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Love Beyond Pain

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Aarya Rai

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"Love Beyond Pain" – कुछ मोहब्बतें किस्मत से लड़कर जीती जाती हैं… अंधेरे में डूबा एक आलीशान बंगला… बालकनी में खड़ी एक लड़की… भूरी आँखों में अनकहा दर्द, होंठों पर बंधी खामोशी, और साथी बस आसमान का चाँद। वो चाहकर भी अपने राज़ किसी...

Total Chapters (4)

Page 1 of 1

  • 1. Love Beyond Pain - Chapter 1

    Words: 2153

    Estimated Reading Time: 13 min

    "नव्या, बाहर आओ यार! स्कूल के लिए देर हो रही है। अगर लेट हुए तो पनिशमेंट मिलेगी।" एक लड़का जो एक दो मंजिले घर के बाहर खड़ा था, करीब 12-13 साल का लग रहा था....

    दूध सा गोरा रंग। वाइट शर्ट और वाइट पेंट पहना हुआ था, उस पर टाई भी लगाई हुई थी। गहरी काली आँखे, माथे पर लहराते सिल्की-सिल्की बाल, पतले लाइट रेड कलर के लब, वो बहुत ही हैंडसम और क्यूट लग रहा था।

    साइकिल के हैंडल को अपनी हथेली से थामे और पीठ पर बैग लटकाए वो बार-बार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देखते हुए उस घर के बन्द गेट को देख रहा था। चेहरे पर हल्का गुस्सा झलक रहा था। वो लगातार नव्या को आवाज़ लगा रहा था।

    कुछ ही देर बाद उसके कानों में एक मीठी सी खनकती आवाज़ पड़ी, "आदि.........."

    आवाज़ सुनकर आदि ने नज़रे उठाई, फर्स्ट फ्लोर की बालकनी से एक लड़की झांक रही थी। दूध सा गोरा रंग, भूरि-भूरि मछली जैसी आँखे, पतली नाक, गुलाब की पंखुड़ियों से कोमल चैरी जैसे लब जिन पर इस वक़्त मोहिनी मुस्कान छाई हुई थी। कमर तक लहराते सुनहरे सिल्की बाल जिनको हाई पोनी में बांधा हुआ था।

    वाइट शर्ट और उस पर घुटनों तक की वाइट स्कर्ट, उस पर टाई, वो बिल्कुल प्यारी सी डॉल लग रही थी। शायद ही इतनी सुंदर लड़की किसी ने पहले कभी देखी हो। मासूमियत से भरा प्यारा, सुंदर सा चेहरा।

    लड़की को देखकर लड़का, मतलब आदि की आँखे छोटी-छोटी हो गयी। उसने उसको घूरते हुए कहा, "अभी तक वहाँ क्या कर रही हो? जल्दी बाहर आओ, लेट हो रहे हैं। अगर तुम्हारे वजह से मुझे पनिशमेंट मिली तो आगे से मैं कभी तुम्हारा इंतज़ार नहीं करूँगा।"

    "ओफ्फो आदि, कितना गुस्सा करते हो। अभी बहुत वक़्त है, बस दो मिनट रुको, में अभी आती हूँ।" नव्या ने मुस्कुराकर कहा और अंदर कमरे में चली गयी। उसने बैग को अपनी पीठ पर टांगा और भागते हुए कमरे से बाहर निकल गयी।

    वो सीढ़ियों से दौड़ती हुई नीचे आई और दरवाजे के तरफ दौड़ गयी, तभी पीछे से एक लेडी की आवाज़ आई, "नव्या, ऐसे कहाँ भागी जा रही हो, पहले कुछ खा तो लो।"

    आवाज़ सुनकर नव्या पलटी। पीछे ही महिमा जी खड़ी थी, मतलब उसकी माँ। नव्या ने उन्हें देखकर मुस्कुराकर कहा, "माँ, मुझे भूख नही है।"

    "ऐसे कैसे भूख नही है? खाली पेट घर से नही निकलते, चलो बैठकर थोड़ा सा खा लो।" महिमा जी ने थोड़ी सख्ती से कहा तो नव्या ने मुँह लटकाकर कहा, "माँ, बाहर आदि आ गया है, अगर में अभी बाहर नही गयी तो वो मुझे छोड़कर चला जाएगा।"

    "आदि को मैं अंदर ही बुला लेती हूँ, तुम खाना खाओ चुपचाप।" उन्होंने उसको डपटते हुए कहा और दरवाजे के तरफ बढ़ गयी। बाहर आदि साइकिल पर सवाल उसके आने का इंतज़ार कर रहा था।

    जब नव्या नही आई तो वो फिरसे चिल्लाया, "नव्या, और कितनी देर लगाओगी, जल्दी बाहर आओ वरना मैं जा रहा हूँ तुम्हे छोड़कर।"

    "आज फिर नवु आपको इंतज़ार करवा रही है " एक आवाज़ उसके कानों में पड़ी तो उसने नज़रे सामने के तरफ घुमाई। दो आदमी जो लगभग 35-40 के लग रहे थे, दोनों ने ट्रैक सूट पहना हुआ था, शायद जोगिंग से आ रहे थे, वो लबों पर मुस्कान सजाए उसके तरफ बढ़ गए।

    आदि ने दोनों को देखकर मुँह फुलाकर कहा, "देख लीजिये पापा, आपकी लाडली रोज़ मुझे ऐसे ही इंतज़ार करवाती है, वक़्त पर तैयार तो हुआ ही नही जाता उससे।"

    "नवु की शिकायत आप हमसे तो मत ही कीजिये। वैसे भी अभी स्कूल का टाइम नही हुआ है, आ जाएगी वो भी। आप ही जल्दी आकर उनपर बेवजह गुस्सा करते रहते है, वरना हमारी नवु तो एकदम वक़्त पर तैयार हो जाती है।"

    अश्विन जी ने आदि को उल्टा डपट दिया। उसने मुँह फुलाकर अब उनके बगल में खड़े अंकल मतलब किशोर जी को देखकर कहा, "देख रहे है अंकल, आपके दोस्त को हमेशा मैं ही गलत लगता हूँ। उनकी लाडली की कोई गलती तो उन्हें दिखती ही नही है।"

    "कोई बात नही, हम है न। हम जानते है हमारा आदि बहुत ज़िम्मेदार है, नव्या ही आपको हमेशा तंग करती रहती है। इतनी बड़ी हो गयी पर बचपना अभी भी नही गया है। आप ही है जो उनकी सारी शैतानियों को बर्दाश करके उन्हें संभाल लेते है।" किशोर जी ने उसके गाल को छूकर मुस्कुराकर आगे कहा,

    "आपके वजह से हम उनके तरफ से निश्चिंत रहते है क्योंकि हम जानते है कि आप उन्हें हर मुश्किल से बाहर निकाल लेंगे, उनका साथ कभी नही छोड़ेंगे, जैसे आज तक उनका ख्याल रखते आ रहे है वैसे ही आगे भी उनका ध्यान रखेंगे।"

    उनकी बात सुनकर अब आदि के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गयी।

    "दोस्ती की है अंकल, निभानी तो पड़ेगी ही। जैसे आपकी और पापा की दोस्ती आज भी इतनी मजबूत है, वैसे ही हमारी दोस्ती भी अटुट है। आप दोनों के तरह हम भी हमेशा हर मुश्किल मे एक दूसरे का साथ देंगे। वैसे भी आपने ही तो कहा था कि नव्या को मुझे हमेशा हर मुश्किल से बचाकर रखना है मैं तो बस आपकी बात का मान रख रहा हूँ।"

    उसकी बात सुनकर दोनों आदमियों के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गयी। वो बात कर ही रहे थे कि पीछे से एक आंटी की आवाज़ आई जो आदि का नाम पुकार रही थी।

    आवाज़ सुनकर तीनों ने नज़रे घुमाई तो पीछे ही एक आंटी खड़ी थी। हाथ मे टिफ़न पकड़े वो आदि के तरफ बढ़ रही थी। ये उसकी मम्मी है, नंदिनी जी।

    नंदिनी जी आदि के पास आ गयी फिर टिफ़न उसको पकड़ाते हुए हल्के गुस्से से बोली, "इतने लापरवाह क्यों हो तुम? मैंने कहा था ना की दो मिनट रुक जाओ, लंच पैक कर देती हूँ। पर तुम्हे कभी मेरी सुननी ही नही है। इतनी जल्दी रहती है तुम्हे, किस लिए? ताकि यहाँ खड़े होकर नव्या का इंतज़ार कर सको?"

    उन्होंने तो आदि को अच्छे से फटकार लगा दी। आदि ने टिफ़न लिया और मुँह फुलाकर कहा, "तो और क्या करूँ? आपको पता भी है जब तक नवु की बच्ची को मैं 50 बार आवाज़ न लगा लूँ वो बाहर निकलने का नाम नही लेती है। मैं जल्दी आकर खड़ा हो जाता हूँ तब तो वो मुझे लेट करवा देती है, अगर टाइम पर आऊंगा फिर तो पक्का गार्ड अंकल हमें अंदर भी नही घुसने देंगे।"

    "नवु की ज्यादा बुराई मत करो, वो वक़्त पर स्कूल के लिए निकलती है तुम्हारे तरफ एक घंटा पहले तैयार होकर दूसरों का सर दर्द नही करती।" नंदिनी जी ने एक बार फिर उसको फटकार लगा दी।

    आदि मुँह बनाकर धीरे से बोला, "हाँ, आप लोगों को तो उसकी कोई गलती दिखती ही नही है चाहे वो कुछ भी क्यों ना कर ले पर आप उसको कुछ कह दे, ये हो ही नही सकता। मैं ही पागल हूँ जो उसकी शिकायत आपसे कर रहा हूँ।"

    आदि ये बोल ही रहा था कि महिमा जी बाहर आ गयी, उन्होंने नंदिनी जी की बात सुन ली थी तो उन्होंने उनके तरफ बढ़ते हुए कहा, "नंदिनी ये गलत बात है तुम बेवजह मेरे बेटे को डांटती रहती हो। गलती उसकी नही नवु की है, सुबह उससे उठा जाता नही है और रोज़ मेरे बेटे को लेट कर देती है। अगर आदि उसे बुलाने न आए तो वो रोज़ घर पर ही रह जाएगी।"

    अब तो आदि के लबों पर बड़ी ही मुस्कान फैल गयी। आखिर अब कोई उसका साथ देने वाला भी था यहाँ।

    नंदिनी जी ने नाराज़गी से उन्हें देखते हुए कहा, "महिमा तुम बेवजह मेरी बेटी के पीछे पड़ी रहती हो, बेचारी देर रात तक पढ़ती है तो नींद नही खुलती होगी।"

    "पढ़ती नही है टीवी देखती है रात रात भर बैठकर। पढ़ता तो आदि है फिर भी देख लो सुबह सुबह उठकर वक़्त पर तैयार हो जाता है।" महिमा जी ने तुरंत ही विरोध किया। उनको लड़ता देख दोनों अंकल ने आदि को देखकर मुस्कुराकर कहा, "लो, अब इन दोनों की बहस शुरु हो गयी। अब तो तुम पक्का लेट होने वाले हो।"

    आदि ने मुँह लटकाकर उन्हें देखा तो दोनों आदमी हंस पड़े। अब किशोर जी ने अंदर जाते हुए कहा, "तुम रुको मैं नव्या को भेजता हूँ।"

    इतना कहकर वो अंदर चले गए और अश्विन जी दोनों औरतों को शांत करने लगे।

    किशोर जी अंदर गए तो देखा नव्या अपनी प्लेट का राइस जल्दी जल्दी वापिस बाउल मे डाल रही थी।

    "ये क्या हो रहा है यहाँ?" किशोर जी की सख्त आवाज़ जैसे ही नव्या के कानों मे पड़ी उसके हाथ हवा मे रुक गए। उसने नज़रे उठाकर देखा फिर किशोर जी को देखकर क्यूट सा फेस बनाकर बत्तीसी चमका दी।

    "मुझे लेट हो रहा है, आदि वेट कर रहा है बाहर, माँ ऐसे जाने नही देगी इसलिए............"

    इतना कहकर वो चुप हो गयी और लबों पर मुस्कान सजाए उन्हें देखने लगी।

    किशोर जी उसके पास आए और उसके सर पर हल्के से मारते हुए बोले, "कितनी शैतान है आप। अगर आदि की इतनी ही चिंता रहती है तो सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाया कीजिये न। अब उनके लिए बिना खाना खाए निकल रही है।"

    "पापा मेरी नींद नही खुलती तो मैं क्या कर सकती हूँ? वैसे भी आदि मुझे स्कूल में खाना खिला देता है वो मुझे भूखे नही रहने देता। आपको पता है वो रोज़ मेरे लिए दो पराठे रोल करके लाता है और एक रास्ते मे खिलाता है तो दूसरा स्कूल पहुँचते ही खिलाता है उसके बाद अपनी क्लास मे जाता है।"

    नव्या ने मुस्कुराकर उन्हें सब बताया और बैग टांगकर खड़ी हो गयी। फिर उनके गले लगकर बोली, "बाय पापा।"

    "बाय बेटा पर आदि को इतना भी परेशान मत किया कीजिये। थोड़ा तो ज़िम्मेदार बनिये, अगले साल दसवीं मे चली जाएंगी पर अब भी बच्चों जैसे शैतानियाँ करती है," उन्होंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा।

    नव्या उनसे अलग हुई और मुस्कुराकर बोली, "आपका बेटा है तो सही इतना समझदार वो मेरी हर शरारत को झेल लेता है फिर मुझे समझदार बनने की क्या ज़रूरत है?"

    इतना कहकर वो उछलती हुई गेट के तरफ दौड़ गयी। किशोर जी पीछे से उसको देखते हुए बोले, "आदि आज है तो तुम्हे संभाल लेता है पर कुछ वक़्त बाद वो यहाँ से चला जाएगा तब आप कैसे सब संभाल पाएंगी।"

    वो कुछ परेशान नजर आने लगे। वही नव्या ने गेट के पास रखे शू रैक से शूज़ उठाए और पहनकर बाहर निकलते हुए चिल्लाकर बोली, "मैं आ गयी!"

    उसकी आवाज़ सुनकर सबने उसके तरफ नज़रे घुमाई। आदि ने उसको आँखे छोटी करके घूरा तो नव्या ने क्यूट सी शक्ल बनाकर कहा, "Sorry।"

    आदि ने नज़रे फेर ली पर कुछ बोला नही। नव्या उसके पास आई फिर अपनी स्कर्ट की पॉकेट मे हाथ घुसाते हुए उसे देखकर बोली, "अच्छा अब गुस्सा बादमे करना पहले हाथ आगे करो।"

    आदि ने उसे गुस्से से घूरा तो नव्या ने प्यारी प्यारी आँखों को टिमटिमाते हुए उसे देखा। आदि ने मुँह बनाकर हाथ आगे कर दिया तो नव्या ने अपनी स्कर्ट की जेब से हाथ बाहर निकाला और उसके सीधे हाथ की कलाई पर एक प्यारा सा बैंड पहना दिया।

    आदि ने हैरानी से उसे देखा तो नव्या ने मोहिनी मुस्कान लबों पर बिखेरते हुए कहा, "तुम फिरसे भूल गए न बुद्धू, आज फ्रेंडशिप डे है और तुम मेरे एकलौते दोस्त हो तो मैंने खास तुम्हारे लिए ये अपने हाथों से बनाया है।"

    जैसे ही वो चुप हुई महिमा जी ने नव्या को देखकर हैरानी से कहा, "तो कल देर रात तक आप अपना रूम बन्द करके रही कर रही थी?"

    नव्या ने उन्हें देखकर हाँ मे सर हिला दिया।

    "हाँ। जब मेरा दोस्त इतना खास है तो उसके लिए बैंड भी तो स्पेशल होना चाहिए न?"

    "देख लो। दोस्त कहते हो खुदको नवु का और तुम्हे ये तक याद नही था कि आज फ्रेंडशिप डे है। मेरी बच्ची इतनी समझदार है उसने खुद तुम्हारे लिए बैंड बनाया और तुम उसी पर गुस्सा करते रहते हो।" नंदिनी जी ने एक बार फिर उसपर गुस्सा किया। उनकी बात सुनकर आदि का चेहरा उतर गया उसने मुँह लटकाकर कहा,

    "मुझे भी याद है। पर फ्रेंडशिप डे कल है आज नही।"

    "हाँ फ्रेंडशिप डे कल है, आज नही पर स्कूल मे तो सब आज ही एक दूसरे को बैंड पहनाएंगे न। अगर तुम्हारी कलाई पर बैंड नही दिखा और किसी और लड़की ने तुम्हे अपना बैंड पहनाकर अपना दोस्त बना लिया तो? इसलिए मैंने तुम्हे सबसे पहले बैंड पहना दिया है अब तुम बूक्ड हो। कोई और तुम्हे बैंड नही पहना सकता और तुम किसी और से दोस्ती भी नही कर सकते।"

    नव्या ने आदि की बात खत्म होते ही झट से जवाब दिया। उसकी बात सुनकर सब उसको हैरानी से देखने लगे।

    आदि आँखे बड़ी बड़ी करके उसे देख रहा था तभी उसके पीछे से एक आवाज़ आई और वो बुरी तरह चौंक गए।


    To be continued...

    Note : ये स्टोरी प्रतिलिपि पर "दर्द का रिश्ता" नाम से है। यहाँ आप जो पढ़ रहे है वो season 2 है। स्टोरी न्यू है बस नाम सेम है तो कोई प्रॉब्लम नही होगी और अगर Season 1 पढ़ना हो तो प्रतिलिपि पर मेरे नाम या कहानी के नाम से सर्च कर सकते है।

    अब बताइये शुरुआत कैसी लगी आपको?

  • 2. Love Beyond Pain - Chapter 2

    Words: 2904

    Estimated Reading Time: 18 min

    आदि आँखे बड़ी बड़ी करके उसे देख रहा था तभी उसके पीछे से एक आवाज़ आई, "आदि तुम अभी तक यहाँ क्या कर रहे हो? जितनी जल्दी मे तुम भागे थे मुझे तो लगा था तुम स्कूल पहुँच भी चुके होगे।"

    आवाज़ सुनकर तीनों ने पीछे नज़रे घुमाई तो आदि के ही, जैसा लड़का बस उससे थोड़ा बड़ा लग रहा था वो साइकिल पर सवार उसके पास आकर खड़ा हो गया था। ये आदि का बड़ा भाई है आर्यन जो उससे दो साल बड़ा है और अभी 11th मे पढ़ता है।

    आर्यन की बात सुनकर आदि ने मुँह फुलाकर उसे देखते हुए कहा, "भाई आप मेरा मज़ाक उड़ा रहे है, एक तो इस चुहिया के वजह से मुझे इतनी जल्दी निकलना पड़ता है, जब तक आधे घंटे तक यहाँ खड़े होकर उसे आवाज़ ना लगाओ महारानी से घर से बाहर कदम नही रखा जाता और आप सब इसे डांटने के जगह मेरे पीछे पड़े रहते है।"

    "आदि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे चुहिया कहने की?" आदि के चुप होते ही नव्या गुस्से से चीखी, आदि ने उसे देखा और चिढ़कर बोला, "तुझे तो लेडी कुंभकरण कहना चाहिए चुहिया तो गलत ही कह दिया।"

    "आदि मैं तुझे छोड़ूंगी नही।" नव्या गुस्से मे उसके मुँह को नोचने के लिए आगे बढ़ी पर आदि ने अपना सर पीछे कर लिया तो नव्या खिसियाकर रह गयी और जबड़े भींचते हुए बोली,

    "ठीक है, मैं इतनी ही बुरी हूँ तो जा किसी और से दोस्ती कर ले। अबसे तुझे मेरा इंतज़ार करने की ज़रूरत नही है, मैं भी किसी और से दोस्ती कर लूँगी वो मुझे रोज़ टाइम पर स्कूल छोड़ भी आएगा और वापिस ले भी आएगा और तेरी तरह मुझपर चिल्लाएगा भी नही।"

    नव्या ने गुस्से मे नाक सिकोड़कर कहा और पैदल आगे बढ़ने को हुई पर आदि ने उसकी कलाई पकड़ ली और उसको वॉर्न करते हुए बोला, "सोचिये भी मत। मेरे अलावा किसी को हक नही कि तुझे अपनी साइकिल के पीछे बिठाए। तेरा दोस्त मैं था, मैं हूँ और मैं हूँ रहूँगा।"

    "मुझे नही चाहिए तेरा जैसा दोस्त। सड़ियल टट्टू कहिका जब देखो मुझपर चिल्लाता रहता है।" नव्या ने मुँह बनाकर कहा।

    दोनों की बहस शुरु होते देख आर्यन ने आगे बढ़ते हुए कहा, "लड़ते रहो तुम दोनों मैं तो चला क्योंकि मुझे लेट होने का कोई शौक नही है। वैसे भी तुम्हारा काम ही है पहले एक दूसरे से लड़ना फिर मनाते घूमना।"

    आर्यन वहाँ से निकल गया। लेट होने का नाम सुनकर आदि और नव्या दोनों ने एक दूसरे को देखा तो नव्या ने मुँह बनाकर चेहरा फेर लिया। अब आदि ने आराम से कहा, "अब बादमे लड़ लेना अभी चलो वरना लेट हो जाएंगे।"

    नव्या ने तिरछी नज़रों से उसे देखा फिर उसके पीछे जाकर बैठ गयी। आदि ने साइकिल स्टार्ट की तो महिमा जी ने पीछे से कहा, "नव्या तुमने लंच लिया?"

    नव्या ने पीछे मुड़कर उन्हें देखा फिर मुस्कुराकर बोली, "आदि मेरे लिए लंच लेकर आता है माँ। आप परेशान मत होइए, मैं आंटी के हाथ का खाना खाकर ही रोज़ लंच करती हूँ।"

    उसकी बात सुनकर दोनों आंटिया मुस्कुरा उठीं। महिमा जी ने नंदिनी जी को देखकर मुस्कुराकर कहा, "कितनी गहरी दोस्ती है दोनों की! कभी कभी सोचती हूँ अगर आदि नही होता तो नवु का क्या होता?"

    "ऐसे कैसे आदि नही होता? याद नही हमने उनके जन्म से पहले ही डिसाइड किया था कि हमारे बच्चों की दोस्ती भी बिल्कुल हमारे तरह होगी। हाँ, उनकी दोस्ती अभी से हमसे ज्यादा मजबूत है और आदि नव्या का हमेशा साथ देगा। देखना दोनों हमेशा यूँही साथ रहेंगे और जब वो बड़े हो जाएंगे तो मैं अपने आदि के लिए तुम्हारी नवु का हाथ मांग लूंगी। फिर हम दोस्त से रिश्तेदार बन जाएंगे।"

    नंदिनी जी की बात सुनकर महिमा जी ने मुस्कुराकर उन्हें देखा। वही अश्विन जी ने उन्हें देखकर मन मे कहा, "इसमें कोई शक की बात नही है कि दोनों बच्चों की दोस्ती बहुत गहरी है लेकिन कुछ वक़्त बाद उन्हें एक दूसरे से अलग होना होगा। पर हमें पूरा विश्वास है कि उन दोनों की दोस्ती पर इन दूरियों का कोई असर नही पड़ेगा और अगर आगे चलकर दोनों बच्चे राजी हो जाते है तो हम भी अपनी नवु को अपने घर की बहु बनाकर हमेशा के लिए अपने पास ले आएंगे।"

    कुछ देर मे सब अपने अपने घर के तरफ बढ़ गए। दोनो के घर अगल बगल थे। जहाँ अश्विन जी और किशोर जी बचपन के दोस्त थे वही महिमा जी और नंदिनी जी बचपन के दोस्त है और आज भी उनकी दोस्ती वैसी ही है। बाकी बातें आगे पता चलेगी।

    नव्या और आदि वहाँ से निकल गए। नव्या ने आदि के कंधों को थामा हुआ था और आदि साइकिल चला रहा था। कुछ आगे पहुँचकर आदि ने पीछे सर घुमाकर कहा, "नवु बैग मे पीछे वाली चैन मे पराठे रखे है, खा लो।"

    नव्या ने मुस्कुराकर हामी भरी और चैन खोलकर उसमे से एक रोल निकालकर खाते हुए बोली, "आदि तुम्हे कैसे पता चलता है कि मैं खाना नही खाकर आती? तुम रोज़ मेरे लिए पराठे रोल करके क्यों लेकर आते हो?"

    "क्योंकि मैं तुम्हे बहुत अच्छे से जानता हूँ कि तुम जानबूझकर बिना खाए आती हो क्योंकि तुम्हे मेरे हिस्से के पराठे खाने मे ज्यादा मज़ा आता है। फिर जब मुझे पता है कि तुम बिना कुछ खाए आ जाती हो तो मैं तुम्हे भूखा कैसे रहने दे सकता हूँ?" आदि ने मुस्कुराकर जवाब दिया तो नव्या भी मुस्कुराकर पराठे खाने लगी।

    कुछ आगे चलकर आदि ने फिरसे सवाल किया, "नवु तुम साइकिल चलाना क्यों नही सीखती? अगर तुम सीख लोगी तो हम साथ मे साइकिल चला कर स्कूल आया करेंगे, कितना मज़ा आएगा।"

    "मुझे तुम्हारे पीछे बैठकर आने मे ज्यादा मज़ा आता है। जब तुम हो तो मुझे साइकिल चलाना सीखने की क्या ज़रूरत है?" नव्या ने मुस्कुराकर जवाब दिया और हाथ आगे बढ़ा दिया तो आदि ने अपनी पॉकेट से हैंकी निकालकर उसके तरफ बढ़ा दिया।

    नव्या ने अपने हाथ और होंठों को साफ किया और वापिस उसके कंधे को थामकर बैठ गयी। कुछ देर मे साइकिल स्कूल के गेट से अंदर गयी। आदि ने साइकिल पार्क की तो नव्या नीचे उतर गयी।

    आदि भी नीचे उतरा और बैग से एक और पराठे का रोल निकालकर उसको पकड़ा दिया। नव्या खाते हुए उससे बात करते हुए उसके साथ चलने लगी। एक रूम के बाहर जाकर आदि रुक गया।

    नव्या अब तक अपना पराठा खत्म कर चुकी थी उसने फिरसे आदि की हैंकी मे अपना हाथ साफ किया। आदि ने वॉटर बोतल निकालकर उसके तरफ बढ़ा दिया।

    नव्या ने थोड़ा सा पानी पीकर बोतल वापिस उसको दे दी और मुस्कुराकर बोली, "अब मैं जाऊँ?"

    "Hmm पर याद रखना किसी से लड़ाई नही करनी है तुम्हे। पिछले बार तुम्हारे वजह से मुझे भी डाँट पड़ गयी थी।" आदि ने उसको समझाया।

    नव्या ने मुँह बनाकर उसको देखते हुए कहा, "तो गलती मेरी नही उस छिपकली की थी। मेरे सामने कह रही थी कि वो तुम्हे फ्रेंडशिप बैंड बांधेगी और तुमसे दोस्ती कर लेगी, मैंने उसे इतना समझाया की आदि सिर्फ मेरा दोस्त है वो और किसी से दोस्ती नही करता पर वो सुन ही नही रही थी।

    कह रही थी कि तुमसे दोस्ती करके वो हमारी दोस्ती तोड़ देगी तो मुझे गुस्सा आ गया और फिर मैंने उसकी धुलाई कर दी। तुम्ही तो कहते हो की किसी की गलत बात बर्दाश नही करनी चाहिए। वो हमारी दोस्ती तोड़ना चाहती थी तो मैं चुप कैसे रहती? उसको सबक सिखाना भी तो ज़रूरी था।"

    नव्या ने मासूमियत के साथ सब उसे बता दिया। उसकी बात सुनकर आदि के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गयी, अब वो और भी प्यारा लग रहा था।

    आदि ने उसके गाल को प्यार से छूकर मुस्कुराकर कहा, "तुम्हे किसी की बात पर ध्यान देने की ज़रूरत नही है और न ही मेरे लिए किसी से लड़ने की ज़रूरत है। कोई कुछ भी कहे मेरी दोस्त तुम थी, तुम हो और हमेशा तुम्ही रहोगी। हमारे बीच कभी कोई आ ही नही सकता। चलो अब अंदर जाओ मुझे भी अपनी क्लास मे जाना है।"

    नव्या अब खुश होकर उसके गले से लग गयी फिर लंच में मिलने का कहकर अपनी क्लास मे चली गयी। आदि नव्या से एक क्लास छोड़कर दूसरी क्लास मे घुस गया।

    जैसे ही आदि ने क्लास मे एंट्री की लड़कियों का झुंड उसके सामने आकर खड़ा हो गया। सबके हाथ मे फ्रेंडशिप बैंड था और वो आदि को घेरे खड़ी थी, वही आदि ने एक नजर उन्हें देखा फिर अपना सीधा हाथ ऊपर कर दिया।

    जैसे ही उसकी कलाई पर बंधे फ्रेंडशिप बैंड पर उनकी नजर पड़ी सबका चेहरा उतर गया। वही लड़कों के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी।

    सारा स्कूल जानता था आदि और नव्या की दोस्ती के बारे मे। आदि good looking था जिस वजह से स्कूल की लड़कियाँ उसके पीछे दीवानी थी पर आदि हर बार नव्या के साथ नजर आता था। दोनों की दोस्ती देखकर जहाँ कुछ लोगों की जल जाती थी वही कुछ बहुत खुश होते थे।

    बहुत गहरी दोस्ती थी दोनों की, एक दूसरे के पास किसी को भी आने नही देते थे।

    जैसे आदि के क्लास का हाल था वैसा ही कुछ हाल नव्या की क्लास मे भी था। नव्या के पीछे भी लड़कों की लाइन लगी रहती थी पर उसे तो बस आदि ही दिखता था।

    नव्या ने जैसे ही क्लास मे कदम रखा सब लड़के उसके तरफ बढ़ने लगे पर नव्या ने उनको गुस्से से घूरा तो सब अपनी अपनी जगह रुक गए।

    नव्या जाकर सेकंड वाली खाली बैंच पर बैठ गयी। उसके पीछे के बैंच पर एक लड़का बैठा था। वो उठकर नव्या की सीट पर आ गया तो नव्या ने उसको गुस्से से घूरते हुए कहा, "क्या है? मेरी सीट पर क्यों आए हो?"

    "नव्या कल फ्रेंडशिप डे है." लड़के ने कुछ घबराते हुए जवाब दिया तो नव्या ने भौंह उचकाकर सवाल किया, "तो?"

    "तो मैं तुम्हारे लिए फ्रेंडशिप बैंड लाया था, क्या तुम मेरी फ्रेंड बन सकती हो?"

    "नही," नव्या ने सपाट लहजे मे इंकार कर दिया तो लड़के का चेहरा छोटा सा हो गया, उसने मुँह लटकाकर कहा, "क्यों? मैंने तुम्हे आदि से दोस्ती तोड़ने के लिये तो नही कहा, बस मुझसे दोस्ती करने के लिए कहा है। क्या तुम मुझसे दोस्ती नही कर सकती?"

    "नही कर सकती, एक बार कह दिया समझ नही आता?" नव्या को अब गुस्सा आ रहा था। उस लड़के ने अब नव्या को देखकर नाराज़गी से कहा,

    "तुम बहुत मतलबी हो, जब भी तुम्हे ज़रूरत पड़ती है मैं तुम्हे अपना दोस्त मानकर हमेशा तुम्हारा साथ देता हूँ, तुम्हारी मदद करता हूँ पर तुम मुझसे दोस्ती करने से भी मना कर देती हो। आदि के आगे पीछे घूमती रहती हो? ऐसा क्या है उसमें? मैं भी तुम्हारा ध्यान रख सकता हूँ फिर तुम मुझसे ढंगसे बात क्यों नही करती? मुझे एक मौका तो दो।"

    नव्या ने अब उसको गुस्से से घूरते हुए कहा, "आदि सबसे अलग है, उसमें और तुममे कोई कंपेरिज़न ही नही हो सकता। वो मेरा दोस्त है और हमेशा रहेगा। रही बात तुम्हारी तो मैं नही आती तुम्हारे पास, तुम्ही बार बार बहाने से मेरी मदद करने आ जाते हो।

    मैं पहले ही कह चुकी थी। मेरा दोस्त सिर्फ आदि है और उसकी जगह कोई नही ले सकता। अब जाओ यहाँ से वरना मैं अपना सारा गुस्सा तुमपर निकाल दूँगी जो तुम्हारी बातों से आया है।"

    बेचारा लड़का जिसका नाम अक्षय था वो पीछे जाकर मुँह फुलाकर बैठ गया और अपने हामे पकड़े फ्रेंडशिप बैंड को देखकर धीमी आवाज़ मे बोला, "देखना एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब तुम्हारा आदि तुम्हारे पास नही होगा, तब तुम्हे मेरी ज़रूरत पड़ेगी और एहसास होगा मेरी इंपोर्टेंस का।"

    नव्या ने उसकी बात सुनी तो गुस्से मे क्लास से बाहर निकल गयी। कुछ देर बाद वो आदि के क्लास मे घुस गयी, उसे वहाँ देखकर आदि उठकर उसके पास आ गया।

    नव्या झटके से उसके गले लग गयी, आदि के साथ साथ बाकी सब बच्चे भी हैरान हो गए। लड़कियों की आँखे गुस्से से छोटी छोटी हो गयी।

    आदि पल मे समझ गया कि नव्या का मूड खराब है, जब भी उसको बहुत गुस्सा आता या वो बहुत उदास होती तो यूँही आकर उसके गले से लग जाती थी।

    आदि उसे लेकर क्लास से बाहर चला गया। नव्या उसके सामने नज़रे झुकाकर खड़ी हो गयी।

    आदि ने प्यार से उसके गाल को छूकर कहा, "क्या हुआ नव्या?"

    "तुम मुझे कभी छोड़कर तो नही जाओगे न?" नव्या ने भारी गले से कहा और नम आँखों से उसे देखने लगी। आदि ने उसकी बात सुनी तो वो हैरान हो गया फिर उसके आँसुओं को देखकर उसको बेचैनी होने लगी। उसने उसके आँसुओं को साफ करते हुए कहा, "बिल्कुल नही, मैं कभी तुमसे दूर नही जाऊंगा पर तुम अचानक ये सवाल क्यों कर रही हो? और रो क्यों रही हो?"

    "उस अक्षय ने अभी कहा कि एक दिन तुम मुझसे दूर चले जाओगे, उस दिन मुझे उसकी इंपोर्टेंस समझ आएगी," नव्या ने रोनी सूरत बनाते हुए कहा, वही उसकी बात सुनकर आदि के लबों पर मुस्कान ठहर गयी। उसने उसके गाल को खींचते हुए मुस्कुराकर कहा,

    "बस उसने कह दिया और तुम रोने लगी? इतनी मासूम क्योंकि हो तुम। वो कोई भगवान है जो वो जो कहेगा वो होकर ही रहेगा?"

    नव्या ने ना मे सर हिला दिया तो आदि ने आगे कहा, "फिर इतना उदास क्यों हो गयी उसकी बात सुनकर? और उसने ऐसा कहा ही क्यों?"

    नव्या ने उसकी शर्ट मे अपने आँसुओं को पोंछ दिया फिर गाल फुलाते हुए बोली, "उसने मुझसे पूछा कि क्या वो मेरा दोस्त बन सकता है तो मैंने मना कर दिया कि मेरा दोस्त सिर्फ आदि है इसलिए उसने कहा कि एक दिन तुम मुझे छोड़कर चले जाओगे तब मुझे उसकी इंपोर्टेंस पता चलेगी।"

    "तो तुमने उससे दोस्ती करने से मना ही क्यों किया? वो अच्छा लड़का है फिर तुम्हारा इतना साथ भी तो देता है। तो दोस्ती करने मे बुराई ही क्या है?" आदि का सवाल सुनकर नव्या ने उसे देखा और मासूमियत से बोली, "पर मेरे दोस्त तो तुम हो ना? मैं तुम्हारे अलावा किसी और से दोस्ती कैसे कर सकती हूँ।"

    "ज़रूरी नही कि कोई एक ही आपका दोस्त हो। वो हर इंसान हो आपका साथ दे, ज़रूरत पड़ने पर आपके पास मौजूद रहे, आपको खुश रखने की हर मुमकिन कोशिश करे। जिसके लिए आप सबसे ज्यादा इंपोर्टेंट हो जो हर मुश्किल मे आपका साथ दे वो आपका दोस्त होता है। अक्षय अच्छा लड़का है तुम्हारा इतना साथ देता है तो मुझे लगता है कि तुम्हे उससे दोस्ती कर लेनी चाहिए।"

    "पर अभी तक तुमने मुझे फ्रेंडशिप बैंड नही बांधा है फिर मैं उससे कैसे बंधवा सकती हूँ। मेरे बेस्ट फ्रेंड तुम हो तो सबसे पहले तुम्ही मुझे फ्रेंडशिप बैंड बाँधोगे न... " नव्या ने मायूसी से अपनी कलाई को देखते हुए कहा।

    आदि ने अपने पॉकेट मे हाथ डालकर बैंड निकाला और उसके हाथ को पकड़कर उसकी कलाई पर बांध दिया फिर मुस्कुराकर बोला, "लो अब जाकर उससे भी बंधवा लो। और अब उससे लड़ना मत, सच्चे दोस्त बहुत मुश्किल से मिलते है उन्हें यूँ खोना नही चाहिए। चलो अब अपनी क्लास मे जाओ मैं तुम्हे लंच मे मिलता हूँ।"

    नव्या अब एकदम से खुश हो गयी। उसके गले लगी फिर अपनी क्लास मे भाग गयी। वो जाकर अक्षय के सामने खड़ी हो गयी और अपना हाथ आगे करके मुस्कुराकर बोली, "बांध दो बैंड, मैं तुम्हे monday को पहना दूँगी, अभी मेरे पास है नही।"

    उसकी बात सुनकर अक्षय ने हैरानी से उसे देखा तो नव्या ने मुस्कुराकर आगे कहा, "आदि ने कहा तुम अच्छे हो और अच्छे दोस्तों को खोना नही चाहिए। इसलिए अबसे तुम भी मेरे दोस्त हो पर आदि मेरा बेस्ट फ्रेंड है और हमेशा रहेगा इसलिए दोबारा कभी ये मत कहना की वो मुझसे अलग हो जाएगा। वरना मैं तुम्हे बहुत मारूंगी।"

    नव्या ने झूठा मुठा गुस्सा दिखाया तो अक्षय मुस्कुरा उठा। उसने उसकी कलाई पर बैंड बांध दिया तो नव्या ने उससे हाथ मिलाते हुए मुस्कुराकर कहा, "आजसे हम दोस्त हुए।"

    अक्षय ने सर हिला दिया। नव्या ने उसके बैग को उठाकर अपनी सीट पर रख दिया और मुस्कुराकर बोली, "अब हम दोस्त है तो साथ मे बैठ सकते है।"

    अक्षय अब और भी खुश हो गया और उसके साथ बैठ गया। लंच होते ही नव्या क्लास से बाहर भाग गयी। गार्डन मे एक बैंच पर बैठ गयी और इंतज़ार करने लगी।

    कुछ देर मे आदि वहाँ आया और लंच बॉक्स उसके सामने खोलकर रख दिया तो नव्या ने मुस्कुराकर आ कर दिया। आदि उसकी अदा पर मुस्कुरा दिया उसने बाइट तोड़कर उसको खिला दिया।

    आदि उसे भी खिला रहा था और खुद भी खा रहा था। दूर खड़ा अक्षय लबों पर मुस्कान सजाए उन्हें ही देख रहा था। उसने दोनों को देखकर मुस्कुराकर कहा, "तुम दोनों की दोस्ती सबसे अलग है, इतनी गहरी दोस्ती मैंने आज तक नही देखी, जैसे आदि तुम्हारा ध्यान रखता है और कोई रख ही नही सकता शायद तभी वो तुम्हारे लिए इतना स्पेशल है। पर मुझे खुशी हुई कि अब मैं भी तुम्हारा दोस्त हूँ। देखना मैं भी हर सिचुएशन मे तुम्हारा साथ दूँगा।

    मुझे आदि की जगह नही लेनी बस अपनी एक जगह बनानी है। आज मैंने यूँही कह दिया था कि आदि तुमसे दूर चला जाएगा पर अब मैं पूरे दिल से ये विश माँगता हूँ कि आदि हमेशा तुम्हारे साथ रहे और तुम दोनों की दोस्ती हमेशा यूँही बनी रहे।"

    To be continued...


    तो बताइये कैसा लगा आपको ये पार्ट? एक बार मैं आपको बता देती हूँ इस कहानी मे भी जहाँ बेइंतेहा दर्द होगा वही बेपनाह मोहब्बत भी दिखाई देगी। अभी के लिए तो आप मुझे ये बताइये कि कितने एकसाइटेड है आप ये जानने के लिए कि इस बार आदि और नव्या की ज़िंदगी मे क्या होने वाला है? कैसी होगी उनकी दर्द भरी मोहोब्बत की दास्ताँ?

  • 3. Love Beyond Pain - Chapter 3

    Words: 1308

    Estimated Reading Time: 8 min

    एक बड़ा सा आलीशान बंगला, जो उस वक़्त अंधेरे में डूबा हुआ था। गहरी काली रात, जो अपने अंधकार को चाहो दिशाओं में फैला रही थी। बंगले में जलती लाइटों से उसमें कुछ रोशनी थी और उसी हल्की रोशनी में एक प्यारा सा मासूमियत से भरा चेहरा नज़र आ रहा था, जो इस वक़्त दर्द पसरा हुआ था। सूनी, उदास, भूरि-भूरि आँखें जो अंधेरे में भी अलग से चमक रही थीं।

    वो रेलिंग से टिककर खड़ी थी और एकटक आकाश में अपनी चाँदनी बिखेरते चाँद को देख रही थी। उसकी उन गहरी, भूरि-भूरि आँखें, जिनमें जाने कितना दर्द, कितने ही राज़ कैद थे। उस चेहरे पर दर्द पसरा हुआ था, फिर भी ऐसी कशिश थी कि कोई भी उसे एक नज़र देखकर उसका दीवाना हो जाए।

    जितनी सुंदर वो थी, उतनी ही ज़्यादा उदास नज़र आ रही थी। लब एकदम खामोश थे, ऐसा लग रहा था मानो बरसों से वो यूँही खामोश हो, जैसे बहुत कुछ हो उनके पास कहने को पर शायद वो शख्स नहीं था जिससे वो अपने दिल की गहराइयों में छुपे राज़ों को बाँट सके।

    रात के अंधेरे में वो उस आलीशान विला के बड़े से कमरे की बालकनी में खड़ी जाने अपनी उदास आँखों से क्या ढूँढने की कोशिश कर रही थी। चेहरे पर बेइंतेहा दर्द झलक रहा था पर आँखों में नमी नहीं थी, शायद नमी सुख चुकी थी या दर्द सहते-सहते उसकी आदत सी हो गयी थी उसे।

    करीब एक घंटे तक वो यूँही खड़ी सुनी आँखों से चाँद को देखती रही, जैसे आँखों से ही उससे कितनी ही बातें कर गयी हो। शायद लोगों से भरी इस दुनिया में उसके पास ऐसा कोई नहीं था जिसे वो अपना कह सके, जिससे अपना दर्द, अपनी उदासी को बाँट सके। उसकी तन्हाई और अकेलेपन का साथी और उसे मिले हर दर्द का साझेदार ये चाँद ही था।

    उस लड़की ने अब हौले से अपनी पलकों को झुका लिया। इसके साथ ही बन्द पलकों से एक-एक आँसू की बूँद निकलकर उसके गोरे-गोरे गालों को भिगो गयी। लब हल्के से खुले और दर्द भरी आह्ह्ह के साथ एक धीमी सी आवाज़ निकली, "आ.......दि.........!"

    वही दूसरी तरफ इस जगह से कुछ डेढ़-दो किलोमीटर दूर एक बहुमंजिला इमारत के एक टू बी एच के फ्लेट का रूम जो अंधेरे से सराबोर था। उस कमरे में बस हल्की सी रोशनी थी, जो कि वहाँ लगे लैंप से आ रही थी।

    वही बेड पर एक लड़का बैठा था। उसने लोवर टीशर्ट डाला हुआ था। गहरी काली आँखें, जिनमें किसी के लिए बेइंतेहा मोहब्बत के साथ उस प्यार का इंतज़ार झलक रहा था। हैंडसम से चेहरे पर अजीब सी बेचैनी और सूनापन पसरा हुआ था। उसके हाथ में एक फोटो थी।

    किसी लड़की की फोटो थी वो। वो लड़का सूनी आँखों से उस तस्वीर को देख रहा था। कुछ देर खामोशी से उस फोटो को एकटक निहारने के बाद उस लड़के ने अपनी चुप्पी तोड़ी और उस फोटो को देखते हुए कहना शुरू किया,

    "कहाँ हो तुम नवु? इतनी खफ़ा हो की इतने सालों में एक बार मुझे याद तक नहीं किया............ मानता हूँ गलती की है मैंने, अपने फ्यूचर को बनाने के सफर में मैं तुम्हे भूल गया। पर ये सच नहीं है नवु............ मैं तुम्हे कभी भूला नहीं था, तुम हर पल मेरे साथ थी, मेरे पास थी, मेरे दिल में धड़कनों के रूप में धड़क रही थी।

    मैंने बहुत कोशिश की थी तब भी तुम्हारे बारे में जानने की पर किसी ने मुझे कुछ बताया ही नहीं। मैं भी busy था, तुम्हारे लायक बनना था इसलिए इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पाया। ......... जब लौटकर आया और पता चला कि मेरी पोस्टिंग वहाँ हुई है जहाँ मेरी नवु है, तो कितना एकसाइटेड था मैं कि अपनी नवु के पास आकर उसको सरप्राइज दूंगा। कितनी खुश होगी न मेरी नवु ये देखकर की अगर वो लॉयर बनने वाली है तो उसका आदि भी ACP है।

    तुम्हारे लिए मैंने IPS बनने का सपना देखा था और तुम्हारे लायक बनने के लिए इतने सालों से जी जान लगाकर मेहनत कर रहा था और जब मैंने खुदको तुम्हारे लायक बनाया और तुम्हारे पास आया तब पता चला कि मेरी नवु तो यहाँ है ही नहीं।

    मैं कितना खुश था कि मैं तुम्हे सरप्राइज दूंगा और तुम कितनी खुश हो जाओगी? जब यहाँ पहुँचा तो सबसे पहले तुम्हारे घर आया था कि तुम्हे मिलकर तुम्हे और अंकल-आंटी को सरप्राइज दूंगा पर वहाँ जाकर पता चला की तुम अंकल ने हमारे जाने के बाद ही घर बदल दिया था।

    बहुत ढूंढा मैंने तुम्हे, पिछले दो महीने से कहाँ-कहाँ नहीं तलाशा है मैंने तुम्हे कि कही तो तुम्हारी कुछ खबर मिले। पर न तुम्हारा कुछ पता चल रहा है और न ही अंकल-आंटी के बारे में कुछ पता चल रहा है। पता नहीं कहाँ चले गए है आप सब? न किसी का फोन लग रहा है और न ही कही कुछ खबर मिल रही है।

    पता नहीं क्यों पर जबसे तुम्हारी खबर आनी बन्द हुई है एक बेचैनी सी रहती है, जैसे कुछ गलत हो रहा है........ जैसे मेरी नवु किसी मुसीबत में है........... जैसे मेरी नवु खुश नहीं है......... क्या तुम किसी दर्द में हो? कहाँ हो नवु? बस एक बार मुझसे बात करलो........... कोई इशारा तो दो जिससे मैं तुम्हारे पास पहुँच सकूँ............

    अगर जो मेरा दिल कह रहा है वो सच है............ अगर ये बेचैनी ये डर इसलिए है क्योंकि तुम किसी मुश्किल में हो तो एक बार अपने आदि को आवाज़ दे दो................ बस एक बार तुम्हे देखना चाहता हूँ मैं............. जहाँ भी हो बस एक बार मेरे सामने आ जाओ, वादा करता हूँ दोबारा कभी तुम्हे अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगा........... अगर तुम किसी मुसीबत में हो तो मैं वादा करता हूँ एक बार मुझे अपने तक पहुँचने का रास्ता दिखा दो उसके बाद मैं तुम्हे हर मुश्किल से बाहर निकाल लूँगा।

    बस एक बार मैं तुम्हे देखना चाहता हूँ........... उसके बाद मैं तुम्हे कभी खुदसे दूर नहीं जाने दूंगा। बस एक बार अपनी मीठी-मीठी आवाज़ में आदि कहकर पुकार लो, मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगा........... तरस गया हूँ यार मैं अपनी नवू की आवाज़ सुनने के लिए जो जब प्यार से मुझे पुकारती थी तो दिल को अंजाना सा सुकून मिलता था, जिसकी बातें मेरे कानों मैं मिश्री के तरफ घुल जाती थी.............

    तड़प रहा हूँ मैं तुम्हारी शैतानियाँ देखने के लिए............... कितना वक़्त बीत गया यार और तुमने मुझे परेशान नहीं किया है.............. पता है तुम्हारी शरारतें मेरे दिल का चैन थी, ज़िंदगी चहक उठती थी तुम्हारी खिलखिलाहट से.............. तुम्हारी शरारतें ही तो मेरी ज़िंदगी की रौनक थी और अब विरान हो गयी है मेरी ज़िंदगी........... बहुत खलती है यार तुम्हारी कमी ............. लौट आओ न वापिस............... वादा रहा दोबारा तुम्हे कभी अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगा। ............... लौट आओ नवू बस एक बार यार........... अपने आदि के पास लौट आओ............. बहुत याद आती है तुम्हारी.............. और इंतज़ार नहीं हो पा रहा मुझसे............. मेरा सब्र खत्म होता जा रहा है............... बहुत प्यार करता हूँ यार मै तुमसे ........... मैं नहीं रह सकूँगा तुम्हारे बिना ............. लौट आओ नवू...............।"

    आदि की आँखों से आँसू की एक बूंद आज़ाद होकर उसके गालों पर लुढ़क गयी। नव्या की जुदाई का दर्द, उससे मिलने की तड़प उसकी आँखों मे साफ नजर आ रही थी।

    नव्या के लिए उसकी बेइंतेहा मोहब्बत उसकी बातों मे महसूस किया जा सकता था। कहते है लड़के बहुत स्ट्रांग होते है, वो कभी रोते नहीं, पर हम ये भूल जाते है कि वो भी इंसान है और रोना कमज़ोरों की निशानी नहीं है। जब दर्द होता है, इतना दर्द कि इंसान सहन न कर सके तो आँखे छलक ही आती है फिर चाहे वो आदमी हो या औरत कोई फर्क नहीं पड़ता।

    वैसे ही आदि बहुत स्ट्रांग था, एक काबिल ACP था, पर नव्या के लिए उसका प्यार और उसकी जुदाई का दर्द उसकी आँखों मे आँसू बनकर छलक आया था। आदि नव्या को याद करते हुए उस वक़्त मे खो गया जब उसकी मोहब्बत, उसकी दोस्त, उसकी नवू उसके पास हुआ करती थी।

    To be continued...

  • 4. Love Beyond Pain - Chapter 4

    Words: 2184

    Estimated Reading Time: 14 min

    स्कूल को छुट्टी हुई तो नव्या अक्षत के साथ बातें करते हुए पार्किंग तक पहुँची तो सामने ही आदि अपनी साइकिल पकड़े खड़ा था और उसे ही देख रहा था। उसको देखते ही नव्या के लबों पर मुस्कान ठहर गयी। उसने अक्षत को बाय कहा और आदि के तरफ बढ़ गयी।

    आदि उसको आँखे छोटी-छोटी करके घूरने लगा, वही नव्या उसके पास चली आई और मुस्कुराकर बोली, "क्या हुआ मुझे ऐसे घूर क्यों रहा है? मैं बिल्कुल टाइम पर आई हूँ, अभी तो टीचर निकली थी क्लास से और मैं तेरे पास आ गयी।"

    आदि ने उसको खा जाने वाली नज़रों से घूरा और फिर अपनी कलाई पर बंधी घड़ी की तरफ देखने लगा तो नव्या के चेहरे के भाव बदल गए, उसने उसको घड़ी को गुस्से से घूरते हुए कहा, "सब चक्कर इस घड़ी का है, इसके वजह से तू हमेशा मुझपर गुस्सा करता रहता है, देखियो किसी दिन मैंने तेरी इस घड़ी को ऐसा गायब करना है कि दोबारा कभी मिलेगी ही नही, इतनी परेशान होती हूँ इसके वजह से।"

    "अच्छा तो लेट तू आए और सारी ब्लेम मेरी घड़ी पर डाल रही है।" आदि की गुस्से भरी निगाहें उसके तरफ घूम गयी। नव्या ने देखा कि अब कोई चारा नही है, आदि सच मे नाराज हो गया है तो उसने अपनी बत्तीसी चमका दी और क्यूट सी शक्ल बनाकर बोली,

    "अरे तुम तो सच मे भड़क गए, मैं तो बस मज़ाक कर रही थी। मुझे पता है मैं ही हमेशा तुम्हे लेट करवाती हूँ पर मैं क्या करूँ, मैं जानबूझकर कुछ भी नही करती हूँ, सब अपने आप ही हो जाता है।"

    इस वक़्त नव्या हद से ज्यादा मासूम लग रही थी। आदि चाहकर भी उसपर गुस्से नही कर सका और साइकिल लेकर स्कूल के गेट के तरफ बढ़ गया पर नव्या को पीछे ही छोड़ गया।

    नव्या भी तुरंत उसके पीछे भागते हुए चिल्लाने लगी, "आदि तुम मुझे छोड़कर कैसे जा रहे हो................. रुको तो सही मैं भी तो हूँ तुम्हारे साथ.............. रुक जाओ यार, तुम इतनी जल्दी-जल्दी चल रहे हो, मैं तो पीछे ही रह गयी।"

    उसने आदि को रोकने की बहुत कोशिश की पर आदि ने साइकिल नही रोकी। आखिर मे नव्या को भी गुस्सा आ गया और वो मुँह फुलाकर एक जगह खड़ी हो गयी और गुस्से मे चिल्लाते बोली, "ठीक है, मत रुको मेरे लिए, बहुत बन रहे हो न साइकिल वाले, मैं भी नही जाऊंगी तुम्हारे साथ। जाओ अपनी सड़ी हुई शक्ल लेकर अकेले घर, मैं नही आती तुम्हारे पीछे............ इतनी सी लेट हुई तो इतना गुस्सा कर रहे हो, मुझे अब तुमसे बात ही नही करनी है।"

    नव्या ने मुँह बना लिया और कमर पर हाथ रखे गुस्से से पीछे से आदि को देखती रही। इसके बाद उसने एक शब्द नही कहा। कुछ दूर जाकर आदि को एहसास हुआ कि नव्या मज़ाक नही कर रही है बल्कि वो सच मे उसके पीछे नही आ रही तो उसने साइकिल रोककर पलटकर पीछे देखा तो नव्या उसे ही घूरे जा रही थी।

    आस-पास मौजूद स्टूडेंट्स भी उन्हें ही देख रहे थे क्योंकि नव्या और आदि का ये नाटक अक्सर होता ही रहता था और आखिर मे आदि को ही झुकना पड़ता था, उनकी ये नोंक-झोंक की सबको आदत हो चुकी थी। गार्ड अंकल भी दोनों को देखकर मुस्कुरा रहे थे।

    आज भी वही हुआ, पहले गुस्सा आदि था पर अब नव्या का गोरा चेहरा गुस्सा से लाल हो चुका था और हमेशा के तरफ आखिर मे आदि को अपना गुस्सा साइड रखकर वापिस उसके पास जाना पड़ा। उसने अपनी साइकिल वही लगाई वो नव्या के पास चला आया।

    "चलो" आदि ने हल्के गुस्से और बेरुखी से उसको चलने को कहा तो नव्या ने भी अकड़ते हुए कहा, "नही जाती क्या करोगे?"

    "नव्या यहाँ तमाशा मत करो, तुम्हारी नौटंकी देखने का वक़्त नही है मेरे पास, माँ इंतज़ार कर रही होंगी, इसलिए अभी अपना नाटक बन्द करो और जल्दी चलो वरना मैं सच मे तुम्हे छोड़कर चला जाऊंगा फिर आती रहना अकेले वो भी पैदल।" आदि अब भी गुस्से मे था तो नव्या का गुस्सा भी बढ़ गया।

    "तो जाओ न, मैंने तो नही बुलाया था तुम्हे? जाओ अकेले घर मुझे छोड़कर उसके बाद आंटी तुम्हे अच्छे से सबक सिखाएंगी। बड़े आए मुझे धमकी देने वाले, जैसे तुम मुझे लेकर नही जाओगे तो मैं घर ही नही पहुँच पाऊँगी।"

    "नव्या नाटक बन्द करो और चलो मेरे साथ। " आदि ने उसका हाथ पकड़ लिया और आगे बढ़ा पर नव्या ने उसके हाथ को झटकते हुए मुँह फुलाकर कहा, "मैं नौटंकी करती हूँ न तो ठीक है इस नौटंकी वाली के साथ क्या कर रहे हो, जाओ अपनी तरफ किसी समझदार लड़की से दोस्ती करो और उसे ही अपनी साइकिल पर बिठाकर घुमाना, मुझे नही जाना तुम्हारे साथ। मैं खुदसे घर पहुँच जाऊंगी।"

    नव्या ने गुस्से मे कहा और अकेले ही आगे बढ़ गयी। उसका बेमतलब का गुस्सा देखकर आदि का गुस्सा बढ़ता जा रहा था और वो वही खड़ा गुस्से से उसको घूर रहा था।

    नव्या कुछ आगे पहुँची ही थी कि एक लड़के ने उसके आगे अपनी साइकिल रोक दी। नव्या पहले ही गुस्से मे थी, अब किसी ने उसका रास्ता रोका ये देखकर वो और भड़क उठी और खा जाने वाली निगाहों से उस लड़के को घूरने लगी।

    वही वो लड़का उसको देखकर मुस्कुरा रहा था ।

    "इतने खूबसूरत चेहरे पर इतना गुस्सा? चलो मैं तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ।" उस लड़के ने मौके पर चौका मारना चाहा पर नव्या तो ठहरी नव्या, अब वो भड़क चुकी थी तो उस लड़के की खैर नही थी।

    नव्या ने तुरंत ही भड़कते हुए कहा, "अबे चोमू जैसी शक्ल के, अपनी खटारा साइकिल उठा और निकल यहाँ से वरना मार-मार कर तेरा पूरा हुलिया बिगाड़ दूँगी उसके बाद दोबारा मेरा रास्ता रोकने की हिम्मत नही करेगा, समझा।"

    लड़के की अच्छी खासी फ़ज़ीहत् हो चुकी थी और अब आसपास मौजूद जो कुछ स्टूडेंट्स थे वो उसपर हंस रहे थे। वो लड़का नव्या को घूरते हुए वहाँ से चला गया।

    नव्या का गुस्सा अब और बढ़ चुका था और अब उसको चिढ़ हो रही थी। वो गुस्से मे आगे बढ़ गयी पर आदि जो गुस्से से अभी उस लड़के को घूर रहा था वो भागते हुए नव्या के पास पहुँच गया और उसका हाथ पकड़कर उसको अपनी साइकिल के तरफ लेकर चला गया। जैसे ही उसने वहाँ जाकर नव्या का हाथ छोड़ा वो फिर वहाँ से जाने लगी तो आदि ने फिरसे उसका हाथ पकड़ लिया और अब उसने थोड़ा प्यार से कहा,

    "अबसे तुझपर गुस्सा नही करूँगा, अब तो शांत हो जा देवी। देर हो रही है यार, भाई पहुँच भी गए होंगे और हम अभी तक यही है। चल अब गुस्सा छोड़ और पीछे बैठ जा, तुझे छोड़कर नही जा सकता मैं।"

    नव्या मुँह बनाकर उसके पीछे बैठ गयी पर उसने आदि के कंधे को नही पकड़ा, पीछे से साइकिल पकड़कर बैठ गयी। आदि ने गहरी सांस छोड़ी क्योंकि वो जानता था कि नव्या का गुस्सा इतनी जल्दी शांत नही होगा। उसने साइकिल स्टार्ट कर दी। दोनों ही खामोश थे अचानक ही नव्या ने आदि के कंधे को पकड़कर हिलाते हुए चिल्लाकर कहा, "आदि साइकिल रोको।"

    उसके अचानक हिलाने से बेचारे आदि का बैलेंस बिगड़ गया, उसने जल्दी से साइकिल रोकी और खींझते हुए बोला, "क्या........... प्रॉब्लम क्या है आखिर तेरी? इंसानों के तरफ कोई काम कर सकती है या नही? हर वक़्त उल्टी सीधी हरकतें करती रहती है, अभी तेरी वजह से हम दोनों गिर जाते।"

    "तुम फिरसे मुझपर चिल्ला रहे हो।" नव्या ने गाल फुलाते हुए कहा। आदि ने अपना गुस्सा शांत किया तो आराम से बोला,

    "चिल्ला नही रहा हूँ, तुझे समझा रहा हूँ। सोच समझकर कोई भी काम किया कर वरना किसी दिन अपनी इस आदत के वजह से तू किसी मुसीबत मे फंस जाएगी। जो मन मे आता है बस कर देती है, ये भी नही सोचती कि उसका रिज़ल्ट क्या हो सकता है।

    थोड़ी तो समझदारी दिखाया कर। अभी उस लड़के पर भी कैसे चिल्ला रही थी। मुझे चिंता होती है तुम्हारी, जैसे तुम बिना कुछ सोचे कुछ भी कर देती हो, कही कभी किसी मुश्किल मे न फंस जाओ।"

    आदि के चेहरे पर उसके लिए परवाह साफ झलक रही थी। नव्या का गुस्सा भी अब शांत हो चुका था, उसने मुस्कुराकर कहा, "पर मुझे तो बिल्कुल चिंता नही होती क्योंकि मुझे पता है कि मैं कितनी ही बड़ी मुश्किल मे क्यों न फंस जाऊँ पर तुम मुझे हर मुश्किल से सही सलामत बाहर निकाल लोगे। याद नही तुम्ही तो कहते हो की आदि के होते हुए नव्या को कभी कुछ नही हो सकता, अब तुम खुद ही अपनी कही बात भूल गए? "

    "भुला नही हूँ पर फिर भी मुझे तुम्हारी फिक्र होती है। कही ऐसा न हो जाए कि तुम मुश्किल मे हो और मैं तुम्हारे पास मौजूद न रहूँ तुम्हे उस मुश्किल से बाहर निकालने के लिए इसलिए चाहता हूँ की थोड़ा समझदार बन जाओ तुम। कुछ भी करने से पहले सोच लिया करो कि उसका रिज़ल्ट क्या हो सकता है? यूँही किसी से भी बेधड़क भिड़ जाना ठीक नही है।"

    "अच्छा बाबा आगे से मैं ऐसे किसी से नही झगडुंगी, अब तुम मुझे समझाना छोड़ो और जल्दी से मुझे वो ला दो मुझे अभी खाना है।" नव्या ने उसकी बात का रुख बदल दिया और दूसरी तरफ इशारा कर दिया। आदि ने सर घुमाकर देखा तो बर्फ का गोले वाली रेडी खड़ी थी वहाँ।

    आदि ने अब नव्या को देखा जो ललचाई आँखों से उसी दिशा मे देख रही थी। नव्या ने उसके कंधे को हिलाते हुए कहा, "आदि जाओ न मेरे लिए एक गोला ला दो, बहुत गर्मी हो गयी है मेरे दिमाग मे, अब उसको ठण्डा करना पड़ेगा।"

    "मैं क्यों लाऊँ? तुम्हे भी तो पॉकेट मनी मिलती है जाकर खुद खरीद लो। रोज़ नई-नई फरमानईशें करती रहती हो, हर बार मेरे पैसे खर्च करवाती हो और खुदके पैसे बचाकर रखती हो। मैं नही दिलाऊँगी आज तुम्हे कुछ भी। अगर इतना ही खाने का मन है तो खुदसे जाकर खरीदकर खाओ।" आदि ने साफ इंकार करते हुए कहा। उसकी बात सुनकर नव्या का चेहरा उतर गया उसने मुँह लटकाते हुए कहा,

    "तुम जानते हो मैं पैसे खर्च नही कर सकती फिर भी ऐसे कह रहे हो। बस दस रुपए के गोले को दिलाने मे कितना भाव खा रहे हो। बहुत सही, यही दोस्ती है तुम्हारी, एक चीज़ नही दिला सकते तुम मुझे। तुम्हे लिए वो दस रुपए मुझसे भी ज्यादा ज़रूरी है न।"

    नव्या की नौटंकी एक बार फिर शुरू हो चुकी थी। आदि ने घूरकर उसे देखा तो नव्या निचले होंठ को बाहर निकाले और अपनी पलकों को बार-बार झपकाते हुए मासूम सी शक्ल बनाकर उसको देखने लगी।

    आदि को फिरसे उसपर प्यार आ ही गया। वो साइकिल से नीचे उतर गया, नव्या खुश हो गयी। वो अपने पैसे खर्च नही करती थी उन्हें इकट्ठा करके रखती थी और जब थोड़े ज्यादा पैसे हो जाते थे तो उन पैसों को आदि के जन्मदिन वाले दिन पास के अनाथाश्रम मे दान कर देती थी।

    अपने सारे शौक वो आदि से पूरे करवाती थी और महीने से पहले बेचारे आदि की सारी पॉकेट मनी खत्म हो जाती थी। फिर उसे अपने बड़े भाई आर्यन से पैसे मांगने पड़ते थे, पर आदि नव्या को इंकार भी नही कर पाता था। आज भी वो उसकी मासूम सी शक्ल पर पिघल ही गया। उसने जाकर एक गोला खरीदा और लाकर नव्या को पकड़ा दिया।

    नव्या का चेहरा खुशी से खिल उठा, उसने झट से उसको चूसा फिर आँखे बन्द करते हुए बोली,

    "उह्ह्ह्......... मज़ा आ गया"

    "चलो अब जल्दी से बैठो वरना तुम्हारे चक्कर मे आज माँ और आंटी दोनों से डाँट पड़ेगी मुझे।" आदि वापिस साइकिल पर बैठ गया। नव्या भी उसके पीछे बैठ गयी और अपना गोला खाने लगी, उसने आदि को पकड़ा हुआ नही था, कहीं वो गिर न जाए इस डर से आदि साइकिल धीरे-धीरे चला रहा था।

    कुछ देर बाद साइकिल आदि के घर के बाहर रुकी तो नव्या तुरंत नीचे उतरकर आंटी पुकारते हुए अंदर के तरफ दौड़ गयी। उसकी बचकानी हरकत आदि के लबों पर आई मुस्कान की वजह बन गयी।

    आदि ने भी साइकिल खड़ी की और अंदर के तरफ चला आया। अंदर पहुँचा तो नव्या डाइनिंग टेबल पर चढ़कर बैठी हुई थी और सामने खड़ी नंदिनी जी उसको अपने हाथों से खाना खिला रही थी। आदि से देखकर मुस्कुराते हुए अपने कमरे मे चला गया क्योंकि ये रोज़ का ही था।

    कुछ देर बाद वो नीचे आया तो आर्यन पहले से वहाँ मौजूद था। आदि भी आकर उनके बगल मे बैठ गया। नंदिनी जी तो नव्या के साथ बीज़ी थी तो आर्यन खुद ही अपना खाना निकाल रहा था।

    आदि को देखते ही उसने मुस्कुराकर कहा, "आज तो जल्दी आ गए, जैसे तुम्हारा नाटक चल रहा था मुझे लगा था कमसे कम एक घंटा तो लगेगा तुम्हे नव्या को मनाकर घर लाने मे।"

    उसकी बात सुनकर आदि का मुँह उतर गया उसने बेचारगी से उसे देखा तो आर्यन की हंसी छूट गयी। आदि ने अब घूरकर नव्या को तो नव्या ने तुरंत ही नंदिनी जी से शिकायत लगाते हुए कहा, "देखिये आंटी आदि फिरसे मुझे कैसे घूर रहा है। "

    नंदिनी जी ने घूरकर उसे देखा तो आदि ने मुँह बना लिया। तभी वहा महिमा जी पहुँच गयी और नव्या को स्कूल ड्रेस मे डाइनिंग टेबल पर बैठे खाना खाते देख, उनकी आँखे गुस्से से छोटी-छोटी हो गयी।

    To be continued...