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His young little bride

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Jahnavi Sharma

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शिवांशा ठाकुर, जिसने अपने दादा की गलती की सजा उम्र भर चुकाई। पहले अपने परिवार से जुदा होकर तो फिर उस इंसान की नाम की पत्नी बनकर, जो उसे मारना चाहता है। वेद सिंह चौहान, जिसके माता पिता को उसकी आंखों के सामने देवराज ने मार डाला। बदले की आगे में वेद ने...

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वेद सिंह चौहान

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शिवांशा ठाकुर

Heroine

Total Chapters (2)

Page 1 of 1

  • 1. His young little bride - Chapter 1

    Words: 2207

    Estimated Reading Time: 14 min

    “मिस्टर चौहान, वो अपने आखिरी वक्त में आपसे मिलना चाहता है। मुझे नहीं लगता, उसके पास ज्यादा टाइम रहा है।” कॉल पर एक आदमी ने धीमी कड़क आवाज में कहा।

    वह आदमी इस वक़्त गवर्नमेंट हॉस्पिटल में खड़ा था। वह एक जेलर था। बोलते हुए उसने अपने सामने देखा, जहां एक लगभग 70 साल का बूढ़ा आदमी अपनी आख़िरी साँसें गिन रहा था।

    “वेद... वेद को बुलाओ। वेद सिंह चौहान... उसे बुलाओ। एक बार मिलना है बस... बुला दो।” बूढ़ा आदमी लड़खड़ाते हुए, धीमी आवाज़ में बोला। उसकी सांसे उखड़ रही थी।

    वो बूढ़ा आदमी कब से वेद सिंह चौहान को बुलाने के लिए गिड़गिड़ा रहा था, तो वही कॉल पर मौजूद वेद के कानों में उसकी आवाज पड़ी, तो उसने अपनी गहरी भूरी आंखों को कसकर बंद कर लिया। वो टाई बांध रहा था। उस आवाज को सुनकर उसके हाथ रुक गए थे और नसे तनने लगी थी।

    उसकी आंखों के सामने कुछ दृश्य तैरने लगे, जो खुशनुमा तो बिल्कुल नहीं थे। उन यादों में वो बूढ़ा आदमी, थोड़ा जवान लग रहा था। वो हाथ में एक तलवार लिए खड़ा था, तो वही जमीन पर दो लाशें पड़ी थी।

    वेद का ध्यान तब टूटा, जब जेलर ने एक बार फिर से पूछा, “मिस्टर चौहान आप आ रहे है?”

    वेद ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और कॉल कट कर दिया। कॉल कट हो जाने के बाद बूढ़े आदमी ने जेलर की तरफ देखकर पूछा, “आपने उन्हें सब बता दिया है ना? क्या जवाब दिया उसने? क्या वह यहां आ रहे हैं? ”

    “मैंने उन्हें कॉल कर दिया है। अब यह उन पर डिपेंड करता है कि वे यहाँ आते हैं या नहीं।” जेलर ने जवाब दिया।

    हॉस्पिटल बेड पर मौजूद आदमी कोई और नहीं, वेद सिंह चौहान के परिवार का किसी वक़्त का ख़ास विश्वासपात्र आदमी देवराज ठाकुर था। वह इस वक़्त जेल में इसलिए था क्योंकि उसने वेद सिंह चौहान के माता-पिता की हत्या कर दी थी।

    जेलर भी हैरान था, कि जिस इंसान की खुशियां देवराज ने खत्म कर दी, आखिर वो अपने आखिर समय में उसे ही क्यों याद कर रहा है। भला वेद उस आदमी से मिलने क्यों जाएगा, जिसने उसके मां पिता को इतनी बेरहमी से मार डाला था।

    उन सब से अलग, चौहान पैलेस में वेद इस वक़्त अपने कमरे में, बिना किसी भाव के, दीवार पर लगी तस्वीरों को देख रहा था। उन तस्वीरों में वह अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ था। अपने पेरेंट्स की तस्वीर देखते हुए वेद की आंखों में एक खालीपन उतर आया था।

    बीस साल पहले हुए हादसे ने उनकी ज़िंदगी को पूरी तरह बदल कर रख दिया था। एक हंसते खेलते हुए परिवार को एक झटके में अनाथ में कर दिया था, देवराज ने।

    वेद का मोबाइल एक बार फिर बजा। जेलर उसे फिर से कॉल कर रहा था। इसी के साथ वेद का ध्यान टूटा और उसके चेहरे के भाव बेहद सर्द हो गए थे।

    “देवराज ठाकुर, खुशकिस्मत हो, जो जेल में हो और बच गए। वरना तुम्हारा भी वही हश्र तुम्हारा होता, जो तुम्हारे परिवार हुआ था।” वेद ने कोल्ड टोन में कहा।

    वेद सिंह चौहान कोई आम शख्शियत नहीं था, वो उदयपुर की रॉयल फैमिली से बिलॉन्ग करता था। इतनी आसानी से वेद उन लोगों को कैसे जाने दे सकता था, जिसने उसके हंसते खेलते घर को बर्बाद कर दिया था।

    “एक आखिरी बार, तुम्हे आखिरी सांस लेते देखकर शायद मेरे दिल को सुकून मिले। आज तुम्हारे अंत के साथ तुम्हारे खानदान का नामों निशान इस दुनिया से मिट जाएगा। अगर तुमने खुद को बचाने के लिए पुलिस का सहारा ना लिया होता, मैं तुम्हें तुम्हारे गुनाहों की सजा जरूर देता।” वेद ने गहरी सांस लेकर कहा।

    वेद ने अपना मोबाइल उठाया और नीचे जाने लगा।

    उसके चेहरे का औरा इस वक्त काफी ख़तरनाक लग रहा था। दिखने में बिल्कुल फ़िट एंड फ़ाइन, लगभग छह फीट हाइट, मस्कुलर बॉडी, शार्प फ़ेशियल फ़ीचर्स, चेहरे पर हल्की दाढ़ी, हल्का गोरा रंग। वह दिखने में लगभग 30 साल के आसपास लगता था। उसकी फ़िटनेस भले ही उसकी उम्र को छुपा देती थी, लेकिन वेद उम्र में लगभग 37 साल का था। उसने ब्लैक ब्रैंडेड सूट पहना था। उसने हाथ में एंटीक एक्सपेंसिव वॉच थी।

    वेद नीचे जा रहा था, तभी उसके क़दम रुक गए। उसके कानों में उसकी छोटी बहन नव्यांशी की आवाज़ पड़ी, जो उनके घर के बड़े से हॉल में, उसके छोटे भाई वंश की पत्नी आराध्या की तरफ़ बढ़ रही थी।

    “आप बेवजह इतनी मेहनत कर रही हो, आराध्या भाभी! आप जानती है, वो अपना बर्थडे सेलिब्रेट नहीं करते है।” नव्यांशी ने सख़्त और भारी आवाज़ में कहा।

    इसी के साथ केक तैयार कर रही आराध्या के हाथ रुक गए। उसने पलट कर उसकी तरफ़ देखते हुए कहा, “नवी, तुम बात करके देखो ना भाई से, वो किसी की बात भी टाल सकते हैं, पर तुम्हारी बात कभी नहीं टालते हैं। ऐसे कब तक वो अपने छोटे भाई-बहनों की खुशी के लिए खुद को नज़रअंदाज़ करते रहेंगे?”

    आराध्या की बात सुनकर नव्यांशी ने हाँ में सिर हिलाया। उसने केक उठाया और आराध्या को अपने पीछे आने का इशारा किया। उन दोनों के क़दम बाहर की तरफ़ बढ़ रहे थे। उनके बाहर निकलते ही, दो लड़के भी उनके साथ हो गए। वो दोनों वेद के छोटे भाई वंश और अक्षत थे।

    “आज तो हम बड़े भैया को मना ही लेंगे।” उनमें से एक लड़का खुश होकर बोला। वो अक्षत था, वेद का सबसे छोटा भाई, जो 23 साल का था।

    उसके साथ चल रहे लड़के के भाव सख़्त थे। वे सब वेद से बात करने जा रहे थे। उनका मक़सद एक ही था—अपने बड़े भाई वेद सिंह चौहान को उनका बर्थडे सेलिब्रेट करने के लिए मनाना।
    अचानक उनके क़दम वहीं पर रुक गए, क्योंकि सामने वेद हाथ बाँधकर, सख़्त अंदाज़ में खड़ा था। उसे देखते ही उनके मुँह से टूटा-फूटा एक शब्द तक नहीं निकल रहा था।

    नव्यांशी ने अपने हाथ में पकड़ा केक जल्दी से पीछे कर लिया। उनके इरादों को जानते हुए भी वेद ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया और तेज क़दमों से चलकर जाने लगा।

    उसके बाहर क़दम रखते ही, वेद के सबसे छोटे भाई अक्षत ने कहा, “पीछे से हम लोग इतनी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन उनके सामने आते ही पता नहीं क्या हो जाता है कि एक शब्द भी नहीं निकलता।”

    “हां सोचा था, आज भाई को मना लेंगे, पर हम तो अपने दिल की बात तक नहीं रख पाए।” वंश की पत्नी आराध्या ने बुझे स्वर में कहा।

    “यह बड़े भैया इतने सख़्त बनकर क्यों रहते हैं?” अक्षत ने मुंह बनाकर कहा।

    अक्षत की बात सुनकर वंश ने सिर हिलाकर कहा, “क्योंकि एक ढाल हमेशा सख़्त होती है। वेद सिंह चौहान इस चौहान फैमिली की ढाल है, जो हमें हर ख़तरों से बचा रही है। हम भले ही उनके सामने एक शब्द ना कह पाए, पर मत भूलो हमारे बिना कुछ कहे ही वो हम सबकी बात समझ जाते है।”

    हाँ, वेद सिंह चौहान उन सब की ढाल था, जिसने अपने भाई-बहनों की खुशियों के आगे खुद की भी परवाह नहीं की। यही वजह थी कि वेद 37 साल का हो गया था, फिर भी अब तक अनमैरिड था, जबकि उसके छोटे भाई वंश की शादी हो चुकी थी, नव्यांशी अभी बिजनेस में इंटरेस्ट ले रही थी, तो उसने इस बारे में सोचा नहीं था, जबकि अक्षत की स्ट्डीज चल रही थी।

    वेद उनके लिए उनका मां और पिता दोनों था। उनकी वो इज़्ज़त भी करते थे और बहुत ज्यादा प्यार भी। वही था, जिसने अपने भाई बहनों को हर खतरे से बचाया। वरना जिस तरह से उनके पेरेंट्स की मौत हुई थी, उससे साफ था कि खतरा तो उन पर भी आया था।

    वो सब उसे रोकने की कोशिश तक नहीं कर पाए, तो वही वेद तेज कदमों से चलते हुए बाहर जा रहा था। जैसे ही वेद बाहर निकला, एक 30 साल का आदमी उसके पीछे पीछे चलने लगा।

    “हॉस्पिटल जाना है प्रथम..।” वेद ने सीधे चलते हुए कहा।

    वो प्रथम शेखावत था, वेद का ममेरा छोटा भाई और पर्सनल सिक्योरटी मैनेजर। प्रथम उसके साथ ही रहता था।

    अगले ही पल वो दोनों एक लग्ज़रियस ब्लैक मर्सिडीज़ में थे। उसके आगे-पीछे गार्ड्स की एक-एक छोटी गाड़ी भी चल रही थी।

    लगभग 1 घंटे में वेद हॉस्पिटल पहुँच चुका था। वेद सिंह चौहान कोई आम शख़्सियत नहीं था; उसके रुतबे से हर कोई वाकिफ़ था। जैसे-जैसे वेद अस्पताल के अंदर आगे बढ़ रहा था, आसपास के लोग साइड हटने लगे। वेद सीधा देवराज ठाकुर के कमरे में पहुँचा और सबको इशारे से बाहर जाने को कहा। हां, बस प्रथम उसके साथ था।

    देवराज ने वेद की तरफ़ देखा और अपने हाथ जोड़ने की कोशिश करने लगा, तभी वेद ने उसे ठंडी आवाज़ में कहा, “अब माफ़ी माँगने या हाथ जोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है। कुछ गुनाहों की कोई सज़ा नहीं होती है।”

    “मैं मजबूर था।” देवराज ठाकुर ने धीमी आवाज़ में कहा। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।

    वेद ने उसकी बात पर सिर हिलाकर, अपनी इंटेंस आवाज़ में कहा, “तुम मजबूर नहीं, धोखेबाज थे। तुम्हारे धोखे की सजा तुम्हारी फैमिली ने चुकाई। तुम अपने परिवार के आखिरी इंसान रहे हो, और आज तुम्हारी मौत के साथ मेरे मां पापा की आत्मा को सुकून मिलेगा।” वेद की नज़रें इस वक्त बेहद सर्द थी।

    “मैंने नहीं मारा।” अचानक देवराज बोला, “मैं बस कठपुतली था।”

    उसका कहा एक एक शब्द वेद के गुस्से में इजाफा कर रहा था। उसने अपनी दांत पीसते हुए कहा, “तो जिन्होंने भी तुम्हारी डोर खींची थी, मैं उन्हें भी ढूंढ लूंगा, और ट्रस्ट मी तुम्हारे परिवार की तरह उन्हें भी खत्म कर दूंगा।”

    देवराज बिल्कुल शांत था। वेद ने गहरी सांस लेकर अपने गुस्से को काबू करके पूछा, “नाम नहीं बताओगे?”

    देवराज की नज़रें नीची हो गई थीं।

    “जब कुछ बताना ही नहीं था, तो यहाँ क्यों बुलाया? तुम्हारे पास फालतू समय होगा, लेकिन वेद सिंह चौहान के वक़्त की बहुत क़ीमत है।” वेद ने सख्ती से कहा और फिर वहाँ से जाने लगा तभी देवराज ने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की।

    “मुझे माफ कर दो।” देवराज ने रोते हुए, कमज़ोर शब्दों में कहा।

    वेद के क़दम वहीं पर रुक गए। वह उसकी तरफ़ पलटा और बोला, “कभी नहीं।”

    देवराज की आंखों में पछतावा जरूर था, पर साथ ही चेहरे पर एक सुकून भी। उसने आगे वेद को रोकने की कोशिश नहीं की। देवराज जैसा इंसान सिर्फ माफी मांगने के लिए वेद को नहीं बुलाने वाला था।

    जैसे ही वेद कमरे से बाहर गया, देवराज ने मन ही मन कहा, “इसे लगता है इसने मेरे पूरे खानदान को खत्म कर दिया, इसका मतलब ये आज तक उससे अनजान है। मेरे गुनाहों की सज़ा मेरे परिवार को मिली, लेकिन शुक्र है, जो वो मासूम बच गए। वेद सिंह चौहान को उनके बारे में पता नहीं है, इसका मतलब साफ है, उन्होंने अपना वादा निभाया। वह आज भी मेरे बच्चों की रक्षा कर रहे हैं।”

    देवराज अब सुकून से मर सकता था। वेद की नजरों में उसका खानदान भले ही खत्म हो गया हो लेकिन आज भी कोई जिंदा था, जिससे वह बहुत प्यार करता था और बचाना भी चाहता था। मरने से पहले देवराज यह सुनिश्चित करना चाहता था कि वेद को उनके बारे में पता है या नहीं। बस यही सोचकर उसने उसे यहां बुलाया था।
    देवराज आंखें बंद करके अपनी मौत का इंतजार करने लगा। वह जानता था कि अब उसके पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है।

    “ईश्वर तुम्हें दुनिया की सारी खुशियां दे। और तुम पर कभी वेद सिंह चौहान की नजर ना पड़े मेरी बच्ची।” देवराज ने मन ही मन प्रार्थना की। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी।

    वही वेद ने जैसे ही कमरे से बाहर कदम रखा, एक कांस्टेबल उसके पास आया। उसने एक शादी का कार्ड और लेटर देते हुए कहा, “सुबह ही कोई यह शादी का कार्ड देकर गया था। उसके साथ में यह लेटर भी है।”

    “और यह तुम मुझे क्यों दे रहे हो? ” वेद में बिना किसी भाव के पूछा।

    देवराज पर नजर रखने के लिए वेद ने उस कांस्टेबल को लगा रखा था। उसे पहले ही शक था कि देवराज अकेले यह साजिश नहीं कर सकता था, पर इतने सालों में देवराज से मिलने कोई नहीं आया था।

    “क्योंकि आपका बदला अभी अधूरा है। मैंने यह लेटर पढ़ा था। जानते हैं यह किसकी शादी का कार्ड है? देवराज ठाकुर की पोती शिवांशा ठाकुर का। आपको लगता है कि आपने उसके पूरे परिवार को खत्म कर दिया जबकि अभी भी यह लड़की जिंदा है।” कांस्टेबल ने वेद को सब कुछ बताया।

    सारी बात जानकर वेद की आंखें सर्द होने लगी और वह समझ गया था कि देवराज ने उसे यहां क्यों बुलाया होगा। वेद ने कांस्टेबल को वहीं पर छोड़ा और जल्दी से वापस कमरे के अंदर गया। उसे फिर से अपने सामने देखकर देवराज के चेहरे पर घबराहट के भाव थे।

    “शिवांशा ठाकुर? यही नाम है ना उसका? डॉक्टर ने कहा कि तुम मरने वाले हो तो खुद को 24 घंटे रोक कर रखना, क्योंकि तुम्हारे मरने से पहले तुम्हारे खानदान के आखिरी अंश को भी खत्म करना बाकी है। कहा था ना, तुम्हारे घरवालों के अंतिम दर्शन तक नहीं नसीब नहीं होने दूंगा। ” वेद ने दांत पीसते हुए कहा और फिर वहां से चला गया।

    वही देवराज की आंखें डर से पथराने लगी थी। वेद को बुलाकर ये जानने की कोशिश करना कि वह शिवांशा के बारे में जानता है या नहीं, देवराज की जिंदगी की दूसरी बड़ी गलती साबित होने वाली थी।

    °°°°°°°°°°°°°°°°

  • 2. His young little bride - Chapter 2

    Words: 2229

    Estimated Reading Time: 14 min

    वेद सिंह चौहान, जो उदयपुर की रॉयल फैमिली का मुखिया था, उसे एक सुबह जेलर का कॉल आया। उसके माता-पिता का कातिल, देवराज ठाकुर, अपनी आखिरी साँसें गिन रहा था। उसने वेद को मिलने के लिए बुलाया था। वेद मिलने भी गया। अपने माता-पिता को मारने वाले शख्स के खानदान के हर व्यक्ति को उसने खत्म कर दिया था; बस बचा था देवराज। वेद उसे भी मरते हुए देखना चाहता था।

    देवराज भी कोई सीधा-सादा इंसान नहीं था। उसने वेद को इसलिए बुलाया था ताकि बातों-ही-बातों में पता कर सके कि वेद उसकी पोती के बारे में जानता है या नहीं। वेद को यही लगता था कि उसने देवराज के पूरे परिवार को खत्म कर दिया है। ये देखकर देवराज ने राहत की साँस ली; वह आसानी से मर सकता था।

    देवराज की खुशी चंद पलों की थी क्योंकि जब वेद बाहर आया, तो एक कांस्टेबल ने शादी का कार्ड दिया, जिसके साथ एक लेटर भी था। लेटर पढ़ने पर पता चला कि वह किसी और ने नहीं, बल्कि देवराज की पोती ने लिखा था। वेद वापस देवराज के पास गया और उसने उसकी पोती, शिवांशा को 24 घंटे में खत्म करने की धमकी दी।

    देवराज उसे रोकना चाहता था, पर रोक नहीं पाया। वहीं बाहर आकर, वेद ने प्रथम से सख्त आवाज़ में कहा, “वेडिंग कार्ड को अच्छे से पढ़ो और पता लगाओ कि शादी कहाँ हो रही है। यह शादी नहीं होनी चाहिए; उस घर से डोली नहीं, लड़की की अर्थी उठनी चाहिए।”

    “बिल्कुल यही होगा भाई। उन्होंने जो बुआ और फूफा जी सा के साथ किया, उसका सूद समेत बदला लेना बनता है। और जब तक वह लड़की ज़िंदा है, हमारा बदला अधूरा है।” प्रथम ने भी दाँत पीसते हुए कहा।

    सिर्फ़ प्रथम ही नहीं, पूरी चौहान फैमिली यही चाहती थी कि देवराज के परिवार के साथ यही हश्र हो। उसके माता पिता शोभा चौहान और भरत सिंह चौहान, काफ़ी नेकदिल इंसान थे; वे ऐसी मौत मरने के लायक नहीं थे।

    जब भी वेद उनके बारे में सोचता, उसका गुस्सा उसके काबू के बाहर हो जाता। वेद मन ही मन बड़बड़ाते हुए बोला, “काश उस वक़्त मैं तुम्हारे असली चेहरे को पहचान पाता! इतनी समझ होती, जो तुम जैसे घटिया इंसान को समझ पाता, तो कभी तुम्हें अपनी माँ-पापा के करीब भी नहीं जाने देता, देवराज ठाकुर।”

    वेद के क़दम अपनी गाड़ी की तरफ़ बढ़ रहे थे; उसके पीछे-पीछे प्रथम भी चल रहा था। गाड़ी में बैठने के अगले पाँच मिनट में प्रथम ने पूरा कार्ड पढ़ लिया था।

    प्रथम ने कार्ड पढ़ने के बाद वेद की तरफ़ देखकर शांत लहजे में कहा, “इस लड़की की शादी देवेश राजावत के छोटे बेटे से हो रही है। उसके दोनों बेटे दिल्ली में रहते हैं; बस शादी के लिए यहाँ आए हुए हैं।”

    “ठीक है, फिर वहीं चलते हैं। राजावत फैमिली से दुश्मनी निभाने का एक और मौक़ा मिल जाएगा।” वेद ने जवाब में कहा।

    “हाँ, वेन्यू उनके पुरानी हवेली में रखा गया है, तो जाने में भी टाइम लग जाएगा। उम्मीद है शादी होने से पहले तो हम पहुँच ही जाएँगे।” प्रथम ने जवाब दिया।

    वहीं दूसरी तरफ़, राजावत फैमिली में एक तरफ़ जहां शादी की खुशियों का माहौल चल रहा था, तो वहीं दूसरी तरफ़ एक बंद कमरे में काफ़ी गहमागहमी का माहौल था। अपने बड़े भाई, तेजेंद्र राजावत, की सारी बात मानने वाला देवेश राजावत इस वक़्त उनसे बहस कर रहा था। साथ ही कमरे में तेजेंद्र का बेटा, अंकुश, भी था।

    थोड़ी देर पहले ही अंकुश ने उन्हें देवराज के मरने की ख़बर सुनाई थी। उसे सुनने के बाद तेजेंद्र ने तेज आवाज़ में कहा, “अब हमें उसे लड़की को और झेलने की ज़रूरत नहीं है। हमारा वादा उसके दादा के ज़िंदा रहने तक ही था। गलती से भी अगर वेद सिंह चौहान को पता चल गया कि इस लड़की को हमने पनाह दे रखा है, तो वह हमसे भी अपनी दुश्मनी निकालने पर उतर आएगा। इसका बिज़नेस पर क्या असर हो सकता है, तुम समझ सकते हो।”

    देवेश इस बात से सहमत नहीं था। वो गिड़गिड़ाते हुए बोला, “किसी को पता नहीं चलेगा। वैसे भी शिवांशा हमेशा से अरमान और मनन के साथ दिल्ली में रहती आई है; सबको यही लगेगा कि वह मनन की पत्नी है। प्लीज़ ऐसा मत कीजिए भाई साहब।”

    अंकुश भी अपने पिता तेजेंद्र की बात से सहमत था। उसने कहा, “चाचू, मैं आपके इमोशन्स समझ सकता हूँ, लेकिन सच में वह लड़की यूज़लेस है। वैसे भी वेद और हमारे बीच पहले से कम राइवलरी नहीं है, और आप उसे एक और बड़ा मौक़ा देना चाहते हैं। मुझे उससे दुश्मनी निभाने में कोई डर नहीं है; मैं हर तरीके से उसे टक्कर देने के लिए तैयार हूँ, आज से नहीं, हमेशा से ही। पर यह मामला थोड़ा हटके है; बात उसके माँ-बाप के क़त्ल की है।”

    “और हाँ, हम बीच में बेवजह नहीं पिसना चाहते हैं। हम तो बस उस राज का थोड़ा-सा भागीदार थे; फिर हम क्यों सज़ा भुगतें?” तेजेंद्र ने पल्ला झाड़ते हुए कहा।

    अंकुश और तेजेंद्र शिवांशा को खत्म करने पर तुले हुए थे, लेकिन देवेश इसके सख्त ख़िलाफ़ था। उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा, “मैंने कभी आपके किसी भी बात के लिए इंकार नहीं किया है। अपने परिवार से अलग आपके साथ रहता हूँ, पर प्लीज़, यह शादी मत रुकवाइए। इस मोमेंट पर शादी रुकने से बहुत बदनामी होगी; ऊपर से मैं मनन को क्या जवाब दूँगा?”

    “आपको मनन को एक्सप्लेन करने की ज़रूरत ही क्या है? वैसे भी वह पागल…” अंकुश गुस्से में बोल रहा था।

    उसकी बात पूरी होने से पहले ही देवेश ने उसे काटते हुए कहा, “वह पागल नहीं है; ठीक हो रहा है। हाँ, समय के साथ उसका दिमाग इतना विकसित नहीं हुआ है, लेकिन शिवांशा के साथ रहता है तो उसका गुस्सा भी काबू में रहता है। वह उसे बहुत प्यार करता है। प्लीज़, मेरे बेटे के लिए उसे जाने दीजिए; मैं उसका ध्यान रखूँगा; पहले भी उसकी ज़िम्मेदारी अरमान संभाल रहा था।”

    “तुम हमें कितने भी बहाने बनाने की कोशिश क्यों ना करो, देवेश, इस लड़की के चक्कर में हम खुद को मुसीबत में नहीं डाल सकते। अंकुश, ऐसा करो कि तुम अपने आदमियों को लेकर जाओ और शादी होने से पहले ही उस लड़की को खत्म कर दो। हम मेहमानों को कह देंगे कि लड़की शादी से पहले किसी और के साथ भाग गई; वैसे भी लोगों को आसानी से यकीन हो जाएगा कि कौन एक पागल लड़के के साथ शादी करके अपनी ज़िंदगी बर्बाद करना चाहेगी।” तेजेंद्र ने अपनी मनमानी करते हुए अंकुश को ऑर्डर दे दिए थे।

    देवेश अंकुश को रोकना चाहता था, लेकिन उसने उसे अनसुना किया और एक ईविल स्माइल के साथ कमरे से बाहर निकल गया। वह तो कब से शिवांशा को रास्ते से हटाना चाहता था, पर देवेश के चलते वह कुछ नहीं कर पा रहा था।

    जैसे ही अंकुश ने दरवाज़ा खोला, देवेश उसके पीछे आ गया; वहीं दरवाज़े के बाहर खड़े मनन ने उनकी सारी बातें सुन ली थीं। मनन लगभग 25 साल का था और उसी की शादी शिवांशा के साथ होने वाली थी। उसका दिमाग अपनी उम्र के मुताबिक़ विकसित नहीं हुआ था, लेकिन हाँ, कमरे में जो बातें चल रही थीं, वह उन्हें अच्छे से समझ सकता था।

    “व… वो… वो मेरी शिवि को मारना चाहते हैं। नहीं, मेरी शिवि को कुछ नहीं हो सकता; मनन उसे बचाएगा। गंदे लोग! मेरी शिवि को मारना चाहते हैं।” मनन ने अपना चश्मा ऊपर करते हुए नाक सिकोड़कर कहा।

    वह जल्दी से ऊपर शिवांशा के कमरे में जाने लगा। मनन को सख्त हिदायत मिली थी कि शादी से पहले वह शिवांशा से ना मिले, लेकिन जब वह उसके कमरे की तरफ़ बढ़ने लगा, तो अंकुश की पत्नी, गीतिका, बीच में आ गई।

    गीतिका ने अंकुश को देखकर हल्का हँसते हुए कहा, “लगता है आप बड़े हो रहे हो देवर जी, लेकिन थोड़ा इंतज़ार कर लीजिए; आज रात शादी के बाद वह आपकी ही होने वाली है।”

    “लेकिन मुझे मेरी शिवि से मिलना है, और आप मुझे नहीं रोक सकतीं। आप गंदी हो; सब गंदे हैं।” मनन ने बच्चों की तरह कहा।

    गीतिका मनन को रोकना चाहती थी; अगर वह उसे जाने देती, तो रिश्तेदारों के नाम पर उसी की दो बातें सुनाई जातीं। इसलिए गीतिका ने मनन का हाथ पकड़ लिया। मनन ने अपना हाथ छुड़ाने के चक्कर में गीतिका को धक्का दे दिया, जिससे उसका हाथ बरामदे की रेलिंग पर लग गया।

    गीतिका ने गुस्से में चिल्लाकर कहा, “पागल हो तुम? मैं भी तुम्हें कह रही हूँ, पागल ही हो तुम! और वह लड़की बेवकूफ़, जो तुमसे शादी कर रही है! एक बार समझ नहीं आता क्या? उस कमरे में नहीं जाना चाहिए! खैर, तुम पागल हो, लेकिन…”

    गीतिका अपने गुस्से में मनन को भला-बुरा सुना रही थी, लेकिन अचानक बोलते हुए उसके शब्द गले में अटक गए। बोलते हुए उसकी नज़र मनन के बड़े भाई, अरमान राजावत पर गई, जो उसे ख़ौफ़ से भरी निगाहों से घूर रहा था।

    “वह मैं कब से इन्हें समझाने की कोशिश कर रही हूँ कि शिवांशा के कमरे में नहीं जाना है, लेकिन देखिए ना, बच्चों की तरह जिद कर रहे हैं! फिर आप मम्मी जी को जानते हैं; वह मुझ पर गुस्सा करेगी।” गीतिका ने अपनी सफ़ाई देने की कोशिश की।

    अरमान मनन के पास आया और उसके कपड़े सही करते हुए बोला, “गो हेल विद योर फैमिली! आगे से मेरे भाई को पागल कहने की हिम्मत मत करना, वरना पता चल जाएगा कौन पागल है, कौन सही।” इतना कहकर अरमान ने मनन का हाथ पकड़ा और उसे प्यार से कहा, “मेरे कमरे में चलो, बात करते हैं।”

    “लेकिन अरमान, वह गंदे लोग… मेरी शिवि…” मनन उसे सब कुछ बताने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अरमान गुस्से में उसकी तरफ़ देखते हुए बस सिर हिलाया, तो मनन बिल्कुल चुप हो गया।

    अरमान मनन से उम्र में लगभग चार साल बड़ा था। सिर्फ़ अरमान ही था जिससे मनन थोड़ा डरता था; दूसरी शिवांशा, जो मनन को प्यार से हैंडल कर सकती थी। प्यार तो अरमान भी बहुत करता था अपने भाई से; यही वजह थी कि अपनी फैमिली से दूर वह मनन और शिवांशा से अलग दिल्ली में अपना अलग बिज़नेस करता था। उसे राजावत फैमिली से सख्त चिढ़ थी।

    उनसे अलग अपने कमरे में आते ही अरमान ने मनन को देखकर उसकी आँखों में देखते हुए इंटेंस वॉइस में कहा, “क्या हुआ मनन? इतना एग्रेसिव क्यों हो रहे हो?” वह अच्छे से जानता था कि मनन का यह गुस्सा बेवजह नहीं है।

    “वह… वह अरमान, मैंने उनकी बातें सुनी थीं। उन्होंने कहा कि वह शिवि को मार देंगे क्योंकि उसके दादाजी की मौत हो गई है। वह मेरी शिवि को आज मारने वाले हैं; शादी नहीं होगी; शिवि की मौत होगी! बचा लो उसे।” मनन ने रोते हुए बताया।

    मनन का दिमाग बच्चों की तरह था, पर ऐसा नहीं था कि अरमान ने उस पर यकीन नहीं किया; वह अपनी फैमिली को अच्छे से जानता था।

    “तुम चिंता मत करो; आज रात शादी होगी और तुम्हारी शिवि को कुछ नहीं होगा; यह वादा है मेरा। एक प्रॉमिस तुम भी करोगे; किसी से कुछ नहीं कहोगे।” अरमान ने कहा और अपना हाथ आगे कर दिया। अगर वह मनन से यह प्रॉमिस नहीं लेता और इस बारे में उसके घरवालों को भनक भी होती, तो वे उसे भी नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते।

    मनन ने अपना हाथ अरमान के हाथ पर रखा और कहा, “पक्का प्रॉमिस।”

    इसी के साथ अरमान के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ गई। उसका सख्त दिखने वाला चेहरा इस हल्की-सी मुस्कान के साथ खिल उठा था।

    मनन को वहीं पर छोड़कर अरमान कमरे से बाहर निकला। वह बात करने के लिए सीधे देवेश के पास जा रहा था; तो इस बीच अंकुश शिवांशा के कमरे में पहुँचा।

    शिवांशा इस वक़्त अपने रूम में अकेली थी। मेकअप आर्टिस्ट बस उसे तैयार करके ही गई। डार्क मैरून लहंगे के साथ हैवी ज्वेलरी पहने शिवांशा इस वक्त बिल्कुल किसी राजकुमारी की तरह सजी थी। वो लगभग 21 साल की थी। गोरा रंग, खूबसूरत छोटी आँखें, उभरे हुए बराबर होंठ और उस पर उसकी मासूमियत देखते ही बनती थी।

    शिवांशा ने एक नजर खुद को आईने में देखा। उसके चेहरे पर इस शादी की कोई खुशी नहीं थी। हां, अहसानों के बोझ तले दबी शिवांशा को एक मौका मिला था, राजावत फैमिली के एहसान चुकाने का, तो वो मना नहीं कर पाई। वैसे भी उसकी जिंदगी राजावत फैमिली के बदौलत ही थी।

    अचानक कमरे में अंधेरा हो गया, तो शिवांशा ने घबराकर पीछे की तरफ़ देखा; उसे किसी के आने की आहट महसूस हुई।

    “क… कौन है? गीतिका भाभी, आप आई हैं क्या?” शिवांशा ने घबराहट के साथ पूछा।

    अचानक किसी ने उसके मुँह पर हाथ रखा। वह अंकुश था। उसने शिवांशा को शांत करने के लिए अपना एक हाथ उसके मुंह पर रखा, तो दूसरे हाथ से उसने उसे बुरी तरह दबोच कर खुद के करीब कर लिया। शिवांशा तो मानों वही जड़ हो गई हो।

    शिवांशा कुछ समझ पाती, उससे पहले वह उसे दबोचते हुए वहाँ से कमरे के दूसरे दरवाज़े से ले जाने लगा। हवेली वैसे भी पुराने जमाने के हिसाब से बनी हुई थी, जिसमें एक कमरे में एक से ज़्यादा दरवाज़े थे।

    “क्या लगा था बेबी गर्ल, बचने का मौका मिल जाएगा। शादी तो आज रात तुम्हारी नहीं होगी, लेकिन वादा करता हूँ, बिना सुहागरात मनाए नहीं मरने दूँगा।” अंकुश ने शिवांशा के कान में धीरे से कहा। यह सुनकर उसकी आँखें डर के मारे फैल गई थीं।

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    फिलहाल के लिए इतना ही, उम्मीद है आप कहानी के साथ कनेक्ट कर पा रहे हो। बाकी मैने इसे बहुत दिल से लिखा है। पढ़कर समीक्षा जरूर कीजियेगा।