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द माफिया'स पेंटेड डॉल

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Talha

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“सुबह आ कर चली गई और फिर आई मगर दिन नहीं लौटा…” मेरी आंखों में आँसू भरे थे। उफ्फ ये गाने ये शायरियां मुझे हमेशा तभी याद आते थे जब मैं बेहद कमजोर महसूस कर रही होती थी। ऐसा नहीं है कि मैं शेर-ओ-शायरी की दीवानी थी लेकिन शब्द हमेशा मेरी कमज़ोरी रहे हैं। म...

Total Chapters (70)

Page 1 of 4

  • 1. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 1

    Words: 1074

    Estimated Reading Time: 7 min

    इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश गालिब
    कि लगाए न लगे और बुझाए न बुझे।



    ◆नियति◆

    “सुबह आ कर चली गई और फिर आई मगर दिन नहीं लौटा…”

    मेरी आंखों में आँसू भरे थे। उफ्फ ये गाने ये शायरियां मुझे हमेशा तभी याद आते थे जब मैं बेहद कमजोर महसूस कर रही होती थी। ऐसा नहीं है कि मैं शेर-ओ-शायरी की दीवानी थी लेकिन शब्द हमेशा मेरी कमज़ोरी रहे हैं।

    मेरे लिए ऐसे हर जादुई शब्द कभी सांत्वना से कम नहीं रहे। जब मेरी दुनिया चारों तरफ से बिखर चुकी होती थी तो मैं शब्दों की ओर ही रूख़ करती थी। वो दोस्ताना अंदाज़ में बाहें फैलाए हुए हमेशा मेरा इंतज़ार करते थे।

    और ये खास गीत तो मेरे लहू में घुल चुका था। मेरे भीतर बस गया था जब मैं ने पहली दफा इसे पढ़ा था।

    रात जा रही थी लेकिन अंधेरा अभी भी बरकरार था और मैं पार्क में बैठी उस अंधेरे की चादर में सिमटे शहर को देख रही थी।

    बाहर कहीं, कोई माफिया मुझे सूँघता फिर रहा था। यही कारण था कि मेरी बहन और उस के पति ने ज़ोर दे कर कहा था कि मुझे अपने लिए सिक्योरिटी हायर करनी चाहिए। मैं सहमत हो गई थी... केवल उन्हें खुश करने के लिए… फिर आज तड़के ही अपने बॉडीगार्ड को चकमा दे निकली। मैं ने रनिंग करते हुए यहां आने का फैसला किया था क्योंकि यह एक ऐसी जगह थी जहाँ मैं आमतौर से कभी नहीं आती थी। इतना सवेरे तो बिल्कुल नहीं। अब कम से कम कुछ समय के लिए कोई मुझे ढूंढ नहीं सकता था।

    मैं ने होंठों भींचते हुए आँखें बंद कर लीं।

    सन्नाटा। पत्तियों के बीच से बहती हवा की सरसराहट। पास के फाउंटेन से आती धीमी जलध्वनि।

    शायद मैं इस दुनिया में आखिरी इंसान हूँ। अकेली। अनसुनी। चिता की ओर बढ़ती हुई।

    उफ्फ! रुक जा नियति। अभी के अभी। मैं ने खुद से कहते हुए अपने हाथ के पिछले हिस्से से नाक पोंछी।

    शांत हो जा। ध्यान केंद्रित कर और एक-एक कर शब्दों को बाहर निकाल। अपने जीवन के चरणों की तरह।

    “सुबह आ कर चली गई और फिर आई मगर दिन नहीं लौटा…”

    मेरी आवाज़ टूट गई– “धत्त तेरी की।”

    मैं ने अपनी उंगलियाँ घास में धँसा दीं और मुट्ठी भर घास नोच फेंकी।

    दिमाग बोला– फिर से कर। शुरू से।

    “सुबह आ कर चली चली गई और फिर आई मगर…”

    “... दिन नहीं लौटा।” एक दरदरी आवाज़ ने मेरी लाइन को पूरा कर दिया।

    मेरा सिर झटके से घूमा और उस की आकृति मेरी निगाहों में आई। वो उसी घास बिछे टीले पर विराजमान था जहाँ मैं। फिर भी उसे अच्छे से देखने के लिए मुझे पूरी गर्दन घुमानी पड़ रही थी। उस की पीठ के पीछे सूरज निकल रहा था इसलिए फौरन उस की शक्ल नहीं दिखी।

    मेरा गला सूखने लगा।

    उस के घने काले बाल कनपटियों पर हल्के सफेद थे!

    वो अपनी उम्र से शर्मिंदा नहीं था बल्कि उसे गर्व से प्रस्तुत करता था।

    पता नहीं क्यों लेकिन मैं जानती थी कि इस की ज़िंदगी आसान नहीं गुज़री है। ये एक कठिन और चुनौतीपूर्ण जीवन जी चुका है। इस ने बहुत कुछ देखा है लेकिन अपनी ज़िंदगी को शान से एन्जॉय किया है चाहे वो कितनी ही खतरनाक रही हो।

    वो कोई नार्मल एवरीडे पर्सन नहीं लग रहा था। न एवरेज लाइफ लाइफ जीने और कोई नौ से पांच गुलामी करने वाला मर्द जो दिन के आखिर में थका हुआ अपनी बीवी के पास लौटता है।

    वो अलग था…अनोखा था…और खतरनाक भी! लाइक ए मॉन्स्टर!

    हां, इंसान की शक्ल में छुपा एक मॉन्स्टर ही तो लग रहा था वो!

    मैं ने थूक निगला।

    उस के पास एक तीखी नाक थी। ऊपरी होंठ पतला था किंतु निचला भरा हुआ और उस में गुलाब सी सुर्खता थी। जो आप के भीतर एक गर्मी और लालच पैदा कर सकती है।

    उफ्फ! मेरी त्वचा पर न चाहते हुए भी गूसबम्प दौड़ गए!

    मैं ने निगाह उस के मुँह से नीचे घसीटते हुए गर्दन पर बने घाव के निशान पर लाई कि मेरा सीना भी एक ठंडी सनसनाहट से गमगमा गया।

    किस ने उसे इतनी निर्दयता से चोट पहुंचाई थी?

    “जुदाई के खौफ से मेरा दिल हुआ जा रहा सर्द,
    है उम्मीद एक रोशनी की…”

    वो अपनी कर्कश भारी आवाज़ में गाता रहा।

    क्या गले पर चोट के कारण ही इस की आवाज़ इतनी दरदरी, इतनी गहरी और गर्म है? मैं ने खुद से सवाल किया।

    मेरी हथेलियों पर पसीने की बूंदें उभर आईं। गर्दन के पीछे के बाल भी खड़े हो चुके थे।

    “आप कौन?”

    वो गुनगुनाता हुआ आगे बढ़ा।

    “तेरे इश्क की चोट में मैं ने दुनिया जला डाली, शहर जलते गए, गिरते गए, राख उड़ती रही
    अंधेरा सब खा गया।”

    मैं ने एक और बार निगला। भीतर से हीटर बन चुकी थी मैं। क्या बात थी उस की आवाज़ में जिस ने इतना गर्म कर दिया था मुझे?

    मैं झटके से पैरों पर खड़ी हुई।

    “बैठो,” उस ने आदेश दिया।

    उस की आवाज़ में कोई हड़बड़ाहट नहीं बल्कि आलस थी। रीढ़ एकदम तनी हुई थी। उस की ब्लैक जैकेट के कसाव के कारण चौड़े कंधों का कटाव एकदम स्पष्ट था।

    उस के बाल ... मैं गलत थी ― वो पूरी तरह काले नहीं थे बल्कि उन में सोने के महीन रेशे भी बुने हुए थे जो उस की गर्दन के पिछले हिस्से तक लटक रहे थे।

    बालों की एक लट उस की भौंह पर पड़ी हुई थी। जैसे ही मैं ने देखा उस ने अपना हाथ उठा कर उसे पीछे कर दिया था।

    इस छोटी सी हरकत ने मुझे उस में एक कोमलता का आभास दिया। कुछ ऐसा जो उस की पूरी शख्सियत से बिल्कुल उलट था जिस से मैं ही गलतफहमी में पड़ गई।

    मेरी खोपड़ी में खुजली हो रही थी। मैं ने एक गहरी सांस ली तो फेफड़े जलने लगे। उस की उपस्थिति में साँस लेना भी दूभर था। ऐसा लग रहा था मानो उस ने इस खुली जगह से सारा ऑक्सीजन चूस लिया था, जैसे वही इस पार्क का मालिक था। मेरा मालिक था। मेरी मौत का मालिक। मेरी ज़िंदगी का मालिक।

    एक सिहरन मेरी रीढ़ के सहारे ऊपर चढ़ी।

    दिल ने कहा– भाग नियति, अभी भाग, जब तक भाग सकती है।

    मैं ने शरीर को थोड़ा मोड़ लिया और कूद कर उस से दूर भागने के लिए तैयार हो गई।

    “मैं दोबारा नहीं कहूंगा।”

    मुझे उस के पास वो ताकत और नियंत्रण महसूस हो रहा था जिस से वो अपने मन मुताबिक मुझे कुछ भी करने पर विवश कर सकता था।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 2. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 2

    Words: 1063

    Estimated Reading Time: 7 min

    वो चाहता तो मुझे पीठ के बल घास पर लिटा कर अपने घुटने दोनों ओर की ज़मीन पर दबा कर मेरे ऊपर आ सकता था। वो मेरे साथ कुछ भी कर सकता था! मगर मैं इतनी आसानी से डर दिखाने वाली नहीं थी।

    “मैं नहीं बैठूँगी।”

    “बैठोगी।”

    वो दृढ़ इरादे के साथ ज़ोर से बोला था।

    ऐसा लग रहा था जैसे मेरे सभी बुरे सपने आज ही के दिन सच होने जा रहे हैं।

    ये मेरे साथ जो भी करेगा उस से पहले ही मैं हज़ार मौत मर चुकी होऊंगी। और फिर? क्या मैं पुनर्जन्म लूँगी? इस के लिए। अपने लिए।

    “तुम भागना चाहती हो?” उस ने पूछा।

    मैं ने सिर हिलाया।

    उस ने सिर तिरछा कर के मुझे देखा और एक आह भरी। मेरी साँसें थम गईं। उस की आँखें सुबह के आसमान सी नीली थीं किंतु गहरी थीं रात के स्याह आकाश जैसी। प्रतीत होता था उन में कुछ रहस्य दफन थे जिन्हें उजागर करने की हिमाकत मुझे ले डूबेगी। ये इंसान मुझे तबाह कर देगा, मुझ से मेरा दिल छीन लेगा और फिर इसे बड़ी आसानी से तोड़ डालेगा।

    मेरा गला जल रहा था और एक अजीब से दबाव में सीना कसता जा रहा था।

    “ठीक है जाओ, डॉलफेस। भागो। तुम्हारे पास तब तक समय है जब तक मैं पाँच की गिनती पूरी न कर लूं। अगर मैं ने तुम्हें पकड़ लिया तो तुम मेरी।”

    “अगर नहीं पकड़ सके?”

    “तो मैं तुम्हें स्टॉक करूँगा, तुम्हारे हरेक लम्हे पर नज़र रखूंगा, तुम्हारे बुरे सपनों में आ कर आधी रात में तुम्हें चुरा ले जाऊंगा और…”

    मुझे कुछ हो रहा था। एक मीठा सा दर्द।

    “फिर?” मैं मंत्रमुग्ध सी फुसफुसाई।

    “फिर मैं यह सुनिश्चित करूँगा कि तुम कभी किसी और की न हो सको। तुम फिर कभी दिन की रोशनी नहीं देख सकोगी। तुम्हारी हर सांस, तुम्हारा हर जागता हुआ पल, तुम्हारे ख़्यालात... और तुम्हारे सारे अल्फ़ाज़ एक-एक कर मेरे होंगे। तुम और तुम्हारा सब कुछ सिर्फ और सिर्फ मेरे होंगे।” उस ने अपने होंठों को पीछे खींचा और उस के दाँत सुबह की पहली किरण में चमक उठे!

    “सिर्फ मेरे।” वो आहिस्ता से खड़ा हुआ।

    आह! उस की हाइट! बौनी थी मैं उस के सामने। वो अपनी मनमर्ज़ी करने वाला एक विशालकाय राक्षस था।

    मेरे पेट में मरोड़ हुई। पैर की उंगलियां भी मुड़ गईं। मेरे भीतर संघर्ष की स्वभाविक इच्छा उठ रही थी। कोई भागने को उकसा रहा था। तू इसे जीतने नहीं दे सकती। हरा दे इसे। तुझे किसी न किसी तरह अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी। कुछ कहना होगा। कुछ भी। इसे दिखा कि तू इस से नहीं डरती।

    “क्यों?” मैं पूरी तरह उस की ओर घूम गई थी– “आप ऐसा क्यों कर रहे हैं?”

    उस ने गौर से मुझ पर निगाहें गड़ा दीं।

    “क्या इसलिए क्योंकि आप कुछ भी कर सकते हैं? या फिर मुझ पर आपका कोई..” –मैं ने पलकें झपकाईं– “...कर्ज़ है।”

    वो शांत रहा।

    “क्या ये मेरे पापा की वजह से है? उन्होंने कई माफियाओं के साथ विश्वासघात किया है, आप उन में से एक हैं न?”

    “लकी गेस।” उस के होंठ मुड़े– “वही है इस की वजह। उस ने तुम्हें मेरे हवाले करने का वादा किया था। पर वो अपने वादे से मुकर गया और अब मैं यहां उसे पूरा करने आया हूं।”

    “नहीं।” दहल उठी थी मैं! नहीं, नहीं, नहीं।

    “हाँ।” उस का जबड़ा कठोर हो चुका था।

    शक्ल से सारे हाव-भाव पुंछ गए थे और मुझे तब समझ में आया कि ये सच बोल रहा है।

    चाहे लाख कोशिशें कर लूं पर मेरा दुःखद अतीत कभी मेरा पीछा नहीं छोड़ता था। मैं भाग सकती थी लेकिन छुप नहीं सकती थी।

    “टिक-टॉक, डॉलफेस।” उस ने अपने शरीर को इस एंगल पर झुकाया कि उस के कंधों ने सूरज, भोर का आसमान, क्षितिज, दूर बसा शहर, सरसराती घास, पेड़, काँपती पत्तियां, सभी को अपने पीछे छुपा लिया था। अब बस मैं और वो थे।

    “पाँच।” उस ने अपनी ठोड़ी झटकते हुए आस्तीन के कफ को सीधा करना शुरू किया।

    मेरे घुटने काँप रहे थे।

    “चार।”

    मेरी धड़कन तेज़ हो रही थी। मुझे भागना था। फौरन वहाँ से निकल जाना था। लेकिन पांव तो भूमि से चिपके हुए थे। वही भूमि जहां हम मिले थे।

    आखिर क्या थी मैं? एक कण की भी हैसियत मुझ से ज़्यादा होगी।

    मैं वो थी जिसे कोई भी तकलीफ दे कर चला जाता था और उफ्फ भी नहीं कर पाती थी। एक औंस के बराबर भी बदला नहीं ले पाती थी उन से।

    “तीन।” उस ने अपनी छाती बाहर निकाली, कंधे चौड़े किए। उस के शरीर की हर मसल रिलैक्स्ड थी।

    “दो।”

    मैं ने निगला। कनपटियों में नब्ज़ धम-धम बज रही थी। रगों में बहते लहू की भी गूंज सुनाई दे रही थी।

    “एक।”

    “भागो।”

    ─────۞─────

    ◆मोक्ष◆

    वो एकदम से पार्क के गेट की ओर दौड़ गई थी। उस के काले बाल पीछे लहराते जा रहे थे। उस के शरीर से फूटी स्त्रीत्व और चन्द्रफूल की खुश्बू से मेरी नाक भर गई थी।

    इतनी जानी-पहचानी क्यों थी वो खुश्बू?

    मैं वहीं खड़ा जितनी गहराई से उसे फेफड़ों में खींच सकता था खींचता हुआ खुशी से सरशार होता रहा।

    मेरे दिमाग में एक दृश्य उभरा। जिस में एक लड़की धीरे से पलकें उठा कर मुझे देख रही थी। उस की हरी आँखें मेरी आँखों से जुड़ी हुई थीं कि एकदम से उस के होंठ हौले से खुले और मेरे होंठों का स्वागत किया।

    मैं ने उसे पहले देखा था ... अपने सपनों में। स्तब्ध रह गया था मैं! क्या? नहीं, ये वो लड़की नहीं हो सकती!

    मैं आगे बढ़ा। अपनी ठुड्डी को आगे की ओर धकेलता हुआ एक बार फिर सूँघने की कोशिश करी लेकिन इस दफा सुबह की नम गंध जिस में कहीं से निकले धुएं का भी मिश्रण था, के अलावा कुछ नहीं मिला था मेरी नाक को। क्योंकि वो मुझ से दूर निकल चुकी थी।

    जैसे ही मैं ने दौड़ना शुरू किया उस ने ठोकर खाई और एकदम से रुक गई।

    ठहर जा मोक्ष। इंतज़ार कर। इंतज़ार कर। उसे बढ़त दे। उसे लगता है कि वो बच निकली है। तुझ से जीत गई है। उसे यही लगने दे।

    मैं ने मुट्ठियाँ भींच कर खुद को रोके रखा। इंतज़ार। इंतज़ार।

    वो गेट पार कर गई। मैं आगे बढ़ा। एक के बाद एक पैर आगे रखता हुआ। मेरी ऊँची एड़ी के जूते घास की सतह में धँस जा रहे थे जिस से कीचड़ उछलता था। तीन लाख की पैंट गंदी हो गई। पर मुझे कहाँ परवाह थी। मेरे पास ऐसी और भी थीं।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 3. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 3

    Words: 1035

    Estimated Reading Time: 7 min

    मेरा पूरा वॉक इन क्लोसेट महंगे ब्रांडेड कपड़ों से भरा पड़ा था। हर मौके पर पहने जाने वाले कपड़े। एक आदमी के पास जो-जो होना चाहिए वो सब था मेरे पास। सिवाए एक चीज़ के। वही जिस पर इस दम मेरी आँखें जमी हुई थीं। जिस ने पहली निगाह में ही हिला दिया था मुझे।

    वही जो घास की ढलान पर बैठी हुई, अपनी आँखों में आँसू लिए हुए गुनगुना रही थी। आह! दुनिया की सारी कविताओं, शायरियों और गीतों को छोड़ कर उसे वही एक गीत मिला था?

    मैं ने गुस्से में साँस छोड़ी। शायद वो उस की चाल थी। हाँ। वह जानती थी कि मैं उस के पास में बैठा हूँ।

    लेकिन नहीं, ऐसा नहीं हो सकता! क्योंकि जब मैं उस के पास जा रहा था तो वो मेरे कदमों की आहट पर ज़रा भी नहीं हिली थी। वो किसी भी चीज़ के प्रति अवेयर नहीं लग रही थी।

    माना कि मैं इतना माहिर हूँ कि एक पूर्णतः चौकन्ने आदमी का भी कान से कान तक गला काट दूं लेकिन उसे पता न चले। लेकिन उस लड़की के सामने तो मैं ने ज़रा भी सावधानी नहीं बरती थी। बिना पाँव दबाए बेधड़क उस के करीब गया था।

    मैं ने अपनी गति बढ़ाई और हमारे बीच की दूरी धीरे-धीरे सिमटने लगी। वो अब भी तेज़ थी। मेरी खूबसूरत डॉल।

    हाय… उसे नहीं पता था वो क्या थी। एक बेशकीमती हीरा। जो आज तक मेरे हाथों में आने का इंतज़ार कर रहा था। ताकि मैं उसे सँवारूं, उसे दिखाऊँ कि वो क्या चीज़ है।

    मैं उसे मारने आया था लेकिन वो पहले से मरी हुई थी।

    अब मैं उस के काफी करीब था कि तभी उस की सफेद त्वचा मेरी आँखों में यूं चमकी कि मैं एक ठोकर के साथ  लड़खड़ा गया। लेकिन तुरंत उस ठोकर को यूटिलाइज़ करते हुए खुद को आगे उछाल दिया था मैं ने। वो रास्ते में एक मोड़ तक गई और निगाहों से गायब हो गई।

    मेरा हृदय छाती के पिंजर पर टकराया!

    मैं उसे खोने नहीं दूँगा! नहीं दूंगा!

    हवा मेरे कानों में सीटी बजाती हुई निकली जब मैं ने अपने पैरों को तेज़ कर दिया था और तूफान की गति से भागता हुआ मोड़ पर पलटा। वहाँ कोई नहीं था।

    मेरे दिल में हथौड़े बजने लगे। कलाइयों में खून उछलने लगा। कनपटियों में सनसनी होने लगी और नसों में एड्रेनालाईन का सैलाब उमड़ आया। मैं ठहर कर चारों तरफ देखने लगा। 

    तभी एक एहसास पर हाथों के रोएं खड़े हो गए।

    वो यहीं है! ज़्यादा दूर नहीं गई। लेकिन कहाँ? कहाँ है वो?

    मैं उस पेड़ तक गया जिस की शाखाएं बेहद घनी और चारों तरफ फैली हुई थीं। 

    तभी ज़मीन पर किसी डाली की तड़ाक ने मेरी तंत्रिकाओं में कंपन भर दी।

    मैं एकदम से पेड़ के पीछे झपटा और उस काँपती हुई चिड़िया को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया। तुरंत उसे अपनी छाती की ओर खींचा कि मेरा हृदय थड़-थड़-थड़ बज उठा था।

    ओह्ह! क्या गड़बड़ थी? आज से पूर्व तो मेरा दिल यूं नहीं धड़का था!

    वो मेरी बाहों में बुरी तरह ऐंठ और कसमसा रही थी। मेरे कंधे तन गए और उंगलियां सनसनाने लगीं। उस ने मुझे लात मारने की भी कोशिश की। जब कि मैं उस के इतना करीब था कि उस ने जॉगिंग टी-शर्ट के भीतर क्या पहना था ये भी देख लिया था।

    “मुझे जाने दीजिए।” उस ने मेरी तरफ सिर घुमाया और उस के बाल लहरा कर कंधे पर बिखर गए।

    “मुझ से दूर हो जाओ राक्षस!”

    मेरी आँखों में क्रोध बढ़ता जा रहा था। दिमाग में क्रोध और लालसा का टकराव चल रहा था।

    उस की खुशबू नितांत असहनीय थी। खुद को रोक नहीं पा रहा था मैं।

    उफ्फ… इसी के तो सपने देखता था मैं।

    नहीं! ये असली नहीं है। ये वह लड़की नहीं है जो मैं समझ रहा हूँ। ये मेरी बर्बादी है। मीठी ज़हर। वो कड़वी दवा है जो मानसिक और शारीरिक शांति के लिए मुझे पीनी ही होगी।

    “फाइन।” मैं ने अपने हाथ नीचे किए और वो घास में गिर पड़ी। सीधी अपनी तशरीफ़ पर।

    “आप की हिम्मत कैसे हुई?” वो गहरी सांस ले कर चिल्लाई। उस के बाल चेहरे पर पर आ गए थे।

    मैं ने अपने हाथ फिटेड पैंट की जेब में डाले। घुटनों हल्के से मुड़े हुए थे। पैरों की दूरी कंधों की चौड़ाई के समान थी। मैं ने सिर झुका कर उसे देखा जो मेरे नीचे पड़ी थी।

    “आप... आप ने मुझे गिरा दिया?!” वो फिर चिल्लाई थी पर इस बार ज़रा ख़ौफ़ से।

    इतनी प्यारी सूरत मैं ने पहले क्यों नहीं देखी थी!

    “तुम्हारी ख़्वाहिश मेरा हुक्म।” मैं ने अपने होंठों पर टेढ़ी मुस्कान प्रकट की थी।

    “बकवास मत कीजिये।”

    “मैं ने कभी ज़िंदगी में बकवास नहीं की।” मैं अपने पैरों की गेंद पर वज़न देता आगे बढ़ा और वह सिहर उठी।

    “क्या ... आप क्या चाहते हैं?”

    “तुम्हें।”

    वो पीली होने लगी।

    “आप मुझे... लूटना चाहते हैं? मेरे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है।”

    “है तो, ये हुस्न।”

    मैं पास गया और उस के शरीर की प्रत्येक मांसपेशी में तनाव उतपन्न होने लगा। गुड। यानी वो सतर्क हो रही थी। बहुत अच्छा! मुझे यही उम्मीद थी।

    क्या मुझे इसे छोड़ देना चाहिए क्योंकि ये मेरे सपनों वाली लड़की से मिलती है... नहीं! नहीं छोड़ सकता। ये एक कर्ज़ है जिस के हिसाब का वक्त आ चुका है। वो हिसाब जो बहुत पहले ही चुकता हो जाना चाहिए था मगर मैं देर करता रहा। पर अब और नहीं! बिल्कुल नहीं!

    मैं ने होलस्टर से बंदूक निकाल कर उस पर तान दी!

    उस की आँखें फैलती चली गई थीं और साँस थमती। मुझे उम्मीद थी कि वो मुझ से अपनी जान की भीख मांगेगी लेकिन उस ने ऐसा कुछ नहीं किया। बस बड़ी-बड़ी विस्फारित पुतलियों से मुझे घूरती रही। उस ने अपने होंठ चाटे और मेरी साँसें ठहर गईं।

    व्हाट द हेल!

    उस की निडरता से मैं इतना आकर्षित क्यों हो रहा था?

    “तुम्हारा फोन,” –मैं बड़बड़ाया– “अपना फोन निकालो।”

    उस ने एक सांस खींची फिर अपनी जेब में हाथ डाल कर फोन निकाला।

    “अपनी बहन को कॉल लगाओ।”

    “क्या?”

    “अपनी बहन का नंबर डायल करो, डॉलफेस। उसे बताओ कि तुम अपने नए फ्रेंड के साथ लंबे सफर पर जा रही हो।”

    “पर?”

    “सुना नहीं?” –मैं ने अपने होंठ टेढ़े किए– “अभी करो, अभी!”

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 4. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 4

    Words: 1034

    Estimated Reading Time: 7 min

    उस ने तितली के पंख की तरह पलकें फड़फड़ाई थीं। लगा मानो विरोध करेगी लेकिन फिर उस की उंगलियां तेज़ी से फोन पर चलने लगीं।

    धिक्कार है! मैं तो उस से जबरन वो करवाने वाला था।

    उस ने फोन अपने कान से लगा लिया। मैं दूसरी तरफ फोन की घण्टी सुन सकता था इस से पहले कि कॉल वॉइस मेल पर चली गई। उस ने मेरी तरफ देखा तो मैं ने ठुड्डी झटक कर जारी रखने का इशारा किया।

    उस ने निगाह फेर कर गहरी सांस ली फिर खुशमिज़ाज आवाज़ में बोली– “हाय दीदी, इट्स मी, नियति। मैं, आह, कुछ वक्त के लिए कहीं जा रही हूँ। वो मेरा... अह, नया दोस्त है... उस के पास एक एक्स्ट्रा टिकट थी तो उस ने मुझे भी लॉन्ग ट्रिप के लिए इनवाइट कर लिया है। मैं... आ… मुझे नहीं पता कि कब वापस आऊँगी लेकिन मैं तुम्हें मैसेज कर के बता दूँगी। अपना ध्यान रखना। लव यू, मैं…”

    मैं ने उस से फोन छीन कर कॉल डिस्कनेक्ट कर दी फिर बंदूक को उस की कनपटी से सटा दिया– “अलविदा, डॉलफेस।”

    ─────۞─────

    ◆ नियति ◆

    हूप-हूप-हंप की वो आवाज़ तेज़ होती हुई मेरे दिमाग को सचेत कर रही थी।

    आँखें खोलते ही दिखा अंधेरा! बेहद घना अंधेरा और ऐसा लग रहा था मैं उस में तैर रही हूँ। उठते ही सिर का पिछला हिस्सा किसी सख्त चीज़ से टकराया और मेरे नेत्रगोलकों के पीछे लाल-सफेद चिंगारियां चमक पड़ीं।

    मैं ने मुश्किल से आँखें खुली रखीं। सिर में भयानक दर्द हो रहा था। मैं कराही और मेरी आवाज़ मुझ ही को गूंज कर वापस सुनाई दी। गर्दन और हथेलियों पर पसीना ही पसीना था। टी शर्ट भीग कर पीठ से चिपकी हुई थी।

    मेरे रनिंग शूज़?

    मैं ने पैरों को हिला कर देखा। हाँ, वे अब भी मेरे पांवों में थे।

    क्या हुआ है मेरे साथ? क्या…?

    मेरे कानों में गूंजती आवाज़ें धीरे-धीरे तेज़ होती हुई मुझे पूरी तरह होश में लाने लगी थीं।

    उस ने मुझे गोली मार दी। कमीने ने मुझे गोली मार दी?

    एक कंपकपी ने मुझे जकड़ लिया। हाथ-पैर सुन्न होने लगे। कानों में खून की धड़कन महसूस हो रही थी। नब्ज़ तेज़ होती गई। पेट मथने लगा। पित्त गले तक उठ आया और मैं खाँस दी। “खौं…खक…”

    नहीं, मैं अभी बीमार नहीं पड़ सकती। अभी नहीं। मैं ने एक गहरी सांस ली फिर दूसरी।

    फोकस कर। इस लम्हे पर फोकस कर, जैसा माँ कहा करती थी।

    मेरी माँ एक जोशीली सामाजिक कार्यकर्ता थीं जो हमेशा बेतुकी, बेढंगी परंपराओं को चुनौती दिया करती थीं और मेरे बिज़नसमैन बाप को उन का निडर स्वभाव भा गया। उन्होंने उन से शादी कर ली जिस के बाद दीदी और मेरा जन्म हुआ। माँ ने हमें विचित्र नाम दिए, जो अंततः हमारे पासपोर्ट तक पहुंच गए?

    उन्होंने मेरा नाम नियति क्यों रखा? यकीनन मज़ाक उड़ाने के लिए क्योंकि बुरी नियति हमेशा कुत्ते की तरह मेरे पीछे लगी रहती थी।

    ये मेरी बद-नियति नहीं तो क्या थी? आखिर इस हाल में किस्मत ने तो नहीं पहुंचाया था मुझे। ये मेरी खराब नियति ही तो थी कि एक टॉल, डार्क एंड डेंजरस बंदे ने मुझ पर हमला किया था…

    मेरे पेट में तितलियां उड़ना शुरू हो गईं और खोपड़ी में गुदगुदी।

    नहीं, नहीं, मैं पागल हो रही हूँ। उन सख्त गुस्से से भरी आंखों को क्यों याद कर रही हूँ मैं?

    लानत है! मुझ में ऐसा क्या है कि मैं हमेशा कमीने लोगों को ही आकर्षित करती हूँ, हाँ?

    मैं ने चारों ओर टटोला। अपने शॉर्ट्स की जेब में हाथ घुमाए लेकिन मेरा फोन नहीं मिला। कैसे मिलता जब मेरे पास था ही नहीं। उसे पहले ही छीन लिया गया था। उसी कमीने द्वारा और फिर उस ने अपनी बंदूक के बैरल को मेरे कनपटी पर रख दिया था। मैं ने अपनी आँखें कस कर मूंद कर ली थीं। मेरे कानों में खून गरज उठा था कि फिर मैं ने एक धमाका सुना! फिर कुछ भी नहीं।

    ओह्ह, उस ने मुझे गोली नहीं मारी थी। हाँ, बेशक। अगर मारी होती तो मैं ज़िंदा नहीं होती। जब कि फिलहाल मैं पूरी तरह ज़िंदा थी।

    मैं ने अपने शरीर का मानसिक रूप से निरीक्षण किया। नहीं, मुझे कहीं भी चोट नहीं लगी थी। अर्थात उस ने मुझे गोली मारने का केवल नाटक किया था... शायद मेरे सिर के पास हवा में गोली चलाई थी कमीने ने।

    साफ है कि उस ने मुझे डराने के लिए वैसा किया था। मुझे अपना आदेश मानने को मजबूर करने के लिए। मेरी नब्ज़ ड्रम की तरह बज उठी। क्यों? उस ने ऐसा क्यों किया? और अब वो मेरे साथ क्या करने जा रहा है?

    होंप-होंप-थंप।

    व्हाट द हेल? ये क्या था?

    जिस कंटेनर में मैं थी वो धीरे-धीरे हिल रहा था।

    नहीं मैं किसी नाव पर नहीं थी... मैं एक…

    मैं ने चारों ओर देखने की कोशिश की। मैं एक बहुत तंग कंटेनर में थी। जिस में मेरे अलावा शायद एक ही इंसान और समा सकता था।

    मेरा पैर किसी चीज़ से छू गया। मैं अपने जूते से उसे महसूस करने की कोशिश करने लगी। वो लचीला था। शायद रबर का बना हुआ था। क्या था वो? टायर?

    तभी एक कार का हॉर्न सुनाई दिया जो ऐसा था जैसे किसी धातुई दीवार के पार से गूंजा हो।

    कार?

    ओह्ह! मैं एक कार में हूँ? शायद कार के ट्रंक में।

    मैं ने धीरे-धीरे अपने हाथ से दीवार को सहलाना शुरू किया तो आकार समझ में आने लगा। हाँ, कार के ट्रंक में ही तो थी मैं!

    “आउच!” –एक झटके कारण मेरा हाथ ज़ोर से दीवार से टकरा गया था– “मुझे बाहर निकालो!”

    लेकिन ऐसा लगा कार की गति बढ़ने लगी है। मेरा दिल इतनी तेजी से हथौड़ा मारने लगा था कि मुझे यकीन था ये मेरी छाती को फाड़ता हुआ किसी भी क्षण बाहर निकल आएगा।

    ये सही नहीं है। मुझे अपने दिल पर इतना तनाव नहीं डालना चाहिए।

    मैं जन्म से ही अपने हृदय में एक छेद के साथ पैदा हुई थी जिस का पता कुछ साल पहले ही चला था। हालांकि अभी वो जानलेवा नहीं था लेकिन हो सकता था अगर इलाज नहीं किया गया। डॉक्टरों ने चेतावनी दी थी कि मुझे जल्द ही एक सर्जरी की ज़रूरत पड़ेगी पर फिलहाल के लिए उन्होंने मुझे दवाओं पर रखा हुआ था, ये देखने को कि वो काम करती हैं या नहीं।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 5. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 5

    Words: 1040

    Estimated Reading Time: 7 min

    इस बीच, मुझे ज़्यादा थकने से मना किया गया था। मगर ज़ाहिर है, मैं ऑर्डर्स फॉलो नहीं कर रही थी। यही कारण था कि मेरी दीदी मेरे प्रति इतनी ज़्यादा परेशान रहती थी।

    यही कारण था कि मैं सुबह में दौड़ने निकल जाती थी और यही कारण था कि मैं ने दवाइयां लेनी बंद कर दी थीं। क्योंकि मुझे दूसरों से कमज़ोर महसूस करना पसंद नहीं था। मैं अपने आप को साबित करना चाहती थी कि मैं ठीक हूँ।

    लानत है, अगर मैं दौड़ने नहीं जाती तो वो मुझे नहीं देखता और मेरा अपहरण नहीं कर पाता।

    ओ माय गॉड! उस ने मुझे किडनैप कर लिया है!

    मेरी नसें एड्रेनालाईन से भर गईं और धड़कनों की गति अब बढ़ कर बुलेट ट्रेन से भी फास्ट हो चुकी थी।

    ये ठीक नहीं है! बिल्कुल ठीक नहीं है!

    मैं ने खुद को समझाया – शांत हो जा। एक गहरी सांस ले। एक और…. एक और।

    मैं किसी तरह खुद को थोड़ी शांत करने में कामयाब रही।

    वो कहाँ ले जा रहा है मुझे? उस ने मेरा अपहरण क्यों किया है?

    मुझे यहाँ से किसी भी तरह बाहर निकलना है। हे भगवान मुझे बाहर निकालो।

    मैं ने अपनी मुट्ठियाँ कस कर भींच लीं और एक गहरी साँस लेते हुए उन्हें जल्दी से ऊपर मारा।

    मेरे दोनों हाथ के घूंसे छत से टकराए। एक जोरदार ‘थंक’ पूरी कार में गूंज गई! मैं ज़ोर से चीख उठी। पूरी बाहों में तीव्र चुभता हुआ दर्द दौड़ गया। जो ताकत मैं ने लगाई थी उस से मेरे कंधों पर असर पड़ा था। 

    तभी कार का टायर घिसटने की भयानक आवाज़ आई जिस ने धातु की मोटी परत के पार से भी मेरे कान चीर दिए थे। इसी के साथ मैं आगे की ओर सरकी फिर पीछे। गाड़ी पूरी तरह रुक चुकी थी।

    शिट! शायद मैं ने स्थिति और बिगाड़ दी थी। उस का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर के।

    भगवान! आप कहीं आस-पास हो क्या? मैं ने कभी इतनी बेताबी से आप को नहीं पुकारा। कभी मंदिर भी नहीं गई। लेकिन अगर आप हैं तो… प्लीज़…. प्लीज़…

    मैं अपनी उंगलियों के पोर को मुँह में डाल कर उस धड़कते हुए घाव को चूसने लगी जो मेरी ही बेवकूफी का नतीजा था। चली थी मुक्का मार कर लोहे की दीवार तोड़ने।

    भगवान प्लीज़ मुझे बचा लो!

    ढक्कन अचानक ऊपर उठा और तेज़ रोशनी से मेरी आँखें चुँधिया गईं। मैं ने इन्हें ज़ोर से भींच लिया फिर हल्का सा खोला।

    चौड़े कंधे, विशाल सीना जिस ने दिन को पूरी तरह ढक दिया था। वो शांत लग रहा था लेकिन सूरज की रोशनी के कारण मैं उस का चेहरा नहीं देख पा रही थी। पर अच्छी तरह जानती थी कि वो कौन था। वही कमीना।

    “खिसको।” उस की कठोर गहरी आवाज़ पूरे वातावरण में गूंज उठी।

    “व्हाट?”

    उस ने तेज़ी से हाथ बढ़ाया और मुझे कंधे से पकड़ कर पीछे धकेल दिया। फिर उस ने एक टाँग ऊपर कर के अपना बूट वाला पांव कार की डिक्की में डाला।।

    ये क्या हरकत है?

    वो इत्मीनान से खुद को एडजस्ट करता हुआ अंदर घुस रहा था।

    नहीं, नहीं, नहीं। ये ऐसा नहीं कर सकता।

    “मैं कर रहा हूँ।”

    क्या?? उस के पास दिमाग पढ़ने की भी शक्ति थी!

    वो अंदर घुसा और मैं पीछे सरकी। सरकती रही जब तक कि मेरी पीठ कार की दीवार से नहीं चिपक गई। वो उसी जगह में बैठ गया जिसे मैं ने खाली किया था।

    अगर ये इसी तरह बैठेगा तब तो हम आमने-सामने होंगे। सीने से सीना, पैर से पैर मिला कर और कमर से कमर…

    मैं ने फौरन उस की तरफ पीठ घुमा ली जब वो अपने आप को पूरी तरह उस छोटी सी जगह में एडजस्ट कर चुका था।

    “अच्छा सोचा।” उस की आवाज़ मेरी पीठ पर गूंजी थी।

    “कम से कम हम दोनों में से एक के पास तो अक्ल है,” –मैं गुर्राई– “क्योंकि साफतौर आप की तो सोचने-समझने की शक्ति जा चुकी है... आप….”

    डिक्की एकदम से बंद हुई और हमारे ऊपर एक छोटा बल्ब जल उठा।

    “क्या-?” मैं ने पलक झपका कर ऊपर रोशनी की तरफ देखा जो ज़्यादा नहीं थी पर कम से कम मैं अपनी नाक तो देख सकती थी अब।

    “थैंक यू बोलो, डॉलफेस।”

    “जा कर पतंग उड़ाइए।”

    “तुम इस से बेहतर कर सकती हो।”

    गाड़ी ज़ोर गरजती हुई आगे बढ़ी कि मैं झटका लगने से उस के सख्त शरीर की दीवार से टकरा गई। उफ्फ! वो सख्त, गठीला, तराशा हुआ बदन। मैं लाल होने लगी। पीठ में आग सी लग गई थी और पूरा बदन सिहर उठा था।

    एक-एक रोयाँ तन गया था। हथेलियां और माथा पसीने से भीग गए थे। गला इतना सूख गया था कि जीभ मुंह की छत से चिपक कर रह गई थी। ये सही नहीं था।

    “आप मुझे कहां ले जा रहे हैं?”

    “तुम सवाल पूछने की स्थिति में नहीं हो।”

    मेरा कंधा उस के कठोर सीने पर रगड़ाया था और मैं घूंट भर कर बर्फ की तरह जम गई। शरीर की प्रत्येक मांसपेशी सख़्त हो गई।

    उस ने अपना एक हाथ मेरी गर्दन में डाल लिया और दूसरा कमर के चारों ओर लपेट कर मुझे अपने पास खींच लिया।

    हे भगवान।

    मैं ने अपनी टांगों को कस कर आपस में भींच लिया था। उस की पकड़ और कस गई।

    “ऐंठना बंद करो!” वो गुर्राया।

    मानो मैं उस की हर बात मानने बाली थी? मैं ने साँस छोड़ कर आगे खिसकने की कोशिश करी।

    “अगर मेरी बात नहीं मानी तो सोच भी नहीं सकती तुम्हारे साथ क्या होने वाला है।”

    मैं सिहर गई।

    “आप कुछ नहीं करेंगे।”

    “आज़मा कर देख लो।”

    “दीदी मुझे न पा कर बहुत फिक्रज़दा होगी।”

    “तुम ने पहले ही उसे कॉल कर लिया था।”

    “मैं ... क्या?” मैं ने सिर घूम कर उसे घूरा।

    “तुम ने उसे बताया कि तुम एक दोस्त के साथ लंबी छुट्टी पर जा रही हो।”

    अरे हां।

    “वह कभी भी विश्वास नहीं करेगी,” मैं ने नाराज़गी से कहा।

    दूसरी बात वो बहुत ओवरप्रोटेक्टिव थी। वो इतनी आसानी से मुझे अकेली नहीं छोड़ती थी।

    “उस की अभी नई-नई शादी हुई है… एक नया भविष्य उस के सामने है। वो कुछ समय तक तुम्हें बिल्कुल याद नहीं करेगी।”

    “आप ने ये कैसे जा…?” –मैं ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी। “आप... आप मुझे स्टॉक कर रहे थे?”

    “तुम इतनी ज़रूरी नहीं हो कि खुद मैं तुम्हारा पीछा करूँ।”

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 6. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 6

    Words: 1060

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं गुस्से से खौल उठी। उस ने मेरा अपमान करने की हिम्मत कैसे की?

    “इम्पोर्टेन्स तो है मेरी तभी तो आप ने मुझे नहीं मारा…”

    “अभी तक।” मैं ने उस की आवाज में मनोरंजन महसूस किया।

    शर्त लगाती हूँ कि ये सब उस के लिए बस पार्क में टहलने जैसा था। यानी वो पहले भी ऐसे बहुत से काम कर चुका था।

    कितने समय से उस ने मुझ पर निगाह रखी हुई थी? क्या वह मेरी रूटीन जानता था? या उस ने बस यूं ही मुझे अपहृत करने के लिए एक समय चुन लिया था? मेरा दिल धड़-धड़ करने लगा। जो बिल्कुल भी सही नहीं था। मुझे अपने हृदय पर ज़्यादा दबाव डालने से बचना था।

    “मैं ही क्यों?” –मैं ने धीमे स्वर में पूछा– “आप ने मेरा अपहरण क्यों किया?”

    “सदियों पुराना सवाल।” उस ने जम्हाई ली। कमीना जम्हाई ले रहा था, जैसे कि ये बातचीत उस के लिए उबाऊ हो।

    “बताइए मुझे,” –मैं ने ज़ोर दिया– “आप बदले में क्या चाहते हैं?”

    “तुम्हें ये क्यों लग रहा है कि मैं तुम्हारे बदले में कुछ पाने की ख्वाहिश रखता हूँ?”

    “क्या मतलब है आप का?” मैं ने कनखियों से उस के चेहरे की तरफ देखा। हाई चीकबोन्स, लंबी तीखी नाक और…आह… उस का वो भरा हुआ निचला होंठ मुझे इनविटेशन दे रहा था। मेरा चेहरा गर्म हो गया और धड़कन फिर बढ़ने लगी।

    “क्या मतलब आप मेरे बदले कुछ नहीं चाहते? कुछ न कुछ तो चाहिए होगा।”

    “मेरे पास सबकुछ है।”

    “फिर मुझे क्यों उठाया?”

    “यही पता लगाने की कोशिश कर रहा हूं।”

    “क्या-?” –मैं ने स्तब्धता से उसे घूरा– “ये तो कोई बात नहीं हुई। आप का कोई तो काम होगा जो आप ने अपना कीमती वक्त निकाल कर मुझे उठा लिया। मेरा मतलब लोग राह चलते तो किसी को देख कर प्लान नहीं बना लेते ‘ओह, मुझे ये इंसान चाहिए, तो ऐसा करती/करता हूँ कि इसे किडनैप कर लेता हूँ!’ है न?”

    “हम्म,” –उस ने सिर हिला कर कहा– “सही कहा।”

    मैं ने पलकें झपकाईं, मुँह खोला और फिर बंद कर लिया।

    आखिरकार सिर हिलाती हुई बोली– “समझ गई। मैं समझ गई कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं।”

    उस ने एक आइब्रो से मेहराब बनाई– “अच्छा? बताओ फिर।”

    “आप मुझे अपनी रहस्यमयी बातों से भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं और अपनी दबंगई से नियंत्रित करने की।”

    “तुम्हारा मतलब तुम को अपने कंट्रोल में लेने की कोशिश कर रहा हूँ?”

    मैं तीखे अंदाज़ में बोली– “दोनों एक ही बात तो है?”

    “कंट्रोल में लेने का मतलब होता है अपने कमांड पर…”

    “मुझे कुछ नहीं समझना,” मैं बड़बड़ाई।

    “तुम्हारा अंदरूनी वजूद साफतौर पर गुलामी में रहना पसंद करता है।”

    “नहीं, मैं नहीं करती,” मैं ने तेज़ी से जवाब दिया।

    “बिल्कुल करती हो।”

    “नहीं।”

    “तुम चाहती हो मैं साबित करूँ?” उस ने अपनी भारी आवाज़ को एक फुसफुसाहट में बदला और और तुरंत मेरे पैर की उंगलियां मुड़ गईं। पूरी रीढ़ सनसना उठी।शरीर की हर कोशिका खुल गई, तंत्रिका तंत्र अलर्ट भेजने लगा और मेरे सायनैप्स... वे तो एक साथ सक्रिय हो गए थे।

    ओ गॉड! उस आदमी में क्या जादू था?

    मैं खुद को दूर खींचती हुई हम दोनों के बीच दूरी डालने की कोशिश कर रही थी। उस ने मुझे और भी करीब खींच कर अपनी टांगों को मेरी दोनों टांगों पर रख दिया ताकि मैं हिल न सकूं। 

    मैं ने एक गहरी सांस खींचने की कोशिश की और मेरे फेफड़े जलने लगे। मुझे नर्वस ब्रेकडाउन हो रहा था।

    नहीं, नहीं! यह नहीं होना चाहिए।

    मैं सांस नहीं ले पा रही थी। दिल इतनी तेजी से बज रहा था कि लगता था अभी बाहर आ जाएगा।

    “श्श!” –उस की गर्म सांस मेरे गाल पर पड़ी– “रिलैक्स, वादा करता हूं कि मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा।”

    ये वो कह रहा था जिस ने मुझे लगभग गोली मार ही दी थी। एक हल्की हँसी मेरे गले से निकली और शरीर काँप गया।

    “क्या फनी लगा?” उस ने भारी आवाज़ में पूछा।

    “आप…” –मैं ने कहा– “क्या आप ने कभी अपनी बातें सुनी हैं? बिल्कुल पागलों जैसी…”

    एक ठंडी धातु मेरी गर्दन के गड्ढे पर रख दी गई और मेरी साँस थम गई। नब्ज़ की गति में उछाल आई और हाथ बुरी तरह काँपने लगे।

    “श।” उस की गर्म सांस ने मेरी कनपटी के रोएं खड़े कर दिए थे। त्वचा सिहर उठी थी और खोपड़ी बहुत कसी हुई महसूस हो रही थी। 

    मैं ने मुंह खोला लेकिन शब्द नहीं निकले। क्या वो चाकू था? हाँ वही था। मर्डर करने वाला चाकू।

    माय गॉड! इस आदमी के पास आखिर कितने हथियार होते हैं?

    वो चाकू की नोक को गर्दन के गड्ढे से सरका पर मेरे गले के सामने तक लाया। नोंक चुभ रही थी। इतनी नहीं कि दर्द हो, बस इतनी कि मैं चुप रहूं।

    मेरी साँस रुकी हुई थी और भीतर तक कंपकपा रही थी मैं।

    यहां तक ​​कि पेट भी कसा हुआ था।

    लेकिन उस ख़ौफ़ से मैं बहुत एक्साइटेड हो रही थी।

    आखिर मेरे साथ चल क्या रहा है?
    क्या इस का मेरी गर्दन पर चाकू रखना मुझे आकर्षक लग रहा है? क्या मैं सज़ा की इतनी भूखी हूँ?

    क्या मैं ऐसी खतरनाक स्थितियों की तलाश में रहती हूँ जो एक आम लड़की को पसंद नहीं आतीं?

    “अब अपना मुँह बंद रखना। मैं चाकू हटा रहा हूँ।”

    उस ने चाकू हटा लिया। मुझे उस के दूर होने का एहसास हुआ जब उस ने चाकू को वापस उस की जगह पर रखा और फिर से मेरे करीब आ कर ठोड़ी पकड़ ली। उस ने मेरी गर्दन अपनी ओर घुमाई और मेरी निगाहें उस की निगाह से मिलीं।

    उस की नीली आँखें चमक रही थीं। अंधेरे में एक दीपस्तंभ की तरह। सुरंग के अंत में प्रकाश की तरह।

    क्या? वो क्या करने जा रहा था? नहीं!!!

    मैं ने चिल्लाने के लिए मुंह खोला लेकिन वह पहले ही काम कर चुका था। उस ने अपना मुँह नीचे किया और अपने होंठ मेरे होंठ पर धर दिए थे।

    ─────۞─────

    ◆मोक्ष◆

    गर्म, मीठा। उस का स्वाद स्ट्रॉबेरी और धूप जैसा था। जिस ने मेरा सिर घुमा डाला था।

    मुझे उस की ज़रूरत थी। बहुत ज़्यादा। मैं उसे तब तक खींचा जब तक वो मेरे सीने से चिपक नहीं गई थी।

    मैं ने एक हाथ कस कर उस की कमर में लपेटा हुआ था। उस ने अपने गले में एक गहरी आह भरी जो इतनी सॉफ्ट थी कि मुझे सही से सुनाई ही नहीं पड़ी थी, बावजूद इस के कि वो मुझ से एकदम सटी हुई थी।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 7. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 7

    Words: 1096

    Estimated Reading Time: 7 min

    उस की हर सांस, उस की हर आवाज़, उस की रीढ़ की हड्डी में उठता कंपन…… सब मेरा था। मैं अपने सिर को आगे की ओर झुकाता हुआ किसिंग में और गहराई लाने लगा। मेरी टंग उस के शहद से भी मीठे मुँह में बेताबी से आक्रमण कर रही थी।

    उस के मुंह से एक कराह निकली जिसे मैं ने तुरंत निगल लिया। मेरा एक हाथ उस की ड्रेस के अंदर गया तो उस का पूरा शरीर सिहर गया और उस की कंपन को मैं ने अपने भीतर तक महसूस किया था। उफ्फ मेरे गालों को सहलाते उस के वो रेशम से बाल! ऐसा लग रहा था वे मेरी गर्दन के चारों ओर लिपट कर मुझे उस की ओर खींच रहे थे। हमें एक करने के लिए। हमेशा के लिए एक दूसरे से बांधने के लिए।

    मैं ने अपने होंठ उस के मुंह से अलग किए तो उस ने अपनी ठुड्डी ऊपर उठा ली। वो अभी भी मेरी स्पर्श की तलाश में थी। उस एहसास की तलाश में थी जो उसे सिर्फ मैं ही दे सकता था।

    “डॉलफेस?” मैं ने अपना गला साफ किया।
     
    उस ने अपनी झालर सी पलकों के बीच से मुझे देखा। उस की आँखों की पुतलियाँ मेरे द्वारा दिए गए आनंद से फैली हुई थीं। उस ने पलकें झपकीं। उस के होंठ मेरे स्पर्श से सूजे हुए थे। 

    “क्या तुम्हारा मन है?” मैं ने अपने होंठों पर मुस्कान लाई। मेरी निगाह उस के लाल गालों और उस के उठते-गिरते सीने पर थी।

    “तुम मेरे लिए थोड़ी बोरिंग हो, लेकिन क्षण भर के सुख के लिए ठीक हो।”

    उस के गाल और लाल हो गए और आँखों में एक चिंगारी सी दिखी।

    ये हुई न बात!

    “भाड़ में जाइये।”

    “अगर तुम ज़िद करो तो।”

    वो मुझ से दूर हट गई कि मैं ने भी अपनी पकड़ ढीली कर दी थी। ऐसा नहीं था कि वह कहीं जा सकती थी क्योंकि हमें उस कार की सीमित जगह में कुछ देर और फंसे रहना था। मैं वहाँ उस के साथ क्यों घुसा था? बस थोड़ा सा पागल हो गया था और कुछ नहीं। 

    मैं ने उसे कार पर मुक्के मारते सुना और जानता था कि इस से ध्यान आकर्षित होगा और मैं ऐसा नहीं चाहता था। उसे किसी की निगाहों में नहीं ला सकता था तो मैं ने वो तार्किक कदम उठाया और अंदर घुस गया। 

    “मुझ से दूर हो जाइये, बदतमीज़ इंसान!”

    “आय थिंक तुम जानती हो कि ऐसा नहीं हो सकता, खास कर अभी की स्थिति को देखते हुए।” मैं ने ठोड़ी से हमारे आस-पास की ओर इशारा किया।

    “और यह किस की गलती है?”
     
    “तुम्हारी।”

    “क्या?”

    “अगर तुम पार्क में बैठी वो गीत न गा रही होती, तो यहाँ नहीं होती।”

    “हाँ, मैं मर चुकी होती।” उस ने गुस्से से देखा।  

    “पहली ही बार में सही अनुमान?!” –मैं ने सिर हिला कर कहा– “मानना पड़ेगा।”

    “सो, व्हाट इज़ योर प्लान?”

    “प्लान?” मैं ने भौंहें चढ़ाईं।

    “मुझे लग रहा है आप मुझे कहीं ट्रांसपोर्ट करने वाले हैं, है न? आखिर जब आप के पास मौका था तो आप ने मुझे मार क्यों नहीं दिया?”
     
    “फिलहाल सवाल मैं करूँगा, पिकोलिना।”

    “अब दूसरी भाषा में गालियां भी देने लगे? ख़ैर, मुझे फर्क नहीं पड़ता।” 

    मैं ने एक सांस छोड़ी– “तुम लड़कियों को हर अजनबी भाषा का शब्द गाली क्यों लगता है?”

    “यह गाली नहीं थी?”

    “नहीं।”

    “तो फिर?”

    “नहीं बताऊंगा।”

    “आप ने मुझे पहले क्या कहा था?”

    “क्या?”

    “डॉलफेस। आप ने मुझे डॉलफेस कहा।”

    “तुम सच में बहुत एनोइंग हो। तुम मुझे तभी अच्छी लग रही थी जब मैं ने अपने मुंह से तुम्हारा मुँह बंद कर रखा था।” मैं ने उस की ठुड्डी पकड़ ली और अपना सिर नीचे किया कि वो एकदम से दूर हुई थी। वह मेरी पकड़ से छुटकारा पाने की कोशिश कर रही थी। मैं ने छोड़ दिया और वो दूसरी ओर घूम गई।

    “डोंट किस मी अगेन।”
     
    “तुम्हें पसंद आया, हाँ?”

    “नहीं।”

    “झूठ मत बोलो।”

    “मैं नहीं बोल रही।”

    “शर्त लगाना चाहोगी? मैं और एक राउंड के लिए तैयार हूँ।” –मैं ने अपने होंठों पर मुस्कराहट आने दी थी– “टाइम पास का यह भी एक अच्छा तरीका है।”

    मैं उस के बालों की एक लट को उंगलियों में लपेट कर अपनी नाक के पास लाया। दालचीनी और चीनी की खुशबू, थोड़ी सी तीखी मसालेदार गंध के साथ। मेरे मुँह में पानी आ गया और उस रेशमी ज़ुल्फ़ को छोड़ दिया। 

    “तो, क्या कहती हो?”

    “जहन्नुम में जाइये।”

    “जा चुका हूँ और दोबारा उस अनुभव को दोहराने की कोई जल्दी नहीं है।”

    “क्या हर गाली का जवाब आप के पास है?” उस ने गुस्से में पूछा। 

    “क्या तुम हमेशा अपने अपहरणकर्ताओं से ऐसे बहस करती हो?”

    “मुझे पहले कभी अपहृत नहीं किया गया।”

    “मैं ने भी कभी…” मैं ने बात अधूरी छोड़ दी। मैं कभी झूठ नहीं बोलता था। और सच यह है कि वो पहली नहीं थी जिसे मैं ने उठाया था। 

    लेकिन वो पहली थी जिस की जान मैं ने बख़्शी थी और माँ की आँख... क्यों? मैं ने वैसा क्यों किया था? उस ने बस कुछ ही शब्द बुदबुदाए थे और बूम! अब कहानी में मैं ही कमज़ोर नज़र आ रहा था।

    नहीं। मैं कमज़ोर नहीं हूँ। कतई नहीं। मुझे इस स्थिति पर नियंत्रण पाना होगा। जो कुछ भी हमारे बीच शुरू हो चुका है इसे जल्दी खत्म करना होगा। मुझे इस जुड़ाव को तोड़ना होगा।

    “पहले कभी शब्दों की कमी महसूस नहीं की, है न?” उस की आवाज़ में जीत की झलक थी और मेरे सीने में एक गर्माहट सी उठी।

    दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। पल्स रेट हाई होती गई और मेरे शब्द बाहर निकलने से पहले ही मुझे एहसास हो गया कि मैं इसे ले कर पछताने वाला हूँ।

    जब मैं ने सुबह उस की जान लेने के इरादे से कदम बढ़ाया था तो मुझे नहीं मालूम था कि मैं अपनी ही ज़िंदगी हारने जा रहा हूँ।

    अब बहुत देर हो चुकी थी। मैं असहाय था लेकिन मुझे जल्द ही कोई तो निर्णायक कदम उठाना था। वरना हम दोनों ही शैतान और अंधेरे के बीच लटके रह जाते। यानी एक ऐसी स्थिति में जहाँ दोनों ही विकल्प बुरे थे।

    मैं खुद से बोला– मैं ये निर्णय लूंगा और जो भी हो सह लूँगा क्योंकि अब कोई दूसरा विकल्प नहीं है। सामने जो रास्ता दिख रहा है उसी पर चलना होगा।

    “मैं ने पहले कभी किसी लड़की का गला घोंट कर उस से अपने आदेश नहीं मनवाए।”

    “क्या बकवास है?” उस ने चिल्लाते हुए झटके से अपना सिर मेरी ओर घुमाया था।

    मैं ने अपनी बांह का फंदा उस की गर्दन में लपेट दिया और उसी हाथ से दूसरे हाथ का बाइसेप कस कर पकड़ लिया।

    वो संघर्ष करने लगी।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 8. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 8

    Words: 1038

    Estimated Reading Time: 7 min

    वो संघर्ष कर रही थी। हाथ भांज रही थी, पांव पटक रही थी। किसी तरह उस ने एक पैर छुड़ा लिया और अपना घुटना मेरी जांघ में दे मारा। दर्द मेरी नसों में दौड़ गया और मेरी उत्तेजना और बढ़ गई। हाँ, दर्द मुझे मज़ा देता था।

    मैं ने दूसरा हाथ उस के सिर के पीछे सरकाया और उस की गर्दन के किनारों पर दबाव डालता गया। वो बेहोश होने लगी।

    “सो जाओ डॉलफेस।”

    उस की साँसें गहरी हो गईं।

    “गुड गर्ल।” मैं उसे पास खींच कर  अपनी उंगलियों के पोर से उस के गाल सहलाने लगा। “जब तुम जागोगी तो एक नई शुरुआत होगी।”

    ─────۞─────

    ◆नियति◆

    मुझे अपनी जांघों के नीचे कोई चिकनी चीज़ महसूस हो रही थी। मैं ने अपने गाल को उस रेशमी-कठोर चीज़ से रगड़ा। एक गन्ध नाक में घुसी, चमड़े जैसी। जिस में थोड़ी सी लकड़ी के धुएं की महक भी घुली हुई थी। कहीं से सर्द हवा के झोंके के साथ मिट्टी की खुशबू आ रही थी। किसी चिमनी में जलती चटकती लकड़ियों की आवाज़। मेरे हाथ और पैर की उंगलियों में एक गर्माहट रेंग रही थी। मैं पलटी और उस कठोर अडिग सतह से लिपट गई।

    धक-धक-धक-धक।

    ये किस की धड़कन थी जो मेरे लहू में गूंज रही थी? कि मेरा हृदय भी उसी लय में बजने लगा था।

    ओह्ह, नहीं। ये तो वही था। वो मेरे पास ही था।

    वो जो मेरे साथ ट्रंक में घुसा हुआ था। उस ने मेरा गला अपनी भुजाओं में जकड़ कर तब तक दबाया था जब तक मैं बेहोश नहीं हो गई थी। 

    मैं ने धीरे से पलकें खोलीं।

    “आप की हिम्मत कैसे हुई?” –मैं ने खाँसते हुए कहा– “आप ने मुझे बेहोश क्यों किया, कमीने, वाहियात जानवर!”

    “नींद ने तुम्हारे मिज़ाज में सुधार नहीं किया, है न?” मेरी आँखों के सामने एक मज़बूत हाथ आया जिस ने पानी का गिलास पकड़ा हुआ था। 

    “पी लो।”

    मैं ने होंठ भींच लिए। थूक निगला और गिलास से निगाह उठा कर उस के दिलकश, खूबसूरत लेकिन क्रूर चेहरे को देखा।

    “पियो नहीं तो मैं खुद तुम्हारे हलक में उंडेल दूँगा।” उस का स्वर नरम था लेकिन मुझे उस की धमकी पर रत्ती भर का शक नहीं था। ऐसे कमीने कुछ भी कर सकते हैं। मैं ने चुपचाप कांच का गिलास पकड़ लिया। पानी मेरे सूखे हुए होंठों के बीच से फिसला। मैं उसे पूरा पी गई। मेरी सूजी हुई जीभ ने मुझे धन्यवाद दिया और दोनों तरफ की कनपटियों में बजती धमधम धीमी पड़ने लगी।

    मैं ने गिलास नीचे कर अपने परिवेश का जायज़ा लिया। मैं एक लेदर चेयर पर थी और मेरी गोद में एक सीटबेल्ट बंधी हुई थी। इस के अलावा मैं ने अभी भी अपने रनिंग वाले कपड़े पहने हुए थे। नीचे देखने पर पता चला कि मेरे स्नीकर्स अभी भी पैरों में थे।

    इंजन का शोर बेहद धीमा सुनाई दे रहा था क्योंकि फर्श पर मोटे गलीचे बिछे थे। पूरा विमान विलासिता में डूबा हुआ था। ऐसी विलासिता या तो बहुत अमीर लोगों के पास होती है या बहुत बुरे।

    “हम एक प्लेन में हैं?”

    मैं ने अपने अपहरणकर्ता के चेहरे पर नज़र डाली। वो मेरे सामने वाली सीट पर विराजमान था।

    कोहनियां आर्मरेस्ट पर रख कर उस ने दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में जोड़ कर तंबू का आकार बना रखा था। उस के पैर अलग-अलग फैले हुए थे। शक्तिशाली जांघें ऐसी लग रही थीं मानो टाइट पैंट को चीर कर सामने आ जाएंगीं।

    मैं ने उस से आँख मिलाई।

    “प्राइवेट जेट, हाँ? आय थिंक क्राइम में काफी फायदा है। आप को ये कैसे मिला, हाँ? इस के असली मालिक को मार दिया?”

    “नहीं, टॉर्चर किया था। अंत में जब मैं रुका तब तक उस के शरीर में खून की एक बूंद भी नहीं बची थी।”

    मैं पीली पड़ गई।

    वो हंसने लगा और मैं समझ नहीं पाई कि क्या ये सच बोल रहा है या बस इसे मेरे चेहरे पर ख़ौफ़ देखना पसंद है इसलिए झूट कहा?

    “और पानी चाहिए?”

    “जो मैं चाहती हूं …” –मैं ने गिलास पर अपनी पकड़ कस ली– “वो है आप का मुंह तोड़ना।”

    मैं ने हाथ पीछे खींच कर गिलास उस पर फेंक मारा जो उस की कनपटी पर लगा और एक धीमी थड के साथ कालीन पर गिर गया। घाव से रक्त फूटा और एक पतली लाल धारी उस की कनपटी से उभरे हुए चीकबोन पर बहने लगी।

    अचानक एक हलचल हुई और फिर एक बंदूक की नली मेरी कनपटी से चिपका दी गई।

    “क्या मैं इसे मार दूं, मोक्ष?” ये भारी मर्दाना आवाज़ मेरे साइड में ऊपर से आई थी। मेरा हलक सूख चुका था और पल्स रेट एकदम से आसमान छूने लगी थी।

    मोक्ष चुपचाप मुझे घूर रहा था।

    गन बैरल ने मेरी कनपटी पर अपना दबाव और बढ़ाया।

    आखिरकार, मोक्ष ने अपना सिर हल्का सा तिरछा करते हुए कहा– “अभी नहीं,” वो गहरी आवाज़ में बोला और मैं अकड़ गई।

    ठंडी धातु मेरी त्वचा से हट गई और मेरे शरीर का तनाव धीरे-धीरे कम होता गया।

    मोक्ष बोला– “एक और बात अमर?”

    अमर यानी मुझ पर गन तानने वाले ने उस की तरफ सिर झुकाया।

    “किसी को भी इस पर बंदूक तानने का अधिकार नहीं है, सिवाए मेरे। कोई भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा सकता, सिवाए मेरे।” उस के होंठ कोने पर हल्के से ऊपर उठे।

    मैं ने जबड़ा भींच लिया और उस की मुस्कान मज़ीद(और ज़्यादा) चौड़ी हो गई।

    “अब हमें अकेला छोड़ दो,” वह गरजा और अमर केबिन के सुदूर छोर की ओर चला गया।

    शिट, अब हम अकेले थे। शायद अमर का हमारे पास रहना ही बेहतर था। तो क्या हुआ अगर उस ने मेरी कनपटी पर गन रखी थी?

    मुझे बंदूक का सामना करना पसंद था बजाए उस माफिया गधे के जो मुझे यूं देख रहा था जैसे मैं उस की सब से स्वादिष्ट शिकार थी।

    मैं ने खुद को मज़बूत दिखाने के लिए अपना सिर ऊंचा किया और सीट के हैंडल को कस कर पकड़ लिया– “अगर आप का इरादा मुझे डराने…”

    “शट अप।”

    मेरी सांस अटक गई।

    “मुझ से इस तरह बात मत कीजिये…”

    वो इतनी तेजी से झपटा कि उस की कनपटी से बहता खून मेरी ड्रेस पर गिर गया।

    “मैं सच कह रहा हूँ, डॉलफेस। अपना सुंदर मुँह बंद रखो या मैं खुद बंद कर दूंगा और ये तुम्हारे पसंदीदा चॉकलेट या केक से नहीं होगा।”

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 9. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 9

    Words: 1008

    Estimated Reading Time: 7 min

    मेरे कंधों की मांसपेशियां जकड़ गईं और भीतर एक हलचल होने लगी।

    “लेकिन अगर।” –उस ने अपनी उंगलियों को एक साथ टैप करते हुए मेरे चेहरे का जायज़ा लिया– “लेकिन अगर तुम फरमाइश करो तो मैं वो भी ला सकता हूँ।”

    नहीं।

    “शायद इसीलिए तुम बार-बार मुझ पर चिल्ला रही हो। मुझ पर वार कर रही हो, मेरा ध्यान खींच रही हो, मुझे कहीं और फोकस नहीं करने दे रही सिर्फ अपने चेहरे, अपने काँपते वजूद और होंठों को छोड़ कर जो शायद मेरे स्पर्श की प्रतीक्षा कर रहे हैं, हम्म?”

    बिल्कुल नहीं। क्या बकवास कर रहा था वो?

    “क्या आप को आप से कमज़ोर और लाचार लोगों को असहाय महसूस कराने में मज़ा आता है? या इस से आप और माचो फील करते हैं? इसी तरह आप खुद को मर्द साबित करने की कोशिश करते हैं?”

    “जो समझ लो।”

    मैं उस पर आँखों से ख़ंजर बरसाती रही।

    “पास आओ।” उस ने कहा।

    “क्या?”

    उस ने अपनी गोद की ओर इशारा किया।

    “नहीं।”

    “तुम्हारे पास दो चॉइस हैं।”

    ओह?

    “तुम या तो मेरी गोद में बैठ कर मुझे खुश करो या…”

    या?

    “या फिर मैं तुम्हारे ऊपर आ कर पहले तुम्हें खुश करूँगा फिर तुम से खुद को खुश करवाउंगा।”

    मैं ने अपने पांव कस कर चिपका लिए थे।

    बिलकुल नहीं। अगर इस ने मुझे छुआ तो जान जाएगा कि…कि मेरे अंदर ज्वालामुखी सुलग रहा है। मैं इस से नफरत करती हूँ क्योंकि इस ने मुझ पर पता नहीं क्या जादू कर दिया है। आज से पहले मैं ने किसी लड़के के बारे में कभी सोचा भी नहीं था वो जो ये मुझे फील करा रहा है।

    मैं ने पलक झपकीं। वो मेरी ज़िंदगी में अब तक नज़र आए मर्दों में सब से अलग और दिलकश था। उफ्फ ये मैं क्या सोच रही थी?

    “कौन सा विकल्प चुनोगी मेरी सुंदरी?”

    “मैं आप की कुछ भी नहीं हूं,” मैं गुर्राई।

    “गलत, तुम मेरी कैदी हो।”

    मैं मुस्कराई– “सच में?”

    “जल्दी और समझदारी से एक ऑप्शन चुनो क्योंकि यही हमारे फ्यूचर रिलेशनशिप की डायरेक्शन तय करेगा।”

    “रिलेशनशिप?” –मैं ने गुस्से से देखा– “आप मेरी सोच से भी ज़्यादा दिमागी अपंग हैं।”

    “तुम्हारे बाप से ज़्यादा नहीं।”

    “बच्चे बाप के पापों का बोझ नहीं उठा…” मैं हकला कर बोली थी कि उस ने मेरी बात काट दी।

    “ये तो बेटों के लिए कहा जाता है और बेटी? बेटी क्या करेगी, हम्म?” उस के गाल से बहता खून पूरी शर्ट को रक्तरंजित करता जा रहा था।

    “यह बेटी अपने बाप को 1 ग्राम भी भाव नहीं देती। मैं जो करती हूँ अपनी मर्ज़ी और पसंद से करती हूँ।” मैं ने अपना जबड़ा सेट किया।

    “क्या-क्या करती हो...?

    मैं ने एक सांस भर अपनी सीटबेल्ट को अन्हुक किया और चुपचाप जा कर उस की गोद में बैठ गई।

      ─────۞─────

    ◆मोक्ष◆

    वो अपनी पलकों के नीचे से मेरी तरफ देख रही थी। उस के काले बाल उस के कंधों बिखरे हुए थे। उस के गाल लाल हो रहे थे और वो अपना निचला होंठ चबा रही थी। मेरे शरीर में खूम का बहाव तेज़ हो चुका था। ऊपर से मैं तो पहले से ही एक्साइटेड था। मैं ने अपनी मुट्ठियाँ खोलते-भींचते हुए खुद को रिलैक्स करने की कोशिश की। 

    “टिक-टॉक, डॉलफेस।”

    उस ने अपने गले से वही गहरी आवाज़ निकाली जिसे अब मैं पहचानने लगा था। वो गुर्राहट और निराशा के बीच की आवाज़ थी। मेरा शरीर और बेताब होने लगा। इस तरह तो मैं उस के छूने से पहले खुद में ही भस्म हो जाने वाला था।

    फोकस। फोकस कर मोक्ष।

    मैं ने एक गहरी सांस ले कर अपने कंधों को पीछे खींचा। 

    “अब क्या मैं इंस्ट्रक्शंस दूं…”

    “नहीं।” वो खुद ही मेरे होंठों पर झुक गई और मुझे चुप करा दिया।  

    मैं आर्मरेस्ट को ज़ोर से पकड़ कर अपनी उंगलियां उस में धंसाने लगा। 

    “बस इतना ही कर सकती हो?” 

    उस ने अपनी ठोड़ी ऊपर उठा के देखा और उस की हरी आंखों में आग सी दिखी। मेरे सीने में कुछ गर्म सा चुभा।

    वो लड़की, वो एक फाइटर थी। एक सर्वाइवर थी। जैसे मैं था। अब देखना ये था कि पहले कौन टूटेगा? मैं या वो?

    ऑफकोर्स यही टूटेगी। मैं इसे खुद से पहले तोड़ दूँगा।  

    “क्या तुम डरी हुई हो, हाँ? शायद तुम बिल्कुल अपने बाप की तरह हो। सिर्फ बातें करने वाली और कुछ नहीं…” उस ने एकदम से जंगली बिल्ली की तरह गुर्राते हुए मेरे होंट अपने मुँह में जकड़ लिए और मेरी शर्ट के बटन खोलने लगी। मुझ में एक्साइटमेंट की लहर दौड़ गई!

    मैं उस की आंखों में देख रहा था। जिन में हल्की लालिमा उभर आई थी। मनोरम!

    मैं घंटों… नहीं बल्कि कई दिनों तक उस बार्बी डॉल सी शक्ल वाली की आँखों में देख सकता था।

    उस के चुंबन से मेरी कलाइयों, माथे और यहाँ तक की पलकों के पीछे भी नब्ज़ तेज़ हो गई थी। अब वो मेरा ईयरलोब कुतर रही थी।

    मैं ने अपने दाएं हाथ की उंगलियां उस के बालों के पीछे घुसा दीं और पूरी शिद्दत से उस के स्कैल्प को मसाज देने लगा। उस ने नेक किसिंग शुरू कर दी थी। उस का दिल मेरे कानों में धड़क रहा था और शायद मेरा भी। आज से पहले कोई लड़की मेरा ये हश्र नहीं कर पाई थी। मतलब मेरे दिल को इस बेताबी नहीं धड़काया था जैसे ये अभी धड़क रहा था। एकदम जंगली अंदाज़ में। बुरी तरह से। क्या मैं खुद के कंट्रोल में नहीं था?

    मैं ने उस के चेहरे को जबरन अपने सामने खींचा तो उस की आंखों से आंसू टपक रहे थे। मैं ने उन्हें पोंछने की कोशिश की लेकिन वो सहम कर पीछे हट गई। गुस्से ने मेरे पेट में मरोड़ भर दी। मैं उस से दूर हो गया। वो पलकें झपकाने लगी।

    “गो।” मैं ने उस की सीट की तरफ इशारा किया।

    “बट…” वो मुझे घूरने लगी।

    “जाओ इस से पहले कि मैं अपना मन बदल लूँ।”

    वो पीछे हटी और अपनी सीट पर बैठ कर वापस सीटबेल्ट बांधने लगी।

    कितनी आज्ञाकारी लड़की है! मेरे दिमाग ने कहा। क्या ये पहले भी किसी को इसी तरह खुश करती थी?

    मेरी मुट्ठियाँ भिंच गईं और नसों में लहू उबलने लगा।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 10. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 10

    Words: 1062

    Estimated Reading Time: 7 min

    उस का किसी और मर्द के साथ होने के बारे में सोच कर मैं इतना क्रोधित क्यों हो रहा था? मेरा उस पर कोई हक नहीं था... अभी तक। मुझे खुद को संभालने की ज़रूरत थी। मुझे उस से दूरी बनाए रखने का तरीका ढूंढने की ज़रूरत थी, जब तक कि मैं यह तय नहीं कर लेता कि उस के साथ करना क्या है। 

    मैं उठ कर खड़ा हुआ और उस से दूर जाने लगा।

    “मोक्ष?”

    मैं रुक गया और उस की तरफ मुड़ा– “तुम्हें मेरा नाम लेने का अधिकार नहीं मिला है।”

    वो गुस्से से फुफकारी– “तो मैं आप को क्या कहूँ? गधा?”

    “लॉर्ड या मास्टर कह सकती हो।”
     
    “ठीक है, लॉर्ड गधा कहूँगी, या फिर मास्टर गधा पसंद है?”

    मैं हँसा, फिर अपने होंठ सख्त कर लिए। “तुम्हारे पास अच्छा सेंस ऑफ ह्यूमर है। गुड। अगले कुछ दिनों में तुम्हें इस की ज़रूरत पड़ेगी।” 

    वो पीली पड़ गई फिर अपने कंधे तान कर बोली– “अगर आप को लगता है कि आप मुझे डरा कर अपनी मनमर्ज़ी करवा लेंगे, तो आप को दोबारा सोचने की ज़रूरत है जनाब।” उस की हरी आँखों में एक छुपी हुई आग चमकी थी। गाल तो पहले ही लाल थे। वो सच में अद्भुत थी और मुझे अपना दिमाग चेक करवाने की जरूरत थी कि मैं उस की तरफ इतना अट्रैक्ट क्यों हो रहा था?

    उसी क्षण मेरे दिमाग ने जवाब दिया – ये तेरे सपनों वाली लड़की है, गधे। तू इसे ढूंढ रहा था। और अब पा लिया है।

    हाँ, लेकिन ये मेरे लिए सिर्फ एक कर्ज़ है जिसे मैं अब वसूलना चाहता हूँ। 

    मैं ने होंठ भींचे, फिर घूम कर चला गया। अपने सुरूर को शांत करने का तरीका ढूंढने। 

    “रुकिए,” उस ने पुकारा।

    अब क्या? मैं ने कंधे के ऊपर से उसे घूरा। 

    उस ने मुझे उंगली दिखाते हुए पूछा– “आप रुक क्यों गए?” 

    मैं ने सिर तिरछा किया– “क्या तुम नहीं चाहती थी कि मैं रुकूं?” 

    “नहीं।”

    “मेरे साथ मसखरी के मूड में हो?” मैं ने गुस्से से घूरा।

    वो सख्त हुई फिर अपना सिर ऊंचा करती हुई बोली– “आप गलत सोच रहे हैं। मैं तो बस देखना चाहती थी कि आप मेरा ऑर्डर लेने को कितना तैयार हैं। और ऐसा लगता है कि आप सिर्फ तैयार ही नहीं बल्कि पूरा समय इंतज़ार में रहते हैं कि कब मैं कुछ कहूँ और…”

    मैं ने जम्हाई ली– “हो गई बकवास? इस से ज़्यादा छोटी बच्चियों की बक-बक नहीं सुनता मैं।” 

    उस के चेहरे पर हल्दी पुत गई। “मैं बीस साल की हूँ, गधे।”

    और मैं उस से पूरे बीस साल बड़ा था। मैं ये पहले से जानता था जब मैं ने उसे किडनैप किया। पर जब उस ने मेरी आँखों में झाँकते हुए अपनी उम्र का ज़िक्र किया तो उम्र का ये अंतर और भी रियल लगने लगा। बेशक, माफिया की दुनिया में बीस साल कुछ भी नहीं है।

    मेरे दूसरे साथियों ने तो खुद से तीस-तीस छोटी लड़कियों से शादियां की थीं। वे कहते थे कि एक नौजवान बीवी आप को भी दिल से जवान बनाए रखती है। मगर मैं ने कभी नहीं सोचा था कि मैं भी उन में से एक बन जाऊंगा।

    सच कहूं तो, उम्र का अंतर जानने के बावजूद भी जब से मैं ने उसे देखा तभी से आकर्षित था।

    लेकिन खैर, वो मेरे पास बस एक एसेट की तरह थी।

    मैं उसे केवल अपनी योजनाएं पूरी करने के लिए इस्तेमाल करने वाला था। बस यही थी वो मेरे लिए― लक्ष्य तक पहुँचने का ज़रिया। 

    मैं ने सिर हिला कर कहा– “तुम बस एक दयनीय मादा हो।”

    “जब मुझे अगवा कर रहे थे तब तो ऐसा नहीं सोचा होगा।” वह गुस्से में मुझ पर दांत पीस रही थी। क्यूट। मैं लगभग मुस्करा दिया फिर तुरंत अपने थोबड़े पर गंभीरता ओढ़ ली। 

    “मैं ने तुम्हें अगवा किया क्योंकि तुम मेरी कर्ज़दार हो।”

    “मैं नहीं मेरा बाप!”

    “एक ही बात है।”

    “यह एक ही बात नहीं है।” वह अपनी पूरी ऊँचाई पर खड़ी हो गई।  

    “तुम बहुत बोरिंग हो।”

    वो हल्की सी कंपकपाई। धत् तेरे की! मैं ने उसे हर्ट कर दिया। लेकिन यही तो मेरा मकसद था, है ना?

    मैं ने उसे इसीलिए उठाया था ताकि वो अपने बाप के पापों की कीमत चुका सके। मैं ने अपनी मुट्ठियाँ अपने साइडों में दबाईं फिर उस की आँखों में देखा– “मैं ने सोचा था कि मुझे एक औरत मिलेगी, एक असली समझदार औरत, जो मेरी ज़रूरतों को पूरा कर सके। समझ रही हो मेरी बात?”

    वो पीली पड़ती गई।

    जब कि मेरे सीने में एक गर्म सनसनी पैदा हो रही थी। मैं ने नज़रें हटा लीं, फिर ऊपर देखा जब एयर होस्टेस मेरे पास आई। मैं ने अपनी उंगलियां चटकाई और उस की आँखें चमक उठी थीं जब मैं बोला– “केबिन में आओ। तुम जानती हो क्या करना है।”

    ─────۞─────

    ◆नियति◆

    मैं ने चारों ओर देखा तो पता चला कि प्लेन में मोक्ष के अलावा पाँच आदमी और थे।

    क्या? पाँच! मैं ने पहले कैसे नहीं देखा था? ख़ैर, उन में से किसी का भी ध्यान मुझ पर नहीं था और मोक्ष? वो तो पहले ही एयर होस्टेस के साथ एक केबिन में समा चुका था। अकेला। क्या कर रहे थे दोनों?

    वही। जो होता है अकेले में। मेरे कारण मोक्ष में जो आग भड़की थी उसे वो अब उस एयर होस्टेस से शांत करवा रहा था।

    मैं सोचने लगी – क्या ये अक्सर ऐसा करता है? एयर होस्टेस से खुद को सेटिस्फाई करवाना? हर बार जब ये प्लेन में चढ़ता है, ये सीटी बजाता होगा और वो दौड़ी चली आती होगी?

    मेरे सीने में कुछ गर्म सा चुभा।

    कमीनी।

    नहीं वो कमीनी नहीं है बल्कि मैं हूँ। जो उस के जैसी बनना चाहती है! इस पागल इंसान की अटेंशन चाहती है!

    मेरे होंठों से आह निकल कर रह गई थी। हाँ, यही तो मैं चाहती थी। उस की अटेंशन। मैं चाहती थी वो सिर्फ मुझे देखे। सिर्फ मेरे बारे में सोचे। उस का हर ख्वाब हर ख्याल सिर्फ मुझ से जुड़ा हो। उस की उंगलियां बस मुझे सहलाएं। बस मुझे छुएं।

    शिट! क्या होता जा रहा था मुझे?

    मैं तन कर बैठ गई। सोचना तो नहीं चाहती थी पर सोच उन्हीं दोनों पर जा रही थी बार-बार।

    वो मुझे चाहता था। जब मैं उसे किस कर रही थी उस ने एन्जॉय भी किया था। शायद, बहुत ज़्यादा?

    तो अब एकदम से क्या हो गया था? क्या मैं ने उसे डरा दिया था?

    एक धीमी सी हँसी मेरे गले में फँस कर रह गई थी।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 11. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 11

    Words: 1053

    Estimated Reading Time: 7 min

    ◆मोक्ष◆
     

    “तुम क्या कर रहे हो, भाई?”

    पीछे से मुझ से सवाल किया गया था पर मैं ने स्क्रीन से निगाह नहीं हटाई। कैमरा कमरे के बीच में बेड की ओर पॉइंटेड था। खास कर, उस पर सो रही लड़की की ओर। जब से हम आईलैण्ड पर आए थे वो सो रही थी। मैं ने अपने आदमियों द्वारा उसे उस कमरे में पहुँचवाया था। उस ने उन से बात करने की कोशिश की थी लेकिन उन्होंने उसे इग्नोर कर दिया… जैसा कि उन्हें आदेश प्राप्त था।

    उन्होंने उस की तरफ देखा भी नहीं, आँख मिलाना तो दूर की बात है। उन्हें मेरे आदेशों की अवहेलना के परिणाम पता थे। उस ने कमरे के चारों ओर देखा, खिड़की के पास गई, जो खुली थी… और मुझे पता था कि वह क्या देखेगी— नीचे सुदूर तक फैला समुद्र। उस के कंधे झुक गए और वह कमरे के हर कोने को जांचती हुई बिस्तर पर जा गिरी। वो सेकंडों में सो गई थी, जैसे कोई बच्ची हो। 

    इसे उन गलतियों की कीमत चुकानी होगी जो इस ने मुझ से करवाईं। एक बार जब मैं तय कर लूंगा कि मैं इस के साथ क्या करने वाला हूं, फिर बताऊंगा इसे।  खुद से ही बोलते हुए अपने दाँत पीसे थे मैं ने।

    “चुप क्यों हो? आज हुआ क्या है तुम्हें?” लव कमरे में घुस आया था।
     
    मेरे भाई का मूड अच्छे टाइम में भी खराब रहता था और आज तो फिलहाल तो वो पहले से ही गुस्से में था। सच कहूं तो उसे इस का हक था क्योंकि मैं ने वो एकमात्र समझौता तोड़ दिया था जिस का हम ने द्वीप खरीदने के बाद से सख्ती से पालन किया था— यहाँ कोई लड़की नहीं आएगी। यह हमारा हाइडआउट है, जिस के बारे में केवल हमारे करीबी परिवार और कुछ भरोसेमंद लोगों को ही पता है। वो यहाँ आ सकते हैं लेकिन सख्त ज़रूरत पर।

    “शायद तुम्हारी खोपड़ी तुम्हें परेशान कर रही हैं?” –वो हँस कर बोला था– “नहीं, रुको, कहीं तुम ने ही अपने दिमाग में गोबर तो नहीं ठूंस लिया है? इसीलिए तुम उसे यहां लाए हो?”

    मैं एक गहरी सांस ले कर वापस स्क्रीन पर सोती हुई लड़की को घूरने लगा। वह पिछले आधे घंटे से हिली भी नहीं थी। वो ठीक तो थी न? मैं स्क्रीन के और करीब झुका।

    सांस लो, डॉलफेस, मेरे लिए सांस लो। उस का सीना ऊपर-नीचे हुआ। मेरे कंधे ढीले हो गए। तनाव कम हो गया लेकिन सीने में एक अजीब सी जकड़न रह गई थी। 

    “अब मुझे ये मत कहना कि उस डायन को आबरा का डाबरा वाला जादू आता है।” –लव बुदबुदाया– “इसीलिए तुम उस से निगाह नहीं हटा पा रहे।”

    मेरी बाईं पलक फड़की। उस ने उस के बारे में ऐसा शब्द कैसे इस्तेमाल किया था? और मुझे क्या हो गया था कि  इतना बुरा लग रहा था मुझे? हम तो आपस में ऐसे ही बात करते थे!

    मैं टेबल से इतनी तेजी से पीछे हटा कि कुर्सी फर्श पर गिर कर चीख पड़ी थी।

    “कोई और कारण भी तो हो सकता है,” मैं ने अपनी आवाज़ को सामान्य रखा। 

    “तुम मुझे उल्लू नहीं बना सकते, बड़े भाई,” –उस की आवाज़ में एक चतुराई थी– “ये साफ है कि वह तुम्हारे लिए कुछ मायने रखती है।”

    “तू सही है।”

    “हूं?”

    “वह एक एसेट है, जो मदद करेगी मुझे मेरा हक हासिल करने में।”
     
    “डॉन की उपाधि?”

    “वह भी।” मेरे होंठों पर टेढ़ी मुस्कान आ गई। यह कोई राज़ नहीं था कि मैं महत्वाकांक्षी हूं और माफिया संगठन का अगला बॉस बनना चाहता हूं। लेकिन यह तभी होता जब हमारा मौजूदा डॉन रिटायर होने का फैसला करे। हालांकि मैं जल्दी में नहीं था, लेकिन हर कदम सोच-समझ कर उठा रहा था। सिवाय उस लड़की के। 

    वो वाइल्ड कार्ड थी। जो संयोग से मेरे कब्जे में आ गई थी और अब मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि उसे खेलना कैसे है। 

    “इसे कहते हैं बुद्धिमानी,” –लव ने सिर हिलाया– “तब तो तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होगी अगर मैं...” उस ने स्क्रीन की ओर इशारा किया– “उस के साथ अपनी किस्मत आज़माऊं?”

    मेरी निगाहों के सामने लालिमा छा गई। जब उंगलियों में दर्द हुआ तब एहसास हुआ कि मैं ने एक कोने से दूसरे कोने में पहुँच कर उस की कॉलर दबोच ली है।

    “तो ये बात है, नहीं?” उस के होंठों का एक किनारा मुड़ा हुआ था। उस की आँखें संकुचित हो गईं, उस ने मुझ से निगाह हटा कर स्क्रीन पर देखा, फिर मुझे देखा। “तुम चाहते हो कि मैं खुद कहानी बनाऊं, या तुम खुद साफ-साफ उस के बारे में बताने वाले हो?”

    “उस के बारे में? वो कोई नहीं है, सिवाए एक कैदी के। वह मेरी है और उस की नियति मेरे हाथ में है। बस।” मैं ने उसे छोड़ दिया। वो हिला नहीं। मैं पलट कर कमरे के कोने में बार के पास जा कर अपने लिए व्हिस्की निकालने लगा। 

    “चाहिए?” मैं उस के जवाब का इंतज़ार किए बिना दूसरे गिलास में भी डालने लगा। फिर वापस आ कर उसे उस की ओर बढ़ा दिया। 

    “वह मेरी है,” मैं ने ऐलान किया।  

    उस की भौंहें चौंक कर उठीं।

    “ओह?”

    मैं अपनी ड्रिंक एक घूंट में पी गया। जो मेरे गले को जलाती हुई नीचे उतर गई थी। 

    पता नहीं उस लड़की के कारण क्या होता जा रहा था मुझे? पर ये कुछ ऐसा था जिस से मैं कभी ज़िंदगी में दो-चार नहीं हुआ था।

    मुझे खुद को समझाने की ज़रूरत थी कि वो कुछ नहीं है। कुछ भी नहीं। एक और ज़रूरी चीज़ जो करनी थी वो थी लव का ध्यान उस लड़की से हटाना।

    “तभी तक के लिए जब तक मैं उस से अपना काम न ले लूँ,” मैं ने स्पष्ट किया।

    “अगर तुम उसे मार दो तो वह ज़्यादा काम की होगी।”

    मेरी आंतें ऐंठ गईं। मानो रूह सी फना हो गई थी ये सोच कर कि वो सांस नहीं ले रही है, मेरी तरफ देख नहीं रही है, मुझे चिढ़ा नहीं रही है, मुझ से बदज़बानी…

    नहीं! वो मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती। वो मेरी कुछ नहीं है।

    “फिलहाल वो ज़िंदा रहेगी तभी काम आएगी,” –मैं ने बेदिली से जवाब दिया था– “मैं उस के ज़रिए ‘द सेवन’ को माफिया की इंक्वायरी करने से रोकूँगा।”

    मैं बार की ओर वापस गया और खुद के लिए एक और ड्रिंक उंडेली। 

    “लेकिन…” लव बड़बड़ाया और मैं ने सतर्क होते हुए शराब की बोतल का कैप चढ़ाया।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 12. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 12

    Words: 1066

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं ने गिलास उठा कर मुँह से लगाते हुए ज़बान पर हल्का सा स्वाद लिया। लौंग और अदरक के तीखे मसाले ने धमाका कर दिया था ज़बान पर। ठीक ‘उस’ की तरह जब उस ने मुझे किस की थी।

    “क्या लेकिन?” मैं सवालिया अंदाज़ में लव की ओर पलटा। 

    “यह तुम्हारा अंदाज़ नहीं है। क्या तुम कुछ ऐसा प्लान कर रहे हो जिस में मुझे शामिल नहीं कर रहे?”

    “क्या मैं ऐसा कभी कर सकता हूँ?” मैं ने सिर तिरछा करते हुए पूछा। 

    “हमेशा करते हो।” –वह धीरे से हँसा– “बेशक हम ने अभी के लिए सेवन को हमारे पीछे आने से रोक दिया है लेकिन यह सिर्फ समय की बात है जब वे फिर से अपनी कोशिशें शुरू करेंगे।”

    “अगर मैं एक खास तरीका ढूंढ लूँ तो?”

    “तुम्हारा क्या मतलब है?”

    “अगर मैं सेवन के साथ एक समझौता कर लूं?”

    “वे कभी राज़ी नहीं होंगे।”

    “जब तक उन के पास कोई चारा न हो।”

    “मतलब?” उस का सिर टेढ़ा हुआ।
     
    मैं ने उस की आँखों में देखा और उस के माथे से शिकन मिट गई। 

    “आह, मैं समझ गया।” –उस ने कंधे झटक कर कहा– “तुम्हारा मतलब है…” उस ने ठुड्डी से स्क्रीन की ओर इशारा किया था।  

    “हाँ, बिल्कुल यही मतलब है जो तुम समझ रहे हो,” मैं धीरे से बुदबुदाया। 

    “ओह्ह, तुम एक पत्थर से दो शिकार करोगे। बिज़नस को आगे बढ़ाने के लिए गठबंधन कोई नई बात नहीं है।” –लव ने अपनी ठोड़ी सहलाई– “लेकिन मेरी मानो तो वे भरोसे के काबिल नहीं है, ये ऐसा है जैसे अपने दुश्मन के साथ सोना।”

    “मैं पहले भी इस से बुरी चीज़ें कर चुका हूँ।”

    “ह्म्म्म… ख़ैर वो दिखने में बुरी तो नहीं लगती।”
     
    मेरे गले से गुर्राहट उभरी और उस ने अपने हाथ उठा लिए– “ठीक है, अब कुछ नहीं बोलूंगा। लेकिन तुम जानते हो कि इस में बहुत रिस्क है। अगर सेवन सहमत होने से इनकार कर दें तो? आफ्टर ऑल, मनी इज़ ए पावरफुल मोटिवेशन। कभी-कभी अपने प्यारों की जान से भी ज़्यादा मायने रखता है पैसा।” 

    “अगर मैं उन्हें कोई चॉइस ही न दूं?”

    “तुम्हारा मतलब है पहले उस से शादी कर के उस के साथ सो जाओगे फिर उस की मदद से उन्हें अपने पक्ष में करोगे?”

    “आय मीन कि न तो उन्हें और न ही उस लड़की को कोई चॉइस दूं। वह वही करेगी जो मैं कहूंगा।”
     
    “तुम यह मान कर चल रहे हो कि तुम उसे अपने इशारों पर नचा सकते हो, लाइक अ पपेट?”

    “इस में गलत क्या है?”

    “औरत को कम मत समझो।”

    “मेरी औरतों को संभालने की काबिलियत को कम मत समझो।”
     
    “हम्म।” उस ने अपना होंठ वैसे ही सिकोड़ा जैसा वह बचपन से करता आया है, जिस से मैं हमेशा चिढ़ जाता था।

    मैं बड़ा था फिर भी उस के पास मुझ से ज़्यादा समझदार दिमाग था। यही कारण था कि मैं अपने बाकी भाइयों की बजाए उसे अपने सलाहकार के रूप में ज़्यादा चुनता था। 

    “क्या?” मैं गुस्से से बोला– “तेरे दिमाग में क्या है, गधे?”

    “यह रिस्की है।”

    “उसे मारने से तो बेहतर है, जो कि मेरा पहला ख्याल था जब मैं ने उसे देखा था।”

    “तुम्हारा ख्याल क्यों बदला?” 

    उस की आंखें, उस के होंठ, उस के बदन की खुशबू और उस की उन हरी जादुई आँखों के कारण। जिस तरह उस ने मुझे अपनी चमकती, ज़िंदगी से भरी आंखों से दिलचस्पी के साथ देखा था, मुझ में एक गहरी इच्छा ही तो जगा दी थी उस ने। 

    “मुझे जल्द से जल्द अपनी स्थिति को मज़बूत करना ज़रूरी है,” मैं धीरे से बोला।

    “शायद तुम उस की ओर अट्रैक्ट हो रहे हो, राइट?”
     
    “मैं हमारे अन्य चार प्रतिरोधी परिवारों को यह संदेश देने की कोशिश कर रहा हूँ कि हम कमज़ोर नहीं है, बल्कि हमारे पीछे भी प्रभावशाली लोग खड़े हैं।”
     
    “इस के आसान तरीके भी हैं।”

    “जैसे?”

    “तुम अपने लोगों को भेज कर उन्हें गोली मरवा दो।”

    हंस पड़ा मैं– “और फिर एक खुला युद्ध छेड़ दूं?” मैं सिर हिला कर बोला– “हिंसा का एक समय होता है और एक समय…”
     
    “रोमांस का?”
     
    “समझौते का।” मैं ने भौंह चढ़ाईं।
     
    “उस के साथ या खुद के साथ?”

    “तू क्या बकवास कर रहा है?” –मैं गुर्रा उठा था– “जो भी तेरे दिमाग में है, बस साफ-साफ कह दे।”

    “मुझे कहना ये है कि यह अपनी स्थिति मज़बूत करने का बहुत लंबा और जटिल तरीका लग रहा है।”
     
    “वह पहले से ही हमारे साथ है,” –मैं ने स्क्रीन की तरफ इशारा किया– “आधा काम तो हो चुका है।”

    “तुम इसी पर अड़े हुए हो?” –वह त्योरी चढ़ा कर बोला– “मैं कुछ भी कहूँ तुम्हारा मन नहीं बदलने वाला?”
     
    “क्यों बदलूं?” –मैं ने अपने पैरों की दूरी बढ़ाई– “वह एक चाबी है। तुम्हें दिख नहीं रहा? उस की बहन मुंबई के चौथे सब से अमीर आदमी से शादीशुदा है, जो पावरफुल लोगों के एक खास सर्कल का हिस्सा है। जो हमारे लिए न सिर्फ इंडिया बल्कि दूसरे देशों में भी दरवाज़े खोल सकते हैं।”

    “अच्छा? तो एक ही झटके में हम न केवल दूसरे परिवारों को संदेश देंगे बल्कि भौगोलिक रूप से अपने प्रभाव का दायरा भी बढ़ाएंगे?”

    हमारे पिता की एक शर्त थी: मुझे चालीस पार करने से पहले शादी करनी होगी और एक वारिस पैदा करना होगा ताकि मैं डॉन की पदवी सुरक्षित कर सकूं। वरना उत्तराधिकार की लड़ाई शुरू हो जाएगी। चार अन्य शासकीय परिवारों में से कोई भी मुझे चुनौती दे सकता है और अगर वे जीत गए, तो मैं वो सब खो दूँगा जिस के लिए मैं ने कड़ी मेहनत की है। ऐसा नहीं है कि वे अभी हम पर हमला नहीं कर सकते। बल्कि वे रुके हुए हैं और उन्हें रोकने वाली बस एक ही चीज़ है; मेरी टीम और मेरी ताकत। लेकिन, बाकी चीज़ों की तरह, ताकत भी बढ़ती घटती रहती है। मुझे शादी कर के जल्दी से अपनी स्थिति मज़बूत करनी है।

    स्क्रीन की ओर से एक आवाज आई। मैं मुड़ा। डॉलफेस जाग कर उठ बैठी थी और कंबल उस की कमर तक गिरा हुआ था। वो अभी भी अपने सुबह वाले शॉर्ट रनिंग  कपड़ों में थी।

    “ओहो तो इसलिए इतनी देर से देखा जा रहा था?” लव मुस्कराया।

    मैं ने हाथ हिलाया और स्क्रीन बंद हो गई।

    “होल्ड ऑन... अभी तो ढंग से देखा भी नहीं था।” वो स्क्रीन की ओर बढ़ा लेकिन मैं उस के रास्ते में खड़ा हो गया था।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

    कमेंट करें ताकि कहानी को इस प्रकार जारी रख सकूं। आप के अच्छे-अच्छे कमेंट ही लेखकों को ज़्यादा से ज़्यादा लिखने के लिए प्रेरित करते हैं। 🙂

  • 13. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 13

    Words: 1047

    Estimated Reading Time: 7 min

    “समझ गया।” उस ने अपने दांत दिखाए।

    “नहीं, तुम कुछ नहीं समझ रहे।”

    “तुम उस पर मोहित हो गए हो, है ना?” उस ने अपनी ठोड़ी खुजलाई थी।

    “भाड़ में जा।”

    “तुम्हारी भारतीयता साफ झलक रही है।” उस ने अपनी ज़बान चटकाई थी।

    “तू भी आधा भारतीय है, भूल गया?”

    “मैं ने बहुत कोशिश की, लेकिन ये ऐसा दाग है जो आसानी से नहीं मिटता और न ही वो गलती जो तुम ने उसे यहाँ ला कर की है।”

    “किसे लाने की बात हो रही है?” एक नई आवाज़ सुनाई दी। मैं ने सिर उठाया और देखा कि मेरा दूसरा भाई मनोज कमरे में आ रहा है। उस के पीछे मेरे सब से छोटे जुड़वां भाई कृष और अनंत भी थे।

    अमर, मेरा राइट हैंड, खुले दरवाजे के पास खड़ा था। उसे आदेश दिया गया था कि वह केवल परिवार के सदस्यों को ही अंदर आने दे। इस के बावजूद भी वो कभी अपनी सतर्कता ढीली नहीं करता था। 

    जब से वो एक लड़की के प्यार में पड़ा (जिसे हम ने मानव तस्करी से बचाया था) और मेरे आशीर्वाद के साथ उस से शादी की, तब से उस की वफादारी अटूट हो चुकी थी। हालांकि वो पहले भी बहुत वफादार था। लेकिन बीवी मिलने के बाद और भी समर्पित हो गया था जिस के लिए मैं आभारी था। उस ने मेरी ओर देखा तो मैं ने उसे इशारा कर दिया और उस ने पीछे हट कर दरवाज़ा बंद कर दिया। मैं अपने भाइयों की ओर पलटा– “तुम लोग यहां क्या कर रहे हो?”

    “कोई बहुत गुस्से में लग रहा है,” कृष धीरे से बुदबुदाया।

    “शायद भईया को भाभी नहीं मिल रही?” अनंत मुस्कराया।

    “या शायद इसे कई मिल गई हैं लेकिन ये संतुष्ट नहीं है। आखिरकार, क्वालिटी, क्वांटिटी से ज़्यादा मायने रखती है।” धीमे लहजे में बोलता मनोज आगे बढ़ा।

    बाकी दोनों भी बढ़े और मैं ने त्योरियां चढ़ा कर उन्हें कमरे में इधर-उधर जाते हुए देखा। कृष सोफे पर बैठा और तुरंत ही करवट ले कर फैल गया।

    अनंत ने अपनी भारी काया को एक कुर्सी पर डाला है और अपने पैर कॉफी टेबल पर टिका दिए।

    “आप को तो मुंबई में होना चाहिए था, राइट?” उस ने अपनी अपनी ठोड़ी मेरी तरफ झटकी थी।

    “मैं था,” –मैं बड़बड़ाया।

    “क्या किसी लड़की की वजह से इतनी जल्दी लौट आए?”

    मैं उस की आंखों में देखता रहा, कुछ कहा नहीं।

    “मुझे पता था,” –कृष चिल्लाया– “ज़रूर कोई लड़की ही है जिस ने इन्हें इतने खराब मूड में डाल दिया है।”

    “सिर्फ मेरा मूड ही नहीं, कुछ और भी खराब होने वाला है।” –मैं गुर्राया– “तुम तीनों गधे यहां क्या कर रहे हो?”

    “तुम अपनी बात दोहरा रहे हो, बड़े भाई,” मनोज मुस्करा कर बोला।

    “भाड़ में जाओ!” मैं ने अपनी गर्दन पीछे से रगड़ी।

    “अब आप गालियों का सहारा ले रहे हैं।” –कृष फिर हँसा– “बाय द वे, हमें बुलाने वाले आप ही थे। मीटिंग के लिए।”

    बेशक, मैं ने बुलाया था। मैं कैसे भूल गया? मैं आगे बढ़ा और उन के सामने खड़ा हो गया। लव मेरे पीछे आया था।

    “अपना पैर टेबल से हटा,” मैं अपने सब से छोटे भाई पर गुर्राया।

    “सच में?” –उस ने मुँह बनाया– “क्यों हटाऊँ?”

    “कुछ देखना चाहता है?” मैं ने अपनी कमर से चाकू निकाल कर हाथ में घुमाते हुए उसे घूरा और वो चिढ़ गया।

    “आप बहुत उबाऊ हैं भईया।” उस ने अपना पैर फर्श पर रख दिया।

    “तुम ने हमें क्यों बुलाया?” मनोज अपनी सीट पर सीधा बैठ कर बोला था। “ज़रूर कोई गंभीर बात होगी जो तुम ने हम सब को यहाँ बुलाया है।”

    कसम से! यह क्या हो गया था? यकीन नहीं हो रहा था कि मैं इतनी ज़रूरी चीज़ भूल गया। इसी से समझ लो कि उस लड़की ने मेरे दिमाग को कितना उलझा दिया था कि मुझे दूसरों को दिए हुए अपने खुद के आदेश भी याद नहीं थे।

    मैं अपने भाइयों को देखता हुआ बोला– “क्या मैं अपने ही भाइयों को मिलने के लिए नहीं बुला सकता? आखिरकार, हम एक फैमिली हैं, राइट?”

    “हम तुम्हारे मुंबई जाने से पहले तुम से मिले थे, तो मेरा मानना है कि वहाँ कुछ नया हुआ है तुम्हारे साथ, क्यों?” मनोज ने अपना सिर ऊपर उठाया।

    “कह सकते हो।” मैं ने अपनी उंगलियों को बालों में फिराया फिर उन्हें देखा– “मैं शादी कर रहा हूं।”

    “शादी?” अनंत ने धीरे-धीरे पलकें झपकाईं फिर ज़ोर से हंस पड़ा– “क्या बकवास है?” वह मज़ाकिया ढंग से बोला– “आप का सेंस ऑफ ह्यूमर बड़ा अजीब है।”

    मैं दाँत पीस कर बोला– “क्या गलत है मेरे शादी करने में?”

    “सब कुछ।” उस ने अपने चेहरे को गंभीर बनाने की कोशिश करी फिर एकदम से हँस पड़ा।

    “और यहाँ मैं सोच रहा था कि अनंत पहले शादी करेगा, क्योंकि इसे बचपन से ही तनीषा पर क्रश है।” मनोज अपने पैर के अगले हिस्से पर आगे झुका था।

    “ओ भइये,” –अनंत ने विरोध किया– “मुझे उस पर कोई क्रश नहीं है।”

    “ओह, प्लीज़,” –कृष हँस कर बोला– “जब भी वह दिखती है तेरी आँखें चमकने लगती हैं।”

    “चमकने लगती हैं?” –अनंत बेचैनी में बोला– “क्या मतलब चमकने लगती हैं?”

    “तुम दोनों आज भी दस साल के बच्चों की तरह क्यों झगड़ते हो?” मैं ने अपने कान में उंगली घुमाते हुए पूछा।

    “शायद इन्होंने कभी बड़ा न होने का पुख़्ता फैसला कर रखा है, जैसे तुम ने कर रखा है,” मनोज मुस्कराया– “हालांकि मुझे लगता है कि मुंबई की प्रदूषित हवा तुम पर असर-अंदाज़ हो गई है। शायद इसीलिए तुम ने शादी का फैसला किया है?”

    “ये बढ़िया पॉइंट है,” कृष मनोज की ओर घूमा– “क्या इन के चेकअप के लिए हमें डॉक्टर बुलाना चाहिए?”

    “चुप कर, बेवकूफ,” मैं गुस्से में फुंकारा।

    “ओह,” –कृष मज़ाक में थरथराया– “मैं तो डर गया।”

    “मैं तुम्हारा लीडर हूँ, गधे,” –मैं हल्के स्वर में बोला– “बेहतर होगा कि तुम लोग मुझे इज़्ज़त दो, वरना अगली बार मैं तुम से तुम्हारी छोटी उंगली माँगूंगा।”

    “कभी-कभी...” –लव आह भर कर बोला– “तुम किसी घटिया बॉलीवुड फिल्म के माफिया की तरह बोलने लगते हो।”

    “मैं फिल्में नहीं देखता।”

    “और यही दुख की बात है।” –उस ने मुझे ऊपर से नीचे तक घूरा– “अगर तुम ने देखी होतीं, तो तुम्हें पता होता कि तुम्हारी कहानी एक चिक फ्लिक जैसी है।”

    “मतलब?”

    उस ने समझाया– “मतलब रोमांटिक कॉमेडी। जिस में हीरो और हीरोइन मिलते हैं। एक-दूसरे की ओर अट्रैक्ट होते हैं, बस ये रियलाइज़ करने के लिए कि…”

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 14. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 14

    Words: 1054

    Estimated Reading Time: 7 min

    “मुझे पता है रोमांटिक कॉमेडी क्या है,” मैं सूखे स्वर में बोला।

    “सच में?” –कृष ने नकली हैरानी का नाटक किया– “अगर ऐसा है फिर तो आप का अगला डायलॉग भी वही होने वाला है जो ऐसी हर फिल्मों में होता है ‘मुझे प्यार हो गया है।’”

    मैं हँसा– “अच्छा मज़ाक है। मैं देख रहा हूँ कि तुम ने अपनी कॉमेडिक स्किल्स को काफी पॉलिश कर लिया है।”

    “और आप ने खुद को ऐज़ अ हसबैंड पॉलिश करने की ज़रूरत है।”

    “सिर्फ तब तक जब तक मुझे एक वारिस नहीं मिल जाता।” मैं ने कंधे उठा कर गिराए।

    अनंत बोला– “वैसे, वो खुशनसीब मोहतरमा हैं कौन?”

    “कोई ऐसी जिसे तुम लोग नहीं जानते।”

    “फ़ैंटास्टिको।” –कृष ने अपने हाथ रगड़े– “क्या वह इतनी सुंदर है कि आप शादी से पहले हमें उस से मिलाना नहीं चाहते?”

    “हाँ, वह सुंदर है। और नहीं, तुम्हें उस से न मिलाने का कारण ये नहीं है। बल्कि इसलिए नहीं मिला रहा क्योंकि उसे अभी तक मेरे प्लान के बारे कुछ पता नहीं है।”

    “सो, तुम ने क्या किया है? उस की किडनैपिंग?” –मनोज ने मुझे अपनी चालाक नज़र से देखा– “और क्या है जो तुम हमें नहीं बता रहे?”

    “मैं तुम्हें इस समय जो कुछ जानने की ज़रूरत है, वो सब बता रहा हूँ।”

    “तुम जानते हो कि तुम्हारे लॉयर के रूप में मुझे सब कुछ जानने का अधिकार है, अगर तुम को भविष्य में मेरी मदद चाहिए तो।”

    “और किस वजह से तुम्हें लग रहा है कि मुझे इस में तुम्हारी मदद की ज़रूरत है?”

    वो हंस कर बोला– “तुम और मैं दोनों जानते हैं कि तुम जो भी करते हो, उन्हें कहीं न कहीं मेरे एक्सपर्ट टच की ज़रूरत पड़ती है।”

    “याद दिलाने की ज़रूरत नहीं है।” मैं चिढ़ कर बोला। “लेकिन, मैं तुम्हारा आभारी हूँ। तुम मुझ से बेहतर हो।” मैं ने अपने तीनों छोटे भाइयों को घूरा।

    “इसीलिए मैं ने तुम तीनों को बेहतर काम दिए हैं। ऐसे काम जिन में तुम्हें अपने हाथ गंदे नहीं करने पड़ते।”

    मनोज मेरा लॉयर था, कृष फाइनैंसेस संभालता था और अनंत? वह हमारे बीच एकलौता आर्टिस्ट था।

    मेरा सब से छोटा भाई — वो कृष से दो मिनट छोटा था। उस के पास सब से नाज़ुक दिल, एंजेल जैसा चेहरा और रोमन कलाकारों जैसा टैलेंट था।

    एक बार जब तुम माफिया फैमिली में पैदा हो जाते हो तो फिर बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता, खास कर मर्द के लिए। भले ही तुम अनंत जैसे टैलेंटेड हो, जो मास्टरपीस आर्ट्स बनाता है।

    हम उस की कला जगत में बढ़ती प्रसिद्धि का उपयोग अपने नए संभावित लक्ष्यों को टारगेट करने के लिए करते थे जिन्हें हम किडनैप कर के फिर वापस छोड़ देते थे ― धन के लिए नहीं, यह तो बहुत छोटी चीज़ है — बल्कि प्रभाव और शक्ति पाने के लिए। वहाँ तक पहुँचने के लिए जहाँ पहुंचना लोगों के लिए नामुमकिन होता है।

    हमारे पास दौलत की कोई कमी नहीं थी। इसलिए हमारा ध्यान अब उस की बजाए अपने नेटवर्क को बढ़ाने पर था ताकि हमारे पास गवर्नमेंट और बड़े लीडरों को प्रभावित करने की चालें हों। 

    “और मैं इस बात के लिए तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ कि मुझे हमारे रोज़मर्रा के कामों में सीधे शामिल होने की ज़रूरत नहीं पड़ती,” मनोज ने धीरे से कहा था।

    “क्या तुम उस में मेरा साथ देने के लिए तैयार हो जो मैं आगे कहने वाला हूँ?”

    “क्या चाहते हो?”

    “कि तुम मेरी शादी और दूसरे परिवार के साथ गठबंधन का समर्थन करो।”

    “लेकिन तुम्हारी शादी का यही एकमात्र कारण नहीं है, है ना?”

    लव और मैं ने एक-दूसरे की ओर देखा। मनोज हमेशा से ही तेज़ बुद्धि वाला था। अगर वो अपने काम में इतना बिज़ी नहीं होता (जो कि मेरे लोगों को जेल में जाने से बचाना था) तो मैं उसे अपने हर बड़े फैसलों में शामिल करता।

    हमारे माँ-बाप ने हम सातों भाइयों को पढ़ाई के लिए विदेश भेज कर बहुत सही फैसला किया था। और ये हुआ था माँ के कारण जो पहले ही वेल एजुकेटेड थीं।

    मनोज ने अगला सवाल किया– “इस अचानक शादी के पीछे क्या कारण है? आखिर तुम इस के ज़रिए करना क्या चाहते हो?”

    “लव और मैं तुम तीनों के आने से पहले उसी पर चर्चा कर रहे थे…”

    “अच्छा है कि मैं यहाँ समय से पहले आ गया वरना तुम अपने सारे राज़ उगल चुके होते।” एक नई आवाज़ ने मुझे बीच में ही रोक दिया था। मैं ने घूम कर देखा। अंकित था। मेरा सौतेला भाई। मेरे सगे भाइयों को छोड़ कर उन दो लोगों में से एक जिन पर मैं भरोसा करता था।

    “क्या मिस किया मैं ने?”

    “कुछ नहीं,” –मैं बुदबुदाया– “अब बस आखिरी कमीने की कमी रह गई है…”

    “क्या किसी ने मुझे याद किया?” शिवा कमरे में घुसता चला आया और मैं आह भर कर रह गया। मैं बार की ओर बढ़ा, व्हिस्की उठाई और अपने गिलास में डाली।

    “अकेले पी रहे हो, भाई?” शिवा बार की ओर बढ़ा। काउंटर पर रखी बोतल को इग्नोर कर दूसरी तरफ चला गया। नीचे झुका और जब सीधा हुआ तो उस के हाथ में थी मेरी सब से महंगी व्हिस्की। उस ने उसे खोला, एक गिलास उठाया और उस में डालने ही चला था कि मैं चेतावनीयुक्त लहजे में गुर्राया– “यह तुझे महंगा पड़ेगा,”

    “क्यों? क्या ये जश्न का समय नहीं है?” –वो मुस्कराया– “मैं ने तो अभी शुरु ही किया है।”

    बेशक, वो हमारी पिछली बातचीत को सुन चुका था।

    “फिर से कान लगा कर सुन रहा था, सौतेले भाई?” मैं ने जानबूझ कर ‘सौतेले भाई’ इस्तेमाल किया था, इस उम्मीद में कि वो चिढ़ेगा– पर इस बार वो झांसे में नहीं आया।

    “दरवाज़ा खुला था, सौतेले भाई।” उस ने ज्यों का त्यों जवाब दिया।

    “तू यहाँ क्यों आया है?” मैं ने उसे घूरते हुए पूछा।

    “फैमिली मीटिंग।” –उस ने कमरे में चारों ओर देख कर कंधे उचकाए– “क्या तुम्हें लग रहा था मैं नहीं आऊँगा?”

    “तुम्हें बुलाया नहीं था।”

    “पर अब तो मैं यहाँ हूँ, नहीं?” उस ने शराब को एक गिलास में डाला फिर पाँच और गिलास उठा कर टेबल पर रखे। उन्हें भी भरने लगा। मेरी व्हिस्की से। मेरी।

    मेरे सीने से एक गुर्राहट निकली थी।

    उस ने गिलासों को भर कर कमरे में इकट्ठा शक्लों को देखा– “क्या, कोई जश्न में शामिल नहीं हो रहा?”

    मेरे बगल में लव बेचैनी से हिला। “शिवा…” उस ने चेतावनी दी कि मैं ने उसी दम अपना हाथ उठा दिया था।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 15. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 15

    Words: 1049

    Estimated Reading Time: 7 min

    मेरे बगल में लव बेचैनी से हिला। “शिवा…” उस ने चेतावनी दी कि मैं ने उसी दम अपना हाथ उठा दिया था और वो खामोश हो गया।

    “नहीं, रहने दो। वैसे भी ये सही कर रहा है।”

    “सच में?” लव ने हम दोनों के बीच देखा। उस की निगाह में सतर्कता थी। शिवा और मेरी अधिकतर चीज़ों पर सहमति नहीं होती थी। सिर्फ इसलिए नहीं कि वो मुझ से उम्र में सब से नज़दीक था, लव से भी बड़ा था और मेरा सौतेला भाई था, बल्कि और भी कारण थे।

    मेरे बाप का एक अफेयर था। ऐसी लड़की के साथ जो उन से बहुत छोटी थी, जिस ने उन्हें दो बेटे दिए। जब वह एक्सीडेंट में मर गई, तो डैड शिवा और अंकित को हमारे घर ले आए। शिवा पाँच साल का था और अंकित सिर्फ तीन। डैड ने माँ से कहा कि वो इन्हें अपनाएँ और इन की देखभाल अपने बच्चों की तरह करें। माँ ने इनकार नहीं किया। उन के मन में जो भी था उसे अपने अंदर ही रखा। उन का दिल बहुत बड़ा था और एक बार भी उन्होंने शिवा या अंकित को महसूस नहीं होने दिया कि वे उन के अपने बेटे नहीं हैं।

    लेकिन जहाँ अंकित हम से तुरंत घुल-मिल गया वहीं शिवा ऐसा नहीं कर सका था। शायद इसलिए कि जब वो हमारी फैमिली में आया तो अंकित की तुलना में काफी बड़ा था। अतः उस के लिए हमारे साथ रहना और तालमेल बिठाना मुश्किल था। या शायद उसे ये बात असहज करती थी कि वो दूसरों की फैमिली का सहारा ले कर बड़ा हुआ है। और फिर यह भी था कि वह मेरे बाप का नाजायज़ बेटा था, जिस का मतलब था कि मेरा बाप उसे कभी अगला डॉन नहीं बनाएगा। और यही बात उसे चुभती थी ― भले ही वह मुँह से कहता रहता था कि वो हमारे बिना ज़िंदा नहीं रह सकता।

    “तुम इस परिवार का हिस्सा हो, शिवा,” –मैं धीरे से बोला– “हमेशा से थे।”

    “बस कभी डॉन नहीं बन सकता, नहीं?”

    “एक ही डॉन होता है,” –मैं ने अपनी आवाज़ धीमी कर ली– “और वह मैं हूँ।”

    उस ने अपना गिलास उठाया।

    “एक ही डॉन की शादी के नाम,” उस ने ऐसी आवाज़ में कहा जिस में कोई खोट नहीं था किंतु अंदाज़ चिढ़ाने वाला था।

    मैं आगे बढ़ा और थोड़ी शराब अपने गिलास में डाली। बाकी सब बार के आसपास एकत्रित हो गए और अपने-अपने गिलास उठाने लगे।

    “डॉन के नाम,” –लव मेरी आँखों में देखता हुआ बोला– “और सेवन के साथ गठबंधन के नाम।”

    “सेवन?” –शिवा मुझ से मुखातिब हुआ– “क्या तुम्हारी नई दुल्हन उन की कुछ लगती है?”

    मैं ने सिर हिलाया– “क्या कोई समस्या है?”

    वो अपनी ठोड़ी खुजाने लगा– “वे लगभग आधे इंडिया और पूरी मुंबई के मालिक हैं, मैं ने सुना है।” उस ने मुझे गौर से देख कर आगे कहा– “मतलब ये महज़ शादी नहीं बल्कि सत्ता का खेल है?”

    “तुम्हें यकीन नहीं हो रहा ना?”

    “यह मेरी लाइफ तो है नहीं कि मुझे यकीन न हो पाए। तुम्हारी लाइफ है और इस में कुछ भी हो सकता है।” –उस ने अपना कंधा उचकाया– “और मुझे पूरा यकीन है कि तुम ये शादी अन्य परिवारों के साथ सम्बंध बनाने और अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कर रहे हो।”

    शिवा भी कम चालाक नहीं था। मनोज जितना बुद्धिमान, लव जितना भूखा, कृष जैसा चार्मिंग और अनंत जैसा सुंदर...

    सब कुछ एक ही शख्स में। उस शख्स में जो एक दिन डॉन बनने के लिए कुछ भी करने को तैयार था। यही वह चीज़ थी जो शिवा को खतरनाक बनाती थी और साथ ही सब से ज़्यादा संभावनाओं वाला भी।

    इसी कारण वह मेरी फैमिली का एकमात्र व्यक्ति था जो मेरा सामना कर सकता था। इसी वजह से मैं उस पर सब से कम भरोसा करता था और फिर भी उसे जितना मुमकिन हो उतना अपने करीब रखता था। जो तुम्हारे लिए खतरा हो उसे काबू में रखने का बेस्ट तरीका ये है कि उसे अपने करीबी लोगों में शामिल कर लो।

    क्या मैं शिवा पर भरोसा करता था?

    यह एक दिलचस्प सवाल है।

    मुझे नहीं लगता था कि वह कभी मेरे परिवार को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करेगा लेकिन जब बंदे को सही सिचुएशन और सही मोटिवेशन मिलती है तो वो किसी के भी खिलाफ हो जाता है।

    “तो,” –कृष ने हम दोनों को देखते हुए पूछा– “हमें भाभी से कब मिलाएंगे भाई?”

    “शादी में,” मैं ने धीरे से जवाब दिया।

    “क्या?” –अनंत ने पलकें झपकाईं– “हमें शादी से पहले नहीं मिलाया जाएगा?”

    “नहीं।”

    “तुम हम पर भरोसा नहीं करते?” मनोज ने पूछा।

    “कभी नहीं।” मैं ने सीने पर हाथ बांध लिए।

    “अरे यार।” –शिवा मुस्कराया– “जिस तरह से तुम बर्ताव कर रहे हो लगता है तुम ने उसे यहीं छुपा रखा है और चाहते हो कि हम चले जाएं तब तुम मज़े से उस के साथ टाइम सपेंड करो।”

    मैं ने उसे घूरा तो उस के चेहरे पर समझ का भाव उभरा– “यानी वो यहीं है, है न?”

    ऑफकोर्स, उसे खुजली शुरू हो चुकी थी पता लगाने की।

    मैं ने पूछा– “अगर हुई तो?”

    “ये बात!” –वो चिल्लाया– “तुम उसे किडनैप कर के लाए हो, है ना?”

    “चुप हो जा,” मैं गुर्राया।

    “मतलब ये सच है?”

    मैं उसे घूरने लगा। वो वाकई मुझे परेशान कर देता था।

    वो अपनी कोहनियाँ बार पर रख कर आगे झुकता हुआ बोला– “क्या पहली नज़र में प्यार हुआ था?” वो मुस्कराया– “तुम ने उसे देखा और तुम्हें ‘लव एट फर्स्ट साइट’ हो गया?”

    मैं बोला– “अब तू ये बोलेगा कि तू ने भी इसे महसूस किया है। तुझे भी पहली नज़र वाला प्यार हो चुका है।”

    “मुझे?” –वो हँसा। उस की आवाज़ में कोई खुशी नहीं थी– “क्या मैं यहाँ खड़ा होता अगर ऐसा हुआ होता?”

    मैं ने उस के चेहरे को ध्यान से देखा। उस की आँखों के आस-पास की सिकुड़ी त्वचा और कंधों के हल्के झुकाव ने थोड़ा हैरान किया था मुझे। मैं ने कभी उसे इस तरह नहीं देखा था। यानी, उस कमबख्त के पास भी अपने कुछ राज़ थे।

    और कुछ दिनों बाद मैं उन का पता ज़रूर लगाऊंगा। बस अभी नहीं।

    एक बात उस ने सही कही थी। मैं अपनी होने वाली बीवी से मिलने के लिए उत्साहित था। पर उस तरह से नहीं जैसे वो सोच रहा था।

    मैं उसे छूना नहीं चाहता था, कम के कम शादी तक तो बिल्कुल नहीं।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 16. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 16

    Words: 1043

    Estimated Reading Time: 7 min

    हालाँकि, अभी भी उसे खबर देने का काम बाकी था। पहले मुझे इस बारे में अच्छी तरह सोच एक ऐसा तरीका निकालना था कि वो खुद ही शादी के लिए राज़ी हो जाए।

    जो प्लान मैं ने अचानक ही बना लिया था वो अब पहले से कहीं अधिक कठिन लग रहा था। 

    लेकिन इतना भी कठिन तो नहीं था जितना मैं समझ रहा था। है न?

    मैं गिलास को बार काउंटर पर रख कर पीछे हटा– “भाइयों, मुलाकात खत्म। जाओ अपने-अपने काम पर।”

    मैं कैमरा बंद कर के वहां से निकलने के लिए पलट गया।

    शिवा धीरे से हँसा– “इतनी जल्दी में हो अपनी औरत से मिलने के लिए?”

    मैं ने कंधे के ऊपर से उसे देखा– “ये तेरा मामला नहीं है।”

    “तुम जो भी करते हो वह हमारा मामला होता है।” –उस ने जवाब दिया– “क्योंकि तुम डॉन हो…. डॉन।”

    मैं ठहर गया और उसे घूरता हुआ बोला– “यही वजह है कि मैं पहली और आखिरी बार कह रहा हूँ। दोबारा उस का ज़िक्र मत करना, समझा?”

    मैं ने उस की आँखों में आँखें गड़ा रखी थीं और अंततः उसे अपनी निगाह झुकानी पड़ी।

    गुड। वो जितना भी आत्मविश्वासी सही मगर जानता था कि यहाँ का बॉस सिर्फ और सिर्फ मैं हूँ। जो कि मैं लंबे समय तक रहना चाहता था।

    अगर उसे लगता था कि वह मुझे मेरी कड़ी मेहनत से हासिल की गई पोज़िशन से हटा सकता है, तो वो बहुत बड़ी भूल में था।

    इस में मुझे कोई शक नहीं था कि एक दिन वह मुझे चुनौती देगा। ये बात मैं उतनी ही अच्छी तरह जानता था जितना अपना नाम। यही वजह थी कि मेरे लिए अपना अगला कदम बहुत महत्वपूर्ण था। ऐसा कदम जिस पर मेरा और मेरी फैमिली का भविष्य टिका हुआ था।

    “मैं जा रहा हूँ और जब वापस आऊँगा, तब मैं चाहता हूँ कि तुम सब यहाँ से गायब नज़र आओ।” –मैं ने बारी-बारी उन सभी को देखा था– “समझ गए?”

    ─────۞─────

    ◆नियति◆
     

    बिस्तर के ऊपर गुंबदनुना छत में एक शानदार डिज़ाइन बनी हुई थी।

    ये घर कितना पुराना है? मैं ने सोचा।

    बाहर से इस की वास्तुकला पुराने ज़माने के महल सी थी। वैसी ही जैसी मैं ने मैगज़ीन्स में देखी थी। बेहद खूबसूरत।

    क्या ये उस का महल है? होगी ही। आखिर उस के पास एक प्राइवेट जेट भी तो है जिस से हम यहाँ आए थे और जो आइलैंड की दूसरी तरफ एक प्राइवेट एयरस्ट्रिप पर उतरा था। 

    वो जेट से उतरते ही तेज़ी से एक कार की ओर बढ़ गया था और खुद ड्राइव करता हुआ वहाँ से चला गया था। जब कि उस के आदमियों ने मुझे दूसरी कार में बिठा दिया था। यहाँ आते समय दो और कार हमारे पीछे आई थी। 

    क्या ये इस आइलैंड पर एकलौती इमारत है? यह आइलैंड आखिर है कहाँ? ऑज़रलैंड(काल्पनिक) में कहीं? क्योंकि उस के आदमी ऑज़र भाषा बोल रहे थे और ये भारत का पड़ोसी देश भी है। लेकिन मोक्ष का लहजा बड़ा अजीब था। ऑज़र और इंडियन मिक्स।

    मोक्ष? वो एक माफिया था। अगर वो खुद ज़ाहिर ना करता तो भी मैं समझ जाती क्योंकि उस ने मेरे साथ जो किया था ऐसे काम वही लोग करते हैं।

    मैं खड़ी हुई और एक ज़ोरदार अंगड़ाई ली।

    तभी गर्दन के पीछे के बाल खड़े हो गए। तेज़ी से पलटी और कमरे में चारों ओर देखा लेकिन…. कोई नहीं।

    मेरी रीढ़ में एक सिहरन उभरी। मैं ने अपनी बाहों को कमर के चारों ओर लपेट कर आस-पास का जायज़ा लिया। कोने में एक अलमारी थी। एक पुराने जमाने की ड्रेसिंग टेबल दीवार के साथ लगी हुई थी। उस के आगे एक दरवाज़ा था। मैं आगे बढ़ी और उसे धकेल कर बाथरूम में कदम रखा। वो इतना बड़ा था कि उस के बीच में एक क्लॉड बाथटब रखा था। आगे एक बड़ी खिड़की से कुदरती रोशनी भीतर आ रही थी। दूसरी तरफ एक वाशबेसिन था। मैं वहाँ गई और आईने में अपना रिफ्लेक्शन देखते ही चौंक उठी!
      
    चेहरे पर धूल लगी थी और बालों में भी कुछ था जिसे खींच कर देखा तो….ओह्ह सूखे पत्ते?

    पास की एक चेयर पर तौलिये पड़े थे। मैं ने कपड़े उतारे लेकिन बाथटब को इग्नोर कर सीधी शावर स्टॉल की ओर बढ़ी। शैम्पू और शावर जेल से मूनफ्लावर की खुशबू आ रही थी।

    वाह! उसे कैसे पता चला कि ये मेरी पसंदीदा खुशबू है?

    मैं शावर के नीचे खड़ी हुई। पानी गर्म था जिस पर मैं ने ईश्वर का शुक्र अदा किया। 

    वो पानी मेरी थकी हुई मांसपेशियों में मानो समाता हुआ इन्हें आराम बख़्श रहा था। जब गर्म पानी खत्म हो गया है तो मैं बाहर निकली और खुद को तौलिए से सुखाने लगी। अपने कपड़ों का जायज़ा लिया। उन पर खून के छींटे थे। उस का खून! हम्म।

    मैं ने टॉवल को खुद पर लपेटते हुए अपनी बाहों के नीचे कस लिया। बाथरूम से निकलते ही तो मेरी सांस ठहर गई थी! 

    “आप यहाँ क्या कर रहे है?” 

    मोक्ष खिड़की की ओर देख रहा था। मेरी हैरतज़दा आवाज़ पर पलटा। खिड़की से आती रोशनी उस के चारों ओर एक आभा बना रही थी और एक सेकेंड के लिए उस की शक्ल का निचला हिस्सा अंधेरे में छुप गया था।

    उस की नीली आँखें मेरी आँखों में गहराई से देख रही थीं। मैं झिझकी। वह मुझे सिर से पैर तक देखता रहा और उस की आँखें चमकती रहीं। फिर उस ने पलकें झुका कर अपनी ठुड्डी से बिस्तर की ओर इशारा किया। जहाँ नए कपड़े तह कर के रखे थे।

    “यू आर वेलकम।” वह मुस्कुराया। 

    भाड़ में जाओ। मैं गुस्से में अंदर ही अंदर बड़बड़ाई।

    “आप ने कैसे...?” –मैं सवाल करने जा रही थी कि मुझे जवाब खुद ही सूझ गया– “आप मुझे देख रहे थे?” 

    उस ने सिर हिलाया।
     
    “आप...आप बहुत घटिया आदमी हैं।”

    “तुम्हें अपनी गालियों में थोड़ी और रचनात्मकता लाने की ज़रूरत है, डॉलफेस।”

    “मत कहिए मुझे ये।”

    “हर कदम पर बग़ावत करना बंद करो, यह... बहुत एनोइंग है।”

    “वो तो आप और आप की हरकतें भी हैं। हर जगह अचानक प्रकट हो जाते हैं। मेरी अच्छी-खासी ज़िंदगी में घुसपैठ कर के इसे जहन्नुम बना डाला और मुझे उन सभी चीज़ों और लोगों से दूर कर रहे हैं जो…”

    “तुम्हें दुखी करते थे।”

    मैं ठिठक गई– “आप किस बारे में बात कर रहे हैं?”

    “तुम अपनी ज़िंदगी से नफरत करती थी।”
     
    हाँ।
     
    “आप मेरे बारे में कुछ नहीं जानते।”


    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 17. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 17

    Words: 1033

    Estimated Reading Time: 7 min

    “बहुत बड़ी गलतफहमी में हो।” उस ने अपनी जांघ पर उंगलियों से तबला बजाते हुए कहना शुरू किया– “नियति राजकुमार। बीस साल पहले आदर्श राजकुमार और चैताली राजकुमार के यहाँ पैदा हुई। जब तुम बहुत छोटी थी माँ चल बसी, जिस के बाद तुम्हारा भार तुम्हारे बाप पर आ गया। जो तुरंत अपने काम में डूब गया था और फिर कर्ज में। उस ने तुम्हें और तुम्हारी बहन को चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन्स में छोड़ दिया और माफिया के गुस्से से बचने के लिए खुद कहीं भाग गया। तुम्हारी बहन वयस्क होते ही CCI से बाहर निकल गई फिर तुम्हारी लीगल गार्डियन बन कर तुम्हें भी वहाँ से निकाल लिया। कुछ हफ्ते पहले उस ने एक बहुत अमीर इंसान से शादी की है जो इंडिया के सब से अमीर आदमियों में से एक है। तुम उस शादी में शरीक तो हुई लेकिन तुम्हें वो नकली लग रही थी क्योंकि वो प्यार की बजाए किसी और कारण से हुई थी। तुम अपनी दो दोस्तों के साथ पास के बार में सारी रात शराब पीती रही। उस रात तुम्हें किसी मर्द के सहारे की ज़रूरत महसूस हुई पर तुम्हें कोई नहीं मिला। तुम ने अपनी पढ़ाई भी छोड़ दी। तुम्हें फाइन आर्ट्स के लिए एक बेहतरीन यूनिवर्सिटी में स्कॉलरशिप मिल रही थी पर तुम ने ठुकरा दी और उस की बजाय सेंट्रल मार्केट में अपनी पॉप-अप शॉप में दिन गुज़ारना पसंद करती हो। जहाँ तुम अपने कपड़े बेचती हो।”

    “मैं कपड़े नहीं बेचती। मैं अपने डिज़ाइन लोगों तक पहुँचाती हूँ,” उस की आखिरी बात पर मैं झल्ला ही तो उठी थी।

    “तुम्हारा मतलब वे कपड़े जो तुम सिलती हो?”

    “वे बस कपड़े नहीं हैं। मेरी क्रिएशन हैं। मैं खुद डिज़ाइन करती हूँ उन्हें।” –मैं ने आगे जोड़ा– “और अपने इंडिपेंडेंट क्लॉथिंग ब्रांड के तहत बेचती हूँ।”

    “जो भी हो।” –वह मुस्कुराया– “अगली जानकारी ये है कि तुम ने आजकल अपना खालीपन दूर करने के लिए खचिया भर दोस्त बना रखे हैं और तुम सोचती हो कि वो तुम्हें समझते हैं पर हकीकतन तुम्हें कोई नही समझता!”
     
    “और आप समझते हैं?”

    “तुम्हें मानना पड़ेगा, मैं तुम्हारे बारे में बाकी सब लोगों से कहीं ज़्यादा जानता हूँ।” 

    मैं सिहर गई जब मेरे मन ने कहा– नहीं, तुम भी नहीं जानते। तुम्हें कोई अंदाजा नहीं है कि मुझे दिल की बीमारी है। जिस के इलाज के लिए मैं स्पेश्लिष्ट ढूंढ रही थी जब तक तुम ने मेरी किडनैपिंग का फैसला नहीं कर लिया। मुझे वहाँ से दूर ले आए।

    देखा जाए तो एक तरह से मैं खुश भी थी। क्योंकि मेरी बहन भले ही दिन-रात मेरी केयर करती थी लेकिन मैं उसे हमेशा अपने पीछे हलकान नहीं रखना चाहती थी। एक तरह से मोक्ष ने मुझे कैद कर के एक बहुत भारी बोझ से आज़ाद कर दिया था। बस अब मुझे उस से अपने खुद के फैसले करने की आज़ादी वापस लेनी थी।

    मैं ने अपनी ठोड़ी ऊपर उठाई– “आप ने तो अभी मेरी असली पहचान को बस छुआ भर है।”

    “हम्म।” –उस मुझ पर निगाह दौड़ाई– “हाँ वाकई, छुआ तो है मैं ने तुम्हें।”
     
    मुझे कुछ होने लगा।

    “बाहर निकलिए।”
     
    उस की मुस्कान फैल गई। 

    “मुझे कपड़े बदलने हैं।”

    “बदलो। कौन रोक रहा है?”
     
    कमीना।

    मैं बिस्तर पर रखे कपड़ों की ओर बढ़ी। वहाँ एक हल्के पीले रंग की ड्रेस थी और उस के साथ ही......…...मैचिंग अंडरवियर सेट।

    मेरे गाल लाल होने लगे।

    क्या इस ने खुद इन्हें चूज़ किया होगा? नहीं, शायद इस ने ऑर्डर मंगवाए हैं। लेकिन मैं इस से पूछने वाली नहीं हूँ। ऐसा करने से मेरी घबराहट साफ़ झलक जाएगी।

    मैं ने बेड के पास फर्श पर रखी आरामदायक जूतियां देखीं। मेरी स्टाइल की नहीं थीं लेकिन कम से कम कम्फर्टेबल तो लग रही थीं।

    उस की आँखें मेरी आँखों में गहराई तक समाईं और उस की आँखों के आस-पास की त्वचा तन गई। जब उस ने कंधे फ्लेक्स किए तो ऐसा लगा जैसे उस के अंदर भी घबराहट दौड़ रही हो।

    क्या ये भी मेरी तरह नर्वस है? नहीं हो सकता। यह बस मेरी कल्पना है। यह घमंडी किसी भी चीज़ से या किसी भी इंसान से डरने वाला नहीं है।

    अगर इसे लगता है मैं इस से डर कर कपड़े नहीं पहनूँगी तो ये इस की गलतफहमी है। मैं ने अपनी ठोड़ी ऊपर उठाई और टॉवल गिरा दिया।

    उस का पूरा शरीर तन गया। खिड़की से एक ठंडी हवा आई और मैं काँप उठी। दिमाग घण्टियाँ बजाने लगा। कपड़ों को देख। उन्हें जल्दी से उठा और पहन ले। जल्दी कर। खुद को ढक ले।

    मैं अपनी उंगलियों को साइड में ज़ोर से भींच कर उस की नज़रों से बचने की कोशिश कर रही थी लेकिन कर नहीं पा रही थी। वो आगे बढ़ा जब तक कि मेरे सामने नहीं आ गया।

    वो इतना लंबा था कि मुझे अपना सिर पीछे की ओर झुकाना पड़ा। और भी पीछे, ताकि मैं उस की आँख से आँख मिला सकूँ।

    नीली आँखें जो अब स्टील की तरह ठंडी थीं और मेरे हरेक इमोशन को रिफ्लेक्ट कर रही थीं। उलझन। आरज़ू। ख़्वाहिश।

    उस की निगाह मेरे चेहरे पर आई फिर होंठों पर। मेरे गले से एक आह निकली। फिर कुछ होने लगा था। हल्की-हल्की काँप भी रही थी मैं।

    “मेरे पास आओ।”

    नहीं।

    नहीं। 

    “हाँ।” उस ने एक बार फिर मेरा दिमाग पढ़ते हुए अपनी ठोड़ी हिलाई थी। मैं ने एक सांस ली। फिर एक और। पास तो पहले ही थी। अब कितना पास आने को बोल रहा था?

    उस के बड़े शरीर से निकलती गर्मी मानो मेरे सीने से टकरा रही थी।

    ओह्ह, ये क्या हो रहा है? क्या ये मेरी खुद की गुस्ताख़ी है जो मैं इतनी एक्साइटेड हो रही हूँ या ऐसा इसलिए हो रहा है क्यों कि ये मुझ से निगाह नहीं हटा रहा?

    उस के होंठ हिले– “जिस तरह मुझे तुम्हारे बारे में इतना कुछ मालूम है वैसे ही बाकी सब भी जान लूंगा। क्योंकि तुम मेरी संपत्ति हो।”  

    “मैं एक लड़की हूँ! इंसान हूँ! किसी की संपत्ति नहीं!”

    “गलत।” –उस ने ऊबे हुए लहजे में कहा– “अपनी पिछली ज़िंदगी खोने के साथ तुम अपने सारे हक भी खो चुकी हो। अब तुम वही करोगी जो मैं कहूँगा, जब कहूँगा, जैसे…” वो अपनी एड़ियों पर आगे झुका– “कहूँगा।”

    “मैं ने अपनी ज़िंदगी खुद नहीं खोई है। आप ने छीन ली है,” मैं बग़ावती लहजे में चिल्लाई थी।


    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 18. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 18

    Words: 1073

    Estimated Reading Time: 7 min

    “एक ही बात है।” उस ने कहा।

    “तो इस बहस को यहीं खत्म करते हैं,” मैं ने जवाब दिया।

    उस ने अपनी भौं उठाई। “जैसा कि मैं ने कहा तुम अब मेरी हो और तुम वही करोगी जो मैं कहूंगा और शुरूआत करोगी तुम मेरे पसंदीदा कपड़ों से।”

    “नहीं।”

     

    “हाँ।” उस का सिर हिला। 

    मेरे सीने में क्रोध का ज्वालामुखी फूट पड़ा था। निगाहें संकरी हो गईं। सभी इंद्रियाँ जाग उठीं जब कि वो जाने के लिए पलट चुका था।

    मेरे होंठों से एक धीमी चीख निकली थी। मैं उस के और अपने बीच की दूरी को पाटती हुई उस पर झपट पड़ी।

    ─────۞─────

    ◆मोक्ष◆

    मेरे हाथों के रोंगटे खड़े हो गए। सारी इंद्रियां अलर्ट हो गईं। मैं एकदम से घूमा और उसे कमर से पकड़ कर उठा दिया।

    “मैं आप से नफरत करती हूं। मैं आप से सख़्त नफरत करती हूं,” उस ने दाँत पीस कर कहा फिर मुक्के चलाने लगी। मैं झुक गया। शायद मैं अपनी पुरानी चुस्ती खो रहा था क्योंकि उस के पोर मेरे जबड़े को छू गए थे। हालांकि उसे पकड़ते ही मुझे ऐसा लगा था जैसे किसी अप्सरा को पकड़ लिया है। मैं ने अपनी पकड़ को और मज़बूत किया– “रुक जाओ।”

    “आप की हिम्मत कैसे हुई मुझे ऑर्डर देने... यू ... यू... पिग!”

    मेरे हलक में हँसी का कंपन उठा लेकिन मैं उसे निगल गया। “शांत हो जाओ।”

    “छोड़िए मुझे।”

    “नहीं।”

    वो एकदम स्थिर हो गई।

    “नहीं?”

    मैं बोला– “तब तक नहीं जब तक तुम्हारा ब्लड प्रेशर नॉर्मल नहीं हो जाता।”

    “मुझे तो बस आप को ही हार्ट अटैक आता दिख रहा है।” उस ने अपने घुटने ऊपर उठाए। मैं ने फौरन खुद को घुमा दिया मगर फिर भी उस का एक घुटना मेरी जांघों के बीच लग ही गया था।

    उफ्फ!

    आखिर क्या दिक्कत थी मेरे साथ कि उस के सामने मैं खुद को ढंग से कंट्रोल नहीं कर पाता था?

    “हार मान लो डॉलफेस, वरना पछताओगी।”

    उस ने गले के भीतर से एक गहरी आवाज़ निकाली। गुस्से और हताशा की आवाज़ जो मेरी रीढ़ में झनझनाहट भर कर मेरे पूरे नर्वस सिस्टम को एक्टिवेट कर गई। ऐसा लगा जैसे मेरे मस्तिष्क की सारी कोशिकाएं बंद हो कर फिर एकदम से भड़क उठी हैं।

    “लास्ट चांस।”

    “गो टू हेल।” वो मेरे आलिंगन से छूटने की कोशिश कर रही थी और इस कोशिश में वो अनजाने में मुझ में पहले से ज़्यादा आग भड़का रही थी।

    मैं ने अपनी बाहों को कसते हुए उसे और अंदर भींच लिया।

    मैं ये जानबूझ कर नहीं कर रहा था... ठीक है... शायद जानबूझ कर ही कर रहा था लेकिन मेरी क्या गलती? वही उकसा रही थी मुझे। वो नन्ही सी पानी और चाहत की बारिश में भीगी हुई लड़की। यूं तो बहुत लड़कियां आई थीं मेरे लाइफ में पर ऐसी लड़की पहले कभी टकराव नहीं हुआ था मेरा।

    “समझ नहीं आ रहा? जो कह रहा हूँ वो कर क्यों नहीं रही?” मैं गुर्राया।

    “क्या? ये?” कहते हुए उस ने फिर लात चला दी थी और इस बार इतना अनेक्सपेक्टेडली कि बचने की कोशिश भी नहीं कर सका था मैं। मेरे होंठों से एक गुर्राहट छूट गई थी। जांघें ऐंठ गईं और माथे पर पसीना आ गया था।

    “तुम पछताने वाली हो, डॉलफेस।”

    उस ने अपने दाँत भींचे– “अच्छा? क्या करने वाले हैं? मारेंगे मुझे?”

    “हम्म।”

    उस की आँखें चौड़ी हो गईं, सांस थम गई, पुतलियां फैल गईं और... कमबख्त! मैं आख़िरकार एक मर्द हूं। मेरी बर्दाश्त की भी एक सीमा है।

    मैं अपने घुटने मोड़ कर उस की आंखों में झुका– “कितने?”

    “क्या?”

    “कितने थप्पड़ मारूं?”

    “दफा हो जाइए।”

    “तुम खुद चुन लो, वरना मैं तय करूँगा और मैं वादा करता हूं कि मैं जो नंबर चुनूँगा वो तुम्हें पसंद नहीं आएगा।”

    “शर्त लगाती हूँ आप को भी ये पसंद नहीं आएगा।” उस ने गला साफ किया और थूक दिया। मेरे होंठों पर उस का गर्म स्लाइवा पड़ा।

    वो रुक गई।

    मैं भी।

    गर्मी मेरी ठुड्डी के नीचे टपकी और मेरे अंदर कोई गरजा। मैं ने उसे ज़ोर से घुमाते हुए अपने कंधे पर डाल लिया। वो चिल्लाती हुई हाथ-पांव चलाने लगी और मैं ने उस की बैक थाई पर एक थप्पड़ जड़ दिया। उस का सिर मेरी पीठ की ओर था। उस ने जोर से मेरी कमर में मुक्का मार दिया।

    अच्छा ये बात?

    मैं बिस्तर पर पहुंचा, बैठा और उसे उलटा अपनी गोद में लिटा लिया।

    “मुझे जाने दीजिए।” वह हांफ कर बोली।

    “न।” मेरा हाथ ज़ोर से नीचे आया और एक….चटाक!

    वो चिल्लाई– “कमीने! आप की हिम्मत कैसे….“

    “तुम ही ने मुझे चुनौती दी है, बेबी गर्ल।”

    “मुझे छोड़िए, अभी के अभी!” उस ने पाँव चलाए।

    “वरना?”

    “मैं चिल्लाऊंगी!”

    “क्या ये कोई प्रॉमिस है?” मैं ने अगला थप्पड़ मारते हुए पूछा।

    “आप को मौत क्यों नहीं आ जाती?”

    “क्योंकि तुम आ गई हो।”

    “आप निहायत ही घटिया, घमंडी, बेतुके और अकड़ू इंसान…”

    “मुझे अच्छा लगता है जब तुम मुझे गालियां देती हो।” मैं निशाना ले कर पुनः अपना हाथ नीचे लाया और उस की चीख निकल गई। फिर से। फिर से। यहाँ तक कि मेरी हथेली झनझनाने लगी। कंधे की मांसपेशियां भी दुखने लगीं पर फिर भी रुका नहीं था मैं। दस, ग्यारह, बारह।

    वो सिसक कर बोली– “मैं आप को इस के लिए कभी माफ नहीं करूँगी।”

    “गुड।”

    “मैं आप से बदला ज़रूर लूंगी।”

    “उम्मीद है तुम गिनती कर रही हो, हम्म?”

    तेरह, चौदह, पंद्रह। वो अपनी मुट्ठियाँ बिस्तर में धँसा कर गुर्राने लगी।

    “बस?”

    “मैं आप से कभी रुकने की भीख नहीं माँगूँगी। न कभी माफी माँगूँगी ... कभी नहीं,” उस ने मुँहज़ोरी करते हुए कहा था।

    “ह्म्म्म। चलो रहने देता हूँ। वैसे भी मेरे पास फालतू बर्बाद करने के लिए वक्त नहीं है।” मैं खड़ा हुआ और वो नीचे गिर गई।

    उस की कराह निकली और मैं झिझकता हुआ ठहर गया।

    क्या मुझे कुछ करना चाहिए। शायद ज़्यादा ही चोट पहुँचा दी है मैं ने। नहीं, ये मैं क्या सोच रहा हूँ? ये... ये मेरी कैदी है। एक एक्सपेरिमेंट है। शायद यह पता लगाने के लिए कि मैं अपने आप पर कितना कंट्रोल रख सकता हूँ। बस इस के अलावा कोई औकात नहीं है इस की। ज़रा भी नहीं।

    “गेट ड्रेस्ड।” मैं अपनी धुरी पर घूम कर दरवाज़े की ओर बढ़ गया।

    “मोक्ष।”

    मैं चलता रहा।

    “रुक जाइये।”

    मैं ने दरवाज़े पर पहुँच कर उसे खोला।

    “आप मुझे इग्नोर नहीं कर सकते। आप मुझे यहां कैद नहीं रख सकते।”

    मैं दरवाज़ा पार कर गया।

    “मास्टर,”

    उस ने आखिरी बार मुझे ज़ोर से पुकारा था!

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

    फॉलो कीजिये। आप लोग खुद से फॉलो नहीं करते बार-बार कहना पड़ता है। 🙂

  • 19. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 19

    Words: 1048

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं रुका।

    एक पल के लिए चुप्पी रही।

    मैं ने सिर घुमा कर कंधे के ऊपर से उस पर वज्रपात किया।

    वो पीली दिख रही थी और अपनी मासूम आंखों में आँसू ले कर मुझे घूर रही थी।

    मैं उस की सूरत निहारने लगा। गालों पर लालिमा  और आँसुओं की धारियां। वो लड़की... उस के पास तिलिस्मी हुस्न था। मानो प्रकृति ने बड़े लाड से बनाया था। मखमली बाल कंधे पर चारों ओर बिखरे हुए।

    ये खतरनाक है! मुझे इस से दूर रहना चाहिए। मुझे शायद इसे सज़ा देनी चाहिए क्योंकि इस ने मुझ में कुछ ऐसा जगा दिया है जो नहीं जागना चाहिए था। इस नन्ही चिड़िया ने मुझ पर से मेरा ही कंट्रोल खत्म कर दिया है। मुझे इसे सज़ा देनी चाहिए। हाँ, मुझे इसे खत्म कर देना चाहिए। क्योंकि हम में जो लड़ाई चल रही है इस में जीत किसी की नहीं होने वाली। केवल एक ही रास्ता है और वो अंधकार की ओर जाता है।

    मैं अपनी जांघ पर उंगलियां थपकता हुआ बोला– “मेरे पास पूरा दिन नहीं है, डॉलफेस। इसलिए जल्दी बोलो।”

    “कब तक?” –उस ने अपनी उंगलियों को आपस में मसलते हुए पूछा– “आप मुझे यहां कब तक रखने वाले हैं?”

    “जब तक ज़रूरी हो।”

    ─────۞─────

    ◆नियति◆

    उस ने मुझे मारा।

    मैं ने खिड़की से बाहर देखते हुए अपना भार एक से दूसरे पांव पर डाला। उस के जाने के बाद मैं ने झटपट शावर लिया था और उन कपड़ों को इग्नोर कर दिया जो वो मेरे लिए छोड़ कर गया था।

    क्या मेरे साथ इतना सब करने के बाद मैं उस की बात मानने वाली थी?

    दूसरी बात; मैं देखना चाहती थी कि उस की अवहेलना पर क्या वो मुझे फिर उसी तरह मारेगा?

    ओह, हे भगवान! क्या बीमारी हो रही थी मुझे? मैं ऐसा सोच भी कैसे पा रही थी?

    मैं गुस्से में क्लोसेट की ओर बढ़ी थी और जा कर पहली ड्रेस पिक कर ली थी। वो पिंक कलर की घुटनों तक लंबी ड्रेस थी, जो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आई थी, लेकिन क्या करती? कम से कम उस से मैं खुद को ढक तो सकती थी। 

    वॉक-इन क्लोसेट में बहुत सारे कपड़े थे। ज़्यादातर नए लग रहे थे। साथ ही लैस वाले अंडरक्लॉथ भी थे।

    और मज़े की बात ये कि सारे ही मुझे फिट आ रहे थे। कोई शक नहीं कि सब मेरी नाप के हिसाब से बनाए गए थे।

    ये कैसे मुमकिन है? उस ने इतनी जल्दी उन्हें कैसे मंगवाया था?

    मैं ने अपनी उंगलियां क्लोसेट में लटकती हर ड्रेस पर फेरी थीं। सब बहुत ही सुंदर और महंगी थीं। भले ही उन्हें मार्केट से लिया गया था लेकिन वो बहुत ही बेहतरीन क्वालिटी की थीं!

    बाहर के कपड़े जितने आम और डीसेंट थे अंदर के उतने ही सेडक्टिव। ऐसा लग रहा था जैसे वह चाहता था कि मैं दुनिया के लिए शांत और सीधी दिखाई दूं लेकिन अंदर से एक बदचलन जिस पर पूरी तरह से सिर्फ उस का कंट्रोल है।

    बदचलन ... हाँ, वो निश्चित रूप से मुझे इसी तरह इमेजिन करता था। अरे उस ने खुद कहा था कि मैं उस की संपत्ति हूँ।

    इसी वजह से उस ने मुझे उलटा लिटा कर इस तरह मारा था जैसे एक बिगड़ैल बच्ची को धुल रहा हो। और मुझे वो धुलाई पसंद आई थी। धत तेरी!

    मैं ने खिड़की की चौखट को ज़ोर से पकड़ लिया!

    सच कहूं तो उस ने मुझे चोट नहीं पहुंचाई थी। उस की मार बस उस सीमा तक थी जहाँ दर्द शुरू होता है। मुझे मारते हुए वो खुद भी बेहद सरगर्म हो गया था।

    मैं ने अपनी आँखों से बाल हटाए। 

    उस की हथेली जितनी बार मुझ से टकराई उतनी बार मुझ में एक आग जलाती थी।

    मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि उस की वो मार मेरे दिमाग के गहरे कोने में छप चुकी थी और जिस की झलकियां अब मुझे बार-बार एक्साइटेड कर दे रही थीं।

    मैं सोचने लगी कि अगर वो मुझे फिर से मारे तो कैसा लगेगा?

    नहीं, नहीं, नहीं।

    मैं ने सिर झटक कर इस कल्पना को अपनी खोपड़ी से निकाला और खुद को समझाया कि उस आदमी ने तेरा अपहरण किया, तेरी कनपटी पर बंदूक रखा, तुझे बेहोश किया और तू... तू बस यही सोच रही है कि वो कितना हॉट है? कितना पुर-कशिश है?

    लेकिन सच कहूँ तो उस की मुस्कान यकीनन इतनी दिलकश थी कि मेरे अंदर सब कुछ फटने को तैयार हो जाता था!

    अगर उस ने अगली दफ़ा मुझे उसी तरह मुस्करा कर देखा तो मैं खुद को रोक नहीं पाऊँगी। अपने आप को पूरी तरह से उस पर फेंक दूँगी फिर चाहे जो हो।

    मैं कमरे के बीच पहुँची और इसी के साथ मेरी गर्दन के पीछे के बाल खड़े हुए! मैं ने फौरन चारों ओर देखा। कोई नहीं। फिर देखा। कहीं एक मक्खी भी नहीं।

    फिर ऐसा क्यों लग रहा था जैसे कोई देख रहा हो? मैं ने अपना दायां गाल अंदर से काटा।

    क्या उस ने यहाँ कैमरा छिपाया है? क्या वो ऐसा करेगा? क्या अभी वो मुझे देख रहा है? मैं सिहरने लगी। वो एहसास बहुत डरावना था। लेकिन… पिछली बार कब मैं किसी के लिए इतनी ज़रूरी थी कि वो मुझे पूरे ध्यान से देखता? न पैरेंट्स, न स्कूल की टीचर, न मेरी बड़ी बहन। हाँ वो हमेशा मेरे बारे में चिंतित रहती थी लेकिन वो मेरी माँ तो नहीं थी न।

    लेकिन मोक्ष... वो मुझ में मेरी ज़िंदगी के हर इंसान से ज़्यादा दिलचस्पी ले रहा था। पर मैं समझ नहीं पा रही थी कि ये सच्ची दिलचस्पी है या वक्ती कशिश? हो सकता था मैं बस उस का नया खिलौना थी जिस से वो हर वक्त खेलते रहना चाहता था।

    हो सकता था मैं उस के लिए वो तितली थी जिसे एक बच्चा पकड़ तो लेता है लेकिन उसे समझ नहीं आता कि अब इस के साथ क्या करना है। वह मुझे किसी कांच के जार में बंद कर के मेरी छटपटाहट का मज़ा ले सकता था या फिर मेरे पंख ही उखाड़ सकता था। मैं थरथरा उठी और काँपते हाथों से बाहों पर खड़े हो चुके रोगटों को सहला कर नीचे किया।

    मन में बड़बड़ाई– जो भी हो। ये आदमी मेरे साथ सिर्फ खेल तो नहीं खेल रहा है। हर बार जब भी मुझ से मिलता है तो उस के पास एक प्लान होता है, एक एजेंडा होता है... मुझे नीचा दिखाने का।

    ⋙ (...To be continued…) ⋘

  • 20. द माफिया'स पेंटेड डॉल - Chapter 20

    Words: 1060

    Estimated Reading Time: 7 min

    वो हमेशा मेरा वकार छीनने, मुझे घुटनों के बल रेंगवाने की कोशिश में लगा रहता था। पर मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली थी। हरगिज़ नहीं! किसी भी हालत में मैं उस के आगे नहीं झुकने वाली थी। जिस क्षण मैं ऐसा कर देती उस की रुचि खत्म हो जाती और फिर वह यकीनन मुझे मार देता।

    मैं ने थूक निगला।

    या... या इस से भी बदतर कुछ करता।

    तभी दरवाज़ा खुला। एक औरत वहां खड़ी थी।

    मैं ने पलक झपक कर पूछा– “आप कौन ?”

    “मैं किरण।” –वो मुस्कुराई– “डॉन की हाउसकीपर।”

    “डॉन?” –चिल्ला उठी थी मैं– “आप का मतलब मोक्ष डॉन है?”

    उस ने सिर हिलाया। उस की आँखें बड़ी-बड़ी और कोयले की तरह काली थीं। चेहरे पर शांति थी। वो अपने तीसरे दशक में थी। बालों का जूड़ा बना रखा था जिस के कारण अपनी हालिया उम्र से बड़ी लग रही थी। उस की डार्क ब्लैक कलर की घुटनों के नीचे आती ड्रेस पहनी थी। शायद उस ने जानबूझ कर ऐसी स्टाइल की ड्रेस पहनी थी कि उस पर किसी का ध्यानाकर्षण न हो। खूबसूरत जूतियां पहन रखी थीं और उस के हाथों में एक वैनिटी किट थी।

    “आप को क्या चाहिए?” मैं ने भौं उचका कर पूछा। ठीक है, मैं रूखा बर्ताव कर रही थी पर क्या आप इस के लिए मुझे दोष देंगे? मुझे उस घर में किसी पर भरोसा नहीं था।

    “मुझे सर ने भेजा है। आप का वैक्स करने आई हूँ,”

    “क्या बकवास है?” –मैं हक्की-बक्की हो कर बोली– “उस कमीने को ऐसा लगता है?”

    वो मेरी ओर बढ़ी और मैं ने हाथ खड़े कर दिए– “र…रुकिए। मैं खुद कर सकती हूँ, बहुत -बहुत धन्यवाद।”

    वो झिझकती हुई बोली– “क्या आप को यकीन है? मैं आप की हेल्प कर सक…”

    “नहीं,” –मैं चिल्लाई– “बस ... मुझे वो चीजें दें जिस की ज़रूरत है और आप जा सकती हैं।”

    उस ने पलक झपकी फिर वैनिटी किट मेरी ओर कर दी– “जैसी आप की इच्छा।”

    मैं ने बैग झपट लिया।

    “क्या यही आप का काम है? उन लड़कियों का वैक्स करना जिन्हें वह यहां लाता है?” मैं ने चिढ़ कर पूछा था।

    “वह पहले किसी कभी किसी को नहीं लाए।”

    “ओह!” मेरा मुँह आश्चर्य से खुला।

    इस का क्या मतलब हो सकता है? कुछ नहीं... ज़बरदस्ती के मतलब ढूंढने की ज़रूरत नहीं। बेवकूफ!

    मैं ने गहरी सांस छोड़ी– “जो भी हो,” मैं बड़बड़ाई फिर उसे घूरा– “क्या कुछ और भी है?”

    “वो आप के साथ डिनर करेंगे।” वो हल्की सी मुस्कराई फिर इशारा किया– “तैयार होने के बाद नीचे ग्राउंड फ्लोर के डायनिंग रूम में आ जाइयेगा।”

    मैं वैनिटी को बिस्तर पर फेंक कर बोली– “मैं अभी तैयार हूं।”

    “उन्होंने ज़ोर दे कर कहा है कि पहले आप को वैक्स....”

    “और अगर मैं न करूँ?”

    उस की आँखें चौड़ी हुईं– “मुझे नहीं लगता कि आप ऐसा करना चाहेंगी।”

    “ठीक है,” –मैं ने आह भरी– “तैयार हो कर आती हूँ…” मैं ने वैनिटी उठाते हुए कहा।

    वो मुस्कुराती हुई दरवाज़े की ओर मुड़ गई।

    “रुको, किरण।”

    वह रुक गई।

    “उस ने मुझे अपहृत किया है। क्या तुम्हें भी यहाँ ज़बरदस्ती यहाँ रखा है?"

    वो पलटी और एक रहस्यमयी निगाह से मुझे देखा– “उन्होंने मुझे नौकरी दी जब मुझे इस की  सख़्त ज़रूरत थी। उन्होंने मुझे और मेरी फैमिली को बचाया है।”

    क्या-?

    मुझे ऐसा कुछ सुनने की उम्मीद नहीं थी लेकिन फिर मुझे समझ आ गया। वो कमीना इतना होशियार था कि अपने आस-पास उन लोगों को रखता था जो किसी न किसी प्रकार उस के एहसानों तले दबे हुए थे।

    किसी की पूरी वफादारी हासिल करने का यही तो सब से आसान और बेहतरीन तरीका है कि आप उस की और उस के पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी उठा लें।

    उस ने फिर आधा झुक कर सिर हिलाया– “बेहतर रहेगा कि आप सर से इंतज़ार न करवाएं, मिस।”

    वो घूमी और चली गई।

    एक घंटे बाद मैं कमरे से निकली। पूरी तरह वैक्स कर के। नहीं! वो मैं ने इसलिए नहीं किया था कि मै उस गधे को खुश करना चाहती थी। बल्कि इसलिए क्योंकि उस के बाद मैं खुद को बहुत क्लीन और अच्छा फील कर रही थी। 

    मैं दो बार सीढ़ियां उतरीं फिर उन दोहरे दरवाज़ों से गुज़री जो पूरी तरह खुले हुए थे।

    मैं ने झाँक कर देखा तो एक हरी घास वाली ढलान दिखाई दी। रास्ता घुमावदार और पेड़ों से घिरा हुआ था। दूर लहरों वाला समुद्र मानो मुझे अपनी ओर बुला रहा था।

    मैं बढ़ती रही ज़ब तक कि एक और जोड़ी बड़े दरवाज़ों तक नहीं पहुँच गई।

    यही होना चाहिए।

    मैं दरवाज़ा खोल कर अंदर घुसी और एकदम से ठहर गई। वो खिड़की के पास दो आदमियों के साथ खड़ा था। मेरी ओर पलटा। ऊपर से नीचे तक मुझे देखा। उस के नथुने फड़के और आँखों में चमक आ गई। ऐसा लगा था कि उसे ये देख कर मज़ा आया है कि मैं ने फिर उस का आदेश नहीं माना है।

    शिट! क्या वह से जानता था कि मैं उन कपड़ों को अनदेखा कर दूँगी जो उस ने रखे थे और अपने खुद की पसंद के पहनूँगी?

    उस के होंठों पर धूमिल मुस्कान उभरी और मैं ने अपने पैर पटकने कि इच्छा को जबरन दबा लिया।

    मैं सीधे - सीध उस किस चाल में फंस गई थी, है न? धूर्त कमीना! मैं ने निगाह फेर ली, ठीक उसी समय ज़ब बाकी दो आदमियों में से एक मेरी ओर मुड़ा।

    मेरी सांस अटक गई थी। ओह, शिट! वो बहुत सुंदर था। ऐंजल जैसा चेहरा, मोक्ष के समान नीली भेदती आँखें। पर मोक्ष के मुकाबले उस कि आँखों की रंगत में गहराई था। चौड़ा माथा, हाई चीकबोन्स, वही पतली लंबी नाक। मोक्ष जितना लंब और उसी कि तरह डार्क फिटेड सूट में, जो उस कि स्ट्राँग बॉडी पर एकदम फिट बैठ रहा था।  उस की जैकेट चौड़े कंधों पर खिंची हुई सी थी मानो वो हर दिन वेट ट्रेनिंग करता था। उस पर पड़ती हल्की सी रौशनी घने बालों को चमका रही थीं।

    कुल मिला कर उस का पूरा व्यक्तित्व रौशनी से भरा हुआ था। जहाँ मोक्ष एक डार्क, डेंजरस, और खतरनाक आभा देता था वहीं उस नए शख्स में बिजली सी चमक थी।

    ज़ब वो मेरी ओर बढ़ा ऐसा लगा जैसे चारों तरफ प्रकाश फैलाता हुआ आ रहा है।

    मैं पलकें झपकने लगी।

    उस ने अपना हाथ बढ़ाया– “नियति?”

    मैं भी हाथ बढ़ा कर उस का हाथ थामने ही वाली थी कि खिड़की के पास से एक गहरी गुर्राहट उभरी थी। “उस से दूर हो जाओ।”


    ⋙ (...To be continued…) ⋘