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भूतकाल- एक रहस्य

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Description

यह कहानी है "सुकन्या " की जो अपने कुल और इस धरती को महा दानव के प्रकोप से बचाने के लिए महा दानव को मारने का प्रण लिए चली जाती है भूतकाल में..! जहाँ  जाकर उसे कूछ ऐसा पता चलता है जिससे वो आश्चर्यचकित हो जाती है और उसके पैरों तले ज़मी...

Characters

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चंद्रवीर

Emperor

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सुकन्या

Princess

Total Chapters (11)

Page 1 of 1

  • 1. भूतकाल- एक रहस्य - Chapter 1

    Words: 1171

    Estimated Reading Time: 8 min

    यह कहानी पूर्णतः कल्पना और जादू पर आधारित है और केवल मनोरंजन जे उद्देश्य से लिखी गई है...।

    इसका किसी वास्तविक तथ्य, जाति, धर्म या स्थान से कोई लेना-देना नहीं है।

    उम्मीद है आपको मेरी बाकी रचनाओ की तरह ये भी पसन्द आएगी।

    तो बढ़ते है कहानी के पहले अध्याय की ओर.....

    अध्याय - 1

    ◇◆◇ भूतकाल दर्पण ◇◆◇

    "महा दानव मेरे इष्ट आपकी जय हो " कहते हुए दो लोग महा शैतान के सामने सिर झुकाए खड़े हो गए।

    "कहो दारुक और यक्षिका मेने तुम्हें जो कार्य सौपा था वो हुआ या नहीं " कहते हुए दानवों का इष्ट अपनी लाल आँखों से उन लोगों की तरह देखता है ।

    "आप हमे कोई आदेश दे और हम उसे पूरा ना करे ऐसा कभी नहीं हो सकता हमे वो मिल गया मेरे इष्ट वो उत्तर दिशा मे स्तिथ है " कह्ते हुए यक्षिका आगे आती है ।

    "भूतकाल के दर्पण 🪞 को पाने के लिए हमे अभी वहाँ प्रस्थान करना होगा" कह्ते हुए दारुक भी आगे आता है ।

    "तो फिर देर किस बात की रथ को उस दिशा मे मोड़ों" वो महा दानव कहता है जो एक राक्षसी डरावने रथ में अपने सिंहासन पर बैठा था...।

    उसके कहने पर दारुक उस और रथ को काले बादलों से घिरे आसमान में मोड़ देता है और वो लोग एक जगह जाकर रुक जाते है ।

    महा दानव अपने सिंहासन से उठ कर आगे आता है और एक खतरनाक मुस्कान के साथ नीचे की तरफ एक जगह को देख कर कहता "अच्छा तो ये है वो स्थान "सैद्धांतिक आश्रम " सिद्धांतों से भरा हुआ जहाँ मुझे मेरा भूतकाल का दर्पण मिलेगा " ।

    "सैद्धांतिक आश्रम

    एक लड़का जिसकी उम्र 26-27 साल लग रही थी और उसने गुरुकुल के कपड़े पहने हुए थे वो एक कमरे में प्रवेश करता है ........ !जहाँ एक लड़की एक मायावी चक्र के सामने बेठी ध्यान में थी वो लड़का उस लड़की से कहता-"आप कल से यहां बेठि आश्रम की रक्षा कर रही है आपको अब जाकर विश्राम करना चाहिये सुकन्या".....।

    उस लड़के कहने पर वो लड़की उसकी तरह मुड़ती है नीली आंखे, दूध सा गौरा रंग,तीखे नैन-नक्श वो लड़की दिखने में बहुत सुन्दर थी उसकी उम्र दिखने में 23-24 साल लग रही थी वो उस लड़के को देख बहुत ही मीठे और धीमे स्वर में कहती है "वो तो ठीक है गतिक किन्तु महा गुरु और पिताजी अभी तक नहीं लौटे पता नहीं क्यों मेरा मन विचलित हो रहा है "।

    वो लड़का जिसका नाम गतिक था वो उस लड़की सुकन्या से कहता है- "सुकन्या आप व्यर्थ ही चिंतित हो रही है महा गुरु और गुरुदेव ने कहा था कि जब उनका कार्य समाप्त हो जाएगा तब वो लौट आयेंगे " ।

    सुकन्या, गतिक की बात पर हामी भर लेती है पर उसका मन अब भी शांत नहीं था।

    दूसरी तरफ

    थोड़ी देर में महा दानवऔर बाकी सभी लोग एक डरावनी जगह पर उपस्थित थे जो देखने से ही किसी दानव का साम्राज्य लग रही थी लेकिन वो लोग यहां अकेले नहीं थे उन के सामने एक उम्रदराज व्यक्ति खड़ा था , जिसे दारुक और यक्षिका ने बंदी बनाया हुआ था ।

    महा दानव उस उम्रदराज व्यक्ति से कहता है - "तो बताईये गुरुदत्त आपको यहाँ केसा अनुभव हो रहा है मुझे पूर्ण विश्वास है आपको भूतकाल के दर्पण को मेरे हाथ मे देखकर बिल्कुल भी अच्छा नहीं प्रतीत हो रहा होगा पर अब ये मेरे हाथ में है और में इसका उपयोग कर समग्र संसार पर अपना अधिपत्य स्थपित करूंगा" कहते हुए उसकी आंखे शैतानी तरीके से चमक रही थी।

    तभी यक्षिका कहती है - "इष्ट इस दर्पण को जाग्रत करने के लिए किसी पवित्र ऊर्जा की आवश्यकता पड़ेगी हम इसे दानवी ऊर्जा से जाग्रत नहीं कर सकते और पवित्र ऊर्जा भी उस व्यक्ति को स्व इच्छा से इस दर्पण को प्रदान करनी होगी"

    उसकी बात सुनकर महा दानव कहता है "चिंता की कोई बात नहीं है गुरुदत्त है ना ये हमारी सहायता करेंगे हैं ना...... गुरुदत्त"

    कहते हुए महा दानव गुरुदत्त के सामने बहुत ही शैतानी और खतरनाक मुस्कान के साथ देखता है ।

    उसकी इस बात सामने वाले व्यक्ति गुरुदत्त कहते है -"कभी नहीं में ऐसा कुछ नहीं करूंगा"

    गुरुदत्त की बात सुन महा दानव कहता "सोच लीजिए इसके बदले में यहां से आपको जिवित जाने दूँगा "

    गुरुदत्त- "मुझे अपने प्राणों का कोई मोह नहीं अगर तुम मेरे प्राण लेना चाहो तो ले लो लेकिन मे तुम्हें इस संसार का विनाश करने में कभी सहायता नहीं करूंगा।"

    महा दानव — म्......

    वो आगे कुछ भी कहता कि तभी कोई एक दम से गुरुदत्त के सामने आकर खड़ा हो जाता है

    "इ"न्हें चोट पहुंचाने से पहले तुम्हें मुझसे होकर गुजरना पड़ेगा दानवों के इष्ट..." गुरुदत्त के सामने खड़ा वो अंजान व्यक्ति कहता है ।

    गुरुदत्त- "आप यहां क्यों आए गुरु सतचित आपको इस समय आश्रम में होना चाहिए आप यहाँ क्या कर रहे है कृपा कर यहाँ से लौट जाए:....।

    गुरु सतचित- "में आपकों छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा महा गुरु अपितु आपको अपने साथ सुरक्षित लेकर आश्रम लौटुंगा".....।

    महा दानव - "लौटेंगे तो तब जब मे लौटने दूंगा"..... ।

    गुरुदत्त और गुरु सतचित दोनों उसकी तरफ देखते है तभी वो उन पर अपनी शक्तियों का प्रयोग कर गुरुदत्त को जंजीरों से बाँध देता है और गुरु सतचित एवं उनके साथ आए लोगों को गुरुदत्त के साथ एक शक्तिशाली मायावी घेरे में बंद कर देता है।

    महा दानव - "आपके पास मेरी सहायता करने के अतिरिक्त आपके पास कोई विकल्प नहीं है अन्यथा अपनी मृत्यु को स्वयं निमंत्रण देंगे".....।

    गुरु सतचित- "ऐसा कभी नहीं होगा" कहते हुए गुरुदत्त की जंजीरें अपनी मायावी तलवार से काटने लगे लेकिन फिर भी नहीं काट पा रहे थे और उनके शिष्य घेरे को अपनी शक्तियों से उस घेरे को तोड़ने का प्रयास कर रहे थे ।

    गुरु सतचित की मायावी तलवार से भी वो जंजीर नहीं टूटी तो गुरु सतचित ने अपनी सारी शक्तियां एकत्रित कर उस जंजीर को तोड़ने का प्रयास किया ।

    उनके शिष्यो को उस मायावी घेरे को तोड़ने का प्रयास करते देख दारूक और यक्षिका अपनी-अपनी शक्तियां लगा कर उन्हें उस घेरे को तोड़ने से रोकने लगे दारुक और यक्षिका शैतानी शक्तियों द्वारा अत्यधिक प्रबल थे जिसके कारण गुरु सतचित के शिष्य उनका सामना नहीं कर पा रहे थे ।

    यक्षिका और दारुक ने अपनी शक्ति को थोड़ा प्रब्ल कर के लगाया जिसके कारण गुरु सतचित के शिष्य कमजोर पड़ने लगे और घायल होने लगे तभी गुरुदत्त की जंजीरें टूट गयीं और गुरुदत्त और गुरु सतचित ने अपनी-अपनी शक्तियां लगा कर उस मायावी घेरे को तोड़ दिया जिससे दारूक और यक्षिका इस ऊर्जा के प्रभाव से दूर जा गिरे जब महा दानव ने यह दूर बेठे हुए देखा तो उसकी आंखे क्रोध में और लाल हो गई उसने कहा

    महा दानव - "अब मे तुम्हें बताता हू दानव क्या होता है"

    (तब तक दारुक और यक्षिका भी उसके पास आकर खड़े हो गए)

    महा दानव - "मेने तुम्हें एक अवसर दिया किन्तु तुमने उस अवसर को ठुकरा दिया जिसका दण्ड मेरे द्वारा तुम्हें मिलना अनिवार्य है "

    ये कह्ते हुए महा दानव......

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  • 2. भूतकाल- एक रहस्य - Chapter 2

    Words: 1226

    Estimated Reading Time: 8 min

    पिछली कड़ी में आपने देखा कि महा दानव ने दारुक और यक्षिका को 'भूतकाल के दर्पण' को लाने का आदेश दिया था। वे दोनों सफल होते हैं और महा दानव अपने भयानक रथ में बैठकर 'सैद्धांतिक आश्रम' पहुँचता है। वहाँ, गतिक नाम का एक युवक, सुकन्या नाम की युवती से बात कर रहा होता है, जो आश्रम की रक्षा कर रही होती है। सुकन्या अपने गुरु और पिताजी के देर से लौटने से चिंतित है।

    दूसरी ओर, महा दानव गुरुदत्त को बंदी बना लेता है और उसे 'भूतकाल के दर्पण' को जागृत करने में मदद करने के लिए कहता है। गुरुदत्त इनकार कर देता है, जिसके बाद गुरु सतचित उन्हें बचाने आता है। महा दानव गुरुदत्त को जंजीरों में बांध देता है और गुरु सतचित और उनके शिष्यों को एक मायावी घेरे में फंसा देता है। गुरु सतचित और उनके शिष्यों के प्रयास से वे जंजीरें और घेरा टूट जाता है, जिससे महा दानव क्रोधित हो जाता है।

    अब आगे

    --------

    महा दानव- "अब मे तुम्हें बताता हू शैतान क्या होता है".....।

    (तब तक दारुक और यक्षिका भी उसके पास आकर खड़े हो गए)

    महा दानव- "मेने तुम्हें एक अवसर दिया किन्तु तुमने उस अवसर को ठुकरा दिया जिसका दण्ड मेरे द्वारा तुम्हें मिलना अनिवार्य है "

    ये कह्ते हुए महा दानव अपना ध्यान केंद्रित कर अपनी मायावी नेत्र को उजागर करता है जिसमें उसकी सारी शक्ति निहित थी अपनी प्रबल शक्तियों द्वारा गुरुदत्त, गुरु सतचित और उनके शिष्यों के ऊपर एक घेरा बना देता है जो कोई मामूली घेरा नहीं था ।

    गुरुदत्त, गुरु सतचित और उनके शिष्यों को ऐसा लग रहा था जेसे की कोई उनके शरीर से रक्त खिंच रहा हो....।

    गुरुदत्त और गुरु सतचित की शक्तियां भी उस घेरे के अंदर काम नहीं कर रहीं थीं उनके शिष्य हिम्मत कर पूछते है क्योंकि उनका शरीर उनका अब साथ नहीं दे रहा था- "गुरुदेव ये..किस प्रकार का जाल है जो हम पर इतनी तीव्रता से असर कर रहा है"

    गुरुदत्त और गुरु सतचित उनके शिष्यों को कुछ कहते की तभी शैतान बोल उठा.....

    महा दानव- ये कोई मामूली घेरा नहीं इससे कुछ ही क्षण में तुम सबकी सारी शक्ति क्षीण हो जाएगी और शरीर नष्ट हो जाएगा और तुम्हारी अस्थियों के अतिरिक्त यहाँ कुछ शेष नहीं रहेगा

    उसकी बात पर दारूक और यक्षिका शैतानी मुस्कान अपने चेहरे पर सज़ा लेते है

    तभी महा दानव के चेहरे पर कहीं से एक तीर छु कर निकलता है जिससे उसे हल्का सा घाव हो जाता है और शैतान का ध्यान गुरुदत्त, गुरु सतचित और उनके शिष्यों से हट जाता है और वो घेरे से मुक्त हो जाते है ।

    महा दानव अपने चेहरे को छु कर देखता है जहां दाहिने गाल पर आँख के नीचे एक मामूली सी चोट थी।

    महा दानव उस तरह देखता है जिस तरह से तीर आया था और उसके साथ बाकी सब भी तो पाते है वहाँ सुकन्या आकाश मे अपने हाथ मे धनुष लिए खड़ी थी शैतान एक पल के लिए तो उसे अपलक देखता ही रहता है ।

    इधर दारूक और यक्षिका गुरुदत्त, गुरु सतचित और उनके शिष्यों को घेरे से मुक्त होते देख उनके पास पहुंच गए गुरुदत्त दारूक से , गुरू सतचित यक्षिका से और उनके शिष्य शैतान के सैनिकों से लड़ रहे थे ।

    गुरुदत्त लड़ते हुए दारूक से वो दर्पण छिन लेते है क्योंकि वो उसके पास ही था और सुकन्या की तरह फेंक कर कहते है- "सुकन्या जल्दी से यहाँ से जाओ"

    और फिर से लड़ने लग जाते है उन के दर्पण फेंकने पर सुकन्या उसे पकड़ लेती है और जल्दी से वहाँ से मायावी शक्तियों द्वारा हवा में उड़ती हुई चली जाती है

    महा दानव - "तो ये सब मेरा ध्यान भटकाने के लिए था कोई बात नहीं अब इस खेल में मजा आएगा" और ये कह्ते हुए वो सुकन्या के पीछे चला जाता है ।

    इधर गुरुदत्त, गुरु सतचित और उनके शिष्य दारूक, यक्षिका और महा दानव के सेना को मार देते है और गुरुदत्त कहते है- "हमे अब आश्रम प्रस्थान करना चाहिए सुकन्या भी अब तक पहुंच गई होगी।"

    ________

    दूसरी ओर महा दानव सुकन्या का पीछा करते हुए उसपे अपनी मायावी शक्ति से वार करता है जिससे सुकन्या आगे जाकर एक चट्टान पर मुँह के बल गिर जाती है।

    महा दानव भी उसके पास पहुंच जाता है पर तब तक वो उठ जाती है ।

    महा दानव - "बहुत विचित्र बात है पाँच सौ साल पूरे पांच सौ साल मे पहली बार कोई है जिसने मुझे चोट पहुंचाई है" फिर अपने आंखे बंद करता है तो एक काले रंग की तलवार प्रकट हो जाती है

    सुकन्या हैरानी से - " महा दानव की खूनी तलवार"

    महा दानव - "मुझे लगता है तुम मेरी इस तलवार के उपयोग के लिए सर्वथा उचित व्यक्ति हो.....आज कितने समय बाद मुझे ये तलवार उपयोग करने का अवसर मिलेगा" कहते हुए सुकन्या के पास आ जाता है।

    सुकन्या भी अपनी तलवार को उजागर कर महा दानव से युद्ध करने लगती है पर की तलवार बहुत शक्तिशाली थी उसके आगे कोई नहीं टिक सकता था और एक ही वार में सुकन्या घायल होकर गिर जाती है और उसके मुख से रक्त बहने लगता है।

    महा दानव उसके पास आकर उसका गला पकड़ लेता है और कहता है- "क्या लगा तुम्हें तुम मुझसे जीत जाओगी" कहते हुए सुकन्या को हवा मे उठा देता है ।

    सुकन्या लगातार महा दानव की पकड़ अपने गले से छुड़ाने की कोशिश कर रही थी और इसी कोशिश में उसके पास से दर्पण नीचे गिर जाता है।

    धीरे-धीरे सुकन्या की आंखे बंद होने लगती है और उसकी सांसे थमने लगती है, और वो बहुत धीमे शब्दों मे अपने पिता को याद करते हुए कहती है- " मुझे शमा कर दीजिए पिताजी में आपका दिया कार्य पूर्ण नहीं कर पायी " कहते हुए सुकन्या की आंखे बंद हो जाती है और उसके बेज़ान हाथ नीचे गिर जाते है ।

    लेकिन तभी सुकन्या के सिर के बीचो-बीच बने चिन्ह से एक तेज दिव्य रोशनी निकलती है जिसे महा दानव एक पल भी सहन नहीं कर पाता और सुकन्या से दूर हो जाता है ।

    सुकन्या महा की पकड़ से छुट कर सीधे नीचे दर्पण के पास गिरती है और उसके मुख से बहता रक्त दर्पण पर गिरता है और इसी के साथ समय जैसे रुक जाता है सुकन्या जैसे अपने किसी सपने में चली जाती है ।

    ये जगह बहुत अजीब सी थी जिसे सुकन्या पहचान नहीं पा रही थी उसे कोई आवाज़ दे रहा हो लेकिन सुकन्या को कोई दिखाई नहीं दे रहा था।

    सुकन्या आगे चलती जाती है और पूछती है- "कोन है आप"....?

    वो अदृश्य ध्वनि- "में कोन हू ये महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन मे जो तुम्हें बताने वाला हू महत्वपूर्ण वो है"

    सुकन्या- "क्या बताना चाहते है आप मुझे"।

    अदृश्य ध्वनि - "यही की जो महा दानव बनकर तुम्हारे सामने आज खड़ा है वो शुरू से बुरा नहीं था, और नाही जन्म से दानव था।"

    "लेकिन उसके साथ जो घटित हुआ और जो विपरीत परिस्थितिया उतपन्न हुई उसके कारण वो दानव बना, और वो भी अपनी ईच्छा से नहीं अपितु किसी के घृणित षडयंत्रों के कारण , उसका इन सब में कोई दोष नहीं है।"

    सुकन्या- "ये आप क्या कह रहे है उसने असंख्य प्राणियों के प्राण लिए है और आप कह रहे है कि वो निर्दोष है... असम्भव "

    अदृश्य ध्वनि- "हमे ज्ञात था कि तुम हमारी बात पर विश्वास नहीं करोगी लेकिन किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले ये देख लो उसके बात ही कोई निर्णय लेना"।

  • 3. भूतकाल- एक रहस्य - Chapter 3

    Words: 1293

    Estimated Reading Time: 8 min

    पिछली कड़ी में आपने देखा कि महा दानव गुरुदत्त, गुरु सतचित और उनके शिष्यों को अपनी मायावी शक्ति से एक ऐसे घेरे में फंसा देता है जिससे उनकी सारी शक्ति क्षीण होने लगती है। तभी सुकन्या एक तीर से महा दानव को घायल कर देती है, जिससे वे सभी मुक्त हो जाते हैं। गुरुदत्त दारुक से 'भूतकाल का दर्पण' छीनकर सुकन्या को दे देता है, और सुकन्या उसे लेकर भाग जाती है। महा दानव उसका पीछा करते हुए उस पर हमला करता है, जिससे वह घायल हो जाती है। महा दानव अपनी खूनी तलवार से सुकन्या पर वार करता है, जिससे वह बेहोश हो जाती है और दर्पण नीचे गिर जाता है। सुकन्या की मृत्यु के करीब आने पर उसके सिर के बीच के चिन्ह से निकली दिव्य रोशनी महा दानव को पीछे धकेल देती है। सुकन्या दर्पण के पास गिरती है और उसका रक्त दर्पण पर गिरता है, जिससे वह एक अजीब सी जगह पहुँच जाती है जहाँ एक अदृश्य ध्वनि उसे बताती है कि महा दानव शुरू से दानव नहीं था, बल्कि विपरीत परिस्थितियों और घृणित षडयंत्रों का शिकार हुआ है।

    अब आगे

    --------

    सुकन्या- "ये आप क्या कह रहे है उसने असंख्य प्राणियों के प्राण लिए है और आप कह रहे है कि वो निर्दोष है असम्भव "

    अदृश्य ध्वनि- "हमे ज्ञात था कि तुम हमारी बात पर विश्वास नहीं करोगी लेकिन किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले ये देख लो उसके बात ही कोई निर्णय लेना। "

    उस अदृश्य ध्वनि के इतना कह्ते ही सुकन्या के सामने कुछ दृश्य चलने लगते है वो उन्हें देख रही है उन दृश्यों में और कोई नहीं बल्कि शैतान ही था लेकिन इस वक्त वो बिल्कुल महा दानव नहीं लग रहा था।

    वो बिल्कुल साधारण व्यक्ति लग रहा था और कुछ लोग उसे परेशान कर रहे थे और उसे मार रहे थे एक ने तो पत्थर से उसकी आँख फोड़ दी जहाँ से रक्त बह रहा था।

    सुकन्या ने और भी बहुत कुछ भी देखा जिसमें हर जगह बस उसे प्रताड़ित किया जा रहा था।

    वो दृश्य बंद हो गए और सुकन्या को फिर से वो आवाज़ सुनाई दी।

    अदृश्य ध्वनि- "अब तुम्हारा क्या निर्णय है क्या अब भी तुम्हें यही लगता है कि इन सब में उसका दोष है..."

    सुकन्या- "मानती हूं उसके महा दानव बनने में उसका दोष नहीं लेकिन इस आधार पर इस तथ्य को नहीं झुठलाया जा सकता कि वो आज वो दानवों का देवता बन इस प्रथ्वी को नष्ट कर अपना अधिपत्य स्थापित करना चाहता है और उसे कोई नहीं रोक सकता....।"

    अदृश्य ध्वनि- "नहीं ये ही एकमात्र उपाय नहीं है ' महा दानव को एक और तरीके से रोका जा सकता और कोई है..... जो उसे रोक सकता है।"

    सुकन्या- "क्या है वो उपाय और कोन रोक सकता है महा दानव को......"?

    अदृश्य ध्वनि- "तुम, तुम रोक सकती हो उसे.."

    सुकन्या अचंभित भाव लिए- मैं, ये आप क्या कह रहे है मे उसे कैसे रोक सकती हू..."

    अदृश्य ध्वनि- "रोक सकती हो और केवल और केवल तुम ही रोक सकती हो..."

    सुकन्या- "परन्तु किस प्रकार"

    अदृश्य ध्वनि- "भूतकाल मे जाकर"

    सुकन्या उनकी बात को दोहराते हुए "भूतकाल मे जाकर किन्तु किस प्रकार" "

    अदृश्य ध्वनि- "तुम्हें भूतकाल मे जाकर महा दानव को बनने से रोकना होगा..."

    सुकन्या- "किन्तु में उसे कैसे रोक सकती हूं...."

    लेकिन इस बार सुकन्या को कोई उत्तर प्राप्त नहीं होता

    सुकन्या पुनः अपनी बात दोहराती है किन्तु इस बार भी कोई उत्तर नहीं आता।

    और सुकन्या की आँखों में पुनः एक तेज रोशनी पड़ती है और सुकन्या वर्तमान मे लौट आती है ।

    सुकन्या आखें खोलते ही अपने सामने दानवों के देवता को पाती है जो उसी की ओर बढ़ रहा था, उसे देख सुकन्या की पकड़ अपने हाथ मे पकड़े उस टूटे दर्पण पर कास जाती है।

    महा दानव - "तुम्हारा समय अब समाप्त हुआ कह कर उसकी तरफ बढ़ने लगता है..."

    तभी कोई सुकन्या और महा दानव के बीच आकर खड़ा हो जाता है वो व्यक्ति उसे देख सुकन्या के मुह से निकलता है- "गतिक"

    सुकन्या- "गतिक आप यहां क्या कर रहे है..."?

    गतिक.- "आपकी रक्षा, अब आप समय मत गंवाइए और तुरन्त आश्रम प्रस्थान कीजिए.."

    गतिक की बात सुनकर महा दानव कहता है- "पहले तो मे एक को मृत्यु देने वाला था किंतु अगर तुम भी अगर अपनी मृत्यु की इच्छुक हो तो मे वो तुम्हें सहर्ष प्रदान करूंगा..। "

    महा दानव गतिक पर वार कर देता है जिसे देख सुकन्या चिल्लाती है- "गतिक"

    उसके इस तरह गतिक की चिंता करते देख महा दानव देखने लगाता है ।

    वहीं गतिक जिसने अपनी तलवार से महा दानव के वार को रोक लिया था वो सुकन्या से कहता है

    गतिक - "सुकन्या यहां से जाइए में इसे रोकता हूं..."

    और ये कह्ते हुए गतिक और महा दानव अपनी-अपनी चमत्कारी शक्तियों से लड़ने लगते है।

    सुकन्या- नहीं में आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी.....

    गतिक - "बात को समझने का प्रयास कीजिए सुकन्या, वहाँ महा गुरु और गुरुदेव आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं आप का वहा जाना अति आवश्यक है, क्योंकि इस समय इस संसार को बचाना हमारी प्राथमिकता है इसलिए जाइए क्योंकि में इसे ज्यादा समय तक रोक नहीं पाउंगा" कह्ते हुए पूरी शक्तियाँ लगा कर शैतान को रोकने लगता है।

    उसकी बात सुनकर अब सुकन्या रोते हुए वहां से जाने लगती है और उसे जाता देख शैतान उसे रोकने के लिए जैसे ही उस पर वार करने वाला था तभी गतिक उसके सामने आ जाता है और उसे रोक देता है शैतान उसे अपने सामने देख अपनी दानवी तलवार को उसके शरीर के आर-पार कर देता है, जिसे देख सुकन्या रोते हुए गतिक का नाम पुकारती है

    गतिक के शरीर और मुह से रक्त बहने लगता है लेकिन फिर भी वो अपनी सारी शक्तियां समाहित कर महा दानव को लेकर उस ऊँची चट्टान से नीचे कूद जाता है ।

    जिस चट्टान के नीचे वो गिरे थे वो जगह कोई साधारण जगह नहीं मायावी थी जो किसी भी शक्तिशाली से शक्तिशाली प्राणी को कुछ पल तक बंदी बना सकती है ।

    सैद्धांतिक आश्रम

    सब लोग सुकन्या और गतिक की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी उन्हें आकाश की ओर से मूर्छित होकर गिरती सुकन्या दिखती है सुकन्या के पिता आगे जाकर सुकन्या को संभाल लेते है और देखते है तो सुकन्या मूर्छित अवस्था में थी ।

    सुकन्या के पिता सुकन्या को जब देखते है तो अपनी शक्तियों से उसे मूर्छित अवस्था से बाहर निकालते है , सुकन्या जब अपनी आँखे खोलती है तब उसके पिता गुरु सतचित उससे पूछते है- "सुकन्या पुत्री आप ठीक है , और गतिक वो कहा है...?

    गतिक के बारे मे याद आते ही सुकन्या के आँखों में फिर से आंसू आ जाते है।

    और वो सबको सबकुछ बता देती है, सब गतिक के बारे मे जानकार दुःखी होते है।

    लेकिन इस समय सबको महा दानव से इस संसार को बचाना था इस लिए इस समय कोई कमजोर नहीं पड़ सकता था सुकन्या खुद को सम्भाल कर गुरुदत्त और अपने पिता के देख कहती है "मुझे आप दोनों को महत्वपूर्ण बात बतानी है..." गुरुदत्त और गुरु सतचित दोनों ही सुकन्या के साथ अपने मायावी कक्ष में आ जाते है।

    सुकन्या अंदर आकार उन दोनों को सब कुछ बता देती है जो उसके साथ हुआ और जो उसे उस अदृश्य ध्वनि ने बताया उसके बाद गुरुदत्त और गुरु सतचित दोनों ही उस टूटे हुए दर्पण 🪞 से वो दृश्य देखते है जिसमें महा दानव को प्रताड़ित किया जा रहा था।

    उसे देखने के बाद गुरुदत्त कह्ते है,,- "ये भूतकाल का दर्पण खंडित इस लिए हम सिर्फ महा दानव के अतीत का कुछ हिस्सा ही देख पाए।"

    लेकिन इससे ये साफ हो गया कि महा दानव का जन्म एक शक्तिशाली असुरी हृदय के साथ नहीं हुआ अपितु वो ऐसा बाद में बना।

    सुकन्या- "पर महागुरु अब हम क्या करे जिससे महा दानव को रोक सके.."

    गुरु सतचित भी गुरुदत्त की तरफ देखते है जैसे इस सवाल का जवाब जानना चाहते हो.....

  • 4. भूतकाल- एक रहस्य - Chapter 4

    Words: 1224

    Estimated Reading Time: 8 min

    पिछली कड़ी में आपने देखा कि सुकन्या को वह अदृश्य ध्वनि भूतकाल के दृश्य दिखाती है जिसमें महा दानव को प्रताड़ित किया जा रहा था। यह जानकर सुकन्या को महा दानव के प्रति सहानुभूति होती है, पर वह यह भी जानती है कि अब वह धरती को नष्ट करना चाहता है। अदृश्य ध्वनि बताती है कि सुकन्या ही उसे रोक सकती है, भूतकाल में जाकर उसे महा दानव बनने से रोककर। वर्तमान में लौटकर, सुकन्या महा दानव का सामना करती है, लेकिन तभी गतिक आकर उसे बचाता है। गतिक महा दानव से लड़ते हुए सुकन्या को आश्रम जाने को कहता है। गतिक महा दानव को एक मायावी जगह पर ले जाकर उसे बंदी बना लेता है, पर इस प्रक्रिया में वह स्वयं भी मारा जाता है। आश्रम में लौटी सुकन्या गुरुदत्त और अपने पिता को सब बताती है, और वे सब मिलकर टूटे दर्पण में महा दानव के अतीत के दृश्य देखते हैं। गुरुदत्त पुष्टि करते हैं कि महा दानव जन्म से दानव नहीं था, बल्कि परिस्थितियों ने उसे ऐसा बनाया। अब वे महा दानव को रोकने का उपाय सोच रहे हैं।

    अब आगे

    --------

    उसे देखने के बाद गुरुदत्त कह्ते है,,- "ये भूतकाल का दर्पण खंडित इस लिए हम सिर्फ महा दानव के अतीत का कुछ हिस्सा ही देख पाए।"

    लेकिन इससे ये साफ हो गया कि महा दानव का जन्म एक शक्तिशाली असुरी हृदय के साथ नहीं हुआ अपितु वो ऐसा बाद में बना।

    सुकन्या- पर महागुरु अब हम क्या करे जिससे महा दानव को रोक सके..,?

    गुरु सतचित भी गुरुदत्त की तरफ देखते है जैसे इस सवाल का जवाब जानना चाहते हो।

    गुरुदत्त कुछ सोच कर सुकन्या की तरफ देख कह्ते है- "तुम्हें भूतकाल मे जाना होगा सुकन्या उस समय मे जब महा दानव एक साधारण मनुष्य था और वहाँ जाकर महा दानव को ढूंढ कर शैतान बनने से पहले उसे मारना होगा।"

    गुरु सतचित अचंभित होकर गुरुदत्त की तरफ देख कर कहते हैं- "ये आप क्या कह रहे है गुरुदत्त, सुकन्या केसे जा सकती और महा दानव को कैसे मार सकती ही ऐसा नहीं हो सकता।"

    गुरु सतचित का ह्रदय व्यथित हो उठा।

    गुरुदत्त- "हम आपकी मनोदशा समझ रहे है सतचित किन्तु आप भी समझने का प्रयास कीजिए | उस अदृश्य शक्ति ने सुकन्या से कहा है कि वो ही दानवों के देवता को महा दानव बनने से पहले रोक सकती है, इसका यही अर्थ हुआ कि सुकन्या ही ये कार्य करने के योग्य है .....एक पिता की तरह नहीं अपितु संसार के रक्षक की तरह विचार कीजिए।"

    गुरु सतचित - किन्तु................उन्होंने अभी इतना ही कहा था कि तभी उन्हें सुकन्या की आवाज़ सुनाई देती है।

    सुकन्या- ●●●●●●●"मे जाऊँगी"●●●●●●●

    गुरु सतचित - पुत्री एक बार पुनः विचार कर लो इस में तुम्हारे प्राणों को संकट है

    सुकन्या गुरु सतचित की तरफ मुड़ कर- "पिताजी आपने ही मुझे बाल्यावस्था से सिखाया है कि इस संसार और यहां के प्रत्येक प्राणी के लिए हमारे कुछ कर्तव्य है जिनके लिए ईश्वर ने हमे चुना है और हमे सबसे ऊपर कर्तव्यों को रखना चाहिए और उनका निर्वहन करने के लिए कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।"

    "तो फिर आज आप मुझे क्यूँ रोक रहे है आज मे आपके सिखायी उन्हीं बातों का पालन करने के लिए सज्ज हूं तो कृपया कर मुझे मत रोकिए अपितु मुझे आशीर्वाद दीजिए की मे अपने कार्य को जल्द से जल्द पूर्ण कर आप सब के पास वापिस लौट सकू। "

    कह कर सुकन्या अपने पिता और गुरुदत्त के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेती है।

    दोनों उसे विजय भवः का आशीर्वाद देते है।

    उसके बाद गुरुदत्त और गुरु सतचित मिलकर सुकन्या को भूतकाल मे भेजने की प्रक्रिया प्रारम्भ करते है।

    कुछ देर में प्रकिया का अंतिम चरण शेष था, तभी सबको एक तीव्र विस्फोट की कम्पन महसूस होती है ।

    बाहर से अश्रम का एक व्यक्ति उन तीनों को आकर बताता है कि महा दानव उन पर आक्रमण कर रहा है.......जिसे सुनकर गुरु सतचित गुरुदत्त और सुकन्या से कह्ते है- "आप दोनों प्रक्रिया पूर्ण कीजिए हम महा दानव को बाहर रोकते है ।"

    " कह कर जाने लगते है " तभी सुकन्या उनका हाथ पकड़ कर कहती है- "पिताजी"

    उसके पुकारने पर सतचित उनकी तरफ मुड़ कर प्रश्न सूचक दृष्टि से उसे देखते है ।

    सुकन्या डरते हुए- "आप मत जाइए...."

    उसकी बात सुनकर गुरु सतचित मुस्कराते हुए उसके सिर पर हाथ रख कह्ते है- "सुकन्या आप ही हमे अभी कर्तव्य निर्वाह के बारे मे समझा रही थी और अब आप ही ऐसी बातें कर रही है।"

    "आप संसार को बचाने के लिए भूतकाल मे जाकर अपना कर्तव्य पूर्ण कीजिए और हम आप सब को बचा ने का प्रयास कर हम अपना |अपना ध्यान रखियेगा।"

    गुरु सतचित बाहर चले जाते है और सुकन्या बस उन्हें देखती रहती है तभी उसे गुरुदत्त की बात सुनाई देती है- "सुकन्या जल्दी कीजिए, हमारे पास अधिक समय नहीं है ।"

    उनकी बात सुनकर सुकन्या खुद को कठोर कर वापिस से अपने स्थान पर आकर गुरुदत्त के साथ प्रक्रिया आरंभ कर देती है।

    अश्रम के बाहर इस वक्त महा दानव खड़ा आक्रमण कर रहा था, सतचित बाहर आकर उसे रोकने के लिए अपनी समग्र शक्तियों द्वारा अश्रम पर सुरक्षा कवच लगा देते है।

    उनके सुरक्षा कवच लगाते ही महा दानव का वार खाली जाने लगता है।

    महा दानव — "अच्छा तो तुम सब मुझे चुनौती दे रहे हों तो ठीक है अब मेर तुम लोगों को स्पष्ट करूंगा कि कोन अधिक शक्तिशाली है कह कर महा दानव अपनी शक्तियों द्वारा विशाल रूप धारण कर लेता है।"

    महा दानव के इस रूप को देख आश्रम के सारे शिष्य भयभीत हो जाते है और सतचित भी सुकन्या और गुरुदत्त का सोच चिंतित हो जाते है।

    महा दानव अपने विशाल रूप द्वारा सभी पर एक घातक प्रहार करता है और उसका वार इतना शक्तिशाली था कि सुरक्षा कवच को भेद कर एक साथ सभी के प्राण हर लेता है।

    सभी शिष्यों की तुरन्त मृत्यु हो जाती है लेकिन सतचित जिवित थे वो पुनः महा दानव को रोकने का प्रयास करते है पर शैतान के एक और वार करने पर उनकी मृत्यु हो जाती है।

    वहीं आश्रम के अंदर कक्ष में बैठी सुकन्या जो आंखे बंद कर बैठी थी अचानक उसकी आँखों से अश्रु की धारा बह उठी और वो तेज आवाज में चीख पड़ी " पिताजी...."

    इस ह्रदय विदारक चीख के साथ उसकी आंखे खुल उठी। उसने अपनी नजरें गुरुदत्त की तरफ की जिनकी आँखों में एक पीड़ा और चेहरे पर निराशा थी।

    दोनों अपनी शक्तियों के माध्यम से गुरु सतचित की मृत्यु के बारे मे जाने गए थे।

    गुरुदत्त सुकन्या को देखते है जिसके आस-पास एक दिव्य चक्र का निर्माण हो चुका था।

    गुरुदत्त- "सुकन्या अब तुम कुछ ही क्षणो में भूतकाल मे प्रस्थान कर जाओगी....अपना ध्यान रखना पुत्री और विजय होकर लोटना .....सभी की आशा अब तुमसे..."

    गुरुदत्त अपने शब्द भी पूरे नहीं कर पाए उससे पहले ही उनके मुख से रक्त की धारा छुट पडी और एक तलवार उनके ह्रदय के आर-पार हो गई।

    "गुरुदेव " सुकन्या का ह्रदय फिर से कंपन कर उठा और उसकी नजरे कक्ष के दरवाजे पर खड़े महा दानव पर गई जिसकी लाल आँखों में चमक और अधरों पर विस्मयकारी मुस्कान थी।

    " तुम्हारी मृत्यु मेरे हाथो होगी दानवों के ईष्ट ये वचन है मेरा खुद से " सुकन्या के ह्रदय में पीड़ा, आँखों में आंसू और मुख पर आए क्रोध के साथ यही शब्द निकले और सुकन्या गायब हो गई।.....

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  • 5. भूतकाल- एक रहस्य - Chapter 5

    Words: 1188

    Estimated Reading Time: 8 min

    अब आगे, खंडित भूतकाल के दर्पण से गुरुदत्त बताते हैं कि महा दानव जन्म से शक्तिशाली नहीं था, बल्कि बाद में बना। सुकन्या महा दानव को रोकने का उपाय पूछती है, और गुरुदत्त उसे भूतकाल में जाकर, महा दानव को शैतान बनने से पहले मारने का निर्देश देते हैं। गुरु सतचित विरोध करते हैं, लेकिन सुकन्या अपने कर्तव्यों का पालन करने का निर्णय लेती है और भूतकाल में जाने के लिए तैयार हो जाती है। महा दानव के आक्रमण की सूचना मिलने पर, गुरु सतचित सुकन्या और गुरुदत्त को प्रक्रिया पूरी करने के लिए कहते हैं और खुद महा दानव को रोकने के लिए बाहर जाते हैं, जहाँ उनकी मृत्यु हो जाती है। सुकन्या गुरु सतचित की मृत्यु से व्यथित होती है, और उसकी आँखों के आस-पास एक दिव्य चक्र बनने लगता है। गुरुदत्त उसे भूतकाल में प्रस्थान करने के लिए कहते हैं, लेकिन महा दानव कमरे में घुसकर गुरुदत्त को मार देता है। अपनी आँखों में आँसू और क्रोध के साथ, सुकन्या महा दानव को मारने का वचन देती है और गायब हो जाती है।

    अब आगे

    --------

    500 वर्ष पूर्व

    सुकन्या इस वक्त मूर्छित अवस्था में एक पलंग पर लेटी थी... वहीं उसके पास खड़ी लड़की जो दासी की वेषभूषा ने थी उसे जगाने का प्रयास कर रहीं थीं।

    " राजकुमारी उठिए....राजकुमारी आप को मेरी आवाज़ सुनाई दे रहीं हैं....."

    सुकन्या जो मूर्छित अवस्था से बाहर आ रहीं थीं... वो आवाज सुनकर उसकी धीरे-धीरे अपनी आंखे खोलती है।

    सुकन्या की आंखे खुलते ही वो खुद से कहती है " क्या में भूतकाल मे पहुंच गई "

    सुकन्या ने इतना ही कहा था कि उसके दिमाग में पिछली सभी यादे चलने लगी, अपने पिता, गुरु और गतिज की मृत्यु उसकी आँखों के सामने जिवंत हो उठी और उसकी आँखों से अश्रुधारा बह उठी।

    " मे वापिस लौटूंगी और सब कुछ ठीक कर दूंगी।

    "राजकुमारी आप खुद से क्या बात कर रही है.....कहीं ये आपके मस्तक पर आघात लगने की वजह से तो नहीं....राजकुमारी उठिए "

    सुकन्या पहले चारो तरफ देखती है और अपने मन मे बोलती है " पहले मुझे सब समझना होगा "

    " राजकुमारी अखिरकार आप चैतन अवस्था में लौट आयी....जाओ जाकर महाराज और बड़ी रानी माँ को सूचित कर आओ " सुकन्या के पास बैठी वो दासी पास में खड़ी अन्य दासी को आदेश देते हुए बोली।

    सुकन्या को कुछ समझ नहीं आ रहा था इसलिए वो उठकर बैठने लगी तभी उसके पास बैठी वो दासी बोली " राजकुमारी आप उठी क्यों आपको विश्राम की आवश्यकता है.....इतनी ऊचाई से गिरी थी आप....आपको पीडा हो रही होगी "

    " तुम कौन हो...? " सुकन्या ने सवाल किया।

    सुकन्या के सवाल पर वो दासी कुछ पल अपनी बड़ी- बड़ी आँखों से सुकन्या को देखती है और फिर रोने लगी | वहीं उसके ऐसे रोने से सुकन्या हैरान हो गई।

    " तुम रो क्यु रही हो...हमने तुमसे ऐसा तो कोई अपशब्द नहीं कहा सिर्फ तुमसे ये पूछा कि तुम कौन हो...इसमे रोने वाली क्या बात है....?

    " एएए...मेरे लिए तो ये ये अपशब्द से भी बढ़कर नहीं..नहीं सभी पीड़ाओं से बढ़कर है कि मेरी राजकुमारी मुझे नहीं पहचान रहीं.....सूर्य पूर्व के स्थान पर पश्चिम से उदय हो सकता है...' मनुष्य पक्षियों में परिवर्तित हो सकता है....विश्व का सारा जल सुख सकता है....सब कुछ सम्भव हो सकता है लेकिन मेरी राजकुमारी अपनी प्रिय दासी प्रियवदा को भूल जाए ये असम्भ है "

    सुकन्या को समझ नहीं आ रहा था इसलिए वो शांति से सोचती है तभी उसके दिमाग में कुछ आया और वो बोली " देखो प्रियवदा हम सच मे तुम्हें नहीं पहचान पा रहे है कदाचित ये इसलिए हो रहा है क्युकी हमारे कपाल पर चोट लगी है और हम कुछ ठीक से याद नहीं कर पा रहे और प्रयास करने पर हमे पीड़ा हो रहीं है आहहह " सुकन्या बोलते हुए अपने सिर पर हाथ रख कराह उठी।

    वास्तविकता में उसे दर्द नहीं हो रहा था।

    वहीं सुकन्या के ऐसे कहने पर प्रियवदा का रोना एकदम बंद हो गया और वो सुकन्या को पकड़ कर बोली " हमे क्षमा कीजिए राजकुमारी हम भी मुर्ख है हमने सोचा ही नहीं....पर आप चिंता ना करे हम है ना हम आपको सब कुछ याद दिला देंगे "

    " पुत्री चारुमति "

    इस आवाज को सुनकर सुकन्या का ध्यान सामने से आते हुए एक वरिष्ठ आयु के व्यक्ति पर गई जिन्होंने राजसी वेषभूषा धारण कर रखी थी।

    उस वरिष्ठ व्यक्ति को देखते ही प्रियवदा अपने स्थान से उठकर चारुमति की बगल में खड़ी हो गई।

    चारुमति उस वरिष्ठ व्यक्ति को देख प्रियवदा को देखती है जैसे पूछ रही हो ये कौन है....?

    प्रियवदा चारुमति का प्रश्न समझ झुक कर उसके कान में बोली " ये आपके पिताश्री है महाराजा देवव्रत.."

    प्रियवदा की बात सुनकर सुकन्या महाराजा देवव्रत को देखने लगी जो उसकी तरफ ही आ रहे थे।

    " हमारी पुत्री....ईश्वर का कोटि- कोटि धन्यवाद जो आप सुरक्षित है...। आपको आभास भी है....आपको मूर्छित अवस्था में देख हमारी क्या दशा हो रहीं थीं...आज के बाद आप बिना सैनिकों के कही नहीं जाएगी "

    महाराजा देवव्रत चारुमति ( सुकन्या ) को अपने ह्रदय से लगा लेते है।

    सुकन्या तो बस खुद के लिए उनकी चिंता देख रहीं थीं....महाराजा देवव्रत को देख उसे फिर से अपने पिता की स्मृति जागृत हो उठी जिसके कारण उसकी आँखों के कोर भीग गए।

    " पुत्री आपको कहीं पीड़ा हो रहीं है.....हम अभी वैद्य जी को बुलाते है....दास..."

    " पिताश्री हम ठीक है वैद्य जी की कोई आवश्यकता नहीं है "

    " परंतु पुत्री... आपके नेत्रो में ये अश्रु ...?

    " एक पिता का अपनी पुत्री की लिये प्रेम देख हमारे नयन स्वतः ही जलमग्न हो चले " सुकन्या ने अपने आंसू साफ करते हुए कहा।

    महाराजा देवव्रत और उनके साथ कक्ष में उपस्थित हर व्यक्ति को चारुमति ( सुकन्या ) की बातें विचित्र प्रतीत हुई क्योंकि सब चारुमति के स्वभाव से परिचित थे जो इस प्रकार भावात्मक बातें कभी नहीं करती थी।

    " क्या आपको सिर्फ अपने पिता याद हैं हम नहीं "

    एक बार पुनः एक और आवाज ने सुकन्या का ध्यान खिंचा जहां एक वृद्ध महिला...राजसी वस्त्रों और आभूषण से सुसज्जित खड़ी थी और उनके मुख पर एक तेज था जो उनके रानी होने के पद की पुष्टि कर रहा था।

    सुकन्या ने पुनः प्रियवदा की ओर देखा जिस पर प्रियवदा ने उसी प्रकार झुक कर उसके कान में कहा " ये आपकी दादी माँ है....इस महल की बड़ी रानी माँ रानी अनुलेखा "

    " हमारी पुत्री को अब कैसा प्रतीत हो रहा है "

    " हम ठीक है दादी माँ "

    " ये तो ईश्वर की कृपा है पुत्री..अन्यथा जब हमे सूचना मिली कि आप कितनी ऊचाई से गिरी तो हमारा ह्रदय किस प्रकार भयभीत था ये केवल हम और हमारा ईश्वर जानता है....हमे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ने हमारे प्राण हर लिए हो....."

    महारानी अनुलेखा की नेत्रो के अश्रु उनके अंदर व्याप्त भय का स्पष्टीकरण दे रहे थे।

    " दादी माँ हमे कुछ नहीं हुआ देखिए हम आपके सामने सकुशल है "

    चारुमति के कहने पर रानी अनुलेखा उसका कपाल चूम लेती है।

    ( सुकन्या की जगह अब चारुमति नाम ही उपयोग करेंगे)

    कुछ देर बाद सभी चारुमति को आराम करने का बोल उसके कक्ष से चले जाते है सिवाय प्रियवदा को छोडकर।

    सभी के जाने के बाद चारुमति........

  • 6. भूतकाल- एक रहस्य - Chapter 6

    Words: 1076

    Estimated Reading Time: 7 min

    500 वर्ष पूर्व, सुकन्या मूर्छित अवस्था से जागती है और खुद को एक अलग समय में पाती है। वह अपनी मृत्यु को याद करती है और भविष्य को ठीक करने का संकल्प लेती है। उसे अपनी दासी प्रियवदा और पिता महाराजा देवव्रत, और दादी रानी अनुलेखा मिलते हैं, जो उसकी अजीब बातें सुनकर आश्चर्यचकित होते हैं।

    अब आगे

    --------

    सभी के जाने के बाद, सुकन्या ने प्रेमवदा की ओर देखा और कहा, "प्रेमवदा, तुमसे एक बात पूछूं?"

    "राजकुमारी, पूछिए ना। आप मुझसे आज्ञा क्यों ले रही हैं?"

    प्रेमवदा की बात पर सुकन्या ने मुस्कुरा कर उसकी ओर देखा और कहा, "प्रेमवदा, हमसे सब मिलने आए, किन्तु हमारी माँ... हमारी माँ हमसे मिलने नहीं आई?"

    सुकन्या की बात सुनकर प्रेमवदा के चेहरे की मुस्कान चली गई।

    "राजकुमारी, क्या आप अपनी माँ के बारे में भी भूल चुकी हैं?"

    "क्या भूल चुकी हूँ?"

    "यही कि आपकी माँ के देवलोक गमन को कई वर्ष बीत गए। वो आपको जन्म देते ही इस संसार को विदा कह चुकी थीं। तब से आपकी दादी माँ ने आपका पालन-पोषण एक माता की भांति किया है।"

    प्रेमवदा की बात सुनकर सुकन्या की आँखें भर आईं।

    सुकन्या ने अपने मन में ईश्वर से शिकायत करते हुए कहा, "हे ईश्वर, मतलब आपने हमें पूर्व जन्म में भी ममत्व के सुख से वंचित ही रखा। आखिर क्यों? क्यों बनाया आपने हमें इतना अभागा?"

    "राजकुमारी।" सुकन्या को खुद में खोया देख प्रियवदा ने कहा।

    "हाँ।" सुकन्या अपने चैतन्य में लौटी।

    "राजकुमारी, आपकी नयनों में फिर से अश्रु।"

    "हाँ, वो बस माँ की याद आ गई।" सुकन्या ने अपने आँसू पोंछे।

    "अच्छा, प्रियवदा, तुम हमें हर एक वस्तु, व्यक्ति, हमारे स्वभाव, सभी के बारे में बताओ।"

    "इन सब के बारे में?"

    प्रियवदा की आँखों में प्रश्न भांप कर सुकन्या तुरंत बात संभालते हुए बोली, "हाँ, अब देखो, हमारे मस्तिष्क पर चोट लगी है, इसलिए हमें कुछ सही याद नहीं। अब ऐसे में हम बाहर गए, पर हमने किसी व्यक्ति से कुछ गलत कह दिया, तो पूरे राज्य में यह बात आग की तरह फैल जाएगी कि महाराज देवव्रत की पुत्री मानसिक रूप से अस्वस्थ है। क्या तुम चाहती हो ऐसा हो और हमें सब मानसिक रोगी कहें?"

    "नहीं, नहीं राजकुमारी, कदापि नहीं। आप चिंता मत कीजिए, हम आपको हर तथ्य से अवगत कराएंगे, वो भी विस्तार में।"

    प्रियवदा के मान जाने पर चारमति एक गहरी साँस लेती है।

    "तो शुरू से शुरू करो," सुकन्या ने कहा।

    "आप इस शौर्यसेनई राज्य के राजा देवव्रत की प्रिय पुत्री हैं, जिसे महाराज बहुत स्नेह करते हैं। आपकी हर इच्छा पूरी करते हैं। आप में एक राजकुमारी होने के सारे गुण विद्यमान हैं..."

    "जैसे कि...?"

    "जैसे कि आप हठी हैं। आपको जो वस्तु जिस समय पर चाहिए, वो चाहिए। वरना सभी को आपके असीम क्रोध का सामना करना पड़ता है। इस पूरे नगर में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो आपके आदेश की अवहेलना करे, क्योंकि जो ऐसा करता है, आपके द्वारा वह कठोर दंड का पात्र होता है और..."

    "बस..." सुकन्या अचंभित थी चारमति के बारे में सुनकर।

    "हे ईश्वर! हठी, क्रोधी और कठोर। ये किस प्रकार की उद्दंड कन्या थी चारमति?"

    "राजकुमारी..."

    "हाँ..."

    "आप फिर से स्वयं से बातें करने लगीं..."

    "सुकन्या... नहीं, वो बस अपने गुणों के बारे में जानकर हम विश्वास नहीं कर पा रहे हैं।"

    "राजकुमारी, ये तो कुछ भी नहीं अभी..."

    "नहीं...." सुकन्या के ऐसे तेज बोलने पर प्रियवदा उसे नासमझी में देखने लगी।

    प्रियवदा के इस तरह देखने पर सुकन्या अपनी बात संभालते हुए बोली, "हमारा तात्पर्य है, हमारे बारे में इतना पर्याप्त है। बाकी हम तुम्हारे साथ रहकर बाद में जान लेंगे। किन्तु इस समय तुम हमें महल के अन्य लोगों के बारे में बताओ।"

    चारमति की बात सुनकर प्रियवदा अपना सिर हाँ में हिलाकर बोलती है, "अवश्य। हम आपको आपके परिवार के बारे में बताते हैं। आपके पिता और दादी माँ से तो आप मिल चुकी हैं। इसके अतिरिक्त आपके एक ज्येष्ठ भ्राता हैं, राजकुमार सहस्रजीत, जो युद्ध कौशल में अद्वितीय हैं और इस समय दक्षिणी सीमा पर हमारे राज्य की सेना का नेतृत्व करते हुए हमारे शत्रुओं से युद्ध कर रहे हैं।"

    सुकन्या भले ही अपने भाई को नहीं जानती थी, किन्तु उसके साहस और पराक्रम की बात सुनकर सुकन्या को गर्व हो रहा था।

    "आपकी एक बहन है, चित्रलेखा, जो केवल नाममात्र है। आप उसे बिल्कुल पसंद नहीं करतीं।"

    "पर ऐसा क्यों?"

    "चित्रलेखा कोई राजकुमारी नहीं है, अपितु आपके पिता के एक सेवक की पुत्री है, जिन्होंने आपके पिता की प्राण रक्षा हेतु अपने प्राण त्याग दिए। चित्रलेखा अपनी माता के साथ महाराज के कहने पर इस महल में आई थी, जिनकी मृत्यु कुछ वर्ष पहले ही हुई है।"

    "महाराज का चित्रलेखा पर ध्यान देना और अपनी पुत्री की भांति उसकी चिंता करना, आपको बिल्कुल पसंद नहीं। और सबसे बड़ी बात..." प्रियवदा कुछ पल ठहरी।

    "निसंकोच होकर कहो प्रियवदा, हम जानना चाहते हैं।"

    "हमारे निकट वल्लभ राज्य के राजकुमार कीर्तिमान... चित्रलेखा को पसंद करते हैं... और यही सबसे बड़ा कारण है आपका चित्रलेखा से द्वेष का।"

    "राजकुमार उन्हें पसंद करते हैं तो इस बात पर हमें..." सुकन्या अपने अधूरे शब्दों में ही जैसे समझ गई और अपनी आधी बात को रोक लिया।

    "क्या हम...?"

    "जी राजकुमारी, आप राजकुमार कीर्तिमान से प्रेम करती हैं।"

    सुकन्या ने जैसे ही प्रियवदा की बात सुनी, उसे अटपटा सा लगने लगा, क्योंकि इतने वर्ष गुरुकुल में रहने के बाद भी उसने कभी प्रेम जैसे तथ्य पर इतना विचार नहीं किया था। उसके लिए केवल संसार की रक्षा ही उसकी प्राथमिकता रही थी।

    "तुम इस बात को जाने दो, कुछ और बताओ।"

    "आपको अध्ययन में बिल्कुल रुचि नहीं, लेकिन आपके ज्येष्ठ भ्राता के भय से आपको अध्ययन करना पड़ता है। आपको पाकशाला में रुचि नहीं, और न ही आपको आता है। आप राजकुमारी हैं और अपने परिवार की सबसे छोटी सदस्य हैं, इसलिए सभी का असीम स्नेह है आपसे। आपको पूरा दिन नगर में भ्रमण करने में आनंद आता है। आप किसी की कोई बात नहीं मानतीं, वही करती हैं जो आपका मन करे। और आप विवाहित हैं......."

    "क्या........?"

    सुकन्या, जो इतनी देर चारमति के अवगुणों के बारे में सुनकर परेशान हो रही थी, उसने जैसे ही विवाह वाली बात सुनी, वह आश्चर्यचकित होकर चीख पड़ी।

    "क्या हुआ राजकुमारी...?" सुकन्या के चीखने पर प्रियवदा चिंतित और अचंभित हो गई।

    "ह... हम..... व... विवाहित हैं।" सुकन्या ने बड़ी मुश्किल से ये कुछ शब्द कहे।

    "जी राजकुमारी, आप विवाहित हैं......"

    "अगले अध्याय में क्या होने वाला है, यह जानने के लिए तैयार हो जाइए! तब तक, यदि आपको यह पसंद आया, तो अपनी प्रतिक्रिया कमेंट्स में ज़रूर दें, और इस कहानी को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें!"

  • 7. भूतकाल- एक रहस्य - Chapter 7

    Words: 1451

    Estimated Reading Time: 9 min

    पिछली कड़ी में, आपने देखा कि सुकन्या मूर्छित अवस्था से जागती है और खुद को एक अलग समय में पाती है। वह अपनी मृत्यु को याद करती है और भविष्य को ठीक करने का संकल्प लेती है। उसे अपनी दासी प्रियवदा और पिता महाराजा देवव्रत, और दादी रानी अनुलेखा मिलते हैं, जो उसकी अजीब बातें सुनकर आश्चर्यचकित होते हैं।

    सुकन्या प्रियवदा से अपनी माँ के बारे में पूछती है, और प्रियवदा बताती है कि उसकी माँ की मृत्यु उसे जन्म देते ही हो गई थी। यह सुनकर सुकन्या दुखी होती है। सुकन्या प्रियवदा से अपने बारे में सब कुछ बताने को कहती है, जिसमें उसका हठी, क्रोधी और कठोर स्वभाव शामिल है। वह यह भी जानती है कि उसका एक भाई, राजकुमार सहस्रजीत है, और एक बहन, चित्रलेखा, जिसे वह नापसंद करती है क्योंकि राजकुमार कीर्तिमान उसे पसंद करते हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि सुकन्या विवाहित है।


    --------

    प्रियवदा की बात सुनकर तो जैसे सुकन्या को एक झटका सा लगा। वह अभी खुद पर विश्वास करने की कोशिश कर रही थी। तभी प्रियवदा उसे हिलाकर बोलती है, "राजकुमारी जी, राजकुमारी जी आप कहाँ खो गई?"

    "हम... हम कहीं नहीं, बस यहीं हैं," सुकन्या एकदम से अपने होश में लौटी।

    सुकन्या प्रियवदा की तरफ देखकर पूछती है, "प्रियवदा, एक बात बताओ।"

    "जी राजकुमारी जी, कहिये।"

    सुकन्या: "हमारे पति कौन हैं? अगर हमारा विवाह हो चुका है तो हम अपने स्वामी के यहाँ पर क्यों नहीं रहते?"

    "क्योंकि वो भी यहीं पर रहते हैं, राजकुमारी," प्रियवदा ने सुकन्या को देखते हुए कहा।

    "यहाँ? किन्तु वो हमारे साथ यहाँ क्यों रहते हैं? क्या उनका कोई राज्य नहीं है?" आखिर महाराज का अपनी पुत्री के लिए प्रेम देखकर वह यह तो समझ गयी थी कि उन्होंने उसका विवाह किसी राजकुमार या राजा से ही किया होगा।

    "राज्य कौनसा राज्य, राजकुमारी... आप भूल गईं, किन्तु आपके स्वामी का ना कोई राज्य है और ना ही वो कोई राजकुमार या राजा हैं... वो तो इस महल में एक सेवक हैं।"

    "क्या?" सुकन्या को जैसे एक झटका लगा।

    यह सत्य तो उसकी कल्पना से भी विपरीत था! वह एक राजकुमारी और उसके पति एक सेवक।

    "तुम्हें पता है प्रियवदा, तुम क्या बोल रही हो? सिर पर हमारे लगी है और लगता है विचार-विमर्श करने की क्षमता तुम खो बैठी हो...! सोच रही हूँ क्या बोल रही हो? हम राजकुमारी हैं तो पिताजी हमारा विवाह सेवक से तो नहीं करवायेंगे ना?"

    "हाँ राजकुमारी जी, वो तो आपका विवाह एक राजकुमार से ही करवाना चाहते थे, किन्तु क्या करें, नियति की विडम्बना ही ऐसी है..." प्रियवदा ने उदास होते हुए कहा।

    "कैसी विडम्बना?" सुकन्या ने उसे प्रश्न सूचक दृष्टि से देखा।

    "राजकुमारी जी, हम आपको शुरू से सब बताते हैं... आप सुनते जाइए।"

    प्रियवदा की बात पर सुकन्या ने अपना सिर हिलाया।

    "राजकुमारी जी, आपके पति यहाँ एक शरणागति हैं। यहाँ से कुछ दूरी पर सोमदेश नामक एक राज्य है, जिसका पूर्व नाम चंद्रवेदी था। वहाँ के राजा आपके स्वामी 'चंद्रवीर' के पिता महाराजा चंद्रसेन थे।

    उनके मंत्री सोमदेव ने छल से उनके और उनकी पत्नी के प्राण हर लिए...! वो 6 मास के नन्हे बालक चंद्रवीर को भी मारना चाहते थे, किन्तु... उनकी धाय माँ उन्हें लेकर उचित समय पर राज्य से पलायन कर गई और शरण लेने यहाँ आ पहुँची।

    आपके पिता एक परोपकारी, ह्रदयवान राजा हैं, इसलिए उन्होंने बिना देर किए आपके स्वामी चंद्रवीर और उनकी धाय माँ को शरण दे दी।

    जब राजकुमार चंद्रवीर 7 वर्ष के हुए, तब एक दिन अचानक... राजकुमार चंद्रवीर की धाय माँ कहीं गायब हो गई।

    सभी को आश्चर्य हुआ, क्योंकि वो अपने राजकुमार को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ती थी।

    सबने उन्हें खोजने का बहुत प्रयत्न किया, किन्तु असफल रहे।

    तब से आपके स्वामी चंद्रवीर यहीं रहते हैं... आपके पिता की आज्ञा अनुसार आपके स्वामी चंद्रवीर को पहले एक शरणार्थी की भांति ही रखा जाता था, उनका आदर-सम्मान था...!

    राजकुमार चंद्रवीर बहुत सरल स्वभाव के व्यक्ति थे, इसलिए आपके पिता के भी प्रिय सहायक थे, जो राज्य के कुछ कार्य में आपके पिता की सहायता कर देते थे।

    'परंतु...'

    'परंतु क्या?' प्रियवदा को बीच में रुकते देख सुकन्या ने पूछा।

    'परंतु जब से आपका विवाह उनके साथ हुआ, तब से आपने ही उन्हें एक सेवक की भांति रख रखा है।'

    'क्या?' सुकन्या के लिए यह दूसरा अविश्वसनीय तथ्य सामने आया था!

    सुकन्या पुनः आश्चर्यचकित थी, परंतु उसने पुनः प्रियवदा से पूछा: "हमने अपने स्वामी को सेवक बनाया, परंतु क्यों?"

    "क्योंकि आप उन्हें अपना शत्रु समझती हैं, उनकी की गई भूल के कारण! एक रात्रि..." प्रियवदा ने सुकन्या से कुछ कहा।

    "असंभव," सुकन्या तेज आवाज में बोली! उसे एक प्रतिशत भी प्रियवदा की बात पर विश्वास नहीं हुआ।

    "हम ऐसा कदापि नहीं कर सकते..." सुकन्या का मस्तिष्क काम करना बंद कर चुका था, प्रियवदा की बात सुनकर।

    "मानते हैं राजकुमारी जी कि आपको यह मान्य नहीं है... किन्तु सत्य यही है...! जब आप और राजकुमार चंद्रवीर अनुचित स्थिति में कक्ष में पाए गए, तभी आपका विवाह ना चाहते हुए भी आपके पिता को चंद्रवीर के साथ करवाना पड़ा...!

    क्योंकि राज्य का एक नियम है कि चाहे राजकुमारी हो या कोई आम सी कुमारी, उसका विवाह उसी के साथ किया जाता है, जिसके साथ उसका प्रेम संबंध हो...!

    आपके पिता ने आपका प्रेम संबंध समझा, लेकिन आपने उन्हें मना किया, किंतु आपके पिता की विवशता और उन पर प्रजा का दबाव था...।

    वो फिर भी आपके मना करने पर आपका विवाह न कराते, किन्तु उन्हें कुछ ऐसे सूचक मिले, जिनसे यह सिद्ध हो गया कि आप उनसे किसी भय के कारण असत्य कह रही हैं...!

    इसीलिए उन्होंने आपका विवाह राजकुमार चंद्रवीर से करवाया, परंतु उन्होंने पहले आप दोनों की सहमति मांगी थी..!

    उन्होंने आपको राज्यसभा में पेश किया, आप दोनों से पूछा गया...! कि क्या आप दोनों विवाह के पक्ष में हैं और नहीं तो किस कारण।

    आप इस विवाह के सख्त खिलाफ थीं, परंतु राजकुमार चंद्रवीर ने इस विवाह पर अपनी सहमति जताई, जबकि आपने उन्हें मना किया था हां करने को, परंतु फिर भी उन्होंने हां की..!

    उस दिन से राजकुमार चंद्रवीर आपकी दृष्टि में आपके शत्रु हैं! राजकुमार चंद्रवीर से आपका विवाह तो हो गया, किंतु आपने उन्हें कभी अपना स्वामी स्वीकार नहीं किया...! उल्टा आपने उन्हें एक दास के रूप में नियुक्त करके दंड दिया, जिसे राजकुमार चंद्रवीर ने बिना किसी विरोध के स्वीकार कर लिया..!

    आपके पिता ने आपको समझाने का प्रयत्न किया, किंतु आपने उन्हें स्पष्ट रूप से कह दिया कि अगर आप, आपके पिता ने इस विषय पर कुछ कहा, तो आप इस राज्य को छोड़कर सदा-सदा के लिए चली जाएंगी। मोहपाश में बंधे आपके पिता आपकी बात को टाल न सके और मौन रहना स्वीकार किया...!

    उस दिन से चंद्रवीर इस महल के दास के रूप में निवास करते हैं और आप आए दिन उन्हें विभिन्न तरीकों से दंड देती हैं...।"

    प्रियवदा अपनी बात कह कर चुप हुई और सुकन्या को देखा, जो विस्मित सी बैठी हुई थी।

    सुकन्या ने कभी-कभी स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी कि भूतकाल का सत्य कुछ इस प्रकार होगा...!

    वह तो यह सोचकर भूतकाल में आई थी कि शैतान के देवता को मार कर वह वापस लौट जाएगी, लेकिन प्रियवदा की बात सुनकर यह तो स्पष्ट हो गया था कि यहाँ की स्थिति बहुत जटिल है... जिसे उसे बदलना है, जो सरल बिल्कुल नहीं होने वाला।

    सुकन्या ने प्रियवदा से कहा कि वह कुछ देर विश्राम करना चाहती है। सुकन्या के कहने पर प्रियवदा उसके कक्ष से चली गई।

    संध्या के समय सुकन्या ने एक दासी द्वारा प्रियवदा को संदेश भिजवाया कि उसकी कक्ष में प्रियवदा उसके कक्ष में उपस्थित हो।

    सुकन्या के संदेश मिलते ही प्रियवदा तुरंत उसके कक्ष में पहुँची, जिस पर सुकन्या ने उसे नगर भ्रमण की इच्छा जताई।

    सुकन्या की बात सुनकर प्रियवदा ने कहा कि वह अभी-अभी मूर्छित अवस्था से बाहर आई है, तो उसे अधिक से अधिक विश्राम करना चाहिए।

    "हम ठीक हैं प्रियवदा....... तुम चिंता मत करो... हम अपना ध्यान रखेंगे और तुम भी तो हो हमारे साथ..."

    "ठीक है, तो हम आपको तैयार कर देते है...!"

    सुकन्या के बार-बार कहने पर प्रियवदा उसे मना नहीं कर सकती थी..! आखिर सुकन्या एक राजकुमारी थी।

    प्रियवदा ने सुकन्या को तैयार कर दिया और कहा कि उन्हें पहले महाराज, यानी सुकन्या के पिता की आज्ञा लेनी होगी।

    दोनों महाराज के पास गए, तो महाराज ने उनके साथ कुछ सैनिक भेजे और आज्ञा दे दी...! उनकी आज्ञा लेकर दोनों सैनिकों के साथ चले गए।

    वो लोग महल से बाहर निकल रहे थे...! सुकन्या बड़े ध्यान से महल को देख रही थीं, सच में उसके पूर्व जन्म में वैभव की कोई कमी नहीं थी...! कमी थी तो बस एक माँ की, जो कमी उसके पूर्व जन्म की नियति से लगकर उसके वर्तमान जीवन में भी स्थिर रही।

    वो लोग महल के मुख्य द्वार से थोड़ा पीछे थे..! जहाँ पर एक बहुत बड़ी झील थी...!

    अचानक सुकन्या की दृष्टि...

  • 8. भूतकाल- एक रहस्य - Chapter 8

    Words: 1618

    Estimated Reading Time: 10 min

    पिछली कड़ी में, आपने देखा कि सुकन्या यह जानकर हैरान है कि उसके पति, चंद्रवीर, महल में एक सेवक के रूप में रहते हैं। प्रियवदा बताती है कि चंद्रवीर सोमदेश के राजा चंद्रसेन के पुत्र थे, जिनकी हत्या मंत्री सोमदेव ने कर दी थी। चंद्रवीर को उनकी धाय माँ यहाँ लाई थीं। सात साल की उम्र में चंद्रवीर की धाय माँ गायब हो गईं। सुकन्या ने, एक अज्ञात कारण से, चंद्रवीर को एक सेवक के रूप में नियुक्त कर दिया है, हालांकि उनके पिता ने उन्हें एक राजकुमार के रूप में स्वीकार किया था। सुकन्या को यह भी पता चलता है कि उसका विवाह चंद्रवीर से तब हुआ जब वे अनुचित स्थिति में पाए गए थे, और यह एक राज्य नियम के कारण हुआ। चंद्रवीर ने इस विवाह के लिए सहमति दी, जबकि सुकन्या इसके खिलाफ थी। सुकन्या अपने पिता को धमकी देती है कि अगर उन्होंने इस मामले में हस्तक्षेप किया तो वह राज्य छोड़ देगी। अब सुकन्या शहर घूमने का फैसला करती है।

    Now Next

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    सुकन्या ने देखा कि सामने से बहुत ही खूबसूरत लड़की आ रही है।

    सुकन्या ने प्रियवदा से पूछा - "प्रियवदा, यह कौन है?"

    प्रियवदा ने सुकन्या से कहा— "राजकुमारी जी, यह चित्रलेखा है, आपके पिता के सेवक की पुत्री, जो अपने बालपन से ही यहीं रहती है।"

    प्रियवदा की बात सुनकर सुकन्या चित्रलेखा को देखने लगी। उसी समय चित्रलेखा की भी नज़र सुकन्या पर पड़ी....!

    सुकन्या चित्रलेखा को देखकर हल्के से मुस्कुराई...! वहीं सुकन्या के ऐसे मुस्कुराने पर वहां खड़े सैनिक, चित्रलेखा की सखी सहित प्रियवदा और सभी आश्चर्यचकित हो गए....! क्योंकि किसी ने भी अपने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी।

    वहीं चित्रलेखा ने जब सुकन्या को मुस्कुराते हुए देखा तो न जाने क्यों वह भयभीत हो गई और अपना सिर झुका कर वहां से जाने लगी।

    सुकन्या हैरान हुई और उसने प्रियवदा की तरफ देखकर कहा, "प्रियवदा, हम तो चित्रलेखा को देखकर सिर्फ मुस्कुराए, किंतु वह हमें देखकर ऐसे भयभीत क्यों हो गई?"

    सुकन्या की बात सुनकर प्रियवदा बोली, "राजकुमारी, कदाचित आपके कल वाले कृत्य से वह अभी तक भयभीत है।"

    "कौन सा कृत्य?" सुकन्या ने पूछा। तो प्रियवदा बोली, "राजकुमारी, कल आपने चित्रलेखा को इसी झील में धक्का दे दिया था।"

    प्रियवदा ने झील की ओर इशारा किया...! वहीं प्रियवदा की बात सुनकर सुकन्या ने एक नज़र झील को देखा और फिर एक नज़र प्रियवदा को देखा और फिर अंत में ऊपर आकाश की ओर देखकर अपने मन में बोली, "हे ईश्वर, कितनी उद्दंड और दुराचारी लड़की थी यह चारुमति...! हमें ज्ञात नहीं अब किस-किस चीज का सामना करना पड़ेगा और क्या-क्या सुधारना पड़ेगा....! चारुमति के किए गए इन दुराचार कृत्यों में......!"

    सुकन्या मन ही मन परेशान हो रही थी, तभी सबके कानों में घोड़े की आवाज गूंजी....!

    कहीं से तेज दौड़ते हुए घोड़े आ रहे थे....!.सुकन्या ने अपनी नज़र सामने की, तभी एक सैनिक उनके सामने आकर बोला, "राजकुमारी, असुविधा के लिए खेद है...! आपसे क्षमा चाहते हैं, किंतु राजकुमार कीर्तिमान महल की ओर अग्रसर हैं, इसलिए कृपा कर मार्ग से एक तरफ हो जाइए ताकि आपको किसी प्रकार की कोई हानि न हो....!"

    उस सैनिक की बात सुनकर सुकन्या ने अपना सिर हाँ में हिला दिया और मार्ग से एक तरफ होकर खड़ी हो गई, और उसके पीछे प्रियवदा।

    सुकन्या ने देखा, कई सारे घोड़े जिन पर सैनिक सवार थे, वह आगे चल रहे थे....! वहीं उनसे होते हुए सुकन्या की दृष्टि थोड़ा आगे पहुंची और उसने जो देखा तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ......!

    उसके सामने से गतिज घोड़े पर सवार होकर राजकुमार के रूप में आ रहा था। कुछ पल के लिए सुकन्या का मस्तिष्क स्थिर हो चुका था.....।

    "गतिज...! तो क्या गतिज भी उसके पूर्व जन्म का भाग था?"

    सुकन्या को समझ नहीं आ रहा कि इस पल प्रसन्न हो या फिर आश्चर्यचकित। उसने खुद को संभाला और सामने की ओर देखा...! उसकी आँखों में अश्रुधारा थी।

    सुकन्या प्रियवदा की ओर देख बोली...."प्रियवदा, यह कौन है?"

    सुकन्या की बात सुनकर प्रियवदा बोली, "राजकुमारी, यह हमारे राज्य के मित्र राज्य के राजा मनज के पुत्र राजकुमार कीर्तिमान हैं।"

    प्रियवदा की बात सुनकर सुकन्या ने सामने की ओर देखा, जहां कीर्तिमान घोड़े से उतर चुका था....! सुकन्या न जाने क्यों अपने आपको रोक न सकी और अपने कदम गतिज, अर्थात राजकुमार कीर्तिमान की ओर बढ़ा दिए...।

    किंतु वह राजकुमार कीर्तिमान के निकट पहुंच पाती, इससे पहले ही कीर्तिमान ने सुकन्या, अर्थात चारुमति को देख अपने कदम पीछे ले लिए।

    सुकन्या ने राजकुमार कीर्तिमान के पीछे होने पर अपनी भूल का आभास किया, किंतु जब उसने कीर्तिमान के नेत्रों में अपनी प्रति कटुता, द्वेष और क्रोध देखा तो उसे समझ नहीं आया।

    इतने में उसके कानों में राजकुमार कीर्तिमान की आवाज पहुंची, "कृपया कर अपने आचरण पर गौर कीजिए," राजकुमारी कीर्तिमान ने कहा और वहां से आगे चल पड़ा।

    तभी उसकी दृष्टि चित्रलेखा पर पड़ी, जो वहीं महल के स्तंभ के पीछे से उसे देख रही थी, किंतु कीर्तिमान की दृष्टि पड़ते ही उसकी आँखें बड़ी हो गई, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो...।

    चित्रलेखा को देखकर राजकुमार कीर्तिमान के मुख पर मुस्कान खिल उठी और उसने अपना हाथ चित्रलेखा की ओर बढ़ाया...! और उसकी ओर बढ़ने को हुआ, लेकिन उससे पहले चित्रलेखा वहां से भाग गई, जैसे कीर्तिमान का सामना नहीं करना चाहती हो....।

    सुकन्या, जो यह सब देख रही थी, उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, किंतु कीर्तिमान के नेत्रों में खुद के प्रति क्रोध, जो उसने आज तक नहीं देखा था, उसे देख उसे पीड़ा हुई।

    उसने अब प्रियवदा का हाथ पकड़ा और उसे लेकर वह एक तरफ आ गई..!

    वह दोनों अब बगीचे में खड़े थे...। सुकन्या ने प्रियवदा को देख सीधा प्रश्न किया—: "देखो प्रियवदा, यह सब कुछ जो हमारे नेत्रों के समक्ष हो रहा है, यह सब हमारे समझ से परे जा रहा है।

    हम मानते हैं, हमारा ऐसे कीर्तिमान के समीप जाना अनुचित था....! किन्तु उनकी दृष्टि में हमने अपने लिए जो द्वेष के भाव देखे....! उसका अर्थ हमें समझ नहीं आया....!"

    "राजकुमारी जी, कदाचित राजकुमार कीर्तिमान आपसे चित्रलेखा को झील में गिराने पर क्रोधित हैं....!"

    "किन्तु इसमें राजकुमार कीर्तिमान का हमसे क्रोधित होने का औचित्य हमें कुछ समझ नहीं आया और सबसे पहले तुम हमें ये बताओ कि हमने आखिर चित्रलेखा को गिराया ही क्यों...?"

    "क्योंकि कल राजकुमार कीर्तिमान चित्रलेखा से मिलने आए थे, जो आपसे सहन नहीं हुआ, इस कारण आपने उन्हें झील में गिरा दिया।"

    प्रियवदा की बात सुनकर सुकन्या के सामने एक और नया प्रश्न खड़ा हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसके साथ हो क्या रहा है। उसे तो अभी अपने पूर्व के कुछ प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले और उसके सामने नए प्रश्न आकर खड़े हो गए।

    सुकन्या ने पुनः प्रियवदा की ओर देखा.....!वहीं उसके मुख से उसके अगले प्रश्न को भांपकर प्रियवदा बोली :— "राजकुमारी, आप राजकुमार कीर्तिमान से प्रेम करती हैं और अभी से नहीं, बालपन से, किंतु कीर्तिमान चित्रलेखा से प्रेम करते हैं और शीघ्र ही उन दोनों का विवाह भी होने वाला है, जो आपको स्वीकार्य नहीं.....!"

    प्रियवदा की बात सुनकर सुकन्या अपनी जगह से गिरने को हुई, लेकिन उससे पहले प्रियवदा ने उसे संभाल लिया.....

    "राजकुमारी।"

    बेचारी सुकन्या पर एक के बाद एक उस पर विस्फोट हुए जा रहे थे।

    "हम राजकुमार कीर्तिमान से प्रेम करते हैं।"

    "जी, राजकुमारी जी," प्रियवदा ने हर बार की तरह अपनी राजकुमारी के प्रश्न का उत्तर दिया।

    "हम कितने आक्रोशी हैं....! हमने बेचारी चित्रलेखा को गिरा दिया....! हमें उससे क्षमा मांगनी चाहिए।"

    "आप उससे क्षमा क्यों मांगेंगी? उसके कारण आप भी तो गिरी थीं...!"

    "हम..."

    "हाँ राजकुमारी जी...! जब आपने चित्रलेखा को धक्का दिया तो उसने बचने के लिए आपका हाथ पकड़ लिया, जिस कारण आप भी गिर गईं...!"

    "वो हम अपनी गलती से गिरी थीं...! किन्तु हमने उसे गिराया, यह हमारी भूल है....! जिसकी हमें क्षमा मांगनी चाहिए...चलो हमारे साथ....!"

    "राजकुमारी..." प्रियवदा सुकन्या के हाथ पकड़ने पर सूखे पत्ते की तरह खिंची चली गई।

    ------------

    "अरे हाँ, वह अभी भी वैसी ही स्थिति में है जैसा राजकुमारी ने कहा था....!"

    "मुझे तो समझ नहीं आ रहा...! महाराजा की पुत्री ऐसी कैसे निकल गई...! और महाराज, वो भी उन्हें रोकते नहीं....! बेचारा चंद्रवीर कहने को तो राजकुमारी का स्वामी है, किंतु उसके प्रति राजकुमारी किसी पशु समान व्यवहार करती है।"

    "क्या हो रहा है यहां...."

    सुकन्या, जो कब से द्वार पर खड़ी उन दोनों सैनिकों की बात सुनकर रहीं थीं, वह अनंत बोली....। उसके दिमाग में इस पल यही चल रहा था कि चारमति ने कैसी अभद्र छवि निर्मित कर रखी है अपनी।

    "राजकुमारी जी...." दोनों सैनिक हाथ जोड़े और सिर झुकाए सुकन्या के समक्ष खड़े थे।

    सुकन्या साफ़ महसूस कर सकती थी, वह किस तरह भयभीत होकर कांप रहे थे....! और भयभीत हो भी क्यों ना....! चारुमति (सुकन्या) कितने कठोर दंड देती है, यह सब को ज्ञात था।

    "हमें क्षमा कर दीजिए....राजकुमारी! क्षमा कर दीजिए....।"

    दोनों सुकन्या के पैरों में गिर गए....!

    "यह क्या कर रहे हैं आप....!" सुकन्या दो कदम पीछे हट गई।

    "हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई, हमे क्षमा कर दीजिए राजकुमारी.... हमे दंड मत दीजिएगा......"। दोनों सुकन्या से क्षमा याचना कर रहे थे।

    "यह क्या कर रहे हैं आप दोनों...! उठिए!" सुकन्या के कहने पर भी दोनों नहीं उठे, तो इस बार सुकन्या आदेशात्मक स्वर में बोली, "हमने कहा उठिए।"

    सुकन्या की वाणी में परिवर्तन महसूस कर दोनों जल्दी से उठ गए.....! किन्तु उनके मुख पर भय व्याप्त था।

    सुकन्या — "हम आप लोगों को कोई दंड नहीं देने वाले...! कृपया कर यहां से प्रस्थान कीजिए....!"

    ".राजकुमारी जी।"

    "आप चाहते हैं हम अपना मन बदलें।"

    सुकन्या की बात सुनकर दोनों बिना एक क्षण गंवाए वहां से भाग गए।

    उनके जाने के बाद सुकन्या प्रियवदा की ओर मुड़ी....! और प्रियवदा ने उसके कुछ देर पहले के स्वभाव को देखकर बिना एक पल गंवाए किसी तोते की तरह बोलना शुरू कर दिया......

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    जारी है............

  • 9. भूतकाल- एक रहस्य - Chapter 9

    Words: 1029

    Estimated Reading Time: 7 min

    पिछले अध्याय में, आपने देखा कि सुकन्या ने चित्रलेखा को देखा, जो उसके पिता के सेवक की बेटी थी। सुकन्या की मुस्कान ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया, जबकि चित्रलेखा भयभीत हो गई। प्रियवदा ने बताया कि सुकन्या ने कल चित्रलेखा को झील में धकेल दिया था, जिससे सुकन्या को पिछले जन्म की याद आई। तभी राजकुमार कीर्तिमान का आगमन हुआ, जिसे देखकर सुकन्या अचंभित रह गई। कीर्तिमान ने सुकन्या से उसके आचरण पर ध्यान देने को कहा। सुकन्या को कीर्तिमान का चित्रलेखा के प्रति स्नेह देखकर दुख हुआ, क्योंकि प्रियवदा ने बताया कि कीर्तिमान चित्रलेखा से प्रेम करते हैं और शीघ्र ही उनका विवाह होने वाला है, जो सुकन्या को स्वीकार्य नहीं था। बाद में, सुकन्या ने दो सैनिकों को चारुमति के दुराचार की बातें करते सुना और उन्हें माफ कर दिया।

    अब आगे

    "राजकुमारी, आपके स्वामी के बारे में बात कर रहे थे जिन्हें आपने दंडित किया क्योंकि उन्होंने राजकुमारी चित्रलेखा को झील से निकालकर बचाया था।"

    "हमने इस बात के लिए अपने स्वामी को दंडित किया कि उन्होंने किसी की सहायता की..." एक क्षण सुकन्या के दिमाग में कुछ आया।

    "तुमने हमें कहा था कि हम भी झील में गिरे थे तो हमारे स्वामी ने हमें ना बचाकर चित्रलेखा को बचाया..."

    "जी राजकुमारी, और इसी कारण क्रोधित होकर आपने उन्हें दंड दिया कि वे इतनी भारी सर्दी में महल के पिछले हिस्से में घुटनों के बल बैठे रहेंगे और जब तक आप आदेश नहीं देंगी, वह वहां से नहीं उठेंगे।"

    प्रियवदा की बात सुनकर सुकन्या को हैरानी हुई कि इतना कठोर दंड वह कैसे दे सकती है, लेकिन अभी भी उसके मस्तिष्क से वह बात नहीं गई।

    उसने प्रियवदा की ओर देखकर साफ-साफ प्रश्न किया, " प्रियवदा हमें बताओ कि हमारे स्वामी ने हमें क्यों नहीं बचाया? चित्रलेखा को हमें छोड़कर चुनने का कारण हमें यह कोई सामान्य तो नहीं लगता, कदाचित इसलिए तो नहीं कि हमने दंड दिया?"

    "नहीं, राजकुमारी जी, आपके स्वामी ने इसलिए बचाया क्योंकि वह उन्हें पसंद करते हैं।"

    प्रियवदा की बात सुनकर सुकन्या का मस्तिष्क सुन्न हो गया। कुछ पल की शांति छा गई उस वातारण में, किंतु अचानक सुकन्या की हंसी वहां गूंजी। वह हंस रही थी। प्रियवदा उसे देखकर कुछ समझ नहीं पाई, लेकिन अपनी राजकुमारी को देखकर वह भी हंसने लगी।

    लेकिन अचानक सुकन्या चुप हो गई, तो प्रियवदा भी चुप हो गई।

    सुकन्या ने अपनी ओर इशारा करते हुए कहा, "हम किसी और से प्रेम करते हैं और हमारे स्वामी भी किसी और से प्रेम करते हैं।"

    सुकन्या की बात सुनकर प्रियवदा ने अपना चेहरा लटका लिया।

    सुकन्या ने मन में सोचा, "ईश्वर, यह क्या हो रहा है? ये लोग कैसे प्राणी हैं? विवाह बंधन में बंधे होने के बावजूद ऐसा आचरण! हम समझ नहीं पा रहे हैं। हम कैसे इन सबको सुधारेंगे और कब हम महादानव को ढूंढ कर उसका अंत करेंगे?"

    "राजकुमारी जी", प्रियवदा ने सुकन्या को आवाज दी।

    सुकन्या ने उसकी ओर देखा तो प्रियवदा ने कहा, "राजकुमारी जी, आप थोड़ी-थोड़ी देर में कहां खो जाती हैं?"

    सुकन्या ने एक गहरी सांस ली और बोली, "कहीं नहीं। तुम हमें हमारे स्वामी के पास ले चलो, इसी क्षण।"

    प्रियवदा अपने सिर में खुजलाने लगी और कहा, "राजकुमारी जी, अभी तो उनके दंड पूर्ण हुआ ही नहीं है। अभी तो समय शेष है।"

    सुकन्या ने कहा, "प्रियवदा, हमने जैसा कहा है, तुम वैसा करो।"

    "जी राजकुमारी जी।" प्रियवदा सुकन्या को लेकर जाने लगी। वे लोग महल के पीछे वाले हिस्से में आए थे। इस समय शीत ऋतु का समय था तो शीत वर्षा किसी भी समय होने लगती थी और कुछ समय पहले ही शीत वर्षा हुई थी।

    महल के पीछे वाले हिस्से में जमी बर्फ की परत इस बात का प्रमाण थी।

    सुकन्या और प्रियवदा आगे बढ़े। सुकन्या की नजर उस बड़े से खाली स्थान के बीचों-बीच अपने घुटनों पर बैठे हुए एक व्यक्ति पर पड़ी जिसकी पीठ सुकन्या की ओर थी।

    इतनी भारी सर्दी में भी जहां सबने गर्म और अच्छे-अच्छे कपड़े पहन रखे थे, वहीं उसने साधारण से पुराने कपड़े पहन रखे थे।

    सुकन्या ने अपने कदम आगे बढ़ाए। उसके बढ़ाते हर एक कदम के साथ न जाने क्यों उसका हृदय कंपन कर रहा था, इसका अर्थ उसे समझ नहीं आ रहा था।

    उसने अपने दिल पर हाथ रखा और बोली, "हमें इतना अजीब क्यों लग रहा है? क्या इसका कारण यह है कि हमने इस संबंध के बारे में पूर्व कभी विचार ही नहीं किया?"

    सुकन्या आगे बढ़ी, बिल्कुल उस व्यक्ति के पीछे जाकर खड़ी हो गई। उसके कदम जैसे आगे न बढ़ रहे हों, कारण वह नहीं जानती थी, लेकिन उसने जैसे खुद को एक साहस देकर अपने कदम आगे बढ़ाए।

    बिल्कुल उसे व्यक्ति के सामने खड़ी थी किंतु उसे व्यक्ति ने अपना सिर नीचे किया हुआ था जिसकी वजह से सुकन्या उसका चेहरा नहीं देख पा रही थी।

    उस व्यक्ति ने जब अपने आगे किसी को देखा तो उसने अपना सिर उठाया....!

    और जैसे ही उसने अपना चेहरा ऊपर किया.....! सुकन्या भयभीत होकर 2 कदम पीछे हो गई....।

    उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था...।

    "नहीं ये सत्य नहीं हो सकता....! "

    सुकन्या अविश्वास के साथ सामने बैठे व्यक्ति चंद्रवीर, उसका स्वामी और कोई नहीं महा दानव था।

    " नही....." सुकन्या अपने कदम पीछे लेने लगी.....! वहीं सामने बैठा चन्द्रवीर असमंजस से उसे देख रहा था।

    अचानक सुकन्या की आंखे बंद होने लगी...और वो गिरने को हुई।

    ''राजकुमारी " प्रियवदा जो खुद सुकन्या का ऐसा व्यवहार को समझ नहीं पा रहीं थीं...उसने जब सुकन्या को गिरते देखा तो उसकी ओर दोड़ी .....! लेकीन वो सुकन्या से थोड़ा दूर थी।

    " सुकन्या जो अपना चैतन खो चुकी थी....! वो धरती पर गिरने ही वाली थी लेकिन उससे पहले ही चंद्रवीर की मजबूत भुजाओं ने उसे अपने अंक में समेट लिया।

    वो बिल्कुल शांत सा सुकन्या के चेहरे को देखे जा रहा था...! जिस पर आज पहली बार उसने भय की रेखा देखी थी।

    " राजकुमारी जी...." प्रियवदा सुकन्या के पास पहुंची।

    "दासियों...." प्रियवदा ने आवाज लगाई...! लेकिन कोई आ पाता इससे पहले ही चंद्रवीर ने सुकन्या को अपनी गोद में उठा लिया और उसके कक्ष की ओर बढ़ गया।

    प्रियवदा आश्चर्य के साथ उसे देख रहीं थीं लेकिन उसने चंद्रवीर को नहीं रोका...! क्युकी जो भी हो...वो सुकन्या का स्वामी था....।

    प्रियवदा भी उनके पीछे आयी....!

    कुछ समय बाद

  • 10. भूतकाल- एक रहस्य - Chapter 10

    Words: 1109

    Estimated Reading Time: 7 min

    सुकन्या होश में आई, उसका चेहरा पसीने से भीगा हुआ था।

    "राजकुमारी जी, आपको क्या हो गया? आप ठीक तो हैं? आप इस प्रकार राजकुमार चंद्रवीर को देखकर भयभीत होकर क्यों कांप रही थीं?"

    प्रियवदा ने एक के बाद एक कई प्रश्न कर दिए, लेकिन सुकन्या की आँखों में तो अभी भी वही दृश्य घूम रहा था जब उसने महादानव अर्थात चंद्रवीर को देखा था...! उसकी आँखें, उसका चेहरा देखकर सुकन्या भयभीत ज़रूर हुई, लेकिन चंद्रवीर के चेहरे में उसे कोई छल या दानवता नहीं दिखी।

    "राजकुमारी..."

    "हमें कुछ देर एकांत चाहिए। अभी तुम जाओ।" सुकन्या ने प्रियवदा को देखे बिना कहा।

    प्रियवदा कुछ देर तो खड़ी रही और फिर कक्ष से बाहर चली गई।

    "कपाट बंद कर दो।" सुकन्या ने आदेश दिया।

    प्रियवदा ने वैसा ही किया और दरवाज़ा बंद कर दिया।

    सुकन्या अपने मन में सोचने लगी, "यह क्या है? महादानव मेरे स्वामी? ऐसा कैसे हो सकता है? पिताजी, गुरुदेव, अगर आज आप यहाँ होते तो मेरा मार्गदर्शन करते। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ।"

    सुकन्या ने अपनी आँखें बंद कीं, कुछ देर तक वह वैसे ही बैठी रही। एकाएक उसकी आँखों के सामने उसके पिता, गुरु, गतिज और अन्य सभी आश्रमवासियों की मृत्यु कौंध गई।

    सुकन्या ने अचानक से अपनी आँखें खोलीं। "नहीं, मैं अपने कदम पीछे नहीं लूँगी। मैं यहाँ जिस कार्य के लिए आई हूँ, उसे पूरा करूँगी।" सुकन्या ने दृढ़ विश्वास के साथ कहा।

    रात के समय

    सुकन्या झरोखे के पास खड़ी हुई थी। उसकी नज़र झरोखे से बाहर ठंड से काँपते हुए चंद्रवीर पर ही थी।

    प्रियवदा से उसे मालूम हो गया था कि चंद्रवीर ही उसे कक्ष में लेकर आया और पुनः अपने दंड को पूर्ण करने के लिए चला गया।

    सुकन्या उसके अंदर एक थके हुए इंसान को देख रही थी। उसका चेहरा बर्फबारी की वजह से सफ़ेद पड़ चुका था। भोजन न मिलने की वजह से आँखें बंद होने लगी थीं।

    सुकन्या ने खुद से कहा, "क्या मैं यह उचित कर रही हूँ? इस वक्त वह केवल एक साधारण मनुष्य है, क्या सच में उसके अंदर कोई दानवता नहीं हुई तो? पिताजी, गुरुदेव, गतिज, मैं कुछ अनुचित तो नहीं कर रही ना?"

    इधर चंद्रवीर ठंड से काँपता हुआ, आकाश में देख रहा था...! उसके दोनों हाथ जुड़े हुए थे। उसने खुद से कहा, "लगता है आज रात्रि काफी विस्तरित होने वाली है।"

    ठंड से उसके होंठ सूख चुके थे। चंद्रवीर ने खुद को समेट लिया और ऐसे ही बैठा रहा। सुकन्या खिड़की के पास बैठी हुई थी, वह अंदर आकर पलंग पर बैठ गयी ओर खुद से बोली " नहीं मुझे उसके प्रती दयाभाव नहीं रखना चाहिए...हो सकता है वो अपनी शक्तियों से अवगत हो और केवल एक नाट्य प्रदर्शन कर रहा हो....! हो सकता है...! हमे भाव विभोर होकर नहीं अपितु विवेक से काम लेना होगा...""


    सुकन्या विचार करते हुए ना जाने कब तक उसी स्तिथि वहीं बैठी रही और देख रही थी, शायद इस उम्मीद में कि चंद्रवीर अपने वास्तविक रूप में आ जाए।

    अगली सुबह

    सुकन्या इस वक्त बिस्तर पर सोई हुई थी। उसके चेहरे पर सूर्य की किरणें गिरीं तो उसकी निद्रा टूटी। वह उठी। इस वक्त उसके मस्तिष्क से कल की सारी बातें कुछ क्षण के लिए शायद ओझल हो चुकी थीं।

    "राजकुमारी, क्या मैं अंदर आ जाऊँ?" प्रियवदा की ध्वनि सुकन्या के कानों में पड़ी।

    "हाँ, प्रियवदा, आ जाओ।" सुकन्या ने कहा।

    सुकन्या के कहने पर प्रियवदा अंदर आई और अपना शीश सुकन्या के सामने झुकाकर बोली "राजकुमारी जी, हमने आपके स्नान के लिए जल तैयार करवा दिया है। आप अपनी नित्य क्रिया करके स्नान, ध्यान आदि कर लीजिए।"

    प्रियवदा ने मुस्कुराते हुए कहा। सुकन्या चुप थी। वह प्रियवदा से कुछ कहने वाली थी कि तभी उसके कानों में दासियों की आवाज़ पड़ी, जो शायद बाहर से गुजर रही थी।

    "हाँ, सुना तुमने? तीन दिन से बेचारे भूखे थे। फिर भी अपने दंड को पूर्ण करने के लिए सज्ज हैं।"

    "वह अभी तक स्थिर है... अगर उसकी जगह कोई और होता तो अब तक धराशाई हो चुका होता...! वह सच में एक अविचल और शक्तिशाली व्यक्तित्व को धारण करने वाला पुरुष है..."

    उन दासियों की बात से अब जाकर कल की बातें सुकन्या के दिमाग में साफ़ हुईं...! उसे तुरन्त झरोखे से झाँका जहाँ चंद्रवीर अभी भी उसी स्थिति में था।

    किन्तु उसकी दशा पहले से भी ज्यादा खराब थी....! सुकन्या का मन किया कि उसे इसी क्षण रोक दे, इसलिए उसने अपने कदम बढ़ाए किन्तु पुनः उसके मन मे वहीं सब चलने लगा।

    "हो सकता है कि यह बस इसका एक नाट्य हो... क्योंकि अगर यह एक असहाय बनकर नहीं रहा तो कदाचित इसके लक्ष्य में बाधा हो...! कोई साधारण मनुष्य इतनी भीषण शीत वर्षा में नहीं टिक सकता, किन्तु यह अभी भी अडिग है...! कहीं इसके पास इसकी दानवी शक्तियां हुई तो.....! नहीं, हम अभी कोई निर्णय नहीं लेंगे....! यह समय केवल प्रतीक्षा करने का है।"

    दूसरी ओर राज्य में

    चित्रलेखा नगर में आयी हुई थी और सभी असहाय, दरिद्र और दुखी लोगों को अन्न दान कर रहीं थीं ......।

    चित्रलेखा यह कार्य प्रतिदिन करती थी और इसमें उसे सुख मिलता था जो उसके मुख पर स्पष्ट अंकित था।

    ""कुमारी चित्रलेखा, आप बहुत दयावान हैं। ईश्वर आपको मुख पर सदैव प्रसन्नता का वास रखें।""

    ""कुमारी चित्रलेखा, इस राज्य में आप ही एक वह व्यक्ति हैं जो कभी भी हम जैसे दुर्बल, असहाय प्राणियों के बारे में विचार करना नहीं छोड़ती।""

    ""कुमारी चित्रलेखा, मैं आज ही देवालय जाकर ईश्वर से प्रार्थना करूंगी कि आपका और राजकुमार कीर्तिमान का विवाह शीघ्र निर्विघ्न संपन्न हो और आप अपना जीवन सुखमय व्यतीत करें।""

    चित्रलेखा जिन भी लोगों को अन्न दान कर रही थी, वे सभी प्रसन्नता के साथ उसका अभिवादन कर रहे थे और उसे आशीर्वाद दे रहे थे, जिससे चित्रलेखा के मुख पर अत्याधिक प्रसन्नता व्याप्त थी।

    चित्रलेखा की सहायिका अनंगिता ने चित्रलेखा से कहा — "कुमारी, कल राजकुमार कीर्तिमान ने अपने दूत के हाथों पत्र भिजवाया था कि आज वह आपसे मिलने आयेंगे...."

    अनंगिता की बात सुनकर चित्रलेखा के मुख पर लज्जा के भाव उत्पन्न हो उठे और मुख किसी लाल पुष्प की भाँति हो चला।

    "कुमारी, राजकुमार कीर्तिमान राज्य सीमा के भीतर प्रवेश कर चुके हैं और इस पथ की ओर अग्रसर हैं। वे अतिशीघ्र यहां पहुंचने वाले हैं।"

    एक दूत ने चित्रलेखा और अनंगिता को संदेश दिया... और चला गया।

    चित्रलेखा की सहायिका अनंगिता, चित्रलेखा के हाथ में से पात्र लेते हुए बोली — "कुमारी, ये हमें दे दीजिए और आप जाकर थोड़ा खुद को संवार लीजिए....।"

    अनंगिता की बात पर चित्रलेखा ने अपना सिर न में हिलाया और उसके हाथ से पात्र लेते हुए बोली "इसकी कोई आवश्यकता नहीं है.... तुम अपना कार्य करो....!"

    चित्रलेखा राजकुमार कीर्तिमान का ध्यान करते हुए अपने कार्य में लग गई..तभी उसे अनंगिता की ध्वनि सुनाई दी जो कह रही थी...!

  • 11. भूतकाल- एक रहस्य - Chapter 11

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