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The dead beloved

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शायर मिर्ज़ा

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"Warning: This content is dark, intense, and strictly 18+. Read at your own risk." ⚠ Warning: यह एक डार्क टोन वाला फिक्शन है जिसमें कुछ डायलॉग्स बोल्ड और इंटेंस हो सकते हैं। यदि आपको कोई लाइन ज़्यादा वल्गर या आपत्तिजनक लगे, तो कृपया कमेंट में बताएं...

Total Chapters (50)

Page 1 of 3

  • 1. Hot girls

    Words: 1614

    Estimated Reading Time: 10 min

    ⚠️ कंटेंट चेतावनी (Content Warning) ⚠️
    इस कहानी में डार्क रोमांस, मानसिक और भावनात्मक द्वंद्व, तथा बोल्ड, इरोटिक और ग्राफ़िक सीन शामिल हैं। इसमें ऐसे मोड़ और किरदार हैं जो नैतिक सीमाओं को चुनौती देते हैं और मानवीय जटिलताओं को उजागर करते हैं।
    यह रचना 18+ पाठकों के लिए है। कमजोर दिल वालों, ट्रिगर होने वाले या परिपक्व कंटेंट से असहज होने वालों के लिए यह उपयुक्त नहीं है।

    पढ़ें केवल तब... जब आप अंधेरे में छुपे सच से आंख मिलाने का साहस रखते हों।



    शाम का वक्त है। कुछ कुछ सूरज अभी नज़र आ रहा है। जबलपुर शहर की तूफानी शाम में जंगल के एक छोर पर बनी एक तीन मंजिला आलीशान हवेली के सामने एक बोलेरो आकर रूकी। हवेली को अगर बाहर से देखा जाए तो ये किसी भूतिया बंगले की तरह लगती है लेकिन अंदर से ये किसी बड़े हवादार महल की तरह है। चारों और घना काला जंगल है और एक छोर पर जबलपुर शहर बसा हुआ है। जंगल के बिलकुल बीचोबीच एक बड़ा सा पुराना शिव मंदिर है जो अब पूरी तरह से खंडहर बन चुका है। शायद अब वहां पर कोई रहता हो या फिर जाता हो।

    इस बोलेरो में से पांच लोग बाहर निकले और ये हैं कबीर , विराज , विनय , अवनी और मान्या। आइए एक बार इन लोगों के बारे में जान लेते हैं।

    कबीर जो की भूतों प्रेतों में बिलकुल भी विश्वास नहीं करता है और हमेशा ही लड़कियों के साथ में फ्लर्ट करता रहता है। अपने दोस्तों को भूत बनकर डराना या लड़कियों के साथ में मस्ती करना ही इसका एकमात्र काम है। सुंदर लड़कियां देखते ही ये फिसल जाता है। ना जाने अब तक कितनी लड़कियों को बिस्तर पर लिटाने का काम ये कर चुका है।

    विराज ये वो इंसान है जो भूतों प्रेतों में हद से भी ज्यादा विश्वास करता है और सबसे ज्यादा डरपोक है।


    विनय एक पड़ाकू कीड़ा है। जिसे भूतो प्रेतों में बड़ा इंटरेस्ट है और सारा दिन कोई न कोई किताब लेकर ही बैठा रहता है। भूतिया किताबें पढ़ना और पैरानॉर्मल वर्ल्ड में इंट्रेस्ट लेने का इसे बड़ा शौंक है।

    ये तीनों लड़के ही पक्के दोस्त हैं और एक होटल बनवाने के काम से यहां पर आए हैं। लगभग इन्हें एक महीने तक इस हवेली में ही रुकना है। हर एक की उम्र सताइस अठाइस साल है। किसी की भी अब तक शादी नहीं हुई है।

    मान्या और अवनी ये दोनों कबीर और विराज की कॉलेज गर्लफ्रेंड है और इनके साथ में यहां पर मस्ती करने आई हैं।  दोनों बेहद ही खूबसूरत लड़कियां थी जिन्हें देख किसी भी लड़के में वासना का भूत जाग उठे।

    शायद उन दोनों लड़कियों को यहां रातें रंगीन करने के लिए ही लाया गया था।

    मान्या जो कि कबीर की सेक्सी डार्लिंग है। दिखने में बेहद ही खूबसूरत। थोड़ी सी मोटी होने के कारण उसके चेस्ट के उभार सच में बड़े और रसीले थे। उसका बेक उससे भी शानदार था। कबीर अपना बिस्तर गर्म करने के लिए इसे यहां लेकर आया था।

    अवनी लंबे कद की गोरे रंग की बेहद ही खूबसूरत लड़की थी। उसका फिगर लाजवाब था और बम उससे भी खूबसूरत थे। इसे विराज अपनी गोदी में झूला झुलाने के लिए यहां लेकर आया था।

    वहीं विनय इन सब चीजों से बहुत दूर था।

    वहीं किताबी कीड़ा विनय सबसे अलग इंसान है जिसका लड़कियों में बिलकुल भी इंटरेस्ट नहीं है लेकिन वो भी अपने शरीफ पन के पीछे कई बड़े राज़ छुपाए बैठा है जिन्हें हम धीरे धीरे खोलेंगे।

    कबीर चारों और नज़र दौड़ाते हुए बोला "आज पूरे तीन साल बाद इस हवेली में वापिस कदम रखेंगे। हवेली आज भी वैसे ही पड़ी है जैसे की तीन साल पहले थी। पूरी तरह सुनसान बट अब हम लोग आ चुके हैं तो हवेली को सुनसान तो हर हाल में नहीं रहने देंगे।

    मान्या हवेली को चारों और से गौर से देखते हुए -यार कबीर ये इतनी बड़ी हवेली तुम्हारी है। ऐसी आलीशान हवेलियां तो मैंने फिल्मों में देखी थी। यकीन नहीं होता है की मैं आज सच में ही इतनी बड़ी हवेली के आगे खड़ी हूं। सच में कितनी खूबसूरत हवेली है ये।"

    कबीर हंसते हुए बोला -/येस बेबी ये हवेली हमने अपने पैसों से खरीदी है। अब बाहर ही खड़े रहना है या अंदर भी चलना है। चलो अंदर चलो।"

    अवनी मुस्कुराते हुए  -/यार मैं तो अंदर जा रही हूं। जो हवेली बाहर से इतनी शानदार है वो अंदर से न जाने कैसी होगी?/-

    विनय एक फाइल में अपनी नजरें दौड़ाते हुए बोला -/यहां से शहर लगभग दस किलोमीटर दूर है। हमारा बिजनेस का प्रोजेक्ट पूरा होने में लगभग एक महीना लग जायेगा। इसलिए एक महीने तक हमें यहीं पर रहना पड़ेगा। अब चलो अंदर।/-

    कबीर और विराज को छोड़कर बाकी सभी अंदर भाग गए।

    विराज हवेली की और नज़र दौड़ाते हुए बोला -कबीर मालूम है ना की इस हवेली को हमने अपना कैसे बनाया था ना ? याद है ना की तीन साल पहले यहां हम पांचों ने क्या किया था?/-

    इससे पहले की विराज आगे कुछ बोल पाता कबीर ने गुस्से से लाल होकर उसके मुंह पर हाथ रख दिया और अपनी आंखें निकालते हुए बोला -/विराज तुझे कितनी बार समझाया है की तीन साल का नाम मत लिया कर मेरे सामने। मैं बड़ी मुश्किल से उस घटना को भुला पाया हूं। आज भी वो रात मुझे याद है। तीन साल पहले उस रात को हम दरिंदों से यहां क्या किया था? ये सिर्फ पांच लोग ही जानते हैं मैं तुम विनय और वो दो सख्स जो यहां नहीं है। हमारा ये राज़ मान्या और अवनी के सामने हर हाल में नहीं आना चाहिए। अगर आज हमने इतनी तरक्की की है तो सिर्फ उस एक रात की वजह से। आगे से तीन साल का नाम मेरे सामने कभी भी मत लेना। वो तीन साल पहले के राज़ को उस रात में ही रहना चाहिए। समझे।"

    विराज ने डरते हुए हां में सिर हिला दिया। इतने में विनय वहां पर आते हुए गुस्से से बोला -/सालो तुम दोनों आते ही शुरू हो गए। मैने तुम्हें कितना समझाया था की शहर में और कहीं पर रुक जायेंगे। लेकिन तुम दोनों को बड़ा शौंक था तीन साल बाद में इस हवेली में वापिस आने का। हमारा वो तीन साल पहले का राज़ खुल सकता है। वो रात हमारी जिंदगी की काली रात थी। इस बात को हमेशा याद रखना। मैं तो कह रहा हूं कि इस हवेली को बेच दो वरना सबको हमारा राज पता चल जाएगा।"

    कबीर एक लंबी सांस छोड़ते हुए बोला -/डोंट वरी किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा। हमारा वो तीन साल पहले का राज़ राज़ ही रहेगा। अब अंदर चलो। हम यहां पर पूरी तरह से सेफ है। अब चलो अंदर।/-

    इतना कहकर वे सब अंदर चले गए।

    इधर जंगल में एक मंदिर के अंदर एक साधु बैठा हुआ था तभी पीछे से एक भगत आकर बोला -/गुरु जी उस हवेली में वो वापिस आ गए हैं। पूरे तीन साल बाद।/-

    ये सुनकर पुजारी के चेहरे पर एक गहरी मुस्कुराहट आ गई।

    पुजारी हंसते हुए बोला-/उन्हें तो आना ही था। आखिर कलावती ने उन्हें वापिस बुलाया है। अपना इंतकाम लेने के लिए। उस तीन साल पहले की रात का राज़ अब वापिस खुलेगा। अब फिर से वही खूनी कहानी शुरू हो गई है। फिर से खून बहेगा। अब इस कहानी में असली मज़ा आएगा। तीन साल पहले काला कांड करके भागे थे ना यहां से। अब इन्हें पता चलेगा कि इन्होंने कितनी बड़ी गलती की थी।"

    भगत शंका से बोला -/गुरु इसका मतलब है की इतिहास.....।/-
    पुजारी बीच में ही बोल पड़ा -/बिलकुल सही। इतिहास खुद को दोहरा रहा है। अब कोई भी नहीं बचेगा। इस हवेली में वापिस आकर उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी है। ये कहानी शुरू हुई थी आज से तीन साल पहले कलावती की मौत से और अब ये कहानी खत्म होगी इन तीनों दरिंदो के कत्ल से।"

    इधर हवेली के सामने लगे एक बहुत ही बड़े पीपल के पेड़ के पीछे से एक औरत बाहर निकली। जिसके बदन पर सफेद साड़ी थी। आंखें भी गहरी सफेद। खुले काले बाल। चेहरे पर एक डरावनी मुस्कुराहट। गोरा जिस्म जिसे देख किसी मर्द के मुंह से हवस की लारें टपकने लग जाएं। बड़े बड़े लटकते उबार और रसीला जिस्म और होठ।

    वो औरत हंसते हुए बिल्कुल ही धीरे से बोली -/आज तीन साल बाद में आखिरकार तुम्हें वापिस आना ही पड़ा। अब इतिहास खुद को फिर से दोहराएगा। ये खूनी कहानी जिसकी शुरुआत तुम दरिंदों ने तीन साल पहले की थी अब इस कहानी का अंत मैं करूंगी। कलावती की मौत से शुरू हुई ये कहानी अब तुम दरिंदों की मौत से खत्म होगी। अब वो तीन साल पुराना राज़ फिर से खुलेगा। फिर से खून बहेगा। तीन साल पहले तुम यहां आए थे? तब तुम दरिंदों ने यहां क्या किया था अब वो मैं तुम्हें बताऊंगी? कबीर तैयार रहना तुम्हारी मुलाकात अब वापिस इस कलावती से होगी। अपने साथ दो लड़कियां भी लाए हो हवस का नशा उतारने के लिए और बिस्तर पर सुलाने के लिए लेकिन नहीं इस बार तुम्हारी हवस को मैं खत्म करूंगी। कलावती खत्म करेगी तुम्हें।"

    ये कह कलावती ने एक हंसी का ठहाका लगाया और उसके बाद में वहां खामोशी छा गई।

    इधर कबीर और विराज को बस रात होने का इंतजार था ताकि वो मान्या और अवनी के साथ सेक्स कर सके।


    क्या है कबीर का राज?
    वो क्या करेगा बंद हवेली में मान्या और अवनी के साथ में??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा.....

    ⚠ Warning:
    यह एक डार्क टोन वाला फिक्शन है जिसमें कुछ डायलॉग्स बोल्ड और इंटेंस हो सकते हैं। यदि आपको कोई लाइन ज़्यादा वल्गर या आपत्तिजनक लगे, तो कृपया कमेंट में बताएं — मैं उसे एडिट कर दूंगा।
    बस एक रिक्वेस्ट है — रिपोर्ट न करें, क्योंकि इस कहानी को लिखने में दिल और मेहनत दोनों लगे हैं। 🙏



    अलविदा....!!!!!

  • 2. madness

    Words: 1306

    Estimated Reading Time: 8 min

    अंदर मान्या चारों और नज़र दौड़ाते हुए बोली -/वाओ यार क्या हवेली है तुम दोस्तों की ? ये तो मुगल जमाने का कोई महल लगता है। सच में कितनी खूबसूरत है।"

    इतने में चौकीदार रामू वहां पर आते हुए बोला -/सर जैसे ही मुझे आपके यहां पर आने की खबर मिली तब मैं तुरंत ही यहां पर भागा भागा चला आया और आज सुबह ही पूरी हवेली की साफ सफाई करा दी है। कबीर सर और मान्या मैम के कमरे सबसे ऊपर थर्ड फ्लोर पर हैं। विराज सर और अवनी मैम के कमरे सेकंड फ्लोर पर और विनय सर का कमरा सबसे नीचे ग्राउंड फ्लोर पर है।/-

    विनय गुस्से से बोला-/अबे! सालो मैं अकेला ग्राउंड फ्लोर पर कैसे रहूंगा?

    विराज हंसते हुए बोला -/तुझे ही बड़ा शौंक है अकेले रहने का और तुझे बड़ा शौंक है ना भूत प्रेतों को पकड़ने का तो ठीक है अब नीचे अकेले बैठकर भूत पकड़ते रहना। इसी बहाने काला जादू भी सीख लेगा।"

    ये सुनकर सब बुरी तरह हंसने लग गए।

    अवनी धीरे से बोली -रात हो गई है। मैं और मान्या डिनर बना लेती हैं और तुम तीनों तब तक फ्रेश होकर आओ।

    मान्या और अवनी किचन में चली गई और बाकी सभी अपने अपने कमरों में भाग गए।

    चौकीदार वहां से बाहर निकला और हवेली के पीछे बने एक कब्रिस्तान की और देखते हुए बोल पड़ा -मैं जानता हूं की अब वो खूनी कहानी फिर से शुरू होगी जो आज से तीन साल पहले कलावती के खून से खत्म हुई थी। इतिहास अब वापिस दोहराया जाएगा। भगवान ही जानता है की अब यहां से कोई जिंदा बचकर वापिस जा पायेगा या फिर नहीं। मैं तो इतना जानता हूं की जब कोई लड़की असमय मरती है या फिर मारी जाती है तब होता है एक पिसाचनी का जन्म। वो पिशाचिनी जो अपना बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। कुछ भी कर सकती है। अब कोई भी इन्हें नहीं बचा सकता है। इस हवेली में तीन साल बाद में कदम रखकर इन तीनों ने बहुत बड़ी गलती कर दी है। अब ये जिंदा इस हवेली से बाहर नहीं निकल सकते हैं।

    इतना कहकर चौकीदार वहां से निकल गया।

    कबीर सीढ़ियां चढ़ते हुए ऊपर आया और अपने कमरे में अपना सामान सेट करके नहाने के लिए चला गया। नहाने के बाद कबीर वापिस आया और अपने बालों में कंघी करते हुए धीरे से बोल पड़ा -/वो एक रात और हम मालामाल। हम पांच लोग। मैं , विराज और विनय और बाकी वो दो जो अब तक किसी को नहीं मालूम है की कौन थे? हा हा हा हा।

    इतना कहकर कबीर पागलों की तरह हंसने लगा।

    अगले ही पल कबीर धीरे से बोला "वैसे एक महीना तो यहां आराम से गुजरेगा। मान्या मेरी जान तुम्हें बस मैं यहां अपना बिस्तर गर्म करने के लिए ही लेकर आया हूं। अब तुम्हें हर रात इस कबीर को झेलना पड़ेगा। तीन साल पहले कलावती से बिस्तर गर्म करवाया था और अब कलावती का वो काम तुम करोगी। वादा रहा एक महीने में तुम्हें पूरी कॉलगर्ल बना दूंगा।"

    इसी के साथ कबीर के होठों से हवस की लार टपक कर नीचे गिर गई।

    इधर विराज अपने कमरे में आया और नहाकर बाहर निकला और कमरे में चारों और नजरें दौड़ाते हुए बोला -/हर एक चीज, हर एक चेहरा आज तीन साल बाद में फिर से ताजा हो रहा है। लेकिन उस राज़ को हमने इस तरह से दफना दिया है की कोई चाहकर भी उसकी तह में नहीं जा सकता है। हा हा हा हा हा।

    इतना कहकर विराज की भी हंसी निकल गई।

    विराज बेड पर बैठ बोला "अवनी अब तुम तैयार रहना। हर रात मेरा बिस्तर गर्म करने के लिए। अब हर रात इस मुलायम बिस्तर पर तूफान आया करेगा। तुम्हारे मुलायम और नाजुक से जिस्म के साथ में मैं हर रात खेला करूंगा। तुम्हारे उभारों का रस हर रात पिया करूंगा।"

    ये कह विराज अपने सीने पर हाथ फेरने लग गया।

    इधर विनय अपने कमरे में घुसते ही किताबे लेकर बैठ गया और किताब का टाइटल देखते हुए बोला -/डाकिनी बाप रे कितना खतरनाक टाइटल है? मैने इन दोनों को समझाया था की वापिस इस हवेली में मत आओ। अब तीन साल पहले के वो सभी चेहरे मुझे वापिस याद आ रहे हैं। बड़ी मुश्किल से उस घटना को भुला पाया था मैं।

    इतना कहकर विनय के चेहरे पर परेशानी आ गई।।

    इधर जंगल के मंदिर में साधु शिव की मूर्ति के आगे खड़ा था तभी अचानक से उसके पीछे एक बहुत ही भयानक सी बाइस तेईस वर्षीय लड़की आकर खड़ी हो गई जिसके बदन पर पूरे सफेद कपड़े थे, गहरी सफेद आंखें, चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट , नंगे पैर, गले में मोतियों का एक बेस्किमती हार।/-

    पुजारी बिना पीछे देखे हंसते हुए बोला -/आओ कलावती आओ। आखिर तुम्हें तो आना ही था।

    इतना कहकर वो साधु पीछे घूम गया और ये था वही चौकीदार रामू।

    साधु यानी की चौकीदार रामू हंसते हुए बोला - " आओ कलावती आओ। तुम्हें तो आखिर आना ही था। अब ये कहानी फिर से शुरू होगी क्योंकि तुम भी वापिस आ गई हो और वो दरिंदे भी।"

    कलावती बहुत ही भयानक और डरावनी आवाज में बोली - "अब एक एक इंसान से चुन चुन कर बदला लूंगी। तड़फा तडफा कर हर एक इंसान को मारूंगी हर एक इंसान को।"

    साधु हंसते हुए बोला - "कलावती तुम भले ही एक शक्तिशाली आत्मा हो और बदले की भी प्यासी हो लेकिन वे लोग भी कोई आम इंसान नहीं है। उनके हाथों में पहने हुए वो रुद्राक्ष हमेशा ही उनकी रक्षा करेंगे जिन्हें तोड़ने का कोई भी रास्ता नहीं है।"

    कलावती हंसते हुए बोली - "कलावती अपने रास्ते खुद ही बना लेती है। अभी तो ये खेल शुरू हुआ है? आगे आगे देखो होता है क्या?"

    इतना कहकर कलावती अचानक से गायब हो गई और साधु अपने आप से बोल पड़ा - " जो कुछ भी होता है लेकिन इतना जानता हूं की वे लोग यहां से जिंदा वापिस नहीं जाएंगे। सब मरेंगे। कलावती का कहर अब छाएगा उस हवेली पर और उन तीनों के साथ में वे दोनों बेगुनाह लड़कियां भी मरेंगी।"

    इधर सब लोग डायनिंग टेबल पर बैठे खाना खा रहे थे तभी अचानक से विनय के कानों में कुछ जमीन खोदने की आवाज़ आई।

    विनय अपने कान पर हाथ रखते हुए बोला - "ये आवाज सुनी तुम लोगों ने। लगता है की कोई गड्ढा खोद रहा है।"

    कबीर हंसते हुए बोला - " अवे! पागल खोपड़ी कोई कुछ भी नहीं खोद रहा है तेरे ही कान बज रहे हैं। अब चुपचाप खाना खा। देख तो सही आज कितना जबरदस्त खाना बना है। आलुओं की सब्जी तो सच में ही शानदार है। कुछ कहने को ही नहीं है।"

    मान्या मुस्कुराकर - " थैंक्स कबीर। वैसे सब्जी मैने बनाई है।"

    इतने में फिर से विनय के कान में कुछ खोदने की आवाज़ आने लगी और वो गुस्से से चिलाते हुए बोला - "अरे! मूर्खो तुम लोगों को खाने की पड़ी है। बाहर से कुछ खोदने की आवाज़ आ रही है। मैं जाकर देखता हूं।"

    ये कहकर विनय हवेली से बाहर जाने लगा।

    विराज गुस्से से - " यार तूं बेवजह ही परेशान हो रहा है कोई आवाज नहीं आ रही है। लगता है की तेरे कान बजने लग गए हैं। मुझे तो वैसे भी भूत प्रेतों से बहुत डर लगता है। बाहर देख तो सही कितना अंधेरा हैं। ये विनय पता नहीं कैसे बाहर चला गया?"

    क्या होगा हवेली के बाहर विनय के साथ?

    आज की रात क्या करेगा कबीर मान्या और अवनी के साथ में??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा।

    ⚠ Warning:

    यह एक डार्क टोन वाला फिक्शन है जिसमें कुछ डायलॉग्स बोल्ड और इंटेंस हो सकते हैं। यदि आपको कोई लाइन ज़्यादा वल्गर या आपत्तिजनक लगे, तो कृपया कमेंट में बताएं — मैं उसे एडिट कर दूंगा।

    बस एक रिक्वेस्ट है — रिपोर्ट न करें, क्योंकि इस कहानी को लिखने में दिल और मेहनत दोनों लगे हैं। 🙏

    अलविदा....!!!!!

  • 3. The dead beloved - Chapter 12

    Words: 1110

    Estimated Reading Time: 7 min

    अवनी अपनी बार पर जोर देकर बोली - "तुम्हें मालूम है ना की ये विनय पैरानॉर्मल एक्सपर्ट्स में से एक है। इसे किसी भूत प्रेत से डर नहीं लगता है। इनफेक्ट ये तो तलाश करता रहता है की कब इसे कोई भूत मिले और ये उसके साथ में गप्पे लड़ाए।"

    ये सुनकर सब हंस पड़े।

    कबीर बोला - "तुम लोग ना बेवजह ही इन भूत प्रेतों में विश्वास करते हो। ये विज्ञान एक युग है। कोई भूत प्रेत नहीं होते हैं। सब मन का वहम है।"

    विराज डरते हुए बोला - "ओह! हेलो कुछ भी मन का वहम नहीं है। भूत प्रेत होते हैं और रात को तो ये और भी भयानक हो जाते हैं। मैं तो खाना खाकर सोने के लिए जा रहा हूं। मुझे तो बड़ा लग रहा है इस हवेली में। लगता है की ये हवेली ही भूतिया है।"

    कबीर अपना मुंह फेरते हुए - " डरपोक कहीं का।"

    इधर हवेली के बाहर पीछे के भाग में विनय धीरे धीरे पहुंचा। बाहर घना अंधेरा था और दूर दूर तक कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

    विनय ने सामने गौर से देखा तो उसके सामने एक कब्रिस्तान था। एक हवेली के पीछे साथ में ही एक कब्रिस्तान को देखकर विनय के चेहरे पर बारह बजने की जगह एक हल्की सी मुस्कुराहट आ गई और वो अपने आप से बोल पड़ा - "कमाल है तीन साल पहले की उस एक घटना ने इतने बड़े कब्रिस्तान को जन्म दे दिया है यकीन ही नहीं होता है।"

    इतने में फावड़े के चलने की वो आवाज फिर से विनय के कानों में आने लगी।

    विनय सामने घने अंधेरे में एक कब्र की और इशारा करते हुए बोला - "आवाज उस कब्र के पास में से आ रही है। सुनने में एस लग रहा है की जैसे की कोई कब्र खोद रहा है लेकिन भला इतनी रात को कोई क्या करेगा?

    विनय ने कुछ सोचते हुए अपने कदम बेझिझक उस कब्र की और बढ़ा दिए क्योंकि डर तो उसे लगता ही नहीं था।

    कब्र काफी गहरी थी और अंदर से कोई बाहर मिट्टी फेंक रहा था। विनय धीरे धीरे पास जाते हुए बोला - "कौन है अंदर? कौन है?"

    लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आया तो विनय ने फिर से पूछा विनय के कई बार पूछने पर भी कोई जवाब नहीं आया तो विनय ने अपने मोबाइल की टॉर्च चालू की और उस गड़े में रोशनी दौड़ा दी। अचानक से विनय के सामने एक बूढ़े आदमी का चेहरा आ गया और वो धड़ाम से पीछे जमीन पर गिर गया और एक बोर्ड से उसका सर टकरा गया। विनय ने उस कब्र पर नजर दौड़ाई तो उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गई क्योंकि उस बोर्ड पर लिखा था - " कलावती की कब्र।"

    ये नाम पढ़ते ही विनय के सामने तीन साल पहले की सारी घटनाएं दौड़ने लगी और उसके चेहरे पर एक डर आ गया। इतने में उस गड़े में से एक बूढ़ा आदमी बाहर निकला और अपने कपड़ों को साफ करने लगा। वो आदमी रेत से पूरी तरह से सन चुका था।

    बेहद ही भयानक बुढ़ा था। बड़ी बड़ी दाढ़ी मूंछ वाला। अगर रात के अंधेरे में कोई उसे देख लेता तो उसकी रूह कांप उठती।

    विनय खड़ा होते हुए बोला - "बाबा कौन है आप और कहां से आए हैं? आप इतनी रात को यहां पर इस तरह से कब्र क्यों खोद रहे हैं?"

    लेकिन इस बूढ़े आदमी ने कोई जवाब नहीं दिया और गुस्से से विनय को घूरने लग गया।

    विनय अपना हाथ बूढ़े की आंखों के आगे दौड़ाते हुए बोला - "हेलो बाबा आप ठीक तो है ना? आपको सुनाई नहीं देता है क्या? मैं आपसे कुछ पूछ रहा हूं आप इतनी रात को कब्र क्यों खोद रहे हैं?"

    उस बूढ़े ने इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं दिया और अपना फावड़ा उठाकर वहां से जाने लगा तभी विनय पीछे से बोला - " अवे! ओ बूढ़े पागल है क्या? मैं तुजसे कुछ पूछ रहा हूं? कौन है तूं? किसलिए कब्र खोद रहा है ये? चुपचाप वापिस गड़ा भर ये। साला कुत्ता कहीं का।"

    ये सुनकर वो बूढ़ा वहीं पर रुक गया और अचानक से पीछे मुड़ा और अपनी गर्दन एक और टेढ़ी कर ली। ये देखकर विनय बुरी तरह डर गया और वो बूढ़ा बिलकुल विनय के पास आ गया और उसके चेहरे के पास अपना चेहरा करते हुए डरावनी आवाज में बोला - "धीरे बोलो वरना कलावती आ जायेगी। मुझे तीन कब्रें तैयार करनी है। वो भी जल्द ही। कलावती ने कहा है ना।"

    इतना कहकर वो बूढ़ा वहां से चला गया और अंधेरे में जाकर ही कहीं पर गायब हो गया। विनय धड़ाम से वहीं काली रात में कलावती की कब्र के पास में गिर गया और बोला - "लगता है की कुछ भयानक होने वाला है। कुछ ऐसा की जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। ये बूढ़ा आखिर था कौन और ये उस कलावती को कैसे जानता है। ये कब्रें और तीन कब्रें खोदने की बात कही गई है। कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।"

    इतने में जंगल में से जंगली शियारों के रोने की आवाज आने लगी ये आवाज सुनकर विनय तेजी से खड़ा हो गया और फिर उसकी नजरें कलावती की कब्र पर जाकर पड़ गई जो आज भी वैसी ही पड़ी थी जैसी की तीन साल पहले थी।

    विनय खड़ा हुआ और फिर से उसके कानों में वही जंगली आवाजें आने लगी और वो थोड़ा सा घबरा गया। इतनी भयानक और काली रात में रात के बारह बजे वो अकेला ही एक कब्रिस्तान के बीचोंबिच एक कब्र के पास खड़ा था और वो भी कोई आम कब्र नहीं कलावती की कब्र।

    ये देख ना चाहते हुए वो विनय को डर लगने लग गया। ऊपर से रात भी बहुत ही डरावनी थी।

    तभी उसके कानों में एक मंद सी आवाज आई „“हसीन जिस्म....... सजा हुआ बिस्तर....... नंगी लड़की....... तीन लड़के.......काली रात......बिस्तर पर तूफ़ान........वेलकम इन हेल .......”

    ये सुनते ही विनय घबराई नजरों से चारों और देखने लग गया। आज जिंदगी में पहली बार उसे डर लग रहा था।

    आवाज कब्र में से आ रही थी। ये देख वो बुरी तरह घबरा गया और जल्दी से हवेली के अंदर भाग गया यहां शायद पहले से ही कोई रातें रंगीन कर रहा था मान्या और अवनी के साथ।

    क्या है राज़??

    कौन थी कलावती और क्या किया था इन्होंने तीन साल पहले??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा......

    ⚠ Warning:

    यह एक डार्क टोन वाला फिक्शन है जिसमें कुछ डायलॉग्स बोल्ड और इंटेंस हो सकते हैं। यदि आपको कोई लाइन ज़्यादा वल्गर या आपत्तिजनक लगे, तो कृपया कमेंट में बताएं — मैं उसे एडिट कर दूंगा।

    बस एक रिक्वेस्ट है — रिपोर्ट न करें, क्योंकि इस कहानी को लिखने में दिल और मेहनत दोनों लगे हैं। 🙏

    अलविदा.....!!!!!!

  • 4. my se*y darling

    Words: 1721

    Estimated Reading Time: 11 min

    विनय ने हवेली के अंदर आकर देखा तो सब लोग शायद सो चुके थे लेकिन वो ना जाने क्यों अभी भी डरा हुआ था।

    विनय ने एक लंबी राहत की सांस ली और बोला , "मुझे भूत प्रेत से डर नहीं लगता है लेकिन न जाने क्यों आज दिल इतनी तेजी से धड़क रहा है। पता नहीं क्यों लग रहा है की कहीं वो तीन साल पहले का वाकिया फिर से  न दोहराया जाए।"

    इतना कहकर विनय अपने कमरे में चला आया और बेड पर लैपटॉप लेकर बैठ गया।

    इधर कबीर और मान्या का कमरा एक ही फ्लोर पर था। कबीर अपने कमरे में खिड़की के पास खड़ा सिगरेट के कश भर रहा था तभी उसकी नज़र सामने जंगल के बीचोबीच खड़े एक शिव मंदिर पर जाकर रुक गई। ये मंदिर अब पूरी तरह से टूट फूट चुका था और किसी खंडहर का रूप धारण कर चुका था लेकिन रात के घने अंधेरे में भी वो मंदिर कबीर को इतनी दूर से साफ़ नज़र आ रहा था। उस मंदिर को देखकर कबीर के चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई और उसे बो तीन साल पहले की घटनाएं फिर से नज़र आने लगी की एक लड़की अपनी जान बचाने के लिए तेजी से इसी शिव मंदिर की और भागी जा रही है और पांच दरिंदे हाथों में चाकू लिए उस लड़की का पिछा कर रहे हैं। पांचों दरिंदों के हाथ खून से सने हुए हैं। कबीर इससे आगे उस घटना को याद कर पता तभी किसी ने दरवाजा नॉक किया। कबीर अचानक से होश में आ गया और सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए अपने मन में बोला , "कोई भगवान नहीं होते हैं। अगर भगवान होते तो उस लौंडिया को बचा न लेते। भाड़ में गए भगवान आज का भगवान तो मैं ही हूं।"

    इतने में फिर से दरवाजा नोक हुआ और कबीर ने पीछे मुड़कर देखा तो दरवाजे के पास में मान्या खड़ी थी। मान्या ने इस वक्त नाइटी पहन रखी थी जिसमें उसका गौरा बदन बेहद ही खूबसूरत नज़र आ रहा था। उसे देखते ही कबीर ने अपने होठ दबा लिए और अपने सीने पर हाथ फेरते हुए बोला , "माय सेक्सी डार्लिंग।"

    मान्या नशीली आवाज में बोली , "अंदर आ सकती हूं?"

    कबीर ने धीरे धीरे अपने कदम मान्या की और बढ़ा दिए और उसे अपनी बांहों में भरकर कमरे के अंदर खींच लिया और दरवाजा बंद करते हुए बोला , "बहुत सेक्सी लग रही हो। हद से भी ज्यादा।"

    इतना कहकर कबीर ने मान्या को अपनी बांहों में भर लिया और उसके कान पर किस करते हुए बोला , "तुम्हें मालूम है डार्लिंग की मैं तुम्हें यहां पर क्यों लेकर आया हूं?"

    मान्या ने नशीली आवाज में पूछा , "तुम ही बता दो बेब।"

    कबीर ने मान्या को कसकर अपनी बांहों में भर लिया और उसकी कमर से नीचे तक अपना हाथ फेरते हुए बोला , "ताकि हम दोनों एक महीने तक खूब मज़े लूट सकें। यहां पर ना ही तो हमें कोई देखने वाला है और ना ही डिस्टर्ब करने वाला।"

    ये सुनकर मान्या ने खुद को कबीर से अलग किया और अपना मुंह दुसरी और फेरते हुए बोली , "ओह ! तो मेरा फायदा उठाना चाहते हो?"

    ये सुनकर कबीर के चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई। कबीर ने फिर से मान्या को पीछे से जाकर अपनी बांहों में भर लिया और उसके पेट पर हाथ फेरते हुए बोला , "येस डार्लिंग फायदा उठाना चाहता हूं तुम्हारा पूरे एक महीने तक। कोई ऐतराज है क्या मेरी सेक्सी डार्लिंग को।"

    मान्या हल्की सी हंसी में , "ओह ! तो मुझसे इतना प्यार।"

    कबीर ने एक ही झटके में मान्या को अपनी और घुमा लिया और उसके होठों पर किस करते हुए बोला , "बहुत प्यार करता हूं तुमसे। हद से भी ज्यादा। इसलिए मैं तुम्हें चाहता हूं सारी रात वो भी अपने बिस्तर पर।”

    मान्या कबीर को पीछे की और धक्का देते हुए बोली , "बेशर्म कहीं के। मेरा रेप करने का इरादा है क्या?"

    कबीर मान्या के पास आते हुए , "नहीं तो कुछ और करने का वो भी सारी रात....।"

    मान्या अपनी नजरें फेरते हुए बोली , "लेकिन कबीर शादी से पहले ये सब गलत है। अगर मुझे इतना ही चाहते हो तो मुझसे शादी कर लो। शादी के बाद सारी उम्र सारी रात मेरे साथ जो कुछ करना चाहो करते रहना कोई भी नहीं होगा तुम्हें रोकने वाला।"

    ये सुनकर कबीर ने फिर से एक ही झटके में मान्या को अपनी बांहों में भर लिया और उसके नाक से अपना नाक लगाते हुए बोला , "तुम्हें मालूम है ना की मेरे माता पिता तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं? वो कहते हैं की तुम एक अनाथ हो। तुम्हारा इस दुनिया में कोई नहीं है। इसलिए तुम मेरे लायक नहीं हो। मैं तुम्हें अपने साथ इस हवेली में लेकर आया हूं ये बात भी मैने अपनी फैमिली को नहीं बताई है। बट डोंट वरी डार्लिंग वादा है मेरा एक दिन शादी करूंगा तो तुमसे ही। अपनी फैमिली को मैं मना लूंगा।"

    मान्या अपनी नजरें फेरते हुए बोली , "बहुत भरोसा करती हूं मैं तुम पर कबीर और हद से भी ज्यादा प्यार करती हूं तुमसे प्लीज मेरा भरोसा मत तोड़ना।"

    कबीर मान्या के होठों पर किस करते हुए बोला , "वादा रहा कभी तुम्हारा भरोसा नहीं तोडूंगा। चलो अब थोड़ी सी नशीली बन जाओ फिर हम सारी रात बेड को नशीला करेंगे।"

    इतना कहकर कबीर अलमारी के पास गया और अलमारी को खोलकर ड्रिंक की बोतल निकालकर ले आया। मान्या चुपचाप चेयर पर बैठ गई। कबीर उसके सामने चेयर पर बैठ गया और गिलासों में ड्रिंक डाल ली।

    मान्या अपनी नजरें फेरते हुए बोली , "मेरा मूड नहीं है।"

    कबीर हल्की सी हंसी में , "केमोन बेबी इतना तो अब बनता ही है।"

    मान्या गला साफ़ कर बोली, "देखो कबीर मैं तुम्हारे साथ ड्रिंक कर सकती हूं लेकिन साथ सोने वाली और ये बातें मुझे मंजूर नहीं है। हां लेकिन शादी के बाद जरूर ये सबकुछ कर सकती हूं लेकिन अभी नहीं।"

    ये सुन कबीर गुस्से से उसे घूरने लग गया और फिर डेविल स्माइल में बोला , "बेबी तुम एक गांव की रहने वाली हो। इसलिए ऐसा सोचती हो। शहरों में ये सब चीजें आम है।डोंट वरी घबराओ मत मैं तुम्हारे साथ में कुछ भी नहीं करूंगा। अब जल्दी से पी लो।"

    लेकिन मान्या ने अपना मुंह फेर लिया तो कबीर खड़ा होते हुए बोला , "ओके बेबी मत सोना मेरे साथ। अपने कमरे में जाकर सो जाना। कुछ भी गलत नहीं करूंगा तुम्हारे साथ। अब तो पी लो।"

    मान्या ने कबीर की और उम्मीद से देखा और कबीर ने अपनी आंखों से ड्रिंक की और इशारा किया तो मान्या ने गिलास उठाकर शराब पी ली।

    कबीर ड्रिंक का गिलास अपने होठों पर लगाते हुए अपने मन में बोला , "सॉरी सेक्सी बेबी। तुमने ये नाइटी पहनकर अच्छा नहीं किया। अब मेरी नजरें तुम्हारे इस नशीले वदन पर जाकर टिक गई हैं और जब तक मेरी हवस शांत नहीं हो जाती है। जब तक मेरी प्यास बुझ नहीं जाती है तब तक बेबी तुम्हें रहना तो मेरे साथ ही पड़ेगा। बेबी तुम्हें पता भी नहीं चला की मैने तुम्हारी ड्रिंक में ड्रग्स मिला दी है। अब सारी रात मेरी और तुम्हारी प्रेम कहानी के नाम। तुम्हारी और मेरी दीवानगी के नाम। सारी रात मैं तुम्हारे रसीले जिस्म के मजे लूंगा और तुम्हारे इन बड़े बड़े उभारों के साथ में खेलूंगा।"

    इतना कहकर कबीर के चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई।

    मान्या ने ड्रिंक का गिलास खाली किया और जैसे ही खड़ी होने लगी तभी उसने अपना सर पकड़ लिया नीचे गिरने ही वाली थी की तभी कबीर ने उसे अपनी बांहों में भर लिया।

    मान्या की आंखें अब धीरे धीरे बंद हो रही थी। मान्या कबीर के सीने से लगती हुई बोली , "मुझे चक्कर आ रहे हैं।"

    कबीर डेविल स्माइल में , "डोंट वरी बेबी मैं हूं ना तुम्हारे साथ।"

    इतना कहकर कबीर ने मान्या को अपनी गोदी में उठा लिया और उसे बेड पर ले जाकर लेटा दिया। कबीर मान्या की बगल में लेट गया और उसके सर पर किस करते हुए बोला , "सॉरी डार्लिंग नहीं रोक सका खुद को।"

    मान्या नशे में बोली , "ड्रिंक करके इस तरह चक्कर तो नहीं आते हैं। क्या मिलाया था तुमने ड्रिंक में ?"

    ये सुनकर कबीर के चेहरे पर एक जहरीली मुस्कुराहट आ गई और वो मान्या के गाल पर किस करते हुए बोला , "ड्रग्स बेबी।"

    मान्या लंबी सांस भरते हुए बोली , "क्यों किया तुमने ऐसा? मेरा फायदा मत उठाओ?"

    कबीर ने कसकर मान्या को अपने साथ में चिपका लिया और उसके माथे पर किस करते हुए बोला , "बेबी इतना हॉट जिस्म लेकर यूंही घूमती रहती हो? कम से कम मुझे तो इसका फायदा उठाने दो। वादा रहा बेबी ज्यादा परेशान नहीं करूंगा। सिर्फ दो घंटे या तीन घंटे उसके बाद में तुम्हें छोड़ दूंगा।"

    इतना कहकर कबीर के चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई।

    मान्या अब अपने सारे होश खो चुकी थी। मान्या कबीर के सीने से लगते हुए बोली , "मुझे गर्मी लग रही है?"

    कबीर मान्या की नाइटी को उतारते हुए बोला , "डोंट वरी बेबी अब मैं हूं ना तुम्हारी सारी गर्मी को उड़ा डालूंगा। बस दो मिनिट रुको। मुझे अपने कपड़े उतार लेने दो। आज तो मैं तीन साल पहले की यादें फिर से ताज़ा करके ही रहूंगा।”

    मान्या अब पूरी तरह बेहोश हो गई थी। कबीर ने उसके गाल को थपथपाया और फिर एक ही झटके में उसके ऊपर चला गया और उसके होठों पर पागलों की तरह किस करने लगा।

    कबीर ने मान्या के पेट पर किस किया और बोला , "सॉरी बेबी लड़कियों की इज्जत लुटना तो मेरी फितरत है। बट वादा करता हूं तुम्हारी इज्जत बड़े ही प्यार से लुटुंगा जैसे तीन साल पहले उस लौंडी की लूटी थी।"

    इतना कहकर कबीर के चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई और तीन साल पहले की घटना फिर से उसके दिमाग में चक्कर काटने लगी। कबीर के सामने अब मान्या बिल्कुल नंगी लेटी हुई थी और कबीर अपना हाथ उसके रसीले उभारों की और बढ़ा रहा था।

    क्या हुआ था तीन साल पहले??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा.....

    ⚠ Warning:

    यह एक डार्क टोन वाला फिक्शन है जिसमें कुछ डायलॉग्स बोल्ड और इंटेंस हो सकते हैं। यदि आपको कोई लाइन ज़्यादा वल्गर या आपत्तिजनक लगे, तो कृपया कमेंट में बताएं — मैं उसे एडिट कर दूंगा।

    बस एक रिक्वेस्ट है — रिपोर्ट न करें, क्योंकि इस कहानी को लिखने में दिल और मेहनत दोनों लगे हैं। 🙏

    अलविदा......!!!!!!!

  • 5. f**king नाइट

    Words: 1238

    Estimated Reading Time: 8 min

    कबीर ने उसके उभारों को मुंह में ले लिया और आमों की तरह उन्हें चूसने लग गया।

    "उम्ममम.... उफ्फ .... कबीर क्या कर रहे हो.....!" मान्या नींद में ही मादक सिसकारियां निकालने लग गई।

    कबीर ने एक हाथ से उसके एक उबार को पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उसके दूसरे उभार को चूसे जा रहा था।

    थोड़ी देर में कबीर ने चूस चुसकर उन्हें पूरा लाल कर दिया और सारा रस पी गया।

    कबीर उसके होठों को चूमने लग गया और फिर उसकी गर्दन और उसके पेट को चूमने लग गया। चूम चुनकर उसने उसके जिस्म के कोने कोने को लाल कर दिया।

    इसके बाद कबीर ने उसकी टांगें फैलाई और अपना पार्ट सेट करते हुए उसकी सॉफ्टनेस में एंटर कर गया।

    "उम्ममम..... आ.... आ..... दर्द हो रहा है... उफ्फ..... मार डाला....!" मान्या छटपटाते हुए चिला पड़ी लेकिन कबीर ने उसके होठों को चूम लिया और अपनी रफ्तार बढ़ा दी।

    वो किसी बिजली की मशीन की तरह तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था और तभी उसके शरीर में कंपन हुआ और वो निढाल होकर लेट गया और लंबी लंबी सांसे भरते हुए बोला:: सोरी सेक्सी डार्लिंग आज पता नहीं कैसे इतनी जल्दी हो गया वरना मेरी टाइमिंग दो घंटे की है। लेकिन तुम फिक्र मत करो कल से तुम्हें मुझे तीन तीन घंटे झेलना पड़ेगा और वो भी अलग अलग पोजीशन में...!"

    ये कहते हुए कबीर के होठों पर डेविल स्माइल आ गई और वो उसे अपने सीने से लगाकर सो गया।

    इधर विराज अपने कमरे में खिड़की के पास में चेयर लेकर बैठा हुआ था। विराज ने खिड़की के बाहर नज़र दौड़ाई तो उसे जंगल के अंदर खड़ा वो पुराना खंडहर बन चुका शिव मंदिर साफ नज़र आ रहा था। उस मंदिर को देखते ही विराज के दिमाग में तीन साल पहले की सारी घटनाएं चक्कर काटने लगी।

    विराज हंसते हुए बोला , "कमाल है उस एक चेहरे ने नज़र पर इस कदर असर किया की कई हसीन सख्श मेरे दिमाग से निकल गए।"

    विराज को इतना कहकर अचानक से कुछ याद आया और वो घड़ी में नज़र दौड़ाते हुए बोला , "रात हो चुकी है। वो साला कबीर का बच्चा तो मान्या को अपने बिस्तर पर बिठाकर मजे लूट रहा होगा। मैं भी अवनी को यहां पर ले ही आया हूं तो मुझे भी कुछ मजे लूटने चाहिए।"

    इतना कहकर विराज अपने सीने पर हाथ फेरने लगा और धीरे धीरे अपने कदम अवनी के कमरे की और बढ़ा दिए।

    विराज ने जाकर देखा तो अवनी बेड पर मजे से सोई पड़ी थी। विराज ने अवनी को देखकर अपने होठ दबा लिए। सलीन के कपड़ों में बेड पर लेटी पड़ी अवनी बेहद ही हॉट नजर आ रही थी। विराज ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।

    विराज बेड पर अवनी के पास में जाकर बैठ गया। अवनी सोई हुई थी। उसका मुंह दुसरी और था। विराज उसे पीछे से गोर से देखने लगा और फिर उसकी टांगों पर अपना हाथ फेरते हुए बोला , "वाहों! बेबी यू आर वेरी वेरी टेंपटिंग। मैं तो फिदा हो गया तुम पर।"

    ये कहते हुए विराज उसके बेक पर हाथ फेरने लगा और फिर उसके बम पर स्लैप कर दिया और अपनी शर्ट उतारकर फेंक दी।

    विराज अवनी के साथ में लेट गया और उसके पेट पर हाथ रखकर उसे पीछे से कसकर अपने साथ चिपका लिया।

    अवनी अचानक से जाग गई और खुद को छुड़ाते हुए बोली , "कौन है..?"

    विराज ने एक ही झटके में अवनी को अपनी बांहों में भर लिया और उसके फोरहेड पर किस करते हुए बोला , "डोंट वरी बेबी मैं हूं। तुम्हारा होने वाला पति।"

    अवनी ने विराज को देखा और एक चैन की सांस ली और फिर विराज के सीने से लगती हुई बोली , "इस तरह डराने की क्या जरूरत थी? मुझे बता भी तो सकते थे? मैं डर गई थी।"

    विराज अवनी के बालों को सहलाते हुए बोला , " डार्लिंग तुम भी ना बच्चों की तरह डर जाती हो। जस्ट चिल यार। वैसे भी बड़ी मुश्किल से शहर से इतनी दूर यहां पर आने का मौका मिला है और एक तुम हो की मुझसे दूर दूर भाग रही हो।"

    अवनी विराज को कसकर अपनी बांहों में भरते हुए बोली , "कहां दूर भाग रही हूं? मैं तो तुम्हारी ही हूं ना?"

    विराज हंसकर , "ये एक महीना तुम्हारी और मेरी दीवानगी के नाम। अब शुरू करें।"

    अवनी बेहद ही प्यारा से विराज की और देखते हुए बोली , "क्या शुरू करने का इरादा है मेरे विराज बाबू का।"

    विराज अवनी के होठों को चूमते हुए बोला , "जैसे मेरी मासूम सी बेबी को तो कुछ मालूम ही नहीं है।"

    इतना कहकर विराज अचानक से अवनी के ऊपर आ गया और उसकी गर्दन को पागलों की तरह चूमने लग गया। अवनी हंसते हुए बोली , "सारी रात पड़ी है। इतनी जल्दबाजी कयो कर रहे हो?"

    विराज अवनी के नाक से अपना नाक लगाते हुए बोला , "क्योंकि अब मैं खुद को और बिलकुल भी नहीं रोक सकता हूं।"

    अवनी मासूम सी आवाज में बोली:: लेकिन प्लीज आज बहुत थकी हुई हूं मैं। कल कर लेना। पक्का...... चाहे दो राउंड लगा लेना मैं तुम्हारा पूरा साथ दूंगी। लेकिन आज बहुत थक गई हूं मैं....!"

    विराज प्यार से उसे देखने लग गया और फिर धीरे से बोला:: लेकिन अब मेरा मूड बन गया है सेक्सी डार्लिंग.... अगर नींद लेनी है तो मुझे शांत करना पड़ेगा....!"

    अवनी उसके बिल्कुल करीब आ गई और प्यार से बोली:: मुझे मालूम है कि बिना सेक्स के तुम्हें शांत कैसे करना है..!"

    ये कहते हुए अवनी ने उसका पार्ट अपने हाथों में भर लिया और विराज की हल्की सी सिसकारी निकल गई।

    अवनी प्यार से उसके पार्ट को सहलाने लग गई और विराज बस आंखे बंद करके उसे फील करने लगा।

    इतने में अवनी ने अपनी स्पीड फूल तेज कर दी और हल्की सी आह के साथ विराज बिल्कुल शांत हो गया और अवनी का हाथ गिला हो गया।

    अवनी धीरे से बोली:: चलो आज की रात तो चैन से सोऊंगी कल ना जाने क्या होगा?"

    इधर हवेली के बाहर बने कब्रिस्तान में अचानक से तेज हवा चलने लगी और एक काला साया रात के काले अंधेरे में वहां पर आकर खड़ा हो गया।

    वो काला साया फटी हुई बेहद ही डरावनी आवाज में बोला , "जितने मजे लेने है ले लो दरिंदो। बहुत शौंक है ना तुम्हें लड़कियों की इज्जत लूटने का। अब तुम कुछ भी करने के लायक नहीं बचोगे।"

    इतना कहकर वो साया पागलों की तरह हंसने लग गया।

    इधर थर्ड फ्लोर पर कबीर ने भी मान्या को छोड़ दिया और उसे अपने ऊपर लेटा लिया और उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोला , "सो जाओ बेबी अब तुम चाहकर भी मुझसे बच नहीं सकती हो। अब तुम्हें मेरा हर कहना मानना होगा। अगर तुमने मुझसे बचने की कोशिश की तो अंजाम वही होगा जो तीन साल पहले हुआ था।"

    इतना कहकर कबीर के चेहरे पर एक गहरी डेविल स्माइल आ गई और वो सारे चेहरे उसके दिमाग में चक्कर काटने लग गए जो तीन साल पहले शायद कहीं दब गए थे।

    क्या हुआ था आखिर जहां तीन साल पहले??

    क्या खुल जाएगा अब इनका राज??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा.......

    ⚠ Warning:

    यह एक डार्क टोन वाला फिक्शन है जिसमें कुछ डायलॉग्स बोल्ड और इंटेंस हो सकते हैं। यदि आपको कोई लाइन ज़्यादा वल्गर या आपत्तिजनक लगे, तो कृपया कमेंट में बताएं — मैं उसे एडिट कर दूंगा।

    बस एक रिक्वेस्ट है — रिपोर्ट न करें, क्योंकि इस कहानी को लिखने में दिल और मेहनत दोनों लगे हैं। 🙏

    अलविदा.....!!!!!!!

  • 6. scared night

    Words: 1422

    Estimated Reading Time: 9 min

    सबसे नीचे ग्राउंड फ्लोर पर अपने कमरे में बेड पर बैठा विनय कोई किताब पढ़ रहा था। किताब का नाम था , "कर्ण पिशाचिनी खौफ का नया खेल।"

    विनय ने अचानक से किताब को साइड में रखा और बोला , " क्या किताब में लिखी हुई बात सच है की साधना करने से कर्ण पिशाचनी को भुलाया जा सकता है और ये कर्ण पिशाचीन बेहद ही खूबसूरत होती है। इससे इंसान की प्यास बुझ जाती है लेकिन कर्ण पिशाचिनी को हर रात संतुष्ट करना होता है । बाप रे अगर कर्ण पिशाचिनी को संतुष्ट करने के चक्कर में अगर कर्ण पिशाचिनी प्रेगनेट हो जाए तो क्या होता है? बच्चा कैसा होता होगा?"

    इतना कहकर विनय ने अपने सर पर थपड़ मारा और बोला , "मैं भी पागल ही हूं कैसी कैसी बातें कर रहा हूं। मैं भी ना बोल तो ऐसे रहा हूं जैसे मुझे उस कर्ण पिशाचिनी को अपनी बांहों में भरकर प्रेग्नेट करना है। ये कर्ण पिशाचिनी तो सिर्फ फालतू की वकबास है। कोई डायन वायन नहीं होती है लेकिन एक बात अभी तक समझ में नहीं आ रही है की बाहर कब्र खोदने वाला वो बूढ़ा ये क्यों कह रहा था की उसे कलावती ने भेजा है। लगता है पागल था साला , ठरकी कहीं का?"

    इतना कहकर विनय ने सभी लाइट्स ऑफ कर दी और कंबल लेकर सो गया लेकिन एक भयानक सा काला साया न जाने कब से विनय को खिड़की के अंदर से घूरे जा रहा था।

    अचानक से वो साया अपने आप से बुदबुदाया, "मेरा पहला शिकार।"

    इतना कहकर वो साया वहां से गायब हो गया।

    विनय सोया पड़ा था तभी उसके कानों में कोई अजीब सी आवाज आने लगी जैसे की कोई दीवार में कुछ टांग रहा हो। कोई हथौड़े से किले रोप रहा हो।"

    पहले तो विनय को लगा की ये सिर्फ उसका एक वहम है और  वो अपने ऊपर कंबल को डालते हुए सो गया लेकिन वो आवाज और भी तेज हो गई और विनय अचानक से उठ बैठा और कमरे की सभी लाइट्स चालू कर ली।

    कमरे में अचानक से रोशनी हो गई। विनय ने दूर दूर तक नज़र दौड़ाई तो कमरे में कोई भी नज़र नहीं आ रहा था।

    विनय अपने आप से बोल पड़ा , "ये आवाज कैसी है? और कहां से आ रही है?"

    इतना कहकर विनय गौर से उस आवाज को सुनने लग गया।

    विनय ने देखा की वो आवाज शायद कमरे के बाहर से आ रही है।

    विनय खड़ा हो गया और कमरे से बाहर निकलकर देखा तो हवेली में अंधेरे के सिवाय और कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। विनय ने स्विच ऑन की लेकिन लाइट्स जली ही नहीं।

    विनय अपने आप से बोला , "अब इस लाइट को क्या हो गया?"

    इतना कहकर विनय ने अपनी जेब में मोबाइल निकलने के लिए हाथ डाला तो उसकी जेब में मोबाइल भी नहीं था। विनय फिर से अपने कमरे में गया और अंदर जाकर देखा तो कमरे में भी घना अंधकार और एक जानलेवा सन्नाटा छाया हुआ था। विनय ने धीरे धीरे अपने कदम बेड की और बढ़ा दिए और अंधेरे में इधर उधर हाथ मारते हुए अपना मोबाइल ढूंढने लग गया। अचानक से उसके हाथ लगने से कोई चीज मेज पर से नीचे फर्श पर जा गिरी।

    विनय ने फर्श पर हाथ मारा और अब उसके हाथ में उसका मोबाइल था। विनय ने मोबाइल को चालू किया लेकिन शायद वो टूट गया था। विनय ने मोबाइल को कसकर हिलाया कई बार बटन दबाए, स्क्रीन पर टैप किया लेकिन उसका मोबाइल चालू ही नहीं हुआ। थक हारकर विनय ने मोबाइल बेड पर दे मारा और गुस्से से कमरे से बाहर निकल गया।

    विनय के कमरे से बाहर जाते ही उसके मोबाइल की स्क्रीन चमक उठी और एक काला साया धीरे धीरे बेड के नीचे से बाहर निकला जिसके खुले बाल थे। चेहरा खून से लथपथ था।

    विनय हवेली से बाहर निकला और एक और गार्डन में नज़र दौड़ाई तो एक बूढ़ा व्यक्ति कुर्सी पर सोया हुआ था। उसकी कुर्सी के साथ में एक लालटेन लटक रही थी।

    विनय ने बाहर चारों और नज़र दौड़ा दी। सामने एक और घना काला जंगल नजर आ रहा था। एक और कब्रिस्तान था और वहां दूर से ही कलावती की कब्र नज़र आ रही थी और आसपास कई और कब्रें भी बनी हुई थी। बाकी कब्रें किसकी है ये राज़ भी तीन साल पहले ही दफ़न हो गया था। ये राज आगे हम धीरे धीरे खोलेंगे।

    विनय धीरे धीरे कुर्सी पर सो रहे उस बूढ़े व्यक्ति के पास गया और उसके कंधे को हिलाते हुए बोला , "सुनिए माली साहब। सुनिए काका जी। मुझे आपकी मदद चाहिए। उठिए।"

    इतना कहकर विनय ने उस चौकीदार को जोर से हिलाया और वो अचानक से ही होश में आ गया।

    चौकीदार अचानक से ही होश में आते हुए बोला , "अरे ! बेटा तुम कौन हो? वो पुराना चौकीदार तो नौकरी छोड़कर चला गया। मैं यहां का नया चौकीदार हूं। मुझसे कोई गलती हो गई क्या?"

    विनय लालटेन की और देखते हुए बोला , "देखिए काका जी अंदर लाइट चली गई है इसलिए आप प्लीज अपनी ये लालटेन उठाकर मेरे साथ चलिए।"

    इतना कहकर विनय आगे आगे चल पड़ा और चौकीदार लालटेन लेकर उसके पीछे पीछे चल रह था। एक बार फिर से वे हवेली के अंदर घुस आए। हवेली के अंदर अब भी घना अंधकार छाया हुआ था। आदमी को आदमी नहीं सूझ रहा था। विनय ने चौकीदार के हाथ से वो लालटेन पकड़ी और आगे आगे चलने लगा और चौकीदार उसके पीछे पीछे तभी फिर से विनय के कान में वही दीवार में कुछ लगाने की आवाज आने लगी। जैसी आवाज अकसर दीवार पर हथौड़ा मारने के बाद आती है।

    विनय ने चौकीदार की और देखते हुए कहा , "ये आवाज़ सुनी तुमने?"

    चौकीदार धीरे से , " कैसी आवाज साहब? मुझे तो यहां कोई भी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है।"

    विनय कुछ गुस्से से बोला , "अरे! ओ चचा ज़रा गौर से सुन। ये आवाज ऐसे लगता है की जैसे कोई दीवार पर कुछ टांग रहा है शायद कोई तस्वीर।"

    चौकीदार अपने कान के पीछे हाथ रखते हुए गौर से वो आवाज सुनते हुए बोला , "हां साहब आवाज़ तो आ रही है ना?"

    इतना कहकर विनय ने हवेली के एक कोने की और इशारा किया जिस कोने में घना अंधेरा छाया हुआ था। कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था।

    विनय उस और अपनी अंगुली करते हुए , "देखो आवाज उसी कोने से आ रही है? चलो मेरे साथ।"

    इतना कहकर विनय आगे आगे चलते हुए उस अंधेरे कोने की और अपने कदम बढ़ाने लगा लेकिन चौकीदार को डर लग रहा था। वो अपने कांपते वदन के साथ धीरे धीरे लड़खड़ाते हुए कदमों से विनय के पीछे चला जा रहा था। खैर उस रात चौकीदार की जगह और कोई होता तो वो डर ही जाता क्योंकि उस रात जानलेवा सन्नाटा कुछ इस कदर ही पसरा हुआ था की किसी का भी दिल उछलकर उसके मुंह में आ जाए।

    विनय अचानक से हवेली के उस घने अंधेरे कोने में घुस गया और पीछे से चौकीदार बोला , "साहब यहां तो बहुत अंधेरा है मुझे तो बहुत डर लग रहा है।"

    विनय अपने कदम आगे बढ़ाते हुए बोला , "चचा आप भी ना बच्चों की तरह डरते हो। भला भूत प्रेत भी होते हैं क्या?"

    चौकीदार डरते हुए , "भूत प्रेत होते हैं जनाब। मैने अपनी आंखों से देखे हैं। बड़े ही डरावने होते हैं ये।"

    विनय गुस्से से , "चचा अपनी ये बकवास अपने पास ही रखिए।"

    इतना कहकर विनय अपने कदम और आगे बढ़ाते हुए बोला , "कौन है यहां? कौन है जो कब से आवाज़ें कर रहा है?"

    विनय के इतना कहते ही वहां पर शांति छा गई और वो आवाज आना भी बंद हो गई। विनय ने आगे बढ़कर सामने दीवार पर लालटेन की रोशनी डाली तो उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गई। विनय की सांसे वहीं पर रुककर रह गई।

    चौकीदार ने आगे बढ़कर लालटेन की रोशनी में दीवार पर नज़र दौड़ाई तो उसकी आंखें फटी रह गई। वो कभी फटी आंखों से विनय की और देखता तो कभी दीवार की और।

    सामने का मंजर सच में अजीब सा था।

    क्या था दीवार पर?

    क्या है कलावती का सच??

    क्या मान्या और अवनी बन जाएगी हवस का शिकार??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा......!!!!!

    ⚠ Warning:

    यह एक डार्क टोन वाला फिक्शन है जिसमें कुछ डायलॉग्स बोल्ड और इंटेंस हो सकते हैं। यदि आपको कोई लाइन ज़्यादा वल्गर या आपत्तिजनक लगे, तो कृपया कमेंट में बताएं — मैं उसे एडिट कर दूंगा।

    बस एक रिक्वेस्ट है — रिपोर्ट न करें, क्योंकि इस कहानी को लिखने में दिल और मेहनत दोनों लगे हैं। 🙏

    अलविदा......!!!!!!

  • 7. a picture

    Words: 1098

    Estimated Reading Time: 7 min

    चौकीदार की नजरें अचानक से दीवार पर जाकर रुक गई। विनय अपने आप से बोल पड़ा , "ये तस्वीर यहां क्या कर रही है?"

    सामने दीवार पर एक तस्वीर लगी हुई थी और उस तस्वीर को देखकर लग रहा था की जैसे वो तस्वीर अभी किसी ने लगाई हो।

    तस्वीर इसी हवेली की थी लेकिन इस तस्वीर में हवेली के आगे एक लड़की खड़ी थी जिसकी उम्र लगभग उन्नीस साल होगी। लाल साडी पहने हुए , बेहद ही खूबसूरत लेकिन उसका पल्लू उसके चेहरे के आगे से गुजर रहा था इसलिए उसका चेहरा नज़र नहीं आ रहा था।

    तस्वीर के ऊपर लाल अक्षरों में लिखा हुआ था , "कलावती हवेली।"

    ये पढ़ते ही विनय की जान जैसे उसके हलक में आकर अटक गई।

    चौकीदार कंपकंपाते हुए होठों से बोला , "कला..... काला... कलावती हवे.........।"

    इससे पहले की चौकीदार आगे कुछ बोल पाता विनय ने कसकर उसके मुंह पर हाथ रख लिया और गुस्से से बोला , "नाम भी मत लेना उसका... वरना तुझे अभी जमीन में गाड़ दूंगा।"

    चौकीदार बुरी तरह डर गया और पसीना पसीना होकर रह गया।

    विनय ने चौकीदार को छोड़ दिया और उस तस्वीर को उतारकर नीचे जमीन पर दे मारा। इतने में अचानक से ही पूरी हवेली में लाइट्स जगमगा उठी लेकिन जिस कोने में विनय खड़ा था वहां अभी भी रोशनी बहुत कम पहुंच रही थी।

    विनय ने उस तस्वीर को उठाया और गुस्से से बोला , "फर्श पर पटकने के बाद भी तस्वीर पर खरोंच तक नहीं आई लेकिन ये तस्वीर उस कमरे से बाहर कैसे आई जिस कमरे को हमने तीन साल .....।"

    इतना कहकर विनय ने अचानक से चौकीदार की और देखा और खामोश हो गया।

    विनय ने अपनी जेब में से पांच सो का एक नोट निकाला और चौकीदार के हाथ में थमाते हुए बोला , "तुम बाहर जाकर सो जाओ और हां हमारे बीच जो कुछ भी हुआ किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए। खासकर इस तस्वीर के बारे में तो किसी को भी भनक नहीं पड़नी चाहिए। समझा।"

    चकीदार ने पांच सो के नोट को गौर से देखा और बोला , "कसम खुदा की हुजूर हम किसी को कुछ भी नहीं बताएंगे।"

    इतना कहकर चौकीदार वहां से चला गया।

    विनय उस तस्वीर को घूरते हुए बोला , "नामोनिशान मिटा दूंगा तेरा। एक कतरा भी नहीं बचेगा। वो अतीत था जो बीत चुका है। अब दोबारा दोहराया नहीं जाएगा। मुझे सबसे पहले तो इस तस्वीर को उसी स्टोरुम में फेंकने होगी यहां से तीन साल पहले थी। लेकिन ये तस्वीर उस कमरे से बाहर किसने निकाली और इसे दीवार पर लगाया किसने।"

    इतना कहकर विनय ने दीवार पर नज़र दौड़ाई तो वहां पर उसे तस्वीर गाड़ने के ताजा निशान नज़र आ रहे थे।

    विनय अपने आप से बोला , "अब जो करना होगा मुझे ही करना होगा। अगर विराज और कबीर को उठाने के लिए गया और गलती से मान्या और अवनी की नींद खुल गई तो हमारी ही पोल खुल जायेगी। एक काम करता हूं सबसे पहले तो इस तस्वीर को ही ठिकाने लगा डालता हूं।"

    इतना कहकर विनय हवेली में चारों और नजरें दौड़ाते हुए बोला , "वो कमरा कहां था? जो हमने बंद किया था। शायद उस कोने में था।"

    इतना कहकर विनय एक कोने में चला गया। हवेली किसी बुलबुलेया की तरह थी। हवेली में पचास से भी ज्यादा कमरे थे।

    एक कोने में विनय लगातार कदम बढ़ा रहा था। आसपास कई कमरे थे लेकिन विनय उन सबको क्रॉस करते हुए आगे बढ़ा चला जा रहा था लेकिन सामने दीवार आने का नाम ही नहीं ले रही थी। अचानक से विनय राइट साइड में मुड़ गया और एक कमरे के सामने खड़ा होते हुए बोला , "यही था वो कमरा यहां हमने सारे सबूत जला डाले थे।"

    कमरे के गेट लकड़ी का था और बहुत ही पुराना लेकिन मजबूत नजर आ रहा था। उस गेट के आगे एक बहुत ही बड़ा ताला लगा हुआ था और गेट को बहुत ही बारीकी से बखूबी बंद किया गया था।

    विनय ने अपनी जेब में से एक बहुत ही बड़ी चाभी निकाली और उस चाबी को हवा में घुमाते हुए बोला , "मुझे मालूम था की इस हवेली में आने के बाद में इस कमरे को खोलने की नौबत जरूर आएगी इसलिए ये चाभी मैं अपनी जेब में लेकर ही घूम रहा था।"

    इतना कहकर विनय उस गेट का ताला खोलने लगा लेकिन अचानक से उसके हाथ वहीं पर रुक गए और वो बोला , "अगर ये दरवाजा बंद था तो फिर ये खूनी तस्वीर इस कमरे में से बाहर किसने निकाली और उसने कमरे को खोला कैसे होगा क्योंकि चाभी तो हमेशा मेरे पास ही रहती है।"

    इतना कहकर विनय ने चाभी ताले में से निकाल ली और कुछ सोचते हुए बोला , "हो सकता है की ये तस्वीर पहले से ही वहां दीवार में टंगी हुई हो। मेरा ही ध्यान इस और न गया हो। जरूर ऐसा ही हुआ होगा। तीन साल पहले के कुछ सबूत आज भी जिंदा पड़े हैं। मुझे वक्त रहते ही इन सबूतों को गायब करना होगा। लेकिन एक मिनिट अगर ये तस्वीर तीन सालों से वहीं उस कोने में टंगी हुई थी तो मुझे दीवार में तस्वीर के टांगने की आवाज़ें क्यों सुनाई दे रही थी? ये मेरा वहम तो नहीं हो सकता है क्योंकि ये आवाजें तो उस चौकीदार ने भी सुनी थी लेकिन वो पुराना चौकीदार अचानक से नौकरी छोड़कर क्यों चला गया?मुझे पता करना ही होगा। सबसे पहले तो इस तस्वीर को ठिकाने लगाता हूं फिर बाकी सारा हाल मालूम करूंगा।"

    इतना कहकर विनय ने फिर से ताले में चाभी डाल दी लेकिन ताला था की खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था। विनय ताले को खोलने के लिए पूरी कश्मकश में लगा हुआ था।

    विनय गुस्से से चाभी को कसकर घुमाते हुए बोला , "खुल जा ताले कहीं के खुल जा।"

    इतना कहकर विनय ने कसकर चाभी को घुमाया और अचानक से ही ताला खुल गया।

    ताले खुलते ही बाहर आसमान में जोरदार बिजली कड़क उठी। आसमान काले बादलों से भर गया और तेज हवाएं चलने लगी। ऐसे लगने लगा की जैसे कोई बड़ा अनर्थ होने वाला है। तूफान चलने लगा। बाहर पेड़ पौधे तेज आंधी के कारण जोर जोर से हिलने लगे और नज़ारा भयानक था.....

    क्या मान्या खुद को कबीर से के कहर से बचा पाएगी???

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा......

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    अलविदा......!!!!!!

  • 8. hard पार्ट

    Words: 1212

    Estimated Reading Time: 8 min

    बाहर बैठा चौकीदार अचानक से इतना कुछ होता देखकर डर गया और अपना मुंह ढकते हुए बोला , "ये बिन मौसम तूफान लगता है की कोई बड़ी गड़बड़ होने वाली है।"

    इतना कहकर चौकीदार हवेली के एक कोने में जाकर बैठ गया। इतने में बाहर तेज हवा चलने लग गई।

    इधर जंगल के बीचों बीच खंडहर बन चुके शिव मंदिर में प्लाथी मारकर वही पुजारी बैठा था जो पहले नकली चौकीदार बनकर हवेली में घुसा था।

    पुजारी अचानक से खड़ा हुआ और बाहर आसमान की और नजर दौड़ा दी। बाहर तेज तूफान और तेज हवा चल रही थी।  पुजारी जोर से बोला , "बिन मौसम तूफान इस बात का संकेत है की वो ताला खुल चुका है जो पिछले तीन सालों से बंद पड़ा था बस अब जल्द ही उन पांचों का राज़ भी खुल जायेगा।"

    इतना कहकर पुजारी आसमान को घूरने लगा यहां उसे उड़ते हुए एक काला साया नज़र आ रहा था जो बेहद ही डरावना लग रहा था।

    इतने में एक सेवक पुजारी के पास आते हुए बोला , "गुरुदेव अभी तक तो पूरा आसमान साफ पड़ा था। कहीं बादल का नामोनिशान तक न था फिर अचानक से ये बारिश का होना। इतना खतरनाक तूफान आ जाना। ये कोई आम बात तो नहीं है।"

    पुजारी ने आसमान में उड़ रहे उस काले साए को घूरते हुए कहा , "बिलकुल सही कहा तुमने। ये बिन मौसम तूफान कोई आम बात नहीं है। अब वो होगा जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। अब शुरू होगी इंतकाम की कहानी।"

    इतना कहकर पुजारी फिर से मंदिर के अंदर आ गया और वो साया सीधे ही दूर खड़ी हवेली में जा घुसा।

    विनय ने उस कमरे के ताले को साइड में रखा और दरवाजे को खोल दिया। दरवाजे के खुलते ही हजारों की संख्या में चमगादड़ उड़ते हुए बाहर निकले और विनय अपने सर पर हाथ रखकर नीचे जमीन पर बैठ गया। वो चमगादड़ बेहद ही डरावनी आवाज में शोर मचाते हुए बाहर निकल रहे थे। विनय अपने आप से बोल पड़ा , "अरे ! अब बस करो चमगादड़ कहीं के। पता नहीं कितने के चमगादड़ हैं। खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं।"

    इतने में धीरे धीरे करके सारे चमगादड़ वहां से निकल गए और विनय खड़ा हो गया।

    अंदर से वो कमरा बेहद ही बड़ा था। पूरी हवेली में सबसे बड़ा कमरा वही यानी स्टोरूम ही था।

    अंदर हर जगह धूल ही धूल थी। सब और अंधेरा छाया हुआ था। रोशनी का कहीं पर नामोनिशान तक न था। हर और सामान जगह जगह पर बिखरा हुआ पड़ा था। विनय ने अपना पहला कदम कमरे के अंदर रखा और ढेर सारी धूल हवा में घुलने लगी।

    विनय अपने मुंह के आगे हाथ फेरते हुए बोला , "बाप रे कितनी धूल है यहां मेरा तो दम ही घुट रहा है।"

    इतना कहकर विनय स्टोरूम के अंदर घुस गया।

    थर्ड फ्लोर पर कबीर के कमरे की खुली हुई खिड़की बार बार आपस में बजकर आवाज कर रही थी। बारिश की बूंदे खिड़की से होते हुए कमरे के अंदर गिर रही थी।

    ये अजीब सा शोर सुनकर कबीर को होश आ गया। कबीर ने उठाकर देखा तो कमरे में चारों और साइड लैंप की रोशनी थी। कबीर लाइट्स चालू की और कमरे में प्रकाश हो गया।

    कबीर ने बाहर नज़र दौड़ाई और आपने आप से बोल पड़ा , "शाम को तो मौसम बिलकुल साफ़ था तो फिर अचानक से ये बारिश और तूफान।"

    इतना कहकर कबीर ने मान्या की और देखा जो उसके सीने से लगकर सो रही थी और शायद अभी तक ड्रग्स के गहरे नशे में थी।

    मान्या को देखकर कबीर के चेहरे पर एक गहरी मुस्कुराहट आ गई और उसके मन में फिर से वासना और हवस जन्म लेने लगी तीन साल पहले की तरह।

    कबीर ने मान्या के गाल पर किस किया और बोला , "सॉरी बेबी लगता है की ड्रग कुछ ज्यादा ही हो गई थी। बट डोंट वरी सुबह तक तुम पूरी तरह से ठीक हो जाओगी।"

    इतना कहकर कबीर ने मान्या को सीधा किया और उसके होठों पर किस करते हुए बोला , "बहुत हॉट हो बेबी तुम। वेरी हॉट थिंग। मेरा सुकून हो तुम। बहुत सुकून देती हो तुम लेकिन उतना नहीं जितना की तीन साल पह.........।"

    इतना कहकर कबीर अचानक से खामोश हो गया और उसके चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई।

    कबीर धीरे से बोला , "नो बेबी हर बात नहीं बताऊंगा क्या पता तुम बेहोशी का नाटक करके मेरी ही बातें सुन रही हो हना। और वैसे भी वो क्या बोलते हैं हां दीवारों के भी कान होते हैं ना।"

    इतना कहकर कबीर खिड़की खोलने के लिए बेड पर से खड़ा हो गया और उसने देखा की इस वक्त उसके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। कबीर ने एक कंबल उठाया और उससे खुद को लपेटते हुए खिड़की की और बढ़ गया। कबीर ने खिड़की को बंद करने के लिए जैसे ही अपना हाथ बढ़ाया तभी उसकी नज़र बाहर एक जगह जाकर अटक गई और उसकी आंखें फटी की फटी ही रह गई।

    बाहर जंगल के पास एक लड़की लाल साडी पहने खड़ी थी। उस लड़की का चेहरा तो नज़र नहीं आ रहा था लेकिन उसका सफेद , नाजुक मुलायम सा गोरा बदन बार बार उसे अपनी और खींच रहा था। उस लड़की को नीचे टांगों के पास से देखते हुए कबीर अपने सीने पर हाथ फेरने लग गया। उसके बड़े बड़े उभार देख कर कबीर का गला सूखने लग गया और उसका पार्ट हार्ड हो गया।

    कबीर अपने होठों को दबाते हुए बोला , "क्या माल है साली? एक रात मिल जाए मुझे। कसम खुदा की जन्नत नसीब हो जायेगी मुझे। क्या फिगर है साली का। पटाखा है साली। लेकिन ये लड़की है कौन? इसका चेहरा नज़र नहीं आ रहा है और इतनी रात को खड़ी ये बारिश में क्यों भीग रही है।"

    इतने में उस लड़की ने हाथ से कबीर को अपने पास आने का इशारा किया।

    कबीर ने उस लड़की की और देखा और गौर से उसका चेहरा देखने की कोशिश करने लगा लेकिन उसे उस लड़की का चेहरा नज़र ही नहीं आ रहा था।

    इतने में वो लड़की पीछे घूमी और अब उसकी पीठ कबीर की और थी।

    पीछे से उस लड़की को देखते ही जैसे कबीर के बदन में तो आग लग गई। कबीर ने अपनी आंखें बंद कर ली और अपने सीने पर हाथ फेरते हुए बोला , "एक रात मिल जाए ये लड़की। क्या फिगर है साली का। इतनी खूबसूरत लड़की मैंने आजतक नहीं देखी। आज तो इसे नहीं छोडूंगा।"

    कबीर ने इतना कहकर उस लड़की की और हाथ से वहीं पर रुकने का इशारा किया और तेजी से कमरे से बाहर निकलते हुए बोला , "साली लौंडी को आज तो छोडूंगा नहीं। बड़ी मुश्किल से ऐसी लड़की हाथ लगी है। वहीं रुकना आ रहा हूं मैं।”

    इतना कहकर कबीर हवेली से बाहर निकल गया शायद वापिस कभी भी हवेली में न आने के लिए।।

    कौन थी वो लड़की?

    क्या होगा कबीर के साथ हवेली के बाहर??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा......

    ⚠ Warning:

    यह एक डार्क टोन वाला फिक्शन है जिसमें कुछ डायलॉग्स बोल्ड और इंटेंस हो सकते हैं। यदि आपको कोई लाइन ज़्यादा वल्गर या आपत्तिजनक लगे, तो कृपया कमेंट में बताएं — मैं उसे एडिट कर दूंगा।

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    अलविदा......!!!!!

  • 9. The dead beloved - Chapter 12

    Words: 1104

    Estimated Reading Time: 7 min

    इधर विनय स्टोरूम के अंदर उस तस्वीर को लेकर आगे बढ़ रहा था तभी उसका पैर किसी चीज से जा टकराया और वो अपने आप से बोल पड़ा , "कितना अंधेरा है यहां । कहीं रोशनी का नामोनिशान तक नहीं है। एक काम करता हूं इस तस्वीर को यही कहीं एक कोने में दे मारता हूं।"

    इतना कहकर विनय ने उस तस्वीर को एक और पड़ी चेयर पर फेंक दिया और वहां से बाहर निकलते हुए स्टोरूम की दीवारों पर नज़र दौड़ाने लग गया। दीवारों पर हर जगह इसी हवेली की तस्वीरें थी और उन तस्वीरों में हवेली के आगे एक लड़की खड़ी हुई नज़र आ रही थी। विनय अचानक से एक तस्वीर के पास गया और उस पर अपनी अंगुली फेरते हुए बोला , "तुमने मुझे तीन साल पहले वो घाव दिया था जो आजतक भरा नहीं है और शायद पूरी उम्र नहीं भरेगा। उस घटना के बाद से मैं आजतक किसी लड़की के साथ......।"

    इतना कहकर विनय अचानक से चुप हो गया और उसकी आंखों से आंसू फर्श पर जा गिरे।

    विनय अपनी आंखों से आंसू पोंछते हुए बोला ,  "खैर अब गढ़े मुर्दे उखाड़ने का क्या फायदा है? जो घाव तुम मुझे देना चाहती थी वो तो दे चुकी हो ना। अब क्या कर सकते हैं लेकिन एक बात कहूंगा कि इस घाव की कोई दवा नहीं है। कोई मरहम नहीं है इसके लिए। मैं अब किसी का काम नहीं रहा हूं। उस रात के बाद से सिर्फ और सिर्फ गिन गिनकर दिन काट रहा हूं। खैर भगवान न करे की जैसा मेरे साथ तीन साल पहले हुआ था ऐसा किसी और के साथ हो।"

    इतना कहकर विनय उस स्टोरूम से बाहर निकलने के लिए अपने कदम बढ़ा दिए तभी उसे अपने पीछे से किसी चीज के गिरने की आवाज आई और उसके कदम वहीं पर रुककर रह गए। विनय ने पीछे मुड़कर देखा तो दूर किसी कोने में घना अंधेरा नज़र आ रहा था यहां पर शायद कुछ गिरा था।

    इधर कबीर हवेली के बाहर निकला तो बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी। दूर दूर तक घना अंधेरा नज़र आ रहा था। रात सच में ही बहुत डरावनी लग रही थी।

    सामने एक पेड़ के पास उसे एक लाल कली नजर आ रही थी जो शायद वही खूबसूरत लड़की थी।

    कबीर ने अपने सर पर छतरी को तानते हुए अपने कदम उस लड़की की और बढ़ा दिए और बिलकुल उसके पास पेड़ के साए में चला गया। उस लड़की की पीठ कबीर की और थी।

    कबीर ने पीछे से जी भरकर उस लड़की को देखा और अपने सीने पर हाथ फेरते हुए बोला , "एक रात हवस के साथ।"

    ये सुनते ही उस लड़की ने अचानक से अपना मुंह पीछे घुमाया और उसका चेहरा देखकर कबीर के पैरों तले जमीन ही खिसक गई। उसका बदन थर थर कांपने लग गया। कबीर अचानक से नीचे जमीन पर गिर गया और पेड़ के तने से जा भिड़ा।

    इधर वो चौकीदार खड़ा हुआ और अपने आप से बोल पड़ा , "ये कबीर साहब इतनी रात को अकेले इस पेड़ के नीचे क्या कर रहे हैं और ये इतना डर क्यों रहे हैं? वहां पर और कोई तो नज़र नहीं आ रहा है?"

    कबीर अपनी आंखें मसलते हुए बोला , "तुम.... तुम..... यहां कैसे हो सकती हो? तुम तो तीन साल पहले..... नहीं .... नहीं ये मेरा वहम है। तुम वापिस नहीं आ सकती हो। ये नहीं हो सकता है।"

    इतने में सेकंड फ्लोर पर अवनी को अपनी बांहों में भरकर सोए पड़े विराज की अचानक से आंख खुल गई।

    विराज ने पास में पड़े अपनी मोबाइल को उठाकर टाइम देखा तो रात के बारह बज रहे थे। खिड़की की और देखते हुए विराज बोल पड़ा , "ये बिन मौसम बारिश कैसी? लगता है बाहर कोई बड़ा तूफान आया है।"

    इतना कहकर विराज ने अवनी के होठों पर किस किया और उसपर कंबल डालते हुए बोला , "बेबी तुम आराम से लेटी रहो तबतक मैं बाहर का नजारा देखकर आता हूं।"

    इतना कहकर विराज खड़ा हो गया और अपने कपड़े पहन लिए।

    विराज ने खिड़की को खोलकर देखा तो बाहर का नजारा देखकर वो दंग रह गया। बाहर एक पेड़ के नीचे कबीर लेटा पड़ा था और कुछ बडबडा रहा था। कबीर के अलावा वहां दूर दूर तक और कोई भी नज़र नहीं आ रहा था।

    विराज अपने आप से बोल पड़ा , "ये कबीर इतनी रात को बाहर वहां कर क्या रहा है? और ये इतना डरा हुआ क्यों है? ये अकेला किससे बडबडा रहा है? मुझे तो बहुत डर लग रहा है। जाकर विनय को उठाता हूं वहीं कुछ करेगा।"

    इतना कहकर विराज अपने कमरे से बाहर निकल गया और सीढ़ियां उतरते हुए नीचे ग्राउंड फ्लोर पर चला गया।

    विराज ने जाकर देखा तो विनय का कमरे का दरवाजा खुला हुआ था लेकिन विनय अंदर कहीं पर भी नजर नहीं आ रहा था। विराज ने पूरा कमरा छान मारा और विनय को आवाज़ें भी दी लेकिन कहीं पर न तो विनय नजर आया और न ही उसकी आवाज सुनाई पड़ी।

    विराज अपने आप से बोल पड़ा , "अब इतनी रात को ये विनय कहां गायब हो गया है और एक वो साला कबीर कहीं का इतनी रात को बाहर एक पेड़ के नीचे बैठा मुजरा कर रहा है।"

    इतना कहकर विराज ने अपने कदम हवेली से बाहर की और बढ़ा दिए।

    पेड़ के नीचे पड़ा कबीर अचानक से खड़ा हो गया और बोला , "कौन हो तुम ? तुम ..... तुम वो नहीं हो सकती हो उसे तो हम पांचों ने मिलकर.......।"

    इतना कहकर कबीर अचानक से खामोश हो गया।

    कबीर कुछ बोलने ही वाला था की तभी किसी ने कबीर के कंधे पर हाथ रख दिया।

    कबीर अचानक से कांप गया।

    कबीर ने पीछे मुड़कर देखा और उसे बूढ़े चौकीदार का डरावना चेहरा नजर आया जो उसके हाथ में पकड़ी हुई लालटेन की रोशनी में और भी डरावना लग रह था।

    कबीर अचानक से उसका चेहरा देखकर पीछे हट गया और नीचे गिरते गिरते बचा।

    चौकीदार सर्द आवाज में बोला , "क्या हुआ साहब डर गए कया? मैं हूं चौकीदार? इतनी रात को आपको अकेले यहां पर खड़े था तो आपका हाल जानने के लिए चला आया।"

    कबीर ने अचानक से पीछे मुड़कर देखा तो उसके होश उड़ गए क्योंकि नज़ारा भयानक था.......

    क्या है कबीर का राज??

    क्या हुआ था तीन साल पहले जहां??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा.......

    ⚠ Warning:

    यह एक डार्क टोन वाला फिक्शन है जिसमें कुछ डायलॉग्स बोल्ड और इंटेंस हो सकते हैं। यदि आपको कोई लाइन ज़्यादा वल्गर या आपत्तिजनक लगे, तो कृपया कमेंट में बताएं — मैं उसे एडिट कर दूंगा।

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    अलविदा....!!!!!!!

  • 10. dirty dreams

    Words: 1150

    Estimated Reading Time: 7 min

    उसके पीछे दूर दूर तक कोई नहीं था।

    कबीर डरते हुए बोला , "अरे ! वो लड़की कहां चली गई? वो लड़की कहां गई जो अभी यहां पर खड़ी थी?"

    चौकीदार लालटेन की रोशनी अपने चेहरे पर डालते हुए डरावनी और कोल्ड वाइस में बोला , "कौनसी लड़की साहब? यहां पर तो कोई भी लड़की नज़र नहीं आ रही थी। लगता है कि आपको जरूर कोई वहम हुआ होगा ? यहां पर तो आप और मैं हम दोनों ही खड़े हैं।"

    इतना कहकर चौकीदार ने अपना मुंह कबीर के कान के पास किया और बोला , "कोई लड़की नहीं है साहब? सब आपका वहम है ना? मेरी बात का यकीन कीजिए साहब यहां कोई लड़की नहीं है।"

    ये बात चौकीदार ने गिड़गिड़ाते हुए स्वर में कही।

    चौकीदार की ये बात सुनते ही कबीर के पैरों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई क्योंकि यही बात आज से तीन साल पहले किसी ने गिड़गिड़ाते हुए स्वर में कही थी। वही तीन साल पहले की सारी घटनाएं कबीर के दिमाग में चक्कर काटने लगी।

    कबीर की आंखों के आगे वो दृश्य बनने लगा जब विरजू काका ने कबीर और विराज के पैरों को पकड़ते हुए तीन साल पहले रोते हुए ये बात कही थी की , "कोई लड़की नहीं है साहब? सब आपका वहम है? कोई लड़की नहीं है यहां?"

    कबीर ने अपनी कंपकंपाती हुई अंगुली चौकीदार के आगे की और डरते हुए बोला , "तुम....तू.... तुम.... बृज... बिरजू हो ना?"

    इतने में जंगल में एक पेड़ पर बिजली आकर गिरी।

    कबीर का ध्यान अचानक से उस और चला गया।

    इतने में एक और से बिराज और हाथ में लालटेन लिए चौकीदार भागते हुए आए और विराज आते ही बोला , "कबीर तूं ठीक तो है ना? तूं इतनी रात को यहां पर कर क्या रहा है? तेरा दिमाग तो ठीक है ना?"

    कबीर ने अचानक से उन दोनों की और देखा और उसे कहीं पर भी बिरजू काका नजर नहीं आ रहा था।

    कबीर उन दोनों की और देखते हुए बोला , "हां... हां मैं ठीक हूं। बस यूंही यहां अजीब सा शोर सुना तो यहां पर चला आया। चलो अंदर चलते हैं।"

    इतना कहकर कबीर हवेली के अंदर चला गया। बारिश भी अब थम चुकी थी।

    विराज खड़ा होकर कई देर तक इधर उधर नज़र दौड़ाता रहा।

    तभी चौकीदार बोला , "साहब आपको भी जाकर सो जाना चाइए। रात बहुत हो चुकी है?"

    विराज कुछ सोचते हुए अपने आप से बोल पड़ा , "ये कबीर आखिर बातें किससे कर रहा था यहां पर तो कोई भी नज़र नहीं आ रहा है।"

    इतना कहकर विराज तेजी से हवेली में भाग गया और चौकीदार भी अपनी जगह पर चला गया।

    उन दोनों के जाते ही आसमान में एक जोरदार बिजली कड़की और एक पेड़ के पीछे से एक लाल आकृति धीरे धीरे बाहर निकली।

    बेहद ही खूबसूरत लड़की, बेहद ही गोरा मुलायम सा जिस्म लेकिन आंखों में खून उतरा हुआ शायद कोई बदले की आग थी। कुछ कह नहीं सकते हैं।

    अचानक से एक बार फिर आसमान में तेज बिजली चमक उठी और उस लड़की के चेहरे पर एक डरावनी हंसी आ गई जिसे अगर कोई एक बार देख ले तो उसका दिल उछलकर उसके मुंह में ही आ जाए और ये भी संभव है की उसे मौत के दर्शन हो जाए।

    अंदर जाते ही कबीर एक सोफे पर बैठ गया और अपनी मुठिया भींचते हुए अपने आप से बोल पड़ा , "ये कैसे हो सकता है? वो लड़की बापिस और वो बिरजू काका? नहीं नहीं ये मेरी आंखों का धोखा है। वे दोनों वापिस नहीं आ सकते हैं। जरूर मुझे ही कोई वहम हुआ होगा। लेकिन वो बिलकुल वही थी... वही कलावती.... उसके रसीले उभार मैं कभी नहीं भूल सकता हूं। लेकिन वो वापिस नहीं आ सकती है..."

    इतने में बिराज वहां पर आते हुए बोला , "कौन वापिस नहीं आ सकता है और कैसा वहम हुआ है तुम्हें?"

    इतना कहकर विराज कबीर के पास जाकर खड़ा हो गया।

    कबीर विराज की और देखते हुए बोला , "मैने उसे देखा आज... वही थी और ... और यही नहीं उसने लाल साडी पहन रखी थी ठीक तीन साल पहले की तरह।"

    विराज गुस्से से बोला , "कबीर तूं पागल हो गया है क्या? वो वापिस नहीं आ सकती है।"

    कबीर खड़ा होते हुए गुस्से से बोला , "यही नहीं वो... वो साला बिरजू कहीं का वो भी मुझे नजर आया था।"

    विराज ने गुस्से से कबीर की कॉलर पकड़ ली और उसकी आंखों में आंखें डालते हुए बोला , "साले तूं लगता है की बिल्कुल ही पागल हो गया है? अब गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहा है? सब तेरा वहम है कुछ नहीं होगा? मैं इन सब चीजों को नहीं मानता हूं।"

    इतना कहकर विराज ने गुस्से में कबीर की कॉलर छोड़ दी।

    कबीर एक लंबी सांस भरते हुए बोला , "मानता तो मैं भी इन सब चीजों को नहीं हूं लेकिन वो मैने बाहर .......।"

    विराज गुस्से से बोला , "बाहर कोई भी नहीं था। सब तेरा वहम था। अगर बाहर वो तुझे नज़र आई थी तो हमें क्यों नहीं दिखी और उस चौकीदार को भी तो वहां पर कोई भी नहीं दिखा। तूं अकेला वहां पेड़ के नीचे खड़ा होकर बडबडा रहा था। वहां पर और कोई भी नहीं था और हां वैसे भी तूं तो इन सब चीजों को मानता ही नहीं था ना तो फिर आज क्या हो गया है? आज इतना डर क्यों रहा है?"

    कबीर गुस्से से अपनी मुट्ठियां भींचते हुए बोला , "मैं किसी से नहीं डरता हूं और ना ही मैं किसी के डर से ये हवेली छोड़कर जाऊंगा। जरूर कोई है जो हमारे साथ में मस्ती कर रहा है। हमारे अतीत का फायदा उठा रहा है कोई।"

    विराज कुछ सोचते हुए बोला , "मैं तो कहता हूं की इस हवेली को छोड़कर निकल भागते हैं। यहां पर आने के बाद में से कुछ भी ठीक नहीं लग रहा है।"

    कबीर गुस्से से बोला , "विराज तूने शायद सुना नहीं की मैने अभी क्या कहा था? हम ये हवेली छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे? मैं किसी से नहीं डरता हूं और जिसने भी मेरे साथ में मस्ती करने की कोशिश की है उसे ये मस्ती बहुत ही महंगी पड़ने वाली है। समझा। हम यहीं रहेंगे।"

    विराज ने भी धीरे से हां में सिर हिला दिया तभी विराज अगले ही पल बोला , "दरअसल वो विनय अपने कमरे में नहीं है?"

    ये सुनकर कबीर हैरानी से विराज की और देखने लगा जैसे की शेर एक मेमने की और देखता है।।

    क्या होगा विनय के साथ??

    कौन थी वो लड़की??

    क्या है इनका राज़??

    क्या किया था इन्होंने तीन साल पहले??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा......

    ⚠ Warning:

    यह एक डार्क टोन वाला फिक्शन है जिसमें कुछ डायलॉग्स बोल्ड और इंटेंस हो सकते हैं। यदि आपको कोई लाइन ज़्यादा वल्गर या आपत्तिजनक लगे, तो कृपया कमेंट में बताएं — मैं उसे एडिट कर दूंगा।

    बस एक रिक्वेस्ट है — रिपोर्ट न करें, क्योंकि इस कहानी को लिखने में दिल और मेहनत दोनों लगे हैं। 🙏

    अलविदा.....!!!!!!

  • 11. kalavti agains vinay

    Words: 1078

    Estimated Reading Time: 7 min

    कबीर हैरानी से बोला ,"यार ढंग से देख वो अपने कमरे में हो होगा। इतनी रात को भला ये कहां जा सकता है?ये विनय भी ना पता नहीं कहां कहां खोया रहता है?"

    विराज गुस्से से बोला ,"यार मैंने उसे हर जगह देख लिया है लेकिन वो कहीं पर भी नज़र नहीं आ रहा है। अब समझ में नहीं आ रहा है की क्या करें? उसे कहां ढूंढे?"

    कबीर कुछ सोचते हुए बोला , "इतनी रात को वो आखिरकार जा कहां सकता है? चल उसे ढूंढते हैं।"

    इतना कहकर वे दोनों हवेली में विनय को ढूंढने लग गए।

    इधर विनय स्टोरूम के अंदर एक कोने में गया और वहां पर जमीन पर नज़र दौड़ाने लगा और देखने लगा की आखिर कौनसी चीज के गिरने की आवाज उसके कानों में आई थी लेकिन उस कोने में इतना अधिक अंधेरा था की कुछ भी साफ़ नज़र नहीं आ रहा था। सब कुछ धुंधला सा प्रतीत हो रहा था।

    विनय अपने आप से बोल पड़ा ,"एक तो स्टोरूम में इतना अंधेरा है और ऊपर से जहां पर लाइट की भयबस्था भी नहीं है और एक मेरा मोबाइल भी पता नहीं कहां गुम हो गया है। खराब होकर रह गया। अब इतने अंधेरे में ना ही तो कुछ नज़र आ रहा है और ना ही मैं कहीं से रोशनी का इंतजाम कर सकता हूं।"

    इतना कहकर विनय ने फिर से जमीन पर नज़र दौड़ाई तो उसकी जान जैसे निकल ही गई क्योंकि नीचे जमीन पर बही तस्वीर पड़ी थी जो विनय ने अभी पीछे चेयर पर रखी थी।

    विनय ने तेजी से कुर्सी पर नजर दौड़ाई लेकिन वहां बहुत अंधेरा था इसलिए नजर नहीं आ रहा था की वहां पर तस्वीर हैं भी या फिर नहीं है।

    विनय अपने आप से बोल पड़ा ," ऐसे कैसे हो सकता है ये तस्वीर तो मैंने अभी वहां उस चेयर पर रखी थी लेकिन वो तस्वीर अचानक से जहां जमीन पर कैसे आ गई। वहां से इतनी दूर। नहीं नहीं जरूर ये मेरा ही कोई वहम है। तस्वीर के पांव तो लगे हुए है नहीं जो वो अपने आप चलकर जहां पर आ जायेगी।"

    इतना कहकर विनय ने फिर से जमीन पर नज़र दौड़ाई तो वो तस्वीर अब भी वहीं पर पड़ी थी।

    विनय ने डरते हुए उस तस्वीर को उठाया और उसे गौर से देखते हुए बोला ,"ये तस्वीर तो बिलकुल ही वैसी है। ये सारा स्टोरूम ही उस लड़की की तस्वीरों से भरा पड़ा है हो सकता है की ये तस्वीर यहीं दीवार पर टंगी हुई होगी और दरवाजा खोलने के कारण दीवार पर से गिर गई होगी। जरूर ऐसा ही हुआ होगा।"

    इतना कहकर विनय ने वो तस्वीर वहीं एक टेबल पर रख दी और धीरे धीरे अपने कदम स्टोरूम से बाहर की और बढ़ा दिए लेकिन एक चेयर के पास आकर उसके कदम रुक गए और उसकी जान उसके हलक में ही जैसे अटक कर रह गई।

    ये वही चेयर थी जहां पर विनय ने अभी वो तस्वीर रखी थी लेकिन अब वो तस्वीर वहां पर नहीं थी।

    विनय में कुर्सी पर अच्छे से हाथ फेरा और कुर्सी के नीचे भी गौर से देखा लेकिन वहां पर वो तस्वीर नज़र नहीं आ रही थी।

    विनय डरते हुए अपने आप से बोल पड़ा ,"ये कैसे हो सकता है। इसका मतलब है की मैने जो तस्वीर इस चेयर पर रखी थी वही तस्वीर वहां उस कोने में चली गई जिसे मैंने उठाकर अभी मेज पर रखा है वो तस्वीर और कोई नहीं बल्कि यही तस्वीर है। उस कला... काला.... कलावती की तस्वीर है।"

    विनय के इतना कहते ही बाहर आसमान में एक जोरदार बिजली कड़की और इधर स्टोरूम के अंदर खड़े विनय का बदन कांप गया।

    विनय तेजी से दरवाजे की और मुड़ा और स्टोरूम से बाहर निकलने के लिए अपने कदम बढ़ाने लगा।

    इतने में अचानक से ही एक जोरदार आवाज के साथ वो दरवाजा बंद हो गया और कमरे में धुंआ सा छा गया।

    ये देखकर विनय के पैरों के नीचे से तो जैसे जमीन ही निकल गई और उसका दिल उछलकर जैसे उसके मुंह में ही आ गया।

    विनय भागकर दरवाजे के पास गया और जोर जोर से दरवाजा खटखटाने लगा लेकिन दरवाजा खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था।

    विनय दरवाजे पर जोर जोर से हाथ मारते हुए चिलाने लगा , "बचाओ ... बचाओ... मुझे बचाओ..... मुझे बाहर निकालो...... कबीर.... विराज....... मुझे बचाओ...... मैं जहां फंस गया हूं.... मुझे बचाओ...अरे !... कोई मुझे बाहर निकालो.....।"

    विनय अपनी जान बचाने के लिए जोर जोर से चलाए जा रहा था लेकिन दरवाजा था की खुलने का नाम ही नहीं लेता था।

    विनय डरते हुए दीवार के साथ में लग गया और जोर जोर से चीखने लग गया। अचानक से उसे अपने सामने दीवार के पास एक कोने में एक साया खड़ा नज़र आया।

    कोने में इतना ज्यादा अंधेरा था की वो साया कौन है? कहां से आया है? कुछ पता नहीं चल रहा है।

    विनय बस एकटक उस साए को ही घूरे जा रहा था लेकिन उस साए का चेहरा उसे नज़र नहीं आ रहा था।

    अचानक से वो साया धीरे धीरे विनय की और बढ़ने लग गया।

    उस साए के पैरों में पहनी हुई पाजेबों की आवाजें पुरे कोने में गूंज रही थी।

    विनय ये आवाजें सुनकर बुरी तरह डर गया था लेकिन वो अब ये जरूर समझ गया था की ये साया जरूर कोई लड़की ही है लेकिन अभी भी उसका चेहरा उसे नज़र नहीं आ रहा था।

    इतने में वो साया बिलकुल उसके पास आ गया। ये साया और कोई नहीं बल्कि कलावती ही थी। डर और दहशत की असली तस्वीर।

    विनय उसे देखकर बुरी तरह डर गया और घुटनों के बल दीवार के साथ लग गया।

    कलावती भी उसके साथ घुटनों के बल बैठ गई। लाल साडी पहनी हुई, बेहद ही डरावना चेहरा , नाखून बड़े बड़े और खून से लथपथ , साथ ही चेहरे पर एक डरावनी हंसी , आंखों में खून उतरा हुआ।

    कलावती अपने बड़े बड़े नाखून विनय के गाल के पास में दौड़ाते हुए बेहद ही डरावनी आवाज में बोली , "क्या हुआ डर गए विनय? मैं कब से तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी।"

    बस कलावती की यही आवाज़ें उस स्टारूम में गूंजने लग गई।

    विनय अपनी फटी आंखों से बस कलावती को ही देखे जा रहा था। विनय का दिल किसी ट्रेन की स्पीड से दौड़े जा रहा था जिसकी आवाज़ उस स्टोरूम के सुनसान और जानलेवा से सन्नाटे में साफ़ सुनी जा सकती थी और बस वही एक आवाज उस स्टोरूम में गूंजे जा रही थी

    क्या होगा अब विनय के साथ में??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा.......

    अलविदा...!!!!!!

  • 12. dirty secret

    Words: 1187

    Estimated Reading Time: 8 min

    इतने में कलावती ने अपना चेहरा विनय के और भी पास कर लिया। विनय ने डरते हुए अपना मुंह दूसरी और घुमा लिया और अपनी बांह को आगे कर दिया।

    उसकी बांह पर रुद्राक्ष बंधा हुआ था। कलावती ने उस रुद्राक्ष को घूरा और अपनी आंखें बंद कर ली।
    कलावती धीरे से बोली:: विनय क्या हुआ? इतना क्यों घबरा रहे हो? मेरे जिस्म के मजे नहीं लोगे? मेरे इन रसीले आमों को नहीं चूसोगे..... प्लीज विनय डरना बंद करो और मुझे अपनी गोदी में भर लो...!"

    विनय रुद्राक्ष उसके करीब करते हुए:: तुम... तुम जाओ यहां से.... जाओ...!"

    इतने में अचानक से ही किसी ने स्टोरूम का दरवाजा खोला और कलावती हवा में ही कहीं गायब होकर रह गई और ऐसे लगना लगे की कलावती वहां कभी आई ही नहीं थी।

    विराज और कबीर ने स्टोरूम में इधर उधर नज़र दौड़ाई और एक कोने में विनय को पड़े हुए देखा जिसने अपने दोनों हाथों से अपने चहरे को ढक रखा था और अपनी जान बचाने के लिए भीख मांगते हुए बड़बड़ाए जा रहा था।

    कबीर और बिराज उसके सामने जाकर बैठ गए।

    कबीर ने उसके कंधे को छुआ तो विनय अचानक से डर गया और कांपते हुए तेजी से बोला ,"कौन है कौन है? मुझे छोड़ दो? मैने कुछ भी नहीं किया है? मुझे छोड़ दो। मैं... मैं मरना नहीं चाहता हूं।"

    ये सुनकर कबीर और बिराज एक दूसरे के चेहरों की और देखने लग गए।

    कबीर फिर से उसके कंधे को हिलाते हुए बोला , "साले क्या बकबास कर रहा है? और इतनी रात को तूं जहां स्टोरूम में क्या कर रहा है? पागल हो गया है क्या तूं? तीन सालों से बंद इस स्टोरूम को क्यों खोला तूने? और जहां कर क्या रहा है तूं? बताएगा भी क्या?"

    विनय ने उन दोनों की और देखा और तेजी से खड़ा हो गया।

    विनय का मुंह पसीने से भीग चुका था।

    विनय अपने पसीने को पोंछते हुए बोला ,"तुम दोनों जहां क्या कर रहे हो?"

    विराज गुस्से से बोला ,"ये मायने नहीं रखता है की हम जहां क्या कर रहे हैं? मायने ये रखता है की तूं इतनी रात को जहां कर क्या रहा है? और इस स्टोरूम का दरवाजा तूने क्यों खोला? साले पागल कहीं के।"

    विनय हांफते हुए बोला , "वो... वो....... वापिस..... वापिस ..... वो वापिस आ गई है.... अब .... अब वो किसी को भी नहीं छोड़ेगी.... सबको मार डालेगी बो.....।"

    कबीर ने गुस्से से एक जोरदार थपड़ विनय के गाल पर जड़ दिया और उसकी कॉलर पकड़ते हुए बोला , "साले तूं क्या बकबास कर रहा है? पागल हो गया है कया? कौन वापिस आ गई है? कौन सबको मार देगी।"

    विनय अपनी कॉलर छुड़ाते हुए गुस्से में बोला ,"वो आ गई है तेरी मां कलावती आ गई है। वो सबको मार देगी। किसी को नही छोड़ेगी।"

    कबीर गुस्से से बोला , "साले अपनी जुबान संभाल कर बोल। कलावती के मामले में मेरी मां को मत लेकर आ।"

    विराज गुस्से से बोला , "कलावती.... साले उसका नाम अब क्यों ले रहा है? वो मर.... मर चुकी है।"

    कबीर गुस्से से , "और मरा हुआ इंसान कभी वापिस नहीं आ सकता है।"

    विनय गुस्से से बोला ,"मरा हुआ इंसान वापिस आ सकता है। भूत प्रेत होते हैं। अब वो अपना बदला लेकर आई है। वो हम सबको जान से मार डालेगी। किसी को भी जिंदा नहीं छोड़ेगी वो। जब एक लड़की की मौत असमय होती है तब होता है एक पिशाचिनी का जन्म। जो काली शक्तियों की महारानी होती है।"

    इतने में कबीर गुस्से से विनय की कॉलर पकड़ते हुए बोला , "अपनी बकवास अपने पास ही रख। कोई भूत प्रेत नहीं होते हैं। और ना ही कोई पिशाचिनी होती है इसलिए अपनी ये बकवास अपने पास ही रख।"

    विनय गुस्से से बोला , "साले कबीर बकबास तूं कर रहा है। जब तेरा एक पिसाचिनी से सामना होगा तब तुझे पता चलेगा की डर क्या होता है।"

    विराज गुस्से से बोला , "अब तुम दोनों अपनी बकवास बंद करो और वर्षों से बंद इस स्टोरूम के फिर से ताला मारा और जहां से निकलो।"

    इतना कहकर विराज ने वहां दीवार पर लगी हुई हर एक तस्वीर पर नजर दौड़ाई और तीन साल पहले के सारे नजारे उसकी आंखों के आगे आने लगे।

    वे तीनों कमरे से बाहर निकले।

    विराज दरवाजे को बंद करते हुए बोला ,"बस मैने फैसला कर लिया है की मैं अब जहां इस हवेली में एक और पल भी नहीं रुकूंगा। हम लोग अभी ये हवेली छोड़कर चले जायेंगे।"

    ये सुनकर कबीर तो जैसे आग बबूला हो गया।

    कबीर ने गुस्से से विनय की छाती पर एक जोरदार पंच दे मारा।

    कबीर गुस्से से बोला , "साले तूने ये बात बोल भी कैसे दी। मैं किसी के डर से ये हवेली नहीं छोड़ने वाला हूं। ये हवेली हमारी है हमारी। अपने दम पर इस हवेली को अपना बनाया है हमने। इस हवेली को अपना बनाने के लिए न जाने क्या कुछ किया है हमने? इसलिए ना तो मैं ये हवेली छोडूंगा और ना ही तुम में से कोई ये हवेली छोड़ेगा और अगर तुममें से किसी ने भी ये हवेली छोड़ी तो मैं वो होटल वाली डील कैंसिल कर दूंगा।"

    ये सुनते ही बिराज और विनय फटी आंखों से कबीर की और देखने लग गए।

    विराज गुस्से से बोला ,"तूं पागल हो गया है क्या कबीर? तुझे मालूम है ना की तूं उस होटल में 75 परसेंट शेयर होल्डर है। तेरे डील कैंसिल करते ही हम सब बरबाद हो जायेंगे।"

    कबीर गुस्से से कमरे की चाभी उठाकर विराज के हाथों में थमाते हुए बोला , "अगर बरबाद नहीं होना चाहते हो तो जैसा मैं कहता जाऊं बस वैसा ही करते जाओ बरना अंजाम तुम्हें मालूम ही है। अब चुपचाप इस स्टोरूम को ताला लगाओ और निकलो जहां से और साले विनय के बच्चे तुझे नींद नहीं आती है क्या जो इतनी रात गए इस स्टोरूम में चला आया।"

    विनय ताला लगाते हुए बोला , "वो तस्वीर बाहर वहां दीवार पर लगी हुई थी। वो तस्वीर ही जहां फेंकने आया था। मुझे भी कोई शौंक नहीं चढ़ा है अपनी मौत को दावत देने का।"

    विराज हैरानी से बोला ,"कौनसी तस्वीर?"

    विनय गुस्से से बोला , "अरे ! वही उस कला........।"

    इतने में कबीर ने विनय के मुंह पर हाथ रख दिया और गुस्से से बोला , "नाम भी मत लेना उसका। दीवारों के भी कान होते हैं। जो कुछ हुआ सब भूल जाओ। वैसे वो तस्वीर बाहर गई कैसे?"

    विनय खुद को छुड़ाते हुए गुस्से से बोला , "अरे ! मुझे क्या मालूम की उस तस्वीर को वहां पर किसने लगाया था?"

    कबीर अपनी गर्दन उठाते हुए बोला , "इस चाभी को किसी ऐसी जगह छुपाओ की ये किसी के भी हाथ न लग सके। मैं नहीं चाहता हूं की ये स्टोरुम का दरवाजा तीन साल बाद में एक बार फिर से खुले और हमारा वो सारा राज़ भी खुल जाए जिसे छुपाने के लिए हमने दिन रात एक किया है।"

    "कैसा राज़ कबीर.....।"  - एक और से आवाज आई और उन तीनों के पैरों तले से जैसे जमीन ही खिसक गई।।

    कौन था वहां??
    क्या है उनका काला राज़??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा.......

    प्लीज मुझे सब्सक्राइब जरूर कीजियेगा ताकि आपको सभी रचनाएं फ्री में पढ़ने को मिल सके।

    अलविदा....!!!!!

  • 13. adult content

    Words: 2138

    Estimated Reading Time: 13 min

    कबीर विराज और विनय ने डरते हुए उस और देखा तो वहां पर अवनी खड़ी थी जो उन्हें ही घूरे जा रही थी। अवनी को अचानक से वहां पर देखकर वे तीनों ही शॉक्ड हो गए और एक दूसरे के मुंह की और देखने लगे। उन तीनों के समझ में नहीं आ रहा था की अब वे भला अवनी को क्या जवाब दें।

    इतने में अवनी उनके पास आते हुए बोली -/यार तुम तीनों को नींद नहीं आती है क्या? इतनी रात को तुम तीनों इस हवेली की इतनी गहराई में क्या कर कर रहे हो? और तुम तीनों मिलकर किस राज़ की बात कर रहे थे। एक ये हवेली, हवेली कम है और बुलबलैया ज्यादा है।

    कबीर ने विराज की और देखते हुए कहा-/अपनी बेगम साहिबा को संभालो और इसे कुछ भी पता नहीं लगना चाहिए बरना अंजाम तुम्हें मालूम ही है।/-

    इतना कहकर कबीर वहां से चला गया और उसके पीछे पीछे विनय भी वहां से निकल गया।

    अवनी ने पीछे मुड़कर उनकी और देखा और बोली-/यार कमाल है , ऐसे इग्नोर करके कहां जा रहे हो। ज़बाब तो दो/-

    इतने में बिराज अवनी के पास गया और उसे कसकर अपनी बांहों में भर लिया। अवनी और विराज के चेहरे अब बिलकुल ही पास पास थे।

    विराज अवनी की गाल पर अपनी अंगुली चलाते हुए बोला-/बेगम साहिबा आप इतनी रात को कमरे से बाहर जहां क्या कर रही हैं?/-

    अवनी विराज की आंखों में आंखे डालते हुए बोली-/ये सवाल तो मुझे तुमसे पूछना चाहिए की तुम तीनों जहां क्या कर रहे थे और कैसे राज़ की बात कर रहे थे तुम।/-

    विराज अवनी के गाल पर किस करते हुए बोला-/कोई भी राज़ नहीं है बेगम साहिबा। वो तो बस विनय को नींद में चलने की बीमारी है और वो नींद में चलते हुए जहां पर आ गया बस उसे ही होश में लाने के लिए हम जहां आए थे। ओके। अब चलें।/-

    इतना कहकर विराज ने अवनी को अपनी गोदी में उठा लिया और उसे कमरे में ले जाने लगा और बीच बीच में वो अवनी के रसीले होठों को चूम लेता।

    इधर विनय अपने कमरे में आया और आते ही दरवाजा बंद कर लिया और सभी लाइट्स चालू कर दी। विनय का माथा अब पसीने से भीग चुका था। कुछ देर पहले की सारी घटनाएं विनय के दिमाग में किसी फिल्म के ट्रेलर की तरह चक्कर लगा रही थी। विनय ने अपना मोबाइल उठाया और अपने आप से बोल पड़ा -/ये मोबाइल अब अपने आप सही हो गया है। पहले चल ही नहीं रहा था। कमाल है। पता नहीं क्या अज़िब अजीब घटित हो रहा है। कुछ समझ में नहीं आ रहा है।/-

    इतना कहकर विनय ने मोबाइल फिर से बेड पर दे मारा और वाथरुम में शॉवर के नीचे जाकर खड़ा हो गया।

    विनय लगातार पानी से भीगे जा रहा था। उसकी आंखों में अब भी वहीं सारी घटनाएं दौड़े जा रही थी।

    अचानक से विनय की आंखें एक जगह पर जाकर टिक गई और उसका बदन थर थर कांपने लग गया। उसके सर पर कहीं से टपक टपक खून की बूंदे गिर रही थी। विनय ने कंपकंपाते हुए हाथ से शॉवर को बंद किया और उसका बदन अब पूरी तरह कांपने लग गया क्योंकि शॉवर के बंद करने के बाद भी कहीं से खून की बूंदे लगातार उसके सर पर गिरे जा रही थी। सर से होते हुए खून की बूंदे उसके नाक के पास से होठों पर लगते हुए जमीन पर गिर रही थी।

    डर के मारे विनय की भी अब ऊपर छत की और देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। विनय ने जैसे तैसे करके अपनी घबराहट पर काबू पाया और ऊपर छत की और देखने के लिए धीरे धीरे अपना सर ऊपर उठाया और ऊपर देखते ही वो धड़ाम से जमीन पर जा गिरा क्योंकि छत पर खून से लथपथ कलावती चिपकी हुई थी।

    खून से लथपथ चेहरा, ऊपर की और चढ़ी हुई लाल आंखें, खुले बाल जो उस नजारे को और भी डरावना बना रही थी।

    डर के मारे विनय की सारी आवाज उसके गले में ही दबकर रह गई थी। अचानक से कलावती ने अपना सर कुछ नीचे किया और अपनी निगाहें विनय पर टिका दी मानो की कलावती एक शिकारी हो और विनय इसका शिकार।

    विनय का पूरा बदन अब उसे जवाब दे चुका था। वो पूरी तरह से गूंगा होकर रह गया था। इतने में एक ही झटके में कलावती उस पर झपटी और उसकी गर्दन अपने खून से लथपथ हाथों से पकड़कर उसके शरीर से अलग कर दी और उसे नोच नोचकर खाने लगी।

    इतने में अचानक से विनय के हाथ से अपना मोबाइल जमीन पर गिर गया और बो अपने होश में आ गया। विनय के चारों और नज़र दौड़ाई तो वो अपने कमरे में ही खड़ा था।

    विनय ने कांपते हुए हाथों से मोबाइल को उठाया और उसे मेज पर रखते हुए बोला-/अच्छा हुआ सपना था। मैं तो डर ही गया था। मैं भी ना आजकल खुली आंखों से ही सपने देखने लगा हूं।/-

    इतना कहकर विनय ने टॉवेल उठाया और नहाने के लिए जाने लगा तभी उसके कदम वहीं पर रुक गए और उसे अपना सपना फिर से याद आने लगा की किस तरह कलावती ने उसे बाथरूम में जान से मार डाला था।

    विनय के हाथों से वो टॉवेल धड़ाम से जमीन पर गिर गया। विनय का नहाने के मन भी कर रहा था और वो नहाने के लिए या भी नहीं सकता था। विनय तेजी से बेड पर चढ़ गया और खुद को कंबल के अंदर लपेटकर सो गया। विनय अब भी बेड पर बेजान सा लेटा पड़ा थर थर कांपे जा रहा था।

    विनय के कमरे की खिड़की के बाहर खड़ा एक साया लगातार विनय को ही घूरे जा रहा था।

    अचानक से वो साया थोड़ा सा पीछे हटा और अपने आप से बेहद ही डरावनी आवाज में बोला -/रुद्राक्ष कब तक तुम्हारी मदद करेगा। मेरा पहला शिकार हो तुम। नहीं बचोगे।/-

    पीछे एक पेड़ की डाली पर उल्टा लटक रहा एक उल्लू जोर जोर से चिलाए जा रहा था। अचानक से वो उल्लू सीधा हो गया और उस साए के साथ में ही कहीं गायब होकर रह गया हमेशा के लिए।

    उस साए के वहां से गायब होते ही एक बार फिर हर जगह शांति पसर गई और ऐसा लगने लगा की कभी कुछ हुआ ही न हो।

    इधर बिराज अपनी गोदी में उठाकर अवनी को कमरे में लेकर आया और आते ही उसे बेड पर पटक दिया।

    विराज ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। विराज बेड पर अवनी के पास लेट गया और उसे अपने सीने से लगाते हुए बोला-/बेगम साहिबा अभी सुबह होने में काफ़ी वक्त है। इसलिए अब आराम से सो जाओ।/-

    अवनी हल्की सी हंसी में बोली -/अगर नहीं सोई तो।/-

    ये सुनकर विराज ने अवनी की और देखा और उसके होठों पर किस करते हुए बोला -/अगर तुम नहीं सोई तो फिर मुझे बेवजह ही अपना मूड बनाना पड़ेगा और फिर .....।/-

    अवनी विराज के सीने से कसकर लगते हुए बोली-/तो फिर क्या?/-

    विराज अवनी की गर्दन को चूमते हुए बोला -/तो फिर इस पूरी हवेली में सिर्फ तुम्हारी चीखें ही सुनाई देंगी क्योंकि वो क्या है ना की आपके इस बॉयफ्रेंड का स्टेमिना बहुत डेवलप है। सोच लो। नहीं सहन कर पाओगी।/-

    अवनी विराज के नाक को खींचते हुए बोली -/वैसे आपको नहीं लगता है की ऐसी चीजें शादी के बाद ही अच्छी लगती है।/-

    विराज सख्त होते हुए बोला -/बेगम साहिबा मेरा शादी में बिलकुल भी यकीन नहीं है। वैसे भी जिंदगी एंजॉय करने के लिए होती है। बस अब से तुम मेरी बेगम साहिबा और मैं आपका पतिदेव। हम दो हमारे दो।/-

    अवनी गुस्से से बिराज की और देखते हुए-/आए ! हाय अभी हमारे दो पर आ गए। अरे ! अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई है ना। इसलिए प्लीज आप अपनी लिमिट में रहिए वरना अंजाम बुरा हो सकता है।/-

    विराज हंसते हुए-/ओह ! माय फाइटरमैन बेगम। अच्छा ठीक है अब सो जाइए वैसे भी रात बहुत हो चुकी है। बाकी कल की रात करेंगे।/-

    इतना कहकर विराज ने अवनी को कसकर अपने सीने से चिपका लिया और आँखें बंद करते हुए बोला:: आज मैं भी थका हुआ हूं इसलिए छोड़ देता हूं लेकिन कल से रोज तुम पर दो तीन राउंड लगाऊंगा।"

    इधर कबीर अपने पांव पटकते हुए अपने कमरे में आ गया। कबीर ने डोर लॉक किया और बेड पर नज़र दौड़ाई तो मान्या अभी भी ड्रग के नशे में सोई पड़ी थी।

    कबीर ने एक अलमारी को खोला और उसमें कुछ ढूंढने लगा और तभी उसने एक तस्वीर बाहर निकाली। ये तस्वीर एक बेहद ही खूबसूरत लड़की की थी। तस्वीर में लड़की एक पेड़ के नीचे खड़ी थी। शाम का वक्त था। तस्वीर में लड़की की पीठ नज़र आ रही है। लड़की ने लाल रंग की साड़ी पहन रखी है। लड़की के खुले बाल उसे और भी खूबसूरत बना रहे है। तस्वीर में पत्थर के पीछे से एक लड़का छिपकर उस लड़की को देखते हुए नजर आ रहा है। देखने में ये लड़का विनय जैसा लग रहा है।

    कबीर ने अपनी जेब में से एक लाइटर निकाला और खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया और जंगल में दूर खड़े एक शिव मंदिर पर नज़र दौड़ाते हुए बोला-/तीन साल। काश तुम हमेशा हमारे पास रहती। रानी बनाकर रखता तुम्हें लेकिन शायद भाग्य में कुछ और ही लिखा था। किस्मत को कौन बदल सकता है।/-

    इतना कहकर कबीर ने उस फोटो पर किस किया और मायूस होते हुए बोला-/मुझे माफ़ कर देना बटरफ्लाई उस रात मेरी आंखों में खून उतर आया था। मैं ..... सॉरी सॉरी मतलब हम लोग चाहकर भी खुद को रोक न सके। सॉरी बटरफ्लाई तुम सच में मेरे दिल पर एक गहरा निशान छोड़कर गई हो जो आजतक मिटा नहीं है। वैसे भी कौन कहता है की समय के साथ में घाव भर जाता है, अगर दोषी सामने आ जाए तो घाव फिर से हरे हो जाते हैं और मैं तो दोषियों के साथ में ही घूम रहा हूं। सच में बटरफ्लाई जिंदगी में मैंने आजतक अगर सच्चा प्यार किया है तो सिर्फ़ तुमसे ही किया है। तुम्हारे बाद तो कभी किसी से इश्क हुआ ही नहीं। दिल को कभी सुकून मिला ही नहीं। आज भी विनय और बिराज जब कभी भी तुम्हारा नाम लेते हैं तो मैं उनके मुंह पर पहले ही हाथ रख देता हूं। मैं नहीं सुनना चाहता हूं तुम्हारा नाम क्योंकि तुम्हारा नाम सुनते ही मुझे तीन साल पहले का सारा नज़ारा नजर आने लगता है। वो सारे चेहरे नजर आने लगते हैं जिन्हें मैं आजतक नहीं भुला पाया हूं और शायद कभी भी नहीं भुला पाऊंगा।/-

    इतना कहकर कबीर ने एक बार फिर से उस लड़की की तस्वीर को चूमा और उसे जलाने के लिए लाइटर उसकी और बढ़ाया लेकिन तभी उसके हाथ कांपने लग गए। कबीर के हाथ से अचानक ही लाइटर जमीन पर जा गिरा और वो अपने आप से बोल पड़ा-/मैं तुम्हें याद भी नहीं रखना चाहता हूं और भुलाना भी नहीं चाहता हूं। समझ में नहीं आता है की अब करूं तो करूं क्या? काश तुम वापिस आ सकती। लव यू बटरफ्लाई। लव यू टू।/-

    इतना कहकर कबीर ने फिर से वो तस्वीर अलमारी के अंदर छिपाकर रख दी।

    बाहर एक पेड़ पीछे से एक बेहद ही खूबसूरत लड़की बाहर निकली और वो अपने नाखून पेड़ के तने पर फेरते हुए बोली -/कबीर.... मैं बापिस आ गई हूं। अब फिक्र मत करो। तुम्हें अपने साथ लेकर ही जाऊंगी।/-

    इतना कहकर वो लड़की पागलों की तरह हंसने लग गई।

    इधर कबीर में खिड़की बंद कर दी और बेड पर आकर लेट गया और मान्या के माथे को चूमते हुए बोला-/बेबी कभी कभी तो मुझे तुम में मेरी बटरफ्लाई नज़र आती है लेकिन मेरी जिंदगी में तुम मेरी बटरफ्लाई का स्थान कभी नहीं ले सकती हो। वो सबसे खास थी। उसकी एक झलक ही सबको पागल कर देती थी। पता नहीं उस रात मुझे क्या हो गया था? पैसों के लालच में आकर मैंने न जाने क्या कुछ कर दिया था?/-

    इतना कहकर कबीर ने मान्या के होठों पर एक लॉन्ग किस किया और उसे अपने सीने में छुपाते हुए सो गया। इस बात से बिलकुल बेखबर होकर की अब वो ज्यादा देर तक उसके सीने में नहीं रह सकती है।

    इधर विनय कंबल के अंदर पड़ा अभी भी थर थर कांपे जा रहा था तभी एक जोरदार झटके साथ में खिड़की खुल गई और विनय की तो जैसे जान ही निकल गई। खिड़की आपस में बजकर जोरों की आवाज करने लगी और विनय ने अपने कानों पर हाथ रख लिया लेकिन वो ज्यादा देर तक इस शोर को सहन न कर सका।

    विनय ने अपना मुंह कंबल से बाहर निकाला और धीरे धीरे खड़ा होकर खिड़की के पास चला गया और जैसे ही खिड़की के बाहर नज़र दौड़ाई तो बाहर का नजारा देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई।।

    क्या था बाहर?

    क्या होगा उनके साथ इस बंद हवेली में??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा.....

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    अलविदा.....!!!!!!

  • 14. sexy butterfly

    Words: 2140

    Estimated Reading Time: 13 min

    विनय ने देखा तो बाहर एक पेड़ के नीचे एक लड़की खड़ी थी जिसकी पीठ उसे नज़र आ रही थी। लड़की से थोड़ी दूरी पर एक पत्थर था। ये सारा नजारा देखते ही विनय को तीन साल पहले की सारी घटनाएं नज़र आने लगी।

    तीन साल पहले जब कबीर ने एक फोटो एक और से छिपकर खिंची थी। जब विनय उस लड़की को एक पत्थर के पीछे से छिप छिपकर देख रहा था।

    विनय बस एकटक उस नज़ारे को देख रहा था। उसका बदन थर थर कांप रहा था। शरीर में झनझनाहट होने लग गई थी। आवाज उसके गले में ही दबकर रह गई थी। विनय कंपकंपाती आवाज में बोल पड़ा ,"काला..... काला..... कलावती।"

    विनय के इतना कहते ही कलावती ने अपना सर पीछे घुमाया सिर्फ गर्दन ही पीछे घुमाई थी बाकी शरीर वैसे ही सामने की और मुंह किए खड़ा था। ये देखकर विनय के तो पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई।

    अचानक से कलावती हवा में उड़ी और सीधे ही विनय के ऊपर झपट पड़ी। ये देखकर विनय ने तेजी से खिड़की बंद कर दी और वो साया खिड़की के कांच से आ बीड़ा और फिर अचानक से ही कहीं गायब होकर रह गया। विनय की तो जैसे जान ही उसके बदन से निकल गई थी। विनय तेजी से पीछे मुड़ा और बेड पर कंबल के अंदर छिपकर बैठ गया और जरा सी भी हलचल नहीं की। विनय अपने मन में हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा। इसी तरह उसे नींद कब आ गई ये उसे पता ही नहीं चला।

    इसी तरह धीरे धीरे रात ढलने लगी। रात के लगभग तीन बजे हवेली के बाहर एक और सज्जे के नीचे चौकीदार मज़े से लेटा पड़ा था तभी अचानक से उसकी आंख खुल गई। उसकी नजरों के सामने एक कब्रिस्तान था। जिसमें चार पांच कब्रें बनी हुई थी। एक कब्र के पास में रात के घने काले अंधेरे में एक साया खड़ा नज़र आ रहा था। ये देखकर चौकीदार के तो जैसे पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई। चौकीदार ने लालटेन उठाई और खड़ा होते हुए अपने आप से बोला ," इतनी रात को भला जहां कब्रिस्तान में कोई क्या करेगा? मुझे जाकर देखना ही होगा? की आखिर जहां इतनी रात को आया कौन है?"

    इतना कहकर चौकीदार ने अपने कदम धीरे धीरे उस साए के पास आकर खड़ा हो गया। वो साया चौकीदार की और पीठ करके खड़ा था। देखने में वो कोई लड़की लग रही थी। पीछे से वो लड़की बेहद ही खूबसूरत नज़र आ रही थी।

    चौकीदार कांपती आवाज़ में बोला ,"मैडम साहब आप कौन है और आप जहां क्या कर रही हैं? इतनी रात गए आपको डर नहीं लगता है क्या? जाकर सो जाइए मैडम जी।"

    वो लड़की बिना पीछे मुड़े बेहद ही धीमी आवाज में बोली ,"कब्र देख रही हूं? आपको कोई दिक्कत है क्या?"

    चौकीदार ने कब्र की और देखा जहां लिखा था ,"कलावती।"

    चौकीदार डरते हुए बोला,"तुम देख ऐसे रही हो जैसे की तुम्हें मालूम है की ये कब्र किसकी है और क्यू हैं?"

    चौकीदार की ये बात सुनकर लड़की के चेहरे पर जहरीली मुस्कुराहट आ गई।

    वो लड़की अचानक से पीछे मुड़ी और दोनों हाथों से चौकीदार का मुंह पकड़ लिया और उसे बिलकुल अपने चेहरे के पास कर लिया।

    वो लड़की चौकीदार की आंखों में आंखें डालते हुए डरावनी आवाज में बोली ,"ये कब्र मेरी है। मेरा जितना मन करेगा मैं अपनी कब्र को उतनी ही देर तक देखूंगी तुम कौन होते हो मुझे रोकने वाले। कलावती हूं मैं। अपना बदला लेने आई हूं। अगर तुम्हें कोई दिक्कत है तो अभी तुम्हारे लिए एक कब्र का प्रबंध कर देती हूं। करूं क्या?"

    इतना कहकर कलावती पागलों की तरह हंसने लग गई और चौकीदार नीचे धड़ाम से जमीन पर जा गिरा और थर थर कांपने लगा। चौकीदार का मुंह पसीने से भीग चुका था। आंखों से आंसू निकल पड़े थे। दिमाग सुन हो रहा था। उसका शरीर शायद उसका साथ छोड़ चुका था। उसके मुंह से जरा सी भी आवाज नहीं निकल रही थी क्योंकि उस रात एक सुनसान कब्रिस्तान में पाठकों अगर आप होते तो शायद आपका भी यही हाल होता जो की उस चौकीदार का डर के मारे हो रहा था। कलावती बस पागलों की तरह हंसते हुए चौकीदार को घूरे जा रही थी मानो की वो चौकीदार आज उसका पहला शिकार हो।

    चौकीदार मुंह से तो कुछ न बोल सका लेकिन अपने कांपते हुए हाथ कलावती के आगे जोड़ दिए। कलावती अचानक से घुटनों के बल उसके पास बैठ गई। चौकीदार ने आज पहली बार जिंदगी में किसी लड़की को इतनी करीब से देखा था। साड़ी पहने हुए , लंबे काले बाल, एक डरावनी हंसी। कलावती उसे जितनी खूबसूरत नज़र आ रही थी तो उससे भी ज्यादा वो उसे डरावनी नज़र आ रही थी।

    कलावती ने अचानक से चौकीदार की गर्दन को पीछे से पकड़ लिया और उसकी आंखों में आंखें डालते हुए बोली ,"खोदूं क्या तुम्हारे लिए एक कब्र। शानदार सी।"

    चौकीदार ने पसीने से भीग चुके सर को डरते हुए ना में हिला दिया और कलावती के चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई।

    कलावती अचानक से खड़ी हो गई और फिर अंधेरे में ही कहीं पर गायब होकर रह गई।

    चौकीदार कांपते हुए शरीर के साथ में खड़ा हुआ और चारों और नजरें दौड़ाते हुए कलावती को ढूंढने लग गया। अचानक से हर और शांति पसर गई और पूरा कब्रिस्तान खामोश हो गया और ऐसा लगने लगा की जैसे सभी लाशें मस्ती में सो रही हों।

    चौकीदार ने लालटेन उठाई और तेजी से हवेली के अंदर भाग गया।

    उसके हवेली में जाते ही कब्रिस्तान ऐसे लगने लगा की जैसे वर्षों से बंजर पड़ी जगह हो और कुछ ही देर पहले जैसे कलावती ने वहां दस्तक दी ही न हो।

    चौकीदार हवेली के एक कोने में सुकुड़कर बैठ गया और अपने कांपते हुए होठों से बोला ,"एक बात समझ में नहीं आ रही है की इतनी बड़ी हवेली में एक कब्रिस्तान क्यों होगा? भला जहां कब्रिस्तान का क्या काम है? और ..... और वो कलावती कौन...... कौन है वो? और उसकी कब्र जहां पर क्यों बनी हुई है? वो... वो आखिर किससे बदला लेना चाहती है और किस बात का बदला लेना चाहती है..।"

    इतना कहकर चौकीदार गहरी नींद के आगोश में चला गया और एक मुर्दे की तरह सो गया।

    इधर कबीर अपने बेड पर बैठा सिग्रेट के कश भर रहा था और उसका धुआं उड़ाए जा रहा था तभी वो अचानक से बेड पर से उठ खड़ा हुआ और खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया। सुबह के चार बज चुके थे। जबलपुर शहर की डरावनी रात और भी तूफानी नजर आ रही थी।

    कबीर ने खिड़की के बाहर सामने एक पेड़ के नीचे नज़र दौड़ाई तो वहां एक नाजुक सी कली लाल साडी पहने खड़ी थी। उस लड़की का चेहरा कबीर की और ही था। इसलिए कबीर उसे अच्छी तरह से देख सकता था। कबीर बस आंखें फाड़ फाड़कर उस लड़की को देखे जा रहा था मानो की वो उसे अच्छी तरह से पहचानता हो।

    कबीर अपने आप से बोल पड़ा ,"मेरी..... मेरी बटरफ्लाई।"

    बदले में उस लड़की ने कबीर को एक डेविल स्माइल पास कर दी और हाथ से अपने पास आने का इशारा किया।

    कबीर तेजी से बोला ,"मैं अभी आ रहा हूं...... अभी आ रहा हूं मैं.... तुम वहीं रुको?"

    इतना कहकर कबीर कमरे से भाग गया और कुछ ही देर बाद में सीढ़ियां उतरते हुए बाहर आ गया। वो लड़की अब भी पेड़ के नीचे खड़ी थी। चल रही तेज हवा के कारण उस लड़की के बाल उसके चेहरे के आगे से होकर उड़ रहे थे जो की उसे और भी खूबसूरत बना रहे थे। कबीर बिलकुल उस लड़की के सामने जाकर खड़ा हो गया।

    कबीर हंसते हुए बोला ,"तो तुम सच मे हो? तुम मुझे पहले भी नज़र आई थी? इसी पेड़ के नीचे और अब भी। तुम... तुम जिंदा हो? कलावती.... मेरी बटरफ्लाई। मैने..... मैने तो सोचा था की तुम उस खूनी रात में..........।"

    इतना कहकर कबीर ने कलावती को अचानक से अपनी बांहों में भर लिया और उसके नाक से नाक लगाते हुए बोला ,"तुम सच में जिंदा हो.. मैं.... मैं तुम्हें अपनी बांहों में पकड़कर खड़ा हूं... तुम मेरे सामने हो... मेरी बटरफ्लाई..... तुम कहां थी तीन सालों तक.... जानती हो मैंने कितनी मुश्किल में गुजारें है तीन साल...... तुम तो आज भी उतनी ही हॉट हो... उतनी ही खूबसूरत। ... और..... और उतनी ही सेक्सी भी। मैं अब नहीं रुक सकता हूं... बटरफ्लाई.... मैं अब तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता हूं। तुन्हें मालूम है की तुम्हारे बाद में मैंने कितनी ही लड़कियों को अपने साथ बेड पर सुलाया है , कितनी लड़कियों को अपनी गोदी में बिठाया है लेकिन तुम जितना सुकून मुझे कोई भी नहीं दे सकी... मैं अब और नहीं रह सकता हूं।"

    इतना कहकर कबीर ने कलावती के गहरे लाल सुर्ख मुलायम और नाजुक से होठों पर अपने होठ रख दिए और उसे पेड़ के तने से लगाकर पागलों की तरह चूमने लग गया। कबीर कुछ ही देर में पूरी तरह से पागल हो चुका था।

    इतने में कलावती ने कबीर को थोड़ा सा दूर धकेल दिया और बेहद ही नशीली आवाज में बोली ," इतनी भी क्या जल्दी है रायजादा साहब। सब्र करना तो सीखिए ।"

    ये सुनते ही कबीर के मन में तीन साल पहले की घटनाएं फिर से चक्कर काटने लग गई। जब तीन साल पहले किसी ने यही बात कबीर से कही थी।

    कबीर ने अचानक से फिर से कलावती को अपनी बांहों में पकड़ लिया और उसकी गर्दन पर पागलों की तरह किस करते हुए बोला ,"नहीं बटरफ्लाई तुम आज मुझे नहीं रोक सकती हो। आज मुझे अपने जिस्म की प्यास बुझानी है और वो मैं हर हाल में बुझाकर रहूंगा। आज तुम मुझे नहीं रोक सकती हो बटरफ्लाई।"

    कलावती कबीर के सर पर अपने जहरीले नाखून फेरते हुए बोली ,"इतनी भी क्या जल्दी है रायजादा साहब। जहां पास में ही एक झोंपड़ी है। सुना है की वहां कोई नहीं रहता है।  चलो वहां चलते हैं आपकी प्यास भी बुझ जायेगी और मेरी भी।"

    अब कलावंती ने कबीर को पूरी तरह से अपने मोह के जाल में कश लिया था।

    इधर हवेली के सेकंड फ्लोर पर विराज अवनी को अपने सिने से लगाकर सोया पड़ा था। अचानक से विराज के मन में किसी चीज़ के घसीटने की आवाज़ें आने लग गई मानो की कोई किसी की लाश को घसीटकर लेकर जा रहा हो। विराज अचानक से उठ बैठा। आवाज उसी के फ्लोर से आ रही थी। विराज ने अवनी पर कंबल डाला और कमरे से बाहर निकल गया तो एक और एक साया किसी लाश का पांव पकड़कर उसे घसीटते हुए लेकर जा रहा था। वो साया उससे काफ़ी दूरी पर था। अंधेरा छाया होने के कारण कुछ भी साफ़ नजर में नहीं आ रहा था।

    लाश को खींचने के कारण खून की एक लंबी धार वहां कोरिडोर में बन चुकी थी। विराज का शरीर थर थर कांपने लगा। विराज ने डरते हुए अपने लड़खड़ाते कदम उस लाश की और बढ़ा दिए।

    विराज कांपती आवाज़ में बोला ,"कौन है? कौन है वहां पर? किसकी लास को लेकर जा रहे हो? कौन हो?"

    इतना कहकर विराज का बदन थर थर कांपने लग गया। अचानक से उस साए ने अपने कदम वहीं रोक दिए और उस लाश का पांव छोड़ दिया। वो लाश वहीं फर्श पर धड़ाम से गिर गई। लाश मुंह दूसरी तरफ था और उस साए का भी मुंह दूसरी तरफ ही था। इसलिए विराज को सिवाय मौत के कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था।

    अचानक से उस साए ने अपने पांव आगे की और बढ़ा दिए।

    विराज की अब हिम्मत भी नहीं हो रही थी की वो पीछे से आवाज देकर उस साए को रोक सके। अचानक से वो साया अंधेरे में ही कहीं पर जाकर गायब हो गया। इसके बाद में सबकुछ पूरी तरह से शांत हो गया। रात के घने भयानक सन्नाटे और अंधेरे में वो लाश फर्श पर विराज के सामने पड़ी थी। लाश में कोई भी हलचल नहीं हो रही थी इसका मतलब था की वो मर चुका है।

    विराज धीरे धीरे उस लाश के पास में चला गया और घुटनों के बल उसके पास बैठ गया। पेंट शर्ट पहने हुए वो लाश किसी आदमी की थी ये बात तो कंफर्म हो चुकी थी।

    लाश पूरी तरह से कटी फटी थी। जगह जगह से खून निकला हुआ था। लाश उल्टे मुंह गिरी पड़ी थी इसलिए लाश किसकी थी ये विराज को पता नहीं चल रहा था ।

    विराज ने अपने कंपकंपाते हुए हाथों से लाश को पलटा और मोबाइल की फ्लैशलाइट चालू करके उसके मुंह पर डाली तो उसकी जान ही निकल गई। बदन थर थर कांपने लग गया। जिस्म सुककर कांटा हो गया।

    विराज धड़ाम से वहीं फर्श पर गिर गया और दोनों हाथों से अपना सर पकड़ लिया क्योंकि वो लाश उसी की थी।

    क्या है इनका अतीत??
    क्या विराज मर जाएगा??
    क्या करेगा कबीर कलावती के साथ झोंपड़ी में??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा......

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    अलविदा.....!!!!!!

  • 15. sex in जंगल

    Words: 1427

    Estimated Reading Time: 9 min

    विराज की अचानक से आंख खुल गई और वो जोर से चिला उठा ,"नहीं मैं मर नहीं सकता हूं। मैं जिंदा रहना चाहता हूं। मैं मरना नहीं चाहता। मैं में नहीं मर सकता।"

    इतना कहकर विराज की सांसे तेजी से चलने लगी और उसने देखा तो वो अपने कमरे में ही अपने बेड पर बैठा था। उसने आसपास नज़र दौड़ाई तो वहां कहीं कोई भी नज़र नहीं आ रहा था। पूरा कमरा सुनसान और बीरान सा पड़ा था।

    उसके पास में सोई हुई अवनी की भी आंख खुल गई। अवनी उठते ही बोली ,"क्या हुआ बिराज ऐसे क्यों चिलाये थे? मैं तो डर ही गई थी? तुम ठीक तो हो ना? आर यू ओके। और क्या बक रहे थे तुम की मुझे जिंदा छोड़ दो। तुम सच में ठीक तो हो ना।"

    विराज अपना पसीना पोंछते हुए बोला ,"हूं मैं ठीक हूं। बस एक डरावना सपना आया था। तुम सो जाओ। आई एम फाइन।"

    ये सुनकर अवनी वापिस सो गई।

    विराज ने अपना सर पीछे टीका लिया और पास में पड़ा पानी का गिलास उठाया और पानी पीने लग गया लेकिन तभी उसे अचानक से पानी का रंग लाल नज़र आने लग गया मानो की वो पानी की जगह खून पी रहा हो। विराज के हाथ वहीं पर रुक गए और उसने पानी को खुद से थोड़ा दूर किया तो उसे वो फिर से पानी नज़र आने लगा। बिराज ने गिलास को मेज पर रख दिया और कंबल के अंदर छिपकर सो गया जैसे की वो कभी उठा ही नहीं था।

    इधर कबीर ने बाहर पेड़ के नीचे कलावती को अचानक से अपनी गोदी में उठा लिया और बोला ,"चलो झोंपड़ी में चलते हैं। अब मैं.. में एक पल भी नहीं रुक सकता हूं। आई वांट टू रोमांस बटरफ्लाई। मैं अब तुम्हें नहीं छोड़ सकता हूं। आई वांट टू सेक्स....!"

    इतना कहकर कबीर झोंपड़ी की और भाग गया। कलावती ने अपनी बांहे कबीर के गले में डाल ली।

    थोड़ी दूरी पर चलने के बाद उन्हें अपने सामने एक झोंपड़ी नजर आई। घास फूस की बनी हुई झोंपड़ी अच्छी खासी थी। कबीर कई देर तक कलावती को अपनी बांहों में उठाए उस झोपडी को घूरता रहा। काली घनी भयानक रात में भी वो झोंपड़ी साफ नजर में आ रही थी।

    कबीर कलावती को अपनी बांहों में उठाकर झोंपड़ी के अंदर ले गया।

    झोंपड़ी के अंदर जाते ही वो सामने क्या देखता है की एक अच्छा खासा बेड पड़ा था।

    कबीर ने जाते ही कलावती को सीधे मुंह बेड पर फेंक दिया और खुद उसके ऊपर जाकर गिर गया।

    कबीर की सांसे तेज गति से चलने लगी।

    कबीर ने जल्दी जल्दी अपनी शर्ट के बटन खोल लिए और कलावती के कपड़े खोलने लगा तभी कलावती बोली ,"आज भी आप वैसे ही पड़े हैं रायजादा साहब? तीन सालों में बिलकुल ही नहीं बदले। बही दीवानगी। लड़कियों की इज्जत को लूटने का वही जुनून वही पागलपन वही हवस का कीड़ा।"

    कबीर हंसते हुए ,"क्या करूं? तुम्हे देखकर मन में चुटकियों में वासना जाग गई। अब तुम ही बताओ की इसमें भला मेरी क्या गलती है। ये दिल है की मानता ही नहीं है। हवस जाग रही है।"

    इतना कहकर कबीर ने कलावती की साड़ी उतारकर एक और दे मारी और पागलों की तरह उसकी गर्दन को चूमने लगा मानो की वो वर्षों से इक बदन का प्यासा हो और आज वो अपनी जिस्म की भूख शांत किए बिना नहीं मानेगा।

    इतने में कलावती उसके कान पर किस करते हुए धीरे से बोली ,"अगर आज तुम्हारी मौत हो जाए तो?"

    कबीर कलावती के होठों पर किस करते हुए ,"तो वो मौत भी मुझे हंसते हुए मंजूर है मेरी बटरफ्लाई। आज मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा। आज तो मरना भी पड़े तो कोई गम नहीं।"

    इतना कहकर कबीर जल्दी से अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा।
    कबीर ने अपनी शर्ट उतारकर दूर फेंक दी और सामने नेक्ड लेटी कलावती को देखने लग गया। कबीर ने जल्दी से उसके उभारों को अपने मुंह में ले लिया और उनका रस पीने लगा।

    कबीर ने अपना एक हाथ उसकी पीठ पर और दूसरा पीछे बेक पर रख दिया और जोर जोर से उसका बम पर थप्पड़ मारने लगा जो कि उसके प्लेजर का तरीका था।

    इतने में कलावती ने कबीर की गर्दन पीछे से पकड़ ली और धीरे से उसके कान पर किस करते हुए बोली ,"कैलाश।"

    ये शब्द सुनते ही कबीर की आंखों के आगे तीन साल पहले के नजारे एक बार फिर से बनने लग गए। कबीर ने फटी आंखों से कलावती की और देखा। कबीर का माथा अब पसीने से भीग चुका था। दिल किसी ट्रेन की स्पीड से दौड़ रहा था। उसकी सारी हवस पल भर में उतर गई।

    इतने में कलावती ने एक जोरदार लात कबीर की छाती पर दे मारी और कबीर पीछे ऊपर दीवार से जा टकराया और धड़ाम से नीचे आकर गिर गया।

    इधर कलावती खड़ी हुई।

    कलावती जो अभी एक देवी की तरह बेहद ही खूबसूरत नज़र आ रही थी। अब वो किसी पिशाचिनी में तब्दील होने लग गई। गहरी सफेद आंखें जो की ऊपर की और चढ़ी हुई थी, रंग अचानक से गहरा काला हो गया, खुले बात जो उसके चेहरे के आगे से उड़ने लगे जो की उसे और भी भयानक बना रहे थे। बड़े बड़े नाखून जो की खून से गहरे लाल थे।

    कबीर डरते हुए पीछे दीवार से जा लगा और बुरी तरह कांपने लगा। बदन में से सारी जान निकलने लग गई। सारी वासना और हवस में चुटकियों में ही गायब हो गई थी।

    कलावती अचानक से उसके पास चली गई और घुटनों के बल उसके पास जाकर बैठ गई।

    ये देखकर कबीर की जान तो जैसे उसके हलक में ही अटककर रह गई।

    कलावती अपने बड़े बड़े नाखून कबीर के गाल पर फेरते हुए बोली ,"इतनी याद आ रही थी अपनी बटरफ्लाई की। अब तो मैं आ गई हूं ना। तुम्हारे बदन की सारी प्यास मैं बुझा दूंगी।"

    कबीर डरते हुए पीछे दीवार से जा लगा और बोला ,"न.... नहीं..... नहीं प्लीज.... प्लीज मुझे छोड़ दो।"

    कलावती जहरीली मुस्कुराहट दिखाते हुए बोली ,"हम लोगों ने भी उस रात इसी तरह भीख मांगी थी ना लेकिन तुम लोगों ने क्या किया?"

    कबीर डरते हुए बोला ,"देखो बटरफ्लाई मैंने कुछ भी नहीं किया था। ये सब तो उस विनय और उस लड़की ने किया था जो इस वक्त लंदन में बैठी थी। मुझे नहीं मालूम था की उस रात बात इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी और खून की नदियां बह जायेगी। मैने तुम्हें बचाने के लिए बहुत कोशिश की थी लेकिन उन दरिंदों ने मुझे भी जान से मारने की कोशिश की।"

    कलावती गुस्से से चीखते हुए बोली ,"झूठ.... झूठ बोल रहे हो तुम। सब मिले हुए हो तुम।"

    इतना कहकर कलावती कबीर के होठों पर अपना नाखून फेरते हुए बोली ,"बड़ा शौंक है ना तुम्हें घूमर नृत्य दिखने का। आज मैं तुम्हें घूमर दिखाती हूं। आज तुम्हारी जान की बाज़ी लगेगी।"

    इतना कहकर कलावती ने एक जोरदार थपड़ कबीर के गाल पर दे मारा और कबीर का सर घूमकर पीछे दीवार से जा टकराया।

    इतने में कलावती ने अचानक से अपने नाखून कबीर की गर्दन पर चुभो दिए और उसका सारा खून पी गई। कबीर की गर्दन पर अपने नुकीले दांत चुभोकर सारा खून पीते हुए कलावती बोली ,"क्या कह रहे थे? आज मौत मिल जाए तो भी कोई गम नही। चलो आज तुम्हारी आंखिरी खबाहिश पूरी कर ही देती हूं। कुछ ही देर बाद में कबीर का जिस्म गहरा सफेद पड़ गया।

    कलावती ने खून से भरा हुआ अपना मुंह साफ़ किया और हंसते हुए बोली ,"मां कसम मजा ही आ गया आज तो।"

    इतना कहकर कलावती ने अपने दोनों हाथों से कबीर का मुंह पकड़ लिया और एक ही झटके में उसकी गर्दन उखाड़ डाली। गर्दन के उखड़ते ही वहां पर खून की पिचकारी बहने लगी।

    कबीर का सर अब कलावती के हाथों में था और सर कटा जिस्म वहीं दीवार के साथ में पड़ा था।

    कलावती ने कबीर के सर को अपने सामने किया और उसे पागलों की तरह देखने लगी और फिर एक ही झटके में उसके सर को खाने लग गई जैसे की वो वर्षों से भूखी हो इंसानी मांस की।

    इतने में एक जोरदार चीख इधर पूरी हवेली में गूंजी। जिसे सुनकर सबकी आंखें खुल गई। बाहर कुर्सी पर सोया पड़ा चौकीदार भी धड़ाम से कुर्सी पर से नीचे गिर गया।

    सामने कब्रिस्तान में सभी कब्रों में हलचल सी होने लगी और ऐसा लगने लगा की कोई बड़ा तूफान आ गया है जो की एक चीख के कारण आया था।।

    किसकी थी चीख?
    क्या राज है इनका??
    क्या किया था इन्होंने तीन साल पहले कलावती के साथ??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा.…...

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    अलविदा.....!!!!!

  • 16. se*y moan of मान्या

    Words: 1388

    Estimated Reading Time: 9 min

    कबीर ने अपने चेहरे पर हाथ फेरा और देखा तो वो अभी जिंदा था और बेड पर बैठा हुआ था। उसके पास में मान्या अभी भी ड्रग के नशे में लेटी हुई पड़ी थी। कबीर का माथा पसीने से भीग चुका था। शरीर थर थर कांप रहा था। पूरा बदन टूट चुका था मानो अभी उसने संभोग की क्रिया की हो।

    कबीर एक लंबी सांस भरते हुए बोला ,"अच्छा हुआ की ये सपना था। वरना मुझे तो लगा था की मैं तो मर ही गया। कितना डरावना सपना था यार। कलेजा ही बाहर को आ गया था। मेरी बटरफ्लाई मुझे लगा था की तुम सच में मुझे वापिस मिल गई हो लेकिन नहीं तुम तो उसी रात.......।"

    इतना कहकर कबीर के चेहरे को एक मासूमी ने घेर लिया और वो नम आंखों से मान्या को देखने लग गया।

    इतने में एक नौकर जिसका नाम राजा था उसने दरवाजे को खटखटाया और कबीर ने उठकर दरवाजा खोल दिया।

    नौकर कबीर को देखते ही बोला ,"साहब आप ठीक तो है ना। आप इतनी जोर से चिलाए थे मैं तो डर ही गया था। आप ठीक तो है ना?"

    कबीर उस नौकर को घूरते हुए बोला ,"मैं ठीक हूं। चलो दफा हो जाओ जहां से? गेट आउट।"

    ये सुनकर नौकर गुस्से से वहां से निकल गया।

    नौकर वहां से जाते हुए बोला ,"ये कबीर बाबू आखिर खुद को समझता क्या है? मैं तो इसका हाल चाल जानने के लिए ही गया था और एक ये है की मेरे गले ही पड़ गया। इसे तो मैं सबक सिखाकर ही रहूंगा मैं। नाम मेरा राजा है लेकिन मैं हूं एक नौकर। कितनी खराब किस्मत है ना मेरी। अब इस कबीर को मैं सबक सिखाऊंगा और इसके अतीत का खूब फायदा उठाऊंगा।"

    इतना कहकर नौकर गुस्से से पैर पटकते हुए वहां से चला गया।

    कबीर ने डोर लॉक किया और खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया।

    कबीर ने खिड़की के बाहर नज़र दौड़ाई तो बाहर घने अंधेरे के अलावा और कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। बाहर अब बारिश भी थम चुकी थी। सब कुछ शांत हो चुका था। कबीर की खिड़की से सामने खड़े कब्रिस्तान को साफ़ देखा जा सकता था और वहां पर कई कब्रें बनी हुई नजर आ रही थी।

    कबीर ने उस कब्रिस्तान को देखा और एक लंबी सांस भरते हुए बोला ,"बटरफ्लाई , अशोक , बिरजू काका और न जाने कितने चेहरे थे सब के सब एक रात में ही मिट्टी में मिल गए थे। वो एक रात जिसने कइयों को बादशाह बना दिया और कइयों को जमीन में मिला दिया था। जुआ की रात थी वो। जो जीता वो सब लेकर चला गया और जो हारा वो कब्र में जा लेटा। वो रात वापिस कभी न लौटे कभी भी नहीं।"

    इतना कहकर कबीर बेड पर जाकर सो गया।

    कबीर के जाते ही सामने पेड़ के पीछे से एक लड़की बाहर निकली और पेड़ के तने पर नाखून फेरते हुए बोली ,"वो रात वापिस लौटेगी राज्यादा साहब और आप तमाशा देखने के अलावा और कुछ भी नहीं कर पाएंगे कुछ भी नहीं।"

    इतना कहकर वो लड़की वहां से गायब हो गई लेकिन एक और खड़ा चौकीदार थर थर कांपने लग गया था शायद उसने उस लड़की को देख लिया था।

    चौकीदार भागकर हवेली के अंदर छिप गया और एक कोने में बैठते हुए बोला ,"ये हो क्या रहा है जहां? वो लड़की अचानक से गायब कहां हो गई? वो लड़की आई कहां से थी? मन तो करता है की मैं ये नौकरी छोड़ दूं लेकिन करूं तो करूं भी क्या? बच्चो का पेट भरने के लिए ये नौकरी तो करनी ही पड़ेगी और कोई भी रास्ता नहीं है मेरे पास। बड़ी मुश्किल से ये नौकरी हाथ लगेगी। पैसा भी अच्छा खासा मिलेगा। अब ये नौकरी तो मैं नहीं छोड़ सकता हूं जो होगा देखा जायेगा।"

    इतना कहकर चौकीदार वहीं दीवार से सर लगाकर सो गया।

    इसी तरह रात बीत गई।

    अगली सुबह।

    मान्या की आंख धीरे धीरे खुल रही थी। इतने में कबीर कॉफी का कप लेकर वहां पर आया और मान्या की बगल में लेट गया और उसके माथे पर किस करते हुए बोला ,"गुड मॉर्निंग बेबी अब उठ भी जाओ। प्लीज वॉक अप।"

    इतने में मान्या उठ खड़ी हुई और उबासी लेते हुए बोली ,"गुड मॉर्निंग। मुझे इतना थका हुआ क्यों महसूस हो रहा है।"

    कबीर ने मान्या को पीठ से पकड़ लिया और उसे अपने साथ चिपकाते हुए बोला ,"जब बात जिस्म की हो तो इंसान थक ही जाता है।"

    ये सुनकर मान्या हैरानी से आंखें बड़ी करके कबीर को देखने लगी। मान्या ने अचानक से अपने कंबल के अंदर नज़र दौड़ाई और गुस्से से लाल हो गई।

    कबीर के चेहरे पर एक जहरीली मुस्कुराहट आ गई।

    मान्या गुस्से से बोली ,"रात को क्या हुआ था? क्या किया था कबीर तुमने मेरे साथ में? बताओ मुझे।"

    कबीर मान्या के सर को सहलाते हुए बोला ,"डोंट वरी बेबी मैने कुछ नहीं किया बस थोड़ा सा फायदा उठाया था। अब तुम खुद नाइटी पहनकर आई थी तो इतना फायदा उठाना तो बनता ही है ना क्यों क्या बोलती हो?"

    मान्या कबीर की और देखते हुए बोली ,"लेकिन कबीर ये गलत है? शादी से पहले ये सबकुछ?"

    कबीर हंसते हुए ,"बेबी कुछ भी गलत नहीं है। सब आम बात है। तुम फिक्र मत करो कुछ नहीं होगा। जिंदगी में एंजॉय करो।"

    मान्या गुस्से से बोली ,"कबीर लेकिन तुम मेरे साथ गलत कर रहे हो? तुम मेरा इस तरह से फायदा उठा रहे हो?"

    कबीर उसका मुंह पकड़ते हुए बोला:: फायदा उठाना ही तो मेरा काम है ना डार्लिंग। वैसे भी तुम जैसी इतनी सेक्सी लड़की फायदे के लिए ही तो होती है ना।"

    ये कहकर कबीर ने उसके होठों पर अपने होठ रख दिए और उसे गंदी तरह बाइट करने लगा।

    मान्या छटपटाने लगी लेकिन कबीर उसे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मान्या को अब सांस लेने में तकलीफ होने लगी और उसने एक ही झटके में पूरी ताकत लगाकर कबीर को पीछे की और पुश कर दिया।

    कबीर डेविल स्माइल में उसे देखने लग गया और मान्या लंबी सांसे भरते हुए बोली:: उफ्फ.... मार डाला.... ऐसी बेशर्मी कोई करता है क्या? सच में बिल्कुल पागल हो तुम....!"

    कबीर वापिस उसके करीब आ गया और उसकी गर्दन पर अपनी जीभ फेरते हुए बोला:: क्या करूं डार्लिंग तुमने अपने प्यार में पागल कर दिया है मुझे। तुम्हें देखकर मूड बन जाता है....!"

    मान्या ने अपनी आंखे बंद कर ली और गर्दन ऊपर उठाते हुए बोली:: प्लीज कबीर स्टॉप..... ऐसी हरकतें अच्छी नहीं होती....... प्लीज बस करो...!"

    कबीर उसका गाल खींचते हुए बोला:: नहीं डार्लिंग अब तो गेम शुरू हुआ है। देखने धीरे धीरे तुम्हें भी इस गेम में खूब मजा आने लगेगा और तुम मेरा इसमें साथ दोगी। अब जल्दी से मुझे थोड़ा रस पिला दो....!"

    ये कहकर कबीर उसका कम्बल नीचे करने लगा जिससे मान्या ने खुद को कवर कर रखा था।

    मान्या कंबल को कसकर पकड़ते हुए बोली:: ये क्या कर रहे हो तुम? प्लीज कबीर स्टॉप इट..... मुझे ये सब सही नहीं लग रहा... प्लीज...!"

    कबीर उसके होठों पर उंगली रखकर बोला:: चुप..... बिल्कुल चुप हो जाओ। मुझसे बहस करने का अंजाम बहुत बुरा होगा। जितना कहता हूं उतना करती जाओ... वैसे भी ये प्यार का दर्द है इसे सहन करना पड़ता है...!"

    मान्या ने अपनी आंखे बंद कर ली और कबीर ने कम्बल नीचे कर दिया और प्यार से उसके बड़े बड़े रसीले गोरे सफेद मुलायम उभारों को देखने लगा और फिर उनकी घाटियों के दर्शन करने लगा जो सच में गहरी थी।

    कबीर ने उन्हें अपने मुंह में भर किया और आम की तरह उन्हें चूसने लगा।

    "उम्मम.... उफ्फ .…. आ..... कबीर क्या रहे हो.... उम्ममम....!" मान्या के मुंह से मादक आवाज़ें निकलने लगी।

    कबीर दस मिनिट तक उसके उभारों के साथ खेलता रहा और फिर उसके होठों को चूमते हुए बोला:: तुम कॉफी पियो मैं अभी आता हूं..... उसके बाद खूब मजे करेंगे...!"

    ये कहकर कबीर कमरे से बाहर चला गया और मान्या की आंखों से आंसू निकल गए। मान्या कम्बल से खुद को कवर करते हुए धीरे से बोली:: मैं भी बिल्कुल पागल लड़की हूं जो उसकी बातों में फंसकर यहां आ गई। अब एक महीने तक ये मेरे साथ यही सब करेगा। उफ्फ... मैं भी कहां आकर फंस गई....!"

    ये कहते हुए मान्या रो पड़ी।

    क्या है कबीर का राज़??

    क्या होगा इनके साथ हवेली में??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा......

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    अलविदा....!!!!!

  • 17. intimacy in bathroom

    Words: 1685

    Estimated Reading Time: 11 min

    मान्या ने कॉफी पी और जैसे ही कम्बल लपेटकर बेड पर से खड़ी होने लगी तभी कबीर अंदर आ गया और एक ही झटके में कसकर दरवाजा बंद कर दिया।
    उसे देखकर मान्या घबरा गई और वापिस बेड पर बैठ गई।
    कबीर उसके पास आकर प्यार से बोला:: बेबी हमें आज किसी जरूरी काम से जल्दी शहर की और निकलना है। इसलिए टाइम कम है और मेरा मूड बना हुआ है। अब जल्दी से मुझे शांत कर दो...!"

    "लेकिन....!" मान्या हैरानी से उसे देखते हुए इतना ही बोली थी कि कबीर ने उसे अपनी गोदी में उठा लिया और उसे बाथरूम की और ले जाते हुए बोला:: डार्लिंग ज्यादा सवाल मत किया करो और इसे एंजॉय किया करो। बड़ा मज़ा आयेगा तुम्हें इसमें....!"

    ये कहते हुए वो उसे बाथरूम में ले आया और डोर लोक करके उसका कम्बल दूर फेंक दिया। मान्या अब उसके सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी। कबीर उसकी और बढ़ने लगा और मान्या पीछे दीवार से जा लगी और धीरे से बोली:: कबीर.. हम ठीक तो कर रहे है ना...!"

    कबीर चिढ़ते हुए बोला:: कम ऑन बेबी.... ये सब नॉर्मल है..... इसे एंजॉय करो।"
    ये कहकर कबीर ने शॉवर ऑन कर दिया और पानी उन दोनों के ऊपर गिरने लगा।
    मान्या ने कसकर अपनी आंखे बंद कर ली और कबीर ने अपने कपड़े उतार कर दूर फेंक दिए और फिर मान्या को दीवार के साथ में लगाकर उसके होठों को बाइट करने लगा।

    मान्या बस लंबी लंबी सांसे भर रही थी।
    इतने में कबीर उसके उभारों को चूसते हुए नीचे पेट को चूमने लगा।
    अगले ही पल कबीर ने मान्या को दूसरी और घुमाया और उसकी पीठ अपनी और कर ली।

    कबीर ने उसके बम पर जोर से तीन चार थप्पड़ मारे और वो लाल हो गए।

    "उम्मम..... आ... क्या कर रहे हो कबीर.... उम्मम... दर्द हो रहा है.....!" मान्या सिसकारियां लेने लगी।

    कबीर ने एक हाथ उसके पेट पर रखा और एक हाथ से उसके उभारों को सहलाते हुए पार्ट सेट करके पीछे से उसके शरीर में इंटर कर गया।

    "आ..... मार डाला...... उम्ममम..... आ.... आ.... उफ्फ..." मान्या की मादक आवाज़ें उसके कानों को एक अजीब सा सुकून देने लगी।

    कबीर ने उसे थोड़ी नीचे झुकाया और अपनी रफ्तार बढ़ा दी।
    कबीर ने अपनी आंखे बंद कर ली और पूरी ताकत से आगे पीछे होने लगा।

    "आ...... आ....... आ.…. स्लो..... प्लीज स्लो..... दर्द हो रहा है...… आ..... ओह माई गॉड..... आ....!" मान्या दर्द से कराह रही थी लेकिन कबीर को इसकी कोई परवाह नहीं थी।

    इतने में पानी उनके ऊपर और तेजी से गिरने लगा और कबीर ने रफ्तार और भी तेज कर दी।
    पच पच की आवाजें पूरे बाथरूम में गूंजने लगी और अचानक से जोरों के झटके के साथ कबीर बिल्कुल शांत हो गया।

    मान्या दीवार के साथ में चिपक गई और लंबी लंबी सांसे भरने लगी। उसकी आंखों से आंसू निकल गए।

    कबीर ने टॉवल उठाया और बाहर जाते हुए बोला:: अब जल्दी आकर खाना लगा दो। उसके बाद रात तो हम खूब मस्ती करेंगे...!"

    ये कहकर कबीर बाहर चला गया और मान्या वहीं दीवार के साथ घुटनों के बल बैठ गई और अपना सर पकड़ लिया।


    इधर हवेली के बाहर एक और जमीन पर ही विनय बैठा अपनी ही किसी सोच में खोया हुआ था तभी विराज उसके पास में आते हुए बोला ,"अरे ! यार विनय तूं जहां बैठा है? आज जबलपुर जाना है या नहीं? मैं तो कहता हूं की उस होटल का झंझट जल्दी से खत्म हो जाए तो अच्छी बात है कम से कम इस हवेली से तो निकल जाएंगे। बस अब एक बार इस हवेली से निकल जाएं फिर मैं तो मर जाऊंगा लेकिन दोबारा कभी भी इस हवेली में नहीं आऊंगा।"

    विनय बिना बिराज की और देखे बोला ,"बापिस इस हवेली में आना तो पड़ेगा ही। तुझे मालूम है ना की वो लंदन वाली इस हवेली को एक आलीशान होटल में बदलना चाहती है। पता नहीं अब उसके दिमाग में कौनसी खिचड़ी पक रही है। वो कह रही थी की हम भी इस हवेली पर पैसा लगाएं और इसे एक आलीशान होटल में बदल दे।"

    विराज विनय के पास में बैठते हुए बोला ,"वैसे कहने को तो चाहे कुछ भी कह लेकिन अगर एक बार ये हवेली होटल में बदल गई ना तो कमाई तो खूब होगी। वैसे तूं क्या सोचता है?"

    विनय कुछ सोचते हुए ,"अभी तो पहले वो होटल वाला काम पूरा करते हैं। वैसे भी जब तक ये कबीर हमारे साथ में है तब तक हम चाहकर भी इस हवेली को छोड़ नहीं सकते हैं। वो खुद तो मरेगा ही और हमें भी मरवाएगा।"

    इतने में कबीर वहां पर आते हुए गुस्से से बोला ,"वेबवजह ही बहस मत करो। कोई नहीं मरेगा। ठीक है ना। ऐसी छोटी मोटी घटनाएं होना तो आम बात है और कबीर सिंग रायजादा कभी ऐसी छोटी मोटी डरावनी घटनाओं से नहीं डरता है। वैसे भी इतनी पुरानी हवेली है थोड़ा बहुत डर तो लगता ही रहता है। अगर हम ऐसे डरेंगे तो सड़क पर आकर रह जायेंगे और वैसे भी हम जल्द ही इस हवेली को एक आलीशान होटल में बदल देंगे और हमारी खूब कमाई होगी। नाम भी मिलेगा और दाम भी।"

    विनय खड़ा होते हुए बोला ,"कबीर सही कह रहा है। अगर हम इस तरह डर गए तो जान से मारे जायेंगे। वैसे भी एक महीने की तो बात है। चुटकियों में एक महीना बीत जायेगा।"

    बिराज डरते हुए बोला ,"यार मेरी तो कल की रात ही बड़ी मुश्किल से गुजरी है और तुम अभी एक महीने की बात कर रहे हो। बाप रे अगर एक महीना और जहां रुके तो जान से मार जायेंगे। मुझे तो बड़ा डर लगता है इन भूत प्रेत से।"

    कबीर गुस्से से बोला ,"साले तूं आज के जमाने में भूत प्रेत में विश्वास करता है। ये विज्ञान का युग है। समझा। ये भूत प्रेत कुछ भी नहीं होते हैं। सब फालतू की बकबास और टोटके हैं। रात को थोड़ी सी अनहोनी क्या होगी तुम दोनों तो भूत प्रेत तक और इस हवेली को छोड़ने तक पहुंच गए। अब चुपचाप रेडी हो जाओ। शहर भी तो चलना है ना।"

    विराज खड़ा होते हुए बोला ,"मैं तो कहता हूं की शहर में कोई जगह ढूंढकर वहां ढेरा जमा लेते हैं वैसे भी ये हवेली हमारी तो है नहीं। हमने तो ये हवेली..........।"

    इतने में कबीर ने गुस्से में आकर विराज की कॉलर पकड़ ली और बोला ,"साले एक और लफ्ज मत बोलना। वरना यहीं तेरी कब्र बना दूंगा मैं। ये हवेली हमारी है समझा। किसी और की नहीं। अगर आइंदा ऐसी बात मुंह से निकाली तो मैं तुझे जान से मार डालूंगा। साले।"

    इतने में विनय ने उन दोनों को एक दूसरे से दूर किया और बोला ,"अरे ! यार बस करो तुम दोनों। एक काम करते हैं कुछ दिन और इसी हवेली में रहकर देख लेते हैं अगर कुछ गलत नहीं हुआ तो ठीक है लेकिन अगर थोड़ी सी भी गड़बड़ हुई तो हम ये हवेली छोड़कर चले जायेंगे। कभी वापिस जहां नहीं आयेंगे।"

    कबीर गुस्से से बोला ,"और उस लंदन वाली को क्या जवाब देंगे। तूं जानता है ना की इस हवेली में सबसे ज्यादा हिस्सा उसी का है।"

    विराज गुस्से से ,"अरे ! मेरे बाप जब वो जहां आएगी तब हम वापिस जहां पर आ जायेंगे ना और इस हवेली को होटल में बदलने के लिए अपना पैसा लगा देंगे। अब तो ठीक है।"

    कबीर कदम हवेली के अंदर बढ़ाते हुए ,"चलो ठीक है लेकिन अभी चलो। शहर भी चलकर आना है।"

    इतना कहकर वे तीनों हवेली के अंदर घुस गए।

    उन सबके जाते ही एक और से कलावती बाहर निकली और जहरीली मुस्कुराहट दिखाते हुए बोली ,"इतनी आसानी से मैं तुम्हें जहां से जाने थोड़े ही दूंगी। अब तुम जहां पर आ ही गए हो तो मौत तो तुम्हें मिलकर ही रहेगी लेकिन मैं तुम्हें इतनी आसानी से नहीं मारूंगी तड़पा तड़पा कर मारूंगी तुम्हें। टुकड़े टुकड़े कर डालूंगी तुम्हारे। अब आएगा इस खेल में असली मज़ा।"

    इतना कहकर कलावती काले धुएं में बदल गई और वहां से गायब हो गई।

    इधर अंदर सब डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाने लगे।

    खाना खाने के बाद में वे तीनों शहर की और निकल गए।

    मान्या बाहर सीढ़ियों पर आकर बैठ गई और अपनी ही सोच में डूब गई।

    इतने में अवनी वहां पर आई और आते ही बोली ,"यार मान्या एक बात समझ में नहीं आ रही है।"

    इतना कहकर अवनी मान्या के पास में जाकर बैठ गई।

    मान्या अवनी की और देखते हुए हैरानी से बोली ,"कैसी बात?"

    अवनी अपनी अंगुली सामने कब्रिस्तान की और करते हुए ,"इतनी बड़ी हवेली में एक कब्रिस्तान का क्या काम है? और जहां इतनी कब्रें क्यों है? किन लोगों की कब्रें है ये?"

    मान्या कुछ सोचते हुए बोली ,"हो सकता है की जहां हवेली में पहले कोई रहता होगा और उन लोगों की कब्रें ही होंगी जहां?"

    अवनी खड़ी हुई और कब्रिस्तान में उन कब्रों के पास में जाते हुए बोली ,"देखो तो सही मान्या तीन कब्रें खाली ही पड़ी हैं। ऐसा लगता है की किसी ने हाल ही में ये कब्रें खोदी हैं। आकर देख तो सही।"

    मान्या खड़ी हुई और उसके पास में चली गई और सभी कब्रों को बारीकी से देखने लग गई।

    इतने में एक कब्र पर जाकर मान्या की निगाहें टिक गई और वो धीरे से बोली ,"कलावती।"

    ये सुनते ही अवनी ने भी उस और देखा और बोली ,"हूं कलावती लिखा हुआ है। लगता है की किसी औरत की कब्र होगी या फिर किसी लड़की की। लेकिन बाकी कब्रों पर नाम नहीं लिखा हुआ है। पता नहीं इतनी कब्रें वो भी एक हवेली में मैं तो पहली बार देख रही हूं।"

    मान्या ,"हूं देख तो मैं भी पहली बार रही हूं।"

    इतना कहकर मान्या जंगल की और देखते हुए बोली ,"वो देख अवनी शायद शिव मंदिर है वहां चल ना चलकर आते हैं।"

    इतना कहकर वे दोनों उस मंदिर की और जंगल में निकल गई।

    उन दोनों के जाते ही एक कब्र में से एक साया निकला और उन दोनों का पिछा करने लग गया शायद ये सोचकर की वे दोनों लड़कियां अब उसका पहला और आखिरी शिकार है।।

    क्या होगा इनके साथ हवेली में??
    क्या है कलावती का राज??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा......

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    अलविदा......!!!!!

  • 18. a Mandir

    Words: 1172

    Estimated Reading Time: 8 min

    मान्या और अवनी अपने कदम बढ़ाते हुए लगातार जंगल में चली जा रही थी लेकिन एक साया इनका पीछा कर रहा था।

    इतने में बे दोनों शिव मंदिर के सामने जाकर खड़ी हो गई।

    मान्या मंदिर को गौर से देखते हुए अपने आप से बोल पड़ी ,"मंदिर काफ़ी पुराना लगता है। देख तो सही किस तरह खंडहर बन चुका है।"

    अवनी ने भी कहा ,"हूं मंदिर तो सच में ही बहुत पुराना लगता है। चल अंदर चलते हैं।"

    वे दोनों मंदिर में अंदर चली गई और शिवलिंग के सामने जाकर खड़ी हो गई। वहीं एक और एक पुजारी खड़ा हुआ था। उसने अचानक से उन दोनों की और देखा और डरावनी आवाज में बोला ,"कौन हो तुम दोनों लड़कियां?"

    मान्या ,"पुजारी जी नमस्ते मैं मान्या और ये अवनी।"

    पुजारी उनके पास में आया और बोला ,"कौन मान्या और कौन अवनी? क्यों आई हो जबलपुर में?"

    अवनी ,"हम.... हम .....  ।"

    पुजारी गुस्से से बोला ,"ये हम हम क्या लगा रखी है?"

    मान्या बोली ,"हम यहीं मंदिर के सामने वाली हवेली में रहते हैं।"

    ये सुनकर पुजारी के चेहरे पर एक जहरीली मुस्कुराहट आ गई और वो पागलों की तरह हंसते हुए बोला ,"बहुत खूब। बहुत अच्छा हुआ की तुम दोनों जहां आ गई। अब तुम्हें पता चलेगा की तुम्हारी असली अहमियत क्या है? हा हा हा हा।"

    इतना कहकर पुजारी पागलों की तरह हंसने लग गया।

    अवनी धीरे से मान्या के कान में बोली ,"लगता है की ये पुजारी पागल है। चल निकलते हैं जहां से? जल्दी कर।"

    इतना कहकर वे दोनों तेजी से वहां से चली गई।

    पुजारी उन्हें जाते हुए घूरते रहा और मंदिर के बाहर एक साए की और आंखों से वहां से चले जाने का इशारा करते हुए बोला ,"ये दोनों बेगुनाह है। ये तुम्हारा शिकार नहीं है। जाओ।"

    ये सुनकर वो साया वहां से चला गया और वापसी कब्रिस्तान में जाकर अपनी कब्र में घुस गया।

    पुजारी ने शिवलिंग की और देखा और हंसते हुए बोला ,"अच्छा हुआ की ये सभी लोग अब जहां पर आ गए हैं। ये सब आए तो जहां पर जिंदा है लेकिन सभी जायेंगे मुर्दा जहां से। कोई भी नहीं बचेगा। ये दोनों लड़कियां भी मारी जाएंगी। कुछ और नई कब्रें तैयार होगी और फिर और भी ज्यादा मज़ा आएगा।"

    इतना कहकर पुजारी पागलों की तरह हंसने लग गया।

    मान्या और अवनी फिर से हवेली में आ गई।

    अवनी तो सीढियां चढ़ते हुए अपने कमरे में चली गई।

    मान्या वहीं सोफे पर बैठकर मोबाइल चलाने लगी तभी उसके कानों में अजीब सी आवाज आई।

    मान्या ने चारों और नज़र दौड़ाई और गौर से उस आवाज को सुनने लगी तो वो आवाज किसी की पजेबों की थी।

    ऐसा लग रहा था की कोई लड़की पैरों में पाजेब पहनकर धीरे धीरे चल रही है।

    अब धीरे धीरे करके मान्या को वो आवाज़ें साफ सुनाई देने लग गई।

    "छन छन छन छन छन छन।" की आवाज़ें उसके दिल में अजीब सी बैचेनी और डर पैदा कर रही थी।

    मान्या ने देखा तो ये आवाज एक कोने में से आ रही थी।

    वो कोना काफी अंधेरे वाला था और काफी गहराई में स्थित था।

    वहां पर रोशनी का कोई नामोनिशान तक न था।

    मान्या धीरे धीरे खड़ी हुई और उस कोने की और अपने कदम बढ़ाने लगी।

    मान्या जैसे ही उस कोने में घुसी तो वो आवाज़ें और भी तेज हो गई और उसे किसी लड़की के कुछ मंत्र बुधबुदाने की आवाज भी सुनाई देने लग गई।

    लड़की क्या बोल रही थी ये उसे समझ में नहीं आ रहा था।

    मान्या ने मोबाइल की फ्लैशलाइट चालू की और उस कोने में जाने लगी और कुछ ही देर में वो हवेली की काफी गहराई में चली गई थी।

    लेकिन सामने ना तो कोई दीवार आ रही थी और ना ही कोई दरवाजा आने का नाम ले रहा था। कोरिडोर बस लगातार चले ही जा रहा था।

    मान्या को आज ये अहसास हुआ था की हवेली सच में बहुत ही बड़ी है और इस हवेली के नीचे भी अलग अलग चेंबर बने हुए हैं।

    इतने में अचानक से ही मान्या के कदम एक कमरे के आगे जाकर रुक गए और उसके रुकते ही सभी आवाज़ें शांत हो गई।

    चारो और एक अजीब सी खामोशी छा गई। एक जानलेवा सन्नाटा हर और पसर गया था।

    मान्या ने उस गेट को घूरा। पूरा गेट लकड़ी का था लेकिन काफ़ी मजबूत था और एक बड़ा सा ताला उसके आगे लगा हुआ था।

    मान्या ने उस ताले को छुआ और अपने आप से बोल पड़ी ,"इतना बड़ा ताला और इतना मजबूत गेट भला इस कमरे में ऐसा क्या है? जो जहां इतना सबकुछ किया गया है?"

    इतना कहकर मान्या कुछ सोचने लग गई और दूसरी और देखते हुए कहीं पर कमरे की चाभी ढूंढने लग गई।

    इतने में दीवार के पीछे से एक हाथ निकला। हाथ गहरा काला था। खून से लथपथ था। बड़े बड़े नाखून थे।

    वो हाथ धीरे धीरे मान्या की और बढ़ रहा था।

    जैसे ही वो हाथ मान्या की गर्दन को पकड़ने लगा तभी वहां से अवनी की आवाज आई ,"मान्या..।"

    ये सुनते ही वो हाथ फिर से उस कमरे के अंदर चला गया।

    इतने में अवनी ने आकर मान्या के कंधे पर हाथ रखा और मान्या अचानक से डर गई और डरते हुए अवनी की और देखा।

    अवनी ,"मैं हूं अवनी।"

    मान्या ने एक लंबी सांस भरी और फिर से उसी कमरे की और नजर दौड़ाने लग गई।

    अवनी उस कमरे की और देखते हुए ,"लेकिन तूं जहां करने क्या आई है? इतनी गहराई में.।"

    मान्या ,"हवेली सच में बहुत ही बड़ी है। आज पता चला है ये। मैं तो बस यूंही जहां आ गई थी?"

    अवनी मान्या का हाथ पकड़ते हुए ,"अब चल जहां से?"

    ये सुनकर वे दोनों वहां से निकल गई लेकिन मान्या का ध्यान अभी भी उस ताले पर था। वो जानना चाहती थी की आखिर उस कमरे में ऐसा क्या खास है?"

    उन दोनों के जाते ही एक साया वहां पर आकर खड़ा हो गया और उन दोनों को घूरने लगा।

    अगले ही पल वो साया धीरे से बोला ,"मान्या।"

    और मान्या का नाम ही उस कोरिडोर में हर जगह गूंजने लग गया।

    इधर हवेली के बाहर एक गाड़ी आकर रूकी और उसमें से विनय बाहर निकला और अपना मुक्का बोनेट पर मारते हुए बोला ,"कमाल है। शहर में कहीं पर भी रहने की जगह ही नहीं मिल रही है। किस्मत भी लगता है की इस कबीर का साथ दे रही है। अब लगता है की एक महीना इसी हवेली में गुजारना पड़ेगा जिस हवेली ने तीन साल पहले मुझे कितने जख्म दिए थे। आज भी वो जख्म जिंदा है। तीन साल पहले मेरी जिदंगी तो तबाह हो गई थी और बन भी गई थी। समझ में नहीं आ रहा है की उस रात का सुक्रियादा करूं या फिर अफसोस बनाऊं।"

    इतना कहकर विनय हवेली के अंदर घुस गया जिस हवेली ने उसे तीन साल पहले निगल ही लिया था।

    क्या है तीन साल पहले का राज़??
    क्या वे जिंदा बच पाएंगे??
    क्या करेगा कबीर आज रात मान्या के साथ में?

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा......

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    अलविदा.....!!!!!!

  • 19. hot figer

    Words: 1260

    Estimated Reading Time: 8 min

    इधर हवेली के अंदर मान्या और अवनी एक और सोफे पर बैठी थी और आपस में बातें कर रही थी।

    इतने में विनय वहां पर गया और पानी की बोतल उठाकर सोफे पर उनके सामने जाकर बैठ गया।

    मान्या और अवनी उसे हैरानी से देखने लगी और फिर दरवाजे की और नज़र दौड़ाते हुए बोली ,"ये कबीर और विराज अभी तक आए क्यों नहीं और विनय तुम पहले कैसे आ गए?"

    विनय पानी की बोतल होठों पर लगाते हुए बोला ,"शहर में कोई काम था इसलिए अभी वहीं है? बस आने ही वाले हैं।"

    इतने में विनय को पानी के अंदर एक काला साया दिखाई दिया जो उसे ही घूर रहा था।

    इतने में वो साया अचानक से विनय पर झपट पड़ा और विनय ने पानी की बोतल दूर फेंक दी और डरते हुए तेजी से खड़ा हो गया।

    ये देखकर मान्या और अवनी भी हैरान रह गई।

    मान्या ,"क्या हुआ विनय? पानी की बोतल को इस तरह क्यों फेंक दिया है? तुम ठीक तो हो ना?"

    विनय अपना पसीना पोंछते हुए बोला ,"कुछ नहीं बस वो पानी में कुछ था ? डरने की कोई बात नहीं है। मैं .. मैं ठीक हूं।"

    इतना कहकर विनय तेजी से अपने कमरे में भाग गया।

    अवनी खड़ी हुई और पानी की बोतल उठाते हुए बोली ,"इस विनय को अचानक से क्या हो गया है? पानी की बोतल में तो कुछ भी नहीं है? लगता है इसने रात को नींद नहीं ली थी? सारी रात तो किताबें लेकर बैठा रहता है। इसलिए ही ऐसी बहकी बहकी बातें करता रहता है।"

    इधर विनय अपने कमरे में आया और टॉवेल उठा अपना पसीना पोंछते हुए बोला ,"लगता है की मैं पागल हो गया हूं? मैं पागल हो रहा हूं? पता नहीं मेरे साथ अब क्या हो रहा है।"

    इतना कहकर विनय ने एक लंबी सांस भरी और बेड पर बैठते हुए बोला ,"विनय खुद पर काबू रख। तूं इतनी आसानी से हार नहीं मान सकता है और तूं मत भूल की तूं एक पैरानॉर्मल एक्सपर्ट्स है और अगर तूं इस तरह भूत प्रेत से डरेगा तो फिर कैसे बात बनेगी। इस लिए खुद को स्मभाल विनय। संभाल खुद को। तूं भूत प्रेत से ना ही तो कभी डरता था और ना ही कभी डरेगा।"

    इतना कहकर विनय वहीं बेड पर लेट गया और एक किताब पढ़ने लग गया।

    किताब का नाम था "कैसे पता करें की भूत प्रेत आपके साथ है या नहीं।"

    इधर हवेली के बाहर एक कुर्सी पर एक चौकीदार बैठा मजे से सो रहा था।

    वो कुर्सी पर झूलते हुए मजे से अपने आप से बोल पड़ा ,"कितनी मस्त नौकरी है ना। सारा दिन मजे से बैठे रहो और हर महीने की तनख्वाह ले लो। काश ये नौकरी हमेशा ही मेरे पास रहे। कितनी मस्त नौकरी है।"

    इतना कहकर चौकीदार के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और वो मजे से झूलने लगा तभी उसके कानों में कुछ अजीब सी आवाज आई मानो की कोई जमीन को खोद रहा हो।

    ये आवाज सुनकर चौकीदार बोला ,"लगता है की खाली बैठे बैठे मेरे भी कान बजने लग गए हैं। पता नहीं कैसी कैसी अजीब सी आवाजें सुनाई देती रहती हैं।"

    इतना कहकर चौकीदार फिर से सो गया।

    लेकिन वो आवाज अब और भी तेज हो गई।

    अब चौकीदार भी समझ गया था की ये आवाज़ सच में ही आ रही है।

    इतने में चौकीदार अचानक से उठ बैठा और सामने एक और बने कब्रिस्तान में नज़र दौड़ाई तो वहां एक बूढ़ा सा आदमी एक कब्र खोद रहा था।

    उस बूढ़े की पीठ चौकीदार की और थी। इसलिए उसे उस आदमी का चेहरा नजर नहीं आ रहा था।

    चौकीदार खड़ा होते हुए बोला ,"ये आदमी है कौन और ये इस तरह बिना मेरी परमिशन के कोई कब्र कैसे खोद सकता है? ये आदमी इस तरह कर क्या रहा है अभी जाकर इसकी अक्ल ठिकाने लगाता हूं।"

    इतना कहकर चौकीदार भागकर उस आदमी के पास गया।

    वो आदमी कब्र के अंदर था और फावड़े से लगातार कब्र खोदे जा रहा था।

    अभी भी उस आदमी की पीठ चौकीदार की और थी।

    इधर शहर से थोड़ा बाहर एक चर्च के आगे कबीर ने गाड़ी के ब्रेक लगा दिए।

    उसकी बगल में बैठा बिराज बोला ,"अब तुझे क्या हो गया है? जहां इस तरह कार क्यों रोक दी है? तेरा शरीर तो सही है ना?"

    कबीर कार से बाहर निकल गया और सर्द आवाज में बोला ,"एक काम करो। तुम हवेली चले जाओ गाड़ी लेकर। मुझे जहां कोई जरूरी काम है? मैं अभी आ जाऊंगा?जाओ।"

    इतना कहकर कबीर चर्च की चला गया।

    विराज ड्राइविंग सीट पर बैठा और गाड़ी को वहां से ले जाते हुए बोला ,"मुझे क्या है? मैं तो चला जाता हूं? अपने आप पैदल आता रहेगा ? अब समझ में नहीं आ रहा है की ये जहां चर्च में क्या लेने गया है?"

    इतना कहकर विराज वहां से चला गया।

    इधर चर्च के पीछे काफ़ी ऊंचाई पर पत्थर पड़े हुए थे।

    हरे भरे पेड़ चारों और थे।

    सामने नीचे की और हरा भरा जंगल और घाटी नज़र आ रही थी।

    एक और बहता हुआ झरना नज़र में पड़ रहा था।

    कबीर वहीं कुछ पत्थरों को पार करके एक पीपल के पेड़ के नीचे जाकर खड़ा हो गया और उस पीपल के पेड़ के तने पर हाथ फेरते हुए बोला ,"तुम्हें याद है बटरफ्लाई मैंने पहली बार तुम्हें यहीं देखा था। पीपल के पेड़ तुम्हें बहुत पसंद थे ना। तुम्हारी साड़ी का पल्लू किस तरह हवा में उड़ रहा था आज भी याद है मुझे। बस तभी से मैंने तुम्हारा नाम ही बटरफ्लाई रख दिया था। सच में क्या फिगर था तुम्हारा और तुम्हारा बेक तो लाजवाब था।"

    इतना कहकर कबीर एक पथर के पास गया और उस पत्थर को चूमते हुए बोला ,"ये वही पत्थर जहां तुम कैलाश के साथ में बैठकर गप्पे लड़ाया करती थी। जहां बैठकर तुम अपना मन हल्का करती थी। जहां तक कुछ चैन की सांसे लेती थी। कितनी हसीन जिंदगी और कितने हसीन पल थे ना वो।"

    इतना कहकर कबीर घुटनों के बल उस पत्थर के पास बैठ गया और फिर डेविल स्माइल में बोला ,"बट अफसोस की तुम्हारी इतनी हसीन जिंदगी को हम पांच दरिंदों ने आकर एक रात में ही तबाह कर दिया था। पैरों में गिरा लिया था तुम्हें।"

    इतना कहकर कबीर खड़ा हुआ और अपने दोनों हाथ फैलाते हुए बोला ,"क्या हसीन रात थी ना वो? घूमर डांस क्या नाचती थी तुम? अहा तुम्हें देखते ही मन में हवस जाग उठती थी। क्या फिगर था तुम्हारा और क्या जिस्म था तुम्हारा? मैं तो फिदा हो गया था तुम पर लेकिन तुम मेरे प्यार को कभी भी नहीं समझ सकी और जो मेरे प्यार को नहीं समझ सकता है वो फिर कुछ भी समझने के लायक नहीं बचता है।"

    इतना कहकर कबीर पागलों की तरह हंसने लग गया।

    इधर चौकीदार पूरा रोब दिखाते हुए बोला ,"अवे ! साले कौन है तूं? इस तरह कब्र क्यों खोद रहा है? कब्र खोदने के लिए पहले परमिशन लेनी पड़ती है। मेरी परमिशन ली क्या तूने? अबे ओ गधे अब अपना मुंह दिखा क्या इस तरह पीठ करके खड़ा है? चल शक्ल इधर करने का?"

    ये सुनकर कब्र खोद रहे आदमी ने फावड़ा वहीं फेंक दिया और अपना चेहरा चौकीदार की और किया और उसका चेहरा देखकर चौकीदार भी हक्का बक्का रह गया और उसके पैरों के नीचे से जैसे जमीन ही निकल गई।

    दिल किसी ट्रेन की स्पीड से दौड़ने लग गया क्योंकि कब्र को खोद रहा आदमी और कोई नहीं बल्कि खुद चौकीदार ही था।।

    क्या होगा चौकीदार के साथ में??
    कौन थी कलावती और कौन था कैलाश?

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा......

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    अलविदा.....!!!!!

  • 20. pasina

    Words: 1189

    Estimated Reading Time: 8 min

    चौकीदार थर थर कांपे जा रहा था क्योंकि वो तो कब्र के बाहर खड़ा था तो फिर कब्र के अंदर वो कैसे जा सकता है और सबसे बड़ी बात तो ये थी की एक ही इंसान एक समय में दो जगह पर कैसे हो सकता है।

    इतने में कब्र में खड़े उस आदमी ने अपने चेहरे पर आ चुके पसीने को पोंछा तो उसे देखकर चौकीदार ने एक चैन की सांस ली क्योंकि वो आदमी और कोई ही था बस वो पहले देखने में उसे बिलकुल अपने जैसा ही नज़र आया।

    उस अनजान आदमी ने फिर से फावड़ा उठाया और कब्र को खोदने लग गया।

    इतने में चौकीदार डरते हुए बोला ,"अबे ! बूढ़े मैं तुझसे कुछ पूछ रहा हूं। ये कब्र तूं किसके कहने पर खोद रहा है। बंद कर इसे।"

    उस आदमी ने कोई जवाब नहीं दिया और कब्र को खोदकर बाहर निकल आया।

    चौकीदार गुस्से से बोला ,"अबे ! साले बूढ़े तूं बहरा है या गूंगा है। मैं तुझसे कुछ पूछ रहा हूं। तूने ये कब्र किसके कहने पर खोदी और मेरी परमिशन के बिना तूने जहां आने की हिम्मत भी कैसे की। तूं बोलता क्यों नहीं है साले। अवे! साले मुंह खोल।"

    इतने में वो अनजान आदमी चौकीदार के बिलकुल करीब आ गया और उसकी आंखों में आंखें डालते हुए बिलकुल कोल्ड वाइस में बोला ,"ये कब्र मैं कलावती के कहने पर खोद रहा हूं और ये कब्र तेरे लिए खोदी गई है। अब मरने के लिए तैयार हो जा।"

    इतना कहकर वो अनजान सा आदमी फावड़ा लेकर एक और जंगल में चला गया।

    चौकीदार बस खड़ा हैरानी से उसे ही देखता रहा।

    चौकीदार अपने आप से बोल पड़ा ,"लगता है की कोई पागल था? कैसी बहकी बहकी बातें कर रहा था।"

    इतना कहकर चौकीदार ने अपनी नजरें घुमाई तो एक कब्र पर जाकर उसकी निगाहें टिक गई जहां लिखा था ,"कलावती "

    ये देखकर तो चौकीदार के पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई।

    चौकीदार अपना सर खुजाते हुए बोला ,"ये पागल क्या बकबास कर रहा था? कलावती ने इसे कब्र खोदने के लिए भेजा है? लेकिन ये कलावती थी कौन? ये तो मर चुकी है? जहां पर इसकी कब्र भी बन चुकी है? फिर ये आदमी था कौन? मुझे जाकर अभी पता करना होगा? आज तो मैं इस बूढ़े को छोडूंगा नहीं? साला मेरे साथ में मजाक करके गया है? अभी बताता हु इसे?"

    इतना कहकर चौकीदार भी उस और जंगल में मरने के लिए चला गया जहां वो अनजान आदमी गया था।

    इधर कबीर अभी भी चर्च के पीछे के उन खामोश पत्थरों के पास में खड़ा जिंदगी में अपने अतीत के दिनों में खोया हुआ था। तीन साल पहले का एक एक सफ़र एक एक पल उसे नज़र आ रहा था।

    अचानक से कबीर को अहसास हुआ की उसे वापिस हवेली में भी जाना है।

    कबीर ने पीपल के पेड़ के तने पर जाकर किस किया और धीरे से बोला ,"गुड बाय बटरफ्लाई।"

    इतना कहकर कबीर वहां से चला गया।

    कबीर के वहां से जाते ही पीपल के पेड़ के पते जोर जोर से हिलने लगे और एक लाल साडी पहने औरत पीपल के पेड़ के पीछे से बाहर आई और तने को अपने नुकीले नाखूनों से छीलते हुए बोली ,"रायजादा साहब अब आपको मेरे कहर से कौन बचाएगा? आपकी मौत आपका इंतजार कर रही है। आपकी बटरफ्लाई।"

    इतना कहकर उस औरत के होठों पर मुस्कुराहट आ गई और अगले ही पल वो औरत वहां से गायब हो गई और ऐसे लगने लगा की इस जगह वर्षों से कोई आया ही न हो। पूरा इलाका बंजर और वीरान सुनसान सा हो गया था।

    इधर विराज ने हवेली के बाहर आकर कार के ब्रेक लगाए और उसकी नज़र सामने बने कब्रिस्तान पर चली गई और ये देखकर विराज ने अपनी नजरें फेर ली।

    इतने में बिराज का फोन बज उठा।

    विराज ने कॉल उठाया तो सामने से कबीर की आवाज आई ,"जहां चर्च के पास आ। मैं अब किसके साथ में आऊंगा?"

    ये सुनकर विराज गुस्से से बोला ,"साले तूं पागल हो गया है क्या? पहले तो तूं कह रहा था की तूं चला जा मैं अपने आ जाऊंगा लेकिन नहीं अब तूं कह रहा है की मुझे वापिस लेने के लिए आ जा। तूं पागल हो गया है क्या?"

    कबीर गुस्से से बोला ,"हां पागल हो गया हूं मैं। अब कार लेकर आ और मुझे मेंटल असाइनलम में भर्ती करवाकर आ।"

    विराज गाड़ी को घुमाते हुए बोला ,"अरे ! आ रहा हूं मेरे भाई इतना गुस्सा क्यों कर रहा है। तूं वहीं रुक मैं अभी आया। जब तुझे मेरे साथ ही आना था तो इतनी नौटंकी करने की क्या जरूरत थी।"

    ये सुनकर कबीर ने कॉल कट कर दिया और विराज ने गाड़ी को फिर से चर्च की और भगा दिया जहां तीन साल पहले किसी को किसी से मोहब्बत हुई थी।

    इधर विनय बेड पर से खड़ा हुआ और उस किताब को एक कोने में दे मारा जिस पर लिखा था की ,"भूत प्रेत का पता कैसे लगाएं?"

    विनय अपना सर खुजाते हुए बोला ,"किताब में लिखा है की भूत प्रेत को लशन से बड़ा डर लगता है और अगर अपने बेड के चारों और अगर झाड़ू बिछाकर सोए तो भूत प्रेत पास भी नहीं आते हैं। हूं एक काम करता हूं आज अपने तकिए के नीचे लसन रखकर सोऊंगा और बेड के चारों और झाड़ुएं बिछा लूंगा। हूं यही सही रहेगा और फिर मैं उस कलावती की बच्ची को उसकी असली औकात दिखाऊंगा। वैसे कमाल है ना एक पैरानॉर्मल एक्सपर्ट्स भी पहली बार इतना डर रहा है लेकिन क्या करूं हमारा अतीत है ही इतना खतरनाक की बड़े बड़े अघोरी डर जाएं।"

    इतना कहकर विनय कमरे से बाहर निकला और हवेली के बाहर एक और पड़ी एक चेयर पर जाकर बैठ गया।

    अब विनय के बिलकुल सामने एक गार्डन है जहां कुछ खास नज़र नहीं आ रहा है लेकिन उसके बिलकुल पीछे कब्रिस्तान है जहां अच्छी खासी कब्रें और तीन साल पहले का अतीत नज़र आ रहा है।"

    विनय एक किताब लेकर वहां बैठ गया और किताब को पढ़ने लगा।

    इतने में मान्या उसके पास में आ गई और उसके पास में बैठते हुए बोली ,"ये विराज और कबीर अब तक नहीं आए ? ये आखिर रह कहां गए? कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है?"

    विनय ने मान्या की और देखा और बोला ,"डोंट वरी मान्या वो आ जायेंगे। लगता है की मंदिर बगेरा में चले गए होंगे?"

    मान्या जंगल में खड़े एक खंडहर बन चुके मंदिर की और इशारा करते हुए बोली ,"मैं और अवनी उस मंदिर में गए थे। बड़ा अजीब सा मंदिर है। एक पुजारी था वो भी पागल सा था। हम तो तुरंत ही वापिस आ गए।"

    विनय ने उस मंदिर की और नज़र दौड़ाई और उसकी आंखों के सामने तीन साल पहले के सारे नजारे फिर से आने लगे।

    इतने में मान्या बोली ,"विनय जहां हवेली के बाहर वो कब्रिस्तान क्यों है?"

    ये सुनते ही विनय को जोर का झटका लगा और उसने उस कब्रिस्तान की और देखा जहां उनका तीन साल पहले का राज़ दफ़न था।।

    क्या है उनका तीन साल पहले का राज़?
    क्या होगा आज की रात??

    जानने के लिए पढ़ते रहिएगा.......

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