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Devta ka srap

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Soumya Ranjan Nanda

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"Ek amavas ki raat... ek sadiyon purana shraap... aur ek aisi taqat, jo har insani hadh ke pare hai." Rudra, ek sadharan ladka, lekin uski kismat mein likha tha ek aisa raaz jo uske purvajon se juda tha. Us raat, jab pura sheher so raha tha — Ru...

Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. Devta ka srap - Chapter 1

    Words: 1029

    Estimated Reading Time: 7 min

    लेखक: Soumya Ranjan Nanda



    ‎Devta ki श्राप

    ‎---



    ‎भाग 1: स्वर्ग की भूल



    ‎बहुत समय पहले की बात है। तब जब देवता सौंदर्य, ज्ञान और शक्ति में मग्न थे। देवताओं में एक देवता था — रुद्र, सौंदर्य का देवता। वह देवता अपने रूप पर अभिमान करता था। उसके रूप के चर्चे स्वर्ग से लेकर पृथ्वी तक फैले थे। नारी रूप हो या अप्सरा, हर कोई उसकी एक झलक के लिए तरसती थी।



    ‎पर रुद्र का हृदय कठोर था। उसने प्रेम को एक खेल बना दिया था। एक दिन उसने स्वर्ग की सबसे सुंदर राजकुमारी चारुलता को अपने प्रेमजाल में फँसाया। चारुलता, जो सच्चे प्रेम की प्रतीक्षा कर रही थी, ने अपने हृदय को रुद्र को सौंप दिया। परंतु रुद्र का मन जब उससे ऊब गया, उसने चारुलता को त्याग दिया।



    ‎अपमान और टूटे हृदय की पीड़ा में चारुलता ने स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया। उसकी चीखों से स्वर्ग कांप उठा। देवताओं की सभा में त्रिदेव प्रकट हुए — ब्रह्मा, विष्णु और महेश।



    ‎उन्होंने रुद्र से कहा:



    ‎> "तू जिसने प्रेम का अपमान किया है, तुझे अब मानव योनि में जन्म लेना होगा। हर अमावस की रात तू एक राक्षस बनेगा — अपने ही सौंदर्य का श्रापित रूप। तेरा श्राप तब तक नहीं टूटेगा जब तक तू किसी को सच्चे हृदय से प्रेम न करे… और वही प्रेम तुझसे छीन न लिया जाए।"







    ‎स्वर्ग से निष्कासित रुद्र को धरती पर भेज दिया गया।





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    ‎भाग 2: रुद्र का पुनर्जन्म



    ‎कई युग बीत गए। एक दिन एक छोटे से गाँव में एक बालक ने जन्म लिया। उसकी माता ने जन्म के बाद ही प्राण त्याग दिए और पिता का कोई पता नहीं था। गाँव वालों ने उसका नाम रखा — रुद्र।



    ‎उसके जन्म के साथ ही गाँव में अजीब घटनाएँ होने लगीं। कभी आसमान में काले बादल, कभी पशुओं का विचलित होना, कभी रातों को किसी की दहशत। रुद्र शांत बालक था, पर उसकी आँखों में एक चमक थी जो किसी साधारण मानव की नहीं थी।



    ‎जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, उसके अंदर एक बेचैनी जन्म लेने लगी। अमावस की रातों को उसे भयानक सपने आते — रक्त, अग्नि, चीत्कारें और एक स्त्री की जलती हुई छवि।



    ‎एक रात, जब वह सोलह वर्ष का हुआ — अमावस की रात उसके अंदर कुछ टूटा। उसका शरीर दर्द से काँप उठा, उसकी नसें काली होने लगीं, उसकी आँखें लाल… और वह बन गया एक दानव।



    ‎वह जंगल की ओर भाग गया।



    ‎गाँव में उसे श्रापित मान लिया गया। लोग उसे राक्षस कहते और पत्थर मारते।



    ‎रुद्र ने खुद को जंगल में अलग-थलग कर लिया। वह अपने ही अंदर के राक्षस से डरता था। उसे नहीं पता था कि वह कौन है, क्यों ऐसा होता है उसके साथ।





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    ‎भाग 3: सरबंगीनी का आगमन



    ‎कई वर्षों बाद एक दिन गाँव में एक नई लड़की आई — नाम था सरबंगीनी। वह नगर से आई थी, चित्रकारी में रुचि रखने वाली एक शांत, सुंदर, भावुक युवती।



    ‎वह प्राकृतिक दृश्यों को कैनवास पर उतारने आई थी — जंगल, पर्वत, पशु, पक्षी।



    ‎सरबंगीनी की मुलाकात रुद्र से जंगल में हुई। रुद्र ने डरते हुए उसे भगा देना चाहा, पर सरबंगीनी न डरी, न भागी। उसकी आँखों में रुद्र के लिए जिज्ञासा थी — भय नहीं।



    ‎धीरे-धीरे वे मिलने लगे। सरबंगीनी, जो खुद अपने अतीत से भागी थी, रुद्र की खामोशी में कुछ खास देखती थी।



    ‎रुद्र भी उसे देखकर शांत रहने लगा। उसके अंदर की बेचैनी कम होने लगी थी।





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    ‎भाग 4: प्रेम और शांति



    ‎रुद्र को अब सरबंगीनी से प्रेम हो गया था। वह उसे हर रोज देखता, उसे हँसते हुए देखता तो उसका दिल धड़कने लगता। वह जानता था कि उसके अंदर एक श्राप छिपा है, पर पहली बार उसे शांति मिली थी।



    ‎एक शाम, सरबंगीनी ने रुद्र से कहा:



    ‎> "तुम अलग हो, पर तुम्हारी आँखें साफ हैं। तुमने मुझे कभी कुछ कहा नहीं… पर जो नहीं कहा, वो भी मैं समझती हूँ।"







    ‎रुद्र ने अपना रहस्य बताया — अपनी सच्चाई, अपने श्राप की कहानी, और वो अमावस की रातें। सरबंगीनी कुछ देर चुप रही, फिर उसका हाथ थामकर बोली:



    ‎> "मुझे फर्क नहीं पड़ता। मुझे तुमसे प्यार है, जैसे तुम हो वैसे।"







    ‎उनका प्रेम गहरा होता गया। रुद्र हर अमावस से पहले दूर हो जाता, लेकिन सरबंगीनी उसके लिए प्रार्थना करती।



    ‎और एक दिन — जब रुद्र ने उसे चूमा — उसकी राक्षसी शक्ति शांत हो गई। उसका शरीर सामान्य रहा। पहली बार अमावस की रात को वह इंसान ही रहा।





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    ‎भाग 5: श्राप की पूर्णता



    ‎रुद्र को विश्वास हो चला कि उसका श्राप टूट रहा है। उसने सरबंगीनी के साथ जीवन बिताने का सपना देखा। परंतु त्रिदेव का श्राप अब भी अधूरा था।



    ‎एक रात सरबंगीनी को खाँसी आई। फिर बुखार। फिर रक्त। धीरे-धीरे उसकी साँसे कम होने लगीं। रुद्र ने हर दवा, हर पूजा की, पर कुछ असर नहीं हुआ।



    ‎सरबंगीनी ने उसकी गोद में सिर रखकर कहा:



    ‎> "कभी किसी से इतना प्यार मत करना कि जब वो जाए, तुम भी मर जाओ।"







    ‎अगली सुबह — सरबंगीनी चली गई।



    ‎रुद्र का श्राप उसी क्षण टूटा।



    ‎परंतु वह टूटा हुआ था। जिसने उसे प्रेम करना सिखाया, वही चली गई।





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    ‎भाग 6: अंत और निर्वाण

    ‎रुद्र अंतिम बार सरबंगीनी की कब्र पर गया। उसने अपने सारे चित्र वहीं जलाए। फिर उसने आकाश की ओर देखा — और वहाँ से एक प्रकाश उतरा।



    ‎त्रिदेव प्रकट हुए:



    ‎> "तेरा श्राप टूटा है, रुद्र। अब तू मुक्त है।"







    ‎रुद्र ने उत्तर दिया:



    ‎> "जब जीवन ही न रहा, तो मुक्ति किस काम की?"







    ‎उसने अपनी आँखें बंद कीं और स्वेच्छा से — ब्रह्मांड में विलीन हो गया।



    ‎कहते हैं, आज भी कभी-कभी अमावस की रात जंगल में हल्की सी रोशनी दिखाई देती है। वो रुद्र की आत्मा है… जो अपने प्रेम सरबंगीनी को ढूँढ रही है।





    ‎---



    ‎समाप्त।



    ‎"जिसने प्रेम को अपमानित किया, उसी ने प्रेम में जलकर मोक्ष पाया।"