े, नीचे बिछा हुआ लाल मखमली कालीन एक भयानक रूप में बदल गया। उसके रेशे कड़े, नुकीले काँटों में बदल गए। हर काँटा एक नुकीली सूई की तरह चमक रहा था, जो हर कदम पर एक धीमी, हल्की चुभन दे रहा था, मानो यह रास्ता उनके लहू से पवित्र होने की प्रतीक्षा कर रहा हो।

    “आज रात हवेली सोएगी नहीं… और न ही तू।” वरणेश ने कहा, उसकी आवाज़ हवा में एक गूँज की तरह गूँजी, जिसमें एक गहरा वादा और एक भयानक आदेश दोनों थे।


    ऊपर के कमरे में पहुँचते ही दरवाज़े अपने आप बंद हो गए, और एक तेज़ हवा के झोंके ने सभी मोमबत्तियों को बुझा दिया। लेकिन अंधेरे में भी, कमरा रोशन था। कमरे के बीचों-बीच एक विशाल, चार-पोस्टर वाला पलंग था, जिस पर गहरा लाल सिल्क का चादर बिछा था। इस चादर के नीचे, हजारों छोटे-छोटे, काले रंग के काँटे चमक रहे थे। ये साधारण काँटे नहीं थे; हर काँटे के सिरे पर एक बूँद गाढ़ा, काला लहू अटका था, जो हल्का-सा हिलने पर नीली रोशनी छोड़ता था। ऐसा लग रहा था मानो यह बिस्तर किसी भयानक, जीवित प्राणी का हिस्सा हो।

    "यह बिस्तर सिर्फ़ एक प्रतीक है, अनंतरा," वरणेश ने कहा, उसकी आवाज़ कमरे की शांति को तोड़ रही थी।
    "यह हमारी विरासत है, और इस पर लेटने से पहले जो लहू बहेगा… वही हमारे बंधन को हमेशा के लिए सील करेगा।"

    अनंतरा ने एक पल के लिए भी नहीं हिचकिचाई। उसने अपनी शादी की साड़ी का पल्लू और फिर साड़ी को धीरे-धीरे उतार दिया। उसकी नज़रों में अब कोई डर नहीं था, बल्कि एक अजीब-सी बेचैनी थी, जो वर्षों से दबी हुई प्यास को दर्शा रही थी।

    जैसे ही उसका पहला कदम बिस्तर पर पड़ा, काँटे उसकी त्वचा में हल्के-हल्के धँसने लगे। यह दर्द नहीं था, बल्कि एक अजीब-सी सिहरन थी, जैसे कोई गहरी नींद से जाग रहा हो। हर चुभन के साथ, उसकी साँस और भी तेज़ होती जा रही थी, और उसकी तीसरी आँख में वरणेश की छवि और भी साफ़, और भी गहरी होती जा रही थी। यह सिर्फ़ वरणेश नहीं था, बल्कि उसके वंश का सार था जो धीरे-धीरे अनंतरा के अस्तित्व में प्रवेश कर रहा था।


    वरणेश ने अपना काला, कफ़न जैसा लबादा धीरे से गिरा दिया। उसका शरीर इंसानी था, लेकिन उसकी पीठ पर काले, धुँधले निशान थे, जैसे किसी ने आग से उसकी त्वचा पर अपना चिह्न बनाया हो। ये निशान उसके पिछले जन्मों की कहानियाँ सुना रहे थे, हर एक दाग एक नए दर्द और एक नई प्यास का प्रतीक था।

    उसने अपने हाथ अनंतरा की गर्दन पर हल्के से रखे। उसकी उंगलियों के नीचे उसकी नाड़ी तेज़ धड़क रही थी, एक जंगली जानवर की तरह। काँटे अब दोनों के जिस्म में धँस रहे थे, लेकिन दर्द की जगह एक मीठा नशा फैल रहा था। यह नशा उनके लहू की पुरानी यादों को जगा रहा था, जो एक-दूसरे को सदियों से पहचानते थे।

    वरणेश के होंठ अनंतरा के होंठों से छुए, और जैसे ही उनके लहू का स्वाद मिला, कमरे की सारी मोमबत्तियाँ एक साथ बुझ गईं। हवा में एक अजीब-सी खुशबू फैल गई, जो गुलाब और खून का मिश्रण थी। "तेरा स्वाद… प्यास बुझाता नहीं, बढ़ाता है," वरणेश की आवाज़ उसकी त्वचा पर कंपकंपी छोड़ गई।


    जैसे ही उनके लहू, साँसें और आत्माएँ एक-दूसरे से मिल रही थीं, अनंतरा की तीसरी आँख पूरी तरह खुल गई। और उसने देखा— उनका मिलन केवल इस रात का नहीं, बल्कि आने वाले जन्मों का है। उसने हर जन्म में खुद को वरणेश के साथ देखा, उन्हीं काँटों के बिस्तर पर, उसी हवेली में, और उसी वचन के साथ। हर जन्म में वे एक-दूसरे से मिलते थे, और हर जन्म में उनकी कहानी वही रहती थी— प्यास, दर्द और एक असीम प्रेम।

    वरणेश उसके कान के पास झुककर बोला: “आज तू मेरी है… और हर जन्म में रहेगी। चाहे तेरा दिल चाहे या न चाहे।”

    अनंतरा ने होंठों पर एक हल्की-सी मुस्कान लाकर फुसफुसाया: “और तू… मेरा।”

    उस पल, बिस्तर के सारे काँटे लाल हो गए, जैसे वे भी उनके लहू से भर गए हों। हवेली की छत से लाल बूँदें टपकने लगीं, जो फर्श पर गिरकर फूलों में बदल रही थीं। हवेली की आत्मा भी इस संगम की गवाह बन गई थी, और अब वह हमेशा के लिए जीवित रहने वाली थी।

    रात का अंत नहीं हुआ था, बल्कि उनकी शापित यात्रा की असली शुरुआत हुई थी। हवेली के हर कमरे में, बंद दरवाज़ों के पीछे, उनकी साँसों और लहू की गूँज फैल रही थी, जो हवेली में मौजूद हर आत्मा को एक नया जीवन दे रही थी।



    "प्यार अगर लहू से पला हो, तो उसे तोड़ने के लिए मौत भी कई बार मरनी पड़ती है।"

    रात का पहला पहर बीत चुका था। बाहर का चाँद लाल था, जैसे उसने भी हवेली के अंदर हो रहे मिलन को देखा हो और उसका रंग बदल गया हो। अनंतरा अभी भी काँटों के बिस्तर पर लेटी थी, उसके जिस्म पर हुई हर चुभन अब एक शांत, मीठे दर्द में बदल गई थी। वरणेश उसके पास, उसकी साँसों को महसूस करता हुआ बैठा था। कमरे में हवा एकदम ठहरी हुई थी, मानो प्रकृति भी इस भयानक शांति को भंग नहीं करना चाहती।

    लेकिन हवेली के बाकी हिस्सों से धीमी-धीमी कराहें आ रही थीं—जैसे कोई औरतें दर्द में गा रही हों, और उनकी आवाज़ में जलन और आक्रोश टपक रहा हो। यह सिर्फ़ आवाज़ें नहीं थीं, बल्कि वर्षों से दबी हुई ईर्ष्या और घृणा की गूँज थी।

    वरणेश की आँखें अचानक बदल गईं—काले सागर जैसी पुतलियों में लाल लहरें उठीं। उसने अपना सिर उठाया, उसकी नज़रें दरवाज़े पर टिक गईं।

    “वे जाग गईं… लाल परछाइयाँ। हवेली की वो आत्माएँ… जो कभी मेरी दुल्हन बनने का सपना देखती थीं।” उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी बेचैनी थी, जो उसके डर को नहीं, बल्कि उसके अधिकार को दर्शा रही थी।


    अनंतरा तुरंत उठ बैठी। उसकी तीसरी आँख की आभा और भी तेज़ हो गई। उसने देखा, साए सच में हिल रहे थे—जैसे दीवारों से बाहर आने के लिए तड़प रहे हों। उनके आकार औरतों जैसे थे… पर चेहरे बिना आँखों के, सिर्फ़ काले गड्ढों के। हर साया एक दुल्हन की तरह सजे हुए था, लेकिन उनके कपड़ों पर लहू के दाग़ थे, जैसे वे अपनी ही शादी में मरी हों।

    अचानक, एक परछाई बिजली की तरह दरवाज़े के नीचे की दरार से अंदर घुसी और अनंतरा की कलाई पकड़ ली। उसका स्पर्श बर्फ़ से भी ज़्यादा ठंडा था, और जहाँ उसने छुआ, वहाँ त्वचा पर काले निशान उभर आए। परछाई ने उसकी कलाई को इस कदर दबाया कि अनंतरा की साँस रुकने लगी।

    वरणेश ने एक ही झटके में उस परछाई को दूर दीवार पर दे मारा, लेकिन उसकी चीख पूरे हवेली में गूँज उठी। दीवार पर एक काले रंग का धब्बा बन गया, जैसे किसी ने अपनी आत्मा को वहाँ छाप दिया हो।
    वरणेश ने अनंतरा की ओर देखा—उसकी आँखों में चिंता नहीं, बल्कि एक गहरी चेतावनी थी।

    “ये सिर्फ़ तुझे डराने नहीं आईं… ये तेरे लहू का एक कतरा चाहती हैं, ताकि हमारा बंधन टूट जाए। हमारा लहू मिला है, और यही इन्हें सबसे ज़्यादा डरता है।”

    अनंतरा ने काँटों से चुभी अपनी उँगली उठाई, और काले-लाल खून की एक बूँद हवा में गिराई। यह खून सिर्फ़ उसका नहीं था, बल्कि वरणेश का भी था। बूँद ज़मीन पर गिरते ही, परछाइयाँ पागलों की तरह उस पर झपट पड़ीं, जैसे भूखे कुत्ते किसी हड्डी पर।

    लेकिन बूँद मिट्टी में समाते ही, एक लाल आग की लपट फूट पड़ी। यह आग शांत नहीं थी, बल्कि गुस्से और शक्ति से भरी हुई थी। तीन परछाइयाँ इस आग में झुलस गईं और राख में बदल गईं। उनकी भयानक चीखें पूरे कमरे को हिला रही थीं।

    बाकी परछाइयाँ अब सीधे अनंतरा के दिमाग़ में घुसने लगीं। उनकी आवाज़ें उसके कानों में नहीं, बल्कि सीधे उसके आत्म-बोध में गूँज रही थीं। उसकी तीसरी आँख के भीतर, उसे अपने ही पिछले जन्म के दृश्य दिखने लगे—जहाँ वो कभी वरणेश की दुल्हन नहीं, बल्कि उसकी दुश्मन थी। उसने देखा कि वह हर बार वरणेश से लड़ी, और हर बार हारी। और उन जन्मों में, वही परछाइयाँ उसे बचाने की कोशिश कर रही थीं।

    “देख… ये तुझसे झूठ बोल रहा है। वरणेश तेरा वर नहीं, तेरा विनाश है।” एक परछाई की आवाज़ उसके दिमाग़ में गूँजी। "इसका प्यार सिर्फ़ तेरे लहू के लिए है, ताकि इसका शाप खत्म हो सके। इसने हर जन्म में तुझे इस्तेमाल किया है।"

    अनंतरा की साँसें तेज़ होने लगीं, माथे पर पसीना, और उसकी नाड़ी काँपने लगी। क्या यह सच था? क्या वरणेश का प्रेम सिर्फ़ एक धोखा था?

    वरणेश ने उसका चेहरा थामकर कहा—उसकी आँखें अब एक गहरी, लाल चमक से भरी थीं।

    “मेरी आँखों में देख, अनंतरा। इन परछाइयों की आवाज़ें मत सुन। ये सिर्फ़ अपनी हार और अपनी जलन को तेरे दिमाग़ में भर रही हैं। अगर तू मुझे छोड़ने की सोच रही है, तो ये रात… तेरी आख़िरी होगी।”

    उसकी पकड़ में प्यार और खतरे का नशा एक साथ था। यह सिर्फ़ एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक वादा था।

    अनंतरा ने उसकी आँखों में झाँकते हुए धीरे से कहा, उसकी आवाज़ अब शांत और दृढ़ थी।

    “अगर तू मेरा विनाश है… तो मैं अपने हाथों से अपनी किस्मत लिखूँगी। लेकिन ये परछाइयाँ? इन्हें पहले जलाऊँगी।”

    उसने अपनी तीसरी आँख पूरी तरह खोली। एक शक्तिशाली ऊर्जा उसके शरीर से निकली और कमरे में फैल गई। हवेली की सारी मोमबत्तियाँ काली लौ में बदल गईं, और लौ ने परछाइयों को जकड़ना शुरू कर दिया। उनकी चीखें हवेली की छत को हिला रही थीं, जैसे कोई भयानक तूफान आया हो।

    वरणेश ने उसके कान में फुसफुसाया—
    “अब तू सिर्फ़ मेरी दुल्हन नहीं… मेरी रानी है।”

    कमरे की दीवारों पर लाल रेखाएँ उभर आईं, जो धड़क रही थीं—जैसे हवेली की धड़कन उनके लहू के साथ चल रही हो। यह हवेली अब उनकी दासी थी, और उनकी शक्ति ही उसकी शक्ति थी।

    परछाइयाँ राख बन चुकी थीं, लेकिन हवेली शांत नहीं हुई। दूर से, एक दरवाज़ा अपने आप खुला… और उसके पार, एक सीढ़ी नीचे अंधेरे में जाती थी।

    वरणेश ने कहा—
    “नीचे… वो है जो इन परछाइयों से भी ज़्यादा ख़तरनाक है। वो शैतान जिसका ख़ून मेरी नसों में दौड़ता है, और जिसने हमारे बंधन को लिखा है।”

    अनंतरा की मुस्कान गहरी हो गई। उसकी आँखों में अब कोई डर नहीं था, सिर्फ़ एक भयानक जिज्ञासा थी।
    “तो चल… देखते हैं।”


    आगे जब वरणेश और अनंतरा हवेली के नीचे उतरेंगे… जहाँ उनकी किस्मत को बाँधने वाला असली शैतान इंतज़ार कर रहा है।
    क्या उनका प्यार इस सबसे बड़ी परीक्षा को पार कर पाएगा?
    क्या आप जानना चाहेंगे कि हवेली के नीचे उन्हें क्या मिलेगा और शैतान का असली रूप क्या है?

  • 17. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 17 लाल परछाइयाँ

    Words: 1924

    Estimated Reading Time: 12 min

    एपिसोड 17: लाल परछाइयाँ

    रात का पहला पहर गहराते ही, हवेली की हर एक ईंट में दबी हुई सदियों पुरानी कहानियाँ साँस लेने लगीं। अनंतरा का शरीर काँटों के बिस्तर पर था, पर उसकी आत्मा वरणेश की धड़कनों के साथ तालमेल बिठा रही थी। कमरे में हवा ठहरी हुई थी, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे रोककर रख रही हो। पर बाहर, हवेली के गलियारों में, एक अजीब-सी सिम्फनी शुरू हो चुकी थी।

    यह आवाज़ें किसी इंसानी गले से नहीं निकली थीं; ये एक घुटन, एक गहरी जलन और एक दबी हुई लालसा की कराहें थीं, जो हवेली की दीवारों से रिसकर आ रही थीं। ऐसा लग रहा था मानो कोई औरतें दूर कहीं गा रही हों, पर उनकी हर धुन में एक इंतक़ाम का ज़हर मिला हुआ हो।

    वरणेश की आँखें अचानक बदल गईं। उनकी गहरी, काली पुतलियों में अचानक लाल लहरें उठने लगीं, जैसे किसी शांत सागर में लावा उबल रहा हो। यह सिर्फ़ एक चेतावनी नहीं थी, यह एक पहचान थी।

    "वे जाग गईं… लाल परछाइयाँ," वरणेश की आवाज़ में एक ख़ौफ़नाक गंभीरता थी। "हवेली की वो आत्माएँ… जो कभी मेरी दुल्हन बनने का सपना देखती थीं।"

    अनंतरा ने वरणेश की बात पर दरवाज़े की ओर देखा। उसकी साँसें रुक गईं। साए सच में हिल रहे थे। वे सिर्फ़ दीवारों पर पड़ती परछाइयाँ नहीं थीं, बल्कि दीवारों से बाहर आने की कोशिश कर रही थीं। उनके आकार औरतों जैसे थे, उनकी आकृति में एक अजीब-सी खूबसूरती छिपी थी, पर उनके चेहरे बिना आँखों के, सिर्फ़ काले, डरावने गड्ढों के थे, जो देखकर ही रूह काँप जाए।

    अनंतरा के मन में सवाल उठा, "ये कौन हैं? और ये क्या चाहती हैं?"

    वरणेश ने बिना कुछ कहे अनंतरा के सवाल का जवाब दिया। "ये वो हैं जो मुझसे सिर्फ़ एक रिश्ता चाहती थीं। मगर मेरी किस्मत में तो सिर्फ़ तुम थीं। इन्हीं की लालसा ने इन्हें हवेली की दीवारों में कैद कर दिया है।"


    अचानक एक परछाई बिजली की तरह दरवाज़े से गुज़री और अनंतरा की कलाई पर झपट पड़ी। उसका स्पर्श बर्फ़ से भी ठंडा था, और जहाँ-जहाँ उसने छुआ, वहाँ-वहाँ की त्वचा पर काले निशान उभर आए। अनंतरा दर्द से चीखने लगी। यह सिर्फ़ शारीरिक दर्द नहीं था, यह एक आत्मा का दर्द था। वरणेश ने एक ही झटके में उस परछाई को दीवार पर दे मारा, लेकिन उसकी चीख पूरे हवेली में गूँज उठी। यह एक ऐसी चीख थी, जो नर्क के दरवाज़े खोल दे। परछाई फिर से उठ खड़ी हुई, और इस बार वह वरणेश की ओर गुस्से से देखने लगी।

    वरणेश ने अनंतरा को अपने पास खींचते हुए कहा, "ये सिर्फ़ तुझे डराने नहीं आईं… ये तेरे लहू का एक कतरा चाहती हैं, ताकि मेरे और तेरे बीच का बंधन हमेशा के लिए टूट जाए।"

    अनंतरा ने अपने काँटों से चुभी हुई उँगली उठाई, जिसपर काले-लाल रंग का खून की बूँद टिकी हुई थी। उसने बिना डरे वो बूँद हवा में गिराई। बूँद ज़मीन पर पड़ते ही, परछाइयाँ पागलों की तरह उसपर झपट पड़ीं, जैसे कोई भूखे जानवर हों। वे सब उस एक बूँद को पाना चाहती थीं। लेकिन जैसे ही बूँद मिट्टी में समाई, एक लाल आग की लपट फूट पड़ी। वो आग परछाइयों के लिए मौत का पैगाम थी। तीन परछाइयाँ उसी पल राख में बदल गईं। उनकी बची हुई चीखें भी आग की लपटों में जल गईं।

    बाकी बची हुई परछाइयाँ ज़्यादा चालाक थीं। उन्होंने इस बार अनंतरा के शरीर को नहीं, बल्कि उसके दिमाग़ को निशाना बनाया। वे उसकी तीसरी आँख के भीतर घुस गईं, और उसे अपने ही पिछले जन्मों के दृश्य दिखाने लगीं।

    अनंतरा अपनी ही आँखों से देख रही थी, जहाँ वो कभी वरणेश की दुल्हन नहीं, बल्कि उसकी सबसे बड़ी दुश्मन थी। एक जन्म में, वो एक शक्तिशाली जादूगरनी थी, जिसने वरणेश के साम्राज्य को तबाह करने की कसम खाई थी। दूसरे में, वो एक राजकुमारी थी, जिसे वरणेश ने उसके अपने ही पिता के सामने मार डाला था। और उन जन्मों में, वही लाल परछाइयाँ, जो अब उसे मारना चाहती थीं, उसे बचाने की कोशिश कर रही थीं।

    एक परछाई की आवाज़ उसके दिमाग़ में गूँजी, "देख… ये तुझसे झूठ बोल रहा है। वरणेश तेरा वर नहीं, तेरा विनाश है। वह सिर्फ़ तुझसे अपना इंतक़ाम लेना चाहता है।"
    अनंतरा की साँसें तेज़ होने लगीं, माथे पर पसीना और उसकी नाड़ी काँपने लगी। उसे लगा जैसे उसकी आत्मा दो टुकड़ों में बँट रही है — एक जो वरणेश से प्यार करती है, और दूसरी जो उससे नफ़रत करती है।

    वरणेश ने अपने प्यार और गुस्से के साथ उसका चेहरा थामा। उसकी पकड़ में एक अजीब-सा जादू था। उसने अनंतरा को अपनी आँखों में देखने के लिए मजबूर किया।
    "मेरी आँखों में देख, अनंतरा। अगर तू मुझे छोड़ने की सोच रही है, तो ये रात… तेरी आख़िरी होगी।"
    उसकी आवाज़ में एक अजीब-सा आकर्षण था, जिसमें प्यार और ख़तरा एक साथ मिला हुआ था।

    अनंतरा ने वरणेश की आँखों में झाँकते हुए धीरे से कहा, "अगर तू मेरा विनाश है… तो मैं अपने हाथों से अपनी किस्मत लिखूँगी। लेकिन ये परछाइयाँ? इन्हें पहले जलाऊँगी।"

    उसने अपनी तीसरी आँख पूरी तरह से खोल दी, और जैसे ही उसने ऐसा किया, कमरे की सारी मोमबत्तियाँ काली लौ में बदल गईं। वह लौ सिर्फ़ परछाइयों को ढूंढ रही थी। उस काली लौ ने उन परछाइयों को जकड़ना शुरू कर दिया। परछाइयों की चीखें हवेली की छत को हिला रही थीं, ऐसा लग रहा था मानो छत ही दरक जाएगी।

    वरणेश ने उसके कान में फुसफुसाया, "अब तू सिर्फ़ मेरी दुल्हन नहीं… मेरी रानी है।"

    उसकी आवाज़ में गर्व और प्यार था। उसी पल, कमरे की दीवारों पर लाल रेखाएँ उभर आईं। वे रेखाएँ धड़क रही थीं, जैसे हवेली की धड़कन उनके लहू के साथ चल रही हो।


    परछाइयाँ राख बन चुकी थीं, लेकिन हवेली शांत नहीं हुई। दूर से, एक दरवाज़ा अपने आप खुला, और उसके पार, एक सीढ़ी नीचे अंधेरे में जाती थी। यह अंधेरा सिर्फ़ खालीपन नहीं था, बल्कि एक नए ख़तरे की निशानी थी।
    वरणेश ने कहा, "नीचे… वो है जो इन परछाइयों से भी ज़्यादा ख़तरनाक है।"

    अनंतरा की मुस्कान गहरी हो गई। उसकी आँखों में अब कोई डर नहीं था, सिर्फ़ एक नई चुनौती का इंतज़ार था।
    "तो चल… देखते हैं।"

    क्या वरणेश और अनंतरा इस नई चुनौती का सामना कर पाएँगे? और क्या यह नई चुनौती सच में लाल परछाइयों से ज़्यादा ख़तरनाक होगी?


    वरणेश की गहरी, मोहक आवाज़ अनंतरा के कानों में गूँज रही थी, “नीचे जाने वाली हर सीढ़ी, तुझे ज़िंदगी से एक कदम दूर और मेरी बाँहों में एक कदम गहराई तक ले जाएगी।” यह सिर्फ एक वादा नहीं, बल्कि एक घोषणा थी। एक ऐसा वादा जिसमें एक नया डर, एक नया रोमांच और एक नई दुनिया की दस्तक थी।

    वे दोनों उन पत्थर की सीढ़ियों पर चल रहे थे, जिन पर अजीब-सा लहू का दाग़ फैला हुआ था— सूखा नहीं, बल्कि जैसे अभी-अभी टपका हो। हवा में ताज़े खून की गंध थी, जो अनंतरा के अंदर एक अजीब-सी उत्तेजना पैदा कर रही थी। दीवारों में दरारों से लाल धुंआ निकल रहा था और एक ठंडी फुसफुसाहट उनके कानों में आ रही थी, जैसे कि कोई अदृश्य ताकत उन्हें कुछ कहना चाहती हो।

    अनंतरा ने अपना हाथ वरणेश के हाथ में डाला, पर उसने महसूस किया कि उसकी हथेलियाँ गर्म नहीं, बल्कि जलन भरी थीं। जैसे कि वह भीतर से आग में जल रहा हो। यह सिर्फ उसका शरीर नहीं, बल्कि उसकी आत्मा थी जो अनंतरा के साथ एक नए बंधन को बनाने के लिए बेचैन थी।

    अनंतरा ने उस अनदेखे खतरे की ओर इशारा करते हुए पूछा, "यहाँ नीचे क्या है?"

    वरणेश की हल्की मुस्कान में एक शैतानी चमक थी। "वो... जिससे मिलने के बाद, तू फिर ऊपर नहीं जाना चाहेगी।"


    सीढ़ियों के अंत में एक विशाल पत्थर का दरवाज़ा था। यह सिर्फ एक दरवाजा नहीं, बल्कि एक दुनिया से दूसरी दुनिया में जाने का प्रवेश द्वार था। उस पर असंख्य आँखों के प्रतीक उकेरे हुए थे। हर आँख लाल रोशनी में चमक रही थी और उन आँखों के बीच एक सिंहासन का चित्र था, जिस पर बैठा हुआ चेहरा धुंधला था। यह चित्र सिर्फ एक संकेत नहीं था, बल्कि भविष्य की एक भविष्यवाणी थी।

    वरणेश ने बिना कुछ सोचे अपनी हथेली चीरकर दरवाज़े पर खून लगाया। जैसे ही खून उस पर लगा, दरवाज़ा कराहते हुए खुला और एक काली लपट अंदर से बाहर निकली, जैसे किसी ने सदियों से उस लपट को दबा कर रखा हो। उस लपट में एक अजीब सी गंध थी, जो न तो किसी जलते हुए पदार्थ की थी और न ही किसी जीवित प्राणी की। वह एक ऐसी गंध थी, जो सिर्फ नर्क में ही महसूस की जा सकती थी।


    अंदर, पत्थरों का एक गोल आँगन था, जिसके बीच में काले पानी का झील जैसा कुंड था। उस कुंड के पानी में एक अजीब सी गहराई थी, जो न सिर्फ दुनिया को बल्कि अनंतरा के भीतर की दुनिया को भी दिखा रहा था। अनंतरा ने उस पानी में देखा, तो उसे अपना चेहरा नहीं, बल्कि अपने पिछले जन्म का चेहरा दिख रहा था। उसमें वह दुल्हन नहीं, बल्कि एक युद्ध में खून से लथपथ योद्धा थी, और वरणेश उसका सबसे बड़ा दुश्मन था, उसका शिकारी।

    अनंतरा कंपते हुए स्वर में बोली, "ये... मैं?"

    वरणेश धीरे-धीरे उसके पीछे आता हुआ बोला, "हाँ... तू। और तब भी तू मेरी थी। मैंने तुझे मारा नहीं था... मैंने तुझे अपने पास रखा था, मौत में भी।"

    उसकी साँसें अनंतरा की गर्दन को छू रही थीं, और उसकी उँगलियाँ उसके कमर के पीछे जा चुकी थीं। अनंतरा का दिल तेज़ धड़कने लगा - डर और आकर्षण का नशा एक साथ। यह एक ऐसा एहसास था, जो उसे पहले कभी नहीं हुआ था।


    कुंड के पानी से एक आकृति उठी। वह लंबी और धुँधली थी, काले घूँघट में ढकी हुई थी। उसकी आवाज़ में हज़ारों कब्रों की गूँज थी, जो एक साथ बोल रही थीं। "वरणेश... तू अपनी दुल्हन को अधोलोक में लाया है। यहाँ, हर रिश्ता खून से नहीं... आत्मा से बंधा जाता है।"

    वरणेश ने अनंतरा की ठोड़ी उठाई और उसकी आँखों में देखा। "अगर तू यहाँ 'हाँ' कह दे... तो ऊपर की दुनिया हमारे लिए ख़त्म हो जाएगी। तू मेरी रानी होगी... हमेशा के लिए। चाहे मौत भी आ जाए।"

    अनंतरा की साँसें भारी थीं, उसे लगा कि अगर उसने हाँ कहा तो उसकी रूह भी वरणेश की हो जाएगी। पर एक हिस्सा जो अब तक बचा हुआ था, वह भी खो जाएगा। यह एक ऐसा फैसला था, जिसे कोई भी इंसान नहीं ले सकता था।


    अनंतरा ने धीरे-धीरे मुस्कुराया और कहा, "अगर मेरा नाश तुझसे बंधा है... तो मैं खुद उस आग में कूदूँगी।"

    वरणेश ने बिना एक शब्द कहे, उसके होंठों को अपने होंठों में बंद कर लिया। चुंबन इतना गहरा और दर्दभरा था कि कुंड का पानी भी उबलने लगा, और अधोलोक की दीवारों से लाल लपटें फूट पड़ीं। उस चुंबन में सिर्फ प्यार नहीं, बल्कि एक नया बंधन, एक नई दुनिया और एक नया जीवन था।

    घूँघट वाली आकृति ने अपना हाथ उठाया। उनके चारों ओर रक्त से बनी एक मुहर बन गई, जो धड़क रही थी जैसे जीवित हो।

    "वचन पूरा हुआ। अब, ये दुल्हन... सिर्फ़ तेरी है, वरणेश।"

    मुहर के बंद होते ही, अधोलोक की छत में दरार पड़ी और वहाँ से हज़ारों परछाइयाँ नीचे गिरने लगीं— वे सब अब उनके आदेश में थीं।

    वरणेश ने अनंतरा के कान में कहा, "अब तू और मैं... ऊपर की दुनिया में वापस लौटेंगे। लेकिन इस बार... हम शिकारी होंगे।"

    अनंतरा ने सिर्फ मुस्कुराया, उसकी मुस्कान में न डर था और न ही कोई संदेह। वह अब सिर्फ वरणेश की दुल्हन नहीं, बल्कि उसकी रानी थी, उसकी शिकारी थी। वे दोनों अब ऊपर की दुनिया में वापस जाने के लिए तैयार थे, एक नई दुनिया को जीतने के लिए।

  • 18. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 18 रक्त-शिकार

    Words: 1529

    Estimated Reading Time: 10 min

    एपिसोड 18 :रक्त-शिकार

    रात अपने चरम पर थी, और आसमान में काले बादल एक भयानक, शांत घेरा बना रहे थे, जैसे किसी आने वाले विध्वंस की तैयारी हो। चाँद का हल्का प्रकाश भी बादलों के पीछे दब गया था, जिससे जंगल की हर छाया और भी गहरी और रहस्यमयी लग रही थी। हवा में एक अजीब-सी गर्माहट थी, जो किसी तूफ़ान से पहले की खामोशी का एहसास करा रही थी, लेकिन यह खामोशी सिर्फ मौसम की नहीं, बल्कि उससे कहीं ज़्यादा गहरी थी— यह एक नई शक्ति के जन्म की खामोशी थी।

    वरणेश और अनंतरा, अधोलोक की गहराई से वापस लौटकर इस दुनिया के जंगल में पहुँचे थे। अनंतरा अब वह साधारण इंसान नहीं थी जो वरणेश के साथ गई थी। उसके हाथों में अब एक अजीब सी लाल चमक थी, जो उसकी उंगलियों के पोरों से निकलकर पूरे शरीर में एक धीमी, लेकिन शक्तिशाली लहर पैदा कर रही थी। यह चमक केवल एक संकेत नहीं थी, बल्कि एक नई शुरुआत थी— एक ऐसे जीवन की शुरुआत, जहाँ इंसानी कमजोरियाँ और डर का कोई स्थान नहीं था।

    अनंतरा ने चारों ओर देखा। हर पेड़, हर पत्ता, और यहाँ तक कि हवा में तैरती धूल की हर कण भी उसे कुछ नया बता रहा था। उसकी इंद्रियाँ अब बहुत ज़्यादा संवेदनशील हो चुकी थीं। "यह अजीब-सी गंध क्या है, वरणेश...?" उसने धीमी, लेकिन गहरी आवाज़ में पूछा। उसकी आवाज़ में अब पहले वाला संकोच नहीं, बल्कि एक अजीब सी निश्चितता थी।

    वरणेश ने उसके चेहरे को अपनी उंगलियों से उठाया, उसकी आँखों में देखा, जहाँ अब गहराइयाँ भरी थीं। "खून... और डर," उसने हल्के, जुनूनी स्वर में कहा। उसकी आँखों में एक ऐसी चमक थी, जो अनंतरा को अपनी ओर खींच रही थी। यह जवाब अनंतरा के भीतर की सोई हुई शिकारी को जगा रहा था, उसे उस रास्ते पर ले जा रहा था जहाँ से वापसी असंभव थी। उसके भीतर एक नया अस्तित्व जन्म ले रहा था, जिसे खून की प्यास और शक्ति की चाहत से पोषित किया जाना था।

    पेड़ों के पीछे से एक काफिला गुज़र रहा था। तीन आदमी, एक महिला और दो घोड़े। वे किसी पुरानी हवेली से चोरी करके लौट रहे थे, उनकी हरकतों में जल्दी और डर साफ़ झलक रहा था। महिला के गले में एक पुराना ताबीज़ था, जिस पर वही प्रतीक बना था, जो अनंतरा ने अधोलोक के दरवाज़े पर देखा था। यह सिर्फ एक संयोग नहीं, बल्कि एक संकेत था कि नियति उन्हें खींचकर यहाँ तक लाई थी।

    वरणेश ने अनंतरा के कान में फुसफुसाकर कहा, "वो ताबीज... हमारे दुश्मनों का है। लेकिन आज, हम सिर्फ उसे नहीं... सबको लेंगे।" उसकी आवाज़ में एक क्रूरता और जीत का मिश्रण था। उसने अनंतरा की कमर पर अपना हाथ रखा, उसके कान में साँस छोड़ते हुए कहा, "याद रख... डर और चाहत में एक ही फर्क है— डर मौत देता है, और चाहत... अमरत्व।" यह सिर्फ एक सीख नहीं, बल्कि एक नया जीवन था जो अनंतरा को मिल रहा था।

    अनंतरा ने अपनी आँखें बंद कीं और महसूस किया कि उसके कानों में हर दिल की धड़कन बहुत साफ़ सुनाई दे रही थी। हर धड़कन एक संगीत की तरह थी, जो उसे एक अनजाने, ख़तरनाक नृत्य के लिए बुला रही थी। उसका शरीर हल्का हो चुका था, लेकिन रगों में जैसे लावा बह रहा हो। वरणेश ने उसके हाथ में एक लंबा, काला खंजर रखा, जिसका धार चाँदनी में चमक रहा था। "पहला वार... तू करेगी," उसने कहा।

    जैसे ही पहला आदमी घोड़े से उतरा, अनंतरा बिजली की-सी तेज़ी से उसके सामने पहुँची और खंजर सीधा उसके गले में उतार दिया। खून की बूंदें हवा में तैर रही थीं, और अनंतरा को उनकी गर्माहट ने एक नशे-सा एहसास दिया। यह एक ऐसा नशा था, जो उसे पहले कभी नहीं हुआ था। उसका शरीर काँप रहा था, लेकिन यह काँपना डर का नहीं, बल्कि एक भयानक आनंद का था।

    वरणेश ने पीछे से उसकी कमर पकड़ी, उसके गाल पर गिरते खून की बूँद को अपनी उंगली से उठाकर उसके होंठों पर लगा दिया। "ये स्वाद... अब तेरा है," उसने कहा। अनंतरा ने बिना किसी हिचकिचाहट के उसकी उंगली को अपने होंठों में दबाया और खून का स्वाद चखा। वरणेश की आँखें पिघलते लावे-सी चमक उठीं, जैसे वह उसकी इस नई प्यास को महसूस कर रहा हो।

    उनके बीच का चुंबन इस बार सिर्फ इच्छा का नहीं था— यह शिकारी और शिकारीनी का रक्त-संधि थी। यह चुंबन सिर्फ दो लोगों के होंठों का मिलाप नहीं, बल्कि दो आत्माओं का संगम था, जो अब एक ही राह पर चलने के लिए तैयार थे।

    बाकी बचे लोगों को वरणेश ने अपनी काली लपटों से घेर लिया। उनकी चीखें जंगल की ख़ामोशी को चीर रही थीं, लेकिन अनंतरा की आँखों में अब डर नहीं... प्यास थी।
    वह अब सिर्फ वरणेश की दुल्हन नहीं, बल्कि उसकी शिकारी थी। महिला का ताबीज लेकर वरणेश ने कहा, "अब ये हमारे पास रहेगा... और इसके साथ, एक दरवाज़ा और खुलेगा।" यह सिर्फ एक ताबीज नहीं, बल्कि एक नई दुनिया का प्रवेश द्वार था, जो अब उनके लिए खुल चुका था।


    दोनों हाथ में हाथ डाले, खून से सने कपड़ों में, जंगल से निकलते हैं। पीछे ज़मीन पर सिर्फ राख और जली हुई हड्डियाँ बची थीं। वरणेश ने उसके कान में कहा, "अब तू सिर्फ मेरी दुल्हन नहीं... मेरी मौत की रानी है।" अनंतरा ने सिर्फ मुस्कुराया, उसकी मुस्कान में न डर था और न ही कोई संदेह। वह अब सिर्फ वरणेश की दुल्हन नहीं, बल्कि उसकी मौत की रानी थी, उसकी शिकारी थी। वे दोनों अब एक नई दुनिया को जीतने के लिए तैयार थे।


    रात गहराती जा रही थी, और हवेली की दीवारें अँधेरे में और भी जीवित लग रही थीं। हर ईंट, हर पत्थर में एक ऐसी कहानी थी जो सदियों से दबी हुई थी। ऐसा लग रहा था, मानो हर ईंट अनगिनत सदियों के पाप को सोखकर धड़क रही हो। यह धड़कन सिर्फ एक आवाज़ नहीं, बल्कि एक चेतावनी थी।

    अनंतरा के हाथ में वही ताबीज था, जो उसने पिछले शिकार में लिया था। उस ताबीज से एक अजीब-सी गर्माहट निकल रही थी, जो अनंतरा के भीतर की नई-नवेली शक्ति को जगा रही थी। वरणेश की उंगलियाँ उसके हाथ के ऊपर टिकी हुई थीं, मानो ताबीज को पकड़ने का हक़ भी सिर्फ उसी का हो।

    अनंतरा ने ताबीज को देखते हुए कहा, "ये ताबीज जैसे मुझे खींच रहा है..."
    वरणेश की मुस्कान में एक अजीब-सी गहराई थी।
    "क्योंकि ये तुझे वहीं ले जाना चाहता है… जहाँ तू अब रहती करती है।"


    वे हवेली के सबसे पुराने हिस्से में पहुँचे। यहाँ की हवा बासी और भारी थी, और दीवारों पर लगे कैंडल-होल्डर्स में लौ ऐसे काँप रही थी, जैसे उन्हें भी डर हो। यह जगह सिर्फ एक कमरा नहीं, बल्कि एक ऐसी दुनिया थी, जो सदियों से छिपी हुई थी। दीवार के बीच एक बड़ा चित्र टंगा था— एक महिला, जिसके गले में वही ताबीज था। वरणेश ने धीरे से चित्र को हटाया, और पीछे लोहे का दरवाज़ा नज़र आया, जिस पर काले खून के धब्बे सूख चुके थे।

    वरणेश ने कहा, "ये दरवाज़ा सिर्फ़ तब खुलेगा… जब खून जिंदा हो।" उसने अनंतरा की कलाई पकड़कर, अपनी नुकीली उंगलियों से एक हल्की कट लगाई। गर्म खून की बूँदें लोहे पर गिरीं, और अचानक दरवाज़ा साँस लेने लगा— जैसे कोई अंदर से उसे महसूस कर रहा हो।
    दरवाज़ा खुला, और भीतर से एक सड़ी-मीठी खुशबू आई। यह खुशबू खून, धूपबत्ती और सड़न का मिश्रण थी, जो किसी भी इंसान को पागल कर सकती थी। कमरे के बीच में एक विशाल पिंजरा था, और उसके भीतर एक लंबा, दुबला शरीर… जिसकी त्वचा राख जैसी धूसर थी, लेकिन आँखें जलती हुई एम्बर की तरह चमक रही थीं।
    कैदी ने मंद, करारी आवाज़ में कहा, "वरणेश… आखिर तू मुझे लेने आया।"

    वरणेश ने जवाब दिया, "नहीं, लेने नहीं… खिलाने।"

    वरणेश ने अनंतरा को आगे धकेला। कैदी की नज़र उसके गले पर टिक गई— जैसे वह देख सकता था कि उसकी नसों में क्या बह रहा है। अनंतरा ने कदम पीछे खींचे, लेकिन वरणेश की पकड़ उसकी कमर पर और कस गई।
    वरणेश ने उसके कान में कहा, "ये डर… अभी तेरी सबसे बड़ी ताकत है। इसे इस्तेमाल कर।"

    अनंतरा ने अपनी साँसें धीमी कीं, और कैदी की ओर ऐसे बढ़ी, जैसे शिकार खुद शिकारी के पास आ रहा हो। वह पिंजरे के बिल्कुल करीब पहुँची, और उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "अगर तुझे खून चाहिए… तो पहले तू मुझे पहचान।"

    कैदी के होंठ हल्की मुस्कान में फैल गए। "तू… मौत की रानी है।"

    वरणेश ने ताबीज पिंजरे के ताले में लगाया। एक गूंजती हुई चीख पूरे कमरे में भर गई, और लोहे की सलाखें पिघलकर ज़मीन पर गिरने लगीं। कैदी बाहर आया, लेकिन वह झुककर अनंतरा के पैरों को छूने लगा।
    "मैं तुम्हारा दास हूँ… रानी।"

    वरणेश की आँखें इस दृश्य पर संतोष से चमक उठीं। उसने फुसफुसाकर कहा, "अब हमारा साम्राज्य सिर्फ़ हवेली तक नहीं रहेगा… पूरी रात हमारी होगी।"

    तीनों अंधेरे गलियारे से गुजरते हैं— वरणेश, अनंतरा, और उनका नया दानव-दास। बाहर हवाओं में धूल और राख उड़ रही है, जैसे हवेली ने एक और पाप निगल लिया हो। अनंतरा अब सिर्फ वरणेश की दुल्हन नहीं, बल्कि उसकी रानी थी, और उसकी शक्ति का प्रतीक।

    क्या उनका साम्राज्य पूरी रात पर राज कर पाएगा? क्या यह नया दास उनकी शक्ति को और बढ़ाएगा या उनके लिए एक नया खतरा लेकर आएगा?

  • 19. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 19 रानी का पहला आदेश

    Words: 1548

    Estimated Reading Time: 10 min

    एपिसोड 19: रानी का पहला आदेश

    "जब रानी बोलती है, तो सिर्फ़ इंसान नहीं... अंधेरा भी झुक जाता है।"

    हवेली के मध्य भाग में, सदियों से जमी धूल और सन्नाटे को चीरते हुए, मोमबत्तियों की एक अंतहीन पंक्ति जलाई गई। हर लौ, एक छोटे से नर्क की तरह जल रही थी, जिसकी रोशनी दीवारों पर नाच रही थी, परछाइयों को और भी भयानक और विशाल बना रही थी। दीवारों पर टंगे पुराने, फटे हुए, काले परदे, और ज़मीन पर बिछी गहरी लाल मखमली चादरें, जो अब खून के रंग जैसी दिख रही थीं, यह सब कोई साधारण सभा नहीं थी। यह वह पहली रात थी जब अनंतरा, अपने नए नाम "रानी" के साथ, इस डरावनी और शानदार दुनिया की मालकिन बनकर सबके सामने आने वाली थी।

    अनंतरा, एक विशालकाय दर्पण के सामने खड़ी थी। उसकी परछाई, काले गाउन में, और भी रहस्यमयी लग रही थी। वह गाउन, किसी कोकून की तरह, उसके शरीर से चिपका हुआ था, जैसे रात ने उसे खुद से बुना हो। उसके गले में पड़ा हुआ हार, रक्त-जैसा लाल, मोमबत्तियों की रोशनी में टिमटिमा रहा था, जैसे उसमें कोई धड़कता हुआ दिल कैद हो। और उसकी आँखें... जिनमें एक अजीब सी शांति और एक जलती हुई तीसरी दृष्टि थी, जो यह बता रही थी कि अब यह अनंतरा वह नहीं रही जो कभी थी।

    वरणेश ने उसके पीछे खड़े होकर, धीरे-धीरे उसकी कमर के चारों ओर काले रेशमी धागे की बेल्ट बांधी। उसकी उंगलियाँ अनंतरा की कमर पर हल्के से घूमी, एक ऐसी स्पर्श जो उसके शरीर में एक कंपकंपी पैदा कर गया।

    वरणेश (फुसफुसाते हुए): “आज तू बोलेगी... और जो सुनेगा, वो या तो तेरे साथ होगा, या तेरे पैरों तले। याद रख, यह सिर्फ़ एक शुरुआत है। यह रात तेरी है, और ये सारी परछाइयाँ तेरे इशारों पर नाचेंगी।”

    अनंतरा ने आईने में अपनी परछाई को देखा, उसकी आँखों में एक नई चमक थी। वह अब सिर्फ़ इंसान नहीं थी, वह अब इस हवेली की रानी थी। वह खुद को उस भयानक शक्ति का अवतार मान रही थी जिसे उसने हमेशा से चाहा था।

    कक्ष में, हवेली की आत्माएँ, दानव, और वे पिशाच भी थे जिन्हें वरणेश ने सालों तक छुपा रखा था। उनकी आँखों में लालच, डर, और जिज्ञासा का एक मिश्रण था। सब एक-दूसरे से दूर, अपनी-अपनी जगहों पर खड़े थे, जैसे कि एक-दूसरे से डर रहे हों।

    पिंजरे वाला दानव, जिसे अब आज़ादी मिली थी, अनंतरा के दाईं ओर खड़ा था। उसकी विशाल काया, उसकी भयावह आँखें, और उसका मजबूत शरीर उसे एक शाही अंगरक्षक की तरह बना रहा था। वह अब एक पालतू जानवर नहीं था, बल्कि एक वफादार सेवक था।
    वरणेश ने भारी और गहरी आवाज़ में घोषणा की, “आज से, ये हवेली एक नए आदेश के अधीन है। हमारी रानी बोलेगी... और तुम सब सुनोगे।”

    मोमबत्तियों की लौ, जैसे कि किसी ने उन्हें पकड़ लिया हो, ठहर गई। हवा में एक अजीब सी चुप्पी थी, जो सिर्फ़ उनके दिलों की धड़कन से टूट रही थी। सबकी निगाहें सिर्फ़ अनंतरा पर थीं। वे देख रहे थे कि यह कौन सी रानी है जो उन्हें आदेश देने वाली है।

    अनंतरा धीरे-धीरे आगे बढ़ी। उसके कदमों की आहट संगमरमर पर ऐसे गूँज रही थी जैसे दिल की धड़कन सुनाई दे रही हो। यह सिर्फ़ उसके कदमों की आहट नहीं थी, बल्कि एक नए युग की शुरुआत थी। उसने गहरी साँस ली और कहा, “मेरा पहला आदेश... इस हवेली के बाहर जितने भी बचे हैं, चाहे वे इंसान हों, आत्मा हों, या अधमरे पिशाच हों... उनमें से एक को चुना जाएगा... और उसका दिल धड़कते हुए मेरे चरणों में लाया जाएगा।"

    कमरे में एक धीमी-सी सनसनाहट फैल गई। पिशाचों की आँखों में लालच, और आत्माओं की आँखों में डर साफ दिख रहा था। अनंतरा ने उनकी आँखों में देखा और एक शैतानी मुस्कान के साथ कहा, “यह एक शिकार नहीं... एक बलि होगी। जो भी मेरे लिए यह दिल लाएगा, वो मेरी सेना में पहला सेनापति बनेगा। और जो इंकार करेगा... उसकी आत्मा हवेली की दीवारों में हमेशा के लिए कैद कर दी जाएगी।”

    इस आदेश ने उन्हें एक ऐसे जाल में फंसा दिया था जहाँ से वे भाग नहीं सकते थे। वे जानते थे कि अगर वे इस आदेश का पालन नहीं करेंगे, तो वे हमेशा के लिए एक पिंजरे में कैद हो जाएंगे। और अगर वे इसका पालन करेंगे, तो वे रानी की सेना का हिस्सा बन जाएंगे।

    वरणेश ने उसकी ओर देखा, होंठों पर एक शैतानी मुस्कान। उसने धीरे से उसके कान के पास कहा, “तूने उन्हें डर और लालच, दोनों का स्वाद एक साथ दे दिया... यही असली राज है।”

    सभा में बैठे एक युवा पिशाच ने आगे बढ़कर कहा, “रानी... मैं तैयार हूँ।”

    अनंतरा ने उसकी आँखों में देखा और अपनी उंगली उसके गाल पर फिरा दी।

    अनंतरा (मीठी आवाज़ में): “जा... और याद रख, दिल गर्म होना चाहिए। और हाँ, अगर तू असफल हुआ, तो तेरी आत्मा इस हवेली में हमेशा के लिए भटकती रहेगी।”

    वह पिशाच झुककर प्रणाम करता है और अंधेरे में ग़ायब हो जाता है। उसकी आँखों में लालच और डर का एक अजीब सा मिश्रण था।


    बाकी सब अपनी जगह जमे रहे। तभी, पिंजरे वाला दानव धीरे से बोला, “रानी... क्या मैं भी एक दिल ला सकता हूँ?”

    अनंतरा ने उसकी ओर झुकते हुए कहा, “तू मेरे दास है... लेकिन अगर तू साबित करना चाहता है कि तू सिर्फ़ दास नहीं, बल्कि मेरी छाया है... तो जा।”

    उसकी आँखें जल उठीं और वह भी सभा से बाहर चला गया।


    सबके चले जाने के बाद, कक्ष में बस अनंतरा और वरणेश रह गए। वरणेश ने उसके ठुड्डी को हल्के से ऊपर उठाया।

    वरणेश: “ये आदेश सिर्फ़ शिकार के लिए नहीं था... था न?”

    अनंतरा मुस्कुराई, होंठों पर एक ठंडी चमक, “ये मेरे साम्राज्य का पहला इम्तिहान है... जो दिल मेरे सामने लाया जाएगा, वो सिर्फ़ मांस नहीं होगा... बल्कि सत्ता की मुहर होगा।”

    दरबार के दरवाज़े बंद हो जाते हैं। बाहर हवेली की हवा और भारी हो जाती है, जैसे रात खुद आदेश का पालन करने निकली हो। अब सवाल यह है कि कौन रानी के लिए दिल लाएगा, और कौन उसकी सत्ता को स्वीकार करेगा? और क्या रानी का साम्राज्य सच में इतना आसान होगा जितना वह सोच रही है?

    रात के तीसरे पहर, जब चाँद भी बादलों में छिप चुका था, हवेली के गहरे गलियारे में कदमों की आहट गूँजी। वह आवाज़ इतनी भारी थी कि दीवारों में कैद पुरानी आत्माएँ जागने लगीं। उनकी फुसफुसाहटें, हवा में तैरती हुई, एक अजीब सा डर पैदा कर रही थीं। वरणेश और अनंतरा, सिंहासन-सी ऊँची काली कुर्सियों पर बैठे थे। मोमबत्तियों की लौ स्थिर हो चुकी थी, जैसे साँस रोके किसी आने वाले की प्रतीक्षा कर रही हो। हवा में एक अजीब सा तनाव था, जो हर गुजरते पल के साथ और भी गहरा होता जा रहा था।

    तभी दरबार का बड़ा दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला — अंदर आया युवा पिशाच... और उसके हाथ में, काले कपड़े में लिपटा कोई छोटा, गीला सा पैकेट।

    पिशाच, जिसका नाम कबीर था, घुटनों के बल आ गया। उसकी आँखों में गर्व और डर का एक अजीब सा मिश्रण था। उसने अनंतरा को झुककर प्रणाम किया और कहा, “रानी... आपका पहला आदेश पूरा हुआ।”

    अनंतरा ने सिर्फ़ हाथ का इशारा किया — पिशाच घुटनों के बल आ गया और कपड़ा खोला। अंदर से ताज़ा धड़कते दिल की गंध कमरे में फैल गई — गर्म खून और लोहा जैसी महक। दिल अभी भी हल्के-हल्के धड़क रहा था... धक... धक... धक... उसकी हर धड़कन संगमरमर के फ़र्श में कंपन पैदा कर रही थी।

    वरणेश ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “ये सिर्फ़ दिल नहीं... ये एक सन्देश है।”


    अनंतरा ने दिल को अपनी हथेली में लिया। जैसे ही उसकी उँगलियाँ उस पर लिपटीं, उसकी आँखों में किसी का चेहरा कौंधा — एक औरत... जो कभी उसकी दोस्त थी। उसकी साँसें भारी हो गईं।

    अनंतरा (फुसफुसाते हुए): “ये... ये तो...”

    वरणेश ने उसके हाथ पर अपनी ठंडी उँगलियाँ रखीं — “हाँ, ये दिल किसी अजनबी का नहीं... बल्कि तेरे अतीत का है।” कमरा जैसे और ठंडा हो गया। मोमबत्तियाँ एक-एक करके बुझने लगीं।


    अचानक, ज़मीन के नीचे से एक गहरी गुर्राहट आई। दीवारों पर काले साये रेंगने लगे और दिल से धुआँ उठने लगा — जैसे हवेली खुद उस दिल को निगलना चाहती है। अनंतरा ने दिल को हवा में उठाया। उसकी नसों में काले साये उतरते गए... उसकी आँखों की पुतलियाँ फैल गईं, और होंठों पर एक ठंडी, संतोष भरी मुस्कान उभरी।

    अनंतरा (ठंडी आवाज़ में): “अगर अतीत ने मुझे चुनौती दी है... तो मैं उसे जला दूँगी।”

    दिल अचानक उसके हाथ में राख बनकर बिखर गया।

    लेकिन जैसे ही राख ज़मीन पर गिरी, हवेली की दीवार पर खून से लिखा एक वाक्य उभरा — "रानी... तेरे अपने ही तुझे गिराएँगे।"

    वरणेश ने उस वाक्य को पढ़ते हुए धीमे से कहा, “लगता है, किसी ने ये दिल सिर्फ़ तुझे खुश करने के लिए नहीं लाया...”

    अनंतरा ने सभा की ओर देखा — वहाँ खड़े बाकी पिशाच अपनी नज़रें झुका चुके थे... लेकिन एक चेहरा — वही पिंजरे वाला दानव — उसे घूर रहा था, बिना पलक झपकाए।

    दिल की राख हवेली की हवा में मिलती है। बाहर तूफ़ान शुरू हो चुका है... और हवेली के हर कोने में बस एक फुसफुसाहट गूँज रही है — "रानी का अगला आदेश... खून में लिखा जाएगा।"

    क्या रानी अनंतरा इस विश्वासघात का बदला ले पाएगी?
    क्या पिंजरे वाले दानव का असली मकसद क्या है?
    और क्या वरणेश का असली खेल क्या है?

  • 20. Raktbandhan: The Devil’s Bride - Chapter 20 शिकारी का पहला शिकार

    Words: 1652

    Estimated Reading Time: 10 min

    एपिसोड 20 : शिकारी का पहला शिकार

    रात अब हवेली में एक अजीब सन्नाटा छोड़ गई थी। यह सन्नाटा किसी शांति का नहीं, बल्कि एक आने वाले तूफ़ान की खामोशी थी। दिल की राख हवा में घुल चुकी थी, मगर उसकी गंध अब भी अनंतरा की नसों में चिपकी थी, एक कड़वी याद की तरह।

    वरणेश खिड़की के पास खड़े तूफ़ान को देख रहे थे, जिसकी हर बूँद में कोई राज़ छुपा था। पीछे से अनंतरा के कदमों की आहट आई – वही कदम, जिनसे ज़मीन भी वफ़ादारी में झुकना चाहती थी। लेकिन आज उन कदमों में एक नई कठोरता थी।

    अनंतरा: "वरणेश... मुझे पता है, यहाँ कोई है जो मुझे गिराने की कोशिश कर रहा है।"
    वरणेश ने खिड़की से नज़रें हटाईं, उनकी आँखों में तूफ़ान की परछाई थी।

    वरणेश (धीरे से): "और मुझे पता है, वो अब और इंतज़ार नहीं करेगा।"

    मोमबत्ती की लौ काँपी – जैसे दीवारें भी सुन रही हों, हर फुसफुसाहट और हर साँस को महसूस कर रही हों। हवेली का हर कोना अब एक अखाड़ा बन चुका था।

    सभा के लिए सब बुलाए गए, लेकिन इस बार माहौल बिल्कुल अलग था। सबके बीच, पिंजरे वाला दानव, अब बिना जंजीरों के, रानी के सामने खड़ा था। उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, सिर्फ़ एक ठंडी चुनौती थी, एक गहरी मुस्कान के पीछे छिपी हुई। वह जानता था कि उसकी आज़ादी की कीमत चुकानी होगी, लेकिन वह कीमत चुकाने के लिए तैयार था।

    दानव: "रानी... मैंने भी एक दिल लाया है।"

    उसने अपनी हथेली खोली – अंदर एक और दिल था, मगर इस बार वह दिल ठंडा और काला हो चुका था, जैसे जीवन से पहले ही काट लिया गया हो। वह दिल, जो कभी धड़कता होगा, अब एक पत्थर की तरह कठोर था।

    अनंतरा (भौंह उठाते हुए): "ये किसका है?"

    दानव (हल्की मुस्कान के साथ): "तेरी सेना के एक सेनापति का।"

    सभा में एक धीमी दहशत दौड़ गई। हर कोई अपनी जगह पर सिहर गया। कौन था वह सेनापति? क्या वह अगला निशाना होगा?

    वरणेश (कठोर स्वर में): "तूने मेरे आदेश के बिना किसी को मारा?"

    दानव: "मैं तेरी रानी की रक्षा कर रहा था... या शायद, मैं देखना चाहता था कि रानी मेरी रक्षा करती है या नहीं।"
    उसकी आवाज़ में व्यंग्य था। वह रानी को सिर्फ़ परख नहीं रहा था, बल्कि उसे चुनौती दे रहा था। वह यह साबित करना चाहता था कि अब वह सिर्फ़ एक मोहरा नहीं, बल्कि खेल का एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है।


    रानी धीरे से उठी और दानव के पास पहुँची। उसकी चाल में एक अजीब सम्मोहन था। उसने अपनी उँगली उसकी गर्दन से होती हुई जबड़े तक खींची – यह स्पर्श गर्म नहीं, बल्कि बर्फ जैसा ठंडा था। यह स्पर्श वासना का नहीं, बल्कि सत्ता का था।

    अनंतरा (धीरे फुसफुसाते हुए): "अगर तूने मुझे परखने की कोशिश की... तो याद रख, मैं तुझे या तो अपनी छाया बनाऊँगी... या अपनी राख।"

    दानव मुस्कुराया, और पहली बार, उसने रानी का हाथ पकड़ लिया – ऐसा करने की हिम्मत इस हवेली में किसी ने नहीं की थी। सभा में मौजूद पिशाचों ने नज़रें झुका लीं, लेकिन डर और उत्तेजना का मिश्रण कमरे में भारी हो गया। यह एक ऐसा दृश्य था जो पहले कभी नहीं देखा गया था। एक रानी और एक दानव के बीच का यह अजीब रिश्ता, हर किसी को बेचैन कर रहा था।

    अचानक दानव ने ज़ोर से रानी का हाथ झटककर पीछे हटाया। उसकी आँखों में अब कोई मज़ाक नहीं था, सिर्फ़ सच्चाई थी।

    दानव: "तू रानी है, लेकिन तेरे राज्य की जड़ें सड़ चुकी हैं। आज मैं तेरे सामने वफ़ादार हूँ... कल नहीं भी हो सकता।"

    वरणेश ने अपनी तलवार निकाली और झपटे, मगर दानव बिजली की तरह हिला – एक ही वार में, सभा में बैठे एक और पिशाच का गला उड़ा दिया। गरम खून संगमरमर पर फैल गया और मोमबत्ती की लौ लाल हो उठी। यह सिर्फ़ एक हत्या नहीं थी, बल्कि एक चेतावनी थी।

    अनंतरा (क्रोध से गूँजती आवाज़ में): "मेरे आदेश से पहले कोई खून नहीं बहेगा... लेकिन अब बहेगा!"
    रानी का गुस्सा एक ज्वालामुखी की तरह फट पड़ा था। उसने महसूस किया कि उसके राज्य की शक्ति डगमगा रही है, और उसे इसे तुरंत मजबूत करना होगा।

    रानी ने अपने सिंहासन के पास रखी काली तलवार उठाई और दानव की ओर बढ़ी। यह तलवार सिर्फ़ धातु नहीं, बल्कि सदियों के खून और डर की निशानी थी।

    अनंतरा: "आज से तेरी वफ़ादारी मेरे आदेश से नहीं... मेरे डर से चलेगी।"

    दोनों के बीच तलवारें टकराईं – चिंगारियाँ उड़ने लगीं। दानव के वार तेज़ थे, मगर रानी की हर चाल में वह गहरी, नियंत्रित क्रूरता थी, जो सिर्फ़ सत्ता में बैठे लोगों में होती है।

    वरणेश (सभा के बाकी पिशाचों से फुसफुसाकर): "देखते रहो... आज जो जीतेगा, वही कल तुम्हारा मालिक होगा।"

    तलवार की नोक दानव की गर्दन पर रुक गई। रानी मुस्कुराई – यह जीत नहीं थी, बल्कि एक सौदा था।
    अनंतरा: "तू ज़िंदा रहेगा... लेकिन अब तू दास नहीं, मेरा शिकारी होगा। और तेरा पहला शिकार... मेरे ही दरबार में छुपा है।"

    मोमबत्तियों की लौ फिर काँपी – हवेली ने आदेश सुन लिया था। अब खेल शुरू हो चुका था।

    रात आधी बीत चुकी थी। हवेली में सब सोए नहीं थे – बस सोने का नाटक कर रहे थे। हर परछाई में एक डर छुपा था। अनंतरा और दानव, हवेली के अँधेरे गलियारों में बिना आवाज़ के चल रहे थे, जैसे दो शिकारी अपने शिकार की तलाश में हों।

    अनंतरा (धीरे से): "याद रख... वो इंसान नहीं है। वो मेरी परछाई है... और आज हम उसे तोड़ेंगे।"

    दानव: "परछाई टूटे तो अँधेरा और गहरा हो जाता है।"
    हवा में लोहे और सड़े हुए फूलों की गंध थी – वही गंध जो सिर्फ़ गद्दार की मौत से पहले आती है। यह गंध सिर्फ़ वरणेश की नहीं थी, बल्कि उसकी गद्दारी की थी।

    दरबार के एक सुनसान हिस्से में, काले पत्थरों के बीच, वरणेश खड़ा था। वो वही था जिसे रानी अपना सबसे क़रीबी मानती थी – और आज वही उनका पहला शिकार था। उसकी आँखों में कोई पछतावा नहीं था, सिर्फ़ एक शांत स्वीकारोक्ति थी।

    दानव ने दूर से इशारा किया – वरणेश अपने हाथ में खून से सना एक पत्र पकड़े था।

    दानव (फुसफुसाकर): "तेरी वफ़ादारी के काग़ज़... किसी और के ख़ून में लिखे गए हैं।"

    अनंतरा (ठंडे स्वर में): "अब मैं देखना चाहती हूँ... जब शिकारी अपने ही को मारे तो कैसी आवाज़ आती है।"

    अनंतरा ने सीधा सामने आने के बजाय खेल शुरू किया। मोमबत्तियाँ अपने आप बुझने लगीं, दीवारों पर साये लंबी ज़ुबानें निकालने लगे। वरणेश की साँसें तेज़ हो गईं – लेकिन उसने अपनी तलवार नहीं निकाली।

    वरणेश: "अगर तुम्हें लगता है मैं गद्दार हूँ... तो मेरी आँखों में देखो और मार दो।"

    दानव हँसा – "इतना आसान नहीं... पहले डर, फिर खून।" उसने पास खड़े एक पिशाच सैनिक का गला पकड़कर दीवार पर पटका – खून का छींटा वरणेश के गाल पर गिरा। यह सिर्फ़ एक हत्या नहीं, बल्कि एक संदेश था – मौत का संदेश।

    अचानक, दानव ने बिजली की तरह झपट्टा मारा। उसकी विशाल काया से आती हुई ठंडी हवा वरणेश के रोंगटे खड़े कर गई, लेकिन वह पीछे नहीं हटा। उसने अपनी तलवार निकाली, जिसकी चमक ने अँधेरे गलियारे को चीर दिया। लेकिन तभी, रानी अनंतरा, जो अब एक निर्दयी शिकारी में बदल चुकी थी, उसके सामने आ गई। उसकी आँखों में दया का कोई निशान नहीं था, सिर्फ़ एक ठंडी, भयावह ज्वाला जल रही थी।

    "मुझे अपने ही हाथों तुझे गिराना है... ताकि पूरी हवेली जाने, मेरी दया अब मर चुकी है।" उसकी आवाज़ में एक भयानक प्रतिशोध गूँज रहा था।

    दोनों तलवारों का टकराव हुआ। धातु पर धातु की टक्कर से निकली चिंगारियों ने पूरे गलियारे को क्षण भर के लिए रोशन कर दिया। दानव एक विशाल परछाई की तरह उनके चारों ओर घूमता रहा, जैसे एक शेर अपने शिकार को घेरता है, उसके हर वार का रास्ता रोकता हुआ। यह एक खेल था, जिसमें रानी और दानव मिलकर वरणेश को फंसा रहे थे
    एक पल आया जब रानी ने अपनी तलवार की नोक से वरणेश की तलवार को मोड़ दिया। उसी क्षण, दानव ने उसकी कलाई को जकड़ लिया। वरणेश की पकड़ ढीली हुई और उसकी तलवार ज़मीन पर गिर गई। उसकी कलाई से खून का पहला मोटा कतरा टपका और हवेली की पुरानी, नक्काशीदार फ़र्श ने उसे जैसे सोख लिया। यह सिर्फ़ खून नहीं था, बल्कि वरणेश की उम्मीदों का पहला कतरा था।

    वरणेश घुटनों के बल गिरा, उसकी आँखों में दर्द की जगह एक अजीब सी शांति थी। जैसे वह अपनी हार को नहीं, बल्कि किसी और सच्चाई को देख रहा हो। उसने मुस्कुराते हुए रानी की आँखों में सीधा देखा।

    "मैं अकेला नहीं हूँ..." उसके होंठों से निकले ये आखिरी शब्द एक चेतावनी थे, एक वादा थे।

    इससे पहले कि रानी कुछ समझ पाती, दानव के एक ही वार से उसका सिर धड़ से अलग हो गया। खून दीवार पर उछला और जैसे किसी अदृश्य, जादुई हाथ ने उसमें शब्द लिखे: "रानी, अगला शिकार... तू खुद है।"

    अनंतरा ने बिना भाव बदले देखा। वह न डरी, न घबराई। "तो खेल अभी खत्म नहीं हुआ..." उसने कहा। दानव मुस्कुराया, और पहली बार, उसके होंठों पर वही प्यास थी जो रानी की आँखों में थी।

    वरणेश का सिर एक लोहे के बर्तन में रखा गया, और हवेली की सबसे ऊँची मीनार पर टाँग दिया गया। उसका उद्देश्य था: दुनिया को यह बताना कि रानी के शिकारी ने अपना पहला शिकार कर लिया है। लेकिन कहानी यहाँ ख़त्म नहीं हुई थी। हवेली की छत पर एक परछाई खड़ी थी, जो अगले वार का इंतज़ार कर रही थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो बता रही थी कि असली खेल तो अब शुरू हुआ है, और यह खेल अनंतरा के जीवन का सबसे बड़ा युद्ध साबित होने वाला है।

    अब आयेगा कहानी मैं नया मोड जहाँ हवेली के भीतर एक अदृश्य हत्यारा रानी और दानव दोनों पर शिकंजा कसना शुरू करेगा... और शिकार व शिकारी की पहचान धुंधली हो जाएगी।

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहे और आपको कहानी कैसी लगी जरुर बताना। कमेंट करना ना भूले 🤗।