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ishq -e-  ibadat

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Mis Butterfly

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यह कहानी है उस शख़्स की, जिसने निकाह  अपनी मरज़ी और अपनी मोहब्बत से की… लेकिन वह अनजान था उस लड़की की हकीकत से— जिसने निकाह सिर्फ उसके नाम, रुतबे और दौलत के लिए की थी। एक वक़्त आया, जब दोनों के रास्ते अलग हो गए।...

Total Chapters (15)

Page 1 of 1

  • 1. divorce

    Words: 1115

    Estimated Reading Time: 7 min

    भोपाल,


    शहर से थोड़ा दूर बनी एक  सुनहरी  हवेली जो सूरज की किरणों सोने की तरह चमक रही थी उसकी हवेली के अंदर बने कमरे में करीब 32 साल का आदमी गुस्से से कहता है ,  दादा सह आप समझते क्या नहीं है ? नहीं पसंद मुझे वो लड़की आप लोगो ने बहले ही 2 महीने पहले मेरी उससे जबरदस्ती शादी करवा दी थी मजबूरी में मैने कर ली थी क्योंकि मेरी बेटी को मां की जरूरत थी पर अगर आप चाहे की में उसके साथ एक अच्छे शौहर की तरह रहु तो ये नहीं हो सकता है 


    सामने खड़े शमशेद अंसारी गुस्से से उसे घूरते हुए कहते है । आपको क्या लगता है जुबैर हमने आपकी शादी सिर्फ इसलिए अपनी नाती से करवाई थी ताकि वो इतनी कम उम्र में मा जैसे रिश्ते को निभाए ओर आप   उनकी सारी खुशियों को आप नजरअंदाज करदे उनके सारे अरमानों को दफन करने को बोल रहे है दिक्कत क्या है आपको उनसे इतनी प्यारी है वो आपकी जबरदस्ती की औलाद को सीने से लगाए रहती है कोई सगी मां भी इतना प्यार नहीं कर सकती जितना वो करती है अगर वो करा सा आपके प्यार की उम्मीद करे तो गलती क्या है उसकी 


    बस कीजिए दादा सा ओर आपको क्या लगता है वो कोई मासूम और भोली सी लड़की है तो ऐसा कुछ भी नहीं भले ही 21 साल की होने वाली है पर अक्ल किसी 10 साल के बच्चे की तरह है , न बात करने का ढंग है । न तमीज का पता है , काम कोई आता नबी है खाना बना नहीं सकती बस हर वक्त उछल खुद खेलना मस्ती करना बस यही है क्या जिंदगी यह तक की उन्हें न ढग के कपड़ों का पता होता न दुप्पटा से पर रखने की आदत है बस उड़ती रहती है हमेशा कभी उनके पर जमीन पर नहीं रहते है , और इसे ही कई हरकते में उसकी गिनवा सकता हु उसे बात करने तक का दाग नहीं है आप समझते क्यों नहीं मुझे एक शांत सी लड़की चाहिए थी जो मेरी बेटी को संभाले ले ओर जब में घर आऊ तो मुझे घर की शिकायतें न सुनाए मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं है ।, इस सब में आज उसने किसे परेशान क्या किसकी साइकिल तोड़ दी या खान बनाना सीखने में उसकी उंगली कट  गई मेरे लिए चाय बनाने में उसका हाथ जल गया मेरे कपड़े प्रेस करने में शर्ट जल गई मुझे नहीं जानना इससे अच्छा आप मेरी शादी ही नहीं करते अगर उसने मेरे साथ ये सब नहीं क्या होता तो आज मेरी जिंदगी इसी नहीं होती बल्कि हम सब अच्छे से एक परिवार की तरह होते ।



    श्मशेद अंसारी चीखते हुए बोले , खबर डर जो उस लड़की का नाम भी हमारे घ में लिए तो भूले नहीं है हम जो आपने किया है ओर आप यह हमारी बच्ची की कमियां गिनवा रहे है वो भी उस लड़की के लिए जिसने तुमसे शादी सिर्फ इस लिए की थी ताकि उसे अंसारी टाइटल मिल सके एक रहीस जिंदगी जिस सके आप कैसे भूल सकते है उन्होंने किया किया है आप भले ही भूल जाए पर हम काबी नहीं भूलेंगे और न ही आपको भूलने देगे उनकी वजह से हमारी बच्ची के सर से बाप का साया उठ गए उनकी नादानी उनका बचपना आपको परेशान कर रहा है न तो याद रखना जिस दिन वो समझदारी की रह पर चलने लगेगी उस दिन आपको अपने अल्फाजों पर अफसोस होगा वो आप होगे हो उनकी शरारतें के लिए तरसा करेंगे और जिस लड़की से आप हमारी नाती की बराबरी कर रहे है तो वो लड़की हमारी बुशरा के पैर के नाखून  बराबर भी नहीं है सुना आपने  



    सामने खड़ा जुबेर जिसकी हाथ की नसे दिखनी लगी थी वो नफरत से कहता है ये आपकी गलत फहमी है दादा सा आपने उसे अपने सर चढ़ा रखा है और कुछ नहीं आपको क्या लगता है वो कोई बहुत अच्छी   है।  में उसकी नस नस से वाकिफ हु वो मेरे स्टैंडर्ड की नहीं है न मेरे साथ उठने बैठे के आने जाने के काबिल तक नहीं है  मुझे उसके साथ होने से शर्मिंदगी महसूस होती है आपको क्या लगता है हम कौन है हमारे बारे में छोटी सी छोटी खबर न्यूज में होती है। हर चीज ट्रेंडिंग टॉपिक्स में आ जाती है और इनके बारे में क्यों नहीं क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि हमारा नाम दूर दूर तक भी आपकी उस नवासी से जुड़े हम हमारे नाम में ही एक ब्रेड है और आपकी वो 21 साल की नवासी कुछ भी नहीं जिसे पता ही नहीं है आखिर करना किया है पढ़ाई उनसे होती है । काम वो कर नहीं पाती हमें डर है कही। हमारी बेटी को भी अपनी तरह न बना दे हम आज ही उन्हें अपनी बेटी से दूर कर देगे उनके लिए वही सही है हम तो उन्हें झेल कर जिंदगी जीजा ही लगे पर अपनी बेटी को गलत संगत में नहीं पढ़ने देगे और है आपने जो ये रिसेप्शन के लिए हम बुलाया था उसे कैंसिल कर दे हम नहीं चाहते लोगो के सामने हमारी इज्जत का तमाशा बने बाकी हमें बुशरा को लेकर ओर कोई बहस नहीं करनी उसने बहुत ही मुश्किल से अपने गुस्से को जप्त करते हुए कहा था वो बिना आगे कुछ कह जाने के लिए दरवाजा की तरह मुड़ जाता है 


    श्मशेद अंसारी हताश होते हुए कहते है आप को क्या लगता है हमें आप से अच्छा लड़क उनके लिए नहीं मिल सकता था क्या हमारी गलती है जो हमने आपको अपनी बुशरा के लिए चुना अपनी जिंदगी में पहली बार किसी फैसले पर पसतावा हो रहा है काश हमने आपसे उनकी शादी नहीं करवाई होती हमारी बच्ची की जिदगी बर्बाद हो गाई है हमने बहुत बड़ी गलती कर दी हमने सोचा भी नहीं था हमारा लिया फैसला हमारी बच्ची की जिदगी बर्बाद कर देगा ।


    उनकी बात पर जुबेर के जबड़े कश जाते है वो दबी सी आवाज में कहता है आपको वो इतनी पसंद है आपको। में नहीं दिखता क्या उसके पास है ही क्या सिर्फ शक्ल और कैची से भी तेज जबान ओर कुछ नहीं वो जमीन की धूल भी नहीं है और में पूरा आसमान हु यह मेरी जिंदगी बर्बाद हुई है उसकी जैसी लड़की की वजह ओर अब वो मेरी बैठी की भी जिंदगी बर्बाद करने पर तुली है और आपको सिर्फ उस लड़की की फिक्र हो रही है दादा जान कभी कभी तो लगता है जैसे मेरी मेहनत मेरी तरक्की मेरा स्ट्रगल आपको दिखता ही नहीं है आपको अब भी लग रहा है मेरी वजह से उसकी जिंदगी बर्बाद हुई है तो ऐसा करिए diveroc कर वा लीजिए अपनी बच्ची का ओर रखिए उसे अपने पास कम से कम मेरी जान तो छूटेगी उससे उसने बहुत ही गुस्से से कहा था ।

  • 2. 12 saal

    Words: 1088

    Estimated Reading Time: 7 min

    उनकी बात पर जुबेर के जबड़े कश जाते है वो दबी सी आवाज में कहता है आपको वो इतनी पसंद है आपको। में नहीं दिखता क्या उसके पास है ही क्या सिर्फ शक्ल और कैची से भी तेज जबान ओर कुछ नहीं वो जमीन की धूल भी नहीं है और में पूरा आसमान हु यह मेरी जिंदगी बर्बाद हुई है उसकी जैसी लड़की की वजह ओर अब वो मेरी बैठी की भी जिंदगी बर्बाद करने पर तुली है और आपको सिर्फ उस लड़की की फिक्र हो रही है दादा जान  कभी कभी तो लगता है जैसे मेरी मेहनत मेरी तरक्की मेरा स्ट्रगल आपको दिखता ही नहीं है आपको अब भी लग रहा है मेरी वजह से उसकी जिंदगी बर्बाद हुई है तो ऐसा करिए diveroc कर वा लीजिए अपनी बच्ची का ओर रखिए उसे अपने पास कम से कम मेरी जान तो छूटेगी उससे उसने बहुत ही गुस्से से कहा था ।
    ab aage .

    खबरदार जो तुम्हारे मुंह से अब एक शब्द ओर निकला तो हमसे बुरा कोई नहीं होगा श्मशेद अंसारी बहुत जोर से चीखे थे हमारे घरों में तलाक नहीं होती है समझे आप पर अपने हमें इस मामले में सोचने पर मजबूर कर दिया है उनकी सास फूलने लगी थी जुबेर बिना उन्हें देखे बाहर निकल जाता है इस वक्त वो भी बहुत गुस्से में था उसे बुशरा बिल्कुल पसंद नहीं थी क्योंकि वो आज की लड़कियों की तरह सजती संवरती नहीं थी बस हमेशा बच्चों की तरह खेलती कूदती रहती परेशान करती रहती थी सबको उसका अंदाज बहुत ही बेतकल्लुफी भरा था उसे इस वक्त बुशरा पर बहुत गुस्सा आ रहा था वो उससे बचपन से न पसंद करता था जबकि वो उससे पूरा 12 साल छोटी थी उससे नफरत की वजह क्या थी ये सिर्फ वही जनता था 






    वह जैसे ही कमरे से बाहर आता है उसकी नजर दरवाजे के ठीक सामने खड़े सिकंदर अंसारी पर पढ़ती हैं। वह आगे बढ़ जुबेर को कुछ कहते हैं उससे पहले वह उन्हें हाथ दिखाकर रोकये हुए बोला , बस करिए अब्बा मुझे और कुछ नहीं सुनना है वह बहुत गुस्से में वहां से सीधा बाहर की तरफ निकल गया था।


     सिकंदर अंसारी हताश भरी नजरों से जाता हुआ उसे देखते रहते हैं और अंदर की तरफ कदम बढ़ाते हैं जहां उनके नजर सहमत अंसारी पर पड़ती है जिनमें कम लड खडा रहे थे उन्होंने अपने सीने पर हाथ रखा हुआ था वह जल्दी से उनके पास उन्हें संभालते हुए कहते हैं अब वह आप जानते हैं ना वह कैसा है क्यों आप उसके मुंह लगते हैं आपके बीपी बढ़ गया ना अब यहां पर बैठे आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है। सब कुछ वक्त के साथ ठीक हो जाएगा ।


    शमशेद अंसारी उसे उनके कंधा पर हाथ रख मायूसी भरी आवाज में केहते हैं । कुछ ठीक नहीं होगा सिकंदर कुछ भी ठीक नहीं होगा हम जहां जिंदगी भर लोगों के हक में फैसला करते हुए आए थे आज आज हमारी बच्ची के हक में हमसे बहुत गलत फैसला हो गया हमें अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा अगर हम ये फैसला। नहीं लिया होता  नहीं मानती वो हमारी बात , तो आज उनकी ज़िंदगी कुछ और होती। आप ही बताइए, उनकी शादी को अभी कितने दिन हुए हैं? सिर्फ़ दो महीने। और इन दो महीनों में हमने क्याक्या नहीं देखा है।

    दूसरी औरत क्या कुछ नहीं करती है उसके लिए। उसके बच्चे को वह सगी मां से ज़्यादा चाहती है। भले ही उसे सब कुछ नहीं आता, फिर भी वह पूरी कोशिश करती है कि उसके लिए सब कुछ करे। लेकिन आपने कभी देखा है कि आपके बेटे की नज़रों में उसके लिए कोई जगह है?

    वह उसे एक नज़र उठाकर भी नहीं देखता। आप बताइए, कब तक हमारी बच्ची इस तरह जीती रहेगी? अभी वह नादान है। जिस दिन उसने ये सारी बातें समझना शुरू कर दिया, उस दिन इस घर को टूटने में ज़रा भी वक़्त नहीं लगेगा।


    हमें डर लग रहा है। हम कैसे अपनी बच्ची की अपनी नज़दीकी में रहने की चाहत में इतने अंधे हो गए कि उसका रिश्ता ऐसे इंसान से करवा दिया, जो उसे जानता तक नहीं है?


    उसे न जाने किस बात से नफ़रत है। हमें समझ नहीं आता कि हमारी बेटी का क्या होगा।"


    (यह कहते-कहते उनकी सांसें तेज़ हो गईं। उनकी धड़कनें बहुत तेज़ चल रही थीं।)


    सिकंदर अंसारी उन्हें संभालते हुए बेड पर लिटा देते हैं, और पानी का गिलास थमाते हुए उन्हें शांत करते हैं—

    "अब्बा, आप परेशान मत होइए। हम बात करेंगे।"


    "तुम? तुम क्या ही बात करोगे अपने उस नकचढ़े बेटे से?

    32 साल में जब तुम उसे संभाल नहीं पाए, तो अब क्या संभालोगे? जब वह खुद एक बच्ची का बाप है!"

    वह बुशरा के लिए बेहद परेशान हो चुके थे। उन लोगों को इस बात का एहसास तक नहीं हुआ कि कोई दरबार के दरवाज़े के पीछे, एक छोटी-सी आड़ में खड़ा, यह सब कुछ सुन रहा था।


    वह मासूम चेहरा आंसू और पसीने से पूरी तरह भीगा हुआ था। उसका सफेद, रुखसार जैसा खूबसूरत चेहरा और लंबी पलकों को देखकर कोई भी तड़प उठता। लेकिन उसके रुखसार पर इस कदर आंसू लगे हुए थे कि मानो दिल ही रो पड़ा हो।


    धीरे-धीरे वह अपने कदम पीछे खींचते हुए वहाँ से दूसरी दिशा में चली जाती है। जब वह कमरे से कुछ दूर आती है, तो अचानक भागती हुई सीधा छत पर पहुंच जाती है।


    रात का पहर था। इस वक़्त आसमान काली घटाओं से भरा हुआ था  न चाँद था, न सितारे। वही सितारे, जिनसे वह हमेशा शिकायत करती थी कि उसका शहर उसे प्यार नहीं करता।


    लेकिन अब तो उसे और भी ज़्यादा दर्द मिला था। अब उसे यह भी पता चल चुका था कि शहर से उसे सिर्फ़ प्यार नहीं मिला  बल्कि नफ़रत और ठुकराया जाना भी मिला।


    उसे अब यह समझ आ गया था कि यह शादी प्यार नहीं, बल्कि एक सज़ा बन चुकी है।


    वह ज़मीन पर जाकर अचानक बैठ जाती है। यह वही जगह थी जिसे वह बेहद पसंद करती थी। यहाँ उसे हर सवाल का जवाब मिलता था, हर चीज़ की तलाश पूरी होती थी।


    यही वह छत थी जहाँ उसे सुकून मिला करता था… और दर्द भी कम हो जाया करता था।

    कहते हैं ना, जब इंसानी मखलूक आपको दर्द देती है, तब अकेलापन ही वो जगह होती है जहाँ सुकून मिलता है।

    जहाँ खुदा से बातें होती हैं, जहाँ एहसास से दिल के लहू भरे गिले सुने जाते हैं।


    ये जानते हुए भी कि अल्लाह से शिकायत नहीं करनी चाहिए,

    अल्लाह तआला दिल से शिकवा करने वाले बंदे की हर शिकायत भी कबूल कर लेते हैं।

  • 3. hath jalna

    Words: 1037

    Estimated Reading Time: 7 min

    वो नादान वहीं बैठकर फूट-फूट कर रोने लगती है।

    उसकी आंखों से बेइंतहा आंसू गिर रहे थे।

    उसके लंबे बाल पीठ से होते हुए चेहरे तक बिखरे हुए थे।


    उसने इस वक़्त पीले रंग का खूबसूरत, सादा जॉर्जेट का सूट पहना हुआ था।

    दुपट्टा बहुत ही बेढंगे तरीके से गार्डन की एक तरफ गिरा पड़ा था।

    हाथों में वही मैचिंग चूड़ियाँ थीं, जो पसीने से भीग चुकी थीं।


    चाहे वो पूरी तरह पसीने से नहीं भीगी थी, पर उसका शरीर गर्म हो रहा था… और चेहरा लाल पड़ चुका था।

    रोते हुए वह कहती है:


    "अल्लाह… क्या गलती थी मेरी?

    मैंने तो कभी किसी का बुरा नहीं किया।

    अगर मैं ऐसी हूँ, तो क्या मेरा किरदार ही बुरा है?


    मुझे अच्छे से खाना बनाना नहीं आता…

    पर मैं कोशिश तो करती हूँ ना!

    आपको पता है, आज भी मैंने उनकी फेवरेट चिकन करी बनाने की कोशिश की थी…

    पर मेरा हाथ बुरी तरह जल गया।"


    यह कहते हुए वह अपने बाजू पर हाथ रखती है।

    उसका हाथ बुरी तरह जख्मी हो चुका था, मगर उस पर कोई मरहम नहीं लगाया गया था।अम्मा ने तो सिर्फ एक ही बात सिखाई थी…

    कि जो शौहर होते हैं, वो अपनी बीवी का ख्याल रखते हैं।

    अगर बीवी परेशान हो, तो वो उसे समझते हैं, प्यार करते हैं, उसका सहारा बनते हैं।पर मेरी क्या खता थी?वो छोटी-सी बच्ची, जो तुमसे बहुत प्यार करती है 

    मैं उसे क्यों बिगाड़ूंगी?मुझे नहीं आता, इतने लंबे-लंबे बालों की चोटी बनाना।मेरे हाथ दुख जाते हैं।


    मुझे पढ़ाई करना भी अच्छा नहीं लगता था,

    इसलिए मैंने नहीं पढ़ी।आपको तो पता ही है ना,

    मैं हमेशा कहती थी 'मेरी शादी ऐसे इंसान से करवा दो जो मुझसे बहुत प्यार करे, सिर्फ मेरी केयर करे।'


    मुझे दुनिया-जमाने से कोई मतलब नहीं था।

    पर मैं भूल गई थी कि जिससे मेरा निकाह हुआ है,

    उसे सिर्फ दुनिया से मतलब है... मुझसे नहीं।


    वो बुरी तरह रो रही थी।ना जाने क्यों, उसे यह बात बहुत अंदर तक चुभ रही थी।उसके निकाह को अभी सिर्फ दो महीने हुए थे,

    और इन दो महीनों में जुबेर ने उसे एक नज़र भर कर भी नहीं देखा था।बुशरा, वैसे ही रोते हुए कहती है:


    "उन्हें लगता है ना कि मैं उनकी बेटी को बिगाड़ दूंगी?तो ठीक है…अब मैं उनकी बेटी को हाथ तक नहीं लगाऊंगी।चाहे वो रोती रहे,ना उसे गोद में उठाऊंगी,ना उससे बात करूंगी।"


    "उन्हें लगता है मैं बुरी हूं?तो ठीक है, मैं अपने बाल भी काट दूंगी…पर अब मैं उनके साथ नहीं रहूंगी।"


    यह कहते-कहते वह फूट-फूटकर रोने लगी।फिर धीरे से अपनी आंखें उठाकर आसमान की तरफ देखा और बोली:"पर सिर्फ आज…आज ऐसे ही रहूंगी जैसे मैं रहती आई हूं।पर कल से…

    नहीं… बिल्कुल नहीं।"वह थोड़ी देर तक वहीं बैठे-बैठे रोती रही।

    उसके हाथ में पहनी हुई वो पुरानी सी, छोटी सी घड़ी देखकर ही साफ़ पता चल रहा था कि वो उसके लिए कितनी कीमती थी।


    वह एक नज़र उस पर डालती है।

    रात के 10:00 बज चुके थे।

    वह जल्दी से अपना चेहरा साफ करती है और सीधा नीचे की तरफ दौड़ लगा देती है।

    लेकिन उसका पैर सलवार में बुरी तरह उलझ जाता है।

    वह ज़मीन पर मुंह के बल गिर जाती है।

    उसने अपनी आंखें मजबूती से बंद कर ली थीं।


    उसका सिर नीचे रखी टेबल से टकरा गया था,

    जिसकी वजह से उसके माथे पर हल्की सी दरार आ गई थी।

    एक खून की बूंद उसकी आइब्रो तक आ पहुँची थी।


    यह महसूस करते ही उसे बहुत ज़्यादा दर्द हुआ।

    पर फिर भी वह जल्दी से अपने ज़ख्म को छूकर देखती है

    और मुंह बनाते हुए कहती है:


    "अगर मेरी चोट से भी आपको दुख नहीं हुआ ना,

    तो खुदा कसम…

    आप खुद देखेंगे कि बुशरा रहमानी

    आपको खून के आंसू ना रुलाए तो कहना।"


    "आप भूल रहे हैं जी…

    शाम शाहिद अंसारी का खून आपके अंदर है ना?

    तो सुनिए  उन्हीं की बेटी का खून मेरे अंदर भी है।

    देखना, मैं आपको घुटनों पर लाकर नखरा करवा दूंगी।

    पर आपके करीब नहीं आऊंगी।"


    "अगर आपने आज भी मुझे देखकर रिएक्ट नहीं किया…

    तो फिर मैं सच में सब कुछ बदल दूंगी…"वह धीरे-धीरे कमरे में पहुँचती है। कमरे में जुबैर गुस्से में यहाँ से वहाँ टहल रहा था। उसका चेहरा अब भी सुर्ख था। हाथों की नसें उभरी हुई थीं और गर्दन की नसें भी साफ़ दिखाई दे रही थीं।


    वह अपनी शर्ट के बटन लगभग तोड़ते हुए उसे उतार देता है। उसके सख्त बाहें और उभरे हुए एब्स साफ नज़र आ रहे थे। उसकी फूलती हुई साँसें बता रही थीं कि वह अपने गुस्से को काबू में रखने की कोशिश कर रहा है।


    उसके माथे पर बाल बिखरे हुए थे और चेहरे पर ठंडी पसीने की बूंदें चमक रही थीं। उसे देखकर ही समझ आ रहा था कि वह इस वक़्त कितना हसीन लग रहा है।


    बुशरा के कदम दरवाज़े पर ही रुक जाते हैं। उसकी पायल की आवाज़ सुनकर जुबैर पलटता है।


    वहाँ बुशरा खड़ी थी बेदर्दी से भरी निगाहों के साथ। उसका दुपट्टा गले में ठीक से नहीं था। उसके लंबे बाल इधर-उधर बिखरे हुए थे, और माथे से निकला खून उसकी आइब्रो तक बह चुका था।


    लेकिन जुबैर ने उससे कुछ भी नहीं पूछा। बुशरा को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह उसे बस यह महसूस कराना चाहती है कि क्या उसके दर्द की उसे कोई परवाह है या नहीं।


    धीरे-धीरे वह कमरे के अंदर उसकी तरफ बढ़ती है और शांत स्वर में कहती है,

    "अरे, आप आ गए... मैं आपके लिए चाय लेकर आऊँ क्या?"

    शमशेद उसे घूर कर देखता है।

    बुशरा उसे कुछ कह ही रही होती है और फिर अपने दोनों हाथ कमर पर रखते हुए बोलती है,

    "अरे, आपको पता है आज क्या हुआ?

    आज आपके लिए मैडम ने फिर से एक बार मुझे डिस्ट्रॉय किया।

    देखिए, मेरा हाथ जल गया।"
    "ऊपर से मामी ने मुझे बहुत गुस्से में डांटा।
    कह रही थीं कि आइंदा कभी मैं किचन में कदम भी ना रखूं।
    और आपको पता है, वो जो बगीचे वाले माली अंकल हैं ना,
    वो बहुत ज्यादा खडूस हो गए हैं।"

    "बताइए, मेरी क्या गलती थी?
    अगर मैंने वहाँ से एक फूल तोड़ लिया तो?वो कितना प्यारा लग रहा था।आपको पता है, मुझे गुलाब बहुत पसंद हैं।"

    "अगर मैं उनके कंगन बनाकर अपने गोरे-गोरे, छोटे-छोटे हाथों में पहनूं,तो कितने खूबसूरत लगेंगे ना?क्या आपको मेरे हाथ अच्छे नहीं लगते?"

  • 4. juber ka eham

    Words: 1025

    Estimated Reading Time: 7 min

    उसने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिए।

    उसके हाथ सच में बहुत ही ज़्यादा सफेद थे,

    बिल्कुल किसी कश्मीरी लड़की की तरह।

    पतली-पतली, छोटी-छोटी उंगलियाँ,

    छोटी सी हथेली,और वो कलाई,जिसमें अभी भी वही घड़ी बंधी हुई थी।जुबैर उसे देखकर बुरी तरह दांत पीसने लगता है।

    वह कुछ नहीं कहता, बस दूसरी ओर देखने लगता है।


    बुशरा फिर बोल पड़ती है,"अच्छा, वो सब छोड़िए।

    मुझे बहुत नींद आ रही है।सुबह से सबको परेशान करके थक गई हूं।मैंने आयत को भी पहले ही सुला दिया है।""अब आप जल्दी से हमें हमारी गुड नाइट किस दे दीजिए,फिर हम भी सुकून से सो जाएंगे।"यह कहते हुए वह अपना गाल थोड़ा सा आगे कर चुकी थी।

    उसकी बात सुनकर जैसे जुबैर का दिल अंदर तक जल उठा।

    वह अभी कुछ ही देर पहले सब कुछ अपने दादाजान से कहकर आया था,और अब यह लड़की फिर से उसका खून खौला रही थी।


    उसने बुशरा की बाजू पकड़ी और उसे ज़ोर से अपने करीब खींच लिया।बुशरा सीधा उसके सीने से जा टकराई।

    जुबैर ने गर्दन झुकाकर गहरी और डरावनी आवाज़ में कहा,

    "तुम्हें समझ में क्यों नहीं आता कि मुझे तुमसे नफरत है!"


    "बल्कि यह नफरत आज से नहीं है,

    ना ही उस दिन से जब मैं तुमसे निकाह कर रहा था।

    मुझे तुमसे नफरत उस दिन से है,जिस दिन तुम पैदा हुई थी!"


    "जिस दिन तुम इस दुनिया में आई थी ना,

    मैंने उसी दिन से तुम्हें नफ़रत की नज़र से देखा।

    काश तुम कभी पैदा ही नहीं होतीं।""कहना तो नहीं चाहिए,

    पर फिर भी कह रहा हूं सबके लिए तुम्हारी पैदाइश एक खुशी थी,लेकिन मेरे लिए सबसे बुरा दिन था।"


    "तुम्हारे आने से मेरी ज़िंदगी बदल गई।

    हर वो चीज जो पहले मुझे मिलती थी,हर वो हक जो मेरा था,सब पर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा नाम हो गया।""नफरत है मुझे तुमसे… बहुत ही ज़्यादा नफरत!"


    "दिल करता है कि अभी,इन्हीं हाथों से तुम्हारा खून कर दूं,और तुम्हारी लाश को यहीं इस कमरे में दफना दूं।

    किसी को कानों-कान खबर तक नहीं लगेगी।सुना तुमने?"


    वह लगातार दांत पीसते हुए,बुशरा की बाजू को और भी ज़्यादा कसकर पकड़े हुए,उसे और करीब खींचते हुए बोल रहा था।

    बुशरा की तो जैसे जान ही गले में अटक चुकी थी।

    वह कांपती हुई आवाज़ में बोली,"यह... यह आप क्या कह रहे हैं? प्लीज़, छोड़िए हमें। Hme  दर्द हो रहा है... तकलीफ़ हो रही है।"उसकी आंखों से आंसू बहने लगे थे।


    जुबैर उसे घूरते हुए बिल्कुल उसी अंदाज़ में बोला,

    "अच्छा... तुम्हें तकलीफ़ हो रही है?तुम्हें दर्द हो रहा है?तो मेरे दर्द का क्या?जो मैं सालों से झेलता आ रहा हूं?"


    "मैंने सोचा था कि जब तुम बड़ी हो जाओगी,

    और तुम्हारा निकाह हो जाएगा,

    तो मेरी जान छूटेगी।पर मुझे क्या पता था कि तुम्हारा निकाह भी मुझसे ही हो जाएगा!""मेरा बस चलता ना,तो जिस दिन तुम पैदा हुई थी,उसी दिन अपने हाथों से तुम्हारी जान ले लेता।इतनी नफरत है मुझे तुमसे!"


    "लोग तुम्हारी शक्ल पर मरते हैं,

    लड़के तुम्हारी खूबसूरती की तारीफ़ करते हैं।

    क्या कहता है तुम्हारा वो दोस्त?'यह रुख़सार किसी और का हो ही नहीं सकता?'तो सुन लो मुझे तुम्हारी खूबसूरती से कोई फर्क नहीं पड़ता!"


    "भले ही तुम दूसरों की नज़रों में खास हो,

    पर मेरे लिए तुम कुछ भी नहीं हो।मैं तुम्हें कभी भी अपनाऊंगा नहीं चाहे कुछ भी हो जाए!"


    "अगर चाहो, तो अभी तलाक मांग सकती हो।

    डिवोर्स ले लो, आज़ाद हो जाओ।और अगर नहीं मांगा तलाक,तो मैं जीते जी तुम्हारी ज़िंदगी को जहन्नुम बना दूंगा!"


    "और हाँ आइंदा मेरी बेटी के आस-पास भी मत भटकना।

    जितना हो सके, उससे दूर रहना!""सुना तुमने? मैंने कहा, दूर रहना उससे।"

    "ना जाने कैसी हो तुम। ना पहनने का तरीका आता है, ना बोलने का ढंग।""जब देखो तब लड़ाई, झगड़ा। बात करने तक का सलीका नहीं है तुम्हारे अंदर।"


    "और ये क्या, ये लंबे-लंबे से बाल?इन्हें संवारना भी नहीं आता क्या?""जिस चीज को खुदा ने तुम्हें नेमत बनाकर दिया है,

    उसे भी तुम ठीक से नहीं संभाल सकती।""अक़ल तो है ही नहीं तुम्हारे अंदर। बिल्कुल भी नहीं।""और क्या कह रही थी? माली ने तुम्हें डांटा?""अरे, अच्छा किया। बल्कि उसे चाहिए था कि दो-चार और जड़ देता।

    शायद तब तुम्हारे अंदर कुछ अक़ल आ जाती।"अगर यही सब कुछ कुछ साल पहले हो गया होता,

    तो आज ये नौबत ही नहीं आती।""तुम आज इस हालत में नहीं होती।"


    "कभी अपनी बड़ी बहनों को देखा है?अपनी कज़िन्स को देखा है?कितनी सलीके से रहती हैं वो।

    उनका दुपट्टा कभी सिर से नहीं उतरता।कितनी होशियार हैं वो सब।"


    बुशरा यह सब सुनकर बुरी तरह रोते हुए जवाब देती है,

    "तो आप... तो आप उन्हीं से निकाह कर लेते ना!"

    "मैंने तो कभी नहीं कहा था कि आप मुझसे निकाह करें।"


    "मैंने तो नानू से भी नहीं कहा था कि मेरा निकाह आपसे करा दें।

    मैं तो खुद शादी नहीं करना चाहती थी!""ठीक है, मान लिया हो गया निकाह।नाम जुड़ गया।पर आप तो अब भी नहीं मानते ना।इतनी ही बुरी लगती हूं तो निकाह क्यों किया?"


    "इनकार कर देते।लोगों की तो बारातें लौट जाती हैं।

    और आप तो फिर भी घर के ही थे।कौन-से ज्यादा लोग थे वहां?""फिर भी आपने निकाह किया।और अब मुझसे उम्मीदें करते हैं!"


    "ठीक है, मैं हूं ही ऐसी।बचपन से देखते आ रहे हैं ना मुझे।

    नहीं आता मुझे, दूसरी लड़कियों की तरह सजना-संवरना!"

    खामोश! एकदम खामोश!""अब अगर तुम्हारे मुंह से एक लफ्ज़ और निकला ना, खुदा कसम, जान ले लूंगा मैं तुम्हारी।""जब देखो तब अपनी ये ज़ुबान उठाकर बक-बक शुरू कर देती हो।"अक़ल नहीं है तुम्हारे अंदर। मैं कुछ कह रहा हूं, तो सुनो। लेकिन नहीं, तुम्हें तो बस अपनी ही सुनानी होती है।"


    "और तुम्हारा वो टेस्ट... हमें तो भूल ही गया था।"
    "ग्रेजुएशन तक ही ठीक था, पर तुमने जबरदस्ती मास्टर्स भी कर लिया।""तुम्हें पता भी है तुम्हें कुछ करना नहीं है। क्यों करोगी? अमीर शहर जो मिल गया है तुम्हें।"

    "ये जो फैंसी कपड़े पहन रखे हैं, उनका बिल कौन देता है? मैं ही देता हूं ना।""तुम्हारी हर चीज़ का खर्चा मैं उठा रहा हूं। बदले में मुझे क्या मिलता है?""कुछ भी नहीं। सिर्फ़ तुम्हारी ये बकवास, जो मेरा खून खौलाती है।"

    "आई स्वेयर, मेरा बस चलता ना, तो उस तारीख को कैलेंडर से मिटा देता जिस दिन तुम पैदा हुई थी।""तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है कि अपने गुस्से में मैं तुम्हारे मासूम दिल को कितना ठेस पहुंचा रहा हूं।"

  • 5. Emotional break down

    Words: 1016

    Estimated Reading Time: 7 min

    बुशरा एक हाथ से अपने आंसू पोंछती है। उसकी बड़ी-बड़ी पलकों पर आंसू झिलमिला रहे होते हैं।वह रोते हुए कहती है, "मैंने आखिर ऐसा क्या बिगाड़ दिया है जो आप मुझसे इतनी नफरत करते हैं?""इतनी तो आप किसी से भी नहीं करते।"

    तुम नफ़रत की बात करती हो?"

    "मुझे तुम जैसी जलने वाली औरतें बिल्कुल पसंद नहीं। बिल्कुल भी नहीं!""तुम्हारे अंदर है ही क्या? सिर्फ़ दो टके की खूबसूरती?"

    "जिसे सिर्फ़ एक रात, और एक क़ुर्बत के बाद मिटाया जा सकता है।""उसके अलावा तुम्हारे पास है ही क्या?"


    उसके ये अल्फाज़ सुनकर बुशरा की तो जैसे सांस ही रुक गई।

    उसे ठीक से साँस लेना भी मुश्किल हो रहा था।


    वह खुद को काबू में करते हुए कहती है,"आपको किस चीज़ का घमंड हो गया है?""ठीक है, नहीं आता मुझे सब कुछ।""हां, मैं बहुत ही बुरी हूं, दुनिया की सबसे बुरी लड़की।"

    "तो फिर आप मुझे इतना क़रीब क्यों करते हैं?"


    "और रही बात 'कुर्बत' की, तो नहीं चाहिए मुझे किसी की क़ुर्बानी!"आपको क्या लगता है कि मैं उन लड़कियों जैसी हूं,

    जो चंद पैसे और एक रात के बाद ज़िंदगी संवार लेती हैं?"


    "तो बिल्कुल नहीं!""मुझे साबित करने की ज़रूरत नहीं कि मैं उन जैसी नहीं हूं।""मैं बहुत अच्छे से जानती हूं कि मैं कौन हूं।"


    "आप जैसे इंसान को, जिसे कुछ भी नहीं आता,

    जो अनपढ़, जाहिल और मतलबपरस्त है,

    जो बस अमीर लड़कों के पीछे भागता है आपसे क्या बहस करूं?"


    "ऐसा कीजिए ना, मुझसे खुद ही खुलकर कह दीजिए।और उसके बाद मेरा निकाह खुद सबसे अमीर इंसान से करवा दीजिए।"


    "क्योंकि इस पहाड़ में सबसे अमीर इंसान अगर नंबर वन पर है,

    तो वो मैं खुद हूं।""और जो सेकेंड नंबर पर है, वो भले ही लॉयल ना हो ek प्लेबॉय हो लेकिन तुम्हारे लिए किसी चीज़ की कमी नहीं रखेगा।"


    "हम दोनों राइवल्स हैं,लेकिन तुम्हारी खूबसूरती देखकर...खुदा कसम, वह एक बार में ही मान जाएगा।""बताओ, बात करूं उससे?""चलिए, मैं डायरेक्ट उसी से तुम्हारी बात करवा देता हूं।"



    ये सुनकर तो जैसे बुशरा के पूरे शरीर में आग लग गई।

    उसने गुस्से में आकर अपना हाथ उठाया और सीधा जुबेर के गाल पर दे मारा।


    थप्पड़ की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया।जुबेर का चेहरा एक तरफ झुक गया था।उसकी आंखें गुस्से से लाल हो रही थीं।uska  पूरा शरीर गुस्से से तप रहा था।


    इतने करीब खड़े होने की वजह से बुशरा को भी उसके गुस्से का पूरा एहसास हो चुका था।वह डरते हुए अपनी नज़र ऊपर उठाकर जुबेर की ओर देखने लगी।उसकी आंखों में इतनी खतरनाक नज़र थी कि बुशरा अंदर तक कांप गई।


    वह अपने हाथ को घूर रही थी।उसके होंठ कांप रहे थे, लेकिन वह कुछ भी बोल नहीं पा रही थी।


    जुबेर गुस्से में आगे बढ़ा।उसने बुशरा के बालों को कसकर पकड़ा और उसका चेहरा अपने करीब खींचते हुए बर्फ सी ठंडी और खौफनाक आवाज़ में बोला,"तुम्हारी इतनी हिम्मत कि मुझ पर हाथ उठाओ?"औक़ात क्या है तुम्हारी?"


    "तुम सिर्फ धूल हो, जिसे मैं कभी भी अपने पैरों तले रौंद सकता हूं।""कुछ भी नहीं हो तुम!"


    "ये तो मेरा भला है कि मैं तुम्हें अब तक बर्दाश्त कर रहा हूं।

    वरना तुम्हारी औक़ात नहीं कि मेरे सामने खड़ी भी हो सको।"


    "आइंदा अगर मेरी तरफ नज़र भी उठाई ना,

    तो कसम खुदा की तुम्हारी जान निकाल दूंगा।"


    बुशरा पहले ही उसकी हरकत, उसकी नज़र और उसके गुस्से से काँप चुकी थी।उसका गला सूख गया था।उसका पूरा शरीर थरथर कांप रहा था।uski  आंखों से आंसू बुरी तरह बह रहे थे।होंठ कांप रहे थे, लेकिन मुंह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा था।

    जुबेर उसे वेसे ही कस के धक्का देता है।

    बुशरा सीधा ज़मीन पर गिर जाती है।


    उसकी काँच की चूड़ियाँ, जो कल ही हाथों में डाली गई थीं, टूट जाती हैं।मेहंदी लगे हाथों पर और सिर पर चोट लगती है।

    वही ज़ख्म फिर से फट जाता है, और वहाँ से खून बुरी तरह बहने लगता है।


    वह पहले ही गुस्से और दर्द में थी, पर चोट लगने पर उसने अपनी आंखें बंद कर लीं,जैसे अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश कर रही हो।


    वह पीछे पलटकर देखती है,जहां जुबेर बिना किसी हाव-भाव के खड़ा था, जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा हो।

    बुशरा अपनी जगह से खड़ी होती है,

    और जुबेर को घूरने लगती है।


    उसने एक शब्द भी नहीं कहा,उसकी आंखों से आंसू पहले ही बह रहे थे,पर चेहरा एकदम ठंडा होता जा रहा था।


    उसका पूरा शरीर कांप रहा था।वह अब भी जुबेर को घूर रही थी।जुबेर, जो उसकी तीखी नज़रें महसूस कर रहा था,

    बिना उसकी तरफ देखे ही बोला,"क्या हुआ? जान लोगी क्या मेरी?"


    "इस तरह से देखकर क्या जान लोगी?"

    "तुम्हारे अंदर इतनी ताकत भी नहीं कि मेरी जान ले सको।"


    "जुबेर अंसारी को मिटाने वाले इस दुनिया में आए ही नहीं हैं।

    और तुम ख्वाब देख रही हो मुझे मिटाने का?"


    "चलो, छोड़ो ये सब। बस इतना बताओ तुम्हें कितने पैसे चाहिए?"मैं तुम्हें पूरी रकम दूंगा, और तुम मेरी जिंदगी से हमेशा के लिए चली जाओ।"कहते हुए उसकी मुठिया मजबूत हो जाते हैं 



    उसे अपने सीने में उसकी एक-एक बात चुभती हुई महसूस हो रही थी।ऐसा लग रहा था जैसे हजारों सुइयाँ एक साथ उसके सीने पर रखी जा रही हों।


    उन दो महीनों के अंदर न जाने क्यों वह खुद जुबेर की तरफ़ अट्रैक्ट होने लगी थी।उसे उसके चेहरे से, उसकी घूरती हुई नज़रों से, प्यार-सा होने लगा था।


    वह कुछ देर तक वैसे ही चुपचाप खड़ी रही।

    फिर जुबेर बिना कुछ कहे सीधा बाथरूम में चला गया।

    उसने दरवाज़ा बहुत ज़ोर से पटका था।


    जुबेर उसकी इस हरकत पर बुरी तरह तिलमिला उठा।

    वह ऊँची आवाज़ में बोला,"तुम्हारी मां ने ये दरवाज़ा नहीं लगवाया था इस कमरे में,

    जो इस तरह से पटक रही हो!सुना तुमने?"


    पर बुशरा ने कोई जवाब नहीं दिया।वह बस बुरी तरह दरवाज़े को घूरती रही, फिर कैमरे से बाहर निकल गई।


    इस वक़्त जुबेर को बुशरा पर सच में बेहद ग़ुस्सा आया था।

    इतना कि उसे लगा, वह उसकी जान ले लेगा।पर खुद को काबू में रखते हुए, वह वहाँ से निकल गया।

    so hello everyone ye new story hai ful muslim based i kafhi time baad likhi hai I hope aap logo ko pasand ayegi so enjoy kriye

  • 6. fever

    Words: 1041

    Estimated Reading Time: 7 min

    सुबह का वक़्त…


    शमशेर अंसारी लिविंग हॉल में हाथ में चाय का कप लिए बैठे थे।

    वो बार-बार कमरे की तरफ़ देख रहे थे।


    तभी एक औरत, हाथों में ट्रे लिए, उनके नज़दीक आती है और कहती है,"मुझे समझ नहीं आ रहा कि ये लड़की आखिर कर क्या रही है।इतनी देर तक तो कभी नहीं सोती, और आज सुबह से एक बार भी नज़र नहीं आई।आयत भी कब से उसके पास जाने की ज़िद कर रही है।सर, मुलाज़िम दरवाज़ा खटखटा-खटखटा कर थक चुके हैं।पर मजाल है कि ये लड़की उठी हो।"


    कोच पर बैठे सिकंदर जी हैरानी से कहते हैं,

    "ये आप क्या कह रही हैं? बुशरा इतनी देर तक नहीं उठी?

    वो तो फज्र में ही उठ जाती है और हमेशा आयत के पास होती है।अब तो 9 बज गए हैं, और आप अभी बता रही हैं?"


    "हमें एक बार चलकर देखना चाहिए।आख़िर कर क्या रही है?"


    उनके दिमाग में अब भी कल रात की बातें घूम रही थीं।

    उन्हें कहीं न कहीं किसी बात का डर लग रहा था।


    वो जल्दी से बुशरा के कमरे के पास पहुंचे और दरवाज़ा बजाते हुए बोले,बेटा, उठ गई क्या?देखो, आयत तुम्हारे पास आने के लिए कब से रो रही है।अब सुन क्यों नहीं रही?"


    किन्ज़ा जी उनकी तरफ़ देखते हुए कहती हैं,

    "आपको क्या हुआ?आप परेशान लग रहे हैं।

    और सुबह से जुबेर भी नज़र नहीं आया।"


    "भाभी अपने कमरे में नाश्ता कर रही थीं,

    पर उनकी भी तबीयत ठीक नहीं लग रही।

    कुछ हुआ है क्या?हमें तो कुछ भी नहीं बताया गया।"

    सिकंदर साहब उनकी तरफ़ देखते हुए बोले,

    "आप फ़िज़ूल ही इतना परेशान हो रहे हैं। पहले देख तो लेने दीजिए।"


    पर जब अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई, तो सिकंदर जी ने दरवाज़े के हैंडल पर हाथ रखा।

    दरवाज़ा पहले से ही खुला हुआ था। वो लोग सीधे अंदर आ गए।


    कमरे में एक गहरी खामोशी छाई हुई थी।

    उनकी नज़र सीधा बिस्तर पर पड़ी जो बिल्कुल साफ़-सुथरा था।उसे देखकर लग ही नहीं रहा था कि वहां कोई सोया होगा।


    तभी बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ आ रही थी।

    सिकंदर अंसारी, इज़हार की तरफ़ देखते हुए इशारा करते हैं, और दोनों बाथरूम के दरवाज़े की तरफ़ बढ़ते हैं।

    पर अंदर से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी।


    अब उन्हें हल्की-हल्की घबराहट होने लगी।


    सिकंदर अंसारी दरवाज़े को ज़ोर से धक्का देते हैं।

    धक्का देते ही दरवाज़ा खुल जाता है।लेकिन वो खुद अंदर नहीं जाते, बाहर ही खड़े रह जाते हैं।


    किन्ज़ा जी जैसे ही अंदर जाती हैं, उनके मुंह से एक जोरदार चीख निकल जाती है।


    "या अल्लाह! बच्चे को क्या हो गया! आंखें खोलो! बोलो!"

    कहते हुए वह तेजी से अंदर जाती हैं।


    बाथरूम में शावर का ठंडा पानी लगातार चल रहा था,

    और उसके नीचे बुशरा बेहोशी की हालत में पड़ी हुई थी।


    उसके पूरे कपड़े भीग चुके थे, जो अब उसके जिस्म से चिपक गए थे।


    किन्ज़ा जी की तेज चीख सुनकर सिकंदर अंसारी भी अंदर आते हैं,और बुशरा की हालत देखकर जैसे उनके पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है।उसकी वो नूरानी रंगत अब बिल्कुल सफेद पड़ चुकी थी,होंठ नीले हो चुके थे, और शरीर भट्टी की तरह तप रहा था।

    वह जल्दी से बुशरा को गोद में उठाते हैं और कमरे की ओर भागते हैं।उसे बेड पर लिटाकर, तुरंत बाहर निकलते हुए कहते हैं,मैं अभी डॉक्टर को कॉल करता हूँ, तब तक तुम इसका ख्याल रखना।"


    शमशेर अंसारी बस सिर हिलाकर हामी भरते हैं।

    उनके जाने के बाद, वह दरवाज़ा अंदर से बंद कर लेते हैं।

    बुशरा के भीगे हुए कपड़े बदलते हैं और उसे दोबारा बिस्तर पर लिटा देते हैं।फिर ठंडे पानी की पट्टियाँ उसके तपते हुए माथे पर रखने लगते हैं।


    वह नींद में बुरी तरह काँप रही थी।शरीर जैसे आग की तरह तप रहा था।शमशेर अंसारी की आंखों से आंसू बहने लगते हैं।

    उसके माथे को चूमते हुए वे कहते हैं,"या खुदा, ये क्या हो गया मेरे बच्चे को…कल तक तो हँस-बोल रही थी, और अब ये हाल?

    मेरी जान… आंखें खोलो। देखो, तुम्हारी मामी यही हैं… हम सब यहीं हैं!"
    उन्होंने बस इतना ही कहा था कि तभी दरवाज़े पर दस्तक होती है।


    वे जल्दी से जाकर दरवाज़ा खोलते हैं।

    सामने सिकंदर अंसारी एक लेडी डॉक्टर के साथ खड़े होते हैं।

    लेडी डॉक्टर तुरंत अंदर आती हैं और बुशरा का चेकअप शुरू कर देती हैं।


    उनके पीछे बाकी घरवाले भी कमरे में आ जाते हैं।

    सभी के चेहरे चिंता और घबराहट से भरे होते हैं।


    कभी ऐसा नहीं हुआ था कि बुशरा की तबीयत इतनी खराब हो,

    और घर के किसी सदस्य को भनक भी ना लगे।

    उसे अगर ज़रा सी खरोंच भी लगती थी तो वह पूरा घर सिर पर उठा देती थी।और आज… आज ये क्या हो गया?


    सभी के मन में पिछली रात की बातें घूम रही थीं।


    सिकंदर अंसारी और शमशेर अंसारी का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था।

    उन्हें इस वक्त अपने बेटे और पोते पर इतना गुस्सा आ रहा था,

    कि डर था  कहीं कोई बड़ा कदम ना उठा लें।इसी बीच, कमरे में किसी बच्चे के रोने की आवाज़ गूंजती है।


    सिकंदर साहब पीछे मुड़कर देखते हैं जहाँ 3 साल की आयत, हाथ में एक छोटी सी डॉल लिए खड़ी थी और रो रही थी।


    उसके छोटे-छोटे बालों में बार्बी क्लिप्स लगी थीं wo इस वक्त नाइट सूट में थी, और उसका मासूम सा चेहरारो-रोकर पूरा लाल पड़ चुका था।

    सिकंदर साहब उसके पास आते हैं,

    उसे गोद में उठाकर प्यार से पूछते हैं,

    "ना मेरे बच्चा… शांत हो जाओ। मामा को कुछ नहीं होगा, मामा जल्दी ठीक हो जाएगी।"


    आयत, रोते हुए अपने दोनों हाथ बुशरा की ओर बढ़ाते हुए चिल्लाती है,"mamma! mamma को क्या हुआ? मामा उठो… mamma…!"


    उसकी आवाज़ बहुत तेज़ थी, पूरे कमरे में गूंज रही थी।

    पर आयत खुद भी बुखार से तप रही थी।

    सिकंदर साहब जल्दी से आयत को गोद में लेते हैं,

    उसे सीने से लगाकर शांत करवाने लगते हैं।


    भला वह कैसे आयत को बुशरा के पास जाने देते?

    बुशरा खुद इतनी ज़्यादा बुखार में तप रही थी।अगर वह होश में होती, तो कभी भी आयत की आंख से एक आंसू तक गिरने नहीं देती।


    डॉक्टर अपनी जगह से खड़े होते हुए कहते हैं,

    "इन्हें कोई वायरल फीवर नहीं है,लगता है इन्होंने किसी चीज़ का बहुत ज़्यादा स्ट्रेस ले लिया है।साथ ही ये पूरी रात पानी में भीगी हुई थीं,इसीलिए इतना तेज़ बुखार हो गया।

  • 7. khalipan

    Words: 1007

    Estimated Reading Time: 7 min

    डॉक्टर अपनी जगह से खड़े होते हुए कहते हैं,

    "इन्हें कोई वायरल फीवर नहीं है,लगता है इन्होंने किसी चीज़ का बहुत ज़्यादा स्ट्रेस ले लिया है।साथ ही ये पूरी रात पानी में भीगी हुई थीं,इसीलिए इतना तेज़ बुखार हो गया।


    मैंने दवाई लिख दी है और इंजेक्शन भी लगा दिया है।

    आप समय-समय पर दवा देते रहिए और कोशिश कीजिए कि ये खुश रहें।इनकी हार्टबीट बहुत कमजोर चल रही है।


    कुछ ज़रूरी हिदायतें देकर डॉक्टर वहां से चले जाते हैं।


    सिकंदर साहब अब भी आयत को अपने पास बिठाकर

    बुशरा के माथे पर ठंडी पट्टियाँ रखने लगते हैं।


    आयत, अपने छोटे-छोटे हाथों से बुशरा का चेहरा धीरे-धीरे छू रही थी।उसकी आंखें लगातार रोने से लाल हो चुकी थीं।

    दो दिन इसी तरह गुजर गए।ना तो जुबेर घर आया था,और ना ही उसने फोन करके किसी से कोई राब्ता करने की कोशिश की थी।घर में से भी किसी ने उससे संपर्क नहीं किया था।


    सिकंदर साहब और शमशेर साहब, दोनों ही जुबेर पर बेहद गुस्से में थे।सिर्फ और सिर्फ उसी की वजह से आज उनकी फूल जैसी बच्ची इस हालत में पहुंची थी।


    अब बुशरा पहले से थोड़ा बेहतर थी,पर उसके चेहरे पर ना वो रौनक थी,ना ही वो पहले जैसी मुस्कान।


    वह आयत के साथ भी कम बोल रही थी,

    बस थोड़ा-बहुत जवाब देती,जैसे किसी अनजाने डर या दूरी में घिरी हो।





    रात का वक्त था।

    सभी लोग डाइनिंग टेबल पर अपनी-अपनी चेयर पर बैठे हुए धीरे-धीरे खाना खा रहे थे। बुशरा ने आयत को खाना खिलाना जरूरी नहीं समझा था।


    घर वाले उसके इस व्यवहार से थोड़ा परेशान थे,मगर फिर भी किसी ने कुछ नहीं कहा।


    आयत खुद ही उसकी तरफ आती है,और उसके कपड़े खींचकर उसकी गोद में चढ़ने की कोशिश करती है।


    बुशरा उसे गोद में उठाती है,पर तुरंत बगल वाली चेयर पर बिठाते हुए कहती है,

    "बच्चा… अब आप बड़ी हो गई हैं ना,इस तरह मामा की गोद में नहीं चढ़ते।चलिए, अपने हाथ से खाना खाइए।"


    वह उसे खाना खाना सिखा रही थी,पर किंजा जी को उसकी यह हरकत बहुत बुरी लगी।


    उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि बुशरा, आयत के साथ ऐसा बर्ताव कर सकती है।वह कुछ कहने ही वाली थी कि सिकंदर साहब उसका हाथ पकड़कर चुप रहने का इशारा कर देते हैं।

    आयत, जिसे ठीक से खाना भी नहीं खाया जा रहा था, बार-बार कपड़ों पर खाना गिरा रही थी।यह सब देखकर बहुत बुरा लग रहा था।


    सिकंदर साहब आगे बढ़ते हैं और उसे अपनी गोद में बैठाकर प्यार से खाना खिलाने लगते हैं।जैसे ही आयत उनकी गोद में जाती है, उसे सुकून मिल जाता है।वह अच्छे बच्चों की तरह खाना खाने लगती है।


    बुशरा उसे अच्छे से खिलाकर उसके कमरे में ले जाती हैं और सुला देती हैं।




    कुछ देर बाद, बुशरा शमशेर साहब के कमरे से बाहर आती हैं।

    उसके चेहरे पर कोई भी भाव नहीं होते, बस मायूसी और थकी हुई आंखें  जो पूरी तरह लाल थीं।


    वह आगे बढ़ ही रही थी कि अचानक उसके कानों में जूते की आवाज़ सुनाई देती है।वह हल्का-सा सिर नीचे झुका देती है।

    इस वक्त वह सेकंड फ्लोर पर थी।


    उसकी नजर सीढ़ियों से ऊपर आ रहे एक शख्स पर पड़ती है 

    सफेद शर्ट, जिसके बटन खुले हुए थे,बाल माथे पर बिखरे हुए,

    आंखें सूजी हुई जैसे वो कई रातों से ठीक से सोया भी न हो।





    उसे देखकर बुशरा धीमे-धीमे कदमों से चुपचाप अपने कमरे में चली जाती है,और दरवाजे को इतनी आहिस्ता बंद करती है जैसे वहां कोई हो ही नहीं।

    उधर वही जुबेर, जो अभी कमरे में दाखिल हुआ था,

    उसकी नजर सीधा डाइनिंग टेबल पर पड़ती है।

    वहां एक छोटा सा बल्ब जल रहा था, पर चेयर खाली थी।


    टेबल पर कुछ सामान पहले जैसा नहीं था 

    जैसे कुछ गायब हो गया हो।यह देख, उसके कदम एक पल के लिए रुक जाते हैं।

    पर अगले ही पल वह बिना कुछ सोचे,

    सीधा अपने कमरे की तरफ बढ़ जाता है।

    जैसे ही वह दरवाजा खोलता है, उसकी नजर बेड के एक कोने पर पड़ती है,जो अब खाली लग रहा था।


    उसे देख कर उसकी आंखों में कुछ चुभ सा जाता है।

    वह आगे बढ़कर बेड की बेडशीट को हल्का सा छूता है।


    इसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने इस कमरे को छुआ तक नहीं हो।वह इस पर ज्यादा ध्यान न देते हुए सीधा वॉशरूम में चला जाता है।


    कुछ देर बाद, नहा कर वापस बाहर आता है।

    इस वक्त उसने ब्लैक कलर का पठानी सूट पहना हुआ था,

    जिसके कुर्ते के बटन खुले हुए थे।

    स्लीव्स को उसने बाजुओं तक मोड़ रखा था।

    बाल हल्के से बिखरे हुए थे।


    वह बालों में हाथ फेरते हुए सीधा कमरे से बाहर आता है

    और आयत के कमरे की तरफ कदम बढ़ा देता है।


    जैसे ही दरवाजा खोलता है,

    उसकी नजर बेड पर डॉल्स के बीच सो रहे उस छोटे से मासूम बच्चे पर पड़ती है,जिसने अपने एक उंगली को मुंह में लिया हुआ था।


    वह उसे चूसते हुए गहरी नींद में था।उसे देखकर जैसे जुबेर की तरसती आंखों को सुकून मिल गया हो।


    वह आगे बढ़कर उसके नजदीक आता है,

    उसके माथे पर एक किस करता है,और उसे सीने से लगाते हुए कहता है 


    "अपने अब्बा को मिस किया, प्रिंस?

    माफ करना प्रिंस,आपके अब्बा बहुत बुरे हैं।

    उन्हें गुस्सा ही इतना आ गया था...पर आगे से आपको छोड़कर कभी इतना दूर नहीं जाएंगे  I promise."

    यह कहते हुए वह उसके दोनों गालों पर प्यार से बड़ी-बड़ी चुमियां देता हैऔर फिर थोड़ा दूर हो जाता है।


    तभी उसकी नजर उस जगह पर जाती है,जहां अक्सर बुशरा और आयत को एक-दूसरे की बाहों में सोते देखा करता था।

    उस खाली जगह को देखते ही, जुबेर की आइब्रो चढ़ जाती हैं।

    वह चारों तरफ कमरे में नजर दौड़ाते हुए खुद से कहता है,

    "अब ये लड़की कहां चली गईहर वक्त बस तमाशा लगाना होता है इसे!"वह बड़बड़ाते हुए सीधा कमरे की पूरी तलाशी लेता है,

    लेकिन बुशरा उसे कहीं भी नजर नहीं आती।

    वह तेजी से भागते हुए छत पर चला जाता है,

    जो इस वक्त बिल्कुल वीरान थी।



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  • 8. ishq -e-  ibadat - Chapter 9

    Words: 1048

    Estimated Reading Time: 7 min

    वह अपने विचारों को थामते हुए कहता है,

    "ये लड़की ना… सच में नाक में दम कर रखा है।

    जितनी बड़ी हो रही है, उतनी ज़्यादा सिर चढ़ रही है।

    कम से कम तुम मेरी बेटी तो नहीं हो,तुम्हारी जैसी शैतानियां तो नहीं करती!"





    तभी उसके दिमाग में कुछ आता है,

    पर वह उसे नजरअंदाज़ करते हुए सीधा अपने कमरे में लौट जाता है।उसे लगा था कि अब तक तो बुशरा थक-हार कर वापस लौट आई होगी।

    लेकिन जैसे ही वह कमरे में वापस आता है,

    कमरा अब भी वैसा ही खाली और शांत था।


    वह जाकर बेड टेबल के पास बैठता है,और उसकी नजर उस जगह पर जाती हैजहां हर रोज उसके आने के बाद एक कॉफी का कप रखा रहता tha 

    आज वहां कुछ भी नहीं था।उसे देख कर उसकी आंखें मजबूती से बंद हो जाती हैं।


    वह गहरी सांस छोड़ते हुएसीधा किचन की तरफ चला जाता है।


    उसे यकीन था कि बुशरा वहीं होगी,क्योंकि पिछले दो महीने से,चाहे वह जुबेर रात के किसी भी पहर लौटे बुशरा उसे या तो एक स्ट्रॉन्ग कॉफी देती थीया हल्दी वाला दूध।


    उसे घर के बाकी काम ज्यादा नहीं आते थे,

    पर कुछ चीजें थीं,जो सिर्फ और सिर्फ बुशरा ही किया करती थी।जुबेर ने उसे कभी ऐसा करने को नहीं कहा था,

    पर वह खुद ही कर लिया करती थी।जैसे  उसका रात में इंतज़ार करते-करतेडाइनिंग टेबल पर ही सो जाना,या फिर उसके नहाकर बाथरूम से निकलते हीउसके सामने गरमा गरम कॉफी रख देना।


    सुबह उठते ही,उसे बेड टेबल पर चाय मिलती थी।


    पर अब ये सारी चीजें गायब थीं।सब कुछ जैसे खाली हो गया था।

    वह जैसे ही किचन में आकर कुछ कहने ही वाला होता है,

    उसकी नजर खाली स्लैब पर पड़ती है।उसे देखकर उसके माथे पर बल पड़ जाता है।





    वह पीछे की तरफ मुड़ता है,तभी उसकी नजर एक मुलाज़िम पर पड़ती है,जो घबराया हुआ उसी की तरफ देख रहा होता है।



    जुबेर उसे घूरते हुए कहता है,"मेरी कॉफी अभी तक कमरे में क्यों नहीं आई?तुम लोग क्या दो दिन में सब भूल जाते हो?क्या तुम्हें लगता हैकि मैं ये सब कुछ छोड़ चुका हूं?"


    मुलाज़िम जल्दी से सिर हिलाता हैऔर घबराकर कहता है,

    "माफ करना साहब,वो बुशरा बिटिया का कहना थाकि रात 10 बजे के बादखाने के बाद सभी मुलाजिमअपने-अपने कमरे में जाकर आराम करें।तो हम लोग तो कभी रात में आपको कॉफी देते ही नहीं थे।"


    "अब दोपहर में आकर एहसास हुआ…कि वो तो सब बुशरा करती थी।"




    ये सुनते ही जुबेर के जबड़े भींच जाते हैं,उसकी मुठ्ठियाँ कस जाती हैं।वह गुस्से में कहता है "एक बार तुम मिल तो जाओ,

    फिर मैं देखता हूं,तुम्हारी कैसी खाट खड़ी करता हूं!"

    मुलाज़िम कुछ ही देर में उसके पास आता है।

    कहता है, "साहब, ये रही आपकी कॉफी।

    अगर और कुछ चाहिए हो तो बता दीजिएगा।"


    जुबेर जैसे ही मग को होठों से लगाता है,

    उसका चेहरा अचानक बिगड़ जाता है।

    वह मग को साइड में रखते हुए चिढ़कर कहता है,

    "ये क्या बकवास चीज़ है?कॉफी ऐसे बनती है क्या?"


    मुलाजिम सहम जाता है,"माफ़ कीजिए साहब,

    पिछले दो महीने से सिर्फ बुशरा बिटिया ही आपको कॉफी बना रही थीं।उन्होंने हमें मना किया था किआपकी कॉफी वही बनाएंगी...क्योंकि ये उनकी बनाई ‘स्पेशल कॉफी’ होती थी जो आपको पसंद है।इसलिए हमें तरीका ही नहीं पता।हम कल उनसे पूछ लेंगे।"


    जुबेर की आंखें गुस्से से लाल हो जाती हैं।

    "क्यों? क्या उसके हाथों में मेहंदी लगी हुई है

    जो अब मेरे लिए कॉफी नहीं बना सकती?

    इतनी जल्दी भूल गई कि बीवी होने के क्या हक होते हैं?"


    वह एक तीखी नज़र से मुलाजिम को देखता है।

    मुलाजिम के चेहरे पर कुछ ना-गवारी सी साफ़ झलकती है।

    शायद ये कोई ऐसा जुमला था,जो जुबेर के मुंह से पहली बार निकला था बीवी होने का हक।


    वह बिना और कुछ कहेतेज़ क़दमों से अपने कमरे की ओर चला जाता है।


    कमरे में घुसते हउसे अजीब सा खालीपन महसूस होता है।


    हर कोना… हर दीवार…जैसे उसकी आदत बन चुकी थी

    उन चूड़ियों की खनक की,पायल की धीमी छनक की।


    वह जहां भी देखता…बस एक खामोश सी कमी महसूस होती।


    वह आंखें बंद करता है…उसे लगता है जैसेउसकी खुशबू अभी भी कमरे में है।जैसे वह अभी-अभी इस कमरे से निकली हो।

    पर जैसे ही वह आंखें खोलता है कमरा खाली होता है।

    पूरा सूना।

    जुबेर जाकर सीधा बेड पर लेट जाता है।

    उसने कमरे की लाइट्स बंद कर दी थीं।वह बेड पर करवटें बदल रहा था,पर उसकी आंखों में नींद नहीं थी।


    वह दो रातों से सोया नहीं था।

    उसे सुकून चाहिए था,पर जैसे उसका सुकून उससे छिन गया हो।

    करवटें बदलते-बदलतेबहुत मुश्किल से सुबह के करीब 3 बजे जाकरउसे थोड़ी नींद आती है।


    लेकिन 7 बजे अचानक उसकी आंख खुल जाती है।

    दरअसल, उसके कमरे के दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी थी।


    वह एकदम से उठकर बैठ जाता है,

    दरवाजा खोलता है…पर सामने कोई नहीं था।


    वह सिर झटकते हुएकुछ देर में फ्रेश होकर कमरे से बाहर आता है।


    इस वक्त उसने व्हाइट कलर की फॉर्मल शर्ट

    और ग्रे कलर की पैंट पहनी हुई थी।एक हाथ में ब्लेज़र था,दूसरे हाथ में लैपटॉप बैग।


    जुबेर सीधा अपनी चेयर पर जाकर बैठ जाता है।


    उसकी नजर अब बुशरा पर पड़ती है,

    जिसने आज गुलाबी रंग का फ्रॉक-सूट पहना हुआ था।

    उसने बालों को हल्का सा साइड-पार्ट करके क्लच से बांध रखा था,कुछ बाल उसके चेहरे पर गिर रहे थे।


    वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी,और उसके ठीक पीछे आयत थी,जो बुशरा के दुपट्टे को पकड़कर पूरे घर में उसके पीछे-पीछे घूम रही थी।


    जहां बुशरा जाती,आयत भी वहीं पहुंच जाती।


    जुबेर की नजर एक लम्हे के लिए बुशरा पर ठहर जाती है।

    पर वह बिना कुछ कहे,बिना उसे घूरे,सीधा अपने नाश्ते की टेबल की तरफ देखता है।


    वह देखता है कि उसकी कॉफी वहां नहीं है।


    वह चिढ़कर बोलता है,मेरी कॉफी कहां है?"


    इस बीच बुशरा,जो इस वक्त सिकंदर साहब और शमशेद साहब के बीच खड़ी थी,उन्हें ब्रेकफास्ट सर्व कर रही थी।


    उसका चेहरा थोड़ा उतरा हुआ था,जैसे तबीयत कुछ ठीक न हो।


    वह हाथ में प्लेट पकड़करसिकंदर साहब की तरफ देखते हुए कहती है,


    "मामू, मैं मामी को नाश्ता देकर आती हूं।तब तक आप लोग नाश्ता करिए।"

    वह उसे इस तरीके से नज़रअंदाज़ कर गई थी,जैसे सुबह वहां पर वो था ही नहीं।यह देख जुबेर के जबड़े कस जाते हैं।


    वह बेइज़्जती का घूंट पीते हुए,बुशरा की पीठ को घूर रहा था,जब तक कि वह उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गई।

  • 9. ealergi

    Words: 1068

    Estimated Reading Time: 7 min

    वहीं, शमशेर साहब और सिकंदर साहब,दोनों ने भी उसे पूरी तरह से अनदेखा कर दिया था।


    आयत,जिसकी नजर जैसे ही जुबेर पर पड़ती है,

    वह खुशी से उछलती हुई उसकी तरफ भागती हैऔर उसके पैरों से लिपट जाती है।


    जुबेर उसे अपनी गोद में उठाता है,फिर गोद में बिठाकरउसके गालों को चूमते हुए प्यार से कहता है,


    "कैसी हो मेरी प्रिंसेस?तुमने ब्रेकफास्ट किया?

    चलो आज तुम्हारे अब्बा तुम्हें फीड करवाएंगे।"



    उसके ये कुछ जुमले सुनकर सिकंदर साहब बिना उसकी तरफ देखे बोलते हैं:


    "जो मर्द अपनी बीवी का ख्याल नहीं रख सकता,

    उसे क्वीन की तरह नहीं रख सकता,

    उसे अपनी बेटी को भी प्रिंसेस ट्रीटमेंट देने का हक नहीं होता।

    क्योंकि उसे भी तो एक दिन अपने ससुराल जाना है।

    क्या पता वहां जाकर उसे तुम्हारे जैसे ही शौहर मिल जाए…

    तो वह तो टूट जाएगी ना?"


    जुबेर गुस्से से अपनी नज़र उठाकरसीधे सिकंदर साहब की तरफ देखता है,और घूरते हुए जवाब देता है:


    "आपको जो भी कहना है,सीधा-साफ कहिए ना।इस तरह मेरी बेटी को बीच में क्यों ला रहे हैं?"


    "और जहां तक बात है मेरी बेटी की…तो उसके अब्बा उसके लिए सबसे होनहार लड़का लेंगे,जो घर जमाई भी बन जाए अगर ज़रूरत पड़ी।तो आपको उसकी फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है।"


    वह बोलते हुए फिर से आयत को प्यार से नाश्ता करवाने लगता है।

    तभी उसके कानों में पायल की छनक की आवाज़ पड़ती है.

    वह आवाज़ अनसुनी करता हुआ आयत को ब्रेकफास्ट करा रहा था.


    आयत, जो हाथ में खाली ट्रे लिए नीचे आ रही थी.

    जैसे ही उसकी नज़र आयत पर पड़ती है,

    अगले ही पल उसकी आंखें हैरानी से बड़ी हो जाती हैं.


    उसके हाथ से प्लेट लगभग छूट जाती है.

    वह भागते हुए आयत के पास आती है.


    जुबेर की गोद से उसे लेते हुए

    वह तुरंत उसके मुंह में उंगलियां डालती है,

    ताकि वह ब्रेकफास्ट जो अभी-अभी खाया था, निकाल सके.


    जुबेर गुस्से में उसकी बाजू पकड़ता है.


    "ये क्या बेहूदगी है?

    तुम्हें नजर नहीं आ रहा मैं उसे ब्रेकफास्ट करवा रहा हूं,

    और तुम इस तरह से उसे ठीक से खाने भी नहीं दे रही हो."


    बुशरा को उसकी बाजू पर जुबेर की पकड़ से तेज़ दर्द होता है.

    उसकी इस हरकत पर शमशेद साहब और सिकंदर साहब

    अपनी-अपनी जगह से खड़े हो जाते हैं.


    बुशरा खुद को छुड़ाते हुएसिकंदर साहब की तरफ देखती है.


    "मामू. जल्दी से डॉक्टर को कॉल करिए.

    आयत को एलर्जी है पीनट से.और इस पराठे में पीनट्स थे."


    बोलते हुए वह अपनी बाजू छुड़ाती हैऔर आयत को जल्दी से गोद में ले लेती है.


    उसकी आंखें नम हो चुकी थीं.वहीं जुबेर के हाथ हवा में ही रह जाते हैं.वह यह इतनी बड़ी बात कैसे भूल सकता था.

    उसे अपनी गलती पर गिल्ट हो रहा था.


    सिकंदर साहब तुरंत डॉक्टर को कॉल करते हैं.

    आयत पूरे शरीर में खुजली कर रही थी.

    बुशरा उसे सहलाते हुए कहती है,

    "कुछ नहीं होगा बच्चा. बस थोड़ी देर और."


    सिकंदर साहब मुलाजिम की तरफ देखते हुए कहते हैं,

    "जाकर कुछ बर्फ के टुकड़े लेकर जल्दी कमरे में आइए."


    बुशरा, आयत को लेकर भागते हुए कमरे में जाती है.

    वह उसके कपड़े अलग करती है

    और धीरे-धीरे पूरे शरीर पर बर्फ रगड़ने लगती है.


    बर्फ से उसकी एलर्जी थोड़ी दब रही थी,

    लेकिन आयत अभी भी बुरी तरह से रो रही थी.


    कुछ देर बाद एक डॉक्टर कमरे में आती है.

    वह आयत को इंजेक्शन लगाती है.


    जुबेर, जो कमरे के दरवाजे पर ही खड़ा था,

    एकटक आयत को देख रहा था.


    आयत पूरी तरह से बुशरा के सीने में छिपी हुई थी.

    बुशरा ने अपनी आंखें मजबूती से बंद कर रखी थीं.

    जैसे उसे खुद ही आयत का दर्द महसूस हो रहा हो.


    डॉक्टर कुछ इंजेक्शन लगाने के बादजुबेर की तरफ देखते हुए गुस्से से कहती हैं 


    "आप कैसे पिता हैं?

    आपको यह तक नहीं पता कि आपकी बेटी को एलर्जी है?

    अगर हमें वक्त पर नहीं बुलाया जाता,तो पता है क्या हो सकता था?उसे सांस लेने में भी परेशानी होती है.आपने हमें बहुत डिसएप्वाइंट किया है."


    डॉक्टर कुछ दवाइयां लिखती हैं."इन्हें समय पर देना न भूलें."


    साथ ही वह एक प्रिस्क्रिप्शन बुशरा को थमा देती है.

    उसे सच में यह बात बहुत ज्यादा बुरी लगी थी.

    जुबेर अंदर ही अंदर गिल्ट के घूंट पी रहा था.


    बुशरा, आयत को बिस्तर पर लिटा कर

    उसके सिर पर प्यार से चूमते हुए कहती है "बच्चा, mamma का बस चले ना,तो मामा आपको कभी भी परेशान नहीं करेंगे.

    पर जिसने ये गलती की है,उसे mamma बिल्कुल नहीं छोड़ेगी."


    वह गुस्से में अपनी जगह से उठती है.दोनों तरफ आयत के तकिए ठीक करती हैऔर जुबेर के बगल से होती हुई बाहर निकल जाती है.


    जुबेर को महसूस होता है कि गलती उसकी थी.

    बुशरा की नाराज़गी उसे कहीं गहरे तक चुभ रही थी.


    बुशरा तेज़ी से कमरे से निकलती हैऔर सीधा किचन में पहुंचती है.
    किचन में सारे सर्वेंट खड़े थे.उसने पहले ही एक मुलाजिम से कह करसबको वहीं बुला लिया था.


    बुशरा सब पर गुस्से से चिल्लाती है मैंने पहले ही कहा था,इस घर में पीनट्स नहीं आएंगे.फिर चाहे वो किसी भी चीज़ में क्यों ना हों.आप लोगों को मेरी बात समझ नहीं आई क्या?"


    उसकी आवाज़ में गुस्सा और दर्द साफ़ झलक रहा था.


    "कौन लेकर आया था वो पीनट्स?

    कॉर्नफ्लेक्स में पीनट्स डालने की ज़रूरत किसे थी?

    आप सबको पता है ना,उसे कितनी ज़्यादा एलर्जी है.

    फिर भी ऐसी लापरवाही?"


    सारे सर्वेंट अपना सिर नीचे झुका लेते हैं.

    किसी में भी नज़रें उठाकर जवाब देने की हिम्मत नहीं होती.


    उन सभी को इस तरीके से देखते हुए,

    बुशरा एक गहरी सांस भरती है और कहती है 


    "देखिए, वह बहुत छोटी है.

    उसका ख्याल आप ही लोगों को रखना है.

    अगर आप लोग इस तरीके से लापरवाही करेंगे तो कैसे चलेगा?

    हर वक्त मैं उसके पास नहीं हो सकती.आप लोग होंगे, इसलिए आप लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए."


    "आप लोगों को सैलरी बातें करने के लिए नहीं दी जाती है.

    आपका काम है ख्याल रखना.और कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता.हर काम को इज्ज़त और प्यार से करना चाहिए."


    "मैं आपसे इस तरीके से बात नहीं करना चाहती थी,

    पर मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ.मैं नहीं देख सकती अपनी औलाद कोइस हालत में."


    "आप लोगों ने देखा ना,वो कितनी ज़ोर से रो रही थी?"


    "अगली बार ऐसा मत करिएगा.और हां, मैं माफी चाहती हूंआपसे इस तरीके से बात करने के लिए."


    वहां का हेड सर्वेंट आगे आता है और झुककर कहता है 

    "हमें माफ करिए बिटिया.पता नहीं कैसे इतनी बड़ी गलती हो गई.आगे से हम पूरा ख्याल रखेंगे."

  • 10. anger issue

    Words: 1016

    Estimated Reading Time: 7 min

    वहां का हेड सर्वेंट आगे आता है और झुककर कहता है 

    "हमें माफ करिए बिटिया.पता नहीं कैसे इतनी बड़ी गलती हो गई.आगे से हम पूरा ख्याल रखेंगे."


    वहीं servent उसकी बात पर सिर हिलाते हुए कहता है 

    "यही उम्मीद करती हूं.क्योंकि मैं हर वक्त यहां नहीं रह सकती.

    अगर आपको मेरी बात समझ नहीं आती,

    तो आप लोग फिर कहीं और नौकरी ढूंढ सकते हैं."


    "मैं आयत को लेकरकिसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करूंगी."


    उसने अपनी बात साफ शब्दों मेंऔर बहुत ही प्यार से रखी थी.जुबेर, जो दरवाजे तक उसके पीछे-पीछे आया था,

    उसकी बात सुनकर ना जाने क्यों खुद को बहुत बुरा महसूस करने लगा.उसे अब अपने दो दिन पहले के रवैये पर  पछतावा हो रहा था.


    बुशरा, जिसे बाक़ियों की मौजूदगी का अंदाज़ा तक नहीं था,

    उनकी तरफ देखते हुए कहती है "और हां, अगर किसी भी चीज़ की परेशानी हो,तो आप लोग सीधा मुझे कॉल करिएगा.

    अब मुझे बाहर जाना है, ठीक है?"


    बोलते हुए वह जल्दी से कमरे से बाहर निकलती है

    और सीधा शमशेर साहब के कमरे में चली जाती है.


    दोपहर, जो उसे इधर-उधर जाते हुए देख रहा था,

    पता नहीं क्यों अंदर ही अंदर बेचैन हो रहा था.


    जब भी वह घर में होता या उसके आसपास,

    तो बुशरा ही थी जो उसे अलग-अलग तरीकों से छेड़ती थी.


    कभी आंख मार देती थी.

    कभी टेबल के पास बैठकर उसके पैर पर हाथ रख देती थी.

    कभी उसकी कमर पर नोचकर उसे परेशान कर देती थी.


    और जब भी वह ऑफिस के लिए निकलता,तो उसे फ्लाइंग किस देकर शरारत करती थी.


    पर आज...जैसे उसे उसकी मौजूदगी से कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था.


    उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब उसे दुख दे रहा था या गुस्सा.पर जो भी था,वह खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहता है 


    "अच्छा... तो गुस्सा है मुझसे?

    मैं भी देखता हूं कितना दिन रह लेती है मुझसे बात किए बिना.

    जब कोई डांटेगा , koi तंग करेगा,

    तब खुद ही नाक रगड़ती आएगी मेरे पास."


    वह मुंह बनाते हुए सीधा आयत के कमरे में चला जाता है

    और उसके पास बैठ जाता है.

    उसे लग रहा था कि शायद कुछ देर बाद बुशरा कमरे में आ जाएगी।

    वह बैठे-बैठे न जाने कब आयात को गले लगाए उसी के बिस्तर पर सो गया था।


    कुछ देर बाद उसकी आंखें आयात के रोने की आवाज़ से खुलती हैं।

    वह आंखें मलते हुए आयात को देखता है,

    जो रोते हुए "मामा... मामा..." चिल्ला रही थी।


    पर दूसरी ओर…जैसे घर में बुशरा थी ही नहीं।


    जुबेर घबरा कर जल्दी से उठता है

    और आयात को गोद में लेते हुए कहता है "क्या हुआ बेटा? आप पापा की प्रिंसेस को क्या हो गया?

    मामा आपके लिए कुछ लेने गई होंगी।"


    पर उसके बात करने पर भी आयात लगातार

    पूरी तरह सिर हिलाते हुए चिल्ला-चिल्ला कर रोती जाती है

    "नहीं! आप अब्बा… अब्बा छोड़कर चली गईं…

    प्लीज़… प्लीज़… अम्मा को ला दो ना।

    अम्मा कहां चली गईं?"


    वह उठकर जल्दी से बिस्तर से नीचे उतरती है

    और अपनी छोटी सी डॉल को लेकर

    पूरे घर में घूम-घूम कर चिल्लाते हुए बुशरा को पुकारने लगती है।


    पर उसे बुशरा कहीं भी नजर नहीं आती।


    जुबेर, आयात को इस हालत में देख

    सीढ़ियों की ओर भागते हुए चिल्लाता है "बुशरा... कहां हो तुम?तुम्हें सुनाई नहीं दे रहा क्या?आयात कब से तुम्हें पुकार रही है!

    तुम्हारे पास उससे भी ज़्यादा ज़रूरी कोई काम है क्या?"


    उसकी यह चीख सुनकर शमशेर साहब भी कमरे से बाहर आते हैंऔर जुबेर को घूरते हुए सख्ती से कहते हैं "आपकी बेटी है ना,तो आप ही संभालिए।बुशरा की ज़िम्मेदारी नहीं है आपकी बेटी को संभालना।वह घर पर नहीं है। किसी काम से बाहर गई है।"


    जुबेर कुछ बोल नहीं पाता।वह अब भी गुस्से में कांप रहा थापर शमशेर साहब को भीआयात का इस तरह फूट-फूट कर रोना तोड़ रहा था।



    आयात अपने दोनों हाथ शमशेर साहब की ओर बढ़ाते हुए

    रोते-रोते कहती है "mamma चली गईं… mamma  आयात को छोड़कर चली गईं!"


    वह और तेज़ रोने लगती है।उसने रो-रो कर अपना पूरा चेहरा लाल कर लिया था।

    उसकी सांसें तेज़ चलने लगी थींजैसे अब उसकी हिचकियां भी नहीं रुक रही थीं।

    इंसान, जो कुछ दूरी पर खड़े सब देख रहे थे,

    आयात की चीखें सुनकर घबराते हुए उसके पास आते हैं।

    वह तुरंत उसे गले लगाते हुए सांत्वना देते हैं 

    "ऐसा कुछ भी नहीं है बेटा... आपकी मां थोड़ी देर में घर आ जाएंगी।उन्हें थोड़ा काम था, इसलिए बाहर गई हैं।"


    आयात की हिचकियों के बीच, इंसान उसके बालों को सहलाते रहते हैं।


    लेकिन तभी जुबेर, गुस्से से दांत पीसते हुए बोल पड़ता है 

    "किसकी इजाज़त लेकर वह बाहर गई है?

    क्या उसमें इतनी भी जिम्मेदारी नहीं कि आयात को संभाल सके?आने दो उसे... मैं छोड़ूंगा नहीं।उसकी हिम्मत कैसे हुई? एक काम भी तो ढंग से नहीं कर सकती!"

    इतना सुनना था कि

    सिकंदर साहब, जो अपनी मीटिंग खत्म कर अभी-अभी स्टडी रूम से बाहर आए थे,तमतमाए चेहरे के साथ जुबेर को घूरते हुए कड़े लहजे में बोलते हैं –


    "बेटी तुम्हारी है, बरखुरदार!अपनी बेटी को खुद संभालो।उसने कोई तुम्हारी नौकरी नहीं ली कि वही सारी जिम्मेदारियां उठाए।तीन साल की है तुम्हारी बेटी…क्या तुम्हें पता है कि उसे क्या खाना चाहिए, क्या नहीं?किस चीज से उसे एलर्जी है?

    क्या पसंद है उसे? कुछ पता भी है तुम्हें?"


    जुबेर की आंखें झुक जाती हैं।पर सिकंदर साहब का गुस्सा अब भी बरकरार था।उन्होंने और तीखे स्वर में कहा 


    "बच्चा पैदा करने से कोई बाप नहीं बनता,

    उनकी जिम्मेदारियां निभानी भी पड़ती हैं!

    और वह तो अब तक निभा रही है तुम्हारी बेटी के पैदा होने के बाद से ही,उसने उसे मां की तरह पाला है।


    जब वो शकील को संभाल रही थी,

    जब आयात बीमार थी,तब तुम कहां थे?


    तब तो तुम्हें कोई फिक्र नहीं थी!अब जब उसने दो पल अपने लिए निकाल लिए,तो तुम्हें तकलीफ हो रही है?


    ये बच्चा सिर्फ बुशरा की जिम्मेदारी नहीं है जुबेर...

    तुम्हारी भी है  और अब समय आ गया है कि तुम ये समझो!"**

    जुबेर, सिकंदर साहब की बातों पर गुस्से से उन्हें घूरता रह गया।

    उसे अच्छी तरह समझ आ गया था कि इशारा किस ओर है 

    पर उसका गुस्सा इस वक्त उस पर हावी हो चुका था।

  • 11. najdikiya ya duriya

    Words: 1044

    Estimated Reading Time: 7 min

    जुबेर, सिकंदर साहब की बातों पर गुस्से से उन्हें घूरता रह गया।

    उसे अच्छी तरह समझ आ गया था कि इशारा किस ओर है 

    पर उसका गुस्सा इस वक्त उस पर हावी हो चुका था।


    अपने लहजे को जबरन शांत रखते हुए वह बर्फ जैसी सख्ती से बोल पड़ा अब्बा, आप बीच में मत बोलिए।

    यह मेरे और मेरी बीवी के बीच की बात है।

    और उसे मैं यहां सिर्फ अपनी बेटी के लिए लेकर आया था।

    अगर वह ये जिम्मेदारी भी नहीं निभा सकती…

    तो उसका यहां रहने का कोई मतलब नहीं है!"


    उसके शब्द तीर की तरह थे तीखे, बेरहम और भीतर तक चुभने वाले।


    शमशेर साहब, जो अब तक सिर्फ देख रहे थे,

    एक पल को जुबेर की आंखों में देखते हैं,फिर बिना एक शब्द बोले धीरे से वहां से चले जाते हैं।


    उन्हें अब यकीन हो चला था 

    जिस बेटे को उन्होंने अपनी उम्मीदों की छांव में पाला,

    वह अब सिर्फ नाम, रुतबे और "मैं" के नशे में डूबा हुआ है।

    उसे किसी की बात से फर्क नहीं पड़ता…ना भावनाओं से, ना रिश्तों से।


    सिकंदर साहब, जो अब तक खुद को संयमित कर रहे थे,

    अब सीधा उसकी आंखों में आंखें डालकर बोले"जिस दिन तुम्हारे ऊपर से ये तुम्हारा घमंड उतर जाएगा ना,

    उस दिन तुम खुद अपनी आँखों से देखोगेकि तुमने क्या खो दिया, और क्या बचाया।


    याद रखो जुबेर ‘सिकंदर अंसारी’ का नाम होने से कोई बड़ा नहीं हो जाता।अगर ‘दिल’ खो बैठोगे, तो नाम किसी काम का नहीं रहेगा।**


    और फिर वो एक पल को ठहरते हैं,शब्दों को तलवार की तरह चुनते हैं,और तेज़ी से कहते हैं 

    "आना बहुत बुरी चीज होती है, जुबेर।

    खुद को राई के बराबर समझना सिखाती है ये ज़िंदगी 

    और तुम तो राई नहीं, पूरा पहाड़ बनकर बैठे हो।

    कहीं ऐसा न हो,कि तुम्हारे हाथ से वो चीज छूट जाए

    जो दोबारा कभी भी वापस न आ सके..."


    पर जुबेर, उस वक्त भी उसी मगरूर अंदाज़ में ठहाका मारते हुए बोला "किसी चीज से क्या फर्क पड़ता है अब?

    और वैसे भी जुबेर सिकंदर अंसारी को मिटाने वाले मिट चुके हैं।

    मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता…!"


    वह बोला, तो ज़रूर,पर उसकी आवाज़ में छिपी बेचैनी कोई भी ग़ौर से सुनता,तो समझ जाता…कि कुछ टूट रहा है अंदर पर उसकी जुबान अब भी अहंकार में डूबी है।

    पर जुबेर तो अपनी बात कहकर वहां से निकल चुका था…

    मगर शायद किसी को उसकी ये बात रास नहीं आई।


    सिकंदर साहब, जो अब तक खुद को थामे खड़े थे,

    एक नजर इंतेज़ार की ओर देखते हैं,और फिर शांत लेकिन बहुत सख़्त लहजे में कहते हैं 

    "हम शाम तक लौट आएंगे… एक इंपॉर्टेंट मीटिंग है।"


    चुपचाप कुछ कदम आगे बढ़ते हैं,फिर जैसे भीतर से कुछ फूटा हो,मुड़कर ठहरे हुए स्वर में बोलते हैं 


    "और हां… अपने इस लाड़ साहब को समझा दो।उन्हें ‘आना’ पसंद हो सकती है,

    पर हमें ऐसा ‘बंदा’ बिल्कुल पसंद नहीं…

    क्योंकि हमारी लाठी में आवाज़ नहीं होती।

    लेकिन जिस दिन वो लाठी बजेगी न…

    तो ये तड़पते रह जाएंगे… और उनके हाथ में कुछ भी नहीं बचेगा यह कहकर वो बिना पीछे देखे घर से बाहर निकल जाते हैं।



    नीचे, जुबेर अब भी अपने गुस्से में गुम था।

    पर जैसे ही उसने आयत को देखा 

    उसकी सूजी हुई आंखें, उसकी छोटी सी डॉल को सीने से लगाए

    वो अब भी दरवाज़े की तरफ देख रही थी…

    मानो हर आवाज़ पर उसकी मां लौट आएगी।


    जुबेर उसके पास आता है,उसे गोद में उठाता है और कहता है "तो क्या हुआ मामा नहीं है?आज प्रिंस पापा के साथ खेलेगी, ठीक?"


    पर आयत तो किसी भी कीमत पर बुशरा ही चाहती थी।


    उसने बस एक नजर अपने पापा की तरफ देखी,

    फिर सिर झुका लिया…बिलकुल चुप।


    कुछ पल को वो शांत रही,

    मानो उसे समझ आ गया हो कि आज भी

    उसे अपनी मां की बाहों में नहीं सोना मिलेगा।


    इंतेज़ार अंसारी, जो अब तक एक कोने में सब देख रही थीं,

    बिना कुछ कहे धीरे-धीरे वहां से चली जाती हैं।


    क्योंकि उन्हें अब आयत को दवाई भी देनी थी…

    पर वो जानती थीं इस बच्ची की असली दवा… तो उसकी मां थी।


    जिसकी जगह… कोई नहीं ले सकता था।

    दोपहर तक बुशरा घर लौट आई थी।

    उसके होठों पर हल्की-सी थकी हुई, लेकिन सुकून भरी मुस्कान थी।कंधे पर उसका बैग झूल रहा था और वह फोन पर किसी से बात कर रही थी।


    "मुझे नहीं पता था कि तुम मेरे बारे में मुझसे भी ज़्यादा जानते हो…"

    वह धीमे से मुस्कुराई,"पर सच कहूं, तुम्हारी वजह से मुझे आज एक नहीं, दो रास्ते मिल गए।

    मैं तुमसे जल्दी बात करूंगी। आयत की तबीयत भी ठीक नहीं है…मुझे उसे जाकर देखना है। बाक़ी डिटेल्स बाद में, ठीक?"

    फोन कट करने से पहले उसने धीमे से कहा "ख़ुदा हाफ़िज़।"


    पर जैसे ही वो मुड़ी,उसका सिर किसी चीज़ से बहुत ज़ोर से टकराया।


    नहीं… किसी चीज़ से नहीं।किसी से।


    उसने सिर उठाकर देखा 

    सामने जुबेर खड़ा था,लाल आंखों से उसे घूरता हुआ…

    ऐसे जैसे उसकी निगाहें उसकी आत्मा को जला देना चाहती हों।


    बुशरा एक पल को ठिठकती है,

    फिर बिना कुछ कहे, उसकी नज़रों से बचते हुए

    साइड से निकलने की कोशिश करती है।

    लेकिन जुबेर उसका कलाई कसकर पकड़ता है 

    एक झटके में उसे सीढ़ियों की तरफ खींचते हुए ले जाता है।

    बुशरा चुप थी… पर उसकी आंखों में नाराज़ी नहीं,

    थकावट थी… और शायद कुछ अधूरे जवाब।


    कमरे के अंदर पहुँचते हीजुबेर दरवाज़ा जोर से बंद करता है 

    "धड़ाम!"दीवारें भी जैसे काँप गईं।


    उसने उसे दीवार से टिकाते हुए,गुस्से से कांपती आवाज़ में कहा 


    "तुम खुद को समझती क्या हो, बुशरा?

    और ये कौन सा नया ड्रामा शुरू कर दिया है तुमने?

    मैं तुम्हें यहाँ सिर्फ और सिर्फ आयत के लिए लाया था…

    और तुम उसे भी अकेला छोड़कर चली गई?

    क्या फायदा था तुम्हें यहाँ लाने का अगर तुम इतनी ज़िम्मेदारी भी नहीं उठा सकती?"


    बुशरा के चेहरे के भाव अब भी शांत थे…

    पर उसकी आँखों की कोरें थोड़ी सी भीगी सी लग रही थीं।

    उसने जुबेर की आँखों में देखा कुछ जवाब नहीं दिए,

    सिर्फ धीरे से अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश करती रही।


    पर जुबेर अब भी गुस्से में था…

    उसे लग रहा था कि ये खामोशी भी किसी नई चाल का हिस्सा है।बुशरा कुछ देर तक बस उसे घूरती रही।

    उसके चेहरे पर दर्द साफ दिख रहा था पर शब्द अब तक अंदर ही उबाल खा रहे थे।

  • 12. ishq -e-  ibadat - Chapter 12

    Words: 1021

    Estimated Reading Time: 7 min

    फिर उसने जुबेर की पकड़ से अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश की "क्या कर रहे हैं आप...?छोड़िए मेरा हाथ…दर्द हो रहा है मुझे…"


    लेकिन जुबेर वहीं रुका रहा आँखों में गुस्सा, लहजे में इल्ज़ाम।


    "और उसका क्या?जो आज दिनभर तुम्हारी वजह से रोती रही!

    तुम यहाँ उसे संभालने आई थी…या बहार घूमने, आशिक़ी करने?"


    ये बात जैसे किसी चाबुक की तरह पड़ी बुशरा के ज़ख़्म पर।

    उसकी आँखें पल भर को बंद हो गईं…

    लेकिन अगली ही साँस में, उसने अपने अंदर की सारी हिम्मत बटोर ली।


    और फिर, वो एक कदम पीछे हटती है आँखों में आँसू, पर आवाज़ एकदम सीधी:


    "अगर मैं नहीं थी तो आप भी तो उसके अब्बा हैं ना?"


    "मेरी गैरमौजूदगी में,जैसे आपकी गैरमौजूदगी में

    मेरा फ़र्ज़ बनता है कि मैं आपकी बेटी को संभालूं,

    वैसे ही मेरी गैरहाजिरी में आपका भी फ़र्ज़ बनता है

    कि आप अपनी बेटी को संभालें!"


    अब उसका ग़ुस्सा भी उसके शब्दों के पीछे बह रहा था।


    "क्योंकि मैं उसकी सगी माँ नहीं हूं!"


    उसने जुबेर की आँखों में आँखें डाल कर कहा।


    "उसकी सगी माँ उसे इस दुनिया में अकेला छोड़ गई थी…

    उसे जन्म दिया और हमेशा के लिए गायब हो गई!"


    जुबेर की आँखें कुछ पल के लिए फैल गईं शायद इस लहजे में उसने पहली बार बुशरा को सुना था।


    "तब से लेकर अब तक,हर रात जब आयत बुखार में तड़पती थी,

    हर बार जब वो नींद में डरकर 'अम्मा' पुकारती थी 

    मैं वहाँ थी… मैं उसके पास थी!"


    उसकी साँसें तेज़ थीं, गालों पर आँसू बह चुके थे 

    लेकिन वो अब रुकी नहीं।


    "आप कहते हैं मैंने उसे संभालना छोड़ दिया…

    तो सुनिए जुबेर साहब मैं कोई मशीन नहीं हूं!"


    "मैंने कभी माँ का दर्जा माँगा नहीं…कभी अपना हक़ नहीं जताया,

    कभी आयत को अपना कहने की ज़िद नहीं की…"


    "पर अगर एक दिन…सिर्फ एक दिन,मैं खुद के लिए जी ली…

    तो मेरा समर्पण झूठा हो गया?"


    वो अब दरवाज़े की ओर मुड़ी,लेकिन उसकी आवाज़ अब और भी गहरी थी।


    "आज आपने मुझे सिर्फ 'आशिक़ी' का ताना नहीं दिया,

    आज आपने मेरी हर कुर्बानी की तौहीन की है…"


    "और याद रखिएगा जुबेर सिकंदर अंसारी रिश्ते अगर सिर्फ खून से बनते…तो ये बच्ची आज तक मुझसे लिपट कर 'अम्मा' नहीं कहती!"


    दरवाज़ा ज़ोर से खुला और वो तेज़ क़दमों से बाहर निकल गई।जुबेर का ग़ुस्सा अब उबाल की हद पार कर चुका था।

    बुशरा के वो शब्द जैसे उसके घावों पर नमक थे।


    उसने झटके से बुशरा की कलाई पकड़ी,

    उसे अपनी ओर खींचकर सीने से चिपका लिया।


    अब उनके बीच ज़रा भी फासला नहीं था 

    साँसों की गरमाहट एक-दूसरे की त्वचा पर महसूस हो रही थी।


    बुशरा की आँखों में दर्द था,पर जुबेर की आँखों में सिर्फ एक आग।


    "क्या कहा तुमने?"उसकी आवाज़ गूंजती है कमरे में।


    "उसकी मां छोड़कर चली गई थी?तो फिर तुम कौन हो?"


    वो उसका बाजू मरोड़ते हुए, उसे दीवार से दबोचता है।

    बुशरा की चीख हल्के से उसके होंठों से निकलती है 

    पर जुबेर के कानों तक कुछ नहीं पहुँचता।


    "मैं तुम्हें उसकी माँ बनाकर लाया हूँ!

    तुम उसकी माँ हो  मेरी बीवी हो!"


    "जुबेर सिकंदर अंसारी की बीवी!"


    "ये नाम याद रखो वरना मैं तुम्हें ये नाम 'महसूस' भी करवा सकता हूं!"


    कहते हुए वो उसे झटके से दूर धकेल देता है।


    बुशरा लड़खड़ाते हुए दीवार से टकराती है 

    उसकी कलाई पर लाल निशान पड़ चुका था,

    जुबेर की उंगलियों के गहरे निशान।


    उसने अपनी आंखें बंद कर लीं आँसू अब खुद-ब-खुद बहने लगे थे।


    कुछ पल बाद…बुशरा ने अपनी कलाई पर हाथ फेरा,

    फिर जुबेर की तरफ एक गहरी, लेकिन टूटी हुई नजर डाली।


    "आइंदा… बिना मेरी इजाज़त के मेरे करीब मत आना…"


    "मुझे नफ़रत है…किसी के स्पर्श से…जो मेरी आत्मा को लहूलुहान कर दे…"


    वो धीमे स्वर में बोलती है, लेकिन उसकी आवाज़ काँप रही थी

    ग़ुस्से से नहीं… तपती हुई आत्मा की चीख से।


    दरवाज़ा खोला…और बिना पीछे देखे भागती चली गई।


    जुबेर ने पीछे से चीख कर कहा:


    "कहाँ जाओगी बुशरा?रात को इसी कमरे में आओगी ना…तब बताऊंगा तुम्हें!"


    लेकिन उसकी आवाज़ अब सिर्फ दीवारों से टकरा रही थी।


    बुशरा का कदम एक पल को भी नहीं रुका।

    वो सीधा उस कमरे में चली गई

    जहाँ उसने उस रात के बाद से जुबेर से हर रिश्ता तोड़ लिया था।


    जुबेर गुस्से से अपने कमरे में आता है।

    दरवाज़े को ज़ोर से पटकते हुए बंद कर देता है।

    उसके गुस्से की वजह से माथे पर बाल बिखर गए थे।

    वह कोच पर जाकर बैठ जाता है।अपनी उंगलियों को आपस में उलझाते हुए, अपने सिर को हाथों पर टिका लेता है।वह लंबी-लंबी साँसे भर रहा था, जैसे खुद के गुस्से को काबू में करने की कोशिश कर रहा हो।


    उसे बुशरा की बदतमीजी बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हुई थी।


    वहीं, बुशरा सीधा अपने कमरे में आती है।

    वह दरवाज़े को अंदर से बंद कर, उसी से टिककर नीचे बैठ जाती है।इस वक्त उसके हाथ में बहुत दर्द हो रहा था।


    दोपहर को जुबेर का बार-बार "अब" शब्द कहना,

    उसे जलील करना,और बार-बार नीचा दिखाना उसे बेहद ठेस पहुँचा रहा था।वह उस पर अपनी रहीसी (शानो-शौकत) का रौब जमा रहा था।
    वह घुटनों के बल बैठकर रोते हुए कहती है,

    "मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ?मेरी क्या गलती थी?"


    "क्या निकाह को लेकर सपने देखना गलत था?

    या फिर यह कि मैं बाकी लड़कियों की तरह नहीं बन पाई?"


    "नहीं... मुझे नहीं आता दिखावा।मैं जैसी हूँ, वैसी ही ठीक हूँ।"


    "मुझे वो पसंद है… यही मेरी गलती थी,

    जो मैंने आपको पसंद कर लिया।

    आपके लिए मेरे दिल में एहसास आने लगे थे…

    पर अब नहीं।मैंने अपने उन सभी एहसासों को तोड़ दिया है।"


    "आपको मेरी मौजूदगी से नफ़रत है ना?

    आपको अपनी बेटी के पास भी मेरा होना बर्दाश्त नहीं?"

    "क्योंकि मैं आपकी बेटी को 'बिगाड़' दूंगी?"


    "ठीक है…चली जाऊंगी मैं…यहाँ से बहुत दूर।"


    "कभी भी आपके पास नहीं आउंगी…ना आपको अपनी शक्ल दिखाऊंगी…"वह बुरी तरह से रोने लगती है।

    दिन इसी तरीके से निकल जाता है।रात का वक्त हो चुका था।

    सभी लोग डाइनिंग टेबल पर मौजूद थे।


    आयत को जबरदस्ती किंजा जी ने खिला-पिलाकर, दवाई देकर उसके कमरे में सुला दिया था।आयत बहुत ज़्यादा ज़िद कर रही थी बुशरा के पास जाने की, पर पूरे दिन से किसी ने भी बुशरा को देखा तक नहीं था।

  • 13. ishq -e-  ibadat - Chapter 13

    Words: 1007

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब कीनज़र जी को बहुत ज़्यादा गुस्सा भी आ रहा था और चिंता भी।वह बुशरा को लेकर बेहद परेशान थीं।

    उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर हो क्या रहा है।

    घर में कोई उन्हें कुछ क्यों नहीं बता रहा?


    डाइनिंग टेबल पर सब लोग मौजूद थे।

    तभी कीनज़र अंसारी एक मुलाज़िम की तरफ देखते हुए कहती हैं,"आप जाकर बुशरा को बुलाइए।

    उसने सुबह से कुछ भी नहीं खाया है।हमें समझ नहीं आ रहा कि आख़िर इस लड़की को हुआ क्या है।

    अभी तो इसकी तबीयत भी पूरी तरह ठीक नहीं हुई है।

    खाना-पीना छोड़कर न जाने किन बातों में लगी हुई है!

    खुश नहीं है ये लड़की…आने दीजिए उसे, अच्छी तरह खबर लेंगे उसकी!"





    यह कहते हुए उन्होंने बाकी सब की तरफ देखा।

    शमशेद साहब बिना कुछ कहे अपना खाना शुरू कर देते हैं।

    वहीं सिकंदर साहब ने भी कुछ नहीं कहा था।


    उन्हें कुछ-कुछ बातें समझ आ रही थीं,

    लेकिन उन्होंने खुद को खामोश रखा था।जब तक कोई मसला खुद चलकर उनके सामने न आए,वह यूं बीच में टोकना पसंद नहीं करते थे।


    उन्होंने चुपचाप अपनी आँखें बंद कर ली थीं।

    वहीं जुबेर डाइनिंग टेबल पर बैठा हुआ था।

    उसके एक हाथ में फोन था, और वह उसमें कुछ कर रहा था।


    तभी एक मुलाज़िम वापस लौटकर आता है और कहता है,

    "मालकिन, बुशरा बीबी ने खाना खाने से इनकार कर दिया है।

    उन्होंने कहा है कि उन्हें तबीयत ठीक नहीं लग रही,

    इसलिए वह खाना नहीं खाएंगी।"


    कीनज़र जी अपनी जगह से उठ खड़ी होती हैं।

    "ये लड़की सुबह से बिना कुछ खाए घूम रही है,

    तो बीपी तो लो होगा ही ना!तुम रुको, मैं खुद देखती हूं,"

    कहती हुई वह बुशरा के कमरे की तरफ बढ़ती हैं।


    लेकिन उससे पहले सिकंदर साहब उनका हाथ पकड़ते हुए कहते हैं,"आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।

    अगर उसकी तबीयत ठीक होगी,

    तो वह खुद ही आ जाएगी।आप अपना खाना खा लीजिए,

    आपको भी तो दवाइयाँ लेनी हैं ना।"


    कीनज़र जी दरवाज़े की ओर देखती हैं,

    जो अब भी अंदर से बंद था।वह एक गहरी साँस लेकर फिर से अपनी जगह पर बैठ जाती हैं

    और खाना खाना शुरू कर देती हैं।


    वैसे भी, सबका मन पहले से ही खराब था।थोड़ा-थोड़ा खाकर, सभी लोग अपनी-अपनी जगह से उठकर चले जाते हैं।


    पर वहीं, जुबेर अब भी अपनी जगह पर मौजूद था।

    उसने एक नज़र ऊपर वाले फ्लोर की तरफ डाली,

    जहाँ बुशरा का कमरा था।कमरा बंद था और उसके बगल में ही आयत का कमरा था।


    वह उस बंद दरवाज़े को घूरता है,फिर गुस्से में अपनी प्लेट पटक देता हैऔर सीधा ऊपर की ओर बढ़ता है।


    बुशरा ने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर रखा था।

    जुबेर दरवाज़ा पीटते हुए कह रहा

     था,"अगर तुमने दरवाज़ा नहीं खोला, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।ये क्या ड्रामा है? तुम तो इसी कमरे में सोती थीं,

    तो फिर ये अलग कमरा किसके लिए लिया है तुमने?"


    पर अंदर से कोई भी आवाज़ नहीं आ रही थी।


    जुबेर अब चिल्लाने लगा था,"अगर तुमने दरवाज़ा नहीं खोला,तो मैं अभी इसी वक्त ये दरवाज़ा तोड़ दूंगा।

    और फिर देखना, मैं तुम्हारे साथ क्या करता हूं।

    बहुत ज़्यादा घमंड है ना तुम्हें अपने आप पर!"


    लेकिन अब भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।


    जुबेर एक कदम पीछे हटता है,और जैसे ही वह दरवाज़े की ओर बढ़ता है,

    दरवाज़ा अचानक से खुल जाता है।


    वह सीधा जाकर बुशरा से टकराता है।उन दोनों की टक्कर इतनी तेज़ थी किबुशरा खुद को संभाल नहीं पाती।


    वह ज़मीन पर गिरने ही वाली होती है,पर उसी समय जुबेर भी उसे पकड़ने के चक्कर मेंसीधा उसके ऊपर गिर जाता है।


    वह एक मस्कुलर इंसान पूरी तरह से बुशरा के ऊपर आ चुका था।बुशरा बुरी तरह से लड़खड़ा गई थी,उसका संतुलन बिगड़ गया था।


    ज़मीन पर गिरने से पहले ही,जुबेर ने अपने हाथ उसके सिर के नीचे रख दिए।


    बुशरा ने अपनी आंखें मजबूती से बंद कर ली थीं।

    उसके दोनों हाथ जुबेर की छाती पर फंसे हुए थे,

    और जुबेर एकटक उसे देख रहा था।

    आँखें मजबूती से बंद होने की वजह से, उसकी लंबी-लंबी पलकों की कंपकंपी साफ़ दिखाई दे रही थी। उसके होंठ डर और दर्द से काँप रहे थे। वहीँ, जुबेर को उसकी पकड़ अपने सीने पर साफ़ महसूस हो रही थी।


    पहली बार, जुबेर ने बुशरा को इतने क़रीब से देखा था।

    उसने कभी उसे इतनी नज़दीकी से देखा ही नहीं था।

    हल्के से सकपकाते हुए, बुशरा उसे दूर करने की कोशिश कर रही थी,

    लेकिन जुबेर को जैसे उसकी आवाज़ सुनाई ही नहीं दे रही थी।


    अचानक, बुशरा गुस्से से पागल होकर अपने नाखून उसकी गर्दन पर चला देती है।

    तेज़ दर्द के एहसास से जुबेर चौंककर उसे देखता है और एकदम से उठ जाता है।


    बुशरा अभी भी ज़मीन पर पड़ी हुई थी।

    उसे अपनी कमर में तेज़ दर्द महसूस हो रहा था।

    वह ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी।


    लेकिन फिर भी, मजाल है कि उस ज़ालिम आदमी के सामने वह ज़रा भी कमजोर नज़र आए।


    जुबेर उसे घूरते हुए तीखी आवाज़ में कहता है,

    "क्या ज़मीन इतनी पसंद आ गई है तुम्हें?

    जो वहीं पड़े रहने का मन बना लिया है?

    उठो जल्दी!"


    उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं।

    शरीर हल्का-हल्का तप रहा था और चेहरा गुलाबी पड़ चुका था।


    बुशरा, ज़मीन का सहारा लेकर धीरे-धीरे खड़ी होती है।

    उसका दुपट्टा बेड पर गिर चुका था,

    और गिरने की वजह से उसका कुर्ता भी थोड़ा इधर-उधर खिसक गया था,

    जिससे उसके इनरवियर की झलक मिल रही थी।

    जुबेर, जो अब तक उसे ही देख रहा था,

    उसकी नज़र जैसे ही बुशरा की गर्दन पर जाती है,

    वह पल भर के लिए वहीं टिक जाती है।


    पर अगले ही पल, वह अपनी आँखें बंद करते हुए

    गुस्से से दाँत किटकिटाते हुए कहता है,"तुम्हारे अंदर जरा भी तमीज़ नहीं है?इस तरह कौन दरवाज़ा खोलता है?"

    बुशरा अपने सिर पर तेज़ दर्द महसूस कर रही थी।

    उसे चक्कर जैसा लग रहा था।

    वह लड़खड़ाते हुए दीवार का सहारा लेती है और दरवाज़े के पास जाकर खड़ी हो जाती है।


    please comment kro yaar aap loog esa krege to story' mei mja kese ayega or follow bhi jarura kre

  • 14. ishq -e-  ibadat - Chapter 14

    Words: 1001

    Estimated Reading Time: 7 min

    जुबेर, जो अब तक उसे ही देख रहा था,

    उसकी नज़र जैसे ही बुशरा की गर्दन पर जाती है,

    वह पल भर के लिए वहीं टिक जाती है।


    पर अगले ही पल, वह अपनी आँखें बंद करते हुए

    गुस्से से दाँत किटकिटाते हुए कहता है,"तुम्हारे अंदर जरा भी तमीज़ नहीं है?इस तरह कौन दरवाज़ा खोलता है?"

    बुशरा अपने सिर पर तेज़ दर्द महसूस कर रही थी।

    उसे चक्कर जैसा लग रहा था।

    वह लड़खड़ाते हुए दीवार का सहारा लेती है और दरवाज़े के पास जाकर खड़ी हो जाती है।


    बिना जुबेर की ओर देखे, वह थके हुए लहजे में कहती है,

    “आपको मेरे कमरे से जाना चाहिए।

    मेरे अंदर अभी इतनी ताक़त नहीं है कि मैं आपसे लड़ाई कर सकूं... और ना ही मेरा मन है।

    वैसे भी, आपकी वजह से मेरी शाम बर्बाद हो गई।

    मैं अपनी रात भी बर्बाद नहीं करना चाहती।”


    उसकी बातों पर जुबेर का जबड़ा कस जाता है।

    अगले ही पल, वह गुस्से से उसके क़रीब आता है और उसकी कलाई पकड़कर

    उसे ज़बरदस्ती अपने और क़रीब खींच लेता है।


    बुशरा के दोनों हाथ अब जुबेर के सीने पर थे।

    वह अपनी लाल हो चुकी आँखें मुश्किल से खोलते हुए, जुबेर को देख रही थी,

    जो अपना सिर झुकाकर उसे घूर रहा था।


    बुशरा की हाइट महज़ 4'9" थी,

    इसलिए जुबेर को उससे बात करने के लिए हमेशा थोड़ा झुकना पड़ता था।


    शादी के बाद, उनके बीच बातचीत बहुत कम हो गई थी।

    या कहें, थी ही नहीं।

    अगर कभी बात होती भी थी, तो सिर्फ आयात को लेकर।


    वरना उन दोनों की आपस में कोई निजी बातचीत नहीं होती थी।

    बुशरा हमेशा जुबेर पर हक जताया करती थी,

    लेकिन अब उसने वह भी छोड़ दिया था।


    जुबेर उसे वैसे ही घूरते हुए खड़ा था।

    “क्या कहा तुमने? यह तुम्हारा कमरा है?”


    वह एक कड़ी आवाज़ में बोला,

    “शायद तुम भूल रही हो... यह तुम्हारा कमरा नहीं है।

    शादी के बाद एक लड़की का घर और कमरा वही होता है जो उसके शौहर का होता है।

    तो यह कमरा तुम्हारा कब से हो गया?”


    उसका लहजा अब और भी सख्त हो चुका था।

    “यह सारा ड्रामा बंद करो।

    अपना सामान उठाओ और चुपचाप कमरे में चलो।

    तुम्हारी वजह से वैसे ही घर में रोज तमाशा हो रहा है,

    और अब मैं यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकता।”


    बुशरा की आँखें बार-बार झपक रही थीं।

    वह थकी हुई-सी सिर उठा कर जुबेर को देखने लगी।

    उसे जैसे अब आवाज़ें भी साफ़ सुनाई नहीं दे रही थीं।

    वह कुछ कहने के लिए होंठ खोलती है,

    पर उसका सिर सीधा जुबेर के सीने से जा लगता है।


    जुबेर उसकी हालत देखकर घबरा जाता है।

    वह कुछ नहीं बोल रही थी।

    उसकी खामोशी और लड़खड़ाहट देखकर जुबेर चिंतित हो उठता है।


    वह उसके गालों को थपथपाते हुए कहता है,

    “ये क्या हरकत है?

    आँखें खोलो… और मुझे जवाब दो।”


    लेकिन उसकी आवाज़ जैसे गले में अटक जाती है।

    वह तुरंत अपने हाथ उसके माथे और सिर के नीचे रखता है।


    “तुम्हें बुखार है… और वो भी इतना तेज!

    या खुदा… ये लड़की भी ना, ज़रा देर भी ज़मीन पर टिक नहीं सकती।”


    वह गुस्से और फिक्र के मिले-जुले एहसास में बड़बड़ाता है।

    “जब पता है तबीयत ठीक नहीं है, तो आराम क्यों नहीं कर रही थी?

    लेकिन नहीं… इन्हें तो शहर में सवारी करनी होती है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।”


    अगले ही पल, जुबेर उसे अपनी गोद में उठा लेता है

    और सीधा बेड पर लिटा देता है।

    जुबेर तेज़ी से उसके ड्रॉवर्स खोलकर चेक करने लगता है,

    शायद उसे किसी दवाई की तलाश थी।तभी उसके हाथ कुछ कागज़ों से टकराते हैं।

    वह उन्हें एक नज़र देखता है, फिर बिना कुछ कहे वापस रख देता है।

    इस वक़्त उसकी पहली प्राथमिकता बुशरा को दवाई देना थी।


    बुशरा अभी भी हल्के नशे और बुखार में थी।

    उसकी आँखें धीरे-धीरे खुल रही थीं।

    वह जुबेर को देखती है,

    जो कमरे में इधर-उधर उसकी दवाइयाँ खोज रहा था।


    वह बेड का सहारा लेकर उठती है और थकी हुई आवाज़ में कहती है,

    "आप अभी तक यही हैं?

    मैंने कहा था ना... जाइए मेरे कमरे से!

    आपको सुनाई नहीं देता मेरी बात?"


    जुबेर उसकी बात सुनते ही उसकी तरफ पलटता है।

    उसका लहजा सख़्त था 

    “जब तुम्हें पता है कि तुम बिना खाए-पिए रह नहीं सकती,

    तो ये सब ड्रामा क्यों कर रही हो?

    चुपचाप खाना खा लो।

    और ये बुखार… इतनी तेज़ कब से हो गया?”


    उसे नहीं पता था कि बुशरा की तबीयत पिछले दो-तीन दिन से कितनी ज़्यादा बिगड़ी हुई थी।

    वह उसकी तरफ देखता है और पास पड़े जग से पानी निकालने लगता है।


    बुशरा की हालत अब भी नाज़ुक थी।

    कमज़ोरी के कारण उसके हाथ बुरी तरह काँप रहे थे।

    वह मुश्किल से गिलास में पानी डालती है

    और उसे होठों से लगाने की कोशिश करती है,

    मगर हाथ उसका साथ नहीं दे रहे थे।


    जुबेर तुरंत आगे बढ़कर उसके पास बैठ जाता है।

    वह गिलास लेकर उसके होठों से लगाते हुए कहता है,

    “अगर ज़रा सी मदद माँग लोगी,

    तो तुम्हारी हाइट बढ़ नहीं जाएगी।

    हर वक़्त अपनी ‘आन’ में ही रहना है?”


    बुशरा इस बार कुछ नहीं कहती।

    वह चुपचाप पानी पीती है,

    फिर गिलास खुद ही दूर करती है।


    फिर वह धीमे से हाथ बढ़ाकर टैबलेट्स निकालती है,

    उन्हें मुँह में रखती है और एक ही बार में पानी पीकर निगल जाती है।


    जुबेर उसकी इस हरकत को हैरानी से देखता है।

    वह बड़ी-बड़ी आँखों से बस उसे ही देख रहा था 

    शायद पहली बार इस लड़की की चुप्पी उसे बेचैन कर रही थी।उसे बहुत अच्छे से याद था कि बुशरा ने सुबह से कुछ भी नहीं खाया था।

    और अब खाली पेट दवाइयाँ लेने से उसकी तबीयत और बिगड़ती जा रही थी।
    जुबेर उसे गुस्से से घूरते हुए कहता है,

    "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?

    या फिर तूने ग्रेजुएट भी सिर्फ सपने में ही की है?"


    "बिना कुछ खाए अगर दवाई लोगी,

    तो सेहत पर असर होगा — ये तक नहीं पता तुम्हें?"


    बुशरा उसकी ओर एक नज़र देखती है,

    फिर चुपचाप वापस कंबल ओढ़कर लेट जाती है।

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  • 15. ishq -e-  ibadat - Chapter 15

    Words: 1003

    Estimated Reading Time: 7 min

    शायद पहली बार इस लड़की की चुप्पी उसे बेचैन कर रही थी।उसे बहुत अच्छे से याद था कि बुशरा ने सुबह से कुछ भी नहीं खाया था।

    और अब खाली पेट दवाइयाँ लेने से उसकी तबीयत और बिगड़ती जा रही थी।

    जुबेर उसे गुस्से से घूरते हुए कहता है,

    "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?

    या फिर तूने ग्रेजुएट भी सिर्फ सपने में ही की है?"

    "बिना कुछ खाए अगर दवाई लोगी,

    तो सेहत पर असर होगा — ये तक नहीं पता तुम्हें?"

    बुशरा उसकी ओर एक नज़र देखती है,

    फिर चुपचाप वापस कंबल ओढ़कर लेट जाती है।






    बुशरा उसकी ओर एक नज़र देखती है,

    फिर चुपचाप वापस कंबल ओढ़कर लेट जाती है।

    उसकी आवाज़ अब थकी और टूटी हुई थी —

    "आपको इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए।

    आप अपने काम से मतलब रखें।

    और वैसे भी...

    आपका तो काम हो ही रहा है ना,

    तो आपको बाकी चीज़ों पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है।"

    "आप खुद पर और अपनी बेटी पर ध्यान दीजिए...

    और मुझे अकेला छोड़ दीजिए।

    मुझे आपके ये रोज़-रोज़ के ताने नहीं सुनने।

    और ना ही अब मुझमें इतनी ताकत बची है

    कि मैं आपकी बातें बर्दाश्त कर सकूं।"

    कहते हुए उसने खुद को ब्लैंकेट में पूरी तरह लपेट लिया था।

    वह कोई कमज़ोर या झुकी हुई लड़की नहीं थी।

    लेकिन अनजाने में ही सही, उसका दिल टूट चुका था।

    उसने भी शादी को लेकर कुछ सपने देखे थे 

    कुछ वैसे ही जैसे हर लड़की देखती है।

    मगर जुबेर ने कभी उसे समझने की कोशिश नहीं की...

    ना ही उसके पास रुककर उसकी तरफ देखा।

    बल्कि वह तो उसे सबके सामने घर में नीचा दिखाने से भी नहीं चूकता था।जुबेर कुछ देर तक वहीं बैठा,

    खामोशी से उस ब्लैंकेट को घूरता रहा।

    उसे बुशरा तो दिख नहीं रही थी सिर्फ उसके वो लंबे बाल, जो पूरे बेड पर फैले हुए थे।काले, रेशमी और घने।

    वो बाल जिन्हें बुशरा किसी को छूने तक नहीं देती थी।

    जुबेर उन्हें चुपचाप देखता रहा…

    फिर न जाने क्या हुआ उसने धीरे-धीरे अपने हाथ बढ़ाए और

    हल्के से उसकी लटों को अपनी उंगलियों से छूने लगा।

    उन बालों का स्पर्श…उसकी उंगलियों को जैसे एक सुकून दे रहा थाऔर दिल को एक बेचैनी।

    उसे याद आया शादी की पहली रात,

    जब बुशरा ने मुस्कराकर कहा था,

    "मेरी छोटी चोटी है... नींद नहीं आ रही…"

    वो कहती रही… और उसने डांट दिया था।

    सारे हुक्म याद दिला दिए थे,

    क्योंकि उस वक़्त उसे सिर्फ अपना हक़ दिख रहा था,

    बुशरा नहीं।

    वो यादें अब उसके सीने पर बोझ बन रही थीं।

    बुशरा ने उस दिन के बाद कभी अपने बालों को लेकर कोई बात नहीं की।

    उसने कभी नहीं कहा कि किसी को उसे छूने का हक है।

    कभी शिकायत भी नहीं की।

    पर जुबेर को उसके बालों से एक अजीब सी जुड़ाव था।

    हर सुबह, जब वो बुशरा को अपने बालों में कंघी करते देखता,

    जब वह उन्हें जुड़े में बांधती,जब वो उसके पास से गुजरती,

    तो उन लहराते बालों की खुशबू उसके चेहरे को छू जाती।

    अब उस कमरे में…ना बुशरा थी…ना उसकी ख़ुशबू…ना ही उसकी कोई चीज़।

    कमरा अब बस एक बंद सा खालीपन था ठंडा, सुनसान और अधूरा।

    पर आज,जब बुशरा उसके सामने, उसी बेड पर थी,बुखार में तपती,थकी हुई, टूटी हुई…

    जुबेर खुद को रोक नहीं पाया।वह उसके बालों को छूते-छूतेधीरे-धीरे उनके करीब झुक गया था।

    उसे पता ही नहीं चला,कब उसकी उंगलियां बालों से गुजरती हुई

    उसके चेहरे के पास आ गईं…

    कब वो उसके इतने करीब हो गयाकि उसकी साँसें भी बुशरा के चेहरे से टकरा रही थीं…कब वो उसकी खुशबू कोअपने सीने में भरने लगा था...बड़बड़ाहट सुनकर जुबेर जैसे किसी तिलिस्म से बाहर आया।

    उसका ध्यान टूटा, और वो झटके से बुशरा से पीछे हट गया।

    नींद में भी वह कुछ बड़बड़ा रही थी।

    शब्द टूटे-फूटे थे, पर दर्द उनका लहजा चुपचाप बयां कर रहा था।

    वो धीरे से ब्लैंकेट हटाकर उसके चेहरे को देखने लगा।

    वो चेहरा…वो मासूम सा चेहरा…जो अब एकदम सुन हो चुका था।माथातपते अंगारे की तरह गर्म था और आंखों के किनारों से कुछ चमकदार आंसूनीचे लुढ़क रहे थे।

    वो कुछ पल उसे देखता ही रह गया।

    “सच में… कोई रोता हुआ इतना खूबसूरत भी लग सकता है क्या?”यह पहला ख्याल था जो उसके ज़ेहन में आया।

    पर फिर जैसे उसी ख्याल पर खुद शर्मिंदा हो गया।

    उसने अपनी आंखें बंद कीं…पीठ मोड़ ली…जैसे उस सोच को खुद से ही निकाल फेंकना चाहता हो।

    फिर भी…दिल ने उसकी एक न सुनी।

    उसने दोबारा मुड़कर उसका माथा चेक किया,

    अपनी उंगलियों से उसके आंसू साफ किए,

    और धीमे से फुसफुसाया तुम्हें आखिर ऐसा क्या हो गया है बुशरा…जो नींद में भी रोती रहती हो?किस बात का इतना दर्द है तुम्हें?"

    उसकी उंगलियां उसके आंसू पोंछ रही थीं…पर वो रुक ही नहीं रहे थे।

    उसे यह नहीं पता था कि बुशरा के ये आंसू

    किसी बीमारी के नहीं थे…बल्कि उन्हीं के कहे उन काटती हुई बातों का नतीजा थेजो उसने बार-बार बिना सोचे समझे बोल डाले थे।

    वो मुस्कान जो एक वक्त बुशरा की पहचान थी,

    अब शायद जुबेर की बेरुख़ी के नीचे कहीं दब चुकी थी।

    और अब…वो आंखों में आंसू देखना भी उसे गवारा नहीं।

    पर क्या उसे अब ये समझ आने लगा था

    कि जालिम वही है जो पहले दर्द देता हैऔर फिर आंसू साफ करता है…?

    hello everyone to ye ek muslim based story hai Full on drama pr intresting bhi bahut se words thode alg rahe h hoge pr hai ye keh sakte hai story mje daar to to problem nahi hogi or aap loog comment nahi krte ho to please comment jarur Krna h janti hu chp chota hai pr jald hi new chp bhi apload hoge to enjoy like kre ☺️ or gai important baat to btana hi bhul gai thi like comment ke sath sath reting dena na bhule esse story ko saport milta hai or hum loog bhi thoda kush ho jate hai to please yaad se reting bhi dijiye baki milte hai next episode mei aaj ke liye bs itna pr hai jaldi episode ayega episode ki update ke liye follow jaru kre ☺️