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Deewangi Teri 🍁🍁 "रिश्ते बनते हैं जिस्म से… या रूह से?"

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तीन अधूरी ज़िंदगियाँ… एक सवाल — क्या किसी और का दिल, किसी की रूह को पूरा कर सकता है? 💼 आर्यन राजवंश परफेक्शनिस्ट बिज़नेसमैन, जिसने रिश्तों से नाता तोड़ लिया है। मगर बहन की मौत के बाद भांजे की कस्टडी क...

Characters

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आयान नावेद रजा खान

Hero

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जोया असलम मिर्जा

Heroine

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वेद मेहरा

Hero

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मानवी

Heroine

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आर्यन राजवंश

Hero

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सानवी

Heroine

Total Chapters (41)

Page 1 of 3

  • 1. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 1

    Words: 1502

    Estimated Reading Time: 10 min

    जोया को  नींद नहीं आ रही थी।

    रह-रह कर उसे अपनी अम्मी और अब्बू की याद सताने लगती थी। ऐसा अक्सर होता था — जब नींद नहीं आती, तो वह किताबें लेकर पढ़ने बैठ जाती थी।

    लेकिन आज उसका मन पढ़ाई में भी नहीं लग रहा था।

    मन बेचैन था... और इस बेचैनी की वजह था — अयान।

    वह रिश्ता, जो उसके साथ जुड़ा हुआ था,

    लेकिन जिसका कोई मक़सद नहीं था,

    कोई मंज़िल नहीं थी,

    और शायद अब कोई मायने भी नहीं बचे थे।

    उसने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला, जो बाहर लॉन की ओर खुलता था। पूरे घर में जितने भी कमरे थे, सभी के आगे एक लंबा ब्रांड (बरामदा) था — और उसी तरह उसके कमरे के आगे भी। वह जाकर बाहर चेयर पर बैठ गई। वहां से उसके कमरे के बाहर का पूरा नज़ारा दिखाई देता था, और थोड़ी दूर पर मेन गेट भी साफ़ दिखता था।

    घर में पूरी सिक्योरिटी थी, इसलिए डर जैसी कोई बात नहीं थी।

    यह घर उसके मामू नावेद रजा ख़ान का था। नावेद मियाँ बहुत बड़े बिज़नेसमैन थे — अरबपति। उनका परिवार परंपरावादी नहीं था, बल्कि खुले विचारों वाला और आधुनिक सोच रखने वाला था। घर का माहौल बहुत ही आरामदायक और आज़ाद-ख़याल था।

    हर समय घर में सिक्योरिटी गार्ड्स तैनात रहते थे। जोया को पता था कि वह एक सुरक्षित जगह पर है, लेकिन उसके दिल में जो खालीपन था, उस पर कोई पहरा नहीं बैठ सकता था।

    तभी जोया की नज़र दूर गेट की ओर गई।

    उसे दिखा कि वहां खड़े गार्ड गेट खोल रहे थे। एक लग्ज़री गाड़ी—रेंज रोवर वेलार—तेज़ी से भीतर आ रही थी। गाड़ी देखकर ही जया समझ गई थी कि किसका आगमन हुआ है।

    वह जानती थी, ये उसी का घर है और यह उसी का लौटना है—उस घर का सबसे छोटा बेटा, आयान।

    आयान नावेद खान का तीसरे नंबर का बेटा था।

    बिलकुल बिगड़ा हुआ, बेलगाम, बेतरतीब ज़िंदगी जीने वाला लड़का। शराब, नशा, लड़कियां—शायद ही कोई बुरी आदत बची हो जिसमें वह डूबा न हो। उसके लिए ज़िंदगी बस एक मज़ाक थी।

    और सबसे दुखद बात यह थी कि जोया की किस्मत किसी तरह उससे बंध चुकी थी।

    जब अयान 20 साल का था और जया सिर्फ 16 की, तभी उनका निकाह कर दिया गया था—परिवार की मरज़ी से, पुराने संबंधों की नींव पर। यह तय हुआ था कि दोनों अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक साथ रहना शुरू करेंगे।

    मगर अयान की हरकतें ऐसी थीं कि जोया का दिल कभी भी उसे अपना हमसफ़र मान ही नहीं पाया। वह आज तक उस रिश्ते को अपने जीवन का सबसे बड़ा बोझ समझती थी—एक ऐसा बोझ जिससे वह खुद को आज़ाद करना चाहती थी... लेकिन कर नहीं पाई थी।

    ---

    अयान ड्राइवर की बगल वाली सीट से लड़खड़ाते हुए नीचे उतरा।

    वह बुरी तरह नशे में था। जैसे ही वह उतरा, सिक्योरिटी गार्ड भागकर उसकी ओर लपके और उसे संभाल लिया।

    अयान ने दोनों गार्ड्स को गंदी-सी गाली दी, मगर उन्होंने उसे फिर भी नहीं छोड़ा—वे जानते थे कि अगर उन्होंने छोड़ा तो वह ज़मीन पर गिर जाएगा।

    ड्राइविंग सीट पर एक और लड़का बैठा था।

    वह भी नशे में था, मगर अयान से थोड़ा कम। वह भी गाड़ी से उतरा और बोला,

    “तो फिर मैं चलता हूं।”

    तभी गाड़ी की पिछली सीट से एक लड़की बाहर निकली।

    उसने छोटे और भड़काऊ कपड़े पहन रखे थे। वह सीधे अयान के पास आकर बोली,

    “डार्लिंग, मैं चलती हूं। मन तो नहीं है तुम्हें यूं छोड़कर जाने का, लेकिन अगर तुम्हारी फैमिली ने मुझे देख लिया, तो बड़ी प्रॉब्लम हो जाएगी।”

    उसने हँसते हुए अयान की गर्दन में हाथ डाला और धीमे से फुसफुसाई,

    “ओके, स्वीटहार्ट... कल मिलते हैं।”

    अयान मुस्कराया, और नशे में लड़खड़ाती आवाज़ में बोला,

    “हाँ... कल... जरूर।”

    शांत रात थी, और हल्की-हल्की आवाजें भी साफ सुनाई दे रही थीं। जोया बरामदे में पहले ही खड़ी हो चुकी थी। वह यह सब देख रही थी—कुछ दूरी पर, मगर सब कुछ बिल्कुल साफ़।

    आयान ने लड़के से कहा,

    “ऐसा करो, तुम लोग मेरी गाड़ी ले जाओ और सुबह वापस ले आना, ठीक है?”

    लड़का और वह लड़की दोबारा गाड़ी में बैठे और चले गए।

    सिक्योरिटी गार्ड अयान को सहारा देते हुए हॉल की ओर ले जाने लगे।

    “रहने दो... मैं खुद चला जाऊंगा!”

    अयान ने झटकते हुए कहा, लेकिन उसका शरीर उसकी बातों का साथ नहीं दे रहा था।

    सिक्योरिटी गार्ड अयान को उसके कमरे तक छोड़ना चाहते थे, मगर जब अयान ने उन्हें गालियाँ देनी शुरू कर दीं, तो वे चुपचाप उसे छोड़कर चले गए।

    अयान लड़खड़ाते हुए सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगा, लेकिन अचानक उसे प्यास का अहसास हुआ। उसकी नज़र किचन की ओर मुड़ गई।

    वह धीरे-धीरे किचन की ओर चल पड़ा।

    जैसे ही वह किचन में पहुंचा, उसने देखा कि जोया फ्रिज का दरवाज़ा खोलकर पानी की बोतल निकाल रही थी। वह मुड़ी ही थी कि सीधा अयान से टकरा गई।

    "माफ कीजिए..." जोया घबराकर बोली और एक तरफ हटने लगी।

    मगर अयान उसकी ओर और बढ़ आया। जया ने पीछे हटते हुए खुद को फ्रिज के किनारे से सटा लिया।

    “मुझे जाने दीजिए... प्लीज़,” जया ने कांपती आवाज़ में कहा।

    अयान ज़ोर से हँसा, फिर उसकी आंखों में देखकर बोला,

    “पता है मुझे... तुम्हारी शक्ल से मुझे नफ़रत है — इतनी नफरत कि शायद इस दुनिया में किसी और से नहीं करता।

    मेरे घरवाले पीछे पड़े हैं कि मैं तुम्हारी रुख़सती कर लूं। लेकिन क्यों कराऊं मैं तुम्हारी रुख़सती?”

    उसकी आवाज़ तल्ख और घृणा से भरी थी।

    “मुझे आज़ादी पसंद है — खुलकर जीने की। और तुम? तुम जैसी मुरझाई हुई शक्ल वाली लड़की कभी मेरी हमसफ़र बन सकती है?”

    जोया ने थरथराते हुए कहा,

    “मुझे जाने दीजिए अयान... और वैसे भी, मुझे भी कोई शौक नहीं है आपकी ज़िंदगी में आने का। हम लोग तलाक ले सकते हैं।”

    उसने दोनों हाथों से अयान को पीछे धकेलने की कोशिश की।

    “ओह! तो अब तुम मुझे तलाक देना चाहती हो?” अयान चिढ़ते हुए बोला।

    “जानती हो, मैं कौन हूं?

    अयान रजा ख़ान — इस घर का सबसे छोटा, सबसे लाडला बेटा। दुनिया मेरे कदमों में बिछती है... और तुम? तुम मुझे छोड़ना चाहती हो?”

    यह बात उसके अहम को चोट पहुँचा चुकी थी।

    एक लड़की, उसे ठुकरा रही थी—यह बात उसके नशे से कहीं ज़्यादा उसे चुभ रही थी।

    “हम लोग सुबह बात करेंगे!” — जोया ने तीखे स्वर में कहा और उसे धक्का देती हुई एक तरफ हट गई।

    अयान नशे में था, वह लड़खड़ा गया।

    जोया बिना पीछे देखे तेज़ी से वहाँ से निकल गई। उसकी आंखों में गुस्सा भी था और अपमान की टीस भी।

    "वैसे बात इसकी सही है..."

    अयान लड़खड़ाते क़दमों से सीढ़ियाँ चढ़ रहा था और अपने आप से बड़बड़ा रहा था।

    “इसका और मेरा तलाक हो ही जाना चाहिए... मुझे तो कभी शादी करनी ही नहीं चाहिए थी। मुझे आज़ाद ज़िंदगी पसंद है, जहां न कोई बंधन हो और न कोई सवाल।”

    वह अपने आप से बातें करते हुए नशे की हालत में हँसने लगा।

    “लेकिन अब ये बात कैसे कहूं? घर वाले तो कभी नहीं मानेंगे। उन्हें तो अपनी इज़्ज़त का मुद्दा बनाना है हर बात को... कुछ तो करना पड़ेगा मुझे...”

    उसने मन ही मन फैसला कर लिया था — वह जोया से तलाक लेगा।

    ---

    🌙

    जोया और अयान का रिश्ता  प्यार की बुनियाद पर नहीं टिका था।

    यह रिश्ता बना था दो खानदानों के पुराने भरोसे, रिश्तों की मर्यादा और पारिवारिक परंपराओं के आधार पर।

    जब निकाह हुआ था, तब जया सिर्फ सोलह की थी — मासूम, सहमी और बेहद सीधी।

    और अयान? वह तो पहले ही जिंदगी को एक पार्टी समझता था — जहां शराब, रातें और शोर ही उसकी सच्चाई थे।

    वो रिश्ता जो रूह के मेल से बनना था,

    वो तो बस नाम का रह गया।

    एक ऐसा बंधन, जिसमें धड़कनें तो थीं,

    मगर एक-दूसरे के लिए नहीं।

    एक ऐसी डोर, जो निभाई जा रही थी

    मगर जुड़ी नहीं थी।

    कभी-कभी रिश्ते सिर्फ दो नामों को जोड़ते हैं,

    पर दिलों को नहीं।

    अयान और जोया का रिश्ता भी वैसा ही था—

    एक ऐसा रिश्ता जिसे निभाने की जिम्मेदारी तो दी गई,

    मगर निभाने की चाहत कभी किसी के दिल में नहीं जगी।

    जो रिश्ता अयान निभाने को तैयार ही नहीं था, तो क्यों उसे इस रिश्ते में बाँधा गया?

    आख़िर जोया की क्या मजबूरी थी कि सब कुछ जानते-समझते हुए भी वह आज तक तलाक़ नहीं ले सकी?

    क्या वजह है कि वह आज भी अपने मामू के घर में रह रही है?

    क्यों अपनी ज़िंदगी को उस रिश्ते के बोझ तले जी रही है, जिसका वजूद अब सिर्फ़ काग़ज़ों पर रह गया है?

    इन सवालों के जवाब इस कहानी के उन पहलुओं में छिपे हैं, जो धीरे-धीरे खुलेंगे।

    ---

    💬 यह मेरी सीरीज़ का पहला एपिसोड है।

    अगर आपको मेरी कहानी, इसका अंदाज़ और भावनात्मक गहराई अच्छी लगी हो,

    तो कमेंट ज़रूर करें।

    आपके शब्द हमें आगे लिखने की हिम्मत देते हैं।

    बताइए, क्या मेरी यह सीरीज़ आपको दिलचस्प लगती है?

    क्या आप जानना चाहेंगे कि जोया का अगला क़दम क्या होगा?

    क्या अयान कभी बदलेगा?

    या फिर यह रिश्ता टूटकर दोनों को आज़ादी देगा?

    आपके कमेंट्स और राय का इंतज़ार रहेगा।

    धन्यवाद ❤️

    ---

    -

  • 2. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 2

    Words: 1492

    Estimated Reading Time: 9 min

    आयान रज़ा खान— एक अधूरी और बेकाबू ज़िंदगी का वारिस।रजा खानदान का सबसे छोटा बेटा)

    -वो उस खानदान का आख़िरी चिराग था, जिसने पीढ़ियों तक शान से जीना सीखा था।

    "अयान नवेद रजा" — नाम जितना सलीकेदार, असलियत उतनी ही बेमुरव्वत। वो न तो अपने नाम की इज़्ज़त करता था, न अपने ख़ानदान की विरासत की परवाह।

    तीन सौ करोड़ की ज़ायदाद का वारिस... लेकिन हर सुबह नशे में डूबा, हर रात अंधेरों का साथी।

    उसे अपनी ज़िंदगी की किसी चीज़ में ना रब दिखता था, ना रहमत।

    जब उसके दोनों बड़े भाई बिज़नेस को नई ऊँचाइयों पर ले जा रहे थे, आयान उस दौर में गुम था जहां उसे वक़्त की कोई क़द्र नहीं थी।

    कॉरपोरेट मीटिंग्स, इन्वेस्टमेंट्स, प्रॉपर्टी या पॉलिटिक्स — किसी चीज़ में उसकी रुचि नहीं थी।

    कभी कार की पिछली सीट पर बेसुध पड़ा मिलता था, कभी क्लब के वीआईपी कॉर्नर में किसी अनजान लड़की की बाहों में।

    शराब उसके लिए पानी से ज़्यादा जरूरी थी।

    सिगरेट की तलब उसके हर मूड को डिफ़ाइन करती थी।

    ड्रग्स से दोस्ती उसका राज़ नहीं, अब सबको मालूम थी।

    औरतें उसके लिए 'लव' नहीं थीं — 'विलास' थीं। आयाश आदमी था वो ।

    मोबाइल में कोई नंबर सेव नहीं, कोई नाम याद नहीं।

    हर हफ़्ते कोई नई लड़की, हर रात कोई नया चेहरा।

    बेहद शार्प और स्ट्रॉन्ग जॉलाइन, थोड़ी सी बियरड — अनकेयरड लुक के साथ भी हैंडसम।

    गहरी और ठंडी आंखें— जैसे हर चीज़ को हिकारत से देखती हों।

    एक नजर में सामने वाला कांप जाए — इतनी ठंडी नज़र।

    मीडियम लेंथ, हल्के वेवी हेयर, कभी सेट नहीं करता — जैसे वो दिखाना ही नहीं चाहता कि उसे कोई परवाह है।

    6 फीट से थोड़ा ऊपर — लंबा, दबदबे वाला कद।

    बॉडी फिट है, मगर जिम जाकर नहीं — बल्कि ऐसा लगता है जैसे गुस्से और बेचैनी ने उसकी बॉडी को तराशा हो।

    भारी, गूंजती हुई आबाज, मगर उसमें कोई मिठास नहीं। जैसे कोई आदेश दे रहा हो — या फिर ताना मार रहा हो।

    चलना भी जैसे ठोकर मारकर चलता हो। आँखों में एक अजीब सी उदासी और घमंड का मिला-जुला असर।:

    किसी से नर्मी से बात करना उसे आता ही नहीं था।

    रिश्ते? उसे कोई मतलब नहीं।

    परिवार? बस एक रस्म, जिसे निभाना नहीं आता।

    प्यार? उसके लिए सिर्फ़ एक मज़ाक।

    दोस्त? कभी बने नहीं, क्योंकि उसे किसी पर यक़ीन नहीं था।

    जबान पर तेज़ाबी शब्द और दिल में बर्फ़ सी ठंडक।

    अब्बा  कभी बहुत बड़े कारोबारी रहे, अब बेटे की हालत देखकर चुप हैं।

    मां (सईदा बेग़म): कमज़ोर दिल, पर बेटे की हालत से टूटी हुई। अब हर नमाज़ में सिर्फ़ उसकी हिदायत की दुआ करती हैं।

    दो बड़े भाई है।

    ---बड़ा भाई — आरिफ़ रज़ा खान

    उनके तीन बच्चे हैं:

    जुबेर रज़ा ख़ान जो जियान से सिर्फ़ 3 साल छोटा

    एक और बेटा दानिश

    एक बेटी सारा

    छोटा भाई — शायान रजा खान

    उनकी दो बेटियाँ

    जारा और फिजा

    एक बेटा सैफ

    जब आयान पैदा हुआ, तब उन्हें उम्मीद भी नहीं थी कि फिर से कोई औलाद होगी — इसलिए उसका जन्म ही सबके लिए ‘देरी से आई हुई मुश्किल’ बन गया।

    एक बहन शादीशुदा, मगर आयान से बेहद जुड़ी हुई।

    ---

    💠 आयान — जैसे नवाबों की रूह किसी ग़लत वक़्त में उतर आए

    उसकी पैदाइश, खानदान के लिए एक अफ़वाह जैसी थी —

    सब कुछ तय हो चुका था, ज़िंदगी पटरी पर थी, और फिर अचानक... जियान।

    एक ऐसा बेटा, जो अपने भाइयों से कम से कम 16-20 साल छोटा, और भतीजों से भी कुछ साल बड़ा ही सही, लेकिन उन्हीं की तरह बेपरवाह नहीं — बल्कि उनसे भी ज्यादा बर्बाद।

    ---

    🖤

    उसे किसी चीज़ से मोहब्बत नहीं — न ख़ानदानी तहज़ीब से, न माँ-बाप की दुआओं से।

    आयान कोई रॉमांटिक हीरो नहीं — वो आग है, जो खुद को भी जला रहा है और पास आने वालों को भी।

    वो ज़िंदगी को नकार चुका है, मगर शायद... कहीं किसी मोड़ पर कोई ऐसी रोशनी बाकी है, जो उसे खींचकर वापस ला सकती है।

    ---

    🕌

    ---

    जोया असलम मिर्जा

    (उम्र: 26 साल)

    (आयान की बुआ की बेटी — उसकी बचपन की बीवी, मगर आज उसके लिए एक पराया नाम)

    जब वो सिर्फ़ 7 साल की थी, तभी उसके माँ-बाप का इंतक़ाल एक कार एक्सीडेंट में हो गया था।

    जियान के अब्बा की बड़ी बहन — जोया की खाला — उस समय रोते हुए उसे अपने साथ खान हवेली ले आई थीं।

    उसका बचपन, उसकी मुस्कान, उसकी किताबें — सब अब पराए घर की चारदीवारी में पलती रहीं।

    ---

    उसे इस हवेली में एक अच्छी बात यह लगी थी कि यहाँ उसे पढ़ने-लिखने का पूरा माहौल मिला।

    उसे अच्छी तालीम दी गई थी। उसने लिटरेचर में एम.ए. किया था और अब कुछ महीनों पहले ही उसने कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया था—बस वक़्त गुज़ारने के लिए।

    उसके मामू जानते थे कि उसके दिल में क्या चल रहा है, उसके मन की हालत क्या है।

    इसलिए उन्होंने भी कभी कोई ऐतराज़ नहीं किया।

    जोया, नावेद साहब की मरहूम बहन की बेटी थी।

    उसे वे बेइंतिहा चाहते थे। उनके लिए जोया एक ज़िम्मेदारी थी — एक ऐसा फर्ज़, जिसे वे पूरी ईमानदारी से निभाना चाहते थे।

    उन्हें लगा कि अगर वह इस बच्ची को अपने ही घर में रख लेंगे, तो वह हमेशा महफ़ूज़ रहेगी — प्यार, देखभाल और सुरक्षा में।

    उस वक़्त अयान कॉलेज में पढ़ रहा था। उसकी कुछ आदतें बिगड़ चुकी थीं, लेकिन घरवालों को इसकी गहराई का अंदाज़ा नहीं था। उन्हें लगा, ये उम्र का असर है — वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा।

    रिश्ता जोया और अयान का इस सोच के साथ जोड़ा गया था कि यह दोनों के लिए अच्छा साबित होगा।

    मगर अयान की बिगड़ी हुई आदतों ने वह रिश्ता जया के लिए बर्बादी बना दिया।

    ---

    जब जोया 16 साल की हुई, तो खानदान वालों ने ज़ोर देकर उसका निकाह जियान से करवा दिया।

    तब आयान 20 साल का था — नशे, लड़कियों और बेपरवाही में डूबा हुआ।

    जोया का चेहरा उन लड़कियों जैसा नहीं था जो मेकअप से खुद को संवारती हैं —

    वो सादगी से सजती थी।

    गालों पर हल्की गुलाबी आभा, बड़ी-बड़ी मद्धम आंखें जिनमें ग़म की हल्की परछाईं और बहुत सारा सब्र था।

    आंखें: गहरी भूरी, जैसे हर दर्द को चुपचाप पी जाना जानती हों।

    नक्श: ना बेहद तीखे, ना बेहद नाज़ुक — बल्कि एक ऐसी मधुरता, जो धीरे-धीरे दिल में उतरती है।

    बाल: लंबे, घने और सीधे —

    चाल: हल्की, शांत — जैसे हर कदम सोच-समझकर रखा गया हो।

    आवाज़: नरम, मगर साफ़ — जिसमें अपनापन था, मगर कोई उम्मीद नहीं।

    उसकी सबसे बड़ी खूबसूरती उसका संस्कार, उसकी तालीम और उसकी चुप्पी थी।

    ---

    उसकी विरासत — एक बहुत बड़ी ज़मीन और दो हवेलियाँ —

    उसके चाचा और ताया ने उसके माँ-बाप के मरने के बाद धोखे से अपने नाम कर ली थीं।

    वो सबकुछ जानती थी, लेकिन कुछ कर नहीं सकी — क्योंकि उसकी ‘पनाह’ सिर्फ़ खान हवेली थी।

    और वही पनाह — उसकी सबसे बड़ी क़ैद बन गई थी।

    -

    वो जानती थी —

    आयान कभी उसका नहीं था।

    उसने कभी उसे नाम से भी नहीं पुकारा।

    ना कभी साथ बैठा, ना कोई सवाल पूछा।

    फिर भी, वो अपनी हद में रही।

    उसके कमरे से दूर — उसकी निगाहों से दूर —

    बस एक परछाईं बनकर इस हवेली में रहती रही।

    वो आयान से दूर रहती थी क्योंकि वह खुद को बचाए रखना चाहती थी।

    उसे डर था — कहीं उसकी मासूमियत, उसकी इज्ज़त, उसकी चुप्पी — आयान की बर्बादी में घुट न जाए।

    वो उसे टोकती नहीं थी, सवाल नहीं करती थी, और सामने आने से भी कतराती थी।

    वो टूटी नहीं है, लेकिन झुकी हुई है।

    उसके चेहरे पर रौनक नहीं, मगर रूह में उजाला है।

    वो खुद को कमजोर नहीं मानती, मगर अपनी आवाज़ नहीं उठाती।

    उसने हमेशा बस एक चीज़ चाही — सुकून।

    वो जानती है कि जियान उसके लिए बना नहीं था —

    मगर वो उसकी ‘बीवी’ है — ये हक़ उसे भी याद है

    क्या एक बिगड़ा हुआ, रईसज़ादा अयान कभी सुधरेगा?

    और जोया... क्या वह कभी अपनी ज़िंदगी का कोई ठोस फैसला ले पाएगी?

    दोनों की किस्मत में एक-दूसरे के साथ होना लिखा है —

    तो क्या ये सचमुच एक-दूसरे से हमेशा के लिए जुदा हो जाएंगे?

    अगर हीरो-हीरोइन अलग हो गए,

    तो फिर कहानी कैसे बनेगी... और दिल कैसे जुड़ेगा?

    तो आप बताइए — मुझे आगे क्या लिखना चाहिए?

    ---

    "बिछड़ना चाहा मगर फासले मिटते नहीं,

    दिलों की डोर है जो हाथ से छूटती नहीं।

    नज़रों में बेरुख़ी, लबों पर ख़ामोशी है,

    फिर भी रूह की तहरीर में तेरा नाम लिखा है।

    कभी तुम चले जाओ, कभी हम थम जाएँ,

    मगर एक धड़कन है जो दोनों में ही रह जाए।

    अलग हैं राहें, अलग हैं मक़सद,

    मगर जुड़ते हैं हर मोड़ पर कुछ अधूरे जज़्बात।

    ये रिश्ता कोई वादा नहीं, मजबूरी भी नहीं,

    बस एक अहसास है, जो ना होकर भी कहीं है।"

    ---

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  • 3. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 3

    Words: 1580

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुबह का वक्त था। पूरा परिवार नाश्ते की टेबल पर इकट्ठा हो चुका था। बस एक कमी थी—अयान अब तक नहीं आया था।

    "अब तक नहीं आया..." नावेद साहब ने अपनी बेगम की ओर देखा और नाराज़गी से बोले, "ये कोई पहली बार थोड़ी है? हर बार यही करता है।"

    उनकी आवाज़ में झुंझलाहट साफ़ थी।

    "अब्बा, जिस हाल में वो रात को घर आया था, मैं ही उसे कमरे तक लेकर गया था," आरिफ़ नावेद साहब का बड़ा बेटा बोला।

    "मैंने खुद देखा उसे," अब्बा ने ठंडी सांस लेकर कहा, "मेरे तीन बच्चे थे... अगर ये मेरी ज़िंदगी में ना आता, तो शायद मेरी ज़िंदगी कहीं ज़्यादा सुकून में होती।"

    नावेद साहब की आवाज़ में बेहद कड़वाहट थी। वह सबसे छोटा, उनका लाड़ला बेटा था, लेकिन बिगा इस कदर कि किसी की इज़्ज़त करना उसने सीखा ही नहीं था।

    उसी पल नावेद साहब की नज़र सीढ़ियों की ओर गई।

    सीढ़ियों से अयान नीचे उतर रहा था।

    उसने हल्की फेडेड जींस पहनी थी, ऊपर आसमानी नीली शर्ट थी जिसकी बांहें उसने स्टाइल में मोड़ रखी थीं। उसकी चाल में वही लापरवाह आत्मविश्वास था जो पूरे घर को खामोश कर देता था।

    "आओ, बैठो," नावेद साहब ने सख्त लहजे में कहा।

    बेगम साहिबा ने तुरंत अपनी आंखों से इशारा किया—"कुछ मत कहना।"

    नावेद साहब ने आंखों ही आंखों में समझ लिया, और चुप हो गए।

    पूरा परिवार खामोशी से नाश्ता करने लगा। किसी में हिम्मत नहीं थी कि अयान के सामने कुछ बोले। सब जानते थे, अगर उसे कुछ कह दिया, तो वह पलटकर ऐसी बात कहेगा कि सबका दिन ख़राब हो जाएगा।

    उस खामोशी और तनाव के बीच, जोया चुपचाप बैठी थी।

    वह अपने नाश्ते पर ध्यान दे रही थी, जैसे उसके लिए यह सब कोई मायने ही नहीं रखता।

    अयान के आने पर उसने उसकी तरफ एक बार भी नहीं देखा।

    लेकिन अयान की नज़र, ज़रूर उस पर पड़ी थी।

    "मुझे तुमसे बात करनी थी..."

    नावेद साहब ने नाश्ता करते हुए धीमे मगर गंभीर लहजे में अयान से कहा।

    "कहो, क्या पूछना है?"

    अयान ने लापरवाही से जवाब दिया, जैसे उसे कोई दिलचस्पी ही न हो।

    "देखो आयान... अब तुम्हें ऑफिस रेगुलर जाना शुरू करना चाहिए। ज़रूरी है कि अपने काम पर ध्यान दो, अपने भाइयों का हाथ बंटाओ। तुम्हें पता है, मेरी तबीयत इन दिनों कुछ ठीक नहीं रहती।"

    "ठीक है।"

    अयान ने बहुत ही छोटा और बेरुखा जवाब दिया।

    कुछ पल की खामोशी के बाद नावेद साहब ने एक और बात जोड़ी, इस बार उनका लहजा थोड़ा नर्म था—

    "और अब जब तुम दोनों का निकाह हो चुका है... तो तुम्हें अपनी नई ज़िंदगी शुरू कर देनी चाहिए।"

    उनकी बात का सीधा इशारा जोया की रुख्सती की ओर था।

    यह सुनते ही जोया का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।

    उसकी सांसें गहरी हो गईं।

    जिस शख़्स के नाम से उसे नफ़रत होने लगी थी, उसी की ज़िंदगी में जाना उसे मौत जैसा लग रहा था।

    वो दिल से इस रिश्ते को कभी नहीं चाहती थी।

    वो हर रोज़ सोचती थी... कैसे कहे कि वो तलाक चाहती है...

    मगर उसमें हिम्मत नहीं थी।

    वो किसी से कुछ नहीं कह पा रही थी... न अपने मामा से, न किसी और से।

    उसी बीच, अयान ने जो सैंडविच हाथ में पकड़ा हुआ था, उसे प्लेट में रख दिया !

    "मुझे जोया से तलाक चाहिए। हम दोनों साथ नहीं रह सकते।"

    "मैं जोया के साथ ये रिश्ता आगे नहीं निभा सकता। मुझे उससे तलाक चाहिए"

    "हम दोनों की सोच, रास्ते और ज़रूरतें अलग हैं। मुझे जोया से तलाक चाहिए, क्योंकि इस रिश्ते में अब कोई सुकून नहीं बचा है।"

    मैं  आफिस चला जाऊंगा... उससे पहले कहीं और जाना है।"

    अयान उठकर जा चुका था।

    पूरे परिवार ने एक-दूसरे की ओर देखा — जैसे कमरे में एक अनकही बेचैनी फैल गई हो।

    "बेटा, तुम दिल छोटा मत करो... ऐसे तलाक नहीं होता,"

    नावेद साहब ने जोया की तरफ देख कर कहा।

    उन्हें लगा कि अयान की बेरुखी भरी बातों ने जोया का दिल तोड़ दिया होगा।

    लेकिन जोया के मन में कुछ और ही चल रहा था।

    वो खुद को रोक नहीं पाई।

    "मैं भी तलाक चाहती हूँ,"

    उसने धीमे लेकिन ठोस लहजे में कहा।

    सबकी निगाहें उसकी ओर घूम गईं।

    उसे महसूस हुआ कि शायद यही मौका है—सब कुछ साफ़ कह देने का।

    "आप खुद जानते हैं मामू... अयान की हरकतें।

    अगर मैं उसकी ज़िंदगी में शामिल भी हो जाऊँ, तो क्या मुझे वो इज़्ज़त मिलेगी, जो एक बीवी को मिलनी चाहिए?"

    उसकी आवाज़ काँप रही थी।

    "आपको पता है मेरी ज़िंदगी में क्या-क्या गुजर चुका है।

    मेरे अम्मी-अब्बा अब इस दुनिया में नहीं हैं...

    और अगर मैंने अयान की ज़िंदगी में क़दम रखा, तो शायद मेरे साथ इससे भी बुरा हो सकता है।"

    कहते-कहते उसकी आँखें भर आईं। आँसू पलकों से ढलक कर उसके गालों तक पहुँच गए।

    "बेटा, ऐसा क्यों कह रही हो..."

    बेगम साहिबा ने आगे बढ़कर उसे थामना चाहा, आवाज़ में माँ जैसी ममता थी।

    "नहीं अम्मी, जोया ठीक कह रही है।"

    अयान के बीच वाले भाई — शायान — ने पहली बार कुछ कहा।

    "इसकी ज़िंदगी तो जैसे बर्बाद करने पर तुला है।

    हम कोई और अच्छा रिश्ता देख लेंगे इसके लिए।"

    "बात गलत नहीं है,"

    आरिफ की बीवी, नुसरत, जो अब तक चुप थी, उसने भी धीरे से कहा।

    "मगर... एक तलाकशुदा लड़की से कौन शादी करेगा?

    अच्छा रिश्ता तो मिलना मुश्किल हो जाएगा।"

    कमरे में एक गहरा सन्नाटा पसर गया था।

    -

    "मैं तो अपने बेटे के लिए लड़की देख रही हूँ... शादी करनी है उसकी,"

    नुसरत अचानक बोल पड़ीं। उनकी आवाज़ में हल्की झुंझलाहट थी।

    सभी ने उनकी तरफ देखा।

    "मैं लड़की ढूंढ रही हूँ न... अब जो बीच में तलाक का मसला शुरू हो गया है, तो बात और बिगड़ जाएगी।"

    नुसरत के बेटे का नाम जुबैर था—एक समझदार, शांत स्वभाव का लड़का, जिसकी उम्र 27 साल थी। वह अभी हाल ही में फैमिली बिज़नेस से जुड़ा था। उस वक़्त वो डाइनिंग टेबल पर मौजूद नहीं था।

    अब इस घर का माहौल ही ऐसा हो गया है कि मुझे उसकी शादी की चिंता सताने लगी है।"

    नुसरत बोलीं।

    "बिलकुल सही कह रही हो,"

    शयन की पत्नी सहर ने उनका समर्थन करते हुए कहा,

    "अयान की हरकतों का असर बाकी बच्चों पर भी पड़ रहा है। अब ये तलाक वाली बात तो जैसे नया तमाशा बन गई है।"

    हर किसी के चेहरे पर तनाव साफ़ झलक रहा था।

    अयान की वजह से सभी परेशान थे।

    और अब इस तलाक़ के मसले ने जैसे घर में एक नया तूफान खड़ा कर दिया था।

    "तलाक के बाद मैं हॉस्टल चली जाऊँगी। मेरी कॉलेज से बात हो चुकी है। मैं वहीं शिफ्ट हो रही हूँ..."

    जोया ने शांत मगर दृढ़ स्वर में कहा और अपनी कुर्सी से खड़ी हो गई।

    "यह क्या कह रही हो, जोया?"

    नावेद साहब भी हैरानी में अपनी जगह से उठ खड़े हुए।

    "मामू, मैं सच कह रही हूँ। अब किसी को मेरी शादी की फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है।

    और ना ही मैं इस घर में किसी का तमाशा बनना चाहती हूँ।

    मैं हॉस्टल जा रही हूँ। जहाँ कहीं भी साइन करने होंगे, बस मुझे बता दीजिए।"

    उसकी आँखों में नमी थी।

    वो सब कुछ सहने की कोशिश कर रही थी, मगर जिस तरह से अयान की भाभियों ने तलाक की बात पर प्रतिक्रिया दी थी, वह उसे अंदर तक चुभ गई थी।

    उसे कहीं से भी कोई हमदर्दी नहीं मिली थी।

    घर के हर सदस्य को सिर्फ अपनी पड़ी थी।

    "मेरी बच्ची..."

    बेगम साहिबा की आँखें भर आईं। वो भी अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हुईं और जोया की ओर बढ़ीं।

    अब नावेद साहब और उनकी बेगम दोनों ही उम्रदराज़ हो चले थे।

    घर में अब पहले जैसा उनका असर नहीं रहा था।

    वे चाहते तो बहुत कुछ थे, मगर अब घर की हवा उनके हाथों में नहीं रही थी।

    और रही बात अयान की—

    उसकी हरकतें ऐसी थीं कि सबको मजबूर कर दिया था।

    यह घर, जो कभी एक शांत और इज़्ज़तदार माहौल के लिए जाना जाता था, अब सवालों और बिखरे रिश्तों की चौखट बन गया था।

    कमरे में नावेद साहब और बेगम साहिबा दोनों चुपचाप बैठे थे।

    दोनों ही अयान के इस फैसले से नाराज़ और परेशान थे।

    जोया, नावेद साहब की बहन की बेटी थी—वाकई में बहुत प्यारी, समझदार और सुलझी हुई लड़की।

    नावेद साहब ने अपनी पत्नी की ओर देखते हुए भारी आवाज़ में कहा,

    "मैं अब अपनी बहन को क्या मुंह दिखाऊंगा? कितने गर्व से उसे अपनी बेटी जैसा मानकर लाया था..."

    बेगम साहिबा ने उनके हाथ पर हाथ रखते हुए कहा,

    "आप दिल छोटा मत कीजिए, सब ठीक हो जाएगा।"

    "कुछ ठीक नहीं होगा!"

    नावेद साहब अब अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सके।

    "मैं जानता हूँ, अगर वो तलाक चाहती है तो हो जाने दो।

    जोया अकेली नहीं है। उसके लिए रिश्ता देखने वाले बहुत मिलेंगे—कम से कम उस नालायक से तो अच्छे ही होंगे।

    उसे न रिश्तों की कद्र है, न ऑफिस के काम की फिक्र।

    कोई कुछ कह दे तो पलटकर ज़हर उगल देता है, जुबान देखी है उसकी?

    मेरा तो मन करता है उसे  बेदखल करवा दूँ और घर से निकाल बाहर करूँ!"

    उनकी आँखों में अपमान और टूटे हुए भरोसे की तीखी चुभन थी।

    बेगम साहिबा ने चुपचाप उनकी तरफ देखा।

    उनका चेहरा पीला पड़ गया था।

    "ऐसा मत कहिए..."

    उन्होंने कांपती आवाज़ में कहा,

    "वो मेरे जिगर का टुकड़ा है... भटक गया है... लेकिन शायद एक दिन सुधर जाएगा।"

    दिल के किसी कोने में उन्हें खुद भी पता था कि अब उम्मीद बहुत कम बची है—

    फिर भी एक माँ की तरह उन्होंने अपना विश्वास जताया।

    कमरे में कुछ पल के लिए सन्नाटा पसर गया।

    ---

  • 4. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 4

    Words: 1496

    Estimated Reading Time: 9 min

    जोया कॉलेज, पहुँच गई थी। उसके पास अपनी एक गाड़ी थी। जैसे ही वह गाड़ी से उतरी, सामने एक लड़का मोटरसाइकिल स्टैंड पर बाइक पार्क कर रहा था। उसने जोया की ओर देखकर मुस्कराते हुए पूछा —

    "कैसी हैं आप?"

    जोया ने  उसकी ओर देखा। वह लड़का कॉलेज में ही प्रोफेसर था और जोया का सहकर्मी भी। उसका नाम आरहान खान था।

    वो हर रोज़ उसे देखता था — कभी कॉलेज के गेट पर, कभी लाइब्रेरी के सामने, तो कभी कैंटीन में खड़ी हुई।

    जोया बस गुजरती थी…

    मगर अरहान का वक़्त वहीं थम जाता था।

    उसने कभी ज़ाहिर नहीं किया… कभी कोशिश भी नहीं की…

    क्योंकि उसे लगता था —

    “मैं कौन होता हूँ उसकी ज़िंदगी में कोई जगह मांगने वाला…?”

    ना वो कोई अमीर खानदान से था, ना ही उसके पास कोई बड़ी कार थी।

    शक्ल भी ऐसी नहीं कि लड़कियाँ मुड़कर देख लें।

    बस एक सीधी-सी जिंदगी, और एक दिल… जो बस उसी के लिए धड़कता था।

    अरहान को उसका हर अंदाज़ याद था।

    कभी वो बालों को कान के पीछे करती, तो लगता जैसे दिन बन गया।

    कभी हँसते हुए दोस्त को देखती, तो लगता जैसे धूप खिल उठी हो।

    "काश... वो एक बार मुझे देखे... बस एक बार..."

    हर रोज़ ये ख्वाहिश उसके दिल में पलती।

    लेकिन फिर वो मुस्कुरा देता — अपनी ही खामोशी पर।

    “क्या ज़रूरी है कि हर मोहब्बत आवाज़ पाकर ही मुकम्मल हो?”

    उसे जोया से कुछ चाहिए नहीं था…

    बस उसे देखकर जीना अच्छा लगता था।

    उसकी आंखों में बसने वाली मासूमियत,

    उसके चलने का तरीका,

    हर बात — अरहान के सीने में एक छोटा सा संसार बना चुकी थी।

    वो जानता था,

    वो कभी नहीं कहेगा।

    क्योंकि जोया बहुत दूर की बात थी उसके लिए।

    लेकिन फिर भी,

    हर सुबह तैयार होते हुए,

    जब वो कॉलेज के लिए निकलता,

    तो दिल के किसी कोने में एक उम्मीद जरूर होती:

    "शायद आज वो मुस्कुरा कर मेरी तरफ देख ले..."

    ---

    "हम दोनों हमेशा एक ही टाइम पर आते हैं," जोया ने मुस्कुराकर कहा।

    जया को लगता था कि यह बस एक इत्तेफाक है कि दोनों हर रोज़ एक ही समय पर पार्किंग में एंट्री करते हैं। मगर सच्चाई इससे बहुत अलग थी।

    अरहान हर रोज़ उस मोड़ पर रुकता था, जहाँ से जोया की गाड़ी गुज़रती थी। जैसे ही उसकी गाड़ी सामने से निकलती, वह समझ जाता कि अब चलने का वक़्त हो गया है। और फिर वह भी उसी के पीछे-पीछे कॉलेज की पार्किंग की तरफ बढ़ता।

    असल में, उसकी सुबह की शुरुआत तब तक पूरी नहीं होती थी जब तक वह जोया को देखकर "गुड मॉर्निंग" न कह ले।

    वह अपने हर दिन की शुरुआत जोया की मुस्कान के साथ करना चाहता था।

    उस मुस्कान में उसके लिए सुकून था, उम्मीद थी… और शायद कुछ ऐसा भी जिसे वो खुद भी समझ नहीं पाया था।

    जोया अपनी क्लासेस के लिए आगे बढ़ चुकी थी। उसके चेहरे पर हमेशा की तरह वही आत्मविश्वास, वही गंभीरता थी जो उसे बाकियों से अलग बनाती थी। ना तो जोया कोई टीनएज लड़की थी, और ना ही अरहान कोई सोलह-सत्रह साल का इमोशनल लड़का। लेकिन जो एहसास अरहान के दिल में जया के लिए थे — वो ठीक वैसे ही थे, जैसे किसी किशोर उम्र के लड़के को पहली बार किसी को देखकर होते हैं।

    उसका दिल बेपरवाही से धड़कता नहीं था — मगर जोया को देखकर हर धड़कन थोड़ी धीमी, थोड़ी गहरी हो जाती थी।

    अगर अरहान का बस चलता, तो वह कॉलेज में हर वक़्त जोया के पीछे चलता, क्लास से निकलते ही उसके पीछे-पीछे गलियारों में घूमता, या फिर जोया के घर के बाहर बेवजह खड़ा हो जाता — बस यूं ही, एक झलक के लिए। मगर वह ऐसा नहीं कर सकता था। उसमें तमीज़ थी, सीमाएं थीं और खुद पर एक अनुशासन था। उसके प्यार में कोई जल्दबाज़ी नहीं थी — कोई दिखावा नहीं। उसमें इंतज़ार था… और इज़्ज़त।

    वह चुपचाप अपने डिपार्टमेंट की ओर मुड़ा और अपनी क्लास में दाखिल हो गया। अरहान मैथ्स का प्रोफेसर था। उसकी उम्र तीस के करीब थी, मगर उसका ज़हन, उसकी नज़रें और उसका अंदाज़ उम्र से कहीं परे था — शांति और समझदारी से भरा हुआ।

    मैथ… उसका दूसरा प्यार।

    जब वह बोर्ड पर खड़ा होता और अपनी लिखावट में समीकरण रचता, तो पूरी क्लास चुपचाप उसे देखती। उसके स्टूडेंट्स कहते थे, "सर, आपकी क्लास में मैथ सब्जेक्ट नहीं, एक जादू लगता है।"

    वो सिर्फ फॉर्मूले नहीं सिखाता था, वह लॉजिक को ज़िंदगी से जोड़ता था, और हर कॉन्सेप्ट को ऐसे बुनता था कि सबसे कमजोर छात्र भी उसे समझने लगते थे। उसकी आंखों में मैथ्स के लिए जो जुनून था, वो वैसा ही था जैसा कोई कवि कविता के लिए महसूस करता है — गहरा, सच्चा, और अंतहीन।

    वह खुद कहता था — "मैथ्स को पढ़ते हुए मैं भूल जाता हूँ कि मैं कौन हूँ, कहां हूँ। ये मेरी दुनिया है, और हर सवाल मेरे लिए एक कहानी है, जिसे मुझे हल करना होता है।"

    और इस दुनिया में बस दो चीजें थीं जो उसे सुकून देती थीं — समीकरणों की लय… और जोया की मुस्कान।

    जोया की बात करते हुए उसके चेहरे पर जो हल्की सी हँसी आती थी, वह किसी को दिखाने के लिए नहीं होती थी। वह हँसी — उसकी अपनी थी, जैसे कोई मन के भीतर खिला फूल हो। वह जानता था कि जया कभी उसकी नहीं हो सकती — शायद चाहती भी न हो। मगर उसे कोई शिकायत नहीं थी।

    उसे खुशी होती थी बस इतना देखकर कि जोया खुश है।

    वह उसे तंग नहीं करता था, कभी कोई अजीब हरकत नहीं करता था, कोई मैसेज, कोई कॉफी डेट का ऑफर नहीं — बस हर रोज़ जब पार्किंग में दोनों साथ आते, तो एक “गुड मॉर्निंग” के बहाने उसकी एक झलक देख लेना, वही उसका दिन बना देता था।

    जिस तरह उसे मैथ के हर सवाल में सौंदर्य दिखता था, वैसे ही जोया में भी वह कुछ ऐसा देखता था जो आम नज़रों से ओझल था — शालीनता, आत्मविश्वास, और एक अलग-सी गरिमा।

    अरहान का प्यार टीनएज जैसा जरूर था, लेकिन उसमें एक परिपक्वता भी थी — जैसे कोई पुराने ज़माने की चिट्ठी हो, जिसमें हर शब्द संभालकर लिखा गया हो, कोई जल्दबाज़ी नहीं, कोई बेसब्री नहीं… बस एक भरोसा कि जो दिल से महसूस हो, वो कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में ज़रूर लौटकर आता है।

    लंच टाइम — स्टाफ रूम

    कॉलेज के प्रोफेसर्स लंच ब्रेक के दौरान स्टाफ रूम में बैठे हुए थे। यही वह जगह होती है जहां सभी टीचर्स अपनी फ्री क्लास के दौरान थोड़ा सुस्ताते हैं, आपस में बातें करते हैं या अगली क्लास की तैयारी करते हैं।

    अरहान एक कोने की सीट पर बैठा किसी सहकर्मी से बात कर रहा था। उसकी पीठ दरवाज़े की तरफ थी। अचानक दरवाज़ा खुला और जोया अंदर दाखिल हुई। उसकी मौजूदगी की खुशबू ही कुछ ऐसी थी कि अरहान ने बिना देखे ही पहचान लिया।

    उसने धीरे से मुड़कर देखा। जोया अंदर आ रही थी, उसके साथ एक प्रोफेसर और भी थी। जोया पल्लवी को देखकर मुस्कुराई और हल्के से हाथ हिलाया।

    जोया सीधी पलवी के पास जाकर बैठ गई। पलवी उससे मुस्कुराकर बोली,

    "तो आप क्या कह रहे थे?"

    अरहान ने बात फिर से वहीं से शुरू की,

    "हां, मैं कह रहा था कि मुझे कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पड़ेगा, तो मेरी क्लासेस की जिम्मेदारी शायद कुछ समय के लिए आप सभी को संभालनी पड़े।"

    "ओह," पलवी बोली, "पहले भी एक मैथ्स टीचर थीं जो थोड़े समय के लिए गई थीं, हम लोगों ने मिलकर उनकी क्लास ली थी। आप चिंता मत कीजिए।"

    इस बातचीत में जोया भी दिलचस्पी लेने लगी। उसने सवाल किया,

    "आपको बहुत दिनों के लिए जाना है क्या?"

    अरहान ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,

    "हां, कम से कम दो महीने तो लग ही जाएंगे।"

    फिर थोड़ी देर रुका और धीमी आवाज़ में बोला,

    "असल में... मेरी फैमिली में कोई नहीं है। मुझे मेरी बुआ ने पाला है। अभी वह काफी बीमार हैं। साथ ही उनकी बेटी कनिका की शादी भी तय हो गई है। एक भाई के नाते मेरी जिम्मेदारी बनती है कि इन दिनों मैं वहां रहूं, बुआ का साथ दूं और कनिका की शादी की तैयारियों में मदद करूं।"अरहान बात कर रहा था और साथ ही उसका ध्यान जोया की नाक में पहनी हुई छोटी सी नथनी पर था जो जोया की खूबसूरती को और निखारती थी। शायद ही हो जोया की कोई पहनी हुई चीज जो और हमको अपनी तरफ ना खींचती हो।

    कमरे में थोड़ी देर खामोशी छा गई।

    "शादी के बाद ही लौट पाऊंगा," अरहान ने आखिर में जोड़ा।

    सब कुछ सुनकर सभी समझ गए थे कि अरहान किसी ज़रूरी और निजी वजह से जा रहा है। किसी ने ज़्यादा सवाल नहीं किए।

    थोड़ी देर बाद लंच ब्रेक खत्म हुआ, और सभी प्रोफेसर अपनी-अपनी क्लासेस के लिए उठ खड़े हुए।

    ---

    "हर कहानी तब पूरी होती है जब उसे पढ़ने वाला कुछ महसूस करे। अगर मेरी कहानी ने आपके दिल को छुआ हो, तो कृपया एक कमेंट ज़रूर छोड़िए, रेटिंग दीजिए और मुझे फॉलो कीजिए। आपका साथ मेरी कलम की रफ्तार बढ़ाता है।"

    ---

  • 5. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 5

    Words: 1627

    Estimated Reading Time: 10 min

    घर में अब अयान और जोया के तलाक की बात खुलकर होने लगी थी। नावेद साहब और उनकी बेगम इस नतीजे पर पहुँच चुके थे कि अब इस रिश्ते को और घसीटने का कोई फायदा नहीं। उन्होंने जया के लिए एक नया रिश्ता देखना भी शुरू कर दिया था। आखिरकार, वह उनकी जिम्मेदारी थी।

    सच तो यह भी था कि अयान ने यह शादी कभी पूरी तरह अपनाई ही नहीं थी। जोया से शादी कराने का मकसद यही था कि वह लड़की हमेशा उनके घर में रहे, परिवार का हिस्सा बनकर। लेकिन वह उम्मीद कभी पूरी नहीं हो सकी।

    नावेद साहब ने एक दिन अयान को अपने कमरे में बुलाया। वह बहुत कुछ कहना चाहते थे, मगर शब्दों को संभालकर बोलना उनके लिए भी आसान नहीं था।

    "देखो अयान, जैसा तुम चाहते थे, अब वही हो रहा है," उन्होंने शांत स्वर में कहा।

    "तलाक की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। अब तुम्हें ज़िंदगी को लेकर थोड़ा गंभीर हो जाना चाहिए। अपने काम पर ध्यान दो, ऐसे लापरवाह होकर जिंदगी नहीं चलती।"

    "मैं ऑफिस जा रहा हूँ, और क्या करूँ?"

    अयान ने बेहद बेरुखी से जवाब दिया।

    "और आप... आप मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ देते? जब देखो तब कहते हैं 'ऐसा करो, वैसा करो' — मेरी ज़िंदगी को आपने अजूबा बना कर रख दिया है।"

    उसका लहजा और बर्ताव देखकर नावेद साहब का दिल टूट रहा था। उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि उनका बेटा अब पूरी तरह बदल चुका है।

    "एक बात याद रखना अयान," उन्होंने सख्त लहजे में कहा,

    "अगर तुम काम नहीं करोगे, अपने पैरों पर खड़े नहीं होगे, तो मेरे रुतबे, मेरे नाम और हमारे खानदान की इज़्ज़त का क्या होगा? यह बात तुम अच्छी तरह जानते हो।"

    अयान चुप रहा, फिर अचानक एक लंबे समय से दबा हुआ जहर बाहर निकल आया।

    "तो ऐसा कीजिए, मुझे मेरा हिस्सा दे दीजिए," उसने ठंडे स्वर में कहा।

    "आपको भी तो मुझसे छुटकारा चाहिए न? यही तो बहाना ढूंढते रहते हैं। सीधे-सीधे कहिए, आप मुझे इस घर में नहीं देखना चाहते।"

    नावेद साहब कुछ बोल नहीं पाए।

    अयान की आंखों में जैसे एक अलग ही दुनिया बस चुकी थी — एक ऐसी आज़ादी की तलाश जो रिश्तों और ज़िम्मेदारियों से परे हो।

    उसके आसपास कुछ लोग थे जो पहले से ही उसे भड़काते रहते थे — कहते थे कि अकेले रहो, इतनी बड़ी फैमिली का झंझट न रहेगा तो सुकून मिलेगा। अयान अब उसी राह पर चल पड़ा था।

    --

    नावेद साहब को अब ज़रा भी शक नहीं रहा था — उनका बेटा अब उनके हाथ से पूरी तरह फिसल चुका था।

    नावेद साहब की आंखों में अब केवल गुस्सा नहीं था, एक ठहराव था — जो तब आता है जब कोई पिता जान जाता है कि अब वह बेटे को और नहीं संभाल सकता।

    वह भारी आवाज़ में बोले,

    "अलग रहना है? रहो! कौन रोक रहा है तुम्हें? पर कैसा हिस्सा? कौन-सा हिस्सा?"

    वह अपनी कुर्सी से खड़े हो गए। उनका चेहरा लाल हो चुका था, और माथे की नसें तन चुकी थीं।

    "यह घर, यह बिजनेस, यह जमीन — ये सब मेरे पिता की मेहनत से खड़ा हुआ है, और फिर मेरी रात-दिन की मेहनत से। तुमने क्या किया है इसके लिए? सिर्फ मुंह खोलना सीखा है। दोस्तों के साथ घूमना, बर्बाद करना, यही किया है!"

    "अब अगर इतनी ही आज़ादी चाहिए तो निकल जाओ। मेरा दरवाज़ा हमेशा से खुला था, आज से बंद समझो।"

    अयान कुछ पल के लिए चुप रहा, फिर उसका चेहरा और सख्त हो गया। उसने नजरें नहीं झुकाईं, बल्कि और तीखी कर लीं।

    "जानता हूँ… जानता हूँ आपको मैं कभी पसंद नहीं आया। और अब तो आप साफ़-साफ़ कह भी रहे हैं कि मैं इस घर के लायक नहीं रहा।"

    "ठीक है… मैं चला जाऊँगा।!"

    उसने ज़ोर से कहा,

    "असल वजह ये है ना? आपको तो मुझ से कभी कोई लगाव था ही नही!"

    नावेद साहब ने पास पड़ी वॉकिंग स्टिक ज़ोर से ज़मीन पर मारी —

    "बस!! अब एक शब्द और मत बोलो !"

    अयान की आंखों में आग थी, वह गुस्से से कांप रहा था।

    " मगर याद रखना — आप भी एक दिन पछताओगे। मेरी ज़िंदगी मेरी है, और मैं किसी के कहने पर नहीं, अपनी मर्ज़ी से जीऊंगा!"

    वह गुस्से से कमरे का दरवाज़ा धक्का मारकर बाहर निकला।

    उसी पल लिविंग रूम का दरवाज़ा खुला। जोया घर के अंदर आ रही थी। ,

    अयान की नज़र जैसे ही जया पर पड़ी, उसके कदम थम गए। उसकी आंखों में एक अजीब सी बेचैनी और गुस्से की आग चमक उठी।

    "तुम ही हो इस सब बर्बादी की जड़!"

    वह चीखा।

    जोया स्तब्ध खड़ी रह गई। कुछ समझ नहीं पाई कि क्या हुआ।

    "याद रखना, मैं तुम्हें तलाक देकर रहूंगा। उन्होंने तुम्हारी वजह से आज मुझे इस घर से निकलने को कह दिया!"

    "अब देखना, मैं इस रिश्ते को कैसे खत्म करता हूँ!"

    उसकी आंखें जलती आग की तरह लाल थीं। वो गुस्से में इतना अंधा हो चुका था कि सच-झूठ, सही-गलत का फर्क तक मिट गया था।

    जोया अब भी चुप थी। 

    अयान भारी कदमों से, मुट्ठियाँ भींचते हुए दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गया। उसका चेहरा ऐसा था जैसे कोई तूफ़ान अपने अंदर समेटे हुए हो — जो अब सब कुछ तबाह करने ही वाला है।

    मगर यह बर्बादी किसी और की नहीं, अयान खुद की करने जा रहा था। वह गुस्से से कांपता हुआ घर से बाहर निकला। बिना एक बार पीछे देखे। दरवाज़ा इतनी ज़ोर से बंद किया कि दीवारों तक में गूंज फैल गई।

    गली में आते ही उसने जेब से अपना फोन निकाला और एक नंबर डायल किया।

    "हैलो... कहाँ हो?"

    उसने तेज़ स्वर में पूछा।

    दूसरी तरफ से दोस्त की आवाज़ आई,

    "क्या हुआ यार? तुम्हें घर से बाहर निकाल दिया क्या?"

    उसकी आवाज़ में मज़ाक था, मगर मतलब गंभीर था।

    "हाँ! निकाल दिया!"

    अयान ने गुस्से से जवाब दिया।

    "तो फिर आ जाओ यार। हम सब यहीं बैठे हैं। मिलते हैं, बैठते हैं। और हाँ, मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें अपना हिस्सा कैसे मिल सकता है — लीगल तरीका है एकदम।"

    वह दोस्त जानता था कि अगर अयान के हाथ पैसा आ गया, तो सबसे पहले वह उसे ही फायदा पहुंचाएगा — जैसा हमेशा होता आया था। और यही लालच उसकी दोस्ती की बुनियाद भी बन गया था।

    ---

    एक पब के कोने की टेबल पर अयान अपने दोस्तों के साथ बैठा था। कुछ और लड़के थे, और दो लड़कियाँ भी। माहौल शोरगुल से भरा था — लेकिन अयान की आंखों में सिर्फ गुस्सा और शराब के नशे की धुंध थी।

    "अब क्या करना है?" एक लड़के ने पूछा।

    "कोर्ट में चलते हैं। देख लेना, कैसे सबको घसीटते हैं हम!"

    दूसरे ने अयान को भड़काते हुए कहा।

    "तुम्हारा हक है, और कोई तुमसे नहीं छीन सकता।

    अयान की आँखें सुर्ख हो चुकी थीं। उसने गिलास एक ही बार में खाली किया और टेबल पर ज़ोर से रखा।

    "मैं अभी जा रहा हूँ वकील से बात करने। सबक सिखाऊंगा सबको!"

    वह लड़खड़ाते हुए खड़ा हुआ। नशा इस कदर हावी था कि ज़मीन भी हिलती सी महसूस हो रही थी।

    "सुन, मैं तेरे साथ चलता हूँ," एक दोस्त ने कहा,

    लेकिन अयान ने हाथ उठाकर उसे रोका।

    "नहीं, मुझे अकेले जाना है। कोई बीच में न आए।"

    वह बाहर निकला, कार की चाबी निकाली और दरवाज़ा खोलते ही अंदर बैठ गया।

    ---

    गाड़ी सड़कों पर दौड़ रही थी, लेकिन अयान को न दिशा का होश था, न रफ्तार का। नशे में बड़बड़ाता जा रहा था।

    "मुझे घर से निकाल दिया… मैं सबको देख लूंगा… देख लेना… कोर्ट में खींचूंगा सबको… जोया, अब तुम नहीं बचोगी… कोई नहीं बचेगा…"

    उसकी आंखों में नफरत और ग़ुस्से की आग थी, और गाड़ी की स्पीड बढ़ती जा रही थी। उसका हाथ स्टेयरिंग पर ढीला पड़ता जा रहा था, मगर पैर एक्सेलेरेटर पर और ज़ोर डाल रहा था।

    अचानक सामने से तेज़ लाइट आई।

    ट्रक।

    अयान की आंखें झपकीं। लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।

    भड़ाम!!

    एक ज़ोरदार टक्कर हुई।

    उसकी गाड़ी ट्रक के साइड से टकरा गई थी। ट्रक के पीछे लदा लोहे की नुकीली रॉड वाला सामान सीधा आकर अयान की कार के शीशे को चीरता हुआ घुसा — और एक लंबी, तेज़ रॉड उसके दिल को पूरी तरह भेद चुकी थी।

    चारों तरफ खून।

    गाड़ी का हॉर्न लगातार बज रहा था।

    रास्ते पर लोगों की भीड़ लगने लगी थी।

    ---

    एक पल, जिसने सब कुछ बदल दिया

    और अयान…?

    वो होश खो रहा था। मगर गुस्से की आग उसके चेहरे से अब भी बुझी नहीं थी।

    -

    किसी ने अयान के एक्सीडेंट की खबर उसके घरवालों तक पहुँचा दी थी।

    सब कुछ जैसे एक झटके में बदल गया।

    नावेद साहब, उनकी बेगम, और अयान के बड़े भाई — सभी लोग भागते हुए अस्पताल पहुँच चुके थे। जब उन्होंने अयान की हालत देखी… तो पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

    वो बेहद बुरी हालत में था। शरीर से खून बह रहा था, उसका चेहरा ज़ख्मों से भरा हुआ था, और डॉक्टरों की टीम लगातार कोशिश कर रही थी कि उसकी जान बचाई जा सके।

    हालत इतनी नाज़ुक थी कि कुछ भी कहा नहीं जा सकता था।

    कहीं कोई उम्मीद थी... कहीं डर।

    "क्या अयान बचेगा?" — यह सवाल सबकी आंखों में था, मगर जवाब सिर्फ एक ही जानता था — अल्लाह।

    अल्लाह जिसे बचाना चाहता है, उसे कोई मिटा नहीं सकता। और जिसका वक्त पूरा हो चुका होता है, वह इस दुनिया से चला जाता है।

    कौन जानता था कि अब अयान का क्या होना है?

    क्या यह हादसा उसकी जिंदगी बदल देगा?

    या फिर… यही उसकी आखिरी मंज़िल थी?

    ---

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    "प्लीज़ मेरी सीरीज़ पर अपना कमेंट ज़रूर करें और साथ में रेटिंग भी दें। आपको मेरी कहानी कैसी लग रही है, यह जानना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है। मुझे फॉलो करना और व्यू देना न भूलें — आपके एक-एक शब्द मुझे आगे लिखने की ताक़त देते हैं। क्या मेरी सीरीज़ सही ट्रैक पर जा रही है? अपनी राय ज़रूर शेयर कीजिए।"

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  • 6. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 6

    Words: 1581

    Estimated Reading Time: 10 min

    जैसे ही उसने पीछे मुड़कर देखा, वो लड़की उसी की तरफ देख रही थी। उसकी आँखें बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह रही थीं। वह उन आँखों से नजरें नहीं मिलाना चाहता था।

    उस लड़की की आँखों में आँसू थे। बिना बोले ही वह उससे एक सवाल कर रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब-सी बेबसी थी। मगर वह उसे अनदेखा करता हुआ ट्रेन में चढ़ गया।

    ट्रेन चल पड़ी थी। वेद दरवाजे पर खड़ा होकर बाहर की ओर देख रहा था, जहाँ वह लड़की अब भी उसी की ओर देख रही थी और अपनी आँखों से आँसू पोंछ रही थी। धीरे-धीरे ट्रेन तेज़ हो गई।

    वह लड़की अपनी जगह से खड़ी हुई, और जैसे ही सामने से एक दूसरी ट्रेन आई—उसने उसके आगे छलांग लगा दी।

    "नहीं!" चिल्लाता हुआ वेद नींद से जागा। उसका पूरा शरीर पसीने से भीग चुका था। उसने इधर-उधर देखा—वह अपने बिस्तर पर था।

    "ये सपना मेरी जान क्यों नहीं छोड़ता?" —उसने खुद से कहा।

    पिछले पाँच सालों से यह सपना उसे लगातार हर रात आता था।

    उसके जागने से पास लेटी लड़की भी उठ गई थी।

    "क्या हुआ डार्लिंग? तुम अक्सर रात को इस तरह घबरा कर क्यों उठ जाते हो?" —वो लड़की वेद से लिपट गई।

    "बुरा सपना था," वेद ने कहा।

    "गलती मेरी है। इतनी हॉट और सेक्सी लड़की तुम्हारे बिस्तर पर हो और तुम फिर भी सो रहे हो!" —कहते हुए वह वेद के ऊपर आ गई।

    "सोने से पहले ही कितने राउंड हुए थे, फिर पूरा दिन भी तो ऐसे ही गया है... हमारे पास सुबह से कपड़े तक नहीं हैं!"

    "मगर तुम्हारा मन तो भरता ही नहीं," —उस लड़की ने मुस्कुराकर कहा।

    "शादी कर लो मुझसे, और मुझे इंडिया के साथ ले चलो। फिर मैं तुम्हारी बीवी बनकर हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगी। हम दोनों दिन-रात यही सब करेंगे," —रोज़ ने धीरे से कहा।

    वेद ने उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया।

    उसे सिर्फ इतना पता था कि अगर लड़की उसकी बाँहों में आ जाए, तो उसे कैसे बहकाना है—यह वो अच्छी तरह जानता था।

    लड़कियाँ उसकी शुरू से कमजोरी रही थीं। कॉलेज के दिनों में उसकी कई गर्लफ्रेंड्स थीं, और वह हर एक को अपने बिस्तर तक ला चुका था। अब वह एक सफल बिज़नेसमैन था, जिसके पास पैसा भी था और पावर भी। उसे लड़कियों का जिस्म चाहिए था—खेलने के लिए, और लड़कियों को चाहिए थे उसके पैसे।

    वह उन्हें उनकी मर्जी के हिसाब से सब कुछ करने देता, और बदले में उन्हें महंगे गिफ्ट्स और पैसे देता। उसके लिए यह सिर्फ संतुष्टि का सौदा था।

    रोज़, जो अभी उसके साथ थी, उसके एक बिज़नेस पार्टनर की बेटी थी। असल में वेद के पार्टनर की मंशा थी कि वेद रोज़ से शादी कर ले। मगर वह ये बात सीधे मुँह नहीं कह सकता था, इसलिए उसने अपनी बेटी को ही वेद को पटाने भेजा।

    आज सुबह जब वह कुछ ज़रूरी दस्तावेज़ साइन करवाने आया, तो रोज़ को वहीं छोड़ गया।

    सुबह से ही रोज़ वेद के साथ शारीरिक संबंध बना रही थी और वेद को पूरी तरह संतुष्ट कर चुकी थी।

    दोनों इस वक्त वेद के पेंटहाउस में थे। उनके कपड़े कमरे की फर्श पर बिखरे हुए थे। कहा जा सकता है कि सुबह से ही वे ऐसे ही थे।

    पिछले पाँच सालों में इस लग्ज़री पेंटहाउस में न जाने कितनी लड़कियाँ आ चुकी थीं—वेद को खुद भी ठीक से याद नहीं।

    ---

    वेद मेहरा, "मेहरा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज़" के मालिक बलवंत मेहरा का इकलौता बेटा था। उसका न कोई भाई था, न बहन। उसके दोनों चाचाओं के दो-दो बेटे थे। कंपनी के सबसे ज़्यादा शेयर उसके डैड के पास थे।

    उसकी माँ भी एक हिस्सेदार परिवार की बेटी थीं, इसलिए उसके माता-पिता के पास कंपनी का सबसे बड़ा हिस्सा था। बलवंत मेहरा कंपनी के CEO थे, और सभी को पूरा विश्वास था कि उनके बाद वेद ही इस पद को संभालेगा।

    पाँच साल पहले, MBA पूरा करने के तुरंत बाद, वेद ने ऑफिस जॉइन किया था। लेकिन शराब के नशे में एक बड़े सियासतदान के बेटे को टक्कर मार दी। मौत तो नहीं हुई, लेकिन हालत नाज़ुक थी। कानूनी परेशानी से बचाने के लिए उसके डैड ने उसे देश से बाहर भेज दिया।

    वेद फिर कभी भारत नहीं लौटा। विदेश में उसने "मेहरा ग्रुप" के इंटरनेशनल बिजनेस को संभाला और वहाँ अपनी पकड़ मज़बूत कर ली।

    उसकी फैमिली उससे मिलने वहीं आ जाती थी। पहले तो डर के कारण वह भारत नहीं लौटा, और बाद में बिज़नेस की व्यस्तता ने उसे रोक लिया।

    अब उसके डैड की तबीयत बिगड़ने लगी थी, इसलिए उसे भारत बुलाया गया था।

    पांच सालों के बाद वो देश लौटने वाला था।  तकरीबन 5 साल पहले उसने एमबीए कंप्लीट की थी और नया-नया ऑफिस ज्वाइन किया था।शराब के  नशे में किसी बड़े सियासत दान के बेटे को ठोक दिया था। उसकी डेथ तो नहीं हुई थी मगर हाल काफी क्रिटिकल थी। उसके डैड ने  उसे उस वक्त देश से बाहर भेज दिया। कितने सालों में वह कभी इंडिया नहीं आया ।उसने मेहरा इंडस्ट्रीज का जो विदेश का बिजनेस था धीरे-धीरे वह सब संभाल लिया।

    उसकी फैमिली इससे यहीं मिल लेती थी ।पहले वो डर के वजह से नहीं आया और फिर बिजनेस की वजह से। उसके उसके मॉम डैड उससे मिलने यही आ जाते थे ।मगर अब उसके डैड की तबीयत खराब रहने लगी थी। तो उसे वापस बुलाया। उसका बिजनेस पार्टनर चाहता था कि वह रोज को अपने साथ ले जाए। मगर वेद की रोज में एक रात से ज्यादा कोई दिलचस्पी नहीं थी ।

    उसके डैड और मोम दोनों एयरपोर्ट पर उसकी वेट कर रहे थे। उसकी मॉम तो उसे देखकर बहुत खुश होती है ।

    बस अब मैं तुम्हारी शादी कर दूंगी ।

    कहीं नहीं जाने दूंगी तुम्हें ।वो  उसे गले से लगाए हुए कहती है ।

    तुम यहीं शुरू हो गई ।

    हम शादी की बात नहीं करेंगे ।

    यह फिर भाग जाएगा । वह लोग बाहर आकर गाड़ी में बैठ चुके । उसके दादा बलवंत मेहरा उसकी मॉम से कहने लगे।

    डैड सच-सच बताओ, बीमार आप तो हो ।

    दिखने में तो आप कहीं से बीमार नहीं लगते।

    आपने बीमारी का बहाना किया है ना, मुझे बुलाने के लिए।

    कोई आपको देखे तो यही कहे ,आप मेरे बड़े भाई लग रहे हैं ,इतने फिट लग रहे हैं।

    उसकी बात पर उसके दादा बलवंत मेहरा हंसने लगे।

    तो फिर और क्या करता ।अब बिजनेस संभालो तुम

    और इन छोटी-छोटी बातों को छोड़ो। वहां जाकर तुम्हारा कुछ ज्यादा ही दिल लग गया था ।

    उसके मां ने कहा।

    वह लोग घर पहुंच चुके थे। उनकी जॉइंट फैमिली थी और बलवंत मेहरा के दोनों भाई साथ रहते थे ।

    उसके आने की खुशी में आज पूरी फैमिली दिन को घर पर थी।

    मैं खाना लगवाती हूं तुम जाकर फ्रेश हो जाओ ।उसकी मॉम ने उससे कहा । वह फ्रेश होकर वापस नीचे आ गया था।

    तो फिर कब तक जहां रहने का इरादा है। उसकी बडे चाचा  रमेश ने कहा।

    वैसे तुम्हारा जहां दिल तो लग जाएगा ।

    5 साल बाद आए हो। उसकी छोटी चाची मौली भी कहने लगी।

    तो और कहां जाएगा यही तो रहेगा ।

    उसके डैड ने खाना खाने खाते हुए।

    कहीं भाई साहब ने इसकी  शादी के  लिए लड़की तो  पसंद नहीं करली।

    उसके छोटे चाचा बृजेश ने कहा।

    और गिफ्ट क्या हो सकता है।

    बिल्कुल लड़की ही होगी।  तो क्या भाई आप अपनी मॉम डैड की पसंद की लड़की से शादी करने वाले हैं।

    उसके रमेश चाचा का बड़ा बेटा वेदांत बोला।

    क्यों आपने भी तो  शादी अपनी मॉम डैड की मर्जी से की थी।

    वेदांत की बाइक वाइफ रीना ने कहा।

    मगर मैं अपनी मर्जी से शादी करूंगा ।

    बड़े चाचा का बेटा दीपक कहने लगा।

    अब तुम नहीं  कहोगे  कुछ ।

    वेद ने सुधीर से कह।

    अब मैं क्या बोलूं ।सुधीर ने कहा ,जो उसके छोटे बृजेश चाचा का बड़ा बेटा था ।

    मेरी तो खुद की सगाई होने जा रही है ,मॉम डैड की पसंद की लड़की है ।

    और तुम्हारा क्या ख्याल है सुधांशु ।

    वेद ने छोटे चाचा के छोटे बेटे से कहा ।

    मैं तो अभी पढ़ रहा हूं ।

    अभी शादी का नहीं सोचा।

    वैसे वो दोनों दिखाई नहीं दे रही।

    सिया और किया दोनों उसके  चाचा की बेटियां थी।

    वह दोनों कॉलेज के ट्रिप पर गई हुई हैं ,बाहर है।

    उसकी माम ने कहा।

    आप सब लोगों का क्या हो गया।

    मैं कोई शादी नहीं करने वाला।

     

    उसके डैड ने अपनी पॉकेट से चाबियां निकाली ।

    यह तुम्हारा गिफ्ट ,तुम्हारे लिए पेंट हाउस त्यार करवाया है मैंने ।

    तुम चाहो तो हमारे साथ रह सकते हो, चाहे वहां पर ।

    बस तुम हमसे कभी-कभी मिलने आ जाया करो ।

    बिजनेस देखना स्टार्ट करो ।

    आपको कैसे पता, आप तो मेरे मन की हर बात बिना कहे ही जान लेते हैं।

      उसके डैड उसे आजादी दे रहे थे। बलवंत की बात पर पूरी फैमिली एक दूसरे की तरफ देखने लगी ।उन्हें उम्मीद थी कि जहां पर नहीं रहेगा और इंडिया का बिजनेस कभी नहीं संभालेगा ।

    देखिए भाई साहब फिर तो  सभी बच्चे अलग रहना चाहेंगे । रमेश ने कहा ।

    आप ग़लत  रवायत डाल रहे हैं।

    प्लीज मेरी सीरीज पर कमेंट करें साथ में रेटिंग भी थे आपको मेरी सीरीज कैसी लग रही है कमेंट में बताएं मुझे फॉलो करना और भेज देना याद रखें।

    "

    कौन है वह लड़की, जिसका सपना वेद मेहरा को बार-बार आता है?

    क्या रिश्ता है वेद का उससे?

    ---

    📢 अगर आपको मेरी सीरीज़ पसंद आई हो, तो कृपया कमेंट करें और रेटिंग भी दें!

    आपका एक कमेंट और एक रेटिंग मुझे अगली कड़ी लिखने के लिए प्रेरणा देता है।

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  • 7. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 7

    Words: 1503

    Estimated Reading Time: 10 min

    आप सब लोगों का क्या गया।

    मैं कोई शादी नहीं करने वाला।

      उसके डैड ने अपनी पॉकेट से चाबियां निकाली ।

    यह तुम्हारा गिफ्ट ,तुम्हारे लिए पेंट हाउस त्यार करवाया है मैंने ।

    तुम चाहो तो हमारे साथ रह सकते हो, चाहे वहां पर ।

    बस तुम हमसे कभी-कभी मिलने आ जाया करो ।

    बिजनेस देखना स्टार्ट करो ।

    आपको कैसे पता, आप तो मेरे मन की हर बात बिना कहे ही जान लेते हैं।

      उसके डैड उसे आजादी दे रहे थे। बलवंत की बात पर पूरी फैमिली एक दूसरे की तरफ देखने लगी ।उन्हें उम्मीद थी कि जहां पर नहीं रहेगा और इंडिया का बिजनेस कभी नहीं संभालेगा ।

    देखिए भाई साहब फिर तो  सभी बच्चे अलग रहना चाहेंगे । रमेश ने कहा ।

    आप ग़लत  रवायत डाल रहे हैं।

    किसके पास क्या है ,मुझे कहने की जरूरत नहीं है।

    मैं  अपने पैसों से बनवा कर दे रहा हूं पेंट हाउस ।

    फ्लैट तो सभी के पास है और उन फ्लैट्स में क्या करते हैं।

    मुझे पता है और जो कोई जहां रहना चाहते हैं चाहे रह सकता है ।

    मैं किसी को नहीं रोका। कहते हुए बलवंत अपनी जगह से उठ गया।

    यह बात सच थी कि अगर  सभी साथ थे तो लालच की वजह से।

    सबसे ज्यादा शेयर्स बलवंत के पास थे और आप उसके बाद वेद के पास ।

    वह  उन्हें छोड़ना नहीं चाहते थे और आजादी सभी को चाहिए थी तो सभी ने अपनी आयाशी के अडे बनाए हुए थे। ऐसा नहीं था कि घर की औरतों को मर्दों के बारे में पता नहीं था ।मगर उन्हें अपनी आजादी चाहिए थी तो चुपचाप से भी एक दूसरे को सहन कर रहे थे ।

    जैसे ही शाम हुई उस  ने गाड़ी की चाबी उठाई और वह  घर से बाहर जाने के लिए तैयार हुआ।

    मॉम में जा रहा हूं। वेद कहने लगा ।

    ठीक है खाने तक आ जाओगे ।

    मॉम मैं किसी दोस्त के पास रहूंगा ।

    इसलिए रात के खाने पर मेरा इंतजार मत करना ।कहते हुए वह बाहर निकल गया था ।

    उसे जाते हुए उसकी मॉम सोचने लगी।

    क्या हुआ। बलवंत ने उसे ऐसा सोचते देखकर पूछा ।

    मुझे डर लगता है इससे और

    आपने भी इससे पेंट हाउस गिफ्ट किया है ।

    खुद ही अलग रहने की इजाजत दे दी ।

    तुम अच्छे से जानती हो अगर हम इसे कंट्रोल करने की कोशिश करेंगे ।

    तो हमें छोड़कर चला जाएगा ।मगर आजादी तो हमें देनी है।

    अगर सच कहो तो यह मेरे जैसा है ।जैसा मैं था जवानी था ।

    तुम मुझे मिली तो मैं बदल गया ।कोई ऐसी लड़की इसकी जिंदगी में आ जाए

    जो इसकी जिंदगी को बांध  दें।

    जब तक वो इसे नहीं मिलती, यह ऐसे ही भागता रहेगा।

    पता है मुझे यह किसी रात को किसी लड़की के साथ होगा।

    मगर कोई फायदा नहीं रोकने में जो करता है करने दो ।

    जब इसकी तकदीर में वह लड़की आएगी तो ,वो खुद अपनी तकदीर बदले गा ।

    उम्मीद करती हूं इसकी लाइफ में वह लड़की जल्दी से आ जाए।

    आज वेद  सीधा एक क्लब में पहुंचा ।वहां पर एक उसका एक दोस्त इंतजार कर रहा ।

    बहुत सालों के बाद इंडिया आए हो।

    अच्छा है  अब हम मिला करेंगे। उसके दोस्त मलिक ने कहा।

    मिलते तो पहले भी थे । वह लोग बार काउंटर पर बैठ गए थे और एक ड्रिंक करने लगे थे ।

    अब साल में एक बार मिलना थोड़ी कोई मिलना होता है ।उसने कहा।

    वह दोनों एक दूसरे के साथ हंसी मजाक कर रहे थे कि वेद की नजर उसे क्लब के अंदर आता ही लड़की पर गई। जिसने रेड कलर की वन पीस ड्रेस पहनी हुई थी । बिल्कुल शॉर्ट ड्रेस, आगे से डीप गला, बेहद हॉट एंड सेक्सी  लड़की थी वह। वेद उस लगातार घूरता रहा ।

    कौन है ये। वेद ने कहा।

    आहूजा खानदान की राजकुमारी है ,लाडली बेटी बाप का काफी बड़ा बिजनेस है

    और क्लब में अक्सर आती है। नखरा  इसका ऊंचा है। किसी की तरफ देखती भी नहीं।

    मुझे ऐसी ही चीज पसंद है। जिनका नखरा थोड़ा ऊंचा हो ।

    उनका उतना ही मजा आता है उनके साथ।

    क्या सोच रहा है।

      तुम्हारा इरादा ठीक नहीं लग रहा। मलिक ने हंसते हुए कहा।

     

    कोई तो चाहिए मुझे जहां पर । मेरी तो कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं है ।

    तो आज इसी से काम चला लेंगे ।

    ---

    "क्या सोच रहे हो?" मलिक ने मुस्कुराते हुए वेद से पूछा।

    "मुझे लगता है, यह लड़की यहीं पर है और मुझे उससे बात करनी चाहिए। कोई तो चाहिए जो मुझे समझे... मेरी तो कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं है।"

    मलिक ने मज़ाक में कहा, "तुम्हारा इरादा कुछ ठीक नहीं लग रहा।"

    वेद हल्की मुस्कान के साथ उठ खड़ा हुआ। जिस लड़की पर उसकी नज़र थी, वह पास खड़ी कुछ दोस्तों से बात कर रही थी। वेद धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा और जानबूझकर अपनी बाँह उससे टकरा दी। उसके हाथ में पकड़ा गिलास झटका खा गया और थोड़ा-सा वाइन उसके कपड़ों पर गिर गया।

    "ओह! सॉरी... मुझे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था," वेद तुरंत बोला।

    "कोई बात नहीं," लड़की ने हल्की-सी मुस्कान के साथ जवाब दिया।

    उसने भी वेद को ऊपर से नीचे तक देखा। उसकी आत्मविश्वासी पर्सनैलिटी और गहरे नैन-नक्श पर वो भी अनजाने में आकर्षित हो गई।

    "मैंने आपको इस क्लब में पहले नहीं देखा," लड़की ने बातचीत शुरू की।

    "मैं पाँच साल बाद इंडिया लौटा हूँ," वेद ने सहजता से कहा। "और आते ही आप जैसी खूबसूरत लड़की से टकरा गया। लगता है किस्मत मुझ पर मेहरबान है।"

    "आपके कपड़े तो गंदे हो गए हैं... यहीं होटल में मेरा कमरा है, अगर चाहें तो चलकर साफ कर लीजिए," वेद ने ऑफर दिया।

    लड़की ने थोड़ी झिझक के बाद मुस्कुराकर हामी भरी, "ठीक है।"

    कमरे में पहुँचने के बाद वेद ने कहा, "मैंने अभी तक आपका नाम नहीं पूछा।"

    "आप ही बताइए पहले," लड़की ने चुटकी ली।

    "वेद... वेद मेहरा।"

    "मैं शनाया हूँ," लड़की ने कहा और वॉशरूम की ओर बढ़ गई।

    "अगर आपको किसी मदद की ज़रूरत हो तो बता दीजिएगा," वेद ने मज़ाक में कहा।

    "आप मदद करेंगे?" उसने मुस्कुरा दी।

    उनके बीच एक अजीब-सी खामोशी छा गई। नज़रों में नज़रों की बातें होने लगीं। जब वो वापस आई तो माहौल और भी करीबियों से भर चुका था।

    "मैं यह ड्रेस बदल लेती हूँ," उसने कहा।

    "अगर चाहो तो मैं साफ करवा दूँ," वेद ने धीरे से कहा।

    आर्या ने एक पल उसे देखा और मुस्कुरा दी। उनकी नज़दीकियाँ बढ़ने लगीं। वेद ने उसके चेहरे को हल्के से थामा, उसकी आँखों में देखते हुए उसके बेहद करीब आ गया। हवा में एक अजीब-सी धड़कन गूँज रही थी।

    आर्या ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा, "क्या सोच रहे हो?"

    "तुम्हें समझाऊँ या महसूस कराऊँ?" वेद की आवाज़ भारी हो गई थी।

    उनके बीच की दूरी धीरे-धीरे मिटने लगी। उस रात उन्होंने एक-दूसरे की मौजूदगी को गहराई से महसूस किया। कमरे में सन्नाटा था, बस दिलों की धड़कनें और साँसों की आवाज़ गूँज रही थीं। दोनों एक-दूसरे में खो चुके थे, मानो दुनिया का हर शोर उनसे दूर हो गया हो।

    काफ़ी देर बाद जब सब थम-सा गया, शनाया ने हल्की थकी मुस्कान के साथ कहा, "मैंने ऐसा कभी महसूस नहीं किया..."

    वेद ने उसकी ओर देखा और धीरे से उसके हाथ थाम लिए, "शायद किस्मत हमें इसी रात मिलवाना चाहती थी।"

    जब सुबह उस लड़की की आंख खुली । वह वहां से जा चुका था।

      मैंने तो उसका नंबर भी नहीं लिया ।उस लड़की ने सोचा।

    चलो कोई बात नहीं इसी क्लब में फिर मिल जाएगा। वह वेद से बार-बार मिलना चाहती थी ।

    भाई आप सुबह आए हो ।

    डाइनिंग टेबल वेदांत ने  पूछा।

    हां ।बस थोड़ी देर पहले ही आया हूं।

    आकर तैयार होकर सीधा जहां आ गया। वेद ने साफ-साफ कहा ।

    आज ऑफिस जाना है।

    आज वह अपने डैड के साथ ऑफिस ज्वाइन करने वाला था। कितने सालों बाद इंडिया आया था।

    तुम इतने सालों के बाद वापस आए हो ।

    तुम्हें बाहर की जगह घर रहना चाहिए ।उसके चाचा बृजेश ने कहा ।

    छोड़ो इस बात को।

    सभी जल्दी करो ऑफिस जाना है ।बलवंत मेहरा ने उस बात को खत्म किया।

    ऐसा कुछ भी नहीं था जो उसे अपने बेटे के बारे में पता नहीं था क्योंकि वेद बहुत सालों के बाद इंडिया आया था। इसलिए बलवंत की पूरी नजर उस पर थी। वह नहीं चाहता था उसका बेटा किसी खतरे में पड़े। और वो ये भी जानता था कि बंदिशें में वेद को रखना नामुमकिन है । अगर उसने वेद पर सख्ती करने की कोशिश की तो वापस  चला जाएगा।

    मेरा ब्रेकफास्ट हो गया ।

    चलिए ऑफिस चलते हैं। वेद अपनी जगह से खड़ा होता हुआ बोला।

    तुम लोग  भी ऑफिस आ जाना ।

    मैं वेद को कंस्ट्रक्शन साइट पर लेकर जा रहा हूं।

    हम लोग सीधे वहीं  से ऑफिस पहुंच जाएंगे ।बलवंत ने कहा।

    ठीक है आप जाइए।

    ना चाहते हुए भी बृजेश बोला।

    क्या कोई ऐसा आएगा जो वेद किया आयाशीयो को बंद कर देगा।

    प्लीज मेरी सीरीज पर कमेंट करें साथ में रेटिंग भी थे आपको मेरी सीरीज कैसी लग रही है कमेंट में बताएं मुझे फॉलो करना और भेज देना याद रखें।

  • 8. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 8

    Words: 1701

    Estimated Reading Time: 11 min

    मेरा ब्रेकफास्ट हो गया ।

    चलिए ऑफिस चलते हैं। वेद अपनी जगह से खड़ा होता हुआ बोला।

    तुम लोग  भी ऑफिस आ जाना ।

    मैं वेद को कंस्ट्रक्शन साइट पर लेकर जा रहा हूं।

    हम लोग सीधे वहीं  से ऑफिस पहुंच जाएंगे ।बलवंत ने कहा।

    ठीक है आप जाइए।

    ना चाहते हुए भी बृजेश बोला।

    किसी को भी वेद का आना अच्छा नहीं लगा था ।क्योंकि अब सीधी सी बात थी बलवंत की जगह आप वेद सीईओ बनेगा । सभी समझते थे कि वह हमेशा में विदेश में सेट हो जाएगा और बलवंत के बाद उनमें से ही कोई मेरा इंडस्ट्री का सीईओ बनेगा। सभी ने एक दूसरे की तरफ देखा और अपनी-अपनी जगह से उठने लगे थे ।

    शॉपिंग मॉल इस शॉपिंग मॉल की जिम्मेदारी तुम्हारी है।

    इसका इंटीरियर डिजाइन  कैसे तैयार करना है और इसे शहर का नंबर वन माल बनाना है।

    बलवंत ने गाड़ी में बैठे हुए वेद से कहा।

    यह तुम्हारा पहला प्रोजेक्ट है ।सामने मॉल की बिल्डिंग जिसका लिपाई का काम चल रहा था, 9 मंजिलें पूरी हो चुकी थी ।

    जानते हो पूरी फैमिली यही सोचती है कि तुझ में वो काबिलियत नहीं है ।

    तुम सिर्फ इसलिए ceo बनोगे कि तुम मेरे बेटे हो ।

    मगर तुम्हें साबित करना होगा कि तुम बहुत काबिल हो ।

    जो तुम्हारे पास है वह उन लोगों के पास नहीं।

    मेरे और तुम्हारी मॉम के पास 51% शेयर्स हैं ।

    तो डैड आपको लगता है ।

    मुझ में इतनी काबिलियत है । वेद ने पूछा।

    मेरा बेटा है, मुझे कैसे नहीं पता होगा ।

    सिर्फ अपने गुस्से और जिद को कम करो ।

    उस दिन उसे एक्सीडेंट की वजह भी तुम्हारी जिद थी।

    ज्यादा स्पीड पर तुम गाड़ी चला रहे थे

    और दूसरे को साइड तक देना नहीं चाहते थे !

    इसकी सजा यह थी कि तुम इतने सालों के बाद इंडिया वापस आए हो।

    तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ा होगा।

    मगर तुम्हारी मॉम पल-पल रोई है।

    मगर वह मुझसे मिलने आती तो थी वहां पर।

    वेद ने कहा।

    मां बाप मिलना नहीं चाहते ,साथ रहना चाहते हैं ।

    जो लड़की तुम्हें पसंद हो ।हमें बता देना ।

    हम तुम्हारी शादी कर देंगे ।बस हमारे अरमान है तुम्हारी शादी हो जाए।

    तुम्हारे बच्चे हो। हम तुम्हारी फैमिली के साथ रहना चाहते हैं।

    अगर तुम हमारे साथ नहीं रहना चाहते,

    कम से कम एक शहर में तो रहो।

    जब हम चाहे तुमसे मिलने आ जाए । बलवंत वेद खुल कर बात कर रहा था

    डैड मैं अभी शादी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता ।

    वेद ने कहा।

    मैं तुम्हें यह नहीं कहता कि तुम अभी शादी करो ।

    बिजनेस की तरफ ध्यान दो।

    मेरे कहने का मतलब यह है अगर तुम्हें कोई लड़की पसंद आती है।

    तो आंखें हम आंखें बंद करके तुम्हारी शादी कर देंगे ,जहां तुम कहोगे।

    हम अपने बेटे की फैमिली के साथ रहना चाहते हैं। कहते हुए उसके डैड की आंखें भर बाहर आई थी।

    डैड आप तो रोने लगे।

    वो उनके गले लग गया।

    मैं आपको छोड़कर कभी नहीं जाऊंगा।

    हमें तुम्हारे बच्चों के साथ खेलना है ।

    बिजनेस छोड़कर मैं और तुम्हारी मॉम तुम्हारे बच्चों को खिलाएंगे ।

    तुम दोनों मियां बीवी अपनी जिंदगी जीना।

    अपने बच्चों को हमें दे देना पालने के लिए ।उसके डैड उसे हर तरह से कन्वेंस करना चाहते थे कि वह हर हाल में उसके साथ हैं ।क्योंकि वह जिस तरह का जिद्दी और गुस्से वाला था । उन्हें डर था कि कहीं वो फिर कोई गलती ना कर बैठे ।

    कोई शक नहीं था कि वह बहुत इंटेलिजेंट था और उसे अपने मॉम डैड से बहुत प्यार था।

    आप फिक्र क्यों करते हैं ।

    देखना मैं इस माल को मैं कैसे हैंडल करता हूं ।

    रही बात मैरिज की और अभी तो मेरा कोई इरादा नहीं है ।

    अगर आपके बच्चे चाहिए होंगे तो बता देना ।

    बच्चे पैदा करने के लिए शादी की क्या जरूरत है। वेद ने शरारत के साथ कहा।

    वेद के मिलवाने के लिए बोर्ड की मीटिंग है रखी गई थी। सभी उन्हीं का इंतजार कर रहे थे ।

    सारी हम दोनों लेट हो गए ।

    बलवंत ने मीटिंग रूम के अंदर आते ही कहा ।

    कोई बात नहीं तो क्या हुआ। कमल शर्मा जो उनकी कंपनी की एक डायरेक्टर थी ,उसने कहा। वेद बोर्ड आफ डायरेक्ट से मिलता है।कुछ चेहरे ऐसे थे जिन्हें वह जानता था और कुछ चेहरे नए थे ।उसने सभी चेहरों  में उसकी अपनी फैमिली के भी चेहरे थे । उसने ध्यान से देखा। वह जानता था कि ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि वह भाग जाएगा ।वह जहां नहीं रहेगा। मगर वेद जाने के लिए तो आया ही नहीं था । वह जहां का बिजनेस संभालने वाला था।

    मीटिंग पर खत्म होते ही उसके डैड उसे उसका ऑफिस दिखाने ले गए ।

    देखो मैंने तुम्हारे आने से पहले ही तुम्हारी पसंद के हिसाब से तुम्हारा ऑफिस रेडी करवाया है।

    उम्मीद है तुम्हें पसंद आएगा।

    उसकी एक वॉल ग्लास की बनी हुई थी, जिससे सारा शहर दिखाई देता था। एक साइड साथ ही एक गेस्ट रूम भी था और गेस्ट रूम में एक छोटी सी किचन थी ।

    गेस्ट रूम से एक दरवाजा बाहर की तरफ ही खुलता था जो बाहर की स्टेयर की तरफ जाता था ।

    डैड यह बहुत ब्यूटीफुल है ।

    आपका यह बाहर की सीढ़िया वाला आईडिया मुझे बहुत अच्छा लगा।

    हां मुझे पता है ,जब मेरे बेटे को भागना होगा।

    कम से तो वह जहां से भाग सकता है । याद रखना जो ऑफिस के पीछे जाकर निकलती हैं ।

    सिर्फ स्टेयर हैं ,लिफ्ट नहीं है।

    वह कोई बात नहीं है, आपका बेटा एक्सरसाइज करता है।

    आपको क्या लगता है। स्टेयर से मुझे डर लगता है, ।वह हंसने लगा।

    अच्छा तो तुम अपना काम स्टार्ट करो।

    मैं अभी उस प्रोजेक्ट की फाइल भिजवाता हूं।बलवंत मेहरा उस माल के प्रोजेक्ट की बात कर रहा था। जो वो वेद को दिखा कर आया था ।

    ठीक है डैड आप फाइल भेजिए। मैं देखता हूं ।

    मैं आर्किटेक्ट डिपार्टमेंट से किसी से कहता हूं ।

    वह फाइल तुम्हारे पास पहुंच जाएगी। क्योंकि वेदांत उसका इंटीरियर डिजाइन पर काम करना चाहता था। इसीलिए वह उसी की फाइल मंगवा रहा था।

    मे आई कम इन सर।

    किसी ने उसके खुले हुए ऑफिस के डोर पर पहुंचकर कहा।

    वेदांत जो ग्लास बाल से पूरा शहर देख रहा था ।बिना देखे उस की तरफ देखें बोला ।

    फाइल टेबल पर रख दो।

    वेद की पीठ तरफ देखती हुई उस लड़की ने कहा।

    जी सर। उस लड़की ने फाइल टेबल पर रखी और जाने लगी ।

    सुनो ।वेदांत जो चलकर टेबल तक आ गया था ।

    वो लड़की जो लगभग उसकी केबिन से बाहर निकल चुकी थी उसे कहा ।

    सुनो यह इंटीरियर प्रोजेक्ट की फाइल है ।

    मुझे माल का प्लान चाहिए।

    जो भी तुम लोगों के पास हो वह ले आओ।

    वह लड़की वेद की बात पर घुमी ।

    सर वह फाइल तो…

    वेद का चेहरा देखते हुए उसे लड़की के शब्द उसके मुंह में ही रह चुके थे। वेदांत भी उसे हैरानी से देख रहा था ।

    तुम

    तुम जहां क्या कर रही हो।

    वह लड़की अभी भी सदमे में थी । जितना वेद हैरान था उससे ज्यादा वह लड़की हैरान थी।

    उसके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला था ।

    मैं तुमसे पूछ रहा हूं।

    तुम जहां क्या कर रही हो ।

    समझा मेरे बारे में पता लगाने के बाद, मेरा जहां आने का इंतजार कर रही हो।

    और मेरे आते ही पहले दिन पहुंच गई मेरे सामने ।

    तुम मुझे ऐसे ब्लैकमेल नहीं कर सकती।

    अच्छे से जानता हूं मैं तुम जैसी लड़कियों को।

    मुझे इस ऑफिस में तुम्हारा चेहरा नहीं देखना ।

    निकल जाओ इस ऑफिस से, आज के आज ,

    अभी के अभी ।वो बहुत गुस्से में था।

    वह लड़की भाग कर वहां से चली गई। वह इतनी हैरान परेशान थी।अब उसकी लाइफ जब सही होने लगी थी तो वह वापस आ गया था ,उसके सामने ।और उस पर ही ब्लेम कर रहा था।

    उसका जहां होना उस मानवी की समझ से बिल्कुल बाहर था ।वह पिछले दो सालों से जहां काम कर रहे थी। मगर उसे कभी नहीं देखा था और आज अचानक कहां से आ गया।

    5 साल से जो चेहरा मुझे रोज रात को सोने नहीं देता

    और मेरे इंडिया आने के पहले दिन वो जो लड़की जहां पर है।

    मैं तो सोच रहा था पता नहीं बेचारी का क्या हुआ होगा।

    मगर यह तो मेरा इंतजार कर रही है । वेद ने टेबल पर जो सामान पड़ा था। उसने गुस्से में हाथ मार कर नीचे गिरा दिया ।क्योंकि वह उसे मिलेगी उसने सोचा नहीं था।

    इतने साल से मैं सो नहीं सका और

    यह आराम से जहां पर मेरा इंतजार कर रही है ।जब सामान नीचे गिरा तो बाहर रिसेप्शन पर जो लड़की थी वह भाग कर आई ।

    क्या हुआ सर।

    इस ऑफिस को ठीक करो। कहता हुआ वेदा जो उसके गैस्ट रूम में जो दरवाजा था ।उस पिछले दरवाजे से निकला और सीडीओ से ऑफिस से बाहर चला गया। उसे पेंट हाउस का ख्याल आया जो उसके डैड से दिया था तो वह गाड़ी उठाकर वही चला गया ।वह बहुत बेचैन था।

    रात हो चुकी थी, डिनर का टाइम होने वाला था ।मगर वेद अभी तक घर वापस नहीं आया था ।

    आपने ऐसा कौन सा काम दिया है उसे

    कि वह पहले दिन ही नहीं आया ।उसकी मॉम उसके डैड पर गुस्सा हो रही थी।

    तुम्हारा गुस्सा हमेशा मुझ पर ही क्यों निकलता है ।

    मुझ में इतनी हिम्मत नहीं कि तुम्हें और तुम्हारे बेटे को कंट्रोल कर सकूं।

    उसे फोन करो और पता करो कि वह कहां है ।उसके डैड ने हंस कर कहा।

    उसकी मां उसे फोन करने लगी ।पहली बार वेल जाती रही ।उसने फोन नहीं उठाया । उसकी माम ने दूसरी बार फिर फोन किया ।इस बार उसने पहले वेल परी उठा लिया ।

    सॉरी माम में वॉशरूम में था ।

    कहां हो बेटा। खाने का टाइम हो रहा है।

    मैं पेंट हाउस में हूं ।

    आज मैं नहीं आ रहा। प्लीज बात बात पर फोन मत किया करो ।

    मुझे ऐसे जवाब देना पसंद नहीं। कहते हुए वेद ने फोन काट दिया।

    प्लीज मेरी सीरीज पर कमेंट करें साथ में रेटिंग भी थे आपको मेरी सीरीज कैसी लग रही है कमेंट में बताएं मुझे फॉलो करना और भी देना याद रखें।

  • 9. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 9

    Words: 1537

    Estimated Reading Time: 10 min

    तुम्हारा गुस्सा हमेशा मुझ पर ही क्यों निकलता है ।

    मुझ में इतनी हिम्मत नहीं कि तुम्हें और तुम्हारे बेटे को कंट्रोल कर सकूं।

    उसे फोन करो और पता करो कि वह कहां है ।उसके डैड ने हंस कर कहा।

    उसकी मां उसे फोन करने लगी ।पहली बार वेल जाती रही ।उसने फोन नहीं उठाया । उसकी माम ने दूसरी बार फिर फोन किया ।इस बार उसने पहले वेल परी उठा लिया ।

    सॉरी माम में वॉशरूम में था ।

    कहां हो बेटा। खाने का टाइम हो रहा है।

    मैं पेंट हाउस में हूं ।

    आज मैं नहीं आ रहा। प्लीज  बात बात पर फोन मत किया करो ।

    मुझे ऐसे जवाब देना पसंद नहीं। कहते हुए वेद ने फोन काट दिया।

    क्या हुआ क्या कहा उसने ।

    उसकी मॉम उदास हो गई तो उसके डैड ने पूछा ।

    मुझे इस लड़के की बहुत फिक्र है।

    इतना गुस्सा अच्छा नहीं।

    मालूम नहीं क्या हो गया ,किस के साथ लड़ाई हुई है।

    वह नहीं आएगा  आज भी घर।

    पेंट हाउस पर रहेगा ।

    आपको क्या जरूरत थी उसे पेंट हाउस गिफ्ट करने की ।

    अब वो घर नहीं आने वाला।उसकी मॉम उसके डैड पर गुस्सा हो गई ।

    अगर उसके पास अपना पेट हाउस था तो उसमें चला गया ।

    अब हमें पता है वह वहां पर सेफ है ।

    मैंने वहां पर  सभी काम वालों का भी इंतजाम कर दिया है ।

    किसी होटल में रहने से अच्छा है कि वह वहां है

    तो अब हमें उसकी फिक्र करने की जरूरत नहीं।

    मैंने सोच समझकर उसके लिए  हाउस तैयार करवाया है।

    यह तो आपने ठीक किया ।

    उसकी माम कहने लगी।

    अब तक तो मैंने ठीक किया नहीं किया था ।

    अब तुम मेरी बात से सहमत हो।

    तुम अपना मूड ठीक करो । उसके डैड ने कहा।वो उसकी माम को समझाने

    कोई बात नहीं, ठीक हो जाएगा।

    मेरे मूड की कोई बात नहीं है। उसकी मॉम ने कहा।

    वेद अपने पेंट हाउस में बैठा हुआ था ।वो  अपने बेडरूम में चेयर पर बैठा था और ड्रिंक पर ड्रिंक कर रहा था ।वो उस लड़की को भूलना चाहता था। पिछले 5 सालों से वो हर रात उसके सपने में आती थी और आज उसके ऑफिस में उसी का इंतजार कर रही है।

    वह सोचता था कि पता नहीं क्या हुआ होगा उसका ।

    मगर वह पहुंची हुई थी, उसने वेद  को ढूंढ लिया था।

    वेद का सिर घूम रहा था ।

    वह अपनी आंखें बंद किए हुए बैठा था। उसके फोन पर कितनी सारी मिस कॉल थी ।मगर वह फोन नहीं उठा रहा था। सिर्फ  अपनी माम का फोन उठाया था।माम के बाद जब मलिक का फोन आया तो उसने उठा लिया।

    कहां हो तुम।

    मैं तो क्लब में तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।

    जल्दी से आ जाओ।

    नहीं मैं नहीं आ रहा ।

    मेरा सिर दर्द कर रहा है । वेद ने कहा।

    मैं अपने पेंट हाउस में हूं।

    मेरे पास तुम्हारी कल की खूबसूरत फ्रेंड है ।

    वह तुम्हारे बारे में पूछ रही है ।

    दिल नहीं लग रहा उसका तुम्हारे बिना।

    तो तुम्हारे पेंट हाउस पर भेज देता हूं ।

    तुम्हारा सिर दर्द भी ठीक हो जाएगा।

    उसने हंस कर कहा।

    ठीक है भेज दो ।

    मैं एड्रेस सेंड करता हूं। वेद ने कहा।

    अच्छा है वह आ जाए ।

    मैं इस लड़की को भूल जाऊं ।

    उसके साथ मेरा टाइम भी अच्छा गुजर जाएगा ।

    पिछली रात वेद भी भुला नहीं था।

    तकरीर बना आधे घंटे में ही वह वहां पहुंच गई थी। वेद  ने पेंट हाउस का दरवाजा खोला ।

    लगता है मेरे बिना मन नहीं लगा तुम्हारा।

    मेरे पेंट हाउस में तुम्हारा स्वागत है।

    वेद ने मुस्कुराकर कहा।

    वह दोनों तरफ उसके बेडरूम की तरफ जाने लगे थे ।कमरे में पहुंचते ही उसने अपने पैरों की हील उतार दी और सोफे पर बैठ गई।

    मुझे नहीं पता था तुम वेद मेहरा  हो।

    तुमने मुझे बताया ही नहीं।

    मैं तो सुनकर हैरान हो गई । शनाया आहुजा ने कहा।

    तो क्या फर्क पड़ता है मैं वेद मेहरा हूं जां कोई और ।

    वह भी उसके साथ सोफे पर ही आ गया था ।

    पहले मैं हम दोनों के लिए ड्रिंक बनाती हुं।

    वो उठकर ड ड्रिंक बनाने लगी।

    जानते हो बेबी एक ही रात में तुमने मुझे अपना गुलाम बना लिया ।

    शनाया आहुजा का दिल आज तक किसी पर नहीं आया था।

    मगर एक ही रात में तुमने मुझे अपना गुलाम बना लिया।

    ड्रिंक पीने के बाद एक दूसरे के नजदीक होने लगे ।वह दोनों  काफी नशे में हो चुके थे ।

    शनाया वेद को किस करने लिए उसके चेहरे के नजदीक अपना चेहरा लेकर गई। जैसे ही वो उसे किस करने लगी। वेद ने उसे धक्का दे दिया।

    वेद को उस लड़की में मानवी का चेहरा दिखाई देने लगा ।

    तुम जहां पर क्या कर रहे हो।

    पीछा क्यों नहीं छोड़ती । मैंने कहा तुम जहां पर क्या कर रही हो। उसने  शनाया  को धक्का दे दिया।

    पागल हो गए हो क्या ।

    वह नीचे गिर गई । शनाया सोफे से नीचे गिरी हुई पड़ी थी। उसे समझ नहीं आया था।

    सारी । वेद ने उसे उठाते हुए कहा ।

    तुम जाओ  जहां से। मैं ठीक नहीं हूं ।

    वेद  ने उस को वहां से भेज दिया था।

    मुझे उस लड़की से साफ-साफ बात करनी है ।

    मैं उसे ऑफिस से निकाल दूंगा ।ऐसे ही उसने पूरी रात गुजारी थी।  एक मिनट के लिए भी  मानवी उसके दिमाग से नहीं निकल रही थी।

    रात को वो ठीक से नहीं सोया । शनाया के जाने के बाद भी वह कितनी देर तक ड्रिंक करता रहा। सुबह उसकी बहुत देर से आंख खुली। रात को ज्यादा पीने की वजह से उसका सिर दर्द कर रहा था ।उसने खाना भी नहीं खाया था ।उसकी कंडीशन बिल्कुल भी ठीक नहीं थी ।वह जैसे तैसे उठा वॉशरूम में गया चेहरा धोया और वह नीचे आ गया।

    वह चाय पीना चाहता था।

    तो अब मुझे चाय भी खुद बनानी पड़ेगी।

    वह किचन में जाता हूआ अपना फोन देखने लगा। वो  मैसेज चेक कर रहा था।उसके डैड का मैसेज  था। उसके डैड ने कोई नंबर सेंड किया था । तुम्हें तुम्हारे घर के काम करने वाले लोग इस नंबर पर मिल जाएंगे।

    फोन कर देना ,खाना बनाने के लिए कुछ देर पहुंच जाएगा और वह साफ-सफाई भी करवा देगा ।

    वह अपने डैड का मैसेज देखकर मुस्कुराया ।

    सचमुच मेरे डैड दुनिया के बेस्ट डैड हैं ।

    उन्हें पता है उनके बेटे को क्या चाहिए। उसने फोन किया तो वेद का कुक वहां पहुंच गया था।

      क्या मुझे ऑफिस जाना चाहिए ।

    उसने अपनी कंडीशन को शीशे में देखा ।

    मेरा दूसरा दिन है ऑफिस का ,मैं ऐसे ऑफिस नहीं जा सकता।

    क्या इंप्रेशन रहेगा मेरा ।

    क्यों ना मैं आज ऑफिस जाने की जगह माल जाऊं और

    वहां का काम देखुं। वैसे भी वह फ्रेश होना चाहता था ।आज उस लड़की का चेहरा  नहीं देखना चाहता था।

    इसलिए वह तैयार होकर माल के लिए निकल गया था ।एक बार माल पहुंचा तो वह मॉल में इतना बिजी हुआ कैसे वही रात हो चुकी थी।मगर वह अपने काम से खुश था क्योंकि आज उसका जाना जरूरी था।

    शाम को आज उसने पेंट हाउस जाने की जगह वह अपने घर चला गया।

    क्या बात है भाई आज तो आप घर आ गए। उसे देखते ही वेदांत ने कहा।

    चलो अच्छी बात है। आज वैसे भी हम सब लोग सगाई की प्लानिंग कर रहे हैं।

    तो तुम घर के बड़े बेटे हो तुम्हें भी होना चाहिए ।उसकी चाची ने कहा ।

    अच्छा तो फिर कब की है सगाई । वेद ने कहा।

    15 दिन रह गए  सगाई में।

    उसकी माम कहने लगी।

    तो फिर तो दिन ही बहुत थोड़े रहते हैं।

    और नहीं तो क्या 15 दिन रह गए सगाई में

    और पूरी तैयारी रहती है। उसकी छोटी चाची मौली कहने लगी।

    तैयारी तो लड़की वालों को करनी है

    और वह बेचारे तैयारी में लगे हुए हैं ।

    उनकी तो पूरी फैमिली जयपुर पहुंच चुकी है ।उसके चाचा बृजेश ने कहा।

    लड़की वाले दिल्ली की कोई बिजनेस फैमिली थी और और उनका संबंध राजस्थान जयपुर से था तो वह अपने शहर में शादी करना चाहते थे। जयपुर मैं उनकी कोई हवेली थी ।वहीं पर शादी होनी थी ।बहुत ही ट्रेडिशनल तरीके से वह लोग शादी करने वाले थे।

    अच्छा तो सगाई जयपुर में हो रही है।

    वेद ने पूछा।

    डेस्टिनेशन वेडिंग होगी, बहुत दूर-दूर से लोग आ रहे हैं। उसके डैड कहने लगे।

    और हां वेद तुम्हारे भी कोई फ्रेंड हो तो बुला लेना।

    शादी में उसके चाचा रमेश कहने लगे।

    यह किया और सिया कब आएंगे। रीना बीच में बोली ।

    दो-तीन दिन में आ जाएंगी ।रीना की सास रूपा ने कहा।

    वैसे भी उन लड़कियों ने अपनी तैयारी कर रखी है ।

    दोनों ही सेकंड ईयर में पढ़ती थी और दोनों ही कालज ट्रिप में गोवा गई हुई थी।

    वेद तुम सगाई और शादी के लिए कपड़े बनवा लो ।

    जहां पर बहुत से लोग तुमसे पहली बार मिलेंगे।उसकी मॉम कहने लगी ।

    बिल्कुल क्या पता कोई लड़की वेद को भी पसंद आ जाए, वहां पर।

    बिल्कुल तुम जैसा।जब तक मैं तुम्हारी मां से नहीं मिला था।

    प्लीज मेरी सीरीज पर कमेंट करें साथ में रेटिंग भी दे आपको मेरी सीरीज कैसी लग रही है कमेंट में बताएं मुझे फॉलो करना और भी होगा ना याद रखें।

  • 10. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 10

    Words: 1538

    Estimated Reading Time: 10 min

    दोनों ही सेकंड ईयर में पढ़ती थी और दोनों ही कालज ट्रिप में गोवा गई हुई थी।

    वेद तुम सगाई और शादी के लिए कपड़े बनवा लो ।

    जहां पर बहुत से लोग तुमसे पहली बार मिलेंगे।उसकी मॉम कहने लगी ।

    बिल्कुल क्या पता कोई लड़की वेद को भी पसंद आ जाए, वहां पर।

    घर का बड़ा बेटा है। कायदे से तो सबसे पहले इसकी शादी होनी चाहिए।

    उसकी चाचा ने हंसते हुए कहा ।

    अचानक उसके चाचा के कहने पर पर वेद की नजरों में वह लड़की घूम गई। जिसे वह भूलना चाहता था ।वह से फिर याद आ गई ।

    क्या हुआ मुझे लगता है वेद को कोई लड़की पसंद है ।

    उसी के बारे में सोचने लगा।

    देखो वेद तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है तो बुला लो।

    हम भी मिलते हैं उस से। उसकी बड़ी चाचा रूपा मजाक करने लगी थी।

    उसकी मॉम सीरियस होकर उसका चेहरा देख रही थी। जैसे ही रात का डिनर खत्म हुआ वेद कमरे में चला गया। उसकी मॉम उसके पीछे चली गई थी।

    क्या हुआ कोई प्रॉब्लम है क्या।

    सचमुच कोई लड़की है ।वो बहुत प्यार से पूछ रही थी।

    कोई नहीं है,जिस दिन कोई होगी मैं आपको बता दूंगा।

    वेद ने मुस्कुरा कर कहा। वह अपनी बात किसी से शेयर नहीं करता था, वह चुप रह गया।

    रात को उस के डैड वॉशरूम जाने के लिए उठे। उन्होंने खिड़की से देखा वेद लॉन में घूम रहा है ,तो वह नीचे आ गए।क्या बात है बेटा , इतनी रात को जहां पर क्या कर रहे हो।

    और अगर यही सवाल मैं आपसे पूछूं, इतनी देर को आप जहां पर क्यों हैं ।

    वेद ने वापस सवाल किया।

    एक बाप को कैसे नींद आए।

    जिसका जवान बेटा रात को जहां घूम रहा है।

    चलो तुम्हें भी नींद नहीं आ रही, मुझे भी नहीं आ रही।

    दोनों बैठते हैं ।वह दोनों बहन झूले पर बैठ जाते हैं।

    देखो बेटा ये मत समझना कि मैं तुम्हारा बाप हुं ।

    दोस्त हूं मैं तेरा ,जब कोई बात शेयर करनी चाहो तो कर लेना।

    तुम्हें गलत सलाह नहीं दूंगा और कोशिश करूंगा अपने बेटे की प्रॉब्लम सॉल्व कर सकुं।

    उसके डैड ने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहा ।

    वह समझ रहे थे , वेद किसी उलझन में है।

    चलो भाई मैं तो चलता हूं, मेरी बीवी ढूंढती हुई मुझे जहां आ जाएगी।

    तुम्हें तो किसी का डर नहीं। मैं तो उस से बहुत डरता हूं ।कहते हुए वहां से उठने लगे ।

    जाते-जाते उन्होंने फिर कहा।

    जब चाहे शेयर कर लेना, एक दोस्त बनकर तुम्हें सही सलाह दूंगा ।

    चाहे कैसी भी बात हो । जवानी में मैं भी तुम जैसा ही था,

    बिल्कुल तुम जैसा।जब तक मैं तुम्हारी मां से नहीं मिला था।भी उन लड़कियों ने अपनी तैयारी कर रखी है ।

    दोनों ही सेकंड ईयर में पढ़ती थी और दोनों ही कालज ट्रिप में गोवा गई हुई थी।

    वेद तुम सगाई और शादी के लिए कपड़े बनवा लो ।

    जहां पर बहुत से लोग तुमसे पहली बार मिलेंगे।उसकी मॉम कहने लगी ।

    बिल्कुल क्या पता कोई लड़की वेद को भी पसंद आ जाए, वहां पर।

    अगले दिन वेद सुबह जल्दी उठा। रात को उसने ड्रिंक नहीं की थी। सोया तो वो देर से ही था। फिर भी वह फ्रेश फील कर रहा था।

    उस लड़की को नौकरी से निकलना है ।उसने सोच लिया ।

    वह मेरे ऑफिस में काम नहीं कर सकती।

    वह क्या चाहती है मैं अच्छे से जानता हूं ।

    मगर मैं किसी के झांसे में नहीं आने वाला।

    मैं 5 साल से उस लड़की के बारे में सोचता रहा हूं।

    कि मालूम नहीं कैसी होगी, किस हाल में होगी।

    मगर वह मजे से मेरे ही ऑफिस में जॉब कर रही थी

    और मेरे आने का इंतजार। यही सोचता हुआ वह ऑफिस जाने के लिए तैयार हो गया था।

    ब्रेकफास्ट तो करते जाओ बेटा ।उसकी माम ने उसे कहा। क्योंकि वह हाल से बाहर निकल रहा था । उसके हाथ में गाड़ी की चाबी थी।

    माम मुझे बहुत जल्दी है।

    बहुत जरूरी काम है ऑफिस में ।

    ब्रेकफास्ट अभी ऑफिस में ही कर लूंगा। कहते हुए वो हाल से बाहर निकल गया ।

    उसे ऑफिस जाकर सबसे पहले मानवी के बारे में पता करना था ।ऑफिस में कोई नहीं पहुंचा था। उसके लिए जो असिस्टेंट उसके डैड ने हायर किया था ।उस ने फोन किया।

    जल्दी से ऑफिस पहुंच जाओ ,

    10 मिनट में। वरना तुम्हारी नौकरी गई ।

    उसकी एक फोन कर पर वो बिना नहाए ऐसे ही कपड़े बदलकर भागता हुआ पहुंच गया था।

    सर मैं पहुंच गया।

    प्लीज मुझे नौकरी से मत निकालो।

    तो ठीक है पहले मेरे लिए काफी और फिर मुझे एक लड़की की डिटेल चाहिए

    जो हमारे ऑफिस में काम करती है।

    क्या नाम है उसका,

    कौन से डिपार्टमेंट में हैं सर। गौतम पूछने लगा।

    उसकी बात पर वेद उसका नाम सोचने लगा। क्योंकि लड़की का चेहरा तो उसके सपनों में अक्सर आता था ।मगर नाम तो उसने कभी सोचा ही नहीं था ।

    पहले तो मानवी था ।

    अब भी मानवी होगा।

    सर मैं ऑफिस में ज्यादा लोगों को नहीं जानता ।

    मेरा अपॉइंटमेंट तो एकाउंट डिपार्टमेंट में हुआ था।

    मगर सर को मेरा काम अच्छा लगा तो जब आप आने वाले थे ,

    तो उन्होंने मुझे आपका असिस्टेंट बन दिया ।

    मैं उसके बारे में पता लगा कर आता हूं, कहता हुआ गौतम वहां से बाहर चला गया।

    मगर वह 15 मिनट में ही वापस आ गया ।

    सर आप इसकी बात कर रहे हैं ।

    गौतम के हाथ में फाइल थी। वह फाइल उसने वेद के आगे कर दी ।उसमें मानवी की फोटो भी लगी हुई थी।

    हां किसी की बात कर रहा हूं । वेद ने कहा।

    किसने कल रिजाइन कर दिया।गौतम ने बताया।

    और अपना सारा सामान भी जहां से उठा कर ले गई।

    सर आप चाहे तो मैं पता करवा सकता हूं ।

    पता करवाओ ।

    ठीक है सर । मैं अभी जाता हूं जो एड्रेस इस फाइल में है।

    सुनो, इसके बारे में पता जरूर करना।

    मगर इसे पता नहीं लगना चाहिए ।जरा ध्यान से ।

    गौतम उसके बारे में पता करने के लिए चला गया। वेद मानवी के बारे में सोचने लगा। जब वेद ने नशे में उस सियासतदान के बेटे की गाड़ी के साथ एक्सीडेंट कर दिया और उसे लड़के की हालत का किसी सीरियस थी। उसे लड़के का पिता स्टेट की सरकार में मंत्री था।

    उसके डैड ने उसे थोड़े दिनों के लिए शहर से बाहर जाने को कहा। ऐसी हाल वेद को अपना एक दोस्त याद आया जो उसके साथ कॉलेज में पढ़ता था ।उसका बहुत अच्छा दोस्त था और वह हमेशा उसे अपने गांव आने के लिए कहा करता था । वेद अपने दोस्त के पास हरियाणा चला गया। गांव में उसके दोस्त की काफी बड़ी जमींदारी थी।

    वेद को ठहरने के लिए ऊपर का कमरा दिया गया ।जब सुबह उस की आंख खुली तो वो उठकर बाहर कमरे की बालकनी में आ गया ।उसे कमरे की बालकनी से जहां उसके दोस्त का पूरा घर दिखता था साथ ही ,उनके घर के साथ एक छोटा सा घर बना हुआ था ।वह घर भी पूरा दिखाई देता था। उसने देखा कि साथ वाले घर के आंगन में एक लड़की कपड़े धो रही है ।वह कपड़े धोती हुई खुद पूरी भीग चुकी थी। वेद का ध्यान उस लड़की पर था ।

    काली आंखों वाली खूबसूरत सी लड़की लंबे-लंबे जिसके वाल थे। उसने बालों की चोटी बनाई हुई थी।वो उठ कर वह धुले हुए कपड़े सुखाने के लिए रस्सी पर डालने लगी थी। वेद उसे देखता ही रह गया था।

    वेद

    वेद !तभी पीछे कमरे से आवाज आई ।मगर वेद को सुनाई नहीं दिया। उसका दोस्त बाहर बालकनी में ही आ गया ।

    यह मनु है।

    बेचारी के मां-बाप नहीं है ,मामा मामी के पास रहती है। उसका दोस्त बोला।

    उसके दोस्त के बोलने से वेद खुद का ध्यान उस लड़की से हटा ।

    बस मैं तो गांव की खूबसूरती देख रहा था।

    हां! खूबसूरती तो उसमें बहुत है। उसका दोस्त हंसा।

    मगर बेचारी किस्मत की मारी है ।

    वह दोनों अंदर आ गए और दिन के टाइम वेद अपने दोस्त के साथ अपने खेतों में चला गया ।वो सुबह वाली लड़की के बारे में बिल्कुल भूल गया था।

    जब वह जीप में बैठकर खेतों से वापस आ रहे थे तो वही लड़की बस स्टैंड पर बस से उतरी । उसने सिंपल प्रिंटेड सलवार कमीज पहना हुआ था और गले में वैसा ही दुपट्टा था। चेहरे पर ना कोई मेकअप, ना कोई आंखों में काजल। सुबह जैसी ही चोटी बनाई हुई थी ।वह बस से उतरी और जल्दी-जल्दी गांव की तरफ जाने लगी।

    वेद ने फिर का ध्यान कर उस पर था ।

    कॉलेज से आई होगी। उसका दोस्त बोल बोला।

    फाइनल के एग्जाम हो रहे हैं इसके, प्राइवेट पड़ती है।

    सिर्फ एग्जाम देने ही बाहर जाती है ।उसके दोस्त ने बताया।

    तभी वेद के फोन की वेल बजी। रिंग होने से वेद अतीत की यादों से बाहर आया ।गौतम का फोन था।

    हां क्या हुआ । वेद ने पूछा ।

    वह जहां पर नहीं है।

    चली गई ।

    मतलब वह जहां पर नहीं है । वेद ने कहा।

    वह जहां पर किराए पर रहती थी, वहां से जा चुकी है।

    मैं मकान मालकिन के पास ही खड़ा हूं।

    कब चली गई। वेद ने सवाल किया ।

    रात ,रात चली गई वह जहां से।

  • 11. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 11

    Words: 2169

    Estimated Reading Time: 14 min

    तभी वेद के फोन की वेल बजी। रिंग होने  से वेद अतीत की यादों से बाहर आया ।गौतम का फोन था।

    हां क्या हुआ । वेद ने पूछा ।

    वह जहां पर नहीं है।

    चली गई ।

    मतलब वह जहां पर नहीं है । वेद ने कहा।

    वह जहां पर किराए पर रहती थी, वहां से जा चुकी है।

    मैं मकान मालकिन के पास ही खड़ा हूं।

    कब चली गई। वेद ने सवाल किया ।

    रात ,रात चली गई वह जहां से।

    ठीक है तुम वापस आ जाओ ।वेद ने उसे कहा।

    वेद सचमुच काफी परेशान हो रहा है ।उसने एक बार कहा और वह सचमुच ही चली गई।उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसे चली जाएंगी ।उसने तो आज सोचा था कि अगर जरूरत पड़ी तो वो उसे पैसों का लालच देगा। मगर एक बार वेद ने कहा और वह नौकरी छोड़कर चली गई। यह बात उसकी शाम से बिल्कुल बाहर थी।

    अगर वह उसी का इंतजार कर रही थी तो

    तू ऐसे क्यों गई।  क्या कोई बड़ा प्लान बना रही है।

    कहीं उसका जहां नौकरी करना इत्तेफाक तो नहीं था। वेद अपने आप में काफी परेशान हो रहा था।उसका दिमाग मानवी  में ही उलझा हुआ था ।

    तभी उसके क्या उनका दरवाजा नाक हुआ।

    मैं आ सकती हूं मिस्टर मेहरा ।

    सामने कमल शर्मा खड़ी हुई थी और उसके साथ एक खूबसूरत सी लड़की भी थी ।कमल शर्मा जो कि कंपनी की एक डायरेक्टर थी।  जिसकी उम्र तकरीबन 45 साल की होगी उसके साथ कोई 20 साल की लड़की थी।

    आईए ,

    आपको पूछने की क्या जरूरत है । वेद ने मुस्कुरा कर कहा।

    इसे मिलो ये मेरी बेटी है रैना।

    वेद ने उसकी तरफ देखा। उसने ब्लैक कलर की  मिनी स्कर्ट के साथ छोटा सा टॉप पहना हुआ था ।

    कोई काम था । वेद ने पूछा।

    यह  मेरी बेटी है। कॉलेज में पढ़ती है,

    साथ में मॉडलिंग में भी ट्राई कर रही है। आज फ्री थी तो मेरे पास आई थी ।

    मैंने सोचा आपसे मिलवा दुं।

    कंपनी के अगले असाइनमेंट के लिए।

    अगर मॉडलिंग में इसे चांस मिल जाए। कमल ने कहा।

    मैं तो अभी कल ही आया हूं ।

    कंपनी में अभी क्या हो रहा है ।

    इसके बारे में ज्यादा नहीं पता।

    हां  फिर भी मैं कोशिश करूंगा कि मिस रैना को काम मिल जाए ।

    वेद ने कहा।

    अगर कोई और टाइम होता तो  वो रैना से खुश होकर मिलता ।मगर इस टाइम उसका मन मानवी में इस कदर उलझा हुआ था। उसे  कमल और  रैना किसी की बातें अच्छी नहीं लग रही थी। वेद को जितना परेशान हो मानवी को ऑफिस में देखकर हुई थी ।उससे ज्यादा परेशान जिस तरह वह नौकरी छोड़ गई थी वह इसलिए था।

    रैना तुम वेद को अपनी पिक भेज दो।

    मॉडलिंग के लिए जरूरत होगी ना तुम्हारे बायोडाटा की। कमल शर्मा ने रैना से कहा ।

    मेरे पास आपका नंबर नहीं है ।

    रैना ने वेद से कहा । वेद ने उसे अपना नंबर दे दिया था ।

    मेरे पास आपका नंबर आ गया है ।

    अब मैं आपको अपनी बायोडाटा और फोटोग्राफ सेंड करूंगी ।

    रैना कहने लगी ।

    ठीक है।

      तभी ऑफिस का दरवाजा खोलता हुआ गौतम अंदर आ गया ।

    सॉरी ।जब उसने वेद के ऑफिस में कमल शर्मा और उसकी बेटी को बैठा देखा ।वह वापस जाने लगा ।

    नहीं तुम आ जाओ। वेद ने उसे कहा ।

    गौतम अंदर आ गया।

    वैसे  किसी के ऑफिस में आने से पहले उसका केबिन नाक करना चाहिए।

    इतने बेसिक मैनर तो होने चाहिए।

    आपको अपना असिस्टेंट बदल देना चाहिए। कमल को इस टाइम गौतम का आना अच्छा नहीं लगा था।

    वह मेरा असिस्टेंट है ।

    उसे मैंने ही परमिशन दी है कि वो बिना नौक के आ सकता है।

    वरना  मेरे ऑफिस में  मेरी मर्जी के बिना कुछ नहीं होता ।

    गौतम की जगह वेद ने जवाब दिया ।

    मुझे जरुरी काम था । मैंने गौतम को उसी के लिए भेजा था।

    अगर आपको ऐतराज ना हो तो मैं गौतम से बात कर सकता हूं। वेद ने कमल शर्मा को सीधा-सीधा कहा।

    हां बिल्कुल वैसे भी हमें जाना है ।

    कमल शर्मा और रैना  दोनों वहां से खड़ी होकर  ऑफिस से बाहर आ गई ।

    मॉम आप तो कह रही थी कि वह मुझे देखते ही मुझ पर लट्टू हो जाएगा।

    मगर उसने तो अच्छे से बात भी नहीं की।

    रैना ने कहा।

    तुम फिक्र क्यों करती हो ,यही तो तुम्हें करना है।

    कि वह तुम पर लट्टू हो जाए ।

    मैं किसी भी तरह तुम्हारी शादी वेद से करवाना चाहती हूं।

    तुम किसी तरह वेद से प्रेग्नेंट हो जाओ ।

    फिर मैं उसे काबू में कर लूंगी ।

    इस पूरी कंपनी का होने वाला सीईओ है।

    उसके पास सबसे ज्यादा शेयर्स हैं ।

    समझती हो तुम ।मुझे नहीं पता कैसे ,पर उसे काबू में करो।

    ठीक है मोम ,अगर आप कह रही हैं।

    उसका नंबर मैंने ले लिया है ।अब रात को बात करूंगी उससे

    और उसे अपनी फोटोग्राफी तो भेजनी है। वह दोनों मां बेटी कमल के ऑफिस में आ गई थी और वहीं बैठी बातें कर रही थी ।

    कमल जिसने कभी बलवंत मेहरा पर डोरे डालने की कोशिश की थी। जो कभी बलवंत मेहरा की गर्लफ्रेंड भी रह चुकी थी। वह बलवंत मेहरा से शादी करना चाहती थी ।मगर उसकी बलवंत मेहरा की शादी  वेदिका से हो गई और फिर चाह कर भी कमल शर्मा कुछ नहीं कर पाई थी। उसने बलवंत मेहरा की शादी के बाद भी उससे रिश्ता रखना चाहा मगर वो इन सब चीजों से पीछे हट गया था और उसे सिर्फ अपनी बीवी के सिवा किसी और में दिलचस्पी नहीं रही थी। अब वेद मेहरा को देखकर उसे अपनी बेटी को वेद मेहरा के पीछे लगा रही थी।

    रैना का फोन कमल शर्मा के ऑफिस की मेज पर पड़ा था ।उसके फोन पर किसी का मैसेज आया ।वह उठा कर देखने लगी ।

    कौन है ।कमल शर्मा ने पूछा।

    वेदांत मेहरा है ,उसने मुझे ऑफिस में देख लिया था।

    अपने ऑफिस में बुला रहा है ।

    अब तुम इसका पीछा छोड़ दो।

    वो शादीशुदा है ,हमारा कोई फायदा नहीं होने वाला है ।

    वेद मेहरा पर ध्यान दो ।कमल शर्मा ने कहा ।

    वह तो ठीक है मोम, पर यह हमें अंदर की खबरें दे सकता है।

      मैं इसको तो मैंने बोतल में उतारा हुआ है।

    इसकी शादी भी हो चुकी है तो इससे हमें कोई खतरा नहीं है ।

    इससे हमारा फायदा ही होगा। रैना ने कहा।

    बात तो तुम्हारी यह भी ठीक है ।

    तो मोम ठीक है, मैं वेदांत के ऑफिस में जा रही हूं।

    वह मुझे बुला रहा है।

    और डार्लिंग आओ मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। वेदांत में रैना को अपने ऑफिस में देख कर कहा ।

    तुमसे मिलने ही तो मैं आई हूं जहां पर ।

    आजकल तो मेरा फोन ही नहीं उठाते ,ना मुझसे मिलने आते हो। रैना ने ऑफिस के अंदर आते ही शिकायत की।

    घर में सगाई और शादी की तैयारी चल रही है ।

    हमेशा रीना मेरे आस-पास होती है ,इसीलिए तुमसे बात करना जरा मुश्किल हो जाता है।

    वेदांत ने ऑफिस का डोर लॉक करने लगा।

    यह लॉक क्यों कर रहे हो । रैना जो वहां पर सोफे पर बैठ गई थी उसने कहा।

    ताकि हमें कोई डिस्टर्ब ना कर सके।

    वो उस के पास आ गया और अपना ब्लेजर उतरने लगा ।

    जब भी तुम्हें देखता हूं मेरा कंट्रोल ही नहीं रहता ।

    वेदांत ने उसकी थाई पर हाथ रखा ।

    क्यों शादीशुदा हो ,बीवी है तुम्हारी ।

    मेरी क्या जरूरत है । रैना बड़ी अदा से बोली ।

    बीवी में वह बात कहां होती है जो गर्लफ्रेंड में होती है

    वेदांत ने  उसकी थाई पर हाथ रखा ।

    क्यों शादीशुदा हो ,बीवी है तुम्हारी ।

    मेरी क्या जरूरत है । रैना बड़ी अदा से बोली ।

    बीवी में वह बात कहां होती है जो गर्लफ्रेंड में होती है

    और जो तुझ में है उसमें वह बात नहीं है ।वेदांत ने उसके जो छोटा सा टॉप पहना हुआ था उसके अंदर हाथ डाल दिया। रैना उठकर बिल्कुल उसके पास आ गई और उसे किस करने लगी ।

    थोड़ी ही देर में उन दोनों के कपड़े बाहर सोफे पर एक साइड पर पड़े हुए थे और दोनों के आवाज़ कमरे में गूंज रही थी ।

    उसके  बाद वेद अपने काम में बिजी हो गया था।

    काम करना उसे पसंद था ।इस बात में कोई शक नहीं था।

    जो काम वह शुरू करता उसे इतने ध्यान से करता था कि बिल्कुल डूब जाता था ।उसके दिमाग में मन भी की बात भी निकल गई थी ।मगर जैसे ही शाम को वह फ्री हुआ फिर उसके दिमाग में वही सवाल घूमने लगा ।

    अगर वह उसका इंतजार कर रही थी,

    तो उसके एक बार कहने पर ही वह क्यों काम छोड़ कर चली गई।वो  यही सोचता हुआ वह ऑफिस से बाहर निकल गया । उसका मुड क्लब जाने का था ।वह मानवी  की बात को बिल्कुल भूलना चाहता था ।घर पहुंच कर फ्रेश हुआ। वो   नहा कर आया ही था कि उसके रूम का डोर नाक हुआ।

    उसकी मॉम थी उसके हाथ में जूस का गिलास था ।

    मामा आप क्यों लेकर आई

    किसी  सर्वेंट को भेज देती ।उसने कहा ।

    मैंने सोचा इस बहाने से थोड़ा टाइम बेटे के साथ भी स्पेंड कर लूंगी।

    कहीं जा रहे हो। उसने देखा वेद  ने कपड़े चेंज करके शर्ट और जींस पहन रखी थी।

    क्लब जा रहा हूं ।

    कल तुम शादी के लिए अपनी शॉपिंग कर लो ।

    दिन बहुत कम रह गए हैं।

    ठीक है मोम कर लूंगा ।

    अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे साथ चलुं।

    ठीक है मोम हम दोनों चलेंगे । वेद जानता था कि उसकी मां उसे बहुत चाहती है और उसके साथ टाइम स्पेंड करना चाहती है।

    वेद क्लब के लिए निकल गया था ।उसकी मॉम कुछ सोचती हुई नीचे आने लगी। असल में  वेदांत की वाइफ रीना की   छोटी बहन आ रही थी ।उसे पता था कि रीना की फैमिली चाहती है कि उसकी शादी वेद के साथ हो जाए और वह वेदिका को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। उसे डर था कि  वह वेद पर अपना चक्कर चलाने की कोशिश करेगी और ऐसे हालात पैदा करेगी कि उसकी शादी वेद से हो जाए ।वह वेद से बात करना चाहती थी ।मगर उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वो वेद से खुल कर बात कर सके।

    उसने वही बात रात को बलवंत के पास सामने रखी।उसकी बात सुनकर बलवान हंसने लगा ।

    तुम अपने बेटे को बचा कर रखना चाहती  हो।

    इसीलिए तो फिक्र है ,वह ऐसा जाल बनेगी कि वेद शादी के लिए मजबूर हो जाए।

    पता है रीना और वेदांत की शादी कैसे हुई है।

    रीना तो फिर भी अच्छी लड़की है ,मगर उसकी छोटी बहन और उसकी मां

    तुम अच्छे से जानते हो।

    तुम फिकर मत करो, तुम सिर्फ भगवान से इतना मागो

    कि तुम्हारे बेटे की लाइफ में सही लड़की आ जाए ।

    जैसे तुम मुझे मिली थी, वैसे ही ।

    मैं हूं ना मेरी हर तरफ नजर है ।

    कहां क्या हो रहा है, कुछ नहीं छुपा मुझ से ।बलवंत ने बड़े प्यार से वेदिका को कहा।

    ठीक है।

    तुम  सीरियस नहीं  लेते मेरी बात को।

    अच्छा मेरे पास आओ।

    वेदिका जो बेड की साइड पर बैठी थी ,बिल्कुल बलवंत के साथ जाकर बैठ गई । बलवंत ने उसका हाथ पकड़ा कर कहा।

    तुम्हारा बेटा बेवकूफ नहीं है,

    बहुत चालाक है ।सच पूछो तो जरूर से ज्यादा चालाक है तुम्हारा बेटा ।

    मानता हूं लड़कियों उसकी कमजोरी है, मगर वह बेवकूफी नहीं करता ।

    समझी तुम और मैं हूं ना क्यों फ़िक्र करती हो तुम।

    उसकी बात पर वेदिका का मुस्कुराई।

    हां ऐसी अच्छी लगती हो ना ,मुस्कुराती हुई ।

    अब बेटे का फिकर छोडो, उसके बाप का फिक्र करो। उसने वेदिक को खींचकर बाहों में ले लिया था।

    बलवंत का छोटा भाई रमेश और उसका बेटा वेदांत दोनों ऑफिस में थे। चाहे काफी रात हो गई थी मगर वह लोग घर नहीं आए थे ।उन दोनों के साथ वहां पर कोई और भी था ।

    तो अब इस वेद का क्या करें।

    मुझे लगा था कि आजकल बलवंत की तबीयत ठीक नहीं रहती

    तो वह शायद मुझे कंपनी का सीईओ बना दे।

    मगर देखो उसका बेटा लौट आया। रमेश ने वेदांत से कहा ।

    उसकी आप फिकर मत करो डैड ।

    काफी आयाश है वह और किसी से डरता भी नहीं।

    उसके पीछे लगाने के लिए एक लड़की है मेरे पास ।

    उसके साथ मेरी बात हो चुकी है।

    मगर क्या काम हो जाएगा ।

    कोशिश तो कर रहा हूं ।

    ठीक है वैसे भी हम लोग शादी में काम से कम एक हफ्ते के लिए जयपुर होंगे।

    तब काम की बात होगी नहीं, वहां पर यही सब तो होगा।

    बहुत सही टाइम होगा जब तुम वेद को अपने रास्ते से हटा सको तो।

    फिक्र मत कीजिए चाहे जो हो जाए वेद मेरे रस्ते में नहीं रहेगा।

    सीईओ आप ही बनेंगे ।फिर यह ना हमारी हेल्प के लिए ।उनके साथ जो तीसरा था वेदांत ने उसकी तरफ इशारा किया।

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  • 12. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 12

    Words: 1868

    Estimated Reading Time: 12 min

    सूरज की हल्की किरणें काँच की बड़ी खिड़कियों से होकर "The Edge" के हॉल में फैल रही थीं। सामने समंदर का नज़ारा, किनारे से टकराती लहरों की आवाज़, और उस सन्नाटे में गूंजती ट्रेडमिल की धप-धप-धप।

    आर्यन राजवंश — काले ट्रैक पैंट और ग्रे टी-शर्ट में — अपनी रनिंग पूरी कर रहा था। हर कदम घड़ी के सेकंड्स के साथ मैच करता हुआ। चेहरे पर पसीने की महीन बूंदें, लेकिन आँखों में वैसी ही सख़्त ठंडक।

    अचानक उसने ट्रेडमिल रोका। उसकी नज़र दीवार पर पड़ी — एक पेंटिंग हल्की-सी टेढ़ी थी। शायद सफाई के दौरान हिल गई थी।

    आर्यन धीरे-धीरे उतरा, तौलिया कंधे पर डाला, और उस पेंटिंग के पास जाकर उसे सीधा किया।

    90 डिग्री। बिल्कुल परफेक्ट।

    उसी वक्त उसकी उंगलियों पर हल्की धूल आई।

    गहरी सांस ली... stay calm… stay calm…

    लेकिन अगले ही सेकंड उसने फोन उठाया।

    "देव..." उसकी आवाज़ ठंडी थी।

    "जो सफाई वाला आज भेजा है, उसे दोबारा मत भेजना। उसकी उंगलियों के निशान दीवार पर रह गए हैं।"

    फोन कट।

    आर्यन ने एक नज़र किचन पर डाली। Salt Box हल्का सा टेढ़ा था। उसने जाकर सीधा किया।

    डाइनिंग टेबल पर एक कुर्सी थोड़ी बाहर निकली थी — उसे सटीक जगह पर लगाया।

    उसका OCD सिर्फ साफ-सफाई नहीं था — ये उसके दिमाग का नियम था। हर चीज़ अपने स्थान पर। कोई नियम तोड़े, तो आर्यन की दुनिया हिल जाती थी।

    ---

    गेट के बाहर

    सुबह के लगभग नौ बजे।

    The Edge के बड़े गेट पर एक लड़की खड़ी थी। जींस, हल्की नीली शर्ट, पैरों में स्पोर्ट्स शूज़, और बाल सलीके से बंधे हुए। चेहरे पर मासूमियत और आँखों में हल्की घबराहट।

    उसने गेट की बेल बजाई।

    गार्ड आया।

    "जी?"

    लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा —

    "मुझे कुकिंग के लिए इंटरव्यू देना है।"

    गार्ड ने नाम पूछा, फिर बोला —

    "अंदर जाइए। थोड़ी देर में देव सर आ जाएंगे।"

    लड़की अंदर बढ़ी। उसकी नज़र चारों तरफ घूम गई।

    लॉन हरा-भरा, फूलों की कतार, और एक साइड में बैठने की खूबसूरत जगह — लकड़ी की मॉडर्न चेयरें, नीले कुशन।

    लॉन के सामने बड़ा हॉल — और हॉल के उस पार किचन का एक दरवाज़ा।

    तभी पीछे से आवाज़ आई —

    "आप ही सान्वी शर्मा हैं?"

    उसने पलटकर देखा। 40 साल के आसपास का एक शख़्स खड़ा था। फॉर्मल कपड़े, चेहरे पर गंभीरता।

    "जी… हाँ।"

    "मैं देव सिन्हा। मिस्टर आर्यन राजवंश का असिस्टेंट। आइए, किचन दिखा दूँ।"

    सान्वी उसके पीछे चली। हॉल से होते हुए वो किचन में पहुँचे।

    किचन देखकर उसकी आँखें चमक उठीं।

    ग्लास शेल्व्स, ऑटोमैटिक चिमनी, मॉडर्न इंडक्शन, और सब कुछ spotless।

    सान्वी ने सोचा — इतनी परफेक्ट किचन मैंने कभी नहीं देखी।

    देव बोला —

    "आपके बारे में मुझे आपके इंस्टिट्यूट से बताया गया था।"

    सान्वी मुस्कुराई —

    "जी, मैं शेफ का डिप्लोमा कर रही हूँ। मुझे हर तरह का खाना बनाना आता है।"

    देव ने सिर हिलाया।

    "ठीक है। वैसे खाना सिर्फ एक आदमी का बनाना होगा।"

    सान्वी चौंकी।

    "सिर्फ एक का?"

    "हाँ। मिस्टर आर्यन राजवंश का।"

    सान्वी को थोड़ा अजीब लगा। इतना बड़ा घर, इतनी जगह — और सिर्फ एक आदमी!

    देव ने जैसे उसके मन की बात समझ ली।

    "फिक्र मत करिए। आपको अच्छा पेमेंट मिलेगा। बस काम परफेक्ट होना चाहिए।"

    सान्वी ने पूछा —

    "टाइम क्या रहेगा?"

    "ब्रेकफास्ट की चिंता मत करना। वो खुद लेते हैं। आपका काम डिनर है। और अगर कभी लंच चाहिए, तो टाइम फिक्स कर लेंगे।"

    सान्वी ने हाँ में सिर हिलाया। उसके मन में खुशी थी। यह मौका छोटा नहीं था। उसे पैसों की सख़्त ज़रूरत थी।

    क्योंकि वह मिडिल क्लास फैमिली से थी। कस्बे में उसके पापा की छोटी सी दुकान थी। दो बहनों में बड़ी होने के नाते उसकी जिम्मेदारियाँ थीं। मुंबई में रहना सस्ता नहीं था।

    देव ने उसकी तरफ सख़्त नज़रों से देखा और बोला —

    "एक बात याद रखना। आपको सिर्फ किचन में आना है। अपना काम करके सीधा बाहर निकलना है। बाकी कमरों में बिल्कुल नहीं जाना।"

    सान्वी ने सिर हिलाया —

    "जी, समझ गई।"

    "और हाँ, अगर आपको खुद के लिए कुछ खाना-पीना हो तो बाहर स्टाफ किचन है। इस किचन से कुछ भी नहीं।"

    "ठीक है सर।"

    देव ने आखिरी बार कहा —

    "ध्यान रखना… मिस्टर आर्यन को साफ-सफाई बेहद पसंद है। जरा सी गड़बड़ी… और आप यहाँ नहीं रहेंगी।"

    सान्वी ने गहरी सांस ली।

    “कोई बात नहीं। मेहनत की आदत है मुझे।”

    फिर वह बाहर निकली।

    कल से उसकी नई दुनिया शुरू होने वाली थी।

    सान्वी, The Edge से निकलकर सीधी सड़क की ओर बढ़ी। बाहर की हवा में थोड़ी नमी थी, लेकिन उसके मन में हल्का-सा सुकून था — कम से कम काम तो पक्का हो गया था।

    अब अगले पड़ाव की बारी थी। वह तेज़ कदमों से पास के बस स्टैंड पर पहुँची।

    स्टॉप पर लोग पहले से खड़े थे — कुछ ऑफिस जा रहे थे, कुछ कॉलेज।

    तभी दूर से धूल उड़ाती एक बस आती दिखी।

    बस धीरे-धीरे रुकी, लेकिन उसमें पहले से ही तिल भर की जगह नहीं थी।

    "भरी हुई है..." किसी ने पीछे से कहा, मगर सान्वी ने एक नज़र घड़ी पर डाली —

    10:02 AM

    वो लेट हो रही थी।

    "कोई बात नहीं," उसने खुद से कहा और हिम्मत करते हुए भीड़ में घुस गई।

    लोगों के बीच से रास्ता बनाते हुए किसी तरह उसने बस में पैर रखा।

    भीड़ में एक हाथ से बैग संभालती, दूसरे से हैंडल पकड़ती हुई — वो खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई।

    मुंबई की सुबह की भीड़ में वो एक साधारण लड़की, अपने सपनों को थामे… उस भीड़ का हिस्सा बन गई थी।

    --इंस्टिट्यूट — शेफ की क्लास

    सान्वी के इंस्टीट्यूट की इमारत सामने थी।

    बस से उतरते ही वो भागती हुई कैंपस के अंदर दाखिल हुई।

    क्लास शुरू हो चुकी थी।

    शांत माहौल, बच्चों के सामने रेसिपी की शीट्स और किचन स्टेशन्स तैयार।

    सान्वी हड़बड़ाती हुई अंदर आई। सफेद शेफ कोट पहने, बाल जूड़े में बंधे हुए, माथे पर पसीना।

    "सॉरी सर... माफ़ कीजिए... मैं लेट हो गई। बस लेट थी, और..."

    उसके शब्द अधूरे रह गए।

    क्लास में सन्नाटा था।

    शेफ अमरेश कपूर — 50 के करीब, तेज़ नजरों वाले इंस्ट्रक्टर — उसे देखते रहे।

    फिर बोले,

    "सान्वी, तुम्हें पता है ये प्रैक्टिकल कितनी अहम है। बहाने से नहीं, फोकस से आगे बढ़ोगी। जाओ, अपनी जगह लो।"

    सान्वी ने सिर झुकाया और अपनी स्टेशन की तरफ चली गई।

    उसकी सीट पर उसका केक का सामान रखा था — मैदा, बटर, एग्स, क्रीम और बाकी चीज़ें।

    “अब हम सीखेंगे — सही मात्रा में कैसे केक बनता है,”

    शेफ कपूर बोल रहे थे,

    "हर चीज़ की माप ज़रूरी है। रेसिपी का मतलब ही होता है बैलेंस। अगर ज़रा भी इधर-उधर हुआ, तो स्वाद बिगड़ जाएगा।"

    सान्वी ने बोल तो सुना, मगर उसकी आदत थी — चीज़ें अपने तरीके से करने की।

    उसने एक कटोरी उठाई और अंदाज़े से मैदा डालने लगी। फिर बटर, फिर चीनी।

    शेफ की नज़र उस पर पड़ी।

    "ये क्या कर रही हो, सान्वी?"

    उनकी आवाज़ सख़्त थी।

    सान्वी थोड़ी घबराई, लेकिन फिर मुस्कुराते हुए बोली,

    "सर… मैं केक बना रही हूँ..."

    "और जो तुमने मैदा डाला, बटर डाला — वो कैसे मापा?"

    "अंदाज़ से।" उसने झिझकते हुए कहा।

    शेफ का चेहरा सख्त हो गया।

    "अंदाज़ से?"

    "जी... जब आदत हो जाती है, तो हाथ खुद सही माप डाल देते हैं... जल्दी भी हो जाता है।"

    शेफ कपूर ने गहरी सांस ली।

    "चलो, फिर बताओ — अभी जो डाला है, उसमें मैदा कितने ग्राम था?"

    सान्वी चुप रही।

    वो खुद नहीं जानती थी।

    "देखा?" उन्होंने कहा,

    "अगर तुम्हें अंदाज़ से काम करना है, तो ये प्रोफेशन नहीं है, ये घर की रसोई है। शेफ वही बनता है जो हर सामग्री को उतनी ही इज्ज़त देता है जितनी स्वाद को।"

    सान्वी ने सिर झुका लिया।

    वो जानती थी — गलती उसकी थी। लेकिन मन ही मन उसने ठान लिया —

    "कल से मैं अपनी हर सामग्री नापकर डालूँगी, चाहे वक्त लगे — पर सीखना है, तो पूरी तरह।"

    कैंपस लॉन, लंच ब्रेक

    यह वही कैंपस था जहाँ दो अलग-अलग ब्लॉक थे—एक Culinary Institute जहाँ सान्वी ट्रेनिंग ले रही थी, और बगल में फ्री होराइज़न कॉलेज (आर्ट्स/कॉमर्स) जहाँ उसकी छोटी बहन कृति पढ़ती थी। दोनों ब्लॉकों के बीच फैला हरा लॉन लंच ब्रेक में मिलन-spot बन जाता था।

    दोपहर का फ़्री पीरियड था। घास पर बिछी परछाइयों के बीच कृति अपनी सहेलियों के साथ बैठी थी। सान्वी  उनके पास आकर बैठती है।

    कृति: "आ गई महारानी! आज फिर लेट?"

    सान्वी (मुस्कुराकर): "आज इंटरव्यू था न… काम मिल गया!"

    पास ही बैठे हॉस्पिटैलिटी वाले बैच का लड़का राघव चौंक कर बोला—

    "काम? कहाँ?"

    सान्वी: "मिस्टर आर्यन राजवंश के घर। डिनर कुकिंग।"

    राघव की आँखें फैल गईं।

    "तुम वहाँ काम करोगी? अरे तुम तो टिक ही नहीं पाओगी! सुना है वो किसी को पसंद नहीं करते। स्टाफ दो दिन में भाग जाता है। गुस्सा… ओह माय गॉड!"

    कृति ने हँसते हुए कहा—

    "राघव, मेरी दीदी किसी से नहीं डरती। काम है, करेगी। और वैसे भी… पैसे चाहिए!"

    सान्वी ने कंधे उचकाए।

    "देखो, डील साफ है। मैं कॉलेज के बाद जाऊँगी। उस वक्त वो ऑफिस में होंगे। मैं डिनर बनाकर रख दूँगी और वो आने से पहले निकल जाऊँगी।"

    राघव ने बीच में टोका—

    "पर कभी तो सामने पड़ोगी?"

    सान्वी: "अगर कभी लंच चाहिए होगा तो मैसेज आएगा। वरना सीधा डिनर। सामने पड़ना जरूरी नहीं।"

    लॉन की घास पर बैठे सब अब और करीब खिसक आए थे। बात घूमते-घूमते फिर उसी पर आ टिकती—आर्यन राजवंश।

    कृति (भौं चढ़ाकर): “वैसे दीदी… वो तुम्हें काम से निकाल भी सकता है ना? मैंने सुना है ज़रा-सी बात पर स्टाफ बदल देता है।”

    सान्वी (हँसते हुए, पर व्यंग्य के साथ): “बिल्कुल निकाल सकता है! और अगर हम आमने-सामने आए तो शायद लड़ाई भी हो जाए। सुना है ना—बहुत खड़ूस है। हर चीज़ अपनी जगह… एक इंच भी इधर-उधर नहीं। मुझे तो लगता है सब कुछ scale से नापकर रखता होगा!”

    कृति ने झट से जोड़ा,

    “हा! और मुझे तो लगता है कोई बूढ़ा, गुस्सैल आदमी होगा—क्योंकि बुढ़ापे में ही लोग इतने चिड़चिड़े हो जाते हैं।”

    पास ही बैठा राघव यह सुनकर अंदर ही अंदर मुस्कुराया और थोड़ा चौंका भी। उसकी जानकारी के हिसाब से आर्यन राजवंश कोई बूढ़ा नहीं, बल्कि यंग बिज़नेस टायकून था—मीडिया में तस्वीरें देखी थीं उसने। वह बोलना चाहता था, पर रुक गया। शायद सही समय नहीं था।

    सान्वी ने अपनी घुटनों पर कोहनी टिकाकर आगे झुकते हुए कहा:

    “देख, वहाँ रोज़ मेरे लिए लिस्ट तैयार मिलेगी—क्या बनाना है, कितनी मात्रा, किस टाइम पर। उसी हिसाब से मैं खाना बना दूँगी। बस।”

    फिर उसने मज़बूत आवाज़ में जोड़ा:

    “मुझे बस में धक्के खाने से परवाह नहीं। शहर है—चल जाएगा। पर अगर काम सिस्टमैटिक मिला तो ठीक, नहीं तो एक मिनट नहीं लगाऊँगी छोड़ने में।”

    कृति ने तालियाँ बजाकर उसे चिढ़ाया—

    “देखना, तू ही उस खड़ूस को लाइन पर ला देगी!”

    तीनों हँस पड़े। पर हँसी के पीछे एक सच्चाई थी—सान्वी के लिए यह सिर्फ नौकरी नहीं, उसकी पढ़ाई, बहन की फीस और घर की ज़िम्मेदारियों का सवाल था।

    घंटी फिर बजी। सब उठने लगे।

    राघव जाते-जाते मुड़ा और धीरे से बोला:

    “सान्वी… मज़ाक अलग, पर सच में—उनके घर की चीज़ें मत हिलाना। और… अगर कभी सामने पड़ जाएँ, तो बस ‘सॉरी, नेक्स्ट टाइम बेटर’ बोल देना। बुरे आदमी नहीं हैं—बस… अलग हैं।”

    सान्वी ने सिर हिलाया।

    अलग लोग ही तो कहानियाँ बनाते हैं।

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  • 13. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 13

    Words: 1617

    Estimated Reading Time: 10 min

    खाना बनाने के बाद सानवी को वापस जाना था। किचन का एक दरवाज़ा सीधे लॉन में खुलता था, और वहीं से बाहर निकलना सबसे आसान था।

    लेकिन… उसके मन में एक ख्याल आया—

    इतना खूबसूरत घर… थोड़ा तो देखना चाहिए।

    उसने हल्के कदमों से इधर-उधर देखा। पूरे घर में सन्नाटा था। वैसे भी जो लोग यहाँ रहते थे—स्टाफ, सिक्योरिटी—उनके लिए बाहर क्वार्टर्स बने हुए थे। और फरीद के मुताबिक़, इस घर का मालिक अपने प्राइवेट स्पेस में किसी का दख़ल बिल्कुल पसंद नहीं करता था।

    फिर भी, जहाँ कोई नहीं था, सानवी धीरे-धीरे लॉबी की तरफ बढ़ गई।

    लॉबी में कदम रखते ही उसने एक झलक में कई चीज़ें नोटिस कीं—लकड़ी के पैनल, ऊँची छत पर झूमर, और एक बड़ी-सी तस्वीर, ठीक सामने की दीवार पर टंगी हुई।

    वह तस्वीर देखते ही उसके क़दम ठिठक गए।

    करीब जाकर उसने गौर से देखा—यह तस्वीर लगभग सत्तर साल पुराने अंदाज़ की लग रही थी। एक शाही व्यक्तित्व वाला आदमी, सफ़ेद दाढ़ी-मूँछ, आँखों में गहरी सख़्ती।

    वो फुसफुसाई,

    "अच्छा… तो आप हैं आर्यन राजवंश।"

    उसे लगा शायद यह आर्यन की तस्वीर है। एक पल के लिए उसने सोचा—

    इतना रॉयल लुक… लगता है ये ख़ानदान कहानियों से कम नहीं।

    खाना बनाकर सानवी राजवंश हाउस से निकल आई। सानवी अभी घर पहुंची ही थी उसके फोन पर "माँ" फ्लैश हुआ। उसने जल्दी से कॉल उठाई।

    माँ: "सानवी… मैंने सुना तुमने कोई जॉब शुरू की है? कहाँ हो तुम? सब ठीक है न?"

    सानवी ने साँस काबू में की।

    सानवी: "अरे नहीं मम्मी, टेंशन मत लीजिए। एक छोटे से रेस्टोरेंट में काम मिला है। बहुत अच्छे लोग हैं वहाँ। मैं सुरक्षित हूँ।"

    माँ की आवाज़ थोड़ा ढीली पड़ी।

    माँ: "अच्छा… लेकिन कृति मेरा फोन क्यों नहीं उठा रही?"

    सानवी: "सुना नहीं होगा, मम्मी। अभी बहुत पढ़ रही है। अगले हफ़्ते एग्ज़ाम हैं—दिन-रात पढ़ाई चल रही है। वो आपको बाद में कॉल कर लेगी।"

    माँ: "ठीक है… पापा को कब कॉल करोगी?"

    सानवी: "आप मेरा नमस्ते कहना। मैं शाम को फिर बात करूँगी।"

    कॉल कटते ही सानवी ने राहत की लंबी साँस ली।

    पास बैठी कृति खिलखिलाई:

    कृति: "क्या बात है दीदी! कितने आराम से झूठ बोल लेती हो!"

    सानवी मुस्कुरा भी नहीं पाई।

    सानवी: "क्या करूँ? उन्हें सच बताऊँ कि मैं किसी के घर खाना बनाती हूँ? उन्हें लगेगा मैं मेड बन गई। उन्हें अच्छा नहीं लगेगा। और तुम्हारे बारे में भी झूठ बोलना पड़ा—अब जाकर पढ़ाई करो!"

    पास बैठी रिया दोनों को देख मुस्कुरा रही थी।

    कृति उठकर छोटी-सी लॉबी से कमरे की ओर गई। जाते-जाते सानवी ने पुकारा:

    "मम्मी को फोन ज़रूर कर लेना!"

    कृति ने बिना मुड़े हाथ हिलाया। घर में कुछ पल के लिए हल्की हँसी और चिंता साथ-साथ तैर गए।

    -

    रात गहरा चुकी थी। राजवंश हाउस के विशाल गेट पर सिक्योरिटी लाइट्स जल उठीं, क्योंकि ड्राइववे से काली Rolls-Royce  अंदर घुस रही थी—आर्यन राजवंश की सिग्नेचर कार।

    गार्ड ने सलामी दी और इंटरकॉम पर कहा:

    "सर आ गए—गैरेज ओपन।"

    इलेक्ट्रॉनिक दरवाज़े उठे। अंदर लंबी पंक्ति में ग्यारह गाड़ियों का निजी कलेक्शन दमक रहा था—कवर में स्पोर्ट्स कार, पर्ल-व्हाइट SUV, विंटेज क्लासिक… सब कुछ करीने से, नंबर वाली बे में।

    आर्यन ने गाड़ी को उसकी निर्धारित जगह (Bay-01) पर धीरे-धीरे रिवर्स किया। इंजन ऑफ़। दरवाज़ा बंद। फिर—उसका रूटीन:

    लॉक बीप सुना या नहीं?

    टायर लाइन मार्क पर हैं?

    फ्रंट ग्रिल पर पानी की बूंद तो नहीं?

    छोटी से छोटी बात में भी उसे परफ़ेक्शन चाहिए था। उसकी आँखें तेज़ थीं—जैसे थोड़ी-सी ग़लत एंगल भी उसे सोने न दे।

    सब कुछ ठीक पाकर उसने हल्के से सिर हिलाया और गैरेज से बाहर निकल आया। उसके कदमों में वही नियंत्रित शाही ठहराव था—जो लोग देखते हैं, याद रखते हैं।

    आर्यन घर के अंदर आया। सबसे पहले अपने कमरे में गया, शॉवर लेकर फ्रेश हुआ और नए कपड़े पहनकर बाहर निकला। हल्की ठंडक लिए मार्बल फ्लोर पर उसके कदमों की आवाज़ गूँज रही थी।

    वह सीधे किचन की ओर बढ़ा—कुछ पीने का मन था। लेकिन जैसे ही किचन में दाख़िल हुआ, उसकी भौंहें सिकुड़ गईं।

    ---मगर फिर भी ऐसा सामान था जो सानवी काउंटर पर ही छोड़ गई—एक स्लिम बोतल एक्स्ट्रा वर्जिन ओलिव ऑयल की, ट्रफल-इन्फ़्यूज़्ड विनेगर, ऑर्गैनिक हनी का जार और आर्टिजन आल्मंड बटर। वो कहती थी, "जो रोज़ काम आता है, उसे हाथ की पहुँच में होना चाहये

    उसकी नज़र अचानक ओवन के ऊपर गई। वहाँ एक छोटा-सा कागज़ चिपका था, जिस पर सलीके से लिखा था:

    "क्या गर्म करना है और कितने मिनट तक गर्म करना है।"

    सानवी की लिखावट साफ-सुथरी थी, लेकिन आर्यन का गुस्सा अब आसमान छू चुका था। उसने तुरंत मोबाइल निकाला और देव का नंबर डायल किया।

    आर्यन (सख़्त आवाज़ में):

    "घर के लिए नया कुक ढूंढो।"

    देव, जो उसके नेचर से भली-भांति वाक़िफ़ था, सिर्फ़ बोला:

    "ठीक है सर।"

    बहस का तो सवाल ही नहीं था।

    फोन कटते ही आर्यन ने गहरी साँस ली। वह बस कॉफ़ी बनाने वाला था—क्योंकि डिनर में अभी वक़्त था। लेकिन तभी किचन में से आती खाने की खुशबू ने उसका इरादा तोड़ दिया।

    मन न होते हुए भी उसने फ्रिज से खाना निकाला, माइक्रोवेव में डाला और प्लेट में सजाया। फिर वह किचन के डाइनिंग टेबल पर बैठ गया।

    पहला कौर लेते ही उसका चेहरा बदल गया।

    "अमेज़िंग..."

    शब्द उसके होंठों से अनचाहे निकल गए।

    स्वाद लाजवाब था—इतना कि उसने धीरे-धीरे पूरा खाना ख़त्म कर दिया। खाली प्लेट देखते हुए उसकी आँखों में एक हल्की-सी सोच चमकी—

    "जिसने भी बनाया है… कमाल कर दिया।"

    सुबह आर्यन अपने ऑफिस पहुँचा। हमेशा की तरह सब कुछ व्यवस्थित—कांच की दीवार, लंबी मेज, दो स्क्रीन, और सटीक समय पर मीटिंग्स।

    देव भी वहाँ था। वह आधिकारिक तौर पर "फुल-टाइम पर्सनल स्टाफ" तो नहीं था, लेकिन practically आर्यन की आधी जिंदगी वही संभालता था—शेड्यूल, घर, कार डिटेल, किचन स्टाफ तक।

    दोपहर की मीटिंग खत्म होते ही आर्यन ने फाइल बंद की और कहा:

    उस नई कुक को को निकाल दिया क्या।

    "नहीं,आज दोपहर के बाद घर जाऊंगा। उस कुक को एक दिन की तनख्वाह देकर मना कर दूंगा।"

    "नहीं ,उसे मत निकलना खाना अच्छा बनाती है। मगर हां उसे समझा देना

    हाँ, और किचन यूँही बिखरा छोड़ गई। मुझे नोट लिखकर चिपका गई—कितना क्या गर्म करना है। मुझे घर में किसी का ‘ख़त’ नहीं चाहिए। कोई स्लिप नहीं। बस खाना बनाओ और जाओ।"

    आर्यन ने कुर्सी से पीछे झुकते हुए साँस छोड़ी।

    "किचन साफ़ रखे तो रहे। मुझे निर्देशों की ज़रूरत नहीं।"

    देव ने सिर हिलाया।

    "ठीक है। मैं कह दूँगा।

    दोपहर के लंच टाइम में आर्यन एक रेस्टोरेंट में अपने दोस्त की दोस्त शिव मेहता के साथ बैठा था। अनिका उसके ऑफिस में भी काम करता था और शायद उसका बिज़नेस पार्टनर भी था। दोनों लंच कर रहे थे, तभी उस ने आर्यन से मुस्कुराते हुए पूछा — ‘क्या हुआ, कोई नया कुक मिल गया खाना बनाने के लिए?’"

    शिव को पता था कि इस महीने घर में कितने कुक बदले जा चुके थे। हाई-प्रोफ़ाइल होटलों में काम कर चुके कुक भी घर पर रखे गए, लेकिन किसी का भी बना खाना आर्यन राजवंश को पसंद नहीं आया। अगर खाना पसंद आ भी जाता, तो उनका काम करने का तरीक़ा (या किचन में अनुशासन) उन्हें नहीं भाता।

    कई बेचारे तो उनकी OCD जैसी आदतों से डरकर खुद ही छोड़कर चले गए। शिव और आर्यन कई सालों से साथ हैं।

    शिव ने पूछा,

    "कोई आदमी है या औरत?"

    "कोई औरत है,।

    मुझे लगता है, थोड़ी बड़ी उम्र की औरत होगी,

    क्योंकि जिस तरीके से खाना बना था,

    सचमुच अच्छा था।

    खाने में सिर्फ़ प्रोफेशनल टेस्ट नहीं था,

    थोड़ा अलग था," आर्यन राजवंश शांति के खाने की तारीफ़ कर रहा था।

    "उसका खाना बनाने का टेस्ट मुझे पसंद आया,

    मगर उसने किचन को बिल्कुल चेंज कर दिया।

    तुम जानते हो, मुझे किचन का सामान

    इधर-उधर रखने वाले लोग पसंद नहीं।

    वह मेरा घर है और हर चीज़

    मेरे तरीके से होगी," आर्यन शिव से कह रहा था।

    "अगर उसने अपनी आदतें नहीं बदलीं

    तो मैं उसे निकाल दूंगा।

    उसने मेरे लिए नोट भी छोड़कर लिखा रखा है

    कि खाना कैसे गर्म करना है।"

    ---

    सांनवी कॉलेज के बाद खाना बनाने के लिए घर आती है।

    उस वक्त तक देव भी घर आ चुका था।

    देव किसी औरत से हॉल में रुककर बात कर रहा था।

    तभी संवि भी किचन में जाने के लिए हॉल के अंदर एंटर करती है।

    देव उसे कहता है,

    "शांति... ये शिवानी है।

    घर की डस्टिंग और कमरों को मैनेज करना इसका काम है।"

    असल में, घर में साफ-सफाई करने के लिए जो आदमी था,

    वह स्टाफ क्वार्टर्स में रहता था,

    जो घर के एक साइड पर बने हुए थे।

    वही फर्श की सफाई करता था,

    लॉन की सफाई करता था,

    यानि बाकी सारे काम वही करता था।

    लेकिन आर्यन को डस्टिंग के लिए

    अलग मेड चाहिए होती थी,

    जो उसकी रखी हुई हर चीज़ को

    वैसे ही परफेक्ट रखे।

    पिछली मेड निकाली जा चुकी थी,

    तो आज नहीं आई थी।

    देव ने कहा,

    "तुम दोनों का अपना-अपना काम है।

    ध्यान से करना।"

    देव उन दोनों को समझाता हुआ

    वहाँ से चला गया।

    और शिवानी को भी

    कल से आना था।

    ---

    देव हॉल से बाहर निकलते हुए फिर वापस आए।

    "सानवी,  ध्यान रखना—कोई नोट नहीं छोड़ना इस बार।"

    एक बार तो शिवानी उसकी बात सुनकर कन्फ्यूज़ हुई,

    फिर उसे याद आया कि उसने खाना गर्म करने के बारे में एक नोट लिखा था।

    "ठीक है, जैसा आप कहें," शांति ने मुस्कुरा कर कहा।

    "हमें उन्हें कुछ भी बताने की ज़रूरत नहीं। खाना बना और चली जाओ।"

    सानवी देव से बात करने के बाद किचन में आती है।

    अभी वह आर्यन को पूरी तरह से जानती नहीं थी।

    "ये आदमी है! मैंने तो उसी के लिए नोट छोड़ा था,"

    यह भी उसे बुरा लगा।

    वह किचन में आई,

    उसका रखा हुआ काउंटर का सामान वहाँ पर नहीं था।

    जैसे ही उसने फ़्रिज खोला,

    वही सामान फ़्रिज में पड़ा हुआ था।

    "हे भगवान! इसको फ़्रिज में कौन रखता है?"

  • 14. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 14

    Words: 1620

    Estimated Reading Time: 10 min

    "ये आदमी है! मैंने तो उसी के लिए नोट छोड़ा था,"

    यह भी उसे बुरा लगा।

    वह किचन में आई,

    उसका रखा हुआ काउंटर का सामान वहाँ पर नहीं था।

    जैसे ही उसने फ़्रिज खोला,

    वही सामान फ़्रिज में पड़ा हुआ था।

    "हे भगवान! इसको फ़्रिज में कौन रखता है?"

    तभी एक बच्चा हॉल के अंदर एंटर करता है।

    वह ड्राइवर राम के साथ था।

    राम आर्यन का ही नहीं बल्कि उसकी पूरी फैमिली के काफ़ी नज़दीक था।

    वह ड्राइविंग के साथ-साथ घर के पर्सनल काम भी देखता था

    और एक बहुत ही भरोसेमंद आदमी था।

    जब वे हॉल के अंदर आते हैं,

    तो उन्हें किचन के अंदर से कोई आवाज़ सुनाई देती है।

    "अंकल, ज़रा धीरे... लगता है कोई किचन में है।

    हम उसे डरा सकते हैं,"

    आरव ने शरारत के साथ कहा।

    बच्चे ने देखा कि सानवी फ्रिज से कुछ निकाल रही है।

    वह पीछे आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे डरा देता है।

    वो एकदम डर के उछल जाती है,

    क्योंकि उसके हिसाब से तो वह वहाँ अकेली थी।

    "आप लोग कौन हैं?"

    वह अपनी सांस ठीक करते हुए पूछती है।

    राम ने जवाब दिया,

    "ये जय राजवंश साहब की बहन का बेटा है।

    इसका कोई टॉय हॉल में रह गया था,

    तो इसे वही लेने आना पड़ा।

    और मैं राम हूँ।

    मैं आर्यन राजवंश सब के लिए काम करता हूँ।

    उनके लिए ड्राइविंग भी करता हूँ,

    घर का भी काम देख लेता हूँ,

    और जब ऑफिस में ज़रूरत होती है,

    तो वहाँ भी काम करता हूँ।"

    राम ने अपना पूरा परिचय दे दिया था।

    तभी जय मासूमियत से बोला,

    "क्या आप मेरा टॉय ला देंगे?

    वो हॉल में रह गया था।"

    "नहीं," सानवी ने जवाब दिया।

    "मुझे किचन सिर्फ किचन में ही आना अलाउड है।

    मैं घर में और नहीं घूम सकती।"

    "दीदी, आपको अगर वॉशरूम जाना हो

    तो जाने से कोई नहीं रोकेगा।"

    सानवी को समझ आ गया

    कि वह उससे बातों में नहीं जीत सकती।

    "प्लीज़ बेटा, तुम खुद ही ले आओ।"

    उसे को पता था

    कि वह घर में कहीं और नहीं जा सकती।

    "चलो बेटा, हम ही ले लेते हैं,"

    राम ने कहा।

    "अपना खिलौना लो और चलो।"

    "अब मैं जहां आया हूँ,

    तो कुछ गेम्स भी खेल लेता हूँ,"

    जय ने शरारती अंदाज़ में कहा।

    उसे सानवी अच्छी लगी थी,

    इसलिए उसने कहा,

    "दीदी, अगर आप चाहें

    तो मेरे साथ खेल सकती हैं।

    मेरा मन हो रहा है

    आपके साथ खेलने का।"

    वो मुस्कुराई,

    "मैं ज़रूर चलती तुम्हारे साथ खेलने,

    मगर मेरा काम कौन करेगा?

    मुझे डिनर बनाना है।

    तुम आराम से अंकल के साथ जाओ।"

    ---

    उधर ऑफिस में मीटिंग चल रही थी।

    मीटिंग में आर्यन राजवंश के अलावा

    उसकी बहन अनन्या राठौर,

    उसका बहनोई जगत राठौर,

    और आर्यन का बिज़नेस पार्टनर व दोस्त

    शिव मेहता भी थे।

    मीटिंग में बात करते हुए

    जगत राठौर ने कहा,

    "तुम्हारा प्लान हमेशा बहुत अच्छा होता है।

    जैसा तुम सोचते हो,

    वैसा कर देते हो।"

    आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा,

    "और तुम्हें कैसा लगता है?"

    आर्यन ने अपनी बहन से पूछा।

    अनन्या ने जवाब दिया,

    "मैं भी सहमत हूँ तुम्हारी बात से।"

    "डील तो फ़ाइनल है। इसकी पूरी बात से हम सभी सहमत हैं। मगर एक और प्रॉब्लम है,"अनन्या ने कहा।

    वो अपनी जगह से खड़ी हुई और जहाँ पर आर्यन बैठा हुआ था वहाँ जाकर उसके गले में बाँहें डाल दीं।

    "दीदी, क्या प्रॉब्लम है?" आर्यन ने पूछा।

    अनन्या ने जगत की तरफ देखा और फिर शिव मेहता की तरफ।

    "संडे को हम लोग ब्रेकफ़ास्ट पर मॉम के यहाँ इकट्ठा हो रहे हैं। मॉम कितने दिनों से हम सबको बुला रही है। मेरे पास भी उनका फ़ोन आया था," अनन्या ने कहा।

    शिव ने कहा,

    "आंटी ग़ुस्सा हो रही थीं। अगर नहीं आना, तो साफ-साफ कह दो कि तुम नहीं आ रहे।"

    अनन्याने आर्यन से कहा,

    "मैं मॉम से कह दूँगी, ठीक है? संडे को लंच हम लोग वहीं करेंगे।"

    "ठीक है," आर्यन राजवंश ने कहा।

    असल में, आर्यन इतना बिज़ी रहता था कि उसे पर्सनल लाइफ़ के लिए टाइम ही नहीं था।

    उसकी मॉम, जो एक अलग घर में रहती थीं, कितने दिनों से उसे बुला रही थीं।

    "बहुत अच्छा, भाई!"अनन्या ने खुशी से कहा।

    "अब तुम लोग अपना प्लान आगे बढ़ाओ। मैं यहाँ से जा रही हूँ," कहते हुए आर्या वहाँ से खड़ी हो गई।

    आप सिर्फ़ वहाँ पर आ रहे हैं ही रह गए थे।

    ---

    "दीदी, मुझे जूस चाहिए!"

    हॉल में बैठे हुए जय ने ज़ोर से सानवी को आवाज़ लगाई।

    सानवी जो काम कर रही थी, उसने अपना काम छोड़ते हुए कहा,

    "आ रही हूँ!"

    वह आर्यन के लिए जूस लेकर जाती है।

    जैसे ही वह जय के पास जूस लेकर आती है,

    वह देखती है कि वहाँ पड़े हुए सोफ़े के कुशन नीचे गिरे हुए हैं,

    और वहाँ टॉयज़ बिखरे हुए थे।

    "अगर तुम्हारे मामा ने देख लिया तो मुझे ही नौकरी से निकाल देगा!

    चलो, पहले हम ये ठीक करते हैं।"

    "ठीक है, दीदी,"

    वह अपनी गेम छोड़कर उठ गया।

    दोनों मिलकर लिविंग रूम के सोफ़े के कुशन सब ठीक करते हैं।

    टॉयज़ एक साइड पर रख देते हैं।

    "कुछ खाओगे तुम?"

    उसके बाद शिवानी ने पूछा।

    "नहीं दीदी, मुझे घर जाना है।

    मॉम घर आती होगी, उससे पहले मुझे घर पहुँचना है।"

    "तो क्या तुम मॉम से पूछ कर नहीं आए थे?"

    "नहीं, वहाँ पर मेरा कंप्यूटर खराब हो गया था।

    मैं गेम नहीं खेल सकता था, इसलिए यहाँ चला आया,"

    उसने मुस्कुराकर कहा—शरारती बच्चा।

    हँसते हुए शिवानी ने उसका चेहरा चूम लिया।

    इन थोड़े ही पलों में दोनों में बहुत अच्छी बॉन्डिंग हो गई थी।

    जय राम के साथ घर चला गया था।

    ---

    सानवी ने अपना खाना बनाया।

    और नोट तो उसने आज भी छोड़ा था—

    "इस डिश में जो सूप डालना है, वह मैंने बनाकर फ़्रिज में रखी है।

    खाते समय निकाल लीजिए।"

    उसने माइक्रोवेव पर चिपकाया और चली गई।

    शाम को आर्यन घर वापस आया।

    हमेशा की तरह फ़्रेश होकर चेंज करके वह किचन में पहुँचा।

    वह अपने लिए ब्लैक कॉफ़ी बनाना चाहता था।

    काउंटर पर वही सामान की बोतलें, इंग्लिश में लिखे लेबल के साथ,

    सब सामान पड़ा था—और साथ ही नोट, जो माइक्रोवेव पर चिपका हुआ था।

    उसने यह सब देखकर ठंडी साँस ली और उसे ग़ुस्सा भी आया।

    उसने वह नोट निकाला और डस्टबिन में फेंक दिया।

    फिर उसने अपनी ब्लैक कॉफ़ी बनाई।

    डिनर के वक़्त जब उसने खाना खाया,

    तो उसे खाना खाकर बहुत अच्छा लगा।

    उसने काउंटर पर रखा हुआ सारा सामान हटाया,

    फिर खाना खाया।

    उसका जो ग़ुस्सा था—

    कि काउंटर पर सामान क्यों है? नोट क्यों छोड़ा?—

    वह भी ग़ायब हो गया था।

    ---

    अगले दिन जब सानवी आई,

    तो काउंटर बिल्कुल क्लीन था।

    उस पर एक भी चीज़ नहीं थी।

    "हे भगवान! मैं इस आदमी का क्या करूँ?

    कोई भी मेरा रखा सामान क्यों नहीं छोड़ता!"

    उस को ग़ुस्सा आया।

    मगर वो जानती थी

    कि उसे इसकी आदत डाल लेनी चाहिए।

    ऐसे ही काम चलने लगा था।

    वो खाना बनाती, और नोट ज़रूर चिपकाती।

    जब आर्यन आता—उसे फेंक देता।

    अब तो वह उसका नोट पढ़कर मुस्कुराने भी लगा था।

    ---

    जब सानवी कोई नई  डिशट्राई करती,

    तो नोट चिपका कर जाती थी—

    "मैंने फ्रेश  बनाया है।

    जो आप बाज़ार से लेकर आए हैं,

    उसे भी बहुत टेस्टी बनाया है।

    खा कर देखिए और कभी कहती मैं काउंटर पर जो दही जमाया है ।

    उसे बिल्कुल भी नहीं छेड़ना, वरना दही नहीं जमेगा।"

    आर्यन उस स्लिप को पढ़ता,

    फिर डस्टबिन में फेंक देता,

    और उसकी बनाई हुई रेसिपी ट्राई करता।

    मगर अब आर्यन की सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह हो गई थी

    कि उसे काउंटर की सफ़ाई पसंद नहीं थी।

    फ्रिज में भी उसका डाला हुआ सामान बिखरा रहता था।

    तो अब आर्यन राजवंश भी नोट छोड़ने लगा—

    "फ्रिज को साफ़ रखो

    और काउंटर को भी।"

    जैसे ही सानवी को यह नोट पड़ा,

    उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

    "लगता है इस भी मुझ पर असर होने लगा है,"

    उसने सोचा।

    शिवानी की नज़र में

    आर्यन राजवंश एक बुजुर्ग,

    एक बड़ी उम्र का आदमी था।

    और ऐसे ही आर्यन की नज़र में

    शिवानी कोई बड़ी उम्र की औरत थी,

    जो उसके घर में कुक का काम करती थी।

    इसी तरह  दिना बीतने लगे थे।

    ---

    एक दिन सानवी जब खाना बनाने के लिए घर आई,

    तो देव साहब परेशानी में इधर-उधर घूम रहे थे।

    उसने सानवी को देखा।

    "सानवी, तुम्हारी नज़र में कोई ऐसी औरत होगी

    जो घर की अच्छे से डस्टिंग कर सके

    और कोई चोरी भी ना करती हो

    और सामान इधर-उधर रखने की ज़रूरत भी न पड़े?"

    "क्यों? जो शिवानी काम करती थी उसका क्या हुआ?"

    "उसे मैंने निकाल दिया,"

    देव ने ठंडी सांस लेते हुए कहा।

    थोड़ा सोचने के बाद सानवी बोली,

    "हाँ, है एक।"

    "तो उसे बुला लो। मैं उससे बात करता हूँ,"

    देव ने कहा।

    "मैं हूँ ना, ,"

    सानवी ने कहा।

    "देखो, मैं खाना बनाने तो आती ही हूँ,

    डस्टिंग भी कर दिया करूँगी।

    आपका घर इतना बड़ा भी नहीं है।

    मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।"

    "असल में, सानवी को पैसों की बहुत ज़रूरत थी।

    उसकी छोटी बहन कृति के लिए भी उसे पैसे चाहिए थे।

    और फिर मकान का किराया और सारे खर्चे..."

    देव ने कुछ पल सोचकर कहा,

    "पक्का कर लोगी ना?"

    ,

    वो कितने दिनों से टिकी हुई थी।

    वरना सब लोग काम छोड़कर जल्दी भाग जाते थे।

    और आर्यन से उसे खुद भी नहीं निकाला था।"देव ने सोचा।

    -

    देव से बात करने के बाद सानवी किचन में पहुँचती है।

    उसे एक नोट मिलता है, जिस पर लिखा हुआ था—

    "आज मैं रात को खाना घर पर नहीं खाऊँगा, तो खाना मत बनाना।"

    स्लिप पढ़कर वह खुश हो जाती है।

    क्या आज उसकी छुट्टी है?

    ---

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  • 15. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 15

    Words: 1573

    Estimated Reading Time: 10 min

    देव से बात करने के बाद सानवी किचन में पहुँचती है।

    उसे एक नोट मिलता है, जिस पर लिखा हुआ था—

    "आज मैं रात को खाना घर पर नहीं खाऊँगा, तो खाना मत बनाना।"

    स्लिप पढ़कर वह खुश हो जाती है।

    क्या आज उसकी छुट्टी है?

    "क्या बात है, आज तुम जल्दी घर आ गई?" रिया ने सानवी को घर पर देखा तो हैरानी से पूछा।

    "आज खाना बनाने से छुट्टी मिल गई क्या?"

    सानवी ने हल्की सी मुस्कान दी और बोली, "नहीं, जब मैं वहाँ गई तो उन्होंने मना कर दिया।"

    "तो आज तुम फ्री हो?" रिया ने पूछा।

    "नहीं," सानवी ने सिर हिलाया, "क्यों, क्या हुआ?"

    रिया पास आ गईं और सानवी से बोलीं, "एजेंसी से कॉल आई थी। आज शाम को एक बड़ी पार्टी है। उन्हें कुछ काम करने वाले लोगों की ज़रूरत है। कुछ लोग मना कर चुके हैं, तो तुम चलोगी हमारे साथ?"

    सानवी थोड़ी असमंजस में बोली, "मगर मैं तो बहुत थकी हुई हूँ। पहले वहाँ गई थी, फिर वापस आई। अब मैं रेस्ट करना चाहती हूँ।"

    "थका देने वाली बात नहीं है," रिया ने उसे समझाते हुए कहा, "बहुत बड़े लोगों की पार्टी है। अच्छे पैसे मिलने वाले हैं। हमारे खर्च भी निकल आएँगे।"

    "चलो ना, थोड़े घंटो का तो काम है।"

    रिया  ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम बस तैयार हो जाओ।"

    "देखो ना, तुम्हारे फ़ोन की कंडीशन क्या हो गई है! बात करते-करते बंद हो जाता है," रिया ने झुंझलाकर कहा।

    फिर उसने गहरी साँस लेकर जोड़ दिया, "हमारी ज़िंदगी में कितने मसले हैं… सब पैसों की वजह से अटके पड़े हैं।"

    रिया की यह बात सच थी। वो लड़कियाँ तंगी से गुज़र रही थीं, लेकिन हार मानना उनमें से किसी को नहीं आता था। पढ़ाई, छोटे-मोटे जॉब्स, और सपनों को पकड़े रहना—यही उनका रोज़ का संघर्ष था, अपने कल को बेहतर बनाने की कोशिश में।

    "ठीक है यार, क्यों दुखी बातें करती हो? चलो, चलते हैं," सानवी ने माहौल हल्का करने की कोशिश की।

    आख़िरकार, बहुत मनाने के बाद वो भी जाने के लिए तैयार हो गई।

    ---

    "हम कृति को भी साथ ले लेते हैं? उन्हें तीन लोग चाहिए," रिया ने सुझाव दिया।

    "कोई फायदा नहीं," सानवी ने सिर हिलाया। "तुम जानती हो वो नहीं जाएगी। हम दोनों ही चलें—काम हो जाएगा।"

    दोनों उस जगह पहुँचीं जहाँ शाम की बड़ी पार्टी थी—एक आलीशान फार्महाउस जैसा वेन्यू, रोशनी से जगमगाता हुआ। गाड़ियों की लंबी कतार, बाहर स्टाफ की भागदौड़, और अंदर से आती हल्की म्यूज़िक की धुन।

    "लगता है हम लेट हो गए," रिया ने घड़ी देख कर कहा।

    "कहीं इन्होंने हमें अंदर ही न घुसने दिया तो?" संवि को हल्की चिन्ता हुई।

    "आराम से! चलो आगे," रिया बोली।

    रास्ते में सानवी ने चुटकी ली, "तुम तैयार होने में इतना टाइम क्यों लगाती हो?"

    रिया हँसी, "हाँ मानती हूँ, पर क्या ऐसे ही उठकर आ जाती? थोड़ी तो शक्ल बनानी पड़ती है!"

    उसी वक़्त रिया का फ़ोन बज उठा। उसने स्क्रीन देखी और कहा, "तुम लोग अंदर जाओ, मैं आ रही हूँ।"

    सानवी भीतर चली गई। रिया थोड़ी दूर हटकर कॉल पर बात करने लगी—एजेंसी वाले थे, आख़िरी मिनट की ड्यूटी डिटेल्स कन्फ़र्म कर रहे थे।

    कॉल खत्म करते ही रिया तेज़ी से ग्लास वाले एंट्रेंस की ओर बढ़ी। उसने हड़बड़ी में दरवाज़ा धक्का देकर खोला—उसी पल अंदर से कोई बाहर आ रहा

    रिया हल्का सा पीछे लड़खड़ा गई। सामने एक लंबा, व्यवस्थित सूट पहने लड़का—शिव मेहता—जो अभी-अभी हॉल से बाहर निकल रहा था।

    "सॉरी!" रिया ने तुरंत कहा।

    "नो, आय एम सॉरी," शिव मेहता ने विनम्रता से जवाब दिया, फिर मुस्कुराकर बोला, "आप ठीक हैं?"

    रिया की धड़कन अभी भी तेज़ थी—शायद टक्कर से ज़्यादा उसकी हड़बड़ी और घबराहट की वजह से। अंदर पार्टी चल रही थी; बाहर उसकी शिफ़्ट शुरू होने वाली थी; और सामने खड़ा था कोई ऐसा इंसान जिसे वह अभी तक जानती नहीं थी—लेकिन शायद यह मुलाक़ात यूँ ही अनदेखी होकर नहीं जाएगी।

    रिया जल्दी से अंदर चली गई, मगर शिव मेहता की नज़रें उसी पर ठहरी रह गईं। वह कुछ देर वहीं खड़ा रहा, जैसे उस खूबसूरत सी लड़की की झलक उसके दिल में कोई हलचल पैदा कर गई हो।

    "कौन है ये?" उसके मन में सवाल आया।

    वो जींस और शर्ट में थी, और किसी भी तरह से वेट्रेस नहीं लग रही थी। शिव हल्की मुस्कान के साथ सोचता हुआ वहाँ से बाहर चला गया।

    यह पार्टी एक आलीशान होटल में, समंदर के किनारे ओपन-एरिया में आयोजित थी। चारों ओर शानदार डेकोरेशन, क्रिस्टल जैसी जगमगाती लाइट्स, और महंगे परिधानों में सजे लोग।

    टेबल्स खुले आसमान के नीचे सजे थे, और हवा में महंगे इत्र की खुशबू के साथ समंदर की नमकीन ठंडक थी।

    ---

    एक साइड पर, आर्यन राजवंश और जगत राठौर किसी बिजनेस डील पर चर्चा कर रहे थे। उनकी बातचीत खत्म होते ही वह शख्स चला गया।

    आर्यन और जगत अब अकेले खड़े थे, तभी वहाँ एक स्मार्ट-सा नौजवान आया।

    "क्या हो रहा है, भाई?"

    कहते हुए वह सीधे जगत के गले लग गया।

    जगत हंसकर बोला, "अरे, इंदर ! तू कहाँ था या? कई दिन से दिखाई ही नहीं दिया।"

    "मेरे भी गले लग जाओ," वह हँसते हुए बोला और आर्यन राजवंश को भी गले लगाया।

    आर्यन हल्की मुस्कान के साथ बोला, "इतने दिन हो गए, तुम कहाँ थे? तुम्हें देखा ही नहीं।"

    "मैं साउथ अमेरिका गया हुआ था, बस दो हफ़्तों के लिए," इंद्र ने सफाई दी।

    "दो हफ़्तों के लिए गए थे तो कम से कम एक फ़ोन कर सकते थे, इंद्र!" जगत ने गुस्से में कहा। "इतना बड़ा बिज़नेस है हमारा। कोई इंसान दो हफ़्ते गायब रहे और सूचना भी न दे—ये लापरवाही नहीं तो और क्या है?"

    आर्यन पास खड़ा मुस्कुरा रहा था। "भाई, आप अच्छे से जानते हैं—मुझे ऑफिस में दिलचस्पी ही नहीं है," इंद्र ने बेपरवाही से कहा।

    "दिलचस्पी लेनी पड़ेगी," जगत ने सख़्ती से कहा। "मैं तुम्हारी सिंगिंग और म्यूजिकल ग्रुप के खिलाफ़ नहीं हूँ। तुम्हारा म्यूज़िक देश ही नहीं, विदेशों में भी मशहूर है—ये गर्व की बात है। लेकिन फैमिली बिज़नेस को अनदेखा करना ठीक नहीं। तुम्हें हमारी ज़िम्मेदारी भी उठानी होगी।"

    जगत ने बीच में हंसकर कहा, "बिल्कुल सही। इंद्र राठौर सिर्फ़ स्टेज स्टार बनकर नहीं रह सकता। घर का काम भी उतना ही ज़रूरी है। याद है, मॉम-डैड ने तुम्हें मेरे बराबर की ज़िम्मेदारी दी है।"

    इंद्र ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "आप लोग इतनी चिंता क्यों करते हैं? मैं हूँ न। बस अभी कुछ शोज़ लाइन-अप हैं, इसलिए व्यस्त हूँ।"

    "देख लो जगत, फिर वही बहाना," आर्यन ने मजाकिया लहजे में कहा।

    इंद्र ने हंसते हुए कहा, "ठीक है, ठीक है। लेकिन अभी मुझे निकलना होगा। पता है ना, मेरे फैन इंतज़ार कर रहे है"

    जगत ने लंबी सांस ली। "ये भी चला गया..."

    आर्यन ने जगत की तरफ देखा। "जाएगा कहाँ? आखिर ऑफिस तो उसे ज्वाइन करना ही पड़ेगा। बहुत हो गया इसका म्यूज़िकल बहाना।"

    -

    उधर, इसी पार्टी में सान्वी और उसकी सहेली रिया कैटरिंग टीम के साथ वेट्रेस का काम कर रही थीं। उन्हें बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि आर्यन राजवंश यहीं मौजूद है।

    सानवी ने प्लेटें लगाते हुए फुसफुसाकर पूछा, "सुबह मैंने कहा था ना—उस छोटे डॉग को खाना खिला देना। किया कि नहीं?"

    "खिला दिया," रिया ने ट्रे पर गिलास सजाते हुए कहा। "बिल्डिंग के नीचे जो पप्पीज़ हैं, उन्हें भी खिलाया। और गार्ड से भी कह दिया कि जब मैं आऊं तो बता देना।"

    सानवी मुस्कुराई। "शाबाश। कहीं तू भूल जात।"

    दोनों एक ड्रिंक काउंटर के पास खड़ी थीं।सान्वी मेहमानों को ड्रिंक परोसते हुए थी कि अचानक उसने महसूस किया—कोई उसे ध्यान से देख रहा है। उसने नज़र उठाई। कुछ दूरी पर इंद्र राठौर खड़ा था।

    वह अभी-अभी मेहमानों से मिलकर बाहर निकलने ही वाला था कि उसकी नज़र सान्वी पर ठहर गई। मासूम चेहरा, सादगी और चमकती आँखें—इंद्र के दिल में जैसे कोई चिंगारी सी जल गई।

    जैसे ही सान्वी ट्रे लेकर आगे बढ़ी, इंद्र ने पुकारा, "हेलो!"

    सान्वी रुक गई। उसे लगा ड्रिंक चाहिए। "जी, क्या लेंगे सर?"

    इंद्र ने ट्रे से एक गिलास उठाया लेकिन उसकी दिलचस्पी बातचीत में थी। "लगता है आपको जानवरों से बहुत प्यार है?"

    शान्वी ने हल्की मुस्कान दी। "जानवर तो प्यारे होते ही हैं।"

    "मेरी बात तो सुनिए," इंद्र ने कहा जब वह आगे बढ़ने लगी।

    वह रुक गई। "जी?"

    " मुझे जानवर पसंद हों। मुझे भी एनिमल्स से प्यार है। शहर में कई डॉग शेल्टर हैं—कभी साथ चलेंगे?"

    सान्वी ने सहज पर दूरी भरे अंदाज़ में कहा, "इसके लिए आपको मेरी ज़रूरत नहीं, सर। इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो कई जगह मिल जाएंगी। मैं तो बस जब टाइम मिलता है चली जाती हूँ।"

    तभी रिया ट्रे लेने वापस लौटी और बातचीत सुनकर बीच में आ गई। "सर, आप सच में शेल्टर जाना चाहते हैं तो सान्वी को कॉल कर लीजिए। यह अक्सर जाती है।"

    सान्वी ने रिया को घूरा, लेकिन देर हो चुकी थी।

    इंद्र ने फोन निकाला। "अच्छा? तो नंबर?"

    रिया ने झटपट कहा, "जी, नोट कीजिए—" और सान्वी का नंबर बता दिया।

    इंद्र ने नंबर सेव करते हुए कहा, "थैंक्स। कभी साथ चलते हैं।" वह मुस्कुराकर आगे बढ़ गया।

    जैसे ही वह दूर गया, सान्वी गुस्से में बोली, "मेरा नंबर क्यों दिया? क्या ज़रूरत थी?"

    रिया ने कहा, "अरे यार, मौका है! हमें पूरी उम्र वेट्रेस बनकर तो नहीं रहना। कोई अच्छा, अमीर, हैंडसम लड़का दिलचस्पी ले तो बुरा क्या है? सेटल हो जाएगी तो फायदा ही होगा।"

    "मुझे इन सब चीज़ों में कोई दिलचस्पी नहीं," सन्वी ने नाराज़गी से कहा। "काम कर, और किसी को नंबर मत बांट।"

    रिया हंस दी। "देखना, तू ही मान जाएगी।"

    दूर से इंद्र ने एक बार फिर सान्वी को देखा—उसकी मुस्कान में अब एक अनकही चाहत थी।

    ---

  • 16. Deewangi Teri 🍁🍁 - Chapter 16

    Words: 1513

    Estimated Reading Time: 10 min

    शाम का समय था। शहर के सबसे आलीशान बैंकेट हॉल में एक हाई-प्रोफाइल पार्टी चल रही थी। चमकती रोशनियाँ, महंगे सूट-बूट पहने मेहमान और लाइव म्यूज़िक—सब कुछ उस जगह को ख़ास बना रहा था। पार्टी राजवंश-जगतराज ग्रुप की ओर से थी, और इसी कारण आर्यन राजवंश व इंद्र राठौर यहाँ मौजूद थे।

    उधर, सानवी और उसकी सहेली रिया कैटरिंग टीम का हिस्सा थीं। दोनों वेट्रेस की यूनिफॉर्म में काम में लगी हुई थीं। उन्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि वही लोग, जिनके लिए वे आज ड्रिंक सर्व कर रही थीं, उनके जीवन की दिशा बदल सकते हैं।

    ---

    "किसी और की ज़िंदगी बदले या ना बदले, लेकिन आर्यन राजवंश की ज़िंदगी में सानवी की एंट्री उस दिन कुछ इस तरह होने वाली थी, जैसे किसी पुराने अधूरे किस्से का दोबारा शुरू होना।"

    न आर्यन को इसका अंदाज़ा था, न सानवी को कोई पूर्वाभास... लेकिन उनकी यह पहली मुलाकात सिर्फ एक इत्तेफाक नहीं थी। ये एक ऐसी डोर थी, जो दो रूहों को बाँधने जा रही थी — हमेशा के लिए।

    आर्यन और सानवी — दो अलग-अलग दुनिया के लोग, दो अलग रास्तों पर चलने वाले, लेकिन उस दिन जैसे कायनात ने ख़ुद उनके रास्ते मोड़ दिए थे। जब वे पहली बार आमने-सामने आए, शायद वे यह नहीं समझ सकेंगे कि उनके बीच क्या था — लेकिन वक़्त उन्हें धीरे-धीरे समझा देगा कि यह सिर्फ एक पल की बात नहीं थी... यह मुलाकात एक जन्म नहीं, कई जन्मों की कहानी थी।

    शायद अभी उन्हें एहसास नहीं था कि उनकी ज़िंदगियाँ अब कभी वैसी नहीं रहेंगी जैसी आज तक थीं। उन्हें अभी ये नहीं पता था कि जिस सानवी को आर्यन पहली बार देखेगा, वह उसकी बेचैन रूह में ठहराव लेकर आएगी... और जिस आर्यन को सानवी देखेगी, वह उसकी ज़िंदगी की अधूरी तस्वीर को पूरा कर देगा।

    पर अभी ये सब कहना जल्दी होगा। क्योंकि एहसास धीरे-धीरे आता है... रिश्ते धीरे-धीरे बनते हैं... और मोहब्बत, वो तो अक्सर चुपचाप दिल में उतरती है, बिना दस्तक दिए।

    ---

    ।”

    सानवी ड्रिंक सर्व करती हुई उस सेक्शन में पहुँची, जहाँ आर्यन कुछ विदेशी मेहमानों से बिज़नेस टॉक कर रहा था। उसे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि यही वही आदमी है, जिसके घर में वह हफ्ते में दो दिन खाना बनाने जाती है।

    वह ट्रे लेकर खड़ी हुई। टेबल पर खड़े मेहमानों ने गिलास उठा लिए। आर्यन बातचीत में इतना व्यस्त था कि उसने उसकी ओर देखा तक नहीं।

    सानवी मुड़ने लगी ही थी कि अचानक उसकी कलाई का मोतियों वाला ब्रैसलेट आर्यन की कोट की कफ़लिंक में अटक गया। ट्रे उसने संभालकर टेबल पर रख दी।

    “सॉरी सर, ये फँस गया है,” उसने धीरे से कहा।

    आर्यन ने पहली बार उसकी ओर देखा और हल्की मुस्कान दी। “एक मिनट, मैं निकाल देता हूँ।”

    “नहीं, मैं निकाल लूँगी, सर,” शान्वी ने कहा। वह धागा छुड़ाने लगी, लेकिन मोती का धागा फँस गया था।

    टेबल पर खड़े लोग देखने लगे, तो आर्यन ने जल्दी से हाथ खींचा और ट्र्र्र!—ब्रैसलेट टूट गया। मोती फर्श पर बिखर गए।

    रिया भागती हुई आई। “ये क्या हुआ?”

    सानवी की आँखों में चोट झलक गई। “आपने तोड़ दिया… मैंने कहा था मैं निकाल लूँगी!”

    आर्यन ने कहा, “कम ऑन, चिंता मत करो। मैं पेमेंट कर देता हूँ। नया बनवा लेना।”

    “हर चीज़ खरीदी नहीं जा सकती, सर। ये मेरे लिए खास था। गिफ्ट था,” सानवी ने पलटकर कहा।

    रिया ने थोड़ा बढ़ा-चढ़ा कर बोला, “जी, बहुत स्पेशल था। कॉस्टली भी!”

    आर्यन ने वॉलेट से पैसे निकालकर दिए। सानवी ने हाथ पीछे कर लिया।

    “मुझे पैसे नहीं चाहिए।”

    लेकिन रिया ने पैसे पकड़ लिए। “नुकसान हुआ है, सर। पेमेंट देना ही चाहिए।”

    सानवी ने गुस्से में कहा, “रिया! ये क्या कर रही हो?”

    “शांत रह,” रिया ने फुसफुसाकर कहा। “बाद में समझाऊँगी।”

    आर्यन ने जाते-जाते सानवी की ओर एक नज़र डाली—जिसमें गुस्सा भी था और आत्म-सम्मान भी।

    ---

    वेद जो उस वक्त पर पार्टी में पहुंच गया था। जैसे ही वह पार्टी में दाख़िल हुआ, उसने देखा कि आर्यन राजवंश और सानवी किसी बात पर बहस कर रहे थे। हालांकि जब तक वेद टेबल तक पहुंचा, वो वहाँ से जा चुकी थी, लेकिन आर्यन का मूड साफ़ तौर पर खराब लग रहा था।

    "क्या हो रहा है?" वेद ने मुस्कुराकर पूछा।

    आर्यन ने उसका स्वागत करते हुए गले लगाया और बोला, "अरे यार! मुझे लगा था तू आएगा ही नहीं।"

    वेद और आर्यन कॉलेज के ज़माने से अच्छे दोस्त थे। जब वेद विदेश में रहता था, तब भी वे अक्सर एक-दूसरे से मिलते रहते थे। उनके बिज़नेस के बीच भी कुछ साझेदारी थी। जब आर्यन को पता चला कि वेद वापस आ चुका है, तो उसने खास तौर पर इस पार्टी में उसे इनवाइट किया था।

    वेद ने मुस्कुरा कर कहा, "तूने बुलाया और मैं न आता? ऐसा कैसे हो सकता है?"

    फिर एक नज़र आर्यन के चेहरे पर डालते हुए उसने पूछा, "लेकिन तू इतना परेशान क्यों दिख रहा है? वो लड़की तो काफ़ी खूबसूरत थी।"

    वेद दरअसल सानवी की बात कर रहा था।

    आर्यन उसकी बात पर हल्का-सा हँस दिया, "तू आज भी नहीं बदला। तेरी नजर अब भी सीधी खूबसूरती पर जाती है,स्टैंडर्ड देखो! वो भी वेट्रेस है और हम भी इतने बड़े बिज़नेस हैं... ।"

    वेद ने मजाकिया अंदाज़ में आँख दबाते हुए कहा, "मगर यार, खूबसूरती का स्टैंडर्ड तो कभी नहीं बदलता।"

    आर्यन हँसते हुए आगे बढ़ा, मगर तभी वेद ने गंभीर होते हुए कहा, "अरे हाँ, मैं अयान को कॉल कर रहा था, लेकिन उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा है।"

    वेद, आर्यन और अयान—तीनों कॉलेज के ज़माने में बहुत अच्छे दोस्त थे। वेद की चिंता लाज़िमी थी।वो सालो के बाद इंडिया आया था और अब अपने दोस्तों से मिल रहा था।

    आर्यन थोड़ा रुककर बोला, "उसका एक बहुत बड़ा एक्सीडेंट हुआ है।"

    वेद चौंक गया, "क्या? कब हुआ?"

    "कुछ दिन पहले," आर्यन ने बताया, "बहुत ज़्यादा पीकर गाड़ी चला रहा था। नियंत्रण खो बैठा।"

    "भाई, उसका पता दे। मैं अस्पताल जाकर मिल लेता हूँ," वेद ने तुरंत कहा।

    लेकिन आर्यन ने सिर हिलाया, "अभी नहीं। किसी को मिलने नहीं दिया जा रहा है। उसका हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ है... इन्फेक्शन का ख़तरा है, इसलिए डॉक्टर किसी से मिलने नहीं दे रहे।"

    वेद चुप हो गया। हवा में कुछ देर के लिए एक गंभीर खामोशी छा गई। उनके पुराने दिनों की यादें जैसे एक पल में आँखों के सामने आ गई थीं—जहाँ दोस्ती थी, लड़कियाँ थीं, सपने थे, और अब ज़िंदगी के ये नए, भारी सच।

    ---

    "अरे मेरी छोड़, तू अपनी बता। इंडिया शादी करने के लिए आया है क्या?"

    आर्यन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, जब दोनों एक साइड में रखी टेबल पर बैठ गए।

    वेद हँसते हुए बोला, "नहीं यार, बिल्कुल भी नहीं। मुझे शादी नहीं करनी। मैं खुद को अच्छे से जानता हूँ।"

    आर्यन ने उसकी बात पर सिर हिलाया, फिर वेद ने चुटकी ली, "चल मेरी छोड़, तू बता... तू कब शादी कर रहा है?"

    आर्यन थोड़ा गंभीर हो गया, फिर हल्की हँसी के साथ बोला, "तू तो मेरा एक्सपीरियंस जानता है न। मैं कभी शादी नहीं करूंगा।"

    वेद ने उसकी तरफ देखा और पूछा, "तो फिर कोई तो होगी तुम्हारी लाइफ में?"

    आर्यन ने ठंडे स्वर में जवाब दिया, "नहीं, कोई नहीं है। और ना ही मुझे किसी की ज़रूरत है। मैं अकेला ही खुश हूं।"

    आर्यन की आंखों में उस वक्त की परछाईं सी झलक रही थी। उसका पिछला अनुभव बहुत गहरा और तकलीफदेह रहा था। शायद इतना कि अब वो किसी भी रिश्ते में भरोसा नहीं करना चाहता था। किसी भी लड़की में दिलचस्पी लेने का सवाल ही नहीं उठता था।

    अब उसका अकेलापन ही उसकी आदत बन चुका था — और शायद उसकी राहत भी।

    "कितने दिनों के लिए आया है?"

    आर्यन ने माहौल को थोड़ा हल्का करते हुए वेद से पूछा, जैसे किसी पुराने दर्द से ध्यान हटाना चाहता हो।

    वेद मुस्कुराया, "अब हमेशा के लिए। यहीं हूँ मैं। अब मुझे अपनी इंडस्ट्री की बागडोर संभालनी है... लेकिन उससे पहले कुछ ज़रूरी काम हैं जो मुझे पूरे करने हैं।"

    आर्यन के चेहरे पर खुशी की झलक आई, "ये तो बहुत अच्छी बात है! अंकल तो बहुत खुश हुए होंगे ये सुनकर कि तू अब इंडिया में ही रहेगा।"

    वेद ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया।

    अब दोनों दोस्त धीरे-धीरे अपनी पुरानी यादों में खोने लगे थे। कॉलेज के दिन, दोस्तों की बातें, बेफिक्री से भरे वो पल... ऐसा लग रहा था जैसे वक्त कुछ पल के लिए ठहर गया हो।

    ---

    काम खत्म करके दोनों अपने छोटे से किराए के फ्लैट में पहुँचीं।

    सानवी खर्चों का हिसाब लिख रही थी। “किराया, बिजली, गैस… और कृति के खर्चे।

    सचमुच कृति बहुत खर्च करती है ।सोचती नहीं कि मैं कहां से लाऊंगी। सानवी भी कहने लगी।

    मुझे तुम पर बहुत गुस्सा आ रहा है।” सानवी ने  रिया से कहा।

    “पैसे ले लिए ना, फिर चिंता क्यों?” रिया ने कहा।

    “मुझे वो पैसे नहीं चाहिए थे। और ब्रैसलेट महंगा नहीं था, पर खास था। मासी ने गिफ्ट दिया था,” सानवी ने दुखी स्वर में कहा।

    रिया बोली, “देख, ऐसे ही हिसाब-किताब करती रहेगी तो ज़िंदगी निकल जाएगी। किसी अमीर लड़के से शादी कर, सेटल हो जा।”

    “मुझे किसी सेटलमेंट की शादी नहीं चाहिए,” सानवी ने सख़्त स्वर में कहा। “मैं अपने दम पर खड़ी होना चाहती हूँ।”

    ---

  • 17. Deewangi Teri 🍁🍁 <br> <br>"रिश्ते बनते हैं जिस्म से… या रूह से?" - Chapter 17

    Words: 1504

    Estimated Reading Time: 10 min

    आर्यन की पार्टी के बाद वेद रात को क्लब चला गया था। लेकिन उसका मन बेचैन था। वह वहाँ ज़्यादा देर नहीं रुका और बहुत जल्दी वापस लौट आया। उस अनजान लड़की का इस तरह से अचानक उसकी ज़िंदगी से चले जाना उसे भीतर तक बेचैन कर रहा था।

    लेकिन उसकी इस बेचैनी का असर केवल उस पर नहीं, बल्कि उसके दुश्मनों पर पड़ रहा था। क्योंकि वेद जब बेचैन होता है, तो वह खुद को नहीं, बल्कि दूसरों को बर्बाद करता है।

    उसके क्लब से लौटने के कुछ ही देर बाद किसी का फोन वेदांत को आया।

    “क्या कह रही हो तुम? वह तो रुका ही नहीं क्लब में? इतनी जल्दी चला गया?” फोन के उस पार से हैरानी भरी आवाज़ आई।

    वेदांत ने गंभीर लहजे में कहा, “हाँ। वो तो सीधा निकल गया। जबकि तुम जानती हो, जब भी वह क्लब जाता है, तो पूरी रात वहीं रुकता है। वहीं तो उसकी ऐय्याशी का अड्डा है। वहाँ उसका एक परमानेंट रूम बुक है।”

    “तो फिर आज क्या हुआ? तुम्हारा जादू नहीं चला उस पर?”

    “उसने तो मेरी तरफ देखा तक नहीं।” उस लड़की की आवाज़ में झुंझलाहट थी।

    “और तुम कह रही थीं कि वो कभी किसी लड़की को ‘ना’ नहीं कहता!”

    “कोई बात नहीं। तुम अपनी कोशिश जारी रखो,” वेदांत ने शातिर मुस्कान के साथ कहा, “याद है ना तुम्हें क्या करना है? तुम्हें उसके करीब जाना है... और फिर धीरे-धीरे उसके ड्रिंक में ड्रग मिलाकर उसे एडिक्ट बनाना है।”

    लड़की ने ठंडी आवाज़ में जवाब दिया, “फिक्र मत कीजिए। वैसा ही होगा।”

    ---

    संडे की सुबह – तैयारी और योजना

    सुबह संडे थी। ऑफिस का कोई कार्यक्रम नहीं था। लड़कों ने पहले से ही डिजाइनर के पास जाने का प्लान बना रखा था। वेदांत को छोड़कर दीपक, सुधीर और सुधांशु — तीनों भाई अपनी ड्रेस ट्राई करने के लिए तैयार थे।

    वहीं, वेदिका, रूपा और मौली — तीनों देवरानी-जेठानी भी डिजाइनर के पास जाने वाली थीं। उन्हें भी अपनी शादी के लिए तैयार हो रही ड्रेस ट्राई करनी थी।

    तभी वेद ने मुस्कुराते हुए पूछा, “तो आज का क्या प्रोग्राम है आप तीनों का?”

    दीपक ने कहा, “भाई, आप हमारे साथ चलो ना! आपको भी तो अपनी ड्रेस सिलवानी है।”

    वेद थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला, “सोच तो मैं भी यही रहा हूँ।”

    सुधांशु हँसते हुए बोला, “तो ठीक है, सब साथ चलते हैं। फिर देखना बाजार में, सबको मेहरा फैमिली के लड़के कितने हैंडसम लगेंगे!”

    उसी समय वेद की माँ वहाँ आ गईं। वेद ने पूछा, “मॉम, आप मेरे साथ चल रही हैं न?”

    वेदिका ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “हाँ, हम तीनों वहीं आ रहे हैं।”

    “ठीक है, फिर आप लोग अलग गाड़ी से आ जाइए,” वेद ने कहा।

    बाहरी तौर पर वेद शांत दिख रहा था, मगर भीतर ही भीतर वह बेहद बेचैन था। वह सिर्फ इसलिए सबके साथ जा रहा था ताकि अपने तनाव से ध्यान हटा सके।

    ---

    बाजार से लौटने के बाद मौली ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा, “इतना समय हो गया, अभी तक पंडित जी नहीं आए?”

    वेदिका बोली, “आज तो पंडित जी को आना था, शादी की तैयारियों को लेकर चर्चा करनी थी।”

    रूपा ने कहा, “हम तो इसीलिए बाजार से जल्दी आ गए, ताकि पंडित जी को इंतजार न करना पड़े।”

    उसी समय एक नौकर भागता हुआ आया, “पंडित जी आ चुके हैं, वे बाहर हैं।”

    वेदिका ने कहा, “उन्हें अंदर लेकर आओ।”

    पंडित जी के अंदर आते ही तीनों देवरानी-जेठानी अपनी जगह से खड़ी हो गईं और उन्हें प्रणाम किया।

    मौली बोली, “पंडित जी, आज तो आपने देर कर दी। आप तो जल्दी आने वाले थे।”

    पंडित जी ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया, “असल में थोड़ी देर ट्रैफिक में फँस गया था, इसलिए देर हो गई।”

    मौली ने पूछा, “आप सारा सामान साथ लाए हैं ना, जिसकी पिछली बार बात हुई थी?”

    पंडित जी ने स्नेह से कहा, “बहुरानी, आप तो बहुत चिंता करती हैं। आपके बेटे की शादी अच्छे से हो जाएगी, आप फ़िक्र न करें।”

    कुछ देर बाद पंडित जी ने सारा सामान उन्हें सौंपा और विस्तार से समझा दिया।

    ---

    नाश्ते के बाद जब पंडित जी जाने लगे तो वेदिका ने उन्हें रोक लिया।

    “पंडित जी, मुझे अपने बेटे वेद की कुंडली दिखानी थी।”

    पंडित जी मुस्कुराए, “तो फिर इतनी देर से क्या सोच रही थीं, बड़ी बहुरानी? मैं देख रहा हूँ आप किसी उलझन में हैं।”

    वेदिका ने गंभीर स्वर में कहा, “हां पंडित जी, मैं उसके लिए चिंतित रहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि वह शादी करके जीवन में सेटल हो जाए।”

    पंडित जी बोले, “उसकी कुंडली तो मैंने पहले ही बनाई थी। क्या वह अब भी आपके पास है?”

    वेदिका ने कहा, “हां, मैंने संभाल कर रखी है। मैं लेकर आती हूँ।”

    कुछ ही देर में वह कुंडली लेकर आ गईं। पंडित जी ने कुंडली को ध्यान से देखा, फिर धीरे-धीरे उनके चेहरे पर गंभीरता छा गई।

    वेदिका ने घबराकर पूछा, “क्या हुआ पंडित जी? वो शादी करेगा भी या नहीं?”

    पंडित जी मौन रहे। फिर बोले, “छोटी बहुरानी, मुझे अपने बेटे के कुछ पुराने कपड़े दीजिए, जो वह अब नहीं पहनता। मैं उन्हें हमारी बस्ती में गरीबों में बांट दूँगा। उसकी शादी है — उसे दुआएँ लगेंगी।”

    मौली उठकर कपड़े लेने चली गई। फिर पंडित जी ने रूपा से भी वही अनुरोध किया। रूपा भी चली गईं।

    अब कमरे में केवल वेदिका और पंडित जी रह गए थे।

    पंडित जी ने गंभीर स्वर में कहा, “बहुरानी, मैं नहीं जानता कि सच्चाई क्या है... मगर इस कुंडली के अनुसार, आपके बेटे की शादी हो चुकी है।”

    वेदिका स्तब्ध रह गईं। “क्या?! पंडित जी, ध्यान से देखिए। उसकी कोई शादी नहीं हुई। अगर होती तो वह लड़की इस घर में होती। हम तो उसकी हर बात मानते हैं। वह जिसे भी लाता, हम स्वीकार कर लेते।”

    वह आगे बोलीं, “मगर हाँ, पांच साल वह विदेश में था। क्या पता, किसी विदेशी लड़की से शादी की हो और फिर तलाक ले लिया हो?”

    पंडित जी ने सिर हिलाते हुए कहा, “नहीं। कोई विदेशी नहीं। वह लड़की यहीं भारत की है। और कोई तलाक भी नहीं हुआ। कुंडली के अनुसार शादी का योग पांच साल पहले ही बना था।”

    वेदिका की आँखें चिंता से भर गईं। “तो फिर…?”

    पंडित जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “एक बात और है… उस पर बहुत बड़ा ख़तरा मंडरा रहा है। उसकी जान को खतरा है। उसके दुश्मन उसे बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं।”

    उसी समय मौली और रूपा कपड़े लेकर लौट आईं।

    रूपा ने पूछा, “तो पंडित जी, वह खतरा कैसे टलेगा?”

    पंडित जी ने दोनों की ओर देखकर कहा, “उसकी ज़िंदगी में दो लड़कियाँ आएँगी। वही उसे बचाएँगी। ये दोनों लड़कियाँ उसकी ज़िंदगी में बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखेंगी।”

    फिर उन्होंने वेदिका की तरफ देखकर कहा, “बहुरानी, आपका बेटा बहुत नसीब वाला है। वह इस घर की भी किस्मत बनकर आया है। उसके आने के बाद इस घर का भाग्य भी चमक गया है — और आपका भी।”

    वेदिका की आँखों में आँसू आ गए। उसने भावुक होकर कहा, “यह बात तो सच है, पंडित जी। मेरा नसीब तो उसके आने के बाद ही चमका है…”

    ________

    सान्वी को यह बात अब याद नहीं थी कि इंद्र को रिया‌ने उसका नंबर किसने दिया था। वह भूल चुकी थी कि उन्होंने पार्टी में मुलाकात के दौरान किसी "डॉग सेंटर" चलने की बात की थी। आज रविवार था, कॉलेज की छुट्टी तो थी, लेकिन उसे काम पर जाना ही था — सफाई और खाना बनाने के लिए।

    सुबह वह आराम से उठी ही थी कि अचानक उसका फ़ोन बजा। स्क्रीन पर अनजान नंबर था। उसने संकोच के साथ फ़ोन उठाया।

    "हैलो... कैसी हैं आप?"

    आवाज़ इंद्र की थी।

    "माफ कीजिए, आप कौन?"

    सान्वी ने पूछा, उसे आवाज़ कुछ जानी-पहचानी सी लगी, मगर नाम याद नहीं आया।

    "मैं इंद्र बोल रहा हूँ। हम लोग कल पार्टी में मिले थे — डॉग सेंटर चलने की बात हुई थी।"

    इंद्र ने बड़े सहज स्वर में कहा।

    "ओह, सॉरी! मुझे आपका नंबर सेव नहीं था।"

    सान्वी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

    "कोई बात नहीं। आज संडे है, चलें वहीं? आप कह रही थीं कि आपको डॉग्स बहुत पसंद हैं।"

    इंद्र को किसी भी तरह उसके साथ समय बिताना था।

    एक पल के लिए सान्वी सोच में पड़ गई, लेकिन उसने बहाना बनाते हुए कहा,

    "अगर आप पहले बता देते तो मैं फ्री रहती। मैंने आज का प्लान पहले से बना लिया है, कुछ काम हैं। आप एड्रेस भेज दीजिए, मैं कोशिश करती हूँ अकेले जाने की..."

    इंद्र को समझ आ गया कि वह उसके साथ नहीं जाना चाहती।

    "नहीं-नहीं, कोई बात नहीं,"

    वह बोला,

    "जिस दिन आप फ्री होंगी, मैं आपके साथ ही चलूंगा। हम फिर कभी प्लान बना लेंगे।"

    सान्वी ने राहत की साँस ली — उसे इंद्र के साथ नहीं जाना था।

    वेद की जान को किस से खतरा है।

    - वेद की जान को किस से खतरा है।

    अब सवाल उठता है — आर्यन और सान्वी की पहली मुलाक़ात कैसी होगी?

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    आपसे निवेदन है

    अगर आपको मेरी यह सीरीज पसंद आ रही है तो कृपया कमेंट में बताएं और रेटिंग ज़रूर दें।

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  • 18. Deewangi Teri 🍁🍁 <br> <br>"रिश्ते बनते हैं जिस्म से… या रूह से?" - Chapter 18

    Words: 1594

    Estimated Reading Time: 10 min

    सान्वी को यह बात अब याद नहीं थी कि इंद्र को रिया को उसका नंबर किसने दिया था। वह भूल चुकी थी कि उन्होंने पार्टी में मुलाकात के दौरान किसी "डॉग सेंटर" चलने की बात की थी। आज रविवार था, कॉलेज की छुट्टी तो थी, लेकिन उसे काम पर जाना ही था — सफाई और खाना बनाने के लिए।

    सुबह वह आराम से उठी ही थी कि अचानक उसका फ़ोन बजा। स्क्रीन पर अनजान नंबर था। उसने संकोच के साथ फ़ोन उठाया।

    "हैलो... कैसी हैं आप?"

    आवाज़ इंद्र की थी।

    "माफ कीजिए, आप कौन?"

    सान्वी ने पूछा, उसे आवाज़ कुछ जानी-पहचानी सी लगी, मगर नाम याद नहीं आया।

    मैं इंद्र बोल रहा हूँ। हम लोग कल पार्टी में मिले थे — डॉग सेंटर चलने की बात हुई थी।"

    इंद्र ने बड़े सहज स्वर में कहा।

    "ओह, सॉरी! मुझे आपका नंबर सेव नहीं था।"

    सान्वी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

    "कोई बात नहीं। आज संडे है, चलें वहीं? आप कह रही थीं कि आपको डॉग्स बहुत पसंद हैं।"

    इंद्र को किसी भी तरह उसके साथ समय बिताना था।

    एक पल के लिए सान्वी सोच में पड़ गई, लेकिन उसने बहाना बनाते हुए कहा,

    "अगर आप पहले बता देते तो मैं फ्री रहती। मैंने आज का प्लान पहले से बना लिया है, कुछ काम हैं। आप एड्रेस भेज दीजिए, मैं कोशिश करती हूँ अकेले जाने की..."

    इंद्र को समझ आ गया कि वह उसके साथ नहीं जाना चाहती।

    "नहीं-नहीं, कोई बात नहीं,"

    वह बोला,

    "जिस दिन आप फ्री होंगी, मैं आपके साथ ही चलूंगा। हम फिर कभी प्लान बना लेंगे।"

    सान्वी ने राहत की साँस ली — उसे इंद्र के साथ नहीं जाना था।

    ---

    सान्वी के फ़ोन रखते ही, उसकी दोस्त रिया ने उसे डाँटा —

    "पागल हो गई है क्या? इतना अमीर लड़का तुझसे बात कर रहा है, साथ में घूमना चाहता है, और तू इंकार कर रही है? पूरी ज़िंदगी खाना बनाकर गुज़ारनी है क्या?"

    "क्या करूं यार? बेवकूफ हूं शायद..."

    सान्वी ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया।

    "अगर वो तुझमें इंटरेस्ट ले रहा है तो तुझे भी कम से कम सोच तो लेना चाहिए। देख, किसी अमीर लड़के से शादी कर ले, सेटल हो जा!"

    रिया अपनी दोस्त को समझा रही थी।

    "रिया, तू मुझे अच्छे से जानती है — मुझे न शादी करनी है, न ही किसी की कमाई पर जीना है। मुझे अपनी जिंदगी अपने दम पर जीनी है। ऐसी बातों के लिए मेरे पास बिल्कुल भी टाइम नहीं है।"

    सान्वी ने दृढ़ता से जवाब दिया।

    ---

    — राजवंश हाउस

    रविवार का दिन था। आर्यन राजवंश अपनी माँ, मैसेज राजवंश के घर लंच पर आया था। वहाँ उसकी बहन अन्या, जीजा जगतराज राठौर, उसका दोस्त शिव मेहता और भांजा जय भी मौजूद थे। सभी लोग लॉन में लगे खाने की टेबल के पास बैठे थे।

    मैसेज राजवंश, जय को अपने पास बिठाकर अपने हाथों से उसे खाना खिला रही थीं। उन्होंने आर्यन की ओर देखते हुए कहा:

    "मैंने तुझे कितनी बार फ़ोन किया, मगर हर बार एक ही जवाब मिलता है — 'मॉम, बिज़ी हूं, बाद में बात करूंगा'। आज तो फुर्सत मिल ही गई तुझे!"

    "मॉम, ऐसी बात नहीं है। काम बहुत बढ़ गया है, टाइम निकाल पाना मुश्किल हो गया था।"

    आर्यन सफाई देने लगा।

    "इतना भी क्या बिज़ी होना कि अपनी माँ के लिए टाइम ही न हो!"

    मैसेज राजवंश नाराज़ थीं।

    "मॉम, आप नहीं जानतीं — ये हम सबसे सिर्फ काम की बात करता है। जैसे हम इसके बिज़नेस पार्टनर हैं, कोई रिश्ता नहीं है!"

    जगतराज ने चुटकी ली।

    "सच कहूं तो मुझे ये सिर्फ फाइल्स के लिए फोन करता है — 'वो प्रेजेंटेशन तैयार हुआ या नहीं हुआ?'... बस!"

    अन्या ने शिकायत की।

    "मैं तो इसका दोस्त हूं, मगर लगता है जैसे मैं कोई असिस्टेंट हूं — सिर्फ काम की बात करता है!"

    शिव मेहता भी हँसते हुए बोल पड़ा।

    सभी आर्यन की शिकायतों की झड़ी लगाए बैठे थे। आर्यन मुस्कुरा रहा था — सबकी बातें सुनकर।

    "लगता है मुझे भी कंपनी में जॉब कर लेनी चाहिए, फिर तो तू मुझे भी फोन करेगा — ‘मॉम, फाइल तैयार है?’"

    मैसेज राजवंश ने मज़ाक में कहा।

    सभी खिलखिलाकर हँस पड़े।

    ---

    "मैं तो मामा के घर अक्सर खेलने जाता हूं!"

    जय ने कहा। वह आर्यन के सबसे करीब था। सब जानते थे कि आर्यन को जय के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता था।

    मैसेज राजवंश थोड़ी गंभीर हो गईं।

    "आर्यन बेटा, मुझे लगता है तुम्हें अब शादी कर लेनी चाहिए।"

    अब माँ-बेटे अकेले बैठ गए थे।

    "माँ, मेरा अनुभव आप जानती हैं... मुझे सच में किसी के साथ शादी करने का बिल्कुल मन नहीं है।"

    "ठीक है, शादी नहीं करनी तो कम से कम एक गर्लफ्रेंड तो बना लो!"

    माँ मुस्कुरा कर बोलीं।

    "मॉम प्लीज़!"

    आर्यन हँसने लगा और खड़ा हो गया।

    "देख बेटा, अगर कभी कोई लड़की पसंद आ जाए, तो सबसे पहले अपनी मॉम को बताना!"

    "ओह मॉम!"

    वह धीरे से मुस्कराया और वहाँ से चला गया।

    ---

    दृश्य — आर्यन का घर | संडे शाम

    सान्वी आर्यन के घर पर सफाई और खाना बनाने के लिए पहुंची थी। उसके कानों में हेडफोन थे, और वह अपने काम में मग्न थी। उसे पता था कि आर्यन आज बाहर है और हमेशा की तरह रात को ही आएगा।

    उसने पहले रसोई में खाना बनाया, फिर घर की डस्टिंग शुरू की। घर बहुत बड़ा नहीं था — एक हॉल, तीन बेडरूम, एक किचन, एक ड्राइंग रूम और लॉन के पास कुछ स्टाफ क्वार्टर्स।

    ---



    सान्वी रसोई का काम पूरा कर चुकी थी। अब वह घर के हॉल और कमरों की डस्टिंग में लग गई थी। बालों को क्लिप से पीछे बाँधा हुआ था, और कानों में वायर वाले हेडफोन—जिनसे उसकी दुनिया में अभी एक क्लासिकल सॉन्ग बज रहा था।

    "तेरे बिना ज़िंदगी से कोई... शिकवा..."

    उसके होंठ साथ-साथ गुनगुना रहे थे।

    उसे यह पता नहीं था कि आज आर्यन जल्दी लौट आया है।

    ---

    आर्यन राजवंश की कार इलेक्ट्रॉनिक गेट से धीरे-धीरे अंदर दाख़िल हुई। गाड़ी रुकने की आवाज़ बेहद हल्की थी, मगर घर के स्टाफ क्वार्टर्स की तरफ झांकते हुए किसी ने भी नोटिस नहीं किया।

    आर्यन कार से उतरा। , ब्लैक टी-शर्ट और बेज ट्राउज़र। हाथ में मोबाइल और फाइल का ब्राउन लेदर कवर। वह अपनी मॉम के घर से लंच के लिए गया हुआ था।वहां बजे वापस लौटा था

    वह जल्दी से अपने कमरे की तरफ बढ़ा और भीतर चला गया।

    ---

    आर्यन ने कोट उतारा, घड़ी उतारी और मोबाइल चार्जिंग पर लगा दिया। हल्का-सा फ्रेश होकर वह बाहर की ओर निकला कि पानी पी सके।

    जैसे ही वह हॉल की ओर बढ़ा — उसे हल्की सी आहट सुनाई दी। किसी के चलने की।

    कोई बहुत धीमे-धीमे, मगर लगातार कदमों से एक कमरे से दूसरे कमरे में घूम रहा था।

    उसका माथा सिकुड़ गया।

    "कौन है?" उसने धीरे से कहा।

    कोई जवाब नहीं।

    उसने जल्दी से सोफे के पास पड़ी छड़ी (डेकोरेटिव स्टिक) उठाई —

    "लगता है कोई घुस आया है..."

    उसके कदम बेहद धीमे मगर सतर्क हो चुके थे।

    ---

    [दूसरी तरफ — हॉल के साइड बेडरूम में]

    सान्वी हल्के हाथों से दीवारों के कोने साफ कर रही थी। हाथ में पोंछा था और उसकी नजरें छत की ओर थीं। संगीत में खोई हुई, उसे आर्यन की आवाज़ या कदमों की आहट का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था।

    जैसे ही वह कमरे से बाहर निकली, आर्यन भी कोने से घूमकर सामने आ गया।

    "तुम!" — आर्यन

    "अरे!" — सान्वी

    दोनो एक पल के लिए एक-दूसरे को देखकर स्तब्ध रह गए।

    अगले ही पल दोनों ने एक-दूसरे को चोर समझ लिया।

    आर्यन ने बिना कुछ सोचे डंडा उठाकर आगे किया।

    "तुम कौन हो? यहाँ क्या कर रही हो?"

    उसकी आवाज़ गंभीर थी, और आंखें सवालों से भरी हुईं।

    सान्वी हड़बड़ाई, मगर तुरंत खुद को संभालते हुए पीछे हट गई।

    "तुम यहाँ कैसे घुस आए? ! मैंने तुम्हें पार्टी में देखा था! तुम वहीं हो ?"

    आर्यन रुक गया। उसके माथे पर एक रेखा खिंच गई।

    "ओह वाओ। मतलब तुम मुझे चोर समझ रही हो? और वो भी मेरे ही घर में?"

    सान्वी पल भर को चुप रही, फिर बोली —

    "मैंने तो सोचा कोई अंदर घुस आया है... मैं तो यहां काम करती हूं..."

    "काम? किसने रखा तुम्हें?"

    आर्यन का चेहरा थोड़ी देर के लिए सख्त हो गया।

    "तो अब मैं चोर बन गया? वाह!"

    सान्वी को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह घबरा गई।

    "सॉरी सर! मैं समझ नहीं पाई... मुझे लगा कोई घुस आया... और मेरे कान में हेडफोन था तो गाड़ी की आवाज़ भी नहीं सुनी..."

    तो क्या वह तुमसे जो घर में खाना पकाती हो । आर्यन सोचते हुए बोला।

    जी मैं ही हूं। उसने कहा

    और वह नोट भी तुम भी लिख तुम ही लिखती हो।

    **"देखिए ना सर..."

    वह झुककर उठाने लगी, मगर उसका हाथ कांप रहा था।

    आर्यन थोड़ा नरम पड़ा, मगर अब भी हल्की मुस्कान उसकी आंखों में थी।

    सान्वी थोड़ी शर्मिंदा, थोड़ी परेशान, और थोड़ी हैरान थी। यह पहली बार था जब वह आर्यन से मिली थी — वो भी इस हालत में।

    "मैं फिर से माफ़ी चाहती हूँ... मैं बस डस्टिंग कर रही थी और आप अचानक..."

    "और तुम अचानक!"

    आर्यन ने बात काटते हुए कहा।

    वह अपनी बाल्टी और सफाई का सामान लेकर बाहर निकल गई, मगर जाते-जाते उसने एक बार आर्यन को मुड़कर देखा।

    और आर्यन...

    वह वहीं खड़ा था।

    ---

    अगली सुबह... क्या कुछ बदलेगा?

    क्या आर्यन अब सान्वी को सिर्फ एक वर्कर की तरह देखेगाया

    यह पहली मुलाक़ात उसकी सोच को बदलेगी?

    क्या सान्वी अब डरने के बजाय थोड़ा और सहज हो पाएगी?

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  • 19. Deewangi Teri 🍁🍁 <br> <br>"रिश्ते बनते हैं जिस्म से… या रूह से?" - Chapter 19

    Words: 1796

    Estimated Reading Time: 11 min

    [मेहरा हाउस | दोपहर का समय]

    "
    वेदिका की आँखों में चमक के साथ चिंता भी झलकने लगी। उसने हल्के से वेद का नाम अपने मन में दोहराया।

    "ये दोनों लड़कियाँ उसकी ज़िंदगी में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती होंगी। बहुत नसीब वाला है तुम्हारा बेटा।" पंडित जी ने वेदिका की ओर देख कर कहा।

    "फिक्र मत किया करो, बड़ी बहू," उन्होंने आगे कहा, "वह तो इस घर की भी किस्मत बनकर आया है। उसके आने के बाद से इस घर का भाग्य ही बदल गया है… और तुम्हारा भी।"

    [वेदिका की आँखों में यादों का झरोखा खुलता है]

    "ये बात तो सच है, पंडित जी," वेदिका ने धीमी आवाज़ में कहा।

    "मेरा नसीब तो उसी दिन से चमका था, जब वेद मेरी कोख में आया था…"

    बलवंत मेहरा जो एक समय गुस्से का पुतला हुआ करता था… जिनकी जिंदगी में रिश्तों का कोई मोल नहीं था, वो वेद के आने के बाद बदल गए थे। पहले क्या थे, ये पूरे परिवार ने देखा है।

    उनकी ज़िंदगी में कई औरतें थीं। वेदिका से उनका विवाह एक समझौता था… एक मजबूरी थी। मगर जब वेद आने वाला था, तभी बलवंत का चेहरा बदलने लगा था।

    आज जो वेदिका को देख कर मुस्कुराता है, हाथ थामता है… वो कभी ऐसा नहीं था।

    [वर्तमान में वापसी]

    "तो क्या वह दो शादियाँ करेगा?" मौली और रूपा, जो थोड़ी देर पहले ही दोबारा हॉल में आई थीं, अचानक पूछ बैठीं।

    "मगर दो लड़कियों के साथ कैसे रहेगा?" रूपा ने बात बढ़ाई।

    "मैंने कब कहा कि वह दो शादियाँ करेगा?" पंडित जी ने मुस्कराते हुए उनकी ओर देखा।

    "आपने कहा — दो लड़कियाँ उसकी ज़िंदगी में महत्वपूर्ण होंगी।"

    "हाँ," पंडित जी बोले, "जब उसके जीवन पर खतरा आएगा, तो ये दो लड़कियाँ ही होंगी जो उसे बचाएँगी।"

    अब पंडित जी और कुछ नहीं कहना चाहते थे। उनकी आँखों में एक चुप्पी थी, जो कुछ छिपा रही थी।

    "बड़ी बहू रानी, उसका फिक्र करो, लेकिन इतना भी नहीं कि खुद बीमार हो जाओ," पंडित जी ने वेदिका को देखकर कहा।

    "अब मैं चलता हूँ।"

    वो उठे और वहां से चले गए।

    [हॉल में खामोशी]

    "अब ये दो लड़कियों वाली क्या बात थी?" रूपा फिर बोली, "ऐसा भी तो हो सकता है कि उसकी बीवी और... गर्लफ्रेंड हों।"

    "आजकल तो ऐसा भी चलन है," मौली ने उसका साथ दिया।

    वेदिका ने दोनों की ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। वह जानती थी — इन बातों का जवाब देने से सिर्फ उसकी बेचैनी बढ़ेगी।

    "देखो दीदी, हम आपका दिल दुखाने के लिए नहीं कह रहे। बस पंडित जी की बात कर रहे हैं।"

    "जो होगा, देखा जाएगा।" वेदिका ने बात खत्म की।

    [मॉल | शाम का समय]

    तीनों जेठानी-देवरानी मॉल से जल्दी लौट आई थीं क्योंकि पंडित जी आने वाले थे। अपनी ड्रेस तो वे ट्राई कर चुकी थीं, मगर चारों लड़के अब भी वहीं थे।

    "और कितना टाइम लगेगा भाई?" वेद बोर होकर बोला।

    उसने तो अपनी ड्रेस के लिए कपड़ा सिर्फ 10 मिनट में सिलेक्ट कर लिया था।

    "बस 10 मिनट और," दीपक ने कहा।

    वेद बुटीक के गेट पर आ गया था। तभी उसकी नज़र एक छोटी सी बच्ची पर पड़ी। उसके हाथ में आइसक्रीम थी और वो मॉल की लॉबी में इधर-उधर घूम रही थी।

    वेद मुस्कराया और उसके पास गया।

    "हेलो ब्यूटीफुल! क्या कर रही हो?"

    लड़की ने उसकी ओर देखा, फिर चेहरा घुमा लिया।

    "मैं आपसे बात कर रहा हूँ," वेद उसके सामने घुटनों पर बैठ गया।

    "मॉम ने कहा है, अजनबियों से बात नहीं करनी," बच्ची ने गंभीरता से कहा।

    "तो हम फ्रेंडशिप कर लेते हैं, फिर मैं अजनबी नहीं रहूँगा।" वेद ने मुस्कराते हुए कहा।

    "फ्रेंडशिप... आपके साथ?" बच्ची ने आँखें बड़ी कीं और फिर सोचना शुरू कर दिया।

    "पहले आइसक्रीम खा लूं, फिर बताती हूँ... अभी दिमाग बहुत गरम है।"

    "क्या?" वेद हँसते हुए बोला, "आपका दिमाग गरम कैसे हो गया?"

    "मत पूछो... जब मामी शॉपिंग करती हैं, तो दिमाग गरम हो ही जाता है! कब से अंदर गई हैं।"

    "तो उन्होंने आइसक्रीम देकर बहला दिया?" वेद ने मुस्कराकर कहा।

    "ऐसा ही समझ लीजिए…"

    "अब आइसक्रीम भी खत्म हो गई। तो दोस्ती?"

    "हाथ कहां साफ करूं?" बच्ची ने अचानक पूछा।

    "ये भी मेरी टेंशन है?" वेद ने हँसकर कहा।

    "आप मुझसे दोस्ती करना चाहते हो, इसलिए पूछ लिया। वरना तो चुपचाप मामी के दुपट्टे से साफ कर लेती।"

    वह दुकान के अंदर चली गई, और वेद मुस्कराता रह गया।

    [कुछ देर बाद]

    सुधीर और सुधांशु भी बुटीक से बाहर आ चुके थे।

    "क्या बात है भाई, बड़े खुश लग रहे हो!" सुधीर ने कहा।

    "अंदर तो बड़े मूड में थे, अब क्या मिल गया?"

    "एक छोटी बच्ची थी… उसका दिमाग गरम था, इसलिए मुस्कुरा रहा हूँ।"

    वे लिफ्ट की ओर बढ़े। लिफ्ट कांच की थी, जिससे पूरा मॉल नजर आ रहा था। तभी वेद की नज़र एक लड़की पर पड़ी — मानवी।

    "मानवी!" वेद के मुँह से अचानक निकला।

    "क्या हुआ भाई?" दीपक ने पूछा, "कोई गर्लफ्रेंड मिल गई क्या?"

    "कुछ ऐसा ही समझ लो…" वेद तुरंत लिफ्ट से बाहर निकला, मगर तब तक मानवी वहाँ से जा चुकी थी।

    वेद ने पूरे मॉल में नजरें दौड़ाईं — मगर वह कहीं नहीं दिखी।

    "फोन कर लो," सुधीर ने सलाह दी।

    "उसका नंबर नहीं है मेरे पास…" वेद ने मायूसी से कहा।

    "चलो चलते हैं।" दीपक बोला।

    "क्यों? ढूंढना नहीं है उसे?" सुधांशु ने पूछा।

    "आप आराम से ढूंढो भाई… हमें कोई जल्दी नहीं!" दीपक हँसते हुए बोला।

    "कहीं दिखाई नहीं दे रही..." वेद की आवाज़ धीमी हो गई।

    "मैंने सभी जगह देख लिया।"

    "चलो… पहले कुछ खा लेते हैं," वेद ने ठंडी साँस लेते हुए कहा।



    चारों भाई फूड कोर्ट की तरफ बढ़ गए।

    ---

    मेहरा हाउस]

    डिनर से पहले वे सभी घर लौट आए थे।

    रूपा उन्हें देखकर बोली,

    “क्या बात है! लगता है आज चारों भाइयों ने खूब शॉपिंग की है!”

    पीछे से एक आदमी उनका ढेर सारा सामान उठा रहा था।

    बलवंत जो सीढ़ियों से नीचे आ रहे थे, ने पूछा,

    “वेदांत कहा है?”

    वेद ने बिना हिचक जवाब दिया,

    “वो तो हमारे साथ था ही नहीं।”

    सभी लोग ड्रॉइंग रूम में आकर बैठ गए। तभी वेदिका, रूप, और मौली भी वहां आ गईं। वेदिका के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आ रही थीं।

    ---

    रूपा बोली,

    “मुझे एक बात बतानी थी… आज पंडित जी आए थे।”

    बलवंत बोले,

    “हाँ, वो कुछ शादी के सामान की लिस्ट देने वाले थे।”

    रूपा मुस्कुरा कर बोली,

    “आज उन्होंने वेद के बारे में कुछ कहा…”

    बलवंत चौंके,

    “क्या कहा?”

    रूपा ने धीरे से कहा,

    “उन्होंने कहा कि वेद की जिंदगी में दो लड़कियां होंगी, जो उसे हर खतरे से बचाएंगी।”

    रूप ने मजाक उड़ाते हुए कहा,

    “तो अब तू दो शादियां करने वाला है वेद? एक बीवी, एक गर्लफ्रेंड?”

    वेद हँसते हुए बोला,

    “अरे कौन सी दो लड़कियां मेरी लाइफ में आ रही हैं?”

    उसने अपनी मॉम की ओर देखा, जो गंभीर थी।

    बलवंत ने बात काटते हुए कहा,

    “इन बातों में मत पड़ो। हमें जयपुर की तैयारी करनी है।”

    मगर रूपा ने ज़िद की,

    “नहीं, पंडित जी ने कहा है कि वेद पर बड़ा खतरा है… और दो लड़कियां उसकी रक्षा करेंगी।”

    वेदिका जो अब तक चुप थी, अचानक बोली,

    “उन्होंने यह भी कहा… कि वेद इस घर की किस्मत है।”

    वेद मुस्कुरा कर बोला,

    “तो फिर बात साफ है। एक लड़की होगी जिससे मैं शादी करूंगा… और दूसरी मेरी मॉम… जो अपनी दुआओं से मुझे हर बुराई से बचाती हैं।”

    वेद ने अपनी माँ का हाथ पकड़ लिया। उसकी बात पर वेदिका की आंखों में हल्की मुस्कान उभरी।

    दीपक ने माहौल हल्का करते हुए कहा,

    “आजकल दो बीवियां कोई रखता है क्या? यह 1960 नहीं है!”

    सब हँसने लगे। सुधीर और सुधांशु ने भी चुटकियां लीं।

    माहौल कुछ हल्का हो गया था… लेकिन वेदिका अब भी सोचों में डूबी थी।

    ---

    डिनर के बाद वेद अपने मॉम-डैड के कमरे में गया।

    वेदिका ने दरवाजा खोले बिना कहा,

    “खुला है, आ जाओ वेद।”

    वेद मुस्कुराते हुए अंदर गया।

    बलवंत बोले,

    “आज अच्छा लगा तुम्हें भाईयों के साथ देखकर। हमेशा अपनों के साथ रहो बेटा।”

    वेद धीरे से माँ के पास बैठ गया,

    “मॉम, आप क्यों परेशान हैं? मुझे सब बता दो…”

    वेदिका ने गंभीर होकर कहा,

    “पंडित जी ने कहा है कि… तुम्हारी शादी 5 साल पहले ही हो चुकी है।”

    वेद चौंका

    “क्या?”

    वेदिका ने सिर हिलाया,

    “बहुत बड़ा खतरा है तुम पर… पर दो लड़कियां होंगी जो तुम्हें बचाएंगी।”

    वेद सोच में पड़ गया।

    ---

    🌸 Flashback Scene – वेद और मानवी की पहली झलक 🌸

    वो दिन कुछ अलग ही था…

    वेद ने बस स्टैंड के पास मानवी को देखा था।

    साधारण सी लड़की, मगर आँखों में एक गहराई थी… जैसे कुछ कहती हो, मगर कह न पा रही हो।

    वेद का दोस्त बोला,

    “वो देख, वही है मानवी… जो अपने मामा-मामी के साथ रहती है। बचपन में माँ-बाप नहीं रहे उसके।”

    वेद ने एक बार फिर उस लड़की को गौर से देखा और चुपचाप घर लौट आया।

    वो ऊपर अपने कमरे में चला गया।

    बेड पर लेटे-लेटे उसकी आँखें बार-बार खिड़की की ओर चली जाती थीं।

    तभी अचानक, बगल वाले घर से किसी के जोर-जोर से बोलने की आवाज़ आई।

    गुस्से और कड़वाहट से भरी आवाज़।

    वेद तुरंत बालकनी में आया और झांक कर देखा—

    वो मानवी की मामी थी।

    वो मानवी पर चिल्ला रही थी और हाथ भी उठाया…

    > “तुझे एक काम ढंग से नहीं आता? सारे के सारे कांच के गिलास तोड़ दिए!

    कौन देगा इसके पैसे? तेरी मरी हुई माँ?

    मुफ्त की रोटियाँ तोड़ती है, ऊपर से अकड़ भी दिखाती है!”

    वेद सन्न था।

    उसने देखा, मानवी चुपचाप रो रही थी, लेकिन एक शब्द नहीं बोली।

    उसकी मामी गुस्से से पैर पटकती हुई अंदर चली गई।

    मानवी चुपचाप झुकी और कांच के टुकड़े समेटने लगी।

    उसी दौरान एक टुकड़ा उसके हाथ में चुभ गया।

    वो जल्दी से उठी और बाहर लगी पानी की टोंटी के नीचे हाथ धोने लगी।

    उसका चेहरा आँसुओं से भीगा था…

    मगर वो अब भी चुप थी।

    एक शब्द भी नहीं। कोई शिकवा नहीं।

    वेद की नज़रें ठहर गईं।

    >

    फ्लैशबैक खत्म।

    ---

    ✨✨

    रीता – मानवी की सहेली – उत्साहित होकर बोली,

    “क्या शॉपिंग की है आज? दिखा ना कुछ!”

    मानवी मुस्कुरा दी,

    “ज्यादा कुछ नहीं… बस तुम्हारे साथ टाइम अच्छा बीता।”



    ---
    पाठकों के लिए विशेष संदेश:

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    ❤️ क्या वेद का दिल सही दिशा में जा रहा है?

  • 20. Deewangi Teri 🍁🍁 <br> <br>"रिश्ते बनते हैं जिस्म से… या रूह से?" - Chapter 20

    Words: 1514

    Estimated Reading Time: 10 min

    मानवी भी अपनी फ्रेंड रीता के साथ शॉपिंग करने के लिए माल गई हुई थी

    वही मॉल में वेद ने भी मानवी को देखा था ,चाहे एक झलक के बाद वो उसे से नजर नहीं आई थी ।अब वह दोनों सहेलियां घर पहुंच चुकी थी। रात को बैठी हुई दोनों एक दूसरे से शॉपिंग के बारे में बातें कर रही थी।

    "क्या शॉपिंग की है, मानवी, तुमने आज?"

    रीता ने हंसते हुए पूछा। दोनों सहेलियां आज शॉपिंग के लिए मॉल गई थीं।

    मानवी ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "तुम तो मेरे साथ ही थी, फिर भी पूछ रही हो?"

    "हाँ, साथ तो थी, लेकिन तुम्हारा ध्यान मुझ पर कहाँ था, तुम तो फोन पर अपने बॉयफ्रेंड के साथ बिज़ी थी।"मानवी रीता को मजाक करने लगी।

    रीता हंस पड़ी, "अरे, पता है ना, कितने दिनों बाद बात हो रही थी, तो मेरा ध्यान कहाँ रहता?"

    रीता, जो सचमुच अपने बॉयफ्रेंड करण के साथ बातें करने में व्यस्त थी, सफाई देते हुए बोली, "अच्छा सुन, परसों ही तो वह यहां से गया है, और अब कल हम जयपुर जा रहे हैं। वहीं पर तो हमारा काम होगा। उसी की वजह से मुझे यह नौकरी मिली है, याद है ना?"

    "हाँ-हाँ, बिल्कुल याद है। और मुझे भी इस शादी का इंतज़ार है," मानवी ने उत्साहित होकर कहा।

    "हम दोनों उसी की टीम के साथ काम करेंगे," रीता ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं खुश हूं कि यह शहर छोड़कर जा रही हूं। मैं अब पूरी मेहनत से काम करना चाहती हूं। मैंने पिछली नौकरी छोड़ दी थी, लेकिन यह काम तो मुझे चाहिए ही था। करण का मुझ पर एहसान है।"

    "अरे, अच्छा ही होगा," रीता मानवी ने उसे दिलासा दिया, "क्यों फिक्र कर रही हो? इस काम में हम अलग-अलग शहर घूमेंगे, खूब एंजॉय करेंगे।

    और तुम्हें तो खुश होना ही चाहिए, करण के साथ रहने का मौका जो मिलेगा।"मानवी ने मजाक किया।

    मानवी ने फिर उसे छेड़ते हुए कहा, "सब समझती हूं मैं तुम्हें। चल, अब मैं तुझे दिखाती हूं कि मैंने क्या-क्या शॉपिंग की है।"

    वह अपना बैग खोलने लगी।

    मानवी ने वेद के कहने पर अपनी पुरानी नौकरी छोड़ दी थी और एक वेडिंग प्लानर की टीम जॉइन कर ली थी। अब दोनों सहेलियां जयपुर के एक बड़े खानदान की डेस्टिनेशन वेडिंग में काम करने के लिए तैयार थीं।

    ---

    वेद के मन की बातें

    वेद, मां से मिलकर अपने कमरे में चला गया। पहले तो वह पंडित जी द्वारा कही बातों के बारे में सोचता रहा।

    "अगर वह पंडित मां को डराता नहीं, तो उसे पैसे कहां से मिलते? ऐसे ही तो वह हमेशा औरतों को डराकर पैसे बनाता है," वेद ने खुद से कहा।

    फिर वह सोचने लगा, मैं बेवजह परेशान हो रहा हूं। मैंने मानवी को नौकरी छोड़ने के लिए कहा, और उसने छोड़ दी। वह भी अब अपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुकी होगी। हो सकता है, मुझे देखकर वह परेशान हो गई हो, इसलिए काम छोड़ दिया। उसे भी शांति चाहिए होगी।

    वेद ने खुद को समझाया और उसका मन शांत हो गया। तभी उसे शनाया की याद आई। उसने फोन उठाया और शनाया का नंबर मिलाया। रिंग बजती रही, लेकिन शनाया ने फोन नहीं उठाया।

    "लगता है, मुझसे नाराज है। शायद मुझे उसे इस तरह धक्का नहीं देना चाहिए था," वह बुदबुदाया।

    थोड़ी देर बाद शनाया का फोन वापस आया, "सॉरी डार्लिंग, मैं वॉशरूम में थी, इसलिए फोन नहीं उठा पाई। बोलो, क्यों फोन किया?"

    "आज मिलते हैं," वेद ने कहा।

    "ओके, लेकिन मैं तुम्हारे पेंटहाउस नहीं आऊंगी," शनाया ने साफ कहा।

    "नहीं, होटल में मिलते हैं। अभी आ रहा हूं," वेद ने जवाब दिया और कपड़े बदलकर होटल के लिए निकल गया।

    ---

    वेदांत और रीना की बहस

    घर में, वेदांत अपने कमरे में था। रीना उसके पास बेड पर बैठते हुए बोली, "आज आप अपने भाइयों के साथ मॉल नहीं गए? चारों तो कपड़ों की शॉपिंग करने गए थे।"

    "मुझे और भी काम है, उनकी तरह फालतू की शॉपिंग में वक्त बर्बाद नहीं करता," वेदांत ने बेरुखी से कहा।

    "और आप कहां थे?" रीना ने पूछा।

    वह जानती थी कि वेदांत की कितनी औरतों से नज़दीकियां हैं, फिर भी उसने सवाल किया।

    "जरूरी है बताना कि मैं कहां था? तुम जानती हो मैं क्या करता हूं, क्या नहीं करता। मैं किसी को बताना पसंद नहीं करता। मैं तुम्हारा गुलाम नहीं हूं," वेदांत ने कठोर स्वर में कहा।

    "मैं आपकी पत्नी हूं, मुझसे ऐसे कैसे बात कर सकते हैं?"

    "तो और कैसे बात करूं?" वेदांत चिढ़ गया, "हमारी शादी को दो साल हो गए, और मुझे नहीं लगता कि तुम कभी मुझे वारिस दे पाओगी। सुधीर की शादी होने वाली है, और अगर उनका बच्चा पहले आ गया, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

    "इसमें मेरा क्या कसूर है? मैं कौन सा मां नहीं बनना चाहती हूं," रीना की आवाज कांप रही थी।

    "मुझे नहीं पता, लेकिन जो इस खानदान का पहला बच्चा होगा, उसे जो हक मिलेंगे, वह दूसरों को नहीं मिलते। जो वेद के पास है, वह हमारे पास नहीं है। और मैं चाहता हूं, हमारे बच्चे के पास कुछ ऐसा हो जो औरों के पास न हो। लेकिन मुझे लगता है, तुम्हारा बच्चा नहीं होगा," वेदांत ने बहुत गंदे तरीके से अपनी पत्नी को यह बात कही थी।

    रीना की आंखों में आंसू भर आए।

    "अब नौटंकी मत कर," वेदांत ने फोन उठाते हुए कहा और स्क्रॉल करने लगा।

    रीना चुपचाप कमरे से निकलकर बाहर बैठ गई। तभी उसके फोन पर उसकी मां का कॉल आया।

    "क्या हुआ, तुम इतनी धीमी आवाज़ में क्यों बोल रही हो?" मां ने पूछा।

    "मां, वही... बच्चा न होने की बात पर ताना देते हैं," रीना ने आंसू पोंछते हुए कहा।

    "अभी तो दो साल ही हुए हैं शादी को," मां ने समझाया।

    "नहीं मां, मैं बहुत परेशान हूं।"

    "फिक्र मत कर, हम लोग सुबह तक पहुंच जाएंगे। आज ही आते, लेकिन एक जरूरी काम की वजह से नहीं आ पाए," मां ने उसे ढांढस बंधाया।

    ---
    वेद के सिर से जैसे कोई बोझ उतर गया था। वह खुश था कि वह बेवजह की टेंशन से आज़ाद हो गया।
    "मुझसे पहले ये बात क्यों नहीं समझ आई कि मानवी ज़िंदगी में आगे बढ़ चुकी है? मुझे पहले ही समझ लेना चाहिए था,"
    वह मन ही मन सोच रहा था। मानवी का नौकरी छोड़ने मतलब वह भी दो वेद से तो रहना चाहती थी ।वेद इसका यही मतलब निकाला था और बात सच भी थी वह वेद से दूर रहना चाहती थी।


    ---

    "जल्दी करो, हम लोग लेट हो रहे हैं!"
    सुबह नाश्ते के टेबल पर एक सैंडविच उठाते हुए वेद ने सबको आवाज़ लगाई। आज वह पूरे जोश में तैयार था।

    "अरे, तुम कब आई?"
    वेद ने किया को देखा, जो सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए उनकी ओर आ रही थी।

    "भाई, हम रात को ही आ गए थे।"

    "अच्छा, तो कैसा रहा तुम लोगों का ट्रिप?"

    "बहुत अच्छा था, बहुत इंजॉय किया,"
    किया मुस्कुराकर बोली।

    "और सिया कहाँ है? वह तुम्हारे साथ ही थी।"
    उसे अकेला देखकर वेद ने पूछा।

    "वह अभी तक सो रही है, थकान की वजह से उठी नहीं।"

    "ठीक है किया, हम लोग शाम को मिलते हैं। इस वक्त मैं ऑफिस जा रहा हूँ।"

    "ठीक है भाई,"
    किया ने कहा।

    सभी ऑफिस के लिए निकल गए।
    वेदांत और रमेश — बाप-बेटे — अपनी चाल में लगे हुए थे।
    उन्हें वेद का काम करने का तरीका बिल्कुल पसंद नहीं था। वे वेद को फँसाने की कोशिश कर रहे थे। जिस लड़की को उन्होंने वेद के पीछे लगाया था, उसकी तरफ वेद ने अब तक कोई ध्यान नहीं दिया था।

    शाम को वेद और मलिक पब में गए हुए थे। वे दोनों डांस कर रहे थे, तभी एक लड़की बार-बार वेद से टकरा रही थी, मगर वेद उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहा था।

    "क्या बात है? वह लड़की तुम्हारे पास आ रही है और तुम उससे बच रहे हो,"
    मलिक ने चुटकी ली।

    "पता नहीं क्यों… जब से मैं यहाँ आया हूँ, मुझे अनजान लड़कियों से डर लगने लगा है। मैं किसी को नहीं जानता और न ही वेद के पीछे लगाया था, उसकी तरफ वेद ने अब तक कोई ध्यान नहीं दिया था।


    "\"और उस शनाया का क्या? तुमने उसके साथ इतना बुरा बर्ताव किया, फिर भी वह तुम्हारे पास आ गई थी। इस लड़की का दिल क्यों तोड़ रहे हो?"

    "अच्छा, तो ऐसी बात है? तो तुम ही जोड़ लो,"
    वेद ने मज़ाक में कहा।

    दोनों हँस पड़े।

    "चलो, वॉशरूम चलते हैं,"
    वेद ने कहा, और दोनों वॉशरूम की ओर बढ़ गए।


    और उस शनाया का क्या? तुमने उसके साथ इतना बुरा बर्ताव किया, फिर भी वह तुम्हारे पास आ गई थी। इस लड़की का दिल क्यों तोड़ रहे हो?"

    "अच्छा, तो ऐसी बात है? तो तुम ही जोड़ लो,"
    वेद ने मज़ाक में कहा।

    दोनों हँस पड़े।

    "चलो, वॉशरूम चलते हैं,"
    वेद ने कहा, और दोनों वॉशरूम की ओर बढ़ गए।

    कौन है वह लड़की जो वो के पीछे है।
    क्या वह वही लड़की है जिसे उसकी दुश्मनों ने भेजा है।

    आखिर प्रियंका की क्या मजबूरी है जो रमेश उसे ब्लैकमेल कर रहा है।

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