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प्रेम के रंग में

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Shruti Ahir

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"क्रिशिव! यार कैसे ? इतना सहन करने के बाद भी कोई इतना पॉजिटिव रह सकता है ?" " वैसे जैसे पता होता है कि इस रात के बाद सुबह होंगी। वैसे ही हर दर्द का एक मुक्कमल अंत जरूर होता है। हमारे दर्द का भी अंत होगा । और उनके भी... " कह कर वो चुप हो गया । "...

Total Chapters (4)

Page 1 of 1

  • 1. प्रेम के रंग में - Chapter 1

    Words: 1225

    Estimated Reading Time: 8 min

    Chapter 1


    "प्रेम के रंग में ऐसी डूबी, बन गया एक ही रूप
    प्रेम की माला जपते-जपते आप बनी मैं श्याम

    पी का नाम

    प्रीतम का कुछ दोष नहीं है, वो तो है निर्दोष
    अपने आप से बातें करके हो गई मैं बदनाम

    साँसों की माला पे सिमरूँ मैं पी का नाम

    प्रेम पियाला जब से पिया है, जी का है ये हाल
    अंगारों पे नींद आ जाए, काँटों पे आराम

    साँसों की माला पे सिमरूँ मैं पी का नाम

    प्रेम की माला जपते-जपते आप बनी मैं श्याम
    साँसों की माला पे सिमरूँ मैं पी का नाम"

    गंगा के किनारे बैठी एक लड़की अपनी मधुर आवाज में ये प्रेम गीत गा रही थी । आवाज में बेहद ही संजीदगी और दर्द लबरेज था ।

    तभी उसके कंधे पर कोई हाथ रखता है । जिससे वो बिना पीछे मुड़े ही स्वतः बोलती है "काशी! आप यहां कैसे आई? "

    "राजकुमारी! आपको युवराज पूरे महल में ढूंढ रहे है।"

    "काशी! युवराज से कह दीजिए कि हम कुछ देर बाद आ जायेंगे। अभी कुछ वक्त के लिए हुए एकांत चाहिए। "

    "पर राजकुमारी हो सकता है कि युवराज को कोई जरूरी काम हो आपसे  । "

    " जी काशी । बिल्कुल हो सकता है । लेकिन पूरे दिन में सिर्फ आधा घंटा ही हम हमारे लिए निकालते है । जिसमें हम खुद से खुद को जुड़ा हुआ महसूस कर सकते है। .... आप जाइए। हम आते है। " कह कर वो गंगा की लहरों को एक दूसरे की आगोश में समाते हुए देखती है ।

    काशी राजकुमारी का संदेश ले कर वहां से चली गई थी। लेकिन राजकुमारी अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी
    "प्रेम के रंग में ऐसी डूबी, बन गया एक ही रूप
    प्रेम की माला जपते-जपते आप बनी मैं श्याम"  फिर से ये एक अंतरा गुनगुनाती है ।

    इस एक अंतरे में उनका सारा दर्द, इंतजार  सब बयां हो रहा था ।

    की ओर पल वो वहां बैठी। आखिरकार वो वहां से अपने महल की ओर चलते हुए ही कदम बढ़ा लिए । उनका व्हाइट कलर का अनारकली सूट, ओर सुनहरे लंबे बालों की चोटी से निकली हुई लटें हवा की वजह से अटखेलिया कर रही थी । जिसकी वजह से अधरे हल्का सा मुस्कुरा उठे ।

    कुछ ही पल में वो अपने महल में थी । वही महल के अंदर पहुंचते ही वो युवराज को चहल कदमी करते हुए देखती है तो उनकी ओर ही बढ़ जाती है " युवराज! आपने बुलाया? "

    " जी !... कहा थी आप? "

    "कुछ वक्त अपने संग बीता रहे थे। आप बताइए कि आपने इतनी हड़बड़ाहट में हमे बुलाया ? कुछ हुआ है क्या? "

    "हुआ नहीं है... होने वाला है.... "

    " जो भी कहना है , स्पष्ट कहिए। "

    " छह दिन के बाद हमारा राज्याभिषेक होने वाला है। "

    " हा तो ये तो खुशी की बात है ना? "

    " खुशी की बात ? कैसे कुमारी ? आपको पता है ना कि राज्याभिषेक के लिए हमारा शादीशुदा होना जरूरी है? "

    " जी.. "

    " तो बाबा सा चाहते है कि तीन दिन के अंदर ही हम उनके मित्र की बेटी से शादी कर ले ।"

    " तो इसमें बुराई ही क्या है? "

    " आप बाबा सा से कहिए कि हम शादी के लिए अभी तैयार नहीं है। प्लीज कुमारी ! वो आपकी बात कभी नहीं टालेंगे । " युवराज लगभग गिड़गिड़ाते हुए विनती भरे लहजे में कहते है।

    " आप जानते है कि हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे युवराज । ओर अब तो हमें अनुमति भी नहीं किसी राज संबंधित बातों में हस्तक्षेप करने का । "

    " कुमारी ये राज संबंधित बात नहीं है । ये हमारे संपूर्ण जीवन का विषय है। "

    " तो बाबा सा पे विश्वास रखिए कि वो आपके लिए सर्व गुण सम्पन्न ही कन्या देखेंगे । "

    " लेकिन हम काशी से प्रेम करते है। हम सिर्फ ओर सिर्फ उनसे ही शादी करना चाहते । उनके अलावा हम किसी ओर को प्यार एवं प्रेम भरी नजरों से नहीं देख पाएंगे । " युवराज ने आखिर अपने रहस्य से पर्दा उठाते हुए कहा ।

    " लेकिन युवराज ! आपके ओर काशी के लिए कोई भी राजी नहीं होगा । ओर ये बात आप भलीभांति जानते है । "

    " जी जानते है कुमारी। लेके प्रेम पर हमारा वश तो नहीं होता। दिल किसी के लिए भी धड़क सकता है । ओर ये बात आप हमसे अधिक गहराई से जानती है ।

    " अगर हम इसे इतनी गहराई से जानते है ओर महसूस करते है तो उस हिसाब से कभी ना ही प्यार करना चाहिए , ना प्रेम और ना ही इश्क़। ये सब केवल जिंदगी में इंतेज़ार ओर दर्द ही देता है । आपके पास अब भी वक्त है इस सब से निकल कर वो कीजिए जो जन के, आपके ओर हमारे परिवार के हित में हो ।" कह कर वो जाने लगती है ।

    " कुमारी ... ! " पीछे युवराज उसे रोकते हुए बोला ।

    " जी.. ? "

    " अपने प्रेम किया है, तो आपको ये भी पता ही होगा कि प्रेम को न ही भुलाया जा सकता है, ओर न ही उनकी जगह किसी को दी जाती है। आपने फिर हमे पराया महसूस करवा दिया है । क्या हमें हमारी बहन कभी लौट कर नहीं मिलेगी? जो हमें छोटे कह कर संबोधन देती थी, हमें बेहिसाब प्रेम करती थी । हमारी एक खुशी के लिए कांटो पर चलने तक से नहीं हिचकिचाती थी। वो क्या कभी नहीं मिलेगी?  अब हमारी मुलाकात सिर्फ इन महल की बड़ी बेटी ओर राजकुमारी से ही होती है । हमारी बहन से नहीं । जिसे अब हमारी खुशियों से कोई लेना देना नहीं रहा ।"

    " हो गया आपका युवराज? आप इस राज्य के भावी राजा है, ओर आप पर ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती । "

    " हमें न ही कभी राजा बनना था और न ही ये सत्ता चाहिए थी। हमें शुरुआत से ही थोड़े प्रेम की चाहत थी। जो आपसे मिलता था, लेकिन वक्त जाते अब वो भी नहीं मिलता, अब केवल काशी है जिन्हें हम खोना नहीं चाहते। क्या एक आखिरी बार हमारी मदद नहीं कर सकती आप? अगर बाबा सा काशी के बदले हमसे राज पाट सब छीन ले तब भी हमें कोई प्रॉब्लम नहीं होगी । "

    " हम एक बार बाबा सा से कहेंगे। इससे ज्यादा उम्मीद हमसे ना रखिएगा। क्योंकि उम्मीद टूटती है तो सीने में काफी दर्द होता है। " कह कर वो सीढ़ियां चढ़ अपने कमरे में चली गई ।

    युवराज अपनी सुनी निगाहों से जाती हुई राजकुमारी की ओर देखने के अलावा ओर कुछ न कर सके । ओर आखिरकार थक कर वही बैठ गई । तभी उनके कंधे पर उन्हें किसी के हाथ का स्पर्श महसूस हुआ ।

    उन्होंने बिना देखे ही कहा " काशी! क्या प्रेम करना भूल है। "

    " प्रेम करना भूल नहीं । हमसे प्रेम करना भूल है। आप भावी राजा है यहां के ओर हम केवल एक दासी की पुत्री। जिनके माता पिता का निधन हो चुका है । "

    " कोई जन्म से दासी या राजा नहीं होता काशी। वो अपने कर्म से वो बनता है । ओर राजा भी दास ही होता है अपनी प्रजा का । "

    " युवराज आप व्यर्थ अपनी तकलीफ बढ़ा रहे है। आप हमें भूल आपके पिता के दोस्त की पुत्री से विवाह कर लीजिए । "

    "क्या आप देख पाएंगी? हमें किसी ओर का होते हुए? "



    To be continued....

  • 2. प्रेम के रंग में - Chapter 2

    Words: 1356

    Estimated Reading Time: 9 min

    Chapter 2

    ---

    "क्या आप देख पाएंगी? हमें किसी ओर का होते हुए? "

    "युवराज...!"

    " बोलिए काशी!"

    " हर चीज मन को भाए ऐसी ही हो जरूरी तो नहीं ।"

    " सवाल ये था कि हमें किसी ओर का होते हुए देख पाएंगी आप हमें? सवाल सीधा है.. तो आप जवाब भी इसका सीधा ही दीजिए
    ... काशी। "

    "युवराज.. क्यों आपकी ओर हमारी दोनों को ही मुश्किलें बढ़ा रहे है आप ? "

    " हमारा नाम लीजिए आप काशी.. हमने आपको हमारे नाम से बुलाने का हक दिया है।"

    "लेकिन युवराज..."

    "काशी...."

    " अग्रिम जी! क्यों आप हम दोनों की ही मुश्किलें बढ़ा रहे है । एक वक्त पर राजकुमारी ने आपके खातिर मना भी लिया सबको.. तब भी हमें कोई पूर्णतः स्वीकार्य नहीं करेगा । "

    " हमें उनसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपको सब स्वीकार्य करते है या नहीं । हमें मतलब सिर्फ इस बात से है कि हम आपसे प्रेम करते है ओर आजीवन आपके संग बिताना चाहते है । " अग्रिम ने अपना आखिरी फैसला सुनाते हुए कहा ।

    " लेकिन फिर भी युवराज ..

    " फिर युवराज? " उसने उसकी बात को बीच में काटते हुए कहा ।

    " अग्रिम जी! क्यों व्यर्थ जिद कर रहे है। इससे कुछ भी नहीं मिलेगा । "

    "इससे हमें आप मिलेगी काशी..! इस महल में हमे किसी ओर से कभी प्यार नहीं मिला, सिर्फ आप थी जो हमें बचपन से ही समझती थी । ओर हमारा आपके प्रति आकर्षण कब आदत ओर प्रेम में बदल गया , हमें पता ही नहीं चला। हमें बस इतना पता है कि हमें सिर्फ आप चाहिए, ये राजगद्दी, ये जायदाद कुछ भी नहीं । " वो काशी का हाथ थामते हुए बोला ।

    " अगर किसी ने जबरदस्ती की हमारे साथ शादी के लिए , ओर अगर परिवार वाले नहीं माने तो हम आपको लेके यहां से कही दूर चले जायेगे । " वो फिर से खुद के साथ विचार को तोड़ जोड़ कर बोला ।

    " नहीं! हम भाग नहीं सकते । आपके पूरे परिवार ओर राजकुमारी को आपसे काफी उम्मीदें है । ओर राजकुमारी जरूर बात करेगी राजा सा से। वो बाहर से सख्तपन का कवच ओढ़े हुए है, लेकिन हकीकत में वो बहुत ही कोमल दिल की है । वो जरूर ही राजा सा को मना लेगी । हमारा दिल हमसे कह रहा है ।"

    " आशा है कि ऐसा ही हो ।" कह कर अग्रिम ने एक गहरी सांस छोड़ी।

    " अब हमें जाना चाहिए । कुछ काम भी देखने है राजकुमारी के । " कह कर वो वहां से जाने लगी ।

    " हमें एक बार आपके आगोश में ले लीजिए । हमारा मन काफी व्याकुल है । "

    " यूव...युवराज ! कोई यहां आ जाएगा । "

    "बस कुछ पल!"

    "हम अभी चलते है ! " कह कर वो वहां से चली जाती है ।

    वही अग्रिम के चेहरे पर काशी के चेहरे की लाली देख एक हल्की सी मुस्कान छा गई थी ।

    ---

    वही राजकुमारी के कमरे में..

    वो अपने बेड पर बैठी डायरी में कुछ लिख रही थी। लिखते लिखते वो किसी ख्यालों में खो जाती है , ओर उसके कान में आवाज गूंजने लगती "मीरा! आपका मुझसे यू मिलना सही नहीं।"

    "क्यों सही नहीं । प्यार करते है हम आपसे ।"

    "वो तो में भी आपसे करता हु। लेकिन हमारे परिवार के बीच की ये दुश्मनी हमें कभी एक नहीं होने देंगी । "

    " हम लड़ेंगे अब से । अगर आप हमारा साथ दे तो ।" मीरा काफी आत्मविश्वास के साथ कहती है ।

    " मुझे आपको प्यार से पाना है, मीरा! कोई लड़ाई झगड़े या किसी को मजबूर कर के नहीं । "

    " प्यार के लिए लड़ना पड़ता है, केशव जी । "

    "हा लेकिन किसी की बददुआ के साथ आगे बढ़ना ? हर पल हमें दर्द के साए में रखेगा । में अपने परिवार से बात करता हु, ओर आप अपने परिवार से बात कीजिए। मुझे लगता है की निवारण अवश्य ही निकल आएगा । " केशव मीरा के बालों में हाथ घुमा कर कहता है ।

    " जी ऐसा ही हो । लेकिन आपका परिवार नहीं माना तो? "

    " तो हमारा अलग होना ही सही रहेगा । "

    " मतलब आप फिर कोशिश नहीं करेंगे? "

    "ऐसा नहीं है कि में कोशिश नहीं करना चाहता , लेकिन में अपने परिवार के खिलाफ भी नहीं जा सकता ।" वो थोड़े अनमने से लहजे में बोला ।

    "ठीक है! आप बताइए हमें आपके परिवार से बात कर के । हम भी अपने परिवार से बात कर लेंगे ।

    " जी ठीक है! अब हमें यहां से जाना चाहिए अगर यहां आपको किसी ने मेरे साथ देख लिया तो सही नहीं होगा । "

    " जी ! हम भी चलते है। आप भी जाएं। ओर हमें इत्तिला करे । "

    "हम्मम! " कह कर केशव वहां से चला गया । ओर कुछ देर के लिए मीरा वही खड़ी रही और गंगा की शांत लहरों को देखती रही ।

    ---

    "राजकुमारी! " काशी की आवाज मीरा के कान में पड़ती है तो वो अपने ख्यालों से बाहर आती है ।

    "जी काशी! "

    " किन ख्यालों में मग्न थी आप। "

    "कुछ नहीं। आप बताइए आप यहां कैसे? "

    " ये आप हर वक्त हमसे यही एक सवाल क्यों करती है ।जब की हम हमेशा आपके आसपास ही होते है ।"

    "शायद आदत हो गई है, हमे इस सवाल को दोहराने की । ओर शायद सच में कुछ आदतें हानिकारक साबित होती है ।" मीरा अपने ही ख्यालों में उलझे हुए बोली ।

    "ये आप क्या कह रही है? राजकुमारी । आपकी कोई भी आदत गलत नहीं है । बल्कि हमें तो अच्छा लगता है जब आप हमें हमारे आपके आसपास होने का कारण पूछती है । क्योंकि ओर कोई तो है नहीं जिससे हम खुल के बात कर सके ।"

    "क्यों?युवराज नहीं है क्या?"

    " है ना! लेकिन उनके सामने अपने से हमारी पलके लज्जा के भार से उठ ही नहीं पाती । ओर उनके हमारे समक्ष आने से हम सब कुछ भूलने लगते है कि हमें क्या बोलना होता है ओर क्या नहीं । "

    "काफी ज्यादा प्रेम करते आप एक दोनों से। लेकिन आप दोनों का ये प्यार मुक्कमल नहीं हुआ तो ।"

    " हमें आप पर विश्वाश है राजकुमारी, ना ही आप अपने भाई के साथ कुछ गलत होने देंगी। ओर ना ही अपनी बचपन की एक लौटी सखी के साथ। "

    "ओर आपको ये विश्वास क्यों है हम पर ? "

    "क्यों ? नहीं होना चाहिए? आपको हम बचपन से जानते है । ये भी की आपका हृदय कितना कोमल है। ओर तब तो आप ये विश्वास बिल्कुल ही नहीं टूटने देगी जब आपका खुद का विश्वास किसी के द्वारा छला गया हो । इसलिए आप को उस दर्द का पता होगा कि सीने में कैसा दर्द होता है । तो वो दर्द आप अपने भाई को तो बिल्कुल ही नहीं पहुंचने देगी । भले ही सबके के सामने आप जाहिर कर रही है कि अब आपको उनसे कोई मतलब नहीं। लेकिन आपकी रग रग से वाकिफ है हम । "

    " नहीं है आप वाकिफ हमारी रग रग से । अगर होती तो पता होता कि कितना दर्द है इस प्यार में , फिर वो आप कभी नहीं करती ।"

    " प्यार कहा किसी के कहने ना कहने से होता है । वो तो बस हो जाता है राजकुमारी । जिस पर हमारा कोई बस नहीं होता । "

    " प्यार , प्रेम , इश्क होता ही क्यों है? काश ना होता ये । "

    " राजकुमारी! आपको भी अपना प्यार मिलेगा। शायद वो ना मिले जिसको आप पसंद करती हो। लेकिन वो जरूर मिलेगा जो आपको अपनी जान से ज्यादा चाहता होगा । ओर जिसे आपका दिल प्यार, मुहब्बत से परे प्रेम या इश्क करता होगा । "

    " लेकिन हम ये सब पाने का कोई अधिकार नहीं है अब । ओर ये आप भली भांति जानती है ।"

    " अगर नसीब का लिखा हमारे हाथ में होता तो भगवान की कहा जरूरत थी? राजकुमारी । आपने किसी के साथ कुछ गलत नहीं किया तो आपके साथ भी कुछ गलत नहीं होगा ।"

    " काश आपका ये विश्वास जीत जाए! काशी । "




    To be continued....

  • 3. प्रेम के रंग में - Chapter 3

    Words: 1124

    Estimated Reading Time: 7 min

    Chapter 3

    " अगर नसीब का लिखा हमारे हाथ में होता तो भगवान की कहा जरूरत थी? राजकुमारी । आपने किसी के साथ कुछ गलत नहीं किया तो आपके साथ भी कुछ गलत नहीं होगा ।"

    " काश आपका ये विश्वास जीत जाए! काशी । " मीरा काफी उम्मीद भरी आवाज में कहती है ।

    " ऐसा ही होगा! राजकुमारी । "

    ---

    रात के वक्त

    राजकुमारी अपने बाबा के कमरे में काउच पर बैठी हुई थी और एकटक नीचे फ्लोर को ही घूरे जा रही थी ।

    "मीरा! क्या आप कुछ कहना चाहती है? "

    " जी... वो... बाबा सा... "

    " आगे भी बोलिए! कुमारी । "

    " हम कहना चाहते है कि युवराज आपके मित्र की बेटी से नहीं किंतु काशी से शादी करना चाहते है । वो ओर काशी एक दूसरे को  बचपन से ही चाहते है । " मीरा एक ही सांस बिना नजरे उठाए बोल गई ।

    " क्या? क्या कहा आपने मीरा ? " वीरेन्द्र जी थोड़ा चौंकते हुए बोले।

    " यही की युवराज काशी से शादी करना चाहते है । "

    "ये नहीं हो सकता । हम अपने मित्र को वचन दे चुके है ।"वीरेंद्र जी ने दृढ़ता से कहा ।

    "ओर हमने भी युवराज से वादा किया है कि उनकी शादी हम काशी से ही करवाएंगे । "

    "आप ऐसे ही कोई वादा नहीं कर सकती । ओर तब तो बिल्कुल भी नहीं जब इस मामले में हमारा भी हस्तक्षेप हो ।" फिर उन्होंने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, "कुमारी ! आपने भी प्यार ओर उनसे शादी करने की जिद की थी और आपने उसका परिणाम भी देख लिया । ओर जिसे आप अभी भी भुगत रही है। "

    " जी! लेकिन वो गलती हमारी भी थी कि हमने गलत इंसान को पसंद कर लिया था । लेकिन युवराज काशी को बचपन से जानते है, ओर सिर्फ युवराज ही नहीं आप भी ओर हम भी काशी को अच्छे से जानते है। "

    " फिर भी वो हमारे राज परिवार को संभालने के लिए शशकत नहीं होगी। ओर हम हमारी प्रजा को किसी भी परेशानी में नहीं डाल सकते । "

    " बाबा सा! कोई भी जन्म से राजा या राजा के गुण ले कर पैदा नहीं होता। इसे वक्त के साथ साथ विकसित भी किया जा सकता है। ओर हमें काशी और युवराज दोनो पर ही भरोसा है कि दोनों ही एक दूसरे के साथ से सब कुछ संभाल लेगे ।"

    " वो सब ठीक है, मीरा! लेकिन हमारे वादे का क्या? जो हमने हमारे मित्र से किया था । ओर राज्य सिर्फ प्रेम से ही तो नहीं चलता ना? किसी ना किसी मजबूत साथ की जरूरत हमेशा की होती है । "

    " बाबा सा! क्या आपका वादा आपके अपने बेटे की खुशी से ज्यादा है? ओर रही बात आपके मित्र से किए हुए वादों की तो हम उन्हें मना लेंगे । प्लीज मान जाएं आप ।"

    "अगर हम मान भी गए, मीरा । तो क्या उनका प्रेम पूर्ण होगा? क्या इसका कोई प्रमाण है कि उन्हें आपके जितनी तकलीफ नहीं होगी? बेशक हम खफा है उनसे लेकिन उनका बुरा तो हम भी नहीं चाहते है ।"

    "तो फिर मान जाएं! अगर तकलीफ होनी होगी तो वो दोनों एक नहीं हो पाए उसकी भी तकलीफ हो सकती है। लेकिन अगर शादी के बाद कोई तकलीफ हुई तो वो दोनों मिल कर देख लेंगे ।"

    " उनका तो वो दोनों देख लेंगे । लेकिन आपका? आपकी शादी हो चुकी है, लेकिन किसी को भी नहीं पता कि किस से शादी हुई है आपकी? यहां तक कि आपको भी नहीं पता । " वीरेंद्र जी चिंता व्यक्त करते हुए बोले ।

    " हा... हमें भी नहीं पता कि कौन बैठा था उस वक्त मंडप में हमारे साथ? ओर फिर वो कहा चला गया । लेकिन अगर वही इंसान हमारा नसीब है तो हम उनका इंतजार करेंगे । अगर महादेव ने उनसे हमारा रिश्ता जोड़ा है तो एक दिन वो उनसे हमें मिलवाएंगे भी ।"

    ---

    मुंबई...

    वर्सोवा के समुद्र किनारे से थोड़े दूर बने एक घर में एक लड़का अपने रूम में दीवार पर लगी एक लड़की की बड़ी सी तस्वीर को देखे जा रहा था, ओर आंखे आंसू से भरी हुई थी, " हम चाह कर भी आपके पास नहीं आ सकते, आपसे मिल नहीं सकते, बस इस तस्वीर के जरिए सिर्फ देख रहे है आपको, लेकिन हम आपसे वादा करते है आपको एक दिन जरूर अपने पास ले आयेगे, आपके दर्द को खत्म कर देंगे । बस कुछ महीने ओर इंतेज़ार कर लीजिए हमारा । हम आपसे इश्क करने लगे है । "

    "तो उसे यहां ले कर क्यों नहीं आ जाते। " उस लड़के के कान में आवाज गूंजती है।

    वो पीछे मूड कर देखता है, वहां उसके ही हम उम्र एक लड़का दरवाजे से टेक लगाए खड़ा था ।

    " हम चाहते तो बहुत कुछ है, आरिश! लेकिन सब कुछ हमारे सोचने के मुताबिक होता तो भगवान की कहा ही जरूर रह जाती ।"

    "क्रिशिव! यार कैसे ? इतना सहन करने के बाद भी कोई इतना पॉजिटिव रह सकता है ?"

    " वैसे जैसे पता होता है कि इस रात के बाद सुबह होंगी। वैसे ही हर दर्द का एक मुक्कमल अंत जरूर होता है। हमारे दर्द का भी अंत होगा । और उनके भी... " कह कर वो चुप हो गया ।

    " ठीक है अगर तुम उसे यहां बुलवा नहीं सकते। लेकिन उनसे ये तो बता ही सकते हो कि उनकी शादी तुमसे ही हुई थी ।"

    " नहीं! नहीं बता सकते हम ये। कोई नहीं जानता, कि हमारा अस्तित्व भी है इस दुनिया में। पहले हम हमारी पहचान तो हासिल कर ले । बिना खुद की कोई पहचान के हम उन्हें कैसे अपना नाम दे पाएंगे । " बोलते हुए एक दर्द की लहर उसके लहजे में उतर आई थी ।

    " क्रिशिव! कम से कम उन्हें ये जानने का हक है कि उनकी शादी तुमसे हुई है ।"

    " वक्त आने पर हम उन्हें सब बता देंगे। शादी का सच, हमारी पहचान का सच ओर ये शादी छुपाने का भी सच।"

    " ठीक है ! जैसा तुम चाहो । लेकिन मेरी एक बात याद रखना कि कभी कभी छुपाई हुई बाते गलत फ़हमिया हद से ज्यादा बढ़ा देती है।

    " पता है! लेकिन खामोश रहना, जरूरत बन जाती है। इसकी चिंता मत करो। हम देख लेंगे वो। तुम जा कर आराम करो । काफी रात हो चुकी है । "

    " हम्मम! Good night! " कह कर आरिश उस रूम से चला गया।

    क्रिशिव वापिस से उस तस्वीर को निहारते हुए बोला " माफ कर दीजिएगा हमें! हमें पता है आपको ये बात कितनी तकलीफ दे रही होगी कि जिनकी आपसे शादी हुई, उनके वजूद का भी आपको पता नहीं। लेकिन यकीन कीजिए ये 3 साल हमारे भी पल पल के इंतजार में गुजरे है।"



    To be continued.....

  • 4. प्रेम के रंग में - Chapter 4

    Words: 1113

    Estimated Reading Time: 7 min

    Chapter 4: एलियाना ओर क्रिशिव का कॉन्फ्रेंटेशन

    अगली सुबह

    क्रिशिव अपने डेली रूटीन के चलते अपने घर के पास वाले गार्डन में जॉगिंग करने जाता है, उसने गार्डन के 2 चक्कर लगाए ही थे कि तभी एक लड़की उसे जॉइन करते हुए कहती है, "hii क्रिशिव! "

    "Hello! एलियाना" क्रिशिव ने बेहद फॉर्मल लहजे में कहा।

    "यार कितना फॉर्मली तुम सब से कनेक्ट होते हो। हम तो अच्छे दोस्त है ना? "

    "नहीं! आप सिर्फ हमारे बॉस की बेटी है। ओर हमें कोई भी इंटरेस्ट नहीं है नए दोस्त बनाने में। ओर हमें ये बात बार बार दोहराना अच्छा नहीं लगता । क्यों आप हमारे पीछे पड़ी हुई है?"

    "बिकॉज! I like you।"

    "But I don't, and I won't! I'm already married।" कह कर वो फिर से तेज स्पीड में दौड़ने लगता है।

    "अच्छा तो कहा है तुम्हारी वाइफ? तीन साल से मैने तुम्हारे आसपास एक भी लड़की को नहीं देखा।"

    " वो जहां भी है it's none of your business! में आपके पापा की वजह से आपसे बात करता हु it doesn't mean की आपको हमारे पर्सनल मेटर में बोलने का अधिकार मिल गया है। ये हमारी आखिरी चेतावनी है कि हम से दूर रहिए। ये आपके ओर हमारे दोनों के लिए सही होगा।" इतना कह कर वो अब जॉगिंग को वही छोड़ अपने घर जाने के लिए निकल गया।

    घर पर आरिश उठ चुका था ओर वो ब्रेकफास्ट बना रहा था। वो किचन में से जैसे ही क्रिशिव को रूम की ओर जाते देखता है तो वो उसे आवाज दे कर किचन में ही बुलाता है , "hey! क्रिशिव! यहां आओ।"

    क्रिशिव भी अनमने वहां आ जाता है ओर गुड मॉर्निंग विश करता है।

    "Good morning! बट तुम्हे क्या हुआ इतनी सुबह सुबह? " आरिश उसके चहेरे के भाव को देख कर पूछता है।

    "As always! एलियना!"

    "यार! अब जब तुम्हारे पास तुम्हारी अपनी कंपनी है, तब भी क्यों तुम उसके डैड की कंपनी में काम कर रहे है।"

    "अभी हम अपनी कंपनी के थ्रू सब के सामने नहीं आ सकते। वो आपको ही संभालनी होगी जब तक हम अपनी पहचान सबके सामने लाने के काबिल ना हो जाए।"

    "तो क्या तब तक तुम उससे दूर रहोगे। तुम्हे पता है ना वो तड़प रही है वहां। उसे एक साथ दो रिश्तों से धोखा मिला है, पहला उसने जिससे प्यार किया वो आया ही नहीं मंडप में ओर जिससे शादी हुई उसने उसके घर से उसे विदा तक नहीं करवाया, यहां तक कि उसे पता ही नहीं है कि किससे शादी हुई है उसकी।"

    "हम जानते है कि हमने गलत किया है उनके साथ। मगर हम  अभी उन्हें हमारे पास नहीं ला सकते। अगर अभी हम अपने बारे में या उनके दर्द के बारे सोच कर उन्हें यहां ले आएंगे तो वो ओर भी ज्यादा टूट जाएगी। हमारा सच जान कर।"

    "कभी ना कभी तो ये सच आयेगा ना उनके सामने ?"

    "तब तक उन्हें हम अपने प्रेम के रंग में रंग देंगे, ताकि वो छह कर भी फिर हम से दूर ना जा पाए।" फिर वो एक गहरी सांस ले कर कहता है, "आप ब्रेकफास्ट लगाए हम फ्रेश हो कर आते है।"

    "हम्मम! " कह कर आरिश ब्रेकफास्ट को रेडी कर डाइनिंग टेबल पर लगाने लगा । लगभग 20 मिनट्स के बाद क्रिशिव तैयार हो कर नीचे आ चुका था।

    दोनों ब्रेकफास्ट कर के अपने अपने ऑफिस जाने के लिए निकल जाते है।

    क्रिशिव जैसे ही ऑफिस पहुंचता है, रिसेप्शनिस्ट उसके पास आती है ओर उसे ग्रीट करने के बाद कहती है, "आपको बॉस ने अपने केबिन में बुलाया है।"

    "हम्मम! " कह कर वो अपने बॉस के केबिन की ओर बढ़ गया। ओर उसे काफी हद तक अंदाजा हो गया था कि उसे किस वजह से केबिन में बुलाया जा रहा था। ओर अगर जो वो सोच रहा था वही वजह हुई तो उसने मन ही मन कुछ डिसीजन ले लिया था।

    उसने अपने बॉस Mr कलनावत के केबिन का डोर नोक किया । अंदर से कम इन की आवाज आई । ओर उसी के साथ क्रिशिव दरवाजा ओपन कर अंदर चला गया। ओर 90 % उसका अंदाजा सही साबित हो रहा था। एलियाना को उस केबिन के काउच पर बैठे हुए देख ।

    "आपने मुझे बुलाया बॉस?"

    "Yes! क्रिशिव please seat!" Mr कलनावत अपने सामने वाली चेयर की ओर इशारा कर कहते है।

    क्रिशिव बिना किसी भाव के mr कलनावत के सामने वाली चेयर पर बैठते हुए पूछता है , " I hope आपने हमे किसी जरूरी काम के लिए ही यहां बुलाया होगा।"

    ये सुन mr कलनावत कुछ पल के लिए अचकचाते है लेकिन फिर उसकी तारीफ करते हुए कहते है, "I love your this attitude! "

    "Thank you!"

    "वैसे बात कुछ जरूरी ही थी। " फिर वो एक गहरी सांस ले कर कहते है, "में चाहता हु कि तुम मेरी बेटी एलियना से शादी कर लो । My daughter loves you, and तुम्हे भी मेरी बेटी से शादी कर के काफी फायदा होगा।"

    "सॉरी तो डिसपॉइंट यूं सर! बट I am already married!"

    "लेकिन हमने आज तक किसी को तुम्हारे साथ नहीं देखा।"

    "तो इससे क्या ये प्रूफ होता है कि मेरी शादी नहीं हुई?"

    ये सुन mr कलनावत को थोड़ा गुस्सा आता है, वो गुस्से से कहते है, "देखो! क्रिशिव यू हैव 2 ऑप्शंस, या तो मेरी बेटी से शादी कर लो, या फिर रिजाइन दे दो।"

    "Okay! I resign!" कह कर वो खड़ा होता है ओर वहां से अपने केबिन में चला जाता है, 5 मिनिट्स बाद वो वापिस आता है उसके हाथ में रेजिग्नेशन लेटर था। वो mr कलनावत की ओर वो पेपर्स बढ़ाते हुए कहता है, "ये हैंड रिटन एंड प्रिंटेड दोनो रेजिग्नेशन लेटर्स है, ओर साथ ही में ईमेल कर दिया है। हॉप यू हैव ग्रेट जर्नी अहेड " कह कर वो ऑफिस से निकल जाता है।

    वही mr कलनावत ओर उनकी बेटी एलियाना क्रिशिव के इस सड़न एक्शन से अवाक थे, उसे समझ में ही नहीं आया कि आखिर ये 5 मिनिट्स में क्या हो गया। लेकिन जैसे ही mr कलनावत को समझ में आया वो गुस्से से खड़े हो कर एलियाना के पास गए ओर गुस्से में एक थप्पड़ एलियाना के गाल पर लगा दिया।

    "तुम पागल लड़की! तुम्हारी वजह हमारी ऑफिस का सबसे काबिल एम्पलाई रिजाइन कर के चला गया। अब मेहरा के साथ डील का क्या होगा।" कहते हुए वो अपना सिर पकड़ कर वही काउच पर बैठ गए।

    वही क्रिशिव कुछ आगे पहुंचा ही था कि उसके फोन में एक कॉल आता है, ओर कुछ पल सामने वाले की बात सुन उसके हाथ में से फोन नीचे गिर जाता है...

    ऐसा क्या सूना था क्रिशिव ने?

    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी...

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