शिवांशा ठाकुर, जिसने अपने दादा की गलती की सजा उम्र भर चुकाई। पहले अपने परिवार से जुदा होकर तो फिर उस इंसान की नाम की पत्नी बनकर, जो उसे मारना चाहता है। वेद सिंह चौहान, जिसके माता पिता को उसकी आंखों के सामने देवराज ने मार डाला। बदले की आगे में वेद ने... शिवांशा ठाकुर, जिसने अपने दादा की गलती की सजा उम्र भर चुकाई। पहले अपने परिवार से जुदा होकर तो फिर उस इंसान की नाम की पत्नी बनकर, जो उसे मारना चाहता है। वेद सिंह चौहान, जिसके माता पिता को उसकी आंखों के सामने देवराज ने मार डाला। बदले की आगे में वेद ने उसके पूरे परिवार को खत्म कर दिया। क्या होगा, जब देवराज के आखिरी अंश शिवांशा के जिंदा होने की बात सुनकर वेद उसे मारने जाएगा। हालत कुछ ऐसे बने, कि शिवांशा की जान लेने के बजाय, वेद को उसे सबके सामने अपनी पत्नी स्वीकार करना पड़ा। क्या वेद शिवांशा को कभी मार पाएगा, या उम्र का 17 साल का फासला मिटाकर ये नफरत प्यार में बदल जाएगी? जानने के लिए पढ़िए "हिज यंग लिटिल ब्राइड"
वेद सिंह चौहान
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शिवांशा ठाकुर
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“मिस्टर चौहान, वो अपने आखिरी वक्त में आपसे मिलना चाहता है। मुझे नहीं लगता, उसके पास ज्यादा टाइम रहा है।” कॉल पर एक आदमी ने धीमी कड़क आवाज में कहा।
वह आदमी इस वक़्त गवर्नमेंट हॉस्पिटल में खड़ा था। वह एक जेलर था। बोलते हुए उसने अपने सामने देखा, जहां एक लगभग 70 साल का बूढ़ा आदमी अपनी आख़िरी साँसें गिन रहा था।
“वेद... वेद को बुलाओ। वेद सिंह चौहान... उसे बुलाओ। एक बार मिलना है बस... बुला दो।” बूढ़ा आदमी लड़खड़ाते हुए, धीमी आवाज़ में बोला। उसकी सांसे उखड़ रही थी।
वो बूढ़ा आदमी कब से वेद सिंह चौहान को बुलाने के लिए गिड़गिड़ा रहा था, तो वही कॉल पर मौजूद वेद के कानों में उसकी आवाज पड़ी, तो उसने अपनी गहरी भूरी आंखों को कसकर बंद कर लिया। वो टाई बांध रहा था। उस आवाज को सुनकर उसके हाथ रुक गए थे और नसे तनने लगी थी।
उसकी आंखों के सामने कुछ दृश्य तैरने लगे, जो खुशनुमा तो बिल्कुल नहीं थे। उन यादों में वो बूढ़ा आदमी, थोड़ा जवान लग रहा था। वो हाथ में एक तलवार लिए खड़ा था, तो वही जमीन पर दो लाशें पड़ी थी।
वेद का ध्यान तब टूटा, जब जेलर ने एक बार फिर से पूछा, “मिस्टर चौहान आप आ रहे है?”
वेद ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और कॉल कट कर दिया। कॉल कट हो जाने के बाद बूढ़े आदमी ने जेलर की तरफ देखकर पूछा, “आपने उन्हें सब बता दिया है ना? क्या जवाब दिया उसने? क्या वह यहां आ रहे हैं? ”
“मैंने उन्हें कॉल कर दिया है। अब यह उन पर डिपेंड करता है कि वे यहाँ आते हैं या नहीं।” जेलर ने जवाब दिया।
हॉस्पिटल बेड पर मौजूद आदमी कोई और नहीं, वेद सिंह चौहान के परिवार का किसी वक़्त का ख़ास विश्वासपात्र आदमी देवराज ठाकुर था। वह इस वक़्त जेल में इसलिए था क्योंकि उसने वेद सिंह चौहान के माता-पिता की हत्या कर दी थी।
जेलर भी हैरान था, कि जिस इंसान की खुशियां देवराज ने खत्म कर दी, आखिर वो अपने आखिर समय में उसे ही क्यों याद कर रहा है। भला वेद उस आदमी से मिलने क्यों जाएगा, जिसने उसके मां पिता को इतनी बेरहमी से मार डाला था।
उन सब से अलग, चौहान पैलेस में वेद इस वक़्त अपने कमरे में, बिना किसी भाव के, दीवार पर लगी तस्वीरों को देख रहा था। उन तस्वीरों में वह अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ था। अपने पेरेंट्स की तस्वीर देखते हुए वेद की आंखों में एक खालीपन उतर आया था।
बीस साल पहले हुए हादसे ने उनकी ज़िंदगी को पूरी तरह बदल कर रख दिया था। एक हंसते खेलते हुए परिवार को एक झटके में अनाथ में कर दिया था, देवराज ने।
वेद का मोबाइल एक बार फिर बजा। जेलर उसे फिर से कॉल कर रहा था। इसी के साथ वेद का ध्यान टूटा और उसके चेहरे के भाव बेहद सर्द हो गए थे।
“देवराज ठाकुर, खुशकिस्मत हो, जो जेल में हो और बच गए। वरना तुम्हारा भी वही हश्र तुम्हारा होता, जो तुम्हारे परिवार हुआ था।” वेद ने कोल्ड टोन में कहा।
वेद सिंह चौहान कोई आम शख्शियत नहीं था, वो उदयपुर की रॉयल फैमिली से बिलॉन्ग करता था। इतनी आसानी से वेद उन लोगों को कैसे जाने दे सकता था, जिसने उसके हंसते खेलते घर को बर्बाद कर दिया था।
“एक आखिरी बार, तुम्हे आखिरी सांस लेते देखकर शायद मेरे दिल को सुकून मिले। आज तुम्हारे अंत के साथ तुम्हारे खानदान का नामों निशान इस दुनिया से मिट जाएगा। अगर तुमने खुद को बचाने के लिए पुलिस का सहारा ना लिया होता, मैं तुम्हें तुम्हारे गुनाहों की सजा जरूर देता।” वेद ने गहरी सांस लेकर कहा।
वेद ने अपना मोबाइल उठाया और नीचे जाने लगा।
उसके चेहरे का औरा इस वक्त काफी ख़तरनाक लग रहा था। दिखने में बिल्कुल फ़िट एंड फ़ाइन, लगभग छह फीट हाइट, मस्कुलर बॉडी, शार्प फ़ेशियल फ़ीचर्स, चेहरे पर हल्की दाढ़ी, हल्का गोरा रंग। वह दिखने में लगभग 30 साल के आसपास लगता था। उसकी फ़िटनेस भले ही उसकी उम्र को छुपा देती थी, लेकिन वेद उम्र में लगभग 37 साल का था। उसने ब्लैक ब्रैंडेड सूट पहना था। उसने हाथ में एंटीक एक्सपेंसिव वॉच थी।
वेद नीचे जा रहा था, तभी उसके क़दम रुक गए। उसके कानों में उसकी छोटी बहन नव्यांशी की आवाज़ पड़ी, जो उनके घर के बड़े से हॉल में, उसके छोटे भाई वंश की पत्नी आराध्या की तरफ़ बढ़ रही थी।
“आप बेवजह इतनी मेहनत कर रही हो, आराध्या भाभी! आप जानती है, वो अपना बर्थडे सेलिब्रेट नहीं करते है।” नव्यांशी ने सख़्त और भारी आवाज़ में कहा।
इसी के साथ केक तैयार कर रही आराध्या के हाथ रुक गए। उसने पलट कर उसकी तरफ़ देखते हुए कहा, “नवी, तुम बात करके देखो ना भाई से, वो किसी की बात भी टाल सकते हैं, पर तुम्हारी बात कभी नहीं टालते हैं। ऐसे कब तक वो अपने छोटे भाई-बहनों की खुशी के लिए खुद को नज़रअंदाज़ करते रहेंगे?”
आराध्या की बात सुनकर नव्यांशी ने हाँ में सिर हिलाया। उसने केक उठाया और आराध्या को अपने पीछे आने का इशारा किया। उन दोनों के क़दम बाहर की तरफ़ बढ़ रहे थे। उनके बाहर निकलते ही, दो लड़के भी उनके साथ हो गए। वो दोनों वेद के छोटे भाई वंश और अक्षत थे।
“आज तो हम बड़े भैया को मना ही लेंगे।” उनमें से एक लड़का खुश होकर बोला। वो अक्षत था, वेद का सबसे छोटा भाई, जो 23 साल का था।
उसके साथ चल रहे लड़के के भाव सख़्त थे। वे सब वेद से बात करने जा रहे थे। उनका मक़सद एक ही था—अपने बड़े भाई वेद सिंह चौहान को उनका बर्थडे सेलिब्रेट करने के लिए मनाना।
अचानक उनके क़दम वहीं पर रुक गए, क्योंकि सामने वेद हाथ बाँधकर, सख़्त अंदाज़ में खड़ा था। उसे देखते ही उनके मुँह से टूटा-फूटा एक शब्द तक नहीं निकल रहा था।
नव्यांशी ने अपने हाथ में पकड़ा केक जल्दी से पीछे कर लिया। उनके इरादों को जानते हुए भी वेद ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया और तेज क़दमों से चलकर जाने लगा।
उसके बाहर क़दम रखते ही, वेद के सबसे छोटे भाई अक्षत ने कहा, “पीछे से हम लोग इतनी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन उनके सामने आते ही पता नहीं क्या हो जाता है कि एक शब्द भी नहीं निकलता।”
“हां सोचा था, आज भाई को मना लेंगे, पर हम तो अपने दिल की बात तक नहीं रख पाए।” वंश की पत्नी आराध्या ने बुझे स्वर में कहा।
“यह बड़े भैया इतने सख़्त बनकर क्यों रहते हैं?” अक्षत ने मुंह बनाकर कहा।
अक्षत की बात सुनकर वंश ने सिर हिलाकर कहा, “क्योंकि एक ढाल हमेशा सख़्त होती है। वेद सिंह चौहान इस चौहान फैमिली की ढाल है, जो हमें हर ख़तरों से बचा रही है। हम भले ही उनके सामने एक शब्द ना कह पाए, पर मत भूलो हमारे बिना कुछ कहे ही वो हम सबकी बात समझ जाते है।”
हाँ, वेद सिंह चौहान उन सब की ढाल था, जिसने अपने भाई-बहनों की खुशियों के आगे खुद की भी परवाह नहीं की। यही वजह थी कि वेद 37 साल का हो गया था, फिर भी अब तक अनमैरिड था, जबकि उसके छोटे भाई वंश की शादी हो चुकी थी, नव्यांशी अभी बिजनेस में इंटरेस्ट ले रही थी, तो उसने इस बारे में सोचा नहीं था, जबकि अक्षत की स्ट्डीज चल रही थी।
वेद उनके लिए उनका मां और पिता दोनों था। उनकी वो इज़्ज़त भी करते थे और बहुत ज्यादा प्यार भी। वही था, जिसने अपने भाई बहनों को हर खतरे से बचाया। वरना जिस तरह से उनके पेरेंट्स की मौत हुई थी, उससे साफ था कि खतरा तो उन पर भी आया था।
वो सब उसे रोकने की कोशिश तक नहीं कर पाए, तो वही वेद तेज कदमों से चलते हुए बाहर जा रहा था। जैसे ही वेद बाहर निकला, एक 30 साल का आदमी उसके पीछे पीछे चलने लगा।
“हॉस्पिटल जाना है प्रथम..।” वेद ने सीधे चलते हुए कहा।
वो प्रथम शेखावत था, वेद का ममेरा छोटा भाई और पर्सनल सिक्योरटी मैनेजर। प्रथम उसके साथ ही रहता था।
अगले ही पल वो दोनों एक लग्ज़रियस ब्लैक मर्सिडीज़ में थे। उसके आगे-पीछे गार्ड्स की एक-एक छोटी गाड़ी भी चल रही थी।
लगभग 1 घंटे में वेद हॉस्पिटल पहुँच चुका था। वेद सिंह चौहान कोई आम शख़्सियत नहीं था; उसके रुतबे से हर कोई वाकिफ़ था। जैसे-जैसे वेद अस्पताल के अंदर आगे बढ़ रहा था, आसपास के लोग साइड हटने लगे। वेद सीधा देवराज ठाकुर के कमरे में पहुँचा और सबको इशारे से बाहर जाने को कहा। हां, बस प्रथम उसके साथ था।
देवराज ने वेद की तरफ़ देखा और अपने हाथ जोड़ने की कोशिश करने लगा, तभी वेद ने उसे ठंडी आवाज़ में कहा, “अब माफ़ी माँगने या हाथ जोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है। कुछ गुनाहों की कोई सज़ा नहीं होती है।”
“मैं मजबूर था।” देवराज ठाकुर ने धीमी आवाज़ में कहा। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
वेद ने उसकी बात पर सिर हिलाकर, अपनी इंटेंस आवाज़ में कहा, “तुम मजबूर नहीं, धोखेबाज थे। तुम्हारे धोखे की सजा तुम्हारी फैमिली ने चुकाई। तुम अपने परिवार के आखिरी इंसान रहे हो, और आज तुम्हारी मौत के साथ मेरे मां पापा की आत्मा को सुकून मिलेगा।” वेद की नज़रें इस वक्त बेहद सर्द थी।
“मैंने नहीं मारा।” अचानक देवराज बोला, “मैं बस कठपुतली था।”
उसका कहा एक एक शब्द वेद के गुस्से में इजाफा कर रहा था। उसने अपनी दांत पीसते हुए कहा, “तो जिन्होंने भी तुम्हारी डोर खींची थी, मैं उन्हें भी ढूंढ लूंगा, और ट्रस्ट मी तुम्हारे परिवार की तरह उन्हें भी खत्म कर दूंगा।”
देवराज बिल्कुल शांत था। वेद ने गहरी सांस लेकर अपने गुस्से को काबू करके पूछा, “नाम नहीं बताओगे?”
देवराज की नज़रें नीची हो गई थीं।
“जब कुछ बताना ही नहीं था, तो यहाँ क्यों बुलाया? तुम्हारे पास फालतू समय होगा, लेकिन वेद सिंह चौहान के वक़्त की बहुत क़ीमत है।” वेद ने सख्ती से कहा और फिर वहाँ से जाने लगा तभी देवराज ने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की।
“मुझे माफ कर दो।” देवराज ने रोते हुए, कमज़ोर शब्दों में कहा।
वेद के क़दम वहीं पर रुक गए। वह उसकी तरफ़ पलटा और बोला, “कभी नहीं।”
देवराज की आंखों में पछतावा जरूर था, पर साथ ही चेहरे पर एक सुकून भी। उसने आगे वेद को रोकने की कोशिश नहीं की। देवराज जैसा इंसान सिर्फ माफी मांगने के लिए वेद को नहीं बुलाने वाला था।
जैसे ही वेद कमरे से बाहर गया, देवराज ने मन ही मन कहा, “इसे लगता है इसने मेरे पूरे खानदान को खत्म कर दिया, इसका मतलब ये आज तक उससे अनजान है। मेरे गुनाहों की सज़ा मेरे परिवार को मिली, लेकिन शुक्र है, जो वो मासूम बच गए। वेद सिंह चौहान को उनके बारे में पता नहीं है, इसका मतलब साफ है, उन्होंने अपना वादा निभाया। वह आज भी मेरे बच्चों की रक्षा कर रहे हैं।”
देवराज अब सुकून से मर सकता था। वेद की नजरों में उसका खानदान भले ही खत्म हो गया हो लेकिन आज भी कोई जिंदा था, जिससे वह बहुत प्यार करता था और बचाना भी चाहता था। मरने से पहले देवराज यह सुनिश्चित करना चाहता था कि वेद को उनके बारे में पता है या नहीं। बस यही सोचकर उसने उसे यहां बुलाया था।
देवराज आंखें बंद करके अपनी मौत का इंतजार करने लगा। वह जानता था कि अब उसके पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है।
“ईश्वर तुम्हें दुनिया की सारी खुशियां दे। और तुम पर कभी वेद सिंह चौहान की नजर ना पड़े मेरी बच्ची।” देवराज ने मन ही मन प्रार्थना की। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी।
वही वेद ने जैसे ही कमरे से बाहर कदम रखा, एक कांस्टेबल उसके पास आया। उसने एक शादी का कार्ड और लेटर देते हुए कहा, “सुबह ही कोई यह शादी का कार्ड देकर गया था। उसके साथ में यह लेटर भी है।”
“और यह तुम मुझे क्यों दे रहे हो? ” वेद में बिना किसी भाव के पूछा।
देवराज पर नजर रखने के लिए वेद ने उस कांस्टेबल को लगा रखा था। उसे पहले ही शक था कि देवराज अकेले यह साजिश नहीं कर सकता था, पर इतने सालों में देवराज से मिलने कोई नहीं आया था।
“क्योंकि आपका बदला अभी अधूरा है। मैंने यह लेटर पढ़ा था। जानते हैं यह किसकी शादी का कार्ड है? देवराज ठाकुर की पोती शिवांशा ठाकुर का। आपको लगता है कि आपने उसके पूरे परिवार को खत्म कर दिया जबकि अभी भी यह लड़की जिंदा है।” कांस्टेबल ने वेद को सब कुछ बताया।
सारी बात जानकर वेद की आंखें सर्द होने लगी और वह समझ गया था कि देवराज ने उसे यहां क्यों बुलाया होगा। वेद ने कांस्टेबल को वहीं पर छोड़ा और जल्दी से वापस कमरे के अंदर गया। उसे फिर से अपने सामने देखकर देवराज के चेहरे पर घबराहट के भाव थे।
“शिवांशा ठाकुर? यही नाम है ना उसका? डॉक्टर ने कहा कि तुम मरने वाले हो तो खुद को 24 घंटे रोक कर रखना, क्योंकि तुम्हारे मरने से पहले तुम्हारे खानदान के आखिरी अंश को भी खत्म करना बाकी है। कहा था ना, तुम्हारे घरवालों के अंतिम दर्शन तक नहीं नसीब नहीं होने दूंगा। ” वेद ने दांत पीसते हुए कहा और फिर वहां से चला गया।
वही देवराज की आंखें डर से पथराने लगी थी। वेद को बुलाकर ये जानने की कोशिश करना कि वह शिवांशा के बारे में जानता है या नहीं, देवराज की जिंदगी की दूसरी बड़ी गलती साबित होने वाली थी।
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वेद सिंह चौहान, जो उदयपुर की रॉयल फैमिली का मुखिया था, उसे एक सुबह जेलर का कॉल आया। उसके माता-पिता का कातिल, देवराज ठाकुर, अपनी आखिरी साँसें गिन रहा था। उसने वेद को मिलने के लिए बुलाया था। वेद मिलने भी गया। अपने माता-पिता को मारने वाले शख्स के खानदान के हर व्यक्ति को उसने खत्म कर दिया था; बस बचा था देवराज। वेद उसे भी मरते हुए देखना चाहता था।
देवराज भी कोई सीधा-सादा इंसान नहीं था। उसने वेद को इसलिए बुलाया था ताकि बातों-ही-बातों में पता कर सके कि वेद उसकी पोती के बारे में जानता है या नहीं। वेद को यही लगता था कि उसने देवराज के पूरे परिवार को खत्म कर दिया है। ये देखकर देवराज ने राहत की साँस ली; वह आसानी से मर सकता था।
देवराज की खुशी चंद पलों की थी क्योंकि जब वेद बाहर आया, तो एक कांस्टेबल ने शादी का कार्ड दिया, जिसके साथ एक लेटर भी था। लेटर पढ़ने पर पता चला कि वह किसी और ने नहीं, बल्कि देवराज की पोती ने लिखा था। वेद वापस देवराज के पास गया और उसने उसकी पोती, शिवांशा को 24 घंटे में खत्म करने की धमकी दी।
देवराज उसे रोकना चाहता था, पर रोक नहीं पाया। वहीं बाहर आकर, वेद ने प्रथम से सख्त आवाज़ में कहा, “वेडिंग कार्ड को अच्छे से पढ़ो और पता लगाओ कि शादी कहाँ हो रही है। यह शादी नहीं होनी चाहिए; उस घर से डोली नहीं, लड़की की अर्थी उठनी चाहिए।”
“बिल्कुल यही होगा भाई। उन्होंने जो बुआ और फूफा जी सा के साथ किया, उसका सूद समेत बदला लेना बनता है। और जब तक वह लड़की ज़िंदा है, हमारा बदला अधूरा है।” प्रथम ने भी दाँत पीसते हुए कहा।
सिर्फ़ प्रथम ही नहीं, पूरी चौहान फैमिली यही चाहती थी कि देवराज के परिवार के साथ यही हश्र हो। उसके माता पिता शोभा चौहान और भरत सिंह चौहान, काफ़ी नेकदिल इंसान थे; वे ऐसी मौत मरने के लायक नहीं थे।
जब भी वेद उनके बारे में सोचता, उसका गुस्सा उसके काबू के बाहर हो जाता। वेद मन ही मन बड़बड़ाते हुए बोला, “काश उस वक़्त मैं तुम्हारे असली चेहरे को पहचान पाता! इतनी समझ होती, जो तुम जैसे घटिया इंसान को समझ पाता, तो कभी तुम्हें अपनी माँ-पापा के करीब भी नहीं जाने देता, देवराज ठाकुर।”
वेद के क़दम अपनी गाड़ी की तरफ़ बढ़ रहे थे; उसके पीछे-पीछे प्रथम भी चल रहा था। गाड़ी में बैठने के अगले पाँच मिनट में प्रथम ने पूरा कार्ड पढ़ लिया था।
प्रथम ने कार्ड पढ़ने के बाद वेद की तरफ़ देखकर शांत लहजे में कहा, “इस लड़की की शादी देवेश राजावत के छोटे बेटे से हो रही है। उसके दोनों बेटे दिल्ली में रहते हैं; बस शादी के लिए यहाँ आए हुए हैं।”
“ठीक है, फिर वहीं चलते हैं। राजावत फैमिली से दुश्मनी निभाने का एक और मौक़ा मिल जाएगा।” वेद ने जवाब में कहा।
“हाँ, वेन्यू उनके पुरानी हवेली में रखा गया है, तो जाने में भी टाइम लग जाएगा। उम्मीद है शादी होने से पहले तो हम पहुँच ही जाएँगे।” प्रथम ने जवाब दिया।
वहीं दूसरी तरफ़, राजावत फैमिली में एक तरफ़ जहां शादी की खुशियों का माहौल चल रहा था, तो वहीं दूसरी तरफ़ एक बंद कमरे में काफ़ी गहमागहमी का माहौल था। अपने बड़े भाई, तेजेंद्र राजावत, की सारी बात मानने वाला देवेश राजावत इस वक़्त उनसे बहस कर रहा था। साथ ही कमरे में तेजेंद्र का बेटा, अंकुश, भी था।
थोड़ी देर पहले ही अंकुश ने उन्हें देवराज के मरने की ख़बर सुनाई थी। उसे सुनने के बाद तेजेंद्र ने तेज आवाज़ में कहा, “अब हमें उसे लड़की को और झेलने की ज़रूरत नहीं है। हमारा वादा उसके दादा के ज़िंदा रहने तक ही था। गलती से भी अगर वेद सिंह चौहान को पता चल गया कि इस लड़की को हमने पनाह दे रखा है, तो वह हमसे भी अपनी दुश्मनी निकालने पर उतर आएगा। इसका बिज़नेस पर क्या असर हो सकता है, तुम समझ सकते हो।”
देवेश इस बात से सहमत नहीं था। वो गिड़गिड़ाते हुए बोला, “किसी को पता नहीं चलेगा। वैसे भी शिवांशा हमेशा से अरमान और मनन के साथ दिल्ली में रहती आई है; सबको यही लगेगा कि वह मनन की पत्नी है। प्लीज़ ऐसा मत कीजिए भाई साहब।”
अंकुश भी अपने पिता तेजेंद्र की बात से सहमत था। उसने कहा, “चाचू, मैं आपके इमोशन्स समझ सकता हूँ, लेकिन सच में वह लड़की यूज़लेस है। वैसे भी वेद और हमारे बीच पहले से कम राइवलरी नहीं है, और आप उसे एक और बड़ा मौक़ा देना चाहते हैं। मुझे उससे दुश्मनी निभाने में कोई डर नहीं है; मैं हर तरीके से उसे टक्कर देने के लिए तैयार हूँ, आज से नहीं, हमेशा से ही। पर यह मामला थोड़ा हटके है; बात उसके माँ-बाप के क़त्ल की है।”
“और हाँ, हम बीच में बेवजह नहीं पिसना चाहते हैं। हम तो बस उस राज का थोड़ा-सा भागीदार थे; फिर हम क्यों सज़ा भुगतें?” तेजेंद्र ने पल्ला झाड़ते हुए कहा।
अंकुश और तेजेंद्र शिवांशा को खत्म करने पर तुले हुए थे, लेकिन देवेश इसके सख्त ख़िलाफ़ था। उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा, “मैंने कभी आपके किसी भी बात के लिए इंकार नहीं किया है। अपने परिवार से अलग आपके साथ रहता हूँ, पर प्लीज़, यह शादी मत रुकवाइए। इस मोमेंट पर शादी रुकने से बहुत बदनामी होगी; ऊपर से मैं मनन को क्या जवाब दूँगा?”
“आपको मनन को एक्सप्लेन करने की ज़रूरत ही क्या है? वैसे भी वह पागल…” अंकुश गुस्से में बोल रहा था।
उसकी बात पूरी होने से पहले ही देवेश ने उसे काटते हुए कहा, “वह पागल नहीं है; ठीक हो रहा है। हाँ, समय के साथ उसका दिमाग इतना विकसित नहीं हुआ है, लेकिन शिवांशा के साथ रहता है तो उसका गुस्सा भी काबू में रहता है। वह उसे बहुत प्यार करता है। प्लीज़, मेरे बेटे के लिए उसे जाने दीजिए; मैं उसका ध्यान रखूँगा; पहले भी उसकी ज़िम्मेदारी अरमान संभाल रहा था।”
“तुम हमें कितने भी बहाने बनाने की कोशिश क्यों ना करो, देवेश, इस लड़की के चक्कर में हम खुद को मुसीबत में नहीं डाल सकते। अंकुश, ऐसा करो कि तुम अपने आदमियों को लेकर जाओ और शादी होने से पहले ही उस लड़की को खत्म कर दो। हम मेहमानों को कह देंगे कि लड़की शादी से पहले किसी और के साथ भाग गई; वैसे भी लोगों को आसानी से यकीन हो जाएगा कि कौन एक पागल लड़के के साथ शादी करके अपनी ज़िंदगी बर्बाद करना चाहेगी।” तेजेंद्र ने अपनी मनमानी करते हुए अंकुश को ऑर्डर दे दिए थे।
देवेश अंकुश को रोकना चाहता था, लेकिन उसने उसे अनसुना किया और एक ईविल स्माइल के साथ कमरे से बाहर निकल गया। वह तो कब से शिवांशा को रास्ते से हटाना चाहता था, पर देवेश के चलते वह कुछ नहीं कर पा रहा था।
जैसे ही अंकुश ने दरवाज़ा खोला, देवेश उसके पीछे आ गया; वहीं दरवाज़े के बाहर खड़े मनन ने उनकी सारी बातें सुन ली थीं। मनन लगभग 25 साल का था और उसी की शादी शिवांशा के साथ होने वाली थी। उसका दिमाग अपनी उम्र के मुताबिक़ विकसित नहीं हुआ था, लेकिन हाँ, कमरे में जो बातें चल रही थीं, वह उन्हें अच्छे से समझ सकता था।
“व… वो… वो मेरी शिवि को मारना चाहते हैं। नहीं, मेरी शिवि को कुछ नहीं हो सकता; मनन उसे बचाएगा। गंदे लोग! मेरी शिवि को मारना चाहते हैं।” मनन ने अपना चश्मा ऊपर करते हुए नाक सिकोड़कर कहा।
वह जल्दी से ऊपर शिवांशा के कमरे में जाने लगा। मनन को सख्त हिदायत मिली थी कि शादी से पहले वह शिवांशा से ना मिले, लेकिन जब वह उसके कमरे की तरफ़ बढ़ने लगा, तो अंकुश की पत्नी, गीतिका, बीच में आ गई।
गीतिका ने अंकुश को देखकर हल्का हँसते हुए कहा, “लगता है आप बड़े हो रहे हो देवर जी, लेकिन थोड़ा इंतज़ार कर लीजिए; आज रात शादी के बाद वह आपकी ही होने वाली है।”
“लेकिन मुझे मेरी शिवि से मिलना है, और आप मुझे नहीं रोक सकतीं। आप गंदी हो; सब गंदे हैं।” मनन ने बच्चों की तरह कहा।
गीतिका मनन को रोकना चाहती थी; अगर वह उसे जाने देती, तो रिश्तेदारों के नाम पर उसी की दो बातें सुनाई जातीं। इसलिए गीतिका ने मनन का हाथ पकड़ लिया। मनन ने अपना हाथ छुड़ाने के चक्कर में गीतिका को धक्का दे दिया, जिससे उसका हाथ बरामदे की रेलिंग पर लग गया।
गीतिका ने गुस्से में चिल्लाकर कहा, “पागल हो तुम? मैं भी तुम्हें कह रही हूँ, पागल ही हो तुम! और वह लड़की बेवकूफ़, जो तुमसे शादी कर रही है! एक बार समझ नहीं आता क्या? उस कमरे में नहीं जाना चाहिए! खैर, तुम पागल हो, लेकिन…”
गीतिका अपने गुस्से में मनन को भला-बुरा सुना रही थी, लेकिन अचानक बोलते हुए उसके शब्द गले में अटक गए। बोलते हुए उसकी नज़र मनन के बड़े भाई, अरमान राजावत पर गई, जो उसे ख़ौफ़ से भरी निगाहों से घूर रहा था।
“वह मैं कब से इन्हें समझाने की कोशिश कर रही हूँ कि शिवांशा के कमरे में नहीं जाना है, लेकिन देखिए ना, बच्चों की तरह जिद कर रहे हैं! फिर आप मम्मी जी को जानते हैं; वह मुझ पर गुस्सा करेगी।” गीतिका ने अपनी सफ़ाई देने की कोशिश की।
अरमान मनन के पास आया और उसके कपड़े सही करते हुए बोला, “गो हेल विद योर फैमिली! आगे से मेरे भाई को पागल कहने की हिम्मत मत करना, वरना पता चल जाएगा कौन पागल है, कौन सही।” इतना कहकर अरमान ने मनन का हाथ पकड़ा और उसे प्यार से कहा, “मेरे कमरे में चलो, बात करते हैं।”
“लेकिन अरमान, वह गंदे लोग… मेरी शिवि…” मनन उसे सब कुछ बताने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अरमान गुस्से में उसकी तरफ़ देखते हुए बस सिर हिलाया, तो मनन बिल्कुल चुप हो गया।
अरमान मनन से उम्र में लगभग चार साल बड़ा था। सिर्फ़ अरमान ही था जिससे मनन थोड़ा डरता था; दूसरी शिवांशा, जो मनन को प्यार से हैंडल कर सकती थी। प्यार तो अरमान भी बहुत करता था अपने भाई से; यही वजह थी कि अपनी फैमिली से दूर वह मनन और शिवांशा से अलग दिल्ली में अपना अलग बिज़नेस करता था। उसे राजावत फैमिली से सख्त चिढ़ थी।
उनसे अलग अपने कमरे में आते ही अरमान ने मनन को देखकर उसकी आँखों में देखते हुए इंटेंस वॉइस में कहा, “क्या हुआ मनन? इतना एग्रेसिव क्यों हो रहे हो?” वह अच्छे से जानता था कि मनन का यह गुस्सा बेवजह नहीं है।
“वह… वह अरमान, मैंने उनकी बातें सुनी थीं। उन्होंने कहा कि वह शिवि को मार देंगे क्योंकि उसके दादाजी की मौत हो गई है। वह मेरी शिवि को आज मारने वाले हैं; शादी नहीं होगी; शिवि की मौत होगी! बचा लो उसे।” मनन ने रोते हुए बताया।
मनन का दिमाग बच्चों की तरह था, पर ऐसा नहीं था कि अरमान ने उस पर यकीन नहीं किया; वह अपनी फैमिली को अच्छे से जानता था।
“तुम चिंता मत करो; आज रात शादी होगी और तुम्हारी शिवि को कुछ नहीं होगा; यह वादा है मेरा। एक प्रॉमिस तुम भी करोगे; किसी से कुछ नहीं कहोगे।” अरमान ने कहा और अपना हाथ आगे कर दिया। अगर वह मनन से यह प्रॉमिस नहीं लेता और इस बारे में उसके घरवालों को भनक भी होती, तो वे उसे भी नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते।
मनन ने अपना हाथ अरमान के हाथ पर रखा और कहा, “पक्का प्रॉमिस।”
इसी के साथ अरमान के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ गई। उसका सख्त दिखने वाला चेहरा इस हल्की-सी मुस्कान के साथ खिल उठा था।
मनन को वहीं पर छोड़कर अरमान कमरे से बाहर निकला। वह बात करने के लिए सीधे देवेश के पास जा रहा था; तो इस बीच अंकुश शिवांशा के कमरे में पहुँचा।
शिवांशा इस वक़्त अपने रूम में अकेली थी। मेकअप आर्टिस्ट बस उसे तैयार करके ही गई। डार्क मैरून लहंगे के साथ हैवी ज्वेलरी पहने शिवांशा इस वक्त बिल्कुल किसी राजकुमारी की तरह सजी थी। वो लगभग 21 साल की थी। गोरा रंग, खूबसूरत छोटी आँखें, उभरे हुए बराबर होंठ और उस पर उसकी मासूमियत देखते ही बनती थी।
शिवांशा ने एक नजर खुद को आईने में देखा। उसके चेहरे पर इस शादी की कोई खुशी नहीं थी। हां, अहसानों के बोझ तले दबी शिवांशा को एक मौका मिला था, राजावत फैमिली के एहसान चुकाने का, तो वो मना नहीं कर पाई। वैसे भी उसकी जिंदगी राजावत फैमिली के बदौलत ही थी।
अचानक कमरे में अंधेरा हो गया, तो शिवांशा ने घबराकर पीछे की तरफ़ देखा; उसे किसी के आने की आहट महसूस हुई।
“क… कौन है? गीतिका भाभी, आप आई हैं क्या?” शिवांशा ने घबराहट के साथ पूछा।
अचानक किसी ने उसके मुँह पर हाथ रखा। वह अंकुश था। उसने शिवांशा को शांत करने के लिए अपना एक हाथ उसके मुंह पर रखा, तो दूसरे हाथ से उसने उसे बुरी तरह दबोच कर खुद के करीब कर लिया। शिवांशा तो मानों वही जड़ हो गई हो।
शिवांशा कुछ समझ पाती, उससे पहले वह उसे दबोचते हुए वहाँ से कमरे के दूसरे दरवाज़े से ले जाने लगा। हवेली वैसे भी पुराने जमाने के हिसाब से बनी हुई थी, जिसमें एक कमरे में एक से ज़्यादा दरवाज़े थे।
“क्या लगा था बेबी गर्ल, बचने का मौका मिल जाएगा। शादी तो आज रात तुम्हारी नहीं होगी, लेकिन वादा करता हूँ, बिना सुहागरात मनाए नहीं मरने दूँगा।” अंकुश ने शिवांशा के कान में धीरे से कहा। यह सुनकर उसकी आँखें डर के मारे फैल गई थीं।
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फिलहाल के लिए इतना ही, उम्मीद है आप कहानी के साथ कनेक्ट कर पा रहे हो। बाकी मैने इसे बहुत दिल से लिखा है। पढ़कर समीक्षा जरूर कीजियेगा।
देवराज ठाकुर की पोती, शिवांशा ठाकुर की शादी राजावत परिवार के सबसे छोटे बेटे, मनन के साथ हो रही थी। मनन पच्चीस साल का होकर भी अपनी उम्र के हिसाब से मैच्योर नहीं था और बच्चों जैसा व्यवहार करता था। राजावत परिवार की मजबूरी थी कि जब तक देवराज जीवित था, तब तक उन्हें शिवांशा को चौहान फैमिली से प्रोटेक्ट करना था। जैसे ही उन्हें देवराज के मिलने की खबर मिली, राजावत परिवार के मुखिया, तेजेंद्र ने यह फैसला लिया कि शिवांशा को मार दिया जाए।
हालांकि, मनन के डैड, मिस्टर देवेश राजावत, इसके खिलाफ थे, लेकिन तेजेंद्र ने उनकी एक नहीं सुनी। उन्होंने अपने बेटे, अंकुश को शिवांशा को मारने के लिए भेज दिया था।
कुछ ही देर में शादी की रस्में शुरू होने वाली थीं। शिवांशा अपने कमरे में तैयार हो चुकी थी। अचानक, उसके कमरे की लाइट बंद हुई। अंकुश कमरे के अंदर आया और उसने शिवांशा का मुँह दबाकर पकड़ लिया। शिवांशा दिखने में बहुत खूबसूरत थी। अंकुश जैसे शख्स को जो चाहिए था, उसका मौका उसे आसानी से मिल गया था।
“तुम्हारा दादा मर गया है। अब तक वेद सिंह चौहान तुमसे अनजान है। पापा नहीं चाहते तुम्हारे चक्कर में हम मुसीबत में आए; वेद को सच पता चलने से पहले तुम्हारा मरना ही ठीक रहेगा। वैसे भी, उसने तुम्हें ढूँढ लिया तो वह भी तुम्हारी जान ही लेगा।” अंकुश ने शिवांशा के कान के पास आकर धीमी आवाज़ में कहा।
देवराज के मरने की खबर सुनकर शिवांशा को झटका लगा। उसकी आँखों से आँसू बह निकले। वैसे भी, परिवार के नाम पर उसका कोई नहीं था।
“प्ल...प्लीज़ मुझे जाने दो।” शिवांशा ने अटकती हुई आवाज़ में कहा।
“अभी नहीं, अभी तो तुम्हें बहुत कुछ करना है। यू नो व्हाट, तुम बड़ी होकर ओर भी खूबसूरत हो गई हो बेबी गर्ल.. मुझे छोड़ कर क्यों गई? हमारी फैमिली ने तुम्हारे लिए बहुत कुछ किए है; मरने से पहले उसका एहसान नहीं चुकाओगी।” अंकुश ने शिवांशा को पकड़ा और उसे पीछे के दरवाजे से खींचते हुए ले जाने लगा।
शादी का माहौल होने की वजह से हवेली में रौनक थी, लेकिन अंकुश ने पहले ही उस साइड की लाइट बंद करवा दी थी। उसके लिए यह सब करना कोई मुश्किल काम नहीं था। सबकी नज़रों से छुपाकर वह शिवांशा को ले जाने लगा। उसने शिवांशा को गाड़ी के अंदर धकेला और ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया।
“मैं... मैं किसी को कुछ नहीं कहूँगी। आप लोग नहीं चाहते कि मैं मनन से शादी करूँ तो मैं चली जाऊँगी, पर प्लीज़ मुझे जाने दीजिए।” शिवांशा ने रोते हुए हाथ जोड़कर कहा।
अंकुश पर उसका कोई असर नहीं हुआ। उसे तो बस अपनी दिल की ख्वाहिश पूरी करने की लगी थी। वह ड्राइव करते हुए शिवांशा को जंगलों की तरफ़ ले जा रहा था। इस वक्त उसके चेहरे पर एक इविल स्माइल थी।
“पता है, तुम इस तरह रोती-गिड़गिड़ाती हुई बहुत अच्छी लग रही हो। लेकिन इन सब का कोई फायदा नहीं है। आज रात तुम मुझसे नहीं बच सकती, और ना ही अपनी मौत से...” अंकुश ने सख्त आवाज़ में कहा।
ऐसा नहीं था कि शिवांशा राजावत परिवार के मर्दों से अनजान थी, खासकर अंकुश के इरादों से। यही वजह थी कि अरमान उसे और मनन को लेकर दिल्ली गया था। इस वक्त शिवांशा बहुत लाचार महसूस कर रही थी। वो गाड़ी में बैठकर आँसू बहा रही थी।
शिवांशा अपनी किस्मत को कोस रही थी। वह लगभग 9 साल की थी, जब पहली बार राजावत परिवार में आई थी; डरी-सहमी सी। उसे तब भी अंकुश से बहुत डर लगता था। जब भी वह अकेली होती, अंकुश उसे अजीब तरीके से छूने की कोशिश करता; उसे बहुत बुरा लगता था, लेकिन उसकी सुनने वाला कोई नहीं था। एक बार अरमान ने अंकुश को ऐसा करते हुए देख लिया था, बस तभी किसी तरह से वो शिवांशा को उससे बचा रहा था।
“अरमान भाई कहाँ हो आप? आप ही मुझे इससे बचा सकते हो।” शिवांशा ने सहमी हुई आवाज़ में बड़बड़ाकर कहा।
वहीं दूसरी तरफ़, मनन के आगाह करने के बाद अरमान जल्दी से शिवांशा के कमरे की तरफ़ जाने लगा। उसे एक बार फिर अंकुश की पत्नी, गीतिका ने रोक लिया था।
“अरमान भैया, मैं आप ही को ढूँढ रही थी।” गीतिका उसके पास आते हुए बोली, “शिवांशा तैयार हो चुकी है, और मनन भैया अभी भी ऐसे ही घूम रहे हैं। कुछ ही देर में शादी की रस्में शुरू होने वाली हैं; वह आपके अलावा किसी की नहीं सुनते। प्लीज़, आप उन्हें तैयार होने के लिए बोल दीजिए।”
“ठीक है, बोल दूँगा, लेकिन पहले मुझे शिवांशा से बात करनी है।” अरमान ने सपाट लहजे में कहा।
“शिवांशा आराम कर रही होगी; थोड़ी देर पहले ही मेकअप आर्टिस्ट उसे तैयार करके गई है। इतनी रस्मो में थक जाएगी।” गीतिका ने जवाब दिया।
“मैं उससे बात करने जा रहा हूं, ना कि कोई मुश्किल काम देने, जो उसके आराम में खलल पड़ेगा। एंड प्लीज़, आगे से मेरा रास्ता मत रोकिएगा।” अरमान काफी बेरुखी से बोला और उसके रोकने के बावजूद शिवांशा के कमरे की तरफ़ बढ़ने लगा। वह मनन की बातों को ऐसे ही टाल नहीं सकता था।
वहीं अरमान के बदतमीज़ी से बात करने पर गीतिका ने पैर पटकते हुए कहा, “ये दोनों भाई खुद को क्या समझते हैं जो मुझसे इस तरह बदतमीज़ी से बात कर रहे हैं? मैं अभी अंकुश को सब बताती हूँ। वैसे, अंकुश कहाँ है? काफी देर से दिखाई नहीं दे रहे।”
गीतिका अंकुश को शिकायत करने के लिए चली गई, तो वहीं अरमान शिवांशा के कमरे में पहुँचा। कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद था, लेकिन अरमान दूसरे दरवाजे से अंदर चला गया। उसने लाइट ऑन करके देखा तो कमरे का सामान थोड़ा अस्त-व्यस्त था, और शिवांशा वहाँ पर नहीं थी। अरमान को समझने में देर नहीं लगी कि वहाँ क्या हुआ होगा।
गुस्से में अरमान की मुट्ठी बंध गई थी। उसने दाँत पीसते हुए कहा, “आई स्वेयर, अंकुश राजावत, अगर तुमने इस बार शिवांशा के साथ कुछ भी गलत किया, तो मैं अपने हाथों से तुम्हारी जान ले लूँगा। घटिया आदमी!”
अरमान तुरंत दौड़ते हुए बाहर पार्किंग एरिया में आया। उसने अपनी गाड़ी निकाली और अंकुश के पीछे जाने लगा। उसे अंकुश की लोकेशन का पता नहीं था, इसलिए उसने तुरंत अंकुश को कॉल किया।
वहीं, अरमान का कॉल देखकर शिवांशा का ध्यान टूटा; उसके चेहरे पर उम्मीद की किरण नज़र आ रही थी, जिसे अंकुश ने भी नोटिस कर लिया था।
अंकुश ने शिवांशा को धमकी देते हुए कहा, “अगर गलती से भी मुँह से एक शब्द भी निकाला, तो पता है ना मैं क्या कर सकता हूँ? तुम्हारी सबसे बड़ी कमज़ोरी मेरे पास है।”
शिवांशा ने रोते हुए हाँ में सिर हिलाया। अंकुश ने इस बीच अरमान का कॉल रिसीव किया।
“कहाँ हो तुम?” अरमान ने सीधे-सीधे पूछा।
“सबसे पहले तमीज़ से बात करो; मैं तुमसे उम्र में बहुत बड़ा हूँ।” अंकुश गुस्से में बोला।
“तुम जैसे लोग उम्र में कितने भी बड़े क्यों ना हो जाएँ, लेकिन हरकतें इतनी छोटी हैं कि तमीज़ से बात करने का दिल नहीं करता। मैं अभी बोल रहा हूँ, अगर शिवांशा के साथ कुछ भी ऐसा-वैसा किया, तो मैं तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा।” अरमान गुस्से में चिल्लाकर बोला।
“तो तुम्हें पता चल गया है कि वह लड़की मेरे साथ है? बहुत अच्छी बात है। मुझे इसे मारने के ऑर्डर्स मिले हैं, तो मैं उसी काम के लिए जा रहा हूँ। अगर तुम्हें इस मामले में किसी से सवाल-जवाब करने हैं, तो जाकर पापा से पूछो।” अंकुश ने बेपरवाही से जवाब दिया।
उसे किसी का डर नहीं था। अंकुश की बेशर्मी देखकर अरमान को अफ़सोस हो रहा था। वह बोला, “अच्छा, तो तुम्हें उसे मारने के ऑर्डर्स मिले हैं? मैं अच्छे से जानता हूँ कि तुम उसे किस मक़सद से लेकर जा रहे हो। अपने गंदे हाथों से उसे छूने की कोशिश भी मत करना।”
“तुम बहुत इंटेलिजेंट हो; इसी वजह से मुझे अच्छे लगते हो। जब तक तुम हमारे पास पहुँचोगे, तब तक वह ज़िंदा नहीं मिलेगी। फिर क्या फ़र्क पड़ता है, मरने से पहले उसने मुझे थोड़ा-बहुत खुश कर भी दिया? वैसे भी तुम्हारा वो पागल भाई कभी इसे पति का प्यार नहीं दे पाता। अब ये बेचारी भी कुछ एक्सपेक्ट करती होगी ना।” अंकुश ने सिर हिलाकर कहा।
उसकी बात सुनकर शिवांशा और ज़ोर से रोने लगी। उसके रोने की आवाज़ अरमान के कानों में पड़ी, तो वह बोला, “मैं आ रहा हूँ शिवांशा, प्लीज़ तुम डरो मत; तुम्हें कोई कुछ नहीं कर सकता।”
“मुझे... मुझे बहुत डर लग रहा है।” शिवांशा हिचकियाँ लेते हुए बोली।
उसकी बात सुनकर अंकुश ने उसके गाल पर हाथ रखा। शिवांशा ने अपना मुँह दूसरी तरफ़ कर दिया, तो अंकुश ने उसका मुँह कसकर दबाते हुए कहा, “अच्छा, तो मेरी लिटिल बेबी को डर लग रहा है? उसे यह क्यों लगा कि बचपन में कोई उसे बचाकर दूर ले गया, तो मेरी लिटिल बेबी मुझे बच पाएगी? तुम उस पागल से भले ही शादी कर लो, लेकिन तुम्हें छूने का हक़ सिर्फ़ मेरा है।”
“दूर रहो उससे।” अरमान ने तेज आवाज़ में कहा। वह जानबूझकर अंकुश को बातों में उलझाए हुए था।
कॉल के ज़रिए वह अंकुश की लाइव लोकेशन निकालते हुए उसके पीछे जा रहा था। अंकुश आगे कुछ नहीं बोला और उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।
वहीं, अंकुश शिवांशा को लेकर जंगल में पहुँच गया था। वहाँ पहुँचते ही उसने गाड़ी को ब्रेक लगाया। अंकुश शिवांशा को बहुत ही बुरी नज़रों से देख रहा था। उसकी नजरें ही शिवांशा को असहज करवाने के लिए काफी थी। उसने खुद को ढकते हुए अपने दोनों हाथ आगे रख लिए थे।
“इन सब का कोई फ़ायदा नहीं है, लिटिल बेबी। बचपन में तुम कितनी अच्छी थीं; हर बात मान लेती थीं। चलो, अभी भी मेरी लिटिल बेबी बन जाओ; आओ मेरी गोद में आकर बैठो, जैसे बचपन में बैठती थीं।” अंकुश ने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा।
उसकी हर एक बात शिवांशा के दिमाग में बुरी यादें ताज़ा कर रही थीं। अंकुश बचपन में जानबूझकर उसे गोद में बिठाया करता था; उसके साथ गलत हरकत करने की कोशिश करता था। जब भी वह अंकुश को देखती तो डरकर छुप जाती थी, लेकिन जब अंकुश उसे ढूँढ लेता, तो वह कुछ मिनट उसकी ज़िन्दगी के सबसे बुरे मिनट होते थे। सपनों में शिवांशा आज भी उसे देखकर डर जाती थी।
“अरमान और मनन के साथ रहते हुए बिलकुल उन्हीं की तरह ज़िद्दी हो गई हो; ऐसे नहीं मानोगी।” अंकुश ने हल्के गुस्से में कहा और फिर गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गया।
उसके बाद अंकुश ने शिवांशा की तरफ़ का दरवाज़ा खोला और फिर उसे खींचते हुए बाहर निकाला। वह उसे पीछे की सीट पर धकेल रहा था; उससे पहले ही शिवांशा ने थोड़ी हिम्मत दिखाई और वह उसे धकेलकर भागने लगी। उसका लहँगा काफी भारी था; शिवांशा को भागने में दिक्कत हो रही थी, और वह थोड़े ही दूर जाने पर नीचे गिर गई। अंकुश तब तक उसके पास पहुँच गया था; अगले ही पल वह उसके ऊपर था।
“प्लीज़, प्लीज़ मुझे जाने दो; प्लीज़, हाथ जोड़ती हूँ मैं तुम्हारे आगे।” शिवांशा काँपती हुई आवाज़ में बोली।
“अब तुम मेरी मुश्किलें बढ़ा रही हो। तुम अच्छे से जानती हो ना कि जब मुझे गुस्सा आता है तो क्या होता है? मार खानी है तुम्हें बचपन की तरह?” अंकुश उसे घूरते हुए बोला।
शिवांशा बिलकुल चुप हो गई थी। अंकुश के हाथ उसकी पीठ पर जा रहे थे। उसने शिवांशा के सिर पर लगा हुआ दुपट्टा निकालकर फेंका और फिर उसकी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगा।
“हाँ, बिलकुल ऐसे ही शांत रहना है, लिटिल बेबी।” अंकुश बोला और फिर अपने होठों को शिवांशा की गर्दन पर लगा दिया।
शिवांशा को घबराहट महसूस हो रही थी। वह अपने हाथ-पैर मारकर उसे दूर करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अंकुश इतना भारी-भरकम और मज़बूत आदमी था, और शिवांशा नाज़ुक-सी दुबली-पतली लड़की। अंकुश अपनी हवस में इतना पागल हो चुका था कि उसे यह तक ख़्याल नहीं था कि वह जंगल के बीच में शिवांशा के साथ बदसलूकी कर रहा था।
इस बीच एक गाड़ी की तेज आवाज सुनाई दी। उसकी फ़्लैशलाइट से शिवांशा के अंदर कौन-सी हिम्मत आई कि उसने अंकुश को एक झटके में खुद से दूर कर दिया। वह दौड़ते हुए गाड़ी की तरफ़ भाग रही थी। वह जानती थी कि गाड़ी के आगे आने से उसका एक्सीडेंट भी हो सकता है या उसकी जान जा सकती है, पर अंकुश जैसे घटिया आदमी के हाथों गन्दा होने से अच्छा था कि वह अपनी जान दे दे।
अंकुश भी उसके पीछे भाग रहा था। वह पीछे से चिल्लाकर बोला, “आज तुम्हें मुझसे कोई नहीं बचा पाएगा, खुद तुम्हारी मौत भी नहीं। जितना भागना है भाग लो; तुम्हें क्या लगता है इस शहर में किसी की इतनी औक़ात है जो अंकुश राजावत के सामने अपना मुँह खोल सके?”
शिवांशा ने पीछे पलटकर भी नहीं देखा। अचानक सामने आ रही गाड़ी ने ब्रेक लगाया। शिवांशा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। गाड़ी में से बाहर निकले शख्स के पास वह सीधे चिपक गई थी। आखिर इस घने सुनसान जंगल में कोई तो उसकी मदद करने के लिए वहाँ पर आया था।
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क्या लगता है कौन आया होगा? अरमान पहुँचा होगा या फिर कोई और? फिलहाल के लिए इतना ही; अगले चैप्टर पर मिलते हैं।
अंकुश शिवांशा को किडनैप करके जंगल में ले गया था। तेजेंद्र ने उसे शिवांशा को मारने के लिए कहा था, लेकिन अंकुश के इरादे कुछ और थे। हमेशा से ही उसकी नियत शिवांशा को लेकर बुरी थी। जब वह छोटी थी और उनके घर आई थी, तब भी अंकुश को मौका मिलता, वह उसे गलत तरीके से छूने की कोशिश करता। आज तो अंकुश को खुला मौका मिल गया था, जब वह शिवांशा के साथ कुछ भी कर सकता था।
अंकुश शिवांशा के साथ जबरदस्ती कर रहा था। अचानक वहाँ पर एक गाड़ी आई, जिसे देखकर शिवांशा मदद के लिए उसकी ओर भागने लगी। उसमें से एक शख्स निकला, जिसका चेहरा देखे बिना ही शिवांशा जाकर उसके गले लग गई थी।
शिवांशा बुरी तरह रो रही थी। उसने सुबकते हुए कहा, “प्लीज... प्लीज मुझे बचा लो।”
इस वक्त शिवांशा जिसके गले लगी हुई थी, वह कोई और नहीं, वेद था, जो उसे मारने के लिए आ रहा था। वेद के बाद गाड़ी से प्रथम बाहर निकला, जो शिवांशा को वेद के इस तरह गले लगे हुए देखकर हैरान था। वेद अलग टाइप का इंसान था; वह अपने फैमिली मेंबर्स तक को जल्दी से हग नहीं करता था और ना ही किसी को उसके इतने करीब आने की इजाजत तक थी, लेकिन शिवांशा वह पहली लड़की होगी, जो वेद के सीने से लगी हुई थी।
उसकी इस हरकत पर वेद ने सर्द निगाहों से उसकी तरफ देखा और एक झटके में उसे खुद से अलग कर दिया था।
इस बीच अंकुश भी वहाँ पर पहुँच गया था। अपने सामने वेद को देखकर अंकुश बुरी तरह हड़बड़ा गया था। ऊपर से शिवांशा अभी भी उसके पास खड़ी हुई थी।
अंकुश इस बात से अनजान था कि वेद शिवांशा के बारे में जान चुका है। वह शिवांशा की तरफ देखकर तेज आवाज में बोला, “तुम वहाँ खड़ी क्या कर रही हो? जल्दी इधर आओ। वहाँ घर पर शादी के लिए सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं।”
वेद का अचानक इस तरह जंगल में मिलना अंकुश को पूरी तरह इत्तेफाक लग रहा था। वहीं उसकी बातों से वेद समझ गया था कि शिवांशा ही देवराज ठाकुर की पोती है।
वह भी शिवांशा को मारने के मकसद से आया था, लेकिन किस्मत ने ऐसा खेल खेला था कि वह इस वक्त उसके रक्षक के तौर पर वहाँ खड़ा था।
वेद ने एक नज़र अंकुश को देखने के बाद शिवांशा की तरफ देखा। उसकी हालत ठीक नहीं लग रही थी; उसके हाथों पर खरोच के निशान थे और कपड़े और गहने अस्त-व्यस्त हो रखे थे। वह रो रही थी; उसे देखकर कोई भी कह सकता था कि इस वक्त वह बहुत ज़्यादा डरी हुई है।
अंकुश के बुलाने के बाद भी शिवांशा ने कोई रिस्पांस नहीं दिया, तो वह उसके पास बढ़ते हुए बोला, “यह आजकल की लड़कियाँ भी ना, बहुत अजीब होती हैं। वहाँ घर पर सब शादी के लिए इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन इन्हें घूमना होता है।”
“अच्छा? लेकिन इसे देखकर कहीं से नहीं लग रहा कि यह कही घूमकर आ रही है। वह तो काफ़ी डरी हुई लग रही है और रो भी रही है।” प्रथम ने उसे घूरते हुए कहा।
अंकुश ने उसकी बात का जवाब देते हुए पूरे एटीट्यूड से कहा, “और तुम्हें हमारे घर के मामलों में बीच में बोलने का हक किसने दिया? बी इन योर लिमिट्स... कम शिवांशा, मनन वेट कर रहा होगा।” अपनी बात खत्म करके अंकुश शिवांशा का हाथ पकड़कर उसे वहाँ से लेकर जा ही रहा था कि तभी बीच में वेद आ गया।
वेद की इस हरकत पर अंकुश ने गुस्से में चिल्लाकर कहा, “वेद सिंह चौहान, नाम का ही सही, लेकिन हमारे बीच एक रिश्ता है, उसकी मर्यादा को पार मत करो। मैं बर्दाश्त नहीं करूँगा जब कोई हमारे घर की इज़्ज़त के मामले में बीच में आएगा।”
“ओह, रियली?” वेद ने भौंहें उठाकर कहा, “घर की इज़्ज़त? तो यह लड़की तुम्हारे घर की इज़्ज़त है, जिसकी तुम इज़्ज़त लूटने की कोशिश कर रहे थे? आयरनी देख रहे हो प्रथम।”
वेद के चेहरे पर सार्कैस्टिक स्माइल थी। उसके शब्द सुनकर अंकुश के चेहरे का रंग उड़ गया था। वह कुछ कह पाता उससे पहले वेद ने आगे सख्त आवाज में कहा, “यह बड़ी-बड़ी बातें तुम उन लोगों के सामने करना जो तुम्हें ठीक से नहीं जानते हैं, अंकुश राजावत।”
“तुम जानते भी नहीं हो यह लड़की कौन है, जिसे तुम बचाने की कोशिश कर रहे हो। अगर तुम्हें इसका सच पता चला, तो तुम खुद अपने हाथों से इसकी जान लोगे।” अंकुश भड़कते हुए बोला। वह खुद को सही साबित करने में इतना पागल हो गया था कि वेद के सामने शिवांशा का सच तक बताने को तैयार हो गया था।
शिवांशा वहाँ डरी हुई हालत में खड़ी थी। वह नहीं जानती थी कि वेद कौन है और अचानक वहाँ क्यों आया है। बस उसे इतना पता था कि वह जो भी था, उसके लिए किसी फ़रिश्ते से कम नहीं था, जिसने आज उसे अंकुश जैसे शैतान से बचाया था। वहीं अंकुश की बातों का मतलब शिवांशा को समझ नहीं आया। वह बस चुपचाप खड़ी थी।
अंकुश अपने मुँह से शिवांशा का राज बताने वाला था कि तभी वेद ने अपनी गहरी आवाज में कहा, “मैं अच्छे से जानता हूँ कि यह कौन है और मैं यहाँ इसे बचाने के लिए नहीं आया हूँ। मारूँगा तो मैं भी इसे, लेकिन हाँ, तुम्हारी तरह इज़्ज़त का नाम लेकर किसी के साथ रेप करने की कोशिश तो बिल्कुल नहीं करूँगा।”
“यह... यह देवराज ठाकुर की पोती है, तुम्हारी दुश्मन। भूल गए तुम? इसके दादा ने तुम्हारे माँ-बाप को बेरहमी से मारा था और तुम्हारी जान भी लगभग लेने ही वाले थे।” अंकुश अपनी बातों से वेद को उकसाने की कोशिश कर रहा था ताकि उसका ध्यान उससे हटकर शिवांशा की तरफ चल जाए।
अंकुश के मुँह से वह सब सुनने के बाद शिवांशा को पता चला कि वेद कौन था। इसी के साथ उसे यह भी समझ में आ गया था कि एक मुसीबत से निकलकर वह दूसरी मुसीबत में फँस चुकी थी।
अंकुश की बातें सुनकर वेद का पारा हाई होने लगा था। उसने मुट्ठी कसते हुए कहा, “अगर तुम नहीं चाहते कि तुम्हें प्रथम तुम्हारे घर पर फेंक कर आए, तो अपने आप अपने घर चले जाओ।”
अंकुश की भी मजबूरी थी कि वह बिना शिवांशा के वहाँ से नहीं जा सकता था। तेजेंद्र ने उसे शिवांशा को मारने के लिए कहा था। ऊपर से उसकी एक बेवकूफी की वजह से शिवांशा आज ज़िंदा थी और वेद को भी इस बारे में पता चल चुका था कि उनकी फैमिली ने ही शिवांशा को पनाह दे रखी थी। इन सब के अलावा अरमान भी उसे ढूँढ रहा था।
अंकुश ने गहरी साँस लेकर छोड़ी और कहा, “ठीक है, मैं यहाँ बिना किसी तमाशे के चला जाऊँगा, लेकिन मुझे शिवांशा अपने साथ चाहिए। तुम उसे मार नहीं सकते हो।”
“अच्छा। मुझे नहीं पता था कि तुमने मेरे असिस्टेंट का काम करना शुरू कर दिया है, जो यह बताता है मुझे कब क्या करना है। मैंने कहा ना, सस्ते में जाने दे रहा हूँ, तो निकाल लो, वरना महँगा पड़ेगा।” वेद ने अपने कदम अंकुश की ओर बढ़ाते हुए कहा।
वेद की निगाहें इस वक्त बेहद सर्द थीं। उसने प्रतीक को इशारा किया तो प्रतीक ने अपने वेस्टबैंड से गन निकाल सीधे अंकुश की तरफ प्वाइंट कर दी थी। शिवांशा पहले से घबराई हुई थी, ऊपर से गन देखकर वो ओर डर गई।
प्रतीत अंकुश को नुकसान पहुँचाने के इरादे से उसके करीब बढ़ रहा था। अंकुश ने एक नज़र शिवांशा की तरफ देखा और फिर बिना कुछ बोले वहाँ से चला गया।
अंकुश अपनी गाड़ी में आकर बैठा और उसने इस वक्त अरमान को कॉल किया।
“अरमान, बहुत बड़ी गलती हो गई है। तुम हमारी फैमिली के बारे में तो जानते ही हो। वेद सिंह चौहान को पता चल गया है कि शिवांशा कौन है और वह उसे लेकर चला गया।” अंकुश ने एक साँस में उसे सब कुछ बता दिया था। वह जानता था कि इस वक्त अरमान ही था, जो बिना सवाल किए उसकी मदद कर सकता था क्योंकि उसे शिवांशा की जान बचानी थी।
“बेवकूफ़ समझते हो तुम मुझे? तुमने उसे मुसीबत में डाल दिया और अब जब घर वाले तुमसे सवाल करेंगे, तो मदद के लिए मुझे कॉल कर रहे हो। अगर तुम्हारी वजह से शिवांशा को कुछ भी हुआ, तो आई स्वर अंकुश, तुम्हारे कारनामे मैंने रिकॉर्ड कर रखे हैं और वह मैं पूरी फैमिली को सुना दूँगा।” अरमान ने गुस्से में कहा।
“तुम्हें जो करना है कर लो, लेकिन हमारे पास इतना टाइम नहीं है। इससे पहले कि वह वेद उसकी जान ले, हमें शिवांशा को बचाना होगा।” अंकुश ने फ़ीकी आवाज़ में कहा।
अरमान ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और कॉल काट दिया। इस वक्त अरमान की गाड़ी सीधे वेद सिंह चौहान के घर की तरफ़ बढ़ रही थी।
रात के लगभग दस बजने को आए थे जब शिवांशा, वेद और प्रथम जंगल में खड़े हुए थे। वेद ने एक नज़र शिवांशा की तरफ़ देखा। वह उम्र में काफ़ी छोटी नज़र आ रही थी। शादी के जोड़े में सजी हुई, डरी-सहमी सी वहाँ खड़ी थी।
“अपना हुलिया सही करो।” वेद ने उसे देखकर तेज आवाज़ में कहा।
उसकी आवाज़ से शिवांशा डर से हड़बड़ा गई थी। वह उचकते हुए बोली, “क... क्या? क्या?”
“सुनाई नहीं देता? अपने कपड़े सही करो।” वेद ने फिर कहा।
शिवांशा ने उसके कहने पर खुद की तरफ़ ध्यान दिया। उसका एक दुपट्टा तो जंगल में ही गिर गया था, जबकि दूसरा दुपट्टा बुरी तरह उलझा हुआ था; उसके ब्लाउज़ की स्लीव एक कंधे से उतरकर नीचे झूल रही थी और ज्वेलरी भी इधर-उधर हो रही थी।
शिवांशा ने जल्दी-जल्दी सब कुछ ठीक करना शुरू कर दिया था। लगभग 5 मिनट में वह अपने कपड़ों की मिट्टी झाड़कर सही कर चुकी थी।
“गाड़ी के अंदर बैठो।” वेद ने आगे कहा।
शिवांशा चुपचाप उसकी सारी बात मान रही थी। उसकी तो इतनी हिम्मत तक नहीं पड़ रही थी कि वह वेद की तरफ़ ठीक से देख भी सके। शिवांशा गाड़ी की बैक सीट पर जाकर बैठ गई थी।
प्रथम गाड़ी ड्राइव कर रहा था, जबकि वेद शिवांशा के साथ पीछे की सीट पर आ गया था। उसने गाड़ी का पार्टीशन लगाया और शिवांशा की तरफ़ एक नज़र देखा।
“कितने साल की हो तुम?” वेद ने बिना किसी भाव के पूछा।
“आज मेरा बर्थडे है। मैं 21 साल की हुई हूँ।” शिवांशा ने हिचकिचाते हुए बिल्कुल धीमी आवाज़ में कहा।
वेद का भी बर्थडे आज ही के दिन था। यह दिन उसके लिए कोई ख़ास मायने नहीं रखता था। वेद के हिसाब से जब उसे पैदा करने वाले माँ-बाप इस दुनिया में नहीं रहे, तो वह उसे क्यों सेलिब्रेट करे? बस आज के दिन वह शिवांशा की जान नहीं लेना चाहता था।
वेद ने गहरी साँस ली और आगे पूछा, “और कौन-कौन है तुम्हारी फैमिली में?”
वेद उससे नॉर्मल तरीके से बात कर रहा था और जानबूझकर उसकी फैमिली के बारे में सब जानना चाहता था। वह कोई चांस नहीं लेना चाहता था। पिछली बार भी शिवांशा बच गई थी; वह नहीं चाहता था कि अब ठाकुर फैमिली का कोई और सदस्य इस दुनिया में रहे।
फैमिली के बारे में पूछने पर अचानक शिवांशा के चेहरे पर डर के भाव उभर आए थे। उसने वेद की तरफ़ देखा और गिड़गिड़ाते हुए कहा, “मुझे... मुझे यहाँ नहीं होना चाहिए। प्लीज़ आप मुझे वापस छोड़ दीजिए। मुझे राजावत फैमिली में जाना ही होगा।”
“पागल हो गई हो तुम? वह आदमी तुम्हारे साथ रेप करना चाहता था; उसकी फैमिली ने तुम्हें मारने का काम दिया था और तुम वहीं पर जाना चाहती हो?” वेद ने हल्का हैरानी जताते हुए पूछा। वो जानना चाहता था कि शिवांशा की ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि ऐसे हालातों में भी वह अभी भी राजावत फैमिली के पास जाना चाहती थी।
“जान दे दूँगी तो चलेगा, लेकिन मुझे वहीं पर ही जाना होगा। आप समझते क्यों नहीं हैं? प्लीज़ मुझे वहाँ छोड़ दीजिए।” शिवांशा ने सिसकते हुए कहा। बोलते हुए उसने वेद के बाजू पर हल्का सा हाथ लगाया, जिस पर वह सर्द निगाहों से उसकी तरफ़ देखने लगा। शिवांशा ने तुरंत डरकर अपना हाथ साइड कर लिया था।
“तुम कहीं नहीं जाओगी। मेरे साथ जा रही हो। मरने का इतना ही शौक है, तो अच्छी बात है। वैसे भी मुझे तुम्हारी पूजा नहीं करनी है, तुम्हारी जान ही लेनी है। बस मेरी मजबूरी यह है कि आज के दिन मैं तुम्हें नहीं मार सकता। बारह बजने में सिर्फ़ 1 घंटे का टाइम बचा है। 1 घंटे की ज़िंदगी एन्जॉय करो...” वेद ने काफ़ी बेरहमी से कहा। वह शिवांशा से कुछ छुपाने वाला नहीं था। वेद ने पहले ही क्लियर कर दिया कि वह भी उसकी जान लेगा।
“आपके लिए 1 घंटे मायने नहीं रखते होंगे, लेकिन मेरे लिए बहुत रखते हैं। आप मुझे मारना चाहते हैं ना? बेशक मार दीजिएगा, कोई प्रॉब्लम नहीं है, लेकिन मरने से पहले मेरी एक आख़िरी इच्छा पूरी कर दीजिए। मुझे राजावत फैमिली में जाना है। मुझे वहाँ लेकर चलिए। मरना तो मुझे वैसे ही है, फिर क्या फ़र्क पड़ता है कि मुझे कोई भी मारे।” शिवांशा ने खुद को मज़बूत करके कहा।
उसने पहली बार किसी के सामने अपने दिल की ख़्वाहिश रखी थी। ना जाने क्यों वह सच वेद को ही बता रही थी, जबकि वह जानती थी कि वेद और उसकी फैमिली के बीच क्या हुआ था।
“अगर तुम्हारी आख़िरी इच्छा यही है, तो यही सही। यह मत समझना कि राजावत फैमिली तुम्हें मुझसे बचा पाएगी, क्योंकि इतनी उनकी औक़ात नहीं है। वह फ़िलहाल खुद को मुझसे बचा ले, वही उनके लिए काफ़ी होगा।” वेद ने ठंडे स्वर में कहा।
शिवांशा की बात मानकर वेद ने प्रथम को मैसेज करके राजावत हाउस चलने के लिए कहा, यही उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती साबित होने वाली थी।
वहीं दूसरी तरफ़ अंकुश इस बात को अच्छे से जानता था कि शिवांशा मरने से पहले एक बार वहाँ पर ज़रूर आएगी क्योंकि उसके लिए सबसे कीमती चीज़ वहीं पर थी। यह अंकुश के पास अच्छा मौक़ा था जब वह वेद से शिवांशा को हासिल कर सकता था। इसके साथ वह उससे अपना बदला भी पूरा कर सकता था। राजावत हाउस से कुछ दूर पहले ही वह उनके लिए तैयार खड़ा था, अपना बदला लेने के लिए।
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जंगल में, अंकुश के शिवांशा के साथ कुछ बुरा करने से पहले ही वेद वहाँ पहुँच गया था। वेद के सामने, अंकुश की एक नहीं चली; उसे शिवांशा को वहीं वेद के पास छोड़कर जाना पड़ा। वेद भी शिवांशा को बचाने के इरादे से ही वहाँ आया था; वह उसे लेकर वहाँ से जाने लगा। आज वेद का जन्मदिन था, और वह आज के दिन किसी की जान नहीं लेना चाहता था। बारह बजने में थोड़ा ही समय बाकी था, तो शिवांशा ने अपनी आखिरी ख्वाहिश के तौर पर वेद को उसे राजावत हाउस ले जाने के लिए कहा।
राजावत हाउस में ऐसा कुछ था, जिसके चलते शिवांशा वहाँ से जा नहीं सकती थी। वहीं दूसरी तरफ, अंकुश ने राजावत हाउस से थोड़ा पहले ही वेद से शिवांशा को फिर से हासिल करने का इंतज़ाम कर रखा था।
जैसे ही वेद की गाड़ी राजावत हाउस से थोड़ा पहले पहुँची, उन्होंने देखा कि गाड़ी के सामने अचानक बहुत लोग आ गए थे। मजबूरी में, प्रतीक को ब्रेक लगाना पड़ा।
वेद ने पार्टीशन हटाया और प्रतीक से पूछा, “क्या हुआ? गाड़ी क्यों रोकी?”
“भाई, आगे मीडिया वाले खड़े हैं। हम यहाँ बिना गार्ड के आए थे। अचानक इनका सामने आना मुझे अजीब लग रहा है; यह लड़की भी हमारे साथ है।” प्रतीक ने चिंतित स्वर में कहा।
वेद ने गहरी साँस ली और फिर कुछ पल रुककर कहा, “ऐसा करो, बाहर जाकर उनसे बात करके आओ। आज किसी तरह का मीडिया इंटरेक्शन नहीं होने वाला था; फिर ये लोग अचानक हमारे सामने क्यों आए हैं?”
“मैं जाकर पता करता हूँ।” प्रतीक बोला और गाड़ी से बाहर आया।
जैसे ही प्रतीक बाहर आया, उसने देखा कि मीडिया वालों के साथ अंकुश भी था। वह समझ गया था कि यह अंकुश की कोई चाल है। प्रतीक के बाहर आते ही, रिपोर्टर्स की भीड़ आगे बढ़ी और उसे घेर लिया।
“मिस्टर राजपूत, हमें पता चला है कि वेद सिंह चौहान इस वक्त गाड़ी के अंदर है; उनके साथ एक लड़की है, जिन्हें उन्होंने किडनैप किया है।” एक रिपोर्टर आगे आकर बोला।
प्रतीक ने सबकी तरफ़ देखा और जवाब में कहा, “आप जानते हैं ना कि आप किस पर क्या सवाल खड़े कर रहे हैं? वेद सिंह चौहान और किसी का किडनैप करेंगे? आर यू आउट ऑफ़ योर माइंड?”
वेद सिंह चौहान कौन था, यह किसी से छुपा हुआ नहीं था। रिपोर्टर को तुरंत अपनी गलती का एहसास हुआ; उसने माफ़ी माँगते हुए कहा, “मेरे कहने का वह मतलब नहीं है। एक्चुअली, मुझे पता चला है कि मिस्टर चौहान किसी लड़की के साथ हैं। जहाँ तक हमें पता है, वह सिंगल हैं; फिर वह लड़की कौन है, जिसके साथ वह बिना सिक्योरिटी के इस तरह अकेले जा रहे हैं?”
रिपोर्टर के तुरंत सवाल बदलने पर अंकुश को बहुत गुस्सा आया। उसने यही प्लान किया था कि वह सबके सामने यह साबित कर देगा कि वेद शिवांशा को किडनैप करके ले जा रहा है। ऐसे में, वेद को शिवांशा को उन्हें देना पड़ेगा, और साथ ही मीडिया के जरिए उसकी अच्छी खासी बेइज़्ज़ती भी हो जाएगी। वेद सिंह चौहान कैसा इंसान था, यह सब जानते थे; ऐसे में, किडनैपिंग जैसा इल्ज़ाम पूरी तरह बेबुनियाद लग रहा था।
प्रतीक ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, “आप क्या उनके रिश्तेदार हैं, जो वह आपको इस बात का जवाब देंगे कि उनकी गाड़ी में इस वक्त कौन है और वह उनकी क्या लगती है? मुझे समझ नहीं आता आप लोग ऐसे बीच में आकर हमारा रास्ता कैसे रोक सकते हैं। लगता है आप वेद सिंह चौहान को नहीं जानते हैं। बेहतर होगा कि आप यहाँ से चले जाएँ, वरना मुझे पुलिस को बुलाना पड़ेगा।”
प्रतीक अपनी तरफ़ से मामला संभालने की पूरी कोशिश कर रहा था, ताकि वेद को किसी तरह की मुसीबत का सामना न करना पड़े। रिपोर्टर्स ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा और वहाँ से जाने में ही अपनी भलाई समझी। उनके पास कोई सबूत नहीं था; बस एक कॉल आया था, और उसके दम पर उन्होंने बेवजह वेद का रास्ता रोक दिया था।
अंकुश का प्लान उल्टा पड़ता नज़र आ रहा था। वह जल्दी से आगे आया और उन सब से बोला, “मैं ही वह शख्स हूँ जिसने आपको कॉल किया था; मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ। इस वक्त वेद की गाड़ी में एक लड़की है, जो दुल्हन के वेश में है। वह उसे किडनैप करके ले जा रहा है; मैं बस उस लड़की को बचाना चाहता हूँ।”
अंकुश की बात का जवाब देते हुए प्रतीक ने तेज आवाज़ में कहा, “अच्छा, तो रिपोर्टर्स अब पुलिस वाले हो गए हैं? अगर आपको इस तरह का कोई डाउट था, मिस्टर राजावत, तो आपको पुलिस को कॉल करना चाहिए था।”
“वह... मैं पुलिस को कॉल नहीं कर पाया। हमने अपने घर की शादी के लिए मीडिया को बुलाया था, तो सोचा जल्दबाज़ी में जो मिले, वही सही।” अंकुश ने बहाना बनाया। वह इस मामले में किसी भी हाल में पुलिस की मदद नहीं ले सकता था।
अगर गलती से भी तेजेंद्र को पता चलता कि अंकुश शिवांशा को मारने के बजाय उसका रेप करने की कोशिश कर रहा था, तो वह पहले उसकी जान ले लेता। ऊपर से, पुलिस के इंवॉल्वमेंट से वह मुसीबत में पड़ सकता था।
प्रतीक को थोड़ा अफसोस हो रहा था। वो यही सोच रहा था कि थोड़ी देर पहले मौका मिलने पर उसे अंकुश को गोली मार देनी चाहिए थी, पर मीडिया के सामने वह कुछ भी ऐसा रिएक्ट नहीं कर सकता था जिसकी वजह से वह मुसीबत में आ जाए।
प्रतीक ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए अंकुश से कहा, “लोग अगर आपकी थ्योरी के हिसाब से चलने लगे, तो आगे से कभी मर्डर या कोई क्राइम होगा, तो पुलिस से पहले मीडिया को बुलाया जाएगा? मिस्टर चौहान आप में से किसी भी इंसान के सवाल का जवाब देने के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं।”
“अगर वह इतने ही सच्चे हैं, तो अपनी गाड़ी से बाहर क्यों नहीं आ जाते? मीडिया वालों को अपनी गाड़ी दिखा दें, फिर हम मान जाएँगे कि आपके मिस्टर वेद सिंह चौहान सच्चे हैं, और मैं झूठ बोल रहा हूँ।” अंकुश ने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा।
प्रतीक ने एक नज़र मीडिया वालों की तरफ़ देखा, जो सवालिया नज़रों से गाड़ी को घूर रहे थे। प्रतीक कॉल के ज़रिए वेद से जुड़ा हुआ था, और वह अंदर से बाहर की सारी बातें सुन रहा था।
अंकुश जो भी कर रहा था, उसे देखकर शिवांशा के चेहरे पर घबराहट के भाव उभर आए थे। किस्मत ने उसके साथ अजीब खेल खेला था; वह वेद के साथ जाती, तब भी उसका मरना तय था, और अगर अंकुश के साथ जाती, तो वह उसे मारने से पहले अपनी हवस पूरी किए बिना बिल्कुल नहीं छोड़ता।
प्रतीक उन्हें संभाल रहा था, तभी कुछ मीडिया वाले कैमरा लेकर गाड़ी के दरवाज़े के पास आ गए। उनमें से एक ने दरवाज़ा खटखटाते हुए कहा, “बाहर आइए, मिस्टर चौहान! क्या सच में आप किसी लड़की के साथ हैं? अगर ऐसा है, तो वह लड़की कौन है? क्या आपने इसे किडनैप किया है?”
अंकुश ने जैसा प्लान किया था, वैसा ही हुआ था; मीडिया वाले वेद पर सवाल खड़े करने लगे थे। वहीं दूसरी तरफ़, अरमान पुलिस स्टेशन पहुँच चुका था।
वहाँ पहुँचते ही, उसने नाइट ड्यूटी पर मौजूद सीनियर इंस्पेक्टर से कहा, “मुझे मिस्टर वेद सिंह चौहान के ख़िलाफ़ रिपोर्ट लिखानी है। उन्होंने मेरे भाई की होने वाली पत्नी को किडनैप किया है।”
सीनियर इंस्पेक्टर ने एक नज़र उसकी तरफ़ देखा। उसने सिर हिलाकर कहा, “आपका दिमाग तो ठीक है ना? आप यहाँ वेद सिंह चौहान का नाम ले रहे हैं; पूरा उदयपुर जानता है कि वह कौन है। एक बिज़नेसमैन होने के अलावा, एक इंसान के तौर पर भी सब उनके एग्ज़ैम्पल देते हैं, और आप उन पर किडनैपिंग का इल्ज़ाम लगा रहे हैं।”
“मैं सच कह रहा हूँ। आपको मेरी बात पर यकीन नहीं है, तो आप उनके घर पर जाकर तलाशी ले सकते हैं; उन्हें कॉल कर सकते हैं। प्लीज़, उस लड़की को बचा लीजिए। वेद सिंह चौहान उसे मार देगा।” अरमान ने प्लीडिंग वॉइस में कहा।
इंस्पेक्टर को लगा कि वह कोई ऐसा ही सिरफ़िरा आदमी है, जो वेद का दुश्मन होने की वजह से उस पर उल्टे-सीधे इल्ज़ाम लगा रहा है।
इंस्पेक्टर उसे ऐसे ही जाने नहीं दे सकता था; उसने अरमान को बैठने का इशारा किया, लेकिन वह फिर भी खड़ा था।
इंस्पेक्टर ने उससे पूछा, “तो आपकी होने वाली भाभी का किडनैप हुआ है, और आपको लगता है कि उसे वेद सिंह चौहान ने किडनैप किया है? उन्हें गायब हुए कितना समय हुआ है?”
“यही कोई तीन से चार घंटे।” अरमान ने जवाब दिया।
“24 घंटे से पहले हम रिपोर्ट नहीं लिख सकते हैं। हो सकता है कि वह आपके भाई से शादी करके खुश ना हो, इसलिए किसी और के साथ चली गई होगी। बाकी मुझे नहीं पता कि आप इस मामले में मिस्टर चौहान को क्यों घसीट रहे हैं।” इंस्पेक्टर ने बेपरवाही से जवाब दिया, जिस पर अरमान को गुस्सा आ गया।
अरमान ने गुस्से में अपना हाथ टेबल पर पटकते हुए कहा, “कितने पैसे मिले हैं तुम्हें, इस केस को दबाने के लिए? उसके लिए काम करते हो ना तुम?”
“देखिए, अब आप हम पर बेफ़िज़ूल के इल्ज़ाम लगा रहे हैं। क्या आपके पास कोई सबूत है कि मिस्टर चौहान ने ही आपकी भाभी को किडनैप किया है? आप ऐसे कैसे एक इज़्ज़तदार इंसान पर बिना सबूत के इल्ज़ाम लगा सकते हैं?” इंस्पेक्टर ने खड़े होकर तेज आवाज़ में कहा।
“वही तो मैं कहना चाहता हूँ! जब तक आप जाकर पता नहीं लगाएँगे, तो सबूत कहाँ से मिलेगा? मुझे मेरे भाई का कॉल आया था; उसने खुद अपनी आँखों से मिस्टर चौहान को शिवांशा को ले जाते हुए देखा था।” अरमान ने अपने गुस्से को काबू करके कहा।
“ऐसे में तो आपके भाई पर भी सवाल खड़े होते हैं कि उनकी आँखों के सामने उनके घर की होने वाली बहू को कोई उठाकर ले गया, और वह चुपचाप खड़े होकर देखते रहे। मुझे आपके भाई का स्टेटमेंट चाहिए। क्या मिस्टर चौहान ने उन्हें किसी तरह की चोट पहुँचाने की कोशिश की?” इंस्पेक्टर ने जवाब दिया।
अरमान को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे अपनी बात को समझाए। वह इंस्पेक्टर को पूरी बात भी नहीं बता सकता था कि अंकुश शिवांशा को मारने के लिए लेकर गया था। ऐसे में, वह एक बार के लिए खुद कंफ़्यूज़ हो गया कि वेद सिंह चौहान शिवांशा को बचाने वाला शख़्स है या फिर उसे मारने वाला।
अरमान कंफ़्यूज़न में खड़ा हुआ था, तभी किसी ने पुलिस स्टेशन में टीवी की आवाज़ तेज की; इसी के साथ उन सब का ध्यान वहाँ चला गया।
टीवी में वही न्यूज़ आ रही थी, जहाँ मीडिया वालों ने वेद की गाड़ी को रोका था। हेडलाइंस भी अंकुश की भाषा बोल रही थी; उन्हें तो टीआरपी से मतलब था, इसलिए वह यही दिखा रहे थे कि वेद ने किसी लड़की को किडनैप कर लिया है।
न्यूज़ देखते ही अरमान ने इंस्पेक्टर की तरफ़ देखकर सिर हिलाकर कहा, “अब तो आपको मेरी बात पर यकीन आ गया होगा कि मैं हवा में किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगा रहा हूँ। आप जैसे लोगों की वजह से ऐसे अमीर लोग गुनाह करके छुपे रहते हैं। क्या अभी भी आपको किसी तरह के सबूत की ज़रूरत है, इंस्पेक्टर? या मेरे साथ चलिए?”
इंस्पेक्टर की नज़रें नीची हो गई थीं, तभी लाइव न्यूज़ में वेद शिवांशा के साथ गाड़ी से बाहर निकल कर आया। हर कोई देखकर हैरान था। वेद सिंह चौहान, जो हमेशा सब जगह अकेले दिखता था, वह आज किसी लड़की के साथ था। ऐसा नहीं था कि वेद को शादी के लिए प्रपोजल नहीं मिलते थे, या कोई लड़की उससे शादी करने के लिए तैयार नहीं थी; बस वेद को ही शादी में इंटरेस्ट नहीं था।
एक पब्लिक फ़िगर होने की वजह से वेद के बारे में ज़्यादातर लोग जानते थे; उसे किसी लड़की के साथ देखकर वे हैरान रह गए। मीडिया वाले दौड़कर उनके आगे आ गए। शिवांशा की नज़रें झुकी हुई थीं, जबकि वेद ने मजबूरी में उसकी पीछे ऐसे हाथ रखा था, जिससे सबको वेद का हाथ शिवांशा की पीठ पर है, जबकि असल में वेद और शिवांशा के बीच एक उचित दूरी थी।
वहीं उस जगह पर अंकुश शिवांशा को देखकर जल्दी से आगे आया और बोला, “यह वही लड़की है! देखो, मैं सच बोल रहा था; यह इसे किडनैप करके ले जा रहा है। पूछो इससे; यह लड़की कौन है और इसके साथ क्या कर रही है।”
अंकुश खुद किसी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहता था, इसलिए वह जानबूझकर अपना और शिवांशा का रिश्ता छुपा रहा था। वहीं उसका यह बर्ताव देखकर शिवांशा हैरान रह गई।
मीडिया वाले वेद के सामने माइक लेकर खड़े थे; इस वक्त वे सारे एक साथ एक ही सवाल पूछ रहे थे कि आखिर शिवांशा कौन है, और वह दुल्हन के जोड़े में वेद के साथ क्या कर रही थी। क्या सच में वेद उसे किडनैप करके ले जा रहा था?
मामला मीडिया के सामने आ गया था; ऐसे में वेद एक तरह से फँस गया था। अगर वह आज शिवांशा को जाने देता, तो वह कभी अंकुश तक नहीं पहुँच पाता, और उसका बदला अधूरा रह जाता।
वेद ने गहरी साँस ली और सबको हाथ उठाकर शांत रहने का इशारा किया। फिर उसने एक नज़र शिवांशा की तरफ़ देखा और मीडिया वालों के सवाल का जवाब देते हुए गहरी आवाज में कहा, “यह मेरी पत्नी है, शिवांशा वेद सिंह चौहान।”
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वेद शिवांशा को अपने साथ लेकर जा रहा था। इस बीच, अंकुश मीडिया को लेकर उनके रास्ते में आ गया। अंकुश ने उन सबसे यही कहा, वेद किसी लड़की को किडनैप करके लेकर जा रहा है। मीडिया वाले इन सबकी लाइव कवरेज दिखाने लगे। वैसे भी, वेद सिंह चौहान कोई आम शख्सियत नहीं था। उससे जुड़ी हर खबर काफी चर्चा में रहती थी।
वेद के मीडिया वालों के सामने न आने पर बात बढ़ने लगी। वेद इस तरह अपने नाम पर किसी तरह का दाग नहीं लगने दे सकता था। वो शिवांशा के साथ गाड़ी से बाहर निकला। वेद के साथ किसी लड़की को देखकर वो सब चौंक गए थे। ऊपर से, शिवांशा ने शादी का जोड़ा पहना था।
वेद ने सबके सामने शिवांशा को अपनी पत्नी के तौर पर इंट्रोड्यूस किया, तो सब हैरानी से उसकी तरफ देखने लगे, यहाँ तक कि खुद शिवांशा भी। अंकुश को भी झटका-सा लगा। वो अच्छे से जानता था, वेद शिवांशा को मारने वाला था, फिर इस तरह सबके सामने उसे अपनी पत्नी बताकर उसी की मुश्किलें बढ़ने वाली थीं।
वहीं, वेद का जवाब सुनकर मीडिया वाले हरकत में आ गए थे। ये उनके लिए एक बहुत बड़ी खबर साबित हो रही थी। सभी अपने कैमरे के साथ आगे आए और उनकी तस्वीरें लेने लगे। शिवांशा ने डर के मारे वेद का हाथ पकड़ लिया था। वेद चाहकर भी उसका हाथ इतने लोगों के सामने अलग नहीं कर सकता था। वहीं, मीडिया वालों के सवाल शुरू हो गए थे।
“मिस्टर चौहान, क्या सच में ये लड़की आपकी वाइफ है? ये उम्र में आपसे काफी कम लग रही है?”
“आपको इस तरह छुपकर शादी करने की क्या जरूरत पड़ गई, मिस्टर चौहान, जबकि आपके घर का छोटा-सा फंक्शन भी लाइमलाइट में रहता है?”
“क्या आप इस तरह सबसे छुपकर शादी करने का कारण बता सकते हैं, मिस्टर चौहान? कहीं ऐसा इस वजह से तो नहीं, क्योंकि आपकी वाइफ उम्र में आपसे काफी कम नजर आ रही है?” बोलते हुए उस रिपोर्टर ने अपना माइक शिवांशा की तरफ करके आगे पूछा, “मिसेज चौहान, क्या आप बता सकती हैं, आप कितने साल की हैं?”
शिवांशा ने इस तरह की सिचुएशन का सामना पहली बार किया था। वो तो हमेशा भीड़ से अलग अपने कामों में लगी रहती थी। वो डर के मारे खुद में सिमटने लगी। ऊपर से, वेद ने सबके सामने अचानक ही उसे अपनी पत्नी के तौर पर इंट्रोड्यूस कर दिया।
शिवांशा ने एक नजर वेद की तरफ देखा। उसकी आँखों में कई सवाल थे। वेद जब उसे मारना चाहता था, तो फिर उसने शिवांशा को सबके सामने अपनी पत्नी क्यों बताया?
“क्या हुआ, मिसेज चौहान, आपके चेहरे पर ये डर और घबराहट क्यों? कहीं सच में मिस्टर चौहान ने आपको किडनैप तो नहीं किया, जिसकी वजह से आप सबके सामने कुछ भी कहने से घबरा रही हैं? डरिए मत, हम लाइव हैं। आप अपने दिल की बात कह सकती हैं।” रिपोर्टर ने मामले को भुनाते हुए पूछा।
अंकुश दूर खड़ा सब कुछ देख रहा था। वेद को इस तरह फंसते हुए देखकर उसे अपनी चाल कामयाब होती नजर आ रही थी।
शिवांशा ने ना में सिर हिलाया और हड़बड़ाकर बोली, “न... न... नहीं।”
वेद ने मामले को संभालते हुए तेज और सख्त आवाज में कहा, “हो गया आपका? मैंने आपके सवाल का जवाब दे दिया है। आगे मैं आपको कुछ भी बताना जरूरी नहीं समझता।”
वेद ने शिवांशा के लिए गाड़ी का दरवाजा खोला और उसे गाड़ी में बैठाकर वहाँ से निकल गया। उसके जाने के बाद अंकुश पीछे से जोर से चिल्लाते हुए बोला, “ये झूठ बोल रहा है। ये लड़की कोई इसकी पत्नी नहीं। अरे, इसकी शादी तो राजावत फैमिली के बेटे से होने वाली थी। तुम लोग अंधे हो क्या, जो तुम लोगों को दिखाई नहीं देता, इस लड़की की माँग में न तो सिंदूर था और न ही गले में मंगलसूत्र। ये कैसी सुहागन हुई? उसने तुम्हें बेवकूफ बनाया और तुम्हारी आँखों के सामने एक लड़की को लेकर जा रहा है, और तुम लोग ऐसे ही खड़े होकर देख रहे हो।”
अंकुश के तमाशे को देखकर एक रिपोर्टर ने सिर हिलाया और कहा, “सर, प्लीज झूठी कहानी बनाना बंद कीजिए। आपकी वजह से हम मुसीबत में आ सकते हैं। पहले भी आपने हमारा टाइम खराब कर दिया। शुक्र मनाइए कि वह हमारे खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले रहे हैं, वरना आपकी वजह से हमने उनके ऊपर काफी सारे इल्ज़ाम लगाए हैं।”
उन सब ने अंकुश की बात को पूरी तरह अनसुना कर दिया था। उनमें से एक रिपोर्टर बोला, “हमें यहाँ नहीं, वेद सिंह चौहान के घर के बाहर होना चाहिए। वह शादी करके आए हैं, इससे बड़ी खबर और क्या हो सकती है?”
“इन दोनों की जोड़ी अच्छी लग रही थी, लेकिन लड़की मुझे उम्र में काफी कम लगी। जरूर उनकी लव मैरिज हुई होगी।” दूसरी रिपोर्टर ने जवाब दिया।
उनकी बात पकड़ते हुए अंकुश ने फिर से कहा, “वह लड़की उस उम्र में छोटी लग रही है, क्योंकि वह सिर्फ 21 साल की है। उन दोनों का कोई मेल नहीं है। मैंने कहा ना, उसने आप लोगों को बेवकूफ बनाया है। कहाँ वेद सिंह चौहान 37 साल का, और कहाँ वह लड़की सिर्फ 21 साल की। वह अपने से इतनी छोटी उम्र की लड़की से शादी कभी नहीं करेगा।”
रिपोर्टर्स ने अंकुश की बातों का कोई जवाब नहीं दिया और वहाँ से निकलकर जाने लगे। अंकुश वहाँ पर पैर पटकता रह गया। वहीं, पुलिस स्टेशन में जब अरमान ने न्यूज़ में देखा कि वेद ने सबके सामने शिवांशा को अपनी पत्नी बताया है, तो वह भी हैरान रह गया।
पूरी न्यूज़ सुनने के बाद इंस्पेक्टर ने अंकुश से कहा, “उन रिपोर्टर्स की तरह आपको भी जवाब मिल गया होगा। वह मिस्टर चौहान की पत्नी है। प्लीज, चले जाइए। मैं कोई झूठी रिपोर्ट नहीं लिख सकता हूँ।”
“वह झूठ बोल रहा है। उस लड़की की शादी मेरे छोटे भाई से होने वाली थी। मैंने आपको बताया तो था, फिर वह उसकी पत्नी कैसे हो सकती है?” अरमान ने हैरानी से सिर हिलाकर कहा।
“तो आपको क्या लगता है, मिस्टर चौहान जैसे इज्जतदार इंसान इतने लोगों के सामने झूठ बोलेंगे? यह एक लाइव कवरेज थी। वह उन्हें भी दिख रहा था। ऐसे वह खुलेआम किसी भी लड़की को अपनी पत्नी नहीं बताएँगे। मान लेता हूं, अगर आपकी बात सच है, तो लड़की सबके सामने अपना स्टेटमेंट रख सकती थी।” इंस्पेक्टर ने जवाब दिया।
“आपको दिख नहीं रहा, वह कितनी घबराई हुई थी? ऐसे में वह कैसे उसके खिलाफ कुछ भी बोल सकती थी?” अरमान बोला।
“वह घबराई हुई थी, लेकिन उस वक्त कैमरा के सामने थी। वेद सिंह चौहान कोई उसे गन पॉइंट पर लेकर नहीं खड़े थे, जो वह डर जाएगी। हाँ, उसकी घबराहट मीडिया वालों की वजह से थी। दिखने में ही सीधी-सादी नजर आ रही थी। मतलब, उसने इन सब का सामना पहले नहीं किया। प्लीज, जब आप मेरा और अपना टाइम वेस्ट मत कीजिए। जाइए यहाँ से। इस मामले में आपके पास कोई ठोस सबूत हो, तभी आएँ।” पुलिस वाले ने अरमान को बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
अरमान भी आगे कुछ नहीं बोला और बाहर निकल आया। बाहर आते ही उसने तुरंत अंकुश को कॉल किया।
अंकुश ने कॉल रिसीव करते ही कहा, “अरमान, बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई है। वेद सिंह चौहान ने न सिर्फ शिवांशा को किडनैप किया, बल्कि सबके सामने उसे अपनी पत्नी बताया है। शिवांशा बहुत बड़ी मुसीबत में है।”
“और उसकी इस मुसीबत की वजह तुम हो। ना तुम उसे शादी से लेकर जाते, और ना ही वह वेद सिंह चौहान के चंगुल में फँसती। यहाँ पुलिस वाले तक मेरी बात सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। रिपोर्ट तक नहीं लिख रहे।” अरमान ने लाचारी से कहा।
उसके पुलिस स्टेशन में होने की बात सुनकर अंकुश बौखला गया था। वह गुस्से में ऊपर चिल्लाकर बोला, “और तुम वहाँ क्या कर रहे हो? तुम्हें किसने कहा पुलिस को इन सब में इंवॉल्व करने के लिए? अगर पुलिस की हेल्प लेनी होती, तो मैं तुम्हें क्यों कॉल करता? अगर घर पर किसी को गलती से भी पता चल गया, तो मुसीबत खड़ी हो सकती है। कहीं तुमने उन्हें यह तो नहीं बताया कि तुम राजावत फैमिली से बिलॉन्ग करते हो?”
अंकुश की बात सुनकर अरमान को और गुस्सा आने लगा। वह कड़वाहट से बोला, “मुझे कोई शौक नहीं है खुद को राजावत फैमिली का मेंबर बताने का। और आप यह बहाना क्यों बना रहे हैं कि घर पर पता चला, तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी? सीधे-सीधे कहिए न, अगर पुलिस आपसे सवाल-जवाब करती, तो आप फँस जाते। देखा जाए, तो अच्छा हुआ जो शिवांशा उसके साथ चली गई।”
“कुछ अच्छा नहीं हुआ। वह भी उसे जान से मार डालेगा। कोई उसकी पूजा नहीं करेगा।” अंकुश ने जवाब दिया।
“हाँ, आप सब लोगों की मेहरबानी, जो उस बेचारी बच्ची को इतना सब कुछ झेलना पड़ रहा है।” अरमान ने गुस्से में जवाब दिया और फिर कॉल कट कर दिया।
अरमान की आँखों में मनन का चेहरा आ रहा था, जो शिवांशा से बहुत प्यार करता था। उसी ने शिवांशा को बचाने के लिए उसे भेजा था। सिर्फ मनन ही नहीं, अरमान को शिवांशा की भी फिक्र थी। वह उसे अपने बड़े भाई की तरह सम्मान देती थी।
अरमान ने गहरी साँस लेकर कहा, “मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा। यह मेरा तुमसे वादा है, शिवांशा। चाहे इसके लिए मुझे वेद सिंह चौहान से भी क्यों न टकराना पड़े। मैं तुम्हें बचा कर लेकर आऊँगा। लेकिन इससे पहले राजावत फैमिली को मेरे सवालों के जवाब देने होंगे। आखिर वह इतने घटिया कैसे हो सकते हैं? उन्हें दूसरों की परवाह कभी नहीं थी, लेकिन कम से कम मनन का ही सोच लेते। वह उनका खून है।”
अरमान अपनी गाड़ी के पास गया और सीधा राजावत हवेली जाने के लिए निकल गया था। वहीं, दूसरी तरफ चौहान पैलेस के अंदर सब एक साथ लिविंग रूम में बैठे थे। वेद का बर्थडे बीत चुका था। सुबह वह उससे केक नहीं कटवा पाए, ऊपर से पूरे दिन से वेद गायब था।
अचानक नव्यांशी के मोबाइल पर कुछ फोटोज आईं, जिसे देखकर वह हैरान रह गई। उसने वंश, आराध्या और अक्षत की तरफ देखा, जो बिल्कुल नॉर्मल तरीके से बैठे हुए थे। हाँ, वह वेद को लेकर थोड़ा परेशान जरूर थे।
नव्यांशी ने अपने मोबाइल की स्क्रीन उनकी तरफ करते हुए कहा, “मुझे नहीं पता इन फोटोज और इस खबर में कितनी सच्चाई है, लेकिन लोग कह रहे हैं कि भाई ने शादी कर ली है।”
“क्या?” उसकी बात सुनकर वंश, आराध्या और अक्षत एक साथ बोले।
वह तीनों जल्दी से उसके पास आए और उसका मोबाइल देखने लगे। सच में, वेद एक लड़की के साथ था, जो उम्र में उससे काफी कम भी लग रही थी। ऊपर से, वह शादी के जोड़े में थी। उसके साथ में एक वीडियो आया था, जिसमें वेद सबके सामने शिवांशा को अपनी पत्नी बता रहा था।
“नहीं, यह नहीं हो सकता।” नव्यांशी ने सिर हिलाकर कहा, “भाई का शादी में कोई इंटरेस्ट नहीं है। अगर उन्हें शादी करनी ही होती, तो वह अपने से कम उम्र की लड़की से शादी क्यों करते, जबकि उनके सर्कल में काफी लड़कियां है, जो हर तरह से उनके लिए परफेक्ट है। वह तो भाई को पसंद तक करती है, और भाई इस बात को जानते हैं। मुझे दाल में कुछ काला लग रहा है।”
“हाँ, यह लड़की किसी भी तरह से भाई के हिसाब से नहीं लग रही है। उन्हें कॉन्फिडेंट रखने वाले लोग पसंद हैं, जबकि इसे देखकर लग रहा है कि यह मीडिया देखकर बुरी तरह घबरा गई है।” वंश बोला। उसे भी नव्यांशी की तरह यकीन नहीं हो रहा था।
अचानक वेद की जिंदगी में किसी नई लड़की का आना उन्हें हजम नहीं हो रहा था। वहीं, अक्षत और आराध्या ने एक-दूसरे की तरफ देखा। वह इसे काफी पॉजिटिवली ले रहे थे।
आराध्या ने मुस्कुराकर कहा, “आप सब यह क्यों सोच रहे हैं कि यह लड़की भाई के लायक नहीं है, या फिर यह घबराई हुई लग रही है? क्या फर्क पड़ता है, इसकी उम्र जो भी है? लेकिन खुशी की बात यह है न कि पहली बार भाई ने अपने बारे में सोचा। उन्होंने शादी कर ली है।”
“मैं भाभी की बात से सहमत हूँ।” अक्षत ने जवाब दिया, “हमें उनके वेलकम की तैयारी करनी चाहिए। मुझे ऐसे क्यों लग रहा है कि तुम दोनों को जलन हो रही है?”
नव्यांशी ने उसे डाँटते हुए कहा, “हमें कोई जलन नहीं हो रही है। उल्टा, हम खुश हैं कि भाई आगे बढ़े हैं, लेकिन लड़की उनके मैच की होनी चाहिए न?”
“नवी बिल्कुल ठीक कह रही है। जरूर भाई ने किसी मजबूरी में शादी की होगी। वह चेहरे से खुश नहीं लग रहे हैं।” वंश ने उसका साथ देते हुए कहा।
अक्षत ने गहरी साँस ली और बोला, “आप दोनों क्यों डिटेक्टिव बने हुए हो? क्या आपने कभी भाई को मुस्कुराते हुए और खुश देखा है? उनके फेस के एक्सप्रेशंस हमेशा न्यूट्रल रहते हैं। हाँ, गुस्से में थोड़े और डार्क हो जाते हैं, लेकिन मैंने उन्हें रेयरली स्माइल करते हुए देखा है। दूसरी बात, भाई कोई बच्चे नहीं हैं, जो मीडिया के सामने अचानक ऐसे ही किसी लड़की को उठाकर अपनी वाइफ बता देंगे। आप सब जानते हैं, हमारी फैमिली रेप्युटेशन क्या है। हम रॉयल फैमिली से बिलॉन्ग करते हैं। ऊपर से, भाई का पॉलिटिक्स में भी अच्छा-खासा रोल रहता है। हमारी कंपनी इंडिया की टॉप कंपनी में से एक है।”
अक्षत काफी लॉजिकली बात कर रहा था। मजबूरी में ही सही, उन लोगों को उसकी बात से सहमत होना पड़ा।
“अगर ऐसा है, तो फिर सच में हमें उनके वेलकम की तैयारी करनी चाहिए। पहली बार भाई ने खुद को लेकर कोई बड़ा डिसीजन लिया है। हमें उनके फैसले की रिस्पेक्ट करनी चाहिए। हमने आज तक किसी फैसले पर सवाल नहीं उठाया, तो आज भी नहीं उठाएँगे।” नव्यांशी ने जवाब दिया।
वह सब वेद और शिवांशा के वेलकम में लग गए थे। तो वहीं, दूसरी तरफ वेद इस वक्त बहुत ज्यादा गुस्से में था। उसने बीच रास्ते में प्रतीक को गाड़ी से उतारा और खुद शिवांशा को लेकर न जाने कहाँ जा रहा था। शिवांशा उसके पास पैसेंजर सीट पर बैठी हुई थी और इस वक्त वह डर से काँप रही थी।
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