The Forced Vows "जब रिश्ता दिल से न जुड़ा हो... तो क्या मजबूरी उसे निभा सकती है?" वो लड़का... जिसे प्यार से नफरत थी, जिसके दिल में सिर्फ तन्हाई और ज़ख्म थे, और शरीर ने साथ छोड़ दिया था... व्हीलचेयर उसका सहारा बन गया था। और वो लड़की... एक सीधी-सादी, मासूम और दिल से खूबसूरत लड़की, जो मजबूरी में एक ऐसे रिश्ते में बंधी जहाँ न तो इज़्ज़त थी, न अपनापन। उसकी माँ ने ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़िद करते हुए उसे जबरदस्ती शादी के बंधन में बाँध दिया — किसी ऐसी से जिसे वो जानता तक नहीं था... और जानना भी नहीं चाहता था। पर वक्त ने खेल खेला। उसकी नफरत को उसकी मासूम मुस्कान ने तोड़ा, और एक दिन... जिससे वो नफ़रत करता था, वही उसकी सबसे बड़ी ज़रूरत बन गई। लेकिन... इस प्यार के रास्ते में सिर्फ भावनाएँ ही नहीं थीं, बल्कि छुपे हुए दुश्मन, बीते हुए राज़ और एक ऐसा साज़िश थी जो सब कुछ बर्बाद कर सकती थी। क्या मजबूरी में बंधा यह रिश्ता, सच में "प्यार" बन पाएगा? या ये Forced Vows हमेशा के लिए एक बोझ ही रह जाएंगे?
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दिल्ली, शांति निकेतन।
दिल्ली के शांति निकेतन में बना एक सुंदर सा बंगला, जो काफी बड़े एरिया में फैला हुआ था और जितना वो बड़ा था उतनी ही खुबसूरती से बनाया गया था। वाइट संगमरमर से बना वो खूबसूरत विला किसी रॉयल पैलेस से कम नही लग रहा था। उसके बाहर के बड़े से काले गेट के साइड में लगी नेम प्लेट पर बड़ी ही खूबसूरती से सुनहरे अक्षरों में 'ममता निवास' लिखा हुआ था। ये पैलेस कम विला श्रीमती ममता राणा के स्वर्गीय पति अभिजित राणा ने बड़े ही शौक से बनवाया था।
रात के अंधेरे में वो पैलेस रंगीन रोशनियों से ऐसे चमक रहा था जैसे आकाश ने घने काले बादलों के बीच चंद्रमा अपनी चाँदनी बिखेरती थी। विला के सामने से बड़ा सा गलियारा बनाया गया था जो बाहर वाले बड़े से गेट पर आकर खत्म होता था। उस गलियारे के दोनों तरफ लोन था जहाँ साइड में रंग बिरंगी फूलों की क्यारियाँ थी। उन खूबसूरत फूलों की खुशबु से वहां की हवा महक रही थी। लॉन में लगे बड़े बड़े पेड़ की शाखाएं हवा के वजह से ख़ुशी से झूम रही थी।
अंदर वाले गेट के सामने लोन में बड़ा सा फव्वारा था जिसके चारों और हंस की खूबसूरत मूर्तियाँ बनी हुई थी। विला के पीछे पार्किंग बनाई हुई थी, वहां भी गार्डन बना हुआ था। चारों तरफ से हरियाली से घिरा वो विला एकदम पुराने ज़माने के महल जैसा लग रहा था, जिसकी चमक अब भी एकदम नए जैसी थी।
एक्सटीरियर जितना आकर्षक था उस विला का इंटीरियर भी उतना ही लाजवाब था। खूबसूरत एंटीक चीजों और पेंटिंग से सजा बड़ा सा हॉल, रूफ पर हर कुछ दूरी पर लगे झुमरो से निकलती रंग बिरंगी रोशनी से पूरा विला जगमगा रहा था।
हॉल ने बीचों बीच फूलों से सजा खूबसूरत मंडल बनाया हुआ था । विला की दीवारों लग रंग बिरंगी लाइट की लाड़ियाँ और सजी झलारें बेहद खूबसूरत लग रही थी। फूलों की लड़ियों से पूरे विले को सजाया गया था जैसे किसी नई नवेली दुल्हन को सजाया जाता है।
मंडप मे अग्नि कुंज के पास केसरी वस्त्र पहने पंडित जी बैठे थे। नौकर यहाँ से वहा भागते हुए सब व्यवस्था देख रहे थे।
पंडित जी के पास लाइट ब्लू कलर की सिल्क की बनारसी साड़ी पहने एक औरत बैठी थी, जिसकी उम्र यही कोई 50 के आस पास की लग रही थी। प्योर गोल्ड के हल्के गहने पहने हुए थे उन्होंने, देखने मे आज भी सुंदर लग रही थी, चेहरे पर अलग ही तेज चमक रहा था। ये थी श्रीमती ममता राणा इस विला की मालकिन।
उनके पास एक और औरत बैठी थी जिन्होंने लाइट येल्लो कलर की सिंपल सी साड़ी पहनी हुई थी। कोई साज शृंगार नही था, फिर भी उनकी सूरत पर अलग ही नूर था । उम्र वही ममता जी के आस पास की लग रही थी। चेहरे पर खुशी झलक रही थी, वही आँखों मे अजीब सी उदासी ने अपना पहरा जमाया हुआ था।
कुछ देर बाद पंडित जी ने सब व्यवस्था देखने के बाद ममता को वर और वधु को बुलाने को कहा तो उन्होंने पास खड़े नौकर को देखते हुए आदेश दिया,
"रंजन जाकर नील और अनु को कहो कि अंगद और आकृति को लेकर नीचे आ जाए।"
रंजन तुरंत ही सीढ़ियों के तरफ बढ़ गया। सीढियाँ ऊपर के फ्लोर तक जाती थी और साथ ही एक तरफ वुडेन रैंप बनाया गया था । वो नौकर ऊपर के फ्लोर पर बने रूम मे चला गया। पूरे विला का सबसे बड़ा और आलीशान चीजों से सजा रूम था वो, जिसमे मिस्टर अंगद राणा रहते थे।
मिस्टर ऐंड मिसेस अभिजित राणा का एकलौता बेटा अंगद राणा, जिनका नाम एक अलग ही रुआब खुदमे समेटे हुए है, दुनिया के सामने इस नाम की इतनी पहचान है कि बड़े से बड़े पद पर मौजूद इंसान इस नाम के आगे सर झुकाता है। कंस्ट्रक्शन की दुनिया का बेताज बादशाह कहा जाता है उन्हें । उनके पिता ने जिस कंपनी को शुरू किया था उन्होंने अपने मेहनत और काबिलियत के दम पर उसको आसमान की बुलंदियों तक पहुँचाया है।
25 की उम्र मे तीन बार यंग बिज़नेसमैन ऑफ द ईयर का अवार्ड अपने नाम कर चुके है, एशिया के सबसे बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिक है ये और एशिया अवार्ड मे पिछले साल ही business leader अवार्ड उन्होंने अपने नाम किया था। पूरे एरिया मे इनकी कंपनी के ब्रांच फैले हुए है और हैड ऑफिस दिल्ली मे है जिसे कुछ ये वक़्त पहले तक ये खुद संभालते थे, बाकी ब्रांचेस् उनके मैनेजर संभालते है और ज़रूरत पड़ने पर वो खुद भी जाकर काम का जायज़ा लेते रहते है।
जितना इनका नाम फेमस है उतने ही चर्चे उनके लूक्स और परस्नैलिटि के हुआ करते थे। लगभग छः फुट हाइट, दूध सा गोरा रंग, गहरी भूरि आँखे, आकर्षक फेशियल कट्स, जिम मे बनाई हीरो जैसे बॉडी और एब्स, चेहरे पर अलग ही तेज और उसपर उनका रौबदार अंदाज़। लड़कियाँ उनकी एक झलक की दीवानी है पर पिछले छः महीने से उन्हें किसी ने नही देखा।
कुछ देर बाद उस बड़े से रूम का दरवाजा खुला और एक लड़का रूम से बाहर निकला। लगभग 5'9 हाइट, गठिला बदन, हैंडसम चेहरा और लबो पर सौम्य सी मुस्कान। उसने वाइट शर्ट के साथ ब्लैक थ्री पीस सूट पहना हुआ था। काफी हैंडसम लग रहा था वो, उसके हल्के साँवले रंग पर वो आउटफिट जच रहे थे।
ये है अंगद के बचपन का दोस्त, उसका यार जो उसके लिए बिल्कुल भाई जैसा है, नील ओबरॉय । फैशन की दुनिया मे इनका अलग ही नाम है। इंडिया से लेकर एशिया की मार्केट मे सिर्फ उनके ब्रैंड का कबज़ा है। ये यहाँ नही रहते लंदन मे रहते है पर पिछले कुछ वक़्त से यही रह रहे है।
नील ने मुड़कर देखा और अगले ही पल एक व्हीलचेयर उसके पीछे से निकलकर आगे आ गयी। उस व्हीलचेयर पर सुनहरे रंग की शेरवानी पहने एक लड़का बैठा था। पैरों मे जूती, सर पर साफा जिसपर सुंदर का ब्रुच लगा हुआ था। गले मे मोतियों की तीन लडी वाली माला, शेरवानी के पॉकेट पर रेड रोज़ लगा हुआ था।
ये है मिस्टर अंगद राणा जो भले ही व्हीलचेयर पर थे पर उनके हैंडसम से चेहरे पर आज भी इतना तेज़ है की किसी को भी अपना दीवाना बना दे।
दुल्हे के लिबाज़ मे सजे अंगद के चेहरे पर इस वक़्त कोई भाव नही थे। नील ने उसकी व्हीलचेयर पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया पर अंगद ने अपना हाथ आगे करके उसको रोक दिया और खुद ही आगे बढ़ गया। आधुनिक तकनीकों से लेस थी वो व्हीलचेयर और अंगद वो व्हीलचेयर पर होने के बावजूद किसी काम के लिए किसी पर आश्रित नही था।
नील के भाव कुछ बदले फिर वो लबों पर मुस्कान सजाए उसके पीछे चला आया। दोनो नीचे लिविंग रूम मे पहुँचे तो ममता जी ने आगे आकर नील को सेहरा दे दिया जिसे उसने अंगद को पहना दिया। ममता जी ने अपने बेटे को दुल्हे के रूप मे देखा तो खुशी के आँसू आँखों मे झिलमिलाने लगे। उन्होंने झुककर उसकी नजर उतारी और प्यार से उसके माथे को चूमते हुए भावुक होकर बोली,
"कितने सज रहे है आप दुल्हे के रूप मे। आज हमारा सालों का सपना पूरा हो गया। दिली इच्छा थी हमारी आपको दुल्हे के रूप मे सजे देखने की और आज आपने हमारी इस इच्छा को पूरा कर दिया।"
अंगद के चेहरे पर अब भी कोई भाव नही थे। उसने बिना किसी भाव के जवाब दिया, "ये शादी मैं सिर्फ आपकी इच्छा पूरी करने के लिए ही कर रहा हूँ ये बात आप बखूबी जानती है, वरना शादी और प्यार जैसे किसी रिश्ते पर अब मुझे कोई विश्वास नही रहा।"
उसका जवाब सुनकर एक पल को ममता जी के चेहरे पर मायूसी और चिंता के बादल घिर आए पर जल्दी ही उन्होंने खुदको संभाला और मुस्कुराकर बोली,
"आपकी पसन्द ने आपका विश्वास प्रेम और शादी पर से उठाया है और हमें पूरा विश्वास है की जिसे हम आपकी ज़िंदगी मे शामिल करने जा रहे है वो फिरसे आपको शादी जैसे रिश्ते पर विश्वास करना सिखा देंगी और उन्हें देखने के बाद आप चाहे भी तो उनके प्यार मे पड़ने से खुदको रोक नही पाएंगे।"
अंगद ने कोई जवाब नही दिया बस चेहरा फेर लिया। उसकी बातें पंडित जी के पास बैठी सुनंदा जी ने भी सुनी और उनके माथे पर चिंता की रेखाएँ उभर आई।
अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि सीढ़ियों के तरफ से आती छन छन की आवाज़ ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया।
सीढ़ियों से एक लड़की जिसने पिंक कलर का लहंगा पहना हुआ था। हल्का मेकअप जो उसके गोरे रंग पर काफी जच रहा था, माथे पर बड़ा सा मांगटीका, कानों मे बड़े बड़े झुमके, गले मे चोकर जो उसकी ड्रेस पर मैच कर रहा था, राइट हैंड मे काँच की चूड़ियाँ और उल्टे हाथ मे डायमंड का सुंदर सा ब्रेसलेट, भूरि भूरि आँखों मे गहरा काजल और नाक में छोटी सी नोज़ रिंग, पैरों मे हिल्स।
अलग ही जलवे थे उसके, चेहरे पर अलग ही कशिश थी और लबों पर गहरी मुस्कान छाई हुई थी। वो लड़की बहुत ही प्यारी लग रही थी। ये है अंगद राणा की छोटी बहन अन्वेशा राणा जो की नील के साथ पार्टनेरशिप मे काम करती है।
अन्वेशा के साथ सुनहरे रंग ब्राइडल लहंगा पहने जिसपर लाल धागे से बारीक डिजाइन बनाए गए थे, एक और लड़की आ रही थी। अन्वेशा ने उसको थामा हुआ था। ममता जी और सुनंदा जी की नजर जैसे ही अन्वेशा के साथ दुल्हन का शृंगार किये आ रही लड़की पर पड़ी, दोनों के लबों पर मुस्कान फैल गयी।
लाल बारीक कारीगरी वाला, सुनहरे रंग का लहंगा, उसपर लाल रंग की थ्री फोर्थ बाजु वाली एम्ब्रोइडेड चोली, जो खुद अन्वेशा ने अपनी होने वाली भाभी के लिए डिज़ाइन किया था। घने लंबे काले बालों को खूबसूरत से जुड़े मे बांधकर उसको गजरे से सजाया गया था और उसी से अटैच करके चटक लाल रंग की सितारों से सजी चुनरी को उसके सर पर सेट किया हुआ था।
छोटे से गोल चाँद से सोणे मुखड़े पर ब्राइडल मेकअप जो देखने मे ज्यादा पता नही चल रहा था पर बहुत अलग लुक दे रहा था उसे। बीच की मांग सजा मंगतिका, उसके ठीक नीचे छोटी सी रेड बिंदी, गहरी काली बड़ी बड़ी आँखों मे सुर्मे की गहरी रेखा, हया के बोझ तले झुकी घनी पलकें, शर्म से गुलाबी मोटे मोटे गाल, नाक मे बड़ी सी नथ जिसपर हरे रंग का लगा नग बहुत प्यारा लग रहा था। नथ ने उसका गाल और सुर्ख लाल रंग मे रंगे पतले पतले लबों को आधा ढका हुआ था।
दुल्हन मेहंदी लगी कलाइयों मे भरा भरा चूड़ा उस उसमे बंधे कलीरे, गले मे एक जड़ाऊ हार जो गले से एकदम चिपका हुआ था और साथ मे एक दो लेयर वाला बड़ा हार। कमर पर सुंदर सा मोतियों का बना कमरबंद सजा हुआ था। पैरों मे भारी भारी पायल जो उसके हर बढ़ते कदम के साथ अपनी छन छन कि आवाज़ से वहा खुशनुमा माहौल बना रही थी।
ये है आकृति अवस्थी एक मिडल क्लास फैमिली मे पली बढ़ी सिंपल सी लड़की, जिसने bcom किया हुआ है जिसके ज्यादा बड़े सपने नही थे। उसका परिवार ही उसके लिए सब कुछ था और आज अगर वो यहाँ थी तो सिर्फ अपनी माँ के लिए।
एक हादसे ने उससे उसके पापा और भाई को छीन लिया था अब सिर्फ माँ ही बची थी और उनकी खुशी के लिए वो इस बंधन मे बंधने जा रही थी।
दुल्हन के लिबाज़ और ब्राइडल लुक मे उसकी खूबसूरती और ज्यादा निखरकर सामने आ रही थी। अन्वेशा आकृति को लेकर ममता जी के पास चली आई।
आकृति ने तो निगाहें उठाकर देखने तक की ज़हमत नही उठाई थी और न ही अंगद को ही अपनी दुल्हन को देखने मे कोई दिलचस्पी थी, पर नील ने जब आकृति को देखा तो देखता ही रह गया।
To be continued...
दिल्ली, शांति निकेतन।
In previous chapter, you saw that दिल्ली के शांति निकेतन में ‘ममता निवास’ नामक एक खूबसूरत विला का वर्णन किया गया है, जहाँ श्रीमती ममता राणा अपने स्वर्गीय पति अभिजित राणा के साथ रहती थीं। विला बहुत ही सुंदर था और उसे फूलों और रंगीन रोशनी से सजाया गया था, क्योंकि ममता जी अपने बेटे अंगद की शादी की तैयारी कर रही थीं। अंगद एक सफल व्यवसायी है, लेकिन एक दुर्घटना के कारण वो व्हीलचेयर पर है। उसकी शादी आकृति अवस्थी नामक एक साधारण लड़की से हो रही है, जो अपनी माँ की खुशी के लिए ये शादी कर रही है।
Now Next
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नील ने जब आकृति को देखा तो देखता ही रह गया। इस वक़्त वो ऐसी लग रही थी जैसे स्वर्ग से कोई अप्सरा दुल्हन के लिबाज़ मे सजकर वहाँ आई हो।
नील ने उसको देखा और मुस्कुराकर बोला, "मानना पड़ेगा भाभी, आपकी खुबसुरती का कोई जवाब नही, मैंने आज तक इतनी हसीन दुल्हन नही देखी। आपको देखकर ऐसा लग रहा है जैसे आप परियों से देश से आई एक पाक फरिश्ता है जो मेरे दोस्त की बेरंग दुनिया को अपने नूर से सजाने आई है। मैं तो आपका फेन हो गया।"
उसकी तारीफ पर आकृति हौले से मुस्कुरा दी, इसके साथ ही उसके गालों पर डिम्पल उभर आए। अब तो उसकी खूबसूरती और ज्यादा बढ़ गयी थी, जो एक बार उसको देख ले उसकी छाप सारी ज़िंदगी खत्म होने के भी उसके दिल से न मिटे।
शायद इसलिए भगवान ने उसके नजर का टिका लगाकर भेजा था। उसके लबों के ठीक ऊपर अपना अधिकार जमाए बैठे तिल से जहाँ उसकी खूबसूरती मे चार चाँद लगा रही थी वही उसको बुरी नजर से बचाने के लिए काले टिके का काम भी करती थी।
अनु ने नील की बात सुनी तो खुदपर इतराते हुए बोली, "आखिर भाभी किसकी है।"
"सही कहा अब मेरी भाभी है तो सुंदर तो होंगी ही," नील ने तुरंत ही जवाब दिया जिसे सुनकर अनु ने उसको घूरकर देखा।
फिर मुँह बनाते हुए बोली, "मेरी भाभी है इसलिए इतनी प्यारी है समझे, बड़े आए अपनी तारीफ करने वाली।"
"क्यों सिर्फ तेरी ही भाभी है क्या? वैसे भी तू कहाँ चुहिया जैसी शक्ल वाली और भाभी कहाँ परियों जैसी खूबसूरत, दोनों की कोई तुलना ही नही।"
नील ने भी हाज़िर जवाबी दिखाई। उसकी बात सुनकर अनु चिढ़ गयी पर वो कुछ कहती उससे पहले ही ममता जी ने दोनों को डांट दिया, "बस कीजिये आप दोनों, इतने शुभ मौके पर झगड़ना शुरु कर दिया आप दोनों ने। अब अगर दोनों मे से किसी ने एक शब्द भी कहा तो हम उन्हें यहाँ से बाहर निकाल देंगे।"
उन्होंने दोनों को धमकी दी और उनकी धमकी सुनकर दोनों ने एक दूसरे को घूरकर देखा फिर मुँह बना लिया। ममता जी ने अब आकृति के तरफ निगाहें घुमाई और उसकी बलाएँ लेते हुए बोली,
"कितनी प्यारी लग रही है हमारी बच्ची, बिल्कुल गुड़िया जैसी लग रही है आज आप।"
उन्होंने प्यार से उसके माथे को चूम लिया। आकृति निगाहें झुकाए खड़ी रही। सुनंदा जी भी उठकर आकृति के पास चली आई। अपनी बेटी को दुल्हन के रूप मे सजे देखने का ख्वाब उन्होंने उसके जन्म के साथ ही देखना शुरू कर दिया था फिर हालात ऐसे बने कि उन्हें लगने लगा कि अब ये सपना सपना बनकर ही रह जाएगा, वो कभी अपनी बच्ची को दुल्हन के रूप मे देख ही नही पाएंगी पर आज किस्मत ने उन्हें ये मौका दिया था कि उनकी छोटी सी बेटी दुल्हन बने उनके सामने खड़ी थी।
उनकी आँखों मे खुशी के आँसू छलक आए, उन्होंने भी उसकी बलाएँ ली फिर प्यार से उसके माथे को चूमते हुए बोली,
"हमारी कल्पना से कही गुना ज्यादा सुंदर लग रही है आप दुल्हन के जोड़े मे। अगर आप आपके बाबा और भाई होते तो आपको यूँ दुल्हन बने देख उन्हें बहुत खुशी होती।"
ये बात कहते हुए उनके चेहरे पर दर्द की लहर दौड़ गयी, वही आकृति की आँखों मे भी नमी तैर गयी, जो उसके पलकों से होते हुए उसके गालों को भिगोने लगी।
अनु ने तुरंत उसके आँसुओं को साफ करते हुए कहा,
"नही भाभी, आपको बिल्कुल नही रोना है वरना आपका मेकअप खराब हो जाएगा, पूरे चार घंटे लगे है मुझे आपको तैयार करने मे , सब बर्बाद हो जाएगा। Please रोइये नही।"
आकृति के चेहरे पर दर्द उभर आया, पर उसने अब आँसुओं को बाहर आने की इज़ाज़त नही दी। नील ने पहले उदास आकृति को देखा फिर सुनंदा जी को देखकर शिकायती लहज़े मे बोला,
"आंटी ये गलत बात है, आप आजके शुभ मौके पर ऐसी बात करके खुदको दुख दे रही है और साथ मे भाभी को भी सैड कर रही है। आज तो खुशी का मौका है तो आपको मुस्कुराना चाहिए। मुझे विश्वास है अंकल और भाई भी भाभी को देखकर आज खुश हो रहे होंगे पर अगर आप और भाभी ऐसे उन्हें याद करके उदास होंगे तो उन्हें भी दुख होगा। फिर अब तो अंगद भी आपका बेटा ही है और मैं भी तो हूँ। चलिए अब उदासी छोड़िये और मुस्कुराकर दिखाइये ताकि भाभी के चेहरे पर से ये दर्द के बादल छँट सके।"
उसकी बात सुनकर सुनंदा जी हौले से मुस्कुरा दी, फिर उन्होंने प्यार से आकृति के गाल को छूकर कहा, "बहुत नसीब वाली है आप बेटा जो आपको इतना अच्छा ससुराल और प्यार करने वाला परिवार मिलने जा रहा है। आज हम आपके लिए बेहद खुश है। बस अब महादेव से एक ही प्रार्थना है कि हमारी बच्ची की अब और परीक्षा ना ले, बड़ी मुश्किल से आपकी ज़िंदगी मे खुशियों ने दस्तक दी है, ये खुशियाँ सदा यूँ ही बनी रहे।"
उनकी बात सुनकर बाकी सब मुस्कुरा दिये। अंगद के चेहरे पर अब भी कोई भाव नही थे। पंडित जी ने वरमाला के लिए कहा तो सबका ध्यान उनके तरफ गया।
अनु ने आकृति को अंगद के सामने खड़ा कर दिया और नील के साथ वहाँ से गायब हो गयी। कुछ देर बाद चार नौकर हाथ मे चार थालियां लेकर वहा उपस्थित हो गए। दो बड़ी बड़ी थालियों मे फूलों की बनी भारी वरमाला था तो दो छोटी थालियों मे गुलाब के पंखुड़ियों के बीच एक एक रिंग चमक रही थी।
पंडित जी ने मंत्र पढ़कर चारों पर गंगा जल छिड़का फिर रिंग वाले एक थाली लेकर नील अंगद के पास आकर खड़ा हो गया तो दूसरी थाल लेकर अनु आकृति के पास चली आई।
अब समस्या ये थी कि अंगद खड़ा नही हो सकता था। सबकी परेशान निगाहें एकर दूसरे के तरफ घूम गयी । नील ने अंगद की चेयर को ऊपर करना चाहा पर उससे पहले ही आकृति अपने भारी भरकम लहंगे को संभालते हुए उसके सामने घुटनों के बल बैठ गयी।
ये देखकर पहले तो सब चौंक गए फिर उनके लबों पर संतुष्टि भरी मुस्कान फैल गयी। सुनंदा जी अपनी बेटी की समझदारी और इस रिश्ते के, अंगद के प्रति उसका समर्पण देखकर भाव विभोर हो गयी।
कही न कही उन्हें इस बात को लेकर चिंतित थी कि उनकी लाडली बेटी का पति पैर से विकलांग है जाने आकृति कैसे संभाल पाएंगी इस रिश्ते को, अंगद का साथ निभा पाएगी भी या नही? पर आकृति ने अपने उठाए कदम ने उन्हें आश्वस्त कर दिया था कि आकृति इस रिश्ते और अंगद दोनों को अपनी समझदारी और समर्पण भाव से बखूबी संभाल लेगी।
ममता जी के चेहरे पर सुकून के भाव उभर आए थे और उन्हें अब अपनी पसन्द पर और ज्यादा विश्वास हो गया था। आकृति पर गर्व हो रहा था उन्हें। अपने बेटे के लिए आकृति को चुनने के अपने फैसले पर उनका विश्वास और ज्यादा दृढ़ हो गया था कि आकृति ही है जो उनके बेटे के लिए बनी है, जो उसको फिरसे जीना और मुस्कुराना सिखा सकती है।
आकृति के अचानक सामने बैठने से अंगद की निगाहें न चाहते हुए भी उसपर पड़ गयी। मासूमियत से लब्रेज़ उस चाँद से सुंदर चेहरे पर उसकी निगाहें एक पल को ठहर सी गई, मन मे अनायास ही इच्छा जागी कि आकृति एक बार पलकें उठाए ताकि इस रूप की रानी ने नयनों का दीदार हो सके उसे पर जल्दी ही उसने इस ख्याल को अपने मन से निकाल फेंका।
नील ने रिंग की प्लेट अंगद के तरफ बढ़ा दी। ममता जी के कहने पर अंगद ने रिंग अपनी उंगलियों मे थाम ली, अनु ने आकृति का हाथ उसके तरफ बढ़ा दिया तो ना चाहते हुए भी अंगद को उसकी हथेली थामनी पड़ी। जैसे ही उसकी उंगलियों ने आकृति की हथेली को स्पर्श किया, आकृति के मन के तार झनझना उठे, धड़कनें अनायास ही बढ़ गयी और पेट मे गुदगुदी सी होने लगी।
ज़िंदगी मे पहली बार वो इन एहसासों से रूबरू हो रही थी और परिणाम वश उसके चेहरे पर उलझन भरे भाव उभर आए थे।
अंगद ने उसकी रिंग फिंगर मे उस चमचमाती ब्लू डायमंड की हार्ट शेप वाली रिंग को पहनाने के बाद एक नाराज़गी भरी निगाह उसके हाथ पर डाली और उसके हाथ को छोड़ दिया।
अब अनु ने आकृति के तरफ रिंग बढ़ा दी। सुनंदा जी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसको रिंग पहनाने को कहा तो उसने हौले से उस रिंग को अपनी उंगलियों मे थाम लिया।
अंगद तो अपना हाथ आगे ही नही कर रहा था ये देखकर नील ने उसका हाथ आकृति के आगे कर दिया। आकृति ने एक नजर उसकी हथेली को देखा फिर सकुचाते हुए उसकी रिंग फिंगर मे उस गोल सोने की रिंग को पहना दिया।
रिंग सेरीमनि के बाद पंडित जी ने वरमाला का आदान प्रदान करने को कहा । अंगद ने पहले बिना आकृति के तरफ निगाहें उठाए, वरमाला उसके गले मे डाल दी।
आकृति ने भी एक बार भी पलकें उठाकर अपने सामने बैठे अंगद को देखा तक नही और उसको वरमाला पहना दी। सब सर्वेंट्स ने उनपर फूल छिड़के उसके बाद दोनों को मंडप पर लेजाकर बिठाया गया।
अंगद अपनी चेयर पर बैठा था तो आकृति के लिए भी एक लकड़ी का तख्त लाया गया। मंत्रों के बीच शादी की विधि प्रारंभ हुई । आकृति के पिता नही थे ऐसे मे उनको साक्षी मानते हुए सुनंदा जी ने ही अपनी लाडो का कन्यादान किया और इस वक़्त दोनों माँ बेटी की आँखों मे नमी उतर आई थी।
जब पंडित जी ने भाई को बुलाने को कहा तो सुनंदा जी दुखी और परेशान हो गयी वही आकृति के आँसु उसके गालों पर लुढ़क गए , नील ने तुरंत आगे बढ़कर उसके आँसुओं को साफ करते हुए मुस्कुराकर कहा, "भाभी आपसे मेरा एक रिश्ता तो पहले ही फिक्स है पर अगर आपकी इज़ाज़त हो तो मैं आपको भाभी से पहले अपनी बहन बनाना चाहूंगा। कहिये भाई होने का फ़र्ज़ निभाने का हक देंगी अपने इस देवर को?"
उसकी बात सुनकर सुनंदा जी ने कृतज्ञ भाव से उसको देखा तो नील हौले से मुस्कुरा दिया। भाई की रस्म नील ने पूरी की और उसके बाद आकृति के सर पर हाथ रखते हुए मुस्कुराकर बोला, "आजसे और अभी से मैं आपका भाई हुआ तो आपको जब भी अपने इस भाई की ज़रूरत पड़े बस एक बार मुझे याद कर लीजियेगा, मैं दुनिया मे कही भी रहूँ जल्द से जल्द आपके पास पहुँच जाऊंगा।"
फिर उसने अंगद पर उड़ती निगाह डालते हुए कहा " और अगर इस साले।"
उसने जैसे ही ये कहा अंगद की गुस्से भरी घूरती निगाहें उसपर पड़ गयी तो उसने तुरंत अपनी बत्तीसी चमकाते हुए कहा " अरे तू इतना भड़क क्यों रहा है ? मैंने तुझे कोई गाली थोड़े न दी है अब होने वाली बीवी का भाई तो साला ही लगता है ना? तो वही तो कहूंगा तुझे।"
उसने धीरे से ये बात कही थी इसलिए आकृति और अंगद के अलावा कोई सुन नही सका । आकृति ने तो ध्यान नही दिया पर अंगद ने उसकी बात सुनकर उसको घूरते हुए उसपर से अपनी निगाहें हटा ली।
नील ने एक बार फिर आकृति के तरफ रुख करते हुए कहा " हाँ तो मैं कह रहा था कि अगर आपके इस पति ने आपको ज़रा भी परेशान किया तो आप मुझे बेझिझक बता सकती है फिर मैं इसकी ऐसी क्लास लगाऊंगा की दोबारा कभी आपको तंग करने से पहले उसको मेरा चेहरा याद आएगा।"
उसकी बात सुनकर अंगद ने एक बार फिर उसको घूरकर देखा, वही अनु ने फट से जवाब दिया " हाँ हाँ वो तो आएगा ही क्योंकि भाई की क्लास लगाने से पहले भाई तुम्हारी जो खातिरदारी करेंगे उसको कभी भूल थोड़े ही पाएंगे।"
इतना कहकर वो खिलखिलाकर हंस पड़ी। अंगद के लबों पर कुटिल मुस्कान तैर गयी, जैसे अनु की बात पर मौन स्वीकृति ज़ाहिर कर रहा हो। नील ने दोनों भाई बहन को घूर कर देखा फिर वहाँ से चला गया और जाकर ममता जी के पास बैठ गया।
कुछ मंत्रों के बाद पंडित जी के कहने पर अनु ने दोनों का गठबंधन कर दिया। शादी की विधि आगे बढ़ने लगी । आधी रात बीत गयी थी। आकाश मे सूरत अपनी लालिमा बिखेरने लगा था। दोनों ने मंत्रों के बीच सात फेरों के साथ सात वचन लिए। उसके बाद पंडित जी ने जिस थाल मे सिंदूर दान और चाँदी का सिक्के के साथ गोल्ड का छोटा सा प्यारा सा मंगलसूत्र रखा हुआ था उसे अंगद के तरफ बढ़ा दि।
अनु ने आकर आकृति के माँगतिके को थोड़ा सा उठाया और पंडित जी के कहने पर अंदर ने उस सिक्के से सिंदूर देकर आकृति की मांग को सुर्ख सिंदूर से सजा दिया। सिंदूर के बाद उसने उसको मंगलसूत्र पहनाया इसके साथ पंडित जी ने शादी के संपन्न होने की घोषणा कर दी।
आकृति अपनी आँखे बन्द किये, नाज़ुक सी गुड़िया जैसी वहाँ बैठी थी। सिंदूर के कुछ कण उसके सौभाग्य की निशानी के तौर पर उसके नाक पर सज चुके थे जिन्हे अनु ने साफ कर दिया और उसको खड़ा कर दिया। अब बारी थी आशीर्वाद लेने की। सबसे पहले पंडित का रुख किया गया। अंगद को वैसे ही ये सब झंझट सा लग रहा था पर ममता जी की खुशी के लिए वो सब खामोशी से कर रहा था ।
अभी शादी संपन्न ही हुई थी कि किसी की गुस्से भरी आवाज़ वहाँ गूंजी...
To be continued...
आकृति अपनी आँखे बन्द किये, नाज़ुक सी गुड़िया जैसी वहाँ बैठी थी। सिंदूर के कुछ कण उसके सौभाग्य की निशानी के तौर पर उसके नाक पर सज चुके थे, जिन्हे अनु ने साफ कर दिया और उसको खड़ा कर दिया।
अब बारी थी आशीर्वाद लेने की। सबसे पहले पंडित का रुख किया गया। अंगद को वैसे ही ये सब झंझट सा लग रहा था, पर ममता जी की खुशी के लिए वो सब खामोशी से कर रहा था।
दोनों पंडित जी के पास पहुँचे तो आकृति तो झुक गयी, पर चेयर पर बैठे होने के वजह से अंगद को पूरी तरह से झुककर उनके पैर छूने मे दिक्कत हो रही थी। आकृति ने जब ये देखा तो अपने दूसरे हाथ से उसके हाथ को पकड़कर अपने हाथ पर रख दिया।
उसके ऐसा करते ही अंगद की हैरानी भरी निगाहें उसके तरफ घूम गयी, पर आकृति ने उसके तरफ देखे बिना ही पंडित के चरण स्पर्श कर लिए। उसके हाथ को पकड़े होने के वजह से अनचाहे अंगद ने भी उनके पैर छूलिए, पंडित जी ने मुस्कुराकर दोनों को आशीर्वाद दे दिया।
जहाँ आकृति की अचानक इस हरकत के वजह से अंगद हैरान था, वही बाकी सब उसकी समझदारी देखकर खुश हो गए थे।
आकृति ने शादी मे अंगद का हर परिस्थिति मे साथ देने का वादा किया था, जिसे वो शादी से पहले से ही निभा रही थी और एक बार फिर आकृति ने अंगद का सहारा बनकर ये साबित कर दिया था कि वही सही मायनों मे अंगद की जीवनसंगिनी और हमसफर बनने के काबिल है।
पंडित जी के बाद नील और अनु दोनों को साथ मे ममता जी के पास लेकर गए। एक बार फिर आकृति ने अंगद से अपना हाथ पकड़वाकर खुद ही उनके पैर छुए। उन्होंने भी दोनों को साथ और खुश रहने का आशीर्वाद दिया, आकृति को सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद भी दिया।
फिर आकृति को खड़ा किया और अपने गले से लगाते हुए मुस्कुराकर बोलीं, "हम जानते थे कि आपसे बेहतर जीवनसाथी और कोई हो ही नही सकता हमारे बेटे के लिए और आपने आज जैसे अंगद का साथ दिया, उनका सहारा बनी, आपने हमारे विश्वास को और भी पक्का कर दिया कि हमने अपने बेटे के लिए बिल्कुल सही चुनाव किया है।"
उन्होंने बात जारी रखी, "परिस्थितियाँ चाहे कितनी ही विकट हो आप कभी हमारे बेटे को अकेला नही छोड़ेंगी। उनकी सच्ची हमसफर बनकर न सिर्फ हमेशा उनका साथ निभाएंगी, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर उनकी ढाल बनकर उनके साथ खड़ी होंगी।
आपके माँ बाप ने आपको बहुत अच्छे संस्कार दिये है। आप जिस घर मे जाती उसको स्वर्ग बना देती और आपके कदम हमारे घर मे पड़े, इसके लिए हम आजीवन महादेव के आभारी रहेंगे। हम बहुत खुशनसीब है जो हमें बहु के रूप मे आप मिली। महादेव आपको सदैव खुश रखे।"
आकृति ने कुछ भी जवाब नही दिया, बस निगाहें झुकाए खड़ी रही। ममता जी ने प्यार से उसके माथे को चूम लिया। आज आकृति ने अपने काम से सुनंदा जी को अपने संस्कारों पर गर्व करने का अवसर प्रदान किया था। उनके लबों पर सुकून भरी मुस्कुराहट फैली हुई थी।
अब दोनों को उनके पास लेकर जाया गया। अब जाकर आकृति ने अपनी निगाहें उठाई। उसकी आँखे आँसुओं से लबालब भरी हुई थी। ज़ाहिर सी बात थी, शादी हो चुकी थी तो अब उसको अपनी माँ से दूर जाना था, उसको अब यहाँ सबके साथ रहना था। अब वो अपनी मां के साथ नही रह सकती थी, अब उसकी मां एकदम अकेली हो जाएंगी, ये चिंता उसको सताने लगी थी।
आकृति ने नम आँखों से उन्हें देखा फिर झुककर अंगद का हाथ पकड़कर उनके पैर छू लिये। उनकी आँखों मे भी नमी तैर गयी थी। उन्होंने दोनों को आशीर्वाद दिया फिर आकृति को अपने सीने से लगा लिया। दोनों ही की आँखे छलक आई।
अंगद भावहीन सा वहा बैठा था। अजीब बात थी कि अंगद खामोशी से उसके हाथ को पकड़े हुए था। जिस इंसान को किसी का सहारा लेना कतई गवारा नही था वो आकृति के सहारे सबके पैर छू रहा था, वो भी खामोशी से। इस बात से अंगद खुद कुछ हैरान था।
कुछ देर बाद सुनंदा जी ने आकृति को खुदसे अलग किया, फिर उसके आँसुओं को पोंछते हुए बोलीं, "नही बेटा। अब तो आपकी एक नई ज़िंदगी शुरु होने जा रही है, उसकी शुरुआत यूँ आँसू बहाकर नही मुस्कुराते हुए कीजिये। हम जानते है आप हमारे लिए परेशान है, आप चिंता मत कीजिये हम अपना ध्यान रखेंगे। आप बस अपने इस नई परिवार और इन रिश्तों पर ध्यान दीजिये।"
वो बोलीं, "हम जानते है हमारी बेटी बहुत समझदार है। आप रिश्तों की एहमियत भी जानती है और उन्हें निभाना भी बखूबी आता है आपको, इसलिए हमें आपको ये कहने की ज़रूरत नही है कि अब आपको अपना जीवन इन नए रिश्तों को समर्पित करनी है। हम बस आपसे इतना कहेंगे की आजसे यही आपका घर है और जैसे आपने हमारे घर को संभाला था वैसे ही इस घर को भी संभालना है, हर रिश्ते को दिल से निभाना है।"
वो उसे समझा रही थी, "किसी को शिकायत का मौका मत दीजियेगा बेटा, कितना ही मुश्किल वक़्त आए कभी हार मत मानना। इस रिश्ते को कभी टूटने मत दीजियेगा। हर रिश्ता अपने साथ बहुत सारे ज़िम्मेदरिया लाती है और अब आपको भी अपनी हर ज़िम्मेदारी को निभाना है, जैसे आज तक निभाती आई है। आप बहुत अच्छी बेटी और बहन साबित हुई है, अब आपको उतनी ही अच्छी बहु, पत्नी और भाभी बनकर दिखाना है।............ आप समझ रही है न हम आपको क्या समझाने की कोशिश कर रहे है?"
आकृति जो सर झुकाए खामोशी से उनकी बात सुन रही थी, उसने धीरे से हा मे सर हिला दिया। सुनंदा जी ने आत्मीयता से उसके माथे को चूम लिया फिर ममता जी के तरफ घूमकर अपने हाथ जोड़ते हुए कहा, "अब हमें इज़ाज़त दीजिये समधन जी। शादी संपन्न हो गयी, आजसे आकृति आपकी हुई।"
ममता जी ने उनके पास आकर उनके हाथ को नीचे कर दिया। उन्होंने आकृति के तरफ निगाहें घुमाई जो सर झुकाए सुबक रही थी, फिर सुनंदा जी को देखकर बोलीं, "आपको कही जाने की ज़रूरत नही है। हम आपसे पहले ही ये बात करना चाहते थे पर शादी की तैयारियों मे वक़्त ही नही मिला।"
सुनंदा जी ने सवालिया निगाहों से उन्हें देखा। उनके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई थी। ममता जी ने सहज भाव से आगे कहना शुरु किया, "हम जानते है आकृति के अलावा और कोई नही है। उनके जाने के बाद आप एकदम अकेली हो जाएंगी इसलिए हमने सोचा है कि आकृति के साथ आप भी यहाँ हमारे साथ ही रहे।
वैसे भी इतने बड़े विला मे गिनती के दो लोग रहते है। उसमे ही अंगद तो काम मे व्यस्त रहते है और हम अकेले रह जाते है। अगर आप यहाँ हमारे साथ रहेंगी तो हमें भी साथी मिल जाएंगी और आकृति को भी आपसे दूर नही होना पड़ेगा। आप यहाँ रहेंगी तो वो निश्चिन्त और खुश हो पाएंगी, वरना उन्हें और हमें हमेशा आपकी चिंता लगी रहेगी।"
उनकी बात सुनकर सुनंदा जी और ज्यादा परेशान हो गयी। शायद आकृति उनके जवाब को जानती थी, इसलिए उसने सर उठाकर उन्हें देखा तक नही था।
सुनंदा जी परेशान सी उनकी बात सुनती रही और उनके चुप होते ही बड़ी ही विनम्रता पूर्वक बोलीं, "आपने हमारे बारे मे इतना सोचा ये बहुत बड़ी बात है। हम जानते है आपका दिल बहुत बड़ा है इसलिए आप ऐसा कह रही है। हम क्षमा चाहेंगे पर हम आपके सुझाव को नही मान सकते। ये हमारी बेटी का ससुराल है, हम यहाँ का पानी भी नही पी सकते। इसलिए हमें यहाँ से जाना ही होगा।"
"आंटी ये आप इक्कीसवीं सदी मे कौनसी सदी की बात लेकर बैठ गयी? ये सब बहुत पुरानी बातें हो गयी है अब इन्हें कोई नही मानता तो आप भी इन बातों को छोड़िये और माँ की बात मानकर यही रुक जाइये।"
अनु ने ममता जी के सुझाव का सपोर्ट किया। तो नील ने भी उनकी बात से सहमति जताते हुए कहा, "हाँ आंटी जी। आप यही रुक जाइये। इससे न आपको भाभी से दूर जाना पड़ेगा न आपसे दूर होने के गम मे भाभी रोएंगी। आप अगर यहाँ रहेंगी तो अपनी आँखों से अपनी बेटी को खुश देख सकेंगी इससे आप भी निश्चिंत रहेंगी और जब आप भाभी की आँखों के सामने रहेंगी तो भाभी भी चिंता मुक्त होकर यहाँ खुशी से रह सकेंगी।"
सब एक तरफ हो चुके थे और सुनंदा दी दूसरे पाले मे खड़ी थी। उन्होंने सबको देखा तो सभी आस भरी नज़रों से उन्हें देख रहे थे। अब उन्होंने और भी ज्यादा परेशानी भरे लहज़े मे कहा, "हमें माफ कीजिये पर हम यहाँ नही रुक सकेंगे। हम जानते है ये बातें बहुत पुरानी है पर अगर बड़े बुजुर्गो ने कुछ कहा है तो उसकी कोई न कोई वजह ज़रूर रही होगी, इसलिए हम यहाँ नही रुक सकेंगे।"
सब थोड़े निराश हुए। उन्होंने कहा, "वैसे भी अगर हम यहाँ रुकते है तो कृति का सारा ध्यान हमारी तरफ रहेगा और वो मन से इन नए रिश्तों को नही निभा पाएंगी। हम नही चाहते कि हमारे वजह से उनके वैवाहिक जीवन मे कोई समस्या उत्पन्न हो। आज तक वो बेटी होने का फ़र्ज़ बखूबी निभाती आई है और अब हम उन्हें पूरी निष्ठा और दिल से इन नई रिश्तों को निभाते देखना चाहते है। हमारा यहाँ से जाना ही बेहतर होगा, इसलिए अब हमें इज़ाज़त दीजिये।"
ममता जी ने आकृति का उदास चेहरा देखा तो कुछ परेशान होकर बोलीं, "आप अपनी बेटी के ससुराल नही रुक सकती पर अपने बेटे के घर तो रुक सकती है न आप? .......... जैसे शादी के बाद आकृति हमारी बेटी बन गयी, वैसे ही अंगद भी अबसे आपका बेटा है। आपको उनके घर पर रहने मे तो कोई समस्या नही होगी? ............. और रही बात आकृति के ध्यान बँटने का तो आपको भले अपनी बेटी पर भरोसा ना हो पर हमें अपनी बहु पर पूरा विश्वास है कि वो हर रिश्ते को बखूबी संभाल लेंगी, किसी को शिकायत का मौका नही देंगी। इसलिए अब आप यहाँ से कही नही जा रही।"
सुनदा जी धर्म संकट मे फंस चुकी थी। उनका दिल यहाँ ठहरने की गवाही नही दे रहा था और सबकी बात ठुकराकर वो उनका अनादर भी नही करना चाहती थी। वो चिंतित सी खड़ी रही, कुछ बोल ही न सकी। सबको उनके जवाब का इंतज़ार था। आकृति इतनी देर से खामोश खड़ी सब देख सुन रही थी, शायद वो अपनी माँ की मनोदशा समझ रही थी।
सुनंदा जी के खामोश रहने पर इतनी देर मे पहली बार उसने अपना मुँह खोला, "रहने दीजिये माँ। मैं जानती हूँ आपका स्वाभिमान आपको यहाँ रहने की इज़ाज़त नही देगा और मैं नही चाहती की आप अपने आत्मसम्मान को ताक पर रखकर यहाँ मेरे साथ रहे।
आपने हमेशा मुझे इज़्ज़त से सर उठाकर चलना सिखाया है, फिर मैं आपको कोई ऐसा फैसला लेने पर मजबूर कैसे कर सकती हूँ जिससे आपका सर किसी के भी आगे झुके। आप चिंता मत कीजिये मां, मैं आपकी परवरिश और आपके दिये संस्कारों पर कभी आंच नही आने दूँगी।"
वो बोली, "ये रिश्ता और इससे जुड़े हर रिश्ते, हर ज़िम्मेदारी को पूरे ईमानदारी और निष्ठा से अपनी आखिरी सांस तक निभाऊँगी, पर इस ज़िम्मेदारी के आगे मैं आपके प्रति अपने कर्तव्यों से मुँह भी नही मोड़ सकती। मेरे अलावा आपका कोई नही इसलिए मैं आपका साथ नही छोड़ूंगी। आप घर जाइये माँ, जब भी आपको अपनी बेटी की ज़रूरत महसूस हो बस एक बार मुझे बता दीजियेगा, मैं पहुँच जाऊंगी अपनी माँ के पास।"
उसने कहा, "मैं वहाँ नही रहूँगी इसका मतलब ये नही कि आप मुझसे अपनी प्रॉब्लम्स छुपाने लगे, अगर आपने ऐसा किया तो मैं आपसे नाराज हो जाऊंगी और फिर आपसे बात नही करूँगी। वादा कीजिये माँ आप मुझे पराया नही करेंगी, अपनी कोई समस्या ये सोचकर मुझसे नही छुपाएंगी की अब मैं आपकी बेटी के साथ इस घर की बहु भी हूँ।
भले ही आज मुझसे बहुत से नए रिश्ते जुड़े है पर उन सभी रिश्तों से उपर वो रिश्ता है जो मेरे जन्म से भी पहले से जुड़ा था। मैं सबसे पहले आपकी बेटी हूँ, उसके बाद किसी की बहु, पत्नी या भाभी हूँ। इसलिए आज यहाँ से जाने से पहले आपको वादा करना होगा की जब भी कोई समस्या आए या आपको आपकी बेटी कि याद आए, उसकी ज़रूरत महसूस हो तो आप बेझिझक मुझे बताएंगी।"
आकृति की बातें सुनकर सभी भावुक हो गए थे। एक बार फिर उसने दिखा दिया था कि कितना साफ दिल है उसका, कितना सम्मान करती है वो रिश्तों का।
सुनंदा जी उसकी बातें सुनकर भावुक हो गयीं। उन्होंने हामी भरते हुए उसको अपने सीने से लगाकर कहा, "हाँ मेरे बच्चे आप हमारी बेटी ही नही, हमारा बेटा भी है। हमारे जीने की वजह है आप। हम वादा करते है कि हम आपसे कभी कुछ नही छुपाएंगे, पर उसके बदले आपको भी वादा करना होगा कि हमसे जुड़े रिश्ते को निभाने के लिए तुम इन नई रिश्तों को नज़रंदाज़ नही करोगी।"
वो बोलीं, "बेटा जो रिश्ते आज आपसे जुड़े है आपको उन्हें अपने प्यार और समर्पण भाव से इतना मजबूत करना है जितना मजबूत आपका हमसे रिश्ता है। अभी आपको उन रिश्तों पर ज्यादा ध्यान और वक़्त देने कि ज़रूरत है। अभी आपके लिए सब नया होगा तो आपको धैर्य से काम लेना होगा, सबको समझने की कोशिश करनी होगी। हमें शिकायत सुनने का मौका मत दीजियेगा बेटा कि हमारी बेटी को रिश्ते निभाने नही आते, उनका मान करना नही आता।"
To be continued....
आकृति अपनी आँखे बन्द किये बैठी थी। अनु ने उसके नाक पर लगे सिंदूर के कण को साफ किया। आशीर्वाद लेने की बारी आई, तो आकृति ने अंगद का हाथ पकड़कर पंडित के चरण स्पर्श कराए।
जहाँ आकृति की इस हरकत से अंगद हैरान था, वही बाकी सब उसकी समझदारी देखकर खुश थे। आकृति ने शादी मे अंगद का साथ देने का वादा किया था, जिसे वो शादी से पहले से ही निभा रही थी।
नील और अनु दोनों को ममता जी के पास लेकर गए। आकृति ने फिर से अंगद का हाथ पकड़वाकर खुद उनके पैर छुए। ममता जी ने आकृति को गले लगाया और कहा कि उन्हें विश्वास है कि उसने उनके बेटे के लिए सही चुनाव किया है।
अब दोनों को सुनंदा जी के पास लेकर जाया गया, आकृति ने नम आँखों से उन्हें देखा और झुककर अंगद का हाथ पकड़कर उनके पैर छु लिये।
सुनंदा जी ने आकृति को समझाया कि अब उसकी एक नई ज़िंदगी शुरू होने जा रही है और उसे अपने नए रिश्तों को समर्पित करना है।
ममता जी ने सुनंदा जी से आकृति के साथ उनके घर में रहने का आग्रह किया, लेकिन सुनंदा जी ने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। अनु और नील ने भी सुनंदा जी को समझाने की कोशिश की, लेकिन वो अपनी बात पर अड़ी रहीं।
अंत में, आकृति ने अपनी माँ से कहा कि वह उनके फैसले का सम्मान करती है और उन्हें अपने आत्मसम्मान को ताक पर रखकर उसके साथ रहने की ज़रूरत नहीं है। उसने अपनी माँ से वादा किया कि वह हमेशा उनके लिए मौजूद रहेगी और उन्हें कभी पराया नहीं करेगी। सुनंदा जी ने आकृति को गले लगाया और कहा कि वह हमेशा उनकी बेटी रहेगी।
Now Next
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"अभी आपको उन रिश्तों पर ज्यादा ध्यान और वक़्त देने कि ज़रूरत है। अभी आपके लिए सब नया होगा तो आपको धैर्य से काम लेना होगा, सबको समझने की कोशिश करनी होगी। हमें शिकायत सुनने का मौका मत दीजियेगा बेटा कि हमारी बेटी को रिश्ते निभाने नही आते, उनका मान करना नही आता।"
"मैं ऐसा कभी नही होने दूँगी मां। मैं आपके और पापा के दिये संस्कारों पर कभी एक उंगली भी नही उठने दूँगी।" आकृति उनके गले लगे सिसक पड़ी। सब खामोशी से उन्हें देख रहे थे।
कुछ देर बाद सुनंदा जी ने आकृति को खुदसे अलग किया फिर ममता जी को देखकर बोलीं, "माफ कीजिये पर हम आपकी बात नही मान सकते। हमारा ज़मीर हमें इसकी इज़ाज़त नही देता। हमें यहाँ से जाना ही होगा। आप सब हमारी चिंता मत कीजिये, बस हमारे जाने के बाद कृति को संभाल लीजियेगा। कभी हमसे दूर रही नही है वो, बहुत नाज़ुक दिल है उनका। हमने अपनी बेटी आपको सौंप दी है, हो सके तो उन्हें कभी हमारी काम महसूस मत होने दीजियेगा।"
ममता जी ने आगे आकर उन्हें गले लगाते हुए कहा, "आकृति अबसे हमारी ज़िम्मेदारी है। हम उन्हें मां का प्यार देंगे, उनकी हर खुशी का ध्यान रखेंगे। आपने हमपर विश्वास करके अपनी बेटी हमें सौंपी है और हम आपके विश्वास को कभी ठेस नही पहुँचने देंगे।"
उनकी बात से सुनंदा जी आश्वस्त हो गयी कि उनकी बेटी यहाँ खुश रहेंगी। उन्होंने फिरसे जाने की इज़ाज़त मांगी तो ममता जी ने इंकार करते हुए कहा, "यहाँ रुक नही सकती आप पर कम से कम अपनी बेटी की शादी के बाद वाली रस्में तो देख सकती है? अभी यही रुक जाइये शामको चली जाइयेगा।"
उनकी बात सुनकर सुनंदा जी ने इंकार करते हुए कहा, "नही समधन जी। हम यहाँ शादी के लिए आए थे। शादी निर्विघ्न संपन्न हो गयी। अब हमारा हमारी बेटी से विदा लेने का वक़्त आ गया है। आप अपने बहु बेटे का स्वागत और बाकी रस्में धूमधाम से कीजिये और हमें इज़ाज़त दीजिये।"
सुनंदा जी के आगे आखिर ममता जी को ही झुकना पड़ा। एक बार फिर आकृति और अंगद ने उनके पैर छुए। अनु और नील ने भी आदर सहित सर झुकाकर उन्हें नमस्ते किया। सुनंदा जी को गले लगाकर ममता जी ने उनसे विदा किया। जाने से पहले उन्होंने आकृति को अपने सीने से लगा लिया।
आकृति उनके सीने से लगी फफक कर रो पड़ी। उनकी आँखे भी छलक आई, इतना आसान नही था अपने कलेजे के टुकड़े को खुदसे जुदा करना। उसको रोते बिलखते देख उनका सीना दर्द से फटने लगा था, पर उन्होंने अपने दिल पर पत्थर रखकर अपने सीने से लगे बिलखती कृति को खुदसे दूर कर दिया।
नील सुनंदा जी को बाहर तक छोड़ने गया और उन्हें गाड़ी मे बिठाकर वहाँ से रवाना कर दिया। कृति आँसुओं से भीगी आँखों से अपनी माँ को खुदसे दूर जाते देखती रही। आँखों से आँसू बह रहे थे। रोना अब सिसकियों मे बदल चुका था, ममता जी ने उसको यूँ बिखरते देखा तो उसे अपने सीने से लगा लिया। ममतव्य का एहसास था उनके स्पर्श मे जिसे पाकर कृति उनसे लिपटकर बच्चों के तरह रो पड़ी।
अनु जी आँखों मे भी नमी तैर गयी थी। नील जो अभी अभी सुनंदा जी को छोड़कर आया था, आकृति को यूँ रोता देख वो भी भावुक हो गया था। पर अंगद अब पत्थर के तरफ भावहीन सा वहाँ मौजूद था।
वो दिखा नही रहा था, पर आकृति के आँखों से बहते आँसू, उसकी सिसकियों की आवाज़ कही न कही उसे भी बेचैन कर रही थी। अब ऐसा क्यों था ये वो भी नही जानता और इस बिन बुलाए एहसासों के वजह से उसको चिढ़ महसूस होने लगी थी। अपनी भावनाओं को समझ ना पाने के वजह से उसको खींझ महसूस होने लगी थी।
उसने ममता जी से लिपटकर रोती आकृति को देखा और खींझते हुए बोला, "जब दूर होने से इतनी ही तकलीफ हो ररही है तो शादी की ही क्यों थी? किसी ने सर पर बंदूक रखकर तो शादी के लिए मजबूर नही किया था। प............."
अंगद की बात सुनकर सभी हैरानी से उसे देखने लगे थे। आकृति भी उसकी बेरुखी भरी बातें सुनकर अचंभित सी उसको देख रही थी।
अंगद आगे कुछ कह पाता उससे पहले ही ममता जी जो उसकी बात सुनकर अब तक हैरानी से उसे देख रही थी, उन्होंने उसकी आगे की बात को समझते हुए उसकी बात काटते हुए गुस्से मे कहा, "अंगद............"
उनके गुस्से से पुकारने पर अंगद खामोश हो गया और धीरे से बुदबूदाया, "आपके गुस्सा करने या चिल्लाने से सच बदल नही जाएगा। मुझ जैसे लड़के से शादी करने की पैसों के अलावा और कोई वजह हो ही नही सकती। ये रोना धोना सब नाटक है ताकि आपको अपने जाल मे फंसा सके पर इन सबका अंगद राणा पर कोई असर नही होगा।"
वो अपने ही सोच मे गुम था तभी ममता जी की आवाज़ ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचा, "अंगद आज आपने जो बोल लिया सो बोल लिया पर ध्यान रहे आगे हम आकृति के प्रति आपकी कोई बतदमिज़ी बर्दाश नही करेंगे। वो अब इस घर की बहु और आपकी पत्नी है। उनकी इज़्ज़त आपकी इज़्ज़त से जुड़ी है, अगर आपने उनके मान सम्मान को ठेस पहुँचाने की कोशिश भी की तो हम भूल जाएंगे कि आप हमारे अपने बेटे है।"
उनकी बात सुनकर अंगद ने अविश्वास भरी निगाहों से उन्हें देखते हुए सवाल किया, "आप दो दिन पहले आई इस मामूली सी लड़की के लिए अपने बेटे को धमकी दे रही है?"
"धमकी नही दे रहे। आपको आगाह कर रहे है कि आकृति अब इस घर की बहु और आपकी पत्नी है तो आगे से उनसे कुछ भी कहने से पहले इस बात का ध्यान रखे। आकृति को हमने अपनी ज़िम्मेदारी पर इस रिश्ते मे बांधा है इसलिए उनके सम्मान की रक्षा करने के लिए अगर हमें अपने बेटे के खिलाफ भी जाना पड़े तो हम पीछे नही हटेंगे।"
उन्होंने अपना फैसला उसे सुना दिया, जिसे सुनकर अंगद ने नफरत भरी निगाहों से आकृति को एक नजर देखा और फिर उसपर से निगाहें फेर ली। आकृति तो स्तब्ध सी खड़ी सब देख सुन रही थी।
अंगद के बर्ताव और ममता जी की बातों से उसको ये भलीभाँति समझ आ चुका था कि शादी अंगद की मर्ज़ी के खिलाफ हुई है और अब उसको अपने पति के विश्वास और प्यार को पाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़नी है जो बिल्कुल भी आसान नही होने वाली, क्योंकि किसी के दिल मे जगह बनाना फिर भी आसान है पर किसी के मन से अपने लिए बदगुमानी को निकालकर उसको खुदपर विश्वास करवाना बेहद मुश्किल काम है।
ये नया रिश्ता एक नई चुनौती बनकर आया है उसकी ज़िंदगी मे जिसका सामना करने और उससे जीतने के अलावा और कोई रास्ता नही है उसके पास। किस्मत एक बार फिर उसकी परीक्षा लेने की तैयारी कर चुकी है। सुकून के पल शायद उसे अभी नसीब नही होंगे। ये सब सोचते हुए उसकी आँखों मे नमी तैर गयी तो उसने अपनी पलकें झुका ली।
ममता जी के कहने पर अनु और नील दोनों को घर के चौखट के बाहर लेकर चले गए। अनु और नील वापिस अंदर चली आई। कुछ देर बाद वो दोनों ममता जी के साथ वहाँ आए।
ममता जी ने दोनों की नजर उतारकर उनकी आरती उतारी, तिलक लगाकर उनका स्वागत किया। अनु ने चावल से भरा कलश आकृति के पैर के आगे रख दिया और नील ने उसके ठीक सामने आलते की थाल रख दी। दोनों ने मिलकर एक सफेद कपड़ा थाल के आगे बिछा दिया।
ममता जी ने बड़े प्यार से आकृति को दाएं पैर से कलश गिराकर अपना पहला कदम इस घर मे रखने को कहा तो आकृति ने वैसा ही किया। कलश को अपने दाएं पैर से हल्का सा धक्का देकर अंदर के तरफ गिराकर उसने अपने नए घर मे गृह प्रवेश किया। उसके बाद कुमकुम की थाल मे अपने पैर डालकर उस सफेद कपड़े पर अपने कदमों की छाप छोड़ते हुए आगे बढ़ गयी। बेमन से ही सही पर अंगद ने भी उसके साथ गृह प्रवेश किया।
अंदर आने के बाद ममता की दोनों को लेकर दूसरे तरफ चली आई, जहाँ सुंदर सा मंदिर था। फूलों से सजा और वहाँ लगी लाइटों से झिलमिलाता वो मंदिर बहुत सुंदर लग रहा था। अंदर महादेव की बड़ी सी मूर्ति रखी हुई थी। दोनों ने आकर उनका आशीर्वाद लिया, उसके बाद वही पास मे लगी एक तस्वीर के आगे आकर सभी रुक गए।
ये अभिजित जी की जवानी की तस्वीर थी, जब वो अंगद की उम्र के थे और दोनों बाप बेटों की शकल काफी हद तक मिलती थी। ममता जी ने आकृति को उनके बारे मे बताया और अपने आने वाले जीवन के सुखमय होने के लिए अपने ससुर से आशीर्वाद लेने को कहा ताकि उनके रिश्ते पर उनका आशीर्वाद भी बना रहे।
आकृति ने उनके आगे रखे दिये को जला दिया फिर अपने हाथ उनके आगे जोड़ते हुए आँखे बन्द कर ली। पहले तो ममता जी हैरान हुई फिर मुस्कुरा दी। आकृति को ये सब आता था क्योंकि अपने घर पर वही रोज़ सुबह शाम अपने पापा और भाई की तस्वीर के आगे दिया प्रजवलित करती थी।
दोनों ने उनका आशीर्वाद लिया फिर उन्हें हॉल मे लाया गया। शादी के बाद की रस्में शुरु हुई जिसमे अंगद की मर्ज़ी न होते हुए भी हिस्सा लेना पड़ा। इन्ही सब मे दोपहर से उपर का वक़्त हो गया। शादी की तैयारियों और फिर सुबह से काम के वजह से सभी थक चुके थे। उन्होंने अभी तक कुछ खाया भी नही था तो सब रस्म होने के बाद ममता जी ने अनु को आकृति को अपने रूम मे लेकर जाने को कह दिया। नील भी अंगद को लेकर उसके कमरे मे चला गया और ममता जी किचन के तरफ बढ़ गयी।
कुछ देर बाद दोनों कमरों मे सवेंट खाना लेकर चले गए। आकृति खामोश सी बेड पर बैठी हुई थी। उपर से वो जितना खामोश और शांत लग रही थी, उसके मन मे उतना ही भयंकर तूफान उठ रहा था, कुछ देर पहले अंगद की कही बातें उसके कानों मे गूंज रही थी और आँखों के सामने शादी का एक एक पल और अंगद के भाव घूम रहे थे।
वो जानती थी कि इस बेमेल के रिश्ते को निभाना आसान नही होगा पर उसने सपने मे भी नही सोचा था कि इस शादी मे अंगद की मर्ज़ी शामिल नही होगी। उसने इस बात की कल्पना भी नही की थी कि इस शादी मे उसको, न पत्नी का हक मिलेगा और न ही वो इज़्ज़त मिलेगी जो उसको मिलनी चाहिए थी। उसको अपने हक के लिए अपने ही पति से लड़ना होगा। उसके दिल मे अपने लिए जगह बनानी होगी वो भी तब जब वो शायद उससे नफरत करता है और वो इस नफरत की वजह भी नही जानती थी।
To be continued....
कुछ देर बाद दोनों कमरों मे सवेंट खाना लेकर चले गए। आकृति खामोश सी बेड पर बैठी हुई थी। उपर से वो जितना खामोश और शांत लग रही थी, उसके मन मे उतना ही प्रबल तूफान मचा हुआ था, कुछ देर पहले अंगद की कही बातें उसके कानों मे गूंज रही थी।
और आँखों के सामने शादी का एक एक पल और अंगद के भाव घूम रहे थे, "वो जानती थी कि इस बेमेल के रिश्ते को निभाना आसान नही होगा पर उसने सपने मे भी नही सोचा था कि इस शादी मे अंगद की मर्ज़ी शामिल नही होगी। उसने इस बात की कल्पना भी नही की थी इस शादी मे उसको, न पत्नी का हक मिलेगा और न ही वो इज़्ज़त मिलेगी जो उसको मिलनी चाहिए थी। उसको अपने हक के लिए और किसी से नही बल्कि अपने ही पति से लड़ना होगा। उसके दिल मे अपने लिए जगह बनानी होगी, वो भी तब जब वो शायद उससे नफरत करता है और वो इस नफरत की वजह भी नही जानती थी।"
आकृति इन्ही सब ख्यालों मे खोई हुई थी जब अचानक ही उसको अपनी हथेली पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ और वो चौँक कर अपने ख्याल से बाहर आई। उसने घबराकर निगाहें उठाकर देखा तो सामने बैठी अनु उसको परेशान निगाहों से देख रही थी।
"भाभी आप ठीक है? मतलब आप काफी परेशान लग रही है मैं इतनी देर से आपको बुला रही हूँ पर आप जाने कहा गुम है।"
अनु का सवाल सुनकर आकृति ने अपने भाव नॉर्मल करते हुए धीमी आवाज़ मे कहा, "नही वो बस माँ के बारे मे सोच रही थी।"
आकृति ने बात का रुख मोड दिया। उसकी बात सुनकर अनु ने उसके सामने खाने की ट्रे रखते हुए कहा, "भाभी आंटी ठीक होंगी आप चिंता मत कीजिये। माँ ने खाना भेजा है, आपने सुबह से कुछ खाया नही है चलिए अब थोड़ा सा खा लीजिये।"
आकृति का मन नही था पर उसने कुछ कहा नही। अनु भी उसके साथ खाने बैठ गयी थी। आकृति ने बेमन से कुछ निवाले खाए फिर पेट भर गया कहकर साइड हो गयी। अनु ने भी उसको फोर्स करना ठीक नही समझा क्योंकि वो जानती थी कि आकृति सुनंदा जी से दूर होने के वजह से इस वक़्त उदास थी। आकृति बेड के क्राउन से सर टिकाकर बैठ गयी। अनु ने खाना खाया फिर सवेंट को बुलाकर ट्रे वापिस भेज दी और आकृति के पास आकर बैठ गयी।
दूसरे तरफ अंगद अपने रूम मे जाकर चेंज करने जाने लगा पर नील ने उसको रोक दिया। अंगद ने उसको घुरकर देखा तो नील उसके पास बैठ गया और शांति से उसको समझाते हुए बोला, "देख अंगद मैं जानता हूँ जो प्राची ने तेरे साथ किया उसके वजह से अब तुझे प्यार, शादी जैसे शब्दों से नफरत हो चुकी है पर यार दुनिया मे सारी लड़कियाँ प्राची जैसे मौकाफ़रस्त् नही होती है। सबके लिए पैसा और लूक्स ही सब नही होते है। सब सिर्फ सामने वाले के शरीर उसकी तागत से प्यार नही करती बल्कि दुनिया मे कुछ ऐसी लड़कियाँ भी मौजूद है जिनका दिल एक बच्चे के तरह साफ और पवित्र होता है।"
वो आगे बोली, "जो किसी की खूबियों से नही उसकी कमियों से प्यार करती है। जो ये नही देखती की सामने वाले मे क्या कमी है वो ये देखती है कि उस कमी के बावजूद उस इंसान मे ऐसी कौन सी खूबी है जो उसे औरों से अलग बनाती है। और भाभी उन्ही मे से एक है। उन्होंने तेरी कमी देखकर तुझे ठुकराया नही है बल्कि तेरी इस कमी के साथ तुझे अपनाया है। तू बेवजह प्राची के किये गुनाह की सज़ा उन्हें दे रहा है। वो उसके जैसी बिल्कुल नही है।"
उन्होंने कहा, "उसकी सच्चाई उनकी आँखों मे नजर आती है। बहुत ही साफ दिल है उनका जिसमे सबसे लिए प्यार, मोहब्बत और सम्मान है अगर तूने अपने गुस्से मे उनके साथ गलत किया तो आगे जाकर बहुत पछताएगा वो। तू भले ही शादी नही करना चाहता था पर अब तेरी शादी हो चुकी है उनसे, वो पत्नी है तेरी और अब उनका हक है तुझपर। और कुछ नही दे सकता उन्हें तो कम से कम उन्हें वो इज़्ज़त दे दे जस्पर् उनका हक है।"
वो बोल रही थी, "तू बिना उन्हें जाने और समझे उनके बारे मे गलत धारणा बना रहा है जो सरासर गलत है। उन्हें बेवजह अपने गुस्से और नाराज़गी का शिकार बना रहा है जबकि उनकी तो कही कोई गलती है ही नही। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि तु जैसा उन्हें समझ रहा है वो वैसी नही है। भाभी वो लड़की है जो हर सिचुएशन मे बिना अपना फ़ायदा और नुकसान की परवाह किये तेरी हिम्मत बनकर हर कदम पर तेरा साथ देंगी।"
उन्होंने आगे कहा, "उनसे बेहतर हमसफर तुझे कोई दूसरा नही मिलेगा। बहुत मानता है न तु महादेव को तो सोच न उन्होंने क्यों प्राची से तेरा रिश्ता तोड़कर तेरा नाम भाभी के साथ जोड़ दिया? अगर भाभी तेरे लिए सही नही होती तो महादेव कभी तेरा रिश्ता उनसे नही जोड़ते, और किसी पर नही तो महादेव पर विश्वास करके भाभी को एक मौका दे। उन्हें समझने की कोशिश की,जान उन्हें और उन्हें भी मौका दे तेरे दिल तक पहुँचने का। ये हक है उनका अपनी तकलीफ मे खोकर उन्हें वो दर्द मत दे जो आगे चलकर तुझे उनसे कही गुना ज्यादा तकलीफ दे।"
वो बोले ही जा रही थी, "क्योंकि आज नही तो कल भाभी तेरी सोच को गलत साबित कर ही देंगी, वो तेरे दिल मे वो जगह बनाएंगी जो कभी प्राची भी नही बना सकी और उस वक़्त तुझे खुदपर गुस्सा आएगा। आज तुझे अपनी गलती का भले एहसास न हो पर तब तुझे नफरत होगी खुदसे पर तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। Please एक मौका दे खुदको इस रिश्ते को और भाभी के लिए, शायद महादेव ने कुछ अच्छा ही सोचा ही तेरे लिए। तो उनपर विश्वास करके भाभी को एक मौका दे खुदको साबित करने का।"
उसकी बात अंगद ने खामोशी से सुनी और उसके चुप होते ही उसने गंभीरता से कहा, "मतलब मैं जो उस लड़की के बारे मे सोच रहा हूँ वो गलत है, तो ठीक है हूँ। मैं गलत, सबको गलत समझता हूँ क्योंकि मैं खुद गंदा हूँ। पर तुम तो बहुत अच्छे हो न? तो बताओ मुझे कि अगर वो पैसों के लालच मे इस शादी के लिए तैयार नही हुई है तो और ऐसी कौनसी वजह है जिसने उसको एक ऐसे लड़के से शादी करने पर मजबूर कर दिया जो अपने पैरों पर तक नही हो सकता। जिसको खुद अपने काम के लिए दूसरों के सहारे की ज़रूरत पड़ती है जो दूसरों पर हर चीज़ के लिए निर्भर। उसे ही क्यों उसने अपने पति के रूप मे चुना जबकि मैं न तो उसकी सुरक्षा कर सकता हूँ और न ही उसको एक पति होने का सुख दे सकता हूँ। मैं आम पति के तरह उसके लिए कुछ नही कर सकता फिर उसने मुझे ही क्यों चुना?"
उसका सवाल सुनकर नील ने भी गंभीरता से जवाब दिया, "तेरे इस सवाल का जवाब भाभी बेहतर तरीके से दे सकती है और इस सवाल का जवाब लेने के लिए तुझे उनके दिल मे इतनी जगह बनानी होगी कि वो बेझिझक अपने दिल की बात तुझे बता सके। मैं नही जानता कि भाभी ने ये फैसला क्यों लिया? पर मैं इतना ज़रूर जानता हूँ कि तू आकाश मे चमकता वो चाँद है। जिसे देख तो सब सबके पर उसपर हक सिर्फ उसकी चाँदनी का है। देखने वाले लोग उस चाँद मे भी दाग ढूंढ लेते है वही कुछ लोग ऐसे भी होते है जो चाँद मे अपना सुकून ढूंढ लेते है क्योंकि वो जानते है कि कमियां सबमे होती है और हमें उन कमियों को पकड़कर किसी को जज नही करना चाहिए।"
नील ने आगे कहा, "फिर तेरी कमी तो दूर हो सकती है फिर तू अपने लिए इतना नैगेटिव क्यों सोचता है? तुझमे कोई कमी नही है यार, जैसे तू लकी है की भाभी जैसी हमसफर तुझे मिली है। वैसे ही भाभी भी लकी है जो उन्हें जीवनसाथी के रूप मे तु मिला है। मुझे नही लगता की भाभी ने तुझसे शादी तेरे पैसों के लिए की होगी क्योंकि अगर ऐसा होता तो वो खुद अपनी माँ को यहाँ से जाने को नही कहती। शादी की शॉपिंग मे भी उन्होंने कुछ पसन्द नही किया था क्योंकि वो उन महंगी चीजों के साथ कम्फरटेबल नही थी।"
नील सब बता रहा था, "उनके लिए कपड़े लोकल मार्केट से लिए गए है, अगर वो पैसों के लिए ही सब कर रही होती तो ये मौका अपने हाथ से जाने नही देती, जमके तेरे पैसे उड़ाती पर उन्होंने ऐसा नही किया। अब तू कहेगा कि उन्होंने जानबूझ कर ये किया होगा ताकि हमें अपने जाल मे फंसाकर अपनी मासूमियत पर विश्वास करवा सके तो मेरे यार इंसान की पहचान है मुझे और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की भाभी बिल्कुल वैसी नही है जैसा तु उन्हें समझने की भूल कर रहा है।"
नील पूरी रह इमर्स था और उसे बता रहा था, "वो और लोगों के तरह दो चेहरे लेकर नही घूमती। उनके दिल मे क्या है ये उनके चेहरे पर झलकता है बस एक बार अपनी आँखों पर लगाई नफरत और गहतफहमी कि पट्टी को हटाकर उन्हें देख, तू खुद समझ जाएगा कि भाभी क्या है? भाभी किसी मतलब के लिए तेरे साथ नही है, अगर तेरे पास ये पैसे ना भी रहे, महादेव ना करे अगर सारी उम्र भी तू अपने पैरो पर खड़ा नही हो पाता, उन्हें प्यार नही भी देता तब भी वो खाओशि से सारी उम्र तेरा साथ निभाएंगी वो भी बदले मे बिना किसी चीज़ के उम्मीद के। अगर अब भी तुझे लगता है कि भाभी ने तुझसे रिश्ता तेरे पैसों के लिए जोडा है तो परख ले उन्हें, देखना वो तेरी सोच को गलत सावित कर देंगी।"
नील अब खामोश हो गया। इतने मे रूम का डोर नॉक हुआ। सामने सवेंट हाथ मे खाने कि ट्रे लिए खड़ा था। नील खाना लेकर नील के पास चला आया। दोनों के बीच अब कोई बात नही हुई। उन्होंने खामोशी से डिनर किया फिर नील ने अंगद को आराम करने के लिए बदल वाले रूम मे छोड़ दिया। अंगद सब जानते हुए भी खामोश रहा।
शाम से रात हो चुकी थी, थकान और चिंता के वजह से आकृति की आँख लग गयी थी। उसके सोनी के कुछ देर बाद ही अनु वहाँ से गायब हो गयी थी। आकृति अब भी सो रही थी। ममता जी ने रूम मे कदम रखा तो आकृति को बैठे बैठे सोते देख मुस्कुरा उठी।
वो उसके पास आकर बैठ गयी और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा तो उनके ममतामयी स्पर्श को महसूस करते हुए आकृति उनके सीने से किसी छोटे बच्चे की तरह लिपट गयी, अगले ही पल उसके अंकोंसियास दिमाग मे उसकी शादी फिर सुनंदा जी के जाने का।
उसके इस रूम मे आने का सीन घूम गया और उसने झटके से आँखे खोली फिर सामने ममता जी को देख धीमी आवाज़ बोली घबराकर बोली, "सॉरी आंटी वो मैंने ध्यान नही दिया गलती से आँख लग गयी।"
उसकी बात सुनकर ममता जी के भाव बदल गए उन्होंने हल्के से उसके गाल पर थप्पड़ मारते हुए नाराज़गी से कहा, "अभी आप हमसे पिटाई खाएंगी। माँ है हम आपकी और आप हमें आंटी कह रही है।"
आकृति को एहसास हुआ कि उसने हड़बड़ाहट मे क्या कह दिया तो उसने अपना सर झुकाते हुए कहा, "सॉरी माँ वो बेख्याली मे निकल गया।"
आकृति ने अपना सर झुका लिया था। उसका उदास मुरझाया चेहरा देखकर ममता जी प्यार से उसके गाल को छूकर कहा, "बेटा हमने आपको बहु नहीं अपनी बेटी माना है और हम पूरी कोशिश करेंगे कि आपकी मां बन सकें। हम जानते है नई जगह, नए लोग आपको असहज महसूस हो रहा होगा पर बेटा अबसे ये भी आपका अपना ही परिवार है।"
उन्होंने आगे कहा, "आपको किसी बात के लिए परेशान होने की ज़रूरत नही है यहाँ कोई आपको कुछ नही कहेगा,जैसे आप अपने घर मे रहती थी वैसे ही यहाँ रहिये। जैसे हम अंगद और अनु की माँ के वैसे ही अबसे आप भी हमारी बेटी है और हमें बेहद खुशी होगी अगर आप भी से घर को और इस परिवार को खुले दिल से अपना ले। इस घर को अपना ससुराल और हमें अपनी सास न समझकर, माँ समझे हमें अपनी और इस घर को अपना घर।"
"जी माँ" आकृति ने सर झुकाए हुए ही छोटा सा जवाब दिया। ममता जी कुछ देर खामोश रही फिर उन्होंने आकृति की हथेली को अपनी हथेलियों मे थामते हुए कहा "बेटा हम आपसे एक बहुत ज़रूरी बात करने आए थे।"
वो इतना कहकर चुप हो गयी। आकृति ने निगाहें उठाकर उन्हें देखा तो वो कुछ परेशान लग रही थी। उनके माथे पर चिंता की लकीरें देखकर आकृति ने उनकी हथेली को कसते थामते हुए कहा, "माँ आपको जो भी कहना है बेझिझक कहिये मैं सुन रही हूँ। आपने मुझे अपनी बेटी कहा फिर बेटी से कुछ बात करने के लिए मा को कबसे इतने सोचने की ज़रूरत पड़ने लगी?"
जारी है
"जी माँ" आकृति ने सर झुकाए हुए ही छोटा सा जवाब दिया। ममता जी कुछ देर खामोश रही फिर उन्होंने आकृति की हथेली को अपनी हथेलियों मे थामते हुए कहा, "बेटा हम आपसे एक बहुत ज़रूरी बात करने आए थे।"
वो इतना कहकर चुप हो गयी। आकृति ने निगाहें उठाकर उन्हें देखा तो वो कुछ परेशान लग रही थी। उनके माथे पर चिंता की लकीरें देखकर आकृति ने उनकी हथेली को कसते थामते हुए कहा, "माँ आपको जो भी कहना है बेझिझक कहिये मैं सुन रही हूँ। आपने मुझे अपनी बेटी कहा फिर बेटी से कुछ बात करने के लिए मा को कबसे इतने सोचने की ज़रूरत पड़ने लगी?"
उसकी बात सुनकर उनकी चिंता कुछ कम हुई और उन्होंने बोलना शुरू किया, "बेटा हम यहा आपसे अंगद के बारे मे, उनके व्यवहार के लिए आपसे माफी मांगने आए है।"
अंगद का ज़िक्र होते ही आकृति कुछ परेशान हो गयी। ममता जी ने आगे कहना जारी किया, "बेटा हम जानते है उन्होंने नीचे जिस तरह से आपसे बात की उससे आपको गहरा आघात पहुँचा होगा। उनके तरफ से हम आपसे माफी मांगते है।"
ममता जी ने उसके आगे जैसे ही हाथ जोड़ने चाहे आकृति ने तुरंत उनके हाथ को नीचे करते हुए कहा, "नही मां आप मुझसे बड़ी है। आपको मुझसे माफी मांगने की ज़रूरत नही है। मुझे उनकी बात का बिल्कुल बुरा नही लगा, आप माफ़ी मांगकर मुझे शर्मिंदा मत कीजिये।"
ममता जी ने उससे अपना हाथ छुड़ाते हुए आगे कहा, "नही बेटा हमारे बेटे ने जिस तरह से आपसे बात कि वो गलत था और उनकी गलती की माफी उनकी माँ होने के नाते हमें ही मांगनी होगी क्योंकि अभी उन्हें एहसास नही है कि उन्होंने क्या गलत किया है। आप उनकी पत्नी है उन्हें कोई हक नही आपसे ऐसे बात करने का पर इस वक़्त उनके लिए ये रिश्ता एक समझौते से ज्यादा कुछ भी नही है और ये समझौता उन्होंने हमारी खुशी के लिए किया है।"
वो बोली, "इस वक़्त हम आपको ज्यादा कुछ तो नही बता सकते पर इतना ज़रूर कहना चाहेंगे कि अंगद बिल्कुल अपने नाम के मतलब को सार्थक करते है पर वो बाहर से जितने सख्त है अंदर से उससे कही गुना ज्यादा कोमल है। रिश्तों कि उनकी नज़रों मे बहुत एहमियत है। वो खुदको जैसा दिखा रहे है असल मे वैसे नही है, वक़्त और हालात ने उन्हें वैसा बना दिया है और जब आप उनके साथ रहेंगी की धीरे धीरे उन्हें समझने लगी फिर आपको खुद एहसास होगा कि अंगद से बेहतर इंसान और जीवनसाथी शायद ही कोई हो।"
उनका समझाना जारी था, "वो जब रिश्ते को दिल मे जगह देते है तो उनके लिए खुशी खुशी अपनी जान भी न्यौछावर कर देते है। अभी वो इस रिश्ते को नही मानते, शादी और प्यार जैसे रिश्ते पर से उनके विश्वास को बड़ी ही बेदर्दी से तोड़ा गया है और हमें पूरा विश्वास है की आप उन्हें फिरसे शादी पर विश्वास करना सिखा देंगी। आप बस जैसी है वैसी ही रहिये उनके साथ फिर देखियेगा कैसे वो फिरसे मोहोब्बत करने पर विवश होते है।"
आकृति ने माँ को समझाते हुए देखा, वो सुन रही थी। माँ बोली, "आप दोनों को अभी एक दूसरे को समझने और धैर्य से काम लेने की ज़रूरत है। वो आपको समझेंगे, आप उन्हें समझेंगी तो ये रिश्ता मजबूत होगा और आपसी समझ से आप इसे सरलता से निभा पाएंगी। हम जानते है आप अब कभी अंगद का साथ नही छोड़ेंगी फिर भी हम आपसे कहना चाहते है कि अंगद कितना ही कहे पर उनसे दूर मत जाइयेगा, इस रिश्ते को दिल से निभाइये, धीरे धीरे वो भी बंध जाएंगे इस बंधन मे आपके साथ। बस आपको पूरी निष्ठा से इस रिश्ते को निभाना है और धैर्य से काम लेना है। हम आपके हर कदम पर आपके साथ रहेंगे पर अपने पति के दिल मे जगह बनाने के लिए कोशिश आपको करनी होगी, आप समझ रही है न हम क्या कहना चाह रहे है?"
आकृति जो बड़े ध्यान से उनकी कही हर बात को सुन रही थी उसने उनके सवाल पर हा मे सर हिलाते हुए कहा, "जी माँ, मैं आपकी बात समझ रही हूँ और आप चिंता मत कीजिये, मेरे जीतेजी मैं इस रिश्ते को कभी टूटने नही दूँगी। मुझे नही पता कि क्यों वो मुझसे खफ़ा है जबकि हम तो आजसे पहले मिले भी नही पर मैं आपसे वादा करती हूँ कि मैं उनकी नाराज़गी को दूर कर दूँगी, वो भी दिल से इस रिश्ते को अपनाएंगे, मैं पूरी कोशिश करूँगी उनके मन मे अपने और इस रिश्ते के लिए जगह बनाने की। आपने जिस विश्वास से मुझे उनकी ज़िंदगी मे शामिल किया है मैं उसे कभी टूटने नही दूँगी और अपनी आखिरी सांस तक जीवन के हर उतार चढ़ाव मे उनकी हिम्मत बनकर उनके साथ खड़ी रहूँगी।"
आकृति की बात से ममता जी पूरी तरह से संतुष्ट और अंगद को लेकर निश्चिंत हो गयी। उन्होंने प्यार से उसके माथे को चूमते हुए कहा, "जीती रहो मेरी बच्ची। महादेव देव आपको लंबी आयु दे और ये कुमकुम सदैव यूँही आपकी मांग की शुभा बढ़ाती रही।"
उन्होंने उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसको आशीर्वाद दिया फिर आराम करने का कहकर वहा से चली गयी। उनके जाते ही अनु वहाँ आ गयी और उसके मेकअप ड्रेस वगैरह को ठीक करने लगी।
दूसरी तरफ यहाँ से निकलने के बाद ममता जी उस रूम मे गयी जहाँ इस वक़्त अंगद बेड पर आँखे बन्द किये बैठा था। रूम के दरवाजे के खुलने की आवाज़ सुनकर अंगद ने अपनी आँखे खोली तो सामने ममता जी का नाराज़गी भरा चेहरा आ गया।
अंगद ने कुछ नही कहा बस निगाहें फेर ली। ममता जी उसके पास आकर बैठ गयी और उसके चेहरे को देखते हुए बोली, "हम जानते है आप अभी हमसे नाराज़ है क्योंकि हमने आपको ये शादी करने के लिए मजबूर किया पर आपने हमारे पास कोई और रास्ता छोड़ा भी तो नही था। हम पिछले छः महीने से आपको एक घुट घुटकर जीते देख रहे है। खुद सोचिये आप हम मां है आपकी, अपने बेटे को यूँ पल पल जिंदगी से हार मानते हम कैसे देख सकते थे?"
ममता जी बोली, "हमने भी कभी नही सोचा था कि आपको यूँ शादी के लिए मजबूर करेंगे पर आप सीधे से हमारी बात मानने को तैयार ही नही थे। एक प्राची ने आपका दिल क्या तोड़ा आपने दुनिया की हर लड़की को मौकाफरस्त् और धोखेबाज समझ लिया। अपने दिल के दरवाजे हमेशा के लिए बन्द कर दिये ताकि दोबारा कोई वहा अपनी जगह ना बना सके पर बेटा अगर तालाब की एक मछली गंदी है इसका मतलब ये तो नही की हम हर मछली को घिन भरी निगाहों से देखे।"
वो अंगद को समझा रही थी, "आपने बिना आकृति को जाने, उन्हें समझे पहले ही अपने मन मे धारणा बना ली है कि उन्हें बस आपके पैसों से मतलब है पर बेटा आकृति ऐसी नही है। हमने बहुत सोच समझने और उन्हें अच्छे से परखने के बाद उन्हें आपके लिए चुना है। हम माँ है आपकी, किसी भी गलत लड़की को आपकी ज़िंदगी मे लाकर हम अपने बेटे की ज़िंदगी बर्बाद नही करना चाहेंगे। आकृति मे हमें वो हर गुण नजर आए है जो एक लड़की मे होने चाहिए तब जाकर वो किसी भी रिश्ते को निभा पाती है।"
व्वो बोली, "पहली नजर मे हमें आपके लिए पसन्द आ गयी थी पर हमने उनकी परीक्षा ली ये देखने के लिए कि वो सही मायनों मे आपकी हमसफर बनने के काबिल है या नही और उन्होंने हर कदम पर ये साबित किया है कि अगर दुनिया मे कोई है जो आपके लिए बनी है तो वो वही है।"
अंगद ने उन्हें देखा और उनकी बात सुनी, "आप दोनों एक दूसरे के पूरक है और आगे चलकर आप दोनों एक दूसरे को संपूर्ण करेंगे। हम ये नही कहते कि उनमे कोई कमी नही होगी कही हर इंसान मे होती है उनमे भी होगी पर जैसे उन्होंने आपकी कमी को नही आपकी खूबियों को देखा है वैसे ही आपको भी उनकी खूबियों को देखने की कोशिश करनी है।"
वो जारी रखती है, "बेटा भले ही इस शादी मे आपकी मर्ज़ी नही थी पर अब आपका नाता जुड़ चुका है उनसे, वो अर्धांगिनी है आपकी मतलब समझते है इसका? आजसे वो आपका अभिन्न अंग है, उनके बिना अब आप अधूरे है बिल्कुल वैसे जैसे माता पार्वती के बिना महादेव अधूरे थे। अबसे वो आपकी सुख दुख की बराबर ही हिस्सेदार है आपके प्रेम पर, आपके जीवन पर उनका हक है। हम जानते है एक पल मे किसी को अपने दिल मे जगह देना आसान नही है वो भी तब जब आपके दिल मे आज भी प्राची बसी है पर बेटा वो आपका गुजरा हुआ कल थी और आकृति आपका आज और आने वाला कल है।"
ममता जी बोली, "वो आपकी पत्नी है तो भले अभी आप उन्हें वो प्यार न दे सके पर कम से कम उन्हें वो सम्मान तो दीजिये जिसकी हकदार है वो। एक बार अपनी माँ पर विश्वास करके अपने दिमाग मे बनाई उन धारणाओं को भुलाकर उन्हें खुले दिल से अपनाने की, उन्हें समझने की कोशिश कीजिये। वो बच्ची इतनी प्यारी है कि आप कब उनसे प्रेम करने लगेंगे, कब वो आपके दिल पर अपना एकाधिकार कर लेंगी आपको एहसास भी नही होगा।"
"बेटा जब कोई इंसान आसमान की बुलंदियों पर होता है न तो बहुत से लोग उसके आस पास घूमते है पर जब वही शक्स ज़मीन की खाक छानता है न तो वो लोग जो कभी उससे प्यार का दावा किया करते थे उसके हितैषी बना करते थे, वो सबसे पहले उस इंसान से दूर चले जाते है और ये आपने खुद देखा है। उस वक़्त जब आप मुश्किल मे होते है आपका खुदपर से विश्वास उठने लगता है, ज़िंदगी से हार मानने लगते है तब जो शक्स आगे आकर हमपर विश्वास जताता है, हमें सहारा देकर फिरसे खड़े होने की, ज़िंदगी से लड़ने की और फिरसे आकाश की उन बुलंदियों को छूने का हौसला देता है वही इंसान हमारा सच्चा साथी होता है।"
"आप खुद जानते है कि इस वक़्त आप खुदसे और ज़िंदगी से हार चुके है, ऐसे वक़्त मे आकृति ने आकर आपका हाथ थामा है इसलिए अपने अतीत कि कड़वी यादों के वजह से उस मासूम का दिल ममत दुखाइयेगा। बहुत प्यारी बच्ची है, हमने उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी पर आपकी ज़िंदगी मे उन्हें शामिल किया है अगर आपने उनके साथ कुछ भी गलत किया तो आपकी माँ की इज़्ज़त पर बात आएगी। अगर उन्हें ज़रा भी तकलीफ हुई तो हम उसके ज़िम्मेदार माने जाएंगे इसलिए जो भी कीजियेगा सोच समझकर कीजियेगा। उम्मीद करते है आप अपने अतीत से सीख लेकर सही फैसला लेंगे, किसी और की करनी की सज़ा उस मासूम को नही देंगे जो अभी अभी आपकी ज़िन्दगी का हिस्सा बनी है।"
उन्होंने उसको बड़े प्यार से सब समझाया फिर उसके माथे को प्यार से चूमते हुए बोली, "आकृति के रूप मे आपका सुनहरा आपकी राह देख रहा है, अपने अतीत की काली यादों के वजह से इस प्रकाश को अनदेखा मत कीजियेगा क्योंकि अगर आपने अपनी बेवकूफी के वजह से आकृति को खो दिया तो आगे चलकर पछताने के अलावा और कुछ नही कर सकेंगे आप। एक बार गलत इंसान पर भरोसा करके, दिल टूटने के दर्द को महसूस कर चुके है आप। उम्मीद करते है कि इस बार सही इंसान को शक की नज़रों से देखकर उनके दिल को नही दुखाएंगे। सही वक़्त पर सही फैसला लेकर अपनी बिखरी ज़िंदगी को संवार लेंगे।"
इतना कह कर वो वहा से चली गयी। उनके जाने के कुछ देर बाद नील ने वहा कदम रखा और उसको वापिस उसकी चेयर पर बिठाते हुए बोला, "आजसे तेरी नई ज़िंदगी शुरू होने जा रही है जिसपर प्राची का नही भाभी का अधिकार है। तो अब प्राची को भूल जा वैसे भी वो तेरे लायक नही थी। अगर उसको सच मे तुझसे मोहब्बत होती तो ऐसे वक़्त पर जब तुझे सबसे ज्यादा उसके प्यार और सपोर्ट की ज़रूरत थी वो तुझसे सारे रिश्ते तोड़कर तुझे अकेला छोड़कर नही जाती।"
नील बोला, "तेरे और तेरी आने वाली ज़िंदगी के लिए यही बेहतर होगा कि अब तू उसे और उससे जुड़े अपने अतीत को भूलकर भाभी के साथ एक नई शुरुआत करे। उन्हें समझने की कोशिश कर और उनके साथ अपनी ज़िंदगी मे आगे बढ़ क्योंकि उनसे बेहतर हमसफर तुझे सारी दुनिया ढूँढने पर भी नही मिलेगी।"
नील उसको उसके कमरे के तरफ लेकर बढ़ गया। अंगद ने इस बार पलटकर एक शब्द तक नही कहा।
दूसरी तरफ अनु आकृति को तैयार करके उसको अंगद के कमरे मे ले आई जिसको नील और उसने नौकरों की मदद से उनकी शादी की पहली रात के लिए फूलों और कैंडलेस से बड़ी ही खूबसूरती से सजाया हुआ था। उस किंग साइड बेड के चारों और सफेद पर्दों के ऊपर फूलों की लाड़ियाँ लटक रही थी। लाइट ऑफ थी और रूम वहाँ जलती फ्रेग्रेंट कैंडेल्स अपनी झिलमिलाती रोशनी से जगमगा रहा था।
बेड के बीच मे गुलाब की पंखुड़ियों से बड़ा सा हार्ट बना हुआ था जिसके बीच मे सफेद टोवेल के बने दो हंस बैठे थे, उनके दोनों और अंगद और आकृति का नाम फ़ुलो की पंखुड़ियों से बड़ी ही खूबसूरती से लिखा हुआ था। उन कैंडलेस की भीनी भीनी खुशियों हवाओं मे घुलकर वहाँ खुशनुमा माहौल बना रही थी। फर्श पर जगह जगह गुलाब की पंखुदियाँ बिखरी हुई थी।
दूसरी तरफ अनु आकृति को तैयार करके उसको अंगद के कमरे मे ले आई जिसको नील और उसने नौकरों की मदद से उनकी शादी की पहली रात के लिए फूलों और कैंडलेस से बड़ी ही खूबसूरती से सजाया हुआ था। उस किंग साइड बेड के चारों और सफेद पर्दों के ऊपर फूलों की लाड़ियाँ लटक रही थी। लाइट ऑफ थी और रूम वहाँ जलती फ्रेग्रेंट कैंडेल्स अपनी झिलमिलाती रोशनी से जगमगा रहा था। बेड के बीच मे गुलाब की पंखुड़ियों से बड़ा सा हार्ट बना हुआ था जिसके बीच मे सफेद टोवेल के बने दो हंस बैठे थे, उनके दोनों और अंगद और आकृति का नाम फ़ुलो की पंखुड़ियों से बड़ी ही खूबसूरती से लिखा हुआ था। उन कैंडलेस की भीनी भीनी खुशियों हवाओं मे घुलकर वहाँ खुशनुमा माहौल बना रही थी। फर्श पर जगह जगह गुलाब की पंखुदियाँ बिखरी हुई थी।
आकृति जिसने ज़िंदगी मे पहली बार इतना बड़ा और आलीशान रूम देखा था, ये साज सजावट देख उसके माथे पर पसीने की बूँदें झिलमिलने लगी। वो जानती थी ये बस एक रस्म के तहत किया गया है क्योंकि जिसके लिए इस अलिशन रूम को इतनी खूबसूरती से सजाया गया है वैसा रिश्ता नही है अभी उसके और अंगद के बीच, फिर भी उस रूम मे हुई सजावट देखकर उसकी धड़कनें उसके अख्तियार से बाहर जा चुकी थी, दिल ऐसे धड़क रहा था मानो बस अब बाहर ही निकल आएगा। शरीर मे अजीब सी हलचल हो रही थी। मन बेचैन हो उठा था। चेहरे पर सिंदूरी आभा बिखर गयी थी और शर्म के बोझ तले उसकी पलकें झुक चुकी थी।
उसने अपने लहंगे को अपनी मुट्ठियों मे भींच लिया और किसी तरह खुदको काबू करने की कोशिश करने लगी। अनु ने उसको लेजाकर उस किंग साइड बेड के बीच मे बिठा था। उसके लहंगे को चारों और फैलाने के बाद दुपट्टे को हल्का सा नीचे कर दिया फिर मुस्कुराकर बोली, "परफेक्ट...... चलिए अब आप यहाँ आराम से बैठकर अपने पिया जी का इंतज़ार कीजिये मैं ज़रा जाकर अपने हाथ गर्म करने का इंतज़ाम कर लूँ।"
उसकी बात सुनकर आकृति की असमंजस भरी निगाहें उसके तरफ घूम गयी तो अनु ने हँसते हुए कहा, "ओफ्फो भाभी आपको नही पता आज तो भाई को आपको देखने के लिए और अपने रूम मे आने के लिए अपनी जेब ढीली करनी होगी। और ये नेक काम मुझे ही तो करवाना है, आखिर एकलौती बहन हूँ उनकी तो अपनी चाँद सी सुंदर भाभी को उन्हें यूँही देखने तो नही दे सकती।"
उसने इतराते हुए कहा फिर उठकर कमरे के बाहर चली आई और पहरेदार के तरफ कमर के बाहर खड़ी हो गयी। अंदर रूम मे आकृति ने उसकी बात सुनी तो मन ही मन बोली, "उन्हें कौनसा मेरी सूरत देखने का शौक है जो वो मेरे लिए आपको कुछ दे, हा अपने कमरे मे आने के लिए ज़रूर दे सकते है।"
उसके चेहरे पर गहरी मायूसी छाई हुई थी।
अनु दरवाजे के बाहर खड़ी बड़ी ही बेसब्री से नील और अंगद के आने का इंतज़ार कर रही थी और जल्दी ही उसका इंतज़ार खत्म हुआ जब उसकी नजर सामने से आते नील और उसके आगे अपनी व्हीलचेयर पर मौजूद अंगद पर पड़ी। उसको व्हीलचेयर पर देखकर एक पल को उसके चेहरे पर भी मायूसी छा गयी पर जल्दी ही उसने अपनी मुस्कान के पीछे अपनी उदासी को छुपा ली और कमरे के दरवाज़े के ठीक सामने उसका रास्ता रोककर खड़ी हो गयी।
अंगद ने उसके ठीक सामने अपनी व्हीलचेयर रोकी और भौंह सिकोड़कर उसको देखते हुए बोला, "मेरे ही रूम मे जाने से मुझे रोकने की वजह?"
"बस इतनी कि अगर आपको अंदर जाना है तो पहले मुझे द्वार् छिकाई का नेग देना होगा, मुझे माँ ने आज सुबह ही बताया था कि जब शादी के बाद भाई पहली बार अपने रूम मे जाता है जहाँ उसकी नई नवेली दुल्हन उसका इंतज़ार कर रही होती है तो उसकी बहनों को उसको अंदर जाने देने के बदले उससे नेग मिलता है। अब यहाँ तो मैं एकलौती ही आपकी बहन हूँ इसलिए आप अगर अंदर जाना चाहते है तो आपको अपनी जेब ढीली करनी होगी। ............ पहले मुझे मेरा नेग मिलेगा उसके बाद ही आप अपने रूम मे कदम रख सकेंगे।"
अनु ने मुस्कुराकर सारी बात उसको बता दी और फिर इतराते हुए अपना हाथ उसके आगे बढ़ा दिया। अंगद अब भी आँखे छोटी छोटी करके उसको घूर रहा था, वही नील उसने जैसे ही अनु का आगे बढ़ा हाथ देखा, उसका मज़ाक उड़ाते हुए झट से बोला, "हद होती है लालच की, खुद कमाती है फिर भी अपने भाई के आगे हाथ फैलाकर खड़ी है। लगता है अपने पैसों से तेरा गुज़ारा नही चलता है इसलिए नेग के नाम पर अपने भाई को लूटने आ गयी है।"
उसकी बात सुनकर अनु ने तुरंत ही चिढ़कर जवाब दिया, "हा नही चलता गुज़ारा तुम्हे क्यों प्रॉब्लम हो रही है? तुमसे तो नही मांगने गयी......... ,अपने भाई से मांग रही हूँ और ये हक है मेरा।............... खैर मेरे भाई के पास तो पैसे है इसलिए वो मुझे नेग ज़रूर देंगे पर मुझे तुम्हारी बहनों पर दया आ रही है, बेचारी ऐसे फटीचर आदमी की बहने है कि जब तुम्हारी शादी होगी तो उन बेचारियों को इस रस्म मे कही 25 पैसे से गुज़ारा न करना पड़े जो अब चलता भी नही है।"
अनु ने उसका ही मज़ाक उड़ा दिया जिसे सुनकर नील चिढ़ उठा पर दोनों की बहस छिड़ती उससे पहले ही अंगद बीच मे आ गया और अनु को देखकर बोला, "उससे लड़ना छोड़ और बता क्या चाहिए मेरी बहन को अपने भाई से?"
अनु अब उसके सामने घुटनों के बल बैठ गयी और अपनी हथेली उसके सामने करके सौम्य सी मुस्कान के साथ बोली, "भाई मुझे आपसे पैसे नही चाहिए, वो मेरे पास बहुत है फिर आप वक़्त वक़्त पर मुझे पैसे भेजते ही रहते है और अगर कभी मुझे ज़रूरत पड़ेगी तो मैं हक से आपसे मांग लुंगी । आज इस रस्म म मुझे आपसे नेग के रूप मे एक वादा चाहिए जिसे आपको ताउम्र निभाना होगा। बोलिये आप मुझे ऐसा वादा दे पाएंगे जिसे सारी ज़िंदगी निभाना पड़े? अगर हा कहेंगे तभी मैं आपको बताऊंगी कि मुझे आपसे क्या वादा चाहिए। अगर आप इंकार करते है तो भी कोई बात नही, मैं इसके अलावा आपसे कुछ नही माँगूँगी और आपको अंदर जाने से रोकूंगी भी नही।"
कुछ सेकंड पहले तो जो अनु चिढ़ी हुई थी और बच्चों के तरह नील से झगड़ रही थी अब वो एकदम संजीदा हो गयी थी। अंगद ने उसको देखा फिर मुस्कुराकर बोला, "बोल क्या वादा चाहिए तुझे अपने भाई से? आज तक तूने जो मांगा है मैंने तुझे वो हर चीज़ देने की कोशिश की है फिर आज तो ये तेरा हक है तो मैंने कैसे अपनी बहन का दिल दुखा सकता हूं? तू बोल मैं पूरी कोशिश करूँगा की तुझसे किया वादा ताउम्र निभा सकूँ।"
उसकी बात सुनकर अनु के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गयी। उसने मुस्कुराकर कहा
"भाई आई नो शायद आपके लिए इस प्रोमिस को निभाना मुश्किल हो पर मैं चाहती हूँ कि आप मुझे वादा करे कि आप अतीत मे जो भी हुआ उसका असर अपने और भाभी के इस रिश्ते पर नही पड़ने देंगे। भाभी बहुत अच्छी है भाई प्योर हार्ट है उनका जिसमे सबके लिए सिर्फ प्यार और सम्मान है और मैं चाहती हूँ कि आप कभी उनका दिल न दुखाए, उन्हें वो प्यार और सम्मान दे जो आपकी पत्नी होने के नाते वो डिज़र्व करती है। किसी तीसरे के किये गुनाहों के वजह से आप please भाभी को तकलीफ मत पहॅुचाइयेगा। उन्होंने दिल से इस रिश्ते को स्वीकार किया है, अब आपको भी कोशिश करनी होगी अपने दिल से अतीत की उन बुरी तकलीफदेह यादों को निकालकर भाभी को अपने दिल मे जगह दे।
सच कहूँ मैं पहले सोचती थी कि वो लड़की बहुत खुशनसीब होगी जिसे मेरे भाई की ज़िंदगी मे उनकी हमसफर बनकर शामिल होने का मौका मिलेगा पर जबसे मे भाभी से मिली हूँ और जितना मैंने उन्हें समझा है आप उनसे कही गुना ज्यादा लकी है क्योंकि भाभी जैसी लड़की जिनका चेहरा जितना ज्यादा सुंदर है मन उससे भी कही गुना ज्यादा साफ और निर्मल है। जिन्हे अपनी सुंदरता पर लेश मात्र भी घमंड नही है, जो रिश्तों की एहमियत भी समझती है और उसे निभाना भी बखूबी जानती, जिसके दिल मे अपने हो या पराए सबके लिए सिर्फ प्यार बसा है, जो अपने दुख मे भी दूसरों की मुस्कान की वजह बन जाती है, ऐसी लड़की इस दुनिया मे शायद ही दूसरी कोई हो। इतनी सिंपल है वो फिर भी सबसे जुदा है। मैंने आज तक ऐसी लड़की नही देखी।
उन्हें आपके पैसों मे रत्ती भर दिलचस्पी नही है भाई अगर आपको विश्वास न हो तो बस एक बार उनसे पूछकर देखियेगा कि अगर आपके पास ये धन दौलत, बिजनेस इतना आलीशान घर ना हो तब भी क्या वो आपके साथ अपनी ज़िंदगी बितानी चाहेंगी, पूछियेगा उनसे कि अगर आप कभी दोबारा अपने पैरों पर खड़े न हो सके तब भी क्या वो आपकी हिम्मत बनकर आपको संभालने के लिए आपके पास ज़िंदगी भर मौजूद रहेंगी। उनका जवाब हा होगा क्योंकि उनके लिए इन चीजों के कोई मायने नही है। आप किसी भी हालत मे हो वो कभी आपका साथ नही छोड़ेंगी इसकी गारंटी मैं ले सकती हूँ।
उन्होंने आपकी कमी के साथ आपको पूरी इज़्ज़त के साथ स्वीकारा है इसी से पता चलता है कि वो कितनी अच्छी है। उन्होंने तो आपको अपने पति के रूप मे स्वीकार लिया है अब आपकी बारी है उन्हें वो इज़्ज़त देने की वो प्यार देने की जिसपर उनका हक है पर वो कभी सामने से उसे ज़ाहिर नही करेंगी क्योंकि उनके लिए दूसरों की खुशी उनकी अपनी खुशियों से कही गुना ज्यादा मायने रखती है। Please भाई अपने पास्ट के एस्पिरिएंस के वजह से बिना भाभी को जाने उन्हें समझे उनके बारे मे कोई राय मत बनाइये। उन्हें एक मौका दीजिये खुदको साबित करने का। किसी और के किये गुनाह की सज़ा उन्हें मत दीजियेगा, वो खुद दर्द से लड़ती आई है, उनके लिए और मुश्किलें पैदा कीजियेगा। उनकी तकलीफ को और मत बढाईयेगा, please उनके साथ गलत मत करियेगा।
वादा कीजिये भाई की आप भाभी को और इस रिश्ते को दिल से एक मौका देंगे। उनको कभी तकलीफ नही पहॅुचाएंगे। अपने अतीत की बुरी यादों को मिटाकर उनके साथ इस रिश्ते की खूबसूरत शुरुआत करेंगे। उनको वो हक वो सम्मान देंगे जो आपकी पत्नी होने के नाते उन्हें मिलना चाहिए। उन्हें मौका देंगे अपने दिल तक पहुँचने की। उन्हें समझने और जानने की कोशिश करेंगे। उन्हें उस गलती की सज़ा बिल्कुल नही देंगे जो उन्होंने की ही नही। आपके तरह भाभी ने भी अपनी ज़िंदगी मे बहुत कुछ सहा है अब उन्हें और तकलीफ नही होने देंगे, उन्हें हर दर्द से बचाकर रखेंगे। उनका साथ कभी नही छोड़ेंगे। उनको अपनी पत्नी का अधिकार और मान देंगे। बोलिए क्या सारी उम्र आप इस वादे को निभा सकेंगे?"
अनु अब खामोश हो गयी और उसकी उम्मीद भरी निगाहें अंगद पर टिकी थी। नील भी अंगद के फैसले का बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। वही अंगद के दिमाग मे ममता जी, नील और अनु की कही बातों के साथ कुछ और आवाज़ें और कुछ चेहरे घूम रहे थे। चेहरे पर पल पल भाव बदल रहे थे इसलिए ये समझ पाना मुश्किलों था कि वो क्या सोच रहा है।
जारी है...........
उसने कहा ," वादा कीजिये भाई की आप भाभी को और इस रिश्ते को दिल से एक मौका देंगे। उनको कभी तकलीफ नही पहॅुचाएंगे। अपने अतीत की बुरी यादों को मिटाकर उनके साथ इस रिश्ते की खूबसूरत शुरुआत करेंगे। उनको वो हक वो सम्मान देंगे जो आपकी पत्नी होने के नाते उन्हें मिलना चाहिए। उन्हें मौका देंगे अपने दिल तक पहुँचने की। उन्हें समझने और जानने की कोशिश करेंगे उन्हें उस गलती की सज़ा बिल्कुल नही देंगे जो उन्होंने की ही नही। आपके तरह भाभी ने भी अपनी ज़िंदगी मे बहुत कुछ सहा है। अब उन्हें और तकलीफ नही होने देंगे, उन्हें हर दर्द से बचाकर रखेंगे। उनका साथ कभी नही छोड़ेंगे। उनको अपनी पत्नी का अधिकार और मान देंगे। बोलिए क्या सारी उम्र आप इस वादे को निभा सकेंगे? "
अनु अब खामोश हो गयी और उसकी उम्मीद भरी निगाहें अंगद पर टिकी थी। नील भी अंगद के फैसले का बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। वही अंगद के दिमाग मे ममता जी, नील और अनु की कही बातों के साथ कुछ और आवाज़ें और कुछ चेहरे घूम रहे थे। चेहरे पर पल पल भाव बदल रहे थे इसलिए ये समझ पाना मुश्किलों था कि वो क्या सोच रहा है।
कुछ पल वहा गहरी खामोशी छाई रही। अंगद सबकी बातों और अपने अतीत की बुरी कड़वी यादों मे बुरी तरह उलझ चुका था तभी अचानक उसकी आँखों के सामने आकृति का मासूमियत से भरा चेहरा आ गया। उसके खड़े न होने की स्थिति मे आकृति का उसके सामने बैठ जाना, झुकने मे दिक्कत होने पर आकृति का उसके हाथ को थामना।
शादी के दौरान आकृति हर पल उसकी ढाल बनी थी, उसकी कमी को अपनी समझदारी से पूरा कर दिया था उसने। ये सब याद आते ही जैसे अंगद की सारी उलझन सुलझ गयी थी। अब तक जिस मन मे तूफान मचा हुआ था, आकृति के ख्याल मात्र से वो एकदम शांत हो गया था।
उसने निगाहें घुमाकर देखा तो नील और अनु दोनों आस भरी निगाहों से उसको देख रहे थे। अंगद ने एक गहरी सांस छोड़ी फिर अनु के हाथ पर अपनी हथेली रखते हुए बोला ," मैं नही जानता की एक बार प्यार मे धोखा खाने के बाद और किसी के इस दिल के बड़ी ही बेदर्दी से तोड़ने के बाद मैं कभी दोबारा प्यार कर सकूँगा या नही, किसी पर किये विश्वास के टूटने के बाद दोबारा किसी लड़की पर विश्वास कर सकूँगा या नही पर आज मैं तुझसे इतना वादा करता हूँ कि मेरी वजह से तेरी भाभी को कोई दुख या तकलीफ नही पहुंचेगी । मैं उसको अपनी पत्नी होने का अधिकार दे पाऊंगा या नही ये नही पपता मुझे पर सम्मान पूरा मिलेगा उसे। "
उसने कहा ,"मैं उसके दर्द की वजह नही बनूँगा बल्कि अगर कर सका तो उसके लबों पर छाई मुस्कान की वजह बनने की पूरी कोशिश करूँगा। आसान नही है ये मेरे लिए पर मैं दिल से कोशिश करूँगा इस रिश्ते और उसको स्वीकार करने की। कोशिश करूँगा उसको समझने की। किसी और के गुनाहों की सज़ा उसे नही मिलेगी। मेरे लाख इंकार के बाद भी ये रिश्ता जुड़ गया है तो अब जब तक मेरी साँसें चल रही है। मैं इस रिश्ते को निभाने की पूरी कोशिश करूँगा। कोशिश करूँगा अपने दिल से अतीत की यादों को मिटाकर उसमे उसे जगह दे सकूँ जो आसान नही है।"
उसने कहा ,"आज मैं तुझसे वादा करता हूँ कि जब तक अंगद राणा है उसके तन और मन पर सिर्फ और सिर्फ एक ही लड़की का हक होगा और वो आकृति अंगद राणा ही होगी। कहां वक़्त लगेगा पर मैं उसे वो हर खुशी देने की कोशिश करूँगा जिसपर उसका हक है। "
उसकी बात सुनकर नील और अनु दोनों का चेहरा खिल उठा। अनु खुशी से चाहकते हुए उसके गले से जा लगी और मुस्कुराकर बोली ," Ooooo भाई आई लव यु यू आर द बेस्ट ब्रदर इन द होल वर्ल्ड। मुझे पूरा विश्वास है कि भाभी जल्दी ही आपके दिल मे जगह बना लेंगी, आप फिरसे प्यार करने लगेंगे और इस बार आपको प्यार के बदले दर्द या तिरस्कार नही बल्कि बेशुमार प्यार मिलेगा । देखना आपके और भाभी की ज़िंदगी मे सिर्फ खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी। आप दोनों एक दुसरे के लिए ही बने है और जल्दी ही आप दोनों इस खूबसूरत रिश्ते को दिल से मानकर इसे निभाएंगे की और एक दुसरे को बेशुमार प्यार भी करने लगेंगे। "
अनु उसके गले से लिपटी हुई उत्सुकता से बोले जा रही थी और उसका बचपना और खुशी देखकर नील और अंगद दोनों मुस्कुरा रहे थे। कुछ देर तो नील उसकी खुशी देखकर मुस्कुराता रहा फिर उसको टोकते हुए बोला ," अब चुड़ैलों के तरह बेचारे मेरे दोस्त के गर्दन से टंगी ही रहेगी या उसके गर्दन को आज़ाद करके उसे अंदर जाने भी देगी। "
उसकी बात सुनकर अनु तुरंत ही अंगद से अलग हुई और उसको घूरते हुए बोली ," तुम अपना सड़ा हुआ मुह बन्द रखा करो,वरना किसी दिन मैं चुड़ैल बनकर तुम्हारा खुन पी जाऊंगी। "
" ओ बंद बुद्धि औरत चुड़ैलें खून नही पीती है, खून पीने वालों को वैम्पायर कहते है। "
नील भी कहा पीछे रहने वाला था उसने फिरसे उसको छेड़ दिया तो अनु ने उसके तरफ लपकते हुए गुस्से से कहा, " रुको तुम्हे तो मैं अभी बताती हूँ कि कौन खून पिता है और कौन तुम्हे कच्चा चबाने वाला है जब देखो बेताल के तरह मेरे पीछे पड़े रहते हो, आज मैं तुम्हे छोड़ूंगी नही। "
नील ने भी तुरंत कदम पीछे हटाते हुए मुस्कुराकर कहा," हा.... हा.. मुझे तुझसे यही उम्मीद थी । चुड़ैलों की सरदारानी और कर ही क्या सकती है? पर मैं इतनी आसानी से तेरा शिकार नही बनने वाला जा किसी और को ढूंढ जिसको खाकर तू अपनी भूख मिटा सके। "
इतना कहकर वो हंस पड़ा और उसकी बात सुनकर अनु चिढ़ गयी। उसने अब अंगद को देखा और मुह बिचकाकर बोली ," भाई देख लीजिये इस चिंपैंजी को, कैसे आपकी छोटी सी, प्यारी सी,मासूम सी बहन को चुड़ैल कहकर परेशान कर रहा है। "
उसने एकदम मासुम सी शक्ल बनाकर नील की शिकायत अंगद से लगा दी जिसे देखकर अंगद मुस्कुराने लगा वही नील ने चिढ़कर कहा," तु और मासूम चल जा चुड़ैल कही मासूम होती है? जाने कितने शैतान मरे होंगे तब तेरा जन्म हुआ है बड़ी आई खुदको मासूम कहने वाली। "
नील ने मुह बनाकर उसको देखा। नील कि बात सुनकर अनु बच्चों के तरफ पैर पटकते हुए रुआसि होकर बोली ," भाई। "
नील फिर कुछ बोलने ही वाला था कि अंगद की घूरती निगाहें उसके तरफ घूम गयी ये देखकर नील ने नाक सिकोड़ाते हुए कहा " ये सही है, उसका भाई है तो हमेशा उसकी साइड लेता है। उसको तो कभी कुछ नही कहता बस मुझे घूर घुरकर देखने लगता है। "
" हा तो मेरे भाई है तो मेरा ही साथ लेंगे ना? " अनु ने इतराते हुए कहा और अंगद के गले से लग गयी।
ये देखकर नील ने मुह बना लिया। अनु ने अंगद से अलग होकर अब मुस्कुराकर कहा ," चलिए भाई अब आप अंदर जाइये भाभी आपका इंतज़ार कर रही होंगी। "
अंगद ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा तो उसकी मुस्कान बड़ी हो गयी। अंगद उसके लिए भाई से पहले उसके उसका पिता था, जिसने उसको पाला था। कभी उसको पिता की कमी का एहसास नही होने दिया था। जब जब वो प्यार से उसके सर पर ऐसे प्यार से हाथ फेरता था तो अनु को अलग ही सुकून मिलता था। वही सुकून वो इस वक़्त महसूस कर रही थी। अंगद ने प्यार से उसके माथे को चूमकर उसको जाने को कहा तो अनु ने एक नजर पीछे खड़े नील को विजयी मुस्कान के साथ देखा फिर अंगद को गुड लक कहकर वहा से चली गयी।
अब अंगद ने नील के तरह निगाहें घुमाते हुए कहा," क्यों उसको इतना परेशान करता है? "
" तो क्या वो मुझे परेशान नही करती? बचपन से मेरी जान खा रही है तो बदले मे अगर मैंने थोड़ा परेशान कर भी लिया तो तुझे क्या दिक्कत हो रही है? वैसे ये हहमारे रिश्ते की पहचान है,जब तक मेरी चुड़ैल मुझसे लड़ ना ले मुझे यकीन नही होता कि वो मेरी ही झल्ली है और मुझे तंग किये बिना उसका दिन पूरा नही होता तो तुझे हमारे बीच में बोलने की कोई ज़रूरत नही है। "
नील का जवाब सुनकर अंगद ने उसको घूरते हुए कहा," बेटा वो मेरी ही बहन है, तमीज मे रह वरना सारी उम्र कुँवारा ही रहना पड़ेगा तुझे समझा ? "
अंगद की धमकी सुनकर नील ने बेफिक्री से जवाब दिया,"चल जा बड़ा आया मुझे धमकी देने वाला। तेरी बहन को मेरा ही होना है इसलिए तू मेरी रिस्पेक्ट करने की प्रेक्टिस शुरु कर दे।आखिर जीजा बनूँगा तेरा तो इज़्ज़त तो करनी ही पड़ेगी तुझे मेरी। "
पहले तो अंगद उसकी बात सुनकर उसको घूरता रहा, नील भी अकड़ते हुए उसको देख रहा था फिर एकाएक ही दोनों मुस्कुरा उठे। अंगद ने अब मुस्कुराते हुए सवाल किया," तु उसे अपने दिल की बात बताता क्यों नही? और कितना इंतज़ार करेगा? कही तुझसे पहले किसी और ने उसको प्रोपोज़ कर दिया और अनु ने हा कह दिया तो मैं भी तेरे लिए कुछ नही कर सकूँगा। "
अंगद अब गंभीर और परेशान लग रहा था। नील ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए मुस्कुराकर कहा," ऐसी नौबत मैं कभी नही आने दूंगा। बस कुछ वक़्त और पहले मैं अनु की मेरे लिए फीलिंग्स को लेकर श्योर् हो जाऊँ कि वो मुझे प्यार करती भी है या नही ।अगर उसके तरफ से भी प्यार हुआ तो मैं एक पल की भी देरी नही करूँगा और चल मंगनी ते पट ब्याह करूँगा। और अगर उसके तरफ से सिर्फ दोस्ती हुई तो जिससे भी वो शादी करना चाहे कर सकती है, मेरे तरफ से उसपर कोई बंदिश नही है। खैर तू ये सब छोड़ और अपनी आने वाली ज़िंदगी के बारे मे सोच। चल अब अंदर जा भाभी कबसे तेरी राह देख रही है। "
नील ने दरवाजा खोला फिर उसको गुड नाइट कहकर वहाँ से चला गया। अंगद ने मन ही मन दोनों के लिए विश किया फिर व्हीलचेयर को अंदर के तरफ बढ़ा दिया।आकृति जो कबसे दरवाजे पर टकटकी लगाए बैठी थी जब उसने अपने आँखों के सामने मौजूद झिने दुपट्टे से गेट से अंदर आते अंगद को देखा तो एक बार फिर उसका दिल ज़ोरों से धड़क उठा।
अनु ने उसकी चुनरी से उसके आधे चेहरे को ढक दिया था। जिससे उसके नाक तक का चेहरा ढक गया था बस गुलाब की पंखुड़ियों जैसी पतले पतले लब नजर आ रहे थे। जो सुर्ख लाल रंग मे रंगे हुए थे, उसके ठीक ऊपर हक से बैठा तिल जो उनकी खूबसूरती को बढ़ा रहे थे। अंगद की नजर जब बेड पर बैठी आकृति पर बड़ी जो फूलों से सजे उस सेज पर बैठी खुद एक नाज़ुक कली लग रही थी।
तो उसकी निगाहें भी एकपल को उसके चैरी जैसे लाल रसीले लबों और उसके ऊपर के तिल पर ठहर सी गयी। दिल मे अजीब सी हलचल महसूस हुई , गला सुखने लगा मानो ज़ोरों कि प्यास लगी हो पर ये प्यास पानी की नही थी। ये प्यास तो आकृति के कोमल मुलायम लबों के रस को पीने के ख्याल से जागी थी। उसके लब उसको आकर्षित कर रहे थे और दिल उन्हें छूने को मचल उठा था।
अंगद ने इस एहसास को महसूस करते ही झट से इसके उसपर से अपनी निगाहें फेर ली। और चेयर घुमाकर रूम लॉक करने के बाद दूसरे तरफ बने वार्ड ड्रॉब् के तरफ बढ़ गया। आकृति अब भी घूँघट के नीचे से उसे ही देख रही थी। घबराहट उसको भी हो रही थी और वो अब अंगद को देखकर समझने की कोशिश कर रही थी कि वो कर क्या रहा है ।
अंगद ने अपनी चेयर को उपर करके वार्ड ड्रॉब् से अपनी टिशर्ट और ट्राउज़र निकाला फिर एक नजर बेड पर बैठी आकृति को देखने के बाद चेंजिंग रूम के तरफ बढ़ गया । आकृति अब भी उलझी हुई सी वही बैठी थी। कुछ देर बाद अंगद चेंज करके बाहर आया और व्हीलचेयर को बेड के तरफ बढ़ा दिया ये देखकर आकृति की धड़कनें तेज़ हो गयी।
अंगद बेड के दूसरे तरफ जाकर रुका और फिर चेयर को बेड के लेवल मे लाकर चेयर से बेड पर आने की कोशिश करने लगा ये देखकर आकृति ने झट से अपना घूँघट ऊपर किया और जल्दी से अंगद के पास आ गयी। उसने जैसे ही उसकी मदद करने के लिए हाथ बढ़ाया अंगद ने अपना हाथ उसके आगे करके उसको रोक दिया तो आकृति उलझी निगाहों से उसको देखने लगी।
अंगद ने बिना उसको देखे ही सख्त लहज़े मे कहा," न तो मुझे अपने कामों के लिए किसी के सहारे की ज़रूरत है न दूसरों पर निर्भर होने का कोई शौक है। मुझे अपने हर काम को खुदसे करना बहुत अच्छे से आता है , मुझे न तुम्हारी मदद की ज़रूरत है और न ही सहारे की इच्छा। I Can Manage "
अंगद ने बिना उसको देखे ही सख्त लहज़े मे कहा ," न तो मुझे अपने कामों के लिए किसी के सहारे की ज़रूरत है न दूसरों पर निर्भर होने का कोई शौक है। मुझे अपने हर काम को खुदसे करना बहुत अच्छे से आता है , मुझे न तुम्हारी मदद की ज़रूरत है और न ही सहारे की इच्छा, I Can Manage "
आकृति एकटक उसके चेहरे को देखती रही फिर आगे बढ़कर उसके चेहरे को देखते हुए गंभीरता से बोली," जानती हूँ आपको मेरे सहारे या मदद की ज़रूरत नही है । मेरे पहले भी आप अपने सब काम खुदसेही करते होंगे तो अब भी कर सकते है पर अगर मेरे होते हुए आपको हर चीज़ के लिए खुदसे परेशान होना पड़े तो मेरे होने का तो कोई मतलब ही नही रह जाएगा।"
उसकी बात ने अंगद को मजबूर कर दिया उसके तरफ देखने पर। आकृति ने अब उसके हाथ को अपने कंधे पर रखकर संभालते हुए उसको व्हील चेयर से उठाकर बेड पर ठीक से बिठा दिया और पीछे हट गयी। अंगद उसके मुकाबले भारी और लंबा था। अच्छी खासी बॉडी उसपर उसकी हाइट बेचारी आकृति उसके कंधे पर बड़ी मुश्किल से पहुँची थी और फिर उसको उठाकर बेड पर बिठाना भी आसान नही था।
आकृति की साँसें तेज़ चलने लगी थी, माथे पर पसीने की बूँदें चुहचुहाने लगी थी। वो पीछे हटकर गहरी साँसें लेने लगी, अंगद अब भी उलझा हुआ सा उसके चाँद से चेहरे को देख रहा था जिसपर शिकन की एक रेखा तक नही था, उसकी आँखों मे उसकी सच्चाई झलक रही थी। शायद अंगद उसे समझने की कोशिश कर रहा था।
आकृति ने अपनी धड़कनों को सामान्य किया फिर जाने के लिए मुड़ गयी पर कुछ कदम चलकर ही वो रुक गयी और अंगद के तरफ मुड़ते हुए बोली," आपने कहा आपको किसी के सहारे या मदद की ज़रूरत नही है तो राणा साहब दुनिया मे किसी को किसी की ज़रूरत नही होती, हर इंसान हर सिचुएशन मे खुदको संभालना सीख जाता है पर वो उसकी चाहत नही मजबूरी होती है । "
वो आगे बोली,"किसी के सहारे के किसी के साथ की ज़रूरत नही चाहत होनी चाहिए अगर कोई दर्द मे मुस्कुराना सीख गया इसका मतलब ये नही उसको वो खुश है या उसको अब दर्द नही होता ? बल्कि अब वो अपना दर्द किसी को दिखाना नही चाहता ये उसकी मजबूरी है कि उसके पास कोई ऐसा नही जिसे वो अपना दर्द दिखा सके, जिससे वो अपना दर्द बाँट सके , वैसे ही आपने इस परिस्थिति मे भी खुदको संभालना सीख लिया है पर वो आपकी मजबूरी है।"
अंगद ने उसे देखा। वो बोली,"आप खुदको किसी के सामने कमज़ोर नही दिखाना चाहते इसलिए सख्ती का मुखोटा ओढ़ा हुआ है आपने। आप किसी को अपनी मदद नही करने देता चाहते क्योंकि आपको लगता है कि सामने वाला आपकी कमी का मज़ाक उड़ाएगा, अगर आपको किसी के सहारे के ज़रूरत पड़ी और तब उस इंसान ने अपने हाथ पीछे खींच लिए तो आप बेबस महसूस करेंगे उसके सामने। आप किसी को अपनी कमज़ोरी, अपनी ज़रूरत नही बनने देना चाहते, उसके सामने बेबस नही बनना चाहते, किसी के मज़ाक का केंद्र नही बनना चाहती इसलिए आपने बिना किसी की मदद के खुदको संभालना सीख लिया है पर दुनिया मे हर कोई ऐसा नही होता जो सामने वाले की मजबूरी का मज़ाक बनाए, ज़रूरत पड़ने पर उसको बेसहारा छोड़ दे।"
वो उसे समझा रही थी ,"पर दुनिया मे रह कोई ऐसा नही होता है मैं ऐसी नही हूँ। मैं जानती हूँ कि आपको ज़रूरत नही मेरी पर मैं आपकी ज़रूरत नही चाहत बनना चाहती हूँ क्योंकि ज़रूरत वक़्त के साथ खत्म हो जाती है और हमारा रिश्ता तो जन्मों का है। मैं आपकी मदद करना चाहती हूँ इसलिए नही कि मुझे आपपर या आपकी हालत पर तरस आ रहा है बल्कि इसलिए क्योंकि मेरा फ़र्ज़ है आपके मुश्किल मे आपका साथ देना, आपका सहारा बनकर आपको संभालना।"
उसने मासूमियत और समझदारृ दिखाई। उसने कहा ,"मैं आपका कभी मज़ाक नही उडाऊंगी ,कभी आपको मुसीबत मे अकेला छोड़कर नही जाऊंगी, कभी आपको कमज़ोर नही पड़ने दूँगी , जब भी आपको सहारे की ज़रूरत होगी मैं आपको आपके पास नजर आऊँगी। मैं दिल से आपके लिए कुछ करना चाहती हूँ। कोई सहानुभूति नही है ये और न मैं आपपर कोई एहसान कर रही हूँ, आप शायद नही मानते पर मैं आपकी पत्नी हूँ और मरते दम तक आपका साथ निभाना मेरा धर्म है।"
वो बोली,"मुझे नही पता की आप क्यों मुझे गलत समझ रहे है? मैं तो आज पहली बार आपसे मिली हूँ फिर पता नही मैंने ऐसा क्या किया है कि आप ख़फ़ा है मुझसे। इसके लिए मैं आपसे कुछ भी नही कहूंगी पर मैं एक बात कहना चाहती हूँ अगर कर सके तो एक बार मुझपर भरोसा करके देखिये, मैं मरते मर जाऊंगी पर कभी आपका भरोसा नही तोड़ूंगी। एक मौका दीजिये मुझे, मैं आपके मन से अपने लिए हर बदगुमानी को मिटा दूँगी। एक मौका दीजिये मुझे। मैं नही थी तब की बात और थी पर अब तो मैं हूँ । मैं नही देख सकती देख सकती आपको अकेले सफर करते हुए। मैं साथ देना चाहती हूँ आपका।"
अंगद ने उस लड़की को बिना कुछ कहे देखा। वो बोल रही थी ,"मैैं आपसे और कुछ नही मांग रही बस आपका, आपकी ज़रूरतों का ध्यान रखने का हक दे दीजिये मुझे। कोई हक नही मांग रही बस अपना पत्नी धर्म निभाने की इज़ाज़त चाहती हूँ आपसे। अगर आप मुझपर इतना विश्वास कर सके की ज़रूरत पड़ने पर मेरा सहारा ले सके तो मैं समझूँगी की मुझे मेरे आज तक के सभी अच्छे कर्मों का फल मिल गया और अगर आप मुझपर विश्वास नही कर सके तो ये मेरी बदकिस्मती होगी कि मेरे पति का विश्वास हासिल नही कर सकी मैं। "
आकृति ने संजीदगी से अपनी बात कही और बेड के दूसरे तरफ चली गयी। वो जाकर ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठ गयी। उसने धीरे धीरे अपने सभी गहने उतारे फिर वही साइड मे रखे अपने बैग से अपने कपड़े निकालकर बाथरूम मे चली गयी। अंगद के दिमाग मे अब भी उसकी बातें घूम रही थी। कही न कही आकृति की बातों ने उसके दिल पर दस्तक दे दी थी। वो एकटक बाथरूम के बन्द दरवाज़े को देखे जा रहा था।
जैसे ही उसके कानों मे दरवाजे के खुलने की आवाज़ पड़ी उसने झट से अपनी निगाहें फेर ली और बेड पर लेटकर अपनी बाँह को मोड़कर अपनी आँखों पर रख लिया।
आकृति ने अब सिंपल सा सूट सलवार पहना हुआ था , गले मे दुपट्टा लटका हुआ था। बाल अब भी जुड़े मे बंधे जिनसे निकलती लटें उसके गालों पर झूल रही थी। चेहरे पर से मेकअप साफ कर लिया था उसने और उस धीमी रोशनी मे उसका चाँद सा मुखड़े पर अलग ही कशिश नजर आआ रही थी। माँगतिके के हटने के वजह से मांग मे भरा सुर्ख सिंदूर अपनी मौजूदगी पर इतरा रहा था। गुलाब की पपंखुड़ियों से लब अब गुलाबी रंग मे रंगे थे जो उनका खुदका रंग था। दुपट्टे के नीचे से झलकता गले मे पहना मंगलसूत्र अलग ही चमक रहा था । मेहंदी लगे हाथों मे अब भी भरा भरा चूडां पहना हुआ था पर पायल खोल चुकी थी।
वो बेड के तरफ बढ़ गयी। जल्दबाज़ी मे अंगद यूँही चादर के ऊपर ही लेट गया था तो आकृति ने उसके पास आकर उसके नीचे से चादर निकाली और उसको अच्छे से ढक दिया। उसको तो लगा कि वो सो रहा है तो वो वही खड़ी होकर उसको देखने लगी और खुदसे ही बोली," पता नही आप किस बात पर मुझसे नाराज है। अगर मुझे पहले पता होता कि आप मुझसे शादी नही करना चाहते तो मैं माँ के लाख कहने पर भी इस रिश्ते के लिए हा नही कहती। मुझे तो लगा था कि आप राजी होंगे तभी आपकी माँ ने मेरी माँ से हमारे रिश्ते की बात की होगी। पता है जब उन्होंने बताया था कि एक एक्सीडेंट मे आपने अपने चलने की शक्ति को खो दिया है और उसके बाद से आपने खुदको इस महल मे कैद कर लिया है,एकदम तन्हा हो चुके है तब मैं आपको जानती नही थी फिर भी मुझे पता नही क्यों पर बहुत बुरा लगा था आपके लिए। "
वो खुद से बोली,"जब मैंने शादी के लिए इंकार किया था तो अजीब सी बेचैनी हो रही थी जैसे कुछ गलत हो रहा है ऐसा नही था कि मुझे आपसे कोई दिक्कत थी या मुझे आपकी इस कमी के वजह से रिश्ते से इंकार था। मैं बस अपनी मां से दूर नही होना चाहती थी क्योंकि उनके अलावा मेरा कोई नही है और मेरे जाने के बाद वो एकदम तन्हा हो जाएंगी पर फिर माँ के आगे मेरी नही चली। जब मेरा रिश्ता आपसे जुड़ा था मैंने तभी ये फैसला कर लिया था कि चाहे कितना ही मुश्किल हो पर मैं इस रिश्ते को निभाऊँगी। जानती थी कि आपके और मेरे क्लास मे बहुत बड़ा डिफ्रेंस है और मुझे बहुत दिक्कत होती खुदको आपके हिसाब से ढालने मे पर मैंने कभी नही सोचा था कि मुझे अपने हक के लिए आपसे ही लड़ना होगा, मुझे बिल्कुल अंदाज़ा नही था कि जिनके लिए मै अपनी माँ अपनी ज़िंदगी छोड़कर आ रही हूँ उसके भरोसे को हासिल करने के लिए भी मुझे मेहनत करनी पड़ेगी।"
वो बोली,"मैंने तो सोचा था कि मैं आपकी ताकत बनूँगी, आपको जब जब ज़रूरत पड़ेगी मै आपको संभाल लुंगी, कभी आपको एहसास नही होने दूँगी कि आपके अंदर कोई कमी है, जब जब आप कमज़ोर पड़ेंगे मैं आपका सहारा बनूँगी, आपके मन मे फिरसे जीने की चाह जगाउँगी। पर यहाँ तो सब उलट पुलट हो गया। आपने तो मुझे आपको छूने से ही रोक दिया था। आपने तो एक झटके मे मुझसे मेरे सारे हक छीन लिए। पर मैं आपके दिल और आपकी ज़िन्दगी मे जगह ज़रूर बनाऊँगी। चाहे कितना ही मुश्किल हो पर मैं इस रिश्ते को निभाऊँगी और अपने तरह से पूरी कोशिश करूँगी कि आपके विश्वास को हासिल कर सकूँ।"
वो उसे सोता हुआ देख रही थी। उसने कहा ,"आपकी ज़रूरत नही चाहत बन सकूँ। जब आपको ज़रूरत पड़े तो आप हक से मुझे पुकारे, मेरा सहारा लेने मे आपको शर्मिंदगी का एहसास न हो। आप खुदको कमज़ोर न समझे क्योंकि आप कमज़ोर नही है। आपको लगता है कि किसी का सहारा लेने से आप उसके सामने कमज़ोर लगेंगे पर आपने कभी उस फीलिंग्स को महसूस ही नही किया जब ज़रूरत पड़ने पर आपका कोई अपना हाथ बढ़ाकर आपको थाम ले, तब आप कमज़ोर महसूस नही करते बल्कि खुदको लकी समझते है कि आपके पास कोई है जो आपके हैं सुख दुख मे आपके साथ खड़ा है। मैं आपको इस फीलिंग को महसूस करने का मौका ज़रूर दूँगी।"
आकृति काफी सीरियस थी ,"मैं आपकी कमज़ोरी नही, आपकी तागत बनूँगी। परिस्थितियाँ चाहे जैसी हो मैं हमेशा आपका साथ निभाऊँगी। अब कभी आप खुदको तन्हा महसूस नही करेंगे क्योंकि मैं रहूँगी आपके पास। आप जिसे अपनी कमज़ोरी समझ रहे है और जिसके वजह से आपने खुदको दुनिया से अलग कर लिया है, यहाँ चार दिवारी के बीच खुदको कैद कर लिया है वो आपकी कमज़ोरी नही है आपने उसे अपनी कमज़ोरी बनाया हुआ है। माँ बता रही थी कि आप ठीक हो सकते है पर होना नही चाहते। मैं आपके अंदर इच्छा जगाउँगी फिरसे अपने पैरों पर खड़े होने और चलने की। आप ठीक ज़रूर होंगे और उसके बाद आपको कभी मेरे सहारे की ज़रूरत नही पड़ेगी ।"
वो बोली,"तब शायद आपकी ज़िंदगी मे मेरी कोई एहमियत न बचे पर मैं इंतज़ार करूँगी उस दिन का जब मैं आपके दिल मे वो जगह बना लुंगी कि उसके बाद आपको मेरे साथ की ज़रूरत नही चाहत होगी। आप चाहेंगे कि मैं आपके साथ रहूँ। जब आप कमज़ोर पड़ें तो आप मेरे साथ को महसूस करना चाहेंगे। तब मेरी मौजूदगी आपको सुकून देगी।मैं हमेशा आपका साथ निभाऊँगी और ये कोई मजबूरी नही चाहत है मेरी कि मैं आपकी ज़िंदगी का अभिन्न अंग बनकर हमेशा आपके साथ रहूँ। आई विश की जल्दी ही आपकी नाराज़गी दूर हो जाए। ताकि मैं अपना फर्ज़ निभा सकूँ और आप मुझे रोके न। "
" मैं आपकी कमज़ोरी नही, आपकी तागत बनूँगी। परिस्थितियाँ चाहे जैसी हो मैं हमेशा आपका साथ निभाऊँगी। अब कभी आप खुदको तन्हा महसूस नही करेंगे क्योंकि मैं रहूँगी आपके पास। आप जिसे अपनी कमज़ोरी समझ रहे है और जिसके वजह से आपने खुदको दुनिया से अलग कर लिया है, यहाँ चार दिवारी के बीच खुदको कैद कर लिया है वो आपकी कमज़ोरी नही है आपने उसे अपनी कमज़ोरी बनाया हुआ है। माँ बता रही थी कि आप ठीक हो सकते है पर होना नही चाहते। मैं आपके अंदर इच्छा जगाउँगी फिरसे अपने पैरों पर खड़े होने और चलने की। "
वो बोली,"आप ठीक ज़रूर होंगे और उसके बाद आपको कभी मेरे सहारे की ज़रूरत नही पड़ेगी । तब शायद आपकी ज़िंदगी मे मेरी कोई एहमियत न बचे पर मैं इंतज़ार करूँगी उस दिन का जब मैं आपके दिल मे वो जगह बना लुंगी कि उसके बाद आपको मेरे साथ की ज़रूरत नही चाहत होगी। आप चाहेंगे कि मैं आपके साथ रहूँ। जब आप कमज़ोर पड़ें तो आप मेरे साथ को महसूस करना चाहेंगे। तब मेरी मौजूदगी आपको सुकून देगी।"
वो बोली,"मैं हमेशा आपका साथ निभाऊँगी और ये कोई मजबूरी नही चाहत है मेरी कि मैं आपकी ज़िंदगी का अभिन्न अंग बनकर हमेशा आपके साथ रहूँ। आई विश की जल्दी ही आपकी नाराज़गी दूर हो जाए। ताकि मैं अपना फर्ज़ निभा सकूँ और आप मुझे रोके न। "
आकृति को लगा की अंगद सो चुका है और वो उसको देखते हुए अपने दिल की बात उसके सामने बयाँ करने लगी जो वो उसके जागते हुए कहना चाहती थी पर कह न सकी। उसको सोता समझ उसने अपना दिल खोलकर उसके सामने रख दिया था।
वो ये तो पहले भी जानती थी कि इस रिश्ते को निभाना उसके लिए आसान बिल्कुल नही होगा, शादी के बाद उसकी ज़िंदगी आम शादीशुदा लड़कियों के तरह बिल्कुल नही होगी। उसे इस माहौल मे खुदको ढालने मे, खुदको अंगद के हिसाब से बदलने में बहुत दिक्कतों का सामना करना होगा। इस रिश्ते को निभाने के लिए उसको बहुत सी मुश्किलों को पार करना होगा ।
पर उसको ये अंदाज़ा ज़रा भी नही था कि उसको अपने ही पति के दिल से उसके लिए पहले से मौजूद बदगुमानी को भी दूर करना होगा। नही जानती थी वो कि इस रिश्ते के वजूद को बनाए रखने के लिए उसको इतना संघर्ष करना होगा, अपने अधिकार के लिए अपने पति से लड़ना होगा। उसकी बेरुखी सहनी होगी। उसके दिमाग से अपने लिए उन बनी उस गलत धारणा को मिटाकर उसको विश्वास दिलाना होगा अपनी सच्चाई पर।
वो आज के अंगद के बर्ताव से समझ गयी थी कि अंगद उसको गलत समझ रहा था और अब उसको उसकी नज़रों मे खुदको सही साबित करना था। जानती थी कि आगे का रास्ता आसान नही होगा पर अब पीछे हटने का कोई चांस ही नही था। हर मुश्किलों को पार करके उसको इस रिश्ते को निभाना ही था, अंगद ने मन मे अपने लिए जगह बनानी ही थी, उसके लाख इंकार के बाद भी उसको अपना पत्नीधर्म निभाना ही था और इसके लिए वो खुदको मानसिक तौर पर तैयार भी कर चुकी थी। उसने दृढ़ संकल्प लिया था कि अंगद आज जिस शादी के वजूद को स्वीकारने से इंकार कर रहा है, उसकी नज़रों मे इस शादी कि एहमियत जगानी है।
उसने अपने दिल की बात सोते हुए अंगद को साफ साफ बता दी फिर रूम मे जल रहे कैंडल्स को बुझाने के बाद उसने बैड के बीच मे टॉवल के बने उस हंसों के जोड़े को हटाया और वहाँ बिखरे फूलों को वहाँ से हटा दिया। आकृति ने अब सोते हुए अंगद को एक नजर देखा फिर बेड के दूसरे कोने मे जाकर खुदमें सिमटकर लेट गयी। एक तो अंजान जगह उसपर पहली बार किसी लड़के के साथ बेड शेयर कर रही थी तो दिल घबरा रहा था उसका। हालांकि बेड बहुत बड़ा था और उसको अंगद पर विश्वास भी था, फिर भी उसको बहुत अजीब लग रहा था।
कुछ देर वो यूँही अपनी ऊलझनों में गुम लेटी रही फिर कल से शादी की रस्मों मे बीज़ी रहने के वजह से थकान के मारे उसकी आँखे लग गयी।
बेड के दूसरे तरफ लेटा अंगद जो सोया ही नही था, बस खामोशी से लेटा आकृति की बातें सुन रहा था। आकृति की बातें जो उसके दिल से निकल रही थी, सीधे अंगद के दिल तक पहुँच रही थी। वो ऐसे उसकी बात सुनना नही चाहता था पर आकृति जो बातें कह रही थी, अंगद चाहकर भी उसको ये न बता सका कि वो जाग रहा है और सोने का नाटक करते हुए उसकी बातें सुनने लगा, क्योंकि उसके जागते हुए आकृति अगर कुछ कहती तो मतलब हो सकता था। कि वो उसको सुनाने के लिए जानमुचकर ऐसी बातें कह रही हो ताकि अंगद को अपनी बातों मे फंसा सके पर उसके सोते हुए उसका ये सब कहना जबकि उसके हिसाब से तो अंगद कुछ सुन ही नही रहा होगा, उसकी सच्चाई को दर्शा रहा है कि व कोई नाटक नही कर रही।
जैसे ही अंगद को विश्वास हो गया कि आकृति सो चुकी है उसने अपनी आँखे खोल दी। कुछ पल एकटक निगाहें घुमाकर आकृति को देखता रहा जिसकी पीठ उसके तरफ थी। उसके दिमाग मे आकृति की कही बातें घूम रही थी जिनपर उसका दिल विश्वास करना चाहता था पर दिमाग जो पहले ही धोखा खा चुका था वो उसपर विश्वास करने से कतरा रहा था। ठीक ही कहते है लोग जब एक बार किसी के भरोसे को तोड़ा जाता है तो उस इंसान के लिए फिरसे किसी पर भरोसा करना बहुत मुश्किल हो जाता है और वही अंगद के साथ हो रहा था इस वक़्त।
वो कुछ पल खामोशी से उसको देखता रहा फिर कुछ सोचकर उसने आगे बढ़कर उसको ब्लैंकेट से अच्छे से कवर कर दिया और वापिस अपनी जगह लेट गया। आकृति की कही बातों के बारे मे सोचते सोचते ही कब उसकी आँख लग गयी, उसको एहसास ही नही हुआ।
अभी उसकी आँख लगे कुछ वक़्त ही हुआ था कि उसको अपने गाल पर किसी की गर्म हथेली का एहसास हुआ और इसके साथ ही उसने चौँक कर अपनी आँखे खोल दी। उसने झट से सर घुमाकर देखा और जैसे ही उसकी नजर। नजर सामने पड़ी, उसकी आँखे हैरानी से फैल गयी। वजह बस इतनी थी कि आकृति नींद मे उसके बेहद करीब आ गयी थी और उसी का हाथ उसके गाल को सहला रहा था।
अंगद को कुछ अजीब सा एहसास हुआ। उसने झट से हड़बड़ाहट मे उसके हाथ को अपने गाल पर से हटाया इतने मे आकृति ने अपने पैर के नीचे उसके पैर को दबा दिया और वापिस अपनी बाँह उसके ऊपर रख दि । अंगद ने तीन चार बार उसके हाथ पैर को हटाने की कोशिश की पर आकृति हर बार उसके ऊपर चढ़ जाती। बेचारा अंगद बुरा फंसा था। आखिर मे हार मानकर उसने अपनी आँखे बन्द कर ली और कुछ ही देर मे उसको नींद आ गयी।
अगली सुबह -
देर रात जागने के वजह से अंगद अब भी गहरी नींद मे सो रहा था। कुछ देर बाद आकृति ने मिचमिचाते हुए अपनी उनींदी आँखों को हल्के से खोला और जैसे ही उसकी नज़र उसके बगल मे सो रहे अंगद पर पड़ी उसकी आँखे हैरानी से फैल गयी।
अब भी आकृति ने आकृति का हाथ उसके ऊपर था और पैरों ने अंगद के पैरों पर कब्ज़ा किया हुआ था। अंगद ने नींद मे अपनी बाँह को उसकी कमर पर लपेट दिया था। आकृति की साँसें अटक गयी। वो कुछ पल आँखे फाड़े अंगद को देखती रही फिर उसने अंगद के हाथ को अपने उपर से हटाया और झट से उठकर बैठ गयी और अपने सीने पर हाथ रखकर गहरी गहरी साँसे लेने लगी फिर उसने खुदको ही डांटते हुए कहा ," कृति ये क्या किया तूने? तू भूल भी कैसे सकती है कि अब तु अपने घर मे माँ के साथ नही है बल्कि यहाँ इनके साथ है। नींद मे कैसे उनसे चिपककर सो रही थी , जागते मे वो तुझे अपने आस पास भी न आने दे देखा नही था कल कैसे तुझे छूने से रोक रहे थे और तू उनके उपर चढ़कर सो रही थी, वो तो अच्छा हुआ की वो सो रहे थे अगर जाग गए होते तो तुझे सीधे बेड से नीचे ही फेंक देते अगर उन्होंने तुझे ऐसे देख लिया होता तो क्या सोचते तेरे बारे मे?"
वो बोली,"कैसी लड़की है तु कि उनसे लिपटकर सो रही थी कृति बेटा अपने हाथ पैरों को काबू मे रखना शुरु कर दे वरना वो दिन दूर नही कि तेरे खडूस पति तुझे उठाकर सीधे कमरे से बाहर फेंक देंगे तुझे थोड़ा एहतियात करने की ज़रूरत है, वरना तु बात बनने से पहले ही सब बिगाड़ देगी। अभी तो वो तुझसे खफ़ा है कही तेरी बेवकूफी इस नाराज़गी को नफरत मे न बदल दे। पर मैं क्या करूँ? बचपन की आदत है ऐसे सोने की, अब आदत थोड़े न बदल सकती हूँ वो भी तब जब मुझे सोने के बाद एहसास ही नही होता कि मैं नींद मे कैसे सो रही हूँ। पर कुछ तो करना होगा कृति, आज तो महादेव की कृपा थी जो उन्होंने नही देखा अगर कल को उन्होंने तुझे ऐसे सोते देख लिया तो कही वो तेरे बारे मे कुछ गलत न सोचने लगे। ऐसे काम नही चलेगा कृति इस प्रॉब्लम का कुछ परमानेंट सॉल्यूशन ढूँढना ही होगा। "
वो गहरी सोच मे डूब गयी तभी अचानक उसका ध्यान सामने लगे सोफा सेट पर गया। उस किंग साइज सोफे पर कोई भी आराम से सो सकता था ये देखकर उसकी आँखों मे चमक आ गयी और उसने मुस्कुराकर खुदसे कहा ,"अबसे मैं इसी सोफे पर सोऊँगी। न जगह होगी न मैं फैलूँगी और अगर वहां हाथ पैर चलाया भी तो ज्यादा से ज्यादा नीचे ही गिरूँगी न? कम से कम राणा साहब के ऊपर तो नही चढूगी , मेरे वजह से उन्हें तो कोई प्रॉब्लम नही होगी। "
आकृति ने खुदसे ही फैसला कर लिया फिर मुस्कुराकर अंगद के तरफ निगाहें घुमाई तो उसकी निगाहें उसके चेहरे पर ठहर सी गयी। वो सोते हुए बेहद मासूम लग रहा था। उसके सिल्कि बाल उसके माथे पर लहरा रहे थे और चेहरे पर सुकून पसरा हुआ था, बिल्कुल किसी छोटे बच्चे जैसा मासूम लग रहा था वो इस वक़्त। आकृति कुछ पल उसको देखती रही फिर हल्की मुस्कान के साथ बोली ," आप बहुत हैंडसम है। लगता ही नही की इसी दुनिया से है। ऐसा लगता है जैसे किसी दूसरी दुनिया से आए राजकुमार है आप। पता नही आप मुझे कैसे मिल गए। मैंने तो कभी ऐसा कोई ख्वाब देख ही नही था और उस रात ने तो मुझसे ऐसे ख्वाब देखने का हक भी छीन लिया था। मैंने अपनी किस्मत के साथ समझौता कर लिया था की मेरे नसीब मे किसी का प्यार नही है ,मैंने मान लिया था कि अब मैं कभी किसी की ज़िंदगी का हिस्सा नही बन सकती।"
उसने कहा ,".मेरी दुनिया मेरी माँ के इर्द गिर्द सिमटकर रह गयी थी पर आप किसी जादू के तरह मेरी ज़िन्दगी मे आए और मुझे अपनी ज़िंदगी मे शामिल कर लिया ।आपके वजह से मुझे अपनी माँ से दूर होना पड़ा, इसके लिए मैं आपसे नाराज हूँ पर थोड़ा खुश भी हूँ। खुश हूँ कि मुझे आपके लिए कुछ करने का मौका मिलेगा। और मैं कोशिश करूँगी कि आपके दिल मे थोड़ी सी जगह बना सकूँ पर सबसे पहले मुझे आपके अंदर ठीक होने कि इच्छा जगानी है ताकि आप फिरसे अपने पैरों पर खड़े हो सके। "
आकृति ने मुस्कुराकर उसको देखा फिर बेड से नीचे उतर गयी। उसने कबर्ड से अपने कपड़े निकाले जो शादी से पहले उसको दिलाए गए थे और बैग से अपना बाकी समान लेकर बाथरूम मे चली गयी। कुछ देर बाद वो नहाकर चेंजिंग रूम मे चली गयी क्योंकि उसको साड़ी पहननी थी जो बाथरूम मे नही पहन सकती थी और रूम मे अंगद सोया हुआ था।
कुछ आधे घंटे की मेहनत के बाद आकृति ने साड़ी पहनी और रूम मे चली आई। ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर उसने अपने बालों को टॉवल से आज़ाद किया और उन्हें पोंछने लगी। उसके हाथों के हिलने के वजह से हाथ मे पहने चूडे की खनखनाहट मधुर संगीत के तरह हवाओं मे घुल रही थी।
अंगद के कानों तक भी उसके ये आवाज़ पहुँच रही थी और अब उसके भाव कुछ बदलने लगे थे। आकृति ने अपने बालों को पोंछते हुए उन्हें दूसरे तरफ झटका तो उसके गीले बालों से कुछ पानी की बुँदे आज़ाद होकर अंगद के चेहरे पर जाकर ठहर गयी। अगले ही पल अंगद ने झटके से अपनी आँखे खोल दी और आँखे खोलते ही उसकी निगाह सामने खड़ी आकृति पर पड़ी। पहले तो वो अपने रूम मे किसी लड़की को देखकर हैरान हो गया फिर जल्दी ही उसको याद आया कि अब वो सिंगल नही है, शादी हो चुकी है तो अब उसको इन चीजों की और शायद रोज़ सुबह ऐसे ही उठने की आदत डालनी होगी।