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"योर्स एंटायरली"(सदा तुम्हारे वास्ते)

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Mira Sharma

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प्रीतिक्षा एक ऐसी लड़की जो हमेशा अपने लिए जीती आई है! पैसा, पावर, रुतबा बहुत मैटर करता है उसके लिए। बट एक ऐसा कॉन्ट्रैक्ट उसकी पूरी जीवन बदल कर रख देती है, अंजान व्यक्ति से शादी करने की। सर्वज्ञ वेदान्त्य अग्निहोत्री, एक ऐसा मिस्टीरियस नाम जिसक...

Total Chapters (5)

Page 1 of 1

  • 1. "योर्स एंटायरली"(सदा तुम्हारे वास्ते)-1

    Words: 1440

    Estimated Reading Time: 9 min

    ..."ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ"...
    ..."निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा"...

    •ये मेरी नई कहानी है, इसे पढ़कर खूब प्यार दें.
    •अगर आपको पसंद ना आए, तो आपके पास स्किप करने का ऑप्शन हैं आप स्किप कर सकते हैं, लेकिन प्लीज रेटिंग्स ना गिराया करें.

    (POV- पॉइंट ऑफ व्यू)
    (मेन लीड - प्रीतिक्षा कुलकर्णी)

    उम्म.. कैसे हैं आप सब? उम्मीद हैं अच्छे ही होंगे.

    मैं हूँ प्रीतिक्षा.. प्रीतिक्षा कुलकर्णी. नाम तो सुना ही होगा, अगर नहीं भी सुना तो अब सुन लीजिए, क्योंकि मैं ही हूँ इस कहानी की मैं लीड यानी कि हीरोईन.

    मेरी फ़ैमिली काफी लो बैकग्राऊंड से है, आज से करीब पंद्रह साल पहले हमारे घर की स्थिति ऐसी थी कि हम पांच भाई बहन ठीक से एजुकेशन तक नहीं के पा रहे थे.

    सच में! मैं झूठ नहीं बोल रही, आप सब सोच रहे होंगे कि मैं इतनी गरीबी से लड़ कर आखिर इतने बड़े पोस्ट पर कैसे आ गई.

    मेरी फैमिली बैकग्राऊंड काफी लो थी उस टाईम पर, मैं आठ साल की उम्र तक स्कूल नहीं गई थी. काफी स्ट्रगल किए हैं मैने तब जाकर आज मैं इस कंपनी की सीईओ बनी हूं.

    स्ट्रगल मींस.. स्ट्रगल.. वैसी स्ट्रगल नहीं जो आज कल की लड़कियां करतीं हैं एक बड़े से पोस्ट पर आने के लिए. लाईक किसी बड़े आदमी के साथ रिलेशनशिप, फिजिकल अटैचमेंट वगैरह वगैरह.

    मैने ये सब कतई नहीं किया है क्योंकि मुझे ये सब अपनी बेइज्जती लगती है, अपने रुतबे के साथ खिलवाड़ लगता है. मुझे मेरी सेल्फ रिस्पेक्ट काफी प्यारी है.

    जो मुझे ऐसी ओछी नजरों से तरता है तो मैं उसकी हड्डी पसली एक कर के रख देती हूं. मैं जहां जाती हूं वहां अब मुझे अजीबो गरीब नजरों से देखते हैं, ये हरकतें मुझे बहुत डिस्गस्टिंग लगती हैं बट जब तक वो मुझे सामने से आकर खुद को कूटने का मौका नहीं देते, मैं कुछ नहीं बोलती.

    इस समाज में एक लड़की को पुरुष अपने आगे नहीं देख सकते और ऐसा है भी मैने कई दफा ऐसे नीच सोच के पुरुष को देखा एंड ऑब्जर्व किया है, जिनकी नजरों में औरतें केवल खिलौना या एक मात्र साधन होती है अपनी वासना पूर्ति के लिए.

    हह.. उन जैसे पुरुषों से बचना सच में एक चैलेंज की भांति होता है और मैने हर चैलेंज को बख़ूबी ऐक्सेप्ट करके पूर्ण भी किया है.

    सॉरी पुरुष समाज, अगर आप सब को बुरा लगा हो तो बट मैने उन चुनिंदा पुरुषों की सच्चाई ही बताई है. आप समझदार हैं तो आप ये समझेंगे कि मैं कुछ गलत नहीं कह रही.

    मुझे आज भी याद है वो रात जब मैं एक फाइव स्टार क्लब में अंधाधुंध नशें कर एक साइड पर पड़ी हुई थी. तभी, एक ऑलमोस्ट पैंतीस या ऐसे ही कुछ उम्र का आदमी. मुझे उसकी ऐज अच्छे से याद नहीं, वो मेरे एकदम करीब आकर बैठ गया, मैं नशें में थी इसलिए मुझे कुछ समझ नहीं आया, वो लगातार मेरे करीब आ रहा था और मैं उसे खुद से दूर करने की कोशिश कर रही थी.

    'कोशिश'.. ही तो नहीं कर पा रही थी मैं, बीकॉज नशे में धुत मुझे ये ही समझ नहीं आ रहा था वो आदमी बैठा कहां है. मैं जहां - तहां हाथ पैर मारने लगी. जिसे देखकर शायद कोई क्लब का मैनेजर हमारे पास आया और उस आदमी को मुझसे दूर करने के लिए धमकाने लगा, बट उसकी बुरी किस्मत वो मान ही नहीं रहा था. उसे खुद पर पूरा यकीन था कि वो वहां सबसे ज्यादा पैसे वाला है और कोई भी उसे कुछ करने से नहीं टोक सकता था. यही मानना उसकी सबसे बड़ी प्रॉब्लम बन गई क्योंकि मैनेजर और उसकी बहस सुनकर कुछ काले कपड़े पहने लोग आए और उस आदमी को घसीटाते हुए क्लब से बाहर फेक दिया गया.

    लिटरली उस टाईम मुझे ऐसा लगा जैसे मैं आसमान में उड़ रही हूं, अब मेरे सपनो का राजकुमार आहिस्ता से चलते हुए मेरे करीब आएगा और मुझे अपनी मजबूत बाहों में उठा कर अपने साथ ले जाएगा.

    बट.. बट.. बट.. मेरा सपना, सपना ही रह गया. क्योंकि कोई तो वापस मेरे पास आया ही नहीं. काफी देर तक इंतेज़ार किया मैने को कोई आए और मुझे ले जाए, लेकिन उस नीच आदमी की तरह ही मेरी किस्मत भी फूटी ही मानो, यार कोई नहीं आया मुझे पकड़ने, उठाने. हाय, मैं कितनी ही जल्दी मैं अपने इमेजिनरी दिमाग में खयाल बुन लेती हूं. जो असल जिंदगी में होने से रहा, इतने देर में मैने ये भी ऑब्जर्व किया कि अब मुझे कोई देख तक नहीं रहा है. अब मैं इसे अपनी खुशकिस्मती समझूं या बदकिस्मती, खैर छोड़ो इन सब बातों को, मैं भी कहां इन बिन सर पैर की बातों में उलझ गई.

    हाँ तो कहाँ थी मैं, अ.. तो मैं आपको अपने बारे में बता रही थी, मेरे पापा बहुत भोले भाले से हैं. लेकिन मेरी माँ उतनी ही समझदार हैं वो मेरे पापा को ऐसा कोई काम नहीं करने देती थीं जिससे हम सब पर कोई भी प्रॉब्लम आए, ऐसे ही एक दिन मेरी कलेशी बुआ जी हमारे घर आईं थीं.

    बातों - बातों में उन्होंने मेरी शादी की जिक्र किया, कसम से उस टाईम जो मुझे गुस्सा आया था सहन से बाहर था. उस समय मेरा मन शादी का बिल्कुल नहीं था क्योंकि मैं इलेवंथ स्टैंडर्ड की स्टूडेंट थी और मेरा सारा फोकस सिर्फ और सिर्फ स्टडी पर था.

    बट मैं उनकी तरह बिगड़ैल तो बिल्कुल नहीं थी, सुनती रही एक कोने में बैठ कर उनकी बातें तभी, मेरी माँ जो किचेन में नाश्ता लेने गईं थीं वो आईं और बुआ जी से मेरी शादी की बात सुनी. ये बात सुनते ही जैसे मेरी माँ के आँखें ज्वाला से भर उठीं, वो अपनी धधकती आँखें लिए ही विनम्रता से उनसे बोलीं.
    "रहने दो शकुन्तला, अभी बच्ची है वो और सारा दिन पढ़ती है कहीं कोई जॉब लग जाएगी तब सोचेंगे शादी के बारे में. वैसे भी अभी प्रीति की उम्र ज्यादा है भी नहीं बस सत्रह की ही तो है."

    बुआ जी को जैसे अपना प्लान अनसक्सेस होता दिखा, तो वो माँ की बात खत्म होते ही झट से बोली.
    "अरे लेकिन अठारह होने में तो कुछ दिन ही बाकी हैं, और कहां घूमेंगी आप जब आपकी बेटी की उमर पार होने लगेगी. इसलिए अभी से सोच कर रखना पड़ता है सबकुछ भाभी. लड़का काफी अच्छा है एक बार उनसे बात कर लीजिए."

    मेरी माँ जैसे तैसे कर अपने शब्दों को अपने गले में ही घोट रही थी, लेकिन उनकी ये बात सुनकर वो और ज्यादा खुद को रोक ना पाई.
    "अगर इतना ही अच्छा है लड़का, तो तुम अपनी दोनों बेटियों में से किसी की शादी उससे क्यों नहीं करवाती, हाँ बोलो शकुन्तला. अभी मेरी बेटी की शादी नहीं होगी ये फैसला लेने का अधिकार मेरा है तो इसे मेरा ही रहने दो, तुम मत बनो उसकी माँ."

    मेरी प्यारी बुआ जी का चेहरा देखने लायक हो गया था मेरी माँ की बात पर, वो मुंह फूला कर हमारे घर से चलीं गई और फिर कभी नहीं आई. नहीं.. वो ना आए ऐसा ही नहीं सकता हर पांच छह महीने में मुंह उठाकर चली आती है मेरी शादी की बात लेकर. बट मेरी माँ हमेशा उन्हें अवॉइड करतीं हैं.

    और तब ही से मेरे अंतर मन में मेरी माँ की बात गांठ जैसी बंध गई थी, उस दिन से मैने अपनी स्टडी पर डबल फोकस दे कर पढ़ना चालू कर दिया और उसका रिजल्ट ये आया कि मैं पढ़ाई में सबको पीछे छोड़ थी, यही बात मेरी कलेशी बुआ को तनिक नहीं भा रही थी जब देखो तब तंज कसती मेरे ऊपर. बट मैं हमेशा की तरह फूल इग्नोर मारती.

    "हूंह जो बोलना बोलो मैं तो तुम्हे सबक सिखा कर ही रहूंगी कलेशी बुढ़िया."

    ऐसे ही पांच साल बाद मैने अपनी बैचलर्स की डिग्री हासिल कर, एक डूबती हुई कंपनी में जॉब ली. अब आप सब सोच रहे होंगे कि मैने किसी इंटरनेशनल कंपनी में जॉब क्यों नहीं ली तो मैं नहीं बताऊंगी क्योंकि कुछ तो सस्पेंस रहे.

    इस जॉब के बीच में ही वो क्लब वाली इंसीडेंट मेरे साथ हुई थी, जिस कंपनी में मैं जॉब करती थी वहां का बॉस फटीचर था साला. हर वक्त बुरी नजर रखता था लड़कियों पर और लड़कियां जॉब हाथ से ना चली जाए इसलिए उससे कुछ नहीं कहती थी, बट मैं सहने वालों में से नहीं थी मैने एक दो बार उसे थप्पड़ तक मार दिया था, लेकिन वो बूढ़ा समझने को तैयार ही नहीं था.

    तभी एक दिन, जब मैं अपने कम में मगन थी. उसने मुझे अपने केबिन में बुलाया और मेरे सामने एक ऐसी शर्त रखी, जिसे सुनकर एकदम से मेरा पारा चढ़ गया.

    ...!!जय महाकाल!!...

    (*POV एक से दो भाग में खत्म हो जाएगा.)

    (इस कहानी को सपोर्ट करे और मुझे फ़ॉलो जरूर करें, कॉमेंट्स और प्रोत्साहन देना बिल्कुल ना भूलें.)

  • 2. "योर्स एंटायरली"(सदा तुम्हारे वास्ते)-2

    Words: 1448

    Estimated Reading Time: 9 min

    ...!!जय महाकाल!!...

    अब आगे...!!

    ⚠️ कंटेंट वार्निंग:
    आगामी दृश्य में पारिवारिक विषमताओं, गहन भावनात्मक क्षणों और मनोवैज्ञानिक तनाव से जुड़ी बातें प्रस्तुत की गई हैं. यह अंश पाठकों के लिए भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है. कमज़ोर दिल वाले पाठकों से अनुरोध है कि आगे पढ़ने से पहले सावधानी बरतें. कृपया आत्मचेतना के साथ आगे बढ़ें.

    -------------------------------------------❦︎----------------------------------------------

    उसने मेरे सामने एक फालतू सी शर्त रखी.
    "देखो, तुम्हारा टैलेंट तो मुझे पहले ही दिख चुका है, लेकिन अगर तुम मेरे साथ थोड़ा वक़्त बिताओ. मेरा मतलब, थोड़ा पर्सनल कनेक्शन बिल्ड हो जाए, तो मैं पर्सनली इंश्योर करूँगा कि तुम इस कंपनी की सबसे ऊँची और एक्सक्लूसिव पोजीशन तक पहुँचो, जहाँ सिर्फ कुछ खास लोग ही पहुंचते हैं. अ.. तुम समझ रही हो ना मेरे कहने का मतलब."

    सच कहूं तो खून खौल उठा था मेरा उस समय, लेकिन मैं ठहरी चालबाज अपने शातिर मकसद में किसी को भी फसाना मुझे अच्छे से आता था. इसलिए मैने उसे एक चाशनी में डूबो हुई लहजे में, अपने चेहरे के एक्सप्रेशंस को मासूम सा बना कर उसका जवाब दे दिया.
    "बट सर, ये.. ये सही नहीं हैं. ऐसा नहीं करना चाहिए हमें. और लोग जानेंगे तो क्या कहेंगे हमारे बारे में."

    उसने झट से मेरे कंधों पर अपने घिनौने हाथ रख दिए और बेशर्मी से मुस्कुरा कर बोला.
    "तुम इसकी कोई चिंता मत करो, बस मैं जो कहूँ वो करो."

    "लेकिन सर....!"

    "शाम को जो एड्रेस मैं तुम्हे मेल करूंगा, वहां आ जाना. उसके बाद...!"
    (वो रुका और फिर बोला)
    "मैं वहां तुम्हारा प्रमोशन लेटर भी तुम्हारे हाथ में रख दूँगा."
    उसने कहा और बिना मुझे बिना कुछ आगे कहे वहां से चला गया.

    मैं अपनी मासूमियत को साईड में फेंकी और इसका ठिकाना कैसे लगाना है, इसके लिए नए - नए आइडियाज सोचने लगी. क्योंकि मैं इस ऑफिस की सबसे स्मार्ट एम्पलाई थी, इसलिए मुझे ज्यादा समय नहीं लगा उस टकले का इलाज सोचने में.

    मैं अपने घर में थी, तब उस टकले का मैसेज आया. वो कोई फॉर्महाउस का लग रहा था, जो जगह मेरे लिए काफी फायदे मंद साबित होने वाला था. मैने उस जगह की लोकेशन ट्रैक की तो वो मुझे अपने प्लैन के अकॉर्डिंग ही मिला. मैं खुश हो गई.

    मैं जाने के लिए रेडी हो रही थी, कि मेरी माँ आईं और मुझे इतना सजा सवेरा देख कर हैरानी से पूछी.
    "बेटा इतनी रात को इतना सज - धज कहाँ जा रही हो?"

    मैने अपनी दोस्त की बर्थडे पार्टी का बहाना बना दिया, मेरी माँ मुझ पर काफी भरोसा करती थीं और मैं कभी कभार ही घर से बाहर जाया करती थी, इसलिए उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा. और बिना कोई सवाल जवाब के जाने दिया.



    मैं उस एड्रेस पर पहुंची, वो खाली और सन्नाटे से पूर्ण इलाका था, जहां जाने से मुझे भी डर लगने लगा. लेकिन मैंने अपने आप को संभाला और जल्दी से आस - पास देख कर, उस फॉर्म हाउस में एंटर कर गई. वो फॉर्महाउस भी अंधेरे से घिरा हुआ था, तभी अचानक से उस टकले ने मुझे पीछे से पकड़ लिया. मैं एकदम से डर गई और चिल्लाती की उसके बदबूदार हाथ मेरे मुंह पर थे, जिससे मैं चीख भी नहीं पाई.

    वो मेरे सामने आया और बड़ी ही बेशर्मी से मेरे पूरे शरीर को घूर कर, एक इशारा किया.
    "वहां तुम्हारे पेपर्स रखे हुएं हैं, तुम अगली सुबह इसे लेकर जा सकती हो. अगर तुम चाहो तो अभी पढ़ भी सकती हो."

    "ठीक है!"
    मैं सोफे पर रखी उस पेपर को उठाई, उसने लाइट जला दी. मैने बड़े गौर से उस पेपर के एक - एक वर्ड और लाइन को पढ़ा. वो झूठ नहीं बोल रहा था, इसलिए मैने उस एग्रीमेंट पेपर्स को अपने पर्स में डाल लिया.

    वो बेशर्म टकला मुझे अजीब नजरों से घूरते हुए मेरे करीब आने लगा. मुझे उसके टच से भी गंदी सी फीलिंग आ रही थी. वो एकदम से मुझे अपने करीब खींचा और मेरे कंधे पर अपने नुकीले दांत गड़ा दिया, और तभी उसकी चीख निकलती - निकलती रह गई. एक बार फिर वो चिल्लाने की कोशिश किया लेकिन चिल्ला नहीं पाया, अब वो हमेशा के लिए सो चुका था.

    मैं जल्दी से अपने एक्शन में आई, मैने उसके बॉडी पर जहां जख्म थे वहां कस कर पट्टी बांधी ताकि कुछ एविडेंस ना बचे, और उसके बॉडी को एक उठा कर फॉर्म हाउस के ऑपोजिट साइड में जहां पूरा जंगल था, वहां उसकी बॉडी को रखी.

    वहां पहले से मेरी दो फ्रेंड्स थी, दोनों ही पुलिस ऑफिसर थीं और उस समय मेरे साथ थीं. उन्होंने साइड में रखे लकड़ियों का गट्ठर उस पर डाला. और अपने साथ लाई हुई केरोसिन उस पर डाल दिया और फिर माचिस की एक तिली ने वो कर दिया, जिसके लिए हम यहां आएं थें.

    उसके जलते हुए लाश को देख कर मेरी फ्रेड अनिका ने कहा.
    "प्रीति, इसकी तो कहानी यहीं खत्म हो गई, अब हमे इस फॉर्म हाउस को खत्म करना होगा."

    "बट क्यों?"
    मैने हैरानी से उससे पूछा, क्योंकि ये हमारे प्लैन का हिस्सा नहीं था.

    "क्योंकि हमें सारे एविडेंस मिटाने होंगे? अभी रात दस बजे हैं अगर अभी हम ये करेंगे तो किसी को कुछ पता नहीं चलेगा."
    (वो रुकी, एक गहरी सांस भर कर फिर बोली)
    "ये इलाका शहरी क्षेत्र से काफी दूर है, तो आस - पास की चिंता भी नहीं है. घर के अंदर दो सिलेंडर रखे हुएं हैं. हम घर के पर्दों, कपड़े और बेड्स इन सब में आग लगाएंगे तो ये नेचरली एक हादसा लगेगा. हमें ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए, चलो जल्दी."

    हम तीनों अपने - अपने काम पर लग गए हमने अब कुछ बर्न कर दिया था, मैने अपने जरूरी डॉक्युमेंट्स जो मैने उससे हासिल किए थे, उसे जल्दी से अपने साथ रखी क्योंकि वहीं अब मुझे मेरे सपनों तक पहुंचाता.

    हम सब पूरी तैयारी के साथ जल्दी फॉर्म हाउस से बाहर निकले और गाड़ी ड्राइव करके कुछ दूर पर आ गए.

    मेरी दूसरी फ्रेंड सोनल शूटिंग में एक्सपर्ट थी, हमने पहले ही सिलेंडर उठा कर किचेन के स्लैब पर रख दिया था, उसने उस पर निशाना साधते हुए, एक के बाद एक, एक साथ छेओं गोली सिलेंडर पर दाग दी.

    एक तेज धमाका हुआ और इसी के साथ वो पूरा फॉर्महाउस आग की लपटों में समा गया. हमने उस मंजर को कुछ देर देखा और ऑब्जर्व किया, अब कुछ सही से हो रहा था.

    हमने अपने प्लैन को सक्सेसफुल किया, अब हम तीनों गाड़ी में बैठे और अनिका कार ड्राइव कर रही थी. मेरी आँखों के सामने वो विस्फोट अभी भी घूम रहा था, मुझसे रहा नहीं गया तो मैने अनिका से पूछ ही लिया.
    "अनिका तुम श्योर हो कि अब हम इस हादसे से दूर हैं."

    "हाँ डियर, अब हमे इन सबसे बहुत दूर हैं, कोई हमे पकड़ने की कोशिश भी करेगा तो भी नहीं पकड़ पाएगा."
    उसने मुझे देखा.

    "तुम इतनी श्योर कैसे हो?"

    "अच्छा सुनो, मैंने यहां आने से पहले सारी चीजों की तहकीकात कर रखी है, विक्रम लूथरा के बारे में सब कुछ ट्रैक किया है. वो कहाँ जाता था? क्या करता था? सब कुछ. यहां तक कि उसके फैमिली रिलेशंस कैसे हैं? सब कुछ....!"

    "फैमिली से याद आया कि, उसके मरने की खबर सुन कर तो उसकी फैमिली गुनहगार को ढूंढने में जरा भी देर नहीं करेगी."
    मैने उसे बीच में टोका.

    वो मुझे देख कर मुस्कुराई.
    "प्रीति, वही तो मेन प्रॉब्लम थी!"

    "थी, अब नहीं है."

    "हाँ, अब नहीं है, क्योंकि उसके माँ की डेथ दो महीने पहले ही हो गई थी और उस विक्रम की बहन.. रूशा! विक्रम को कई बार खुद मारने की कोशिशें करती थीं."
    अनिका चुप हो गई.

    मुझे कुछ समझ नहीं आया कि माजरा है क्या? इसलिए मैने फिर उससे पूछा.
    "वो मारने की कोशिश कर रही थी, अपने ही भाई को."

    "बीकॉज, वो उसकी सौतेली बहन थी!"

    "लेकिन मार किस लिए रही थी?"

    "क्योंकि प्रॉपर्टी पूरी तरह से उसकी हो जाए, अगर उसे अपने सौतेले भाई के हादसे की खबर मिलेगी तो वो पुलिस कंप्लेन तो बिल्कुल भी नहीं करेगी, अगर करेगी भी तो बस दिखावे के लिए. और पुलिस इस केस को महज हादसा घोषित कर इससे अपना पलड़ा झाड़ लेगी."
    (वो एक डेंजरस स्माइल मुझे पास की)
    "समझी माय डियर, तुम्हारा रास्ता अब पूरा क्लियर है."

    उसकी सारी बातें सुनकर मेरे दिमाग में भी नए - नए आइडियाज आने लगे कि अपनी कंपनी कैसे खड़ी करनी है.

    "थैंक यू! अनिका, सोनल. तुम दोनों सच में भगवान की दी हुई अनमोल गिफ्ट हो मेरे लिए."

    "हमने कहा था ना, फ्रेंड्स में नो थैंक यू."
    वो दोनों साथ में बोलीं.

    और अब मेरी जिंदगी की एक अलग फेज स्टार्ट हुई! जहां सिर्फ संघर्षों के अलावा कुछ नहीं था.

    ...!!जय महाकाल!!...

    (*रियल स्टोरी, एक से दो भागो में स्टार्ट हो जाएगी. POV खत्म होने के बाद.)

    (इस कहानी को सपोर्ट करे और मुझे फ़ॉलो जरूर करें, कॉमेंट्स और प्रोत्साहन बिल्कुल ना भूलें)

  • 3. "योर्स एंटायरली"(सदा तुम्हारे वास्ते)-3

    Words: 1458

    Estimated Reading Time: 9 min

    ...!!जय महाकाल!!...

    अब आगे...!!

    मैने काफी दिनों तक किसी से कुछ नहीं कहा, और न्यूज में या ऐसा कुछ भी सुनने में नहीं आया कि उस केस के लिए कोई बवाल हुआ है. सारा मैटर मेरी दोनों दोस्तों ने खत्म करवा दिया था. और तब से मेरी जिंदगी की शुरुआत सिरे से हुई. अब अपने बारे में बात फिर कभी करूंगी.

    (POV ऐंड)

    -------------------------------------------❦︎----------------------------------------------

    "मैं सिर्फ उसी से शादी करूंगी माँ?" प्रीतिक्षा आईने में अपने चेहरे को देखते हुए अपने बाल सवार कर बोली.

    उसकी माँ (सुधा जी) टेंशन में उसे देख रही थी.
    "लेकिन बेटा, ये बिल्कुल सही नहीं है."

    "कैसे सही नहीं है?"

    "प्रीती....!" उनका चेहरा गुस्से में तमतमा गया.

    "माँ प्लीज, मैं उसी से प्यार करती हूं और उसी से शादी करना चाहती हूं. बस!"

    "ठीक है, लेकिन तुम्हे मेरी सारी बातें माननी पड़ेंगी." उन्होंने एक गहरी साँस छोड़कर, आखिर कार बोल ही दीं.

    "ओहो मम्मा, आप ना बहुत टाईम लेते हो एक बात मानने में. अच्छा सुनो कल हम दोनों की शादी है कोर्ट मैरेज. तो आप पापा और मेरे सभी भाई - बहनों को तैयार रहना बोल दीजियेगा." प्रीतिक्षा एकदम से खुश होकर उनके गले लग गई.

    "पहले मेरी शर्त तो सुन लो. बेटा!"

    "ओके बोलिए." प्रीति बड़ी - बड़ी आँखों से उन्हें देखने लगी.

    "तुम वहां जाओगी और वहां जो - जो होगा मुझे सब बताओगी." सुधा जी के चेहरे पर स्ट्रिक्टनेस के भाव समझ आ रहे थे.

    "इतनी सी बात, ठीक है, मैं आपसे सब कुछ शेयर करूंगी. ह्म्म्म अब खुश, चलिए जल्दी से स्माइल करिए."

    सुधा जी से अब सीरियस नहीं रहा गया, वो हँसी, उन्हें देख प्रीतिक्षा भी खिलखिला कर हँस दी.

    -------------------------------------------❦︎----------------------------------------------

    (द डिवाइन ग्रुप ऑफ कॉर्पोरेशन)

    एक बहुमंजिला इमारत, जिसका कांच इतना चमकदार था कि जो देखे उसकी आँखें चौंधिया जाएं. उसी बड़े से बिल्डिंग को निहारते हुए प्रीतिक्षा कुलकर्णी खड़ी थी.

    "कुछ सालों पहले कहाँ थी मैं और कहाँ हूं." उसके होठों पर स्मर्क तैर गया.
    "कभी इस कंपनी के भीड़ में गुम थी और अब वही भीड़ मेरे नाम से ही रास्ता बदल देती है. हुंह, छोड़ो ये सब बातें."

    वो अपने कदम आगे बढ़ाई, सारे बॉडीगार्ड्स उनके लिए सम्मान में सिर झुका लिए.

    "जिस दरवाज़े पर कभी मैं वेट करती थी, आज वो दरवाज़ा तब तक नहीं खुलता, जब तक मैं ना चाहूं." वो अजीब से एक्सप्रेशंस से खुद मन में ही सोची.
    "और मैंने अपने इस पोजिशन को वक़्त से तो नहीं माँगा, बल्कि छीना है."
    वो ऐसे हँसी जैसे कोई सायको हँस रहा हो.

    वो अपने कंपनी के एंट्रेंस पर जैसे ही पहला कदम रखी, वैसे ही पूरा माहौल एकदम पिन ड्रॉप साइलेंस में तब्दील हो गया. वो एक गहरी नजर सारे एम्पलॉइज और वर्कर्स को देखी और कोल्ड एक्सप्रेशंस के साथ अपने केबिन में जाने के लिए लिफ्ट में चढ़ गई.

    अपने कैबिन में आकर वो अपने हेड चेयर पर बैठ गई, उसकी असिस्टेंट जल्दी से आई और उसे उसका शेड्यूल बताई. प्रीतिक्षा अपने दोनों हाथ को टेबल पर टीका कर अपने चेहरे को असिस्टेंट की ओर मोड़ी, और बेहद सख़्ती से बोली.
    "उम्म, मेरे शाम पांच बजे के बाद की सारी मीटिंग्स कैंसिल कर दो."

    असिस्टेंट के माथे पर पसीने की लकीरें दिखाई पड़ने लगीं, वो कुछ बोलती इससे पहले ही प्रीति उसे हाथ दिखा कर रोक दी.

    "ओके बॉस! मैम आपके साथ मिस्टर अग्निहोत्री की मीटिंग है रात के नौ बजे."
    असिस्टेंट ने एक बार फिर शेड्यूल चेक की.

    प्रीति उसकी बात पर सोच में डूब गई, उस इंसान से मिलने का इंतेज़ार उसे कब से था. लेकिन अब इसे उससे मिलने का अवसर मिला था, तो वो नर्वस फील कर रही थी.

    "यार....!" वो एक गहरी सांस भरी.
    "हाय... मिस्टर अग्निहोत्री...! ये मिलन की बेताबी अब मेरे सांसों पर भी बोझ सी बनने लगी हैं. हर लम्हा, हर शाम, सिर्फ़ आपके नाम का इंतज़ार करती हूँ मैं. ना दिन चैन देता है, ना रातें सुकून देती हैं. बस इक तड़प है कि कब आप सामने होंगे, और ये बेचैनी आख़िर मुक़ाम पाएगी." उसके चेहरे की बेताबी बढ़ती जा रही थी.

    तभी उसका फोन रिंग हुआ और वो फोन रिसीव कर बोली.
    "हेलो!"

    "हेलो.. वेलो.. छोड़. और जल्दी मिडनाइट कैफ़े में आ, जल्दी मींस जल्दी."
    सामने से एक चीखती हुई बेहद प्यारी आवाज आई.

    उसकी बात पर प्रीति बेपरवाही से भरी आवाज आई.
    "क्यों ऐसा क्या है कैफे में?"

    "यार तू ये हमेशा क्यों, क्या, किस लिए क्यों करती रहती है. ज्यादा सवाल जवाब मत कर और चुप चाप आ."
    वो एकदम से उसे झिड़क कर बोली.

    "अच्छा ठीक है, आ रही हूं."

    "आ रही हूं नहीं, आ जल्दी."
    कह कर सामने से बीप की आवाज के साथ कॉल कट गई.

    प्रीति एक गहरी सांस छोड़ कर अपने चेयर से उठी और अपने असिस्टेंट को कॉल की.

    "येस मैम!"

    "मेरी आज की सारी मीटिंग्स कैंसिल कर दो."
    उसने ठंडे स्वभाव से कहा.

    "बट मैम....!"
    असिस्टेंट टेंशन में बोली.

    "जो कहा जाए, वही करो चुपचाप. अपने एक्स्ट्रा-ऑर्डिनरी दिमाग का इस्तेमाल करने का कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं मिला है तुम्हें."
    वो चिढ़ गई थी.

    असिस्टेंट ने धीमे से हाँ में जवाब दिया तो, प्रीति उसे गाड़ी निकालने को बोल कर कॉल कट कर दी. वो अपने फोन को सोफे पर फेंकी और वाशरूम में घुस गई. अपने चेहरे को देख उसके चेहरे पर एक सुंदर मुस्कान ठहर गई. वो अपने बालों को खुला छोड़ दी, उसके लंबे घने बाल उसके पूरे शरीर पर बिखर गई. वो अपने बालों को देखकर हल्के से मुस्काई और आईने के सामने थोड़ी और करीब आकर बुदबुदाई.

    "तू जानती है ना, कोई तुझसे बच नहीं सकता. ये खूबसूरत सा चेहरा, ये आँखें, ये बाल, ये मुस्कान. जो एक बार देख ले, वो कहीं और देख ही नहीं सकता या देखने लायक ही नहीं रहता!"

    उसने अपनी उंगलियों से अपनी जुल्फें पीछे की, और फिर मिरर में खुद की आंखों को घूरते हुए धीमे से बोली.
    "मैं जो चाहूं, वो मेरा हो जाता है! और अगर नहीं हो, तो बनाना आता है मुझे, किसी भी कीमत पर."

    उसकी प्यारी मुस्कान अब तिरछी मुस्कान तब्दील हो गई थी, उसकी आंखों में अब एक अजीब सी प्यास समझ आने लगी थी.
    "तुम मुझसे भाग सकते हो, छुप सकते हो, अनदेखा कर सकते हो पर तूम मुझसे बच नहीं सकते, कभी नहीं."

    उसका चेहरा अब मासूम नहीं रहा था. उसकी आंखों में हल्का सा पागलपन झलक रहा था. उसने धीरे से अपने चेहरे को पानी से धोया, पानी की बूंदे उसके चेहरे से टपकने लगीं. उसकी नजरें एक पल को भी अपने चेहरे से नहीं हटी थीं, वो एकटक खुद को निहार रही थी.

    वो वाशरूम से बाहर निकल आई, फिर अपने पर्स को उठा कर अपने बालों को ठीक करते हुए केबिन से निकल गई.

    (मिडनाइट कैफे)

    शहर की सबसे साइलेंट और क्लासी जगह पर जहां रौशनी कम, लेकिन माहौल बेहद खूबसूरत रहता है. वहां प्रीतिक्षा की गाड़ी आकर रुकी.

    प्रीतिक्षा अपनी कार से उतरी. फॉर्मल ड्रेस पर शानदार हाय हील्स, और कॉफिडेंट चलने का अंदाज़ सब कुछ इस बात का सबूत था कि वो जब भी किसी जगह जाती थी, वहां मौजूदा हर शख्स की नजर बस उस पर ही ठहर कर रह जाती थी.

    कैफ़े के अंदर उसके कदम रखते ही हमेशा की तरह सबकी निगाहें उसकी ओर ही उठ गईं और वो जैसे हमेशा की तरह, इन नज़रों की आदी थी. इसलिए उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा. उसने अपनी नज़र चारों ओर घुमाई, और फिर सामने की कोने वाली टेबल पर बैठी अपनी दोनों बेस्ट फ्रेंड की तरफ देखी.

    "फाइनली, तू आई!" उसकी दोनों फ्रेंड खुशी से चहकते हुए उठी और उसकी तरफ हाथ दिखाई.

    "रिलैक्स मेरी जान, मैं आई हूं, भागकर नहीं आना था." प्रीतिक्षा चेयर खींच कर बैठते हुए बोली.

    "तू कभी नॉर्मल नहीं हो सकती, है ना?" अनिका मुंह बना कर बोली.

    "और तुम कभी शांत नहीं हो सकती. है ना?"

    वेटर उनका ऑर्डर लेने आया, प्रीतिक्षा ने उसे बिना देखे ऑर्डर दिया.

    "ब्लैक कॉफ़ी, नो शुगर."

    "स्टील द सेम चॉइस!" सोनल मुस्कुरा दी.

    "कुछ चींज़ें नहीं बदलतीं." प्रीतिक्षा ने जवाब दिया, और एक हल्की सी मुस्कान आई उसके चेहरे पर.

    "बाय द वे, तू आज बहुत ज़्यादा सीरियस लग रही है." अनिका ने उसे अच्छे से स्कैन किया और कहा.

    प्रीति एक पल को चुप रही.

    "हाँ और नहीं झूठ बोलूंगी, मैं कुछ नर्वस हूं."

    "ओहो मिस ग्लेशिया क्वीन, नर्वस है!"

    इसके इतने अजीब से निकनेम देने पर प्रीति उसे घूर कर देखी, तो अनिका चुप हो गई. उन दोनों को देख सोनल ने अपनी भौहें उचकाई और बेपरवाही से प्रीति को चिढ़ाई.
    "वैसे तेरा प्रिंस चार्मिंग मिला तुझे? जिसके लिए तू बरसो से इतनी बेसब्र है."

    "हाँ, उसके लिए तो नर्वस हूँ."
    उसने ये बात काफी नॉर्मली कह दिए थे, लेकिन अनिका और सोनल के चेहरे के तोते उड़ गए. उन दोनों के मुंह से लग - भग कॉफी बाहर आते - आते बचा.

    ...!!जय महाकाल!!...

    (इस कहानी को सपोर्ट करे और मुझे फ़ॉलो जरूर करें, कॉमेंट्स और प्रोत्साहन बिल्कुल ना भूलें)

  • 4. "योर्स एंटायरली"(सदा तुम्हारे वास्ते)-4

    Words: 1558

    Estimated Reading Time: 10 min

    ...!!जय महाकाल!!...

    अब आगे...!!

    "क्या बकवास कर रही है तू?" सोनल ने बड़ी बड़ी आँखों से उसे घूर कर कहा.

    प्रीतिक्षा अपनी आँखें रोल कर कही. "मैं बकवास नहीं कर रही!" उसने एक गहरी साँस छोड़ी, और अपनी दोनों दोस्त को देखी, जो उसके मुंह से सारी बात सुनने के लिए मरी जा रही थी. उन्हें देख अनजाने में उसके चेहरे पर एक हँसी आ गई. वो बोली. "क्या तुम दोनों में से एक भी 'सर्वज्ञ वेदान्त्य अग्निहोत्री' को जानती हो?"

    "नहीं तो, कौन है वो?" अनिका और सोनल सच में उसके सस्पेंस क्रिएट करने पर अब गुस्साए जा रही थी.

    "मेरा फिओंसे!" बस उसके ये दो शब्द दोनों की आँखें फाड़ने के लिए काफी थी, कॉफी शायद उनके गले में अटक गया था. दोनों ही खांसने से खुद को कंट्रोल की और प्रीति को ऐसे देखी जैसे किसी पागल को देख रही हो.

    सोनल हैरानी से बोल दी. "तू पगला वगला तो नहीं गई हैं ना. कौन सी पागलपंती चढ़ गई है तुझे या सुबह - सुबह कोई सस्ता नशा कर बैठी है क्या?" सोनल की लगभग आँखें बाहर आने को थीं.

    प्रीतिक्षा दोनों को देख मुस्कुराई और अपना सर उन दोनों के थोड़ा करीब कर धीमी आवाज से बोली. "हम दोनों कॉन्ट्रैक्ट मैरेज कर रहे हैं. उसे अपने लिए बीवी चाहिए और मुझे वो....!" उसने "वो" पर जोड़ दिया.

    सोनल और अनिका थोड़ा - थोड़ा समझ आ रहा था, अनिका के दिमाग में अचानक से छवि उमड़ी और वो हैरानी से बोली. "क्या वो इंसान तेरा प्रिंस चार्मिंग हैं?"

    "येस, माय डियर डार्लिंग. अब जाकर समझी तू. मेरा होने वाला हसबैंड ही मेरा प्रिंस चार्मिंग है." प्रीतिक्षा रहस्यमई मुस्कान लिए बोली.

    "ओहो, तो तू तबसे ये बात रही थी कि अब तेरी शादी तेरे प्रिंस चार्मिंग से कंफर्म है. और वो ही तेरा दुल्हा बनेगा." सोनल ने उसके चेहरे के सारे एक्सप्रेशंस को नोट किया.

    "हाँ, हाँ, हाँ.. मैं यही बताने की कोशिश कर रही थी तुम दोनों को. की तुम दोनों को प्रीतिक्षा भी अब तुम दोनों को तरह दुल्हनिया बनेगी." प्रीतिक्षा बोली, तो सोनल और अनिका ने उससे ड्रिंक चेयर्स किया.

    "बट, ग्लेशिया क्वीन ये सब हुआ कैसे?" अनिका ने क्यूरियोसिटी से लिप्त मुस्कान लिए पूछा.

    "ह्म्म्म! तो तुम दोनों को याद होगा जब हम लेकवुड चर्च गए थे. जो ह्यूस्टन, टेक्सास में है, अरे यही सात महीने पहले जो गए थे हम तीनों." प्रीतिक्षा बोलना शुरू की.

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    (फ्लैशबैक बिगिंस)

    (POV ऑफ़ प्रीतिक्षा)

    जब हम प्रार्थना से बाहर निकले थे ना, तब मैं थोड़ी देर के लिए कहीं रुक गई थी. और तुम दोनों उस बेंच पर बैठी हुई मेरा इंतज़ार कर रही थी, बाइबल पढ़ते हुए. मुझे अब भी वो लम्हा याद है, जैसे कल की ही बात हो.

    मैं चर्च से निकल कर कुछ दूर पर जो स्टारबक्स है वहां गई थी, और ना जाने क्यों, उस वक़्त वहाँ कुछ ज़्यादा ही सन्नाटा था. मैंने हमारी तीन कॉफी का ऑर्डर दिया और एक खाली सीट पर बैठ गई. कुछ देर बाद मेरी कॉफी तैयार हो गई, और मैं उठकर जाने ही वाली थी, लेकिन तभी मेरी नज़र अनायास ही सबसे सामने वाली दो चेयर्स पर पड़ी, जहाँ एक आदमी मुझे कब से आने का इशारा कर रहा था.

    एक पल को तो समझ ही नहीं आया कि ये हो क्या रहा है, ऐसा लगा जैसे किसी अजीब से भ्रम में फँस गई हूँ. तभी वो आदमी खुद ही मेरे पास चलकर आ गया, मैं एक पल को थोड़ी ठिठक गई. वो आदमी पूर्णतः काले कपड़ों में लिपटा हुआ था.

    उसका हुलिया भी मुझे डरा रहा था, मैने उसे नजरअंदाज करने की कोशिश कर वहां से अपने कदम आगे बढ़ाए, लेकिन तभी वो आदमी लपक कर मेरे करीब आया और मेरा हाथ पकड़ लिया. और उसकी पकड़ जैसे लोहे की जकड़न को भी मात दे देती.

    मैं हड़बड़ा कर उसकी तरफ देखी, लेकिन उसके चेहरे पर एक मास्क था. उस मास्क पर ब्लैक पाइथन में लिपटा हुआ एक व्हाइट टाइगर उभरा हुआ था. कुछ ऐसा, जिसे देखकर मेरे रोंगटे एकदम से खड़े हो गए. एक पल के लिए तो मेरी साँस ही अटक गई और दिल में अजीब सा डर समा गया.

    लेकिन मेरी सोच के बिल्कुल विपरीत, वो आदमी मेरे सामने हल्का सा झुका, जैसे किसी शाही अदब से मुझे सम्मान दे रहा हो. उसने अपनी संयत आवाज में एक वाक्य कहा."मिस प्रीतिक्षा, हमारे बॉस आपसे मुलाक़ात की इच्छा रखते हैं."

    ये सेंटेस जैसे ही मेरे कानो में पड़ा तो मुझे लगा मेरा भ्रम अभी भी समाप्त नहीं हुआ है, इसलिए मैने धीमे से अपने हाथों पर चिकोटी काटीं. तब जाकर मुझे वास्तविकता का आभाष हुआ और मैने तेजी से उसके पूछा. "बट व्हाई?"

    "उन्हें आपसे कुछ जरूरी बात करनी है." वो बोला और मुझे इसी चेयर की ओर जाने का इशारा किया.

    मैंने देखा, वहाँ पहले से ही एक आदमी बैठा हुआ था, उसकी पीठ मेरी ओर थी. उसके हाथों में पकड़ी सिगरेट मुझे साफ़ दिख रही थी, वो बार-बार उसे होंठों तक ले जाकर लंबे कश खींचता जा रहा था. उसकी गर्दन पर ठीक वही टैटू बना था, जो उस आदमी के मास्क पर था.
    "ब्लैक पाइथन से लिपटा हुआ व्हाइट टाइगर."

    सच कहूँ, वो टैटू सच में काफ़ी भयानक था. मैंने एक बार उस आदमी को देखा, जो मुझे यहाँ लाया था. और फिर धीमे कदमों से चलते हुए उस अनजान आदमी के सामने की कुर्सी खींच कर बैठ गई. बैठते ही मेरे दिमाग़ में एक अजीब सा ख्याल उमड़ आया, वो आदमी मुझसे हिंदी में बात कर रहा था, लेकिन ये तो यूएसए है, तो यहाँ हिंदी कैसे?

    वो अज्ञात शख़्स मेरी तरफ़ देखा, फिर सिगरेट नीचे फेंक कर अपने जूते से कुचल दिया. फिर अपनी अजीब सी गहरी, लेकिन गंभीरता से बोला. "मिस कुलकर्णी?"

    मैंने पहली बार उसका चेहरा ठीक से देखा और बस देखती ही रह गई, कोई इतना हैंडसम कैसे हो सकता है?
    वो बिल्कुल क्लीन शेव था, उसकी नाक की बनावट बेहद सीधी और शार्प थी, जो उसके चेहरे को और भी सख़्त बनाती थी. हल्की तिरछी मुस्कुराहट और आँखें गहरी और गंभीर थी. उसकी आँखें बहुत सी बातें अपने भीतर समेटे हुए प्रतीत हो रही थीं.

    उसके कंधे चौड़े थे, और काली शर्ट उसे और भी स्मार्ट दिखा रही थी, गले के पास वही टैटू. ये टैटू उसके पूरे अंदाज़ को थोड़ा खतरनाक, लेकिन रहस्यमयी भी बना रहा था.

    "हाँ!" मैने अपने आप को उसे देखने से रोका और कहा.

    "अह.. मिस प्रीतिक्षा कुलकर्णी! मुझे बातें घुमाना बिल्कुल पसंद नहीं है, 'मैं आपसे शादी करना चाहता हूं!' और हमारी शादी मीडिया से हिडेन होगी." वो शख्स इस बात को ऐसे बोला जैसे नॉर्मल कन्वर्सेशन कर रहा हो.

    मुझे उसकी बातें सुन करेंट लगा, और मैं एक झटके में अपनी चेयर से उठ खड़ी हुई और उसे उंगली दिखा कर बोली. "आप चाहते हैं कि मैं आपसे शादी करूं."

    उसने हाँ में सिर हिला दिया, मुझे अचानक से गुस्सा आया और मैं बिना कुछ सोचे समझे बोल दी. "डोंट.. डोंट यू डेयर! आप सोच भी कैसे सकते हैं? मैं आप जैसे आदमी से शादी करूंगी जिसे मैं जानती तक नहीं. नेवर, एवर! डोंट इवेन थिंक एबाउट इट." मैं गुस्से से मेरे और उस सख्श के बीच रखे टेबल पर जोड़ो से हाथ दे मारी. जिसकी आवाज सुन सभी वेटर हम दोनों को देखने लगे, लेकिन जैसे ही उनकी नजर उस शख्स पर पड़ी उन्होंने तुरंत निगाहें उस पर से हटा ली.

    "इंटरेस्टिंग...!"
    (उस शख्स के चेहरे हल्की सी मुस्कुराहट उभरी, पर आँखें और भी अधिक ठंडी होती चली गईं.)
    "मुझे तुम से इसी जवाब की उम्मीद थी."

    उसकी बात सुनकर मैं उसे एक डेथ स्टेयर देकर वहां से जाने लगी, लेकिन तभी उस इंसान की आवाज फिर से मुझे अपने कानो में सुनाई पड़ी. "तुम जानना नहीं चाहोगी, हू आई रियली एम?" वो आगे की ओर थोड़ा झुका और एक तिरछी मुस्कान ओढ़े हुए फिर कहा. "सर्वज्ञ वेदान्त्य अग्निहोत्री, नाम ना सुना होगा ऐसा हो नहीं सकता."

    ये नाम सुनकर मैं बिन पलटे ही हैरान रह गई, मैं मुड़ी और उस शख्स को फिर देखी.

    वो मेरी नजर अपने ऊपर महसूस कर, उसने अपने सोफे के हेड से अपना माथा टीका लिया, लेकिन नजर मुझ पर ही थी.

    "आप.. आप.. तो द त्रिनेत्र ग्लोबल एंटरप्राइजेस के प्रेसिडेंट हैं!" मैने उसे कभी नहीं देखा था, लेकिन बिजनेस फील्ड में होने के कारण मुझे उसके बारे में मालूम जरूर था.

    "सर्वज्ञ वेदान्त्य अग्निहोत्री" एक बत्तीस वर्षीय बिजनेस मेन था, वो हमेशा से यूएसए में ही रहता आया था, या वो वहीं का निवासी था. मैने हाल ही में उसकी शादी की अनाउंसमेंट के बारे में सुना था, बट वो अभी मेरे सामने शादी की प्रोपोजल कैसे रख सकता था, अगर उसकी शादी फ़िक्स थी तो.

    मैं वापस से उस जगह पर बैठ गई, मुझे भी उसका नाम सुन वो ये शादी की प्रोपोजल के मुझे क्यों दे रहा था, मुझे जानने की तीव्र इच्छा हुई. और मैने पूछ लिया. "आप मुझसे शादी क्यों करना चाहते हैं, जबकि आपकी शादी तो कुछ दिनों पहले इंडियन फाइनेंस मिनिस्टर की बेटी के साथ तय की गई है."

    "बीकॉज, आई वांट यू!" उसने बेहद सपाट लहजे में जवाब दिया.

    मैं स्तब्ध हो गई, वो मुझे चाहता है. लेकिन क्यों? मुझे इस सवाल का जवाब तो नहीं मिला लेकिन तब तक उसने फिर मुझ से पूछा. "तो क्या तुम मेरे यानी सर्वज्ञ वेदान्त्य अग्निहोत्री की पत्नी बनना चाहोगी? मिस प्रीतिक्षा कुलकर्णी!"

    उसके इस सवाल का जवाब मैने बिना कुछ सोचे दे दिया.

    ...!!जय महाकाल!!...

    (इस कहानी को सपोर्ट करे और मुझे फ़ॉलो जरूर करें, कॉमेंट्स और प्रोत्साहन बिल्कुल ना भूलें)

  • 5. "योर्स एंटायरली"(सदा तुम्हारे वास्ते)-5

    Words: 1487

    Estimated Reading Time: 9 min

    ...!!जय महाकाल!!...

    अब आगे...!!

    "हाँ!" मैं बोलकर अचानक चुप हो गई. सर्वज्ञ ने मुझे गहरी नज़रों से देखा, और तभी उसके पीछे खड़ा एक मैनेजर आगे बढ़ा. उसने मेरे सामने एक फाइल खोल कर रख दी. मुझे कुछ समझ नहीं आया कि ये फाइल मेरे सामने क्यों रखी गई है, हैरानी के भाव एकदम से मेरे चेहरे पर उभर आए.

    सर्वज्ञ की नज़रों में वही सख़्त ठंडापन झलक रहा था, जब उसने धीमे लेकिन साफ़ लहजे में मुझ से कहा. "मैं यूँ ही किसी पर भरोसा नहीं करता, इसलिए ये कॉन्ट्रैक्ट है तुम्हारे लिए. तुम्हारे सिग्नेचर चाहिए, ताकि तुम अपनी ज़ुबान से मुकर न सको."

    ये कैसी बकवास बातें हैं! मैंने मन ही मन सोचा, फिर मेरा मन गुस्से से किटकिटा गया. गुस्से में मेरी सांसे भी तेज होने लगीं थीं.

    "ये कैसा बकवास है?" मैंने तिरस्कार से उसकी तरफ देखा. "रियली? मैं इंसान हूँ, कोई बिज़नेस डील नहीं. सॉरी, बट ये बेहूदी हरकत मैं हरगिज़ नहीं करने वाली!"

    वो कुछ पल तक मुझे बस देखता रहा, फिर उसके होठों के कोर पर एक बेहद हल्की मगर खतरनाक मुस्कान तैर गई. "मिस कुलकर्णी!" उसकी आवाज़ में सख़्त लहजा और एक अजीब सी शांति थी. "आप शायद भूल रही हैं कि आप खुद एक बिज़नेस वुमन हैं. डील्स आपके लिए कोई नई बात तो होंगी नहीं! ऐसे एक–दो कॉन्ट्रैक्ट्स तो आप हर रोज़ साइन करती होंगी, है ना?"

    उसकी बात का मैं क्या जवाब देती. उस पल सच कहूँ तो मुझे खुद कुछ समझ नहीं आया. तभी उसके मैनेजर ने मेरे सामने एक पेन रख दी, स पर गोल्डन कर्सिव में लिखा था "द त्रिनेत्र ग्लोबल एंटरप्राइजेस और साथ ही उनका लोगो भी चमक रहा था.

    मैंने ज़्यादा सोचना भी जरूरी नहीं समझा, पेन उठाई और साइन करने लगी. उसकी नज़रें तब तक मेरे हाथों पर जमी रहीं, जब तक मैंने आख़िरी अक्षर ना लिखने लगी, जैसे कहीं उसे अब भी शक हो कि मैं आख़िरी पल पर रुक जाऊँगी.

    बट जैसा शायद उसने सोचा होगा, मैं सच में रुक गई, क्योंकि अब तक मैंने वो कॉन्ट्रैक्ट ढंग से पढ़ा ही नहीं था. मेरी नज़र उस खुले पन्ने पर गई, जहाँ गोल्डन लेटरिंग में कुछ पॉइंट्स उभरे हुए थे और वो सच में बेहद हैरान कर देने वाले थे.

    उसमें कुल पंद्रह पॉइंट्स थे, लेकिन पहले के सात कुछ ज्यादा ही अजीब और पेचीदे थे. मुझे ऐसा लगा जैसे इस एग्रीमेंट के बाद मुझे सर्वज्ञ की बंदी बनना पड़ेगा.

    •~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~•

    प्वाइंट 1: (ये शादी पूरी तरह गुप्त रहेगी; किसी भी रूप में इसे सार्वजनिक करना सख़्त मनाही है.)

    प्वाइंट 2: (इस शादी को तभी तोड़ा जा सकता है, जब अगर मिस्टर सर्वज्ञ वेदान्त्य अग्निहोत्री खुद लिखित अनुमति दें.)

    प्वाइंट 3: (करार की किसी भी शर्त के उल्लंघन पर तुरंत बीस मिलियन डॉलर का जुर्माना देना होगा.)

    प्वाइंट 4: (मिस्टर अग्निहोत्री के हर निजी और व्यवसायिक आदेश को बिना किसी सवाल के मानना ज़रूरी है.)

    प्वाइंट 5: (मिस्टर अग्निहोत्री की इच्छा के विरुद्ध किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत या पेशेवर गतिविधि में सम्मिलित होने की अनुमति नहीं होगी, भले ही वह कानूनी रूप से स्वीकृत हो.)

    प्वाइंट 6: (शादी के पहले तीन साल में कम से कम एक वारिस की योजना बनानी होगी.)

    प्वाइंट 7: (मिस्टर अग्निहोत्री द्वारा दिया गया विवाह का प्रतीक (जैसे अंगूठी या पेंडेंट) हर समय पहनना अनिवार्य होगा; केवल चिकित्सा आपात स्थिति में इसे उतारा जा सकता है.)

    •~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~•

    ये सब पढ़कर मेरी भौहें अनायास ही उठ गईं. मैं हैरानी से कभी उस एग्रीमेंट को देखती, तो कभी उस रहस्यमयी और सख़्त शख़्स को, जो शायद किसी गहरी सोच में गुम था.
    मतलब.. मैं उसकी बीवी बनूँगी या फिर सिर्फ़ एक कठपुतली?नहीं! मैं किसी की गुलाम नहीं बन सकती! मुझे अपनी आज़ादी अपनी जान से भी ज़्यादा अज़ीज़ है!

    मैं झटके से उठ खड़ी हुई, और गुस्से में अपने साइन पर पेन से उसे काट डाला. फिर बिना कुछ कहे पलटी और दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गई. मगर तभी, उसकी भारी आवाज़ गूंज पड़ी और वो ठंडे लहजे में बोला. "रुक जाओ!"

    मैं पीछे मुड़ने के मूड में नहीं थी, इसलिए उसके कहने पर भी नहीं रुकी. तभी उसके बॉडीगार्ड ने मेरा रास्ता घेर लिया. उस वक़्त कैफ़े में कोई और था नहीं, जिससे मैं मदद मांगती और या फिर उसकी इज़्ज़त का फालूदा ही बना डालती. उस पल मेरे अंदर गुस्सा तेज़ी से खौल उठा.

    मैंने बॉडीगार्ड को घूरा, लेकिन जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा. मैं गुस्से में कांपती हुई वापस मुड़ी, और दोनों हाथों से ज़ोर से टेबल पर प्रहार कर दिया. तभी वो, अपनी तिरछी मुस्कान लिए, कुछ ऐसा बोला, जिससे मैं थोड़ी देर के लिए ठिठक गई.

    "मिस कुलकर्णी, तुम्हें शायद अभी भी ये मज़ाक लग रहा है?"

    उसने अपनी कुर्सी से थोड़ा आगे झुकते हुए, बेहद ठंडे लहजे में कहा. "मेरे कॉन्ट्रैक्ट को ठुकराना तुम्हारे लिए शायद ही बेस्ट ऑप्शन साबित हो. क्योंकि तुम्हारे पास खोने को सिर्फ आज़ादी नहीं, बल्कि बहुत कुछ है. और मेरे पास! मुझे मनवाना बेहद अच्छे से आता है."

    फिर वो हल्की सी मुस्कान मुस्कुराया, जैसे शिकारी शिकार को देख कर मुस्कुराता है. "सोच लो! गुलामी से ज़्यादा तकलीफ़देह हो सकता है मुझे इग्नोर करना."

    "दुनिया में न जाने कितनी ही लड़कियाँ होंगी, जो आपके इस प्रपोज़ल को बिना एक पल सोचे हाँ कह देंगी तो बेहतर होगा, आप उन्हीं के पास जाएँ. मुझे ना तो आपकी ये बेहूदी शर्तें पसंद हैं, और ना ही आपकी ये खोखली धमकियाँ!" मुझे सच में उस वक़्त गुस्सा बहुत तेज़ आया था.

    उसने गहरी साँस खींची, नज़रें मुझ पर गड़ा कर बिल्कुल ठंडे लहजे में बोला. "तुम्हें जिस शर्त पर ऐतराज़ है, वो हटवा सकती हो. मुझे कोई ऐतराज़ नहीं होगा."

    मैंने होंठ भींच कर तीखी नज़र से उसकी तरफ देखा. "लेकिन तब भी आप मेरा पीछा नहीं छोड़ेंगे, है ना?"

    "तुम देर से समझती हो लेकिन समझ जाती हो. हाँ, मैं तुम्हारा पीछा कभी नहीं छोड़ूँगा. तुम्हारी परछाई की तरह तुम्हारे साथ रहूँगा, हर उस लम्हे में जहाँ तुम सोचोगी कि मैं नहीं हूँ, वहीं सबसे अधिक क़रीब होऊँगा मैं तुम्हारे! हमेशा, हमेशा के लिए!" उसकी मुस्कान वक्त के साथ अधिक गहरी हो गई थी.

    मैंने वो कॉन्ट्रैक्ट उठाया, उस पर नज़र दौड़ाई और ठंडे स्वर में कहा. "पॉइंट फोर, फाइव और सिक्स रिमूव करिए और इनके बदले कुछ चीजें मुझे खुद जोड़नी हैं, जो सिर्फ़ मुझे फायदा दें."

    फिर मैंने अपने लिए कुछ शर्तें रखीं:

    •~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~•

    प्वाइंट फोर के बदले: (पत्नी को अपने बिज़नेस और इन्वेस्टमेंट्स को पूरी तरह से स्वतंत्र रूप से मैनेज करने का अधिकार होगा)

    प्वाइंट फाइव के बदले: (पत्नी को 'द त्रिनेत्र एम्पायर ग्रुप' में 15% इक्विटी और वोटिंग राइट्स दिए जाएंगे)

    प्वाइंट सिक्स के बदले: (यदि पति द्वारा अलगाव की पहल की गई, तो पत्नी को पति की घोषित संपत्ति का 50% हिस्सा मिलेगा)

    प्वाइंट सिक्सटीन: (पत्नी को ‘द त्रिनेत्र एम्पायर ग्रुप’ के किसी भी बड़े स्ट्रैटेजिक निर्णय, जो कंपनी के मालिकाना ढांचे को प्रभावित करे, को मंज़ूरी या अस्वीकार करने का विशेष अधिकार होगा)

    •~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~•

    और फिर अंत में मैंने कॉन्ट्रैक्ट उसकी ओर सरकाते हुए कहा. "अच्छा, अब ये शर्तें ऐड करवा दीजिए, तभी शायद मैं साइन करने की मेहरबानी करूं. वरना मुझसे साइन करने की गुंजाइश छोड़ ही दें तो बेहतर होगा." मैंने हल्की सी हंसी दबाते हुए, तिरछी मुस्कान के साथ और भी तंज़ कसा. "वैसे थैंक्स! ओवरस्मार्ट बनने के चक्कर में आपने खुद ही मुझे याद दिला दिया कि मैं भी कोई कम बिज़नेस वूमन नहीं हूं. अब भुगतिए, मिस्टर अग्निहोत्री."

    मैने ये चाल काफी सोच-समझ कर चली थी. आखिर किसी बिज़नेस मैन के घमंड की नस कहां दबानी है, ये मैंने बिज़नेस फील्ड में कदम रखते ही सीख लिया था. ज़्यादा मुश्किल नहीं होता! बस उनकी किसी 'मेन स्ट्रैटजी' पर निशाना साध दो, और फिर देखो तमाशा, कैसे वो खुद तुम्हारी शर्तों पर आ जाता है.

    और अब, मैं भी इस खेल का हिस्सा बनना चाहती थी. दिलचस्प था ना! इतना बड़ा, ठंडे लहज़े वाला आदमी, जो हज़ारों करोड़ की डील्स एक झटके में ठुकरा दे. वो आखिर मुझमें ऐसा क्या देखता है? अब मुझे भी जानना है, कितनी दूर तक जाएगा ये खेल और कितना आगे बढ़कर मैं खुद को उससे बचा पाऊँगी या शायद, मैं खुद बचना ही न चाहूं!

    (POV एंडस)

    अनिका और सोनल, प्रीतिक्षा को बेहद हैरानी से देख रही थीं.

    "मतलब कमाल है! तूने इतना बड़ा दाँव खेला कि उसे तेरे ही बनाए गड्ढे में गिरना पड़ा! आई एम प्राउड ऑफ यू, प्रीतिक्षा!" सोनल ने उसे एक तरफ से गले लगाते हुए कहा. "कांग्रेचुलेशन्स और हाँ, अब थोड़ा सावधान भी रहना पड़ेगा तुझे."

    "ह्म्म्म!" प्रीतिक्षा सर्वज्ञ के चेहरे को याद करते हुए धीमे से बोली. "मुझे कुछ दिनों बाद स्विट्जर लैंड जाना होगा एक बिजनेस डील के लिए. तब तक कंपनी के हर डिटेल्स मुझे मेल करती रहना, क्योंकि मैं ना दिखूं तो मेरे एम्प्लॉयज के लिए जन्नत बन जाता है मेरा ऑफिस."

    "यार उनकी भी तो जिंदगी है, जी लेन दे. तेरे को इतनी क्या चूल मची रहती है? हाँ!" अनिका ने कहा तो प्रीतिक्षा ने उसे घूर कर देखा.

    ...!!जय महाकाल!!...

    (इस कहानी को सपोर्ट करे और मुझे फ़ॉलो जरूर करें, कॉमेंट्स और प्रोत्साहन बिल्कुल ना भूलें)