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"𝚁𝚎𝚟𝚎𝚗𝚐𝚎 – 𝚃𝚑𝚎 𝚋𝚎𝚐𝚒𝚗𝚗𝚒𝚗𝚐 𝚘𝚏 𝚊 𝚙𝚊𝚜𝚜𝚒𝚘𝚗𝚊𝚝𝚎 𝚕𝚘𝚟𝚎…"

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एक कहानी … जिसकी नींव बदले की चिंगारी पर रखी गई, और जिसकी बलिवेदी पर कुर्बान हो गई एक मासूम की ज़िंदगी...। धर्मराज माहियावंशी… जिसके दिल में बरसों से नफ़रत का समंदर उमड़ रहा था। उसने अपने दुश्मन को जलाने के लिए उसकी सबसे प्यारी चीज़—उसकी बे...

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धर्मराज माहियावंशी

Hero

Total Chapters (7)

Page 1 of 1

  • 1. "𝚁𝚎𝚟𝚎𝚗𝚐𝚎 – 𝚃𝚑𝚎 𝚋𝚎𝚐𝚒𝚗𝚗𝚒𝚗𝚐 𝚘𝚏 𝚊 𝚙𝚊𝚜𝚜𝚒𝚘𝚗𝚊𝚝𝚎 𝚕𝚘𝚟𝚎…" - Chapter 1

    Words: 1018

    Estimated Reading Time: 7 min

    "रुक जाओ तुम ऐसा नहीं कर सकते...छोड़ो मेरी बेटी को " एक औरत रोते हुए एक आदमी के पीछे भाग रहीं थीं।



    " छोड़ दूँगा " इन शब्दों के साथ उस आदमी के कदम रुके और वो उस औरत के सामने मुड़ा...इस वक्त उसकी आँखों में सिर्फ नफरत की आग थी जो सब कुछ तबाह करने के लिए तैयार थी।


    " छोड़ दूँगा वैभवी राणा लेकिन तब....जब तुम्हारा वो नामर्द पति खुद अपने बिल से निकल कर मेरे सामने आयेगा....।


    कहना उसे की अगर मर्द है तो आए धर्मराज माहियावंशी के सामने और ले जाए अपनी इस बेटी को " कहते हुए उस आदमी की नजर अपने पास खड़ी लड़की पर पड़ी जिसका हाथ उसने इतने कस कर पकड़ा था कि उस लड़की कि नाज़ुक कलाई पर निशान पड़ चुके थे ।



    " हल्के गुलाबी रंग का अनार कलि सूट पहने खड़ी उस लड़की का पूरा चेहरा सिंदूर से रँगा हुआ था जो उसकी माँग और बालों को भी अपने लाल रंग में भिगोयै हुए था।



    उसके चेहरे पर लगे उस सिंदूर को धोते उसके आंसू दोनों गालों पर लकीर खिंच चुके थे लेकिन उसकी नजरे और गरदन नीचे झुके हुए थे।



    " तुम ये गलत कर रहे हों " वैभवी बोली।



    " अभी तो मेने पूरा गलत किया भी नहीं लेकिन हाँ अगर महेंद्र राणा मेरे सामने नहीं आया तो तुम्हारी इस बेटी की मे वो हालत करूंगा कि तुम्हारी रूह कांप जाएगी "



    कहते हुए वो आदमी जैसे ही उस लड़की का हाथ पकड़े आगे बढ़ा की तभी उसके कानों में उस औरत के शब्द गूंजे।



    " शायद तुम शिखर भाई साहब के संस्कार भूल चुके हों "


    "ऐ खबरदार..."


    धर्मराज चीखते हुए वैभवी की ओर पलटा ....


    उसके ऐसे चीखने और लाल आँखों को देख वैभवी दो कदम पीछे हो गयी।


    धर्मराज बिल्कुल वैभवी के सामने आया और उसे अंगुली दिखाते हुए बोला..." ख़बरदार जो मेरे बाबा का नाम अपनी गंदी जुबान से लिया तो...मेरे बाबा का नाम लो इतनी औकात नहीं है तुम्हारी।"


    धर्मराज ने कुछ पल वैभवी को घूरा और फिर अपनी कार की तरफ चल पड़ा...लेकिन वैभवी अभी भी रोते हुए उसके पीछे आ रहीं थीं जिसे देख धर्मराज ने अपने पास खड़ी उस लड़की को लगभग कार में धक्का दे दिया और वैभवी की तरफ मुड कर बोला " कहते है जब औलाद तड़पती है तो इंसान चाहे कितना बड़ा शैतान ही क्यु ना हो...उसके अंदर का बाप जाग उठता है और अपनी औलाद को तकलीफ में देख तड़पता है...इसलिए अब महेन्द्र राणा भी तड़पेगा , रोएगा और उसे दर्द में देख मेरे दिल को सुकून पहुंचेगा ...."



    " मेरी बेटी ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है...उसकी कोई गलती नहीं...."



    " वो महेंद्र राणा की बेटी है...यही उसकी गलती है जिसका हर्जाना अब वो रोज भुगतेगी"



    धर्मराज ने कार में बैठी उस लड़की को देखा जो बस अपना सिर नीचे कर बुत बने हुए खिड़की से चिपकी हुई थी।


    धर्मराज अंदर बैठा और उसकी कार पलक झपकते वहाँ से निकल गयी और उसी के पीछे धूल उड़ाती उसके bodyguards की कार भी तेजी से चल पड़ी।



    उस बड़े से घर के आगे वैभवी अपने घुटनों के बल बैठी अकेली आंसू बहा रहीं थीं।


    उस शांत माहौल में जहाँ सिर्फ उसके रूदन की आवाजें गूंज रही थी.... अचानक एक शैतानी हंसी गूंज उठी।


    वैभवी जिसका चेहरा जमीन को तक रहा था उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया और इस बार उसके चेहरे पर दुख की एक रेखा तक नहीं थी।


    वैभवी ने अपनी हँसी रोक दी लेकिन उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान जरूर बरकरार थी।


    उसने अपनी अंगुली से अपने आंसुओ को पोंछ कर उन्हें हवा में उड़ाते हुए कहा " चू...चू...चू...चू...चू...चू धर्म, धर्म तुम चाहे तुम बड़े हो गए और खुद को बहुत शातिर समझते हो...लेकिन हमारे सामने अभी भी बच्चे हो।"


    "अफसोस जब तुम्हें सच पता चलेगा ना तो बहुत देर हो गयी होगी। "


    वैभवी बोल रहीं थीं तभी उसका फोन बजा | उसने number देखा और तुरन्त call receive कर लिया।


    सामने से कुछ कहा गया जिसे सुन कर वैभवी बोली " ठीक है मे आ रहीं हूं "



    वैभवी call cut कर उठी और अपनी कार में बैठकर तुरन्त वहाँ से निकल गई।


    __________


    शाम के समय धर्मराज की कार एक आलीशान घर के आगे आकर रुकी जिसके उपर बड़े- बड़े अक्षरों में सुकून घर लिखा हुआ था।


    धर्मराज कार से उतरा और अपने साथ बैठी उस लड़की की बाजू पकड़ उसे खिंचते हुए बाहर निकाला और झटके से छोड़ दिया..... जिसके कारण वो लड़की पास रखे गमले के ऊपर गिरी जिससे गमला टूट गया और उसके हाथो मे चोट लग गई लेकिन उसने उफ्फ तक नहीं की ।



    घर की सिक्युरिटी के लिए तैनात bodyguards जिन्होंने धर्मराज के आते ही अपनी नजरे नीचे कर ली थी उन्होंने जब आवाज सुनी तो अपना चेहरा उठा कर देखा और किसी लड़की को धर्मराज के साथ देख शौक हुए लेकिन जल्दी से अपना सिर वापिस नीचे कर लिया कि कहीं धर्मराज देख ना ले।


    वहीं घर के अंदर खड़ी एक maid ने जब ये नजारा देखा तो वो जल्दी से भाग कर अंदर चली गई।


    इधर धर्मराज को उस लड़की के चोट लगने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ा और उसने अपने कदम घर के अंदर बढ़ा दिए।


    धर्मराज को जाते देख वो लड़की हिम्मत कर उठी और उसके पीछे चलने लगी।


    " वहीं रुक जाओ "


    धर्मराज की गुस्से भरी आवाज की आवाज सुनकर उस लड़की के पैर जहाँ के तहा रुक गए।


    धर्मराज पलट कर उस लड़की के सामने आया और अपने एक- एक शब्द देते हुए बोला " ख़बरदार...ख़बरदार अदिती राणा जो मेरे मंदिर जैसे घर मे अपने नापाक कदम रखने की ज़ुर्रत भी की तो।"


    "तुम भी अपने उस घटिया बाप महेंद्र राणा का खून हो जिसके रगों में सिर्फ और सिर्फ गंदगी और जालसाजी दौड़ती है.. इसलिए ना तुम मेरे इस घर में आने के लायक हो और नाही मेरी पत्नि बनने की तुम्हारी औकात.....| तुम सिर्फ वो जरिया हो जिससे तुम्हारा बाप मेरे सामने आयेगा...इससे ज्यादा तुम कुछ नहीं हो ....कुछ भी नहीं। "



    धर्मराज सामने खड़ी अदिति को कुछ पल नफरत से देख....घर के अंदर अपने कदम बढ़ा देता है तभी.......



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  • 2. "𝚁𝚎𝚟𝚎𝚗𝚐𝚎 – 𝚃𝚑𝚎 𝚋𝚎𝚐𝚒𝚗𝚗𝚒𝚗𝚐 𝚘𝚏 𝚊 𝚙𝚊𝚜𝚜𝚒𝚘𝚗𝚊𝚝𝚎 𝚕𝚘𝚟𝚎…" - Chapter 2

    Words: 1235

    Estimated Reading Time: 8 min

    धर्मराज अंदर जा रहा था तभी उसकी नजर दरवाजे पर पाजामे कुर्ता पहने खड़े एक बुढ़े इंसान पर गयी।


    उस बूढ़े आदमी ने पहेली धर्मराज..फिर उसके पीछे खड़ी उसकी पत्नि को देखा ।


    " जाओ विनीता आरती की थाली लेकर आओ, बेटा ....बहु लेकर आया है।"


    " ये इस घर की बहू नहीं है तुलसी चाचा "


    धर्मराज की धीरे मगर ठंडी आवाज गूंजी।


    "ये ना इस घर जी बहु है और ना मेरी पत्नि सिर्फ और सिर्फ इस घर के दुश्मन की बेटी " धर्मराज ने अपने शब्द इस बार ऊंची आवाज में कहे...जिसे सुनकर तुलसी के सिवा सभी servants डर गए।


    " तुम्हारे कहने से सच नहीं बदलता बेटा....विधाता ने तुम दोनों का साथ लिखा है...."


    " अगर उस विधाता ने भी लिखा है तो भी मुझे मंजूर नहीं.....क्योंकि मुझे उस पर ही यकीन नहीं " बोलकर धर्मराज ने कुछ ही कदम आगे बढ़ाए थे कि उसे तुलसी चाचा के शब्द सुनाई दिए...." बिटिया अंदर आओ "


    " वो इस घर मे एक कदम भी नहीं रखेगी " धर्मराज बेतहाशा गुस्से मे बोला।


    वहीं उसकी आवाज़ सुनकर उसकी पत्नि के बढ़ते कदम रुक गए और हॉल में खड़े सभी satvents कांप गए....



    "धर्म बरसात होने वाली है...देखो काले बादलों ने पूरे आसमान को ढंक रखा है और बिजली भी कड़क रहीं हैं....ऐसे में ये बच्ची बाहर कैसे रहेगी "


    " उससे मेरा कोई लेना देना नहीं...लेकिन उस महेंद्र राणा से जुड़ा कोई भी इंसान मेरे घर मे नही आएगा। "



    धर्मराज चला गया। उसके बाद तुलसी चाचा बाहर खड़ी उसकी पत्नि के पास आए और बोले " माफ़ करना बेटा....वो बस अंदर से टूटा हुआ है इसलिए खुद के टूटे टुकड़ों से दूसरों को भी चोट पहुंचता रहता है....."



    तुलसी चाचा ने कहा लेकिन महेंद्र राणा की बेटी अब भी अपना सिर नीचे झुकाए जमीन को तक रही थी....उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ।



    तुलसी चाचा ने कुछ देर उसे देखा और फिर बोले " तुम चिंता मत करो..." में बात करता हूं धर्म से क्योकि इतनी तो मेरी भी हैसियत नहीं की मे तुम्हें उसकी मर्जी के खिलाफ जाकर अंदर ले आउ..... इसलिये जब तक धर्म मान नहीं जाता...तब तक तुम्हें इन्तेज़ार करना पड़ेगा....पर तुम ऐसे कब तक खड़ी रहोगी...एक काम करो वहां गार्डन में बेंच लगी है वहाँ जाकर बैठ जाओ।"



    तुलसी चाचा उस लड़की को देख अंदर चले गए और उनके साथ ही सर्वेंट भी जिन्हें भी उस मासूम के लिए बुरा लग रहा था लेकिन वो कुछ नहीं कर सकते थे।



    माहिरा राणा कुछ पल तक तो बुत बने वहीं खड़ी रही लेकिन फिर गार्डन की ओर अपने कदम बढ़ा दिए।


    वो गार्डन में आकर वहां लगी बेंच पर खुद को समेटे अपने घुटनों में चेहरा छुपाये बैठ गयी।



    शाम ढल चुकी थी और रात का अंधेरा अपने पैर जमा चुका था। आसमान में बादल गरजते हुए बरसने को बेताब थे और बिजली उसकी आवाज़ में अपनी आवाज मिलाकर ध्वनि कंपन कर रहीं थीं ।ठंड का माहौल तेज चलती हवा में घुल चुका था।


    __________________


    "धर्म....बेटा दरवाजा खोलो एक बार मेरी बात तो सुन लो" तुलसी चाचा दरवाजा बजा रहे थे लेकिन धर्म ने कोई जवाब नहीं दिया।



    " बेटा एक बार के लिए पति होने के नाते ना सही...इंसानियत के नाते उस लड़की के बारे मे सोच लो.....रात का वक्त है और ऊपर से बारिश का समय वो बाहर कैसे रहेगी....भगवान ना करे अगर उसे कुछ......."



    " बेशक से मर जाये....मुझे कोई फर्क़ नहीं पड़ता "



    तुलसी चाचा की बात पूरी होने से पहले ही कमरे के अंदर से धर्मराज की सख्त आवाज आयी जिसे सुनकर तुलसी चाचा हैरान हुए..साथ ही साथ उनका दिल भी पसीजा..... वक्त की मार ने उनके सीधे सादे धर्म को एक बेरहम बना दिया था।



    बुरा तो उन्हें महेंद्र की बेटी के लिए भी लग रहा था जिसकी कोई गलती ना होते हुए भी अपने बाप के कर्मों की सजा भोगनी पड़ रहीं थीं।



    " धर्म कुछ तो रहम खाओ उस लड़की पर..... कहीं ऐसा ना हो कि तुम्हें बाद में इन बातों का पछतावा हो इसलिए इतने भी कठोर मत बनो "



    " पत्थर कठोर ही होते है तुलसी चाचा....उनके अंदर रहम नहीं होता.... और रही बात पछताने की.....तो धर्मराज माहियावंशी महेन्द्र राणा की तकलीफ की वज़ह बनकर पछताए ऐसा कभी नहीं हो सकता। अब आप यहाँ बाहर खड़े रहकर खुद को तकलीफ मत दीजिए और जाकर सो जाइए क्योंकि मेरा फैसला नहीं बदलने वाला।"



    धर्मराज की बात सुनकर तुलसी चाचा निराशा हाथ मे लिए नीचे चले गए।


    उनके नीचे आते ही सभी सर्वेंट ने उनकी तरफ उम्मीद से देखा और सभी की आँखों में एक ही सवाल था....उन सभी के सवाल को समझ तुलसी चाचा अपना सिर ना में हिला देते है जिससे सभी के चेहरे पर फिर से उदासी छा जाती है।


    " चाचा अब हम क्या करे? क्या वो रात भर बाहर ही रहेंगीं " एक सर्वेंट जिसका नाम निलम था वो बोली।


    " इसका जवाब तो हमारे पास भी नहीं है बिटिया....लेकिन हाँ प्रभु से जरूर उम्मीद है...अगर वो चाहे तो कोई चमत्कार कर दे।

    __________________


    कमरे में धर्म अपने कमरे की बालकनी में खड़ा सिगरेट पी रहा था.....और जमीन पर ना जाने कितनी ही सिगरेट के टुकड़े पड़े हुए थे... जिन्हें देख साफ अंदाज लगाया जा सकता था कि वो रूम में आने के बाद से ही ना जाने कितनी सिगरेट पी चुका था।



    धर्म ने अपने मुह में दबाई हुई सिगरेट जो लगभग खत्म हो चुकी थी...... उसे जमीन पर फेंक, सिगरेट के पैकेट से आखिरी सिगरेट को निकाल कर अपने होठों के बीच दबाया और लाइटर से उसे सुलगा कर उसके लंबे- लंबे कश भरने लगा।


    उसके होठों के बीच सिगरेट थी और नजरे सामने गार्डन की बेंच पर बैठी उस लड़की पर जो अपनी बेबसी को नसीब मान बैठी थी...या धर्म की नजर में नाटक कर रहीं थीं क्योंकि...महेंद्र राणा की खून में इतना सब्र होना ना मुमकिन था....धर्म ने जो सोचा था उसके हिसाब से तो उसे अब तक बाप को यहां बुला लेना चाहिए था या फिर कोई ना कोई बड़ा तमाशा करना चाहिए था..........लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।



    धर्म बिना एक पल नजर हटाए उसे देख रहा था कि अचानक तेज आवाज में बादल गरजे और झमाझम बारिश शुरू हो गई.....।


    बारिश महसूस होते ही गार्डन में अपने जज्बातों के सैलाब को सम्भाले बैठी उस लड़की ने अपना चेहरा घुटनों की ओट ने से निकाल कर ऊपर किया और उसी वक्त आसमान में एक जोरदार बिजली चमकी....जिसकी रोशनी मे उस लड़की की वो सुर्ख आंखे रोशन हुई जिनमे अकेलापन, बेबसी, गहरी खामोशी और सिवाय दर्द के कुछ नहीं था...।




    एक बार फिर आसमान में बिजली चमकी और इस बार पहले से भी तेज आवाज में.....ऐसा लग रहा था...जैसे उस मासूम के दर्द को महसूस कर आसमान चीत्कार उठा हो।



    एक पल को धर्म भी उसकी आँखों में देख ठिठक पड़ा....और उसके हाथ से सिगरेट छूट कर नीचे गिर पड़ी.....ना चाहते हुए भी उसे उस लड़की...अपनी पत्नि जिसे वो पत्नि मानना नहीं चाहता था.....उसके लिए बुरा लग रहा था।



    धर्म ने देखा कि उस लड़की ने अपना चेहरा फिर से घुटनों में छिपा लिया था...जैसे डर हो कि कहीं कोई उसकी आँखों में दर्द को देख ना ले।



    लेकिन धर्म देख चुका था...और उसके मन मे सवाल उठ चुके थे.....

    क्या ये दर्द सिर्फ इस अनचाही शादी का है?
    या अपनी बेबसी का?
    इसे अपने बाप के लिए चिंता है?
    या मेरी बातों की तकलीफ?


    कुछ ऐसे ही सवाल धर्म के मन मे चल रहे थे कि अचानक .......


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  • 3. "𝚁𝚎𝚟𝚎𝚗𝚐𝚎 – 𝚃𝚑𝚎 𝚋𝚎𝚐𝚒𝚗𝚗𝚒𝚗𝚐 𝚘𝚏 𝚊 𝚙𝚊𝚜𝚜𝚒𝚘𝚗𝚊𝚝𝚎 𝚕𝚘𝚟𝚎…" - Chapter 3

    Words: 1057

    Estimated Reading Time: 7 min

    सब हॉल में थे कि अचानक सभी की नजर धर्मराज पर पड़ी..जो भागते हुए सीढियों से नीचे आ रहा था।


    " धर्म क्या हुआ....?


    तुलसी चाचा ने पूछा पर धर्म बिना कोई कोई जबाव दिए हॉल में से होकर बाहर निकल गया।


    सब घबरा गए और धर्म के पीछे आए....लेकिन सामने का नजारा देख किसी को भी अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ।



    सामने धर्मराज अपनी पत्नि को कमर से पकड़ कर अपने करीब किए हुए था....और उसकी पत्नि का चेहरा उसके सीने पर था।



    धर्मराज की नजर इस वक्त अपने करीब खड़ी लड़की पर ना होकर सिर्फ और सिर्फ उस सांप पर था....जो रेंगते हुए पौधों में जाकर छुप गया था।


    ..अच्छा हुआ जो समय रहते उसकी नजर पड़ गई....अगर वो एक मिनिट और देर करता तो वो सांप अदिति राणा को डस लेता।


    :अदिति राणा ....ये ख्याल आते ही उसकी नजर अपने पास खड़ी लड़की पर गई जो शायद वो साँप देख चुकी थी और धीरे अपना चेहरा ऊपर कर रहीं थीं।




    जब उसने अपना चेहरा ऊपर किया तो उसकी आँखें सीधा धर्म की आँखों से जा मिली।



    धर्म Hight me उस नाजुक सी लड़की से ज्यादा था इसलिए उसे देखने के लिए उसकी पत्नि को अपना चेहरा ऊपर करना पड़ रहा था और धर्म को नीचे।


    बारिश ने दोनों को भिगा दिया था....वहीं आसमान से गिरता पानी धर्म से होता हुआ उसकी पत्नि के चेहरे पर गिर रहा था।



    धर्म तो जैसे उसके चेहरे में खो चुका था.....क्योंकि उसने भले उससे शादी कर ली थी लेकिन उसका चेहरा देखने की जहमत एक बार भी नहीं की थी...लेकिन अब वो गौर से देख रहा था और जैसे खो गया हो उसके दीदार में...



    लंबी घनी पलके...जो झुकी हुई थी...गौरा रंग, छोटी सी नाक और गुलाबी फड़फड़ाते वो होंठ।


    दोनों के चेहरे इतने करीब थे कि 1 इंच और बढ़ने पर दोनों के होंठ आपस में मिल सकते थे।




    " चाचा जी ये क्या हो रहा है...ये अचानक से तूफान की दिशा कैसे पलट गई " विनीता बोली।



    विनीता की बात पर तुलसी चाचा दोनों को दूर से मुस्कराते हुए देख बोले...." तूफान की दिशा नहीं अब तो इस घर की हवा भी बदलेगी ".



    इधर धर्म उसकी [ अदिति राणा] करीबी में महसूस कर रहा था.....की उसका शरीर ठंड से किस कदर कांप रहा था।


    धर्म कुछ react करता उससे पहले ही उसे......अपने दिल मे बहुत अजीब सा एहसास हुआ....और वो होश में आय़ा और सामने देखा तो उसकी पत्नि उससे दूर खड़ी थी।


    धर्मराज ने कुछ पल सोचा कि उसने अभी क्या हरकत की तो उसे खुद पर ही गुस्सा आने लगा...।



    उसने गुस्से से अपने सिर में हाथ फेरा लेकिन तभी उसकी नजर सामने खड़ी उस लड़की पर गयी।



    धर्म ने एकदम गुस्से से उसे पास खिंचकर उसका हाथ मोड़कर उसकी पीठ से लगा दिया।



    "आहहह " उस लड़की की सिसकी निकली ।


    धर्मराज ने उसका हाथ और जोर से मोड़ते हुए कहा " आज चाहता तो तुम्हारी मौत का तमाशा देख सकता था....पर मेने तुम्हें बचाया जानती हो क्यों....?



    धर्म के कहते ही वो लड़की अपनी बेज़ान आँखों जिनमें सवाल था....उसे देखने लगी।


    उसके ऐसे देखने पर धर्मराज अपना चेहरा उसके नजदीक ले जाकर बोला " अगर तुम एक पल मे मर जाओगी तो फिर तुम्हारे बाप को सिर्फ कुछ वक्त का दर्द होगा...लेकिन मे उसे थोड़ा, थोड़ा रोज तड़पते हुए देखना चाहता हूं.....और उसके लिए में तुम्हारी जिंदगी मौत से भी बदतर बना दूँगा " अपने हर एक शब्द के साथ धर्म की पकड़ अदिति राणा के हाथ पर मजबूत हो रहीं थीं।




    इस बार अदिती राणा ने दर्द से अपनी अपनी आखें जरूर मिच ली लेकिन अपने होंठों से एक आह तक बाहर नहीं आने दी....।



    अदिति राणा ने कुछ पलों बाद अपनी आंखे खोली तो उसकी आंखे फिर से धर्म से टकराई ।


    धर्म को उसकी आँखों में एक प्रतिशत भी फरेब नजर नहीं आया सिर्फ और उसकी आखों में थी तो बेबसी, निराशा।





    ना जाने क्यों धर्म को उसकी आँखों में देख अपने दिल मे एक तकलीफ का अह्सास हुआ.....।



    वो ज्यादा देर उसकी आँखों में देख ना सका और उसे खुद से झटक दूर कर दिया और अपना चेहरा फ़ेर कर जाने लगा.....।


    पर तभी उसकी नजर गार्डन के पास खड़े bodyguard पर गई जिसकी नजर में क्या भाव थे....वो अच्छे से समझ गया।



    उसने जब उस bodyguard की नजरों का पीछा किया...तो उसकी नजरे महेन्द्र राणा की बेटी पर रुकी.....जिसका वो light pink अनारकली suit बारिश में भीगने के कारण पूरा उसके शरीर से चिपक चुका था....और उसके शरीर की बनावट को उभार रहा था।



    धर्मराज ने अपनी नजरे फिर से उस bodyguards पर की....और उसकी आँखों में क्या भाव थे....ये याद आते ही धर्मराज की आंखे अंगारे उगलने लगी।



    " तुलसी काका....." धर्मराज ने तुलसी काका को आवाज दी।



    " ले जाइए इसे.....आज से ये घर की नयी सर्वेंट है "



    धर्मराज ने बिना अदिति राणा को देखे कहा....और उसकी बात सुनकर सभी की नजर सामने खड़ी लड़की पर गई....जो धर्मराज को देख रहीं थीं।



    सभी को उस के लिए बुरा लगा.....तुलसी चाचा धर्मराज की इस बात पर उसका विरोध करना चाहते थे.....लेकिन फ़िलहाल धर्मराज ने अदिति राणा को घर के अंदर ले जाने की हामी भरी थी...यही उनके लिए बड़ी बात थी.....वो फिर से धर्मराज को कुछ कह कर उसका मन नहीं बदलना चाहते थे।



    " चलो बिटिया "



    तुलसी काका के कहने पर उस लड़की ने धर्मराज से अपनी नजरे हटाई और अपने धीमे कदमों के साथ उनकी ओर बड़ी और उनके साथ अंदर चली गई.....।


    बाकी सभी सर्वेंट भी उनके पीछे अंदर चले गए।



    धर्मराज चलकर सीधा उस bodyguard के सामने खड़ा हो गया.....।



    Bodyguard जो चोरी छिपे धर्मराज की पत्नि को देख रहा था....उसने जब दोबारा अपना सिर ऊपर उठाया तो इस बार अपने सामने धर्मराज को देख वो डर से दो कदम पीछे हो गया.....।



    " बॉस....."



    " क्या देख रहे थे....." धर्म की आवाज इस वक्त इतनी कर्कश और ठंडी थी जो....उस बारिश के शोर में को भी चीरते हुए उस bodyguard के कानों में जा रहीं थीं....और उसकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा कर रहीं थीं।


    " I am asking you... what were you looking at?"



    धर्मराज की आवाज इस बार पहले से भी ज्यादा ठंडी थी.....जिसे सुनकर उस bodyguard के सिर पर बारिश में भी पसीना निकलने लगा।




    वो bodyguard अपनी नजरे झुकाकर बड़ी मुश्किल से बोलने की कोशिश करने लगा....." Boss.....वो में.....में...आहहहहह्..."



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  • 4. "𝚁𝚎𝚟𝚎𝚗𝚐𝚎 – 𝚃𝚑𝚎 𝚋𝚎𝚐𝚒𝚗𝚗𝚒𝚗𝚐 𝚘𝚏 𝚊 𝚙𝚊𝚜𝚜𝚒𝚘𝚗𝚊𝚝𝚎 𝚕𝚘𝚟𝚎…" - Chapter 4

    Words: 1450

    Estimated Reading Time: 9 min

    I ask you what are you looking....."



    धर्मराज की आवाज इस बार पहले से भी ज्यादा ठंडी थी.....जिसे सुनकर उस bodyguard के सिर पर बारिश में भी पसीना निकलने लगा।




    वो bodyguard अपनी नजरे झुकाकर बड़ी मुश्किल से बोलने की कोशिश करने लगा....." Boss.....वो में.....में...आह्..."


    इससे आगे वो bodyguard कुछ बोल ही नहीं पाया और अपनी आंख पर हाथ रख जमीन पर गिर गया......।



    उसकी आंख से निकलता खून पानी के साथ मिलकर जमीन लाल कर रहा था.....।



    धर्मराज अपने पंजों के बल जमीन पर उस आदमी के पास बैठा और बोला....." धर्मराज महियावंशी की चीज़ पर कोई अपनी बुरी नजर तो दूर...... नजर भी डाले ये धर्मराज महियावंशी को बर्दाश्त नहीं...."



    धर्मराज की आवाज और अपने सामने ये बेदर्दी भरा मंजर देख किसी की हिम्मत तक नहीं हुई।



    चारो तरफ खामोशी थी....उस खामोशी में सिर्फ बारिश का शोर और उस आदमी की कराह सुनाई दे रहीं थीं।



    " सब bodyguards का सिर नीचे था....तभी सभी को फिर से उस आदमी की चीख सुनाई दी....जिससे सब समझ गए कि...धर्मराज ने क्या किया.....।




    " ध्यान रहे.....अगर मुझे किसी की भी नजरे उठी हुई दिखी....तो वो इंसान इसकी तरह कुछ देखने लायक नहीं बचेगा...." धर्मराज ने अपने सामने तड़पते उस bodyguard को देखा जिसकी दोनों आंखे खून से भरी थी।



    " जब इसके जिस्म के हर कतरे में इसका दर्द पहुंच जाये.....तब इसे हॉस्पिटल में एडमिट करवा देना " धर्मराज ने कहा और घर के अंदर चला गया।



    __________


    इधर तुलसी चाचा और बाकी सब धर्मराज की पत्नि को हॉल के पास बने गेस्ट रूम में लेकर आए....क्योंकि धर्मराज के कमरे में ले जाना मतलब विस्फोट...।


    " विनीता.... बहुरिया पूरी भीग गई है....एक काम करो...इसको तुम्हारे कपड़े दे दो पहनने के लिए "



    " चाचा जी मेरे....." विनीता हैरान हुई अखिर वो धर्म की पत्नि थी और विनीता एक सर्वेंट।


    " इतनी बारिश में का तुम खरीद्दारी करने जाओगी....नहीं ना.... तो फिर यही रास्ता है।


    " जी चाचा जी...." विनीता चली गई।


    नीलम और विनीता सुकून घर मे ही रहती थी।


    " बिटिया तुम यहाँ बैठो हम तुम्हारे लिए चाय भिजवाते है...." तुलसी काका ने कहा और जाने लगे।


    " रुकिए....."


    " हाँ बिटिया कहो...."


    " वो हमारा मन नहीं है आप रहने दीजिए....."


    " तुलसी चाचा ने उसे देखा और फिर मुस्कराते हुए बोले...." जानते हैं...धर्म तुम्हारे पिता का दुश्मन है...इसलिए विश्वास नहीं कर पाओगी...! लेकिन हम आज तुमको एक बात कहना चाहते है....की हमरी नजर में गुनहगार सिर्फ गुनाह करने वाला होता है....उससे जुड़ा हुआ कोई इंसान नहीं....इसलिए हम तुम को कुछ नहीं करेंगे....क्योंकि तुम्हारा कोई कसूर नहीं और इसलिए भी क्योंकि अब तुम हमारे घर की बहु हो धर्म की पत्नि हो...."



    तुलसी चाचा ने कहा और चले गए।




    " ये लीजिए मैम......" विनीता ने अपने कपड़े धर्म कि पत्नि को दिए।



    धर्म की पत्नि ने पहले अपने कपडों को देखा फिर विनीता के हाथ से कपड़े लेकर चली गई।



    ---------------


    इधर धर्म सीधा अपने घर के बने बार में आ गया....! उसने अपनी गिली टी-शर्ट को उतारकर साइड में फेंक दिया....।



    T- shirt उतारते ही उसके 8 pack abbs saaf - saaf दिखाई देने लगे.....!



    वो सीधा काउन्टर के पास आया और उसने वाइन की bottle को सीधा अपने मुह से लगाया लिया।


    धर्म के अंदर आज गुस्से का ज्वाला मुखी फ़ट रहा था...पहले तो महेंद्र राणा उसके हाथ नहीं लगा और उस bodyguard का अदिति राणा को देखना उसके गुस्से मे इजाफा कर गया....।



    भले वो अदिति राणा से कैसे भी पेश आए लेकिन किसी और को कोई हक नहीं उसे गलत नजर से देखने का....ये उसूल धर्म ने ही बनाया था।



    धर्म ने अपने गुस्से के चलते कुछ ही सेकंड में वाइन की पूरी bottle खत्म कर दी...और उसे जमीन पर फेंक दूसरी...को अपने मुह से लगा लिया।


    तुलसी काका वहाँ आए और बार से थोड़ी दूर ही खड़े होकर बोले " बेटा कपड़े बदल के नीचे आ जाओ हम खाना लगा रहे है....."


    ". मुझे भूख नहीं है तुलसी चाचा आप खाइए..."



    ".बेटा पर....."



    " बार- बार नहीं तुलसी चाचा....जाइए....". धर्म ने सख्त आवाज में कहा।


    तुलसी चाचा अब क्या बोले इसलिए चले गए।



    ___________


    आधी रात के वक्त

    अदिति राणा guast room में .bed के headset से टिक कर सो रही थी।


    उसके गालों पर आंसुओ के निशान थे.....! जिन्हें देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था कि....शायद रोते- रोते उसकी आंख लग गई है।



    Guast room का दरवाजा बस बंद था लॉक नहीं था....वो अचानक खुला...।


    गैट की आवाज भी आयी लेकिन शायद अदिति राणा की नींद गहरी थी इसलिए टूटी नहीं।



    " एक काला साया चलते हुए अदिति राणा के करीब बढ़ने लगा....और जाकर अदिति राणा के सामने बैठ गया...।



    अदिति जो नींद में थी....उसे ऐसा महसूस हुआ....जैसे कोई उसके चेहरे को छु रहा है....।


    किसी की छुने पर अदिति राणा जो नींद में थी....वो एकदम जाग गई।


    अदिति ऐसे किसी को अपने सामने देख डर गई...और जैसे ही चिल्लाने वाली थी...तभी वो इंसान अदिति के मुह पर हाथ रख देता है..।


    " शशश अ....आवाज नहीं....शोर पसन्द न..नहीं मुझे...."



    अदिति अपनी बड़ी- बड़ी आँखों से अपने सामने बैठे धर्म को देख रहीं थीं......जिसकी आंखे नशे से भरी थी और जुबान लड़खड़ा रही थी।



    अदिति की बड़ी- बड़ी आँखों को देख धर्म बोला- आंखे छोटी करो वरना बाहर गिर जाएगी.....जैसे उस bodyguards की गिरी....."


    धर्म की बातें अदिति को समझ नहीं आ रहीं थीं.....लेकिन फ़िलहाल धर्म को इतने नशे में देख उसे डर लग रहा था....इसलिए उसने तुरन्त अपनी पलके गिरा दी।



    ".में हाथ हटा रहा हूं...आवाज मत करना....वरना जीभ काट दूँगा...."


    अदिति ने बिना कुछ बोले अपना सिर हाँ में हिला दिया।



    धर्म ने उसके मुह से हाथ हटाया....तो अदिति उससे दूर होकर उठने लगी तो धर्म ने उसका हाथ पकड़ अपने ऊपर खिंच लिया.....।



    Aditi का balance बिगड़ा और वो धर्म के ऊपर गिरी जिससे उसके दोनों हाथ धर्म के कंधों पर और धर्म के हाथ उसकी कमर पर चले गये।



    अदिति ने अब गौर किया कि धर्म शर्ट less था।


    उसने तुरन्त धर्म से अपनी नजरे हटा ली तो धर्म ने अपने एक हाथ से उसके दोनों गालों को दबाते हुए कहा....." बैठो यहां....".



    नशे में होने के बावजूद धर्म की आवाज में सख्ती थी और पकड़ Aditi के नाजुक गालों पर कसी थी।



    धर्म की आवाज सुनकर Aditi चुपचाप उसके सामने बैठे गई...लेकिन उसने ने अपना मुह दूसरी तरफ कर लिया क्योंकि एक तो धर्म shirtless ऊपर से उसे धर्म में से शराब की बदबू आ रहीं थीं....।



    धर्म बोला...." तुम्हें पता है तुम बहुत समझदार हो....इसलिए मेरी बात मान रही हो....लेकिन तुम्हारा बाप..."


    धर्म ने अपनी आधी बात कह कर रुक गया....और उसके चेहरे पर गुस्सा दिखने लगा।


    " आहहह " Aditi चीख उठी...! उसे अपने बालों में बेतहाशा दर्द हुआ...क्योंकि धर्म ने उन्हें अपनी मुट्ठी में फंसा लिया था।





    " छोड़िए दर्द हो रहा है..." Aditi की आँखों में आंसू थे उसे सच मे बहुत दर्द हो रहा था।




    अदिति की आँखों में आंसू देख धर्म को ना जाने क्या हुआ उसने उसे पीछे धक्का दे दिया...।


    पिछे bed का headset soft था इसलिए Aditi को लगी नहीं।



    अदिति अपने बालों में हाथ रख धर्म को देख रही थी....।


    अचानक धर्म Aditi के बहुत ज्यादा नजदीक चला गया.....!



    Aditi ने जब धर्म को अपने करीब बढ़ते देखा तो वो और पीछे जाने लगी.....लेकिन bed का headset उसे touch हों चुका था....वो कहा जाती।



    अदिति ने साइड से निकलने की कोशिश की लेकिन उससे पहले ही धर्म ने उसके दोनों तरफ अपने हाथ रख दिए।



    अदिति ने बेबस नजरों से धर्म को देखा तो धर्म बोला...." चचचचचचच कैसा बुजदिल बाप है तुम्हारा....बेटी को उसका दुश्मन अपने घर ले गया....फिर भी अपने बिल से बाहर नहीं आया...। मानना पड़ेगा.....अव्वल दर्जे की बुजदिली चाहिए इस काम के लिए....! पर कब तक...कब तक आखिर बकरा अपनी खेर मनाएंगे.....जिस दिन तू....तुम्हारा बाप मेरे सामने आ गया.....वो दिन उसकी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा....".



    धर्म ने अपने आखिरी शब्द....नशे में चूर हो कर कहे ओर बात खत्म होने के साथ ही Aditi की गोद में गिर गया।




    अदिति जो इतनी देर से उसकी.करीबी में साँस लेना तक भूल गई थी उसने....एक गहरी साँस ली और अपनी गोद में सोये धर्म को हटाने की कोशिश करने लगी....! लेकिन उसकी कोशिश नाकामयाब रही।



    धर्म एक हट्टा कट्टा आदमी था....और वो नाजुक सी....उससे धर्म हिला तक नहीं.....!




    तक हार कर उसने इन्तेज़ार करने का फैसला किया.....की जब धर्म नींद में करवट बदलेगा तो वो उठ जाएगी।


    1 घन्टा बीत गया....लेकिन धर्म बिल्कुल नहीं हिला.....जैसे वो छोड़ना ही नहीं चाहता हो Aditi को....।




    Aditi की आँखों में भी अब नींद छा चुकी थी.....फिर भी उसने खुद को बड़ी मुशिकल से जगाए रखा था ।




    आखिकार Aditi की नींद उस पर हावी हो गई और Aditi bed के headset से टिक कर सो गई।




    तो अगली सुबह अब कौनसा धमाका होगा.....ये जानेंगे अगले chapter में...।



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  • 5. "𝚁𝚎𝚟𝚎𝚗𝚐𝚎 – 𝚃𝚑𝚎 𝚋𝚎𝚐𝚒𝚗𝚗𝚒𝚗𝚐 𝚘𝚏 𝚊 𝚙𝚊𝚜𝚜𝚒𝚘𝚗𝚊𝚝𝚎 𝚕𝚘𝚟𝚎…" - Chapter 5

    Words: 1061

    Estimated Reading Time: 7 min

    अगली सुबह

    सुबह की धूप पर्दों से छनकर कमरे में उतर रही है। चारों तरफ़ एक शांत, सुकूनभरी ख़ामोशी है।


    धर्मराज की आंख खिड़की से आती धूप से खुली..! उसने अपना सिर इधर-उधर रब किया..तभी उसे कुछ महसूस हुआ।



    उसने एकदम से अपनी अध खुली आँखों को पूरा खोला और एकदम से अपनी नजरे ऊपर कर देखा तो देखता ही रह गया।


    आदिति के बाल धर्मराज के चेहरे को ढक रही थे और उसकी बालों की ओट से धर्मराज को उसका चेहरा दिख रहा था...शांत, मासूम और निश्चल.....


    धर्मराज कुछ पल उसके चेहरे में जैसे खो सा गया..लेकिन अचानक जैसे वो किसी नींद से जगा हो...उसके चेहरे पर गुस्सा छलकने लगा और आँखों में नफरत तैर गई।


    धर्मराज एक झटके से अदिति की गोद से उठ गया।

    धर्मराज के ऐसे उठने पर Aditi की नींद भी अचानक खुल गई लेकिन अभी वो पूरी तरह जगी नहीं थी...उसने अपनी अध खुली आँखों से सामने देखा जैसे situation समझने जी कोशिश कर रहीं हो।


    लेकिन इससे पहले कि वो समझ पाती..... धर्मराज जो उसे बेतहाशा नफरत के साथ घूर रहा था उसने उसका हाथ लगभग खिंचते हुए उसे नीचे उतारा और फर्श पर धक्का दे दिया।


    अदिति की एक जोरदार चीख निकल गई।


    "आहहहहहह"


    अदिति ने अपने माथे पर हाथ रख देखा....जहाँ से खून बह रहा था...।


    Aditi की चीख सुनकर तुलसी काका, विनीता और नीलम भी कमरे में आए।


    " अरे बिटिया यी का हुआ....तुलसी काका ने कहा तब तक निलम और विनिता ने Aditi थाम लिया था...जो शायद बेहोश होने वाली थी।


    " है राम कितनी चोट लगी है....." तुलसी काका ने Aditi के सिर पर चोट को देख कर कहा जो शायद पास पड़ी ग्लास टेबल के कोने से लगी थी।



    " यी चोट तुमको कैसे लगी......?


    " मेरी वज़ह से...." धर्म को कोई पछतावा नहीं था।


    " क्यों किया तुमने ऐसा धर्म....अभी ऐसा का कर दिया बेचारी ने.....।


    " बेचारी....बेचारी नहीं है ये....एक नंबर की चालक है अपने बाप की तरह ...."


    " तुम्हारे गुस्से की वज़ह जान सकता हूं "


    " वज़ह.....मुझे ये बताईये की ये लड़की मेरे कमरे में क्या कर रहीं है...."


    " तुम्हारा कमरा....लगता है अपने गुस्से मे तुम अपने सोचने समझने की शक्ति भी खो चुके हों...गौर से पहले कमरे को देखो....

    " तुलसी चाचा के कहने पर धर्मराज ने कमरे को देखा और अब जाकर उसे अह्सास हुआ कि ये तो उसका कमरा है ही नही...."


    " पता चल गया....इसका मतलब ये है कि ये तुम्हारे कमरे में नहीं तुम कल रात नशे में इसके कमरे में आ गए थे...."


    तुलसी चाचा की बात पर धर्मराज को अपनी गलती का अह्सास हुआ लेकिन वो अदिति के सामने ये बात कुबूल कैसे कर सकता था इसलिए उसने कहा...." ठीक है मान लिया...की मे नशे में इसके कमरे में पहुंच गया....लेकिन ये लड़की मेरे करीब क्या कर रहीं थीं...पूछिये इससे..."


    " वो तुम्ह....."



    " चाचा जी...." विनिता और निलम ने अदिति को पकड़ रखा था...लेकिन अब वो बेहोश होने लगी थी।


    " अरे इसको लेटा दो यहां पर और जल्दी से इसकी पट्टी करो...."


    तुलसी चाचा के कहने पर निलम और विनीता ने अदिति को लेटा दिया..और उसकी सिर की पट्टी की।


    धर्म ये सब कुछ देख frustrate हो रहा था....।


    " अब इसको आराम करने दो हम...."


    " छपाक...."


    तुलसी चाचा अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए उससे पहले ही धर्मराज ने पानी का भरा ग्लास उसके मुह पर जोर से उड़ेल दिया।


    उसके पानी मारने से अदिति घबरा गयी...लेकिन वो अभी भी आधी बेहोशी में थी....।


    " धर्म ई का कर रहे हों इंसानियत बाकी भी है कि नाही..."


    " नहीं....राणा खानदान के किसी भी शख्स के किये मेरे दिल मे नफरत के सिवा कुछ नहीं है....और तुम अपना ये नाटक बंद करो...."


    धर्म ने अदिति की बाजू पकड़ उसे एक झटके से उठा दिया....।



    " धर्म ......."




    तुलसी चाचा कुछ कह्ते उससे पहले ही धर्म ने उन्हें हाथ दिखा कर रोक दिया......।


    " तुम्हें यहां महारानी बनकर आराम फरमाने नहीं लाया हूं....एक मिनिट कहीं तुम खुद को सच मे मेरी पत्नि तो नहीं समझने लगी...." धर्म की पकड़ अदिति के हाथ पर कस गई...।



    " ज्यादा ना ख्वाब सजाने की जरूरत नहीं है.....तुम्हारी औकात एक नौकरानी से ज्यादा नहीं है....तो अपना ये melo ड्रामा बंद कर चुपचाप जाकर मेरे लिए ब्रेकफास्ट बनाओ....में आधे घण्टे में वापिस आ रहा हूं....अगर तब तक मुझे ब्रेकफास्ट रेडी नहीं मिला....तो तुम इस घर के बाहर मिलोगी...।"



    धर्मराज ने कहा और एक झटके से अदिति को छोड़ कर कमरे से बाहर जाने लगा लेकिन फिर रुका और बोला. .." और हाँ खबरदार जो किसी ने इसकी मदद की तो. ....वर्ना फिर इसके साथ मे जो करूंगा उसका जिम्मेदार में नहीं इसका मददगार होगा "


    धर्म सभी को warning देकर चला गया।


    " बिटिया..."


    " मैं बना लुंगी चाचा जी....बस आप बता दीजिए...."


    तुलसी चाचा अब क्या ही कहते इसलिए जाते हुए विनीता और नीलम की तरफ देख बोले.....ई की पट्टी फिर से कर दियों...।






    -------------------------


    आधे घण्टे बाद धर्मराज अपने कहे अनुसार ठीक आधे घंटे बाद dinning table पर मौजूद था.......


    उसके सामने टेबल पर ब्रेकफास्ट रखा हुआ था....लेकिन उसके चेहरे पर नाखुशी थी।


    उसने अपने सामने खड़ी अदिति को देखा जो सिर्फ झुकाए खड़ी थी...।

    " मुझे ये खाने का दिल नहीं कर रहा...एक काम करो जाओ पनीर भूरजी बनाकर लाओ "


    "धर्म उसको चोट लगी है. तबियत भी ठीक नहीं है... उसने पहले ही बहुत मेहनत से बनाया है "



    " तो क्या हुआ तुलसी चाचा....काम है इसका....और तुम अभी तक गई नहीं.....किचन में जाना पसन्द करोगी या घर के बाहर..."


    धर्मराज की बात सुनकर अदिति तुरन्त kitchen में चली गई।


    " ....किसी को तो जाने दो उसकी मदद करने.... अगर उसको नहीं आता होगा तो "


    " तो धर्मराज महियावंशी की दी हुई सजा को enjoy करेगी "


    " धर्म तुम गलत कर रहे हों किसी और की सजा किसी और को देकर...."


    " किसी की नहीं उसके बाप की....और मेने मना नहीं किया उसे....कहा है कि बता दे अपने बाप का पता और चली जाए....लेकिन अगर उसे सजा काटने का शौक चढ़ा है तो यही सही...."



    धर्मराज अब अपने फोन में देखने लगा....।


    करीब 10 मिनिट बाद धर्म चिल्लाया....

    " breakfast आएगा या मुझे भूखा office जाना पड़ेगा....."


    धर्म के कहने की देर थी कि Aditi रसोई से बाहर निकली...पसीने से लथपथ....लेकिन उसकी खूबसूरती कहीं से भी कम नहीं पड़ी.....।


    अदिति ने प्लेट लाकर धर्म के सामने रखी तो.....



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  • 6. "𝚁𝚎𝚟𝚎𝚗𝚐𝚎 – 𝚃𝚑𝚎 𝚋𝚎𝚐𝚒𝚗𝚗𝚒𝚗𝚐 𝚘𝚏 𝚊 𝚙𝚊𝚜𝚜𝚒𝚘𝚗𝚊𝚝𝚎 𝚕𝚘𝚟𝚎…" - Chapter 6

    Words: 1060

    Estimated Reading Time: 7 min

    अदिति ने प्लेट लाकर धर्म के सामने रखी तो धर्मराज सामने देख हैरान हो गया..!

    उसके सामने इस वक्त पनीर भूरजी पड़ी थी जो ऐसी तरह दिख रही थी जैसे किसी शेफ ने तैयार की हो...।

    सच में उसे यकिन नहीं था कि अदिति इस तरह इतना जल्दी खाना बना के उसके सामने आ जायेगी..।


    लेकिन इतनी आसानी से वो Aditi को परेशान करना बंद नहीं करने वाला था ।


    उसने आदिति से कहा "मेरा अब यह खाने का मन नहीं कर रहा जाओ आलू पुरी बना के लाओ..."


    सब लोग हैरान थे लेकिन सभी के जेहन में चीजे साफ़ थी कि हो धर्मराज बस आदिति को परेशान करना चाहता हैं....!


    सभी को लगा कि Aditi अब कुछ कहेगी, विरोध करेगी..! आखिर महेंद्र राणा की बेटी थी...! किसी की बातें सुनना ये पर परवरिश नहीं होगी उसकी ओर नाही खून की गवाहीं....।


    धर्मराज भी जैसे इन्तेज़ार में था कि कब Aditi उसके खिलाफ जाए और वो...! वो करे जो करना चाहता है।


    लेकिन सभी की सोच के विपरित बेचारी आदिति ने कुछ नहीं कहा और वापस से किचन के अंदर चली गई...।

    सभी को हैरानी हुई और धर्म के हाथ की मुट्ठी कस गयी।


    इसी तरह धर्म उसे बार- बार परेशान कर रहा था...! और Aditi का चुप रहना उसके गुस्से मे इजाफा कर रहा था।


    बेचारी Aditi भूखी- प्यासी बिना एक शब्द कहे चुपचाप उसके इशारों पर नाच रहीं थीं....!

    वो धर्म का हुकुम मानकर गोभी के पराठे बना रहीं थीं....! लेकिन वहाँ खड़ा हर शख्स गवां था कि धर्म ने Aditi की बनाई हुई इतनी चीजों में से एक को भी छुआ नहीं था।


    Aditi रसोई से अपने हाथ में bowl लेकर बाहर आ रही थी लेकिन उसी वक्त उसे चक्कर आ गया और वो लड़खड़ा गई जिस वज़ह से उसके हाथ में पकड़ी सब्जी नीचे गिर गई।

    " बिटिया " तुलसी काका और उनके पीछे विनीता और नीलम आगे बढ़ने वाले थे तभी धर्मराज की आवाज ने उनके कदम रोक दिए...।


    " कोई भी उसके पास नहीं जाएगा "


    सब ने धर्म को देखा जो Aditi को घूर रहा था...!


    ".अब का करवाना चाहते हो उससे कोनों कसर बाकी रह गई का...? तुलसी काका नाराज थे धर्मराज से उसके ऐसे behavior की वज़ह से।


    " कसर....! इसकी हरकते ही ऐसी है...! अब इसने ये तो फर्श गंदा किया है...इसे साफ़ करने क्या इसका बाप आएगा।" धर्मराज गुस्से मे बोला।


    " ऊ कोई और भी कर देगा....! इस.....



    " कोई और क्यों...? जब गलती इसने की तो सुधारेगी भी यही। "



    " जो हुआ उम्मे यी की का गलती....! तुम को भी मालूम है...! की ये जो सुबह से बिना कुछ खाए तुम्हारी फर्माइशै पूरी कर रहीं है..! ऊ कारण ई को चक्कर आया..."


    लेकिन धर्मराज किसी की कहा मानने वाला था...! उसे तो बस मौका चाहिए था....!



    उसने Aditi को सुनाना शुरू कर दिया " आप सभी की आँखों पे एक ही दिन में पट्टी चढ़ा दी इस लड़की ने...! वाह इसने तो साबित कर ही दिया कि ये अपने बाप का ही खून है...! तभी तो जालसाजी इतनी अच्छी तरह जानती है....।

    .लेकिन सही काम नहीं कर सकती तुम यही सिखाया है तुम्हारे बाप ने....!

    Aditi का सिर नीचे झुका हुआ था....! ना कोई आंसू, ना शिकायत और नाही कोई विरोध ।

    " अब खड़ी क्या हो....! ये साफ़ करने तुम्हारा भगोड़ा बाप नहीं आएगा... ! इसको साफ करो जल्दी से.....! मुझे 2 मिनिट के अंदर ये सब साफ दिखना चाहिए.....! मुझे अपने घर में गंदगी की आदत नहीं है.....! तुम और तुम्हारे बाप तो गंदगी हो इसीलिए तुम्हें गंदगी में रहना शायद पसन्द हो.....!"

    7
    " धर्म बोलने से पहले सोचा करो.....! कुछ तो इंसानियत दिखाओ "


    " धर्मराज महियावंशी इंसानियत सिर्फ उनको दिखाता है जो उसके लायक हो....! मेरे दुश्मन को मुझसे सिर्फ नफरत और सजा मिल सकती है....!.इसके अलावा कुछ नहीं....!



    " और तुम अभी तक गई नहीं....! भूल गई तुम एक नौकरानी हो इस घर की....!और मालिक का हुकुम मानना काम है तुम्हारा....!.अब जाओ...." इस बार धर्म चीखा।


    Aditi तुरन्त वहां से चली गई और पोंछा लेकर आयी और सब साफ़ करने लगी....!.


    धर्म के चेहरे पर एक घमंड भरी मुस्कान थी क्योंकी यही तो वो चाहता था...! aditi को नौकरों वाला अह्सास करवाना.....।




    सब लोग देख रहे थे....! लेकिन कर कुछ नहीं सकते थे....।



    Aditi ने सब साफ़ किया और चुपचाप खड़ी हो गई....! वहीं धर्म की नजर बस एकटक उसके चेहरे पर थी जिस पर frustration का अंश मात्र नहीं था।


    धर्म Aditi को देखते हुए बोला " तो चलो इसने ये साबित कर दिया कि...! ये बेकार नहीं है...! इसमे खाना बनाने का talent तो है...! तो अब इसी talent का होगा exam.....



    धर्म की बात सुनकर सभी की नजरे उस पर उठ गई .....।

    धर्म की नजर किसी पर नहीं थी सिवाय Aditi के...!


    वो अदिति को देखते हुए बोला "मुझे विश्वास नहीं था की महेंद्र राणा की बेटी में ईस तरह के गुण होंगे...! लेकिन अब जब तुम्हारे है तो क्यों ना इसका इस्तेमाल किया जाए...! शाम को मेरे foreigner क्लाइंट आ रहे हैं और उन सब के लिए तुम्हें खाना बनाना है वो भी अकेले बिना किसी से मदद लिए....! और हां जो मै बताऊ वही बनाना है और अगर तुमने किसी की हेल्प ली या फिर मेरी बताई गई किसी भी से भी चीज़ में कामों हुई तो......


    धर्म ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी और एक तिरछी मुस्कान लिए गेट की ओर बढ़ने लगा....!


    कुछ कदम जाकर धर्म रुका और फिर बिना पीछे मुड़े बोला " और हाँ जो इसकी मदद करना चाहें शौक से कर सकता है...! अगर इसकी सजा का जिम्मेदार बनना चाहता हो तो....! क्योंकि मुझे तो सब पता चल ही जाएगा....! और मुझे कोई problem भी नहीं है ...!चलता हूं। "


    धर्म चला गया पीछे से सब कुछ कशमकश में छोड़कर....! सभी को Aditi के लिए बुरा लग रहा था और वो Aditi को ही देख रहे थे...! लेकिन Aditi के दिमाग में क्या चल रहा था वो तो सिर्फ वहीं जानती थी।




    शाम के वक्त Aditi धर्म के बताया हिसाब से dinner prepare कर रही थी...!



    सब लोग बहार खड़े थे....! तभी धर्म अंदर आया जो अभी office से लौटा था...।



    दरवाजे से अंदर आते ही उसकी नजर kitchen की तरफ पड़ी और उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान खिल गई.....! उसने अपने मन में कहा.." आज पता चलेगा की धर्मराज माहियावंशी चीज क्या है....." ।



    धर्म अपने कमरे की तरफ बढ़ गया और उसने किसी को कुछ मैसेज किया...।

  • 7. "𝚁𝚎𝚟𝚎𝚗𝚐𝚎 – 𝚃𝚑𝚎 𝚋𝚎𝚐𝚒𝚗𝚗𝚒𝚗𝚐 𝚘𝚏 𝚊 𝚙𝚊𝚜𝚜𝚒𝚘𝚗𝚊𝚝𝚎 𝚕𝚘𝚟𝚎…" - Chapter 7

    Words: 1388

    Estimated Reading Time: 9 min

    कुछ देर बाद धर्म कुछ कपड़े चेंज करके नीचे आया उसने देखा किचन से बहुत अच्छी खुशबू आ रही है..।

    एक पल को उसका मन मोहित हो गया लेकिन अचानक उसका चेहरा गुस्से से जलने लगा।


    आखिर वो अपनी दुश्मन की बेटी कि किसी भी चीज से कैसे मोहित हो सकता है...! उसने अपने सरे ख्याल एक और रखे और अपने क्लाइंट्स को कॉल किया...।


    कुछ ही देर बाद उसके सारे क्लाइंट्स उसके घर में एंटर हुऎ।

    धर्म ने उनका वेलकम किया ...! धर्म ने उन्हें dinning एरिया की तरफ लाते हुए खाने के लिए कहा....।


    धर्म के सभी clients dinning टेबल पर बैठे और मुस्कराते हुऎ अपनी टूटी फूटी हिन्दी में बोले....

    मिस्टर harris - हमने सुना है की इंडिया का खाना बहुत टेस्टी होता है.....।



    धर्मराज ने मुस्कुराकर अपना अपना सिर हाँ में हिलाया और बोला- " मुझे उम्मीद है आज का ये dinner बहुत यादगार होने वाला है। " इस लाइन को कहते हुए धर्म की आंखे चमक रहीं थीं।


    विनीता और बाकी सर्वेंट टेबल पर खाना लगा रहे थे तभी सभी के कानों में धर्म की आवाज गूंजी।


    " हमारी नयी सर्वेंट कहा है .....! बुलाओ उसे...guest को खाना वहीं सर्व करेगी...."



    धर्म की आवाज पर सभी खामोश हो गए सब जान रहे थे कि धर्म फिर अदिति के साथ नौकरो जैसा सलूक कर उसकी बेज्जती करना चाहता है।



    सब एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे कि तभी सभी के कानों में फिर से धर्म की आवाज पड़ी जिसमें एक warning ⚠️ थी...." लगता है आप सब के कान सही से काम नहीं कर रहे हैं..... इसीलिए आपको मेरी बात सुनाई नहीं दी.....!"



    धर्म की इतनी गुस्से वाली आवाज सुनकर वीनीता जल्दी से दोड़ के अंदर आदिति के पास जाकर बोली ....." धर्म ने उसे guest को खाना सर्व करनेे को कहा है....."


    विनीता के कहने पर अदिति बिना कुछ कहे बाहर आ गई।


    बाहर आते से ही उसकी नजर धर्म पर पड़ी....जो उसे ही देख रहा था और उसके आते से ही कुछ इशारा किया....!


    बिचारी अदिति ने फिर से धर्म के हुकुम को माना और सभी guest को खाना सर्व करने लगी।


    " We did not know Mr. Mahivanshi that servants in India can be so beautiful... We also wish to have such beauty with us..." टेबल पर बैठे एक और आदमी मिस्टर García ने कहा जिसकी नजर अदिति पर ही थी। जिनमें हसरत थी।


    मिस्टर García की बात सुनकर अदिती uncomfortable हो गई और उसने जो सूट पहन रखा था...! उसका दुपट्टा जो पहले दे हो ठीक था उससे और भी ज्यादा खुद को ढकने लगी।


    मिस्टर García की बात सुनकर टेबल के नीचे अपने घुटने पर रखे धर्म की मुट्ठी कस गयी...!.वहीं उसकी नजर जब अदिति से होकर मिस्टर García पर पड़ी तो उसकी नसें तन गयी।


    "I think we should start dinner.." धर्म खुद को बड़ी मुश्किल से काबु कर बोला।


    उसका मन तो कर रहा था कि अभी इसी वक्त अपने हाथ में पकड़ा fock मिस्टर García की आखों में खोप दे...! लेकिन अगर वो कुछ करता तो अदिति को लगता कि उसने उसके लिए stand लिया..! जो वो बिल्कुल नहीं चाहता था।



    "खाना दिखने में इतना लाजवाब लग रहा था की मुह में पानी आने लगा..." मिस्टर harris फिर से अपनी हिंदी जो शुद्ध नहीं थी उसे जारी रखते हुए बोले।



    "खाना दिखने में इतना लाजवाब लग रहा था की तो खाने में भी उतना ही लाजवाब होगा ... "


    ".जरूर " धर्म एक रहस्मय मुस्कान के साथ बोला।

    अदिति साइट में विनीता और नीलम के पास जाकर खड़ी हो गई तुलसी चाचा भी वही खड़े थे

    क्लाइंट के साथ धर्मराज ने भी खाना टेस्ट किया लेकिन खाना टेस्ट करते ही दोनों ने मुह से उगल दिया और धर्मराज ने भी।


    मिस्टर harris :—
    God… this is terrible! So salty… impossible to eat.”


    मिस्टर García:—
    (सिर हिलाते हुए)
    “Didn’t expect this at your place, मिस्टर महियावंशी ,
    It seems your servant only has beauty, not talent...



    धर्म यही पल तलाश रहा था। वो अचानक कुर्सी से उठकर ज़ोर से टेबल पर हाथ मारता है।

    धर्म:—
    (गुस्से में कुर्सी धकेलकर खड़ा होता है और गर्जना जैसी आवाज़ में) " "क्या बकवास है ये?! एक काम सौंपा था तुम्हे और वो भी तुम ठीक से नहीं कर पाई? मेरे इतने important Clients आए हैं और तुमने ये वाहियात खाना बना दिया?”



    अदिति
    (टूटे स्वर में)
    "मैंने... मैंने कोई गलती नहीं की..."


    " shut up.... ज्यादा innocent बनने की कोशिश मत करो...बहुत अच्छी तरह जानता हूं मैं तुम्हारे Doble standard खानदान को और तो तुम पीछे कैसे रह सकती हो आखिर दे ही दिया अपने बाप की औलाद होने का सबूत....! बहुत खुशी मिल रही होगी ना तुम्हें ऐसे जानबूझकर मेरी insult देखने पर।


    मिस्टर harris:—
    (अटपटा-सा मुस्कुराकर)
    “Maybe she just made a mistake, मिस्टर माहियावंशी. Happens sometimes.”


    Mistake? No Mr. Harris, this woman does not make mistakes… this woman herself is a mistake.



    अदिति चुप खड़ी थी आँसू आँखों से छलकने वाले थे मगर वो रोक लेती है।



    धर्मराज मिस्टर गार्सिया और मिस्टर हैरिस के सामने देखकर शर्मिंदगी के भाव लेकर बोलता है "I'm... so sorry, gentlemen.असल में… जब घर के responsibility इस जैसी इंसान पर दी हों, तो नतीजा यही निकलता है।"


    धर्म अदिति की बेज्जती करते हुए अपने मन मे अपनी जीत पे जीत मुस्कुरा रहा था ।

    तुलसी काका और बाकी सब भी हैरान थे.... की सुबह में धर्म की जाने के बाद सभी खाना चखा था जो और अदिति कितना अच्छा खाना बनाती है ये वो जान चुके थे तो फिर ये सब....।


    It doesn't matter , मिस्टर माहियावंशी is not like that, he is a human being, he might have made a mistake...don't worry, we will come again sometime to eat " मिस्टर García ने अदिति को देखा जो चुपचाप खड़ी थी।


    मिस्टर harris:—
    yes it's been a while now we must go....

    धर्मराज:—
    " apologize again for wasting your precious time."


    मिस्टर harris — it's OK mistar माहियावंशी "


    " मैं दोबारा से...."

    " अदिति जो कहने वाली थी लेकिन धर्म की अंगार जैसी आँखों को देख उसकी बात बीच में ही रुक गयी। और उसने अपनी साड़ी पर अपनी पकड़ कस दी....।


    "we go" मिस्टर Harris और मिस्टर García चले गए।

    धर्म जो उन्हें बाहर तक छोड़ने आया था वो अभी भी गेट के बहार खड़ा था।


    उससे अपने एक आदमी को कुछ इशारा कीया....!

    वो आदमी आदमी धर्मराज का इशारा समझ के उन लोगों के पीछे कार ले कर निकल गया।



    धर्म के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कराहट थी...! इस वक्त वो इतना कातिल लग रहे था कि जो देखे बस देखता रह जाए।

    वो पीछे पलटा लेकिन पलटने से पहले उसने अपने चेहरे की वो मुस्कराहट छिपा ली।



    उसकी चेहरे पर अब फिर से पहेली जैसा गुस्सा छलक रहा था।


    वो अपने कदम आदिति Aditi की तरफ बढ़ाने लगा।


    अदिति उसके बढ़ते कदमों को देख रहीं थीं...! लेकिन अपनी जगह से टस से मस नहीं हुई।

    धर्म ने उसके करीब आकर अचानक उसके बालों को मुट्ठी में पकड़ के जोर से खींच दिया...।


    " आहहहहहहह"

    Aditi की एक जोरदार चीख निकल गई और चेहरा ऊपर उठ गया।

    उसकी चीख सुनकर भी धर्म को कोई फर्क नहीं पड़ा।



    " धर्म पागल हो गए हों...! छोड़ो बच्ची को..."
    तुलसी काका ने Aditi को छुड़ाने की कोशिश की तो धर्म ने Aditi को तेजी से फर्श पर धक्का दे दिया।


    Aditi की आखों में आंसू बह उठे क्योंकि उसे अपनी कमर में बहुत तेज चोट आयी थी।


    तुलसी काका ने उसे उठाया और धर्म की ओर मुड़कर गुस्से मे बोले " लगता है तुम अपने संस्कारों का त्याग कर चुके हों इसलिए भूक गए कि स्त्रियों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं। "

    " कुछ नहीं भूला में...काका ! लेकिन ये इसी के लायक है
    इसकी..., सिर्फ और सिर्फ इसकी वज़ह से आज मुझे अपने client के सामने अपना सिर झुकाना पड़ा...! कोई भी इंसान आज तक धर्मराज महियावंशी से जुड़ी किसी चीज़ में एक नुस्ख नहीं निकाल पाए और इसकी चालबाजी की वजह से आज वो लोग मेरे सामने खड़े होकर मुझे सुना रहे थे....।"


    " धर्म उससे गलती हो गई ....


    " गलती नहीं " तुलसी काका की बात होने से पहले ही धर्मराज चीख उठा ।


    " गलती नहीं की इसने...बल्कि जानबूझकर किया है ये सब...! क्योंकि यही तो चाहती थी ये कि मेरा सिर झुके....! लेकिन कोई बात नहीं इसे क्या लगा कि इसकी इस ओछी हरकत के बाद ये बच जाएगी....! सजा इसे मिलेगी और इसकी सज़ा