एक राज़ 🔥रूहानी सफ़र का By Archana Thakur "एक हनीमून... एक लिफ्ट... और एक श्रापित गांव – फिर जो हुआ, वो किसी ने सोचा न था..." जैसलमेर के वीरान रेगिस्तान में बसा कुलधरा गांव, जहां पिछले 200 सालों से कोई नहीं बसा – और अब भी, रात के... एक राज़ 🔥रूहानी सफ़र का By Archana Thakur "एक हनीमून... एक लिफ्ट... और एक श्रापित गांव – फिर जो हुआ, वो किसी ने सोचा न था..." जैसलमेर के वीरान रेगिस्तान में बसा कुलधरा गांव, जहां पिछले 200 सालों से कोई नहीं बसा – और अब भी, रात के सन्नाटे में वहां कुछ हिलता है... गूंजता है... जतिन और निधि एक रोमांटिक हनीमून पर आए थे, लेकिन एक अनजान मुसाफ़िर को लिफ्ट देना उनके जीवन की सबसे डरावनी भूल बन जाती है। निधि रहस्यमयी हालात में कुलधरा के खंडहरों में मिलती है – बेहोश और बदहवास। तब शुरू होती है एक रूहानी जंग – प्यार और श्राप के बीच, जहां हर कदम पर है रहस्य, डर और एक अदृश्य साया। क्या जतिन निधि को बचा पाएगा? क्या उनका प्यार श्राप से लड़ पाएगा? या कुलधरा की रूहें हमेशा के लिए उनका पीछा करेंगी? रहस्य, रोमांच और रूहानी प्यार से भरी ये कहानी आपको आख़िरी पन्ने तक बाँधे रखेगा....एक रूहानी सफ़र – वो रात जो सब कुछ बदल दे... 💀💔✨
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निधि ने कराहते हुए अपनी आँख खोली| उसके शरीर का पोर पोर दुःख रहा था फिर भी किसी तरह से उसने अपनी स्थिति का जायजा लिया| उसके हाथ पैर उसी के दुपट्टे से बंधे थे और मुंह पर रुमाल को तिरछा कर बांधा गया जिससे उसे साँस लेने में काफी तकलीफ हो रही थी| अपनी ऐसी हालत देख उसकी आँखों से आंसू बह निकले| क्या से क्या हो गया| कहाँ कल तक होटल के मखमली रूम में अपने पति संग अपना हनीमून मनाने आई थी वहीँ आज वह ऐसी दुखदाई स्थिति में पड़ी है| धीरे धीरे पिछला सब याद करने की कोशिश करती है कि कैसे चार दिन पहले ही वे दोनों कार से उदयपुर से जैसलमेर आए थे और सैंड ड्युन्स की नाईट में बुकिंग पूरी कर उसने जी भर कर जैसलमेर का महल घूमा| उसका मन सारी खुशियाँ पाकर झूम रहा था कि एक गलती उनसे हो गई जब रात को मार्किट से लौटते उसके पति ने दो अजनबियों को लिफ्ट दे दी| उसने एतराज़ भी किया पर जतिन कहाँ सुनने वाले थे उनसे किसी की भी तकलीफ नहीं देखी जाती| उन दोनों में से किसी एक के पैर पर चोट लगी थी ऐसा उन लोगों ने बताया और उनकी तकलीफ सुन जतिन ने उनके लिए कार रोक दी|
“बैठो - यहाँ से मुख्य सड़क दूर है – हम भी वही जा रहे है – छोड़ दूंगा |”
जतिन के कहते वे दोनों अजनबी खुश होते कार का पिछला दरवाजा खोलकर बैठ गए|
उसी पल निधि को असहजता महसूस हुई जब अजनबियों ने बहुत जल्दी उसके पति से आत्मीयता जैसी बातचीत भी शुरू कर दी|
“आपने जैसलमेर की हवेली देखी – क्या गजब बनी है – लगता है पैसे का पेड़ रहा होगा राजा के पास|” वह जबरन दांत दिखाता हँस रहा था|
“हाँ अभी हम लोग सैंड ड्युन्स से आ रहे है – काफी दूर है मुख्य सड़क से – अभी आधा घंटा और लगेगा |”
“कोई बात नही – हम आराम से है - ये रात हमे याद रहेगी |”
जतिन उस अजनबी की बात पर बस धीरे से मुस्करा दिया पर निधि को बिलकुल भी अच्छा नही लग रहा था|
चारों ओर खामोशी थी और कार सुनसान रास्तों पर चली जा रही थी| राजस्थान की ठंडी रातें और दूर दूर तक फैला रेतीला समंदर अब उसके लिए भयावह होता जा रहा था| यहाँ रास्ते लम्बे और सुनसान भरे होते है ये सोच अपनी तरफ का शीशा हल्का सा सरकाकर वह बाहर देखने लगी कि सहसा कोई हाथ उसके चेहरे पर पड़ा और उसके बाद अचानक से उसकी आँखों के आगे सब धुंधला हो गया|
***
निधि को तबसे अब जाकर होश आया| धीरे धीरे उसकी सुप्त तन्द्रा जागी और सबसे पहले उसे अपने पति जतिन की याद हो आई | उसका जो भी हाल था पर जतिन का ख्याल कर उसका मन हुलस उठता है| ये क्या हो गया? वह अपनी हालत देखती है वह उस समय किसी अँधेरी जगह बंधी हुई थी और जतिन का कहीं अता पता नही था| वह मन ही मन ये सोच बिलख उठी कि उसके घर वाले, जतिन के परिवार वाले क्या हमे खोज भी पा रहे होंगे? आखिर कल ही तो फोन लेकर बोली थी प्लीज हमे डिस्टर्ब न करे और कहकर देवर वैभव का फोन काट दिया और फिर दूसरे दिन वाकई उनके घर से कोई फ़ोन नहीं आया आखिर यही तो वह चाहती थी अपने पति के साथ नितांत एकांत लेकिन ये क्या से क्या हो गया उसके साथ !! अपने घर में भी तो वह अपनी छोटी बहन नीतू से कह यही चुकी थी, बात मजाक में कही गई पर माँ सब समझती थी इसलिए उसके घर से भी उसके लिए कोई फोन नहीं आया| आज अपने इस व्यवहार पर उसे बहुत गुस्सा आ रहा था| अब पता नहीं कितने दिन बाद कोई उनकी खबर लेगा| सोचते सोचते उसकी आँखों के आंसू रुक ही नहीं रहे थे| रोते रोते उसकी हिल्की बंध आई| उसे कुछ नहीं सूझ रहा था कि वह इस वक़्त कहाँ है? उस छोटे से अँधेरे कमरे में उसे कुछ समझ नही आ रहा था| रोते रोते बार बार जतिन पर उसका ख्याल चला जाता| आखिर देर तक मन भी जैसे रोते रोते खाली हो गया|
अचानक उसे लगा कुछ आवाज़ सी आ रही है उसने अपने कानो को आवाज की ओर केन्द्रित किया ये हवा की आवाज थी यहाँ तो अक्सर ही हवा ऐसे ही सायं सायं कर चलती है| सहसा उसका दिमाग चौंका कि जरुर यहाँ कोई खिड़की या दरवाजा होगा| ये सोचने भर से उसके मन में जैसे कुछ पुनर्जीवित हो उठा| मन ने करो या मरो की ठान ली, आखिर ऐसे बांधने वाले उसे ऐसे ही छोड़ने वाले तो नहीं तो आखिर क्यों न कुछकर ही मरा जाए| ये सोचने भर से ही उसका शरीर जैसे अंगारों से भर गया और वह अपने बंधन पर जोर लगाने लगी| उसे उसी के दुप्पटे से बांधा गया था|
उसने भरसक बहुत खींचातानी की, कभी पैर की ओर करती कभी हाथों का खिचाव बढ़ाती कि किसी तरह से बंधन कमजोर हो जाए| बहुत देर की कोशिश से उसका शरीर पसीने से तरबतर हो गया था| बार बार उसके अचेतन होते मन को उन अजनबियों के आ जाने का खौफ चेतनता से भर देता और उसका सारा शरीर उन बंधन में अपनी सारी ताकत झोंक देता| आखिर बंधन खुल ही गया| उसपल अपने खुले हाथ भर देख लेने से उसका डर जैसे एक पल में ही छू हो गया| चन्द ही क्षणों में वह पूरी तरह से बंधन मुक्त थी| उस एक पल उसका मन यूँ उत्साहित हो उठा मानों वह कोई जंग जीत कर आई हो| अब अँधेरे में इधर उधर टटोल कर उसे दरवाज़ा मिल गया| ये क्या दरवाज़ा एक झटके में ही खुल गया| अब वह बाहर आ कर देखती है|
उस दिन पूर्णिमा थी और चाँद पूरे शबाब में था| उस उजाले में वह उस जगह का जायजा लेती है|वह कोई खंडर था| आस पास भग्न घरो की जैसे कोई कतार सी थी| शायद जहाँ उसे बंद करके रखा गया था वो ही एक बंद दरवाजे वाला घर शेष बचा था| फिर धीरे धीरे आस पास देखती उस ठंडी रेत पर वो आगे बढ़ने लगी कि किसी तेज आवाज से उसका ध्यान दूसरी जगह गया| वह जल्दी से एक टूटी दीवार के पीछे छिप गई| घबराहट में उसकी दिल की धड़कने मानो धौकनी सी चल रही थी| वहीँ छुपी वह धीरे से आवाज़ की दिशा की ओर झांकती है और सुनने का प्रयास करती है | उसने जो देखा उसकी आंखे डर और दहशत से फैली रह गई| पैर कांपते हुए लड़खड़ा गए| सामने का दृश्य देख उसकी रगों का खून ही सूख गया|
***
निधि बुरी तरह से घबराई और डरी हुई थी, वह किसी तरह से सामने नजर उठाकर देख पाई जहाँ उसके पति की कार से वहीँ दो अजनबी नशे में झूमते एक दूसरे से टकराते आपस में कुछ कहते हुए चले आ रहे थे| जतिन कहाँ है !! क्या हुआ होगा उसके साथ !! ये सोचकर उसका कलेजा कांप उठा| हर एक पल बीतते उसके अन्दर का डर और विस्तार होने लगा| उस पल उसका जी हुआ कि मौका देख उसे वहां से निकल जाना चाहिए पर अपने पति का ख्याल आते उसने सोचा कि उसे सुनना चाहिए ताकि जतिन का कुछ पता चल सके| उसने आवाज की ओर ध्यान लगा दिया|
“अबे तू मुझे धक्का क्यों दे रहा है बे|”
“मैं नहीं तू दे रहा है धक्का - मुझसे ज्यादा पी है तूने|” दोनों शराब में चूर एकदूसरे को धक्कामुक्की करते चल रहे थे|
फिर एक गन्दी गाली दे कर कहता है – “मुझे पता है तुझे साले किस बात की जल्दी है|”
ये कहते दोनों की भद्दी हंसी उस पल वातावरण में गूंज उठती है जिससे एक हूक निधि के दिल में भी उग आती है उसपल उसके पैर थरथरा जाते है|
“पर यार जैसलमेर टूर अपना बढ़िया हो गया लेकिन ये जगह कौन सी लाया है तू ?” एक शराबी अपनी लड़खड़ाती नजर इधर उधर घुमाते हुए पूछता है|
“पता नहीं अपन ने उधर बोर्ड पर कुछ लिखा देखा था|” दूसरा अपने पीछे की ओर इशारा करता हुआ कहता है|
कहते कहते सोचने की मुद्रा में अपना सर खुजाते हुए कहता है – “कल.. नहीं दारू पता नहीं साला कोई गाँव है कुल...|” फिर झींकते हुए - “चल साले क्या रखा है नाम में – चाहे जो गाँव हो या जंगल हम तो मनाएँगे मंगल |” कहता हुआ एकबार फिर कसकर हँस पड़ता है|
निधि ने जो सुना उससे उसके पैरों तले जैसे जमी ही खिसक गई| यहाँ आने से पहले उसने जैसलमेर टूर की अच्छे से जानकारी ली थी उसमें एक जानकारी जिसपर वह जतिन से और चिपकती हुई बोली थी|
“जतिन पता है वहां एक भुतहा गाँव भी है नाम है कुलधरा गाँव, श्रापित है हम वहां नहीं जाएँगे – पक्का न !!”
“क्यों डर लगता है ?” जतिन भी उसे अपनी बाहों में लेता हुआ पूछता है|
इसपर निधि बड़ी मासूमियत से हाँ में सर हिला देती है|
“और अगर मैं तुम्हे वहां अकेला छोड़ दूँ तो !!” ये कहकर देर तक जतिन की हँसी की खनक उसने अपने आस पास महसूस की थी| पर इस वक़्त ये सोचकर कि वह यहाँ उसी कुलधरा के गाँव में फंसी है सोचते ही जैसे उसकी चेतना गुम होने लगी| उसके सामने एक तरफ कुआँ तो एक तरफ खाई थी|
निधि ने थूक की गटकन से अपना सूखा गला तर किया| इससे पहले कि वो कुछ सोच पाती कि उन अजनबियों की तेज़ आवाज़ उस वातावरण को चीर गई|
“वाह लड़की अभी तक बंधी है.... आजा|” एक शराबी दूसरे को इशारा करता हुआ कहता है – “जा तू उसे खोल, देख हमे देख कैसे छटपटा रही है|”
निधि दीवार की ओट से सुनती अंतरस काँप गई| वह तो यहाँ है तो अंदर कौन बंधा है उसकी जगह !! ये सोचते जैसे डर की सिरहन उसके पूरे देह को हिला गई| वह उलटी दिशा की ओर भागी| जितना दम लगाकर वह भाग सकती थी वह भागने लगी पर थकान और उस पल रेत की वजह से उसके कदम बार बार धीमे हो जाते| भागते भागते उसे उनकी चीख सुनाई पड़ी जिससे डर और दहशत से उसकी चाल और धीमी हो गई और चेतन शुन्य हो कर वो जमीन पर गिर पड़ी|
वह असहाय सी रेतीली जमीन पर पड़ी थी कि अचानक उसने महसूस किया वहां कुछ ही देर में ढेर सारी हलचल बढ़ गई है, उसने पलट कर देखा तो लोगों का जत्था उसकी ओर बढ़ा आ रहा था| उसने रेत में सने हाथो को कपड़े में पोछ कर अपनी आँखों को मलते हुए उस ओर देखा तो उसकी सारी देह जैसे ठंडी हो गई| उस पल न उसका शरीर वहां से हिला न चेतना|
वो जत्था लगातार उसकी ओर बढ़ा आ रहा था और वह चाह कर भी वहां से हिल नहीं पा रही थी| उसने गौर से देखा वो सब गाँव वाले लग रहे थे, आगे आगे आदमी, बच्चे, औरते और सब के सब सामानों को अपने कन्धों पर उठाए थे| निधि चाह कर भी वहां से टस से मस नहीं हो पा रही थी| उसके हलक में जैसे चीख दब के रह गई थी| निधि अपनी तेज़ होती सांसो से बस उस ओर देखे जा रही थी| जत्था अब उसके नजदीक आ गया| उस पल निधि कस कर चीखना चाहती थी पर आवाज़ जैसे उसके हलक में ही सूख गई| उस पल जैसे उसकी साँस गले में अटक सी गई, जत्था उसके शरीर को पार करता निकल गया| निधि सिर्फ हवा की गर्मी को महसूस करती रह गई जैसे कोमा में पड़ी आंखे खोले अपने जीवन को वेंटिलेटर में चलता देख रही हो|
एक पल में ही जत्था उसके पार जाते उस रेतीली जमी में गायब सा हो गया| इसके अगले ही पल वेंटिलेटर से जैसे बाहर आ गई निधि और उठ कर खड़ी हो गई और बेतहाशा भागने लगी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर कहाँ किस ओर वह जाए बस बेतहाशा भागे जा रही थी| कि उसे लगा जैसे वह किसी चीज़ से टकराई है| एक आह के साथ उसने देखा उसके सामने पल भर में वहां कोई गाँव सा दिखाई दिया| जहाँ सभी लोग थे आदमी, औरते, बच्चे| ये देख उस पल उसके अन्दर के डर को कुछ राहत हुई| उसने देखा अपने घर के बाहर एक औरत अपने दुधमुहे बच्चे को स्तनपान करा रही है| उसने उसके पास जाकर एक साँस में अपनी गाथा कहने लगी –
“वो मैं न – यहाँ फंस गई हूँ – प्लीज़ मेरी हेल्प करिए...|”
कहते हुए वह लगातार उस औरत से अपनी कह रही थी पर ये क्या उस औरत ने एक बार भी उसकी तरफ नहीं देखा| अगले ही पल निधि की सांसे थमी की थमी रह गई| तभी उस औरत ने उसकी ओर देखा| निधि ने देखा उसका पूरा सपाट चेहरा और आँखों की जगह सफ़ेद गोली जैसे टकी थी| काटो तो खून नहीं वह चिल्ला पड़ी| उसके सामने पूरा निर्जीव लोगों का बसा बसाया गाँव था| सब तरह के लोग अपने काम में तल्लीन उसे दिख रहे थे लेकिन किसी का भी ध्यान उसकी ओर नहीं था| फिर उसे याद नहीं कि कितनी तेज गति से वह वहां से भागी कि उसने पीछे पलट कर भी नहीं देखा| उन बिन चेहरे वाले लोगों के बीच से गुज़रते वह लगातार चीखती रही और भागती रही| उसे इसके अवाला कुछ नहीं सूझ रहा था| उसकी चेतना जैसे शून्य हो चली थी| बस बेतहाशा बस भागी जा रही थी| रेत पर पैर कभी किसी कंकाल से टकरा जाता कभी वह किसी टूटी दीवार से टकरा जाती| उसके शरीर में जगह जगह चोटों के निशान पड़ गए थे पर डर और दहशत से उसकी चेतना गुम होती जा रही थी| फिर सहसा एक तेज धक्के से वह किसी गेंद सी रेत में लुढ़क गई|
फिर दूर कोई रौशनी उसकी ओर बढ़ती हुई आती है निधि तो बेहोश पड़ी थी पर रौशनी उसकी ओर आती रही फिर एक कराह के साथ उसने अंतिम बार आँख खोली सामने कुछ धुंधले चेहरे दिखे और वह फिर बेहोश हो गई|
हॉस्पिटल के एक रूम के बाहर कुछ लोग गहन मुद्रा में खड़े थे| कोई अपना सर पकड़े था कोई माथा सबके चेहरे पर जैसे बारह बज रहे थे| लेकिन डॉक्टर को अपने पास आते देख सभी उनकी तरफ एक साथ लपके और जैसे एक साँस में ही सबके स्वर एक हो गए|
“डॉक्टर साहब कैसी है निधि?”
डॉक्टर उसके चेहरे को उस पल गौर से देखता है फिर धीरे से कहना शुरू करता है
– “मुझे पता है पूरे दस दिनों से आप सभी को मैं एक ही दिलासा दे रहा हूँ पर अभी भी मैं बस यही कहूँगा कि आप जिस हालत में अपनी पत्नी को यहाँ लाए थे उससे उसके शरीर से कहीं ज्यादा उसके दिमाग में किसी हादसे का असर है, जीवित है सांसे चल रही है, आँख भी खोलती है पर बोलती क्यों नहीं समझ नहीं आ रहा| बस आप दुआ कीजिए कि आप सबका प्रेम और दुआ उनको सही कर सके|”
एक साँस में अपनी बात कहते डॉक्टर चले गए और जतिन वहीँ सर पकड़े अपने पास खड़े निधि के भाई धीरज से कह उठा – “काश उस दिन निधि की बात मान लेता और उन अजनबियों को लिफ्ट नहीं देता|”
जतिन अपनी बिखरी हालत में कहता रहा और पास खड़ा धीरज हताश सुनता रहा | वे सब पिछले दस दिन से हॉस्पिटल में निधि के होश में आने का इंतजार कर रहे थे| जिस हनीमून के लिए जतिन और निधि आए थे वह अनजाने में ही उनके लिए श्राप बन चुका था| निधि के बेहोशी में मिलते जतिन आनन् फानन अपने और उसके परिवार में उस घटना का जिक्र करता बताता है जिससे वे सभी तुरंत उदयपुर से जैसलमेर चले आते है|
“निधि को कहीं भी कोई ज्यादा चोट नहीं लगी पर इस बेहोशी से जाने कब वह उठेगी और मैं उसे अकेला छोड़ने की कब उससे माफ़ी मागूंगा |” जतिन हताशा से अपने बालो को खींचते हुए कहता है|
“चिंता मत करिए जीजा जी – वह जल्दी होश में आ जाएगी और जो होना था उसपर आपका कोई बस नही था बस वक़्त पर भरोसा रखिए |” धीरज अपनी भरसक कोशिश में जतिन को हौसला देने का प्रयास करता है|
“हाँ वक़्त पर विश्वास करने के अलावा कर भी क्या सकते है |”
जतिन को आश्वस्त करते धीरज उनके कंधे पर हाथ रखता है|
“निधि ने अपनी भरसक कोशिश की उनसे बचने की और शुक्र है उन गुंडों से वह भाग भी निकली - उन गुंडों की लाश तक कार में मिली शायद पी कर ड्राइव करने से एक्सीडेंट में मर गए पर मुझे समझ नही आता कि अगर एक्सीडेंट से वे आदमी मरे तो निधि उस कार से काफी दूर क्यों मिली वो भी बेहोश !!”
जतिन अजब पहेली में उलझ चुका था|
“अब ये सब तो तब पता चलेगा जब निधि होश में आएगी |”
“हाँ अब इंतजार के अलावा क्या कर सकते है लेकिन यही सुकून है कि अगर कार में हमारा मोबाईल नहीं छूटता तो ट्रैक करके हम कभी निधि तक नहीं पहुँच पाते लेकिन मुझे दुःख है कि मैं निधि को सही सलामत नहीं रख सका|” कहते कहते जतिन की आवाज भीग उठी|
“जीजा जी आप हौसला रखिये सब ठीक होगा|” रुंधे गले से धीरज कहता है|
“पता नहीं पर हम तो जल्दी पहुँच गए उनका पीछा करते फिर निधि कार से कब उतरी और उस कुलधरा के गाँव की सीमा तक जाने कैसी पहुंची?” आश्चर्य से जतिन सबकी ओर देखता है और उसकी आवाज सुन सबकी नज़रों में चेतन शुन्य पड़ी निधि कुलधरा के राज़ को सोचती उस एकांत में अपनी ऑंखें झपकाती है|
नर्स बाहर बरामदे तक लगभग दौड़ती हुई आती है तो सब हैरानी से उसका चेहरा देखते रह जाते है| इससे पहले कि जतिन या निधि के परिवार से कोई उससे कुछ पूछता नर्स आगे बढ़ जाती है| अब सब उसी दिशा की ओर देखते रहे| आपस में उनकी ख़ामोशी ही एक दूसरे के लिए मौन सहारा थी| सब देखते है कि डॉक्टर अब तेजी से वही चले आ रहे है साथ ही उनके पीछे पीछे नर्स भी चली आ रही है ये देख सब उनकी ओर लपकते है पर डॉक्टर उन्हें अपने हाथ से रुकने का इशारा करते हुए निधि के वार्ड तक अपने कदम तेज कर देते है|
सभी वही थमे रह जाते है| अन्दर जाती नर्स जैसे परिवार की मनोदशा समझती हुई धीरे से उनकी तरफ देखती हुई कहती है – “आपके पेशंट को होश आ गया है |” और अन्दर की ओर चल देती है|
नर्स की बात सुन जैसे सारे परिवार के मुरझाए चेहरे को नवजीवन मिल गया| वे एक दूसरे को अपनी अपनी मुस्कानों से बधाइयाँ देने लगे|
डॉक्टर और नर्स का वे सभी बेचैनी से बाहर इंतजार कर रहे थे| अगले कुछ क्षण बाद डॉक्टर बाहर आते है और परिवार की तरफ देखने लगते है जिससे सभी लगभग दौड़ते हुए उनके पास आते हुए एक जैसा प्रश्न कर बड़ी हसरत से डॉक्टर की तरफ देखने लगते है|
डॉक्टर गहरा उच्छ्वास छोड़ते एक एक का चेहरा देखते हुए धीरे से कहना प्रारंभ करते है – “देखिए आपके पेशंट की हालत अभी भी स्थिर बनी हुई है – नर्स ने मुझे आकर बताया कि पेशंट ने अपनी ऑंखें झपकाई पर जबतक मैं आया वह फिर कोमा में चली गई|”
एक ही क्षण में हँसते चेहरे फिर मुरझा गए|
“होप फॉर बेस्ट |” कहते हुए डॉक्टर तेज क़दमों से अपने केबिन की ओर बढ़ गए|
सब एक दूसरे का चेहरा देखते रहे इसी बीच जतिन तेजी से उठता हुआ निधि के वार्ड के दरवाजे पर खड़ा उस गोल शीशे से अन्दर की ओर अपनी नज़रे फेंक उसे देखने का प्रयास करता है|
बेड पर निस्तेज लेटी निधि की ऑंखें अभी भी बंद थी और पास ही खड़ी नर्स एक एक कर उसके शरीर से जुड़े मशीनी उपकरणों को चेक करती हुई एक नोट पैड पर लिखती जा रही थी| जतिन उस ख़ामोशी में भी निधि के आस पास की मशीनी आवाजो को सुनता हुआ उसकी क्लांत धड़कनों को दूर से ही महसूस कर पा रहा था| उस पल एक बेबसी सी उसके चेहरे पर उमड़ आई जिसे छुपाने जतिन तेजी से तुरंत गलियारे के दूसरी ओर अपने कदम बढ़ा देता है|
सब जतिन की स्थिति समझ रहे थे पर वे सब खुद हालातों के आगे बेबस थे तभी जतिन के पीछे निधि के भाई धीरज को जाते देख सब फिर वार्ड के बाहर अपनी अपनी सुनिश्चित जगह पर आकर बैठ गए|
“मुझे लगता है आपको आराम करने अब होटल वापस चले जाना चाहिए – सुबह से आप एक पैर पर खड़े है|”
समधी की हमदर्दी पर निधि के पिता का मन आद्र हो उठा| वे धीरे से अपना बोझिल चेहरा उठाते हुए कहते है – “आप भी तो कल से जब से आए है कहाँ आराम करने गए - |”हताशा में एक गहरा स्वांस लेते हुए कहते रहे – “अब जो ईश्वर की रज़ा होगी वही होगा – मेरे हिसाब से बहुत रात हो रही है और दामाद जी भी दस दिन से यही डटे है – मेरा कहा मानिए आप सब लोग आराम करिए - आज हम यही रुकते है|”
सभी एक दूसरे का सहारा बने एक दूसरे को वक़्त और ईश्वर पर भरोसा रखने को कहते फिर खामोश हो गए| लेकिन डॉक्टर वहां भीड़ कम करने का इशारा दे चुके थे तो अब सभी ने होटल वापस जाने की तैयारी शुरू कर दी| हमेशा की तरह जतिन वहां से हिलने को तैयार नही था, उसे लगता पता नही कब निधि को होश आ जाए और तब वह झट से उसका हाथ थामे उसे अकेला छोड़ देनी की माफ़ी मांग ले| लेकिन मन मसोजे उसे जाना पड़ा और इस बार सभी को जबरन आराम करने भेज कर वहां निधि का भाई धीरज अपनी माँ के साथ रुक गया|
जैसलेर की ठंडी रातें अपना विस्तार तेज करने लगी थी| यहाँ दिन जितना तपता था रातें उतनी ही ठंडी हो जाती| दिन भर स्वर्ण सा दमकता ये शहर रात की चांदनी ओढ़े चुपचाप सो रहा था पर निधि के वार्ड के बाहर उसकी माँ धड़कती धड़कनों के साथ क्लांत बैठी थी| धीरज अपनी माँ को दिलासा दे रहा था और वे गुज़रे वक़्त को लगातार कोस रही थी| फिर आधी रात होते होते माँ को आराम करने की स्थिति में वह बैंच में लेटा कर साथ वाली बैंच पर पैर फैला कर लेट जाता है, पर रूठी हुई नींद में वह बार बार अपना पहलू बदलता रहता| आखिर बहुत देर बाद ऊब कर धीरज उठकर बैठ गया, उसने समय देखा रात के एक बज रहे थे, बगल की बैंच पर उसकी माँ अभी भी सो रही थी| सुबह होने में अभी काफी समय था और नींद न आने से उसे कॉफ़ी पीने की बेहद तलब उठी तो वह हॉस्पिटल के कैंटीन की ओर चल दिया|
धीरज उनसे दूर जा चुका था और उनकी माँ आँख बंद किए लेटी थी कि अचानक एक आवाज पर उनका समस्त ध्यान अपने बगल की खाली जगह पर आ सिमटा|
“माँ ...!!”
वे अवाक् देखती रह गई निधि उनके बगल में बैठी उन्हें ही पुकार रही थी|
***
“माँ – माँ – माँ|” वे आवाज़ सुन हडबडा कर उठ बैठी| वे अपनी निन्दासी आँखों को मलती हुई अपने पैर बैंच से नीचे करती हुई देखती है कि ठीक उनके बगल वाली बैंच पर कोई बैठी है| वह हॉस्पिटल के बरामदे की हलकी रौशनी में देखती है कि हॉस्पिटल के कपड़ों में वह तो निधि थी| ये देखते वह झट से उसके पास सरकती हुई बोल उठी – “निधि तू ठीक हो गई – मेरी बच्ची कैसी है तू !!” माँ का दिल ममता से उमड़ पड़ा|
वे सरकती हुई निधि के पास आती है, वे उसका हाथ पकड़ती हुई उसका चेहरा देखती है कि शांत सपाट चेहरे पर अनजाने भाव से वह उनकी तरफ बिना देखे ही माँ बुला रही थी| उन्हें लगा बेटी के शरीर में दर्द है वे उसका हाथ सहलाने लगती है| उस पल उसका हाथ बर्फ सा ठंडा था, वे चौंक कर कहती है – “तुम्हेँ तो ठण्ड लग रही है – देखो कैसा सर्द पड़ा है हाथ – पर उठकर क्यों आई – रुको मैं डॉक्टर को बुलाती हूँ – तुम्हें दवाई देंगे न तो देखना सब ठीक हो जाएगा – जाने क्या हाल कर दिया इस जैसलमेर ने मेरी बेटी का |”
“माँ – माँ |”
“हाँ बेटा – मैं अभी डॉक्टर को बुला कर लाती हूँ |” झट से उसका हाथ नीचे रखती हुई वे अपनी हर संभव कोशिश में फुर्ती से उठ जाती है और तेज़ी से बरामदे से बाहर अपने कदम बढ़ा लेती है|
वे अपने तेज़ क़दमों से डॉक्टर के पास पहुँच जाना चाहती थी इसी जल्दबाजी में गलियारे से मुडती हुई वे किसी से टकरा जाती है, वे बस टकरा कर गिरने ही वाली थी पर उन हाथों ने उन्हें संभाल लिया|
“माँ कहाँ जा रही हो ?” वो धीरज था, माँ सिर उठाकर देखती है|
“क्या हुआ माँ – इतनी जल्दी में कहाँ जा रही है आप ?” वह अभी भी माँ को संभाले था जो अपनी जल्दबाजी में अपनी चढ़ती सांसो पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही थी|
फिर किसी तरह से अपनी सांसो को सभालती हुई वे अपने पीछे की ओर इशारा करती हुई कहतीं है – “निधि को होश आ गया बेटा – जरा जल्दी से डॉक्टर को बुला ला - |”
“क्या – सच में – अच्छा मैं बुलाता हूँ आप वही उसके पास चलिए !” वह अपनी माँ को संभाले हुए निधि के वार्ड तक आता है|
“आप यही बैठिए|” माँ को बैंच पर बैठा कर वह देखता है कि माँ अपने आस पास बेचैनी से देख रही थी|
“क्या हुआ माँ ?”
माँ जल्दी से कहती है - “निधि यही तो बैठी थी |”
“क्या कह रही हो आप वो यहाँ कैसे आ सकती है |” वह अपनी माँ का आश्चर्य में डूबा चेहरा देखता हुआ कहता है – “आपने कोई सपना तो नहीं देखा !!”
माँ बिफ़रती हुई झट से उठ गई और वार्ड के दरवाजे की ओर बढ़ गई इसपर धीरज भी उनके पीछे पीछे हो लिया| जब तक वह कुछ समझता माँ उसका दरवाजा खोल अन्दर आ गई| अब वे दो जोड़ी ऑंखें देखती है कि निधि अभी भी बेड पर निस्तेज लेटी थी|
धीरज तुरंत कहती है - “देखा माँ – ये तो यहाँ है |”
माँ औचक उस ओर देखती रही और इस हलचल से वहां किनारे कुर्सी पर अपने घुटनों पर सर टिकाए उंघती नर्स एकदम से उठ बैठी|
“क्या हुआ माता जी !”
नर्स आश्चर्य से उनकी तरफ देख रही थी|
“कोई बात है क्या - ?”
“नही नही माँ को भ्रम सा हो गया कि निधि बाहर आई थी !”
धीरज की बात सुन नर्स को जैसे हलकी हँसी आ गई पर जल्द ही उसपर काबू करती हुई वह कहती है – “भ्रम ही हुआ होगा क्योंकि ऐसी हालात में मरीज न खुद उठ पता है और न मैं इतनी बेखबर यहाँ बैठी थी – आप फ़िक्र न करे सब ठीक है – माता जी ने जरुर कोई सपना देखा होगा|”
नर्स की बात सुन वे और परेशान हो उठी – “मैं सच कहती हूँ वो कोई सपना नहीं था – बेटा तुम तो यकीन करो मेरा – सच में निधि मेरे पास आई थी मैंने उसका हाथ भी पकड़ा था – कितना सर्द था उसका हाथ |” वे कहती कहती निधि के पास पहुँच कर उसकी हथेली पकड़ती हुई कहती है – “ये देखो उसका हाथ अभी भी कितना सर्द है |” वे घबराहट में कभी बेटे की ओर देखती तो कभी नर्स की ओर जो अभी भी आश्चर्य से उनकी तरफ देख रही थी|
नर्स जल्दी से उठकर उनके पास आती हुई कहती है – “माता जी ग्लुकोस चढ़ता है तो शरीर ऐसे ही ठंडा रहता है – मुझे लगता है आप ने जरुर कोई सपना देखा है तभी आप परेशान हो उठी – आप बेफिक्र रहिए मैं हूँ यहाँ |” वे ढांढस बंधाती हुई उनके कंधे पर अपना हाथ रखती हुई कहती है इस पर धीरज आगे बढ़कर माँ को संभालते हुए उन्हें बाहर की ओर ले जाते हुए समझाता रहता है –
“अभी आप बाहर चलिए – थोड़ा आराम करिए – सुबह हम डॉक्टर से बात करते है |”
माँ बेबसी में एक पल निधि के सुप्त चेहरे को देखती हुई हताश होती बाहर की ओर चल देती है|
निधि के रात में उठकर आने की बात सबने उनका सपना मान सिरे से खारिज़ कर दी, आखिर मशीनों से बंधा शरीर कैसे अपने आप उठकर आ सकता है!!! अंत में उन्होंने भी यही मान लिया कि संभव है उन्होंने सच में कोई ख्वाब देखा हो|
अब डॉक्टर के सामने धीरज और जतिन बैठे निधि की स्थिति के बारे में उनसे पूछ रहे थे तब डॉक्टर उन्हें समझाते हुए बताते हैं – “आपकी पत्नी असल में कोमा के लॉक इन सिंड्रोम वाली स्थिति में है जिसमें मरीज स्वता सांस तो ले लेता है - कई बार आंखे भी खोल लेता है पर आपकी ओर कुछ रिएक्ट नहीं करता - कई बार ऐसी स्थिति में मरीज आपकी बात सुन भी रहा होता हैं और आपको पता भी नहीं चलता इसलिए मरीज के आस पास जब भी आप मौजूद हो तो कुछ सकारात्मक या उसकी पसंद की बात करे संभव है ये उसके लिए पॉजिटिव स्ट्रोक का काम करे।“
जतिन हैरत में डॉक्टर से पूछता है – “क्या सच में निधि हमें सुन पा रही हैं!!”
“हां संभव है पर पूरी तरह से नहीं कहा जा सकता अब आपको इस बात का ध्यान रखना है कि मरीज के आसपास आप मौजूद रहे क्योंकि कई बार ऐसी स्थिति में पाया गया है कि मरीज के आसपास उनके अपने होने से कोमा से वे जल्दी बाहर आते हैं लेकिन साथ ही इस सच को भी आप को स्वीकार करना होगा कि ये कोमा की स्थिति कुछ दिन कुछ महीनों और कई बार सालों तक की भी हो सकती है।“
ये सुनते धीरज और जतिन मायूसी में एक दूसरे का चेहरा देखते हुए कुछ उदास हो जाते है।
“मुझे अहसास है कि ये वक़्त आपके लिए कठिनतम हो सकता है पर आपको इसे अपने हौसले से पूरा करना है।“
“शुक्रिया डॉक्टर बस हमें वक़्त से यही उम्मीद है - क्या हम निधि को ऐसी स्थिति में हॉस्पिटल से घर ले जा सकते है!!!”
“हां क्यो नहीं - मैंने आपको बताया न कि आपकी पत्नी के केस के ये पॉजिटिव बात है कि वे किसी वेंटिलेटर पर नहीं है - आप डॉक्टर के रूटीन चेकअप पर उनको घर पर रख सकते है।“
ये बात उनके लिए उम्मीद की किरण बन कर आई| जतिन और धीरज को डॉक्टर की बात से बहुत हौसला हुआ| वे डॉक्टर की ओर देखते है तो डॉक्टर मुस्करा कर उनके हाथ पर अपना हाथ रखते धीरे से सर हिलाते है।
एक ही कमरे में जतिन और निधि का समस्त परिवार मौजूद था और कमरा गहन ख़ामोशी की जद में जकड़ा मानों वक़्त से गिडगिडाकर कोई मोहलत मांगता उदास बैठा था| किसी के मुंह से एक शब्द भी नही फूट रहा था, मानों सारी दिलासा, भरोसा, आस विश्वास चुक चुका हो मन से, शब्द जैसे बह गए हो किसी खामोश सुनामी में| निधी की माँ, पिता, बड़ा भाई धीरज, छोटी बहन नीतू अनमने ढंग से उनसे अब जाने की इजाजत मांगते है, जतिन, उसके माता पिता और उसका छोटा भाई वैभव अनमने ढंग से उनकी तरफ देखते है तब उनके मस्तिष्क में मानों एक सवाल कौंध जाता है और निधि के पिता हाथ जोड़े पूछ बैठते है – “निधि की हालात पर अब किसे दोष दे हमारी किस्मत ही फूटी थी, आप चाहे तो अपनी बेटी को हम अपने घर ले जा सकते है ??”
जतिन औचक कभी उनका तो कभी अपने माता पिता का चेहरा देखता है, वह इस प्रश्न के लिए तैयार नही था, उसे कुछ समझ नही आ रहा था| आखिर उसके पिता कहते है – “देखिए ऐसी विकट स्थिति है कि हम क्या कहे, आप को जो उचित लगता है आप करे हमे किसी भी स्थिति से कोई एतराज नही|” वे कहते कहते अपने बेटे की ओर देखते है मानों कहते हुए उम्मीद कर रहे हो कि जो ठीक लगे तुम करो...अब हमारी इस उम्र में और सामर्थ नही|
अब सभी की प्रश्नात्मक नज़रे जतिन की ओर उठ गई| जतिन के लिए अब खामोश रह पाना कठिन था| वह कहती है - “मुझे नहीं पता आगे क्या होगा पर निधि अब मेरी जिम्मेदारी है और आप सब मुझ पर भरोसा कर सकते है|” जतिन के चंद शब्द जैसे उस मायूस रेगिस्तान में उम्मीद की फुहार बनकर गिरते है| विश्वास रिश्तों की उम्मीद को बढ़ा देता है| अब आगे क्या करना है ये जतिन को बताना था| यहाँ रुकने का अब कोई औचित्य शेष नहीं रहा तो वह सभी को उदयपुर वापस जाने का निवेदन करता हुआ कहता है – “मेरे हिसाब से आपलोगो को आज ही उदयपुर के लिए निकल जाना चाहिए – मैं और वैभव कल एबुलेंस से आ जाएंगें – बस आज रात की ही तो बात है|”
जतिन की बात मानने के अलावा उनके पास कोई चारा न बचा तो वे अपनी अपनी छोटी मुस्कानों को समेटते दुआ देते आखिर अपने घर लौट जाते है| जतिन भी अब इस अव्यक्त युद्द के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लेता है|
जैसलमेर की ठंडी रात में बैंच पर ऑंखें मूंदे जतिन बैठा था जिसके बगल में बैठा वैभव अभी अभी कॉफ़ी लाया था|
“भईया कॉफ़ी ठंडी हो रही है |” वह कॉफ़ी का कप फिर जतिन की तरफ बढ़ाता हुआ कहता है|
“किस मुसीबत में मेरी वज़ह से निधि फंस गई|”
“ऐसा क्यों कह रहे है आप – होनी को कौन टाल सका है – वैसे उस दिन हुआ क्या था?”
कप अपने हाथ में लेता हुआ जतिन वैभव की ओर मुड़ता हुआ कहता है – “सब ठीक था हम सैंड ड्युन्स से वापस लौट रहे थे – रास्ता पूरा सुनसान था – मैं रात की ठंडी का आनंद लेते कार आराम से चला रहा था तभी किन्ही दो अजनबियों ने हमसे लिफ्ट मांगी और बताया कि उनमें से किसी एक को चलते वक़्त गिरने से चोट लग गई – मैंने विश्वास कर लिया और उन्हें अपनी कार में लिफ्ट दे दी |”
“बिना जाने क्यों लिफ्ट दी आपने !!” वैभव कह उठा|
“क्योंकि ऐसा वैसा कुछ विचार आया ही नहीं मेरे मन में – मेरा यहाँ के लोगों के साथ बहुत अच्छा अनुभव रहा – यहाँ के लोग सच में बहुत अच्छे है पर नहीं ये लोग कहीं बाहर से आए थे और आखिर निधि का डर सच्चा हो गया – पीछे से उन लोगों ने हमें बेहोश कर दिया और जब मुझे होश आया तो मैं सड़क के किनारे पड़ा था और चारोंओर बस अँधेरा था – ये तो गनीमत मानों मेरा मोबाईल मेरे पास था जिससे मैंने झट से पुलिस की सहायता ली और दूसरी अच्छी बात ये रही कि निधि का मोबाईल उस कार में ही था जिससे तुरंत उसको ट्रैक करते हम कुछ ही घंटों में उन तक पहुँच गए |”
“भाभी कुलधरा के गाँव कैसे पहुंची !!”
“हम जहाँ ट्रैक करके पहुंचे वो कुलधरा के पास की जगह थी जहाँ मेरी कार का एक्सीडेंट हो गया था और हमे वही दोनों अजनबी मरे हुए मिले तब हम आगे बढ़े तो रेत पर बेहोश हालत में निधि मिली शायद उनसे भाग आई थी निधि - वो तो शुक्र है उसके साथ कुछ बुरा नही हुआ नहीं तो मैं खुद को कभी माफ़ नही कर पाता |” कहते कहते अब वह वैभव के चेहरे की ओर देखता हुआ कहता है – “देखा जाए तो सब तुम्हारी वज़ह से हुआ|” कप नीचे रखता हुआ जतिन कहता है|
वैभव चौंकते हुए कह उठा - “अब मैंने क्या किया ?”
“तुम्ही तो थे जिसने जैसलमेर सुझाया – अच्छा खासा मैंने गोवा का प्लान किया था – न यहाँ आते न ऐसा कुछ होता |”
वैभव का उतरा मुंह देखता हुआ जतिन कहता है – “ये सब जो तुम इधर उधर घूमने के शौक़ीन हो न इसी कारण हुआ – तुम पिछले साल यही घूमने आए थे न – अभी भी कहता हुआ ये सब आदते छोड़ो और इस बार पीओ की तैयारी पर ध्यान दो तो मेरी तरह तुम्हारी लाइफ भी सेट हो जाएगी|”
वैभव अपने भाई की बात पर चिढ़ते हुए बोल उठा - “अब भईया घूमने का पढाई से क्या ताल्लुक है|”
“है क्यों नहीं – खैर छोड़ो अब ये रात बीते तो कल यहाँ से निकले किसी तरह से|” कहते हुए जतिन उबासी लेता अपने पैर बैंच पर फैला लेता है ये देख वैभव दोनों कप उठाता डस्टबिन की तरफ बढ़ जाता है|
नींद दोनों की आँखों में नही थी लेकिन जहाँ जतिन ऑंखें बंद किए पड़ा था वही वैभव गलियारे के कोने में खड़ा कोई फोन मिलाता है, उधर से नीतू निधि की छोटी बहन फोन उठाती है| फिर दोनों अपनी प्यार भरी दुनिया में खोते हुए बात करने लगते है|
वैभव कहा रहा था - “काश ये सब नहीं होता – क्या सोचा था कि भाभी आएगी तो फिर हम दोनों के लिए रास्ता साफ़ हो जाएगा|”
वो पीछे की खनकती आवाज़ सुन रहा था कि एकाएक फोन से घरघर की आवाज़ हुई और “मन्ने आपण घर से न जाणा सा” (मुझे अपने घर से नहीं जाना) आवाज़ गूंजी जैसे दूर कही से आती हुई आवाज़ हो|
वैभव चौंक गया| ये नीतू की आवाज़ तो नहीं थी|
“हेलो हेलो -|” वैभव पुकारता है|
“हाँ नीतू !!!”
जबकि नीतू आराम से कह रही थी - “अरे हाँ कहाँ चले गए – मुझे लगा फोन कट गया|”
नीतू सहज थी पर वैभव के चेहरे की हवाइयां उडी हुई थी, वह धीरे से नीतू से पूछता है – “तुम्हेँ राजस्थानी आती है क्या !!”
“क्या !! मजाक कर रहे हो क्या – पता है न पापा की लास्ट पोस्टिंग राजस्थान होने से बस कुछ सालों पहले ही तो हम यहाँ आए – पर तुमने ये क्यों पूछा !!”
नीतू पूछ रही थी और वैभव की आंखे डर से चौड़ी हुई जा रही थी और मन में प्रश्न चल रहा था कि फिर वो आवाज किसकी थी ?
वैभव के लिए उस आवाज़ को बता पाना और भुला पाना दोनों दुश्वार हो गया...पूरी रात जैसे तैसे कटने के बाद सुबह उसकी नीद लगी तो जतिन ने उसे उठा दिया...
“उठो चलना नहीं है क्या..?”
वैभव हडबडा कर उठता अपने भाई का चेहरा देखता रह जाता है जो उसे बता रहा था – “मैं एम्बुलेंस की व्यवस्था करने जा रहा हूँ – तुम यही रुकना |’”
जतिन के जाते वैभव गुजरी रात की बात सिलसिलेवार तरीके से याद करता है तो उसके कानो में फिर वही आवाज़ जैसे कौंध उठती है जिससे घबरा कर वह अपने आस पास देखने लगता है पर उस गलियारे में अभी उसके सिवा वहां कोई नहीं था| वह उठकर अपनी भाभी के वार्ड तक आता है और कांच से अन्दर की ओर झांकता है, उसे वहां शांत भाव से लेटी हुई वह दिखती है| फिर वह गहरा श्वास छोड़ता बैंच पर आकर बैठ जाता है| तभी जतिन का फोन आता है जो उसे बता रहा था कि अभी तक एम्बुलेंस की व्यवस्था नही हो पाई है, ये सुनते जैसे वैभव के मन का डर का आकार और भी विस्तार हो जाता है| वह झट से अपने भाई के पास पहुँच कर देखता है कि हॉस्पिटल के बाहर खड़ा जतिन जाने किससे उलझ रहा था|
“भाई सा मैं बोलूं हूँ कि मन्ने जाणे में के आफत है पर पता नही क्यों गड्डी स्टार्ट न हो रही – जैसे चक्का जाम हो गया हो|”
जिस पर जतिन कहने लगा - “तो मैं बोल रहा हूँ न दूसरी ले चलो – दो तो है यहाँ |”
“काई बात करे हो भाई सा एक तो यहाँ इमर्जेसी पर रहणी है न – दूसरी पता न क्यों ख़राब हो गई – पहले कभी ऐसा न हुआ |”
जतिन उसकी बात पर बुरा सा मुंह बनाता अब कही और फोन लगाने लगता है| कुछ दूर खड़ा वैभव सारा नज़ारा देख रहा था, इससे उसके मन में अज़ब ही हलचल मची थी| वही खड़े खड़े जतिन जाने कितने हॉस्पिटल में फोन लगा डालता है पर कही से भी एम्बुलेंस की व्यवस्था होती नही दिखती इससे जतिन की झुंझलाहट बढ़ जाती है तब वैभव उसके पास आते हुए कहता है –
“भईया क्यों न हम कुछ दिन यही रुक जाए !!”
“क्या बात करते हो – क्यों रुकेगे हम यहाँ ?” जतिन एकदम से बरस पड़ा|
वैभव समझाना तो चाहता था कुछ तो है जो उन्हें यहाँ से नहीं जाने दे रहा वह ये समझ रहा था पर जतिन से कह पाने की हिम्मत नहीं कर पाया तब अपनी बात घुमाते हुए उसे कुछ दिन के लिए रुकने के लिए मनाने लगता है|
“कैसी बात कर रहे हो हम कब तक होटल में रुकेगे ?”
“होटल नही – मेरा एक दोस्त है प्रमोद उसका फ्लैट यहाँ पर है – मैं पिछली बार उसी के साथ रुका था – मैं सब एरेंजमेंट कर लूँगा – आप भरोसा रखो |”
जतिन उसे रोकता रह गया पर वैभव हवा के झोंके सा वहां से झट से निकल गया| फिर ही जतिन यहाँ किसी तरह से और नही रुकना चाहता था| ये ठानते अब वह एक टूर बुकिंग वाले के यहाँ फ़ोन कर एक मिनी बस का इतंजाम करने फोन करता है| वहां बात पक्की हो जाती है और वह आधे घंटे के अन्दर ही आने का वायदा करता है जिससे संतुष्ट होता जतिन अब राहत की साँस लेता हॉस्पिटल के अन्दर चल देता है|
वह तेज़ कदमो से अन्दर आता है| वह अभी निधि के वार्ड तक पहुँचने ही वाला था कि उसके वार्ड के अन्दर उसे हलचल होती महसूस होती है जिससे वह वहां लगभग दौड़ता हुआ आता है| उसकी नज़रे वार्ड की देहरी पर ही खड़े खड़े देखती है कि नर्स उसकी पत्नी निधि की ओर झुकी हुई थी और निधि बेड पर पड़ी पड़ी तेज़ तेज़ सांसे ले रही थी| ये देखते जैसे उसके पैरो तले जमीं ही सरक गई, वह घबराया हुआ उस ओर आता है| नर्स किसी तरह से उसे सँभालने की कोशिश कर रही थी पर उससे बावजूद निधि की देह बेचैन हुई जा रही थी| फिर जतिन को आँखों से वही ठहरने को कहती डॉक्टर को बुलाने बाहर की ओर भागती है| जतिन बेबस सा ये दृश्य देख रहा था कि निधि की हार्ट रेट सीधी लकीर सा उसके जीवन से लगातार सरकती जा रही थी और वह बेबस सा कुछ नहीं कर पा रहा था| उसका मन रुआंसा हो उठा कि अभी सब कुछ सामान्य से कैसे ये सब हो गया ? उसने तो निधि की जिम्मेदारी ली थी अब वह सबको आखिर क्या जवाब देगा...अभी तो उनकी दुनिया ठीक से शुरू भी नही हुई फिर कैसे ईश्वर उनके साथ ऐसी निर्ममता कर बैठा !!!
***
वह निधि के पास आता उसकी हथेली सहलाने लगता है कि निधि झट से उसका हाथ पकड लेती है वह इस अनायास व्यवहार से एकदम से चौंक जाता है| वह पकड़ उसे सामान्य नही लगती वह उससे छूटने का प्रयास भी करता है पर उससे छूट नही पाता| वह औचक सा उसकी ओर देखता रहता है| निधि की देह अभी भी तड़प रही थी उस एक पल उसके मन में जैसे एक ही ख्याल आने लगता है कि उसे अभी यहाँ से नही जाना चाहिए| निधि अभी भी उसका हाथ कस कर पकड़े थी वह पता नही कैसे कह जाता है – “तुम जब तक ठीक नही हो जाती मैं यहाँ से नही जाऊंगा |” जतिन ने ये कहा और पता नही जैसे कोई हवा का तेज़ गर्म झौंका सा उसने महसूस किया जिससे निधि की देह एक दम से पहले जैसी निस्तेज होती बिस्तर पर शांत हो गई| उसकी हाथ की पकड़ भी ढीली होकर जतिन से छूट गई| जतिन अवाक् देखता रह गया|
तभी आगे आगे डॉक्टर तो पीछे पीछे नर्स भागते हुए आते है पर निधि को पहली जैसी स्थिति में पाते अब उसका चेकअप करने लगते है| जतिन अवाक् अपने कदम डॉक्टर के इशारे पर धीरे धीरे बाहर की ओर करने लगता है|
डॉक्टर नर्स अन्दर थे और जतिन दरवाजे के शीशे से अन्दर देख रहा था, हार्ट रेट अब अपनी सामान्य स्थिति पर था जिससे संतुष्ट होते डॉक्टर बाहर आकर जतिन से कहते है – “जैसा नर्स से बताया मैंने तो वो स्थिति नही देखी पर अभी तो पहले जैसा सब सामान्य है लेकिन फिर भी मैं आज और इनको अपने ऑब्जरवेशन में रखना चाहता हूँ|”
डॉक्टर कहकर चले गए और जतिन हैरान निधि की शांत देह की ओर देखता रहा तब तक जब तक वैभव आकर उसे नही पुकार लेता|
“क्या हुआ आप इतना परेशान क्यों दिख रहे है कोई बात है क्या ?”
जतिन अपने चेहरे के भाव सँभालते हुए अब तक की सारी घटना उससे छुपा ले जाता हुआ खुद को सहज दिखाने का प्रयास करता है|
वैभव फिर पूछता है - “क्या हुआ !!”
“कुछ नहीं |” कहते हुए वह अपनी पॉकेट से मोबाईल निकालकर देखता है कि वैन वाले ड्राईवर की दस मिस कॉल पड़ी थी|
वह मोबाईल कानो से लगाए हुए वैभव से थोड़ा दूर जाता हुआ बुकिंग कैंसिल कराता वही बैंच पर बैठ जाता है|
बैंच पर हताश बैठा जतिन अब अपना सिर दोनों हाथों से थामे नीचे देख रहा था| ये देख वैभव उसके पास आकर बैठता हुआ कहता है – “फ्लैट का इंतजाम हो गया है – मेरा दोस्त प्रतीक दो महीनो के लिए बाहर गया है तब तक हम वहां रह सकते है – हो सकता है यहाँ रहने से भाभी की तबियत ठीक हो जाए|” अभी भी उसके मष्तिष्क में वही शब्द गूंज रहे थे|
“वैभव कल सुबह हम वही फ्लैट में चलेगे – तुम घर पर फोन करके माँ को समझा दो |”
वैभव के मन को कुछ खटक तो रहा था कि कुछ और बात है जो शायद उसका भाई अभी बता नही पा रहा, वह उसकी ओर देखता पॉकेट से मोबाईल निकालते अपनी पीठ बैंच की पुश्त से टिका लेता है|
धीरे धीरे शाम घिरने लगी और दिन भर का तपता रेगिस्तान अब ठंडा हो चला जिससे हॉस्पिटल की गतिविधि कुछ कम हो चली थी| अब दोनों गर्म कॉफ़ी लिए बैठे कुलधरा के बारे में बात कर रहे थे, वैभव को आश्चर्य हो रहा था कि इन सब बातो पर बिलकुल ध्यान न देने वाला उसका भाई आज बातो के हर छोर से बस उस रहस्यमय जगह के बारे में जान लेना चाहता था| खैर वैभव की तो सदा ही इन सब चीजो में दिलचस्पी रही यही कारण था कि पिछले साल वह अपने दोस्तों के साथ यहाँ घूमने आया था, सारे दोस्त मिलकर इसी रहस्य पर चर्चा करते रहते थे पर आज उसका भाई उस जगह को जानने का बेहद उत्सुक लग रहा था|
वैभव बता रहा था - ‘”जितना भी उस गाँव के बारे में खंगाल सकते थे उससे मुझे सिर्फ इतना पता है कि वहां पालीवाल ब्राह्मण खेतिहर लोग रहते थे - जब एक सलीम नाम के राजा की नज़र उस गाँव की एक बेटी पर पड़ी जिसके बारे में प्रख्यात था कि वह बेहद खूबसूरत थी समस्या तभी से शुरू हुई - वह राजा उस लड़की को हर हाल में पाना चाहता था लेकिन अपने कर्म धर्म के पक्के गाँव वालो ने इसे अपनी इज्ज़त पर ये ले लिया – वे गाँव वाले थी और किसी राजा से सीधे टकराव नही ले सकते थे इससे उन्होंने रातोंरात वह गाँव खाली कर दिया – कहते है गाँव का एक एक बच्चा स्त्री पुरुष सबने वो गाँव छोड़ दिया और जाते जाते वे उस जगह को श्राप दे गए – बस तभी से वह श्रापित गाँव ऐसे ही वीरान पड़ा है जिससे रात में कोई वहां नही रुकता - बस इतना ही पता है मुझे बाकी आप गूगल सर्च करके पता कर सकते है यही कहानी आपको वहां भी मिलेगी |”
जतिन कॉफ़ी का आखिरी घूंट लेता हुआ पूछता है – “तुम्हे तो बहुत रूचि रहती है रहस्य जानने की फिर इस श्राप को जानने तुम क्यों नही उस गाँव में रुक गए !!”
वैभव जल्दी से बोलता है - “क्या बात करते है आप – यहाँ के पुरात्व विभाग ने अपना बोर्ड लगाया हुआ है कि सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक वहां कोई नही रुक सकता |”
“अगर रुक जाए तो !!!” जतिन की प्रश्नात्मक नज़रे उठकर चौड़ी हुई जा रही थी|
जतिन ऐसे कहता है कि वैभव उसका चेहरा दो पल तक देखता रह जाता है|
“अगर रुक जाए तो – तो क्या होगा – निधि भी तो वही पास ही मिली थी !!”
वैभव की धड़कने बढ़ गई मानों कोई दबा डर जीवित हो उठा – “वो तो मुझे नहीं पता पर मैंने सुना है कि वहां एक बुड्डा आदमी है जो वहां के बारे में सब जानता है लेकिन वह हर किसी को नहीं दिखता – हमे भी नही मिला था – बस सुना ही है मैंने |”
“पर मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर उस गाँव का राज़ क्या है - !!”
जतिन के चेहरे के बदले भाव वह ऑंखें फाडे देखता रह गया|
“क्यों भईया क्या कुछ अजीब अनुभव किया आपने ?”
जतिन के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रहा था वैभव, उसे ऐसा करते देख जतिन जल्दी से अपने चेहरे के भाव छुपाते हुए कहता है – “अरे नही बस ऐसे ही पूछ रहा था – तुम तो जानते ही हो मैं इन सब बेकार की बातों में बिलकुल विश्वास नही करता - अरे तुमने तो कॉफ़ी पी ही नही - ठंडी हो गई होगी|”
वैभव सकपकाते हुए अपने हाथ की ओर देखता है फिर अपने भाई की ओर जो अब उठकर गलियारे की तरफ जा रहा था|
रात आखिर शांतिपूर्ण बीत गई जिससे सुबह डॉक्टर ने निधि को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया और वे दोनों वहां से फ्लैट में आ गए| उनके वहां रुकने से घर पर इंतजार करता उनका परिवार कुछ न कह सका बस सबके चेहरे निराशा से बोझिल हो गए पर इससे निकलने का उनके पास ईश्वर से दुआ करने और इंतजार करने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं था| ऐसा वक्त जब दोनों परिवार शादी की ख़ुशी से निकले भी नहीं थे लेकिन अब अनजाने मातम में घिर चुके थे|
जतिन आद्र मन से देखता है कि बेड पर चेतन शून्य लेटी निधि और उसके देह पर चढ़ती ग्लूकोज की ड्रिप जतिन के जीवन से सारी ख़ुशी लील चुकी थी| कई बार उसे भ्रम सा हो जाता कि अभी निधि उठेगी और हमेशा की तरह खिलखिला कर हँस पड़ेगी| उसका मन किसी उम्मीद में बस उसका निस्तेज देह निहारता हुआ अपने आप से ही बाते कर रहा था “एक दूसरे को समझने का हमे समय भी नही मिला – बस तीन महीने में मंगनी और शादी – मुझे तो अभी तुम्हारी ख़ुशी जीनी थी – समझना था तुम्हेँ पर उससे पहले ही हमारे बीच जाने कैसा ये मौन आ गया पर वादा करता हूँ कि मैं तुम्हेँ इस बेहोशी से वापस जरुर लाऊंगा – चाहे जो कुछ भी करना पड़े – मैं अब तुमसे और भी ज्यादा प्यार करने लगा हूँ इसलिए मेरे प्यार के खातिर तुम्हेँ लौटना होगा – लौटना होगा तुम्हें निधि .....|’
वैभव खाने पीने की व्यवस्था करने गया था तब तक जतिन निधि के चेहरा पोछता उसके सलोने चेहरे को निहारता उसके माथे पर बिंदी लगाता उसे चूम लेता है, ऐसा करते उसकी आँखों के कोरे गीले हो आते है|
“भईया हम दोनों कैसे रहेंगे यहाँ ?” वैभव किचेन से निकलता हुआ कहता है – “कोई लेडी पर्सन होनी बहुत जरुरी है – मुझसे ये सब काम नहीं संभलता |”
वैभव की नखरीली आवाज़ पर जतिन उसकी तरफ देखता हुआ पूछता है – “तो क्या करे – निधि की माँ या हमारी माँ के ऊपर तो वैसे भी घर की जिम्मेदारी है – उन्हें कैसे बुला सकते है ?”
“हाँ वो तो है |” फिर जान कर कुछ सोचने का अभिनय करता कुछ क्षण बाद वैभव कहता है – “भाभी की बहन क्या नाम है हाँ नीतू को आप बुला लीजिए – अपने एमबीए के 8 वे सेमिस्टर के बाद अभी खाली ही तो बैठी है |”
“तुम्हें बड़ी खबर है उसकी |” कनखियों से देखता जतिन के होंठ कुछ तिरछे हो आए |
“अरे वो ऐसे ही पता चला था मुझे |” वैभव सच में शरमा गया|
“रहने दे रहने दे ज्यादा नाटक करने की जरुरत नहीं है – अपनी शादी वाले दिन से ही देख रहा हूँ तुम दोनों को|” ये सुनते वैभव को झेपते देख जतिन हलके से हँस दिया|
दो दिन बीतते बीतते जतिन को अब यहाँ रुकने में बेचैनी होने लगी, निधि की हालत भी वैसी बनी हुई थी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कबतक वह यहाँ रुका रहेगा|
दोपहर में खाना खा कर वैभव सो रहा था तब उसके पास आकर जतिन उसे धीरे से जगाता हुआ उसके कान के पास कहता है – “उठो |”
वैभव हडबडाता हुआ एकदम से उठकर बैठ जाता है और हैरत से भाई का चेहरा देखता हुआ कुछ कहने वाला था पर जतिन होठों पर उंगली रख उसे चुप रहने का इशारा करता उसे अपने साथ चलने का संकेत देता हुआ कमरे से निकलने लगता है|
वैभव को कुछ समझ नही आ रहा था वह बस उसके इशारे का पालन करता जा रहा था| वे फ्लैट से बाहर आ गए थे जहाँ जतिन उसे कार में बैठने का इशारा करता हुआ धीरे से कहता है – “तुम कार में बैठो – मैं निधि को लेकर आता हूँ – हम इसी वक़्त उदयपुर के लिए निकलेंगे |”
वैभव कुछ प्रतिक्रिया भी नही कर पाता और जतिन उसकी तरफ बिना मुड़े वापस फ्लैट की ओर चला जाता है|
वैभव को कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या हो रहा है बस मन को कुछ खटक रहा था| वह भाई के कहेअनुसार ड्राइविंग सीट पर जाकर बैठ जाता है और उनके आने का इंतजार करने लगता है| धीरे धीरे काफी समय बीत जाने पर भी वह जब उन्हें आता हुआ नहीं देखता तो उसका मन शंकित हो उठता है जब उसके लिए इंतजार भारी हो गया तो वह कार से उतर कर फ्लैट की ओर चल देता है|
तेज़ कदम से वह फ्लैट में दाखिल होता हुआ अपनी भाभी के कमरे की ओर बढ़ा ही था कि कोई आवाज़ उसे झट से उस कमरे की देहरी की ओर खींच लाती है जहाँ देहरी पर ठहरे कदम अन्दर का दृश्य देख सकते में आ जाते है| उसके सारे शब्द गले में ही घुट कर रह जाते है| उसकी आंखे जो देख रही थी उस पर उसे सहज ही विश्वास नही हो पा रहा था|
वह देखता है कि उसकी भाभी का बिस्तर खाली था और वह पास ही सोफे पर उकडू बैठी अपने सामने खड़े जतिन को मुस्कराते हुए देखती कह रही थी –
“थारे को म्हारी कोणी फ़िक्र न सा – म्हारे को भूक लागी है सा |”
निधि आराम से बैठी थी और वे दो जोड़ी आंखे उसे हैरत से निहारे जा रही थी|
जतिन हैरत से निधि को देख रहा था और वैभव उन दोनों को|
वे देखते है कि निधि इस तरह से सामान्य होकर बैठी थी जैसे कभी वह कोमा जैसी स्थिति में थी ही नहीं, वह अब अपने कंधे तक आते बालो को अपनी उँगलियों से सुलझा रही थी उसका सारा ध्यान अपने केशो पर था, ये देख जतिन उसके पास आता हुआ उसका हाथ पकड़ लेता है जिससे निधि नज़रे घुमाकर उसकी ओर देखती है, वह कह रहा था – “तुम्हेँ कैसा लग रहा है निधि ?”
जतिन अभी भी उसका हाथ पकड़े था और वह अपनी काली काली आँखों से पलके झपकाती उसी की ओर देख रही थी| उसकी निगाह जतिन पर टिकी रह गई जो अब उसके हाथ पर लगी विगो हटा रहा था, जिसका दर्द निधि के चेहरे के बजाय जतिन के चेहरे पर उभर आया था| अब वह उसकी हथेली को धीरे धीरे सहलाने लगा था|
“तुमको अपने सामने देख ऐसा लग रहा है जैसे मुझे पुनर्जन्म मिल गया हो – चलो हम आज ही वापस चलते है यहाँ से|”
जतिन के कहे शब्द से वह यूँ उछल पड़ी मानों गर्म अंगारों में उसका हाथ पड़ गया हो, वह अपना हाथ उसकी ओर से खीँच लेती है|
“क्या कुछ दिन और हम यहाँ नही रुक सकते – मुझे अभी यहाँ से नही जाना |” कहते कहते जैसे दो आंसू निधि की आँखों में चमक आए|
जतिन अनबूझता से उसका चेहरा देखता रहा तो जल्दी से वैभव वहां आता हुआ कहता है जो बहुत देर से देहरी पर खड़ा खड़ा ये सब देख रहा था|
“हाँ भईया कुछ दिन रुक जाते है यहाँ |” वह अपनी बात कहता हुआ अपने भाई की ओर देखता रहा जैसे आँखों से भी कुछ कह देना चाहता हो|
आखिर सब तय हो गया कि अभी कुछ दिन यही रुकेंगे फिर जतिन डॉक्टर को निधि के चेकअप के लिए वही फ़्लैट में बुला लेता है| तब तक जतिन निधि की पसंद का राजमा चावल ऑर्डर कर मंगवाता है|
खाना उसके सामने था और वह खाने को देख रही थी| जतिन उसके लिए खाना लगाता हुआ प्लेट उसकी तरफ बढ़ाता हुआ कहता है – “खाओ ये तुम्हारी पसंद का है|”
वह किसी बुत की तरह उस खाने को खाने लगती है, जतिन उसे देखता रहा, वह जैसे खाना निगल रही थी|
“मन्ने मिटठो चोखो लागे|”
वह बिना जतिन की ओर देखे कहती है तो जतिन उसका हाथ पकड़ता हुआ कहता है – “तुम जो चाहोगी मैं सब लाकर दूंगा – निधि |” जतिन जान कर उसका नाम रुककर लेता उसका चेहरा गौर से देखने लगता है, अब निधि भी उसका चेहरा गौर से देख रही थी पर कुछ बोली नही|
“भईया - डॉक्टर आ गए|”
डॉक्टर के आते जतिन उनका अभिवादन करता निधि के पास खड़ा रहता है, डॉक्टर उसका चेकअप करने लगता है, काफी देर सब चेकअप कर लेने के बाद उठते हुए निधि को देखते हुए कहते है -
“अब तो आप बिलकुल ठीक है – आश्चर्य है देखकर लगता ही नही कि आप कभी कोमा में थी|” फिर जतिन की ओर देखता हुए कहता है – “दवाइयों की अब कोई जरुरत नही फिर भी मैं कुछ विटामिन के कैप्सूल लिख देता हूँ इनको देते रहिएगा और जब आप जाने वाले हो तब आप चेकअप करा कर जाइएगा |”
“मन्ने कट्ठे सु नाई जाणा सा |” एकदम से वह कह उठी तो सबकी नज़रे तेज़ी से उसी की ओर घूम गई|
“जी !!!” डॉक्टर अवाक् रह गया|
जतिन जल्दी से सँभालने आगे आता है – “कुछ नही डॉक्टर साहब हम अभी कुछ दिन यही रुकना चाहते है|”
निधि चुपचाप लेट गई और जतिन डॉक्टर के साथ बाहर आ जाता है|
“डॉक्टर साहब क्या आपके हॉस्पिटल से मुझे साइकोलॉजिस्ट की सेवा मिल सकती है|”
जतिन की बात सुन डॉक्टर के कदम वही ठिठक गए और वह पलट कर उसकी तरफ देखता है – “हाँ क्यों नही – |”
“थैंकयू डॉक्टर |” हाथ मिलाकर वह डॉक्टर को विदा कर पीछे पलटता है तो पीछे वैभव खड़ा अपने प्रश्नात्मक आँखों से उसी को देख रहा था|
“क्या अब भी आप कहेंगे कि मैं जो महसूस कर रहा हूँ वो आप महसूस नही कर रहे !!”
“तुम क्या महसूस कर रहे हो ?”
“यही कि भाभी अचानक से राजस्थानी क्यों बोलने लगी ? क्यों वे यहाँ से नही जाना चाहती ? क्यों जाने के इंतजाम होने पर ही उसका शरीर प्रतिक्रिया करता है ? क्या ये सब अजीब नहीं है !!”
जतिन वैभव के कंधे पर हाथ रखता हुआ कहता है – “हर जगह मनोहर कहानियां मत ढूंढा करो और रही बात बदलाव की तो वही जानने साइकोलॉजिस्ट से मिलूंगा और हाँ अभी घर पर किसी को भी निधि के बारे में कुछ मत कहना – वे सब बेवज़ह परेशान हो जाएँगे |”
जतिन अपनी बात कहकर चला गया और वैभव विचारमग्न वहीँ खड़ा रह गया|
***
डॉक्टर से संपर्क करके जतिन ने अगले दिन ही साइकोलॉजिस्ट से संपर्क किया| सब कुछ जान लेने के बाद वह जतिन को बताता है – “कई बार ऐसा होता है कि कोमा की स्थिति से बाहर आने के बाद मरीज कुछ अलग सा व्यवहार करता है |”
“लेकिन डॉक्टर निधि को राजस्थानी बिलकुल नही आती फिर वह ये कैसे बोल ले रही है और उसकी खाने की पसंद भी बिलकुल ही बदल गई – आखिर इस बदलाव को क्या कहेंगे ?”
“देखिए दिमाग में अगला क्या व्यवहार करना है ये उसका इलेक्ट्रिकल इम्पल्स तय करते है – एक तरह से ये रिसेप्टर है और जब मरीज कोमा से बाहर आता है तब उसकी शिच्युशन और इम्पल्स उसके अगले व्यवहार को प्रभावित कर देते है और यही ठीक आपकी पत्नी के केस में हुआ है – वे राजस्थान में बेहोश हुई थी इसलिए उनका प्रेजेंट इससे इफेक्टेड है |”
“तो क्या वह फिर कभी पहले जैसी नही हो सकेगी ?”
“मैंने ऐसा नही कहा तब ऐसे में उसके निकटतम पारिवारिक सदस्य उसे उसके वर्तमान से जोड़ने में सहायक होते है – आप उनके परिवार के किसी सदस्य को उनके पास रख सकते है – फिर आप चाहे तो कल अपनी पत्नी को ला सकते है यहाँ |”
“ठीक है डॉक्टर साहब – मैं कल आता हूँ |” कहकर जतिन उठ जाता है|
कहानी आगे जारी रहेगी....
वह फ्लैट वापस आता है तो पाता है कि वैभव किचेन में कुछ कर रहा था| उसे देखते वह सवाल करता है – “क्या कर रहे हो यहाँ और निधि कहाँ है ?”
वह पलटते हुए कहता है – “भाभी ने बाटी चोखा माँगा था वही बाहर से लाया हूँ – आप खाओगे !!” वैभव भौं तिरछी कर पूछता है पर जतिन हवा में हाथ न में कर वहां से चल देता है|
वह कमरे का दरवाजा धीरे से खोलता है तो देखता है कि बेड पर सारा सामान बिखरा पड़ा है और वहीँ निधि बैठी जैसे कुछ खोज रही थी|
“ये सब क्या है – क्या ढूंढ रही हो ?”
जतिन के प्रश्न का जैसे उसपर कोई असर नहीं होता और वह फैले सामान में वैसे ही ढूंढती रहती है| जतिन थोड़ा और पास आकर देखता है कि निधि ने जो जैसलमेर टूर के दौरान राजस्थानी कपड़े ख़रीदे थे वह इस समय वही घाघरा चोली पहने हुए थी, उसने अपनी कलाई में भर कर चूड़ियाँ भी पहन रखी थी अब शायद उसे चुन्नी की तलाश थी| जतिन भी आगे बढ़कर उस ढेर में से चुन्नी खोजकर उसकी तरफ बढ़ाता हुआ कहता है –
“क्या यही ढूंढ रही थी ?”
वह झट से उसके हाथ से चुन्नी ले कर उसे अपनी देह में डाल लेती है| जतिन नज़र भर कर उसे देखता रह जाता है और वह उसकी तरफ से बेख्याल सी अपनी चुन्नी ठीक करती रहती है|
जतिन आगे बढ़कर उसे अपने पाश में जकड़ लेता है, फिर एकदम से जैसे वह उससे छिटकती हुई दूर खड़ी उसकी ओर देखने लगती है|
“क्या हुआ ??” जतिन उसके चेहरे की ओर गौर से देखता हुआ मुस्कराता हुआ कहता रहा – “तुम इन कपड़ों में बहुत सुन्दर दिख रही हो – तुम्हें ऐसे देखूंगा तो और प्यार हो जाएगा मुझे तुम से |”
“थे म्हारे से प्रेम करयो सा !” वह अपनी झील सी गहरी आँखों में मानों प्रेम का सारा समन्दर समेट लाई हो|
“हाँ बहुत – |”
वह अपनी अनबूझी आँखों से उसकी ओर देखती रही, ऐसा करते उसके गुलाब की पंखुरी से होंठ बुदबुदा उठे – “म्हे थारे को छाड़ के कई निई जाणा सा |”
जतिन उसके चेहरे को गौर से देखता जैसे कुछ पढ़ने का प्रयास कर रहा था और वह अचकचाती हुई उसकी ओर देखे जा रही थी|
तभी दरवाजा नॉक करता वैभव अन्दर आ जाता है और निधि को उन कपड़ों में देख कर उसके चेहरे के भाव जैसे बदल जाते है| उस समय तो वह चुप रह जाता है पर मौका पाकर किसी एकांत में वह जतिन को अपनी बात समझाने की कोशिश कर रहा था पर जतिन उल्टा उसे ही समझा रहा था –
“तुम ये कहना चाहते हो कि निधि निधि नहीं है बल्कि कोई और है |”
“हाँ भईया – क्या आपको नही लगता – ये कोई साइकोलॉजिकल प्रभाव भर नही है कुछ रूहानी है – आप आँखों देखी नकार रहे है जबकि साक्ष्य आपके सामने है - |”
“वेट वैभव कल मैं ले जा रहा हूँ न उसे साइकोलॉजिस्ट के पास |” वैभव के तनाव भरे भाव पर जतिन सहज होता हुआ कहता है – “तुम ऐसा करो – तुम नीतू को यहाँ ले आओ – वह बहन है ज्यादा जानती होगी निधि के बारे में – मैं उसके घर पर बात कर लूँगा लेकिन और कुछ अपनी बेकार की थ्योरी मत कहीं अलापना समझे – तुम आज रात ही निकल जाओ|”
“पर !!”
“डोन्ट वरी – मुझपर विश्वास रखो मैं सब ठीक कर लूँगा – बस घर के बड़ो को मैं परेशानी में नहीं डालना चाहता – अभी जाओ तुम बस |”
अपने भाई की बात मानने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था पर अभी भी कोई अनजाना डर उसके दिलोदिमाग पर हावी था|
वैभव वाकई चला गया, जतिन दूसरे दिन किसी तरह से निधि को लिए साइकोलॉजिस्ट के पास ले जाता है पर अपने एक घंटे के सेशन में वह निधि और डॉक्टर की वार्ता के बाद भी असंतुष्ट रहा उसके जेहन में उठते सवालों के जवाब जैसे किसी के पास नही थे, वह हर तरफ से अपने सवालों को खोजता रहा और उसी क्रम में वह हर तरफ से निराश होता रहा| उसने जानकर वैभव के सामने नही जताया कि उसे भी कुछ बदल जाने का अहसास है पर क्या ??? यही नही समझ पा रहा था वह |
अब उसे एक उम्मीद थी कि शायद अपनी बहन नीतू को देख वह पहले जैसा बर्ताव करे|
वह निधि के साथ वापस आ जाता है, तब तक वैभव और नीतू भी आ चुके थे|
निधि को सामने देख नीतू उसके गले लग गई लेकिन निधि की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही हुई इससे नीतू हैरान उसे देखती रह गई| पूरा दिन वह कई बार कोशिश करती रही कि उसकी बहन उससे बात करे पर वह पूरे समय कमरे में चुपचाप लेटी रही|
देर उदास शाम अपनी लालिमा का गाढ़ापन जैसे उन तीनों के मन में छोड़ती हुई ढलती जा रही थी| एक कमरे में क्लांत मन से जतिन, वैभव और नीतू बैठे थे| सबके चेहरे जैसे सवालों के झंझावत में उलझे हुए थे|
“जीजू – ये मेरी दीदी नही है |”
नीतू की बात सुन वह झटके से उसकी ओर देखता है|
“हाँ – वे ऐसी कभी नही रही – कोई सिर्फ कोमा के बाद इतना कैसे बदल सकता है -|”
“भईया मैंने नीतू को सब बता दिया है इसलिए वह ऐसा कह रही है ये मत समझिएगा – आपने खुद सब सामने देखा है |” उसके स्वर में तल्खी झलक आई|
जतिन बारी बारी से दोनों का चेहरा देखता हुआ एक गहरा श्वांस खींचता हुआ उन दोनों के कंधो पर अपना हाथ फैलाता हुआ कहता है – “अब तुम दोनों मेरी बात ध्यान से सुनो – जिस बदलाव की बात तुम लोग कर रहे हो उसे तो मैं हॉस्पिटल में ही महसूस कर चुका हूँ |”
ये सुनते दोनों आंखे फाड़े जतिन को देखते रहे| जतिन आगे कह रहा था -
“मुझे बस एहसास था अब यकीन हो गया है – मुझे जहाँ जहाँ उम्मीद थी मैंने कोशिश की और भलेहि मैं मायूस हुआ हूँ पर उम्मीद नही छोड़ी मैंने क्योंकि जिसका हाथ मैंने अग्नि के सामने थामा उसका साथ मैं अपने जीते जी तो नही छोड़ सकता |”
जतिन के प्रेम से उन दोनों का मन द्रवित हो उठा वे एक क्षण एक दूसरे की आँखों में देखते है फिर जतिन की बातो की ओर ध्यान देने लगते है|
“मुझे नही पता वो कौन है पर यकीनन वह निधि नही है पर मैं अपनी निधि को वापस लाऊंगा – मैं कल वही जाऊंगा जहाँ से ये समस्या शुरू हुई थी – कुलधरा |”
“कुलधरा !!” दोनों एकसाथ बोल उठे|
डर और दहशत उनके चेहरे पर उभर आई पर इसके विपरीत जतिन के चेहरे पर अपने प्यार को पा लेने की तड़प उभर आई थी|
“मैं वहां अकेले जाऊंगा - |”
“नही मैं आपको अकेले नही जाने दूंगा |”
वैभव जतिन का विरोध करता है पर जतिन उसे निधि और नीतू के लिए वहीँ रुकने के लिए मना लेता है| जतिन आगे कहता है -
“अगर मुझे जरुरत होगी तो मैं तुम्हें फोन कर दूंगा|”
जतिन की बात मानने के अलावा वैभव के पास कोई चारा नही बचा| उसे उन आँखों में एक उम्मीद दिखी शायद वह बुड्डा आदमी उसके भाई को मिल जाए, ताकि कुछ तो रास्ता आसान हो उसके भाई के लिए| फिर भी उसके मन में एक अव्यक्त डर समाया था उस जगह को लेकर| अब देखना था कि आने वाला वक़्त उनकी झोली में क्या डालता है.....
जैसलमेर से पश्चिम की ओर 18 किलोमीटर कुलधरा की ओर जतिन चलने को तैयार था, जैसलमेर के रेतीले रास्ते के हिसाब से इतना रास्ता भी बहुत होता है, अपने आप को वहां जाने के लिए तैयार करता जतिन एक आखिरी बार नज़र भर निधि को देखता है| वह चेहरा जो सब कुछ था उसके लिए, उस सुहाने चेहरे को अपलक निहारता उसे सोता हुआ छोड़कर वह अकेला उस निर्जन स्थान के लिए निकल पड़ता है|
रास्ता सीधा और आसानी से उसे उसके गंतव्य तक पहुंचा देता है, तब तक दोपहरी हो चुकी थी, जतिन कुलधरा गाँव लिखे बोर्ड को पार करता एक पल उसके मुहाने में खड़ा उस विशाल द्वार से दूर तक का नज़ारा देखता है| वहां इस समय काफी लोग थे, इससे पता चल रहा था कि ये स्थान टूरिस्टों के बीच खासा आकर्षण की जगह था| वह लोगों की भीड़ से बचता उस गाँव की सीमा में प्रवेश करता है| वहां प्रवेश करते पहला ख्याल उसके मन में यही कौंधता है कि दिन में भी इतना भयावह दिखने वाले स्थान में बेचारी निधि के साथ उस रात क्या क्या बीता होगा, ये सोच उसका मन मानों पिघलने लगा|
कहानी आगे जारी रहेगी,,,,,,,,,
सोचते सोचते जतिन उन भग्न घरों की कतारों से गुजर रहा था| उसके कदम चलते चलते एक मंदिर की चौखट पर आते ठहर जाते है, उस पल उसकी चौखट में प्रवेश करते एक पल में ही उसका क्लांत मन जैसे पुनः ऊर्जावान हो उठा| उसने सर झुका कर मन ही मन प्रार्थना करते हाथ जोड़ लिए|
“अ दोंदे जेवा एस्ता ला कारेटेरा !”(ये रास्ता कहाँ जाता है)
“दे व्युलते हतिया, de vuelte hacia|” (पीछे वापस जाओ|”
जतिन आवाज़ की दिशा में देखता है| वो कोई विदेशी सैलानियों का ग्रुप था और स्पैनिश में किसी लोकल व्यक्ति से कुछ पूछ रहा था जिसका वह स्पेनिश में ही जवाब दे रहा था| ये देख जतिन मंदिर से नीचे उतर आता है| जब तक वह नीचे आता है वह विदेशी वहां से जा चुके थे और मंदिर के पास ही एक वृद्ध व्यक्ति अब किसी दूसरे सैलानियों से घिरा था|
“बाबा बताओ न हमे भी यहाँ की कहानी|” उस ग्रुप में से कोई लड़की बोली|
“ये सिर्फ कहानी नही सच है सुनना चाहो तो चलो म्हारे संग|”
जतिन उस वृद्ध की घनी दाढ़ी मुछों के पीछे झुरियों भरा अनुभवी चेहरा देखता है| अब वह चार पांच लोगो का ग्रुप था जो उस वृद्ध के पीछे पीछे जा रहा था, जतिन भी बस उनके साथ हो लिया| उसे उम्मीद थी कि हो न हो ये वही बाबा होगा जिसके बारे में उसके भाई ने उसे बताया था| उस ग्रुप के साथ चलते चलते उसे इतना तो अहसास हो गया कि यहाँ से सैलानियों का आकर्षण का केंद्र वह वृद्ध अपनी विविध भाषा ज्ञान के कारण रहता होगा| जो जिस भाषा में पूछता वह उसी में उसे जवाब देता|
वह देखता है कि वह वृद्ध उन टूटे घरो की ओर बढ़ता हुआ अपने शब्दों से वहां की रुपरेखा खींचता जा रहा था|
“घणों रात थी अंधियारी जब सारा गाँव एक ही रात में खाली हो गया – साच्ची सारा का सारा गाँव खाली हो गया – एक भी न रुका कोणी - वो देखो टूटो चूल्हा, बैलगाड़ी का टूटो पहिया – सब ऐसा ही छोड़ छाड़ चले गए – कहते है चूल्हा तक ठीक से न बुझा था – आज भी रसोड़े में उसकी गर्मी महसूस कर सकते हो – |” वह वृद्ध लाठी टेकता आगे आगे बढ़ता हुआ यूँ बखान करने लगा मानों अभी सब जीवंत हो उठेगा जिससे सबके चेहरे पर ढेर कौतुहल छा रहा था| सब तरह तरह के प्रश्न कर रहे थे|
“आपनी आण के लिए जाण देने वाली राजस्थान की मरू भूमि कब मुगलों की सुनती – जाति के ब्राह्मण पालीवाल आपनी जाण दे देते पर आपणी बेटी न देते |” कोई फिर प्रश्न करता है जिसका वह बाबा उत्तर देता हुआ कहता है – “सुन्दर !!! – गाँव के मुखिया की बेटी फूटरी(सुन्दर) थी – कहते है वह पलक उठाती तो सबेरा हो जाता वह अखियाँ मूंदती तो रात हो जाती – यही सुन्दरता उसकी जान की दुश्मन बन लेकिन आपणी आण के आगे किसी नामुराद का देह आकर्षण से न पिघली उसे तो प्यार चाहिए था साच्चा प्यार..|”
“भाईलो |”
जतिन भी उन सैलानियों की तरह उस अतीत में जैसे खो गया था तभी एक आवाज़ सबकी तन्द्रा भंग करती है, शायद उन टूरिस्ट का लोकल गाइड आ गया था| वे सब अब उनके साथ चल दिए| अब जतिन और वृद्ध अकेले रह गए| वृद्ध फिर धीरे धीरे लाठी टेकता मंदिर की ओर चल दिया, उसके पीछे पीछे जतिन भी|
अपने पीछे किसी का आना देख वह पीछे मुड़ता हुआ पूछता है – “थे म्हारे लारे क्यों आया??”(तू मेरे पीछे क्यों आ रहा ?)
“मुझे आपसे बात करनी है |”
“यहाँ से जाओ अब सूर्यास्त होने वाला है – अभी यहाँ कोई नही रुकता और आज का मौसम तो बड़ा खराब है – जाओ नही तो लौट नही पाओगे कभी |” अपना सिर ऊपर कर आसमान की ओर देख कर कहता हुआ वह वृद्ध फिर चल देता है पर जतिन उसके पीछे पीछे आता रहता है|
“मैं बहुत मुश्किल में हूँ आप ही मेरी मदद कर सकते है –|”
“जो रास्ते मुश्किल देते है वही समाधान भी देते है - |”
“कुलधरा के गाँव में एक रात मेरी पत्नी रह गई थी उसके बाद से वह अजीबोगरीब व्यवहार कर रही है – आप मेरी मदद कीजिए|”
जतिन की बात सुन एकदम से उनके कदम ठिठक जाते है और वह पीछे मुड़ते हुए उसकी तरफ देखते हुए पूछते है – “थे कठा सु आया हो !!” जतिन का चेहरा देख फिर पूछते है – “कहाँ से आए हो ?”
“उदयपुर से पर अभी हम जैसलमेर में है – कुलधरा ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी |” जतिन का दर्द फूट पड़ा|
इससे वह वृद्ध जैसे भमक पड़ा – “कुलधरा किसी का बुरा न चाहता जो जैसा करता है उसे वैसी सजा देता है – तूने कुछ न किया तो थारे को बी कुछ न होगा – म्हारा जैसल प्रेम करण जाने है – नफरत की कोणी जगह यहाँ |”
वृद्ध आगे बढ़ता रहा, इससे पहले जतिन कुछ कहता उसे कोई जानी पहचानी आवाज़ रोक लेती है, वह मुड़कर देखता है तो वैभव वहां भागता हुआ आ रहा था| उसे अपनी ओर आता देख जतिन के होश उड़ जाते है वह झट से वैभव के पास दौड़ जाता है|
“तुम यहाँ कैसे !!”
जतिन अवाक् उसका पसीने से लतफत चेहरा देखता रहा|
“भईया – यहाँ रेत का तूफान आने वाला है इसलिए मैं आपको लिवाने आया हूँ – कब से आपका नंबर लगा रहा था – तब से आपका नम्बर आउट ऑफ़ कवरेज एरिया बता रहा है|” दौड़ते हुए आने से वैभव की साँस ऊपर नीचे हो रही थी वह आगे का प्रश्न अपने भाई की आँखों में पढ़ता हुआ कहता है – “वे दोनों भी मेरे साथ कार में है – चलिए आप |”
जतिन अब वैभव के पीछे पीछे चल देता है| धीरे धीरे सूरज क्षितिज में समाता जा रहा था, वह वृद्ध वही खड़ा उनको देखता रहा| वे अभी भी गाँव की सीमा में थे, कार की तरफ वे तेज़ी से बढ़ रहे थे कि नीतू को वे बदहवास सी अपनी ओर आता हुआ देखते है|
“जीजू दीदी |” नीतू दूर से ही उन्हें अपने हाथ से दूसरी दिशा की ओर इशारा करती है|
गाँव के भग्नावशेष के विपरीत रेत की ओर वे किसी को तेज़ी से जाता हुआ देख रहे थे| अब तीनो उसी ओर चल देते है| वह पीछे से लहरिया चुन्नी को रेत पर घिसटते हुए जाते देखते पीछे पीछे अपनी भरसक कोशिश में उस ओर चल देते है| पर उसके रेत पर सटीकता से पैर जमा कर चलने की अपेक्षा उन तीनो के अनाभ्यस्त पैरो की गति धीमी थी इससे जल्दी ही वह उनकी आँखों से ओझल हो गई|
जतिन परेशान हो उठा| वह अपनी भरसक कोशिश में इधर उधर तेज़ी से पागलों की तरफ पुकारता भागता रहा| धीरे धीरे घिरते अँधेरे में उन तीनो की आवाज़ गूंज उठी|
“निधि - |”
“दीदी - |”
“भाभी - |”
धीरे धीरे आसमान का रंग बदलने लगा, काले श्यामल बादलों के घुंघराले केश चारोंओर छाने लगे| समय से पहले ही वहां एकदम से अँधेरा छा गया| जतिन वैभव की ओर मुड़ता हुआ कहता है –
“तुम दोनों जाओ यहाँ से – मैं निधि के बिना नही लौटूंगा|”
“और हम आप दोनों के बिना नही लौटेंगे|” दोनों एक साथ कहते हुए एक दूसरे का हाथ कसकर थाम लेते है – “अब जो होगा साथ में होगा |”
वैभव और नीतू दोनों साथ में जतिन की ओर आ रहे थे और जतिन का मन बेबस हो चला|
***
उस पल जतिन जैसे किसी दोराहे में था, आखिर वक़्त का फैसला मान उसे स्वीकृति देनी पड़ी पर मन ही मन मंदिर के इष्ट को याद कर पूरी ताकत से वह वही से खड़ा खड़ा चिल्लाया –
“तुम जो भी हो – सुनो मुझे - मैं अपनी पत्नी को लिए बिना यहाँ से वापस नही जाऊंगा या तो तुम मुझे भी अपने रहस्य में समा लो या छोड़ दो मेरी निधि को – मैं उससे बेइंतहा प्यार करता हूँ – करता हूँ – करता हूँ |” जतिन पागलो की तरफ रेत के टीलों से मानों चीख चीख कर अपने मन की कह रहा था और उसकी आवाज़ सन्नाटो की दीवारों से टकरा टकरा कर वहां गूंज रही थी – “अगर आज प्यार यहाँ हार गया तो सोच लो ये कलंक तुम्हें भी चैन लेने नही देगा – निधि – निधि – मैं इंतजार कर रहा हूँ तुम्हारा |” उसकी आवाज़ गूंज उठी|
वह वृद्ध जो सूर्यास्त के बाद कभी उस मंदिर से बाहर नही आता था आज प्रेम की पुकार उनके कदम भी रोके न रखे रह सकी|
कहानी आगे रहेगी..........
वे चारों अपने चारोंओर के अँधेरे में उस नीरवता को देख रहे थे| सहसा रेत का गुबार उड़ने लगा, ऐसा तूफान जिसे इससे पहले कभी किसी ने यहाँ उठते नहीं देखा, हवाओं का भीषण शोर चारोंओर फैलने लगा| रेतीला तूफान धीरे धीरे अपनी गति पकड़ रहा था जिससे घबराकर वे चारों घुटनों के बल बैठ गए, वह वृद्ध उनको इशारा करता है नजदीक आने का, धीरे धीरे वे रेत पर सरकते हुए उस बवंडर से बचने के लिए एक दूसरे का हाथ थाम लेते है| रेतीले कण उसके शरीर में परत बनाने लगे थे मानों रेत के बारीक़ कण जिस्म में चिपक गए हो| पर फिर भी एक दूसरे का हाथ थामे वे जमी में डटे रहे| तूफान उनके सिर के ऊपर मंडराता रहा और वे हौसले से वही टिके रहे| कुछ पल लगा जैसे रेत उनके जिस्म में असंख्य छेद कर देगी इससे उसके प्रहार से बचने वे खुद को अपने में समेटे रहते है|
फिर काफी देर बाद तूफान के शांत पड़ते वे सर उठाकर अपने चारोंओर देखते है| उनके आस पास जाने कितने रेतीले टीले बन चुके थे| उस पल अजीब सी रौशनी उनके चारोंओर थी जिसकी आभा जमीं से यूँ मिली थी कि क्षितिज कहाँ है कुछ पता नही चल रहा था| न समय का पता चल रहा था कि दिन है कि रात !! वे सब खड़े होकर अपने अपने ऊपर की रेत झाड़ते हुए हौसले की मुस्कान से एक दूसरे की ओर देखते है बस उनके मन में सबके सुरक्षित होने का सुकून था|
चारोंओर एक मातमी सन्नाटा छाया था, ऐसे में भय कोई भी आकृतियाँ बन बार बार उनका ध्यान इधर उधर भटका देता कि तभी वे कोई आवाज़ सुनते है, सबकी गर्दन एक साथ उस आवाज़ की ओर मुड़ जाती है| किसी के रुदन की आवाज़ उनका ध्यान खीँच कर फिर उन भग्नावशेष की ओर उन्हें ले जाती है| जतिन बिन सोचे उस ओर अकेले बढ़ने लगता है तो वृद्ध उसे रोक लेते है और इशारे से सबको साथ चलने का संकेत करते है| जतिन देखता है कि बाबा के हाथ में मंदिर का रक्षा सूत्र था, क्या इसी कारण वे सब सुरक्षित है !! तभी बाबा नही चाहते थे कि वे सभी एकदूसरे का हाथ छोड़े नहीं तो शायद वे इस अजीब तिलिस्म समय में खो सकते थे|
“ये रक्षासूत्र है – कुछ भी हो जाए बस इसे अपने से अलग नहीं करना |”
बाबा की बात पर सभी अपना अपना रक्षासूत्र कस कर थाम लेते है|
जतिन अब उस आवाज की ओर बढ़ने को व्यग्र था| वह बाबा से पूछता है – “ये कैसी आवाज है ?”
बाबा आसमान की ओर नज़र उठाता हुआ कहता है – “समयकाल के परे है हम – अब आगे क्या होगा करणी माता जाने बस अपना विश्वास बनाए रखना – कोई भी आत्मा परमात्मा से बड़ी नही होती – संभव है अतीत फिर से खुद को दोहराए तब इतना ध्यान रखना कि तुम अतीत बदल नही सकते लेकिन भविष्य बना सकते हो -|”
“क्या मतलब !!” जतिन औचक पूछता है|
“ये समयकाल बदलने का संकेत है – बीता हुआ समय और वर्तमान के बीच का समय है – बस इस समय चक्र में खुद को खोने मत देना वरना तुम खुद भी लौट नही पाओगे और न अपनी पत्नी को बचा सकोगे - चलो मेरे साथ |”
वे सभी एक साथ उस आवाज़ की दिशा की ओर चल देते है| एक बड़े टूटे आंगन के अन्दर वे एक साथ प्रवेश करते है, आवाज़ अब स्पष्ट सुनाई देने लगी थी| देखते देखते आस पास जैसे हलचल सी बढ़ने लगी| जैसे बहुत सारे लोग कही आ जा रहे हो पर दिखाई कोई नही दे रहा था| उनके आस पास कोई चलचित्र सा चलने लगा|
एक लड़की बुरी तरह से रो रही थी, उसके बगल में बैठी औरत उसे समझा रही थी| शायद वह उसकी माँ थी, लड़की वहां से नही जाना चाहती थी| माँ समझाए जा रही थी| आखिर लड़की बिफ़र पड़ी – “मन्ने आपण घर से न जाणा सा”
उस लड़की को रोता बिसूरता छोड़ वह माँ शायद किसी को बुलाने उठती है उतनी देर में वह लड़की अपनी चुन्नी अपने चेहरे के आस पास इस तरह लपेट लेती है कि उसका दम घुटने लगता है, ये देख जतिन उसे रोकने उस ओर बढ़ने लगता है तो वृद्ध उसे रोक लेता है|
जबतक वह औरत वहां लौटती है वह लड़की अपनी आखिरी सांस ले रही थी| उसके हलक से एक चीख फूट पड़ी| जत्था रवाना होने को तैयार था, अब वापसी की कोई गुंजाईश नही थी| कितने आंसू वहां बह निकले ये रात के अँधेरे चुपचाप पी गए| वे उस खूबसूरत चेहरे को देखते है जो अपनी अस्मिता के लिए खुद को मिटा गई थी| उस दर्द भरे चेहरे को देख पाषाण ह्रदय भी पिघल जाए| जो चेहरा किसी प्रेमी के सरस हथेलियों में समाने को ललाईत था अब वह मृत्यु की गोद में अपनी अस्मिता लिए समा गया|
जत्था आगे बढ़ने लगा| गाँव खाली होने लगा| वे चारों अपने आस पास अचानक से लोगो को गायब होता देखने लगे| धीरे धीरे वहां हलकी हलकी रौशनी होने लगी| वे अपने आस पास देखते है पीली रेत स्वर्ण सी दमकने लगी थी|
तभी सबकी नज़रो के सामने निधि भागती हुई दिखती है| वह इस तरह बार बार पीछे देखती हुई भाग रही थी मानों कोई उसके पीछे पड़ा हो| वह डरी सहमी बार बार पीछे देखती हुई भाग रही थी| समय का वह ऐसा चक्र था जिसमे वह चल तो रही थी पर आगे नहीं बढ़ पा रही थी| बीता हुआ सारा घटनाक्रम फिर से उनकी आँखों के आगे दोहराया जा रहा था|
निधि जब वहां से भाग गई तभी वे दोनों गुंडे उसी स्थान पर खड़े दिखते है जहाँ अभी अभी वह लड़की खुद का गला घोंटकर मार चुकी थी| वे उसे निधि समझकर उसके पास जाते है पर उसके बाद हवा का ऐसा तेज झौका आता है कि वे किसी तिनके की तरह उड़ते उस कार की तरफ गिरते है| वे घबराकर जल्दी से कार में बैठकर चलने को हुए लेकिन कार स्टार्ट नही हुई| वे दोनों घबराकर कार को खोलकर उससे बाहर निकलना चाहते थे लेकिन ये मौत की आहट थी जिसके आगे उन दोनों की कुछ न चली कार का दरवाजा बंद रहा और अंदर रेतीला बवंडर ऐसा उठा कि जब वह शांत हुआ तो बस कार में दो लाशें दिखी|
वे सभी हैरानगी से एकदूसरे को देखते समझ गए थे कि आखिर उन गुंडों की मौत कैसे हुए पर निधि वो कहाँ थी|
जतिन की दृष्टि उस घर के कोने में किसी आकृति पर सहसा ठहर जाती है वह हाथ छुड़ाकर उस ओर तेज़ी से जाता है|
बाबा उसे रोकते है|
“ये रक्षासूत्र लेकर जाओ|”
वे उसके हाथ में मंत्रित धागा पकड़ा देते है जिसे कसकर अपनी कलाई में लपेटे वह निधि की ओर बढ़ता है|
“निधि |”
वह निधि थी, वह उसे अपनी बाँहों में भींचे उसका गाल हौले हौले थपथपा रहा था|
वह कराहते हुए अपनी आंखें खोलती है तो सामने जतिन को देख तड़प कर उसमे समा जाती है|
“निधि |”
“जतिन |”
वैभव और नीतू भी उनकी तरफ आते है| अब वे चारों एक दूसरे को थामे स्नेहमयी मुस्कान से एक दूसरे को देख रहे थे|
“जतिन तुमने मुझे बचा लिया – वे गंदे लोग थे – मैं उन लोगों से भाग आई – मैं बहुत डर गई थी –|”
“हाँ हाँ निधि मैं आ गया हूँ – अब तुम्हें कुछ नही होगा – चलो चलते है यहाँ से |”
वह निधि को सहारा देकर उठा लेता है| निधि उसका हाथ थामे थी और जतिन उसे अपनी ओर ले जा रहा था पर कुछ ऐसा था जिसपर उनकी नज़र नहीं गई| निधि जहाँ बेहोश पड़ी थी अब वहां उसकी वही ओढ़नी पड़ी हुई थी जिसे पहनकर वह यहाँ आई थी| जतिन निधि को लिए बाकियों के पास बढ़ रहा था जबकि वह ओढ़नी अभी भी वही पड़ी थी|
क्रमशः...............
अब वहां का आकाश साफ़ होने लगा था जैसे रात के बाद अब सुबह होने लगी हो| निधि को सामने देख नीतू झट से उसके गले लग जाती है| वे चारों अब एकदूसरे का हाथ थामे खड़े थे|
तभी जतिन की नज़र अपने आस पास जाती है, वह चौंकते हुए पूछता है – “वैभव – बाबा कहाँ गए ?”
“यही तो थे|” कहते हुए वह अपने अपने हाथ के रक्षासूत्र देखते हुए मंदिर की ओर देखते है| जहाँ से भोर के घंटे की आवाज आ रही थी|
जतिन तुरंत दौड़ता हुआ उस मंदिर की ओर जाता है| मंदिर के अंदर प्रवेश करते उसे पूजा करते हुए वही बाबा दिखते है| उन्हें देख जतिन चैन की एक साँस छोड़ता हुआ कुछ कहने को हुआ कि बाबा बोल पड़े| वे बिना उसकी ओर देखे ही कह रहे थे –
“प्रेम जब सच्चा हो तो वह मृत्यु की बाधा भी पार कर जाता है – ये तुम्हारे सच्चे प्रेम की जीत है – जाओ अब लौट जाओ |”
“लेकिन अगर आप मार्ग नहीं दिखाते तो मैं ये कभी संभव नहीं हो पाता...आप |”
जतिन की बात बीच में काटते हुए वे फिर बोल पड़े – “मेरी एक बात याद रखना तुमने बाधा तो पार कर ली पर इस श्राप से कभी पार नहीं पा पाओगे जो तुम्हरी पत्नी को यहाँ रात बिताने पर लगा है |”
“क्या कह रहे है आप ? तो अब क्या होगा निधि के साथ ?”
“सब ईश्वरीय उत्कंठा से संभव होता है मनुष्य तो मात्र समय की एक कठपुतली है – समय ने तुम्हे जो दिया है उसे स्वीकार कर आगे बढ़ जाओ – और हाँ याद रखना फिर कभी इस जमीन पर वापस मत लौटना – जाओ करणी माता थारी रक्सा करेंगी |”
जतिन मौन ही उन्हें प्रणाम करके वापस हो गया| वे सभी एक दूसरे का हाथ थामे कुलधरा से बाहर निकल गए| बाबा मंदिर से ही उन्हें देख रहे थे जैसे मन ही मन तय कर रहे हो कि टूरिस्टों को सुनाने के लिए एक नई दास्तान लिए मिल गई हो|
वे कुलधरा की सीमा पार कर चुके थे और सीमा के अन्दर लहरिया दुपट्टा ओढ़े वह अभी भी रेत पर अपना निशान छोड़ती गाती हुई चली जा रही| हवाओं में गीत गूँज उठा.......“आखियाँ सु आसूणा म्हारे नित बरसे.....कद आवो म्हारा परदेसी आखियाँ तरसे.......
***
शरीर की थकान के ज्यादा उनका मन त्रस्त था, कब वे चारों घर वापस आए और कब अपने अपने कमरे में जाते नींद की आगोश में समा गए वे खुद भी न जान पाए| अगली सुबह उन सबके जीवन की एक नई सुबह थी| सुबह की पहली भोर से ही जतिन की आंखे खुल गई, वह करवट बदलता अब निधि को देखता है जो किसी बच्चे की जैसी नींद में खोई थी| उसके निश्छल चेहरे पर सुकून की नींद देख जतिन ने उसे जगाना उचित नही समझा और धीरे से उसका माथा चूमते वह उठ गया|
बालकनी में आते जैसल की सुबह के उजास को पीता एक भरपूर अंगड़ाई लेता आसमान की लाली को अपने चेहरे की भरपूर मुस्कान से जैसे शुक्रिया कहता है फिर अपने लिए चाय बना कर बालकनी पर वापस आता है तो वहां पहले से वैभव को बैठा पाता है|
दोनों सुबह की अभिवादन भरी मुस्कान से मुस्कराते है| दोनों की नज़रे देखती है कि अब वहां नीतू भी आ रही थी| नीतू के कहने पर भी वैभव उन दोनों के लिए चाय बनाने चला जाता है|
“और नीतू नींद आई|”
“हाँ जीजू नींद तो आई पर..|”
आखिरी का पर जतिन का पूरा ध्यान नीतू की ओर खीँच लाता है ओर वह अपनी प्रश्नात्मक नज़रों से उसको देखने लगता है|
“बहुत से प्रश्न मेरे दिमाग में सारी रात घूमते रहे – आज सोचती हूँ तो लगता है जैसे वो सब कोई सपने जैसा था |”
एक गहरा उच्छ्वास छोड़ता हुआ जतिन कहता है – “हाँ एक सपना ही था जिसे हम भूल जाए तो यही अच्छा है|”
“कैसे भूल जाऊं मैं - जो अब तक हमारे साथ रह रही थी वो दीदी के शरीर में एक आत्मा थी उफ़ सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते है – क्या दीदी ने कुछ बताया – क्या उन्हें और कुछ भी याद है ??”
नीतू की अधीरता पर जतिन सहज भाव से कहता है – “ नही कुछ ख़ास नही – उसे तो वही तक याद है जब वो उन गुंडों से भाग कर कुलधरा में भटक जाती है बस उसने उनकी चीखे सुनी फिर वह बेहोश हो गई – और ये तो तुमको पता ही है कि हमने उन्हें मरा हुआ पाया था – बाबा ने कहा भी था कुलधरा किसी का बुरा नही चाहता लेकिन जो जैसा करता है उसे वैसी सजा देता है – |” कहते कहते जतिन चेअर की पुश्त से पीठ सटाता हुआ कहता रहा, इसी बीच वैभव भी वहां चाय लेकर आ जाता है और बिना व्यवधान डाले उनकी वार्ता में शरीक हो जाता है|
“मैंने पूछने में ज्यादा स्ट्रेस नही डाला कि निधि कहीं परेशान न हो जाए बल्कि मैं तो अब तुम दोनों से भी यही चाहूँगा कि कोई उससे इस बारे में कुछ बात न करे तो यही अच्छा है और न अपने अपने घर पर इससे सबंधित कोई चर्चा करे हमने वैसे भी उन्हें कुछ नही बताया है और इस एक महीने में हमने जो कुछ भी झेला है उसे मैं बार बार बिलकुल भी नही दोहराना चाहूँगा – कभी कभी कुछ न जानने से ज्यादा सुकून मिलता है चाहे वो राज़ राज़ ही रहे |” कहते हुए जतिन अपना कप नीचे फर्श पर रखता है तो दोनों सहमति में अपना अपना हाथ जतिन के हाथ पर रखते हुए आँखों से भरोसा देते है जिससे जतिन के चेहरे पर कुछ राहत की हलकी मुस्कान तैर जाती है|
सभी कुछ पल तक धीरे धीरे अपनी चाय सुड़कते रहते है फिर वैभव कहता है –
“भईया फिर निकलना कब है ?”
“मेरे ख्याल से निधि को आज आराम करने देते है – हम कल सुबह निकलते है उदयपुर के लिए |”
“ठीक है फिर मैं आज सब तैयारी कर लेता हूँ |”
जतिन का ध्यान नीतू पर जाता है जो उसे कही खोई हुई सी लगती है वह उसे टोकता है –
“क्या सोच रही हो ?”
नीतू अपने खुले बालों को एक तरफ करती जैसे कही खो हुई कहती है – “मेरे मन के कुछ सवाल है और जब तक इनका जवाब नही मिल जाएगा – मुझे ऐसी ही बेचैनी रहेगी|”
वैभव हैरत से उसकी ओर देखता है तो जतिन के चेहरे पर हलकी मुस्कान तैर जाती है – “इसी इंसानी प्रवृति के कारण तो सारी दुनिया तबाह है – मन हमेशा सब कुछ जान लेना चाहता है पर नीतू कुछ चीजे समय काल के परे होती है और उन्हें उन्ही के रूप में स्वीकार लेना चाहिए ज्यादा प्रश्न नही करने चाहिए – तुमने ध्यान नही दिया होगा पर बाबा ने भी अपने इशारे इशारों में सब कह दिया – सच हमारे सामने होता है पर कई बार हम उसे स्वीकार करने के बजाय बस खोज में लग जाते है उस नादान बच्चे की तरह जो क्लास का सबक सुनने से ज्यादा प्रश्न करने में अपना दिमाग लगा देता है|”
“ऐसा क्या था भईया मैं भी जानना चाहूँगा|”
“पता है पहले मैं भी बहुत परेशान था – मेरा मन बहुत उलझा हुआ था लेकिन जब मैंने कुलधरा के मंदिर की चौखट लांघी तो जैसे मेरी आँखों के सामने का सारा धुंध छटने लगा और पीछे जा कर मैंने बहुत कुछ सोचा कि वो जो भी है उसका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुंचाना तो बिलकुल भी नही है बल्कि निधि को भी उसने कोई नुक्सान नही पहुँचाया – मैं जब भी उसके नजदीक पहुँच कर अपना प्रेम का इज़हार करता तो एक अतृप्ति सी पाता उन वीरान आँखों में – वहां किसी से कोई बदला लेना नही होता बस जैसे गुजरे वक़्त से कोई शिकायत रहती पर अफ़सोस गुजरा वक़्त कभी नही बदलता इसलिए तो शायद उसने हमे अपने रहस्यमय अतीत का साक्ष्य बनाया और सदा के लिए उस वक़्त में अपनी शिकायत दर्ज करती चली गई बिलकुल वैसी ही जैसी सदियों पहले अपनों से दूर चली गई थी वह|”
“एक बार तो उसकी बेचैनी से मैं उसकी ओर जाने भी लगा पर बाबा ने मुझे रोक लिया नहीं तो मैं भी आज कोई रहस्य बन जाता – मुझे लगता है जो लोग वहां अचानक गायब हो जाते है वो सब इसी समय काल को पार कर चले जाते होंगे – |”
जतिन कहे जा रहा था और दोनों हैरान उसे चुपचाप सुन रहे थे|
“बाबा ने एक बात बोली थी कि जो रास्ते मुश्किल देते है वही समाधान भी देते है यही मात्र सूत्र वाक्य से मैंने ये जंग जीती – मैं तो एक आम इंसान था और उस अदृश्य शक्ति से सामना करने की कोई सामर्थ नही थी बस मन में विश्वास और अपने प्रेम पर अटूट आस्था थी जिसका दामन मैंने थामे रखा और परिणाम तुम्हारे सामने है|”
“हाँ भईया आप ठीक कहते हो वो बाबा आपको मिले और उस रात हमारे साथ खड़े रहे ये यकीनन आपके विश्वास का बल था नहीं तो मैंने उनके बारे में यही सुना था कि वे हर किसी से नही मिलते – कोई नही जानता उनके बारे में बस ऐसे ही टूरिस्टों के बीच आते और वहां का किस्सा सुनाते कहीं चले जाते – आपकी तलाश निष्पाप थी और जो तफरी समझ कर जाते है वे उन्हें कभी नही मिलते |”
जतिन वैभव के कंधे पर हाथ रखता हुआ कहता है – “बिलकुल – ईश्वर ने इसीलिए तो प्रेम बनाया ताकि जब सारे तीर तलवार थक जाए तो सारा संसार प्रेम से जीत लिया जाए – इस कहानी में भी यही हुआ सलिम राजा जिस लड़की को पाना चाहता था उसने अपनी जान देकर उसकी नफरत को हरा दिया – प्रेम हथियाने की चीज नहीं है इसलिए तो निधि के जरिए उसने प्रेम पाना चाहा पर जबरन नही जब उसे लगा कि मैं उस शरीर से नही बल्कि निधि के मन से प्यार करता हूँ तो वह हमारे रास्ते से स्वेक्षा से हट गई – प्रेम में बहुत ताकत होती है |” फिर दोनों की ओर गौर से देखते हुए कहता है – “इसलिए तो अब मुझे तुम दोनों के प्यार को भी मिलाना है|”
जतिन की बात सुन सामने बैठे दोनों के गाल शर्म से सुर्ख हो जाते है|
क्रमशः...............
दूसरे दिन सुबह से ही सारी तैयारी कर वे निकलने को बिलकुल तैयार थे| वैभव कार में सामान जमा रहा था तो नीतू इठलाती हुई उसे सामान देती जा रही थी| जतिन और निधि बचा हुआ सामान पैक कर रहे थे|
“तो डियर कहाँ जाओगी पहले मायके या ससुराल |”
जतिन ने निधि को छेड़ते हुए कहा पर वह जवाब देने के बजाय अपने मुंह में हाथ रखे बाथरूम की तरफ भागी तो जतिन परेशान हो उठा| वह देखता है कि निधि को लगातार उल्टियाँ हो रही थी वह घबरा कर जल्दी से वैभव को आवाज़ लगाकर डॉक्टर को बुलाने को कहकर निधि को संभालता है|
नीतू भी झट से भागती हुई आ जाती है|
“लगता है दी को बदहजमी हो गई है – क्या ऐसे में हमारा अभी जाना सही है !!”
तब तक वैभव किसी लेडी डॉक्टर के साथ वहां प्रवेश करता है| वे लेटा कर निधि का चेकअप करती है| काफी देर देख लेने के बाद वे कुछ पर्चे पर लिखती हुई उनकी तरफ बढ़ाती हुई कहती है –
“ये कुछ विटामिन और टॉनिक लिखे है – थोड़ी वीकनेस है |”
“लेकिन हुआ क्या है ?” जतिन परेशान हो उठा|
डॉक्टर मुस्कराती हुई कहती है – “वही जो हर स्त्री चाहती है -|” सब डॉक्टर की ओर हैरत से देखने लगते है तो वह जल्दी से कहती है – “अरे आपकी पत्नी माँ बनने वाली है बस अब इनका भरपूर ध्यान रखिए और इनको कुछ नही हुआ है|”
“क्या सच में !!!”
ये सुनते जतिन और निधि मारे ख़ुशी के अपनी बेख्याली में एक दूसरे के गले लग जाते है जिससे वहां हँसी की फुहार से वो पल भीग जाता है|p
रूहानी सफ़र क्या यही खत्म हुआ तो नही..ये आगाज है नई कहानी का....आगे की कहानी का...जहाँ निधि की आगे की जिंदगी क्या इस श्राप से मुक्त रह पाएगी ? क्या इसके बाद से उनका जैसलमेर से रिश्ता खत्म हो जाएगा या जैसलमेर उन्हें फिर बुलाएगा अपने पास !! जानने के लिए पढ़ते रहे...
जब जतिन अपनी पत्नी निधि को कुलधरा के श्राप से बचा लेता है ऐसा उसे लगता है पर क्या कोई श्राप इतनी आसानी से पीछा छोड़ता है!!!!....कहानी अब बीस साल बाद...
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लखनऊ विश्वविद्यालय वार्षिकोत्सव के सांस्कृतिक कार्यक्रम के कार्यक्रमों की कतार में अब जो नृत्य प्रस्तुत किया जाना था अब सभी को उसका बेसब्री से इंतजार था| नृत्य के लिए अभी जिन दो लड़कियों का नाम पुकारा गया, ये सुन सब यूँ शांत होकर मंच की ओर अपनी आँख गड़ा देते है मानों समस्त कार्यक्रम की जान वही एक प्रोगाम रहा, संगीत की सुर लहरी के साथ इंडो वेस्टन राग मिक्स धुन मंच से होती चारोंओर फैलती मौजूदा लोगों को अपने पाश में जकड़ती चली गई|
अब मंच पर दोनों लड़कियां अपने अपने स्थान में आती कलात्मकता के साथ वेस्टन मिक्स भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत करती हुई उस एक पल सबको अपने नृत्य से मानों मदहोश कर देती है| नृत्य के बंद होते जैसे एक झटके में तालियों की गडगडाहट के साथ पूरे उल्लास से सभी अपनी दुनिया में वापिस आते है इसी के साथ कार्यक्रम समाप्ति की ओर बढ़ चलता है|
“पलक...|” एक गूंजती हुई आवाज सुन वह नवयौवना झटके से पलटकर आवाज की ओर देखती है| चक चाँद सा दुधिया चेहरा उस ओर अपनी कंची कथई आँखों से देखता उमंग से भर उठता और आवाज की ओर उसके कदम तेज हो जाते है|
“मामी जी|” वह दौड़कर उनके गले में जैसे झूल जाती है|
“पलक – क्या खूब डांस रहा – तूने तो धूम मचा दी स्टेज में |” वह महिला हर्ष से उसका चेहरा अपनी हथेलियों में भरती उसका माथा चूम लेती है|
“ये अकेली नही हम भी थे -|”
आवाज सुन मामी पीछे पलटती गेरुहवें रंगत की दूसरी नवयौवना की ओर देखकर भी अपनी बांह फैला देती है|
“मुझे पता है झलक के बिना पलक अधूरी है |” उसका माथा भी चूमती अब दोनों का हाथ थामती हुई कहती है – “स्टेज में तुम दोनों का साथ तो कलाम का था|”
“पर उससे क्या पापा मम्मी को तो फुर्सत ही नहीं |” झलक रूठती हुई बोली|
“ऐसा नहीं है बेटा – मम्मी की तबियत ठीक नही थी इसलिए नही आ पाए – |”
“मम्मी ठीक हो गई थी फिर भी नही आए |”
“पापा को तो बाराबंकी से न निकलने का बहाना चाहिए |”
बारी बारी से दोनों अपनी शिकायत दर्ज कराती है तो मामी मुस्करा देती है – “अरे बस बस पापा परसों आ रहे है – तभी शिकायत कर लेना |”
“क्या या..या..सच !!!” दोनों एक साथ खिलखिला पड़ी|
“हाँ आज नही आ पाए आदर्श उन्हें लिवाते हुए आ रहा है |”
“वाह भईया भी !!”
“पलक झलक .. नमस्ते आंटी ..|” तभी एक दौड़ती आवाज एक साथ पुकारती अब ठीक उनके कंधो पर झूल रही थी|
“खुश रहो बेटा – तुम इनकी बेस्ट फ्रेंड अनामिका हो न !! चलो अब मैं जरा तुम्हारे मामा जी को देखती हूँ – पता नही मुझे ढूंढते ढूंढते पूरा कॉलेज घूम लेंगे |” हंसती हुई वे उनके विपरीत दिशा की ओर निकल जाती है|
“अनु तू कहाँ थी !! कब आई !! तूने डांस देखा हमारा !!”
“अरे बस बस एक साथ इतने सारे सवाल – मैं प्रोग्राम की शुरुआत में आ गई थी और डांस भी देखा – क्या स्टेज तोड़ परफोर्मेंस थी यार – काश मुझे जाना न होता तो पिछली बार की तरह हम तीनों साथ साथ स्टेज में होती |” एक हलकी उदासी उसके चेहरे छा गई जिसे पल में झाड़ती हुई वह फिर से चहकती हुई बोली – “पर तुम्हें सुनाने के लिए एक धाँसू न्यूज है मेरे पास |”
“पलक ...तुम लोग यहाँ क्या कर रही हो – चलो – गो बैक इन द स्टेज |”
“ओके मैम |” तीनों एक साथ हाँ में सर हिलाती साथ में स्टेज की तरफ भागती हुई अनामिका की सुनती है – “बाद में बताती हूँ – |”
तीनों खिलखिलाती हुई अब साथ में चल देती है|
प्रोग्राम के बाद दोनों इतनी व्यस्त रही कि होस्टल में डिनर के बाद जाकर उन तीनों को एक साथ बिताने को एकांत मिला| पलक झलक दोनों रूममेट थी तो उन दोनों की ही बेस्ट फ्रेंड अनामिका जिसका उनके रूम से दो रूम छोड़कर रूम था पर रात के सन्नाटे में वो चुपचाप उनके रूम में अपनी गोसिप के लिए चली आती|
अभी भी तीनों एक चादर में घुसी अँधेरे में धीरे धीरे फुसफुसाकर बातें कर रही थी|
“अब बता न क्या मजेदार खबर है तेरे पास !!”
“मेरी शादी तय हो गई |” अनामिका धीरे से उनके कानों में फुसफुसाती हुई बोली तो दोनों एक साथ ख़ुशी के मारे उछल ही पड़ी कि अँधेरे के सन्नाटे को उनकी समवेत हंसी हिला गई|
“शी शी श श |” अनामिका धीरे से उनको शांत करती खुद भी अपना मुंह दाबे हंस पड़ती है|
“इसीलिए तो माँ ने बुलाया था और सुन तुम दोनों को मेरी मंगनी में आना ही है – नही तो |” वह फिर फुसफुसा कर बोली|
“नही तो तू मंगनी नही करेगी !!” धीरे से फुसफुसा कर झलक मुस्कराई|
“नहीं मंगनी तो करुँगी बस तुम दोनों के बिना मज़ा नही आएगा |” कहकर तीनों साथ में अपना अपना मुंह दाबे खिलखिला पड़ी|
“दुष्ट कहीं की हमारे बिना मंगनी कर लेगी तो कर ले |”
“अरे ये नखरा सही जगह दिखाना मुझे नही – समझी|” अबकी पलक के कन्धों पर सर रखती उसका गुलाबी गाल छूती हुई बोली – “अब जल्दी से तैयारी कर लो – जयपुर जाना है |”
“क्या – जयपुर !!!” ये सुनते जैसे पलक झलक के चेहरे से हंसी एक दम से कपूर सी उड़ गई – “तुझे कही और कोई शहर न मिला !!!”
“क्यों इस शहर में क्या दिक्कत है !!” अनामिका त्योरियां चढ़ाए पूछती है|
अबकी पलक और झलक दोनों एक दूसरे का चेहरा देखती हुई एक साथ बोलती है – “सारी दुनिया में राजस्थान छोड़कर तू कहीं भी हमे बुला ले – हम आ जातीं पर ...!!”
“क्यों राजस्थान में ऐसा क्या है ?”
अबकी तीनों बुझे चेहरे से एक दूसरे को देखने लगी|
“पापा है इसका कारण -|” पलक धीरे से कहती है – “सारी दुनिया में कहीं भी जाने की बात कर लो पर राजस्थान का तो नाम भी नही सुनना चाहते पापा |” अपने उदास स्वर से बात खत्म कर वह झलक का भी उदास चेहरा देखती हुई कहती है|
“मुझे कुछ नही पता – तुम दोनों को जयपुर चलना ही है |”
“पर कैसे !!!”
“कुछ सोचते है यार – झलक मेरी चाचा चौधरी तेरा दिमाग को कम्प्यूटर से भी तेज चलता है – कुछ सोच न |” अनामिका अबकी झलक के कंधो की ओर झुकती हुई फुसफुसाई|
ये सुनते झलक के चेहरे के भाव ही बदल गए – “हाय कम्प्यूटर की बात न कर – साडे दिल विच कुछ होने लगता है |”
दोनों अब झलक के बदलते सुर सुन अवाक् उसकी ओर देखती हुई बोली – “अब ये क्या चक्कर है !!”
“विक्की सर ....|” झलक धीरे से मुस्कराई तो दोनों उसपर जैसे टूट पड़ी|
“नालायक सर को तो छोड़ दे |” कहकर तीनों एक साथ खिलखिला पड़ी|
“शी शी श श ...|”
“चल मंगनी की बाद में सोचेंगे पहले ये बता ट्रीट कब दे रही है ?”
“जब चाहो |”
“तो ठीक कल मूवी प्लस रेस्टोरेंट में लंच |”
“पागल है क्या और जाएँगे बाहर कैसे – कल तो सन्डे है |”
“वो सब तुम लोग झलक पर छोड़ दो |”
तीनों एक साथ सिमटी फिर खिलखिला कर हंस पड़ती है|
क्रमशः............
कोई टेढ़ा प्रोग्राम बनाना हो तो झलक से बेहतर कोई नही सोच सकता ये सबको पता था, मौका देख कब तीनों सुबह से होस्टल से बाहर फुर्र हो गई किसी आँख को पता न चला| पूरा दिन मस्ती कर देर शाम तीनों हंसती हुई वापस आ रही थी|
“हाय इस सावारियां ने तो मार ही डाला - अब से न ये मेरा वाला फेवरेट हीरो हो गया |”
मचलती हुई झलक की आवाज सुन दोनों उसे घूरती हुई बोली – “यही तूने पिछली मूवी में भी कहा था किसी दूसरे हीरो के लिए – तेरा न हर बार का यही चक्कर है |”
अचानक आगे बढ़ते बढ़ते तीनों की निगाह कुछ अलग दृश्य देख जल्दी से शांत होती धीरे से एक दूसरे के कानों में फुसफुसाई – “ये शर्मीला - तानिया का दुश्मन ग्रुप हमें क्यों घूर रहा है ?”
“पता नही |” अनामिका ने भी फुसफुसाकर जवाब दिया|
“मेरा तो सिक्स सेन्स कह रहा है कि हमारे साथ कुछ तो बुरा होने वाला है |” पलक दबी आवाज में बोल पड़ी|
तीनों संतुलित क़दमों से आती बस उन लड़कियों के ग्रुप को पार करने ही वाली थी कि उनकी छाया के पीछे मेट्रन मैम और हॉस्टल की हेड मैम को देख तीनों के होश ही उड़ जाते है, अब तीनों मरमरी हालत से उन्हें देख रही थी तो बाकी के चेहरों पर चोर को पकड़ लेने की तिरछी हंसी तैर गई थी| तीनों के पैर उनके सामने आते जैसे बर्फ से जम गए|
“हाँ तो तीनों की सवारी कहाँ से आ रही है ?’
हेड मैम के पूछने पर तीनों के मुंह से कोई बोल नही निकला वे मूक ऑंखें झुकाए खड़ी रही|
“तुम्हें पता नही क्या कि सन्डे के दिन किसी को हॉस्टल से बाहर जाने की परमिशन नही मिलती - बस जब आज गार्जियन मिलने आते है तो उन्ही के साथ बाहर जाने की परमिशन मिलती है - तो तुम लोग किसकी परमिशन से बाहर गई – बोलो – जवाब दो कि एक्स्प्लेंशन तुम लोगों के पेरेंट्स से मांगू मैं !!” वह तेज स्वर में अपनी बात खत्म करती एकटक उनका चेहरा घूरती रही|
“आई वांट टू एक्स्प्लेंशन राईट नाओ |” वे चीखी तो तीनों के चेहरों का रंग ही उड़ गया तो बाकि मौजूद लड़कियां बिन आवाज़ के मुस्करा दी|
उनकी ऑंखें घूर ही रही थी तभी झलक झट से आगे आती अपनी आँखों से मोटे मोटे आंसू झलकाती कह रही थी – “मैम – मैं पहले ही इनसे कह रही थी कि मैम को बता देते है पर किसी ने मेरी सुनी ही नही |”
झलक की बात सुन अब सब ऑंखें फाड़े उसी को देख रही थी तो पलक और अनामिका के काटो तो खून नही जैसे हालात हो गई| वे मन ही मन कसमसाई कि ये झलक की बच्ची जाने क्या गुल खिलाने वाली है|
“मैम मैं तो जाना भी नही चाहती थी पर क्या करूँ खुद को रोक भी नहीं पाई – अनु अपनी लोकल गार्जियन आंटी का इंतजार ही कर रही थी तभी उनके पड़ोस की आंटी का फोन आ गया कि आंटी अपने घर में बेहोश पड़ी है -|” सब हैरान झलक की कहानी सुन रहे थे और वह भी पूरे हाव भाव से कहानी सुना रही थी – “हमे ज्यादा कुछ सोचने का समय ही नही मिला – हम तो बस झट से रजिस्टर में नाम लिखती निकल गई – और अच्छा ही किया – जब वहां पहुंचे तो देखा आंटी तो घर में अकेली थी – फिर तो पूछिए मत उनको लेकर हॉस्पिटल पहुंचे और वहां ..|” कहते कहते रूककर वह कुछ सुबकने लगी तो हैरान मैम झट से उसके नजदीक आती धीरे से पूछ बैठी – “वहां !!! – फिर क्या हुआ वहां ??”
अपने मगरमच्छ के आंसू पोछती हुई वह बोलने लगी – “वहां मालूम पड़ा आंटी को कैंसर है वो भी लास्ट स्टेज वाला |” मुंह गोल गोल कर वह बोली|
ये सुनते सभी के चेहरों में अव्यक्त हमदर्दी मिश्रित डर दिखने लगा|
“हम सारा दिन उनकी सेवा में लगी रही आखिर एक कवयित्री को बचाना जो था |”
“कवयित्री !!!” कहानी का नया ट्विस्ट सबकी जुबान पर एक साथ तैर गया|
झलक जानती थी कि हेड मैम खुद कवयित्री है और जहाँ साहित्य की बात हो उनको अपने मोहपाश में घेरना आसान हो जाता है|
“यस मैम – कवयित्री – ये जानते तो मेरा मन और द्रवित हो गया – आखिर हमारे समाज में कितनी कवयित्रियाँ है - समाज को उनकी जरूरत है – मैंने भगवान् से प्रार्थना की – गिडगिडाती रही भगवान के सामने और फिर से उनका टेस्ट कराया तो पता है फिर क्या हुआ मैम...??”
सभी अपनी साँस रोके एकटक उसको सुन रहे थे|
“उनका टेस्ट निगेटिव आया – उनकी रिपोर्ट किसी से बदल गई थी लेकिन ये चमत्कार था भगवान का, दुआओं का – उन्होंने खुद आकर सिर्फ उनको नहीं बचाया – पूरे साहित्य समाज को बचाया|” झलक इस तरह से हाथ घुमा घुमाकर कह रही थी मानों किसी आन्दोलन के लिए स्टेज पर बात रख रही हो, सब हतप्रभ उसकी बात सुनते रहे – “हमारे समाज को ऐसी साहित्य सेवियों की कितनी जरुरत है – बस मैम इसी कारण पूरा दिन इसी में निकल गया|” अब अपना स्वर धीमा करती कहती है – “पर सारी मेरी ही गलती है – मुझे इन्हें समझाना चाहिए था – सजा आप मुझे दीजिए – कसूर सिर्फ मेरा है और हमारे परेंट्स को भी बता दीजिए कि समाज साहित्य सब भाड़ में जाए हमे तो बस नियमों का पालन करना चाहिए |” अपना आखिरी शब्द कह आँखों पर हाथ रखे झलक सुबकने की आवाज निकालने लगी, ये देख जल्दी से हेड मैम उसके पास आती उसे अपने से चिमटाती हुई बोली – “नहीं नहीं – तुमने कोई गलती नही की |”
सब एकदम से मैडम की आवाज़ सुन अवाक् उनका चेहरा देखती रह गई|
“तुमने तो मिसाल कायम की है |”
झलक चुपके से हलकी आँख खोल उनकी तरफ देखती है|
“कोई तुम्हें कुछ नही कहेगा – पता नही बच्चों ने कुछ खाया पिया कि नही – इनको मैम आप कुछ खाने को दीजिए|”
हेड मैम मेट्रन मैम की ओर देखती हुई बोली तो झलक धीरे से कह उठी – “मैम अभी तो मन इतना दुखी है कि कुछ खाया भी नही जाएगा |”
“अरे नहीं नहीं ऐसे दुखी मत हो – तुमने तो इनाम पाने वाला काम किया है |” ये सुन पलक और अनामिका के गले में जैसे हंसी का कोई गोला सा अटक गया वही बाकि मौजूद लड़कियां आखें फाड़े झलक की ओर देखती रह गई|
“ऐसा करिए आज रात का खाना झलक की पसंद का बनवा दीजिए – बाकि तो हम ज्यादा कुछ कर नही सकते – जाओ बच्चों तुम तीनों अपने कमरों में आराम करो जाके – और तुम सबने भीड़ क्यों लगा रखी है – गो - गो टू योर रूम इमेजेट्ली |” कहती हुई वे धीरे से अपनी ऑंखें भी पोछती हुई विपरीत दिशा की ओर बढ़ जाती है तो झलक और पलक अपने कमरे की ओर बढती हुई अनामिका की ओर एक छुपी दृष्टि डाल चुपचाप सर झुकाए अपने कमरे की ओर बढ़ जाती है|
कमरे में पहुँचते ही पलक और झलक बिस्तर पर बिन आवाज के हंसती हंसती दोहरी होती गिर पड़ती है|
“कसम से झलक तेरा जवाब नही – एक पल तो मैं डर गई कि तू हमे फंसा कर खुद निकलने वाली तो नहीं पर तू भी न बड़ी ऊँची चीज है – पता नहीं किसके हाथ लगेगी तू|”
झलक आंख मारती बस हंसी जा रही थी|
“तूने तो झूठी फिल्म की रेखा का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया - |”
दोनों का हंस हंस कर अब पेट दर्द हो चला था|
रात का खाना चुपचाप खा कर वे फिर अपने कमरे में सिमट गई जहाँ सबसे आंख बचा कर अनामिका भी उनसे आ मिली थी|
“झलक की बच्ची – तुझे मेरी आंटी के अलावा कोई नहीं मिला जो तूने उन्हें कैंसर का पेशंट बना दिया|”
“अरे दूसरे मिनट में ठीक भी तो कर दिया |” दबी आवाज़ में हंसती हुई बोली |
“और तुझे कैंसर से भयानक कोई बीमारी नहीं मिली !!”
“अरे यार आज कल ट्रेंड में है न ये बीमारी – |”
“तू भी न |” कह कर एक तकिया उसकी तरफ मारती है तो झलक भी एक तकिया उसकी तरफ फेंकती है| अगले ही पल तीनों एक दूसरे पर तकिया मारती खिलखिलाती वही लेट जाती है|
जारी रहेगी.....
लखनऊ विश्विद्यालय में पढ़ती हुई पलक और झलक जिस प्राइवेट हॉस्टल में रहती थी वहां परिवार से मिलने का समय सिर्फ रविवार का था इसलिए उनके पापा उनसे मिलने कॉलेज के बाहर उनका इंतजार कर रहे थे|
“पापा ..|” दोनों लगभग दौड़ती हुई आती उनके गले लग जाती है|
वे भी दोनों को अपनी बाजुओं में भरते जैसे पर्वत समान अपनी नदियों को समेटते हुए तृप्त हो उठे|
“परसों क्यों नही आए पापा और क्या लाए हमारे लिए आप ?” झलक रूठती हुई बोली तो वे मुस्कराते हुए अपने पीछे देखते है तो दोनों की निगाहें उनकी निगाह के स्थान पर साथ में जाती जैसे उछल ही पड़ी|
“आदर्श भईया..|” वे उछलती हुई अब पापा के पीछे खड़े एक हष्ट पुष्ट नौजवान की ओर बढती हुई उसके दोनों हाथों में पकड़े गिफ्ट को लगभग उसके हाथों की गिरफ्त से खींचती हुई नाच उठी|
“ये पलक झलक भी न..!”
“क्या भईया आप भी पलक झलक बोलते है कोई झलक पलक क्यों नही बोलता !!” अपने नयन थोड़ा तिरछा करती झलक मुंह बनाती है तो पलक चिढ़ाती हुई बोल पड़ी – “क्योंकि तुम मेरे बाद आई तो पीछे रहोगी न |”
“हाँ बस एक साल दो दिन बस इतना ही फर्क है |”
“तब भी बड़ी हूँ न तुमसे मैं |”
दोनों जैसे लड़ ही पड़ी ये देख आदर्श दोनों के बीच बचाव करता जल्दी से उनके बीच खड़ा होता हुआ बोला – “अरे अरे दोनों लड़ोगी तो मैं चला जाऊंगा |”
“दोनों लड़ती भी है और एक दूसरे के बिना रह भी नही सकती |” पापा दोनों के कान पकड़ते हुए बोले तो दोनों खिलखिला पड़ी| काफी देर बात करके पापा ज्योंही जाने लगे दोनों आदर्श को दोनों तरफ से पकड़ती हुई बोली – “भईया एक बार कॉलेज का राउंड लगाओगे हमारे साथ |”
आदर्श क्यों पूछता रह गया और दोनों उसको पकड़े पकड़े बारादरी की ओर घूम गई तो आदर्श औचक उन्हें देखता रह गया लेकिन इसके विपरीत दोनों के चेहरों पर एक शरारती मुस्कान खिली थी| आदर्श हैरान अपने आस पास देखने लगा कि वहां मौजूद लड़के लड़कियां कैसे उसी को घूर रहे है तब उसे समझते देर नहीं लगी और झट से उन दोनों का कान खींचते हुए बोला – “मैं कोई शो पीस हूँ जो मेरा प्रदर्शन कॉलेज में करती फिर रही हो |”
ये सुन दोनों अपनी अपनी चोरी पकड़े जाने पर दांतों तले जीभ दबाती चिहुंक पड़ी|
“दोनों अपनी शैतानी से बाज नही आओगी - माना मैं बहुत डैशिंग हूँ पर यहाँ मेरे लायक कोई नही |”
दोनों अब अपनी कमर में हाथ रखी भाई को घूर रही थी जो आँखों में काला चश्मा चढ़ाए खुद इधर उधर देख रहा था|
“अच्छा – अब कौन इधर उधर देख रहा है |” सुनते आदर्श के साथ साथ दोनों हंस पड़ती है|
“आदर्श – चलो – |”
“जी आया फूफा जी |” कहता हुआ आदर्श उन दोनों के सर पर टीप मारता हुआ आवाज की दिशा की ओर भागता हुआ चला जाता है|
उनके जाते दोनों साथ में चलती बाहर से अन्दर आती हुई अनामिका को देख वही ठिठक जाती है|
“कहाँ से आ रही है मैडम ?”
उसके चेहरे की शर्मोहया देख दोनों समझती हुई खनक पड़ी – “ओहोह अभी मंगनी हुई नही और मैडम फोन करने चली गई – बता न क्या क्या बात हुई ?”
“क्या यार इस थोड़े समय में क्या बात करुँगी – एक तो ये अपना बेकार के नियमों वाला हॉस्टल है – आजकल के मोबाईल वाले ज़माने में हॉस्टल में किसी को मोबाईल रखने ही नहीं देते है|”
“तब तो पूरा दिन मोबाईल से चिपकी रहती तू |” पलक की बात सुन तीनों के चेहरों पर शैतानी भरी हंसी खिल गई|
“अच्छा सुन कुछ जाने के बारे में पापा से पूछा ?” अनामिका थोड़ा गंभीर होती हुई बोली|
इस पर हैरत से उछलती हुई झलक बोली – “पागल है क्या – उनके सामने तो राजस्थान का नाम भी नही ले सकते – और जाने देना तो बहुत दूर की बात है|”
अब तीनों के चेहरें गंभीर हो चले|
“देख मंगनी में तो तुम दोनों को चलना ही है – तेरे बिना कुछ मज़ा नही आएगा – पता है जयपुर की ग्रैंड हवेली में है प्रोग्राम – किसी तरह से कुछ तो सोच झलक – मुझे कुछ नही पता बस तुम लोगों को आना ही है |”
अब बारी बारी से तीनों एक दूसरे का चेहरा देखती रही – “पर कैसे ??”
रात के खाने तक भी तीनों इसी प्रश्न पर अपना अपना दिमाग मथती रही|
“मैं तो कल जा रही हूँ – अब तुम दोनों कैसे आओगी ?” साथ साथ खाना खत्म करती बाहर निकलती हुई अनामिका कहती है|
“लगता है नही आ पाएंगी अनु |’ तीनों एक दूसरे की आँखों में देख दुखी हो उठी|
“देख एक पहला और आखिरी उपाय है |” अनामिका की बात सुन दोनों ऑंखें फाड़े उसे देखती रही|
“देख फोर की शाम को है इन्गेजमेंट – अगर फोर को तुम पहुँच जाती हो तो अगली सुबह तक वापस हॉस्टल पहुँचाने की मेरी जिम्मेदारी|”
“पागल है क्या – हम आएंगी कैसे ?”
“यार झल्लो कुछ तो सोच न यार |” अनामिका अपनी आँखों में ढेर निवेदन लेकर उनके सामने खड़ी थी|
अब तो तय था कि दोनों को जयपुर जाना ही है बस कैसे यही तोड़ निकलना था| आखिर झलक ने इसका तोड़ निकाल ही लिया, वे किसी को कुछ न बताती हुई लोकल गार्जियन के यहाँ जाने का बोलकर ट्रेन से निकल जाएंगी और रात में अनामिका उन्हें किसी तरह से वापस हॉस्टल पहुंचा देगी| पलक इस डेअरिंग काम के लिए डर गई तो झलक उसे समझाती हुई बोली – “पल्लो चल न कुछ नहीं होगा – कसम से – तू जानती है न – मेरा बनाया प्लान कभी फेल नही होता – बस तू अब कुछ सोच मत बल्कि ये सोच अगर हम हमारी इकलौती बेस्ट फ्रेंड अनु की मंगनी में नहीं गए तो !!”
“अगर किसी को पता चल गया तो !!”
“अरे कुछ नही पता चलेगा – बस एक दिन की ही बात है न |”
“सच्ची न !!”
“मुच्ची |”
झलक आँखों से सहमति देती है तो बड़ी मुश्किल से अपना डरा मन पलक संभाल पाती है|
कभी वे ऐसा करेंगी ये उन दोनों को भी नही पता था पर दोस्ती के खातिर मन ही मन पापा को सॉरी बोल वे कॉलेज के बाद नेट से ट्रेन का टिकट बुक कर चार की दोपहर को बैग के साथ रेलवे स्टेशन पहुँच जाती है|
ट्रेन में अपनी जगह सुनिश्चित कर वे थैर्ड एसी के कम्पार्टमेंट में अपनी सीट पाती झट से खिड़की के पास सिमट कर बैठ जाती है| झलक ट्रेन के चलते खिड़की के बाहर के दृश्य पर अपनी नज़र जमा कर बैठ जाती है तो पलक धीरे से उसके कानों के पास आती हुई कहती है – “झल्लो ट्रेन तो आधी रात को पहुंचेगी तो तूने अनु को बोल दिया न आने को !!”
“हाँ बोल दिया – तू चिंता न कर बस बाहर देख कितना सुन्दर नज़ारा है न – हम पता नही कब पिछली बार ट्रेन में बैठी थी पता नहीं |”
पलक हाँ बोलकर भी परेशान सी बाहर की ओर देखने लगती है जबकि झलक बेफिक्री से बाहर के नज़ारों को देखने में मग्न थी|
दिन भर उंघते लेटते ट्रेन का लम्बा वक़्त वे किसी तरह से काटती काटती रात के आठ बजे मथुरा के आते झलक झट से प्लेटफार्म में कुछ लेने को उतरने लगती है तो पलक उसको रोकती हुई बोल पड़ती है – “मत जा झलक रात हो गई न – जो भी ट्रेन में मिलेगा ले लेंगे |”
“कितनी डरपोक्की है तू – मैं आती हूँ – तू बैठ आराम से और अगर ट्रेन छूट भी गई न तो ये झलक है उड़ती हुई पहुँच जाएगी |” हवा में हाथ तैराती झलक हंसती हुई झट से ट्रेन से उतर जाती है और पलक मन मसोसे खड़ी उसे जाता हुआ देखती रह जाती है|
“एस्क्युज मी |”
पलक का सारा ध्यान तो झलक की ओर लगा था वह अपने सामने की आवाज को न सुनती हुई गेट पर दोनों हाथों से रास्ता रोके खड़ी थी|
“एस्क्युज मी – क्या हम आपकी ट्रेन के अन्दर आ सकते है ??”
अबकी झट से उसका ध्यान झलक से भागता अपने सामने की ओर जाता है जहाँ कोई एक जोड़ी आंख उसकी हालत पर धीरे धीरे मुस्करा रही थी| अपनी स्थिति को समझती पलक तुरंत किनारे होती अपनी छुपी नज़रों से देखती है उस नौजवान को जो अभी भी मुस्कराते हुए उसी को देख रहा था इससे झेंपती हुई पलक अपनी सीट की ओर चल देती है|
जारी रहेगी....
अपनी सीट पर आती जब उसे सुकून हो जाता है कि वह उसकी नज़रों से दूर हो गया होगा तो एक बार फिर झलक के लिए वह अपनी नज़र घुमा कर उसे देखने लगती है तो ये क्या साथ के ज्वाइन कम्पार्टमेंट के सेकण्ड एसी में उसकी तरफ देखती अभी भी वही ऑंखें देख वह एकदम से घबरा जाती है|
“पलक – पकड़ न जल्दी |”
आवाज सुन पलक अब अपने सामने झलक को देखती है जो अपने हाथों के घेराव से कुछ ज्यादा ही सामान को लिए उसके सामने खड़ी थी| वह जल्दी से उसके हाथों से सामान लेती उसे अपनी तरफ खींच कर साथ में बैठा लेती है|
तभी ट्रेन चल दी तो पलक फिर चुपके से उस नौजवान की ओर देखने लगती है कि सकपका जाती है कि वे नज़रे अभी भी उसी की ओर जमी थी ये देख उसके बदन में झुरझुरी दौड़ती एक घबराहट सी उसके चेहरे पर पसर जाती है, ये देख झलक उसको हिलाती हुई पूछती है –
“अब क्यों चेहरे पर बारह बजा रखे है – आ तो गई मैं !!”
झलक की बात का जवाब न देकर वह धीरे से उस नौजवान की सीट की ओर इशारा करती है तो चिप्स खाती खाती झलक अपनी सीधी नज़रों से उस ओर देखती हुई एक दम से खाती खाती रूकती उसकी ओर झुकती हुई पूछती है –
“ये हमे क्यों घूर रहा है ?”
“वही तो जब से आया है तब से घूर रहा है |” पलक भी धीरे से उसके कानों में फुसफुसाती है|
“लगता है भूखा है – ऐसा करते है एक चिप्स का टुकड़ा नीचे गिरा कर खाते है नहीं तो हमे भी खाना हज़म नही होगा |”
ये सुनते दोनों अपना मुंह दाबे खिलखिला कर हंस पड़ती है|
कुछ कुछ पल बाद जब भी पलक उस नौजवान की ओर देखने का प्रयास करती तो हर बार उसकी चोरी पकड़ ली जाती उसकी नज़रो से और पलक सकपका कर रह जाती| रात दस बजते बजते भरतपुर आते काफी लोग उतर चुके थे, अब कम्पार्टमेंट में चुनिन्दा लोग ही थे| दोनों अपना अपना बेडिंग लगाती सोने का उपक्रम करने लगती है तो पलक बैग में से पॉकेट रेडियो ढूंढने में लगभग सारा सामान ही बाहर निकालती झलक पर झुंझला पड़ती है –
“झलक तू कैसे सामन रखती है – कभी कुछ मिलता ही नहीं |’
“तू ही नही ढूंढती ठीक से – ला मुझे |” अब झलक खोजने हुई कहती है – “मैंने पहले ही कहा था कि दो बैग रख ले – हमेशा तेरा ये रेडियो चूहे सा छुप जाता है कहीं |”
इस बीच पलक फिर उस नौजवान की ओर चुपके से देखती है तो चौंक ही जाती है वे नज़रे अभी भी उसी की ओर मुड़ी थी |
“बाप रे ये भूत है क्या जो अभी भी हमारी ओर ताके जा रहा है !!” पलक धीरे से मन ही मन बडबडाती है|
“ये ले – तेरी आफ़त – अब सारा सामान तू ही सेट करेगी |” कहती हुई झलक उसके हाथ में पॉकेट रेडियो थमा कर तुरंत लेट जाती है|
पलक भी धीरे से रेडियो को ऑटो सर्च में लगाकर बैग में सामान लगाने लगती है|
‘खूबसूरत है आँखें तेरी, रात को जागना छोड़ दे.....खुद बखुद नींद आ जाएगी, तू मुझे सोचना छोड़ दे....|’ अचानक स्टेशन पकड़ते ग़ज़ल शुरू हो जाती है तो पलक हडबडाहट में सामान गिरा देती है, जिससे झलक चादर ओढ़े ओढ़े ही उसे सो जाने को डांटती है|
सामान उठाते वक़्त फिर पलक उस नौजवान की ओर देखती है, वह आँखें अब उसकी हालत पर हंसती हुई दिख रही थी जिससे झेंपती हुई पलक रेडियो बंद करती जल्दी से चादर सर से ओढ़कर लेट जाती है|
***
धीर धीरे गहराती रात में ट्रेन अपनी ही रफ़्तार में आगे बढ़ी जा रही थी, रात के सन्नाटे में किसी धड़कन सी ट्रेन की आवाज़ उस वातावरण में गूंज रही थी कि एक गहरी चीख उस कम्पार्टमेंट में गूंज जाती है, जिससे हडबडाहट के साथ झलक उठती हुई उचककर झट से लाइट जला देती है| अब उस रौशनी के पसार में वह अपने साथ की सीट पर सहमी हुई पलक को देख दौड़कर उसके पास आती हुई उसे संभालती हुई पूछती है –
“तू चीखी थी पलक – हे भगवान कितना पसीने पसीने हो – क्या हुआ – बोल न !!”
पलक आंखे फाड़े अपनी गहरी गहरी साँस के साथ झलक को देखती रही जो अभी भी उसका हाथ थामे उसे प्रश्नात्मक नज़रो से देख रही थी| पलक घबरा कर अपने आस पास देखती है कि अब वहां उनके सिवा कोई नहीं था और ट्रेन के शीशे के बाहर दौसा नाम का स्टेशन आकर गुजर रहा था|
“कोई था – यहाँ मेरे सामने..|” पलक अपनी कंपकंपाती आवाज में बोली|
“कौन.....!!!”
झलक पलक का हाथ पकड़े उसके सामने बैठी उसकी हालत देखकर बहुत परेशान थी, डर पलक की आँखों से होता अब झलक के चेहरे पर भी दिखने लगा था| पलक धीरे धीरे अपनी सांसो को नियंत्रित करती अब झलक का डरा चेहरा देख रही थी, जिसमें अतिरेक डर और घबराहट के मिले जुले भाव समाहित थे|
“शायद मैंने कोई डरावना सपना देखा था..|” धीरे से पलक कहती झलक का हाथ कसकर थामती हुई बोली – “मैं डर गई थी पर अब मैं ठीक हूँ..|”
“सच्ची न !!!”
झलक की डरी हालत पर अपनी सहमति का मरहम लगाती हुई स्वीकृति देती है|
“थैंक्स गॉड – मैं तो डर ही गई थी कि सच में कोई भूत तो नही आ गया !!”
दोनों अभी भी घबराई हुई हालत से एक दूसरे को देख रही थी कि उनकी नज़रों से सामने से टी टी को जाते देख वे उसे रोकती हुई पूछती है – “अंकल जी – जयपुर कितने बजे आएगा ?”
“अभी सवा बारह बजे ट्रेन ने दौसा क्रोस किया है तो समझो ट्रेन राईट टाइम चल रही है इससे ट्रेन अपने एक पैंतालिस के राईट टाइम में जयपुर पहुंच जाएगी |” अपनी कलाई घड़ी में समय देखते हुए वे कहते वहां से चले गए|
“ओहो इसका मतलब अभी भी एक से डेढ़ घंटा है – चल सो जा न |” कहती हुई झलक उसका हाथ छोड़ अपनी सीट पर बैठती हुई बोली|
“तू सो जा झलक – मेरी तो डर के मारे सारी नींद ही उड़ गई |” कहती हुई पलक अपनी तकिया के नीचे से रेडियो निकालने लगती है ये देख झलक साइड टेबल से ईयर फोन उठाकर उसके हाथों को सौंपती हुई बोली –
“तेरी मर्जी पर मुझे अब डिस्टर्ब मत करना वरना मैं पूरा दिन उंघती रहूंगी – ओके गुड नाईट |” कहती झट से चादर ओढ़कर झलक फिर से लेट जाती है|
पलक खुद को टेक लगाकर अधलेटी स्थिति में लेटाकर ईयर फोन लगाती एक बार फिर अपनी नज़रे उस अज़नबी की सीट तक दौड़ा देती है पर अब वहां कोई नही था, ये देख कर भी पलक उस ओर बहुत देर नही देखती रह पाई मानों उसकी तकती नज़रे अभी भी वही छूटी रही उसे ही घूर रही हो|
ट्रेन वाकई सही समय थी और एक पैंतालिस के सही समय प्लेटफार्म नंबर एक में ट्रेन आकर रूकती है तो दोनों अपने सामान के साथ बाहर आती हुई देखती है कि आधी रात को सारे शहर के सोते हुए भी स्टेशन लोगों की भीड़ से कितना गुलज़ार था, सभी को कही न कहीं पहुँचने की जल्दी थी| हर तरफ आते जाते ढेरों सर दिखाई दे रहे थे, कही चाय कॉफ़ी की आवाज लगाते वेंडर घूम रहे थे, ये देख एक पल तो लग ही नहीं रहा था कि इस वक़्त आधी रात का समय है, सब कितना जीवंत लग रहा था|
दोनों ट्रेन से उतरती गहरा उच्छवास हवा में छोड़ती हुई एक पल एक दूसरे को देखती है|
“झलक हम तो पहुँच गई पर ये अनु कहाँ है – वो नहीं आई तो !!” घबराकर पलक पूछती है|
“बोला तो था – हम यहाँ तक आ गई तो क्या वो हमे यहाँ तक लेने भी नही आएगी क्या ?”
“झलक हम कुछ देर देखते है अगर नही आई तो न हम वापस चली जाएंगी |”
जिस बात को पलक इतनी सहजता से कह गई उस पर तुनकती हुई झलक बोल पड़ी – “हाँ हाँ क्यों नही – ये ट्रेन थोड़े रिक्शा है – बोल देंगी भईया जरा पीछे तो घुमा लो वापस लखनऊ दस रुपया ज्यादा दे देंगी हम |”
झलक की बात सुन अपनी बात पर पलक भी अपनी बेवकूफी पर धीरे से हंस दी|
जारी रहेगी...
“खम्मा घणी बाई सा |”
एक दम से दोनों की साथ में नज़रे आवाज़ की ओर मुड़ी तो देखती है एक राजस्थानी साफा बांधें घनी मुछों से आधा चेहरा ढंके कोई प्रौढ़ उनकी ओर अदब से झुकता हुआ पूछ रहा था – “आप ही पलक जी और झलक जी है !!”
दोनों मौन ही स्वीकृति में हाँ में सर हिलाती है तो वह मुस्कराता हुआ कहता है – “अनामिका जी ने ही आपको लिवाने हमे भेजा है – आप आईए म्हारे संग |” कहता हुआ उनका बैग लेने अपने पीछे खड़े अन्य व्यक्ति को इशारे से हुक्म देता है जिसपर वह सर झुकाते झलक के हाथ से उसका बैग ले लेता है|
अब उनके पीछे पीछे स्टेशन से निकलते उन दोनों के खिले चेहरे उस गुलाबी नगरी की ओर अपने कदम बढ़ा देती है| एक शानदार कार से वे क्षण भर में ही किसी महलनुमा चमचमाते होटल के बाहर खड़ी एक नज़र भर उसे देखती है तो देखती रह जाती है| उनकी नज़रों के सामने एक भव्य गुलाबी महल चमकती लड़ियों से सुसज्जित था, जिसपर से एक पल को भी उनकी नज़र नही हट रही थी, वे दलान पर खड़ी बरबस ही उसे निहार ही रही थी कि अपने बदन की थरथराहट से वे चौंकी अनु साथ में उन दोनों के गले लगी खड़ी जैसे झूम सी गई थी – “तुम दोनों को देखकर मैं बता नहीं सकती कि कितनी ख़ुशी हुई!”
वे दोनों भी अब उसको सामने देख उससे भरपूर ख़ुशी से गले मिली अब तीनों साथ में अन्दर की ओर प्रवेश करती है|
“तुम दोनों को लेने स्टेशन आ जाती पर क्या करती मुझे जाने से मना कर दिया गया पर तुम दोनों को कोई दिक्कत तो नहीं हुई न !!”
अनामिका साथ साथ चलती उन पर से अपनी नज़र नही हटा पा रही थी और वे दोनों उस होटल की साज सज्जा से| पूरी तरह से रजवाड़ों की शान को अपने अन्दर समेटे आधुनिकता का हल्का घूंघट खींचे वह होटल तन कर अतीत और वर्तमान साथ में संजोए शान से खड़ा था|
“अरे नही – बड़े आराम से सोती हुई आई हम |”
“अच्छा यहाँ हम इंतजार में सारी रात जागते रहे और महारानियाँ सोती हुई आई |” इस पर तीनों खिलखिलाकर हंस पड़ी|
वे तीनों रिसेप्शन से होती हुई अब लिफ्ट के सामने खड़ी थी – “पता है ये होटल पहले असली का महल था |”
“हाँ वो तो देखकर ही लग रहा है पर तुमने कभी बताया नही कि तुम्हारे पास ऐसा कोई महल भी है !!” हैरान ऑंखें चहुँओर घुमाती हुई पलक बस इतना ही कह पाई|
“अरे ये मेरा ससुराल है – असल में रूद्र जी के घर में प्रथा है कि उनके घर के शुभ काम उनके ननिहाल से शुरू होते है तो ये रूद्र जी का ननिहाल है|”
“ओहो रूद्र जी – कब मिला रही है उनसे हमे |” मुस्कराती झलक अनामिका की चिकोटी काटती है तो वह चिहुँकते हुए शरमा जाती है|
आधी रात होने से कुछ एक आध कार्मचारियों के दिखने के अलावा वहां कोई आता जाता नही दिख रहा था इसलिए आराम से बातें करती करती वे अब लिफ्ट से तीसरी मंजिल में आती अब गलियारे में चलती चलती बातें कर रही थी|
“देख तेरे लिए कितनी परेशानी उठाकर हम आई है – पूरी एक रात की नींद खराब की है याद रखना |” झलक ऐठती हुई बोली|
“हाँ हाँ याद रहेगा – हम राजपूत अनामिका आपसे वादा करती है कि एक दिन आपके लिए दो रातें जागकर इसे पूरा करेंगे |” अनामिका शपथ लेने के लहजे में बोली तो तीनों की समवेत हंसी छूट गई जिससे उस पल के सूने गलियारे नींद से जागते हवाओं की शक्ल में वहां दौड़ गए|
“ओह गॉड अचानक ये हवा कैसी !!” पलक हवा से सिहरती खुद को अपने में समेटती हुई बोली|
“लगता है हमारी हंसी से यहाँ के भूत जाग गए |” झलक हंसती हुई बोली तो पलक का चेहरा यूँ सहम गया मानों सच में कोई भूत देख लिया हो|
ये देख अनामिका हंसती हुई पलक की बांह पकड़ती हुई बोली – “डर मत – मैंने यहाँ के भूतों को छुट्टी में ये कहकर भेज दिया कि हमारी पलक भूतों के नाम से भी डरती है तो जरा बाद में आना|”
इसपर अनमिका और झलक साथ में ताली मारती फिर हंस पड़ी तो पलक मुंह बनाकर खड़ी हो गई|
“बाई सा !” एक पुकार पर वे तीनों नज़रे एक साथ आवाज की दिशा में उठती है, वे अपने सामने से किसी नौजवान को आता हुआ देख रही थी जो भरपूर नज़र उन दोनों पर रखता हुआ अनामिका को पुकारता तेजी से उनकी तरफ आ रहा था|
“सोम भाई सा – ये मेरी सहेलियां पलक और झलक है – अभी जिनके बारे में मैं बता रही थी वही |” अनामिका सहज कह गई और झलक यूँ देखती हुई अनामिका से कह उठी – “अच्छा पीठ पीछे अपने भाइयों से हमारे चर्चे भी होते है |”
“तू भी न |” कहती हुई अनामिका झलक की शैतान नज़रों को देखती चिकोटी काटती हुई धीरे से बोली|
“नमस्ते - |” वह अब झलक पर अपनी नज़रे गड़ाए था जो दिलकश अदा से उसे देखे जा रही थी|
“ये मेरे ममेरे भाई सोम है इंजिनियरिंग कर रहे है |” कहती हुई अनामिका देखती है कि सोम की नज़रे बस झलक पर टिकी थी और झलक भी मुस्कराती हुई उसे देख रही थी तो जल्दी से अपने भाई का बाजु पकड़ती हुई बोल पड़ी – “भाई सा - याद आया माँ सा आपको ढूंढ रही थी – जाइए जल्दी |’ उसे लगभग धक्का देती हुई वापस भेज देती है और वह भी अब मुंह लटकाए चला जाता है|
उसके आते झलक खिलखिला कर हंस पड़ी ये देख अनामिका बोल पड़ी – “तू भी न – देख तो ऐसे रही थी जैसे सच्चा वाला इश्क हो गया|”
“अरे मेरी जान सच्चे इश्क के इंतजार में ये सब तो रिहर्सल है |” झलक की बात सुन दोनों मुंह खोले एक साथ कहती है – “रिहर्सल !!!”
“हाँ जैसे एग्जाम से पहले हम सैम्पल पेपर सोल्व करते है बस ये भी कुछ कुछ सैम्पल पेपर जैसा ही है – इश्क की प्रैक्टिस |” कहकर हंस पड़ी तो दोनों उसको मारने हाथ उठाती हुई उसकी ओर बढ़ी – “तेरे दिमाग में कितनी खुराफात भरी है !!”
तीनों हंस रही थी कि किसी और के आने की आहट से अब अनामिका किसी संभ्रांत महिला को आती हुई देखती जल्दी से झलक पलक के कान में ‘रूद्र की माँ सा है’ कहती उनकी तरफ बढ़ जाती है|
वे अपनी गरिमामय मुस्कान से अब झलक और पलक को देखती हुई पूछती है – “ये सुन्दर राजकुमारियां कौन है !!”
“माँ सा - ये मेरी सहेलियां पलक और ये झलक है – आज ही लखनऊ से आई है |” उनसे क्रमशः मिलाती अनामिका किनारे खड़ी हो जाती है|
दोनों मुस्कराती उनको नमस्ते करती है|
“वाह बड़ी गहरी दोस्ती लगती है आपकी – आप दोनों से मिलकर हमे बहुत ख़ुशी हुई -|”
माँ सा द्वारा उन दोनों को निहारती रहने के एकांत को तोड़ती हुई अनामिका बोली -
“माँ सा मैं इन्हें रूम तक छोड़ने जा रही थी|”
“वो सब हमपर छोड़ दीजिए – अब ये हमारी भी मेहमान है |” उसके इतना कहते वे धीरे से आवाज लगाती है और कोई झट से जाने कहाँ से प्रकट हो जाता है|
वे देखती है कि पूर्ण शिष्टाचार से हाथ बंधे उनके समक्ष कोई खड़ा था|
“आप इन दोनों राजकुमारियों के रहने का प्रबंध ख़ास मेहमानों वाले कक्ष में कर दीजिए - अनामिका आप जरा हमारे साथ चले हमे आपसे कुछ जरुरी बात करनी है |”
वे हुक्म को सर झुका कर गृहण करते दोनों का मार्ग प्रशस्त करते आगे आगे चलने लगते है तो अनामिका दोनों को आँखों से बाय करती उनके विपरीत अब माँ सा के पीछे चली गई|
जारी रहेगी...
दोनों को जिस कमरे में ठहराया गया उसकी सजावट देख वे दोनों अपने दांतों तले उंगली ही दबा लेती है| सच में रजवाड़ों की शान देख वे उससे प्रभावित हुए बिना न रही|
झलक तो झट से अपनी सैंडिल नचाती हुई फेकती बिस्तर पर गिर सी पड़ती है|
“ये क्या !!’ पलक एक दम से उछल पड़ी – “झलक तूने सैंडिल खिड़की से नीचे फेंक दिया|”
ये सुनते झलक बिजली की फुर्ती से उठ बैठी |
“ये क्या किया तूने – तू हमेशा न कुछ न कुछ बखेड़ा खड़ा करती है – अब मुझे पता नही – मुझे मत बोलना लेने जाने को – तू जाने तेरा काम जाने |” कहती हुई पलक बैग खोलने आराम से बैठ जाती है|
ये देख झलक दौड़ती हुई पलक से पास आती उसका हाथ पकडती हुई गिडगिडाने गई – “पलक प्लीज़ ला दे न – वही एक सैंडल तो है अभी मेरे पास – चल न साथ में -|”
“न |” पलक अपना हाथ खींचती हुई बोली|
“चल न – देख अकेली कमरे में डर जाएगी तू |” पलक की कमजोर नस पकड़ते झलक का काम हो गया और पलक आखिर मन मारे उसके साथ बाहर जाने लगी तो झलक को एक सैंडल में देख चिहुंक पड़ी – “अब एक सैंडल पहने नाचती हुई जाएगी तू !!’
“तो क्या चाहती है – हाथ में लेकर चलूँ – तू चल न बस |”
आखिर दोनों अपने आस पास देखती चुपचाप कमरे से निकलती निचली मंजिल के बरामदे की ओर बढ़ रही थी कि वहां किसी को देख पलक एकदम से झलक को अपनी ओर खींचती हुई उसके कानों में फुसफुसाई – “झलक ये तो वही ट्रेन वाला है – कहीं ये हमारा पीछा करता तो नही आ गया !!”
अब झलक भी उसकी ओर ऑंखें तरेरती हुई बोली – “अभी बताती हूँ इसे !!”
पलक उसे रोकती रह गई और झलक एक सैंडिल में ही लडखडाती हुई उसकी ओर बढ़ गई|
झलक जिस तेवर से अजनबी की ओर बढ़ रही थी उससे बेखबर वह खुले बरामदे के पौधों के झुरमुट के पीछे की ओर से अब जाता हुआ दिख रहा था, झलक के पीछे पीछे पलक को भी आना पड़ रहा था| झलक झट से आगे बढ़ती उसे पुकारती हुई बोल पड़ी – “ए हेलो मिस्टर |”
अचानक झलक की आवाज पर वह चौंककर उसकी ओर देखता वही ठहर जाता है, झलक अब उसकी आँखों की सीध में तनकर कमर में हाथ रखे खड़ी थी और वह उसकी ओर मंद मंद मुस्कराती नज़रों से अब देख रहा था|
“ऐसे हमें क्यों घूर रहे हो – तुम क्या सोचते हो तुम छुपकर हमारा पीछा कर लोगे !”
“पर छुपा तो कोई और है आपके पीछे |” वह झलक के सर की परछाई के पीछे छुपे पलक के चेहरे को देखने आहिस्ते से उसकी ओर झांकता है तो पलक सहम कर दो कदम पीछे हो जाती है|
“देखो कायदे से रहना हो तो यहाँ रहो नही तो इस होटल से बाहर निकलवा दूंगी मैं – |” झलक अभी भी तने चेहरे से उसकी ओर देख रही थी और वह मुस्कराती नज़रे उनकी ओर डाले खड़ा था|
“अच्छा तो ये होटल आपका है !!”
“हाँ बस ऐसा ही समझो |”
“ओहो तब तो हमे माफ़ करे अब हम ख्याल रखेंगे इसका |”
उसके चेहरे पर टिकी मुस्कान से अब झलक असहज हो उठी फिर जल्दी ही उसे ख्याल आया कि वह तो यहाँ अपनी सैंडिल ढूंढने आई थी ये सोच वह अगले ही पल अपने आस पास देखने लगती है, पलक भी झलक की परेशानी समझती अपने आस पास देखने लगती है, उनकी खोजती आँखों को अब वह अजनबी देखता हुआ धीरे से पौधों के पीछे से हाथ में लिए कुछ उनकी नज़रो के परिदृश्य में रखता हुआ पूछता है –
“कहीं आपकी खुबसूरत आँखों को इसकी तलाश तो नहीं !!”
आवाज पर दोनों एक साथ अपने सामने देखती है चौंकती हुई एक साथ बोल पड़ती है – “ये हमारी सैंडिल है -|”
वह उन दोनों के बढे हाथों को नज़रअंदाज करता उस सैंडिल को हवा में नचाता हुआ कहता रहा – “हमे तो आसमान से गिरती हुई मिली |”
अब गुस्से में तेजी से आगे बढती झलक उसके हाथों से झटके से उस सैंडिल को अपनी ओर खींचती गुस्से में पैर पटकती हुई वापस जाने लगती है, उसके आगे आगे अब पलक भी जा रही थी पर अपनी मुस्कान से वह आंखे उन दोनों पर से न हटते हुए कह रही थी – “वैसी आसमान से बारिश होती तो देखी थी पर सैंडिल पहली बार गिरती हुई देखी |” कहता हुआ वह जानकर आवाज करता हुआ हंस पड़ा और मन ही मन खीजी हुई झलक और पलक और तेज क़दमों से वहां से वापस चली गई|
चलते चलते ही झलक सैंडिल पहनती हुई अब दोनों जितने तेज कदम से आ सकती थी अपने कमरे में वापस आ जाती है| आते ही दोनों धम से बिस्तर के पैताने बैठती हुई अब एक दूसरे की ओर देखती हुई खिलखिला कर हंस पड़ती है|
अनामिका को भी अपनी सहेलियों के बिना कहाँ चैन था, वह माँ सा के कमरे से निकलती सीधी फिर से अपनी सहेलियों के बीच आती खिलखिला रही थी| वह दोनों के कंधो पर झूलती उन्हें अपनी तैयारियां बता रही थी|
“जो खरीदना था सब यहाँ बैठे बैठे मिल गया पर मुझे बाज़ार नही जाने दिया गया|”
ये सुन दोनों की आश्चर्य में पड़ी ऑंखें उसकी ओर घूम गई|
“यहाँ का नियम है और क्यों !! पता है अभी न जैसे मेरी कोई ट्रेनिग चल रही है – ये नहीं करना, वो नही करना – सबके सामने तेज तेज हंस बोल नही सकती – यहाँ सब के सब हम करके बात करते है और मुझसे पूछते है कि मैं ऐसे क्यों बात करती हूँ !! अब तो लगता है मेरे अच्छे वाले दिन चले गए – कितना बंधन है यहाँ – जो भी करो पर महल के अन्दर ही रहो |” दोनों हैरान उसकी सुन रही थी और अनामिका धाराप्रवाह कहे जा रही थी – “यार अपनी गन्जिंग को कितना मिस किया मैंने – कितना मज़ा आता जब हजरतगंज की हर शॉप में बेमतलब पहुँचते और बोलते भैया जरा ये वाला सूट तो दिखाना – अच्छा वो दूसरा दिखाओ फिर आराम से सब छोड़ छाड़ आगे बढ़ जाती |”
“क्या सच में तू मार्किट नही जा सकती अब !!” पलक ऐसे हैरान होती हुई पूछती है मानों अब वे इसके बिना कैसे जिएंगी|
“और क्या बहुत जिद्द की तो एक बड़ी से शॉप में ले गए जहाँ बस देखो और चुपचाप ले लो नो मस्ती मारी – हाय वो दिन भी क्या दिन थे – बाज़ार में जब हम तीनों बेमतलब में घूमती रहती |” एक गहरी आह छोड़ती हुई अनामिका अब बिस्तर पर अपनी देह छोड़ती हुई उनकी ओर देखती है जो अब उसके आस पास लेटती अपनी अपनी नज़रे ऊपर छत की ओर जमा देती है|
“यार ये साधारण लड़की को राजकुमारी बना देंगे |” अनामिका फिर गहरा उच्छवास छोड़ती है|
“पर अनु तुम्हारी माँ सा ने हमें क्यों राजकुमारी बोला ??” झलक अपनी आश्चर्य में डूबी ऑंखें तिरछी करती पूछती है|
“अरे वो तो उनका बात करने का तरीका है – यही तो हर बात से लेकर काम तक सब तरीके से करना पड़ता है – यहाँ तक कि रूद्र जी से भी नही मिल सकती अभी हम |”
रूद्र का नाम आते तीनों की ऑंखें शरारत से चमक उठी|
“अच्छा सच बता तू अभी तक नही मिली उनसे !!”
झलक उसकी चिकोटी लेती बोल पड़ी तो अनामिका एक आंख दबाती धीरे से उनके कानों में फुसफुसाती हुई बोली – “नियम तो ऐसा ही था पर हमने कभी कोई नियम माना है क्या – चुपके से मिल भी लिया और ये सौगात भी मिल गई मुझे |” कहती हुई अपनी कुर्ती के सीने से कोई चमकता लॉकेट निकालती उनकी आँखों के सामने दिखाती हुई मुस्करा पड़ी|
दोनों की नज़रे अब एक साथ अनामिका के लॉकेट की ओर जाती उसे निहारती रही, आर के इनीशियल का लॉकेट अपनी चमक से कुछ ज्यादा ही उनकी आँखों में चमक रहा था|
“अच्छा तो चल हमें भी मिलवा उनसे |”
“तुम लोगों को !!” अचानक अनामिका की ऑंखें परेशान हो उठी|
“इतनी दूर से कितना तीन पांच करते हम यहाँ आए है तो तेरे वो हमसे मिलेंगे भी नही तो जा हम वापस चली जाएँगे |”
“ओहो नखरा दिखाने की जरुरत नही – चल तेरे लिए फिर एक और मुलाकात कर लेंगे |” जबरन बेचारी चेहरा बनाती अनामिका बोली तो दोनों उसकी चिकोटी लेती उसकी ओर झुक गई – “अच्छा सिर्फ हमारे लिए |” अगले ही पल तीनों की हंसी से वो कमरा गुलजार हो उठा|
जारी रहेगी...
सच में अनामिका ने जाने किसे फोन करके शरमाते हुए अपनी दिल की कही और बस अगले कुछ क्षण में कोई दस्तक हुई उनके कमरे के बाहर तो तीनों चौंककर एक दूसरें की निगाह की ओर देखती हुई धीरे से मुस्कराई|
“चलो मुलाकात नही करनी क्या !!”
दोनों अब हैरान अनामिका को दरवाजे की ओर बढ़ता हुआ देखती रही| दरवाज़ा खोलकर वह किनारे खड़ी होकर पलक और झलक को इशारे से दरवाजे की ओर देखने को कहती है| दोनों की हैरान नज़रों के सामने सच में जैसे कोई राजकुमार की ठाठ में उनकी ओर आता हुआ उन्हें दिख रहा था| दोनों सकपकाती खड़ी हो गई|
“स्वागत है आपका – कभी हम आपको कभी अपने दीवाने आम को देखते है – माई सेल्फ रूद्र प्रताप सिंह चौहान |” वह अपनी भरपूर मुस्कान से उनके सामने आता खड़ा था और दोनों हैरान उसकी ओर देखती हडबडाहट में कह उठी – “मैं पलक – नही ये पलक मैं झलक |”
वह उन तीनों की सकपकाहट देख बिन आवाज के हंस पड़ा तो अनामिका उनके बीच आती कह उठी|
“लो मिलवा दिया न रूद्र जी से |”
“हाँ |” दोनों साथ में बस यही कह पाई|
“हमे भी आपसे मिलकर अत्यंत हर्ष हुआ – अनामिका जी से हमे पता चला कि कितनी मुश्किल से आप हमारी मंगनी में आई तो वाकई अब हम आपके कर्जदार हो गए पर अभी ये कर्ज हम उधार में रखेंगे – समय आने पर इसे सूद समेत चुकाएँगे|” रूद्र सलीके से अपने दिल पर हाथ रखते कहते है तो ये देख तीनों मुस्करा पड़ती है|
“वैसे अभी तो हम नवल जी के एहसानमंद है जिनकी मदद से ये मुमकिन हुआ |” अनामिका अपनी भरपूर मुस्कान से पलक और झलक को देखती हुई कहती है|
दोनों अब इस नाम को सुन प्रश्नात्मक मुद्रा में उसकी ओर देखती है तो अनामिका जल्दी से कहती है – “नवल जी रूद्र जी के छोटे चचेरे भाई सा है |”
रूद्र उन दोनों की आश्चर्य से डूबी आँखों को समझता हुआ कहता है – “चलिए उनसे भी हम आपको मिलवा देते है |” इतना कहने भर से वे अपनी पॉकेट की गिरफ्त से मोबाईल निकालते झट से एक कॉल लगाता ही है कि कोई चेहरा दूसरे क्षण ही प्रकट हो जाता है जिसे सामने देख पलक और झलक साथ में उछल पड़ती है|
“तुम !!!”
वे दोनों आश्चर्य से उस अजनबी को देख रही थी तो अनामिका और रूद्र उन तीनों को|
“तुम दोनों जानती हो इन्हें ?”
“बिलकुल नही – ऐसे फालतू लोगों को हम बिलकुल नही जानती जो लड़कियों को देखते उन्हें घूरने लगते है |” झलक की चिढ़ती हुई आवाज सुनकर भी वह अपनी चिरपरिचित मुस्कान से मुस्करा रहा था|
“इतने खूबसूरत चेहरे सामने दिखेंगे तो नज़रे तो गुस्ताख होंगी ही |” वह अंदाज़ में हलके से झुकते हुए कहता है तो रूद्र धीरे से मुस्करा देता है|
‘अच्छा जी - मुझे बताया भी नही |’
अब अनामिका धीरे से पलक की ओर झुकती हुई पूछती है तो पलक भी धीरे से फुसफुसाती हुई कहती है – ‘ट्रेन में मिला था अचानक और फिर इस होटल में भी और हमे कुछ नही पता|’
“चलो इस अजनबी से हम ही मिलवा देते है – ये है रूद्र जी के छोटे भाई सा नवल प्रताप सिंह चौहान और नवल जी ये है मेरी प्यारी सखियाँ पलक और झलक |”
“जी आपसे मिलकर हमें हार्दिक हर्ष हुआ राजकुमारी जी |” वह अदब से झुकता हुआ यूँ बोला कि झलक की आँखों में और गुस्सा चढ़ आया|
“हम कोई राजकुमारी वुमारी नही है |” तुनकती हुई झलक बोल उठी|
“तो अवध की नवाब है आप !!”
नवल की शरारती ऑंखें अब पलक और झलक के इर्दगिर्द घूमती हुई कह रही थी तो अनामिका और रूद्र किसी तरह से अपनी हंसी दबाए हुए खड़े थे|
“पलक जी आपका शुक्रिया की खाकसार को आपने अपनी ट्रेन में कुछ पल पनाह दी और झलक जी अब आप हमे नाराज़ होकर इस राजमहल से बाहर तो नही निकलवा देंगी !!” वह कसकर बिन आवाज के हंस पड़ा तो दोनों घिघियाती हुई बगले झांकती रह गई|
“अरे नवल भाई आप हमारी अनामिका की ख़ास मेहमानों को यूँ तंग मत करिए कही ज्यादा डर गई तो शादी में नहीं आ पाएंगी |” अबकी रूद्र भी चुटकी लेने से नही चूका तो अनामिका को भी हंसी आ गई|
“हम तो क्षमा मांग रहे है भाई सा – वैसे तो हम तो ऐसे खूबसूरत चेहरों के लिए महल ही क्या दुनिया छोड़ सकते है|”
ये सुन पलक और झलक की आवाज उनके गले में ही अटकी रह गई, वे अपने चारों ओर यूँ देखने लगी कि मौका मिला तो तुरंत वहां से भाग जाएंगी |
उनकी हालत देख अनामिका धीरे से झलक के कानों के पास आती फुसफुसाई – ‘आखिर सेर को सवा सेर मिल ही गया |’
***
रूद्र और नवल के जाने तक कैसे भी करके खुद को वहां खड़ा कर पाई पर उनके जाते झलक एकदम से अनामिका की ओर पलटती गुस्से में देखती हुई बोली – “तू बड़ी दुष्ट है – एक पल में हम सखियों को भूल उनकी साइड खड़ी हो गई |”
ये सुन अनामिका के होंठ मुस्कान से हलके से फैलते झलक के रूठे चेहरे को देखते हुए कहते है – “अच्छा जी छुपाया तो मुझसे गया कि तुम दोनों नवल जी से कब मिली – हूं – बताओ |”
“उसका तो नाम मत लो – मेरा तो खून खौल जाता है |” झलक का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा, वह गुस्से में हाथ मलती हुई कह रही थी – “अभी ये हमारे लखनऊ में होता न तो....तो |”
“तो क्या गुंडों से पिटवाती |”
कसकर हँसते हुए अनामिका ने कहा तो पलक को भी धीरे से हँसी आ गई जिससे चिढ़ती हुई झलक उन्ही पर बरस पड़ी |
“तुम देखना मैं उस तुम्हारे सो कॉल राजकुमार को छोड़ने वाली नहीं हूँ |” गुस्से में फुन्कारती वह बिस्तर पर धम से बैठ गई, इस पर दोनों को उसकी हालत पर हंसी आ गई|
“अरे बाप रे पलक तू इस लखनऊ की गुंडी को संभाल – मैं चलती हूँ – शाम को मिलते है |”
अनामिका हँसती हुई झट से वहां से निकल गई, उसके जाते पलक धीरे से झलक के बगल में बैठती हुई उसके कंधे पर हाथ रखती हुई कहने लगी –
“अब गुस्सा छोड़ और शाम की तैयारी कर न – वरना इस राजमहल में हमी सबसे बेकार लगेगी – अच्छा तू लाल वाला लहंगा पहनेगी या पीच वाला !”
तैयारी के नाम पर झलक का गुस्सा थोडा कम हुआ तो उसका ध्यान शाम को पहने जाने वाली ड्रेस पर चला गया| हमेशा ही दोनों अपने कपड़े अदल बदल कर पहनती थी, उनके बीच कुछ भेद था ही नही जो पलक का था वो सहज ही झलक का हो जाता और जो झलक का होता उसे पलक कभी भी अपना लेती| अभी भी अपने बैग से दो अच्छे लहंगे लाने पर अब वे तय कर रही थी कि वे कौन-सा लहंगा पहनेगी?
“मैं लाल वाला पहनूंगी |” हमेशा की तरह झलक अपना चयन पहले कर लेती और पलक को सब मंजूर रहता| कहती हुई झलक गुस्सा भूलकर अब आदमकद शीशे के सामने खड़ी लाल रंग वाला लहंगा खुद पर लगा लगाकर मटक रही थी, ये देख पलक को उसपर हँसी आ गई|
उस राजमहल जैसे होटल में ख़ास मेहमान होने का दोनों को मज़ा आ रहा था, थोड़ी थोड़ी देर में चाय नाश्ता सजा संवरा उनके सामने लग जाता तो कभी एक पुकार पर अर्दली सर झुकाकर उनका हुक्म सुनने लगता, वे तो ख़ुशी से चहक ही पड़ी|
जारी रहेगी...
शाम को पलक झट से तैयार हो गई और हमेशा की तरह देर तक तैयार होती झलक कभी पूरी चूड़ी पहनती तो कभी आधी आधी दोनों कलाई में कर लेती तो कभी साथ लाई सारी एअरिंग पहन डालती पर बहुत देर संतुष्ट नही हुई तो पलक ने गुस्से में उसे जल्दी तैयार होने का कहकर बाहर अनामिका को देखने निकल गई| पीच रंग के लहंगे पर गुलाबी चुन्नी को एक तरफ से लिए अपने कमर तक के बालों को किलिप से कंधे के दूसरी ओर कर रखा था|
अपने सादे रूप में भी पलक बेहद सुन्दर लग रही थी, असल में पलक झलक से ज्यादा खिली रंगत की थी और हमेशा ही सादगी में रहती थी| वह सदा की तरह गले में एक लोकेट वाली चेन पहने थी और कानों में मोती के बुँदे पर आज कानों में रिंग सी सुनहरी एअरिंग पहने थी तो दोनों हाथों में चूड़ी डाले पलक गैलरी से होती अनामिका के कमरे की ओर जा रही थी| उस वक़्त शायद सभी तैयारी में ऐसे मशगूल थे कि उसे कोई नज़र ही नहीं आया|
गैलरी से गुज़रते अकस्मात् उसकी नज़र दीवार की खिड़की पर चली गई, उस खिड़की के पार निचली मंजिल का खुला सजा संवरा प्रांगण दिख रहा था, जहाँ बहुत से लोग राजस्थानी स्थानीय कपड़ों में जैसे डांस के इंतजार में हलके हलके झूम रहे थे, तो सारंगी की मधुर तान उस पल सुन पलक के कदम वही ठहरे रह गए, वह तो बुत बनी बस अपलक देखती रह गई| तभी उस ढलती दुपहरी का एक गर्म भबका उसकी देह को जैसे उदोलित कर देता है जिससे चिहुंककर वह अपने अगल बगल देखने लगती है|
पल भर के रोमांच से उसमे एक अज़ब सी सिरहन दौड़ जाती है| तभी उसके कंधे पर किसी हाथ का भार महसूस होता है, वह पलटकर देखती है तो देखती रह जाती है| उसकी नज़रों के सामने जो थी उस पल उससे वह नज़रे नही हटा पाई, सादे सपाट चेहरे पर राजस्थानी लहरिया चुन्नी लगभग माथे तक लिए थी, बस उसकी आधी कजरारी आँखों और बड़ी सी नथ पर उसका ध्यान अटका रह गया|
“लाडो – जब दोपहर से संध्या मिलती हो तो अकेले न घूमण चाहिए |” कहकर वह वापस मुड़कर चली गई| पलक बस देखती रह गई|
फिर उससे आगे नही बढ़ा गया और वह वापस झलक को देखने कमरे की ओर आ जाती है| झलक अभी भी तैयार हो रही थी ये देख पलक अपना सिर पकड़ लेती है|
उस एक पल जिसका सबकी बेसब्र आँखों को इंतजार था, जिसके लिए दोनों भागकर राजस्थान आई थी बस वो पल उनकी आँखों के सामने था, वह महल का ही हिस्सा था जहाँ मंगनी की रस्म की तैयारी चल रही थी|
उस पल वहां की सजावट पर उनकी ऑंखें ठहरी ही रह गई, चारोंओर शानोशौकत राजसी ठाट बाट पसरी फैली थी, दोनों उस वैभव को ऑंखें फाडे बस देखती रह गई, कतारबद्ध एक से वस्त्र में खड़े कारिंदे हाथों में छतरी लिए राजसी परिवार की अगुवानी कर रहे थे| पलक झलक तबसे अनामिका से मिलना चाह रही थी पर अभी इंतजार करती स्टेज के सामने बैठी सुसज्जित स्टेज को देख रही थी जहाँ एक तरफ पूजा की तैयारी चल रही थी|
तभी सारंगी की तान का सुर बदला और सबका ध्यान द्वार के सजावटी मुहाने की ओर दौड़ गया जहाँ से आगे आगे संगीत की तान छेड़ते और नृत्य करते रंग बिरंगे राजस्थानी वस्त्रों में स्त्री पुरुष के एक जत्थे के पीछे फूलो की चुन्नी के नीचे जो थी उसपर बरबस ही सबकी नजर टिकी रह गई, उसके आधे ढके चेहरे को भी पलक झलक पहचान जाती है, अनामिका जो बिलकुल ही बदली रूप में उनकी नज़रों के सामने थी| उसके हौले हौले उठते क़दमों से झिलमिलाते उसके कुंदन और रत्नों के जेवर सबकी आँखों में चमत्कृत हो उठते| उसके अगल बगल लहरिया पगड़ी और लहरिया चुन्नी में राजसी ठाट की पूरी शान हमकदम हो उठी थी| नजाकत से चलती अनामिका की बाजु में बंधे लूम मानों हौले हौले नृत्य करते हुए आगे बढ़ रहे थे|
वे मुस्कराती हुई देखती है कि अनामिका को पूजा के स्थान पर ले जाया जा रहा था|
“झलक जी |”
पुकार पर पलटकर देखती है तो सामने सोम था जिसे देख झलक शरारत से धीरे से मुस्करा दी|
वह भी शरमाया सा धीरे धीरे कह रहा था – “बाई सा की ओर से संदेसा है - |”
“अच्छा तो क्या !!”
“आपको जलपान करा दूँ फिर उनके पास ले चलना है |”
“ओह |” कहकर दोनों कसकर खिलखिला उठी जिससे खड़े खड़े सोम शरमा उठा|
गार्डननुमा विस्तृत दालान में कुछ कुछ दूरी पर गोल मेज मय चार कुर्सी सहित सजी थी जिनके मध्य में रखे गुलदस्ते में लगी गुलाब की एक सुर्ख कली मानों अकेले ही माहौल में रूमानियत भरने के काबिल थी| वे वहां न बैठकर खड़ी अपने आस पास का नज़ारा देख रही थी|
सोम खासतौर पर उनके लिए ड्रिंक मंगा कर उन्हें लेने का आदरपूर्ण आग्रह करता है| वे भी झट से अपनी अपनी पसंद का झलक काला वाला और पलक सफ़ेद वाला लेकर सोम की ओर इशारा करती है| वह भी उनके पास से शायद जाने के मूड में नहीं था तो झट से वह भी एक ड्रिंक लिए उनके साथ खड़ा हो जाता है|
“खुबसूरत है ऑंखें तेरी....|”
अचानक कोई आवाज तेजी से उनका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करती है तो वे आवाज की दिशा की ओर देखती है तो बस उनकी ऑंखें फटी की फटी रह जाती है| स्टेज के दाहिने हिस्से में निचली बैठक में वाद्य यंत्रों के साथ बैठे लोगों के सामने माइक थामे नवल था जो उन्ही की ओर देखता हुआ महफ़िल जमा रहा था, ये देखते झलक गिलास पकड़े कड़े तेवर से उसकी ओर देखती है|
“दिल में इक लहर सी उठी है अभी...कोई ताज़ा हवा चली है अभी....भरी महफ़िल में जी नही लगता...जाने किस चीज़ की कमी है अभी....|”
“बदतमीज |”
झलक को भुनभुनाते देख पलक हौले से मुस्कराती हुई बोली – “क्या हुआ झलक – कितनी अच्छी शायरी तो सुना रहे है – भलेही कही से चेपी हुई है|”
“तू उधर मत देख – तुझे बहन वाला वास्ता - |”
“अच्छा ठीक है न देखूं और कान भी बंद कर लूँ क्या..|” पलक झलक के गुस्से से भरे चेहरे को देखती मुस्करा रही थी|
“और इस महफ़िल की शान हमारे प्यारे भाई सा और प्यारी भाभी सा के कदम पड़ते इस महफ़िल में चार चाँद लग चुके है.....तो इश्क वालों जरा नज़रे तो घुमा लो हम कातिल नही तुम्हारे दिल के...रखा है बस संभाल के दिल आपका..|”
वाह वाह वाह वाह की आवाज से वो माहौल जितना सराबोर हो उठा पलक उतने ही गुस्से में दांत भींचे उसकी ओर देखने लगी|
“बड़ी नाजुक है ये मंजिल....मोहब्बत का सफ़र है....धड़क आहिस्ता से ऐ दिल...मोहब्बत का सफ़र है.....कोई सुन ले न ये किस्सा...बहुत डर लगता है....मगर डर से क्या हासिल...मोहब्बत का सफ़र है...बताना भी नही आसान....छुपाना भी कठिन.....खुदाया किस कदर मुश्किल....मोहब्बत का सफ़र है......|” कहते कहते नवल अब शायरी गाने लगे तो सारी महफ़िल दम साधे बस सुनने लग गई|
“ये सो कॉल राजकुमार कुछ भी गाता रहेगा और मैं सुनती रहूंगी – हुअ |” झलक मुंह बनाती हुई अब उसकी ओर से पीठ करती है तो उसकी नज़र सोम की तरफ जाती है जो तन्मय होकर उस गायन का आनन्द ले रहा था, उसको देखते हुए झलक को कुछ सूझता है तो जल्दी से अपने चेहरे के हाव भाव बदलती उसे पुकारती हुई कहती है – “कितना अच्छा गाते है न !”
झलक के बदले स्वर सुनते पलक उसकी ओर देखती हुई उसके चेहरे पर ऐसे भाव आ जाते है मानों शांत समंदर में अब प्रलय आने वाली हो|
“जी |” वह अपने स्वभाववश आदर से सहमति देता है|
“बेचारे तब से गा रहे है – आपको खुद उन्हें ड्रिंक पहुंचानी चाहिए – आखिर जीजा जी के भाई है वे |” किसी समझदार की तरह उसे समझाती हुई कहती है – “रुकिए – मैं लाती हूँ |” कहती हुई झलक बिना उसकी प्रतिक्रिया का इंतजार किए कोल्डड्रिंक की टेबल की ओर बढ़ जाती है|
पलक के चेहरे के हाव भाव में घबराहट उतर आई थी उसे पता था कि जरुर झलक को कुछ सूझा है नही तो वह खुद नही जाती पर क्या कर सकती थी सिवाय इंतजार के|
सोम का ध्यान फिर नवल की ओर था|
“लीजिए – ये देकर आइए अपने नवल सा को |” आखिरी शब्द पर जोर देती वह कुछ ज्यादा ही मुस्कराई|
सोम बड़े अदब से काली कोल्डड्रिंक का गिलास लिए अब नवल की ओर बढ़ गया था, उसे जाता देख पलक झट से झलक के पास आती उसके कान में फुसफुसाती हुई पूछती है – “क्या करने वाली है तू ?”
“जादू - |” हवा में चुटकी बजाती वह तिरछी मुस्कान से मुस्कराती हुई उतने ही धीमे स्वर में कहती है – “इस महान गायक की आवाज को थोडा आराम मिल जाए वही दवा डाली है – थोड़ी सी काली मिर्च |”
“क्या...!!!” पलक अवाक् उसकी मुस्कान देखती रह गई |
“अब देखना मजा |”
“पागल है तू – और तुझे ये काली मिर्च मिली कहाँ ?”
“सूप वाली टेबल में |” पलक के होश उड़े थे पर झलक तो भरपूर मुस्कान से अब स्टेज की ओर देख रही थी|
सोम गिलास नवल के सामने की टेबल में रखकर वापिस आ जाता है तो झलक का मुंह उतर जाता है |
“ये तो बिलकुल नक्कारा निकला |”
“यूँ महफ़िल में समां गुलाब हुआ....हमारी तकदीर को उनकी ओर से ये उपहार मिला....चलो डूब जाए झील सी आँखों में....कौन जाने ऐसा हंसी पल आखिरी बार हुआ....|”
“बकवास...|” झलक अभी भी भुनभुना रही थी और पलक को उसके गुस्से पर हँसी आ रही थी|
“चलिए बाई सा आपको बुला रही है |” सोम अब उन दोनों से निवेदन करता हुआ खड़ा था|
जारी रहेगी....
आखिर दोनों अनामिका की ओर बढ़ जाती है| पूजा खत्म हो चुकी थी और रस्म शुरू होने वाली थी, अब दोनों अनामिका के अगल बगल बैठी सामने की ओर देखती आपस में फुसफुसा रही थी|
“अनु आज तो तू बस धमाल ही लग रही है|”
“तो तुम भी कौन सी कम लग रही हो – तब से देख रही हूँ नवल जी का ध्यान नही हट रहा तुमसे |” अनामिका भी झलक के जवाब में बिना चेहरे के भाव बदले धीरे से कहती है|
“तू भी न इस सो कॉल राजकुमार के साईड रहेगी तो तेरी मेरी कट्टी|” झलक रूठती हुई थोडा पीछे हो जाती है तो अनामिका बिना हिले धीरे से उसका हाथ पकड़ लेती है|
सब अब स्टेज पर आकर अनामिका के ऊपर सगुन का चावल डालकर चले जा रहे थे जिससे दोनों अनामिका से थोडा पीछे हट जाती है| अब उनका ध्यान आस पास घूम जाता है अचानक पलक झलक का हाथ पकड़कर हिलाती हुई कहती है – “झलक ये देख वो |” पलक नवल की ओर ध्यान दिलाती है तो दोनों अचरच से उस ओर देखती रही कि अभी सुनहरी शेरवानी पहने नवल कथई शेरवानी में नज़र आ रहा था|
“ज्यादा हीरो बन रहा है – लग तो दोनों शेरवानी में लंगूर ही रहा है न|” बिना होंठ हिलाए झलक पलक की ओर देखती धीरे से फुसफुसाई और अनामिका की ओर ध्यान देने लगी कि एकाएक फिर उनका ध्यान सामने की ओर जाता है तो दोनों यूँ उछल पड़ी मानों करंट छू लिया हो |
“ये फिर से सुनहरी शेरवानी में आ गया – हो क्या रहा है – कोई एक ही पार्टी में यूँ कपडे बदलता है क्या !!”
“ज्यादा पैसा है तो दिखाना भी चाहिए |”
कहकर दोनों आपस में फुसफुसा कर मुंह दाबे हँस पड़ी |
तब से उनकी बात सुनती बगल में बैठी अनामिका बिना उनकी ओर देखे उनकी ओर हौले से झुकती हुई बोली – “सरप्राइज है तुम दोनों के लिए – सामने जरा ध्यान से देखो – ये एक नही दो है – जुड़वाँ भाई – दूसरे शौर्य प्रताप सिंह चौहान है|” कहते हुए अनामिका को उनकी हालत का जायजा था जिससे उसे बड़ी तेज हँसी आ रही थी पर किसी तरह से अपनी हँसी को दबाए वह सामने देखती रही|
इधर दोनों को काटों तो खून नहीं बस मुंह खोले सच में वे अब ध्यान से देखती है कि एक ही चेहरा बिलकुल अक्स सा दो अलग अलग शेरवानी में उनके सामने था|
“हे भगवान् – एक ही काफी नही था क्या जो भगवान ने बाय वन गेट वन फ्री दे दिया |”
पलक और झलक अभी भी मरी मरी हालत से सामने देख रही थी और उनकी नज़रों के सामने नवल काली और शौर्य सफ़ेद कोल्डड्रिंक लिए खड़े रूद्र को गिलास उठाकर चिअर्स कर रहे थे|
कमायाचे की धुन माहौल में धीरे धीरे रस घोलने लगी थी, उसके संग संग बजते घुंघरू सभी को अपनी मोहनी के पाश में जकड़े ले रहे थे इसी सरसता के बीच मंगनी की रस्म अदा कर दी गई| अनामिका हौले से शरमाती नज़र उठाकर रूद्र को देखती है जो तब से सबसे नज़र बचाकर उसी को निहार रहा था तो नज़र मिलते उनकी ऑंखें आपस में खिल उठती है| उनकी छुपी नज़रों को भांपती पलक झलक के चेहरे की उमंग दोहरी हुई जा रही थी| झलक चुपके से अनामिका की कमर के खुले हिस्से में चुटकी काट लेती है जिससे चिहुंककर वह उसकी तरफ आँखें तरेरती हुई देखने लगी, उस पल उसे झलक की शैतानी पर बड़ी तेज गुस्सा आ रहा था कि कितनी मुश्किल से नज़र भरकर देख पाई थी और उसने सारा मज़ा खराब कर दिया ये देख पलक को हँसी आ गई|
मंगनी होते घर के सारे बड़े मेहमानों संग व्यस्त हो गए अब वहां नव जोड़े के साथ पलक, झलक और कुछ दूरी पर खड़े नवल और शौर्य रह गए थे तो सोम भी किसी तरह से उनके बीच जगह बनाए बीच बीच में झलक को नज़र भर देखकर अपने में ही मुस्करा लेता| रूद्र और अनामिका को बैठा देख अनामिका की चचेरी बहनें भी वहीं चली आई, ये सोचकर आई कि कुछ चुहलबाजी करेंगी पर उससे पहले ही रूद्र अपने दोस्तों के बुलावे पर उनके पास चले गए| अब अनामिका को घेरे चारों लड़कियों की बातों का असीम सिलसिला यूँ चल पड़ा कि उनका खिलखिलाना ही नही रुकता था, कभी कभी वे इतनी जोर से खनक उठती कि आस पास वालों का ध्यान बरबस ही उनकी तरफ चल जाता|
“अरे भाई सोम आप यहाँ खड़े क्या कर रहे है ?” सोम जो तब से उन लड़कियों की ओर देखता मुस्काए जा रहा था एकाएक अपना नाम सुनकर आवाज की तरफ पलटता है, ये नवल था जो उसे कह रहा था – “आपकी बाई सा थक गई होंगी थोडा शरबत वरबत पहुंचाईए |”
“जी |” अपने स्वाभाविक भाव से आदर में झुकता हुआ वह कोल्डड्रिंक के लिए इधर उधर देख ही रहा था कि देखता है कि नवल के पीछे ही हाथ में ट्रे लिए एक वेटर खड़ा था|
“चलिए हम भी आपके साथ ये सेवा कार्य करते है|” कहते हुए सोम को आगे कर उसके पीछे पीछे अनामिका की ओर चलने लगता है|
वे अपनी बातों में इतनी मशगूल थी कि उन्होंने बस अपने आगे आती कोल्डड्रिंक के गिलास देखे और ले लिए, झलक ने भी गिलास ले लिया ये देखे बिना कि उसे नवल ने गिलास पकड़ाया था| वे ठहाका लगाती गिलास से एक घूंट भरती है, सब तो सहज रहती है पर झलक एक दम से जीभ निकाले सी सी की आवाज निकालने लगती है|
“ईई – इतनी तीखी क्यों है – कोई मिर्ची डालता है क्या कोल्डड्रिंक में !!”
वह गिलास एक तरफ रखती हुई मुंह गोल किए किसी तरह से अपने मुंह में साँस भरती सुकून ले रही थी कि उसके कानों में एक आवाज गई|
“अरे ये गुस्ताखी किसने की |” नवल जबरन माथे पर बल लाते हुए झलक की ओर देखता है – “बड़े अजीब लोग होते है जिनका शौक कोल्डड्रिंक में काली मिर्च डालने से पूरा होता है – सोम आप अपनी ख़ास मेहमान के लिए दूसरा गिलास लाइए |” नवल चेहरे पर गंभीर भाव लाते कहता है जिससे सोम तुरंत ही कोल्डड्रिंक लाने चला जाता है|
“लगता है गलती से कोल्डड्रिंक में सूप गिर गया होगा |”
नवल की बात पर अपनी बगले झांकती झलक दांतों तले जीभ दबा लेती है तो बाकी अचरच से उनकी ओर देख रही थी|
नवल अब मंद मंद मुस्करा रहा था जिससे झेंपती झलक पलक के कानों के पास आती धीरे से फुसफुसा कर कहती है – “इसको कैसे पता चला कि ये मेरा काम था ?”
“वो छोड़ – देख वही काली कोल्डड्रिंक है कही अपनी वाली तो नही पकड़ा दी !” पलक भी उतने ही धीरे से फुसफुसा कर जवाब देती है|
“छी जूठी |” ये सोचती झलक अब गुस्से में ऑंखें तरेरती हुई नवल की ओर देखने लगी जो अब अनामिका से बातें करता करता एक बार उसकी ओर देख लेता|
“मैं आती हूँ वाशरूम से – यक – कुल्ला करके ही चैन मिलेगा |” झलक कहती तुरंत चली जाती है|
नवल उसी पल अनामिका से बात करता करता कसकर हँस पड़ा जिसकी खनक से झलक और जलती भुनती चली गई|
“भाभी सा – सुना है आप बहुत अच्छा गाती भी है |”
नवल की बात पर अनामिका हौले से शरमा जाती है|
“तब तो आपकी सुरों की साथी आपकी सखियाँ ही होती होंगी – आखिर आवाज इतनी सुरीली है तो कंठ तो कोकिला ही होगा|” नवल कहता कहता अब पलक की ओर देखता है|
“क्यों नही – इनके बिना तो हमारे कॉलेज का फंक्शन पूरा नही होता |” अनामिका भी उसकी ताल में ताल मिलाती हुई बोली|
“क्या सच में !!” एकदम से उछलते हुए नवल अब पलक के सामने आ गया – “ओहो तब तो आज आपको हम सबको कुछ सुनाना ही पड़ेगा |”
नवल की बात सुन पलक के चेहरे पर बेचारगी के भाव आ गए, वह दयनीय मुद्रा में अनामिका की ओर देखने लगी|
“हाँ तो क्या सुनाने वाली है आप – भाभी सा आप कहेगी लगता है तभी मिस कोकिला का स्वर हमे नसीब होगा |”
ये सुन अनामिका के साथ बाकि भी हँस पड़ी पर पलक की हालत खराब होने लगी|
“सुनाईए – आपको तो गज़ले पसंद है तो कुछ नज़म ही बयाँ कर दीजिए |”
“अरे आपको कैसे पता कि पलक को ग़ज़ल पसंद है ?” आश्चर्य से अनामिका पूछ बैठी|
“हम चील की नज़र रखते है – कुछ भी छुपाना संभव नही हम से |” अबकी तिरछी नज़र से पलक को देखता है|
पलक बेचारी सी खुद को उनके बीच फंसा पा रही थी इसलिए मन ही मन झलक को याद करती हुई बुदबुदाई ‘कहाँ हो झलक जल्दी से आओ|’
“सुनाईए...|”
अब सभी पलक का चेहरा ताकने लगे थे पर पलक बेचारी सी हाथ मलती गाहे बाहे देखती रह गई|
“अब इतना भी क्या सोचना – चलिए कोई नर्सरी राइम ही सुन लेगे आपके सुरीले कंठ से|” नवल ने तरस खाती नज़रों से उसे देखा तो बाकि की हँसी छूट गई| पलक बेचारी सी दूर तक झलक को आँखों से खोजने लगी|
जारी रहेगी...