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जिस्म और जज़्बात❤️‍🔥

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Writer Tanu

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वो एक रात थी।बस एक रात।ना कोई नाम पूछा गया,ना कोई वादा किया गया।दो अजनबी... एक शहर, एक कमरा, एक पल।वो चली गई।जैसे आई थी ...ख़ामोशी से, बिना निशान छोड़े।पर कुछ था जो पीछे रह गया।एक खुशबू... एक छुअन... एक नज़र।और फिर शुरू हुई विहान की जिद्।उसे ढूँढने क...

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विहान मेहरा

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Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. जिस्म और जज़्बात❤️‍🔥 - Chapter 1

    Words: 917

    Estimated Reading Time: 6 min

    कमरे की नर्म रौशनी अब और भी धुंधली होती जा रही थी। उसके बदन की ऊष्मा, उसकी त्वचा की सतह पर महसूस हो रही थी। गर्म, जीवित, सचमुच मौजूद। उसकी उंगलियाँ अब उसकी पीठ से नीचे की ओर खिसकती जा रही थीं, हर एक इंच पर ठहरती हुई, जैसे शरीर की ज़ुबान को पढ़ रही हों।

    उसके शरीर में एक सिहरन दौड़ गई। हल्की, मगर थरथराती हुई। उसकी साँसें अब पहले से भारी हो चुकी थीं, और वो हर साँस के साथ उसके सीने से और ज़्यादा चिपकती चली गई। उनकी त्वचाएँ एक-दूसरे में लिपटी थीं, कहीं पर पसीने की महीन परत, कहीं पर त्वचा की कोमल गहराई।

    उसके होंठ, अब गर्दन की रेखा से नीचे उतरते जा रहे थे। कंधे के जोड़ पर रुकते, वहाँ की गर्माहट को चूमते, फिर आगे बढ़ते। हर जगह जहाँ वो रुकता, वहाँ त्वचा में एक गहरा कम्पन भर जाता। उसके हाथ अब उसकी कमर से होकर उसकी जाँघों तक पहुँचे थे, उसकी पकड़ में एक संयमित ज़ोर था। जैसे वो जानता हो कि कितना और कहाँ छूना है।

    बिस्तर की चादरें उनके नीचे सिलवटों में बँध गई थीं, कुछ निशान उनके शरीरों से, कुछ उनकी हरकतों से बने थे। उसकी जाँघें अब उसके चारों ओर कसती जा रही थीं, शरीर ने खुद को बिना शब्दों के समर्पित कर दिया था। हर हरकत में लय थी। धीमी, मगर बेतरतीब भी, जैसे एक पुरानी धुन दो जिस्मों के ज़रिए खुद को दोहरा रही हो।

    उस पल, उनका कोई अलग वजूद नहीं था। वो एक-दूसरे के भीतर समा गए थे। स्पर्श के ज़रिए, त्वचा के ज़रिए, साँसों के ज़रिए।

    और फिर...

    सब कुछ शांत हो गया।

    अब उस कमरे में सिर्फ़ दो साँसों की लय थी, और एक अजीब सी खामोशी। जैसी किसी युद्ध के बाद आती है।

    विहान की आँखें बंद थीं, उसका माथा उस लड़की कंधे में टिका हुआ। उसकी उंगलियाँ अब भी उसकी पीठ पर थीं, लेकिन बिना किसी हरकत के। मानो स्पर्श के उस चरम पर पहुँचने के बाद, शरीर ने खुद को थाम लिया हो।

    वो कुछ नहीं बोला। और लड़कीने भी कोई शब्द नहीं कहा।

    शब्द अब उनके बीच ज़रूरी नहीं थे। रात कह चुकी थी जो कहना था। स्पर्शों की भाषा में, साँसों के दरम्यान।

    कुछ मिनट, या शायद घंटे बीते होंगे।

    विहान को नींद नहीं आ रही थी। उसे आदत नहीं थी किसी के साथ सोने की। वैसे तो कईं लड़कियों के साथ ऐसी कईं रातें बिताई थी उसने। लेकिन एक बार वो धुन उतर जाने के बाद वो किसी के साथ सोया नहीं था।

    पर इस बार… नींद नहीं आई क्योंकि वो उसके पास थी। ये पहली बार हो रहा था।

    और वो नहीं चाहता था कि ये रात, ये पल ख़त्म हो।

    ---

    जब आँख खुली, तो हल्की रोशनी पर्दों के आरपार भीतर आ रही थी। कमरे में अब भी कल रात की महक थी। पसीने, परफ्यूम और बारिश के संगम से बनी कोई अद्भुत खुशबू।

    पर बिस्तर… खाली था।

    हॉं... वो जा चुकी थी।

    विहान तुरंत उठ बैठा। उसका दिमाग़ सबसे पहले ये सोच रहा था कि कहीं ये सपना तो नहीं था। चादर अब भी गीली थी, तकिए की दूसरी तरफ हल्की सी खुशबू थी। इसका मतलब कल रात वो थी यहाँ।

    लेकिन अब नहीं थी।

    कहीं कोई नोट नहीं, कोई निशान नहीं, कोई नंबर नहीं।

    वो हमेशा जानता था कि लोग आते हैं, जाते हैं.. और उसे इस चीज से फर्क नहीं पड़ना चाहिए। लेकिन अब फर्क पड़ रहा था।

    उसने बड़ी सी विंडो के शीशे के पार देखा। मुंबई की सड़कों पर सुबह की भीड़ चल पड़ी थी। टैक्सियाँ दौड़ रही थीं, सड़क किनारे चायवाले आग सुलगा रहे थे।

    पर विहान मेहरा, जिसकी दुनिया तय समय पर चलती थी... उस सुबह रुक गया था।

    वो अपने अंदर कुछ फिसलता हुआ महसूस कर रहा था। जैसे कोई दरवाज़ा खुला हो, और कोई याद उसमें से बाहर निकल आई हो।

    "अगर मैं सुबह चली जाऊँ... तो क्या तुम मुझे ढूँढोगे?"
    उस लड़की का ये सवाल जो उसने कल रात हँसकर टाल दिया था, वो अब ऑंधी बनकर उसकी सांसे रोक रहा था।

    "हाँ, " वो बड़बड़ाया। अब, जब बहुत देर हो चुकी थी।
    "मैं तुम्हें ढूँढूँगा।"

    उसने मोबाइल उठाया। कोई कॉल, कोई ट्रेस, कुछ भी?

    नहीं।

    वो इतनी समझदार थी कि कोई सुराग नहीं छोड़ा।

    इतने सालों में पहली बार विहान को लगा कोई उसे हराकर जा चुका है। उसकी दुनिया में सब कुछ नियंत्रित होता था। सौदे, रिश्ते, फैसले। वो एक ऐसा आदमी था जो जब किसी चीज़ पर नज़र रखे, तो वो चीज़ उसकी हो जाती।

    पर ये लड़की…

    ये एक रात…

    उसने विहान की पकड़ से फिसलकर उसके मन में एक ज़िद बो दी थी।

    अब ये तलाश सिर्फ बदन की नहीं थी।

    अब ये आदत से अलग कुछ खो देने का गुस्सा था।

    अब ये उसकी मर्दानगी पर लगा पहला धब्बा था।

    और इस हार को विहान सह नहीं सकता था।

    _

    बस एक रात।

    ना कोई नाम पूछा गया, ना कोई सवाल किया गया।

    ना कोई वादा, ना कोई उम्मीद।

    दो अजनबी, एक अजनबी शहर, एक बंद कमरा, और कुछ लम्हें जो जैसे वक़्त से चुराए गए थे।

    कभी-कभी, एक रात की मुलाक़ात,
    पूरी ज़िंदगी की कहानी बन जाती है।
    ये कहानी भी उसी एक रात से शुरू होती है...
    और शायद,
    कभी खत्म नहीं होती।

    *
    *
    *
    *
    कहानी जारी है...

    कौन थी वो लड़की?
    क्या विहान उसे को ढूंढ पाएगा?

    _

    कहानी का पहला पार्ट कैसा लगा बताइएगा जरूर। आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
    कहानी के साथ जुड़े रहने के लिए मुझे फॉलो करना ना भूलें ❤️

    ©® Writer Tanu ✍🏻