✨ तेरे ख्वाबों की गलियाँ लेखिका: QUEEN श्रेणी: रोमांस | पुनर्जन्म | रहस्य | फिक्शनल कस्बा --- "क्या कभी एक सपना… तुम्हें किसी अजनबी की ज़िंदगी से बाँध सकता है?" सिया शर्मा, एक साधारण-सी लड़की है जो हर रात एक ही सपना देखती है — एक पहाड... ✨ तेरे ख्वाबों की गलियाँ लेखिका: QUEEN श्रेणी: रोमांस | पुनर्जन्म | रहस्य | फिक्शनल कस्बा --- "क्या कभी एक सपना… तुम्हें किसी अजनबी की ज़िंदगी से बाँध सकता है?" सिया शर्मा, एक साधारण-सी लड़की है जो हर रात एक ही सपना देखती है — एक पहाड़ी कस्बा, एक पुराना मंदिर, और एक अजनबी युवक जो उसे "मायरा" कहकर पुकारता है। यह सपना उसके जीवन का हिस्सा बन चुका है… एक अधूरी कहानी की तरह जो न जाने कौन-से युग में शुरू हुई थी। वहीं, अर्जव राठौर, एक लेखक और इतिहास शोधकर्ता, जो बरसों से "मायरा" नाम की एक रहस्यमयी स्त्री की गुमशुदा दास्तान पर काम कर रहा है। दोनों की राहें टकराती हैं — बृजपुर, एक शांत पर अजीब सा कस्बा, जहां ज़मीन के नीचे दबी हैं सदियों पुरानी कहानियाँ। जब वर्तमान और अतीत की सीमाएँ टूटती हैं, तो सिया और अर्जव को अपने रिश्ते, अस्तित्व और पहचान पर सवाल उठाने पड़ते हैं। --- 🌒 क्या सिया वास्तव में मायरा है? 🌒 क्या अर्जव उसका वही अधूरा प्रेम है, जो वक़्त की कैद में खो गया था? 🌒 और अगर हाँ… तो क्या इस बार ये प्रेम मुकम्मल होगा? --- "तेरे ख्वाबों की गलियाँ" एक ऐसी रहस्यमयी प्रेम गाथा है जो समय की सीमाओं को पार कर जाती है। जहाँ हर सपना… एक पुरानी कहानी की कुंजी है, और हर ख़ामोशी… एक सच्चाई की दस्तक।
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अध्याय 1 – वही सपना फिर से...
रात का तीसरा पहर था। खिड़की के पर्दे हवा में धीमे-धीमे हिल रहे थे और कमरे में पीली रोशनी बिखरी थी। सिया बिस्तर पर थी, लेकिन उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं। उसकी पलकों के पीछे फिर वही सपना चल रहा था — वही मंदिर, वही सीढ़ियाँ, और वही धुँधलाया चेहरा जो हर बार उसे एक ही नाम से पुकारता था — "मायरा..."
...
पहाड़ों के बीच एक पुराना मंदिर, जिसके चारों ओर घना कुहासा था। घंटियों की धीमी-धीमी आवाज़ हवा में गूँज रही थी। मंदिर की सीढ़ियाँ काई से ढकी थीं, और वहाँ खड़े होकर वो चेहरा उसे देखता था — हरे रंग की आँखें, काले घने बाल, और होंठ जो बस एक ही नाम दोहराते थे — मायरा।
सिया हर बार उस सपने में उस जगह को महसूस करती, वहाँ की हवा, वहाँ का सन्नाटा। वह जानती थी कि ये सिर्फ सपना नहीं है — ये कुछ और है, कुछ ऐसा जो उसकी चेतना के परे है। जब भी वह जागती, उसके शरीर से पसीना बह रहा होता और दिल की धड़कनें जैसे किसी दौड़ से लौटकर आई हों।
इस बार भी ऐसा ही हुआ। वह झटके से उठी, चादर को सीने से चिपकाए हुए। उसकी आँखों में वही डर, वही सवाल...
"मैं कौन हूँ?"
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सुबह की धूप खिड़की से छनकर कमरे में आ रही थी। सिया अब अपने डेस्क के सामने बैठी थी। उसने सपना एक डायरी में लिखा — जैसे हर बार करती थी। उसकी डायरी के पिछले पन्नों में हर सपना दर्ज था, हर आवाज़, हर चेहरा। और हर बार एक ही नाम...
मायरा।
उसके माता-पिता अब भी समझते थे कि ये बस एक डरावना सपना है, एक कल्पना। लेकिन सिया जानती थी, ये सपना नहीं — एक स्मृति थी। किसी और समय की, किसी और ज़िंदगी की।
"क्या ऐसा संभव है कि कोई जन्मों से किसी एक जगह से बँधा हो?" उसने मन ही मन सोचा।
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कॉलेज में वो एक सामान्य लड़की थी — कम बोलने वाली, किताबों से प्यार करने वाली, थोड़ी अंतर्मुखी। लेकिन उसकी आँखों में वो बात थी जो लोगों को आकर्षित करती थी — जैसे वो कुछ ऐसा जानती हो जो बाकी नहीं जानते।
उस दिन लाइब्रेरी में, जब वो पुरानी किताबों की अलमारी में कुछ ढूँढ रही थी, उसकी उँगलियाँ एक मोटी-सी किताब से टकराईं। उस पर कोई नाम नहीं था, बस एक पुराना नक्शा बना था। उसने किताब खोली — पहले पन्ने पर लिखा था:
"बृजपुर – वह स्थान जहाँ समय रुका हुआ है।"
सिया के हाथ काँप गए। यही नाम उसे कभी सपने में सुनाई दिया था — बृजपुर। एक पहाड़ी कस्बा जहाँ का मंदिर हर बार उसके ख्वाब में आता था।
उसने किताब उठाई और वहीं एक कोने में बैठकर पढ़ने लगी। पन्ने पुराने थे, लेकिन उसमें लिखे शब्द जैसे किसी ने उसी के लिए रख छोड़े थे।
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"बृजपुर का वह मंदिर जहाँ प्रेम एक शाप में बदल गया था। एक युवती मायरा, जिसकी कहानी आज तक अधूरी है..."
पढ़ते-पढ़ते उसकी साँस अटक गई।
मायरा...
यहाँ भी वही नाम। वही मंदिर, वही कस्बा।
"मैं इसे क्यों महसूस करती हूँ? मैं क्यों जानती हूँ कि यह सब झूठ नहीं है?"
उसी वक्त, उसकी नज़रें किसी की आँखों से मिलीं — सामने वाली मेज़ पर बैठा एक युवक उसे देख रहा था। उसकी आँखें हरे रंग की थीं, और उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी।
उसने तुरंत नज़रें फेर लीं, लेकिन दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। वो चेहरा, वो आँखें... वही जो उसके सपनों में आते थे।
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कॉफी मशीन के पास वही युवक उससे टकराया। किताबें गिर गईं। दोनों ने एक साथ झुकर किताबें उठाईं।
"सॉरी, मैं ध्यान नहीं दे रहा था," उसने कहा। आवाज़ धीमी और स्थिर थी, लेकिन सिया के भीतर एक तूफ़ान उठ चुका था।
"कोई बात नहीं," उसने सिर झुकाते हुए कहा।
युवक ने पूछा, "क्या तुम भी इतिहास में रुचि रखती हो? ये किताब... बृजपुर वाली... बहुत कम लोग जानते हैं इसके बारे में।"
सिया कुछ पल चुप रही। फिर धीरे से पूछा, "क्या आपने इस जगह के बारे में सुना है पहले?"
"मैं इस पर रिसर्च कर रहा हूँ," उसने जवाब दिया। "मायरा की कहानी ने मुझे हमेशा आकर्षित किया है।"
उसका दिल बैठ गया। "मायरा..."
दोनों के बीच एक अजीब सी चुप्पी छा गई। जैसे समय कुछ पल के लिए थम गया हो।
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उस रात सिया ने सपने में पहली बार खुद को मंदिर की सीढ़ियों पर खड़े हुए देखा — और सामने वही युवक था। उसने हाथ बढ़ाया और कहा:
"मायरा, इस बार अधूरी कहानी पूरी करनी है।"
और सिया की नींद खुल गई — एक गहरी साँस के साथ, दिल की धड़कनों के बीच वो नाम गूँज रहा था...
अर्जव।
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अध्याय 2 — अधूरी धड़कनों का सिलसिला
रात के गहरे सन्नाटे में, खिड़की से आती चाँदनी उसके कमरे में बिखरी हुई थी। बाहर हल्की-सी हवा बह रही थी, जिसमें कहीं दूर मंदिर की घंटियों की धीमी आवाज़ भी घुली हुई थी। अनायरा बिस्तर पर लेटी थी, पर उसकी पलकों को नींद छू तक नहीं रही थी। दिनभर के अनकहे एहसास, अजनबी की आँखों में दिखी वो बेचैनी, और उसका नाम सुनकर आया वो अनजाना-सा सिहरन… सब उसे किसी अनजानी दुनिया में खींच रहे थे।
उसने करवट बदली, तकिये में चेहरा छुपाया, लेकिन दिल की धड़कनें मानो किसी और ही राग पर चल रही थीं। अचानक, उसके भीतर एक थकान-सी उमड़ आई और पलकों का बोझ बढ़ने लगा। चाँदनी उसके चेहरे पर हल्के-हल्के फिसल रही थी… और अगले ही पल, वो किसी और जगह, किसी और समय में पहुँच गई।
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स्वप्न — अतीत का आह्वान
धुंध के समंदर में वो धीरे-धीरे चल रही थी। चारों तरफ सफेद कोहरा फैला था, लेकिन उसकी साँसें किसी परिचित महक को पहचान रही थीं — महक जो चंदन और केसर की तरह गर्म थी, फिर भी उसमें दर्द का नमक घुला था।
कोहरे के पार एक विशाल प्राचीन महल दिखाई दिया। उसकी दीवारों पर सुनहरी नक्काशी थी, और झरोखों से पीली रौशनी बह रही थी। सीढ़ियों पर लाल गलीचा बिछा था, और हवा में बांसुरी की धीमी, करुण धुन तैर रही थी।
उसने अपने पाँव आगे बढ़ाए, और अचानक उसके पैरों में बंधे घुँघरुओं की आवाज़ गूँज उठी। उसने नीचे झुककर देखा — उसके पैरों में लाल रंग की पायलें थीं, और वह रेशमी, गाढ़े मरून रंग का लहंगा पहने थी, जिसमें सुनहरी कढ़ाई के फूल खिले थे।
महल के आँगन में पहुँचते ही उसने उसे देखा — वही चेहरा… वही आँखें… वही गहरी दृष्टि। उसकी आँखों में अनगिनत बरसों का इंतज़ार और टूटे वादों का दर्द भरा था।
वो धीरे-धीरे उसके पास आया, उसकी तलवार कमर पर लटक रही थी, लेकिन उसकी पकड़ ढीली थी, जैसे लड़ाई का इरादा नहीं, बल्कि हार का बोझ हो।
"मुक्ता…" उसकी आवाज़ टूटी, और उसके सीने में एक हलचल हुई।
"आप…?" उसके होंठ काँपे।
वो मुस्कुराया नहीं, बस उसकी आँखों में गहराई से देखने लगा, जैसे हज़ारों सवाल एक ही नज़र में पूछ रहा हो।
"तुम क्यों चली गईं?" उसने धीरे से पूछा।
उसके मन में अजीब-सी हलचल हुई। दृश्य बदलने लगा।
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टूटे वादों की रात
महल के पीछे चाँदनी में नहाया नदी का किनारा था। पानी की लहरें चुपचाप बह रही थीं, लेकिन उनके दिलों में तूफान था। वो उसके सामने खड़ा था, आँखों में बेकाबू दर्द लिए।
"तुम जानती हो, मुक्ता, मैंने सबकुछ त्याग दिया… सिर्फ तुम्हारे लिए।"
"लेकिन…" उसकी आवाज़ काँप गई। "राज्य का फ़रमान… मेरे पिता…"
वो गुस्से और दर्द के बीच झूल रहा था।
"तो तुम्हारा वचन? तुम्हारा वो प्रण कि चाहे कुछ भी हो, हम साथ रहेंगे?"
उसकी आँखों में आँसू भर आए। वो कुछ कहना चाहती थी, लेकिन शब्द गले में अटक गए।
"तुम्हें नहीं पता, ये मेरा फैसला नहीं था…"
अचानक दूर से युद्ध के नगाड़े बज उठे। उसने पीछे मुड़कर देखा — महल की ओर मशालें बढ़ रही थीं।
"मुक्ता, अगर तुमने आज मेरा हाथ नहीं थामा, तो ये जन्म आख़िरी होगा जिसमें मैं तुम्हें पा सका।"
वो एक पल को डगमगाई, लेकिन अगले ही पल भारी कदमों से पीछे हट गई।
उसके चेहरे पर निराशा का अंधेरा छा गया।
"ठीक है…" उसने तलवार की मूठ कस ली, "तो शायद अगले जन्म में…"
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अधूरा मिलन
स्वप्न का दृश्य बदल गया। अब वो मंदिर के आँगन में थी। हवा में हवन की गंध थी, और चारों तरफ शंखनाद गूँज रहा था। उसके सामने वही व्यक्ति, सफ़ेद वस्त्र पहने, अग्नि की लपटों में झलकता हुआ, लेकिन उसकी आँखें बुझी हुई थीं।
"मैंने तुम्हारा इंतज़ार किया…" उसने थकी हुई मुस्कान के साथ कहा।
उसके गले से आवाज़ नहीं निकली। आँसू उसके गालों पर बहते रहे।
वो धीरे से बोला, "इस बार वक़्त ने हमें हरा दिया, मुक्ता… लेकिन मैं लौटूँगा। चाहे सदियाँ क्यों न लग जाएँ…"
जैसे ही उसने अपना हाथ बढ़ाया, अग्नि की लपटों ने उसे घेर लिया… और वो धुएँ में खो गया।
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जागृति
"नहीं…!" अनायरा चीखते हुए उठ बैठी। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं, माथे पर पसीने की बूँदें थीं। कमरे में वही चाँदनी फैली हुई थी, लेकिन दिल में अजीब-सा खालीपन था।
उसने अपने सीने पर हाथ रखा — दिल जैसे अब भी किसी खोए हुए को पुकार रहा था।
"मुक्ता…" उसने खुद से फुसफुसाया। ये नाम उसने सपने में सुना था, लेकिन यक़ीनन पहले कभी नहीं सुना था। फिर भी, ये नाम उसकी रगों में किसी पुराने गीत की तरह बह रहा था।
घड़ी में रात के तीन बजे थे। बाहर से बस हवा की हल्की सरसराहट आ रही थी। वो खिड़की तक गई, और दूर आसमान में चाँद को देखने लगी।
"क्या ये… सच था?" उसने खुद से पूछा।
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अनजाने धागे
सुबह होने तक वो सो नहीं पाई। सपने के हर दृश्य, हर शब्द उसकी आँखों में तैर रहे थे। खासकर वो चेहरा — वो आँखें — जो कल कैफ़े में दिखी थीं, और सपने में वही रूप लेकर सामने आई थीं।
नाश्ते की मेज़ पर उसकी दोस्त रिद्धिमा ने उसे देखा और पूछा, "तू ठीक है? तेरे चेहरे का रंग क्यों उड़ा हुआ है?"
"कुछ नहीं, बस नींद नहीं आई।"
"फिर वही अजीब सपने?" रिद्धिमा ने हँसकर कहा, "या इस बार भी किसी अजनबी राजकुमार से मुलाकात हो गई?"
अनायरा चुप हो गई। वो ये नहीं बता सकती थी कि ये मज़ाक नहीं था, बल्कि कुछ ऐसा था जो उसकी रूह में उतर गया था।
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मुलाक़ात का दूसरा अध्याय
शाम को अनायरा फिर उसी कैफ़े के सामने खड़ी थी, जैसे कोई अनदेखा हाथ उसे यहाँ खींच लाया हो। अंदर जाते ही उसकी धड़कन तेज़ हो गई।
वो वहाँ था। खिड़की के पास बैठा, किताब में कुछ लिख रहा था। उसकी उंगलियाँ कलम पर वैसे ही थमी हुई थीं, जैसे वो किसी अधूरी कविता को मुकम्मल करने की कोशिश कर रहा हो।
उसने जैसे ही सिर उठाया, उनकी नज़रें मिलीं। इस बार उसकी आँखों में हैरानी कम, पहचान ज़्यादा थी।
"तुम…?" उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
"हाँ… मैं।" अनायरा ने भी मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन दिल के भीतर कुछ कसक-सी उठ रही थी।
वो कुछ देर चुप रहे, जैसे दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि बातचीत कहाँ से शुरू करें। आखिर उसने पूछा,
"तुम्हारा नाम…?"
"अनायरा।"
वो थोड़ी देर तक उसे देखता रहा, फिर धीमे से बोला, "अजीब है… तुम्हें देख कर लगता है जैसे… मैं तुम्हें सदियों से जानता हूँ।"
उसके हाथ में पकड़ी कॉफ़ी का कप हल्का-सा काँप गया।
"और मुझे लगता है… मैं तुम्हें सपनों में देख चुकी हूँ।"
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भविष्य की आहट
बातचीत लंबी नहीं चली, लेकिन दोनों को यक़ीन था कि ये मुलाक़ात आख़िरी नहीं थी।
जब अनायरा बाहर निकली, तो आसमान में हल्की बारिश शुरू हो चुकी थी। हवा में गीली मिट्टी की खुशबू थी, और उसके मन में वही वाक्य गूँज रहा था — "मैं लौटूँगा… चाहे सदियाँ क्यों न लग जाएँ…"
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अध्याय 3 – धड़कनों के साये में
रात के सन्नाटे में हवाओं की सरसराहट, खिड़की से आती चांदनी और कमरे के कोने में जलती हल्की-सी सुगंधित मोमबत्ती… माहौल में एक अनकही बेचैनी घुली हुई थी। अनाया बिस्तर के किनारे बैठी थी, लेकिन उसकी निगाहें कमरे के किसी कोने में नहीं, बल्कि अपने अंदर के तूफान में उलझी हुई थीं।
दिन भर की घटनाओं ने उसकी सोच को जैसे जकड़ लिया था—वो पुराना सपना, वो अनजान शहर, और वो अजनबी लड़का जिसकी आंखों में उसने एक अनकही पहचान महसूस की थी।
उसका दिल मानने को तैयार नहीं था कि ये सब महज़ एक संयोग है।
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अतीत की परछाइयाँ
अनाया को बचपन से ही सपनों में अजीब-अजीब जगहें और चेहरे दिखते थे—कुछ जगहें जिन्हें उसने कभी नहीं देखा, और कुछ लोग जिन्हें वो कभी जानती ही नहीं थी। लेकिन आज का सपना… अलग था। उसमें एक नदी किनारे का पुराना मंदिर, हवा में उड़ते पीले पत्ते और एक लड़का था, जो उसे ऐसे देख रहा था जैसे बरसों से उसका इंतज़ार कर रहा हो।
"तुम आ गई…"—उसकी आवाज़ अब भी अनाया के कानों में गूंज रही थी।
वो बार-बार सोच रही थी—क्या ये सिर्फ दिमाग का खेल है या फिर सचमुच कोई रिश्ता है उसके और उस अजनबी के बीच?
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फोन कॉल
मोबाइल अचानक बजा और अनाया की तंद्रा टूटी। स्क्रीन पर ‘रिया’ का नाम चमक रहा था।
"हेलो, तू ठीक है ना? सुबह से तेरा फोन बंद आ रहा था," रिया ने जल्दी-जल्दी पूछा।
अनाया ने हल्की-सी मुस्कान दी, "हाँ, बस… थोड़ा काम में उलझी थी।"
"झूठ मत बोल, तेरी आवाज़ बता रही है कि कुछ तो हुआ है," रिया ने अंदाज़ा लगाया।
कुछ पल चुप रहकर अनाया ने कहा, "रिया… तुझे कभी ऐसा लगा है कि तू किसी को पहली बार मिल रही है, लेकिन फिर भी लगता है जैसे उसे बरसों से जानती हो?"
रिया ने हँसते हुए कहा, "अरे वाह! ये तो फिल्मी लाइन है। कहीं कोई हैंडसम लड़का मिला है क्या?"
अनाया ने उसकी मज़ाक को नज़रअंदाज़ किया, "मैं सीरियस हूँ रिया… ये सब बहुत अजीब है।"
रिया ने थोड़ी देर चुप रहकर कहा, "सुन… शायद ये तेरे पिछले जन्म से जुड़ी कोई चीज़ हो। तू इन बातों को यूं ही मत टाल। कभी-कभी सपने और यादें… सच होते हैं।"
रिया की बातें सुनकर अनाया का दिल और तेज़ धड़कने लगा।
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रहस्यमयी डायरी
उस रात नींद उसे देर से आई। सुबह जब खिड़की से धूप कमरे में फैली, तो वो धीरे-धीरे उठी और मेज़ पर बिखरे पुराने कागज़ समेटने लगी। तभी अलमारी के कोने से एक पुरानी डायरी गिर पड़ी।
कवर पर सुनहरे अक्षरों में कुछ लिखा था—
"ख्वाबों के उस पार…"
ये डायरी उसने पहले कभी नहीं देखी थी। पन्ने पलटते ही उसे एक पुराने ज़माने की लिखावट दिखी—कहीं-कहीं स्याही धुंधली पड़ चुकी थी, लेकिन शब्द अब भी साफ थे।
"15 मार्च 1923 – आज उसे पहली बार देखा। उसकी आँखों में जैसे मेरी सारी कहानियाँ छिपी थीं। पता नहीं क्यों, पर लगता है वो मेरी तकदीर का हिस्सा है…"
अनाया के हाथ काँपने लगे। तारीख़ देखकर वो चौंक गई—ये तो लगभग सौ साल पुरानी बात थी।
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राहुल का आगमन
इसी बीच दरवाज़े पर दस्तक हुई। दरवाज़ा खोलते ही सामने राहुल खड़ा था—उसका बचपन का दोस्त और पड़ोसी।
"गुड मॉर्निंग, मिस ड्रीमर!" राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा। "आज फिर देर तक सोई?"
अनाया ने डायरी को मेज़ पर रखते हुए कहा, "हाँ… वैसे, तू यहाँ कैसे?"
"बस, तुझे लेने आया हूँ। सोचा साथ में नाश्ता कर लें," राहुल ने कहा, लेकिन उसकी नज़र बार-बार उस डायरी पर जा रही थी।
"ये क्या है?" उसने पूछा।
"एक पुरानी डायरी… मुझे अलमारी में मिली," अनाया ने सहजता से जवाब दिया।
राहुल ने डायरी उठाई और पन्ने पलटते ही रुक गया। "ये… ये तो वही जगह है…"
अनाया ने चौंककर पूछा, "कौन-सी जगह?"
राहुल ने पन्ने पर बने स्केच की तरफ़ इशारा किया—एक नदी किनारे का मंदिर, बिल्कुल वैसा जैसा अनाया ने अपने सपने में देखा था।
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अनजाना सफ़र
उस दिन नाश्ते के बाद अनाया और राहुल ने तय किया कि इस जगह को ढूंढा जाएगा। डायरी में कुछ सुराग़ थे—एक पुराने शहर का नाम, कुछ तारीखें, और कुछ अजीब संकेत।
सफ़र आसान नहीं था। कई बसों और ट्रेनों के बाद, शाम तक वो एक छोटे-से कस्बे पहुँचे, जहां पुरानी हवेलियाँ और सुनसान गलियाँ थीं।
गली के मोड़ पर एक बुज़ुर्ग बैठे थे, जिनकी आँखों में अनाया को अजीब-सी पहचान नज़र आई।
"बेटी… तुम आ गई?" बुज़ुर्ग ने धीमी आवाज़ में कहा।
अनाया और राहुल ने एक-दूसरे को देखा। "आप मुझे जानते हैं?" अनाया ने पूछा।
बुज़ुर्ग ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हें कौन नहीं जानता… तुमने तो यहाँ सौ साल पहले एक अधूरी कहानी छोड़ी थी।"
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अधूरी कहानी
उनकी बातें सुनते ही अनाया का दिल जैसे रुक गया। बुज़ुर्ग ने धीरे-धीरे एक पुराना किस्सा सुनाना शुरू किया—
"बहुत साल पहले, यहाँ एक लड़की रहती थी—अनन्या। उसकी आँखें तुम्हारी तरह थीं। वो अक्सर इस मंदिर के किनारे बैठकर एक लड़के से बातें करती थी—आरव। दोनों की मोहब्बत गाँव भर में मिसाल थी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था…"
उन्होंने रुककर अनाया की तरफ़ देखा, "एक दिन अचानक आग लगी… आरव उस आग में फँस गया, और अनन्या… वो उसे बचा नहीं पाई।"
अनाया की आँखों में आँसू भर आए। उसे अपने सपने में वो आग का मंजर याद आया—शायद ये वही कहानी थी।
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मंदिर की सीढ़ियाँ
बुज़ुर्ग के बताए रास्ते पर चलते हुए अनाया और राहुल मंदिर पहुँचे। सूरज ढल रहा था, और हवा में हल्की ठंडक थी।
सीढ़ियों पर कदम रखते ही अनाया के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। उसे महसूस हुआ कि ये जगह वो पहले भी देख चुकी है—सपनों में, यादों में, या शायद… पिछले जन्म में।
अचानक, मंदिर के भीतर से घंटियों की आवाज़ आई, और अनाया को लगा जैसे कोई उसके नाम से पुकार रहा हो—"अनन्या…"
वो चौंककर मुड़ी, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।
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ख़ामोशियों का इकरार
मंदिर के पीछे एक पुराना कमरा था, जिसका दरवाज़ा आधा टूटा हुआ था। अंदर जाने पर उन्हें दीवार पर उकेरे गए शब्द मिले—
"मैं लौटूँगा… वादा रहा।"
अनाया ने कांपते हाथों से उन शब्दों को छुआ और उसकी आँखों में अनजाने आँसू भर आए।
राहुल ने धीरे से कहा, "शायद… ये आरव का वादा था।"
अनाया ने उसकी तरफ़ देखा—लेकिन उस पल राहुल की आँखों में उसे किसी और की झलक दिखी… वही गहरी, पहचान-सी भरी नज़र, जो उसने सपनों में देखी थी।
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अंत का नहीं, शुरुआत का संकेत
शाम गहरी हो रही थी, लेकिन अनाया को महसूस हो रहा था कि ये सफ़र अभी शुरू हुआ है। ये जगह, ये कहानी, और ये रिश्ता—सब कुछ किसी अदृश्य डोर से जुड़ा है।
वो जानती थी कि आगे जो भी होगा, उसकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल देगा।
और कहीं… किसी मोड़ पर… शायद वो आरव फिर से उसका इंतज़ार कर रहा है।
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अध्याय 4 – धुंध के पार
रात का सन्नाटा उस छोटे से कस्बे को ऐसे जकड़े हुए था जैसे किसी ने समय को रोक दिया हो। खिड़की के बाहर हल्की ठंडी हवा बह रही थी, लेकिन अनायास ही रीवा का दिल किसी अनजाने डर से धड़क रहा था। सपना खत्म होने के बाद भी उसका असर जैसे हर सांस में घुला हुआ था।
उसने पानी का गिलास उठाया, लेकिन होंठों तक ले जाने से पहले ही उसकी नज़र मेज़ पर रखी उस पुरानी डायरी पर पड़ी—वही डायरी जो कल लाइब्रेरी के कोने में किताबों के ढेर के नीचे से मिली थी। पुरानी, पीली पड़ी हुई, किनारों पर नमी से फटे पन्ने… पर उसमें लिखावट इतनी साफ थी मानो किसी ने अभी-अभी लिखी हो।
रीवा ने गहरी सांस ली और पहला पन्ना खोला।
"5 फरवरी 1923…
आज भी मैंने उसे देखा। वही मुस्कान, वही आँखें, और वही अनकहा वादा जो मेरी रूह को बाँध लेता है।"
शब्दों को पढ़ते ही रीवा का दिल जोर से धड़का। वो तारीख… वो दौर… और वो बातें—सब उसके सपने से मिलती-जुलती थीं। उसका हाथ हल्का कांपने लगा। पन्ना पलटते ही एक सूखी पत्ती गिर पड़ी, जैसे किसी ने इसे जान-बूझकर वहाँ छिपाया हो। पत्ती पर हल्का-सा लाल रंग था… लेकिन वो लाल रंग पत्ते का था या खून का, यह तय करना मुश्किल था।
रीवा ने पत्ती को सहेजकर एक तरफ रखा और पढ़ना जारी रखा।
"जब भी वो मेरे पास होती है, समय थम जाता है। लेकिन हमारे बीच जो दीवारें हैं, वो शायद हमें कभी मिलने नहीं देंगी।"
उसके गले में जैसे कुछ अटक गया। यह सब किसके बारे में लिखा था? क्यों उसे लग रहा था कि ये पंक्तियाँ उसी के लिए हैं?
अचानक बाहर आँगन में हल्की सी आहट हुई। वो चौंककर खिड़की की तरफ बढ़ी। धुंध घनी हो चुकी थी। उस धुंध में एक परछाईं धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रही थी।
रीवा ने तुरंत परदा खींच लिया और दिल थामकर पीछे हट गई। लेकिन जिज्ञासा इतनी थी कि वो खुद को रोक नहीं पाई। परदे की हल्की सी दरार से उसने झाँका—परछाईं अब आँगन में खड़ी थी। उसका चेहरा धुंध से ढका हुआ था, लेकिन उसकी आँखें… वही आँखें थीं जो उसने सपने में देखी थीं।
एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे समय फिर थम गया हो।
"रीवा…" एक धीमी, पर गहरी आवाज़ ने उसका नाम पुकारा।
उसके रोंगटे खड़े हो गए। ये आवाज़ अनजानी भी थी और अपनी भी। वो खिड़की से हटकर पीछे गई, लेकिन तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई—धीमी, मगर लगातार।
उसका मन कह रहा था कि दरवाज़ा मत खोलो… पर दिल, जैसे किसी अदृश्य डोर से खिंचता हुआ, उसे दरवाज़े तक ले गया।
जब उसने दरवाज़ा खोला, वहाँ कोई नहीं था। सिर्फ एक पुराना, मुड़ा-तुड़ा लिफाफा पड़ा था, जिस पर उसका नाम बड़े ही खूबसूरत, लेकिन पुराने ढंग के अक्षरों में लिखा था।
लिफाफा ठंडा था, जैसे बरसों से किसी बर्फीली जगह रखा हो। उसने कांपते हाथों से उसे खोला। अंदर एक फोटो थी—काले-सफेद रंग की, जिसमें एक युवती और एक युवक साथ खड़े थे। युवक की आँखें… बिल्कुल वैसी ही थीं जैसी धुंध में खड़ी परछाईं की थीं।
फोटो के पीछे लिखा था—
"हम अधूरी कहानियों को पूरा करने लौटते हैं।"
रीवा का दिल जैसे तेज़ी से धड़कने लगा। उसकी साँसें भारी हो गईं। ये सब कोई खेल था, या सच में… कोई अधूरी कहानी उसका इंतज़ार कर रही थी?
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अगली सुबह उसने तय किया कि अब उसे चुप नहीं बैठना है। उसे इस फोटो, इस डायरी, और इस रहस्य का जवाब चाहिए। वो सीधे लाइब्रेरी गई और वहाँ काम करने वाली बुजुर्ग महिला, शकुन्तला दीदी से मिली।
"दीदी, ये फोटो और ये डायरी… आपको कुछ याद आता है?"
शकुन्तला दीदी ने फोटो को ध्यान से देखा, और उनके चेहरे का रंग उड़ गया।
"ये… ये तो…" उन्होंने जैसे खुद को सँभाला, "ये तो हमारे कस्बे की पुरानी कहानी है, बेटी। करीब सौ साल पहले… एक लड़की और लड़का… जिनका प्यार इस कस्बे के लोगों को मंज़ूर नहीं था।"
"फिर?" रीवा ने जल्दी से पूछा।
"फिर… लड़की अचानक गायब हो गई, और लड़का पागल हो गया। कहते हैं, उसने कसम खाई थी कि वो इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में उसे ढूंढेगा।"
रीवा का पूरा शरीर सुन्न हो गया।
"क्या… क्या इनका नाम पता है आपको?"
शकुन्तला दीदी ने धीरे से कहा, "लड़की का नाम था 'अनाया'… और लड़के का नाम… अर्नव।"
रीवा के कानों में ये नाम गूंज गए। उसका मन जैसे किसी और ही दुनिया में चला गया। अनाया… अर्नव…
क्या वो खुद अनाया थी? और क्या धुंध में खड़ा वो अर्नव था?
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शाम को जब वो घर लौटी, तो उसने एक बार फिर डायरी खोली। इस बार उसमें एक नया पन्ना था—जो पहले वहाँ नहीं था।
"अगर तुम सच जानना चाहती हो, तो झील के किनारे आना… आज रात, जब चाँद पूरा होगा।"
रीवा ने घड़ी देखी—रात होने में अभी कुछ घंटे बाकी थे। लेकिन उसके अंदर की बेचैनी अब रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
रात होते ही वो चुपचाप घर से निकली और झील की ओर चल पड़ी। रास्ता सुनसान था, और चारों तरफ सिर्फ धुंध। पानी की सतह पर चाँदनी बिखरी थी, और उसके बीच एक आकृति खड़ी थी—वो, जिसे उसने सपने में और धुंध में देखा था।
"तुम आ गई…" उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी राहत थी।
रीवा धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ी। "तुम… अर्नव हो?"
उसने मुस्कुराकर कहा, "हाँ… और तुम… मेरी अनाया।"
रीवा की साँसें थम गईं। "लेकिन… मैं तो रीवा हूँ।"
"नाम बदल जाते हैं… चेहरे बदल जाते हैं… लेकिन रूहें वही रहती हैं।"
वो पास आया और उसकी आँखों में झांकते हुए बोला, "इस बार हमें कोई जुदा नहीं कर पाएगा।"
लेकिन तभी… पानी में हलचल हुई, और झील से एक ठंडी हवा का तेज़ झोंका उठा। रीवा को लगा जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे पीछे खींच रही हो। अर्नव ने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उसका चेहरा दर्द से भर गया।
"समय हमारे खिलाफ है… लेकिन मैं तुम्हें ढूँढता रहूँगा… हर जन्म में…"
अगले ही पल, धुंध ने सब कुछ निगल लिया।
रीवा झील के किनारे अकेली खड़ी थी—हाथ में वही पत्ती थी जो डायरी से गिरी थी, लेकिन इस बार उस पर ताज़ा खून था।
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