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ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸

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ये कहानी है एक येसे दों आशिकों की जो अपने हर सपने को साथ देखने से लेकर पूरे करने तक का सफर पुरा करते हैं | ये कहानी उन दोनो की संघर्ष, प्यार, समर्पण, त्याग,जूनून और जिंदगी की यात्रा है। "ये कहानी मै हर उस ‌लड़की को डैडिकेट करना चाहता हूँ जो...

Total Chapters (19)

Page 1 of 1

  • 1. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 1

    Words: 1501

    Estimated Reading Time: 10 min

    मध्यप्रदेश का एक गांव पंचनेर (‌काल्पनिक स्थान )

    एक खूबसूरत गाँव था, जहाँ सूरज की सुनहरी किरणें खेतों पर पड़ रही थीं और हवा में मिट्टी की सौंधी खुशबू घुली हुई थी. गाँव के किनारे एक हरे-भरे मैदान में कुछ बच्चे हंसते-खिलखिलाते हुए खेल रहे थे. कोई कबड्डी खेल रहा था, तो कोई गुल्ली-डंडा; कुछ छोटे बच्चे मिट्टी के घर बनाने में मग्न थे. उनकी किलकारियों से पूरा वातावरण गूंज रहा था.

    इसी गाँव में अव्यांशी राजावत नाम की एक दस साल की लड़की रहती थी. वह अपने घर के कामों में व्यस्त थी – कभी आँगन बुहारती, कभी पानी भरती, . अव्यांशी कद में लंबी और दुबली-पतली थी, उसकी आँखें किसी गहरी झील-सी सुंदर थीं, जिनमें एक अजीब-सी चमक थी. उसके लंबे, काले बाल उसकी पीठ पर लहराते थे.

    काम करते हुए भी उसकी आँखें बार-बार उस मैदान की ओर उठ जाती थीं जहाँ बच्चे खेल रहे थे. उनके हर ठहाके, हर उछाल-कूद को देखकर उसके चेहरे पर एक मीठी मुस्कान तैर जाती थी. वह भले ही उनके साथ खेल नहीं पा रही थी, पर उन्हें खुश देखकर ही उसकी अपनी दुनिया खिल उठती थी. उसकी आँखों में एक अजीब-सी संतुष्टि और थोड़ा सा बचपन का अधूरापन भी झलकता था. वह चुपचाप अपने काम करती रहती और अपने मन ही मन उन बच्चों की खुशियों में शरीक होती रहती !

    हमेशा से उसका जीवन ऐसा नही था ,वो हर पल मस्ती करने वाली खिलखिलाती बच्ची थी उसके पिता ज्यादातर घर के बाहर हि रहते थे तो ये अपनी मां कि एकदम लाडली गुडिया थी हमेशा से उसकी मां उसे घर के सारे कार्यो से दूर रखती थी और कहती थी कि हमारी लाडो़ बहूत आगे जायेगी जीवन मे पढ़ - लिखकर हमारा नाम रोशन करेगी | उसके जवाब मे वो हमेशा से कहती थी मां मै पढ -लिखकर जरूर आपका सपना पूरा करुँगी 😘

    मां - हां फिर मेरे लाडो़ की शादी उसकी सपनों के राजा से करा दूगी।

    जिसमे आव्यांशी हसने लगती है ! दोनो सो जाते हैं 💫

    कुछ हफ्ते बाद आव्याशी की मां की मौत हो जाती है और उनकी चिता के साथ - साथ उसका बचपन भी जल् जाता है !

    अव्यांशी का जीवन एक साल पहले पूरी तरह बदल गया था. उसकी माँ, वीना की अचानक मौत ने पूरे घर को मातम में डुबो दिया था. पर उनका दुख अभी ताज़ा ही था कि दूसरे ही हफ्ते उसके पिता एक और औरत को घर ले आए. सिर्फ़ यही नहीं, उस औरत के साथ उसकी एक नाजायज औलाद, प्रिया नाम की एक लड़की भी थी.

    प्रिया को घर आते ही सारी सुख-सुविधाएँ मिलने लगीं. उसे किसी काम को हाथ लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी. वह आराम से रहती, जबकि अव्यांशी पर घर के सारे कामों का बोझ आ गया था. उसकी माँ के जाने के बाद उसे कोई प्यार करने वाला नहीं बचा था. घर में सब उसकी सुंदरता से जलते थे, शायद इसीलिए भी उसे कभी किसी का स्नेह नहीं मिला.

    समाज में बदनामी के डर से, लोग कुछ कहें नहीं, इसलिए अव्यांशी को स्कूल जाने दिया जाता था. लेकिन वह भी सिर्फ़ एक सरकारी स्कूल में पढ़ती थी, जहाँ सुविधाओं का अभाव था. वहीं, प्रिया को शहर के सबसे अच्छे कॉन्वेंट स्कूल में दाखिला दिलाया गया था, जहाँ उसे हर वो सुविधा मिलती थी जो अव्यांशी ने कभी सोची भी नहीं थी.

    इन सब मुश्किलों के बावजूद, अव्यांशी ने हार नहीं मानी थी. वह पढ़ाई में बहुत होशियार थी. सरकारी स्कूल की किताबें और कॉपीयाँ ही उसका सहारा थीं, जिनसे वह अपनी किस्मत बदलने का सपना देखती थी ।

    आव्यांशी

    माँ, प्रिया, की शादी बचपन में ही हो गई थी, जैसा कि अक्सर उन दिनों होता था। वह छोटी उम्र में ही अपने पति, राहुल, के घर आ गई थीं, और एक नए जीवन के सपने सँजोए हुए थीं। कुछ साल तक सब ठीक चलता रहा, ज़िंदगी अपनी धीमी रफ़्तार से चल रही थी, लेकिन फिर एक दिन प्रिया की दुनिया बिखर गई।

    उन्हें पता चला कि राहुल का अफेयर रीना नाम की एक लड़की के साथ चल रहा है। यह ख़बर प्रिया के लिए सिर्फ़ धोखा नहीं, बल्कि एक गहरा ज़ख्म था। उनका विश्वास, उनका प्यार, सब टूट कर बिखर गया। उन्हें लगा कि उनका सब कुछ लुट गया है। उन्होंने राहुल से सवाल किया, झगड़े हुए, और बात तलाक तक पहुँचने वाली थी।

    लेकिन तभी प्रिया को एक ऐसी बात पता चली जिसने उन्हें अंदर तक हिला दिया—वह गर्भवती थीं। उनके पेट में एक नन्ही जान पल रही थी। यह ख़बर उनके लिए किसी तूफान से कम नहीं थी। एक तरफ़ पति का दिया हुआ गहरा ज़ख्म था, दूसरी तरफ़ एक अनचाही सच्चाई कि वह एक बच्चे की माँ बनने वाली हैं। इस स्थिति में, वह कोई बड़ा कदम नहीं उठा सकीं, क्योंकि अब उन्हें सिर्फ़ अपनी नहीं, बल्कि अपने आने वाले बच्चे की भी फ़िक्र थी। उन्होंने अपने दर्द को घोंटकर सब कुछ सहने का फ़ैसला किया।

    समय बीतता गया और आव्यांशी का जन्म हुआ। जब आव्यांशी इस दुनिया में आई, तो उसे देखने उसके पिता, राहुल, एक बार भी नहीं आए। प्रिया ने अकेले ही इस नई ज़िंदगी का स्वागत किया, अपनी आँखों में आँसू और दिल में ढेर सारा प्यार लिए। राहुल उन दिनों अक्सर घर से बाहर ही रहते थे, कई-कई दिनों तक वापस नहीं आते। उनका नया रिश्ता उनकी ज़िंदगी का केंद्र बन चुका था, और प्रिया व नवजात आव्यांशी उनके लिए मानो कोई मायने ही नहीं रखती थीं।

    प्रिया ने अकेले ही आव्यांशी को पाला। हर दिन, हर पल, उन्हें उस धोखे का दर्द महसूस होता था, लेकिन आव्यांशी का चेहरा देखकर वह सब भूल जाती थीं। आव्यांशी उनकी ज़िंदगी की एकमात्र रोशनी थी, वह उम्मीद जो उन्हें हर सुबह उठने की ताक़त देती थी। उन्होंने ठान लिया था कि वह अपनी बेटी को कभी उस दर्द का एहसास नहीं होने देंगी जिससे वह ख़ुद गुज़री थीं। आव्यांशी की अनकही शुरुआत ने प्रिया को और मज़बूत बना दिया था, और अब उनकी ज़िंदगी का एक ही मक़सद था—अपनी बेटी को हर ख़ुशी देना, जो उन्हें ख़ुद कभी नहीं मिली।

    अब आव्यांशी की ज़िंदगी पूरी तरह बदल चुकी थी। जहाँ पहले उसकी माँ उसका हर काम करती थीं और उसे प्यार से रखती थीं, वहीं अब घर के सारे काम उस छोटी-सी बच्ची के कंधों पर आ गए थे। सुबह उठकर नाश्ता बनाना, घर की साफ़-सफ़ाई करना, और नई सौतेली माँ व बहन का ध्यान रखना—यह सब उसकी रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारी बन गई थी।

    जब भी वह झाड़ू लगाती, बर्तन धोती या खाना बनाती, उसे अपनी माँ की बहुत याद आती थी। उसे याद आता कि कैसे उसकी माँ उसे स्कूल के लिए तैयार करती थीं, प्यार से खाना खिलाती थीं, और रात को कहानियाँ सुनाती थीं। हर काम करते वक़्त उसकी आँखें भर आती थीं और वह अकेले में घंटों रोती रहती थी। उस घर में अब कोई ऐसा नहीं था जो उसके आँसू पोंछ सके या उसे गले लगा सके।

    रीना और उसकी बेटी प्रिया, आव्यांशी को घर के काम करने वाली नौकरानी से ज़्यादा कुछ नहीं मानती थीं। राहुल भी पहले की तरह ही उससे कटे-कटे रहते थे। आव्यांशी की ज़िंदगी अब सिर्फ़ स्कूल और घर के कामों के बीच सिमट गई थी। वह अंदर से पूरी तरह टूट चुकी थी, लेकिन उसके पास रोने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। 7वीं कक्षा में पढ़ने वाली आव्यांशी अब सिर्फ़ एक बच्ची नहीं थी, बल्कि एक ऐसी लड़की बन चुकी थी जिसने बहुत कम उम्र में ही ज़िंदगी के सबसे कड़वे सच देख लिए थे। उसकी हँसी, उसके सपने, सब कहीं खो गए थे, और उसकी जगह एक गहरी उदासी ने ले ली !

    आव्यांशी के जीवन में भले ही घर में अंधेरा छा गया था, लेकिन स्कूल एक ऐसी जगह थी जहाँ उसे थोड़ी राहत मिलती थी। वह स्कूल जाना पसंद करती थी, और उसे अपनी पढ़ाई में भी मज़ा आता था। खेल के मैदान में भी वह अपनी छोटी-सी उम्र के बावजूद, एक उत्साह से भरी बच्ची नज़र आती थी। उसकी शिक्षिकाएँ उसे बहुत प्यार करती थीं, क्योंकि वह न केवल होशियार थी, बल्कि स्वभाव से भी प्यारी और दयालु थी। वे आव्यांशी पर विशेष ध्यान देती थीं, शायद इसलिए भी क्योंकि वे उसकी घर की परिस्थितियों से अनजान नहीं थीं।
    आठवीं कक्षा में आने तक, आव्यांशी की उदासी और खोयापन उसकी आँखों में साफ झलकने लगा था। वह अक्सर कक्षा में गुमसुम बैठी रहती, लेकिन फिर भी अपनी पढ़ाई में अव्वल आती। उसकी विज्ञान की शिक्षिका, सुश्री शर्मा, आव्यांशी की स्थिति से बहुत चिंतित थीं। उन्होंने आव्यांशी में छिपी प्रतिभा को पहचान लिया था और उसे किसी भी कीमत पर बर्बाद होते नहीं देखना चाहती थीं। उन्हें आव्यांशी पर बहुत दया आती थी। वे जानती थीं कि इस छोटी उम्र में आव्यांशी ने जो कुछ झेला था, वह किसी बड़े के लिए भी मुश्किल था।
    एक दिन, जब स्कूल ख़त्म हो गया और ज़्यादातर बच्चे जा चुके थे, सुश्री शर्मा ने आव्यांशी को अपने पास बुलाया। "आव्यांशी," उन्होंने प्यार से कहा, "तुम बहुत होशियार बच्ची हो। मैं चाहती हूँ कि तुम नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा की तैयारी करो।" आव्यांशी चौंक गई। उसे नवोदय के बारे में बहुत कुछ पता नहीं था...

  • 2. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 2

    Words: 1609

    Estimated Reading Time: 10 min

    कहानी के बारे मे जानने के लिए पहलाभाग पढे़ अब आगे 👇
    सिवाय इसके कि वह एक बहुत अच्छा स्कूल था जहाँ पढ़ाई और हॉस्टल मुफ्त होता था।
    सुश्री शर्मा ने आगे बताया, "अभी तुम्हारे पास दो साल हैं। तुम नौवीं कक्षा में यह परीक्षा दे सकती हो। अगर तुम पास हो जाती हो, तो तुम्हें वहीं रहना होगा और वहीं पढ़ाई करनी होगी। तुम्हारा खर्चा भी बच जाएगा।" आव्यांशी की आँखों में एक नई उम्मीद की किरण जगी। सुश्री शर्मा ने धीरे से समझाया, "मैं तुम्हें रोज़ बताऊँगी कि कैसे पढ़ना है, कौन सी किताबें पढ़नी हैं और किस तरह से तैयारी करनी है।" उन्होंने आव्यांशी को चुपचाप तैयारी करने को कहा, ताकि घर में कोई नई परेशानी न खड़ी हो। यह सुनकर आव्यांशी को लगा जैसे उसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो। उसकी शिक्षिका का यह विश्वास और सहारा उसके लिए एक नई चुनौती और प्रेरणा दोनों था। अब उसके पास एक लक्ष्य था, एक उम्मीद थी, जो शायद उसे इस मुश्किल समय से बाहर निकाल सकती थी।
    घर में रीना के आने के बाद से आव्यांशी की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही थीं। रीना ने उसे सिर्फ़ बेघर ही नहीं किया था, बल्कि अब उसे घर के सारे काम भी करने पड़ते थे। पढ़ाई के लिए समय निकालना तो दूर की बात थी, उसे पानी भरने के लिए भी दूर जाना पड़ता था क्योंकि घर में पानी की आपूर्ति बहुत कम थी। यह काम पहले प्रिया करती थीं, लेकिन अब आव्यांशी की छोटी-छोटी हथेलियों पर बड़े-बड़े पानी के बर्तन उठाने की ज़िम्मेदारी आ गई थी।

    एक तपते दोपहर, आव्यांशी सिर पर घड़ा और हाथ में बाल्टी लिए पानी भरने जा रही थी। भरी दोपहरी में पसीने से लथपथ, वह किसी तरह अपने क़दम बढ़ा रही थी। तभी अचानक, सामने से आते दो लड़कों से उसकी ज़ोरदार टक्कर हो गई। बाल्टी और घड़ा ज़मीन पर गिर पड़े और सारा पानी बिखर गया। आव्यांशी की आँखों में आँसू छलक आए, क्योंकि उसे पता था कि अब उसे दोबारा इतनी दूर पानी भरने जाना होगा।

    टक्कर मारने वाले लड़कों में से एक था अभिमान सिंह रघुवंशी, जो अभी 12वीं कक्षा में था और अपने नानाजी के घर पचनर गाँव आया हुआ था। उसके साथ उसका कज़िन अजय था, जो 10वीं कक्षा में था। अजय आव्यांशी को अपनी बहन जैसा मानता था और उसे देखकर तुरंत पहचान गया।

    "आव्यांशी! तुम यहाँ क्या कर रही हो?" अजय ने तुरंत आव्यांशी को उठाते हुए पूछा।

    अभिमान सिंह रघुवंशी, जो अपनी कठोर (strict) प्रवृत्ति और रौबदार अंदाज़ के लिए जाना जाता था, पहले तो गुस्से में आव्यांशी को घूर रहा था। उसकी आदत थी कि कोई भी उसकी राह में आए तो वह नाराज़ हो जाता था। लेकिन जब उसकी नज़र आव्यांशी पर पड़ी, तो वह एक पल के लिए ठहर गया। पसीने से भीगी हुई, बिखरे बालों और आँखों में आँसू लिए वह छोटी-सी लड़की उसे बहुत अच्छी लगी। उसकी मासूमियत और जिस तरह से वह अपनी बिखरी हुई बाल्टी और घड़े को देख रही थी, अभिमान के सख्त दिल में कुछ अजीब-सी हलचल पैदा कर गई।

    "कौन है ये, अजय?" अभिमान ने धीरे से पूछा।

    अजय ने बताया, "यह आव्यांशी है, हमारे पड़ोस में रहती है। इसकी माँ अभी कुछ समय पहले ही गुज़र गईं।"

    यह सुनकर अभिमान को अजीब-सा महसूस हुआ। उसने आव्यांशी की मदद करने के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन आव्यांशी पहले ही उठ चुकी थी। उसने टूटे हुए घड़े और बाल्टी को उठाया और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गई। अभिमान उसे जाते हुए देखता रहा। यह पहली बार था जब उसकी कठोरता के मुखौटे के पीछे, एक अनजान लड़की के लिए थोड़ी नरमी उमड़ी थी। यह मुलाक़ात उनके जीवन में एक नया मोड़ साबित होने वाली थी।

    अभिमान और अजय की मदद, आव्यांशी की बातचीत और एक नई शुरुआत

    पानी बिखरने के बाद, आव्यांशी के जाने के बाद अभिमान सिंह रघुवंशी कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा, उसके दिमाग में उस छोटी-सी लड़की की छवि घूम रही थी। उसे खुद पर आश्चर्य हो रहा था कि क्यों उसे उस लड़की के लिए इतनी सहानुभूति महसूस हुई। अजय, जिसने आव्यांशी को उठाया था, अभिमान से बोला, "भाई, हमें उसकी मदद करनी चाहिए थी। उसकी माँ नहीं रही।"

    अभिमान ने एक गहरी साँस ली और बोला, "चलो, उसके पीछे चलते हैं।" वे दोनों आव्यांशी के पीछे चल पड़े। उन्होंने देखा कि आव्यांशी घर पहुँचकर टूटे हुए घड़े को रख रही थी और फिर से खाली बाल्टी उठाकर पानी भरने के लिए निकलने की तैयारी कर रही थी।

    "आव्यांशी," अजय ने आवाज़ दी। आव्यांशी ने पलटकर देखा। अभिमान ने आगे बढ़कर कहा, "हमने तुम्हारी बाल्टी गिरा दी थी, हम तुम्हें पानी भर देते हैं।" आव्यांशी पहले तो हिचकिचाई, लेकिन जब अभिमान ने उसके हाथ से बाल्टी ली, तो वह कुछ बोल नहीं पाई। अभिमान और अजय दोनों ने मिलकर उसके लिए पानी भरा और उसके घर तक पहुँचाया।

    पानी भरते हुए, अभिमान ने आव्यांशी से बातचीत करने की कोशिश की। "तुम किस क्लास में हो?" उसने पूछा।

    "आठवीं में," आव्यांशी ने धीरे से जवाब दिया।

    "तुम्हें कौन सा विषय सबसे ज़्यादा पसंद है?" अभिमान ने पूछा, कोशिश करते हुए कि वह थोड़ी सहज हो जाए।

    "विज्ञान," आव्यांशी ने कहा, और उसकी आवाज़ में हल्की चमक आई।

    अभिमान ने और भी कई सवाल पूछे, स्कूल के बारे में, उसके दोस्तों के बारे में। आव्यांशी ने सभी सवालों के जवाब दिए, लेकिन उसने अपने घर की मुश्किलों या रीना और अपने पिता के बारे में कुछ भी नहीं बताया। वह नहीं चाहती थी कि कोई भी उसकी कमज़ोरी को जाने या उस पर तरस खाए। अभिमान ने महसूस किया कि आव्यांशी अपनी बातें बताने में सहज नहीं थी, इसलिए उसने ज़ोर नहीं दिया। उसने बस इतना कहा, "तुम बहुत होशियार लगती हो। खूब मन लगाकर पढ़ना।"

    कुछ महीनों बाद, आठवीं कक्षा के नतीजे घोषित हुए। आव्यांशी की मेहनत रंग लाई। उसने पूरे ज़िले में सबसे ज़्यादा नंबर लाकर टॉप किया था। स्कूल में उसका सम्मान हुआ, टीचरों ने उसे बधाई दी, और हर तरफ उसकी खूब तारीफ हुई। यह खबर जब घर पहुँची, तो सब दंग रह गए।

    राहुल और रीना भी इस बात से चौंक गए। बाहर वालों के सामने, रीना ने तुरंत एक दिखावा किया। उसने आव्यांशी को सबके सामने गले लगाया और कहा, "मेरी प्यारी बेटी! मुझे तुम पर गर्व है।" उसने आव्यांशी को मिठाई खिलाई और आस-पड़ोस के लोगों के सामने यह जताना चाहा कि वह कितनी अच्छी माँ है।

    लेकिन जैसे ही मेहमान और बधाई देने वाले लोग चले गए, रीना का असली चेहरा सामने आ गया। उसने आव्यांशी का हाथ पकड़ा और उसे घसीटते हुए कमरे में ले गई। "कितनी ढोंग करती है! नाटकबाज़! इतने नंबर लाकर मेरा सिर क्यों ऊँचा कर रही है?" रीना ने आव्यांशी को पीटना शुरू कर दिया। "तू इतनी होशियार है, तो घर के काम कौन करेगा? मुझे यह दिखावा पसंद नहीं।"

    रीना ने आव्यांशी को बुरी तरह से पीटा और उसे धमकी दी कि अगर उसने दोबारा इतनी अच्छी पढ़ाई की, तो उसका स्कूल छुड़वा देगी। उस दिन, रीना ने आव्यांशी को खाना खाने तक नहीं दिया। भूखी, थकी हुई और शरीर पर चोटों के निशान लिए, आव्यांशी अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर गिर पड़ी। वह रोते-रोते सो गई। उसकी आँखें आँसुओं से भरी थीं, लेकिन अब उसके आँसुओं में कोई आवाज़ नहीं थी। बाहर की दुनिया में वह कितनी भी सफल क्यों न हो, घर की चारदीवारी कै भीतर उसकी ज़िंदगी एक दर्दनाक सच्चाई थि ।

    आव्यांशी के ज़िले में टॉप करने की खबर स्कूल के साथ-साथ गाँव में भी फैल चुकी थी। अभिमान सिंह रघुवंशी, जो अपने नाना के घर छुट्टियाँ बिता रहा था, तक भी यह खबर पहुँची। उसे आव्यांशी की सफलता पर बेहद खुशी हुई। उसे याद आया कि कैसे उसने आव्यांशी से कहा था कि वह मन लगाकर पढ़े। अब वह आव्यांशी से मिलने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था, ताकि उसे बधाई दे सके।

    अगले दिन, अभिमान और अजय दोनों पानी भरने वाली जगह पर आव्यांशी का इंतज़ार करने लगे। कुछ देर बाद, आव्यांशी सिर झुकाए, बाल्टी लिए पानी भरने पहुँची। उसकी चाल में वही उदासी थी, जो हमेशा रहती थी। जैसे ही उसने कुएँ से पानी खींचना शुरू किया, अभिमान ने पास आकर आवाज़ दी, "आव्यांशी, बधाई हो!"

    आव्यांशी ने चौंककर ऊपर देखा। सामने अभिमान और अजय खड़े थे, मुस्कराते हुए। अभिमान ने अपनी जेब से एक छोटी डिब्बी निकाली, जिसमें मिठाइयाँ थीं। "तुमने ज़िले में टॉप किया है," उसने कहा, "यह लो, मेरी तरफ से मिठाई।"

    आव्यांशी की आँखों में एक पल के लिए चमक आ गई। उसे अपनी सफलता पर किसी से इतनी सीधी और सच्ची बधाई पहले कभी नहीं मिली थी, खासकर घर के बाहर। उसने एक मिठाई ली और धीरे से खाते हुए मुस्कुराई। यह मुस्कान इतनी सच्ची और प्यारी थी कि अभिमान को लगा कि उसकी सारी मेहनत सफल हो गई।

    "तुम बहुत होशियार हो, आव्यांशी," अजय ने कहा, "हमें पता था तुम कुछ बड़ा करोगी।"

    उस दिन, अभिमान और आव्यांशी के बीच एक छोटी-सी बातचीत हुई। अभिमान ने उससे उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा, और आव्यांशी ने अपने पसंदीदा विषयों के बारे में बताया। यह उनकी दोस्ती की एक अनकही शुरुआत थी। आव्यांशी को अभिमान के साथ बात करके अच्छा लग रहा था। उसे लगा जैसे उसे एक ऐसा दोस्त मिल गया है जो उसकी क़द्र करता है। लेकिन हमेशा की तरह, उसने अपने घर की मुश्किलों, रीना के दुर्व्यवहार या अपनी पढ़ाई पर पड़ने वाले असर के बारे में एक शब्द भी नहीं बताया। वह नहीं चाहती थी कि कोई उसके घर की सच्चाई जाने। अभिमान ने महसूस किया कि आव्यांशी कुछ बातें छिपा रही है, लेकिन उसने ज़ोर नहीं दिया। उसने बस इतना कहा, "जब भी तुम्हें किसी मदद की ज़रूरत हो, बेझिझक बताना।"

    कहानी को रैटिंग दैं मुझे फालो कर सहयोग करें ।

    धन्यवाद ♥️

  • 3. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 3

    Words: 1505

    Estimated Reading Time: 10 min

    आठवीं कक्षा में शानदार प्रदर्शन के बाद आव्यांशी को उम्मीद थी कि अब उसे पढ़ने का और मौका मिलेगा, लेकिन उसकी सौतेली माँ, रीना, को उसकी सफलता ज़रा भी रास नहीं आई। आव्यांशी के ज़िले में टॉप करने की खबर ने रीना को और ज़्यादा असुरक्षित और क्रोधित कर दिया था। उसे लगा कि आव्यांशी की पढ़ाई उसे और आगे ले जाएगी, और वह घर के कामों से दूर हो जाएगी।

    एक दिन, रीना ने आव्यांशी को बुलाया और सीधे शब्दों में कहा, "बहुत हो गया पढ़ना-लिखना। अब तुम स्कूल नहीं जाओगी।" आव्यांशी यह सुनकर सन्न रह गई। "लेकिन क्यों?" उसने रोते हुए पूछा।

    "क्यों क्या? घर के काम कौन करेगा? और मुझे तुम्हारी पढ़ाई का दिखावा पसंद नहीं।" रीना ने गुस्से से कहा। "तुम्हें लगता है कि तुम बहुत बड़ी हो गई हो? मैंने तय कर लिया है, तुम्हारी पढ़ाई यहीं रुक रही है। तुम घर पर रहोगी और घर के सारे काम करोगी।"

    आव्यांशी ने अपने पिता से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन राहुल हमेशा की तरह रीना के सामने चुप्पी साधे रहे। वह अपनी बेटी की तरफ से एक शब्द भी नहीं बोले। आव्यांशी की दुनिया एक बार फिर टूट चुकी थी। उसकी सारी उम्मीदें, उसके सारे सपने, जो पढ़ाई से जुड़े थे, एक झटके में बिखर गए थे। अब उसे पता नहीं था कि वह कैसे पढ़ेगी, कैसे अपने भविष्य के सपने पूरे करेगी, जब उसकी किताबों पर ही ताला लग गया हो।

    नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा की तैयारी आव्यांशी ने सुश्री शर्मा की मदद से चुपचाप जारी रखी थी। घर पर रीना की पाबंदियों और कामों के बोझ के बावजूद, वह रात-रात भर जागकर पढ़ती थी। उसकी शिक्षिका का विश्वास और खुद का भविष्य बनाने की ज़िद ही उसकी प्रेरणा थी। जब परीक्षा का परिणाम आया, तो एक बार फिर आव्यांशी ने सबको चौंका दिया। उसने नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा में पूरे ज़िले में टॉप किया था! उसका नाम मेरिट लिस्ट में सबसे ऊपर था, जिसका मतलब था कि अब वह नवोदय में मुफ्त में पढ़ और रह सकती थी। यह उसके लिए एक आज़ादी की किरण थी।

    सौतेली माँ को परीक्षा की बात पता चलना और भयानक मार

    आव्यांशी की यह बड़ी सफलता जहाँ एक तरफ़ उसके शिक्षकों और कुछ शुभचिंतकों के लिए खुशी की बात थी, वहीं दूसरी तरफ़, यह खबर जब रीना तक पहुँची, तो घर में भूचाल आ गया। रीना को यह पता ही नहीं था कि आव्यांशी ने कोई परीक्षा दी थी। जब उसे स्कूल से फोन आया और आव्यांशी के चयन के बारे में बताया गया, तो रीना का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसे लगा कि आव्यांशी ने उसकी बात नहीं मानी और छिपकर पढ़ाई की।

    शाम को जब राहुल घर आए, तो रीना ने गुस्से में सारा हाल बताया। "तुम्हारी बेटी ने बिना पूछे परीक्षा दी और अब ये नवोदय जाएगी! यह घर के काम कौन करेगा?" रीना के उकसाने पर, राहुल भी आग बबूला हो गए। उन्हें लगा कि आव्यांशी ने उनका अपमान किया है।

    उस रात, आव्यांशी की ज़िंदगी की सबसे दर्दनाक रात थी। उसके पिता और सौतेली माँ, दोनों ने मिलकर उसे बेरहमी से पीटा। राहुल ने पहली बार आव्यांशी पर हाथ उठाया था, और यह उसके लिए किसी सदमे से कम नहीं था। रीना गालियाँ देती रही, "तुम्हें लगता है कि तुम हमसे ज़्यादा समझदार हो? अब देखते हैं तुम कैसे पढ़ती हो!" उन्होंने उसे तब तक मारा जब तक उसके शरीर पर नीले निशान नहीं पड़ गए। आव्यांशी चीखती रही, रोती रही, लेकिन कोई उसकी सुनने वाला नहीं था ।

    अगले ही दिन, रीना ने आव्यांशी का स्कूल जाना पूरी तरह बंद करवा दिया। नवोदय में उसका नाम कटवा दिया गया। रीना ने आव्यांशी को साफ़ कह दिया, "अब तुम्हारा काम सिर्फ़ घर के काम करना है।"

    रीना ने आव्यांशी को अब और भी ज़्यादा कामों में झोंक दिया। उसे सुबह उठते ही घर की सफ़ाई, बर्तन माँजना, कपड़े धोना और बच्चों की देखभाल करनी पड़ती थी। इसके अलावा, रीना ने उसे सिलाई का काम सिखाना शुरू कर दिया और उसे खाना बनाना भी सिखाया, ताकि वह घर के सभी कामों में पूरी तरह माहिर हो जाए। उसे रोज़ भारी-भरकम सिलाई मशीन पर घंटों बैठकर कपड़े सिलने पड़ते थे और रसोई में घंटों खडे़ रहकर सबके लिए खाना बनाना पड़ता था। उसे हर छोटी-छोटी गलती पर डाँट पड़ती और मार भी खानी पड़ती थी।

    आव्यांशी की पढ़ाई, उसके सपने, सब कुछ एक झटके में छीन लिया गया था। वह अपनी किताबों को तरसती थी, अपने दोस्तों को याद करती थी और सबसे ज़्यादा अपनी माँ को याद करती थी। उसकी आँखों से आँसू रुकते नहीं थे, लेकिन अब वह चुपचाप रोती थी। उसे लगता था कि उसकी किस्मत ही ऐसी है। वह खुद को एक पिंजरे में बंद चिड़िया महसूस करती थी, जो उड़ना चाहती थी, लेकिन जिसके पंख काट दिए गए हों। वह अक्सर रात को अकेले में बैठकर अपनी किस्मत पर रोती थी, यह सोचकर कि क्या कभी उसकी ज़िंदगी में खुशी वापस आएगी।

    नवोदय में दाखिला रद्द होने के बाद, आव्यांशी की ज़िंदगी में अब सिलाई मशीन और पानी के घड़े ही मुख्य साथी बन गए थे। रीना उसे दिन-रात सिलाई के काम में लगाए रखती और घर के सारे काम करवाती। सुबह जल्दी उठकर, वह सिलाई मशीन पर बैठ जाती और शाम तक कपड़े सिलती रहती। इसके बाद, पानी भरने की उसकी पुरानी ज़िम्मेदारी भी जारी रही। थक कर चूर, वह किसी तरह अपने दिन काट रही थी।

    एक शाम, जब आव्यांशी पानी भरने के लिए निकली, तो उसकी नज़र अभिमान पर पड़ी। अभिमान पहले से ही पानी वाली जगह पर उसका इंतज़ार कर रहा था, शायद उसे पता था कि आव्यांशी ज़रूर आएगी।

    अभिमान ने आव्यांशी को देखते ही मुस्कुराकर कहा, "आव्यांशी! बधाई हो! मैंने सुना तुमने नवोदय में टॉप किया है!" उसकी आवाज़ में सच्ची खुशी थी।

    लेकिन अभिमान की बधाई सुनकर, आव्यांशी की आँखों में आँसू छलक आए। वह अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाई। घड़ा ज़मीन पर रखकर, वह फूट-फूटकर रोने लगी। "मैं नहीं जा रही, अभिमान," उसने रोते हुए कहा, "मेरी सौतेली माँ ने मेरी पढ़ाई रुकवा दी है। उन्होंने मेरा नाम कटवा दिया है। उन्होंने और पापा ने मिलकर मुझे मारा भी।" आव्यांशी ने पहली बार अपने दिल का बोझ किसी के सामने खोला था। उसने अभिमान को बताया कि कैसे उसे अब सिर्फ़ घर के काम और सिलाई करनी पड़ती है।

    अभिमान ने आव्यांशी को रोता देख अपना सख्त रवैया एक किनारे रख दिया। उसे आव्यांशी की स्थिति पर बहुत दया आई। उसने आव्यांशी के कंधे पर हाथ रखा और प्यार से उसे सांत्वना दी (console किया)। "आव्यांशी, रोने से कुछ नहीं होगा। मुझे पता है यह बहुत मुश्किल है, लेकिन तुम्हें हिम्मत नहीं हारनी है।"

    अभिमान ने कुछ देर सोचा और फिर उसे एक नई राह दिखाई। "देखो, अगर तुम्हें स्कूल नहीं जाने दे रहे हैं, तो तुम ओपन 10वीं की परीक्षा दे सकती हो।" उसने समझाया, "तुम्हें स्कूल जाने की ज़रूरत नहीं होगी, तुम घर पर ही पढ़कर परीक्षा दे सकती हो। मैं तुम्हें किताबें और नोट्स दिलवाने में मदद करूँगा।"

    अभिमान ने आव्यांशी की आँखों में देखा और उसे अपनी माँ के सपनों की याद दिलाई। "तुम्हारी माँ चाहती थीं कि तुम पढ़ो और कुछ बनो, है ना? क्या तुम उनके सपनों को ऐसे ही मरने दोगी? तुम्हें अपनी माँ के लिए और अपने लिए लड़ना होगा।" आव्यांशी को अपनी माँ की याद आई, और उसकी आँखों में फिर से दृढ़ संकल्प की चमक दिखी।

    अभिमान ने बताया कि उसकी छुट्टियाँ ख़त्म हो गई हैं और उसे अब अपने घर राजस्थान वापस लौटना होगा। "मैं अब राजस्थान वापस जा रहा हूँ, लेकिन मैं तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूँगा," उसने कहा, "मैं छह महीने बाद वापस मिलने आऊँगा। तब तक, तुम अपनी पढ़ाई जारी रखना।"

    जाने से पहले, अभिमान ने आव्यांशी को एक पुरानी डायरी का पन्ना और पेन दिया। "यह मेरा पता है और फ़ोन नंबर भी," उसने कहा, "जब भी तुम्हें कोई दिक्कत हो या किसी मदद की ज़रूरत पड़े, तो मुझे चिट्ठी लिखना या कॉल करना। मैं तुम्हारी मदद ज़रूर करूँगा।"

    अभिमान ने आव्यांशी के सिर पर हाथ फेरा और एक आखिरी बार उसे हिम्मत दी। "याद रखना, आव्यांशी, तुम अकेली नहीं हो। तुम्हें अपनी पढ़ाई नहीं छोड़नी है।" इतना कहकर, अभिमान सिंह रघुवंशी अजय के साथ वहाँ से चला गया, पीछे छोड़ गया एक नई उम्मीद और अपने सपनों को पूरा करने की प्रेरणा। आव्यांशी उसे जाते हुए देखती रही। अभिमान के शब्दों ने उसके बुझते हुए सपनों में फिर से जान डाल दी थी। अब उसके पास एक लक्ष्य था - अपनी माँ के सपनों को पूरा करने के लिए ओपन 10वीं की परीक्षा पास करना।

    दुसरा दिन ्

    अभिमान की बातों ने आव्यांशी को एक नई हिम्मत और दिशा दी थी। जब अभिमान और अजय जाने लगे, तो आव्यांशी उनके पीछे-पीछे कुछ दूर तक गई। यह उनकी आखिरी मुलाक़ात थी, कम से कम अगले छह महीनों के लिए। आव्यांशी के चेहरे पर अब आँसुओं की जगह एक हल्की-सी मुस्कान थी। यह मुस्कान दोस्ती की शुरुआत थी, एक ऐसी दोस्ती जो शब्दों से ज़्यादा भरोसे और हिम्मत पर टिकी थी।

    आगे का भाग जानने के लिए जुड़े रहिये ।फालो करना रैटिंग करना न भूलैं ।
    धन्यवाद ♥️

  • 4. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 4

    Words: 1511

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे 👇🗣️

    आव्यांशी ने अभिमान को रोकने के लिए आवाज़ दी। "अभिमान!" उसने कहा, और अपने हाथ में पकड़ी एक छोटी-सी पोटली उसकी तरफ बढ़ाई। "यह तुम्हारे लिए।"

    अभिमान ने पोटली खोली। उसमें एक बहुत ही सुंदर, आव्यांशी का पहला सिला हुआ रुमाल और एक छोटी शर्ट थी। आव्यांशी ने यह सब अपनी नई सिलाई मशीन पर बड़ी मेहनत से बनाया था। रुमाल पर बारीक कढ़ाई थी और शर्ट भी बड़े करीने से सिली हुई थी। यह उसका पहला सच्चा तोहफ़ा था, जो उसने अपने हाथों से किसी के लिए बनाया था।

    अभिमान ने रुमाल को छुआ और शर्ट को देखा। उसे आव्यांशी की मेहनत और लगन साफ नज़र आ रही थी। "यह बहुत सुंदर है, आव्यांशी," अभिमान ने कहा, और उसकी आँखों में सच्ची तारीफ थी। "तुमने यह सब खुद बनाया है?"

    आव्यांशी ने सिर हिलाकर हाँ कहा। अभिमान ने शर्ट को ध्यान से देखा और फिर उसे अपनी छाती से लगा लिया। "यह बहुत अच्छी है। मुझे बहुत पसंद आई।" उसने आव्यांशी की ओर देखा, "तुम बहुत टैलेंटेड हो, आव्यांशी।"

    यह सुनकर आव्यांशी के चेहरे पर एक और गहरी मुस्कान आई। अभिमान की तारीफ उसके लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं थी। उसे लगा जैसे उसकी मेहनत और उसके दर्द को किसी ने समझा और सराहा।

    "अपना ध्यान रखना और पढ़ाई मत छोड़ना," अभिमान ने कहा। "मैं तुम्हें याद करूँगा।"

    "आप भी," आव्यांशी ने जवाब दिया, उसकी आवाज़ में हल्का-सा दुख था, लेकिन उम्मीद की एक लहर भी थी।

    अभिमान और अजय ने आव्यांशी से विदा ली और अपने रास्ते पर चल दिए। आव्यांशी वहीं खड़ी उन्हें दूर जाते देखती रही। सूरज ढल रहा था और नारंगी रंग की रोशनी में अभिमान की दी हुई उम्मीद की किरण अब और भी ज़्यादा स्पष्ट दिख रही थी। उसे पता था कि अब उसे अकेले ही अपनी राह बनानी है, लेकिन उसे यह भी पता था कि अब वह अकेली नहीं है। अभिमान की दोस्ती और उसके शब्द हमेशा उसके साथ रहेंगे। वह अपने नए लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए तैयार थी।

    दो महीने बीत चुके थे। अभिमान राजस्थान वापस जा चुका था, और आव्यांशी अपने घर की कठोर दिनचर्या में ढलने की कोशिश कर रही थी। सिलाई का काम, घर के सारे बोझ और पानी भरने के रोज़मर्रा के काम उसकी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके थे। इन सबके बीच, वह चुपचाप ओपन 10वीं की किताबों से पढ़ने की कोशिश करती रहती थी, जैसा कि अभिमान ने उसे सलाह दी थी।

    एक दिन, जब आव्यांशी पानी भरने जा रही थी, तो अजय ने उसे रास्ते में रोक लिया। "आव्यांशी! रुको!" उसने आवाज़ दी। आव्यांशी ने पलटकर देखा। अजय उसके पास आया और मुस्कुराते हुए बोला, "आज तुम्हारा जन्मदिन है, है ना? जन्मदिन मुबारक हो, आव्यांशी!"

    आव्यांशी यह सुनकर चौंक गई। अपने जन्मदिन पर किसी की बधाई पाकर उसे अजीब-सा लगा। घर पर तो कोई उसे याद भी नहीं करता था। "तुम्हें कैसे पता?" उसने पूछा।

    "अभिमान ने बताया था," अजय ने कहा और अपना फ़ोन निकाला। "रुक, मैं तुम्हें अभिमान से बात करवाता हूँ। उसने कहा था कि वह तुम्हें जन्मदिन की बधाई देना चाहता है।"

    अजय ने तुरंत अभिमान को फ़ोन लगाया और आव्यांशी को फ़ोन पकड़ा दिया। आव्यांशी के हाथ काँप रहे थे। उसने फ़ोन कान से लगाया।

    फ़ोन पर बातचीत:

    अभिमान: (उत्साहित स्वर में) "हैप्पी बर्थडे, आव्यांशी! कैसे हो तुम?"

    आव्यांशी: (आँखों में हल्की नमी के साथ) "मैं ठीक हूँ, अभिमान। तुम्हें याद था मेरा जन्मदिन।"

    अभिमान: "बेशक याद था! मैंने तुमसे कहा था ना, मैं तुम्हें नहीं भूलूँगा। बताओ, क्या कर रही हो आजकल? पढ़ाई चल रही है?"

    आव्यांशी: "हाँ, थोड़ी-थोड़ी पढ़ रही हूँ। घर पर बहुत काम रहता है, लेकिन तुम्हारी बात याद करके पढ़ती रहती हूँ।"

    अभिमान: "शाबाश! यही तो मैं सुनना चाहता था। हार मत मानना, आव्यांशी। और सुनो, मेरे पास तुम्हें बताने के लिए एक और बड़ी खबर है।"

    आव्यांशी: "क्या?"

    अभिमान: "तुम्हें याद है, मैंने तुम्हें बताया था कि मैं 12वीं की पढ़ाई कर रहा हूँ? तो मैं अपनी 12वीं की परीक्षा के साथ-साथ एक और चीज़ की तैयारी कर रहा हूँ - हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में सेलेक्शन के लिए।"

    आव्यांशी यह सुनकर सन्न रह गई। उसने हार्वर्ड का नाम सुना तो था, लेकिन उसे ठीक से पता नहीं था कि वह क्या है।

    आव्यांशी: "हार्वर्ड यूनिवर्सिटी? वह क्या है, अभिमान?"

    अभिमान: "हार्वर्ड एक बहुत बड़ी यूनिवर्सिटी है, आव्यांशी। यह दुनिया के सबसे पुराने और सबसे अच्छे विश्वविद्यालयों में से एक है, जो अमेरिका में है। यहाँ पर सिर्फ़ सबसे होशियार बच्चे ही पढ़ने जाते हैं। यहाँ से पढ़कर निकलने वाले लोग बड़े-बड़े साइंटिस्ट, नेता और बिज़नेसमैन बनते हैं। इसमें दाखिला मिलना बहुत मुश्किल होता है, इसके लिए बहुत ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ।"

    आव्यांशी: (हैरानी और खुशी से) "वाह, अभिमान! यह तो बहुत बड़ी बात है! तुम ज़रूर कर सकते हो। मुझे पता है तुम कितने मेहनती हो।"

    अभिमान: "मुझे तुम्हारी मोटिवेशन की ज़रूरत है, आव्यांशी। कभी-कभी मुझे भी लगता है कि यह बहुत मुश्किल है। लेकिन मैं सोचता हूँ कि अगर तुम इतनी मुश्किलों के बावजूद पढ़ाई कर सकती हो, तो मैं क्यों नहीं।"

    आव्यांशी: "तुम तो मुझसे भी ज़्यादा होशियार हो, अभिमान। तुम ज़रूर सफल होगे। तुम्हें बस हार नहीं माननी है।"

    अभिमान: "तुम्हारी बातों से मुझे बहुत हिम्मत मिलती है, आव्यांशी। अच्छा सुनो, मैं वापस छह महीने बाद तो आऊँगा ही, लेकिन तब तक हम एक-दूसरे को चिट्ठी लिखा करेंगे, ठीक है? मैं तुम्हें अपनी पढ़ाई के बारे में बताऊँगा, और तुम अपनी। इससे मुझे भी हिम्मत मिलेगी।"

    आव्यांशी: "ठीक है, अभिमान! मैं तुम्हें हर महीने चिट्ठी लिखने का वादा करती हूँ। मैं तुम्हें अपनी पढ़ाई और सब कुछ बताऊँगी।"

    अभिमान: "बस यही चाहिए! अपना ध्यान रखना, आव्यांशी, और हिम्मत मत हारना। और हाँ, एक बार फिर जन्मदिन मुबारक हो!"

    आव्यांशी: "धन्यवाद, अभिमान। तुम भी अपना ध्यान रखना।"

    फ़ोन कट गया। आव्यांशी के चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान थी। अभिमान की बातें, उसकी शुभकामनाएँ और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बारे में सुनकर उसे एक नई प्रेरणा मिली थी। उसे लगा कि भले ही उसकी दुनिया छोटी हो गई हो, लेकिन बाहर की दुनिया में अभी भी बहुत कुछ बड़ा हासिल किया जा सकता है। हर महीने चिट्ठी लिखने का वादा उसके लिए सिर्फ़ एक वादा नहीं, बल्कि उम्मीद की एक नई डोर थी।


    अभिमान से बात करने के बाद, आव्यांशी के भीतर एक नई ऊर्जा आ गई थी। उसे पता था कि उसे अपनी पढ़ाई नहीं छोड़नी है, चाहे कुछ भी हो जाए। रीना उसे दिन-रात सिलाई के काम में लगाए रखती, लेकिन आव्यांशी ने इसे अपने पक्ष में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। वह सिलाई से मिलने वाले छोटे-छोटे पैसों में से चुपके से कुछ बचाना शुरू कर दिया। उसे याद था अभिमान ने राजस्थान जाने से पहले उसे दिल्ली के ओपन स्कूल से फ़ॉर्म भरने का सुझाव दिया था, ताकि जब नतीजा आए तो रीना को तुरंत पता न चले।
    कई महीनों की मेहनत और बचत के बाद, आव्यांशी के पास इतने पैसे जमा हो गए कि वह 10वीं का ओपन फ़ॉर्म भर सके। एक दिन, जब घर में कोई नहीं था और उसे मौका मिला, आव्यांशी ने चुपके से दिल्ली के ओपन स्कूल में 10वीं का फ़ॉर्म भर दिया। उसने वह यूनिवर्सिटी चुनी जिसका नाम उसके शहर से दूर था, ताकि गोपनीयता बनी रहे और रीना को उसकी पढ़ाई के बारे में कोई खबर न लगे। यह उसके लिए एक बहुत बड़ा कदम था, एक ऐसी चुनौती जिसे उसने अकेले पूरा किया था।
    फ़ॉर्म भरने के बाद आव्यांशी को बहुत हल्का महसूस हुआ। उसने तुरंत अभिमान को फ़ोन करने का फैसला किया। उसने अपनी पुरानी डायरी से अभिमान का नंबर निकाला और काँपते हाथों से डायल किया।
    अभिमान को फ़ोन पर ख़बर देना: लंबी बातचीत
    फ़ोन पर बातचीत:
    अभिमान: (थोड़ी देर में फ़ोन उठाता है) "हैलो?"
    आव्यांशी: (धीमी आवाज़ में) "हैलो, अभिमान? मैं आव्यांशी।"
    अभिमान: (आवाज़ में खुशी और उत्साह) "आव्यांशी! अरे, कैसी हो? सब ठीक है? मैंने सोचा था तुम्हारी चिट्ठी आएगी। क्या हुआ?"
    आव्यांशी: (हल्की मुस्कान के साथ) "मैं ठीक हूँ, अभिमान। मैंने तुम्हें चिट्ठी नहीं लिखी क्योंकि मैं तुम्हें यह खुशखबरी फ़ोन पर ही देना चाहती थी।"
    अभिमान: "खुशखबरी? बताओ, क्या बात है? सब ठीक तो है ना?"
    आव्यांशी: "हाँ, सब ठीक है। अभिमान, मैंने... मैंने 10वीं का ओपन फ़ॉर्म भर दिया है!"
    अभिमान: (हैरानी और खुशी से) "क्या?! सच में?! आव्यांशी, यह तो बहुत अच्छी ख़बर है! मुझे पता था तुम कर सकती हो! कहाँ से भरा फ़ॉर्म? दिल्ली से ही भरा?"
    आव्यांशी: "हाँ, दिल्ली की ही एक ओपन यूनिवर्सिटी से भरा है, जैसा तुमने बताया था। मैंने सोचा था कि ऐसे माँ को पता नहीं चलेगा।"
    अभिमान: "बहुत सही सोचा! यह तुम्हारी समझदारी है। शाबाश, आव्यांशी! यह सुनने के बाद मुझे बहुत खुशी हुई। पैसे कैसे जमा किए?"
    आव्यांशी: "मैंने सिलाई से जो पैसे मिलते थे, उनमें से थोड़े-थोड़े करके बचाए। रीना को पता नहीं चला।"
    अभिमान: "वाह! तुम तो वाकई कमाल हो! मुझे तुम पर गर्व है। अब पढ़ाई कैसे कर रही हो? कोई दिक्कत तो नहीं आ रही?"
    आव्यांशी: "थोड़ी मुश्किल होती है। दिन में तो घर के काम और सिलाई में ही निकल जाता है। रात को जब सब सो जाते हैं, तब मैं चुपचाप पढ़ती हूँ। तुम्हारी भेजी हुई किताबें और नोट्स बहुत काम आ रहे हैं।"
    ......

  • 5. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 5

    Words: 1543

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे 👇

    अभिमान: "अगर कोई भी मदद चाहिए हो, नोट्स या किताबें, मुझे बताना। मैं तुम्हारे लिए भेज दूँगा। कोई भी डाउट हो, मुझे चिट्ठी में लिख देना, मैं तुम्हें समझा दूँगा। तुम्हें यह परीक्षा पास करनी ही है, आव्यांशी। यह तुम्हारी आज़ादी की पहली सीढ़ी है।"

    आव्यांशी: "हाँ, अभिमान। मैं पूरी कोशिश करूँगी। मुझे बस तुम्हारी बात याद रहती है कि अपनी माँ के सपने पूरे करने हैं।"

    अभिमान: "यही ज़ज्बा चाहिए। और मेरी पढ़ाई भी अच्छी चल रही है। 12वीं के एग्ज़ाम्स आने वाले हैं, और हार्वर्ड के लिए भी तैयारी ज़ोरों पर है।"

    आव्यांशी: "मुझे पता है तुम ज़रूर कामयाब होगे, अभिमान। तुम बहुत मेहनत करते हो। मैं तुम्हें अपनी हर चिट्ठी में मोटिवेट करती रहूँगी।"

    अभिमान: (हँसते हुए) "मुझे उसी मोटिवेशन की ज़रूरत है! अच्छा, अपना ध्यान रखना, आव्यांशी। और चिट्ठियाँ लिखती रहना।"

    आव्यांशी: "तुम भी अपना ध्यान रखना, अभिमान। बात करके बहुत अच्छा लगा।"

    अभिमान: "मुझे भी!"

    फ़ोन कट गया। आव्यांशी के चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान थी। उसने न केवल एक मुश्किल काम पूरा किया था, बल्कि उसने अपने भरोसेमंद दोस्त अभिमान के साथ यह खुशखबरी साझा भी की थी। अब उसके पास एक गुप्त मिशन था – चुपचाप पढ़ाई करना और अपने सपनों को पूरा करना।

    फ़ॉर्म भरने और अभिमान से बात करने के बाद, आव्यांशी के मन में एक नई ऊर्जा आ गई थी। उसने अभिमान को हर महीने चिट्ठी लिखने का वादा किया था, और वह इसे निभाना चाहती थी। एक दिन जब रीना और राहुल बाहर गए हुए थे, आव्यांशी ने चुपके से कागज़ और कलम निकाली और अभिमान के दिए पते पर चिट्ठी लिखना शुरू किया।

    उसने चिट्ठी में अपने पूरे दिन के बारे में लिखा। उसने बताया कि कैसे उसे सुबह जल्दी उठकर घर के सारे काम करने पड़ते हैं – झाड़ू-पोछा, बर्तन, कपड़े धोना। फिर उसने सिलाई के बारे में लिखा कि कैसे रीना उसे तरह-तरह के कपड़े सिलने के लिए देती है और वह दिन भर मशीन पर बैठी रहती है। उसने अपनी कुशलता से सिली हुई चीज़ों के बारे में भी बताया, शायद थोड़ी-सी तारीफ पाने की उम्मीद में।

    सबसे महत्वपूर्ण बात, उसने अपनी पढ़ाई के बारे में लिखा। उसने बताया कि कैसे वह रात को सब सो जाने के बाद, दीये की हल्की रोशनी में अपनी ओपन 10वीं की किताबों से पढ़ती है। उसने अपनी मुश्किलों का ज़िक्र तो किया, लेकिन किसी शिकायत के लहजे में नहीं, बल्कि एक दृढ़ संकल्प के साथ।

    चिट्ठी के अंत में, आव्यांशी ने अभिमान को उसकी परीक्षा के लिए प्रेरणा दी। उसने लिखा, "मुझे पता है अभिमान, तुम बहुत मेहनती हो और तुम हार्वर्ड में दाखिला ज़रूर लोगे। तुम मेरे लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा हो। जब भी मैं थक जाती हूँ, तुम्हारी बातें याद करती हूँ।"

    उसने चिट्ठी को और भी खास बनाने के लिए उसे रंगों से सजाया। उसने पेन से छोटे-छोटे फूल और डिज़ाइन बनाए, जैसे वह अपनी सिलाई में करती थी। आखिर में, उसने बड़े करीने से 'ऑल द बेस्ट' लिखा।

    फिर, उसने अपनी सबसे प्यारी चीज़ – अपना पहला सिला हुआ छोटा-सा रुमाल – चिट्ठी के अंदर डाला। यह वही रुमाल था जिसकी अभिमान ने तारीफ की थी। उसने चिट्ठी को मोड़कर लिफ़ाफ़े में डाला, उस पर अभिमान का दिया पता लिखा और उसे सावधानी से चिपका दिया।

    शाम को जब वह पानी भरने जा रही थी, तो उसने लिफ़ाफ़ा चुपके से अपनी बाल्टी में छिपा लिया। पानी भरने वाली जगह पर उसे अजय मिला। "अजय," आव्यांशी ने धीरे से कहा, "मैंने अभिमान को चिट्ठी भेजी है। जब वह तुमसे बात करे, तो उसे बता देना कि मेरी चिट्ठी पहुँच गई है।" अजय ने सिर हिलाकर हाँ कहा और आव्यांशी के चेहरे पर एक राहत भरी मुस्कान आ गई। उसने लिफ़ाफ़ा पोस्ट ऑफिस के लेटरबॉक्स में डाला और एक गहरी साँस ली। उसे लगा जैसे उसके दिल का एक भारी बोझ हल्का हो गया हो। उसकी चिट्ठी, उसकी उम्मीदें और उसके सपने लेकर, अभिमान तक पहुँचने वाली थी!

    आव्यांशी को अभिमान को चिट्ठी भेजे हुए लगभग एक हफ़्ता हो गया था। उसे अभिमान के जवाब का बेसब्री से इंतज़ार था। एक दिन, जब वह पानी भरने जा रही थी, तो उसे अजय मिला। अजय के हाथ में फ़ोन था और उसके चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान थी।

    "आव्यांशी! अभिमान का फ़ोन आया था! उसने तुम्हारी चिट्ठी मिलने की बात बताई है!" अजय ने उत्साहित होकर कहा। "वह तुमसे बात करना चाहता है।"

    अजय ने तुरंत अभिमान को फ़ोन लगाया और आव्यांशी को फ़ोन पकड़ा दिया। आव्यांशी का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।


    अभिमान: (खुश आवाज़ में) "हैलो आव्यांशी! कैसी हो? तुम्हारी चिट्ठी मिल गई मुझे! बहुत अच्छी लगी। तुमने कितनी सुंदर रंग-बिरंगी चीज़ें बनाई थीं और रुमाल भी कितना प्यारा था। तुमने कमाल कर दिया!"

    आव्यांशी: (खुश होकर) "धन्यवाद, अभिमान। मुझे लगा था तुम्हें पसंद आएगा। तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?"

    अभिमान: "मेरी पढ़ाई भी ठीक चल रही है। तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर मुझे और हिम्मत मिली। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि तुम अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ रही हो।"

    आव्यांशी: "मैं तुम्हारी बात याद रखती हूँ, अभिमान। और हाँ, तुमने बताया नहीं, तुम्हारे एग्जाम कैसे गए?"

    अभिमान: "एग्ज़ाम्स अच्छे गए, आव्यांशी। अब बस रिजल्ट का इंतज़ार है। और सुनो, मेरे पास तुम्हारे लिए एक और खुशखबरी है।"

    आव्यांशी: (उत्सुकता से) "क्या?"

    अभिमान: "मैं अगले महीने फिर से गाँव आ रहा हूँ! मेरी गर्मियों की छुट्टियाँ पड़ रही हैं और मैं अपने नानाजी के पास आ रहा हूँ।"

    आव्यांशी: (खुशी से उछल पड़ी) "सच में?! यह तो बहुत अच्छी ख़बर है! मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगी!"

    अभिमान: "हाँ, ज़रूर आऊँगा। तब हम आराम से बैठकर बात कर पाएँगे। तुम अपनी पढ़ाई ज़ारी रखना, ठीक है? अगर तुम्हें किसी चीज़ की ज़रूरत हो, तो अभी बता सकती हो।"

    आव्यांशी: "अभी तो नहीं, अभिमान। सब ठीक चल रहा है। बस तुम जल्दी आ जाओ।"

    अभिमान: "ज़रूर आऊँगा। अपना ध्यान रखना और परेशान मत होना। मैं तुम्हें फ़ोन करता रहूँगा।"

    आव्यांशी: "तुम भी अपना ध्यान रखना, अभिमान।"

    फ़ोन कट गया। आव्यांशी खुशी से झूम उठी। अभिमान का गाँव आना उसके लिए किसी त्यौहार से कम नहीं था। उसे लगा जैसे उसकी ज़िंदगी में फिर से कोई उम्मीद की किरण आ गई हो।

    घर लौटने पर एक और झटका: सौतेली बहन का फेल होना

    खुशी-खुशी आव्यांशी घर पहुँची। जैसे ही वह दरवाज़े के अंदर दाखिल हुई, उसे रीना की तेज़ आवाज़ सुनाई दी। रीना गुस्से में किसी को डाँट रही थी। आव्यांशी ने देखा कि उसकी सौतेली बहन प्रिया, जो कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ती थी, अपनी किताबों और कॉपियों के साथ ज़मीन पर बैठी रो रही थी। रीना उसके ऊपर चिल्ला रही थी।

    "तुम्हें शरम नहीं आती! इतनी महँगी स्कूल में पढ़ती हो और फिर भी अपनी 9वीं कक्षा में फेल हो गई हो!" रीना गुस्से से चिल्ला रही थी। "कितना पैसा बर्बाद किया है तुम्हारे ऊपर! यह सब क्या है?"

    आव्यांशी एक पल के लिए वहीं ठिठक गई। उसे अपनी सौतेली बहन के फेल होने पर अजीब-सी भावना हुई। एक तरफ़ उसे अपनी सफलता पर खुशी थी और अभिमान की आने की ख़बर ने उसे उत्साह से भर दिया था, वहीं दूसरी तरफ़, प्रिया का फेल होना और रीना का उस पर चिल्लाना उसे अपने घर की कड़वी सच्चाई की याद दिला रहा था। उसे पता था कि यह स्थिति घर में और तनाव पैदा करेगी, और उसकी अपनी पढ़ाई का रास्ता और भी मुश्किल हो सकता है !

    जब रीना अपनी बेटी प्रिया को फेल होने पर डाँट रही थी, तो राहुल ने देखा कि प्रिया की आँखों में आँसू थे। अचानक, राहुल ने दखल दिया और प्रिया को रीना की डाँट से बचाया। "रीना, बस करो! उसे क्यों डाँट रही हो? यह उसकी ग़लती नहीं है," राहुल ने कहा। उन्होंने प्रिया को अपने पास खींचा और उसे सांत्वना दी।
    यह देखकर आव्यांशी के दिल में थोड़ा दर्द हुआ। उसे अपनी माँ प्रिया की याद आ गई। जब उसकी माँ ज़िंदा थीं, तो राहुल ऐसे ही उसे हर मुश्किल से बचाते थे, लेकिन अब वह आव्यांशी को रीना के अत्याचारों से बचाने के लिए एक शब्द भी नहीं कहते थे। आव्यांशी को लगा कि उसके पिता का प्यार भी बदल गया है। वह चुपचाप अपने कमरे में गई, और अपनी माँ की तस्वीर देखकर रोने लगी। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, पुरानी यादें उसे सता रही थीं।
    कुछ देर रोने के बाद, आव्यांशी ने खुद को संभाला। उसे अभिमान के शब्द याद आए, अपनी माँ के सपने याद आए। उसने आँसू पोंछे और दृढ़ संकल्प के साथ अपनी किताबें उठाईं। उसकी परीक्षा इसी हफ़्ते थी, और उसके पास बर्बाद करने के लिए एक पल भी नहीं था। उसने फिर से मन लगाकर पढ़ना शुरू कर दिया।

    एक दिन, जब आव्यांशी पानी भरने जा रही थी, अजय ने उसे रोका। "आव्यांशी, यह लो तुम्हारा एडमिट कार्ड," अजय ने कहा, उसके हाथ में एक लिफ़ाफ़ा थमाते हुए। आव्यांशी ने उत्सुकता से लिफ़ाफ़ा खोला। उसमें उसका एडमिट कार्ड था। उसने परीक्षा केंद्र का नाम देखा – लखनऊ! आव्यांशी चौंक गई। उसे नहीं पता था कि वह इतनी दूर कैसे जाएगी, और रीना उसे जाने कैसे देगी।
    "चिंता मत करो," अजय ने कहा, "मैंने अभिमान से बात की है। उसने एक प्लान बनाया है।" अजय ने अपना फ़ोन निकाला और अभिमान को लगाया।
    फ़ोन पर बातचीत:
    अभिमान: (आवाज़ में गंभीरता के साथ) "आव्यांशी, अजय ने मुझे सब बता दिया। लखनऊ दूर है, लेकिन तुम जा सकती हो। मैंने एक प्लान सोचा है, तुम्हें थोड़ा चालाकी से काम लेना होगा।"

  • 6. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 6

    Words: 1603

    Estimated Reading Time: 10 min

    आगे 👇
    रात के ठीक दस बजे थे। आव्यांशी चुपके से अपने कमरे का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकली। घर में सब गहरी नींद में सो रहे थे। बाहर अजय उसका इंतज़ार कर रहा था। अजय ने आव्यांशी को स्टेशन तक छोड़ा और उसे अपना एक पुराना फ़ोन दिया। "यह लो," अजय ने कहा, "अभिमान से बात करते हुए जाना। वह तुम्हें रास्ते भर पढ़ाएगा।"
    आव्यांशी ने फ़ोन लिया और जैसे ही ट्रेन में बैठी, उसने अभिमान को फ़ोन लगाया।

    अभिमान: (उत्साहित आवाज़ में) "हैलो आव्यांशी! पहुँच गई ट्रेन में? सब ठीक है ना?"
    आव्यांशी: (धीमी, लेकिन आत्मविश्वास भरी आवाज़ में) "हाँ, अभिमान। मैं ट्रेन में बैठ गई हूँ। सब ठीक है।"
    अभिमान: "शाबाश! मुझे तुम पर पूरा भरोसा था। अब सुनो, तुम्हारे पास समय कम है। हम रास्ते भर रिवीज़न करेंगे। मैंने तुम्हें जिन विषयों पर ध्यान देने को कहा था, अपनी किताबें निकाल लो।"
    पूरी रात, ट्रेन की धीमी आवाज़ और डिब्बे की हल्की रोशनी में, आव्यांशी ने अभिमान के साथ मिलकर अपनी परीक्षा की तैयारी की। अभिमान फ़ोन पर उसे विज्ञान के समीकरण समझाता, गणित के फ़ॉर्मूले याद करवाता, और इतिहास की तारीखें दोहराता। आव्यांशी ध्यान से सुनती, अपनी किताबों में नोट्स बनाती। कभी-कभी नींद आने लगती, लेकिन अभिमान की आवाज़ उसे जगाए रखती।
    अभिमान: "जाग रही हो, आव्यांशी? तुम्हें सोना नहीं है। ये कुछ घंटे तुम्हारी पूरी ज़िंदगी बदल सकते हैं।"
    आव्यांशी: "हाँ, अभिमान। मैं जाग रही हूँ।"
    अभिमान: "अच्छा, अब बताओ, प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) की प्रक्रिया कैसे होती है?"
    यह सिलसिला पूरी रात चला। सुबह होने से पहले, ट्रेन लखनऊ पहुँच गई।
    परीक्षा का दिन और वापसी का सफ़र
    लखनऊ पहुँचकर, आव्यांशी ने अभिमान से फ़ोन पर थोड़ी और बात की।
    अभिमान: "पहुँच गई, आव्यांशी? ऑल द बेस्ट! शांत रहना और ध्यान से पेपर देना। मुझे पता है तुम सब कर लोगी।"
    आव्यांशी: "धन्यवाद, अभिमान। तुमने मुझे बहुत हिम्मत दी। मैं अच्छे से पेपर दूँगी।"
    परीक्षा केंद्र पहुँचकर आव्यांशी ने पेपर दिया। हर सवाल का जवाब देते हुए उसे अभिमान के बताए फ़ॉर्मूले और अजय की मदद याद आ रही थी। उसे लगा कि वह अकेली नहीं है, उसके साथ अभिमान और अजय का पूरा समर्थन था। परीक्षा देने के बाद, उसने तुरंत अभिमान को फ़ोन किया।
    अभिमान: "कैसा रहा पेपर, आव्यांशी?"
    आव्यांशी: (खुश होकर) "बहुत अच्छा रहा, अभिमान! मुझे लगता है मैं पास हो जाऊँगी। तुमने इतनी मदद की, सब तुम्हारी वजह से।"
    अभिमान: "वाह! मुझे तुम पर गर्व है! अब देर मत करना, तुरंत वापस निकलना है, याद है ना? 12 बजे से पहले घर पहुँचना है।"
    आव्यांशी: "हाँ, मैं अभी निकल रही हूँ।"
    आव्यांशी ने वापसी की ट्रेन पकड़ी। पूरी यात्रा के दौरान, वह अभिमान से फ़ोन पर बात करती रही। वे दोनों अपनी परीक्षा के बारे में, अपने भविष्य के सपनों के बारे में बातें करते रहे। अभिमान आव्यांशी की हिम्मत और लगन देखकर गर्व महसूस कर रहा था। 12 साल की इस लड़की ने जो बहादुरी दिखाई थी, वह अविश्वसनीय थी। उसे लग रहा था कि आव्यांशी में वह सब कुछ है जो एक सफल इंसान बनने के लिए चाहिए।
    घर वापसी और भगवान को धन्यवाद
    रात के ठीक 11:30 बजे, आव्यांशी घर पहुँची। अजय पहले से ही बाहर इंतज़ार कर रहा था। आव्यांशी चुपके से अपने कमरे में दाखिल हुई, जैसे कभी बाहर गई ही न हो। अगले दो दिनों तक, उसने बीमार होने का नाटक जारी रखा। वह कमरे में ही रही और किसी से ज़्यादा बात नहीं की, जिससे रीना को लगा कि उसका प्लान काम कर गया है।
    तीसरे दिन सुबह, आव्यांशी कमरे से बाहर आई और मुस्कराते हुए कहा, "मैं अब ठीक हो गई हूँ।" रीना ने राहत की साँस ली कि अब आव्यांशी फिर से काम कर सकेगी। किसी को जरा भी पता नहीं चला कि आव्यांशी अपनी जान जोखिम में डालकर लखनऊ जाकर परीक्षा दे आई थी।
    अपने कमरे में वापस आकर, आव्यांशी ने एक गहरी साँस ली। उसने अपनी आँखें बंद कीं और मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया। उसने अभिमान और अजय को भी धन्यवाद दिया, जिनके बिना यह संभव नहीं था। अब उसे बस नतीजों का इंतज़ार था, एक ऐसे नतीजे का जो उसकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल सकता था।

    कई हफ़्तों और महीनों का इंतज़ार आखिरकार ख़त्म हुआ। आव्यांशी अपनी 10वीं ओपन परीक्षा के नतीजों का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। हर दिन, वह पानी भरने जाते समय अजय से पूछती कि क्या कोई खबर आई है। एक दिन, जब वह हमेशा की तरह पानी भरने वाली जगह पर पहुँची, तो अजय पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था, और उसके चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान थी।
    "आव्यांशी! अभिमान का फ़ोन आया था!" अजय ने खुशी से चिल्लाते हुए कहा। "तुम्हारे नतीजे आ गए हैं!"
    आव्यांशी का दिल धड़कने लगा। उसने काँपते हाथों से फ़ोन लिया।
    फ़ोन पर बातचीत:
    अभिमान: (उत्साहित और गर्व भरी आवाज़ में) "आव्यांशी! बधाई हो! तुम्हें पता है तुमने क्या किया है?!"
    आव्यांशी: (घबराते हुए) "क्या हुआ, अभिमान? मैं पास हो गई?"
    अभिमान: "पास? तुम सिर्फ़ पास नहीं हुई हो, आव्यांशी! तुमने 99% नंबरों के साथ 10वीं की परीक्षा पास की है! पूरे ज़िले में तुम्हारा नाम फिर से गूँज रहा है! मुझे तुम पर कितना गर्व है, मैं बता नहीं सकता!"
    आव्यांशी यह सुनकर सन्न रह गई। 99%? उसे विश्वास ही नहीं हुआ। उसकी आँखों में खुशी के आँसू आ गए। इतनी मेहनत, इतनी चोरी-छिपे पढ़ाई, इतने दर्द के बाद, यह नतीजा उसके लिए किसी सपने से कम नहीं था।
    आव्यांशी: (रोते हुए) "सच में, अभिमान? 99%? मुझे विश्वास नहीं हो रहा!"
    अभिमान: "बेशक सच में! यह तुम्हारी मेहनत का फल है, आव्यांशी। तुमने कर दिखाया! मुझे पता था तुम कर सकती हो।"
    आव्यांशी: "यह सब तुम्हारी वजह से है, अभिमान। अगर तुम नहीं होते तो मैं कभी हिम्मत नहीं कर पाती।"
    अभिमान: "नहीं, यह तुम्हारी हिम्मत और लगन है। मैं तो बस एक छोटा-सा सहारा था। और सुनो, मेरे पास तुम्हारे लिए एक और बड़ी ख़बर है।"
    आव्यांशी: (उत्सुकता से) "क्या?"
    अभिमान: "तुम्हें याद है, परसों तुम्हारा जन्मदिन है? तुम्हारा 13वाँ जन्मदिन?"
    आव्यांशी: (हल्की मुस्कान के साथ) "हाँ, याद है।"
    अभिमान: "तो मैं परसों ही गाँव आ रहा हूँ! तुम्हारे जन्मदिन पर ही हम मिलेंगे! मैं तुम्हें खुद बधाई देना चाहता हूँ और तुम्हारी सफलता का जश्न मनाना चाहता हूँ।"
    आव्यांशी खुशी से उछल पड़ी। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन इस बार वे खुशी के आँसू थे। अभिमान का आना, और वह भी उसके जन्मदिन पर, यह उसके लिए सबसे बड़ा तोहफ़ा था।
    आव्यांशी: "सच में, अभिमान? तुम आ रहे हो? मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगी!"
    अभिमान: "ज़रूर आऊँगा। अपना ध्यान रखना और यह खुशखबरी किसी को बताना मत, ठीक है? हम मिलकर जश्न मनाएँगे।"
    आव्यांशी: "ठीक है, अभिमान। तुम भी अपना ध्यान रखना। मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगी।"
    फ़ोन कट गया, लेकिन आव्यांशी के चेहरे पर खुशी की चमक बनी हुई थी। 99% नंबरों के साथ 10वीं पास करना और अभिमान का उसके जन्मदिन पर गाँव आना—यह सब एक साथ हो रहा था। उसे लगा जैसे भगवान ने उसकी सारी प्रार्थनाएँ सुन ली हों।
    घर आकर भी, आव्यांशी की खुशी छिप नहीं रही थी। वह अपने कमरे में जाकर अपनी माँ की तस्वीर के सामने बैठ गई। "माँ, मैंने कर दिखाया! मैंने 10वीं पास कर ली!" उसने फुसफुसाते हुए कहा।
    अगले दो दिन आव्यांशी के लिए सदियों जैसे थे। वह हर पल अभिमान का इंतज़ार कर रही थी। वह बार-बार खिड़की से बाहर देखती, पानी भरने जाते समय भी उसकी नज़रें रास्ते पर टिकी रहतीं। उसके मन में बस एक ही बात थी – अभिमान का इंतज़ार।
    अव्यंशी के दिन सुबह से शाम तक बस कामों में ही बीतते थे। उसकी सौतेली बहन प्रिया, जो उससे एक साल छोटी थी, का होमवर्क करना, घर का सारा काम निपटाना – झाड़ू-पोछा, खाना बनाना, कपड़े धोना – सब अव्यंशी के ही ज़िम्मे था। उसकी सौतेली माँ, अक्सर प्रिया को लेकर स्कूल जातीं और लौटकर प्रिया के होमवर्क की तारीफों के पुल बाँधतीं। "मेरी प्रिया कितनी होशियार है, सारा काम खुद करती है," वे गर्व से कहतीं, जबकि होमवर्क की असली मेहनत अव्यंशी की होती थी।
    एक दिन प्रिया के गणित के प्रोजेक्ट में पूरे नंबर आए। टीचर ने उसकी बहुत तारीफ की और किरण देवी तो खुशी से फूली नहीं समाईं। घर आकर उन्होंने तुरंत प्रिया को गले लगाया और उसे एक नई डॉल गिफ्ट में दी। अव्यंशी रसोई में खड़ी यह सब देख रही थी। उसके हाथ में जलती हुई रोटी का तवा था, लेकिन उसकी आँखों में नमी उतर आई थी। उसे अपनी माँ की याद सताने लगी। उसकी अपनी माँ, जो उसे हर छोटी-छोटी बात पर प्यार करती थीं, जो उसके सिर पर हाथ फेरकर कहती थीं, "मेरी बच्ची, तू कितनी अच्छी है।"
    आज उसे अपनी माँ की कमी शिद्दत से महसूस हो रही थी। उसकी आँखें डबडबा गईं और एक आँसू गाल पर लुढ़क आया। उसने चुपचाप तवा रखा और कोने में जाकर बैठ गई। उसे याद आया कैसे उसकी माँ उसे स्कूल से आने के बाद गोद में बिठाकर कहानियाँ सुनाती थीं, उसके लिए मनपसंद खाना बनाती थीं। आज उसे कोई पूछने वाला नहीं था।
    अव्यंशी देर रात तक अपने बिस्तर पर लेटी रोती रही। उसे लगता था कि इस घर में उसकी कोई जगह नहीं है, कोई उसे प्यार नहीं करता। उसकी माँ की तस्वीर उसकी आँखों के सामने घूम रही थी। उसने मन ही मन कहा, "माँ, मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है। काश तुम मेरे पास होतीं।"
    अगले दिन सुबह, अव्यंशी उठी और फिर से अपने रोज़ के कामों में जुट गई, लेकिन उसके दिल में एक टीस थी। वह जानती थी कि उसे अब खुद ही अपनी हिम्मत बननी होगी। अपनी माँ की यादों को उसने अपनी ताकत बना लिया और चुपचाप अपने हिस्से की ज़िम्मेदारियाँ निभाती रही, इस उम्मीद में कि कभी न कभी उसकी मेहनत और त्याग को कोई तो समझेगा।

  • 7. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 7

    Words: 1620

    Estimated Reading Time: 10 min

    राजस्थान के भव्य महल में, जहाँ की हवा में सदियों पुरानी कहानियाँ घुली हुई थीं, एक छोटा राजकुमार रहता था जिसका नाम था **अभिमान सिंह रघुवंशी**। अभिमान, जिसकी उम्र अभी महज़ पाँच साल थी, अपने नाम को बखूबी चरितार्थ करता था – वो था तो राजकुमार, पर बहुत ही **ज़िद्दी और लाड़-प्यार से पला-बढ़ा बच्चा**। उसकी हर इच्छा पलक झपकते पूरी हो जाती थी।

    ---

    अभिमान की सुंदरता किसी नक्काशीदार चित्र से कम नहीं थी। उसके **काले, रेशमी बाल** माथे पर अलसाई लटों की तरह बिखरे रहते थे। उसकी **आँखें गहरी भूरी थीं, जिनमें बचपन की शरारत और एक अनोखी चमक** भरी रहती थी। जब वो हँसता, तो उसकी **गालों पर डिम्पल** पड़ते थे, जो उसे और भी प्यारा बना देते थे। उसका **गोरा रंग धूप में और भी दमक उठता** था, और उसकी **छरहरी काया** किसी भी शाही पोशाक में खूब जँचती थी। उसके नन्हें हाथों में हमेशा कुछ-न-कुछ खिलौना होता, और उसके छोटे-छोटे पैर महल के गलियारों में भागते-दौड़ते थकते नहीं थे। वो अपने आकर्षक व्यक्तित्व और शाही अंदाज़ से हर किसी का मन मोह लेता था।

    ---

    अभिमान के पिता, **महाराज विक्रमजीत सिंह रघुवंशी**, राजस्थान के महाराजा होने के साथ-साथ **भारत के नंबर 1 बिजनेसमैन** भी थे। उनका नाम सुनते ही व्यापार जगत में सम्मान से सिर झुक जाते थे। उनकी माँ, **महारानी**, जितनी सुंदर थीं उतनी ही दयालु भी। वो एक **सफल NGO चलाती थीं**, जिससे अनगिनत लोगों को सहारा मिलता था। अभिमान की एक छोटी बहन भी थी, **नव्या**, जो अभी सिर्फ दो साल की थी और अपने भाई की हर शरारत पर किलकारी मारकर हँसती थी।

    परिवार में उनके **दादासा, राजवीर सिंह रघुवंशी, और दादीसा, मैनावती सिंह रघुवंशी**, भी थे। अपने ज़माने के महान राजा और रानी, उनकी उपस्थिति ही महल को एक गरिमा प्रदान करती थी। अभिमान अपने दादा-दादी की कहानियाँ सुनना बहुत पसंद करता था।

    अभिमान के **चाचा, आर्यन सिंह रघुवंशी**, और **चाची, राम्या**, भी महल में ही रहते थे। आर्यन अपने बड़े भाई विक्रमजीत के साथ व्यापार संभालते थे, और राम्या घर-परिवार को। वे दोनों अभिमान से बहुत प्यार करते थे और उसे खूब लाड़ लड़ाते थे। उनका एक बेटा, **युवान**, भी था जो अभिमान का सबसे अच्छा दोस्त और खेल का साथी था। दोनों चचेरे भाई मिलकर महल में खूब धूम मचाते थे।

    ---

    एक बार अभिमान ने जिद पकड़ ली कि उसे उड़ना है। महारानी ने समझाया, "बेटा, इंसान उड़ नहीं सकते।" पर अभिमान नहीं माना। उसने ज़ोर-ज़ोर से रोना शुरू कर दिया। महाराज विक्रमजीत, जो अपनी व्यस्तता के बावजूद अपने बच्चों के लिए हमेशा समय निकालते थे, मुस्कुराए और बोले, "अच्छा, ठीक है, अभिमान। हम तुम्हें उड़ाने का इंतज़ाम करेंगे।"

    अगले ही दिन, महल के बगीचे में एक विशाल झूला लगाया गया, जो इतना ऊँचा था कि अभिमान को लगा जैसे वो आसमान छू रहा हो। जब वो झूले पर बैठा और झूला ऊपर-नीचे होने लगा, तो अभिमान की आँखें चमक उठीं। उसे लगा जैसे वो सचमुच उड़ रहा हो। उसकी हँसी पूरे महल में गूँज उठी।

    उस दिन अभिमान ने सीखा कि कभी-कभी जिद पूरी करने के लिए सीधे रास्ता नहीं होता, पर अपने प्यार करने वाले लोग हमेशा कोई-न-कोई तरीका ढूंढ ही लेते हैं। और इस तरह, राजस्थान के उस भव्य महल में, अभिमान सिंह रघुवंशी अपने शाही परिवार के प्यार और देखरेख में, हर दिन एक नई कहानी गढ़ता हुआ बड़ा हो रहा था।

    अभिमान, अपने नाम के अनुरूप, बचपन से ही थोड़ा ज़िद्दी था, लेकिन पाँचवीं कक्षा तक उसने अपनी पढ़ाई में शानदार प्रदर्शन किया। वह हमेशा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होता, शिक्षकों का प्रिय और माता-पिता का गर्व था। उसकी तेज़ आँखें और जिज्ञासु मन हमेशा कुछ नया सीखने को आतुर रहते थे।

    लेकिन कहते हैं ना, संगत का असर होता है। पाँचवीं के बाद, अभिमान की दोस्ती कुछ ऐसे बच्चों से हुई जिनकी प्राथमिकता पढ़ाई नहीं थी। धीरे-धीरे, अभिमान के व्यवहार में एक अप्रत्याशित बदलाव आने लगा। जो अभिमान कभी विनम्र और मृदुभाषी था, वह घमंडी और जिद्दी बन गया। उसकी बातों में बदतमीज़ी झलकने लगी और वह किसी से भी ढंग से बात नहीं करता था, यहाँ तक कि अपने माता-पिता और दादा-दादी से भी।

    उसकी पढ़ाई-लिखाई से उसका ध्यान पूरी तरह हट गया था। किताबें अब उसे बोरिंग लगने लगी थीं और स्कूल जाना एक बोझ। शिक्षकों की शिकायतें आने लगीं कि अभिमान कक्षा में ध्यान नहीं देता, गृहकार्य नहीं करता और सहपाठियों से झगड़ता है। महाराजा विक्रमजीत सिंह और महारानी को यह देखकर बहुत दुख होता था। उन्होंने उसे समझाने की कोशिश की, प्यार से भी और थोड़ी सख्ती से भी, पर अभिमान पर किसी बात का कोई असर नहीं होता था। वह घंटों अपने दोस्तों के साथ घूमता, मोबाइल पर गेम खेलता और पूरी तरह से लापरवाह हो गया था।

    उसकी पढ़ाई का स्तर इतना गिर गया था कि आठवीं कक्षा उसने बड़ी मुश्किल से पास की। परिणाम का दिन परिवार के लिए चिंता का विषय बन गया था। उसके दादासा और दादीसा, जो अपने समय के महान शासक थे, भी अभिमान के इस बदलते रवैये से चिंतित थे। उनके चाचा-चाची और युवान भी उसे देखकर हैरान थे। जो अभिमान कभी परिवार की शान था, अब उसकी हरकतों से सभी परेशान रहने लगे थे। महल की रौनक में जैसे कुछ कमी सी आ गई थी। अभिमान को देखकर ऐसा लगता था मानो वह किसी ऐसी दुनिया में खो गया हो जहाँ प्यार और मर्यादा के लिए कोई जगह नहीं थी।
    अभिमान के इस बदलते बर्ताव से घर में हर कोई चिंतित था। उसके माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची - सभी हैरान और परेशान थे कि उनका लाडला अभिमान ऐसा क्यों हो गया है। एक दिन, जब महाराज विक्रमजीत सिंह ने अभिमान को उसकी पढ़ाई और बदतमीज़ी के लिए डांटा, तो अभिमान का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।
    "मुझे कोई प्यार नहीं करता!" वह चिल्लाया, और गुस्से में पास रखा पानी का ग्लास ज़ोर से फर्श पर दे मारा, जिससे वह चकनाचूर हो गया। कांच के टुकड़े बिखर गए और उसकी आवाज़ की गूँज पूरे महल में फैल गई। यह कहकर वह तेज़ी से अपने कमरे में चला गया और दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया।

    इस घटना से पूरा परिवार स्तब्ध रह गया। सब एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। महाराज विक्रमजीत सिंह, जो हमेशा शांत और गंभीर रहते थे, इस बार क्रोध और निराशा से भर गए। उन्होंने कहा, "अब बस! यह लड़का पूरी तरह से हाथ से निकल गया है। मुझे लगता है, इसे हॉस्टल भेजना ही पड़ेगा। शायद अनुशासन और दूर रहने से यह सुधर जाए।"
    महल में सब एक पल के लिए शांत हो गए। हॉस्टल भेजने की बात सुनकर सभी के मन में एक अजीब सी हलचल हुई।

    लेकिन महारानी ने तुरंत महाराज की बात काटी। उनकी आँखों में आँसू थे, "नहीं, विक्रम! हम अभिमान को हॉस्टल नहीं भेजेंगे। वह हमारा बच्चा है। वह अभी नासमझ है। उसे प्यार और समझ की ज़रूरत है, दूर करने की नहीं।"
    दादासा, राजवीर सिंह रघुवंशी, भी महारानी के समर्थन में खड़े हो गए। उनकी आवाज़ में गंभीरता थी, "विक्रम, तुम्हारी माँ सही कह रही है। अभिमान अभी छोटा है। हॉस्टल समाधान नहीं है। हमें उसे समझना होगा, उसे सही रास्ता दिखाना होगा। यह हमारी ज़िम्मेदारी है। हम उसे समझाएँगे।"

    महारानी और दादासा ने दृढ़ता से कहा कि वे अभिमान को समझाएँगे और उसे वापस सही रास्ते पर लाएँगे। वे जानते थे कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन उन्होंने अपने बच्चे को दूर भेजने की बजाय उसे अपने पास रखकर सुधारने का फैसला किया था। महाराज विक्रमजीत सिंह ने उनकी बात मान ली, लेकिन उनके मन में अभी भी चिंता बनी हुई थी कि क्या वे अभिमान को बदल पाएंगे या नहीं। परिवार में एक नई चुनौती सामने खड़ी थी, जिसका सामना उन्हें मिलकर करना था।

    महारानी और दादासा ने मिलकर अभिमान को समझाने का बीड़ा उठाया। यह आसान नहीं था, क्योंकि अभिमान ने अपने चारों ओर एक ऐसी दीवार बना ली थी जिसे तोड़ना मुश्किल लग रहा था।

    सबसे पहले, दादासा राजवीर सिंह रघुवंशी ने कमान संभाली। उन्होंने अभिमान को डांटने या उपदेश देने के बजाय, उसे अपने साथ समय बिताने के लिए कहना शुरू किया। अभिमान पहले तो झल्लाता था, लेकिन दादासा ने धैर्य नहीं खोया। वे उसे महल के इतिहास, अपने शासनकाल की कहानियाँ सुनाते, जिसमें ईमानदारी, पराक्रम और विनम्रता के किस्से होते थे।
    "जानते हो अभिमान," एक शाम दादासा ने कहा, "एक सच्चा राजा या राजकुमार वो नहीं होता जो सिर्फ ताकतवर हो, बल्कि वो होता है जो अपने शब्दों और व्यवहार से लोगों का दिल जीते। घमंड और क्रोध तो एक कमज़ोर इंसान की निशानी है।"
    अभिमान सुनता तो था, पर उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आते थे। दादासा उसे अपने साथ सुबह की सैर पर ले जाते, जहाँ वे प्रकृति के बारे में बातें करते। धीरे-धीरे, अभिमान को दादासा की बातों में एक अलग ही सुकून महसूस होने लगा।

    वहीं, महारानी ने अभिमान के लिए अपना पूरा समय समर्पित कर दिया। उन्होंने अभिमान के पसंदीदा पकवान बनाने शुरू किए और उसके कमरे में जाकर उसके साथ बैठतीं। वे उसे प्यार से समझातीं, "बेटा, हम जानते हैं कि तुम परेशान हो, लेकिन हमें बताओ क्या बात है? गुस्सा करने से समस्या हल नहीं होती। हम सब तुम्हें बहुत प्यार करते हैं।"
    एक दिन महारानी ने अभिमान से कहा, "तुम अपनी छोटी बहन नव्या को देखते हो? वह तुमसे कितनी सीखती है। अगर तुम ऐसे ही रहोगे, तो वह भी तुमसे गलत चीजें ही सीखेगी।" नव्या का नाम सुनते ही अभिमान थोड़ा विचलित हुआ। उसे अपनी छोटी बहन से बहुत प्यार था।
    महारानी ने उसे अपने NGO के काम के बारे में बताना शुरू किया। वे बतातीं कि कैसे छोटे-छोटे बच्चे जो अभाव में जीते हैं, उनके पास पढ़ाई का अवसर नहीं होता। अभिमान को पहली बार एहसास हुआ कि उसके पास जो कुछ है, वह कितना अनमोल है।
    इन प्रयासों का असर धीरे-धीरे दिखने लगा। अभिमान का गुस्सा कम होने लगा था। वह अब अपने कमरे में पहले जितना बंद नहीं रहता था।

  • 8. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 8

    Words: 1554

    Estimated Reading Time: 10 min

    महारानी और दादासा की अथक कोशिशों के बावजूद, अभिमान के व्यवहार में आंशिक सुधार ही आ पाया था। वह अब केवल अपनी माँ, दादासा, और भाई-बहनों (नव्या और युवान) के साथ ही अच्छे से व्यवहार करता था। उसे लगता था कि केवल यही लोग हैं जो उससे सच्चा प्यार करते हैं। बाकी सबसे वह अब भी रूखा और अक्सर बदतमीज़ी भरा बर्ताव करता था।

    परिवार के लिए खुशी की बात यह थी कि इस बार अभिमान ने पढ़ाई में मेहनत की थी। दसवीं कक्षा में उसने 80% अंकों के साथ उत्तीर्ण किया, जो कि उसकी पिछली परफॉर्मेंस को देखते हुए एक बड़ी उपलब्धि थी। यह देखकर महाराजा विक्रमजीत सिंह और बाकी परिवार को थोड़ी राहत मिली। उन्हें लगा कि शायद अभिमान अब सही रास्ते पर आ रहा है।

    लेकिन उनकी यह खुशी ज़्यादा देर टिक नहीं पाई। अच्छे अंकों के बावजूद, अभिमान की ज़िद्द और बुरी आदतें जस की तस थीं। वह अब भी रात-रात भर दोस्तों के साथ घूमता था, और उसकी यह आदत कम होने की बजाय और बढ़ती जा रही थी। उसे अब भी देर रात घर लौटने या कभी-कभी तो रात भर बाहर रहने की परवाह नहीं थी। वह गलत आदतों में घिरा हुआ था, जिसका सीधा असर उसके स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति पर पड़ रहा था।

    परिवार को यह देखकर फिर से चिंता होने लगी थी। वे समझ नहीं पा रहे थे कि इतने प्यार और समझाने के बाद भी अभिमान अपनी इन आदतों को क्यों नहीं छोड़ पा रहा है। महाराजा और महारानी को लगने लगा था कि उन्हें अब कुछ और कठोर कदम उठाने पड़ेंगे, क्योंकि अभिमान का भविष्य दांव पर लगा था।

    अभिमान ने ग्यारहवीं कक्षा भी अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की। इस बार उसके 79% अंक आए थे, जो संतोषजनक थे। उसने अपनी पढ़ाई के लिए कॉमर्स विषय को चुना था, शायद इसलिए क्योंकि उसके पिता महाराजा विक्रमजीत सिंह और चाचा आर्यन भी व्यापार में थे। परिवार को लगा कि शायद अब अभिमान अपनी आदतों को सुधार लेगा और अपने भविष्य पर ध्यान देगा, पर उनकी उम्मीदें अधूरी रहीं।

    आदतों का न छूटना और पिता से बदतमीज़ी

    दसवीं के अच्छे परिणाम के बावजूद, अभिमान की गलत आदतें बिल्कुल नहीं छूटी थीं। वह अब भी रात-रात भर दोस्तों के साथ घूमता, और अपनी लापरवाहियों से परिवार को परेशान करता था। उसकी ज़िद और बढ़ गई थी, और उसका व्यवहार अक्सर असहनीय हो जाता था।

    एक दिन, जब महाराजा विक्रमजीत सिंह ने उसे फिर से देर रात घर लौटने पर डांटा, तो अभिमान ने इस बार सारी हदें पार कर दीं। उसने अपने पिता से सरेआम बदतमीज़ी की। उसके अपशब्दों और disrespectful रवैये से महाराजा का दिल टूट गया। महल में तनाव का माहौल था।

    नानाजी का आगमन और अभिमान-अजय की दोस्ती

    ठीक इसी समय, महारानी के पिता यानी अभिमान के नानाजी महल में आए। वे एक बेहद शांत और सुलझे हुए व्यक्ति थे और अपने दामाद व बेटी की चिंता को समझते थे। नानाजी ने अभिमान की हालत देखी और उसकी समस्याओं को गहराई से समझा।

    महल में रहते हुए, नानाजी ने देखा कि अभिमान और अजय कि दोस्ती जल्दी हो‌ गया! अजय अभिमान के मामा का बेटा था जो इस साल 11 कक्षा मे था दोनो हमउमृ थे अभिमान उससे 4 महिने बड़ा था अजय एक शांत स्वभाव का लड़का था जो अभिमान की तुलना में काफी समझदार था। दोनों की दोस्ती काफी गहरी थी, और अभिमान अजय की बात कुछ हद तक सुनता भी था।

    नानाजी ने अभिमान की स्थिति को देखते हुए एक प्रस्ताव रखा। उन्होंने महाराजा और महारानी से कहा, "मुझे लगता है, अभिमान को कुछ समय के लिए इस माहौल से दूर रहना चाहिए। क्या वह तीन महीने के लिए मेरे साथ मेरे घर आ सकता है? मैं उसे अपने साथ रखूंगा और कोशिश करूंगा कि वह अपनी आदतों में सुधार लाए।"

    महाराजा विक्रमजीत सिंह पहले तो हिचकिचाए, लेकिन महारानी और दादासा ने इस विचार का समर्थन किया। उन्हें लगा कि शायद यह बदलाव अभिमान के लिए फायदेमंद होगा। एक नए माहौल में, नानाजी के सख्त लेकिन प्यार भरे अनुशासन में शायद वह बदल सके।

    अभिमान भी नानाजी के साथ जाने को तैयार हो गया, शायद इसलिए क्योंकि उसे भी महल के तनाव से थोड़ी आज़ादी चाहिए थी। यह परिवार के लिए एक बड़ा फैसला था, एक उम्मीद की किरण कि शायद इस बदलाव से अभिमान की ज़िंदगी में सही दिशा में मोड़ आ सके।

    नानाजी के साथ अभिमान का गाँव का सफ़र शुरू हुआ। यह उसके लिए किसी नए लोक में आने जैसा था, जहाँ ऊँचे महल नहीं थे, बल्कि हरे-भरे खेत और कच्चे रास्ते थे। अजय, जो उसके साथ ही था, ने गाँव का भ्रमण करने में उसकी मदद की। दोनों दिन भर गाँव की गलियों में घूमते, खेतों में खेलते और नदी किनारे बैठकर बातें करते।

    एक दोपहर, जब वे गाँव के बाहर से गुज़र रहे थे, अभिमान की नज़र एक छोटी लड़की पर पड़ी। वह एक खेत में कड़ी धूप में काम कर रही थी। उसके कपड़े मैले थे और चेहरे पर थकान साफ़ झलक रही थी, पर वह लगन से काम में जुटी थी। अभिमान ने कभी किसी को ऐसे काम करते नहीं देखा था। उसके दिल में अचानक दया का एक गहरा भाव उमड़ा। यह एक नई भावना थी, जिससे वह पहले कभी परिचित नहीं हुआ था।

    "अजय, यह लड़की कौन है?" अभिमान ने पूछा, उसकी आवाज़ में एक अनजानी सी नरमी थी।

    अजय ने बताया, "यह अव्यांशी है।" उसने गहरी साँस ली और आगे बताया, "यह सिर्फ 12 साल की है। इसकी माँ की मौत हो गई है और इसकी सौतेली माँ इसे बहुत सताती है। उसे घर के सारे काम करने पड़ते हैं और अक्सर मार भी पड़ती है।"

    अभिमान यह सुनकर चौंक गया। उसने कभी ऐसी ज़िंदगी की कल्पना भी नहीं की थी। अजय ने आगे कहा, "पर सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इतनी मुश्किलों के बावजूद, अव्यांशी गाँव के स्कूल में हमेशा नंबर 1 आती है। पढ़ाई हो या कोई खेल, वो सब में अव्वल रहती है।"

    यह सुनकर अभिमान को अचंभा हुआ। एक तरफ वह था, जिसके पास सब कुछ था, फिर भी वह लापरवाह और उद्दंड था। दूसरी तरफ अव्यांशी थी, जिसके पास कुछ नहीं था, फिर भी वह इतनी मेहनती और सफल थी। अव्यांशी की कहानी ने अभिमान के दिल पर गहरी छाप छोड़ी। उसे पहली बार अपनी ज़िंदगी और अपने बर्ताव पर सोचने का मौका मिला।

    एक दिन की बात है, अव्यांशी नदी से पानी भरकर घर जा रही थी। सिर पर पानी का घड़ा लिए, वह सावधानी से कच्चे रास्ते पर चल रही थी। तभी अचानक, सामने से अजय और अभिमान अपनी साइकिलों पर तेज़ी से आते दिखाई दिए।

    मोड़ पर वे अव्यांशी को देख नहीं पाए और धड़ाम! तीनों की जोरदार टक्कर हो गई। अव्यांशी के सिर से घड़ा गिरा और सारा पानी रास्ते पर बिखर गया। वह दर्द से कराह उठी।

    अभिमान और अजय दोनों अपनी साइकिलों से कूद पड़े। अजय तुरंत अव्यांशी की मदद करने लगा, "अव्यांशी, तुम्हें चोट तो नहीं लगी?"

    अभिमान, जो अमूमन किसी की परवाह नहीं करता था, इस घटना से थोड़ा सहम गया। उसने देखा कि अव्यांशी को वाकई चोट लगी है और उसका चेहरा दर्द से सिकुड़ा हुआ है। बिना कुछ सोचे, अभिमान ने भी अव्यांशी को उठने में मदद की और बिखरे हुए घड़े के टुकड़ों को इकट्ठा करने लगा।

    "मुझे माफ़ करना, अव्यांशी," अभिमान ने कहा, उसकी आवाज़ में एक अनजानी सी नरमी थी। यह पहली बार था जब उसने अव्यांशी से सीधे बात की थी।

    अव्यांशी ने आश्चर्य से अभिमान की ओर देखा। उसने कभी सोचा नहीं था कि महल का राजकुमार उससे इस तरह बात करेगा। "कोई बात नहीं," उसने धीमी आवाज़ में कहा, "पानी तो फिर भर लूंगी।"

    अभिमान ने उसे पानी भरने में मदद करने की पेशकश की, और अजय भी उनके साथ हो लिया। तीनों फिर से नदी की ओर चले, जहाँ अभिमान और अजय ने मिलकर अव्यांशी के लिए पानी भरने में मदद की। इस छोटी सी घटना ने अभिमान के मन में अव्यांशी के लिए एक नया सम्मान जगा दिया। उसे एहसास हुआ कि यह लड़की कितनी मजबूत और कितनी दयालु थी। यह पल अभिमान के लिए एक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ, जहाँ उसकी संवेदनाओं ने पहली बार किसी और के लिए जगह बनाई।

    नानाजी के घर रहते हुए, अभिमान ने अव्यांशी की कहानी और उसकी मेहनत के बारे में कई और बातें सुनीं। एक दिन उसे यह चौंकाने वाली खबर मिली कि अव्यांशी ने आठवीं कक्षा में पूरे ज़िले में टॉप किया है! यह सुनकर अभिमान को अपनी लापरवाहियों पर और भी शर्मिंदगी महसूस हुई। एक ऐसी लड़की जिसके पास इतनी कम सुविधाएँ थीं, उसने इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की थि।

    अभिमान ने तय किया कि वह अव्यांशी को बधाई देगा। वह जानता था कि अव्यांशी रोज़ सुबह नदी से पानी भरने आती थी। अगली सुबह, अभिमान अजय के साथ पानी भरने वाली जगह पर अव्यांशी का इंतज़ार करने लगा। जब अव्यांशी पानी भरकर लौट रही थी, तो उसने देखा कि अभिमान और अजय उसका इंतज़ार कर रहे हैं।

    अभिमान थोड़ा हिचकिचाया, फिर उसने अपनी जेब से एक छोटी सी डिब्बी निकाली, जिसमें मिठाई थी। उसने मुस्कराते हुए अव्यांशी की ओर मिठाई बढ़ाई और कहा, "अव्यांशी, तुम्हें आठवीं में ज़िले भर में टॉप करने के लिए बहुत-बहुत बधाई! यह मिठाई मेरी तरफ से।"

    अव्यांशी हैरान थी। उसने कभी सोचा नहीं था कि राजकुमार अभिमान उसे इस तरह बधाई देगा। उसकी आँखों में खुशी और आश्चर्य था। उसने मिठाई ली और अभिमान को धन्यवाद दिया।

  • 9. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 9

    Words: 1579

    Estimated Reading Time: 10 min

    उस दिन के बाद, अभिमान अक्सर अव्यांशी से पानी भरने वाली जगह पर मिलने लगा। वे बातें करते, अभिमान उसे अपनी दुनिया के बारे में बताता और अव्यांशी उसे अपने सपनों और पढ़ाई के बारे में। अव्यांशी की सादगी, मेहनत और सकारात्मकता ने अभिमान पर गहरा असर डाला। उसे पहली बार एहसास हुआ कि सच्चा सुख भौतिक चीज़ों में नहीं, बल्कि मेहनत, लगन और दूसरों के प्रति दया में है।

    यह मुलाकातें धीरे-धीरे एक अनोखी दोस्ती में बदल गईं। अव्यांशी की प्रेरणा से अभिमान के अंदर एक बदलाव की लहर दौड़ रही थी। उसे अपनी पिछली आदतें गलत लगने लगी थीं और वह अपनी ज़िंदगी को एक नई दिशा देना चाहता था।
    अभिमान और अव्यांशी की दोस्ती गहरी होती जा रही थी। वे अक्सर मिलते और बातें करते थे। एक दिन अभिमान को एक और चौंकाने वाली खबर मिली। अव्यांशी ने नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा में पूरे ज़िले में टॉप किया था! यह सुनकर अभिमान की खुशी का ठिकाना न रहा।

    अभिमान तुरंत अव्यांशी से मिलने के लिए नदी किनारे पहुँचा, जहाँ वह पानी भर रही थी। "अव्यांशी! तुम्हें पता है? तुमने नवोदय की परीक्षा में टॉप किया है!" अभिमान ने उत्साह से कहा।

    अव्यांशी ने उसकी ओर देखा और उसकी आँखों में अचानक आँसू आ गए। अभिमान हैरान रह गया। यह खुशी का मौका था, फिर वह रो क्यों रही है?

    अव्यांशी ने सिसकते हुए बताया, "मुझे नहीं लगता कि मैं नवोदय जा पाऊँगी, अभिमान। मेरी सौतेली माँ बहुत गुस्सा हैं। उन्होंने मुझे बहुत पीटा है और कहा है कि अब मैं स्कूल नहीं जाऊँगी। वह चाहती हैं कि मैं पढ़ाई छोड़ दूँ और घर के सारे काम करूँ, सिलाई और खाना बनाना सीखूँ।"

    यह सुनकर अभिमान को बहुत गुस्सा आया और दुख भी हुआ। उसने अव्यांशी का हाथ पकड़ा और बोला, "नहीं, अव्यांशी! तुम ऐसे हार नहीं मान सकती। तुम्हें याद है, तुम्हारी माँ का सपना था कि तुम पढ़-लिखकर कुछ बनो? क्या तुम उन्हें निराश करोगी?"

    अभिमान ने उसे समझाया, "देखो, अगर अभी नवोदय नहीं जा सकती तो कोई बात नहीं। लेकिन तुम अपनी पढ़ाई मत छोड़ो। तुम दसवीं की ओपन परीक्षा (NIOS) दे सकती हो। इससे तुम्हें स्कूल जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और तुम अपनी पढ़ाई जारी रख पाओगी। मैं तुम्हारी मदद करूँगा।"

    अभिमान की बातों से अव्यांशी को थोड़ी हिम्मत मिली। उसकी आँखों में एक नई चमक आई। उसे लगा कि कोई तो है जो उसकी परवाह करता है और उसके सपनों को समझता है। यह पल उनकी दोस्ती को और भी मज़बूत कर गया। अभिमान को अव्यांशी में अपनी बहन नव्या और युवान जैसी मासूमियत दिख रही थी, जिसे वह किसी भी कीमत पर बर्बाद नहीं होने देना चाहता था। यह दोस्ती अभिमान के जीवन को सही दिशा में मोड़ने वाली थी।

    तीन महीने कैसे बीत गए, अभिमान को पता ही नहीं चला। नानाजी के घर और अव्यांशी की संगति ने उसे पूरी तरह बदल दिया था। अब वह पहले जैसा गुस्सैल और लापरवाह नहीं था। अपने अंदर आए इस सकारात्मक बदलाव के साथ, अभिमान के राजस्थान लौटने का समय आ गया था।

    विदा लेने से पहले, अभिमान अव्यांशी से मिलने गया। नदी के किनारे, जहाँ उनकी दोस्ती शुरू हुई थी, दोनों एक-दूसरे के सामने खड़े थे। अभिमान के मन में थोड़ा दुख था, पर संतोष भी कि उसने अव्यांशी को एक नई उम्मीद दी थी।

    "अव्यांशी," अभिमान ने कहा, उसकी आवाज़ में एक नई परिपक्वता थी, "मैं अब वापस जा रहा हूँ, लेकिन हमारी दोस्ती हमेशा रहेगी।"

    उसने अपनी जेब से एक कागज़ और कलम निकाली, और अपना पता और फ़ोन नंबर लिखा। "मुझे चिट्ठी लिखती रहना और फ़ोन भी करती रहना," उसने कहा। "और सबसे ज़रूरी बात, अपनी पढ़ाई कभी मत छोड़ना। तुम्हें दसवीं की ओपन परीक्षा में टॉप करना है। तुम्हें अपनी माँ का सपना पूरा करना है।" अभिमान ने उसे और प्रेरित किया, "मुझे पता है तुम कर सकती हो। तुम बहुत मेहनती हो।"

    अव्यांशी की आँखों में आँसू थे, पर इस बार वे दुख के नहीं, बल्कि कृतज्ञता और उम्मीद के थे।

    "मैं तुमसे वादा करता हूँ, छह महीने बाद मैं तुमसे मिलने वापस आऊँगा," अभिमान ने कहा, उसकी आवाज़ में दृढ़ता थी।

    सूरज ढल रहा था और उसकी नारंगी किरणें अभिमान और अव्यांशी के चेहरों को छू रही थीं. 13 साल की अव्यांशी की आँखें नम थीं, लेकिन उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी. अभिमान को आज जाना था, और यह विदाई का पल था.

    "तो मैं चलता हूँ, अव्यांशी," अभिमान ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

    अव्यांशी ने तुरंत अपनी सली हुई एक कमीज और एक रुमाल अभिमान को दिया. "यह आपके लिए है. मैंने खुद सिला है," उसने मासूमियत सै कहा.

    अभिमान ने कमीज और रुमाल को छुआ. "वाह! क्या कमाल की सिलाई है! तुम तो बड़ी कलाकार निकली, अव्यांशी. मुझे बहुत पसंद आया," उसने मुस्कुराते हुए कहा.

    अव्यांशी की आँखें खुशी से चमक उठीं. "सच्ची?"

    "बिल्कुल सच्ची!" अभिमान ने आश्वासन दिया

    . "और सुनो, मैं तुमसे ठीक छह महीने बाद मिलने आऊँगा."

    अव्यांशी का चेहरा खिल उठा. "पक्का?"

    "पक्का वादा," अभयमान ने कहा. "और इस बार तुम्हें एक काम करना है."

    अव्यांशी ने उत्सुकता से पूछा, "क्या?"

    "तुम्हें 10वीं का ओपन फॉर्म दिल्ली यूनिवर्सिटी से भरना है, ताकि तुम्हारी सौतेली माँ को तुम्हारी पढ़ाई के बारे में पता न चले," अभिमान ने धीरे से समझाया. "यह तुम्हारे भविष्य के लिए बहुत ज़रूरी है."

    अव्यांशी ने सिर हिलाया. "ठीक है, मैं करूँगी."

    अभिमान ने एक गहरी साँस ली !

    इस वादे के साथ, अभिमान ने अव्यांशी को अलविदा कहा। उसने पीछे मुड़कर देखा, अव्यांशी उसे हाथ हिला रही थी। अभिमान जानता था कि यह विदाई अस्थायी है, और यह दोस्ती उसके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई थी। वह अब एक नया अभिमान था, जो अपने परिवार और अपने भविष्य के लिए बेहतर बनने को तैयार था।विदाई की बेला. यह सिर्फ विदाई नहीं थी, यह एक नए अध्याय की शुरुआत थी, उम्मीद और सपनों से भरी. जैसे ही अभिमान मुड़ा और धीरे-धीरे दूर जाने लगा, अव्यांशी उसे तब तक देखती रही जब तक वह आँखों से ओझल नहीं हो गया. उसके दिल में अभयमान के लौटने का इंतजार और एक बेहतर भविष्य की उम्मीद दोनों ही थी.

    अभिमान सिंह रघुवंशी, राजस्थान का वो राजकुमार जो 18 साल की उम्र में भी अपनी ज़िद और बदतमीजी के लिए मशहूर था, अब बदल चुका था. 12वीं में पढ़ रहा अभयमान कभी अपनी मासा, दादा सा, बहन नव्या (जो अब 10वीं में थी) और अपने चाचा के बेटे के अलावा किसी से ढंग से बात नहीं करता था. गाँव से लौटने के बाद से उसमें एक ज़बरदस्त बदलाव आया था. उसने अपने सारे बुरे दोस्तों का साथ छोड़ दिया था और अब एक अच्छा, मेहनती लड़का बन गया था. उसकी पूरी दुनिया अब पढ़ाई के इर्द-गिर्द घूमती थी.

    एक दिन जब अभिमान ने घर पर हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी करने की बात बताई, तो घर में सब हैरान रह गए और खुशी से उनकी आँखें भर आईं. सब भगवान का धन्यवाद करने लगे कि उनका जिद्दी और बिगड़ा हुआ बेटा आखिरकार सही रास्ते पर आ गया था.

    अभिमान हमेशा अव्यांशी को याद करता था. आज अव्यांशी का जन्मदिन था. अभयमान ने तुरंत अजय को फ़ोन मिलाया और अव्यांशी से बात करवाने को कहा.

    "हैप्पी बर्थडे, अव्यांशी!" अभिमान की आवाज़ में एक अलग ही अपनापन था.

    "थैंक यू, अभयमान," अव्यांशी ने खुशी से कहा.

    "और बताओ, कैसी चल रही है तुम्हारी पढ़ाई? 10 वि के लिए तैयारी कैसी है?" अभिमान ने पूछा. उसकी आवाज़ में चिंता और प्रोत्साहन दोनों थे.

    "बस चल रही है, अभिमान . आप बताएं, अव्यांशी ने पलटकर पूछा.

    अभिमान ने आव्यांशि को अपनि हावड कि तैयारी करने के बारे मे बताया और हावड क्या है उसको समझाया आव्यांशि उसको मोटीवैट करतिे हैं ।

    दोनों के बीच कुछ देर तक पढ़ाई और भविष्य की योजनाओं को लेकर बातें हुईं. इस बातचीत से यह साफ था कि अभिमान का बदलाव केवल दिखावा नहीं था, बल्कि वह सच में एक ज़िम्मेदार और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित युवक बन गया था.

    एक दिन ्््््््

    अभिमान अपनी कुर्सी पर बैठा था, सामने खुली किताब थी, लेकिन उसका मन कहीं और था. उसे अव्यांशी याद आ रही थी, वो दिन जब उसने अव्यांशी को 'भैया' कहने से रोका था. "हम दोस्त हैं, अव्यांशी, सिर्फ दोस्त," उसने कहा था, और अव्यांशी ने अपनी भोली आँखों से उसे देखा था. उस दिन से उनके रिश्ते में एक नई गर्माहट आ गई थी.

    अव्यांशी का उसे अक्सर फ़ोन करना, अपनी सौतेली माँ से छिपकर 10वीं का ओपन फॉर्म भरने की बात बताना, और हर महीने चिट्ठी लिखने का वादा करना...ये सब बातें अभिमान के ज़ेहन में ताज़ी थीं.

    एक दिन अजय का फ़ोन आया. "अभिमान ! खुशखबरी! अव्यांशी की पहली चिट्ठी आ गई है!" अजय ने उत्साह से बताया.

    अभिमान के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं. वह बेसब्री से उस चिट्ठी का इंतज़ार कर रहा था. उसने तुरंत अजय से चिट्ठी लाने को कहा. जब चिट्ठी उसके हाथ में आई, तो उसने उत्सुकता से लिफाफा खोला.

    अव्यांशी की लिखावट में, उस चिट्ठी में पढ़ाई का ज़िक्र था, द्रोणाचार्य के बारे में लिखा था, और अभिमान के लिए ढेर सारा मोटिवेशन और शुभकामनाएँ थीं. उस चिट्ठी ने अभिमान को भी और मेहनत से पढ़ने के लिए प्रेरित किया. चिट्ठी के साथ अव्यांशी का दिया हुआ वो रुमाल भी था, जिस पर 'ऑल द बेस्ट' लिखा था. उस रुमाल को देखकर अभिमान के चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान आ गई. यह सिर्फ एक रुमाल नहीं था, यह अव्यांशी की दोस्ती, उसका विश्वास और उसका प्यार था, जो अभिमान को हर पल अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा था।

  • 10. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 10

    Words: 1500

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब आगे देखिये कहानी मे🗣️👇

    अव्यांशी के लिए एक बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई थी – उसका 10वीं का ओपन बोर्ड एग्जाम सेंटर लखनऊ में था. यह बात अभिमान को पता चली तो उसने तुरंत एक प्लान बनाया.

    "सुनो, अव्यांशी," अभिमान ने फ़ोन पर कहा, "तुम्हें एक हफ़्ते के लिए अपने कमरे में बंद होने का नाटक करना होगा. कहना कि तुम्हें कोई महामारी हो गई है, ताकि तुम्हारी सौतेली माँ तुम्हें परेशान न करे और तुम बिना किसी शक के घर से निकल सको."

    अव्यांशी थोड़ी हिचकिचाई, लेकिन अभिमान पर उसे पूरा भरोसा था. उसने वैसा ही किया. रात के 10 बजे, जब सब सो रहे थे, अव्यांशी चुपके से अपने कमरे से निकली. बाहर अजय उसका इंतज़ार कर रहा था. अजय उसे स्टेशन तक छोड़ने आया और चलते-चलते उसने अव्यांशी को अपना फ़ोन दिया. "ये लो, अभिमान से बात करते हुए जाना," उसने कहा.

    ट्रेन में बैठते ही अव्यांशी ने अभिमान को फ़ोन लगाया. पूरी रात, लखनऊ तक के सफ़र में, अभिमान फ़ोन पर अव्यांशी का रिवीजन कराता रहा. वह उसे गणित के फ़ॉर्मूले समझाता, विज्ञान के कॉन्सेप्ट क्लियर करता और इतिहास की तारीखें याद कराता. अभिमान की मदद से अव्यांशी ने पूरी परीक्षा दी. हर पेपर से पहले अभिमान उसे फ़ोन पर तैयारी करवाता और उसके डर को कम करता.

    सबसे बड़ी बात यह थी कि अव्यांशी की सौतेली माँ को इस बात का पता भी नहीं चला. अभिमान की सूझबूझ और अजय की मदद से अव्यांशी ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और बिना किसी रुकावट के अपनी परीक्षाएँ सफलतापूर्वक दे पाई।

    अभिमान के जीवन में बदलावों की बयार अभी थमी नहीं थी. 12वीं के प्री-बोर्ड एग्ज़ाम में उसने पूरे स्कूल में सबसे ज़्यादा नंबर लाकर सबको चौंका दिया था. घर में खुशी का माहौल था, माता-पिता, दादा सा और मासा सब फूले नहीं समा रहे थे. अभिमान ने अपनी 12वीं की सभी परीक्षाएँ भी पूरी लगन और मेहनत से दीं, और तो और, उसने सभी स्पोर्ट्स में भी नेशनल लेवल पर पहला स्थान हासिल किया. अब उसे 12वीं के रिजल्ट का इंतज़ार था और हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के एग्जाम की तैयारी ज़ोरो-शोरो पर चल रही थी.

    इसी बीच एक और बड़ी खबर आई जिसने अभिमान की खुशी को और बढ़ा दिया. अव्यांशी ने पूरे दिल्ली राज्य में 10वीं ओपन बोर्ड में टॉप किया था! क्योंकि यह एक अलग यूनिवर्सिटी थी, इसलिए उसकी सौतेली माँ या किसी और को इस बात का पता भी नहीं चला.

    अभिमान ने तुरंत फ़ोन कर अव्यांशी को बधाई दी. "कमाल कर दिया अव्यांशी! मुझे पता था तुम करोगी!" उसकी आवाज़ में गर्व और खुशी दोनों थी.

    अव्यांशी भी बहुत खुश थी, "हाँ अभिमान , ये सब आपकी मदद से ही हो पाया."

    अभिमान ने फिर एक और खुशखबरी दी, "अगले हफ़्ते मैं नाना के गाँव आ रहा हूँ, तुमसे मिलने!"

    यह सुनकर अव्यांशी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. "सच्ची? ये तो बहुत अच्छी बात है!" वह खुशी से चिल्लाई. अभिमान जानता था कि अव्यांशी इतनी खुश क्यों थी, क्योंकि अगले हफ़्ते ही उसका 13वां जन्मदिन था. यह मुलाकात उसके लिए सबसे अच्छा तोहफ़ा होने वाली थी.

    अभिमान ने हॉवर्ड यूनिवर्सिटी का डिटेक्शन एग्ज़ाम दे दिया था. एक बड़ी परीक्षा से निश्चिंत होकर अब वह अपने नाना जी के गाँव पहुँचा. वहाँ उसकी मुलाकात अपने मामा के बेटे अजय से हुई, जो हमेशा उसका साथी रहा था.

    अगले ही दिन, अभिमान अव्यांशी से मिलने गया. आज उसका 13वाँ जन्मदिन था, और अभिमान ने उसके लिए एक ख़ास तोहफ़ा लाया था. उसने अव्यांशी को 12वीं कॉमर्स की किताबें दीं.

    "ये तुम्हारे लिए, अव्यांशी. जन्मदिन मुबारक हो!" अभिमान ने मुस्कुराते हुए कहा.

    अव्यांशी किताबों को देखकर हैरान और खुश थी. "ये...ये किसके लिए?"

    "तुम्हारे लिए ही तो! मैं चाहता हूँ तुम 12वीं भी ओपन से दो," अभिमान ने सलाह दी. "लेकिन अभी नहीं. ये मेरी 11वीं की नोट्स हैं, पहले इन्हें अच्छे से पढ़ो. अगले साल, जब तुम 15 साल की हो जाओगी, तब फॉर्म भरना."

    अभिमान ने उसे लगातार पढ़ते रहने को कहा और अपनी हॉवर्ड की परीक्षा के बारे में बताया. "मैंने अपना एग्ज़ाम दे दिया है. अब बस रिजल्ट का इंतज़ार है."

    अव्यांशी की आँखों में चमक थी. उसे अभिमान पर पूरा भरोसा था. "मुझे पता है अभिमान , आप ज़रूर पास होंगे. आप बहुत मेहनत करते हैं," उसने कहा.

    यह मुलाकात सिर्फ जन्मदिन का जश्न नहीं थी, बल्कि अभिमान और अव्यांशी के सपनों और एक-दूसरे के प्रति अटूट विश्वास का प्रतीक थी. अभिमान उसे भविष्य के लिए तैयार कर रहा था, और अव्यांशी उसके हर कदम पर उसके साथ खड़ी थी.

    अभिमान के फ़ोन पर एक ख़बर आई जिसने पूरे परिवार को खुशी से झूमने पर मजबूर कर दिया. उसने हॉवर्ड यूनिवर्सिटी का एंट्रेंस एग्ज़ाम पास कर लिया था और उसका नाम टॉप 10 में था! परिवार के सभी सदस्यों ने फ़ोन पर ही उसे बधाई दी और तुरंत ही सबने उसे वहाँ आने की सूचना दी.

    अभिमान तुरंत अव्यांशी से मिलने गया. उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी. उसने अव्यांशी को मिठाई खिलाई और खुशी-खुशी ये खुशखबरी बताई. "अव्यांशी, मेरा हॉवर्ड में हो गया है!"

    अव्यांशी की आँखें खुशी से भर आईं. "सच में? ये तो बहुत अच्छी ख़बर है, अभिमान ! मुझे पता था आप कर लेंगे!"

    "हाँ," अभिमान ने कहा, "लेकिन मुझे चार महीने बाद जाना होगा." उसने अव्यांशी से चिट्ठी लिखते रहने को कहा, ताकि वे एक-दूसरे से जुड़े रहें. जाने से पहले उसने अव्यांशी से एक बार फिर मिलने का वादा किया.

    अव्यांशी ने सिर हिलाया, "मैं आपको रोज़ चिट्ठी लिखूँगी. और आप भी ख़ुद का ध्यान रखना."

    यह खबर सिर्फ अभिमान की सफलता नहीं थी, बल्कि अव्यांशी के लिए भी प्रेरणा थी. अभिमान का हॉवर्ड जाना उन दोनों के सपनों को और भी ऊंची उड़ान देने वाला था.

    अभिमान का परिवार गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने गाँव आया हुआ था. अभिमान अपने घर पर परिवार के साथ था, हॉवर्ड की ख़बर के बाद से घर में उत्सव का माहौल था. इसी बीच, उसकी मासा गाँव घूमने निकली थीं. घूमते-घूमते उनकी नज़र एक लड़की पर पड़ी, जो लगन से अपनी किताबों में डूबी हुई थी. वो और कोई नहीं, अव्यांशी थी.

    अव्यांशी के पास जाकर मासा ने उससे बातचीत की. अव्यांशी ने बड़ी मासूमियत से अपनी पढ़ाई और आगे की योजनाओं के बारे में बताया. मासा उसकी काबिलियत और दृढ़ निश्चय से बेहद प्रभावित हुईं. . उन्हें यह भी नहीं पता था कि अव्यांशी अभिमान को जानती है. , क्योंकि वे तो बस गाँव घूमने निकली थीं जब उन्हें अव्यांशी मिली थी.

    अभिमान की मासा ने अव्यांशी की बहुत परवाह की. उन्होंने उसे प्यार से समझाया और उसकी हौसलाअफजाई की. अव्यांशी को मासा की बातें सुनकर बहुत अपनापन महसूस हुआ. उसकी आँखों में आँसू आ गए और उसने भावनाओं में बहकर मासा को "रानी माँ" कहकर पुकारा. यह पल उन दोनों के लिए बहुत ही भावुक था. मासा को अव्यांशी में एक अलग ही spark दिखा और उन्हें यह देखकर बहुत खुशी हुई कि इतनी नेक और प्रतिभाशाली लड़की है.

    हॉवर्ड यूनिवर्सिटी जाने से पहले, अभिमान आखिरी बार अव्यांशी से मिलने आया. अजय के फ़ोन से उसने अव्यांशी को फ़ोन करने की बात कही, ताकि वे हमेशा जुड़े रहें. "अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना और अपनी सेहत का भी ख़्याल रखना," अभिमान ने प्यार से समझाया. "मैं चार साल बाद इंडिया आऊँगा."

    अव्यांशी की आँखें नम थीं, लेकिन उसने अभिमान को हिम्मत दी. "आप चिंता मत कीजिए, अभिमान . आप वहाँ खूब मेहनत करना और नाम कमाना. मुझे पता है आप बहुत कुछ हासिल करेंगे."

    अभिमान ने धीरे से अव्यांशी को गले लगा लिया. यह पहला मौका था जब उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया था. दोनों की आँखों से आँसू बह निकले. यह सिर्फ एक विदाई नहीं थी, बल्कि दो दोस्तों के बीच के गहरे बंधन और भविष्य के सपनों का एक भावुक पल था. भारी मन से अव्यांशी ने अभयमान को विदा किया.

    फिर अभिमान हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के लिए रवाना हुआ. अपने परिवार से उसने आशीर्वाद लिया और विदा ली. पापा और चाचा उसे एयरपोर्ट छोड़ने आए थे. चाची सा और मासा की आँखें नम थीं, वे अपने बेटे जैसे अभिमान को जाते देख भावुक हो रही थीं. दादा सा और दादी सा ने उसे ढेर सारी शुभकामनाएँ दीं. अभिमान ने अव्यांशी के दिए हुए सारे तोहफ़े, ख़ासकर वो सिली हुई कमीज़ और रुमाल, अपने साथ रखे. ये तोहफ़े उसे अव्यांशी की दोस्ती और प्रेरणा की याद दिलाते रहेंगे, और ये उसकी नई यात्रा में उसके साथी बने रहेंगे.!


    ख़्वाबों का बोझ लिए, अपनों से दूर जा रहा हूँ,

    हर मंज़र को आँखों में क़ैद कर, सबसे अलविदा कह रहा हूँ।

    ये हँसी, ये आँसू, ये बचपन की गलियाँ,
    सब पीछे छोड़, एक नए सफ़र पर जा रहा हूँ।

    पर हर राह, हर मंज़िल, बस तेरी ही याद दिलाए,
    ये कैसी प्रीत, पिया तुमसे, जो मुझसे दूर ना जाए।

    अब आपको मैं आव्यांशि का संघर्ष , समर्पण और दृढ़संकल्प भरी यात्रा में सामिल करने वालि हुं।

    यह कहानी मेरी पहली बार लिखने कि कोशिश है
    आपको कहानी कैसा लग रहा है?आपको हमारे अभिमान का किरदार कैसा लगता है? शायरी कैसा है? कमेंट करना! मुझे फालो कर, रैटिंग और अपना अमूल्य सुझाव देकर मुझे सहयोग करें ।

    धन्यवाद ♥️
    आपकि मासूम लेखिका 🌸

  • 11. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 11

    Words: 1593

    Estimated Reading Time: 10 min

    अभिमान के विदेश जाने के बाद ।

    अव्यांशी के लिए साल में दो दिन सबसे ख़ास होते थे - उसका जन्मदिन और उसके परीक्षा का परिणाम। ये वो दिन थे जब उसे अभिमान से बात करने का मौका मिलता था। अभिमान के पास भी उसे फोन करने का कोई और रास्ता नहीं था, सिवाय अपने चचेरे भाई अजय के फोन के।

    आज अव्यांशी का जन्मदिन था। वह 14 साल की हो चुकी थी, लेकिन 14 साल की उम्र के हिसाब से वह बहुत ज़्यादा परिपक्व (mature) थी। उसने अपने बचपन के दुख और तजुर्बे से बहुत कुछ सीखा था। वह अब सिर्फ एक लड़की नहीं, बल्कि एक समझदार और मजबूत लड़की बन चुकी थी। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट कम थी, पर उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।

    अव्यांशी पानी भरने गयी तब जब अजय अपना फोन उसको दिया ।

    अजय: "अव्यांशी, अभिमान है फोन पर। जल्दी बात कर लो।"

    अव्यांशी ने घबराकर फोन लिया। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।

    अव्यांशी: "हाँ, हेलो।"

    अभिमान: "जन्मदिन मुबारक हो, अव्यांशी!"

    अभिमान की आवाज़ सुनकर अव्यांशी की आँखों में आँसू आ गए। वह आवाज़ सुनकर रोने लगी।

    अभिमान: "अरे! तुम रो क्यों रही हो? खुश हो जाओ, आज तुम्हारा जन्मदिन है।"

    अव्यांशी: "मैं बस खुश हूँ, अभिमान। तुम्हारी आवाज़ सुनकर बहुत अच्छा लगा।"

    अभिमान: "तुम्हें पता है ना, तुम अब 14 साल की हो गई हो। इसका मतलब है कि तुम अब और भी ज़्यादा मजबूत हो गई हो। तुम्हें और ज़्यादा मेहनत करनी है।"

    अव्यांशी: "हाँ, मुझे पता है। और अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देती हूँ।"

    अभिमान: "बहुत अच्छी बात है। तुम्हें एक बात याद रखनी है कि तुम अकेली नहीं हो। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।"

    अव्यांशी: "मुझे पता है। तुम ही मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो।"

    अभिमान: "और तुम्हें यह भी याद रखना है कि तुम बहुत ज़्यादा होशियार हो। तुम जो भी करना चाहो, वो कर सकती हो। कभी हार मत मानना।"

    अव्यांशी: "हाँ, मैं कभी हार नहीं मानूँगी।"

    अभिमान: "बहुत अच्छा। अब मैं चलता हूँ। अपना ख्याल रखना। हम जल्द ही मिलेंगे।"

    अभिमान ने फोन रख दिया। अव्यांशी ने फोन अजय को वापस दिया और अपने कमरे में चली गई। उसके दिल में एक नई उम्मीद और हिम्मत की रोशनी जगी थी। उसे पता था कि अभिमान उसके साथ है और वह अकेले नहीं है।

    यह सीन उस 14 साल की अव्यांशी की कहानी है जो अपने बचपन की समस्याओं से जूझ रही है, लेकिन फिर भी अपनी उम्मीद को ज़िंदा रखे हुए है।

    अव्यांशी रसोई में थी, रात के खाने की तैयारी कर रही थी। तभी दरवाज़े पर घंटी बजी और उसकी सौतेली बहन, प्रिया, अपने बॉयफ्रेंड, आकाश, के साथ घर में दाखिल हुई। प्रिया ने 11वीं कक्षा के फैशन वाले कपड़े पहने हुए थे और आकाश भी स्टाइलिश दिख रहा था।

    प्रिया: "माँ, देखो मैं किससे मिली। यह आकाश है, मेरा बॉयफ्रेंड।"

    सौतेली माँ: "वाह! कितना अच्छा लड़का है। अंदर आओ बेटा, बैठो।"

    आकाश ने सोफे पर बैठते हुए घर को देखा। उसकी नज़र रसोई से निकलकर आ रही अव्यांशी पर पड़ी, जो साड़ी पहने हुए थी।

    आकाश: "यह कौन है, प्रिया?"

    प्रिया ने अव्यांशी की ओर तिरस्कार से देखते हुए कहा:

    प्रिया: "यह? यह तो बस घर की नौकरानी है। हमारी माँ ने इसे बचपन से पाला है, पर यह किसी काम की नहीं। अनपढ़, गँवार... और हाँ, अनाथ भी।"

    अव्यांशी के कानों में ये शब्द तीर की तरह लगे। उसकी आँखों में नमी आ गई, पर उसने कुछ नहीं कहा। उसकी सौतेली माँ, प्रिया की बात सुनकर हँसने लगी। अव्यांशी के पिता भी वहीं बैठे थे, उन्होंने भी कुछ नहीं कहा। उन्होंने अपनी नज़रें झुका ली, जैसे उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।

    प्रिया अपनी बात जारी रखते हुए बोली:

    प्रिया: "और तुम देख ही सकते हो, इसे कपड़े पहनने का भी सलीका नहीं। ऐसी ही रहती है, बेढंगी।"

    अव्यांशी ने चुपचाप सुना, उसका दिल रो रहा था। उसे लगा जैसे उसकी दुनिया ही उजड़ गई हो। उसे याद आया कि कैसे उसकी माँ ने उसे हमेशा राजकुमारी की तरह पाला था, पर आज उसे एक नौकरानी कहा जा रहा था।

    जब प्रिया और आकाश अपने कमरे में चले गए, तो अव्यांशी अपने कमरे में गई। उसकी आँखों में आँसू थे। उसने अपना पुराना डायरी बॉक्स निकाला, जिसमें उसकी माँ की तस्वीर और कुछ पुरानी यादें थीं।

    उसने एक नई डायरी निकाली और पहला पन्ना खोला। उसने पेन उठाया और लिखना शुरू किया। उसने यह डायरी अपने सबसे अच्छे दोस्त, अभिमान, को समर्पित करने का फैसला किया, जो हॉवर्ड में पढ़ने गया था।

    डायरी:

    "प्रिय अभिमान,

    आज फिर से मेरी बेइज्जती हुई। प्रिया ने मुझे नौकरानी, अनपढ़ और अनाथ कहा। माँ और पापा ने कुछ नहीं कहा। मुझे बहुत बुरा लगा। मुझे अपनी माँ की याद आ गई, जो हमेशा मुझसे प्यार करती थी। मुझे लगा जैसे मैं सच में अनाथ हूँ। लेकिन फिर मुझे तुम्हारी याद आई। तुम ही हो जो मुझे समझते हो। तुम ही हो जो मुझे हिम्मत देते हो। मैंने यह डायरी तुम्हें समर्पित की है। मैं इसमें अपनी रोज़ की ज़िंदगी, अपनी भावनाएँ और अपने सपने लिखूँगी। मुझे पता है कि तुम मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ोगे।

    तुम्हारी दोस्त,

    अव्यांशी"

    यह लिखते ही उसके दिल का दर्द कुछ कम हुआ। उसे लगा जैसे अभिमान उसके पास ही बैठा है और उसे हिम्मत दे रहा है। उसने तय किया कि वह अब रोज़ डायरी लिखेगी और अपनी भावनाएँ उसमें व्यक्त करेगी।

    अव्यांशी के कमरे में एक पुरानी लकड़ी की मेज थी, जिस पर उसकी माँ की तस्वीर रखी थी। रात के खाने के बाद, जब सब सो जाते थे, अव्यांशी चुपके से अपनी डायरी निकालती थी। यह उसकी दुनिया थी, एक ऐसी जगह जहाँ वह अपनी भावनाएँ बिना किसी डर के लिख सकती थी। उसने यह डायरी अभिमान के लिए लिखी थी। उसका सपना था कि जब वह हॉवर्ड से वापस आएगा, तो वह उसे यह डायरी उपहार में देगी।

    डायरी का पन्ना:

    "प्रिय अभिमान,

    आज फिर से मैं तुम्हें याद कर रही हूँ। तुम्हें पता है, माँ आज बहुत गुस्से में थीं। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं एक बेवकूफ हूँ, जो सिर्फ खाना बनाना और घर का काम करना जानती हूँ। जब मैंने उन्हें बताया कि मुझे सिलाई करना पसंद है, तो उन्होंने मेरे हाथ से सुई छीन ली और मुझे बहुत डाँटा।

    लेकिन तुम जानते हो, अभिमान, मैं हार नहीं मानूँगी। मैंने आज रात फिर से चुपके से तुम्हारी किताबों से थोड़ी सी अंग्रेजी पढ़ी। मुझे पढ़ना बहुत पसंद है, पर मैं तुम्हें यह बता नहीं सकती। मुझे डर लगता है कि माँ फिर से मुझे डाँटेंगी।

    माँ मुझे रात में सोने के लिए बहुत परेशान करती हैं, पर मैं चुपके से रात में जागकर तुम्हारी किताबें पढ़ती हूँ। मुझे पता है कि तुम मुझे चाहते हो कि मैं पढ़ूँ।

    मैं रोज़ सिलाई भी करती हूँ, जब कोई नहीं देखता। मैंने तुम्हारे लिए एक शर्ट बनाई है, जब तुम वापस आओगे, तो मैं तुम्हें वह उपहार में दूँगी।

    मैं तुम्हारे आने का इंतज़ार कर रही हूँ।

    तुम्हारी दोस्त,

    अव्यांशी"

    यह लिखते ही अव्यांशी की आँखों में आँसू आ गए। उसे लगा जैसे अभिमान उसके पास ही बैठा है और उसे हिम्मत दे रहा है। उसने डायरी बंद की और उसे अपनी मेज के नीचे छिपा दिया। उसे पता था कि जब तक यह डायरी उसके पास है, वह अकेला महसूस नहीं करेगी।

    Next day

    अव्यांशी अपने कमरे में थी, खिड़की से बाहर देख रही थी। चाँदनी रात थी और हवा में हल्की ठंडक थी। उसके कानों में अचानक उसके पिता और सौतेली माँ की आवाज़ पड़ी।

    सौतेली माँ: "अब कितना इंतज़ार करें? जैसे ही वो 18 की होगी, हम उसका हाथ पीले कर देंगे।"

    पिता: "पर इतना बूढ़ा आदमी? लोग क्या कहेंगे?"

    सौतेली माँ: "लोग क्या कहेंगे? लोग तो वैसे भी हमारी ज़िंदगी नहीं चला रहे हैं। वैसे भी, वो 80 साल का है, कुछ ही सालों में मर जाएगा। और हमें उसकी सारी जायदाद मिल जाएगी। फिर हम अपनी ज़िंदगी आराम से जिएंगे।"

    पिता: "लेकिन, अव्यांशी... वो तो..."

    सौतेली माँ: "वो क्या? वो तो बस एक बोझ है, जो हमने इतने सालों से पाला है। अब उसे हटाने का समय आ गया है। वैसे भी, वो हमें कभी पसंद नहीं करती। और हम भी उसे कहाँ पसंद करते हैं।"

    अव्यांशी के हाथ से उसकी माँ की तस्वीर गिर गई। आवाज़ सुनकर वो जल्दी से अपने कमरे की अलमारी के पीछे छिप गई। उसकी आँखों में आँसू थे। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसके माता-पिता उसे इस तरह की नफरत भरी नजर से देखते हैं।

    उसे अपनी माँ की याद आ गई। जब उसकी माँ जीवित थी, तो वह हमेशा उसे प्यार करती थी और उसका ख्याल रखती थी। लेकिन उसकी माँ के जाने के बाद, उसके पिता ने एक और शादी कर ली और उसकी सौतेली माँ ने उसे कभी अपना नहीं माना।

    अव्यांशी ने अपनी माँ की तस्वीर उठाई और उसे गले लगा लिया। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। वह चाहती थी कि उसकी माँ वापस आ जाए और उसे इस दर्दनाक दुनिया से बचा ले।

    उसने खुद से वादा किया कि वह किसी भी हाल में इस शादी से बचकर निकलेगी। वह चुपके से कमरे से बाहर निकली और अपनी माँ की तस्वीर लेकर अपने कमरे में चली गई।

    जब वह अपने कमरे में पहुँची, तो उसने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया और अपनी माँ की तस्वीर के सामने बैठ गई।

    अव्यांशी: "माँ, तुम कहाँ हो? मुझे तुम्हारी बहुत ज़रूरत है। मुझे बचा लो... इस शादी से, इस घर से... मुझे यहाँ से ले जाओ।"

    वह रोती रही, जब तक कि वह थककर सो नहीं गई। लेकिन उसके दिमाग में बस यही बात घूम रही थी कि कैसे वह अपने आप को इस शादी से बचाएगी।

  • 12. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 12

    Words: 1591

    Estimated Reading Time: 10 min

    अव्यांशी के कमरे में सब शांत था। रात का खाना खाने के बाद सब सो चुके थे। आज की रात अव्यांशी के लिए बाकी रातों से अलग थी। उसका दिल बहुत भारी था और दिमाग में एक तूफ़ान चल रहा था।

    उसने धीरे से अपनी डायरी निकाली, जो वह अभिमान के लिए लिख रही थी। आँखों में आँसू थे, पर उसने तय किया कि आज वह सब कुछ लिखेगी।

    डायरी का पन्ना:

    "प्रिय अभिमान,

    आज रात... आज रात मैंने कुछ ऐसा सुना, जो मैं कभी भूल नहीं सकती। मैंने पापा और माँ को मेरी शादी के बारे में बात करते हुए सुना। लेकिन यह कोई आम शादी नहीं थी।

    उन्होंने कहा कि जैसे ही मैं 18 साल की हो जाऊँगी, वे मेरी शादी एक 80 साल के आदमी से कर देंगे। उस आदमी की बहुत सारी जायदाद है। उन्होंने कहा कि वह बूढ़ा आदमी जल्द ही मर जाएगा, और फिर उन्हें उसकी सारी जायदाद मिल जाएगी।

    अभिमान, तुम सोच भी नहीं सकते कि मुझे कैसा महसूस हुआ। मैं रोती रही। मुझे लगा जैसे मैं कोई इंसान नहीं, बल्कि एक चीज़ हूँ, जिसे वे बेच रहे हैं।

    मुझे अपनी माँ की बहुत याद आ रही है। अगर वह यहाँ होती, तो वह मुझे बचा लेती। मुझे अब कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूँ। मैं बहुत डर गई हूँ। मुझे लगता है कि मैं अब और नहीं सह सकती।

    मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है। मुझे तुम्हारे साथ बात करनी है। मुझे पता है कि तुम मुझे कोई रास्ता दिखा सकते हो।

    कल मैं तुम से बात करने की कोशिश करूँगी।

    तुम्हारी डरी हुई दोस्त,

    अव्यांशी"

    यह लिखते ही अव्यांशी की आँखों से आँसू बहने लगे और वह सो गई। उसे सपने में भी वह बूढ़ा आदमी दिख रहा था और वह डरकर उठ गई।

    अव्यांशी ने अपनी माँ और पापा के कमरे का दरवाज़ा धीरे से बंद किया। वह जानती थी कि सब सो चुके हैं। उसने बोतल उठाई और धीरे से रसोई की ओर चली गई। उसने रसोई से पानी नहीं लिया, बल्कि बाहर चली गई। वह जानती थी कि उसे अब कुछ करना होगा।

    उसने जल्दी से सड़क पार की और अजय के घर की ओर चल दी। अजय का घर उनके घर से ज़्यादा दूर नहीं था। जब वह दरवाज़े पर पहुँची, तो उसने धीरे से घंटी बजाई।

    अजय ने दरवाज़ा खोला और अव्यांशी को देखकर हैरान रह गया। अव्यांशी ने कभी अजय के घर अकेले नहीं आई थी, और वह भी इतनी रात में।

    अजय: "अव्यांशी? तुम यहाँ इतनी रात में? सब ठीक तो है?"

    अव्यांशी की आँखों में आँसू थे और वह कुछ नहीं बोल पाई। उसने अजय को अंदर खींच लिया और दरवाज़ा बंद कर दिया।

    अव्यांशी: "अजय, मुझे अभिमान से बात करनी है।"

    अजय को पता था कि अव्यांशी इतनी परेशान क्यों थी। उसने कहा:

    अजय: "हाँ, पर इतनी रात में..."

    अव्यांशी: "हाँ, मुझे अभी बात करनी है। प्लीज़, अभिमान को फोन लगाओ।"

    अजय ने सोचा कि अव्यांशी बहुत परेशान है, इसलिए उसने बिना कोई सवाल किए फोन निकाला और अभिमान का नंबर मिला दिया।

    अभिमान ने फोन उठाया और पूछा:

    अभिमान: "अजय, क्या हुआ? इतनी रात में फोन क्यों किया?"

    अजय ने अव्यांशी की ओर देखा और कहा:

    अजय: "अभिमान, अव्यांशी तुमसे बात करना चाहती है।"

    अभिमान हैरान हो गया। उसे पता था कि अव्यांशी का जन्मदिन या परीक्षा का परिणाम नहीं है, तो वह क्यों बात करना चाहती है।

    अभिमान: "अव्यांशी? क्या हुआ? सब ठीक है ना?"

    अव्यांशी ने अजय से फोन लिया और रोते हुए कहा:

    अव्यांशी: "अभिमान... मैं बहुत मुश्किल में हूँ। मुझे तुम्हारी ज़रूरत है।"

    अभिमान ने अव्यांशी की आवाज़ में दर्द महसूस किया और उससे पूछा कि क्या हुआ।

    यह सीन उस पल का है, जब अव्यांशी अपनी समस्याओं से लड़कर अपनी आवाज़ उठाती है और अपने सबसे अच्छे दोस्त से मदद माँगती है।

    अभिमान ने अव्यांशी की आवाज़ में छिपी घबराहट और डर को तुरंत भांप लिया था। उसने शांत स्वर में कहा, "अव्यांशी, मैं सब सुन रहा हूँ। तुम घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ।"

    अव्यांशी रोते हुए बोली, "अभिमान, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। वे लोग मेरी शादी एक 80 साल के बूढ़े से करवा रहे हैं। मैं क्या करूँ?"

    अभिमान ने उसे शांत करते हुए कहा, "अव्यांशी, अभी तुम सिर्फ 15 साल की हो। कुछ महीनों में तुम 16 की हो जाओगी। हमारे पास अभी बहुत समय है।"

    "लेकिन वे लोग...!" अव्यांशी ने अपनी बात पूरी नहीं की, क्योंकि उसे अभिमान की आवाज़ से हिम्मत मिल रही थी।

    अभिमान ने कहा, "अभी मैं क्लास में हूँ और मेरा एग्जाम है। मैं तुम्हें सब बताऊंगा, लेकिन बाद में। अभी तुम शांत रहो।"

    फिर अभिमान ने एक गहरी साँस ली और कहा, "अव्यांशी, मैं तुम्हारे लिए एक लैपटॉप और एक फोन भेज रहा हूँ। वह परसों तक तुम्हारे पास पहुँच जाएगा। उसमें मेरा नंबर पहले से ही होगा। तुम बस अजय से अभी उसके फोन से कॉल करना सीख लो, ताकि जब तुम्हें अपना फोन मिले, तो तुम मुझे आसानी से कॉल कर सको।"

    अभिमान ने उसे समझाया, "जब तुम्हें लैपटॉप और फोन मिल जाए, तो उसे छुपाकर रखना। किसी को भी उसके बारे में पता नहीं चलना चाहिए।"

    अभिमान ने समय का ध्यान रखते हुए कहा, "अब तुम घर जाओ, बहुत देर हो गई है। वरना तुम्हारी सौतेली माँ को शक हो जाएगा। अपना ख्याल रखना।"

    अव्यांशी ने कहा, "ठीक है, अभिमान। मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगी।"

    अभिमान ने फोन काट दिया और अव्यांशी ने अजय को फोन वापस दिया। अजय ने उसे समझाया, "तुम घबराओ मत, अभिमान हमेशा तुम्हारे साथ है।" अव्यांशी ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, मुझे पता है।"

    वह घर लौट आई, लेकिन इस बार उसके दिल में एक नई उम्मीद की किरण थी। उसे पता था कि वह अब अकेली नहीं है।

    एक हफ्ते बाद, 🤝

    रात के 10:30 बजे थे। घर में पूरी तरह से सन्नाटा पसरा हुआ था। सब लोग सो चुके थे। अव्यांशी ने धीरे से अपने बिस्तर के नीचे से वह डिब्बा निकाला, जो अभिमान ने भेजा था। उस डिब्बे में एक लैपटॉप और एक नया स्मार्टफोन था। उसके दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं।

    उसने पहले फोन खोला। स्क्रीन पर अभिमान की तस्वीर लगी हुई थी और उसका नंबर पहले से ही सेव था। अव्यांशी ने तुरंत अभिमान को कॉल किया।

    अभिमान: "हेलो? अव्यांशी, क्या तुम हो?"

    अव्यांशी: "हाँ, अभिमान। मैंने फोन खोल लिया है। मुझे बहुत खुशी हो रही है।"

    अभिमान: "मुझे पता था कि तुम खुश होगी। अच्छा, सुनो। मैंने तुम्हारे लिए लंदन यूनिवर्सिटी की स्कॉलरशिप और एंट्रेंस एग्जाम का फॉर्म भेजा है। तुम अभी सिर्फ 15 की हो, लेकिन तुम्हें अभी से इसकी तैयारी शुरू करनी होगी।"

    अव्यांशी हैरान रह गई। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वह इतनी दूर तक पहुँच सकती है।

    अभिमान: "तुम्हें लगता है कि तुम यह कर सकती हो?"

    अव्यांशी: "हाँ, मैं कोशिश करूँगी।"

    अभिमान: "सिर्फ कोशिश नहीं, तुम्हें यह करना ही है। यह तुम्हारी ज़िंदगी का सवाल है।"

    फिर अभिमान ने उसे समझाया कि कैसे उसे लैपटॉप और फोन चलाना सीखना है।

    अभिमान: "तुम्हें अभी लैपटॉप चलाना सीखना है। तुम YouTube से वीडियो देखकर सीख सकती हो। मैं तुम्हारे लिए कुछ वीडियो के लिंक भी भेजूँगा। और हाँ, तुम्हें अपना फोन भी चलाना सीखना है।"

    अव्यांशी ने उसकी बात ध्यान से सुनी। उसे लगा जैसे अभिमान उसके पास ही बैठा है और उसे सब कुछ सिखा रहा है।

    अभिमान: "अच्छा, अब मैं फोन रखता हूँ। कल से हम रोज़ बात कर पाएँगे। अपना ख्याल रखना।"

    अभिमान ने फोन रख दिया। अव्यांशी के चेहरे पर एक बड़ी-सी मुस्कान थी। उसे लगा जैसे उसकी ज़िंदगी में एक नया सूरज निकला हो। वह रात भर सो नहीं पाई, बस यही सोचती रही कि कैसे वह अपनी ज़िंदगी बदल देगी।

    अगले दिन, अव्यांशी ने सुबह से ही अपनी आँखों में एक नई चमक महसूस की। वह अपने दैनिक कामों में लगी हुई थी, लेकिन उसके दिमाग में बस लैपटॉप और फ़ोन ही घूम रहे थे। उसने अपने कमरे के कोने में, कपड़ों के ढेर के नीचे, दोनों चीज़ों को बहुत ही सावधानी से छुपाकर रखा था।

    रात के खाने के बाद, जब घर में सब सो गए, तो उसने एक बार फिर धीरे से डिब्बा निकाला। उसने सबसे पहले फ़ोन खोला और यूट्यूब पर "लैपटॉप कैसे चलाएं" सर्च किया। वीडियो देखते हुए वह बहुत कुछ सीख गई - कैसे माउस पकड़ना है, कैसे टाइप करना है और कैसे इंटरनेट पर सर्च करना है। यह उसके लिए एक पूरी नई दुनिया थी।

    अगले कुछ दिन अव्यांशी ने इसी तरह चुपके से लैपटॉप चलाना सीखा। वह अपनी सौतेली माँ से बचने के लिए, रात में जब सब सो जाते थे, तभी काम करती थी। उसकी नींद कम हो गई थी, लेकिन उसके अंदर पढ़ने की एक गहरी चाहत थी। उसने अभिमान द्वारा भेजे गए स्कॉलरशिप फॉर्म और एग्जाम के बारे में भी सर्च किया और उससे जुड़ी जानकारी इकट्ठा की।




    इन दोनों को सोचकर एक शायरी दिमाग में आता है ।कि

    कोई उम्मीद होता है तो जीना.........., जी...ना ...लगता है,
    तुम वो आस मेरी हो जिसके लिए जीना अच्छा लगता है।
    ये दुनिया रंगीन लगती है जब तुम साथ होते हो,
    तुम्हारे बिना हर पल, निरस और अधूरा लगता है।
    तुम्हारे साथ हर ख्वाब मुकम्मल सा हि लगता है,
    बिन तुम्हारे हर लम्हा बस इम्तिहान लगता है।
    ये दिल की धड़कनें भी तुम्हारी ही बातें करती हैं,
    तुम्हारी आवाज़ में ही ज़िंदगी का संगीत बजता है।
    तुम्हारे आने से ही गुलशन में बहार आती है,
    तुम्हारे चले जाने से हर फूल मुरझाया सा लगता है।
    तुम्हारी यादों के सहारे ही तो ये रात कटती है,
    वरना हर पल एक सदियों का सफ़र लगता है।

    कमेंट और रैंटिग ,और मुझे फालो करना न भूलना ।
    धन्यवाद ♥️

  • 13. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 13

    Words: 1506

    Estimated Reading Time: 10 min

    एक रात, जब उसने अपनी पढ़ाई ख़त्म की, तो उसने अभिमान को कॉल किया।

    अभिमान: "हेलो? कैसी हो अव्यांशी?"

    अव्यांशी: "मैं ठीक हूँ, अभिमान। मैंने लैपटॉप चलाना सीख लिया है और स्कॉलरशिप के बारे में भी बहुत कुछ पढ़ा है।"

    अभिमान: "बहुत बढ़िया! मुझे तुम पर गर्व है। अब तुम्हें हर दिन कम से कम दो घंटे पढ़ाई करनी है। मैं तुम्हारे लिए कुछ स्टडी मटेरियल और किताबें भी भेजूँगा।"

    अव्यांशी: "ठीक है, अभिमान। लेकिन अगर माँ को पता चल गया तो...?"

    अभिमान: "तुम्हें बस सावधान रहना है। अपनी डायरी में सब लिखते रहना और अगर तुम्हें कोई भी दिक्कत हो, तो मुझे बताना।"

    अव्यांशी को लगा कि अब वह अकेली नहीं है। उसके पास एक दोस्त था, जो उसके साथ था, भले ही वह उससे हज़ारों मील दूर था।

    वह अब अपनी पढ़ाई और सिलाई के काम में और भी ज़्यादा मन लगा रही थी। उसे पता था कि यह उसकी ज़िंदगी बदलने का एक मौक़ा है। अब उसकी डायरी भी पूरी तरह से भरी हुई थी, जिसमें उसकी हर दिन की कहानी, उसकी मेहनत और उसके सपनों का ज़िक्र था।

    मैसेज भेजने के बाद, अव्यांशी के लिए हर पल एक युग जैसा लग रहा था। वह रात भर सो नहीं पाई, और अगले दिन भी वह हर कुछ मिनट में चुपके से अपना फोन चेक करती रही। उसका दिल उम्मीद और डर के बीच झूल रहा था।

    शाम का समय था। अव्यांशी रसोई में काम कर रही थी कि तभी उसके कपड़ों में छिपा हुआ फोन वाइब्रेट हुआ। उसके हाथ काँप उठे। उसने तुरंत फोन निकाला और देखा कि एक नए नंबर से मैसेज आया था।

    मैसेज में लिखा था:

    "अव्यांशी, मैं अभिमान हूँ। मुझे तुम्हारा मैसेज मिला। मैं बहुत खुश हूँ कि तुमने मुझसे संपर्क किया। मुझे पता था कि तुम हार नहीं मानोगी। मुझे तुम पर गर्व है।"

    अव्यांशी की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे। उसकी एक साल की मेहनत और इंतज़ार सफल हो गया था। उसने जल्दी से जवाब दिया, "हाँ, मैं हूँ। मैंने बहुत कोशिश की।"

    कुछ ही पलों बाद एक और मैसेज आया:

    "तुम घबराओ मत। मेरे पास एक प्लान है। तुम एक साल से तैयारी कर रही हो, यह बहुत अच्छी बात है। लंदन यूनिवर्सिटी की एक स्कॉलरशिप है, जिसका एंट्रेंस एग्ज़ाम ऑनलाइन होगा। मैं तुम्हें कल सारी जानकारी भेजूँगा। तुम्हें बस उस एग्ज़ाम में पास होना है। मैं तुम्हें पास करने के लिए हर संभव मदद करूँगा। क्या तुम तैयार हो?"

    अव्यांशी के चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान आ गई। उसने तुरंत टाइप किया, "हाँ, मैं तैयार हूँ। अभिमान, मुझे पता था कि तुम मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ोगे।"

    यह मैसेज एक उम्मीद की किरण की तरह था। अव्यांशी को पता था कि यह रास्ता आसान नहीं होगा, लेकिन अब वह अकेली नहीं थी। उसके पास एक दोस्त था, जिसने हज़ारों मील दूर से उसकी मदद करने का वादा किया था। अब उसके सपने फिर से जिंदा हो गए थे, और वह उन्हें पूरा करने के लिए पूरी तरह से तैयार थी।ज़रूर, कहानी को आगे बढ़ाते हुए अगला सीन इस प्रकार है:

    अभिमान का मैसेज मिलने के बाद, अव्यांशी की ज़िंदगी में एक नया मकसद आ गया था। अब उसे सिर्फ ज़िंदा रहने के लिए नहीं, बल्कि अपने सपने को पूरा करने के लिए भी लड़ना था। उसने अभिमान के निर्देशों का पालन करना शुरू किया।

    रात में, जब सब सो जाते थे, अव्यांशी अपने फोन पर पढ़ाई करती थी। अभिमान ने उसे लंदन यूनिवर्सिटी की स्कॉलरशिप के लिए ज़रूरी स्टडी मटेरियल, वीडियो लिंक और मॉक टेस्ट के लिए कुछ वेबसाइट भेजी थीं। अव्यांशी रात भर उन वीडियो को देखती, नोट्स बनाती और ऑनलाइन टेस्ट देती। छोटी-सी फोन की स्क्रीन पर पढ़ाई करना मुश्किल था, लेकिन उसके लिए यह एक खज़ाने से कम नहीं था।

    इस बीच, उसकी सौतेली माँ का शक अब भी पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ था। उन्होंने अव्यांशी को और भी ज़्यादा काम सौंप दिए थे, ताकि उसे पढ़ाई का समय ही न मिले। अव्यांशी थककर चूर हो जाती थी, लेकिन वह हार नहीं मानती थी। वह किचन में काम करते हुए भी मन ही मन में फॉर्मूले दोहराती और इंग्लिश के शब्द याद करती।

    एक रात, उसने अभिमान को कॉल किया और अपनी परेशानी बताई।

    अव्यांशी: "अभिमान, मैं थक जाती हूँ। दिन भर काम होता है, और मुझे पढ़ाई के लिए ज़्यादा समय नहीं मिल पाता।"

    अभिमान: "मुझे पता है अव्यांशी, यह आसान नहीं है। पर याद रखना, तुम्हारे पास सिर्फ़ एक ही रास्ता है। तुम्हें इन सभी मुश्किलों को पार करना होगा। यह सब तुम्हारी परीक्षा का हिस्सा है।"

    अभिमान की बातों ने उसे फिर से हिम्मत दी।

    अभिमान: "तुम बस मेहनत करती रहो। मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम पास हो जाओगी।"

    अव्यांशी के पास अब सिर्फ उम्मीद नहीं थी, बल्कि एक ठोस प्लान था, एक दोस्त था और एक सपना था जिसे पूरा करने के लिए वह हर चुनौती का सामना करने को तैयार थी। उसे पता था कि उसकी शादी की तारीख नज़दीक आ रही है, और उसे जल्द ही कुछ करना होगा।

    अव्यांशी के लिए दिन-रात अब एक ही हो गए थे। वह हर पल अपनी पढ़ाई और सिलाई के बीच सामंजस्य बिठा रही थी। तभी एक दिन अभिमान का मैसेज आया, जिसने उसके दिल की धड़कनें तेज़ कर दीं।

    अभिमान: "अव्यांशी, तुम्हारा ऑनलाइन एंट्रेंस एग्ज़ाम अगले हफ्ते है। मैंने तुम्हें सारी जानकारी भेज दी है। अब तुम्हें बस शांत रहकर अपनी परीक्षा देनी है।"

    अव्यांशी को पता था कि यह उसके जीवन का सबसे अहम पल था, लेकिन एक बड़ी समस्या थी। वह घर पर परीक्षा नहीं दे सकती थी। उसे एक शांत जगह, एक कंप्यूटर और अच्छे इंटरनेट कनेक्शन की ज़रूरत थी। उसके पास सिर्फ एक ही इंसान था जिस पर वह भरोसा कर सकती थी - अजय।

    एक रात, अव्यांशी ने अपने कपड़ों के ढेर में छिपा हुआ फोन निकाला और अजय को मैसेज भेजा।

    अव्यांशी: "अजय, मुझे तुमसे मिलना है। बहुत ज़रूरी बात करनी है।"

    अगले दिन, जब अव्यांशी पानी लाने के बहाने घर से निकली, तो वह सीधे अजय के घर गई। अजय उसे देखकर हैरान था, "क्या हुआ, अव्यांशी? अभिमान का फोन आया था?"

    अव्यांशी ने हिम्मत बटोरते हुए अपनी पूरी कहानी अजय को बताई। उसने बताया कि कैसे उसकी शादी तय हो गई है, कैसे उसने चुपके से पढ़ाई की है, और कैसे अब उसे ऑनलाइन एग्ज़ाम देना है।

    अजय ने उसकी पूरी कहानी सुनी और हैरान रह गया। वह तुरंत बोला, "मैं तुम्हारे साथ हूँ, अव्यांशी। तुम मेरे घर पर एग्ज़ाम दे सकती हो। मेरा कंप्यूटर और मेरा कमरा तुम्हारी मदद कर सकता है।"

    अव्यांशी ने अजय को धन्यवाद देते हुए कहा, "तुम्हें पता है ना, अगर किसी को पता चला तो...!"

    अजय ने मुस्कुराते हुए कहा, "चिंता मत करो, मैं तुम्हारा भाई हूँ, और मैं तुम्हारी मदद करूँगा।"

    अजय की मदद से अव्यांशी को एक उम्मीद मिली। अब उसके पास एक योजना थी, एक साथी था, और सबसे बड़ी बात, उसके पास एक मौका था। अब उसे बस अपनी पूरी मेहनत और साहस से उस मौके को जीतना था।

    ज़रूर, कहानी को आगे बढ़ाते हुए अगला सीन इस प्रकार है:

    परीक्षा का अंतिम क्षण

    आखिरकार वह दिन आ ही गया। अव्यांशी ने अपनी सौतेली माँ से कहा कि उसे कुछ ज़रूरी सामान खरीदने के लिए बाज़ार जाना है। उसकी सौतेली माँ ने उसे जाने दिया, क्योंकि उन्हें अब उस पर ज़्यादा शक नहीं था। अव्यांशी सीधे अजय के घर पहुँची।

    अजय ने उसके लिए अपना कमरा तैयार रखा था। कंप्यूटर ऑन था और एक शांत माहौल था।

    अजय: "तुम्हें घबराने की ज़रूरत नहीं है। सब ठीक होगा।"

    अव्यांशी ने धीरे से कहा, "हाँ, मुझे पता है।"

    वह कंप्यूटर के सामने बैठी और लॉग इन किया। स्क्रीन पर टाइमर शुरू हो चुका था। पहला प्रश्न देखते ही उसका दिल बैठ गया। सवाल बहुत मुश्किल थे, और उसे लगा कि वह यह नहीं कर पाएगी। उसकी आँखों के सामने पिछले एक साल की मेहनत घूम गई – रात भर जागना, छोटे से फोन पर पढ़ाई करना, और अपनी सिलाई से पैसे कमाना।

    अव्यांशी ने अपनी आँखें बंद कीं और अभिमान की आवाज़ याद की, "तुम कर सकती हो।" उसने अपनी माँ का चेहरा भी याद किया, और खुद से कहा कि वह अपनी बेटी को इस तरह से हारते हुए नहीं देखना चाहेंगी।

    उसने गहरी साँस ली और सवालों को हल करना शुरू किया। समय तेजी से बीत रहा था। हर सवाल के साथ उसकी हिम्मत बढ़ती गई। एक घंटे बाद, जब सिर्फ पाँच मिनट बचे थे, तो वह आख़िरी सवाल पर पहुँची। यह सबसे मुश्किल था। उसने अपनी पूरी ऊर्जा लगाई और उस सवाल का जवाब दिया।

    घड़ी की टिक-टिक के साथ, उसने सबमिट बटन पर क्लिक किया। टाइमर ख़त्म हो चुका था। अव्यांशी ने अपनी आँखों को बंद कर लिया और राहत की साँस ली। वह थक चुकी थी, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सी खुशी थी।

    अजय: "कैसा रहा?"

    अव्यांशी: "पता नहीं, पर मैंने अपनी पूरी कोशिश की।"

    उसने तुरंत अपना फोन निकाला और अभिमान को एक मैसेज भेजा:

    "मैंने परीक्षा दे दी है।"

    यह मैसेज उसकी मेहनत और उसकी उम्मीदों का एक प्रतीक था। अब उसे बस इंतज़ार था, एक ऐसे परिणाम का जो उसकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल सकता था।

  • 14. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 14

    Words: 1194

    Estimated Reading Time: 8 min

    परीक्षा दिए हुए कई हफ़्ते बीत चुके थे। अव्यांशी अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में वापस लौट आई थी, लेकिन उसका हर पल बेचैनी और इंतज़ार में कट रहा था। वह हर रात फोन चेक करती, उम्मीद में कि अभिमान का कोई मैसेज आया होगा। उसकी सौतेली माँ को अब उस पर ज़्यादा शक नहीं था, पर अव्यांशी के दिल में एक अजीब सा डर हमेशा बना रहता था।

    एक रात, जब वह सोने की तैयारी कर रही थी, उसके फोन पर एक मैसेज आया। उसका दिल ज़ोर से धड़का। मैसेज अभिमान का था।

    अभिमान: "अव्यांशी, क्या तुम जाग रही हो?"

    अव्यांशी ने जल्दी से जवाब दिया, "हाँ, अभिमान।"

    कुछ ही देर में अभिमान का फोन आया।

    अभिमान: "अव्यांशी... मुझे पता है कि तुम बहुत डरी हुई हो... पर सुनो... तुमने कर दिखाया!"

    अव्यांशी को कुछ समझ नहीं आया। "क्या?"

    अभिमान: "तुमने परीक्षा पास कर ली है! और तुम्हें स्कॉलरशिप भी मिल गई है! तुम लंदन जा रही हो!"

    अभिमान के शब्द सुनकर अव्यांशी की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे। वह एक साल से जिस पल का इंतज़ार कर रही थी, वह आखिरकार आ गया था। वह चुपचाप रोती रही, उसकी खुशी की कोई सीमा नहीं थी।

    अभिमान: "तुमने जो मेहनत की थी, वह रंग लाई। मुझे तुम पर बहुत गर्व है।"

    अभिमान ने उसे शांत करते हुए आगे की योजना बताई।

    अभिमान: "अब सबसे मुश्किल काम शुरू होगा। तुम्हें घर से निकलना होगा। मैं तुम्हारे लिए जल्द ही कुछ ज़रूरी कागजात भेजूँगा। तुम्हें दिल्ली जाकर एक दूतावास से वीजा लेना होगा। मैंने वहाँ एक आदमी से बात की है, वह तुम्हारी मदद करेगा।"

    अभिमान ने उसे बताया कि वह एक-दो दिन में ही सब कुछ भेज देगा। अव्यांशी ने अपनी खुशी और डर को एक साथ महसूस किया।

    अव्यांशी: "ठीक है, अभिमान। मैं जो भी कहोगे, वह करूँगी।"

    अभिमान ने कहा, "अपना ख्याल रखना। अब तुम्हें और ज़्यादा हिम्मत दिखानी होगी।"

    अभिमान से बात करने के बाद, अव्यांशी का दिल डर और उम्मीद के बीच झूल रहा था। उसे पता था कि यह सिर्फ शुरुआत थी, और अब उसे अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी जंग लड़नी थी - अपने घर से बाहर निकलने की जंग।

    अभिमान के बताए अनुसार, एक हफ्ते के अंदर ही अव्यांशी को दिल्ली से एक कूरियर मिला। अंदर एक सील बंद पैकेट में उसका पासपोर्ट, लंदन का वीज़ा और फ्लाइट की टिकट थी। उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। अब उसके पास अपनी आज़ादी की चाभी थी।

    उसने तुरंत अजय को फोन किया और उसे सब बताया। अजय ने कहा कि वह उसके साथ है, और वह उसे एयरपोर्ट तक छोड़ने आएगा। अव्यांशी ने अपनी सिलाई मशीन बेच दी और उससे मिले पैसों को अपनी जेब में रखा। उसने सिर्फ एक बैग पैक किया, जिसमें उसकी माँ की तस्वीर, अभिमान की भेजी हुई पुरानी किताबें और उसकी डायरी थी।

    भागने का दिन आ गया था। आधी रात को, जब घर में सब सो रहे थे, अव्यांशी चुपके से अपने कमरे से बाहर निकली। दरवाज़े पर उसकी सौतेली माँ का खर्राटे लेना साफ सुनाई दे रहा था। वह धीरे से सीढ़ियों से नीचे उतरी और रसोई से बाहर चली गई। उसने एक आखिरी बार उस घर की ओर देखा, जहाँ उसने बचपन के सपने देखे थे और अपने सबसे बुरे दिनों को भी जिया था। उसकी आँखों में नमी थी, पर वह रुकी नहीं।

    बाहर, सड़क पर अजय अपनी बाइक पर उसका इंतज़ार कर रहा था। अव्यांशी को देखते ही उसने अपनी बाइक स्टार्ट की और दोनों एयरपोर्ट की ओर निकल पड़े।

    एयरपोर्ट पर, अजय ने अव्यांशी को गले लगाया और कहा, "अभिमान और मैं तुम्हारे साथ हैं। तुम कभी अकेली नहीं होगी।"

    अव्यांशी ने अजय को धन्यवाद दिया और अंदर चली गई। उसने इमिग्रेशन और सिक्योरिटी चेक करवाया, और फिर वह अपने बोर्डिंग गेट की ओर बढ़ गई।

    बोर्डिंग के समय, जब उसने अपनी टिकट दिखाई, तो एक पल के लिए उसे लगा कि वह यह नहीं कर पाएगी। पर उसने फिर से अपनी आँखें बंद कीं और अपनी माँ और अभिमान का चेहरा याद किया। उसने सोचा, "यह मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी जंग है।"

    वह फ्लाइट में बैठी। जैसे ही हवाई जहाज़ ने उड़ान भरी, अव्यांशी ने खिड़की से नीचे देखा। उसे लगा जैसे उसका अतीत पीछे छूट रहा था और उसका भविष्य उसके सामने था। उसकी आँखों में एक नई चमक थी। वह अब सिर्फ एक लड़की नहीं, बल्कि एक मज़बूत और आत्मनिर्भर महिला थी, जिसने अपनी ज़िंदगी की डोर अपने हाथों में थाम ली थी।



    लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर अव्यांशी के लिए सब कुछ नया था। ठंड भरी हवा, अंग्रेज़ी में बात करते लोग और चारों ओर का शोरगुल। वह पहली बार हवाई जहाज़ में बैठी थी, और अब वह एक बिल्कुल नई दुनिया में थी। उसके मन में डर और उत्सुकता दोनों थी।

    इमिग्रेशन और कस्टम्स की प्रक्रिया पूरी करने के बाद, वह बाहर निकली। दरवाज़े पर ही अभिमान उसका इंतज़ार कर रहा था। उसे देखकर अव्यांशी के आँसू बहने लगे। अभिमान ने उसे गले लगाया और कहा, "तुम आ गई, अव्यांशी। मुझे तुम पर बहुत गर्व है।"

    अव्यांशी ने कहा, "यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है, अभिमान। तुमने मुझे एक नई ज़िंदगी दी है।"

    अभिमान ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हें नई ज़िंदगी तुमने खुद दी है, अव्यांशी। मैंने तो बस तुम्हें रास्ता दिखाया।"

    फिर अभिमान उसे अपनी कार में लेकर लंदन की सड़कों पर निकल पड़ा। अव्यांशी ने खिड़की से बाहर देखा। चारों ओर ऊंची-ऊंची इमारतें, पुरानी और नई, और तेज़ रफ्तार से चलती गाड़ियाँ। यह सब कुछ उसकी पुरानी ज़िंदगी से बहुत अलग था।

    अभिमान उसे सीधे यूनिवर्सिटी ले गया, जहाँ उसके रहने का इंतज़ाम हो चुका था। वह एक छोटे से कमरे में गई, जिसमें एक बिस्तर, एक मेज और एक अलमारी थी। यह छोटा सा कमरा उसे अपने पुराने घर से ज़्यादा बड़ा और सुकून देने वाला लगा।

    अभिमान ने कहा, "यह तुम्हारा नया घर है, अव्यांशी। यहाँ तुम्हारी ज़िंदगी की एक नई शुरुआत होगी।"

    अव्यांशी ने खिड़की से बाहर देखा। सूरज ढल रहा था, और उसकी रोशनी पूरे शहर को सुनहरी बना रही थी। उसने अपनी माँ की तस्वीर निकाली और उसे अपनी मेज पर रखा। फिर उसने अपनी आँखें बंद कीं और अपनी ज़िंदगी को एक बार फिर से महसूस किया।

    वह अब न तो 15 साल की थी, और न ही एक ऐसी लड़की जिसे उसकी इच्छा के बिना शादी करने के लिए मजबूर किया गया हो। वह अब एक ऐसी लड़की थी जिसने अपने दम पर अपनी ज़िंदगी को बनाया था। उसे पता था कि उसका सफ़र अभी ख़त्म नहीं हुआ है, बल्कि अब तो बस एक नई शुरुआत थी।

    आव्यांशि को मै ये कविता डैडिकेट करति हूँ ।

    ये ज़िंदगी, मैं तुझको आज चुनती हूँ
    ये ज़िंदगी, मैं तुझको आज चुनती हूँ,
    हर एक पल, हर एक साँस बुनती हूँ।
    जो देखा था सपना, अब उसे चुनती हूँ,
    अबला नहीं, अपनी प्रबलता को चुनती हूँ।
    एक नई कोशिश है मेरी आज,
    खुशियाँ खुद बुनने की
    , मैं खुद ही अपना ताज और राज चूनति हूँ ।
    मेरे मन के हर उस आवाज को, मैं रब का स्वर समझती हूँ,
    अपने हर प्रयास में, अपनी जीत देखना चूनति हूँ।
    हटाकर हर दर्द, हर निराशा की आहट,
    अब खुशियों को चुनती हूँ,
    मैं अपनी पहचान में, हर एक नई सुबह को बुनती हूँ।

  • 15. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 15

    Words: 1639

    Estimated Reading Time: 10 min

    हॉवर्ड यूनिवर्सिटी (हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल (HBS) है। यह हार्वर्ड विश्वविद्यालय का एक स्नातक व्यवसाय स्कूल है, स्थान: HBS बोस्टन के एक पड़ोस, अल्स्टन, मैसाचुसेट्स में स्थित है।कार्यक्रम: यह स्कूल अपने मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (MBA) कार्यक्रम के लिए सबसे प्रसिद्ध है, जो दुनिया में अपनी तरह का पहला था। यह विभिन्न डॉक्टरेट और कार्यकारी शिक्षा कार्यक्रम भी प्रदान करता है।शिक्षण विधि: HBS शिक्षण की केस विधि का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है, जहाँ छात्र अपनी समस्या-समाधान और निर्णय लेने के कौशल को विकसित करने के लिए वास्तविक दुनिया के व्यावसायिक परिदृश्यों का विश्लेषण और चर्चा करते हैं। प्रवेश: HBS में प्रवेश अत्यधिक प्रतिस्पर्धी है। स्कूल में कम स्वीकृति दर है और यह मजबूत शैक्षणिक प्रदर्शन, कार्य अनुभव और व्यक्तिगत गुणों के संयोजन की तलाश करता है।) में एडमिशन मिलने के बाद अभिमान 19 साल की उम्र में बहुत उत्साहित था। एक छोटे शहर से निकलकर दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में जाना उसके लिए किसी सपने से कम नहीं था। लेकिन हॉस्टल के पहले ही दिन उसका सामना एक कड़वी सच्चाई से हुआ, जब सीनियर छात्रों ने उसकी रैगिंग शुरू कर दी।

    पहले तो उसे लगा कि यह सब मजाक है, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, रैगिंग का सिलसिला और भी गंभीर होता गया। हॉस्टल के अमीर और बिगड़े हुए लड़के उसे हर बात पर नीचा दिखाते, उसके पहनावे और बोली का मजाक उड़ाते। अभिमान अंदर ही अंदर घुटने लगा।

    दो महीने बाद, जब उसकी आत्म-सम्मान पूरी तरह से टूट चुका था, उसने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। वह इतना कमजोर और लाचार महसूस कर रहा था कि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसके दिमाग में सिर्फ एक ही नाम था- अव्यंशी।

    उसने कांपते हाथों से अव्यंशी को फोन मिलाया। फोन उठाते ही अव्यंशी की आवाज़ में हमेशा की तरह खुशी और अपनापन था, लेकिन अभिमान की आवाज सुनकर वह तुरंत समझ गई कि कुछ ठीक नहीं है।

    अभिमान ने रोते हुए उसे सारी बात बताई। “मैं बहुत कमजोर हूँ, अव्यंशी। मैं यहाँ नहीं रह पा रहा हूँ। इन लोगों ने मेरा जीना हराम कर दिया है।”

    अव्यंशी ने प्यार से उसकी बात सुनी और फिर एक गहरी सांस लेकर बोली, “अभिमान, आप कमजोर नहीं हैं। आपने मुझे याद दिलाया है कि सपने देखने का हक सिर्फ अमीरों का नहीं होता। आपने मुझे हौसला दिया था कि मैं अपनी गरीबी को अपनी कमजोरी न बनने दूं। आपने मुझसे कहा था कि मैं किसी से कम नहीं हूँ।”

    अव्यंशी की आवाज में इतना विश्वास और दृढ़ता थी कि अभिमान को एक पल के लिए अपनी बातें याद आ गईं। उसने अव्यंशी को कितनी बार समझाया था कि हिम्मत और हौसला पैसों से नहीं खरीदा जा सकता।

    अव्यंशी ने आगे कहा, “जिस इंसान ने मुझसे यह सब कहा, वो खुद कैसे कमजोर हो सकता है? उठिए और उन्हें दिखाइए कि आपका असली मुकाबला आपके डिग्री से नहीं, बल्कि आपके चरित्र और हिम्मत से है।”

    अव्यंशी की बातों ने अभिमान में एक नई जान फूंक दी। उसकी बातों से उसे याद आया कि वह कौन है और उसने किसलिए इतनी मेहनत की थी। उस दिन अभिमान ने फैसला किया कि वह उन अमीर लड़कों को यह नहीं बताएगा कि वह कितना बहादुर और मजबूत है, बल्कि वह उन्हें दिखाएगा।

    अगले दिन जब वही लड़के उसे रैगिंग करने आए, तो अभिमान ने बिना डरे उनका सामना किया। उसने साफ-साफ कह दिया कि अगर वे उसके साथ बदतमीजी करेंगे, तो वह चुप नहीं बैठेगा। यह देखकर वे लड़के हैरान रह गए, क्योंकि उन्होंने अभिमान को इतना आत्मविश्वासी कभी नहीं देखा था।

    यह छोटी सी घटना अभिमान के लिए एक टर्निंग पॉइंट बन गई। अव्यंशी की बातों ने उसे सिर्फ हिम्मत ही नहीं दी, बल्कि उसे यह भी याद दिलाया कि असली ताकत अपने आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान में होती है।

    Harvard University में अपनी जिंदगी को बदलने के लिए अभिमान ने एक नया फैसला लिया। उसने हॉस्टल के पास ही जिम जॉइन कर लिया और रात को अपनी बिजनेस की पढ़ाई में जुट गया। उसका रूममेट, निक जैक्सन, जो खुद एक अमीर परिवार से था, अभिमान के इस बदलाव को देख कर हैरान था।

    एक रात, जब अभिमान अपनी किताब में डूबा हुआ था, निक ने उससे पूछा:

    निक: "तुम इतनी रात तक क्यों पढ़ते हो, अभिमान? क्या हुआ? तुम्हें तो पार्टीज़ में जाना चाहिए।"

    अभिमान: "मेरे लिए यही मेरी पार्टी है, निक। मुझे अपने सपनों को पूरा करना है।"

    निक: "तुम्हारे सपने? तुम यहाँ Harvard में हो, तुम्हें और क्या चाहिए?"

    अभिमान: "मुझे अपनी पहचान बनानी है, निक। सिर्फ Harvard का स्टूडेंट नहीं, बल्कि कुछ ऐसा बनना है, जिससे लोग मुझे मेरे नाम से जानें।"

    निक, जो अभिमान को पहले से ही जानता था, इस बात से हैरान था। उसने देखा कि अभिमान में कितना जुनून है। धीरे-धीरे, उन दोनों के बीच की दूरी कम होने लगी।

    एक दिन, जब अभिमान जिम से वापस आया, तो निक ने उससे पूछा:

    निक: "अभिमान, तुम इतना हार्ड वर्क क्यों करते हो? क्या तुम किसी से बदला लेना चाहते हो?"

    अभिमान: "नहीं, निक। मैं किसी से बदला नहीं लेना चाहता। मैं सिर्फ अपने आप को साबित करना चाहता हूँ।"

    निक: "तो फिर मुझे यह सब क्यों नहीं बताया? हम रूममेट हैं।"

    अभिमान: "मैं नहीं चाहता था कि तुम मुझे एक कमजोर इंसान समझो। लेकिन अब मुझे यह समझ में आया है कि दोस्त वही होता है, जो तुम्हें तुम्हारे बुरे वक्त में भी सहारा दे।"

    निक ने अभिमान को गले लगा लिया और कहा:

    निक: "अभिमान, तुम बहुत मजबूत इंसान हो। मुझे माफ कर दो, जो मैंने तुम्हारे साथ किया। मैं तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूँ। क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे?"

    अभिमान की आँखों में आंसू थे। उसे एक ऐसा दोस्त मिला था, जो उसकी हिम्मत और जुनून को समझता था। उन दोनों ने मिलकर अपने सपनों को पूरा करने का फैसला किया और वे बन गए Harvard University के दो सबसे अच्छे दोस्त।

    हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहने के बाद भी अभिमान का मन हमेशा अव्यंशी के लिए चिंतित रहता था। वह जानता था कि अव्यंशी के माता-पिता उसे बोझ समझते हैं और उसकी शादी जल्द से जल्द करवा देना चाहते हैं। इसी डर से, उसने अव्यंशी को लंदन यूनिवर्सिटी का एंट्रेंस देने के लिए प्रेरित किया।
    अभिमान ने यह सब कुछ अव्यंशी से छिपकर किया था। वह नहीं चाहता था कि अव्यंशी पर किसी तरह का दबाव आए। उसने अव्यंशी के लिए एक लैपटॉप और एक फोन भी भेजा, ताकि वह अपनी पढ़ाई अच्छे से कर सके।
    एग्जाम के 20 मिनट पहले ही, अव्यंशी को अभिमान का फोन आया।
    अभिमान: "अव्यंशी, कैसी हो? सब ठीक है?"
    अव्यंशी: "हाँ, अभिमान। सब ठीक है।"
    अभिमान: "मैं बस तुम्हें गुड लक कहना चाहता था। मुझे पता है कि तुम कर सकती हो।"
    अव्यंशी: "बहुत-बहुत धन्यवाद, अभिमान। मैं बहुत डरी हुई हूँ।"
    अभिमान: "डरने की कोई जरूरत नहीं है। तुम बहुत स्मार्ट हो और तुम्हारी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। मुझे तुम पर पूरा विश्वास है।"
    अव्यंशी ने अभिमान का धन्यवाद किया और फोन रख दिया। लेकिन, जब उसका एंट्रेंस एग्जाम खत्म हो गया, तो उसने अभिमान को कॉल किया और रोते हुए कहा:
    अव्यंशी: "अभिमान, मेरे माता-पिता मुझे बेचना चाहते हैं। वे मेरी शादी एक 80 साल के बूढ़े से करवाना चाहते हैं, जब मैं 18 साल की हो जाऊँगी।"
    अभिमान यह सुनकर हिल गया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसकी आँखें गुस्से और दुख से भर गईं।
    अभिमान: "अव्यंशी, तुम चिंता मत करो। मैं तुम्हें ऐसा कुछ नहीं होने दूँगा। मैं तुम्हें वहाँ से निकाल लूँगा।"
    अव्यंशी: "लेकिन कैसे, अभिमान? मेरे माता-पिता मुझे कहीं जाने नहीं देंगे।"
    अभिमान: "तुम बस हिम्मत मत हारो, अव्यंशी। मैं तुम्हें वादा करता हूँ कि मैं तुम्हारे लिए कुछ करूँगा। मैं तुम्हें वहाँ से निकालूँगा और तुम्हें लंदन यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए भेजूँगा।"
    अभिमान ने अव्यंशी को हिम्मत दी और उसे वादा किया कि वह उसे इस मुश्किल से बाहर निकालेगा।
    अभिमान और अव्यंशी के रिश्ते में अब एक नया मोड़ आ गया था। अब यह सिर्फ एक दोस्ती नहीं थी, बल्कि एक-दूसरे के लिए उम्मीद की किरण थी।
    क्या आप जानना चाहते हैं कि अभिमान अव्यंशी को बचाने के लिए क्या करेगा?
    अव्यंशी को अभिमान का भेजा हुआ फोन मिल गया। उसने तुरंत अभिमान को कॉल किया।
    अव्यंशी: (आवाज़ में डर और थोड़ी सी खुशी) "अभिमान... ये तुमने भेजा था?"
    अभिमान: (खुश होकर) "हाँ, अव्यंशी। अब तुम मुझसे बात कर सकती हो, जब भी तुम्हें कोई दिक्कत हो।"
    अव्यंशी: (रोते हुए) "अभिमान, मैं बहुत डर गई थी। मेरे माता-पिता ने मुझे बताया था कि वे मुझे बेचना चाहते हैं... लेकिन मैं वादा करती हूँ, मैं हार नहीं मानूँगी। मैं जरूर आगे पढ़ूँगी और तुम्हें दिखाऊँगी कि तुम्हारी मेहनत बेकार नहीं जाएगी।"
    अभिमान: "मुझे तुम पर पूरा भरोसा है, अव्यंशी। तुम बस अपना ध्यान रखना। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।"
    दोनों ने कुछ देर तक बात की, अपनी चिंताओं और उम्मीदों को साझा किया। अभिमान ने उसे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित किया और अव्यंशी ने उसे वादा किया कि वह अपनी कोशिशें जारी रखेगी।
    उस बातचीत के कुछ दिनों बाद, अभिमान ने फिर से अव्यंशी को फोन किया। लेकिन इस बार उसका फोन नहीं लगा। उसने कई बार कोशिश की, लेकिन हर बार यही जवाब मिला कि "जिस नंबर पर आप संपर्क करना चाहते हैं, वह अभी स्विच ऑफ है।"
    अभिमान बहुत परेशान हो गया। उसके मन में कई तरह के ख्याल आने लगे। "कहीं उसके माता-पिता ने उसे कुछ कर तो नहीं दिया? क्या वह ठीक है?" यह एक साल उसके लिए बहुत लंबा और मुश्किल था। इस एक साल के दौरान, अभिमान को एहसास हुआ कि वह अव्यंशी से सिर्फ दोस्ती नहीं, बल्कि प्यार करता है। उसने फैसला किया कि जब अव्यंशी बड़ी हो जाएगी, तो वह उसे अपने दिल की बात बताएगा।
    एक साल बाद...
    अभिमान अपनी पढ़ाई में व्यस्त था, तभी उसके फोन पर एक अनजान नंबर से कॉल आया। उसने डरते हुए फोन उठाया।
    अभिमान: "हेलो?"
    ..........




    आगे जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करिये 🥰🙏

  • 16. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 16

    Words: 2277

    Estimated Reading Time: 14 min

    अब आगे।

    अव्यंशी: (आवाज़ में खुशी और उत्साह) "अभिमान, मैं अव्यंशी हूँ!"

    अभिमान की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। एक साल बाद अव्यंशी की आवाज़ सुनकर उसे लगा जैसे उसे उसकी खोई हुई दुनिया वापस मिल गई हो।

    अभिमान: (आवाज़ में खुशी और राहत) "अव्यंशी! तुम कहाँ थीं? तुम्हारा फोन क्यों नहीं लग रहा था? मैं कितना परेशान था!"

    अव्यंशी: "मेरे माता-पिता ने मेरा फोन तोड़ दिया था। मुझे चुपके से यहाँ से भागना पड़ा। मैं अब एक महिला आश्रम में रहती हूँ और काम करके अपनी पढ़ाई जारी रख रही हूँ।"

    अभिमान ने यह सुनकर खुशी और गर्व महसूस किया। उसने अव्यंशी की हिम्मत की तारीफ की।

    अव्यंशी: "मैंने लंदन यूनिवर्सिटी का एंट्रेंस पास कर लिया है, अभिमान। अब मैं स्कॉलरशिप के लिए अप्लाई कर रही हूँ। यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है।"

    अभिमान: "यह सब तुम्हारी मेहनत का फल है, अव्यंशी। मुझे तुम पर बहुत गर्व है।"

    दोनों ने एक-दूसरे से बहुत देर तक बात की। अभिमान ने अव्यंशी को उसके जीवन की सबसे बड़ी खुशखबरी दी और उसने भी अपने दिल की बात कहने का फैसला किया। लेकिन, उसने सोचा कि "अभी नहीं। पहले उसे बड़ी हो जाने दो और अपने सपनों को पूरा करने दो। फिर मैं उसे बताऊंगा कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ।"

    उस दिन अभिमान बहुत खुश था। उसे लगा जैसे उसकी दुनिया फिर से खिल उठी हो।
    राजस्थानी हवेली में घर वापसी
    हवा में एक अनोखी सी महक थी, जैसे बरसों बाद कोई खास खुशबू वापस लौटी हो. राजस्थान के उस विशाल रघुवंशी महल में आज सुबह से ही रौनक थी. दीवारों पर नई रंगत, आँगन में फूलों की ताज़ा सजावट, और रसोई से आती तरह-तरह के पकवानों की खुशबू. सबकी आँखें बस एक ही रास्ते पर टिकी थीं - जहाँ से उनका कुंवर सा, अभिमान सिंह रघुवंशी, पूरे सात साल बाद लौट रहा था.
    दादीसा अपनी पसंदीदा कुर्सी पर बैठी माला जप रही थीं, पर उनका ध्यान माला पर नहीं, बल्कि आने वाले की आहट पर था. उनकी बहू, मीना रघुवंशी, और देवरानी, रमया काकीसा, रसोई से दौड़-दौड़कर बाहर आ रही थीं, ताकि कोई कमी न रह जाए. विक्रम सिंह रघुवंशी, अभिमान के पिता, और दादासा के चेहरे पर एक अलग ही सुकून था.
    तभी दूर से एक गाड़ी की आवाज़ सुनाई दी. सब के चेहरों पर एक साथ मुस्कान दौड़ गई.
    गाड़ी रुकी और दरवाज़ा खुला. एक लंबा, चौड़ा, और बेहद हैंडसम नौजवान बाहर निकला. 6.3 फीट की हाइट, मस्कुलर बॉडी, और रेशमी काले बाल. उसकी आँखों में विदेश की चमक थी, पर दिल में वही अपनी मिट्टी की खुशबू.
    मीना: "अभि..."
    (मीना दौड़कर उसे गले लगा लेती है. उसकी आँखें भर आती हैं.)
    अभिमान: "माँ... मैं आ गया."
    (वह अपनी माँ को कसकर गले लगाता है.)
    मीना: "मेरा लाल... कितना पतला हो गया है. वहाँ कुछ खाता-पीता नहीं था क्या?"
    (मीना प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरती है.)
    दादासा: "अरे, हट जाओ सब! पहले मुझे मेरा पोता देखने दो."
    (दादासा लाठी के सहारे आगे आते हैं. अभिमान झुककर उनके पैर छूता है.)
    अभिमान: "दादासा... कैसे हैं आप?"
    दादासा: "अब तो बिल्कुल ठीक हूँ. मेरा अभिमान जो वापस आ गया है."
    (दादासा अभिमान के गालों पर हाथ फेरते हैं.)
    विक्रम: "वेलकम होम, बेटा."
    (विक्रम सिंह अभिमान के कंधे पर हाथ रखकर गर्व से कहते हैं.)
    रमया काकीसा: "कुंवर सा! आइए, आइए. आपके लिए गरम-गरम पूरियाँ और आलू की सब्ज़ी बनाई है."
    (काकीसा थाली लेकर आती हैं और आरती उतारती हैं.)
    अभिमान: "वाह! काकीसा, आपकी पूरियों की खुशबू तो एयरपोर्ट से ही आ रही थी."
    (वह हँसता है.)
    सब हँसने लगते हैं. अभिमान एक-एक करके सबका हालचाल पूछता है. भाई-बहन, चाचा-चाची, सब उसे देखकर बहुत खुश होते हैं.
    दादीसा: "अब बस... बहुत हो गया. बैठो यहाँ मेरे पास. मुझे सब बताओ, क्या-क्या सीखा, क्या-क्या देखा. और हाँ, वहाँ कोई गोरी मैम तो नहीं पसंद आ गई?"
    (दादीसा शरारत से आँख मारती हैं.)
    अभिमान मुस्कुराकर दादीसा के पास बैठ जाता है. पूरा महल ठहाकों और कहानियों से गूँज उठता है. आज सच में ऐसा लग रहा था, जैसे रघुवंशी महल की आत्मा वापस लौट आई हो.एक महीने बाद: परिवार के साथ वक़्त
    एक महीना कब बीत गया, पता ही नहीं चला. अभिमान की घर वापसी ने रघुवंशी महल में एक नई जान भर दी थी. सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक, हर पल कहानियों, हँसी-मज़ाक और परिवार के प्यार से भरा हुआ था. अभिमान अपने दादासा के साथ बाग में घूमता, दादीसा से पुराने किस्से सुनता, और पिता के साथ व्यापार की बातें करता. मीना माँ और रमया काकीसा उसे रोज़ नए-नए पकवान खिलातीं. वह खुद को दुनिया के सबसे खुशकिस्मत इंसान महसूस कर रहा था.
    बुआसा और उनकी ननद का आगमन
    एक दिन दोपहर को, हवेली के दरवाज़े पर एक और गाड़ी आकर रुकी. सबने देखा, बुआसा पद्मिनी देवी और उनके साथ एक बेहद खूबसूरत लेकिन थोड़ी दिखावटी लड़की उतरीं. वह थी उनकी ननद, इशिका.
    पद्मिनी देवी: (दरवाजे पर खड़े-खड़े ही, थोड़े बनावटी अंदाज़ में) "अरे वाह! घर में इतनी रौनक है, और किसी ने हमें बताया भी नहीं कि कुंवर सा वापस आ गए हैं?"
    मीना आगे बढ़कर उनका स्वागत करती हैं.
    मीना: "नमस्ते दीदी. आइए, आइए. आप कैसी हैं?"
    पद्मिनी देवी: "अरे, हम तो ठीक हैं. पर तुम सबने हमें क्यों नहीं बताया? हम तो अभिमान के लिए तोहफे भी नहीं ला पाए."
    (उनकी नज़र अभिमान पर पड़ती है, जो सोफे पर बैठा मोबाइल देख रहा था.)
    इशिका: (धीमे से) "मम्मी, यही है ना अभिमान भैया? ओह माय गॉड... ही इज़ सो हैंडसम!"
    अभिमान उनकी तरफ देखता है, पर कोई भाव नहीं दिखाता.
    पद्मिनी देवी: "अभिमान! बेटा! अपनी बुआसा से आशीर्वाद नहीं लोगे?"
    अभिमान उठकर उनके पैर छूता है.
    पद्मिनी देवी: (अभिमान को गले लगाकर) "मेरा लाल... कितना बड़ा हो गया है. बिल्कुल किसी हीरो की तरह दिखता है."
    (फिर वह इशिका की तरफ इशारा करती हैं.)
    "और यह है मेरी ननद, इशिका. तुम्हारी बहन जैसी है."
    इशिका: (अभिमान के पास आकर) "हाय अभिमान. मैं तुमसे बहुत मिलना चाहती थी. मैंने तुम्हारी बहुत तारीफें सुनी हैं."
    (इशिका अभिमान से हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाती है.)
    अभिमान एक नज़र उसके कपड़ों और मेकअप पर डालता है, और बस हल्का सा सिर हिलाकर अभिवादन करता है. वह उसका हाथ नहीं पकड़ता.
    इशिका: "तुम... मेरे हाथ क्यों नहीं मिला रहे?"
    (वह थोड़ा झेंप जाती है.)
    अभिमान: "मुझे ऐसी चीज़ों की आदत नहीं है. और वैसे भी, हम दोनों कोई दोस्त नहीं हैं."
    (अभिमान बहुत ही रूखे और सीधे अंदाज़ में कहता है.)
    इशिका: (थोड़ी शर्मिंदा होकर) "ओह... ठीक है."
    इशिका बुआसा की तरफ देखती है, जो उसे चुप रहने का इशारा करती हैं.
    पद्मिनी देवी: (बात बदलते हुए) "चलो, सब बैठकर बातें करते हैं. अभिमान, तुम अपनी हॉवर्ड की पढ़ाई के बारे में बताओ. मुझे तो पता है, तुम कितने ब्रिलियंट हो."
    (वह अभिमान के करीब आने की कोशिश करती है.)
    अभिमान: "बुआसा, मैं अभी-अभी आया हूँ, थोड़ा थका हुआ हूँ. मैं बाद में बात करता हूँ."
    (अभिमान उठकर चला जाता है.)
    इशिका: "कितना रूड है! मुझे तो लगा था वह..."
    पद्मिनी देवी: (इशिका को टोककर) "चुप रहो! यह तरीका नहीं है. अभिमान को तुम सीधा पसंद नहीं आओगी. थोड़ा दिमाग लगाओ."
    (वह धीरे से कहती हैं.)



    रात का खाना खत्म हो चुका था और सब अपने कमरों में जा चुके थे. बुआसा पद्मिनी देवी अपने कमरे में बैठी थीं और उनके सामने इशिका गुस्से में पैर पटक रही थी.

    इशिका: "मम्मी, यह कैसा इंसान है? मैंने उससे बात करने की कोशिश की, स्माइल दी... पर वह तो मुझे देखता भी नहीं है. इतना रूड है!"

    पद्मिनी देवी: "अरे पगली! मुझे पता था कि तुम कुछ ऐसा ही करोगी. क्या हॉवर्ड से पढ़कर आया है तो कोई भी लड़की को ऐसे ही पसंद कर लेगा? वह सीधा लड़का है, उसे ऐसी मॉडर्न लड़कियों से कोई मतलब नहीं."

    इशिका: "तो फिर मैं क्या करूँ? मुझे तो वह बहुत पसंद है. मैंने इतनी मेहनत से खुद को तैयार किया..."

    पद्मिनी देवी: "तुमने दिमाग से काम नहीं लिया. मेरी बात सुनो. अभिमान जैसा लड़का ना, सिर्फ उसी लड़की पर ध्यान देगा जो सीधी-सादी हो, जिसे सहारे की ज़रूरत हो. तुम्हें अपनी तरफ से कुछ नहीं करना."

    इशिका: "मतलब?"

    पद्मिनी देवी: "मतलब... हम अपनी चाल चलेंगे." पद्मिनी देवी एक शातिर मुस्कान के साथ कहती हैं, "अब हमें अभिमान की कमज़ोरी को पकड़ना होगा."

    इशिका: "उसकी क्या कमज़ोरी है?"

    पद्मिनी देवी: "उसकी कमज़ोरी है उसका परिवार, उसकी हवेली, और उसके संस्कार. वह अपने परिवार को बहुत मानता है. अगर तुम किसी भी तरह उसकी नज़रों में बेचारी बन जाओ, और यह दिखाओ कि तुम्हें उसकी मदद चाहिए, तो वह तुम्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर पाएगा."

    इशिका: "कैसे?"

    पद्मिनी देवी: "कल सुबह... तुम नाश्ते के बाद बाहर जाओगी. और गलती से... हाँ, जान-बूझकर... अपने पैर को मोच आने का नाटक करोगी. ज़ोर से चिल्लाना. फिर देखना, वह सबसे पहले दौड़ेगा तुम्हें संभालने. और जब वह तुम्हें उठाएगा, तो मेरे पास आओगी और सबसे कहोगी कि तुम्हारे पापा ने तुम्हारा रिश्ता कहीं और तय कर दिया है, लेकिन तुम्हें वह पसंद नहीं है. तुम उस रिश्ते से खुश नहीं हो और तुम्हें कोई रास्ता नहीं दिख रहा."

    इशिका: (थोड़ी हैरानी से) "लेकिन मम्मी... इसका क्या फायदा होगा?"

    पद्मिनी देवी: "तुम बहुत भोली हो. जब तुम यह बात कहोगी, तो अभिमान को लगेगा कि तुम मुसीबत में हो. और जब तुम्हारी बेचारगी और तुम्हारी खूबसूरती एक साथ दिखेगी, तो वह तुम्हें इनकार नहीं कर पाएगा. वह सोचेगा कि उसे ही तुम्हें इस मुसीबत से बचाना चाहिए. यही है हमारी चाल. हमें उसे मजबूर करना होगा कि वह तुम्हारी तरफ देखे."

    इशिका: (मुस्कुराकर) "मम्मी, आप तो सच में बहुत चालाक हैं. यह आइडिया तो कमाल का है! तो कल सुबह... मैं तैयार हूँ!"

    पद्मिनी देवी इशिका को शातिर अंदाज़ में देखती हैं और कहती हैं, "बस याद रखना, यह सब नाटक लगना नहीं चाहिए. अभिमान बहुत स्मार्ट है. अगर उसे ज़रा भी शक हुआ, तो सब ख़त्म हो जाएगा."

    दोनों एक-दूसरे को देखकर मंद-मंद मुस्कुराने लगते हैं, अपनी गंदी चाल की सफलता के सपने देखते हुए.

    अगली सुबह, नाश्ते के बाद, जैसा कि प्लान हुआ था, इशिका अपनी माँ पद्मिनी देवी से बात करके हवेली के बाहर बगीचे की तरफ चली गई. उसने एक खूबसूरत, हल्का सा शरारा पहना हुआ था और बालों को खुला छोड़ रखा था. उसकी चाल में एक खास नज़ाकत थी. अभिमान उस समय अपने पिता विक्रम सिंह के साथ बरामदे में बैठकर कुछ काम कर रहा था.

    अचानक, एक ज़ोरदार चीख़ सुनाई दी, "आह्ह्ह्ह्ह...!"

    सबका ध्यान उस तरफ गया. इशिका घास पर बैठी हुई थी, और अपना पैर पकड़े दर्द से कराह रही थी.

    पद्मिनी देवी: (दौड़ते हुए) "इशिका! क्या हुआ बेटा? कहाँ लगी?"

    इशिका: (रोने का नाटक करते हुए) "पता नहीं मम्मी... मेरा पैर मुड़ गया. बहुत दर्द हो रहा है."

    विक्रम और मीना भी दौड़ते हुए वहाँ पहुँचते हैं. अभिमान भी उठता है, लेकिन उसके चेहरे पर कोई घबराहट नहीं, बल्कि एक अजीब सी गंभीरता थी.

    विक्रम: "मीना, जल्दी से डॉक्टर को फोन करो. अभिमान, बेटा, इसे उठाकर अंदर ले चलो."

    अभिमान इशिका के पास पहुँचता है. वह झुकता है और बिना कुछ कहे, उसे अपनी बांहों में उठा लेता है. इशिका उसके इतने करीब आने से खुश हो जाती है. वह अपना सिर अभिमान के कंधे पर रख लेती है. लेकिन अभिमान का चेहरा बिल्कुल पत्थर जैसा था. वह उसे सोफे पर बिठा देता है.

    बेचारी बनने की कोशिश

    रमया काकीसा तुरंत गर्म पानी का सेक लेकर आती हैं और इशिका के पैर पर रखने लगती हैं. इशिका दर्द की वजह से कराहने का नाटक करती है.

    मीना: "बेटा, ज़ोर से तो नहीं लगी? अभी डॉक्टर आते ही होंगे."

    इशिका: (आँखों में आंसू लाकर) "आंटी, मुझे पता है यह सब क्यों हो रहा है... मुझे लगता है मेरी किस्मत ही खराब है."

    पद्मिनी देवी मुस्कुराती हैं और इशिका को बात कहने का इशारा करती हैं.

    पद्मिनी देवी: "क्यों बेटा? क्या हुआ? तुम्हें तो बहुत खुश होना चाहिए था कि तुम यहाँ आई हो."

    इशिका: (रोते हुए) "नहीं बुआसा... यह सब... मेरे पापा ने मेरा रिश्ता एक बहुत ही बूढ़े आदमी के साथ तय कर दिया है. वो बहुत पैसे वाले हैं, लेकिन मैं उनसे शादी नहीं करना चाहती. मैं... मैं बहुत मजबूर हूँ."

    पूरा परिवार चौंक जाता है.

    मीना: "क्या? यह कैसी बात कह रही हो बेटा? जबरदस्ती? तुम्हारे पापा ने ऐसा क्यों किया?"

    इशिका: "मुझे नहीं पता आंटी... मुझे कोई रास्ता नहीं दिख रहा. मैं बहुत परेशान हूँ."

    (इशिका जानबूझकर अभिमान की तरफ देखती है, जैसे वह उससे मदद मांग रही हो.)

    अभिमान का जवाब

    अभिमान, जो अब तक खामोशी से सब सुन रहा था, आगे आता है. वह सोफे के सामने खड़ा होता है और उसकी आवाज़ में एक ठंडक थी जो सबके दिल को छू गई.

    अभिमान: "तो आप किसी मजबूरी में हैं?"

    इशिका: "हाँ अभिमान... मैं बहुत मजबूर हूँ."

    अभिमान: "तो आपको उस आदमी से शादी नहीं करनी चाहिए."

    इशिका: "लेकिन मैं क्या करूँ?"

    अभिमान: "क्या करना है, यह तो आप ही को तय करना है."

    पद्मिनी देवी: (बात को घुमाते हुए) "अरे अभिमान, यह बेचारी है. इसे तुम्हारी मदद की ज़रूरत है."

    अभिमान: "मदद? मैं मदद जरूर करूंगा."

    सबको लगता है कि अभिमान उनकी चाल में फंस गया. इशिका के चेहरे पर जीत की एक हल्की सी मुस्कान आ जाती है.

    अभिमान: "काकासा! कल सुबह, बुआसा और इशिका के लिए दिल्ली की टिकट बुक करवा दीजिए. आप इन दोनों को वहां छोड़ आइए. इशिका, आप अपने पिता से खुद बात करेंगी. अगर वह नहीं मानते, तो आप कानून की मदद लीजिए. हर इंसान को अपनी मर्ज़ी से शादी करने का हक़ है. यहाँ राजस्थान में बैठकर रोने से कुछ नहीं होगा. आप अपने हक के लिए खुद लड़ें."

    अभिमान की बात सुनकर इशिका और पद्मिनी देवी के चेहरे का रंग उड़ जाता है. उनका पूरा प्लान एक ही झटके में फेल हो गया था. अभिमान ने इशिका को बेचारी बनने से पहले ही उसे आत्मनिर्भर बनने की सलाह देकर उनकी चाल को पूरी तरह से पलट दिया था.

  • 17. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 17

    Words: 1451

    Estimated Reading Time: 9 min

    सबसे घिनौनी चाल: इल्ज़ाम

    अगले दिन सुबह, पूरा परिवार नाश्ते की मेज पर बैठा था. कल की घटना के बाद एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था. पद्मिनी देवी और इशिका अपने कमरे में बंद थीं. तभी पद्मिनी देवी ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए बाहर आती हैं और उनके पीछे इशिका थी, जिसके बाल बिखरे हुए थे, आँखें सूजी हुई थीं और चेहरे पर डर साफ़ दिख रहा था.

    पद्मिनी देवी: (हाथ जोड़कर) "विक्रम! यह क्या कर दिया तुम्हारे बेटे ने? यह कैसा संस्कार दिया है तुमने?"

    पूरा परिवार चौंक जाता है.

    विक्रम: "दीदी! क्या हुआ? आप यह क्या कह रही हैं?"

    इशिका: (रोते हुए, कांपती हुई आवाज़ में) "अभिमान भैया... उन्होंने..."

    इशिका की बात पूरी होने से पहले ही पद्मिनी देवी उसे गले लगाकर रोने लगती हैं.

    पद्मिनी देवी: "अरे, क्या बताएगी यह बेचारी? कल रात... जब सब सो गए थे... तो अभिमान चुपके से इशिका के कमरे में गया... और..."

    पद्मिनी देवी जानबूझकर अपनी बात अधूरी छोड़ देती हैं. सबकी नजरें अभिमान पर टिक जाती हैं, जो मेज पर बैठा यह सब देख रहा था. उसके चेहरे पर गुस्सा और हैरानी दोनों थी.

    विक्रम: "क्या बकवास कर रही हो, दीदी! मेरा अभिमान ऐसा नहीं कर सकता!"

    इशिका: (हिचकियों के साथ) "उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी... उन्होंने मुझे धमकी दी कि अगर मैंने किसी को कुछ बताया, तो वह... वह मुझे जान से मार देंगे."

    यह सुनते ही मीना रघुवंशी के हाथ से चाय का कप गिर जाता है. उनके चेहरे का रंग उड़ जाता है. वह दर्द भरी नज़रों से अभिमान को देखती हैं.

    मीना: "अभिमान... यह सच नहीं हो सकता, है ना? बेटा... तुम कुछ बोलो!"

    अभिमान: "माँ! यह सब झूठ है! मैं कसम खाता हूँ कि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया. ये दोनों मिलकर झूठ बोल रही हैं. ये कल की बेइज़्ज़ती का बदला लेना चाहती हैं!"

    पद्मिनी देवी: "बेइज़्ज़ती का बदला? क्या एक लड़की की इज़्ज़त से खेलना, तुम्हारे लिए बदला है?"

    दादासा: "अभिमान... तेरी आँखें देख रही हैं कि तू गुस्से में है. क्या सच में तूने..."

    अभिमान: "नहीं दादासा! आप सब जानते हैं कि मैं ऐसा नहीं हूँ. मैं हॉवर्ड में पढ़ा हूँ... मुझे ये सब करने की क्या ज़रूरत है? आप लोग इस नाटक पर विश्वास कर रहे हैं?"

    विक्रम: "हम नाटक पर विश्वास नहीं कर रहे! हम उस लड़की के आँसुओं पर विश्वास कर रहे हैं! तूने हमारे कुल पर कलंक लगा दिया, अभिमान! हमारी इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी!"

    अभिमान: "पिताजी! आप इस झूठी औरत की बात पर भरोसा कर रहे हैं? इसकी गंदी चाल पर?"

    विक्रम: "खामोश! मेरे सामने ज़ुबान मत चलाना! उस दिन तो यह सिर्फ रिश्ता तय होने की बात थी, पर आज बात किसी की इज़्ज़त की है! तू इस हवेली का कुंवर नहीं... तू एक बलात्कारी है!"

    विक्रम का यह शब्द अभिमान के दिल में तलवार की तरह चुभता है.

    अभिमान: "आप मुझ पर विश्वास नहीं कर रहे?"

    विक्रम: "विश्वास? तुमने हमारे विश्वास को तोड़ा है. और मैं आज इस रघुवंशी परिवार का मुखिया होने के नाते यह फैसला लेता हूँ..."

    विक्रम सिंह गुस्से में काँपते हुए कहते हैं.

    विक्रम: "अभिमान सिंह रघुवंशी! आज से तुम इस हवेली से बाहर निकाले जाते हो! तुम हमारे बेटे नहीं! तुम इस परिवार के लिए मर चुके हो!"

    अभिमान की आँखें नम हो जाती हैं. उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका अपना परिवार एक झूठे इल्ज़ाम पर उसे इतना बड़ा दंड देगा.

    वह अपनी माँ की तरफ देखता है. मीना की आँखें भरी हुई थीं, पर उन्होंने अपने पति का साथ दिया.

    मीना: "जाओ अभिमान... जाओ यहाँ से..."

    अभिमान एक पल के लिए सबको देखता है. दादासा, दादीसा, काकासा... सबके चेहरे पर शर्मिंदगी और गुस्सा था. उसने एक नज़र इशिका और पद्मिनी देवी को देखा, जो अब हल्की सी मुस्कान के साथ उसे देख रही थीं.

    अभिमान बिना कुछ कहे, बिना मुड़े, अपना सिर झुकाकर हवेली से बाहर निकल जाता है. उस दिन राजस्थान की उस विशाल हवेली में हमेशा के लिए सन्नाटा पसर गया था, और हवेली की रौनक के साथ-साथ उनके बेटे का दिल भी बाहर निकल गया था.
    अभिवान अंदर से पूरी तरह से टूट गया था। उसके परिवार ने उस पर भरोसा नहीं किया और उस पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाया। अपनी बेगुनाही साबित करने के बाद, उसने अपने घर और सारी संपत्ति छोड़ दी।
    ठीक उसी समय, उसके पास अव्यांशी का फोन आया। जैसे ही अभिमान ने 'हेलो' कहा, अव्यांशी समझ गई कि वह किसी मुसीबत में है। उसने अभिमान से उसकी परेशानी पूछी। अभिमान ने कुछ नहीं बताया, बस इतना कहा, "मैंने अपना घर छोड़ दिया है। अब मैं न तो राजस्थान का कुंवर सा हूं और न ही रघुवंशी ग्रुप का वारिस।"
    तब अव्यांशी ने उसे लंदन में अपने पास आने के लिए कहा, और अभिमान मान गया।
    एक महीना बीत गया था. रघुवंशी हवेली में सन्नाटा पसरा हुआ था, जैसे वहाँ से रौनक के साथ-साथ ज़िंदगी भी चली गई हो. विक्रम सिंह रघुवंशी और मीना अपनी बेबसी और शर्मिंदगी में डूबे रहते थे. उन्हें हर पल अभिमान के चेहरे की उदासी और आँखों का विश्वासघात याद आता था.

    इसी बीच, अभिमान के एक पुराने वफादार नौकर, मोहन, ने कुछ ऐसा कर दिखाया, जिसने सारी सच्चाई सामने ला दी. उसने बताया कि कैसे उसने पद्मिनी देवी और इशिका की साजिश की बात सुन ली थी. मोहन ने चुपके से उनके कमरे के पास जाकर उनकी पूरी बातचीत अपने फोन में रिकॉर्ड कर ली थी, क्योंकि उसे उन दोनों पर पहले से ही शक था.

    मोहन ने वह रिकॉर्डिंग विक्रम सिंह को दी. जैसे ही विक्रम ने वह रिकॉर्डिंग सुनी, उनके हाथ-पांव काँप उठे. उनकी आँखों में गुस्सा और आत्मग्लानि के आँसू एक साथ आ गए. उन्होंने तुरंत सबको बुलाया और वह रिकॉर्डिंग पूरे परिवार को सुनाई.

    विक्रम: (हाथों में फोन पकड़े हुए) "मैंने... मैंने अपने बेटे को घर से निकाल दिया... एक ऐसी औरत के झूठ पर विश्वास करके... जिसकी ख़ून में ही धोखा है."

    सबके सिर शर्म से झुक गए. पद्मिनी देवी और इशिका को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें.

    पद्मिनी देवी: "नहीं... नहीं, यह झूठ है... यह रिकॉर्डिंग झूठी है."

    विक्रम: (गरजते हुए) "चुप हो जाओ! आज से तुम मेरी बहन नहीं, और यह लड़की मेरे लिए अजनबी है. तुम दोनों ने हमारे परिवार की इज़्ज़त और मेरे बेटे की ज़िंदगी बर्बाद करने की कोशिश की है! पुलिस को बुलाओ! इन दोनों को इनकी करनी की सज़ा मिलनी चाहिए."

    परिवार के सदस्यों ने तुरंत पुलिस को बुलाया. पुलिस आई और पद्मिनी देवी और इशिका को गिरफ्तार करके ले गई. जाते-जाते पद्मिनी देवी ने विक्रम सिंह को घूरकर देखा, पर उनकी हिम्मत नहीं हुई कि वह कुछ कह सकें.

    माफ़ी और रिश्तों का टूटना

    अगले दिन, पूरा परिवार अभिमान को खोजने निकला. वह उन्हें शहर से दूर, एक छोटी सी जगह में मिला, जहाँ वह किराए के कमरे में रह रहा था.

    विक्रम सिंह, मीना और दादासा उसके सामने खड़े थे.

    विक्रम: (आँखों में आँसू लेकर) "अभिमान... मुझे माफ़ कर दे, बेटा. मैं... मैं बहुत शर्मिंदा हूँ. मैं तेरे भरोसे को नहीं समझ पाया. उस शैतान औरत की बात पर यकीन कर लिया. मैंने तुझे घर से निकाला... मैं कितना बड़ा गुनहगार हूँ."

    मीना: (रोते हुए) "बेटा, हमें माफ़ कर दे. हम सबने तुझ पर विश्वास नहीं किया. वापस चल, मेरे लाल. तेरा घर, तेरी हवेली तेरा इंतज़ार कर रही है."

    अभिमान एक पल के लिए सबकी तरफ देखता है. उसके चेहरे पर कोई गुस्सा नहीं था, बस एक गहरी, टूटी हुई उदासी थी.

    अभिमान: "आपकी माफ़ी... मुझे स्वीकार है, पिताजी. लेकिन मैं वापस नहीं आ सकता."

    विक्रम: "क्यों, बेटा? अब तो सब सच सामने आ गया है. मैं मानता हूँ कि मैंने गलती की, पर अब हम सब कुछ ठीक कर देंगे."

    अभिमान: "आप लोग यह नहीं समझ रहे हैं कि गलती यह नहीं थी कि आपने उस पर विश्वास किया, गलती यह थी कि आपने मुझ पर विश्वास नहीं किया. मेरा दिल इस बात से नहीं टूटा कि मुझ पर इल्ज़ाम लगा, बल्कि इस बात से टूटा कि आप सबने मुझ पर इतनी आसानी से विश्वास कर लिया."

    अभिमान की आवाज़ भारी हो गई.

    अभिमान: "यह हवेली, यह दौलत... सब आपका है. मुझे यह सब नहीं चाहिए. मैंने यह सब छोड़ दिया है. और इन रिश्तों को भी."

    मीना: "बेटा, ऐसा मत कहो. हम तुम्हारे बिना कैसे रहेंगे?"

    अभिमान: "आज से मैं अभिमान सिंह रघुवंशी नहीं. मैं सिर्फ अभिमान हूँ. जिसने रिश्तों पर से भरोसा खो दिया है. अब मुझे अपना नाम खुद बनाना है. बिना किसी विरासत के, बिना किसी पहचान के."

    अभिमान ने एक सूटकेस उठाया और बिना पीछे मुड़े, अपनी माँ, पिता, दादासा और अपने पूरे परिवार को छोड़कर चला गया. वह लंदन जाने वाला था, जहाँ वह अपनी ज़िंदगी की शुरुआत अकेले, एक नए इंसान के रूप में करने वाला था. उसके पास कुछ नहीं था, सिवाय अपनी टूटी हुई भावनाओं और एक नई शुरुआत की उम्मीद के.

  • 18. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 18

    Words: 1663

    Estimated Reading Time: 10 min

    यह सीन किसी हिंदी फिल्म या टीवी शो के लिए लिखा गया है, तो यह रहा एक संभावित ड्राफ्ट:
    सीन: लंदन में अभिमान और अव्यांशी की मुलाकात
    पात्र:
    * अभिमान: 28 साल, एक सफल बिजनेसमैन।
    * अव्यांशी: 24 साल, लंदन में अपनी पढ़ाई कर रही है।
    दृश्य: लंदन हीथ्रो एयरपोर्ट।
    सीन शुरू होता है
    (अभिमान एयरपोर्ट के एग्जिट गेट से बाहर आता है। वह अपने फोन में कुछ चेक कर रहा है। तभी उसकी नजर सामने खड़ी एक लड़की पर पड़ती है। वह उसे पहचानने की कोशिश करता है, लेकिन यकीन नहीं कर पाता। लड़की भी उसे देखती है और मुस्कुराती है। यह अव्यांशी है। उसने एक सिंपल सी ड्रेस पहनी हुई है और एक हाथ में एक बोर्ड पकड़ रखा है जिस पर "अभिमान" लिखा हुआ है।)
    अभिमान: (मन में) अव्यांशी! ये... ये वही अव्यांशी है? नहीं, ये तो नहीं हो सकती। इतनी बड़ी हो गई है... और कितनी बदल गई है।
    (अभिमान के चेहरे पर आश्चर्य और खुशी के मिले-जुले भाव हैं। उसकी आंखें थोड़ी नम हो जाती हैं। उसे वो दिन याद आता है जब अव्यांशी अपनी सौतेली माँ से छिपकर पढ़ाई करती थी, ताकि वो लंदन जा सके। आज वो यहाँ, उसके सामने खड़ी है। अभिमान की छाती गर्व से फूल जाती है।)
    अव्यांशी: (मुस्कुराते हुए) मुझे पता था आप मुझे पहचान नहीं पाएंगे।
    अभिमान: (आवाज़ में हल्की-सी कंपकंपी) अव्यांशी... तुम... तुम सच में यहाँ हो?
    अव्यांशी: (हंसते हुए) हाँ, मैं हूँ। आप तो ऐसे देख रहे हैं, जैसे कोई भूत देख लिया हो।
    अभिमान: (भावुक होकर) मैं तुम्हें देखकर बहुत खुश हूँ। मुझे तुम पर बहुत गर्व है।
    (अभिमान आगे बढ़कर उसे गले लगा लेता है। अव्यांशी भी उसे कसकर गले लगाती है। दोनों की आंखों में खुशी के आंसू हैं।)
    अभिमान: मुझे पता था तुम हार नहीं मानोगी। मुझे यकीन था तुम एक दिन अपना सपना पूरा करोगी।
    अव्यांशी: (अलग होकर) यह सब आपकी वजह से हुआ है, भैया। अगर आप मेरा साथ नहीं देते, तो मैं कभी यहाँ तक नहीं पहुँच पाती।
    (अव्यांशी उसका सामान लेने में मदद करती है। दोनों एयरपोर्ट से बाहर निकलते हैं और एक टैक्सी में बैठकर अव्यांशी के फ्लैट की तरफ जाते हैं। रास्ते में दोनों पुरानी बातें करते हैं और हंसते हैं।)
    दृश्य: अव्यांशी का 2BHK फ्लैट।
    (अव्यांशी का फ्लैट बहुत ही साफ-सुथरा और साधारण है। लिविंग रूम में एक छोटा-सा सोफा और एक बुकशेल्फ है। फ्लैट में एक छोटी-सी बालकनी भी है।)
    अव्यांशी: (फ्लैट का दरवाजा खोलते हुए) आइए, भैया। यह मेरा छोटा-सा घर है।
    अभिमान: (अंदर आते हुए) बहुत प्यारा है।
    अव्यांशी: (मुस्कुराते हुए) आपको पसंद आया?
    अभिमान: (चारों ओर देखते हुए) हाँ, बहुत।
    (अभिमान फ्लैट में घूमता है। वह देखता है कि दीवारों पर कुछ तस्वीरें लगी हैं। एक तस्वीर में अव्यांशी अपनी माँ के साथ है। दूसरी तस्वीर में अव्यांशी है, लेकिन वह बहुत पुरानी है, बचपन की। और एक तीसरी तस्वीर, जो अभिमान को चौंका देती है। वह तस्वीर अभिमान की है, जो कई साल पहले खींची गई थी।)
    अभिमान: (तस्वीर को देखकर) ये... ये मेरी तस्वीर यहाँ कैसे?
    अव्यांशी: (पीछे से आकर) मुझे पता था आप इसे देखकर हैरान होंगे। यह बहुत पुरानी है, है ना? मैंने इसे संभालकर रखा है। जब भी मैं अकेली महसूस करती हूँ, इसे देखती हूँ। मुझे लगता है आप मेरे साथ हैं।
    अभिमान: (गहरी सांस लेते हुए) अव्यांशी...
    अव्यांशी: (गंभीर होकर) आपने मुझे कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया, भैया। भले ही हम दूर थे।
    (अभिमान का दिल भर आता है। उसे लगता है कि उसका प्यार और सपोर्ट बेकार नहीं गया। वह बहुत स्पेशल महसूस करता है। उसकी आंखों में खुशी और गर्व के आंसू हैं।)
    अभिमान: (अव्यांशी का हाथ पकड़कर) मुझे तुम पर बहुत गर्व है, अव्यांशी। तुम एक बहुत अच्छी इंसान हो।
    अव्यांशी: (मुस्कुराते हुए) और आप एक बहुत अच्छे भाई।
    (दोनों एक-दूसरे को देखते हैं। सीन यहीं खत्म होता है। अभिमान के चेहरे पर एक सुकून और खुशी की मुस्कान है।)यहाँ अव्यांशी और अभिमान के बीच एक भावुक और दिल को छू लेने वाला सीन है:
    सीन: अव्यांशी का इज़हार
    पात्र:
    * अभिमान: 28 साल।
    * अव्यांशी: 24 साल।
    दृश्य: अव्यांशी का लंदन वाला फ्लैट।
    (अभिमान, अव्यांशी के फ्लैट में बैठा हुआ है। दोनों चाय पी रहे हैं। कुछ देर की खामोशी के बाद, अव्यांशी अभिमान की तरफ देखती है और अपनी बात शुरू करती है। उसकी आँखें नम हैं, पर आवाज़ में एक दृढ़ता है।)
    अव्यांशी: (गहरी साँस लेकर) अभिमान... मुझे आपसे कुछ कहना है।
    अभिमान: (हैरानी से) हाँ, कहो। सब ठीक तो है ना?
    अव्यांशी: सब ठीक नहीं था... जब तक आप मेरी ज़िंदगी में नहीं आए थे।
    (अभिमान उसे देखता रहता है, समझ नहीं पाता कि वह क्या कहना चाहती है। अव्यांशी आगे बढ़ती है और अभिमान के पास सोफे पर बैठ जाती है।)
    अव्यांशी: याद है... जब हम पहली बार मिले थे? मैं 11 साल की थी। मेरा दुनिया से विश्वास उठ चुका था। मुझे लगता था कि मेरी ज़िंदगी का कोई मकसद नहीं है। मेरी सौतेली माँ और मेरे पिताजी... मुझे पढ़ने नहीं देना चाहते थे। वो चाहते थे कि मैं घर के काम करूँ और जल्दी से शादी कर लूँ।
    (अभिमान को वह दिन याद आता है। उसे याद है कि उसने कैसे अव्यांशी को समझाया था कि वह हार न माने। उसने उसे चोरी-छिपे किताबें भेजी थीं और उसकी पढ़ाई में मदद की थी। यह सब याद करके अभिमान की आँखें भी नम हो जाती हैं।)
    अव्यांशी: लेकिन फिर आप मेरी ज़िंदगी में आए। आपने मुझे उम्मीद दी। आपने मुझे बताया कि मैं लड़ सकती हूँ। आप मेरे लिए आशा की एक किरण थे, अभिमान। जब भी मुझे डर लगता था, मुझे लगता था कि मैं हार जाऊँगी... मैं आपकी बातों को याद करती थी। आपने मुझे हिम्मत दी।
    (अभिमान उसकी बात सुनता रहता है। उसे याद आता है कि वह हमेशा से अव्यांशी से प्यार करता था। लेकिन उम्र के फासले और एक भाई होने की जिम्मेदारी ने उसे कभी अपने दिल की बात कहने नहीं दी।)
    अव्यांशी: मुझे पता है... आपने मेरे लिए कितना कुछ किया है। आपने अपनी जिंदगी को खतरे में डालकर मुझे बचाया। आपने मेरे लिए किताबें भेजीं। आपने मुझे लंदन भागने में मदद की... ताकि मैं अपनी ज़िंदगी बना सकूँ। और आज मैं यहाँ हूँ। एक ऐसी औरत बन चुकी हूँ, जिसे आप पर गर्व है।
    (अव्यांशी की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। वह अपना हाथ अभिमान के हाथ पर रखती है।)
    अव्यांशी: लेकिन मैं... मैं आपको सिर्फ अपना भाई नहीं मानती। मैं आपसे बहुत मोहब्बत करती हूँ, अभिमान। आप मेरी ज़िंदगी की उम्मीद हैं। आप ही वो वजह हैं, जिसके लिए मैं हर मुश्किल से लड़ी। अब मेरी बारी है। अब मुझे आपका ख्याल रखना है। मुझे आपको खुश रखना है। मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ, अभिमान। क्या आप मुझे अपना बना सकते हैं?
    (अभिमान की आँखें नम हो जाती हैं। वह अव्यांशी की बातें सुनकर इतना भावुक हो जाता है कि वह कुछ कह नहीं पाता। वह अपनी भावनाओं को नहीं रोक पाता और अपनी जगह से उठकर अव्यांशी को गले लगा लेता है।)
    अभिमान: (गले लगाते हुए, धीरे से) मुझे भी तुमसे प्यार है, अव्यांशी। हमेशा से।
    (दोनों एक-दूसरे को गले लगाते हैं। उनके आँसू खुशी और सुकून के हैं। यह सीन यहीं खत्म होता है।) Certainly! Here's a continuation of the story, picking up from the moment अभिमान (Abhimaan) and अव्यांशी (Avyanshi) embrace. This part focuses on the aftermath of the proposal, their conversation, and the emotional resolution.
    सीन: इजहार के बाद
    (अभिमान और अव्यांशी एक-दूसरे को गले लगाए हुए हैं। दोनों की आंखें नम हैं। कुछ देर बाद, अभिमान धीरे से अव्यांशी को खुद से अलग करता है। वह उसके चेहरे को अपने हाथों में लेता है और उसके आंसू पोंछता है।)
    अभिमान: मैं तुमसे कहना चाहता था... लेकिन कभी हिम्मत नहीं जुटा पाया। मुझे लगा... उम्र का फासला, और मेरा एक भाई जैसा रिश्ता... ये सब बहुत मुश्किल होगा।
    अव्यांशी: (मुस्कुराते हुए) मुश्किल तो बचपन से हमारी जिंदगी में है, भैया... और अब हमें पता है कि हम हर मुश्किल को एक-दूसरे के साथ पार कर सकते हैं।
    (अभिमान उसकी बात सुनकर मुस्कुराता है। उसकी आँखों में प्यार और राहत का भाव है।)
    अभिमान: मुझे याद है... जब तुम 11 साल की थी। तुम किताबों में इतनी खोई रहती थी कि तुम्हें अपने आस-पास की दुनिया का भी होश नहीं रहता था। तुम्हारी सौतेली माँ तुम्हें डांटती थी, लेकिन तुम फिर भी छुप-छुपकर पढ़ती थी। उसी दिन मुझे लगा था कि तुम बहुत हिम्मत वाली लड़की हो। मैं तभी से... तुम्हारी आँखों में एक उम्मीद देखता था।
    अव्यांशी: और मेरी आँखें सिर्फ आपकी वजह से चमकती थीं, अभिमान। वो उम्मीद आप ही थे। जब आप मुझसे मिलने आते थे... और मुझे चुपके से किताबें देते थे... मैं हर रात उन किताबों को गले लगाकर सोती थी। वो सिर्फ किताबें नहीं थीं, वो आपका प्यार था।
    (अभिमान की आँखों में फिर से आंसू आ जाते हैं। वह अव्यांशी के माथे को चूमता है।)
    अभिमान: मैं तुम्हें हमेशा से प्यार करता था, अव्यांशी। मैं तुम्हारी हर खुशी और हर दुःख का साथी बनना चाहता था। जब तुम लंदन आई... तो मेरा दिल बहुत खुश हुआ था। मुझे पता था कि तुम अपनी जिंदगी बना लोगी। मुझे यकीन था कि तुम अपनी सौतेली माँ और उस दर्द भरी जिंदगी से बहुत दूर निकल आओगी।
    अव्यांशी: (हाथ पकड़कर) और अब मैं वापस आ गई हूँ... आपके पास। मैंने अपनी जिंदगी बना ली है, अभिमान। अब मुझे सिर्फ आपकी जरूरत है। क्या आप... मुझे अपना बना लेंगे? हमेशा के लिए?
    (अभिमान एक पल के लिए अपनी आंखें बंद करता है। वह आज के दिन का सपना बचपन से देखता आ रहा था। उसने कभी सोचा नहीं था कि यह सच हो जाएगा। वह अपनी आंखें खोलता है और अव्यांशी की तरफ प्यार से देखता है।)
    अभिमान: हाँ, अव्यांशी। हमेशा के लिए।
    (वह झुककर अव्यांशी को किस करता है। यह एक लंबा और भावुक किस है, जिसमें उनका बचपन का प्यार, उनकी लड़ाई, और उनकी उम्मीदें सब कुछ शामिल हैं। इस पल में उन्हें लगता है कि उनकी जिंदगी की सारी परेशानियां खत्म हो गई हैं। वे अब एक साथ हैं, एक-दूसरे की मोहब्बत और उम्मीद में।)
    सीन एंड्स

  • 19. ये कैसी प्रित तुमसे पिया - हमारा सफर 🌸 - Chapter 19

    Words: 994

    Estimated Reading Time: 6 min

    यह रही एक संभावित पटकथा, जिसमें आपने जो दृश्य और भावनाएँ बताई हैं, उन्हें शामिल किया गया है।

    सीन: सच का सामना और नई शुरुआत

    पात्र:

    * अभिमान: 28 साल, अब एक टूटे हुए इंसान की तरह।

    * अव्यांशी: 24 साल, उसकी हिम्मत और प्रेरणा।

    दृश्य: अव्यांशी का लंदन वाला फ्लैट। रात का समय है।

    (अभिमान और अव्यांशी एक-दूसरे के साथ बैठे हैं। अभिमान बहुत शांत और परेशान लग रहा है। अव्यांशी ने उसे सांत्वना देने के लिए अपना हाथ उसके हाथ पर रखा हुआ है।)

    अव्यांशी: अभिमान, क्या बात है? आप बहुत परेशान लग रहे हैं। क्या हुआ?

    (अभिमान गहरी साँस लेता है और अपनी बात कहना शुरू करता है। उसकी आवाज़ में दर्द और निराशा है।)

    अभिमान: मुझे... मुझे घर से निकाल दिया गया है, अव्यांशी। मेरे परिवार ने मुझ पर भरोसा नहीं किया। मेरे अपने पिता... उन्होंने भी नहीं।

    अव्यांशी: (हैरानी से) क्या हुआ? किसने...?

    अभिमान: (आँखें बंद करके) मेरे छोटे भाई ने... मुझ पर आरोप लगाया है। कि मैंने उसकी मंगेतर के साथ... (वह रुक जाता है, उसके लिए यह शब्द कहना भी मुश्किल है)। मेरे परिवार ने उन पर भरोसा किया। उन्होंने कहा कि मैं परिवार का नाम खराब कर रहा हूँ। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं या तो यह आरोप मान लूँ और दूर चला जाऊँ, या फिर जेल जाने के लिए तैयार हो जाऊँ।

    (अभिमान की आँखों से आंसू बहने लगते हैं। अव्यांशी यह सुनकर सदमे में है, लेकिन वह जल्द ही अपनी भावनाओं पर काबू पा लेती है। वह अभिमान को गले लगा लेती है।)

    अव्यांशी: (उसे सांत्वना देते हुए) आप ऐसा कभी नहीं कर सकते। मैं जानती हूँ। मुझे आप पर पूरा भरोसा है।

    अभिमान: (सिसकते हुए) उन्होंने मुझ पर भरोसा नहीं किया, अव्यांशी। मेरे अपने परिवार ने... जिसके लिए मैंने सब कुछ किया। मैंने अपनी जिंदगी का हर पल उनके लिए दिया।

    (अव्यांशी धीरे-धीरे उसे अपने से अलग करती है और उसके चेहरे को अपने हाथों में लेती है। वह उसकी आँखों में देखती है। उसकी आँखों में अभिमान के लिए प्यार, सम्मान और एक नई उम्मीद है।)

    अव्यांशी: तो क्या हुआ? उन्होंने आप पर भरोसा नहीं किया। मैं हूँ ना। मुझे आप पर भरोसा है। उन्होंने आपको अपनी कंपनी से निकाला है, ना? तो क्या? आप उनसे भी बड़ी कंपनी खड़ी कर सकते हैं। आप में वो काबिलियत है, अभिमान। मैंने अपनी जिंदगी अकेले लड़ी है, लेकिन अब आप अकेले नहीं हैं।

    (अभिमान उसकी बातें सुनकर थोड़ा शांत होता है। उसे अव्यांशी की बातों में एक नई शक्ति और साहस महसूस होता है।)

    अव्यांशी: मैं आपके साथ हूँ। हम मिलकर सब कुछ करेंगे। आपने मुझे पढ़ाया, आपने मुझे लंदन भेजा। आपने मुझे अपनी जिंदगी में उम्मीद दी। अब मेरी बारी है। हम एक नया साम्राज्य खड़ा करेंगे। एक ऐसा साम्राज्य जो आपके नाम से जाना जाएगा, आपके काम से, आपके जुनून से।

    (अभिमान उसे देखता है। अव्यांशी की आँखों में जो आत्मविश्वास है, वह उसे प्रेरित करता है। वह महसूस करता है कि वह अकेला नहीं है। अव्यांशी उसके लिए सिर्फ प्यार नहीं, बल्कि एक सहारा भी है।)

    अभिमान: (थोड़ी देर बाद) अव्यांशी... तुम मेरी हिम्मत हो।

    (वह मुस्कुराता है और अव्यांशी को धीरे से अपनी गोद में लेता है। अव्यांशी भी खुशी से अभिमान की गोद में सिर रखकर सो जाती है। अभिमान उसे अपनी बाहों में भर लेता है। वह उसके बालों को सहलाता है और उसकी आँखों में एक नई उम्मीद के साथ देखता है।)

    सीन एंड्सVery good morning!

    यह रही एक पटकथा, जिसमें अव्यांशी अपनी बचत अभिमान को देती है और दोनों के बीच एक दिल छू लेने वाला और रोमांटिक पल होता है:

    सीन: नई शुरुआत की सुबह

    पात्र:

    * अभिमान: 28 साल।

    * अव्यांशी: 24 साल।

    दृश्य: अव्यांशी का लंदन वाला फ्लैट। सुबह का समय है। सूरज की पहली किरणें कमरे में आ रही हैं।

    (अभिमान सोफे पर बैठा हुआ है, कुछ सोच रहा है। अव्यांशी चाय की दो कप लेकर आती है और एक कप अभिमान को देती है। वह उसके पास बैठ जाती है।)

    अव्यांशी: क्या सोच रहे हैं?

    अभिमान: (गहरी साँस लेकर) कुछ नहीं। बस... एक नई शुरुआत के बारे में।

    अव्यांशी: तो फिर, देर किस बात की?

    (अव्यांशी अपने पर्स से एक बैंक पासबुक और कुछ कागजात निकालती है और अभिमान के सामने रख देती है।)

    अभिमान: (हैरानी से) ये क्या है, अव्यांशी?

    अव्यांशी: यह मेरी सारी बचत है। मैंने अपनी स्कॉलरशिप के पैसे और पार्ट-टाइम जॉब से जो भी कमाया, सब इसमें है। यह आपके नए बिज़नेस के लिए है।

    (अभिमान की आँखों में आंसू आ जाते हैं। वह पासबुक को देखता है, और फिर अव्यांशी की तरफ देखता है।)

    अभिमान: मैं यह नहीं ले सकता, अव्यांशी। यह तुम्हारी मेहनत की कमाई है।

    अव्यांशी: (उसका हाथ थामकर) यह सिर्फ मेरी नहीं, हमारी मेहनत की कमाई है। आपने मेरे लिए इतना कुछ किया है, अभिमान। आज अगर मैं यहाँ हूँ, तो आपकी वजह से। और अब... अब मैं आपके साथ हूँ। हम मिलकर अपना सपना पूरा करेंगे।

    (अभिमान अपनी आँखों से आंसू पोंछता है। वह अव्यांशी को देखता है और उसे गले लगा लेता है। वह उसे कसकर पकड़ता है, जैसे कि वह उसे कभी नहीं जाने देगा।)

    अभिमान: तुम मेरी जिंदगी में सबसे अच्छी चीज हो, अव्यांशी। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।

    अव्यांशी: (मुस्कुराते हुए) मैं भी आपसे बहुत प्यार करती हूँ, अभिमान।

    (अभिमान धीरे से उसे अपने से अलग करता है। वह उसके बालों को सहलाता है, और फिर उसके माथे पर एक किस करता है। वह उसकी आँखों में देखता है और दोनों एक दूसरे में खो जाते हैं। वे एक दूसरे की तरफ झुकते हैं और एक प्यार भरा किस करते हैं। इस पल में, उनकी सारी परेशानियाँ, उनका दर्द, सब कुछ गायब हो जाता है। सिर्फ प्यार, उम्मीद और एक नई शुरुआत की चाह बाकी रह जाती है।)

    अभिमान: (धीरे से) चलो, शुरू करते हैं। हम अपना खुद का साम्राज्य खड़ा करेंगे।

    अव्यांशी: (मुस्कुराते हुए) हाँ, हम करेंगे।

    (वे एक-दूसरे को देखते हैं और मुस्कुराते हैं। सूरज की रोशनी उनके चेहरों पर पड़ रही है, जैसे कि उनकी नई जिंदगी को आशीर्वाद दे रही हो।)

    सीन एंड्स