**"उसने मुझे खरीदा था… एक जिस्म की भूख में"** ये सिर्फ एक डार्क रोमांस नहीं, बल्कि मासूमियत और दरिंदगी के बीच की एक जंग है — जहाँ प्यार की कोई जगह नहीं, सिर्फ वासना, सत्ता और जुनून की आग है। ड्रिष्टी बंसल, एक उन्नीस साल की प्यारी, मासूम और नटख... **"उसने मुझे खरीदा था… एक जिस्म की भूख में"** ये सिर्फ एक डार्क रोमांस नहीं, बल्कि मासूमियत और दरिंदगी के बीच की एक जंग है — जहाँ प्यार की कोई जगह नहीं, सिर्फ वासना, सत्ता और जुनून की आग है। ड्रिष्टी बंसल, एक उन्नीस साल की प्यारी, मासूम और नटखट लड़की, जिसे ज़िंदगी से बस थोड़ा-सा सुकून चाहिए था। वो छोटी-छोटी चीज़ों में खुश हो जाने वाली लड़की थी — बारिश में भीगना, अपनी डायरी में सपनों को कैद करना, और मां-बाप की यादों में खो जाना। लेकिन किस्मत ने उसकी जिंदगी को प्यार से नहीं, सौदे से जोड़ा — और वो भी एक ऐसे सौदे से, जहाँ उसकी रूह तक को बेचा गया। उसकी दुनिया तब तबाह हो गई जब उसके अपने — उसके चाचा-चाची — उसे एक खौफनाक सौदे में झोंक देते हैं। उसके उन्नीसवें जन्मदिन पर केक नहीं, एक डील साइन होती है। और वो डील होती है बैंगलोर के सबसे खतरनाक, क्रूर और दिलरहित माफिया डॉन **सार्थक प्रताप सिंह** के साथ। शहर जिसका नाम सुनते ही कांपता है, और औरतें जिसके सामने सिर झुका देती हैं, डर के मारे नहीं — बल्कि क्योंकि उनके पास कोई और चारा नहीं होता। सार्थक वो है जो हर चीज को कंट्रोल में रखना चाहता है — लोग, इमोशन्स, औरतें… और अब **ड्रिष्टी**। उसे देखकर ही उसके भीतर की वहशी आग भड़क जाती है। उसे चाहिए बस एक चीज़ – ड्रिष्टी का जिस्म। प्यार, इज्ज़त, मर्यादा… ये सब उसके शब्दकोश में हैं ही नहीं। उसकी नज़रों में ड्रिष्टी एक खूबसूरत सौदा है, एक खिलौना… और वो उसे पहले ही दिन बर्बाद कर देता है। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। यहीं से असली शुरुआत होती है। ड्रिष्टी टूटती है… लेकिन मिटती नहीं। उसकी आंखों में आंसू हैं, मगर उसके भीतर अब एक आग भी है। वो जानती है कि ये जुल्म सहना उसकी किस्मत नहीं हो सकती। और यहीं से शुरू होती है एक जंग — उसके अस्तित्व की, उसकी रूह की, उसके आत्मसम्मान की। इस कहानी में हर रात एक डरावना सपना है, हर दिन एक नई साज़िश। और इस सबके बीच **सार्थक** और **ड्रिष्टी** के बीच एक ऐसा रिश्ता बनता है जो जुनून, घृणा, लत, और दर्द से भरा है। क्या एक हैवान भी किसी मासूम से मोहब्बत कर सकता है? क्या जब एक माफिया के सीने में दिल धड़कता है, तो वो मोहब्बत बनती है या और भी ज़्यादा ख़तरनाक हो जाती है? **"उसने मुझे खरीदा था…"** एक ऐसी कहानी है जो आपकी रूह को झकझोर देगी। इसमें सेक्सुअल टेंशन है, इमोशनल टॉर्चर है, अंधेरे में दम घोंटती हवाएं हैं, और एक ऐसी मासूम लड़की की चुप चीखें हैं जिन्हें सुनने वाला कोई नहीं… सिवाय उसके, जिसने उसे खरीदा। ये कहानी आपको पागल बना देगी… और आप चाहकर भी इससे बाहर नहीं निकल पाएंगे।
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"Drishti! ज़रा मेहमानों के लिए पानी तो ला!"
नीना बंसल की कड़कती आवाज़ पूरे घर में गूंज गई। सुबह के दस बजे थे, लेकिन घर में अजीब सी खामोशी थी। न कोई सजावट, न ही कोई केक, न ही कोई गिफ्ट्स की उम्मीद। आज Drishti का उन्नीसवां जन्मदिन था, मगर घर में इस बात की कोई अहमियत नहीं थी।
Drishti किचन से पानी की ट्रे लेकर आई, उसके चेहरे पर एक फीकी मुस्कान थी, मानो उसने उम्मीद करना ही छोड़ दिया हो। "ये लो चाची, चार ग्लास हैं। और चाहिए तो बता देना।" उसने शांति से कहा। "जुबान ज़्यादा चलने लगी है तेरी! ज़्यादा समझदारी मत दिखा, ठीक है?" नीना ने उसकी तरफ घूरते हुए कहा।
Drishti कुछ नहीं बोली। बस ट्रे रखकर चुपचाप पीछे हट गई। ड्राइंग रूम में कुछ अजनबी लोग बैठे थे। तीन–चार मंहगे सूट वाले आदमी, जिनकी आंखें Drishti पर ऐसे टिकी थीं जैसे वो कोई चीज़ हो।
हर क़दम पर उसकी नज़रों से उसका अपमान टपक रहा था, लेकिन उसने फिर भी सिर झुका रखा था। आदत सी हो गई थी अब। तभी हरश बंसल अंदर आया। उसके चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन आंखों में कुछ और ही था – एक डर, एक बेचैनी… और एक मक्कारी।
"Drishti, इधर आओ।" उसने आवाज़ दी। Drishti धीमे क़दमों से आगे बढ़ी।"जी चाचू…"
"ये लोग... बहुत बड़े आदमी हैं। बहुत अमीर। और तुम्हारे लिए बहुत अच्छा मौका है।"
"कैसा मौका?" Drishti को कुछ समझ नहीं आया।
"तुम्हारी शादी की बात चल रही है। एक बड़े घराने में। तुम्हारी ज़िंदगी बन जाएगी बेटा।" Drishti चौंकी।
"पर चाचू… मुझे तो पढ़ाई पूरी करनी है। और… अभी शादी? इतनी जल्दी?"
नीना बीच में बोली ,"तेरे बस की पढ़ाई नहीं है। वैसे भी तेरे मां-बाप तो रहे नहीं, जो तुझे सपनों में उड़ाएंगे। अब हमारे सहारे है तू। और हम जो कहेंगे, वही होगा।"
Drishti के चेहरे का रंग उड़ गया। उसकी आंखों में नमी थी। पर उसने खुद को संभाला।
"किससे शादी की बात कर रहे हैं आप?" तभी हरश उसको दूसरे कमरे में लेकर पहुंच , नीना भी उनके पीछे आई। हरश ने Drishti का कंधा पकड़ा और उसे कुर्सी पर बैठाया।
"बेटा, बात सीधी है। मैं बहुत कर्ज में डूबा हुआ हूँ। बहुत परेशानी में हूँ। और… तुम ही हो जो मुझे इस दलदल से निकाल सकती हो।" Drishti चौंकती है,"क्या मतलब?"
हरश ने कहा, "मतलब ये कि एक आदमी है… बहुत ताकतवर। उसका नाम सार्थक प्रताप सिंह है।" Drishti का दिल तेजी से धड़कने लगा। ये नाम उसने कई बार सुना था – एक राक्षस की तरह। लोग कहते थे कि वो औरतों को सिर्फ ‘खिलौना’ समझता है।
"क्या… क्या आप मुझे उस आदमी को बेचने वाले हैं?" उसकी आवाज कांप रही थी। नीना हँसी ,"बेच नहीं रहे, दे रहे हैं। और वो भी अच्छे दाम पर।"
"आपको मेरी ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं?" Drishti की आंखें अब भर आई थीं। हरश चुप रहा। वो उसकी आंखों में नहीं देख पा रहा था। "सार्थक आज रात तुम्हें लेने आएगा। ये डील पहले ही फाइनल हो चुकी है। ये उन ही के लोग हैं, और... तुम्हें जाना ही होगा।"
Drishti उठ खड़ी हुई ,"मैं नहीं जाऊंगी। चाहे जो हो जाए।" हरश ने उसका हाथ झटक कर कहा ,
"तू जाएगी! क्योंकि ये घर अब तेरा नहीं। और वो आदमी अगर नाराज़ हो गया, तो हम सब मारे जाएंगे। समझी?"
नीना उसके पास आई और उसका चेहरा पकड़कर कहा
"हमने तुझे पाला है इतने सालों से। अब वक्त है कि तू हमें वापस कुछ दे। और वैसे भी, तुझे तो चाहिए एक राजकुमार… चल अब भुगत इस कड़वे सच को।"
Drishti फूट-फूट कर रोने लगी। "आप लोग मेरी मां-बाप बनकर क्या यही देंगे मुझे?"
"तेरे मां-बाप अगर होते, तो तुझे इन हालातों में छोड़कर नहीं जाते। अब चुपचाप जा और तैयार हो जा। अच्छा ड्रेस पहनना… वो पहली रात है तेरी आज…" नीना की ये बात किसी नश्तर की तरह घुस गई Drishti के सीने में। वो दीवार से टिककर खड़ी रही। उसका पूरा वजूद जैसे कांपने लगा था।
रात – 9 बजे , घर के सामने लग्जरियस कारों का काफिला आकर रुका। उसमें से ब्लैक यूनिफॉर्म पहने आदमी उतरे। सबके चेहरों पर कठोरता, और आंखों में बेफिक्री थी, और हाथों में गन थी। दरवाज़ा खुद नीना ने खोला ,"वेलकम है। अंदर आइए।"
शिफॉन की रेड साड़ी में लिपटी Drishti सीढ़ियों से नीचे उतरी। उसकी आंखें सूजी हुई थीं। होंठ कांप रहे थे।
और तभी वो आया – **सार्थक प्रताप सिंह**।
ऊंचा कद, ठंडी आंखें, सख्त जबड़ा, और उसकी चाल – जैसे मौत चल रही हो। उसने Drishti को देखा। कुछ नहीं बोला। बस एक लंबी नज़र डाली।
"यही है?" सार्थक प्रताप सिंह ने कड़क आवाज़ में पूछा। "जी हां, यही है।" हरश ने घबराते हुए कहा। "पैक करो इसे।" सार्थक ने अपनी बॉडीगार्ड्स को इशारा दिया।
Drishti एक पल के लिए हिली। "मैं नहीं जाऊंगी… प्लीज़…" उसकी आवाज में गुहार थी।
पर सार्थक के इशारे पर दो बाॅडीगार्ड आगे बढ़े, और Drishti को खींचते हुए कार की तरफ ले गए।
"हमें माफ करना बेटा Drishti ," हरश बोला, "पर हमें भी जीना है।" और कार चल दी… Drishti को लेकर एक अंधेरे की ओर, जहाँ से वापस लौटना शायद मुमकिन नहीं था।
सार्थक ने उसके बगल बैठते हुए सिर्फ एक बात कही ,
"अब तुम मेरी हो… और मैं तुम्हें रोज अपने बस्तर पर तबाह करूंगा। " Drishti ने एक आंसू गिरने दिया। उसकी मासूमियत, उसका बचपन, और उसका सपना… सब आज बिक चुका था।
सार्थक Drishti को अपनी गोद में खींच कर अपने होंठ उसके होंठों पर रख देता हैं, और किस करने लगता हैं, ये सब इतनी जल्दी हुआ Drishti कुछ समझ नहीं पाई, और उसकी आंखें बंद हो गई, और सार्थक उसके होंठों का रसपान कर रहा था, सार्थक के साथ Drishti की खुली कमर पर चल रहे थे, सार्थक किस के साथ साथ Drishti के होंठों पर बाइट भी कर रहा था, ये Drishti का पहला किस था, जो सार्थक उससे फोर्सफूली छीन रहा था|
दूसरी तरफ नीना नोटों से भरा बैग बाहों में लेकर गोल गोल घुम रही थी, हरश उससे बैग छीन कर बोला," यहां दो, मैं इसको संभाल कर रख दूं "
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