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Love Beyond Pain

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Aarya Rai

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"Love Beyond Pain" – कुछ मोहब्बतें किस्मत से लड़कर जीती जाती हैं… अंधेरे में डूबा एक आलीशान बंगला… बालकनी में खड़ी एक लड़की… भूरी आँखों में अनकहा दर्द, होंठों पर बंधी खामोशी, और साथी बस आसमान का चाँद। वो चाहकर भी अपने राज़ किसी...

Total Chapters (16)

Page 1 of 1

  • 1. Love Beyond Pain - Chapter 1

    Words: 2153

    Estimated Reading Time: 13 min

    "नव्या, बाहर आओ यार! स्कूल के लिए देर हो रही है। अगर लेट हुए तो पनिशमेंट मिलेगी।" एक लड़का जो एक दो मंजिले घर के बाहर खड़ा था, करीब 12-13 साल का लग रहा था....

    दूध सा गोरा रंग। वाइट शर्ट और वाइट पेंट पहना हुआ था, उस पर टाई भी लगाई हुई थी। गहरी काली आँखे, माथे पर लहराते सिल्की-सिल्की बाल, पतले लाइट रेड कलर के लब, वो बहुत ही हैंडसम और क्यूट लग रहा था।

    साइकिल के हैंडल को अपनी हथेली से थामे और पीठ पर बैग लटकाए वो बार-बार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देखते हुए उस घर के बन्द गेट को देख रहा था। चेहरे पर हल्का गुस्सा झलक रहा था। वो लगातार नव्या को आवाज़ लगा रहा था।

    कुछ ही देर बाद उसके कानों में एक मीठी सी खनकती आवाज़ पड़ी, "आदि.........."

    आवाज़ सुनकर आदि ने नज़रे उठाई, फर्स्ट फ्लोर की बालकनी से एक लड़की झांक रही थी। दूध सा गोरा रंग, भूरि-भूरि मछली जैसी आँखे, पतली नाक, गुलाब की पंखुड़ियों से कोमल चैरी जैसे लब जिन पर इस वक़्त मोहिनी मुस्कान छाई हुई थी। कमर तक लहराते सुनहरे सिल्की बाल जिनको हाई पोनी में बांधा हुआ था।

    वाइट शर्ट और उस पर घुटनों तक की वाइट स्कर्ट, उस पर टाई, वो बिल्कुल प्यारी सी डॉल लग रही थी। शायद ही इतनी सुंदर लड़की किसी ने पहले कभी देखी हो। मासूमियत से भरा प्यारा, सुंदर सा चेहरा।

    लड़की को देखकर लड़का, मतलब आदि की आँखे छोटी-छोटी हो गयी। उसने उसको घूरते हुए कहा, "अभी तक वहाँ क्या कर रही हो? जल्दी बाहर आओ, लेट हो रहे हैं। अगर तुम्हारे वजह से मुझे पनिशमेंट मिली तो आगे से मैं कभी तुम्हारा इंतज़ार नहीं करूँगा।"

    "ओफ्फो आदि, कितना गुस्सा करते हो। अभी बहुत वक़्त है, बस दो मिनट रुको, में अभी आती हूँ।" नव्या ने मुस्कुराकर कहा और अंदर कमरे में चली गयी। उसने बैग को अपनी पीठ पर टांगा और भागते हुए कमरे से बाहर निकल गयी।

    वो सीढ़ियों से दौड़ती हुई नीचे आई और दरवाजे के तरफ दौड़ गयी, तभी पीछे से एक लेडी की आवाज़ आई, "नव्या, ऐसे कहाँ भागी जा रही हो, पहले कुछ खा तो लो।"

    आवाज़ सुनकर नव्या पलटी। पीछे ही महिमा जी खड़ी थी, मतलब उसकी माँ। नव्या ने उन्हें देखकर मुस्कुराकर कहा, "माँ, मुझे भूख नही है।"

    "ऐसे कैसे भूख नही है? खाली पेट घर से नही निकलते, चलो बैठकर थोड़ा सा खा लो।" महिमा जी ने थोड़ी सख्ती से कहा तो नव्या ने मुँह लटकाकर कहा, "माँ, बाहर आदि आ गया है, अगर में अभी बाहर नही गयी तो वो मुझे छोड़कर चला जाएगा।"

    "आदि को मैं अंदर ही बुला लेती हूँ, तुम खाना खाओ चुपचाप।" उन्होंने उसको डपटते हुए कहा और दरवाजे के तरफ बढ़ गयी। बाहर आदि साइकिल पर सवाल उसके आने का इंतज़ार कर रहा था।

    जब नव्या नही आई तो वो फिरसे चिल्लाया, "नव्या, और कितनी देर लगाओगी, जल्दी बाहर आओ वरना मैं जा रहा हूँ तुम्हे छोड़कर।"

    "आज फिर नवु आपको इंतज़ार करवा रही है " एक आवाज़ उसके कानों में पड़ी तो उसने नज़रे सामने के तरफ घुमाई। दो आदमी जो लगभग 35-40 के लग रहे थे, दोनों ने ट्रैक सूट पहना हुआ था, शायद जोगिंग से आ रहे थे, वो लबों पर मुस्कान सजाए उसके तरफ बढ़ गए।

    आदि ने दोनों को देखकर मुँह फुलाकर कहा, "देख लीजिये पापा, आपकी लाडली रोज़ मुझे ऐसे ही इंतज़ार करवाती है, वक़्त पर तैयार तो हुआ ही नही जाता उससे।"

    "नवु की शिकायत आप हमसे तो मत ही कीजिये। वैसे भी अभी स्कूल का टाइम नही हुआ है, आ जाएगी वो भी। आप ही जल्दी आकर उनपर बेवजह गुस्सा करते रहते है, वरना हमारी नवु तो एकदम वक़्त पर तैयार हो जाती है।"

    अश्विन जी ने आदि को उल्टा डपट दिया। उसने मुँह फुलाकर अब उनके बगल में खड़े अंकल मतलब किशोर जी को देखकर कहा, "देख रहे है अंकल, आपके दोस्त को हमेशा मैं ही गलत लगता हूँ। उनकी लाडली की कोई गलती तो उन्हें दिखती ही नही है।"

    "कोई बात नही, हम है न। हम जानते है हमारा आदि बहुत ज़िम्मेदार है, नव्या ही आपको हमेशा तंग करती रहती है। इतनी बड़ी हो गयी पर बचपना अभी भी नही गया है। आप ही है जो उनकी सारी शैतानियों को बर्दाश करके उन्हें संभाल लेते है।" किशोर जी ने उसके गाल को छूकर मुस्कुराकर आगे कहा,

    "आपके वजह से हम उनके तरफ से निश्चिंत रहते है क्योंकि हम जानते है कि आप उन्हें हर मुश्किल से बाहर निकाल लेंगे, उनका साथ कभी नही छोड़ेंगे, जैसे आज तक उनका ख्याल रखते आ रहे है वैसे ही आगे भी उनका ध्यान रखेंगे।"

    उनकी बात सुनकर अब आदि के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गयी।

    "दोस्ती की है अंकल, निभानी तो पड़ेगी ही। जैसे आपकी और पापा की दोस्ती आज भी इतनी मजबूत है, वैसे ही हमारी दोस्ती भी अटुट है। आप दोनों के तरह हम भी हमेशा हर मुश्किल मे एक दूसरे का साथ देंगे। वैसे भी आपने ही तो कहा था कि नव्या को मुझे हमेशा हर मुश्किल से बचाकर रखना है मैं तो बस आपकी बात का मान रख रहा हूँ।"

    उसकी बात सुनकर दोनों आदमियों के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गयी। वो बात कर ही रहे थे कि पीछे से एक आंटी की आवाज़ आई जो आदि का नाम पुकार रही थी।

    आवाज़ सुनकर तीनों ने नज़रे घुमाई तो पीछे ही एक आंटी खड़ी थी। हाथ मे टिफ़न पकड़े वो आदि के तरफ बढ़ रही थी। ये उसकी मम्मी है, नंदिनी जी।

    नंदिनी जी आदि के पास आ गयी फिर टिफ़न उसको पकड़ाते हुए हल्के गुस्से से बोली, "इतने लापरवाह क्यों हो तुम? मैंने कहा था ना की दो मिनट रुक जाओ, लंच पैक कर देती हूँ। पर तुम्हे कभी मेरी सुननी ही नही है। इतनी जल्दी रहती है तुम्हे, किस लिए? ताकि यहाँ खड़े होकर नव्या का इंतज़ार कर सको?"

    उन्होंने तो आदि को अच्छे से फटकार लगा दी। आदि ने टिफ़न लिया और मुँह फुलाकर कहा, "तो और क्या करूँ? आपको पता भी है जब तक नवु की बच्ची को मैं 50 बार आवाज़ न लगा लूँ वो बाहर निकलने का नाम नही लेती है। मैं जल्दी आकर खड़ा हो जाता हूँ तब तो वो मुझे लेट करवा देती है, अगर टाइम पर आऊंगा फिर तो पक्का गार्ड अंकल हमें अंदर भी नही घुसने देंगे।"

    "नवु की ज्यादा बुराई मत करो, वो वक़्त पर स्कूल के लिए निकलती है तुम्हारे तरफ एक घंटा पहले तैयार होकर दूसरों का सर दर्द नही करती।" नंदिनी जी ने एक बार फिर उसको फटकार लगा दी।

    आदि मुँह बनाकर धीरे से बोला, "हाँ, आप लोगों को तो उसकी कोई गलती दिखती ही नही है चाहे वो कुछ भी क्यों ना कर ले पर आप उसको कुछ कह दे, ये हो ही नही सकता। मैं ही पागल हूँ जो उसकी शिकायत आपसे कर रहा हूँ।"

    आदि ये बोल ही रहा था कि महिमा जी बाहर आ गयी, उन्होंने नंदिनी जी की बात सुन ली थी तो उन्होंने उनके तरफ बढ़ते हुए कहा, "नंदिनी ये गलत बात है तुम बेवजह मेरे बेटे को डांटती रहती हो। गलती उसकी नही नवु की है, सुबह उससे उठा जाता नही है और रोज़ मेरे बेटे को लेट कर देती है। अगर आदि उसे बुलाने न आए तो वो रोज़ घर पर ही रह जाएगी।"

    अब तो आदि के लबों पर बड़ी ही मुस्कान फैल गयी। आखिर अब कोई उसका साथ देने वाला भी था यहाँ।

    नंदिनी जी ने नाराज़गी से उन्हें देखते हुए कहा, "महिमा तुम बेवजह मेरी बेटी के पीछे पड़ी रहती हो, बेचारी देर रात तक पढ़ती है तो नींद नही खुलती होगी।"

    "पढ़ती नही है टीवी देखती है रात रात भर बैठकर। पढ़ता तो आदि है फिर भी देख लो सुबह सुबह उठकर वक़्त पर तैयार हो जाता है।" महिमा जी ने तुरंत ही विरोध किया। उनको लड़ता देख दोनों अंकल ने आदि को देखकर मुस्कुराकर कहा, "लो, अब इन दोनों की बहस शुरु हो गयी। अब तो तुम पक्का लेट होने वाले हो।"

    आदि ने मुँह लटकाकर उन्हें देखा तो दोनों आदमी हंस पड़े। अब किशोर जी ने अंदर जाते हुए कहा, "तुम रुको मैं नव्या को भेजता हूँ।"

    इतना कहकर वो अंदर चले गए और अश्विन जी दोनों औरतों को शांत करने लगे।

    किशोर जी अंदर गए तो देखा नव्या अपनी प्लेट का राइस जल्दी जल्दी वापिस बाउल मे डाल रही थी।

    "ये क्या हो रहा है यहाँ?" किशोर जी की सख्त आवाज़ जैसे ही नव्या के कानों मे पड़ी उसके हाथ हवा मे रुक गए। उसने नज़रे उठाकर देखा फिर किशोर जी को देखकर क्यूट सा फेस बनाकर बत्तीसी चमका दी।

    "मुझे लेट हो रहा है, आदि वेट कर रहा है बाहर, माँ ऐसे जाने नही देगी इसलिए............"

    इतना कहकर वो चुप हो गयी और लबों पर मुस्कान सजाए उन्हें देखने लगी।

    किशोर जी उसके पास आए और उसके सर पर हल्के से मारते हुए बोले, "कितनी शैतान है आप। अगर आदि की इतनी ही चिंता रहती है तो सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाया कीजिये न। अब उनके लिए बिना खाना खाए निकल रही है।"

    "पापा मेरी नींद नही खुलती तो मैं क्या कर सकती हूँ? वैसे भी आदि मुझे स्कूल में खाना खिला देता है वो मुझे भूखे नही रहने देता। आपको पता है वो रोज़ मेरे लिए दो पराठे रोल करके लाता है और एक रास्ते मे खिलाता है तो दूसरा स्कूल पहुँचते ही खिलाता है उसके बाद अपनी क्लास मे जाता है।"

    नव्या ने मुस्कुराकर उन्हें सब बताया और बैग टांगकर खड़ी हो गयी। फिर उनके गले लगकर बोली, "बाय पापा।"

    "बाय बेटा पर आदि को इतना भी परेशान मत किया कीजिये। थोड़ा तो ज़िम्मेदार बनिये, अगले साल दसवीं मे चली जाएंगी पर अब भी बच्चों जैसे शैतानियाँ करती है," उन्होंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा।

    नव्या उनसे अलग हुई और मुस्कुराकर बोली, "आपका बेटा है तो सही इतना समझदार वो मेरी हर शरारत को झेल लेता है फिर मुझे समझदार बनने की क्या ज़रूरत है?"

    इतना कहकर वो उछलती हुई गेट के तरफ दौड़ गयी। किशोर जी पीछे से उसको देखते हुए बोले, "आदि आज है तो तुम्हे संभाल लेता है पर कुछ वक़्त बाद वो यहाँ से चला जाएगा तब आप कैसे सब संभाल पाएंगी।"

    वो कुछ परेशान नजर आने लगे। वही नव्या ने गेट के पास रखे शू रैक से शूज़ उठाए और पहनकर बाहर निकलते हुए चिल्लाकर बोली, "मैं आ गयी!"

    उसकी आवाज़ सुनकर सबने उसके तरफ नज़रे घुमाई। आदि ने उसको आँखे छोटी करके घूरा तो नव्या ने क्यूट सी शक्ल बनाकर कहा, "Sorry।"

    आदि ने नज़रे फेर ली पर कुछ बोला नही। नव्या उसके पास आई फिर अपनी स्कर्ट की पॉकेट मे हाथ घुसाते हुए उसे देखकर बोली, "अच्छा अब गुस्सा बादमे करना पहले हाथ आगे करो।"

    आदि ने उसे गुस्से से घूरा तो नव्या ने प्यारी प्यारी आँखों को टिमटिमाते हुए उसे देखा। आदि ने मुँह बनाकर हाथ आगे कर दिया तो नव्या ने अपनी स्कर्ट की जेब से हाथ बाहर निकाला और उसके सीधे हाथ की कलाई पर एक प्यारा सा बैंड पहना दिया।

    आदि ने हैरानी से उसे देखा तो नव्या ने मोहिनी मुस्कान लबों पर बिखेरते हुए कहा, "तुम फिरसे भूल गए न बुद्धू, आज फ्रेंडशिप डे है और तुम मेरे एकलौते दोस्त हो तो मैंने खास तुम्हारे लिए ये अपने हाथों से बनाया है।"

    जैसे ही वो चुप हुई महिमा जी ने नव्या को देखकर हैरानी से कहा, "तो कल देर रात तक आप अपना रूम बन्द करके रही कर रही थी?"

    नव्या ने उन्हें देखकर हाँ मे सर हिला दिया।

    "हाँ। जब मेरा दोस्त इतना खास है तो उसके लिए बैंड भी तो स्पेशल होना चाहिए न?"

    "देख लो। दोस्त कहते हो खुदको नवु का और तुम्हे ये तक याद नही था कि आज फ्रेंडशिप डे है। मेरी बच्ची इतनी समझदार है उसने खुद तुम्हारे लिए बैंड बनाया और तुम उसी पर गुस्सा करते रहते हो।" नंदिनी जी ने एक बार फिर उसपर गुस्सा किया। उनकी बात सुनकर आदि का चेहरा उतर गया उसने मुँह लटकाकर कहा,

    "मुझे भी याद है। पर फ्रेंडशिप डे कल है आज नही।"

    "हाँ फ्रेंडशिप डे कल है, आज नही पर स्कूल मे तो सब आज ही एक दूसरे को बैंड पहनाएंगे न। अगर तुम्हारी कलाई पर बैंड नही दिखा और किसी और लड़की ने तुम्हे अपना बैंड पहनाकर अपना दोस्त बना लिया तो? इसलिए मैंने तुम्हे सबसे पहले बैंड पहना दिया है अब तुम बूक्ड हो। कोई और तुम्हे बैंड नही पहना सकता और तुम किसी और से दोस्ती भी नही कर सकते।"

    नव्या ने आदि की बात खत्म होते ही झट से जवाब दिया। उसकी बात सुनकर सब उसको हैरानी से देखने लगे।

    आदि आँखे बड़ी बड़ी करके उसे देख रहा था तभी उसके पीछे से एक आवाज़ आई और वो बुरी तरह चौंक गए।


    To be continued...

    Note : ये स्टोरी प्रतिलिपि पर "दर्द का रिश्ता" नाम से है। यहाँ आप जो पढ़ रहे है वो season 2 है। स्टोरी न्यू है बस नाम सेम है तो कोई प्रॉब्लम नही होगी और अगर Season 1 पढ़ना हो तो प्रतिलिपि पर मेरे नाम या कहानी के नाम से सर्च कर सकते है।

    अब बताइये शुरुआत कैसी लगी आपको?

  • 2. Love Beyond Pain - Chapter 2

    Words: 2904

    Estimated Reading Time: 18 min

    आदि आँखे बड़ी बड़ी करके उसे देख रहा था तभी उसके पीछे से एक आवाज़ आई, "आदि तुम अभी तक यहाँ क्या कर रहे हो? जितनी जल्दी मे तुम भागे थे मुझे तो लगा था तुम स्कूल पहुँच भी चुके होगे।"

    आवाज़ सुनकर तीनों ने पीछे नज़रे घुमाई तो आदि के ही, जैसा लड़का बस उससे थोड़ा बड़ा लग रहा था वो साइकिल पर सवार उसके पास आकर खड़ा हो गया था। ये आदि का बड़ा भाई है आर्यन जो उससे दो साल बड़ा है और अभी 11th मे पढ़ता है।

    आर्यन की बात सुनकर आदि ने मुँह फुलाकर उसे देखते हुए कहा, "भाई आप मेरा मज़ाक उड़ा रहे है, एक तो इस चुहिया के वजह से मुझे इतनी जल्दी निकलना पड़ता है, जब तक आधे घंटे तक यहाँ खड़े होकर उसे आवाज़ ना लगाओ महारानी से घर से बाहर कदम नही रखा जाता और आप सब इसे डांटने के जगह मेरे पीछे पड़े रहते है।"

    "आदि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे चुहिया कहने की?" आदि के चुप होते ही नव्या गुस्से से चीखी, आदि ने उसे देखा और चिढ़कर बोला, "तुझे तो लेडी कुंभकरण कहना चाहिए चुहिया तो गलत ही कह दिया।"

    "आदि मैं तुझे छोड़ूंगी नही।" नव्या गुस्से मे उसके मुँह को नोचने के लिए आगे बढ़ी पर आदि ने अपना सर पीछे कर लिया तो नव्या खिसियाकर रह गयी और जबड़े भींचते हुए बोली,

    "ठीक है, मैं इतनी ही बुरी हूँ तो जा किसी और से दोस्ती कर ले। अबसे तुझे मेरा इंतज़ार करने की ज़रूरत नही है, मैं भी किसी और से दोस्ती कर लूँगी वो मुझे रोज़ टाइम पर स्कूल छोड़ भी आएगा और वापिस ले भी आएगा और तेरी तरह मुझपर चिल्लाएगा भी नही।"

    नव्या ने गुस्से मे नाक सिकोड़कर कहा और पैदल आगे बढ़ने को हुई पर आदि ने उसकी कलाई पकड़ ली और उसको वॉर्न करते हुए बोला, "सोचिये भी मत। मेरे अलावा किसी को हक नही कि तुझे अपनी साइकिल के पीछे बिठाए। तेरा दोस्त मैं था, मैं हूँ और मैं हूँ रहूँगा।"

    "मुझे नही चाहिए तेरा जैसा दोस्त। सड़ियल टट्टू कहिका जब देखो मुझपर चिल्लाता रहता है।" नव्या ने मुँह बनाकर कहा।

    दोनों की बहस शुरु होते देख आर्यन ने आगे बढ़ते हुए कहा, "लड़ते रहो तुम दोनों मैं तो चला क्योंकि मुझे लेट होने का कोई शौक नही है। वैसे भी तुम्हारा काम ही है पहले एक दूसरे से लड़ना फिर मनाते घूमना।"

    आर्यन वहाँ से निकल गया। लेट होने का नाम सुनकर आदि और नव्या दोनों ने एक दूसरे को देखा तो नव्या ने मुँह बनाकर चेहरा फेर लिया। अब आदि ने आराम से कहा, "अब बादमे लड़ लेना अभी चलो वरना लेट हो जाएंगे।"

    नव्या ने तिरछी नज़रों से उसे देखा फिर उसके पीछे जाकर बैठ गयी। आदि ने साइकिल स्टार्ट की तो महिमा जी ने पीछे से कहा, "नव्या तुमने लंच लिया?"

    नव्या ने पीछे मुड़कर उन्हें देखा फिर मुस्कुराकर बोली, "आदि मेरे लिए लंच लेकर आता है माँ। आप परेशान मत होइए, मैं आंटी के हाथ का खाना खाकर ही रोज़ लंच करती हूँ।"

    उसकी बात सुनकर दोनों आंटिया मुस्कुरा उठीं। महिमा जी ने नंदिनी जी को देखकर मुस्कुराकर कहा, "कितनी गहरी दोस्ती है दोनों की! कभी कभी सोचती हूँ अगर आदि नही होता तो नवु का क्या होता?"

    "ऐसे कैसे आदि नही होता? याद नही हमने उनके जन्म से पहले ही डिसाइड किया था कि हमारे बच्चों की दोस्ती भी बिल्कुल हमारे तरह होगी। हाँ, उनकी दोस्ती अभी से हमसे ज्यादा मजबूत है और आदि नव्या का हमेशा साथ देगा। देखना दोनों हमेशा यूँही साथ रहेंगे और जब वो बड़े हो जाएंगे तो मैं अपने आदि के लिए तुम्हारी नवु का हाथ मांग लूंगी। फिर हम दोस्त से रिश्तेदार बन जाएंगे।"

    नंदिनी जी की बात सुनकर महिमा जी ने मुस्कुराकर उन्हें देखा। वही अश्विन जी ने उन्हें देखकर मन मे कहा, "इसमें कोई शक की बात नही है कि दोनों बच्चों की दोस्ती बहुत गहरी है लेकिन कुछ वक़्त बाद उन्हें एक दूसरे से अलग होना होगा। पर हमें पूरा विश्वास है कि उन दोनों की दोस्ती पर इन दूरियों का कोई असर नही पड़ेगा और अगर आगे चलकर दोनों बच्चे राजी हो जाते है तो हम भी अपनी नवु को अपने घर की बहु बनाकर हमेशा के लिए अपने पास ले आएंगे।"

    कुछ देर मे सब अपने अपने घर के तरफ बढ़ गए। दोनो के घर अगल बगल थे। जहाँ अश्विन जी और किशोर जी बचपन के दोस्त थे वही महिमा जी और नंदिनी जी बचपन के दोस्त है और आज भी उनकी दोस्ती वैसी ही है। बाकी बातें आगे पता चलेगी।

    नव्या और आदि वहाँ से निकल गए। नव्या ने आदि के कंधों को थामा हुआ था और आदि साइकिल चला रहा था। कुछ आगे पहुँचकर आदि ने पीछे सर घुमाकर कहा, "नवु बैग मे पीछे वाली चैन मे पराठे रखे है, खा लो।"

    नव्या ने मुस्कुराकर हामी भरी और चैन खोलकर उसमे से एक रोल निकालकर खाते हुए बोली, "आदि तुम्हे कैसे पता चलता है कि मैं खाना नही खाकर आती? तुम रोज़ मेरे लिए पराठे रोल करके क्यों लेकर आते हो?"

    "क्योंकि मैं तुम्हे बहुत अच्छे से जानता हूँ कि तुम जानबूझकर बिना खाए आती हो क्योंकि तुम्हे मेरे हिस्से के पराठे खाने मे ज्यादा मज़ा आता है। फिर जब मुझे पता है कि तुम बिना कुछ खाए आ जाती हो तो मैं तुम्हे भूखा कैसे रहने दे सकता हूँ?" आदि ने मुस्कुराकर जवाब दिया तो नव्या भी मुस्कुराकर पराठे खाने लगी।

    कुछ आगे चलकर आदि ने फिरसे सवाल किया, "नवु तुम साइकिल चलाना क्यों नही सीखती? अगर तुम सीख लोगी तो हम साथ मे साइकिल चला कर स्कूल आया करेंगे, कितना मज़ा आएगा।"

    "मुझे तुम्हारे पीछे बैठकर आने मे ज्यादा मज़ा आता है। जब तुम हो तो मुझे साइकिल चलाना सीखने की क्या ज़रूरत है?" नव्या ने मुस्कुराकर जवाब दिया और हाथ आगे बढ़ा दिया तो आदि ने अपनी पॉकेट से हैंकी निकालकर उसके तरफ बढ़ा दिया।

    नव्या ने अपने हाथ और होंठों को साफ किया और वापिस उसके कंधे को थामकर बैठ गयी। कुछ देर मे साइकिल स्कूल के गेट से अंदर गयी। आदि ने साइकिल पार्क की तो नव्या नीचे उतर गयी।

    आदि भी नीचे उतरा और बैग से एक और पराठे का रोल निकालकर उसको पकड़ा दिया। नव्या खाते हुए उससे बात करते हुए उसके साथ चलने लगी। एक रूम के बाहर जाकर आदि रुक गया।

    नव्या अब तक अपना पराठा खत्म कर चुकी थी उसने फिरसे आदि की हैंकी मे अपना हाथ साफ किया। आदि ने वॉटर बोतल निकालकर उसके तरफ बढ़ा दिया।

    नव्या ने थोड़ा सा पानी पीकर बोतल वापिस उसको दे दी और मुस्कुराकर बोली, "अब मैं जाऊँ?"

    "Hmm पर याद रखना किसी से लड़ाई नही करनी है तुम्हे। पिछले बार तुम्हारे वजह से मुझे भी डाँट पड़ गयी थी।" आदि ने उसको समझाया।

    नव्या ने मुँह बनाकर उसको देखते हुए कहा, "तो गलती मेरी नही उस छिपकली की थी। मेरे सामने कह रही थी कि वो तुम्हे फ्रेंडशिप बैंड बांधेगी और तुमसे दोस्ती कर लेगी, मैंने उसे इतना समझाया की आदि सिर्फ मेरा दोस्त है वो और किसी से दोस्ती नही करता पर वो सुन ही नही रही थी।

    कह रही थी कि तुमसे दोस्ती करके वो हमारी दोस्ती तोड़ देगी तो मुझे गुस्सा आ गया और फिर मैंने उसकी धुलाई कर दी। तुम्ही तो कहते हो की किसी की गलत बात बर्दाश नही करनी चाहिए। वो हमारी दोस्ती तोड़ना चाहती थी तो मैं चुप कैसे रहती? उसको सबक सिखाना भी तो ज़रूरी था।"

    नव्या ने मासूमियत के साथ सब उसे बता दिया। उसकी बात सुनकर आदि के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गयी, अब वो और भी प्यारा लग रहा था।

    आदि ने उसके गाल को प्यार से छूकर मुस्कुराकर कहा, "तुम्हे किसी की बात पर ध्यान देने की ज़रूरत नही है और न ही मेरे लिए किसी से लड़ने की ज़रूरत है। कोई कुछ भी कहे मेरी दोस्त तुम थी, तुम हो और हमेशा तुम्ही रहोगी। हमारे बीच कभी कोई आ ही नही सकता। चलो अब अंदर जाओ मुझे भी अपनी क्लास मे जाना है।"

    नव्या अब खुश होकर उसके गले से लग गयी फिर लंच में मिलने का कहकर अपनी क्लास मे चली गयी। आदि नव्या से एक क्लास छोड़कर दूसरी क्लास मे घुस गया।

    जैसे ही आदि ने क्लास मे एंट्री की लड़कियों का झुंड उसके सामने आकर खड़ा हो गया। सबके हाथ मे फ्रेंडशिप बैंड था और वो आदि को घेरे खड़ी थी, वही आदि ने एक नजर उन्हें देखा फिर अपना सीधा हाथ ऊपर कर दिया।

    जैसे ही उसकी कलाई पर बंधे फ्रेंडशिप बैंड पर उनकी नजर पड़ी सबका चेहरा उतर गया। वही लड़कों के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी।

    सारा स्कूल जानता था आदि और नव्या की दोस्ती के बारे मे। आदि good looking था जिस वजह से स्कूल की लड़कियाँ उसके पीछे दीवानी थी पर आदि हर बार नव्या के साथ नजर आता था। दोनों की दोस्ती देखकर जहाँ कुछ लोगों की जल जाती थी वही कुछ बहुत खुश होते थे।

    बहुत गहरी दोस्ती थी दोनों की, एक दूसरे के पास किसी को भी आने नही देते थे।

    जैसे आदि के क्लास का हाल था वैसा ही कुछ हाल नव्या की क्लास मे भी था। नव्या के पीछे भी लड़कों की लाइन लगी रहती थी पर उसे तो बस आदि ही दिखता था।

    नव्या ने जैसे ही क्लास मे कदम रखा सब लड़के उसके तरफ बढ़ने लगे पर नव्या ने उनको गुस्से से घूरा तो सब अपनी अपनी जगह रुक गए।

    नव्या जाकर सेकंड वाली खाली बैंच पर बैठ गयी। उसके पीछे के बैंच पर एक लड़का बैठा था। वो उठकर नव्या की सीट पर आ गया तो नव्या ने उसको गुस्से से घूरते हुए कहा, "क्या है? मेरी सीट पर क्यों आए हो?"

    "नव्या कल फ्रेंडशिप डे है." लड़के ने कुछ घबराते हुए जवाब दिया तो नव्या ने भौंह उचकाकर सवाल किया, "तो?"

    "तो मैं तुम्हारे लिए फ्रेंडशिप बैंड लाया था, क्या तुम मेरी फ्रेंड बन सकती हो?"

    "नही," नव्या ने सपाट लहजे मे इंकार कर दिया तो लड़के का चेहरा छोटा सा हो गया, उसने मुँह लटकाकर कहा, "क्यों? मैंने तुम्हे आदि से दोस्ती तोड़ने के लिये तो नही कहा, बस मुझसे दोस्ती करने के लिए कहा है। क्या तुम मुझसे दोस्ती नही कर सकती?"

    "नही कर सकती, एक बार कह दिया समझ नही आता?" नव्या को अब गुस्सा आ रहा था। उस लड़के ने अब नव्या को देखकर नाराज़गी से कहा,

    "तुम बहुत मतलबी हो, जब भी तुम्हे ज़रूरत पड़ती है मैं तुम्हे अपना दोस्त मानकर हमेशा तुम्हारा साथ देता हूँ, तुम्हारी मदद करता हूँ पर तुम मुझसे दोस्ती करने से भी मना कर देती हो। आदि के आगे पीछे घूमती रहती हो? ऐसा क्या है उसमें? मैं भी तुम्हारा ध्यान रख सकता हूँ फिर तुम मुझसे ढंगसे बात क्यों नही करती? मुझे एक मौका तो दो।"

    नव्या ने अब उसको गुस्से से घूरते हुए कहा, "आदि सबसे अलग है, उसमें और तुममे कोई कंपेरिज़न ही नही हो सकता। वो मेरा दोस्त है और हमेशा रहेगा। रही बात तुम्हारी तो मैं नही आती तुम्हारे पास, तुम्ही बार बार बहाने से मेरी मदद करने आ जाते हो।

    मैं पहले ही कह चुकी थी। मेरा दोस्त सिर्फ आदि है और उसकी जगह कोई नही ले सकता। अब जाओ यहाँ से वरना मैं अपना सारा गुस्सा तुमपर निकाल दूँगी जो तुम्हारी बातों से आया है।"

    बेचारा लड़का जिसका नाम अक्षय था वो पीछे जाकर मुँह फुलाकर बैठ गया और अपने हामे पकड़े फ्रेंडशिप बैंड को देखकर धीमी आवाज़ मे बोला, "देखना एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब तुम्हारा आदि तुम्हारे पास नही होगा, तब तुम्हे मेरी ज़रूरत पड़ेगी और एहसास होगा मेरी इंपोर्टेंस का।"

    नव्या ने उसकी बात सुनी तो गुस्से मे क्लास से बाहर निकल गयी। कुछ देर बाद वो आदि के क्लास मे घुस गयी, उसे वहाँ देखकर आदि उठकर उसके पास आ गया।

    नव्या झटके से उसके गले लग गयी, आदि के साथ साथ बाकी सब बच्चे भी हैरान हो गए। लड़कियों की आँखे गुस्से से छोटी छोटी हो गयी।

    आदि पल मे समझ गया कि नव्या का मूड खराब है, जब भी उसको बहुत गुस्सा आता या वो बहुत उदास होती तो यूँही आकर उसके गले से लग जाती थी।

    आदि उसे लेकर क्लास से बाहर चला गया। नव्या उसके सामने नज़रे झुकाकर खड़ी हो गयी।

    आदि ने प्यार से उसके गाल को छूकर कहा, "क्या हुआ नव्या?"

    "तुम मुझे कभी छोड़कर तो नही जाओगे न?" नव्या ने भारी गले से कहा और नम आँखों से उसे देखने लगी। आदि ने उसकी बात सुनी तो वो हैरान हो गया फिर उसके आँसुओं को देखकर उसको बेचैनी होने लगी। उसने उसके आँसुओं को साफ करते हुए कहा, "बिल्कुल नही, मैं कभी तुमसे दूर नही जाऊंगा पर तुम अचानक ये सवाल क्यों कर रही हो? और रो क्यों रही हो?"

    "उस अक्षय ने अभी कहा कि एक दिन तुम मुझसे दूर चले जाओगे, उस दिन मुझे उसकी इंपोर्टेंस समझ आएगी," नव्या ने रोनी सूरत बनाते हुए कहा, वही उसकी बात सुनकर आदि के लबों पर मुस्कान ठहर गयी। उसने उसके गाल को खींचते हुए मुस्कुराकर कहा,

    "बस उसने कह दिया और तुम रोने लगी? इतनी मासूम क्योंकि हो तुम। वो कोई भगवान है जो वो जो कहेगा वो होकर ही रहेगा?"

    नव्या ने ना मे सर हिला दिया तो आदि ने आगे कहा, "फिर इतना उदास क्यों हो गयी उसकी बात सुनकर? और उसने ऐसा कहा ही क्यों?"

    नव्या ने उसकी शर्ट मे अपने आँसुओं को पोंछ दिया फिर गाल फुलाते हुए बोली, "उसने मुझसे पूछा कि क्या वो मेरा दोस्त बन सकता है तो मैंने मना कर दिया कि मेरा दोस्त सिर्फ आदि है इसलिए उसने कहा कि एक दिन तुम मुझे छोड़कर चले जाओगे तब मुझे उसकी इंपोर्टेंस पता चलेगी।"

    "तो तुमने उससे दोस्ती करने से मना ही क्यों किया? वो अच्छा लड़का है फिर तुम्हारा इतना साथ भी तो देता है। तो दोस्ती करने मे बुराई ही क्या है?" आदि का सवाल सुनकर नव्या ने उसे देखा और मासूमियत से बोली, "पर मेरे दोस्त तो तुम हो ना? मैं तुम्हारे अलावा किसी और से दोस्ती कैसे कर सकती हूँ।"

    "ज़रूरी नही कि कोई एक ही आपका दोस्त हो। वो हर इंसान हो आपका साथ दे, ज़रूरत पड़ने पर आपके पास मौजूद रहे, आपको खुश रखने की हर मुमकिन कोशिश करे। जिसके लिए आप सबसे ज्यादा इंपोर्टेंट हो जो हर मुश्किल मे आपका साथ दे वो आपका दोस्त होता है। अक्षय अच्छा लड़का है तुम्हारा इतना साथ देता है तो मुझे लगता है कि तुम्हे उससे दोस्ती कर लेनी चाहिए।"

    "पर अभी तक तुमने मुझे फ्रेंडशिप बैंड नही बांधा है फिर मैं उससे कैसे बंधवा सकती हूँ। मेरे बेस्ट फ्रेंड तुम हो तो सबसे पहले तुम्ही मुझे फ्रेंडशिप बैंड बाँधोगे न... " नव्या ने मायूसी से अपनी कलाई को देखते हुए कहा।

    आदि ने अपने पॉकेट मे हाथ डालकर बैंड निकाला और उसके हाथ को पकड़कर उसकी कलाई पर बांध दिया फिर मुस्कुराकर बोला, "लो अब जाकर उससे भी बंधवा लो। और अब उससे लड़ना मत, सच्चे दोस्त बहुत मुश्किल से मिलते है उन्हें यूँ खोना नही चाहिए। चलो अब अपनी क्लास मे जाओ मैं तुम्हे लंच मे मिलता हूँ।"

    नव्या अब एकदम से खुश हो गयी। उसके गले लगी फिर अपनी क्लास मे भाग गयी। वो जाकर अक्षय के सामने खड़ी हो गयी और अपना हाथ आगे करके मुस्कुराकर बोली, "बांध दो बैंड, मैं तुम्हे monday को पहना दूँगी, अभी मेरे पास है नही।"

    उसकी बात सुनकर अक्षय ने हैरानी से उसे देखा तो नव्या ने मुस्कुराकर आगे कहा, "आदि ने कहा तुम अच्छे हो और अच्छे दोस्तों को खोना नही चाहिए। इसलिए अबसे तुम भी मेरे दोस्त हो पर आदि मेरा बेस्ट फ्रेंड है और हमेशा रहेगा इसलिए दोबारा कभी ये मत कहना की वो मुझसे अलग हो जाएगा। वरना मैं तुम्हे बहुत मारूंगी।"

    नव्या ने झूठा मुठा गुस्सा दिखाया तो अक्षय मुस्कुरा उठा। उसने उसकी कलाई पर बैंड बांध दिया तो नव्या ने उससे हाथ मिलाते हुए मुस्कुराकर कहा, "आजसे हम दोस्त हुए।"

    अक्षय ने सर हिला दिया। नव्या ने उसके बैग को उठाकर अपनी सीट पर रख दिया और मुस्कुराकर बोली, "अब हम दोस्त है तो साथ मे बैठ सकते है।"

    अक्षय अब और भी खुश हो गया और उसके साथ बैठ गया। लंच होते ही नव्या क्लास से बाहर भाग गयी। गार्डन मे एक बैंच पर बैठ गयी और इंतज़ार करने लगी।

    कुछ देर मे आदि वहाँ आया और लंच बॉक्स उसके सामने खोलकर रख दिया तो नव्या ने मुस्कुराकर आ कर दिया। आदि उसकी अदा पर मुस्कुरा दिया उसने बाइट तोड़कर उसको खिला दिया।

    आदि उसे भी खिला रहा था और खुद भी खा रहा था। दूर खड़ा अक्षय लबों पर मुस्कान सजाए उन्हें ही देख रहा था। उसने दोनों को देखकर मुस्कुराकर कहा, "तुम दोनों की दोस्ती सबसे अलग है, इतनी गहरी दोस्ती मैंने आज तक नही देखी, जैसे आदि तुम्हारा ध्यान रखता है और कोई रख ही नही सकता शायद तभी वो तुम्हारे लिए इतना स्पेशल है। पर मुझे खुशी हुई कि अब मैं भी तुम्हारा दोस्त हूँ। देखना मैं भी हर सिचुएशन मे तुम्हारा साथ दूँगा।

    मुझे आदि की जगह नही लेनी बस अपनी एक जगह बनानी है। आज मैंने यूँही कह दिया था कि आदि तुमसे दूर चला जाएगा पर अब मैं पूरे दिल से ये विश माँगता हूँ कि आदि हमेशा तुम्हारे साथ रहे और तुम दोनों की दोस्ती हमेशा यूँही बनी रहे।"

    To be continued...


    तो बताइये कैसा लगा आपको ये पार्ट? एक बार मैं आपको बता देती हूँ इस कहानी मे भी जहाँ बेइंतेहा दर्द होगा वही बेपनाह मोहब्बत भी दिखाई देगी। अभी के लिए तो आप मुझे ये बताइये कि कितने एकसाइटेड है आप ये जानने के लिए कि इस बार आदि और नव्या की ज़िंदगी मे क्या होने वाला है? कैसी होगी उनकी दर्द भरी मोहोब्बत की दास्ताँ?

  • 3. Love Beyond Pain - Chapter 3

    Words: 1308

    Estimated Reading Time: 8 min

    एक बड़ा सा आलीशान बंगला, जो उस वक़्त अंधेरे में डूबा हुआ था। गहरी काली रात, जो अपने अंधकार को चाहो दिशाओं में फैला रही थी। बंगले में जलती लाइटों से उसमें कुछ रोशनी थी और उसी हल्की रोशनी में एक प्यारा सा मासूमियत से भरा चेहरा नज़र आ रहा था, जो इस वक़्त दर्द पसरा हुआ था। सूनी, उदास, भूरि-भूरि आँखें जो अंधेरे में भी अलग से चमक रही थीं।

    वो रेलिंग से टिककर खड़ी थी और एकटक आकाश में अपनी चाँदनी बिखेरते चाँद को देख रही थी। उसकी उन गहरी, भूरि-भूरि आँखें, जिनमें जाने कितना दर्द, कितने ही राज़ कैद थे। उस चेहरे पर दर्द पसरा हुआ था, फिर भी ऐसी कशिश थी कि कोई भी उसे एक नज़र देखकर उसका दीवाना हो जाए।

    जितनी सुंदर वो थी, उतनी ही ज़्यादा उदास नज़र आ रही थी। लब एकदम खामोश थे, ऐसा लग रहा था मानो बरसों से वो यूँही खामोश हो, जैसे बहुत कुछ हो उनके पास कहने को पर शायद वो शख्स नहीं था जिससे वो अपने दिल की गहराइयों में छुपे राज़ों को बाँट सके।

    रात के अंधेरे में वो उस आलीशान विला के बड़े से कमरे की बालकनी में खड़ी जाने अपनी उदास आँखों से क्या ढूँढने की कोशिश कर रही थी। चेहरे पर बेइंतेहा दर्द झलक रहा था पर आँखों में नमी नहीं थी, शायद नमी सुख चुकी थी या दर्द सहते-सहते उसकी आदत सी हो गयी थी उसे।

    करीब एक घंटे तक वो यूँही खड़ी सुनी आँखों से चाँद को देखती रही, जैसे आँखों से ही उससे कितनी ही बातें कर गयी हो। शायद लोगों से भरी इस दुनिया में उसके पास ऐसा कोई नहीं था जिसे वो अपना कह सके, जिससे अपना दर्द, अपनी उदासी को बाँट सके। उसकी तन्हाई और अकेलेपन का साथी और उसे मिले हर दर्द का साझेदार ये चाँद ही था।

    उस लड़की ने अब हौले से अपनी पलकों को झुका लिया। इसके साथ ही बन्द पलकों से एक-एक आँसू की बूँद निकलकर उसके गोरे-गोरे गालों को भिगो गयी। लब हल्के से खुले और दर्द भरी आह्ह्ह के साथ एक धीमी सी आवाज़ निकली, "आ.......दि.........!"

    वही दूसरी तरफ इस जगह से कुछ डेढ़-दो किलोमीटर दूर एक बहुमंजिला इमारत के एक टू बी एच के फ्लेट का रूम जो अंधेरे से सराबोर था। उस कमरे में बस हल्की सी रोशनी थी, जो कि वहाँ लगे लैंप से आ रही थी।

    वही बेड पर एक लड़का बैठा था। उसने लोवर टीशर्ट डाला हुआ था। गहरी काली आँखें, जिनमें किसी के लिए बेइंतेहा मोहब्बत के साथ उस प्यार का इंतज़ार झलक रहा था। हैंडसम से चेहरे पर अजीब सी बेचैनी और सूनापन पसरा हुआ था। उसके हाथ में एक फोटो थी।

    किसी लड़की की फोटो थी वो। वो लड़का सूनी आँखों से उस तस्वीर को देख रहा था। कुछ देर खामोशी से उस फोटो को एकटक निहारने के बाद उस लड़के ने अपनी चुप्पी तोड़ी और उस फोटो को देखते हुए कहना शुरू किया,

    "कहाँ हो तुम नवु? इतनी खफ़ा हो की इतने सालों में एक बार मुझे याद तक नहीं किया............ मानता हूँ गलती की है मैंने, अपने फ्यूचर को बनाने के सफर में मैं तुम्हे भूल गया। पर ये सच नहीं है नवु............ मैं तुम्हे कभी भूला नहीं था, तुम हर पल मेरे साथ थी, मेरे पास थी, मेरे दिल में धड़कनों के रूप में धड़क रही थी।

    मैंने बहुत कोशिश की थी तब भी तुम्हारे बारे में जानने की पर किसी ने मुझे कुछ बताया ही नहीं। मैं भी busy था, तुम्हारे लायक बनना था इसलिए इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पाया। ......... जब लौटकर आया और पता चला कि मेरी पोस्टिंग वहाँ हुई है जहाँ मेरी नवु है, तो कितना एकसाइटेड था मैं कि अपनी नवु के पास आकर उसको सरप्राइज दूंगा। कितनी खुश होगी न मेरी नवु ये देखकर की अगर वो लॉयर बनने वाली है तो उसका आदि भी ACP है।

    तुम्हारे लिए मैंने IPS बनने का सपना देखा था और तुम्हारे लायक बनने के लिए इतने सालों से जी जान लगाकर मेहनत कर रहा था और जब मैंने खुदको तुम्हारे लायक बनाया और तुम्हारे पास आया तब पता चला कि मेरी नवु तो यहाँ है ही नहीं।

    मैं कितना खुश था कि मैं तुम्हे सरप्राइज दूंगा और तुम कितनी खुश हो जाओगी? जब यहाँ पहुँचा तो सबसे पहले तुम्हारे घर आया था कि तुम्हे मिलकर तुम्हे और अंकल-आंटी को सरप्राइज दूंगा पर वहाँ जाकर पता चला की तुम अंकल ने हमारे जाने के बाद ही घर बदल दिया था।

    बहुत ढूंढा मैंने तुम्हे, पिछले दो महीने से कहाँ-कहाँ नहीं तलाशा है मैंने तुम्हे कि कही तो तुम्हारी कुछ खबर मिले। पर न तुम्हारा कुछ पता चल रहा है और न ही अंकल-आंटी के बारे में कुछ पता चल रहा है। पता नहीं कहाँ चले गए है आप सब? न किसी का फोन लग रहा है और न ही कही कुछ खबर मिल रही है।

    पता नहीं क्यों पर जबसे तुम्हारी खबर आनी बन्द हुई है एक बेचैनी सी रहती है, जैसे कुछ गलत हो रहा है........ जैसे मेरी नवु किसी मुसीबत में है........... जैसे मेरी नवु खुश नहीं है......... क्या तुम किसी दर्द में हो? कहाँ हो नवु? बस एक बार मुझसे बात करलो........... कोई इशारा तो दो जिससे मैं तुम्हारे पास पहुँच सकूँ............

    अगर जो मेरा दिल कह रहा है वो सच है............ अगर ये बेचैनी ये डर इसलिए है क्योंकि तुम किसी मुश्किल में हो तो एक बार अपने आदि को आवाज़ दे दो................ बस एक बार तुम्हे देखना चाहता हूँ मैं............. जहाँ भी हो बस एक बार मेरे सामने आ जाओ, वादा करता हूँ दोबारा कभी तुम्हे अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगा........... अगर तुम किसी मुसीबत में हो तो मैं वादा करता हूँ एक बार मुझे अपने तक पहुँचने का रास्ता दिखा दो उसके बाद मैं तुम्हे हर मुश्किल से बाहर निकाल लूँगा।

    बस एक बार मैं तुम्हे देखना चाहता हूँ........... उसके बाद मैं तुम्हे कभी खुदसे दूर नहीं जाने दूंगा। बस एक बार अपनी मीठी-मीठी आवाज़ में आदि कहकर पुकार लो, मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगा........... तरस गया हूँ यार मैं अपनी नवू की आवाज़ सुनने के लिए जो जब प्यार से मुझे पुकारती थी तो दिल को अंजाना सा सुकून मिलता था, जिसकी बातें मेरे कानों मैं मिश्री के तरफ घुल जाती थी.............

    तड़प रहा हूँ मैं तुम्हारी शैतानियाँ देखने के लिए............... कितना वक़्त बीत गया यार और तुमने मुझे परेशान नहीं किया है.............. पता है तुम्हारी शरारतें मेरे दिल का चैन थी, ज़िंदगी चहक उठती थी तुम्हारी खिलखिलाहट से.............. तुम्हारी शरारतें ही तो मेरी ज़िंदगी की रौनक थी और अब विरान हो गयी है मेरी ज़िंदगी........... बहुत खलती है यार तुम्हारी कमी ............. लौट आओ न वापिस............... वादा रहा दोबारा तुम्हे कभी अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगा। ............... लौट आओ नवू बस एक बार यार........... अपने आदि के पास लौट आओ............. बहुत याद आती है तुम्हारी.............. और इंतज़ार नहीं हो पा रहा मुझसे............. मेरा सब्र खत्म होता जा रहा है............... बहुत प्यार करता हूँ यार मै तुमसे ........... मैं नहीं रह सकूँगा तुम्हारे बिना ............. लौट आओ नवू...............।"

    आदि की आँखों से आँसू की एक बूंद आज़ाद होकर उसके गालों पर लुढ़क गयी। नव्या की जुदाई का दर्द, उससे मिलने की तड़प उसकी आँखों मे साफ नजर आ रही थी।

    नव्या के लिए उसकी बेइंतेहा मोहब्बत उसकी बातों मे महसूस किया जा सकता था। कहते है लड़के बहुत स्ट्रांग होते है, वो कभी रोते नहीं, पर हम ये भूल जाते है कि वो भी इंसान है और रोना कमज़ोरों की निशानी नहीं है। जब दर्द होता है, इतना दर्द कि इंसान सहन न कर सके तो आँखे छलक ही आती है फिर चाहे वो आदमी हो या औरत कोई फर्क नहीं पड़ता।

    वैसे ही आदि बहुत स्ट्रांग था, एक काबिल ACP था, पर नव्या के लिए उसका प्यार और उसकी जुदाई का दर्द उसकी आँखों मे आँसू बनकर छलक आया था। आदि नव्या को याद करते हुए उस वक़्त मे खो गया जब उसकी मोहब्बत, उसकी दोस्त, उसकी नवू उसके पास हुआ करती थी।

    To be continued...

  • 4. Love Beyond Pain - Chapter 4

    Words: 2184

    Estimated Reading Time: 14 min

    स्कूल को छुट्टी हुई तो नव्या अक्षत के साथ बातें करते हुए पार्किंग तक पहुँची तो सामने ही आदि अपनी साइकिल पकड़े खड़ा था और उसे ही देख रहा था। उसको देखते ही नव्या के लबों पर मुस्कान ठहर गयी। उसने अक्षत को बाय कहा और आदि के तरफ बढ़ गयी।

    आदि उसको आँखे छोटी-छोटी करके घूरने लगा, वही नव्या उसके पास चली आई और मुस्कुराकर बोली, "क्या हुआ मुझे ऐसे घूर क्यों रहा है? मैं बिल्कुल टाइम पर आई हूँ, अभी तो टीचर निकली थी क्लास से और मैं तेरे पास आ गयी।"

    आदि ने उसको खा जाने वाली नज़रों से घूरा और फिर अपनी कलाई पर बंधी घड़ी की तरफ देखने लगा तो नव्या के चेहरे के भाव बदल गए, उसने उसको घड़ी को गुस्से से घूरते हुए कहा, "सब चक्कर इस घड़ी का है, इसके वजह से तू हमेशा मुझपर गुस्सा करता रहता है, देखियो किसी दिन मैंने तेरी इस घड़ी को ऐसा गायब करना है कि दोबारा कभी मिलेगी ही नही, इतनी परेशान होती हूँ इसके वजह से।"

    "अच्छा तो लेट तू आए और सारी ब्लेम मेरी घड़ी पर डाल रही है।" आदि की गुस्से भरी निगाहें उसके तरफ घूम गयी। नव्या ने देखा कि अब कोई चारा नही है, आदि सच मे नाराज हो गया है तो उसने अपनी बत्तीसी चमका दी और क्यूट सी शक्ल बनाकर बोली,

    "अरे तुम तो सच मे भड़क गए, मैं तो बस मज़ाक कर रही थी। मुझे पता है मैं ही हमेशा तुम्हे लेट करवाती हूँ पर मैं क्या करूँ, मैं जानबूझकर कुछ भी नही करती हूँ, सब अपने आप ही हो जाता है।"

    इस वक़्त नव्या हद से ज्यादा मासूम लग रही थी। आदि चाहकर भी उसपर गुस्से नही कर सका और साइकिल लेकर स्कूल के गेट के तरफ बढ़ गया पर नव्या को पीछे ही छोड़ गया।

    नव्या भी तुरंत उसके पीछे भागते हुए चिल्लाने लगी, "आदि तुम मुझे छोड़कर कैसे जा रहे हो................. रुको तो सही मैं भी तो हूँ तुम्हारे साथ.............. रुक जाओ यार, तुम इतनी जल्दी-जल्दी चल रहे हो, मैं तो पीछे ही रह गयी।"

    उसने आदि को रोकने की बहुत कोशिश की पर आदि ने साइकिल नही रोकी। आखिर मे नव्या को भी गुस्सा आ गया और वो मुँह फुलाकर एक जगह खड़ी हो गयी और गुस्से मे चिल्लाते बोली, "ठीक है, मत रुको मेरे लिए, बहुत बन रहे हो न साइकिल वाले, मैं भी नही जाऊंगी तुम्हारे साथ। जाओ अपनी सड़ी हुई शक्ल लेकर अकेले घर, मैं नही आती तुम्हारे पीछे............ इतनी सी लेट हुई तो इतना गुस्सा कर रहे हो, मुझे अब तुमसे बात ही नही करनी है।"

    नव्या ने मुँह बना लिया और कमर पर हाथ रखे गुस्से से पीछे से आदि को देखती रही। इसके बाद उसने एक शब्द नही कहा। कुछ दूर जाकर आदि को एहसास हुआ कि नव्या मज़ाक नही कर रही है बल्कि वो सच मे उसके पीछे नही आ रही तो उसने साइकिल रोककर पलटकर पीछे देखा तो नव्या उसे ही घूरे जा रही थी।

    आस-पास मौजूद स्टूडेंट्स भी उन्हें ही देख रहे थे क्योंकि नव्या और आदि का ये नाटक अक्सर होता ही रहता था और आखिर मे आदि को ही झुकना पड़ता था, उनकी ये नोंक-झोंक की सबको आदत हो चुकी थी। गार्ड अंकल भी दोनों को देखकर मुस्कुरा रहे थे।

    आज भी वही हुआ, पहले गुस्सा आदि था पर अब नव्या का गोरा चेहरा गुस्सा से लाल हो चुका था और हमेशा के तरफ आखिर मे आदि को अपना गुस्सा साइड रखकर वापिस उसके पास जाना पड़ा। उसने अपनी साइकिल वही लगाई वो नव्या के पास चला आया।

    "चलो" आदि ने हल्के गुस्से और बेरुखी से उसको चलने को कहा तो नव्या ने भी अकड़ते हुए कहा, "नही जाती क्या करोगे?"

    "नव्या यहाँ तमाशा मत करो, तुम्हारी नौटंकी देखने का वक़्त नही है मेरे पास, माँ इंतज़ार कर रही होंगी, इसलिए अभी अपना नाटक बन्द करो और जल्दी चलो वरना मैं सच मे तुम्हे छोड़कर चला जाऊंगा फिर आती रहना अकेले वो भी पैदल।" आदि अब भी गुस्से मे था तो नव्या का गुस्सा भी बढ़ गया।

    "तो जाओ न, मैंने तो नही बुलाया था तुम्हे? जाओ अकेले घर मुझे छोड़कर उसके बाद आंटी तुम्हे अच्छे से सबक सिखाएंगी। बड़े आए मुझे धमकी देने वाले, जैसे तुम मुझे लेकर नही जाओगे तो मैं घर ही नही पहुँच पाऊँगी।"

    "नव्या नाटक बन्द करो और चलो मेरे साथ। " आदि ने उसका हाथ पकड़ लिया और आगे बढ़ा पर नव्या ने उसके हाथ को झटकते हुए मुँह फुलाकर कहा, "मैं नौटंकी करती हूँ न तो ठीक है इस नौटंकी वाली के साथ क्या कर रहे हो, जाओ अपनी तरफ किसी समझदार लड़की से दोस्ती करो और उसे ही अपनी साइकिल पर बिठाकर घुमाना, मुझे नही जाना तुम्हारे साथ। मैं खुदसे घर पहुँच जाऊंगी।"

    नव्या ने गुस्से मे कहा और अकेले ही आगे बढ़ गयी। उसका बेमतलब का गुस्सा देखकर आदि का गुस्सा बढ़ता जा रहा था और वो वही खड़ा गुस्से से उसको घूर रहा था।

    नव्या कुछ आगे पहुँची ही थी कि एक लड़के ने उसके आगे अपनी साइकिल रोक दी। नव्या पहले ही गुस्से मे थी, अब किसी ने उसका रास्ता रोका ये देखकर वो और भड़क उठी और खा जाने वाली निगाहों से उस लड़के को घूरने लगी।

    वही वो लड़का उसको देखकर मुस्कुरा रहा था ।

    "इतने खूबसूरत चेहरे पर इतना गुस्सा? चलो मैं तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ।" उस लड़के ने मौके पर चौका मारना चाहा पर नव्या तो ठहरी नव्या, अब वो भड़क चुकी थी तो उस लड़के की खैर नही थी।

    नव्या ने तुरंत ही भड़कते हुए कहा, "अबे चोमू जैसी शक्ल के, अपनी खटारा साइकिल उठा और निकल यहाँ से वरना मार-मार कर तेरा पूरा हुलिया बिगाड़ दूँगी उसके बाद दोबारा मेरा रास्ता रोकने की हिम्मत नही करेगा, समझा।"

    लड़के की अच्छी खासी फ़ज़ीहत् हो चुकी थी और अब आसपास मौजूद जो कुछ स्टूडेंट्स थे वो उसपर हंस रहे थे। वो लड़का नव्या को घूरते हुए वहाँ से चला गया।

    नव्या का गुस्सा अब और बढ़ चुका था और अब उसको चिढ़ हो रही थी। वो गुस्से मे आगे बढ़ गयी पर आदि जो गुस्से से अभी उस लड़के को घूर रहा था वो भागते हुए नव्या के पास पहुँच गया और उसका हाथ पकड़कर उसको अपनी साइकिल के तरफ लेकर चला गया। जैसे ही उसने वहाँ जाकर नव्या का हाथ छोड़ा वो फिर वहाँ से जाने लगी तो आदि ने फिरसे उसका हाथ पकड़ लिया और अब उसने थोड़ा प्यार से कहा,

    "अबसे तुझपर गुस्सा नही करूँगा, अब तो शांत हो जा देवी। देर हो रही है यार, भाई पहुँच भी गए होंगे और हम अभी तक यही है। चल अब गुस्सा छोड़ और पीछे बैठ जा, तुझे छोड़कर नही जा सकता मैं।"

    नव्या मुँह बनाकर उसके पीछे बैठ गयी पर उसने आदि के कंधे को नही पकड़ा, पीछे से साइकिल पकड़कर बैठ गयी। आदि ने गहरी सांस छोड़ी क्योंकि वो जानता था कि नव्या का गुस्सा इतनी जल्दी शांत नही होगा। उसने साइकिल स्टार्ट कर दी। दोनों ही खामोश थे अचानक ही नव्या ने आदि के कंधे को पकड़कर हिलाते हुए चिल्लाकर कहा, "आदि साइकिल रोको।"

    उसके अचानक हिलाने से बेचारे आदि का बैलेंस बिगड़ गया, उसने जल्दी से साइकिल रोकी और खींझते हुए बोला, "क्या........... प्रॉब्लम क्या है आखिर तेरी? इंसानों के तरफ कोई काम कर सकती है या नही? हर वक़्त उल्टी सीधी हरकतें करती रहती है, अभी तेरी वजह से हम दोनों गिर जाते।"

    "तुम फिरसे मुझपर चिल्ला रहे हो।" नव्या ने गाल फुलाते हुए कहा। आदि ने अपना गुस्सा शांत किया तो आराम से बोला,

    "चिल्ला नही रहा हूँ, तुझे समझा रहा हूँ। सोच समझकर कोई भी काम किया कर वरना किसी दिन अपनी इस आदत के वजह से तू किसी मुसीबत मे फंस जाएगी। जो मन मे आता है बस कर देती है, ये भी नही सोचती कि उसका रिज़ल्ट क्या हो सकता है।

    थोड़ी तो समझदारी दिखाया कर। अभी उस लड़के पर भी कैसे चिल्ला रही थी। मुझे चिंता होती है तुम्हारी, जैसे तुम बिना कुछ सोचे कुछ भी कर देती हो, कही कभी किसी मुश्किल मे न फंस जाओ।"

    आदि के चेहरे पर उसके लिए परवाह साफ झलक रही थी। नव्या का गुस्सा भी अब शांत हो चुका था, उसने मुस्कुराकर कहा, "पर मुझे तो बिल्कुल चिंता नही होती क्योंकि मुझे पता है कि मैं कितनी ही बड़ी मुश्किल मे क्यों न फंस जाऊँ पर तुम मुझे हर मुश्किल से सही सलामत बाहर निकाल लोगे। याद नही तुम्ही तो कहते हो की आदि के होते हुए नव्या को कभी कुछ नही हो सकता, अब तुम खुद ही अपनी कही बात भूल गए? "

    "भुला नही हूँ पर फिर भी मुझे तुम्हारी फिक्र होती है। कही ऐसा न हो जाए कि तुम मुश्किल मे हो और मैं तुम्हारे पास मौजूद न रहूँ तुम्हे उस मुश्किल से बाहर निकालने के लिए इसलिए चाहता हूँ की थोड़ा समझदार बन जाओ तुम। कुछ भी करने से पहले सोच लिया करो कि उसका रिज़ल्ट क्या हो सकता है? यूँही किसी से भी बेधड़क भिड़ जाना ठीक नही है।"

    "अच्छा बाबा आगे से मैं ऐसे किसी से नही झगडुंगी, अब तुम मुझे समझाना छोड़ो और जल्दी से मुझे वो ला दो मुझे अभी खाना है।" नव्या ने उसकी बात का रुख बदल दिया और दूसरी तरफ इशारा कर दिया। आदि ने सर घुमाकर देखा तो बर्फ का गोले वाली रेडी खड़ी थी वहाँ।

    आदि ने अब नव्या को देखा जो ललचाई आँखों से उसी दिशा मे देख रही थी। नव्या ने उसके कंधे को हिलाते हुए कहा, "आदि जाओ न मेरे लिए एक गोला ला दो, बहुत गर्मी हो गयी है मेरे दिमाग मे, अब उसको ठण्डा करना पड़ेगा।"

    "मैं क्यों लाऊँ? तुम्हे भी तो पॉकेट मनी मिलती है जाकर खुद खरीद लो। रोज़ नई-नई फरमानईशें करती रहती हो, हर बार मेरे पैसे खर्च करवाती हो और खुदके पैसे बचाकर रखती हो। मैं नही दिलाऊँगी आज तुम्हे कुछ भी। अगर इतना ही खाने का मन है तो खुदसे जाकर खरीदकर खाओ।" आदि ने साफ इंकार करते हुए कहा। उसकी बात सुनकर नव्या का चेहरा उतर गया उसने मुँह लटकाते हुए कहा,

    "तुम जानते हो मैं पैसे खर्च नही कर सकती फिर भी ऐसे कह रहे हो। बस दस रुपए के गोले को दिलाने मे कितना भाव खा रहे हो। बहुत सही, यही दोस्ती है तुम्हारी, एक चीज़ नही दिला सकते तुम मुझे। तुम्हे लिए वो दस रुपए मुझसे भी ज्यादा ज़रूरी है न।"

    नव्या की नौटंकी एक बार फिर शुरू हो चुकी थी। आदि ने घूरकर उसे देखा तो नव्या निचले होंठ को बाहर निकाले और अपनी पलकों को बार-बार झपकाते हुए मासूम सी शक्ल बनाकर उसको देखने लगी।

    आदि को फिरसे उसपर प्यार आ ही गया। वो साइकिल से नीचे उतर गया, नव्या खुश हो गयी। वो अपने पैसे खर्च नही करती थी उन्हें इकट्ठा करके रखती थी और जब थोड़े ज्यादा पैसे हो जाते थे तो उन पैसों को आदि के जन्मदिन वाले दिन पास के अनाथाश्रम मे दान कर देती थी।

    अपने सारे शौक वो आदि से पूरे करवाती थी और महीने से पहले बेचारे आदि की सारी पॉकेट मनी खत्म हो जाती थी। फिर उसे अपने बड़े भाई आर्यन से पैसे मांगने पड़ते थे, पर आदि नव्या को इंकार भी नही कर पाता था। आज भी वो उसकी मासूम सी शक्ल पर पिघल ही गया। उसने जाकर एक गोला खरीदा और लाकर नव्या को पकड़ा दिया।

    नव्या का चेहरा खुशी से खिल उठा, उसने झट से उसको चूसा फिर आँखे बन्द करते हुए बोली,

    "उह्ह्ह्......... मज़ा आ गया"

    "चलो अब जल्दी से बैठो वरना तुम्हारे चक्कर मे आज माँ और आंटी दोनों से डाँट पड़ेगी मुझे।" आदि वापिस साइकिल पर बैठ गया। नव्या भी उसके पीछे बैठ गयी और अपना गोला खाने लगी, उसने आदि को पकड़ा हुआ नही था, कहीं वो गिर न जाए इस डर से आदि साइकिल धीरे-धीरे चला रहा था।

    कुछ देर बाद साइकिल आदि के घर के बाहर रुकी तो नव्या तुरंत नीचे उतरकर आंटी पुकारते हुए अंदर के तरफ दौड़ गयी। उसकी बचकानी हरकत आदि के लबों पर आई मुस्कान की वजह बन गयी।

    आदि ने भी साइकिल खड़ी की और अंदर के तरफ चला आया। अंदर पहुँचा तो नव्या डाइनिंग टेबल पर चढ़कर बैठी हुई थी और सामने खड़ी नंदिनी जी उसको अपने हाथों से खाना खिला रही थी। आदि से देखकर मुस्कुराते हुए अपने कमरे मे चला गया क्योंकि ये रोज़ का ही था।

    कुछ देर बाद वो नीचे आया तो आर्यन पहले से वहाँ मौजूद था। आदि भी आकर उनके बगल मे बैठ गया। नंदिनी जी तो नव्या के साथ बीज़ी थी तो आर्यन खुद ही अपना खाना निकाल रहा था।

    आदि को देखते ही उसने मुस्कुराकर कहा, "आज तो जल्दी आ गए, जैसे तुम्हारा नाटक चल रहा था मुझे लगा था कमसे कम एक घंटा तो लगेगा तुम्हे नव्या को मनाकर घर लाने मे।"

    उसकी बात सुनकर आदि का मुँह उतर गया उसने बेचारगी से उसे देखा तो आर्यन की हंसी छूट गयी। आदि ने अब घूरकर नव्या को तो नव्या ने तुरंत ही नंदिनी जी से शिकायत लगाते हुए कहा, "देखिये आंटी आदि फिरसे मुझे कैसे घूर रहा है। "

    नंदिनी जी ने घूरकर उसे देखा तो आदि ने मुँह बना लिया। तभी वहा महिमा जी पहुँच गयी और नव्या को स्कूल ड्रेस मे डाइनिंग टेबल पर बैठे खाना खाते देख, उनकी आँखे गुस्से से छोटी-छोटी हो गयी।

    To be continued...

  • 5. Love Beyond Pain - Chapter 5

    Words: 2243

    Estimated Reading Time: 14 min

    नंदिनी जी की लाडली थी नव्या। अपने दोनों बेटों से ज्यादा प्यार उन्हें नव्या से था, जबकि हिसाब उल्टा होना चाहिए था।

    महिमा जी को शादी के बाद पता चला था कि उनके माँ बनने के चांसेस न के बराबर हैं। सालों इलाज करवाने के बाद नव्या ने उनके घर में कदम रखा और उनके सूने आंगन को अपनी किलकारियों से भर दिया।

    अगर देखा जाए तो महिमा जी को नव्या से ज्यादा प्यार होना चाहिए था और था भी, आखिर उनकी एकलौती औलाद थी जो बहुत मन्नतों के बाद आई थी। पर नव्या बचपन से ही चंचल स्वभाव की थी। हमेशा अपनी शैतानियों से उन्हें परेशान करती रहती थी।

    उसकी कारनामे पूरे मोहल्ले में मशहूर थे। अगर आदि न होता तो रोज़ उसकी शिकायत महिमा जी के पास पहुँचती, पर आदि हमेशा नव्या को बचा लेता था। वो बचपन से समझदार था, शायद इसलिए क्योंकि बचपन से उसे यही बताया गया था कि उसे नव्या को संभालना है और नदी की चंचल धारा सी अल्हड़ शैतान नव्या को संभालने के लिए उसे सागर जैसा शांत बनना पड़ा।

    महिमा जी नव्या को बहुत समझाती थीं, पर वो हमेशा अपनी ही धुन में रहती थी, जो दिल में आता बिना आगे-पीछे सोचे बस कर देती थी। इसलिए महिमा जी उसकी नादानियों से बहुत परेशान रहती थीं। कभी गुस्से में उसे सजा देने जातीं तो नव्या उनके हाथ ही नहीं आती और सीधे नंदिनी जी के पास आकर उनके सीने से लग जाती।

    नव्या के लिए अगर महिमा जी उसकी देवकी मैया थीं, तो नंदिनी जी यशोदा मैया थीं। जितना वक्त वो अपने घर में नहीं बिताती थी, उससे कहीं ज्यादा वक्त वो यहाँ बिताती थी।

    नंदिनी जी को एक बेटी चाहिए थी। दूसरी बार उन्हें आशा थी कि उनके घर लक्ष्मी जी के शुभ चरण पड़ेंगे, पर आदि हुआ और उसके जन्म के एक महीने बाद नव्या ने दुनिया में कदम रखा। बस उसके बाद ही नंदिनी जी ने कह दिया था कि नव्या उनकी बेटी है और उन्होंने हमेशा उसे अपनी बेटी ही माना, अपने दोनों बच्चों से ज्यादा ममता और प्यार लुटाया था उन्होंने उस पर।

    अगर नव्या को नंदिनी जी का प्यार मिला, तो आदि हमेशा से महिमा जी का चहीता रहा, क्योंकि वो समझदार था और हमेशा नव्या को हर मुश्किल से बचा लेता था। नंदिनी जी उसके बदले नव्या को लाड करतीं तो वो सीधे महिमा जी के पास पहुँच जाता और उसके बाद नव्या को चिढ़ाता।

    नव्या को तो दोनों का पूरा प्यार चाहिए होता था। बहुत बार दोनों इसी बात पर भिड़ भी जाते थे और तब बाकी सब हैरान हो जाते थे कि आदि ऐसे कैसे झगड़ रहा है नव्या से? शैतान तो आदि भी कम नहीं था, बस नव्या शैतानी ज्यादा करती थी, इसलिए वो समझदारी से काम लेता था।

    दोनों का रिश्ता बेहद खास था, जिसे समझना किसी के लिए भी पॉसिबल नहीं था। दोनों अगर झगड़ते थे तो एक-दूसरे से प्यार भी बहुत करते थे। ये कहना गलत नहीं होगा कि अगर एक शरीर है, तो दूसरा उसके प्राण हैं। जैसे आत्मा के बिना देह का कोई अस्तित्व नहीं, वैसे ही आदि के बिना नव्या का कोई अस्तित्व नहीं था और नव्या के बिना आदि भी अधूरा था।

    दोनों मिलकर एक-दूसरे को पूरा करते थे। जान बसती थी उनकी एक-दूसरे में। बिना एक-दूसरे का चेहरा देखे न सुबह होती थी, न रात। यही वजह थी कि बड़ों के मन में एक चाह थी कि उनके बड़े होने के बाद उन्हें शादी के पवित्र बंधन में बांध देंगे, जिससे दोनों हमेशा साथ रहेंगे। पर सोचा हुआ हर बार हो, ये जरूरी तो नहीं?

    हर बार जो हम चाहते हैं, जो हम सोचते हैं, वो नहीं होता। होता वो है जो ऊपर आसमान में बैठे विधाता ने हमारी किस्मत में लिखा होता है। आदि और नव्या की ये दोस्ती आगे क्या रंग लेगी, कोई नहीं जानता था। किसी को नहीं पता था कि भविष्य के गर्भ में उनके लिए क्या छुपा है?

    नव्या और आदि की जिंदगी में बहुत सी मुश्किलें आने वाली थीं, जिनका किसी को भी अंदेशा तक नहीं था। दो दिल जो बचपन से एक-दूसरे के लिए धड़कते थे, वो एक-दूसरे से जुदा होने वाले थे। नसीब अपना खेल खेलने वाली थी और उसमें इन सबकी जिंदगी उलझने वाली थी, पर इस भेद से सभी अपरिचित थे।

    भविष्य के गर्भ में किसके लिए क्या छुपा था, कोई नहीं जानता था और सब आज में खुश थे। नव्या स्कूल से लौटते ही हमेशा की तरह सीधे नंदिनी जी के पास चली आई थी और नंदिनी जी उसे अपने हाथों से खाना खिला रही थीं।

    नव्या बेफिक्री से स्कूल यूनिफॉर्म पहने डाइनिंग टेबल पर चढ़कर बैठी हुई थी और मजे से लंच कर रही थी। साथ ही उसने आदि की शिकायत भी लगा दी थी नंदिनी जी से और उन्होंने आदि को झिड़क भी दिया था, जिस पर जहां आदि का मुंह बन गया था, वही उसका चेहरा देखकर आर्यन की हंसी छूट गई थी।

    आदि अब नव्या को गुस्से से घूर-घूर कर देख रहा था, तभी महिमा जी नव्या को ढूंढते हुए वहां पहुंच गईं। ये भी रोज का ही था। नव्या स्कूल से सीधे यहां भाग आती थी और कुछ देर उसकी वापसी की राह देखने के बाद वो भी उसे तलाश में यहां चली आती थी और हर बार यहीं आकर उनकी तलाश खत्म होती थी। और हर बार वो नव्या की बेपरवाही पर उसे खूब डांटती थीं, आज भी वही हुआ।

    जैसे ही वो अंदर आईं तो उनकी निगाहें टेबल पर चढ़कर बैठी नव्या पर पड़ गईं, जिसने न ड्रेस चेंज की थी, न ही शूज उतारे थे। बैग एक चेयर पर रखकर वो टेबल पर बैठी पैर हिलाते हुए मजे से नंदिनी जी के हाथों से खाना खा रही थी।

    नव्या को देखते ही महिमा जी की आंखें गुस्से से छोटी-छोटी हो गईं और उन्होंने आगे बढ़ते हुए, हमेशा की तरह गुस्से में बड़बड़ाते हुए कहा, "जरा भी तमीज नहीं है इस लड़की में। स्कूल से आई है, अपने घर आकर अपनी मां को अपना चेहरा तक दिखाना जरूरी नहीं समझा। न चेंज किया, न मुंह-हाथ धोया और खाने बैठ गई।"

    वो बड़बड़ाते हुए उन सबके पास चली आईं। नव्या ने उनकी बात तो सुनी पर कुछ रिएक्ट ही नहीं किया और मुंह चलाती रही। आदि और आर्यन कभी महिमा जी को देखते, जिनका चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था, तो कभी नव्या की तरफ निगाहें घुमाते, जिसके माथे पर शिकन की एक रेखा तक नहीं थी। वो एकदम बेफिक्र थी और मजे से खाना खा रही थी। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसे कुछ सुनाई ही न दे रहा हो।

    उसके यूं नजरअंदाज करने पर महिमा जी का गुस्सा और बढ़ गया। उन्होंने गुस्से से उसे घूरते हुए कहा, "कुछ सुनाई दे रहा है आपको या आपने हमें पागल समझा हुआ है कि हम बोले जा रहे हैं और आपको कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है।"

    नव्या ने अब उनकी तरफ निगाहें घुमाईं और मुस्कुराकर बोली, "बिल्कुल नहीं, मेरी मां तो बहुत प्यारी और बहुत समझदार है, वो पागल कैसे हो सकती है?"

    उसने बड़े प्यार से उन्हें मस्का लगाया। उसकी बात सुनकर आर्यन और आदि मुंह दबाए हंस पड़े और नंदिनी जी भी मुस्कुराने लगीं।

    ये रोज का था, नव्या हमेशा उनके गुस्से को शांत करने के लिए यही करती थी और कामयाब भी हो जाती थी, पर आज महिमा जी के इरादे कुछ अलग लग रहे थे, चेहरे पर गुस्से भरे भाव अब भी मौजूद थे। उन्होंने नव्या को घूरते हुए कहा,

    "सब समझते हैं हम। हमारी डांट से बचने के लिए आप ये जो नाटक कर रही हैं न? आज ये नाटक आपके किसी काम नहीं आने वाला। हम तंग आ चुके हैं आपकी इन लापरवाही भरी हरकतों से। स्कूल से आकर एक बार हमें अपना चेहरा भी नहीं दिखाती हैं, ऊपर से यहां कैसे टेबल पर बैठकर खाना खा रही हैं? न कपड़े बदले, न जूते उतारे, हाथ-मुंह भी नहीं धोया और खाने बैठ गई।"

    अब उन्होंने उसके हिलते पैरों को देखा तो उस पर हथेली से मारते हुए बोलीं, "और ये देखो, एक और बुरी आदत पड़ गई है अब आपको। कैसे पैर हिलाए जा रही हैं। एक मिनट भी आपको चैन नहीं आता, हमेशा कुछ न कुछ करना ही होता है। टेबल पर बैठकर ऐसे पैर कौन हिलाता? दुनिया में आपने किसी बच्चे को देखा है कि वो स्कूल से आया हो और सीधे खाने बैठ गया हो? अपनी मां को एक बार अपना चेहरा भी न दिखाया हो?"

    "हां, देखा है न," नव्या ने उनकी सारी बातों को दरकिनार करते हुए झट से उनके सवाल पर हामी भरते हुए जवाब दिया, जिस पर उन्होंने खींझते हुए कहा, "अच्छा, जरा हमें भी बताइए कि दुनिया में ऐसा कौन सा बच्चा है जो आपकी जैसी हरकतें करता हो।"

    "मैं खुद हूं न, फिर किसी और को क्यों देखूं?" नव्या ने तुरंत ही जवाब दिया, जिससे महिमा जी और ज्यादा झुंझला उठीं। उन्होंने अपना सर पकड़ लिया।

    "क्या करूं मैं इस लड़की का? इतनी बदतमीज है, जो कहो उसका उल्टा जवाब देती है। जरा सी भी जिम्मेदारी नाम की चीज नहीं है इसमें। लड़कियां कितनी सुशील होती हैं, पर इसे किसी काम के करने का कोई तरीका ही नहीं है। कोई मैनर्स ही नहीं है इसमें। कैसे जाहिलों की तरह बैठी हुई है। ये नहीं कि बाहर से आई है तो पहले घर जाए, हाथ-मुंह धोए, कपड़े बदले, उसके बाद सलीके से बैठकर खाना खाए।"

    अब उन्होंने आदि और आर्यन को देखा तो दोनों एकदम चुप हो गए। उन्होंने दोनों को देखा, फिर नव्या को डांटते हुए कहा, "इन दोनों को देखो। ये भी तो स्कूल से आए हैं, कैसे फ्रेश होकर सलीके से खाना खाने बैठे हैं और तुम टेबल पर चढ़कर बैठी हुई हो। तुम्हारे अंदर कभी दिमाग आएगा भी या नहीं, या सारी उम्र तुम यूंही अपनी मां को परेशान करती रहोगी।"

    नव्या ने अब मुंह लटकाते हुए मासूम सी शक्ल बनाकर नंदिनी जी को देखा। महिमा जी उस पर बहुत नाराज थीं और वो बचाव के लिए नंदिनी जी से खामोश गुहार लगा रही थी।

    नंदिनी जी ने महिमा जी को इतने गुस्से में देखा तो उन्होंने उनका गुस्सा शांत करने के लिए थोड़ा आराम से कहा, "महिमा, रहने दे, बच्ची है, अभी उम्र ही क्या है उसकी, सीख जाएगी सब धीरे-धीरे, अभी तो उसकी शैतानियाँ करने की ही उम्र है।"

    महिमा जी अब उनके तरफ घूम गईं और नाराजगी से बोलीं, "बच्ची है ये? आदि के साथ की ही है न? आदि को देख, कितना समझदार है, सब काम सलीके से वक्त पर करता है, बड़ों की इज्जत करता है, गलती से भी पलटकर उन्हें जवाब नहीं देता। पर नव्या, उसकी तो बात न ही करे तो अच्छा होगा। हर बुरी आदत है उसके अंदर। इतनी बड़ी हो गई है पर जरा भी दिमाग नहीं चलाती है। बस जो मन में आता है वही करती है।

    लड़कियां तो कितनी समझदार होती हैं, पर इसकी सारी हरकतें लड़कों जैसी हैं। मैनर्स नाम की चीज से उसका दूर-दूर तक कोई सरोकार ही नहीं है। मैं तंग आ गई हूं इस लड़की से, अगर इसकी हरकतें ऐसी ही रहीं तो आगे जाकर कौन ऐसी झल्ली लड़की से शादी करेगा? कैसे संभालेगी वो आगे जाकर अपना घर-परिवार। मैं उसकी गलतियां बर्दाश्त कर लूंगी क्योंकि मैं उसकी मां हूं, जन्म दिया है मैंने उसे, पर शादी के बाद तो मैं नहीं रहूंगी इसके साथ।"

    हर मां की तरह उन्हें भी अपनी बेटी की शादी की चिंता हो रही थी। नव्या ने जब ये बात सुनी तो वो अब टेबल से नीचे कूद गई और आंसुओं से भीगी निगाहों से उन्हें देखते हुए नाराजगी से बोली, "मैं शादी ही नहीं करूंगी, कभी आपको और पापा को छोड़कर नहीं जाऊंगी, हमेशा आपको ही अपनी शैतानियों से परेशान करूंगी। कभी आपका पीछा नहीं छोडूंगी और सुधरूंगी तो बिल्कुल भी नहीं।"

    वो गुस्से में अपना बैग उठाकर वहां से चली गई। आदि, जो अब खामोशी से सब सुन रहा था, वो उसके आंसू देखकर परेशान हो गया और तुरंत ही नव्या को पुकारते हुए उसके पीछे दौड़ गया।

    आर्यन ने माहौल को गंभीर देखा तो वो भी आदि के पीछे चला गया। अब वहां सिर्फ महिमा जी और नंदिनी जी ही थीं। महिमा जी काफी परेशान लग रही थीं। नंदिनी जी बच्चों के सामने वो सब बात नहीं कर सकती थीं, पर अब वहां बस वही दोनों थे, तो उन्होंने उनके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,

    "तुम भूल गई जब नव्या हुई थी, तब मैंने कहा था कि वो मेरी बेटी है, पर मैं भूली नहीं हूं। नव्या मेरी बेटी है, तो तुझे उसके भविष्य की चिंता करने की जरूरत नहीं है। जब तक वो शादी लायक नहीं हो जाती, उसे अपनी अमानत के रूप में तेरे पास छोड़ रही हूं। जैसे ही आदि और नव्या शादी के लायक हो जाएंगे और अपनी जिंदगी में सेटल हो जाएंगे, मैं अपनी बेटी को अपनी बहू बनाकर अपने घर ले आऊंगी।

    नव्या की शैतानियां ही दोनों घरों की रौनक है, उसको बदलने की कोशिश मत कर, क्योंकि मुझे मेरी बच्ची ऐसे ही चाहिए। चिंता मत कर, शादी के बाद जब वो शरारतें करेंगी तो मैं तुझको सुनाने नहीं आऊंगी।

    चल, अब मुस्कुरा दे, मैंने तेरी इतनी बड़ी परेशानी हल कर दी है। तू तो बस दिन गिनना शुरू कर दे। एक बार दोनों बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाएं, फिर मैं अपनी इस इच्छा को पूरा करूंगी। नव्या मेरे घर की बहू बनेगी, जिसे मैं अपनी बेटी बनाकर रखूंगी और वैसे भी अभी वो बच्ची है, धीरे-धीरे समझदार भी हो जाएगी।"

    नंदिनी जी ने उन्हें समझाया, तब जाकर उनका गुस्सा कुछ कम हुआ और दोनों अब नव्या को देखने चले गए।

    To be continued....

  • 6. Love Beyond Pain - Chapter 6

    Words: 1968

    Estimated Reading Time: 12 min

    आदि उस वक्त में खोया हुआ था जब उसकी नव्या उसके साथ हुआ करती थी। दोनों एक-दूसरे के साथ हमसाएं की तरह चलते थे, जहाँ सिर्फ और सिर्फ खुशियाँ हुआ करती थीं। अचानक ही उसका फोन बजने लगा और फोन की रिंगटोन उसे वर्तमान में खींच लाई। ऐसा वक्त जहाँ उसकी नवु उसके पास नहीं थी, वो एकदम तन्हा था और पल-पल उसकी याद में तड़प रहा था।

    उसकी आँखें अब भी नम थीं और आँसू हथेली में पकड़ी नव्या की तस्वीर को भिगो रहे थे। आदि ने अपने आँसुओं को साफ किया, फिर फोटो को अपनी टी-शर्ट से साफ करते हुए उसको वापस टेबल पर रखा। उसने गहरी साँसें लीं, इस वक्त उसको ऐसा लग रहा था मानो उसे साँस न आ रही हो, घुटन महसूस हो रही थी, जैसे किसी ने उसके आस-पास की हवा को छीन लिया हो और अब वो दम घुटने से मर जाएगा।

    उसने गहरी साँस छोड़ते हुए खुद को सामान्य किया, फिर फोन की तरफ निगाहें घुमाईं तो उसके दिल की गहरी खामोशी और सूनेपन की तरह ही फोन भी एकदम खामोश हो चुका था।

    फोन कट चुका था और अब स्क्रीन एक बार फिर काले रंग में सराबोर हो चुकी थी, बिल्कुल वैसे जैसे उसकी जिंदगी अंधेरे मे डूब चुकी थी, दूर-दूर तक रोशनी की कोई किरण ही नजर नहीं आ रही थी।

    उसने फोन उठाकर चेक किया तो स्क्रीन पर काव्या नाम शो हो रहा था। आदि ने उसी नंबर पर वापस कॉल कर दिया। एक रिंग जाते ही दूसरी तरफ से कॉल रिसीव हो गई और इसके साथ ही एक लड़की की हल्की गुस्से भरी आवाज आदि के कानों में पड़ी, "आदि, कहाँ हो तुम? तुम भूल गए आज तुम्हें मेरे साथ डिनर पर जाना था।"

    आदि की निगाहें एक बार फिर टेबल पर रखी नव्या की तस्वीर की तरफ घूम गईं। चेहरे पर दर्द, तड़प और आँखों में सूनापन पसर गया। उसकी धड़कनें मद्धम पड़ने लगी थीं। उसने एक बार फिर मुंह से कुछ साँसें लीं, वो अपनी हर साँस के लिए संघर्ष कर रहा था, लड़ रहा था खुद से। उसने किसी तरह अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए आराम से कहा, "सॉरी यार काव्या, पर मेरा बाहर जाने का बिल्कुल मन नहीं है। कभी और चलेंगे डिनर पर।"

    उसने बहुत कोशिश की अपने दर्द, तकलीफ और उदासी को छुपाने की, पर दूसरी तरफ मौजूद लड़की उसकी आवाज से उसके दिल के हाल को समझ गई। उसने गंभीरता से कहा, "फिर से नव्या को याद कर रहा है?"

    "याद करने के लिए उसे भूलना पड़ता है। मेरी तो हर धड़कन सिर्फ उसे पुकारती है, मेरी हर साँस उसके लिए चलती है, मेरी निगाहों को तो हर पल उसका इंतजार होता है, मेरी आत्मा हर पल उससे मिलने को तड़पती है, जो मेरी साँसों में बसी है, जिसका न होना मेरी धड़कनों को मद्धम कर देता है। जिसकी कमी ने मेरी जिंदगी को सूना कर दिया है, जिसे एक पल के लिए भी भूलना मुमकिन नहीं, जिसके बिना मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं, उसे याद कैसे कर सकता हूं मैं? वो तो हर पल मेरे सीने में धड़कन बनकर धड़कती है।"

    कितना बेबस और मजबूर था वो। उसका दर्द उसकी बातों में झलक रहा था। उसकी बात सुनकर काव्या कुछ पल खामोश रह गई, शायद वो भी आदि के दर्द का अंदाजा लगा रही थी।

    कुछ सेकंड बाद उसने आगे कहा, "आदि, बुरा मत मानना, पर मैंने तुम्हें सालों से नव्या का इंतजार करते, उसके लिए तड़पते देखा है, पर नव्या कहां है, ये तक नहीं जानते तुम। उसने इतने सालों में एक बार भी तुमसे बात तक करने की कोशिश नहीं की। मुझे लगता है कि तुम एक भ्रम के पीछे भाग रहे हो।

    शायद नव्या के दिल में तुम्हारे लिए कुछ था ही नहीं। शायद वो कब का तुम्हें और तुम्हारी दोस्ती को भुलाकर आगे बढ़ गई है। तुम्हें भी अब अतीत की उन यादों के पीछे भागना बंद कर देना चाहिए जो तुम्हें सिर्फ और सिर्फ तकलीफ देगी। भूल जाओ नव्या को और अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो।"

    उसकी बातें सुनकर आदि के लबों पर दर्द भरी मुस्कान तैर गई। उसने टेबल पर रखी नव्या की तस्वीर को उठाया और उसको बड़े प्यार से निहारते हुए बोला, "काव्या, क्या तुम साँसें लेना भूल सकती हो?"

    उसका सवाल सुनकर काव्या हैरान हो गई। वो समझ नहीं सकी कि आखिर आदि ने ये सवाल क्यों किया और क्या मतलब हुआ इस सवाल का। वो खामोश रही, क्योंकि उसके सवाल में उलझ गई थी वो।

    आदि ने ही कुछ देर बाद कहना शुरू किया, "जवाब समझ नहीं आया? मैं बताता हूं। नहीं भूल सकती तुम सांस लेना, क्योंकि अगर तुमने सांस लेना छोड़ दिया तो घुट-घुट कर दम तोड़ दोगी तुम। जिंदा रहने के लिए ऑक्सीजन जितनी जरूरी होती है, उससे कहीं ज्यादा अहम है मेरी नव्या की यादें मेरे लिए। तुम हमारे रिश्ते की गहराई से अभी तक वाकिफ नहीं हो, इसलिए ये सब बोल गई। अगर एहसास होता तुम्हें हमारे रिश्ते की गहराई का, हमारे प्यार का, तो तुम कभी ये नहीं कहती।

    नव्या मेरे लिए क्या है, ये मैं तुम्हें शब्दों में बयां करके नहीं बता सकता, न ही तुम्हें ये समझा सकता हूं कि मेरी नवु की जिंदगी में क्या जगह रही थी। फिर भी एक छोटी सी कोशिश करता हूं, शायद तुम हमारे रिश्ते को समझ पाओ। जैसे आदि और नव्या एक-दूसरे के पर्याय हैं। आदि अगर सूरज की किरणें हैं, तो नव्या नया उजाला।

    आदि अगर शरीर है, तो उसकी रूह में बसी नव्या। आदि अगर दिल है, तो उसकी जान है नव्या। आदि अगर तपिश है, तो नव्या बारिश की वो ठंडी फुहार है जो इस तपिश को अपनी शीतलता से मिटाती है। आदि की हर सांस में नव्या बसी है और नव्या की हर धड़कन अपने आदि को पुकारती है। आदि के बिना नव्या का कोई अस्तित्व नहीं और नव्या के बिना आदि का वजूद अधूरा है। नव्या है तो आदि है और अगर आदि है, तो नव्या को भी होना होगा। लोग दिल से जुड़े होते हैं, पर हमारा रिश्ता रूह से बंधा है, जो कोई नहीं तोड़ सकता।

    सही कहा तुमने, इन सालों में मुझे नव्या की कोई खबर नहीं मिली। हमारी कोई बात नहीं हुई। वो अपने सपनों के पीछे पागल थी और मुझसे वादा लिया था कि मैं उसे फोन नहीं करूंगा, अपने सपने को पूरा करने में सारा ध्यान लगाऊंगा और मैं बेवकूफ उसके वादे में बंधकर रह गया।

    प्रिपरेशन के दौरान हमारी कोई बात नहीं हुई, उसके बाद सिलेक्शन, ट्रेनिंग, फिर पोस्टिंग। मौका नहीं मिला नव्या से बात करने का। जब IPS बनकर लौटा तो बहुत कोशिश की उसे फोन करने की, पर उसका नंबर नहीं लगा। अंकल-आंटी से भी कोई बात न हो सकी। मॉम-डैड से जितनी बार उनके बारे में पूछा, उन्होंने हर बार बहाना बनाकर टाल दिया और अपने झूठे बहानों से मुझे भी कनविंस कर लिया कि मैं यहां न आऊं, विश्वास दिलाया मुझे कि यहां सब ठीक है, नव्या अपने सपनों को पूरा करने में busy है और अभी मुझसे मिलना नहीं चाहती।

    उस बेवकूफ लड़की के पागलपन से वाकिफ था मैं, जानता था कि उसका सपना ही उसकी जिंदगी है, जिसे पूरा करने के लिए वो पागलों जैसे मेहनत करती है, इसलिए मैंने भी उसे डिस्टर्ब नहीं करना ही ठीक समझा।

    सबने मुझे यहां आने से रोकने की बहुत कोशिशें कीं और कामयाब भी रहे, पर शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। मेरी पोस्टिंग यहां हो गई। मेरी तो जैसे खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा था। इतने सालों से नव्या से दूर था और अचानक ही मुझे अपने प्यार से मिलने, उसके साथ रहने का मौका मिल गया।

    यहां आया तो सबसे पहले उस घर गया जहां हमारा बचपन बीता था, कितनी सारी खूबसूरत यादें जुड़ी थीं उस जगह से, उस घर से हमारी। सोचा था वहां जाकर नव्या को सरप्राइज दूंगा, पर हम जो सोचते हैं, हमेशा वो होता कहां है? उसके सामने अचानक जाकर उसे सरप्राइज देना चाहता था, पर वहां पहुंचा तो मुझे ही शॉक मिल गया। .... कोई नहीं था वहां। आस-पास पूछने पर पता चला कि उन्होंने सालों पहले वो घर खाली कर दिया था और अब वो कहां रहते हैं, कोई नहीं जानता।

    नव्या ने मुझे कभी इस बारे में नहीं बताया था, जबकि वो कभी मुझसे कुछ भी नहीं छुपाती थी। नहीं जानता उसने मुझे इस बारे में क्यों नहीं बताया, पर विश्वास है मुझे अपनी नवु पर, अगर उसने अपने आदि से कोई बात छुपाई है, तो उसकी कोई न कोई वजह जरूर रही होगी।

    मैंने नव्या के कॉलेज में जाकर पता किया, तब मुझे पता चला कि नव्या ने अचानक ही कॉलेज आना छोड़ दिया। ये सच अप्रत्याशित था मेरे लिए। दिमाग ब्लैंक पड़ गया था, समझ ही नहीं आया कि हो क्या रहा है यहां? नव्या आखिर है कहां? मॉम-डेड से पूछा तो वो खामोश रहे, पर इतना समझ गया मैं कि सब मिलकर मुझसे कोई बहुत बड़ा सच छुपा रहे हैं। इन सालों में कुछ तो गलत हुआ है, जो मुझे नहीं पता।

    मेरी नवु ऐसी नहीं है कि इतने सालों तक अपने आदि से बिना बात किए रह जाए। वो तो एक दिन भी मुझसे बात किए बिना गुजार देती थी तो बेचैन हो उठती थी। इस बात पर मैंने पहले ध्यान ही नहीं दिया।

    तुम कह रही हो कि वो मुझे भूल गई है, तुमने हमारे रिश्ते को ठीक से समझा ही नहीं। हमारी रूह जुड़ी है, दिल से किसी को निकालना फिर भी possible है, पर रूह में बसी खुशबू ताउम्र हमारे साथ रहती है। नव्या कभी अपने आदि को भूल ही नहीं सकती, बिल्कुल वैसे ही जैसे आदि कभी अपनी नवु को भूलकर जिंदा नहीं रह सकता।"

    आदि ने दर्द भरी आह्ह् छोड़ी, "मेरी हर सांस में समाई बेचैनी गवाह है कि मेरी नवु किसी मुसीबत में है। वो जिंदा है, क्योंकि मेरी साँसें चल रही हैं, पर ये थमती साँसें, ये भारीपन एहसास करवा रहा है मुझे कि मेरी नवु की हर सांस तड़पकर मुझे पुकार रही है और ये वादा है मेरा खुदसे कि चाहे मुझे किसी भी हद से क्यों न गुजरना पड़े, पर मैं अपनी मोहब्बत को ढूंढकर ही रहूंगा।

    अभी तो यहां आए हुए बस दो ही दिन हुए हैं और मैंने इतना कुछ पता कर लिया है, बहुत जल्द मैं सारी राज़ पर से पर्दा उठा दूंगा। अपनी नवु को मैं किसी भी कीमत पर ढूंढकर ही रहूंगा।

    तम दोस्त हो मेरी, इसलिए आज जो तुमने कहा, उसके लिए माफ कर दिया तुम्हें, पर दोबारा कभी मेरी नव्या के बारे में ऐसी घटिया बातें मत कहना। नव्या हमेशा अपने आदि की थी, वो कभी मुझे नहीं भूल सकती। अगर वो मुझसे दूर है, मतलब वो किसी ऐसी मुश्किल में फंसी है, जहां से निकलना मुमकिन नहीं उसके लिए, पर मैं उसे हर मुश्किल से बाहर निकालूंगा।

    मैं उसे वापस अपनी जिंदगी में शामिल करूंगा। बस एक बार पता चल जाए कि आखिर नवु है कहां, उसके बाद मैं एक पल के लिए भी उसे खुद से दूर नहीं जाने दूंगा, हमेशा अपने पास महफूज रखूंगा। एक गलती पहले कर चुका हूं, अब किसी गलती की कोई गुंजाइश नहीं है। नव्या को मैं ढूंढकर ही रहूंगा।"

    आदि की आंखों में जुनून नजर आ रहा था नव्या को पाने का। शायद यही उनके रिश्ते की पहचान थी। एक का दर्द दूसरा बखूबी महसूस कर पाता था, चाहे वो एक-दूसरे से दूर ही क्यों न हो, पर अपने प्यार की तकलीफ का एहसास होता था उन्हें। नव्या जिस दर्द से गुजर रही थी, वो आदि को भी तड़पा रहा था, जबकि वो अभी कुछ भी नहीं जानता था।

    काव्या ट्रेनिंग से पहले से आदि को जानती थी, नव्या के लिए उसकी रूहानी मोहब्बत देखी थी उसने, पर उनके प्यार की गहराई को उसने भी आज पहली बार महसूस किया था।

    वो एकदम खामोश होकर आदि की बात सुन रही थी। आदि ने अपना दिल चीरकर उसके सामने रख दिया था और उस दिल के हर कोने में सिर्फ और सिर्फ नव्या बसी थी।

    To be continued....

  • 7. Love Beyond Pain - Chapter 7

    Words: 2336

    Estimated Reading Time: 15 min

    आदि की आँखों में नव्या को पाने का जुनून साफ दिखाई दे रहा था। शायद यही उनके रिश्ते की पहचान थी। एक का दर्द दूसरा बखूबी महसूस कर पाता था, चाहे वे एक-दूसरे से दूर ही क्यों न हों। अपने प्यार की तकलीफ का एहसास उन्हें होता था। नव्या जिस दर्द से गुज़र रही थी, वो आदि को भी तड़पा रहा था, जबकि वो अभी कुछ भी नहीं जानता था।

    काव्या, ट्रेनिंग से पहले से आदि को जानती थी। नव्या के लिए उसकी रूहानी मोहब्बत उसने देखी थी, पर उनके प्यार की गहराई को उसने भी आज पहली बार महसूस किया था।

    वो एकदम खामोश होकर आदि की बात सुन रही थी। आदि ने अपना दिल चीरकर उसके सामने रख दिया था और उस दिल के हर कोने में सिर्फ और सिर्फ नव्या और उसके लिए बेशुमार मोहब्बत बसी थी।

    दोनों ओर से अब खामोशी छाई हुई थी। काव्या समझ नहीं पा रही थी कि आगे क्या कहे, और आदि, आँखों में तड़प लिए, नव्या की फोटो को एकटक देख रहा था। कुछ पल की खामोशी के बाद काव्या की उदास आवाज़ आदि के कानों में पड़ी,

    "सॉरी आदित्य, मेरा इरादा तुम्हें हर्ट करने का बिल्कुल नहीं था। नव्या को लेकर मेरे दिल में कोई भी गलत भावना नहीं है। मेरी नज़रों में तो वो बहुत लकी है, जिसे तुम्हारे जैसा प्यार करने वाला दोस्त और महबूब मिला। अगर तुम उस पर इतना विश्वास करते हो और इतनी गहरी मोहब्बत है तुम्हारे बीच, तो तुम ठीक ही कह रहे होगे।

    नव्या को ढूंढने में मैं तुम्हारी मदद करूँगी। अगर तुम्हें तुम्हारा प्यार, तुम्हारी नव्या मिल जाती है, तो मुझे बेहद खुशी होगी। आगे से मैं कभी नव्या को लेकर कुछ भी गलत नहीं कहूँगी, पर एक बात कहना चाहूँगी मैं तुम्हें।

    अगर तुम यूँ कमज़ोर पड़ोगे, इतनी तकलीफ दोगे खुदको, तो नव्या जहाँ भी होगी, वो भी वही तकलीफ महसूस करेगी। इसलिए, हो सके तो ये उदासी छोड़ दो। हम मिलकर नव्या को ज़रूर ढूंढ लेंगे। बस तुम खुदको और तकलीफ मत दो।"

    काव्या की दर्द भरी आवाज़ आदि के कानों में पड़ी, तो उसने अपनी पलकें बंद कर लीं। आँखों के सामने नव्या का मुस्कुराता हुआ चेहरा घूम गया। उसने आँखें बंद किए हुए ही कहा,

    "आई एम सॉरी काव्या, मैं जानता हूँ कि मुझे दर्द में देखकर तुम्हें तकलीफ होती है। तुम मेरे लिए क्या फील करती हो, ये भी मुझे बखूबी मालूम है, पर मेरी मोहब्बत पर सिर्फ और सिर्फ नव्या का हक़ है। मेरी हर साँस उसको पुकारती है, मेरी हर धड़कन उसके इंतज़ार में धड़कती है। मैं कभी तुम्हें वो प्यार नहीं दे सकूँगा, जो तुम डिज़र्व करती हो। और ये दर्द... ये दर्द उस दिन मिटेगा, जिस दिन मुझे मेरी नवु सही-सलामत वापस मिल जाएगी।"

    "तुम्हें माफी मांगने की ज़रूरत नहीं है, आदि। दिल पर कभी किसी का ज़ोर नहीं चला। तुम्हारी हर धड़कन में नव्या बसती है और मेरे दिल में तुम। तुम अपनी जगह बिल्कुल सही हो। तुम दोनों का रिश्ता तो जन्म के साथ से जुड़ा हुआ है, पर मैं भी गलत नहीं हूँ।

    डोंट वरी, मैं कभी बदले में तुमसे प्यार नहीं माँगूंगी, बस मुझे अपनी दोस्ती दे दो। अगर मैं तुम्हारी हमसफ़र न बन सकी, तो इस बात का मुझे कोई ग़म नहीं है, पर तुम मुझे अपना हमदर्द बनने दो। तुम्हारा प्यार न मिले, तो कोई गिला नहीं, पर तुम्हारे प्यार को तुम तक पहुँचाने में मुझे थोड़ी मदद करने दो।"

    "ठीक है, कल बात करते हैं इस बारे में। अभी रात हो गई है, तो जाकर आराम करो। वैसे भी कल से हमें अपने केस पर काम भी करना है। जो लीड मिली है, उसको फॉलो करना होगा। अब और देर नहीं कर सकते हम। जिस काम के लिए हमें यहाँ भेजा गया है, वो काम कल से ही शुरू करना होगा।"

    आदि अब एकदम गंभीर लग रहा था। उसकी बात सुनकर काव्या ने हैरानी से कहा, "क्या हो तुम? इतनी तकलीफ में हो, फिर भी तुम्हें उस केस की फिक्र है?"

    "फ़र्ज़ सबसे पहले आता है, काव्या। मेरी पर्सनल लाइफ में चाहे जितनी ही प्रॉब्लम हो, पर उसके लिए मैं अपने फ़र्ज़ को निभाने से पीछे तो नहीं हट सकता। हर हाल में देश की निस्वार्थ सेवा और अपना दायित्व निभाने की शपथ ली थी हमने, और हमें अपने फ़र्ज़ को सबसे ऊपर रखना होता है।"

    इस वक़्त आदि के चेहरे पर गंभीर भाव थे, जज़्बा था कुछ कर गुजरने का। अपने फ़र्ज़ के प्रति उसकी निष्ठा उसकी बातों में झलक रही थी। उसकी बात सुनकर काव्या काफी इम्प्रेस हो चुकी थी।

    यही आदि की पहचान थी, हर मुश्किल से डटकर लड़ता था। कितनी ही मुश्किल परिस्थिति क्यों न हो, वो कभी हार नहीं मानता था। मुश्किलों से लड़कर जीतना बखूबी आता था उसे। अपने इसी जज़्बे, साहस और देश के प्रति सच्ची निष्ठा के बल पर उसने ट्रेनिंग में बेस्ट ट्रेनी की ट्रॉफी भी हासिल की थी।

    आदि ने 'बाय' कहकर फोन काटा, फिर नव्या की तस्वीर को अपनी उंगलियों से छूते हुए बोला, "तुम जहाँ भी हो, अपने आदि पर विश्वास रखना। मैं बहुत जल्द तुम्हें ढूंढ लूँगा।"

    उसने उस तस्वीर को चूम लिया, फिर उसको टेबल पर रखकर उठकर उसी फ्लैट में बने दूसरे कमरे में चला आया, जो उसका मिनी ऑफिस था। केस से जुड़ा काम वो यहीं करता था। कई सारी फाइल्स रखी थीं वहाँ। टेबल पर कई पेपर्स, कुछ फोटोज और मार्कर रखा हुआ था। सामने व्हाइट बोर्ड था। आदि ने मार्कर लिया और उस बोर्ड पर कुछ नाम लिखने के बाद अपने नए केस के लिए स्ट्रेटजी बनाने लगा।

    आधी रात के बाद वो अपने कमरे में लौटा और एक बार फिर नव्या के ख्यालों में खो गया।

    दूसरी तरफ, नव्या भी आधी रात तक बाहर बालकनी में खड़ी, खाली आँखों से आसमान को तकती रही, फिर अंदर कमरे में चली आई, जो किसी सोने के पिंजरे जैसा था उसके लिए। जहाँ पल-पल उसका दम घुटता था, पर वो मर भी नहीं पाती थी। वो जाकर बिस्तर पर लेट गई और एक बार फिर अतीत की यादों में खो गई।

    **फ्लैशबैक**

    महिमा जी की डांटने पर नव्या नाराज़ होकर वहाँ से चली गई, तो उसके पीछे-पीछे आदि और आर्यन दोनों ही वहाँ से चले गए थे। वो वक़्त था, जब नव्या अकेली नहीं हुआ करती थी।

    आज उसे कितना ही दर्द हो, पर वो अकेली उसे सहती है। कोई नहीं होता उसके पास, जिससे वो अपना दर्द बांट सके, पर एक वो वक़्त था, जब उसकी आँखों में आए एक आँसू पर कितने ही लोग बेचैन हो जाते थे और उसको संभालने के लिए उसके पास पहुँच जाते थे।

    नव्या की आँखों में आँसू देखकर आदि का दिल बेचैन हो उठा, तो वो उसको पुकारते हुए उसके पीछे दौड़ गया। लेकिन नव्या इस वक़्त बहुत उदास थी, उसने आदि की कोई बात नहीं सुनी और दौड़ती हुई अपने घर पहुँच गई।

    जैसे ही उसने अपने कमरे में घुसकर दरवाज़ा बंद करने की कोशिश की, आदि वहाँ पहुँच गया और उसने उसको दरवाज़ा बंद करने से रोकते हुए कहा, "नवु..."

    "आदि, मुझे अभी किसी से कोई बात नहीं करनी है। जाओ यहाँ से, मुझे अकेले रहना है।" नव्या ने उसकी बात काटते हुए कहा और अपनी हथेलियों से अपने आँसू पोंछते हुए दरवाज़ा बंद करने लगी, पर आदि ने उसको रोक दिया और खुद अंदर चला आया।

    नव्या ने उसको जाने के लिए कहा, पर उसने मना कर दिया। नव्या उसके सामने खड़ी सुबकने लगी। आदि ने उसकी बाँह पकड़कर उसको अपने गले से लगा लिया।

    नव्या ने उसके सीने से लगे हुए ही रोते हुए कहा, "मैं क्या सच में इतनी बुरी हूँ कि माँ हमेशा मुझे डांटती रहती है? देखा तुमने, वो मुझे शादी करके यहाँ से भगाना चाहती है। मुझे शादी नहीं करनी है। मैं कभी शादी नहीं करूँगी, मुझे यहाँ से नहीं जाना, मैं हमेशा यहीं रहना चाहती हूँ तुम्हारे, मम्मी-पापा, अंकल-आंटी और भाई के साथ।"

    "हाँ, तुम हमेशा यहीं रहोगी हमारे साथ। मैं आंटी को तेरी शादी नहीं करने दूँगा। तू हमेशा यहीं रहेगी मेरे पास। चल, अब चुप हो जा। आंटी ने ऐसे ही तुझे चिढ़ाने के लिए वो कहा होगा। तू बेवजह इतने आँसू बहा रही है। मेरी नवु तो बहुत स्ट्रांग है न? फिर इतनी सी बात पर बच्चों जैसे क्यों रो रही है?

    चल, चुप हो जा। मैं तुझे कभी खुदसे दूर नहीं जाने दूँगा, तू हमेशा हमारे साथ रहेगी। और तू तो बहुत प्यारी है, बस थोड़ी शैतान है न, इसलिए आंटी तुझसे परेशान हो जाती है। पर तू चिंता मत कर, मैं अंकल से कह दूंगा कि तुझे कभी यहाँ से दूर न भेजें, फिर हम हमेशा साथ रहेंगे। तू खूब शरारत करना और मैं तुझे डांटूंगा भी नहीं, आंटी की डांट से भी बचा लूंगा।"

    आदि ने उसकी पीठ सहलाते हुए उसको समझाकर चुप करवाने की कोशिश की। गेट पर खड़ा आर्यन दोनों को देखकर मुस्कुरा रहा था। बचपन से ही, जब भी नव्या दुखी या उदास होती थी, तो आदि उसको ऐसे ही संभालता था।

    महिमा जी और नंदिनी जी भी वहाँ पहुँच गयी थीं और नव्या और आदि को साथ देखकर दोनों की निगाहें एक-दूसरे की तरफ घूम गयी थीं। शायद उन्हें अपने सपने के सच होने की पूरी संभावना नज़र आ रही थी, और ये देखकर दोनों ही मुस्कुरा रही थीं।

    नव्या अब भी उसके सीने से लगे सिसक रही थी। अपने माँ-बाप से दूर जाने के ख्याल से ही उसके आँसू बहने लगे थे, जो अब रुक ही नहीं रहे थे।

    आदि ने जब देखा कि नव्या चुप नहीं हो रही थी, तो उसने उसका ध्यान भटकाने के लिए उसको खुदसे दूर करते हुए कहा, "अब चुप भी हो जा यार, इतना रोएगी तो तेरी नाक बहने लगेगी।"

    उसकी बात जैसे ही नव्या के कानों में पड़ी, उसकी सिसकियां एकदम से रुक गईं। उसने चौंक कर आदि को देखा, तो आदि उसको चिढ़ाने लगा।

    नव्या के हाव-भाव एकदम से बदल गए। उसने गुस्से में कहा, "तुम मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो? बहुत मारूंगी मैं तुझे, समझा मेरी कोई नाक-वाक नहीं बहती है!"

    "अच्छा, वो तो अभी पता चल जाएगा, देख तेरी नाक बहनी शुरू भी हो गयी।" आदि ने फिर से उसको चिढ़ाया और नव्या चिढ़ भी गई। उसने आदि की तरफ बढ़ते हुए कहा, "हाँ, मेरी नाक बहती है और अब मैं तेरी टी-शर्ट गंदी करने वाली हूँ!"

    आदि कुछ समझ पाता, उससे पहले ही नव्या ने आगे बढ़कर उसकी टी-शर्ट में अपना मुँह पोंछ लिया। आदि चौंक कर पीछे हटा और आँखें बड़ी-बड़ी करते हैरानी से बोला, "पागल हो गयी है क्या? मेरी टी-शर्ट गंदी कर दी!"

    "तो तूने ही कहा था न कि मेरी नाक बहती है, तो मैंने तेरी ही टी-शर्ट में मुँह पोंछ लिया। अगर दोबारा मेरे बारे में बकवास की, तो अगली बार मुँह नहीं, नाक साफ़ कर लूंगी तेरी शर्ट में, समझा बंदर!" नव्या ने इतराते हुए कहा। उसकी बात सुनकर आदि का मुँह बन गया और नव्या उसकी शक्ल देखकर खिलखिलाकर हंस पड़ी। उसकी खोई मुस्कान लौट चुकी थी और उसकी खिलखिलाती निश्छल हंसी आदि के लबों पर मुस्कान ले आई।

    नव्या को हँसता देख आर्यन ने अंदर आते हुए मुस्कुराकर कहा, "चलो, आदि की मेहनत सफल रही। भले ही टी-शर्ट खराब हो गई हो, पर नव्या का मूड तो ठीक हो गया।"

    उसकी बात सुनकर नव्या और आदि दोनों ने पहले उसे देखा, फिर एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए। नव्या की नज़र जैसे ही दरवाज़े पर खड़ी महिमा जी पर पड़ी, उसकी मुस्कान पल में गायब हो गई और उसने नाराज़गी से अपना मुँह फुला लिया।

    महिमा जी और नंदिनी जी दोनों ने एक-दूसरे को देखा, फिर अंदर की तरफ बढ़ गए। नव्या ने महिमा जी की तरफ से नज़रें घुमा लीं। नंदिनी जी उसके पास चली आईं और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, "क्या हुआ हमारी गुड़िया को? नाराज़ है वो हमसे?"

    नव्या ने सिर उठाकर उन्हें देखते हुए कहा, "नहीं, मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ, माँ से गुस्सा हूँ। वो मुझे अभी से यहाँ से भगाना चाहती है। मैं नहीं करूँगी कोई शादी-वादी, मैं हमेशा ऐसे ही आप सबके साथ रहूँगी।"

    नव्या ने नाराज़गी से मुँह फुलाकर महिमा जी को देखकर अपनी आखिरी बात कही और नाराज़गी से मुँह फेर लिया। उसकी बात सुनकर महिमा जी ने मुस्कुराकर कहा, "ठीक है, अगर तुम नहीं चाहती, तो हम दोबारा तुम्हारी शादी की बात नहीं करेंगे। अब तो अपनी माँ को देख लो।"

    "ऐसे नहीं, पहले आप वादा करिए कि कभी मेरी शादी करके मुझे खुदसे और पापा से दूर नहीं भेजेंगी, हमेशा अपने पास रखेंगी। मैं हमेशा आपके पापा के, अंकल-आंटी, आर्यन भाई और आदि के साथ रहना चाहती हूँ।"

    "हम भी तो यही चाहते हैं बेटा, इसलिए हमने सोचा है कि जब आप और आदि बड़े हो जाएंगे, तो हम आप दोनों की शादी करवा देंगे, फिर तुम्हें हमसे दूर नहीं जाना पड़ेगा और तुम हमेशा हम सबके साथ रह सकोगी।"

    नंदिनी जी ने यूँ ही मज़ाक में आदि और नव्या के सामने इस मुद्दे को उठा दिया, ताकि नव्या का ध्यान उस बात से हट सके। हालांकि वो यही चाहती थीं, पर अभी से बच्चों पर वो ऐसा कोई प्रेशर नहीं डालना चाहती थीं। उन्हें पूरा वक़्त देना चाहती थीं, अपनी ज़िन्दगी के फैसले लेने का।

    उनके इस मज़ाक को सुनकर नव्या कुछ पल कंफ्यूज निगाहों से कभी उन्हें, तो कभी आदि को देखती रही, फिर एकदम से चहकते हुए बोली, "हाँ, ये सही रहेगा। आदि से शादी करके मैं हमेशा आप सबके साथ रहूँगी। आंटी मेरी शैतानियों पर मुझे डाँटेंगी भी नहीं... कितना मज़ा आएगा।"

    नव्या ऐसे खुश हो रही थी, जैसे शादी उसके लिए कोई गुड्डा-गुड़िया का खेल हो। खैर, अभी वो थी भी छोटी। उसको तो आदि से शादी करना बहुत एक्साइटिंग लग रहा था, जबकि शादी के मायने तक नहीं जानती थी वो अभी। उसके लिए शादी का मतलब था कि उसे उस इंसान के साथ रहना होगा और आदि तो उसका बेस्ट फ्रेंड था, इसलिए वो इस बात से बहुत खुश हो रही थी।

    वहीं आदि ने नंदिनी जी और नव्या की बात सुनी, तो एकदम से घबराहट में बोला, "मैं नहीं करूँगा इस छिपकली से शादी। ये मुझे इतना परेशान करती है, अपनी नाक पोंछकर मेरी टी-शर्ट भी गंदी कर देती है!"

    To be continued....

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  • 8. Love Beyond Pain - Chapter 8

    Words: 2016

    Estimated Reading Time: 13 min

    "मैं नहीं करूँगा इस छिपकली से शादी। ये मुझे इतना परेशान करती है, अपनी नाक पोंछकर मेरी टी-शर्ट भी गंदी कर देती है!"

    आदि ने तो साफ़ इनकार कर दिया। उसकी बात सुनकर सभी हैरानी से उसको देखने लगे। नव्या ने पहले तो उसे घूरा, फिर अपनी कमर पर दोनों हाथ रखते हुए अकड़ते हुए बोली,

    "अब कुछ नहीं हो सकता। मैंने कह दिया न कि तेरी शादी मुझसे होगी, मतलब मैं सारी उम्र अब तुझे ऐसे ही परेशान करूँगी और अगर ज्यादा नखरे किए तो अभी तो बस मुँह ही पोंछा है, वो भी बस एक शर्ट में। ऐसा न हो कि तेरे सारे कपड़े गंदे करके यहाँ-वहाँ फेंक दूँ, फिर तो तुझे तेरे कपड़े मिलेंगे भी नहीं, समझा!"

    आदि और नव्या दोनों गुस्से से एक-दूसरे को घूरने लगे। वहीं बाकी तीनों भी आँखें बड़ी-बड़ी करके हैरान-परेशान निगाहों से उन्हें देख रहे थे।

    सब याद करते हुए नव्या की आँखों में एक बार फिर नमी तैर गई, पर उसने उन्हें पलकों के बांध को तोड़कर बाहर आने की इजाज़त नहीं दी। चेहरा दर्द से सन गया था उसका। उसने भारी गले से खुद से ही कहा,

    "काश हम हमेशा बच्चे ही रहते... वो वक़्त वहीं ठहर जाता, जब तुम माँ-पापा, अंकल-आंटी और भाई सब मेरे साथ थे। तब तो हर बात मज़ाक लगती थी, पर अब मेरी ज़िन्दगी एक ऐसा मज़ाक बन गयी है, जिस पर हंसा भी नहीं जाता और असहनीय दर्द होने पर, भी रो भी नहीं सकती।

    तब जब आंटी ने कहा था कि मेरी शादी तुमसे करवा देंगी, तो मैं बहुत खुश हुई थी, सिर्फ इसलिए क्योंकि तुमसे शादी करने के बाद मुझे तुमसे या किसी और से दूर नहीं जाना पड़ता। तब दोस्ती थी, पर प्यार शब्द के मायने नहीं जानती थी। कितनी बेवकूफ थी मैं, जो मज़ाक में ही तुमसे शादी करने के लिए मान गई थी।

    जब प्यार के मायने समझे, तो सिर्फ तुम्हें पाया था मैंने अपने सामने। मेरे हर एहसास के साथी हमेशा से तुम्ही तो थे, लेकिन मेरी बदकिस्मती देखो, आज न वो साथ है और न ही प्यार... तुमसे मोहब्बत तो हुई, पर उसे ज़ाहिर कर पाती, उससे पहले ही किस्मत ने मुझे तुमसे दूर कर दिया और अब मैं कभी तुम्हारे पास नहीं लौट सकती।

    तुम मुझसे शादी नहीं करना चाहते थे, पर जबसे मुझे शादी के मायने समझ आए थे, मैंने अपने जीवनसाथी के रूप में सिर्फ तुम्हें देखा था। लेकिन अब मेरा वो सपना कभी पूरा नहीं हो सकता। वो नव्या, जो तुम्हारी दुल्हन बनने के सपने देखा करती थी, वो अब नहीं रही। वो नव्या तो सालों पहले मर चुकी है।

    तीन साल बीत गए, आदि। बहुत लंबा इंतज़ार किया मैंने तुम्हारा कि तुम आकर मुझे इस नरक से निकालकर ले जाओगे, पर अब मैं, मेरा विश्वास और मेरी हिम्मत, सब टूटकर बिखर गयी है। अब मुझे ज़िन्दगी से कोई उम्मीद नहीं है, क्योंकि मैं जानती हूँ कि अब मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ।

    मैं तुम्हारे क्या, किसी की भी ज़िन्दगी में शामिल होने का हक़ खो चुकी हूँ। मर्दों पर से एतबार उठ चुका है मेरा, अब तो खुद पर ही भरोसा नहीं रहा... जिस हाल में मैं हूँ, मैं मर्दों की हवस मिटाने, उनकी रातें रंगीन करने के काम आ सकती हूँ, पर अब किसी की ज़िन्दगी में उसकी अर्धांगिनी बनकर शामिल नहीं हो सकती।

    जब मैं यहाँ लाई गयी थी, तब हर पल तुम्हें पुकारती थी, इस आस से कि तुम आकर मुझे इस नरक से निकालकर ले जाओगे, पर अब तो मेरी बस इतनी ही इच्छा है कि तुम कभी मेरे सामने न आओ, क्योंकि अगर गलती से भी कभी ऐसा हो गया, तो मैं खुदसे ही नज़रें नहीं मिला पाऊँगी और शर्मिंदगी से मर जाऊँगी...

    तीन साल बीत गए, अब तक तो तुम IPS ऑफिसर भी बन चुके होगे न? अपना सपना पूरा किया होगा तुमने और मुझे देखो, मैं यहाँ खुदको, अपने सपने को भुलाकर लोगों की हसरतों को पूरा कर रही हूँ।"

    नव्या की आँखें आँसुओं से लबालब भरी हुई थीं, पर अब भी उसने उन्हें बाहर आने की इजाज़त नहीं दी। अपनी पलकों को झपकाते हुए उसने अपने आँसुओं को अपनी आँखों में ही सुखा लिया। अपनी ज़िन्दगी को कोसती रही और यूँही उसकी रात कट गयी।

    दूसरी तरफ आदि भी नव्या के बारे में ही सोच रहा था। उसके ज़हन में भी वो शादी वाली बात घूम रही थी। उसने नव्या को याद करते हुए खुदसे ही कहा, "तब मज़ाक कर रहा था मैं। दोस्त थी तुम मेरी, हाँ, प्यार क्या होता है, ये नहीं जानता था, पर तब भी मैं तुझे खुदसे दूर नहीं जाने देना चाहता था, क्योंकि मैं तुम्हें खो नहीं सकता था और न ही तुम्हारे साथ किसी और को बर्दाश्त कर सकता था।

    मेरे दिल में हमेशा से तुम थी। जब मुझे प्यार शब्द के मायने भी नहीं पता था, उससे भी पहले से दीवानों की तरह चाहता आया हूँ मैं तुम्हें। तुम्हें अपने दिल के एहसासों से रूबरू करवाना चाहता था मैं, पर उससे पहले तुम्हारे काबि‍ल बनना चाहता था। मुझे नहीं पता था कि ज़िन्दगी की इस दौड़ में, अपने सपनों के पीछे भागते-भागते तुम कहीं पीछे छूट जाओगी और जब मैं पलटकर देखूंगा, तो तुम मुझे नज़र भी नहीं आओगी।

    मैंने तो सब सिर्फ तुम्हारे लिए किया, फिर तुम मुझे बिना बताए, मुझसे खफ़ा होकर कहाँ चली गयी हो? बस एक बार मेरे सामने आ जाओ, आई प्रॉमिस, अब तुम्हें कभी खुदसे दूर नहीं जाने दूँगा। मम्मी-पापा से कहकर तुमसे शादी करके, तुम्हें हमेशा के लिए अपनी ज़िन्दगी में शामिल करके, अपने पास रख लूंगा।

    बस एक बार पता चल जाए कि तुम कहाँ हो? अंकल-आंटी का भी कुछ पता नहीं चल रहा, पर ये मेरा वादा है तुमसे, बहुत जल्द मैं तुम्हारे और अंकल-आंटी के बारे में सब पता लगा लूंगा। तुम जहाँ भी हो, मैं तुम्हें ढूंढकर ही रहूँगा।"

    आदि ने खुदसे ही वादा किया। उसकी सारी रात भी नव्या के ख्यालों में ही बीती और अगले दिन सुबह ही वो तैयार होकर अपनी जीप लेकर पुलिस स्टेशन के लिए निकल गया।

    जैसे ही अपनी जीप से बाहर निकला, हवलदार ने उसको सैल्यूट किया। आदि ने जीप की चाबी उसे सौंपी और अंदर की तरफ बढ़ गया। जैसे-जैसे वो आगे बढ़ रहा था, सभी कांस्टेबल और पुलिसकर्मी उसको सैल्यूट करते, तो आदि ने उन्हें 'विश' किया और आगे बढ़ गया।

    आदि अपने केबिन में पहुँचा, तो वहाँ पहले से ही एक लड़की मौजूद थी, जिसने पुलिस इंस्पेक्टर की यूनिफॉर्म पहनी हुई थी - सर पर कैप, चेहरे पर तेज़। वो काफी सुंदर तो थी ही, पुलिस की खाकी यूनिफॉर्म में और ज़्यादा सुंदर लग रही थी।

    आदि को देखते ही उसने उसको सैल्यूट करते हुए कहा, "गुड मॉर्निंग सर।"

    "गुड मॉर्निंग," आदि ने रिप्लाई किया, फिर अपनी चेयर पर बैठते हुए बोला, "कोई नई जानकारी मिली? या अब भी वही है, जहां पहले थे?"

    "सर, इंफ़ॉर्मेशन मिली है कि आज रात मूनलाइट क्लब में ड्रग्स की बहुत बड़ी डील फाइनल होने वाली है। अगर हम आज इस डील को होने से रोक लें और उन्हें रंगे हाथों पकड़ लें, तो हम अपने मकसद के थोड़ा करीब पहुँच जाएंगे। जो गैंग ड्रग्स की तस्करी यहाँ मुंबई में खुले आम कर रहा है, उसके हेड तक पहुँचने का अच्छा मौका है ये।"

    "hmm , मौका तो अच्छा है। हालांकि इन छोटी-मोटी डील के लिए इस गिरोह का मास्टरमाइंड बाहर नहीं आएगा, फिर भी उसके साथियों को पकड़कर, अगर उनकी अच्छे से खातिरदारी की जाए, तो कुछ न कुछ ज़रूर हाथ लगेगा, जो हमें आगे की प्लानिंग करने में मदद करेगा।

    एग्ज़ैक्ट टाइम और लोकेशन का पता करके मुझे बताओ और पहले ही चैक कर लेना, कहीं ये गलत इंफॉर्मेशन हम तक पहुंचाकर वो हमें गुमराह करने की कोशिश न कर रहा हो। अगर ऐसा हुआ, तो हम वहाँ उनका इंतज़ार करते रह जाएंगे और वो अपने काम को अंजाम देकर, हमारे नाक के नीचे से निकल भी जाएंगे और हमें पता भी नहीं चलेगा।

    मैं इस मामले में कोई लापरवाही नहीं करना चाहता, इसलिए अच्छे से कन्फर्म करने के बाद मुझे बताना। अगर ये न्यूज़ सच हुई, तो हम सिविलियन के भेष में वहाँ जाएंगे और आज ही हमारे मकसद की पहली सीढ़ी पार करेंगे।"

    उसकी बात सुनकर काव्या ने 'येस सर' कहा, फिर जाने के लिए मुड़ गई। अभी वो कुछ कदम चली ही थी कि उसके कानों में आदि की आवाज़ पड़ी, "बाहर जाकर संतोष को मेरे केबिन में भेजो।"

    "येस सर," काव्या ने हामी भरी और वहाँ से चली गयी। कुछ देर बाद हेड कांस्टेबल संतोष सिंह, आदि के सामने हाज़िर हो गया। आदि ने उसको नव्या की फोटो दी और कुछ समझाकर वहाँ से भेज दिया। उसका दिमाग एक साथ दो दिशाओं में दौड़ रहा था।

    पिछले कुछ वक़्त से मुंबई में ड्रग्स की स्मगलिंग और लड़कियों की तस्करी के मामले बढ़ गए थे। भरे बाज़ार से लड़कियां गायब हो जाती थीं, उसके बाद वो कहाँ जाती थीं, इसका किसी को पता नहीं चलता था। युवाओं में ड्रग्स कंजम्पशन के मामले भारी मात्रा में सामने आ रहे थे।

    पुलिस ने बहुत तफ़तीश की, पर कुछ हाथ नहीं लगा। आदि की पहली पोस्टिंग बैंगलोर में हुई थी, क्योंकि वहीं उसका होम टाउन था। वहाँ उसके अच्छे परफॉरमेंस को देखते हुए, उसको खास इस केस के लिए यहाँ बुलवाया गया था, जिसमें काव्या, जो कि मुंबई क्राइम ब्रांच की ऑफिसर थी, उसको असिस्ट कर रही थी।

    ट्रेनिंग में दोनों साथ थे, फिर पोस्टिंग अलग हो गयी, पर कॉन्टैक्ट में रहे और अब दोबारा दोनों साथ थे इस मिशन के लिए। आदि का पिछला रिकॉर्ड देखते हुए, उसको खास इसी मिशन के लिए यहाँ बुलाया गया था। बहुत कम वक़्त में उसने अपनी जांबाजी और समझदारी से एक अलग पहचान बना ली थी और उसकी काबिलियत को देखते हुए ही उसको चुना गया था इस मिशन के लिए।

    ड्रग्स का ज़्यादा कंजम्पशन युवा के ब्रेन को डैमेज कर रहा था, जो राष्ट्र के लिए चिंता का विषय था, क्योंकि युवा ही देश का भविष्य होते हैं। अगर वो स्वस्थ नहीं होंगे, तो देश की तरक्की का मार्ग भी बाधित होगा।

    इसके अलावा, यूँ सरे आम लड़कियों का गायब होना भारी चिंता का विषय था। लोगों में एक डर बैठ गया था, बाहर का माहौल लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं था और इस समस्या को सुलझाना भी बहुत ज़रूरी था।

    आदि इस केस को जल्दी से जल्दी सॉल्व करके असली गुनाहगार को सलाखों के पीछे डालना चाहता था, वहीं उसे नव्या को भी ढूंढना था, इसलिए वो दोनों मामलों पर अपना बराबर ध्यान लगा रहा था।

    संतोष जी को उसने उस जगह भेजा था, जहाँ वो पहले रहा करते थे, ताकि वहाँ से नव्या और उसके पेरेंट्स के बारे में कोई इन्फॉर्मेशन मिल सके। वहीं काव्या अपने खुफिया सूत्रों से जानकारी हासिल करने की कोशिश कर रही थी।

    आदि ने यहाँ आते ही अपने खुफिया जासूस पूरी मुंबई में फैला दिए थे। जहाँ-जहाँ ड्रग्स की डील होती थी, वो हर जगह उनके निशाने पर थी। कुछ लोगों की लिस्ट तैयार की थी उसने, जिन पर उसे शक था और उन पर भी नज़र रखी जा रही थी। आदि सभी कड़ियों को जोड़ने की कोशिश कर रहा था।

    शाम तक इन्फॉर्मेशन कन्फर्म हो गयी। डील रात आठ बजे होनी थी और उस क्लब में पहुँचने में ही उन्हें कम से कम पौना घंटा लगने वाला था। तो वो नॉर्मल कपड़ों में आठ बजे अपनी टीम के साथ वहाँ पहुँच गया।

    कुछ बाहर नज़र रखने लगे, तो आदि कुछ कांस्टेबलों को लेकर अंदर चला गया। सब उस क्लब में फैल गए और हर तरफ अपनी पैनी नज़र रखने लगे, पर ऐसे कि किसी को उन पर शक भी न हो।

    आदि भी एक बड़े से काउच पर बैठा था। हाथ में ड्रिंक पकड़ी हुई थी, जिसे देखकर लग रहा था, जैसे वो ड्रिंक कर रहा हो, पर वो तो बस पीने का नाटक कर रहा था। उसकी चील सी तेज़ निगाहें पूरे क्लब में घूम रही थी। अचानक ही लाइट्स ऑफ हो गयीं, तो सभी चौंकन्ने हो गए।

    सभी आपस में कनेक्टेड थे। आदि ने शांत और अलर्ट रहने को कहा, शायद उसको कुछ घटित होने का अंदेशा था, इसलिए उसने भी अपनी रिवॉल्वर निकाल ली।

    कुछ सेकंड बाद लाइट्स ऑन हुईं, पर सिर्फ सामने बने स्टेज की। रंग-बिरंगी डिम रोशनी फ्लोर पर बिखर गयी, सबकी नज़र उस दिशा में घूम गयी।

    To be continued....

  • 9. Love Beyond Pain - Chapter 9

    Words: 2271

    Estimated Reading Time: 14 min

    कुछ सेकंड बाद लाइट्स ऑन हुई पर सिर्फ सामने बने स्टेज की। रंग बिरंगी डिम् रोशनी फ्लोर पर बिखर गयी , सबकी नजर उस दिशा मे घूम गयी।

    सामने डांस फ्लोर पर उस डिम रोशनी के बीच एक कमसिन हसीना खड़ी थी। शायद डांसर थी वो। आदि ने भी फ्लोर के तरह निगाहें घुमाई और नजर सीधे उस डांसर पर चली गयी। 

    गाना शुरु हो चुका था और साथ ही उस डांसर ने अपनी अदाओं से वहाँ मौजूद आदमियों को अपना दीवाना बना दिया था। गाना भी सेक्सी बज रहा था।

    मेरी जान मेरी जान मेरी जान

    और वो डांसर डांस भी वैसे ही कर रही थी। ज़्यादातर आदमी अब उसके साथ नाचने लगे थे। उसने घुटनों तक कि स्कर्ट और चोली पहनी हुई थी, जिसका गला काफी डीप था इन शॉर्ट रिविंग ड्रेस पहनी हुई थी, आँखों के नीचे के हिस्से पर ड्रेस के सेट का कपड़ा बांधा हुआ था, पर उसकी गहरी भूरि नशीली आँखों मे एक जादू सा था और उसी का कमाल था कि आदि की नजर एक सेकंड के लिए उसपर ठहर सी गयी पर अगले ही पल उसने नफरत से अपनी नज़रे उसपर से फेर ली, घृणा उसके चेहरे पर झलक रही थी।

    वजह उसका वलगर तरीके से डांस करना और उसके आस पास मौजूद आदमियों के गंदी जगहों पर छूने पर भी उसका कोई एतराज न जताना, उल्टा उनसे और चिपक चिपक कर डांस करना था।

    उसके शरीर पर नाम मात्र का कपड़ा था वरना पूरा बदन उजागर हो रहा था उसपर वो डांस ऐसे कर रही थी कि आदमी उसे देखकर लार टपका रहे थे, कुछ तो उसको पल भर छूकर ही जन्नत की सैर का मज़ा ले रहे थे । वो डांसर भी उनके क्लॉज़ जाकर डांस कर रही थी, उन्हे अपनी अदाओं से रिझाने की कोशिश कर रही थी। अपने हुस्न के जादू से उन्हे सम्मोहित कर रही थी।

    एक लड़का जो देखने मे अमीर घर का लग रहा था वो उस डांसर के पास चला आया तो वो लड़की उसके साथ क्लॉज़ डांस करने लगी। वो लड़का बड़ी ही बेशर्मी से कभी उसके चेस्ट को सहलाता तो कभी उसके टांगों को अपनी टांगों से मसलता पर लड़की उसको खुदसे दूर नही कर रही थी। उस चोली मे लड़की के क्लीवेज के साथ साथ चेस्ट का उपर हिस्सा भी उजागर हो रहा था और वो लड़का डांस के बहाने उसके जिस्म से अपनी लालसा को मिटा रहा था।

    आदि उस तरफ देखना नही चाहता था, जाने क्यों पर उस लड़की को देखकर आदि के दिल मे अजीब से एहसास जन्म लेने लगे थे, ना चाहते हुए भी निगाहें उसी तरफ जा रही थी और उसकी मुट्ठियाँ कस चुकी थी। उसका सब्र धीरे धीरे जवाब देने लगा था, नही बर्दाश हो रहा था उससे उस लड़के का उस लड़की को यूँ छूना। चेहरे पर घृणा के साथ साथ गुस्से के भाव उभर आए थे।

    जब उससे बर्दाश नही हो सका तो वो उठ खड़ा हुआ और फ्लोर के तरफ बढ़ गया पर तभी उसके कानों मे काव्या की आवाज़ पड़ी । उसने उसको इंफोर्म किया था कि बाहर से कुछ आदमी अंदर आ रहे है जिनपर उसे शक है।

    आदि के कदम रुक गए और निगाहें गेट के तरफ घूम गयी। सही कहा था काव्या ने। कुछ ही सेकंड बाद तीन आदमियों ने अंदर कदम रखा जो कुछ अलग से लग रहे थे । आदि को भी उनपर शक होने लगा। उसका ध्यान अब उस लड़की से हटकर उन आदमियों पर चला गया था।

    वो आदमी आस पास नज़रें घुमाते हुए सीढ़ियों के तरफ बढ़ गया तो आदि ने भी अपने साथियों को पीछे आने का इशारा किया और सावधानी के साथ उन आदमियों का पीछा करने लगा।

    वो तीनों आदमी ऊपर रूफ पर पहुँचे, वहाँ पहले से ही कुछ आदमी बैठे हुए थे। शायद उन्ही का इंतज़ार कर रहे थे ।  आदमी भी अपने साथियों के साथ वहाँ पहुँचा और उन्होंने बड़ी ही सावधानी के साथ पूरे रूफ को घेर लिया।

    दोनों ग्रुप ने आपस मे बैग्स एक्सचेंज किये और जैसे ही हैंड शेक करने के बाद जाने के लिए मुड़े सामने खड़े आदि को देखकर सबके चेहरे का रंग उड़ गया।

    एक पल को कदम ठिठक गए। उन्हे इसकी उम्मीद नही थी पर अपने सामने पुलिस यूनिफॉर्म पहने आदि को देखकर वो समझ गए कि उनके इस खुफिया डील की खबर पुलिस तक पहुँच चुकी है और अब उनका बचना मुश्किल है पर यूँ आसानी से पुलिस के हाथ आकर अपनी ज़िंदगी जेल की चार दिवारी के पीछे गुजारने की भला किसकी इच्छा हो सकती थी।

    एक पल को सभी सामने खड़े आदि को देखकर ठिठके जिसके हाथ मे पकड़ी पिस्टल उन्हीं पर पॉइंट हो रखी थी पर अगले ही पल अपने बचाव मे उन्होंने भी बंदूकें निकाल ली । पर वो फायरिंग करते उससे पहले ही एक साथ उनके हाथ पर गोली लगी और उनके हाथ से बंदूक छूटकर नीचे गिर गयी।

    एक साथ हुए इस हमले से सभी सक्ते मे आ चुके थे, उन्होंने घबराकर निगाहें घुमाई तो चारों तरफ से पुलिस उनको घेरे खड़ी थे और सबने उन्हें अपनी गन के निशाने पर लिया हुआ था।

    ये देखकर वो सभी घबरा गए और अपनी जान बचाने के लिए भागने की कोशिश करने लगी। जिनके हाथ मे बैग था वो उससे पुलिस पर वार करके बचकर भागने की कोशिश करने लगे तो कुछ हाथ पाई पर उतर आए, कुछ अपनी बंदूक ढूँढने लगे पर तब तक मे आदि की टीम ने आगे बढ़कर उन सभी की अच्छी खासी धुलाई कर डाली , उसने बाद सबको घसीटते हुए नीचे लेकर चले गए।

    काव्या बाकी के टीम मेंबर्स के साथ नीचे मौजूद थी। क्लब मे आए बाकी सभी लोग दोनों तरफ घबराए हुए से खड़े थे ।  आदि ने काव्या को इशारों मे कुछ कहा तो वो सब दलालों को जिन्हे उन्होंने अभी अभी पकड़ा था उन्हें बाहर लेकर जाने लगी।

    आदि की निगाहें बरबस जी उस क्लब मे घूम गयी। शायद उसकी निगाहों को तलाश थी किसी की। उसने पूरे हॉल मे निगाहें घुमाई पर उसको ना वो लड़की कही मिली और न ही वो लड़का।

    जाने क्यों पर आदि को कुछ खाली खाली सा महसूस हो रहा था, उसने जाने के लिए कदम तो बढ़ा दिये पर ऐसा लगा जैसे उसकी ज़िंदगी का कोई अहम हिस्सा पीछे छूटता जा रहा है। नाचाहते हुए भी बार बार ज़हन मे वो भूरि आँखों वाली लड़की का अक्ष घूम रहा था।

    कुछ अलग सा जुड़ाव महसूस कर रहा था उससे, उसे देखते ही दिल की धड़कनें बढ़ गयी थी और अब वही धड़कनें बेचैनी से धड़क रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे उसका दम घुट रहा है, सांस लेने मे तकलीफ हो रही है।

    आज आदि अपने ही दिल के एहसासों को नही समझ पा रहा था। वो अपने ही ख्यालों मे उलझा हुआ बाहर पहुँचा फिर अपनी जीप मे बैठकर अपनी टीम के साथ वहाँ से निकल गया। जेल पहुँचकर सबको सैल मे बन्द करने के बाद आदि ने खुद उनकी खातिरदारी करनी शुरू की ताकि अपने बॉस के बारे मे अपने गिरोह के बारे मे वो कुछ बोले जिससे उन्हे आगे का प्लेन बनाने मे मदद मिले पर वो गुंडे अच्छे से धुलने के बाद भी अपना मुँह नही खोल रहे थे।


    आधी रात बीत चुकी थी और जैसे जैसे वक्त बीत रहा था आदि का गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था। अब ये गुस्सा इन आदमियों के मुँह न खोलने के वजह से था या उसकी कोई और ही वजह थी ये वो नही जानता था। वो गुस्से मे उनपर डंडे बरसाने लगा, अधमरि आलत होने के बाद भी न उन्होंने अपना मुँह खोला न ही आदि के हाथ थमे, हारकर जब वो बेहोशी की हालत मे पहुँच गए तो काव्या ने अंदर जाकर आदि को रोका।

    आज वो भी आदि का ये रूप देखकर हैरान थी, उसने पहले कभी ऐसे बिहेव नही किया था। उसे देखकर लग रहा था जैसे उसके सर पर खून सवार है और वो उन सबको मारने के बाद ही रुकेगा।

    काव्या ने कांस्टेबल की मदद से किसी तरफ आदि को सैल से बाहर निकाला और सैल लॉक कर दिया। आदि की गुस्से भारी लाल ज्वालामुखी सी धधकती निगाहें काव्या के तरफ घूम गयी, वो गुस्से मे उसपर गरजने वाला था पर उसका घबराया हुआ चेहरा देखकर उसने अपना चेहरा फेर लिया और पूरा दम लगाकर एक ज़ोरदार मुक्का वही रखी टेबल पर दे मारा, उसके मुक्के मे इतनी तागत थी कि टेबल और उसपर रखे समान के साथ साथ वहाँ खड़े लोग भी काँप उठे।

    अगले ही पल आदि एसक्युज़ मी कहते हुए गुस्से मे लंबे लंबे डग भरते हुए वहाँ से चला गया। काव्या आज पहली बार आदि को समझ नही पा रही थी, जो इंसान हर परिस्थिति मे शांति से काम लेता था आज उसका गुस्सा उसके कंट्रोल से बाहर हो चुका था और ऐसा क्यों था ये वो समझ नही पा रही थी।

    बाकी सब भी हैरानी से आँखे बड़ी बड़ी करके उसको देख रहे थे। काव्या ने नाइट शिफ्ट वाले ऑफिसर्स को रुकने को कहा और बाकी सबको जाने की परमिशन दे दी उसके बाद वो भी आदि के पीछे भागी और सीधे उसके कैबिन मे आकर रुकी जहाँ आदि गुस्से मे यहाँ से वहाँ चहलकदमी कर रहा था। उसकी आँखों मे लाल रेशे उभर आए था, गोरा चेहरा गुस्से से काला पड़ गया था।

    काव्या को भी आदि के सामने आने मे घबराहट हो रही थी उसने आदि को इतने गुस्से पहले कभी नही देखा था। वो उसको आज समझ नही पा रही थी जबकि वो सालों से उसे जानती थी और बहुत अच्छे से समझती भी थी। पर आज का आदि का बिहेवियर उसके नेचर से उलट था इसलिए वो भी बुरी तरह उलझ चुकी थी।

    उसने गहरी सांस छोड़ते हुए सारी उलझन को परे झटका और आदि के तरफ बढ़ गयी।

    " आदि तुम ठीक तो हो? " काव्या का सवाल सुनकर आदि के कदम ठहर गए, उसने बेबसी से अपनी आँखों को मींच लिया। चेहरा अब भी गुस्से से लाल हो रखा था और मुट्ठियाँ कसे वो खुदको कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा था। उसकी खामोशी देखकर काव्या ने चिंता भरे स्वर मे आगे कहा,

    " क्या हुआ है आदि? मैंने पहले कभी तुम्हे इतना रेस्टलेस् नही देखा। हमेशा शांति से हर सिचुएशन से डील करने वाले ऑफिसर को आज हुआ क्या है जो वो इतना अग्रेशिव बिहेव कर रहा है? पहले भी कई बार हमारा पाला इनसे भी ज्यादा ढीट गुंडों से पड़ा है पर तुमने कभी अपना आपा नही खोया है। मैंने तुम्हे ऐसे रिएक्ट करते पहले कभी नही देखा। अगर अभी मैं तुम्हे रोकती नही तो तुम उन्हें जान से मार देते। ..................

    क्या हुआ है तुम्हे इतना अग्रेशन क्यों है आज तुम्हारे अंदर? कौन सी बात तुम्हे इतना डिस्टर्ब कर रही है कि तुम खुदपर ही कंट्रोल नही कर पा रहे? बताओ मुझे जो बेचैनी और गुस्सा तुम्हारे चेहरे पर झलक रहा है वो क्यों है? ................. तुम ऐसे नही हो आदि, हर सिचुएशन मे खुदको संभालना बखूबी आता है तुम्हे फिर आज के तुम्हारे बिहेवियर की क्या वजह है? "

    काव्या अब परेशान निगाहों से आदि को देखने लगी, वो जानना चाहती थी आदि के आज के बिहेवियर के पीछे की वजह और इंतज़ार कर रही थी कि आदि कुछ तो कहेगा।

    वही आदि आज खुदके एहसासों को ही समझ नही पा रहा था, खुदमे ही उलझा हुआ था। वो अपने बिहेवियर से खुद ही सक्ते मे था कि आज उसे हुआ क्या है? ऐसे तो उसने पहले कभी रिएक्ट नही किया।

    आदि खामोशी से काव्या के सवाल सुनता रहा फिर कुछ देर खामोश रहने के बाद उसने अपनी आँखे खोली जो ज्वाला के तरफ धधक रही थी और उलझे हुए स्वर मे कहा,

    " मुझे नही पता............... मेरे पास तुम्हारे किसी सवाल का जवाब नही है ................ मैं खुद नही समझ पा रहा की आज मेरे साथ हो क्या रहा है? .............. नही जानता की क्यों अजीब सी बेचैनी और बेबसी महसूस हो रही है मुझे............... नही समझ पा रहा कि इतना गुस्सा क्यों आ रहा है मुझे? क्यों नही कंट्रोल कर पा रहा आज मैं खुदको..................

    बहुत अजीब सी फीलिंग है ये............. I cannot express it in words.................. पर नही कर पा रहा मैं अपने अग्रेशन को कंट्रोल................... दम घुट रहा है मेरा................. ऐसा लग रहा है जैसे कोई आहिस्ता आहिस्ता मुझसे मेरी साँसे छीन रहा है और मैं कुछ नही कर पा रहा....................... दिल मे ऐसी ज्वाला धधक रही है कि इस दुनिया को उसमे झुल्साकर राख करदूँ तब जाकर कही इस आग से मुझे राहत मिलेगी.............

    पता नही क्या हो रहा है आज मेरे साथ............ ये पहली बार नही है पहले भी बहुत बार ऐसा एहसास हुआ है मुझे पर मैं खुदको कंट्रोल कर लेता था लेकिन आज नही हो पा रहा मुझसे मेरा अग्रेशन कंट्रोल................... पता नही क्या हो रहा है मेरे साथ।"

    आदि कितना बेबस लग रहा था इस वक़्त। उसकी बातों से काव्या और ज्यादा परेशान हो गयी। आदि खुद भी बहुत परेशान लग रहा था। कुछ देर सोचने के बाद काव्या ने शांत लहज़े मे कहा,

    "मुझे लगता है ज्यादा स्ट्रेस लेने के वजह से ऐसा हो रहा होगा। एक काम करो तुम घर जाकर आराम करो, सुबह तक ठीक फील होने लगेगा तुम्हे। "

    आदि ने भी सोचा शायद कल रात न सोने और सुबह से नव्या और इस केस के बीच उलझे रहने के वजह से ऐसा हो रहा होगा तो उसने उसकी बात पर हामी भर दी और उसके तरफ मुड़ते हुए बोला।

    " शायद तुम ठीक कह रही हो। एक काम करो तुम भी अब घर चली जाओ रात बहुत हो गयी है कल मिलते है उसके बाद इन हरामखोरों को रिमांड पर लेंगे फिर देखते है की कैसे नही खोलते है ये अपना मुँह।"

    काव्या ने कुछ देर मे घर जाने का कह दिया और आदि को वहाँ से भेज दिया। 




    To be continued....

  • 10. Love Beyond Pain - Chapter 10

    Words: 2115

    Estimated Reading Time: 13 min

    आदि अपने जज़्बातों में उलझे हुए फ्लैट पर पहुँचा। आज वो खुद को समझ नहीं पा रहा था। रह-रहकर आँखों के सामने वो भूरि आँखें घूम जातीं, तो वो और ज़्यादा बेचैन हो उठता।

    जाने क्यों पर उस एक जोड़ी भूरि आँखों के प्रति वो अजीब सा खिंचाव महसूस कर रहा था। उसके ख़याल मात्र से दिल की धड़कनें ज़ोरों से धड़कने लगती थीं। उन भूरि ख़ामोश निगाहों में कुछ तो ऐसा था, जो आदि के दिलो-दिमाग पर छाई हुई थी।

    आदि अपने रूम में चला आया और नव्या की फोटो उठाकर एकटक उसकी निगाहों को देखने लगा। बिल्कुल वही ख़ामोश बोलती आँखें। आदि का दिमाग बुरी तरह उलझ चुका था।

    नव्या की आँखों को देखते हुए ही उसने खुद से कहा, "उस भूरि-भूरि आँखों को देखकर एक पल को मुझे लगा जैसे तुम मेरे सामने खड़ी हो। बिल्कुल तुम्हारी जैसी आँखें थीं उसकी। शायद ये एक इत्तफ़ाक़ होगा, मात्र आँखें मिल जाने से दो इंसान एक नहीं हो सकते।

    तुममें और उस डांसर में तो आकाश-पाताल का अंतर है... पर उसे देखने के बाद बहुत अजीब महसूस हो रहा था मुझे, धड़कनें बढ़ गयी थीं और न चाहते हुए भी निगाहें उसी दिशा में घूम रही थीं। जब मैं वहाँ से वापस आ रहा था, तो जाने क्यों पर मेरी निगाहों को उसकी तलाश थी। एक पल को लगा जैसे मेरी नवु मेरे सामने खड़ी है, पर ऐसा कैसे हो सकता है?

    मेरी नवु कभी किसी की बदतमीज़ी बर्दाश्त नहीं करती थी, पर वो तो किसी को भी खुदके करीब आने और छूने दे रही थी। कपड़े भी नाम मात्र के पहने थे, पूरा शरीर नज़र आ रहा था उसका। वैसे वाहियात कपड़े तुम कभी पहन ही नहीं सकती... शायद मैं ही ज़्यादा सोच रहा हूँ।

    पिछले दो दिनों से निगाहों को सिर्फ तुम्हारी तलाश है, शायद इसलिए मुझे आज धोखा हो गया कि वो लड़की तुम हो... तुम ऐसी जगह इस हालत में... नहीं, ये नामुमकिन है... ऐसा नहीं हो सकता... सब मेरा वहम है... तुम वो हो ही नहीं सकती..."

    आदि के दिल और दिमाग के बीच जंग छिड़ चुकी थी। दिल कुछ और कह रहा था और दिमाग उसे मानने से इंकार कर रहा था। शायद दिल पहचान गया था अपने प्यार को, पर दिमाग ये सच्चाई देखकर भी स्वीकारने से इंकार कर रहा था।

    आदि कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था कि नव्या उसे इस हालत में मिलेगी, इसलिए शायद वो इस सच्चाई से मुँह मोड़ रहा था, या शायद सच में ये उसकी नज़रों का धोखा था। वो लड़की नव्या थी ही नहीं। अब सच क्या था, ये तो कोई नहीं जानता था।

    आदि के दिमाग हर दलील दे रहा था उसके दिल के एहसासों को झुठलाने के लिए और आखिर में आदि ने भी अपने दिमाग की ही सुनी। उसने हेड कांस्टेबल कमलेश को फोन करके पूछा, क्योंकि दिन भर में उसको उससे बात करने का मौका नहीं मिला था।

    आज फिर उसके हाथ निराशा ही लगी, क्योंकि जहाँ उसका और नव्या का बचपन गुज़रा था, वहाँ अब सब नए लोग रहने लगे थे, जिस वजह से उसे नव्या या उसकी फैमिली के बारे में कोई इन्फॉर्मेशन नहीं मिल पा रही थी। इतना जानता था कि उन्होंने वहाँ से सालों पहले घर खाली कर दिया था, पर वो कहाँ गए, ये कोई नहीं जानता था।

    अपने मम्मी-पापा से वो इस बारे में बात नहीं कर सकता था, क्योंकि वो फिर से उसको कोई झूठी कहानी सुना देते। अब तक उसने उन्हें ये नहीं बताया था कि वो मुंबई में है, वो उनसे छुपाकर सब कर रहा था, क्योंकि उसे अब सच जानना था, नव्या को और उसके परिवार को ढूँढना था।

    उसने अपने दिमाग को समझाया कि ये बस उसका वहम है, वो डांसर नव्या नहीं थी और चेंज करके बेमन से डिनर बनाने लगा। जब तक वो नव्या के बारे में पता नहीं कर लेता, उसको चैन नहीं मिलने वाला था, पर उसे ढूँढने के लिए उसे खुदका ध्यान भी रखना था, फिर अपने देश और अपनी वर्दी के प्रति उसके कुछ फ़र्ज़ थे, कुछ ज़िम्मेदारियां थी उसके कंधे पर, जिससे वो मुँह नहीं मोड़ सकता था।

    आदि डिनर करके सोने के लिए लेट गया और नव्या की यादों में खोए हुए कब उसकी पलकें भारी हुईं और कब वो नींद की आगोश में चला गया, उसको इसका एहसास ही नहीं हुआ।


    दूसरी तरफ, उसी क्लब के एक रूम से अजीब सी आवाज़ें आ रही थीं। दरवाज़ा अंदर से लॉक्ड था। कमरे के अंदर गहरा अंधेरा छाया हुआ था। ज़मीन पर बेतरतीबी से कुछ कपड़े बिखरे हुए थे। देखने में कपड़े बिल्कुल वैसे लग रहे थे, जैसे उस बार डांसर और उसके करीब जाकर डांस करने वाले लड़के ने पहने हुए थे। उस सन्नाटे में लड़की की दबी, घुटी हुई सिसकियों की धीमी-धीमी आवाज़ गूंज रही थी।


    अगली सुबह आदि फ्रेश होकर पुलिस स्टेशन के लिए निकल गया। दिमाग अब भी उलझा हुआ था, एकदम अशांत, पर वो खुदको सामान्य बनाए रखने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा था।

    दूसरी तरफ, उस बंद अंधेरे कमरे में अब सूरज की किरणों ने अपना प्रकाश फैला दिया था, जिससे अब वो घना अंधकार अपना अस्तित्व खो चुका था। उस बड़े से किंग साइज़ बेड पर एक लड़की चादर से लिपटी पड़ी थी, चेहरा बालों से ढका हुआ था। वो लड़का अब भी उसके ऊपर लेटा हुआ था और बदहवासी में उस लड़की के जिस्म को चूम रहा था। शायद उसका उसे छोड़ने का इरादा नहीं था। लड़की एकदम सुन्न पड़ी थी, शायद बेहोश हो चुकी थी और वो लड़का उसके जिस्म के साथ इच्छानुसार खेल रहा था।

    कुछ देर बाद अचानक ही डोर नॉक हुआ, तब जाकर लड़के का ध्यान वक़्त पर गया। सारी रात बीत चुकी थी, पर उसने एक सेकंड के लिए भी लड़की को नहीं छोड़ा था। अब भी उसका दिल नहीं कर रहा था उससे दूर होने को, पर उसने अपने मन को समझाया और उस लड़की को वैसे ही छोड़कर बेड से उतर गया। ज़मीन पर बिखरे अपने कपड़े उठाकर पहने और जाकर दरवाज़ा खोला।

    सामने लगभग उसी की उम्र का एक आदमी खड़ा था। देखने में अच्छा-खासा अमीर लग रहा था, पर चेहरे से कमीनापन टपक रहा था। उन दोनों लड़कों की निगाहें टकराई, तो दोनों ही बेशर्मी से मुस्कुरा दिए।

    रूम के अंदर वाले लड़के ने उसके तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा, "कैसे है छावड़ा साहब?"

    "मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ, आप बताइए सम्राट सिंह कैसी बीती आपकी कल की रात? कोई शिकायत का मौका तो नहीं दिया मेरी जूही ने आपको?" छावड़ा, जिसका पूरा नाम अविरल छावड़ा था, उसने उससे हाथ मिलाते हुए सवाल किया।

    उसके सवाल पर सम्राट बेशर्मी से बत्तीसी निपोरते हुए बोला, "सच ही कहा है किसी ने, शराब के साथ जब शबाब मिल जाए, तो मज़ा ही आ जाए। उस पर जब इतना नशीला शबाब मिले, तो बात ही क्या हो। कसम से, इतनी हसीन रात आज तक कभी नहीं गुज़री। कब रात हुई और कब सुबह, पता ही नहीं चला।

    मानना पड़ेगा छावड़ा साहब, क्या गज़ब माल कैद कर रखा है आपने अपने पास, जितना उसकी जवानी के रस को चूसे, प्यास उतनी ही ज़्यादा बढ़ती जाती है। बहुत सी लड़कियों के जिस्म के साथ खेला, पर जो मज़ा उसके जिस्म में था, वो कभी किसी में नहीं मिला... ये बला की खूबसूरत हसीना आपके हाथ कहाँ से लग गयी?"

    "बस नसीब में थी, तो मिल गयी और ये हसीना तो आप सबकी ख़िदमत करने के लिए ही है, जब जी चाहे हमें याद कर लीजिएगा, हम आपकी रातों को रंगीन करने का इंतज़ाम कर देंगे, पर अभी के लिए तो जूही को अपने साथ लेकर जाना चाहूंगा। बहुत कीमती है वो, ध्यान तो रखना ही पड़ता है, वरना कहीं ये खूबसूरत कली मुरझा गयी, तो मेरा तो धंधा ही चौपट हो जाएगा, फिर आप लोगों की सेवा करने का मौका नहीं मिल पाएगा।"

    छावड़ा की बात सुनकर सम्राट ने दोबारा मिलने को कहा और वहाँ से चला गया। छावड़ा अंदर आया और उस लड़की के पास आकर बैठ गया। उसने अपनी उंगलियों से उसके चेहरे पर आते बालों को साइड किया, तो उस लड़की का खूबसूरत चेहरा उन बादलों की ओट से बाहर आ गया।

    उसकी पलकें झुकी हुई थीं, चेहरे पर जगह-जगह दांतों के निशान बने हुए थे। दूध से गोरे मुखड़े पर खून के धब्बे उभर चुके थे। शरीर पर जगह जगह नोचने और काटने के निशान थे, जो कल रात इस बंद दरवाज़े के पीछे क्या हुआ, इसकी गवाही दे रहे थे।

    छावड़ा ने उसके ज़ख्मी शरीर को देखते हुए खुद से कहा, "कमीना था बड़ा बेरहम... अंग-अंग घायल कर दिया है। कुछ दिन आराम देना होगा अब तुझे और दोबारा इस जल्लाद से अपनी जूही को दूर ही रखना होगा। इस जैसे भेड़िये को अपनी जूही के करीब नहीं आने देना चाहिए था, कितना नुकसान करवा दिया हरामखोर ने मेरा।"

    उसने फैसला कर लिया कि अब दोबारा सम्राट के साथ जूही को नहीं भेजेगा और ये फैसला उसने जूही के लिए फिक्र की वजह से नहीं लिया था, बल्कि उसका अपना स्वार्थ छुपा था उसके पीछे। जूही अब भी बेहोश थी।

    छावड़ा ने उसके चेहरे पर पानी छिड़का, तो उसने धीरे से अपनी पलकें उठाईं। सामने छावड़ा को देखकर वो घबराकर चादर को पकड़े हुए ही पीछे हटने लगी।

    छावड़ा ने तीखी निगाहों से उसको घूरा, फिर अपने हाथ में पकड़ा शॉपर उसने सामने फेंकते हुए बोला, "अपना नाटक बंद कर। पांच मिनट हैं तेरे पास, जल्दी से इसे पहनकर बाहर आ। वरना मेरी बात न मानने का क्या अंजाम हो सकता है, ये तो तू जानती ही होगी!"

    इतना कहकर वो गुर्राते हुए वहाँ से बाहर चला गया। उस लड़की की भूरि-भूरि आँखों में मोटे-मोटे आँसू भर आए, पर उसने अब भी उन्हें बाहर आने की इजाज़त नहीं थी।

    हालत इतनी खराब थी कि वो उठ भी नहीं पा रही थी, बेहिसाब दर्द से पूरा बदन टूट रहा था। पर शायद अब उसको इस दर्द की आदत हो चुकी थी। उसने चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। उसने कपड़े निकाले और पहनने के बाद ऊपर से बुर्का पहन लिया। सहारा लेते हुए बाहर पहुंची, तो छावड़ा उसको वहाँ से लेकर चला गया।

    वो लड़की एकदम ख़ामोश थी, ऐसा लग रहा था जैसे बस जिस्म ही था वहाँ उसका, जान थी ही नहीं उसमें। बिल्कुल चलती-फिरती ज़िंदा लाश लग रही थी वो, जो किसी बेजान कठपुतली की तरह छावड़ा के पीछे चल रही थी। वो ख़ामोश सी जाकर गाड़ी में बैठ गयी। उस बुर्के से उसकी सिर्फ सूनी भूरि आँखें नज़र आ रही थीं, जिससे वो खिड़की के बाहर एकटक देख रही थी।

    छावड़ा ने गाड़ी अपने विला की तरफ घुमा ली।

    आदि पुलिस स्टेशन जाने के लिए निकला था, पर उसका दिल बार-बार उस बार डांसर के बारे में सोच रहा था, तो अपने मन के वहम को दूर करने के लिए उसने जीप उस क्लब की तरफ घुमा दी। जैसे ही छावड़ा ने वहाँ से जाने के लिए गाड़ी घुमाई, ठीक उसी वक़्त आदि की जीप वहाँ आकर रुकी और उसकी निगाहें एक बार फिर उस लड़की की भूरि आँखों से उलझ गयीं।

    वो लड़की तो अपने होश में थी ही नहीं। उसको तो न कुछ सुनाई दे रहा था और न ही कुछ नज़र आ रहा था। वो सुन्न सी बैठी थी।

    एक बात फिर उसकी सूनी भूरि आँखों ने आदि के मन में तूफ़ान को जन्म दे दिया। उसकी आँखों के सामने से वो गाड़ी निकल गयी। उसने अंदर जाकर पता किया, तो मैनेजर ने उसको बताया कि कल रात जूही डांस कर रही थी, वो अक्सर ही यहाँ डांस करती है।

    जूही नाम सुनकर आदि के दिल को एक सुकून मिला कि वो लड़की नव्या तो नहीं थी। वो पुलिस स्टेशन निकल गया। काव्या भी पहुँच चुकी थी और अब दोनों मिलकर उन आदमियों की रिमांड ले रहे थे, उनका मुँह खुलवाना बहुत ज़रूरी था और वो इसी की कोशिश में लगे हुए थे।

    दूसरी तरफ छावड़ा जूही को लेकर अपने विला पहुँच चुका था। जूही अपने बड़े से कमरे के उस बड़े से बेड पर बेजान सी लेटी हुई थी। न चेहरे पर कोई भाव था, न ही आँखों में नमी। सूनी आँखों से वो एकटक छत को घूरे जा रही थी।

    कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला और एक 40-45 साल की औरत ने उस कमरे में कदम रखा। जूही के जिस्म में ज़रा भी हलचल नहीं हुई। उसने ये तक देखने की कोशिश नहीं की कि कौन आया है उसके कमरे में। उन आंटी के हाथों में एक ट्रे थी, जिसमें एक बाउल, दूध से भरा ग्लास और कुछ दवाइयों के पत्ते रखे हुए थे।

    आंटी ने ट्रे बेड के साइड वाले टेबल पर रखा और जूही की तरफ घूमीं, तो उसकी दशा देखकर उनकी रुलाई फूट पड़ी। उनकी रोने की आवाज़ जब जूही के कानों में पड़ी, तब जाकर उसकी पलकें ज़रा सी हिलीं। उसने नज़रें घुमाकर देखा और उनके आँसू देखकर उसके लबों पर दर्द भरी मुस्कान तैर गयी।

    To be continued....

  • 11. Love Beyond Pain - Chapter 11

    Words: 2142

    Estimated Reading Time: 13 min

    आंटी ने ट्रे बेड के साइड वाले टेबल पर रखा और जूही की तरफ घूमीं, तो उसकी दशा देखकर उनकी रुलाई फूट पड़ी। उनकी रोने की आवाज़ जब जूही के कानों में पड़ी, तब जाकर उसकी पलकें ज़रा सी हिलीं। उसने नज़रें घुमाकर देखा और उनके आँसू देखकर उसके लबों पर दर्द भरी मुस्कान तैर गयी।

    उसने उठने की कोशिश की, पर वापस बेड पर गिर पड़ी। ये देखकर आंटी ने तुरंत आगे बढ़कर उसको संभाला, बिठाया, फिर उसको अपने सीने से लगाकर फुट-फुटकर रो पड़ीं।

    जूही के चेहरे पर अब दर्द के बादल छाने लगे, पर अब भी उसने आँखों से एक आँसू नहीं बहने दिया। कुछ देर आंटी उसको सीने से लगाए रोती रहीं, फिर उसको खुद से दूर किया और उसके चेहरे को छूते हुए बोलीं,

    "क्या हाल बना दिया है उस हैवान ने हमारी फूल सी बच्ची का। कैसे ज़ालिम इंसान हैं ये, ज़रा भी दया-भाव नहीं उनके अंदर। कैसे बेरहमी से नोचकर घायल कर दिया है पूरे बदन को, भगवान उन्हें नर्क में जगह नहीं देंगे।"

    आंटी की आँखों से एक बार फिर आँसू बहने लगे। जूही की आँखों में भी दर्द उभर आया। तब से वो एकदम ख़ामोश थी। अब उसने अपना हाथ उठाकर उनके आँसुओं को साफ करते हुए धीमी आवाज़ में कहा,

    "इतने में ही घबरा गयी आप। अभी तो मेरी साँसें चल रही हैं और जब तक ये साँसें चल रही हैं, ये दर्द भी यूँही बरकरार रहेगा। सहना होगा मुझे ये दर्द और आपको इस दर्द को सहने की हिम्मत देनी होगी मुझे। आप तो मेरे हर दर्द की भागीदार हैं, अगर आप कमज़ोर पड़ जाएंगी, तो मुझे कौन संभालेगा?"

    उसके एक-एक शब्द उसके दर्द को ज़ाहिर कर रहा था। आंटी के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। उन्होंने भारी गले से कहा, "बेटा, आप यहाँ से भाग क्यों नहीं जाती? क्यों इस गंदे काम को कर रही है? हम चाहते हैं आप इस दरिंदे की कैद से आज़ाद हो जाएं, इस नरक से बदतर ज़िन्दगी से आपको छुटकारा मिल जाए...

    हमारी बात मानिये बेटा और चली जाइये यहाँ से, इस गंदे काम और दर्द भरी ज़िन्दगी को छोड़कर बहुत दूर चली जाइये। इतना दूर चली जाइये कि इस दरिंदे की काली परछाई भी आप पर न पड़ सके... हम आपको और... दर्द में नहीं देख सकते, चली जाइये ये सब छोड़कर यहाँ से बहुत दूर, आज़ाद कर दीजिये खुदको इस दर्द भरी ज़िन्दगी से..."

    नव्या ने उनकी बात सुनी, तो नम आँखों से उन्हें देखते हुए बोली, "कहाँ जाऊँ काकी?... अब क्या बचा है मेरे पास?... मेरी इज़्ज़त तो सरे आम नीलाम हो चुकी है, हर नज़र जो मुझपर पड़ती है, उसमें सिर्फ हवस नज़र आती है। सबकी वासना का शिकार होते-होते अब मैं किसी अच्छे इंसान को मुँह दिखाने लायक भी नहीं रह गयी हूँ...

    इस दुनिया में मेरे लिए कोई जगह नहीं है अब। जहाँ जाऊँगी, मेरी ज़िन्दगी का ये काला अतीत भी मेरे साथ जाएगा। यहाँ से बचकर भाग भी गयी, तो किसी और के हाथ लग जाऊँगी। कोई और इस जिस्म को अपना बनाने की लालसा में मुझे नोचेगा, अपनी हवस की आग में मुझे झुलसाएगा और फिर अपनी ज़रूरत पूरा करने के बाद मरने के लिए किसी सड़क पर फेंक देगा...

    कोई मुझे इज़्ज़त की नज़र से नहीं देख सकता, क्योंकि अपनी इज़्ज़त मैंने अपने हाथों लुटा दी... करने दिया इन मर्दों को अपने साथ सब... खेलने दिया उन्हें अपने जिस्म के साथ... ख़ामोशी से अपनी आबरू को बिकते और लुटते देखती रही... उन्होंने मेरे जिस्म को नहीं रौंदा, बल्कि मेरी आत्मा को बड़ी बेदर्दी से अपने ग़ुरूर तले कुचल दिया है।

    मैं ज़िंदा होकर भी ज़िंदा नहीं हूँ और मेरी बेबसी और मज़बूरी देखिये, मरकर भी मर नहीं सकती... मुझमें और एक वैश्या में कोई फ़र्क नहीं। उसे भी पहली बार किसी ने अपनी बुरी नज़रों का शिकार बनाया होगा, तभी वो उस रास्ते पर चलने पर मजबूर होती है, क्योंकि जो एक बार इस दलदल में फंस गया, उसके लिए वापसी के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। ये दुनिया उन्हें वापस इज़्ज़त भरी ज़िन्दगी जीने ही नहीं देती...

    कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि जो उसने किया, वो उसने अपनी मर्ज़ी से किया या उसके साथ ज़बरदस्ती की गयी, फ़र्क बस इस बात से पड़ता है कि एक बार जिसकी इज़्ज़त पर दाग लग गया, उसका दामन दोबारा कभी बेदाग नहीं हो सकता... मज़बूरी में उन्हें फिर वही करना पड़ता है, अपनी आत्मा को मारकर अपने जिस्म को बेचना पड़ता है...

    मैंने भी वही किया। फ़र्क बस इतना है कि वो ज़िंदा रहने के लिए सब चुपचाप सहती है, भले ही वो काम करे, फिर भी कोई उनकी मर्ज़ी के बिना उनको हाथ लगाने की ज़ुर्रत नहीं करता। पर मैं उनसे भी ज़्यादा बदनसीब हूँ, क्योंकि मैं जो कर रही हूँ, वो पैसों के लिए नहीं, अपने मम्मी-पापा को ज़िंदा रखने के लिए कर रही हूँ। उन्हें इस राक्षस का शिकार बनने से बचाने के लिए सालों से उसकी हर बात मान रही हूँ।

    मुझे तो इतनी भी आज़ादी नहीं कि मैं इनकार कर सकूँ, मेरी मर्ज़ी कोई पूछता ही नहीं है... वो छावड़ा मुझे धमकी देता है कि अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी, तो वो मेरे मम्मी-पापा को मार देगा और जो लोग उसे मेरे जिस्म को हासिल करने के पैसे देते हैं, वो अपना एक-एक पैसा वसूलने के लिए ये तक नहीं देखते कि मेरी हालत क्या है... मुझे होने वाले दर्द से किसी को फ़र्क नहीं पड़ता, वो पैसे देते हैं, तो एक-एक पैसा वसूल करते हैं, सारी रात मेरे जिस्म के साथ खेलते हैं, उसे नोचते हैं और मैं इतनी बदनसीब हूँ कि आँसू भी नहीं बहा पाती...

    अब तो लगता है जैसे भगवान ने मुझे दुनिया में भेजा ही इसलिए है कि इन आदमियों की हवस का शिकार बनूँ। ये खूबसूरत चेहरा उन्हें लुभाने के लिए ही बना है, ये बदन उन्हें खुश करने के लिए ही है, उनकी ज़रूरतों को पूरा करूँ, शायद यही मक़सद है मेरी इस ज़िन्दगी का... तभी तो सालों से मौत के लिए तड़प रही हूँ, पर वो भी मुझे देखकर मुँह चिढ़ाती है और कहती है कि अभी दर्द की इंतेहा होना बाकी है, इतनी जल्दी छुटकारा कैसे मिल सकता है मुझे।

    उस आसमान में बैठे ख़ुदा से बस एक ही शिकायत है मुझे, यहाँ मैं हर रोज़ एक नई मौत मर रही हूँ, इतना रोती हूँ, गिड़गिड़ाती हूँ कि उठा ले मुझे, क्या उन्हें मेरा दर्द, मेरे आँसू कुछ नहीं दिखते?... शायद उन्होंने भी मुझसे मुँह मोड़ लिया है। तरस नहीं आता अब उन्हें भी मुझपर, वो भी मेरी हालत पर हंस रहे होंगे। पता नहीं मैंने ऐसा कौन सा पाप किया था, जिसके लिए मुझे ऐसी सज़ा मिल रही है।"

    जूही की आँखों में कैद आँसू अब उसके चेहरे को भिगाने लगे। आंटी उसकी बेबसी देखकर रो पड़ीं। उन्होंने उसको अपने सीने से लगा लिया, बिल्कुल वैसे जैसे एक माँ अपने बच्चे को मुसीबत से बचाने के लिए उसे अपने आँचल में छुपा लेती है। जूही भी किसी छोटे बच्चे की तरह उनसे लिपटकर रो पड़ी। उसकी सिसकियों की आवाज़ पूरे कमरे में गूँज उठी। ये उसके दर्द की इंतेहा ही थी कि उसके आँसू थम नहीं रहे थे।

    कुछ देर रोने के बाद उसका मन कुछ हल्का हो गया। यहाँ तो उसको रोने की भी आज़ादी नहीं थी, आँखों से एक आँसू भी गिरा और छावड़ा तक इसकी खबर पहुँच गयी, तो वो उसपर और अत्याचार करता।

    आंटी ने उसको नहलाकर, उसको कपड़े पहनाए, फिर बड़े प्यार से उसको खाना खिलाने के बाद उसको दवाइयाँ खिला दीं। जूही उनकी गोद में सिर रखकर सिमटकर लेट गयी। आंटी प्यार से उसके सर को सहलाती रहीं। दवाइयों के असर से जूही जल्दी ही नींद की आगोश में चली गयी। आंटी ने नम आँखों से उसको देखा, फिर उसको ठीक से सुलाकर प्यार से उसके माथे को चूम लिया। भगवान से उसके लिए प्रार्थना करती हुईं, वो वहाँ से चली गयीं।

    यूँही कुछ रोज़ बीते। आदि अपना फ़र्ज़ निभाने में कोई कोताही नहीं बरतना चाहता था। कुछ सुराग मिले थे उसे और अब वो उसपर काम शुरू कर चुका था। नव्या की खोज अब भी जारी थी, पर अब तक कुछ हाथ नहीं लगा था, लेकिन वो हार नहीं माना था। नव्या को ढूँढने की हर संभव कोशिश कर रहा था वो। अपनी समस्याओं के बीच वो उस क्लब वाली डांसर के बारे में भूल चुका था।

    दूसरी तरफ नव्या, जिसको छावड़ा ने एक नई पहचान दी थी, जो अब जूही बन चुकी थी, वो इन दिनों आराम पर थी। छावड़ा के कई गलत काम चल रहे थे। ड्रग्स की स्मगलिंग, लड़कियों की तस्करी, इल्लीगल वेपन्स की खरीद-फरोख्त, सबमें शामिल था वो।

    मुंबई में कई क्लब चल रहे थे उसके और उन्हीं की आड़ में वो अपने सभी गैरकानूनी कामों को अंजाम दिया करता था। लड़कियों को रातों-रात कहाँ गायब करता था, किसी को कानों-कान ख़बर नहीं होती थी। अपने इन्हीं सब कामों के ज़रिये उसने इतना पैसा कमाया था।

    नव्या उसकी तिजोरी की चाबी थी। वो उसका ध्यान रखता था, फिर उसको एक रात के लिए अमीर आदमी, जिन्हें जिस्म की भूख थी, उन्हें सौंप कर खूब पैसे कमाता था। वो लोटरी की वो टिकट थी, जिसके ज़रिये वो इतना मालामाल हुआ था। एक रात की भारी कीमत लेता था वो और नव्या की मज़बूरी थी कि वो ख़ामोशी से उसकी सब बात मानती थी।

    छावड़ा उसको जब भी किसी के पास भेजता, तो पहले उसको ड्रग्स देता था, ताकि वो अपने होश में न रहे और कोई विरोध न करे, और अगले दिन जाकर उसे वापस अपने सोने के पिंजरे में लाकर कैद कर देता था।

    नव्या कितनी दवाइयाँ खाती थी, पर वो कैसी दवाइयाँ थीं, ये तक नहीं मालूम था उसे। छावड़ा पूरा ध्यान रखता था कि वो गलती से भी प्रेग्नेंट न हो और इसके लिए वो उसको दवाइयाँ खिलाता था और ये बात वो भी जानती थी कि वो दूध जो उसके लिए आता था, उसमें कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स होती हैं।

    वो जानबूझकर ड्रग्स लेती थी, क्योंकि होश में ये सब करना उसके लिए नामुमकिन था। वो जब भी किसी के साथ होती, तो अपने होश में ही नहीं होती थी। तब वो किसी पपेट की तरह सिर्फ वो करती थी, जो छावड़ा उसको सिखाता था। तब वो नव्या नहीं, बल्कि जूही बनकर रहती थी।

    छावड़ा उसकी मज़बूरी का खूब फ़ायदा उठाता था, उससे वो सब करवाता, जिससे उसको पैसे मिलते। कभी क्लब में डांस करवाता, तो कभी पैसे लेकर एक रात के लिए उसको दूसरे आदमी के हवाले कर देता था। दूसरों के साथ-साथ वो खुद भी नव्या के साथ ज़बरदस्ती करता था, पर तब जब नव्या उसका विरोध करती थी।

    नव्या मज़बूर थी, इसलिए उसके सभी अत्याचार ख़ामोशी से सह रही थी और आंटी इतनी बेबस थीं कि वो नव्या को इस नरक से बदतर ज़िन्दगी से आज़ाद करवाने के लिए कुछ कर नहीं पाती थीं।

    अब नव्या काफ़ी हद तक ठीक हो गयी थी, बदन पर से निशान मिट चुके थे और आज फिर छावड़ा ने उसके जिस्म का सौदा एक अमीर आदमी के साथ कर लिया था। नव्या को तैयार करके, सब सिखाकर वो उसे होटल तक छोड़कर आया था।

    उस होटल के उस बड़े से कमरे में नव्या इस वक़्त बिल्कुल अकेली थी। वो सोफे पर बैठी थी और अपने दर्दनाक आज से परे, अतीत की उन यादों में खोई हुई थी, जब वो जूही नहीं, नव्या हुआ करती थी। आदि की नवु। तब भी बिल्कुल इसी तरह सूनी निगाहों से छत को देख रही थी, जैसे आज देख रही है।

    **फ्लैशबैक**

    कहते हैं, अच्छा वक़्त हवा के उस झोंके की तरह होता है, जो कब आपको छूकर गुज़र जाए, आपको पता ही नहीं चलता। ऐसा ही कुछ नव्या के साथ भी हुआ था।

    वो वक़्त, जब वो आदि के अपने परिवार के साथ थी, वो वक़्त हवा के झोंके की तरह कब गुज़र गया, उसको एहसास ही नहीं हुआ।

    वो तो बहुत खुश थी अपनी ज़िंदगी से। महिमा जी और किशोर जी के साथ साथ उसको नंदिनी जी और अश्विन जी का भी प्यार मिलता था। दोनों घरों मे वो एकलौती लड़की थी इसलिए सबकी लाडली थी यही वजह थी कि थोड़ी शैतान और चंचल हो गयी थी वो। सबको परेशान किया करती थी और अपनी मासूम शरारतों से सबके लबों पर मुस्कान ले आती थी।

    उसकी आँखों मे एक आँसू भी आता था तो सब बेचैन हो उठते थे। दो दो माँ बाप के साथ आर्यन के रूप मे बड़े भाई का प्यार दुलार मिल रहा था। आदि जैसा दोस्त था उसके पास जो हर मुश्किल मे उसका साथ देता था उसके सभी नखरे बिना शिकायत के उठाता था। उसकी खुदसे ज्यादा केयर करता था।

    अक्षय से उसकी दोस्ती हो चुकी थी और ज़िंदगी बहुत अच्छी चल रही थी बिल्कुल किसी खूबसूरत सपने जैसा था सब। पर हर सपने का अंत कभी न कभी होता है, सपना कितना ही हसीन क्यों ना हो एक न एक दिन उसको टूटना ही पड़ता था।



    To be continued....

    कुछ राज़ पर से पर्दा उठाया है बाकी पर से धीरे धीरे पर्दा उठाती रहूँगी तब तक धैर्य धारण करके कहानी पढ़ते रहिये ।

  • 12. Love Beyond Pain - Chapter 12

    Words: 2146

    Estimated Reading Time: 13 min

    ज़िंदगी बहुत अच्छी चल रही थी, बिल्कुल किसी ख़ूबसूरत सपने जैसा था सब। पर हर सपने का अंत कभी न कभी होता है, सपना कितना ही हसीन क्यों न हो, एक न एक दिन उसको टूटना ही पड़ता था।

    नव्या के इस ख़ूबसूरत सपने का अंत तब हुआ, जब उन्होंने 9th के फाइनल एग्ज़ाम्स दिए। उससे पहले सब बहुत अच्छा चल रहा था। घर पर उसकी शैतानियाँ जारी थीं, महिमा जी उसकी शरारतों से परेशान रहती थीं, पर नव्या कभी बाज़ नहीं आती थी। वो अल्हड़ नदी के तरह थी और उसकी वही चंचलता उसको सबसे अलग, सबसे ख़ास बनाती थी।

    आदि को खूब परेशान करती थी और वो हमेशा उसको संभालता रहता था, उसकी हर शरारत पर उसको महिमा जी की डांट से बचाता था। नंदिनी जी उसको खूब प्यार देती थीं। नव्या का सुबह का नाश्ता, स्कूल का टिफिन और लंच, सब उनके हाथों के बने खाने से होता था। हाँ, रात को अपने घर पर अपने मम्मी-पापा के साथ डिनर करती थी।

    सारा दिन वो यहाँ से वहाँ मटकती रहती थी, जिस पर महिमा जी बहुत बार उसको डांटती थीं कि उसके पैर एक सेकंड के लिए भी एक जगह टिक कर नहीं रहते। उसका खाना-पीना, उठना-बैठना, सब आदि के साथ होता था। सारा दिन उसके साथ बीतता था। अपने पैसों को वो बिल्कुल खर्च नहीं करती थी और आदि से रोज़ नई-नई फरमाइश करती थी, जिसे वो पूरा भी करता था।

    दोनों का रिश्ता बहुत ख़ास था, दोनों में से कोई भी एक-दूसरे के बिना थोड़ी देर भी नहीं रह पाते थे। सब ये सोचकर हैरान हो जाते थे कि ये दोनों रात को कैसे अलग-अलग रह लेते हैं? नव्या सारा-सारा दिन आदि के आगे-पीछे घूमकर उसको परेशान करती रहती थी, पर आदि के चेहरे पर परेशानी के भाव नहीं आते थे कभी।

    स्कूल में नव्या अक्षत के साथ रहती थी और दोनों की दोस्ती भी काफी गहरी हो गयी थी। कोई नहीं जानता था कि जो दो दोस्त आज एक-दूसरे के बिना एक घंटे भी नहीं रहते थे, उन्हें एक-दूसरे से दूर जाना था। सबके लिए सब ठीक चल रहा था, बस किशोर जी और अश्विन जी इन दिनों थोड़े परेशान रहा करते थे। जब-जब आदि और नव्या को देखते, उनके रिश्ते की गहराई को महसूस करते, दोनों की आने वाली उनकी जुदाई के पलों की कल्पना करके घबरा जाते थे।

    वक़्त अपनी रफ़्तार से बीत रहा था। सब कुछ बहुत ख़ूबसूरत था। आदि और नव्या ने 9th का, तो आर्यन ने 11th का पेपर दिया था। यहीं से उनकी खुशियों के दिनों को जैसे किसी की नज़र लग गयी।

    अश्विन जी ने बताया कि उन्हें प्रमोशन मिला था, जिससे सभी बहुत खुश हुए, पर ये खुशी ज़्यादा वक़्त तक नहीं टिकी। प्रमोशन के साथ-साथ ट्रांसफर भी हुआ था। उनकी नई पोस्टिंग बैंगलोर में हुई थी और उन्हें अगले एक हफ़्ते के अंदर वहाँ जाकर अपनी पोस्ट संभालनी थी।

    अश्विन जी लॉयर थे और अब उन्हें जज की पोस्ट मिली थी, पर उसके लिए उन्हें बैंगलोर जाना था। उनकी जन्मभूमि वही थी। थे तो पंजाब में पटियाला से, पर जन्म और पढ़ाई सब बैंगलोर में हुआ, जहाँ उनका भरा-पूरा परिवार रहता है। कॉलेज के लिए यहाँ आए थे, फिर यहीं काम सेट हो गया, तो यहीं बस गए।

    किशोर जी कॉलेज में लॉ के लेक्चरार थे। बचपन से दोनों दोस्तों ने साथ में पढ़ाई-लिखाई की थी और फिर दोनों साथ में यहाँ बस गए। महिमा जी भी पंजाबी थीं और उन्हें कॉलेज के वक़्त किशोर जी से प्यार हो गया था। घरवाले रिश्ते के सख़्त ख़िलाफ़ थे, क्योंकि किशोर जी अनाथ थे।

    दोनों ने प्रेम विवाह किया था, उसके बाद से महिमा जी का अपने घर से रिश्ता टूट गया। उनकी शादी अश्विन जी, नंदिनी जी और महिमा जी की बड़ी बहन ने चोरी-छुपे करवाई थी। तब वो कॉलेज पास लड़के थे, उन्होंने शादी के बाद खूब मेहनत करके अपनी और महिमा जी की ज़िन्दगी को एक ठहराव दिया था।

    शादी के कई सालों बाद भी महिमा जी माँ नहीं बन पाईं, तो उन्होंने उम्मीद ही छोड़ दी। उन्होंने ये मान लिया था कि शायद अपने मां-बाप के ख़िलाफ़ जाने की ही सज़ा मिल रही है उन्हें। वो एक बेटी होने का फ़र्ज़ नहीं निभा सकीं, इसलिए भगवान ने उनसे माँ बनने का सुख छीन लिया। उन दिनों वो बहुत उदास रहने लगी थीं, कई बार किशोर जी को कहा भी था उन्होंने कि वो उन्हें डिवोर्स देकर दूसरी शादी कर लें, पर किशोर जी नहीं माने।

    धीरे-धीरे महिमा जी डिप्रेशन में जाने लगीं। नंदिनी जी को पहला बेटा हुआ और दो साल बाद वो फिरसे प्रेग्नेंट हुईं। महिमा जी की हालत देखकर उन्होंने वादा किया कि ये बच्चा वो उन्हें दे देंगी। फिर भी महिमा जी का दर्द कम नहीं हुआ, वो गुमसुम रहने लगीं। शायद भगवान उनकी परीक्षा ले रहे थे, जिसमें वो सफल हुए। बहुत इंतज़ार के बाद उनके घर ख़ुशख़बरी आई।

    नव्या का जन्म हुआ, तब आदि एक महीने का था। दोनों घरों में चारों तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ थीं। नंदिनी जी का नव्या के प्रति अलग ही लगाव था, वो उसे अपनी बेटी कहती थीं और आदि को महिमा जी बेटा।

    नव्या के बाद महिमा जी दोबारा कंसीव नहीं कर पाईं, पर इसका उन्हें दुख नहीं था। नव्या थी, जिनमें उनकी जान बसती थी और बेटे की कमी आदि ने पूरी कर दी थी। नव्या महिमा जी से ज़्यादा नंदिनी जी के करीब थी, तो आदि नंदिनी जी से ज़्यादा महिमा के क्लोज था।

    दोनों परिवार खुश थे, पर अश्विन जी के ट्रांसफर की ख़बर उनकी खुशियों पर क़हर बनकर बरसा। ना चाहते हुए भी दोनों परिवारों को अब अलग होना था। बहुत मुश्किल था ये उनके लिए। नंदिनी जी और महिमा जी ने तो फिर भी खुद को संभाल लिया था, पर आदि और नव्या पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा था।

    आदि ने नव्या से दूर जाने से साफ़ इंकार कर दिया था और नव्या को तो जबसे ये बात पता चली थी, उसने खुद को अपने रूम में लॉक कर लिया था। न किसी से मिल रही थी और न ही बात कर रही थी। छुट्टियां चल रही थीं, तो घर पर ही रहना होता था।

    आज सुबह ही अश्विन जी ने सबको ये बात बताई थी और तभी से नव्या अपने कमरे में बंद थी, आदि उदास सा अपने कमरे में बैठा था। महिमा जी और किशोर जी ने नव्या को समझाने की बहुत कोशिश की, पर वो न कुछ कह रही थी, न ही दरवाज़ा खोल रही थी।

    नव्या इमोशनल थी, पर आदि समझदार था। जब उसको अश्विन जी ने समझाया, तो मज़बूरी में उसने जाने के लिए हाँ कह दिया। आर्यन ने उसको नव्या के बारे में बताया, तो आदि परेशान हो गया। नव्या को दुखी नहीं देख सकता था वो, उससे दूर जाना, उसके बिना रहना उसके लिए भी बहुत मुश्किल था, पर अब मज़बूरी थी कि उसे नव्या से दूर जाना ही था।

    अब सबसे बड़ी मुश्किल थी नव्या को समझाना, उसको संभालना, क्योंकि इस ख़बर का सबसे बुरा असर उसी पर पड़ रहा था। वो कभी आदि से दूर नहीं रही थी और अब आदि उसे छोड़कर जा रहा था, ये बात उसके नाज़ुक से दिल को तोड़ती जा रही थी। नव्या सिर्फ आदि की सुनती थी, ये बात सभी जानते थे। सबकी आस आदि पर टिकी हुई थी।

    नव्या को संभालने के लिए आदि को अपने दर्द को छुपाना पड़ा और वो नव्या के कमरे के बाहर जाकर खड़ा हो गया। उसने दरवाज़ा नॉक करते हुए उसको आवाज़ दी, "नवु, दरवाज़ा खोल, मुझे तुझसे कुछ बात करनी है।"

    अंदर कमरे में नव्या बेड पर उल्टी पड़ी हुई थी। उसकी आँखों से बहते आँसू तकिये को भिगो रहे थे। सुबह से वो यूँही रोए जा रही थी। चेहरा और आँखें एकदम लाल हो रखी थीं। आँखें हल्की-हल्की सूज गयी थीं। नाक एकदम टमाटर जैसी लाल हो चुकी थी और अब ज़्यादा रोने की वजह से उसको ज़ुकाम हो गया था, नाक से पानी निकलने लगा था और बार-बार हैन्की इस्तेमाल करने की वजह से नाक छिल भी गयी थी।

    नव्या अब सिसक रही थी। सबने उससे बात करने की कितनी कोशिश की थी, पर अंदर से नव्या ने एक शब्द तक नहीं कहा था। लेकिन जैसे ही आदि की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, उसने अंदर से ही सिसकते हुए कहा, "नहीं, मैं नहीं खोलूँगी दरवाज़ा... मैं किसी से भी बात नहीं करूँगी... सब बुरे हैं... तुम भी बुरे हो... तुम मुझे अकेला छोड़कर जाना चाहते हो न, तो जाओ... मैं नहीं रोकूँगी तुम्हें, मैं किसी को भी जाने से मना नहीं करूँगी... सब चले जाओ मुझे अकेला छोड़कर... मैं रह लूंगी अकेले... मुझे किसी की ज़रूरत नहीं..."

    वो एक बार फिर रो पड़ी। आदि की आँखों में नमी तैर गयी, उसकी बातें सुनकर। ये तो वही जानता था कि कितना मुश्किल था उसके लिए नव्या से दूर जाना... कैसे उसने खुदको संभाला था, ये बस वही जानता था।

    नव्या की बातें, उसके आँसू, उसका दर्द, आदि के दिल को छलनी कर रहे थे। उसने अपनी आँखों में आई नमी को साफ़ कर लिया, कुछ पल लगे उसको अपनी भावनाओं को काबू करने में, उसके बाद उसने फिरसे कहा,

    "नवु, दरवाज़ा खोल यार... नाराज़ है मुझसे, तो गुस्सा कर मुझ पर, चाहे तो मार भी ले, पर यूँ खुदको एक कमरे में बंद करके तकलीफ़ मत दे। तू जानती है, तू कितनी इंपोर्टेंट है मेरे लिए, मैं नहीं जा पाऊंगा ऐसे तुझे रोता छोड़कर, पर जाना ज़रूरी है। मैं तुझसे वादा करता हूँ कि यहाँ से जाने के बाद भी तू हमेशा मेरी बेस्ट फ्रेंड रहेगी, हम फ़ोन पर बात करेंगे और छुट्टियों में मिलने भी आएंगे। दरवाज़ा खोल यार, एक बार बात कर मुझसे। ऐसी भी क्या नाराज़गी कि तू खुदको यहाँ बंद किए बैठी है?

    मुझे एक मौका तो दे अपनी बात कहने का। प्लीज़ नवु, दरवाज़ा खोल दे, देख सब कितना परेशान है तेरे लिए... तू गुस्सा है न मुझसे कि मैं तुझे छोड़कर जा रहा हूँ, तो ठीक है, नहीं जाऊंगा मैं तुझे छोड़कर, कभी नहीं जाऊंगी अब तो बाहर आ जा।"

    नव्या को दरवाज़ा खोलते न देखकर आख़िर में आदि ने आखिरी कोशिश की और उसको पूरी उम्मीद थी कि अब नव्या दरवाज़ा ज़रूर खोलेगी।

    नव्या के रूम के गेट के बाहर बाकी सब खड़े थे और आदि की आखिरी बात सुनकर सभी हैरान-परेशान से उसे देख रहे थे, लेकिन आदि का सारा ध्यान नव्या के रूम के दरवाज़े पर लगा था।

    अभी आदि को चुप हुए कुछ सेकंड ही हुए थे कि दरवाज़े के खुलने की आवाज़ सबके कानों में पड़ी। सबने चौंक कर दरवाज़े की तरफ नज़रें घुमाईं। नव्या आदि के सामने आकर खड़ी हो गयी और साँस ऊपर की तरफ खींचते हुए पूछा, "तुम झूठ नहीं कह रहे न? तुम सच में मुझे अकेला छोड़कर नहीं जाओगे न?"

    नव्या नम आँखों से बड़ी ही उम्मीद के साथ उसे देखने लगी। वही आदि की निगाहें नव्या के चेहरे पर टिकी हुई थीं। उसकी ये हालत देखकर उसको बहुत तकलीफ़ हो रही थी। उसने आगे बढ़कर सीधे उसको अपने गले से लगा लिया और उसकी पीठ सहलाते हुए बोला, "नहीं, अगर तू नहीं चाहती, तो मैं तुझे छोड़कर कभी कहीं नहीं जाऊंगा।"

    नव्या ने अपना सर उसके सीने से बाहर निकाला और भीगी पलकें उठाकर उसको देखते हुए बोली, "तुम सच कह रहे हो न? झूठ बोलकर मुझे अकेला छोड़कर तो नहीं चले जाओगे?"

    "नही, जब तक तू परमिशन नहीं दे देती, मैं तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा। चल, अब रोना बंद कर और पहले मुझे ये बता कि तू मुझे जाने क्यों नहीं देना चाहती?"

    आदि ने अपनी उंगलियों से उसके आँसुओं को साफ़ कर दिया। नव्या ने उसका सवाल सुनकर तो मासूम सा चेहरा बनाकर उसने कहना शुरू किया, "मैं कैसे रहूँगी तेरे बिना? कौन मुझे ब्रेकफ़ास्ट करवाएगा? कौन साइकिल पर स्कूल छोड़ने जाएगा? किससे बातें करूँगी मैं? कौन मेरी केयर करेगा? मैं किसे परेशान करूँगी? कौन मुझे माँ की डांट से बचाएगा? किसको तंग करूँगी मैं? कौन मुझे हर मुश्किल से बचाएगा? मैं किसके साथ रहूँगी? तुम चले गए, तो मैं अकेली हो जाऊंगी...

    याद है, तुमने वादा किया था कि तुम हमेशा मेरे साथ रहोगे, अब तुम अपने वादे से पीछे नहीं हट सकते। मैं तुम्हें कहीं जाने नहीं दूँगी। मैं तुम्हारी दोस्त हूँ और यूँ बीच में दोस्ती तोड़कर जाना बैड मैनर्स होता है। तुम तो गुड बॉय हो, इसलिए तुम ऐसे मुझे छोड़कर नहीं जा सकते, मैं तुम्हें कहीं जाने ही नहीं दूँगी।"

    नव्या ने मुँह फुलाते हुए कहा, तो उसकी क्यूट सी बातें और मासूम सा चेहरा देखकर आदि के लबों पर मुस्कान फ़ैल गयी। उसने नव्या के फुले हुए गालों को खींचते हुए कहा, "हाँ, तू सारी ज़िन्दगी मुझे परेशान करना चाहती है न, इसलिए मुझे जाने नहीं देना चाहती, सब समझ रहा हूँ मैं, मतलबी लड़की।"

    आदि ने झूठी नाराज़गी ज़ाहिर की। उसकी बात सुनकर नव्या ने सर झुका लिया, फिर अपना निचला होंठ बाहर निकालते हुए उदास, धीमी आवाज़ में बोली, "नहीं, मैं तुम्हें बिल्कुल भी तंग नहीं करूँगी, बस तुम मुझे छोड़कर मत जाना। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी। मुझे मेरा आदि हमेशा मेरे पास चाहिए।"

    To be continued....

  • 13. Love Beyond Pain - Chapter 13

    Words: 2101

    Estimated Reading Time: 13 min

    आदि ने झूठी नाराज़गी ज़ाहिर की। उसकी बात सुनकर नव्या ने सर झुका लिया, फिर अपना निचला होंठ बाहर निकालते हुए उदास, धीमी आवाज़ में बोली, "नहीं, मैं तुम्हें बिल्कुल भी तंग नहीं करूँगी, बस तुम मुझे छोड़कर मत जाना। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी। मुझे मेरा आदि हमेशा मेरे पास चाहिए।"

    "तेरा आदि कभी तुझे छोड़कर जा ही नहीं सकता। तू नहीं कहती, तो ठीक है, मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगा।"

    आदि की बात सुनकर बाकी सब, जो उन्हें देख रहे थे, उनके चेहरे पर परेशानी के बादल घिर आए। वहीं नव्या उसकी बात सुनकर सोच में डूब गयी।

    कुछ देर बाद उसने परेशान निगाहों से उसको देखते हुए कहा, "पर अगर तुम नहीं गए, तो अंकल-आंटी वहाँ कैसे जा पाएंगे? अंकल के प्रमोशन का क्या होगा?"

    "कुछ नहीं होगा। तू मुझे जाने नहीं देना चाहती और माँ मेरे बिना जाएंगी नहीं, पापा हमारे और माँ के बिना अकेले जाने को कभी राज़ी नहीं होंगे। मतलब कोई कहीं नहीं जाएगा। पापा यहीं रहकर अपनी वकालत संभालेंगे। हम हमेशा साथ रहेंगे।"

    आदि ने बड़ी ही सहजता से जवाब दिया। उसके माथे पर चिंता की एक रेखा तक नहीं थी, ऐसा लग रहा था जैसे ये सब उसके लिए मामूली बात है, उसे इससे ज़रा भी फ़र्क न पड़ रहा हो, पर उसका जवाब सुनकर नव्या और ज़्यादा परेशान हो गयी थी। उसने मायूस होकर आगे कहा,

    "अंकल ने कितनी मेहनत की होगी, तब जाकर उन्हें ये मौका मिला है। मेरी वजह से उनके हाथ से ये मौका निकल जाएगा। उनका भी तो सपना रहा होगा जज की कुर्सी पर बैठने का।"

    "हाँ, पापा तो हमेशा से जज बनना चाहते थे और आज उनका ये सपना पूरा भी होने वाला था, पर जब तुम नहीं चाहती कि मैं यहाँ से जाऊँ, तो अब और कोई रास्ता ही नहीं है। पापा का जो सपना इतने सालों की मेहनत के बाद पूरा होने वाला था, वो अब हमेशा अधूरा ही रहेगा।" आदि ने अब थोड़ा उदास होकर कहा। उसकी बात सुनकर नव्या परेशान, उदास निगाहों से उसको देखने लगी।

    आदि भी कुछ देर ख़ामोश, मुँह लटकाए खड़ा रहा, फिर नव्या को देखकर मुस्कुराकर बोला, "तुम क्यों परेशान हो गयी? तुम तो यही चाहती थी न कि मैं तुम्हें छोड़कर न जाऊँ, तो मैं नहीं जा रहा तुम्हें छोड़कर कहीं भी। अब ये उदासी क्यों?"

    आदि ने ऐसे दिखाया, जैसे उसके लिए बाकी किसी बात का कोई मतलब ही नहीं है। नव्या ख़ामोश निगाहों से एकटक उसको देखते हुए कुछ देर गहराई से इस बारे में सोचती रही। शायद आदि ने उसको एहसास दिला दिया था कि वो कितनी स्वार्थी हो रही थी। उसको अपनी गलती का एहसास हो रहा था।

    कुछ देर ख़ामोशी से सब चीजों के बारे में सोचने के बाद उसने सर झुकाते हुए कहा, "नहीं, तुम चले जाना, मैं रह लूंगी तुम्हारे बिना। अंकल का सपना मेरी वजह से अधूरा रहेगा, तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा। तुम चले जाओ। मैं अब तुम्हें रोकूंगी नहीं।"

    "पर तुमने तो कहा था कि तुम मुझे कहीं नहीं जाने दोगी।"

    "हाँ, मैं नहीं चाहती कि तुम मुझसे दूर जाओ, पर अंकल का सपना भी अपनी वजह से टूटने नहीं दे सकती, इसलिए तुम चले जाओ। मैं नहीं रोकूँगी तुम्हें, पर तुम्हें मुझसे वादा करना होगा कि वहाँ जाकर तुम मुझे भूलोगे नहीं। कोई नई दोस्त नहीं बनाओगे, हमेशा मेरे आदि बनकर रहोगे, रोज़ मुझसे बात करोगे और छुट्टियों में मुझसे मिलने भी आओगे। अगर तुम ये वादा करोगे, तो मैं तुम्हें जाने दूँगी।"

    नव्या ने उसके आगे अपनी हथेली बढ़ा दी। उसकी बातें सुनकर आदि के लबों पर मुस्कुराहट ठहर गयी। उसने उसकी हथेली को थामते हुए कहा, "तू नहीं भी कहती, तब भी मैं तुझे कभी भूल नहीं सकता था। मैं वादा करता हूँ। आदि हमेशा नव्या का रहेगा, हमारी दोस्ती कभी नहीं टूटेगी। तू हमेशा से मेरी बेस्ट फ्रेंड थी और हमेशा रहेगी। हम रोज़ बात करेंगे और छुट्टियों में मिलेंगे भी। मैं भले यहाँ तुम्हारे पास न रहूँ, पर जब-जब तुम्हें मेरी ज़रूरत पड़े, अपने आदि को बस एक बार बता देना, मैं तुम्हारे पास आ जाऊँगा।

    बस तू रोइयो मत, तुझे पता है न, तेरी आँखों में आँसू का एक कतरा भी मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। मैं हमेशा तेरे साथ रहूँगा, भले ही हम एक-दूसरे से दूर रहें, पर हमारी दोस्ती हमेशा यूँही बनी रहेगी। अब तो तू मुझे मुस्कुराकर सी ऑफ करेगी न? खुद को रूम में बंद करके रोएगी तो नहीं?"

    आदि की बातें सुनकर नव्या की आँखों में कुछ आँसुओं की बूँदें चुभने लगीं, पर उसने उन्हें बाहर नहीं आने दिया और फीकी मुस्कान के साथ बोली, "उहु।"

    आदि उसकी मुस्कुराहट के पीछे के दर्द, बेबसी, लाचारी को बखूबी समझ रहा था, क्योंकि इस वक़्त वो भी इन्हीं एहसासों से जूझ रहा था। उसने नव्या को अपने गले से लगा लिया।

    दोनों के चेहरे दर्द से सने थे, जिसे वो छुपाने की कोशिश में खुद से ही लड़ रहे थे। आँखों के कोनों में आँसू की बूँद फँसी हुई थी, पर उन्हें आँखों में कैद किया हुआ था।

    आदि ने नव्या को समझा दिया था। जो कोई नहीं कर सका, वो उसने कर दिखाया था। सबकी निगाहें उन्हीं पर टिकी थीं। जिस समझदारी का प्रदर्शन आदि ने किया था, सभी उससे इम्प्रेस हो गए थे। वो दोनों बच्चों के दुख को समझ रहे थे। आदि ने जैसे नव्या को समझाया, उसको संभाला, वो समझ गए कि आदि से बेहतर कोई नव्या को नहीं समझ सकता। वो बहुत अच्छे से जानता है कि उसे कब और कैसे संभालना है।

    दोनों ने हौले से अपने आँसुओं को पोंछ लिया और एक-दूसरे से अलग होकर हौले से मुस्कुरा दिए। नव्या ने अब निगाहें घुमाईं, तो सब उसे देखकर हल्का सा मुस्कुरा दिए।

    नव्या ने अश्विन जी को देखकर मुस्कुराकर कहा, "अंकल, मैं भी आपके तरह बहुत अच्छी लॉयर बनूँगी और प्रैक्टिस के लिए आपके पास ही आऊँगी। आपको मुझे सब कुछ सिखाना होगा।"

    "बिल्कुल बेटा, हमें इंतज़ार रहेगा उस पल का, जब हमारी बेटी वकील का काला कोट पहने हमारे सामने आएगी। हम आपकी पूरी मदद करेंगे और हमें अपनी बच्ची पर पूरा विश्वास है, वो हमसे भी बेहतर वकील बनेगी।" अश्विन जी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा, तो दोनों ही मुस्कुरा उठे।

    अब सब खुश थे। उन्हें कल निकलना था, तो अश्विन जी, नंदिनी जी, आर्यन, सब पैकिंग करने चले गए। आदि का मन नहीं था नव्या को छोड़कर जाने का, पर उसे भी जाना पड़ा।

    कुछ देर बाद आर्यन अपना सामान पैक कर रहा था, तभी आदि भागता हुआ वहाँ आया और उसके आगे हाथ बढ़ाते हुए बोला, "भाई, मेरे पैसे खत्म हो गए हैं, थोड़े से पैसे उधार दे दीजिए, जब मैं कमाने लगूँगा तो आपके सारे पैसे लौटा दूंगा।"

    आर्यन ने उसकी बात सुनकर चौंक कर उसे देखा, फिर भौंहें उचकाकर बोला, "मुझसे पैसे क्यों मांग रहे हो? तुम्हें भी तो पॉकेट मनी मिलती है।"

    "वो तो खत्म हो गई, भाई," आदि ने मुँह लटकाया तो आर्यन ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, "हाँ, खत्म तो होनी ही थी। सारे पैसे नव्या पर जो उड़ा देते हो।"

    "भाई........." आदि ने मुँह बिचकाकर उसको देखा तो आर्यन ने मुस्कुराकर कहा, "अच्छा, अब नहीं कहता कुछ, नव्या के लिए। पर पहले बता कि अभी पैसों की क्या ज़रूरत आ गयी तुम्हें?"

    "वो, मुझे नव्या को गिफ्ट देना है, पर मेरे पास पैसे नहीं हैं। अभी आप दे दीजिए। जब मैं कमाने लगूँगा तो आपके सारे पैसे लौटा दूंगा।"

    आदि ने बड़ी ही गंभीरता से कहा। उसकी बात सुनकर आर्यन ने उसके सर पर चपत लगाते हुए कहा, "बहुत बड़ी-बड़ी बातें करने लगा है। .............. मुझे पैसे लौटाएगा?.............. चल जा, मुझे तेरे पैसों की ज़रूरत नहीं है।"

    इतना कहकर उसने अपनी जेब से पैसे निकालकर उसकी हथेली पर रख दिए और मुस्कुराकर बोला, "चल जा, जो लेना हो अपनी नवु के लिए, वो ले लेना।"

    आदि ने मुस्कुराकर उसको 'आई लव यू' कहा और भाग गया। उसके जाते ही आर्यन की मुस्कान फीकी पड़ गई। उसने खुद से ही कहा, "पता नहीं तुम दोनों एक-दूसरे के बिना कैसे रह पाओगे।"

    वहीं दूसरी तरफ नव्या ने अपने पूरे रूम को फैलाया हुआ था। शायद कुछ ढूंढ रही थी। कुछ देर की मेहनत के बाद उसके हाथ दो तस्वीरें लगीं और इसके साथ ही उसके लबों पर मुस्कुराहट खिल गई। उसने अपनी गुल्लक, जिसमें वो अपनी पॉकेट मनी जमा करती थी, उसको तोड़ दिया और सारे पैसे लेकर रूम से बाहर भाग गई।


    नव्या अपने अतीत की यादों में खोई हुई थी, तभी उसके कानों में गेट के खुलने की आवाज़ पड़ी, जिससे वो चौंक कर अपने ख्यालों से बाहर आई। गेट की तरफ नज़रें घुमाईं तो एक 40-45 साल का मोटा-तगड़ा आदमी गेट के अंदर आ रहा था। उसके चेहरे से ही हैवानियत टपक रही थी।

    उसने नव्या को देखा, फिर बेशर्मी से मुस्कुराते हुए उसके तरफ बढ़ गया। नव्या ने आज नशा नहीं किया था, वो होश में थी और उसकी घिनौनी मुस्कान देखकर उसकी आँखों में नफरत और घिन भरे भाव उभर आए थे, पर उसने उन्हें छुपाया और हल्की मुस्कान अपने लबों पर बिखेरे सोफे के तरफ बढ़ गई। वो आदमी उसके पास पहुँचा तो नव्या ने ड्रिंक का ग्लास उसके तरफ बढ़ा दिया।

    उस आदमी ने अपनी बत्तीसी चमकाते हुए उसके हाथ से ग्लास लिया, साथ में उसकी हथेली भी पकड़ ली। नव्या ने अपने दूसरे हाथ की मुट्ठी कस ली, पर बोली कुछ नहीं। उस आदमी ने उसकी हथेली को सहलाते हुए, उसके हाथ को पकड़े हुए ही ग्लास अपने लबों से लगा लिया।

    नव्या को ये ज़रा भी अच्छा नहीं लगा, पर उसने फिर भी हल्की मुस्कान को कायम रखते हुए उसके तरफ निगाह उठाई तो वो बेशर्मी से मुस्कुरा दिया, उसके चेहरे से हवस टपक रही थी। पर नव्या बेबस थी।

    उस आदमी ने ड्रिंक का ग्लास खाली किया तो नव्या ने उसके हाथ से अपनी हथेली खींचते हुए मुस्कुराकर कहा, "और लेना चाहेंगे?"

    "हमें इस नशे की नहीं, तुम्हारे हुस्न के नशे में डूबने की तलब है।" उस आदमी ने अपनी लालसा भरी निगाहों से उसे ताड़ते हुए कहा, फिर उसको सोफे पर धक्का से दिया।

    नव्या धड़ाम से सोफे पर जा गिरी। वो लगभग लेट चुकी थी, अगले ही पल वो गैंडे जैसा आदमी उसके ऊपर था। उसने नव्या के कंधे पर से ड्रेस को नीचे किया और उसके गोरे-गोरे कंधों पर अपने दांत गड़ा दिए।

    नव्या की आँखें छलक आईं, उसने अपनी जीभ को दांतों के बीच दबा लिया ताकि उसके मुँह से आवाज़ न निकल सके।

    वो आदमी वहशी दरिंदे, भूखे भेड़िये की तरह उस पर टूट पड़ा, उसे यहाँ-वहाँ छूने लगा, बदहवासी में चूमते हुए उसके कपड़े उतारने लगा और नव्या खामोशी से लेटी अपने साथ सब होते देखती रही। आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे। दर्द से उसकी चीखें निकलीं, पर आवाज़ अंदर घुटकर रह गई।

    अगली सुबह छावड़ा जब यहाँ आया, तब जाकर जिस्म को नोचने का खेल थमा। वरना सारी रात वो आदमी नव्या के जिस्म को नोचता रहा। दर्द बर्दाश्त न होने की सूरत में नव्या अपने होश खो बैठी और वो आदमी उसकी बेहोशी में भी उसके जिस्म के साथ खेलता रहा।

    छावड़ा ने अंदर आकर देखा, खून के धब्बों से सनी चादर, उस पर बेजान सी पड़ी नव्या, जिसके बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था, बस एक झीनी सी चादर पड़ी थी उसके ऊपर, जिससे उसका आधा बदन नज़र आ रहा था।

    "ये क्या हाल बना दिया तुमने मेरी जूही का? इस खूबसूरत फूल को इतनी बेरहमी से कुचला, कुछ तो लिहाज़ किया होता, थी तो तुम्हारे ही लिए।"

    "अब जब फूल इतना खूबसूरत हो, जिसके बदन की खुशबू ही मर्दों को मदहोश करने को काफी हो, तो उसके जिस्म के मधुर रस को चूसते वक़्त होश किसे रहता है? जो पल मिले, उसका जी भरकर आनंद लिया, और इसके पैसे तुम्हारे अकाउंट में पहुँच जाएंगे। इस कली के रस को चूसने में बड़ा आनंद आया, जल्द ही मुलाकात होगी।

    मुझे तो मेरी सेज पर यही हुस्न की मलिका चाहिए, इसकी जवानी के रस को जितना चूसूँ, उतनी ज़्यादा तलब जाग उठती है, मन है कि भरता ही नहीं है।" उस आदमी ने बेहयाई से मुस्कुराते हुए जवाब दिया। उसकी बातें सुनकर छावड़ा ने उस पर झूठी नाराज़गी ज़ाहिर की,

    "तुम भी न जैस्वाल, बड़े ही बेशर्म आदमी हो, इतनी लालसा, इतनी बेताबी भी ठीक नहीं।"

    "कमीनेपन में तो तुम्हारा भी कोई जवाब नहीं है छावड़ा, जाने कहाँ से इस हुस्न की रानी को उठा लाया है और अब उसके जिस्म का व्यापार करके दिन-रात नोट छाप रहा है। इसलिए बेशर्मी की बात तो तू कर ही मत। जब ये ठीक हो जाए तो फोन कर दियो, अबकी बार से दुगना दाम मिलेगा, पर ये रानी सारा दिन मेरे साथ बिताएगी, ज़रा इसके अंग-अंग के रस को तो चूस लूँ, तब कहीं तृप्ति मिले।"

    अब दोनों ही एक-दूसरे को देखकर बेशर्मी से मुस्कुरा उठे।


    To be continued....

  • 14. Love Beyond Pain - Chapter 14

    Words: 2241

    Estimated Reading Time: 14 min

    जैस्वाल दोबारा नव्या के साथ दिन गुजारने की ख़्वाहिश बयाँ करके और डील डन करके वहाँ से चला गया। आज नव्या की हालत हमेशा से ज़्यादा ख़राब थी। छावड़ा ने उसको अच्छे से चादर से कवर करके अपनी बाहों में उठा लिया। सुबह के पांच बज रहे थे, तो अभी होटल कॉरिडोर बिल्कुल ख़ाली थी।

    छावड़ा उसको लेकर नीचे पहुँचा और पीछे की सीट पर लिटाकर अपने विला की तरफ़ गाड़ी दौड़ा दी। नव्या अब भी बेहोश थी। उसको उसके रूम में पहुँचाकर उसने आंटी को उसके बदन को साफ़ करके उसको कपड़े पहनाने को कहा। आंटी के आँसू थम नहीं रहे थे, नव्या की हालत देखकर। नव्या बेजान सी बेड पर पड़ी थी।

    कुछ देर बाद डॉक्टर ने आकर उसको चेक किया। वो छावड़ा का ख़ास डॉक्टर था, जो उसके सभी काले कारनामों के बारे में जानता था। उसने छावड़ा को समझाया कि अगर नव्या के साथ ऐसे ही सुलूक किया गया तो वो ज़िंदा नहीं रह पाएगी। बहुत कमज़ोर हो चुकी है वो। वो दवाइयाँ, ड्रग्स और फिर हर कुछ दिन बाद ये सब... नव्या ज़्यादा वक़्त तक ये सब बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। पर फ़र्क किसे पड़ता था इस बात से?

    डॉक्टर चला गया तो छावड़ा ने आंटी को नव्या का ध्यान रखने को कहा और वहाँ से चला गया। आंटी नव्या के पास बैठ गईं और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरने लगीं। आँखों से आँसू बह रहे थे और मन में बस यही ख़्याल घूम रहा था कि आख़िर कब मिलेगी नव्या को इस दर्द से आज़ादी?

    दूसरी तरफ़ आदि की तहक़ीक़ात में उसके सामने कुछ और नाम और जाने-पहचाने चेहरे आए थे। उसने अपने जासूसों की मदद से तीन ड्रग्स डीलिंग्स को होने से रोका था। एक गिरोह को भी पकड़ा था जो लड़कियों की ख़रीद-फ़रोख़्त में शामिल थे। कई मासूम लड़कियों को उनके चंगुल से आज़ाद करवाया था। उनके घरवालों ने उन्हें अपनाने से इनकार कर दिया था, तो आदि ने अपनी टीम के साथ मिलकर उन्हें एक महिला कल्याण संस्था में शामिल करवा दिया था।

    वो संस्था ऐसी लड़कियों को आत्म-निर्भर बनाने का प्रयास करती थी। उन्हें ऐसे हुनर सिखाती थी कि वो अपनी ज़िंदगी को नया मोड़ दे सकें। उन्हें किसी दूसरे पर निर्भर ना रहना पड़े, इज़्ज़त से काम करके अपनी ज़िंदगी जी सकें।

    आदि अब भी केस के साथ-साथ नव्या की तलाश में व्यस्त था, पर कुछ हाथ नहीं लग रहा था। वो अपने फ़्लेट पर पहुँचा और बेमन से थोड़ा सा खाना खाने के बाद नव्या की फ़ोटो लेकर बालकनी में चला आया। उसके ज़हन में वो वक़्त घूम रहा था, जब वो नव्या से दूर जा रहा था।

    फ़्लैशबैक

    अगले दिन सुबह आदि को अपने परिवार के साथ यहाँ से निकलना था। रात भर उसको नींद नहीं आई, नव्या से दूर जाने के ख़्याल मात्र से वो बेचैन हो उठता था। वो उठकर बैठ गया और बालकनी में जाकर खड़ा हो गया। उसकी निगाहें नव्या की बालकनी की तरफ़ घूम गईं।

    दूसरी तरफ़ नव्या ने कह तो दिया था, पर आदि का उससे दूर जाना उसकी धड़कनों को मद्धम कर रहा था। आँखों से नींद कोसों दूर थी। घबराहट हो रही थी उसे। जब उसको अक्ल भी नहीं थी, तभी से आदि को अपने साथ देखती आ रही थी। वो हमेशा उसको संभालता था, उसकी शील्ड था। वो उसके साथ महफ़ूज़ महसूस करती थी, पर अब वो शील्ड उससे छीन रहा था।

    आदि उससे दूर जा रहा था, अब उसकी शैतानियों को सहकर भी उसकी परवाह करने के लिए वो नहीं होगा उसके पास, अब वो नहीं होगा उसको हर मुश्किल से बाहर निकालने के लिए। यही सब ख़्याल उसके मन को बेचैन किए हुए थे।

    उसका भी मन नहीं लग रहा था। नव्या की आदत थी, जब भी वो परेशान या दुखी होती थी, तो बालकनी या छत पर जाकर चाँद को देखने लगती थी, इससे उसके बेचैन मन को कुछ सुकून मिल जाता था।

    आज भी अपने खोए सुकून की तलाश में वो अपने रूम की बालकनी में चली आई। उसको देखते ही आदि की बेचैन निगाहों में सुकून उतर गया और वो, बड़े प्यार से नव्या के चेहरे को देखने लगा, जो एकदम मायूस, उदास लग रहा था।

    नव्या ने तो आदि के रूम की तरफ़ देखा ही नहीं, वो उदास, सूनी निगाहों से एकटक आकाश में बादलों के साथ लुका-छुपी खेलते चाँद को देख रही थी। चेहरा दर्द से सना था। आदि से दूर होना आसान नहीं था उसके लिए, और नव्या से दूर जाना आदि के लिए भी आसान नहीं था। दोनों के मन बेचैन थे।

    कुछ देर बाद नव्या को कुछ अजीब एहसास होने लगे और उसकी निगाहें आदि की बालकनी की तरफ़ घूम गईं, जहाँ खड़ा आदि अब भी उसे ही देख रहा था। रात के अंधेरे में नीचे जलती स्ट्रीट लाइट की हल्की सी रोशनी वहाँ फैली हुई थी, जिसमें नव्या आदि के चेहरे को ठीक से देख भी नहीं पा रही थी, पर वो आदि को पहचान गई थी और उसका दर्द अब अश्रु बनकर उसकी आँखों में उतर आया था, साथ ही लबों पर हल्की मुस्कान थी और उस मुस्कान में उसकी बेबसी और दर्द झलक रहा था।

    आदि को उसका चेहरा देखकर ये पहचानने में वक़्त नहीं लगा कि वो रो रही है। आदि उसके दुख को महसूस कर सकता था, आख़िर उसका दिल भी तो इतना ही व्याकुल था। उसकी आँखों में भी नमी तैर गई, पर उसने अपनी तकलीफ़ और उदासी को अपनी मुस्कान के पीछे छुपाते हुए, इंकार में सिर हिलाकर उसको रोने से मना कर दिया।

    नव्या की मुस्कान फीकी पड़ गई। दोनों कुछ देर ख़ामोश खड़े एक-दूसरे के अक्स को अपनी निगाहों के रास्ते अपने दिल में बसाते रहे, शायद अपने बेक़रार दिल को ये एहसास दिलाकर पुरसुकून करने की कोशिश कर रहे थे कि वो साथ हैं। आधी रात बीत चुकी थी। आदि ने उसको इशारों में ही अंदर जाकर सोने को कहा।

    अगर कोई और दिन होता तो नव्या उसकी बात कभी नहीं मानती, पर आज वो उसकी बात को काट न सकी, शायद ये आख़िरी बार होगा जब आदि ने उसको कुछ करने को कहा हो, इसके बाद दोनों अलग हो जाएंगे, फिर वो कभी उसको कुछ कहने नहीं आएगा। यही सोचकर नव्या मुस्कुराकर अंदर चली गई। आदि भी कमरे में लौट आया, पर दोनों की ख़ाली आँखों में नींद का एक कतरा तक नहीं था।

    बड़ों के लिए इस वक़्त खुद को संभालना आसान था, पर आदि और नव्या दोनों ही 13-14 के ही थे। बचपन से दोनों हमेशा साथ ही रहे थे और अब अचानक उन्हें एक-दूसरे से दूर जाना था, जो कि उनके लिए बहुत मुश्किल था।

    उनकी रात आँखों ही आँखों में कटी। अगले दिन सुबह के छः बज रहे थे। किशोर जी जॉगिंग के लिए निकले, पर हॉल में पहुँचे तो किचन से आती आवाज़ों ने उनका ध्यान अपनी तरफ़ खींच लिया और वो कुछ हैरानी के साथ किचन की तरफ़ बढ़ गए।

    हैरानी की बात तो थी ही। महिमा जी अभी कमरे में थी और किचन में वही जाती थीं या वो खुद जाते थे। नव्या, वो तो कभी किचन का चेहरा भी नहीं देखती थी। तो वो समझ नहीं पा रहे थे कि आख़िर जब वो यहाँ है, महिमा जी अंदर कमरे में है, तो किचन से ये आवाज़ें कैसी आ रही हैं?

    वो जैसे ही किचन के एंट्रेंस पर पहुँचे और अंदर मौजूद इंसान पर उनकी नज़र पड़ी, उनकी आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं। अंदर किचन में नव्या खड़ी थी, गैस पर कड़ाही चढ़ाई हुई थी, शायद कुछ बना रही थी।

    जो लड़की कभी किचन में क़दम तक नहीं रखती थी, आज वो किचन में कुछ बनाने की कोशिश कर रही थी, ये देखकर किशोर जी की हैरानी की कोई सीमा नहीं रह गई थी। उनके क़दम जहाँ थे, वहीं जम गए और वो आँखें फाड़े अंदर खड़ी नव्या को देखने लगे, जिसका सारा ध्यान अपने काम पर था। वो कुछ ढूंढ रही थी।

    कुछ देर बाद उसने कैबिनेट से एक डब्बा निकाला, शायद उसमें घी था। उसने पहले कभी किचन में क़दम नहीं रखा था, हाँ, एक बार ज़िद करके महिमा जी से मूंग दाल का हलवा बनवाया था और खुद खड़े होकर सब सीखा था। हालाँकि उसने कभी बनाने की कोशिश नहीं की, क्योंकि किचन के कामों में उसको ज़रा भी दिलचस्पी नहीं थी।

    महिमा जी तो कई बार उसको काम सिखाने की कोशिश करती थीं, पर नव्या किशोर जी को ढाल बनाकर हमेशा उनके हाथों से बच निकलती थी।

    नव्या को बस प्रोसेस पता था, बाकी कुछ नहीं जानती थी वो, तो उसने ढेर सारा घी एकदम से उस गर्म कड़ाही में डाल दिया। वो गैस के पास ही खड़ी थी। गर्म घी उछलकर उसके हाथ और चेहरे पर पड़ गया तो वो घबराकर पीछे हट गई, मुँह से आह निकली, तब जाकर किशोर जी होश में आए और तुरंत नव्या की तरफ़ दौड़ गए। उन्होंने उसके हाथ से घी का डब्बा लेकर स्लैब पर रखा, फिर उसको अपनी तरफ़ घुमाकर उसके चेहरे और हाथ को देखते हुए बोले, "आप ठीक तो हैं बेटा?"

    नव्या ने निगाहें उठाकर उन्हें देखा, उसकी आँखों में आँसू भर आए थे। किशोर जी अब और ज़्यादा परेशान हो गए, उन्होंने उसका चेहरा देखा तो उस पर हल्के से छींटे पड़े थे, जिस वजह से कुछ ज़्यादा जला नहीं, पर हाथ जल गया था। उन्होंने तुरंत उसके हाथ पर बर्फ़ लगाई, पर गर्म घी पड़ने की वजह से हाथ पर कई जगह छाले हो गए थे।

    नव्या अपने हाथ को देखकर सिसक रही थी। किशोर जी ने गैस ऑफ़ किया और उसे लेकर बाहर चले आए। उन्होंने उसको सोफे पर बिठाया और खुद दवाई लेने अपने कमरे में चले गए। वापस लौटे तो उनके साथ महिमा जी भी थीं। महिमा जी तुरंत नव्या के पास आकर बैठ गईं और घबराई हुई सी उसके हाथ को देखते हुए बोलीं,

    "ये क्या किया आपने? जब आपको किचन का काम नहीं आता, तो आप किचन में गईं ही क्यों? क्या ज़रूरत थी अकेले किचन में जाने की? ............ अगर आपको कुछ चाहिए था तो हमसे कह देती, हम बनाकर दे देते............ देखिए तो कितना जल गया है।"

    नव्या अब भी अपने हाथ को देखकर सिसक रही थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया। किशोर जी ने महिमा जी को शांत रहने को कहा और नव्या के हाथ पर दवाई लगाने लगे।

    उसके हाथ पर दवाई लगाने के बाद उन्होंने सर उठाकर उसको देखा तो नव्या अब भी सिसक रही थी, शायद जलन हो रही थी उसे। उन्होंने बड़े प्यार से उसके आँसुओं को साफ़ करते हुए कहा, "रोते नहीं बच्चे, बस थोड़ा सा जला है, एक-दो दिन में ठीक हो जाएगा। आप तो हमारी बहादुर बेटी हैं न? इतनी सी बात पर ऐसे आँसू नहीं बहाते बेटा। अच्छा, चलिए बताइए, हमारी बेटी तो कभी किचन में नहीं जाती, फिर आज आप इतनी सुबह-सुबह अकेली किचन में क्या कर रही थी?"

    उनके समझाने पर नव्या कुछ शांत हुई। उसने नज़रें उठाकर उन्हें देखा और सुबकते हुए बोली, "मैं हलवा बना रही थी।"

    उसकी बात सुनकर किशोर जी और महिमा जी दोनों ही हैरानी से एक-दूसरे को देखने लगे, फिर उनकी परेशान निगाहें नव्या की तरफ़ घूम गईं। अब महिमा जी ने उससे हैरानी से सवाल किया,

    "आप इतनी सुबह-सुबह हलवा क्यों बना रही थी बेटा? अगर आपका खाने का मन था तो हमें कह दिया होता, हम बना देते आपके लिए।"

    "मैं अपने लिए नहीं बना रही थी............. आदि को मूंग दाल का हलवा बहुत पसंद है ना, और आज वो जाने वाला है, इसलिए मैं उसके लिए हलवा बना रही थी। मैं उसको खुद हलवा बनाकर खिलाना चाहती थी, पर मुझसे बना नहीं।"

    नव्या एकदम उदास होकर सर झुकाकर बैठ गई। उसका जवाब सुनकर महिमा जी और किशोर जी दोनों स्तब्ध रह गए थे।

    पहली बार नव्या ने कुछ बनाने की कोशिश की, वो भी आदि के लिए। जो लड़की कभी किचन में क़दम नहीं रखती थी, आज वो हलवा बनाने की कोशिश कर रही थी, वो भी आदि के लिए। इसी से ज़ाहिर होता था कि आदि क्या मायने रखता है उसके लिए।

    अपनी बेटी का उदास चेहरा देखकर वो दोनों भी दुखी हो गए। किशोर जी ने नव्या का मुरझाया हुआ चेहरा देखा तो अपनी लाडली बेटी की खोई मुस्कान लौटाने के लिए उन्होंने मुस्कुराकर कहा,

    "तो हमारा बच्चा हलवा बनाने की कोशिश कर रहा था?"

    नव्या ने मुँह लटकाए हुए ही हामी भर दी, तो उन्होंने आगे कहा, "तो इसमें उदास होने वाली कौनसी बात है? चलिए, आपके पापा आपको हलवा बनाना सिखाते हैं। हम आपको गाइड करेंगे और आप वैसे-वैसे बना लीजिएगा।"

    उनकी बात सुनकर नव्या की उदास आँखों में चमक आ गई। उसने उत्सुकता के साथ उन्हें देखा तो वो हल्का सा मुस्कुरा दिए। नव्या का चेहरा ख़ुशी से खिल उठा, वो जल्दी से उठ खड़ी हुई और दोनों बाप-बेटी किचन की तरफ़ बढ़ गए, तो पीछे से महिमा जी ने चिंता भरे स्वर में कहा,

    "कहाँ जा रहे हैं आप? नव्या का हाथ जला हुआ है।"

    "आप चिंता मत कीजिए, हम अपनी बेटी का ध्यान रखेंगे। आज घर के काम निपटाए, आज नाश्ता हम बाप-बेटी मिलकर बनाएंगे।"

    किशोर जी ने नव्या को देखकर मुस्कुराकर कहा, तो उसने भी मुस्कुराकर हामी भर दी। महिमा जी कुछ पल परेशान सी दोनों को जाते देखती रहीं, फिर दूसरे कामों में लग गईं।

    किशोर जी ने अश्विन जी को फ़ोन करके नाश्ते के लिए पूरे परिवार के साथ वहाँ बुला लिया कि उनके जाने से पहले एक बार सब साथ में नाश्ता कर लें। उन्होंने भी आसानी से हामी भर दी।

    किशोर जी ने नव्या को बताया और उनके कहे अनुसार नव्या ने हलवा बनाकर तैयार कर दिया। उसके बाद किशोर जी की छोटी-मोटी मदद करने लगी खाना बनाने में।

    To be continued....

  • 15. Love Beyond Pain - Chapter 15

    Words: 2354

    Estimated Reading Time: 15 min

    कुछ एक घंटे बाद अश्विन जी बाक़ी सबके साथ वहाँ आ गए। नव्या किशोर जी के साथ मिलकर टेबल सेट कर रही थी। जब उसकी निगाहें सामने से आते आदि पर पड़ीं, तो उसकी आँखों में नमी और लबों पर मुस्कान ठहर गई।

    आदि भी हल्का सा मुस्कुरा दिया। सभी नाश्ते के लिए बैठ गए। नंदिनी जी और महिमा जी ने सबको नाश्ता सर्व किया। नव्या की प्लेट में उन्होंने अपने बनाए परांठे रख दिए, जिसे देखकर नव्या के लबों पर हल्की मुस्कान फैल गई, पर नंदिनी जी की आँखें भर आईं। उनके लिए भी नव्या से दूर जाना आसान नहीं था।

    सबने खाना शुरू किया। किशोर जी बहुत अच्छी कुकिंग करते थे, तो खाना स्वादिष्ट बना था।

    सबने नाश्ते का आनंद लिया, उसके बाद सबको मीठा सर्व किया गया। हलवा नव्या ने सर्व किया था। किशोर जी ने सबको देखा, फिर मुस्कुराकर बोले, "ये हलवा हमारी बेटी ने बनाया है।"

    उनके लबों पर गर्व भरी मुस्कान फैली हुई थी, वहीं आदि और बाकी सब की आँखें फटी की फटी रह गई थीं ये बात सुनकर। उन्होंने अविश्वास से किशोर जी को देखा, तो अब महिमा जी ने मुस्कुराकर कहा,

    "आज का हलवा नव्या ने ही बनाया है, खुद अपने हाथों से।"

    "हाँ, भले हमने उन्हें बताया है कि कैसे बनाना है, पर सब उन्होंने खुद से किया है, हमें तो हाथ भी लगाने नहीं दिया। कह रही थी कि आदि के लिए हलवा मैं खुद बनाऊँगी।"

    किशोर जी ने उनकी बात से सहमति जताते हुए आगे की बात बताई। उनकी बात सुनकर आदि के साथ-साथ बाकी सबकी निगाहें नव्या की तरफ़ घूम गईं, जो सर झुकाए बैठी थी। शायद अपनी आँखों की नमी को छुपा रही थी वो। अब किसी ने आगे कुछ नहीं कहा, शायद उनके पास कहने के लिए कुछ था ही नहीं।

    आदि ने नव्या को देखते हुए बस एक स्पून ही हलवा खाया। हलवा वाकई में अच्छा बना था, सबने उसकी तारीफ़ भी की, पर आदि उस एक स्पून से ज़्यादा हलवा खा ही नहीं पाया। गले से नीचे ही उतर रहा था उसके।

    नव्या का उदास चेहरा उसको तकलीफ़ दे रहा था। नव्या ने सिर्फ़ उसके लिए इतनी मेहनत की, ये बात उसको कमज़ोर बना रही थी। वो एक निवाला खाकर वहाँ से उठकर चला गया।

    उसके यूँ अचानक जाने से सभी हैरान हो गए, उसके जाते ही नव्या भी अपने कमरे में भाग गई। उसने तो खाने का एक निवाला तक नहीं खाया था।

    बाक़ी सब परेशान से एक-दूसरे की शक्ल देख रहे थे। अभी कुछ ही मिनट हुए थे कि आदि वापस वहाँ आ गया। सबकी निगाहें उस पर टिक गईं, सबके दिमाग में अनेकों सवाल थे। आदि ने एक नज़र सबको देखा, फिर नव्या की प्लेट में हलवे का कटोरा रखकर उसकी प्लेट लेकर उसके कमरे की तरफ़ बढ़ गया। उसने बिना कुछ कहे ही सबको उनके सवालों के जवाब दे दिए थे। जहाँ उनके लबों पर गहरी मुस्कान थी, वहीं आँखों में नमी उतर गई थी।

    पर अब उनका विश्वास और पक्का हो चुका था, कि इन दूरियों से आदि और नव्या के रिश्ते पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जैसे वो एक-दूसरे से जुड़े हैं, वो कितना ही दूर रहे, पर उनके रिश्ते में कभी दूरियाँ आ ही नहीं सकतीं।

    आदि नव्या के कमरे में पहुँचा तो वो बेड पर उल्टी पड़ी हुई थी, शायद रो रही थी। आदि ने प्लेट साइड टेबल पर रखी और उसके पास बैठ गया। उसने जैसे ही उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा, नव्या की आँखों से आँसू तेज़ी से बहने लगे। उसने तकिये में अपना मुँह छुपा लिया और फफक कर रो पड़ी।

    आदि की आँखों में भी नमी तैर गई थी, लब हिले तो सही, पर कुछ बोल न सका, तो ख़ामोशी से उसके सर पर हाथ फेरता रहा।

    कुछ देर नव्या तकिये में मुँह छुपाए रोती रही, फिर उठकर सीधे आदि के सीने से जा लगी। आदि ने उसको अपने गले से लगा लिया, अब उसकी हथेली नव्या की पीठ सहला रही थी, शायद वो उसको शांत करने की कोशिश कर रहा था।

    नव्या कुछ देर उससे लिपटी हुई रोती रही, फिर धीरे-धीरे वो शांत हो गई। आदि ने उसको खुद से दूर किया और अपनी हथेली से उसके आँसुओं को पोंछने के बाद, हाथ धोकर आया और उसको अपने हाथों से खाना खिलाने लगा।

    नव्या का मन नहीं था, पर वो इंकार नहीं कर सकी, क्या पता इसके बाद दोबारा कब उसको आदि के हाथों से खाना खाने का मौका मिले।

    आदि उसको बड़े प्यार से खाना खिला रहा था और नव्या एकटक उसको देखे जा रही थी। आदि ने उसको पेट भरके खाना खिलाया, फिर हलवा का बाउल उसके तरफ़ बढ़ाकर आँखों से ही उसको खिलाने को कहा। उसके इशारे को समझते हुए नव्या उसको अपने हाथों से हलवा खिलाने लगी।

    दोनों के लब ख़ामोश थे, पर बेचैन निगाहें जाने कितनी ही बातें कर चुकी थीं। नव्या ने उसको हलवा खिलाया, फिर आस भरी निगाहों से उसको देखते हुए बोली,

    "मैंने इतनी मेहनत से तुम्हारे लिए तुम्हारा फ़ेवरेट हलवा बनाया और तुमने मुझे बताया भी नहीं कि हलवा कैसा बना है?"

    नव्या ने नाराज़गी से अपने गाल फुला लिए। उसकी प्यार भरी शिकायत सुनकर आदि के लबों पर मुस्कान ठहर गई, उसने उसके फूले हुए गाल को खींचते हुए कहा, "बहुत अच्छा बना है, बिल्कुल तुम्हारी तरह। अबसे जब भी मैं तुमसे मिलने आऊँ, तो तुम्हें मुझे यूँही अपने हाथों से हलवा बनाकर खुद खिलाना होगा। अगर तुम ये वादा करती हो, तभी मैं तुमसे मिलने आऊंगा।"

    नव्या ने तुरंत हामी भर दी। आदि ने हाथ धोए, फिर अपनी पैंट की जेब से एक ब्रेसलेट निकालकर नव्या की कलाई पर बांधने के लिए जैसे ही उसके हाथ को पकड़ा, नव्या के मुँह से आह निकल गई। उसने तड़पकर अपना हाथ पीछे खींच लिया।

    आदि पहले तो चौंक गया, फिर जब उसने नव्या का दर्द से सना चेहरा और आँसुओं से भरी आँखें देखीं, उसकी भौंहें तन गईं। उसने उसके हाथ को पकड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, पर नव्या उसको अपना हाथ दिखाना नहीं चाहती थी। उसने हाथ अपने पीछे छुपा लिया।

    आदि ने पहले उसको घूरा, फिर हल्के गुस्से से बोला, "नव्या, हाथ दिखाओ मुझे अपना। क्या हुआ है तुम्हारे हाथ में? दिखाओ मुझे?"

    आदि अब भी उसके हाथ को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। नव्या अब घबरा गई और पीछे हटते हुए बोली, "नहीं, कुछ नहीं हुआ।"

    "अगर कुछ नहीं हुआ है, तो दिखाओ मुझे," आदि ने हल्के गुस्से में कहा, पर नव्या पीछे खिसकती जा रही थी।

    आदि का शक यकीन में बदलने लगा था। आज पहली बार नव्या किचन में गई थी और अब वो उसको अपना हाथ नहीं दिखा रही थी, मतलब कुछ तो गड़बड़ थी यहाँ।

    आदि ने आगे बढ़कर उसकी बाँह पकड़कर उसके हाथ को आगे किया, तो नव्या ने अपनी आँखों को भींच लिया।

    आदि की नज़र जब उसके हाथ पर पड़े छालों पर पड़ी, तो उसकी भौंहें तन गईं। उसने गुस्से से नव्या की तरफ़ निगाहें घुमाईं, जो सहमी हुई सी खुद में सिमटकर बैठी हुई थी। उसका डरा-सहमा और घबराया हुआ चेहरा देखते ही आदि का सारा गुस्सा ग़ायब हो गया, चेहरे पर दर्द के भाव उभर आए और उसने नाराज़गी से कहा,

    "ये क्या किया है तुमने? क्या ज़रूरत थी तुम्हें किचन में जाने की? देखो कितना जल गया है तुम्हारा हाथ। कितना दर्द हो रहा होगा तुम्हें। क्यों बेवजह खुदको इतनी तकलीफ़ दी?"

    नव्या के कानों में जब आदि की नाराज़गी भरी आवाज़ पड़ी, तो उसने अपनी भीगी पलकें उठाकर उसको देखा और धीमी आवाज़ में बोली, "आज तुम चले जाओगे न, इसलिए मैं तुम्हारे लिए तुम्हारा फ़ेवरेट हलवा बनाना चाहती थी, पर तुम तो जानते हो, मुझसे कोई काम कभी ठीक से नहीं होता। यहाँ भी गड़बड़ हो गई। मैंने कढ़ाई में घी डाला तो वो उड़कर मेरे ऊपर आ गया............... तब बहुत जल रहा था, पर अब मुझे बिल्कुल भी दर्द नहीं हो रहा, सच्ची। तुम नाराज़ मत हो न, अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ और पापा ने कहा की कुछ दिनों में मेरा हाथ ठीक हो जाएगा।"

    नव्या ने उसको विश्वास दिलाने की कोशिश की कि वो ठीक है, पर आदि इमोशनल हो गया था। उसने उसको अपने सीने से लगाते हुए उस पर अपनी बाहों को कस दिया। घबरा गया था वो, नव्या की तकलीफ़ देखकर उसको दर्द हो रहा था।

    नव्या कुछ देर ख़ामोशी से उसको बाहों में क़ैद बैठी रही, फिर उसने जैसे आदि उसको पैंपर करता था, वो याद करके आदि की पीठ सहलाते हुए कहा,

    "मैं ठीक हूँ।"

    उसकी आवाज़ आदि के कानों में पड़ी तो उसने अपनी आँखों में आई नमी को साफ़ कर लिया, फिर उसको खुद से दूर किया और अपने हाथ में मौजूद ब्रेसलेट उसकी कलाई में पहनाते हुए बोला,

    "ये ब्रेसलेट मेरी तरफ़ से तेरे लिए। इसको तुम हमेशा पहनकर रखना, ये तुम्हें एहसास दिलाएगा कि जैसे A और N साथ हैं, वैसे ही नव्या और आदि भी हमेशा साथ रहेंगे। जब भी तुझे मेरी याद आए, तो इसे देख लियो और बात करने का मन करे तो मम्मी को फ़ोन कर लियो। मुझे याद करके उदास मत होइए और रोना तो बिल्कुल नहीं है। समझी मेरी जंगली बिल्ली?"

    नव्या ने ब्रेसलेट देखा तो बड़ा प्यारा सा सिल्वर कलर का ब्रेसलेट था, जिसमें A&N बड़े सुंदर तरीके से साथ में लिखा हुआ था। नव्या ने अब मुस्कुराकर आदि को देखा और हामी भर दी, फिर वो उठकर अपने स्टडी टेबल के पास आ गई। वहाँ रखा गिफ्ट बॉक्स उठाया और आदि के पास आकर उसके तरफ़ बढ़ा दिया।

    आदि ने सवालिया निगाहों से उसको देखा तो नव्या ने मुस्कुराकर खोलने का इशारा कर दिया। आदि ने गिफ्ट अनरैप किया तो उसके अंदर एक फ़ोटो फ़्रेम रखा था, जो उल्टा था। आदि ने उसे सीधा किया और जैसे ही उसकी निगाहें अंदर लगी तस्वीर पर पड़ीं, उसकी आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं।

    उसमें नव्या की प्यारी सी फ़ोटो लगी हुई थी। वो उनके पिकनिक की फ़ोटो थी, जो आदि ने ही निकलवाई थी, पर नव्या को बहुत पसंद आ गई थी, तो उसने उससे छीनकर अपने पास रख ली। कितना माँगा था आदि ने उससे इस फ़ोटो को, वो इसको फ़्रेम करवाकर अपने पास रखना चाहता था, पर नव्या ने ये कहकर इंकार कर दिया था कि जब वो खुद उसके पास है, तो उसकी फ़ोटो लेकर वो क्या करेगा? फ़ोटो से अच्छा वो उसे देख ले।

    उसकी दलील के आगे आदि को ही झुकना पड़ा और ये फ़ोटो नव्या के पास रह गई। पर आज नव्या ने खुद उसको वो फ़ोटो फ़्रेम करवाकर दी, ये देखकर वो हैरान हो गया था।

    नव्या ने उस फ़ोटो को देखकर मुस्कुराकर कहा,

    "तुम्हें ये फ़ोटो बहुत पसंद थी न? पर मैंने तुम्हें दी ही नहीं, पर आज मैं तुम्हें ये फ़ोटो गिफ्ट कर रही हूँ। ये तस्वीर तुम्हें हमेशा मेरी याद दिलाएगी। अगर तुमने गलती से भी किसी दूसरी लड़की से दोस्ती की, तो सोच लेना, मैं वो हाल करूँगी तुम्हारा कि तुम खुद को भी नहीं पहचान सकोगी। समझे मिस्टर सफेद बंदर?"

    नव्या ने उसको धमकी ही दे दी, पर आदि, वो तो अब भी हैरान-परेशान सा उस फ़ोटो को देख रहा था। नव्या की बात सुनकर आदि ने निगाहें उठाकर उसको देखते हुए पूछा,

    "पर तुम्हें तो ये फ़ोटो बहुत पसंद थी न? मेरे इतना मांगने पर भी तुम मुझे ये फ़ोटो देने को तैयार नहीं थी, फिर अब, मुझे ये फ़ोटो क्यों दे रही हो?"

    उसका सवाल सुनकर नव्या ने मुस्कुराकर कहा, "मैंने कहा था ना कि तुम्हारे पास मैं हूँ, फिर फ़ोटो की क्या ज़रूरत? जब मन करे मुझे ही देख लेना, पर अब तुम यहाँ से, मुझसे दूर जा रहे हो। तुम्हें जब मेरी याद आएगी, तो तुम मुझे देख नहीं पाओगे, इसलिए मैं तुम्हें ये फ़ोटो दे रही हूँ। जब भी तुम मुझे मिस करो, तो मेरी फ़ोटो को देख लेना, चाहे तो बात भी कर लेना, इससे तुम्हें हमेशा याद रहेगा कि मैं यहाँ तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ, तुम मुझे कभी भूल नहीं पाओगे।"

    "मैं तुम्हें वैसे भी कभी नहीं भूल सकता।" आदि बस इतना ही कह सका, उसका गला भर आया था और नव्या के सामने अपने आँसू दिखाकर वो न खुद कमज़ोर पड़ सकता था, न उसे कमज़ोर पड़ने दे सकता था, तो उसने उसको गले लगाया, फिर प्लेट लेकर वहाँ से चला गया।

    कुछ देर बाद उनके जाने का वक़्त हो गया। सब सामान गाड़ी में रखा जा चुका था। सबने गले लगकर एक-दूसरे को बाय किया, साथ ही जल्दी ही दोबारा मिलने के वादे भी किए, उसके बाद गाड़ी में बैठ गए।

    आदि और नव्या एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े थे। दोनों की आँखें नम थीं और लब ख़ामोश। चेहरे पर जुदाई का दर्द था और दिल बेचैन हो गया था। सबकी निगाहें उन्हीं पर टिकी हुई थीं। आर्यन भी नव्या को बाय कहकर अंदर बैठ चुका था, बस आदि ही बचा था।

    कुछ देर ख़ामोशी से वो एक-दूसरे को देखते रहे, फिर आदि ने हौले से मुस्कुराकर अपनी बाहों को फैला दिया और नव्या उसके सीने से जा लगी। दोनों की आँखों में ठहरे आँसू बह चले, जिसे उन्होंने दूसरे के देखने से पहले ही साफ़ कर लिया।

    कुछ देर बाद आदि ने उसको खुद से अलग किया और उसके माथे पर अपने होंठ रख दिए, इसके बाद वो एक सेकंड वहाँ नहीं रुका, सीधे जाकर गाड़ी में बैठ गया।

    नव्या ने उसके स्पर्श को महसूस करते हुए अपनी पलकों को झुका लिया था और वो अब भी ऐसे ही आँखें बंद किए खड़ी थी। जब गाड़ी के चलने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, तो उसने झटके से अपनी आँखें खोलीं और नम आँखों से गाड़ी को जाते हुए देखने लगी।

    सबने उसे बाय किया, पर आदि ने उसके तरफ़ निगाहें भी नहीं कीं। देखते ही देखते गाड़ी उसकी आँखों से ओझल हो गई और नव्या भीगी पलकों को उठाए एकटक उस दिशा में देखती ही रह गई। उसकी आँखों से बहते आँसू उसके चेहरे को भिगाने लगे।

    वर्तमान

    आज फिर आदि की आँखों के सामने नव्या का आँसुओं से भीगा चेहरा आ गया, जो जब उसने जाते वक़्त एक बार मुड़कर देखा था, तब उसकी आँखों के सामने आया था। उसकी आँखों में आँसू भर आए, नव्या का अक्स अब धुंधला पड़ने लगा था। जो तस्वीर नव्या ने उसे दी थी, वो अब भी उसने संभालकर रखी थी। अब भी उसके हाथ में वो तस्वीर मौजूद थी, पर नव्या नहीं थी।

    To be continued....

  • 16. Love Beyond Pain - Chapter 16

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