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दिल से दिल तक: एक अनकहा इकरार

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Ms. Neha Aggarwal

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"शादी एक बहुत ही पवित्र बंधन माना जाता है... जहाँ दो दिल नहीं, दो आत्माएं जुड़ती हैं। पर जब ये रिश्ता सिर्फ़ एक दस्तख़त पर टिक जाए... जब रिश्ते में शर्तें हों, प्यार नहीं — तो क्या वो बंधन भी वैसा ही पवित्र रह जाता है?" उसने शादी क...

Characters

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विवान राठौड़

Hero

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आर्या वर्मा

Heroine

Total Chapters (9)

Page 1 of 1

  • 1. दिल से दिल तक Chapter 1

    Words: 1423

    Estimated Reading Time: 9 min

    मुंबई

    राठौड़ मेंशन,

    मुंबई के पोश एरिया में बना राठौड़ मेंशन की खूबसूरती आज देखने लायक थी। रात के अंधेरे में चमचमाती लाइट्स उस मेंशन की शोभा बड़ा रही होती है। मेंशन का कोई भी कोना ऐसा नहीं था जहाँ रोशनी की जगमगाहट ना हो। वहीं फूलों की भी बहुत अच्छी सजावट की गई थी। फूलों की महक से पूरा मेंशन महक रहा था।

    आज राठौड़ फैमिली के छोटे बेटे आरव राठौड़ की शादी थी। हर कोई शादी की तैयारियों में व्यस्त था। शाम का समय हो चुका था इसलिए रिश्तेदारों का आना शुरू हो चुका था।

    वहीं इस पूरे शोर-शराबे से दूर, राठौड़ मेंशन के तीसरी मंजिल पर एक शख्स अपने स्टडी में बैठा हुआ कुछ काम कर रहा था।

    यह है विवान राठौड़, इस घर का बड़ा बेटा। जिसने पूरे राठौड़ एम्पायर को बहुत ही अच्छे से संभाला huaa है।

    विवान अपने स्टडी रूम की टेबल के सामने एक चेयर पर बैठा हुआ था उसकी नजरें पूरी तरह से लैपटॉप पर गढ़ी हुई थी।

    जहाँ पूरा घर आरव की शादी के जश्न में डूबा हुआ था, वहीं विवान अपने काम में व्यस्त था। उसकी माँ साधना और दादी गायत्री जी के बार-बार कहने के बावजूद, विवान ने अभी तक शादी का नाम नहीं लिया था। मजबूर होकर उन लोगों को पहले आरव की शादी का फैसला लेना पड़ा। आरव की ये लव मैरिज है।

    विवान को शादी जैसे रिश्ते में बिल्कुल विश्वास नहीं है। क्योंकि उसका मानना है ये सब फालतू हैं कोई इंसान कैसे एक इंसान के साथ पूरी जिंदगी बिता सकता है।

    वहीं विवान की दादी, गायत्री जी को यह बात सबसे ज्यादा चुभती थी। उन्होंने कई बार विवान को शादी करने के लिए मनाना चाहा, लेकिन वह हर बार टाल जाता। आज भी, वह इस जश्न से खुद को अलग रखे हुए था। दरअसल, उसकी जिंदगी में प्यार और शादी के लिए कोई जगह ही नहीं थी।

    वो अपने लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था तभी उसके दरवाजे पर दस्तक हुई। स्टडी रूम का दरवाजा खुला और 50-52 साल की महिला अंदर आई।

    उनके चेहरे का नूर उनकी उम्र को बयां नहीं कर रहा था।

    "विवान, नीचे नहीं आओगे?" ये हैं विवान की मां साधना राठौड़, ये बहुत ही सरल स्वभाव की और धार्मिक महिला है।

    वो दरवाजे पर खड़ी थी,  विवान की तरफ सवालिया नजरों से देखते हुए बोली। उनकी आँखों में अपने बेटे के लिए चिंता झलक रही थी। आखिर कौन मां नहीं चाहेगी कि उसका बेटा समय से शादी कर घर बसा ले।

    "आज आरव की शादी है, और पूरा घर तुम्हारे बिना अधूरा लग रहा है।" विवान की तरफ से जब कोई जवाब नहीं आया, तब साधना जी ने अपने मन की बात रखते हुए कहा।

    साधना जी सवालिया नजरें लेकर स्टडी रूम के दरवाजे पर खड़ी हुई थी और उनकी आस भरी निगाहें अभी भी विवान के ऊपर ही थी।

    "मॉम, आप जानती हैं, मुझे इन सब चीज़ों से फर्क नहीं पड़ता। मैं यहाँ अपना जरूरी काम कर रहा हूँ।" विवान ने एक नजर उठाकर कहा और फिर से अपने काम में खो गया।

    साधना जी इस बार थोड़ा अन्दर आ गई। उन्होंने बहुत ही नरमी से कहा, " बेटा काम तो लगा ही रहेगा, लेकिन ये पल वापिस लौटकर कभी नहीं आयेंगे, आज तुम्हारे छोटे भाई की शादी है। एक दिन आएगा, जब तुम भी अपनी ज़िन्दगी में एक साथी की ज़रूरत महसूस करोगे।"

    साधना जी की बात सुन, विवान ने ठंडी सांस भरी और कहा, "मॉम, मैं पहले ही कह चुका हूँ, मुझे शादी और इन रिश्तों पर विश्वास नहीं है। ये सब एक दिखावा है, जहाँ लोग सिर्फ अपने मतलब के लिए एक साथ आते हैं।"

    साधना जी ने दुखी नजरों से अपने बेटे को देखा। विवान की ये सोच उनके दिल को तोड़ देती थी, लेकिन वह जानती थीं कि उसे इन सब चीजों को समझने में वक़्त लगेगा।

    "कम से कम थोड़ी देर के लिए ही सही नीचे आ जाओ। तुम्हारी दादी भी तुम्हें ढूंढ रही हैं। ," साधना जी ने आखिरी बार निवेदन किया।

    वो विवान को बहुत ही उम्मीद भरी नजरों से देख रही थी। वहीं विवान की नजरें एकदम सर्द थी।

    विवान ने अपना लैपटॉप और फाइल एक तरफ रख दीं और अपनी माँ की बात मानते हुए उठ खड़ा हुआ।

    वह जानता था कि उसकी दादी की तबीयत ठीक नहीं रहती, और वह उनसे कोई भी बुरा व्यवहार नहीं करना चाहता था।

    यह देखते ही साधना जी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई। वो खुद में सोचते हुए बोली, " एक दिन तुम्हारी जिंदगी में जरूर एक ऐसी लड़की आएगी जो तुम्हारी जिंदगी को प्यार और खुशियों से भर देगी। "

    थोड़ी देर बाद,

    विवान रेडी होकर जैसे ही नीचे पहुँचा, उसका औरा ही कुछ ऐसा था कि उसने सब लोगों का ध्यान उसकी तरफ खींच लिया।

    उसने ब्लैक कलर का कस्टम मेड सूट पहना हुआ था जिसमें वो बहुत ही ज्यादा हैंडसम लग रहा था। वहां मौजूद लड़कियों की नजर ही नहीं हट रही थी उसपर से।

    विवान आगे बढ़ा और हॉल के बीचों बीच बने मंडप के पास जाकर खड़ा हो गया। विवान की नजर सामने गई जहाँ से उसका छोटा भाई दुल्हा बना मंडप की तरफ ही आ रहा होता है।

    आरव और विवान के स्वभाव में जमीन-आसमान का अंतर था। जहाँ विवान भावनाओं को नकारते हुए खुद को बिजनेस में डुबोता था, वहीं आरव दिल से जीने वाला इंसान था। उसे प्यार और रिश्तों पर गहरा विश्वास था।

    "भाई!" आरव ने विवान को देखकर उसे गले लगा लिया। "आज मैं बहुत खुश हूँ कि आप आपके छोटे भाई की शादी में आए।"

    विवान को वहाँ देख आरव की नजरों में अलग ही चमक आ गई।

    विवान ने हल्की मुस्कान दी और उसके सिर पर पहना सेहरा ठीक करते हुए कहा, "तुम खुश हो, यही मेरे लिए काफी है।"

    आरव ने उसे उत्साह से देखा और कहा, "भाई, एक दिन आपके भी शादी के बंधन में बंधने का दिन आएगा। और उस दिन आप देखोगे, जिंदगी कितनी खूबसूरत हो सकती है।"

    विवान ने उसकी बात को हंसकर टाल दिया। वह जानता था कि उसके लिए शादी सिर्फ एक औपचारिकता होगी, कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं।

    लेकिन विवान नहीं जानता था कि जल्द ही उसकी जिंदगी में एक ऐसी लड़की आने वाली है, जो उसकी सोच और उसकी लाइफ को पूरी तरह से बदल कर रख देगी।

    राठौड़ मेंशन में खुशियाँ मनाई जा रही थी। आरव अपनी होने वाली वाइफ विधि के साथ मंडप में बैठा हुआ था और एक एक करके शादी की सारी रस्में पूरी कर रहा था।

    दूसरी तरफ,

    इन सब चकाचौँध से दूर हमारी कहानी की हिरोइन है आर्या वर्मा। जो मुंबई की एक चाल में अपनी आई, दादी, एक भाई और दो बहनों के साथ रहती है।

    पिछले साल एक रोड एक्सीडेंट में आर्या के बाबा की मौत हो गई थी। जिसके बाद उनके घर के आर्थिक हालात बिगड़ गए। आर्या और उसकी आई के ऊपर घर की और बाकी लोगों की जिम्मेदारी आ गई।

    उसकी माँ लोगों के घरों में काम करती थी और आर्या भी आस पास के बच्चो को ट्यूशन देकर पैसे कमा लेती थी। साथ ही वो एक अच्छी नौकरी की भी तलाश कर रही थी। आर्या ने बी कॉम ग्रेजुएशन की हुई है।

    आर्या रात के 8 बजे थकी हारी घर पहुंची जब उसने देखा उसकी आई ( विद्या वर्मा) उसके बहनों को समझाने की कोशिश कर रही हैं।

    विद्या जी, "बेटा, तुम्हारे बाबा अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन हमें आगे बढ़ना है। हम सबको मिलकर एक-दूसरे का सहारा बनना है।"

    आर्या आंखों में आंसू लिए बोली, "आई, बाबा हमेशा कहते थे कि हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। उनकी यादों को हम कैसे भुला सकते हैं?"

    विपुल (आर्या का भाई उम्र 18), "हम सबको बाबा के सपनों को पूरा करना होगा। हम उनकी मेहनत को बेकार नहीं जाने दे सकते। वो हमेशा चाहते थे हम पढ़े और कुछ बनें।"

    विद्या जी ने नम आँखों से अपने पति किशोर वर्मा की फोटो देखने लगी। जो उनके घर के छोटे से हॉल में टंगी हुई थी।

    "आप देख रहे हैं हमारे सारे बच्चे कितने समझदार हो गए हैं, अब तो सब ने जिद भी करनी छोड़ दी है।"

    विद्या जी अपने पति की फोटो देखते हुए अपने मन में सोचने लगी।

    आर्या बाहर गलियारे में आकर बैठ गई और चाँद को निहारने लगी। वो ऊपर आसमान में देखते हुई बोली, " है बप्पा, अब आप ही कोई रास्ता दिखाएं, कभी कभी तो हमें एक टाइम का खाना भी नसीब नहीं होता। कैसे करूं अपने परिवार की इस आर्थिक तंगी को दूर।

    *****

    क्या आर्या ही नहीं है विवान के लिए?

    आपको मेरी कहानी कैसी लगी कमेंट में जरूर बताएं?

  • 2. दिल से दिल तक: एक अनकहा इकरार - Chapter 2

    Words: 1457

    Estimated Reading Time: 9 min

    राधे राधे दोस्तों,

    ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

    आर्या बाहर बैठी हुई चांद को निहारते हुए अपने घर के हालातों के बारे में सोच रही थी। कब उसे नींद आई उसे पता ही नहीं चला। अकसर आर्या यहीं बैठे हुए इसी तरह से सो जाया करती थी।

    अगला दिन,

    सुबह का समय,

              आर्या, अपनी छोटी बहन दिशा (उम्र 15) और श्रुति (उम्र 12) की रेडी होने में मदद करती है। आर्या की दोनों बहनें पास के ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ती है। दिशा ग्यारहवीं में पढ़ती है वहीं श्रुति अभी सिर्फ आठवीं क्लास में पढ़ती है।

              विद्या जी जल्दी जल्दी किचन में खाने की तैयारी कर रही थी। उनके हाथ हर काम में इतने सटीक थे कि किसी गलती की गुंजाइश ही नहीं। चेहरे से टपकता पसीना बता रहा था कि वो सुबह से काम में लगी हुई हैं।

              तभी अंदर की तरफ बने एक छोटे से कमरे में से एक बूढ़ी औरत की आवाज सुनाई दी, " अरि ओ तुम माँ बेटी अपना ही करती रहोगी या मुझे बुढ़िया को एक कप चाय भी मिलेगी। जब से उठी हूँ किसी ने चाय तक नहीं पूछी इस बुढ़िया को। "

              उनकी आवाज में एक तंज सा था। ये है शांता देवी, विद्या जी की सास। स्वभाव की थोड़ी तीखी है और हमेशा कड़वा ही बोलती हैं, चाल में सब इन्हें शांता काकी कहकर बुलाते हैं।

              " मुझ बुढ़िया की तो किसी को सुध ही नहीं लेता कोई। ये माँ बच्चे अपने में ही मस्त रहते हैं। " शांता काकी खटिया पर बैठी हुई खुद में बड़बड़ाई।

              तभी उनके कमरे में विद्या जी उन्हें चाय देने आई। उन्होंने खटिया के पास रखी छोटी से टेबल पर चाय के कप को रखते हुए धीमे से कहा, " माँ जी, आपकी चाय। बस बच्चों का टिफिन पैक करके लाने ही वाली थी। "

              शांता काकी ने उन्हें खा जाने वाली नजरों से देखा, लेकिन कहा कुछ नहीं।

              शांता काकी अपनी बहु मतलब विद्या जी को हमेशा जली कटी सुनाने से बाज नहीं आती। क्योंकि उनके बेटे ने विद्या जी से अपनी पसंद से शादी करी थी।

    शांता जी किशोर की शादी अपनी सहेली की बेटी से करवाना चाहती थी जो वो नहीं करवा पाई। इसी बात का गुस्सा वो आजतक विद्या जी पर निकाल रही हैं। इसी बात को लेकर बहुत बार आर्या और शांता काकी की खिटपिट भी हो जाती है।

              विद्या जी चाय का कप टेबल पर रखकर बाहर आ गई। फिर आर्या को देखते हुए बोली, " मैं चलती हूँ, मालकिन ने आज जल्दी आने के लिए कहा था। और हां खाना बना दिया है, थोड़ी देर बाद मां जी को दे दियो। और विपुल आएगा तो उसे भी दे दियो।""

              आर्या मुस्कुराई और विद्या जी को गले लगाते हुए बोली, " आई तू बेफिक्र होकर जा, यहाँ का सब मैं संभाल लूँगी और आजी को भी। "

              विद्या जी ने उसे आँखें दिखाते हुए कहा, " आर्या कोई बदतमीजी नहीं, वो बड़ी है और तुम्हारी आजी भी। "

    विद्या जी ने आर्या को समझाते हुए कहा। असल में शांता काकी जब भी विद्या जी को भला बुरा कहती थी आर्या को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था।

              विद्या जी अपने काम पर चली गई, और आर्या घर के बाकी काम निपटाने में लग गई। थोड़ी देर बाद भी कमरे से बाहर आकर बैठ गई और टीवी देखने कही। ये एक पुराने टाईम का लेकिन कलर्ड टीवी था।

              "अरी ओ आर्या! क्या बना है खाने में? कि आज मुझ बुढ़िया को भूखा ही मारोगी?" शांता काकी ने आर्या को घूरते हुए कहा।

    आर्या ने दबी आवाज़ में जवाब दिया, "आई सब्जी बना गई है, बस रोटी बनानी है।"


              शांता काकी आंखें घुमाते हुए, "अभी तक क्यों नहीं बना? तुम तो हमेशा सुस्त रहती हो। मैं तो कहती हूं कि तुम्हारी आई ने तुम्हें कुछ सिखाया ही नहीं। सब काम अधूरा और ढीला... जैसा खुद करती है वोही अपनी बेटियों को भी सिखा रही है।

              आर्या का मन कर रहा था कि वह कुछ कह दे, लेकिन आई के शब्द याद आ गए, "बड़ों का आदर करना चाहिए, चाहे वे कुछ भी कहें।" उसने गुस्से को अपने अंदर दबा लिया और रसोई में जाकर खाना बनाने लगी।

              आर्या अपने आप से, "कभी-कभी लगता है कि अगर बाबा होते, तो शायद आजी को हमारी इतनी बुराई करने का मौका न मिलता। माँ भी कितनी सहनशील हैं, सब चुपचाप सुन लेती हैं।"


              खाना तैयार करने के बाद, आर्या ने शांता काकी के लिए प्लेट में खाना परोसा और वहीं पास में सोफे पर बैठी अपनी शांता काकी को देने चली गई।

              आर्या शांता काकी को खाना देते हुए बोली, "आजी, खाना रख दिया है खा लीजिए।"

              शांता काकी नाक सिकोड़ते हुए, "देखती हूं, तुमने ठीक से बनाया है या नहीं। वैसे तो तुम्हारे हाथ का खाना भी तुम्हारी माँ के हाथ की ही तरह बेस्वाद होता है।"

             आर्या ने कुछ नहीं कहा, बस मन में सोचा, "आजी की ये बातें कभी खत्म नहीं होंगी। लेकिन मुझे अपने गुस्से पर काबू रखना ही होगा।"

    आर्या घर का काम भी जल्दी जल्दी निपटाने लगी क्योंकि उसे एक इंटरव्यू के लिए जाना था उसके बाद बच्चों को पढ़ाने भी जाना था।

    Rathore group of Industries,

              विवान राठौड़ अपने केबिन में अपनी हेड चेयर पर बैठा हुआ कुछ सोच रहा था।

              उसका केबिन बहुत ही ज्यादा आलीशान था। वहाँ की हर एक चीज बहुत ही ज्यादा एक्सपेंसिव और यूनिक थी और बहुत ही सलीके से अपनी जगह रखी हुई थी।

              तभी उसके केबिन का गेट नॉक हुआ,

    विवान ने सर्द आवाज में कहा, "come in "

              परमिशन मिलते ही केबिन का गेट खुला और एक लड़का अंदर आया जिसकी उम्र देखने से ज्यादा नहीं लग रही थी। यही कोई 25-26 के आसपास होगा। देखने के ये भी हैंडसम ही हैं। ये है विवान का एसिस्टेंट व्योम।
             
    व्योम ने विवान को देखते हुए कहां, " सर मीटिंग की सारी अरेंजमेंटस हो चुकी है और सारे इंवेस्टर भी आ चुके है। बस मीटिंग रूम में आपका ही वेट हो रहा है। "

              व्योम को देखते हर कहा, " तुम चलो, मैं अभी आता हूँ। " विवान की आवाज शांत लेकिन रौबीली थी न

    व्योम ने हाँ में सिर हिलाया और वहाँ से चला गया।

              उसने अपने घड़ी की तरफ देखा और हेड चेयर से खड़े होकर अपने कोट के बटन सही करते हुए केबिन से बाहर निकल गया। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, लेकिन आँखों में कुछ पाने का जुनून जरूर था।

              दोनों लिफ्ट से 27th फ्लोर पर आ गए जहाँ एक बड़ा सा कॉन्फ्रेंस रूम बना हुआ था।


    दूसरी तरफ,

              आर्या ने ऑलिव ग्रीन कलर की कुर्ती और जींस पहनी हुई थी। इस समय वो एक बड़ी सी बिल्डिंग के सामने खड़ी थी जिसपर बड़े बड़े अक्षरों में Rathore group of Industries लिखा हुआ था।

    आर्या यहाँ जॉब के लिए interview देने के लिए आई है। वो बाहर खड़ी एकबार पूरी बिल्डिंग को देखती है। उसकी पकड़ उसके हाथ में पकड़े फोल्डर पर कस गई। " आज अगर मुझे यहाँ जॉब मिल गई तो घर की बहुत सी परेशानियां दूर हो जाएंगी।" अपने मन में सोचते हुए आर्या ने अपने कदम आगे बढ़ाएं।

              रिसेप्शन पर पहुंचकर उसने, वहां बैठी हुई रिसेप्शनिस्ट को ग्रीट क्या।

    रिसेप्शन पर बैठी लड़की आर्या को अजीब सी नजरों से घूरने लगी। उसकी नजरें खुद पर देख आर्या थोड़ा असहज महसूस करने लगी।

    फिर भी उसने हिम्मत करके कहा, " मैम मैं यहाँ इंटरव्यू के लिए आई हूँ।"

               रिसेप्शनिस्ट ने एक अजीब सा मुँह बनाया, जैसे कि वह आर्या को गंभीरता से नहीं ले रही हो। बाकी कैंडिडेट्स, जो वहाँ बैठे थे, फैशनेबल कपड़े पहने हुए थे और पूरे आत्मविश्वास के साथ इधर-उधर बात कर रहे थे। आखिर इतनी बड़ी कम्पनी में इंटरव्यू जो देने आए थे।

              रिसेप्शनिस्ट मुँह बनाते हुए बोली, "तुम यहाँ इंटरव्यू के  लिए आई हो?"

              आर्या ने उसकी तरफ देखा और हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिलाया।

              आर्या , "जी हाँ, ने न्यूजपेपर में आपकी ही कम्पनी ने एड दी थी ना।" वो बहुत ही शांत लहजे में बात कर रही थी।

              रिसेप्शनिस्ट ने एक तंज भरी मुस्कान के साथ कहा, "तुम्हें पता है यहाँ का हर छोटे से छोटा एम्प्लॉयी भी तुमसे अच्छा दिखता है। खैर देखते हैं, तुम इस बड़ी कंपनी में कैसे फिट हो पाती हो।"

              रिसेप्शनिस्त ने उसे वेट करने के लिए कहा। आर्या जाकर एक साइड बैठ गई, वहाँ आए बाकी कैंडिडेट्स आर्या को देखकर दबी हँसी हँस रहे थे। एक लड़की उसका मजाक उड़ाते हुए बोली, " ये लड़की उम्मीद भी कैसे कर सकती है कि इसे इस कंपनी में जॉब मिल सकती है। "

              दूसरी लड़की मुँह बनाते हुए बोली, " ch ch।ch ... Such a poor girl.... ।

             थोड़ी देर बार उस रिसेप्शनिस्ट ने आर्या को मैनेजर के केबिन में इंटरव्यू के लिए भेजा।

    ********************************

    हैलो दोस्तों,

    आगे की कहानी जानने के लिए बने रहिए।

    एंड प्लीज लाइक, कमेंट एंड अपने प्यारे प्यारे सुझाव मेरे साथ जरूर शेयर करें।

  • 3. दिल से दिल तक: एक अनकहा इकरार - Chapter 3

    Words: 1180

    Estimated Reading Time: 8 min

    करीब आधे घंटे बाद ही आर्या का नम्बर आ गया। रिसेप्शनिस्ट ने उसे उस कॉरिडोर में बने तीसरे केबिन की तरफ इशारा कर वहाँ जाने के लिए कहा। यहां पर बहुत सी पोस्ट के लिए इंटरव्यू हो रहे थे।

    आर्या पहली बार इतनी बड़ी कम्पनी में इंटरव्यू के लिए आई थी इसलिए उसे थोड़ी बहुत नर्वसनेस हो रही थी। फिर थोड़ी देर पहले सब जिन नजरों से उसे देख रहे थे… लोगों का खुद के प्रति रवैया अब तो आर्या को घबराहट भी हो रही थी।

    वो अपनी सीट से खड़ी हुई और धीमे से कदम आगे बढ़ाए। लेकिन उसके मन में चल रही उथल पुथल उसके चेहरे पर नजर आ रही थी।

    तभी उसे अपने घर के हालातों के बारे में ध्यान आया और एक एक करके सबका चेहरा उसकी आंखों के सामने घूमने लगा तो उसने मन ही मन ये निश्चय किया चाहे कुछ भी हो वो ये इंटरव्यू देगी... बिना घबराए।

    इस बार उसके कदमों ने तेजी पकड़ ली और चेहरे पर हल्का सा आत्मविश्वास झलक रहा था। केबिन के गेट के पास खड़ी हो आर्या ने उसे नॉक किया।

    अंदर से एक रौबीली आवाज आई, " कम।" आर्या ने हिम्मत कर उस ग्लास डोर को हल्का सा धकेला और थोड़ा आगे बढ़ी।

              उस केबिन में अंदर टेबल के सामने तीन चेयर पर तीन लोग बैठे जिनमें से एक औरत और दो आदमी ने।

    उनमें से एक आर्या की फाइल में देखने लगा और बाकी अपने हिसाब से उससे कुछ सवाल पूछने लगे। आर्या को जो जितना पता था उसका आंसर दे रही थी।

              तभी उनमें से दाएं तरफ बैठे हुए शख्स का फोन बजा। उसने कॉल रिसीव कर और सामने वाले की बात सुन "ठीक है!" बोलकर कॉल कट कर दी। उसके बाद अपने पास बैठे बाकी उन दोनों को धीरे से कुछ बताया।

    फिर उन्होंने आर्या की फाइल बन्द कर उसे वापिस देते हुए कहा, " मिस वर्मा, आप 30th फ्लोर पर चली जाओ, अब आपका इंटरव्यू वहीं पर ही होगा।"

    असल में सामने बैठे शख्स के पास विवान के असिस्टेंट व्योम की कॉल आई थी और उसने कहा था कि विवान के लिए एक सेक्रेटरी चाहिए। ये इंटरव्यू खत्म कर जो भी कैंडीडेट्स है उन्हें ऊपर भेज दे, इंटरव्यू के लिए।

    इसलिए उस शख्स ने आर्य को ऊपर जाने के लिए कहा और बाकी के भी जो कैंडीडेट्स बाहर बैठे थे, उन सब को भी ऊपर जाने के लिए कह दिया।

    थोड़ी देर बाद आर्या को मिलाकर चार कैंडीडेट्स तीसवीं मंजिल पर इंटरव्यू का वेट कर रहे थे। इन सब के इंटरव्यू व्योम लेने वाला था। व्योम ने एक एक कर सबके इंटरव्यू लिए। उन्हें उन सब में आर्या ही सबसे बेस्ट ऑप्शन लगी। हाँ! उसकी क्वालिफिकेशन पोस्ट के हिसाब से थोड़ा कम थी लेकिन व्योम ने उससे जो भी सवाल किए थे उसने उनका जवाब बहुत ही अच्छे से दिया था।

    इंटरव्यू लेने के करीब आधे घंटे बाद व्योम केबिन से बाहर आया। उसके बाहर आते ही चारों कैंडीडेट्स उसे उम्मीद भरी नजरों से देखने लगे। वो सभी जानना चाहते थे कि उनमें से आज कौन सिलेक्ट हुआ है।

    व्योम ने मुस्कुराते हुए कहा, " मिस आर्या आपको इस जॉब के लिए सिलेक्ट कर लिया गया है।" फिर बाकियों की तरफ देखा, " सॉरी गाइस! लेकिन अब आप सब यहाँ से जा सकते हैं।"

    बाकी तीनों को ये बर्दाश्त नहीं हुआ कि एक मामूली सी लड़की को इतनी बड़ी कम्पनी में इतनी अच्छी पोस्ट के लिए रख लिया गया। इसलिए उनमें से एक बोली, " सर जितना हम जानते हैं इस लड़की की क्वालिफिकेशन कोई खास नहीं है। इससे ज्यादा तो हम सब क्वालिफाइड हैं।" ( बाकी सब की तरफ भी इशारा कर बोली) " और ना ही इसका कोई ड्रेसिंग सेंस है हमें नहीं लगता ये इस जॉब के लिए परफेक्ट है।" ( अपनी बात को आगे कंटिन्यू करते हुए कहा)

    बाकी दोनों भी उसकी बात से एग्री थे।

    व्योम ने शांत लहजे में समझाते हुए कहा, " मिस आर्या इस पोस्ट के लिए अंडर क्वालिफाइड जरूर है लेकिन मैंने इनसे वहीं सवाल किए जो आपसे किए और मुझे इनके जवाब आप लोगों के जवाब से कहीं ज्यादा बेहतर लगे और रही बात ड्रेसिंग सेंस की तो यहाँ काम की वैल्यू की जाती है... कपड़ों की नहीं।" फिर साँस छोड़, "अब आप सब जा सकते हैं... प्लीज हमारा टाइम मत वेस्ट कीजिए।"

    इतने में दूसरा रिजेक्टेड कैंडिडेट बोला, " ऐसे कैसे जाएं... आप इस तरह से तो हमारी इंसल्ट कर रहे हैं। हमसे कम पढ़ी लिखी लड़की को ये जॉब देकर। इसे देखकर तो लग रहा है जैसे किसी गंदी चाल से उठकर सीधा यहाँ आ गई हो।"

    " हमारे यहाँ किसी के कपड़े या फिर स्टेटस देखकर जॉब नहीं दी जाती... काबिलियत देखकर जॉब दी जाती है " पीछे से किसी की कड़क आवाज आई।

    सबने पीछे मुड़कर देखा। अपना एक हाथ पॉकेट में डाले विवान खड़ा हुआ था। जिसके चेहरे पर इस समय सख्त एक्सप्रेशन थे।

    विवान का सख्त लहजा देख सब एक बार के किए घबरा गए। किसी की अब कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

    व्योम की तरफ देख, " जो भी इशू है उसे सॉल्व कर जल्दी से मेरे केबिन में आओ।"

    व्योम, "जी सर!"

    बाकी सबको भेज, उसने आर्या को कल से ही जॉइनिंग के लिए बोल दिया।

    आर्या बहुत खुश थी क्योंकि बप्पा ने आज उसे उम्मीद से ज्यादा ही दिला दिया था। उसने तो कभी सोचा भी नहीं था उसे सीधा सेक्रेटरी की नौकरी मिल जाएगी। वो बहुत खुश थी। इसलिए उसने सीधा मंदिर जाकर बप्पा का शुक्रियादा करने    

    शाम का समय,

    विवान अपने केबिन में बैठा हुआ था, तभी उसका असिस्टैंट व्योम उसके सामने आकर खड़ा हो गया।

    व्योम एक इंवेलोपे ✉️ विवान की तरफ बढ़ाते हुए बोला, " सर आपने जैसा बोला था वो काम हो गया। इस में स्विजेरलैंड की टिकेट हैं। "

    विवान ने व्योम के हाथ से वो इंवेलोपे ले लिया और कहा, " गुड! "

    फिर अपने हाथ से उसे बाहर जाने का इशारा किया।

    अगला दिन, सुबह का समय

    आर्या अपनी माँ विद्या जी के साथ जल्दी जल्दी घर का काम करवा रही थी क्योंकि आज उसकी जॉब का पहला दिन था और वो लेट नहीं होना चाहती थी।

          

    आर्या, " आई आज पहला दिन है, मैं बिल्कुल भी लेट नहीं होना चाहती। "

    विद्या जी, " हाँ आर्या, मैं जानती हूँ। बस खाना तैयार होने ही वाला है लेकर ही जाना। "

    थोड़ी देर बाद आर्या घर से बस स्टैंड के लिए निकल गई। आज उसने ग्रे कलर का कुर्ता और सफेद कलर की सलवार पहनी हुई थी जिसके साथ उसने सफेद कलर का दुपट्टा लिया हुआ था। पैरों में जूती, बालों को कसकर गूंथकर बनाई चोटी।

    लेकिन इन सिंपल से अवतार में भी बहुत प्यारी लग रही थी। गोरा रंग, आँखों में हल्का सा काजल, नेचुरली गुलाबी होंठ उनके नीचे छोटा सा काला तिल जो उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाता था और उसके कंधे पर एक छोटा सा बैग था।

    10 बजे के करीब आर्या राठौड़ इंडस्ट्रीज पहुँच चुकी थी।

    ***************************************

    हैलो दोस्तों,

    कैसा होगा आर्या के ये नया सफर?

    आगे की कहानी जानने के लिए बने रहिए।

    एंड प्लीज लाइक, कमेंट एंड अपने प्यारे प्यारे सुझाव मेरे साथ जरूर शेयर करें।

  • 4. दिल से दिल तक: एक अनकहा इकरार - Chapter 4

    Words: 1271

    Estimated Reading Time: 8 min

    अगला दिन, सुबह का समय

    राठौड़ मेंशन,

              सबके साथ ब्रेकफ़ास्ट करने के बाद विवान डाइनिंग टेबल से खड़ा हो गया। उसने अपनी पैंट की पॉकेट में से कुछ निकाला और उसे आरव की तरफ बढ़ाते कहा, " आरव ये मेरे इनफैक्ट पूरी फैमिली की तरफ से तुम दोनों के लिए एक छोटा सा गिफ्ट 🎁 है।" विवान की अच्छाइयों में से एक अच्छाई ये थी कि वो अगर खुद भी कुछ करता था तो वो बाकी सबको भी उसका पूरा पूरा श्रेय दिया करता था।

             विवान ने अपनी बात बोलते हुए वोही इंवेलोपे आरव की तरफ बढ़ा दिया जो उसे कल व्योम ने लाकर दिया था। उस इंवेलोपे को देखकर सब हैरानी से विवान को देखने लगे। वो सब जानना चाहते थे आखिर उस इंवेलोपे में है क्या?

              आरव ने विवान के हाथ से वो envelope ले लिया और एकसाइटेड होकर उसे खोलने लगा। आरव की वाइफ विधि भी उसके पास आकर खड़ी हो गई , जानने के लिए कि आखिर उसमें है क्या? बाकी सबकी नजरों में भी जानने की जिज्ञासा थी।

              आरव ने जैसे ही वो इंवेलोपे खोला उसमें रखी हुई टिकेट देखकर वो शॉक्ड रह गया और खुशी से उछलते हुए विवान को गले लगा लिया। 😯

              " Thank you... thank you भाई, you are best bro in world" आरव ने विवान को गले लगा, अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा। 😃

              तभी अवनी ( विवान और आरव की कजिन) बोली, " भाई हमें भी तो बताओ आखिर बड़े भाई ने गिफ्ट में आपको दिया क्या है? "

         विधि ने आरव के हाथ से इंवेलोपे ले लिया और देखने के बाद खुश होते हुए बोली, " इसमें Switzerland की tickets हैं। " वो विवान से मुस्कुराते हुए बोली, " Thank you bhai. "

              आरव विधि की तरफ देख बोला, " विधि मैंने तुम्हें कहा था ना मेरे भाई दुनिया के बेस्ट भाई हैं। "

              विवान बिना कोई एक्सप्रेशन दिए बोला, " Enjoy your vacations, बस एक शर्त है आते ही तुम्हें ऑफिस जॉइन करना होगा। "

              आरव मुँह बनाते हुए बोला, " Alright bro! "

    आरव की शक्ल देख सब हँसने लगे। पूरा परिवार आज खुश था। किसी ने सोचा भी नहीं था विवान ऐसा गिफ्ट भी दे सकता है।

             दादी विवान को देखकर बोली, " सबके बारे में इतना सोचता है खुद के बारे में कब सोचेगा? मेरी आँखे बंद हो, उससे पहले मुझे तेरी शादी देखनी है।" कहते हुए दादी की आंखों में हल्की सी नमी आ गई।

           दादी की फिर वही बात सुनते ही विवान का चेहरा एक बार फिर से गंभीर हो गया। वो एक पल के लिए चुपचाप खड़ा रहा, फिर धीरे से बोला,
              विवान संजीदा स्वर में बोला, "दादी, अभी मेरे पास शादी के लिए समय नहीं है। कंपनी और बाकी जिम्मेदारियाँ हैं, जो मुझे निभानी हैं।"

              दादी ने उसकी गंभीरता को भांपते हुए प्यार भरी मुस्कान के साथ कहा, "बेटा, जिंदगी सिर्फ काम और जिम्मेदारियों के लिए नहीं होती। अपने लिए भी कुछ वक्त निकालना जरूरी है। देख, सबके बारे में सोचता है, लेकिन खुद की खुशी के बारे में कब सोचेगा? जीवन में एक जीवन साथी की जरूरत सबको होती है। "

             विवान ने हल्की सी सांस लेते हुए दादी के हाथों को थाम लिया और उनकी तरफ देखा। उसकी आँखों में एक अदृश्य उदासी थी।

              विवान, "दादी, आप जानती हैं कि मेरी सोच शादी के बारे में क्या है। मेरे लिए... ये सब थोड़ा मुश्किल है। फिर भी आप चाहती हैं तो मैं इस बारे में जरूर सोचूँगा।"

              दादी ने उसके चेहरे पर बसी गहरी उदासी को समझते हुए कहा, "मैं जानती हूँ कि तेरे दिल में कुछ दर्द छुपा है, लेकिन बेटा, एक अच्छा जीवन साथी तेरे हर दर्द को बाँट सकती है। मेरी बस एक ख्वाहिश है कि तेरी जिंदगी में वो खुशी और सुकून जल्द ही आए जो तुझसे कहीं खो गया है।"

              दादी की बातों का असर विवान पर साफ झलक रहा था, लेकिन उसने बिना कुछ कहे बस उनकी ओर देखा, जैसे कि कुछ कहना चाहकर भी शब्दों को अंदर ही रोक लिया हो।

    वहीं दूसरी तरफ,

    आर्या का आज ऑफिस में पहला दिन था। रिसेप्शनिस्ट ने उसे सीधा टॉप फ्लोर पर जाने के लिए कहा। आज रिसेप्शनिस्ट का रवैया आर्या के लिए कल से थोड़ा अलग था।

    आर्या ने रिसेप्शनिस्ट को थैंक्यू कहा और लिफ्ट की तरफ चली गई। कुछ ही देर में लिफ्ट बिल्डिंग की टॉप फ्लोर पर आकर रुकी।

    वहां आते ही उसे सामने से आता व्योम दिख गया। आर्या, " गुड मॉर्निंग सर!"

    व्योम, " वेरी गुड मॉर्निंग मिस आर्या।" फिर हाथ से अपने केबिन की तरफ इशारा करते हुए, " चलिए मैं आपको आपका काम समझा देता हूँ। आज से आपके ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारियां आने वाली हैं।" व्योम ने लहजा बिलकुल नॉर्मल था।

    व्योम आर्या को सारा काम समझाते लगा फिर उसे एक टैब देते हुए कहा, " आज का तो मैंने कर दिया, लेकिन कल से सर का सारा शेड्यूल तुम मैनेज करोगी। अगर कोई भी प्रॉब्लम हो तो मैं हेल्प के लिए हूँ।"

    आर्या टेब को देखते हुए, " जी सर!"

    फिर व्योम उसे टैब कैसे यूज करना है बताने लगा। आर्या शुरू से ही काफी इंटेलीजेंट रही है इसलिए वो सबकुछ अच्छे से समझ रही थी।

    तभी व्योम ने टाइम देखते हुए कहा, " मिस आर्या ये सर का कॉफी टाईम है और उन्हें ब्लैक कॉफी पसन्द है।"

    आर्या हिचकिचाई सी बोली, " लेकिन सर मुझे मशीन वाली कॉफी बनानी नहीं आती।"

    व्योम, " डॉन्ट वरी... चलो आओ मैं तुम्हें सीखा देता हूँ।"

    दोनों व्योम के केबिन से बाहर निकल गए। थोड़ी देर बाद विवान के केबिन का डोर नॉक हुआ।

    विवान, " come in!"

    आर्या ने डोर खोला और अन्दर आ गई। " सर आपके लिए कॉफी।"

    विवान एक फाइल में साइन कर रहा था। आवाज सुन उसने नजर उठाकर देखा। आर्या को देख, " टेबल पर रख दो।" विवान का लहजा ना ही ज्यादा सख्त था ना ही नर्म।

    विवान ने फाइल बन्द की और फिर आर्या की तरफ देखा। आर्या टेबल के दूसरी तरफ सिर झुकाए हुए खड़ी थी।

    विवान, " नाम!"

    आर्या घबराई सी, " जी"

    विवान, "नाम क्या है तुम्हारा?"

    आर्या, " आर्या... आर्या वर्मा।" आर्या ने नजरें झुकाए कहा।

    विवान ने अपना सिर हिलाया और लैपटॉप में कुछ टाइप करने लगा।

    विवान, "मुझे काम में लापरवाही बिल्कुल पसंद है तो उम्मीद है कि तुम तुम्हारा काम अच्छे से करोगी।"

    आर्या, " जी सर।"

    विवान, " ये तुम नीचे देखकर जवाब क्यों दे रही हो। हम जब भी किसी से बात करे तो आंखों में आँखें डालकर बात करनी चाहिए इससे हमारा कॉन्फिडेंस बढ़ता है और सामने वाला हमारी बात पर और ज्यादा ध्यान देता है।" इस बार विवान का लहजा हल्का सख्त था।

    आर्या ने नजर उठाकर देखा, " जी सर... सॉरी सर।" आर्या का घबराना लाजमी था क्योंकि इससे पहले उसने कभी इस तरह किसी से बात नहीं की थी।

    विवान ने आर्या की घबराहट भांप ली थी। " रिलेक्स आर्या... जाओ जाकर पानी पीओ और व्योम से कहो वो तुम्हें काम बता देगा।"

    आर्या, " जी सर।" आर्या जल्दी से केबिन से बाहर निकल गई। वो इतनी जल्दी में निकली कि सामने से आता व्योम नहीं दिखा और उससे टकरा गई।

    लेकिन दोनों सम्भल गए। व्योम हैरानी से , " आर्या सर ने कुछ कहा?"

    आर्या ने ना मैं सिर हिला दिया।

    व्योम और भी ज्यादा हैरानी के साथ, " फिर क्या हुआ... तुम घबरा क्यों रही हो और ऐसे भाग क्यों रही थी।"

    आर्या ने अपनी घबराहट को कंट्रोल किया। " कुछ नहीं हुआ सर, वो बस... सर ने कहा है कि मैं आपसे पूछ लूं कि मुझे क्या काम करना है।"

    व्योम, "ठीक है, तुम मेरे केबिन में चलो मैं सर को ये फाइल देकर आया।"

             

    ***************************************

    नमस्कार दोस्तों,

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  • 5. दिल से दिल तक: एक अनकहा इकरार - Chapter 5

    Words: 1329

    Estimated Reading Time: 8 min

    बिलकुल, नीचे आपकी कहानी को बेहतर तरीके से रीफॉर्मेट और एडिट किया गया है, जिसमें व्याकरण, वाक्य विन्यास और प्रवाह को सुधारा गया है ताकि पढ़ने में मज़ा आए और हर भाव स्पष्ट हो:

    ---

    कहानी का अगला भाग:

    थोड़ी देर बाद ही व्योम अपने केबिन में आ गया। उसने एक फाइल आर्या की तरफ बढ़ाते हुए कहा, "इसका डेटा कंप्यूटर में अरेंज कर दो, और बाकी काम भी मैं समझा देता हूँ।"

    काम समझाने के बाद वो उसे उसका केबिन दिखाने ले गया, जो विवान के केबिन के ठीक सामने था।

    इसी तरह सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम हो गई। जैसे ही घड़ी ने छह बजाए, ऑफिस खत्म होने का समय हो गया। लेकिन आर्या काम में इतनी खोई हुई थी कि उसे समय का ध्यान ही नहीं रहा।

    तभी उसके केबिन का दरवाज़ा नॉक हुआ। आर्या ने चौंककर सिर उठाया—सामने व्योम खड़ा था। वह फौरन चेयर से खड़ी होकर बोली,

    "अरे सर! अगर कुछ काम था तो आप मुझे बुला लेते।"

    व्योम मुस्कुराया और केबिन के अंदर आ गया। उसने मज़ाकिया लहजे में कहा,

    "अगर तुम इसी तरह मन लगाकर काम करती रहीं, तो सर मुझे जॉब से हटाकर मेरा काम भी तुम्हें ही दे देंगे।"

    पहले तो आर्या को उसका मज़ाक समझ नहीं आया। वह थोड़ा घबरा गई, लेकिन जब व्योम के चेहरे की मुस्कान देखी, तो उसकी भी हल्की सी मुस्कान निकल आई।

    फिर व्योम ने फोन पर घड़ी दिखाते हुए कहा,

    "मिस आर्या, छह बज चुके हैं और ऑफिस का टाइम खत्म हो चुका है। आप चाहें तो काम कर सकती हैं लेकिन ओवरटाइम नहीं मिलेगा।"

    आर्या ने नजर घड़ी की तरफ दौड़ाई और शर्मिंदा होकर बोली,

    "सॉरी सर, ध्यान ही नहीं दिया। आज पहला दिन था, काम समझने और करने में टाइम का पता ही नहीं चला।"

    व्योम ने नरम लहजे में कहा,

    "कोई बात नहीं। अब आप जाइए और कल टाइम से आना।"

    आर्या, "ओके सर।"

    व्योम वहां से चला गया। उसके जाने के बाद आर्या ने फाइल्स समेटी, बैग उठाया और ऑफिस से बाहर निकल गई। पहले वह सीधा ट्यूशन पढ़ाने गई।

    रात के करीब 9 बजे वह घर लौटी। घर के अंदर विद्या जी रसोई में खाना बना रही थीं। दिशा और श्रुति पढ़ाई कर रही थीं और विपुल फोन में गेम खेल रहा था।

    जैसे ही आर्या ने घर में कदम रखा, विद्या जी साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछते हुए मटके से पानी का गिलास भरकर उसके लिए ले आईं।

    तब तक आर्या हाथ-मुँह धो चुकी थी। पानी का गिलास थमाते हुए विद्या जी ने पूछा,

    "कैसा रहा आज का पहला दिन?"

    आर्या ने पानी का एक घूंट लिया और बोली,

    "अच्छा था। कंपनी बहुत बड़ी है, तो काम भी उतना ही ज्यादा है।"

    तभी उसका भाई विपुल बीच में बोल पड़ा,

    "बड़ी कंपनी है तो सैलरी भी तो अच्छी मिलती होगी!"

    आर्या ने कोई जवाब नहीं दिया।

    विद्या जी ने विपुल को डांटते हुए कहा,

    "क्या इस फोन में घुसे रहते हो। थोड़ा पढ़ भी लिया करो।"

    विपुल चिढ़ गया,

    "क्या है! सारा दिन पढ़ाई-पढ़ाई… क्या हो जाएगा पढ़कर?"

    तभी शांता काकी ने ताना मारा,

    "कोई और काम नहीं है तुम माँ-बेटियों को, बस मेरे पोते के पीछे पड़ी रहती हो!"

    ---

    राठौड़ मेंशन

    आज आरव और विधि ने जमकर शॉपिंग की थी और घर लौटते ही वो सबको अपनी खरीदी चीज़ें दिखा रहे थे। तभी विवान भी घर आ गया।

    वो सीधा अपने कमरे की तरफ बढ़ा ही था कि पीछे से विधि की आवाज़ आई,

    "भइया!"

    विवान रुक गया, पीछे मुड़ा और उनकी तरफ बढ़ गया।

    विधि ने अपने हाथ में पकड़ा बॉक्स उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, "ये शर्ट आपके लिए है। बताइए कैसी लगी?"

    विवान ने बॉक्स खोला—नेवी ब्लू रंग की शर्ट थी। उसने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा,

    "बहुत अच्छी है। थैंक्यू।"

    आरव ने मज़ाक में कहा,

    "मैंने कहा था ना, मेरा भाई दुनिया का बेस्ट भाई है!"

    विधि और अवनी ने एक साथ कहा,

    "हां हां, हम ये पहले से जानते हैं।"

    सब हँस पड़े।

    विवान ने कहा,

    "मैं थोड़ी देर में आता हूँ।"

    डिनर के बाद वह अपने कमरे में जाकर लैपटॉप पर काम करने लगा। तभी दरवाज़ा खुला।

    उसने नजर उठाई—सामने साधना जी खड़ी थीं, हाथ में दूध का गिलास लिए।

    वो अंदर आकर गिलास साइड टेबल पर रखकर बेड पर बैठ गईं। विवान ने लैपटॉप बंद किया और उनका हाथ थामते हुए पूछा,

    "बोलिए माँ, क्या कहना चाहती हैं?"

    साधना जी थोड़ी देर चुप रहीं, फिर हिम्मत कर बोलीं,

    "आज तुम्हारे मामा का फोन आया था। वो तुम्हारे लिए एक रिश्ता बता रहे थे। लड़की पढ़ी-लिखी है, और अपने डैड के साथ बिजनेस भी संभालती है।"

    साधना जी की बात सुनकर विवान ने शांत स्वर में कहा,

    "माँ, आप जानती हैं मैं शादी जैसे रिश्ते से क्यों दूर भागता हूँ। मुझे डर है कि अगर मैं किसी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया, या उसे किसी तरह दुख पहुँचाया तो... मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।"

    साधना जी ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा,

    "बेटा, जरूरी नहीं कि हर इंसान वैसा ही हो जैसा तुम्हारे पापा थे। मैं अपने बेटे को जानती हूँ—तू किसी का दिल नहीं दुखा सकता। तू एक बेहतरीन पति साबित होगा। एक बार किसी का हाथ थामकर तो देख।"

    विवान कुछ देर चुप रहा, फिर बोला,

    "ठीक है माँ, मैं शादी करूंगा... लेकिन अपनी मर्जी से, अपनी शर्तों पर। जब मुझे लगेगा कि कोई लड़की मेरे लिए सही है, तब मैं आप सबको बता दूंगा। पर प्लीज़, रोज़-रोज़ इस टॉपिक पर मत बात किया कीजिए।"

    साधना जी ने प्यार से उसका सिर सहलाते हुए कहा,

    "ठीक है बेटा, तेरी मर्ज़ी। बस ये मत हो कि तू यूं ही अकेला रह जाए।"

    कुछ देर बाद वो कमरे से चली गईं।

    विवान ने उनका दिया दूध पीया और फिर अपने दोस्त कार्तिक को कॉल लगाया।

    उधर से आवाज आई,

    "क्या भाई, आज कैसे याद आ गई?"

    विवान ने झुंझलाते हुए कहा,

    "क्या बताऊं यार, अब आरव की शादी क्या हुई, सब मेरी शादी के पीछे पड़ गए हैं! तू ही बता क्या करूं?"

    कार्तिक हँसते हुए बोला,

    "ये तो होना ही था। लेकिन भाई, तू शादी से इतना डरता क्यों है? एक लड़की ने धोखा क्या दिया, इसका मतलब ये नहीं कि सारी लड़कियाँ वैसी होंगी।"

    विवान ने हँसते हुए कहा,

    "भाई, तुझसे सॉल्यूशन मांगा था, प्रवचन नहीं!"

    कार्तिक ने कहा,

    "ठीक है, सुन। एक आइडिया है—एक सिंपल सी लड़की ढूंढ और उससे कॉन्ट्रैक्ट मैरिज कर ले। अगर दोनों के बीच नहीं बनी, तो कुछ समय बाद अलग हो जाना आसान रहेगा। तुझे भी टाइम मिल जाएगा और शायद उस लड़की को भी कोई फायदा हो जाए तेरी वजह से।"

    विवान भड़कते हुए बोला,

    "पागल है क्या! भला ऐसी शादी के लिए कोई राजी होगा?"

    कार्तिक ने मुस्कराकर कहा,

    "भाई, ज़रा सोच ... ऐसी कोई लड़की जो पैसों की तंगी में है, ज़िम्मेदारियाँ बहुत हैं, लेकिन वो खुद्दार है। उसे भी किसी समझौते की जरूरत हो, लेकिन उसकी भी एक हद हो।"

    विवान संजीदगी से बोला

    "और तू चाहता है मैं ऐसी किसी अजनबी लड़की से शादी कर लूं? बिना इमोशन, बिना प्यार... सिर्फ एक डील के तौर पर? या फिर किसी लड़की का मजबूरी के नाम पर फायदा उठाऊं? "

    कार्तिक सिर हिलाकर बोला,

    "हाँ! तू शादी नहीं करना चाहता, अगर तू कॉन्ट्रैक्ट मैरिज कर लेता है तो... घरवालों का प्रेशर हट जाएगा, और जिस लड़की को पैसे या किसी सहारे की ज़रूरत है — उसका भी भला हो जाएगा। कोई जबरदस्ती थोड़ी कर रहा तुझसे प्यार करने की। बस कुछ महीनों की बात है, फिर दोनों अपनी-अपनी जिंदगी में वापस।"

    विवान थोड़ी देर चुप रहा।

    फिर बालों में हाथ फेरते हुए बोला,

    "कोई समझदार लड़की इस डील के लिए मानेगी भी?"

    कार्तिक मुस्कुराकर बोला, "भाई, जब तक कोशिश नहीं करेगा... पता कैसे चलेगा?"

    कार्तिक की बात ने विवान को सोच में डाल दिया। उसने कॉल कट की तो फोन बेड पर फेंक दिया। खुद भी बेड पर लेट गया और सीलिंग की तरफ देखते हुए कार्तिक की बात पर गौर करने लगा।

    *****

    क्या विवान कार्तिक की बात मान करेगा कॉन्ट्रैक्ट मैरिज?

             

    हैलो गायज्,

    लाइक एंड कॉमेंट

  • 6. दिल से दिल तक: एक अनकहा इकरार - Chapter 6

    Words: 1343

    Estimated Reading Time: 9 min

    अगला दिन,

    आज भी आर्या का वही डैली रूटीन रहा। सुबह जल्दी उठ चुकी आर्या पहले नीचे नल से पानी भरकर लाई फिर बाकी घर के कामों में विद्या जी की मदद करवाने लगी।

    9 बजे तक घर के कामों से फ्री हो वो ऑफिस के लिए निकल गई। और ऑफिस आते ही अपने केबिन में बैठ कंप्यूटर में कुछ डिटेल्स देखते हुए पैड में विवान का शेड्यूल बनाने लगी।

    कुछ इन्वेस्टर्स के अपॉइंटमेंट के लिए कॉल्स आई तो आर्या ने व्योम से पूछकर उन्हें आंसर कर दिया। और अपने टैब में उन्हें भी शेड्यूल में एड कर लिया।

    आज जब विवान ऑफिस आया... वो कार्तिक से कल हुई बात की वजह से थोड़ा डिस्टर्ब सा था। वो अभी तक किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाया था कि उसे ये करना चाहिए या क्या नहीं।

    तभी दरवाजे को नॉक हुआ। परमिशन लेकर आर्या अपने टाइम के हिसाब से विवान के केबिन में आ गई और उसे उसका शेड्यूल बताने लगी। जिसमें आज सुबह के समय उसकी कोई मीटिंग नहीं थी।

    दोपहर का समय,

    विवान ने कॉल करके व्योम को अपने केबिन में आने के लिए कहा।

    पांच मिनट बाद उसके केबिन का गेट नॉक हुआ।

    विवान सर्द आवाज में,  " Come in. "

    केबिन का गेट खुला और व्योम अंदर आकर खड़ा हो गया।

    व्योम विनम्रता से बोला,  " सर आपने बुलाया...?"

    विवान,  " Hmm, बैठो! कुछ जरूरी बात करनी है।"

    विवान की एक खासियत थी वो कभी भी किसी भी इंसान को उसके स्टेटस के नजरिए से नहीं देखता था। उसका मानना था कोई भी इंसान छोटा या बड़ा नहीं होता। वो अपने हर एम्पलाइ की हमेशा बहुत इज्जत करता है।

    व्योम चेयर पर बैठ गया... विवान को देखते ही वो समझ गया था कि विवान जरूर उससे किसी सीरियस टॉपिक पर बात करने वाला है।

    विवान, " व्योम तुम्हें मेरे लिए एक काम करना होगा... लेकिन इसके बारे में किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए।"

    व्योम, " जी सर बोलिए क्या काम करना है?" व्योम चेहरे से तो नहीं दिखा रहा था लेकिन उसके दिल में धुकधुकी सी हो रही थी। " आखिर सर ऐसा भी क्या काम करवाना चाहते हैं।" व्योम ने अपने मन में सोचा

    विवान अपनी चेयर पर सिर टिका बैठ गया। उसके चेहरे पर हल्की नर्वसनेस थी... जैसे उसे समझ नहीं आ रहा हो जो वो कहना चाहता है कैसे कहे। कुछ देर की खामोशी के बाद अपने अन्दर हिम्मत को इकट्ठा करते हुए विवान ने कहा, " Ok, तो तुम मेरे लिए एक लड़की अरेंज करो। "

    व्योम विवान की बात सुनकर शॉक्ड रह गया। उसकी आँखें हैरानी से फैल गई। एक पल के लिए उसे लगा शायद उसने ही कुछ गलत सुन लिया। इसलिए उसने झिझकते हुए पूछा, " सॉरी सर, " मैं कुछ समझा नहीं। " व्योम सवालिया नजरों से विवान को देखने लगा।

    विवान ने अपनी कुर्सी पर आराम से बैठते हुए गंभीर लहजे में कहा, "मैं शादी करना चाहता हूँ, लेकिन ये सिर्फ नाम की शादी होगी। मुझे एक ऐसी लड़की चाहिए जो बिना किसी इमोशनल इनवॉल्वमेंट के बस कुछ समय के लिए इस शादी का हिस्सा बने।"

    व्योम, जो अब तक समझ नहीं पाया था कि विवान आखिर क्या कहना चाह रहे हैं, विवान की बात सुनकर हक्का-बक्का रह गया।

    व्योम ने हैरानी से विवान को देखते हुए कहा "सर, आप... आपका मतलब कॉन्ट्रैक्ट मैरिज से है ?"

    विवान ने सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, बिल्कुल। मेरे पास वक्त नहीं है इन सब इमोशनल ड्रामों के लिए। मुझे सिर्फ एक दिखावटी शादी चाहिए, जिसे मैं जब चाहूँ अपनी शर्तों के हिसाब से खत्म कर सकूँ। "

    व्योम अभी भी थोड़ा असमंजस में था, लेकिन उसने विवान की बात को समझते हुए सिर हिलाया।

    व्योम बिना किसी भाव के बोला, "ठीक है सर, मैं आपकी बात समझ गया। मैं कोशिश करूंगा कि आपके लिए सही लड़की ढूंढ़ सकूं।" मन में खुद से, " काश! कि मैं आपकी जिंदगी में आपकी एक परफेक्ट पार्टनर लाने में कामयाब रहूं।"

    विवान ने एक हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "गुड! मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। बस ध्यान रखना, लड़की ऐसी हो जो जरूरतमंद हो और इस कॉन्ट्रैक्ट के लिए आसानी से तैयार हो सके। मुझे ज्यादा कोई उलझन नहीं चाहिए। इसके बदले उसे जो चाहिए होगा मैं दूंगा।"

    व्योम ने सिर झुकाकर हामी भरी, उसके मन में कई सवाल थे। लेकिन वो अपने बॉस से कैसे कुछ पूछ सकता था।

    व्योम वहाँ से जाने लगा। तभी विवान बोला, " व्योम एक ब्लैक कॉफी भिजवा देना। "

    व्योम ने कहा, " Ok sir. " वो केबिन से बाहर चला गया। व्योम के दिमाग में विवान के कहे शब्द बार बार गूंज रहे थे।

    "मुझे बस नाम की शादी चाहिए," विवान का यह शब्द जैसे उसके दिलो-दिमाग में ठहर गया था।

    व्योम ने खुद से बुदबुदाते हुए कहा, "विवान सर जैसी सोच रखने वाले इंसान के लिए शादी सिर्फ एक औपचारिकता हो सकती है, लेकिन क्या वो समझते हैं कि इस फैसले का दूसरे पर क्या असर होगा?"

    वो सोच में डूबा हुआ ऑफिस के कॉरिडोर से गुज़रा। विवान जैसा hard और arrogant इंसान, जिसने कभी किसी के लिए कुछ महसूस नहीं किया, अचानक शादी के बारे में क्यों सोच रहा था?

    व्योम ने एक गहरी सांस ली और खुद को संयत किया। उसके सामने अब यह चुनौती थी कि विवान के लिए ऐसी लड़की कैसे ढूंढ़े जो इस अजीब ऑफर को accept कर सके।

    राठौड़ मेंशन,

    मेंशन में खुशियों का माहौल बना हुआ था। आरव और विधि switzerland जाने के लिए बहुत एकसाइटेड थे।

    विधि खुश होते हुए बोली, " आरव ऐसा करते हैं हम ना शॉपिंग 🛍️💸 पर चलते हैं मुझे कुछ ड्रेस लेनी हैं। उसके बाद हमें पैकिंग भी तो शुरू करनी है।"

    आरव ने मुस्कुराते हुए विधि की ओर देखा और बोला, "हाँ, बिल्कुल! मेरी जान, शॉपिंग के बिना ट्रिप अधूरी है। वैसे भी स्विट्ज़रलैंड के लिए हमें खास तैयारियाँ करनी होंगी।"

    विधि ने खुशी से आरव का हाथ पकड़ लिया।

    विधि चहकते हुए बोली, "चलो फिर, आज दिनभर शॉपिंग करेंगे और रात को पैकिंग! स्विट्ज़रलैंड में हर दिन यादगार बनाएँगे।"

    दोनों की आंखों में खुशी और उत्साह था, और उनके चारों तरफ का माहौल भी उनकी खुशियों में रंग गया था।

    Rathore group of Industries,

    विवान अपने केबिन में बैठा लैपटॉप 💻 में कुछ काम कर रहा था, तभी उसका केबिन का गेट नॉक हुआ।

    विवान, " Come in "

    उसके केबिन का गेट खुला और आर्या धीमे कदमों से आगे बढ़ती हुई अंदर आ गई उसके हाथ में एक ट्रे थी जिसमें एक मग रखा हुआ था और उसमें ब्लैक कॉफी जो थोड़ी देर पहले खुद विवान ने ही लाने के लिए बोला था।

    आर्या ने नजरें झुकाए हुए धीरे से बोली, " सर, आपकी ब्लैक कॉफी! "

    विवान अपने काम में इतना मगन था उसने आर्या की आवाज ही नहीं सुनी क्योंकि उसने अभी तक नजर उठाकर नहीं देखा था और आर्या ने भी बहुत ही धीरे से बोला था।

    आर्या ने दुबारा कहा लेकिन इस बार उसकी आवाज पहले से थोड़ी तेज थी, " सर, आपकी ब्लैक कॉफी। "

    विवान ने दूसरी आवाज सुनते ही सिर उठाया और आर्या की ओर देखा। उसकी आँखों में हल्की झुंझलाहट थी, जैसे उसे काम में रुकावट पसंद न हो। उसने कुछ कहने के लिए मुँह खोला, लेकिन अचानक उसकी नजर आर्या के चेहरे पर ठहर गई।

    वो एक पल के लिए ठिठक गया, उसकी आँखों में एक अजीब सी कशिश थी, मानो कुछ ऐसा देख रहा हो जो उसने पहले कभी नहीं देखा था। आर्या, नजरें झुकाए हुए, उसके रिएक्शन का इंतजार कर रही थी।

    आर्या ने एक बार भी नजरें उठाकर अपने सामने बैठे शख्स की तरफ नहीं देखा।

    एक पल की खामोशी के बाद, विवान की आवाज बेहद धीमी और अनजाने में मुलायम हो गई, " ह्म्म! रख दो।" और फिर एक फाइल आर्या को देते हुए कहा, " मिस आर्या, इस फाइल के डाटा में कुछ मिस्टेक्स हैं, एक बार चैक करो और कुछ हेल्प चाहिए हो तो व्योम से कह देना।"

    आर्या, " जी सर।" और हाथ बढ़ा विवान से वो फाइल ले ली।

    आर्या को देखकर विवान के चेहरे पर कुछ अलग ही एक्सप्रेशन थे।

    *****

    मिलते हैं अगले भाग में

    प्लीज लाइक, कमेंट एंड शेयर

  • 7. दिल से दिल तक: एक अनकहा इकरार - Chapter 7

    Words: 1327

    Estimated Reading Time: 8 min

    राधे राधे दोस्तों,

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    विवान से फाइल लेकर आर्या केबिन से बाहर आ गई।

    ***

    आर्या को ऑफिस जॉइन किए हुए एक महीने से ज्यादा हो चुका था और यहाँ रहते हुए उसने बहुत कुछ नया सीख लिया था। अब वो पहले से ज्यादा कॉन्फिडेंट हो चुकी थी और अपना काम भी पहले से ज्यादा परफेक्शन के साथ करने लगी थी।

    कभी कभी तो विवान उसे मीटिंग में भी ले जाने लगा था। आर्या अभी सिर्फ ग्रेजुएट ही थी लेकिन उसकी मेहनत उसके काम में नजर आती थी।

    आर्या आगे भी पढ़ना चाहती थी लेकिन जॉब और फिर घर की जिम्मेदारियों की वजह से उसने फिलहाल आगे ना पढ़ने का फैसला लिया। भले ही उसने किसी कॉलेज में एडमिशन न लिया हो लेकिन पढ़ाई के शौक के चलते उसने कुछ बिजनेस बुक्स खरीद ली थी और रात को जब उसके पास कुछ फ्री टाइम होता तो उन्हें पढ़ लिया करती थी।

    एक से दो... दो से तीन महीने बीत गए और आर्या की जॉब और अच्छी सैलरी की वजह से घर की हालत भी पहले से काफी सुधर चुकी होती है। लेकिन बच्चों को ट्यूशन देना आर्या ने अभी भी नहीं छोड़ा था।

    दूसरी तरफ विवान को कॉन्ट्रैक्ट मैरिज के लिए अभी तक कोई परफेक्ट लड़की नहीं मिली। पिछले महीनों में वो करीब 10 से ज्यादा लड़कियों से मिल चुका था लेकिन उनमें से उसे कोई भी ठीक नहीं लगी।

    कार्तिक ने कई बार उसे समझाया भी कि, " भाई तुझे कौन सा उसके साथ जीवन भर रहना है। कुछ टाइम की ही तो बात है... कर के शादी।"

    विवान हर बार यही जवाब देता, " मैं ऐसी लड़की चाहता हूँ जो मॉम और दादी को भी पसन्द आए। इसलिए ऐसे ही किसी से भी शादी नहीं कर सकता।"

    विवान अभी तक जितनी भी लड़कियों से मिला कोई उसे मतलबी लगी, कोई लालची और कोई कोई कुछ ज्यादा ही आजाद ख्यालों वाली दिखी।

    इसी वजह से विवान आजकल कुछ ज्यादा ही फ्रस्ट्रेटेड रहने लगा था।

    विवान अपने केबिन में चेयर पर गुस्से में बैठा हुआ अपने सामने खड़े हुए शख्स को खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था और टेबल के दूसरी साइड व्योम सिर झुकाए खड़ा हुआ था।

    विवान गुस्से में बोला, " तीन महीने हो गए तुमसे एक परफेक्ट लड़की नहीं ढूंढी जा सकी। क्या दुनिया में लड़कियों की कमी हो गई है या तुम्हारी आँखें खराब हो गई हैं?"

    व्योम जो सिर झुकाए खड़ा था, वो सहमी सी आवाज में बोला, " सर अभी तक जितनी भी लड़कियों से बात की आपने सबको एक बार में ही रिजेक्ट कर दिया। "

    विवान ने एक गहरी, गुस्से से भरी सांस ली और अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। उसकी आँखों में गुस्सा और तीखी झुंझलाहट थी।

    विवान कड़क आवाज में, "तुम्हारी कोशिशें नाकाफी हैं, व्योम। पता है तुम्हें... उन सारी लड़कियों की ही बातों में लालच दिख रहा था भला मैं ऐसे कैसे उन लड़कियों से शादी कर सकता हूँ। लड़की भले ही जरूरत मंद हो लेकिन दिल की अच्छी भी होनी चाहिए।""

    व्योम ने हिचकिचाते हुए एक बार फिर सिर झुकाया और धीमे आवाज में बोला, "सॉरी सर... मैं और कोशिश कर रहा हूँ। अगली बार आपको कोई शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।"

    विवान की गुस्से से भरी निगाहें उस पर टिकी रखीं, फिर एक गहरी सांस लेते हुए उसे जाने का इशारा किया।

    विवान, "अगली बार नाकाम रहे तो अपनी नौकरी भी खतरे में समझो।"

    व्योम ने जल्दी से सिर हिलाया, उसके माथे पर पसीना था, और दिल में ये सोच कि अगली बार उसे असफलता की गुंजाइश नहीं है।

    अभी व्योम भी केबिन में ही था, तभी विवान के केबिन का गेट नॉक हुआ।

    विवान सर्द लहजे में बोला, " Come in. "

    गेट खुला और आर्या नजरें झुकाए हुए अंदर आ गई।

    आर्या विवान के केबिन में उसके लिए कॉफी लेकर आई।

    आर्या, " सर, आपके लिए कॉफी। "

    (आर्या की मिठी आवाज सुनकर, अभी तक जो विवान गुस्से में था वो बिल्कुल शांत हो गया। व्योम ने अचानक से अपने बॉस के बदले व्यवहार को नोटिस किया।)


    वहीं विवान ने हमेशा आर्या में एक बात नोटिस करता था... जहाँ लड़कियाँ उसे एक नजर देखने के लिए तड़पती हैं वहीं आर्या की कभी हिम्मत ही नहीं हुई की वो अपने सामने बैठे शख्स को देखने की हिमाकत भी कर ले।

    विवान, " हम्म! टेबल पर रख दो और मिस्टर मल्होत्रा से गुप्ता एंड सन्स की फाइल लेकर आओ। " विवान ने बहुत आराम से अपनी बात कही थी।

    आर्या ने हाँ में सिर हिलाया और वहाँ से जाने लगी, तभी उसका फोन बजने लगा। आर्या के पास अभी भी सिंपल सा कीपैड वाला फोन था । उसके फोन स्क्रीन पर देखा उसके घर से कॉल आ रही थी।

    उसने केबिन से बाहर निकलते हुए कॉल पिक कर ली वो कुछ बोलती तभी सामने से उसे किसी के रोने की आवाज आई " ताई, प्लीज तु जल्दी घर आजा, आई को पता नहीं क्या हो गया है वो ठीक से साँस भी नहीं ले पा रही, उनके सीने में भी दर्द हो रहा है। हम आई को पास ही के हॉस्पिटल में लेकर जा रहे हैं, तु बस जल्दी आ जा। "

    ये आवाज आर्या की छोटी बहन दिशा की थी। अपनी बहन की बात सुन आर्या के कदम वहीं जम गए और उसके हाथ से फोन छुटकर नीचे गिर गया।

    कुछ गिरने की आवाज विवान और व्योम ने भी सुनी वो दोनों एक दूसरे को हैरानी से देखने लगे।

    विवान सख्त आवाज में व्योम को आदेश देते हुए बोला, " जाओ जाकर देखो, ये आवाज कैसी है?"

    व्योम जल्दी से बाहर आ गया। उसने बाहर आकर देखा तो आर्या वहीं खड़ी थी, उसके चेहरे पर गहरी चिंता और घबराहट के भाव थे। उसने फोन नीचे गिरा हुआ था और आँखों से आंसू बहने लगे।

    आर्या की ऐसी हालत देख व्योम को उसकी चिंता हुई, "आर्या, क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?" व्योम ने उसके कंधे पर हाथ रख पूछा।

    आर्या ने धीरे से सिर हिलाया, लेकिन उसके चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी। उसने लड़खड़ाती हुई आवाज में कहा, " वो मेरी आई... हॉस्पिटल में हैं। मुझे वहाँ जाना होगा।"

    उसे इस समय कुछ सुध नहीं थी उसे बस किसी भी तरह अपनी आई के पास जाना था। क्योंकि उसके बाबा के जाने के बाद एक वोही तो उसका और उसके भाई बहनों का सहारा थी। अगर उसकी आई को भी कुछ हो जाता तो वो खुद को और अपने छोटे भाई बहनों को कैसे संभालती।

    व्योम समझ गया कि मामला गंभीर है। उसने बिना देरी किए अंदर जाकर विवान को सारी बात बताई।

    विवान ने गंभीर लहजे में कहा, "आर्या को अंदर बुलाओ।"

    आर्या धीमे कदमों से अंदर आई, उसके चेहरे पर घबराहट साफ नजर आ रही थी। विवान ने आर्या को देखा, आर्या को चेहरा रोने की वजह से पूरा लाल हो चुका था।

    विवान बोला, " क्या हुआ तुम्हारी आई को। "

    आर्या में कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं थी, वो सुबकियाँ लेते हुए रो रही थी। आर्या धीरे से नजरें झुकाए बोली, " सर मेरी आई की तबियत बहुत खराब हो गई है, प्लीज मुझे जाने दें। "

    आर्या ने अपनी बात कहते हुए हाथ जोड़ लिए और उसकी आँखों से आँसू और तेज बहने लगे।

    उसके आँसू देखकर विवान के दिल में अजीब सी बैचेनी होने लगी। उसे खुद ही नहीं पता था उसे आर्या को युं रोना क्यों अच्छा नहीं लग रहा।

    विवान ने गहरी साँस ली और नर्म आवाज में बोला, " ठीक है, तुम जा सकती हो, अगर कोई इमर्जेंसी हो तो कल भी मत आना। "

    फिर विवान ने व्योम को देखकर बिना किसी एक्सप्रेशन के बोला, " व्योम, तुम आर्या को, हॉस्पिटल लेकर चले जाओ। और अगर प्रॉब्लम सीरियस हो या फिर कोई जरूरत हो तो मुझे कॉल करके बताना।"

    व्योम अपने बॉस का, एक मामूली सी लड़की के लिए इतना सॉफ्ट कॉर्नर देखकर बहुत हैरान था।

    तभी उसके कानों में विवान की आवाज आई जो आर्या को कुछ बोल रहा था।

    विवान आर्या से , " आर्या, तुम व्योम के साथ चली जाओ। ये तुम्हें हॉस्पिटल छोड़ देगा।

    ***********************************

  • 8. दिल से दिल तक: एक अनकहा इकरार - Chapter 8

    Words: 1219

    Estimated Reading Time: 8 min

    राधे राधे दोस्तों,

    ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

    विवान ने बहुत ही नर्मी से कहा, " आर्या, तुम व्योम के साथ चली जाओ। ये तुम्हें हॉस्पिटल छोड़ देगा।

    आखिर अपने बॉस का हुक्म व्योम कैसे टाल सकता था इसलिए वो आर्या को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गया।

    व्योम आर्या को देखते हुए उससे बोला, " आर्या चलो, मैं तुम्हें हॉस्पिटल छोड़ देता हूँ। "

    आर्या ने अपना सिर हाँ में हिलाया और व्योम के पीछे पीछे चल दी। आधे घंटे बाद व्योम ने गाड़ी एक सरकारी हॉस्पिटल के बाहर रोकी। गाड़ी रुकते ही आर्या जल्दी से गाड़ी से उतर कर हॉस्पिटल के अंदर भाग गई।

    लेकिन बाहर कॉरिडोर में ही उसे उसका भाई विपुल मिल गया। उसे देख आर्या की आँखें भर आई। वो धीमे से बोली, " विपुल, आई ...?" उसका गला इतना भरा हुआ था कि इससे ज्यादा उससे कुछ नहीं बोला गया।

    विपुल ने एक कमरे की तरफ इशारा करते हुए कहा, " ताई, आई उधर है। डॉक्टर साहब उनका चेकअप कर रहे हैं।" तभी दिशा और श्रुति भी वहाँ आकर आर्या के गले लग गई।

    " ताई... हमारी आई ठीक तो हो जाएगी ना?"

    आर्या ने उन दोनों को संभाला और आगे बढ़कर उस वार्ड की तरफ जाती, तभी उसके पीछे व्योम भी आकर खड़ा हो गया।

    व्योम बड़ी गौर से आर्या को देख रहा था।

    कैसे ये लड़की थोड़ी देर पहले खुद टूटी हुई थी और अब अपने छोटे भाई बहनों को संभाल रही है। उसके मन में कुछ और ही चल रहा होता है।

    व्योम अपने मन में सोच रहा था। तभी उसे एक और ख्याल आया। "क्यों ना आर्या से बात की जाए कॉंट्रैट मैरिज के लिए, वो जरूरत मंद भी है इससे उसकी मदद भी हो जाएगी। "

    ये सब सोचते ही उसके फेस पर हल्की सी स्माइल आ गई।

    आर्या ने एक बार व्योम की तरफ देखा और तेजी से उस कमरे की तरफ कदम बढ़ाए जहाँ उनकी माँ का इलाज चल रहा था। कमरे के बाहर खड़े होकर उसने शीशे से अंदर झाँका। डॉक्टर उसकी माँ का चेकअप कर रहे थे और उनकी हालत देखकर आर्या की आँखों के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

    आर्या नम आँखें लिए, घबराहट में बोली, "आई ठीक तो होंगी न, विपुल?"

    विपुल अपनी बड़ी बहन को सांत्वना देते हुए, " ताई, डॉक्टर साहब ने कहा कि उन्हें तुरंत सही इलाज मिल जाएगा तो सब ठीक हो जाएगा। बस हम दुआ करें कि सब जल्दी ठीक हो जाए।"

    पीछे खड़े व्योम ने यह सब देखा... वो सबकुछ बहुत ही ध्यान से देख रहा होता है। वह आर्या की हालत समझ रहा था और धीरे से उसके पास आकर बोला, "आर्या, चिंता मत करो। तुम चाहो तो मैं डॉक्टर से बात कर सकता हूँ। अगर कुछ जरूरत हो तो बता देना।"

    आर्या ने व्योम की तरफ देखा, उसकी आँखों में कृतज्ञता और दर्द दोनों ही थे। उसने हल्के से सिर हिलाया और धीरे से कहा,

    आर्या, " Thank you, सर। इस मुश्किल वक्त में आपका साथ होना मेरे लिए बहुत मायने रखता है।"

    तभी विद्या जी का चेकअप करने के बाद डॉक्टर वार्ड से बाहर आ गए। आर्या और विपुल तुरंत उनके पास आकर खड़े हुए।

    डॉक्टर गंभीरता से बोले, " फिल्हाल मरीज की हालत स्थिर है, पर इन्हें पूरी देखभाल की जरूरत है। हम इलाज कर रहे हैं, पर आप लोग धैर्य रखें और उन्हें किसी भी प्रकार का तनाव न दें। इन्हें माइनर हार्ट अटैक आया था। फिलहाल के लिए हमने दवाई दे दी है। लेकिन आगे कुछ ऐसा ना हो उसके लिए एक छोटी सी सर्जरी होगी जिसके लिए आपको इन्हें बड़े हॉस्पिटल लेकर जाना होगा।""

    आर्या ने पहले तो डॉक्टर का धन्यवाद किया। फिर आर्या झिझकते हुए बोली, " डॉक्टर साहब, आई की सर्जरी में कितना खर्चा आ जाएगा। "

    डॉक्टर बोला, " कम से कम 3- 4 लाख का खर्चा तो आएगा ही।

    ये सुनते ही आर्या के कदम हल्के से लड़खड़ा गए लेकिन विपुल ने अपनी बहन को संभाल लिया। आर्या बेबस नजरों से विपुल की तरफ देखने लगी।

    फिर कमरे की ओर देखा जहाँ उनकी माँ आराम कर रही थीं। विपुल ने आर्या का हाथ पकड़कर उसे आश्वासन दिया।

    व्योम ने हालात को समझते हुए कहा, " आर्या तुम चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा। "

    वहीं दूसरी तरफ,

    विवान की दादी को भी अचानक तबियत बिगड़ने के कारण शहर के सबसे अच्छे हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था। उनका बीपी और शुगर अचानक से बहुत ज्यादा बढ़ गया था, जिससे उन्हें चक्कर आ गया और गिर गई थीं।

    विवान जैसे ही हॉस्पिटल में पहुंचा, उसकी दादी का इलाज चल ही रहा होता है। उनके बगल में डॉक्टर उनकी हालत पर चर्चा कर रहे थे। विवान के दिल में चिंता की लहर दौड़ गई। वह दादी के बहुत करीब था, और उनकी ये हालत देखकर उसकी आँखों में हल्की सी नमी आ गई।

    डॉक्टर ने विवान से कहा, "मिस्टर राठौड़, आपकी दादी अब बिल्कुल ठीक हैं। पर उन्हें पूरी देखभाल की जरूरत है। उन्हें थोड़ा आराम चाहिए, और किसी भी तरह का तनाव ठीक नहीं है।

    थोड़ी देर बाद विवान और साधना जी गायत्री जी के पास ही बैठे हुए थे ।

    गायत्री जी को करीब एक घंटे बाद होश आ गया था।

    विवान बोला, " दादी ये सब क्या है? आप अपनी सेहत के साथ लापरवाही कैसे कर सकती हैं? "

    गायत्री जी ने विवान की तरफ से मुँह फेर लिया और नाराज भरी आवाज में बोली, " साधना अपने बेटे से कह दो, मेरी परवाह करने की इसे कोई जरूरत नहीं है। अगर इसे हमारी इतनी परवाह ही होती तो हमारी बात मानकर शादी ना कर लेता।

    विवान गायत्री जी की नाराजगी से थोड़ा असहज हो गया। उसने गायत्री जी का हाथ थामते हुए कहा, "दादी, आप ये सब क्यों कह रही हैं? मैं हमेशा आपकी परवाह करता हूँ, और आपके लिए कुछ भी कर सकता हूँ।"

    गायत्री जी ने अपना हाथ धीरे से छुड़ाते हुए मुंह फेर लिया। उनकी आँखों में नाराज़ी साफ झलक रही थी। उन्होंने साधना की ओर देखते हुए कहा, "साधना, अपने बेटे से कह दो कि हमसे दूर ही रहे। जब उसे हमारी बात ही नहीं माननी, तो फिर हमारी परवाह की क्या जरूरत है? बस हमसे दूर रहे, और अपनी ज़िन्दगी जिए।"

    साधना ने एक गहरी सांस ली और विवान को समझाते हुए बोली, "बेटा, माँ जी बस यही चाहती हैं कि तुम्हारे साथ कोई हो जो तुम्हारा ख्याल रख सके, तुम्हारे साथ जीवन की हर छोटी-बड़ी खुशी बाँट सके।"

    विवान कुछ पल चुप रहा, फिर उसने धीमी आवाज में कहा,  "दादी, मैं समझता हूँ कि आप मेरे भले के लिए ये सब कह रही हैं। लेकिन ये सब इतनी आसानी से नहीं हो सकता। मेरे पास अपने जीवन में कुछ अधूरे काम हैं, जिनका मैं पहले समाधान करना चाहता हूँ।"

    फिर उसने एक गहरी साँस ली और बोला, " ठीक है, मैं शादी करने के लिए तैयार हूँ लेकिन मैं शादी में कोई शोर शराबा नहीं चाहता इसलिए मैं कोर्ट मैरिज करूँगा और शादी भी अपनी मर्जी से करूँगा। प्लीज, अब तो आप खुश हो जाइये।

    गायत्री जी ने विवान की ओर देखा, उनकी आँखों में अब भी नाराजगी थी, लेकिन कहीं न कहीं एक नर्म भाव भी उभर आया था।

    हैलो फ्रेंदस

    आज के लिए इतना ही।

    आखिर क्या चल रहा है विवान के दिमाग में और आर्या कहाँ से लाएगी अपनी माँ के इलाज के लिए इतने पैसे जानने के लिए पढ़ते

  • 9. दिल से दिल तक: एक अनकहा इकरार - Chapter 9

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min