प्रतापगढ़ के महल में हो रही अनहोनियों के बीच क्या अभिमन्यु और तपस्या का इश्क परवान चढ़ पाएगा? तपस्या सिंह, जो लंदन से इंडिया घूमने आई, जहां उसकी मुलाकात अभिमन्यु से हुई। क्या उनका प्यार भी प्रतापगढ़ के महल में हो रही साजिशों और तंत्र मंत्र का शिकार ह... प्रतापगढ़ के महल में हो रही अनहोनियों के बीच क्या अभिमन्यु और तपस्या का इश्क परवान चढ़ पाएगा? तपस्या सिंह, जो लंदन से इंडिया घूमने आई, जहां उसकी मुलाकात अभिमन्यु से हुई। क्या उनका प्यार भी प्रतापगढ़ के महल में हो रही साजिशों और तंत्र मंत्र का शिकार हो जाएगा या जीत होगी इनके प्यार के? जानने के लिए पढ़िए, "इश्क ए अनहोनी"
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रात का घनघोर अंधेरा प्रतापगढ़ के महल में पसरा था। चारों तरफ शांति छाई हुई थी। ऐसे लग रहा था जैसे वहां जीवित प्राणी के नाम पर चींटी भी ना हो। इस शांति के बीच महल के तहखाने में हलचल मची थी। तहखाने में तंत्र पूजा चल रही थी। वहां जोर-जोर से अलग-अलग तरह के मंत्रों की आवाज गूंज रही थी। कहने को वहां सिर्फ चंद लोग उपस्थित थे लेकिन वो आवाजें उनमें से किसी की नहीं थी। उन आवाजों के बीच एक काला साया तीन औरतो के साथ चल कर आ रहा था। उन औरतो ने अच्छे से साज सज्जा कर रखी थी और लम्बा घुंघट डाल रखा था। घूंघट पहनने के कारण उनका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। उन सबके आते ही माहौल में एक अजीब ही मनहूसियत छा गयी। पुरे स्थान मे मरे हुए जानवरो जैसी दुर्गंध फैल गई। वो तीनों औरतें वहां खड़ी राजकुमारी की तरफ बढ़ने लगी। राजकुमारी के साथ राजकुमार भी मौजूद थे। कुछ देर पहले ही उन दोनों की शादी हुई थी। उन दोनो के चेहरे पर डर के भाव थे। वो तीनों औरतें राजकुमारी के पास आने लगी। वो उस तक पहुंचती उस से पहले राजकुमार ने अपने पास मौजूद खंजर निकाला और राजकुमारी के सीने में घोंप दिया। उनकी इस हरकत पर वहां खड़े एक आदमी को गुस्सा आया और उसने उसी वक्त बिना सोचे समझे राजकुमार का सिर धड़ से अलग कर दिया। उसे मारने के बाद भी उनके चेहरे पर दुख का एक भी भाव नहीं था। जबकि थोड़ी देर पहले उसने जिसे मारा था, वो कोई और नहीं उसका खुद का बेटा था। _________ “ओह माय गॉड!" माथे से पसीना पोंछते हुए एक लड़की ने जल्दी से किताब को बन्द किया। किताब पढ़ने के बाद लड़की काफी घबरा गई। लंदन की तेज सर्दी में भी उसे गोरे चेहरे पर पसीने की बूंदें उभर आई। उसके होंठ कांप रहे थे। उसने खुद को सामान्य करने के लिए पानी की बॉटल की तरफ हाथ बढ़ाया, लेकिन वो खाली थी। “इसे भी अभी खाली होना था।“ लड़की झुंझला कर बोली और बोतल लेकर किचन की तरफ बढ़ी। जैसे ही लड़की पानी पीने के लिए वहां से गई, किताब पर मौजूद राजकुमारी के चित्र के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। किताब के पन्ने फड़फड़ाने लगे और वो वहां से गायब हो गई। थोड़ी ही देर में पानी पीने के बाद लड़की वापस कमरे में आई और सोने की कोशिश करने लगी। कुछ देर बाद वो नींद के आगोश में थी। ___________ प्रतापगढ़ के महल में भव्य शादी का माहौल का माहौल था। महल की चौखट पर एक नवविवाहित जोड़ा खड़ा था। वहां खड़े दूल्हे ने मुस्कुराते हुए अपनी दुल्हन को देखा। जैसे ही वो दोनों अंदर कदम रखने को हुए, किसी ने लड़की को अंदर की तरफ खींच लिया और लड़का वही बाहर दरवाजा पीटता रह गया। उस नवविवाहिता ने देखा कि सामने से बहुत सी स्त्रियां काले कपड़े पहन कर हाथ में थाली लेकर रोती हुई उसकी तरफ बढ़ रही थी। उन लोगों के हाथ चूड़ियों से भरे हुए थे। उन सब के रोने का स्वर सुनकर लड़की अपने कानों पर हाथ रखकर जोर से चिल्लाई। "कोई मुझे बचाओ..!" चिल्लाते हुए लड़की नींद से जाग गयी। इतनी ठंड मे भी डर के मारे उसका शरीर पसीने से तर-बतर हो गया। उसके दिल की धड़कनें बढ़ी हुई थी। "मैंने.... मैने उस महल मे राजकुमारी की जगह खुद को क्यों देखा? मै... मै वहाँ कैसे हो सकती हूँ? वो तो बस एक कहानी थी ना? वो बुक....!" लड़की ने कमरे मे चारों तरफ नजरे दौड़ाई। लेकिन उसे वो किताब कही भी दिखाई नही दी। "शायद.... शायद वो मेरा भ्रम होगा। मैंने रात को सोने से पहले उस किताब को पढ़ा था और उसे पढ़ने के बाद मुझे डर भी बहुत लगा था। सोने से पहले हम जिस बारे में पढ़ते हैं या सोचते हैं, अक्सर हमें उन्हीं के सपने आते हैं। ऊपर से मेरा नाम भी तपस्या ही है, तो शायद इस वजह से मैंने राजकुमारी तपस्या की जगह खुद को इमेजिन कर लिया।" तपस्या खुद को समझाने की कोशिश करने लगी। उसने घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 5 बज रहे थे। उसके उठने में अभी समय था, इसलिए वो फिर से सोने की कोशिश करने लगी। उसकी आंखों के सामने बार-बार उसका सपना आ रहा था, जिसे वो चाह कर भी भुला नहीं पा रही थी। सपने में उसे वो सब चीजे दिखाई दे रही थी, जो राजकुमारी के साथ हुआ था... बस इस बार राजकुमारी की जगह वो खुद थी। _________ हेलो डियर रीडर्स..... कहानी का ट्रेलर आपको कैसा लगा समीक्षा में जरूर बताइएगा। आगे के भागों के लिए बने रहिए। कीप सपोर्टिंग एंड स्टे ट्यून्ड
16वी सदी मे राजस्थान की रियासत विक्रमगढ़ पर महाराज सूरजसिंह का शासन था। सूरजसिंह एक चंद्रवंशी राजा थे। उनके पराक्रम और दयालुता के चर्चे सब जगह विख्यात थे। विक्रमगढ़ में रौनक लगी थी। चारो तरफ बस खुशियों का माहौल था। वहां की सारी प्रजा का रहना खाना दो दिनों से महल में हो रहा था। किसी भी चीज की कोई कमी नहीं रखी जा रही थी। इस जलसे का कारण 2 दिन बाद होने वाली राजकुमारी तपस्या की शादी थी। महाराज सूरजसिंह के दो बड़े बेटे राजकुमार उदयसिंह और विजयसिंह थे। राजकुमारी तपस्या उनकी सबसे छोटी और लड़की संतान थी। महाराज ने राजकुमारी तपस्या को परियो की तरह पाला था। तपस्या भी दिखने मे खूबसूरत होने के साथ -साथ बहुत गुणी भी थी। महल मे सबकी लाडली राजकुमारी जब खिलखिलाकर हंसती थी, तो मानो निर्जीव वस्तुएँ भी उनके साथ ठहाके लगाकर हँसते हो। समय बीतता गया और देखते ही देखते सबकी लाडली नन्ही राजकुमारी ने अपने जीवन के 17 बसंत पार कर लिए थे। विक्रमगढ़ का महल दिन मे भी रोशनी से जगमग कर रहा था। सूरज भी उसकी जगमाहट से बादलों के पार छुप गया था। आज महल की खुबसुरती के आगे राजकुमारी तपस्या के अलावा सब कुछ फीका पड़ रहा था। चारो तरफ बस खुशियों का माहौल था और मंगल गीत गाये जा रहे थे। राजकुमारी तपस्या ने अपनी शादी के लिए वर का चुनाव स्वयं किया था। भले ही उनका इस तरह से खुद केवल को चुनना उनके रिश्तेदारों और सगे संबंधियों को पसंद नहीं आया, लेकिन महाराज ने बिना कोई सवाल किए राजकुमारी की पसंद के अनुसार उनका विवाह पास के ही एक छोटी सी रियासत के राजकुमार महेंद्र प्रताप सिंह के साथ तय कर दिया था। कुछ ही समय मे बारात विक्रमगढ़ की सीमा पर पहुँचने वाली थी। उनके स्वागत की तैयारियां जोरों- शोरो से बढ़ गयी थी। इन तैयारियों के बीच कुछ दासियां आपस में कानाफूसी कर रही थी। सुखी बाई ने दबे स्वर मे कहा, "सुण रही हो ना बाईसा. ..राजकुमारी सा ने शादी के लिए किस ने चुना है? वो तो नासमझ से, पर महाराज? वो कैसे उनका साथ दे सके है?" उसके साथ काम कर रहै दूसरी दासी उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली, "मैं तो खुद हैरान हूं बड़ी बाई सा, एक तो राजकुमारी ने इतणी छोटी सी रियासत के राजकुमारी को चुना। ऊ के ऊपर पतो कोणी उण के बारे मे क्या क्या अफवाह फैली हुई से।" "धीरे बोलो काकीसा! कोई सुण ना ले। मणे तो ये तक सुणा है कि बाँके अठे नई दुल्हन की बलि देई जावे स। बहुत घणा तंत्र मंत्र चलते है उनके यहां... " वहां मौजूद एक और दासी रावी धीरे से फुसफुसाई। सुखी बाई ने हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए बोली, "मणे तो राजकुमारी सा की भोत घणी चिंता हो री स। कुलदेवी माँ व्याह के बाद उनको सुरक्षित राखे।" “राजघराणे की बाता से काकी सा...“ रावी ने फुसफुसाते हुए कहा, "सुणा है राजकुमारी सा का प्रेम विवाह हो रहा है राजकुमार के साथ में ...मणे तो आ प्रेम कम अनहोनी ज्यादा लाग रही है..." उसकी बात सुनकर मोहिनी थोड़ा गुस्से में बोली, "तु चुप कर छोरी... कोई सुन लियो तो, जान पर बन आवेगी। राजकुमारी माता रावी की बहुत बड़ी भक्त है... उनके साथ माता कभी गलत ना करेगी।“ मोहिनी ने उन सबको डांट कर चुप करवा दिया। वो उन सब में उम्र में बड़ी थी, तो उनके झिड़कने पर सभी अपने-अपने काम लग गई। _________ उधर दूसरी तरफ महल के एक कमरे मे महाराजा सुरजसिंह की उनकी रावी सरोजा देवी के साथ बहस हो रही थी। सरोजा देवी इस शादी से बिल्कुल भी खुश नही थी। वो बार- बार तपस्या को ये शादी ना करने के लिए समझाती रही... लेकिन हर बार उसने सभी बातों को अफवाह बताकर सरोजा देवी की बातों को टाल दिया। वहीं सरोजा देवी आखिरी घड़ी तक यही चाहती थी कि कैसे भी करके गई वो ये शादी रोक सके और आने वाले अनहोनीयों से तपस्या की रक्षा कर सकें। सरोजा देवी रोते हुए बोली, " मैं अपणी लाडो की शादी उस राजघराणे मे कभी ना होने दूंगी। महाराज आप तपस्या को क्यों ना समझाते। हम कैसे भूल सकते हो कि थारी बुआ सा की कैसे मौत हुई थी। उन की शादी भी उसी राजघराणे में शादी हुई थी। बुआ सा दुल्हन बणी तैयार बैठी थी.. और उसके बाद कै हुआ... किसी को कोई खबर ना मिली।" सूरज सिँह थोड़ा क्रोधित होकर बोले, "कैसी बातें कर रही हो राणी सा? बाकी लोग अफवाह फैलाते है... उन्हे हम जाके रोक ना सके है। परंतु आप भी उनकी तरह.... आज इतना शुभ दिन है। म्हारी लाडो का व्याह है। वो एक नए जीवन की शुरुआत करने जा रही है। उसे कैसे लगेगा, जब वो आपको ऐसे रोता- बिलखता देखेगी।" "हम सब कुछ जानते बुझते म्हारी लाडो को मौत के कुएं मे कैसे कूदने दे सकते है? हमें रह रहकर वो सब याद आ जाता है, जो थारी बुआ सा के साथ उनकी शादी के बाद हुआ था। लोग तो अठे तक केवे से... कि उस रात उणकी बलि दी गई थी।" "आप भी कठे दास- दासियों की बातों में आ गई। ये बस मनगढ़ंत बातें और किस्सों के अलावा और कुछ नहीं।" महाराज ने उन्हें समझाने की कोशिश की। सरोजा देवी क्रोध मे चिल्लाई, "थारे ये झूठे दिलासे बच्चों के लिए बचाकर रखिये। मत भूलिए हम भी इसी राजघराणे से ताल्लुक रखते हैं और सब पता है हमें।" महाराज रावी सा को समझाने की पूरी कोशिश कर रहे थे लेकिन वो अभी भी अपनी जिद पर अड़ी थी। जबकि दूसरी तरफ वो ये भी नहीं चाहते थे कि बाहर लोगों को पता चले कि सरोजा देवी इस शादी से नाखुश थी। उन्होंने तो इस बारे में राजकुमारी तपस्या से भी कुछ नहीं कहा था। सरोज देवी तपस्या की शादी की एक भी रस्म मे शामिल नहीं हुई थी। महाराज ने सब को ये बोल कर उनके पास जाने से रोक दिया कि वो बहुत अस्वस्थ है। लेकिन आज उनकी लाडली बेटी इस महल से विदा होने वाली थी। वो सरोजा देवी को उनके अधिकारों से वंचित भी नहीं रखना चाहते थे। बस यही सोचकर वो फिर उन्हें को समझाने आए थे। महाराज और सरोजा देवी आपस मे बहस कर रहे थे। तभी उनके बड़े बेटे कुँवर उदयसिंह अपनी पत्नी दर्शना के साथ वहाँ आए। उन्होंने उन दोनो की बाते सुन ली थी। कुंवर उदय सिंह ने अंदर आते हुए बोला, "कैसी बातें कर रही है आप माँ सा? जिन बुआ सा की बात आप करती है, वो दादा सा की बुआ थी। उनका दौर अलग था। वो पहले का समय था और उस वक्त तंत्र-मंत्र ज्यादा होते थे। अब ये सब नहीं होता।" दर्शना ने भी उसकी हां में हां मिलाई और कहा, "माँ सा आप बेवजह घबरा रही है और आपकी इस घबराहट की वजह से आप उन सभी खुशियों से वंचित हो गई, जिनमें आपको बाई सा के साथ होना चाहिए था। अब तो जिद छोड़िए और चलिए नीचे।" सरोजा देवी रोते हुए बोली, “आप तो म्हारे दर्द को समझिये। कुंवर सा दौर कोई भी हो.... चाहे जो बीत गया हो या आगे आने वाला हो। कुछ चीजें कभी ना बदले। अगर आज म्हारी लाडो को कुछ हुआ, तो ये राजघराणा खत्म हो जावेगा।" सरोजा देवी की बात सुनकर इस बार महाराज को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने सरोजा देवी को वहीं छोड़ दिया। सूरजसिंह ने कहा, "हमें लगा था आज आप अपनी जिद छोड़ देगी। शायद थारे भाग्य में अपणी लाडो का व्याह देखना नहीं लिखा है। आप यही रहिए... हम आपके बिना भी सारे काम कर सकते हैं।" रानी सा वही चीखती चिल्लाती रह गयी जबकि महाराज उदयसिंह और दर्शना के साथ में शादी में उपस्थित होने के लिए आ गए। ________ वहीं दूसरी तरफ राजकुमारी तपस्या शादी से पहले मंदिर में कुलदेवी की पूजा करने गई थी। मंदिर महल के ही एक हिस्से में बना हुआ था। फिर भी उनके साथ पूजा करने के लिए कई दास-दासियां आए हुए थे। उसने उन सब को बाहर ही रूकने का बोला और अकेली मंदिर में जाकर देवी मां से प्रार्थना करने लगी। राजकुमारी तपस्या ने अपने दोनो हाथ जोड़े और आंखे मूंदकर मन ही मन प्रार्थना करते हुए बोली, "हे माता रानी! कुलभवानी! आज थारे ही आशीर्वाद से मैं अपने नये जीवन की शुरुवात करने जा रही हूं। लोगो की कानाफुसी म्हारे से छुपी ना है। लेकिन हमें थारे पर पुरा विश्वास है। आप म्हारे साथ कुछ गलत नही होने दोगी। मातारानी, म्हारा साथ और हाथ कदे ना छोड़ना।" देवी माँ से प्रार्थना करने के बाद राजकुमारी तपस्या पूजा थाल से आरती उतारने लगी। जैसे ही उन्होंने वो पूजा थाल नीचे रखा, वहाँ पड़े दीपक से उन के दुपट्टे में आग लग गयी। आग ज्यादा ना फैले, इसलिए जल्दबाजी मे तपस्या को कुछ समझ नही आया और उसने वहाँ मौजूद जल से वो अखंड दीपक बुझा दिया। जैसे तेसै पानी से उन्होंने अपने दुप्पटे की आग को भी बुझा दिया। आग बुझाने के बाद तपस्या का ध्यान दीपक की तरह गया तो वो घबरा गई। तपस्या घबराये स्वर मे बोली, "हे कुलदेवी! ये क्या अनर्थ हो गया म्हारे से? हमने तो जल्दबाजी में पूजा का अखंड दीया ही बुझा दिया। जबकि ये दीया कभी ना बुझे, इसके लिए निगरानी में हर वक्त यहां कोई न कोई मौजूद रहता है। और... और ये चुनरी.... ये तो खुद दादीसा ने हमें अपने हाथों से बना कर दी थी। इसे देते वक्त उन्होंने यही कहा था कि इस चुनरी के रूप में उनका आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ रहेगा। मातारानी बस ये एक संजोग ही हो... ना कि आने वाली कोई अनहोनी की दस्तक... " तपस्या ने खुद को समझाकर शांत किया और वहाँ से चली गयी। सूरज ढलने मे कुछ ही समय शेष था। शादी का समय निकट आ रहा था। राजकुमारी को तैयार करने मे काफी सारी दासियां जुटीं थी। वो नही चाहती थी कि आज उन सबकी चहेती राजकुमारी के श्रृंगार मे कोई कमी रहे। ______ उधर दूसरी तरफ प्रतापगढ़ से राजकुमार महेंद्र प्रताप सिंह की बारात विक्रमगढ़ पहुंच चुकी थी। वो विक्रमगढ़ की सीमा पर बने जनवासे में आराम कर रहे थे। बारात महल पहुंचने की तैयारियां कर रही थी। बाहर काफी धूमधाम थी। ढोल नगाड़े बजाए जा रहे थे। वैसे तो राजकुमार महेंद्र सिंह पास के ही एक छोटी सी रियासत प्रतापगढ़ के राजकुमार थे। लेकिन दूसरा सच ये भी था कि प्रतापगढ़ की विरासत अब बस नाम की ही रह गई थी। वहां पर रहने वाले ज्यादातर लोग पलायन कर चुके थे। ऐसे में राजकुमारी तपस्या का शादी के लिए महेंद्र प्रताप सिंह को चुनना जनता को भी थोड़ा कम ही पसंद आया था। जनवासे से बारात निकलने की तैयारियां पूरी हो चुकी थी। राजकुमार महेंद्र प्रताप सिंह की बारात निकलने से पहले आरती की जा रही थी। आरती के बाद कुछ पारंपरिक रस्मे निभाने के लिए राजकुमार के पिता तेज प्रताप सिंह उनके पास आए। तेज प्रताप सिंह राजकुमार को कलंगी पहनाते हुए बोले, "आज सही मायने मे थे म्हारी मातृभूमि का करज उतारने जा रहे हो राजकुमार। म्हारे वंशज थारा बलिदान युगो -युगो तक दोहराएगा।" तेज प्रताप सिंह की बातें सुनकर राजकुमार महेंद्र प्रताप सिंह की नजरें झुक गई और चेहरे पर उदासी छा गई। उनका उतरा हुआ चेहरा देखकर तेज प्रताप को अच्छा नहीं लगा। वो नहीं चाहते थे अब अंतिम घड़ी में महेंद्र प्रताप अपने फर्ज से पीछे हटे। तेज प्रताप ने कहा, "क्या बात है राजकुमार? थारे चेहरे पर ये उदासी क्यूँ? क्या राजकुमारी के प्रेम के वश मे होकर थे थारा फर्ज भूल जाओगे के? ये सब मोह माया है और कुछ नहीं।" राजकुमार महेंद्र– "ना पिता महाराज! हम अपणे फर्ज से कभी पीछे नही हटेंगे। लेकिन जरूरी है के... कि ईण सबमे राजकुमारी की जा..... " बोलते-बोलते महेंद्र प्रताप के शब्द वही रुक गए। जबकि उनकी बात सुनकर तेज प्रताप के मन मे ये आशंका घर कर गई कि कही आखिरी मौके पर राजकुमार पीछे ना हट जाए। वो उन्हे समझाने की पूरी कोशिश कर रहे थे कि तभी उनके बड़े दादा सा प्रतापसिंह वहाँ आये। उन्हे देख कर वो दोनो चुप हो गए। प्रतापसिंह ने मुस्कुराते हुए पूछा, " किस फर्ज को निभाणे की बाते हो रही है पिता- पुत्र मे?" महेंद्रप्रताप ने बुझे स्वर मे जवाब दिया, "बड़े दादा सा! बापू सा हमे शादी से जुड़े फ़र्ज़ के बारे मे बता रहे थे।" प्रतापसिंह हँसते हुए बोले, "तब तो थे थारी कमर कस ही लो राजकुमार। व्याह के बाद तो थारा जीवन अपणी संगिनी के हिसाब से बीतेगा।" तेज प्रताप ने बात को टालते हुए कहा, "बारात निकलने की शुभ घडी हो गयी है दादा सा.... थारी आज्ञा हो तो अब चले?" "म्हारी आज्ञा और आशीर्वाद तो म्हारे राजघराणे पर हमेशा रहेगा। अब देर ना करो... घर की लक्ष्मी को जल्दी से घर लेकर आणा है।" प्रताप सिंह उसके सिर पर हाथ फेरकर बोला। प्रताप सिंह के सामने तेज प्रताप ने बात टाल दी थी। उनके जाते ही तेजप्रताप ने आंखों ही आंखों में इशारा करके उन्हें समझा दिया था कि अब महेंद्र प्रताप अपने फर्ज से पीछे नहीं हट सकते। जबकि महेंद्र प्रताप ना चाहते हुए भी उनके हाथों की कठपुतली बने हुए थे। ★★★ पार्ट पड़कर रेटिंग और समीक्षा जरूर दे। कीप सपोर्टिंग ऑलवेज
जनवासे से राजकुमार महेंद्र प्रताप सिंह की बारात गाजे- बाजे से निकल पड़ी थी। महल से जनवासा ज्यादा दूरी पर स्थित नहीं था। सूरज ढलने से पहले ही बारात विक्रमगढ़ के महल के आगे खड़ी थी। जहां एक तरफ रावी सरोजा देवी अपने कक्ष में बैठकर आंसू बहा रही थी, तो वहीं दूसरी तरफ कुलवधुए दर्शना और सुदर्शना राजघराने की अन्य महिलाओ के साथ महेंद्र प्रताप का स्वागत कर आरती कर रही थी। राजकुमारी अपनी सखियों के साथ साज- श्रृंगार कर तैयार हो चुकी थी। लाल शादी के जोड़े मे गहनो से परिपूर्ण राजकुमारी साक्षात देवी माँ का स्वरूप लग रही थी। "आज तो राजकुमार होने वाली दुल्हन को देखते ही रह जायेंगे। आपकी खूबसूरती को किसी की बुरी नज़र ना लग जाए।" तपस्या की सहेली सुमन ने उनके काला टीका लगाकर कहा। "माँ सा का स्वास्थ्य अभी तक ना सुधरा क्या?" तपस्या की नजरे अपनी माँ को ढूंढ रही थी। उनके दिल की उदासी उनकी सूनी आंखों से साफ नजर आ रही थी। सुमन ने तपस्या की बात का कोई जवाब नहीं दिया। "ऐसा भी क्या हो गया, जो माँ सा हमारी शादी में सम्मिलित होने के लिए नहीं आ सकती। हम तो उनसे मिलने जा ही सकते हैं। सुमन! तुम हमें माँ सा के कक्ष तक ले कर चलो।" तपस्या ने अपने चेहरे पर घुंघट डाला और सुमन के साथ सरोजा देवी के कमरे की तरफ बढ़ी। रावी सा अभी भी वहां पर बैठकर अपनी लाचारी पर आंसू बहा रही थी। तपस्या को वहां देख कर वो बहुत खुश हुई और उन्होंने सुमन को बाहर जाने का इशारा किया। सरोजा देवी ने तपस्या के सिर पर हाथ फेर कर बोला, "थे क्यों खुद ही अपनी मौत को दावत देने पर तुली हो म्हारी लाडो? हमने थारे को ई ब्याह खातिर मना किया था ना। महेंद्र प्रताप थारे लायक नहीं है लाडो। अभी भी कुछ ना बिगड़ा है.... तू इस शादी से भाग जा।" सरोजा देवी की बात सुनकर तपस्या दंग रह गई। उसने खुद को सरोजा देवी से दूर किया। " ये कैसी बात कर रहे हो माँ सा? मां तो अपनी छोरी को कुल की मर्यादा का पार्थ पढ़ाती है और आप हैं कि हमें....! बापू सा सही कह रहे थे कि थारी मां की मानसिक हालत ठीक नहीं है। थारे को आराम की जरूरत है।" कहकर तपस्या वहां से बाहर चली गई। “म्हारी बात तो सुन लाडो....“ रावी सरोजा देवी ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वो उनकी बात को अनसुना कर वहां से चली गई। तपस्या गुस्से मे वहाँ से अपने कक्ष मे वापिस जा रही थी कि तभी उनकी नज़र पास के झरोखे से बाहर की तरफ गयी, तो उनका गुस्सा पल में पिघल गया और चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी। राजकुमार महेंद्र सिंह की बारात महल पहुँच चुकी थी। उसने देखा कि उसकी भाभियाँ दर्शना और सुदर्शना अन्य स्त्रियों के साथ उनकी आरती उतार रही थी। दासियां उन पर फूल बरसा रही थी, तो अन्य लोग बारात मे आए व्यक्तियों के स्वागत मे लगे थे। तपस्या दूर से उनकी तरफ देख रही थी कि किसी ने उन्हे पीछे से धक्का दिया। उन्होंने खुद को दीवार के सहारे सम्भाला। तपस्या ने पीछे देखते हुए कहा, "क....कौन है?" वहाँ आसपास कोई मौजूद नही था। उसने खुद से कहा, “शायद म्हारे को वहम हो गया होगा।“ इसे अपने मन का वहम समझकर तपस्या वहाँ से अपने कक्ष मे चली गयी। उनके जाते ही वहाँ हवा का एक तेज झौंका गुजरा और आगे जाकर एक अपूर्ण आकृति का रूप ले लिया। वो आकृति किसी औरत की थी, जिसने लम्बा घूँघट ले रखा था और उसके पूरे हाथ असंख्य चूड़ियों से भरे हुए थे। किसी का ध्यान उस की तरफ नही गया और वो धीमे कदमो से महल मे इधर उधर विचरण करने लगी। _______ उधर राजकुमारी तपस्या महेंद्र प्रताप सिंह को दुल्हा बना देखकर मन ही मन बहुत खुश हो रही थी क्योकि उन्हें उनकी पसंद का जीवन साथी मिल रहा था। तपस्या ने अपने परिवार वालों को इस शादी के लिए राजी करने के लिए बहुत मेहनत की थी। तपस्या राजकुमार के ख्यालो मे खोई हुई थी कि तभी उसकी दोनो भाभियाँ कुछ दासियां के साथ उसके कक्ष मे आई। "चलिए बाई सा..! फेरो का वख्त हो गया। आज थारी डोली यहाँ से उठ जावेगी।" दर्शना ने तपस्या के चेहरे पर घुंघट डालते हुए कहा। "और आप हमेशा के लिए पराई हो जावेगी" सुदर्शना ने उदास स्वर मे कहा। उनकी बात सुनकर तपस्या की आंखे नम हो गई और उनके गले लग गई। “चलिए बाई सा.... पंडित जी थारे को फैरो के लिए बुला रहे है।“ एक दासी आकर बोली। तपस्या ने उसकी बात पर हामी भरी और उन लोगो के साथ मंडप की ओर चल दी। उसे देखकर महाराज सुरजसिंह ने सोचा, "कितनी नाज़ों से पाला था सरोजा ने अपणी लाडो को... और आज वो ही इसकी विदाई देखने खातिर मौजूद ना है।" सरोजा का सोचकर महाराज की आँखें नम हो गयी। उन्होंने अपनी उदासी को मुस्कुराहट के पीछे छिपा लिया। तपस्या शादी की विधियों के लिए महेंद्र प्रताप सिंह के पास आ कर बैठी। उस औरत का साया अभी भी इधर-उधर घूम रहा था। महल मे इतनी रौनक के बाद भी एक मनहुसी सी छाई थी। "पता नही क्यों लेकिन दिल को वो खुशी महसूस ना हो रही, जो हमने सोची थी।" सोचते हुए राजकुमारी ने महेंद्र प्रताप की तरफ देखा तो वो नजरे झुका कर बैठे थे। तपस्या उसकी तरफ देख कर मुस्कुराई और अपना मुंह सामने की तरफ कर दिया। जिन झुकी नजरों को वो महेंद्र प्रताप के संस्कार समझ रही थी; वो नजरे तो शर्म से झुक रही थी। महेंद्र प्रताप अपने पिता को दिए वचन के आगे मजबूर थे। राजकुमारी तपस्या की शादी राजकुमार महेंद्र प्रताप सिंह के साथ पूरी विधि विधान से संपन्न हो चुकी थी। थोड़ी देर बाद बची हुई रस्मे निभाने के बाद सुबह गोधूलि बेला में महाराज अपने परिवार सहित उन्हें भावभीनी विदाई दे रहे थे। सरोजा देवी भी वहां पर मौजूद थी। महाराज सूरज सिंह उनसे अपने बेटी को विदा करने का हक नहीं छीनना चाहते थे इसलिए उन्होंने उन्हें वहां बुलवा लिया था। रोते हुए तपस्या अपनी मां के गले मिली तो सरोजा देवी ने सबकी नजरों से छुप कर उनके हाथ में एक ताबीज बांध दिया। तपस्या को अपनी मां की हरकत पर थोड़ा संदेह महसूस हुआ लेकिन मां का प्यार समझ कर उसने कुछ नहीं कहा। "लाडो तूने अपनी मनमानी करके ये ब्याह तो कर लिया, लेकिन जल्द ही थारे को सब सच पता चल जाएगा और तब ये ही ताबीज थारी रक्षा करेगा।" सरोजा देवी उसके कान में फुसफुसाई। उनकी बात सुनकर तपस्या चौंक गई, लेकिन इतने लोगो के बीच वो कुछ नहीं कह पाई। शादी की सभी रस्मों के बाद मंगल गीतों के साथ तपस्या की विदाई हुई। ___________ विदाई के बाद तपस्या की डोली प्रतापगढ़ के लिए विदा की गई। लगभग 3 दिन बाद बारात नई दुल्हन को लेकर प्रतापगढ़ की चौखट पहुंच चुकी थी। तपस्या अपने नए ससुराल को लेकर बहुत उत्साहित थी और मन ही मन एक नई दुल्हन की तरह अपने नए जीवन के सपने संजो रही थी। उसने सोचा था कि जैसे ही वो वहां कदम रखेगी तो घर की महिलाएं मंगल गान करती हुई उसका स्वागत करेगी। सभी उसे आशीर्वाद देंगी और उसके नए सफल विवाहित जीवन की कामनाएं करेंगी। आम लड़कियों की तरह वो भी अपने नए जीवन को लेकर खासी उत्साहित थी। जैसे ही तपस्या ने महेंद्र प्रताप सिंह के साथ महल की चौखट पर कदम रखा, उसके सारे सपने हवा की तरह उड़ गए। वहां जाकर उसने देखा कि घर में एक भी महिला मौजूद नहीं थी और पूरा महल बस पुरुषों से भरा हुआ था। तपस्या ने संदेह भरी नजरों से महेंद्र प्रताप की तरफ देखा तो उनकी नजरें झुकी हुई थी। तपस्या उनकी झुकी नजरों का मतलब नहीं समझ पा रही थी। वो उनसे कुछ पूछ पाती उससे पहले उसने देखा कि सामने से बहुत सारी औरतें काले कपड़ों में आ रही थी, उन्होंने लंबा घुंघट लिया था। उनका पूरा शरीर कपड़ों से ढका हुआ था और उन सब के हाथों में थाली थी। सबने अपने हाथो को चूड़ियों से भर रखा था। “हम तो डर ही गए थे, हमें लगा कि आपके घर में कोई महिला नहीं होंगी लेकिन इन सब ने काले रंग के कपड़े क्यों पहन रखे हैं? काला रंग तो हमारे यहां शुभ नहीं माना जाता।“ तपस्या महेंद्र प्रताप सिंह से बात कर रही थी कि तभी अचानक किसी ने उसे पीछे से धक्का दिया। उसने खुद को संभाला ही था कि महल के दरवाजे बंद हो गए। तपस्या ने घबराकर पीछे देखा तो महेंद्र प्रताप सिंह वहां पर मौजूद नहीं थे। वो उन काले कपड़ों वाली स्त्रियों के बीच घिरी हुई थी। “कौन है आप लोग? दूर रहिए म्हारे से...“ तपस्या ने खड़े होकर कहा। उन औरतों ने जवाब देने के बजाय जोर जोर से कर्कश रुदन करने लगी। उनके रोने का स्वर इतना तीव्र था कि कोई भी सामान्य इंसान उसे बर्दाश्त ना कर सके। “चुप हो जाइए..... थारी आवाज.....थारी आवाज म्हारे कानों में.... चुभ रही है।“ तपस्या ने अपने दोनों कानों पर हाथ रखकर जोर से चिल्ला कर कहा। वो सभी स्त्रियां चुप होने के बजाय और जोर से रुदन करने लगी। उसे कुछ नहीं समझ आ रहा था आखिर ये सब यहां पर क्या हो रहा था। वहां मौजूद सारे पुरुष कहां गायब हो गए। तपस्या के कानो से खून निकलने लगा था। वो उस ध्वनि को बर्दाश्त नहीं कर पाई और वहीं पर बेहोश होकर गिर गई। _______ रात्रि का तीसरा पहर चल रहा था। तपस्या को धीरे धीरे होश आ रहा था। उसने आँखे खोली तो उसे कुछ भी स्पष्ट नजर नहीं आ रहा था। कानों में हल्के हल्के मंत्रों के स्वर गूंज रहे थे। वो उठने की कोशिश की लेकिन ऐसा लग रहा था मानो कोई उसके शरीर को काबू में कर रहा हो। वो चाह कर भी वहां से खड़ी नहीं हो पा रही थी। काफी देर प्रयत्न करने के बाद भी तपस्या उठ नहीं पाई। उसे कुछ समझ नहीं था। हल्की रोशनी में उसे तीन औरतों के साए नजर आए। भले ही उसे सब कुछ धुंधला नजर आ रहा था लेकिन अब वो औरतें उन सभी औरतों से अलग थी, जो आंगन में रुदन कर रही थी। उनका चेहरा बालों से ढका हुआ था, जिन्हें देखकर समझ नहीं आ रहा था कि उनका मुंह आगे की तरफ गया पीछे की तरफ। तपस्या को समझते देर नही लगी कि उनकी माँ सा उन्हे किस खतरे से आगाह कर रही थी। काल को स्वयं अपने सामने देखकर अंतिम समय मे उसे अपनी माँ सरोजा देवी और पिता सूरजसिंह का चेहरा याद आने लगा, जिन्होंने अपने कलेजे के टुकड़े को इतने प्यार और आशीर्वाद से विदा किया था। उनके बारे में सोचकर तपस्या की आंखों में आंसू आ गए। "हे देवी मां! म्हारी रक्षा कीजिए। हमे इस मुसीबत से बाहर निकलिए माँ..!" तपस्या ने मन ही मन कुलदेवी माँ का स्मरण करना शुरू कर दिया। समय हाथ से धूल की तरह फिसला जा रहा था। समय का बीतता हर पल उसे मौत के और भी नजदीक ला रहा था। वो औरते धीमे कदमों से तपस्या की तरफ बढ़ रही थी। "कोई महारे को बचाओ।" तपस्या जोर से चिल्लाई और डर के मारे अपनी आंखे बन्द कर ली। "के हुआ राजकुमारी? थे इस तरह चिल्ला क्यों रही हो? और अचानक से कहां गायब गई थी आप।" राजकुमार महेंद्र की आवाज सुनकर तपस्या ने आंखे खोली तो खुद को एक कक्ष में बिस्तर पर पाया। डर के मारे तपस्या का शरीर पसीने से तरबतर हो गया। उसने आंखे खोली, तो महेंद्र प्रताप सिंह को अपने सामने देखकर उनके सीने से लिपट कर रोने लगी। "वो...वो सब औरते कहां गई? आप.....आप म्हारे को बचा लो। वो सब म्हारी जान ले लेवेगी।" "राजकुमारी म्हारे खानदाण में एक भी स्त्री जिंदा नहीं है। फिर... लगता है थारे को कोई बुरा सपना आया था। आप कुछ देर आराम करो।" महेंद्र प्रताप उन्हें वही छोड़ कर बाहर जाने लगा। “लेकिन...“ तपस्या ने उसे रोकने की कोशिश की लेकिन तब तक वो वहां से जा चुके थे। तपस्या अभी भी डर से कांप रही थीं। महेंद्रप्रताप गुस्से में अपने पिता के पास गए। "थारे को जो करना है, जल्दी कीजिए। वो सभी फिर से जागृत हो रही है।" तेजप्रताप ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया और दबे स्वर में कहा, "जाकर उसके हाथ से वो धागा निकालिए... वरना सारी मेहनत पर पानी फिर जावेगा। धागा निकालने के बाद जल्द से जल्द उन्हें यहां लेकर आओ।" आदेश देने के बाद वो फिर से अपने अनुष्ठान में लग गए। ______ रात्रि का चौथा पहर भी बीतने को था। महेंद्रप्रताप तपस्या को इन सबसे बचाना चाहते थे, लेकिन चाह कर भी उनका बस नही चल रहा था। वो आखिर बार तपस्या को अपने सीने से लगाकर अपने प्यार का इजहार करना चाहते थे। वो उनके कक्ष में गए, तो वो सो रही थी। वो तपस्या उसके पास आ गए और उसके पास जाकर प्यार से बालों पर हाथ फिराया। उनके हाथ रखने से वो डर कर खड़ी हो गई। "ओह..... आप हो..! आपने तो म्हारे को डरा ही दिया" तपस्या उठकर महेंद्र के पास बैठ गई। महेंदप्रताप उसे अपने दिल की बात बता पाते, तभी उन्हें अपने पिता की बात याद आ गई और उन्होंने तपस्या की नजरो से छुपकर उनके हाथ का ताबीज खोल कर फेंक दिया। "आप म्हारे संग चलिए। थारे को कुछ दिखाना है।" महेंद प्रताप तपस्या का हाथ पकड़कर उन्हें बाहर ले गए। “लेकिन क्या?“ तपस्या ने धीमी आवाज में पूछा। महेंद्र प्रताप सिंह की आंखों में अपने लिए प्यार देखकर तपस्या का सारा दर्द और थकान दूर हो गई। “आप खुद ही देख लेना।“ महेंद्र प्रताप सिंह ने बस इतना ही कहा और तपस्या का हाथ पकड़कर उसे महल के निचले हिस्से में ले जा रहा था। उसके कानो में वही रोने के स्वर फिर से सुनाई देने लगे; महेंद प्रताप के साथ होने की वजह से उसने इसे एक भ्रम समझ कर उनके साथ आगे बढ़ने लगी। जैसे ही तपस्या उनके साथ नीचे आई, वहाँ का दृश्य देखकर उसके पैरो तले जमीन खिसक गयी। तपस्या ने डर के मारे महेंद्र का हाथ कस कर पकड़ लिया। ★★★★
तपस्या महेंद्र प्रताप सिंह के साथ महल के तहखाने में आई थी। वहां का दृश्य देखकर उसके पैरो तले जमीन खिसक गई। वो डर कर वहां से भागने लगी। जैसे ही राजकुमारी तपस्या खुद की जान बचाने के लिए वहां से भागने लगी, महेंद्र प्रताप के पिता ने अपने मंत्रों की आवाज और तेज से कर दी। महल का वो हिस्सा प्रेत आत्माओं और नकारात्मक शक्तियों से भर चुका था। तपस्या अभी भी समझ नहीं पा रही थी कि आखिर वहां पर चल क्या रहा था। उसे ऐसे लग रहा था जैसे उनके पैर किसी ने जमीन में गाड़ दिए हो। वो वहां से हिल भी नहीं पा रही थी। "एक और चंद्रवंशी की आहुति! थारे इस वंश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।" वहाँ असंख्य आवाजे गूंजने लगी। तपस्या को वहाँ पर महेंद्रप्रताप और तेजप्रताप के अलावा कोई और नजर नही आ रहा था। "आप म्हारे को यहां क्यूं लेकर आए हो? म्हारे को डर लग रहा है" तपस्या ने घबराते हुए पूछा। उसकी आवाज सुनकर तेजप्रताप एक भयानक हंसी हँसते हुए बोला, "थारा सारा डर अब कुछ ही देर मे उड़न छूँ हो जावेगा छोरी।“ उसने अग्नि में अंतिम आहुति दी और उसी के साथ वहाँ अंधेरा हो गया। हवन की अग्नि ही एक मात्र उजाले का स्त्रोत थी। तपस्या ने देखा कि एक काला साया तीन औरतो के साथ चल कर आ रहा था। उन औरतो ने अच्छे से साज सज्जा कर रही थी और लम्बा घुंघट डाल रखा था। घूंघट पहनने के कारण उनका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। उन सबके आते ही हवाओं में एक अजीब ही मनहूसियत छा गयी। पुरे स्थान मे मरे हुए जानवरो जैसी दुर्गंध फैल गई। "थे इस घराणे की नई कुलवधु हो। आओ और अपना कर्तव्य निभाओ।" वो तीनों एक साथ बोली और तपस्या को जबरदस्ती पकड़कर तेज प्रताप के पास ले गई। महेंद्र प्रताप वहां पर एक कठपुतली की तरह खड़े थे। उनकी आंखों में पश्चाताप के आंसू थे लेकिन वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। उन औरतें ने जबरदस्ती तपस्या को ले जाकर एक बलि पर लेटा दिया। राजकुमारी खुद को बचाने के लिए महेंद्र प्रताप से गुहार लगा रही थी लेकिन उसकी हर एक चीख उसके गले में दबकर रह गई हो। वो चाहकर भी अपने मुंह से एक शब्द भी नहीं बोल पा रही थी। "थारे मन मे कई सवाल होंगे कि आखिर आप ही क्यु? मरने से पहले म्हे थारे सब सवालो के जवाब देंगे। तो सुनिये राजकुमारी...! आप एक चंद्रवंशी है। चंद्रवंशीयों की शक्ति चंद्रमा से जुड़ी होती है। चंद्रमा रात्रि का प्रतीक होता है और रात्रि अंधेरे और काली शक्तियों का...! जो औरते थारे को अठे आते ही मिली थी, वो म्हारे खानदान की वो चंद्रवंशी बहुए थी, जिणकी बलि दी जा चुकी थी। आप भी उणमे शामिल होने वाली है... तो वो थारे स्वागत के लिए आई थी।" कहकर तेजप्रताप जोर जोर से हँसने लगा। तपस्या बेबसी के आंसू बहा रही थी और अन्नायास ही उसे वो सारी बातें याद आने लगी, जो कहानी के रूप में उनकी दादी बचपन मे उन्हे सुनाया करती थी कि कैसे कुछ बुरे लोग शक्ति और अमर रहने की चाह में काली शक्तियों की पूजा करते हैं। वो अपने कुल की अमरता के लिए अक्सर नववधु या गर्भवती स्त्रियों की बलि दे देते थे। "अब थे इनसे मिलो..! ये म्हारे कुल की वो तीन कुलवधुएं है, जिन्होंने ये प्रथा चलाई और अपनी कुरबानी दी। और ये है उनके पति...! ये लोग अमर है। म्हारे को भी इनकी तरह अमर बनना है। तुम चंद्रवंशी की बलि और ताजा रक्त इनको अजर अमर बनाए रखता है।" तेजप्रताप की बात सुनकर तपस्या डर से कांपने लगी। वो समझ चुकी थी कि अगले ही पल उसके साथ क्या होने वाला था। "नही...! हम राजकुमारी को उन सैकड़ो आत्माओ की तरह भटकने ना दे सके है। हम मजबूर थे... लेकिन इन सेे प्रेम भी करते है।" महेंद्र प्रताप ने अपने मन में कहा। वो अभी भी तपस्या को उन सब से बचाना चाहते थे। उस काले साये उन तीन स्त्रियों के साथ मिलकर तपस्या की पूजा करनी शुरू की। वो लोग अपनी पूजा के अंतिम चरण तक पहुंच में थे, जहां तपस्या की बलि देने में बस कुछ ही क्षण बचे थे। पूजा में एक विशेष तरह का खंजर पड़ा हुआ था। महेंद्र प्रताप सिंह ने जल्दी से वो खंजर उठाया। इससे पहले कि वो लोग विधि विधान से तपस्या की बलि दे पाते, महेंद्र प्रताप सिंह ने उस खंजर को तपस्या के सीने के बीचो-बीच घोंप दिया। तपस्या दर्द से कराह रही थी। महेंद्र प्रताप की इस हरकत ने उन सबको गुस्से में ला दिया था। जैसे ही महेंद्र प्रताप ने तपस्या के सीने में खंजर घोंपा, अगले ही क्षण गुस्से में तेज प्रताप ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया। पूजा अधूरी रह जाने की वजह से वो लोग बहुत गुस्सा हो गए। वो लोग तपस्या की बलि तो नही दे पाए, तेजप्रताप ने तपस्या और महेंद्र प्रताप दोनों की आत्माओं को महल के काले जादू में कैद कर दिया। कहते है आज भी राजकुमारी तपस्या और महेंद् प्रताप सिंह की आत्माए उन असंख्य आत्माओं के साथ कैद है। वो काला साया और उसकी तीन पत्नियां अपने कुल की रक्षा के लिए अभी भी चंद्रवंशीयों की बलि देते हैं। ★★★★★ “ओह माय गॉड!" माथे से पसीना पोंछते हुए एक लड़की ने जल्दी से किताब को बन्द किया। किताब पढ़ने के बाद लड़की काफी घबरा गई। लंदन की तेज सर्दी में भी उसे गोरे चेहरे पर पसीने की बूंदें उभर आई। उसके होंठ कांप रहे थे। उसने खुद को सामान्य करने के लिए पानी की बॉटल की तरफ हाथ बढ़ाया, लेकिन वो खाली थी। “इसे भी अभी खाली होना था। मुझे भी रात का ही टाइम मिला था क्या ये डरावनी किताब पढ़ने के लिए....! लेकिन मैंने तो इस बुक को सेंशन भी कर नहीं करवाया था। पता नहीं ये मेरे बैग में कैसे आ गई।“ लड़की ने जल्दी से किताब को वहां से उठाकर पास की टेबल रख दिया और पानी पीने के लिए किचन में चली गई। जैसे ही वो लड़की वहां से गई; उस किताब पर बने राजकुमारी तपस्या के चित्र ने धीरे से आंखें खोलकर मुस्कुराई और किताब के पन्ने फड़फड़ाने लगे। उसके बाद वो किताब वहां से गायब हो गई। रात के 3 बज रहे थे। लंदन मे हमेशा की तरह ठंड अपने चरम पर थी। बाहर हल्की बर्फ़वारी ने हवाओ को और सर्द बना दिया था। बाहर का नजारा देखने में बहुत ही खूबसूरत नजर आ रहा था। वो लड़की किचन में पानी पीने के लिए गई। ठंड होने की वजह से उसे कंपकंपी भी महसूस हो रही थी। पानी पीने के बाद वो कमरे में आई और लाइट बंद करके सोने चली गई। इन सबके बीच उसका ध्यान किताब की तरफ नहीं गया जो कि वहां पर मौजूद नहीं थी। वो लड़की नींद मे भी डर से थरथरा रही थी। _________ प्रतापगढ़ के महल में भव्य शादी का माहौल का माहौल था। महल की चौखट पर एक नवविवाहित जोड़ा खड़ा था। वहां खड़े दूल्हे ने मुस्कुराते हुए अपनी दुल्हन को देखा। जैसे ही वो दोनों अंदर कदम रखने को हुए किसी ने लड़की को अंदर की तरफ खींच लिया और लड़का वही बाहर दरवाजा पीटता रह गया। उस नवविवाहिता ने देखा कि सामने बहुत सी स्त्रियां काले कपड़े पहन कर हाथ में थाली लेकर रोती हुई उसकी तरफ बढ़ रही थी। उन सब के रोने का स्वर सुनकर वो लड़की अपने कानों पर हाथ रखकर जोर से चिल्लाई। "कोई मुझे बचाओ..!" चिल्लाते हुए लड़की नींद से जाग गयी। इतनी ठंड मे भी डर के मारे उसका शरीर पसीने से तर-बतर हो गया। "मैंने.... मैने उस महल मे राजकुमारी की जगह खुद को क्यों देखा? मै... मै वहाँ कैसे हो सकती हूँ? वो तो बस एक कहानी थी ना? वो बुक....!" लड़की ने कमरे मे चारों तरफ नजरे दौड़ाई। लेकिन उसे वो किताब कही भी दिखाई नही दी। “शायद.... शायद वो मेरा भ्रम होगा। मैंने रात को सोने से पहले उस किताब को पढ़ा था और उसे पढ़ने के बाद मुझे डर भी बहुत लगा था। सोने से पहले हम जिस बारे में पढ़ते हैं या सोचते हैं, अक्सर हमें उन्हीं के सपने आते हैं। ऊपर से मेरा नाम भी तपस्या ही है, तो शायद इस वजह से मैंने राजकुमारी तपस्या की जगह खुद को इमेजिन कर लिया।" तपस्या खुद को समझाने की कोशिश करने लगी। उसने घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 5 बज रहे थे। उसके उठने में अभी समय था, इसलिए वो फिर से सोने की कोशिश करने लगी। उसकी आंखों के सामने बार-बार उसका सपना आ रहा था, जिसे वो चाह कर भी भुला नहीं पा रही थी। सपने में उसे वो सब चीजे दिखाई दे रही थी, जो राजकुमारी के साथ हुआ था... बस इस बार राजकुमारी की जगह वो खुद थी। थोड़ी देर बाद उसे नींद आ गई। अपनी सुबह किसी का कॉल आने पर तपस्या की नींद टूटी। हालांकि वो कॉल नहीं उठा पाई लेकिन जब उसने अपना मोबाइल लिया और उसमें समय देखा, तो वो जोर से चिल्लाई, "ओ माय गॉड! 10:00 बज रहे हैं और मैं यहां क्या कर रही हूं? मुझे तो यूनिवर्सिटी 9 बजे ही पहुंचना था और वो किताब कहां गई? मुझे उसे वापस सबमिट करवाना होगा। वरना.... मिस गोल्डबग मेरी जान ले लेगी।" तपस्या दौड़ कर बाथरूम में घुसी और जल्दी से तैयार होकर बाहर आई। तपस्या सिंह लगभग 23 साल की थी और मूलतः भारत की थी; लेकिन उसका जन्म लंदन में हुआ था। वो अपनी माँ टीना फिलिप और पिता नमन सिंह के साथ लन्दन मे रहती थी। वो तैयार होकर बाहर आई, तब तक उसके मॉम डैड अपने अपने काम पर जा चुके थे। उसने जींस पर रेडिश ब्राउन ओवरकोट पहना था। गले में स्कार्फ डालकर तपस्या अपनी गाड़ी लेकर यूनिवर्सिटी पहुंची। "अब जाते ही सबसे पहले उस डरावनी बुक को लाइब्रेरी में वापस सबमिट करवाऊंगी। जब से उस बुक को पढ़ा है, तब से हर पल ऐसा महसूस हो रहा है; मानो कोई मेरा पीछा कर रहा हो।" तपस्या अपना बैग लेकर गाड़ी से बाहर निकली और यूनिवर्सिटी के अंदर चली गयी। अंदर आते ही वो सीधे लाइब्रेरी की तरफ दौड़ पड़ी। "एक बार चेक कर लेती हूं कि बुक का कोई पेज खराब तो नहीं हो गया; वरना मिस गोल्डबग को हमेशा की तरह मुझे दो बातें सुनाने का मौका मिल जाएगा।" लाइब्रेरी के आगे खड़ी होकर वो अपने बैग को टटोल रही थी। "स्माइल प्लीज...!" सामने से एक लड़की की आवाज आई, जो देखने में लंबी और दुबली पतली थी। लंबे ब्लॉन्ड हेयर उसके सफेद चेहरे पर खूब जच रहे थे। "स्टॉप इट यार हेजल! जब देखो कैमरा लेकर शूट करती रहती है। कभी तो अकेला छोड़ दिया कर।" तपस्या ने उस लड़की की तरफ शिकायत भरी नजरों से देखा, तो उसने अपना कैमरा नीचे कर लिया। "जैसे किताबे तेरी जिंदगी है; वैसे ये कैमरा मेरी दुनिया है। तो प्लीज.. इसे कुछ मत कहो।" हेजल मुस्कुराते हुए उसके गले लग गई। हेतल तपस्या की बेस्ट फ्रेंड थी, जो उसी की क्लास में पढ़ती थी। जहां तपस्या को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था; वही हेजल अपने आसपास की चीजों और घटनाओं को अपने कैमरे में कैप्चर करती रहती थी। "क्या हुआ बेबी डॉल? आज किस खुशी में कितना गम मनाया जा रहा है? कुछ हुआ है क्या?" तपस्या को परेशान देख हेजल ने पूछा "कुछ नहीं हुआ यार। तुझे याद है दो दिन पहले हमने लाइब्रेरी से एक बुक ली थी। बस वही वापस सबमिट करवाने आई थी। यार वो बुक मुझे मिल नही..... " "ओह! आई एम सॉरी तपू। मैं तो तुझे बताना ही भूल गई कि तेरी वो बुक गलती से मेरे पास चली गई थी। घर पर कुछ गेस्ट आए हुए थे, तो कॉल करने का मौका नहीं मिला। मुझे पता है कि तुम मुझसे गुस्सा होगी। लेकिन मैं मिस गोल्डबग से बात करके उस किताब को 2 दिन और रखने की इजाजत ले लूंगी।" हेजल ने तपस्या की बात काटते हुए कहा। "क्या? वो बुक तेरे पास थी? लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है हेजल? मैंने उस बुक को पूरा पढ़ा है।" अब विस्मित होने की बारी तपस्या की थी। उसने जल्दी से अपने को बैग को फिर से टटोलना शुरू कर दिया लेकिन उसे वो किताब कहीं नहीं मिली। उसे इस तरह परेशान होता देख हेजल ने जल्दी से अपने बैग से एक किताब निकाल कर उसे पकड़ा दी। तपस्या ने देखा ये वही बुक थी, जो उसने लाइब्रेरी से सेंशन कराई थी। वो हैरानी से उस किताब को देख रही थी। "अब तो विश्वास हो गया तुझे? चल अब परेशान होना बंद कर और जल्दी से जा कर ये बुक मिस गोल्डबग को देकर आ।" हेजल तपस्या को वो किताब पकड़ा कर खुद वहां से चली गई। तपस्या वहां खड़ी होकर उस किताब को देख रही थी, जिसके कवर पर बड़े-बड़े शब्दो मे "दी डार्क सीक्रेट्स" लिखा था। "ये वही किताब थी, जो उसने 2 दिन पहले लाइब्रेरी से ली थी। फिर मैंने कल रात को कौनसी बुक पढ़ी थी? जल्दबाजी में मैंने उस बुक का टाइटल भी नहीं देखा। बस कवर पर एक राजकुमारी की फोटो बनाई हुई थी। क्या उस किताब में लिखी हर एक बात सही थी? लेकिन वो किताब अधूरी क्यों थी? अगर ऐसा सच में हुआ था, तो राजकुमारी तपस्या के घर वालों ने उसके बारे में पता लगाने की कोशिश क्यों नहीं की? या जब उन्हें तपस्या के मरने के बारे में पता चला होगा, तो उन्होंने क्या किया होगा? अगर आज भी राजकुमारी तपस्या की आत्मा वहां पर कैद है, तो क्या वो भी उन काले कपड़ों वाली आत्माओं के साथ भटक रही है या उसकी और महेंद्र प्रताप की आत्मा उस काले साए और उसकी तीन पत्नियों के साथ बाकी लोगों की बलि लेती है? सब कुछ कितना कंफ्यूजिंग है।" तपस्या अभी भी लाइब्रेरी के बाहर खड़ी होकर सोच रही थी। "तू अभी भी यहीं पर खड़ी है?" हेजल ने धीरे से तपस्या का हाथ पकड़ा। उसके अचानक हाथ पकड़ने की वजह से तपस्या हड़बड़ा गई। "हेजल! डू वन थिंग..! ये बुक तुम मिस गोल्डबग को देकर आओ। मुझे कुछ और काम है।" तपस्या हेजल को वो किताब थमा कर वहां से जल्दी में कहीं जाने लगी। "लेकिन तपू..! यार मेरी बात तो सुन....!" हेजल पीछे से चिल्लाती रह गई लेकिन तपस्या ने उसकी एक नहीं सुनी और वहां से कहीं जाने के लिए निकल पड़ी। "अब जब तक इस राजकुमारी तपस्या के रहस्य को सुलझा नहीं लेती; मेरे दिल को चैन नहीं आने वाला। कैसे भी करके मुझे उस गुत्थी को सुलझाना पड़ेगा। वरना मैं हर वक्त बस इसी के बारे में सोचती रहूंगी। और किसी भी काम मेरा मन नही लगेगा।" तपस्या वहां से यूनिवर्सिटी की सीढ़ियां चढ़ते हुए खुद से बातें कर रही थी। ★★★★★
लंदन में रहने वाली तपस्या सिंह अपनी यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी से पढ़ने के लिए एक बुक लेकर आई थी। उसने जो बुक्स सेंशन करवाई थी, वो एक इंग्लिश बुक थी लेकिन उसके बैग में मौजूद किताब हिंदी में थी। वो राजकुमार तपस्या की कहानी थी, जिसे पढ़ने के बाद तपस्या को अपने आसपास अजीब अनुभव होने लगे। कॉलेज जाकर तपस्या को पता चला कि उसकी बुक गलती से उसकी फ्रेंड हेजल के बैग में चली गई थी। हेजल को वो बुक वापस लाइब्रेरी में जमा करवाने का बोलकर तपस्या यूनिवर्सिटी में ही कही जाने के लिए निकल पड़ी। “अगर मेरी सेंशन करवाई हुई बुक हेजल के बैग में चली गई तो फिर मेरे पास किस की बुक आ गई थी? नीचे की लाइब्रेरी में हिंदी की किताबें मौजूद ही नहीं होती और ऊपर की लाइब्रेरी में मैं काफी काफी टाइम से नहीं गई।” तपस्या सीढ़ियां चढ़ती हुई खुद से बातें कर रही थी। वो यूनिवर्सिटी के थर्ड फ्लोर पर पहुंची। उसकी नजर सामने मौजूद एक बड़े से हॉल पर थी, जिसके ऊपर बड़े बड़े अक्षरों में 'लाइब्रेरी' लिखा हुआ था। तपस्या जल्दी से लाइब्रेरी के अंदर गई। वो लाइब्रेरी नीचे की लाइब्रेरी के मुकाबले काफी बड़ी थी और वहां अलग-अलग सेक्शंस बनाए हुए थे। हर सेक्शन के ऊपर एक पर्टिकुलर कंट्री का नाम लिखा हुआ था। तपस्या थोड़ी आगे गई। वहां जिस सेक्शन के ऊपर 'इंडिया' लिखा हुआ था, वो उसमें चली गई। “मिस्टर राजपूत.....” तपस्या थोड़ी तेज आवाज में बोली तो मिस्टर राजपूत ने अपने होठों पर उंगली लगाकर उसे चुप रहने का इशारा किया। तपस्या वहां पहले भी आ चुकी थी इस वजह से मिस्टर राजपूत से उसकी अच्छी खासी जान पहचान थी। मिस्टर राजपूत अपनी टेबल पर काफी सारी किताबों के साथ बैठे थे। तपस्या धीरे से उनके पास वाली कुर्सी पर आकर बैठ गई। “क्या हुआ मिस सिंह? आप परेशान लग रही है।” “क्या आपने लाइब्रेरी के इस सेक्शन की सारी किताबें पढ़ी है? खासकर वो किताबे जो इंडिया की हिस्ट्री से जुड़ी हुई हो।” तपस्या ने पूछा। “सारी तो नहीं..... लेकिन हां सबके टाइटल्स जरूर पता है। आप कौन सी किताब के बारे में बात कर रही है?” “प्रॉब्लम तो यही है कि मुझे उसका टाइटल ही नहीं पता। एक्चुअली कल मैंने नीचे की लाइब्रेरी से एक बुक सेंशन करवाई थी लेकिन गलती से कोई और किताब मेरे साथ चली गई। वो किसी प्रतापगढ़ और विक्रमगढ़ नाम की जगह से जुड़ी हुई थी और उसमें उन के राजघराने से जुड़ी एक कहानी थी।” “क्या कहा तुमने?” तपस्या की बात सुनकर मिस्टर राजपूत चौक गए। “नीचे की लाइब्रेरी में हिंदी बुक..... ये इंपॉसिबल है। तुम्हें पता है ना यहां हर एक लैंग्वेज से जुड़ी किताबों के लिए लाइब्रेरी में अलग सेक्शन बनाया गया है। नीचे की लाइब्रेरी में यूनिवर्सिटी के सिलेबस से जुड़ी किताबें होती है।” “हो सकता है गलती से.....” “तपस्या ये लंदन यूनिवर्सिटी है, कोई आम जगह नहीं। यहां गलती से भी गलती होने का चांस नहीं है।” मिस्टर राजपूत ने कहा। उनकी बात सुनकर तपस्या सोच में पड़ गई। मिस्टर राजपूत जो कह रहे थे वो सच था। फिर अचानक उस किताब का इस तरह उसके बैग में आना उसे भी आश्चर्यचकित कर रहा था। “मुझे भी हैरानी हुई थी। वो किताब भी थोड़ी अजीब थी। उसमें विक्रमगढ़ की राजकुमारी तपस्या के बारे में बताया गया था, जिसकी शादी प्रतापगढ़ के राजघराने में हुई थी और बाद में.....” तपस्या मिस्टर राजपूत को सब कुछ बता रही थी तभी वहां मौजूद लड़की का ध्यान उसकी बातों पर गया। वो भी उसी यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट थी। वो उनके पास आई और तपस्या की बात के बीच में बोलते हुए कहा, “सॉरी टू इंटरप्ट यू..... आपने कौन सी जगह का नाम लिया?” “प्रतापगढ़ और विक्रमगढ़? क्या तुमने भी वो बुक पढ़ी है?” “मैंने ऐसी कोई किताब तो नहीं पढ़ी लेकिन आप जिस प्रतापगढ़ की बात कर रही है, वो मेरा होमटाउन है। वी मूव्ड फ्रॉम देयर...” लड़की ने बताया। तपस्या ने उसकी तरफ से गौर से देखा। वो हल्की पीली रंगत लिए गोरे रंग की लंबे कद की लड़की थी। उसने अपना परिचय देते हुए कहा, “मेरा नाम उन्नति प्रताप सिंह है। हम लोग भी वहां की रॉयल फैमिली से बिलॉन्ग करते हैं लेकिन डेमोक्रेसी के टाइम में कहां राजा महाराजा होते हैं। बहुत पहले ही हमारे घरवालों ने प्रतापगढ़ छोड़कर अपना सारा बिज़नेस दिल्ली में सेटल कर लिया था।” “क्या तुम कभी प्रतापगढ़ गई हो?” तपस्या के मन में उस लड़की और प्रतापगढ़ को लेकर उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। “हां... बचपन मैं काफी बार... बड़े होने के बाद हम वहां नही गए... लेकिन इस बार फिर हम सब प्रतापगढ़ जा रहे है।“ “और इस बार ऐसा क्या है?” तपस्या ने पूछा। “मेरे बड़े भैया की शादी..... मेरी होने वाली भाभी एक ग्रैंड रॉयल वेडिंग चाहती है। उन्हीं की खुशी के लिए घर वालों ने भैया की शादी वहां करने का डिसीजन लिया।” जैसे ही उन्नति ने प्रतापगढ़ जाने की बात कही तपस्या ने बिना सोचे समझे तपाक से कहा, “क्या मैं भी उस शादी को अटेंड करने आ सकती हूं?” तपस्या की बात सुनकर उन्नति और मिस्टर राजपूत उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे। उसे उन्नति से मिलने 15 मिनट भी नहीं हुए थे और वो उसके साथ उसके होम टाउन जाने को तैयार थी। “लेकिन हम एक दूसरे को नहीं जानते।” उन्नति ने कंधे उचका कर जवाब दिया। “तो क्या हुआ, जो नहीं जानते? हम दोस्त बन सकते हैं।” “जस्ट बिकॉज तुम्हें प्रतापगढ़ जाना है तुम मुझसे फ्रेंडशिप तक करने के लिए तैयार हो गई। तुम चाहो तो ऐसे ही घूमने के लिए वहां जा सकती हो। इसके लिए तुम्हें मुझसे फ्रेंडशिप करने की जरूरत नहीं है।” उन्नति ने थोड़ा रूखे तरीके से जवाब दिया और वहां से जाने लगी। तपस्या भी उसके पीछे जाने के लिए उठी लेकिन मिस्टर राजपूत ने उसे रोकते हुए कहा, “वो लड़की ठीक कह रही है। एक नॉर्मल सी किताब थी और उसमें लिखी बातें कहानी.....” “पहली बार कोई कहानी, कहानी जैसी नहीं लग रही थी। ऐसे लग रहा है जैसे बहुत कुछ है, जो उस किताब में मिसिंग था। कुछ ऐसा, जहां तक ये किताब मुझे खुद जाना चाहती हैं।” तपस्या ने खोए हुए स्वर में कहा। “तुम ओवरथिंकिंग कर रही हो। तुम्हें एक वेकेशन की जरूरत है, ना कि किसी किताब के बारे में सच पता लगाने की।” मिस्टर राजपूत को तपस्या की बातें कोरा भ्रम नजर आ रही थी और वो उसे ज्यादा सीरियसली नहीं ले रहे थे। जिस तरह से वो किताब तपस्या के पास पहुंची थी, उसको तपस्या ने काफी सीरियसली लिया। उसे पढ़ने के बाद तपस्या के मन में राजकुमारी और उसकी कहानी को लेकर कई सवाल उठने लगे थे। “नाइस टू मीट यू सर..... हैव ए गुड डे अहेड।” कहकर तपस्या वहां से वापस जाने को मुड़ी। वो लाइब्रेरी के सेक्शन से बाहर निकली तो उसे किसी दूसरे सेक्शन में उन्नति दिखाई दी। उसे देखने के बाद उन्नति ने मुंह फेर लिया। तपस्या ने भी आगे कुछ कहना जरूरी नहीं समझा और वहां से बाहर आ गई। ___________ तपस्या बेमन से अपनी क्लास की तरफ जा रही थी। उसके मन में राजकुमारी तपस्या की कहानी को लेकर कई सवाल थे। वो खोई हुई टेबल की तरफ बढ़ रही थी, तभी हेजल ने उसे देखा तो दौड़कर उसके पास आई। “कहां रह गई थी तुम? मैंने तुम्हें सब जगह ढूंढ लिया था। पता है उस बुक की वजह से मुझे मिस गोल्डबग ने कितना सुनाया।” उसके पास आते ही हेजल ने शिकायतों की झड़ी लगा दी। “कौन सा पहली बार सुनाया है।” तपस्या आंखें तरेर कर बोली। “वैसे तुम्हारा मूड किस खुशी में खराब है?“ “मुझे थोड़ी देर पहले एक लड़की मिली थी। मैंने उससे सिर्फ फ्रेंडशिप करने की कोशिश की लेकिन..... उसने मना कर दिया।” “अच्छा हुआ जो मना कर दिया। हाउ डेयर यू..... मेरे होते हुए तुम किसी और से फ्रेंडशिप कर भी कैसे सकती हो।” हेजल ने मुंह बना कर जवाब दिया। “तुम्हें नहीं पता वो लड़की बहुत काम की है। मुझे उसके साथ उसके होमटाउन इंडिया जाना था। अब उसने मना कर दिया तो सब चौपट हो गया।” “अगर किसी सेल्फिश रीजन से किसी से दोस्ती करने जाओगी तो यही होगा ना.....” हेजल की बात सुनकर तपस्या को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने बिल्कुल धीमी आवाज में कहा, “सही कह रही हो तुम..... शायद उसे भी इसी बात का बुरा लगा, तभी उसने मना कर दिया। तुम यहीं रुको मैं उससे बात करके आती हूं।” “अरे बाद में बात कर लेना। अभी रुको तो.....” हेजल ने तपस्या को रोकने के लिए उसे आवाज लगाई लेकिन वो उसकी बात को अनसुना करके उन्नति से मिलने के लिए चली गई। तपस्या वापस लाइब्रेरी में पहुंची लेकिन उन्नति वहां मौजूद नहीं थी। “अब तो उसके नाम से ही उसकी क्लास का पता लगाया जा सकता है।” तपस्या ने उदास होकर कहा। “लेकिन उसकी क्लास कौनसी हो सकती है।” वो वापस क्लास लेने के लिए मुड़ी तभी उसके कानों में एक आवाज गूंजी। “एमबीबीएस..... सेकंड ईयर.....” वो आवाज सुनकर तपस्या चौक गई उसने आसपास देखा लेकिन कोई मौजूद नहीं था। “लगता है कोई मजाक कर रहा है।” उसने घबराई आवाज में कहा। “मिस्टर राजपूत सही कहते हैं कि उस किताब में लिखी बातें सिर्फ एक कहानी है और कुछ नहीं..... मुझे उसके बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए। अगर वो लड़की उन्नति मुझे वापस मिली तो उसे सॉरी बोल दूंगी और ये भी कह दूंगी कि मुझे उसके साथ कहीं नहीं जाना।” तपस्या ने उन सब को भ्रम समझ कर भूला दिया और वहां से अपनी क्लास में चली गई। __________ शाम तक सारी क्लासेस खत्म होने के बाद हेजल और तपस्या अपने अपने घर को जा चुकी थी। तपस्या के पेरेंट्स की शिफ्ट लेट तक चलती थी इस वजह से अक्सर वो घर पर अकेली रहती थी। वो अपने घर पहुंची तो वहां कोई मौजूद नहीं था। घर आते ही उसने चेंज किया और कॉफी लेकर फिर से किताबों के साथ बैठ गई। अचानक उसने देखा कि किताब के हर एक पन्ने में राजकुमारी तपस्या की कहानी दिखाई दे रही थी। तपस्या ने इसे अपना मन का वहम समझ कर दूसरे किताब खोली तो उसमें भी वही कहानी लिखी हुई थी। “ऐसा कैसे हो सकता है? लगता है मैं ओवरथिंकिंग कर रही हूं।“ उसने खुद को समझाया। “मुझे थोड़ी देर आराम कर लेना चाहिए।” उसने उन किताबों को वही छोड़ा और अपने कमरे में आकर लेट गई। कुछ ही देर में वो नींद के आगोश में थी। उसने कल की तरह आज फिर खुद को विक्रमगढ़ के महल में पाया, जहां वो दुल्हन के वेश में थी और उसके पास में कोई लड़का खड़ा था। लड़के के चेहरे पर सेहरा लगा हुआ था, इस वजह से उसका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। कुछ ही देर में उसके सपने में वो सब दृश्य घूमने लगे जो उसने उस किताब में पढ़े थे लेकिन इस बार राजकुमारी तपस्या के बजाय वो उस सभी दृश्यों में थी। जैसे ही उसकी किसी ने बलि दी वो चिल्ला कर नींद से उठी। उसके चिल्लाने की आवाज सुनकर एक मेड दौड़ कर आई जो उनके घर में खाना बना रही थी। “व्हाट हेपेंड... “ उसने तपस्या के हाथ लगाकर देखा तो उसे बुखार था और वो कांप रही थी। ये मात्र एक सपना था लेकिन इन सब ने उसे बुरी तरह डरा दिया था। “मैं मिस्टर सिंह को कॉल कर देती हूं...“ कहकर वो वहां से जाने लगी। “उसकी कोई जरूरत नहीं है। मैं मेडिसिंस ले लूंगी।” तपस्या की आवाज सुनकर वो वही रुक गई। अचानक वो तपस्या की तरफ मुड़ी और उसके पास आई। “तुम इन सब से बच नहीं पाओगी।” वो मेड जोर से चिल्लाई। बोलते हुए उसकी आवाज भारी हो गई थी। ऐसे लग रहा था जैसे उसकी आवाज किसी माइक में गूंज रही हो और उसके साथ कई औरते एक साथ बोल रही हो। तपस्या के लिए ये अगला झटका था, जहां उस अजीब सपने के बाद उसके घर पर कुकिंग करने वाली मैड ने उससे ये सब कहा। ★★★★
जब से तपस्या ने राजकुमारी तपस्या की कहानी पढ़ी थी वो काफी बेचैन हो गई थी। उसे हर वक्त अपने आसपास किसी के होने का एहसास होता, तो कभी सपनों में वो राजकुमारी तपस्या की जगह खुद को देखती। तपस्या के घर पर खाना बनाने आई मेड ने अचानक उससे जब ये कहा कि वो बच नहीं पाएगी, तपस्या उससे और भी घबरा गई। तपस्या उसकी बात का कुछ जवाब दे पाती उससे पहले वो मेड वहीं पर बेहोश होकर गिर पड़ी। “आंटी..... आंटी प्लीज गेट अप.....” तपस्या उसे उठाने की कोशिश करने लगी। उसने उसे उठाने के लिए पास पड़े पानी के गिलास से पानी के छींटे मारे। फिर भी उस मेड को होश नहीं आया। तपस्या पहले से ही परेशान थी, ऊपर से उसकी बेहोशी से वो और ज्यादा घबरा गई। उसने जल्दी से अपने पेरेंट्स को कॉल करके घर पर बुलाया। कुछ ही देर में तपस्या के मॉम डैड टीना और नमन वहां पहुंच चुके थे। “बेबी एवरी थिंग इज फाइन? जब तुम ने अचानक से कॉल करके कहा कि एमरजैंसी है..... मैं बहुत घबरा गई थी।” टीना ने घर में घुसते ही कहा। उसके साथ नमन भी मौजूद था। दोनों ऑफिसवियर में थे और अपने काम को बीच में छोड़कर आए थे। “देखिए ना मॉम, मैरी आंटी को क्या हो गया है? ये अचानक से बेहोश हो गई और अब उन्हें होश में नहीं आ रहा।” “बेटा उनका बीपी लो हो गया होगा। तुमने डॉक्टर को कॉल किया या नहीं?” नमन ने पूछा। जवाब में तपस्या ने ना में सर हिला दिया। वो दोनों दौड़ कर अंदर आए तो मैरी तपस्या के बिस्तर पर बेहोश पड़ी थी। नमन ने मैरी की नब्ज चेक की। “इनका बीपी लॉ हो गया था... लगता है आज इन्होंने अपनी मेडिसिंन्स नही होगी।” नमन ने कहा। “मैं इसकी मेडिसिंस लेकर आती हूं, बैग में ही होगी।” कहकर टीना बाहर आई और मैरी के बैग से उसकी दवाइयां निकाली। नमन में उसे दवाइयां दी। कुछ देर में मैरी को होश आ गया लेकिन उसे कुछ याद नहीं था। ये देखकर तपस्या ने राहत की सांस ली। “थैंक गॉड..... मैरी आंटी को कुछ भी याद नहीं है। अगर मॉम डैड को इस बारे में पता चलता तो पता नहीं क्या करते।” तपस्या ने अपने मन में कहा। “मेरी, तुम अपनी मेडिसिंस लेना मत भूला करो। तपु तुम्हें देखकर घबरा गई थी। आज आपके बीपी लो ने हमारी प्रिंसेस का बीपी हाई कर दिया था।” नमन हंसकर बोला। “बेबी आप इस तरह परेशान मत हुआ करें... मुझे बीपी की शिकायत है। आज काम ज्यादा था, तो दवाई लेने का टाइम नही मिला।” मैरी ने कहा। “डैड सही कह रहे हैं मैरी आंटी, आपको अपना ध्यान रखना चाहिए।” मैरी तपस्या की बात पर मुस्कुरा कर रह गई। तबीयत खराब होने की वजह से टीना ने उसे वापस घर भेज दिया और उसकी जगह खुद खाना बना रही थी। मैरी आंटी के बेहोशी के चक्कर में तपस्या खुद की खराब तबीयत के बारे में भूल चुकी थी। “इससे पहले की डैड को पता चले और वो यहां डॉक्टर्स की लाइन लगवा दे, मुझे मेडिसिन ले लेनी चाहिए।” तपस्या ने सोचा और अपने कमरे में आ गई। उस ने दवाइयां ली और आंख बंद करके आराम करने लगी। दवाइयां लेने की वजह से उसे जल्द ही नींद आ गई और इस बार कोई बुरा सपना ना आने की वजह से वो चैन की नींद सो रही थी। _____________ अगले दिन जब तपस्या उठी तो उसे बेहतर महसूस हो रहा था। उसने यूनिवर्सिटी जाना तय किया। वो तैयार होकर बाहर आई। घर पर उसके अलावा और कोई नहीं था। हमेशा की तरह टीना और नमन ऑफिस जा चुके थे। “आई होप कल शाम की तरह कोई और इंसिडेंट ना हो। आगे से ऐसी भूत प्रेत वाली किताबों से दूर ही रहूंगी। हां..... उस लड़की उन्नति से मिलकर उसे सॉरी भी बोलना है और साथ ही उसे ये भी कह दूंगी कि अब मुझे उसके प्रतापगढ़ जाने में कोई इंटरेस्ट नहीं है।” तपस्या ब्रेकफास्ट करते हुए मन ही मन खुद से बातें कर रहे थी। नाश्ता करने के बाद उसने अपना बैग उठाया और गाड़ी की चाबियां ली। कुछ देर में वो यूनिवर्सिटी के आगे खड़ी थी। गाड़ी पार्किंग एरिया में पार्क करके तपस्या बाहर ही निकली थी कि उसे सामने उन्नति किसी लड़के के साथ दिखाई दी। “ये तो उन्नति है, लेकिन इसके साथ ये लड़का कौन है।” तपस्या ने सोचा और अपने कदम उन्नति और उस लड़के की तरफ बढ़ाएं। उसे अपनी तरफ आते देखा तो उन्नति अपने बॉयफ्रेंड से धीमी आवाज में बोली, “ये वही लड़की है जिसके बारे में मैंने तुम्हें कल बताया था। बहुत अजीब सी बातें कर रही थी और मेरे साथ मेरे घर तक चलने के लिए तैयार हो गई।” “दिखने में तो ये भी इंडियन लग रही है। जो भी हो इस तरह के लोगों से दूर रहना जो स्वार्थ के लिए दोस्ती करते हैं।” उसके बॉयफ्रेंड ने उसे हिदायत दी। तपस्या को उनकी तरफ आता देख दोनों पूरे एटीट्यूट में खड़े थे। तपस्या ने उन दोनों के पास जाकर कहा, “एम सो सॉरी उन्नति..... तुम भी सोच रही होगी ना कि मैं कितनी अजीब हूं। कल हम पहली बार मिले थे और मैंने तुम्हारे घर जाने के लिए कह दिया था। एक ऐसी जगह जो यहां से मीलो दूर है, वो भी अनजान के साथ। मैं अपने कल के बर्ताव के लिए तुमसे माफी मांगती हूं।” तपस्या ने काफी नरमी से कहा। उसकी बात सुनकर उन्नति और वो लड़का एक दूसरे की तरफ देखने लगे। उस लड़के ने जवाब में कहा, “हेलो..... मैं पार्थ हूं।” “आई थिंक तुम उन्नति के बॉयफ्रेंड हो।” तपस्या ने उसे देखकर अंदाजा लगाते हुए कहा। पार्थ ने उसकी बात पर सिर हिलाकर हामी भरी। “अच्छा अचानक तुम में इतना चेंज कैसे आ गया?” उन्नति अभी भी उससे रूडली बात कर रही थी। “ये चेंज अचानक नहीं आया। मुझे सच में अपने बिहेवियर के लिए बुरा लग रहा है। कल हम पहली बार मिले थे और कल ही..... बाय द वे मैं तुम्हें यहां ये कहने के लिए आई हूं कि अब मैं तुम्हारे होमटाउन नहीं जाना चाहती।” तपस्या ने अपनी बात खत्म की और वहां से जाने लगी। तभी पार्थ ने उसे पीछे से आवाज लगाकर कहा, “हे स्टॉप..... तुम प्रतापगढ़ जाना ही क्यों चाहती हो?” उसकी आवाज सुनकर तपस्या वही रुक गई और वापस उनके पास आ कर बातें करने लगी, “बस ऐसे ही किसी चीज के बारे में पढ़ लेती हूं तो वहां जाने की इच्छा जागती है। कल किसी बुक में विक्रमगढ़ और प्रतापगढ़ के बारे में पढ़ा था तो बस फिर वहां जाने की क्यूरियोसिटी हो गई।” “वैसे मेरा होमटाउन बिक्रमगढ़ है।” जैसे ही पार्थ ने कहा उन्नति ने आंखें तरेर कर कहा, “इसे क्यों बता रहे हो? कल को ये विक्रमगढ़ जाने की जिद करेगी।” उसकी बात सुनकर तपस्या मुस्कुराई और कहा, “नहीं, अब मुझे कहीं नहीं जाना।” तबीयत खराब होने की वजह से तपस्या के चेहरे पर उदासी थी। उन्नति जिस तरह से तपस्या से बात कर रही थी, वो देखकर पार्थ को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। “तुम परेशान लग रही हो। इज एवरीथिंग फाइन?” उसने पूछा। “हां सब ठीक है। मैं चलती हूं मेरी क्लास का टाइम हो रहा है।” उनको बाय बोलकर तपस्या वहां से चली गई। उसके जाते ही उन्नति ने मुंह बनाकर पार्थ की तरफ देखा और कहा, “तुम्हें उसकी कुछ ज्यादा ही फिक्र नहीं हो रही? मुझे तो ये लड़की कुछ ज्यादा ही अजीब लगी। कल अचानक साथ चलने को बोल दिया और आज आकर माफी मांग रही है।” “मुझे उसकी फिक्र इसलिए हो रही है क्योंकि वो परेशान लग रही थी। एट द सेम टाइम वो एक अच्छी लड़की है। तभी आज आकर अपने बिहेवियर के लिए माफी मांग रही हैं। तुम्हें इतना रूड नहीं होना चाहिए।” पार्थ ने उसे समझाने की कोशिश की। “मैं रूड नहीं थी।” “अच्छा अगर तुम रूड नहीं थी तो उस लड़की से फ्रेंडशिप क्यों नहीं कर लेती? क्या दिक्कत है उसे अपने साथ प्रतापगढ़ लेकर जाने में?“ “पार्थ वो एक स्ट्रेंजर है। अचानक हम उसे अपने साथ कैसे लेकर जा सकते हैं? घर वालों को क्या जवाब देंगे एंड.....” उन्नति बातें कर रही थी तभी पार्थ ने उसे अपने पास खींचा और कहा, “तुम्हारे घर वालों के लिए स्ट्रेंजर तो मैं भी हूं। फिर भी तुम मुझे अपने साथ लेकर जाओगी ना? आई नो हम इसे नहीं जानते हैं लेकिन जब तक हम यहां से जायेगे, तब तक इसे अच्छे से जान लेंगे। अगर ये अच्छी लगी तो इसे भी साथ ले चलेंगे ना.....” “कहीं वो लड़की तुम्हें पसंद तो नहीं आ गई है?” उन्नति ने उसे खुद से दूर किया। “ऐसा कुछ नहीं है उन्नति..... तुम मुझे अच्छे से जानती हो मैं सिर्फ तुम्हें प्यार करता हूं।” पार्थ ने नाराजगी जताते हुए कहा। “ठीक है तुम कहते हो तो मैं उससे लड़की से बात करने के लिए तैयार हूं। लेकिन पहले ये बता देती हूं मैं उसे प्रतापगढ़ ले जाने के फेवर में बिल्कुल नहीं हूं। उसने सॉरी बोल कर पहल की है बस इसी वजह से मैं उसी से दोस्ती करने के लिए तैयार हूं।” “जो भी हो..... मैं नहीं चाहता कि तुम किसी से रूडली बात करो। स्पेशली तब जब सामने वाला सामने से आकर सॉरी बोल रहा हो।” पार्थ ने उन्नति को मना लिया था। वो एक सुलझा हुआ इंसान था। पार्थ उन्नति का सीनियर था और साइकोलॉजी की स्टडी कर रहा था। दोनों की मुलाकात लंदन यूनिवर्सिटी में ही हुई और एक देश में होने की वजह से जल्द ही उनकी दोस्ती ने प्यार का रूप ले लिया। काफी ना नुकर करने के बाद उन्नति भी पार्थ की बात मानने के लिए तैयार हो गई थी। दोनों वहां से अपनी अपनी क्लास को चले गए। ___________ क्लासेस खत्म होने के बाद तपस्या घर जा रही थी। उन्नति और पार्थ उसका पार्किंग एरिया में वेट कर रहे थे। उन्हें वहां देखकर तपस्या को थोड़ी हैरानी हुई। “इफ आई एम नॉट रॉन्ग आप लोग यहां मेरा वेट कर रहे थे?” तपस्या ने हैरानी से पूछा। “हां हम तुम्हारा ही वेट कर रहे थे। लंदन यूनिवर्सिटी इतनी बड़ी है कि किसी भी स्टूडेंट को ढूंढना इंपॉसिबल है, जब तक कि आपको उसके बारे में पूरी इंफॉर्मेशन ना हो। तुम्हारी गाड़ी यहीं पर खड़ी देखी तो सोचा थोड़ी देर वेट कर लेते हैं।” पार्थ ने जवाब दिया। “बातें बाद में करेंगे। पहले अपना नाम तो बता दो?” उन्नति ने पूछा। “मेरा नाम तपस्या सिंह है। मैं एमबीए फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट हूं।” “ओके.... सुबह मुझे तुमसे इतना रूडली बात नहीं करनी चाहिए थी। जानती हूं कल तुम्हारे रीजंस काफी सेल्फिश और वियर्ड थे बट आज आ कर तुमने सॉरी बोल दिया..... एंड इट शोज तुमसे जो भी हुआ, वो गलती से हुआ। क्या हम फ्रेंड बन सकते हैं?” उन्नति एक सांस में बोल गई। तपस्या ने मुस्कुराकर उसकी बात पर हामी भरी। उन दोनों के दोस्त बनने की वजह से पार्थ भी खुश था। थोड़ी देर हल्की-फुल्की बातचीत करने के बाद तपस्या ने हल्के मजाकिया कहा, “अच्छा... अब मैं चलती हूं... एंड वन मोर थिंग, मुझे अब सच में प्रतापगढ़ नही जाना।” उसकी बात सुनकर उन्नति और पार्थ के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। उन्हे बाय बोलकर तपस्या वहां से अपने घर चली गई। उन दोनों से दोस्ती होने के बाद उसे अच्छा महसूस हो रहा था। अब उसे थोड़ी राहत भी महसूस हो रही थी क्योंकि अब उसे वो अजीब सपने और अजीब अनुभव नहीं महसूस हो रहे थे। ★★★★
इंडियन एयर फोर्स हैडक्वाटर्स न्यू दिल्ली रात के 10:00 बज रहे थे। अपनी ड्यूटी खत्म करके दो ऑफिसर्स साथ में अपने-अपने लिविंग क्वार्टर्स में जा रहे थे। दोनों ही कद में लंबे और फिट बॉडी के थे। उनके चेहरे पर अनुशासन और चलने के तरीके से ही साफ नजर आ रहा था कि वो दोनों इंडियन आर्मी का हिस्सा थे। “मैंने सुना है तुमने छुट्टी के लिए अप्लाई किया है अभिमन्यु।” चलते हुए एक ऑफिसर ने दूसरे से पूछा। अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए अपनी भौंहें ऊपर करके कहा, “मां चाहती है कि मैं अपने कजिन की शादी अटेंड करने आऊं।” “ऑफ कोर्स तुम्हें जाना चाहिए। लास्ट टाइम भी तुम अपने भाई की शादी अटेंड करने ही गए थे। फैमिली भी इंपॉर्टेंट होती है।” “जानता हूं फैमिली इंपोर्टेंट होती है बट जिसकी शादी हो रही है, वो मुझसे एज में छोटा है। अगर मैं वहां गया तो फिर से वो लोग मुझे शादी करने के लिए फोर्स करेंगे। तुम तो जानते ही हो गौरव, आई डोंट वांट टू गेट मैरिड।” “हां जानता हूं..... अब तुम्हारे दोस्त होने के नाते इतना भी पता नहीं होगा क्या..... आई विश कि तुम्हें शादी में तुम्हारी पसंद की लड़की मिल जाए..... वरना मुझे तुम्हारी शादी के लिए लड़की ढूंढनी पड़ेगी।” गौरव हंसते हुए बोला। उसकी बात सुनकर अभिमन्यु ने गहरी सांस लेकर छोड़ी और कहा, “तुम दोस्त हो या रिश्तेदार, जो हर बात पर शादी की बात बीच में नहीं आते हो।” “दोस्त ही हूं जो सिर्फ बात लेकर आता हूं। अगर रिश्तेदार होता तो रिश्ता लेकर आता।” गौरव ने मजाकिया तरीके से कहा। उसके बाद दोनों हंस पड़े। “फैमिली से मिलने के लिए तो मैं भी एक्साइटेड हूं, स्पेशली मां से मिलने के लिए..... अगर मैं अपनी फैमिली में किसी से ज्यादा क्लोज हूं तो उन्हीं से..... मुझे शादी में जाने में कोई प्रॉब्लम नहीं है लेकिन इस बार शादी प्रतापगढ़ में हो रही है। मैं वहां नहीं जाना चाहता।” बोलते हुए अभिमन्यु की आंखों के भाव गंभीर हो गए। उसकी आंखों के सामने कुछ दृश्य तैरने लगे, जहां वो प्रतापगढ़ के महल में एक कमरे में अपनी मां के आंचल में दुबक कर बैठा था और डर के मारे कांप रहा था। उन सब के बारे में सोचते ही अभिमन्यु को कंपकंपी सी उठी। “यू शुड बी हैप्पी कि शादी प्रतापगढ़ में हो रही है। तुम्हारा महल देखने की इच्छा हमेशा से मेरे मन में थी आई विश कि मैं भी शादी अटेंड कर पाता।” “व्हाट ए ब्रिलिएंट आइडिया..... जानता हूं शादी अटेंड नहीं कर सकते लेकिन मेरे साथ प्रतापगढ़ तो जा ही सकते हो। एक-दो दिन वहां अच्छे से घूम फिर लेना, उसके बाद वापस आ जाना। इसी बहाने में वहां पर बोर नहीं होऊंगा।” “अच्छा तो तुम खुद के एंटरटेनमेंट के लिए मुझे वहां लेकर जा रहे हो.....” गौरव ने आंखें तरेर कर कहा। “जी हां..... मैं मां को बता दूंगा कि कल मेरे साथ तुम भी आ रहे हो।” “लेकिन अभी मैंने हां कब कहा?” “तुम्हें लगता है कि मुझे तुम्हारे हां की जरूरत है?” अभिमन्यु ने बालों में हाथ घुमाकर कहा। “गुड नाइट ऑफिसर..... सुबह 5:00 बजे रेडी हो जाना, लॉन्ग ड्राइव पर चलने के लिए..... अब तो हमारी सवारी प्रतापगढ़ जाकर ही रुकेगी।” अभिमन्यु अपने क्वार्टर में जा चुका था। गौरव भी उसकी बात सुन कर मुस्कुरा कर रह गया। वो घर आकर जल्दी-जल्दी अपनी पैकिंग करने लगा। __________ दूसरी तरफ तपस्या को भी इंडिया जाने की परमिशन मिल चुकी थी। उसने अगले दिन उन्नति और हेजल को इस बारे में बताया तो वो भी सुनकर बहुत खुश हुई। “येयेयेएएएए.....” खुशी से झूमते हुए हेजल ने तपस्या को गले लगा लिया। “अब तो ये गर्ल गैंग मिलकर प्रतापगढ़ को अपने सिर पर उठा लेगा। मैंने तो अपना सामान और कैमरा अच्छे से पैक कर लिया है। मैं वहां हर एक मोमेंट को अच्छे से कैप्चर करूंगी।” “अच्छा..... तपु और हेजल.....” पार्थ ने गंभीर आवाज में कहा, “इस शादी में मैं और उन्नति अपने रिलेशनशिप के बारे में इसके घर वालों को बताना चाहते हैं। आई डोंट थिंक की उन्नति के पेरेंट्स शादी के लिए मना करेंगे। लेकिन फिर भी जरूरत पड़े, तो प्लीज तुम दोनों वहां हम दोनों की हेल्प करना ऐसी बातें बताना आसान नहीं होता।” “हां हम उन्नति के पेरेंट्स को मना लेंगे और क्या हो, जो उन्नति के भाई के साथ साथ तुम दोनों की शादी भी उसी मंडप में हो जाए।” तपस्या ने चुटकी लेते हुए कहा। “अरे अभी कहां..... जब तक अभिमन्यु भाई शादी के लिए हां नहीं कह देते, तब तक मुझे नहीं लगता कि हमारी शादी के लिए घर वाले इतना जल्दी करेंगे।” उन्नति ने मुंह बनाकर कहा। “अच्छा उन्नति, हम वहां जा ही रहे हैं तो तुम अपनी फैमिली के बारे में कुछ बताओ ना..... ताकि हमें उन्हें पहचानने में दिक्कत ना हो।” हेजल ने पूछा। “हां हां जरूर बता देती हूं लेकिन कॉफी और कुछ खाने को आर्डर कर लो। मेरी फैमिली बहुत बड़ी है। जब तक उनके बारे में बताऊंगी, तब तक हमारा ऑर्डर भी आ जाएगा।” उन्नति ने कहा और वहां मौजूद वेटर को इशारे से बुलाया। उसने उनके लिए कुछ खाने पीने का सामान मंगवाया और फिर अपने परिवार के बारे में बताने लगी। “हां तो सुनो गाइज..... हमारी एक बड़ी सी फैमिली है, जिसमें हमारे पर दादाजी जोकि हेड ऑफ द फैमिली है मिस्टर प्रताप सिंह..... सब कुछ उन्हीं की मर्जी के हिसाब से होता है।” “परदादा जी? यू मीन तुम्हारे दादा के पापा? ही इज स्टिल अलाइव?” तपस्या ने हैरानी से पूछा। “जी हां, ना केवल बहुत जिंदा है बल्कि दिखने में काफी फिट एंड फाइन है। देखने में काफी यंग और एनर्जेटिक भी है मेरे बड़े दादा जी..... सबसे इंपॉर्टेंट बाद इतनी बड़ी उम्र के होने के बावजूद उनकी थिंकिंग काफी मॉडर्न है। अगर आज मैं लंदन में स्टडी कर रही हूं तो उन्हीं की बदौलत.....“ “सो कूल..... अब तो बड़े दादा जी से मिलना बनता है।” हेजल बोली। “हां तो मेरे बड़े दादा जी को प्रतापगढ़ के महल से इतना प्यार है कि वो उसी में रहते हैं। जब कभी हमें उनसे मिलना होता है तो हम प्रतापगढ़ चले जाते हैं, लेकिन वो वहां से बाहर कहीं नहीं जाते। दादाजी के बाद आते हैं मेरे बड़े पापा मिस्टर रविंद्र प्रताप सिंह और मेरी बड़ी मां उर्मिला देवी, जिनके दो बेटे हैं रोहित भैया और अभिमन्यु भैया..... उनमें रोहित भैया की शादी हो चुकी है, और मेरी भाभी का नाम साक्षी है। अभिमन्यु भैया ने अभी तक शादी ना करने का डिसीजन ले रखा है। फिर आते हैं मेरे पापा मिस्टर दीपक प्रताप सिंह, और मेरी मॉम जानकी देवी..... अभी जिनकी शादी हो रही है, वो मेरे बड़े भैया कार्तिक है। फिर आती हूं मैं और फिर हमारे घर का सबसे छोटा और शैतान सदस्य भव्य, जो कि अभी सिर्फ 10 साल का है।” उन्नति के मुंह से उनके परिवार के बारे में सुनकर तपस्या हेजल और पार्थ उसकी तरफ आंखें फाड़ कर देख रहे थे। “ये परिवार है या कोई मोहल्ला? तुम लोगों को इतने सब लोगों का नाम कैसे याद रहता होगा?” पार्थ ने हैरानी से पूछा। “उन्नति तुम्हें स्कूल टाइम में फैमिली ट्री के बजाय फैमिली गार्डन या लोन बनाने के लिए दिया जाता होगा ना..... क्योंकि इतने सारे लोग एक ही पेड़ तो फिट नहीं होते होंगे।” हेजल ने हंसकर कहा। “हां है तो बहुत सारे लोग, लेकिन सब एक साथ नहीं रहते। फैमिली में कोई शादी वगैरह या कोई और फंक्शन में सब इकट्ठा हो जाते हैं। मैं उन सब से मिलने के लिए बहुत एक्साइटेड हूं..... खासकर अभिमन्यु भैया से। पता है वो इंडियन एयर फोर्स ऑफिसर है और इस वजह से छुट्टियां बहुत कम लेते हैं। उनसे मिले हुए तो बहुत टाइम हो गया। फोन पर भी बहुत कम बात हो पाती है।” “अच्छा अच्छा ठीक है। अब जाओ तब सब से मिल लेना और हमें भी मिला देना। वैसे हमारी फ्लाइट कब तक की है?” तपस्या ने पूछा। “कल अर्ली मॉर्निंग की..... सो प्लीज गाइज रेडी रहना।” पार्थ ने बताया। एक दूसरे को बाय बोल कर चारों अपने अपने घर चले गए। घर आकर तपस्या अपनी पैकिंग कर रही थी। उस के मन में अभी भी उन्नति की फैमिली की बातें चल रही थी। कहीं ना कहीं उसके मन में भी अपने परिवार से मिलने की इच्छा थी। “हमारी भी कोई फैमिली होगी जो शायद उन्नति की फैमिली जितनी बड़ी होगी लेकिन मुझे तो ये भी नहीं पता कि वो कौन है और कहां रहते हैं। मॉम या डैड से पूछने जाओ तो उनका मूड खराब हो जाता है। काश मुझे उनका पता होता तो मैं इंडिया जाकर उनसे जरूर मिलती।” तपस्या ने भावुक आवाज में कहा। वो अपनी पैकिंग करने में व्यस्त थी तभी बाहर से टीना ने उसे आवाज लगाई। “तपू..... बेबी अगर तुम्हारी पैकिंग हो गई है, तो बाहर आ जाओ।” “आई मॉम.....” तपस्या ने कहा और वहां से बाहर चली गई। उसके बाहर जाते ही उसके बैग का जिप अपने आप खुला। उसने एक बॉक्स में अपने पर्सनल केयर का सामान रख रखा था। अचानक वो बॉक्स खुला और ना जाने उसमें कहां से एक सिंदूर की डिब्बी आ गई। इन सब से अनजान तपस्या बाहर अपने मॉम डैड के साथ मौजूद थी। जाने से पहले वो उनके साथ टाइम स्पेंड करना चाहती थी। “मेरा तो अभी भी मन नहीं कर रहा कि मैं तुम्हें खुद से दूर भेजूं। अगर तुम जिद नहीं करती तो मैं कभी हां नहीं चाहता।” नमन ने कहा। “बस भी करो नमन.....” टीना ने उसे डांटा, “अब हमारी तपु बड़ी हो गई है। अच्छा तपु, तुम इंडिया जाएगी रही हो तो मैंने सोचा कि शॉपिंग के लिए कुछ लिस्ट बना देती हूं। वैसे तो यहां सब कुछ मिलता है लेकिन कुछ चीजें ऐसी है, जो वहां की खास है और उसकी बराबरी कोई कर ही नहीं सकता।” बोलते हुए टीना ने तपस्या को एक लंबी लिस्ट पकड़ाई, जिसे पढ़कर तपस्या और नमन टीना को हैरानी से देख रहे थे। “मॉम इतनी लंबी लिस्ट..... मैं वापस आऊंगी तब मुझे एयरपोर्ट पर ही रख कर लेंगे..... और आपने इतनी लंबी लिस्ट क्यों बना रखी है... आपको कोई शॉप थोड़ी ना खोलनी है?” “शॉप तो नहीं खोलनी बेटा लेकिन तुम कौन सा बार-बार इंडिया जाने वाली हो। मैंने बड़ी मेहनत से अपनी कुछ फ्रेंड्स का और अपना सामान इसमें याद कर करके लिखा है। इसमें से एक समान कम नहीं होना चाहिए।” टीना ने अपना फरमान सुनाया। तपस्या ने उसकी बात पर हामी भरी और फिर नमन की तरफ देख कर कहा, “डैड आपको कुछ नहीं चाहिए?” “नहीं बेटा, तुम ही जल्द से जल्द वापस आ जाना बस यही मेरे लिए सबसे बड़ा गिफ्ट होगा।” नमन की बात सुनकर तपस्या उसके गले लग गई। कुछ देर हल्की फुल्की बातें करने के बाद वो लोग सोने जा चुके थे। __________ अगले दिन तपस्या नमन और टीना से विदा लेकर इंडिया जाने के लिए निकल गई। एक लंबा सफर तय करने के बाद वो चारों प्रतापगढ़ के नजदीकी एयरपोर्ट पर पहुंचे और वहां से उन्नति के परिवार द्वारा भेजी गई गाड़ी से वो लोग प्रतापगढ़ आ रहे थे। वहीं दूसरी तरफ अभिमन्यु और गौरव ने भी सुबह प्रतापगढ़ जाने के लिए कार द्वारा सफर तय किया। सफर लंबा होने की वजह से वो लोग भी रात के 11:00 बजे के करीब प्रतापगढ़ की सीमा पर पहुंचे। जैसे ही उन लोगों की गाड़ी ने प्रतापगढ़ की सीमा में प्रवेश किया वहां भयंकर तूफान आ गया। बहुत तेज रेत का तूफान आने की वजह से छोटे पौधे उखड़ चुके थे जबकि बड़े पेड़ अपनी जगह से लगभग हिल गए थे। अचानक कहीं से एक बड़े से पेड़ का तना उड़ कर आया और जोर से आकर दोनों गाड़ियों के आगे गिरा। दोनों ओर से आज ही गाड़ियां वहीं रुक गई। अंधेरे में कुछ भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था फिर भी अभिमन्यु और गौरव एक तरफ से अपनी गाड़ी से निकले तो दूसरी तरफ उन्नति, तपस्या हेजल और पार्थ अपनी गाड़ी से.....! ★★★★ हैलो रीडर्स..... लो भई अपने हीरो की एंट्री हो गई... जो देखते है, हीरो साबित होता है या विलेन... आपकों क्या लगता है... डू कॉमेंट इन रिव्यू सेक्शन
जैसे ही तपस्या और अभिमन्यु अपने अपने दोस्तों के साथ प्रतापगढ़ की सीमा में प्रवेश किया, वहां के मौसम का मिजाज बदल गया। वहां काफी तेज रेप का तूफान आया था। वो लोग बाहर निकले लेकिन अंधेरा होने की वजह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। बाहर निकल कर देखने के लिए सब ने अपने मोबाइल की टॉर्च ऑन कर रखी थी। “वैसे काफी अच्छे से वेलकम किया है तुमने अपने होम टाउन में.....” गौरव ने कहा। उसकी नजर सामने की तरफ गई। “लगता है मेहमाननवाजी तो किसी और की भी काफी अच्छे से की है तुम्हारे होमटाउन ने.....” गौरव के कहने पर अभिमन्यु ने टॉर्च की रोशनी सामने की तरफ की तो उसे चार लोग गाड़ी के बाहर नजर आए। पार्थ गाड़ी का बोनट खोलकर उसे चेक करने की कोशिश कर रहा था। अभिमन्यु और गौरव उनके पास आए। “एक्सक्यूज मी.....” जैसे ही अभिमन्यु ने उनके पास आकर कहा, उन्नति ने उसकी आवाज से उसे पहचान लिया। वो झट से उसकी तरफ मुड़ी और खुश होकर कहा, “एक्सक्यूज्ड भाई.....” “उन्नति..... तुम यहां कैसे?” अभिमन्यु भी उससे मिलकर खुश था। इतने तूफान में भी अपनी परेशानी भूल कर अभिमन्यु ने प्यार से उन्नति को गले लगाया। “सो गुड टू सी यू..... सोचा नहीं था इतने सालों बाद यहां ऐसे इस तूफान में मिलेंगे।” अभिमन्यु ने उससे अलग होकर कहा। “हां भाई..... मैं अपने फ्रेंड्स के साथ लंदन से थोड़ी देर पहले पहुंची ही थी। हमें नहीं पता था यहां इतना तेज तूफान आने वाला है वरना हम लोग होटल में ही रुक जाते।” उन्नति ने कहा। “अच्छा अब तुम दोनों भाई बहन खुद से ही बातें करते रहोगे या हमारा भी आपस में परिचय होगा।” गौरव ने कहा। “उन्नति, इससे मिलो, ये मेरा फ्रेंड गौरव है। मेरे साथ ही इंडियन आर्मी में है और यहां घूमने के लिए आया था।” जैसे ही अभिमन्यु ने गौरव का परिचय दिया। वो हंसते हुए बोला, “हां आया तो घूमने के लिए था लेकिन अब लग रहा है कि घूम नहीं उड़ रहा हूं। काफी तेज तूफान है।” “गाइज अगर आप लोगों की बातें हो गई है तो क्या यहां से निकलने का कोई रास्ता ढूंढे?” तपस्या ने कहा। वो इस धूल मिट्टी भरे तूफान से काफी परेशान हो रही थी। “उन्नति लगता है तुम्हारे दोस्तों को इंडिया रास नहीं आया। ये सब यहां आम है, मुझे नहीं लगता आप यहां ज्यादा दिन तक टिक पाएंगी मिस.....” तपस्या का नाम ना पता होने की वजह से अभिमन्यु ने अपनी बात वही अधूरी छोड़ दी। “भाई ये मेरे फ्रेंड्स है, तपस्या, हेजल एंड पार्थ.....” उन्नति ने उन के नाम के हिसाब से इशारा करके जल्दी-जल्दी उन तीनों का परिचय दिया। “हमें नहीं लगता कि अब ये गाड़ी ठीक हो पाएगी। ऐसा करते हैं घर से किसी को हेल्प के लिए बुला लेते हैं।” अभिमन्यु ने कहा। जैसे ही उसने फोन करने के लिए अपना मोबाइल उठाया तो उसमें नेटवर्क गायब था। यही हाल उन सब के मोबाइल का था। “लगता है प्रतापगढ़ को नए मेहमान पसंद नहीं आए।” गौरव ने कहा। “अगर हम चलकर तुम्हारे महल तक जाएंगे तो हमें कितने दिन लगेंगे?” “लगभग तीन-चार घंटे का रास्ता है। इतनी दूर मिट्टी में कुछ दिखाई नहीं दे रहा आगे चल पाना तो और भी मुश्किल होगा।” अभिमन्यु ने जवाब दिया। वो लोग आपस में बातें कर रहे थे तभी एक लोहे की बड़ी सी चादर तूफान में उड़ती हुई तपस्या की तरफ आ रही थी। अभिमन्यु की नजर उस पर पड़ी तो वो जल्दी से तपस्या के पास गया और उसे खींचकर दूसरी तरफ कर दिया। इस घटना से वो लोग काफी घबरा गए। “तुम ठीक तो हो ना तपस्या?” पार्थ ने उसके पास आकर पूछा। “हां....” तपस्या की आवाज से उसकी घबराहट साफ नजर आ रही थी। वो काफी डर गई थी। हेजल उसके पास आई और उसे गले लगा कर उसकी घबराहट कम करने की कोशिश करने लगी। “यहां रुकना सेफ नहीं होगा। हमें गाड़ी में बैठ जाना चाहिए।” गौरव ने कहा। वो लोग गाड़ी में बैठने जा रहे थे तभी उन्हें सामने से किसी की गाड़ी आती दिखाई दी। “इन से मदद मांगने की कोशिश करते हैं।” अभिमन्यु ने कहा। उन्हें मदद मांगने की जरूरत नहीं पड़ी। गाड़ी उन्हीं के पास आकर रुकी थी। उसमें से एक औरत बाहर निकली, जिसने पारंपरिक साड़ी और महंगे खानदानी गहने पहन रखे थे। वो दिखने में लंबी, पतली और हल्के सांवले रंग की थी। वो उर्मिला देवी थी। “आप इस वक्त यहां क्या कर रही है मां..... तूफान में कौन बाहर निकलता है?” उन्हें वहां देखकर अभिमन्यु ने नाराजगी जताई। “जानते हैं तूफान आया है, तभी हम यहां पर है। हमें लगा कोई अनहोनी ना हो जाए बस तभी यहां तक आ गए। इन गाड़ियों को यहीं छोड़ो। इन्हें हम सुबह यहां से उठा लेंगे। चलो जल्दी से अब हमारे साथ आओ।” उर्मिला देवी ने कहा। “आंटी आप हमारे लिए सेवियर हो।” हेजल ने गाड़ी में बैठते हुए कहा। ज्यादा लोग होने की वजह से वो लोग मुश्किल से उस गाड़ी में एडजस्ट हो सके। इतना लंबा सफर तय करने के बाद इस तूफान का सामना करने के बाद सभी थक चुके थे। पूरे रास्ते किसी ने कुछ नहीं कहा। कुछ देर बाद वो लोग एक बड़े से महल के आगे खड़े थे। ये सिंह परिवार का पुश्तैनी महल था। दिखने में ये पुराने जमाने का था लेकिन रिनोवेट करके काफी बदलाव किए गए थे। शादी होने की वजह से पूरे महल को अच्छे से सजाया गया था। गाड़ी से बाहर निकल कर सब महल के आगे खड़े होकर उसकी खूबसूरती को देख रहे थे। वो लोग घर तक पहुंचे तब तक बाहर का तूफान पूरी तरह शांत हो गया था। “अच्छा अच्छा जब जल्दी से अंदर चलो। कल सुबह आराम से महल देख लेना, अभी तुम लोग काफी थक गए हो।” उन सबको वहीं रुका देखकर उर्मिला देवी ने उन्हें अंदर आने का कहा। सब ने हामी भरी और अंदर आने लगे। अंधेरे में कोई भी एक दूसरे को ठीक से नहीं देख पाया था लेकिन अंदर आते ही सब ने एक दूसरे के चेहरे को देखा। “काफी बड़ी हो गई हो छुटकी.....” अभिमन्यु ने उन्नति का नाक खींच कर कहा। “और आप और भी ज्यादा फिट एंड फाइन....” उन्नति जवाब में बोली। गौरव और पार्थ एक दूसरे से बातें करने लगे जबकि हेजल और तपस्या उन लोगों के बीच में अजनबी महसूस कर रहे थे। बात करते हुए अभिमन्यु की नजर तपस्या पर गई। उसने उन्नति के पास आकर धीरे से कहा, “इनमें से तपस्या वो है ना जिसने ब्लैक ड्रेस पहना है?” “हां लेकिन आपने कैसे पहचाना?” उन्नति ने हैरानी से पूछा। “थोड़ी देर पहले हुए एक्सीडेंट की घबराहट अभी भी उसके चेहरे पर है। ऐसा करो तुम गेस्ट को आराम करने के लिए रूम बता दो।” उन्नति ने उसकी बात पर हामी भरी। वो तपस्या हेजल और पार्थ को अपने साथ ले गई। गौरव भी उन्हीं के साथ में गया। पार्थ और गौरव एक रूम में रुके थे जबकि हेजल और तपस्या एक साथ थी। रूम में आने के बाद सीधे सब लोग सोने चले गए। ____________ अगले दिन सब उठकर तैयार होकर घर के हॉल में थे, जहां उन्नति सबसे अपने दोस्तों का परिचय करवा रही थी। उन्नति के परदादा प्रताप सिंह को छोड़कर बाकी का परिवार वहीं पर मौजूद था। अभिमन्यु ने भी अपने दोस्त गौरव को सबसे मिलवाया। सब साथ मिलकर नाश्ता कर रहे थे। “अच्छा अभिमन्यु.....” गौरव ने अभिमन्यु से धीरे से कहा, “तुम्हारी बहन के साथ आई वो लड़की हेजल..... शी इज समथिंग डिफरेंट।” “ओ रियली? हम इंडियन आर्मी से बिलॉन्ग करते हैं, डोंट फॉरगेट योर डेकोरम..... तुम क्या यहां लड़कियां ताड़ने आए हो?” “बिल्कुल नहीं..... मैं अपने लिए थोड़ी ना ढूंढ रहा हूं। मैं तो तुम्हारे लिए देख रहा था। मुझे पता है मुझे किसके साथ अपनी लाइफ स्पेंड करनी है लेकिन हेजल, तुम्हारी उसके साथ जोड़ी खूब जमेगी।” अभिमन्यु का ध्यान हेजल के बजाए तपस्या पर था। “और वो दूसरी वाली?” “मतलब तुम्हें दूसरी वाली पसंद आई।” गौरव ने उसे परेशान करने के लिए कहा। जवाब में अभिमन्यु उसे घूर कर देखने लगा। “कितनी बार कहा है खाना खाते टाइम बातें नहीं करनी चाहिए।” उर्मिला ने उन दोनों के पास आकर कहा। “और अभिमन्यु आप..... हमें आपसे बहुत सारी शिकायतें हैं।” “शिकायतें तो हमें भी बहुत है। देखे ना मम्मी जी, हम पिछले 3 साल से इंतजार कर रहे हैं कि कब हमारी देवरानी आएगी। लेकिन अभिमन्यु भैया है कि शादी के लिए तैयार ही नहीं है।” अभिमन्यु की भाभी साक्षी उसकी हां में हां मिला कर बोली। साक्षी ने उर्मिला देवी की तरह साड़ी पहन रखी थी। “लेकिन इस बार ऐसा नहीं होने वाला..... शादी ना सही लेकिन सगाई किए बिना हम इन्हें यहां से जाने नहीं देंगे।” साक्षी की हां में हां मिलाते हुए उनकी चाची जानकी ने कहा। “लगता है इस बार सच में मुझे यहां नहीं आना चाहिए था। आप सब लोग मेरे खिलाफ गैंग बनाकर बैठे हैं।” अभिमन्यु ने जवाब दिया। “गैंग बनाकर ना सही लेकिन सच में हमने आपके लिए कुछ सोचा है।” उर्मिला देवी ने गंभीर आवाज में कहा। अभिमन्यु उनके कहने का मतलब समझ रहा था लेकिन उसने उस वक्त कोई जवाब नहीं दिया। नाश्ते के बाद उर्मिला देवी ने अभिमन्यु को अपने कमरे में बुलाया। वहां उसके पिता रविंद्र प्रताप सिंह भी मौजूद थे। “प्रणाम पापा.....” उन्हें वहां देखकर अभिमन्यु ने उनके पैर छुए। “रात को आने में लेट हो गई थी इस वजह से मिलने का टाइम नहीं मिला।” “सिर्फ रात को ही आने में नहीं देर हुई, इस बार सच में तुम काफी देरी से आए हो। ऐसा इसलिए है ना कि तुम्हारा हमसे कोई मोह नहीं रहा।” रविंद्र प्रताप ने सख्त आवाज में कहा। “ऐसा कुछ नहीं है पापा..... आप अच्छे से जानते हैं मैंने आज तक आपकी कोई बात नहीं टाली।” अभिमन्यु की बात सुनकर उर्मिला देवी ने उसके गाल पर प्यार से हाथ फेर कर कहा, “हां तभी आप अपने मां पापा के लाडले हो। अब तक कोई बात नहीं टाली है, तो आगे भी मत टालना।” अभिमन्यु ने जवाब में हां में सिर हिलाया। उर्मिला देवी ने रविंद्र प्रताप सिंह की तरफ देखा। दोनों ने आंखों ही आंखों में कुछ बात की और उसके बाद उर्मिला देवी अपने बेड साइड के पास मौजूद ड्रॉर से कुछ निकाल कर लाई। उनके हाथ में एक तस्वीर थी जो उन्होंने अभिमन्यु को दिखाई। “ये रावी है। ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही है। अगले साल तक पूरी हो जाएगी। शादी की हमें कोई जल्दी नहीं है लेकिन हम चाहते हैं कि इस बार तुम सगाई करके ही यहां से जाओ।” जैसे ही रविंद्र प्रताप ने कहा, अभिमन्यु उनकी तरफ हैरानी से देखने लगा। उसने लड़की की तस्वीर तक नहीं देखी। “लेकिन पापा मैं इसके लिए तैयार नहीं हूं।” अभिमन्यु ने धीमी आवाज में कहा। “जब तुम ने पहली बार इंडियन आर्मी जॉइन करने का सोचा था तब हम भी तैयार नहीं थे तुम्हें वहां भेजने के लिए..... फिर भी तुम्हारी खुशी के लिए हमने खुद को मना लिया और साथ ही पूरे घर वालों को भी..... ये लड़की खुद बड़े दादा सा ने तुम्हारे लिए ढूंढी है और उन्हीं की जान पहचान में कोई है। हमारे लिए ना सही लेकिन उनके लिए मना मत करना।” रविंद्र प्रताप सिंह ने अपनी बात सामने रखी। “शादी वाले दिन ही तुम लोगों की सगाई हो जाएगी..... सुबह सगाई का फंक्शन रखा गया है। तु.....” उर्मिला देवी ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि तभी वहां किसी के आने की दस्तक हुई। “तुम लोगों को किसने कहा कि अभिमन्यु और रावी की सगाई होगी? छोटे की शादी के ठीक 1 दिन पहले अभिमन्यु और रावी की शादी है..... बेहतर होगा कि तब तक अभिमन्यु के साथ-साथ तुम लोग भी खुद को इसके लिए तैयार कर लो।” एक कड़क और सख्त आवाज गूंजी। जवाब में किसी ने कुछ नहीं कहा। बस नज़रे झुकाकर सब ने हामी भरी। अभिमन्यु का चेहरा दूसरी तरफ था। उन सबके इस फैसले के खिलाफ उसकी आंखों में गुस्सा था। ★★★★
कार्तिक की शादी अटेंड करने के लिए अभिमन्यु प्रतापगढ़ पहुंच चुका था। वहां आने के बाद उसे एक नया झटका मिला जब उसे ये पता चला कि उसकी शादी कार्तिक की शादी के ठीक 1 दिन पहले होने वाली है। अभिमन्यु अपने मां पापा के साथ खड़े होकर बातें कर रहा था तभी दरवाजे पर उसके बड़े दादा सा की आवाज गूंजी, “बेहतर होगा इस एक हफ्ते में तुम खुद को शादी के लिए तैयार कर लो। रावी, मेरे दोस्त के परिवार की नई पीढ़ी से है। कुछ देर में वो यहां पहुंचने वाली ही होगी। इस हफ्ते में दोनों एक दूसरे को अच्छे से समझ लो और खुद को इस रिश्ते के लिए तैयार कर लो।” बोलते हुए वो अंदर आए। भले ही वो अभिमन्यु के परदादा थे लेकिन देखने में वो उम्र से 60–65 से ऊपर के नहीं लगते थे। पारंपरिक कुर्ता पजामा और चेहरे पर रंग की हुई काली गहरी मूंछें उन्हें खूब जम रही थी। उनकी रौबदार आवाज के आगे उर्मिला और रविंद्र की कुछ बोलने की हिम्मत नहीं पड़ी। अभिमन्यु ने अपनी बात रखनी चाही लेकिन स्थिति को भांपते हुए उर्मिला ने उसका हाथ पकड़कर उसे चुप रहने का इशारा किया। “रावी कब तक पहुंचेगी बड़े दादा सा?” उर्मिला ने पूछा। “उसके काका का फोन आया था। बस कुछ देर में पहुंचने वाले ही होगी।” प्रताप सिंह ने जवाब दिया। उन्होंने देखा कि अभिमन्यु का चेहरा उतरा हुआ था। वो उसके पास गए और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेर कर कहा, “जानते हैं तुम इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हो लेकिन हर काम समय से कर लिया जाए तो बेहतर होता है। कार्तिक तुमसे छोटा है, फिर भी वो अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने जा रहा है। ऐसे में हम नहीं चाहते कि तुम अपना पूरा टाइम अपनी प्रोफेशनल लाइफ को दो। पर्सनल लाइफ भी इंपोर्टेंट होती है। रावी के आने के बाद तुम्हें ये समझ आ जाएगा।” प्रताप सिंह ने प्यार से अभिमन्यु को समझाया। “बड़े दादा सा, आपकी सोच इतनी मॉडर्न है तो कम से कम एक बार ये रिश्ता तय करने से पहले मुझसे पूछ तो लेते।” अभिमन्यु ने अपने दिल की बात उनके सामने रखी। उसकी बात सुनकर प्रताप सिंह हल्का सा हंसे और फिर कहा, “भले ही तुम बच्चों के लिए हम मॉडर्न हो गए होंगे लेकिन आज भी हमारी परंपराएं हमारे लिए उतना ही महत्व रखती हैं। तुम्हारे पापा भी शादी के लिए तैयार नहीं थे। परंतु जब हमने उनके लिए तुम्हारी मां को ढूंढा, उन्होंने उनके साथ वक्त बिताया तो वो समझ गए कि उर्मिला से बेहतर जीवन साथी उनके लिए हो ही नहीं सकती। रावी से मिलने के बाद भी तुम्हें भी समझ आ जाएगा, लाइफ में एक अच्छा पार्टनर होना कितना जरूरी होता है।” “सच ही तो कह रहे हैं बड़े दादा सा, इतने पुराने वक्त से होने के बावजूद ये तुम्हें रावी के साथ टाइम स्पेंड करने का मौका दे रहे हैं। शादी से पहले उसे यहां तुम्हारे साथ रहने तक की इजाजत दे दी और तुम्हें क्या चाहिए? भले ही मैं बड़े दादा सा से उम्र में छोटा हूं लेकिन इनके जितनी मॉडर्न सोच मेरी अभी भी नहीं हुई है। अब इन्होंने इजाजत दे दी है तो फिर मैं कौन होता हूं बीच में बोलने वाला?” रविंद्र ने हंसकर कहा। प्रताप सिंह भी उसकी बात सुन कर मुस्कुरा दिए। “चलिए अब कोई बहस नहीं.....” उर्मिला ने बातचीत पर विराम लगाते हुए कहा, “अभि, तुम्हारी तरह हम भी रावी से पहली बार मिलने वाले हैं। वैसे आपने बताया नहीं बड़े दादा सा रावी के साथ और कौन आने वाला है?” “फिलहाल तो कोई नहीं..... हमने रावी को देने के लिए हमारे ड्राइवर भेजा था। वो लोग कुछ देर में पहुंचते ही होंगे।” प्रताप सिंह की बात सुनकर उर्मिला ने हैरानी से कहा , “अगर लड़की के माता-पिता आ जाते तो अच्छा होता। शादी में अभी वक्त ही कितना रहा है। वो भी अभिमन्यु को देख परख लेते।” “काश ऐसा हो पाता।” बोलते वक्त प्रताप सिंह के चेहरे पर गंभीर भाव थे। “रावी की परवरिश उसके चाचा चाची ने की है। उसके माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। लड़की बहुत ही गुणी है, तभी हमने हमारे अभिमन्यु के लिए पसंद की है। परिवार की बात करें तो चाचा चाची ने भले ही उसे पाल दिया हो लेकिन मां-बाप का वो प्यार नहीं दे पाए। औपचारिकता निभाने के लिए वो शादी करने पहुंच जाएंगे।” प्रताप सिंह ने रावी के पूरे परिवार का परिचय दे दिया। उर्मिला देवी वहां से रावी के वेलकम की तैयारी करने के लिए चली गई तो वही रविंद्र प्रताप और प्रताप सिंह शादी की तैयारियों के बारे में चर्चा करने में व्यस्त हो गए। अभिमन्यु उतरे हुए चेहरे के साथ कमरे से बाहर आया। “ये लोग ऐसे कैसे किसी लड़की के साथ मेरी शादी फिक्स कर सकते हैं? डिस्गस्टिंग..... मेरा छोड़ो अभी तो मां और पापा ने भी उसे नहीं देखा। मुझे समझ नहीं आता कि ये सब आंख मूंदकर बड़े दादा सा की बात मान कैसे लेते हैं।” अभिमन्यु को बहुत गुस्सा आ रहा था। वो खुद को शांत करने और ताजी हवा लेने के लिए बगीचे में आया। उन्नति अपने दोस्तों के साथ वहां पर मौजूद थी। वो उन्हें महल घुमा रही थी। भव्य भी इन नए मेहमानों के साथ काफी खुश था। वो भी उनके साथ साथ घूम रहा था। “मैंने इतने अलग-अलग स्पेसीज के फ्लावर्स आज से पहले कभी नहीं देखे..... तुम्हारे महल का तो क्या ही कहूं..... इट इज जस्ट अमेजिंग.....” हेजल वहां हर एक कोने की तस्वीर खींच रही थी। हेजल तस्वीर खींचने में व्यस्त थी तो वहीं पार्थ और उन्नति आंखों ही आंखों में एक दूसरे से बातें कर रहे थे। उसने देखा इन सबसे अलग तपस्या वहां लगे झूले पर झूलते हुए अपनी ही दुनिया में खोई हुई थी। भव्य का पूरा ध्यान तपस्या में लगा था। वो उसे एकटक देखे जा रहा था। “इधर आइए छोटे राजकुमार.....” अभिमन्यु ने भव्य को आवाज लगाकर अपने पास बुलाया। उसके जोर से आवाज लगाने पर एक बार के लिए सबका ध्यान उसकी तरफ चला गया। भव्य दौड़कर अभिमन्यु के पास पहुंचा। “बोलिए भैया..... कोई काम है क्या? वो क्या है ना हम थोड़ा बिजी हैं।” “हमें दिख रहा है कि आप कहां बिजी हैं। हमने नोटिस किया है कि आप उन्नति की फ्रेंड को कुछ ज्यादा ही गौर से देख रहे थे।” “हां क्योंकि वो हमें अच्छी लगी और हम बड़े होकर उनसे शादी करेंगे। लेकिन हमारी शादी तो तब होगी ना जब आप शादी करेंगे..... अब तो कार्तिक भैया भी शादी कर रहे हैं तो आप हां क्यों नहीं कह देते?” “बेटा अपने उम्र से बड़े होने की कोशिश मत करो क्योंकि यही एज बेस्ट होती है।” अभिमन्यु ने हल्के से उसका कान खींच कर कहा। “अगर तुम अभिमन्यु भाई की शादी होने का वेट कर रहे हो तो अब तुम्हें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा भव्य.....” पीछे से किसी लड़के की आवाज आई। अभिमन्यु और भव्य ने मुड़कर देखा तो पीछे कार्तिक था। उसने उन दोनों की सारी बातें सुन ली थी। “अब तक कहां थे होने वाले दूल्हे राजा? हम कल रात को ही आ गए थे..... और आप अब हमें मिल रहे हैं।” अभिमन्यु ने कहा। कार्तिक उसके पास जाकर उसे गले लगा और फिर अलग होकर कहा, “होने वाले दुल्हे राजा तो आप भी है। फिलहाल की ब्रेकिंग न्यूज़ ये है कि अभिमन्यु भाई की शादी मुझसे एक दिन पहले होने वाली हैं।“ कार्तिक ने चिल्लाकर सबको ये खबर दी। सब दौड़कर का अभिमन्यु के पास आए। “ हमें भी तो पता चले, भाई ने हमारी भाभी सा किसे चुना है? आप तो छुपे रुस्तम निकले भाई। भाभी ढूंढ ली और बताया भी नहीं.....” उन्नति ने उसे परेशान करते हुए कहा। “पहले मैं तो मिल लूं, फिर तुम लोगों को भी मिलवा दूंगा.....” अभिमन्यु ने धीमी आवाज में जवाब दिया। “व्हाट डू यू मीन बाय मैं तो मिल लूं?” उसकी बात सुनकर तपस्या हैरान थी। “अगले एक हफ्ते में तुम्हारी शादी होने वाली है और तुम्हें ये भी नहीं पता कि तुम किस से शादी कर रहे हो? आर यू किडिंग मी?” “भाई कहीं आप मजाक तो नहीं कर रहे?” उन्नति ने गंभीर होकर पूछा। “मजाक तो मेरे साथ हुआ है, जब मां पापा ने मुझे इस बारे में बताया। ऊपर से बड़े दादा सा ने मेरे लिए लड़की सेलेक्ट की है। ये उन्हीं का डिसीजन है कि कार्तिक की शादी के 1 दिन पहले मेरी शादी हो।” अभिमन्यु ने संक्षेप में उन्हें सारी बात समझा दी। “उन्नति तुमने तो कहा था तुम्हारे बड़े दादा सा बहुत मॉडर्न है, फिर इस तरह भाई की शादी बिना उनके परमिशन के तय करना..... इट इज़ कंपलीटली अनफेयर। उन्हें अपनी पूरी लाइफ उसके साथ स्पेंड करनी है, अगर वो लड़की अच्छी नहीं हुई तो?” पार्थ ने कहा। “उन्नति अब मुझे तुम्हारे लिए फिक्र हो रही है। तुम्हारे दादा सा ने जब तुम्हारे भाई के लिए लड़की सेलेक्ट कर ली तो कहीं बिना बताए तुम्हारे लिए तो लड़का सेलेक्ट नहीं कर लिया? अगर ऐसा हुआ तो फिर तुम्हारे और पार्थ का क्या होगा?” जल्दी-जल्दी बोलने के चक्कर में हेजल ने उन सब को उन्नति और पार्थ के बारे में बता दिया। सब लोग हैरानी से उन दोनों की तरफ देखने लगे। “उन्नति..... क्या ये लड़का तुम्हारा बॉयफ्रेंड है?” अभिमन्यु ने सख्त आवाज में पूछा। तपस्या ने देखा उन्नति घबरा रही है, तो वो जवाब में बोली, “तुम उन्नति को डांट क्यों रहे हो? उसे अपनी लाइफ अपने हिसाब से जीने का हक हैं।” “मैं तुमसे नहीं उन्नति से बात कर रहा हूं। इट वुड बी बैटर की वही जवाब दें।” अभिमन्यु ने हल्के गुस्से में कहा। कुछ देर के लिए वहां शांति छा गई। फिर उन्नति ने घबराते हुए हां में सिर हिलाया। “प्लीज भाई अभी घर वालों को इस बारे में कुछ मत बताना। वो हर चीज को गलत तरीके से लेंगे। गुस्से में उन्होंने मेरी शादी किसी और से कर दी तो..... मैं पार्थ के बिना नहीं रह पाऊंगी।” उन्नति की बात सुनकर अभिमन्यु ने उसका हाथ पकड़ा और कहा, “मेरे होते हुए ऐसा कभी नहीं हो पाएगा। आई प्रॉमिस तेरी शादी उसी से होंगी, जिसे तू पसंद करती हैं। मेरे रहते तेरी मर्जी के खिलाफ तेरी शादी किसी और से नहीं होगी।” “हां बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी की जा रही है जबकि खुद की शादी रोक नहीं पा रहे। तुम पहले खुद के लिए तो स्टैंड ले लो फिर उन्नति को सपोर्ट करना।” तपस्या ने तंज कसा। “अगर उन्नति की तरह मैं भी किसी से प्यार करता, तो जरूर स्टैंड लेता।” अभिमन्यु ने जवाब में कहा। दोनों के बीच एक तीखी बहस शुरू हो चुकी थ, जिसे वहां के लोग चुपचाप सुन रहे थे। “जरूरी नहीं आप हर बार अपने प्यार के लिए ही स्टैंड लो। कई बार खुद की इंडिपेंडेंस और खुद की खुशी के लिए भी स्टैंड लेना पड़ता है। आई डोंट अंडरस्टैंड जब तुम उस लड़की से प्यार ही नहीं करते तो उसके साथ पूरी लाइफ कैसे स्पेंड करोगे? तुमने तो उसे अभी तक देखा भी नहीं, ना जाने वो कैसी होगी।” “कैसी भी हो, तुम्हारे जैसी बिल्कुल नहीं होने वाली।” अभिमन्यु ने आंख दिखाकर कहा। “मेरा तो मैं देख लूंगा लेकिन उस लड़के का क्या होगा जिससे तुम शादी करोगी।” “वो दुनिया का सबसे लकी लड़का होगा जिसकी शादी मुझसे होगी। और हां, अगर मैं उस शादी के लिए तैयार नहीं हुई तो अपने घर वालों को उसके बारे में कहूंगी, ना कि चुपचाप एक पपेट की तरह उनकी बातें मानूंगी।” “अभिमन्यु भाई..... तपु..... आप दोनों आपस में बहस क्यों कर रहे हैं? एंड भाई अगर आपको वो लड़की पसंद नहीं है तो हम लोग आपके फेवर में घर वालों से बात करने के लिए तैयार हैं।” उन्नति ने उन दोनों को चुप कराने के लिए कहा। “हां भाई..... अगर आपको उस लड़की से शादी नहीं करनी है तो हम सब मिलकर आप की बात घर वालों के सामने रख सकते हैं।” कार्तिक ने भी उन्नति की हां में हां मिलाई। “उसकी कोई जरूरत नहीं है।” अभिमन्यु ने तपस्या की तरफ देखकर गुस्से में कहा। वो लोग बातें कर रहे थे तभी महल के मेन डोर से एक गाड़ी तेजी से चलती हुई आगे आई। ये उनके बड़े दादा सा की गाड़ी थी जो उनके अलावा कोई इस्तेमाल नहीं करता था। अभिमन्यु को याद आया बड़े दादा सा ने उस गाड़ी में रावी को लेने के लिए भेजा था। “रावी आ गई।“ जैसे ही अभिमन्यु ने कहा, सबकी नजरें उस गाड़ी पर टिक गई। ★★★★
अभिमन्यु उन्नति के दोस्तों के साथ खड़ा महल के बगीचे में बातें कर रहा था, जहां बातों ही बातों में उसकी और तपस्या की तकरार हो गई। वो लोग वहां बातें कर रहे थे, तभी वहां एक गाड़ी आकर रुकी जो उनके बड़े दादा सा की थी. सबकी नजरें उस गाड़ी पर टिक गई क्योंकि उसमें अभिमन्यु की होने वाली वाइफ रावी मौजूद थी। “दादा सा ने अभी थोड़ी देर पहले बताया था कि उन्होंने रावी को लाने भेजा था। शायद वो आ गई है।” अभिमन्यु ने उन सब को बताया। “ओह तो हमारी होने वाली भाभी सा का नाम रावी है। हम भी तो देखें कैसी लगती है हमारी होने वाली भाभी.....” उन्नति ने कहा। उन्होंने देखा गाड़ी में से एक लड़की उतरी, जो देखने में औसत कद की और गोरी थी। उसने सिंपल लेकिन ब्रांडेड साड़ी पहन रखी थी, जिस पर महंगे कुंदन के गहने उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहे थे। चेहरे पर गहरा मेकअप, आंखों पर गॉगल्स लगाए वो महल को देख रही थी। उसके चेहरे पर मासूमियत थी। “ब्यूटीफुल..... लगता है होने वाली भाभी सा ठान कर आई है कि पहली ही बार में भाई को इंप्रेस करना है।” कार्तिक ने अभिमन्यु को परेशान करने के लिए कहा। जवाब में अभिमन्यु ने उसकी तरफ मुंह बनाया। “ये तो ऐसे रेडी होकर आई है जैसे इसकी शादी आज ही होने वाली है।” तपस्या ने कहा। “अभिमन्यु..... आप रावी को लेने जाइए ना, मैं आप दोनों की फोटो कैप्चर करती हूं। आप दोनों की पहली मुलाकात को आप इस तरह फोटो के जरिए संजोकर रख सकते हैं।” बोलते हुए पार्थ ने हेजल के हाथ से कैमरा ले लिया। “ये सब करने की कोई जरूरत नहीं है और खबरदार किसी ने उसको ये बताया कि मैं ही अभिमन्यु हूं..... और तुम में से कोई भी मुझे उस लड़की के साथ यहां अकेले छोड़ कर गया है तो फिर अच्छा नहीं होगा।” जैसे ही अभिमन्यु ने कहा, सब उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे। वो उसकी बात पर कोई प्रतिक्रिया दे पाते उससे पहले रावी उनके पास आई। उसने अपना हाथ अभिमन्यु की तरफ बढ़ाया और कहा, “हेलो अभिमन्यु जी..... आपसे मिलकर अच्छा लगा।” “बाय द वे आपको किसने कहा कि ये अभिमन्यु है? ये कोई और भी तो हो सकता है।” तपस्या ने अभिमन्यु को परेशान करने के इरादे से कहा। “बड़े दादा सा ने मुझे पहले ही इनकी तस्वीरें भेज दी थी। वैसे आप सब लोग कौन हैं?” इतने सारे लोगों को एक साथ देख कर रावी ने पूछा। कार्तिक ने एक-एक करके उन सब का परिचय दिया। सब का परिचय हो जाने के बाद रावी ने कहा, “आप सब से मिलकर बहुत अच्छा लगा खासकर अभिमन्यु जी से.....” “क्या सच में? मुझे लगा आप हम पर गुस्सा हो रही होंगी, हमने आपको आपके अभिमन्यु जी से ठीक से मिलने नहीं दिया। वैसे आप चाहे तो अभी मिल सकती हैं। हम लोग यहां से चले जाते हैं। ओके गाइज़?” तपस्या ने उन सब से पूछा। “ओके.....” सभी एक साथ एक सुर में बोले और मुस्कुराते हुए वहां से चले गए। तपस्या ने मुड़कर अभिमन्यु की तरफ देखकर आंख मारी। अभिमन्यु को उस पर बहुत गुस्सा आ रहा था। “तुम्हें तो मैं छोडूंगा नहीं।” वो धीरे से बड़बड़ाया। उसने रावी की तरफ देखा जो मुस्कुराकर उसकी तरफ देख रही थी। “अच्छा हुआ ना जो सब चले गए।” रावी ने धीमी आवाज में कहा। “हां बहुत अच्छा हुआ, अब मैं आपसे आपके दिल की बात जान सकता हूं। देखिए रावी, आपको इस शादी के लिए अगर फोर्स किया जा रहा है तो मैं आपके साथ हूं। हम मिलकर घरवालों से कहते हैं कि हमें ये शादी नहीं करनी।” “आपने कैसी बातें कर रहे हैं अभिमन्यु जी? हमें कौन फॉर्स करेगा। हमने तो आपको पहले ही नजर में पसंद कर लिया था।” “फोटो की बात अलग होती है। हमें एक साथ पूरी लाइफ बितानी है। आप मुझे जानती नहीं, मैं बहुत अग्रेसिव हूं। गुस्से में मेरा सामने वाले पर हाथ भी उठ जाता है। परेशान होता हूं तो सबसे पहले शराब की तरफ ही अपनी परेशानी का हल ढूंढता हूं..... अपनी फाइनेंसियल कंडीशन का तो क्या ही बताऊं, इतनी अच्छी सैलरी होने के बावजूद मुझे इतना सारा कर्ज लेना पड़ा। मैंने शेयर मार्केटिंग में पैसा इन्वेस्ट किया था और सब का सब डूब गया।” उसकी बातें सुनकर रावी उसकी तरफ हैरानी से देखने लगी। वो कुछ देर रुकी और फिर जवाब में कहा, “कोई बात नहीं अभिमन्यु जी, अब मैं आ गई हूं, तो आपकी सभी बुरी आदतें छुड़वा दूंगी। रही बात कर्जे की, तो आप का कर्ज चुकाने के लिए मैं अपने गहने बेच दूंगी। जब मैं साथ रहूंगी तो परेशानी आपके आसपास भी नहीं फटकेगी, परेशान नहीं होंगे तो फिर शराब की तरफ क्यों जाएंगे।” रावी की बात सुनकर अचानक जोर जोर से हंसने की आवाज आई। अभिमन्यु और रावी ने पलट कर देखा तो वो सभी लोग छुप कर उनकी बातें सुन रहे थे। “अभिमन्यु जी, अब तो आपको कोई दिक्कत नहीं है ना? रावी आपके लिए सब कुछ करने के लिए तैयार है।” तपस्या ने उसे चिढ़ाने के लिए कहा। “हां आजकल ऐसी लड़कियां मिलती ही कहां है? देखो ना ये कितनी संस्कारी है। वरना आजकल कुछ लड़कियां तो विदेश में रहकर अपने संस्कारों को भूल जाती है और बात बात पर बहस करने लगती है।” अभिमन्यु ने तपस्या को टोंट मारा। “नहीं अभिमन्यु जी, मैं ऐसी बिल्कुल नहीं हूं। मैं आपकी सारी बातें बिना सवाल किए मान लूंगी।” रावी को ने जवाब दिया। “चलिए होने वाली भाभी सा, अभिमन्यु जी से तो बहुत बातें हों गई। अब बाकी कर घरवालों से भी मिल लीजिए।” उन्नति रावी के पास आई और उसे अंदर ले गई। वो सब लोग भी साथ में अंदर जा रहे थे तभी अभिमन्यु तपस्या के पास आकर धीरे से बोला, “आई वॉना टॉक टू यू.....” “बट आई डोंट वांट.....” तपस्या ने जवाब में कहा और अंदर चली गई। “मुझे बेवजह फंसा दिया इन सब लोगों ने..... मुझे शादी के लिए ऐसी लड़की बिल्कुल नहीं चाहिए जो बिना दिमाग लगाए सही गलत सोचे समझे बिना हां में हां मिलाए। वो मेरी दोस्त की तरह रहें..... ना कि अभिमन्यु जी, अभिमन्यु जी कहकर मुझे बड़े होने का एहसास दिलाए।” अभिमन्यु को रावी बिल्कुल भी पसंद नहीं आई। उसने पहली नजर में ही उसे रिजेक्ट कर दिया। वो इस बारे में बात करने के लिए अंदर अपनी मां के पास गया। अंदर सब लोग रावी के पास थे। उसने कुछ ही देर में सबका दिल जीत लिया था। उर्मिला देवी ने अभिमन्यु को अंदर देखा, तो वो उसके पास जाकर बोली, “अभि, रावी ने तो कुछ ही देरी में हम सबका दिल जीत लिया है। बच्ची बहुत ही गुणी और खुशमिजाज है।” “मां मुझे आपसे अकेले में बात करनी है।” अभिमन्यु ने धीरे से कहा। “अच्छा तो सबके सामने में बताने में शर्म आ रही है।” उर्मिला देवी की बात सुनकर रावी ने शर्माते हुए नजरें नीची कर ली। “लगता है अभिमन्यु के साथ साथ रावी को भी शर्म आ रही है।” तपस्या ने कहा। “हां शरमाना तो बनता है। भई,अब ये लंदन थोड़ी ना है, जो सब कुछ यहां खुल्लम-खुल्ला होता हो।” जानकी ने जवाब में कहा। “जो भी हो हमें तो हमारी देवरानी बहुत पसंद है। बड़े दादा सा का लिया कोई भी डिसीजन गलत हो ही नहीं सकता। चाहे वो अभिमन्यु की शादी का हो या फिर हमारी शादी का.....” साक्षी ने कहा। “जानते हैं हम तभी हम बिना सवाल के उनके हर एक फैसले को मानते हैं। कार्तिक ने पहले से ही अपने लिए लड़की पसंद कर ली वरना इस घर में सभी शादियां बड़े दादा सा की मर्जी से होती है। आप जानती है रावी, हमारे यहां सभी शादियां लगभग 10 से 15 दिन के बीच में फिक्स होकर हुई है,फिर भी सब की शादियां आज कामयाब है... और सब खुश भी है।” उर्मिला ने जवाब दिया। तपस्या को उर्मिला की बात सुनकर बहुत हैरानी हुई। उसने उस वक्त कुछ कहना सही नहीं समझा लेकिन हेजल बोल पड़ी, “आंटी इसका मतलब आप सबके घर में अरेंज मैरिज हुई है? अचानक से शादी जैसा बड़ा सरप्राइज मिलना आई डोंट थिंक सो ये एक अच्छा डिसीजन होता है। आजकल टाइम बदल रहा है एंड शादी से पहले एक दूसरे को जान ले तो ज्यादा बैटर रहता है।” हेजल की बात सुनकर वहां चुप्पी छा गई। रावी ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, “हेजल जी, आप इंडिया में नहीं रही इस वजह से आपको ये सब अजीब लग रहा है लेकिन आज भी ज्यादातर घरों में अरेंज मैरिज ही होती है। बहुत कम गिने चुने लोग होते हैं जो अपनी मर्जी से शादी करते हैं। मुझे तो हमेशा से अरेंज मैरिज ही पसंद है..... हमारे पेरेंट्स हमारे लिए गलत थोड़ी ना सोच सकते हैं।” “अच्छा-अच्छा बस करो..... तुम बच्चे तो आपस में बहस ही करने लग गए। ना लव मैरिज गलत होती है, ना ही अरेंज मैरिज, हां आपको आपका लाइफ पार्टनर कई बार लव मैरिज के रूप में मिल जाता है तो कई बार अरेंज मैरिज के रूप में..... इसका मतलब ये तो नहीं कि लव मैरिज करने वाले कोई पाप करते हैं।” उर्मिला की बात ने उनकी बहस को वही रोक दिया। सब उनकी बात पर सहमत थे। अभिमन्यु अभी भी उर्मिला से अकेले में बात करने का मौका ढूंढ रहा था लेकिन सब मौजूद होने की वजह से उसे अपनी बात कहने का अवसर नहीं मिल पा रहा था। ____________ रात के दूसरे पहर में एक अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी। महल के एक हिस्से में मसालों से रोशनी की हुई थी। वहां तीन औरतें घुंघट निकाल कर बैठी थी। उनके साथ एक आदमी मौजूद था। वो तीनों तंत्र साधना कर रही थी जबकि वो आदमी उनके सामने बैठा था। “क्या तुम दिनों इस बार निश्चिंत हो कि हम इस महल में चंद्रवंशी ने प्रवेश कर लिया है?” उस आदमी के पूछने पर तीन औरतों ने हां में सिर हिलाया। “देखो हम काफी कमजोर होते जा रहे हैं। अब हमें बलि की सख्त जरूरत है। पहले भी हमने हमारे वंशजों की आनन-फानन में शादी करवा दी। हमें लगा वो सभी लड़कियां चंद्रवंशी होगी लेकिन अब हमारे वंश में इकलौता लड़का अभिमन्यु बचा है। अगर अभिमन्यु के साथ शादी होने वाली लड़की चंद्रवंशी नहीं निकली तो हमें नहीं लगता भव्य के बड़े होने तक हम जिंदा रह पाएंगे। अगर हमारा नाश हुआ तो हमारे साथ-साथ हमारे सारे कुल का विनाश हो जाएगा।” “आप फिकर मत कीजिए महाराज..... इस बार हमारी तंत्र साधना धोखा नहीं दे सकती। हमने तंत्र साधना के जरिए पहले ही पता लगा लिया था कि चंद्रवंशी इस महल में किस दिन आने वाली है।” उनमें से एक औरत बोली। “सुनैना, सुभद्रा, सुकृति..... हम तुम तीनों पर आंख मूंदकर विश्वास करते हैं। तुमने हमारे और कुल के लिए जो किया है वो कोई नहीं कर पाएगा। हम बस इसीलिए निश्चिंत होना चाहते हैं क्योंकि हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है।” वहां मौजूद तीन औरतों के नाम सुनैना, सुभद्रा और सुकृति था। वो उसकी आदमी पत्नियां थी। अचानक वो तीनों खड़ी हुई उन तीनों के ही पैर उल्टे थे। एक झटके के साथ उन्होंने अपना घूंघट हटाया तो उनकी नाक जरूरत से ज्यादा लंबी थी, जिसमें उन्होंने बड़ी सी नथनी पहन रखी थी। बिल्कुल काली मछली की आकार की बड़ी आंखें और हवा में लहराती चोटी, उन तीनों को देखकर साफ था कि वो इंसान नहीं थी। “ना तो हमने तब इस वंश पर आंच ने दी थी ना ही अब आने देंगे। इस कुल की सुख और समृद्धि के लिए हमने अपनी हर पहली चंद्रवंशी पुत्र वधूयों की बलि चढ़ाई है। आज भी उन सब की चीखें इस महल में गूंजती है। इतना आसान नहीं है हमारे तंत्र को तोड़ना..... यकीन मानिए वो लड़की रावी ही अब आपके अमरता में मुख्य भूमिका निभाएगी।” सुभद्रा ने कहा। उस आदमी ने उनकी बात पर हामी भरी। “तुम लोग अपने काम में लगी रहो। किसी भी चीज की जरूरत हो तो आंख बंद करके याद कर लेना। मैं हमेशा तुम्हारे लिए हाजिर रहूंगा।” “और हम भी आपकी सेवा में हमेशा हाजिर है स्वामी.....” वो तीनों औरतें एक साथ बोली और उस आदमी के आगे झुक गई। उनके ऐसा करने पर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट था उन लोगों से बात करके वो वहां से चला गया। वो तीनों औरतें पूरी शक्ति से अपनी तंत्र साधना में जुट गई। ★★★★
महल के नीचे बने तहखाने के पिछले हिस्से में जोरों शोरों से तंत्र प्रक्रिया की जा रही थी। इस बात का किसी को अंदाजा भी नहीं था। जहां महल के ऊपर के हिस्से में खुशियों का माहौल था तो वहीं नीचे के हिस्से में एक अलग ही मनहूसियत छाई हुई थी। इस तंत्र प्रक्रिया ने सोई हुई कई अतृप्त आत्माओं को जगा दिया था, जिनकी कुल की वृद्धि के नाम पर बलि दी गई थी। ज्यादा रात हो जाने की वजह से घर के बाकी लोग सोने जा चुके थे जबकि एक कमरे में बैठकर घर के बच्चे बातें कर रहे थे। “अच्छा उन्नति, तुमने बताया नहीं तुम पार्थ से कैसे मिली?” उन्नति के भाई कार्तिक ने उसकी तरफ तकिया फेंक कर पूछा। “बताया तो आपने भी कभी नहीं कि आप रावी भाभी से कब और कहां मिले?” उन्नति ने मुंह बनाकर कहा। “काश ये सवाल तुम लोग अभिमन्यु से भी पूछ पाते।” तपस्या ने अभिमन्यु को चिढ़ाने के लिए कहा। “हम लोग कैसे मिले इसके बारे में तो आप सब को अच्छे से पता ही है।” जवाब में रावी बोली। अभिमन्यु गौर से उन सबकी बातें सुन रहा था। उस की नजरे तपस्या पर थी, जिसकी तरफ वो ना चाहते हुए भी आकर्षित हो रहा था। उसे तपस्या में वो सभी खुबियां नजर आ रही थी, जो उसे अपने आइडल लाइफ पार्टनर में चाहिए थी। “गाइज़ मुझे नींद आ रही है, मैं अपने कमरे में जा रहा हूं।” अभिमन्यु वहां से उठकर जाने लगा तभी रावी ने उसे रोकने के लिए कहा, “रुक जाए ना अभिमन्यु जी, ये वक्त बार-बार नहीं आएगा।” “हां अभिमन्यु जी रुक जाए ना, रावी जी रोक रही है तो आपका रूकना तो बनता है।” तपस्या ने कहा। अभिमन्यु बिना कुछ बोले वहां बैठ गया। वो लोग हल्की फुल्की बातें कर रहे थे। रावी की नजरें अभिमन्यु की तरफ तो अभिमन्यु की नजर तपस्या पर टिकी हुई थी। उन्नति अपने और पार्थ के बारे में बताते हुए बोली, “सेम स्ट्रीम में होने की वजह से हम दोनों एक सेमिनार में पहली बार मिले थे। हम लोगों का फ्रेंड्स ग्रुप भी कॉमन था। इस वजह से फ्रेंड्स बन गए और साथ टाइम स्पेंड करते-करते कब प्यार हो गया पता ही नहीं चला।” “दैट्स गुड उन्नति, बट तुमने बताया नहीं कि तुम्हारी और तपस्या की फ्रेंडशिप कैसे हुई?” अभिमन्यु ने तपस्या की तरफ देखकर पूछा। “अरे उसके पीछे तो बहुत इंटरेस्टिंग स्टोरी हैं।” हेजल ने हंसकर कहा। उन्नति और हेजल ने एक दूसरे से हाई फाई की जबकि तपस्या चुप हो गई। वो इस बारे में बात नहीं करना चाहती थी। “चलो सोते हैं ना गाइज़..... काफी रात हो गई है।” तपस्या ने बात को टालने के लिए कहा। “ऐसे कैसे सोते हैं? जब हेजल जी बोल रही है कि कहानी काफी इंटरेस्टिंग है, तो हमारे मन में उसे सुनने की इच्छा जाग गई। बताइए ना उन्नति दीदी, आप लोगों की फ्रेंडशिप कैसे हुई? आप लोगों को देखकर लगता है आपका बोंड काफी स्ट्रांग है।” रावी में सब जानने की जिद की। “हां बोंड तो काफी स्ट्रांग है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि हम लोगों को मिले ज्यादा टाइम नहीं हुआ है। पहली बार में हमारी दोस्ती में एक मीठी से तकरार हुई थी।” उन्नति उन लोगों को अपनी और तपस्या की दोस्ती के बारे में बता रही थी। तभी पार्थ ने बीच में बोलते हुए कहा, “उसे मीठी तकरार नहीं मैडम खट्टी तकरार बोलते हैं। वो तो शुक्र मनाओ कि मैंने तुम्हें तपु से फ्रेंडशिप करने के लिए कन्वींस कर लिया था। मुझे तो पहली बार में ही समझ आ गया था कि वो दिल की बहुत अच्छी है।” “अच्छा..... तुम दोनों के बीच लड़ाई की वजह क्या थी।” कार्तिक ने पूछा। “पता नहीं इसने कोई ऐसी किताब पढ़ी थी, जिसमें हमारे प्रतापगढ़ का जिक्र था। ये लाइब्रेरी में मिस्टर राजपूत से उस बुक के बारे में डिस्कस कर रही थी और मैंने उसके मुंह से प्रतापगढ़ का नाम सुना तो मैंने उसे बताया कि मैं प्रतापगढ़ से हूं। फिर तो मैडम ने आव देखा ना ताव बिना सोचे समझे मेरे साथ प्रतापगढ़ आने के लिए तैयार हो गई।” उन्नति की बात सुनकर वो हंसने लगे, जबकि तपस्या मुंह बनाकर उसकी तरफ देख रही थी। “क्या जरूरत है इनको ये सब बताने की।” उसने कहा। “पहली बार में तो मुझे इस पर बहुत गुस्सा आया था कि बिना सोचे समझे और जान पहचान के ये मेरे साथ प्रतापगढ़ आने के लिए तैयार कैसे हो सकती हैं लेकिन अगले दिन आकर जब इसने सॉरी कहा और पार्थ ने समझाया तो हम दोनों की दोस्ती हो गई।” “मैं और तपु बचपन से फ्रैंड्स है। जब तपस्या और उन्नति की फ्रेंडशिप हुई तो हम तीनों का बोंड स्ट्रांग हो गया।” हेजल ने उसकी बात को पूरा करते हुए कहा। “अच्छा तपस्या, उस बुक में ऐसा क्या था जिसे पढ़ने के बाद तुम्हें प्रतापगढ़ आना था।” अभिमन्यु ने पूछा। “कुछ भी नहीं था.....” तपस्या ने बात को टाल दिया। “ठीक है, आप को नहीं बताना तो मत बताइए। रात के 2:00 बज रहे हैं अब हम लोगों को सो जाना चाहिए। अगर घर के बड़े ने देख लिया तो अच्छी खासी डांट पड़ जाएगी।” कार्तिक ने कहा। सबने उसकी बात पर हामी भरी और अपने अपने कमरे मैं सोने चले गए। अभिमन्यु के मन में तपस्या के साथ उस किताब से जुड़ी बातें भी मन में अटक गई थी तो वही तपस्या को भी अब किताब और राजकुमारी तपस्या से जुड़ी बातें याद आने लगी। ________ तपस्या अपने कमरे में आई और सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन बार-बार उसके चेहरे के आगे राजकुमारी तपस्या और उस किताब का कवर पेज घूम रहा था। “क्या मैं यहां किसी से पूछूं कि राजकुमारी तपस्या कौन थी? इस टाउन में सिर्फ यही एक राज महल बना है। अगर उस बुक में लिखी कहानी सच थी, तो क्या इसे महल में उनकी बलि दी गई थी? उस किताब के हिसाब से इस घर के पहली बहू की बलि दी जाती है, लेकिन उर्मिला आंटी, जानकी आंटी और साक्षी भाभी..... ये तो अपने अपने हस्बैंड की फर्स्ट वाइफ है। फिर ये कैसे पॉसिबल है? अभिमन्यु और कार्तिक की भी शादी होने वाली है। क्या उनकी वाइव्ज की भी बलि दी जाएगी?” तपस्या के मन में हजारों सवाल घूमने लगे। बहुत कोशिश करने के बाद भी तपस्या को नींद नहीं आई और उसके दिमाग में अजीब अजीब बातें आ रही थी। वो अपने बिस्तर से उठी और बाहर आई। बाहर आकर उसने देखा कि अभिमन्यु भी अपने कमरे से निकलकर कहीं जा रहा था। “अभिमन्यु इतनी रात को चोरी छुपे कहां जा रहा है?” तपस्या ने सोचा और अभिमन्यु के पास जाने लगी। “अभिमन्यु.....” उसने पीछे से अभिमन्यु को आवाज लगाई तो उसने मुड़कर देखा और हैरानी से कहा, “तुम इतनी रात को यहां क्या कर रही हो?” “तुम भी तो इतनी रात को बाहर निकले हो?” “तपु यहां रात को महल में निकलना सेफ नहीं है। चलो जाओ अपने कमरे में जाकर सो जाओ।” अभिमन्यु उसकी बात का जवाब देने के बजाय उसे कमरे में भेजने लगा। “फर्स्ट थिंग इज दैट डोंट कॉल मी तपु, इस नाम से मुझे मेरे फ्रेंड्स और फैमिली वाले ही बुलाते हैं। एंड सेकंड थिंग जब तक तुम मुझे बता नहीं देते तुम कहां जा रहे हो, मैं भी अपने कमरे में नहीं जाने वाली।” तपस्या वहीं पर खड़ी होकर उससे बहस करने लग गई। अभिमन्यु उसे समझाने की कोशिश कर रहा था लेकिन वो उसकी बात सुनने के लिए तैयार तक नहीं थी। “जरूरी नहीं है हर बात पर जिद की जाए या बहस..... तुम अपने कमरे में जा रही हो या मैं मां को बुलाऊं?” ये दोनों वहां खड़े होकर एक दूसरे से बहस कर रहे थे तभी अभिमन्यु का दोस्त गौरव वहां आया। “अरे यहां तो कॉल्ड वॉर चल रहा है।” गौरव ने मजाकिया तरीके से कहा। “तुम थे कहां पूरे दिन से? मुझे लगा तुम वापस चले गए होगे।” “अरे ऐसे कैसे वापस जा सकता हूं। पहले तो सिर्फ घूमने आया था लेकिन अब सुना है तुम शादी कर रहे हो। अब तुम्हारी बर्बादी देखे बिना यहां से चला जाऊं, ऐसा थोड़ी हो सकता है। अच्छे दोस्त सुख में ना सही दुख में जरूर काम आते हैं।” “हां उड़ा लो तुम भी मेरा मजाक.....” अभिमन्यु ने देखा गौरव और तपस्या उस पर हंस रहे थे। “मैं तुम्हारी बात से एग्री करती हूं। अगर शादी आपकी मर्जी के खिलाफ हो तो वो बर्बादी ही कहलाती हैं। अच्छा अभिमन्यु एक बार के लिए हमारे सभी बहस और झगड़ों को भूल जाओ और दिल से बताओ, क्या तुम्हें सच में रावी पसंद है?” तपस्या के पूछने पर अभिमन्यु ने मुंह बनाकर कहा, “शी इज डेम इरिटेटिंग...” “तब तो हो गया बेटा बेड़ा गर्क... मैं तो कहता हूं अभी भी मौका है। आधी रात है, चल वापस दिल्ली चलते हैं। बोल देंगे एमरजैंसी आ गई थी इस वजह से निकलना पड़ा।” गौरव ने सुझाव दिया। “मुझे भी तुम्हारे फ्रेंड का आईडिया अच्छा लगा।” तपस्या ने उसकी बात पर हामी भरते हुए कहा। “लेकिन हमें तुम तीनों का ही प्लान अच्छा नहीं लगा।” पीछे से उर्मिला देवी की आवाज आई तो वो तीनों चौक गए। उन्होंने हॉल की लाइट जलाई। उन्हें देखकर तपस्या अभिमन्यु और गौरव ने अपनी नजरें झुका ली। “इतनी रात को तुम तीनों यहां क्या कर रहे हो?” उर्मिला देवी ने सख्त आवाज में पूछा। “कुछ नहीं मां, वो हम लोग बस सोने जा ही रहे थे।” अभिमन्यु ने जवाब में कहा। “अभी तुम्हें समझ नहीं आएगा अभिमन्यु लेकिन रावी एक अच्छी लड़की है। एक ही बार मिलकर तुम उसको ऐसे जज नहीं कर सकते हो।” “मां मै उसे जज कहां कर रहा हूं? बेशक रावी एक अच्छी लड़की है। बट शी इस नॉट माय टाइप.....” “अगर आपकी टाइप की नहीं है तो आप उसे अपने टाइप के बनाने की कोशिश कर सकते हैं..... जरूरी नहीं हर बार एक लड़की को ही बदलना पड़े, तुम भी उसके रंग में रंग सकते हो।” उर्मिला देवी ने उसे समझाते हुए कहा। उन दोनों की बातचीत तपस्या और गौरव चुपचाप सुन रहे थे। अभिमन्यु बार-बार उन्हें रावी से शादी के लिए मना कर रहा था जबकि वो उसे शादी करने के लिए समझा रही थी। “रावी हम सबको पसंद है अभिमन्यु, तुम कल का दिन उसके साथ बिताओ..... उसी शॉपिंग वगैरह करवाओ। परसों तुम दोनो की सगाई है।” उर्मिला देवी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा। “क्या?” उनकी बात सुनकर अभिमन्यु चौक गया। “आप हमारे साथ ऐसा कैसे कर सकती है? हमें आपसे ये उम्मीद बिल्कुल नहीं थी मां..... क्या पहले की तरह आप अब भी चुप रहेगी सब कुछ सच जानते हुए भी.....” अभिमन्यु आगे बोलता उससे पहले उर्मिला देवी ने उसे आंखें दिखाते हुए चुप रहने का इशारा किया। वो नहीं चाहती थी अभिमन्यु तपस्या और गौरव के सामने कुछ कहे लेकिन अभिमन्यु काफी गुस्से में था। “इससे अच्छा तो हम यहां कभी आते ही नहीं.....” अभिमन्यु ने कहा और गुस्से में अपने कमरे में चला गया। “तुम दोनों अपने अपने कमरे में सोने चले जाओ। हम अभिमन्यु को समझा देंगे।” कहकर उर्मिला देवी वहां से जाने लगी लेकिन तपु तोड़कर उनके आगे गई और कहा, “समझने की जरूरत उसे नहीं, आपको है आंटी। उसे अपनी पूरी लाइफ स्पेंड करनी है। शादी कोई मजाक नहीं है..... इंडिया में तो बिल्कुल भी नहीं..... जानती हूं ये कहना आसान होता है कि अगर किसी रिश्ते में नहीं बन रही तो अलग हो जाओ लेकिन अलग होना आसान नहीं है जब आप पहले से ही किसी रिश्ते के लिए तैयार नहीं है तो बेवजह उसमें बंध कर क्यों दो जिंदगियां बर्बाद करना।” “आंटी मैं भी तपस्या की बात से सहमत हूं। मैं और अभिमन्यु पिछले 3 साल से साथ है और मैं उसकी चॉइसेस को काफी अच्छी तरीके से समझता हूं। उसे पहली नजर में कोई चीज पसंद नहीं आती तो वो उसे बाद में भी एक्सेप्ट नहीं कर पाता। वो आपका बेटा है, आप उसे बेहतर समझती होंगी। मैं ये नहीं कहता रावी एक अच्छी लड़की नहीं है या वो अभिमन्यु की पार्टनर बनने के लायक नहीं है लेकिन जब अभिमन्यु को ही इस शादी से कोई उम्मीदें और खुशी नहीं है, तो मुझे नहीं लगता ये शादी एक राइट डिसीजन होगा।” तपस्या के बाद गौरव ने भी अपनी राय रखी। उन दोनों को लगा शायद उनकी बातें सुनकर उर्मिला देवी समझ गई होंगी लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। वो उन्हें बिना जवाब दिए वहां से अपने कमरे में चली गई। ★★★★
अभिमन्यु ने जैसे तैसे हिम्मत करके उर्मिला देवी के सामने अपने दिल की बात रखी, वो रावी से शादी नहीं करना चाहता। तपस्या और अभिमन्यु का दोस्त गौरव भी उस वक्त उनके पास मौजूद थे इसलिए उन दोनों ने अभिमन्यु का साथ देते हुए उर्मिला देवी को समझाने की कोशिश की। तपस्या और गौरव को को लगा उर्मिला देवी उनकी बातों से समझ गई होंगी लेकिन वो बिना कुछ बोले वहां से अपने कमरे में चली गई। “मुझे लगा ये हमारे कहने पर समझ जाएंगी लेकिन ये तो.....” तपस्या ने निराश होकर कहा। “मैंने भी यही सोचा था। आंटी के रीएक्शन से तो ऐसे लगता है जैसे उन्होंने हमारी बातों को सुनकर भी नहीं सुना।” गौरव ने जवाब दिया। “अब मुझे समझ आया अभिमन्यु ने अब तक अपने दिल की बात इन लोगों को क्यों नहीं बताई। इन्हें बता कर भी क्या फायदा हुआ..... उर्मिला आंटी अभी भी अपनी जिद पर अड़ी है।” “अभिमन्यु भी उन्हीं का बेटा है। तुम अभी उसे जानती नहीं हो तपस्या..... अगर उसने अपने मन में ठान लिया है कि वो उस लड़की से शादी नहीं करेगा तो चाहे कोई कितनी भी जबरदस्ती कर ले, कैप्टन अभिमन्यु बिल्कुल नहीं मानेंगे।” गौरव ने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा। उसकी बातों से साफ नजर आ रहा था कि उसकी और अभिमन्यु की दोस्ती कितनी गहरी है। वो अभिमन्यु को काफी अच्छे से समझता था। “तुम दोनों की दोस्ती काफी पुरानी लगती है?” तपस्या ने पूछा। “हां लेकिन इतनी पुरानी भी नहीं जितना पुराना तुम्हारा नाम है।” गौरव ने मजाकिया तरीके से कहा। “वैसे लंदन में रहकर लगता नहीं कि किसी का नाम तपस्या भी हो सकता है.... तुम्हें अजीब नहीं लगता? कभी अपने पेरेंट्स से पूछा है कि उन्होंने तुम्हारा नाम तपस्या क्यों रखा?” उसके बाद सुनकर तपू हंसी और फिर बोली, “हां स्टार्टिंग में बहुत अजीब लगता था लेकिन मेरे डैड ने रखा है। मेरे डैड इंडिया से है। मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा इंडिया में इसी तरह के नाम रखे जाते हैं।” “और तुम मान गई?” “इसमें ना मानने जैसा भी कुछ नहीं है।” तपस्या ने कंधे उचका कर जवाब दिया। गौरव ने मुस्कुरा कर उसकी बात पर हामी भरी। “मैं उर्मिला आंटी से बात करके उन्हें समझाने की कोशिश करता हूं। तुम अभिमन्यु से बात कर सकती हो?” उसने पूछा। “हम दोनों की कुछ खास बनती नहीं, तुम्हें लगता है वो मेरी बात मानेगा? आज पूरे दिन में मैंने उसे रावी को लेकर बहुत परेशान किया था। ऐसा करते हैं तुम अभिमन्यु से बात कर लो, वो तुम्हारा फ्रेंड भी है और तुम्हारी बात समझेगा भी..... और मैं जाकर उर्मिला आंटी को समझाने की कोशिश करती हूं।” “वो मेरा फ्रेंड है इसलिए अच्छे से जानता हूं। इस वक्त उसे समझाने के लिए नहीं किसी के साथ ही जरूरत है, फिर इस से फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाला उसका दोस्त है या नहीं लेकिन उर्मिला आंटी..... तपु तुम नई हो और इंडिया से भी नहीं हो, तो तुम्हें नहीं पता उनके सामने क्या बोलना है और क्या पॉइंट्स रखने है, इसलिए ये काम मुझे मुझे ही करने दो तो बेहतर है।” तपस्या ने इस बार उसकी बात पर हामी भरी। “लेकिन इतने बड़े महल में मैं उसे ढूंढूंगी कहां?” गौरव ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपने फोन से अभिमन्यु को कॉल करने लगा। “हेलो..... मुझे तुमसे बात करनी है। कहां हो तुम?” उसने पूछा। “इस वक्त सच में मुझे किसी से बात करने की सख्त जरूरत है। वरना मैं ओवरथिंकिंग करके पागल हो जाऊंगा..... ऐसा करो महल की छत पर आ जाओ।” दूसरी तरफ से अभिमन्यु ने जवाब दिया। “ठीक है मैं आ रहा हूं।” कहकर गौरव ने कॉल कट कर दिया और फिर तपस्या की तरफ देख कर कहा, “वो महल की छत पर है। और हां..... फिलहाल उसे रावी को लेकर परेशान मत करना। वरना वो और भी इरिटेट हो जाएगा।” तपस्या ने उसकी बात पर हां में सिर हिलाया और वहां से सीढ़ियां ढूंढते हुए महल की छत पर जाने लगी। उसके जाने के बाद गौरव भी उर्मिला देवी से बात करने चला गया। ____________ काफी सारी सीढ़ियां चढ़ने के बाद तपस्या ऊपर पहुंची। इतनी सीढियां चढ़ने की वजह से वो थक गई। उसने देखा अभिमन्यु सामने खड़ा बाहर की तरफ देख रहा था। “ये लोग महल में एक लिफ्ट नहीं लगवा सकते थे क्या? इतनी सारी सीढ़ियां चढ़कर ऊपर आता भी कौन होगा?” तपस्या ने हांफते हुए कहा। वो धीमें कदमों से चलते हुए अभिमन्यु के पास गई। अभिमन्यु ने किसी के आने की आहट सुनी। “थैंक गॉड तुम आ गए यार.....” बोलते हुए अभिमन्यु पीछे की तरफ मुड़ा लेकिन सामने गौरव के बजाय तपस्या थी। “तुम यहां क्या कर रही हो?” “ठंडी हवा लेने आई थी। तुम यहां क्या कर रहे हो? मुझे लगा उर्मिला आंटी से बहस होने के बाद तुम सोने जा चुके होंगे।” “और तुम्हें क्या लगता है उनसे बहस करने के बाद नींद आ भी सकती है? हमारी फैमिली में मां मेरे सबसे क्लोज है और वही मुझे नहीं समझ रही, इससे ज्यादा दुख की बात मेरे लिए कुछ और नहीं हो सकती।” अभिमन्यु ने उदास होकर कहा। “हां जानती हूं। तुम डायरेक्ट रावी से ही बात क्यों नहीं कर लेते?” “मैं उसे रिजेक्ट करके या कुछ भी गलत कह कर हर्ट नहीं करना चाहता।” “तुम तो बड़े समझदार निकले। तुम्हारी इस बात पर तो मैं भी एग्री करती हूं। हर इंसान अपने आप में परफेक्ट होता है तो हम कौन होते हैं, उनमें गलतियां निकालने वाले..... जरूरी तो नहीं हमारी सबके साथ में अच्छी बने।” तपस्या ने कंधे उचका कर कहा। उसकी बात सुनकर अभिमन्यु के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। “ओह तो मिस लंदन मोटिवेशनल बातें भी करती है।” “डोंट कॉल मी दैट..... मैं भी इंडिया से ही हूं।” उसके इंडिया से होने की बात सुनकर अभिमन्यु ने पूछा, “अच्छा तुमने कभी बताया नहीं तुम कहां से हो?” “बताती तो तब ना जब मुझे खुद को पता होता। मेरा बर्थ लंदन में ही हुआ है। मैं कभी अपनी फैमिली से नहीं मिली और इंडिया भी पहली बार आई हूं।” “स्ट्रेज.....” अभिमन्यु ने हैरानी जताई। “कोई बात नहीं, तुम अपने मॉम डैड से सब कुछ पूछ लेना और अब यहां आ ही गई हो तो अपनी फैमिली से भी मिल लेना।” “आई विश कि ये पॉसिबल होता। तुम मेरा छोड़ो और ये बताओ कि तुम इस शादी से कैसे पीछे हटोगे?” “मैं खुद नहीं जानता। ये रिश्ता बड़े दादा सा ने तय किया है और घर में कोई ऐसा नहीं है, जो उनके किसी भी फैसले के खिलाफ जाए।” अभिमन्यु ने बताया। “उन्नति तो कह रही थी तुम्हारे बड़े दादा सा काफी मॉडर्न है..... और काफी यंग भी..... आई मीन उन्हें देखकर कोई नहीं कह सकता कि उनकी उम्र क्या होगी। दिखने में काफी यंग लगते होंगे ना.....” तपस्या अभिमन्यु से बातें करे जा रही थी। बड़े दादा सा का जिक्र होते ही अभिमन्यु एक अलग दुनिया में चला गया। वो वहां होकर भी नहीं था। उसके आंखों के सामने कुछ दृश्य तैरने लगे, जिसमें एक बूढ़ा आदमी जिसकी हड्डियां बाहर निकली हुई थी और ऊपर की त्वचा ना के बराबर थी, वो एक लकड़ी का सहारा लिए पूरे महल में घूम रहा था। अचानक वो उसकी तरफ पलटा। उसे पूरी गर्दन पीछे घूम गई थी लेकिन आगे का शरीर अभी भी सामने की तरफ था। उसे देखकर अभिमन्यु वहां से डर कर भाग गया। उन सब के बारे में सोचकर अभिमन्यु के माथे पर पसीने की बूंदे थी। उसके दिल की धड़कन काफी तेज हो गई थी। तपस्या ने उसके चेहरे के बदले भावों को देखा तो वो भी परेशान हो गई। “क्या हुआ अभिमन्यु? आर यू ऑलराइट?” तपस्या ने उसका हाथ पकड़कर पूछा। अभिमन्यु काफी घबराया हुआ था। उसने उसे कोई जवाब नहीं दिया। तपस्या ने उसे शांत करने के लिए उसे गले लगाया और उसे सहलाते हुए कहा, “डोंट वरी हम कोई ना कोई रास्ता निकाल लेंगे।” तपस्या को लगा अभिमन्यु के परेशान होने की वजह शादी तय होना था जबकि अभिमन्यु पुरानी बातों को सोच कर काफी घबरा गया था। बचपन में उसने इस महल में जो देखा था वो उन बातों को चाह कर भी नहीं भुला पाया था और जब भी उनके बारे में याद करता उसकी हालत इसी तरह खराब हो जाती। _________ दूसरी तरफ से गौरव उर्मिला देवी से बात करने उनके पीछे गया। कमरे में वो अकेली थी। उन्हें अकेला पाकर गौरव उनके पास गया। उसने देखा उर्मिला देवी चेहरे पर परेशानी और आंखों में नमी थी। उनके हाथ में एक फोटो फ्रेम था जिसमें उनके और अभिमन्यु की फोटो लगी थी। “क्या मैं अंदर आ सकता हूं आंटी?” गौरव ने दरवाजा खटखटा कर पूछा। उसकी आवाज सुनकर उर्मिला ने जल्दी से अपने आंखों के कोनों से आंसू पोंछे और तस्वीर को बेड साइड पर रख दिया। उन्होंने हल्की मुस्कुराहट के साथ गौरव को अंदर आने का इशारा किया। “अभिमन्यु का फ्रेंड होने के नाते मैं अच्छे से जानता हूं कि वो आप के कितना क्लोज है।” बोलते हुए गौरव ने वो तस्वीर उठाई, जिसमें उर्मिला देवी और अभिमन्यु थे। उसने उसे देख कर कहा, “लगता है हमारे कैप्टन साहब बचपन से ही मां के लाडले रहे हैं।” “हां रोहित अपने पापा का तो अभिमन्यु हमारा लाडला था। सब उसे मम्माज बॉय कहकर चिढ़ाते थे, उसके बावजूद वो हमसे दूर जाना ही नहीं चाहता था। आज भी कुछ होता है तो सबसे पहले हमें बताता है।” उर्मिला देवी उसे अभिमन्यु के बारे में बता रही थी। “और आज भी उसने सबसे पहले आकर आपको ही बताया कि उस रावी पसंद नहीं है। आंटी आप खुद सोचिए, जो लड़की उसे पसंद नहीं है वो उसके साथ पूरी जिंदगी कैसे बिता सकता है।” “बस यही सोचकर हमारा कलेजा छलनी हो जाता है कि हम चाह कर भी अपने बेटे के लिए कुछ नहीं कर पा रहे। अभिमन्यु के पापा अपने बड़े दादा सा के खिलाफ कभी नहीं जाएंगे।” उर्मिला देवी ने अपनी लाचारी जताई। “आंटी जब आप अभिमन्यु को आर्मी जॉइन करने के लिए सबको कन्वींस कर सकती हैं तो शादी क्या चीज है? मुझे अभिमन्यु ने बताया था कि जब उसने आर्मी जॉइन करने का सोचा था, तब सब ने उसे मना कर दिया था। कोई भी उसके इस डिसीजन में खुश नहीं था। उस वक्त में सिर्फ आप थी, जिन्होंने ना केवल उसका साथ दिया बल्कि बाकी के घरवालों को भी राजी किया।” “इस बार पूरा परिवार एक साथ है, हम अकेले कुछ नहीं कर सकते गौरव।” “आपको किसने कहा पूरा परिवार एक साथ है? घर के सारे बच्चे अभिमन्यु के साथ है। हमें बस आपका साथ चाहिए। क्या आप हमारा साथ देंगी?” उसकी बात सुनकर उर्मिला देवी सोच में पड़ गई। एक तरफ उनका पूरा परिवार था तो दूसरी तरफ उनका लाडला बेटा अभिमन्यु। पिछली बार भी अभिमन्यु का साथ देने की वजह से उन्हें काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा था। “आंटी प्लीज अभी भी टाइम है। अगर शादी के बाद कुछ ऐसा वैसा हुआ तो उसके जिम्मेदार आप सब होंगे।” गौरव की बात सुनकर उर्मिला देवी ने बिना वक्त जाया करें सीधे हां कह दी। “हम आपके साथ हैं।” उनके हां कहते भी गौरव के चेहरे पर मुस्कुराहट थी तो वही ऊपर तपस्या के साथ अभिमन्यु को भी बेहतर महसूस हो रहा था। तपस्या ने जब उसे गले लगाया तो उससे एक अपनापन महसूस हुआ। तभी अचानक महल में एक अजीब ही कर्कश ध्वनि गूंजने लगी। ऐसा लग रहा था मानो कई सारी औरतें एक साथ विलाप कर रही हो। वो आवाज पूरे महल में गूंज रही थी। जब वो आवाज महल के गलियारों से होते हुई तहखाने तक पहुंची तो तंत्र साधना में लीन सुभद्रा, सुनैना और सुकृति ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे को देखा। “वो जाग गई है..... सोई हुई कुल वधुएं जाग चुकी हैं।” सुभद्रा ने कहा। “और ये इस बात का संकेत है कि इस बार हम बिल्कुल सही जा रहे हैं। इस बार हमारे कुल की नई वधू कोई और नहीं चंद्रवंशी होने वाली है। ये सब इस विवाह को रोकने के लिए जागृत हुई है, लेकिन इन्हें काबू में करना हम बखूबी जानते हैं।” सुकृति ने जवाब दिया। दोनों की बात सुनकर सुनैना ने अपनी खुशी जताते हुए कहा, “अब हम तीनों भी अमर हो जाएंगी और आम इंसान की तरह दिखने लगेंगी। हम भी एक आम जिंदगी बिता पाएगी... हमारे राजा जी के साथ रह पाएगी। हमें यहां इस तहखाने में कैद होकर नहीं रहना पड़ेगा।” उन लोगों के रुदन की ध्वनि बढ़ती जा रही थी, तो वहीं तहखाने में मौजूद सुभद्रा सुनैना और सुकृति अपनी खुशियां मनाते हुए साथ में नृत्य कर रही थी। ★★★★
तपस्या अभिमन्यु के साथ महल की छत पर मौजूद थी। अभिमन्यु खुद को काफी अकेला महसूस कर रहा था। उसे सहारा देने के लिए तपस्या ने उसे गले लगाया और सहला कर उसे अच्छा महसूस करवाने की कोशिश कर रही थी। उन दोनों के साथ होने की वजह से महल की सोई हुई अतृप्त आत्माएं जागृत हो गई और वो एक साथ जोर जोर से रुदन करने लगी। “ये कैसी आवाज है?” उस आवाज को सुनकर तपस्या काफी घबरा गई। अभिमन्यु उससे अलग हुआ और इधर-उधर देखने लगा। उन दोनों को वहां कोई नजर नहीं आ रहा था। “मैं भी नहीं जानता। लेकिन इतनी रात को जोर जोर से कौन रो रहा होगा?” “मुझे डर लग रहा है। कहीं ये महल हॉन्टेड तो नहीं है?” “नहीं.....” अभिमन्यु ने गहरी सांस लेकर छोड़ी और कहा, “चलो चल कर देखते हैं।” तपस्या ने उसकी बात पर हामी भरी। दोनों महल की दीवार की तरफ बढ़े और झुक कर नीचे देखा। अभिमन्यु को सब कुछ सामान्य नजर आ रहा था लेकिन तपस्या नीचे की तरफ देखकर बुरी तरह घबरा गई। “अभिमन्यु..... ये सब कौन है?” उसने घबराई आवाज में कहा। वो डर से कांपने लगी। “कहां? तुम किसकी बात कर रही हो? मुझे ये कोई दिखाई नहीं दे रहा।” अभिमन्यु ने नीचे झुक कर देखना चाहा लेकिन तपस्या ने उसे हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींच लिया। “पागल हो गए हो तुम? प्लीज मेरे साथ रहो। मुझे बहुत डर लग रहा है। वो सब हमें मार देंगी।” “तुम किसकी बात कर रही हो तपु? मुझे वहां कोई दिखाई नहीं दिया। तुम घबराओ मत मैं देखता हूं। अगर कोई होगा तो मुझे भी दिखाई दे जाएगा।” अभिमन्यु ने नीचे झांककर देखा तो उसे फिर कोई नजर नहीं आया। महल के आंगन में कोई मौजूद नहीं था। वो रोने की आवाजें अभी भी आ रही थी। “ऐसा कैसे हो सकता है कि अभिमन्यु को कुछ दिखाई नहीं दिया।” तपस्या ने सोचा और अपनी तसल्ली के लिए फिर से नीचे की तरफ झांका। नीचे देखते ही वो फिर से घबराकर पीछे हट गए। “ये सब औरतें कौन है, जिन्होंने काले कपड़े पहन रखे हैं। इन्होंने अपना मुंह क्यों ढक रखा है?” तपस्या ने कांपती आवाज़ में कहा। “हो सकता है तुम थक गई हो, इस वजह से तुम्हें ये सब दिखाई दे रहा है। रात काफी हो गई है तुम्हें आराम करना चाहिए।” अभिमन्यु ने कहा। “नहीं अभिमन्यु, ये मेरा वहम नहीं है, ये सच्चाई है। मुझे ऐसा लग रहा है ये सब मैंने पहले भी कहीं देखा है।” घबराहट में तपस्या की आंखों से आंसू आने लगे। वो ये सब देखकर काफी डर गई थी। अभिमन्यु ने उसे शांत करवाया और उसका हाथ सहला कर कहा, “शायद तुमने कोई हॉरर मूवी देखी होगी..... याद करो या कोई बुक..... उन्नति कह रही थी कि तुमने कोई अजीब कहानी पढ़ी थी, जो प्रतापगढ़ से जुड़ी हुई थी। तुमने उस कहानी को कुछ ज्यादा ही सीरियस ले लिया था, इस वजह से प्रतापगढ़ जाने की जिद कर रही थी। तुम जो भी बोल रही हो, वो उसी बुक में लिखा हुआ था ना?” तपस्या ने बिना कुछ बोले उसकी बात पर हां में सिर हिलाया। “देखो तुम्हें इस तरह की चीजों को इतना सीरियसली नहीं लेना चाहिए। ये सब हमारे दिमाग पर गहरा असर डालता है। चलो मेरे साथ आओ, हम दोनों साथ में नीचे देखते हैं। जैसा कि मैंने कहा अगर नीचे कुछ हुआ तो मुझे भी दिखाई दे जाएगा।” “मुझे बहुत डर लग रहा है।” “मेरे होते हुए तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है।” अभिमन्यु ने प्यार से कहा और तपस्या का हाथ पकड़ कर उसे छत की दीवार के पास लेकर आया। उन दोनों ने नीचे की तरफ देखा लेकिन उस बार तपस्या को नीचे कुछ दिखाई नहीं दिया। सब कुछ बिल्कुल सामान्य था। “इस बार कुछ दिखाई दिया?” अभिमन्यु ने पूछा। तपस्या ने बिना कुछ कहे उसकी बात पर ना में सिर हिला दिया। “मैंने कहा ना ये सब तुम्हारे मन का वहम है। चलो अब हम यहां से चलते हैं। तुम कुछ देर आराम करोगी तो सब कुछ सही लगने लगेगा।” “लेकिन वो रोने की आवाजें?” “तुमने अपने डर में ध्यान नहीं दिया। वो सब आवाज ही तो कब की आना बंद हो गई। ये गांव अभी भी पुराने रीति-रिवाजों के हिसाब से चलता है। हो सकता है गांव में किसी के यहां मौत हो गई हो और रोने की लिए रुदाली को बुलाया गया हो।” अभिमन्यु हर तरीके से तपस्या का डर कम करने की कोशिश कर रहा था। “रुदाली? मैंने ये नाम पहले नहीं सुना।” तपस्या ने हैरानी से पूछा। “सुनोगी भी कैसे? ये एक पुरानी परंपरा का हिस्सा है। जब घर में किसी की मौत होने पर रोने के लिए रुदालीयों को बुलाया जाता था। उनका घर में आना अशुभ माना जाता था। पता नहीं कैसे-कैसे कुप्रथाएं पुराने जमाने में फैली हुई थी।” “जिनमें से बलि देना भी एक थी।” अचानक तपस्या के मुंह से निकला। “लगता है तुमने उस बुक को बहुत ज्यादा सीरियसली ले लिया है। हम इस बारे में बाद में बात करेंगे और हां तुमने जो भी देखा या उस बुक में पढ़ा, उसके बारे में किसी से कुछ मत कहना। वरना लोग तुम्हें पागल समझेंगे।” अभिमन्यु ने उसे समझाया। तपस्या को अभिमन्यु के कहने का तरीका अच्छा नहीं लगा वो चिढ़कर बोली, “हां, जैसे इस वक्त तुम मुझे समझ रहे हो।” “मैं तुम्हें पागल नहीं समझ रहा, लेकिन तुम खुद बताओ तुम जो बोल रही हो या जो देखने का दावा कर रही हो क्या ऐसा हो सकता है?” “मुझे बहुत नींद आ रही है और इस बारे में अभी बात करने का मेरा कोई मूड नहीं है।” तपस्या ने अभिमन्यु की बात को टाला और उसको वहीं छोड़कर वहां से नीचे चली गई। उसके जाने के बाद भी अभिमन्यु वहीं पर खड़ा था उसने छत के नीचे से झांक कर देखा। “यहां तो कोई नहीं है। पर पता नहीं क्यों तपस्या की बातों को झूठ मानने का दिल नहीं कर रहा।” अभिमन्यु वहीं पर बैठ गया और अपनी आंखें बंद करके कुछ सोचने लगा। ____________ शाम का समय था। महल के बगीचे में कुछ बच्चे खेल रहे थे। वहां किसी समारोह का आयोजन हो रहा था। इस वजह से महल को सजाया हुआ था और काफी सारे मेहमान भी इकट्ठा थे। “अब हमें पकड़ कर दिखाओ अभिमन्यु..... तुम हमसे तेज दौड़ ही नहीं सकते।” एक लड़का भागता हुआ बोला। अभिमन्यु उसके पीछे भागने के बजाय वो सीढ़ियों पर बैठ गया और चिल्लाकर जवाब में बोला, “लेकिन हम आपको क्यों पकड़े रोहित भैया? हमें नहीं खेलना ये बोरिंग पकड़म पकड़ाई का गेम.....” “बोरिंग गेम नहीं आप हो अभिमन्यु भैया।” एक छोटे बच्चे ने जवाब दिया। इसी के साथ रोहित और एक छोटी बच्ची खिलाकर हंस पड़े। “सही कहा तुमने कार्तिक..... अभिमन्यु तुम कभी कुछ नहीं कर सकते। तुम से तेज तो उन्नति दौड़ लेती है, तुम यही बैठे रहो। हमें तुम्हारे साथ नहीं खेलना।” रोहित ने उसे चिड़ाया। रोहित को चिढ़ाते देखकर कार्तिक और उन्नति ने भी वैसा किया और फिर तीनों एक साथ अभिमन्यु पर हंसने लगे। उनकी इस हरकत पर उसे बहुत गुस्सा आया। उसने इधर उधर देखा। सामने एक बड़ा सा पत्थर पड़ा हुआ था। अभिमन्यु जल्दी से उसकी तरफ गया और वो पत्थर उठाकर रोहित की तरफ फेंका। अक्सर गुस्सा आने पर वो यहीं करता था लेकिन आज बदकिस्मती से उसका निशाना बिल्कुल सही लगा। पत्थर रोहित के माथे पर जा लगा और उसके वहां से खून निकलने लगा। “आहहहह.....” रोहित दर्द से कराह उठा। “ये क्या किया आपने अभिमन्यु भैया? हम आपकी बड़ी मां से शिकायत लगाएंगे, आपने बड़े भैया को मारा।” कार्तिक ने कहा। वो और उन्नति रोहित को संभालने में लगे थे। मौका देखकर अभिमन्यु वहां से डर कर भाग गया। “मां को पता चला तो वो हमें बहुत डांटगी। लेकिन इसमें हमारी क्या गलती है? हमें नहीं खेलना उनके साथ..... फिर क्यों वो हमें बेवजह परेशान करते रहते हैं।” दौड़ते हुए अभिमन्यु खुद से बातें कर रहा था। खुद को बचाने के लिए वो महल के निचले हिस्से में चला गया। वो नीचे बने तहखाने की सीढ़ियों में जाकर छुप गया। उसे पता था इस जगह पर ज्यादा लोग नहीं आते थे। “जब रात को सब एक साथ होंगे तब मैं वहां चला जाऊंगा। सबके सामने मां मुझे डांटेगी भी नहीं।” अभिमन्यु ने खुद से कहा और रात होने का इंतजार करने लगा। कुछ ही देर में उसे वहां बैठे-बैठे नींद आ गई। _________ ऊपर रोहित के चोट लगने और अभिमन्यु के गायब होने की वजह से हड़कंप मच गया था। इन सबसे बेखबर अभिमन्यु अभी भी वहां पर आराम से सोया था। रात के दूसरे पहर में यकायक उसकी आंख खुली तो उसने खुद को तहखाने की सीढ़ियों पर पाया। “ये लाइट कहां से आ रही है?” अभिमन्यु की नजर सामने की तरफ आ रही हल्की रोशनी पर पड़ी। “कहीं यहां कोई सीक्रेट हाउस तो नहीं जो अक्सर मूवीज में बनाया जाता है। अगर ऐसा है तो ये हमारे बहुत काम आ सकता है।” अभिमन्यु के चेहरे पर चमक थी और वो उस रोशनी का पीछा करते हुए उस दिशा में जाने लगा। थोड़ी दूर चलने के बाद उसने देखा सामने तहखाने में मशाल ने जलाकर रोशनी की गई थी। वो छुप कर सामने की तरफ देखने लगा। बीच में हवन कुंड जला हुआ था। उसके सामने तीन कंकाल बैठे थे, जिन्होंने औरतों के कपड़े पहन रखे थे। सामने एक और कंकाल मौजूद था, उसने आदमी के कपड़े पहने थे। उन्हें देखकर अभिमन्यु बुरी तरह घबरा गया और डर के मारे उसके मुंह से चीख निकली। जैसे ही वो चीखा, उन चारों की नजर उस पर पड़ी। उनकी आंखें सुनहरी चमक रही थी। “बचाओ.....” चिल्लाते हुए अभिमन्यु वहां से भागने लगा। भागते हुए वो वहां से सीढ़ियों में फिसल कर गिर गया। वो डर से कांप रहा था। “मां..... प्लीज हमें यहां से ले जाइए।” अभिमन्यु रोते हुए चिल्लाया। उसने देखा अचानक किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। डर के मारे अभिमन्यु का कलेजा मुंह को आ गया। उसे लगा साक्षात मौत उसके पास खड़ी है। “क्या हुआ अभिमन्यु? “ पीछे से एक जानी पहचानी आवाज सुनकर अभिमन्यु जल्दी से मुड़ा और सामने मौजूद आदमी के लिपट गया। “बड़े दादा सा हमें बचा लीजिए।” अभिमन्यु दौड़ते हुए बोला। सामने प्रताप सिंह मौजूद थे। अभिमन्यु इतना घबराया हुआ था कि उसने आंखें खोल कर देखना भी जरूरी नहीं समझा कि सामने प्रताप सिंह कंकाल के रूप में मौजूद थे। जैसे ही अभिमन्यु उनके गले लगा, उन्होंने इंसानी शरीर धारण किया और उसे सहलाने लगे। “आप यहां क्या कर रहे हैं बच्चे? और आप इतना डर क्यों रहे है।” उन्होंने नरमी से पूछा। “दादा सा हमें यहां नहीं रहना। व..... वहां भूत है। हमने खुद अपनी आंखों से देखा है।” “लगता है आपने कोई बुरा सपना देखा है। चलिए ऊपर चलते हैं।” “नहीं हमें यहां से नहीं जाना। हमने गलती से रोहित भैया के पत्थर मार दिया। मां हमें बहुत डांटेगी।” अभिमन्यु अभी भी वहां से जाने के लिए तैयार नहीं था। “चिंता करने की कोई बात नहीं है। हमारे होते हुए तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा।” प्रताप सिंह ने उसे गोद में उठाया और ऊपर ले जाने लगे। वो सब देखने के बाद अभिमन्यु की हालत खराब थी। वो बुखार से तप रहा था। उसकी हालत देखकर उर्मिला बुरी तरह घबरा गई। अभिमन्यु नींद में बस एक ही बात बड़बड़ाए जा रहा था कि तहखाने में भूत है। ___________ उस रात के बारे में सोच कर अभिमन्यु को हल्की कंपकंपी महसूस हुई। उसके मन में अभी भी उस दृश्य की दहशत बनी हुई थी। “क्या सच में तपस्या सही कह रही है? उस दिन हमने जो देखा वो भी काफी अजीब था लेकिन सबने उसे हमारा वहम समझ कर भुला दिया। मुझे इस बारे में मां से बात करनी चाहिए। तब मैं बच्चा था। इस वजह से मेरी बात पर किसी ने विश्वास नहीं किया लेकिन वो तहखाना तो अभी भी मौजूद होगा। मैंने जो देखा वो मेरा वहम या कोई भ्रम नहीं था। वहां सच में कुछ अजीब मौजूद था, जिसके बारे में सोच कर आज मेरा दिमाग दर्द से फटने लगता है।” अभिमन्यु ने खुद से कहा। उसने एक बार फिर नीचे की तरफ जाकर देखा ताकि उसे कुछ दिखाई दे सके, जैसा तपस्या ने बताया था। लेकिन सब कुछ बिल्कुल सामान्य था। “तब हमारी बात पर किसी ने विश्वास नहीं किया था और आज आपकी बात पर विश्वास नहीं हो रहा। मैं अच्छे से जानता हूं कि इस महल में कुछ तो अजीब मौजूद है, जिसे देखने के लिए खास होना जरूरी है..... जो भी हो, इस बार में सच का पता लगाकर रहूंगा।” अभिमन्यु ने मन ही मन निश्चय किया और वहां से नीचे चला गया। ★★★★
अगली सुबह उर्मिला अभिमन्यु को मनाने के लिए उसके कमरे में गई। उनके हाथ में चाय और नाश्ता था। वो उसे जगाने के लिए कमरे में आई थी। जैसे उर्मिला ने अभिमन्यु के कमरे में कदम रखा, उन्होंने देखा अभिमन्यु सोने के बजाय लैपटॉप में लगे थे। “हमें लगा आप अभी तक सो रहे होंगे।” उर्मिला बोलते हुए उसके पास आकर बैठ गई। “हमने ब्रेकफास्ट में आपका फेवरेट टोस्ट और अदरक वाली चाय बनाई है।” “थैंक यू मां.....” अभिमन्यु ने धीमी आवाज में जवाब दिया। उसका ध्यान अभी भी लैपटॉप में लगा था। उसने उर्मिला की तरफ देखा तक नहीं था। “अभी तक नाराज है अपनी मां से कि उनकी तरफ देख तक नहीं रहे?” अभिमन्यु ने लैपटॉप बंद किया और उर्मिला की तरफ देख कर कहा, “ऐसा कुछ नहीं है। लेकिन हां, अगर आप मुझे रावी से शादी करने के लिए रीजंस देने आई है, तो मैं पक्का आपसे नाराज हो जाऊंगा।” उसकी बात सुनकर उर्मिला हल्की मुस्कुराई। “वैसे लड़की अच्छी है। हम नहीं जानते तुम्हें क्यों नहीं पसंद आई?” “सीरियसली आप नहीं जानती? मुझे लगा आप से बेहतर मुझे कोई नहीं जानता होगा। चलिए आप नहीं जानती तो बता देता हूं। आपको हमें अच्छे से पता होगा कि मुझे हमेशा से इस बात से ऐतराज रहा है कि आप और चाची बिना कोई सवाल किए पापा, बड़े दादा सा या घर के बाकी के आदमियों की बात मान लेते हैं।” अभिमन्यु बोल रहा था तभी उर्मिला ने उसकी बात में बीच में काट कर कहा, “तो इसमें गलत क्या है? तुम जानते हो अभिमन्यु हम रॉयल फैमिली से बिलॉन्ग करते हैं। हमारे परिवार में पहले से घर के सारे फैसले इस घर के आदमी लेते आए हैं।” “और औरतें बिना कोई सवाल कि उन्हें मान लेती है। आपको इसमें गलत दिखाई नहीं देता होगा, लेकिन मुझे ये नहीं पसंद। मुझे अपने लिए ऐसी लाइफ पार्टनर चाहिए, जो मेरे गलत होने पर मुझे समझाएं, ना कि मेरी गलत डिसीजन पर बिना कोई सवाल किए हां में हां मिलाकर उसे फॉलो करें। बस यही वजह है मुझे रावी का बिहेवियर नहीं अच्छा लगा।” “अगर आप उनके साथ टाइम स्पेंड करेंगे तो.....” “तब भी वो मुझे नहीं अच्छी लगेगी। रावी में कोई बुराई नहीं है मां..... मुझे उसकी थिंकिंग अच्छी नहीं लगी और किसी की भी थिंकिंग नहीं बदली जा सकती।” अभिमन्यु ने रावी से शादी करने के लिए साफ इन्कार कर दिया। उसकी बातें सुनकर उर्मिला देवी के चेहरे पर परेशानी के भाव थे। वो अच्छे से जानती थी कि अभिमन्यु की इस ना का क्या नतीजा हो सकता था। उर्मिला को चुप देखकर अभिमन्यु ने कहा, “क्या हुआ? देखिए आप मेरे लिए टेंशन मत लीजिए। मैं खुद जाकर बड़े दादा सा से बात कर लूंगा।” “नहीं आप ऐसा कुछ नहीं करेंगे।” उर्मिला ने सख्ती से कहा। “पहले हम उनसे बात कर के देखेंगे। हमें नहीं लगता कि वो मानेंगे। वो मान गए तो अच्छी बात है, वरना बेहतर होगा आप यहां से वापस अपने काम पर चले जाए।” “लेकिन मैं कार्तिक की शादी अटेंड करने आया हूं। आप इस तरह मुझे निकाल नहीं सकती।” अभिमन्यु के हर बात पर जिद करने की वजह से उर्मिला परेशान हो गई। वो अपनी जगह से खड़ी हुई और भारी आवाज में कहा, “आप इतने जिद्दी क्यों हैं? या तो यहां से चले जाइए या उस लड़की रावी से शादी कर लीजिए।” “ना तो मैं कार्तिक की शादी अटेंड करें बिना यहां से जाऊंगा और ना ही रावी से शादी करूंगा।” अभिमन्यु ने कंधे उचका कर जवाब दिया। “आप से बहस करना बेकार है।” उर्मिला ने कहा और वहां से चली गई। उसके जाते ही अभिमन्यु ने जल्दी से अपना लैपटॉप उठाया और फिर से उसने देखने लगा। वो लैपटॉप में प्रतापगढ़ के इतिहास के बारे में देख रहा था। “प्रतापगढ़ इतिहास के हिसाब से चलें तो एक वक्त ऐसा आया था, जब ये कस्बा पूरी तरह बर्बाद हो गया। यहां के लोग बीमार होकर मरने लगे। यहां तक कि इस बीमारी से राज परिवार भी नहीं बच पाया। ये कस्बा पूरी तरह नष्ट हो चुका था। फिर अचानक 1 साल में ऐसा क्या हो गया कि फिर से ये कस्बा आबाद हो गया। आबाद तो छोड़ो वो अपने आसपास की रियासतों में सबसे शक्तिशाली और धनवान बन गया।” अभिमन्यु ने खुद से कहा। “तपस्या जिस बुक के बारे में बात कर रही थी उसके बारे में ढूंढने की कोशिश करता हूं। हो सकता है वो किसी साइट पर अवेलेबल हो।” अभिमन्यु प्रतापगढ़ से जुड़ी कहानियां और इतिहास के बारे में लिखी गई किताबों के बारे में ढूंढने की बहुत कोशिश की लेकिन उसे गिनी चुनी कुछ किताबें मिली, जिनमें राज परिवार या प्रतापगढ़ के उद्भव की कहानियां लिखी थी। “यहां तो ऐसा कुछ नहीं है। मुझे तपु से बात करके उससे उस कहानी के बारे में पूछना होगा जो उसने उस बुक में पड़ी थी।” अभिमन्यु ने जल्दी से लैपटॉप बंद किया और उर्मिला के लाए चाय नाश्ते को खाकर बाहर आया। ___________ बाहर सभी शादी की तैयारियों में लगे थे। घर के हॉल में कपड़े दिखाने के लिए कोई आया हुआ था। सभी औरतें और लड़कियां उसे घेर कर बैठी थी। “मैं अपने लिए साड़ी लूं?” हेजल ने तपस्या की तरफ देखकर पूछा। जवाब में तपस्या ने हां में सिर हिलाया। उन्नति भी उन्हीं के पास बैठी थी। हेजल की बात सुनकर वो बोली, “अगर तुम साड़ी लोगी तो फिर मैं भी अपने लिए कोई साड़ी सेलेक्ट कर लेती हूं। तपु, मैं तुम्हारे लिए भी कोई साड़ी सेलेक्ट करूं?” “ठीक है लेकिन ज्यादा लाउड नहीं होना चाहिए।” तपस्या ने जवाब दिया। “ठीक है..... साक्षी भाभी, आप हम तीनों की अच्छी सी साड़ी सेलेक्ट करने में हेल्प कीजिए ना।” उन्नति ने साक्षी को आवाज लगाई। सभी आपस में हल्की फुल्की बातें करते हुए वहां साड़ियां देख रहे थे। रावी भी वहीं पर मौजूद थी। उसने अभिमन्यु को देखा तो जल्दी से एक साड़ी अपने ऊपर लगाई और उसे आवाज लगाकर कहा, “अभिमन्यु जी, हम इस साड़ी में कैसे लग रहे हैं। अगर आपको पसंद हो तो हम ये ले लेते हैं।” “अब क्या तुम मेरे हिसाब से कपड़े पहनोगी?” अभिमन्यु ने कहा। “हां हां क्यों नहीं?” रावी ने जवाब दिया। उसकी बात सुनकर अभिमन्यु उसके पास आया और वहां पड़ी साड़ियों को देखने लगा। उसने एक बेकार सी दिखने वाली साड़ी को उठाया और रावी को देकर कहा, “मुझे ये साड़ी पसंद है।” “अगर आपको ये साड़ी पसंद है, तो मैं यही पहनूंगी।” रावी ने मुस्कुराकर जवाब दिया और उस साड़ी को अपने पास रख लिया। सब कोई हैरानी से उन दोनों की तरफ देख रहे थे। अभिमन्यु ने जो साड़ी सेलेक्ट की थी, वो डार्क पिंक कलर की थी और उस पर काफी पुराने जमाने के हिसाब से हैंड वर्क किया हुआ था। “लेकिन हमेशा ये साड़ी बिल्कुल अच्छी नहीं है..... फिर तुम ये कैसे ले सकती हो?” तपस्या ने हैरानी से पूछा। “ये अभिमन्यु जी को पसंद है तो ये दुनिया की सबसे बेस्ट साड़ी है।” रावी के जवाब को सुनकर अभिमन्यु के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। वो उर्मिला देवी के पास आया और रुको धीमी आवाज में कहा, “अब आपको समझ में आ गया होगा कि हम रावी से शादी क्यों नहीं करना चाहते हैं।” उर्मिला देवी ने अपना सिर पकड़ लिया और धीरे से बुदबुदाई, “अपना पॉइंट प्रूफ करने के लिए ये कुछ भी कर सकते हैं। हमें लगा बड़े होने के बाद आपने जिद करना छोड़ दिया होगा लेकिन अब तो आप और भी जिद्दी हो गए हैं।” उर्मिला देवी ने रावी के चेहरे की तरफ देखा। वो उसे साड़ी को गौर से देख रही थी। “अब तो मुझे भी लगने लगा है कि ये लड़की अभिमन्यु के लिए सही नहीं है।” उन्होंने अपने मन में कहा और फिर से उसी काम में लग गई। तपस्या उन सब से बोर हो रही थी तो वो वहां से उठी और बाहर जाने लगी। उसे बाहर जाता देख अभिमन्यु भी उसके पीछे जाने लगा। सबका ध्यान साड़ियां देखने में लगा था इसलिए किसी ने उन दोनों को बाहर जाते नहीं देखा। “तपु.... तपु रुको।” अभिमन्यु ने दौड़ते हुए तपस्या को आवाज लगाई। “तुम्हें कितनी बार कहा है मुझे इस नाम से मत बुलाया करो।” तपस्या ने उसके पास आकर कहा। “मैं तुम्हें इस नाम से क्यों नहीं बुला सकता? तुमने ही तो कहा था इस नाम से तुम्हारे फ्रेंड्स और फैमिली वाले बुलाते हैं। अब तो हम फ्रेंड बन गए हैं ना?” “और ये करिश्मा कब हुआ?” “कल रात को.....” तपस्या ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वो इस बारे में बात नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने बातों का रूख बदलते हुए कहा, “वैसे तुम्हारी चॉइस बहुत बेकार है। मैंने अपनी पूरी लाइफ में उसे से बेकार साड़ी नहीं देखी।” “अच्छा अगर वो साड़ी में तुम्हें गिफ्ट करता तो क्या तुम पहनती?” “बिल्कुल नहीं पहनती..... ऊपर से उस साड़ी को लपेट कर तुम्हें जोर से फेंक कर मारती।” तपस्या ने जवाब दिया। उसकी बात सुनकर अभिमन्यु के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। “लेकिन मुझे वो साड़ी बहुत अच्छी लगी। देख लो मैं तो उसी लड़की से शादी करूंगा जो वो साड़ी पहनेगी।” “फिर तो कोई दिक्कत की बात ही नहीं है। रावी तुम्हारे लिए वो साड़ी पहन लेगी और तुम दिन रात अपने घर वालों से जिस बात को लेकर बहस करते रहते हो और वो भी नहीं करनी पड़ेगी। शादी मुबारक मिस्टर अभिमन्यु सिंह.....” उसकी बात सुनकर अभिमन्यु का मुंह बन गया। तपस्या से बात करने के चक्कर में वो ये भूल ही गया था कि वो किस वजह से उससे मिलने आ रहा था। अचानक उसे याद आया तो उसने अपने सिर पर हल्की चपत लगाकर कहा, “मैं तो भूल ही गया था कि मैं यहां तुमसे मिलने क्यों आया था?” “अगर याद आ गया है तो बता दो कि तुम मुझसे मिलने यहां क्यों आए थे?” अभिमन्यु ने इधर-उधर देखा और फिर तपस्या का हाथ पकड़ कर उसे कहीं ले जाने लगा। तपस्या ने अपना हाथ छुड़ाकर कहा, “कहां लेकर जा रहे हो? कुछ बताओगे?” “मुझे तुम्हें कुछ दिखाना है। बस कोई सवाल मत करना और बहुत कुछ जानना भी है लेकिन उसके लिए हमें कहीं जाना पड़ेगा।” तपस्या ने उसकी बात पर हामी भरी। अभिमन्यु उसे लेकर महल के निचले हिस्से में आ रहा था, जहां बरसों पहले उसने कुछ अजीब अनुभव किया था। ___________ वही हॉल में अभी भी सब लोग साड़ियां सेलेक्ट करने में लगे थे। इन सबके बीच अचानक उर्मिला देवी का ध्यान आसपास गया तो अभिमन्यु वहां मौजूद नहीं था। “हमें बड़े दादा सा से बात करके शादी को रुकवाने की कोशिश करनी चाहिए। रावी सच में हमारे अभिमन्यु के हिसाब सही नही है।” उर्मिला देवी ने अपने मन में सोचा और वहां से उठकर ऊपर जाने लगी। प्रताप सिंह का कमरा महल के सबसे ऊपरी हिस्से में बना था। महल के टॉप फ्लोर पर किसी का आना जाना मना था। वहां प्रताप सिंह रहते थे। उर्मिला देवी अभिमन्यु के बारे में बात करने प्रताप सिंह के पास पहुंची। “प्रणाम बड़े दादा सा.....” उसने अपने दोनों हाथ जोड़कर सिर झुका कर कहा। “आज यहां कैसे आना हुआ?” “मुझे अभिमन्यु के विषय में कुछ बात करनी है।” “बात तो हमें भी बहुत सी करनी है। लेकिन इन सबके बीच तुमसे अकेले में मिलने का मौका ही नहीं मिला।” प्रताप सिंह ने मुस्कुराकर जवाब दिया। उर्मिला देवी के चेहरे पर डर और परेशानी के मिले जुले भाव थे। उसे समझ नहीं आ रहा था वो बात की शुरुआत कहां से करें। उसने जैसे तैसे कर हिम्मत की और अचानक कहा, “अभिमन्यु रावी से शादी नहीं करना चाहता।” उर्मिला देवी की बात सुनकर प्रतापसिंह के चेहरे पर गुस्सा था। गुस्से में उसके शरीर के ऊपर की त्वचा जलने लगी और अंदर का हड्डियों का एक जर्जर ढांचा साफ दिखाई दे रहा था। उन्हे उस तरह देखकर उर्मिला डरकर कुछ कदम पीछे हट गई। “नही करना चाहता तो समझाओ उसे...” प्रताप सिंह गुस्से में गुर्राया। “ह.....हम.... सम..... झा देगे।” डर के मारे उर्मिला के शब्द उसका साथ नहीं दे रहे थे। उसके हां कहते ही प्रताप सिंह अपनी सामान्य अवस्था में आ गए उसने उर्मिला को बैठने का इशारा किया। “तुम अच्छे से जानती हो कि तुम कितनी खास हो उसके बावजूद तुम ऐसी बातें कर रही हूं। इतना सब कुछ होने के बावजूद हमने तुम्हारे बेटे को बख्श दिया इसका कारण भी अच्छे से पता है ना.....” उर्मिला ने हां में सिर हिलाया। “हम तुमसे कुछ नहीं छुपाना चाहते हैं। अभिमन्यु और रावी की शादी नाम की होगी। उसे बोलो उस लड़की के साथ उसे पूरी जिंदगी नहीं बितानी पड़ेगी तो बेफिक्र रहे।” उर्मिला देवी प्रताप सिंह की बातों का मतलब अच्छे से समझ रही थी। प्रताप सिंह जो सोच रहे थे उसके बारे में सोच कर ही उसके दिल की धड़कनें बढ़ने लगी। परिस्थिति अब उसके लिए और ज्यादा मुश्किल होने वाली थी। सब कुछ जानते बूझते हुए भी उसने प्रताप सिंह से कहा, “हम कुछ समझे नहीं।” “हम सब समझा देंगे।” प्रताप सिंह ने रहस्यमई तरीके से जवाब दिया और अगले ही पल अपना पूरा षड्यंत्र उर्मिला के सामने रखने के लिए तैयार था। ★★★★
उर्मिला देवी अभिमन्यु की तरफ से बात करने के लिए प्रताप सिंह के कमरे में आई हुई थी। प्रताप सिंह उसकी बात सुनकर गुस्सा हो गए और उसे अभिमन्यु को शादी के लिए मनाने की सख्त चेतावनी दी। “तुम अच्छे से जानती हो कि हम कोई काम बेवजह नहीं करते।” बोलते हुए प्रताप सिंह वहां लगे काउच पर बैठ गए। “आप की जगह कोई और होता और हमसे सवाल करता तो फिर भी हम सोचते, लेकिन आप से हमें ये उम्मीद नहीं थी उर्मिला। सब कुछ जानते बूझते हुए भी आप हम पर सवाल उठा रही हैं।” “आप जानते हैं ना बड़े दादा सा अभिमन्यु कितना जिद्दी हैं।” “अगर जिद्दी है तो तुम समझाओ। उसे बताओ कि वो कितना किस्मत वाला है, जो उसे इस काम के लिए चुना गया है। वो खास है तभी इतना सब कुछ देखने के बावजूद अभी तक जिंदा है।” प्रताप सिंह की बात सुनकर उर्मिला के दिमाग में उस दिन की यादें ताजा हो गई जब बचपन में अभिमन्यु तहखाने में कैद हो गया था। उसने गलती से प्रताप सिंह और उसकी तीन पत्नियों की तंत्र साधना को देख लिया था। “इस बात की क्या गारंटी है कि रावी एक चंद्रवंशी है।” उर्मिला ने पूछा। “तुम्हें हम पर संदेह है?” “बात संदेह है कि नहीं है बड़े दादा सा, जानकी और साक्षी की शादी के वक्त भी आपको यही लगा था कि वो चंद्रवंशी हैं। लेकिन शादी हो जाने के बाद उनके द्वारा की गई पूजा सफल नहीं हुई। दीपक भाई सा ने तो जानकी को एक्सेप्ट कर लिया था लेकिन आप अच्छे से जानते हैं रोहित किसी और लड़की को पसंद करता था। वो आज भी इस शादी से खुश नहीं है। हम नहीं चाहते जो रोहित के साथ हुआ, वो हमारे अभिमन्यु के साथ भी हो।” उर्मिला ने अपनी तरफ से समझाने की पूरी कोशिश की। “आपकी चिंता जायज है लेकिन इस बार हमें धोखा नहीं हुआ है। रावी ही चंद्रवंशी है।” “आप किस बिनाह पर ये कह सकते हैं?” “याद है रात को सभी बच्चे एक साथ करने में बातें कर रहे थे, तब अभिमन्यु और रावी साथ में मौजूद थे। उन दोनों के साथ होने से एक अद्भुत ऊर्जा का संचरण हुआ, जिससे तुरंत इस महल की बाकी बहूओ ने पहचान लिया।” “कौन सी बहुएं?” उर्मिला ने हैरानी से पूछा। प्रताप सिंह के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। उसने उर्मिला की बात का जवाब देते हुए कहा, “एक ऐसा संयोग, जिसे कोई आम इंसान देख सुन नहीं सकता। जब भी कोई चंद्रवंशी लड़की इस महल में प्रवेश करती हैं, तो बलि दी गई चंद्रवंशी बहुए अपने आप जागृत हो जाती हैं। वो उनके स्वागत में वंदन करती हैं। हमने अपने इन्हीं कानों से रात को उनका वंदन सुना था। उर्मिला, रावी और अभिमन्यु की शादी के बाद हम अमर हो जाएंगे। ये हमारी अंतिम बलि होगी। फिर कोई खून नहीं बहाया जाएगा।” प्रताप सिंह ने झूठ बोला। उसने रात को विलाप कर रही बहुओं के रुदन को वंदन का नाम दे दिया। प्रताप सिंह ने सारी बातें उर्मिला को बता दी थी। ये सब सुनकर उसकी आंखें नम थी। उसे रावी और अभिमन्यु के लिए बहुत बुरा लग रहा था। उसे उदास देखकर प्रताप सिंह अपनी जगह से खड़े हुए और उसके पास गए। “तुम्हें इनके लिए दुखी होने की कोई जरूरत नहीं है। तुमने अपना हर एक कर्तव्य बखूबी से निभाया है। अरे हमारा रविंद्र तो किस्मत वाला है, जो उसे शादी के लिए तुम मिली।” प्रताप सिंह ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराया। “क्या रावी भी बाकी चंद्रवंशी बहुओं की तरह.....” बोलते हुए उर्मिला चुप हो गई। प्रताप सिंह उसकी बात का मतलब समझ चुके थे। “हां रावी भी बाकी चंद्रवंशी बहुओं की तरह यहां महल में कैद हो जाएगी। लेकिन एक अच्छी खबर दी है। रावी तो कैद हो जाएगी लेकिन हमारी सुनैना, सुभद्रा और सुकीर्ति आजाद हो जाएगी।” उर्मिला देवी ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। उसे चुप देखकर प्रताप सिंह ने कहा, “मेरी तीनों पत्नियां बहने थी और अपने कर्तव्य को निभाने के लिए अपनी बलि दे दी।” “हम इस बारे में जानते हैं।” उर्मिला ने धीमी आवाज में कहा। “हां..... वो इसलिए क्योंकि तुम उन तीनों के खानदान से ही हो। तुम्हें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। हमारा प्रतापगढ़ और वंश पूरी तरह नष्ट होने की कगार पर था, तब उन तीनों ने अपना बलिदान दिया और इसे नष्ट होने से बचाया। इसे फिर से हरा-भरा और समृद्ध बनाने के लिए रास्ता निकाला। हमें भी चंद्रवंशीयों की बलि देकर अच्छा नहीं लगता, अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो हमारा कुल नष्ट हो जाएगा।” प्रताप सिंह जिस कहानी के बारे में बता रहे थे, वो उर्मिला बचपन से सुनते आ रही थी। एक वक्त ऐसा आया था कि बीमारी और अकाल में प्रतापगढ़ पूरी तरह विनाश की कगार पर था। प्रताप सिंह उस वक्त वहां के राजा थे और वो भी उस बीमारी से बच नहीं पाए थे। ऐसी परिस्थिति में उनकी तीनों पत्नियां सुभद्रा, सुकीर्ति और सुनैना जो बहने थी, उन्होंने तंत्र साधना का सहारा लिया। उन्होंने खुद की बलि दी और प्रताप सिंह को फिर से स्वस्थ कर दिया। तंत्र साधना के जरिए वो अभी भी जिंदा थी और उसी तंत्र साधना के सहारे उन्होंने अपने कुल को बचाने के लिए चंद्रवंशीयों की बलि देने का उपाय खोज निकाला था। पिछले कई सालों में कोई भी बलि ना देने की वजह से प्रताप सिंह काफी कमजोर हो गया था। इस बार बहुत जतन करने के बाद उसने रावी के बारे में पता लगाया और उसके चंद्रवंशी होने का संदेह होने पर तुरंत उसकी शादी अभिमन्यु से तय कर दी। “अब बातें बहुत हो गई है। हम जानते हैं, आप अभिमन्यु को सच नहीं बता सकती लेकिन उसे इस शादी के लिए कैसे भी करके मना लीजिए।” प्रताप सिंह ने कहा। “आप जानते हैं ना वो बचपन से कितने जिद्दी हैं।” “लेकिन साथ ही अपने मां के लाडले भी..... वो आपकी कोई बात नहीं टालते। उन्हें कहिएगा कि उन्हें रावी से सिर्फ शादी करनी है, निभानी नहीं।” उर्मिला ने हां में सिर हिलाकर हामी भरी। उसने अपने दोनों हाथ जोड़कर फिर से प्रणाम किया और कहा, “अब इजाजत दीजिए।” प्रताप सिंह ने हामी भरी और उसके सिर पर हाथ फेरा कर आशीर्वाद दिया। उर्मिला उनके कमरे से बाहर निकल आई थी लेकिन साथ ही असमंजस की स्थिति में थी। ना तो अभिमन्यु और ना ही प्रताप सिंह उसकी बात सुनने को तैयार थे, ऊपर से प्रताप सिंह का पूरा प्लान सुनने के बाद उसे रावी के लिए डर लग रहा था। “हे माता रानी, अब आप ही हमारी मदद कीजिए। रावी बहुत मासूम है ऊपर से उसके तो मां-बाप भी नहीं..... उसके ऊपर आए इस संकट से उसे छुटकारा दिलाएंगे।” उर्मिला ने मन ही मन प्रार्थना की। वो अभिमन्यु से बात करने के लिए उसे ढूंढ रही थी लेकिन वो उसे कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। ___________ दूसरी तरफ अभिमन्यु तपस्या को लेकर तहखाने में गया। तपस्या को कुछ समझ नहीं आ रहा था और वो बार-बार अभिमन्यु से पूछे जा रही थी लेकिन उसने उसे कुछ नहीं बताया। अभिमन्यु और तपस्या तहखाने की सीढ़ियां उतर रहे थे। उस महल और सीढ़ियों को देखकर तपस्या को वो कहानी याद आने लगी जो उसने राजकुमारी तपस्या के बारे में पढ़ी थी। “ये महल भी कुछ-कुछ वैसा ही लगता है जैसा उस किताब में लिखा था। आखरी बार बलि देने के लिए राजकुमारी तपस्या को इसी तरह के तहखाने में लाया गया था जो सीढ़ियों के जरिए नीचे आता था।” तपस्या ने अपने मन में सोचा। “थोड़ी देर पहले तो मुझे सवाल पूछ पूछ कर परेशान कर रही थी। अब क्या हो गया जो चुप हो गई?” उसे चुप देखकर अभिमन्यु ने पूछा। “कुछ नहीं, चलो नीचे चलते हैं।” तपस्या ने जवाब दिया। वो दोनों नीचे पहुंचे तब तहखाने में अंधेरा था। अभिमन्यु और तपस्या ने अपने अपने मोबाइल की टॉर्च जलाई और वहां देखने की कोशिश करने लगे। वो जगह बिल्कुल खाली थी। रोशनी होने की वजह से कुछ चमगादड़ उड़ती हुई आई और शोर करने लगी। उनके आते ही तपस्या और अभिमन्यु ने जल्दी से अपने अपने फोन की लाइट बंद की। “ऐसे लग रहा है जैसे बरसों से यहां कोई नहीं आया होगा।” तपस्या ने कहा। “हां तभी इन बैट्स ने अपना घर यहां पर बना लिया है।” अभिमन्यु ने जवाब दिया। “अभिमन्यु प्लीज यहां से वापस चलो। मुझे सफोकेशन फील हो रहा है। यहां तो बरसों से सफाई भी नहीं हुई, इतनी धूल मिट्टी है कि सांस भी नहीं लिया जा रहा।” तपस्या ने हांफते हुए कहा। अभिमन्यु को लगा कि जो बरसों पहले उसने यहां देखा था, वो उसे फिर से दिख जाएगा लेकिन वहां कुछ मौजूद नहीं था। तहखाना धूल मिट्टी से भरा हुआ था, ऊपर से वहां चमगादड़ों ने अपना घर बना लिया था इस वजह से उस जगह पर सांस लेना भी दूभर था। पूरे तहखाने में सीलन की बू आ रही थी। “ठीक है ऊपर चल कर बात करते हैं।” अभिमन्यु ने कहा और तपस्या के साथ फिर से ऊपर आ गया। ऊपर आते ही दोनों ने राहत की सांस ली। “तुम क्या वो जगह दिखाने के लिए इतना सस्पेंस क्रिएट कर रहे थे?” तपस्या ने पूछा। “मैं नहीं जानता मैं तुम्हें ये सब क्यों बता रहा हूं लेकिन बरसों पहले जब मैं यहां आया था, तब ये जगह बिल्कुल अलग थी।” “मतलब?” “एक बार बचपन में मैंने गुस्से में रोहित भैया को पत्थर फेंक कर मारा। घर वालों की डांट से बचने के लिए मैं यहां आ गया।” “ओह तो तुम बचपन में बहुत शरारती थे।” तपस्या ने उसे परेशान करने के लिए कहा। “शरारती नहीं था लेकिन मुझे अकेले रहना पसंद था। अब आगे सुनो, जब मैं यहां आया तब शाम का वक्त था और मुझे नींद आ गई थी। आधी रात को जब मैं नींद से जागा तब मैंने यहां कुछ स्केल्टनस देखे, जिन्होंने कपड़े पहन रखे थे और वो किसी हवन कुंड के आगे बैठ कर पूजा कर रहे थे। आज भी उन सब के बारे में सोचता हूं तो दिल में एक अलग ही डर पैदा हो जाता है।” “ये सच में बहुत स्केरी है।” उसकी बात सुनने के बाद तपस्या को भी डर का एहसास हुआ। “मैंने भी जब उस बुक को पढ़ा था तो मेरे साथ में भी अजीब अजीब चीज़ें होने लगी थी।” “हां, मैं तुमसे उस बुक के बारे में ही पूछना चाहता था। मुझे किसी भी साइट पर उस तरह की बुक दिखाई नहीं दी।” “वो किताब मेरे बैग में कैसे आई, इस बात कुछ सोच कर तो मुझे आज भी हैरानी होती है। मैंने लाइब्रेरी से उसे शेंसन नहीं करवाया था।” “उस किताब में क्या लिखा था। क्या तुम मुझे बताओगी?” तपस्या ने उसकी बात पर हामी भरी और उस किताब के बारे में सोचने लगी। वो अभिमन्यु को किताब के बारे में बताने लगी, “वो राजकुमारी तपस्या की कहानी थी, जो विक्रमगढ़ रियासत की राजकुमारी थी। उसे प्रतापगढ़ के किसी राजकुमार से प्यार हो गया था। उसकी किस्मत अच्छी कहूं या बुरी जो उसकी शादी उस राजकुमार से हो गई।” “अगर उसकी शादी उस राजकुमार से हो गई तो उसकी किस्मत बुरी कैसे हो सकती हैं?” अभिमन्यु ने हल्का हंसकर कहा। “क्योंकि वो शादी ही उसकी बर्बादी का कारण बनी। उसने जिस से प्यार किया था, उसने उसके साथ छलावा किया। राजकुमार बुरा नहीं था लेकिन उसके घर वाले..... उसके घर वालों ने राजकुमारी तपस्या की बलि चढ़ा दी। महेंद्र प्रताप ने तपस्या को बलि से बचाने के लिए अपने हाथों से उसकी जान ले ली और उनके ऐसा करने पर उनके घर वालों ने महेंद्र प्रताप को उसी वक्त मार दिया।” “ये सच में बहुत अजीब है। कोई किसी के साथ प्यार करके इस तरह धोखा दे भी कैसे सकता है। अगर राजकुमार को सारी बातें पहले से पता थी तो उसे राजकुमारी से शादी करनी ही नहीं चाहिए थी।” अभिमन्यु ने जवाब दिया। उसे वो कहानी सुनकर गुस्सा आ रहा था। “तुम सही कह रहे हो। वो बुक पढ़ कर मुझे भी ऐसा ही लगा था। आई डोंट नो तुम मेरी बात पर यकीन करोगे या ना करोगे लेकिन उस बुक को पढ़ने के बाद मुझे अजीब अजीब सपने आने लगे, जैसे राजकुमारी तपस्या की जगह मैं दुल्हन बनी बैठी हूं और कोई मेरी बलि देने वाला है।” जैसे ही तपस्या ने अपने सपनों के बारे में बताया अभिमन्यु हैरानी से उसकी तरफ देख रहा था। उसने उसकी बातों का कोई जवाब नहीं दिया लेकिन उसके चेहरे पर डर के भाग थे। “क्या हुआ अभिमन्यु? तुम चुप क्यों हो गए?” तपस्या ने पूछा। “क्योंकि कुछ इस तरह के सपने मुझे भी बहुत परेशान करते हैं जैसे..... जैसे शादी के बाद मै अपनी ही पत्नी को अपने हाथों से मार रहा हूं।” अभिमन्यु ने खोई हुई आवाज में कहा। तपस्या और अभिमन्यु एक दूसरे की कहानी सुनकर हैरान थे। दोनों को एक ही तरह के सपने आना कैसे संभव हो सकता था दोनों इस बारे में सोच कर परेशान हो गए। वो दोनों वहां खड़े एक दूसरे को देख रहे थे तो वहीं दूसरी उर्मिला ने उनकी सारी बातें सुन ली थी। ★★★★
तपस्या और अभिमन्यु एक दूसरे को अपने सपनों के बारे में बता रहे थे कि कैसे वो खुद को सपने में दूल्हा दुल्हन की जोड़े में देखते हैं। जहां सपने में तपस्या को उसका दूल्हा मार डालता है, तो वहीं अभिमन्यु अपनी दुल्हन को मार देता है। दूर खड़ी उर्मिला देवी उन दोनों की सारी बातें सुनकर हतप्रभ थी। “अभिमन्यु ने कभी हमें बताया क्यों नहीं कि वो इस तरह के सपने देखते हैं। अभिमन्यु का इस तरह के सपने देखना समझ आता है, लेकिन तपस्या? उन्हें ऐसे सपने क्यों आए?” उर्मिला देवी ने खुद से कहा। वो अभी भी उनसे कुछ दूर खड़ी उनकी बातें सुन रही थी। “ये काफी अजीब है कि हम दोनों को एक ही तरह के सपने आते हैं।” तपस्या ने कहा। “मेरे साथ उस बुक को पढ़ने के बाद काफी कुछ अजीब चीजें हुई। इस तरह के सपने देखना भी उनमें से एक है।” “और मुझे इस तरह के अनुभव तब से हो रहे हैं, जिस रात मैं गलती से तहखाने में पहुंच गया था।” अभिमन्यु ने धीमी आवाज में जवाब दिया। “पता नहीं क्यों लेकिन राजकुमारी तपस्या की कहानी सच्ची लगती है। जब मैंने उसे पढ़ा तो हर एक चीज महसूस हो रही थी।” “तभी तुम प्रतापगढ़ आना चाहती थी। अच्छा राजकुमारी तपस्या कहां से बिलॉन्ग करती थी?” अभिमन्यु ने अचानक से पूछा। “विक्रमगढ़ से? लेकिन तुम मुझे क्यों पूछ रहे हो?” “प्रतापगढ़ के इतिहास में भले ही राजकुमारी तपस्या को भुला दिया हो लेकिन विक्रमगढ़ का इतिहास नहीं भुला सकता। अगर राजकुमारी तपस्या की कहानी सच है, तो इतिहास के पन्नों में कहीं ना कहीं उनका नाम जरूर दर्ज होगा।” अभिमन्यु ने जवाब दिया। तपस्या ने भी उसकी बात पर सहमति जताई। “तुम सही कह रहे हो। शायद मुझे प्रतापगढ़ नहीं विक्रमगढ़ जाना चाहिए था।” “चलो गूगल पर सर्च करते हैं।” अभिमन्यु ने जवाब दिया और तपस्या के साथ अंदर आने लगा, तभी उसकी नजर उर्मिला पर पड़ी जो सामने खड़ी थी। वो दोनों उर्मिला को सामने देखकर सकपका गए। उन्हें लगा कहीं उर्मिला ने उनकी बातें तो नहीं ली। वहीं उन दोनों के अचानक मुड़ने से उर्मिला देवी भी घबरा गई। उन्होंने बात को संभालते हुए कहा, “हम कब से तुम्हें ढूंढ रहे हैं अभिमन्यु? तुम दोनों यहां बगीचे में क्या कर रहे हो?” उनकी बात सुनकर अभिमन्यु और तपस्या ने राहत की सांस ली। अभिमन्यु ने बिल्कुल दबी आवाज में कहा, “मां ने हमारी बातें नहीं सुनी, तो प्लीज नॉर्मली बिहेव करना। उन्हें डाउट ना हो।” “मैं अंदर बोर हो रही थी, तो बाहर आ गई।” तपस्या ने खुद को सामान्य करके जवाब दिया। “और मेरा कॉल आ गया था। बात करने के लिए बाहर आया तो तपस्या यहां थी। फिर हम दोनों कुछ हल्की फुल्की बातें करने लगे।” अभिमन्यु ने भी अपनी तरफ से सफाई दे दी। उन दोनों की बात सुनकर उर्मिला ने मन में कहा, “हम तीनों को ही एक दूसरे के सामने दिखावा करना पड़ रहा है कि सब कुछ सामान्य हैं। तपस्या बड़े दादा सा की नजरों में आए और उन्हें इन दोनों के सपनों के बारे में उन्हें पता चले, उससे पहले हमें ही कुछ करना होगा।” उर्मिला देवी को चुप देखकर अभिमन्यु ने पूछा, “वैसे आपने बताया नहीं मां आप हमें क्यों ढूंढ रही थी?” “खाना तैयार हो गया था बस इसीलिए..... अच्छा तुम बच्चों की हल्की फुल्की बातें खत्म हो गई हो तो अंदर आ जाना।” उर्मिला देवी ने कहा और वहां से अंदर चली गई। बगीचे से आने के बाद उर्मिला देवी सीधे अपने कमरे में गई। उनके कमरे में उस वक्त कोई मौजूद नहीं था। उन्होंने कमरा अंदर से बंद किया और अपनी अलमारी की तरफ बढ़ी। उनके अलमारी में बने सीक्रेट लॉकर में से उन्होंने एक गहने का डिब्बा निकाला। “सोचा नहीं था कि अचानक इस तरह इसकी जरूरत पड़ेगी। तपस्या की बातों से लग रहा है कि वो जो भी अनुभव कर रही है, वो आम नही है। ईश्वर ना करें कोई अनहोनी हो लेकिन..... हमें तो ये बात कहते हुए भी डर लग रहा है..... कहीं तपस्या..... वो लड़की चंद्रवंशी ना निकले।” उर्मिला ने अपने मन में सोचा और उसे डिब्बे को खोलने लगी। डिब्बे में एक छोटा चांदी का खंजर मौजूद था। उसकी बनावट देखकर साफ पता चल रहा था कि वो काफी पुराना था। काफी वक्त से अंदर होने के बावजूद वो चमक रहा था। उसके हत्थे पर जड़े नग उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा रहे थे। उर्मिला ने उस खंजर को अपने हाथ में लिया और देखने लगी। “दिखने में ये खंजर आम सा है..... इतना आम की इसके तो धार भी नहीं चढ़ी हुई। शुक्र है ईश्वर का जो ये हमारे पास मौजूद है। इसके जरिए हम पता लगा सकते हैं कि रावी या तपस्या में से कौन सी लड़की चंद्रवंशी है लेकिन हमें इसका प्रयोग सावधानी से करना पड़ेगा। ये खंजर चंद्रवंशियों के खून का प्यासा है। अगर उन दोनों लड़कियों में से कोई भी लड़की चंद्रवंशी हुई तो ये उनकी जान तक ले सकता है।” उर्मिला देवी ने खुद से कहा। उस खंजर को चेक करने के लिए उन्होंने उसके धार वाले हिस्से से अपनी हथेली पर वार किया लेकिन चोट लगना तो दूर उन्हें एक खरोंच तक नहीं आई। उर्मिला देवी ने वो खंजर वापस कटार में डाल दिया और उसे अपनी साड़ी में छिपाकर नीचे ले जाने लगी। ____________ नीचे सब दोपहर के खाने के लिए बैठे थे। अभिमन्यु और तपस्या भी वहीं पर मौजूद थे। उर्मिला देवी खंजर के साथ नीचे पहुंची और सीधे मंदिर में चली गई। “वो काली शक्तियां माता रावी के मंदिर तक कभी नहीं पहुंच पाएगी।” उर्मिला ने अपने दोनों हाथ जोड़े और खंजर को माता रावी के चरणों में रखकर प्रार्थना करने लगी। “हम जानते हैं हम किन के खानदान से संबंध रखते हैं, फिर भी हमने कभी भी आपकी श्रद्धा में कमी नहीं आने दी। हम कभी भी मासूम लोगों के खून बहाने के पक्ष में नहीं थे, ना बलि के नाम पर और ना ही समृद्धि के नाम पर..... सिर्फ आप ही है जो हमारी मदद कर सकती हैं। प्लीज हमारे बेटे और उस लड़की को इन सब चीजों से निकाल दीजिए।” उर्मिला देवी ने माता रावी के आगे माथा टेका और दूसरी तरफ मुड़ी। उन्होंने मंदिर में खड़े होकर ही रावी को आवाज लगाई, “रावी..... आप हमारे पास मंदिर में आइए।” रावी ने उसकी बात पर हामी भरी और हाथ पैर धो कर मंदिर में पहुंची। “बोलिए मां..... आप क्या कोई ख़ास तरह की पूजा कर रही है, जो दोपहर के समय होती है?” “हां ये बहुत खास तरह की पूजा है, इसके बारे में किसी को मत बताना। ये शादी से पहले इस घर की होने वाली बहू को करनी पड़ती है।” रावी ने मुस्कुराकर हामी भरी। उसने पूजा की थाली उठाई और माता रावी की आरती करने लगी। सब कोई इस वक्त उर्मिला को रावी के साथ पूजा करते देख हैरान था लेकिन किसी ने बीच में टोकना सही नहीं समझा। “मैंने आरती कर दी है। अब क्या करना है?” रावी ने पूछा। “ये हमारा खानदानी खंजर है। तुम इसे अपने दोनों हाथों में लेकर माता रावी के चरणों में चढ़ा दो।” बोलते हुए उर्मिला देवी ने खंजर को रावी के दोनों हाथों में पकड़ा गया। “ये तो बहुत ब्यूटीफुल है।” रावी ने मुस्कुरा कर कहा और खंजर को अपने माथे पर लगाया। इसके बाद उसने उसे माता रावी के चरणों पर चढ़ा दिया। ऐसा करते ही उर्मिला देवी ने उसके दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर देखें। रावी के किसी प्रकार की कोई चोट नहीं लगी थी। उसके हाथों को सही सलामत देखकर उर्मिला देवी ने राहत की सांस ली और अपने मन में कहा, “शुक्र है ये लड़की चंद्रवंशी नहीं है।” उन्होंने रावी को जाने का कहा और फिर तपस्या की तरफ देखा। “दीदी, आप इस वक्त कौन सी पूजा कर रही है?” जानकी ने हैरानी से पूछा। साक्षी ने भी उसकी बात पर हामी भरते हुए कहा, “जहां तक हमें याद है आप सुबह पूजा कर चुकी है। फिर इस वक्त?” “कुछ खास नहीं बस हम रावी और अभिमन्यु के आने वाले जीवन के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। जरूरी नहीं, भगवान को किसी विशेष समय पर याद किया जाए।” उर्मिला देवी ने जवाब दिया। उनकी बात सुनकर अभिमन्यु सहित तपस्या के चेहरे पर गुस्से के भाव थे। अभिमन्यु ने उर्मिला देवी के सामने साफ कर दिया था कि वो रावी के साथ शादी नहीं करना चाहता, फिर भी वो उन दोनों के भावी जीवन के लिए प्रार्थना कर रही थी। ये देखकर अभिमन्यु गुस्सा हो गया और खाना बीच में छोड़कर वहां से चला गया। “अभिमन्यु रुको.....” तपस्या ने उसे रोकने की कोशिश की लेकिन उसने उसकी बात नहीं सुनी। तपस्या को भी उर्मिला देवी पर गुस्सा आ रहा था और वो बात करने के लिए उनके पास मंदिर में गई। “आंटी मुझे आपका समझ नहीं आता, कभी तो आप अभिमन्यु से इतना प्यार से बात करती है और कभी सब सच जानने के बावजूद उसकी इच्छा के खिलाफ उसकी शादी करवाना चाहती है।” तपस्या उनके पास जाकर बोली। “हम जो कर रहे हैं अपने बेटे की भलाई के लिए कर रहे हैं।” उर्मिला देवी ने सख्त आवाज में जवाब दिया। “इन सब में अभिमन्यु की भलाई हो भी कैसे सकती है? अगर उसकी शादी रावी से हो गई तो वो पूरी उम्र घुट घुट कर रहेगा।” “हम इस बारे में बाद में बात करेंगे। अभी तुम माता रावी के मंदिर में आई हो। इन से प्रार्थना कर के देख लो, शायद ये तुम्हारे और तुम्हारे अभिमन्यु की बात सुन ले।” उर्मिला देवी ने बड़ी सफाई से तपस्या की बात को टाल दिया। तपस्या ने भी आगे बहस करना सही नहीं समझा। उसने माता रावी के सामने हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करने के बजाय जोर से बोल कर कहा, “देवी मां, प्लीज आप इस घर के लोगों को सद्बुद्धि दीजिए ताकि उन्हें समझ आ जाए कि किसी के साथ जोर जबरदस्ती करके उसके नए जीवन की शुरुआत नहीं की जा सकती।” बोलते हुए तपस्या ने उर्मिला देवी की तरफ देखा। उर्मिला देवी ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। तभी तपस्या की नजर वहां रखे खंजर पर पड़ी। “वो क्या है? क्या मैं उसे देख सकती हूं?” उसने उर्मिला देवी से पूछा। जिस पर उर्मिला देवी ने पलकें झपका कर हामी भरी। तपस्या उस खंजर को हाथ में लेकर देखने लगी लेकिन अगले ही पल खंजर ने उस पर हमला बोल दिया था और उसका हाथ लहूलुहान था। “आहहहह.....” तपस्या दर्द से चिल्लाई। उर्मिला देवी ने जल्दी से उसके हाथ से वो खंजर छीना और वापिस उसे माता रावी के चरणों में रख दिया। उस पर लगा खून झट से गायब हो गया और वो बिल्कुल पहले की तरह चमकने लगा, मानो उसने उस खून को पी लिया हो। वही तपस्या के हाथों में खून देखकर उर्मिला देवी परेशान हो गई। “हमारा शक सही निकला। इसका मतलब ये है लड़की चंद्रवंशी है, तभी इसे वो सब सपने आते हैं। बड़े दादा सा ने कहा था कि रात को इस महल की चंद्रवंशी बहुए जागृत हो गई थी, तो क्या रात को अभिमन्यु तपस्या के साथ था?” उर्मिला देवी के मन में हजारों सवाल चल रहे थे। वही तपस्या के हाथ में चोट लगी देखकर सब दौड़कर उस तरफ आए। “सब अचानक कैसे हुआ?” साक्षी ने तपस्या के हाथ को देखकर कहा। उसके चोट पर लगा घाव काफी गहरा था। दर्द के मारे तपस्या की आंखों में आंसू थे। “तुम चलो हम किसी डॉक्टर के पास चलते हैं। कहीं इन्फेक्शन ना हो जाए।” हेजल ने कहा। “मैं डॉक्टर को कॉल करके यहीं बुला लेता हूं। रुको मैं इसके रुमाल बांध देता हूं ताकि खून बहना बंद हो जाए।” कार्तिक ने अपने पॉकेट से रुमाल निकाली और तपस्या के हाथ के बांध दी। तपस्या के चोट लगने की वजह से सब लोग काफी परेशान हो गए। वो उसे लेकर बाहर आए। सब उसे घेरकर खड़े थे और कार्तिक डॉक्टर को कॉल कर रहा था। उर्मिला देवी अभी भी मंदिर में हैरान-परेशान खड़ी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या प्रतिक्रिया दें। तभी पार्थ की नजर उस खंजर पर पड़ी, जिससे तपस्या के चोट लगी थी। वो मंदिर में गया और उसे उठाकर कहा, “आपको इस तरह की चीजें ऐसे खुले में नहीं रखनी चाहिए। किसी..... आहहहह.....” अचानक पार्थ दर्द से चिल्लाया। उसका हाथ भी बिल्कुल तपस्या के हाथ की तरह लहूलुहान हो गया था। उसके चीखने पर सबका ध्यान उसकी तरफ गया। पार्थ के चोट लगने पर उन्नति काफी घबरा गई और वो दौड़ कर उसके पास गई। “तुम्हें ध्यान रखना चाहिए पार्थ। जब तक तपु के चोट लग गई है, उसके बाद क्या जरूरत थी इसे अपने हाथ में लेने की।” वो जल्दी से पार्थ को बाहर लेकर आई और उसके घाव पर रुमाल बांधने लगी। खंजर से उन दोनों के हाथों में लगी चोट देकर उर्मिला देवी ने माता रावी की मूर्ति की तरफ देखा और कहा, “ये कैसी अनहोनीओं का संकेत है माता रानी..... जहां पिछले सालों में चंद्रवंशिओं का नामो निशान नहीं मिल रहा था, वही अब महल में खुद चल कर दो चंद्रवंशी अपने आप आ गए हैं। मुझे कैसे भी करके इन दोनों की जान बचानी होगी।” उर्मिला देवी ने खंजर को वापस लिया और अपने कमरे में उसे वापिस रखने जाने लगी। ★★★★
तपस्या और रावी के चंद्रवंशी होने के बारे में पता लगाने के लिए उर्मिला ने एक प्रक्रिया की थी, जो उनके खानदानी खंजर द्वारा की गई थी। उस प्रक्रिया के निष्कर्ष स्वरूप रावी चंद्रवंशी साबित नहीं हुई। उर्मिला परेशान स्थिति में मंदिर में खड़ी थी क्योंकि प्रक्रिया के द्वारा तपस्या के साथ-साथ पार्थ के भी चंद्रवंशी होने का सच सामने आया। उर्मिला उस खंजर को वापस अलमारी में रख रही थी। “ये दोनों उन्नति के दोस्त हैं और दोनों ही बाहर से आए हैं, फिर ये चंद्रवंशी कैसे हो सकते हैं?” उर्मिला ने खुद से कहा। उनके सच के बारे में पता लगने के बाद उर्मिला और भी परेशान हो गई थी और उसके दिल की धड़कनें बढ़ी हुई थी। “बड़े दादा सा को इस बारे में पता चले उससे पहले मुझे उन दोनों को यहां से भेजना होगा। अगर अभिमन्यु और रावी की शादी हो गई तो ये सच सामने आ ही जाएगा कि रावी चंद्रवंशी नहीं है। रावी को कोई खतरा नहीं है... इसलिए मुझे कैसे भी करके अभिमन्यु को इस शादी के लिए कन्वींस करना होगा। अभिमन्यु की एक बार शादी हो गई तो बाद में वो उसे डिवोर्स दे सकता है। भव्य बड़ा होगा तब तक चीजे काफी हद तक बदल जाएगी। माता रावी प्लीज हमारी मदद करिएगा।” उर्मिला परेशानी में जल्दी-जल्दी खुद से बातें कर रही थी। उसने खुद को सामान्य किया और नीचे आई। _________ उर्मिला नीचे आई तो उसने देखा अभिमन्यु अभी भी वहां पर मौजूद नहीं था। नीचे डॉक्टर आ चुका था। उसने तपस्या और पार्थ की ड्रेसिंग कर दी थी। उर्मिला उनके पास जाकर बोली, “आप दोनों ठीक तो है?” “ये सवाल आप अब पूछ रही हैं आंटी? जब डॉक्टर यहां थे, तब आप कहां गायब हो गई थी और आप ही के वजह से तपु और पार्थ को चोट लगी है।” हेजल ने गुस्से में जवाब दिया। तपस्या के चोट लगने की वजह से वो काफी परेशान थी। “हेजल मैं ठीक हूं।” तपस्या ने उसे चुप कराने के लिए कहा। “एम सो सॉरी आंटी, मुझे चोट लगने की वजह से हेजल गुस्सा हो गई वरना आपके साथ बदतमीजी करने का उसका कोई इरादा नहीं था।” “हम समझ सकते हैं। अगर आप लोग बेहतर महसूस कर रहे हैं तो हमें आप तीनों से कुछ बात करनी है।” उर्मिला ने जवाब दिया। “लेकिन बड़ी मां आपने देखा ना कि अभी भी पार्थ को तपु की तरह चोट लगी है, डॉक्टर ने उन्हे आराम करने को बोला है।” उन्नति ने बात को टालना चाहा। “उन्नति हमें आपसे भी बात करनी है वो भी अभी.....आप चारों अभी हमारे कमरे में आइए।” कह कर उर्मिला अपने कमरे में जाने लगी। उसका बर्ताव उन लोगो को बहुत अजीब लगा। साक्षी ने कहा, “मां कई बार बहुत स्ट्रेंज बिहेव करती है। उनकी वजह से मेहमानों को चोट लग गई और उन्होंने एक बार भी सॉरी नही कहा। ऊपर से बात करने का फरमान अलग से सुना दिया।” “हां और आज दोपहर वाली पूजा तो सच में अजीब थी।” जानकी ने उसकी हां में हां मिलाते हुए कहा। “कोई बात नही.... हम देख लेंगे।” तपस्या ने कहा और इशारे से उन तीनो को ऊपर जाने के लिए कहा। उन्नति काफी घबराहट महसूस हो रही थी। उसने ऊपर जाते समय अपने दोस्तो से धीमी आवाज में कहा, “कही बड़ी मां को मेरे और पार्थ के रिलेशन को लेकर शक तो नही हो गया ना? अभिमन्यु भैया भी कही दिखाई नही दे रहे।” “तुम अभिमन्यु से कोई उम्मीद मत ही रखो उन्नति.... वो खुद के लिए भी कुछ नही कर पा रहा।” हेजल ने आंखें तरेरकर कहा। “अगर उन्हें ऐसा कुछ पता चल ही गया है, तो मैं सब संभाल लूंगा।” पार्थ ने उसका हाथ पकड़ कर कहा। वो चारों बातें करते हुए उर्मिला के कमरे में पहुंचे। उर्मिला उन लोगों के इंतजार में कमरे में इधर-उधर चहल कदमी कर रही थी। जैसे कि वो तीनों अंदर आए उर्मिला ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। “ये कुछ ज्यादा ही सस्पेंस क्रिएट नहीं कर रही?” हेजल ने बिल्कुल धीमी आवाज में कहा। उर्मिला दरवाजा बंद करके वापस उनके सामने थी। वो चारों लाइन से उसके आगे खड़े थे और इस बात का अंदाजा लगा रहे थे कि उर्मिला ने उन्हें यहां क्यों बुलाया होगा। “उन्नति, मैं तुम्हारे दोस्तों के बारे में जानना चाहती हूं। तुमने इनका नाम तो बता दिया और साथ ही ये भी कि ये लंदन से आए हैं, लेकिन उनकी फैमिली बैकग्राउंड के बारे में कुछ नहीं बताया।” उर्मिला के कहते ही उन्नति की घबराहट और बढ़ गई। उसके चेहरे से साफ नजर आ रहा था कि वो उर्मिला की बातों का जवाब देते वक्त हड़बड़ा जाएगी। तपस्या ने बात को संभालते हुए कहा, “तो क्या हुआ आंटी? आपको कुछ जानना है तो आप हमसे अब पूछ लीजिए।” लाइन की शुरूआत में सबसे पहले हेजल खड़ी थी। उसने अपना परिचय देते हुए कहा, “नाम तो आपको मेरा पता ही होगा। मेरी मॉम इंडियन है और एक डॉक्टर भी, मेरे डैड लंदन से ही है। वो भी डॉक्टर है। वो दोनो कॉलेज के सेम बेच से थे और तभी उन दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया और दोनों ने शादी कर ली। तपस्या के मॉम डैड और मेरे मॉम डैड काफी अच्छे फ्रेंड्स है, तभी मैं और तपु एक दूसरे को बचपन से जानते हैं।” “तुमने बताया तुम्हारी मॉम इंडिया से है। इंडिया में वो कहां से हैं?” उर्मिला देवी ने अपना शक दूर करने के लिए पूछा। उन्हें लगा कहीं हेजल भी चंद्रवंशी ना निकले। “मेरी मॉम इंडियन है लेकिन उनका बर्थ लंदन में ही हुआ था। वैसे उनका होमटाउन साउथ इंडिया में हैदराबाद सिटी में है।” हेजल ने बताया। उर्मिला उसके जवाब से पूरी तरह संतुष्ट हो चुकी थी। उसके आगे तपस्या थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या जवाब दें क्योंकि वो खुद नहीं जानती थी कि उसका होमटाउन इंडिया में कहां से था। “आप अपने बारे में कुछ बताइए तपस्या..... आपको नहीं लगता लंदन में रहते हुए तपस्या जैसा ट्रेडिशनल नाम रेयर ही लोगो का होता है। लंदन तो दूर की बात है, इंडिया में भी इतना ट्रेडिशनल नेम आसानी से नहीं मिलेगा।” उर्मिला ने पूछा। तपस्या ने गहरी सांस लेकर छोड़ी और जवाब देते हुए कहा, “मेरे मॉम डैड इंडियन है लेकिन मेरी मॉम क्रिश्चन है।” “और तुम्हारा होमटाउन?” “मैं नहीं जानती।” तपस्या ने बिल्कुल धीमी आवाज में जवाब दिया। “ऐसा कैसे मुमकिन है कि आप अपने परिवार के बारे में नहीं जानती या कुछ ऐसा है जो आप हमसे छुपा रही हैं।” “नहीं बड़ी मां..... तपस्या सच कह रही है। ये बात हम लोगों को पहले से ही पता है कि इस की फैमिली कहां से बिलॉन्ग करती है ये इस बारे में कुछ नहीं जानती।” उन्नति ने जवाब दिया। “मैंने कई बार अपने पेरेंट्स से इस बारे में पूछने की कोशिश की लेकिन वो दोनों इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहते। जब भी मैं उन्हें इंडिया आने की या हमारी फैमिली के बारे में कुछ पूछती हूं, उनका मूड ऑफ हो जाता है।” तपस्या का जवाब सुनकर उर्मिला देवी ने सोचा, “जरूर इसके परिवार वाले इसे किसी अनहोनी से बचाना चाहते हैं, तभी विदेश लेकर चले गए। हो ना हो उन्हें इस बारे में जरूर भनक पड़ गई होगी, प्रतापगढ़ में चंद्रवंशीयो की बलि देने की अफवाह सही है।” “क्या हुआ बड़ी मां?” उर्मिला को चुप देखकर उन्नति ने पूछा। उर्मिला हल्का मुस्कुराई और आगे कहा, “तपस्या, अब तो तुम इंडिया आ गई हो। तुम्हें अपने पेरेंट्स से अपने होम टाउन के बारे में पूछना चाहिए। हो सकता है कि वो लोग तुम्हारे आने का इंतजार कर रहे हो।” “मैंने यहां आने से पहले उनसे इस बारे में पूछा था लेकिन उन्होंने बताने से मना कर दिया।” “कोई बात नहीं..... पार्थ अब तुम अपने बारे में बताओ तुम कहां से हो?” उर्मिला देवी पार्थ के बारे में जानने के लिए भी बहुत उत्सुक थी। पार्थ ने उन्नति की तरफ देखकर पलकें झपकाईं और आंखों में आंखों में रिलैक्स रहने के लिए कहा। उसने उर्मिला देवी की बात का जवाब देते हुए कहा, “मैं उन्नति की तरह इंडिया से ही बिलॉन्ग करता हूं और लंदन में मेडिकल की स्टडी के लिए गया हुआ था। आंटी हमारी फैमिली भी आपकी तरह रॉयल फैमिली से बिलॉन्ग करती है। बेसिकली हम लोग मुंबई में रहते हैं लेकिन मेरा होमटाउन विक्रमगढ़ से है। आपने विक्रमगढ़ के राजघराने के बारे में सुना होगा..... महाराजा सूरज सिंह? हम उन्हीं के वंशज हैं।” पार्थ का महाराजा सूरज सिंह का वंशज होने की बात सुनकर उर्मिला देवी के साथ-साथ तपस्या भी हैरानी से उसकी तरफ देख रही थी। उसने उस किताब में जिस राजकुमारी तपस्या की कहानी सुनी थी, वो महाराजा सूरज सिंह की ही बेटी थी। जैसे उर्मिला देवी ने आगे कुछ बोलने के लिए मुंह खोला तपस्या उन से पहले बोल पड़ी, “पार्थ तुमने पहले क्यों नहीं बताया कि तुम विक्रमगढ़ से बिलॉन्ग करते हो?” “इसमें बताना क्या है? हम लोग अब मुंबई में रहते हैं और विक्रमगढ़..... वहां तो मैं खुद कभी नहीं गया तो तुम्हें उसके बारे में क्या बताऊंगा। मेरी फैमिली मानती है कि विक्रमगढ़ उनके लिए लकी नहीं है।” पार्थ ने कहा। उसकी बात सुनकर उर्मिला देवी को घबराहट होने लगी। उन्होंने आगे पूछा, “पार्थ तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है? तुम्हारी कोई बहन तो.....” बोलते हुए उर्मिला देवी रुक गई। “जी नहीं आंटी, फिलहाल के लिए मेरी फैमिली में मॉम डेड के अलावा मैं और मेरा छोटा भाई नकुल है। डैड के भी छोटे भाई थे लेकिन शायद उनके बीच में कुछ प्रॉब्लम हुई होगी, हम लोग नहीं जानते वो कहां रहते हैं।” पार्थ की बात सुनकर उर्मिला देवी ने राहत की सांस ली। अब उनकी परिवार में कोई लड़की मौजूद नहीं है। पार्थ के परिवार के बारे में सुनकर उर्मिला देवी की बेचैनी कुछ कम हो चुकी थी लेकिन तपस्या काफी परेशान थी। अब उसे यकीन हो गया था कि उसने उस किताब में जो कहानी पढ़ी थी, वो मात्र कोई कहानी नहीं थी। “पार्थ तुमने बताया नहीं तुम चंद्रवंशी हो?” तपस्या ने पूछा। “और आप चंद्रवंशी के बारे में कैसे जानती हैं?” उर्मिला देवी ने हैरानी से कहा। “आप तो बचपन से लंदन में रहती आई हैं। आपको चंद्रवंशियों उनसे जुड़ी बातों का कैसे पता हो सकता है? कहीं आप खुद तो कोई चंद्रवंशी नहीं है।” बातों बातों में उर्मिला ने तपस्या से पूछ ही लिया। “मुझे कैसे पता होगा आंटी कि मैं कोई चंद्रवंशी हूं या नहीं। मैंने इस बारे में किताब में पढ़ा था तब मैंने पार्थ से इस बारे में पूछा। मैंने महाराजा सूरज सिंह की हिस्ट्री के बारे में पढ़ा है और वही से मुझे पता चला कि वो एक चंद्रवंशी राजा थे।” तपस्या ने जवाब दिया। “वैसे ये चंद्रवंशी क्या होते हैं?” हेजल ने पूछा। “मैंने एक किताब में पढ़ा था कि चंद्रवंशी सूर्यवंशी के बाद सबसे पावरफुल क्लान होता था। अक्सर लोग पावर्स के लिए या ब्लैक मैजिक ट्राई करते वक्त उनकी बलि दिया करते थे।” तपस्या की बातें उर्मिला देवी को एक के बाद एक झटके दे रही थी। वो जिन बातों को सबसे छुपाने की कोशिश करती रहती थी। तपस्या सबके सामने आराम से बता रही थी। “कहीं इस लड़की ने ये सब बातें घरवालों या अभिमन्यु के सामने कर दी तो आफत हो जाएगी।” उर्मिला देवी ने अपने मन में सोचा और फिर तपस्या से कहा, “हमें नहीं पता था कि लंदन में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स भी अंधविश्वासी हो सकते हैं। ये सब कहानियां है ना कि रियलिटी। चलो अब आप बच्चे लोग जाओ।” “लेकिन बड़ी मां आपने बताया नहीं आपने हमें यहां अकेले में क्यों बुलाया था। सिर्फ इंट्रोडक्शन लेने के लिए तो नहीं बुलाया होगा ना?” उन्नति ने पूछा। “मैंने बस इन लोगों के बारे में पता लगाने के लिए ही बुलाया था। सबके सामने पूछती तो अजीब लगता। कल को शादी में और भी रिश्तेदार आएंगे। इनके बारे में पूछेंगे तो इनका पता होना चाहिए ना।” उर्मिला देवी के जवाब में उन चारों को ही संतुष्ट नहीं किया था फिर भी मैंने कुछ नहीं कहा और वहां से सीधे नीचे चले गए। उनके जाते ही उर्मिला देवी बिस्तर पर बैठ गई। “ये लड़का चंद्रवंशी है और महाराजा सूरज सिंह के परिवार से संबंध रखता है। गलती से भी ये बात दादा सा के सामने नहीं आना चाहिए। महाराजा सूरज सिंह की बेटी राजकुमारी तपस्या और इस कुल के राजकुमार महेंद्र प्रताप सिंह वो आखिरी जोड़ा, जिन की बलि दी जानी थी लेकिन आखिरी वक्त पर सब कुछ गड़बड़ हो गया और ये सब उन दोनों की प्यार की वजह से हुआ। दादा सा को इस लड़के के तपस्या के परिवार के बारे में होने का पता चला तो वो इस बात का बदला लेने के लिए इसे जान से मार देंगे। पार्थ का तो समझ आता है लेकिन तपस्या? वो चंद्रवंशी है उसे इस बात का पता क्यों नहीं..... चंद्रवंशी होने का तो छोड़ो उसे तो अपना होमटाउन भी नहीं पता। जो भी हो, हमें इन बच्चों को दादा सा की नजरों से दूर रखना होगा।” उर्मिला देवी के मन में कई सवाल चल रहे थे। इस वक्त उन की प्राथमिकता पार्थ और तपस्या को प्रताप सिंह की नजरों से बचाना था। “हमें अभिमन्यु से बात करनी होगी। वही अब हमें इस मुसीबत से निकाल सकते हैं।” उर्मिला देवी ने कहा और अभिमन्यु को ढूंढने के लिए बाहर आई। ★★★★
उन्नति के दोस्तों के कमरे से जाने के बाद उर्मिला देवी अभिमन्यु को ढूंढते हुए नीचे आई। वहां उर्मिला देवी का ही परिवार मौजूद था लेकिन अभिमन्यु नीचे हॉल में नहीं था। “क्या किसी ने अभिमन्यु को देखा?” उन्होंने वहां मौजूद लोगों से पूछा। “मैंने अभिमन्यु भैया को उनके दोस्त गौरव के साथ बाहर जाते देखा था।” कार्तिक ने जवाब दिया। उर्मिला देवी ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और तेज कदमों से चलती हुई बाहर की तरफ गई। बाहर अभिमन्यु और गौरव कहीं जाने के लिए कार में बैठ रहे थे। इससे पहले कि वो कार को स्टार्ट कर पाते, उर्मिला दौड़ कर उसके आगे जाकर खड़ी हो गई। अभिमन्यु जल्दी से गाड़ी से बाहर उतरा और उर्मिला के पास जाकर बोला, “ये क्या कर रही है आप? कुछ काम था तो हमें बुला लेती।” “तुम हमारी बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं हो, फिर किसे बुला लेते?” “हम गौरव को घुमाने के लिए मंदिर लेकर जा रहे हैं।” “आपके दोस्त गौरव अकेले घूमने जा सकते हैं।” उर्मिला की बात सुनकर अभिमन्यु ने जवाब में कहा, “ये अकेला ही जा रहा था लेकिन मैंने ही इसके साथ जाने की जिद की। मुझे यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा, सोचा बाहर जाऊंगा तो थोड़ा बैटर फील करने लगूं।” “आप फिर कभी चले जाना। अभी हमें आपसे बात करनी है।” “लेकिन मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी।” अभिमन्यु के बोलने के तरीके से साफ नजर आ रहा था कि वो उर्मिला देवी से गुस्सा है। “क्या मैं जान सकता हूं कि दोपहर में आप रावी के साथ मंदिर में कर क्या रही थी और क्या कहा आपने सबको कि आप रावी और मेरी शादी के लिए प्रार्थना करवा रही हैं। आप डिसाइड कर दीजिए कि आप मेरी तरफ है या अपने परिवार वालों की तरफ.....” “आप भी हमारे परिवार का हिस्सा है। हम आप की नाराजगी समझ सकते हैं बस इसीलिए बात करने के लिए आए थे।” उर्मिला देवी ने उसे समझाने की कोशिश की। “इस वक्त मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा है। मैं नहीं चाहता कि आप से बदतमीजी से बात करूं। हम बाद में बात करते हैं।” कहकर अभिमन्यु फिर से गाड़ी के तरफ बढ़ा। वो गाड़ी में बैठ पाता उससे पहले गौरव ने अंदर से गाड़ी लॉक कर ली। उसने गाड़ी स्टार्ट की और शीशा नीचा कर के अभिमन्यु से कहा, “फिर मिलेंगे कैप्टन साहब। तुम्हें अपनी मां से बात कर लेनी चाहिए शायद वो कुछ इंपॉर्टेंट कहना चाहती है, तभी दौड़ कर इस तरह गाड़ी के सामने आई थी।” “गौरव.....” अभिमन्यु ने गौरव को रोकने के लिए आवाज लगाई लेकिन उससे पहले वो वहां से निकल गया। “ये कभी नहीं सुधरेगा।” वो गुस्से में बड़बड़ाया। गौरव के ऐसा करने से उर्मिला देवी के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। उनकी मुस्कुराहट ने अभिमन्यु को और भी चिढ़ा दिया। “हम फिर भी आपसे बात नहीं करेंगे।” कहकर अभिमन्यु वहां से अंदर चला गया। “आप इतने जिद्दी क्यों हैं कि किसी की भी नहीं सुनना चाहते।” बढ़बड़ाते हुए उर्मिला देवी उसके पीछे आ रही थी। गुस्से में अंदर जाते वक्त अभिमन्यु हड़बड़ाहट में सामने से आ रही तपस्या से टकरा गया। “सॉरी.....” बोलते हुए अभिमन्यु की नजर तपस्या के हाथ के लगी चोट पर गई। “तुम्हारे हाथ पर ड्रेसिंग क्यों बंधी है? कुछ हुआ है क्या?” “तुम यहां रहोगे तो तुम्हें पता चलेगा ना कि क्या हुआ है, क्या नहीं।” तपस्या ने धीमी आवाज में जवाब दिया। “गुस्सा बाद में कर देना, पहले बताओ कि तुम्हें ये चोट कैसे लगी?” “दोपहर को रावी के साथ उर्मिला आंटी जब पूजा कर रही थी और तुम गुस्से में यहां से चले गए इसलिए मुझे अच्छा नहीं लगा। मैं उनसे बात करने के लिए मंदिर में गई और वहां रखे नाइफ से मुझे चोट लग गई। सिर्फ मुझे ही नहीं पार्थ के हाथ में भी ऐसे ही चोट है।” “पता नहीं आजकल मां को क्या हो गया है। उन्हें पता भी नहीं चलता कब उनकी हरकतों और बातों से सामने वाले को चोट पहुंच जाती है।” अभिमन्यु ने खोए हुए स्वर में कहा। उर्मिला देवी उनके पीछे ही थी और छिपकर उनकी बातें सुन रही थी। “हम किसी को चोट नहीं पहुंचाना चाहते बल्कि हम तो तुम्हें और इन सब को एक बहुत बड़े खतरे से बचाना चाहते हैं।” उर्मिला ने अपने मन में सोच। उसकी आंखें नम थी। “हमें बहुत तकलीफ होती है अभिमन्यु, जब आप हमें गलत समझ रहे हैं।” “मुझे चोट आंटी की वजह से नहीं बल्कि मेरी लापरवाही की वजह से लगी थी। तुम उन्हे भला बुरा कहना बंद करो और जाकर उनसे बात करो।” तपस्या ने कहा। “पहले मुझे उनके साथ रहना अच्छा लगता था। बस मन करता था कि उनसे पूरे दिन बातें करता रहूं..... मैं अपने दिल की बात मां के अलावा और किसी को नहीं बताता था लेकिन अब तो उनके पास जाने से भी डर लगता है। जब भी उनके पास जाता हूं, वो मेरी सुनने के बजाय मुझे रावी से शादी करने में कन्वेंस करने लगती है।” अभिमन्यु ने अपने दिल की बात तपस्या के सामने रखी, जिसे सुनकर उर्मिला की आंखें छलक पड़ी। “तुम जाकर उनसे बात करो। वो पहले भी तुम्हें ढूंढ रही थी। वो तुम्हारी मां है और तुम्हारे बारे में गलत कभी नहीं सोच सकती।” तपस्या ने अभिमन्यु के बाजू पर हाथ रखकर कहा। अभिमन्यु ने पलकें झपका कर उसकी बात पर सहमति जताई और उर्मिला देवी से बात करने के बारे में सोचा। उर्मिला देवी को भी तपस्या का इस तरह अभिमन्यु को समझाना बहुत अच्छा लगा। वो अपनी छिपी हुई जगह से बाहर आई। “अभिमन्यु क्या हम तुमसे बात कर सकते हैं?” उन्होंने सामान्य तरीके से कहा। इस बार अभिमन्यु ने बिना कोई जिद किए जवाब दिया। “आपके कमरे में चल कर बात करते हैं मां।” उर्मिला देवी ने उसकी बात पर हामी भरी और अपने कमरे में जाने लगी। अभिमन्यु भी उनके साथ जा रहा था। जाते वक्त उसने तपस्या की तरफ मुड़ कर देखा और बुदबुदाते हुए उसे थैंक्स कहा। जवाब में तपस्या मुस्कुरा दी। _______________ कमरे में आते ही उर्मिला देवी ने अभिमन्यु को गले लगाया। अभिमन्यु भी उनका ममता भरा सानिध्य पाकर एक पल के लिए सब कुछ भूल गया। “मां मैने आपको बहुत मिस किया। इस घर में सिर्फ आप एक ही अपनी si लगती है और आप भी मेरे खिलाफ जाकर खड़ी हो जाएंगी तो मेरा क्या होगा।” बोलते वक्त अभिमन्यु भावुक हो रहा था। ऐसा बहुत कम होता था जब उसके शब्दों पर उसकी इमोशंस भारी पड़ते थे। उर्मिला उससे अलग हुई और कहा, “आप पहले की तरह हमारी गोद में सर रखकर बैठ जाइए। हम आपको सहलाते हुए आपको दुनियाभर की सभी बुरी बलाओ से बचा लेंगे।” “मां मेरे ऊपर कोई बुरी बला नहीं है, बस मुझे रावी से शादी नहीं करनी प्लीज.....” उर्मिला देवी ने उसे चुप रहने का इशारा किया और वो बेड पर जाकर बैठ गई। अभिमन्यु उनकी गोद में देखा था और वो उसके बालों को धीरे धीरे चला रही थी। “ऐसे लग रहा है पुराना वक्त वापस आ गया। क्या आपको सच में वो रावी पसंद है?” “पता नहीं अभिमन्यु लेकिन हम चाहते हैं, तुम उससे शादी करो। जानती हूं किसी ऐसे इंसान के साथ पूरी जिंदगी बिताना बहुत मुश्किल होता है, जिससे आप प्यार नहीं करते। कोई किसी से 2 दिन में प्यार कर भी कैसे सकता है।” “जरूरी नहीं कि प्यार करने में 2 दिन या 2 साल का वक्त लगे। कभी-कभी आप किसी के साथ सालों बिता लो, फिर भी उसके साथ अपनापन महसूस नहीं होता तो कभी कोई एक नजर नहीं अपना लगने लगता है।” बोलते हुए अभिमन्यु की आंखों के सामने तपस्या का चेहरा घूम रहा था। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट थी। उर्मिला देवी को अभिमन्यु की बातों और उसके पीछे छुपी मुस्कुराहट का मतलब समझते देर नहीं लगी। उन्होंने अपने मन में कहा, “हम जानते हैं कि आप को तपस्या अच्छी लगने लगी है। लेकिन तपस्या के लिए आपका प्यार एक अनहोनी के अलावा और कुछ नहीं है। आपको अपने प्यार को बचाने के खातिर उससे दूर रहना होगा।” उर्मिला को चुप देखकर अभिमन्यु बोला, “मां कभी-कभी हमें समझ नहीं आता कि रोहित भैया एक हफ्ते में साक्षी भाभी से प्यार कैसे कर सकते हैं? अच्छा हुआ जो कार्तिक ने अपने लिए पहले ही लड़की पसंद कर ली और वो उन सब से बच गया।” “रोहित भी साक्षी को कहां अपना पाया है अभिमन्यु।” जैसे ही उर्मिला देवी ने कहा, अभिमन्यु चौक कर खड़ा हो गया। “ये सच है कि साक्षी और रोहित के बीच का रिश्ता नॉर्मल नहीं है।” उर्मिला देवी ने गहरी सांस लेकर छोड़ी और कहा, “यही वजह है कि रोहित ने अपना सारा काम कैनेडा में शिफ्ट कर लिया।” “आप सब कुछ जानते बूझते हुए भी साक्षी भाभी के साथ अन्याय कैसे कर सकती हैं? आप उन दोनों का डिवोर्स क्यों नहीं करवा देती? उन दोनों को छोड़िए आप तो हमारे साथ भी यही करना चाहती हैं।” “अभिमन्यु, रोहित को डिवोर्स ना देना साक्षी का डिसीजन है। हमने उससे डिवोर्स के लिए कहा था लेकिन साक्षी ने मना कर दिया। उसका कहना है कि रोहित ना सही बाकी लोगों ने उसे बहुत प्यार दिया है।” उर्मिला देवी ने बताया। अभिमन्यु के चेहरे पर उदासी के भाव थे। उसे साक्षी के लिए बहुत बुरा लग रहा था। “अब साक्षी भाभी के बारे में पता चलने के बाद तो मैं रावी से शादी हरगिज़ नहीं कर सकता।” “और अगर मैं कहूं कि तुम दोनों की कॉन्ट्रैक्ट मैरिज होगी फिर? बस 6 महीने के लिए तुम्हें उसके साथ रहना होगा।” “और रावी किसी भी तरह का कॉन्ट्रैक्ट करने के लिए तैयार क्यों होंगी?” “मैंने नोटिस किया है कि साक्षी और रावी में बहुत सी बातें एक जैसी है। जैसे साक्षी के परिवार में उसके कुछ रिश्तेदारों ने उसकी परवरिश की थी, तो वहीं रावी के भी मां बाप नहीं है। दोनों ही अपने हालातों से परेशान थी और उनसे बचने के लिए शादी ही सही तरीका लगा। अगर हम रावी को शादी के बाद अच्छी लाइफ देने का वादा करें तो वो डिवोर्स के लिए आराम से तैयार हो जाएगी।” उनकी बात सुनकर अभिमन्यु गुस्सा हो गया और हंसने लगा। “समझ नहीं आता कि मैं कैसी फैमिली में रहता हूं। कभी-कभी तो इतने नैरो माइंडेड हो जाते हैं कि बिना पूछे अपने बेटे की शादी करते कर देते हैं और उससे जबरदस्ती शादी के लिए प्रेशराइज करते हैं..... और कभी-कभी इतना अल्ट्रा मॉडर्न वर्ल्ड में आ जाता हूं कि कॉन्ट्रैक्ट मैरेज जैसी चीजें भी एक्सेप्टेबल हैं। आई डोंट अंडरस्टैंड मां आप ये शादी को रोक क्यों नहीं देती।” अभिमन्यु गुस्से में चिल्लाया। “अगर हमारे पास रोकने का ऑप्शन होता तो हम जरूर रोकते। हमारे लिए आपकी खुशी से बढ़कर कुछ नहीं है लेकिन फिलहाल ये शादी होना बहुत जरूरी है।” “आपके लिए मेरी शादी करवाना जरूरी होगा लेकिन मेरे लिए नहीं.....” अपनी बात कह कर अभिमन्यु वहां से जाने लगा। तभी उर्मिला देवी उसके सामने आ गई। “अगर मैं कहूं कि इस शादी से किसी की जिंदगी और मौत से जुड़ी हुई है, क्या तब भी तुम शादी नहीं करोगे?” “ऑफ कोर्स शादी से जिंदगी और मौत जुड़ी हुई है। मेरी और रावी की जिंदगी, जो कि इस शादी के बाद मौत के बराबर हो जायेगी।” “प्लीज अभिमन्यु हमारी बात समझिए।” “आप हंसकर हमारी जान भी मांग लेती, तो हम खुशी खुशी दे देते..... लेकिन ये शादी नही। हम किसी और को पसंद करने लगे है।” “और वो कोई और नहीं तपस्या है ना?” उर्मिला देवी के मुंह से तपस्या का नाम सुनकर अभिमन्यु चौंक गया। उसने बिना कुछ बोले हां में सिर हिलाया। “जब आप जानती हैं कि हम तपस्या को पसंद करने लगे हैं, फिर तो बहस करने का सवाल ही नहीं।” अभिमन्यु ने कंधे उचका कर कहा और वहां से जाने लगा। उसने दरवाजा खोला ही था कि उर्मिला देवी ने पीछे से कहा, “और अगर हम कहे कि तुम्हारी शादी से तपस्या की जिंदगी और मौत जुड़ी है तो क्या फिर भी तुम रावी से शादी नहीं करोगे?” उर्मिला देवी की बात सुनकर अभिमन्यु के कदम वहीं रुक गए। उसकी आंखें नम थी। वो बाहर जाने के बजाय वापस उर्मिला देवी की तरफ मुड़ा। “हम तुम्हें नहीं बताना चाहते थे लेकिन तुमने हमें मजबूर कर दिया। हमारे या इस परिवार के खातिर ना सही लेकिन अपने प्यार के खातिर आपको रावी से शादी करनी ही होगी। वजह हम आपको बताएंगे, जिसे सुनने के बाद शायद आप हमारी बात का यकीन ना कर पाए... लेकिन सच यही है।” तपस्या का नाम लेकर उर्मिला देवी ने अभिमन्यु को मजबूर कर दिया था। अब वो उसे वो बताने जा रही थी जो राज इस महल के इतिहास के पन्नों में दर्ज था। ★★★★
अभिमन्यु ने बातों ही बातों में उर्मिला देवी से तपस्या को पसंद करने की बात बता दी। उर्मिला ने उसे तपस्या का वास्ता देकर रावी से शादी करने के लिए मना ही लिया था। तपस्या का नाम आते ही अभिमन्यु वहीं रुक गया और वापस उर्मिला देवी के पास कमरे में गया। “आप ये क्या कह रही है मां? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, मैं तपस्या से प्यार करता हूं, इससे उसकी जान को खतरा कैसे हो सकता है?” अभिमन्यु ने हैरानी से पूछा। “हम आपको सब बता देंगे लेकिन आप वादा कीजिए कि आप हमें गलत नहीं समझेंगे।” अभिमन्यु को अभी भी उर्मिला देवी के कहने का मतलब नहीं समझ आ रहा था। वो उलझन भरी निगाहों से उनकी तरफ देख रहा था। “अब हम तुम्हें कुछ ऐसा बताने जा रहे हैं, जो हमारे अलावा यहां कोई नहीं जानता। आप हमें गलत मत समझिएगा लेकिन सुबह आप और तपस्या जब गार्डन में खड़े होकर बातें कर रहे थे, तब हमने आपकी सारी बातें सुन ली थी।” “अगर आपने हम दोनों की सारी बातें सुन ली थी तो आपने हमें बताया क्यों नहीं?” उर्मिला देवी ने जवाब में कहा, “अगर उस वक्त हम आपको बताते तो आप हमें गलत समझते। अभिमन्यु आप और तपस्या जो सपने देख रहे हैं, वो आम नहीं है। आप इस राज परिवार के वंशज है इसलिए आपको इस तरह के सपने आना हम समझ सकते हैं लेकिन तपस्या? वो तो किसी राज परिवार से संबंध नहीं रखती।” “मां मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। आपकी हर एक बात मेरे माइंड में एक नया सवाल खड़ा कर रही है। मैं इस राजघराने से बिलॉन्ग करता हूं तो मुझे वैसे सपने क्यों आते हैं? क्या पापा या भैया को भी इस तरह का कुछ एक्सपीरियंस हुआ है?” उर्मिला देवी ने उसकी बात पर हामी भरी। “अगर मैं कहूं की तपस्या ने जो किताब पढ़ी थी, उसमें लिखा एक एक शब्द सच था तो क्या तुम मेरी बात पर यकीन करोगे?” उन्होंने पूछा। उनकी बात सुनकर अभिमन्यु सोच में पड़ गया। कुछ देर तक उसने कोई जवाब नहीं दिया। “शायद नहीं.....” काफी सोच विचार करने के बाद अभिमन्यु ने कहा। “तुम्हारी जगह कोई भी होता तो इस बात का यकीन नहीं करता लेकिन राजकुमारी तपस्या की कहानी सच है। सदियों पहले वो ब्याह के इसी राजघराने में आई थी।” उर्मिला देवी की बात सुनकर अभिमन्यु सकते में आ गया। उसके आंखों के सामने तपस्या की बताई हर एक बात घूमने लगी, कैसे राजकुमारी तपस्या की शादी इस राजघराने में हुई थी और उन्हें प्यार के बदले मौत मिली। “आप झूठ बोल रही है ना?” अभिमन्यु ने भारी आवाज में पूछा। उर्मिला देवी ने उसकी बात पर ना में सिर हिलाया। “कोई प्यार के नाम पर धोखा कर भी कैसे सकता है? ये तो एक ऐसी फीलिंग होती है जो आपको पूरा सामने वाले का बना देती हैं। आप यकीन नहीं करेंगी मां मुझे तपस्या से मिले अभी दो ही दिन हुए है, फिर भी ऐसे लगता है जैसे मैं बरसों से उसे जानता हूं।” “अपने जज्बातों को यही काबू कर लीजिए अभिमन्यु..... तपस्या ने अपने सपने में जिस इंसान को खुद की जान लेते देखा, वो कोई और नहीं आप भी हो सकते हैं।” “लेकिन मैं उसकी जान क्यों लूंगा?” “कोई भी अपनी प्यार की जान नहीं लेना चाहता लेकिन तपस्या एक चंद्रवंशी है। अगर आप की पहली शादी उनसे हुई तो आप अनजाने में उस वचन से बंध जाएंगे, जो इस राजघराने के बेटों को निभाना पड़ता है। अपनी पहली चंद्रवंशी पत्नी के बलि के रूप में..... वचन से बंधने के बाद ना आप पीछे हट पाएंगे और ना ही खुद को रोक पाएंगे।” उर्मिला देवी ने अभिमन्यु के सामने सारा सच रख दिया। उसने अभी भी प्रताप सिंह के बारे में उसे कुछ नहीं बताया था। “अगर ऐसा है तो मैं किसी से भी शादी नही करूंगा। पर इसके लिए मैं रावी की जिंदगी तो बर्बाद नहीं कर सकता।” अभिमन्यु ने नम आंखों से जवाब दिया। “रावी की जिंदगी बर्बाद नहीं होगी..... ना ही तुम्हारी और तपस्या की, अगर तुम अपनी पहली शादी रावी से कर लो।” “मुझे समझ नहीं आ रहा मां की ये ऐसे रूल्स किसने बनाए हैं? और हमारी फैमिली ऐसी है, जो अपनी ही बहुओं की जान ले लेती हैं? आई विश कि मैं ये शादी अटेंड करने आया ही ना होता।” अभिमन्यु की आंखों में आंसू थे। उर्मिला देवी ने उसे गले लगाया और सहलाने लगी। “क्या हम जान सकते हैं कि ये बलि और बाकी सब चीजें क्यों की जाती है?” “हम नहीं जानते।” उर्मिला देवी ने अभिमन्यु से झूठ बोला। “ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि आप कुछ नहीं जानती। जहां आपको इतना पता है, वहां इस बारे में भी पता ही होगा। आखिर ये खेल किसने शुरू किया?” “हमें जितना पता था वो तुम्हें बता दिया। उम्मीद करते हैं कि आप हमारी बात को समझेंगे।” उर्मिला देवी ने अभिमन्यु से अलग होकर कहा। अभिमन्यु को उर्मिला देवी की बातों पर यकीन करने का मन नहीं कर रहा था लेकिन साथ ही वो सच को झुठला भी नहीं सकता था। उसके और तपस्या द्वारा देखे गए सपने इस बात का सबूत थे कि उर्मिला देवी की कही बातों में कुछ तो सच छुपा था। “क्या तुम रावी से शादी करने के लिए तैयार हो?” उर्मिला देवी ने एक बार फिर पूछा। अभिमन्यु ने गहरी सांस लेकर छोड़ी और हां में सिर हिलाया। उसमें आगे कुछ नहीं कहा और वहां से चला गया। उसके मुंह से हां सुनकर उर्मिला देवी ने राहत की सांस ली। “अगर सब कुछ हमारे प्लान के हिसाब से रहा तो कोई गड़बड़ नहीं होगी, ना ही किसी की जान जाएगी। बस हमें कैसे भी करके रावी को इस कॉन्ट्रैक्ट के लिए राजी करना होगा।” उर्मिला देवी ने कहा और रावी से बात करने चली गई। __________ वहीं दूसरी तरफ तपस्या अभिमन्यु के आने का इंतजार कर रही थी। जैसे ही अभिमन्यु उर्मिला देवी से बात करके बाहर आया तपस्या उसकी तरफ दौड़ कर जल्दी से गई। “हॉप सो तुम्हारे और आंटी के बीच कोई बहस बात नहीं हुई होगी।” तपस्या ने उसके पास जाकर कहा। उर्मिला देवी से बात करने के बाद अभिमन्यु काफी उदास हो गया था। वो रावी से शादी नहीं करना चाहता था लेकिन तपस्या की जान बचाने के लिए उसने शादी के लिए हां कह दी थी। उसे चुप देखकर तपस्या ने फिर पूछा, “क्या हुआ? अब तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे? तुम इतने सैड क्यों हो? आंटी ने कुछ कहा? डोंट वरी वो तुम्हारे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकती। कोई और तुम्हारा साथ दे या ना दे, मैं तुम्हारे साथ हूं।” बोलते हुए तपस्या ने अभिमन्यु का हाथ पकड़ा लेकिन अभिमन्यु ने तपस्या के हाथ को दूर झटक दिया। “मुझे किसी की जरूरत नहीं है। मैंने रावी से शादी करने के लिए हां कह दी है।” अभिमन्यु ने जवाब दिया और वहां से चला गया। तपस्या उसके बर्ताव को देखकर सकते में आ गई। “कही इसने सबके प्रेशर में आकर हां तो नहीं कहीं? ये उर्मिला आंटी भी ना समझती नहीं है। बस अपनी जिद पकड़ कर बैठी है। मुझे अभिमन्यु को समझाना होगा। वो इस तरह अपनी लाइफ बर्बाद नहीं कर सकता।” अभिमन्यु के रूड बिहेवियर के बावजूद तपस्या उसके पीछे दौड़ कर गई। “मुझे समझ नहीं आ रहा मैं तुम्हारा सामना कैसे करूंगा। काश मैं तुम्हें अपनी मजबूरी बता पाता..... सोचा नहीं था कि दो ही दिनों में किसी से इतना प्यार हो जाएगा कि उसके लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हो जाऊंगा।” अभिमन्यु अपने ही ख्यालों में खोया हुआ चल रहा था, तभी तपस्या दौड़कर उसके सामने आई। “आई नो अभी हम दोनों के बीच इतनी अच्छी बॉन्डिंग नहीं है लेकिन थोड़ा टाइम ही सही हमने साथ में स्पेंड किया है। इतने टाइम में मुझे ये तो समझ आ गया कि तुम बहुत समझदार हो और कोई भी ऐसा डिसीजन नहीं लोगे जिससे सामने वाले की लाइफ बर्बाद हो। फिर तुम रावी से शादी करने के लिए हां कैसे कह सकते हो?” तपस्या ने एक-एक करके उसके सामने सवालों की झड़ी लगा दी थी। “मैने रावी से बात की और मुझे वो अच्छी लगी।” अभिमन्यु ने बिल्कुल धीमी आवाज में जवाब दिया। “तुम्हें तो ठीक से झूठ भी नहीं बोलना आता। देखो कैसे नजरे चुरा रहे हो और तुम्हारी आंखें भी नम..... तुम रो रहे थे?” तपस्या के पूछते ही अभिमन्यु के दिल का दर्द बाहर आने लगा। उसने कसकर उसे गले लगा लिया। “प्लीज मुझे कभी छोड़कर मत जाना।” अभिमन्यु ने भावुक होकर कहा। “मैं कहीं नहीं जा रही लेकिन तुम्हें क्या हुआ?” “मैं अभी तुम्हें कुछ नहीं बता सकता। क्या तुम थोड़ी देर मेरे साथ रहोगी? मुझे बहुत लॉनलि फील हो रहा है।” तपस्या ने उसकी बात पर हामी भरी और उसके साथ महल की छत पर चली गई। रात का वक्त होने की वजह से सब खाना खाकर सोने चले गए थे। अभिमन्यु ने तपस्या का हाथ पकड़ कर ऊपर बैठा था और एक तरफ देखे जा रहा था। “पता नहीं इसके साथ ऐसा क्या हो गया जो ये इतना ब्रोकन फील कर रहा है। उस वक्त मै इससे कुछ पूछ भी नहीं सकती। कभी सोचा नहीं था इतने कम वक्त में तुम्हारे साथ एक अलग ही अटैचमेंट हो जाएगा।” सोचते हुए तपस्या ने अभिमन्यु की तरफ देखा। उसकी आंखें बंद थी और वो दीवार का सहारा लेकर लेटा था। “लगता है ये सो गया।” तपस्या उससे अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन अभिमन्यु ने उसका हाथ कसकर पकड़ रखा था। “मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।” तपस्या ने बिल्कुल धीमी आवाज में कहा और अभिमन्यु के कंधे पर सर रख कर लेट गई। _____________ सब के सो जाने के बाद उर्मिला देवी रावी से बात करने के लिए उसके कमरे में गई। उर्मिला देवी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया तो रावी ने बिना देर लगाए कमरे का दरवाजा खोल दिया था। “लगता है तुम अभी तक सोई नहीं थी।” उर्मिला देवी ने अंदर आते हुए कहा। “खाने के वक्त आपने मुझे बात करने के लिए कहा था। मैं बस आपके ही आने का इंतजार कर रही थी मां।” “तुम्हारे मुंह से मां सुनकर अच्छा लगा। अभिमन्यु भी हमें मां ही कहता है।” उर्मिला देवी ने उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा। जवाब में रावी मुस्कुरा दी। उर्मिला को समझ नहीं आया कि वो बातचीत की शुरुआत कहां से करें। उन्हें चुप देखकर रावी ने ही पूछ लिया, “आपको मुझसे क्या बात करनी थी?” “क्या तुम्हें अभिमन्यु पसंद है?” उर्मिला देवी के पूछते ही रावी ने मुस्कुराकर गर्दन नीचे की और हां में सिर हिलाया। “और अगर मैं कहूं कि अभिमन्यु तुम्हें पसंद नहीं करता तो क्या फिर भी तुम उससे शादी करना चाहोगी?” “हमें मिले अभी वक्त ही कितना हुआ है। प्यार को 1 दिन में थोड़ी ना हो जाता है, ऊपर से हमारी अरेंज मैरिज हो रही है। जैसे जैसे एक दूसरे को जानेंगे, हमें प्यार भी हो जाएगा और अभिमन्यु जी मुझे पसंद करने लगेंगे।” रावी का जवाब सुनकर उर्मिला परेशान हो गई। “मुझे तुम्हारा दिल तोड़ते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा लेकिन अभि किसी और से प्यार करता है।” उर्मिला देवी की बात सुनकर रावी उदास हो गई। “कोई बात नहीं आंटी जी, आप उनकी शादी उससे करवा दीजिए। हम वापस हमारे घर चले जाएंगे।” “मुझे कहते हुए बहुत अजीब लग रहा है लेकिन रावी क्या तुम अभिमन्यु से शादी करोगी?” “हमें आपकी बात समझ नहीं आई। कभी आप कहती हैं कि अभिमन्यु जी किसी और से प्यार करते हैं, तो कभी हमें उनसे शादी करने के लिए कह रही हैं।” “मैं तुम्हें ज्यादा कुछ नहीं बता सकती लेकिन क्या तुम अभिमन्यु से कुछ पर्टिकुलर टाइम के लिए शादी करोगी? सिर्फ 6 महीने की बात है..... उसके बाद कॉन्ट्रैक्ट अपने आप डिसमिस हो जाएगा।” उर्मिला की बात सुनकर रावी गुस्सा हो गई। वो अपनी जगह से खड़ी हुई और कहा, “अगर आप उम्र में हमसे बड़ी नहीं होती तो आपकी बात का अच्छे से जवाब देते। कभी सोचा है उन छह महीनों बाद हमारा क्या होगा। हमारे चाचा चाची हमें ऐसे ही चैन से जीने नहीं देते, ऊपर से पति की छोड़ हुई बोलकर और जीना हराम कर देंगे।” “मैं वो नौबत आने ही नहीं दूंगी रावी। अभिमन्यु और तुम्हारे डिवोर्स के बाद तुम्हें अपने चाचा चाची के पास वापस नहीं जाना पड़ेगा। तुम किसी भी कंट्री में जाकर अपनी लाइफ अच्छे से स्पेंड कर सकती हो। किसी और के साथ अपनी नई जिंदगी की शुरुआत कर सकती हो।” “आप अपने बेटे के साथ 6 महीने बिताने की कीमत तय कर रही हैं? इससे पहले कि हम कोई बदतमीजी करें प्लीज यहां से चली जाए।” रावी ने सख्त आवाज में कहा। “एक बार फिर सोच लो।” उर्मिला अपनी जगह से उठते हुए बोली। “हमें कुछ नहीं सोचना। हम कल ही इस शादी के लिए मना कर देंगे और यहां से चले जाएंगे। अब आप भी यहां से जा सकती हैं।” रावी ने अभिमन्यु से कॉन्ट्रेक्ट मैरिज करने के लिए साफ मना कर दिया। उर्मिला ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन वो समझने को तैयार ही नहीं हुई। उसकी ना सुनकर उर्मिला बुझे मन से वापस अपने कमरे में चली गई। ★★★★
उर्मिला देवी ने रावी से अभिमन्यु से कॉन्ट्रैक्ट मैरिज करने की बात कही। उसने उर्मिला देवी से साफ मना कर दिया। उनके जाने के बाद वो उदास हो गई। “सोचा था अभिमन्यु जी से शादी हो जाएगी तो फिर से उस घर में जाना नहीं पड़ेगा। कहां पता था कि यहां तो इन लोगों के मन में कुछ और ही चल रहा है। इससे अच्छा तो हम यहां पर आते ही नहीं, अब फिर से वही सब सहना पड़ेगा।” अपनी पुरानी जिंदगी के बारे में सोच कर रावी की आंखें नम हो गई। उसे अंदर घुटन महसूस हो रही थी इसलिए वो फ्रेश एयर लेने के लिए बाहर आई। सभी अपने-अपने कमरों में होने की वजह से बाहर शांति छाई थी। “ऐसा करते हैं ऊपर छत पर चलते हैं, ताकि कुछ देर तो खुली हवा में सांस ले सके। अब ये बंधन चुभने लगे हैं हमें, जहां अपनी मर्जी से कुछ भी कहने की आजादी नहीं है। अभिमन्यु जी का रिश्ता हमारे लिए आया था तो लगा कि वो आर्मी ऑफिसर है, तो खुले विचारों के होंगे। हम आगे अपनी स्टडी भी कंटिन्यू कर पाएंगे और हमारी लाइफ भी अच्छी हो जाएगी। इसलिए ज्यादा सोचे समझे बिना हां कह दी। यहां आने के बाद तो इनकी नई ही सच्चाई सामने आ रही है। ये तो इतने खुले विचारों के है कि शादी को भी कागज के टुकड़ों पर दर्ज करना चाहते हैं। अरे शादी जन्म जन्म का बंधन होता है, ना कि छ:–आठ महीने के लिए किया गया कोई सौदा।” रावी रोते हुए खुद से बातें करते हुए छत पर गई। आसमान में पूरा चांद था। इस वजह से छत पर चंद्रमा की अच्छी खासी रोशनी मौजूद थी। ऊपर आते ही रावी की नजर सामने बैठे अभिमन्यु और तपस्या पर गई, दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ रखा था तो वहीं तपस्या का सिर अभिमन्यु के कंधे पर था। उन्हें इस तरह देखकर रावी बौखला गई। वो गुस्से में उनके पास गई। उसने उन दोनों के हाथ को एक दूसरे से अलग किया। रावी के इस तरह हाथ खींचने की वजह से अभिमन्यु और तपस्या की आंख खुल गई। सामने रावी को देखकर दोनों एक दूसरे से जल्दी से अलग हुए और खड़े हो गए। “यही है ना वो लड़की, जिससे आप प्यार करते हैं।” रावी ने गुस्से में चिल्ला कर कहा। अभिमन्यु और तपस्या रावी की तरफ सवालिया नजरों से देख रहे थे। “ये तुम क्या कह रही हो रावी? किसी ने तुम्हें कुछ कहा क्या?” अभिमन्यु ने पूछा। “किसी के कहने की क्या जरूरत है अभिमन्यु जी, आप दोनों जिस तरह से एक दूसरे का हाथ पकड़ कर यहां पर सो रहे थे। मैं कोई बेवकूफ तो हूं नहीं, जिसे कुछ समझ नहीं आयेगा।” रावी ने जवाब दिया। उसकी बातों से अभिमन्यु और तपस्या समझ गए थे कि रावी उन दोनों को गलत समझ रही है। तपस्या ने बात को संभालते हुए कहा, “देखो रावी तुम गलत समझ रही हो। अभिमन्यु काफी परेशान था बस इसलिए मैं उसके साथ यहां मौजूद थी।” “हां अभिमन्यु जी तो परेशान होंगे ही क्योंकि इन्हें मुझसे शादी जो करनी पड़ रही है। आप दोनों ने सोचा होगा कि जब तक चांस है तब तक कैसे भी करके एक दूसरे के साथ वक्त बिताते हैं। तभी इस तरह चोरों की तरह छिपकर छत पर एक दूसरे की बाहों में बाहें डाल कर लेते थे।” गुस्से में रावी जो मन में आ रहा था, वो बोले जा रही थी। “ये क्या बकवास कर रही हो तुम? मेरा हाथ पकड़े हुए अभिमन्यु को नींद आ गई थी और मेरी भी कब आंख लग गई मुझे पता नहीं चला। जस्ट मेरा सिर इसके कंधे पर रखा था और तुम क्या अनाप-शनाप बोली जा रही हो?” तपस्या ने भी गुस्से में जवाब दिया। दोनों की बहस बढ़ती जा रही थी। अभिमन्यु ने उन दोनों को चुप कराते हुए कहा, “क्या तुम दोनों झगड़ा करना बंद करोगी? रावी, तपस्या बिल्कुल ठीक कह रही है।” “हां समझाओ इसे..... हमें तो हमें मिले 3 दिन भी नहीं हुए और तुम प्यार करने की बातें कर रही हो। प्यार तो दूर की बात है अभी तो ठीक से हमारी दोस्ती भी नहीं हुई।” तपस्या ने अभिमन्यु की बात पर हां में हां मिलाई। तपस्या की बात सुनकर अभिमन्यु का चेहरा उतर गया। उसने बिल्कुल धीमी आवाज में कहा, “ये सच कह रही है रावी, हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है।” “अगर आप दोनों के बीच ऐसा कुछ नहीं है तो फिर उर्मिला आंटी मेरे कमरे में क्यों आई थी। उन्होंने मुझे कहा अभिमन्यु किसी और से प्यार करता है।” रावी का गुस्सा अभी भी शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। “मुझे नहीं पता मां ने तुमसे क्या कहा या क्या नहीं लेकिन मेरे और तपस्या के बीच ऐसा कुछ नहीं है।” अभिमन्यु ने जवाब दिया। “ठीक है मान लिया कि आप दोनों के बीच कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन उर्मिला आंटी? वो एक औरत होकर मुझसे ऐसा कह भी कैसे सकती हैं।” “क्या कहा उर्मिला आंटी ने तुम्हें जो तुम इतना गुस्सा हो रही हो?” तपस्या ने पूछा। रावी ने देखा तपस्या और अभिमन्यु दोनों ही उलझन में थे। इससे वो समझ चुकी थी कि उर्मिला ने उससे जो भी कहा उसके बारे में उन्हें कुछ पता नहीं था। “आप दोनों के एक्सप्रेशंस देख कर ही पता लग रहा है कि आप को कुछ नहीं पता। चलिए मैं बता देती हूं अभिमन्यु जी, आपकी मां चाहती है कि मैं आपसे 6 महीने के लिए कॉन्ट्रैक्ट मैरेज करूं। जैसे ही 6 महीने पूरे हो मैं आपको डिवोर्स देकर खुशी-खुशी यहां से चली जाऊं बदले में वो मुझे बहुत सारे पैसे देगी। अब क्या कहेंगे आप अपनी मां के बारे में, जो एक औरत होकर दूसरी औरत की कीमत लगा रही है।” रावी ने एक सांस में पूरी बात बता दी थी। “देखो रावी..... मैं खुद किसी तरह की कॉन्ट्रैक्ट मैरिज करने के फेवर में नहीं हूं। मेरे घरवाले हमारी शादी करवाना चाहते हैं, दूसरा सच ये भी है कि मैं तुमसे प्यार नहीं करता। मुझे समझ नहीं आ रहा मैं इस सिचुएशन से कैसे निकलूं।” अभिमन्यु की बात सुनकर रावी ने जवाब में कहा, “जितने सिंपल तरीके से आपने बात को मुझे समझाया है, उतने ही सिंपल तरीके से अपने घर वालों को बता दीजिए और इस शादी से पीछे हट जाइए।” “मैं पीछे नहीं हट सकता।” अभिमन्यु ने कहा। “तो मैं भी अपनी जिंदगी के 6 महीने आपको नहीं दे सकती। मुझे इस तरह की कोई शादी नहीं करनी है अभिमन्यु जी। आपकी मां ने कहा आप किसी से प्यार करते हैं। भले ही हम ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं लेकिन इतनी बात अच्छे से समझते हैं कि अगर आप अपनी पसंद के हिसाब से शादी करो तो जिंदगी आसान हो जाती है। हम आप को यही सलाह देंगे कि आप उसी लड़की से शादी कीजिए, जिससे प्यार करते हैं।” रावी ने सादगी से जवाब दिया और वहां से नीचे चली गई। उसके जाते ही तपस्या ने अभिमन्यु से पूछा, “क्या तुम्हें ये कॉन्ट्रैक्ट मैरिज वाली बात पता थी?” अभिमन्यु ने बिना कुछ बोले जवाब में हां में सिर हिलाया। उसके हां कहते ही तपस्या को भी उस पर बहुत गुस्सा आया। “पता है थोड़ी देर पहले मैं ये सोच रही थी कि तुम चाह कर भी किसी का बुरा नहीं सोच सकते। ये सब कॉन्ट्रैक्ट मैरिजेस कहानियां मूवीज और स्टोरीज में अच्छे लगते हैं ना की रियल लाइफ में..... मुझे तुमसे ये उम्मीद बिल्कुल नहीं थी अभिमन्यु।” तपस्या ने कहा और गुस्से में वो भी वहां से जाने लगी। उसे रोकने के लिए अभिमन्यु दौड़ कर उसके सामने जाकर खड़ा हो गया। “रावी की तरह आधी अधूरी बात सुनकर किसी नतीजे पर मत पहुंचों। मां ने मुझे इस बारे में बताया था लेकिन मैंने उन्हें साफ मना कर दिया था। मेरे मना करने के बावजूद उन्होंने रावी से बात क्यों की इस बारे में मुझे नहीं पता।” अभिमन्यु की आवाज से सच्चाई झलक रही थी। तपस्या ने आगे कुछ नहीं पूछा और उसकी बात पर यकीन कर लिया। उसने अभिमन्यु का हाथ पकड़ा और कहा, “मैं बाकी कुछ नहीं जानती लेकिन इतना यकीन है कि तुम कभी किसी के साथ कुछ गलत नहीं करोगे।” “बस यही यकीन हमेशा बनाए रखना।” अभिमन्यु ने उसके हाथ पर अपना दूसरा हाथ रखकर वादा किया। तपस्या ने पलकें झपका कर उसकी बात पर हामी भरी और वहां से नीचे जाने लगी। अचानक उसे रावी की बात याद आई जब उसने कहा कि अभिमन्यु किसी से प्यार करता है। वो फिर से अभिमन्यु की तरफ मुड़ी और कहा, “वैसे तुमने कभी बताया नहीं कि तुम्हारी गर्लफ्रेंड भी है? ये प्रॉब्लम सॉल्व हो जाए फिर मिलवाना जरूर।” “पहले ठीक से मैं खुद तो मिल लूं, उसके बाद तुम्हें भी मिलवा दूंगा।” “काफी लकी है वो लड़की, जिससे तुम प्यार करते हो।” तपस्या ने मुस्कुरा कर कहा। “नहीं..... मैं बहुत लकी हूं, जो मुझे वो मिली।” तपस्या ने उसकी तरफ अंगूठा उठाकर थम्सअप किया और वहां से सोने के लिए चली गई। उसके जाने के बाद अभिमन्यु भी वहां से जा चुका था। ___________ अगले दिन से शादी की रस्में शुरू हो चुकी थी। कार्तिक की हल्दी की रस्म के लिए घर की औरतें और बच्चे सब घर के आंगन में इकट्ठा थे। रावी भी वहीं मौजूद थी और उसने इस शादी से इन्कार करने का मन बना लिया था। वो अपने घर वालों के आने का इंतजार कर रही थी। “अब तो कुछ दिनों बाद हमारे अभिमन्यु को भी हल्दी लगने वाली है। मैं तो कहती हूं दीदी अभिमन्यु की हल्दी की रस्म भी आज ही पूरी कर लेते। रावी के घर वाले भी आने ही वाले होंगे।” जानकी ने कार्तिक को हल्दी लगाते हुए कहा। रावी ने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और बुझे मन से नकली मुस्कुराहट के साथ वहां बैठी थी। “भाई अब तो हमारे ठाठ होने वाले हैं जो अब हमारे दो– दो देवरानियां आने वाली है।” साक्षी में हंसते हुए कहा। “दो दो देवरानियां नहीं भाभीसा..... आपके तीन देवरानियां आएगी। आप हमें भूल रही हैं।” जैसे ही भव्य ने कहा साक्षी उसके पास आई और उसका हल्के से कान पकड़ कर बोली , “आप को कैसे भूल सकते हैं छोटे देवर जी। लेकिन पहले आप बड़े तो हो जाए, उसके बाद देवरानी लाने का सोचेंगे।” वहां का माहौल काफी खुशनुमा था। एक-एक करके सब कार्तिक को हल्दी लगा रहे थे। खुशी के माहौल में जहां सबके चेहरे पर मुस्कुराहट थी, वही रावी उदास मन से सबके बीच खुश रहने का दिखावा कर रही थी। “सोचा नहीं था कभी उन लोगों के आने का इंतजार करना पड़ेगा जिन से बचती रहती हूं।” रावी ने अपने मन में कहा। उसकी निगाहें दरवाजे पर टिकी थी। इन सबके बीच शादी की रस्मों में शामिल होने के लिए उसके चाचा चाची भी वहां आ गए थे। उसके चाचा चाची के अलावा उनके साथ उसका चचेरा भाई पारस भी था। “कहना पड़ेगा मम्मी..... अपने घर की नौकरानी के लिए काफी अच्छा लड़का ढूंढा है आप लोगों ने।” पारस ने इधर-उधर देखकर कहा। वो एक ही नजर में महल की भव्यता से काफी प्रभावित हो गया था। वो शादी में शामिल होने के लिए काफी बन ठन कर आया था ताकि उनके स्टेटस के साथ मैच कर सके। “वो नौकरानी है तो क्या हुआ, हम भी इन्हीं की तरह राजघराने वाले हैं।” रावी के चाचा ने अपने मूछों पर ताव देकर कहा। वो एक दुबले पतले आदमी थे, जिन्होंने भूरे रंग का सूट पहना था और चेहरे पर गहरी मूंछें थी। उनके साथ उनकी चाची भी मौजूद थीं, जिसने चेहरे पर काफी सारा मेकअप लगा रखा था। वो दिखने में मोटी थी और काफी भारी भरकम वर्क वाली साड़ी पहन रखी थी। रावी के चाचा की बात सुनकर उसने मुंह बनाकर कहा, “आप तो बस ही कीजिए चौहान साहब, आप के राजघराने मैंने बहुत देख लिए..... नाम का राजघराना है। बाकी सिर पर बहुत सारा कर्ज और आपके बड़े भाई की लड़की के अलावा और कुछ नहीं है।” “पहले भले ही कुछ ना हो लेकिन अब बहुत सारा होने वाला है। अरे इस शादी के लिए उस बुड्ढे ने बहुत सारे पैसे देने का वादा किया है। साथ ही उसने ये कहा कि शादी के बाद रावी से हमारा कोई लेना-देना नहीं होगा।” मिस्टर चौहान ने कहा। “उसके कहने की जरूरत ही नहीं है। इस बला से जितनी जल्दी पीछा छूटे उतना ही अच्छा.....” मिसेस चौहान ने जवाब दिया। “अच्छा अब बहुत हो गया। अपनी बातें बंद कीजिए और अंदर चलकर उनसे मिलिए।” पारस ने कहा। वो तीनों मुस्कुराते हुए अंदर आए उनके हाथ में शगुन का बहुत सा सामान था। उनके चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी कि वो इस शादी को लेकर कितने उत्साहित थे। ऐसे में रावी का शादी के लिए ना कह पाना आसान नहीं था। ★★★★