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Beyond Words : A Love Born in Silence

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Dev Srivastava

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"हर चेहरे के पीछे एक कहानी होती है… और हर नकाब के पीछे एक राज़।" सिद्धांत माथुर—एक ऐसा नाम जो रहस्य से घिरा हुआ है। हमेशा मास्क पहनने वाला ये लड़का कौन है? क्या वो सिर्फ़ अपना चेहरा छुपा रहा है… या अपनी असलियत? एक रात एक हादसा हुआ। सिद्धांत ने निशा...

Total Chapters (85)

Page 1 of 5

  • 1. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 1

    Words: 2216

    Estimated Reading Time: 14 min

    23 मई 2030, तारामंडल - गोरखपुर, सुबह लगभग 7:30 बजे।

    एक लड़का दौड़ रहा था। उसकी उम्र लगभग 25 साल रही होगी। उसने सफेद रंग की ट्रैक पैंट के साथ काले रंग का टी-शर्ट पहना हुआ था। उसने अपने बाएं हाथ में एक काले रंग की स्पोर्ट्स वॉच और दाएं हाथ में एक कलावे के साथ सिल्वर ब्रेसलेट पहना हुआ था। उसके दाएं हाथ की रिंग फिंगर में एक हीरे की अंगूठी चमक रही थी। उसके पैरों में सफेद रंग के स्नीकर्स थे। उसके गले में एक हेडफोन लटक रहा था और उसके मुंह पर मास्क लगा हुआ था।

    वह उस समय एक पार्क में था और अपनी मस्ती में दौड़ रहा था कि तभी किसी ने उसका नाम लेकर बुलाया, "सिड भैया!"

    सिड के कदम रुक गए। वह उस आवाज को पहचानता था। उसने अपनी गर्दन आवाज की दिशा में घुमाई। वहाँ पर एक 20-21 साल का लड़का खड़ा था। उसने काले रंग की जींस के साथ नीले रंग का टी-शर्ट पहना हुआ था। उसने अपने कंधे पर एक बैग लटका रखा था। सिड मुस्करा दिया, लेकिन अपना मास्क नहीं उतारा।

    वह लड़का दौड़कर उसके पास आया।
    "क्या हुआ छोटे, इतनी सुबह-सुबह यहां क्या कर रहा है?" सिड ने कहा।

    "क्या सिड भाई, अब तो मुझे छोटे बुलाना छोड़ दीजिए।" लड़के ने मुंह बनाकर कहा।

    सिड को हंसी आ गई।
    "अच्छा, ऐसे मुंह मत बनाओ। अब नहीं बुलाएँगे।" सिड ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा।

    "पक्का न!" लड़के ने कहा।

    "हाँ बाबा, पक्का!" सिड ने यकीन दिलाते हुए कहा।

    वह लड़का खुश हो गया।
    "अब बता, इतनी सुबह-सुबह यहां कैसे?" सिड ने पूछा।

    लड़के ने अपने बैग में से एक बॉक्स निकालकर उसके सामने रखा।
    "हैप्पी बर्थडे, भाई!"

    "थैंक यू, लकी! लेकिन इसकी जरूरत नहीं है।" सिड ने बॉक्स उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा।

    "भाई!" लकी ने फिर से मुंह बनाकर कहा।

    "इसे तुम रखो। तुम्हें इसकी ज्यादा जरूरत पड़ सकती है।" सिड ने बॉक्स और ज़्यादा उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा।

    "पर पापा...!" लकी ने संकोच करते हुए कहा।

    "उनसे हम बात कर लेंगे।" सिड ने तुरंत कहा।

    "ठीक है, भाई!" लकी ने बॉक्स वापस अपने बैग में रखते हुए कहा।

    उसने एक लंच बॉक्स अपने बैग से निकाला।
    "लेकिन ये तो आपको लेना ही पड़ेगा।"

    "हमारी खीर!" सिड ने उस लंच बॉक्स को देखते ही कहा।

    सिड ने लकी के हाथ से खीर ले ली। उसने वहीं बेंच पर बैठकर बॉक्स खोला और अपना मास्क थोड़ा साइड करके खीर खाने लगा।

    "वाह! माता श्री के हाथों की खीर के बाद ये खीर ही दुनिया की बेस्ट खीर है।" उसने पहला बाइट लेते ही कहा।

    लकी मुस्करा दिया।
    "अच्छा भाई, मैं चलता हूँ, गैरेज में काम है।" उसने अपना बैग कंधे पर चढ़ाते हुए कहा।

    सिड ने अपना अंगूठा दिखा दिया। लकी उसी मुस्कान के साथ चला गया। सिड की मुस्कान गायब हो गई। उसके चेहरे के भाव बदल गए। उसकी आँखों में थोड़ी नमी, थोड़ा गिल्ट और थोड़ा गुस्सा था। उसने उस खीर को गुस्से में खाना शुरू कर दिया।

    लगभग दो मिनट बाद उसके हाथ से लंच बॉक्स छूट गया और वह बेहोश होकर गिर गया।


    लगभग एक घंटे बाद, हर तरफ हौले-हौले ठंडी हवाएँ बह रही थीं। एक लड़का अपने घर के गार्डन में सीढ़ियों पर बैठा था। वह घर बहुत खूबसूरत था। यह एक दो मंजिला घर था, जो लगभग पाँच डेसीमल के एरिया में बना हुआ था। घर के बाहर बहुत बड़ा गार्डन था, जो घर के चारों ओर फैला हुआ था और फिर चारदीवारी। चारदीवारी के पास अलग-अलग फलों के पेड़ लगे हुए थे। मेन गेट से घर के दरवाजे तक रास्ते के दोनों तरफ कई प्रकार के फूलों के गमले रखे हुए थे।

    वह लड़का सिर ऊपर की ओर किए हुए बैठा था। उसने काले रंग की पैंट के साथ सफेद रंग का टी-शर्ट पहना हुआ था। साथ में उसने एक सफेद रंग का शर्ट पहना हुआ था, जिसके बटन खुले हुए थे। हवा से उसके बाल और शर्ट पीछे की ओर लहरा रहे थे। उसने अपने हाथ पीछे रखे हुए थे। वह अपनी आँखें बंद किए हुए उस हवा को महसूस कर रहा था। उसके चेहरे पर सुकून नजर आ रहा था। तभी उसका फोन बज उठा। उसने फोन उठाकर देखा तो वह कॉल बैंक से थी।

    "इन बैंक वालों को कुछ काम-धंधा नहीं रहता है क्या!" उसने चिढ़कर खुद से कहा।

    उसने फोन काट दिया, लेकिन अचानक उसे कुछ याद आया। उसने तुरंत फोन उठा लिया। उसने समय देखा तो सुबह के नौ बज रहे थे।

    "ये सिड कहाँ रह गया? उसे तो अब तक आ जाना चाहिए था।" उसने खुद से कहा।

    वह लड़का उठ खड़ा हुआ। उसने अपने फोन में एक नंबर निकाला, जिस पर "माय लाइफ" लिखा हुआ था। उसने उस नंबर पर कॉल किया, पर कॉल आंसर नहीं हो रहा था। उसने दुबारा ट्राई किया, लेकिन इस बार भी कॉल आंसर नहीं हुआ।

    "कहीं इसने फिर से अपना फोन डू नॉट डिस्टर्ब मोड पर तो नहीं डाल रखा है न!" उसने बार-बार फोन ट्राई करते हुए कहा।

    "क्या करें हम इस लड़के का!" उसने चिढ़कर कहा।

    और अपना फोन जेब में डालकर, अपनी बाइक लेकर बाहर निकल गया।

    कुछ देर बाद वह एक जिम के सामने था।
    "सिड, सिड, वेयर आर यू?" उसने अंदर जाते ही चिल्लाकर कहा।

    उसकी आवाज सुनकर उस जिम का मालिक अपने केबिन से बाहर आया।

    "क्या हुआ यश, इतने परेशान क्यों लग रहे हो?" जिम के मालिक राहुल ने कहा।

    "भाई, सिड कहाँ है?" यश ने कहा।

    "सिड? उसे निकले हुए तो लगभग 1 घंटा हो गया है।" राहुल ने कन्फ्यूजन के साथ कहा।

    "क्या?" यश ने अपनी आँखें बड़ी करके कहा।

    "हाँ!" राहुल ने कहा।

    "क्यों, वो घर नहीं पहुँचा क्या अभी तक?" राहुल ने पूछा।

    "हम आपसे बाद में बात करते हैं।" यश ने बाहर जाते हुए कहा।

    "पर यश..." राहुल ने उसे रोकते हुए कहा, लेकिन यश चला गया।

    यश ने वापस घर आकर सिड को ढूँढना शुरू कर दिया। उसे हर जगह ढूँढ लिया, पर उसका कहीं कोई अता-पता नहीं था।

    उसे परेशान देखकर एक महिला, जो पौधों को पानी दे रही थी, ने यश से कहा, "क्या हुआ, बेटा?" उसकी उम्र लगभग पाँच साल के आसपास रही होगी।

    "माँ वो, वो!" यश ने पैनिक करने लगते हुए कहा।

    "वो क्या, यश?" सिड की माँ (मिसेज माथुर) ने घबराकर कहा।

    "सिड कहीं मिल नहीं रहा है, माँ।" यश ने एक ही साँस में कहा।

    "क्या?" मिसेज माथुर ने कहा।

    "हाँ माँ, उसने हमसे कहा था कि वो जिम जा रहा है।" यश ने कहा।

    "तो वहाँ जाकर देखा!" मिसेज माथुर ने तुरंत कहा।

    "हाँ माँ, वहाँ भी देख लिया। राहुल भाई ने बताया कि सिड वहाँ गया था पर उसे निकले हुए लगभग एक घंटा हो गया है।" यश ने टेंशन के साथ कहा।

    "ऐसा कैसे हो सकता है। अगर उसे निकले हुए इतना समय हो गया है तो अब तक तो उसे यहाँ आ जाना चाहिए था।" मिसेज माथुर ने कहा।

    "वही तो समझ नहीं आ रहा है न!" यश ने कहा।

    "कहाँ चला गया ये लड़का?" मिसेज माथुर ने अपना सिर पकड़कर कहा।

    "माँ, आप टेंशन मत लीजिए। हम, हम कुछ करते हैं। हम ढूँढते हैं उसे।" यश ने कहा।

    "हाँ, हम भी देखते हैं। कहीं कॉलेज में तो नहीं है न!" मिसेज माथुर ने बाहर की ओर जाते हुए कहा।

    "नहीं माँ, हमने वहाँ भी पता किया है। वो वहाँ भी नहीं है। एक काम करिए, आप पहले सनी भाई को इनफॉर्म कर दीजिए और हम लक्ष्मी दीदी और काव्या दीदी से पूछते हैं।" यश ने कहा।

    "हाँ, ये ठीक रहेगा।" मिसेज माथुर ने अपना फोन निकालते हुए कहा।

    "हम्म!" यश ने कहा और फिर वो दोनों अपने अपने फोन से कॉल करने लगे।

    मिसेज माथुर सनी से बात कर रही थीं। यश ने फोन पर काव्या से कहा, "प्रणाम दीदी, सिड आपके यहाँ आया है क्या?"

    "नहीं तो! क्यों, क्या हुआ?" काव्या ने कहा।

    "कुछ नहीं, हम आपसे बाद में बात करते हैं।" यश ने तुरंत कहा।

    "पर..." काव्या ने कहा, लेकिन यश ने तुरंत कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।

    "क्या हुआ, सिड है वहाँ?" मिसेज माथुर ने यश के कंधे पर हाथ रखकर कहा।

    यश ने निराशा के साथ अपना सिर ना में हिलाकर कहा, "नहीं।"

    "लक्ष्मी को कॉल करो।" मिसेज माथुर ने कहा।

    "हाँ, हाँ, करते हैं।" यश ने कहा।

    यश ने लक्ष्मी से बात कर ली।
    "क्या हुआ, कुछ पता चला?" मिसेज माथुर ने बेचैनी के साथ कहा।

    यश ने फिर निराशा में सिर हिलाकर कहा, "नहीं माँ, सिड वहाँ भी नहीं है।"

    वह दोनों बातें कर ही रहे थे कि इतने में एक आदमी अंदर आया।

    "पापा!" यश ने कहा।

    "हाँ, बेटा!" उस आदमी (मिस्टर सिन्हा) ने कहा।

    "आपने सिड को कोई काम दिया है क्या?" यश ने सवाल किया।

    मिस्टर सिन्हा ने अपना सिर ना में हिलाकर कहा, "नहीं, तो!"

    "आपने उसे किसी मिशन पर नहीं भेजा है!" यश ने फिर से सवाल किया।

    "बिल्कुल नहीं, बल्कि हम तो उसे खुद ही मना करने वाले थे।" मिस्टर सिन्हा ने कहा।

    "अब क्या किया जाए?" मिसेज माथुर ने अपना सिर पकड़कर कहा।

  • 2. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 2

    Words: 2076

    Estimated Reading Time: 13 min

    सुबह का समय था। मिसेज माथुर और यश सिड को ढूँढने के सिलसिले में बातें कर ही रहे थे कि इतने में एक आदमी अंदर आया।

    उसे देखकर यश ने कहा, "पापा!"

    उस आदमी (मिस्टर सिन्हा) ने उसकी ओर देखकर कहा, "हाँ, बेटा!"

    यश ने उनसे सवाल करते हुए कहा, "आपने सिड को कोई काम दिया है क्या?"

    मिस्टर सिन्हा ने अपना सिर ना में हिलाकर कहा, "नहीं, तो!"

    यश ने फिर से सवाल किया, "आपने उसे किसी मिशन पर नहीं भेजा है!"

    मिस्टर सिन्हा ने कहा, "बिल्कुल नहीं, बल्कि हम तो उसे खुद ही मना करने वाले थे।"

    मिसेज माथुर ने अपना सिर पकड़कर कहा, "अब क्या किया जाए?"

    मिस्टर सिन्हा ने सवाल करते हुए कहा, "हुआ क्या है?"

    यश ने उनकी ओर देखकर कहा, "पापा, सिड का कहीं कुछ पता नहीं चल रहा है।"

    मिस्टर सिन्हा ने नासमझी से थोड़ी तेज आवाज में कहा, "क्या मतलब, पता नहीं चल रहा है?"

    यश ने उन्हीं भावों के साथ कहा, "वो कुछ देर पहले जिम गया था और वहीं से गायब है।"

    मिस्टर सिन्हा ने भी चिंता के साथ कहा, "तुमने हर जगह देख लिया?"

    यश ने फ्रस्ट्रेट होकर कहा, "हाँ, यहां तक कि वो लक्ष्मी दी या काव्या दी के यहां भी नहीं है।"

    मिसेज माथुर ने भी तुरंत कहा, "और सनी के साथ या मोक्षा के पास भी नहीं है।"

    मिस्टर सिन्हा ने फिर से पूछा, "उसके दोस्तों से बात की?"

    यश ने फिर से अपना फोन निकालते हुए कहा, "नहीं, हम अभी करते हैं।"

    मिस्टर सिन्हा ने भी फोन निकालते हुए कहा, "हाँ, हम भी देखते हैं।"

    फिर वे तीनों अलग होकर सिड के दोस्तों से बात करने लगे। लगभग बीस मिनट बाद तीनों वापस हॉल में इकट्ठे हो गए।

    मिसेज माथुर ने मिस्टर सिन्हा की ओर देखकर कहा, "कुछ पता चला?"

    मिस्टर सिन्हा ने निराशा के साथ कहा, "नहीं, भाभी जी!"

    फिर उन्होंने मिसेज माथुर की ओर देखकर कहा, "आपको?"

    मिसेज माथुर ने भी ना में सिर हिलाकर कहा, "नहीं, वो अपने किसी भी दोस्त के साथ नहीं है।"

    उनकी आँखों में आँसू आ गए थे।

    यश ने भी कहा, "हमने भी देख लिया, वो कहीं नहीं है।"

    मिस्टर सिन्हा ने टेंशन के साथ कहा, "अब तो एक ही रास्ता है, पुलिस कंप्लेंट!"

    फिर उन्होंने मिसेज माथुर की ओर देखकर कहा, "आप टेंशन मत लीजिए, भाभी जी! सिड को कुछ नहीं होगा। वो आपका बेटा बना है पर हमने खुद उसे अपना बेटा माना है। उसे बचाने के लिए जो भी करना पड़े, हम करेंगे।"

    मिसेज माथुर ने हाँ में सिर हिला दिया। मिस्टर सिन्हा अपने फोन से बात करते हुए बाहर चले गए। उन तीनों ने मिलकर पूरा शहर छान मारा था।

    सनी, काव्या, मोक्षा और लक्ष्मी को भी सिड के गायब होने की खबर मिल चुकी थी और वे सब भी वहाँ आ चुके थे। सभी लोग हर मुमकिन कोशिश कर चुके थे सिड को ढूँढने की, लेकिन उसका कहीं अता-पता नहीं था।


    वहीं दूसरी तरफ, एक प्राइवेट जेट अपनी गति से आसमान में उड़ रहा था। उस जेट में एक लड़की और एक बूढ़ा आदमी बैठे हुए थे।

    लड़की की उम्र कोई 24 साल रही होगी, तो वहीं आदमी की उम्र 75 साल के आसपास थी। लेकिन उसने खुद को इतना फिट किया हुआ था कि उसे देखकर उसकी उम्र का अंदाजा लगा पाना मुश्किल था। उन दोनों के अलावा सिड भी उस जेट में बैठा हुआ था।

    जहाँ बूढ़े आदमी ने बढ़िया सा सूट पहना हुआ था, तो वहीं सिड और उस लड़की ने काले रंग की जींस के साथ सफेद रंग का टी-शर्ट पहना हुआ था, जिसकी बाजू उनके पूरे हाथ को ढक रही थी।

    सिड चुपचाप बैठा हुआ था और सामने की ओर देख रहा था। उसके मुँह पर मास्क लगा हुआ था और बाल बिखरे हुए थे।

    बूढ़े आदमी के चेहरे पर अकड़ थी, तो वहीं उस लड़की के चेहरे पर दुनियाँ-जहाँ की खुशी नज़र आ रही थी। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि उसे कोई गाड़ा हुआ खजाना मिल गया हो।

    उसने अपने बगल में बैठे हुए सिड का हाथ अपने हाथ में पकड़ लिया। सिड की पुतलियाँ उसकी ओर घूम गईं, जिनमें नफ़रत साफ़ नज़र आ रही थी; लेकिन अजीब बात यह थी कि पुतलियों के अलावा उसके शरीर का कोई और हिस्सा नहीं हिल रहा था, यहाँ तक कि उसकी गर्दन भी नहीं।

    शायद उसे कोई ड्रग दिया गया था। उस लड़की ने उसकी आँखों में देखकर मुस्कराते हुए उसके चेहरे पर अपने हाथ फिरा दिए। इससे सिड और चिढ़ रहा था, लेकिन वह चाहकर भी उसे खुद से दूर नहीं कर पा रहा था।

    यह देखकर उस लड़की ने कहा, "बस थोड़ी देर और सिड, फिर हम दोनों इस देश से बाहर होंगे। एक ऐसी जगह पर, जहाँ हमारे अलावा और कोई भी नहीं होगा।"

    फिर उसने अपने दाँत पीसते हुए कहा, "और वो यश तो बिल्कुल भी नहीं।"


    शाम का समय था। सभी लोग हॉल में बैठे हुए थे। सबके चेहरों पर परेशानी साफ़ झलक रही थी।

    इतने में मिस्टर सिन्हा ने अपना फ़ोन देखकर मिसेज माथुर से कहा, "भाभी जी, एक बुरी खबर है।"

    मिसेज माथुर ने डर के साथ कहा, "क्या हुआ?"

    मिस्टर सिन्हा ने हिचकते हुए कहा, "निशा भी आज सुबह से ही गायब है।"

    सबके मुँह से एक साथ निकला, "क्या?"

    मिस्टर सिन्हा ने कहा, "हाँ, अनिरुद्ध ने अभी-अभी हमें यह बात बताई है।"

    सनी ने कुछ सोचते हुए कहा, "इसका मतलब कि..."

    उसकी बात पूरी होने से पहले ही मिस्टर सिन्हा ने कहा, "हाँ, हो सकता है कि वे दोनों साथ हों।"

    यश ने पूरे विश्वास के साथ कहा, "हो सकता है, लेकिन यह कभी नहीं हो सकता कि सिड अपनी मर्ज़ी से उसके साथ चला जाए।"

    लक्ष्मी ने अपना सिर पकड़कर कहा, "अब क्या करें!"

    यश ने गुस्से में कहा, "हमें तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है कि क्या करें। उसका बाप कोई नॉर्मल इंसान होता तो डरा-धमकाकर सब कुछ उगलवा भी लेते, लेकिन वो ठहरा MLA, कुछ पूछ भी नहीं सकते हैं उससे।"

    मिसेज माथुर ने चिंता के साथ कहा, "कुछ भी हो पर हम ऐसे हाथ पर हाथ रखकर तो नहीं बैठ सकते हैं ना!"

    मिस्टर सिन्हा ने उन्हें भरोसा दिलाते हुए कहा, "बिल्कुल नहीं भाभी जी, हम कुछ भी करके सिड को ढूँढकर ही रहेंगे।"


    दो दिन बाद, सभी लोग निराशा के साथ हॉल में बैठे हुए थे। मिसेज माथुर को तो जैसे सदमा सा लगा हुआ था क्योंकि दो दिनों से सिड की कोई खबर नहीं मिली थी।

    वह चुपचाप बैठी हुई थीं कि तभी उनका फ़ोन बज उठा। उन्होंने फ़ोन उठाकर देखा तो उन्हें एक अनजान नंबर से वीडियो कॉल आ रहा था।

    उन्होंने मिस्टर सिन्हा की ओर देखकर कहा, "वीडियो कॉल, वो भी अननोन नंबर से!"

    मिस्टर सिन्हा ने उम्मीद के साथ कहा, "रिसीव करके देखिए। शायद सिड के बारे में कुछ पता चल जाए।"

    मिसेज माथुर ने कहा, "हम्म!"

    और फिर कॉल आंसर किया तो सामने एक लड़की नज़र आने लगी। यह वही लड़की थी जो दो दिन पहले उस जेट में थी।

    उसने मिसेज माथुर को देखकर हाथ जोड़कर कहा, "प्रणाम, सासू माँ!"

    मिसेज माथुर उसे देखकर हैरान हो गईं।

    उनके मुँह से अपने आप ही निकल गया, "निशा!"

    निशा ने उत्साहित होकर मुस्कराते हुए कहा, "अरे वाह सासू माँ, आपकी याददाश्त तो बहुत तेज है।"

    मिसेज माथुर ने चिढ़कर कहा, "बकवास बंद करो अपनी और यह बताओ कि कॉल क्यों किया है।"

    निशा ने बेशर्मी से कहा, "अरे, अरे, कुल डाउन सासू माँ, कुल डाउन! मैं जानती हूँ कि आप सिड को लेकर परेशान हैं। होता है, होता है, जिससे आप प्यार करते हो, वो आपसे दूर चला जाए तो दुख होता है।"

    मिसेज माथुर ने फिर से कुछ कहना चाहा ही था कि तभी उनके दिमाग में कुछ खटका।

    उन्होंने तुरंत निशा को घूरते हुए कहा, "तुम्हें कैसे पता कि हम सिड को लेकर परेशान हैं? क्या वो तुम्हारे साथ है?"

    निशा ने अपनी मुस्कान को और बड़ा करके कहा, "बिल्कुल, मेरे साथ ही तो है।"

    फिर उसने फ़ोन को अपने बगल में लेटे हुए सिड की ओर घुमाकर कहा, "यह देखिए।"

    वहाँ एक बेड पर सिड लेटा हुआ था जिसने पेशेंट के कपड़े पहने हुए थे। उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ था और उसके मुँह पर अभी भी मास्क था। उसके बाल माथे पर बिखरे हुए थे।

    उसका पूरा चेहरा नज़र नहीं आ रहा था, लेकिन फिर भी सबने उसे पहचान लिया कि वह सिड ही है। वह बेहोश था, लेकिन इस हालत में भी उसके माथे पर सुकून नज़र नहीं आ रहा था।

    मिसेज माथुर ने उसे देखकर बेचैनी के साथ कहा, "सिड! सिड!" लेकिन उसने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया।

    निशा ने फ़ोन को फिर से अपनी ओर घुमाकर कहा, "वह नहीं उठेगा, सासू माँ!"

    मिसेज माथुर ने गुस्से में कहा, "क्यों? क्या किया है तुमने उसके साथ?"

    निशा ने बेफ़िक्री से कहा, "कुछ नहीं, सासू माँ! बस एक इंजेक्शन दिया है जिससे यह कुछ घंटों के लिए बेहोश रहेगा।"

    यश ने गुस्से में कहा, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई उसे किडनैप करने की!"

    निशा ने उसे घूरते हुए कहा, "अबे ओ, मेरे सौतन! तू तो अपना मुँह बंद ही रख और मेरे सिड पर हक़ जताने के बारे में सोचना भी मत। यह सिर्फ़ मेरा है, सिर्फ़ मेरा।"

    यश ने हँसकर कहा, "क्या फ़ायदा? तुम उसे अपना बनाकर भी अपना नहीं बना सकती। वो तुम्हें कभी नहीं अपनाएगा, कभी भी नहीं।"

    निशा के होठों पर एक तिरछी मुस्कान आ गई।

    उसने कहा, "वो तो मुझे अपनाएगा, और ज़रूर अपनाएगा। जब वो सच में सिद्धांत बन जाएगा तो उसके पास मुझे अपनाने के अलावा कोई और रास्ता बचेगा ही नहीं।"

    यश ने नासमझी से कहा, "क्या मतलब, सच में सिद्धांत बन जाएगा!"

    निशा ने एनॉयड सा फ़ेस बनाकर कहा, "क्या यश, तुम खुद साइंस लवर हो और फिर भी इस बात का मतलब पूछ रहे हो!"

    यश ने कुछ सोचते हुए कहा, "यू मीन..." और इसके आगे वह चुप हो गया और आँखें बड़ी करके निशा को घूरने लगा। निशा ने एक्साइटेड होकर कहा, "हाँ, हाँ, वही जो तू समझ रहा है।"

    यश ने उसे घूरते हुए बिल्कुल गंभीर आवाज में कहा, "तुम ऐसा नहीं कर सकती।"

    निशा ने दृढ़ आवाज में कहा, "मैं ऐसा कर सकती हूँ और करूँगी भी। एक साल, सिर्फ़ एक साल में सिड सच में सिद्धांत बन जाएगा और फिर मैं उससे शादी कर लूँगी।"

    यश ने हल्के से व्यंग्य से हँसकर कहा, "एक साल!"

    फिर उसने निशा की ओर देखकर कहा, "एक साल में तीन सौ पैंसठ दिन होते हैं मिस निशा, तीन सौ पैंसठ दिन! और तुम्हें ऐसा लगता है कि हम इतने दिनों तक उसे तुम्हारे पास छोड़ेंगे?"

  • 3. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 3

    Words: 1898

    Estimated Reading Time: 12 min

    शाम का समय था।

    निशा की बातें सुनकर यश ने नासमझी से कहा, "क्या मतलब, सच में सिद्धांत बन जाएगा!"

    निशा ने एनॉयड सा चेहरा बनाकर कहा, "क्या यश, तुम खुद साइंस लवर हो और फिर भी इस बात का मतलब पूछ रहे हो!"

    यश ने कुछ सोचते हुए कहा, "यू मीन..." और इसके आगे वह चुप हो गया और आँखें बड़ी करके निशा को घूरने लगा। निशा एक्साइटेड होकर बोली, "हाँ हाँ, वही जो तू समझ रहा है।"

    यश ने बिल्कुल गंभीर आवाज़ में कहा, "तुम ऐसा नहीं कर सकती।"

    निशा ने दृढ़ आवाज़ में कहा, "मैं ऐसा कर सकती हूँ और करूँगी भी। एक साल, सिर्फ एक साल में सिड सच में सिद्धांत बन जाएगा और फिर मैं उससे शादी कर लूँगी।"

    यश ने हल्के से व्यंग्य से हँसकर कहा, "एक साल!"

    फिर उसने निशा की ओर देखकर कहा, "एक साल में तीन सौ पैंसठ दिन होते हैं, मिस निशा, तीन सौ पैंसठ दिन! और तुम्हें ऐसा लगता है कि हम इतने दिनों तक उसे तुम्हारे पास छोड़ेंगे?"

    निशा ने दृढ़ता के साथ कहा, "तुम चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते।"

    यश ने उससे सवाल करते हुए कहा, "और तुम्हें ऐसा क्यों लगता है?"

    निशा ने स्क्रीन अपने चेहरे के बिल्कुल पास लाकर कहा, "इसलिए क्योंकि अगर तुमने ऐसा करने की कोशिश की तो मेरे पास सुसाइड और मर्डर दोनों के ही कई तरीके हैं। इसे भी मार दूँगी और खुद भी मर जाऊँगी, फिर करते रहना शादी, इसकी लाश से।"

    यह सुनते ही मिसेज़ माथुर ने घबराहट के साथ कहा, "नहीं, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी। कोई तुम्हारे पीछे नहीं आएगा, लेकिन सिड को कुछ नहीं होना चाहिए।"

    निशा ने खुश होकर कहा, "ये हुई ना बात!"

    फिर उसने यश को टौंट मारते हुए कहा, "देखो, मेरी सासू माँ कितनी समझदार हैं!"

    यश ने मिसेज़ माथुर की ओर देखकर कहा, "माँ, नहीं!"

    मिसेज़ माथुर ने भी उसकी ओर देखकर कहा, "यश, सिड से बढ़कर कुछ भी नहीं है।"

    उनकी बातें सुनकर यश के दिमाग में न जाने क्या आया कि उसने निशा की ओर देखकर कहा, "एक मिनट निशा, तुम उसे सच में सिद्धांत बनाना चाहती हो ना!"

    निशा ने तुरंत कहा, "हाँ!"

    यश ने उसे अपनी बातों में फँसाने के लिए कहा, "बनाओ, शौक से बनाओ और बेहोशी की हालत में उससे शादी भी कर लो, पर क्या उसे हमेशा ऐसे बेहोशी में ही अपने पास रखोगी?"

    निशा ने लापरवाही से कहा, "नहीं, एक बार वह पूरी तरह से सिद्धांत बन जाए और हमारी शादी हो जाए, फिर मैं इसे होश में ही रखूँगी।"

    यश ने अपनी भौंहें उठाकर कहा, "और तुम्हें लगता है कि वह इस बेहोशी की शादी को और तुम्हें अपनी वाइफ़ के तौर पर एक्सेप्ट कर लेगा!"

    निशा ने चिढ़कर कहा, "कहना क्या चाहते हो तुम?"

    यश समझ चुका था कि निशा बौखला चुकी है और इसी बात का फ़ायदा उठाते हुए उसने कहा, "कहना नहीं, चैलेंज करना चाहते हैं हम तुम्हें!"

    निशा ने भी कहा, "कैसा चैलेंज?"

    यश ने आराम से कहा, "देखो, उसके सिद्धांत बनने के बाद हमारी और उसकी शादी तो होने से रही तो..."

    इसके आगे यश ने कुछ नहीं कहा तो निशा ने उत्सुकता से कहा, "तो!"

    यश ने अपनी चाल चलते हुए कहा, "तो तुम यहाँ, सबके बीच, उसकी मर्ज़ी से, सबके आशीर्वाद के साथ उससे शादी करके दिखाओ तो हम मान लेंगे कि तुम्हारा प्यार सच्चा था।"

    निशा ने पूरे एटीट्यूड के साथ कहा, "मेरा प्यार सच्चा था नहीं, सच्चा है और तुमने मुझे चैलेंज किया है ना, ठीक है। एक साल बाद मैं इसे लेकर वापस आऊँगी और सबके आशीर्वाद के साथ ही इससे शादी करूँगी।"

    यश ने एक शातिर मुस्कान के साथ कहा, "चलो, देखते हैं!"

    निशा ने पूरे कॉन्फ़िडेंस के साथ कहा, "देख लेना।"

    इतना बोलकर उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।

    कॉल कटते ही मिसेज़ माथुर ने यश की ओर देखकर तेज आवाज़ में कहा, "ये क्या किया तुमने, यश?"

    यश ने आराम से कहा, "आपकी प्रॉब्लम को सॉल्व किया है, माँ।"

    मिसेज़ माथुर ने गुस्से में कहा, "ये, ऐसे, ऐसे सॉल्व किया है तुमने इस प्रॉब्लम को!"

    यश ने उनके कंधे पकड़कर कहा, "हाँ, माँ! सिड को बचाने का यही तरीका है हमारे पास।"

    इस बार सनी ने कहा, "और वह कैसे?"

    यश ने उसकी ओर देखकर कहा, "वह ऐसे कि वह उसका ऑपरेशन भले ही करा दे पर उससे शादी नहीं करेगी, एट लीस्ट इंडिया वापस आने तक तो नहीं, और अगर उसे सिड से शादी करनी है तो उसे इंडिया तो आना ही पड़ेगा।"

    सनी ने इस सब पर गौर करते हुए कहा, "हम्म! बात तो तुम्हारी सही है।"

    मिसेज़ माथुर ने रोते हुए कहा, "पता नहीं, यह सब सिड के साथ ही क्यों होता है!"

    अब इस पर यश क्या ही कहता। उसने सबको मिसेज़ माथुर को संभालने का इशारा किया और घर से बाहर चला गया। वह वहाँ से निकलकर पुलिस स्टेशन चला गया।

    उसने ACP अनिरुद्ध सिन्हा से कहा, "क्या हुआ? कुछ पता चला?"

    अनिरुद्ध ने अपना सिर पकड़कर कहा, "नहीं यार, यश!"

    यश ने तेज आवाज़ में कहा, "ऐसा कैसे हो सकता है? हम इसीलिए तो उससे इतनी देर तक बात करते रहे।"

    अनिरुद्ध ने उसकी ओर देखकर कहा, "तेरी बात सही है, पर जितने भी बार हमने स्क्रीन रिफ्रेश की उतनी ही बार हमें उसकी अलग लोकेशन मिली।"

    यश ने अपना एक पैर ज़मीन पर मारकर गुस्से में कहा, "शिट!"

    फिर उसने अनिरुद्ध की ओर देखकर कहा, "एक काम करिए, आप लोग सिड के फ़ोन की लोकेशन भी ट्राई करते रहिए।"

    अनिरुद्ध ने कुछ सोचते हुए कहा, "हम्म! ट्राई कर सकते हैं लेकिन उसकी भी गारंटी नहीं है।"

    यश ने उम्मीद के साथ कहा, "गारंटी ना हो, पर होप तो है ना!"

    अनिरुद्ध ने हाँ में सिर हिला दिया तो यश बाहर चला गया।


    ऐसे ही सिद्धांत को ढूँढ़ते हुए तीन हफ़्ते बीत गए, लेकिन सिद्धांत का कहीं कोई सुराग नहीं मिला। मिसेज़ माथुर, मिस्टर सिन्हा और यश हॉल में मौजूद थे। बाकी सबको इन तीनों ने कैसे भी समझाकर वापस भेज दिया था।

    यश ने मिस्टर सिन्हा की ओर देखकर कहा, "पापा, हम जब तक उसे वापस नहीं ले आते तब तक हमें चैन नहीं मिलेगा।"

    मिस्टर सिन्हा ने निराशा के साथ कहा, "हमने सब कुछ तो कर लिया। हमारे एजेंट्स ने उन दोनों को पूरे इंडिया में ढूँढ़ लिया पर इन दोनों का कहीं कुछ पता नहीं चला। वह जहाँ-जहाँ मिशन पर गया था उन जगहों पर भी पता कर लिया, लेकिन कोई फ़ायदा..."

    वह अपनी बात बोल ही रहे थे कि तभी उनके दिमाग में कुछ खटका और उन्हें अचानक से याद आया, "एक मिनट!"

    यश ने कौतुहल के साथ कहा, "क्या हुआ पापा?"

    मिस्टर सिन्हा ने सोचते हुए कहा, "एक जगह ऐसी भी है जहाँ सिड मिशंस के लिए कम और घूमने के लिए ज़्यादा गया है।"

    यश ने तुरंत कहा, "कौन सी जगह?"

    इससे पहले कि मिस्टर सिन्हा कुछ कहते, मिसेज़ माथुर ने कहा, "थाईलैंड!"

    यश ने भी याद करते हुए कहा, "हाँ, लेकिन उसकी किडनैपिंग का इस सबसे क्या लेना-देना?"

    मिस्टर सिन्हा ने उसके सवाल का जवाब देने के बजाय उसी से सवाल करते हुए कहा, "तुम निशा के बारे में क्या जानते हो यश?"

    यश ने नासमझी से कहा, "निशा के बारे में, मतलब!"

    मिस्टर सिन्हा ने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए कहा, "मतलब कि तुम निशा के बारे में क्या जानते हो!"

    यश ने सामान्य रूप से कहा, "यही कि वह MLA की बेटी है और सिड के पीछे पड़ी है।"

    मिस्टर सिन्हा ने एक गहरी साँस लेकर कहा, "तुम्हें सिर्फ़ उसकी आधी इनफ़ॉर्मेशन पता है। पूरी हम बताते हैं।"

    इसके बाद मिस्टर सिन्हा ने जो बातें यश को बताईं, उसे सुनकर यश और मिसेज़ माथुर, दोनों की ही आँखें बड़ी हो गईं।

    यश ने अपने गुस्से को कंट्रोल करके मिस्टर सिन्हा से कहा, "पापा, आपने हमें यह बात पहले क्यों नहीं बताई?"

    मिस्टर सिन्हा ने उसे शांत कराते हुए कहा, "शांत हो जाओ, यश।"

    यश ने भरी हुई आँखों के साथ कहा, "कैसे शांत हो जाएँ पापा! अगर उसने निशा की मदद की होगी तो हम कितनी भी कोशिश क्यों ना कर लें, सिड की इनफ़ॉर्मेशन नहीं निकाल पाएँगे।"

    मिस्टर सिन्हा ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "उसकी टेंशन तुम मत लो। हमने वे, नट और चार्न से बात कर ली है। वह सब भी अपने-अपने लेवल पर कोशिश कर रहे हैं।"

    उन्होंने इतना ही कहा था कि तभी उनके फ़ोन पर कोई मैसेज आया। उन्होंने वह मैसेज देखा तो उनके होठों पर मुस्कान आ गई, लेकिन अगले ही पल वह गायब भी हो गई और उनके माथे पर चिंता की लकीरें आ गईं। वह अपनी जगह पर खड़े-खड़े ही मानो सुन्न हो गए हों।

    यह देखकर यश ने उनके कंधे पकड़कर कहा, "क्या हुआ पापा?"

    मिस्टर सिन्हा ने बिना कुछ बोले सामने देखते हुए ही अपना फ़ोन यश की ओर बढ़ा दिया। यश ने उनके हाथ से फ़ोन लेकर मैसेज देखा तो वह भी शॉक हो गया।

    उन दोनों को ऐसे देखकर मिसेज़ माथुर ने यश को पकड़कर कहा, "क्या हुआ यश? क्या है उस मैसेज में?"

    यश ने शॉक में सामने देखते हुए ही कहा, "माँ, माँ, सिड का पता चल गया है।"

    मिसेज़ माथुर ने खुशी के साथ कहा, "सिड का पता चल गया है!"

    यश ने शॉक में ही उनकी ओर देखकर कहा, "हाँ, माँ!"

    मिसेज़ माथुर ने नासमझी से कहा, "तो यह तो खुशी की बात है ना, फिर तुम दोनों ऐसे शॉक्ड क्यों हो?"

    यश ने भरी हुई आँखों के साथ कहा, "क्योंकि वह अब पहले जैसा नहीं रहा।"

  • 4. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 4

    Words: 1918

    Estimated Reading Time: 12 min

    शाम का समय था।

    मैसेज देखने के बाद मिस्टर सिन्हा और यश, दोनों शॉक में थे। मिसेज माथुर ने यश को पकड़कर कहा, "क्या हुआ यश? क्या है उस मैसेज में?"

    "माँ, माँ, सिड का पता चल गया है," यश ने शॉक में सामने देखते हुए कहा।

    "सिड का पता चल गया है!" मिसेज माथुर ने खुशी से कहा।

    "हाँ, माँ!" यश ने शॉक में ही उनकी ओर देखकर कहा।

    "तो ये तो खुशी की बात है न, फिर तुम दोनों ऐसे शॉक्ड क्यों हो?" मिसेज माथुर ने नासमझी से कहा।

    "क्योंकि वो अब पहले जैसा नहीं रहा," यश ने भरी हुई आँखों के साथ कहा।

    "क्या मतलब पहले जैसा नहीं रहा?" मिसेज माथुर ने नासमझी से कहा।

    "मतलब ये कि वो सच में सिद्धांत बन चुका है। उसका ऑपरेशन हो चुका है," यश ने उनके कंधे पकड़कर कहा।

    ये सुनकर मिसेज माथुर को जैसे झटका सा लगा। उनके मुँह से निकला, "क्या!"

    "हाँ, और अभी उसे लाने की कोशिश करना, उसकी जान को खतरे में डालने जैसा है," यश ने टेंशन के साथ कहा।

    "उसका ऑपरेशन दो हफ्ते पहले ही हो चुका है और हमें कम से कम दो हफ्ते और इंतज़ार करना पड़ेगा," मिस्टर सिन्हा ने भी उनकी ओर देखकर कहा।

    "ठीक है, पर वो है कहाँ?" मिसेज माथुर ने इन बातों को साइड करके कहा।

    "बैंगकॉक में!" यश ने कहा।


    दो हफ्ते बाद,

    वेजथनी हॉस्पिटल, बैंगकॉक, थाईलैंड।

    दोपहर का समय था।

    एक लड़की एक लड़के को व्हीलचेयर पर बैठाए हुए बाहर ला रही थी। उस लड़की ने एक नीले रंग की जींस के साथ हल्के गुलाबी रंग का टॉप पहना हुआ था। साथ में उसने एक डेनिम जैकेट पहना हुआ था। उसके पैरों में व्हाइट कलर के स्नीकर्स थे। उसने अपने सिर पर एक बेस कैप पहना हुआ था। उसके मुँह पर मास्क था और आँखों पर चश्मा। कुल मिलाकर उसका हर एक अंग ढका हुआ था, यहाँ तक कि आँखें भी।

    वहीं लड़के ने पेशेंट वाले कपड़े ही पहने हुए थे और उसके मुँह पर मास्क लगा हुआ था। उसके बाल कुछ बड़े थे जो उसके माथे पर बिखरे हुए थे और उसकी आँखों को भी ढक रहे थे। उसे देखने से लग रहा था कि उसे कोई होश ही नहीं है।

    वह चुपचाप व्हीलचेयर पर बैठा हुआ था। उसके गोद में उस लड़की का पर्स था जो उसे बाहर लेकर आ रही थी। वह लड़की हॉस्पिटल से बाहर आते ही अपने कार की ओर बढ़ गई। उसने जैसे ही कार का दरवाजा खोला वैसे ही वह लड़का उठा और दूसरी ओर दौड़ पड़ा। भागते हुए उसने उस लड़की का पर्स भी ले लिया था। जैसे ही वह भागा, एक पल को तो वह लड़की चौंक गई लेकिन अगले ही पल वह भी उसके पीछे दौड़ पड़ी। उसके साथ-साथ उसके गार्ड्स भी उस ओर दौड़ पड़े।

    अब उस लड़के के पीछे लगभग पचास लोग पड़े हुए थे और वह जितना हो सके उतनी स्पीड में दौड़े जा रहा था। वह भाग भी ऐसे रहा था जैसे कि वह वहाँ के चप्पे-चप्पे की जानकारी रखता हो।

    वहीं वह लड़की और उसके गार्ड्स रास्ते के चक्कर में कन्फ्यूज हो जा रहे थे। इसी बात का फायदा उठाकर वह लड़का एक मॉल में घुस गया। वहाँ जाकर उसने अपने कपड़े बदले, खुद ही अपने बाल सेट किए और बाहर आ गया।

    उसने खुद को ऐसे ट्रांसफॉर्म किया था कि उसे देखने से लग रहा था कि वह थाईलैंड का रहने वाला ही है। उसने पेमेंट करने के बजाय उस लड़की का बैग वहीं छोड़ दिया और बाहर आ गया।

    फिर उसने रास्ते में चलते हुए ही किसी की पॉकेट से उसका फ़ोन लिया और किसी को कुछ मैसेज करने लगा। फिर वह किसी को कॉल करने लगा लेकिन इससे पहले कि वह कॉल कर पाता, किसी ने तेज आवाज में उसका नाम लेकर उसे पुकारा।

    उस लड़के ने अपनी गर्दन उस दिशा में घुमाई तो वहाँ पर एक थाई लड़का खड़ा था। उसने काले रंग की स्टाइलिश जींस के साथ ग्रे कलर का टी-शर्ट पहना हुआ था। इसके साथ उसने एक डेनिम जैकेट पहन रखा था। उसने अपने पैरों में सफ़ेद रंग के स्नीकर्स पहने हुए थे। उसके बाल छोटे थे जो उसके माथे को कुछ हिस्सों तक ढक रहे थे। उसके दाहिने हाथ में एक साधारण सी लेकिन महंगी घड़ी थी। उसका चेहरा गोल था और उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में दुनियाँ-जहाँ की मासूमियत थी।

    उस लड़के ने हाथ हिलाकर कहा, "सिड!"

    सिद्धांत ने भी अपना हाथ हिला दिया और उसकी ओर बढ़ गया। वह उस लड़के के पास गया तो उस लड़के ने कहा, "ब्रो, लॉन्ग टाइम नो सी।"

    सिद्धांत ने उसकी बातों को नज़रअंदाज़ करके कहा, "आइस ब्रो, वो सब हम बाद में बताते हैं। अभी हमें तुम्हारी मदद चाहिए।"

    "बोलो न, ब्रो!" आइस ने उसके गले में अपने हाथ डालकर कहा।

    "(इस थाई बंदे को हिंदी कैसे आती है वो आप सबको आगे जाकर पता चल जाएगा।)"

    सिद्धांत ने उसे कुछ बातें बताईं जिन्हें सुनकर आइस की आँखें बड़ी हो गईं।

    "रियली!" उसने सिद्धांत की ओर देखकर कहा।

    सिद्धांत ने हाँ में सिर हिला दिया तो उसने कहा, "डॉन्ट वरी ब्रो, तुमने हमारे लिए इतना कुछ किया है तो हम भी तुम्हारे लिए इतना तो कर ही सकते हैं।"

    "थैंक्स ब्रो!" सिद्धांत ने हल्के से मुस्कुराकर कहा।

    "वन डे, यू योरसेल्फ टोल्ड मी दैट देयर इज़ नो सॉरी एंड नो थैंक्स इन फ्रेंडशिप," आइस ने मुँह बनाकर कहा।

    "ओ के, आई विल नॉट से दैट अगेन," सिद्धांत ने फिर से मुस्कुराकर कहा।

    "गुड फॉर यू!" आइस ने हँसकर कहा।

    उसने अभी इतना ही कहा था कि इतने में किसी की आवाज़ आई, "वो रहा, पकड़ो उसे।"

    सिद्धांत और आइस, दोनों ने उस तरफ़ देखा तो वहाँ पर बहुत सारे गार्ड्स थे जो उन्हीं की ओर दौड़े चले आ रहे थे।

    "आई विल मीट यू लेटर! बट फॉर नाउ, जस्ट रन एंड सेव योरसेल्फ," सिद्धांत ने तुरंत आइस की ओर देखकर कहा।

    आइस ने भी उसकी बातों पर हाँ में सिर हिलाया और इसी के साथ दोनों उल्टी दिशाओं में दौड़ पड़े। सिद्धांत ने दौड़ते हुए ही उस फ़ोन को अपने कपड़ों में छिपा लिया।

    वह भागने की पूरी कोशिश कर रहा था लेकिन अब उसका शरीर उसका साथ छोड़ रहा था क्योंकि उसकी एक नहीं कम से कम चार या पाँच सर्जरीज़ हुई थीं।

    वह समझ गया कि अब वह और नहीं भाग पाएगा इसलिए उसने आस-पास देखा और उसकी नज़र सन रे कैफे पर पड़ी। वह तुरंत कैफे के अंदर चला गया जहाँ पर बहुत से लोग थे।

    सिद्धांत ने सोचा कि इतने लोगों की भीड़ में वह सेफ रहेगा और यह कैफ़े था भी उसके दोस्त का इसलिए वह अंदर जाते ही अपने दोस्त के पास गया और उसके कान में कुछ कहा जो सुनकर उस लड़के की आँखें बड़ी हो गईं।

    लेकिन इतने में ही वे सारे गार्ड्स भी वहाँ पहुँच गए। उनमें से एक गार्ड ने सीधे जाकर सिद्धांत को गन पॉइंट पर ले लिया और इसी के साथ एक आदमी की भारी सी आवाज़ आई, "बहुत भाग लिया मुन्ना, अब वापस चलें।"

    वह आवाज़ आते ही सारे गार्ड्स तुरंत साइड में हो गए और सामने वही आदमी नज़र आने लगा जो सिद्धांत के किडनैपिंग में निशा के साथ था।

    उसने सिर से लेकर पाँव तक सब कुछ काले रंग का पहना हुआ था और उसके चेहरे पर अभी भी घमंड साफ़ नज़र आ रहा था।

    उसे देखकर सिद्धांत ने उससे सवाल करते हुए कहा, "पहले हमें यह बताइए कि आप हैं कौन और हमारे पीछे क्यों पड़े हैं और, और निशा का साथ क्यों दे रहे हैं?"

    उस आदमी ने सिद्धांत को ऊपर से नीचे तक देखते हुए पूरे एटीट्यूड के साथ कहा, "पहले यह बताओ कि तुममें ऐसा क्या है जो मेरी नातिन सिर्फ़ तुमसे ही शादी करना चाहती है।"

    "क्या, निशा आपकी नातिन है?" सिद्धांत ने शॉक के साथ कहा।

    "अभी भी तुम पूछ रहे हो!" उस आदमी ने अपनी भौंहें उठाकर कहा।

    "सर, प्लीज़ हमारी बात समझिए। हम उससे प्यार नहीं करते हैं। अगर हम दोनों की शादी हो भी गई फिर भी वह खुश नहीं रहेगी। इसलिए, प्लीज़! हमें जाने दीजिए, सर!" सिद्धांत ने विनती करते हुए कहा।

    निशा के नाना ने उसकी बातों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करके कहा, "अब बाकी बातें वापस चलकर होंगी।"

    यह सुनकर सिद्धांत और उसके दोस्त, दोनों का ही मुँह खुला का खुला रह गया।

    वहीं निशा के नाना ने अपने आदमियों की ओर देखकर कहा, "उठाओ इसको।"

    इतना कहकर वह वापस जाने के लिए बाहर की ओर मुड़ ही रहा था कि इतने में वहाँ एक चीख गूंज उठी।

    निशा के नाना ने अपने कदम वापस घुमाए तो उसने देखा कि वहाँ पर उस गार्ड का हाथ टूटा हुआ था जिसने सिद्धांत पर गन पॉइंट कर रखा था और उसकी गन सिद्धांत के हाथ में थी। यह देखकर निशा के नाना को बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ा।

    "तुम एक गन छीन सकते हो, सारी नहीं," उसने आराम से कहा।

    सिद्धांत के होठों पर एक तिरछी मुस्कान आ गई। उसने कहा, "डू यू रियली थिंक दैट?"

    "व्हाट डू यू मीन?" निशा के नाना ने थोड़ी तेज आवाज़ में कहा।

    "एक्चुअली, यू आर राइट!" सिद्धांत ने उसी गन से अपने सिर पर स्क्रैच करते हुए कहा। "हम सारी गन्स नहीं छीन सकते हैं, लेकिन..."

    फिर उसने गहरी आवाज़ में कहा, "ख़ुद को तो ख़त्म कर सकते हैं न।"

    अपनी बात बोलते ही सिद्धांत ने वह गन अपने ही सिर पर पॉइंट कर ली।

    "सिड!" निशा के नाना ने चीखते हुए कहा।

  • 5. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 5

    Words: 1906

    Estimated Reading Time: 12 min

    दोपहर का समय था। सन रे कैफे में, निशा के नाना ने आराम से कहा, "तुम एक गन छीन सकते हो, सारी नहीं।"

    सिद्धांत के होठों पर एक तिरछी मुस्कान आ गई। "डू यू रियली थिंक दैट?" उसने कहा।

    "व्हाट डू यू मीन?" निशा के नाना ने थोड़ी तेज आवाज में कहा।

    "एक्चुअली, यू आर राइट! हम सारी गन्स नहीं छीन सकते हैं, लेकिन..." सिद्धांत ने उसी गन से अपने सिर पर स्क्रैच करते हुए कहा।

    फिर उसने गहरी आवाज में कहा, "खुद को तो खत्म कर सकते हैं न।"

    अपनी बात बोलते ही सिद्धांत ने वह गन अपने ही सिर पर पॉइंट कर ली।

    "सिड!" निशा के नाना चीख उठे।

    सिद्धांत ने उसके आदमियों को देखकर अपने सामने नीचे की ओर इशारा करते हुए कहा, "तुम सब, अपनी-अपनी गन्स यहां रखो।"

    वह सारे आदमी एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे। सिद्धांत चिल्लाया, "एक बार में बात समझ नहीं आती!"

    फिर उसने निशा के नाना की ओर देखकर कहा, "ठीक है फिर, अब हम खुद को ही खत्म कर लेते हैं।"

    अपनी बात बोलते हुए उसने गन लोड कर ली।

    यह देखकर निशा के नाना ने तुरंत कहा, "नहीं सिड, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे।"

    फिर उसने फौरन अपने आदमियों की ओर देखकर कहा, "तुम सब खड़े-खड़े मुँह क्या देख रहे हो! गन्स यहां रखो।"

    "यस बॉस!" उन सभी आदमियों ने एक साथ कहा और अपनी गन सिद्धांत के बताए हुए जगह पर रख दी।

    "सैंड!" सिद्धांत ने अपने दोस्त की ओर देखकर कहा।

    सैंड ने हाँ में सिर हिलाया और आगे बढ़कर इतनी स्पीड में अपने हाथ-पैर चलाए कि दो ही मिनट में उन सभी गन्स के पार्ट्स अलग-अलग थे। अब सिर्फ सिद्धांत के हाथ में एक गन थी।

    निशा के नाना ने हैरानी के साथ सैंड को देखते हुए कहा, "यू ब्रोक ऑल दीज गन्स इन जस्ट टू मिनट्स!"

    इस बार सैंड ने कहा, "वो छोड़ो न बुड्ढे, फिलहाल तो सिड को यहां से जाने दो, वरना... कहीं तेरी नातिन की शादी इसकी लाश से ना करानी पड़ जाए।"

    निशा के नाना ने यह सुनते ही सिद्धांत की ओर देखा। उसने अभी भी अपने सिर से गन नहीं हटाई थी।

    निशा के नाना ने फिक्र के साथ कहा, "सिड! बेटा, यह खेलने वाली चीज नहीं है।"

    सिद्धांत आगे बढ़ते हुए बोला, "हमने कहा ना, जाने दो हमें!"

    "पर..." निशा के नाना ने कहा।

    लेकिन सिद्धांत ने उसकी बातों को काटकर कहा, "पर-वर कुछ नहीं, हमें जाना है तो मतलब जाना ही है।"

    निशा के नाना झल्लाकर बोले, "ठीक है, जाओ! लेकिन इतना याद रखो कि वापस तुम्हें यहीं आना है।"

    सिद्धांत ने उसकी ओर देखते हुए ही पीछे की ओर बढ़ते हुए कहा, "इन योर ड्रीम्स!"

    इतना ही कहा था कि उसे एक तेज बिजली का झटका लगा और वह लड़खड़ाकर गिर पड़ा। एक पुरानी याद उसके दिमाग में कौंध गई।

    लेकिन तब तक उन गार्ड्स ने दो और डिवाइस उसे लगा दीं जिससे सिद्धांत तड़प उठा। उसकी हालत ऐसी हो गई थी कि वह खुद को नहीं बचा सकता था।

    कुछ देर बाद वह बेहोश हो गया। फिर जब उसे होश आया तो उसने खुद को एक अंधेरे कमरे में पाया। उसने अपनी आँखें खोलकर आस-पास देखा तो वह एक पुराने गोदाम जैसी कोई जगह थी।

    यह देखकर उसने उठने की कोशिश की तो उसने खुद को बंधा हुआ पाया। वह एक कुर्सी पर था और उसके हाथ-पैर बंधे हुए थे। उसके मुँह पर भी टेप लगा हुआ था। उसके शरीर पर भी बहुत से चोट के निशान थे।

    जैसे ही उसे इस सबका अंदाजा हुआ, उसने अपनी रस्सियाँ खोलनी शुरू कर दीं। लेकिन तभी उसके सामने निशा का नाना आकर खड़ा हो गया। उसे देखकर सिद्धांत की आँखों में खून उतर आया। उनमें नफरत साफ देखी जा सकती थी।

    यह देखकर वह आदमी भद्दे तरीके से मुस्करा दिया। उसी समय वह लड़की अंदर आई जो सिद्धांत को हॉस्पिटल से बाहर लेकर आई थी। उसका चेहरा अभी भी ढका हुआ था।

    उसे देखकर सिद्धांत की नफरत और भी बढ़ गई। लेकिन उस लड़की को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि उसकी नज़र सिद्धांत के चोटों पर बनी हुई थी। जैसे ही उसने वे निशान देखे, उसका गुस्सा बढ़ने लगा।

    उसने चीखते हुए सामने खड़े गार्ड्स की ओर देखकर कहा, "किसने हाथ लगाया इसे?"

    उसकी आवाज इतनी तेज थी कि वहाँ खड़े सारे गार्ड्स अंदर तक काँप उठे। उनसे कुछ बोला ही नहीं गया।

    यह देखकर उस लड़की ने फिर से तेज आवाज में कहा, "मैंने पूछा, किसने हाथ लगाया इसे?"

    फिर उसने अपने नाना की ओर देखकर कहा, "नानू, जिसने भी यह किया है, मुझे उसके शरीर पर भी वैसे ही मार्क्स चाहिए।"

    अब यह सब सिद्धांत के बस से बाहर हो रहा था। उसने फिर से बहुत ही जोर से अपने हाथ-पैर हिलाने की कोशिश की जिससे सबका ध्यान फिर से उसकी ओर चला गया।

    निशा ने उसे इतने गुस्से में देखकर कहा, "शांत हो जाओ बेबी, शांत हो जाओ।"

    सिद्धांत को उसके शब्द सुनकर और गुस्सा आ रहा था। वह निशा को घूरने लगा। निशा शर्माकर बोली, "ऐसे मत देखो जान, मुझे शर्म आ रही है।"

    यह सुनकर सिद्धांत ने अपनी नज़रें फेर लीं। यह देखकर निशा ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसके मुँह से टेप हटा दिया। लेकिन इतने में एक गार्ड ने आकर सिद्धांत को एक थप्पड़ मार दिया।

    "क्यों बे, मैम को नखरे दिखा रहा है। चुपचाप उनकी बात मान क्यों नहीं लेता!" उसने थप्पड़ मारते हुए कहा।

    असल में उस गार्ड को सिद्धांत से बहुत पहले से ही ख़ुन्नस थी। इसलिए जब से सिद्धांत यहाँ आया था, तब से वह सिद्धांत के पीछे पड़ा था।

    जैसे ही उसने सिद्धांत को मारा, वैसे ही निशा जलती हुई नज़रों से उसे घूरने लगी। लेकिन इससे पहले कि वह उस गार्ड को कुछ भी कहती, सिद्धांत ने तेज आवाज में कहा, "बंद करो अपना पागलपन। अरे इंसान ही हो न तुम या नहीं!"

    निशा ने तुरंत उसकी ओर देखकर कहा, "सिड, अपने प्यार के बारे में ऐसा नहीं बोलते!"

    सिद्धांत ने नफरत के साथ कहा, "प्यार, इसे प्यार कहती हो तुम! अरे प्यार का मतलब भी पता है तुम्हें? प्यार तो एक तपस्या है, एक पूजा है। प्यार में इंसान नीचे नहीं गिरता है, बल्कि ऊँचा उठ जाता है।

    तुमने हमें इसीलिए किडनैप किया ना, ताकि हमें पा सको, लेकिन तुम्हें तो यह ही पता नहीं है कि प्यार में पाया नहीं, खुद को खोया जाता है।"

    निशा ने तुरंत अपना मास्क हटा दिया। उसने सिद्धांत की कुर्सी को पकड़ा और उसके सामने उसी कुर्सी पर झुक गई।

    उसने अपना चेहरा सिद्धांत के चेहरे के बिल्कुल पास कर लिया। सिद्धांत ने तुरंत आँखें बंद करके अपना चेहरा पीछे खींच लिया। लेकिन उसे निशा की साँसें अभी भी अपने चेहरे पर महसूस हो रही थीं।

    निशा ने मदहोश आवाज में कहा, "आँखें खोलो, सिड!"

    लेकिन सिद्धांत ने अपनी आँखें और कसकर बंद कर लीं। यह देखकर निशा को गुस्सा आ गया। उसने अपना हाथ सिद्धांत के हाथ पर, जहाँ उसे चोट लगी हुई थी, रखा और फिर जोर से दबा दिया।

    इसके बाद उसने अपने दाँत पीसते हुए कहा, "सिद्धांत, मैंने कहा, अपनी आँखें खोलो।"

    सिद्धांत ने अपनी आँखें खोल दीं, लेकिन उनमें डर का एक कतरा भी नहीं था। उनमें सिर्फ और सिर्फ नफरत नज़र आ रही थी।

    निशा ने उसकी आँखों में देखकर कहा, "तुम दुनिया में कहीं भी क्यों ना चले जाओ लेकिन मुझसे नहीं भाग सकते।"

    सिद्धांत ने एक नकली हँसी हँसकर कहा, "भ्रम में जी रही हो तुम, नहीं तो तुम्हें हमें अपने पास रखने के लिए ये हथकंडे नहीं अपनाने पड़ते।"

    निशा उसके चारों ओर घूमते हुए बोली, "अब क्या करूँ, अपनी मर्ज़ी से तो तुम मेरे पास आ नहीं रहे थे, तो मुझे यह तरीका अपनाना पड़ा। और रही बात प्यार की, तो अब तुम सिर्फ़ मेरा प्यार नहीं हो बल्कि मेरी जिद, मेरा जुनून बन चुके हो।"

    वह साथ में उसके शरीर को भी छू रही थी जिससे सिद्धांत को घिन सी महसूस हो रही थी।

    सिद्धांत ने फिर से कुछ कहना चाहा कि इतने में निशा के नाना ने तेज आवाज में कहा, "बस, बहुत हुआ! अब एक शब्द भी नहीं बोलोगे तुम! मेरी नातिन ने तुम्हारे लिए क्या कुछ नहीं किया और तुम उसे ही सुना रहे हो!"

    सिद्धांत चिढ़कर बोला, "ऐसा भी क्या किया है आपकी प्यारी नातिन ने?"

    निशा के नाना ने कहा, "खुद को देखो, तुम असल में सिद्धांत बनकर बैठे हो।"

    सिद्धांत ने निशा की ओर देखकर, अपने दाँत पीसते हुए कहा, "किसने कहा था तुमसे यह सब करने के लिए? हमारे नेक्स्ट बर्थडे पर हमारी शादी होने वाली थी।"

    "किससे? उस यश से?" निशा ने तुरंत पूछा।

    सिद्धांत ने तेज आवाज में कहा, "हाँ, उसी से! लेकिन तुमने सब बर्बाद कर दिया।"

    निशा उसके बिल्कुल पास आकर उसकी आँखों में आँखें डालकर बोली, "पर वो तुम्हें फिर से वो बना रहा था जो तुम्हारे पापा नहीं चाहते थे।"

    सिद्धांत चिढ़कर बोला, "वो जो भी कर रहा था वो हमारे साथ कर रहा था। वो सब हम दोनों के बीच की बात थी।

    हमारे बीच आने वाली तुम कौन होती हो और तुमसे किसने कह दिया कि वो हमें बदल रहा था? उसने हमें वैसे ही एक्सेप्ट किया था जैसे हम हैं। बदलने की कोशिश तो तुमने की है हमें।"

    "तुम..." निशा ने कहा, लेकिन अपनी आगे की बात अधूरी छोड़कर बोली, "छोड़ो! अभी तो तुमसे बात करना ही बेकार है।"

    फिर उसने अपने नाना की ओर देखकर कहा, "चलिए नानू!"

    उसके नाना ने एक जलती हुई नज़र सिद्धांत पर डाली और फिर एक गार्ड को कुछ इशारा करके निशा के साथ बाहर चला गया।

  • 6. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 6

    Words: 1934

    Estimated Reading Time: 12 min

    शाम का समय था। एक पुराना गोदाम। निशा की बातें सुनकर सिद्धांत ने चिढ़कर कहा, "वो जो भी कर रहा था, वो हमारे साथ कर रहा था। वो सब हम दोनों के बीच की बात थी। हमारे बीच आने वाली तुम कौन होती हो और तुमसे किसने कह दिया कि वो हमें बदल रहा था? उसने हमें वैसे ही एक्सेप्ट किया था जैसे हम हैं। बदलने की कोशिश तो तुमने की है हमें।"

    "तुम...", निशा ने कहा, लेकिन अपनी आगे की बात अधूरी छोड़कर बोली, "छोड़ो! अभी तो तुमसे बात करना ही बेकार है।"

    फिर उसने अपने नाना की ओर देखकर कहा, "चलिए नानू!"

    उसके नाना ने एक जलती हुई नजर सिद्धांत पर डाली और फिर एक गार्ड को कुछ इशारा करके निशा के साथ बाहर चले गए।

    "कहां जा रही हो निशा? खोलो हमें!" सिद्धांत ने चिल्लाकर कहा।

    लेकिन निशा उसे पूरी तरह से इग्नोर करके चली गई।

    उनके जाने के बाद एक गार्ड ने सिद्धांत के गले में एक इंजेक्शन लगाया। फिर सारे गार्ड्स भी उस कमरे से बाहर चले गए, लेकिन उन्होंने उस कमरे को अच्छे से घेर लिया था।

    इंजेक्शन की वजह से सिद्धांत की हालत फिर से पहले दिन जैसी हो गई थी। उसकी सिर्फ आँखें ही हिल रही थीं; बाकी शरीर ड्रग्स के असर से कुछ समय के लिए पैरालाइज हो गया था। आज वो खुद को सबसे ज्यादा बेबस महसूस कर रहा था। उसने सामने टंगी घड़ी में समय देखा; शाम के 6 बज रहे थे। यानी कि वो कम से कम चार घंटे तक बेहोश रहा था।

    दूसरी तरफ, मिस्टर सिन्हा फ्लाइट में बैठे हुए थे। उनके साथ यश भी बैठा हुआ था। उसने अपना सिर सीट पर टिकाकर आँखें बंद कर ली थीं और इस वक्त अपनी जिंदगी के पुराने यादों में खोया हुआ था; कैसे उसकी और सिद्धांत की मुलाकात हुई और उनकी जिंदगी कैसे इन हालातों में पहुँची।

    फ्लैशबैक: सात साल पहले, सुबह का समय, राणा जिम, गोरखपुर।

    एक लड़का बहुत से लोगों को ट्रेन कर रहा था। उसने अपने मसल्स और एब्स पर बहुत ज्यादा मेहनत की थी। उसकी पूरी लीन बॉडी थी। यहाँ तक कि उसके हाथों की नसें तक साफ दिख रही थीं। उसकी उम्र अठारह साल थी। उसकी लंबाई लगभग छः फीट चार इंच रही होगी। उसने काले रंग की ट्रैक पैंट के साथ काले ही रंग की टी-शर्ट पहनी हुई थी जिस पर उस जिम का नाम लिखा हुआ था। उसके बाएँ हाथ में काले रंग की स्मार्ट वॉच थी और दाएँ हाथ में कलावा (रक्षासूत्र) बंधा हुआ था और साथ में एक काले रंग का ब्रेसलेट भी। उसने अपने मुँह पर मास्क लगा रखा था। उसके पसीने से भीगे हुए बाल उसके माथे पर बिखरे हुए थे जो उसके भौंहों के कुछ ऊपर तक आ रहे थे। उसके गले में काले रंग का हेडफोन लटक रहा था। उसके पैरों में काले ही रंग के स्नीकर्स थे। इन सबके साथ उसने अपने गले में एक रुद्राक्ष भी पहना हुआ था और सिर पर चंदन का तिलक लगा रखा था जो उसकी समुद्र सी नीली आँखों के साथ बहुत ही खूबसूरत लग रहा था। उसने अपने कानों में एक काले रंग का यूनिसेक्स इयररिंग पहना हुआ था। वो जिन लोगों को ट्रेन कर रहा था उनका ध्यान ट्रेनिंग में कम और उस लड़के पर ज्यादा था। लड़कियां तो लड़कियां, लड़के भी उससे अट्रैक्ट हो जाते थे। उनमें से आधे से ज्यादा लोगों ने तो उस जिम की मेंबरशिप ली थी, उस लड़के की वजह से। वहाँ की सारी लड़कियां उसे अप्रोच करने की कोशिश करती थीं, पर वो किसी में भी कोई इंटरेस्ट नहीं दिखाता था। कुछ गिने-चुने लोग ऐसे थे जिनसे वो ठीक से बात कर लेता था।

    जैसे ही नौ बजा, उस लड़के के फोन में अलार्म बज उठा। उस लड़के ने अलार्म ऑफ किया और जिम ऑनर, जिसका नाम राहुल था, उसके केबिन में चला गया। वो जाकर राहुल के सामने कुर्सी पर बैठ गया।

    राहुल ने उसे देखा तो मुस्करा कर कहा, "क्यों सिड, कहा था ना मैंने कि इस तरीके से तुम्हारा कर्ज जल्दी खत्म हो जाएगा!"

    "हम जानते हैं ब्रो, लेकिन हमारा मन अभी भी हमें इस बात की परमिशन नहीं दे रहा है।" सिद्धांत ने अपनी गर्दन झुकाकर कहा।

    "तो अपने मन को किसी बक्से में बंद करके ताला लगा दो।" राहुल ने साफ शब्दों में कहा।

    "आई एम नॉट किडिंग, ब्रो।" सिद्धांत ने चिढ़कर कहा।

    इस बार राहुल ने गंभीर होकर कहा, "सिड, मजाक मैं भी नहीं कर रहा हूँ। बिलीव मी, मैं खुद भी ये सब नहीं चाहता हूँ लेकिन इसमें तुम्हारा ही फायदा है। मैंने तो तुम्हें मना भी किया था कि रहने दो, आखिर तुम्हारे पिता श्री मेरे भी तो कुछ लगते थे, लेकिन तुम जिद्द पर अड़े हुए हो तो मैं क्या करूँ?"

    "बस, बस! अपना ये इमोशनल अत्याचार बंद करिए और ये बताइए कि उनके पैरेंट्स ने पैसे भिजवाए या नहीं।" सिद्धांत ने चिढ़कर कहा।

    "हाँ, हाँ! भिजवा दिए, इसलिए उनसे अच्छे से बात करना।" राहुल ने मुँह बनाकर कहा।

    "बिल्कुल, आखिर सर्वांश ने किसी से कभी भी रूडली बात की है क्या!" सिद्धांत ने स्टाइल से अपने बालों में हाथ फिराकर कहा।

    "अच्छा, नहीं की है!" राहुल ने भी मुँह बनाकर अविश्वास से कहा।

    "नहीं, कभी नहीं।" सिद्धांत ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा।

    "तो अभी जो तुम बाहर कर रहे थे, वो क्या था फिर!" राहुल ने अपनी भौंहें उठाकर कहा।

    "वो तो इसलिए ताकि वो सब हमसे दूर रहें और वैसे भी...", सिद्धांत ने अपनी नजरें इधर-उधर घुमाकर अपना सिर खुजाते हुए कहा, फिर उसने आई विंक करके कहा, "यहाँ आने वाली ज्यादातर लड़कियां बहन हैं हमारी।"

    "और जिनके साथ डेट पर जाते हो, उनका क्या?" राहुल ने फिर से कहा।

    "छोड़िए ना भाई, कौन सा वो डेट असली होती है। फालतू के मैरेज ब्रोकर बनकर रह गए हैं।" सिद्धांत ने चिढ़कर कहा।

    "अच्छा, वो सब छोड़ो। मुझे तुम्हें एक गुड न्यूज़ देनी है।" राहुल ने बात बदलते हुए कहा।

    "क्या?" सिद्धांत ने अपनी भौंहें उठाकर कहा।

    "कल वाली लड़की ने अपने पैरेंट्स को तुम्हारे बारे में बता दिया है।" राहुल ने मुस्कराकर कहा।

    "फिर तो हमारा अमाउंट भी बढ़ेगा ना!" सिद्धांत ने खुश होकर कहा।

    "हाँ, लेकिन ध्यान रखना, ये बात आगे ना बढ़े। जो जैसा चल रहा है, चलता रहे, एट लीस्ट दो महीने तक!" राहुल ने उसे चेताते हुए कहा।

    "दो महीने, वो तो हमारे लिए बाएँ हाथ का खेल है।" सिद्धांत ने आराम से कहा।

    "बस, बस! फेंकना बंद करो और जल्दी से शॉवर लेकर निकलो, वरना तुम्हें लेट हो जाएगा।" राहुल ने चिढ़कर कहा।

    "ओ के, ब्रो।" सिद्धांत ने भी कहा।

    फिर उसने बाहर जाते हुए कहा, "बाय!"

    "बाय!" राहुल ने भी कहा।

    फिर सिद्धांत उस केबिन से निकलकर वहाँ के बाथरूम में चला गया जो सिर्फ सिद्धांत के लिए रहता था। लगभग दस मिनट बाद वो बाहर आया तो उसने काले रंग की जींस के साथ सफ़ेद रंग का टी शर्ट पहना हुआ था। टी शर्ट के साथ उसने एक डेनिम जैकेट डाल रखा था और सिर पर एक बेस कैप भी पहना हुआ था। उसके मुँह पर अभी भी मास्क था।

    वहाँ से निकलकर वो बाहर की ओर बढ़ गया, लेकिन इससे पहले कि वो बाहर जा पाता, एक लड़की उसके सामने आकर खड़ी हो गई। सिद्धांत ने अपने कदम रोक लिए तो वो लड़की मुस्कराते हुए उसे देखने लगी।

    सिद्धांत ने दो मिनट तक इंतज़ार किया, लेकिन उस लड़की ने कुछ नहीं कहा। तो सिद्धांत ने उसकी आँखों के सामने चुटकी बजा दी जिससे वो लड़की अपनी सेंसेज़ में वापस आई।

    ये देखकर सिद्धांत ने अपनी भौंहें उठा दीं। तो उस लड़की ने अपना फोन उसके सामने लहराते हुए कहा, "कैन आई गेट समवन्स नंबर?"

    "याह, श्योर!" सिद्धांत ने उसका फोन लेते हुए कहा और फिर उस फोन में कोई नंबर टाइप करने लगा। तो उस लड़की ने खुश होते हुए कहा, "थैंक यू सो मच!"

    सिद्धांत ने उसे उसका फोन वापस देते हुए दूसरा हाथ अपने सीने पर रखकर कहा, "माय प्लेज़र!" और फिर आगे बढ़ गया।

    वहीं उस लड़की ने फोन में नंबर देखा तो वो नंबर देखकर उसका मुँह बन गया क्योंकि सिद्धांत ने फोन में 1090 टाइप किया था।

    "ये क्या है?" उस लड़की ने सिद्धांत की ओर घूमकर गुस्से में कहा।

    "महिला हेल्पलाइन नंबर! इफ यू गेट स्टक इन एनी प्रॉब्लम यू कैन कॉल देम फॉर हेल्प।" सिद्धांत ने उसकी ओर पलटकर आराम से कहा।

    "आई आस्कड फॉर योर नंबर!" उस लड़की ने बौखलाकर कहा।

    "लुक मिस, हूएवर यू आर! फर्स्ट ऑफ ऑल, यू आस्कड फॉर समवन्स नंबर, नॉट माइन एंड सेकंड थिंग, आई डोंट गिव माय नंबर टू एवरीवन।" सिद्धांत ने आराम से कहा।

    "डू यू काउंट मी इन एवरीवन?" उस लड़की ने उसके पास आकर कहा।

    "नॉट एट ऑल, आई काउंट यू एज...", सिद्धांत ने अपना सिर ना में हिलाकर उसकी ओर बढ़ते हुए कहा, फिर उसने अपना चेहरा इस लड़की के चेहरे के बिल्कुल पास लाकर कहा, "नो वन।"

    इतना बोलकर वो फिर से पलटकर आगे बढ़ गया। तभी एक दूसरी लड़की उसके सामने आ खड़ी हुई। तो उस सिद्धांत ने कहा, "जी फरमाइए।"

    "कैन आई आस्क फॉर योर नंबर?" उस लड़की ने क्यूटनेस के साथ कहा।

    "नो!" सिद्धांत ने भी तुरंत ही वैसी ही क्यूटनेस के साथ कह दिया।

    "क्यों? मुझे भी नो वन में गिनते हो क्या?" लड़की ने फिर से उसी तरह से कहा।

    इस बार सिद्धांत ने कहा, "अरे नहीं, नहीं, कैसी बातें कर रही हैं आप, गिनने के लिए आप नजर भी तो आनी चाहिए।"

  • 7. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 7

    Words: 1943

    Estimated Reading Time: 12 min

    सुबह का समय था। राणा जिम में, इतना बोलकर वह फिर से पलट कर आगे बढ़ गया। तभी एक दूसरी लड़की उसके सामने आ खड़ी हुई। सिद्धांत ने कहा, "जी फरमाइए।"

    उस लड़की ने क्यूटनेस के साथ कहा, "कैन आई आस्क फॉर योर नंबर?"

    "नो!" सिद्धांत ने भी तुरंत उसी क्यूटनेस के साथ कह दिया।

    लड़की ने फिर से उसी तरह कहा, "क्यों? मुझे भी नो वन में गिनते हो क्या?"

    इस बार सिद्धांत ने कहा, "अरे नहीं, नहीं, कैसी बातें कर रही हैं आप? गिनने के लिए आप नज़र भी तो आनी चाहिए।"

    यह सुनकर वहाँ खड़े सभी लोग हँसने लगे। उस लड़की ने अपने हाथ बाँधकर कहा, "तुम ऐसी बातें इसीलिए बोल रहे हो न कि मुझे अपना नंबर न देना पड़े। ओके, फाइन! मत दो नंबर, लेकिन..."

    फिर उसने अपना हाथ सिद्धांत के मास्क की ओर बढ़ाते हुए कहा, "ये मास्क उतार कर अपना ये चाँद सा मुखड़ा तो दिखा दो।"

    सिद्धांत ने तुरंत उसका हाथ पकड़कर कहा, "जी नहीं, ये चीज़ तो ऐसी है जो हम भूलकर भी किसी को दिखा नहीं सकते हैं।"

    "दिखा नहीं सकते हो, पर क्यों?" लड़की ने सवाल किया।

    सिद्धांत ने कैज़ुअली कहा, "हैं हमारे कुछ रीज़न्स।"

    लड़की ने उसके सीने पर मुक्के से मारते हुए कहा, "यू नो, यू आर सो हार्टलेस!"

    सिद्धांत ने आराम से कहा, "वो तो हम हैं। नाउ प्लीज एक्सक्यूज मी, आई हैव टू गो।"

    यह बोलकर सिद्धांत आगे बढ़ा तो तीसरी लड़की ने कहा, "हाय हैंडसम!"

    सिद्धांत ने एक गहरी साँस लेकर कहा, "हेलो माय लॉन्ग लॉस्ट सिस्टर!"

    लड़की ने एक लंच बॉक्स उसके सामने रखते हुए कहा, "मैं तुम्हारे लिए कुछ लाई हूँ।"

    सिद्धांत ने वह बॉक्स लेते हुए सवाल किया, "ये क्या है?"

    लड़की ने उस बॉक्स की ओर इशारा करते हुए कहा, "खुद ही खोलकर देख लो।"

    सिद्धांत ने बॉक्स खोलकर देखा तो उसमें उसके फेवरेट स्नैक्स थे। उसने उस लड़की की ओर देखकर कहा, "वाह! मतलब आप अपने जिम ट्रेनर को ही तला भुना खाने को दे रही हैं।"

    लड़की ने आराम से कहा, "अरे, इतने से कुछ नहीं होगा और वैसे भी मैं ये किसी और को नहीं, अपने भाई को दे रही हूँ।"

    सिद्धांत ने मुस्कराकर कहा, "अब आपने दिया है तो हम मना थोड़ी न कर सकते हैं।"

    लड़की ने खुश होकर कहा, "दैट्स माय सर्वांश।"

    तभी उसके पीछे खड़ी एक लड़की ने अपना गला खँखार कर दिया। सिद्धांत ने उसकी ओर देखकर मुस्कराते हुए कहा, "आ रहे हैं करिश्मा जी, आपके पास ही आ रहे हैं।"

    इसी तरह से कई लड़कियों ने उसका रास्ता रोका, जिन्हें सिद्धांत ऐसे ही जवाब दे रहा था। उसकी आदत थी कि वह लड़कियों से दूरी बनाकर ही चलता था।

    जैसे-तैसे करके वह जिम से बाहर निकला और जल्दी से आगे बढ़ गया। उसने अपनी घड़ी में समय देखा तो साढ़े नौ बज गए थे।

    लगभग दस बज रहे थे। सेंट एंड्रयूज कॉलेज, सिविल लाइन्स गोरखपुर में, सिद्धांत तेज़ी से गेट के अंदर आया। उसे कोई बहुत तेज़ी नहीं थी, लेकिन उसकी स्पीड ज़्यादा थी।

    वह गेट से अंदर आते ही सीधे केमिस्ट्री डिपार्टमेंट में चला गया। वहाँ पर पहले से ही बहुत सारे लड़के और लड़कियाँ खड़े थे।

    सिद्धांत को देखकर एक लड़की ने अपना हाथ ऊपर करके हिलाते हुए कहा, "हे सिड!"

    सिद्धांत ने भी उसे देखकर हाथ ऊपर करके हिलाया और उनकी ओर बढ़ गया। उसने उस लड़की के पास जाकर साइड में बैठते हुए कहा, "क्या हो रहा है पूर्वी जी, सर नहीं आए क्या अभी तक?"

    पूर्वी ने उसके कंधे पर अपना हाथ रखकर कहा, "अभी पन्द्रह मिनट बाकी हैं, महाराज जी।"

    सिद्धांत ने अपनी घड़ी में समय देखते हुए कहा, "एम आई दैट फास्ट? लेकिन हम तो टाइम पर आए हैं।"

    पूर्वी ने उसके सिर पर हल्के से चपत लगाकर कहा, "हेलो मिस्टर, सर ने हम सबको दस बजकर पन्द्रह मिनट पर बुलाया था।"

    सिद्धांत ने अपना बैग उतारते हुए कहा, "मीन्स, आई हैव फिफ्टीन मोर मिनिट्स।"

    उन दोनों को देखकर वहाँ खड़ी एक लड़की ने मुँह बनाकर कहा, "तुम दोनों के लिए हम लोग एक्ज़िस्ट करते भी हैं या नहीं!"

    सिद्धांत ने उसे चिढ़ाने के लिए कहा, "अरे कैसी बातें कर रही हैं मिस गुलाबो, आप और याद नहीं रहेंगी। असंभव!"

    उस लड़की ने अपने हाथ टेबल पर रखकर आगे की ओर झुककर अपने दाँत पीसते हुए कहा, "तुमने फिर हमें गुलाबो कहा!"

    सिद्धांत को उसका गुस्से से लाल हुआ चेहरा देखकर बहुत मज़ा आ रहा था। उसने उस लड़की को और छेड़ते हुए कहा, "अब गुलाबो को गुलाबो न कहें, तो क्या कमला कहें!"

    उस लड़की ने अपने शर्ट की बाज़ूएँ मोड़ते हुए कहा, "तू पिटेगा आज, मेरे हाथों से!"

    इतना बोलकर वह सिद्धांत को मारने के लिए दौड़ पड़ी। वहीं सिद्धांत उस लड़की से बचने के लिए कभी पूर्वी के पीछे चला जाता तो कभी किसी और के पीछे।

    उन दोनों को ऐसे झगड़ते देखकर वहाँ खड़े सारे लड़के और लड़कियाँ हँसने लगे, यहाँ तक कि उस लैब के इंचार्ज भी। सभी लोगों को इस सबकी आदत पड़ चुकी थी।

    कुछ देर बाद पूर्वी ने चिढ़कर कहा, "तुम दोनों सुधर नहीं सकते हो न!"

    फिर उसने सिद्धांत और उस लड़की, दोनों का हाथ पकड़कर उन्हें एक जगह पर बैठाते हुए कहा, "चलो, बैठो चुपचाप!"

    सिद्धांत ने फिर से खड़े होते हुए कहा, "बैठ जाएँ, और हम!"

    फिर उसने अपना सिर ना में हिलाते हुए कहा, "बिल्कुल भी नहीं।"

    पूर्वी ने अपने हाथ बाँधकर एक गहरी साँस लेकर कहा, "तो क्या नौटंकी करने का इरादा है!"

    सिद्धांत ने सोचने की एक्टिंग करते हुए कहा, "नौटंकी, अच्छा डांस है पर हम हिप हॉप और ब्रेक डांसिंग सिखाते हैं, तो नौटंकी के लिए टाइम नहीं है।"

    पूर्वी ने फिर से चिढ़कर कहा, "तो बैठ न शांति से!"

    सिद्धांत ने कहा, "जी नहीं, हम बाहर जा रहे हैं।"

    फिर उसने दरवाज़े की ओर मुड़ते हुए कहा, "भूख लगी है हमें।"

    पूर्वी ने अपनी आँखें बड़ी करके कहा, "यानी कि तुमने आज भी अभी तक नाश्ता नहीं किया है।"

    सिद्धांत ने हँसकर कहा, "नाश्ता, आज वर्कआउट तक नहीं किया है हमने।"

    पूर्वी ने उसके मसल्स को पकड़कर कहा, "क्या भूत सवार है तुझे वर्कआउट करने का, इतनी बॉडी काफी नहीं है तेरे लिए!"

    सिद्धांत ने आराम से ना में सिर हिलाते हुए कहा, "ना, नहीं है।"

    पूर्वी ने उसकी ओर देखकर मुँह बनाकर कहा, "तुझसे तो बात करना ही बेकार है।"

    सिद्धांत ने अपने कंधे उठाकर कहा, "इसमें तेरा घाटा, अपना कुछ नहीं जाता।"

    अपनी बात बोलते हुए वह बाहर चला गया। वह अभी क्लास से बाहर ही निकला था कि पूर्वी भी आकर उसके साथ-साथ चलने लगी।

    सिद्धांत ने सामने देखते हुए ही कहा, "हमसे बात करना बेकार है और अब हमारे ही साथ चल भी रही हैं।"

    फिर उसने शरारती अंदाज़ में कहा, "कोई खास वजह!"

    पूर्वी ने अपने हाथों की मुट्ठी बनाकर कहा, "तुम्हें मार खानी है मुझसे!"

    सिद्धांत ने अपने कान पकड़कर कहा, "ना, ना, दीदी! माफ़ कर दो हमें।"

    पूर्वी ने उसके हाथ पर हल्के से मारकर कहा, "हट, नौटंकी।" और स्पीड बढ़ाकर आगे बढ़ गई।

    सिद्धांत ने जल्दी से उसके पास जाकर कहा, "अरे पूर्वी जी, एक आप ही तो हैं इस शहर की जो हर प्रैक्टिकल में हमें मिल जाती हैं, वरना इग्नू में पढ़ने वाले कितने ही लोग एक-दूसरे को जानते होंगे।"

    पूर्वी ने हँसकर कहा, "चल, चल, अब ज़्यादा मस्का मत लगा।"

    इस वक़्त वे दोनों ग्राउंड में पहुँच चुके थे जहाँ पहले से ही बहुत सारे बच्चे छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर बैठे हुए थे।

    सिद्धांत ने भी वहीं पर बैठते हुए कहा, "भई, अगर हमारे पास इतना ही मक्खन होता कि हम किसी को मस्का लगा सकें तो खुद न खा लेते, ये रिफाइंड ऑयल क्यों यूज़ कर रहे होते!"

    पूर्वी ने मजाकिया लहजे में ही कहा, "इतना काम करते हो और मक्खन अफोर्ड नहीं कर सकते!"

    सिद्धांत का मजाकिया लहजा तुरंत गायब हो गया, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। वह चुपचाप अपनी गर्दन झुकाकर बैठ गया।

    पूर्वी को यह देखकर अच्छा नहीं लग रहा था। उसने सिद्धांत के कंधे पर हाथ रखकर कहा, "कूल डाउन ब्रो, यू कैन डू एनीथिंग।"

    सिद्धांत ने उसकी ओर देखकर कहा, "डू यू रियली थिंक दैट?"

    पूर्वी ने पूरे विश्वास के साथ कहा, "आई डोंट ओनली थिंक दैट, आई नो दैट।"

    सिद्धांत की आँखों में हल्की सी नमी आ गई। उसने कहा, "थैंक यू, पूर्वी जी।"

    पूर्वी ने उसकी ओर देखकर कहा, "किसलिए?"

    सिद्धांत ने एक गहरी साँस लेकर कहा, "जहाँ कभी-कभी हमें ही खुद पर शक होने लगता है वहाँ आप हम पर भरोसा कर रही हैं, इसलिए।"

    पूर्वी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "क्योंकि मैंने तुम्हारी मेहनत देखी है।"

    सिद्धांत ने माहौल को गंभीर होता देखकर कहा, "अच्छा, ये सब छोड़िए। चलिए नाश्ता कर लेते हैं।"

    पूर्वी ने एक्साइटेड होकर कहा, "पहले ये बताओ कि आज क्या है खाने में!"

    सिद्धांत ने वह स्नैक्स वाला बॉक्स निकालकर उसके सामने करते हुए कहा, "आप खुद देख लो।"

    पूर्वी ने वह बॉक्स लेकर खोला और फिर एक्साइटमेंट के साथ कहा, "वाह, तेरे फेवरेट स्नैक्स!"

    सिद्धांत ने कहा, "हाँ, और पता है कहाँ से आए हैं ये!"

    पूर्वी ने एक स्नैक्स लेते हुए कहा, "कहाँ से?"

    सिद्धांत ने कहा, "हमारी दूसरी बहन के यहाँ से!"

    पूर्वी ने उन स्नैक्स को खाते हुए कहा, "तेरे तो मजे हैं।"

    सिद्धांत ने कहा, "वो तो हैं।"

    वह बातें तो कर रहा था, लेकिन नाश्ता नहीं कर रहा था। यह देखकर पूर्वी ने कहा, "तू खा क्यों नहीं रहा है?"

    सिद्धांत ने कहा, "आप जानती हैं न, हम अपना मास्क नहीं उतारते हैं।"

  • 8. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 8

    Words: 1931

    Estimated Reading Time: 12 min

    सुबह का समय था। सेंट एंड्रयूज कॉलेज, सिविल लाइंस, गोरखपुर में पूर्वी ने सिद्धांत के हाथ से लंच बॉक्स लिया और खोला। एक्साइटमेंट के साथ उसने कहा, "वाह, तेरे फेवरेट स्नैक्स!"

    सिद्धांत ने कहा, "हाँ, और पता है कहाँ से आए हैं ये!"

    पूर्वी ने एक स्नैक्स लेते हुए कहा, "कहाँ से?"

    सिद्धांत ने कहा, "हमारी दूसरी बहन के यहाँ से!"

    पूर्वी ने उन स्नैक्स को खाते हुए कहा, "तेरे तो मजे हैं।"

    सिद्धांत ने कहा, "वो तो हैं।"

    वह बातें तो कर रहा था, लेकिन नाश्ता नहीं कर रहा था। यह देखकर पूर्वी ने कहा, "तू खा क्यों नहीं रहा है?"

    सिद्धांत ने कहा, "आप जानती हैं न, हम अपना मास्क नहीं उतारते हैं।"

    पूर्वी ने उसे डांटते हुए कहा, "चल-चल! यहाँ तेरा चेहरा कोई नहीं देखेगा। तू इतना भी कोई VIP नहीं है।"

    फिर उसने वह लंच बॉक्स उसकी ओर बढ़ाकर कहा, "चल, खा चुपचाप!"

    सिद्धांत ने अपना सिर ना में हिलाकर कहा, "गलती कर दी, आपको माता श्री से मिलाकर!"

    पूर्वी ने अपनी भौंहें उठाकर कहा, "क्यों?"

    सिद्धांत ने मुँह बनाकर कहा, "घर में वो और बाहर आप! दोनों ही खाने के लिए हमारे पीछे पड़ी रहती हैं।"

    पूर्वी ने आराम से कहा, "सच में!"

    सिद्धांत ने भी कहा, "और नहीं तो क्या! घर में वो और बाहर आप उनकी ड्यूटी पूरी करने लग जाती हैं। मतलब इतना तो वो भी नहीं डाँटती हैं, जितना आप!"

    पूर्वी ने उसकी बातों को पूरी तरह से इग्नोर करते हुए कहा, "बातें हो गई हों तो नाश्ता करो।"

    सिद्धांत ने अपना मास्क बायीं ओर से थोड़ा सा हटाया और खाना शुरू किया, लेकिन उसका चेहरा अभी भी नज़र नहीं आ रहा था।

    कुछ देर बाद पूर्वी ने कहा, "वैसे आगे क्या सोचा है?"

    सिद्धांत ने नासमझी से कहा, "आगे मतलब?"

    पूर्वी ने कहा, "मतलब कि ग्रेजुएशन के बाद क्या करना है?"

    सिद्धांत ने सोचते हुए कहा, "अभी... कुछ सोचा नहीं है।"

    पूर्वी ने मुँह बनाकर कहा, "नहीं बताना है तो मत बताओ, बट ऐसे बेवकूफ तो मत बनाओ।"

    सिद्धांत ने अपना सिर ना में हिलाकर कहा, "हम आपको बेवकूफ नहीं बना रहे हैं। बस बात ऐसी है कि अपने फ्यूचर प्लांस किसी को बताए नहीं जाते हैं और वैसे भी इंसान जो सोचता है, वो होता थोड़ी न है।"

    वो दोनों अभी बातें कर ही रहे थे कि इतने में उनके कान में एक आवाज पड़ी, "मुझे पहले ही पता था पूर्वी, कि ये कुछ नहीं बताएगा।"

    उस आवाज को सिद्धांत और पूर्वी, दोनों ही पहचानते थे। सिद्धांत ने पीछे देखकर एनॉयिंग फेस के साथ कहा, "ओ हेलो, श्रेष्ठ ब्रो!"

    श्रेष्ठ ने उसकी ओर देखकर खुद को पॉइंट करते हुए कहा, "आर यू टॉकिंग टू मी?"

    सिद्धांत ने भी अकड़कर कहा, "यस, आई एम टॉकिंग टू यू।"

    श्रेष्ठ ने अपनी गर्दन सामने की ओर घुमाकर कहा, "बोलो।"

    सिद्धांत ने चिढ़कर कहा, "आपको कोई और टॉपिक नहीं मिलता है बात करने के लिए!"

    श्रेष्ठ ने उसके गले में हाथ डालकर कहा, "नहीं, मेरे लिए सबसे इंटरेस्टिंग टॉपिक तू ही है।"

    सिद्धांत ने नकली हँसी हँसते हुए कहा, "हा, हा, हा, वेरी फनी!"

    इससे पहले कि श्रेष्ठ कुछ कहता, सिद्धांत का फोन बज उठा।

    सिद्धांत ने अपनी जेब से फोन निकालते हुए कहा, "अब किसे हमारी याद आ रही है।"

    उसने फोन देखकर कहा, "मान ब्रो!"

    फिर उन तीनों ने अपनी गर्दन क्लास की ओर घुमाई तो एक लड़का अपना हाथ हिलाकर उन सबको अंदर आने का इशारा कर रहा था।

    सिद्धांत ने खड़े होते हुए कहा, "चलिए, सबसे ज्यादा इंटरेस्टिंग टॉपिक तो अब मिलने वाला है।"

    इसी के साथ सारे बच्चे क्लास में चले गए। उनका पूरा दिन प्रैक्टिकल में ही बीत गया।


    शाम के पाँच बजे के करीब, सारे बच्चे केमिस्ट्री लैब से बाहर निकले। सबने गेट के बाहर आकर एक-दूसरे को बाय कहा और अपने-अपने रास्ते चल दिए। सिद्धांत और पूर्वी एक साथ चल रहे थे।

    पूर्वी ने सिद्धांत की ओर देखकर कहा, "अब यहाँ से कहाँ जाना है?"

    सिद्धांत ने उखड़ी हुई आवाज़ में कहा, "जिम!"

    उसने अपना रूबिक्स क्यूब निकाल लिया था।

    पूर्वी ने हैरानी के साथ कहा, "इस वक्त भी!"

    सिद्धांत ने उसकी ओर देखकर कहा, "यू नो, सम पीपल आर क्रेजी अबाउट देयर फिटनेस।"

    फिर उसने सामने की ओर देखकर अपना क्यूब सॉल्व करते हुए कहा, "और वैसे भी इसी बहाने हमारा डेब्ट भी तो जल्दी ही खत्म हो जाएगा।"

    पूर्वी ने उसकी ओर देखकर कहा, "क्या मतलब?"

    सिद्धांत ने अपनी कॉलर उठाकर कहा, "ये हैंडसम सा सर्वांश माथुर लोगों का, खासकर लड़कियों का, सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन जो है।"

    पूर्वी ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, "हाँ, हाँ, ऐसा हैंडसम जो कभी अपने मुँह पर से मास्क भी नहीं हटाता।"

    सिद्धांत ने भी मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, "अब ये आँखें हैं ही इतनी नशीली तो हम क्या ही कर सकते हैं!"

    पूर्वी फिर कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी उसका ध्यान एक बाइक की आवाज़ पर गया। उसने सिद्धांत की ओर देखकर कहा, "वैसे तेरी बाइक को क्या हुआ?"

    सिद्धांत ने अपना सॉल्व हो चुका रूबिक्स क्यूब उसकी ओर उछालकर कहा, "वो, आज सर्विसिंग के लिए गई है।"

    पूर्वी ने उस क्यूब को कैच करते हुए कहा, "तभी मैं सोचूँ कि सिड पैदल क्यों चल रहा है!"

    सिद्धांत ने उसकी बातों को इग्नोर करते हुए अपना बैग उसकी ओर बढ़ाकर कहा, "अच्छा पूर्वी जी, विल यू होल्ड इट फॉर मी?"

    पूर्वी ने अपनी भौंहें उठाकर कहा, "क्यों?"

    सिद्धांत ने अपना बैग उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, "पकड़िए न!"

    पूर्वी ने उसका बैग पकड़ लिया। सिद्धांत ने पहले अपनी कैप उतारी, फिर अपनी जैकेट और फिर अपनी टी-शर्ट उतारने लगा। पूर्वी ने उसका हाथ पकड़कर कहा, "सिड, वी आर ऑन द रोड। ये क्या कर रहे हो तुम?"

    सिद्धांत ने अपना हाथ छुड़ाकर अपना काम जारी रखते हुए कहा, "नथिंग, जस्ट वियरिंग माय यूनिफॉर्म।"

    पूर्वी ने चिढ़कर कहा, "तुम कुछ पहन नहीं रहे, बल्कि उतार रहे हो।"

    जैसे ही सिद्धांत ने अपनी टी-शर्ट उतारी, उसके अंदर उसकी जिम वाली टी-शर्ट दिखने लगी।

    पूर्वी ने अपनी आँखें बड़ी करके कहा, "यू आर इनसेन!"

    सिद्धांत ने मुस्कुराकर कहा, "थैंक्स फॉर योर कंप्लीमेंट।"

    पूर्वी ने अपना सिर ना में हिलाकर कहा, "तेरा कुछ नहीं हो सकता!"

    सिद्धांत ने आराम से अपना बैग वापस लेते हुए कहा, "तो ट्राई भी मत ही करिए।"


    कुछ देर बाद सिद्धांत जिम पहुँचा तो वहाँ पहले से ही बहुत भीड़ थी और राहुल उन सबको शांत रहने के लिए कह रहा था।

    जैसे ही उसकी नज़र सिद्धांत पर पड़ी, उसने कहा, "एंड हियर कम्स आवर सर्वांश!"

    सिद्धांत ने अपना सिर ना में हिलाया और आगे बढ़ गया। उसे देखते ही सब लोग एक्साइटेड हो गए। इसका फ़ायदा उठाकर राहुल अपने केबिन में भाग गया और सिद्धांत को लोगों ने घेर लिया।

    सिद्धांत ने तुरंत कहा, "जस्ट वन मिनट!" और वह भी दौड़कर कैसे भी राहुल के केबिन में चला गया।

    उसने चिढ़कर राहुल से कहा, "भाई, आप किसी नए ट्रेनर को क्यों नहीं बुलाते?"

    राहुल ने नॉर्मली कहा, "मैं बुला लूँगा। अभी के लिए तू संभाल ले न!"

    सिद्धांत ने अपनी उंगली दिखाकर कहा, "आप ये डेब्ट के नाम पर जो इमोशनल अत्याचार करते हैं न, महँगा पड़ेगा आपको।"

    राहुल ने बेफ़िक्री से कहा, "अरे हाँ, हाँ, महँगा-सस्ता, जो भी है मैं संभाल लूँगा। फ़िलहाल तू इन लड़कियों को संभाल न!"

    सिद्धांत ने चिढ़कर कहा, "अगेन गर्ल्स, इन्हें कुछ काम-धाम रहता भी है या नहीं!"

    राहुल ने केबिन का दरवाज़ा खोलकर उसे बाहर की ओर धक्का देकर कहा, "तू जा ना!"

    धक्के की वजह से सिद्धांत लड़खड़ा गया, लेकिन उसने खुद को संभालकर बड़े ही स्टाइल से सबके सामने जाते हुए कहा, "हाय गर्ल्स!"


    शाम के करीब सात बजकर तीस मिनट पर, सिद्धांत जिम से बाहर आया और फिर एक डांस स्कूल में चला गया। वहाँ पर वह डांस सिखाता था। रात के करीब दस बजे वह वहाँ से निकला और अपने घर की ओर चल दिया।

    तभी उसे कुछ याद आया और उसने खुद से ही कहा, "हमें तो बाइक लेने जाना था।"

    फिर उसने अपने हाथ की मुट्ठी बनाकर हवा में मारकर कहा, "डैम इट!"

    उसने इतना ही कहा था कि उसके पीछे से किसी की आवाज़ आई, "सिड, भैया!"

    सिद्धांत ने अपनी गर्दन उस आवाज़ की दिशा में घुमाई तो वहाँ पर एक पन्द्रह साल का लड़का बाइक लेकर खड़ा था।

    उसे देखकर सिद्धांत ने कहा, "अरे छोटू, तू यहाँ!"

    छोटू ने उतरते हुए कहा, "वो, आप बाइक लेने नहीं आ पाए न, तो पापा ने मुझे भेज दिया।"

    सिद्धांत ने बाइक पर बैठते हुए कहा, "थैंक्स छोटे!"

    छोटू ने अपनी गर्दन झुकाकर कहा, "थैंक्स वाली कोई बात नहीं है भैया, आप भी तो पढ़ाई में हमारी मदद करते हैं और वैसे भी हम जानते हैं कि आप कितनी मेहनत करते हैं।"

    सिद्धांत ने उसके बाल बिखेरकर कहा, "बस, बस, हमारी तारीफ़ बंद करो और बैठो, तुम्हें वापस छोड़ देते हैं।"

    छोटू ने मना करते हुए कहा, "अरे नहीं, हम चले जाएँगे।"

    सिद्धांत ने थोड़ी कड़क आवाज़ में कहा, "हमने कहा न, बैठो।"

    छोटू ने तुरंत सिद्धांत के पीछे बैठते हुए कहा, "ठीक है, बैठ रहे हैं।"


    रात के करीब दस बजकर पन्द्रह मिनट पर, सिद्धांत की बाइक एक गैरेज के सामने आकर रुकी। बाइक की आवाज़ सुनकर एक आदमी (अमन, उस गैरेज का मालिक) बाहर आया। उसकी उम्र कोई पैंतालिस-छियालिस साल रही होगी।

    उसने सिद्धांत को देखकर कहा, "तुम्हें आने की क्या ज़रूरत थी सिड, वो चला आता।"

    सिद्धांत ने कहा, "हाँ, हाँ, आपका बस चले तो इसे अभी ही बॉर्डर पर भी भेज देंगे।"

  • 9. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 9

    Words: 1912

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात के करीब दस बजकर पन्द्रह मिनट पर सिद्धांत की बाइक एक गैरेज के सामने आकर रुकी। बाइक की आवाज सुनकर अमन, उस गैरेज का मालिक, बाहर आया। उसकी उम्र कोई पैंतालिस-छियालिस साल रही होगी।

    उसने सिद्धांत को देखकर कहा, "तुम्हें आने की क्या जरूरत थी सिड, वो चला आता।"

    सिद्धांत ने उन्हें टौंट मारते हुए कहा, "हाँ, हाँ, आपका बस चले तो इसे अभी ही बॉर्डर पर भी भेज देंगे।"

    फिर उसने छोटू की ओर देखकर कहा, "और तू, अंदर जा।"

    उसकी आवाज सुनकर छोटू कुछ बोलते ही नहीं बना और वह चुपचाप अंदर चला गया।

    उसके जाते ही सिद्धांत ने अमन की ओर देखकर कहा, "और आप मामा, इतनी रात को इसे बाहर भेज दिया, वो भी बाइक लेकर। आप जानते हैं न, अंडर एज है वो।"

    अमन ने मुँह बनाकर कहा, "आगे से नहीं भेजूँगा, ठीक है!"

    सिद्धांत ने कहा, "हम्म?" तो अमन ने कहा, "अब तू भी जा।"

    सिद्धांत ने कहा, "हाँ, हाँ, जा रहे हैं।"

    बोलकर उसने अपनी बाइक स्टार्ट कर ली तो अमन अंदर की ओर जाने लगा। तभी अचानक उसने अपने कदम रोक लिए।

    उसने वापस सिद्धांत की ओर देखकर कहा, "सिड, चले तो जाओगे न!"

    सिद्धांत ने अपनी बाइक पर हाथ फिराकर कहा, "हाँ मामा, जब तक हमारा चेतक हमारे साथ है, हमें क्या प्रॉब्लम हो सकती है भला!"

    अमन ने कहा, "ठीक है, घर पहुँच कर एक बार इनफॉर्म कर देना।"

    सिद्धांत ने जानबूझकर कहा, "ओ के, मम्मी!"

    अमन ने नासमझी से कहा, "मम्मी!"

    तो सिद्धांत ने हँसते हुए कहा, "हाँ, जो काम वो करती हैं, वो आप कर रहे हैं, तो आपको भी मम्मी ही बोलेंगे न!"

    अमन ने चिढ़कर कहा, "तुझे मारी खानी है मुझसे!"

    सिद्धांत ने मुँह बनाकर कहा, "क्या है यार, हम जिससे भी बात करते हैं, उसे हमें मारना ही होता है!"

    अमन ने हल्के से हँसकर कहा, "चल, चल, मजाक बहुत हो गया। अब जल्दी से घर जा।"

    सिद्धांत ने अपना पर्स निकालते हुए कहा, "पैसे तो ले लीजिए।"

    अमन ने थोड़ी कड़क आवाज में कहा, "अब अपने मामा को पैसे देगा तू!"

    सिद्धांत ने गंभीर होकर कहा, "देखिए मामा, रिश्ते अपनी जगह और काम अपनी जगह।"

    अमन ने अपने हाथ बाँधकर कहा, "फिर तो मुझे तुझे पैसे देने चाहिए..."

    फिर उसने अंदर की ओर इशारा करके कहा, "इसे पढ़ाने के लिए।"

    सिद्धांत ने कहा, "अब आप हमें शर्मिंदा कर रहे हैं।"

    अमन ने कहा, "ऐसा कुछ नहीं है, बस तू अपने पैसे अपने पास रख।"

    सिद्धांत ने अपना पर्स अंदर रखकर कहा, "अच्छा, तो हम चलते हैं।"

    अमन ने कहा, "संभल कर जाना।"

    सिद्धांत ने कहा, "ओ के, मामा।" और अपनी बाइक की स्पीड बढ़ा ली।


    कुछ देर बाद, सिद्धांत ने अपनी बाइक एक घर के सामने लाकर खड़ी कर दी। यह घर सूर्यकुंड में था (यहाँ कुंड की नहीं, उस पूरे एरिया की बात हो रही है)।

    घर के सामने एक लोहे का गेट था। गेट के अंदर दो कार पार्क करने जितनी जगह थी जहाँ फिलहाल एक बाइक और एक साइकिल खड़ी थी। एक तरफ लाइन से गमले रखे हुए थे जिनमें अलग-अलग प्रजाति के बहुत सारे फूल थे। उसके बाद अंदर जाने के लिए कुछ सीढ़ियाँ थीं और फिर दरवाजा। दरवाजे के बगल में ही एक बेसिन लगा हुआ था।

    दरवाजा खुलते ही एक हॉल था। हॉल के एक तरफ किचन था। हॉल के दूसरे तरफ एक गैलरी थी जहाँ दो कमरे थे और अंत में एक बाथरूम था।

    सिद्धांत ने अंदर आकर अपनी बाइक पार्क की और गेट को लॉक करके अंदर की ओर बढ़ गया। उसने बाहर ही हाथ-पैर धुले और अंदर, हॉल में चला गया जहाँ एक लड़का, एक लड़की और एक महिला बैठे हुए थे।

    लड़की की उम्र छब्बीस-सत्ताइस साल रही होगी। उसने इस वक्त एक नीले रंग की थर्मल के साथ काले रंग का पजामा पहना हुआ था। ये सिद्धांत की बड़ी बहन हैं। इनका नाम है, वरलक्ष्मी माथुर लेकिन सभी लोग इन्हें लक्ष्मी नाम से ही जानते हैं।

    लड़के की उम्र बाइस-तेईस साल रही होगी। उसने काले रंग के थर्मल के साथ काले रंग का लोअर पहना हुआ था। उसकी आँखों में पॉवर वाला चश्मा लगा हुआ था। ये सिद्धांत के बड़े भाई हैं लेकिन ये लक्ष्मी से छोटे हैं। इनका नाम है, शांतनु माथुर।

    ये दोनों भाई-बहन प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं और फिलहाल बी.एड कर रहे हैं। ये अपना खुद का कोचिंग सेंटर भी चलाते हैं और होम ट्यूशंस भी देते हैं। ये दोनों भी नौ बजकर तीस मिनट पर घर आए थे और फिलहाल एग्जाम पेपर्स बनाने में बिजी थे।

    महिला की उम्र अड़तालिस-उनचास साल रही होगी। उन्होंने एक साड़ी पहनी हुई थी। उनकी भी आँखों पर चश्मा लगा हुआ था। ये हैं इन सबकी माँ, विशाखा माथुर। ये एक हाउसवाइफ हैं। सारे बच्चे दिन भर बाहर रहते हैं और घर का सब कुछ ये ही देखती हैं।

    उन्होंने सिद्धांत को अंदर आते हुए देखा तो उठते हुए कहा, "आओ सिड, बैठो।"

    सिद्धांत ने कहा, "हम्म!" और सबके पास जाकर बैठ गया।

    उसने भी अपना फोन निकाला और उसमें कुछ काम करने लगा। कुछ देर में मिसेज़ माथुर ने खाने की प्लेट्स लाकर कहा, "काम बाद में करना, पहले चलो खाना खा लो।"

    सिद्धांत ने अपनी प्लेट लेते हुए कहा, "थैंक यू, माता श्री!"

    फिर मिसेज़ माथुर ने न्यूज़ चला दिया और सभी खाने बैठ गए। सभी न्यूज़ देखते हुए खाना खा रहे थे तभी एक न्यूज़ ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया।

    रिपोर्टर ने कहा, "जहाँ आए दिन शहर में लूटपाट और क्राइम्स की खबरें आ रही थीं वहीं अब एक नाम सबके सामने उभर कर सामने आ रहा है जिसकी वजह से पूरे उत्तर प्रदेश में क्राइम रेट बहुत ज्यादा कम हो चुका है और वो नाम है डॉक्टर एस।"

    जहाँ बाकी सबकी नज़रें टी.वी. की ओर थीं वहीं सिद्धांत आराम से अपने खाने में मग्न था लेकिन जैसे ही उसने यह नाम सुना उसके हाथ खाना खाते हुए रुक गए और वह ध्यान से उस न्यूज़ को सुनने लगा।

    वहीं टी.वी. में रिपोर्टर ने आगे कहा, "जी हाँ, डॉक्टर एस! एक ऐसा चेहरा जिसे किसी ने नहीं देखा लेकिन नाम सबने सुना हुआ है। ये वो नाम है जिससे अच्छे-अच्छे क्रिमिनल्स तक काँपते हैं और इसी बीच उसका नाम फिर से चर्चा में आ रहा है क्योंकि इस बार उसने एक लड़की के रेपिस्ट की वो हालत की है कि किसी की भी रूह काँप जाए। और अब कोई भी आदमी ऐसी घिनौनी हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा क्योंकि डॉक्टर एस ने इस लाश के पास ऐसे लोगों के लिए एक मैसेज भी छोड़ रखा है जिसका एक ही मतलब है कि अब ऐसे क्रिमिनल्स की खैर नहीं।"

    न्यूज़ देखते हुए ही मिसेज़ माथुर ने कहा, "ये बंदा सही काम कर रहा है। इस समाज को ऐसे ही लोगों की ज़रूरत है।" इस वक्त उनकी आँखों में अलग ही चमक थी।

    उनके शब्द सुनकर सिद्धांत के मुँह से निकला, "हाँ!"

    तो मिसेज़ माथुर ने कहा, "और नहीं तो क्या! ऐसी हरकत करने वालों को तो बीच चौराहे पर गोली मार देनी चाहिए।"

    सिद्धांत ने उनकी ओर देखकर अपनी भौंहें उठाकर कहा, "मतलब आप क्राइम को सपोर्ट कर रही हैं।"

    मिसेज़ माथुर ने उसकी ओर देखकर कहा, "नहीं, हम क्राइम को नहीं बल्कि क्रिमिनल्स को सजा देने वाले को सपोर्ट कर रहे हैं।"

    ये सुनकर सिद्धांत की आँखें मुस्करा दीं लेकिन उसने बात बदलने के लिए शांतनु की ओर देखकर कहा, "वैसे भैया, सेंटर का क्या हाल है?"

    शांतनु ने निवाला तोड़ते हुए कहा, "इट्स गुड, बस तुम भी जल्दी ही वापस आ जाओ।"

    सिद्धांत ने अपने खाने पर ध्यान देते हुए कहा, "वो शायद ना हो पाए।"

    ये सुनकर सबने एक साथ उसकी ओर देखकर कहा, "क्यों?"

    सिद्धांत ने थोड़ा संकोच करते हुए कहा, "वो, हम... मार्शल आर्ट्स क्लासेज ज्वाइन करने जा रहे हैं।"

    लक्ष्मी ने मुँह बनाकर कहा, "अब वो भी सीखना है तुम्हें!"

    सिद्धांत ने उसकी ओर देखकर कहा, "सीखना है!"

    फिर उसने हँसकर कहा, "सीखना नहीं, सिखाना है।"

    शांतनु ने सिद्धांत को ऊपर से नीचे तक देखकर कहा, "तुम्हें मार्शल आर्ट्स आते भी हैं!"

    सिद्धांत ने उसकी ओर देखकर कहा, "अगर आता नहीं, तो हमें यह ऑफर मिलता ही क्यों!"

    लक्ष्मी ने अपनी कमर पर हाथ रखकर कहा, "तुमने मार्शल आर्ट्स कब सीख लिया?"

    सिद्धांत ने उसकी ओर देखकर कहा, "जब आप लोगों को पता नहीं चला, तब!"

    लक्ष्मी ने चिढ़कर कहा, "साफ़-साफ़ बताओगे!"

    सिद्धांत ने उसकी ओर घूमकर कहा, "दीदी प्लीज, जैसे आप सबको पता चले बिना जिम ज्वाइन कर लिए थे, वैसे ही मार्शल आर्ट्स भी सीख लिए।"

    मिसेज़ माथुर ने उनकी बातों को नज़रअंदाज़ करके कहा, "तो कब से हैं क्लासेज?"

    सिद्धांत ने अपने खाने पर ध्यान लगाते हुए कहा, "सुबह में!"

    शांतनु ने उसकी ओर देखकर कहा, "तो क्या दिक्कत है, शाम को आ जाओ।"

    सिद्धांत ने कुछ सोचकर कहा, "ठीक है, आ जाएँगे।"

    फिर उसने मिसेज़ माथुर की ओर देखकर कहा, "अच्छा माता श्री, हमारा हो गया, हम सोने जा रहे हैं।"

    ये सुनकर लक्ष्मी ने कहा, "इसका अच्छा है! बाहर से आते ही खाना खाओ और सोने चले जाओ।"

    सिद्धांत ने चिढ़कर कहा, "दीदी, चाहती क्या हैं आप!"

    मिसेज़ माथुर ने बात संभालते हुए सिद्धांत से कहा, "कुछ नहीं, तुम जाओ, सो जाओ।"

    उनकी बात मानकर सिद्धांत ने आगे कुछ नहीं कहा। उसने चुपचाप जाकर हाथ धुला और रूम में चला गया।

    उसके जाने के बाद मिसेज़ माथुर ने लक्ष्मी को डाँटते हुए कहा, "भोलू, क्यों परेशान करती हो उसे?"

    लक्ष्मी ने कहा, "हम तो बस यह सोचते हैं कि उसके होठों पर थोड़ी मुस्कान आ जाए।"

  • 10. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 10

    Words: 1899

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात का समय था। सिद्धांत के घर में, लक्ष्मी की बातें सुनकर सिद्धांत ने चिढ़कर कहा, "दीदी, चाहती क्या हैं आप?"

    मिसेज माथुर ने बात संभालते हुए सिद्धांत से कहा, "कुछ नहीं, तुम जाओ, सो जाओ।"

    उनकी बात मानकर सिद्धांत ने आगे कुछ नहीं कहा। उसने चुपचाप जाकर हाथ धुला और अपने कमरे में चला गया।

    उसके जाने के बाद मिसेज माथुर ने लक्ष्मी को डांटते हुए कहा, "भोलू, क्यों परेशान करती हो उसे?"

    "हम तो बस ये सोचते हैं कि उसके होठों पर थोड़ी मुस्कान आ जाए," लक्ष्मी ने कहा।

    "लेकिन ये तो और चिढ़ जाता है," उसने कमरे की ओर देखकर कहा।

    "सही में मम्मी, हम लोग कर तो रहे हैं न! फिर इसे क्या जरूरत है ये सब करने की!" शांतनु ने कहा।

    यह सुनकर मिसेज माथुर कुछ सोचने लगीं। कुछ पल सोचकर उन्होंने कहा, "अब ये जरूरत नहीं, आदत है उसकी और वैसे भी तुम लोगों को कौन सी इतनी ज्यादा सैलरी मिल जाती है, स्कूल से!"

    "ये तो सही बात है," शांतनु ने एक गहरी साँस लेकर कहा।

    तभी लक्ष्मी ने एक्साइटेड होकर कहा, "हेय सनी, हमारे दिमाग में एक बात आई है, बोलें!"

    "बोलिए!" शांतनु ने एक गहरी साँस लेकर कहा।

    "क्यों न तुम भी जिम ज्वाइन कर लो!" लक्ष्मी ने खुश होते हुए कहा।

    "पागल तो नहीं हो गई हैं न!" शांतनु ने उसकी ओर देखकर कहा।

    "क्यों, क्या हुआ?" लक्ष्मी ने पूछा।

    "उसने इंटर में ही जिम ज्वाइन कर लिया था इसीलिए हमें पता चलने तक वो कोच भी बन चुका था..." शांतनु ने कहा।

    फिर उसने अपने शरीर को देखते हुए कहा, "और हमारी बॉडी ही देखिए पहले!"

    उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वह बहुत पतला था।

    "वो तो सही बात है। इतने पतले बंदे की बॉडी इतनी जल्दी थोड़ी न बनेगी!" लक्ष्मी ने कहा।

    हॉल में सब अपनी बातों में लगे हुए थे। वहीं सिद्धांत कमरे में जाकर टेबल और चेयर पर बैठ गया।

    उसने कुर्सी पर पसरते हुए कहा, "थैंक गॉड! सबका ध्यान डॉक्टर एस पर से हट गया वरना..."

    फिर उसने अपने कानों में हेडफोन्स पहने और अपनी बुक्स और कॉपियां खोलकर बैठ गया।

    कुछ देर बाद, बाकी सब भी अंदर आए। सबकी नज़रें सिद्धांत पर पड़ीं जो अभी भी अपने काम में लगा हुआ था। उसे देखकर सबने अपना सिर ना में हिला दिया।

    मिसेज माथुर ने घड़ी में समय देखा; वह बारह बजे का समय दिखा रही थी। उन्होंने लक्ष्मी को कुछ इशारा किया तो वह सिद्धांत की ओर बढ़ गई।

    वह अपने हाथ सिद्धांत के हेडफोन्स की तरफ बढ़ाने लगी, लेकिन इससे पहले कि उसका हाथ उन तक पहुँचता, सिद्धांत ने एक झटके से उसका हाथ पकड़ लिया।

    यह इतनी जल्दी हुआ कि एक पल के लिए लक्ष्मी डर ही गई थी, लेकिन अगले ही पल वह सिद्धांत पर बरस पड़ी।

    "ये क्या हरकत है, ऐसे कोई हाथ पकड़ता है क्या?" उसने थोड़ी तेज आवाज़ में कहा।

    सिद्धांत, जो अपने हेडफोन्स उतार चुका था, उसने लापरवाही से कहा, "आप हमें अच्छे से जानती हैं, फिर भी आपने हमें उंगली की, तो गलती आपकी है।"

    "तुम बहुत बदतमीज हो," लक्ष्मी ने चिढ़कर कहा।

    "तारीफ के लिए शुक्रिया!" सिद्धांत ने अपने सीने पर हाथ रखकर थोड़ा झुकते हुए कहा।

    लक्ष्मी उसकी बातें सुनकर और उसकी हरकतें देखकर और भी ज्यादा चिढ़ गई। उसने गुस्से में सिद्धांत को देखकर कहा, "शर्म नाम की चीज नहीं है न तुम्हारे अंदर!"

    "आपको आज पता चला!" सिद्धांत ने बिना किसी भाव के कहा।

    उन दोनों की हरकतें देखकर मिसेज माथुर और शांतनु, दोनों को ही बहुत ज्यादा हँसी आ रही थी।

    वहीं सिद्धांत ने आगे कहा, "कितने दुख की बात है कि हम आपके साथ ऑलमोस्ट अट्ठारह साल से रह रहे हैं और फिर भी आपको हमारे बारे में ये बात पहले नहीं पता थी।"

    फिर उसने अपनी भौंहें उठाकर कहा, "आज जाकर पता चली है!"

    "पता तो हमें पहले ही था, बस बोलते नहीं थे," लक्ष्मी ने इधर-उधर देखकर कहा।

    इस बार सिद्धांत ने अपनी गर्दन टेढ़ी करके और एक भौंह उठाकर कहा, "ओ रियली!"

    लक्ष्मी फिर से कुछ बोलने को हुई ही थी कि तभी मिसेज माथुर ने उन दोनों के बीच में आते हुए कहा, "बस करो तुम दोनों!"

    फिर उन्होंने सिद्धांत की ओर देखकर कहा, "और तुम, तुम तो सोने जा रहे थे न!"

    "हाँ, लेकिन नींद नहीं आ रही थी तो सोचा कि कुछ काम ही कर लें," सिद्धांत ने अपना सिर खुजाते हुए कहा।

    "तुम्हारा दिमाग रात में ही ज्यादा चलता है," मिसेज माथुर ने अपने हाथ बाँधकर कहा।

    "अच्छा, अब और गुस्सा मत करिए, जा रहे हैं सोने," सिद्धांत ने तुरंत कहा।

    "तुरंत चलो," मिसेज माथुर ने कहा।

    "हम्म!" सिद्धांत ने कहा और अपना सामान समेटने लगा।


    अगले दिन, सुबह के चार बजे, सभी लोग नींद में सो रहे थे, लेकिन घड़ी में चार बजते ही सिद्धांत की आँखें खुल गईं। उसने एक नज़र अपनी माँ, अपने भाई और बहन पर डाली जो शांति से सो रहे थे और फिर झुककर धरती माँ को प्रणाम कर नीचे उतर गया।

    फिर उसने बारी-बारी सबके पैर छुए और बाहर चला गया। वहाँ जाकर उसने पहले एक फोटो के आगे सिर झुका लिया जो उसके पापा की थी। तीन साल पहले उसके पापा की डेथ हो गई थी।

    वहाँ से वह सबसे पहले बाहर गया। उसने पूरे घर में झाड़ू लगाया और फिर किचन में जाकर अपनी माँ के लिए कुछ होम रेमेडीज तैयार करने लगा क्योंकि मिसेज माथुर को थायरॉयड है। ये सब करने के बाद वह बाथरूम में चला गया।

    लगभग आधे घंटे बाद, वह बाथरूम से बाहर निकला तो वह नहा चुका था। इस वक्त उसने एक ग्रे कलर के लोअर के साथ ब्लू कलर का टी-शर्ट पहना हुआ था।

    वह अपने बालों को सुखाते हुए बाहर आया। वह सबसे पहले मंदिर में गया और लगभग पन्द्रह मिनट बाद बाहर आया। वह कमरे में गया और फिर से अपने टेबल और चेयर पर बैठ गया।

    तब तक मिसेज माथुर भी जग चुकी थीं। सिद्धांत के आते ही वे चली गईं। लगभग पाँच बजकर तीस मिनट पर सिद्धांत के फ़ोन में अलार्म बजने लगा, जिसे सुनकर शांतनु और लक्ष्मी भी जग गए और सिद्धांत अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ।

    उसने अपना बैग उठाया और सीधे किचन की ओर बढ़ गया जहाँ मिसेज माथुर ने पहले से ही उसके लिए कुछ फल और दूध तैयार कर दिया था।

    "गुड मॉर्निंग, माता श्री!" सिद्धांत ने मिसेज माथुर को देखते ही कहा।

    "गुड मॉर्निंग, सिड!" मिसेज माथुर ने कहा।

    फिर उन्होंने नाश्ते की ओर इशारा करके कहा, "नाश्ता कर लो, फिर जाना!"

    "हम्म!" सिद्धांत ने कहा और वहीं रैक पर बैठ गया।

    मिसेज माथुर दूसरी तरफ अपने काम में लगी हुई थीं इसलिए उन्होंने ध्यान नहीं दिया, लेकिन सिद्धांत ने नाश्ता करने से पहले गैस पर चाय चढ़ा दिया था।

    उसके बाद सिद्धांत ने पाँच मिनट के अंदर ही सब कुछ खत्म कर दिया और अपनी माँ के पास आकर उन्हें पीछे से बैक हग करके कहा, "थैंक यू, माता श्री!"

    "कितनी बार कहा है कि हमें थैंक यू मत बोला करो!" मिसेज माथुर ने उसकी ओर पलटकर कहा।

    "कैसे न बोला करें, माता श्री! एक आप ही तो हैं जो हम लोगों के लिए इतना सब कुछ करती हैं, सुबह से लेकर रात तक लगी रहती हैं," सिद्धांत ने कहा।

    "तुम लोग भी तो दिन रात इस घर के लिए ही लगे रहते हो न!" मिसेज माथुर ने वापस पलटकर सब्जियाँ काटते हुए कहा।

    "ये किसने कह दिया आपसे?" सिद्धांत ने अपनी भौंहें उठाकर कहा।

    "क्यों, तुम किसके लिए करते हो ये सब?" मिसेज माथुर ने उसकी ओर देखकर कहा।

    "ऑफ कोर्स, अपने लिए," सिद्धांत ने कहा।

    "अच्छा!" मिसेज माथुर ने हँसकर कहा।

    "और नहीं तो क्या! IAS की तैयारी हम कर रहे हैं तो बनेंगे भी हम ही, और जब बनेंगे हम तो उसका बेनिफिट भी तो हमें ही मिलेगा न, तो इस सबके बीच में घर कहाँ से आ गया!" सिद्धांत ने कहा।

    "बातें बनाना कोई तुमसे सीखे!" मिसेज माथुर ने अपना सिर ना में हिलाकर कहा।

    "बातें बनाना भी और चाय बनाना भी!" सिद्धांत ने कहा।

    "हाँ!" मिसेज माथुर ने नासमझी से कहा।

    सिद्धांत ने एक कप चाय उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा, "हाँ, ये लीजिए।"

    इतने में लक्ष्मी भी वहाँ आ गई। वह भी नहा चुकी थी।

    "हे भगवान, आप नहाती भी हैं या नहीं!" सिद्धांत ने उसे देखकर हैरानी के साथ कहा।

    "बस, बस, तुम्हारे तरह थोड़ी न हैं जो आधे घंटे तक बाथरूम में ही बैठे रहें। तुम्हें तो..." लक्ष्मी ने अपने बाल बनाते हुए कहा।

    वह अपनी बात बोल रही थी, वहीं सिद्धांत उसकी बातों को पूरी तरह से इग्नोर करके मिसेज माथुर के कंधे पर अपना हाथ टिकाए हुए खड़ा था।

    वह हँसकर अपना सिर इधर-उधर घुमाते हुए अपने हाथों के इशारे से मिसेज माथुर से बोल रहा था, "पक, पक, पक!"

    उसकी हरकत देखकर मिसेज माथुर को जोर से हँसी आ गई, तो लक्ष्मी ने भी उन दोनों की ओर देखा तो दोनों ही हँस रहे थे।

    "तुम्हें तो अभी समझाते हैं हम!" लक्ष्मी ने चिढ़कर कहा और उसकी ओर दौड़ पड़ी।

    सिद्धांत तुरंत मिसेज माथुर के पीछे छिप गया। लक्ष्मी वहाँ गई तो वह दूसरी ओर चला गया। लक्ष्मी ने वहाँ जाना चाहा, लेकिन वह अपने बालों से परेशान हो गई।

    "पहले जाकर रेडी होइए, फिर समझाइएगा हमें!" सिद्धांत ने उसे चिढ़ाते हुए कहा।

    फिर वह बाहर चला गया तो मिसेज माथुर भी बाहर आ गईं। सिद्धांत ने उनके पैर छूकर कहा, "अच्छा माता श्री, हम चलते हैं।"

    मिसेज माथुर ने उसके बालों में हाथ फेरकर कहा, "हम्म! आराम से, बचाकर जाना और समय से घर आना।"

    "ओ के, बाय माता श्री!" सिद्धांत ने अपनी बाइक पर बैठकर कहा।

    "बाय!" मिसेज माथुर ने कहा।


    क्या था सिद्धांत का असली रूप?

    उसने जानबूझकर सबका ध्यान डॉक्टर एस से क्यों हटाया?

    इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए,

    बियोंड वर्ड्स: अ लव बॉर्न इन साइलेंस

    लाइक, कमेंट, शेयर और फॉलो करना न भूलें।

    लेखक: देव श्रीवास्तव

  • 11. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 11

    Words: 1936

    Estimated Reading Time: 12 min

    सुबह का समय था। सिद्धांत अपने घर पर था। लक्ष्मी सिद्धांत को मारने के लिए उसके पीछे दौड़ी, तो वह तुरंत मिसेज माथुर के पीछे छिप गया। लक्ष्मी वहाँ गई, तो वह दूसरी ओर चला गया। लक्ष्मी वहाँ जाना चाहती थी, लेकिन वह अपने बालों से परेशान हो गई।

    सिद्धांत ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, "पहले जाकर रेडी होइए, फिर समझाइएगा हमें!"

    फिर वह बाहर चला गया, तो मिसेज माथुर भी बाहर आ गईं। सिद्धांत ने उनके पैर छूकर कहा, "अच्छा माता श्री, हम चलते हैं।"

    मिसेज माथुर ने उसके बालों में हाथ फिराते हुए कहा, "हम्म! आराम से, बचा कर जाना और समय से घर आना।"

    सिद्धांत ने अपनी बाइक पर बैठकर कहा, "ओके, बाय माता श्री!"

    मिसेज माथुर ने कहा, "बाय!"

    तो सिद्धांत ने अपनी बाइक आगे बढ़ा ली। वह अपने घर से निकलकर जिम पहुँचा और फिर वही रोज़ का सिलसिला शुरू हुआ। लेकिन आज सिद्धांत सात बजकर तीस मिनट पर ही वहाँ से निकल गया क्योंकि आज उसे मार्शल आर्ट्स क्लासेज़ के लिए भी जाना था।

    वहीं घर पर, शांतनु दूसरी बाइक लेकर घर से निकल गया और लक्ष्मी अपनी साइकिल लेकर, क्योंकि उसका स्कूल पास में ही था।

    सुबह के दस बजे, सिद्धांत मार्शल आर्ट्स स्कूल से बाहर निकला और वापस घर आ गया क्योंकि उसके प्रैक्टिकल्स खत्म हो चुके थे। वह घर आया तो मिसेज माथुर पौधों को पानी दे रही थीं।

    सिद्धांत ने उनके हाथों से पाइप लेते हुए सवाल किया, "आपने नाश्ता किया?"

    मिसेज माथुर ने कहा, "नहीं!"

    सिद्धांत ने पौधों को पानी डालते हुए कहा, "चुपचाप जाकर नाश्ता कीजिए पहले!"

    मिसेज माथुर ने मुँह बनाकर कहा, "अरे जा रहे हैं। इतना डाँटते क्यों हो!"

    सिद्धांत ने अपना काम करते हुए कहा, "क्योंकि हम दुनिया में पहली ऐसी संतान होंगे जिसे अपनी माँ को रोज़ खाना खाने के लिए फोर्स करना पड़ता है।"

    मिसेज माथुर ने कहा, "अरे इसके बाद खाने ही जा रहे थे।"

    सिद्धांत ने कहा, "हमारे ना रहने पर जो मर्ज़ी वो किया कीजिए, बाकी समय नहीं। जाइए, नाश्ता करिए।"

    मिसेज माथुर ने कहा, "ठीक है।" और अंदर जाने लगीं। तभी अचानक से सिद्धांत ने कहा, "वैसे आप टहली कितना हैं आज?"

    यह बोलकर उसने जाकर मिसेज माथुर का हाथ पकड़ लिया और उनकी घड़ी का हेल्थ मीटर चेक करने लगा। उसे चेक करते ही उसने कहा, "तीन हज़ार, इतना कम! जल्दी से नाश्ता कीजिए और फिर टहलिए।"

    मिसेज माथुर ने मुँह बनाकर कहा, "फिर शुरू हो गया तुम्हारा!"

    सिद्धांत ने कहा, "आप खुद ही ये सब कर लेतीं, तो हमें कुछ कहने या करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। अब जाइए और नाश्ता करिए।"

    मिसेज माथुर अंदर चली गईं। लगभग दस मिनट बाद सिद्धांत अंदर गया तो मिसेज माथुर नाश्ता कर चुकी थीं।

    सिद्धांत ने उनके हाथों से बर्तन लेते हुए कहा, "बस, बस, हो गया। जाइए, टहलिए!"

    मिसेज माथुर ने कहा, "खाने के बाद!"

    सिद्धांत ने कहा, "हाँ, खाने के बाद! चलिए, उठिए।"

    दस मिनट बाद मिसेज माथुर ने कहा, "अब तो हो गया ना, बहुत चल लिए हैं हम!"

    सिद्धांत ने घर की सफाई करते हुए कहा, "हाँ, हाँ, हमें पता है कितना चली हैं आप! टहलते रहिए।"

    बीस मिनट बाद सिद्धांत ने खुद ही कहा, "अब आप आ सकती हैं।"

    मिसेज माथुर अंदर आई तो घर का सारा काम हो गया था। उन्होंने सिद्धांत से कहा, "तुम मान नहीं सकते हो ना!"

    सिद्धांत ने कहा, "आप जानती हैं ना माता श्री, अगर हम खुद को बिज़ी नहीं रखेंगे तो हमारे दिमाग में क्या-क्या खुराफात चलती रहेगी।"

    मिसेज माथुर ने कहा, "ठीक है, अब तो हो गया ना तुम्हारे मन का! अब जाओ, आराम करो। कुछ देर में लाइब्रेरी भी जाना है ना!"

    सिद्धांत ने कहा, "हम्म!" और कमरे में चला गया।

    यह सब सोचते हुए यश ने अपने मन में खुद से ही कहा, "वो भी क्या दिन थे! लाइफ़ में कितनी भी प्रॉब्लम हो लेकिन सिड मुस्करा कर सारी प्रॉब्लम्स फ़ेस कर लेता था। लाइफ़ सेट थी उसकी। ना किसी से दोस्ती ना दुश्मनी, लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।"

    इसी के साथ वह फिर से पुरानी यादों में खो गया।


    फ़्लैशबैक

    नवंबर का महीना था और सिद्धांत अपने डेली रूटिन के हिसाब से रात के नौ बजकर तीस मिनट के आसपास डांस स्कूल से बाहर निकला।

    वह बाहर निकलकर अपनी बाइक पर बैठ गया। उसने अपना हेलमेट पहना और आगे बढ़ गया।

    वह कुछ ही दूर गया था कि तभी एक वैन उसके बगल से गुज़री, जिसमें से किसी लड़की की आवाज़ आई, "बचाओ, प्लीज़ सेव..." इसके आगे उसकी आवाज़ बंद हो गई।

    वह आवाज़ घुटती हुई थी और उसे सुनकर सिद्धांत को इस बात का अंदाज़ा हो गया था कि वह लड़की कितनी डरी हुई थी।

    उस आवाज़ को सुनते ही सिद्धांत की आँखों के सामने कुछ पुरानी यादें घूम गईं, लेकिन अगले ही पल उसने उन यादों को अपने दिमाग से निकाल फेंका, वरना उसका बहुत बुरा एक्सीडेंट हो सकता था।

    जैसे ही वह होश में आया, उसने अपनी बाइक घुमाकर उस वैन के पीछे लगा दी।

    क्योंकि उस वैन की स्पीड ज़्यादा थी और सिद्धांत को रिएक्ट करने में भी कुछ समय लग गया था, इसलिए उसे थोड़ा समय लगा, लेकिन जल्द ही उसने अपनी बाइक उस वैन के सामने लाकर रोक दी।

    उस वैन में आठ आदमी थे जो एक लड़की को किडनैप करके ले जा रहे थे।

    ड्राइवर ने वैन को रोका, तो लड़की को पकड़े हुए एक आदमी ने कहा, "ए, देख तो कौन है जो अपनी मौत को ढूँढते हुए यहाँ आ पहुँचा है!"

    ड्राइवर उसकी बात मानकर बाहर आया। तब तक सिद्धांत ने भी बाइक से उतरकर अपना हेलमेट उतार दिया था।

    उसे देखकर ड्राइवर ने कहा, "क्यों बे, ज़्यादा हीरो बनने का शौक चढ़ा है क्या!"

    सिद्धांत ने अपनी बाहें सीट पर फैलाकर बाइक पर साइड की ओर बैठते हुए कहा, "हम हीरो हैं या नहीं वो तो पता नहीं, पर ये ज़रूर कन्फ़र्म है कि तुम सब विलेन्स हो और जब तुमने हमें हीरो बोल ही दिया है तो हम हीरोइन को बचाए बिना, तुम लोगों को इतनी आसानी से तो जाने नहीं देंगे।"

    उस ड्राइवर ने कहा, "ओ हो, तो हीरो हीरोइन को लेने आया है।"

    सिद्धांत ने आराम से कहा, "वो तेरे मतलब की बात नहीं है। तेरे मतलब की बात ये है कि अब तू और तेरे ये चमचे हमसे बचोगे कैसे।"

    बाकी के आदमियों ने वैन के सामने आते हुए कहा, "वो अभी पता चल पाएगा कि किसे किससे बचने की ज़रूरत है।" उन सभी के हाथों में हॉकी स्टिक्स थीं।

    सिद्धांत ने कहा, "अच्छा! चल, आज देख ही लेते हैं!"

    इतने में अंदर बैठे हुए दो आदमियों में से एक ने कहा, "अबे, वो तुम लोगों का जिगरी यार है क्या, जो उससे बातें कर रहे हो! सीधे मारो ना!"

    यह सुनते ही सिद्धांत ने अपनी घड़ी और गले से रुद्राक्ष निकालकर अपने बैग में डाल दिए और सामने खड़े सारे आदमी उसकी ओर दौड़ पड़े। उन्हें अपनी ओर आता देखकर भी सिद्धांत आराम से बैठा हुआ था।

    जैसे ही पहले आदमी ने उस तक पहुँचकर उस पर हॉकी स्टिक चलाई, तो सिद्धांत झुक गया जिससे उसका वार खाली चला गया।

    वहीं दूसरा आदमी उसे मारने को हुआ, तो सिद्धांत ने खड़े होते हुए एक हाथ से उसकी हॉकी पकड़ ली और दूसरे हाथ से उसके पेट में मुक्का मार दिया।

    तीसरा आदमी अभी उस तक पहुँचा ही था कि सिद्धांत ने उसके सीने पर एक किक मार दी। उस आदमी को एक झटका सा लगा और हॉकी उसके हाथ से छूटकर आगे की ओर उछल गई, जिसे सिद्धांत ने तुरंत पकड़ लिया।

    बस फिर क्या था, एक-एक को अच्छे से धो दिया सिद्धांत ने, वो भी उन्हीं के हथियार से। अंत में सिर्फ़ दो आदमी बचे थे जो वैन के अंदर लड़की को पकड़कर बैठे हुए थे।

    सिद्धांत जैसे ही वैन की ओर बढ़ा, वैसे ही वो दोनों भी बाहर आ गए क्योंकि वो लड़की पहले ही बेहोश हो चुकी थी।

    उन दोनों में से एक आदमी के हाथ में चाकू था तो दूसरे के हाथ में गन थी। वो दोनों अपने हथियार आगे किए हुए सिद्धांत की ओर बढ़ने लगे। सिद्धांत भी उनकी ओर बढ़ रहा था।

    वो दोनों जैसे ही उसके पास पहुँचे, वैसे ही गन लिए हुए उस आदमी ने उसे सीधे सिद्धांत के सिर पर सटा दिया, लेकिन सिद्धांत की आँखों में डर का एक कतरा भी नज़र नहीं आ रहा था।

    बल्कि उसकी आँखें मुस्करा रही थीं, जिसे देखकर उस आदमी ने कहा, "क्यों बे लड़के, तुझे डर नहीं लग रहा है!"

    सिद्धांत ने व्यंग वाली हँसी के साथ कहा, "डर, और वो भी इन खिलौनों से!"

    उस आदमी ने अपनी गन लहराते हुए कहा, "ये तुझे खिलौना लग रहा है!"

    जैसे ही उसकी गन इधर-उधर हुई, वैसे ही सिद्धांत ने उसके हाथ पर मारकर उसकी गन को अपने कब्ज़े में कर लिया। ऐसा होते ही वो दोनों आदमी हल्के बक्के होकर सिद्धांत को देखने लगे।

    वहीं सिद्धांत ने उस गन को नचाते हुए उस आदमी के बातों का जवाब दिया, "अब तक तो नहीं, पर अब ज़रूर लग रहा है।"

    फिर उसने अचानक से वो गन उन दोनों की ओर पॉइंट करके कहा, "अब बोलो क्या करें, पहले किसका भेजा उड़ाएँ?"

    उस गन को खुद पर पॉइंटेड देखकर उन दोनों की हालत खराब हो गई। गन वाले आदमी ने हकलाते हुए कहा, "बच्चे! ये खे, खेलने वाली चीज़ नहीं है।"

    सिद्धांत ने वो गन पीछे लेते हुए कहा, "ओ रियली! फिर चलो खेलने वाला काम ही करते हैं।"

    उन आदमियों ने नासमझी से कहा, "क्या मतलब?"

    सिद्धांत ने उस गन की सारी गोलियाँ निकालकर फेंक दीं। फिर उसने वापस से वो गन घुमाते हुए उन दोनों की ओर देखकर कहा, "अब हो गई, ये खेलने वाली बंदूक।"

    इस बार चाकू लिए हुए आदमी ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा, "ये तो तूने गलती कर दी मुन्ना! तेरे पास गन थी और तूने उसे ऐसे ही जाने दिया।"

    फिर उसने अचानक से आगे बढ़कर सिद्धांत के गले पर चाकू रखकर कहा, "पर अब, इसका क्या करेगा?"

  • 12. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 12

    Words: 1890

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात का समय था। नेशनल हाईवे पर, सिद्धांत के हाथ में बंदूक देखकर, बंदूकधारी आदमी ने हकलाते हुए कहा, "बच्चे! ये खेलने वाली चीज़ नहीं है।"

    सिद्धांत ने बंदूक पीछे लेते हुए कहा, "ओ रियली! फिर चलो खेलने वाला काम ही करते हैं।"

    "क्या मतलब?" उन आदमियों ने नासमझी से कहा।

    सिद्धांत ने बंदूक की सारी गोलियाँ निकालकर फेंक दीं। फिर उसने बंदूक घुमाते हुए उन दोनों की ओर देखकर कहा, "अब हो गई ये खेलने वाली बंदूक।"

    "ये तो तूने गलती कर दी मुन्ना! तेरे पास गन थी और तूने उसे ऐसे ही जाने दिया।" इस बार चाकू लिए हुए आदमी ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा।

    फिर उसने अचानक आगे बढ़कर सिद्धांत के गले पर चाकू रखते हुए कहा, "पर अब, इसका क्या करेगा?"

    इतना बोलकर वह दूसरे आदमी की ओर देखने लगा। इसी का फायदा उठाकर सिद्धांत ने उसके हाथ से चाकू छीन लिया।

    सिद्धांत ने उस चाकू को तोड़कर कहा, "तो अब हम हुए इक्वल-इक्वल। अब तुम दोनों डिसाइड कर लो कि पहले किसे लड़ना है।"

    "अब तक हम तुझे बच्चा समझकर छोड़ रहे थे, पर अब और नहीं! अब तो तुझे भगवान भी नहीं बचा सकता।" उस आदमी ने कहा।

    "अपने साथियों की हालत देखने के बाद भी तुम्हें ऐसा लगता है?" सिद्धांत ने आस-पास बेहोश पड़े हुए आदमियों को देखकर कहा।

    "ए, ये हमारा ध्यान भटका रहा है, कूटो साले को!" दूसरे आदमी ने कहा।

    इतना बोलकर वे दोनों सिद्धांत की ओर दौड़ पड़े। सिद्धांत ने अपनी गर्दन झटका दी और उन दोनों से भिड़ गया। उसके लड़ने के तरीके से पता चल रहा था कि उसने मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग बहुत अच्छे से ली थी।

    कुछ ही पलों में वे दोनों नीचे पड़े हुए दर्द से कराह रहे थे। सिद्धांत ने उन्हें वहीं छोड़कर वैन की ओर बढ़ गया।

    उसने दरवाज़ा खोलकर देखा तो वह लड़की अभी भी बेहोश थी। उसके गोरे रंग पर उसका नीले रंग का गाउन बहुत खूबसूरत लग रहा था। उसके चेहरे पर एक अलग ही नूर था। गोल चेहरा, बड़ी-बड़ी पलकें, गुलाबी होंठ, और इन सब पर हल्के मेकअप में वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी, लेकिन सिद्धांत के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था।

    उस लड़की के चेहरे को देखकर वह शॉक में था, लेकिन अगले ही पल उसने अपने सारे ख्यालों को दिमाग से निकाल फेंका।

    उसने पास में पड़ी हुई पानी की बोतल से कुछ बूँदें उस लड़की के चेहरे पर डालीं। उस लड़की ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोल दीं।

    सिद्धांत ने उसे होश में आया हुआ देखकर कहा, "आर यू ओके?"

    "हम्म!" उस लड़की ने कहा। सिद्धांत ने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, "कम आउट!"

    "हू आर यू?" उस लड़की ने खुद में ही सिकुड़ते हुए कहा।

    "अभी वो ज़रूरी नहीं है। ज़रूरी है तुम्हारा तुम्हारे घर जाना। बोलो, कहाँ रहती हो, हम तुम्हें छोड़ देते हैं।" सिद्धांत ने कहा।

    "नहीं, प्रॉपर इंट्रो के बिना मैं कहीं नहीं जाऊँगी।" लड़की ने उसी तरह से कहा।

    "बोल तो ऐसे रही है जैसे उन गुंडों से कोई बहुत जान पहचान थी।" सिद्धांत ने खुद से ही बुदबुदाते हुए कहा।

    "क्या कहा?" लड़की ने उसकी ओर देखकर कहा।

    "हम कह रहे थे कि इंट्रो से क्या करना है!" सिद्धांत ने कहा।

    "अगर तुम भी उन्हीं में से एक हुए तो!" लड़की ने अपनी भौंहें उठाकर कहा।

    "आर यू आउट ऑफ़ योर माइंड?" सिद्धांत ने चिढ़कर कहा।

    "हे, माइंड योर लैंग्वेज!" लड़की ने एटीट्यूड के साथ कहा।

    अब सिद्धांत को गुस्सा आ रहा था। उसने भी गुस्से में कहा, "एंड यू माइंड योर बिज़नेस!"

    फिर उसने अपनी बाइक की ओर जाते हुए कहा, "पड़ी रहो, यहीं पर!"

    उस लड़की ने वैन से बाहर आकर उन गुंडों पर नज़र डाली तो वह डर से कांप उठी। उसने सिद्धांत की ओर देखकर धीरे से कहा, "तुम मुझे यहाँ, ऐसे अकेले छोड़कर जाओगे!"

    उसकी आवाज़ सुनकर सिद्धांत के कदम वहीं रुक गए। उसने अपना एक पैर ज़मीन पर मारते हुए कहा, "शिट!"

    वह पीछे की ओर पलटा और उसने उस लड़की के पास आकर उसका हाथ पकड़कर आगे बढ़ते हुए कहा, "चलो!"

    "पहले इंट्रो!" उस लड़की ने अपना हाथ खींचकर कहा।

    "अरे तुम खुद ही सोचो न, अगर हम उनके जैसे ही होते तो तुम्हें होश में लाने का रिस्क क्यों लेते? तुम्हें बेहोशी की हालत में ही अपने साथ नहीं ले जाते गए होते!" सिद्धांत ने उसे समझाते हुए कहा।

    "क्या पता, तुम दूसरा रास्ता अपना रहे हो!" उस लड़की ने कहा।

    "क्या मतलब?" सिद्धांत ने नासमझी से कहा।

    "मतलब उन सबने मेरे साथ जबरदस्ती करनी चाही जिसमें वो पूरी तरह से फ़ेल हुए।" लड़की ने कहा।

    "तो!" सिद्धांत ने अपनी भौंहें उठाकर कहा।

    "तो हो सकता है तुम मुझे होश में लाकर, प्यार से अपने साथ ले जाओ, जिससे किसी को शक भी न हो और तुम्हारा काम भी हो जाए।" उस लड़की ने कहा।

    सिद्धांत का मन कर रहा था कि वह अपना सिर किसी दीवार में मार ले।

    उसने अपना चेहरा दूसरी ओर करके अपना सिर पकड़कर कहा, "हे भगवान! क्या लड़की है ये, मतलब जब गलत लोगों के साथ थी तब इसका दिमाग काम नहीं किया और जब कोई शरीफ़ बंदा इसे बचाने आया है तो उसके लिए इस लेवल तक सोच ले रही है ये। वाह, क्या ही कहने इसके!"

    वह ये बातें बहुत ही धीरे बोल रहा था इसलिए उस लड़की को कुछ भी सुनाई नहीं दिया। उसने सिद्धांत की ओर देखकर कहा, "तो क्या नाम है तुम्हारा?"

    सिद्धांत ने उसकी ओर पलटकर बहुत ही सफ़ाई से झूठ बोलते हुए कहा, "हेलो मिस, आई एम सहर्ष ठाकुर। आई एम एन स्टूडेंट ऑफ़ बैचलर ऑफ़ साइंस इन द यूनिवर्सिटी। आई एम ट्वेंटी फ़ाइव इयर्स ओल्ड। आई वर्क इन ए साइबर कैफ़े।"

    फिर उसने अपने हाथ जोड़कर कहा, "इज़ दैट इनफ़ या और कुछ भी जानना है?"

    "नहीं, नहीं, इतना काफ़ी है।" लड़की ने कहा।

    सिद्धांत ने अपने हाथ जोड़े हुए ही आगे की ओर इशारा करते हुए कहा, "तो चलने की कृपा करेंगी देवी जी!"

    "मेरा नाम देवी नहीं, निशा है, निशा ठाकुर!" लड़की ने मुँह बनाकर कहा।

    सिद्धांत ने अपने मन में खुद को ही गालियाँ देते हुए कहा, "क्या सिड, तुझे भी यही सरनेम मिला था यूज़ करने के लिए!"

    फिर उसने वापस से उसे देखकर अपने शब्दों को शहद की तरह मीठा करके कहा, "तो मिस निशा ठाकुर, अब कृपया आप चलने का कष्ट करेंगी।"

    "हम्म!" निशा ने कहा और उसके साथ चलने लगी। अभी वे दोनों दो-चार कदम ही आगे बढ़े थे कि तभी निशा के मुँह से हल्की सी आह निकल गई।

    "अब क्या हुआ?" सिद्धांत ने उसकी ओर देखकर कहा।

    निशा ने नीचे देखा तो उसका पैर मुड़ गया था। उसने कहा, "आई थिंक, मेरे पैर में मोच आ गई है।"

    सिद्धांत ने अपना सिर ना में हिलाया और फिर वहीं घुटनों के बल बैठ गया। उसने निशा के पैर पकड़ने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो निशा ने तुरंत उसके हाथ पकड़ लिए।

    "देखने तो दीजिए!" सिद्धांत ने उसकी ओर देखकर कहा।

    "नहीं, मेरे पैर मत छुओ।" निशा ने कहा।

    "पर बिना छुए पता कैसे चलेगा!" सिद्धांत ने कहा।

    "मैंने कहा ना, पैर मत छुओ।" निशा ने कहा।

    सिद्धांत ने एक गहरी साँस लेकर कहा, "ओके, फ़ाइन!"

    फिर उसने अचानक से खड़े होकर निशा को गोद में उठा लिया तो वह चिल्ला उठी, "ये क्या कर रहे हो तुम!"

    सिद्धांत ने गहरी आवाज़ में कहा, "शांत रहिए, किडनैप नहीं कर रहे हैं आपको।"

    निशा शांत हो गई तो सिद्धांत उसे लिए हुए आगे बढ़ने लगा। उसने निशा को बाइक पर बिठाया और उसके घर की ओर चल पड़ा। निशा उसे डायरेक्शन बताती जा रही थी और वह उस ओर अपनी बाइक घुमा रहा था।

    उन दोनों के जाते ही उन सभी में से एक आदमी तुरंत उठ बैठा। उसने बारी-बारी से अपने सभी साथियों को उठाना शुरू किया।

    वो सब उठ गए तो उसने कहा, "इसे छोड़ना नहीं है आज, लड़की भले ही बच गई लेकिन उस लड़के की लाश देखनी है मुझे!"

    बाकी के आदमियों ने भी कहा, "हाँ, आज किसी न किसी को तो टपकाना ही है।"


    वहीं दूसरी तरफ, सिद्धांत ने एक बड़े से घर के बाहर अपनी बाइक रोकी। वह तीन माले का घर था और लगभग १० डेसिमल के एरिया में फैला हुआ था। सिद्धांत तो उस घर को देखता ही रह गया।

    उसे ऐसे देखकर निशा ने कहा, "क्या हुआ मिस्टर सहर्ष ठाकुर, क्या देख रहे हो?"

    "ये तुम्हारा घर है!" सिद्धांत ने उसकी ओर देखकर कहा।

    "हाँ!" निशा ने आराम से कहा।

    सिद्धांत ने वहाँ पर नेम प्लेट पढ़ी तो उस पर MLA रवीन्द्र ठाकुर का नाम लिखा हुआ था।

    "तुम MLA की बेटी हो!" उसने निशा की ओर देखकर कहा।

    "अब ये घर MLA के साथ-साथ मेरा भी है तो मैं उन्हीं की बेटी हूँगी ना!" निशा ने हल्के से हँसकर कहा।

    "ओ भाई साहब, हो गया बंटाधार!" सिद्धांत ने अपने सिर पर हाथ रखकर कहा।

    "कुछ कहा तुमने?" निशा ने कहा।

    "नहीं, नहीं, मैम! कृपया अब आप जल्दी से अंदर जाइए।" सिद्धांत ने कहा।

    निशा बाइक से उतर गई। गेट खुला था। उसने अंदर जाते हुए कहा, "ओके, बाय!"

    फिर उसने पलटकर सिद्धांत से कहा, "एंड, थैंक यू हैंडसम!"

    सिद्धांत ने अपने हाथ जोड़ लिए तो निशा खिलखिलाकर हँस पड़ी और अंदर चली गई।

  • 13. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 13

    Words: 1909

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात का समय था। नेशनल हाईवे पर सिद्धांत ने अपने सिर पर हाथ रखकर कहा, "ओ भाई साहब, हो गया बंटाधार!"

    निशा ने कहा, "कुछ कहा तुमने?"

    "नहीं, नहीं, मैम! कृपया अब आप जल्दी से अंदर जाइए।"

    निशा बाइक से उतर गई। गेट खुला हुआ था। उसने अंदर जाते हुए कहा, "ओके, बाय!"

    फिर उसने पलटकर सिद्धांत से कहा, "एंड, थैंक यू हैंडसम!"

    सिद्धांत ने अपने हाथ जोड़ लिए। निशा खिलखिला कर हँस पड़ी और अंदर चली गई।

    जैसे ही गेट बंद हुआ, सिद्धांत ने एक गहरी साँस लेकर कहा, "हाह! जान छूटी।"

    उसने घड़ी देखी; दस बजकर पंद्रह मिनट हो रहे थे।

    सिद्धांत ने खुद से कहा, "हेल नो! इतना टाइम हो गया, जल्दी चल सिड और कोई बहाना भी सोच माता श्री के सामने बोलने के लिए।"

    इतना बोलकर उसने अपनी बाइक घुमा ली, लेकिन तभी उसका फ़ोन बज उठा। चिढ़कर उसने बाइक रोकी और जल्दी से फ़ोन निकालकर देखा; मिसेज माथुर का कॉल था।

    उसने कॉल रिसीव करके उनसे बात की और जल्दी से फ़ोन जेब में डालकर बाइक की स्पीड बढ़ा दी। जल्दी-जल्दी में उसने यह भी नहीं देखा कि उसका वॉलेट वहीं गिर गया था, जिस पर वॉचमैन की नज़र पड़ गई।

    वॉचमैन ने वॉलेट उठाकर सिद्धांत को आवाज लगाई, लेकिन तब तक सिद्धांत जा चुका था। लेकिन आज उसका बैड लक हाथ धोकर नहीं, नहा धोकर उसके पीछे पड़ा था।

    उसने अपनी बाइक उस सड़क से उतारकर दूसरी ओर की सड़क पर बढ़ाई ही थी कि एक क्यूट सा पप्पी अचानक से उसकी बाइक के सामने आ गया।

    उसे बचाने के चक्कर में सिद्धांत को ब्रेक लगाना पड़ा। ब्रेक लगाते हुए उसकी आँखें बंद हो गई थीं, और वह अपनी बाइक पर सिकुड़ गया।

    लगभग दो मिनट बाद उसने आँखें खोलीं; पप्पी रोड के किनारे खेल रहा था। उसे देखकर सिद्धांत ने राहत की साँस ली, और उसके होठों पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई।

    मास्क की वजह से उसकी मुस्कान दिखाई नहीं दे रही थी, लेकिन उसकी आँखों में खुशी साफ झलक रही थी कि पप्पी सुरक्षित था। लेकिन तभी उसकी नज़र अपनी पीठ पर पड़ी, जहाँ एक चोट का निशान था।

    यह देखकर सिद्धांत ने अपनी बाइक किनारे पार्क की और फ़र्स्ट एड किट, जो वह हमेशा साथ रखता था, लेकर पप्पी के पास गया। उसने उसकी मरहम-पट्टी की और कुछ बिस्किट्स खिलाने लगा।

    वह अपने काम में मग्न था कि उसके कानों में निशा की आवाज पड़ी, "हे हैंडसम!"

    यह आवाज सुनते ही सिद्धांत ने अपनी आँखें मींच लीं। उसने धीरे-धीरे अपनी गर्दन पीछे की ओर घुमाई; निशा वहीं खड़ी थी।

    सिद्धांत ने थोड़ा चिढ़कर कहा, "अब आप यहां क्या कर रही हैं?"

    निशा उसके पास आते हुए बोली, "जब भी कभी कोई अच्छा काम करते हैं तो अपनी झूठी पहचान नहीं बताते हैं, मिस्टर सर्वांश माथुर!"

    उसके मुँह से यह नाम सुनकर सिद्धांत हैरान रह गया। "हाउ डू यू नो माय रियल नेम?"

    निशा ने कुछ कहे बिना उसके पास बैठकर उसका वॉलेट उसके सामने रख दिया। सिद्धांत ने अपने पॉकेट्स चेक किए; उसका वॉलेट उसके पास नहीं था।

    उसने झट से निशा के हाथ से अपना वॉलेट लेकर कहा, "थैंक यू, बट वेयर डिड यू गेट इट?"

    निशा ने भी पप्पी को सहलाते हुए कहा, "इन फ्रंट ऑफ़ माय हाउस!"

    इतना ही बोली थी कि वहीं पर वे गुंडे आ गए जिन्हें कुछ वक़्त पहले सिद्धांत ने पीटा था, लेकिन इस बार वे बीस से भी ज़्यादा थे।

    उन सबने सिद्धांत और निशा को घेर लिया था। उन सभी के हाथों में अलग-अलग हथियार थे। उन्हें देखकर निशा के होश उड़ गए।

    उनमें से एक ने दूसरे से कहा, "अबे, हमें तो जैकपॉट मिल गया।"

    दूसरे ने कहा, "हाँ, हम तो सिर्फ़ हीरो को सुलाने आए थे। यहाँ तो हीरो-हीरोइन दोनों मिल गए।"

    उन सभी को देखकर निशा और सिद्धांत, दोनों ही शॉक में उठ खड़े हुए।

    निशा ने घबराते हुए कहा, "ये क्या?"

    सिद्धांत ने चिढ़कर कहा, "क्या ये क्या? आसमान से गिरे और खजूर में अटके!"

    निशा ने डरते हुए कहा, "अब हम नहीं बचेंगे क्या?"

    सिद्धांत ने उसे अपने पीछे करके सामने देखते हुए कहा, "हम पर भरोसा रखिए। आपको कुछ नहीं होगा।"

    निशा ने कहा, "पर ये सब इतने सा..."

    लेकिन सिद्धांत ने उसकी बात बीच में ही काटकर कहा, "हमने कहा ना, आपको कुछ नहीं होगा।"

    उसकी बात सुनकर पहले वाले गुंडे ने कहा, "पहले तू खुद को बचा ले मुन्ना, फिर उसे बचाना।"

    सिद्धांत ने इधर-उधर देखा; सारी दुकानें बंद हो चुकी थीं। लेकिन तभी उसकी नज़र कुछ कदम की दूरी पर स्थित एक दुकान के बाहर रखे सॉफ्ट ड्रिंक्स के बोतलों पर गई, जो काँच की बनी हुई थीं।

    उसने एक भी पल गँवाए बिना निशा का हाथ पकड़ा और उस दुकान की ओर भागा। निशा के पैर में दर्द था, लेकिन अपनी जान बचाने के लिए वह भी अपने दर्द को नज़रअंदाज़ करके सिद्धांत के साथ दौड़ी।

    इसी के साथ वे गुंडे भी उसके पीछे दौड़ पड़े। सिद्धांत ने वहाँ पहुँचकर निशा को किनारे बिठाया और खुद कुछ बोतलें अपने हाथ में उठाकर उन गुंडों की ओर पलट गया।

    उसने खुद से कहा, "सिड, नाउ टर्न ऑन योर बीस्ट मोड!" और उन सबकी ओर दौड़ पड़ा।

    पहले गुंडे ने उस पर मुक्के से वार करना चाहा, तो सिद्धांत ने एक बोतल उसके सिर पर मार दी, और वह गुंडा लड़खड़ाकर गिर गया।

    सिद्धांत ने तुरंत वे बोतलें सामने से आ रहे गुंडों पर फेंकीं और दो बोतलों को आपस में लड़ाकर तोड़ दिया और उन टुकड़ों को लिए हुए आगे बढ़ने लगा।

    इस बार चार गुंडे एक साथ आए और उन्होंने एक साथ सिद्धांत पर वार किया। पहले गुंडे को तो सिद्धांत ने एक जोरदार किक मारी, जिससे वह दूर जा गिरा। दूसरे और तीसरे गुंडे के पेट में उसने बोतल का टुकड़ा घुसा दिया।

    चौथा गुंडा उसके पास पहुँचा, तो सिद्धांत ने उसे उठाकर जमीन पर दे मारा। इसी के साथ बाकी के गुंडे भी उसकी ओर दौड़ पड़े।

    सिद्धांत ने इस सबको भी इसी तरह से धोना शुरू किया, लेकिन तभी उसकी नज़र निशा के पास जाते हुए एक गुंडे पर पड़ी, और उसका ध्यान अपने सामने खड़े गुंडों से हट गया।

    बस इसी बात का फ़ायदा उठाकर एक गुंडे ने एक चाकू सिद्धांत के पेट में मार दी। दर्द से सिद्धांत की आँखें बंद हो गईं, लेकिन उसने तुरंत ही अपनी आँखें खोलीं और उस गुंडे को एक जोरदार किक मारकर निशा की ओर दौड़ा।

    वह गुंडा निशा के पास पहुँच ही गया था, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ करता, सिद्धांत ने पीछे से उसका गला पकड़ लिया और उठाकर बाकी के गुंडों पर पटक दिया।

    फिर वह उन गुंडों की ओर पलटा; वे सब अभी भी उसके सामने खड़े थे। उसने एक नज़र अपने ज़ख्म पर डाली, जो कुछ ज़्यादा ही गहरा था। यह देखकर बाकी के गुंडे हँसने लगे, लेकिन उनकी यह मुस्कान सिर्फ़ कुछ पल की मेहमान थी।

    क्योंकि सिद्धांत ने अपना मास्क उतार दिया था, और उसके होठों पर भी हँसी आ चुकी थी, लेकिन वह हँसी इतनी डरावनी थी कि उनमें से कुछ गुंडों के रीढ़ की हड्डी में सिहरन सी दौड़ गई।

    उनमें से एक गुंडे ने डर से काँपते हुए कहा, "ये, ये तो उसके जैसा है।"

    दूसरे गुंडे ने भी पहले गुंडे की ओर देखकर कहा, "हाँ, ये तो बिल्कुल उसके जैसा लग रहा है।"

    फिर उसने सिद्धांत की ओर देखकर कहा, "ए, तू, तू वो डी..."

    उसने इतना ही बोला था कि सिद्धांत ने अपने होठों पर उँगली रखकर कहा, "श..."

    अब तक उसकी हँसी गायब हो चुकी थी, और जो भाव उसके चेहरे पर थे, उन्हें देखकर उन गुंडों से कुछ बोलते ही नहीं बना।

    यह देखकर उनके बाकी साथियों ने कहा, "ए, क्या है बे, एक बच्चा ही तो है और तुम सब एक बच्चे से डर रहे हो।"

    जिन गुंडों ने सिद्धांत को पहचान लिया था, उनमें से एक ने कहा, "अबे ये बच्चा नहीं, बाप है हम सबका।"

    फिर उसने अपनी गन फेंककर कहा, "मुझे नहीं लड़ना इससे, मैं तो चला।"

    इतना बोलकर वह भागने लगा। बाकी के गुंडे, जो सिद्धांत को पहचान रहे थे, उन्होंने भी अपने-अपने हथियार फेंककर कहा, "और मैं भी।"

    इसी के साथ वे सब भी भाग खड़े हुए। अब वहाँ पर गिनती के चार गुंडे ही बचे थे, जिन्हें लगा कि वे सिद्धांत को हरा सकते हैं। वे सब एक साथ सिद्धांत की ओर बढ़े।

    सिद्धांत ने वापस से अपना मास्क पहना और अपनी गर्दन को झटका देकर उनकी ओर बढ़ गया। सिर्फ़ दो मिनट के अंदर ही वे गुंडे जमीन पर पड़े हुए कराह रहे थे। सिद्धांत ने उन गुंडों को बहुत अच्छे से धोया था।

    सिद्धांत वापस निशा के पास आया, तो वह शॉक में बैठी हुई थी। सिद्धांत ने उसके पास बैठकर उसके आँखों के सामने चुटकी बजाई, तो वह होश में आई।

    होश में आते ही उसने अपना सिर सिद्धांत के सीने में छिपा लिया और रोने लगी। सिद्धांत को एक झटका सा लगा, और उसके हाथ हवा में ही रह गए।

    निशा ने डरते हुए कहा, "प्लीज़, डॉन्ट लीव मी, प्लीज़!"

    सिद्धांत ने उसकी बातों का कोई जवाब नहीं दिया और न ही उसे खुद से अलग किया। वह बस अपने हाथ ऊपर और अपनी आँखें बंद किए हुए बैठा था, क्योंकि निशा की वजह से उसके घाव में और भी दर्द हो रहा था।

    कुछ पल बाद निशा को एहसास हुआ कि वह क्या कर रही है, तो वह अचानक से सिद्धांत से दूर हुई। उसने अपनी नज़रें नीचे करके कहा, "आई एम सॉरी!"

  • 14. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 14

    Words: 1918

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात का समय था। नेशनल हाईवे पर, सिद्धांत सारे गुंडों को धोने के बाद निशा के पास आया तो वह शॉक में बैठी हुई थी। सिद्धांत उसके पास बैठकर उसकी आँखों के सामने चुटकी बजाई, तो वह होश में आई।

    होश में आते ही उसने अपना सिर सिद्धांत के सीने में छिपा लिया और रोने लगी। सिद्धांत को एक झटका सा लगा और उसके हाथ हवा में ही रह गए।

    "प्लीज, डॉन्ट लीव मी, प्लीज!" निशा ने डरते हुए कहा।

    सिद्धांत ने उसकी बातों का कोई जवाब नहीं दिया और न ही उसे खुद से अलग किया। वह बस अपने हाथ ऊपर किए और अपनी आँखें बंद किए हुए बैठा था क्योंकि निशा की वजह से उसके घाव में और भी दर्द हो रहा था।

    कुछ पल बाद निशा को एहसास हुआ कि वह क्या कर रही है, तो वह अचानक से सिद्धांत से दूर हुई। उसने अपनी नजरें नीचे करके कहा, "आई एम सॉरी!"

    "इट्स ओके!" सिद्धांत ने कहा।

    "तुम मुझसे ना..." निशा ने कहा।

    वह अपनी बात बोल ही रही थी कि इतने में उसकी नजर सिद्धांत के पीछे पड़ी और उसने तेज आवाज में चीखते हुए कहा, "सर्वांश!"

    लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि एक लोहे का रॉड सिद्धांत के सिर पर लग चुका था। ऐसा होते ही सिद्धांत का संतुलन बिगड़ने लगा।

    वह अपना सिर पकड़ कर पीछे की ओर पलटा तो उन गुंडों का लीडर वहाँ पर एक रॉड लिए खड़ा था।

    "क्यों बे साले! सामने से जीतने का जिगरा नहीं था, जो पीछे से वार किया?" सिद्धांत ने खड़े होते हुए कहा।

    "आगे से भी ले ले।" उस गुंडे ने कहा।

    और फिर से सिद्धांत पर वार करना चाहा, लेकिन इस बार सिद्धांत ने उसे लात मार कर पीछे कर दिया और इसी के साथ वह खुद भी गिर पड़ा।

    वह गुंडा हँसते हुए उठ खड़ा हुआ। वह वापस से सिद्धांत की ओर बढ़ा तो सिद्धांत ने पास में पड़ा हुआ चाकू उठाकर उसकी ओर फेंक दिया जो सीधे उसके पेट में जा लगा।

    वह गुंडा वहीं पर गिर गया। निशा दौड़कर सिद्धांत का सिर अपनी गोद में उठा ली, लेकिन तब तक सिद्धांत की आँखें बंद होने लगी थीं। उसके सिर और पेट से खून बह रहा था।

    "सर्वांश, आँखें खुली रखो, सर्वांश, सर्वांश!" निशा ने उसके गाल थपथपाते हुए कहा। लेकिन सिद्धांत धीरे-धीरे बेहोश हो गया।

    "तु, तुम्हें, तुम्हें कुछ नहीं होगा। मैं, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी।" निशा ने कहा।

    फिर उसने सिद्धांत को वहीं पर लिटाते हुए कहा, "तुम यहीं रहना, मैं, मैं, किसी को बुलाकर लाती हूँ।"

    इतना बोलकर वह भागते हुए अपने घर की तरफ चली गई, लेकिन जब तक वह अपने कुछ गार्ड्स को लेकर वापस आई, तब तक सिद्धांत वहाँ से गायब था। उसकी बाइक, उसका बैग सब वहीं था, लेकिन वह खुद गायब था।


    कुछ देर बाद, निशा अपने घर के हॉल में बैठी हुई थी। उसके सामने कुछ गार्ड्स खड़े थे।

    "मुझे नहीं पता तुम लोग क्या करोगे और कैसे करोगे। मैं बस इतना जानती हूँ कि मुझे सर्वांश किसी भी कीमत पर यहाँ चाहिए।" निशा ने अपने दाँत पीसकर कहा।

    "आई बात समझ!" उसने गरजते हुए कहा।

    उसकी आवाज सुनकर सारे गार्ड्स अंदर तक कांप उठे थे क्योंकि सब जानते थे कि निशा का गुस्सा कैसा था। सबने अपना सिर झुकाए हुए ही हाँ में हिला दिया।

    इतने में निशा के पापा भी वहाँ पहुँच गए। उन्हें देखकर सारे गार्ड्स ने राहत की साँस ली क्योंकि सबको पता था कि निशा को अगर कोई संभाल सकता है तो वह हैं सिर्फ उसके पापा।

    निशा अपने पापा की ही बिगाड़ी हुई थी और सिर्फ उनकी ही सुनती थी।

    "पापा, पापा, उसे ढूँढकर लाओ।" उसने अपने पापा के गले लगकर कहा।

    अब उसका गुस्सा आँसुओं का रूप ले चुका था जो उसकी आँखों से लगातार बह रहा था।

    "हम उसे ढूँढ लेंगे, मेरी बच्ची!" उसके पिता ने उसका सिर सहलाते हुए कहा।


    वहीं दूसरी तरफ, फातिमा हॉस्पिटल में, सिद्धांत का इलाज चल रहा था। वार्ड के बाहर एक लड़का बैठा हुआ था जिसके सफ़ेद टी-शर्ट पर खून के धब्बे साफ़ दिख रहे थे।

    उस लड़के की भी हाइट और उम्र सिद्धांत जितनी ही रही होगी। उसने सफ़ेद टी-शर्ट के साथ एक नीले रंग का जीन्स पहना हुआ था। साथ में उसने एक ब्राउन कलर की शर्ट पहनी हुई थी।

    उसके बाएँ हाथ में एक मरून रंग की घड़ी थी और दाएँ हाथ में कलावा बंधा हुआ था। उसके बाल पसीने से भीगे होने के कारण माथे पर बिखरे हुए थे जो उसकी आँखों को आंशिक रूप से ढक रहे थे।

    उसके चेहरे पर टेंशन साफ़ झलक रही थी। वह अपना सिर दीवार से टिकाए हुए अपनी आँखें बंद करके बैठा हुआ था और कुछ देर पहले जो भी कुछ हुआ, उसके बारे में सोच रहा था।


    फ्लैशबैक:

    सिद्धांत बेहोश हो गया तो निशा किसी को बुलाने के लिए चली गई। उसने जाने के बाद सिद्धांत को हल्के से होश आया तो वह उठने की कोशिश करने लगा।

    वह दीवार का सहारा लेकर उठा और आगे बढ़ने लगा, लेकिन दो कदम चलते ही वह फिर से लड़खड़ा गया। इतने में एक कैब उसी ओर से गुजरी जिसमें वह लड़का बैठा हुआ था।

    वह अपने फ़ोन में कुछ देख रहा था कि तभी उसके कानों में सिद्धांत की चीख पड़ी क्योंकि सिद्धांत लड़खड़ाने की वजह से गिर पड़ा था। उस चीख को सुनते ही उस लड़के की गर्दन आवाज की दिशा में घूम गई।

    उसके दिल की धड़कनें अचानक से बहुत तेज हो गईं और इसी के साथ उसकी बेचैनी भी बढ़ गई। सिद्धांत के गिरने से जो आवाज हुई, वह भी उस लड़के के कानों में पड़ी और उसके दिमाग में एक याद उभर आई।


    उस याद में दो छोटे लड़के एक-दूसरे को गले लगाकर खड़े थे। उनमें से एक लड़के के मुँह पर मास्क था और उन दोनों की ही आँखों में आँसू थे।

    कुछ देर बाद वे अलग हुए तो मास्क वाले लड़के ने अपने आँसू पोछकर दूसरे लड़के के भी आँसुओं को पोछते हुए कहा, "बस अब ये रोना बंद करो।"

    फिर उसने उसका हाथ पकड़कर कहा, "कीप योरसेल्फ सेफ अनटिल वी मीट अगेन।"

    यह सुनकर दूसरे लड़के ने अपना सिर हाँ में हिला दिया और मास्क वाले लड़के से कहा, "यू टू।"

    दूसरे लड़के ने भी हाँ में सिर हिला दिया और फिर वे दोनों एक-दूसरे का हाथ छोड़कर विपरीत दिशाओं में आगे बढ़ गए।


    और इसी के साथ वह लड़का अपनी यादों से बाहर आ गया। उसने तुरंत अपने सीने पर हाथ रखकर कैब वाले के कंधों को दो बार टैप करके कहा, "भैया, कैब रोको।"

    "क्या हुआ भैया? आप ठीक तो हैं ना! मैं आपको हॉस्पिटल ले चलता हूँ।" कैब वाले ने उसकी हालत देखकर कहा।

    "हम ठीक हैं, आप कैब रोको।" उस लड़के ने अपनी साँसों को स्थिर करते हुए कहा।

    कैब वाले ने बाहर का सारा नजारा देख लिया था इसलिए वह वहाँ रुकना नहीं चाहता था। उसने बहाना बनाते हुए कहा, "भैया आपकी हालत ठीक नहीं लग रही है।"

    "हमने कहा ना, कैब रोको।" लड़के ने थोड़े गुस्से में कहा।

    कैब वाले ने बड़बड़ाते हुए कैब रोकी तो उस लड़के ने फुल स्पीड में दरवाजा खोला और जितना तेज हो सके उतना तेज दौड़कर सिद्धांत के पास गया। उसके पीछे वह कैब वाला भी वहाँ पहुँचा।

    सिद्धांत की हालत देखकर उनकी आँखें बड़ी हो गई थीं, लेकिन कैब वाले की हालत उससे भी ज्यादा खराब हो गई जब उसकी नजर आस-पास बेहोश पड़े हुए गुंडों पर पड़ी। उनकी हालत सिद्धांत ने और भी ज्यादा बदतर की हुई थी। वह लड़का सिद्धांत की ओर बढ़ने लगा तो कैब वाले ने कहा, "चलो भैया, यहाँ से चलते हैं।"

    "तुम पागल हो गए हो क्या! इसे ज़रूरत है हमारी मदद की।" उस लड़के ने कैब वाले की ओर देखकर अपने दाँत पीसते हुए कहा।

    "अरे भैया, आप समझ क्यों नहीं रहे हैं। समय देखिए, रात के ग्यारह बजने को हैं और ऊपर से यहाँ लड़ाई हुई है। ऐसे में अगर हम भी इस सब में पड़ गए तो इन सबके साथ-साथ हम दोनों भी फँस जाएँगे।" कैब वाले ने कहा।

    इस बार उस लड़के ने बुरी तरह से बिफरते हुए कहा, "इसे बचाने की वजह से हम फँसे या न फँसे, लेकिन अभी के लिए तुमने अपना मुँह बंद नहीं किया ना, तो हम पक्का तुम्हें अंदर करा देंगे।"

    उसकी आवाज में इतना गुस्सा था कि कैब वाले ने आगे कुछ कहा ही नहीं। उसने चुपचाप अपने होठों पर उंगली रख ली तो वह लड़का सिद्धांत की ओर बढ़ गया।

    सिद्धांत अभी भी उठने की कोशिश कर रहा था, लेकिन इससे उसका दर्द और बढ़ रहा था। इसलिए उस लड़के ने तुरंत उसके पास बैठकर उसे अपने कंधों का सहारा देते हुए बिठाया।

    "आराम से, आराम से!" उसने अपनी आवाज़ को नरम करते हुए कहा।

    सिद्धांत उसके कंधे से सिर टिकाए हुए अपने दर्द को सहने की कोशिश कर रहा था। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं। उस लड़के ने हालात को समझने के लिए कहा, "यहाँ क्या हुआ?"

    "जस्ट अ लिटिल डिस्अग्रीमेंट!" सिद्धांत ने अपने दाँत पीसते हुए, अपनी साँसों को संभालते हुए कहा।

    यह सुनकर उस लड़के की आँखें सिकुड़ गईं। उसने अविश्वास से अपना सिर हिलाकर कहा, "जस्ट अ लिटिल डिस्अग्रीमेंट, जिससे तुम्हारी यह हालत हो गई!"

    उसे लगा कि सिद्धांत इस बात पर भी कुछ कहेगा, लेकिन सिद्धांत की तरफ से कोई जवाब न आता देखकर उसने अपनी गर्दन उसकी ओर घुमाई तो सिद्धांत फिर से बेहोश होने लगा था।

    लड़के ने फौरन सिद्धांत की कंडीशन चेक की, तब उसे समझ आया कि सिद्धांत के सिर पर भी चोट है।

    उसने तुरंत कैब वाले की ओर देखकर कहा, "चलो, इसे उठाने में हमारी मदद करो।"

    उन दोनों ने मिलकर सिद्धांत को कैब में लिटाया और वह लड़का सिद्धांत का सिर अपनी गोद में लेकर बैठ गया। कैब वाले ने कैब आगे बढ़ा दी और वह लड़का सिद्धांत के बहते खून को रोकने की कोशिश करने लगा।

    उसने अपना रुमाल निकालकर सिद्धांत के सिर पर बाँध दिया जिससे उसकी हल्के-हल्के से खुलती और बंद होती हुई आँखें नज़र आने लगीं। जैसे ही उस लड़के की नज़रें सिद्धांत की नज़रों से मिलीं, उसकी पलकें तो जैसे झपकना ही भूल गई थीं।


    क्या सिद्धांत बचेगा? कौन था यह लड़का? कौन थे वे दोनों छोटे बच्चे? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए, बियोंड वर्ड्स: अ लव बॉर्न इन साइलेंस।

  • 15. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 15

    Words: 1899

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात का समय था। फातिमा हॉस्पिटल में सिद्धांत के वार्ड के बाहर एक लड़का बैठा था। आँखें बंद किए हुए वह कुछ समय पहले हुई घटना के बारे में सोच रहा था; कैसे उसने सिद्धांत की चीख सुनकर कैब रुकवाई थी।

    फ्लैशबैक:

    उस लड़के को लगा था कि सिद्धांत उसकी बात पर कुछ कहेगा, लेकिन सिद्धांत की तरफ से कोई जवाब न आता देखकर उसने अपनी गर्दन उसकी ओर घुमाई। सिद्धांत फिर से बेहोश होने लगा था।

    लड़के ने फौरन सिद्धांत की स्थिति जाँची। तब उसे समझ आया कि सिद्धांत के सिर पर भी चोट है।

    उसने तुरंत कैब वाले की ओर देखकर कहा, "चलो, इसे उठाने में हमारी मदद करो।"

    उन दोनों ने मिलकर सिद्धांत को कैब में लिटाया और वह लड़का सिद्धांत का सिर अपनी गोद में लेकर बैठ गया। कैब वाले ने कैब आगे बढ़ा दी और वह लड़का सिद्धांत के बहते खून को रोकने की कोशिश करने लगा।

    उसने अपना रुमाल निकालकर सिद्धांत के सिर पर बाँध दिया। इससे उसकी हल्के-हल्के से खुलती और बंद होती हुई आँखें नज़र आने लगीं।

    जैसे ही उस लड़के की नज़रें सिद्धांत की नज़रों से मिलीं, उसकी पलकें तो जैसे झपकना ही भूल गई थीं।

    उस लड़के की नज़रें उन पर से हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं। इसी के साथ उसके मुँह से निकला, "सिड!"

    "साहब, इसकी जेब वगैरह चेक करके इसके बारे में पता करिए," कैब वाले ने कहा।

    "हाँ, इसके घर वालों को भी इनफॉर्म करना ज़रूरी है," सोचते हुए उस लड़के ने कहा।

    इतना बोलकर उस लड़के ने सिद्धांत की जेबें चेक कीं। उसे सिद्धांत के जिम का कार्ड मिला, जिस पर उसका नाम 'सर्वांश' लिखा हुआ था। यह देखकर उस लड़के की आँखें सिकुड़ गईं।

    "ये क्या? इसका नाम तो सिद्धांत है, फिर इस पर सर्वांश क्यों लिखा हुआ है!" उसने मन ही मन कहा।

    इतने में सिद्धांत का फ़ोन बज उठा। उस लड़के ने फ़ोन निकालकर देखा तो उस पर 'माता श्री' लिखा हुआ दिख रहा था।

    यह देखकर वह लड़का फिर से सोच में पड़ गया। "माता श्री! अब तो यह कन्फ़र्म हो गया कि यह सिड ही है, कोई और नहीं।"

    उसने कॉल आंसर की और मिसेज़ माथुर को सब कुछ बता दिया। जैसे ही उसने कॉल रखा, कैब वाले ने कहा, "साहब, यह ज़िंदा तो है ना!"

    कैब वाले की आवाज़ सुनकर वह लड़का होश में आया। उसने कैब वाले की ओर देखकर कहा, "हाँ, हाँ, ज़िंदा है यह, बस बेहोश है।"

    "अरे तो उसका मास्क हटा दीजिए ना, ताकि उसे साँस लेने में तकलीफ न हो!" कैब वाले ने कहा।

    उस लड़के को भी यह बात सही लगी। उसने मास्क हटाने के लिए अपना हाथ उठाया ही था कि तभी उसके दिमाग में कुछ खटका।

    उसने तिरछी नज़रों से कैब वाले को देखकर कहा, "यह तुम ही हो ना!"

    "मतलब?" कैब वाले ने नासमझी से कहा।

    "अभी कुछ देर पहले तक तुम इसे वहीं मरता हुआ छोड़ने के लिए कह रहे थे और अब इतना कंसर्न दिखा रहे हो, यह बात कुछ समझ नहीं आई," उस लड़के ने कहा।

    "वो क्या है ना भैया, अगर हम इसे हाथ नहीं लगाते तो इतना फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। लेकिन अब इसे लेकर तो हम ही जा रहे हैं, ऐसे में यह ज़िंदा रहे इस बात का ख्याल तो हमें ही रखना पड़ेगा ना!" कैब वाले ने कहा।

    यह सुनकर उस लड़के ने अपना सिर ना में हिला दिया और सिद्धांत के चेहरे पर से वह मास्क हटाने के लिए अपने हाथ बढ़ा दिए। लेकिन जैसे ही उसने मास्क के किनारे को पकड़कर हटाना शुरू किया, अचानक से सिद्धांत ने उसका हाथ पकड़ लिया।

    यह सब इतने अचानक से हुआ कि वह लड़का एक पल के लिए तो डर ही गया, लेकिन फिर वह नॉर्मल हो गया। उसने नासमझी से सिद्धांत की आँखों में देखा। सिद्धांत ने उसे आँखों से ही मास्क न हटाने का इशारा कर दिया।

    "पर इससे तुम्हें साँस लेने में प्रॉब्लम होगी," उस लड़के ने कहा।

    "डोंट, जस्ट डोंट!" सिद्धांत ने दृढ़ आवाज़ में कहा।

    तो उस लड़के ने एक गहरी साँस छोड़कर कहा, "ठीक है, नहीं उतार रहे हैं तुम्हारा मास्क। ओके!"

    उसके इतना बोलते ही सिद्धांत ने अपनी पलकें एक बार झपकाईं और फिर उसकी आँखें पूरी तरह से बंद हो गईं।

    फ्लैशबैक एंड


    वह लड़का आँखें बंद किए हुए यह सब सोच ही रहा था कि तभी एक आदमी उसके पास आकर बैठ गया। उसके हाथों में दो कप चाय थीं।

    उस आदमी ने उस लड़के के कंधे पर हाथ रखा, तो वह सीधा होकर बैठ गया। उस आदमी ने एक कप उस लड़के की ओर बढ़ाया, तो उसने मना कर दिया।

    "टेंशन मत लो बेटा, वह ठीक हो जाएगा," उस आदमी ने कहा।

    लड़के ने आदमी की ओर देखकर, भरी हुई आँखों के साथ कहा, "और अगर नहीं हुआ तो!"

    फिर उसने उस आदमी के सीने में अपना सिर छिपाकर कहा, "पापा, हम दुबारा उसे नहीं खो सकते हैं।"

    उस आदमी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए, पूरे कॉन्फिडेंस के साथ कहा, "ऐसे कैसे नहीं होगा? हमारे बेटे ने इतने साल उसके लिए इंतज़ार किया है और अब उसकी जान बचाने की कोशिश की है। भाई! ठीक तो उसे होना ही होगा।"

    फिर उसने अपने बेटे को वापस अच्छे से बिठाकर, चाय का कप उसके सामने रखकर कहा, "चलो, कुछ खाना नहीं है तो कम से कम चाय तो पी लो।"

    उस लड़के ने चाय ले ली और न चाहते हुए भी अपने पिता के लिए उसे पीने लगा। जैसे ही उसकी चाय खत्म हुई, वैसे ही वहाँ पर मिसेज़ माथुर भी लक्ष्मी और शांतनु के साथ पहुँच गईं।

    वह आते ही सिद्धांत के वार्ड में झाँकने लगीं, जहाँ उसका इलाज चल रहा था। उस लड़के का पिता मिसेज़ माथुर को देखकर हैरान हो गया।

    उसने मिसेज़ माथुर के पास जाकर कहा, "अरे भाभी जी, आप यहाँ!"

    उन्होंने इतना ही कहा था कि इतने में डॉक्टर बाहर आ गए। उन्हें देखते ही मिसेज़ माथुर डॉक्टर से पूछने लगीं, "भैया, सिड कैसा है?"

    "घबराने वाली कोई बात नहीं है, दीदी। चोट गहरी है, लेकिन फ़िलहाल वह खतरे से बाहर है," डॉक्टर ने कहा।

    "क्या हम उससे मिल सकते हैं?" मिसेज़ माथुर ने कहा।

    "अभी नहीं, अभी उसे आराम की ज़रूरत है, इसलिए मैंने उसे नींद का इंजेक्शन दिया है। कल सुबह आप सब उससे मिल सकते हैं," डॉक्टर ने कहा।

    "थैंक यू, अंकल!" शांतनु ने कहा। डॉक्टर ने हाँ में सिर हिलाया और दूसरे वार्ड में चले गए।

    उनके जाते ही उस आदमी ने एक नज़र अंदर सो रहे सिद्धांत पर डाली और फिर मिसेज़ माथुर से कहा, "आप यहाँ सर्वांश के लिए आई हैं!"

    मिसेज़ माथुर भी उस आवाज़ को सुनकर हैरान हो गईं, लेकिन जब उन्होंने पलटकर उस आदमी को देखा तो कन्फ़्यूज़ हो गईं, जैसे कि उसे पहचानने की कोशिश कर रही हों।

    यह देखकर उस आदमी ने मुस्कराकर कहा, "क्या हुआ भाभी जी, आपने हमें पहचाना नहीं क्या?"

    मिसेज़ माथुर ने थोड़ा संकोच के साथ कहा, "नहीं, आपकी आवाज़ जानी-पहचानी लग रही है, लेकिन चेहरा याद नहीं आ रहा है।"

    उस आदमी ने हल्के से हँसकर कहा, "भाभी जी, हम भरत हैं। बचपन में आपने और भैया ने ही तो हमें सहारा दिया था।"

    मिसेज़ माथुर ने याद करते हुए कहा, "अरे हाँ, भरत!"

    "जी भाभी जी," भरत ने कहा।

    "सॉरी भरत, इतने सालों बाद तुम्हें देख रहे हैं इसलिए पहचान नहीं पाए," मिसेज़ माथुर ने कहा।

    "कोई बात नहीं भाभी जी, हमें आप 22 साल बाद देख रही हैं। इतना कन्फ़्यूज़ होना तो लाज़मी है," भरत ने मुस्कराकर कहा।

    "वो तो है, लेकिन तुम यहाँ क्या कर रहे हो? मतलब कोई प्रॉब्लम है क्या?" मिसेज़ माथुर ने कहा।

    इससे पहले कि भरत कुछ कहता, उसके बेटे ने मिसेज़ माथुर से कहा, "आंटी, ये हमारे पापा हैं।"

    मिसेज़ माथुर उसे भी पहचान नहीं रही थीं, इसलिए उन्होंने नासमझी से कहा, "तुम!"

    उस लड़के ने उनकी हालत समझते हुए कहा, "हमने ही आपसे फ़ोन पर बात की थी।"

    मिसेज़ माथुर ने भरत की ओर देखकर कहा, "और ये!"

    तो भरत ने तुरंत हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, ये हमारा बेटा है।"

    फिर उन्होंने अपने बेटे के कंधे पर हाथ रखकर कहा, "यशस्विन!"

    "यशस्विन!" मिसेज़ माथुर ने कहा।

    "आंटी, आप हमें यश कहकर भी बुला सकती हैं," यशस्विन ने कहा।

    भरत ने उसके कंधे थपथपाकर कहा, "ठीक है बेटे, ये तुम्हें यश कहकर ही बुलाएंगी, लेकिन अभी के लिए तुम जाकर अपने कपड़े बदल लो।"

    मिसेज़ माथुर ने भी उसे देखकर कहा, "हाँ बेटा, ये कपड़े गंदे हो गए हैं।"

    फिर उन्होंने शांतनु की ओर मुड़ते हुए कहा, "रुको, हम कुछ कपड़े मँगवा देते हैं।"

    इतने में भरत ने कहा, "अरे, नहीं भाभी जी, कपड़े हैं इसके पास।"

    उन दोनों की बातें सुनकर यश ने कहा, "आंटी, सॉरी टू से, लेकिन आप लोग एक-दूसरे को कैसे जानते हैं?"

    "हाँ बेटा, जब हमारे पैरेंट्स की डेथ हुई थी तो ये और भैया ही थे जिन्होंने हमें सहारा दिया था। हमारी पढ़ाई-लिखाई, खाना-पीना सब कुछ इन लोगों ने ही देखा था," भरत ने कहा।

    "रियली!" यश ने हैरानी के साथ कहा।

    "हाँ! चलो पैर छूओ आंटी के," भरत ने कहा।

    "हाँ!" यश ने मिसेज़ माथुर के पैर छूते हुए कहा।

    "अरे नहीं बेटा, ठीक है," मिसेज़ माथुर ने उसे उठाते हुए कहा।

    तभी भरत ने कहा, "वैसे, भैया कहाँ हैं भाभी?"

    यह सुनकर मिसेज़ माथुर की आँखों में नमी आ गई। उन्होंने अपनी आँखों में आते हुए आँसुओं को रोकते हुए कहा, "वो, अब इस दुनिया में नहीं रहे।"

    यह सुनकर भरत को तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ, लेकिन जैसे ही उनकी नज़र मिसेज़ माथुर के सूने माँग पर पड़ी, उन्हें इस बात पर यकीन करना ही पड़ा।

  • 16. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 16

    Words: 1997

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात का समय था। फातिमा हॉस्पिटल में यश ने मिसेज माथुर के पैर छूते हुए कहा, "हां!"

    मिसेज माथुर ने उसे उठाते हुए कहा, "अरे नहीं बेटा, ठीक है।"

    तभी भरत ने कहा, "वैसे, भैया कहाँ हैं भाभी?"

    यह सुनकर मिसेज माथुर की आँखों में नमी आ गई। उन्होंने अपनी आँखों में आते हुए आँसुओं को रोकते हुए कहा, "वो, अब इस दुनिया में नहीं रहे।"

    यह सुनकर भरत को तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ, लेकिन जैसे ही उनकी नज़र मिसेज माथुर के सूने मांग पर पड़ी, उन्हें इस बात पर यकीन करना ही पड़ा।

    उन्होंने हल्के से अपना सिर झुकाकर कहा, "माफ़ कीजिएगा भाभी, हमें पता नहीं था।"

    मिसेज माथुर ने कहा, "कोई बात नहीं।"

    भरत की इच्छा तो हुई इस सबके बारे में पूछने की, लेकिन माहौल को देखते हुए उन्होंने बात को न बढ़ाना ही ठीक समझा।

    उन्होंने बात बदलते हुए कहा, "ये सर्वांश..."

    मिसेज माथुर ने कहा, "वो हमारा छोटा बेटा है।"

    भरत ने कहा, "अच्छा!"

    तभी मिसेज माथुर ने मुस्कराकर कहा, "लेकिन उसका असली नाम सर्वांश नहीं, सिद्धांत है।"

    भरत और यश, दोनों ने ही हैरानी के साथ कहा, "सच में!"

    मिसेज माथुर ने कहा, "हाँ!"

    तो यश ने कहा, "पर हमने उसके वॉलेट में एक कार्ड देखा था, जिसमें उसका नाम सर्वांश माथुर लिखा हुआ था।"

    इससे पहले कि मिसेज माथुर कुछ कहतीं, शांतनु ने कहा, "इस सबके बारे में तुम उसी से पूछ लेना, यश।"

    यश ने अपने मन में खुद से ही कहा, "वो तो हम पूछेंगे ही। हमें भी जानना है कि वो सर्वांश बनकर क्यों रहता है और ऐसा क्या हुआ है उसके साथ जो वो इतना घायल हो गया।"

    इतने में भरत ने शांतनु की ओर इशारा करके मिसेज माथुर से कहा, "अच्छा, ये आपका बड़ा बेटा है न!"

    मिसेज माथुर ने कहा, "हाँ!"

    फिर उन्होंने लक्ष्मी की ओर इशारा करके कहा, "और ये है..."

    उनकी बात पूरी होने से पहले ही भरत ने कहा, "भोलू!"

    मिसेज माथुर ने कहा, "हाँ, लेकिन तुमने इसे कैसे पहचान लिया?"

    भरत ने कहा, "इसे कैसे नहीं पहचानेंगे हम! उस वक्त यही तो सबसे ज़्यादा शैतान थी।"

    उन दोनों की बातें बच्चों को समझ में नहीं आ रही थीं। इसलिए लक्ष्मी ने शांतनु से कहा, "दिमाग पर ज़्यादा ज़ोर मत डालो और यश को लेकर घर जाओ ताकि वो थोड़ा आराम कर ले।"

    मिसेज माथुर ने भी यश की ओर देखकर कहा, "हाँ बेटा! यहाँ हॉस्पिटल में तुम आराम नहीं कर पाओगे, इसलिए घर जाकर आराम कर लो।"

    यश ने कहा, "आपके कंसर्न के लिए थैंक यू आंटी..."

    लेकिन मिसेज माथुर ने उसकी बात पूरी होने से पहले ही कहा, "नहीं बेटा, थैंक यू तो मुझे तुम्हें कहना चाहिए कि तुम सिड को सही समय पर यहाँ ले आए, वरना पता नहीं क्या होता!"

    उन्होंने इतना ही कहा था कि तभी पुलिस भी वहाँ पर पहुँच गई।

    पुलिस को देखकर मिसेज माथुर के माथे पर चिंता की लकीरें आ गईं, जो भरत को भी दिख रही थीं। इसलिए उसने कहा, "भाभी, वो सिड को लेने के लिए नहीं आए हैं।"

    ACP अनिरुद्ध सिन्हा ने आते ही भरत के पास आकर कहा, "कैसा है वो?" उनके नेम प्लेट पर उनका नाम अनिरुद्ध सिन्हा लिखा हुआ था।

    भरत ने कहा, "चोट गहरी है, पर अब खतरे से बाहर है।"

    अनिरुद्ध ने कहा, "चोट तो गहरी होनी ही थी, हमला ही ऐसा हुआ था उस पर!"

    मिसेज माथुर ने नासमझी से कहा, "मतलब!"

    अनिरुद्ध ने अपने मोबाइल में एक वीडियो प्ले करके मिसेज माथुर को देते हुए कहा, "ये देखिए!"

    भरत और मिसेज माथुर के साथ सबने वो वीडियो देखा। वो वीडियो उस जगह की थी जहाँ से सिद्धांत निशा को बचाकर लाया था। वो सारी घटना वहाँ के स्ट्रीट कैमरे में कैप्चर हो गई थी।

    ये देखकर मिसेज माथुर ने कहा, "पर यहाँ तो वो दोनों बचकर निकल गए हैं। फिर सिड की ये हालत कैसे हुई?"

    अनिरुद्ध ने कहा, "क्योंकि सर्वांश ने उनकी जो हालत की थी उससे उन गुंडों का ईगो हर्ट हो गया था और इसीलिए वो उस लड़की को छोड़कर सर्वांश के पीछे पड़ गए थे।"

    इतना बोलते हुए उसने दूसरी जगह की वीडियो भी भरत के सामने कर दी।

    भरत ने दूसरी वीडियो देखी तो वो वहाँ की थी जहाँ सिद्धांत बेहोश हुआ था।

    मिसेज माथुर उस वीडियो को ना देखें, इसलिए इसी वक्त अनिरुद्ध ने उनसे कहा, "मैम, आपका बेटा बहुत बहादुर है और ऐसे नौजवानों की बहुत ज़रूरत है इस देश को। अगर उसने वक्त रहते उस लड़की को बचाया नहीं होता तो न जाने अब तक उसके साथ क्या हुआ होता।"

    फिर उन्होंने हल्के से मुस्कराकर कहा, "और आपको पता है, वो किसकी बेटी थी!"

    मिसेज माथुर ने कहा, "नहीं!" तो अनिरुद्ध ने कहा, "MLA की!"

    सबके मुँह से एक साथ निकला, "MLA की बेटी!"

    अनिरुद्ध ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, आपके बेटे ने MLA की बेटी को बचाया है और वो इस वक्त आपके बेटे को ढूँढने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं।"

    मिसेज माथुर ने नासमझी से कहा, "सिड को, पर उसे ढूँढने की कोशिश क्यों?"

    अनिरुद्ध ने कहा, "क्योंकि उनकी बेटी का रो रोकर बुरा हाल है।"

    लक्ष्मी ने नासमझी से कहा, "पर वो क्यों रो रही है?"

    अनिरुद्ध ने कहा, "क्योंकि उसे बचाते हुए ही सर्वांश का ये हाल हुआ है और उसी के सामने सर्वांश घायल भी हुआ था।"

    मिसेज माथुर ने कहा, "ऐसा था तो वो सिड को लेकर हॉस्पिटल क्यों नहीं आई? भाग क्यों गई वहाँ से?"

    अनिरुद्ध ने कहा, "वो वहाँ से गई थी अपने गार्ड्स को लाने क्योंकि उसके खुद के पैर में मोच आई थी, वीडियो में देखा होगा आपने!"

    भरत ने कहा, "हाँ!"

    अनिरुद्ध ने कहा, "इसीलिए वो अकेले सब कुछ हैंडल नहीं कर सकती थी और उसका घर भी थोड़ी ही दूरी पर था इसलिए वो अपने गार्ड्स को बुलाने चली गई थी, लेकिन जब तक वो वापस आई..."

    उनकी बात पूरी होने से पहले ही यश ने कहा, "तब तक हम उसे यहाँ ले आए थे।"

    अनिरुद्ध ने उसकी ओर देखकर नासमझी से कहा, "तुम!" तो भरत ने कहा, "ये ही सिड को यहाँ लेकर आया है।"

    अनिरुद्ध ने सिर हिलाते हुए कहा, "ओह अच्छा, लेकिन ये वहाँ कर क्या रहा था?"

    उसके सवाल पर यश ने उसे घूरकर देखा, लेकिन फिर उसने खुद को शांत करके कहा, "वो, एक्चुअली हम आज ही यहाँ शिफ्ट हुए हैं और हम पापा के साथ नहीं आ रहे थे क्योंकि हम अपने दोस्त के घर पर थे। यहाँ का रास्ता हमने देखा नहीं था इसलिए इतनी देर रात तक बाहर थे।"

    अनिरुद्ध ने कहा, "तो तुमने क्या देखा था?"

    यश ने कहा, "हम एक कैब में थे और वो उसी रोड से गुज़र रही थी जब सिद्धांत के गिरने की आवाज़ हमारे कानों में पड़ी।"

    अनिरुद्ध ने कहा, "तो तुमने उन सबको हॉस्पिटल क्यों नहीं पहुँचाया?"

    इस बार यश ने एक कदम उनकी ओर बढ़कर कहा, "सर, उनकी शक्लें ही बता रही थीं कि वो सब कोई शरीफ़ इंसान नहीं हैं और वहाँ पर सिर्फ़ एक बाइक थी जिसका मतलब साफ़ था... कि उन सबने एक बंदे पर अटैक किया है और वहाँ पर सिर्फ़ यही था जिसने riding gloves पहने हुए थे, बस इसीलिए हम सिर्फ़ इसे ले आए।"

    अनिरुद्ध के होठों पर मुस्कान आ गई। उसने भरत की ओर देखकर कहा, "वाह, आपके बेटे का दिमाग तो बिल्कुल आप पर गया है सर!"

    भरत ने भी हँसकर कहा, "ये तो हमारी खुशकिस्मती है, सर!"

    अनिरुद्ध ने बाहर की ओर मुड़ते हुए कहा, "तो हम माननीय MLA जी को बता देते हैं कि सर्वां..."

    फिर उसने अचानक से मिसेज माथुर की ओर देखकर कहा, "मैम, इसका क्या नाम बताया आपने?"

    मिसेज माथुर ने अंजान बनते हुए कहा, "सिद्धांत! क्यों, क्या हुआ?"

    अनिरुद्ध ने कन्फ़्यूज़न के साथ कहा, "नहीं, निशा ने हमें उसका नाम सर्वांश बताया था।"

    मिसेज माथुर ने रिक्वेस्टिंग टोन में कहा, "अगर सिड ने उसे अपना नाम सर्वांश बताया है तो प्लीज़, आप भी सबको उसका नाम सर्वांश ही बताइएगा।"

    अनिरुद्ध ने कुछ सोचकर कहा, "पर क्यों?"

    शांतनु ने कहा, "ये सवाल तो आप सिड से ही पूछिएगा कि वो अपनी असली पहचान को छिपाकर क्यों रखता है।"

    अनिरुद्ध ने हल्के से हँसकर कहा, "असली पहचान ही नहीं, चेहरा भी।"

    मिसेज माथुर ने नासमझी से कहा, "क्या मतलब?"

    अनिरुद्ध ने कहा, "मतलब ये कि आपके बेटे का दिमाग बहुत ही तेज है। इसने उन गुंडों को तो अपना चेहरा दिखाया है जिसे देखते ही वो गुंडे भाग खड़े हुए, लेकिन ये काम भी इसने इतनी सफ़ाई से किया है कि उन गुंडों के अलावा निशा को भी उसका चेहरा नज़र नहीं आया। निशा तो क्या, CCTV कैमरे में भी उसने अपना चेहरा आने नहीं दिया है।"

    लक्ष्मी ने कहा, "वो ऐसा ही है सर और इसीलिए हमारी आपसे रिक्वेस्ट है कि उसका असली नाम या फिर उसका चेहरा किसी के भी सामने न आए।"

    अनिरुद्ध ने सभी लोगों को आश्वस्त करते हुए कहा, "ठीक है, हम इसका असली नाम किसी के सामने नहीं लेंगे।"

    हालाँकि इस बीच उसकी नज़रें बार-बार लक्ष्मी पर ही जा रही थीं। वो चाहकर भी अपनी नज़रों को लक्ष्मी से ज़्यादा समय के लिए हटा नहीं पा रहा था।

    वहीं इस सबसे अंजान मिसेज माथुर ने कहा, "थैंक यू, सर!"

    इतने में शांतनु ने कहा, "वैसे सर, ये निशा कौन है?"

    अनिरुद्ध ने उसकी ओर देखकर कहा, "अरे, यही तो MLA जी की बेटी है।"

    शांतनु ने भरत के हाथ से वो फ़ोन लेकर निशा को देखा और फिर उसे घूरते हुए ही कहा, "अच्छा, तो ये है वो लड़की जिसे बचाने में सिड का ये हाल हुआ है।"

    इतना बोलकर उसने वो वीडियो अपने फ़ोन में भेजने की कोशिश की और सफल भी हो गया क्योंकि अनिरुद्ध का ध्यान तो अपने फ़ोन पर नहीं, बल्कि लक्ष्मी पर था जो शांतनु के साथ खड़ी होकर वो वीडियो देख रही थी।

    शांतनु ने अपना काम करने के बाद वो फ़ोन अनिरुद्ध की ओर बढ़ाया, तब जाकर उसे होश आया।

    उसने अपना फ़ोन लेने के बाद सबकी ओर देखकर कहा, "आई शुड लीव नाउ (अब हमें चलना चाहिए)।"

    फिर उसने भरत की ओर देखकर हल्के से सिर झुकाकर कहा, "प्लीज़! एक्सक्यूज़ मी, सर!"

    भरत ने भी हाँ में सिर हिला दिया तो पुलिस वापस चली गई।

  • 17. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 17

    Words: 1892

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात का समय था। MLA का घर।

    हॉस्पिटल से निकलकर पुलिस निशा के घर पहुँची। मिस्टर ठाकुर अपने सोफे पर बैठे हुए थे। उन्होंने कहा, "क्या हुआ ऑफिसर? कुछ पता चला? कौन थे वो लोग?"

    अनिरुद्ध, जो उनके सामने बैठा था, ने कहा, "उन गुंडों के बारे में अभी पता किया जा रहा है सर, लेकिन उस लड़के के बारे में जरूर पता चल गया है।"

    निशा ने तुरंत, एक्साइटमेंट के साथ कहा, "सच में? कहाँ है वो?"

    अनिरुद्ध ने उन दोनों को वही वीडियो दिखाते हुए कहा, "आप इसी की तलाश कर रहे हैं न!"

    निशा ने तुरंत अपने पापा से कहा, "हाँ, हाँ, पापा ही इज द वन!"

    मिस्टर ठाकुर ने उस वीडियो में सिद्धांत को प्वाइंट करते हुए कहा, "ये!" निशा ने कहा, "हाँ, पापा!"

    मिस्टर ठाकुर ने तुरंत अनिरुद्ध की ओर देखकर कहा, "ऑफिसर, कहाँ है ये?"

    अनिरुद्ध ने कहा, "टेंशन लेने वाली कोई बात नहीं है। वो हॉस्पिटल में है और आउट ऑफ डेंजर है।"

    निशा ने तुरंत कहा, "किस हॉस्पिटल में है वो?"

    मिस्टर ठाकुर ने उसे शांत कराते हुए कहा, "शांत बेटी, शांत!"

    फिर उन्होंने अनिरुद्ध की ओर देखकर कहा, "ऑफिसर, कहाँ है वो?"

    अनिरुद्ध ने कहा, "सर, हमारी मानिए तो अभी वहाँ मत जाइए।"

    इससे पहले कि मिस्टर ठाकुर कुछ कहते, निशा ने कहा, "क्यों?"

    अनिरुद्ध ने कहा, "क्योंकि अभी उसका पूरा परिवार उसके लिए परेशान है और बुरा मत मानिएगा पर..."

    फिर उसने MLA को देखकर हिचकते हुए कहा, "उसके इस हालत की ज़िम्मेदार कहीं न कहीं आपकी बेटी भी है।"

    मिस्टर ठाकुर गुस्से में चीखे, "ये क्या बकवास कर रहे हो ऑफिसर!"

    अनिरुद्ध ने बिल्कुल शांत आवाज़ में कहा, "सर, हमारी बात समझने की कोशिश कीजिए। वो इस वक्त हॉस्पिटल में है। उसके सिर में गहरी चोट आई है, वो भी आपकी बेटी को बचाते हुए।"

    मिस्टर ठाकुर ने कहा, "इसीलिए तो हम उसके पास जाना चाहते हैं ताकि उसे थैंक यू बोल सकें।"

    अनिरुद्ध ने कहा, "सर, अभी उसका पूरा परिवार हॉस्पिटल में है और उनके मन में क्या चल रहा है ये उनके अलावा और कोई नहीं जानता है। ऐसे में अगर आप लोग ऐसे, अचानक से उनके सामने चले जाएँगे तो बात बिगड़ सकती है।"

    इससे पहले कि मिस्टर ठाकुर कुछ कहते, निशा ने कहा, "ठीक है पापा, हम आज वहाँ नहीं जाएँगे।"

    मिसेज़ ठाकुर ने एक गहरी साँस लेकर कहा, "ठीक है, ऑफिसर! हम अभी वहाँ नहीं जाएँगे लेकिन कल सुबह हम वहाँ जरूर जाएँगे।"

    अनिरुद्ध ने एक गहरी साँस लेकर हाँ में सिर हिलाया और बाहर चला गया।


    सुबह का समय था। फातिमा हॉस्पिटल।

    सभी लोग सिद्धांत के वार्ड में मौजूद थे। सिद्धांत को होश आ गया था। मिसेज़ माथुर उसे गुस्से में घूर रही थीं। उन्हें देखकर सिद्धांत ने चादर से अपना चेहरा ढँककर अपनी आँखें मींच लीं।

    मिसेज़ माथुर ने थोड़ी तेज आवाज़ में कहा, "ये क्या करके आए हो तुम?"

    सिद्धांत ने धीरे से चादर हटाई और बड़ी ही मासूमियत से कहा, "हमने क्या किया है!" इस वक्त भी उसने मास्क पहना हुआ था।

    मिसेज़ माथुर ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरते हुए कहा, "ये हालत कैसे हुई तुम्हारी?"

    सिद्धांत ने कहा, "वो, वो!"

    लेकिन आगे की बात उसके मुँह से निकली ही नहीं। अपनी माँ का गुस्सा वो अच्छे से जानता था। उसकी हरकतें देखकर इस सिचुएशन में भी सबको हँसी आ रही थी।

    मिसेज़ माथुर ने कहा, "ये वो, वो, करना बंद करो। हमने कितनी बार कहा है तुम्हें कि किसी और के फटे में टांग मत अड़ाया करो, लेकिन नहीं, तुम्हें कुछ सुनना कहाँ है! अब सिर फूट गया तो सुकून मिल रहा है न!"

    सिद्धांत ने मुँह बनाकर कहा, "क्या माता श्री! एक तो वैसे ही हम हॉस्पिटल के बेड पर पड़े हुए हैं, ऊपर से आप भी डाँट लगाए जा रही हैं!"

    मिसेज़ माथुर ने तुरंत कहा, "एकदम सही हुआ है तुम्हारे साथ, बिल्कुल यही होना ही चाहिए।"

    सिद्धांत ने हैरानी से उन्हें देखते हुए कहा, "आप हमारी ही माता श्री हैं न!"

    मिसेज़ माथुर ने अपनी कमर पर हाथ रखकर कहा, "क्यों? कोई शक है तुम्हें?"

    सिद्धांत ने कहा, "नहीं, शक नहीं है लेकिन नॉर्मली आप हमें ऐसे डाँटती नहीं हैं।"

    मिसेज़ माथुर ने कहा, "और ऐसे काम करके आओ, तुम्हें डाँटेंगे नहीं तो क्या तुम्हारी आरती उतारेंगे।"

    सिद्धांत ने फिर से मुँह बनाकर कहा, "अगर डाँट का कोटा पूरा हो गया हो तो क्या हमें कुछ खाने को मिल सकता है!"

    इससे पहले कि मिसेज़ माथुर कुछ कहतीं, लक्ष्मी ने कहा, "उठते-उठते ही खाना चाहिए तुम्हें!"

    सिद्धांत ने चिढ़कर लक्ष्मी से कहा, "हमने डिनर भी नहीं किया था। पेट में चूहे कूद रहे हैं। ऐसे में इंसान खाना नहीं ढूँढेगा, तो क्या ढूँढेगा।"

    लक्ष्मी ने भी उसे सुनाते हुए कहा, "और जाकर हीरो बनो।"

    मिसेज़ माथुर ने उसकी ओर देखकर गंभीर आवाज़ में कहा, "भोलू!"

    तो लक्ष्मी ने मुँह बनाकर सिद्धांत के सामने एक ढकी हुई प्लेट रखकर कहा, "ये लो!"

    सिद्धांत ने ऊपर वाली प्लेट को हटाया तो उसमें खिचड़ी थी। उसने मुँह बनाकर कहा, "ये क्या है!"

    लक्ष्मी ने आराम से कहा, "इसे खिचड़ी कहते हैं!"

    सिद्धांत ने चिढ़कर कहा, "वो हमें भी पता है। हमें ये बताइए कि हमें ये क्यों खिलाया जा रहा है!"

    लक्ष्मी ने स्ट्रेट फेस के साथ कहा, "क्योंकि तुम पेशेंट हो।"

    सिद्धांत ने बेचारगी से कहा, "अरे तो तहरी खिला दीजिए। ये खिचड़ी ज़रूरी है क्या!"

    मिसेज़ माथुर ने उसके हाथ से प्लेट लेकर उसके पास बैठते हुए कहा, "जो मिल रहा है चुपचाप खा लो वरना ये भी नहीं मिलेगा।"

    फिर उन्होंने सिद्धांत का मास्क थोड़ा सा हटाकर एक चम्मच खिचड़ी उसके सामने करके कहा, "चलो खाओ।"

    सिद्धांत ने एक नज़र उस निवाले पर डाली और फिर मिसेज़ माथुर के चेहरे पर। वो उनकी आँखों में देख रहा था जिनमें उसे अपने लिए फ़िक्र साफ़ नज़र आ रही थी।

    उसने उन्हें देखते हुए ही बिना कुछ कहे, तुरंत अपना मुँह खोल दिया। ये देखकर सभी लोग हैरान थे। सिद्धांत ने अपनी माँ की ओर देखते हुए ही वो निवाला अपने मुँह में ले लिया।

    इस वक्त उसकी आँखों में आँसू आ गए थे जिन्हें वो चाहकर भी रोक नहीं पा रहा था।

    उसके आँसुओं को देखकर मिसेज़ माथुर ने कहा, "क्या हुआ सिड, हमारी बातें इतनी बुरी लग गईं!"

    सिद्धांत ने कुछ कहने के बजाय मिसेज़ माथुर को गले लगा लिया। उसने अपना सिर उनके सीने में छिपा लिया। ये देखकर सभी लोग हैरान थे।

    सिद्धांत इस वक्त रो रहा था और ये सबको साफ़ दिख रहा था। दरवाज़े के पास खड़े यश और भरत भी सिद्धांत को इस तरह देखकर हैरान थे। मिसेज़ माथुर तो स्तब्ध सी हो गई थीं।

    उन्होंने सिद्धांत के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "सिड, क्या हुआ? हमारी बातों का इतना बुरा कब से मानने लगे तुम!"

    ये सुनकर सिद्धांत उनसे अलग हो गया। उसने अपने आँसू पोछकर कहा, "अरे नहीं माता श्री, ये आँसू आपकी वजह से नहीं हैं।"

    मिसेज़ माथुर ने उसके सिर पर हाथ फेरकर कहा, "फिर!"

    सिद्धांत ने हल्के से कहा, "वो, पापा की याद आ गई। वो भी तो इसी तरह से डाँट भी लगाते थे और प्यार भी करते थे न!"

    ये सुनकर सभी की आँखों में आँसू आ गए जिन्हें सभी छिपाने की कोशिश करने लगे।

    मिसेज़ माथुर ने मुस्कुराकर कहा, "तो हम पापा से अलग हैं क्या?"

    सिद्धांत ने अपना सिर ना में हिलाकर कहा, "बिल्कुल नहीं, तभी तो आप भी उन्हीं के तरह ऊपर-ऊपर से डाँट रही हैं और आपकी आँखों में हमें फ़िक्र साफ़ दिख जा रही है।"

    उसने इतना ही कहा था कि इतने में भरत भी वहाँ आ गया। उसे देखते ही सिद्धांत ने फिर से अपना मास्क पूरा पहन लिया।

    भरत ने आते ही सिद्धांत से कहा, "तो कैसे हो बरखुरदार!"

    सिद्धांत ने कन्फ़्यूज़न के साथ कहा, "आई एम सॉरी, बट हमने आपको पहचाना नहीं!"

    भरत ने हल्के से हँसकर कहा, "पहचानोगे कैसे, हम पहले कभी मिले जो नहीं हैं।"

    सिद्धांत ने अपनी माँ की ओर देखा तो उन्होंने कहा, "ये भरत है।"

    सिद्धांत ने अपनी भौंहें सिकोड़कर कहा, "भरत!"

    मिसेज़ माथुर ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ! ये तुम्हारे पापा के काम में हेल्प करते थे और हमारे लिए फैमिली के तरह थे।"

    ये सुनकर भरत ने हैरानी के साथ कहा, "थे!"

    मिसेज़ माथुर ने तुरंत अपने शब्दों को सुधारकर कहा, "अरे नहीं, अभी भी हो लेकिन अब तुम्हारा भी अपना एक परिवार है।"

    सिद्धांत ने देखा कि सभी लोग इमोशनल हो गए हैं इसलिए उसने माहौल को हल्का करने के लिए कहा, "तो भरत अंकल, मामू बनने के लिए तैयार रहिए।"

    लक्ष्मी ने उसके सिर पर हल्के से एक चपत लगाकर कहा, "अच्छा, तो तुम उन्हें मामू बनाओगे!"

    फिर उसने भरत की ओर देखकर कहा, "कुछ नहीं अंकल, इसकी तो आदत है ऐसे ही मज़ाक करने की।" फिर उसने सिद्धांत को घूरते हुए चुप रहने का इशारा किया।

    फिर भी सिद्धांत ने अपना सिर सहलाते हुए कहा, "हाँ, हाँ अब सब लोग अपना हाथ साफ़ कर लीजिए हम पर।"

    ये सब देखकर यश को हँसी आ गई और वो अपना सिर नीचे करके हँसने लगा।

    ये देखकर सिद्धांत ने चिढ़कर कहा, "तुम क्या दाँत दिखा रहे हो?"

    उसकी आवाज़ सुनकर यश ने तुरंत अपनी हँसी को दबा लिया। वहीं सिद्धांत ने कुछ सोचकर कहा, "और कौन, हो कौन तुम?"

    तो भरत ने कहा, "बेटा, ये मेरा बेटा है, यशस्विन!"

    सिद्धांत ने उनकी बात सुनकर कहा, "ओह!"

    तभी लक्ष्मी ने कहा, "और इसने ही तुम्हारी जान बचाई है।"

    सिद्धांत ने कहा, "ओह, आई सी!"

  • 18. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 18

    Words: 1880

    Estimated Reading Time: 12 min

    सुबह का समय था। फातिमा हॉस्पिटल में सिद्धांत और लक्ष्मी की नोंकझोंक देखकर यश को हँसी आ गई और वह अपना सिर नीचे करके हँसने लगा।

    ये देखकर सिद्धांत ने चिढ़कर कहा, "तुम क्या दांत दिखा रहे हो?"

    उसकी आवाज सुनकर यश ने तुरंत अपनी हँसी दबा ली। वहीं सिद्धांत ने कुछ सोचकर कहा, "और कौन, हो कौन तुम?"

    "बेटा, ये मेरा बेटा है, यशस्विन!" भरत ने कहा।

    सिद्धांत ने उनकी बात सुनकर कहा, "ओह!"

    "और इसने ही तुम्हारी जान बचाई है," लक्ष्मी ने कहा।

    "ओह, आई सी!" सिद्धांत ने कहा। फिर उसने यश की ओर देखकर कहा, "थैंक्स बडी, फॉर सेविंग माय लाइफ एंड सॉरी अभी जैसे बात की उसके लिए!"

    उसके शब्द सुनकर यश को झटका सा लगा क्योंकि सिद्धांत उसे पहचान नहीं रहा था, लेकिन फिर भी उसने मुस्कराकर कहा, "मेंशन नॉट, बडी!"

    ये सब हो ही रहा था कि इतने में डॉक्टर वहाँ आ गए। उन्होंने आते ही कहा, "व्हाट्स गोइंग ऑन, सिड!"

    सिद्धांत ने उन्हें देखकर एक्साइटेड होते हुए कहा, "अंकल! हम, हम आपके हॉस्पिटल में हैं!"

    "जी हाँ!" डॉक्टर ने कहा।

    सिद्धांत बचपन से ही यहाँ रहा था और उसके पापा के सबके साथ बहुत अच्छे संबंध थे। पूरा शहर उन्हें जानता था इसलिए सिद्धांत लगभग सभी लोगों के साथ परिचित था।

    सिद्धांत ने आराम से कहा, "फिर तो टेंशन वाली कोई बात ही नहीं है।"

    "क्यों?" डॉक्टर ने अपनी भौंहें उठाकर पूछा।

    "ये तो हमारे लिए घर जैसा है," सिद्धांत ने कहा।

    डॉक्टर ने एक तिरछी मुस्कान के साथ कहा, "अच्छा है, तुम्हें दो-चार दिन यहाँ रहना है।"

    "क्या!" सिद्धांत हैरान हो गया।

    "हाँ!" डॉक्टर ने उसी मुस्कान के साथ कहा।

    "नहीं, हमें यहाँ से जाना है," सिद्धांत उठते हुए बोला।

    डॉक्टर ने उसे फिर से लिटाते हुए कहा, "क्यों? ये तो तुम्हारे लिए घर जैसा है न!"

    "तभी तो कह रहे हैं कि हमें यहाँ से जाना है," सिद्धांत ने कहा।

    "मैं कुछ समझा नहीं," डॉक्टर ने नासमझी से कहा।

    सिद्धांत ने अपनी माँ की ओर इशारा करके कहा, "माता श्री से पूछ लीजिए कि हम घर पर कितना समय बिताते हैं।"

    "रियली!" डॉक्टर ने अपनी भौंहें उठाकर कहा।

    इतने में लक्ष्मी ने कहा, "हाँ अंकल, ये समझ लीजिए कि ये घर पर सिर्फ सोने के लिए ही आता है।"

    डॉक्टर ने सिद्धांत की ओर देखकर कहा, "तब तो भई, बहुत घुमक्कड़ हो तुम।"

    सिद्धांत ने भी बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा, "बिलकुल, जो मजा घुमक्कड़ी में है वो कहीं और कहाँ!"

    डॉक्टर ने उसे एग्जामिन करते हुए कहा, "हम्म, वो तो है।" फिर उन्होंने सिद्धांत की ओर देखकर कहा, "वैसे तुम्हें कपड़ों में देखकर कोई कह नहीं सकता है कि तुम्हारे एट पैक एब्स हैं।"

    ये सुनते ही सबका मुँह खुला का खुला रह गया। सिद्धांत ने उनकी ओर देखकर अपनी आँखें बड़ी करके कहा, "अंकल, आपने हमारी बेहोशी का फायदा उठाया!"

    डॉक्टर ने उसे और ज़्यादा चिढ़ाते हुए कहा, "हाँ, और पेट वाले हिस्से के तो कहने ही क्या!"

    सिद्धांत ने अपने हाथों को क्रॉस करके अपने सीने पर रखकर कहा, "अंकल!"

    डॉक्टर जोर से हँसकर बोला, "अरे, मज़ाक कर रहा हूँ।"

    "मज़ाक, ये मज़ाक था!" सिद्धांत चिढ़कर बोला।

    "सच में अंकल, ये कैसा मज़ाक था!" लक्ष्मी ने भी कहा।

    डॉक्टर ने हँसते हुए ही अपने हाथ ऊपर करके कहा, "आई एम सॉरी, आई एम सॉरी!" फिर उन्होंने सिद्धांत की ओर देखकर कहा, "बट तुम खुद ही सोचो, जो तुम्हारे बारे में जानता है वो ऐसा करेगा क्या कभी!"

    सिद्धांत ने बिना कुछ कहे अपना चेहरा चादर से ढक लिया तो डॉक्टर ने उसे हटाते हुए कहा, "चलो, चलो, अब रेडी हो जाओ।"

    "किसलिए रेडी होना है हमें!" सिद्धांत ने चादर खींचते हुए कहा।

    "तुम्हारे फैंस तुमसे मिलने जो आ रहे हैं," डॉक्टर ने फिर से चादर हटाते हुए कहा।

    "हमारे फैंस!" सिद्धांत नासमझी से बोला।

    "अरे, तुम्हारे ट्रेनीज जिनके क्रश हो तुम!" डॉक्टर ने कहा।

    "हाँ!" सिद्धांत के मुँह से निकला।

    "अब ये रिएक्शन देना बंद करो क्योंकि मैं उन्हें बुला रहा हूँ। एक घंटे से कैसे भी कंट्रोल कर रखा है। अब और नहीं हो पाएगा मुझसे," इतना बोलकर डॉक्टर बाहर चले गए। उन्होंने सिद्धांत के जवाब का भी इंतज़ार नहीं किया।

    उनके जाने के बाद सिद्धांत ने अपनी माँ को देखकर कहा, "माता श्री!"

    मिसेज़ माथुर ने मुँह बनाकर कहा, "हाँ, हाँ, जा रहे हैं हम लोग।" इतना बोलकर वो लक्ष्मी, शांतनु और बाकी सबको लेकर बाहर चली गईं।

    लगभग दो मिनट बाद दरवाज़ा खुला और बहुत सी लड़कियाँ भागते हुए अंदर आ गईं। उनके साथ कुछ लड़के भी थे और सबसे आगे था, राहुल। उसने आँखों ही आँखों में सिद्धांत को कुछ इशारा किया तो सिद्धांत ने भी अपनी पलकें झपकाकर धीरे से हाँ में सिर हिला दिया।

    इतने में करिश्मा ने चिंता के साथ कहा, "सर्वांश, क्या हो गया तुम्हें? किसने किया ये सब?"

    एक दूसरे लड़के ने भी गुस्से में अपने हाथों की मुट्ठियाँ कसकर कहा, "हाँ सर्वांश, हमें बताओ। उसका भर्ता बना देंगे हम।"

    सिद्धांत ने उन सबको शांत कराते हुए कहा, "रिलैक्स गाइज़, रिलैक्स! हम ठीक हैं और तुम सबको कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। पुलिस सब कुछ देख रही है।"

    राहुल उसके पास बैठकर कहा, "थैंक गॉड कि तुम ठीक हो।"

    सिद्धांत ने उनसे सवाल करते हुए कहा, "वो सब तो ठीक है लेकिन आप सब लोग यहाँ क्या कर रहे हैं?"

    किसी लड़की ने पीछे से कहा, "तुम जिम में न आओ तो वहाँ ऐसा है ही क्या कि हम वहाँ जाएँ!"

    सिद्धांत ने अपनी भौंहें उठाकर कहा, "हाँ!"

    तो उस लड़की ने बात बदलते हुए कहा, "मेरा मतलब है कि तुम ही हमारे ट्रेनर हो न, तो तुम्हारी चिंता तो होगी ही ना हमें।"

    इतने में करिश्मा ने कहा, "वैसे किसे बचाने के चक्कर में अपनी हालत ऐसी कर ली तुमने!"

    इससे पहले कि सिद्धांत कुछ कहता, पीछे से निशा की आवाज आई, "मुझे!"

    आवाज को सुनते ही सबकी गर्दन दरवाजे की ओर घूम गई जहाँ निशा दरवाजे पर टेक लगाकर खड़ी थी।

    सिद्धांत ने जैसे ही उसे देखा, उसने हड़बड़ाकर कहा, "हे, क्लोज द डोर!"

    उसकी बात सुनकर बाकी सब भी बोलने लगे, "क्लोज द डोर! क्लोज द डोर!"

    राहुल आगे बढ़कर दरवाज़ा बंद ही कर रहा था कि तभी बाहर से किसी की भारी सी आवाज आई, "कौन है, जो हमारी बेटी को अंदर जाने से रोक रहा है!" और इसी के साथ मिस्टर ठाकुर अंदर आ गए। उन्हें देखकर राहुल ने कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं की। वहीं सिद्धांत को मिस्टर ठाकुर का चेहरा नहीं दिख रहा था क्योंकि राहुल ठीक उनके सामने खड़ा था।

    मिस्टर ठाकुर ने वहीं से कहा, "सर्वांश!"

    "कौन?" सिद्धांत ने पूछा।

    मिस्टर ठाकुर ने एक हाथ से राहुल को साइड किया तो सिद्धांत को उनका चेहरा दिख गया। उसने हैरानी के साथ कहा, "सर, आप यहाँ!"

    मिस्टर ठाकुर आगे आते हुए बोले, "मैं..."

    लेकिन उनकी बात पूरी होने से पहले ही सिद्धांत ने कहा, "यहाँ के MLA हैं।"

    मिस्टर ठाकुर मुस्कराकर बोले, "ओह, सो यू नो मी!"

    सिद्धांत ने अपने बेड पर साइड होते हुए कहा, "यस, बट वाई आर यू हियर?"

    मिस्टर ठाकुर उसके पास बैठते हुए बोले, "भई तुमने हमारी बेटी की जान बचाई है, तो तुमसे मिलकर तुम्हें थैंक यू बोलना तो बनता है न!"

    "इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी सर! फिर भी आप अपने शेड्यूल में से थोड़ा समय निकालकर हमसे मिलने आए, उसके लिए थैंक यू," सिद्धांत ने कहा।

    मिस्टर ठाकुर हँसकर बोले, "ओह, तो तुम डिसेंट भी हो।"

    इससे पहले कि सिद्धांत कुछ कहता, निशा आगे आकर बोली, "हाँ पापा, ये बहुत डीसेंट है।"

    सिद्धांत ने उसे अपने पास देखकर हाथ जोड़ते हुए कहा, "मैम, प्लीज़! आप हमारे आस-पास भी मत आइए।"

    मिस्टर ठाकुर ने उसकी ओर देखकर नासमझी से कहा, "क्यों सर्वांश, क्या हो गया?"

    सिद्धांत ने शिकायती लहजे में कहा, "होना क्या है सर, जब भी इनसे मिलते हैं, कुछ न कुछ हो ही जाता है हमारे साथ।"

    मिस्टर ठाकुर ने कन्फ्यूज़न के साथ कहा, "मतलब!"

    "कल हम इनसे दो बार मिले और दोनों ही बार हमें गुंडों से लड़ना पड़ा और दूसरे बार के बाद हमारी क्या हालत है ये तो आप खुद भी देख सकते हैं," सिद्धांत ने कहा।

    उसकी बातें सुनकर सभी लोग हँस दिए। मिस्टर ठाकुर ने हँसते हुए ही कहा, "तुम बहुत मज़ाकिया हो।"

    "वो तो है," निशा ने भी कहा।

    कुछ देर बातें करने के बाद मिस्टर ठाकुर ने कहा, "हाँ, मेन बात तो मैं भूल ही गया।"

    "क्या सर?" सिद्धांत ने सवाल किया।

    मिस्टर ठाकुर ने सिद्धांत से कुछ कहने के बजाय बाकी सबकी ओर देखकर कहा, "एवरीवन आउट!"

    जैसा उनका लहजा था उससे सबको बहुत बुरा लगा। सबने सिद्धांत की ओर देखा तो उसने अपनी पलकें झपकाकर धीरे से हाँ में सिर हिला दिया इसलिए सभी लोग बिना कुछ कहे बाहर चले गए।

    तब सिद्धांत ने मिस्टर ठाकुर की ओर देखकर कहा, "तो बताइए सर, ऐसी क्या बात थी जो आपको सबको बाहर भेजना पड़ गया।"

    "क्या तुम इस हालत में हो कि इंटरव्यू दे सकोगे?" मिस्टर ठाकुर ने पूछा।

    "इंटरव्यू!" सिद्धांत नासमझी से बोला।

    मिस्टर ठाकुर ने अपना सीना चौड़ा करके कहा, "हाँ, तुम्हें वीरता पुरस्कार दिया जाना है।"

  • 19. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 19

    Words: 1892

    Estimated Reading Time: 12 min

    सुबह का समय था। फातिमा हास्पिटल में मिस्टर ठाकुर ने सबको बाहर जाने को कहा। सबकी निगाहें सिद्धांत पर टिक गईं। मिस्टर ठाकुर के लहजे से सबको बुरा लगा था। पर सिद्धांत ने पलकें झपकाकर धीरे से सिर हिलाया। सभी लोग बिना कुछ बोले बाहर चले गए।

    तब सिद्धांत ने मिस्टर ठाकुर की ओर देखते हुए कहा, "तो बताइए सर, ऐसी क्या बात थी जो आपको सबको बाहर भेजना पड़ा?"

    "क्या तुम इस हालत में हो कि इंटरव्यू दे सकोगे?" मिस्टर ठाकुर ने पूछा।

    "इंटरव्यू!" सिद्धांत ने नासमझी से कहा।

    "हाँ, तुम्हें वीरता पुरस्कार दिया जाना है," मिस्टर ठाकुर ने सीना चौड़ा करते हुए कहा।

    सिद्धांत अभी भी उलझन में था। "वीरता पुरस्कार!" उसने कहा।

    "हाँ!" मिस्टर ठाकुर ने कहा।

    "पर क्यों? आई मीन, हमने किया क्या है?" सिद्धांत ने नासमझी से पूछा।

    "कैसी बातें कर रहे हो तुम? तुमने मेरी बेटी की जान बचाई है!" मिस्टर ठाकुर हैरान हो गए।

    "तो इस वजह से हमें यह पुरस्कार मिल रहा है," सिद्धांत ने बात समझते हुए कहा।

    "हाँ!" मिस्टर ठाकुर ने कहा।

    "इफ दैट्स द केस, देन..." सिद्धांत ने धीरे से कहा, फिर एक ही साँस में बोला, "आई डोंट वांट इट।"

    इससे पहले कि मिस्टर ठाकुर कुछ बोलते, निशा ने आँखें बड़ी करके कहा, "क्या कहा तुमने? यू डोंट वांट इट? तुम्हें पता भी है कि तुम किस चीज़ के लिए मना कर रहे हो!"

    सिद्धांत ने उसे पूरी तरह नज़रअंदाज़ करते हुए मिस्टर ठाकुर से शांति से कहा, "सर, सौ बात की एक बात! हमने जब निशा मैम की मदद की, तो हमें यह नहीं पता था कि वह आपकी बेटी हैं। हमें लगा किसी को हमारी मदद की ज़रूरत है, तो हमने कर दी। और हमें नहीं लगता कि इसके लिए हमें कोई रिवार्ड मिलना चाहिए। दूसरी बात यह कि अगर हमें रिवार्ड मिल रहा है और फिर भी हम उसे लेने से मना कर रहे हैं, तो उसके पीछे कोई वजह होगी ही।"

    मिस्टर ठाकुर ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "सर्वांश, यह तुम्हारे अच्छे काम के लिए दिया जा रहा है।"

    "हमें पता है, लेकिन हमारे लिए हमारी प्राइवेसी से बढ़कर कुछ नहीं है। आपको शायद पता ना हो, बट हमने अपने सोशल मीडिया पर भी अपना फेस रिवील नहीं किया है। नेवर, एवर!" सिद्धांत ने अपनी बात पर ज़ोर दिया।

    मिस्टर ठाकुर ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "तो तुम्हें अपना चेहरा नहीं दिखाना है। यही ना!"

    "जी, हाँ!" सिद्धांत ने साफ़ शब्दों में कहा।

    "ओ के, फाइन! तुम अपना चेहरा मत दिखाना, ठीक है!" मिस्टर ठाकुर ने कहा।

    इससे पहले कि सिद्धांत कुछ कहता, पीछे से मिसेज माथुर की आवाज़ आई, "वह फिर भी नहीं जाएगा।"

    सिद्धांत ने उन्हें देखकर कहा, "माता श्री!"

    मिसेज माथुर की आवाज़ सुनकर मिस्टर ठाकुर ने दरवाज़े की ओर देखा। वहाँ मिसेज माथुर हाथ बाँधे खड़ी थीं।

    उन्हें देखकर मिस्टर ठाकुर अपनी जगह से खड़े हो गए। "भाभी जी, यह आपका बेटा है!" उन्होंने कहा।

    मिसेज माथुर आगे आकर बोलीं, "जी, हाँ!"

    "तुमने पहले क्यों नहीं बताया कि तुम इनके बेटे हो?" मिस्टर ठाकुर ने सिद्धांत की ओर देखते हुए पूछा।

    सिद्धांत के बजाय मिसेज माथुर ने जवाब दिया, "क्योंकि उसकी अपनी एक अलग पहचान है।"

    "ठीक है, लेकिन आपको क्या प्रॉब्लम है अगर यह वीरता पुरस्कार लेने के लिए सामने आता है?" मिस्टर ठाकुर ने पूछा।

    "प्रॉब्लम हैं आप!" मिसेज माथुर ने सीधे शब्दों में कहा।

    "मैं!" मिस्टर ठाकुर ने खुद को इशारा करते हुए कहा।

    "जी हाँ, आप!" मिसेज माथुर ने भौंहें चढ़ाते हुए कहा।

    "मैं समझा नहीं!" मिस्टर ठाकुर ने नासमझी से कहा।

    "आप क्या हैं?" मिसेज माथुर ने हाथ बाँधे हुए पूछा।

    "MLA," मिस्टर ठाकुर ने तुरंत कहा।

    "मतलब पॉलिटिशियन," मिसेज माथुर ने कहा।

    "हाँ, तो!" मिस्टर ठाकुर ने असमंजस में कहा।

    "इस बात की क्या गारंटी है कि उन किडनैपर्स को इस बात का कोई आइडिया नहीं था कि निशा आपकी बेटी है? हो सकता है कि उन्होंने जानबूझकर आपकी बेटी को किडनैप किया हो, और मेरे बेटे ने उसकी जान बचाई है," मिसेज माथुर ने मिस्टर ठाकुर की आँखों में आँखें डालकर कहा।

    "तो!" मिस्टर ठाकुर ने कहा।

    "ऐसे में अगर वह पूरी दुनिया के सामने आता है तो क्या आप उसकी सेफ्टी की गारंटी लेते हैं?" मिसेज माथुर ने सवाल किया।

    मिस्टर ठाकुर कुछ देर सोचते रहे। फिर बोले, "बात तो आपकी सही है।"

    तभी निशा ने सिर पकड़ते हुए कहा, "अब क्या किया जाए?"

    सिद्धांत ने उसकी ओर देखते हुए कहा, "आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है, देवी जी। बस आप हमसे दूर रहिए, वही बहुत है।"

    "तुम मुझे देखकर चिढ़ क्यों जाते हो?" निशा चिढ़कर बोली।

    "है कुछ रीज़न, बस आप हमसे दूर रहिए," सिद्धांत ने बिना किसी भाव के कहा।

    फिर उसने मिस्टर ठाकुर की ओर देखते हुए कहा, "और सर, हमें यह वीरता पुरस्कार नहीं चाहिए। हम गुमनाम ही अच्छे हैं।"

    मिस्टर ठाकुर ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "अच्छा, ठीक है, लेकिन..."

    फिर उन्होंने ज़ोर देकर कहा, "मैं तुम्हें कुछ और देना चाहता हूँ और वह तुम्हें एक्सेप्ट करना ही होगा।"

    "क्या?" सिद्धांत ने नासमझी से पूछा।

    "एक हफ़्ते बाद मेरी बेटी का जन्मदिन है, और तुम्हें अपने पूरे परिवार के साथ वहाँ आना है।" मिस्टर ठाकुर ने कहा।

    "क्या?" सिद्धांत हैरान हो गया।

    "मेरी बेटी, निशा, जिसकी तुमने कल जान बचाई, एक हफ़्ते बाद उसका जन्मदिन है और तुम्हें अपने पूरे परिवार के साथ आना है," मिस्टर ठाकुर मुस्कुराते हुए बोले।

    यह सुनकर सिद्धांत सोच में पड़ गया। "क्या हुआ बेटा? क्या सोच रहे हो?" मिस्टर ठाकुर ने पूछा।

    "वो एक्चुअली, बात यह है सर कि हम फ्री नहीं होंगे," सिद्धांत ने बहाना बनाते हुए कहा।

    "क्यों? हॉस्पिटल में ही तो रहोगे ना तुम!" मिस्टर ठाकुर ने भौंहें सिकोड़ते हुए कहा।

    "सर, कुछ चोटें आई हैं, बस। कोई गोली थोड़ी ना लगी है जो इतने दिनों तक हॉस्पिटल में रहेंगे," सिद्धांत ने कहा।

    "ठीक है। अगर इस वजह से तुम नहीं आ रहे हो तो जहाँ तुम रहोगे उन लोगों को भी मैं बिज़ी कर देता हूँ," मिस्टर ठाकुर ने कहा।

    "क्या मतलब?" सिद्धांत ने नासमझी से पूछा।

    "जहाँ तुम काम करते हो उन लोगों को भी इनवाइट कर लेता हूँ, फिर तो तुम फ्री हो जाओगे ना!" मिस्टर ठाकुर ने कहा।

    सिद्धांत क्या बोलता, उसने धीरे से कहा, "हम्म!"

    "यह तो ठीक है ना, भाभी जी!" मिस्टर ठाकुर ने मिसेज माथुर की ओर देखते हुए कहा।

    "ठीक है, बस इसे कोई स्पेशल ट्रीटमेंट मत दीजिएगा," मिसेज माथुर ने बेमन से कहा।

    "बिलकुल नहीं," मिस्टर ठाकुर ने सिर हिलाते हुए कहा।

    फिर उन्होंने सिद्धांत की ओर देखते हुए कहा, "अब तो सब ठीक है ना सर्वांश!"

    "हाँ, सर!" सिद्धांत ने धीरे से कहा।

    मिस्टर ठाकुर फिर उसके पास बैठ गए। "यह तुम सर क्यों बुलाते हो मुझे? अंकल बुलाया करो ना!"

    "अंकल!" सिद्धांत ने असमंजस में कहा।

    "हाँ, अंकल," मिस्टर ठाकुर ने कहा।

    यह सुनकर सिद्धांत कुछ सोचने लगा। "क्यों? कोई प्रॉब्लम है?" मिस्टर ठाकुर ने पूछा।

    "नहीं, प्रॉब्लम तो कोई नहीं है," सिद्धांत ने कहा।

    "तो फिर फाइनल, अब से तुम मुझे अंकल ही बुलाओगे। ओ के!" मिस्टर ठाकुर ने कहा।

    "ओ के," सिद्धांत ने बेमन से कहा।

    "ओ के, व्हाट!" मिस्टर ठाकुर ने भौंहें चढ़ाते हुए कहा।

    सिद्धांत ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा, "ओ के, अंकल।"

    "गुड!" मिस्टर ठाकुर मुस्कुराए।

    फिर उन्होंने मिसेज माथुर की ओर देखते हुए हाथ जोड़कर कहा, "अच्छा भाभी जी, अब हम चलते हैं।"

    मिसेज माथुर ने भी हाथ जोड़कर सिर हिलाया। मिस्टर ठाकुर बाहर की ओर बढ़े। वे दो कदम ही चले थे कि अचानक रुक गए।

    उन्होंने वापस मिसेज माथुर की ओर मुड़कर कहा, "और हाँ, भाभी जी! सर्वांश के इलाज का सारा खर्चा मैं उठाऊँगा।"

    "इसकी कोई ज़रूरत नहीं है..." मिसेज माथुर ने मना करते हुए कहा।

    लेकिन उनकी बात पूरी होने से पहले ही मिस्टर ठाकुर ने कहा, "मैं जानता हूँ कि आप बहुत ही स्वाभिमानी महिला हैं, लेकिन यह सब हुआ तो मेरी बेटी को बचाने में ही है ना! इसलिए यह मेरा हक भी है और फ़र्ज़ भी।"

    इतना बोलकर मिस्टर ठाकुर बाहर चले गए।

    उनके जाने के बाद मिसेज माथुर चिंता से सिद्धांत के पास बैठ गईं। "उन्होंने कुछ और तो नहीं कहा ना?" उन्होंने पूछा।

    सिद्धांत ने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं माता श्री।"

    फिर उसने अपनी प्लेट उठाते हुए आराम से कहा, "और वैसे भी, क्या आपको ऐसा लगता है कि उनके कुछ भी कहने पर हम चुप रहते!"

    मिसेज माथुर ने सिर हिलाया। "फिर टेंशन लेना बंद करिए और हमारे डिस्चार्ज पेपर्स रेडी करवाइए," सिद्धांत ने कहा।

    "डिस्चार्ज पेपर्स!" मिसेज माथुर कन्फ़्यूज़ हो गईं।

    "हाँ, डिस्चार्ज पेपर्स, या..." सिद्धांत ने खाना खाते हुए कहा, फिर भौंहें चढ़ाते हुए बोला, "हमारे बिना घर बहुत अच्छा लग रहा है!"

    इससे पहले कि मिसेज माथुर कुछ कहतीं, दरवाज़े के पास से लक्ष्मी की आवाज़ आई, "बिलकुल हमारे मन की बात बोल दी तुमने!"

  • 20. Beyond Words : A Love Born in Silence - Chapter 20

    Words: 1813

    Estimated Reading Time: 11 min

    सुबह का समय था। फातिमा हॉस्पिटल में, सिद्धांत के सवाल पर मिसेज माथुर ने ना में सिर हिला दिया।

    "फिर टेंशन लेना बंद करिए और हमारे डिस्चार्ज पेपर्स रेडी करवाइए।" सिद्धांत ने कहा।

    "डिस्चार्ज पेपर्स!" मिसेज माथुर ने कन्फ्यूजन के साथ कहा।

    सिद्धांत ने खाना खाते हुए कहा, "हां, डिस्चार्ज पेपर्स या..."

    उसने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "हमारे बिना घर बहुत अच्छा लग रहा है!"

    इससे पहले कि मिसेज माथुर कुछ कह पातीं, दरवाजे के पास से लक्ष्मी की आवाज आई।

    "बिलकुल हमारे मन की बात बोल दी तुमने!"

    सिद्धांत ने शॉक होकर कहा, "हां!"

    लक्ष्मी उसके पास बैठते हुए बोली, "हां, यू नो, यू आर सच अ ट्रबलमेकर।"

    सिद्धांत ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "रियली!"

    लक्ष्मी ने उसे चिढ़ाने के लिए कहा, "और नहीं तो क्या!"

    सिद्धांत ने अपने दिल पर हाथ रख कर कहा, "तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया।"

    लक्ष्मी ने चिढ़ कर कहा, "हॉस्पिटल बेड पर हो फिर भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आना है!"

    सिद्धांत ने गाना गाते हुए कहा, "क्या करूँ ओ लेडिज, मैं हूँ आदत से मजबूर!"

    फिर उसने एटीट्यूड के साथ अपने कंधे उठा कर कहा, "और वैसे भी जो अपनी हरकतों से बाज आ जाए वो सिद्धांत माथुर नहीं!"

    लक्ष्मी ने उसे हल्के से मार कर कहा, "हटो ड्रामेबाज!"

    उसकी मार से सिद्धांत को कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने लक्ष्मी के गाल खींचते हुए कहा, "सच में, आप गुस्से में होती हैं न, तो बड़ी क्यूट लगती हैं।"

    लक्ष्मी ने उसके हाथों को झटक कर कहा, "तुम मार खाओगे हमसे!"

    सिद्धांत ने कहा, "अरे, अभी हम घायल हैं तो अभी मार कर क्या फायदा, वैसे भी हॉस्पिटल में हैं तो तुरंत ही इलाज भी हो जाएगा। ठीक हो जाने दीजिए। फिर घर पर आराम से मार लीजिएगा।"

    लक्ष्मी ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, "नहीं, तुम यहीं रहो। वही ज्यादा अच्छा है।"

    सिद्धांत ने अपना एक हाथ लक्ष्मी के कंधे पर टिका कर कहा, "नहीं अग्रजे, घर तो हम चलेंगे। वो क्या है न, इतनी जल्दी आपका पीछा नहीं छोड़ने वाले हैं हम।"

    लक्ष्मी ने अपने दांत पीस कर कहा, "यू आर रियली शेमलेस!"

    सिद्धांत ने अपने कंधे झटक कर कहा, "आई नो दैट वेरी वेल, टेल मी समथिंग आई डोंट नो।" उसके मुँह से आह निकल गई क्योंकि गिरने की वजह से उसके कंधे में भी चोट लगी हुई थी।

    वहीं लक्ष्मी ने खड़े होते हुए कहा, "मम्मी, हम बाहर जा रहे हैं। यहां रहेंगे तो ये हमारा सिर खाता रहेगा।"

    इतना बोल कर वह बाहर चली गई। मिसेज माथुर ने सिद्धांत की ओर देख कर कहा, "सिड, क्यों परेशान करते हो उसे!"

    सिद्धांत ने मासूम सी शक्ल बना कर कहा, "हम कहाँ कुछ करते हैं, माता श्री! हम तो सिर्फ उनकी बातों का जवाब देते हैं।"

    मिसेज माथुर ने अफ़सोस के साथ सिर हिला कर कहा, "हां, हां, तुम सिर्फ जवाब देते हो लेकिन ऐसे कि वो चिढ़ जाती है।"

    सिद्धांत ने मुस्करा कर कहा, "आपसे किसने कह दिया कि वो चिढ़ती हैं!"

    मिसेज माथुर ने उसकी ओर देख कर कहा, "क्यों? उसके रिएक्शन से पता नहीं चलता है!"

    सिद्धांत ने साइड टेबल पर रखे अपने फोन को उठाते हुए कहा, "रुकिए, उनका असली रिएक्शन हम आपको दिखाते हैं।"

    इतना बोल कर उसने एक वीडियो प्ले करके मिसेज माथुर को दिखाया। वह वीडियो इसी वार्ड के बाहर का था जिसमें लक्ष्मी बाहर निकलती हुई और मुस्कुराती हुई नज़र आ रही थी।

    मिसेज माथुर ने वो वीडियो देखने के बाद कहा, "ये तो..."

    सिद्धांत ने उनकी बात पूरी करते हुए कहा, "सिर्फ हमारे साथ मस्ती करती हैं।"

    मिसेज माथुर ने कहा, "वैसे तुम्हें ये वीडियो कहाँ से मिला?"

    सिद्धांत ने मुस्करा कर कहा, "भैया ने भेजी।"

    मिसेज माथुर ने कहा, "तुम दोनों सच में... छोड़ो! हम जाकर डिस्चार्ज पेपर्स रेडी करवाते हैं।"

    सिद्धांत ने कहा, "हम्म!"


    शाम के 4 बजे, एक एम्बुलेंस सिद्धांत के घर के सामने आकर रुकी। एक करके सभी लोग बाहर निकले। भरत और यश उनके साथ नहीं थे।

    एम्बुलेंस वापस चली गई। वो लोग जैसे ही अंदर जाने के लिए घर की ओर मुड़े, वैसे ही हैरान हो गए क्योंकि वहाँ पर पहले से ही भरत और यश खड़े थे।

    मिसेज माथुर ने भरत से कहा, "भरत, हमने कहा था न, हमारे चक्कर में अपना नुकसान मत करो।"

    भरत ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं भाभी जी, हमने अपना नुकसान नहीं किया है।"

    मिसेज माथुर ने नासमझी से कहा, "फिर!"

    भरत ने मुस्करा कर कहा, "अब से हम आपके पड़ोसी हैं।"

    मिसेज माथुर ने अपने घर के बगल वाले घर की ओर इशारा करके कहा, "मतलब कि ये घर..."

    भरत ने कहा, "जी, हम ही इस घर के नए किराएदार हैं।"

    तभी अनिरुद्ध उस घर से बाहर आया। वह अभी भी पुलिस की वर्दी में था। उसने भरत के पास आकर कहा, "पापा, सारा सामान सेट हो गया है। आप लोग चलिए, हम रात में आते हैं।"

    मिसेज माथुर ने उसे देख कर कहा, "ये तो!"

    भरत ने अनिरुद्ध के कंधे पर हाथ रख कर कहा, "ये हमारा बड़ा बेटा है, अनिरुद्ध सिन्हा!"

    ये सुन कर शांतनु ने कहा, "ओह, तो इसीलिए यश आपके सवालों को सुन कर चिढ़ रहा था।"

    यश ने मुँह बना कर कहा, "इनकी हरकतें ही ऐसी हैं कि बंदा चिढ़ जाए।"

    अनिरुद्ध ने अपना मुँह खोल कर कहा, "हां!"

    यश ने कहा, "और नहीं तो क्या, जब इन्हें सब कुछ पता है कि हम कहाँ से आ रहे हैं, कैसे आ रहे हैं, सब कुछ, फिर भी ऐसे सवाल पूछ रहे हैं तो बंदा चिढ़ेगा ही न!"

    अनिरुद्ध ने नाटकीय रूप से हँस कर कहा, "हा, हा, हा, वेरी फनी!"

    यश फिर से मुँह बना कर कुछ बोलने को हुआ ही था कि भरत ने कहा, "बस, बस! अब अपना ड्रामा बंद करो तुम दोनों।"

    फिर उन्होंने यश की ओर देख कर कहा, "और यश, तुम जाओ, आंटी की हेल्प करवा दो।"

    मिसेज माथुर ने कहा, "नहीं नहीं, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।"

    यश ने कहा, "हम भी तो आपके बेटे जैसे ही हैं न आंटी!"

    मिसेज माथुर ने कहा, "ठीक है, चलो।"

    यश ने सारा सामान उठा लिया और बाकी लोग भी कुछ सामान लेकर अंदर चले गए। भरत भी अपने घर में चला गया और अनिरुद्ध पुलिस स्टेशन।


    कुछ देर बाद, सभी लोग सिद्धांत के घर में हॉल में बैठे हुए थे। मिसेज माथुर ने जूस की ट्रे लाकर टेबल पर रख दी।

    सबने जूस पीना शुरू किया और तभी मिसेज माथुर ने यश से सवाल करते हुए कहा, "और क्या पढ़ाई कर रहे हो, यश?"

    यश ने कहा, "अभी तो ग्रेजुएशन कर रहे हैं आंटी।"

    शांतनु ने कहा, "अच्छा, कौन सा साल है?"

    यश ने कहा, "फाइनल ईयर!"

    लक्ष्मी ने कहा, "गुड, इस उम्र तक ग्रेजुएशन कंप्लीट कर लोगे तो जल्दी ही जॉब भी लग जाएगी।"

    यश बस हल्के से मुस्करा दिया। फिर उसने सिद्धांत की ओर देख कर कहा, "और सिद्धांत, तुम क्या कर रहे हो?"

    इससे पहले कि सिद्धांत कुछ कह पाता, लक्ष्मी ने कहा, "वो भी ग्रेजुएशन कर रहा है, और वो भी इसी साल कंप्लीट कर लेगा।"

    यश ने हैरानी के साथ कहा, "रियली!"

    लक्ष्मी ने कहा, "हां!"

    तभी शांतनु ने कहा, "एक्चुअली, वो कई क्लास कूद गया है न, इसलिए।"

    यश ने कहा, "ओह, अच्छा!"

    मिसेज माथुर ने कहा, "हां, वरना वो तुमसे छोटा ही होगा।"

    यश ने कहा, "नहीं आंटी, छोटा नहीं होगा पर हाँ, उम्र बराबर हो सकती है हम दोनों की!"

    इस बार सिद्धांत ने न्यूज़पेपर के पन्ने पलटते हुए कहा, "यानी कि तुम भी इक्कीस के होने वाले हो!"

    ये सुनकर सभी लोग हैरान रह गए लेकिन किसी के भी कुछ रिएक्ट करने से पहले ही यश ने कहा, "नॉट एट ऑल, हम अभी सिर्फ़ अट्ठारह साल के हैं, उन्नीस के होने वाले हैं।"

    सिद्धांत ने अपनी नज़रें पेपर में गड़ाए हुए ही आराम से कहा, "हाँ, तब हमारी उम्र सच में बराबर ही है।"

    यश ने कहा, "पर तुमने तो इक्कीस कहा था।"

    इस बार सिद्धांत ने अपना चेहरा उसकी ओर घुमा कर कहा, "वो क्या है न, हम किसी को भी अपनी असली उम्र नहीं बताते हैं।"

    अपनी बात बोल कर सिद्धांत ने फिर से अपनी नज़रें पेपर में गड़ा लीं।

    वहीं उसकी बातें सुनकर यश ने अपना मुँह बना लिया तो मिसेज माथुर ने कहा, "इसे छोड़ो यश, इसकी तो आदत ही है सबको ऐसे इरिटेट करने की। तुम बताओ, तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है?"

    यश ने कहा, "बस हम, पापा और भैया।"

    लक्ष्मी ने उसे सवालिया नज़रों से देख कर कहा, "और तुम्हारी मम्मी!"

    यश ने अपनी गर्दन झुका ली और धीमे से कहा, "शी इज़, नो मोर।"

    ये सुनते ही सिद्धांत को एक झटका सा लगा लेकिन उसने खुद को कंट्रोल कर लिया और अपनी नज़रें पेपर पर ही रखीं।

    वहीं लक्ष्मी ने कहा, "आई एम सो सॉरी, यश!"

    यश ने कहा, "अरे नहीं दीदी, इसमें आपकी कोई गलती नहीं है।"

    शांतनु ने देखा कि माहौल कुछ ज़्यादा ही भारी हो रहा है इसलिए उसने बात को बदलते हुए कहा, "अच्छा, ये सब छोड़ो, ये बताओ कि एडमिशन कहाँ लिया है!"

    यश ने कहा, "इग्नू में।"