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My possesive lover❤️‍🔥

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Writer Tanu

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मुंबई की चकाचौंध में, छोटे शहर की लड़की प्रिया अपने बड़े सपने लेकर आती है। उसकी मुलाक़ात एक घमंडी शख़्स से होती है जिसका नाम आर्यन राय है। आर्यन अपनी फ़ैशन कंपनी का मालिक है, लेकिन उसका दिल दर्द और कठोरता से भरा हुआ है। आठ साल पहले के एक हादसे ने उसे पू...

Total Chapters (7)

Page 1 of 1

  • 1. My possesive lover❤️‍🔥 - Chapter 1

    Words: 1367

    Estimated Reading Time: 9 min

    सुबह की पहली किरणें मुंबई के आसमान पर फैलने लगी थीं, और आराध्या अपने छोटे से अपार्टमेंट की खिड़की से झाँक रही थी। शहर धीरे-धीरे जाग रहा था, सड़कों पर हलचल शुरू हो गई थी, और दूर कहीं हॉर्न की आवाज़ सुनाई दे रही थी। आराध्या ने एक गहरी सांस ली और अपनी आँखों को मलते हुए बिस्तर से उठी। आज उसके लिए एक नया दिन था, नई उम्मीदें और नए संघर्ष लेकर।

    उसने जल्दी से तैयार होकर अपनी माँ को आवाज़ दी, जो पहले से ही रसोई में चाय बना रही थीं। आराध्या की एक छोटी बहन भी थी, जो अभी स्कूल में पढ़ती थी। तीनों का छोटा सा परिवार एक-दूसरे के सहारे ही जीता था। आराध्या जानती थी कि उस पर कितनी ज़िम्मेदारियाँ हैं। अपने परिवार को एक बेहतर भविष्य देने का सपना उसकी आँखों में हमेशा पलटा रहता था।

    नाश्ता करने के बाद, आराध्या तेज़ी से घर से निकली। उसे लोकल ट्रेन पकड़नी थी, जो उसे उसके ऑफिस तक ले जाएगी। स्टेशन पर हमेशा भीड़ रहती थी, और आज भी कुछ अलग नहीं था। लोगों की धक्का-मुक्की के बीच, आराध्या ने आखिरकार एक खाली सीट ढूंढ ली और राहत की सांस ली। ट्रेन की खिड़की से बाहर भागती हुई दुनिया को देखते हुए, वह अपने नए ऑफिस के बारे में सोचने लगी।

    कुछ हफ्ते पहले ही उसे 'राय ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़' में जूनियर असिस्टेंट की नौकरी मिली थी। यह उसके लिए एक बहुत बड़ा मौका था। राय ग्रुप, देश की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक थी, और उसमें काम करना एक सपने जैसा था। उसने कई रातें जागकर इंटरव्यू की तैयारी की थी, और जब उसे सिलेक्शन का लेटर मिला तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा था।

    दूसरी ओर, शहर के दूसरे छोर पर, अथर्व सिंह राय अपने आलीशान बंगले 'राय मैंशन' के विशाल बेडरूम में खड़ा था। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, आँखें शांत लेकिन गहरी थीं। वह शीशे के सामने खड़ा होकर अपनी महंगी घड़ी को एडजस्ट कर रहा था। उसके काले रंग का सूट उसकी सुगठित काया पर पूरी तरह से फिट बैठ रहा था।

    नीचे लिविंग रूम में, मीरा, उसकी पर्सनल असिस्टेंट, बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रही थी। मीरा एक स्मार्ट और एफिशिएंट महिला थी, जो अथर्व के हर काम का ध्यान रखती थी। उसके हाथ में एक ब्रीफकेस था जिसमें ज़रूरी दस्तावेज़ थे, और उसकी नज़र घड़ी पर टिकी हुई थी। अथर्व समय का बहुत पाबंद था, और मीरा यह अच्छी तरह से जानती थी।

    कुछ ही मिनटों में, अथर्व सीढ़ियों से नीचे उतरा। उसके चलने के तरीके में एक आत्मविश्वास और अधिकार झलकता था। मीरा तुरंत खड़ी हो गई और हल्की सी झुकी।

    "गुड मॉर्निंग सर," मीरा ने कहा।

    "मॉर्निंग," अथर्व ने संक्षिप्त जवाब दिया और ब्रीफकेस मीरा के हाथ से ले लिया।

    "आज की मीटिंग्स शेड्यूल के अनुसार हैं, सर। दोपहर में बोर्ड मेंबर्स के साथ एक लंच मीटिंग भी है," मीरा ने जानकारी दी।

    "हम्म," अथर्व ने हामी भरी और बंगले के मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़ गया। बाहर उसकी काली रंग की लिमोसिन खड़ी थी, जिसका दरवाज़ा पहले से ही खुला हुआ था। ड्राइवर ने झुककर उसका अभिवादन किया।

    अथर्व गाड़ी में बैठ गया, और मीरा उसके बगल में। गाड़ी तेज़ी से शहर की सड़कों पर दौड़ने लगी। अथर्व की नज़र बाहर की ओर थी, लेकिन उसका मन कहीं और था। वह हमेशा अपने काम में डूबा रहता था, उसका हर फैसला सोच-समझकर लिया गया होता था। उसकी कंपनी उसके लिए सब कुछ थी।

    राय ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ का हेडक्वार्टर एक गगनचुंबी इमारत थी, जो मुंबई के बिज़नेस डिस्ट्रिक्ट के बीचोंबीच खड़ी थी। यह इमारत अथर्व के सफलता की कहानी बयां करती थी। जैसे ही अथर्व की गाड़ी बिल्डिंग के सामने रुकी, सिक्योरिटी गार्ड्स तुरंत अलर्ट हो गए और उन्होंने उसे सलाम किया।

    अथर्व गाड़ी से उतरा और बिना किसी की ओर देखे तेज़ी से बिल्डिंग के अंदर चला गया। मीरा उसके पीछे-पीछे चल रही थी। लॉबी शानदार थी, मार्बल के फर्श और ऊँची दीवारों पर लगी कलाकृतियाँ उसकी भव्यता को दर्शाती थीं। लिफ्ट तेज़ी से ऊपर की ओर बढ़ी और अथर्व को उसके पेंटहाउस ऑफिस में ले गई, जो पूरी शहर का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता था।

    अपने केबिन में पहुँचकर, अथर्व ने अपना कोट उतारा और मीरा से आज के शेड्यूल के बारे में और विस्तार से जानकारी ली। वह हर डिटेल पर ध्यान देता था, कोई भी छोटी सी गलती उसे बर्दाश्त नहीं थी। उसका शांत और गंभीर स्वभाव उसके आसपास के लोगों को हमेशा सतर्क रखता था।

    उसी समय, आराध्या अपनी ऑफिस बिल्डिंग पहुँच चुकी थी। राय ग्रुप की इमारत को सामने से देखकर वह थोड़ी नर्वस हो गई थी। यह सचमुच बहुत बड़ी और प्रभावशाली थी। उसने गहरी सांस ली और अंदर दाखिल हुई। लॉबी की भव्यता देखकर वह थोड़ी देर के लिए ठिठक गई। हर तरफ़ सूट-बूट पहने लोग तेज़ी से इधर-उधर जा रहे थे।

    रिसेप्शन पर पहुँचकर, आराध्या ने अपना आईडी कार्ड दिखाया और अपने डिपार्टमेंट के बारे में पूछा। उसे बताया गया कि उसका डिपार्टमेंट तीसरी मंज़िल पर है। लिफ्ट में सवार होकर, आराध्या ने अपने दिल की धड़कनों को महसूस किया। यह उसकी पहली बड़ी नौकरी थी, और वह इसे लेकर बहुत उत्साहित थी।

    तीसरी मंज़िल पर उतरकर, उसने अपने डिपार्टमेंट का बोर्ड ढूंढा और अंदर दाखिल हुई। वहाँ पहले से ही कुछ लोग काम कर रहे थे। एक अधेड़ उम्र के सज्जन उसकी ओर मुस्कुराए।

    "तुम नई असिस्टेंट हो?" उन्होंने पूछा।

    "जी, मेरा नाम आराध्या है," उसने विनम्रता से जवाब दिया।

    "मैं रमेश हूँ, यहाँ का सुपरवाइज़र। चलो, मैं तुम्हें तुम्हारी डेस्क दिखाता हूँ और बाकी लोगों से मिलवाता हूँ।"

    रमेश ने आराध्या को उसकी छोटी सी डेस्क दिखाई, जो एक कोने में रखी हुई थी। उसने उसे बाकी कलीग्स से मिलवाया और उसके काम के बारे में थोड़ी जानकारी दी। आराध्या ध्यान से सब कुछ सुन रही थी और नोट्स ले रही थी।

    उसका काम आसान नहीं था। उसे फाइलें मैनेज करनी थीं, मीटिंग्स शेड्यूल करनी थीं, और दूसरे ज़रूरी काम करने थे। लेकिन आराध्या मेहनती थी और सीखने के लिए हमेशा तैयार रहती थी। उसने पहले दिन से ही अपना काम पूरी लगन से करना शुरू कर दिया।

    दिन बीतता गया, और ऑफिस में काम की रफ़्तार बढ़ती गई। आराध्या अपने काम में व्यस्त हो गई थी। दोपहर के लंच ब्रेक में, वह कैंटीन में गई और अपने कलीग्स के साथ बैठकर खाना खाया। सब लोग उससे बहुत अच्छे से बात कर रहे थे, और उसे लग रहा था कि उसने सही जगह पर नौकरी जॉइन की है।

    शाम को जब ऑफिस खत्म होने का समय आया, तो आराध्या थोड़ी थकी हुई महसूस कर रही थी, लेकिन उसके मन में एक संतोष था। उसने अपना पहला दिन अच्छे से बिताया था। अपनी डेस्क पर सामान समेटते हुए, उसकी नज़र अचानक एक केबिन पर पड़ी, जो पूरी तरह से ग्लास का बना हुआ था। वह केबिन बहुत बड़ा और शानदार लग रहा था, और उसमें एक व्यक्ति बैठा हुआ था, जिसकी पीठ उसकी ओर थी।

    आराध्या समझ गई कि यह ज़रूर किसी बड़े अधिकारी का केबिन होगा। अचानक, वह व्यक्ति अपनी कुर्सी पर घूमा, और आराध्या की आँखें खुली की खुली रह गईं। वह अथर्व सिंह राय था। उसकी तीखी नज़रें सीधे आराध्या पर पड़ीं, जैसे वह उसे बहुत देर से देख रहा हो।

    आराध्या घबरा गई और तुरंत अपनी नज़रें नीची कर लीं। उसे समझ नहीं आया कि उसे क्या करना चाहिए। उसने जल्दी से अपना बैग उठाया और ऑफिस से बाहर निकल गई, उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। उसे लग रहा था जैसे उस शांत और गंभीर आँखों ने उसे अंदर तक भेद दिया हो।

    घर लौटते हुए, आराध्या बार-बार उस पल के बारे में सोच रही थी। उसने कभी किसी बिलियनेयर बॉस के बारे में सिर्फ़ कहानियों में ही सुना था, लेकिन आज उसने उसे अपनी आँखों से देखा था। और उस शख्स की एक झलक ने ही उसे अजीब सी बेचैनी से भर दिया था। उसे क्या पता था कि यह तो सिर्फ़ शुरुआत थी, और उसकी ज़िन्दगी बहुत जल्द बदलने वाली थी, उस पज़ेसिव बिलियनेयर बॉस के आने से।

    कहानी जारी है...

    पहली बार कुछ लिखने की कोशिश कर रही हूँ। अपने कमेंट्स देकर मुझे प्रोत्साहित करना न भूलें, और अगर कहानी पसंद आ रही हो तो मुझे follow भी करें ताकि आगे के अपडेट्स आपको सबसे पहले मिल सके😊

    ©®Writer Tanu

  • 2. My possesive lover❤️‍🔥 - Chapter 2

    Words: 1567

    Estimated Reading Time: 10 min

    अगले दिन, आराध्या समय पर ऑफिस पहुँची, लेकिन उसके मन में थोड़ी घबराहट थी। उसे कल शाम का वह पल याद आ रहा था, जब अथर्व सिंह राय ने उसे देखा था। वह नज़र इतनी तीखी और गहरी थी कि आराध्या को लगा, जैसे वह उसके अंदर तक झाँक रहा था। उस एक पल ने उसके दिमाग में उथल-पुथल मचा दी थी।

    आज भी उसका दिल थोड़ा तेज़ी से धड़क रहा था, लेकिन उसने खुद को शांत करने की कोशिश की। उसने अपनी डेस्क पर बैठकर काम शुरू कर दिया। उसे आज एक प्रेजेंटेशन के लिए डेटा कलेक्ट करना था। यह काम थोड़ा मुश्किल था, लेकिन उसने इसे चैलेंज के तौर पर लिया।

    कुछ देर बाद, उसे अपने केबिन के पास से कुछ आवाज़ें सुनाई दीं। वह देखती है कि अथर्व सिंह राय अपने केबिन से बाहर निकल रहे हैं। उनके साथ मीरा और कुछ और सीनियर एग्जीक्यूटिव्स थे। अथर्व ने आज ग्रे रंग का सूट पहना था, जो उनकी पर्सनैलिटी को और भी प्रभावशाली बना रहा था। वह शांत और गंभीर थे, और उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। जैसे ही वह वहाँ से गुज़रे, पूरे फ्लोर पर एक अजीब सी चुप्पी छा गई। सब लोग अपने काम में ऐसे लग गए, जैसे उन्हें कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा हो। आराध्या ने भी अपनी नज़र नीचे कर ली और अपने काम में लग गई।

    लेकिन उसे महसूस हुआ कि जब अथर्व वहाँ से गुज़र रहे थे, तो एक पल के लिए उनकी नज़र उसकी ओर पड़ी थी। यह सिर्फ़ एक सेकंड का था, लेकिन आराध्या को लगा जैसे उन्होंने उसे पहचान लिया हो। यह सोचकर उसके मन में बेचैनी होने लगी। वह समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा क्यों महसूस कर रही है।

    दोपहर में लंच ब्रेक के दौरान, आराध्या कैंटीन में बैठी थी। उसके साथ उसकी एक कलीग, प्रिया, भी थी, जो उससे दो साल सीनियर थी। प्रिया ने आराध्या को कुछ लोगों से मिलवाया और कंपनी के बारे में कुछ कहानियाँ भी सुनाईं।

    "जानती हो, यह राय ग्रुप की सबसे अच्छी बात है," प्रिया ने कहा, "यहाँ के लोग बहुत अच्छे हैं। लेकिन हमारे बॉस, अथर्व सर... वह बहुत सख्त हैं। उनसे बात करने से भी लोग डरते हैं।"

    "हाँ, मैंने भी देखा," आराध्या ने कहा, "वह बहुत शांत लगते हैं, पर... कुछ अलग है उनमें।"

    "अलग तो है," प्रिया ने मुस्कुराकर कहा, "वह एक चलती-फिरती मिस्ट्री हैं। कोई नहीं जानता कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है। वह शादीशुदा भी नहीं हैं, और उनकी पर्सनल लाइफ के बारे में भी किसी को कुछ नहीं पता।"

    यह सुनकर आराध्या को थोड़ा आश्चर्य हुआ। अथर्व सिंह राय जैसा शख्स... सिंगल है? यह सोचकर उसके मन में अजीब सी हलचल हुई, जिसे उसने नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की।

    लंच ब्रेक के बाद, आराध्या वापस अपनी डेस्क पर आई। उसे एक और काम दिया गया था। उसे एक प्रेजेंटेशन बनानी थी, जिसमें कंपनी के पिछले तिमाही के प्रदर्शन को दिखाना था। इस प्रेजेंटेशन के लिए उसे बहुत सारा डेटा चाहिए था, जो उसे कंपनी के सर्वर से निकालना था।

    वह अपना लैपटॉप लेकर बैठ गई और डेटा सर्च करने लगी। लेकिन उसे कुछ फाइल्स एक्सेस करने में दिक्कत हो रही थी। उसने रमेश सर से मदद मांगी।

    "ओह, यह फ़ाइलें केवल सीनियर मैनेजर्स ही एक्सेस कर सकते हैं," रमेश सर ने कहा, "तुम एक काम करो। तुम सीधा अथर्व सर के सेक्रेटरी से पूछ लो। शायद वह तुम्हारी मदद कर पाए।"

    यह सुनकर आराध्या के हाथ-पैर ठंडे हो गए। अथर्व सिंह राय के सेक्रेटरी से बात करना? वह तो एक बहुत ही बड़ी बात थी। लेकिन उसके पास कोई और विकल्प नहीं था। उसे यह काम समय पर पूरा करना था।

    हिम्मत जुटाकर, वह अथर्व के केबिन की ओर बढ़ी। उसके केबिन के बाहर मीरा बैठी हुई थीं, जो उनका सारा काम संभालती थीं। आराध्या ने उनके पास जाकर धीरे से कहा, "एक्सक्यूज़ मी मैम, क्या मैं आपसे कुछ बात कर सकती हूँ?"

    मीरा ने अपनी नज़रें कंप्यूटर स्क्रीन से हटाकर उसकी ओर देखा। "हाँ, बोलो," उन्होंने कहा।

    "मेरा नाम आराध्या है, मैं जूनियर असिस्टेंट हूँ। मुझे एक प्रेजेंटेशन के लिए कुछ डेटा चाहिए, लेकिन मैं उसे एक्सेस नहीं कर पा रही हूँ। रमेश सर ने कहा कि शायद आप मेरी मदद कर सकती हैं।"

    मीरा ने आराध्या के लैपटॉप की स्क्रीन को देखा और कुछ देर सोचने लगीं। "हम्म, यह डेटा तो केवल सर के पास ही है। मुझे उनसे पूछना होगा," उन्होंने कहा।

    यह सुनकर आराध्या के दिल की धड़कन बढ़ गई। अब उसे सीधे अथर्व सिंह राय से बात करनी पड़ेगी? वह सोच ही रही थी कि तभी मीरा ने इंटरकॉम पर अथर्व से बात की।

    "सर, एक जूनियर असिस्टेंट को कुछ डेटा चाहिए, क्या मैं उन्हें वह फाइलें दे सकती हूँ?"

    दूसरी ओर से अथर्व की धीमी, लेकिन भारी आवाज़ सुनाई दी। "उसे मेरे केबिन में भेजो।"

    मीरा ने फ़ोन रख दिया और आराध्या से कहा, "जाओ, सर तुम्हें अंदर बुला रहे हैं।"

    आराध्या के हाथ-पाँव काँपने लगे। वह एक गहरी सांस लेकर, काँपते हुए हाथों से दरवाज़े को खटखटाया।

    "कम इन," अथर्व की आवाज़ आई।

    आराध्या ने धीरे से दरवाज़ा खोला और अंदर दाखिल हुई। केबिन बहुत बड़ा और शानदार था। दीवारों पर महंगी पेंटिंग्स लगी थीं, और खिड़की से पूरा शहर दिखाई दे रहा था। अथर्व अपनी बड़ी-सी डेस्क पर बैठे थे, और उनकी नज़रें आराध्या पर टिक गईं।

    "तुम यहाँ क्यों हो?" उन्होंने सीधे सवाल किया, उनकी आवाज़ में कोई भाव नहीं था।

    आराध्या ने डरते-डरते कहा, "सर, मुझे एक प्रेजेंटेशन के लिए कुछ डेटा चाहिए था... रमेश सर ने कहा कि... आप ही दे सकते हैं।"

    अथर्व ने अपनी कुर्सी से उठकर, आराध्या की ओर बढ़े। वह बहुत ही लंबा और गठीला था। आराध्या को लगा कि वह अचानक से बहुत छोटी हो गई है। वह घबराकर पीछे हटने लगी। अथर्व ने अपनी डेस्क पर पड़ी फाइल्स उठाई और उन्हें देखने लगे।

    "तुम... आराध्या हो, है ना?" अथर्व ने पूछा।

    आराध्या को आश्चर्य हुआ। उन्होंने उसका नाम कैसे जाना? "जी... जी सर," उसने काँपते हुए जवाब दिया।

    अथर्व ने एक फाइल को उसकी ओर बढ़ाया। "यह लो, यह डेटा तुम्हारी मदद करेगा।"

    आराध्या ने डरते-डरते वह फाइल ली। उसके हाथ अथर्व के हाथ से छू गए, और आराध्या को एक अजीब सी झुरझुरी महसूस हुई। अथर्व की उंगलियाँ उसकी उंगलियों से छू गई थीं, और वह स्पर्श इतना गहरा था कि आराध्या को लगा जैसे बिजली का झटका लगा हो।

    "थैंक यू सर," उसने धीरे से कहा और जल्दी से वहाँ से बाहर निकल गई।

    आराध्या अपने केबिन में वापस आई और अपना काम करने लगी। लेकिन अब उसका ध्यान पूरी तरह से टूट चुका था। उसे बार-बार अथर्व का चेहरा और उनकी आवाज़ याद आ रही थी। उसे लग रहा था जैसे अथर्व ने उसका नाम जानकर और उसे उस तरह से देखकर उसके दिल में जगह बना ली थी।

    शाम को जब ऑफिस खत्म हुआ, आराध्या अपनी फाइलें समेटकर घर जाने की तैयारी कर रही थी। उसने अपनी डेस्क पर देखा कि वह फ़ाइल अभी भी वहीं रखी थी, जो अथर्व ने उसे दी थी। वह सोच रही थी कि उसे इस फ़ाइल को कहाँ रखना चाहिए। तभी उसकी नज़र एक और फ़ाइल पर पड़ी, जो उस फ़ाइल के नीचे थी। यह फ़ाइल उसके डिपार्टमेंट की नहीं थी, बल्कि यह तो अथर्व के पर्सनल काम से संबंधित थी।

    यह एक कॉन्फिडेंशियल फ़ाइल थी, जिस पर 'टॉप सीक्रेट' लिखा हुआ था। आराध्या घबरा गई। उसने गलती से अथर्व की पर्सनल फ़ाइल ले ली थी। उसे समझ नहीं आया कि अब क्या करना चाहिए। वह बहुत देर तक सोचती रही। क्या उसे यह फ़ाइल वापस करनी चाहिए? क्या उसे इसे मीरा को दे देना चाहिए? लेकिन वह यह भी नहीं चाहती थी कि किसी को पता चले कि उसने गलती से यह फ़ाइल ले ली थी।

    अगले दिन, आराध्या ने यह फ़ाइल अपने साथ ले जाने का फैसला किया। वह इसे मीरा को देना चाहती थी, जब कोई नहीं देख रहा हो। लेकिन उसे यह भी पता नहीं था कि उस फ़ाइल में क्या है। उसका मन उसे कह रहा था कि उसे यह फ़ाइल खोलकर नहीं देखनी चाहिए। लेकिन उसकी जिज्ञासा उसे रोक नहीं पा रही थी।

    आखिरकार, वह घर पहुँची और उसने चुपके से वह फ़ाइल खोली। उसमें कुछ तस्वीरें थीं, जो अथर्व की पिछली ज़िंदगी से जुड़ी थीं। उन तस्वीरों में एक बहुत ही खूबसूरत लड़की अथर्व के साथ थी। वह दोनों बहुत खुश लग रहे थे। लेकिन एक तस्वीर ऐसी थी, जिसे देखकर आराध्या के दिल में दर्द होने लगा। उस तस्वीर में वह लड़की बहुत बुरी तरह घायल थी, और उसके बगल में अथर्व बहुत दुखी और गुस्से में बैठा था। उस तस्वीर के नीचे एक तारीख और कुछ नाम लिखे हुए थे, लेकिन वह नाम पूरी तरह से साफ नहीं थे।

    यह देखकर आराध्या के मन में कई सवाल उठे। कौन थी यह लड़की? क्या हुआ था उसे? और सबसे बढ़कर, अथर्व का इस घटना से क्या संबंध था? उसने तुरंत वह फ़ाइल बंद कर दी, जैसे उसे कुछ बहुत ही बड़ा रहस्य मिल गया हो। उसे महसूस हुआ कि अथर्व की शांत और गंभीर आँखों के पीछे एक बहुत ही गहरा दर्द छिपा हुआ है।

    अब आराध्या की ज़िन्दगी पूरी तरह से बदल गई थी। वह सिर्फ़ एक असिस्टेंट नहीं थी, बल्कि अब वह अथर्व के गहरे अतीत के एक हिस्से को भी जान चुकी थी। उसे क्या पता था कि यही रहस्य उसे अथर्व के और करीब ले आएगा, और उसकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल देगा।


    कहानी जारी है...
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  • 3. My possesive lover❤️‍🔥 - Chapter 3

    Words: 1606

    Estimated Reading Time: 10 min

    आराध्या के दिल में उठी हलचल की तरह ही, अथर्व के मन में भी एक तूफ़ान चल रहा था.

    अंधेरा धीरे-धीरे ऑफिस की ऊँची-ऊँची शीशों पर एक काली चादर की तरह फैल रहा था। शहर की जगमगाती बत्तियां, जो बाहर दिख रही थीं, अथर्व के भीतर के अँधेरे को और गहरा कर रही थीं। उसकी आँखों में वो चमक नहीं थी जो अक्सर उसकी तेज़-तर्रार शख्सियत को दर्शाती थी; उसकी निगाहें एक खाली दीवार पर टिकी थीं, मानो वो अपने ही खयालों की उलझनों में खो गया हो। उसके हाथ में जो कॉफ़ी का मग था, उसमें अब बस ठंडी, बेस्वाद तरल बची थी, लेकिन उसे इसकी परवाह कहाँ थी? उसका सारा ध्यान, उसकी सारी चेतना, एक ही चेहरे पर अटक गई थी—मीरा।

    वह अपनी आलीशान ऑफिस में बैठा था, लेकिन उसकी नज़रें कंप्यूटर स्क्रीन पर नहीं, बल्कि आराध्या पर टिकी थीं. उसने खुद को समझाया था कि वह सिर्फ़ एक नई कर्मचारी है, लेकिन उसके दिल को यह बात मंजूर नहीं थी.

    अथर्व सिंह राय, जो अपनी कठोरता और अनुशासन के लिए जाने जाते थे, आज खुद को अजीब सी उलझन में पा रहे थे. वह एक ऐसे आदमी थे जो कभी अपनी भावनाओं को ज़ाहिर नहीं करते थे. उनकी दुनिया में सिर्फ़ काम था, और हर काम में परफेक्शन. उन्होंने अपनी ज़िंदगी में कभी किसी को इतना करीब नहीं आने दिया था, क्योंकि उनके अतीत का दर्द उन्हें ऐसा करने से रोक रहा था.

    उनकी ज़िंदगी एक बंद किताब की तरह थी, जिसकी हर कहानी सिर्फ़ उन्हें पता थी. उनके पास दौलत, शोहरत, और ताकत सब कुछ था, लेकिन एक ऐसी कमी थी, जो उन्हें अंदर से खोखला कर रही थी. वह जानते थे कि प्यार और रिश्ते सिर्फ़ दर्द देते हैं, इसलिए उन्होंने खुद को सबसे दूर रखा था.

    जब आराध्या उनके केबिन में आई, तो अथर्व ने उसकी आँखों में डर और मासूमियत देखी. उसे देखकर अथर्व को अपनी पुरानी ज़िंदगी की याद आ गई, जब वह भी किसी के लिए इतना ही मासूम और प्यारा था. लेकिन अब वह सिर्फ़ एक कठोर और बेरहम आदमी था, जो अपने दिल को पत्थर बना चुका था.

    जब आराध्या ने उनसे फ़ाइल मांगी, तो अथर्व ने जान-बूझकर उसे अपने केबिन में बुलाया. वह उसे देखना चाहते थे, उसकी आवाज़ सुनना चाहते थे, और उसे महसूस करना चाहते थे. जब उनके हाथ आराध्या के हाथ से छू गए, तो अथर्व को एक अजीब सी झुरझुरी महसूस हुई. उस पल उन्हें लगा कि उनका दिल, जो सालों से पत्थर बन चुका था, अब पिघलने लगा है.

    जब आराध्या वहाँ से चली गई, तो अथर्व ने अपनी कुर्सी पर बैठकर गहरी सांस ली. उन्हें लग रहा था कि वह एक बड़ी गलती कर रहे हैं. वह जानते थे कि आराध्या एक साधारण लड़की है, और वह उसे अपनी उलझी हुई ज़िंदगी में शामिल नहीं कर सकते. वह उसे दर्द नहीं देना चाहते थे.

    अगले दिन, जब अथर्व ने अपनी पर्सनल फ़ाइल देखी, तो वह समझ गए कि आराध्या ने उसे गलती से उठा लिया था. उन्हें गुस्सा नहीं आया, बल्कि वह और भी ज़्यादा परेशान हो गए. उन्हें डर था कि कहीं आराध्या उनके अतीत के बारे में न जान जाए. अगर वह जान जाएगी, तो वह उनसे नफरत करने लगेगी.

    लेकिन अथर्व की ज़िंदगी में एक और पहलू था. वह पज़ेसिव थे. वह किसी भी चीज़ को खोना पसंद नहीं करते थे, और अब उन्हें आराध्या को भी नहीं खोना था. वह जानते थे कि आराध्या एक ऐसी लड़की है, जो उनके अकेलेपन को दूर कर सकती है, और उन्हें एक नया जीवन दे सकती है.

    अथर्व ने तय किया कि वह आराध्या को अपनी ज़िंदगी में शामिल करेंगे, चाहे इसके लिए उन्हें किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े. वह जानते थे कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन उन्होंने अपने दिल की सुनी.

    "क्यों... क्यों इतना असर होता है उसका मुझ पर?" उसने लगभग फुसफुसाते हुए खुद से पूछा। यह सवाल उसके दिल में सैकड़ों बार गूँज चुका था, पर जवाब कभी नहीं मिला। जब वो किसी और से बात करती, किसी और के साथ हँसती, तो उसके अंदर कुछ टूट जाता था। एक अजीब सी जलन, एक असहनीय पीड़ा उसके सीने में उठती थी, जैसे किसी ने उसकी साँसें रोक दी हों। उसकी जॉ-लाइन इतनी कसी हुई थी कि नसें साफ़ दिख रही थीं, और उसकी उँगलियाँ टेबल पर एक बेचैन धुन में थिरक रही थीं।

    वह हमेशा से ऐसा नहीं था। अथर्व ने खुद को किसी भी तरह की भावनाओं से दूर रखा था। उसने खुद को सिखाया था कि प्यार और रिश्ते कमज़ोरी की निशानी हैं। "औरतों से दूर रहना ही बेहतर है," उसने हमेशा खुद से कहा था। लेकिन ये लड़की... मीरा... उसने अथर्व के सारे कायदे-कानून तोड़ दिए थे। आँखें बंद करते ही, उसके सामने मीरा की हँसी, उसकी शरारती आँखें, उसकी मासूम सी बहसें... सब एक फिल्म की तरह चलने लगते थे। और फिर अचानक उस फिल्म में रोहन की नज़दीकियाँ दिखाई देतीं और उसके भीतर कुछ जलने लगता।

    "मैं ऐसा नहीं हूँ... मैं किसी के कंट्रोल में नहीं आता..." उसने खुद को यकीन दिलाने की कोशिश की। पर सच तो यह था कि वो आ चुका था। मीरा की एक मुस्कान से उसका पूरा दिन बन जाता था और उसका एक झूठा "मैं ठीक हूँ" उसके अंदर तूफ़ान खड़ा कर देता था। वह अपनी इस नई, अनजानी कमज़ोरी से नफ़रत करने लगा था। अथर्व, जो कभी भी किसी के सामने नहीं झुका था, अब मीरा की आँखों की एक झलक के लिए तरसता था।

    "मैं उसका बॉस हूँ... वो बस एक एम्प्लॉयी। हमारा रिश्ता बस इतना ही है।" उसने फिर से खुद को याद दिलाया, पर उसकी अपनी ही आवाज़ में वो दम नहीं था। अंदर से एक और आवाज़ चीख रही थी, "तू झूठ बोल रहा है। तू उसे चाहता है... और अगर वो तुझसे छिन गई तो तू सब कुछ जला देगा।"

    उसकी आँखें अब लाल हो चुकी थीं - गुस्से से, जुनून से, और एक गहरे, असहनीय दर्द से। उसके अंदर का क्रूर, पज़ेसिव पुरुष अब जाग चुका था, जो सिर्फ पाना जानता था, खोना नहीं।

    "अगर वो किसी और की हुई... तो मैं उसे खुद से खींच लाऊँगा। चाहे जैसे भी।" उसके शब्द अँधेरे कमरे में गूँज गए। यह सिर्फ एक खाली धमकी नहीं थी, बल्कि एक वादा था - खुद से किया गया एक डरावना वादा।

    और मीरा... उसे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उसका बॉस सिर्फ उसका ख्याल नहीं रखता था। वह अब उस पर अपना हक जताने के लिए तैयार बैठा था। अथर्व के दिल में अब प्यार नहीं, बल्कि एक अँधा, ख़तरनाक जुनून सुलग रहा था। यह जुनून, जो अँधेरे की तरह फैलता जा रहा था, मीरा के लिए एक अनजानी मुसीबत का संकेत था।

    काँच की दीवार के उस पार, मीरा अपनी सीट पर बैठी थी, अथर्व के लिए एक उलझी हुई पहेली की तरह। उसके हाथ बार-बार उसके बालों तक जा रहे थे; पहले वो उन्हें बाँधने की कोशिश करती, फिर एक ही पल में खोल देती। उसकी नज़रें कभी स्क्रीन पर, कभी पेन पर और कभी हवा में टिकी थीं। वो कुछ सोच रही थी और अक्सर अपने होंठ हल्के से चबाने लगती थी।

    अथर्व की आँखें उस पर एक शिकारी की तरह टिकी हुई थीं। वह उसकी हर छोटी से छोटी हरकत, हर इशारा, हर अनजाने हाव-भाव को देख रहा था, जैसे वह उसकी नज़र से बच ही नहीं सकती। कॉफ़ी का मग अब पूरी तरह से ठंडा हो चुका था, पर उसे इस बात का कोई फर्क नहीं था।

    "देखो उसे," उसका मन फुसफुसाया। "बिल्कुल अनजान, जैसे उसे पता ही न हो कि मैं यहाँ हूँ, और हर सेकंड उसकी तरफ खिंचा चला जा रहा हूँ।"

    तभी उसने देखा, मीरा के एक साथी ने उसके पास आकर कुछ कहा और मीरा हँस दी—वही हँसी जो कभी सिर्फ अथर्व के लिए थी। उसके दिल में कुछ टूट गया। अथर्व की साँसें तेज़ हो गईं और उसकी उँगलियाँ मुट्ठी में भींच गईं। सीने में कुछ जलने लगा — ईर्ष्या, अधिकार, और पजेसिवनेस की एक ज़हरीली आग।

    "क्यों हँस रही है किसी और के लिए?" उसके भीतर एक आवाज़ गूँजी। "वो हक मेरा है। वो मुस्कान... मेरी होनी चाहिए। सिर्फ मेरी!"

    वह एक पल के लिए अपनी कुर्सी से उठने वाला था - उसके पास जाने के लिए, उसे उस कलीग से दूर खींचने के लिए, उसे रोकने के लिए। लेकिन उसने खुद को रोक लिया।

    "नहीं... मैं पागल नहीं हूँ। मैं उसका बॉस हूँ। सिर्फ एक बॉस।"

    लेकिन उसके दिल की धड़कनें उस तर्क पर हँस पड़ीं।

    "झूठ मत बोल, अथर्व। तू उसका बॉस नहीं रह गया है... तू तो उसका कैदी बन गया है।"

    उसने फिर से मीरा की ओर देखा। मीरा ने अब अपने बालों को एक क्लिप में बाँध लिया था और मेल टाइप कर रही थी। उसके माथे पर हल्की लकीरें थीं, जैसे वो किसी गहरी सोच में डूबी हो।

    "वो जानती भी नहीं... कि किसी की दुनिया उसकी हर साँस पर टिकी है।"

    अथर्व ने आँखें बंद कीं, पर मीरा की छवि अभी भी उसकी पलकों के पीछे ज़िंदा थी। वो अब चाहने लगा था कि ये सब ख़त्म हो जाए, पर उसका मन उसके बस में नहीं था।

    "मैं तुझे चाहने नहीं लगा हूँ, मीरा... मैं तो तुझे खोने से डरने लगा हूँ। और ये डर मुझे ख़तरनाक बना देगा।"

    उसने एक गहरी साँस ली, खुद को समझाने की एक और बेकार कोशिश करते हुए। लेकिन दिल की दीवारें दरक चुकी थीं। और जब अथर्व जैसे आदमी की दीवारें गिरती हैं — तो वो प्यार नहीं करता... वो दावा ठोकता है। ये सिर्फ एक एहसास नहीं, बल्कि एक जंग का ऐलान था, जिसमें वह मीरा को किसी भी हाल में हारने नहीं देना चाहता था।


    मिलते है अगले पार्ट में♥️
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  • 4. My possesive lover❤️‍🔥 - Chapter 4

    Words: 1489

    Estimated Reading Time: 9 min

    आराध्या ने उस फ़ाइल को वापस उसी जगह पर रख दिया जहाँ से उसने उसे उठाया था. उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था. उसे लग रहा था जैसे उसने कोई बहुत बड़ी गलती कर दी है. उसने अथर्व के अतीत के रहस्य को जान लिया था, और अब वह चाहती थी कि वह इसे भुला दे. लेकिन वह ऐसा कर नहीं पा रही थी.

    रात भर वह सो नहीं पाई. उसकी आँखों के सामने बार-बार वही तस्वीर आ रही थी. उस घायल लड़की का चेहरा और उसके बगल में अथर्व का दर्द भरा चेहरा. यह सब देखकर आराध्या को बहुत अजीब लग रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि एक शांत और गंभीर शख्स के अतीत में इतना दर्द छिपा हो सकता है.

    अगले दिन, आराध्या ऑफिस के लिए निकली. आज उसके मन में और भी ज़्यादा घबराहट थी. उसे लग रहा था जैसे अथर्व को पता चल गया है कि उसने उसकी फ़ाइल देखी है. वह अपने केबिन में जाकर बैठ गई और काम करने लगी. लेकिन उसका ध्यान काम में नहीं था. वह बार-बार अथर्व के केबिन की ओर देख रही थी.

    कुछ देर बाद, मीरा उसके पास आई. "आराध्या, अथर्व सर तुम्हें अपने केबिन में बुला रहे हैं," मीरा ने कहा.

    यह सुनकर आराध्या का दिल काँप गया. वह घबराकर खड़ी हो गई. "जी... जी मैं अभी जाती हूँ," उसने कहा.

    काँपते हुए हाथों से उसने अपनी फ़ाइलें समेटी और अथर्व के केबिन की ओर बढ़ी. वह दरवाज़े पर पहुँची और दरवाज़े को खटखटाया.

    "कम इन," अथर्व की आवाज़ आई.

    आराध्या ने धीरे से दरवाज़ा खोला और अंदर दाखिल हुई. अथर्व अपनी कुर्सी पर बैठे थे और उनकी नज़रें उसकी ओर थीं. उनकी आँखें इतनी गहरी थीं कि आराध्या को लगा जैसे वह उसके अंदर तक झाँक रहे हैं.

    "बैठो," अथर्व ने कहा.

    आराध्या धीरे से एक कुर्सी पर बैठ गई. उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था.

    "तुमने वह फ़ाइल देखी थी, है ना?" अथर्व ने सीधे सवाल किया, उनकी आवाज़ में कोई भाव नहीं था.

    आराध्या को झटका लगा. उसने सोचा था कि उसे अपनी गलती को छुपाने का मौका मिलेगा, लेकिन अथर्व ने सीधे उससे सवाल कर लिया. "जी... जी सर... मैं... मुझे नहीं पता था... कि वह आपकी पर्सनल फ़ाइल थी," उसने काँपते हुए कहा.

    "मुझे पता है," अथर्व ने कहा. "मुझे यह भी पता है कि तुमने वह फ़ाइल खोलकर देखी है."

    आराध्या की आँखों में आँसू आ गए. "सर... मुझे माफ़ कर दीजिए... मैं... मैं बस... बस यह जानना चाहती थी कि... उस फ़ाइल में क्या है," उसने कहा.

    "उस फ़ाइल में मेरी ज़िन्दगी का एक सबसे दर्दनाक सच छिपा है," अथर्व ने कहा. "और मैं नहीं चाहता कि कोई भी उस सच को जाने."

    आराध्या ने अपनी आँखों से आँसू पोंछे. "मैं समझ सकती हूँ सर," उसने कहा. "मैं किसी को कुछ नहीं बताऊँगी. मैं वादा करती हूँ."

    अथर्व कुछ देर तक शांत रहे. फिर उन्होंने कहा, "तुम जा सकती हो."

    आराध्या तुरंत खड़ी हो गई और बाहर निकल गई. वह अपने केबिन में वापस आई और अपनी डेस्क पर बैठ गई. वह बहुत डर गई थी. उसे लगा कि अथर्व उसे नौकरी से निकाल देंगे. लेकिन अथर्व ने ऐसा कुछ नहीं किया.

    अगले कुछ दिन तक आराध्या ने अथर्व को टालने की कोशिश की. जब भी वह उसके पास से गुज़रते थे, तो वह अपनी नज़रें नीचे कर लेती थी. लेकिन अथर्व उसे हर जगह दिखाई देते थे. वह उसकी हर हरकत पर नज़र रख रहे थे.

    एक शाम जब आराध्या ऑफिस से घर जा रही थी, तो उसे रमेश सर ने रोका. "आराध्या, तुम आज थोड़ी देर रुक सकती हो? हमें एक बहुत ज़रूरी प्रोजेक्ट पर काम करना है."

    आराध्या को अपने घर जाने की जल्दी थी, लेकिन वह रमेश सर को मना नहीं कर पाई. वह रुक गई और काम करने लगी. कुछ देर बाद, वह देखती है कि अथर्व भी अभी तक ऑफिस में हैं. वह अपने केबिन से बाहर आए और रमेश सर से बात करने लगे.

    "रमेश, तुम घर जाओ. आराध्या को बाकी काम करने दो," अथर्व ने कहा.

    "जी सर," रमेश ने कहा और चला गया.

    आराध्या अकेली रह गई. वह डर गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि अथर्व ने ऐसा क्यों किया. वह अपनी डेस्क पर बैठकर काम करने लगी. कुछ देर बाद, अथर्व उसके पास आए.

    "काम कैसा चल रहा है?" उन्होंने पूछा.

    "ठीक है सर," आराध्या ने कहा.

    "तुम डरी हुई क्यों हो?" अथर्व ने पूछा.

    "मैं... मैं नहीं डरी हूँ सर," आराध्या ने कहा.

    "मुझे पता है कि तुम डरी हुई हो," अथर्व ने कहा. "तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हें नौकरी से निकाल दूँगा, है ना?"

    "जी सर," आराध्या ने कहा.

    "मैं तुम्हें नौकरी से नहीं निकालूँगा," अथर्व ने कहा. "मुझे पता है कि तुम एक अच्छी और मेहनती लड़की हो. मुझे पता है कि तुम अपनी ज़िंदगी में कुछ करना चाहती हो."

    यह सुनकर आराध्या को आश्चर्य हुआ. अथर्व ने उसकी ज़िंदगी के बारे में इतनी बातें कैसे जान लीं?

    "लेकिन... आपने मुझे वह फ़ाइल देखने के लिए मना किया था," आराध्या ने कहा.

    "हाँ, मैंने मना किया था," अथर्व ने कहा. "लेकिन मैं समझ सकता हूँ कि तुम्हारी जिज्ञासा तुम्हें रोक नहीं पाई."

    अथर्व की आवाज़ में कोई गुस्सा नहीं था. वह बहुत शांत और गंभीर थे. आराध्या को लगा कि वह उसे समझना चाहते हैं.

    "सर... वह लड़की कौन थी?" आराध्या ने पूछा, हिम्मत जुटाकर.

    अथर्व कुछ देर तक चुप रहे. फिर उन्होंने कहा, "वह मेरी ज़िंदगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा थी. लेकिन अब वह नहीं है."

    यह कहकर अथर्व वहाँ से चले गए. आराध्या को लगा कि वह इस बारे में और बात नहीं करना चाहते. वह भी अपनी डेस्क पर वापस चली गई और काम करने लगी.

    कुछ देर बाद, उसे रमेश सर का फ़ोन आया. "आराध्या, तुम अभी तक ऑफिस में हो? अथर्व सर ने तुम्हें घर जाने के लिए कहा था."

    "जी सर," आराध्या ने कहा. "लेकिन अभी काम बाकी है."

    "ठीक है, तुम अपना काम ख़त्म करके जाओ," रमेश सर ने कहा.

    आराध्या ने फ़ोन रख दिया और काम करने लगी. लेकिन उसे लगा कि अथर्व अभी भी उसे देख रहे हैं. वह अपनी डेस्क पर बैठी हुई थी, और अथर्व की नज़रें उस पर टिकी हुई थीं. उसे लगा कि वह उससे कुछ कहना चाहते हैं.

    रात हो चुकी थी. ऑफिस में ज़्यादा लोग नहीं थे. आराध्या अपना काम ख़त्म करके घर जाने के लिए निकली. जैसे ही वह लिफ्ट के पास पहुँची, अथर्व भी उसके पास आ गए.

    "चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ," अथर्व ने कहा.

    आराध्या को आश्चर्य हुआ. "सर... मैं... मैं चली जाऊँगी," उसने कहा.

    "नहीं," अथर्व ने कहा. "बाहर देर हो गई है, और तुम्हारे घर जाने का रास्ता भी सुरक्षित नहीं है."

    आराध्या को अथर्व के साथ जाना अजीब लग रहा था, लेकिन वह मना नहीं कर पाई. वह उनके साथ लिफ्ट में चली गई. लिफ्ट नीचे गई और दोनों गाड़ी में बैठ गए.

    गाड़ी में दोनों शांत थे. कोई बात नहीं कर रहा था. आराध्या को लग रहा था कि वह एक सपने में है. एक बिलियनेयर बॉस के साथ उसकी गाड़ी में बैठी है. यह उसके लिए एक अविश्वसनीय पल था.

    अथर्व ने अचानक पूछा, "तुम कहाँ रहती हो?"

    "लोअर परेल में," आराध्या ने कहा.

    "ठीक है," अथर्व ने कहा.

    गाड़ी तेज़ी से लोअर परेल की ओर दौड़ने लगी. कुछ ही देर में वे उसके घर के पास पहुँच गए.

    "यहाँ," आराध्या ने कहा.

    अथर्व ने गाड़ी रोक दी. आराध्या बाहर निकली और कहा, "थैंक यू सर."

    "वेलकम," अथर्व ने कहा.

    आराध्या घर के अंदर चली गई और खिड़की से देखा कि अथर्व की गाड़ी अभी तक वहीं खड़ी है. वह तब तक वहाँ खड़ी रही, जब तक आराध्या ने दरवाज़ा बंद नहीं कर लिया. यह देखकर आराध्या को बहुत अजीब लगा. उसे लगा कि अथर्व सिर्फ़ उसे घर छोड़ने नहीं आए थे, बल्कि वह उसे सुरक्षित देखना चाहते थे.

    उस रात आराध्या बहुत देर तक सो नहीं पाई. वह अथर्व के बारे में सोचती रही. वह समझ नहीं पा रही थी कि अथर्व उसके साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं. क्या वह उससे प्यार करते हैं? या यह सिर्फ़ उसकी कल्पना थी? उसे यह भी समझ नहीं आ रहा था कि अथर्व के दिल में इतना दर्द क्यों था. क्या वह उस लड़की को खोने के बाद इतना दर्द महसूस कर रहे थे?

    अगले दिन, आराध्या ने ऑफिस में देखा कि अथर्व का व्यवहार उसके प्रति थोड़ा बदल गया है. वह उसे पहले की तरह नहीं देख रहे थे. वह उसे ज़्यादा भाव नहीं दे रहे थे. आराध्या को लगा कि वह उससे दूर जा रहे हैं.

    लेकिन उसे क्या पता था कि यह तो सिर्फ़ एक शुरुआत थी. अथर्व का उसके प्रति लगाव बढ़ता जा रहा था, और वह इसे किसी के सामने ज़ाहिर नहीं करना चाहते थे. उनके दिल में जो दर्द छिपा था, वह उसे किसी को बताना नहीं चाहते थे. लेकिन आराध्या के दिल में उनके लिए एक ख़ास जगह बन गई थी, और अब वह चाहती थी कि वह उनके दिल के दर्द को दूर कर दे।

  • 5. My possesive lover❤️‍🔥 - Chapter 5

    Words: 1214

    Estimated Reading Time: 8 min

    रात के सन्नाटे में, अथर्व अपनी गाड़ी में बैठे रहे। उनकी आँखों के सामने अभी भी वही दृश्य घूम रहा था। एक आदमी आराध्या को छेड़ रहा था और वह डर के मारे काँप रही थी। उस पल, अथर्व के अंदर एक अजीब सा गुस्सा और डर उमड़ पड़ा था। यह डर किसी और के लिए नहीं, बल्कि आराध्या के लिए था। वह यह बर्दाश्त नहीं कर सकते थे कि कोई उस पर बुरी नज़र डाले।

    उन्होंने अपने दिल में एक अजीब सी हलचल महसूस की, जिसे उन्होंने सालों से दबाकर रखा था। यह हलचल आराध्या की सुरक्षा को लेकर थी। उन्हें अपनी ज़िंदगी में पहली बार किसी की इतनी चिंता हुई थी।

    "तुम कहाँ रहती हो??"

    "लोअर परेल में।"

    वह आराध्या की आवाज़ को याद कर रहे थे। उसकी मासूमियत और उसकी आँखों में छिपी हुई उम्मीद। वह सब कुछ अथर्व के दिल को छू गया था।

    अथर्व ने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और धीमी रफ़्तार से अपने बंगले की ओर चले गए। रास्ते भर वह सिर्फ़ आराध्या के बारे में सोच रहे थे। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में कई खूबसूरत और सफल लड़कियों को देखा था, लेकिन आराध्या जैसी मासूमियत और सादगी उनमें नहीं थी।

    'यह लड़की मेरे दिमाग में क्यों घूम रही है???'
    उन्होंने खुद से पूछा।
    'मुझे उसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं बनाना चाहिए। लेकिन मैं उसे अपनी ज़िंदगी में नहीं आने दे सकता।‘

    लेकिन उनका दिल उनकी एक नहीं सुन रहा था। वह चाहते थे कि वह आराध्या को देखें, उससे बात करें, और उसके बारे में और जानें।

    अगले दिन, अथर्व ने अपने दिल और दिमाग को शांत रखने की बहुत कोशिश की। वह अपने काम में लगे रहे, लेकिन उनका ध्यान बार-बार आराध्या की ओर चला जाता था। वह बार-बार अपने केबिन की खिड़की से उसे देख रहे थे, जो अपनी डेस्क पर बैठी हुई थी और काम कर रही थी।

    उसी दिन शाम को, अथर्व ने मीरा को अपने केबिन में बुलाया।

    "मीरा, क्या तुमने आराध्या के बारे में कुछ जानकारी निकाली?" उन्होंने पूछा।

    मीरा को आश्चर्य हुआ, लेकिन उसने अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया. "जी सर। मैंने उसके बारे में सब कुछ पता कर लिया है। वह एक मिडिल-क्लास परिवार से है, उसकी एक छोटी बहन है, जो स्कूल में पढ़ती है, और उसके पिता की मौत हो चुकी है। वह अपनी माँ और बहन का ध्यान रखती है।"

    अथर्व ने गहरी सांस ली। "क्या उसका कोई बॉयफ्रेंड है?" उन्होंने पूछा।

    मीरा ने कहा, "नहीं सर, ऐसा कुछ नहीं है। वह बहुत ही साधारण लड़की है और उसकी ज़िंदगी में अभी तक कोई भी लड़का नहीं आया है।"

    अथर्व को यह सुनकर राहत मिली। उन्हें पता नहीं था कि वह क्यों ऐसा महसूस कर रहे थे। उन्हें लगा कि उन्हें अपनी भावनाओं पर काबू रखना चाहिए। वह किसी और की ज़िंदगी में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते थे।

    अगले कुछ दिन तक अथर्व ने आराध्या को टालने की कोशिश की। जब भी वह उसे देखते थे, तो वह अपनी नज़रें हटा लेते थे। लेकिन उनका दिल नहीं मान रहा था। वह चाहते थे कि वह आराध्या को देखें, उससे बात करें, और उसके बारे में और जानें।

    एक शाम, अथर्व अपने केबिन में बैठे थे और कुछ ज़रूरी कागजात देख रहे थे। तभी उनकी नज़र आराध्या पर पड़ी, जो अपनी डेस्क पर बैठकर काम कर रही थी। वह बहुत देर से काम कर रही थी। अथर्व ने देखा कि उसकी आँखों में थकान है।

    उन्हें यह देखकर अच्छा नहीं लगा। उन्होंने मीरा को फ़ोन किया।

    "मीरा, आराध्या को बोलो कि वह घर चली जाए।" अथर्व ने कहा।

    "जी सर।" मीरा ने कहा।

    मीरा ने आराध्या के पास जाकर कहा। "आराध्या, तुम घर जाओ। अथर्व सर ने कहा है।"

    आराध्या ने मीरा की ओर देखा. "लेकिन मैम, अभी काम बाकी है।" उसने कहा।

    "कोई बात नहीं, बाकी काम कल कर लेना," मीरा ने कहा।

    आराध्या ने मीरा का शुक्रिया अदा किया और घर चली गई। अथर्व ने उसे जाते हुए देखा और अपने मन में मुस्कुराए। उन्हें अच्छा लगा कि उन्होंने उसकी चिंता की थी।

    अगले दिन, अथर्व ने आराध्या को अपने केबिन में बुलाया।

    "सर... आप ने मुझे क्यों बुलाया?" आराध्या ने पूछा, डरते-डरते।

    "बैठो," अथर्व ने कहा।

    आराध्या कुर्सी पर बैठ गई।

    "मुझे पता है कि तुम बहुत मेहनती हो।" अथर्व ने कहा। "लेकिन तुम्हें अपनी सेहत का भी ध्यान रखना चाहिए।
    ज़्यादा देर तक काम करना तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा नहीं है।"

    आराध्या को लगा कि अथर्व उसका ध्यान रख रहे हैं। उसे यह सुनकर बहुत अच्छा लगा।

    "जी सर, मैं ध्यान रखूँगी।" उसने कहा.

    अथर्व ने अपनी डेस्क पर एक कप कॉफ़ी रखी। "यह लो, कॉफ़ी पियो।" उन्होंने कहा।

    "सर... यह... मेरे लिए है?" आराध्या को आश्चर्य हुआ।

    "हाँ," अथर्व ने कहा। "मुझे पता है कि तुम्हें कॉफ़ी बहुत पसंद है।"

    आराध्या को यह सुनकर और भी अच्छा लगा। अथर्व को उसकी पसंद के बारे में कैसे पता चला?

    "सर... आपको कैसे पता चला?" उसने पूछा.

    "मुझे सब कुछ पता है।" अथर्व ने कहा।
    "अब इसे पियो, और फिर काम करो।"

    आराध्या ने कॉफ़ी पी, और उसे लगा कि अथर्व उसके प्रति एक ख़ास लगाव महसूस कर रहे हैं। वह समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं।

    अगले कुछ दिन तक अथर्व ने आराध्या का ध्यान रखा। वह उसे बार-बार बुलाते थे और उसे काम के बारे में पूछते थे। वह उसे कॉफ़ी भी पिलाते थे। और कभी-कभी उसे अपने साथ लंच भी करवाते थे। आराध्या को यह सब बहुत अच्छा लग रहा था, लेकिन उसे यह भी पता था कि वह एक बिलियनेयर बॉस के साथ काम कर रही है, और उसे अपनी हद में रहना चाहिए।

    एक शाम, जब आराध्या ऑफिस से घर जा रही थी, तो उसे एक आदमी ने छेड़ा। वह डर गई और भागने लगी। वह आदमी उसके पीछे पड़ गया। आराध्या ने अपनी आँखें बंद कर लीं और चिल्लाने लगी। तभी उसे एक आवाज़ सुनाई दी।

    "दूर हटो उससे।"

    आराध्या ने अपनी आँखें खोली और देखा कि अथर्व वहाँ खड़े थे। उन्होंने उस आदमी को ज़ोर से धक्का दिया और उसे ज़मीन पर गिरा दिया। फिर उन्होंने उसे चेतावनी दी।

    "अगर तुम दोबारा इस लड़की के पास आए, तो मैं तुम्हें जान से मार दूँगा।" अथर्व ने कहा।

    वह आदमी डर गया और भाग गया। अथर्व ने आराध्या की ओर देखा। वह डर से काँप रही थी। अथर्व उसके पास आए और उसे गले लगा लिया।

    "डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ। " अथर्व ने कहा।

    आराध्या को लगा कि वह एक सपने में है। एक बिलियनेयर बॉस ने उसे गले लगा लिया था। वह उनकी बाहों में सुरक्षित महसूस कर रही थी।

    अथर्व ने उसे अपने से अलग किया और कहा, "चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ।"

    आराध्या ने कुछ नहीं कहा और उनके साथ गाड़ी में बैठ गई. गाड़ी में दोनों शांत थे। आराध्या को लगा कि वह अथर्व से प्यार करने लगी है। वह उनके शांत और गंभीर स्वभाव के पीछे छिपी हुई दया और प्यार को महसूस कर रही थी।

    घर पहुँचकर, अथर्व ने उसे अंदर जाने के लिए कहा और तब तक वहाँ खड़े रहे, जब तक उसने दरवाज़ा बंद नहीं कर लिया।

    अगले दिन, आराध्या ऑफिस में गई और उसने अथर्व को शुक्रिया अदा किया। अथर्व ने उसे देखा और मुस्कुराए। उन्होंने आराध्या को अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बना लिया था, और अब वह उसे कभी जाने नहीं देना चाहते थे।

  • 6. My possesive lover❤️‍🔥 - Chapter 6

    Words: 1514

    Estimated Reading Time: 10 min

    आराध्या की हँसी कॉन्फ्रेंस रूम के बाहर तक गूंज रही थी। वो रोहन के साथ किसी प्रोजेक्ट पर डिस्कस कर रही थी। रोहन कंपनी का नया क्लाइंट था, स्मार्ट, चार्मिंग और थोड़ा ज्यादा फ्रेंडली।

    “आपकी प्रेजेंटेशन तो कमाल की थी,” रोहन ने कहा।

    “थैंक यू,” आराध्या मुस्कुराई। “आपका फीडबैक भी helpful रहा।”

    अथर्व वहीं से गुज़र रहा था। उसकी नज़र दोनों पर पड़ी। रोहन कुछ ज़्यादा ही करीब खड़ा था, और आराध्या... वो हँस रही थी।

    वो हँसी, जो उसने महीनों से सिर्फ अपने लिए देखी थी।

    बस वही पल था।

    अथर्व की चाल थम गई।

    चेहरे पर कोई भाव नहीं था, पर अंदर सब कुछ उथल-पुथल था।

    “वो मेरी है। और किसी के साथ इतनी कंफर्टेबल कैसे हो सकती है?”

    “क्या अब उसे मेरी परवाह नहीं रही?”

    उसे गुस्सा आया। खुद पर, उस लड़के पर, और शायद सबसे ज़्यादा आराध्या पर।

    जैसे ही मीटिंग खत्म हुई, और आराध्या अपनी रिपोर्ट लेकर अथर्व के केबिन में आई, वो कुछ कहने ही वाली थी कि,

    “जाओ. काम पर ध्यान दो.”

    अथर्व की आवाज़ बर्फ-सी ठंडी थी।

    आराध्या ठिठक गई, जैसे किसी ने उसका दिल निचोड़ दिया हो।

    उसे समझ नहीं आया, वो तो बस काम कर रही थी… पर शायद किसी की आँखों में उसका काम ‘किसी और के साथ मुस्कुराना’ बन चुका था।

    अथर्व के कठोर शब्द सुनकर आराध्या एक पल के लिए सन्न रह गई। "जाओ. काम पर ध्यान दो." ये शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे। उनका लहजा इतना ठंडा और निर्मम था कि आराध्या को लगा जैसे किसी ने उसके सीने में बर्फ़ की सिल्ली रख दी हो। वह समझ नहीं पा रही थी कि अथर्व सच में गुस्सा हैं या कुछ और, लेकिन उनका यह व्यवहार उसके दिल में एक तीखी चुभन दे गया।
    यह वही अथर्व थे, जिन्होंने कुछ दिन पहले उसकी तारीफ़ में कहा था कि वह उनकी कंपनी की सबसे होनहार कर्मचारी है। अब यही तारीफ़ एक तीखे आदेश में बदल गई थी।

    आराध्या वहाँ से तुरंत निकल गई, उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। उसे लग रहा था जैसे वह एक भंवर में फँस गई है, जहाँ अथर्व का एक चेहरा प्यार दिखाता है और दूसरा अधिकार। उसे अपने मन में एक अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी। एक तरफ़, वह अथर्व की तरफ़ खींची जा रही थी, वहीं दूसरी तरफ़, उनके इस अधिकार जताने वाले रवैये से उसे घुटन हो रही थी। वह अपनी डेस्क पर वापस आई और अपनी आँखें बंद कर लीं, कोशिश कर रही थी कि अथर्व के शब्दों को भूल जाए, पर वह भूल नहीं पा रही थी।

    अगले कुछ दिन, अथर्व का व्यवहार और भी अजीब हो गया। वह अपनी भावनाओं को दबाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनकी जलन और पज़ेसिवनेस हर बार सामने आ जाती थी। वह अक्सर अपनी केबिन के शीशे से आराध्या को देखते रहते थे, मानो वह किसी क़ीमती चीज़ की निगरानी कर रहे हों। उनकी आँखों में एक अजीब सा तनाव और अधिकार का भाव होता था। उनका यह व्यवहार आराध्या के लिए चिंता का सबब बन रहा था। वह यह नहीं समझ पा रही थी कि ऐसा क्या हो गया था कि अथर्व इतने बदल गए थे।

    एक दोपहर, ऑफ़िस के एक नए प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए, आराध्या को अपने कलीग, राहुल, के साथ एक टीम में रखा गया। राहुल एक खुशमिज़ाज और मिलनसार लड़का था, जो तुरंत ही आराध्या का दोस्त बन गया। वे दोनों साथ में हँसते-बोलते काम कर रहे थे, क्योंकि उनकी काम करने की शैली एक जैसी थी। राहुल की विनोदप्रियता से काम का माहौल हल्का-फुल्का बना हुआ था। वे दोनों अक्सर चाय के ब्रेक में भी आपस में बातें करते थे, अपने काम के साथ-साथ व्यक्तिगत पसंद-नापसंद भी शेयर करते थे।

    अथर्व अपने केबिन से यह सब देख रहे थे। उनकी नज़र आराध्या और राहुल पर टिकी हुई थी। उनके चेहरे पर एक गहरी लकीर उभर आई। उन्हें आराध्या का राहुल के साथ हँसना पसंद नहीं आ रहा था। उन्हें लग रहा था कि राहुल आराध्या से ज़्यादा ही करीब हो रहा था। अथर्व को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि कोई और आराध्या के साथ इतना सहज हो। उनके अंदर की जलन की आग धीरे-धीरे भड़क रही थी, एक ऐसी आग जो उनके अंदर की insecurities को उजागर कर रही थी। उनके दिमाग़ में कई तरह के शक और सवाल उठ रहे थे।

    उन्होंने तुरंत इंटरकॉम उठाया और मीरा को बुलाया, जो उनकी सेक्रेटरी थी।

    "मीरा, उस प्रोजेक्ट में राहुल की जगह किसी और को डालो," अथर्व ने कहा, उनकी आवाज़ में एक सख़्ती थी जो मीरा ने पहले कभी नहीं सुनी थी।

    मीरा को आश्चर्य हुआ, क्योंकि राहुल एक बहुत ही कुशल कर्मचारी था। "जी सर, लेकिन राहुल इस प्रोजेक्ट में बहुत अच्छा काम कर रहा है। उसकी तकनीकी समझ बहुत अच्छी है।"

    अथर्व ने अपनी मुट्ठी भींच ली। "मैंने जो कहा, वह करो," अथर्व ने आदेश दिया, उनकी आवाज़ में ग़ुस्से की एक हल्की सी गूँज थी। मीरा ने तुरंत उनके आदेश का पालन किया, पर मन ही मन वह अथर्व के इस अजीब व्यवहार पर सोच रही थी।

    थोड़ी देर बाद, राहुल को प्रोजेक्ट से हटा दिया गया और उसकी जगह एक दूसरी लड़की को लाया गया। आराध्या को यह देखकर अजीब लगा। उसने राहुल से पूछा, "क्या हुआ? तुम अचानक प्रोजेक्ट से क्यों हट गए?"

    राहुल ने निराश होकर कहा, "मुझे नहीं पता, आराध्या। बस सर का ऑर्डर था। उन्होंने मुझसे कहा कि किसी और को इस प्रोजेक्ट के लिए ज़्यादा ज़रूरत है।"

    आराध्या को समझ आ गया कि यह अथर्व की हरकत है। उसे अथर्व का यह व्यवहार पसंद नहीं आया। वह जानती थी कि अथर्व उस पर नज़र रख रहे हैं, और वह उसे कंट्रोल करना चाहते हैं। उसके मन में अथर्व के प्रति गुस्सा और निराशा दोनों पैदा हो गए।

    शाम को, जब आराध्या घर जा रही थी, तो अथर्व ने उसे अपने केबिन में बुलाया। केबिन के अंदर का माहौल बहुत ही ठंडा और गंभीर था।

    "राहुल के साथ क्या चल रहा है?" अथर्व ने सीधे सवाल किया, उनकी आँखें सीधे आराध्या की आँखों में झाँक रही थीं।

    आराध्या को अथर्व का यह सवाल बहुत ही अपमानजनक लगा। "सर, वह सिर्फ़ मेरा कलीग है," आराध्या ने कहा, उसकी आवाज़ में गुस्सा था। "और आप मुझे यह कैसे कह सकते हैं?"

    "मैं तुम्हें कह सकता हूँ," अथर्व ने कहा, "क्योंकि तुम मेरी कंपनी में काम करती हो। तुम्हारे हर काम पर मेरा अधिकार है।"

    आराध्या को यह सुनकर और भी गुस्सा आया। "सर, आप मेरे काम को कंट्रोल कर सकते हैं, मेरी ज़िंदगी को नहीं," उसने कहा, उसके शब्दों में एक दृढ़ता थी। "मेरे काम के घंटों के बाद मैं क्या करती हूँ, यह तय करने का अधिकार आपको नहीं है।"

    अथर्व ने आराध्या का हाथ पकड़ लिया, उनका स्पर्श इतना सख़्त था कि आराध्या को दर्द महसूस हुआ। "मैं तुम्हें किसी और के पास नहीं जाने दूँगा," उन्होंने कहा। "तुम सिर्फ़ मेरे लिए काम करोगी। सिर्फ़ मेरे लिए।"

    आराध्या ने अपना हाथ छुड़ा लिया। "आप मेरे बॉस हैं, सर। आप मेरे मालिक नहीं हैं।"

    अथर्व को यह सुनकर चोट पहुँची। उनके चेहरे पर एक दर्दनाक भाव आया, जो जल्दी ही ग़ुस्से में बदल गया। उन्होंने आराध्या को गुस्से में देखा, फिर कहा, "मुझे पता है कि तुम मुझसे नफरत करती हो। लेकिन मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा।"

    आराध्या को अथर्व की आँखों में दर्द और गुस्सा दोनों दिखाई दिया। वह समझ नहीं पा रही थी कि अथर्व ऐसा क्यों कर रहे हैं। क्या वह सच में उससे प्यार करते हैं? या यह सिर्फ़ उनका पज़ेसिव नेचर था? यह सवाल उसके मन में एक पहेली की तरह घूम रहा था।

    "सर, आप मुझे क्या साबित करना चाहते हैं?" आराध्या ने पूछा, उसकी आवाज़ में अब गुस्सा कम और उलझन ज़्यादा थी।

    "मैं कुछ भी साबित नहीं करना चाहता," अथर्व ने कहा, उनकी आवाज़ में अब दर्द और निराशा थी। "मुझे बस तुम चाहिए। तुम मेरे पास रहोगी। हमेशा।"

    आराध्या को लगा कि वह इस उलझन से बाहर नहीं निकल सकती। वह अथर्व के प्यार और नफ़रत के बीच फँसी हुई थी। उसे क्या पता था कि अथर्व के इस पज़ेसिव नेचर के पीछे एक गहरा राज़ छिपा था, जो उनकी पिछली ज़िंदगी से जुड़ा हुआ था।

    अगले कुछ दिन, आराध्या ने अथर्व से दूर रहने की कोशिश की, लेकिन अथर्व ने उसे और भी करीब लाने की कोशिश की। उन्होंने आराध्या को अपने पर्सनल प्रोजेक्ट्स में शामिल किया, ताकि वह हर समय उनके पास रहे। वह अक्सर मीटिंग्स के बहाने उसे अपने केबिन में बुलाते और बिना किसी वजह के उससे बात करते। वह उसे काम के बाद भी रोक लेते और कभी-कभी उसे डिनर का भी ऑफ़र देते, जिसे आराध्या हमेशा ही मना कर देती थी।

    अथर्व ने अपनी ज़िंदगी के सारे कंट्रोल अपने हाथों में ले लिए थे, लेकिन उनका दिल अभी भी उनके कंट्रोल में नहीं था। वह आराध्या को चाहते थे, लेकिन उसे खोने से डरते थे। यह डर ही उनके पज़ेसिव नेचर का कारण था।

    क्या आराध्या अथर्व के इस पज़ेसिव नेचर को स्वीकार कर पाएगी? क्या वह उनके दर्द को समझ पाएगी? क्या उनका प्यार इन मुश्किलों से जीत पाएगा? यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा।



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  • 7. My possesive lover❤️‍🔥 - Chapter 7

    Words: 1474

    Estimated Reading Time: 9 min

    "आप मेरे बॉस हैं, सर। आप मेरे मालिक नहीं हैं।"

    आराध्या के शब्द अथर्व के केबिन में अभी भी गूंज रहे थे, जैसे किसी चट्टान पर टकराकर लहरें वापस लौटती हैं। वो दरवाज़ा बंद करके जा चुकी थी, लेकिन उसकी मौजूदगी अभी भी हवा में ठहरी हुई थी। उसके इत्र की एक धीमी, हल्की खुशबू, जो बता रही थी कि वो अभी-अभी यहाँ थी।

    अथर्व अपनी बड़ी, आलीशान कुर्सी पर बैठा था, लेकिन आज वो उसे एक पिंजरे की तरह लग रही थी। उसकी उंगलियां धीरे-धीरे मेज़ पर टैप हो रही थीं, एक धीमी, बेचैन धुन की तरह। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं, जैसे बाहर की दुनिया से कटकर सिर्फ अपने अंदर के शोर को सुनना चाहता हो।

    “वो मेरी बातों का इस तरह जवाब कैसे दे सकती है? उस दिन हँसी-मज़ाक में कही गई बात को उसने इतनी गंभीरता से क्यों ले लिया?” उसका दिमाग़ सवाल कर रहा था, और हर सवाल के साथ उसके ईगो पर एक और चोट लग रही थी। “आखिर किस हक़ से मना किया उसने?”

    फिर एक और आवाज़ उसके अंदर से उठी, जो ज़्यादा शांत और ज़्यादा गहरी थी: “या फिर… मैं ही उसकी हदें भूल गया था? क्या मैंने उसे इतना सहज महसूस कराया कि वो मुझसे इस तरह बात कर सकी? या मैंने उसे अपना मानकर उसकी निजी भावनाओं का उल्लंघन कर दिया था?”

    उसने धीरे से अपनी आँखें खोलीं और सामने रखी शीशे की दीवार में खुद को देखा। वही चेहरा जो दूसरों के लिए intimidating और प्रभावशाली था — आज थोड़ा थका, थोड़ा खोया हुआ लग रहा था। उसकी आँखों में एक ऐसी उदासी थी जिसे वो खुद पहचान नहीं पा रहा था, एक ऐसी ख़ामोशी थी जो उसके अंदर के तूफ़ान को बता रही थी।

    उधर…

    आराध्या अपने डेस्क पर लौट आई थी। उसकी साँसें अभी भी तेज़ थीं। उसके हाथों में कंपकंपी थी, जो पानी का गिलास थामे हुए भी शांत नहीं हो रही थी। उसने एक घूँट पानी पिया, लेकिन उसके गले की ख़राश दूर नहीं हुई।

    “मैंने जो कहा, ठीक कहा ना?” उसने खुद से सवाल किया, जैसे अपने ही फैसले पर भरोसा करना चाहती हो। “क्या किसी को अपनी बात रखने का हक़ नहीं है? चाहे वो बॉस ही क्यों ना हो?”

    उसकी पलकों पर आँसू थे, जो आँखों के किनारों पर अटककर रह गए थे। पर उसने उन्हें गिरने नहीं दिया। वो कमज़ोर दिखना नहीं चाहती थी, ख़ासकर तब जब उसे लग रहा था कि कोई उसे उसकी जगह दिखाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन दिल के अंदर एक खालीपन था, एक दर्द था जो यह बता रहा था कि कुछ तो टूटा है। वो हँसी-मज़ाक जो उनके बीच था, वो दोस्ती की हल्की-सी परत जो अथर्व के सख्त मिज़ाज के पीछे थी, वो सब शायद एक झटके में टूट गया था।

    अगले दिन — सुबह

    ऑफिस में एक अजीब सी शांति थी। हर कोई अपनी फाइलों में डूबा था, लेकिन दो लोगों की आँखें बार-बार एक-दूसरे को ढूंढ रही थीं — और फिर नज़रें बचा रही थीं। एक-दूसरे को ना देखने का नाटक करना ही शायद आज का सबसे बड़ा खेल था।

    आराध्या ने चोरी-छिपे अथर्व को देखा। वो आज बहुत शांत था, अपनी कुर्सी पर सीधा बैठा हुआ था। उसने उसकी ओर देखा भी नहीं, जैसे वो कमरे में मौजूद ही ना हो। ना कोई मेल आया, ना कोई मीटिंग कॉल। पहली बार… उसने आराध्या को नज़रअंदाज़ किया। और वही... सबसे ज़्यादा चुभ गया। उसने देखा कि अथर्व ने अपनी कॉफ़ी की कप भी मीरा से ही मंगवाई थी, जबकि हमेशा वो उसके पास आकर पूछ लेता था। यह एक छोटी-सी बात थी, लेकिन उस ख़ामोशी ने सब कुछ कह दिया था।

    लंच ब्रेक

    राहुल अपने टिफिन के साथ आराध्या के पास आया। “Hey, तुम्हारा mood आज थोड़ा better लग रहा है। लेकिन यहां ऐसे अकेले क्यों बैठी हो?? सबके साथ बैठो चलो आओ।”

    आराध्या ने एक हल्की-सी, थकी हुई मुस्कान के साथ कहा, “कभी-कभी distance ज़रूरी होता है।”

    “Distance किससे?” राहुल ने उत्सुकता से पूछा।

    उसने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बस अपने खाने पर ध्यान दिया। लेकिन राहुल समझ गया — ये जवाब उसी आदमी के लिए था, जिसकी नजरें आज उसकी तरफ नहीं उठी थीं। उसने महसूस किया कि आराध्या की आँखों में अब वो चमक नहीं थी, वो बेफिक्री नहीं थी जो कुछ दिन पहले तक थी।

    मीरा का POV

    अथर्व की असिस्टेंट मीरा भी एक शांत और observant सहयोगी, काफी समय से सबकुछ देख रही थी। वो जानती थी। अथर्व जैसे आदमी के लिए ‘चुप रहना’ सबसे बड़ा alarm होता है। वो ऐसा इंसान था जो गुस्से में भी बात करता था, लेकिन ख़ामोश होना उसके लिए एक हार को स्वीकार करने जैसा था।

    उसने देखा। अथर्व अपने केबिन में बैठा है, लेकिन उसकी निगाहें कंप्यूटर स्क्रीन पर नहीं थीं, बल्कि कांच के पार कहीं दूर, शहर की भीड़ में खोई हुई थीं। “उसने उसे hurt किया… और अब खुद भी तड़प रहा है।” मीरा ने सोचा। उसने महसूस किया कि वो अथर्व जिसे जानती थी, वो अपने हर फैसले पर इतना आत्मविश्वास से भरा होता था, आज खोया हुआ क्यों लग रहा था?

    मीरा ने एक हिम्मत जुटाई और दो कॉफ़ी के कप लेकर अंदर गई।

    “Sir, आप ठीक हैं?” उसने धीरे से पूछा।

    अथर्व ने धीरे से सिर उठाया, जैसे किसी गहरी सोच से बाहर आया हो। “हाँ… मैं ठीक हूँ।”

    “आप कुछ दिनों से बहुत अलग लग रहे हैं। अगर आप चाहें, तो मैं आपकी मीटिंग्स हल्की कर दूं।” मीरा ने सहानुभूति दिखाते हुए कहा।

    “नहीं मीरा… मैं ठीक हूँ,” उसने कहा, लेकिन उसके लहजे में वो धार नहीं थी जो हमेशा होती थी। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी निराशा थी, जैसे वो खुद से ही बात कर रहा हो।

    वर्किंग आवर्स खत्म हो चुके थे। बिल्डिंग धीरे-धीरे खाली हो रही थी। आराध्या अपनी डेस्क पर अकेली थी, कुछ ज़रूरी मेल्स खत्म कर रही थी।

    अचानक लाइट थोड़ी डिम हुई। वो थोड़ा डर गई, उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। तभी कदमों की आहट सुनाई दी, धीमी और स्थिर।

    वो पलटी । सामने अथर्व खड़ा था।

    उसके चेहरे पर कोई खास भाव नहीं था, पर उसकी आँखों में थकान और उलझन साफ झलक रही थी। उसकी आँखें उसकी तरफ देख रही थीं, जैसे किसी गहरे सवाल का जवाब ढूंढ रही हों।

    “आप अभी तक यहीं?” आराध्या ने पूछा, उसके लहजे में एक दूरी थी, जैसे वो एक अनजान व्यक्ति से बात कर रही हो।

    “मैं देख रहा था… कोई बहुत देर तक काम कर रहा है।”

    “काम है, और कोई distraction नहीं था आज,” उसने कहा, उसके लहजे में एक तीखा कटाक्ष था जो अथर्व को सीधा चुभा।

    अथर्व ने एक पल उसे देखा… फिर धीमे से बोला: “तुम अब मुझसे डरने लगी हो?”

    आराध्या कुछ नहीं बोली। उसकी चुप्पी अथर्व के दिल को एक बार फिर से छलनी कर गई।

    “या अब वो भरोसा नहीं रहा जो था?” उसने पूछा, उसकी आवाज़ में एक दर्द था।

    वो अभी भी चुप रही। उसकी चुप्पी ने अथर्व को यह एहसास करा दिया कि उनके बीच की दूरी कितनी बढ़ चुकी है।

    कुछ देर दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। फिर आराध्या ने अपनी चुप्पी तोड़ी:

    “डर और भरोसा… दोनों तब खो जाते हैं जब किसी को ये लगने लगे कि वो आपकी हँसी का मालिक बन गया है।” उसकी आवाज़ शांत थी, लेकिन हर शब्द में एक चोट थी।

    अथर्व ने उसका जवाब सुना… और अपना सिर झुका लिया। उसे लगा जैसे उसकी हार हो गई हो।

    “तुम सही कहती हो…”

    “लेकिन शायद कभी तुम समझोगी… कि कुछ लोग दूसरों को बाँधना नहीं चाहते, वो बस… उन्हें खोने से डरते हैं।” उसकी आवाज़ अब बहुत धीमी थी, लगभग फुसफुसाहट। “क्योंकि वो पहले ही किसी को खो चुके हैं।”

    आराध्या ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें पहली बार कमज़ोर और इंसानी लगीं। वो एक सख्त बॉस नहीं, बल्कि एक अकेला इंसान लग रहा था जिसने शायद बहुत कुछ खोया हो। वो कुछ कहना चाहती थी… पर कह नहीं सकी। शायद वो पहली बार उसके दर्द को महसूस कर पा रही थी।

    उसी रात…

    आराध्या अपने कमरे में अकेली थी। लैपटॉप बंद, लाइट्स बंद। सिर्फ एक टेबल लैंप की पीली रोशनी और उसके पास एक डायरी।

    उसने लिखा:

    “उसने आज माफ़ी नहीं माँगी… पर एक जले हुए इंसान की तरह थककर खड़ा था मेरे सामने। उसकी आँखें मुझसे सिर्फ मेरा भरोसा नहीं, बल्कि मेरी सहानुभूति भी मांग रही थीं।
    क्या मैं इतनी आसान हूँ कि उसकी झुकी नज़रें देख कर सब भूल जाऊं?
    या मैं भी अब उसी emotion में फँस रही हूँ… जिसे मैं पहचान नहीं पा रही? क्या ये सिर्फ एक बॉस के लिए चिंता है, या इससे कुछ ज़्यादा है… जो मुझे खुद समझ नहीं आ रहा?”


    उसने डायरी बंद कर दी। बाहर बारिश शुरू हो चुकी थी और उसके दिल के अंदर भी भावनाओं का एक तूफ़ान चल रहा था। क्या यह दूरी उन्हें और करीब लाएगी या हमेशा के लिए अलग कर देगी? शायद आने वाला वक़्त ही इसका जवाब देगा।