"एक सरोगेट माँ... एक अधूरी रात... और एक रहस्य, जो सात महीने बाद भी साँसें ले रहा है।" अनामिका सिर्फ एक सरोगेट बनी थी — एक तयशुदा समझौते के तहत। मगर वो एक रात… सब कुछ बदल गई। सात महीने बाद उसने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया —... "एक सरोगेट माँ... एक अधूरी रात... और एक रहस्य, जो सात महीने बाद भी साँसें ले रहा है।" अनामिका सिर्फ एक सरोगेट बनी थी — एक तयशुदा समझौते के तहत। मगर वो एक रात… सब कुछ बदल गई। सात महीने बाद उसने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया — मगर उनमें से एक की साँसे रुक चुकी थीं… और दूसरा बच्चा, अब शिवार्थ की दुनिया है। पर क्या अनामिका सिर्फ एक किराए की माँ थी? या उस एक रात ने उसे भी किसी बंधन में बाँध दिया था? कहानी है उस मोहब्बत की… जो दस्तख़तों से नहीं, तक़दीर से लिखी गई थी।
अनामिका
Healer
शिवार्थ
Warrior
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अस्पताल के गलियारे के एक छोर पर, एक लड़की के साथ आई सचिव ने एक हाथ में अपना फोन और दूसरे हाथ में एक रिपोर्ट पकड़ी हुई थी, तथा दस्तावेज प्रस्तुत कर रही थी।
"अनामिका , 18 वर्षीय, स्टूडेंट। आपके पिता अपने व्यवसाय में लापरवाह थे और दिवालिया हो गए। जांच के अनुसार, सभी जानकारी सही है। मेडिकल टेस्ट से से आपकी समग्र शारीरिक स्थिति ठीक साबित हुई है, इसलिए हम प्रोसेस को आगे बढ़ाएं।"
दुर्भाग्य से यह लड़की इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन की शर्तों को पूरा करने में असमर्थ थी। फिर, वे केवल एक वैकल्पिक विधि की तलाश कर सकते थे।
अनामिका बेंच पर चुपचाप बैठी रही। वह खिड़की के बाहर के नज़ारे को देख रहे थी, उसका चेहरा अजीब तरह से शांत था, फिर भी उसकी नम आँखों में गहरा अँधेरा देखा जा सकता था।
यद्यपि युवती के नाजुक चेहरे के कारण वह और भी युवा लगती थी, लेकिन उसका कोमल चेहरा, तनाव से पूर्ण था। मानो उसने जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव देखे हो, जिससे वो ऐसी परिस्थिति में भी शांत दिख रही थी।
वह चुनी गई थी - लाखों में एक। अपने सौंदर्यपूर्ण चेहरे के कारण...।
तीन दिन पहले, उसने अपने पिता की जानकारी के बिना चुपके से एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए, और फिर उसे इस स्थान पर लाया गया। उसे हर दिन एक कमरे में बंद कर दिया जाता था और बाहर किसी से भी संपर्क करने और बाहर जाने से मना किया जाता था, जैसे कि वह एक कोई उड़ जाने वाली चिड़िया हो जो पिंजरा खुलते ही आसमान में उड़ जाएगी।
वह जानती थी कि गर्भावस्था के लिए उसे तैयार करने के लिए, उन्हें उसके स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने की आवश्यकता थी, ताकि उसका शरीर बच्चे को जन्म देने के लिए बेहतर रूप से अनुकूल हो सके।
उसके लिए दिन में बनाए जाने वाले तीन भोजन बेहद स्वादिष्ट होते थे। वह जानती थी कि ये खाद्य पदार्थ गर्भावस्था की तैयारी कर रहे लोगों के लिए फायदेमंद हैं, इसलिए भले ही उसे उन्हें खाना पसंद न हो, लेकिन वह उन्हें केवल जबरदस्ती निगल रही थी।
अनामिका ने किसी भी आदेश की अवहेलना करने का साहस नहीं किया, क्योंकि पूर्ण आज्ञाकारिता अनुबंध में बताई गई शर्तों में से एक थी।
इस प्रकार, आज भी, वह अपने नियोक्ता के सचिव की बात का ईमानदारी से पालन करती हुई उत्सुकतापूर्वक इस प्राइवेट हॉस्पिटल में हेल्थ चेकअप कराने आई।
उसका यह नियोक्ता बहुत रहस्यमय था; उसने उसे एक बार भी नहीं देखा था। वह केवल अनुबंध के बारे में जानती थी, और यह कि उस पर हस्ताक्षर करने से उसे 50 लाख का पारिश्रमिक मिलेगा। यह राशि उसके पिता को वित्तीय संकट से उबरने में मदद करने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए!
उसने अपने पिता से इस मामले का जिक्र करने की हिम्मत नहीं की। जब वह चली गई, तो उसने केवल एक नोट छोड़ा और अलविदा का एक शब्द भी नहीं कहा। सरोगेसी की लंबी अवधि के कारण, वह शायद जल्द ही घर वापस जाने में असमर्थ होगी, इसलिए उसने नोट में ये पहले ही कहा दिया था कि वो घर कई महीने बाद लौटेगी।
अनुबंध की एक शर्त के अनुसार, उसे गर्भधारण होने तक हर समय कड़ी निगरानी में रखा जाना था। जब यह शर्त पूरी हो जाती, तो अगले दिन से पहले उसके पिता के बैंक खाते में एक 25 मिलियन निश्चित रूप से जमा कर दिए जाते। सचिव के अनुसार यदि वह लड़का पैदा करती है, तो उसे अतिरिक्त राशि दी जाएगी।
सरोगेसी..! उसने पैसे कमाने के लिए हर तरह के उपाय सोचे थे, लेकिन अपना शरीर बेचना कभी उनमें से एक नहीं था! हालाँकि, चूँकि यह एक बड़ी रकम थी, इसलिए वह इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी थी, लेकिन वो नहीं जानती कि आगे उसके साथ क्या किया जाएगा।
आर्थिक तंगी के कारण उसने यह रास्ता चुना। लेकिन जब सचिव आई तो उसका मुंह लटका हुआ था, जिससे अनामिका थोड़ा घबरा गई और पूछा, " क्या सब ठीक नहीं है?"
"डॉक्टर ने कुछ कॉमेलिकेशन से बचने के लिए इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन की जगह इंटर्नल फर्टिलाइजेशन की राय दी है।", सचिव ने कहा और वहीं उसके बगल में बैठ गई।
अनामिका के कंधे पर हाथ रखते हुए उने दुबारा पूछा, " इंटरनल फर्टिलाइजेशन का मतलब तुम समझ रही हो ना?"
अनामिका बस सिर हिला सकी, जिस पर सचिव ने आगे कहना जारी रखा, " तो अगर तुम पीछे हटाना चाहती हो तो अभी हट जाओ...इस सरोगेसी के लिए तुम्हे क्या करना पड़ेगा तुम जानती हो।"
अनामिका समझ गई थी कि ये उसकी जिदंगी का सबसे भयानक फैसला होने वाला था, फिर भी उसने सिर हिलाया और बोली, " मैं नहीं हटना चाहती, मै करना चाहती हूं।"
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समुद्र के किनारे, एक शानदार समुद्री सुइट विला...
इस विला में अनामिका को लाने से पहले, उसे नहाने और अच्छी तरह तैयार होने का ऑर्डर मिला। पहनने के लिए उसे एक खूबसूरत नाइट गाउन दिया गया, जिसी साथ एक बेहद खुशबूदार परफ्यूम भी था।
जब वो नाइट गाउन पहन कर बाहर आई, सचिव ने उसके कंधे पर एक श्रृग डाल दिया और बोली, " विला में जाने से पहले इसे उतर दीजियेगा।"
अनामिका डरी हुई थी, उसके हाथ पांव ठंडे हो रहे थे, फिर भी वो बेहद खूबसूरत लग रही थी। जब उसकी कार आगे बढ़ने लगी, सचिव ने उसके कांपते हाथ को पकड़ा और बोली, डरो मत, वो काफी समझदार और दयालु है, अगर तुम वहां पहुंचने के बाद, अपना मन बदल देती हो तो वो तुम्हे जाने देंगे।"
अनामिका ने गहरी साँस ली। कुछ ही देर में वो विला पर पहुंचे, अनामिका को कार से उतार दिया गया, वो अंदर की ओर बढ़ी और जल्द ही उसे एक कमरे में अकेला छोड़ कर सभी वहां से रवाना ही गए।
रात हो गई थी। आलीशान बेडरूम में पर्दे कसकर खींचे गए थे और सारी रोशनी बंद कर दी गई थी।
शांत कमरे में, वो चुपचाप बिस्तर पर लेट गई। तभी कमरे का दरवाजा खुला और एक औरत तेजी से भीतर आई, उसके हाथ में काली पट्टी थी, जिससे अनामिका के आंखो पर बांधते हुए उसने कहा, " सर जल्दी ही आयेगा।"
उसने अपनी दृष्टि खो दी, फिर भी उसकी सुनने की शक्ति बरकार थी। वह हवा के चलने और लहरों के किनारे पर टकराने की आवाज़ भी सुन सकती थी।
जगमगाती रोशनी और शहर की चहल-पहल के बिना, सन्नाटा किसी के भी रोंगटे खड़े कर सकता है, डर से अनामिका को उल्टी जैसा महसूस होने लगा, तभी उसने एक आहट सुनी और उसकी रह कांप गई।
(क्रमशः)
मैं नई हूं, प्लीज मुझे भी समीक्षा और रेटिंग्स दीजिए, ताकि मैं भी आगे बढ़ सकूं, लिखना मुझे बहुत अच्छा लगता है और मैं एक लड़की हूं। जो यहां सिर्फ कुछ छोटे सपने के साथ आई हैं। मेरे लिए वो एक कमेंट भी अमृत की तरह है...जो नया जीवन दे।
जगमगाती रोशनी और शहर की चहल-पहल के बिना, सन्नाटा किसी के भी रोंगटे खड़े कर सकता है।
कुछ ही देर बाद, उसने दूर से एक इंजन के घरघराने की आवाज़ सुनी जो तेज़ होती जा रही थी। विला के सामने एक गाड़ी रुकी और उसका इंजन बंद हो गया।
उस समय, उसका हमेशा शांत रहने वाला दिल अचानक से तनावग्रस्त हो गया। क्योंकि, उसे एक अभूतपूर्व घबराहट और बेचैनी महसूस हुई। जब सीढ़ियों पर चढ़ते हुए कदमों की आवाज़ तेज़ होती गई और वे नज़दीक आते गए, तो वह अब और शांत नहीं रह सकी!
जब वह असहज महसूस कर रही थी, तभी दरवाजा खुल गया।
स्थिर कदमों की आवाज़ के साथ, अनामिका को यह एहसास हो गया कि कोई अंदर आया है और उसके बिस्तर के पास रुक गया है। वह अब तक पूरी तरह से घबरा गई थी, इसलिए तुरंत बिस्तर पर बैठ गई।
"वह... वह यहाँ है! क्या यह मेरे बच्चे का होने इला पिता है?", अनामिका के दिमाग में एक विचार कौंध गया।
उसकी सांसे तब रुक गई, जब बिस्तर का एक किनारा थोड़ा नीचे की ओर झुका यह स्पष्ट संकेत था कि कोई उस पर बैठ गया था।
अनामिका, जो परेशान महसूस कर रही थी, उसने सहारे के लिए अपनी पीठ दीवार से टिका ली। उसे बहुत अजीब लग रहा था, क्योंकि वो कुछ भी नहीं देख पा रही थी और उसके सामने घुटन भरा अंधेरा था। हालांकि पट्टी थोड़ी झांझर थी, जिससे वह मुश्किल से अपने सामने एक विशालकाय आकृति को देख पा रही थी, फिर भी उसका दिल अभी भी बेबसी में धड़क रहा था।
हालाँकि वह उसका चेहरा नहीं देख सकती थी, फिर भी किसी तरह, वह उसकी मजबूत, भारी उपस्थिति को महसूस करने में सक्षम थी, खासकर उसकी ठंडी दृष्टि। जैसे कि वह एक महान, अभिमानी अधिपति था, वहीं अनामिका एक भूली बिसरी श्रद्धांजलि की तरह पवित्र और मासूम लग रही थी।
अनामिका ने अपना मुंह खोला और कुछ अस्पष्ट तरीके से बोली, "आप... आप कौन हैं?"
वह आदमी चुप रहा। उसने अपना शरीर थोड़ा आगे की ओर घुमाया और उसके करीब झुक गया।
अनामिका को लगा कि उसकी मौजूदगी उसके करीब आ रही है। तुरंत, उस भव्य आकृति ने उसे दबाया और उसे पूरी तरह से अपने शरीर के नीचे कैद कर लिया। उसके शरीर का वजन सहने के प्रयास से अनामिका का शरीर काँप उठा। वह एक गेंद की तरह सिकुड़ गई, और फिर वह हिलने में असमर्थ हो गई। उसने घबराहट में अपने हाथों को अपनी छाती के सामने रखा और पट्टी होने के बावजूद आंखे कस कर बंद कर ली। फिर भी उसका दम घुटने लगा था!
उसकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार किए बिना, उस आदमी ने अपनी आँखें सिकोड़ लीं और उसके नाइट गाउन के फीते को खोलने लगा। तभी अनामिका घबराई हुई आवाज में बोली, " रुको!", उसने कांपती आवाज़ में आगे कहा, "मैं... क्या मैं तुम्हें देख सकती हूँ?"
"क्यों?", उस सख्श की युवा लेकिन गहरी आवाज़ वाइन की तरह थी, समृद्ध और मधुर। यह एक कर्कश आवाज़ थी जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सकती थी।
"मैं कुछ भी नहीं देख पा रही हूँ... मुझे डर लग रहा है...." अनामिका के इस बात का, उस आदमी ने उपहास किया और अत्यंत गहरी आवाज में कहा, "आपको देखने की जरूरत नहीं है और आपको डरने की भी जरूरत नहीं है।"
लड़की का नाजुक शरीर अभी पूरी तरह विकसित नहीं हुआ था। वह अभी भी बहुत पवित्र थी, और उसकी पतली कमर को आसानी से उसके एक हाथ में पकड़ा जा सकता था। उसकी बर्फीली उंगलियाँ अनामिका के होंठों को कठोरता से रगड़ रही थीं और लगातार उनके साथ खेल रही थीं, "बस अपनी आँखें बंद करो।"
कितना सुखद था वह कोमल स्पर्श, बिल्कुल रेशम जैसा।
उस आदमी की उँगलियाँ थोड़ी नम और ठंडी थीं, और जब वे उसकी गर्म त्वचा के संपर्क में आईं, तो अनामिका खुद को थोड़ा सिकुड़ने से नहीं रोक सकी। उसकी आँखों के सामने का अँधेरा उसे और भी डरा रहा था।
उसकी लगभग कोमल हरकतों से अनामिका सख्त हो गई। वह बेपरवाह होकर आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। उसका दिल उसकी छाती में जोर-जोर से धड़क रहा था। ऐसा लग रहा था मानो उसकी धड़कनें गले से बाहर निकल रही हों।
शर्म, घबराहट, डर... इन सब भावनाओं के बोझ तले दबी वह मुश्किल से सांस ले पा रही थी।
उसी क्षण उसे अपने निर्णय पर पछतावा होने लगा। उसने शुरू में सोचा था कि वह यह कर सकती है। आखिरकार, यह उसके लिए एक बच्चा पैदा करने जैसा था। उसे शायद कोई अनुभव न हो, लेकिन एक महिला के रूप में, यह कुछ ऐसा था जो उसे जल्द या बाद में करना ही था। हालाँकि, इस अनजान लेकिन दबंग आदमी का सामना करते हुए, उसने वह सारी हिम्मत खो दी जो उसने शुरू में की थी। अभी, उसे केवल अत्यधिक भय महसूस हो रहा था!
वह अभी-अभी वयस्क हुई थी और अभी तक किसी भी तरह की अंतरंगता का अनुभव नहीं किया था। उसने अपने पूरे जीवन में कभी किसी लड़के का हाथ भी नहीं पकड़ा था। स्वाभाविक रूप से, उसका दिल तैयार नहीं था। फिर भी, वह उसके छुवन का विरोध करने में असमर्थ थी।
जिसे अनजाने में ही सही, लेकिन उसने अपना हाथ आगे बढाकर उस आदमी के बड़े हाथों को पकड़ लिया और उसकी हरकतों को रोकने की कोशिश की।
ऐसा लग रहा था कि उस आदमी ने उसके मन की बात समझ ली थी। हालांकि अगले ही पल उसने अनामिका के हाथ पकड़कर उन्हें आसानी से जकड़ लिया और उसके सिर के ऊपर उठा दिया।
उसके इस पकड़ से अनामिका और भी अधिक भयभीत हो गयी!
उसका दिल लगातार विरोध कर रहा था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उसका पूरा शरीर भय से काँप रहा था, फिर भी उसके पास उसे मना करने का कोई रास्ता नहीं था! तभी उसे सचिव की वो बात याद आई कि, वो शक्श एक नेक दिल इंसान है, जो उसके इंकार को समझेगा, और उसे यहां से जाने देगा।
वो इनकार करने के लिए अपना मुंह खोलना चाहती थी, लेकिन दूसरी तरफ उसे अपने पिता की कंडीशन भी याद आ रही थी, जिसके आगे ये दुख कुछ भी नहीं था...।
जिन्होने पहले भाग को पढ़ा के और समीक्षा किया, उनका लाख लाख शुक्रिया। प्लीज इस पर भी अपनी अनमोल राय जरूर दीजिएगा।
(क्रमशः)
अनामिका इस फैसले पर अभी भी पुख्ता नहीं हुई थी, उसके विचार मन में डांवाडोल हो रहे थे, तभी उसने अचानक उस शक्श को रुकने को कहा, " मै अभी तैयार नहीं हूं..मुझे वक्त चाहिए।"
उसका इतना कहना था कि वो सख्श तुरंत उससे दूर हट गया, वो महसूस कर सकती थी कि वो आदमी बिस्तर पर सीधा बैठ गया और शायद अपने जज्बातों को दिल में थामने की कोशिश कर रहा है।
अनामिका वहीं ही लेटी रही, कुछ देर बाद उठ कर बैठी और लगभग आधे घंटे तक सोचते रहने के बाद, उसने बड़ी मासूमियत से उस शख्स से कहा, "मुझे डर लग रहा है, मै क्या करूं?"
वो कम उम्र की लड़की थी, जिसने अभी– अभी जवानी में कदम रखा था, शायद उसका डरना लाजमी था। वो भी एक अनजान शख्स के साथ रात गुजरने की बात हो तब ये डर और अधिक भयानक रुप ले लेता है।
आदमी को कर्कश और गहरी आवाज में जवाब आया, जो एक तरह से सवाल ही था, "तुम ये करना चाहती हो? अगर नहीं तो कोई जबरदस्ती नहीं है...।"
अनामिका झिझकी, लेकिन उसने धीरे से उत्तर दिया, " मैं बच्चा करने के लिए तैयार हूं पर ये... ये मुझसे नहीं...।"
इतना कहना था कि अचानक उसने एक ठंडा हाथ अपने कंपति पर महसूस किया, थोड़ा खुरदुरा और सख्त। वो सख्श उसे स्नेह दे रहा था, ताकि उसका दिल शांत हो जाए। जिसके दूसरे ही पल उसने कहा, " डरो मत। मै तुम्हे टॉचर करने के लिए यहां नहीं आया, मुझे बस एक औलाद चाहिए, जिसके लिए मैं विनम्र रहूंगा।"
उसकी बातों से अनामिका मृदुल दिल तोड़ गर्म होने लगा, वो नहीं जानती थी कि क्यों पर उसने आहिस्ता से अपना सिर हिला दिया, जो उसकी तरफ से इशारा था कि वो उसके साथ राजी है।
बातचीत खत्म करते हुए, उस आदमी ने अपना सिर नीचे किया और अनामिका के गाल पर अपने होंठ का एक कोमल स्पर्श दिया। अनामिका का पूरा बदन सिहर गया, उसकी साँसें तेज़ हो गई।
उसका दिल लगातार विरोध कर रहा था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उसका पूरा शरीर उस आदमी के गिरफ में चला गया, जिससे वो थोड़ी डरी हुई, थोड़ी हिम्मती और थोड़ी असमंजस में पड़ गई थी।
अनामिका ने उसे चकमा देने के प्रयास में अपने कंधे सिकोड़ लिए, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि अनजाने में हुए संपर्क से उस व्यक्ति की अधीरता बढ़ गई और वो उसके प्रति संजीदा हो गया।
आदमी ने ठंडी हवा में सांस ली। वह लगभग नियंत्रण से बाहर हो गया। यह लड़की वाकई बहुत आकर्षक थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह लगभग खुद को ही खो बैठा था।
अनामिका को इस अति अंतरंग हरकत पर झटका लगा और उसने अपने कंधों को और सिकोड़ने की कोशिश की। उसने सहज रूप से उसके कंधों को पकड़ लिया और फिर से इनकार करते हू बोला पड़ी, "मत करो...नहीं।"
उस आदमी ने उसके थोड़े प्रतिरोध को नज़रअंदाज़ कर दिया। अनामिका ने चिल्लाते हुए कहना जारी रखा, और अवचेतन रूप से इधर-उधर छटपटाते हुए, उसने लगातार उसकी छाती को दूर थकेला। हालाँकि, उस आदमी ने उसकी कलाई पकड़ ली और उसे अधिक प्रतिरोध करने से रोकने के लिए,अपने रास्ते में आने वाली आखिरी चीज़ यानी उसके हाथ को हटा दिया। अनामिका की साँस फूल गई, जब उसे एहसास हुआ कि क्या होने वाला है। उसने उसके स्पर्श को अस्वीकार करने की कोशिश की क्योंकि उसका शरीर लगातार टूट रहा था।
ऐसा लग रहा था जैसे उसके प्रभुत्व ने उसे बुरी तरह हरा दिया है। क्योंकि अब वो थोड़ा नाराज लगने लगा था।
अनामिका ने परवाह नहीं की और कहा, "नहीं... मत करो...."
"नहीं..।"..
उस आदमी को उसके प्रतिरोध से असंतुष्टि महसूस हुई। उसने धीरे से अपनी आँखें उठाई और अपने हाथ से उसकी ठुड्डी को पकड़ लिया। मंद चाँदनी के नीचे, उसकी आँखें उसके शर्मीले चेहरे को देखने के लिए नीचे झुक गई। फिर उसने ठंडे स्वर में पूछा, "क्या? तुम यह नहीं चाहती?"
अनामिका तनाव में आ गई, जिसे देख उस आदमी ने अपने होंठ भींच लिए। फिर उसने अपनी आँखें मूंद लीं और बेरहमी से अपने अंगूठे से उसके होंठों को रगड़ा, " लड़की, तुम्हें पता है कि यहाँ आकर तुम्हें क्या करना है, है न?"
उसके सवाल पर, अनामिका का चेहरा अचानक सख्त हो गया। बहुत देर तक चुप रहने के बाद, उसकी लगभग कर्कश आवाज़ में टूटी-फूटी सिसकियाँ फूट पड़ीं, "मैं... मैं जानती हूँ..."
"तो फिर, क्या तुम्हें अब भी मेरी सलाह की जरूरत है कि मैं तुम्हें बताऊं कि क्या करना है? मैने कहा ना... I'll be gentle.", उस आदमी की सीधी भौंहें फड़क उठीं और उसकी बर्फीली आवाज सुनाई दी।
अनामिका ने अपने निचले होंठ को जोर से काटा और उसकी आँखें भर आईं। फिर उसे लगा कि उसके होंठों के बीच से नमी की एक नमकीन और गांधीली डोरी बह रही हो, ये खून था और उसने खुद को ही घायल कर लिया था।
वह जानती थी कि वे सिर्फ़ अनुबंध के अनुसार काम कर रहे थे। वे एक दूसरे के साथ रिश्ते में नहीं थे, इसलिए उनकी अंतरंगता अनुबंध के तहत स्थापित की गई थी और कुछ नहीं। फिर भी, चाहे कुछ भी हो, वह इस अजीब स्थिति को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
उस आदमी ने उसे एक ठंडी मुस्कान दी। वह उसे अपने साथ घुलने-मिलने के लिए और समय नहीं देना चाहता था। उसके छोटे – छोटे हाथों को अपने बदले हथेली के बीच जकड़ कर, उसने उसके सिर के ऊपर धकेल दिया। उसके मुँह के कोनों में एक क्रूर मुस्कान उभर आई। जब उसने कहा, " मै बस तुमसे आज की रात मांगता हूं... और यकीनन हम आज के बाद नहीं मिलेंगे।"
अनामिका के चेहरे का भाव धीरे-धीरे सुन्न हो गया। फिर उसने निराशा में धीरे-धीरे अपनी आँखें बंद कर लीं। उस सख्श की बाँहें मुश्किल से उस नाजुक लड़की के कंधों पर बंधी और उसने अपना चेहरा उसकी गर्दन में छिपा लिया।
उस क्षण उसे पता चल गया कि वह पहले ही पाप की गहराइयों में जा चुकी है। वह आदमी उसके समर्पण से संतुष्ट हो गया और दोनो के बीच एक चीखती हुई खामोशी छा गई।
आप सब की समीक्षा पढ़ी मैने, थैंक यू इतना प्यार देने के लिए। मै खुश की लोग मेरे साथ है और मेरी कहनी पढ़ के आपको खुशी हुई। प्लीज इस पार्ट पर भी कमेंट याद से कर दे।
(क्रमशः)
अंतरंगता के सत्र में जब वो अपनी शिकायतें ना रोक सकी तो उस सख्त शरीर वाले आदमी ने उसके होंठो को कोमलता से चूम किया।
हालांकि, उस आदमी के लिए चुंबन एक वर्जित बात थी उसके लिए चुंबन का मतलब था कि वे परस्पर प्रेम में थे!उसने पहले कभी किसी महिला को चूमा नहीं था क्योंकि उसकी नज़र में सारी महिलाओं के होंठ गंदे और अयोग्य थे। उसके आस-पास रहने वाली महिलाएँ हमेशा समाज सेवी, अमीर परिवारों की लड़कियाँ या मशहूर हस्तियाँ होती थीं और उसने कभी भी उन तितलियों को नहीं छुआ था। हालाँकि, उसे नहीं पता था कि क्यों, लेकिन वास्तव में उसे इस लड़की को चूमने में झिझक ना महसूस हुई, शायद इसलिए क्योंकि वो उन लड़कियों से बहुत अलग थी और अनाड़ियों जैसे डरती थी।
सच कहें तो, उसने कभी नहीं सोचा था कि एक चुंबन की अनुभूति इतनी स्वादिष्ट भी हो सकती है।
आदमी ने अपनी आँखें थोड़ी सिकोड़ ली, क्योंकि बिस्तर पर कोमल और रोमांटिक भावनाएं फैली हुई थी, बिस्तर के हर एक सिलवट में उनके प्यार को खुश्बू बसी हुई थी, लेकिन वो यहां उस लड़की को यातना देने नहीं आया था और ना ही उसके प्यार में गिरफ्तार होने आया था।
इसलिए जब उनकी अंतरंगता समाप्त हुई, वो उठ कर बाथरूम में चला गया।
अंधेरे में अनामिका ने अपनी आँखें खोलीं। उसकी आँखों पर लाल रेशम का टुकड़ा पूरी तरह से ठंडे आंसू से भीगा हुआ था। वो बाथरूम से पानी बहने की आवाज़ सुन सकती थी। इसलिए, उसने अपने शरीर को थोड़ा सा हिलाया, लेकिन उसकी उंगलियों से तेज दर्द निकला। यह तब का दर्द था जब वे अपने अंतरंग सत्र में थे, उसकी उंगलियाँ बिस्तर के सिरों पर चिपकी हुई थीं। उसके नाखून इतनी जोर से दबाए गए थे कि वे उसकी उंगलियों के सिरों में धंस गए थे।
उसने खुद को तसल्ली देने के लिए शांत होने का नाटक किया। सब कुछ खत्म हो चुका था। सब कुछ खत्म हो चुका था.... उम्मीद है, बस यही एक बार उसे गर्भवती होने के लिए काफी हो। उसे बच्चे को जन्म देने तक इंतज़ार करना है और उसके बाद, वह पैसे लेकर अपने सामान्य जीवन में लौट सकती है।
अब आधी रात हो चुकी थी।
आदमी ने स्नान किया और कपड़े पहने। उसका लंबा और चौड़ा शरीर कमरे में खड़ा था, और यह बहुत ही प्रभावशाली था। उसकी आँखें भावहीन थीं। चाँदनी के नीचे, महिला ने खुद को सफ़ेद चादरों में लपेट लिया और साँस लेना जारी रखा। उसके चिकने शरीर पर आदमी के साथ गुजरें लम्हों के निशान बाकी रह गए थे, जो ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो बर्फ पर ब्लूबेल्स का फूल खिला हो।
अनामिका बिस्तर पर निश्चल पड़ी थी, उसका कोरा पीठ सामने था, उसका शरीर, जो मुड़ा हुआ था, कांप रहा था और पत्थर की तरह कठोर लग था। उसने उसकी और देखा उसके रेशमी, मुलायम बाल, अस्त-व्यस्त और पूरी तरह से पसीने में भीगे हुए, तकिये के किनारे पर अस्त-व्यस्त तरीके से लटके हुए थे।
उसने उसे गर्मजोशी से देखा और कुछ क्षण तक वहीं स्थिर खड़ा रहा, जाने क्यों वो उस लड़की को बाहों में लेकर सोना चाहता था, लेकिन अपना मन मार कर वो मुड़कर जाने लगा।
दरवाज़ा बंद होने की टकराहट सुनकर, अनामिका ने अपने कंधों को जकड़ लिया, उसकी आँखें सूजी हुई थीं, लेकिन वह एक छोटी सी चीख भी नहीं निकाल पाई, भले ही उसका दिल अंदर ही अंदर चीख क्यों ना रहा हो।
कुछ ही देर बाद उसे बाहर से कार के इंजन चालू होने की आवाज सुनाई दी।
गाड़ी दूर तक चली गई, और आगे बढ़ती गई, जब तक कि इंजन की आवाज़ कम नहीं हो गई। उसे यकीन नहीं हुआ कि वह चला गया है, वह अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। उसने तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं और दिल खोलकर रोने लगी।
इस अपरिचित समुद्र तटीय विला में, उसने अपना शुद्धतम स्वरूप एक अनजान पुरुष को पूरी तरह सौंप दिया।
पहले तो वह सोचती रही कि उसने उसे क्यों चुना। कुछ सोचने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंची कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वह एक आम नागरिक है और भविष्य में वह बच्चे की कस्टडी के लिए लड़ने में असमर्थ होगी।
उसे नहीं पता था कि क्या यह सही है और उसे अपने पिता से यह बात कब तक छिपानी चाहिए। उसके परिवार की स्थिति ने उसे एक कोने में धकेल दिया था और वह अपनी बुद्धि के अंतिम छोर पर थी, लेकिन उसे इस बात का कोई अफसोस नहीं थाम सटीक रूप से कहें तो वह इस बात पर पछतावा करने की स्थिति में नहीं थी।
किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा हो, गर्व नाम की यह चीज बहुत बड़ी विलासिता होगी, जो अब उसमें नहीं बचा था।
इसके अलावा, एक गोद ली हुई बच्ची के रूप में.. पिछले कुछ सालों से, उसके पिता ने हमेशा उसके साथ वैसा ही व्यवहार किया था जैसे वह उसका अपना खून हो।
उसकी दत्तक माँ और बहन उसे पसंद नहीं करती थीं, फिर भी उसे जीवन में किसी चीज़ की कमी नहीं थी। इसलिए, वह पहले से ही इसके लिए बहुत आभारी थी। अब जब आर्थिक संकट ने उसके परिवार को बहुत मुश्किल में डाल दिया था, तो उसे किसी तरह उनकी दयालुता का बदला चुकाना था।
वह अभी किसी और बात के बारे में सोचना नहीं चाहती थी। इसलिए सोने की कोशिश करने लगी और वास्तव में उसे कुछ जी देर में नींद आ गई।
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भोर हुई, सूरज की किरणें खिड़की के पर्दों से छन कर सीधे उसके चेहरे पर गिर रही थी। जिससे उसकी नींद खुल गई।
फिर अनामिका ने सावधानी से खुद को बिस्तर पर बैठाया और धीरे से अपनी आँखों को ढंकने वाले लाल रेशम के टुकड़े को हटाया। उसने खुद को बर्फीली सफ़ेद चादरों से ढक लिया और खिड़की के पास जाकर पर्दे को एक ओर टरका दिया।
हालाँकि, सूरज की किरणें आरामदायक और गर्म लग रह यह, लेकिन उसके दिल में चमक भरने में असमर्थ थीं।
तभी बाहर से तेज़ कदमों की आवाजें आई और अचानक दरवाजा पूरी तरह से खुल गया।
चौंककर अनामिका ने पीछे मुड़कर देखा, तो एक गरिमामयी और आकर्षक महिला अंदर आई और गुस्से से भरे चेहरे के साथ उसकी ओर आने लगी, आज्ञाकारी ढंग से उसके बगल में चल रही सचिव थी जिसके साथ उसने सरोगेसी अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे।
आप सभी के स्पोर्ट के लिए शुक्रिया। मैं सच में आप सभी की आभारी हूं। पढ़ने वाले प्लीज़ एक बार कहानी शेयर भी कर दीजिए। ताकि मेरे भी रीडर्स बढ़ जाए।
(क्रमशः)
महिला उसके पास आई। स्थिर खड़ी, ऊँची और शक्तिशाली नज़रों से देखती हुई, उसने घृणा से उसे सिर से पैर तक देखा। एक बार जब उसकी नज़र उसके शरीर पर उन फूलों की तरह बने निशान पर पड़ी, तो वह स्तब्ध रह गई।
अनामिका ने उत्सुकता से अपने शरीर को कम्बल से और अधिक कसकर ढक लिया, लेकिन यह उसकी गर्दन पर प्रेम के निशान को छिपाने में असमर्थ था।
ईर्ष्या और क्रोध उस औरत की आँखों में चुभ रहे थे, जिसे उसने खुद में बंधने की कोशिश नहीं की और गुस्से से बोली. "तो...तुम... तुम वो सरोगेट हो?!"
अनामिका ने उसकी तल्ख आवाज सुनी, फिर भी शांति से बोली, "हाँ... और आप कौन ..."
अनामिका का सवाल खत्म भी नहीं हुआ था कि अगले ही पल उस औरत ने उसे धक्का दे कर फर्श पर गिरा दिया।
"तुम डायन हो, तुम... तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई... तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई..." महिला ने गुस्से से अपने बाल पकड़ लिए, क्योंकि उसके चेहरे का रंग उड़ गया था और वो पागलों की तरह चिल्ला रही थी, "यह मत सोचो कि उसके बच्चे को जन्म देकर, तुम इसका इस्तेमाल स्टेटस पाने के लिए कर सकती हो! मैं तुम्हें चेतावनी देती हूँ, मैं उसकी मंगेतर हूँ और तुम सिर्फ एक सरोगेट हो! ऐसी चीज़ की लालसा करना भी मत जो तुम्हारी नहीं है, समझी, मुझे तो ये बच्चा चाहिए भी नहीं था...पता नहीं उन दोनो बाप बेटे को बच्चे की तलब क्यों है?"
अनामिका चकित रह गई। वह उलझन में बोली, "मैंने कॉन्ट्रैक्ट पर साइन किए हैं, और में शर्तों के बारे में जानती हूँ! मैं अपनी जगह जानती हूँ, फिर आप मुझसे गुस्से में बात क्यों कर रही हैं? और मुझे धक्का क्यों..!"
"यह अच्छा है कि तुम समझती हो!"। बोलते समय उस औरत की छाती फूल गई। हालाँकि वह गहराई से जानती थी कि अगर वह बाँझ ना होती, तो यह लड़की कभी भी इस देश के सबसे धनी परिवार के उत्तराधिकारी को जन्म नहीं देती। हालाँकि, जब उसे याद दिलाया गया कि उसका होने वाला पति शिवार्थ रघुवंशी और वो सरोगेट पूरी रात एक साथ चादरों में उलझे रहे, तो वह ईर्ष्या से भड़क उठी!
"तुम्हारी बेहतर होगा कि तुम इस बार में ही गर्भवती हो जाओ! यह भी मत सोचना कि वह तुम्हें फिर से छुएगा!" उसने कड़वाहट से कहा और चली गई।
अनामिका ज़मीन पर गिरी पड़ी थी, ऐसा लग रहा था उसकी आत्मा उसके शरीर से निकल गई हो। सचिव ने जल्दी से उसे उठाया, "उठो! फर्श ठंडा है! तुम्हारी हेल्थ इंपार्टेंट है!"
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दो महीने बाद........
रघुवंशी परिवार के निजी अस्पताल में सचिव को जांच रिपोर्ट मिल गई।
सात सप्ताह की गर्भवती। उसकी हालत स्थिर थी। यह एक जैसे जुड़वाँ बच्चों की जोड़ी थी, जिसके साथ वो गर्भवती हुई थी।
उसने अपना फोन निकाला और शिवार्थ रघुवंशी के सहायक को सारी बात बताई। अनामिका जांच कक्ष से बाहर आ गई। जांच रिपोर्ट से उसे कोई मतलब नहीं था। वह अब किसी के नियंत्रण में एक लकड़ी की कठपुतली की तरह हो गई थी।
किसी भी मामले में, उसने वही किया जो उसे करना था और उन्होंने जो कुछ भी तैयार किया था, उसके अनुसार काम किया। उसे किसी और चीज़ की चिंता करने की ज़रूरत नहीं थी।
सचिव उसके पास आया। उसे हल्की मुस्कान देते हुए उसने सांत्वना दी। " मिस अनामिका, अब आपकी हालत बहुत अच्छी है। ज़्यादा घबराएँ नहीं। आपको किसी और चीज़ की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। कृपया इन कुछ महीनों के लिए बच्चों की देखभाल करने के लिए विला में ही रहें। अगर आपकी कोई ज़रूरत है, तो प्लीज मुझे बताएँ।"
अनामिका ने ऊपर देखा और बुदबुदाई, "मैं अपने पिता से मिलना चाहती हूँ।"
दो महीने पहले, उसने बिना अलविदा कहे बस एक नोट छोड़ दिया था। जिससे अनामिका को अपने पिता की चिंता हो रही थी और शायद उन्हें भी उसकी चिंता हो रही होगी!
सेक्रेटरी ने घबराते हुए कहा, "यह... बॉस ने निर्देश दिया है कि आपको बाहर ना जाने दिया जाए।
"मैं बस एक बार अपने पिता से मिलना चाहता हूँ। मेरी और कोई इच्छा नहीं है। क्या तुम इतना भी नहीं कर सकते?", अनामिका की विनती भरी नज़र से, सचिव ने आखिरकार नरमी दिखाई। "ठीक है!"
यह तय करना उसके लिए शुरू में मुश्किल था। अनुबंध के अनुसार, अनामिका को बाहर जाने से मना किया गया था। हालाँकि, इस बेचारी लड़की को देखकर, जो इतनी कम उम्र में सरोगेट बन गई थी, उसने सोचा कि उसे घर पर कुछ मुश्किलें होंगी। इसलिए, सीईओ की सहमति के बिना, उसने उसके पिता से मिलने का समय तय किया।
उन्होंने शहर के केन्द्र में एक कैफे में मिलने का प्रबंध किया।
जैसे ही, अनामिका के पिता को संदेश मिला, वे निर्धारित समय से तीस मिनट पहले पहुँच गए। वे निजी कमरे में बैठे, अपनी सीट पर बेचैनी महसूस कर रहे थे। जब अनामिका अलविदा कहे बिना चली गई, तो उन्हें उसकी इतनी चिंता हुई कि वह कई रातों तक बिना सोए रहें। बिस्तर से झगड़ते रहें और इधर-उधर करवटें बदलतें रहें। हालांकि उनकी पत्नी बार – बात एक ही बात कहती की वो किसी आदमी के साथ भाग गई होगी।
उनका परिवार टूट रहा था। जब परिवार बहुत मुश्किल में था,तो आशीष सारंग अपनी गोद ली हुई बेटी के बारे में कुछ नहीं जानते थे, हालाँकि, जब अगले दिन उसके बैंक खाते में रहस्यमयी तरीके से भरी रकम जमा हुआ, तो उन्होंने मान लिया था कि अनामिका ने कुछ बड़ा फैसला लिया है, लेकिन वो क्या था, यह अभी भी रहस्य बना हुआ था।
आशीष सारंग अपने ख्याल में खाए हुए ही थे कि तभी कमरे का दरवाजा खुला और अनामिका अंदर आ गई।
"अनामिका!", वह उसके पास एक चिड़चिड़े भाव के साथ गया। उन्होंने उसके कंधों को पकड़ा और उसे सिर से पैर तक जांचा। "तुम पिछले दो महीनों से कहां थी? क्या तुम्हें पता है कि मैं इस पूरे समय कितना परेशान था? "
शर्मिंदगी महसूस करते हुए, अनामिका ने अपने पिता की तरफ देखा। सिर्फ दो महीने ही बीते थे, फिर भी उनके सारे बाल सफेद हो चुके थे, और चेहरे पर झुर्रियाँ और भी उभर आई थीं। वो कई दिनों तक उसके बारे में चिंतित रहे। कंपनी में ढेर सारे दस्तावेज़ों को समेटते हुए और अपने खाली समय में उसे ढूंढते हुए, बेशक उन्होंने अपना ख्याल नहीं रखा होगा।
"बाबा, मेरी चिंता मत करो। में बिलकुल ठीक हूँ.", अनामिका ने आश्वासन दिया। उसने उन्हें बैठने में मदद की और फिर पूछा, "कंपनी कैसी चल रही है? "
" तो क्या तुमने वो पैसे जमा किए थे?", आशीष सीधे मुद्दे पर आ गए।
अनामिका स्तब्ध थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें क्या जवाब दे। वह एक पल के लिए घबरा गई, फिर जल्दी से भाव बदल लिया। उसने उनके हाथ के पिछले हिस्से को कस कर पकड़ लिया, "ओह, मेरी बच्ची। मुझे सच बताओ। मुझसे झूठ मत बोलो। मुझे फिर से तुम्हारे बारे में टेंशन मत करवाओ, ठीक है?"
कहते हुए मिस्टर आशीष सारंग को अचानक कुछ भयानक याद आया, सीधे बैठते हुए, उन्होंने जल्दी से पूछा, "क्या तुमने कोई मूर्खतापूर्ण काम किया है? कुछ ऐसा जो शर्मांक हो?"
अनामिका का सिर झुका हुआ और कुछ न बोलते देख आशीष सारंग ने उसके चेहरे से सुराग ढूँढने की कोशिश की, लेकिन वह व्यर्थ रहा। उसने संदेह से दरवाज़े की ओर इशारा किया, "अभी वह महिला कौन थी?!"
अनामिका बहुत देर तक चुप रही। आखिरकार, कीड़े की भिनभिनाहट जैसी धीमी आवाज़ में उसने कबूल किया, "मैं... मैं सरोगेट बन गई हूँ...."
कमरे में अचानक सन्नाटा छा गया।
उसकी पुतलियाँ सिकुड़ गई और आशीष सारंग अविश्वास से उसे घूरने लगा। "तुम... तुम ऐसा कैसे कर सकती हो..."
"बाबा..।"
जैसे ही अनामिका ने धीमी आवाज में उन्हें पुकारा, आशीष सारंग ने गुस्से में उसे एक जोरदार थप्पड़ मार दिया, थप्पड़ के पीछे की ताकत से उसका चेहरा एक तरफ़ मुड़ गया। एक अचंभे में, उसने अपने जलते हुए गालों को छुआ क्योंकि उसने अपने पिता को गुस्से से सवाल करते हुए सुना, "तुम खुद को इस तरह से क्यों गिरा रही हो?! सरोगेट..तुम्हे किसने कहा था ये करने को? आखिर तुमने अपनी जिंदगी बर्बाद क्यों की?"
वह अभी भी बहुत छोटी थी, खिलती उम्र में, लेकिन वह वास्तव में सरोगेट बनने के लिए चली गई। क्या उसे पता था कि इससे उसकी ज़िंदगी किस तरफ चली जाएगी?
उसकी नज़र में, एक पिता के रूप में, क्या वह सचमुच इतना बेकार था कि अपनी बेटी की रक्षा करने में असमर्थ रहा?
"में इस पैसे का एक पैसा भी नहीं छूऊंगा! मुझे, यानी आशीष सारंग को, इस हद तक जाने की ज़रूरत नहीं है!"
जब उनकी बात समाप्त हुई तो वे गुस्से में अपनी सीट से उठ खड़े हुए और कमरे से बाहर चले गए।
अनामिका ने अपना सिर नीचे कर लिया, और अपने कपड़ों के किनारे को कसकर पकड़े बस खड़ी रखी...।।।
उम्मम कॉमेंट रेटिंग्स और प्यार के लिए मैं धन्यवाद देना चाहती हूं, जितने लोग भी इसे पढ़ रहे हैं। उन्हें 🫡, प्लीज आगे भी ऐसे ही साथ देते रहें।
(क्रमशः)
छह महीने बाद....
अनामिका सचिव के साथ विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करने के लिए कागजात तैयार करने गई थी। रास्ते में उसे अचानक पेट में तेज दर्द महसूस हुआ जो कम नहीं हो रहा था।
पिछले कुछ महीनों से बेचैन अनामिका को अचानक समय से पहले प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। वे समय पर रघुवंशी परिवार के निजी अस्पताल नहीं पहुंच पाए, इसलिए सचिव ने जल्दी से उसे शहर के एक स्त्री रोग अस्पताल में पहुंचाया और शांति से आवश्यक प्रक्रियाएं पूरी कीं।
अनामिका बिस्तर पर लेटी हुई थी, उसका चेहरा भयानक रूप से पीला पड़ गया था। जब उसने ऊपर देखा, तो एक गरमागरम लैंप की रोशनी लगातार उसकी आँखों के सामने चमक रही थी। भयंकर दर्द के कारण, वह ठंडे पसीने से तरबतर हो गई। आठ महीने की गर्भावस्था के बाद, वह आखिरकार मां बनने वाली। सचिव उसके साथ प्रसव कक्ष की ओर गया, लगातार उसे प्रोत्साहन के शब्द देती रही, "मिस अनामायक, डरिए मत! आप और बच्चे बिल्कुल ठीक रहेंगे। मैं खुशखबरी के लिए बाहर इंतज़ार कर रही हूं।"
कम उम्र की अनामिका, प्रसव पीड़ा से लगभग टूट चुकी थी, उसे ये दर्द सहा नहीं जा रहा था और मन में डर भी था, क्योंकि ये उसका पहला बच्चा था और उसके साथ अपना कोई नहीं था।
अनामिका ने अपनी आंखें बंद कर लीं, जैसे ही उसे प्रसव कक्ष में धकेला गया, दरवाजे उसके पीछे बंद हो गए।
अस्पताल के निदेशक अनामिका के पिता आशीष सारंग से परिचित थे। जब उन्हें पता चला कि बच्चे को जन्म देने वाली महिला अनामिका है। तो डॉक्टर ने तुरंत उनसे संपर्क किया। संदेश मिलते ही आशीष सारंग अस्पताल पहुंचे और प्रसव कक्ष के बाहर बेसब्री से इंतजार करने लगे।
चार घंटे बाद कमरे से एक गूंजती हुई चीख सुनाई दी।
"यह एक स्वस्थ बच्चा है।", नर्स ने बच्चे को इनक्यूबेटर में रखा और उसे नवजात शिशुओं के लिए बने नर्सरी रूम में भेज दिया। आशीष सारंग को बच्चे की कोई परवाह नहीं थी। वह इधर-उधर चहलकदमी करता रहा और प्रसव कक्ष के बाहर इधर-उधर देखता रहा। उसे फिक्र थी तो सिर्फ अपनी बेटी अनामिका की, जो मासूम सी उम्र में दो बच्चों की मां बनी थी।
सचिव नर्सरी रूम की ओर चली गई। कांच की खिड़की के दूसरी तरफ से नवजात शिशु का निरीक्षण करते हुए, उसने पूछा, "दूसरे बच्चे के बारे में क्या?"
नर्स ने क्षमा मांगते हुए कहा, "हमे अफसोस है। चूंकि यह समय से पहले हुआ, इसलिए छोटा बच्चा बहुत कमज़ोर है। जब वह बाहर आया, तो वह साँस नहीं ले रहा था...."
सचिव का चेहरा सदमे से कठोर हो गया और उसने पूछा, "क्या कोई उम्मीद नहीं है?"
नर्स ने स्पष्ट रूप से कहा. " ऐसा लगता तो नहीं।"
वह निराश थी, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकती थी, "ठीक है। प्लीज इस बच्चे का ख्याल रखें।"
जब उसकी नर्स से बात हो गई, तो उसने अपने कुछ लोगों से एम्बुलेंस भेजने के लिए फोन उठायाः उसका इरादा नवजात शिशु को रघुवंशी के निजी अस्पताल में स्थानांतरित करने का था।
जाने से पहले उसने एक चेक भरा और उसे अनामिका के पिता आशीष सारंग को थमा दिया। फिर विनम्रता से कहा, " मिस्टर सारंग। आपकी बेटी पिछले कुछ महीनों से बहुत परेशान है। यह बकाया भुगतान है। प्लीज इसे एक्सेप्ट करें!"
आशीष सारंग ने चकित होकर उससे चेक लिया। फिर सचिव जल्दी से वहाँ से चली गई।
प्रसव कक्ष के अंदर, अनामिका की सारी ऊर्जा समाप्त हो गई और वह बेहोश हो चुकी थी।
नर्स उसके पास गई और मृत शिशु को संभालने वाली थी। लेकिन, जैसे ही उसने उसे उठाया, उसने कुछ अजीब महसूस किया। या बच्चे की पुतलियाँ हिलने लगीं और उसका चेहरा एकदम बदल गया। वह घबराकर बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास भागी, "डॉक्टर..डॉक्टर..!"
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छह साल बाद....
समय बीतता गया।, साल के साल और महीने बीतता गए और सभी अपने जिंदगी में उलझे रहे।
गोवा के डिपार्टमेंटल स्टोर में भीड़-भाड़ के बीच, बास्केट को धक्का दे रही अनामिका बेचैनी से इधर-उधर देख रही थी। उसके कदम तेज़ थे।
वह बस कुछ लेने के लिए दैनिक आवश्यक वस्तुओं के खंड में गई थी। हालांकि, जब उसने पीछे देखा, तो वह छोटी सी आकृति कहीं गायब हो चुकी थी, जो अभी उसके पीछे ही था। पर अब कहीं नहीं मिल दिख रहा था।
खिलौनों के सेक्शन से गुज़रते हुए, उसने अपनी गति धीमी की और पूरे क्षेत्र को देखा। अचानक, उसकी नज़र एक छोटी सी आकृति पर पड़ी। अनामिक ने असहाय होकर आहें भरने से पहले कंधे उचका दिए। उसके मुँह के कोने सिकुड़ गए और वह खुद से ही हँसने लगी। फिर उसने बास्केट को उस दिशा में धकेल दिया और आकृति के पीछे झुक गई।
एक छोटा लड़का टॉय रैक के सामने खड़ा था, उसकी नज़र एक खूबसूरत ढंग से लिपटी रिमोट कंट्रोल रेसिंग कार पर थी। वह बहुत छोटा लग रहा था, लगभग पाँच या छह साल का। उसने साफ-सुथरी स्कूल यूनिफॉर्म पहनी हुई थी जो उसके पतले शरीर के हिसाब से थोड़ी बड़ी थी।
चिकने, रेशमी, काले-काले बाल, ढूंढ के ऊपर जमी मलाई जैसी त्वचा, सुंदर विशेषताओं वाला खूबसूरत चेहरा और गुलाबी गाल वह बहुत प्यारा लड़का था!
उसके पास बड़ी, चमकती हुई दो आँखें थीं, जो कभी-कभी चमक उठती थीं, साफ़ और सुंदर। उसकी गहरी-गहरी आँखें मोटी। घुंघराले पलकों से घिरी हुई थीं जो काले फीनिक्स के दो पंखों की तरह थोड़ी ऊपर उठी हुई थीं। उसकी नाक छोटी सी थी और पतले होंठ गुलाबी रंग के दिखाते थे।
यह आकर्षक और प्यारा सा बच्चा बिल्कुल एक नन्हे फरिश्ते की तरह लग रहा था। हालाँकि, अभी, इस नन्हे फरिश्ते के चेहरे पर एक गंभीर भाव था, जो एक वयस्क की परिपक्वता को दर्शाता था।
"3500 हजार... बहुत महंगे हैं...यहां तो सारी चीजों में पैसे की आग लगी हुई है।" युवा आवाज़ में एक गंभीर स्वर था, जो उसकी उम्र के साथ कुछ हद तक असंगत था। वह एक बूढ़े आदमी की तरह था; जिस तरह से उसने अपनी भौंहें सिकोड़ीं और उंगलियों से गिनना शुरू किया वो अद्भुत लग रहा था। फिर उसने परेशानी में आह भरी और उसके कंधे झुक गए, जैसे कि सारे बोझ उसके ही कंधे पर हो।
(क्रमशः)
अनामिका उसके उदास व्यवहार पर बेबस होकर हँसी, फिर भी उसका दिल थोड़ा कड़वा था। उसने अपने होंठ सिकोड़े और अपना हाथ बढ़ाकर उस छोटे बच्चे के कंधे को थपथपाया। छोटा लड़का, चौंककर, घूम गया। यह महसूस करते हुए कि यह उसकी मां थी, उसका चेहरा अजीब तरह से लाल हो गया। "मम्मी...."
"माँ तुम्हें बहुत देर तक ढूँढती रही! क्या मैने तुमसे नहीं कहा था कि तुम मेरी बात मानोगे और और इधर-उधर नहीं भागोगे?"
अनामिका ने नाराज होने का नाटक किया, और छोटे लड़के को स्पष्ट रूप से अधिक अपराधबोध महसूस कराया। जिसके अगले ही पल बच्चे का छोटा हाथ सावधानी से अनामिका के गर्दन में लिपट गया,अपनी पलकों को थोड़ा झुकाते हुए, वह लगातार अपनी बड़ी-बड़ी आँखें झपकाता हुआ बुदबुदाया, "मम्मी, नाराज़ मत हो... आप, अब इधर-उधर नहीं जाऊंगा।"
"गुड बॉय... ओजस!", वह घुटनों के बल बैठी हुई थी और उसे गले लगा लिया। फिर आहिस्ते से पूछा, "तुम क्या देख रहे हो?"
ओजस ने सहज रूप से रेसिंग कार की ओर इशारा किया, लेकिन, जैसे कि उसे कुछ याद आ गया हो, उसने जल्दी से अपनी छोटी उंगलियाँ वापस खींच लीं। फिर उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया और उदासीनता का दिखावा किया। "मम्मी, मै सिर्फ़ देख रहा था, मुझे वो सच में नहीं चाहिए।"
उसने शायद यह कहा हो, लेकिन उसकी नज़रें जो उस खूबसूरत रिमोट कंट्रोल रेसिंग कार पर ही टिकी हुई थी, उन्होंने उसे पूरी तरह बेनकाब कर दिया।
उसकी अभिव्यक्ति ठंडी पड़ गई। वह अभी भी बहुत छोटा था, फिर भी उसने अपनी इच्छा के विरुद्ध बोलना सीख लिया था। वह जानती थी कि ओजस वास्तव में वह कार चाहता था, लेकिन वह उसे पैसे बचाने में मदद करने की कोशिश कर रहा था। यही कारण था कि वह कठोर दिखावा करने से बाज नहीं आता था।
वह हँसी और उसके छोटे से सिर को थपथपाया। वह खड़ी हुई और काउंटर पर गई, कैशियर को रेसिंग कार की ओर इशारा किया। ओजस ने खिलौने पर अपनी नज़र टिकाई और फिर से अनामिका को देखा। जैसे कि उसे अंदाजा हो गया हो कि क्या होने वाला है, उसकी आँखें चमक उठीं और उत्साह से भर गईं। वह काउंटर की ओर भागा और उस खूबसूरती से पैक किए गए खिलौने को देखने लगा जो अब कैशियर के हाथों में था, एक बार भी उसने उस कार से अपनी नज़रें नहीं हटाई।
कैशियर ने रेसिंग कार को काउंटर पर रखा ताकि उसका बारकोड स्कैन कर सके। छोटे लड़के ने अपना हाथ काउंटर पर रखा और उत्सुकता से अपने पंजों के बल पर कार के किनारे पर मँडराता रहा, उसके छोटे से चेहरे पर संतुष्टि का भाव दिख रहा था।
अनामिका उसके पीछे-पीछे चली गई। उसकी चमकीली मुस्कान देखकर वह बहुत भावुक हो गई थी। अगर वह अपने बच्चे की छोटी-सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकती, तो वह अच्छी माँ कहलाने की हकदार नहीं है।
इन सभी वर्षों में, वह इस बच्चे के प्रति बहुत अधिक ऋणी थी।
छह साल पहले, उस आदमी के लिए, उसने जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया। चूँकि वे समय से पहले जन्मे बच्चे थे, इसलिए जब वे पैदा हुए, तो दोनों काफी कमज़ोर थे। ओजस की स्थिति और भी खराब थी। जब वे उसके गर्भ में थे, तो ओजस के भाई ने बहुत ज़्यादा पोषण ले लिया था, और, परिणामस्वरूप, जब वें पैदा हुए तो ओजस साँस नहीं ले पा रहा था।
आशीष सारंग ने उसे बताया कि जैसे ही बड़ा बच्चा बाहर आया, उसे तुरंत नवजात शिशुओं के लिए नर्सरी वार्ड में लाया गया और, जल्द ही, दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया। उसी समय, नर्स, जिसने उसके बच्चों को जन्म दिया था, ने एक अप्रत्याशित खोज की। ओजस जिसे जन्म के समय मृत घोषित कर दिया गया था, उसकी साँस में हल्की सी आवाज़ आ रही थी!
काफी इलाज के बाद, नवजात शिशु को अंततः मृत्यु के कगार से बचा लिया गया। हालाँकि, उसका शारीरिक गठन बहुत कमज़ोर था, और वह हमेशा बीमार रहता था। उसका प्यार बेचारा बच्चा जन्म से ही पिताहीन भी रहा। इसकी भरपाई करने के लिए, अनामिका ने उसे अपनी पूरी ताकत से प्यार किया, किन्तु शायद वो उसके जिंदगी में पिता की कमी कभी पूरा ना कर पाई।
जहाँ तक शिवार्थ की बात है, बच्चे के बारे में उससे ये रहस्य छुपाने में मिस्टर आशीष ने मदद की। उसके पिता का उस अस्पताल के निदेशक के साथ बहुत अच्छा रिश्ता था, इसलिए ये बात आसानी से छुपा दी गई कि शिवार्थ रघुवंशी का दूसरा बेटा जिंदा है।
बच्चे को जन्म देने के बाद, वह अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए कॉलेज लौट आई। आखिरकार, उसके पिता की कंपनी इतनी कोशिशों के बाद भी डूब गई, और बाद में, उसने अदालत में दिवालियापन के लिए अर्जी दायर की। शिवार्थ के दिए हुए पैसे से उसने अपने पिता का कर्ज उतर दिया और अब सब कुछ नदी के पानी जैसा शांत ही गया था।
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डिपार्टमेंटल स्टोर से बाहर निकलते समय दोनों को बाहर की तेज धूप का सामना करना पड़ा।
छोटा लड़का अपने हाथ में खिलौना थामे अनामिका पीछे-पीछे चल रहा था, अनामिका थोड़ा जल्दी चल रही थी, जिससे ओजस ने अपना छोटा सा चेहरा उठाया और धीरे से चिल्लाया, "मम्मी...."
अनामिका ने पलटकर देखा। उसने देखा कि उसका पूरा चेहरा चमकीला लाल था, उसकी आँखें और भौंहें थक कर झुक गई थी। उसने चिंता में अपनी भौहें सिकोड़ लीं। "क्या हुआ, ओजस? क्या तुम बीमार महसूस कर हो?"
ओजस की भौंहें सिकुड़ गईं, उसने अपने हाथ उसकी ओर बढ़ाए और शर्मीले अंदाज़ में कहा, "मम्मी, बहुत गर्मी है... बहुत गर्मी है। मै अब और नहीं चल सकता!"
अनामिका उसके शब्दों से दंग रह गई और नीचे झुकते ही मुस्कुराने से खुद को रोक नहीं पाई। जब ओजस ने यह देखा, तो उसकी आँखें खुशी से मुड़ गईं। उसने अपनी जीभ को चंचलता से बाहर निकाला और उसके कंधों पर कूद गया। अनामिका ने उसे मजबूती से पकड़ लिया और खड़ी हो गई।
संतुष्ट होकर, ओजस उसके कंधों से लिपट गया, उसका छोटा सा चेहरा उसकी ओर दबा हुआ था। स्नेह भरे स्वर में उसने पूछा, "मम्मी, क्या आप थक गई हैं?"
"बिल्कुल।", अनामिका ने कहा।
"अच्छा, जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो आपको अपने पीठ पर उठा लूंगा।", ओजस ने अपने चेहरे को आगे बढ़ा कर अपनी मां के गाल चूम लिए।
मां और बेटे ने हंसते हुए एक-दूसरे का सिर टकराया और खुशी-खुशी वहां से चले गए।
वहीं एक विस्तारित BMW कार सड़क के किनारे खड़ी है। इसकी खिड़की से एक छोटा लेकिन सुंदर दिखने वाला चेहरा देखा जा सकता था।
लड़का आलसी ढंग से सीट पर लेटा हुआ था, उसका एक हाथ उसके गाल के नीचे था। वह लगभग छह साल का लग रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर एक परिपक्वता थी, जो उसकी उम्र के साथ असंगत थी। वह खिड़की से अनामिका और ओजस के आनंदमय दृश्य को भावहीनता से देख रहा था। उन्हें यूं लाड़ लड़ाते देख, उसके अंदर कुछ हलचल महसूस हुई, उसे भी मां का ऐसा ही प्यार चाहिए था।
उसका दिल थोड़ा दुख रहा था। यह कड़वा और थोड़ा खट्टा था। इसके तुरंत बाद, उसे अकेलेपन का एहसास हुआ, जो उसके छोटे से हृदय को अनंत की धकेल रहा था।
समीक्षा करना ना भूले..मै आपके समीक्षा के इंतजार में अपनी पलकें बिछाएं बैठी रहती हूं।
उसने अपनी आँखें थोड़ी-सी सिकोड़ी और जब वह माँ-बेटे की जोड़ी को और नहीं देख पाया, तो उसने तुरंत उन्हें नीचे लटका दिया, ताकि उनमें थोड़ी देर के लिए दिखाई देने वाला अकेलापन छिपा रहे। अपना ध्यान वापस अपनी गोद में रखे लैपटॉप पर केंद्रित करते हुए, उसने अपने आधे-अधूरे होमवर्क को देखा। उसे कुछ झल्लाहट महसूस हुई और उसने लैपटॉप बंद करने का फैसला किया।
सूट पहने एक मध्यम आयु वर्ग के व्यक्ति ने सावधानीपूर्वक कार का पिछला दरवाजा खोला और उस लड़के के लिए खरीदी गई मिठाई दिखाई।
"बाबा, आपकी केक।", व्यक्ति ने सावधानीपूर्वक पैकेजिंग खोली और कांटे के साथ केक उसे दे दिया।
लड़के ने उन्हें उदासीनता से स्वीकार किया। स्वादिष्ट केक को घूरते हुए, उसे वही लड़का याद आ रहा था, जो अपनी मां के साथ खुश था, जिससे उसकी भूख मर गई और अब वो केक भी उसे खाने का दिल नहीं कर रहा था।
"नहीं खाऊंगा।" उसने अचानक केक एक तरफ रख दी और ठंडे स्वर में आदेश दिया, "चलो चलें।"
अंकल, नीरज उसे खाली आँखों से घूरते रहे। उन्होंने साफ-सफाई की और बचा हुआ केक सड़क के किनारे कूड़ेदान में फेंक दिया, और गाड़ी में चढ़ गए।
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रात के नौ बजे ×××××××
आर. जी ग्रुप, सीईओ के ऑफिस में खिड़की के पास एक आदमी खड़ा था, उसका शरीर लंबा और दुबला-पतला था। 1.89 मीटर की ऊँचाई के साथ, उसकी उपस्थिति बहुत प्रभावशाली थी।
वह भावशून्य होकर दूर तक, शहर के हलचल भरे रात्रि दृश्य को, हल्की-सी सिकुड़ी हुई भौंहों के साथ देख रहा था।
तभी एक लड़की, जिसका नाम कृति था, उसने धीरे से दरवाज़ा थोड़ा खोला और देखा कि वह व्यक्ति चुपचाप खिड़की के पास खड़ा था। उसे देखते हुए वो अंदर आई और धीमे से बोली, " शिवार्थ...।"
शिवार्थ उसकी आवाज पर हिला तक नहीं, मुड़ना तो दूर की बात थी। किसी बाहरी व्यक्ति की नज़र में, वह आर.जी ग्रुप की भावी मालकिन थी। कौन जानता था कि शिवार्थ और वह सिर्फ़ नाम के लिए प्रेमी जोड़े थे, असल में नहीं? यह आदमी उसके प्रति बहुत ठंडा था। वो कभी उससे मुहब्बत की बातें नहीं करता था और ना ही एक मंगेतर की तरह प्यार करने की कोशिश करता था।
कृति ने अपना हैंडबैग हल्के से सोफे पर रखा और धीरे से उसके पीछे चली गई। उसने अपनी बाहें फैलाकर उसके तंदुरुस्त शरीर को धीरे से सहलाया और अपना चेहरा उसकी चौड़ी, मजबूत पीठ पर टिका दिया।
"शिव..."
शिवार्थ की आँखें फिर से दूर केन्द्रित हो गईं। उसने अपना चेहरा झुकाया और अपना संयम बनाए रखा। चांद की रोशनी में, उसका चेहरा उभर कर सामने आ रहा था, जो बेहद आकर्षक थी। उसकी भौंहें सुंदर थीं और जबड़ा छोटा था। उसके चेहरे का सबसे अच्छा हिस्सा उसकी आकर्षक, गहरी, बादाम के आकार की आँखें थीं, जिनकी पुतलियाँ ओब्सीडियन की तरह गहरी थीं, जो कई लोगों के दिल और आत्मा को झकझोर सकती थीं।
यह एक सुंदर और परिपक्व व्यक्ति था। उसकी सुंदरता सिर्फ़ दिखावटी नहीं थी; हालाँकि उसका ठंडा चेहरा सुंदर दिखता था, लेकिन वह एक सम्राट की सहज आभा समेटे हुए था.. घमंडी और दबंग, स्वाभाविक रूप से परिपूर्ण।
उसकी ठंडी प्रतिक्रिया से ऊब कर कृति ने खुद ही बात शुरू की और कहा, " दादा जी ने मुझे यहां भेजा, ये पूछने के लिए कि क्या तुम कल रघुवंशी विला जाओगे?"
शिवार्थ की भौंहें हल्की-सी सिकुड़ गई और उसके होठों से एक उदासीन आवाज़ निकली. "नहीं।", फिर वो मुड़ा और कृति के चेहरे पर फीकी मुस्कान देखी और अपने काम के मेज पर लौट गया।
ये देख कृति ने पूछा, " शिव क्या मैने तुम्हे परेशान किया?"
शिवार्थ के पतले होंठ थोड़े टेढ़े हो गए। जब उसने जवाब दिया, "नहीं।, तो उसकी बर्फ़ जैसी ठंडी आवाज़ में कोमलता का भाव था।
कृति ने हल्की सी मुस्कुराहट दी और उसकी इस जवाब पर मन ही मन खुश हुई, उसकी आँखों में असीम प्रेम उमड़ रहा था।
वह धीरे-धीरे उसके सामने आई और अपनी बाहों को मोहक ढंग से फैलाते हुए, उसके कंधों पर लटक गई। उसका कामुक शरीर आकर्षक ढंग से उसके सीने से सटा हुआ था। वह आधी बंद आँखों से उसके आकर्षक चेहरे के करीब पहुँची और उसके पतले, आकर्षक होंठों को चूमने की कोशिश की।
जब शिवार्थ ने उसकी हरकत पर नजर डाली, उसके होंठो के स्पर्श को अस्वीकार करते हुए, उसका चेहरा एक तरफ़ झटक दिया, " मै ऑफिस में हूं।"
कृति ने भौंहें उठाई और ऊपर देखा, लेकिन देखा कि वह कहीं और उदासीनता से देख रहा था। उसके होठों के कोने कड़वाहट से सिकुड़ गए।
वह मन ही मन खुद पर हंस पड़ी। हाँ, वह कैसे भूल सकती थी? हालाँकि वे पति-पत्नी बनने जा रहे थे, लेकिन उसके होंठ हमेशा वर्जित अंग में आते थे। किसी को भी उन्हें छूने की इजाज़त नहीं थी। वो उसे अपनी पत्नी के दर्जे पर उतारने को तैयार नहीं था।
अचानक कृति बहुत गुस्से में आ गई। उसने अपने दोनों हार्थों से उसका चेहरा थाम लिया और आक्रोश से उसकी आँखों में आँसू बहने लगे, "शिव....क्या तुम मुझसे प्यार करते हो? मुझे ईमानदारी से जवाब दो। क्या तुम सच में मुझसे प्यार करते हो, या तुम सिर्फ अपने दादाजी की इच्छा का पालन कर रहे हो? क्या तुम हमारी शादी को सिर्फ एक आर्डर की तरह मान रहे हो?"...
शिवार्थ के शांत व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया था। वह अभी भी बर्फ की तरह ठंडा था। उसे नहीं पता था कि उसके विचार में सामने खड़ी लड़की की जगह उसके बच्चे की सरोगेट क्यों थी? पर इस वक्त वो उस कोमल लड़की को याद कर रहा था, जो उसके बच्चे की मां भी थी।
कृति क्रोधित हो गई और उसने उसे दूसरी बार चूमने की कोशिश की।लेकिन, शिवार्थ ने सहजता से अपना चेहरा घुमाया और उसे चकमा देकर दूर कर दिया, "कृति, ऐसी हरकतें बंद करो।"...
कृति ने एक कड़वी हंसी निकाली, उसका दिल कुछ उदास था। वह पहले से ही जानती थी कि वह उसे चकमा देगा, फिर भी वो अपना अपमान कराने उसके पास खींची चली जाती थी, जबकि कहीं ना कहीं वो जानती यह कि उसने कभी नहीं उसे या किसी औरत की नहीं चूमा था, सिवाय उस सरोगेट के...।
पढ़ने का शुक्रिया, अगला भाग कल आयेगा। समीक्षा के लिए भी आप सब का शुक्रिया।
देश के सबसे युवा अमीर का दिल पत्थर का था। उसके आस-पास कई महिलाएं आती थीं, जो उसकी ओर आकर्षित थीं, फिर भी उनमें से कोई खास रुतबा हासिल ना कर सकी। यहां तक कि उसकी मंगेतर को भी उसके करीब आने की अनुमति नहीं थी।
स्पष्ट था वो उसके साथ सिर्फ एक दिखावे के रिश्ते में बंधा था। अगर उसके दादाजी ने उनकी सगाई ना करवाई होती, तो शायद शिवार्थ उसकी तरफ एक बार से ज़्यादा न देखता। जाहिर था, अगर वह उससे प्यार करता था, तो उसे खुद को एक बार भी चूमने क्यों नहीं देता और उसे "आई लव यू' भी क्यों नहीं कहता?
लेकिन, कृति उससे प्यार करती थी, लगभग दासतापूर्ण तरीके से, इसलिए उसने सब कुछ सहने का फैसला कर लिया था। उसका मंगेतर आर.जी ग्रुप का युवराज था। जिसके साथ उसकी जिंदगी बेहतरीन तरीके से गुजर सकती थी।
कृति एक बच्ची थी, जिसे मेहता परिवार ने दस साल पहले एक अनाथालय से गोद लिया था। हालांकि मेहता परिवार में सिर्फ एक बूढ़ा आदमी ही उससे प्यार करता था, बाकी परिवार के सदस्यों को उससे की खास मतलब नहीं था। हालांकि, जब से उसकी सगाई शिवार्थ से हुई थी, उसका रुतबा मेहता परिवार में बढ़ गया था, जिसे वो किसी भी कीमत नहीं खोना नहीं चाहती थी।
दोनो आमने सामने खड़े थे, शिवार्थ उस लड़की की याद में खोए हुए, जिसका वो नाम तक नहीं जनता था, पर उसने उसे औलाद दिया। और कृति अपने अतीत में भटकते हुए, जिसका अब कोई महत्व नहीं था।
तभी, अचानक मेज़ पर रखा फ़ोन बज उठा। कृति ने फ़ोन उठाया और सचिव डेस्क से आवाज़ सुनी, "डायरेक्टर...।"
दरवाज़े के पीछे से कई कदमों की आवाजें सुनाई दीं। कुछ ही देर बाद दफ़्तर का दरवाज़ा खोला गया और एक छोटा सा सिर बाहर निकला।
"डैड!", छोटे लड़के ने देखा कि शिवार्थ व्यस्त नहीं है, इसलिए वह अंदर चला गया। कृति की उपस्थिति को महसूस करते हुए, उसके चेहरे पर तुरंत बेचैनी की एक झलक फैल गई। उसने उसे स्पष्ट रूप से पुकारा, "मम्मी!"
यह देखकर, कृति को कुछ असहज महसूस हुआ। उसे नहीं पता था कि वह इस छोटे लड़के के करीब क्यों नहीं थी, जबकि वह उसे मां कह कर पुकारता था, शायद ऐसा इसलिए था क्योंकि वो बच्चा उसके मांस और खून का हिस्सा नहीं था।
छोटा लड़का बहुत संवेदनशील था। शिवार्थ के अलावा, वह बाकी सभी से काफी दूर रहता था। वह ज़्यादातर समय अपने पिता की तरह ही रहता था। वे वाकई एक ही सांचे में ढले हुए थे। उसका छोटा चेहरा हमेशा भावहीन रहता, वह शांत और गंभीर था, बिल्कुल एक वयस्क की तरह। वास्तव में वो अपने अकेलापन से ऐसा बन गया था।
जब वह तीन या चार साल का था, तो शिवार्थ अक्सर उसके साथ रहता था, जिससे वो काफी चंचल और शैतान बच्चा था। वह अक्सर रघुवंशी निवास में नौकरानियों को चिढ़ाता था पूरा दिन शरारतें करता।
हालाँकि, पिछले दो साल से शिवार्थ काफी व्यस्त था और हमेशा बाहर रहने लगा। अपने पिता के बिना, वह छोटा लड़का धीरे-धीरे दिन-ब-दिन अकेला और शांत होता गया।
कृति शिवार्थ के बच्चे की देखती तो उसे हर वक्त वो लड़की याद आती, जिससे एक जन्मा था, इसलिए वो उससे थोड़ा दूर रहना पसंद करती थी, लेकिन जैसा कि अभी वो शिवार्थ के सामने थे, इसकिए उसने मुस्कुराते हुए उसे हाथ हिलाकर इशारा किया, " ओमेश, इधर आओ!"
ओमेश ने उसकी ओर देखा। वह उसकी ओर कुछ कदम बढ़ा, लेकिन अंततः रुक गया। वह अपने पिता की ओर जाना चाहती था।
शिवार्थ ने घूमकर देखा अपने बेटे की देखा और उसे देखते ही उसके चेहरे की ठंडी आभा गायब हो गई। वह सोफे पर बैठ गया, उसके बड़े हाथ उसके लंबे पैरों को हल्के से थपथपा रहे थे। जब ओमेश ने यह देखा, तो उसकी आँखें ऊपर उठीं और वह उसकी तरफ़ भागा। शिवार्थ के होठों का एक कोना ऊपर उठा और उसने बच्चे को गोद में बैठाने के लिए उठाया।
ओमेश के चेहरे की विशेषताएं अधिकांशतः शिवार्थ जैसी ही थीं, लेकिन उसकी आंखे बिल्कुल वैसे ही थी...छह साल पहले की उस डरपोक लड़की की तरह....।
ओमेश को देख कर, शिवार्थ को उस लड़की की अनोखी शक्ल किसी तरह उसके दिमाग में आ जाती थी। उस रात की यादों, जन उसके शरीर के नीचे उस कोमल लड़की का चेहरा कभी शर्मीला, कभी घबराया हुआ और कभी डूबा हुआ सा लगता था। वह लड़की इस दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की थी, जो उसके दिल में बस गई थी।
छह साल पहले, समय से पहले प्रसव के कारण, ओमेश का जन्म हुआ, तो उसका शरीर बहुत कमजोर था। यह जानकर कि दूसरा बच्चा नहीं बचा, शिवार्थ को दुख हुआ था। हालांकि उसे बच्चा नहीं चाहिए था, लेकिन चूंकि उसके दादाजी को बच्चे बहुत पसंद थे, इसलिए उन्होंने अपनी लंबे समय से संजोई हुई इच्छा को पूरा करने का फैसला किया और सरोगेसी के लिए एक जवान लड़की की तलाश की।
दादा जी कहने पर, कृति ने ओमेश का देखभाल किया लेकिन, वो प्यार नहीं दे सकी जो एक मां होने के नाते उसे देना चाहिए था। वह खुद से नफरत करती थी क्योंकि वह बांझ थी। चूंकि यह बच्चा उसका अपना खून-मांस नहीं था, इसलिए प्यार की जगह बस दिखावे ही कर सकी।
परिणामस्वरूप, ओमेश छोटी उम्र से ही उससे दूर हो गया था।
"डैड, मैं रिमोट-कंट्रोल रेसिंग कार लेना चाहता हूं।", काफी सोचने के बाद, ओमेश ने मुंह खोला था।
"रिमोट कंट्रोल रेसिंग कार?", शिवार्थ ने भौंहें सिकोड़ लीं, "क्या तुम इससे ऊब नहीं गए हो? तुम फिर से इसके साथ खेलना चाहते हो? मैने तुम्हे कितनी सारी दिलाई तो हैं।"
"मुझे उसी कार के साथ खेलना है।", ओमेश ने मुंह बनाया।
शिवार्थ की आँखों में एक अनोखी कोमलता दिखाई दी, "ठीक है, डैड तुम्हारे लिए खरीद देंगे..now happy?"
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अगले दिन, जब अनामिका अपने काम पर गई, अचानक उसे पता चला कि उसे कंपनी से निकाल दिया गया है। उस पर बेबुनियाद इलज़ाम गढ़े गए और वो निकाल दी गई। जब वो निराश होकर सड़क पर चल रही थी, तब उसका दिल अवसाद के बोझ से दबा हुआ था।
वह सिर झुकाए चलते समय इतनी अधिक ध्यानमग्न हो गई थी कि लाल बत्ती के जलने तथा सामने से आ रही स्पोर्टस कार के हॉर्न के बजने पर ध्यान ही नहीं रख पाई।
जब उसने कार के ब्रेक की तीखी, तेज़ और कानों को झकझोर देने वाली आवाज़ सुनी, तभी उसे होश आया। हालाँकि, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
तेज गति से आ रही स्पोर्ट्स कार उसके शरीर को रगड़ती हुई निकल गई और बड़ी मुश्किल से उसे बस छू कर गुजरी थी, ड्राइविंग पर नियंत्रण ना होता तो शायद आज वो जिंदा नहीं होती।
अनामिका ने अभी कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं की थी कि कार का दरवाजा खुला और उसका भ्रम तब दूर हुआ जब उसने अपने घुटने में बहुत ज़्यादा दर्द महसूस किया, जो गिरने के कारण डामर पर घिस गया था।
जो दस्तावेज़ उसने पहले अपने सीने से चिपका रखे थे, वे अब ज़मीन पर बिखरे पड़े थे। अनामिका ने चौंककर अपनी आँखें उठाई और एक बेहद आलीशान पोर्शे कार को देखा।
लेकिन, एक बार फिर उसका ध्यान अपने घायल घुटने पर गया, क्योंकि उसमें दर्द हो रहा था। कार और कपड़े के बीच घर्षण से उसकी अनारकली का कोना फट गया था, और उसका घुटना जो अभी लापरवाही से घिस गया था, उसमें धूल जम गई थी और खून बह रहा था।
समीक्षा जरूर कीजियेगा। मै आप सब को धन्यवाद देती हूं, और मेरी कहानी को भी स्टिकर्स जरूर दीजियेगा, क्योंकि वो क्यूट है।
(क्रमशः)
यह समझ में नहीं जा रहा था कि यह दर्द की वजह से था या कुछ और किन्तु अनामिका की आँखें अचानक नमी से भर गईं। आँसू उसके गालों से बहते हुए ज़मीन पर टपकने लगे। वह इतनी परेशान थी कि रो पड़ी।
कुछ ही दूरी पर पोर्श का इंजन बंद था। उसका दरवाज़ा खोला गया और महंगे चमड़े के जूते ज़मीन पर पड़े थे। शिवार्थ अपनी शान संभाले, कार से बाहर निकला, फिर आराम से दरवाज़ा बंद कर दिया। उसकी नज़र सफ़ेद पोशाक पहने महिला पर थी, जो ज़मीन पर बैठी रो रही थी। उसके चेहरे पर भाव स्पष्ट रूप से नहीं देखे जा सकते थे क्योंकि उसका सिर नीचे झुका हुआ था, लेकिन उसकी टूटी हुई सिसकियाँ सुना जा सकता था, जिससे वह काफी दयनीय लग रही थी!
वह महिला काफी जवान लग रही थी, लगभग चौबीस या पच्चीस साल की। लेकिन उसका दुबलापन उसे कमज़ोर दिखा रहा था। उसके रेशमी चिकने बाल उसके कंधे पर थोड़े अस्त-व्यस्त ढंग से गिरे हुए थे और उसके चेहरे का अधिकांश हिस्सा छिपा रहे थे।
हालाँकि वह पसीने में बहुत ज़्यादा लथपथ दिख रही थी, लेकिन इससे उसकी खूबसूरती पर कोई अन्याय नहीं हुआ। बल्कि, इससे उसकी खूबसूरती और भी निखर कर सामने आ रही थी।
शिवार्थ की आँखें धीरे-धीरे सिकुड़ गईm इस लड़की ने उसके दिल को झकझोर दिया। वह कुछ हद तक जानी-पहचानी लग रही थी, जैसे उसने उसे पहले भी देखा हो। हालाँकि, उसका सिर नीचे झुका होने के कारण वह उसकी शक्ल नहीं देख सका।
उसकी तलवार जैसी भौंहें थोड़ी-सी फड़क उठीं। वह उसके करीब गया और उसके सामने शान से आधा बैठ गया। उसने अपनी बादाम के आकार की आँखों को थोड़ा नीचे किया और उसके घुटने पर लगी चोट को ठंडे दिमाग से देखा। उसने देखा कि उसकी पतली टांगों में से एक पर खून लगा हुआ था। खून उसके पैर के नाजुक मोड़ों से बह रहा था।
उन्होंने उसके पूरे शरीर को देखा, उसके घुटने पर हल्की खरोंच के अलावा कोई अन्य चोट नहीं दिखा।
सौभाग्य से उसकी चोट गंभीर नहीं थी, लेकिन वह अभी भी दुःख में रो रही थी, जैसे कि उसे कोई बहुत बड़ी पीड़ा हुई हो। उसे वास्तव में नहीं पता था कि वह किस बात पर इतनी दयनीय रूप से रो रही थी, क्योंकि उसकी चोट इतना रोने के लिए काफी नहीं थी। उसका विलाप किस परित्यक्त बिल्ली के बच्चे जैसा था!
उसके आंसू लगातार बहते देखकर, शिवार्थ ने बिना समय बरबाद किए अपना सिर नीचे किया और अपना बटुआ निकाला। उसमें से कुछ बड़े नोट निकालकर, उसने भावशून्य भाव से उसे दे दिए।
जो समस्याएं पैसे से हल हो सकती थीं, वो उस पर ज्यादा वक्त बर्बाद नहीं करना चाहता था, उसे लगा कि वो लड़की पैसे के लिए इतना विलाप कर रही है। इसलिए, वो उस दुर्घटना को जल्द से जल्द निपटाना चाहता था।
अनामिका ने अपनी आँखें थोड़ी ऊपर उठाई। कुछ नोट पकड़े हुए आदमी के हाथ सख्त और मजबूत थे, जिनमें उभरे हुए जोड़ थे, बड़े करीने से कटे हुए नाखून थे, और अनामिका उंगली में एक अंगूठी थी। एक नज़र में ही कोई बता सकता था कि यह व्यक्ति कुलीन हैसियत का है, किंतु उसकी सगाई भी हो चुकी है।
उसके हाथ में पैसे देखकर वह दंग रह गई, इतना की रोना भी भूल गई।
शिवार्थ ने उसकी चुप्पी को पैसे की मात्रा से असंतुष्टि के रूप में गलत समझा। इसलिए उसने पूछा, "क्या ये काफी नहीं है?"
उसने पहले भी कई लालची लोगों को देखा था और सोचा कि निश्चित रूप से, लड़की को वह रकम कम लगी होगी।
उसके जवाब का इंतज़ार किए बिना, उसने फिर से अपनी नज़रें नीची कीं और अपने बटुए से कुछ और नोट निकाले। फिर उसने वे सब उसे दे दिए। उसे अपने साथ बहुत ज़्यादा नकदी रखने की आदत नहीं थी, इसलिए उसके बटुए में सिर्फ़ पंद्रह हजार से ज्यादा नहीं थे, हालांकि, यह राशि उसके घावों पर मरहम लगाने के लिए काफ़ी होनी चाहिए।
अनामिका अवाक रह गई। वह स्वाभाविक रूप से उसकी हरकत से चकित थी। वो पैसा नहीं लेना चाहती थी, इसलिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया, लेकिन शिवार्थ ने उसके इस ख्याल को गलत रूप से समझा। वह महिला उसकी कल्पना से भी अधिक लालची लग रही थी।
शिवार्थ ने मन ही मन मुस्कुराते हुए अपने पतले होंठों को एक आत्मसंतुष्ट वक्र में बदल दिया। उसने बस अपने बटुए में से सारे पैसे निकाल लिए। चाहे वह और चाहती हो या नहीं, वह अब उस पर समय बर्बाद नहीं करना चाहता था। उसने देखा कि उस लड़की के फ्रॉक में कोई जेब नहीं थी, इसलिए उसने पैसे को एक रोल में मोड़ा और पैसे उसके हथेली पर रख दिया।
उसकी ठंडी उँगलियाँ हल्के से उसकी त्वचा से टकराईं।अनामिका इस अंतरंगता से दंग रह गई। उसने अपना चेहरा थोड़ा ऊपर उठाया, और अपनी आँखों को ढँकने वाले बालों के बीच से उस आदमी को देखा।
उसकी आंखों के सामने जो आदमी था उसकी ऊंचाई 1.9 मीटर थी और चेहरा ईश्वर की अलौकिकी से सज्जित था। उनके शरीर की संरचना देवताओं की मूर्तियों के समान थी, उनके चेहरे की विशेषताएं बेदाग थीं, और गहरी बादाम जैसी आंखें थीं जो किसी सम्राट की गरिमामय आभा बिखेरती थीं।
वो उस आदमी को देख ही रही थी कि, अगले ही पल उसने देखा कि उस आदमी पेन निकला है और अनामिका के हाथ पर एक नंबर लिख दुआ, "अगर यह काफी नहीं है, तो इस नंबर पर कॉल कर लेना।"
इन आक्रामक कार्रवाइयों ने अनामिका के क्रोध को भड़का दिया। उसका यह कृत्य उसके लिए अनजाने में किया गया अपमान था।
"सर, इसका क्या मतलब है? आप अमीर है तो कुछ भी कर सकते हैं?", उसकी आँखें गुस्से से जल रही थीं और आवाज़ उदास थी, "पहले आपने किसी को चोट पहुँचाई, लेकिन, माफ़ी मांगने के बजाए धौंस जमा रहे हो? आपको लगता है कि पैसे से सब कुछ हल हो सकता है?"
अनामिका बिना वजह परेशानी खड़ी करने वालों में से नहीं थी। लेकिन जिस तरह उस आदमी ने बरताव किया, उससे अनामिका को गुस्सा आ गए।
अगले ही पल अनामिका ने अपने चेहरे से बाल हटाया, अपना सिर उठाया और उस आदमी का बड़ा हाथ अपनी ओर खींच कर उन पैरों को उस पर पटक दिया।
अब इसने अपने बाल चेहरे से हटा दिया है, अब देखेगा..की शिवार्थ उसे देख कर कैसे रिएक्शन देता है।
(क्रमशः)
अनामिका ने अपना चेहरा उठाया और अपनी नम आँखों से सीधे उस आदमी की तरफ देखा। शिवार्थ की नजर जब अनामिका के चेहरे पर पड़ी, तब अचानक उसकी ठंडी फीकी मुस्कान अपनी जगह पर जम गई। उसकी आँखें सिकुड़ गई। यह चेहरा, जो दृढ़ होने का दिखावा कर रहा था, उसके पूरे अस्तित्व को स्तब्ध कर गया, सच कहे तो शिवार्थ का दिमाग एक पल के लिए चकरा गया।
दूसरी ओर अनामिका ने उसके चेहरे पर एक नज़र भी नहीं डाली। अपनी आँखों से आँसू पोंछते हुए, उसने गुस्से से कहा, "मिस्टर, मैं जानती हूँ कि यह मेरी गलती है कि मैं रोड क्रॉस करते हुए सड़क पर ध्यान नहीं दे रही थी, लेकिन आपको मुझ पर दया दिखाने की जरूरत नहीं। मुझे इसकी ज़रूरत नहीं है।"
ये शब्द कहने के बाद, वह नीचे झुकी और ज़मीन पर पड़े दस्तावेज़ों को उठाने लगी, फिर बिना एक बार भी उसकी ओर देखे, जल्दी से वहाँ से चली गई।
शिवार्थ उसकी पीठ देखता रहा था। वह कुछ हद तक अचंभित था, और लंबे समय तक अपनी नज़र उससे हटा नहीं पाया।
अपनी यादों को ताजा करते हुए, वह उस रात को स्पष्ट रूप से याद कर सकता था, जो उसने आंखों पर पट्टी बांधे, उस नाजुक लड़की के साथ बिताई थी। वह लड़की, जो उससे डरी हुई थी और बस कहती रही कि उसे डर लगा रहा है। आज भी शिवार्थ उस लड़की की आवाज अपने कान में महसूस कर पा रहा था।
उस रात वो वह बहुत नाजुक थी, बिल्कुल एक बुलबुले की तरह, जो एक स्पर्श से फूट जाता है या कह सकते जब की वह एक कच्चे फल की तरह थी जिसका स्वाद अभी भी बहुत खट्टा था।
कई सालों बाद उस लड़की को अपने सामने अचानक यूं देख कर, शिवार्थ की बोलती बंद हो गई। वो अंदर से इतना बेचैन हुआ कि उसे रोक लेने के लिए शब्द नहीं जोड़ सका और वो उससे दूर जाती है, फिर आखिरकार आंखो से ओझल हो गई।
ये देख, शिवार्थ के मुंह के कोने सिकुड़ गए। तभी उसकी नजर जमीन पर पड़े, एक आईडी पर पड़ी। उसने धीरे से आगे झुककर उसे उठा लिया। दरअसल वह गलती से अपना पहचान पत्र वहीं छोड़ गई थी।
शिवार्थ मुस्कुराये बिना नहीं रह सका। उसने अपना फ़ौन निकाला और कॉल किया, "आरोही, एक लड़की के बारे में पता करो।"
"ओके...डायरेक्टर। आप लड़की के बारे में कुछ बताइए।", पहचान पत्र पर लड़की का शर्मीला और गर्मजोशी भरा मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाई दे रहा था। उसकी नम आँखें चमक रही थीं, ऐसा लग रहा था जैसे उनमें सूरज की रोशनी भरी हुई हो।
उसके तस्वीर से अपनी नजरें हटाते हुए, अनामिका ने अपने शब्द खींचकर कहे, "अनामिका सारंग।"
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दूसरी ओर अनामिका टूटे मन से, अपने घर चली गई। दिवालिया होने के बाद, उसका परिवार एक छोटे से किराए के मकान में रहता था। चुकी मकानमालिक का बरताव उनके साथ काफी अच्छा था, इसलिए वो देर से भी उन्हें रेट भरती तो भी वो कुछ नहीं कहते और इस महीने तो उसे आधी सैलरी के साथ नौकरी से निकाल दिया गया था। अपने बेटे के प्राइमरी स्कूल की फीस भरनी थी, पिता के दवाइयों के खर्चे उठाने थे और सौतेली मां को भी कुछ रकम देना होता था।
अनामिका के खर्चे उसके गले को इस तरह दबाती की, जीना मुश्किल लगने लगा। घर आने के बाद उसने किसी से बात नहीं की। अपने छोटे से कमरे में जा कर उसने पैर पर मरहम पट्टी कर ली, फिर बिस्तर पर लेटे हुए पंखे को देखने लगी। शायद इस वक्त जिंदगी जीने से आसान, उस पंखे पर लटक जाना था। पर उसके बाद उसके ओजस का क्या होता? बस यही एक ख्याल उसे आत्महत्या के ख्याल से दूर खींच लाता था।
नई नौकरी की तलाश में उसने फोन उठाया, LinkedIn
पर लॉगइन किया और कुछ जॉब ऐड्स देखने लगी। कुछ पर उसने अपलाई भी किया, तभी उसके कमरे के दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई। उसने फोन बगल में रखा। उठ कर कमरे का दरवाजा खोला तो सामने उसका मकान मालिक खड़ी थीं।
"आंटी आप? नमस्ते...", अनामिका अपने पीछे दरवाजा बंद करते हुए बोली।
"खूब खुश रहो बेटा।", लैंडलॉर्ड ने मुस्कुराते हुए कहां, उनके पीछे एक अनजान आदमी भी खड़ा था, जिसके हाथ में एक ट्रॉली और एक छोटा सा बैग था। दिखने में तीस या उससे ज्यादा का लगता था, कद काठी भी सामान्य से कुछ हट कर थी, नैन नक्श काफी तीखी और सजी हुई थीं। ब्रांडेड कपड़े, जूते और गर्दन में लटके हुए हेडफोन्स...!
अनामिका को उसे देख कर जिज्ञासा हुई और लैंडलॉर्ड से पूछ लिया, " ये कौन हैं आंटी?"
"बेटा ये ऊपर वाला कमरा देखने आया है, आज से यहीं ऊपर वाले कमरे में रहेगा। मेरी बहन का बेटा है....।", लैंडलॉर्ड ने कहा, फिर अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए बोली, " ऊपर वाले रूम की चाभी दे दो...पिछली बार तुम मांग कर ले आई थी।"
घर में ऊपर जाने वाली सीढ़ी, अंदर से था। जहां उसके कमरे का दरवाजा भी था, ये अनामिका के लिए असहज ही जाता, यदि वो आते– जाते एक लड़के से बार– बार टकरातीं, इसलिए उसने लैंडलॉर्ड को एक तरफ खींच लिया, " आंटी, एक लड़के को रूम दे रहीं हैं? और देखिए तो मेरे कमरे जा दरवाजा सीढ़ी के पास ही है, इस तरह तो ये मुझसे टकराता ही रहेगा।"
"वो नीचे कम ही आयेगा, उसकी फिक्र मत करो।", लैंडलॉर्ड ने कहा।
"पर इससे मेरी मुश्किलें बढ़ जाएगी ना.. प्लीज आप किसी लड़की रख लीजिए ना।", अनामिका गाल बजाते हुए बोली।
" इसे यहां नहीं रहने दिया तो मेरी बहन मुंह फूला लेगी, तुम्हे पता तो है, रिश्तेदार कैसे होते हैं।", लैंडलॉर्ड दबी आवाज में बोली, लेकिन तभी पीछे से उस लड़के ने कहा, "मासी मुझे सब सुनाई दे रहा है, आप मेरी मॉम की बुराई तो नहीं कर रही ना?", कहते हुए उसने अपनी निगाहें अनामिका की तरफ किया और छोटी सी मुस्कान के साथ बोला, "बाय द वे..मिस टेंशन...मै तुम्हे परेशान नहीं करूंगा। डोंट वरी, मुझे एक बच्चे की मां में कोई इंट्रेस्ट नहीं है।"
वो बोलते हुए आगे चला और दीवाल पर टांगे, अनामिका और उसके बेटे की तस्वीर को निहारते हुए कहने लगा, " तुम्हारा बेटा तो काफी क्यूट है, इसका नाम क्या रखा है?"
☹️
वो बोलते हुए आगे चला और दीवाल पर टांगे, अनामिका और उसके बेटे की तस्वीर को निहारते हुए कहने लगा, " तुम्हारा बेटा तो काफी क्यूट है, इसका नाम क्या रखा है?"
"उसे हाथ मत लागो।", अनामिका आ कर तस्वीर और उसके बीच खड़ी हो गई। लड़के ने अनामिका के खूबसूरत चेहरे पर दो पल देखा, फिर उसे ऊपर से नीचे तक एक जांचने वाली नजर से देखने के बाद, मुस्कुरा दिया, " इतनी कम उम्र में मां बन गईं...आगे बुरा ना मानो तो एक कॉम्प्लीमेंट दूं?"
अनामिका वहीं पास के डॉल पर झुकी, चाभी निकाला और उस लड़के की ओर बढ़ाते हुए बोली, " अच्छा होगा अगर तुम सिर्फ अपने काम से काम रखो और कोशिश करना की हमारी कोई मुलाकात न हो।"
इतना कह अनामिका वापस अपने कमरे गई और दरवाजा बंद करने से पहले लैंडलॉर्ड से बोली, " आंटी आप इसे रूल्स बता दीजियेगा ना..!"
"हां..हां..बेटा वैसे सब समझा दूंगी।", लैंडलॉर्ड ने कहा, जिस पर लड़का अपने होंठ को अंगूठे से रगड़ते हुए आगे आया, "मासी लड़की तो आपने कमल की चुनी है किराएदार...लेकिन आपने बताया नहीं की ये किसकी सरोगेट थी?"
"भगवान ही जानता है? एक बार मैने इससे पूछा था, पर इसने कहा कि इसे भी नहीं पता।", दोनो सीढ़ियों पर चढ़ने लगे, लैंडलॉर्ड ने अपने बहन के बेटे की तरफ कनखी से देखा और फिर से बोली, " उससे दूर रहना अरमान, वो तुम्हारे टाइप की नहीं है। बहुत संझी हुई सी लड़की है। उसकी दुनिया सिर्फ उसके बेटे के इर्द– गिर्द घूमती है।"
"मै समझ गया माते...पर आप कुछ भी कहो, वो हॉट तो बहुत है। मैं आंखो से नाप कर बता सकता हूं उसकी कमर 32 इंच से ज्यादा नहीं होगी।", अरमान थोड़ा शरारती किस्म का आदमी था। लड़कियां उसकी कमजोरी थी, पैसे कमाने के साथ– साथ उसे कहा उड़ना था, उसे पहले से पता होता। हालांकि ये उसके साथ पहली बार हुआ था जब उसकी धड़कने बढ़ाई थी किसी लड़की ने, जो एक सरोगेट रह चुकी थी और बच्चे की मां भी थी।
कमरे का ताला खोलती लैंडलॉर्ड ने जब उसकी बात सुनी, उसने मुस्कुरा कर कहा, " अगर तुमने उसके साथ ज्यादा फ्री होने की कोशिश की तो मै कुछ नहीं कर पाऊंगी, तुम्हे ये रूम छोड़ कर जाना पड़ेगा। अब उस बच्ची को मैं यहां से निकाल नहीं सकती...आखिर एक पति के बिना वो अपने बेटे को लेकर कहां– कहां भटकेगी? इसलिए, अपनी हरकते जरा कंट्रोल में ही रखना, वरना निकाल दूंगी तुम्हे।"
"जी माते..!" अरमान ने खिड़की पर हल्का धक्का दिया और धूल से भरा एक बेहद गंदा कमर उसके सामने खुल गया।
"वाव, इसे साफ करने के में तो एक दिन लग जाएगा। क्या आप मेरी मदद करेगी...!", अपने गर्दन से हेडफोन्स निकालते हुए, वो पीछे मुड़ा पर उसकी मासी भाग चुकी थी, और उनके कदमों की आहट सीढ़ियों पर दूर होती हुई सुनाई दे रही थी।
"एक और खून जलाने वाली रिश्तेदार..!", अरमान ने मुंह बनाया और अपना ट्राली बैग अंदर खींच लिया। पर अब उसे तय करना था कि सफाई शुरू कहां से करनी है, जो काफी चुनौतीपूर्ण था।
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इधर शिवार्थ का मन इतना गदगद था कि वो अपने बेटे को लेकर शॉपिंग गया, उसके लिए हर तरह की टॉयज खरीदी और साथ में कई घंटे तक घूमता रहा। अपने उस छोटे से बेटे में उसे उसकी मां की परछाई दिखती थी, जो कोमलता और शर्म से बनी हुई एक नाजुक सी लड़की थी।
घंटों बाद, जब दोनो घर लौटे...ओमेश काफी खुश था। उसने अपने कपड़े बदले, बिना कोई नखरे किया खाना खाया और पढ़ने बैठ गया। उसके पिता ने भी डिनर किया और स्टडी रूम में चला गया, जहां उसने कुछ देर फाइलों का अध्ययन किया और आधी रात तक आज दिन में, सड़क पर मिली उस लड़की के चेहरे को याद करता रहा।
वहीं दूसरी ओर अनामिका ने ओजस को सुलाने के बाद, अपने डैड को दवाइयां दी, अपनी सौतेली मां का बिस्तर लगाया और छोटी बहन को गर्म दूध देने के बाद, ताजी हवा कहने ऊपर छत पर चली गई।
लेकिन वो सीढ़ियों पर ही थी कि उसके कानो में किसी के गुनगुनाने की आवाज पड़ी। वो थोड़ा और आगे बढ़ी तो गाने की आवाज तेज हो गई, ऐसा लग रहा था, ये किसी रेडियों में बज रहा हो....
{आने से उसके आये बहार, जाने से उसके जाये बहार
बड़ी मस्तानी है मेरी महबूबा
मेरी ज़िन्दगानी है मेरी महबूबा...
गुनगुनाए ऐसे जैसे बजते हों घुंघरू कहीं पे
आके पर्वतों से, जैसे गिरता हो झरना ज़मीं पे
झरनो की मौज है वो, मौजों की रवानी है मेरी महबूबा
इस घटा को मैं तो उसकी आँखों का काजल कहूँगा
इस हवा को मैं तो उसका लहराता आँचल कहूँगा
हूरों की मलिका है परियों की रानी है मेरी महबूबा}
छत के दरवाजे पर आ कर उसने नए किराएदार को देखा, जो मुंडेर से लगा खड़ा था, उसके हाथ में एक फाइल था और चांद की रोशनी में उसकी शर्टलेस बॉडी बेहद गठीला शरीर दिख रहा था। पैंट भी उसने टखनों के ऊपर मोड रखा था, जिससे उसका वजूद थोड़ा अजीब, लेकिन आकर्षक मालूम होता था।
शायद उसे भी किसी के आने की आहट लग चुकी थी, इसलिए मुड़ा और दरवाज़े पर अनामिका को देख, मस्कुराने लगा, "हाय..!"
अनामिका ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि मुड़ी और वापस नीचे जाने लगी। जिससे अरमान ने तुरंत उसे रोकने की कोशिश की, " मिस टेंशन...आपको कुछ काम है तो आप रुक सकती हैं, मुझे आपके होने से कोई प्रॉब्लम नहीं हैं।"
"लेकिन, मुझे तुम्हारे यहां होने से प्रॉब्लम है।", अनामिका बगैर मुड़े ही बोली।
"अरे..! बड़ी अजीब लड़की हैं आप, मैने कुछ किया भी नहीं और आपको मुझसे प्रॉब्लम हो गई..? चलिए आ भी जाइए, मैने कहा न मैं एक बच्चे की मां पर लाइन नहीं मारता।वैसे भी मैं यहां से जा रहा था।", अरमान ने मुंडेर पर रखी अपनी फाइल्स उठाई और रेडियों को लेकर नीचे जाने लगा।
जब वो नीचे चला गया, अनामिका छत के मुंडेर तक गई। आसमान में चमकते चांद को यूं देखा मानो अपनी दिल की सारी तकलीफे कह देना चाहती हो, फिर वहीं एक टूटी हुई कुर्सी पर बैठ गई और बस टूट कर रोने लगी।
इधर अरमान छत पर छुटे हुए, अपने चप्पल को लेने आया, तो दरवाजे से ही, अनामिका रोते हुए देख लिया। उस लड़की की सिसकियों ने उसके दिल में एक अजीब एहसास को जन्म दिया, ऐसे एहसास जिसे शायद वो प्यार का नाम दे सकता था, जाने क्यों? किन्तु पहली बार उसे दुनिया की एक छोड़ी हुई लड़की के रोने से फर्क पड़ रहा था, वो उससे आज ही मिला था, लेकिन अजीब हमदर्दी होने लगी थी उससे।
शिवार्थ की सेक्रेटरी आरोही ने अनामिका के बारे में पता लगाया, लेकिन अनामिका की जिंदगी इतनी गुप्त थी कि उसे कुछ खाश जानकारी नहीं मिली, सिवाए इसके कि वो दिवालिया हो चुके सारंग परिवार की बड़ी बेटी थी, जिसने अठारह साल की उम्र में, सरोगेसी जैसा कदम सिर्फ अपने पिता के कर्जे उतरने के लिए उठाया।
आरोही ने प्राप्त जानकारी को शिवार्थ के हवाले कर दिया। शिवार्थ जो कि अभी– अभी ऑफिस आया था,अपनी कुर्सी पर बैठे अनामिका की फाइल पलटने लगा। कोई खास जानकारी नहीं, दिवालिया होने के बाद वो कहां गई? सात सालों में उसने जिदंगी कैसे गुजारी और क्या अब तक उसने किसी से शादी की होगी या नहीं?
वो अपनी इन्वेस्टीगेशन से कुछ हासिल ना कर सका। आखिर में उसने सांस भरी, फाइल को टेबल के एक साइड पर रख दिया और उसकी आईडी को निहारते हुए बोला, " बस पता करो कि इस वक्त वो लड़की कहां है? मुझे वो किसी भी हाल में चाहिए।"
"मै इसी कोशिश में हूं सर।", आरोही ने सिर नीचे किया और जल्द ही वहां से चली गई।
"कहां हो तुम?", शिवार्थ ने खुद से बातें की।
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इधर अनामिका ने दो दिनों तक नई नौकरी की तलाश की, कोई उसके एजुकेशन से संतुष्ट ना हुआ तो किसी को वो कामगार नहीं लगी। थक कर अनामिका ने छोटे स्तर वाले उद्योग में भी किस्मत आजमाया, सुबह से शाम, फिर शाम से सुबह वो नौकरी की तलाश में ही भटक रही थी। घर आने के बाद भी वो ऑनलाइन नौकरी ढूंढती। उसने प्राइमरी टीचर, शॉपिंग मॉल में सेल्सपर्सन, कैफे में वेट्स के लिए भी कई जगह आवेदन दिए, पर कोई प्रतिक्रिया ना मिली।
ओजस को सुला कर, वो हर रोज की तरह अपनी मां के पैर दबाने के लिए उनके कमरे में गई। जब उनके पैर दबा रही थी, पूनम ने ऊंघती हुई आवाज में कहा, " शादी कर ले अनामिका...! मैने तेरे लिए एक राइस लड़का देखा है, उम्र में थोड़ा बड़ा है और दो बच्चे है उसके, पर तू भी तो कंवारी नहीं है। तेरी फोटो उसे खूब जमी है, उसने कहा है कि तू उससे शादी कर लेगी तो हम सब का खर्चा उठाएगा।"
अनामिका उनकी ऐसी शादी वाले सौदे की बात सात सालों से सुनती आई थी, इसलिए उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया, बस एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया। लेकिन, उन्होंने जो आगे कहा उससे अनामिका के हाथ उनके पैरों पर जम गए।
"बस उसे ओजस पसंद नहीं आया, आज दोपहर वो आया था यहां, मैने सोचा कि ओजस से दोस्ती करवा देती हूं, लेकिन तुम्हारी वो गंदगी ने ऐसी बत्तीमीजी की अनुनय से कि उसका सारा मूड खराब कर दिया। इसलिए, उसने कहा है कि ओजस को नहीं अपनाएगा...लेकिन उसके हॉस्टल का खर्च दे दिया करेगा।"....
"आपने उसे उस आदमी से मिलाया? क्या कहा मेरे बच्चे से? आखिर क्यों मिलाया आपने ओजस को उस आदमी से? मझसे पूछा था आपने?", अनामिका गुस्से में उठी, बिस्तर से उतरी और गुस्से से चिल्लाई, " मेरे बेटे के लिए फैसला करने का हक किसने दिया है आपको या उस आदमी को? मै और मेरा बेटा आपका कोई खिलौना नहीं है और ना ही कोई चीज जिसका आप सौदा करने निकल जाती है।"
इसमें कोई शक नहीं कि आज उसका बेटा इतना उदास ओर बुझा–बुझा सा क्यों था? ये सब उसकी मां ने किया था, उसके बेटे को एक ऐसे आदमी से मिलाया, जो उसे उसकी मां से दूर करने की बात कर रहा था। इस ख्याल से अनामिका इतने गुस्से में थी कि उसका हाथ पांव कंपने लगे। पूनम की नींद आंखो से बिल्कुल गायब हो गई, वो उठ कर बिस्तर पर बैठी और आंखे फाड़े अनामिका को देखने लगी। पीछे से अल्का और उसके पिता भी कमरे में आए।
"क्या हुआ अनामिका? ", मिस्टर आशीष ने मामले की खबर लेनी चाहिए।
अनामिका ने गुस्से में अपना हाथ साइड लैंप पर मारा, जिससे वो नीचे तो गिरा, लेकिन इसके बल्ब से अनामिका का हाथ कट गया। खून का गाढ़ा बूंद टपकते हुए फर्श पर गिरने लगा। फिर भी ना तो उसका गुस्सा कम हुआ पर ना तनाव। यहां तक कि उसे अपने हाथ में दर्द का एहसास भी न हुआ, " आपको सौदे का इतना ही शौक है तो अपनी बेटी का कर दीजिए, वो भी तो कुंवारी है, खूबसूरत है..! मेरी जिदंगी के साथ खेलना बंद कीजिए, वो आप थी..आपकी वजह से मैं सरोगेट बनी, आपने अपने लालच की वजह से मेरी जिदंगी तबाह कर दी और अब भी आपको चैन नहीं? याद रखिएगा...मुझ तक ठीक था पर अगर किसी ने मेरे बेटे की ओर आंख उठाई तो मैं उसकी आंखे निकाला दूंगी।"
इससे पहले की अनामिका का दिमाग गुस्से से फट जाता, वो कमरे से निकल कर चली गई। अल्का और उसके पिता ने पूनम को ओर देखा। अल्का अपनी मां के पास गई, " आपने दी को सरोगेसी के लिए भेजा था? उन्होंने ऐसा क्यों कहा?"
"मै क्यों भेजूंगी? मुझे तो इस बारे में कुछ आइडिया भी नहीं...!"
"हमें सच बताओ पूनम..!", आशीष एकाएक चिल्लाएं, जिससे पूनम कांप गई और अगले ही पल दृढ़ता से बोली, " हां, मैने साइन किया था सरोगेसी कॉन्ट्रैक्ट..! तो क्या करती उस वक्त? तुम्हारी तरह हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती? अगर मैंने ये सरोगेसी डील नहीं करवाई होती तो आज जेल में होते तुम और तुम्हारी ये दोनो बेटियां किसी बुरथल हाउस की शोभा बन गई होती। कर्ज देने वाले इन्हें बेच कर अपने पैसे निकालते...! और चील कौओं की तरह नोच डालते हमारी अल्का को।"
"इसलिए मेरी मासूम बच्ची की जिदंगी तबाह कर दी तुमने और सात सालों से उसे बदचलन कह रही हो? दिल तो कर रहा है इसी वक्त तुम्हे घर से निकाल दूं।", आशीष जी गुस्से से आंखे दिखाते हुए चीखे। फिर वहां से निकल कर चले गए, शायद वहां रहते तो को अनर्थ कर बैठते।
अल्का ने भी अपनी मां को नाराजगी से देखा, " अपने सही नहीं किया मां, दी ने हमारे लिए बहुत सेक्रीफाइज किया है, उनका फायदा उठाना बंद कीजिए, वो कोई गुड़ियां नहीं हैं।"
सभी के चले जाने के बाद पूनम फुंकारते हुए खुद में बड़बड़ाई, " बिल्कुल सही किया था मैने, और आगे भी सही करूंगी। अनामिका को उस आदमी से ब्याह के रहुंगी मैं...वो ही मेरी ऐशों आराम की जिदंगी की चाभी लाएगी।"
शाम को शिवार्थ ऑफिस से निकल कर अपनी कार में बैठा और कार घर के लिए रवाना हुई। शिवार्थ सारा दिन, सारी रात उस एक लड़की के बारे में सोच कर बिल्कुल थक चुका था। इसलिए आंखे बंद कर उसने अपना सिर कार के सीट पर टिका लिया। तभी कार की स्पीड कम होने लगी और आखिरकार रुक गई।
"क्या हुआ हरि..?", शिवार्थ ने बंद आंखों को नहीं खोला।
"ट्रैफिक जाम है सर..!", आगे से ड्राइवर की आवाज आई।
शिवार्थ ने कुछ पल यूं ही आंखे बंद रखी। लेकिन उसे चैन नहीं पड़ा, वो वापस सीधा बैठा, खिड़की के शीशे को नीचे किया और नजरें आसमान पर टिका दी। साफ आसमान में पूर्णिमा का चांद और ये ठंडी हवाएं, जो उसके चेहरे को गुजर रही थी, एक बार फिर उसे अनामिका की यादों तक ले गई।
सात साल गुजर चुके थे। लेकिन आज भी वो उसे उसके साथ बिताए लम्हे ऐसे याद थे, मानो कल ही की बात हो...उसका बार– बार ये कहना कि उसे डर लग रहा है, शिवार्थ को भूले नहीं भूलता था। उस लड़की की मीठी बोली में छुपे भय ने उसके दिल पर अमिट छाप छोड़ी थी, जिसे मिटा पाना इस जन्म में मुमकिन तो नहीं था।
चांद पर नजरें टिकाए, उसने अपना वॉलेट निकला। उस वॉलेट में अपनी जोड़ी से बिछड़ा एक छोटा सा गोल झुमका था... जिसे वो सात सालों से अपने वॉलेट में संभाले घूम रहा था।
"कहां हो तुम? मै तुम्हे ढूंढ कर थक गया हूं।", शिवार्थ उस झुमके को आसमान की ओर उठाए बोला। उसकी आँखें भले ही झुमके पर थी पर चेतना उस रात की यादों में खोई हुई थीं, जब उस लड़की की मुहब्बत के तपिश में, उसने चुपके से उसके टूटे हुए झुमके को अपनी मुट्ठी में कस ली और न जाने क्यों जाते हुए भी उसे लौटा ना सका। उसने कुछ पल रुक कर उसे देखा तो था, पर बिना कुछ कहे ही वहां से निकल गया, उसकी मुट्ठी में वो झुमका कैद रहा। उन दोनो के जैसे ही, वो झुमके भी बिछोह के साजिश में धकेल दिए गए और शिकायत के तौर पर क्रंदन भी ना कर सकें। शिवार्थ की यादों में वो झुमके आज भी उसके हथेली में गड़ रहे थे, जिसका दर्द उसके दिल में दबा हुआ था।
वो अपनी लावारिस यादों में भटक ही रहा था कि तभी अचानक उसके चेहरे पर एक महकता हुआ सफेद, आंचल आ कर अठखेलियां करने लगा। उसने अपना चेहरा बाईं ओर झुका लिया और उस लहराते दुपट्टे को अपनी उंगलियों से जकड़ा।
उस दुपट्टे में चमेली के फूलों को खुशबू थी, बिल्कुल उसी की तरह...! आठ साल पहले, उस लड़की के जुल्फों से भी चमेली के फूलों की ऐसी ही मनमोहक खुशबु आ रही थी, जो शिवार्थ के जिस्म पर सुबह तक रही थी।
उसने तेजी से दुपट्टे को चेहरे के नीचे खींचा और अपना सिर कार के बाहर निकला, लेकिन वो स्कूटी पर बैठी उस लड़की का चेहरा देख पता, उससे पहले ही वो आगे बढ़ गई, ट्रैफिक धीरे धीरे खुलने लगी और जब तक शिवार्थ ने कार का दरवाजा खोल नीचे उतरा, तब तक वो काफी दूर निकल चुकी थी। वो उसके पीछे बगैर कुछ सोचे समझे दौड़ा, लेकिन वो जा चुकी थी। उसकी स्कूटी उन बड़े बड़े गाड़ियों के बीच देख पाना बिलकुल नामुमकिन हो गया, जो आगे चली जा रही थी।
"साहब... आप बाहर क्यों?", ड्राइवर ने तेजी से कार शिवार्थ के करीब ला कर रोकी।
शिवार्थ ने कोई जवाब ना दिया ड्राइविंग सीट का दरवाजा खोलते हुए बोला, " उतरो..!"
ड्राइवर को हैरत हुई, लेकिन वो बिना कोई सवाल किए नीचे उतर गया। जिसके तुरंत बाद शिवार्थ कार में बैठा और एक पल बाद ड्राइवर ने अपने सामने कार को बिजली के रफ्तार से दौड़ता हुआ देखा।
शिवार्थ ने ट्रक का पीछा किया और जल्द ही उसे ओवरटेक कर आगे आ गया, अभी भी उसे पीली स्कूटी पर बैठी वो सफेद परी नजर नहीं आई। जिसका दुपट्टा हवा में लहरा रहा था..!
"वो अचानक कहां चली गई? फरिश्ते की तरह कभी दिखती भी है तो अगले ही पल गायब हो जाती है...!", शिवार्थ बड़बड़ाया, उसका दिल निराशा के गहरे सागर में डूबने लगा था, तभी उसके सामने चलती एक कार चौराहे से दूसरी ओर मुड़ी और वो अनायास ही पीली स्कूटी सड़क पर दिखने लगी।
शिवार्थ की आंखे असमान्य रूप से फैल गईं, वो चौंका और अपनी कार की स्पीड कम कर दी, अब वो उसके पीछे चलता रहा। जब तक कि स्कूटी एक बेहद जीर्ण मकान के समाने नहीं रुक गई।
कार के भीतर से ही, शिवार्थ ने उस लड़की का चेहरा देखने की कोशिश की, जब देख ना सका तो अंत में कार से उतर गया, पीछे से दरवाजा बंद कर वो दो कदम आगे बढ़ा ही था कि वो लड़की अपने दुपट्टे को संभालते हुए मुड़ी।
शिवार्थ की नजरें कब से उसका चेहरा देखना चाहतीं थीं, और जब दिख गईं तो लगा जैसे वक्त थम गया हो। उस एक लम्हे में, ना तो उसकी पलकें हिल सकी और न ही कदम आगे बढ़ सका। बढ़ी तो सिर्फ उसके दिल की धड़कने। जो इतनी बेतहाशा धड़क रही थी, मानो उसके मुंह से छलक कर बाहर आ जाएगी।
ये वही थी..उसका पहला प्यार, उसके सात सालों का इंतजार, उसके बच्चे की मां...अनामिका सारंग!
एक बार फिर उसके कदम जम गए, जाने क्यों जब भी वो उसके सामने आती, वो अपने वजूद को पूरी तरह भूल जाता, वो कहां खड़ा है? क्यों खड़ा है और उसके आस पास क्या हो रहा है? इन सब से उसका कोई मतलब नहीं था, मतलब था तो सिर्फ उस लड़की से जो बेहद खूबसूरत लेकिन बहुत दूर थी। उसकी पहुंच से दूर, फलक के चमकते हुए उस चांद की तरह।
इधर अनामिका ने, स्कूटी को लॉक किया और अंदर चली गई। जब वो आंखे से ओझल हो गई, आखिरकार शिवार्थ को होश आया और वो तेज कदमों से आगे बढ़ा। जब वो घर के दरवाज़े पर पहुंचा, उसने अनामिका की वही मीठी सी आवाज सुनी, जो अपनी ही हमउम्र एक लड़की से कुछ बातें कर रही थी।
उसके समान जाने की शिवार्थ में हिम्मत नहीं थी, इसलिए वहीं दरवाजे पर टिक कर उसकी आवाज सुनने लगा, तभी उसने कुछ ऐसा सुना, जिससे उसकी भावनाएं असामान्य रूप से ठंडी और उदास पड़ गई।
"तुमने उस आदमी को कभी ढूंढने की कोशिश नहीं की, जिसे बच्चे को तुमने जन्म दिया।", उसके साथ बैठी लड़की ने पूछा।
"मुझे उस आदमी से नफरत हो गई थी उसी रात, मै उसे क्यों ढूंढेंगी?", अनामिका की धीमी मीठी आवाज शिवार्थ के दिल में खंजर सी चुभ गई।
फॉलो करने का शुक्रिया और समीक्षा के लिए भी, प्लीज 190 फॉलोवर्स हो गए हैं, 10 और मिल जाते तो 200 हो जाता, प्लीज फॉलो कर लीजिए, हम्बल रिक्वेस्ट..!