तीन माफिया भाई —अर्पण, अथर्व और आश्रित—जो एक-दूसरे के जानी दुश्मन हैं, लेकिन एक ही लड़की, नितारा, के प्यार में दीवाने हैं । नितारा की खूबसूरती और बेबाकी ने तीनों के दिलों में हलचल मचा दी है । दुश्मनी की दीवारें अब मोहब्बत की राह में आ गई हैं । गोलियो... तीन माफिया भाई —अर्पण, अथर्व और आश्रित—जो एक-दूसरे के जानी दुश्मन हैं, लेकिन एक ही लड़की, नितारा, के प्यार में दीवाने हैं । नितारा की खूबसूरती और बेबाकी ने तीनों के दिलों में हलचल मचा दी है । दुश्मनी की दीवारें अब मोहब्बत की राह में आ गई हैं । गोलियों की आवाज़ों के बीच दिल की पुकार गूंज रही है—क्या नितारा किसी एक को अपनाएगी या तीनों की मोहब्बत बर्बादी का कारण बनेगी ? जब इश्क, जुनून और नफरत एक ही कहानी में हों , तो अंजाम या तो खून से लिखा जाएगा... या मोहब्बत सबको बदल देगी ।
Nitara
Heroine
Athrava
Side Hero
Arpan
Side Hero
Surbhi
Advisor
Rudra
Advisor
ASHRIT
Hero
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एक बड़ी सी बिल्डिंग जिसके टॉप पर एक आदमी खडा था, उम्र तीस के आस पास होगी, वो लडका अपने हाथ में शराब का गिलास लिये खडा था, उसकी आंखे रात के वक्त उस चमचमाते शहर को देख रही थी ।
कहने को तो वो इस कोन्टिनेन्ट का बादशाह था, उसके आगे किसी के बोलने की हिम्मत नही थी । पावर और पैसे की ताकत से उसनें पूरे शहर को अपनी मुठ्ठी में किया हुआ था । मुम्बई जैसे शहर को भी वो अपनी एक छींक से हिलाने की हिम्मत रखता था ।
यह था एशिया के सबसे खतरनाक एक माफिया में से एक,,, अर्पण सिंघानियां, उम्र यही कोई तीस साल, नीली रंग की गहरी आंखे जिनमें जूनून की आग थी, उसके चेहरे से उसका जूनून साफ जाहिर हो रहा था ।
" वो मिल जाये एक बार, उसे फिर खुद से दूर नही जाने दूंगा,,,, वो मेरी किस्मत में है और उसे मेरी किस्मत से किस्मत भी नहीं जुदा कर सकती है,,,,," वो आदमी आंखो में आग लिये दिवानगी के साथ बोला ।
उसे तलाश थी उस लडकी कि जिसनें उसके दिल को पहली बार में छू लिया था,, और आज तीन महिने हो गये थे, पर अभी तक वो लडकी उसे मिली नही थी ।
वही दूसरी ओर एक बडा सा घर, काले कर्टन, काली दिवारे और उन काली दिवारो के बीच एक बहुत ही खुबसूरती से बनायी गयी एक रंगीन तस्वीर,,,, एक लडका उस तस्वीर के सामनें शर्टलेस होकर खडा था । उस लडके के आंखो में एक दिवानगी दिखायी दे रही थी । आंखो में दिवानगी लिये वो लडका उस तस्वीर को बस न जाने कबसे ऐसे ही देख रहा था । उसके हाथो में कलर लगा हुआ था और दूसरे हाथ में खून लगा हुआ था ।
वो लड़का खून से सनें उस हाथो से ही उस पेंटिग में कलर भर रहा था, उसनें उस तस्वीर में बनी लडकी की ड्रेस को अपने खून से ही भरा था ।
वो उस लडकी की तस्वीर को देखते हुए बोला " कब तक बचकर भागोगी जानम,,, यह दुनिया एकदम गोल है,, और जिस तरह तुम मुझसे पहली बार टकरायी थी, वैसे ही अब भी टकराओगी,,,,,"
उसके चेहरे पर एक मिस्टीरियस स्माइल थी,,, यह लडका था अथर्व सिंघानिया, एशिया का सबसे शक्तिशाली आदमी और एक माफिया । उम्र यही कोई अठाइस के आसपास, आंखे गहरी और हरी रंग की, चेहरे पर हल्की बियर्ड और आंखो में तेज ।
वही तीसरी तरफ एक आदमी जिसनें काले रंग का कोर्ट पहना हुआ था, वो अपने एक गार्ड की गर्दन को कसकर पकडते हुए उसे एक तीखे कोने वाले सरिये में घोंपते हुए बोला " साले हरामियो,,, इतने दिन से तुम एक लड़की को नहीं पकड़ पाए,,,, यह दुनिया इतनी भी बड़ी नही कि आश्रित सिंघानिया के कदम उसे नाप ना पाये,,, तुम लोगो की हिमाकत भी कैसे हुई मुझे इंतजार करवाने की,, तीन महिने,,, तीन महिनो से मैं उसका इंतजार कर रहा हूं मेरे लिये इंतजार का हर एक लम्हा किसी साल से कम नहीं और तुम लोग आज भी निराश आंखो के साथ मेरे सामनें आ गये,,, मुझे हर हाल में वो लडकी चाहिये,,, अंडरस्टैंड और नॉट,,,,!!
तभी उसके सामनें खडे सभी गार्ड्स एक तेज आवाज में चिल्लाये " यस सर,,,,!! "
आश्रित नें चिल्लाकर कहा " नॉट ऑनली यस,,, आई वॉन्ट रिजल्ट,,,,!!
" यस सर,,,,"
आश्रित नें उसी गार्ड् की शर्ट से अपना खून से सना हाथ साफ किया और उस गार्डस को वैसे ही छोड दिया । उस गार्ड् में अब जान तो बची भी नही थी, वो तड़प तड़प कर वैसे भी मर चुका था ।
यह तीनो ही भाई जो एशिया के सबसे ताकतवर बिजनैसमैन्स और माफियाज कहलाये जाते थे, वो तीनो एक ही लड़की के पीछे दिवाने थे । तीनो एक दुसरे के जानी दुश्मन भी थे पर इस बात से भी अंजान थे कि तीनो की नजर एक ही लडकी पर है, तीनो के बीच दुश्मनी इस कदर थी कि एक दूसरे को मारने के लिये तैयार रहते थे ।
एक छोटा सा अपार्टमेन्ट.......
एक लडकी अपने बालो को सही करते हुए बेड से नीचें कदम रखती है,,, वो अंगडाई लेते हुए यहा वहां देखती है ।
वो लड़की बैचेनी से एक दिशा में देखते हुए बोली " सुरभि,,, सुरभि कहा हो तुम,,,, हमें बात करने है,,,,"
" यही हूं मेरी मां,,, बोल,,,," एक लडकी अपने काले लम्बें रूखे बालो को मसलते हुए मुंह में ब्रश ठूसे अंदर आते हुए उसे देखकर बोली ।
वो लड़की अपनी प्यारी सी स्माइल और गुडिया जैसी प्यारी सी सूरत के साछ बोली " तुम हमारे साथ चल रही हो न,,,! "
सुरभि नें उसकी बात से इंकार करते हुए गर्दन हिलाकर कहा " नहीं,, मुझे बार में जाना है आज मेरा डांस शो है वहां,,,,"
वो लडकी मुंह बनाकर बोली " तुम हमेशा ऐसे ही करती हो हमारे साथ,,,,,"
तभी सुरभि नें बेसिन में आकर कुल्ला करते हुए कहा " मैं नहीं आ सकती नितारा,,, तुझे पता तो है, मैं एक बार डांसर हूं यह सब के बीच तेरे साथ कहा जाऊं और यह सब पढाई लिखायी की चीजे देखकर मेरा सिर चकराता है,,, फिर मेरी वो सेठानी भी बहुत चेचे करती है,,, बात बात पर झगडती है,,, अगर लेट हो जाओ तो पैसे काट लेती है,,,"
" हां हां हम सब जानते है पर तुम भी तो जानती हो न, कि हम यहां नयें हैं किसी को नही जानते है,,, किसी से हमारी दोस्ती नहीं हैं,,,, कोई हमें पकड़ लिया तो,,,," नितारा डर से कांपते हुए बोली ।
सुरभि नें उसकी बात का मजाक उडाकर कहा " हां आप ही तो हो अप्सरा,, आपको ही तो उठाकर लेकर जाएगें,,, सारे गुंडे मवाली आपका राह ही तो देख रहे हैंं,,,, "
सुरभि नें यह बात मजाक में कही थी पर सुरभि को भी पता था कि वो लड़की सच में बेहद सुंदर थीं जब पहली बार सुरभि खुद नितारा से मिली थी, उसकी मासुमियत, उसका बात करने का लहजा और उसकी स्माइल के सामनें वो खुद भी नही सम्भल पायी थी ।
नितारा को जब उसनें तीन महिने पहले बंदूक की नोंक पर देखा था तबसे ही उसकी नजर में नितारा खुबसूरत होने के साथ ही बहुत ही ज्यादा बहादुर भी बन गयी थी वरना कोई पागल ही होगा जो खुद जाकर बंदूक की नोंक पर खडा होगा........
नितारा नें उदास चेहरा बनाकर कहा " ठीक है हम खुद ही चले जाएगे,, तुमको क्या लगता है हमारा कोई ओर दोस्त नहीं बन सकता,,, हम आपके भरोसे है यहांं,,, आप तो वैसे भी अपने काम में ही बीजी रहती है, हम जैसी बेवकूफ लड़की से आपको क्या ही फर्क पडेगां,, हमें किसी नें मार भी दिया,,, तो आपको तो कुछ भी फर्क नही पडने वाला,,,,,"
सुरभि उसकी एक इमोशनल बाते सुनकर अंदर रूम में आयी और उसके सामनें खडा होते हुए बोली " हो गयी है तुम्हारी इमोशनल ब्लैकमैलिंग शुरू,,,,"
" हमनें क्या किया,,,,?"
" यह आप बोलकर बात करना ही बता रहा है कि तुमनें क्या किया है,,, मैं अच्छे से जानने लगी हूं कि तुम जब नाराज होती हो तो यह आप आप निकलता है तुम्हारे मुंह सें,,,"
नितारा नें नाराजगी के साथ कहा " ऐसा कुछ नहीं है,,,,"
" बस करो तुम,,,, अच्छा मैं चलूंगी तुम्हारे साथ पर सिर्फ तीस मिनट के लिये फिर मुझे जाना होगा,,,,"
" ठीक है कोई बात नहीं,,, हमें चलेगा,,," नितारा नें खुशी से आंखे चमकाकर कहा ।
सुरभि उसकी स्माइल देखकर उसके गाल पर किस करते हुए बोली " हाय मार ही डालती हो तुम इस स्माइल के साथ, कसम से अगर मैं लड़की ना होकर लड़का होती तो अब तक तू मेरा ऑबसेशन बन चुकी होती,,,,"
नितारा नें मुस्कुराते हुए कहा " फिर तो अच्छा ही है कि तुम लडकी ही हो,, वरना तुम तो हमें हर रात अपने नीचे दबाकर सोती और हमें यह जोर जबरदस्ती पसंद नही है,,,,"
सुरभि उसे छेडते हुए अपना कंधा उसके कंधे से भिड़ाकर बोली " हां वो तो पता चल ही जाएगां, तुम कहा जानो आदमी की मोहब्बत जानू,,, एक बार अगर वो मोहब्बत की जिद्द पर आ जाये तो बचना मुश्किल होता है फिर तो जबरदस्ती भी होती है और जबरदस्त प्यार भीं,,,"
नितारा नें शर्माकर अपना चेहरा दूसरी तरफ किया, वो उसकी डबल मिनिंग बातो को समझ रही थी और उसकी बातों में पडना भी नही चाहती थी ।
कुछ महिनें पहले.....
सड़क पर लगातार गाडियां दौड रही थी, ब्लैंक कलर की उन गाडियो नें पूरा शहर नाप लिया था । सभी हैरान थे कि आज कौनसा सेलिब्रिटी या राजनेता मुम्बई शहर में आ गया है ।
किसी को नहीं मालूम था कि वहां क्या चल रहा था । वही एक लडकीं अपना सूटकैस निकाले एक टैक्सी से बाहर निकलीं, वो मुम्बई शहर में आज पहली बार आयी थी । मुम्बई को देखकर उसकी आंखो में चमक आ गयी ।
वो अपने आप से बोली " तो आज से हमारा नया सफर शुरू होता है,,, नितारा आज से यह दुनिया तुम्हारा इंतजार कर रही है,, हमें उम्मीद है कि हम यहां चैन से रहेगे और बहुत कुछ नया भी सिखेगें,,, जिंदगी में हमें इतने सालो बाद यह मौका मिला है,,, आज हम बहुत खुश है,,, बहुत खुश,,,,,"
नितारा में अपने हाथो को ऊपर उठाकर गहरी सांस भरी, वो आंखे बंद करके अपनी खुशी और मु्बई की हवाओ को महसूस कर रही थी कि तभी उसके कानो में एक तेज आवाज आयी ।
गन चलने की खतरनाक आवाज, जिसे सुन नितारा एकदम से चौंक जाती है, उसकी आंखे बड़ी बड़ी हो गयी । उसके चेहरे में आश्चर्य के भाव थे ।
वो सामनें देखती है तो तीन ब्लैक कार और उस कार के बाहर तीन काले सूट में तीन आदमी खड़े थे । तीनो की आंखे गुस्से से एक दूसरे को देख रही थी । "
वो एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे इसा वक्त जान से मार देगे । उनके चेहरे पर आक्रोश भरा हुआ था । चेहरा एकदम गुस्से से तमतमा रहा था ।
एक आदमी बोला " बंदूक नीचे कर,,,!!"
" कभी भी नहीं,,, तुझे मारने का मौका आज मिला है मुझे,,, तुझे तो मारकर ही आज पीछे हटूंगा,,,,"
तभी उन दोनो के सिर पर गन ताने तीसरा आदमी बोला " तुम दोनो ही हाथ नीचे कर लो,,, वरना आज सिर्फ तुम्हारी अर्थी यहां से जाएगीं,,,,,!!
" "मौत का खौफ किसे दिखा है,,, हर रोज मौत. का खेल खेलने वाला कभी मौत से नही डरता,,," उनमें से एक बोला .
वो तीसरा आदमी बोला " बंदूक नीचे कर अथर्व, वरना मौत का डर करीब से महसूस करवाने का मुझे काफी एक्सपिरियंस है अर्पण सिंघानिया को,,,,,,,"
दूसरा वाला बोला " सिर्फ सिंघानिया नाम में लग जाने से खून एक जैसा नही हो जातां,,, अर्पण,,, मारना है तो मार दे,,, और हिम्मत है तो चला गोली,,,,,"
तभी पहले वाले नें कहा "तुझमें भी है हिम्मत तो मुझे मारकर दिखा,,,, लेकिन याद रखना,,, आश्रित सिंघानिया नाम है मेरा, मरूंगा तो भी तुम दोनो ही कब्र खोदकर,,,,"
माहौल काफी खतरनाक होता जा रहा था । तीनो नें ही एक दूसरे पर बंदूर तान रखी थी और हाथ ट्रीगर पर था । औसा लग रहा था जैसे किसी भी वक्त ट्रीगर दबा और खेल खल्लास ।
वो तीनो ही गन चलाते इससे पहले ही वहां एक मासूमियत से भरी और धीमी सी पर पूरे जोर से एक वॉइस आयी " बस करिये आप तीनो,,,, रूक जाइयेंं,,"
वो तीनो ही लड़के उस लडकी को देखने लगे जो बंदूक की पॉइट पर आकर खडी हो गयी थीं मतलब उन तीनो के बीच.......
" रूक जाइयेंं,,,, मत लडाई करिये यहां,, आप तीनो की इस लडाई के चक्कर में सभी का काम अटक गया है,,, अगर आप तीनो को यह सब करना ही है तो किसी ओर जगह चले जाइये,,, आप लोगो को पता भी है एक दूसरे को मारकर आप कितना बडा अधर्म कर रहे थे,,,,, हमारे शास्त्रो में कहा गया है कि इंसान को चौरासी लाख योनियो में जन्म लेने के बाद इंसानी जीवन मिलता है और आप पता नहीं क्यो इस जन्म को खराब कर रहे है,,, हम आप तीनो से रिक्वेस्ट करते है प्लीज,,,, प्लीज अपनी कार सड़क से हटाइये ताकि बाकि लोग परेशान हो रहे हैं वो अपना काम कर सके,,,,"
यह लडकी कोई ओर नही बल्कि नितारा ही थी और उसे खुद को मालूम नही था कि जिन लोगो को उसनें अभी इतना लम्बा भाषण दिया है वो तीनो ही इस कॉन्टिनेन्ट के सबसे खतरनाक माफियाज ब्रदर थे । जिनके लिये यह शहर खत्म करना भी कोई बडी बात नही थी और एक अंजान लडकी, जो हवा के झोंके की तरह आयी और उन तीनो से नजर में नजर डालकर उन्हें यह सब कह रही थी ।
" कैसी होगी यह मोहब्बत की जंग, जहां एक लडकी के लिये तीन भाईयो के बीच की दुरियों ओर भी बढेगी,, क्या होगा इस मोहब्बत का अंजामंं....???
सभी की नजर नितारा पर ठहर सी गयी थी, वो उन तीनो को बारी - बारी देख रही थी । तीनो भाईयो की बंदूक उनके हाथ में थी पर अब उनका ध्यान बस उस पर था, वो अचानक से कहा से आयी थी ।
उन तीनो नें नितारा को देखा और अपना बंदूक नीचे कर ली । नितारा नें मुस्कुराकर कहा " हो सके तो अब अपना गाडी़ भी हटा लिजिये,,, आप लोग कही ओर जाकर लड़ लिजिये,,, वेसे तो लडाई झगडा अच्छी बात नही हैं,,, हो सकें तो लडाई मत करिये,,, हम नहीं जानते है आप तीनो लड़ क्यो रहे है,,, पर लडाई किसी समस्या का हल नही होती है,,,""
वो तीनो खामोश होकर उसे देख रहे थे, तभी सड़क पर दौड रही गाड़िया वहां पर आ गयी । नितारा ओर भी ज्यादा गाडिया देखकर घबरा गयी । अचानक ही किसी नें एक कार पर फायरिंग की तो वहां भगदड़ सी मच गयी । वो तीनो भाई जो अभी तक नितारा को ही देख रहे थे । अचानक हुई इस भगदड़ से एकदम ही सजग हो गये ।
तभी भीड़ में से ही किसी नें नितारा को पकड़कर खींच लिया । नितारा कुछ नही समझ पायी और कोई उसे भीड़ से ही ले गया । उस दिन के बाद इन तीनो भाईयो नें नितारा को कहा नही ढूंढा,, इस शहर से लेकर इस देश तक, पर उन्हें नितारा कही नही मिली । नितारा इन तीनो के लिये ही ऑब्शेसन बनती जा रही थी ।
हर एक दिन के साथ नितारा को यह तीनो भाई हर जगह ढूंढ रहे थे सिवाय उसी शहर के एक छोटी सी कॉलोनी एरिया के ! जहां नितारा एक छोटे से अपार्टमेन्ट में सुरभि के साथ रहती थी...
वो इस शहर में अपनी पढाई के लिये आयी थी । उसकी जिंदगी में सुरभि के अलावा फिलहाल कोई दोस्त नही था, पर उसका स्वभाव बहुत अच्छा था, कोई भी उसकी मासुमियत को देखकर उससे दोस्ती कर सकता था । नितारा, अभी सुरभि के साथ ऑटो से अपनी युनिवर्सिटी पहुची । छत्रपति शिवाजी युनिवर्सिटी, बेहद एडवास और टॉप युनिवर्सिटी । जहां तक नितारा अपनी मेहनत से आयी थी । सुरभि, ऑटो से बाहर निकली, नितारा भी युनिवर्सिटी को देखकर बहुत खुश हो रही थी ।
" अरे भईया कितने पैसे हुए "
" तीन सौ रूपये हुए है ,,,"
" किसे पागल बना रहे हो भईया, मीटर में तो सौ रूपये बता रखा है,,, देखो मेैं बम्बई की सडको को अच्छे से जानती हूं तो मुझसे चालकी मत करो "
" अरे मैडम वो, मैं,,,! ""
" लो पकडो अस्सी रूपये,,, झूठ बोलने के ₹20 काट लिया है,,,, "
" मैडम,, ऐसा तो मत करो "
" हां चलो,, चलो,,, झूठ बोलने से पहले सोचना था न,,,,"
सुरभि नें मुंह बना लियां ऑटो वाला समझ गया कि यह लड़की लॉकल ही है, उसके साथ ज्यादा माथा पोडी नही करनी चाहिये । वो चुपचाप पैसे लेकर निकल गया ।
" तो अब चलें,,,,"
" हां चलो,,, "
" देख मैं तेरे साथ आ गयी तो तेरे पैसे बच गयें,, अगर नही आती तो ऐसे ऑटो वाले तुझसे फालतू ही फैसे एठ लेते,,,"
" हां सही कहा,, तभी तो तुम हमारी गाइड हो,,, गॉड एंजल हो,,,"
" बस कर,,, ज्यादा मक्खन नही जचता मेरे को,,,," नितारा उसकी टॉन पर हंस पडी । नितारा और सुरभि युनिवर्सिटी पहुचे तो नितारा सारी युनिवर्सिटी को नजर घुमा घुमाकर बच्चो की तरह देख रही थी । सुरभि उसके चेहरे को देखकर मुस्कुरा उठी । वो एकदम मासूम लग रही थी ।
सुरभि नें एक दो लडकियों से प्रोफेसर के रूम का रास्ता पूछा, और नितारा को लेकर वहां पहुची । नितारा नें सारे पेपर जमा करवाये । सुरभि उसे देख रही थी तभी उसका मोबाइल बजा ।
उसनें मोबाइल की तरफ देखा फिर अपना माथा पकडकर बोली " आ गया सेठानी का कॉल,,, यार मैं आती हूं बात करनी पडेगी,,,"नितारा नें गर्दन हिला दी, वो फॉर्म फिल कर रही थी ।।
सुरभि बाहर आयी, उसनें कॉल उठाया, तो सामनें से एक बेहद खतरनाक तरिके से औरत चिल्लायी " तेरे को टाइम की कदर है कि नही,,, फालतू टाइम खोटी करती है,, तुझे पता है मेैं कितनी बीजी हूं,,,,"
" सेठानी,,, क्यो भड़क रही है,,,"
" क्यो ना भडकूं,,, तुझे सुबह आने को बोला था,, टाइम देखा है,,,, साली,,, तू इतनी बडी हो गयी कि मैं तुझे कॉल करूं,,,,"
" ऐ सेठानी, देख गाली नही देना,, जो भी है बोल पर गाली नहीं,,,,"
" दूंगी गाली,, क्या कर लेगी, साली साली साली,,, जल्दी से पहुच बार में,,, वरना मां बहन की गाली भी दूंगी,,,, "
वो औरत गुस्से से बोली, सुरभि नें दांत से होंठ काट ली । वो कॉल कट होने पक मोबाइल को देखकर बोली " गाली देगी,,,, इसकी बहन की......"
वो बोलते बोलते रूक गयी पर मन में तो गाली दे ही चुकी थी । इधर नितारा अपना फॉर्म लेकर बैठी थी तो सुरभि उसके पास आकर बोली " यार नितारा मुझे जाना होगा,,,,,, सेठानी का कॉल आया है,,,, वो बहुत चेचे कर रही है,,,, सॉरी यार,,,,"
नितारा नें सिर हिलाकर कहा " कोई बात नही तुम जाओ,,, हम चले जाएगे अब,,, और हमें माफ कर दो हमारी वजह से तुम्हें डांट पडी,,,,,"
" अरे कोई बात नही मेरा जान ! मैं तो तेरे लिये सूली चढ जाऊं,,, यह डांट क्या चीज है और सेठानी को तो मैं वहां जाकर बताऊंगी,,,," सुरभि नें बाजू से अपना शर्ट लपेटते हुए कहा ।
नितारा उसे देख मुस्कुरा दी । सुरभि उसे बाय बोलकर वहां से चली गयी । नितारा ने भी एक घंटे में सारा काम पूरा किया और खुशी से युनिवर्सिटी से बाहर आयी......
वो सड़क पर आकर ऑटो का इंतजार करने लगी पर वहां पर अभी कोई ऑटो नही था । वो अपने नाखुन को दांतो से दबाकर सामनें झांकने लगी ।
तभी एक वेन वहां पर आयी । नितारा अपनी पलको को झपकाकर वेन को देखने लगी, वो कुछ समझ नही पाती, क्योंकि किसी नें अचानक ही उसका हाथ खींच लिया था ।
वेन के अंदर नितारा को जोर से खींचा गया,, वो अपने आप को छुडाने की कोशिश करती है पर अंदर बेठे तगडे आदमियो नें उसे कसकर पकड लिया और उसका मुंह दबाते हुए उसे दबोच लिया ।
नितारा की आवाज भी नही निकल पा रही थी, वो झटपटा रही थी । नितारा कुछ नही समझ पायी, वेन का दरवाजा बंद हुआ और वेन तेजी से सड़क पर दौड पडी ।
"किसनें किया है नितारा का किडनैप , क्या तीनो माफिया ब्रदर में से कोई? क्या होगा आगे जानने के लिये बने रहिये "
नितारा को एक रस्सी से बांधा हुआ था, वो बेहोश पडी थी । उसके आस पास ओर भी लडकियां थी । नितारा अभी हल्की बेहोशी की हालत में थी पर वो अपने आस पास लडकियों की रोने की आवाज और सिसकियां सुन सकती थी,,, वो हल्की हल्की आंखे खोलकर देखती है तो वहां पर काफी छोटी उम्र से लेकर बडी उम्र तक की लडकियां थी,,, जिन्हें बुरी तरह रस्सियो से जानवर की करह बांधा हुआ था । नितारा की तरह बाकि लडकियां भी जमीन पर पडी थी । नितारा हल्के होश में थी । वो सभी तरफ देख रही थी । लडकियो के कपडें फटे हुए थे और चेहरा काला पीला हो गया था । कपडे और शरीर दोनो की हालत ही खराब थी ।
नितारा जब यह सब देखती है तो उसाक दिल भी धडकने लगता है । बैचेनी और डर उसके चेहरे पर आने लगता है । हालांकि वो होश में नही थी पर उसे इतना तो समझ आ रहा था कि जहां पर भी यह कोइ सेफ जगह नही कर है ।
नितारा जान गयी थी कि वो किसी बहुत बडे डेंजर में फंस गयी है जहां से निकलने का रास्ता उसे भी नहीं पता था, नितारा पर वापस बेहोशी छाने लगी और वो बेहोश हो गयी ।।
इधर आश्रित सिंघानिया अपने ऑफिस से घर की तरफ जा रहा था । वो रॉल्स रॉयल में बैठा था । उसके सामनें उसका सेक्रेट्री " प्रतीक शर्मा "भी बैठा हुआ था,, आश्रित के साथ आना किसी बहुत बडे रिस्क में रहने से कम नही था । उसे ऐसै लग रहा था जैसे कब यह सफर खत्म हो और वो कब अपने घर जाये ।
प्रतीक को तो इतनी घुटन हो रही थी कि वो वहां पर बैठ भी मुश्किल से पा रहा था, आश्रित उसे एक नजर देखता है तो प्रतीक नें उसे स्माइल के साथ देखा पर वो ही जानता था कि उसे मुस्कुराने के लिये रोज कितनी प्रैक्टिस करनी पडती थी वरना एक कॉल्ड हार्टेड सिरियस पर्सन जो कभी हंसता ही नही था, उसके साथ कौन रह सकता है ।
तभी प्रतीक के पास एक कॉल आयी, उसनें कॉल रिसीव किया । वो बोला " औके हम पहुच रहे है,,,"
प्रतीक नें आश्रित को देखते हुए कहा " सर वो स्मगलर गैंग का पता चल गया है,,, वो लोग आज रात ही कुछ लडकियों को शीपॉर्ट से एक्सपोर्ट करने वाले है,,,,"
आश्रित नें अपने माथे पर हाथ फेरकर कहा " गाडी वही ले चलो, जहां वो लोग है,,, मेरे इलाके में उनकी ऐसा नीच काम करने की हिम्मत भी कैसे हुई,,,, सभी को जिंदा गाड़ दूंगा,, सालो को,,,,"
प्रतीक नें अपना सिर हिलाया पर वो जानता था कि अब उन गिरोह की खैर नही है । आश्रित जो साउथ मुम्बई के सारे पोर्ट सम्भालता था, उसे अपने काम में गंदगी पसंद नही थी । वो कितने ही लोगो को मारता, उनका कत्ल करता पर औरतो और बच्चो को बेचना यह उसका व्यापार नहीं था ।
कुछ ही देर में आश्रित और उसके गार्ड्स से गाडियां एक जगह पर आकर रूकी । कुछ लोग जो एक गोदाम के बाहर खडे थे । ट्रक जिनमें माल भरा जा रहा था । माल के साथ ही लडिकयों को भी भरा जा रहा था । आश्रित की कार्स को लेकर वहां मौजूद सभी गैंग मेम्बर्स चौकन्ने हो गये । वो सभी जानते थे कि यह कार्स किसी आम आदमी का नहीं है । आश्रित भी कार से बाहर नही निकला । गैंग के मेम्बर्स नें अपने हथियार तैयार कर लिये । वो सभी बंदूक लेकर आश्रित की गाडियो को चारो ओर से घेर लेते है ।
आश्रित चुपचाप अपने होंठो पर फिंगर टिकाये खामोश बैठा था । प्रतीक नें अपने सीने को एकदम छुआ, उसनें अंदर बूलेट प्रूफ जैकेट पहना हुआ था, पर कही ना कही उसे डर भी था कि कोई बुलेट उसे ना छेद दे ।
आश्रित चुपचाप बैठा था, एकदम काम, उसके चेहरे पर एक सिकन तक नही आयी । सभी गैंग मेम्बर्स नें उसे चारो ओर से घेर लिया था ।
" जो भी हो,, बाहर निकालो वरना जान से जाओगे,,,," गैंग का एक मेम्बर बोला.
आश्रित और उसके गार्ड्स में से कोई भी बाहर नही आया । वो गैंग मेम्बर्स एक साथ आश्रित की कार पर गोलियां चलाने को तैयार हो गये पर तभी एक जोरदार धमाका हुआ ।
जो ट्रक वहां खडे थे, उनमें ब्लास्ट होने लगा, एक एक करके सारे ट्रक आग में जलने लगे । सभी गैंग मेम्बर्स हैरत से भर गये । यह सब क्या था, यह कौनसा अटैक था । आश्रित कोइ आम आदमी नही था, उसनें दस मिनट पहले ही सारा गोदाम सील करवा दिया था और अपने बंदे घरो की छत के ऊपर तैनात कर दिये जो एक से बढकर एक थे, उनका निशाना तो एकदम सटीक था और एक भी निशाना मिस होने का चांस नही थां, आश्रित को तो अपने गार्ड्स को भी तकलीफ देने की जरूरत नही थी । उसके तैनात आदमी ही सारा काम खत्म करने के लिये काफी थे ।
आश्रित नें देखा कि बाहर का माहौल एकदम आग में घिर गया है तो वो अपने कोट के बटन खोलते हुए, अपनी एक लम्बी गन को उठाता है,, उसके गार्ड्स भी पीछे कार्स से बंदूक थामे बाहर निकले ।
देखते ही देखते उन गार्ड्स नें प्रति सैकेंड के हिसाब से दडा दड गोलियां चलाना शुरू कर दिया । गैंग के मेम्बर्स और यहां तक की अंदर जो लीडर था वो भी कुछ नहीं कर पाया । कुछ ही पलो में आश्रित के गार्ड्स नें ही सारा गोदाम आग में जला दिया । बस उस जगह तक आग नही गयी जहां वो लडकियां और नितारा कैद थी । आश्रित कार से बाहर निकला और अपने सेक्रेट्री के साथ हाथ में गन पकडे, वहां से ठिकाने की तरफ बढने लगा ।
अंदर गिरोह का लीडर था, जो डर से वहां से भागने की तैयारी कर रहा था पर आश्रित नें उसकी पीठ पर अनगिनत गोलियां दाग दी । वो इस वक्त कोई इंसान नही बल्कि खूंखार शैतान लग रहा था । नितारा जो गोलियो की आवाज से हल्की सी होश में आयी, वो आश्रित का चेहरा देख लेती है जो लगातार गोलियां बरसा रहा था । हालांकि वो चेहरा हल्का था, पर नितारा नें उसे देख लिया था । बाकि लडकिया भी यह सब देखकर डर गयी थी । प्रतीक नें सभी लडकियो को खोला तो लडकियां रोने लगी ।
" हमें जाने दो,, हमें मत मारो,,," वो रोते हुए बोली ।
प्रतीक उन्हें समझाते हुए बोला " हम यहां किसी को मारने नही बचाने आये है"
लड़कियां इतनी घबरायी हुई थी कि उसे किसी बात पर विश्वास ही नही हो रहा था । लडकियो को प्रतीक नें आराम से समझाया और उन्हें बाहर खडी एक ब्लैक कार में जाकर बैठने को कहा ।
वो सभी पहले तो डर रही थी पर प्रतीक बोला " यहा जल्दी ही आग पकडने वाली है,,, बाहर बहुत ज्यादा तबाही हो चुकी है अगर आप सभी जिंदा रहना चाहती हो तो प्लीज,, बात मानिये और बाहर कार में जाकर बैठ जाइये,, आप सभी को आपके घर तक सुरक्षित पहुचाया जाएगा,,,,"
लडकियों ने जब बाहर झांका तो सच में चारो तरफ आग ही आग थी, उनके पास ओर कोई चारा नही था । वो यहा रहती तो भी मौत के मुंह में ही जाती ।
बाकि सभी लडकियां बाहर की तरफ भागी पर नितारा जो बेहोश थी, वो जमीन पर ही पडी थी ।। प्रतीक नें उसे देखा फिर उसे उठाने के लिये आगे कदम बढाये । वही आश्रित जो उस लीडर के पास खडा था, वो अचानक ही नजर उठाकर नितारा की तरफ देखता है,,, उसके चेहरे पर उसकी जुलफो नें हल्का सा ढक रखा था । पर नितारा को वो पहली नजर में ही इतनी गहरायी से देख चुका था कि उसकी एक झलक में ही वो उसे पहचान गया ।
प्रतीक जो उसे उठाने के लिये अपने हाथ उसकी तरफ बढाता है तभी आश्रित जोर से चिल्लाया " उसे छूना भी मत,, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा,,,, No one can touch her..... Because i own her...."
प्रतीक तो अपने बॉस की आवाज सुन वही स्टैच्यु बन गया, हाथ एक जगह रूक गये और टांगे कांपने लगी । उसे समझते देर नही लगी कि यही वो लडकी है जिसके लिये आश्रित नें पिछले तीन महिनो से उसकी जिंदगी को जाहन्नुम बना रखा था । वो नितारा को हाथ लगाने की हिम्मत नहीं कर सकांं, और अब उसका क्या होगा यह तो उसे भी नहीं पता था ।
" क्या करेगा आश्रित नितारा के साथ, क्या एक कॉल्ड हार्टेड पर्सन एक मासूम लडकी के लिये सॉफ्ट हार्टेड बन पाएगा,,,,,?"
आश्रित, नितारा के पास आया, उसनें नितारा के चेहरे पर धीरे से बाल हटाया,, नितारा का चेहरा उसके सामनें था । इतने दिनो से जिस लड़की वो ढूंढ रहा था, वो अभी उसकी आंखो के सामने थी । उसके हाथो में कंपन था जो उसे महसूस हो रहा था ।
नितारा उसे एक नाजुक कली की तरह महसूस हो रही थी, जिसे वो उठाने से भी घबरा रहा था । वही उसका सेक्रेट्री यह सब चुपचाप देख रहा था । उसनें आजतक अपने बॉस के हाथो को कभी कांपते हुए नही देखा था, यहां तक कि तब भी नहीं जब वो किसी को मार देता था ।
मगर आज एक लड़की को छूने से पहले भी वो इतना सोच रहा था । आश्रित नें धीरे से नितारा के गाल को छुआ,,, उस पल आश्रित को अपनी बढती हुई धडकने महसूस हुई । उसनें ऐसा फिल कभी नही किया था । ना भी बहुत बडी डिल क्रेक करने पर और ना ही कभी किसी को जान से मारने पर । मगर नितारा को छुकर जैसे उसके अंदर तक कुछ तो हिल गया था ।
शायद उसका दिल या फिर उसका किरदार । वो नितारा को अपनी बांहो में एकदम आराम से उठाता है । वो घबरा रहा था कि कही नितारा को कोई खरोच ना आ जाये । नितारा को उसके एक नवजात बच्चे की तरह सम्भाला हुआ था ।
बेहोश नितारा को तो यह भी नहीं मालूम था कि वो अभी एक माफिया की बांहो मे है और वो माफिया नितारा पर पहली नजर में अपना दिल हार बैठा है ।
आश्रित नितारा को लेकर कार में बैठ गया । प्रतीक भी कार में बैठने लगा पर आश्रित नें अपनी उंगली को हिलाया तो प्रतीक वापस बाहर निकल गया । वो समझ गया था कि आश्रित अकेला ही जाना चाहता था पर उसे कही ना कही नितारा की फिक्र हो रही थी । एक अनजान लडकी जब अपने आप को एक अनजान लडके की बांहो में देखेगी तो उसका रिएक्शन क्या होगा । कार का दरवाजा बंद हुआ, आश्रित की कार उस गोदाम से बाहर निकलकर सड़क पर दौड़ने लगती है ।
उसके पीछे उसके बॉडीगार्ड की कार भी थी,,,, आश्रित एक बहुत बडे विला के बाहर था,, विला का दरवाजा खुला तो कार अंदर गयी ।
आश्रित नें नितारा को सम्भालकर कार से बाहर निकाला । नितारा को वो सीधा अपने कमरे की तरफ लेकर जा रहा था। उसके हाऊस हेल्पर्स जो वहां पर मौजूद थे, उन्होने जब एक अनजान लड़की को आश्रित की बाहों में देखा तो उन सभी को भी हैरानी हो रही थी क्योंकि आश्रित आज तक किसी भी लड़की को अपने घर पर नहीं लेकर आया था और यहां तक की उसका तो किसी लड़की के साथ बात करना भी बहुत रेयर था ।
तो फिर अचानक की लड़की कौन थी जो उसकी बाहों में थी सभी यही सोच रहे थे लेकिन आश्रित से पूछने की किसी की हिम्मत नहीं थी । आश्रित नितारा को लेकर अपने बड़े से कमरे के अंदर आया जो काफी महंगी चीजों से सजा हुआ था और पूरा कमरा सफेद और काले कलर से सजा हुआ था । उसमें किसी और रंग की एक भी चीज मौजूद नहीं थी । ऐसा लग रहा था जैसे यह आदमी ब्लैक एंड व्हाइट जिंदगी जीता है ।
आश्रित नें बहुत संभाल कर नितारा को बेड पर लेटाया । तभी उसका सेक्रेटरी एक फीमेल डॉक्टर को लेकर वहां पर पहुंच गया था । आज तक इस मेंशन में कभी फीमेल डॉक्टर भी नहीं आई थी ।
आश्रित ने जब डॉक्टर को देखा तो एक तरफ हट गया लेकिन उसकी नज़रें नितारा पर ही बनी हुई थी । नितारा का चेकअप करने के बाद डॉक्टर ने उसे एक इंजेक्शन दिया ।
भले ही इंजेक्शन नितारा को लग रहा था लेकिन आश्रित की आंखें एकदम लाल हो गई । उसनें डॉक्टर को घूरा तो डॉक्टर आश्रित को देखते हुए डरकर बोली " जल्दी होश जाएगा,,,,,,"
आश्रित ने अपने दांतों को कसकर दबा लिया हालांकि उसे गुस्सा तो आ रहा था लेकिन इस वक्त उसने कुछ भी नहीं कहा । डॉक्टर चुपचाप वहां से चली गई उसके जाने के बाद आश्रित ने अपने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया ।
वो अब किसी को भी अंदर नहीं आने देना चाहता था यह देखकर वहां मौजूद सभी हाउस हेल्प पर और यहां तक की प्रतीक भी बहुत हैरान था । यह कैसा दीवानापन था? यह कैसा जुनून था? क्या किसी को एक नजर में भी किसी से इतनी मोहब्बत हो सकती है । क्या सच में यह मोहब्बत है या फिर सिर्फ एक आकर्षण । प्रतीक तो यही सोच रहा था।
आश्रित कमरे के अंदर आया घुटनों के बल जमीन पर ही बैठ गया । वो माफिया जो कभी किसी जमीन पर नहीं बैठा था । आज न जाने क्यों वो एकदम सुध बुध चुका था और सिर्फ एक ही चेहरा देखना चाहता था । वो नितारा के चेहरे को बस देखता ही जा रहा था ।
उसकी आंखों में उसका दीवानापन उसका ऑबशेशन साफ दिखाई दे रहा था ।
वो इतनी देर से पहली बार बोला " तो तुम मुझे मिल गई डॉल,,, कितना इंतजार करवाया तुमने मुझे,,,, जब से मैंनें तुम्हें पहली बार देखा है मैं तब से सो नहीं पाया,,,, कितनी रातों से सिर्फ तुम्हारा चेहरा दिमाग में आ रहा था,,,,, तुमने जब मेरी तरफ देखकर मुझे डांटा था,,, तब लगा नहीं था कि किसी पर मेरी नजर इस तरह से ठहर जाएगी,,,, मैं खुद नहीं जानता था कि मुझे क्या हुआ है,,,, लेकिन हर एक लम्हा हर एक पल में सिर्फ तुम्हें ही याद करता था,,, मैं अब तुम्हें अपने आप से दूर नहीं जाने दूंगा,,,,, तुम्हें अब हमेशा अपने करीब रखूंगा,,,,, मैं कभी किसी को मारने से भी पीछे नहीं हटता लेकिन आज तुम्हें छूने से पहले भी मैं 100 बार सोच रहा हूं,,,,, जल्दी होश में आ जाओ, मैं तुमसे बहुत सारी बातें करना चाहता हूं,,,,,!!
आश्रित, नितारा को निहारते हुए यह सब बोल रहा था । वो हल्के से नितारा के होंठो को उंगलियो से टच करता है । उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा,, उसके चेहरे पर नितारा को लेकर दीवानगी दिखाई दे रही थी । एक माफिया जो एक बहुत बड़ा बिजनेसमैन भी था इसके आगे पीछे में जाने कितनी ही लड़कियां थी ।
जो किसी लड़की को एक बार देख ले तो उसको दीवाना बना ले लेकिन, वो खुद किसी का दीवाना हो जाएगा उसने यह तो कभी नहीं सोचा था । नितारा पर उसकी नजरें ठहर सी गयी थी ।
" क्या होगा जब नितारा, अपने आप को एक अनजान जगह पर देखेगी,"
नितारा को धीरे धीरे होश आने लगा,,, वो धीरे धीरे अपनी आंखे खोलती है पर चारो तरफ अंधेरा था । उसें अपने सिर पर कुछ भार महसूस हो रहा था । वो अंधेरे में ही देखने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था । उसका हाथ अपने सिर पर जाता है । उसने महसूस किया कि यह हाथ किसी लडकी का तो नही था । क्योंकि हाथ काफी सख्त और उसमें नसें ऊभरी हुई थी । वो एकदम घबरा जाती है और तुरंत उठकर बैठ जाती है. अगले ही पल पूरे कमरे में लाइट्स ऑन हो जाती है ।
वो देखती है कि उसके सामने एक बहुत ही हैंडसम हरी आंखों वाला आदमी था जो प्यार से उसे ही देख रहा था । नितारा को यह चेहरा देखा देखा सा लग रहा था । मगर कौन उसे याद नहीं आया,, वो एक पल के लिए तो आश्रित को खुद ही देखती ही रह जाती है,,, क्योंकि वो इतना डैशिंग था कि उसके ऊपर से नजरे हटा पाना बहुत ही मुश्किल था । नितारा को अपनी तरफ ऐसे देखते हुए आश्रित मुस्कुरा देता है...
वो मुस्कुराकर बोला " डॉल,,, तुम्हें होश आ गया,,," नितारा उसकी आवाज सुन होष में आती है ।
नितारा उसे देखकर धीमी आवाज में कांपकर बोली " माफ कीजिए क्या बोला आपने,,,,,डॉल??
"हां,, तुम मेरी डॉल ही तो हो,,, !
" लेकिन हम आपको जानते नहीं है और आप कौन हैं? हम यहां क्या कर रहे हैं?"
" तुम मुझे जानती हो,,,,, याद करने की कोशिश करो,,,," वो नितारा की हथेली को थामते हुए बोला । नितारा उसकी छुअन से डर जाती है और अपने हाथ को पीछे खींच लेती है,, आश्रित उसके ऐसे करने से उसके चेहरे को देखने लगता है । नितारा घबरा गयी थी, आश्रित नें अपने हाथो को पीछे करते हुए कहा " मुझे माफ करना मैंनें तुम्हें छू लिया,,,," नितारा नें उसे देखा, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो आदमी माफी मांगेगा ।
नितारा नें कुछ नही कहा । वो उसका चेहरा याद करने की कोशिश कर रही थी । नितारा को अचानक याद आता है कि यह तो वही आदमी है जो की गोदाम में किसी को बुरी तरह मार रहा था । वो उस पल को याद करते ही एकदम घबरा जाती है ।
वो घबराकर बोली " आप,,, आप,,, खूनी है,,,,"
नितारा बेड से ही पीछे खिसक गयी,, उसके चेहरे पर घबराहट थी । आश्रित नितारा को पीछे जाते हुए देखकर बोला" तुम गलत समझ रही हो,,,, मैंने उसे इसलिए मारा था क्योंकि वो आदमी अच्छा नही था,,,,"
नितारा रोते हुए बोली" आप हमें यहां पर क्यों लेकर आए हैं आप हमें अपने घर जाने दिजिये,,, हमें आपसे डर लग रहा है,,, हम आपके साथ यहां पर ज्यादा देर तक नहीं रह सकते,,, प्लीज हमें मत मारियेगा,,,,"
नितारा की आंखो में आंसू भर आये, आश्रित का तो दिल जोर-जोर से धड़कने लगा क्योंकि उसे लगा था कि वो नितारा को अपने पास रखेगी लेकिन नितारा तो उसे देखकर कितना डर रही थी कि उसकी आंखों में आंसू आ गए थे।
आश्रित नें खडे होते हुए उसकी तरफ बढकर कहा " डॉल,,,, मैं,, तुमसे बात करना चाहता था,,, "
मगर नितारा तो उसे अपनी तरफ आते हुए देखकर बहुत ज्यादा डर जाती है और पीछे पीछे खिसकने लगती है । वो इतनी पीछे आ जाती है कि बेड से नीचे गिरने वाली होती है । आश्रित नें नितारा को पकड लिया । वो नितारा को अपनी तरफ खींचकर उसे लेकर बेड पर गिर जाता है । दोनो इतने करीब आ गए थे कि उनकी सांसे आपस में उलझ गई थी । नितारा का तो डर से बुरा हाल हो गया था । लेकिन उसे पल भी उसकी नजर एक पल के लिए ही सही लेकिन आश्रित पर ठहर गई थी । आश्रित तो नितारा के चेहरे को एकदम पास से देख रहा था, वो नितारा की कमर को कसकर पकडे हुए था ।
नितारा नें आश्रित को देखते हुए कहा " प्लीज हमें जाने दीजिए,,,,!
आश्रित का ध्यान अभी कहीं और नहीं था उसकी नजर तो सिर्फ नितारा के होठों पर ठहरी हुई थी । नितारा जब बोल रही थी उसके हों हिल रहे थे और जब उसके होंठ हिल रहे थे तो आश्रित की धड़कन तेज हो गई थी । वो नितारा को अपने ओर करीब खिंचता है,, उसके होंठो को अपनी उंगलियो से टच करने लगता है । नितारा नें आश्रित के चेहरे को देखा । वो समझ नही पा रही थी कि आश्रित क्या कर रहा था ।
" your lips are so tasty doll,, can i taste them,,,,,," आश्रित नें नितारा के होंठो को देखते हुए कहा ।
नितारा यह सुनते ही घबरा गयी । उसनें अपने होंठो को दांतो के नीचे दबा लिया। आश्रित उसकी इस अदा पर हल्का सा मुस्कुरा उठा । आजतक किसी वजह से उसके चेहरे पर इतनी बड़ी मुस्कुराहट नहीं आई थी जितनी अभी आ गयी थी ।
नितारा नें उसे मुस्कुराते हुए देखा तो बोली" आप हमें क्यों परेशान कर रहे हैं,,, हम तो आपको जानते भी नहीं है,,,, आप हमारे साथ ऐसा मत करिए,,,, प्लीज हमें जाने दीजिए,,,,,"
आश्रित नें उसे बेड पर लेटाया और खुद उसके ऊपर आकर उसकी आंखो में देखते हुए बोला " तुम इतने दिनों बाद मुझे मिली हो,,, मैं तुम्हें जी भर कर देखना चाहता हूं,,, मुझे तम्हें को देखने दो,,, मैं वादा करता हूं कुछ नही करूंगा,,,, "
नितारा की सांसें तेज थीं, उसकी आंखें डरी हुई थीं लेकिन उनमें एक अजीब सी चमक भी थी — जैसे वो खुद को समझाने की कोशिश कर रही हो कि ये सब एक सपना है, मगर उसकी धड़कनें उसे झूठा साबित कर रही थीं।
आश्रित अब भी उसके ऊपर झुका हुआ था, उसकी आंखों में एक अजीब सी बेचैनी थी — जैसे वो कुछ कहना चाहता हो, मगर शब्दों से ज्यादा उसकी आंखें बोल रही थीं।
"तुम इतने दिनों बाद मुझे मिली हो... मैं तुम्हें जी भर कर देखना चाहता हूं..." उसकी आवाज धीमी थी, मगर उसमें एक गहराई थी जो नितारा के दिल तक उतर रही थी।
नितारा ने कांपते हुए कहा, "आप हमें क्यों ऐसे देख रहे हैं... हम कोई चीज नहीं हैं... हम इंसान हैं... प्लीज हमें जाने दीजिए..."
आश्रित ने उसकी आंखों में देखा — बहुत गहराई से। फिर वो धीरे से बोला, "तुम चीज नहीं हो... तुम मेरी कमजोरी हो... मेरी दीवानगी हो..."
उसके शब्दों ने नितारा को और डरा दिया। उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, मगर आश्रित ने उसकी कमर को और कस लिया। उसकी पकड़ में कोई हिंसा नहीं थी, मगर एक पागलपन जरूर था।
"तुम्हें पता है डॉल... जब तुम बेहोश थी, मैं बस तुम्हारा चेहरा देखता रहा... तुम्हारी सांसें सुनता रहा... तुम्हारे बालों को छूता रहा... और सोचता रहा कि तुम मेरी हो..."
नितारा की आंखों से आंसू बहने लगे। "प्लीज... प्लीज हमें छोड़ दीजिए... हम किसी के नहीं हैं... हम सिर्फ खुद के हैं..."
आश्रित ने उसकी बात सुनी, मगर उसकी आंखें अब भी उसके होंठों पर टिकी थीं। उसने अपनी उंगलियों से नितारा के होंठों को हल्के से छुआ — जैसे वो किसी पूजा की चीज को छू रहा हो।
नितारा की आंखें बंद थीं, उसकी सांसें थमी हुई थीं। आश्रित का चेहरा उसके बेहद करीब था — इतना करीब कि उसकी गर्म सांसें नितारा के गालों को छू रही थीं। कमरे में एक अजीब सी खामोशी थी, जैसे वक्त भी रुक गया हो।
आश्रित की उंगलियां अब भी नितारा के होंठों के पास थीं। वो उन्हें महसूस कर रहा था — जैसे कोई भूखा इंसान पहली बार खाना देख रहा हो। ।
नितारा ने अपनी आंखें खोलीं — डर अब भी था, मगर उसके भीतर एक और उलझन भी उठ रही थी...। वो समझ नहीं पा रही थी कि ये आदमी उसे क्यों ऐसे देख रहा है... क्यों उसकी हर हरकत में एक जूनून है... और क्यों उसके शब्दों में एक अजीब सा मोह है।
"प्लीज..." नितारा ने कांपते हुए कहा, "हमें जाने दीजिए... हम यहां नहीं रह सकते..."
आश्रित ने उसकी बात सुनी, मगर उसकी आंखें अब भी उसकी आंखों में थीं। उसने धीरे से कहा, "तुम्हें जाना है...? लेकिन तुम मुझे अभी तो मिली हो,, मैं डरता हूं कि कहीं मैं तुमसे दोबारा दूर ना हो जाऊं ......."
नितारा की आंखों से आंसू बहने लगे। "आप हमें क्यों ऐसे कैद करेगे.. हम कोई ख्वाब नहीं हैं... हम हकीकत हैं... और हमें डर लग रहा है..."
उसने धीरे से अपनी पकड़ ढीली की, और नितारा को थोड़ा पीछे किया।
"तुम्हें मुझसे डर लग रहा है?" उसने पूछा, उसकी आवाज़ में अब दर्द था।
नितारा ने सिर हिलाया । आश्रित ने गहरी सांस ली, और फिर धीरे से बोला, "मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा... लेकिन मैं तुम्हें जाने भी नहीं दूंगा..."
उसने नितारा की ठुड्डी को हल्के से उठाया, और उसकी आंखों में देखा।
" अब तुम मेरी हो... और मैं तुम्हें खो नहीं सकता..." नितारा ने उसकी आंखों में देखा — वहां अब सिर्फ मोह नहीं था, वहां एक जुनून था... एक ऐसा जुनून जो किसी भी हद तक जा सकता था।
वो डर से अंदर ही अंदर कांप गई, मगर उसकी नजरें अब भी आश्रित से हट नहीं रही थीं।
"अगर आप हमें सच में चाहते हैं..." नितारा ने धीमे से कहा, "तो हमें आज़ाद कर दीजिए..."
आश्रित ने उसकी बात सुनी, और फिर एक लंबी चुप्पी के बाद बोला — "आज़ादी...? डॉल...तुम मेरी दुनिया हो... कोई अपनी दुनिया को कैसे आजाद कर सकता है,, दुनिया तो मरते दम तक साथ चलती है. मैं चाहकर भी तुमसे दूर नहीं निकलना चाहता, Because i feel peace in your arms...."
नितारा यह सुन जोर जोर से सिसकते हुए रोने लगी । उसे अचानक रोते हुए देखकर आश्रित के चेहरे पर सिरियसनेस आ गयी । वो अपनी डॉल को ऐसे रोते हुए देखकर बर्दाश्त नही कर पा रहा था ।
" क्या आश्रित, नितारा को आजाद करेगा? क्या होगी आश्रित के इस जूनून का असर और क्या होगा जब अपर्ण और अर्थव को नितारा का पता चलेगा,,,,"
आश्रित उसे रोते हुए देखकर उसके चेहरे को करीब करता है ।
वो बैचेन होकर बोला " प्लीज डॉल,, डॉन्ट बी क्राई,,, प्लीज,, आई कान्ट सी योर टिअर्स,,,"
आश्रित की बैचेनी और तड़प उसके चेहरे पर साफ दिख रही थी । आश्रित की बात सुन नितारा नें फफकते हुए कहा " तो,,, जाने,,, दिजिये,,, हमें,,, हमें,,, घर जाना,,, है,,,,"
आश्रित नें नितारा की ओर देखा, वो नितारा के चेहरे को देखता रहा । एक लम्बी चुप्पी के बाद उसनें बड़ी मुश्किल से कहा " ठीक है मैं जाने दूंगा,, पर मैं तुम्हें छोड़कर आऊंगा,,, तुम अकेले नही जा सकती हो,,,,"
आश्रित की बात सुन नितारा कुछ खामोश हुई,, वो उसे देखते हुए नम आंखो के साथ बोली " हम,,, चले जाएगे,,,,"
आश्रित उसकी कलाई को पकडते हुए " नहीं,, अगर ऐसा रहा तो मैं तुम्हें जाने ही नहीं दूंगा,,,,"
नितारा घबरा गयी, वो ना चाहते हुए भी उसके साथ जाने को मान जाती है । आश्रित उसके ऊपर से हट गया । पर उसकी नजरें अभी भी नितारा को ही देख रही थी । वो खुद ही जानता था कि नितारा को जाने देने में उसकी तो जैसे जान ही जा रही थी । नितारा को वो अपने साथ रखना चाहता था,,, पर उसके आंसूओ नें आश्रित के पत्थर दिल को भी पिघला दिया । वो आज बेबस हो गया था । पर यही बेबसी उसकी दिवानगी को बढाने वाली थी ।
नितारा बेड से नीचे उतरने लगी, तो आश्रित नें उसी वक्त उसे अपनीं बांहों में उठा लिया । नितारा घबरा गयी और उसकी शर्ट को कसकर पकड लिया । वो घबरायी नजरों से उसे देख रही थी ।
नितारा नें घबराते हुए कहा " हमें,, नीचे उतार दिजिये,,,,"
आश्रित नें उसे अपने ओर करीब खींच लिया । वो नितारा की आंखो में देखते हुए बोला " जितने लम्हें तुम मेरे साथ हो, उतने लम्हें में मुझे तुमसे तुम भी जुदा नही कर सकती हो,,,,"
नितारा नें अब कुछ नही कहा, वो शांत हो गयी पर उसकी घबराहट कम नही हो रही थी । आश्रित उसे कमरे से बाहर लेकर आया । कुछ हाउस हेल्परस जो काम कर रहे थे, उन दोनो को देखते है पर किसी नें अपने काम से नजरे नही हटायी । आश्रित तो चुपचाप उसे उठाकर चल रहा था । पर नितारा ऐसे अनजान लोगों को जो अपनी तरफ ऐसी दिखती है तो फिर उसे भी अजीब लगता है उसमें कभी भी ऐसा कुछ फील नहीं किया था और ना ही किसी अनजान लड़के की बाहों में इस तरीके से आई थी । वो तो कभी किसी लड़के से भी ढंग से बात नहीं कर पाती थी । मगर आज एक अनजान जो की उसके लिए काफी ऑब्शेसड था, वो नितारा को अपनी बांहो में पकड़े हुए था ।
आश्रित नितारा को अपनी कार में बैठाता है । नितारा चुपचाप कार में बैठ गयी, आश्रित नें ध्यान से नितारा की सीट बेल्ट लगायी । नितारा उसे ही देख रही थी ।
आश्रित उससे दूर हुआ, वो कार में आकर बेठता है । उसनें कार स्टार्ट की,, मगर नितारा की हथेली को दूसरे हाथ से कसकर पकड़ लिया ।
नितारा उसे देख रही थी उसे यह इंसान कुछ भी समझ नहीं आ रहा था । आखिर फिर कोई पहली मुलाकात में इतना दीवाना कैसे हो सकता है ।
आश्रित की कार सड़क पर दौड रही थी,, नितारा नें उसे अपने घर का एड्रेस बताया ।
इधर सुरभि जो शाम को अपने काम से लौटी कुछ नहीं जब घर पर देखा तो नितारा नही थी । नितारा का कॉल भी नही लग रहा था ।
वो काफी घबरा गयी,,, नितारा कभी ऐसा नहीं करती थी । आसपास पूछने पर भी उसे पता चला कि नितारा तो दोपहर में आई ही नहीं थी । वो अपनी दोस्त की मिसिंग कंप्लेंट लिखने के लिए पुलिस स्टेशन गई ।
वहां पर पुलिस से भी उसने लड़ाई कर ली लेकिन पुलिस ने 24 घंटे से पहले एफआईआर लिखने से मना कर दिया ।
वो पुलिस स्टेशन के बाहर खडी, रोते हुए बोली " कहा चली गयी वो,, मैंनें तो उसे कहा था कि घर आ जाना मेरी ही गलती है,,, उसे घर पर छोड़ना चाहिए था,, वो अनजान शहर में है कहीं उसे कुछ होना गया हो,,,, मैं तो उसके परिवार में से भी किसी को नहीं जानती,,,," सुरभि सड़क पर बैठी बैठी ही रोने लगी । वो नितारा की काफी फिक्र करती थी और उसकी फिकर उसकी आंसुओं से भी पता चल रही थी।
वो अपने आप को संभालती है, उसनें अपने आंसू साफ किये, वो खड़ी होकर बोली " नहीं,,, रोने से कुछ भी नहीं होगा,,, मुझे उसे ढूंढना ही होगा,,"
वो अपना पर्स कंधे पर टांगकर टूटी चप्पल के साथ सड़क पर बढ गयी । नितारा को ढूंढने के चक्कर में उसका खुद पर ध्यान ही नहीं था ।
इधर आश्रित नितारा को कार में लेकर बैठा था । नितारा जो काफी नर्वस हो रही थी । वो किसी अंजान के साथ आजतक नही बैठी थी । मगर आश्रित तो उसकी हथेली को पकडकर उसके साथ बैठा था । आश्रित उसे ऐेसे थामे बैठा था जैसे एक बच्चा नींद में अपनी मां का दामन थामे रहता है । बच्चे को हमेशा डर लगता है कि कहीं उसकी मां उससे दूर हो जाए लेकिन यहां पर तो आश्रित को डर लग रहा था कि कही उसकी मोहब्बत उसका जूनून, उसका जिंदगी, उसकी पहली नजर का पहला प्यार, उसके दिल की धड़कन उससे दूर न चली जाये ।
नितारा नें सामनें देखते हुए धीमे से कहा " दांये मोड लिजिये,,,,!! "
आश्रित नें अपने कार की स्टेरिंग को टर्न किया तभी दो कार अचानक ही उसकी कार के बिल्कुल करीब आ गयी । आश्रित नें झटके से कार का ब्रेक मारा...
सामनें दो ओर रोल्स रॉयल्स थी, दोनो कार में बैठे सख्स आश्रित और नितारा को ही देख रहे थे । नितारा को तो कुछ समझ नहीं आया पर एक पल को अचानक ब्रेक लगाने से वो घबरा गयी थी...
नितारा में सामनें देखा, सामनें कार में दो जाने पहचाने से अजनबी सख्स थे । वो आश्रित और नितारा को सख्त भाव के साथ देख रहे थे ।
दोनो कार का दरवाजा खुला और बिल्कुल हिरो की तरह अर्पण और अर्थव दोनो कार से निकले, आँखो पर सनग्लास, बिजनेस सूट में, दो हैंडसम हिरो जैसे लड़के, जो किसी का भी दिल धड़का दे । वो दोनो ही अपनी कार का दरवाजा बंद करते है और अपनी पीठ से बंदूक निकालकर कार की तरफ तान कर बोले " उसे जाने दे,,, उसे कुछ हुआ तो तेरी जिंदगी को बर्बाद कर देगे,,,,"
नितारा को यह सीन देखकर वही पल याद आ गया जब उसने इन तीनों भाइयों को एक दूसरे के ऊपर गन ताने हुए देखा था । अर्पण और अथर्व को इस बात की गलतफहमी हो गयी थी कि आश्रित नें नितारा को किडनैप किया हौ और वो उसे लेकर जा रहा था । जब उन्हें यह बात पता चली तो वो दोनो ही अपनी अपनी कार लेकर वहां पहुच गये थे ।
मगर उन्हें क्या पता था कि अब उनके आपसे की नफरत और जंग में नितारा भी शामिल हो गयी है । यही लडकी इन तीनो की चाहत, दिवानगी और ऑब्शेसन है ।
तीनों की आंखों में अब सिर्फ एक ही लड़की थी — नितारा । आश्रित ने कार का दरवाज़ा खोला, लेकिन वो बाहर नहीं आया। उसने नितारा की हथेली को कसकर पकड़ा और उसकी ओर झुकते हुए कहा,
"डरना मत doll... मैं हूं तुम्हारे साथ..."
नितारा की आंखें डरी हुई थीं, लेकिन आश्रित की पकड़ और सामने खड़े लडको ने उसे डरा दिया था ।
अर्पण ने गुस्से से कहा,
"आश्रित... कार से बाहर निकल... और उसे मेंरे हवाले कर..."
आश्रित ने धीरे से सिर उठाया, उसकी आंखें अब शांत थीं लेकिन उनमें एक गहराई थी जो किसी भी तूफान से टकरा सकती थी।
"वो मेरे साथ है... अपनी मर्ज़ी से.. मैं उसे किसी के हवाले नही करूंगा, बिकॉज शी इज माइन " उसने कहा।
अथर्व ने बंदूक और ऊंची की, वो आश्रित की बात को बर्दाष्त नही कर पाया ।
" बकवास बंद कर,, वो मेरी है,,," वो चिल्लाया ।
अर्पण यह सुनकर हवा में ही फायर करते हुए बोला "तुम दोनो के बाप की प्रॉपर्टी नही है वो,,, जो उसे अपना कह रहे हो,,,,"
दोनो ही अर्पण को गुस्से से देखने लगे । नितारा गोलियो की आवाज से अब पूरी तरह घबरा चुकी थी।
उसने कांपते हुए कहा, " हमें घर जाना है..." तीनों की नजरें उस पर टिक गईं।
वो कुछ और कहने ही वाली थी कि आश्रित ने उसकी हथेली को और कसकर पकड़ लिया।
" मैं छोडकर आऊंगा तुम्हें,,, डरो मत डॉलं,,,"
आश्रित और नितारा नें एक दूसरे की आंखो में देखा, इधर यह सब देखकर इन दोनो का खून उबाल मार रहा था । अर्पण और अथर्व अब धीरे-धीरे कार की ओर बढ़ने लगे। आश्रित ने कार से बाहर कदम रखा।
उसने नितारा को पीछे सीट पर बैठने का इशारा किया और खुद सामने खड़ा हो गया।
"तुम दोनों को जो करना है कर लो... लेकिन नितारा को हाथ लगाने से पहले सौ बार सोच लेना..."
अर्पण ने उस पर बंदूक तान दी, उसकी आंखें अब भी सख्त थीं।
इधर अथर्व ने कहा "तूने उसे छूने की हिम्मत कैसे की... तू जानता नहीं ये किसकी है..."
आश्रित ने एक लंबी सांस ली और कहा "वो किसकी है मैं जानता हूं.. वो सिर्फ मेरी है.."
नितारा अब चुपचाप बैठी थी। उसके दिल की धड़कनें तेज थीं।
वो जानती थी — अब जो होने वाला है, वो सिर्फ एक टकराव नहीं... एक जंग है। अब इन तीनों भाइयों की जंग,, सिर्फ उसके लिए थी । तभी गोली चलने की तेज आवाज आयी ।
अर्पण नें आश्रित के पेट पर गोली चला दी थी । नितारा तो यह देखकर इतनी घबरा गयी कि जोर से चिल्ला उठी ।
नितारा ने चीखते हुए कहा, "बस करो!"
वो कार से बाहर निकली और आश्रित के पास पहुंची। उसका पेट खून से लथपथ था, लेकिन उसकी आंखें अभी भी नितारा पर टिकी थीं।
नितारा की आंखें आंसुओं से भर गईं। वो डर रही थी, यह सब क्या देख किया था,, यह कहा फंस गई थी नितारा ।
उसने कांपते हुए कहा, " हम ये सब समझ नहीं पा रहे है...... प्लीज, हमे जाने दो।"
लेकिन तभी, अथर्व ने आश्रित को धक्का दिया और नितारा का हाथ पकड़ लिया।
"तुम उसके साथ नहीं जाओगी,,, तुम्हारे करीब कोई आ सकता है तो सिर्फ मैं,,,,!!! उसने कहा, उसकी आवाज में गुस्सा और जुनून का मिश्रण था।
आश्रित ने एक झटके में खुद को संभाला और अथर्व पर टूट पड़ा। दोनों भाइयों के बीच हिंसक टकराव शुरू हो गया। नितारा चीख रही थी, लेकिन उसकी आवाज हवा में गुम हो रही थी ।
इधर अर्पण ने नितारा का हाथ पकड़ा तो नितारा ने झटके से अपना हाथ खीच लिया,,, वो जोर से चिल्लाई " छुईए मत,,,, हमे आप लोगो के साथ नहीं रहना,,,,, समझे आप,,,, हमे आप लोगो से कोई मतलब नहीं है,, हमे नही जाना आपके साथ,,,,,,,, "
वो चिल्लाई,,, उसकी आवाज सुन वो तीनो उसे गुस्से से घूरने लगे । नितारा उनकी नजरो को ऐसे देखते हुए देखकर कांप गई,, पर हिम्मत बांधे रखी ।
तभी, दूर से पुलिस सायरन की आवाज गूंजी। शहर की धुंधली रोशनी में लाल-नीली लाइटें चमकने लगीं। नितारा का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वो इन तीनों की दीवानगी के बीच फंस चुकी थी, और अब कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।
" क्या आश्रित, अर्पण और अथर्व की इस दिवानगी से नितारा बच पाएगी? क्या होगा आगे, जानने के लिये बने रहिये,,,,,"
नितारा की चीख और पुलिस सायरन की आवाज के बीच सड़क पर तनाव अपने चरम पर था। आश्रित का खून सड़क पर बह रहा था, लेकिन उसकी आंखें अभी भी नितारा पर टिकी थीं, जैसे उसका दर्द उसकी दीवानगी के सामने कुछ भी नहीं था। अर्पण और अथर्व, आश्रित एक-दूसरे को घूर रहे थे, उनकी बंदूकें अभी भी तनी हुई थीं, और नितारा के लिए उनकी जुनूनी चाहत उनकी आंखों में साफ झलक रही थी।
तभी, सड़क के एक छोर से तेज रोशनी और गाड़ियों की आवाज सुनाई दी। आश्रित के बॉडीगार्ड्स की एक पूरी फौज वहां पहुंच चुकी थी। काली एसयूवी गाड़ियां तेजी से रुकीं, और उनमें से दर्जनों हथियारबंद लोग बाहर निकले।
उनकी अगुवाई कर रहा था आश्रित का सबसे भरोसेमंद आदमी, रुद्र । उसकी आंखों में गुस्सा और चिंता साफ दिख रही थी।
रुद्र ने एक नजर आश्रित की हालत पर डाली और तुरंत अपने आदमियों को इशारा किया।
" चीफ,,, को तुरंत हॉस्पिटल ले चलो!" उसने हुक्म दिया। चार बॉडीगार्ड्स तेजी से आश्रित के पास पहुंचे, उसे सावधानी से उठाया, और एक गाड़ी में लेकर बैठ गए।
आश्रित ने कमजोर आवाज में कहा, " मेरी doll,,, उसे कुछ नही होना चाहिए ." लेकिन उसकी आवाज दर्द और कमजोरी में डूब रही थी।
नितारा ने उसे जाते हुए देखा, उसका दिल डर और दुख से भारी हो गया।
इधर, अर्पण और अथर्व अब भी नितारा को घेरे हुए थे। अर्पण ने अपनी बंदूक नीचे की, लेकिन उसकी आंखें नितारा पर टिकी थीं।
उसने ठंडी, लेकिन जुनूनी आवाज में कहा, "नितारा, तुम्हें मेरे साथ चलना होगा। मैं तुम्हें इस पागलपन से बचाऊंगा,,, तुम मेरी हो, और मैं तुम्हें किसी और के साथ बांटने वाला नहीं,,,, तुम्हारे लिए मैं किसी की जान भी सकता हु और अपनी जान दे भी सकता हु,,,, "
अथर्व ने तुरंत उसकी बात काटी, उसकी आवाज में गुस्सा और जुनून का मिश्रण था
" तू उसे बचाएगा? नितारा, तुम मेरे साथ सुरक्षित हो,,,, मैं तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहता हूं,,, ये लोग तुम्हें सिर्फ अपने जुनून का शिकार बनाएंगे, लेकिन मैं... मैं तुम्हें दुनिया की हर चीज दूंगा,,, तुम मेरी रानी बनकर रहोगी,,,,"
नितारा ने दोनों की बातें सुनीं, उसका शरीर कांप रहा था। वो इन तीनों भाइयों की दीवानगी के बीच फंस चुकी थी, और अब उसे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। वो पीछे हटी, उसकी आंखें डर और गुस्से से भरी थीं।
" हमे घर जाना है,,,, हमे नही जाना आपके साथ,,,," उसने चीखते हुए कहा।
" हमे अकेला छोड़ दीजिए,,,, " वो रोते हुए बोली । तभी, सड़क के दूसरे छोर से एक परिचित आवाज गूंजी।
"नितारा!" ये सुरभि थी। वो दौड़ती हुई आई, उसका चेहरा आंसुओं और घबराहट से भरा हुआ था। उसने नितारा को देखा और बिना रुके उसके पास पहुंची। सुरभि ने नितारा का हाथ पकड़ा और उसे अपनी ओर खींच लिया।
सुरभि ने नितारा को गले से लगा लिया,वो घबरा कर बोली "तू ठीक है ना? मैं तुझे ढूंढ रही थी,, ये सब क्या है?" सुरभि की आवाज में चिंता और गुस्सा दोनों थे।
अर्पण और अथर्व ने सुरभि को देखा, उनकी आंखों में जलन साफ दिख रही थी।
अर्पण ने एक कदम आगे बढ़ाया और कहा, "तुम कौन हो? उसे छोड़ दो, वो मेरे साथ आएगी,,,"
सुरभि ने इस बार बिना डरे उसकी आंखों में आंखें डालकर कहा, "तुम लोग पागल हो! ये मेरी दोस्त है, और मैं इसे अभी अपने साथ ले जा रही हूं,,, तुम बड़े लोग क्या किसी को भी उठा ले जाओगे,,,,,"
अर्पण और अथर्व उसको यह सुन शिकारी की तरह देखने लगे । लेकिन सुरभि डरी नही ।
" चल नितारा,,,,,," उसने नितारा का हाथ कसकर पकड़ा और उसे भीड़ से दूर ले जाने लगी।
अथर्व ने सुरभि को रोकने की कोशिश की, लेकिन तभी आश्रित के बॉडीगार्ड्स ने दोनों भाइयों को घेर लिया।
रुद्र ने ठंडी आवाज में कहा, " चीफ ने कहा था, नितारा को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए,, तुम दोनों पीछे हट जाओ, वरना अच्छा नहीं होगा,,,,"
अर्पण और अथर्व के पास अब कोई चारा नहीं था। पुलिस सायरन की आवाज और करीब आ रही थी, और आश्रित के बॉडीगार्ड्स की मौजूदगी ने माहौल को और तनावपूर्ण बना दिया था। अर्पण ने आखिरी बार नितारा की ओर देखा, उसकी आंखों में एक अजीब सा जुनून था।
"ये खत्म नहीं हुआ, नितारा,,, मैं तुम्हें ढूंढ लूंगा,,, तुम मेरे बिना कहीं नहीं जा सकती,,, "
अथर्व ने भी दीवानगी आंखो मे लिए कहा,,, उसकी आवाज में एक खतरनाक दृढ़ता थी।
"तुम चाहे जितना भाग लो, नितारा,,, तुम मेरे दिल से नहीं निकल सकती,,, मैं तुम्हें पाने के लिए कुछ भी करूंगा,,"
नितारा ने एक बार पलटकर उन दोनो को देखा,, तभी सुरभि उसे तेजी से भीड़ से दूर ले गई। वो दोनों एक ऑटो में बैठीं, और सुरभि ने ड्राइवर को जल्दी चलने को कहा। नितारा की सांसें अभी भी तेज थीं, और उसका चेहरा डर से सफेद पड़ गया था।
सुरभि ने उसका हाथ कसकर पकड़ा और कहा, "तू अब safe है, मैं तुझे घर ले जा रही हूं,,, ये सब क्या था, नितारा? तूने मुझे कुछ बताया क्यों नहीं?"
नितारा ने सुरभि की ओर देखा, उसकी आंखें आंसुओं से भरी थीं "मैं... मैं खुद नहीं समझ पा रही, सुरभि,,, ये लोग... ये तीनों... मुझे नहीं पता ये मुझसे क्या चाहते हैं।"
इधर, आश्रित को हॉस्पिटल ले जाया गया। ऑपरेशन थिएटर की लाल बत्ती जल रही थी, और रुद्र बाहर खड़ा था, उसका चेहरा चिंता से भरा हुआ था। लेकिन उसके दिमाग में सिर्फ एक ही बात थी—आश्रित की आखिरी बात: " उसको कुछ नही होना चाहिए "
वो कुछ काम से गया हुआ था, इसलिए उसे यह सब पता नही था पर जब प्रतीक में उसे कॉल करके बताया तो वो घर आया और जब उसे पता चला कि आश्रित बिना सिक्योरिटी के घर से भरा गया है तो वो बॉडीगार्ड के साथ वहा पहुंच गया । वो आश्रित का सबसे खास बॉडीगार्ड था ।
उधर, अर्पण और अथर्व अपनी-अपनी गाड़ियों में बैठे, दोनों के चेहरों पर हार का गुस्सा और नितारा के लिए जुनून साफ दिख रहा था।
अर्पण ने अपनी मुट्ठी भींचते हुए कहा, "ये सिर्फ शुरुआत है,,, नितारा मेरी है, और मैं उसे पाकर रहूंगा,,, "
अथर्व ने अपनी गाड़ी का स्टीयरिंग कसकर पकड़ा और बुदबुदाया, "तुम दोनो ही गलत हो, वो सिर्फ मेरी है और मैं उसे पाने के लिए दुनिया जला दूंगा,,, तुम दोनो को मरना कौनसी बड़ी बात है ,,,, "
पुलिस की गाड़ियां अब घटनास्थल पर पहुंच चुकी थीं, लेकिन नितारा और सुरभि उससे पहले ही निकल चुकी थीं। शहर की सड़कों पर सायरन की आवाज गूंज रही थी, लेकिन नितारा का दिल अब भी उन तीनों भाइयों की दीवानगी के साये में कांप रहा था।
" "क्या नितारा इस जुनून से बच पाएगी? क्या सुरभि उसे सुरक्षित रख पाएगी? या फिर ये तीनों भाई अपनी दीवानगी में नितारा को फिर से अपनी जद में ले लेंगे ?
सुरभि नितारा को लेकर घर पहुची,,, रात के दस बज चुके थे । सुरभि ने ड्राइवर को पैसे दिए और नितारा को सहारा देकर घर के अंदर ले गई। नितारा का चेहरा अब भी पीला पड़ चुका था। उसकी आंखें खाली-खाली सी थीं, जैसे वो किसी गहरे सदमे में हो। सुरभि ने उसे बिस्तर पर बिठाया और जल्दी से एक गिलास पानी लाकर उसे पकड़ाया।
"नितारा, पानी पी, तू ठीक है ना?" सुरभि की आवाज में चिंता थी, लेकिन नितारा ने बस गिलास पकड़ा और उसे बिना पीए ही टेबल पर रख दिया। उसका शरीर थकान और डर से टूट चुका था। वो बिस्तर पर लेट गई, उसकी आंखें छत की ओर थीं, लेकिन वो कुछ बोल नहीं रही थी।
सुरभि उसके पास बैठी, उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली, "नितारा, तू मुझे बता, ये सब क्या था? वो तीनों... वो क्या कर रहे थे,,,? और वो बंदूकें, वो गाड़ियां... ये सब क्या है? तू किसी मुसीबत में तो नहीं फंस गई?"
सुरभि का दिमाग सवालों से भरा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी साधारण सी दोस्त, जो कभी किसी अनजान लड़के से ठीक से बात भी नहीं करती थी, अचानक तीन ऐसे खतरनाक और जुनूनी लोगों के बीच कैसे फंस गई।
"क्या वो... तीनो, उस दिन की वजह से तो तेरे पीछे नही आए?" सुरभि ने डरते हुए पूछा, लेकिन नितारा ने कोई जवाब नहीं दिया। नितारा की आंखें बंद हो चुकी थीं। वो थकान और सदमे के कारण गहरी नींद में चली गई थी। सुरभि ने उसे देखा, उसका दिल भारी हो गया। वो उठी और कमरे में इधर-उधर टहलने लगी। वो जानती थी नितारा दिन से गायब थी, कुछ तो हुआ था उसके साथ, वरना हमेशा खुश रहने वाली वो लड़की, आज इतनी खामोश कैसे हो गयी ।
"ये क्या हो रहा है? नितारा को ये लोग कैसे मिले? और वो आदमी... उसे गोली लगी थी, फिर भी वो नितारा का नाम ले रहा था,,, ये लोग इसके पीछे कैसे आ गये,,, कही उस दिन का बदला तो नहीं लेने आये ?" सुरभि अपने आप से बड़बड़ाती रही। उसे डर था कि ये खतरा अभी खत्म नहीं हुआ है। वो खिड़की के पास गई और बाहर की सड़क को देखने लगी, जैसे उसे डर था कि कोई अभी भी उनकी ताक में हो। वो नहीं जानती थी कि नितारा को पाने का जूनून इन तीनो भाईयो के सिर पर चढ़ चुका था।
इधर, हॉस्पिटल में ऑपरेशन थिएटर की लाल बत्ती अब भी जल रही थी। आश्रित को स्ट्रेचर पर अंदर ले जाया गया था। उसका खून बहना बंद नहीं हो रहा था, और डॉक्टर्स उसकी जान बचाने की पूरी कोशिश कर रहे थे। उसे काफी सिरियस जगह पर गोली लगी थी,, जिस वजह से खून बहना बंद नहीं हो रहा था । रुद्र बाहर कॉरिडोर में खड़ा था, उसका चेहरा पत्थर की तरह सख्त था, लेकिन उसकी आंखों में अपने मालिक के लिए चिंता साफ दिख रही थी।
उसने अपने फोन से किसी को कॉल किया और कहा, " चीफ की हालत गंभीर है,, मैंने बाकी टीम को अलर्ट कर दिया है,,, अर्पण और अथर्व नें उन पर गोली चलायी थी,, आप देख लिजियेगा,, मैं इन तीनो के बीच नही पडना चाहता पर आप तो जानते है कि इनकी दुश्मनी अब जान तक पहुच रही है,,, आज गोली चलायी है कल को कुछ भी हो सकता है,,,, "
सामनो से कुछ कहा गया तो रूद्र नें कॉल रख दिया । ऑपरेशन थिएटर के अंदर, आश्रित बेहोशी की हालत में था। उसका चेहरा पीला पड़ चुका था, लेकिन उसकी सांसें अभी भी चल रही थीं। बेहोशी में भी उसके होंठ हल्के से हिल रहे थे, जैसे वो कुछ बुदबुदा रहा हो। " माय doll......"
उसकी आवाज इतनी धीमी थी कि कोई सुन नहीं सकता था। उसके दिमाग में बस एक ही तस्वीर थी—नितारा की वो डरी हुई आंखें, उसका कांपता हुआ चेहरा। उसके मन में एक खयाल बार-बार गूंज रहा था, "मैं उसके लिए मर भी जाऊं, लेकिन ऊपरवाले से मुझे ये सबूत चाहिए कि वो मेरे मरने के बाद मुझसे वैसा ही इश्क करने लगे, जैसा मैं उससे करने लगा हूं।" उसकी दीवानगी अब भी उसके दिल में जिंदा थी, जैसे गोली का दर्द भी उस जुनून को कम नहीं कर सकता था।
डॉक्टर्स ने ऑपरेशन शुरू किया। आश्रित की हालत नाजुक थी, लेकिन उसकी इच्छाशक्ति उसे जिंदा रखे हुए थी। बाहर, रुद्र अपने आदमियों को इशारा कर रहा था कि वो हॉस्पिटल की सिक्योरिटी और टाइट कर दें। उसे डर था कि अर्पण और अथर्व अभी भी नितारा के पीछे पड़ सकते हैं।
उधर, अर्पण पागलपन में कार चला रहा था,, वो आज किसी को जान से भी मार सकता था,, नितारा के हाथ में किसी ओर का हाथ देखकर और नितारा का इंकार सुनकर उसका दिल तड़प उठा था । नितारा वो लड़की जिसे वो इतने दिनो से ढूंढ रहा था, उसे उसके ही दुश्मन नें अपने हाथो से छुआ था । उसकी उंगलियां स्टीयरिंग पर कसकर जकड़ी हुई थीं। उसकी आंखों में गुस्सा और जुनून का मिश्रण था।
" वो मेरी है तो फिर मुझसे पहले किसी ओर ने उसे कैसे छू लिया?? मुझे इतनी तकलीफ क्यो हो रही है,, ऐसै लग रहा है जैसे सांस ही नही आ रही है,,,, "
उसनें कार की स्पीड ओर भी बढा दी । आंखो में जूनुन भरा हुआ था ।
अथर्व दूसरी तरफ अपने घर पर सोफे पर बैठा था, हाथ में पजल पीसेस थे । उसका चेहरा शांत लेकिन खतरनाक था। वो न जाने क्या सोच रहा था, पर जो भी सोच रहा था, कुछ भी ठीक नहीं था । तभी उसे किसी का कॉल आया, वो मोबाइल स्क्रीन की तरफ देखता है, उसनें अगले ही पल मोबाइल कान से लगाया ।
इधर, सुरभि अब भी नितारा के पास बैठी थी, जो गहरी नींद में थी। उसने नितारा के माथे पर हाथ रखा, उसका माथा ठंडा था, लेकिन सुरभि का दिल अब भी बेचैन था।
" नितारा,,, तू किन चक्कर में कैसे पड़ गई? मैं तुझे कैसे बचाऊं?" सुरभि ने अपने आप से कहा। उसने अपने फोन को उठाया और पुलिस स्टेशन का नंबर डायल करने की सोची, लेकिन फिर रुक गई।
"पुलिस भी इनके सामने कुछ नहीं कर सकती,,, वो लोग इतने पावरफुल हैं।" तभी, बाहर सड़क पर एक गाड़ी की हल्की सी आवाज सुनाई दी। सुरभि तुरंत खिड़की के पास गई और पर्दा हटाकर देखा।
सड़क खाली थी, लेकिन उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसे डर था कि ये माफियाज नितारा को छोड़ने वाले नहीं हैं। कही वो इधर ना पहुच जाये ।
"क्या नितारा इस जुनून की आग से बच पाएगी? क्या आश्रित की दीवानगी उसे जिंदा रखेगी, या उसकी जान ले लेगी? और क्या अर्पण और अथर्व, आश्रित का जुनून उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ और खतरनाक जंग की ओर ले जाएगा?
" क्या मैं तुम्हारे होंठो को चुम लूं,,, बेबी डॉल,,,,!! " आश्रित नितारा के होंठो के पास अपने होंठ लाकर अपनी गर्म सांसे उसके होंठो पर छोडते हुए बोला ।
नितारा उसे अपने इतने देखकर कांप गयी, पर उसकी पकड़ में नितारा उसकी बढी हुई धडकनो और उसकी जूनूनी परजेशन को भाप सकती थी ।
" बोलो,, बेबी डॉल,,, क्या इस होंठो का रस पीने की इजाजत है मुझे,,,,"
नितारा नें घबराकर अपना चेहरा पीछा करना चाहा तो आश्रित उसे अपने ओर करीब खींचते हुए उसके ऊपर झुक गया । नितारा के सीने से उसका सीना टच हो रहा था । नितारा अपने रोंगटे खडे होते हुए महसूस कर रही थी ।
आश्रित की गर्म सांसे उसके चेहरे को छू रही थी । तो उसे ओर भी घबराहट हो रही थी । दिल धक धक कर रहा था ।
" आई एम मैड फॉर यू,,,, यू आर माइन,,,, आई जस्ट वॉंट टू गिव यू ऑल द लव,,, यू नीड,,,,,!! "
आश्रित की आवाज ओर भी गहरी और करीबी होती जा रही थी । आश्रित नितारा के होंठो अपने होंठो से छूने ही वाला था कि किसी नें आश्रित को शूट कर दिया । नितारा नें अपनी बंद आंखो को झटके के साथ खोला ।
वो घबरा गयी, आश्रित खून से लथपथ उसके ऊपर गिर पडा । नितारा नें देखा अर्पण और अथर्व उसके दोनो हाथ पकडकर उसे खींच रहे थे ।
नितारा की आंखें अचानक खुल गईं। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, और उसका माथा पसीने से भीगा हुआ था। वो हांफते हुए बिस्तर पर उठकर बैठ गई। कमरे की मद्धम रोशनी में उसने चारों ओर देखा—वो अपने घर में थी, अपने छोटे से बिस्तर पर थी ।
सुरभि पास के सोफे पर सो रही थी, उसका फोन उसके हाथ में ही था। नितारा ने एक गहरी सांस ली और अपने चेहरे पर हाथ फेरा।
"ये... ये सब एक सपना था?" उसने धीमी आवाज में बुदबुदाया। लेकिन सपने में आश्रित की गर्म सांसें, उसकी जुनूनी आंखें, और अर्पण-अथर्व की खींचतान इतनी रियल लग रही थी कि उसका शरीर अब भी कांप रहा था।
वो धीरे से बिस्तर से उतरी और रसोई में जाकर एक गिलास पानी पिया। उसकी नजरें खिड़की की ओर गईं, जहां बाहर की सड़क शांत थी, लेकिन उसका मन अब भी उसी डर में उलझा हुआ था।
"वो कैसे होगें,,, उनको बुलेट लगी थी,, हालत भी ठीक नही लग रही थी,,, क्या वो ठीक होगे,,, हमें फिक्र हो रही है,, वो तो हमें घर ही लेकर आ रहे थे,, हमारी जान भी बचायी थी,, हमें एक बार उनको देखकर आना चाहिये,," अपने आप से पूछा। उसने फोन उठाया और समय देखा—रात के 2 बजे थे । इतनी रात को कही जाना उसे ठीक नही लग रहा था । वो तो दिन के उजाले में ही किडनैप हो गयी थी, अभी रात में तो पता नही क्या क्या हो सकता था ।
वो वापस बिस्तर पर लेट गई, लेकिन नींद अब उसकी आंखों से कोसों दूर थी। दिमाग में सारी चीजे चल रही थी,, और आश्रित की फिक्र भी हो रही थी । उसे खुन खराबा बिल्कुल भी पसंद नही था । मगर आश्रित का घायल हालत में भी दिवानो की तरह उसे देखना, नितारा की नींद उडा रहा था ।
इधर, हॉस्पिटल में ऑपरेशन थिएटर की लाल बत्ती अब हरी हो चुकी थी। आश्रित को सर्जरी के बाद आईसीयू में शिफ्ट किया गया था। उसकी हालत अब भी नाजुक थी, लेकिन डॉक्टर्स ने रुद्र को बताया कि गोली उसके पेट से निकाल दी गई थी और वो खतरे से बाहर था। रुद्र ने राहत की सांस ली, लेकिन उसका चेहरा अब भी सख्त था। वो आश्रित के बेड के पास खड़ा था, जब आश्रित की उंगलियां हल्की सी हिलीं।
आश्रित की आंखें धीरे-धीरे खुलीं। उसका चेहरा दर्द से भरा था, लेकिन उसकी आंखों में वही जुनून अब भी जिंदा था।
उसने कमजोर आवाज में रुद्र को बुलाया, "रुद्र...... वो कहां है?"
रुद्र ने उसका हाथ पकड़ा और कहा, "चीफ, आप पहले ठीक हो जाइए,, मैंने अपने आदमियों को लगा दिया है, वो सेफ है।"
लेकिन आश्रित की आंखें अब भी बेचैन थीं। उसने धीमी आवाज में बुदबुदाया, "मेरी doll... मैं उसे खो नहीं सकता... वो मेरी है... मैं उसके लिए मर भी जाऊं, मगर वो मेरी मौत के बाद मेरे लिये उतनी तडपेगी जितना मैं उसके लिये तड़प रहा हूं "
उसकी आवाज फिर से धीमी पड़ गई, और वो दोबारा बेहोशी में चला गया। रुद्र ने एक गहरी सांस ली और अपने फोन से किसी को मैसेज किया, "चीफ की हालत अभी नाजुक है पर ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा "
उधर, शहर के एक आलीशान विला में दो रोल्स रॉयस गाड़ियां एक साथ रुकीं। अर्पण और अथर्व अपनी-अपनी गाड़ियों से उतरे, लेकिन जैसे ही उनकी नजरें एक-दूसरे पर पड़ीं, दोनों के चेहरों पर गुस्सा और जलन उभर आई। विला का गेट खुला, और दोनों अंदर घुसे, लेकिन एक-दूसरे को देखकर दोनों के कदम रुक गए।
"तू यहां क्या कर रहा है?" अर्पण ने दांत पीसते हुए पूछा, उसकी आंखें आग उगल रही थीं।
"वही जो तू कर रहा है," अथर्व ने तीखी आवाज में जवाब दिया।
" तू मेरे रास्ते में मत आ,,, समझा,,,!" अर्पण ने एक कदम आगे बढ़ाया, उसकी मुट्ठियां भींची हुई थीं।
" वो लड़की मेरी है,,, तू और आश्रित, तुम दोनों ने उसे डराया, उसे तकलीफ दी,, मैं उसे इस पागलपन से बचाऊंगा, वो मेरे साथ रहेगी, मेरे पास, मेरे दिल में,,, "
अथर्व ने एक सारकास्टिक स्माइल दी । लेकिन उसकी स्माइल में एक डेंजेरस ठंडक थी।
"बचाएगा? तू? नितारा मेरी है, मेरी जिंदगी है,,, मैंने उसे पहली नजर में अपना बना लिया था,, तू और आश्रित, तुम दोनों बस उसके पीछे पड़े हो, लेकिन वो सिर्फ मेरी है,,, मैं उसे पाने के लिए तुम दोनों को खत्म कर दूंगा,,,, "
दोनों भाई एक-दूसरे को घूर रहे थे, जैसे किसी भी पल एक-दूसरे पर टूट पड़ेंगे। तभी विला का बटलर दौड़ता हुआ आया और बोला, "सर आप दोनों को अंदर गॉडफादर नें बुलाया है "
लेकिन दोनों ने उसे अनदेखा कर दिया। तो वो बटलर दोबारा बोला " गॉडफादर ने कहा है अगर आप दोनो नें यहां मारपीट की तो आपकी दोनो की अर्थीयां आज ही यहां दफन होगी,,, "
दोनों ने यह सुन बटलर को देखा, फिर गुस्से से अपनी शर्ट की आस्तीन को लपेटते हुए अंदर की तरफ बढ गये ।
बटलर उन दोनो को देखकर बोला " एक ही आदमी की बोली और गोली इन तीनो को रोककर रखी है वरना अब तक तो यह तीनो एक दूसरे को खत्म कर चुके होते,,,,"
इधर,, नितारा के घर में सुबह की पहली किरण खिड़की से अंदर आई। सुरभि सोफे पर ही सो गई थी, लेकिन नितारा की आंखें रात भर खुली रही थीं। वो अब भी उस सपने के असर में थी। आश्रित की गर्म सांसें, उसकी जुनूनी बातें, और अर्पण-अथर्व की खींचतान—खासकर आश्रित की जूनूनी नजरें और उसकी खराब हालत उसके दिमाग में जैसे जम सा गया था । सब कुछ उसके दिमाग में बार-बार घूम रहा था।
वो उठी और बाथरूम में जाकर अपने चेहरे पर ठंडा पानी डाला। लेकिन जैसे ही उसने शीशे में अपनी आंखें देखीं, उसे आश्रित की वो बात याद आई, "तुम मेरी हो... मैं तुम्हें खुद से दूर नही जाने दूंगा..."वो कांप गई।
तभी सुरभि की नींद खुली, और वो नितारा को बाथरूम के पास खड़ा देखकर चौंक गई।
"नितारा, तू ठीक है? रात को तू कुछ बोल क्यों नहीं रही थी?" सुरभि ने चिंतित होकर पूछा।
नितारा ने धीमी आवाज में कहा, "सुरभि, हमें हॉस्पिटल जाना है "
" क्या पर क्योंं? तू ठीक नही है क्या "
नितारा परेशान होकर बोली " हम तो ठीक है पर हमें उनकी फिक्र हो रही है,,,"
" किसकी,,,? " सुरभि उसे पकडकर बोली ।
नितारा नें उसे देखते हुए कहा " वो जो जख्मी हो गये है,,, "
सुरभि उसे समझाते हुए बोली " क्या,, तुझे उसकी फिक्र हो रही है,, वो तो बहुत खतरनाक लोग है यार,,, "
नितारा नें बैचेन होकर कहा " हमें उनको देखना है,, वो हमारी वजह से हॉस्पिटल में है,,, हमें अच्छा नही लग रहा है "
सुरभि ने उसे गले लगाया और कहा, "तू चिंता मत कर, मैं लेकर जाऊंगी,, लेकिन तुझे मुझे सब कुछ सच-सच बताना होगा।"
नितारा ने सहमति में सिर हिलाया, लेकिन उसका दिल जानता था कि ये जुनून इतनी आसानी से खत्म नही होने वाला था,, नितारा का आश्रित के करीब जाना किसी एक नयी जंग का आगाज करने जैसा था । मगर उसे तो इस वक्त सिर्फ एक इंसान होने के नाते आश्रित की फिक्र हो रही थी और दूसरी तरफ तीनो भाइ एक ही लड़की की दिवानगी की आग में जल रहे थे । तीनो की दिवानगी अब वक्त के साथ हर हद को पार करने वाली थी ।
"क्या आश्रित की दीवानगी उसे जिंदा रखेगी? क्या अर्पण और अथर्व की जंग नितारा को फिर से उनकी गिरफ्त में ले आएगी? और क्या नितारा और सुरभि इस खतरनाक खेल से बच पाएंगी?
नितारा और सुरभि सुबह-सुबह हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े। सूरज की हल्की किरणें शहर की सड़कों पर बिखर रही थीं, लेकिन नितारा का मन अब भी उस सपने और आश्रित की हालत के ख्यालों में उलझा हुआ था। सुरभि नें कैब बुक कर ली थी, वो उसके पास बैठी थी और उसकी चिंतित नजरें बार-बार नितारा की ओर जा रही थीं।
"नितारा, तू सचमुच ठीक है ना? मुझे समझ नहीं आ रहा तू उसके लिए इतनी परेशान क्यों है? वो आदमी... वो तो खतरनाक लगता है," सुरभि ने गहरी सांस लेते हुए कहा।
नितारा ने खिड़की के बाहर देखते हुए धीमी आवाज में जवाब दिया, " सुरभि... लेकिन वो हमारी वजह से जख्मी हुआ,, उसने हमें बचाया था। हमें बस... उसे देखना है, ये जानना है कि वो ठीक है,,, वरना हम यूं ही बैचेन रहेगे,,,"सुरभि ने कुछ कहना चाहा, लेकिन नितारा की आंखों में वो बेचैनी देखकर चुप रह गई।
वो समझ रही थी कि नितारा का दिल किसी अजीब सी कशमकश में फंसा हुआ था। नितारा नें अम्बुलेंस पर हॉस्पिटल का नाम देख लिया था ।
वो दोनो हॉस्पिटल पहुंचते ही नितारा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। हॉस्पिटल की ठंडी हवा और एंटीसेप्टिक की गंध ने उसे और बेचैन कर दिया। सुरभि ने रिसेप्शन पर जाकर आश्रित के बारे में पूछा, और उन्हें बताया गया कि वो आईसीयू में है, लेकिन अब स्थिर है। विजिटर्स को अभी इजाजत नहीं थी, लेकिन नितारा के रिक्वेस्ट करने पर नर्स ने उन्हें सिर्फ बाहर से देखने की इजाजत दे दी।
जब नितारा और सुरभि आईसीयू के बाहर पहुंचे, तो नितारा ने शीशे के दरवाजे के पार आश्रित को देखा। वो बेड पर लेटा हुआ था, उसका चेहरा पीला पड़ चुका था, और कई ट्यूब्स और मॉनिटर्स उससे जुड़े थे। लेकिन जैसे ही नितारा की नजर उस पर पड़ी, आश्रित की बंद आंखें धीरे-धीरे खुलीं, मानो उसे नितारा की मौजूदगी का एहसास हो गया हो।
आश्रित की नजरें नितारा से टकराईं, और उसकी आंखों में वही जुनून फिर से चमक उठा। उसकी कमजोर हालत के बावजूद, उसकी नजरें नितारा को ऐसे घूर रही थीं जैसे वो उसका सारा वजूद निगल लेना चाहता हो। नितारा का दिल फिर से धक-धक करने लगा।
उसने अपने हाथ कसकर आपस में भींच लिए, लेकिन आश्रित की वो दीवानी नजरें उसे जाने नहीं दे रही थीं।
"बेबी डॉल..." आश्रित ने होंठ हिलाकर धीमी आवाज में बुदबुदाया, जो शीशे के पार नितारा तक तो नहीं पहुंची, लेकिन उसकी आंखों की भाषा ने सब कुछ कह दिया।
वो अब भी उसी जुनून में डूबा हुआ था, जो उसे गोली लगने के बाद भी नहीं छोड़ रहा था । सुरभि ने नितारा का कंधा पकड़ा और उसे हल्के से हिलाया, "नितारा, चल, उसे अब आराम की जरूरत है,,, तूने देख लिया ना, वो ठीक है।"
लेकिन नितारा जैसे ख्यालों में थी । आश्रित की आंखें उसे बांधे हुए थीं । उसे वो पल याद आया जब आश्रित की गर्म सांसें उसके चेहरे पर थीं, और उसकी जुनूनी बातें उसके कानों में गूंज रही थीं। वो कांप गई, और एक पल के लिए उसे लगा कि वो फिर से उसी सपने में खो रही है। तभी रुद्र कॉरिडोर में आया और नितारा को देखकर चौंक गया।
उसने तुरंत अपने चेहरे को सख्त करते हुए कहा, "आप लोग यहां क्या कर रहे हैं? चीफ को अभी डिस्टर्ब नहीं करना है,,,, उन्हें आराम की जरूरत है,,,, "
नितारा ने हड़बड़ाते हुए कहा, " हम,, हम,,, बस ये देखने आए थे कि वो ठीक हैं या नहीं,,, "
रुद्र ने उसे गहरी नजरों से देखा, जैसे वो नितारा के इरादों को पढ़ने की कोशिश कर रहा हो। फिर उसने धीमी आवाज में कहा, "वो ठीक है,,,, लेकिन आप दोनों को यहां से जाना चाहिए। ये जगह... आपके लिए सेफ नहीं है,,, "
सुरभि ने नितारा का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए कहा, "चल, नितारा। हमें यहां नहीं रुकना चाहिए,, क्या पता कहा से गोलि चल जाये,,,"
रूद्र यह सुन सुरभि को घूरता है,, तो सुरभ् घबरा जाती है । नितारा ने एक आखिरी बार आश्रित की ओर देखा। उसकी आंखें अब भी उसी तरह उसे दिवानगी से देख रही थीं, जैसे वो कह रही हों, "तुम मेरी हो... और मैं इतनी आसानी से नहीं मरने वाला हूं,,,,"
नितारा का दिल भारी हो गया । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो आश्रित के लिए इतनी चिंता क्यों महसूस कर रही थी । क्या ये सिर्फ इंसानियत थी, या उसका दिल किसी ऐसी आग में जल रहा था जिसे वो समझ नहीं पा रही थी?
जैसे ही वो और सुरभि हॉस्पिटल से बाहर निकले, एक काली रोल्स रॉयस उनके सामने रुकी । नितारा का दिल जोर से धड़का। गाड़ी का दरवाजा खुला, और अर्पण बाहर निकला। उसकी आंखों में वही जलन और गुस्सा था, जो उसने विला में अथर्व के सामने दिखाया था।
"नितारा," अर्पण ने उसका नाम पुकारा, उसकी आवाज में एक खतरनाक सख्ती थी। "
"तुम यहां क्या कर रही है? उस आश्रित के पास क्या करने आयी हो,,,,?"नितारा के मुंह से आवाज नहीं निकली।
सुरभि ने उसे अपने पीछे खींचते हुए कहा, " नितारा को कही जाने के लिये आपसे पूछने कि जरूरत तो नही हैं, वो कही भी जा सकती है,,, उस पर आपकी मर्जी तो नही चलती है,,,"
सुरभि की बात सुन अर्पण ने एक कुटिल मुस्कान दी और कहा, " इजाजत लेने की जरूरत है,,, उस पर मेरी निगाह ठहर चुकी है,, और जिस पर मेरी निगाह ठहर जाये वो फिर मेरा ही होता है,नितारा भी ,"
उसने अपनी बात अधूरी छोड़ी, लेकिन उसकी आंखों की धमकी साफ थी। तभी दूसरी तरफ से एक और गाड़ी रुकी, और अथर्व बाहर निकला। उसकी नजरें पहले अर्पण पर पड़ीं, फिर नितारा पर,, उन दोनो को साथ देखकर उसका चेहरा तुरंत सख्त हो गया।
"नितारा, तुम ठीक हो?" उसने पूछा, लेकिन उसकी आवाज में भी वही जुनून था जो आश्रित की आंखों में था।नितारा अब पूरी तरह घबरा गई थी। तीनों भाइयों—आश्रित, अर्पण, और अथर्व—की दीवानगी उसे एक तूफान में घसीट रही थी।
सुरभि ने उसका हाथ कसकर पकड़ा और कहा, "हम जा रहे हैं,,, तुम लोग हमें अकेला छोड़ दो,, वरना अच्छा नही होगा,,,," लेकिन अर्पण और अथर्व एक-दूसरे को घूर रहे थे, जैसे किसी भी पल एक-दूसरे पर टूट पड़ेंगे।
तभी हॉस्पिटल के सिक्योरिटी गार्ड्स ने हालात को भांपते हुए उन्हें अलग किया। सुरभि ने नितारा को जल्दी से अपनी गाड़ी में बिठाया और वहां से निकल गई। गाड़ी में सन्नाटा था। नितारा की सांसें तेज थीं, और उसका दिमाग अब भी उन तीनों की आंखों में डूबा हुआ था।
उधर, हॉस्पिटल में आश्रित फिर से होश में आया। उसने रुद्र को पास बुलाया और कमजोर आवाज में कहा, "रुद्र... वो आयी थी,,,,"
रुद्र ने गहरी सांस ली और कहा, " हां चीफ,,! "
आश्रित नें आंखो में जूनून और दिवानगी लिये बेड पर पडा मुस्कुरा पडा । उसकी मुस्कुराहट में वो पागलपन था जिसे आजतक रूद्र नें भी नहीं देखा था...
आश्रित नें आंखो पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए कहा " उसकी आंखो में मेरे लिये फिक्र. थी,, लगता है एक बार तो मौत से बच गया हूं पर उसकी आंखो में अपने लिये फिक्र देखकर कही इस बार मर ही ना जाऊं,,, "
रूद्र वही दिवार के सहारे खडा होकर आश्रित को देख रहा था ।
वो मन में बोला " मोहब्बत तो मोहब्बत से शुरू होती है पर चीफ की मोहब्बत तो जूनुन और दिवानगी के साथ शुरू हो रही है,, न जाने इस मोहब्बत का अब क्या अंजाम होगा,,, तीनो भाइयो को एक ही लड़की पसंद आनी थी,,,,, "
" नितारा नें तो आश्रित की मोहब्बत की आग को ओर भी बढा दिया है,,, क्या होगा अब आगे अंजाम,,,,,"
नितारा और सुरभि आखिरकार घर पहुंचीं । गाड़ी से उतरते ही नितारा की सांसें अब भी तेज थीं, जैसे वो अभी भी हॉस्पिटल के उस कॉरिडोर में खड़ी हो, आश्रित की उन जुनूनी आंखों में खोई हुई।
सुरभि ने उसका कंधा थपथपाया और कहा, "नितारा, अब तू आराम कर,, बहुत हो गया आज के लिए,,, तू टेंशन मत ले, ठीक है? "
नितारा ने हल्के से सिर हिलाया, लेकिन उसका दिमाग कहीं और था। वो घर के अंदर चली गई, और सुरभि को तुरंत एक फोन कॉल आया। फोन की स्क्रीन पर "सेठानी" का नाम चमका। सुरभि ने नितारा की ओर देखा, जो अब सोफे पर बैठकर खिड़की के बाहर ताक रही थी।
"नितारा, मुझे बार जाना होगा,,, सेठानी का कॉल है, कुछ जरूरी काम है,, तू ठीक रहेगी ना अकेले?"
"हां, सुरभि,,, तुम जाओ, हम ठीक हैं," नितारा ने धीमी आवाज में कहा, लेकिन उसकी आवाज में एक खालीपन था।
सुरभि ने एक बार फिर उसे गौर से देखा, फिर जल्दी से तैयार होकर निकल गई। घर में अब सन्नाटा था। नितारा अकेली थी, और उसका दिमाग अब भी आश्रित की उन आंखों में उलझा हुआ था। वो आंखें, जो कमजोर हालत में भी इतनी तीव्र थीं, जैसे वो उसकी आत्मा तक को छू रही हों।
"बेबी डॉल..." उसकी बुदबुदाहट नितारा के कानों में गूंज रही थी, भले ही वो शीशे के पार उस तक नहीं पहुंची थी।
नितारा ने अपनी आंखें बंद कीं, लेकिन आश्रित का चेहरा, उसकी वो दीवानी नजरें, उसका पीला पड़ चुका चेहरा—सब कुछ बार-बार सामने आ रहा था। वो उठी और अपने कमरे में चली गई। उसका दिल भारी था, और दिमाग में एक तूफान सा मचल रहा था। उसे कुछ करना था, कुछ ऐसा जो इस बेचैनी को शांत कर सके। उसने अपने फोन से एक पुराना गाना चलाया—
" "
एक तेज, जुनूनी बीट वाला गाना, जो उसके दिल की धड़कनों से ताल मिलाता था। गाने की धुन कमरे में गूंजने लगी, और नितारा ने अपने आपको उसमें खोने का फैसला किया । वो अपने बाल खोलकर, आंखें बंद करके, कमरे के बीचों-बीच नाचने लगी । उसका शरीर संगीत की लय में बह रहा था, जैसे वो सारी बेचैनी, सारी उलझन को नाच में उतार देना चाहती हो । उसकी हरकतें जुनूनी थीं, जैसे वो न सिर्फ नाच रही हो, बल्कि अपने दिल के तारों को छेड़ रही हो।
वो दीवानी बन चुकी थी—नाचते हुए, अपने दिमाग को शांत करने की कोशिश में। उसका दुपट्टा हवा में लहरा रहा था, और उसके चेहरे पर एक अजीब सा सुकून और जुनून का मिश्रण था। लेकिन उसे नहीं पता था कि उसकी इस दीवानगी का एक गवाह था । खिड़की के बाहर, पर्दे के पीछे, अर्पण खड़ा था।
जो उसके पीछे चुपके से वहां पहुंचा था, शायद नितारा को देखने की मंशा लिए या शायद अपनी उस जलन और दीवानगी को और हवा देने को लिये । लेकिन जैसे ही उसकी नजर नितारा पर पड़ी, वो ठिठक गया । नितारा का नाच, उसकी वो बेपरवाह हरकतें, उसका खुला हुआ बाल, और उसकी आंखों में छलकता जुनून—ये सब अर्पण को जैसे बांध रहा था।
अर्पण की आंखें नितारा पर टिक गईं। उसकी सांसें तेज हो गईं, और उसकी आंखों में वो दीवानगी, वो पागलपन, वो जुनून और पजेसिवनेस सब एक साथ चमकने लगा। वो खिड़की के पीछे छिपा हुआ, पर्दे की आड़ में, बस उसे देखता रहा। नितारा का हर कदम, उसकी हर अदा, जैसे उसके दिल में आग लगा रही थी। वो मुस्कुराया, लेकिन उसकी मुस्कान में वही खतरनाक सख्ती थी जो हॉस्पिटल के बाहर दिखी थी।
" नितारा..." उसने धीमी आवाज में बुदबुदाया, "तुम मेरी हो... और ये जुनून, ये दीवानगी, ये सब मेरा है।"
उसकी आंखों में प्यार था, लेकिन वो प्यार अब एक खतरनाक हद तक पहुंच चुका था। वो नितारा को नाचते हुए देख रहा था, और हर पल उसके लिए उसकी चाहत और गहरी होती जा रही थी। उसका दिल चीख रहा था—वो उसे पाना चाहता था, हर हाल में । नितारा की वो बेपरवाह दीवानगी, उसका वो नाच, जैसे अर्पण के लिए उसकी दिवानगी को बढाने का काम कर रहा था । वो उस पर फिदा होता जा रहा था ।
नितारा को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि कोई उसे देख रहा है। वो अपने नाच में खोई हुई थी, अपने दिमाग को शांत करने की कोशिश में थी। लेकिन उसकी हर हरकत, हर लट, हर मुस्कान, अर्पण की आंखों में एक तूफान मचा रही थी। वो पर्दे के पीछे से हिला नहीं, बस उसे देखता रहा, जैसे वो नितारा को अपनी नजरों में कैद कर लेना चाहता हो।
नितारा का दिल पहले ही उस आग में झुलसने लगा था, और अर्पण की वो दीवानी नजरें, जो अभी उसे खिड़की के पीछे से देख रही थीं, उस आग को और भड़का रही थीं। नितारा का नाच अब धीमा होने लगा था। वो थक चुकी थी, लेकिन उसका दिल अब भी उसी बेचैनी में डूबा हुआ था,,, वो नितारा को बांहो में कैज कर उसके जिस्म को अपने अंदर समेट लेना चाहता था । नितारा सोफे पर बैठ गई, उसकी सांसें तेज थीं, और उसका दिमाग अब भी आश्रित की आंखों और अर्पण की उस खतरनाक मुस्कान में उलझा हुआ था।
उसे नहीं पता था कि अर्पण अभी भी बाहर खड़ा था, उसकी आंखों में वही पागलपन लिए, जो अब नितारा को पूरी तरह अपनी गिरफ्त में लेने को बेताब था। वो नितारा की गर्दन पर चमक रहे पसीने को देखता है ।
उसनें अपने चेहरे को हथेलियो से कवर कर लिया, वो हल्का सा बडबडाया " जान लेकर मानोगी क्या जान,,, लगता है एक बार इश्क का रोग लगाकर सूकून नही मिला है तुम्हें, इस बार जान लेने का इरादा लेकर बैठी हो,,, तुम्हारा यह बदन मुझे दिवाना कर रहा है,,, तुम्हारी आंखो का जादू क्या कम था,,, सच में कही मर ना जाऊं,,, मैं बता नही सकता, तुम्हारे थिरकने से ही मेरा बदन अंदर तक जल उठा है और अब यह आग तो तुम ही बुझा सकती हो,,,,"
क्या होगा जब नितारा को अर्पण की इस दीवानगी का पता चलेगा? और क्या होगा जब आश्रित, अर्पण, और अथर्व—ये तीनों भाई—अपनी इस जुनूनी मोहब्बत में एक-दूसरे से टकराएंगे? नितारा का दिल, जो अभी इस आग को समझ नहीं पा रहा था, क्या इस तूफान में डूब जाएगा, या वो इस आग को बुझाने का रास्ता ढूंढ लेगी?
नितारा ने अपनी आँखें खोलीं और एक गहरी साँस ली। कमरे में अब गाना धीमा हो चुका था, और उसकी धड़कनें भी कुछ शांत हो रही थीं। लेकिन वो बेचैनी, वो अजीब सा खालीपन, अब भी उसके दिल में कहीं गहरे दबा हुआ था। उसने अपने चेहरे पर हाथ फेरा, पसीने की बूंदें अभी भी उसकी गर्दन पर चमक रही थीं।
खिड़की से आती ठंडी हवा ने उसे एक पल के लिए सुकून दिया, लेकिन उसका दिमाग अभी भी उसी तूफान में उलझा था—आश्रित की वो जुनूनी आँखें, अर्पण की वो खतरनाक मुस्कान, और अथर्व... अथर्व, जिसका नाम भी उसके दिल में एक अनकही सी हलचल मचाता था।
वो उठी और बेड की ओर बढ़ी। बेडशीट को हल्के से हटाकर उसे बदल दिया, उसे नहीं पता था कि अर्पण अभी भी वहाँ था, छुपा हुआ, उसकी हर हरकत को अपनी आँखों में कैद करता हुआ। उसकी साँसें अब भी तेज थीं, और उसका दिल नितारा के लिए एक खतरनाक जुनून में डूबा हुआ था।
उसने फोन उठाया और गाना बंद कर दिया। सन्नाटा फिर से कमरे में छा गया। उसने अपने आप से कहा, " हमारा दिमाग वैसे भी काम नही कर रहा है,,, हमे सोना चाहिये,,,,"
नितारा बिस्तर पर लेट गयी । उसके सोने के बाद,, अर्पण पर्दे के पीछे से बाहर निकला,,, वो धीरे धीरे उसके पास आया और उसके बिल्कुल पास आकर बैठ गया । अर्पण धीरे-धीरे नितारा के बिस्तर के पास बैठ गया। उसकी आँखें नितारा के चेहरे पर टिक गईं, जो नींद में शांत थी, लेकिन उसकी साँसों की हल्की-हल्की हलचल अभी भी उसकी गर्दन पर चमकते पसीने की बूंदों में दिख रही थी।
नितारा के खुले बाल बिस्तर पर बिखरे हुए थे, और उसके होंठ हल्के से खुले थे, जैसे वो किसी अनकहे सपने में खोई हो । अर्पण की साँसें तेज हो रही थीं । उसका दिल एक खतरनाक जुनून में डूबा हुआ था, जो उसे नितारा के और करीब खींच रहा था।
उसने अपनी मुठ्ठी भींच ली, अपने अंदर उमड़ते तूफान को काबू करने की कोशिश में। नितारा का हर अंग—उसके होंठ, उसका बदन, उसकी साँसों की वो लय—उसे दीवाना बना रहा था। वो पास झुका, इतना पास कि उसकी साँसें नितारा के चेहरे को छूने लगीं। उसकी आँखों में एक पजेसिवनेस थी, एक ऐसी चाहत जो अब किसी भी हद को पार करने को तैयार थी।
" लिटिल माउस......" उसने धीमी, कांपती आवाज में बुदबुदाया, " i just wanna touch you with deep love,,,,,"
उसका हाथ अनायास ही नितारा के बालों की ओर बढ़ा, लेकिन तभी कमरे के बाहर से एक हल्की सी आहट हुई। अर्पण का शरीर सतर्क हो गया । उसने फुर्ती से पर्दे की ओर देखा, लेकिन इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता, कमरे का दरवाजा धीरे से खुला।
आश्रित वहाँ खड़ा था। उसकी हालत कमजोर थी, धंसी हुई आँखें अभी भी उसकी जुनूनी नजरों को छुपा नहीं पा रही थीं। उसके साथ दो बॉडीगार्ड्स थे, जिनके चेहरों पर सख्ती और खतरे की छाया थी। आश्रित की नजर जैसे ही अर्पण पर पड़ी, उसकी आँखों में आग भड़क उठी। वो धीरे-धीरे, लेकिन दृढ़ कदमों से कमरे में दाखिल हुआ, उसके हाथ में एक पिस्तौल थी, जिसे उसने अर्पण की ओर तान दिया।
" बाहर चल,,,," आश्रित की आवाज में एक खतरनाक शांति थी ।
अर्पण की मुठ्ठियाँ और सख्त हो गईं, लेकिन उसने अपनी जगह से हिलने की कोशिश नहीं की। उसकी नजर आश्रित की पिस्तौल पर थी, फिर भी उसकी आँखों में वही पजेसिव चमक थी।
"don't interrupt in my private time...." उसने ठंडी आवाज में कहा ।
आश्रित ने एक कुटिल मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखें नितारा पर टिक गईं, जो अभी भी गहरी नींद में थी।
"नितारा..." उसने धीमी आवाज में कहा, जैसे उसका नाम ही उसके लिए सूकून हो ।
" दूर हट उससे,,,,!! अगर वो जागी तो तेरी मौत को आज कोई नही रोक पाएगा,,,,"
अर्पण का चेहरा सख्त हो गया। आश्रित उसकी मोहब्बत के बीच आ रहा था । अर्पण को यह बिल्कुल भी बर्दाश्त नही था ।
आश्रित ने पिस्तौल को और सख्ती से पकड़ा, उसकी उंगलियाँ ट्रिगर पर कांप रही थीं। "बाहर चल, अर्पण," उसने ठंडे लहजे में कहा।
अर्पण ने एक बार नितारा की ओर देखा। उसकी नींद अभी भी अटूट थी, उसका चेहरा शांत, जैसे वो इस सारी दीवानगी से अनजान हो। अर्पण ने धीरे से सिर पर हाथ रगडा और उठ खड़ा हुआ। वो जानता था कि यहाँ टकराव का कोई फायदा नहीं था—खासकर जब आश्रित के साथ दो बॉडीगार्ड्स थे, और उसकी पिस्तौल उसकी कनपटी पर तनी हुई थी। हालांकि उसकी आंखो में डर तो बिल्कुल नही था पर वो नितारा को तकलीफ नही देना चाहता था ।
आश्रित के इशारे पर एक बॉडीगार्ड ने अर्पण का हाथ पकड़ा और उसे धीरे लेकिन सख्ती से कमरे से बाहर खींच लिया। दूसरा बॉडीगार्ड दरवाजे पर खड़ा रहा, यह सुनिश्चित करते हुए कि कोई शोर न हो। सब कुछ इतनी खामोशी से हुआ कि नितारा की नींद में जरा भी खलल नहीं पड़ा।
बाहर, घर के पीछे गार्डन में, आश्रित और अर्पण आमने-सामने खड़े थे। अंधेरा गहरा था, लेकिन आश्रित की आँखों में जल रही आग साफ दिख रही थी। उसने पिस्तौल को अब भी अर्पण की ओर ताना हुआ था।
"तूने क्या सोचा था, तू चुपके से नितारा के पास पहुँच जाएगा, और मैं कुछ नहीं करूँगा?" आश्रित की आवाज में गुस्सा और जुनून का मिश्रण था। अर्पण ने हल्के से मुस्कुराया, लेकिन वो उसे चिढाने के लिये था।
उसकी मुस्कान में वही खतरनाक ठंडक थी। "आश्रित, तुझे लगता है तू नितारा को पा सकता है? वो मेरी है, और तू ये जानता है,,, कि जो चीज मेरी है वो म्री है,,,,"
" वो कोई चीज नही है साले,,,,"आश्रित का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने पिस्तौल को और करीब लाया, लेकिन तभी एक बॉडीगार्ड ने उसका कंधा पकड़ लिया।
"बॉस, यहाँ शोर नहीं करना चाहिए। नितारा मैम को जगाना ठीक नहीं होगा,,,,"
आश्रित ने एक गहरी साँस ली और पिस्तौल नीचे कर ली।
फिर उसने अर्पण की ओर देखा। "ये आखिरी चेतावनी है, अर्पण,,, नितारा से दूर रह,,, अगली बार, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा,,, मिटिंग में गया था न तू,,,, वहां जो हुआ उसे याद रखना,,,"
अर्पण ने उसकी आँखों में देखा, उसकी मुस्कान अब भी बरकरार थी।
" मिटिंग में,,,,! हां सही कहा,,, वहां जो हुआ तभी तो शांत हूं वरना तुझे लगता है तेरा यह खिलौना मुझे रोक सकता है,,," अर्पण नें उसकी बंदूक की तरफ इशारा किया ।
आश्रित ने खामोश नजरो से उसे देखा फिर अपने बॉडीगार्ड्स को इशारा किया, और वे अर्पण को पकड़कर वहाँ से ले गए। अर्पण ने एक बार पीछे मुड़कर नितारा के कमरे की खिड़की की ओर देखा, जहाँ अब भी सन्नाटा छाया हुआ था। उसकी आँखों में वही दीवानगी थी, वही पजेसिवनेस, जो अब और गहरी हो चुकी थी।
उधर, नितारा अपनी नींद में थी, अनजान कि उसके इर्द-गिर्द ये खतरनाक खेल चल रहा था।
लेकिन ये खेल अभी और बड़ा होने वाला था। अथर्व, जो अभी तक इस खेल में छुपा हुआ था, अब धीरे-धीरे अपनी दिवानगी भी दिखाने वाला था और जब ये तीनों भाई—आश्रित, अर्पण, और अथर्व—अपनी इस जुनूनी मोहब्बत में एक-दूसरे से टकराएँगे, तब नितारा का दिल, जो अभी इस आग को झेलने को तैयार नही है वो इस आग को जाने अनजाने में ओर भडका देगा ।
अथर्व अपने घर के बाथरूम में शावर के नीचे खड़ा था। गुनगुना पानी उसकी पीठ पर बह रहा था, लेकिन उसका दिमाग कहीं और था—उसके भाइयों, अर्पण और आश्रित, की हरकतों में। उसकी हुई भौंहेें सिकुड़ी हुई थीं, और चेहरा गुस्से से तन गया था। जैसे ही पानी उसकी गर्दन से होता हुआ नीचे गिर रहा था, उसके दिमाग में वो दृश्य बार-बार उभर रहा था,,, अर्पण की वो खतरनाक मुस्कान, जो नितारा के लिए दीवानगी से भरी थी, और आश्रित की वो जुनूनी नजरें, जो हर बार नितारा को देखते वक्त आग उगलती थीं।
उसने अपनी मुठ्ठियाँ भींच लीं, और शावर की टाइल्स पर एक जोरदार मुक्का मारा। पानी के साथ उसका गुस्सा भी बह रहा था, लेकिन शांत नहीं हो रहा था।
"कैसे हिम्मत की उन दोनों ने... नितारा के इतने करीब जाने की?" उसने अपने आप से बुदबुदाया, उसकी आवाज में गुस्सा और जलन का मिश्रण था ।
"वो मेरी है... मेरी!" उसका दिल चीख रहा था, और उसकी साँसें तेज हो रही थीं।
वो गुस्से से शावर से बाहर निकला, तौलिये से अपने बालों को रगड़ते हुए। उसका बदन अभी भी गर्म था, गुस्से और जुनून के मिश्रण से,,, उसका गठिला बदन बेहद शानदार था,, उसके एब्स इतने स्पष्ट थे कि कोई भी बस उसे देखता ही रह जाए,,, वो अपने कमरे में दाखिल हुआ, और एक पल के लिए रुक गया।
इस वक्त कमरे की दीवारें नितारा की तस्वीरों से भरी हुई थीं—कहीं वो मुस्कुराती हुई, कहीं गहरी सोच में डूबी हुई, कहीं अपने बिखरे बालों को ठीक करती हुई। हर तस्वीर में उसकी वो मासूमियत और खूबसूरती थी, जो अथर्व को दीवाना बनाए हुए थी। उसने एक तस्वीर की ओर देखा, जिसमें नितारा हल्के से मुस्कुरा रही थी। उसका दिल फिर से हलचल में आ गया।
"तुम सिर्फ मेरे लिए हो, नितारा," उसने धीमी आवाज में कहा, अपनी उंगलियों से तस्वीर को हल्के से छूते हुए। उसकी आँखों में एक गहरी चाहत थी, लेकिन साथ ही एक खतरनाक ठंडक भी।
वो तैयार हुआ। काले रंग की शर्ट और डार्क जीन्स में वो किसी शिकारी की तरह लग रहा था,,, खतरनाक, लेकिन आकर्षक । उसने अपनी कार की चाबी उठाई और घर से निकल गया। उसका मंजिल थी वो शानदार विला, जिसमें वो उस रात गया था ।
विला के विशाल दरवाजे से अंदर दाखिल होते ही उसे वो परिचित खुशबू महसूस हुई—पुरानी किताबों, लकड़ी और धूप की मिली-जुली महक। वो विला का मालिक, एक बुजुर्ग व्यक्ति, दादाजी के नाम से जाना जाता था। वो अर्पण, आश्रित और अथर्व के दादा थे, लेकिन उनकी कड़क और रहस्यमयी शख्सियत उन्हें एक साधारण दादा से कहीं ज्यादा बनाती थी। उनकी आँखों में उम्र का अनुभव था, लेकिन उनके चेहरे की सख्ती और आवाज की गहराई अभी भी डर पैदा करती थी।
अथर्व सीधे उनके कमरे में गया।दादाजी एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर बैठे थे, उनके सामने एक मेज पर कुछ पुराने कागजात बिखरे हुए थे। उनके चेहरे पर एक शांत, लेकिन खतरनाक मुस्कान थी। अथर्व उनके सामने फर्श पर बैठ गया, अपने सिर को हल्के से झुकाते हुए।
"दादाजी," उसने गहरी साँस लेते हुए कहा, "मैं उसे पाना चाहता हूँ...लेकिन आपके दोनों पोते, अर्पण और आश्रित, मेरे रास्ते का काँटा बन रहे हैं।"
दादाजी ने अपनी आँखें उठाकर अथर्व की ओर देखा। उनकी नजर में एक गहरी समझ थी, लेकिन साथ ही एक ऐसी सख्ती जो किसी को भी झुका दे।
"अथर्व," उनकी आवाज में एक खतरनाक कोमलता थी, "मैंने तुम तीनों को पहले ही कह दिया था,,,जो नितारा का दिल जीत लेगा, वही उसका सच्चा हकदार होगा। लेकिन अगर तुममें से किसी ने भी एक-दूसरे पर हथियार उठाया, तो मैं बूढ़ा जरूर हूँ, लेकिन अभी भी तुम तीनों को सबक सिखाने की ताकत रखता हूँ।"
अथर्व ने सिर झुकाया, लेकिन उसकी आँखों में एक चिंगारी थी।
" मैं जानता हूं पर मैं नही चाहता कि जैसा मेरी मां के साथ हुआ, वो दोबारा हो,,,, " अर्थव की आवाज में गहरा दर्द छिपा था ।
" हां समझता हूं, पर मैं भी नही चाहता वो सब दोहराया जाये,, वो तो अभी तक मैं जिंदा हूं इसलिये तुम तीनो नें एक दूसरे की जान नही ली है वरना तो,,,,"
अथर्व कुछ कहने ही वाला था कि तभी कमरे का दरवाजा जोर से खुला। आश्रित और अर्पण एक साथ अंदर दाखिल हुए। आश्रित का चेहरा गुस्से से लाल था, और उसने अर्पण को कॉलर से पकड़कर दादाजी के सामने फर्श पर पटक दिया।
" इस हरामजादे से कितनी बार कहना पडेगा,,, ये फिर से नितारा के पास गया था!" आश्रित चिल्लाया, उसकी आवाज में जलन और गुस्सा साफ झलक रहा था।
"मैंने इसे चेतावनी दी थी, दादाजी, लेकिन ये नहीं मानता!"
अर्पण ने फर्श से सिर उठाया, उसकी आँखों में वही खतरनाक मुस्कान थी। "आश्रित, तुझे लगता है तू मुझे रोक सकता है? नितारा मेरी है, और मैं उसे पाकर रहूँगा।"
दादाजी ने अपनी कुर्सी से उठे बिना, दोनों को देखा। उनकी आँखों में एक ठंडी आग थी। "बस!" उनकी आवाज गूँजी, और कमरा एकदम शांत हो गया।
"मैंने कहा था, कोई खून-खराबा नहीं। तुम तीनों भाई हो, लेकिन इस जुनून ने तुम्हें अंधा कर दिया है। नितारा कोई ट्रॉफी नहीं है, जिसे तुम जीतने की होड़ में एक-दूसरे का गला काट दो।"
अथर्व चुपचाप खड़ा रहा, लेकिन उसकी नजरें अपने भाइयों पर थीं। उसका दिल चीख रहा था—नितारा सिर्फ उसकी थी, और वो किसी भी कीमत पर उसे पाना चाहता था। लेकिन दादाजी की बातें उसके दिमाग में गूँज रही थीं। इस दुनिया में अगर इन तीनो को कोई कंट्रॉल कर सकता था, तो वो सिर्फ ओर सिर्फ दादाजी ही थे ।
"जो उसका दिल जीतेगा, वही उसका हकदार होगा," दादाजी ने दोहराया। "लेकिन अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं खुद इस खेल को खत्म कर दूँगा। और तुम जानते हो, मेरे पास वो ताकत है।"
कमरे में सन्नाटा छा गया। तीनों भाइयों की नजरें एक-दूसरे पर टिकी थीं, और हर एक की आँखों में वही जुनून था—यह सिर्फ नितारा के लिए था । लेकिन दादाजी की मौजूदगी ने उस पल को और भी खतरनाक बना दिया था।
बाहर, विला के बगीचे में हवा तेज हो रही थी, जैसे कोई तूफान आने वाला हो। और नितारा, जो अभी भी अपनी नींद में खोई थी, इस खतरनाक खेल से अनजान थी, जो अब और भी उलझने वाला था।
रात के साढ़े ग्यारह बजे थे। शहर की सड़कें अब धीरे-धीरे खाली हो रही थीं, और ठंडी हवा सुरभि के चेहरे पर तेजी से टकरा रही थी। वो अपनी स्कूटी पर सवार थी, एक हाथ से हैंडल पकड़े और दूसरे हाथ में मोबाइल कान से लगाए हुए। उसकी आवाज में एक चुलबुलापन था, जो रात की शांति को तोड़ रहा था।
"नितारा, बस पांच मिनट में पहुंच रही हूं! तेरे लिए पानी पूरी पैक करवा ली है, गोलगप्पे वाले भैया को बोलकर तीखी चटनी डलवाई है, जैसी तुझे पसंद है!" सुरभि हंसते हुए बोली, उसकी स्कूटी स्ट्रीट लाइट्स की रोशनी में चमक रही थी।
नितारा फोन पर दूसरी तरफ हंसी, "सुरभि, तुम सचमुच पागल हो! इतनी रात को पानी पूरी? बार बंद हुआ कि नहीं?"
"हां, बंद हो गया,,, आज बहुत भीड़ थी, लेकिन मैंने सब संभाल लिया,,, अब बस तुझसे मिलने की जल्दी है! तेरा मूड ठीक है ना अब,," सुरभि ने स्कूटी की स्पीड बढ़ाई, लेकिन तभी एक तेज रोशनी उसकी आंखों में पड़ी। एक काली SUV सामने से तेजी से आ रही थी। सुरभि ने जल्दी से ब्रेक लगाने की कोशिश की, लेकिन देर हो चुकी थी। स्कूटी का अगला टायर SUV के बंपर से टकराया, और सुरभि एक झटके के साथ सड़क पर गिर पड़ी।
"उफ्फ! आहहह" सुरभि ने कराहते हुए अपने घुटने को पकड़ा। उसका मोबाइल सड़क पर कुछ दूर फिसल गया, लेकिन नितारा की आवाज अभी भी सुनाई दे रही थी। "सुरभि! क्या हुआ? तुम ठीक हो?"
SUV का दरवाजा खुला, और उसमें से रुद्र निकला,,, जिसका चेहरा गुस्से और चिंता के मिश्रण से भरा था। उसकी लंबी, गठीली काया और सख्त चेहरा रात की रोशनी में और भी डरावना लग रहा था। वो जल्दी से सुरभि के पास पहुंचा।
रूद्र नें उसो देखते हुए कहा "क्या तुम ठीक हो ?
सुरभि नें एकदम नजरें उठाकर उसको देखा, वो गुस्से से बोली " ठीक दिख रही हूं तुमको,,,,"
" लो उठो,,,,!! रूद्र नें उसे उठाने की कोशिश की तो सुरभि नें हाथ झटक दिया ।
वो खुद खडी होने की कोशिश करने लगी, तो रूद्र बोला "रात को स्कूटी भगाने का टाइम नही होता है" रुद्र ने गुस्से में कहा, लेकिन उसकी आंखों में एक हल्की-सी चिंता थी।
सुरभि ने गुस्से से उसकी ओर देखा, अपने घुटने को सहलाते हुए। " ओ मिस्टर, तुम अपनी गाड़ी को हवाई जहाज की स्पीड में क्यों चला रहा था? मेरी स्कूटी का क्या हाल कर दिया!" वो उठी, अपने कपड़ों पर लगी धूल झाड़ते हुए।
रुद्र ने भौंहें चढ़ाईं। "मेरी गलती है? तुम फोन पर बकबक कर रही थी, सड़क पर ध्यान देती तो ये न होता!"
"अच्छा? तो अब तुम मुझे ड्राइविंग सिखाओगे? वही जो एक गुंडे का चमचा बनकर उसकी गंदी हरकतों में साथ देता है?" सुरभि ने तंज कसा, अपने बालों को पीछे करते हुए। उसकी गुस्सा भी साफ झलक रहा था।
रुद्र एक पल के लिए चुप हो गया। सुरभि की बातें उसे चुभ रही थीं, लेकिन उसकी बेबाकी उसे कहीं न कहीं प्रभावित भी कर रही थी। उसने एक गहरी सांस ली और कहा, "देखो,,,, मैं कोई चमचा-वमचा नहीं हूं। और तुम थोड़ा संभलकर चला करो, ये सड़क रेसिंग ट्रैक नहीं है।"
"हां-हां, सड़क तो तुम्हारी ही है न,,,," सुरभि ने फिकी सी हंसी हंसते हुए कहा और अपनी स्कूटी उठाने लगी।
रुद्र ने फोन की ओर देखा, जो सड़क पर पड़ा था। उसने उसे उठाया और फोन सुरभि की तरफ बढाया तो सुरभि नें उससे मोबाइल छीन लिया ।
सुरभि ने उसे गुस्से से घूरा और स्कूटी स्टार्ट करके निकल गई। रुद्र उसे जाते हुए देखता रहा, उसकी आंखों में एक अजीब-सी चमक थी। वही सुरभि रास्ते भर उसे गालिया दे रही थी । उसका आज दो तीन हजार का नुकसान हो गया था ।
अगली सुबह,,,,
सुबह की धूप नितारा के चेहरे पर पड़ रही थी। वो अपने कॉलेज के कैंपस में पहुंची, उसकी आंखों में एक ताजगी थी। रात की बातचीत और सुरभि की नोंकझोंक ने उसका मूड हल्का कर दिया था। वो आज बहुत अच्छा महसूस कर रही थी, उसे उम्मीद थी कि वो अब यहां अपनी जिंदगी का सफर शुरू करेगी,,, वो अपनी किताबें लिए कॉरिडोर में चल रही थी, जब एक चुलबुली-सी लड़की, जिसके बाल पॉनीटेल में बंधे थे और चेहरा शरारत से भरा था, उससे टकरा गयी ।
"ओह, सॉरी-सॉरी!" लड़की ने हंसते हुए कहा।
" कोई बात नही,,, " नितारा नें धीरे से कहा और अपनी किताबे उठाने लगी ।
"मैं रिया हूं, फर्स्ट ईयर। मैंने तुझे पहले भी देखा है, तुम परसों आयी थी न,,,,"
नितारा ने मुस्कुराते हुए कहा, "हम्म,,,!!
वो मन में बोली " हा और हम किडनैप भी हो गये थे,,,,"
" आप कौनसे डिपार्टमेन्ट में हो,,,,,, " नितारा नें कहा ।
"फैशन डिजाइनिंग!" रिया ने उत्साह से कहा, अपनी आंखें चमकाते हुए। "और तुम?
" लिटरेचर,,,,," नितारा बोली ।
" कॉफी पीने चलें? मैं तुझे अपने ग्रुप से मिलवाती हूं!" रिया ने नितारा का हाथ पकड़ा और उसे कैंटीन की ओर खींच लिया। नितारा उसे कुछ बोल भी नही पायी, नितारा को रिया की चुलबुली हरकतें पसंद आ रही थीं। दोनों हंसते-बात करते कैंटीन में पहुंचे, जहां रिया ने उसे अपने दोस्तों से मिलवाया।
नितारा को पहले दिन ही अच्छी दोस्त मिल गयी थी । तभी, कैंटीन के एक कोने से एक लड़का, जो अपने सीनियर बैच का था, नितारा को देख रहा था। उसका नाम था विक्रांत—लंबा, स्मार्ट, और कॉलेज का मशहूर डिबेटर था । उसकी आंखें नितारा की मासूम मुस्कान पर टिक गई थीं। वो अपने दोस्तों से बात करते-करते रुक गया और धीरे से बोला, "ये लडकी कौन है?
उसका दोस्त बोला " औह यह,, न्यू है शायद,,,,,"
विक्रांत मुस्कुराकर बोला "कुछ तो खास है इसमें..."
उसके दोस्त ने हंसकर कहा, "विक्रांत, तू तो गया,,, सीनियर होकर फर्स्ट ईयर की लड़की पर लट्टू हो रहा है?"
विक्रांत ने मुस्कुराते हुए कहा, "देख, भाई, लट्टू होने की बात नहीं। बस... वो कुछ अलग है।" वो उठा और धीरे-धीरे नितारा की टेबल की ओर बढ़ा।
"हाय, नितारा, मैं विक्रांत, थर्ड ईयर," उसने आत्मविश्वास के साथ कहा। " कौनसे डिपार्मेंन्ट में हो "
" लिटरेचर,,,," नितारा नें शांत मुस्कान के साथ कहा ।
"कभी डिबेट में हिस्सा लिया?"
नितारा ने उसकी ओर देखा, वो उसो बडे ही प्यार से देख रहा था ।
" डिबेट? नहीं, हम तो किताबों में खोई रहते है । लेकिन सुनने में मजा आता है। आप डिबेटर है?"
"कॉलेज का बेस्ट!" रिया ने बीच में टपकते हुए कहा, और सब हंस पड़े। विक्रांत ने नितारा को देखा, उसकी मुस्कान से और ज्यादा प्रभावित हो गया।
"कभी ट्राई करो,, मुझे लगता है तुम कमाल करोगी," विक्रांत ने कहा, और उसकी आवाज में एक गर्मजोशी थी।
नितारा ने हल्के से सिर हिलाया, लेकिन उसका ध्यान रिया की बातों में था। उसे नहीं पता था कि उसकी ये मासूमियत और बेपरवाही विक्रांत को और ज्यादा आकर्षित कर रही थी। उधर, कैंपस के बाहर, एक काली कार में बैठा अथर्व नितारा को देख रहा था, उसकी मुट्ठियां फिर से भींच गई थीं।
विक्रांत का नितारा से बात करना उसे बिल्कुल पसंद नहीं आया। वो उसे गुस्से से मार देने वाला नजरो से देख रहा था और कहीं दूर, आश्रित और अर्पण को भी इस नए खिलाड़ी की खबर मिलने वाली थी।
कैंटीन की हल्की-फुल्की गपशप में नितारा और रिया खोई हुई थीं। रिया अपनी चुलबुली बातों से नितारा को हंसा रही थी, और नितारा का चेहरा खिल उठा था। वो कॉफी का मग पकड़े रिया की बातें सुन रही थी, जो कॉलेज के किसी प्रोफेसर की नकल उतार रही थी ।
"और फिर प्रोफेसर शर्मा बोले, 'रिया, तुम्हारा असाइनमेंट तो ऐसा है जैसे तुमने गूगल ट्रांसलेट से लिखवाया हो!'” रिया ने हंसते हुए कहा, और नितारा जोर से हंस पड़ी।
"रिया, आप सचमुच पागल है!" नितारा ने हंसते हुए कहा, लेकिन उसकी नजरें अनायास ही कैंटीन के एक कोने में चली गईं, जहां विक्रांत अपनी टेबल पर बैठा था। वो अपने दोस्तों के साथ था, लेकिन उसकी आंखें बार-बार नितारा की ओर उठ रही थीं। उसकी मुस्कान में एक अजीब-सी गर्मजोशी थी, जो नितारा को थोड़ा असहज कर रही थी ।
विक्रांत ने अपने दोस्त की बात पर हल्का-सा हंसा, लेकिन उसका ध्यान नितारा की उस मासूम हंसी पर था, जो कैंटीन की रौनक को और बढ़ा रही थी।
"क्या बात है, विक्रांत? आज तेरा ध्यान कहीं और है," उसके दोस्त ने चुटकी ली।
"कुछ नहीं, बस..." विक्रांत ने बात टालते हुए कहा, लेकिन उसकी आंखें फिर से नितारा की ओर चली गईं।
इधर, शहर के दूसरी तरफ, अथर्व अपनी कार में बैठा था। उसे अपने ऑफिस के लिए निकलना था, लेकिन उसका मन उखड़ा हुआ था। उसने सुबह से ही नितारा को कैंपस में देखा था, और विक्रांत का उससे बात करना उसे बिल्कुल पसंद नहीं आया। उसने स्टीयरिंग को जोर से पकड़ा और मन ही मन बड़बड़ाया, " वो कौन है, जो इतने कॉन्फिडेंस से नितारा के आसपास मंडरा रहा है? इसे सबक सिखाना पड़ेगा।
उधर, अपने मेंशन में,, आश्रित अपने बेड पर लेटा हुआ था और उसकी आंखें बंद थीं। उसके चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान थी, जैसे वो किसी खूबसूरत ख्याल में खोया हुआ हो। नितारा का चेहरा उसकी आंखों के सामने बार-बार आ रहा था—उसकी मासूमियत, उसकी बेपरवाह हंसी, और वो बेबाकी जो उसे सबसे अलग बनाती थी।
तभी कमरे का दरवाजा खुला, और रुद्र अंदर आया। उसकी सख्त काया और गंभीर चेहरा कमरे की हल्की-सी रौशनी में और भी गहरा लग रहा था। आश्रित नें अपनी आंखे नही खोली ।
"क्या बात है, रुद्र? तू इतना सीरियस क्यों है?" आश्रित ने सवाल किया ।
"कुछ नहीं, बस आपसे मिलने आया," रुद्र ने जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज में हल्की-सी हिचक थी।
" क्या बात है? नितारा के बारे में कुछ खबर?" वो डार्क वॉइस में बोला ।
रुद्र ने एक पल चुप रहकर आश्रित को देखा, फिर धीरे से बोला, "हां, वो कॉलेज गई है,,, सुना है वहां उसके नए दोस्त भी बने हैं।"
आश्रित ने भौंहें चढ़ाईं। उसने आंखे खोली और आश्रित की मुस्कान एकदम गायब हो गई। उसने बेड से उठते हुए पूछा, "दोस्त? लड़का या लड़की?"
रुद्र ने पहले तो टालने की कोशिश की, लेकिन आश्रित की सख्त नजरों के सामने उसे बोलना पड़ा।
"लड़की भी है, और... एक लड़का भी। विक्रांत,,, कॉलेज का कोई डिबेटर है,,, आज वो नितारा से काफी देर बात कर रहा था।"
आश्रित की आंखों में आग भड़क उठी। उसने मुट्ठियां भींच लीं और गुस्से में बड़बड़ाया, "विक्रांत? ये कौन सा नया पिल्ला आ गया? नितारा को लगता है वो इतनी आसानी से मुझसे दूर हो जाएगी?"
वो फटाफट बेड से उठा, अपनी जैकेट उठाई, और जूते पहनने लगा। रुद्र ने उसे रोकने की कोशिश की।
" चीफ रूक जाइये,,, अभी कुछ करने की जरूरत नहीं है,, "
" रुद्र!" आश्रित ने गुस्से में कहा। " अभी ही सब करने कि जरूरत है,,ये विक्रांत अगर नितारा के आसपास गया कैसे? मैं उसे ऐसा सबकसिखाऊंगा कि वो दोबारा उसे देखेगा भी नहीं,,,,,,"
वो दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया, और रुद्र सिर्फ उसे जाते हुए देखता रहा। कुछ देर बाद, कॉलेज कैंपस में हलचल मच गई। क्लासेज चल रही थी और कैंपस की छत पर एक अजीब-सा सन्नाटा था। विक्रांत, जो कुछ देर पहले अपने दोस्तों के साथ डिबेट क्लब की मीटिंग में था, अब छत की रेलिंग से उल्टा लटका हुआ था। आश्रित उसे घसीटकर यहा ले आया था,, उसका चेहरा डर से सफेद पड़ गया था, और उसका एक पैर आश्रित ने मजबूती से पकड़ा हुआ था।
"तो, विक्रांत," आश्रित ने ठंडी, खतरनाक आवाज में कहा। "तुझे लगता है तू नितारा के आसपास घूम सकता है, और मुझे खबर नहीं होगी?"
विक्रांत ने डरते हुए कहा, "दे...देख, भाई, मैं... मैं बस उससे बात कर रहा था,,, इसमें क्या गलत है?"
आश्रित ने हल्की-सी हंसी हंसी, लेकिन उसकी आंखों में कोई दया नहीं थी।
"गलत? तुझे अभी पता चलेगा गलत क्या होता है।" उसने विक्रांत का पैर और ऊपर खींचा, जिससे विक्रांत की चीख निकल गई।
" नीचे सब जमा हो गये है,,,, चीफ रूक जाओ,,,,"
आश्रित ने पलटकर रुद्र को देखा, उसकी आंखें गुस्से से लाल थीं।
"ये मेरे और नितारा के बीच आ रहा है, रुद्र,,, इसे सबक सिखाना जरूरी है।"
विक्रांत ने हांफते हुए कहा, "मुझे... मुझे नहीं पता तुम कौन हो,,, मैं नितारा को बस दोस्त की तरह जानना चाहता था!"
आश्रित ने उसे एक ठंडी नजर दी और उसका पैर छोड़ने की धमकी दी।
"दोस्त? तू नितारा का दोस्त बनने की सोच भी मत,, यहां तक कि उसे देखना भी मत,,, वो मेरी है, समझा?"
तभी नीचे से कुछ स्टूडेंट्स की आवाजें सुनाई दीं। हर कोई छत की ओर देख रहे थे ।
" प्लीज उसे छोड दिजिये,,,, क्या कर रहे है,, आप,,, प्लीज उन्हें छोड दिजिये,,,,, "' नीचे खडी नितारा नें रोते हुए कहा । वही नितारा की आवाज सुन आश्रित के फेस पर स्माइल आ गयी ।
वो नितारा को दिवानगी के साथ देखने लगा तो नितारा की आंखो में आंसू थे ।
आश्रित को पंसद नही आ रहा था कि नितारा किसी ओर के लिये फिक्र जता रही है, उसका दिल जलने लगा था,, आश्रित ने एक आखिरी बार विक्रांत को घूरा, फिर उसे ऊपर खींचकर उसका पैर छोड़ दिया। विक्रांत फर्श पर गिरा, हांफते हुए और डर से कांपते हुए, उसकी हालत खराब थी । आश्रित ने उसकी ओर देखकर कहा, "अगली बार तुझे नीचे फेंक दूंगा,,, नितारा से दूर रह,,,!!
वो रुद्र के साथ छत से नीचे उतर गया, लेकिन उसका गुस्सा अभी शांत नहीं हुआ था। वो नितारा के बिल्कुल सामनें आ गया । नितारा के चेहरे को देखने हुए वो उसके आंसूओ को अपनी उंगली से साफ करता है । नितारा का चेहरा डर से सफेद पड़ गया। उसने आसपास देखा, सब उसे ही देख रहे थे । रिया भी यह देखकर हैरान थी । उसका दिल भी जोर-जोर से धड़क रहा था। उसनें आश्रित को आजतक टीवी और मैगजीन्स पर ही देखा था, वो बेहद पॉपुलर था, पर उसका ऐसा भी कोई रूप होगा उसनें सोचा नही था । नितारा तो आश्रित को और उसके बर्ताव को देखकर हैरानी से उसे देख रही थी और उसका बदन कांप रहा था ।
आश्रित नितारा के बिल्कुल करीब आकर रुका । उसकी आँखों में एक जुनूनी चमक थी, जैसे वो नितारा को अपनी नजरों से बांध लेना चाहता हो । नितारा ने डर के मारे अपने कदम पीछे खींचे, लेकिन आश्रित ने तेजी से उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपनी ओर खींच लिया । उसकी पकड़ मजबूत थी, लेकिन उसमें एक अजीब-सी सावधानी भी थी, जैसे वो नितारा को चोट नहीं पहुंचाना चाहता । उसने नितारा को गहरी नजरों से देखा और फिर कैंपस में मौजूद सभी लोगों की ओर मुड़कर जोर से कहा,
"सुन यह मेरी है! यह सिर्फ मेरी है,,, अगर किसी लड़के ने इसे छूने की कोशिश की, या इससे दोस्ती करने की हिम्मत भी की, तो उसका अंजाम बहुत बुरा होगा और हाँ, अगर किसी लड़की ने इसे परेशान करने की कोशिश की, तो उसे भी मैं नहीं छोड़ूंगा,,,, समझ गए?"
उसकी आवाज में इतनी सख्ती थी कि कैंपस में सन्नाटा छा गया। हर कोई चुपचाप उसे देख रहा था।
रिया, जो अब तक हैरानी से ये सब देख रही थी, ने नितारा की ओर देखा, लेकिन नितारा की आँखें आंसुओं से भरी थीं। वो आश्रित को देख रही थी, उसका चेहरा डर और हैरानी से भरा हुआ था। आश्रित ने फिर नितारा की ओर देखा। उसकी नजरें अब नरम पड़ गई थीं। वो धीरे से उसके करीब आया, उसने नितारा के गाल पर हल्के से उंगलियां फिराईं और आंसुओं को पोंछते हुए प्यार भरी आवाज में बोला, "मुझे तुम्हारी आँखों में आंसू पसंद नहीं, डॉल! तुम्हें पता है ना, मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ! मैं तुम्हारे लिए पागल हूँ! याद रखो, तुम सिर्फ मेरे लिये बनी हो,,, इसलिये किसी को अपने करीब मत आने देना,,,,"
नितारा कुछ बोल नहीं पाई। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, और वो बस आश्रित को देखती रही । आश्रित ने उसका हाथ छोड़ा और एक कदम पीछे हटा। फिर उसने रूद्र को इशारा किया तो वो एक बॉक्स लेकर वहां आया , जिसमें एक खूबसूरत लाल रंग की ड्रेस थी। उसने वो बॉक्स नितारा की ओर बढ़ाया और कहा, "ये तुम्हारे लिए है। आज रात मैं सनलाइट होटल में तुम्हारा इंतजार करूंगा, डिनर के लिए,,,, इसे पहनकर आना,,,,,"
नितारा ने डरते-डरते बॉक्स लिया, लेकिन उसकी आँखों में साफ़ दिख रहा था कि वो असहज थी। आश्रित ने उसकी ओर एक आखिरी बार देखा, फिर मुड़ा और कॉलेज के प्रोफेसर शर्मा के ऑफिस की ओर चला गया। वहाँ उसने प्रोफेसर से सख्त लहजे में कहा, "नितारा को कोई परेशान न करे, समझे? उसकी सिक्योरिटी का ध्यान रखें, और अगर कोई उसके आसपास भी दिखा, तो मुझे खबर मिलनी चाहिए।"
प्रोफेसर शर्मा, जो आश्रित की रसूख और गुस्से से वाकिफ थे, ने सिर्फ सिर हिलाया। आश्रित वहाँ से निकल गया, लेकिन उसका मन अभी भी उथल-पुथल में था। नितारा को रिया नें सम्भाला हुआ था लेकिन ओर स्टुडेन्ट नितारा के पास आने से भी डर रहे थे ।
छुट्टी के बाद,,,, नितारा अपने फ्लैट पर पहुंची। उसका चेहरा अब भी डर और हैरानी से भरा हुआ था। उसने वो बॉक्स मेज पर रखा और सुरभि को फोन किया। कुछ ही देर में,, सुरभि भी बार से आई और नितारा ने उसे सारी बात बताई, तो सुरभि का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
"ये क्या बकवास है, नितारा? ये साले माफियाज कौन है? और वो तुझ पर इतना हक क्यों जता रहा है? तुझे उससे मिलने की कोई जरूरत नहीं है!" सुरभि ने गुस्से में कहा।
नितारा ने गहरी सांस ली और धीरे से बोली, "सुरभि, हमें जाना होगा,,, हमें उससे बात करनी होगी,,,, उसे बताना होगा कि हम उनसे प्यार नही करते,,,, हम नहीं चाहते कि ये सब और बढ़े। वो... वो खतरनाक है,,, तुमने देखा नहीं पर उसने विक्रांत के साथ क्या किया है यह देखकर तो हम डर गये है,, उनका एक हाथ काम नही कर रहा था पर फिर एक उन्होने छह फुट लम्बें आदमी को एक हाथ से उठा रखा था,,, सभी अब हमसे दूर भाग रहे थे,,, हमें तो बहुत असहज लग रहा था,,,"
सुरभि ने उसे रोकने की कोशिश की। "नितारा, तू पागल हो गई है? वो आदमी ठीक नहीं है! तुझे उससे दूर रहना चाहिए।"
" नही, हमें जाना ही होगा,,, वो ऐसा करने लगे तो हमारा घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा,,,!!
सुरभि नें उसे समझाने की कोशिश की लेकिन नितारा ने उसकी बात नहीं मानी। उसने फैसला कर लिया था। वो तैयार होने लगी, लेकिन उसने आश्रित की दी हुई ड्रेस नहीं पहनी। उसने अपनी साधारण सी नीली ड्रेस चुनी और तैयार होकर निकल गई।
उधर, आश्रित ने पूरे होटल को बुक कर लिया था। वो एक शानदार टेबल पर बैठा नितारा का इंतजार कर रहा था। उसने काले रंग का सूट पहना था, और उसकी आँखों में एक अजीब-सी बेचैनी थी। वो बार-बार अपनी घड़ी देख रहा था, लेकिन नितारा नहीं आई। वहीं, नितारा होटल की ओर जा रही थी, जब अचानक एक कार उसकि टैक्सी के सामने रुकी। कार का दरवाजा खुला, और अथर्व बाहर निकला। उसका चेहरा गुस्से और जलन से भरा हुआ था। उसने नितारा का हाथ पकड़ा और उसे जबरदस्ती कार में खींच लिया।
" कौन है आप,, और हमें क्यो ले जा रहे है,,,! "
" चलो मेरे साथ जानम!! "अथर्व ने गुस्से में पूछा।
" आप उस रात वाले सख्स है न,,, हमें छोडिये,, वरना हम चिल्लाएगे,,,!! " नितारा ने विरोध किया, लेकिन अथर्व ने उसकी एक न सुनी।
"तुम उस आश्रित से मिलने जा रही थी, ना? वो विक्रांत भी तुम्हें परेशान कर रहा था न,,,, तुमनें मुझे बताया क्यों नही,,,,!! " अथर्व नें नितारा को पकडा और उसे जबरदस्ती कार में बैठा दिया ।
नितारा तो बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी पर अथर्व नें कार लॉक कर दी । वो कार स्टार्ट करता है नितारा कार से चिपक जाती है य।
नितारा ने डरते हुए कहा, " प्लीज,,, हमें जाने दिजिये,,, आप जो कोइ भी है,, हमें आपके साथ नही जाना है,,,,,!!
अथर्व ने गाड़ी एक सुनसान जगह पर रोकी और नितारा की ओर देखा। उसकी आँखों में गुस्सा था, लेकिन कहीं न कहीं दर्द भी था।
" तुम्हें मुझसे दूर तुम खुद भी नही कर सकती हो जानम ! अथर्व सिंघानिया पागल है तुम्हारे लिये,,, जब उस दिन तुम मेरी गन पॉइट पर थी पर फिर भी इतनी रिलेक्स थी तभी से पागलो की तरह तुम्हें चाहने लगा हूं,,,,!!!
नितारा को उसकी बात सुन याद आया जब वो बिना सोचे उस झगडे में कूद गयी थी । नितारा की आँखें फिर से आंसुओं से भर गईं। वो समझ गयी कि यह सब उस दिन से ही शुरू हुआ है ।
" प्यार करता हूं तुमसे,,, खबरदार जो किसी ओर को देखा भी तो,, जान से मार दूंगा जो तुम्हारे करीब आने की कोशिश करेगा उसे चाहे वो मेरा भाई ही क्यो न हो,,,,"
नितारा का चेहरा और सफेद पड़ गया। उसने अथर्व की ओर देखा और कांपती आवाज में बोली, " आप तीनों मुझे डरा रहे है,,, मेैं तो यहां सिर्फ पढने आयी थी पर,,,!! "
अथर्व नें नितारा के कंधे पकडे और उसकी आंखो में देखते हुए बोला " जानम तुम जो चाहे करो पर मोरे अलावा किसी को मत देखना,,,,!!!
नितारा डर से कांप गयी । वो रोना चाहती थी पर रो भी नही पा रही थी,,, इधर आश्रित नें घडी में टाइम देखा पर नितारा अभी तक वहां नही आयी थी, यह सोच सोचकर उसका गुस्सा बढता ही जा रहा था । रूद्र जो कि आश्रित को गुस्से से टहलते हुए देख रहा था, वो भी बार बार मैन डोर पर नजर घुमा रहा था
आश्रित का गुस्सा अब हद पार कर चुका था। सनलाइट होटल में नितारा के न आने से उसका सब्र जवाब दे गया था। उसने अपनी घड़ी पर एक बार फिर नजर डाली, फिर रुद्र की ओर देखकर सख्त लहजे में कहा, "चल, नितारा के फ्लैट पर,,, मुझे अब और इंतजार नहीं करना।"
रुद्र ने सिर हिलाया और दोनों तेजी से होटल से निकल गए। आश्रित की आँखों में गुस्से की आग साफ दिख रही थी, और रुद्र, जो उसका हर कदम पर साथ रहता था, चुपचाप उसका पीछा कर रहा था । उनकी गाड़ी तेजी से नितारा के फ्लैट की ओर बढ़ी।
नितारा के फ्लैट पर सुरभि अकेली थी। वो अभी भी नितारा के फैसले से परेशान थी और सोच रही थी कि उसे कैसे रोकना चाहिए था। तभी फ्लैट का दरवाजा जोर से खटखटाया गया। सुरभि ने चौंककर दरवाजा खोला, और सामने आश्रित को देखकर उसके होश उड़ गए। उसका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था, और उसके पीछे रुद्र की गंभीर शक्ल उसे और डरावनी लग रही थी।
"नितारा कहाँ है?" आश्रित ने बिना किसी भूमिका के सवाल दागा। उसकी आवाज में इतनी सख्ती थी कि सुरभि एक पल के लिये घबरा गई।
सुरभि ने हिम्मत जुटाकर कहा, "वो... वो यहाँ नहीं है,,,,!!
आश्रित ने एक कदम आगे बढ़ाया, उसकी आँखें सुरभि को घूर रही थीं। "कहाँ गई है? और तुम मुझे सच बताओ, वरना अच्छा नहीं होगा।"
सुरभि को अब गुस्सा आ रहा था। उसने आश्रित की ओर देखा और भड़कते हुए बोली, "तुम कौन होते हो नितारा के पीछे पड़ने वाले? तुम्हारा कोई हक नहीं बनता उसे डराने का! वो तुम्हारे साथ नहीं जाना चाहती, समझे? तुम जैसे माफिया टाइप लोगों को लगता है कि तुम जो चाहो वो कर सकते हो? नितारा कोई तुम्हारी जागीर नहीं है!"
आश्रित की भौंहें तन गईं, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। उसकी चुप्पी से सुरभि और भड़क गई। वो आगे बढ़ी और बोली, "तुम और तुम्हारा ये गुंडा!" उसने रुद्र की ओर इशारा किया। "तुम लोग नितारा को परेशान करना बंद करो, वरना मैं पुलिस को बुलाऊंगी!"
रुद्र, जो अब तक चुप था, ने सुरभि की बात सुनकर अपनी जैकेट से बंदूक निकाली और उसे सुरभि की ओर तान दी। उसकी आँखों में कोई भाव नहीं था, बस एक ठंडी क्रूरता थी।
"बोलने से पहले सोच ले, लड़की," रुद्र ने धीमी लेकिन खतरनाक आवाज में कहा। "हमारे चीफ के खिलाफ ज्यादा उछलने की जरूरत नहीं।"
सुरभि का चेहरा डर से सफेद पड़ गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने कांपती आवाज में कहा, "त...तुम मुझे डराओगे? मैं नितारा की दोस्त हूँ, और मैं उसे तुम जैसे लोगों से बचाऊंगी!"
आश्रित ने रुद्र को इशारा किया, और रुद्र ने बंदूक नीचे कर ली। फिर आश्रित ने सुरभि की ओर देखा और ठंडी आवाज में बोला, "मुझे नहीं पता नितारा से तुम्हारा क्या रिशता है, लेकिन तू ये बात अच्छे से समझ ले,, नितारा मेरी है, और जो मेरे और उसके बीच आएगा, उसका अंजाम वैसा ही होगा जैसा उस कॉलेज के लडके का हुआ,,, अब बता, वो कहाँ गई है?"
सुरभि ने एक पल के लिए हिचकिचाया, लेकिन फिर उसने गहरी सांस ली और कहा, "वो... वो तुमसे मिलने सनलाइट होटल गई थी,,, लेकिन अब तक वापस नहीं आई। मुझे नहीं पता वो कहाँ है।"
आश्रित की आँखों में एक अजीब-सी चमक आई।
उसने सुरभि को एक आखिरी बार घूरा और फिर रुद्र की ओर देखकर कहा, "चल, ढूंढते हैं। वो ज्यादा दूर नहीं जा सकती।"
दोनों फ्लैट से बाहर निकल गए, लेकिन सुरभि का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसने तुरंत अपना फोन निकाला और नितारा को कॉल करने की कोशिश की, लेकिन नितारा का फोन स्विच ऑफ था। सुरभि का डर अब और बढ़ गया। उसने सोचा कि उसे पुलिस को बताना चाहिए, लेकिन फिर उसे नितारा की बात याद आई कि आश्रित कितना खतरनाक है। सुरभि को समझ नही आ रहा था कि नितारा कहा चली गयी है,, वो तो उससे मिलने होटल ही गयी थी, उसनें किसी को कॉल किया और उसे नितारा के बारे में ढुंढने को बोली ।
इधर, अथर्व नितारा को अपने साथ ले जा रहा था, वो काफी डरी सहमी से कार में बैठी थी, उसका मोबाइल भी बंद हो गया था । उसे कुछ समझ नही आ रहा था, रात के दस बजे, एक अनजान आदमी उसे कहा ले जा रहा है, वो काफी घबरायी सी बैठी थी । वही अथर्व नें कार में म्यूजिक चला रखा था।
" तू ही हकिकत ख्वाब तू,, दरिया तू ही ख्वाब तू, तेरे बिना मैं ना जिऊं,, ना जिऊं....."
गाने की यह लाइन्स अथर्व के दिल से ही निकल रही थी । नितारा उसे पूछना चाहती थी कि वो कहा जा रहे है पर डर के मारे उसके मुंह से आवाज ही नही निकल रही थी और कही ना कही उसे डर लग रहा था कि कही आश्रित को उसके गायब होने का पता न चल गया हो ।
उधर, आश्रित और रुद्र होटल के बाहर पहुंचे, लेकिन वहाँ नितारा नहीं थी। आश्रित का गुस्सा अब बेकाबू हो रहा था। उसने रुद्र से कहा, "उसके फोन को ट्रैक करो,, मुझे अभी पता करना है वो कहाँ है "
रुद्र ने फौरन अपने फोन से कुछ कॉल्स किए और नितारा के फोन की लोकेशन ट्रैक करने की कोशिश शुरू कर दी। कुछ ही देर में उसे पता चला कि नितारा का फोन स्विच ऑफ है। आश्रित ने गुस्से में मुट्ठी भींच ली और बड़बड़ाया, "वो मुझसे छुपने की कोशिश कर रही है? नितारा, तुम कितना भी भाग लो, मैं तुम्हें ढूंढ ही लूंगा।"
रुद्र ने सुझाव दिया, "चीफ, हमें उसके कॉलेज और फ्लैट के आसपास के सीसीटीवी फुटेज चेक करने चाहिए,,, वो ज्यादा दूर नहीं जा सकती,,,,!!
आश्रित ने सिर हिलाया और कहा, "ठीक है और सुन, अगर उसके बारे में कुछ भी पता चले तो मुझे तुरंत खबर कर !!
आश्रित को नितारा चाहिये थी और नितारा को खुद मालूम नही था कि वो कहा जा रही है । उसनें इधर उधर देखा पर कार के बाहर सिर्फ अंधेरा जंगल था... वो डर रही थी कि कही अथर्व उसके साथ कुछ गलत तो नही करने जै रहा है, उसनें अपने सुट को कसकर पकड लिया था ।
नितारा का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। टैक्सी से उतरने के बाद अथर्व ने उसे जबरदस्ती अपनी कार में बिठाया और शहर के बाहर की ओर ले गया। गाड़ी एक घर के बाहर रूकी । घर ना तो ज्यादा बडा था और ना ही ज्यादा छोटा !
घर के बाहर कई हथियार पकडे बॉडीगार्ड्स खड़े थे, जिनके चेहरों पर कोई भाव नहीं था। नितारा ने आसपास देखा, और उसका डर और बढ़ गया। ये जगह उसे किसी कुछ खतरनाक लग रही थी।
अथर्व ने कार का दरवाजा खोला और नितारा की ओर देखकर सख्त लेकिन शांत आवाज में कहा, "बाहर आ जाओ जानम !! "
नितारा ने कांपते कदमों से कार से बाहर कदम रखा। उसकी नजरें इधर-उधर घूम रही थीं, और तभी उसका ध्यान घर के गेट के पास गया। वहाँ उसका सीनियर, विक्रांत, घुटनों के बल बैठा हुआ था। उसका चेहरा खून से सना था, और उसकी हालत ऐसी थी जैसे उसे बुरी तरह पीटा गया हो। विक्रांत की आँखों में डर साफ दिख रहा था, और वो बार-बार सिसक रहा था।
नितारा का दिल एकदम बैठ गया। उसने डर से अथर्व की ओर देखा, लेकिन अथर्व का चेहरा पत्थर की तरह सख्त था। उसने नितारा का हाथ पकड़ा और उसे विक्रांत के सामने खड़ा कर दिया। फिर उसने विक्रांत की ओर देखकर ठंडी, खतरनाक आवाज में कहा, "ये मेरी है,,, सुना न तुऩे,,, यह मेरी है,,, तुझे इतनी हिम्मत कैसे हुई कि तू इसके करीब गया? सुबह मुझे कुछ काम था, तो मुझे जाना पड़ा, लेकिन तेरी बैंड बजाने तो मैं आता ही,,, मन तो कर रहा है तुझे जान से मार दूँ!"
अथर्व ने अपनी कमर से बंदूक निकाली और उसे विक्रांत की कनपटी पर तान दी। विक्रांत की साँसें रुक गईं, और वो डर से कांपने लगा।
" मुझे माफ कर दो,,,,, माफ करो प्लीज,,, " विक्रांत नें डर से कांपकर कहा । वही अथर्व नें जमीन पर एक गोली चला दी ।
नितारा ने ये देखकर एक चीख दबाई और अथर्व की ओर देखा। उसकी आँखें आंसुओं से भरी थीं, और उसका बदन डर से थरथरा रहा था। वो अथर्व से भी डर रही थी, लेकिन उसे विक्रांत की हालत देखकर और बुरा लग रहा था।
" उसे मत मारिये,,, प्लीज!" नितारा ने कांपती आवाज में कहा। "उन्हें छोड़ दिजिये,,, वो कुछ नहीं कर रहे थे,, हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से कोई मरे। प्लीज, उसे जाने दिजिये !"
अथर्व ने नितारा की ओर देखा। उसकी आँखों में गुस्सा था, लेकिन नितारा की कांपती आवाज सुनकर उसका चेहरा थोड़ा नरम पड़ा। उसने बंदूक अभी भी विक्रांत की ओर तानी हुई थी, लेकिन उसने नितारा से कहा, " तुम्हारी वजह से कोई नही मर रहा है,, यह खुद अपनी करतूत की वजह से मर रहा है,,, इसनें तुम्हारे करीब आने की कोशिश की,जहा सिर्फ मेरा हक है, मैं अपनी मोहब्बत को किसी ओर के साथ नही देख सकता,,,!!
नितारा ने हिम्मत जुटाकर कहा," "ये मोहब्बत नहीं है ये जुनून है और ये जुनून सबको बर्बाद कर देगा,,, प्लीज, विक्रांत को छोड़ दिजिये,, वो सिर्फ हमारा सीनियर है,, हम इनसे बात नही करेगे,,, पर प्लीज इन्हें नुकसान मत पहुचाइये,,,,!!
विक्रांत ने हांफते हुए कहा, " मैं... मैंने कुछ गलत नहीं किया,,, मैं बस नितारा से बात कर रहा था। प्लीज, मुझे छोड़ दो,,,,!!
अथर्व की आँखें एक पल के लिए नितारा को मासूम चेहरे पर ठहर गयी, फिर उसने बंदूक नीचे कर ली। उसने विक्रांत को घूरते हुए कहा, "तुझे आज छोड़ रहा हूँ, सिर्फ नितारा की वजह से,,, लेकिन अगर तू फिर से इसके आसपास दिखा, तो मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा।"
विक्रांत ने डर से सिर हिलाया और घुटनों के बल ही पीछे हटने लगा। अथर्व ने अपने बॉडीगार्ड्स को इशारा किया, और उन्होंने विक्रांत को उठाकर वहाँ से ले गए। नितारा अब भी कांप रही थी, और उसकी आँखें आंसुओं से भरी थीं।
अथर्व ने नितारा की ओर देखा और उसका कंधा पकड़कर कहा, " जानम,, तुम डरो मत,,, मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा,,, लेकिन ये बात याद रखो, तुम सिर्फ मेरी हो,,,!!
नितारा ने उसकी आँखों में देखा और धीरे से कहा, "अथर्व, हम किसी के नही है,,, न आपकी न किसी ओर की,,, हम सिर्फ अपनी जिंदगी जीना चाहते है,, पर आप तीनो हमें परेशान कर रहे है,,हम तो आपकी किसी से शिकायत भी नही कर सकते है,,, क्योंकि हमारी तो कोई सुनेगा भी नही,,,!!;
अथर्व नें उसे प्यार से देखकर कहा " शिकायत तो तुम सिर्फ मुझसे करो,,, मैं तुम्हारी सारी शिकायत सुन लूंगा पर खरबदार जो मुझसे दूर जाने की कोशिश भी की तो,,,, "
अथर्व का चेहरा सख्त हो गया, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। उसने नितारा को कार की ओर इशारा किया और कहा, "चलो,,, मैं तुम्हें वापस छोड़ देता हूँ। लेकिन ये बात याद रखना, मैं तुम्हें कभी छोड़ने वाला नहीं हूँ।"
नितारा चुपचाप कार में बैठ गई, लेकिन उसका मन भारी था। उसे अब अथर्व और आश्रित, दोनों से डर लग रहा था। वो सोच रही थी कि वो इस जुनूनी जाल से कैसे निकलेगी।
उधर, आश्रित और रुद्र नितारा की तलाश में शहर की सड़कों पर थे। आश्रित का गुस्सा अब भी शांत नहीं हुआ था। रुद्र ने उसे बताया कि नितारा का फोन स्विच ऑफ है, लेकिन उन्होंने कुछ सीसीटीवी फुटेज में देखा कि वो एक टैक्सी में शहर के बाहर की ओर गई थी।
आश्रित ने मुट्ठी भींच ली और बड़बड़ाया, "वो मुझसे बच नहीं सकती,,, रुद्र, उस टैक्सी का नंबर ट्रैक करो,, मुझे नितारा चाहिए, चाहे कुछ भी हो जाए।"
रुद्र ने फौरन अपने लोगों को कॉल किया और टैक्सी की तलाश शुरू कर दी। आश्रित की आँखों में वही जुनूनी आग थी, और वो मन ही मन सोच रहा था कि वो नितारा को जल्द ही अपने पास लेकर आएगा, अभी तक उसे पता नही चला था कि अथर्व उसे अपने साथ लेकर गया है ।
नितारा, जो अब अथर्व के साथ कार में थी, को नहीं पता था कि आश्रित उसकी तलाश में और करीब आ रहा था। उसका दिल बस यही दुआ कर रहा था कि वो इस खतरनाक जुनून से किसी तरह बच जाए। वो तो अभी यह भी सोच रही थी कि वो आश्रित से मिलने नही गयी, न जाने वो क्या करेगा । क्योंकि वो तीनो भाईयो के जूनून को देख चुकी थी ।
अथर्व ने नितारा को उसकी बातों के बावजूद चुपचाप उसके फ्लैट के बाहर छोड़ दिया। कार से उतरते वक्त नितारा का मन भारी था, और उसकी आँखें अभी भी आंसुओं से गीली थीं। उसने अथर्व की ओर एक बार देखा, लेकिन कुछ बोले बिना फ्लैट की ओर बढ़ गई। अथर्व ने कार स्टार्ट की और चला गया, लेकिन उसकी आँखों में वही जुनूनी चमक थी। नितारा ने गहरी सांस ली और फ्लैट का दरवाजा खोला।
जैसे ही वो अंदर दाखिल हुई, उसका दिल धक् से रह गया। वहाँ, लिविंग रूम के सोफे पर आश्रित बैठा था। उसकी आँखें ठंडी और खतरनाक थीं, जैसे वो घंटों से नितारा का इंतजार कर रहा हो। रुद्र उसके पीछे खड़ा था, और उसकी मौजूदगी कमरे को और भारी बना रही थी। नितारा ने डर से एक कदम पीछे लिया, लेकिन आश्रित धीरे-धीरे, खतरनाक अंदाज में उसकी ओर बढ़ा।
"तुम कहाँ थी, डॉल ?" आश्रित की आवाज शांत थी, लेकिन उसमें एक ऐसी तीव्रता थी कि नितारा का गला सूख गया। वो कुछ बोलने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसकी आवाज अटक रही थी।
" हम़,,, हम,,,.." नितारा ने हकलाते हुए कहा, लेकिन इससे पहले कि वो कुछ और बोल पाती, आश्रित ने तेजी से उसका कलाई पकड़ी और उसे अपनी बाहों में उठा लिया। नितारा ने विरोध करने की कोशिश की, लेकिन आश्रित की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो छटपटा भी नहीं सकी।
" हमें छोडिये,,, आप हमें उठा क्यो रहे है,,, ये क्या कर रहे हो?" नितारा ने डर और गुस्से में कहा, लेकिन आश्रित ने उसकी एक न सुनी। वो उसे बाहों में लिए बाहर की ओर बढ़ा और अपनी कार में बिठा दिया। नितारा ने दरवाजा खोलने की कोशिश की, लेकिन दरवाजा लॉक था। रूद्र जो पीछे ही खडा था, वो यह देखकर मन में बोला " चीफ बेहद गुस्से में है,,, इतनी देर से नितारा को नही देखा तो एकदम बौखला गये है,,,"
" प्लीज! हमें जाने दो!" नितारा ने रोते हुए कहा, लेकिन आश्रित ने उसकी ओर एक ठंडी नजर डाली, वो बोला " तुम मुझसे दूर नहीं जा सकती हो, डॉल और आज मैं तुझे ये बात अच्छे से समझा दूंगा।"
यह सुन नितारा डर से कांप गयी । इधर, फ्लैट में सुरभि ने ये सब देख लिया। वो आश्रित को रोकने के लिए दौड़ी और चीखी, "रुक जाओ! तुम नितारा को कहीं नहीं ले जा सकते! मैं पुलिस को बुलाऊंगी!"
लेकिन इससे पहले कि वो कुछ और कर पाती, रुद्र ने उसे पीछे से पकड़ लिया। उसकी पकड़ मजबूत थी, और सुरभि जितना छटपटाई, उतना ही उसकी पकड़ और सख्त होती गई।
"छोड़ो मुझे, तुम गुंडे!" सुरभि ने गुस्से में चीखते हुए कहा। "तुम लोग नितारा को परेशान करना बंद करो! वो कोई तुम्हारे बाप की जागीर नही है जो उसे उठाकर कही भी ले जाते हो,,,, मैं पुलिस से कम्पलेन करूंगी "
रुद्र ने उसे कसकर पकड़े रखा और ठंडी आवाज में कहा, "शांत हो जा, लड़की। चीखने-चिल्लाने से कुछ नहीं होगा। और अगर पुलिस बुलानी है, तो बुला।" उसने अपनी जेब से फोन निकाला और पुलिस का नंबर डायल कर दिया। फोन स्पीकर पर था, और उसने सुरभि की ओर देखकर कहा, "बोल, कर कम्प्लेन।
सुरभि का गुस्सा अब सातवें आसमान पर था। उसने रुद्र को घूरते हुए कहा, "तुम लोग कितने नीच हो! नितारा को डराने का, उसे किडनैप करने का हक तुम्हें किसने दिया? तुम्हारा वो चीफ एक साइको है, और तू उसका कुत्ता बनकर उसकी गंदी हरकतों में साथ दे रहा है!"
रुद्र की आँखों में एक पल के लिए गुस्सा चमका, लेकिन उसने खुद को संभाला। उसने शांत लेकिन सख्त लहजे में कहा, "सुन, लड़की। मेरे चीफ नितारा को कुछ नहीं करेंगे। हाँ, वो जुनूनी हैं, लेकिन उनका कैरेक्टर खराब नहीं है। नितारा को कोई नुकसान नहीं होगा।"
सुरभि ने उसकी बात को नजरअंदाज करते हुए चीखकर कहा, "कैरेक्टर? तुम लोग नितारा को डरा रहे हो, उसे जबरदस्ती ले जा रहे हो, और तू इसे कैरेक्टर कहता है? तुम सब गुंडे हो, और मैं ये सब ऐसे नहीं छोड़ूंगी! मैं तुम्हारा मुंह तोड दूंगी,,,,,"
रुद्र ने उसकी ओर एक ठंडी नजर डाली और कहा, "जितना चीखना है, चीख ले। लेकिन चीफ ने जो ठान लिया, वो होकर रहेगा। नितारा उनके साथ सुरक्षित है।"
सुरभि ने गुस्से में अपना फोन उठाया और पुलिस को कॉल करने की कोशिश की, लेकिन रुद्र ने उसका फोन छीन लिया और उसे जेब में डालते हुए कहा, "शांत रह, वरना तुझे भी पछताना पड़ेगा।"
उधर, आश्रित नितारा को लेकर अपने शानदार अपार्टमेंट में पहुंच चुका था। अपार्टमेंट शहर के सबसे पॉश इलाके में था, और उसकी सजावट ऐसी थी जैसे वो किसी फिल्म का सेट हो। आश्रित ने नितारा को सोफे पर बिठाया, लेकिन नितारा अब भी डर से कांप रही थी ।
वो बोली" आप सब ये क्या कर रहे हो? हमें हमारे फ्लैट वापस ले चलिये !" नितारा ने कांपती आवाज में कहा।
आश्रित ने उसके सामने घुटनों के बल बैठते हुए उसकी आँखों में देखा। उसकी नजरें अब नरम थीं, लेकिन उनमें वही जुनूनी चमक थी। उसने नितारा का चेहरा अपने हाथों में लिया और धीरे से कहा, "डॉल, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हें कभी चोट नहीं पहुंचाऊंगा। मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तुम मेरी जिंदगी हो। लेकिन तुम बिवा बताये कहा चली गयी थी,, और उस अथर्व के साथ क्या कर रही थी ?
नितारा ने उसकी आँखों में देखा और कहा, " वो हमें किडनैप करके ले गये थे जैसे आप हमें ले आये,,, आप तीनो का कोई रिश्ता है क्या,,, !!
आश्रित बीच में बोला " मेरा किसी से कोई ऱिश्ता नही है पर मैं तुमसे रिश्ता बनाना चाहता हूं,,,
आश्रित को बिल्कुल पसंद नही आया था नितारा का अथर्व और अर्पण से उसका नाम जोडना ।
नितारा नें भीगी पलको से उसे देखते हुए कहा " आप तीनो हमें ऐसे क्यो ट्रीट करते हो,,, हमसे गलती हो गयी थी कि हम उस दिन आप तीनो के मसले में आ गये थे, पर उसकी हमें इतना बडी सजा मिल रही है,,, प्लीज हमें माफ कर दिजिये,,, हम आइंदा ऐसा कुछ नही करेगे,,, सुरभि हमारी दोस्त वो परेशान हो रही होगी,, प्लीज हमें जाने दिजिये,,,,हमें आजाद कर दिजिये !!
आश्रित की आँखों में एक पल के लिए दर्द चमका, लेकिन फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा, "आजाद? तुम मेरे बिना अधूरी हो, डॉल और मैं तुम्हें कभी छोड़ने वाला नहीं हूँ।"
नितारा की आँखें फिर से आंसुओं से भर गईं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो इस जाल से कैसे निकले। वो बस यही सोच रही थी कि काश सुरभि या कोई और उसकी मदद के लिए आ जाए। लेकिन उसे नहीं पता था कि सुरभि खुद रुद्र के सामने बेबस थी, और आश्रित का जुनून अब उसे और गहरे जाल में फंसा रहा था। आश्रित को तो अथर्व पर बेहद गुस्सा आ रहा था, वो उसकी डॉल को उठाकर कैसे ले गया था .
आश्रित नें उसके कपडो को देखा, वो बोला " तुम मुझसे मिलने आ रही थी न,,, तो फिर तुमने मेरी दी हुई ड्रैस क्यो नही पहनी डॉल,,,, "
नितारा यह सुन घबरा गयी,, उसनें इतना कुछ देख लिया था कि अभी आश्रित से बात करने में उसे डर लग रहा था ।
नितारा का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। आश्रित की बातें और उसकी जुनूनी नजरें उसे और डरा रही थीं। उसने अपनी कांपती आवाज को संभालने की कोशिश की और धीरे से कहा, " हम,,, हम उस ड्रेस को नहीं पहनना चाहते थे। हम तो बस आपसे बात करने आने वाले थे, ताकि ये सब खत्म हो। हम आपसे बार-बार कह रहे है,,, हमें आजाद रहने दिजिये,,, आप सभी हमें किसी ट्रॉफी की तरह ट्रीट कर रहे है,,,,"
आश्रित की मुस्कान एकदम गायब हो गई। उसकी आँखों में फिर वही खतरनाक चमक लौट आई। वो नितारा के और करीब आया, इतना कि नितारा उसकी सांसों को महसूस कर सकती थी। उसने नितारा का चेहरा फिर से अपने हाथों में लिया और ठंडी, लेकिन खतरनाक आवाज में कहा, "डॉल, तुम बार-बार गलत बात कर रही हो। आजाद? तुम्हें लगता है तुम मुझसे दूर जा सकती हो? और ये अथर्व... उसने तुम्हें छूने की हिम्मत कैसे की? मैं उसे सबक सिखाऊंगा। लेकिन पहले, तुम्हें ये समझना होगा कि तुम मेरे बिना कुछ भी नहीं हो।"
नितारा ने डरते हुए अपने को पीछे खींचने की कोशिश की, लेकिन आश्रित ने उसे और मजबूती से पकड़ लिया।
"प्लीज,,,,," नितारा ने लगभग रोते हुए कहा, "हम बस अपनी जिंदगी जीना चाहते है, हमनें कुछ गलत नहीं किया। तुम, अथर्व, अर्पण... आप सब हमें डरा रहे हो। हम बस एक आम सी लडकी है,,, जो कॉलेज में पढ़ना चाहती है। हमें इस जुनून में मत फंसाइये,,,,।"
आश्रित ने एक पल के लिए उसकी बात सुनी, और उसकी आँखों में एक अजीब-सी उदासी झलकी। लेकिन फिर उसने अपने चेहरे पर वही जुनूनी मुस्कान लौटाई और कहा, "तुम समझती क्यों नहीं, डॉल? मैं तुम्हें दुनिया की हर चीज दे सकता हूँ। तुम मेरे साथ रानी की तरह रहोगी,, लेकिन अगर तुम मुझसे दूर जाने की कोशिश करोगी, तो मैं वो सब कुछ बर्बाद कर दूंगा जो तुम्हारे लिए कीमती है।"
नितारा का चेहरा डर से और सफेद पड़ गया। उसने आश्रित की आँखों में देखा और कांपती आवाज में कहा, " आप, आप ऐसा क्यों कर रहे हो? हमनें आपका क्या बिगाड़ा है? हमें पकडकर क्यो रख रहे है आप,,,"
आश्रित ने एक गहरी सांस ली और उसका चेहरा छूते हुए कहा, "तुमने कुछ नहीं बिगाड़ा, डॉल। तुमने बस मेरा दिल चुरा लिया। और अब मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ सकता।"
तभी आश्रित ने अपने कमरे की ओर इशारा किया और कहा, "चलो, तुम्हें कुछ देर आराम करना चाहिए,,, मैं तुम्हारे लिए खाना मंगवाता हूँ। और हाँ, वो ड्रेस... मैं चाहता हूँ कि तुम उसे पहनो। मैं तुम्हें उसमें देखना चाहता हूँ।"
नितारा ने सिर हिलाकर मना किया और कहा, " हम कोई ड्रेस नही पहनने वाले,,, और हम यहाँ नहीं रुकना चाहते,,, हमें हमारी दोस्त के पास जाना है,,,,!!
आश्रित की आँखें सिकुड़ गईं। उसने नितारा को एक गहरी नजर से देखा और बोला " मैनें वो ड्रेस तुम्हारे लिये बहुत घंटो तक ढूंढी थी,,, अगर कुम पहनोगी तो मुझे अच्छा लगेगा,,,, डॉल,,,!!
नितारा ने डर से अपनी आँखें बंद कर लीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो यहा से कैसे निकले। उसका दिमाग तेजी से सोच रहा था, लेकिन कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था।
इधर, सुरभि अभी भी रुद्र के सामने खड़ी थी। उसका गुस्सा अब भी कम नहीं हुआ था, और वो रुद्र को बुरा-भला कह रही थी।
"तुम लोग नितारा को डराकर रख दोगे! तुम्हारा चीफ एक पागल है, और तुम उसकी गंदी हरकतों का साथ दे रहे हो,, तुझे शर्म नहीं आती?"
रुद्र ने शांत लेकिन सख्त लहजे में कहा, "मैंने तुझे कहा ना, मेरे चीफ नितारा को कुछ नहीं करेंगे। वो उससे प्यार करते हैं। और तू जितना चाहे चीख-चिल्ला ले, लेकिन चीफ ने जो ठान लिया, वो होकर रहेगा।"
सुरभि ने गुस्से में कहा, "प्यार? ये प्यार नहीं है, ये सनक है! और तू... तू एक गुंडा है, जो अपने मालिक की चापलूसी कर रहा है! मैं नितारा को बचाने के लिए कुछ न कुछ जरूर करूंगी!"
रुद्र ने उसकी ओर एक ठंडी नजर डाली और कहा, "देख, लड़की, तू चाहे जितना कोशिश कर ले, लेकिन चीफ के सामने कोई नहीं टिक सकता। और हाँ, अगर तू पुलिस के पास गई, तो याद रख, चीफ का रसूख तुझसे कहीं ज्यादा बड़ा है।"
सुरभि का गुस्सा और भड़क गया, लेकिन वो रुद्र की पकड़ से छूट नहीं पा रही थी। उसने आखिरी बार चीखकर कहा, "मैं नितारा को तुम लोगों के चंगुल से छुड़ाकर रहूंगी!"
रुद्र ने उसका फोन वापस उसे थमा दिया और कहा, "ठीक है, जा। पुलिस को बुला। लेकिन ये याद रख, नितारा अब चीफ की दुनिया में है। और वहाँ से निकलना इतना आसान नहीं।"
सुरभि ने फोन फेंका और अपने मोबाइल से तुरंत पुलिस को कॉल करने की कोशिश की, लेकिन उसका दिल डर से कांप रहा था। उसे पता था कि आश्रित जैसे लोग आसानी से कानून के शिकंजे में नहीं आते। फिर भी, उसने मन ही मन ठान लिया कि वो नितारा को बचाने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेगी।
उधर, आश्रित के अपार्टमेंट में नितारा अब भी सोफे पर बैठी थी। आश्रित ने उसके लिए खाना मंगवाया था, लेकिन नितारा ने उसे छूने से भी मना कर दिया। वो बार-बार आश्रित से कह रही थी, " हम यहां से कब जा पाएगे,,,!!;
आश्रित ने उसकी ओर देखा और धीरे से कहा, " डॉल अभी,,, तुम्हें यहाँ मेरे साथ रहना होगा। मैंने तुम्हारे लिए सब कुछ प्लान कर लिया है,,,!!
नितारा ने डरते हुए कहा, " प्लीज। ये सब बंद करिये,,हमें जाने दिजिये,,,!!
आश्रित ने एक ठंडी हंसी हंसी और कहा, "तुम्हारी जिंदगी अब मेरे साथ है, डॉल। और मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूंगा।"
तभी आश्रित का फोन बजा। आश्रित नें मोबाइस की स्क्रीन पर देखा तो दादू नेम फ्लैश हो रहा था ।
आश्रित नें कॉल रिसीव किया तो सामने से कुछ कहा गया जिस पर आश्रित की आंखो में गुस्सा भर गया ।
वो गहरी आवाज में बोला " मैं किसी से नही मिलना चाहता हूं दादू,,,,,!!
" जल्दी आ जाओ,,, मैं नही चाहता कि जैसे तुम नितारा को उठाकर ले आये हो,, वैसें मेैं तुम्हें लेने आऊं,,,, दादा हूं तुम्हारा,,, इतनी आसानी से अपनी मनमानी नही करने दूंगा और हा याद रहें,,, कोई खून खराबा नही करना है यहा आकर,,,, "
आश्रित नें गुस्से से कॉल काट दिया । वही नितारा खामोशि से उसका चेहरा देख रही थी ।