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शॉर्ट ट्रिप ऑफ फैंटेसी....✍️✍️

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Farheen Rajput

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कभी -कभी छोटे-छोटे प्लॉट भी दिमाग में उछल कूद मचाते रहते हैं.... तो बस यहां कभी -कभी आपको ऐसी ही छोटी -छोटी उछल कूद पढ़ने को मिलेगी.....मतलब शॉर्ट स्टोरी..... जिसमे कभी - कभी आपको थोड़ी सी सच्ची घटना.... और थोड़ी सी इमेजिनेशन का मिक्सचर भी मिलेगा.......

Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. "वफा".....(अ बॉन्ड ऑफ लव💕)

    Words: 5601

    Estimated Reading Time: 34 min

    कशफ अपनी काजल से सनी गहरी खूबसूरत आंखों में पानी लिए..... जिंदगी से बेज़ार सी वो किचन में नाश्ता बना रही थी .... उसके गुलाबी होंठ जो हमेशा मुस्कुराते रहते थे..... वो अब गहरी खामोशी से थरथरा रहे थे..... उसके चेहरे की जिंदादिली..... कभी ना मिटने वाली उदासी में सिमट गई थी..... वहाज जब ऑफिस के लिए तैयार हो कर..... किचन की जानिब आया..... तो कशफ की उदासी देख..... वो बिना उससे कुछ कहे.... बिना नाश्ता किए ऑफिस के लिए चला गया..... बाहर तख्त पर बैठी अम्मा जी ने भी आज उसे नही रोका..... कि वो जानती थी..... वहाज और कशफ दोनो का ही दिल आज बेज़ारी भरी तकलीफ से भरा था..... ऐसी बेज़ारी(अप्रसन्नता) से जो चाह कर भी ताउम्र दूर नही की जा सकती थी!!

              किचन में खड़ी कशफ ने जब वहाज की गाड़ी की आवाज सुनी..... तो उसके बेदम हुए हाथ..... और भी बेदम हो गए..... और उसने अपनी नम आंखों को कसकर बंद कर लिया..... आज भी उसके ज़हन में वो दिन बिल्कुल ताज़ा था..... जब पांच साल पहले वो इस घर में वहाज की दुल्हन बन कर आई थी..... वहाज के जिंदगी में आते ही..... उसकी जिंदगी खुशियों से भर आई थी..... उर्वा के रूप में यहां एक बहन जैसी ननंद मिली थी..... जो उसकी हमराज होने के साथ ही..... हर तकलीफ और खुशी में उसकी बराबर की शरीक थी..... दोनो को साथ देखकर कोई कहता ही नही था..... कि दोनो नंद भाभी हैं..... कि दोनो का प्यार सगी बहनों से बढ़कर जो था..... दो साल पहले जब उर्वा की शादी हुई..... दोनो उस दिन इस कदर बेशुमार रोई थीं..... कि शायद उर्वा का इतना रोना अपने भाई वहाज..... और अम्मा जी से बिदाई लेते हुए भी नही निकला था..... कि जितना तड़प कर को कशफ से गले लग कर रोई थी.... आखिर ननंद भाभी से ज्यादा गहरे दोस्त जो थे दोनो.....।

    ननंद के साथ ही..... अम्मा जैसी सास..... जिन्होंने कशफ और उर्वा में कभी कोई मामूली फर्क भी नहीं किया था..... यूं तो ये एक अरेंज मैरिज थी..... और वहाज और उसका रिश्ता घर के बड़ों ने ही तय किया था..... लेकिन शादी होने के साथ ही..... दोनो की मोहब्बत गहरी होती चली गई..... अब हाल तो ये था..... कि दोनो को एक दूजे के बिना एक पल भी गंवारा नही था..... जब कभी इत्तेफाकन कशफ अपने मायके रुक जाती..... तो वो दिन दोनो के लिए ही दुश्वार रहता..... दोनो की अंडरस्टेंडिंग काबिले तारीफ थी..... एक को दूसरे से अपने दिल की बात कहने के लिए..... लफ्जों की मोहताजगी कभी हुई ही नही..... दोनो अक्सर ही..... बिना कहे एक दुसरे की दिल की बातें समझ लिया करते थे.....।

    कशफ थी भी ऐसी ही..... कि जिससे एक बार मिलती..... उसकी जिंदादिली और खुशमिज़ाजी लोगों को उसका कायल कर जाती..... वो अपनी सादगी और जिंदादिली से ही लोगों के दिल में घर कर जाती..... और इसीलिए वो अपने मायके के साथ ही..... अपने ससुराल में भी सबकी लाडली थी..... सब कुछ बहुत खुशनुमा चल रहा था..... कशफ की जिंदगी जहां वहाज का साथ पा कर खुशहाल हुई..... तो वहाज भी कशफ जैसी जिंदादिली और सादगीतरीन किरदार वाली हमसफर को पाकर..... अपनी खुशकिस्मती पर नाज़ करते नही थकता था..... उनके जोड़े और खुशनुमा जिंदगी को देखकर..... अक्सर कई लोग रश्क भी करते थे..... यूं तो मिडिल क्लास फैमिली होने के नाते..... उनके के पास रोज़ का खाना कमाना था..... वहाज एक प्राइवेट फर्म में काम करता था..... पर जितना भी था..... वो सब खुश थे..... मुतमईन थे..... उनकी ज़बान पर रब का शुक्र हमेशा रहता था..... कि ज़रूरत से ज्यादा की तमन्ना उन्हें थी भी नही!

             सब कुछ अच्छा चल रहा था..... उर्वा भी अपने ससुराल में बेहद खुश थी.... पर अब वक्त गुजरने के साथ ही..... अब अम्मा जी अपनी आने वाली पीढ़ी की ख्वाहिश करने लगी थी..... कि वो पहले से ही शुगर और हाई बीपी की मरीज़ थी..... सालों पहले एक बीमारी के चलते..... अपने शौहर को भी खो चुकी थीं..... बेटी ब्याह दी थी..... तो बस अब उनके इकलौते बेटे वहाज और कशफ का ही सहारा था..... और उनकी बड़ी ख्वाहिश थी..... कि वो इस दुनिया से रुखसत होने से पहले..... अपने पौते -पौती का मुंह देख लें..... और उनकी ख्वाहिश तब ज्यादा गर्मा गई..... जब शादी के एक साल के अंदर ही उर्वा की गौद भर गई..... और उसने एक चांद सी बेटी को जन्म दिया..... सब के साथ ही कशफ भी उर्वा की इस खुशी में बेहद खुश थी.....।

    लेकिन शादी के पांच साल बाद भी उसकी गोद सूनी थी.....  कहीं ना कहीं उसे इसका मलाल होना भी लाज़िमी था..... हालांकि अम्मा जी की ख्वाहिश से वो रूबरू थी..... लेकिन ये भी था..... कि उन्होंने कशफ को इस बात के मुतल्लिक..... कभी कोई ताना कसी या ज़ोर जबरदस्ती नही की थी..... बस वो बुजुर्ग थी..... तो कभी कभार अपनी आरजू को उसके सामने पेश कर देती थीं..... लेकिन वहाज ने उससे इसके मुतल्लिक..... कभी कोई ख्वाहिश तक भी नही ज़ाहिर की थी..... ऐसा नही था की वहाज को औलाद की आरज़ू नही थी..... बेशक थी..... बस वो कशफ को बेवजह मायूस नही करना चाहता था.....।

    क्योंकि वो समझता था..... कि कशफ शिद्दत से इस ख्वाहिश के पूरा होने के इंतजार में थी..... और वहाज हमेशा उसकी मायूसी को बस यही कहकर टालने की कोशिश करता..... कि अभी तो हम खुद ही बच्चे हैं..... हम से भला अभी क्या ही बच्चे संभलेंगे..... लेकिन वहाज ने ये भी महसूस किया था..... कि उर्वा की गोद भरने के साथ ही..... कशफ उदासी और मायूसी से घिर आई थी..... ऐसा हरगिज़ नही था..... कि वो उर्वा से जल रही थी..... बस वो अपनी किस्मत से मायूस थी..... वहाज ने हर मुमकिन कोशिश की..... कि वो उसकी मायूसी के बादलों को हटा कर..... उसे बस खुशहाली दे..... लेकिन शायद अब ये मुश्किल था..... क्योंकि जिस खुशी की आरज़ू कशफ को एक मुद्दत से थी..... वो तो रब ने उसकी किस्मत में लिखी ही नही थी.....।

    कशफ के ही कहने पर..... वहाज ने कई डॉक्टर्स से इसके मुतल्लिक बात की थी..... और सबका एक ही जवाब था..... कि कशफ इस नेमत से महरूम है..... कि वो कभी मां बन ही नही सकती..... और ये बात और भी पुख्ता हो गई..... जब उसने अपने एक दोस्त की मदद से बाहर के बड़े डॉक्टर को कशफ की रिपोर्ट्स भेजी..... और उनका जवाब भी वही था..... वहाज ने अब मान लिया था..... कि यही उनकी किस्मत का लिखा है.... हालांकि कशफ से वहाज ने ये बात खुलकर कभी नही कही थी..... क्योंकि वो जानता था..... कि इस सच को जानकर..... कशफ की आखिरी उम्मीद के टूटने के साथ ही..... वो खुद भी टूट कर बिखर जाएगी..... जिसे समेटना फिर वहाज के बस में भी नही होगा..... वो बताना तो अम्मा जी को भी नही चाहता था..... लेकिन उसके दोस्त ने अनजाने में अम्मा जी के सामने ये ज़िक्र बयां कर दिया..... तो मजबूरन उसे उन्हें सब सच बताना पड़ा.....।

    अम्मा जी के दिल को बहुत ठेस पहुंची थी उस दिन..... और ठेस पहुंचनी लाज़मी भी थी..... आखिर वहाज उनके घर का आख़िरी चिराग जो था..... अब आने वाले वक्त में कौन उसके नाम को चलायेगा..... अम्मा जी की रुलाई के साथ..... वहाज भी खासा इमोशनल हो बैठा था..... वो तो अच्छा था..... कि उस दिन कशफ घर पर नहीं थी..... वरना उससे सच छुपाना वहाज के लिए बेहद मुश्किल हो जाता.... और अम्मा जी के शांत होने के बाद..... वहाज ने उनसे भी वादा ले लिया..... कि वो कशफ से इसका ज़िक्र कभी ना करें..... कि वो इस गम को सह नही पाएगी..... और अम्मा जी ने अब तक अपना वादा निभाया भी..... बस उर्वा के संग उन्होंने अपनी तकलीफ बांट ली थी!

              शाम को वहाज ऑफिस से लौटा..... और अम्मा जी से नीचे मिलकर..... अपने कमरे में आया..... तो कशफ अलमारी में कपड़े लगा रही थी..... वहाज की आहट सुनकर..... वो उसकी जानिब(तरफ) मुड़ी..... और फीका सा मुस्कुरा दी..... और उसकी फीकी मुस्कुराहट..... एक तीखे तीर की मानिंद(तरह) वहाज के दिल में चुभ गई..... और फौरन ही उसने अपनी नज़रे कशफ की ओर से फेर ली!!!

    कशफ(वहाज की जानिब अपना रुख करते हुए): आप फ्रेश हो जाएं..... हम खाना लगाते हैं!!

    वहाज: हम्मम!

    इतना कहकर वहाज स्टैंड से टॉवेल लेकर..... बाथरूम की जानिब बढ़ गया..... कशफ भी अलमारी बंद करके नीचे की ओर चली गई..... कशफ ने टेबल पर खाना लगाया..... तब तक वहाज भी वहां आ पहुंचा..... कशफ अम्मा जी को भी सहारा देकर..... वहां ले आई..... जहां हमेशा गुफ्तगू और हंसी से खाने की टेबल घिरी रहती थी..... अब वहां गहरी खामोशी पसरी हुई थी..... खाना खाने के बाद कशफ बर्तन समेट कर किचन में गई..... तो।अम्मा जी ने अपनी चुप्पी तोड़ी!!

    अम्मा जी(वहाज की जानिब देखकर): वहाज आप कशफ से बात कीजिए..... कितनी मायूस और बेनूर हो गई हैं वो!

    वहाज(खोए से अंदाज में): जी अम्मा..... हम करेंगे बात उनसे!

    अम्मा जी(वहाज को खोया देख कर): क्या हुआ वहाज सब ठीक है ना??

    वहाज(अम्मा जी की ओर अपना रुख करते हुए): अम्मा हमने कुछ सोचा है.....!

    अम्मा जी: क्या बेटे??

    वहाज(बिना किसी लाग लपेट के): हम चाहते हैं..... कि हम बच्चा गोद ले लें!!

    अम्मा जी(थोड़ी परेशानी भरे जज़्बे से): लेकिन वहाज लोग क्या कहेंगे..... और... सब उल जलूल बातें बनाएंगे बेटे!

    वहाज(थोड़ी खीझ से): अम्मा..... लोग क्या कहेंगे..... क्या सोचेंगे..... ये उनका मसला है..... हमारा नही..... जब वो हमारी हर तकलीफ से..... हमारी हर परेशानी से बेताल्लुक हैं..... तो हम भी उनकी सोच..... उनकी बातों की फिक्र से पूरी तरह से बेनियाज़ हैं..... (एक लम्हा ठहर कर)..... बच्चे को गोद लेने से..... बच्चे और हमारी..... दोनो की जिंदगी संवर जाएगी..... बच्चे को बड़ो का साया नसीब हो जाएगा..... और हमें औलाद की नेमत!!

    अम्मा जी(ठंडी आह लेते हुए): देख लीजिए बेटा..... जैसे आपको मुनासिब(सही) लगे!

    कुछ देर बाद वहाज कमरे में आया..... तो कुछ पल की देरी के साथ ही..... कशफ भी दूध का ग्लास लिए कमरे में आई!!!

    कशफ(दूध का ग्लास टेबल पर रखते हुए वहाज से): दूध पी लीजिए!!

    वहाज(कशफ की कलाई थाम कर अपने सामने बैठाते हुए): आप जानती हैं ना कशफ..... कि आपके चेहरे की ये उदासी..... हमें बैचेन और बदसकूनी के एहसास से भर देती है.....(कशफ के गाल को छू कर)..... हमारा चैन..... हमारा सुकून..... हमारी खुशगवारी..... सब की दारोमदार(निर्भरता) आपकी मुस्कुराहट है..... और हम से आपकी ये मायूसी सच मे बर्दाश्त नही होती!!

    कशफ(अपने गाल पर रखी वहाज की हथेली छू कर): जानते हैं हम..... (एक लम्हा ठहर कर)..... वहाज हम आपसे कुछ मांग सकते हैं??

    वहाज(मोहब्बत से लबरेज़ लहज़े से): आप पर तो हम अपनी जान भी वार दें..... आप मांग कर देखिए तो सही!

    कशफ(वहाज की मोहब्बत से जज़्बाती होकर): ये तो हमारी जिंदगी की नेकियों का सिला है..... जो आप हमारे हिस्से आए..... (एक लम्हा ठहर कर)..... लेकिन आप हमसे वादा कीजिए..... कि आप हमारी ख्वाहिश ज़रूर पुरी करेंगे..... वो भी बिना किसी खफगी के!!

    वहाज(अपनी पेशानी(माथे) में बल डालते हुए): बात क्या है कशफ..... पहले तो आप ने हमसे कुछ भी कहने के लिए..... इतना कभी नही सोचा ..... तो फिर आज क्या हुआ??

    कशफ(जज़्बाती होकर नम आंखों से): हम जानते हैं वहाज..... जिस ख्वाहिश और खुशी का इंतजार हम इतनी शिद्दत से..... एक मुद्दत से कर रहे थे.......असल में हम तो उस ख्वाहिश से हमेशा बेनियाज़ ही रहेंगे..... क्योंकि वो खुशी तो असल में रब ने हमारी जिंदगी में लिखी ही नही!!!

    वहाज ने जब कशफ के मुंह से हकीकत सुनी..... तो वो कुछ लम्हों के लिए जैसे सुन्न रह गया..... क्योंकि जिस हकीकत के बयां होने के बाद की तकलीफ से वो उसे बचाना चाहता था..... वो तो ना जाने कब से उस बात से वाकिफ थी!!!

    वहाज(कशफ की बात से तकलीफ में मुब्तिला होकर): आपको कैसे??

    कशफ(काजल से सनी नम आंखों से): हमने बहुत दिनो पहले ही..... अम्मा जी को उर्वा से कॉल पर ये बात कहते हुए सुन लिया था..... बस हम तो आपकी मोहब्बत की इंतहा देख रहे थे..... कि आप हमें तकलीफ से बचाने के लिए..... किस कदर खुद अकेले तकलीफ में मुब्तिला हैं!

    वहाज ने कशफ की बात सुनकर..... उसे अपने आगोश में लेते हुए..... कसकर अपने सीने से लगा लिया..... वो इस लम्हा उसे अपनी मोहब्बत के एहसासात से रूबरू करवाने की ख्वाहिश रखते हुए..... उसकी सारी तकलीफ को खुद में समेट लेना चाहता था..... कि एकाएक कशफ की आगे की बात सुनकर..... उसकी बाजुओं की कसावट कशफ पर अचानक ही ढीली पड़ गई!!!

    कशफ(वहाज के सीने से लगे हुए ही): वहाज आप मेरी वजह से..... इस खुशी से महरूम ना रहें..... वहाज आप..... (अपने दिल पर पत्थर रखते हुए)..... आप दूसरा निकाह कर लीजिए!!!

    वहाज(बेयकिनी से चौंक कर कशफ को खुद से अलग कर उसकी झुकी पलकों को देखकर): क्या..... क्या कहा आपने???..... फिर से दोहराएं???

    कशफ ने अपनी झुकी पलकों को झुकाएं हुए ही..... अपनी मुट्ठियों को कस कर बंद करते हुए..... उसने फिर से अपनी बात दोहराई!!

    कशफ(अपने दिल पर पत्थर रखते हुए): हम आपको इजाज़त देते हैं....आ.....आप दूसरा निकाह कर लीजिए वहाज.....!!

    वहाज(बेरुखी भरी नाराज़गी से कशफ की बाजुओं को पकड़ कर झकझोरते हुए): आज ये बात आपकी जुबां पर आई है..... आइंदा ऐसी कोई भी फिजूल बात..... हम आपके मुंह से दुबारा सुनें ना..... (कशफ के रुखसरों(गालों) पर आसुओं को बहते देख)..... यकीन मानिए..... जितना आपके लिए ये कहना मुश्किल था..... उससे कही ज्यादा खौफनाक ये हकीकत साबित होगा.....  सह पाएंगी वो तकलीफ आप??..... बांट पाएंगी हमें किसी से??

    कशफ(तड़प कर): तो क्या करें हम..... अपनी खुशियों के लिए खुदगर्ज बन जाएं??..... आपकी..... अम्मा की सबकी ख्वाहिशों और खुशियों का गला घोंट दें??..... आपकी मोहब्बतों और प्यार का सिला हम अपनी खुदगर्जी से दें..... (नम आंखों से अपनी गर्दन हिलाते हुए)..... इतने बेहिस(इमोशनलेस) नही हैं हम!

    वहाज(कशफ के चेहरे को अपनी हथेलियों मे भरते हुए): कशफ हम मानते हैं..... कि औलाद की नेमत दुनिया की बड़ी नेमतों में शुमार(शामिल) है..... लेकिन कशफ औलाद ही जिंदगी जीने की अकेली मुसलसल वजह नही होती..... दुनिया में ना जाने कितने बेऔलाद जोड़े हैं..... तो क्या उनकी ज़िंदगी वो नही जी रहे??

    कशफ(मायूसी से लबरेज़(भरपूर) लहज़े से): तो ऐसी जिंदगी का क्या फायदा वहाज..... जहां जिंदगी सिर्फ गुजारी जाए..... जी ना जाए!!

    वहाज(कशफ की पेशानी से अपनी पेशानी टिकाते हुए): तो हम अपनी जिंदगानी जिएंगे ना..... हम औलाद की खुशी भी जिएंगे..... हम अपनी औलाद गोद लेंगे..... उसे अपनी औलाद से बढ़कर..... मोहब्बत और तवज्जो(इंपोर्टेंस) देंगे!!!

    कशफ(उसी मायूसी के साथ): हम उसे कितनी भी मोहब्बत और तवज्जो दे लें वहाज..... लेकिन ये दुनिया बेहद बेहीस है..... और जब वो कल को बड़ा होगा..... तो लोग उसे यही कहेंगे..... कि असल में तो वो एक यतीम था..... उसकी खुद की कुछ पहचान नही..... ना जाने किसका खून है वो..... तब जो हमारी वो औलाद..... लोगों के..... दुनिया के ज़हर के मानिंद लफ्ज़ों के घूंट को पिएगी..... तब आप उसकी वो तकलीफ सह पाएंगे??

    वहाज ने कशफ की बात सुन कर..... अपनी नज़रे फेर ली..... क्योंकि बात कड़वी ज़रूर थी..... पर हकीकत थी..... ये दुनिया तो किसी के साफ दामन पर छींटे उड़ाने से बाज़ नही आती..... तो फिर किसी ऐसे किरदार पर उंगली उठाने से कैसे पीछे हट सकती है..... जिसको जन्म के साथ ही यतीम होने की पहचान मिली हो!!!

    कशफ(वहाज का रुख अपनी ओर करते हुए): बोलिए वहाज..... सह सकते हैं आप??

    वहाज(अपना रुख मोड़ कर अपनी पुश्त(पीठ) कशफ की जानिब करते हुए): हम नही जानते ये सब..... लेकिन इतना ज़रूर जानते हैं..... कि इस घर के चिराग की ख्वाहिश के लिए..... आप अपनी और हमारी जिंदगी में..... जिस आग को लगाने की ख्वाहिश ज़ाहिर कर रही हैं..... उसे हम हरगिज़ मुकम्मल(पूरा) नही कर सकते.....!!

    कशफ(आगे बढ़ते हुए): वहाज आप.....

    वहाज(अपनी हथेली के इशारे से कशफ को रोकते हुए): आप शायद इतनी स्ट्रॉन्ग होंगी..... कि आप हमारी मोहब्बत में किसी को हकदार बना कर..... हमारी मोहब्बत बांट सकें..... लेकिन हम हरगिज़ इतने जां-बाज़ नही हैं..... कि आपसे किए अपनी मोहब्बत की वफा के जनाज़े पर..... अपनी आने वाली जिंदगी की खुशियों की सेज सजा सकें..... (एक पल ठहर कर पूरे जज्बे से)..... हमें ताउम्र औलाद की नेमत से महरूम रहना मंजूर है..... लेकिन अपनी वफा का गला घोंट कर..... ये खुशी हासिल करना..... हमें हरगिज गंवारा नही!!!

    इतना कहकर वहाज कमरे से बाहर चला गया..... यूहीं चंद गुज़र गए..... ना वहाज की नाराज़गी कम हुई..... और ना कशफ की ज़िद..... वो उसे समझाते थक जाता..... तो वो अपनी बात पर उसे वजाहते(एक्सप्लेनेशन) देते नही थकती..... और फिर आखिर में वहाज की नाराज़गी ने कड़ा रुख किया..... और उसने कशफ से बात करनी ही बंद कर दी..... पांच साल के अरसे में ये पहली बार था..... जब दोनो में किसी तरह की खफगी हुई थी..... या दोनो किसी बात पर एक एक दूसरे की खिलाफत कर रहे थे..... और उसकी वजह शायद इतनी सी थी..... कि दोनो ही आने वाले वक्त के लिए..... एक दूसरे को तकलीफ में मुब्तिला(दुख से घिरा) नही देखना चाहते थे..... दोनो की एक दूसरे की खुशियों की खातिर बहस.... इतनी बढ़ गई..... कि वो अम्मा जी से लेकर..... उर्वा..... और कशफ के मायके तक पहुंच गई.....।

    कशफ के मायके वालों..... अम्मा जी के साथ ही..... उर्वा और वहाज के ममेरे भाई वाहिद..... जो वहाज को सगे भाई से बढ़कर..... और कशफ को सगी भाभी से बढ़कर दर्जा देता था..... सब ने मिलकर कशफ को बहुत समझाने की कोशिश की..... कि वो क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद करने पर तुली है..... लेकिन अपने लिए सबकी इस कदर मोहब्बत देखकर..... कशफ का दिल किसी मुजरिम की मानिंद और भारी हो जाता..... कि कहीं ना कहीं वो उनकी ना-खुशी की इकलौती जिम्मेदार है..... दिन गुज़रने के साथ आलम ऐसा हुआ..... कि कशफ ने सोच -सोच कर खुद को इस हलकान(परेशान) कर लिया..... कि उसकी सेहत गिरने लगी..... और हर बढ़ते दिन के साथ..... उसकी सेहत गिरने इज़ाफा(बढ़ोतरी) ही होता जा रहा था..... उसका खूबसूरत चेहरा और बदन..... अब हड्डियां का ढांचा लगने लगा था..... उसकी गिरती हालत देख..... अम्मा जी के साथ ही बाकी लोगों का दिल भी बैठा जा रहा था....।

    और वहाज..... उसकी तो सांसें ही जैसे रुकने लगी थी..... फिर एक दिन अचानक वहाज ने आखिर में..... कशफ के आगे घुटने टेक दिए..... और उसने दूसरे निकाह की हामी भर दी..... कशफ को जैसे वहाज और इस घर की खुशियों की ना-उम्मीदी की एक उम्मीद की किरण नज़र आई..... वहाज के हामी भरने के साथ ही..... उसने अम्मा जी के साथ..... वहाज के लिए मुनासिब रिश्ता खोजने की शुरुआत कर दी..... उर्वा और उसके मायके वाले कशफ के फैसले से खासा नाराज़ थे..... तो सब ने उससे बात करना ही बंद कर दिया था..... कशफ ने उन्हें टाईम देने का सोचकर..... उन्हें कुछ नही कहा..... कई दिनों की तलाश के बाद एक रिश्ता आया..... जो कशफ को वहाज के लिहाज़ से बिल्कुल मुनासिब लगा.....।

    लड़की वाले बेहद गरीब..... और सादगीतरीन पसंद लोग थे..... लड़की भी अच्छी थी..... मतलब वहाज के जोड की थी..... तो कशफ ने अम्मा जी के साथ जाकर..... रिश्ते को मंजूरी दे दी..... और लड़की वालों को तो वहाज पहले से ही पसंद था..... और उनके सामने सारी बातें खुली भी थी..... जो कशफ की ख्वाहिश थी..... आज उस मंजिल की पहली सीढ़ी उसे मिल भी गई थी..... लेकिन ना जाने क्यों मगर आज वहाज के नाम के साथ..... किसी और का नाम जुड़ने की हकीकत भरे ख्याल ने..... उसका दिल बेहद बैचेन कर दिया था..... उसने खुद से ही सवाल किया..... कि क्या वो हकीकत में सह पायेगी ये..... किसी के साथ अपने वहाज की मोहब्बत वाकई बांट पाएगी???..... ये कमरा जहां उसने वहाज के साथ सैकड़ों यादें बसाई थीं..... उन यादों को छोड़कर..... इस कमरे को किसी और को सौंप कर..... वो इस घर में सुकून से रह भी पाएगी??..... हज़ार सवाल थे..... जिनका कशफ के पास सिर्फ एक ही जवाब था..... उसके लिए उसकी खुशियों से ज्यादा..... उसके वहाज की खुशियां मायने रखती हैं....।

    दिन गुजरने के साथ ही..... वहाज और हिना के निकाह तय कर दिया गया..... जो की बहुत सादगी से रखा गया था..... उर्वा और कशफ के मायके वालों ने तो निकाह में आने से साफ इंकार कर दिया था..... और उर्वा ने तो यहां तक कह दिया था..... कि अगर ये निकाह हुआ..... कशफ के हक में किसी ने दावेदारी की..... तो वो इस घर से सारे ताल्लुक ही तोड़ देगी..... सब की सुनकर भी कशफ ने किसी की नहीं सुनी..... आखिर में वो आखरी रात भी आई..... जब उसका वहाज आखिरी बार सिर्फ उसका था..... कल से उसके वहाज और उसकी मोहब्बत पर..... हिना भी बराबर की शरीक होने वाली थी..... कशफ ने कल के लिए सारी तैयारियां अपने हाथों से की थी..... लेकिन किस दिल से की थी..... कितने खंजर दिल पर महसूस किए थे..... ये सिर्फ वो और उसका रब ही जानते थे.....।

    वो सारे काम से फारिग होकर..... इस कमरे में आखरी रात गुज़ारने आई..... वहाज उसकी ओर से करवट लिए सो रहा था..... उसे देखते ही उसकी आंखे छलक आई..... उसने ही तो वहाज से इस सब की ज़िद की थी..... अब जब वहाज ने उसकी ज़िद पूरी करने की हामी भर ही दी थी..... और आखिर में वो ख्वाहिश पूरी होने में चंद घंटे ही बाकी थे..... तो ना जाने उसकी रूह इस तरह से क्यों तड़प रही थी..... कशफ अपने उफनते जज़्बातों और तड़पते दिल के साथ..... बाथरूम की जानिब बढ़ गई..... उसने शॉवर ऑन किया..... और घुटनों के बल उसके नीचे बैठ गई..... और पानी की बूंदों के साथ ही..... उसके कबसे थमे आसुओं का सैलाब भी उमड़ कर बाहर निकल पड़ा...।

    ना जाने कितने वक्त तक वो यूहीं सुबकती रही..... और आखिर में जब उसके आसूं थमे..... तो वो कपड़े बदल कर..... गीले बालों से बाथरूम से बाहर आई..... लेकिन बेड पर बैठे वहाज को देखकर..... वो ठिठक गई..... उसकी सुर्ख..... सूजी आंखें देखने भर से ही..... वहाज उसके दिल के आलम से वाकिफ हो चुका था..... वहाज बिस्तर से उठा..... और कशफ की जानिब बढ़ते हुए..... उसने उसके हाथ से टॉवेल लेकर..... उसके गीले बालों को पोंछा..... वो उससे अक्सर ही ऐसे लाड़ लड़ाता था..... और उससे अपने इन नखरों को उठवाने की..... आज तक वो इकलौती हकदार थी..... लेकिन सिर्फ आज तक..... ये सोचकर एक बार फिर कशफ की आंखें भर आईं!!

    वहाज(कशफ की भरी आंखें देखकर): अभी तो आपने हमें..... पूरी तरह किसी और को सौंपा भी नही है..... अभी से इतनी बैचेनी??..... (एक पल को ठहर कर)..... अभी भी वक्त है..... आप हमसे एक बार कहिए तो सही..... आपकी कसम..... हम सब ठीक कर देंगे!!

    कशफ(अपने उफनते जज़्बातों को रोकते हुए): रात बहुत हो गई है..... सो जाइए..... सुबह जल्दी उठना है!!!

    इतना कहकर कशफ बिस्तर की जानिब बढ़ गई..... और अपनी पीठ वहाज की ओर करते हुए..... उसने अपने जज़्बातों को ज़ब्त किए..... अपनी आंखें मूंद ली..... आखिर में दूसरा दिन निकला..... और वो लम्हा भी आ गया..... जब वहाज दूल्हा बना..... लेकिन इस बार उसकी दुल्हन कशफ नही..... हिना थी..... और इसी ख्याल ने अब कशफ की सारी हिम्मत छीन ली थी..... उसने अपनी तकलीफ को मजीद और ना बढ़ाने के गर्ज से..... बहाना करके घर पर ही रुकना चाहा..... लेकिन वहाज ने भी खुले लफ्ज़ में कह दिया था..... कि उनकी मोहब्बत की वफा का जनाजा निकालने की..... सारी तैयारियां जब उसने की है..... तो उसी वफा को कब्र में उतारने के एक आखरी अंजाम तक भी..... वो ही उसे पहुचायेगी.....।

    मजबूरन कशफ को वहाज की बात माननी पड़ी..... सब लोग हिना के पड़ोस के घर पहुंचे..... क्योंकि हिना का घर इतना बड़ा नही था..... कि जहां दो चार लोग भी बैठ सकें.... कशफ की बैचेनी बढ़ने के साथ ही..... उसे अपनी सांसें घुटती सी महसूस हो रही थीं..... और जैसे ही मौलवी साहब आए..... और उन्होंने सहरे के पीछे छुपे वहाज से निकाह की मंजूरी मांगी..... तो कशफ की धड़कन ही जैसे रुक गई..... और "कुबूल है" लफ्ज़ जैसे उसके सीने में तीर की मानिंद घड़ गया..... और ये सुनते ही..... कशफ अपने आसुओं को और ना थाम सकी..... और वो बयां ना होने वाले दर्द के साथ..... अपने कदम पीछे लेते हुए..... लगभग दौड़ते हुए...उस घर से बाहर भाग निकली..... और कुछ दूर दौड़ने के बाद..... आखिर में वो घुटनों के बल सड़क पर धड़ाम से बैठ गई..... और एक दिल चीरने वाली दर्द भरी चीख से वो चिल्ला उठी!!!

    कशफ(रोते हुए दर्द से चिल्लाते हुए आसमान की ओर देखकर): या अल्लाह!..... हमारे वहाज.....(अपने दिल पर हाथ रखते हुए)..... हमसे ये दर्द बर्दाश्त नही हो रहा..... नही हो रहा या अल्लाह..... कैसे बाटेंगे हम अपने वहाज को..... कैसे..... (एक अनकही तड़प के साथ अपनी हथेलियों को अपने मुंह पर रखते हुए)..... हम मर जाएंगे इस दर्द की चुभन से या रब..... मर जायेंगे हम!!!

    वहाज(कशफ के सामने आते हुए): और आपको लगता है..... हम आपको मरने देंगे!!!

    कशफ ने जब वहाज की आवाज सुनी..... तो उसने झट से अपनी हथेलियां अपने चेहरे से हटाई..... और अपनी नज़रे वहाज की ओर की.....!!

    कशफ(खड़े होते हुए बेयकिनी से): व..... वहाज??

    वहाज(कशफ को अपने सीने से लगाते हुए): आप तो हमारी जान हैं..... तो ऐसे कैसे आप मर जाएंगी..... और हम आपको मरने देंगे!!

    कशफ(वहाज के सीने से लगकर बच्चों की तरह सुबकते हुए): वहाज..... वहाज..... हम..... हमारे दिल में बेहद अजीब सा दर्द हो रहा है..... जो हम..... हमसे बिल्कुल बर्दाश्त नही हो रहा..... नही हो रहा बर्दाश्त!

    वहाज(कशफ के बालों को चूमते हुए): शशशशशहहहह!..... सब ठीक हो जाएगा..... चलिए आप हमारे साथ..... सब हमारा इंतजार कर रहे हैं!!!

    कशफ(अचानक ही जैसे होश के नाखून लेते हुए): हम..... हम नही देख पाएंगे वहाज..... प्लीज हमें घर जाने दीजिए!

    वहाज(कशफ का हाथ थाम कर): बस एक आखिरी पड़ाव और!!!

    इतना कहकर वहाज कशफ का हाथ थामे..... वापस उस घर में ले आया..... जहां उसका और हीना का निकाह हो रहा था..... लेकिन यहां पहुंचते ही..... जैसे कशफ के लिए पल भर में सारा मंजर ही बदल गया था..... दूल्हे की जगह वाहिद था..... और दुल्हन की जगह हिना..... कशफ ने हैरानी से वहाज और बाकी लोगों की तरफ देखा..... उर्वा भी यहां मौजूद थी..... लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था..... कि अचानक वाहिद कैसे वहाज की जगह आ गया..... उसकी उलझन को दूर करते हुए..... वहाज ने उसे बताया..... कि उसने तो कभी हिना से निकाह ही बात रखी ही नही थी..... हमेशा से उसका रिश्ता वाहिद से ही तय हुआ था..... दोनो एक दुसरे को पसंद करते थे..... वो तो कशफ की ज़िद की वजह से..... वहाज ने हीना और वाहिद के साथ मिलकर ये प्लान बनाया..... ताकि वो कशफ को इस ताउम्र महसूस होने वाली..... अनकही तकलीफ और दर्द का एहसास करा सके.....।

    कि जिसे झेलना उसके बस से वाकई बाहर होगा..... और आखिर में हुआ भी वही..... कशफ को ये भी पता चला..... कि कुछ वक्त पहले..... उसे छोड़कर बाकी लोग भी सच जान चुके थे.... कशफ को इस वक्त समझ ही नही आ रहा था..... कि वो क्या कहे..... और कैसे रिएक्ट करे..... उर्वा ने उसे आज उसकी इस नादानी के लिए उसे बहुत डांटा था..... और आइंदा के लिए खबरदार भी किया था..... उर्वा के साथ ही कशफ ने वहाज से भी..... कान पकड़ कर अपनी गलती की माफी मांगी..... तो उर्वा ने उसे गले लगा लिया..... कुछ देर बाद हिना की विदाई हुई..... और वाहिद के साथ उसके घर चली गई..... उर्वा भी तौहीद यानी अपने शौहर के साथ..... अपने ससुराल लौट गई....।

    कशफ भी वहाज और अम्मा जी के साथ घर लौट आई..... सुबह इस घर से जाने से पहले जितनी बैचेनी थी उसके दिल में..... अब उतना ही सुकून था..... वो अपने कमरे में बैठी सोच रही थी..... कि वो कितनी नादान थी..... जो एक अनमोल रिश्ते के लिए..... दुनिया जहां के सबसे खूबसूरत दूसरे अनमोल रिश्ते को दांव पर लगा रही थी..... किसी ने सच ही तो कहा है..... औरत सब बांट सकती है..... लेकिन अपनी मोहब्बत..... और अपना शौहर वो हरगिज़ कभी नही बांट सकती..... कशफ अपनी इसी उधेड़ बुन में थी..... जब वहाज कमरे में आया..... उसके आते ही कशफ उसके सीने से जा लगी!!!

    कशफ(थोड़ी जज़्बातों में बहते हुए): एम सॉरी..... हमने आपका बेहद दिल दुखाया ना..... अगर आप होश से काम नही लेते..... और हमारी अहमकाना(बेवकूफाना) ज़िद को मान बैठते..... तो हमारी तो जान ही चली जाती!

    वहाज(कशफ की पेशानी को चूमते हुए): ये होना तो लाज़िमी ही था ना..... और आपकी तकलीफ और बैचेनी का अंदाजा कैसे नही होता हमें..... आखिर आपसे बेहतर आपके दिल का हाल समझते हैं हम..... और सबसे बढ़कर..... हमने आपसे मोहब्बत में..... ताउम्र वफा का वादा भी तो किया था..... तो उसे कैसे टूटने देते..... और अगर आपकी नादानी में आकर..... हम वफ़ा का वादा तोड़ भी देते..... तो हमारी ही सांसे ही रुक जाती!!!

    वहाज की बात सुनकर..... कशफ ने फौरन ही अपने लबों से..... उसके लबों को खामोश कर दिया..... और वहाज ने भी अपनी बाजुएं उस पर कस दी थीं..... दिन गुज़रने लगे..... और एक बार फिर उन लोगों की जिंदगी पहले की मानिंद खासा अच्छी हो गई थी..... हां जो कमी थी..... उसका खलना अभी भी लाज़िमी ही था..... लेकिन अब कशफ ने सिर्फ वहाज की बेशुमार मोहब्बत को ही..... अपनी खुशनुमा दुनिया मान लिया था..... कुछ अरसा और गुज़रा..... एक बार फिर उर्वा के घर पर खुशियों ने दस्तक दी..... और इस बार उसने एक चांद से बेटे को जन्म दिया.....।

    कशफ और वहाज अम्मा जी के साथ..... उर्वा और तौहीद को इस अनमोल नेमत की मुबारकबाद देने के लिए हॉस्पिटल पहुंचे..... उन्होंने उर्वा के बेटे की बलाएं लेते हुए..... उसे तोहफों और बेशुमार दुआओं से नवाज़ा..... कुछ देर बाद एक नर्स आई..... और बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट बनाने के लिए उसका नाम पूछा..... तो तौहीद ने कशफ और वहाज से अपने बेटे का नाम पूछा..... तो उन दोनो ने बड़ी हो खुशगवारी और प्यार से..... उर्वा और तौहीद के बेटे को हसन नाम दिया..... कुछ पल रुकने के बाद..... नर्स ने मां का नाम पूछा..... तो  इस बार उर्वा ने अपनी चुप्पी तोड़ी!!

    उर्वा(नर्स की ओर देखकर): मदर नेम..... कशफ वहाज अली..... और फादर का नाम..... वहाज अली!!!

    उर्वा की बात सुनकर..... वहाज और कशफ के साथ ही..... अम्मा जी भी हैरत में थी..... कुछ पल बाद नर्स गई तो वहाज जैसे अपने होश में आया!!!

    वहाज(उर्वा की जानिब अपना रुख करते हुए): उर्वा ये क्या था बेटा??

    उर्वा(वहाज की जानिब अपनी पलके उठाते हुए): क्यों आप यतीमखाने से किसी मासूम के सरपरस्त(पालन पोषण करने वाला) बनने की ख्वाहिश कर सकते हैं..... (हल्की नमी के साथ)..... तो क्या हमारी औलाद के सरपरस्त नही बन सकते आप??

    कशफ(अल्फाजों से खाली होकर): उर्वा मगर ये आपकी औलाद है..... हम कैसे इसे आपसे से अलग कर सकते हैं?

    उर्वा(कशफ की जानिब देखकर): हमारी नज़रों से देखिए भाभी जान..... (अपने पास लेटे हसन को अपनी गोद में उठाते हुए)..... हसन हमसे अलग नही..... बल्कि हमारे और करीब हो जायेंगे..... आखिर हमारे उनसे दो रिश्ते जो जुड़ जायेंगे!!

    वहाज(अपनी आंखों की नमी को रोकते हुए): उर्वा आप जज़्बाती हो रही हैं..... अपनी औलाद को कौन खुद से दूर करता है....!!!

    उर्वा(आंखों में बढ़ती नमी के साथ): आप हमारे नजरिए से तो देखिए भाईजान..... आप हमारे लिए सिर्फ हमारे भाई नही..... बल्कि हमारे वालिद भी हैं..... जिन्होंने बाबा के जाने के बाद..... हमें अपनी बहन नही..... बल्कि बेटी बना कर रखा है..... तो हमसे भी ज्यादा..... (हसन की ओर देखकर)..... आप इसे संभाल सकते हैं..... इसे बेहतरीन तरबियत(परवरिश) दे सकते हैं..... और यकीन जानिए भाई..... मै दिल से चाहती हूं..... कि इसकी तरबियत आप और भाभी मिल कर करें..... ताकि ये आपकी तरह नेक इखलाकी(अच्छे कर्म करने वाला)..... और भाभी की तरह साफ दिल का मालिक बने..... (कशफ की जानिब अपने बेटे को बढ़ाते हुए)..... लीजिए भाभी संभालिए अपनी अमानत!!

    कशफ ने उर्वा की बात सुनी..... तो अब वो खुद को और नही रोक पाई..... और उर्वा के बेटे को अपने सीने से लगाते हुए..... वो उर्वा से भी लिपट गई!!!

    वहाज(जज़्बातो के उफान के साथ उर्वा के सर पर हाथ रखकर): हमें नही पता था..... कि हमारी छोटी बहन..... इस कदर बड़ी बन जाएंगी..... कि हम खुद को उनके आगे बेहद छोटा महसूस करेंगे!!

    उर्वा(वहाज के कांधे से सर टिका कर): भाई ऐसी फिजूल बातें मत कहिए..... वरना हम सचमुच बुरी तरह रो जाएंगे..... और हसन पर हमसे पहले आपका और भाभी का हक है..... और हमेशा रहेगा!!

    वहाज(तौहीद की ओर देखकर): लेकिन उर्वा कोई भी फैसला लेने से पहले..... तौहीद भाई की मर्ज़ी और फैसला तो पूछ लीजिए!!!

    तौहीद(मुस्कुरा कर बेड के दूसरी ओर से उर्वा की जानिब बढ़ कर): हम तो सिर्फ इतना ही कहेंगे..... कि हमें अपनी उर्वा और उनके फैसले पर नाज़ है!!!

    तौहीद की बात सुन कर सब नम आंखों से मुस्कुरा दिए....!!!

    कशफ(भावुक होकर अपनी गौद में सोए हसन को देखकर): उर्वा..... आप हम वो खुशी देने का जरिया बनी हैं..... जो हमारे अपने मुकद्दर में थी ही नही..... (एहसान भरे जज्बे के साथ)..... आपके इस खूबसूरत तोहफे के बदले..... अगर हम अपनी जान भी दे देना..... तो भी कम ही है!!!

    उर्वा(कशफ की टांग खिंचाई करते हुए): हमें तो ये तोहफा आपको देना ही था..... वरना आप फिर किसी हिना को पकड़ लाती..... बिचारे हमारे भाई फिर से फंस जाते..... (अपनी बात पर नम आंखों से मुस्कुराती कशफ की हथेली थाम कर संजीदगी से)..... वफ़ा सिर्फ मोहब्बत वालों का सिला नही है..... वफ़ा तो दोस्ती का भी दूसरा नाम है..... वफा तो हर रिश्ते की रूह है..... तो हमारा भी तो फ़र्ज़ था ना..... कि हम अपनी दोस्ती..... और रिश्तों के साथ वफ़ा निभाएं..... तो हमने तो महज़ अपना फर्ज़ पूरा किया..... तो फिर कैसा एहसान!!

    कशफ ने उर्वा की बात सुनकर..... खुशी भरी भावुकता से उसे अपने गले से लगा लिया..... आज कशफ को महसूस हो रहा था..... जैसे वो दुनिया जहां की सबसे दौलतमंद और खुशनसीब इंसान है..... आखिर उसके पास..... उसे बेशुमार चाहने वाले..... और वफ़ा निभाएं वाले सच्चे और पक्के रिश्ते जो थे..... वहाज और कशफ आज बेइंतहा खुश थे..... आखिर उनकी जिंदगी की मायूसी को..... उर्वा ने खुशियों में तब्दील कर दिया था..... उनके पास लफ्ज़ ही नही थे..... अपनी खुशी और उर्वा के इस अनमोल और खूबसूरत तोहफे का..... उन्हें देने का एहसान ज़ाहिर करने के लिए..... बस उनकी लगातार बहती आंखें..... उनके दिल और जज़्बात को बयां कर रही थीं..... और अम्मा जी..... अपने बच्चो में इस कदर आपसी प्यार देखकर..... उनकी बलाएं लेते हुए..... अपनी नम आंखें पोंछते हुए.....बार-बार बस रब का ढेरों शुक्र अदा कर रही थीं!!!!

         


    **********समाप्त************








    (तो कैसी लगी इस सफ़र की ये पहली कहानी?..... अगर कहानी अच्छी लगी हो तो अपना रिस्पांस और कॉमेंट ज़रूर दीजिएगा....मुझे इंतेज़ार रहेगा!)