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Zaalim ishq author_alfariya sheikh..

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alfariya sheikh

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हर कोई चाहता है की उसकी जिंदगी का सफर आसान हो लेकिन क्या होगा जब उस सफर पर मिल जाए एक ऐसा शख्स जो उसे अपने महल में कैद कर ले मीक्षा अग्रवाल जो लखनऊ से मुंबई आई है अपनी पढ़ाई करने लेकिन उसी सफर में उसकी मुलाकात होती है आकर्ष राजपूत से जो पेशे से वर्ल्...

Total Chapters (86)

Page 1 of 5

  • 1. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 1

    Words: 2252

    Estimated Reading Time: 14 min

    लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
    सुबह का समय था।

    लखनऊ, जिसे नवाबों का शहर कहा जाता है, अपनी ऐतिहासिक जगहों, खान-पान और संगीत से लेकर पहनावे तक, अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ कबाब, चिकन की कड़ाही से लेकर भूलभुलैया और नवाबी शौक के चर्चे तो होते ही रहते हैं। लखनऊ के हर नुक्कड़, हर गली में कहानियाँ बसती हैं। लखनऊ की ऊँची इमारतों में किस्से छुपे होते हैं। लखनऊ शहर में बहुत छोटी-छोटी गलियाँ हैं; उन गलियों में जितने छोटे घर होते हैं, लोगों के दिल उतने ही बड़े होते हैं। वहाँ लोग बहुत प्यार से रहते हैं और एक-दूसरे का साथ निभाते हैं। आइए, आपको उनमें से एक गली में ले चलते हैं, जहाँ एक छोटा-सा परिवार रहता है।


    गोमती नगर (लखनऊ)

    लखनऊ के गोमती नगर में एक छोटा-सा घर था। वह घर छोटा होने के बावजूद बहुत प्यारा लग रहा था। घर के बाहर बड़े अक्षरों में "अहिल्या निवास" लिखा हुआ था। उस घर में हर चीज़ को बड़े सलीके से सजाया गया था। घर में चार बेडरूम, एक किचन और एक हॉल था। हॉल में दो सोफे रखे हुए थे। उस हॉल के साइड में एक छोटा-सा मंदिर था, जहाँ भगवान जी की मूर्ति रखी थी। उस समय वहाँ बहुत चहल-पहल थी क्योंकि वहाँ पूजा हो रही थी।

    मंदिर में पूजा की सारी सामग्री रखी हुई थी। हवन कुंड के पास पंडित जी तैयारी कर रहे थे। हवन कुंड के पास एक दरी बिछी हुई थी, जहाँ कुछ औरतें और आदमी बैठे थे। हवन कुंड के दूसरी ओर एक साठ साल की औरत हाथ जोड़े बैठी थी। उसने बनारसी साड़ी पहनी हुई थी। उनके चेहरे पर एक अलग सा तेज था, जो उन्हें सबसे अलग बना रहा था। उनका नाम अहिल्या अग्रवाल था।

    तभी पंडित जी ने कहा, "मीक्षा बिटिया को बुला लीजिए, पूजा का समय हो रहा है।"

    अहिल्या जी के पास एक छोटा-सा लड़का बैठा था। वह औरत आँखें खोलकर उस लड़के से बोली, "विशु, जाओ दीदी को बुलाकर लाओ।"


    विशु अहिल्या जी की बात सुनकर अपनी जगह से उठते हुए बोला, "जी माई।"


    विशु वहाँ से उठकर चला गया। वह जा ही रहा था, तभी उसे उसकी दीदी आती हुई दिखाई दी। उसे देखकर उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई।

    विशु बड़ी सी मुस्कराहट के साथ बोला, "लो आ गई दीदी।"

    विशु की बात सुनकर सबका ध्यान उस लड़की की तरफ़ चला गया जो अपने हाथों में पहनी चूड़ियों में फँसे हुए दुपट्टे को निकालने में लगी हुई थी। उस लड़की का चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था क्योंकि उसके बाल बार-बार उसके चेहरे पर आ रहे थे। वह लड़की अपने दुपट्टे को निकालते हुए आ ही रही थी, तभी उसकी टक्कर सामने से फूलों की टोकरी ला रहे एक आदमी से हो गई। फूलों की टोकरी हवा में उछल गई और सारे फूल उस लड़की के ऊपर गिरने लगे। वह लड़की फूल गिरने से होश में आई और अपने ऊपर फूल गिरते देख उन फूलों के बीच घूमने लगी। उसे इस तरह करते देख सबके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई। उस लड़की का चेहरा अब साफ़ दिख रहा था।

    वह थी हमारी नायिका, मीक्षा अग्रवाल। उसकी नीली आँखें, तीखी नाक, गुलाबी पतले होंठ और गोरी रंगत थी। उसके बाल कमर पर पड़े हुए थे। मीक्षा ने एक लॉन्ग कुर्ती और जीन्स पहनी हुई थी और पूजा के लिए उस पर एक चुनरी ली हुई थी जो उसे संभाल नहीं रही थी। मीक्षा की उम्र बीस साल थी। मीक्षा ने अभी-अभी ग्रेजुएशन किया था, जिसका रिजल्ट दस दिन पहले आया था। आज मीक्षा अपनी माँ-बाप का सपना पूरा करने मुंबई के बेस्ट कॉलेज में MBBS की पढ़ाई करने जा रही थी। उसका सिलेक्शन हो चुका था। उसे आज हॉस्टल में शिफ़्ट होना था और परसों से उसकी क्लासेज़ शुरू थीं।

    अब जानते हैं मीक्षा के परिवार के बारे में...


    अहिल्या अग्रवाल (60 साल) – ये अहिल्या अग्रवाल मीक्षा की दादी माँ हैं, जिन्हें वह प्यार से "माई" कहती हैं। इनका एक अलग ही रुतबा था। पूरी बस्ती इनकी बात सुनती थी क्योंकि ये बस्ती में सबसे बुज़ुर्ग थीं। मीक्षा के माँ-बाप की मृत्यु के बाद अहिल्या जी ने ही मीक्षा और विष्णु को पाला था। ये अपने पोते-पोती से बहुत प्यार करती थीं। इनका एक छोटा-सा बिज़नेस था जिससे ये अपना घर चलाती थीं।

    विष्णु अग्रवाल (17) – ये मीक्षा का छोटा भाई विष्णु है, जो बेहद सुलझा हुआ और बहुत प्यारा था। वह स्कूल में बारहवीं कक्षा में था। वह अपनी दादी और दीदी दोनों से बहुत प्यार करता था।

    मीक्षा के परिवार में उसकी दादी और छोटे भाई के अलावा कोई नहीं था। जब मीक्षा पाँच साल की थी, तब उसके पिता एक एक्सीडेंट में दुनिया से चले गए थे। उनके बाद अहिल्या जी ने ही दोनों को पाला था। मीक्षा के माँ-बाप का सपना था कि वह एक डॉक्टर बने, इसलिए आज वह आख़िरकार MBBS करने इंडिया के बेस्ट कॉलेज में जा रही थी, जहाँ दूर-दूर से लोग पढ़ने आते थे। वहाँ सिलेक्शन होना किस्मत की बात थी।

    तो चलिए, कहानी की ओर बढ़ते हैं।

    अहिल्या जी उसे फूलों में नाचते देख बोलीं, "मीक्षा बेटा, जल्दी आ जाओ, पूजा का मुहूर्त निकल रहा है, फिर तुम्हें निकलना भी तो है।"


    अहिल्या जी की बात सुनकर मीक्षा मुस्कुराते हुए आकर उनके पास बैठ गई। पंडित जी पूजा शुरू कर दी। यह पूजा मीक्षा के आने वाले सफ़र के लिए रखी गई थी, ताकि उसका सफ़र अच्छा गुज़रे। लेकिन सब अनजान थे कि आने वाला सफ़र उसके लिए कयामत का सबब बनने वाला है।

    कुछ देर में पूजा संपन्न हो गई। सभी ने पंडित जी का आशीर्वाद लिया। मीक्षा ने सभी को प्रसाद दिया। अहिल्या जी मीक्षा को अपने पास बुलाया।

    अहिल्या जी कुछ पल रुककर पंडित जी से बोलीं, "पंडित जी, आज मेरी बेटी मुंबई जा रही है। उसका हाथ देखकर बताइए, उसकी आगे वाली ज़िन्दगी में सब कैसा रहेगा?"

    पंडित जी मुस्कुराकर बोले, "जी ज़रूर माई।"

    मीक्षा ने पंडित जी को अपना हाथ दिखाया। पंडित जी जैसे-जैसे उसका हाथ देख रहे थे, उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें झलकने लगीं।

    पंडित जी परेशानी से बोले, "बेटा, तुम्हारी ज़िन्दगी में एक बड़ा तूफ़ान तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है। तुम्हारा सफ़र बिलकुल भी आसान नहीं होगा। तुम्हारी ज़िन्दगी में एक ऐसे शख्स की दस्तक होगी जो शुरू में तुम्हारे सपने तोड़ेगा और आख़िर में वही तुम्हारे सपने पूरे करेगा। वह शख्स तुम्हें दर्द भी देगा और तुम्हारे लिए मरहम भी बनेगा।"

    पंडित जी की बात सुनकर माई घबराते हुए बोलीं, "ये क्या कह रहे हैं आप पंडित जी? ऐसा कैसे हो सकता है? इसका कोई उपाय तो होगा। मेरी बच्ची ने क्या कम परेशानी देखी है जो उसकी ज़िन्दगी में एक और तूफ़ान आने वाला है?"

    मीक्षा अपनी माई को घबराते देख उनके गले लगते हुए बोली, "माई, कुछ नहीं होगा, सब अच्छा होगा। जब तक आपका और मातारानी का आशीर्वाद मेरे साथ है, कोई तूफ़ान मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।"

    मीक्षा की बात सुनकर पंडित जी मुस्कुराते हुए बोले, "बिलकुल ठीक कहा बिटिया ने। होनी को कोई नहीं टाल सकता, लेकिन जब तक मातारानी की कृपा है, हमारी बिटिया के साथ कभी कुछ गलत नहीं होगा। भगवान पर भरोसा रखो माई।"


    पंडित जी की बात सुनकर माई नम आँखों से बोलीं, "क्या करूँ पंडित जी? नकुल और बंदना के जाने के बाद मेरी मीक्षा और मेरा विष्णु ही मेरे जीने की वजह हैं। अगर इन दोनों में से किसी को कुछ हो गया तो क्या जवाब दूँगी मैं? मैंने अपने बेटे-बहू को, उनकी माँ, उनके बच्चों की रक्षा भी नहीं कर पाई।"


    मीक्षा माई के गले लगकर उनकी पीठ सहलाती हुई कुछ पल रुककर बोली, "माई, कुछ नहीं होगा, सब ठीक होगा। अगर आप ऐसे रोएँगी तो मैं फिर कहीं नहीं जाऊँगी, यहीं आपके पास रहूँगी।"


    अहिल्या जी उससे दूर होकर अपने आँसू साफ़ करती हुई बोलीं, "नहीं-नहीं, मैं बिलकुल नहीं रो रही। मैं बिलकुल ठीक हूँ। तू जाकर अपने कपड़े बदल ले, फिर रेलवे स्टेशन भी जाना है।"


    मीक्षा उन्हें घूरते हुए बोली, "नहीं रोएँगी ना आप?"


    अहिल्या जी हँसते हुए बोलीं, "हाँ बाबा, नहीं रोऊँगी। जा, कपड़े बदल ले।"

    मीक्षा उछलते हुए उन्हें गले लग गई और उनके गाल पर किस करके बोली, "आई लव यू माई।"

    अहिल्या जी मुस्कुराकर उसका माथा चूम लेती हुई बोलीं, "आई लव यू टू, माई की जान।"

    इतना कहकर मीक्षा वहाँ से चली गई। पंडित जी अपनी दक्षिणा लेकर वहाँ से चले गए।

    अहिल्या जी मातारानी के सामने हाथ जोड़कर नम आँखों से बोलीं, "हे मातारानी, मेरी बच्ची की रक्षा करना। वह इतनी दूर जा रही है। उस पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखना।"

    वह इतना कहकर वहाँ से चली गई। तभी तेज हवाएँ चलने लगीं और मंदिर में रखा दिया हवा से बुझ गया। यह संकेत था कि आने वाला समय मीक्षा के लिए तूफ़ान लाने वाला है, जिसे खुद मातारानी भी नहीं रोक सकती।


    मुंबई (महाराष्ट्र)

    वहीँ मुंबई में सड़कों पर गाड़ियाँ चल रही थीं। कुछ लोग काम कर रहे थे तो कुछ लोग वहाँ चाय का लुत्फ़ ले रहे थे। मुंबई, मायानगरी, जिसे सपनों का शहर कहा जाता है, यहाँ एक दर्द भरी दास्ताँ शुरू होने वाली थी। किस्मत ही जानती थी किसके नसीब में दर्द लिखा है और किसके नसीब में मोहब्बत।


    राजपूत मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, मुंबई (काल्पनिक)

    वहीँ RMKH इंडिया का बेस्ट कॉलेज एंड हॉस्पिटल था, जहाँ से देश-विदेश के लोग पढ़ने आते थे। यह मेडिकल कॉलेज काफी बड़ा था। यहाँ एक साइड कॉलेज था, एक तरफ़ हॉस्टल थे और एक तरफ़ बहुत बड़ा हॉस्पिटल था। यह मेडिकल कॉलेज कई एकड़ में फैला हुआ था। वहीं इस हॉस्पिटल में एक ऑपरेशन बोर्ड पर एक आदमी का ऑपरेशन हो रहा था। एक फेमस सर्जन डॉक्टर, जिसकी उम्र सत्ताईस साल होगी, वह सर्जरी कर रहा था। उसके चेहरे पर मास्क लगा हुआ था और वह सीरियस होकर सर्जरी कर रहा था। लगभग तीस मिनट बाद सर्जरी ख़त्म हुई और डॉक्टर बाहर आया और अपने मास्क और ग्लव्स को निकालकर बिना कुछ जवाब दिए वहाँ से चला गया। सभी लोग उसका मुँह देखते रह गए। तभी पेशेंट के परिवार के पास जूनियर डॉक्टर आया।

    पेशेंट का परिवार – "हमारा बेटा कैसा है?"


    जूनियर डॉक्टर मुस्कुराकर – "जिसने आपके बेटे का ऑपरेशन किया है, वह इंडिया का बेस्ट डॉक्टर है। अगर उन्होंने ऑपरेशन किया है तो सर्जरी सौ प्रतिशत सुनिश्चित रूप से सफल होगी।"

    पेशेंट का परिवार मुस्कुराकर धन्यवाद कहता है।

    डॉक्टर अपने केबिन में आया और अटैच्ड वाशरूम में जाकर कुछ देर में अपने कपड़े बदलकर आया। उसने इस समय एक काली शर्ट और काली पैंट पहनी हुई थी, जो उसके कसे हुए शरीर पर और अच्छी लग रही थी। अब जानते हैं इस आदमी के बारे में...

    यह हमारी कहानी का नायक, आकर्ष राजपूत था। हरी भूरी आँखें, तीखी नाक, पतले होंठ, उसका चेहरा गोरा और बेदाग था। आकर्ष के सिक्स पैक एब्स थे, जिसे देखकर अंदाजा लगाना आसान था कि उसने यह बॉडी घंटों जिम में रहकर बनाई है। आकर्ष की उम्र सत्ताईस साल थी। आकर्ष इंडिया का बेस्ट सर्जन डॉक्टर था। आकर्ष का परिवार इंडिया के सबसे अमीरों में नंबर वन पर आता था। यह मेडिकल कॉलेज आकर्ष का ही था, जिसका मालिक वह खुद था। आकर्ष एक गुस्सैल और घमंडी इंसान था, जिसे किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसके गुस्से से पूरा हॉस्पिटल काँपता था।

    आकर्ष लैपटॉप में कुछ कर रहा था, तभी उसके फ़ोन पर किसी का कॉल आया। फ़ोन पर फ़्लैश हो रहे नाम को देखकर आकर्ष की आँखें डार्क हो गईं। उसने फ़ोन नहीं उठाया। लगभग दो से तीन बार फ़ोन बजा। इरिटेट होकर आकर्ष ने फ़ोन उठाया।

    आकर्ष गुस्से में – "क्यों फ़ोन कर रही हैं आप मुझे, मिसेज़ राजपूत?"

    फ़ोन की दूसरी साइड से एक बहुत नरम और प्यारी आवाज़ आई – "बेटा, आज घर आओगे ना? अनाहिता का बर्थडे है आज।"

    आकर्ष (सरकास्टिकली) – "पहली बात, मैं आपका कोई बेटा नहीं हूँ, आप मेरी सौतेली माँ हैं और दूसरी बात, अनाहिता मेरी बहन है। मैं उसके लिए हमेशा आऊँगा। आपको मुझे फ़ोन करके बताने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

    इतना कहकर उसने फ़ोन काट दिया।


    तो आइए, जानते हैं आकर्ष के परिवार के बारे में...

    राजेश राजपूत (45) – ये आकर्ष के पिता राजेश राजपूत हैं, जो थोड़े गुस्से वाले थे। इनका मिजाज थोड़ा सख्त था। इनका अपना बिज़नेस था। इनकी पहली पत्नी, मतलब आकर्ष की माँ की मृत्यु हार्ट अटैक से हुई थी।

    शिवानी राजपूत (40) – ये राजेश जी की दूसरी पत्नी और आकर्ष की सौतेली माँ हैं, जिनसे आकर्ष बेहद नफ़रत करता था। इनका मिजाज बहुत प्यारा था। ये आकर्ष की माँ की सगी बहन थीं।

    अनाहिता राजपूत (19) – ये राजेश जी और शिवानी जी की इकलौती बेटी है। इसका मिजाज बहुत प्यारा और खुशमिजाज था। यह अपने भाई आकर्ष से बहुत प्यार करती थी। इनका परिवार इनकी दुनिया था।

    शिवानी जी आकर्ष की माँ, रागिणी राजपूत की छोटी सगी बहन थीं। रागिणी जी की मृत्यु हार्ट अटैक से हुई थी जब आकर्ष दस साल का था। राजेश जी ने अपने बच्चों को एक माँ का प्यार देने के लिए शिवानी जी से दूसरी शादी कर ली, लेकिन आकर्ष ने कभी शिवानी जी को अपनी माँ नहीं माना। वह उनसे बेहद नफ़रत करता था क्योंकि उसे लगता था कि शिवानी जी ने उसकी माँ की जगह ले ली और उसके पिता को छीन लिया। आकर्ष अपने विला में अलग रहता था। वह कभी-कभी सिर्फ़ अनाहिता से मिलने राजपूत मेंशन आता था।

  • 2. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 2

    Words: 1870

    Estimated Reading Time: 12 min

    राजेश राजपूत (45), आकर्ष के पिता थे। वे थोड़े गुस्सैल स्वभाव के थे, उनका मिजाज़ सख्त था। उनका अपना व्यापार था। उनकी पहली पत्नी, अर्थात् आकर्ष की माँ, का निधन हृदयाघात से हुआ था।

    शिवानी राजपूत (40), राजेश जी की दूसरी पत्नी और आकर्ष की सौतेली माँ थीं। आकर्ष उनसे बेहद नफ़रत करता था। उनका स्वभाव बहुत ही प्यारा था। वे आकर्ष की माँ की सगी बहन थीं।

    अनाहिता राजपूत (19), राजेश जी और शिवानी जी की इकलौती बेटी थी। उसका स्वभाव बहुत ही प्यारा और खुशमिजाज़ था। वह अपने भाई आकर्ष से बहुत प्यार करती थी। उसका परिवार ही उसकी दुनिया थी।

    शिवानी जी, आकर्ष की माँ रागिनी राजपूत की छोटी सगी बहन थीं। रागिनी जी का निधन हृदयाघात से हुआ था जब आकर्ष दस साल का था। राजेश जी ने अपने बच्चों को एक माँ का प्यार देने के लिए शिवानी जी से दूसरी शादी की थी, लेकिन आकर्ष ने कभी शिवानी जी को अपनी माँ नहीं माना। वह उनसे बेहद नफ़रत करता था क्योंकि उसे लगता था कि शिवानी जी ने उसकी माँ की जगह ले ली थी और उसके पिता को छीन लिया था। आकर्ष अपने विला में अलग रहता था। वह कभी-कभी केवल अनाहिता से मिलने राजपूत मेंशन आता था।


    लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

    मीक्षा अपने कमरे में तैयार हो रही थी। उसने जींस और एक शॉर्ट टॉप पहना था। उसने आईने में अपने आपको एक नज़र देखा और बाहर आ गई जहाँ सब उसका इंतज़ार कर रहे थे। मीक्षा पहले आकर अपनी माँ के गले लगी। उसकी आँखें नम हो चुकी थीं।

    "माई, आप प्रॉमिस करें आप अपना ख्याल रखेंगी। खाना और दवाई दोनों टाइम पर खाएँगी और रोज़ मुझे कॉल करेंगी।" मीक्षा ने नम आँखों से कहा।

    माँ, जो अब तक अपने आँसू रोक रही थीं, मीक्षा की बात सुनकर फूट-फूट कर रोने लगीं।

    "तू ख्याल रखना अपना, मेरे कलेजे का टुकड़ा। इतनी दूर जा रही है। तू अपने खाने-पीने का ध्यान रखना और ज़्यादा किसी से मत बोलना।" माँ ने मीक्षा के चेहरे को हाथों में भरकर रोते हुए कहा।

    मीक्षा ने अपने हाथों से माँ के आँसू साफ़ किए और कुछ पल रुककर कहा, "माई, मैं अपना पूरा ख्याल रखूँगी। आप प्लीज़ रोएँ मत, वरना मैं जा नहीं पाऊँगी।"

    माँ ने मीक्षा की बात सुनकर सिर हिलाया और जल्दी से अपने आँसू साफ़ करके कहा, "नहीं-नहीं, मैं नहीं रोऊँगी। तुझे अपने माँ-बाप का सपना पूरा करना है, डॉक्टर बनना है।"

    "गुड गर्ल," मीक्षा ने हँसते हुए कहा।

    मीक्षा की बात सुनकर माँ उसे घूरने लगी और फिर दोनों साथ में हँसने लगीं।

    मीक्षा ने एक नज़र सब जगह देखी और पूछा, "विशु कहाँ गया? अभी तो यहीं था।"

    माँ ने सब जगह नज़र घुमाई। तभी उन्हें एक कोने में एक आकृति दिखाई दी। उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि वह कौन है। माँ ने मीक्षा के कंधे पर हाथ रखा। मीक्षा मुड़कर माँ की तरफ देखी। माँ ने उसे कोने में देखने का इशारा किया जहाँ विशु छुपा हुआ था। मीक्षा नम आँखों से उसकी तरफ बढ़ गई। जब वह पास पहुँची तो उसे विशु के सिसकने की आवाज़ आई, जिसे सुनकर उसकी आँखें भर गईं।

    वह विशु के पास जाकर बैठ गई। अपने पास किसी की आहट महसूस करके विशु सिर उठाकर देखा। अपनी दीदी को एक नज़र देखकर वह जल्दी से आँसू छिपा लेता है और मुँह फेर लेता है ताकि उसकी दीदी उसके आँसू न देख पाएँ।

    "क्या हुआ लिटिल चैंप? क्यों रो रहे हो?" मीक्षा ने उसके चेहरे को अपने हाथों में भरकर पूछा।

    "नहीं, मैं नहीं रो रहा हूँ। मैं इतना कमज़ोर नहीं हूँ आपकी तरह जो बात-बात पर रोने लग जाऊँ।" विशु ने अपने आँसू छिपाते हुए कहा।

    विशु की बात सुनकर मीक्षा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई क्योंकि वह जानती थी कि उसका भाई उससे अपने आँसू छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहा है। मीक्षा ने उसे खींचकर अपने गले लगा लिया। विशु, जो अपने आँसू छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहा था, अपनी दीदी के गले लगते ही बच्चों की तरह रोने लगा। मीक्षा उसकी पीठ सहला रही थी। मीक्षा ने विशु को हमेशा एक बच्चे की तरह रखा था। दोनों लड़ते थे, झगड़ते थे, लेकिन भाई-बहन कितना भी लड़ लें, फिर भी उन दोनों का रिश्ता नायाब होता है। एक बहन अपनी दिल की बात अगर माँ-बाप से शेयर नहीं कर पाती तो अपने भाई से करती है क्योंकि उसे भरोसा होता है कि उसका भाई उसके लिए किसी से भी लड़ जाएगा। मीक्षा और विशु बचपन से कभी एक-दूसरे से दूर नहीं हुए थे। आज इतने साल बाद मीक्षा उसे छोड़कर मुंबई जा रही है, इसी वजह से वह खुद को संभाल नहीं पा रहा था।

    "बच्चे रोते नहीं। दीदी माँ-पापा का सपना पूरा करने जा रही है ना? मैं जॉब करके तुम लोगों को भी वहाँ बुला लूँगी। जब तक हम रोज़ वीडियो कॉल करेंगे।" मीक्षा ने नम आँखों से कहा।

    "सच कह रही हो ना आप?" विशु ने अपनी दीदी से अलग होकर अपने आँसू साफ़ करते हुए पूछा।

    मीक्षा ने उसके चेहरे को अपने हाथों में भरकर उसका माथा चूमा और उससे अलग होकर कहा, "बिल्कुल सच, लिटिल चैंप।"


    "ठीक है। आप अपना ख्याल रखना।" विशु ने कुछ पल रुककर कहा।


    "तू भी स्कूल जाना। अपना और माई का ख्याल रखना और कोई भी प्रॉब्लम हो तो मुझे कॉल करना।" मीक्षा मुस्कुराते हुए बोली।


    विशु और मीक्षा को देखकर माँ की आँखें नम हो चुकी थीं। वह मन में कहती है, "हे मातारानी, मेरे बच्चों की रक्षा करना।"

    इतना कहकर वह उन दोनों की तरफ़ बढ़ गई और दोनों को गले लगा लिया। यह गले लगना विदाई का था, लेकिन इस गले लगने में एक सुकून था, ममता थी। माँ दोनों से अलग होकर बारी-बारी दोनों का माथा चूम लेती है।

    "अब जाओ बेटा, तुम्हारी ट्रेन का टाइम हो रहा है।" माँ ने अलग होकर कहा।

    "जी माई, अपना ख्याल रखना।" मीक्षा मुस्कुराकर बोली।

    एक बार फिर दोनों को गले लगाकर मीक्षा घर से निकल गई। वैसे माँ उसे छोड़ने स्टेशन तक आने वाली थी, लेकिन मीक्षा ने उसे नहीं आने दिया क्योंकि उसे लगता था कि अगर वह आई तो वह उन्हें देखकर कमज़ोर पड़ जाएगी।

    लगभग पन्द्रह मिनट बाद मीक्षा स्टेशन पहुँच गई। कुछ देर में ट्रेन आ गई। मीक्षा अपने सामान को लेकर ट्रैक पर चढ़ गई और खिड़की वाली सीट पर बैठ गई। कुछ देर में ट्रेन चलने लगी। मीक्षा खिड़की से अपने शहर को पीछे छूटता हुआ देख रही थी जहाँ उसने अपना बचपन गुज़ारा था। यह सब सोचकर कुछ आँसू टूटकर उसके बालों में समा गए। आज वह अपनी ज़िंदगी का नया सफ़र शुरू करने जा रही थी। यह सफ़र क्या रंग लाएगा, यह तो आने वाला वक़्त बताएगा।


    मुंबई (इंडिया)
    शाम का समय

    आज राजपूत मेंशन में बहुत चहल-पहल थी। पूरा मेंशन सजा हुआ था। राजपूत मेंशन काफी बड़ा था। बाहर गार्डन था और अंदर कई सारे कमरे थे। अगर कोई एक बार देख ले तो देखता ही रह जाए। अंदर तैयारियाँ चल रही थीं क्योंकि आज राजपूत खानदान की इकलौती बेटी अनाहिता का जन्मदिन था। आज वह पूरे उन्नीस साल की हो गई थी।

    शिवानी जी ने एक नौकर को एक बैग दिया और कहा, "यह अनाहिता को दे आओ और कहना उसे आज यही पहनना है।"

    "जी मालकिन," नौकर ने सिर झुकाकर कहा।

    नौकर वहाँ से एक कमरे के बाहर पहुँचा और कमरे पर दस्तक दी। तभी अंदर से एक प्यारी आवाज़ आई, "अंदर आ जाइए।"

    इजाज़त पाकर नौकर अंदर गया और कहा, "बेबी जी, यह मालकिन ने भेजा है। आज आपको यही पहनना है।"

    वह लड़की, जो वॉर्डरोब में घुसी हुई थी, मुड़कर देखती है। उसके चेहरे की बनावट बहुत अच्छी थी। उसकी काली आँखें, तीखी नाक, गुलाबी होंठ, उसके चेहरे का रंगत सफ़ेद थी, लेकिन वह मीक्षा से ज़्यादा प्यारी नहीं थी। उसने शॉर्ट्स और टॉप पहना हुआ था। यह अनाहिता राजपूत, शिवानी जी और राजेश जी की इकलौती बेटी थी।

    अनाहिता आगे बढ़कर अपने बैग को देखती है और नौकर को जाने का इशारा करती है। नौकर इशारा पाकर वहाँ से चला जाता है। अनाहिता बैग खोलती है जिसमें नीले रंग का गाउन था। उसमें सोने की कढ़ाई थी जो दूर से ही चमक रही थी। यह गाउन ख़ास अनाहिता के लिए बनवाया गया था।

    अनाहिता गाउन देखकर खुशी से उछलने लगती है और कुछ पल रुककर कहती है, "वाह! यह कितना प्यारा है! आज तो मैं बहुत प्रीटी लगूँगी!"

    कुछ देर में अनाहिता तैयार हो जाती है। उसने अपने बाल खुले रखे हुए थे और हल्का-हल्का टचअप किया था जिसमें वह बहुत प्यारी लग रही थी। वह खुद को आईने में देख रही थी तभी कोई दस्तक देता है।

    "आ जाइए," अनाहिता ने दरवाजे की तरफ़ देखते हुए कहा।

    इजाज़त पाकर शिवानी जी अंदर आती हैं। अपनी बेटी को देखकर उनके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। वे आगे बढ़कर उसके गले लग जाती हैं।

    "बहुत प्यारी लग रही है मेरी बेटी। किसी की नज़र न लगे।" शिवानी जी ने दूर होकर अपनी आँखों से काजल निकालकर अनाहिता के कान के पीछे लगाते हुए कहा।

    "मम्मा, भाई से बात हुई? वह आ रहे हैं ना?" अनाहिता ने अपनी माँ से दूर होकर पूछा।

    अनाहिता की बात सुनकर शिवानी जी की मुस्कान गायब हो जाती है। वह मायूसी से कहती हैं, "पता नहीं।"

    शिवानी जी की बात सुनकर अनाहिता का मुँह उतर जाता है। उसे उदास देखकर शिवानी जी मुस्कुराकर कहती हैं, "फ़िक्र मत करो, वह ज़रूर आएगा। अब नीचे चलते हैं, सब इंतज़ार कर रहे होंगे।"

    अनाहिता और शिवानी जी नीचे चली जाती हैं। सब लोग अनाहिता को बर्थडे विश करते हैं, लेकिन अनाहिता की नज़र बार-बार गेट पर जा रही थी। वह अपने भाई का इंतज़ार कर रही थी। कुछ लोग आकर्ष के न आने पर बातें बना रहे थे, तो कुछ लोग उसका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। सभी बिज़नेस पार्टनर अपनी बेटियों को साथ लाए थे ताकि एक बार आकर्ष की नज़र उनकी बेटी पर पड़ जाए और राजपूत खानदान से उनका रिश्ता जुड़ जाए।

    सभी लोग बात कर रहे थे तभी बाहर चार-पाँच गाड़ियों के रुकने की आवाज़ आती है।


    रात 8 बजे

    आखिर इतना लंबा सफ़र तय करने के बाद मीक्षा की मंज़िल आ गई। वह ट्रैक से उतरती है और एक सुकून की साँस लेती है। वह मुंबई की खुशबू को अपने अंदर उतारने की कोशिश कर रही थी। वह मुस्कुराकर हाथ फैलाती है और गहरी साँस लेकर आसमान की तरफ़ देखती है। आज उसने अपने सपने का पहला क़दम रख लिया था। वह मुंबई आ गई थी। अब देखना यह था कि आगे की ज़िंदगी उसके लिए क्या मोड़ लाने वाली थी। कुदरत ने उसका सफ़र आसान नहीं लिखा था। उसे बहुत कुछ खोना था अभी और बहुत कुछ पाना था। किस्मत उसकी खुशी पर हँस रही थी क्योंकि वह जानती थी आने वाला वक़्त उसकी खुशी छीन लेगा और उसे दर्द तोहफ़े में देगा।

    मीक्षा वहाँ से एक टैक्सी रोककर उसमें अपना सामान रखती है और हॉस्टल की तरफ़ निकल जाती है।

  • 3. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 3

    Words: 1647

    Estimated Reading Time: 10 min

    रात आठ बजे, लंबे सफ़र के बाद मीक्षा अपनी मंज़िल पर पहुँची। वह ट्रैक से उतरी और सुकून भरी साँस ली। उसने मुंबई की खुशबू को अपने अंदर उतारने की कोशिश की। मुस्कुराते हुए उसने हाथ फैलाए और गहरी साँस लेकर आसमान की ओर देखा। आज उसने अपने सपने का पहला क़दम रख लिया था; वह मुंबई आ गई थी। अब देखना यह था कि आगे की ज़िंदगी उसके लिए क्या मोड़ लाने वाली थी। कुदरत ने उसका सफ़र आसान नहीं बनाया था; उसे बहुत कुछ खोना था, और बहुत कुछ पाना भी। किस्मत उसकी खुशी पर हँस रही थी, क्योंकि वह जानती थी कि आने वाला वक़्त उसकी खुशी छीन लेगा और उसे दर्द तोहफ़े में देगा।

    मीक्षा ने वहाँ से एक टैक्सी रोकी, अपना सामान उसमें रखा और हाॅस्टल की ओर चल दी।


    गाड़ियों की आवाज़ सुनकर सबकी नज़र दरवाज़े की ओर गई और अनाहिता के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई। वह अपना गाउन संभालते हुए गेट तक गई।

    सबसे पहले एक गाड़ी का गेट खुला। उसमें से कोर्ट का बटन लगाते हुए श्लोक सिन्हा बाहर आया। यह आकर्ष का सबसे अच्छा दोस्त और जूनियर डॉक्टर था, जो आकर्ष के अधीन काम करता था। इनका मिजाज बहुत प्यारा और चुलबुला था। श्लोक की उम्र पच्चीस साल थी। श्लोक ने व्हाइट थ्री पीस सूट पहना हुआ था; वह बहुत स्मार्ट लग रहा था। श्लोक को देखकर लड़कियाँ आहें भरने लगीं।


    तभी एक लग्ज़री गाड़ी का गेट खुला, जिसमें से आकर्ष, ब्लैक थ्री पीस सूट पहने और चश्मा लगाए, बाहर आया। उसे देखकर सारी लड़कियाँ आहें भरने लगीं। आकर्ष सारी लड़कियों की दिल की धड़कन था; कौन नहीं चाहता था कि इतना हैंडसम और बेस्ट सर्जन डॉक्टर उनका हो जाए? आकर्ष सभी को अनदेखा करते हुए गेट पर खड़ी अनाहिता के पास आया। अनाहिता अपने भाई को आता देख, गाउन संभालकर आगे बढ़ी और आकर्ष के गले लग गई। आकर्ष ने भी उसे गले लगा लिया।


    आकर्ष अनाहिता से अलग हुआ और उसके माथे को चूमा। कुछ पल रुककर बोला, "हैप्पी बर्थडे प्रिंसेस।"

    अनाहिता ने नम आँखों से कहा, "थैंक्यू भाई। आप कहाँ रह गए थे? मैं आपका कब से इंतज़ार कर रही थी।"


    आकर्ष ने उसके चेहरे को हाथों में भरकर कहा, "मीटिंग में था बच्चा, इसलिए लेट हो गया। आखिरी बार अपने भाई को माफ़ कर दो।"


    अनाहिता के चेहरे पर बड़ी मुस्कान आ गई। वे दोनों भाई-बहन आपस में बात कर ही रहे थे कि वहाँ श्लोक आ गया और बड़ी मुस्कान के साथ बोला, "हैप्पी बर्थडे अना।"

    अनाहिता आकर्ष से अलग होकर श्लोक के गले लग गई और मुस्कुराते हुए बोली, "थैंक्यू श्लोक भाई।"


    वे सब बात कर ही रहे थे कि शिवानी जी मुस्कुराते हुए आईं और बोलीं, "आकर्ष भी आ गया। अब केक काट लें, मेहमान इंतज़ार कर रहे हैं।"


    शिवानी जी को देखकर आकर्ष की मुट्ठी कस गई। उसने उन्हें इस तरह अनदेखा किया जैसे शिवानी जी यहाँ हों ही नहीं। उसने उन्हें अनदेखा करके अनाहिता को लेकर अंदर चला गया। खुद को अनदेखा होते देख शिवानी जी का चेहरा मुरझा गया।


    श्लोक ने उनके कंधे पर हाथ रखा और मुस्कुराते हुए कहा, "आंटी आप उदास मत होइए। आप जानती हैं ना, वो ऐसा ही है, खड़ूस बचपन से।"


    श्लोक की बात सुनकर शिवानी जी ने कड़वी मुस्कान के साथ कहा, "वो खड़ूस है, लेकिन मुझसे नफ़रत करता है क्योंकि उसे लगता है मैंने उसकी माँ की जगह ले ली।"


    श्लोक उन्हें शांत करते हुए बोला, "आंटी आप ऐसा मत सोचिए। और चलिए, अंदर चलते हैं। अनाहिता को केक काटना है।"


    श्लोक की बात सुनकर शिवानी जी ने हाँ में सर हिलाया और अंदर चली गईं। श्लोक ने भी एक गहरी साँस ली और अंदर चला गया। कुछ देर में अनाहिता ने केक काट लिया। काफ़ी बिज़नेस पार्टनर आकर्ष से बात करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह सबको अनदेखा करके बार काउंटर पर बैठा ड्रिंक कर रहा था। वह ड्रिंक कर ही रहा था कि एक लड़की अदाओं से उसके पास आ गई। यह पार्टी में आए बिज़नेस पार्टनर की बेटी रीवा थी। रीवा उसके पास बैठ गई। किसी की आहट महसूस करके भी आकर्ष ने अपनी नज़रें उठाकर देखने की जहमत नहीं की और चुपचाप ड्रिंक करने लगा।


    रीवा ने मदहोशी भरी आवाज़ में कहा, "हे हैंडसम, आई एम रीवा मल्होत्रा।"


    रीवा की बात सुनकर भी आकर्ष ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। खुद को इस तरह अनदेखा होते देख रीवा की मुट्ठी कस गई। वह और मदहोश होते हुए अपने हाथ को आकर्ष के हाथ पर रख दिया। तभी एक जोरदार चीख मेंशन में गूँजी। सभी लोग उस तरफ़ देखने लगे जहाँ रीवा नीचे गिरी हुई थी और दर्द से तड़प रही थी क्योंकि आकर्ष ने उसके हाथ को मोड़ दिया था जिससे उसकी हाथ की हड्डी टूट गई थी।


    मि. मल्होत्रा अपनी बेटी को देखकर उसकी ओर भागे और उसे उठाते हुए बोले, "हाउ डेयर यू आकर्ष राजपूत!"


    आकर्ष ने पानी लेकर अपने हाथ पर डाला और पॉकेट से रूमाल निकालकर अपने हाथ साफ़ करते हुए कहा, "आवाज़ नीचे।"


    आकर्ष की आवाज़ में एक चेतावनी थी, जिसे महसूस कर मि. मल्होत्रा काँप गए। आकर्ष ने रूमाल नीचे फेंक दिया और रीवा की ओर देखकर कहा, "आकर्ष राजपूत को हाथ लगाने की औक़ात नहीं है तुम्हारी। इसलिए जरा संभलकर। इस बार हाथ तोड़ा है, अगली बार जान ले लूँगा।"


    आकर्ष की धमकी सुनकर रीवा के शरीर में सिहरन दौड़ गई। आकर्ष की बदतमीज़ी देख राजेश जी आगे आए और आकर्ष पर चिल्लाते हुए बोले, "आकर्ष ये क्या बदतमीज़ी है? तुमने रीवा के साथ ऐसा क्यों किया? वो हमारे बिज़नेस पार्टनर हैं।"


    आकर्ष ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, "आवाज़ नीचे मि. राजपूत। कहीं ऐसा ना हो कि इस उम्र में आपकी आवाज़ चली जाए। और दूसरी बात, वो आपके पार्टनर हैं, मेरे नहीं। तो उनसे कहें कि मुझसे दूर रहें, यही उनके लिए अच्छा है। वरना मुझे मौत की नींद सुलाने में वक़्त नहीं लगेगा।"


    अपने साथ बदतमीज़ी होते देख राजेश जी बौखला गए। वे आगे कुछ कहते, तभी शिवानी जी आकर उनके कंधे पर हाथ रख दिया और ना में इशारा किया क्योंकि वो जानती थीं कि आकर्ष भरी महफ़िल में बेइज़्ज़ती कर सकता है। शिवानी के ऐसा करते देख आकर्ष के होठों के कोने मुड़ गए। राजेश जी गुस्से का घुट पीकर वहाँ से चले गए। सारे मेहमान भी धीरे-धीरे जाने लगे क्योंकि आज पार्टी में बहुत तमाशा हो चुका था। मि. मल्होत्रा भी अपनी बेटी को लेकर वहाँ से चले गए।


    हॉल में सिर्फ़ श्लोक, आकर्ष और अनाहिता बचे थे। अनाहिता आकर्ष के पास आकर उसके हाथ को छूकर देखती है और कहती है, "भाई आप ठीक हैं ना?"


    आकर्ष ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "मैं ठीक हूँ। तुम्हारा गिफ़्ट गार्डन में है, देख लेना। अब मैं चलता हूँ।"


    अनाहिता ने उसका हाथ पकड़ लिया और नम आँखों से कहा, "भाई आज रुक जाए ना।"


    आकर्ष ने उससे अपना हाथ छुड़ाया, उसके चेहरे को हाथों में भरकर उसका माथा चूमा और कुछ पल रुककर कहा, "बच्चे, मैं नहीं रुक सकता। मैं तुम्हारे लिए आया था। तुम जब चाहो मुझसे मिलने मेरे विला आ सकती हो।"


    आकर्ष की बात सुनकर अनाहिता ने अपना सर हिला दिया क्योंकि वह जानती थी कि आकर्ष नहीं रुकेगा। इसलिए उसने कुछ नहीं कहा और आकर्ष के सीने से लग गई। आकर्ष ने भी उसके इर्द-गिर्द अपने हाथ लपेट दिए। अनाहिता अलग हुई। आकर्ष ने उसके सर पर हाथ फेरकर वहाँ से निकल गया। श्लोक भी उसके पीछे चला गया।


    दूसरी ओर, मीक्षा हाॅस्टल पहुँच चुकी थी। उसके हाथ में एक बैग था और बाकी बैग एक गार्ड पकड़े हुए था। गार्ड आगे चल रहा था और मीक्षा पीछे चल रही थी। गार्ड रूम के बाहर खड़ा हो गया और मीक्षा की ओर मुड़कर बोला, "ये रहा आपका रूम।"


    मीक्षा ने उन्हें धन्यवाद कहा और अपना सामान लेकर रूम में चली गई। रूम खुलने की आवाज़ सुनकर जो लड़की बिस्तर पर सोई हुई थी, उसकी आँख खुली और वह उठकर दरवाज़े की ओर देखने लगी। रूम में आते ही मीक्षा की नज़र भी बिस्तर पर बैठी लड़की पर गई, जिसने एक नाइटसूट पहना हुआ था। उसकी गोरी रंगत, काली आँखें, गुलाबी होंठ; वह बहुत प्यारी लग रही थी।


    मीक्षा को देखकर वह बड़ी मुस्कान के साथ बोली, "क्या तुम मेरी रूममेट हो?"


    मीक्षा कुछ पल रुककर बोली, "जी, मैं आज ही आई हूँ यहाँ।"


    वो लड़की बिस्तर से उछलकर उसके पास आई और उसके सामने हाथ आगे करके बोली, "मैं भी आज यहाँ शिफ्ट हुई हूँ। बाय द वे, मेरा नाम राम्या कपूर है। तुम्हारा क्या नाम है?"


    मीक्षा ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा, "मेरा नाम मीक्षा है और मैं लखनऊ से हूँ।"


    राम्या ने उसके बैग को किनारे रखा और बोली, "अब तुम आराम कर लो, रात बहुत हो गई है। हम बाकी बातें सुबह करेंगे और कल शॉपिंग पर चलेंगे। फिर परसों से क्लासेस हैं।"


    मीक्षा राम्या के बगल वाले बिस्तर पर आते हुए बोली, "हाँ, मैं बहुत थक गई हूँ।"


    राम्या अपने बिस्तर पर चली गई। वह कुछ ही देर में गहरी नींद में सो गई, लेकिन मीक्षा कुछ सोच रही थी। "हे माँ, मैं जिस सफ़र पर निकली हूँ, जानती हूँ वो बिलकुल आसान नहीं है। मुझ पर और मेरे परिवार पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखना। मैं नहीं जानती यह सफ़र कैसा होने वाला है, लेकिन मुझे पता है जब तक आप मेरे साथ हैं, तब तक सब सही होगा।" यह सोचते-सोचते उसकी आँख लग गई और वह गहरी नींद में सो गई।

  • 4. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 4

    Words: 1484

    Estimated Reading Time: 9 min

    राम्या ने अपना बैग एक तरफ़ रखा और कहा, "अब तुम आराम कर लो, रात बहुत हो गई है। बाकी बातें सुबह करेंगे, और कल शॉपिंग पर चलेंगे। परसों से क्लासेज़ हैं।"

    मीक्षा राम्या के बगल वाले बेड पर आते हुए बोली, "हाँ, मैं बहुत थक गई हूँ।"

    राम्या अपने बेड पर चली गई। वह कुछ ही देर में गहरी नींद में सो गई, लेकिन मीक्षा कुछ सोच रही थी। "हे मातारानी! मैं जिस सफ़र पर निकली हूँ, जानती हूँ वो बिलकुल आसान नहीं है। मुझ पर और मेरी फैमिली पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखना। मैं नहीं जानती यह सफ़र कैसा होने वाला है, लेकिन मुझे पता है जब तक आप मेरे साथ हैं, तब तक सब सही होगा।" ये सोचते-सोचते उसकी आँख लग गई और वह गहरी नींद में सो गई।


    अगली सुबह मीक्षा और राम्या बेड पर बैठी नाश्ता कर रही थीं और गप्पें लगा रही थीं। राम्या ने चाय का घूँट लिया और कहा, "मीक्षा, आज शॉपिंग पर चलेंगे। मुझे कुछ सामान लेना है। तुम्हें कुछ लेना हो तो तुम भी ले लेना। फिर कल से क्लासेज़ स्टार्ट हैं।"

    मीक्षा ने उसकी बात पर हामी भरी, "ठीक है, चलेंगे। पहले मैं अपना सामान सेट कर लूँ, फिर कल से वक़्त नहीं मिलेगा।"

    राम्या और मीक्षा नाश्ता कर चुकी थीं। राम्या ने नाश्ते की खाली प्लेट टेबल के एक कोने में रखी और अपना चेहरा साफ़ करते हुए बोली, "हाँ, चलो, मैं भी तुम्हारी मदद करती हूँ।"

    नाश्ता करके दोनों सामान सेट करने लगीं। हॉस्टल के रूम में दो बेड थे। रूम काफी बड़ा था। रूम में दो वॉर्डरोब थे। हॉस्टल इतना बड़ा था कि अगर अलग-अलग रूम भी स्टूडेंट्स को दिए जाते, तब भी जगह कम नहीं पड़ती। लेकिन स्टूडेंट्स में अच्छी बॉन्डिंग के लिए रूम में दो लोगों को रहने के लिए कहा गया था। कुछ देर में मीक्षा अपना सामान सेट कर लेती है।


    दूसरी तरफ़, आकर्ष अपने विला के डाइनिंग टेबल पर बैठा था। उसके आस-पास कई नौकर हाथ बाँधे, सर झुकाए खड़े थे। आकर्ष कुर्सी पर बैठा नाश्ता कर रहा था। तभी श्लोक आया और उसके सामने वाली कुर्सी खींचकर बैठ गया। एक नौकर आकर उसे जूस सर्व करता है।

    श्लोक ने जूस लेकर नौकर को धन्यवाद कहा और जूस का घूंट लेते हुए बोला, "श्लोक, आज तू सनशाइन होटल में इनवाइटेड है। मि. शाह की बेटी की शादी है।"

    आकर्ष नाश्ता करते हुए बोला, "कितने बजे जाना है?"

    श्लोक कुछ पल रुककर बोला, "तीन बजे जाना है। वहाँ बहुत मीडिया होगी, तो हमें थोड़ा केयरफुल रहना होगा।"

    आकर्ष ने गहरी आवाज़ में कहा, "सिक्योरिटी डबल कर देना। मुझे आस-पास कोई मीडिया वाला नहीं चाहिए।"

    श्लोक ने मुँह बनाते हुए कहा, "ठीक है।"

    आकर्ष उठा, हाथ साफ़ करके बाहर की तरफ़ चला गया। श्लोक भी उसके पीछे भागता हुआ चला गया। आकर्ष डॉक्टर के साथ-साथ एक बिज़नेसमैन भी था। वह अपने दोनों पैशन को अच्छे से निभाता था।


    हॉस्टल में मीक्षा और राम्या सामान सेट कर चुकी थीं। राम्या तैयार हो चुकी थी। मीक्षा आईने के सामने खड़ी अपने बाल सँवार रही थी। उसने एक कुर्ती और जीन्स पहनी थी। आँखों में हल्का सा काजल, होठों पर लिप बाम लगाकर उसने एक नज़र खुद को शीशे में देखकर मुड़ गई।

    राम्या उसके पास आकर बोली, "तैयार हो गई? तो चलें।"

    मीक्षा अपना छोटा सा हैंडबैग लेते हुए बोली, "हाँ, चलो।"

    राम्या और मीक्षा दोनों हॉस्टल से बाहर निकलीं और एक टैक्सी में बैठकर मार्केट निकल गईं। राम्या मुंबई की रहने वाली थी, इसलिए उसे सारे रास्ते पता थे। मीक्षा और राम्या कुछ देर बाद मार्केट पहुँच गईं और एक बुकस्टोर के अंदर गईं। दोनों बुक्स देखती हैं और उनमें से कुछ सिलेबस चेक करके कुछ बुक्स खरीद लेती हैं और बुकस्टोर से बाहर आती हैं।

    मीक्षा बुक्स को देखते हुए बोली, "इसका सिलेबस मैच हो गया है। वैसे, फ़र्स्ट क्लास किसकी है?"

    राम्या कुछ पल रुककर बोली, "अभी पता नहीं है। सुबह पता चलेगा। मैंने तो सुना है बहुत अच्छे सीनियर्स हैं वहाँ। बहुत हैंडसम हैं सब। मैं तो अपना एक बॉयफ़्रेंड बना ही लूँगी।"

    मीक्षा नाख़ुशी में सिर हिलाते हुए बोली, "हम सिर्फ़ पढ़ने आए हैं। हमें किसी में कोई दिलचस्पी नहीं है।"

    राम्या चहकते हुए बोली, "तुम्हें पता है, हॉस्पिटल में एक बेस्ट सर्जन डॉक्टर है, डॉ. आकर्ष राजपूत। मैंने तो सुना है वो बहुत गुस्सैल और घमंडी है।"

    मीक्षा बोली, "हम भी एक अच्छे डॉक्टर बनकर अपनी माँ का नाम रोशन करना चाहती हैं।"

    राम्या उसकी बात सुन मुस्कुराकर बोली, "देखना, तुम भी एक दिन बहुत कामयाब होगी। मुझे यकीन है। चलो, अब लेट हो रहा है, चलते हैं।"


    मीक्षा और राम्या आगे आती हैं। तभी एक जगह पर बहुत जाम लगा हुआ था। दस-पन्द्रह गाड़ियाँ खड़ी हुई थीं और इतने सारे लोग खड़े हुए थे। राम्या भीड़ को देखते हुए बोली, "लगता है कोई सेलेब्रिटी आया है। चलो, देखते हैं।"

    मीक्षा उसका हाथ पकड़कर मना करते हुए बोली, "नहीं, नहीं। चलो, हम चलते हैं। लेट हो रहा है।"

    राम्या उसका हाथ पकड़कर उसे भीड़ की तरफ़ खींचते हुए ले गई और बोली, "चलो ना यार, देखे तो कौन आया है जिसकी वजह से इतना जाम है।"

    राम्या हाथ पकड़े हुए भीड़ को चीरते हुए बीच में जाकर खड़ी हो जाती है। राम्या और मीक्षा ने आकर्ष को नहीं देखा था, इसलिए वो उसे पहचान नहीं पाती हैं। आकर्ष गाड़ी से उतरकर खड़ा था। पूरी मीडिया ने उसे घेर रखा था। आकर्ष के बॉडीगार्ड मीडिया को हटाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मीडिया हट ही नहीं रही थी, जिससे आकर्ष बहुत इरिटेट हो रहा था। आकर्ष और मीक्षा दोनों थोड़ी दूरी पर थे। आकर्ष की नज़र मीक्षा पर नहीं पड़ी थी क्योंकि वह अपना फ़ोन स्क्रॉल करने में बिज़ी था।

    राम्या खुश होते हुए बोली, "वाह यार! ये कितना हैंडसम बंदा है! देखो तो इसकी बॉडी और इसकी पर्सनालिटी! हायये! मैं मर जावाँ! क़यामत है ये तो!"

    मीक्षा उसकी बातों पर ध्यान नहीं देती क्योंकि उसे आकर्ष को देखकर अजीब सा खौफ़ आ रहा था। उसे अनकही घबराहट हो रही थी। वह राम्या का हाथ पकड़कर बोली, "राम्या, चलो ना यहाँ से। मुझे अजीब सी घबराहट हो रही है।"

    राम्या उसे रोकते हुए बोली, "रुको ना, अभी चलते हैं थोड़ी देर में।"

    आकर्ष भीड़ से बहुत इरिटेट हो चुका था। मीक्षा भी भीड़ में घिर चुकी थी। मीक्षा भीड़ से बचने के लिए आगे बढ़ती है और आकर्ष भी भीड़ से इरिटेट होकर गाड़ी में बैठने जाता है। तभी भीड़ से धक्का लगता है। आकर्ष जो इसके लिए तैयार नहीं था, उसका फोन हाथ से छूटकर गिर जाता है और वह खुद को गिरने से संभालने के चक्कर में सामने से आ रही मीक्षा से टकरा जाता है। मीक्षा और आकर्ष संभल नहीं पाते और दोनों जमीन पर गिर जाते हैं। लेकिन जैसे ही ऐसा हुआ, सभी की आँखें फटी की फटी रह गईं। राम्या भी आँखें फाड़कर देख रही थी। कुछ लोग तो सदमे में जा चुके थे। मीक्षा ज़मीन पर गिरी हुई थी और उसके ऊपर आकर्ष था और उन दोनों के होंठ मिले हुए थे। मीक्षा ने डर से अपनी आँखें बंद कर ली थीं। उसे अपने होठों पर किसी के सख्त होंठ महसूस हुए। वह घबराकर अपनी आँखें खोलती है। अपने सामने आकर्ष को देखकर हैरानी से उसकी आँखें बड़ी हो जाती हैं और उसकी साँसें ऊपर-नीचे होने लगती हैं। यही कुछ हाल आकर्ष का भी था क्योंकि वह कभी किसी लड़की के इतने करीब नहीं गया था। मीडिया ने उनके फ़ोटोज़ निकाल लिए थे।


    श्लोक की आवाज़ से दोनों होश में आते हैं और आकर्ष खुद को संभालते हुए उठता है और मीक्षा की तरफ़ हाथ बढ़ाता है। मीक्षा उसकी मदद नहीं लेती और खुद से उठती है। सब लोग चैन की साँस लेते हैं। तभी एक जोरदार थप्पड़ की आवाज़ पूरे एरिया में गूंज जाती है। सभी लोग अपने मुँह पर हाथ रख लेते हैं। मीक्षा की आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं और आकर्ष का चेहरा एक तरह झुका हुआ था। उसकी आँखें खून की तरह लाल हो चुकी थीं। उसके हाथों की नसें उभरने लगती हैं। श्लोक उसे ऐसे देखकर डर जाता है क्योंकि वह जानता था कि उस लड़की ने आकर्ष को थप्पड़ मारकर अपनी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी गलती की है। सब लोगों की साँसें अटक चुकी थीं क्योंकि सब जानते थे जिसको थप्पड़ पड़ा है वह कितना ख़तरनाक आदमी है। मीक्षा वहाँ से बिना कुछ बोले राम्या का हाथ पकड़कर निकल जाती है। सब लोग उसे निकलने की जगह देते हैं।

    आकर्ष बिना कुछ बोले अपनी खून जैसी लाल आँखें बंद करता है और एक गहरी साँस लेकर बिना कुछ कहे गाड़ी में बैठकर निकल जाता है। उसे कोई नहीं रोकता क्योंकि सब जानते थे कि अभी उसे किसी ने रोका तो उसे भगवान भी नहीं बचा पाएगा।

  • 5. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 5

    Words: 1079

    Estimated Reading Time: 7 min

    श्लोक की आवाज़ से दोनों होश में आये। आकर्ष, खुद को संभालते हुए उठा और मीक्षा की ओर हाथ बढ़ाया। मीक्षा ने उसकी मदद नहीं ली और खुद उठ गई। सब लोग चैन की साँस ले रहे थे, तभी एक जोरदार थप्पड़ की आवाज़ पूरे इलाके में गूँज गई। सभी ने अपने मुँह पर हाथ रख लिए। मीक्षा की आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं और आकर्ष का चेहरा झुका हुआ था। उसकी आँखें खून की तरह लाल हो चुकी थीं; हाथों की नसें उभरने लगी थीं। श्लोक उसे देखकर डर गया क्योंकि वह जानता था कि उस लड़की ने आकर्ष को थप्पड़ मारकर अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती की है। सबकी साँसें अटक गई थीं क्योंकि सब जानते थे कि जिसको थप्पड़ पड़ा है, वह कितना खतरनाक आदमी है। मीक्षा वहाँ से बिना कुछ बोले राम्या का हाथ पकड़कर चली गई। सब लोगों ने उसे जाने दिया।

    आकर्ष बिना कुछ बोले, अपनी खून जैसी लाल आँखें बंद कर एक गहरी साँस ली और बिना कुछ कहे गाड़ी में बैठकर निकल गया। उसे कोई नहीं रोका, क्योंकि सब जानते थे कि अगर अभी किसी ने उसे रोका तो भगवान भी उसे नहीं बचा पाएँगे।


    मीक्षा और राम्या हाॅस्टल वापस आ चुकी थीं। मीक्षा ने अपना बैग एक तरफ़ फेंका और वॉशरूम में घुस गई। उसने पानी का वाल्व ऑन किया और अपने होठों को घिसने लगी, जैसे उन पर कोई गंदी चीज लग गई हो। वह आकर्ष के होठों के स्पर्श को मिटाने की कोशिश कर रही थी, पर जब स्पर्श ज़िंदगी पर लग जाए, तो धोने से नहीं मिटता।

    मीक्षा ने अपने होठों को लाल कर लिया था। वह वॉशरूम में तौलिये से अपने होठों को साफ़ करके बाहर आई। बाहर राम्या उसका इंतज़ार कर रही थी। राम्या की नज़र मीक्षा के लाल होठों पर पड़ी तो वह घबरा गई और उठकर उसके पास आकर उसके होठों को देखते हुए बोली,
    "मीक्षा, ये क्या हुआ तुम्हारे होठों को?"

    मीक्षा ने राम्या को अनसुना करते हुए एक तरफ़ हो गई और अपने फ़ोन में देखते हुए बोली,
    "कुछ नहीं हुआ।"

    राम्या भी आकर मीक्षा के पास बैठ गई और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली,
    "क्यों टेंशन ले रही हो? जो हुआ उसे महज़ एक इत्तफ़ाक़ समझकर भूल जाओ।"

    मीक्षा उसकी बात पर हल्का सा मुस्कुराई और उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर बोली,
    "थैंक्यू मेरी इतनी फ़िक्र करने के लिए, लेकिन मैं ठीक हूँ। और तुम कपड़े बदल लो, फिर कैंटीन चलते हैं।"

    राम्या ने हाँ में सिर हिलाया और अपने कपड़े लेकर वॉशरूम में चली गई। राम्या के जाते ही मीक्षा की मुस्कान गायब हो गई और वह दोपहर के दृश्य को याद करने लगी। दृश्य याद आते ही उसका चेहरा उतर गया और वह अपने ख्यालों को झटकते हुए बोली,
    "भगवान जी, अब कभी उस आदमी से मेरा सामना मत कराना। मैं इसे एक बुरा सपना समझकर भूल जाना चाहती हूँ।"

    राम्या वॉशरूम से बाहर आई और दोनों कैंटीन चली गईं। कैंटीन में कम लोग थे क्योंकि सब लोग खाना खाकर जा चुके थे। राम्या और मीक्षा ने अपने लिए खाना ऑर्डर किया। कुछ देर में दोनों डिनर करके अपने रूम में आईं। मीक्षा अपने बिस्तर पर जाते हुए बोली,
    "कल सुबह क्लास है, सो जाओ, वरना सुबह उठ नहीं पाओगी।"

    राम्या भी अपने बेड पर गई और ब्लैंकेट को फोल्ड करते हुए बोली,
    "मैंने सुबह का अलार्म लगा दिया है। सो जाओ, ठीक है? और जो हुआ उसे भूल जाओ, एक बुरा सपना समझकर।"

    राम्या की बात सुनकर मीक्षा ने हाँ में सिर हिलाया और अपनी ब्लैंकेट से ढँककर सो गई।


    पर कोई था जिसकी आँखों में दूर-दूर तक नींद नहीं थी। समुद्र किनारे आकर्ष अपनी गाड़ी के बोनट पर बैठकर अब तक बीस सिगरेट पी चुका था। बार-बार उसकी आँखों के सामने थप्पड़ वाला दृश्य आ रहा था। वह अपनी लाल आँखों से समुद्र में उठती लहरों को देख रहा था। समुद्र किनारा खाली था क्योंकि रात के बारह बज रहे थे। आकर्ष गाड़ी के बोनट से उतरा और सिगरेट को अपने जूते से मसलकर बोला,
    "गलती कर दी तुमने, आकर्ष राजपूत को थप्पड़ मारकर। तुम्हें नहीं पता, तुमने कितने बड़े तूफ़ान से टक्कर ली है। अब ये आकर्ष नाम का तूफ़ान तुम्हारी ज़िंदगी में तबाही लाएगा। इस थप्पड़ की सज़ा अब तुम्हें ज़िंदगी भर मिलेगी। Just wait and watch।"

    आकर्ष अपनी गाड़ी में बैठकर वहाँ से निकल गया। कुछ देर में उसकी कार उसके पर्सनल विला के बाहर रुकी। वह एक हाथ में अपना कोट पकड़े अंदर आया। इस विला में आकर्ष के अलावा कोई नहीं रहता था। वह अपने हाथ में कोट पकड़े हुए ही रूम में चला गया और रूम में पहुँचकर अपनी टाई की गाँठ ढीली की और वॉशरूम में चला गया। लगभग बीस मिनट बाद वह वॉशरूम से बाहर आया। उसने एक टी-शर्ट और लोअर पहना हुआ था। आकर्ष आकर अपने लैपटॉप पर काम करने लगा। आकर्ष को नींद नहीं आती थी। वह पिल्स लेकर सोता था, फिर भी उसे दो-तीन घंटे से पहले नींद नहीं लगती थी। उसका ज़्यादा वक़्त तो हास्पिटल में ही गुज़रता था। लगभग सुबह के चार बजे आकर्ष लैपटॉप को एक तरफ़ कर लाइट ऑफ़ करके सो गया।

  • 6. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 6

    Words: 789

    Estimated Reading Time: 5 min

    आकर्ष अपनी गाड़ी में बैठकर वहाँ से निकल गया। कुछ देर में उसकी कार उसके पर्सनल विला के बाहर रुक गई। वह एक हाथ में अपना कोट पकड़े हुए अंदर आया। इस विला में आकर्ष के अलावा कोई नहीं रहता था। वह अपने हाथ में कोट पकड़े हुए ही कमरे में चला गया और कमरे में पहुँचकर अपनी टाई की गाँठ ढीली की और वाशरूम में चला गया। लगभग बीस मिनट बाद वह वाशरूम से बाहर आया। उसने एक टी-शर्ट और लोअर पहना हुआ था। आकर्ष आकर अपने लैपटॉप पर काम करने लगा। आकर्ष को नींद नहीं आती थी; वह पिल्स लेकर सोता था, फिर भी उसे दो-तीन घंटे से पहले नींद नहीं लगती थी। उसका ज़्यादा समय तो अस्पताल में ही गुज़रता था। लगभग सुबह के चार बजे आकर्ष लैपटॉप को साइड किया और लाइट ऑफ करके सो गया।


    सुबह का समय था।

    हॉस्टल के कमरे में अलार्म बजा। अलार्म की आवाज़ सुनकर मीक्षा की नींद खुली। मीक्षा समय देखा तो सुबह के सात बज रहे थे। मीक्षा अपने बालों का बन बनाकर वाशरूम में चली गई और पन्द्रह मिनट बाद बाहर आई। मीक्षा ने एक नीला टॉप और ब्लैक जीन्स पहनी हुई थी। उसने अपने बालों को संवारकर राम्या को उठाया। राम्या भी कुछ देर में तैयार हो गई। वे दोनों कैंटीन में आईं जहाँ सभी लोग नाश्ता कर रहे थे। राम्या और मीक्षा ने भी नाश्ता किया।


    8:45 पर उनकी पहली क्लास थी। क्लास शुरू होने में सिर्फ़ पाँच मिनट बाकी थे। वे दोनों नाश्ता करके क्लास में भागीं। लेट होने की वजह से दोनों को आखिरी बेंच मिली। दोनों आखिरी बेंच पर बैठ गईं। तभी प्रोफ़ेसर आ गए। मीक्षा का पूरा ध्यान पढ़ाई पर था। लगभग एक घंटे की क्लास के बाद दोनों बाहर आईं। बाहर सभी लोग गप्पे लगा रहे थे। मीक्षा और राम्या नई थीं, इसलिए वहाँ उनसे ज़्यादा कोई बात नहीं कर रहा था। आधे घंटे बाद दोनों अपनी दूसरी क्लास लेने गईं।


    वहीं दूसरी तरफ़, आकर्ष अपने केबिन में फ़ाइलें पढ़ रहा था, जो फ़्रेशर्स की फ़ाइलें थीं। यह नियम था कि फ़्रेशर्स को एक काबिल डॉक्टर के साथ दो महीने नाइट ड्यूटी करनी होती है जिससे वे पढ़ाई के साथ अस्पताल का प्रबंधन भी सीख सकें। आकर्ष फ़ाइलें पढ़ ही रहा था तभी उसकी नज़र एक फ़ाइल पर जाकर रुक गई। उसने वह फ़ाइल उठाई। फ़ाइल पर लगी फ़ोटो को देखकर आकर्ष के होठों के कोने मुड़ गए और उसके चेहरे पर एक तिरछी मुस्कराहट आ गई।


    आकर्ष उस फ़ोटो को और गौर से देखते हुए बोला, "तुम्हें तो ढूँढ़ने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, तुम तो खुद मेरे पास आ गईं, मिस मीक्षा।"


    उन फ़ाइलों में एक फ़ाइल मीक्षा की थी, जिसे आकर्ष बड़े ध्यान से पढ़ रहा था। आकर्ष फ़ाइल में से फ़ोटो निकाली और अपनी जेब से लाइटर निकालकर उस फ़ोटो में आग लगा दी।


    आकर्ष उस फ़ोटो को नीचे फेंका और उसे अपने जूते से कुचलते हुए बोला, "बहुत अहंकार है ना तुम्हारे अंदर? आकर्ष राजपूत को थप्पड़ मार दिया? डॉक्टर बनने का सपना लेकर आई हो ना? तुम्हारी तरह तुम्हारे सपनों को भी कुचल दूँगा।"


    इतना कहकर आकर्ष किसी को फ़ोन किया। कुछ देर में एक चपरासी केबिन में आया। आकर्ष ने उसे सारी फ़ाइलें दे दीं और अपने साथ नाइट ड्यूटी के लिए मीक्षा को चुन लिया। चपरासी फ़ाइलें लेकर वहाँ से चला गया।


    वहीं क्लास में मीक्षा और राम्या दोनों पढ़ रही थीं। तभी एक प्रोफ़ेसर आए। प्रोफ़ेसर ने क्लास को एक नज़र देखा और कहा, "मीक्षा यहाँ है?"


    अपना नाम सुनकर मीक्षा थोड़ी घबरा गई और डरते हुए खड़ी हुई। "जी सर, मैं हूँ।"


    प्रोफ़ेसर सर आगे बढ़कर उसे फ़ाइल देते हुए बोले, "आपकी नाइट ड्यूटी अस्पताल के आखिरी फ़्लोर पर डॉक्टर आकर्ष राजपूत के साथ है।"


    आकर्ष का नाम सुनकर पूरी क्लास हैरान हो गई। आकर्ष राजपूत के साथ ड्यूटी करना एक खुशनसीबी भी है। सभी लड़कियाँ उसे नफ़रत और जलन से देखने लगीं। प्रोफ़ेसर सर वहाँ से चले गए।


    राम्या उछलते हुए मीक्षा के पास आई और उसे जोर से गले लगा लिया। कुछ पल रुककर बोली, "आई कैन्ट बिलीव दिस! डॉक्टर राजपूत ने तुझे चुना है! मैंने बहुत सुना है उनके बारे में। काश मैं उनके साथ ड्यूटी कर पाती! यार, तू कितनी लकी है!"


    मीक्षा उसकी बेतुकी बातों को इग्नोर करके अपनी जगह पर बैठ गई और पढ़ने लगी। कुछ देर में उनका कॉलेज खत्म हो गया। दोनों अपने हॉस्टल वापस आ गईं।

  • 7. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 7

    Words: 1161

    Estimated Reading Time: 7 min

    आकर्ष का नाम सुनकर पूरी कक्षा हैरान हो गई। आकर्ष राजपूत के साथ ड्यूटी करना, एक खुशनसीबी थी। सभी लड़कियाँ उसे नफ़रत और जलन से देखने लगीं। प्रोफ़ेसर सर वहाँ से चले गए।


    राम्या उछलते हुए मीक्षा के पास आई और उसे जोर से गले लगा लिया। कुछ पल रुककर बोली, "मैं विश्वास नहीं कर पा रही हूँ! डॉक्टर राजपूत ने तुझे चुना है! मैंने उनके बारे में बहुत सुना है। काश मैं उनके साथ ड्यूटी कर पाती! यार, तू कितनी लकी है!"


    मीक्षा उसकी बेतुकी बातों को अनसुना करके अपनी जगह पर बैठ गई और पढ़ने लगी। कुछ देर में उनका कॉलेज खत्म हो गया। दोनों अपने हॉस्टल वापस आ गईं।


    रात का समय था। मीक्षा की सारी क्लासेज़ खत्म हो गई थीं। अब वह अपनी नाइट शिफ्ट के लिए तैयारी कर रही थी। तैयारी करे भी क्यों न, आखिर उसकी ड्यूटी मुंबई के बेस्ट डॉक्टर, आकर्ष राजपूत के साथ थी। मीक्षा खुश थी क्योंकि उसकी ड्यूटी बेस्ट डॉक्टर के साथ थी, जिससे उसे बहुत कुछ सीखने को मिलने वाला था। वह नहीं जानती थी कि एक नया तूफ़ान उसे तबाह करने वाला था। वह आकर्ष के इरादों से अनजान, हॉस्टल रूम से बाहर आई।


    हॉस्टल रूम से बाहर आकर उसने इधर-उधर देखा। हॉस्टल रूम में शांति थी क्योंकि रात के ग्यारह बज रहे थे। सभी लोग अपने रूम्स में जा चुके थे। हॉस्टल में आने-जाने का आखिरी वक्त सिर्फ़ नौ बजे तक का था। नौ बजे के बाद सिर्फ़ वही लोग बाहर निकलते थे जिनकी नाइट ड्यूटी होती थी। आज मीक्षा की नाइट ड्यूटी थी, इसलिए वह बाहर आई थी। बाकी आज काफ़ी लोगों का ऑफ़ था, इसलिए सभी लोग रूम्स में थे।


    मीक्षा आगे बढ़ती जा रही थी। थोड़ी दूर चलने के बाद वह लास्ट फ़्लोर पर पहुँच गई। लास्ट फ़्लोर पर पूरा अँधेरा था। बस एक-दो जगह हल्की-हल्की डिम लाइट जल रही थी। लास्ट फ़्लोर पर पूरी तरह शांति थी। वहाँ किसी परिंदे को पर मारने की भी इजाजत नहीं थी क्योंकि यह आकर्ष राजपूत का फ़्लोर था।


    मीक्षा आस-पास देखती हुई आ रही थी। वहाँ बहुत अँधेरा था। इस वजह से मीक्षा को और भी डर लग रहा था। उसने अपने हाथ में पकड़े बैग को कस के पकड़ लिया और मन में हनुमान चालीसा पढ़ते हुए आगे बढ़ रही थी।


    मीक्षा अपने दिल पर हाथ रखकर खुद से बोली, "हे मातारानी! क्या ये मिस्टर राजपूत भूतिया जगह पर रहते हैं? इतना अँधेरा है यहाँ!"


    मीक्षा आगे बढ़ रही थी। पाँच मिनट बाद वह एक रूम के बाहर आकर रुकी। यह बहुत बड़ा रूम था और पूरा डार्क कलर का था। रूम को देखकर लग रहा था किसी ने यह रूम खुद पसंद करके बनवाया है। मीक्षा को रूम देखकर अजीब सा खौफ़ आ रहा था। पता नहीं क्यों, पर उसे अजीब सी वाइब आ रही थी।


    मीक्षा रूम को ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोली, "हे मातारानी! सब कुछ संभाल लेना! पता नहीं क्यों, पर मुझे बहुत अजीब सा डर लग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे कुछ बुरा होने वाला है।"


    मीक्षा की नादानी भरी बातें सुनकर किस्मत भी उस पर हँस रही थी क्योंकि वह जानती थी मातारानी उसे जिस शख्स से मिलाने वाली है, वह शख्स उसकी ज़िंदगी में कितना बड़ा तूफ़ान लाने वाला है और एक दिन वही शख्स उसे पूरी दुनिया से महफ़ूज़ रखेगा।


    मीक्षा मातारानी का नाम लेकर दरवाज़ा नॉक किया। काफ़ी देर खड़े रहने के बाद भी अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई। अंदर से आवाज़ ना आने पर मीक्षा को अजीब लगा। उसने फिर से नॉक किया। इससे पहले अंदर से एक गहरी आवाज़ आई। आवाज़ सुनकर मीक्षा ने गेट खोलकर अंदर जाया।


    अंदर एक आदमी रिवॉल्विंग चेयर पर बैठा था। उसका चेहरा दूसरी तरफ था, जिससे मीक्षा को उसका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। रूम का आउरा बहुत ठंडा था। मीक्षा को हल्का डर लग रहा था।


    मीक्षा हिम्मत करके बोली, "हेलो सर! आई एम मीक्षा अग्रवाल, एमबीबीएस फ़र्स्ट ईयर स्टूडेंट। आज मेरी आपके साथ नाइट ड्यूटी है।"


    मीक्षा का नाम सुनकर कुर्सी पर बैठे आदमी की मुस्कराहट गहरी हो गई। ऐसा लग रहा था जैसे वह सिर्फ़ मीक्षा का ही इंतज़ार कर रहा था।


    कोई जवाब ना मिलने पर मीक्षा एक बार फिर उसे पुकारती है, "सर।"


    मीक्षा के कहने पर कुर्सी पर बैठा शख्स अपनी चेयर घुमाता है। अब उसका चेहरा मीक्षा के सामने था। उस शख्स को देखकर मीक्षा की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। उसके चेहरे पर पसीना आने लगा।


    मीक्षा घबराते हुए दो कदम पीछे हटी और घबराते हुए बोली, "आप..."


    कुर्सी पर बैठा शख्स मीक्षा को शैतानी मुस्कराहट के साथ देख रहा था। मीक्षा की आवाज़ सुनकर वह आदमी अपना कोट ठीक करते हुए बोला, "हँ, मैं आकर्ष राजपूत हूँ।"


    हाँ, कुर्सी पर बैठा शख्स कोई और नहीं, आकर्ष था, जो बड़ी बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहा था।


    मीक्षा उसका नाम सुनकर हक्की-बक्की रह गई। उसे आकर्ष को देखकर बहुत बड़ा झटका लगा था। वह उसे घूरते हुए बोली, "आप झूठ बोल रहे हैं! आप ज़रूर यहाँ स्टूडेंट हैं। आप आकर्ष राजपूत कैसे हो सकते हैं?"


    आकर्ष चलते हुए उसके पास आया और उसके चारों तरफ़ घूमते हुए बोला, "हैरान हो या डर लग रहा है? जिसे तुम थप्पड़ मार के आई थी, वही तुम्हारे सामने दुबारा खड़ा है।"


    मीक्षा आकर्ष की बात सुनकर डरते हुए बोली, "देखो, मुझे पता है आप झूठ बोल रहे हो। आप भी मेरी तरह मिस्टर राजपूत के साथ ड्यूटी करने आए हो।"


    आकर्ष मीक्षा की बात सुनकर जोर-जोर से शैतानी हँसी हँसने लगा और फिर एकदम रुककर मीक्षा को घूरते हुए बोला, "यही डर देखना चाहता हूँ मैं तुम्हारी आँखों में। बाय द वे, वेलकम टू द हेल, स्वीटहार्ट।"


    मीक्षा कुछ कहती, तभी दरवाज़े पर नॉक हुआ। दरवाज़े की आवाज़ सुनकर दोनों दरवाज़े की तरफ़ देखते हैं। आकर्ष दरवाज़े को देखते हुए बोला, "कम इन।"


    इजाज़त पाकर एक नर्स अंदर आई। नर्स मीक्षा को देखकर बोली, "अरे आप आ गईं! मैं आपको बुलाने ही भेज रही थी।"


    मीक्षा नर्स की बात सुनकर बोली, "मिस्टर राजपूत कहाँ हैं?"


    मीक्षा की बात सुन नर्स थोड़ी हैरान हुई और बोली, "ये आपके सामने जो खड़े हैं, वही तो हैं मिस्टर राजपूत।"


    नर्स की बात सुनकर मीक्षा की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं क्योंकि उसे लग रहा था शायद आकर्ष झूठ बोल रहा है। लेकिन नर्स की बात सुनकर मीक्षा की आँखें नम हो गईं।


    वह मुंबई यहाँ अपने पापा का सपना पूरा करने आई थी, लेकिन वह यह भी जानती थी कि आकर्ष उसे यहाँ अब नहीं रहने देगा। वह सोचकर ही उसकी आँखें भर गई थीं।


    आकर्ष सामने खड़ी नर्स से बोला, "जाकर पेशेंट रेडी करो।"


    आकर्ष की बात सुनकर नर्स सिर झुकाकर वहाँ से चली गई।

  • 8. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 8

    Words: 711

    Estimated Reading Time: 5 min

    मीक्षा ने नर्स की बात सुनकर कहा, "मिस्टर राजपूत कहाँ हैं?"

    "मीक्षा की बात सुनकर नर्स थोड़ी हैरान हुई और बोली, "ये आपके सामने जो खड़े हैं, वही तो हैं मिस्टर राजपूत।"

    नर्स की बात सुनकर मीक्षा की आँखें हैरानी से फैल गईं। उसे लग रहा था कि शायद आकर्ष झूठ बोल रहा था, लेकिन नर्स की बात सुनकर मीक्षा की आँखें नम हो गईं। वह मुम्बई अपने पापा का सपना पूरा करने आई थी, लेकिन वह यह भी जानती थी कि आकर्ष उसे यहाँ अब नहीं रहने देगा। यह सोचकर ही उसकी आँखें भर आई थीं।

    आकर्ष ने सामने खड़ी नर्स से कहा, "जाकर पेशेंट को रेडी करो।"

    आकर्ष की बात सुनकर नर्स सिर झुकाकर वहाँ से चली गई।


    मीक्षा तो नर्स की बात सुनकर ही स्तब्ध हो गई थी। उसे लग रहा था जैसे उस पर किसी ने बम फोड़ दिया हो। आकर्ष की आवाज सुनकर वह होश में आई, "फ़िक्र मत करो, मैं तुम्हें यूनिवर्सिटी से नहीं निकालूँगा।"

    मीक्षा यह बात सुनकर हैरान हो गई। उसे तो लगा था कि आकर्ष उसे धक्के मारकर यूनिवर्सिटी से निकाल देगा, क्योंकि यूनिवर्सिटी उसकी थी। पर आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा को सुकून मिला और उसने कहा, "आप सच कह रहे हैं?"

    आकर्ष ने उसकी बात सुनकर टेबल से टेक लगाकर खड़ा होकर शातिर मुस्कान के साथ कहा, "बिल्कुल सच कह रहा हूँ, स्वीटहार्ट। मैं तुम्हें यूनिवर्सिटी से नहीं निकालूँगा, क्योंकि जो मज़ा तुमसे यहाँ रहकर बदला लेने में आएगा, वो यूनिवर्सिटी से निकालने में नहीं आएगा।"

    मीक्षा उसकी बात सुनकर थोड़ी घबरा गई, लेकिन उसे सुकून था कि आकर्ष उसे यूनिवर्सिटी से नहीं निकालेगा। लेकिन उसे यह पता था कि उसका सफ़र बिल्कुल आसान नहीं होने वाला है। ये पाँच साल उसकी ज़िन्दगी के बहुत मुश्किल साल गुज़रने वाले थे।

    आकर्ष उसके सामने खड़े होकर उसकी आँखों में देखते हुए बोला, "थप्पड़ मारा था ना तुमने? इस थप्पड़ की गूंज अब हर रात तुम्हें सुनाई देगी। यह यूनिवर्सिटी तुम्हारे लिए जहन्नुम बन जाएगी। तुम कोसोगी उस दिन को जिस दिन तुम इस यूनिवर्सिटी में आई थी।"

    आकर्ष इतना कहकर जोर-जोर से हँसने लगा। मीक्षा को उसकी हँसी से ही खौफ़ आ रहा था। मीक्षा बहुत नर्म दिल थी, ज़रा सी बात पर रोने लगती थी। उस दिन पता नहीं उसमें इतनी हिम्मत कैसे आ गई थी कि उसने आकर्ष राजपूत को भरी महफ़िल में थप्पड़ मार दिया था। लेकिन यह गलती उसकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी गलती होने वाली थी। आकर्ष नाम का तूफ़ान उसकी ज़िन्दगी में कदम रख चुका था। अब यह तूफ़ान क्या करेगा, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा।

    आकर्ष अपनी चेयर पर बैठ गया और मीक्षा से कहा, "पेशेंट रेडी हैं। जाकर पर्दे के पीछे कपड़े चेंज करो और अब आओ तो हॉस्टल से ही कपड़े चेंज करके आना।"

    मीक्षा उसकी बात सुनकर अपने हॉस्पिटल के कपड़े लेकर पर्दे के पीछे चली गई। मीक्षा पर्दा लगा देती है, लेकिन वह नहीं जानती थी कि इस पर्दे के पीछे उसकी परछाई दिख रही थी, जिसे आकर्ष बड़े इत्मीनान से देख रहा था।

    मीक्षा अपनी कुर्ती की डोरी और साइड में लगे हुक खोलती है, जिससे उसकी कुर्ती उसके कंधे से सरकते हुए नीचे उतर जाती है। मीक्षा कुर्ती उतारकर टॉप पहनती है। यह सारा नज़ारा आकर्ष देख रहा था। उसके चेहरे पर गहरी मुस्कान थी। मीक्षा उसके इरादों से अनजान अपने कपड़े बदल रही थी। वह कपड़े बदलकर बाहर आती है।

    जब वह कपड़े बदलकर बाहर आती है, तो उसकी नज़र आकर्ष की तरफ़ जाती है, जो उसे ही घूर रहा था। मीक्षा को देखकर उसकी मुस्कान और गहरी हो जाती है, लेकिन वह मुस्कान बिल्कुल नॉर्मल नहीं थी। मीक्षा उसकी नज़रों से बहुत असहज हो रही थी। उसे बहुत अजीब लग रहा था क्योंकि आकर्ष उसे घूर-घूर कर देख रहा था।

    मीक्षा अपनी नज़रें नीचे करके आकर्ष से कहती है, "सर, मैं जाऊँ?"

    आकर्ष उसकी बात सुनकर कहता है, "हाँ, तुम चलो स्वीटहार्ट, मैं तुम्हारे पीछे-पीछे आता हूँ।"

    आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा वहाँ से चली जाती है और आकर्ष अजीब तरीके से मुस्कुराते हुए गुनगुनाने लगता है-

    "क्या जाने तू मेरे इरादे
    ले जाऊँगा साँसे चुरा के"

  • 9. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 9

    Words: 1039

    Estimated Reading Time: 7 min

    जब उसने कपड़े बदलकर बाहर निकला, तो उसकी नज़र आकर्ष की ओर गई जो उसे घूर रहा था। मीक्षा को देखकर उसकी मुस्कराहट गहरी हुई, परन्तु वह मुस्कराहट बिलकुल सामान्य नहीं थी। मीक्षा उसकी नज़रों से बहुत असहज हो रही थी; उसे बहुत अजीब लग रहा था क्योंकि आकर्ष उसे घूर-घूर कर देख रहा था।

    "सर, मैं जाऊँ?" मीक्षा ने अपनी नज़रें नीचे करके आकर्ष से कहा।

    "हाँ, तुम चलो sweetheart, मैं तुम्हारे पीछे-पीछे आता हूँ।" आकर्ष ने उसकी बात सुनकर कहा।

    आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा वहाँ से चली गई और आकर्ष अजीब तरीके से मुस्कुराते हुए गुनगुनाने लगा:

    "क्या जाने तू मेरे इरादे,
    ले जाऊँगा साँसे चुरा के"


    एक कमरे में एक 25 वर्षीय लड़का बिस्तर पर लेटा हुआ था, और उसके आस-पास मीक्षा और आकर्ष खड़े थे; दूसरी ओर उस लड़के का परिवार खड़ा था। एक दुर्घटना में उस लड़के ने अपनी चलने की क्षमता खो दी थी। उसके परिवार ने उसका इलाज अच्छे-अच्छे डॉक्टरों से कराया, परन्तु सभी डॉक्टरों से निराश होकर आखिर में उस लड़के के परिवार वाले उसे आकर्ष के पास ले आए। उन्हें उम्मीद थी कि आकर्ष उसे ठीक कर देगा। इसमें कोई शक नहीं था कि आकर्ष एक काबिल डॉक्टर था; वह बुरे लोगों के लिए शैतान था तो कुछ लोगों के लिए उनका मसीहा। आकर्ष गरीबों का इलाज मुफ्त में करता था, जिससे उसे लोगों का हमेशा आशीर्वाद मिलता था। गरीबों के पास पैसा तो नहीं होता, लेकिन फिर भी वे दिलवाले होते हैं।


    मीक्षा उस लड़के को देख रही थी और उसकी स्थिति समझने की कोशिश कर रही थी। आकर्ष मीक्षा को देखकर तिरछी मुस्कराहट से बोला, "तो बताएँ डॉक्टर मीक्षा, हमें क्या करना चाहिए? इनका इलाज किस तरीके से करें?"

    मीक्षा आकर्ष की बात सुनकर सोच में पड़ गई और फिर एक नज़र मरीज़ के पैरों को देखकर बोली, "सर, इनका एक्सीडेंट को ज़्यादा समय नहीं हुआ है, इसलिए अभी ऑपरेशन करना ठीक नहीं होगा। मुझे लगता है हमें अभी इन्हें कुछ समय देना चाहिए और बिना ऑपरेशन के ही इलाज करना सही होगा।"

    आकर्ष मीक्षा की बात सुनकर तिरछी गर्दन करके उसे देखने लगा और बोला, "इम्प्रेसिव! गुड जॉब डॉक्टर मीक्षा।"

    मीक्षा का बायोडाटा देखने के बाद आकर्ष को इतना तो पता था कि मीक्षा पढ़ाई में तेज दिमाग वाली थी। उसने हर कक्षा में अब तक टॉप और प्रथम स्थान प्राप्त किया था, जिसके दम पर उसे विश्वविद्यालय में प्रवेश मिला था।

    "थैंक्यू सर।" मीक्षा ने आकर्ष की बात सुनकर कहा।

    आकर्ष अब मरीज़ के परिवार को देखकर बोला, "हाँ, तो जैसे डॉक्टर मीक्षा ने कहा, हम अभी ऑपरेशन नहीं कर सकते। मरीज़ का इलाज हम ऐसे ही करेंगे और सबसे ज़रूरी बात, हर सुबह और शाम इन्हें चलना सीखना होगा। इनकी मदद के लिए मेरी नर्स साथ जाएगी, समझ गए?"

    उस लड़के की माँ आगे आकर बोली, "सर, बस हम आपके ही भरोसे हैं। मेरे बच्चे को ठीक कर दीजिए। आप जितने पैसे माँगेंगे हम आपको उससे दुगुना देंगे।"

    उस औरत की बात सुनकर आकर्ष की मुट्ठी कस गई और वह आगे बढ़कर उस औरत की आँखों में आँखें डालकर भारी आवाज़ में बोला, "आकर्ष राजपूत कभी पैसों के लिए कुछ नहीं करता। यह करना मेरा फ़र्ज़ है, तो अपना दुगुना पैसा अपने पास रखें। पैसों की हुकूमत आकर्ष राजपूत पर नहीं चलती, यह बात अपने दिमाग में रखें।"

    आकर्ष की डरावनी आवाज़ सुनकर वह औरत डर से दो कदम पीछे हट गई और अपना सिर झुका लिया, क्योंकि वह एक तरह से आकर्ष का परोपकार खरीदने की कोशिश कर रही थी।

    आकर्ष उस औरत को अनदेखा करके मीक्षा को देखता है और कहता है, "कम टू माई केबिन।"

    इतना कहकर आकर्ष, मीक्षा का जवाब सुने बिना, एक नज़र उस औरत को घूरकर अपना कोट ठीक करके वहाँ से चला गया। वह औरत और मीक्षा उसे जाता हुआ देखती रहीं।


    थोड़ी देर में मीक्षा आकर्ष के केबिन में खड़ी थी। आकर्ष टेबल पर हाथ टिकाए उसे देख रहा था। मीक्षा उसके इस तरह देखने से असहज हो रही थी। उसने उसकी ओर देखते हुए कहा, "सर, आपने बुलाया था।"

    मीक्षा की बात सुन आकर्ष तिरछी गर्दन करके उसे देखता है और टेबल से हटकर धीरे-धीरे उसकी ओर अपने कदम बढ़ा देता है। मीक्षा कन्फ़्यूज़ होकर उसे देख रही थी। उसे अपने पास आता देख मीक्षा हैरान हो गई। आकर्ष धीरे-धीरे उसकी ओर कदम बढ़ा रहा था। मीक्षा उसे अपने पास आता देख अपने कदम पीछे लेने लगी।


    मीक्षा पीछे चलते-चलते अलमारी से लग गई। अब तक आकर्ष उसके बहुत नज़दीक आ चुका था। मीक्षा वहाँ से निकलने की कोशिश करती है, तभी आकर्ष उसे अपने दोनों हाथों के बीच कैद कर लेता है और उसके ऊपर झुकने लगता है। मीक्षा डर से अपनी आँखें बंद कर लेती है। आकर्ष उसके ऊपर झुकते हुए बाजू से एक फ़ाइल उठा लेता है।


    मीक्षा डर से आँखें बंद किए हुए खड़ी थी, लेकिन जब उसे कुछ महसूस नहीं हुआ, तो उसने आँखें खोलकर देखा। आकर्ष उसके सामने फ़ाइल पकड़े हुए शैतानी मुस्कराहट के साथ उसे देख रहा था। आकर्ष को दूर खड़ा देखकर वह राहत की साँस लेती है, लेकिन उसके हाथ में फ़ाइल देखकर मीक्षा को शर्मिंदगी होती है और वह शर्म से अपना सिर झुका लेती है।

    आकर्ष उसे देखकर तिरछी मुस्कान के साथ कहता है, "योर माइंड इज़ सो डर्टी स्वीटहार्ट।"

    आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा अपने हाथों की मुट्ठी कस लेती है। आकर्ष उसे इस तरह देखकर वहाँ से अपनी कुर्सी पर आकर बैठ जाता है और उसे फ़ाइल देते हुए कहता है, "उस मरीज़ को अब तुम ट्रीट करोगी। यह उसकी फ़ाइल है, इसे ध्यान से पढ़ लेना और ध्यान रहे, इस फ़ाइल को कुछ न हो।"

    "जी सर।" मीक्षा ने आकर्ष से फ़ाइल लेकर कहा।

    आकर्ष उसे जाने का इशारा करता है। इशारा देखकर मीक्षा वहाँ से चली जाती है। मीक्षा के जाते ही आकर्ष के चेहरे पर शैतानी मुस्कराहट आ जाती है। उसके दिमाग़ में बहुत कुछ चल रहा था, जो सिर्फ़ वही जानता था।

  • 10. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 10

    Words: 1260

    Estimated Reading Time: 8 min

    आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा ने अपने हाथों की मुट्ठी कस ली। आकर्ष ने उसे इस तरह देखकर अपनी चेयर पर आकर बैठ गया और उसे फाइल देते हुए कहा, "उस पेशेंट को अब तुम ट्रीट करोगी। ये उसकी फाइल है, इसे ध्यान से पढ़ लेना और ध्यान रहे, इस फाइल को कुछ न हो।"

    "जी सर," मीक्षा ने आकर्ष से फाइल लेकर कहा।

    आकर्ष ने उसे जाने का इशारा किया। इशारा देखकर मीक्षा वहाँ से चली गई। मीक्षा के जाते ही आकर्ष के चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट आ गई। उसके दिमाग़ में बहुत कुछ चल रहा था, जो सिर्फ़ वही जानता था।


    अगली सुबह, मीक्षा आईने के सामने खड़ी होकर तैयार हो रही थी। वह नाइट शिफ्ट से पाँच बजे फ्री हुई थी और ८:३० बजे उसकी क्लास थी। वह शिफ्ट से आकर सिर्फ़ दो घंटे ही सोई थी। अब तक ७:३० बज चुके थे। मीक्षा ने एक नज़र बिस्तर पर राम्या को देखा, जो आराम से सो रही थी। उसे देखकर उसने नागवारी में सिर हिलाया।

    मीक्षा तैयार हो ही रही थी कि दरवाज़े पर किसी ने ख़टखटाया। मीक्षा कन्फ़्यूज़न से दरवाज़े की तरफ़ देखकर बोली, "इतनी सुबह कौन आ गया?"

    मीक्षा आगे आकर दरवाज़ा खोल दिया। दरवाज़े पर एक आदमी एक बड़ा सा गिफ्ट लेकर खड़ा था। मीक्षा उसे देखते हुए बोली, "जी, आप कौन?"

    वह आदमी गिफ्ट को संभालते हुए बोला, "जी, मीक्षा अग्रवाल, आप ही हो?"

    मीक्षा उस आदमी की बात सुनकर बोली, "जी, मैं हूँ। कहिए, क्या काम है?"

    वो आदमी मीक्षा को देखकर बोला, "मैडम, किसी ने ये गिफ्ट भेजा है।"

    गिफ्ट को देखकर मीक्षा हैरान हो गई, क्योंकि वह काफी बड़ा था। मीक्षा उस आदमी से बोली, "पर किसने भेजा है ये गिफ्ट? मैं तो यहाँ किसी को जानती भी नहीं।"

    वो आदमी मीक्षा से बोला, "वो सब हमको नहीं पता। ये बताइए, ये गिफ्ट कहाँ रखें?"

    मीक्षा ने एक नज़र गिफ्ट को देखा और बोली, "भैया, आपको कोई गलतफ़हमी हुई होगी। हम तो यहाँ किसी को जानते ही नहीं हैं, तो गिफ्ट कौन भेजेगा हमारे लिए? शायद ये किसी और का होगा।"

    मीक्षा के बार-बार सवाल करने से वो आदमी घबरा रहा था, फिर भी वह बात संभालते हुए बोला, "मैडम, हमको यही नाम बताया गया है। हमें बहुत काम है। आप बताइए, इसे कहाँ रखना है?"

    मीक्षा ने उस आदमी को देखा, फिर गिफ्ट को देखकर कन्फ़्यूज़न से बोली, "अंदर रख दीजिए।"

    इतना कहकर मीक्षा साइड हो गई। वो आदमी गिफ्ट लेकर अंदर आया। जब वो आदमी गिफ्ट लेकर अंदर आया, तो अपनी नज़रों से पूरे कमरे को एक्सप्लोर करने लगा। तभी उसे साइड टेबल पर एक फाइल पड़ी दिखी, जिसे देखकर उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट आ गई।

    वो गिफ्ट को साइड में रखकर बोला, "मैडम, क्या हम पानी पी लें?"

    मीक्षा ने उस आदमी की बात सुनकर कहा, "हाँ, वो रखा है साइड में।"

    मीक्षा की बात सुनकर वो आदमी साइड टेबल की तरफ़ गया, जहाँ पानी का जग रखा था। मीक्षा का ध्यान उस गिफ्ट पर था। वो आदमी पानी लेकर पीने लगा। तभी उसने एक नज़र फाइल को देखा और फिर एक नज़र मीक्षा को देखा, जो उसे ही देख रही थी।

    वह पानी पी ही रहा था कि उसे चक्कर आ गए। अचानक चक्कर आने से मीक्षा उस आदमी को संभालने के लिए आगे बढ़ी। उससे पहले ही उस आदमी के हाथ से ग्लास छूट गया और वो सारा पानी टेबल पर पड़ी फाइल के ऊपर गिर गया। मीक्षा, जिसका ध्यान फाइल पर नहीं था, वो आगे बढ़कर उस आदमी को संभाला और पूछा, "आप ठीक हैं ना?"

    वो आदमी मीक्षा के पूछने पर बोला, "जी, मैं ठीक हूँ। बस थोड़ा चक्कर आ गया था।"

    मीक्षा कुछ कहती, तभी उसकी नज़र टेबल पर पड़ी फाइल पर गई, जिसे देखकर उसकी आँखें बड़ी हो गईं और वह उस आदमी को छोड़कर फाइल की तरफ़ भागी और फाइल को उठाया। वो फाइल पानी में पूरी तरह भीग चुकी थी। उस फाइल को ऐसे देखकर मीक्षा हैरान और परेशान हो गई।

    फाइल को ऐसे देखकर मीक्षा की आँखें नम हो चुकी थीं। मीक्षा फाइल को झाड़ते हुए, खोलकर देखते हुए बोली, "शिट! ये कैसे हुआ ये फाइल?"

    वो आदमी उसे इस तरह देखकर पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था। तभी वो आगे आकर सिर झुकाकर बोला, "सॉरी मैडम, वो जब मुझे चक्कर आए तो मेरे हाथ से शायद पानी छूटकर इस पर गिर गया। मुझे माफ़ कर दीजिए मैडम।"

    मीक्षा ने उस आदमी की बात सुनकर फाइल को देखा, जो पूरी तरह से तहस-नहस हो चुकी थी। मीक्षा ने उस आदमी से कहा, "आप तो ठीक हैं ना? अचानक चक्कर कैसे आ गया?"

    वो आदमी मीक्षा को देखकर बोला, "वो कुछ दिन से हमारी तबियत खराब है। शायद इसलिए चक्कर आ गया होगा। हमें माफ़ कर दीजिए। हमारी वजह से आपकी फाइल ख़राब हो गई।"

    मीक्षा ने उस आदमी की बात सुनकर कहा, "कोई बात नहीं। अब क्या कर सकते हैं। आप जाएँ और आराम करें।"

    वो आदमी उसकी बात सुनकर एक नज़र फाइल को देखा, जो पूरी तरह बर्बाद हो चुकी थी। वो वहाँ से जाते हुए दरवाज़े पर रुककर एक नज़र मीक्षा को देखकर शैतानी मुस्कुराहट के साथ वहाँ से चला गया।


    मीक्षा अभी तक फाइल को अपने हाथ में लेकर खड़ी थी। राम्या इतनी गहरी नींद में सो रही थी कि उसे पता ही नहीं चला कुछ। अपनी नींद पूरी करने के बाद वह अगड़ाई लेते हुए उठी और अपने सामने मीक्षा को देखकर बोली, "गुड मॉर्निंग, मीक्षा! तुम कब आई शिफ्ट से?"

    मीक्षा, जिसे कोई होश ही नहीं था, वो फाइल को हाथ में पकड़े नम आँखों से देख रही थी। वह राम्या की बात का कोई जवाब नहीं देती। मीक्षा को जवाब ना देते देख राम्या थोड़ी कन्फ़्यूज़ हुई। तभी उसकी नज़र मीक्षा के चेहरे और हाथ में पकड़ी फाइल पर गई।

    मीक्षा को रोता देख वो घबरा गई। वो कन्फ़्यूज़ थी, उसे सुबह-सुबह क्या हुआ। वो घबराते हुए उठी और उसके पास जाकर उसे कंधों से पकड़कर परेशान होते हुए बोली, "मीक्षा, क्या हुआ? तुम रो क्यों रही हो और ये फाइल कैसी है?"

    मीक्षा राम्या को देखकर भी उसकी बात का कोई जवाब नहीं देती। राम्या ने एक बार फिर उसे झंझोरा, जिससे मीक्षा होश में आई। राम्या ने उसे देखकर कहा, "मीक्षा, क्या हुआ? तुम रो क्यों रही हो?"

    मीक्षा राम्या की बात सुनकर नम आँखों से फाइल को देखते हुए बोली, "राम्या, ये फाइल ख़राब हो गई।"

    राम्या फाइल को देखते हुए बोली, "कैसे? और ये फाइल है किसकी?"

    मीक्षा राम्या की बात का जवाब दिया, "ये फाइल डॉक्टर राजपूत ने मुझे दी थी। ये एक पेशेंट की फाइल है और अब ये ख़राब हो गई। इस पर पानी गिर गया।"

    राम्या उसकी बात सुनकर फाइल को ली और उसे खोलकर देखा। फाइल के पेज पूरी तरह से ख़राब हो चुके थे। राम्या फाइल को बंद करते हुए बोली, "तू शांत हो जा और फ़िक्र मत कर। तू सर को साफ़-सच बता देना।"

    मीक्षा फाइल को उससे लेती है और बिस्तर पर फेंकते हुए बोली, "तुम जानती भी हो डॉक्टर राजपूत कौन है?"

    राम्या उसकी बात सुन कन्फ़्यूज़न से उसे देखने लगी और बोली, "हाँ, वो डॉक्टर है।"

    मीक्षा उसकी बात सुनकर उसे घूरने लगी और बोली, "आकर्ष राजपूत। कोई और नहीं। वही इंसान है जिसे मार्केट में मैंने थप्पड़ मारा था।"

    राम्या मीक्षा की बात सुनकर हैरान हो गई। उसकी आँखें बड़ी हो गईं। उसने भी नहीं सोचा था कभी कि आकर्ष उनके सामने इस तरह आ जाएगा।

  • 11. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 11

    Words: 1317

    Estimated Reading Time: 8 min

    मीक्षा ने उसकी बात सुनकर उसे घूरना शुरू कर दिया और कहा, "आकर्ष राजपूत कोई और नहीं, वही इंसान है जिसे मार्केट में मैंने थप्पड़ मारा था।"

    "राम्या मीक्षा की बात सुनकर हैरान हो गई। उसकी आँखें बड़ी हो गईं। उसने भी कभी नहीं सोचा था कि आकर्ष इस तरह उनके सामने आ जाएगा।"


    मीक्षा और राम्या क्लास अटेंड कर रही थीं, लेकिन मीक्षा का ध्यान क्लास में नहीं था। वह अभी भी फाइल के बारे में सोच रही थी। उसे कहीं न कहीं अंदाजा था कि आगे उसके साथ बहुत बुरा होने वाला है।

    उसका ध्यान क्लास में न होना प्रोफेसर ने नोटिस कर लिया था। प्रोफेसर उसकी तरफ देखते हुए एक चॉक का टुकड़ा उठाकर उसकी तरफ फेंका। इससे मीक्षा को होश आया और वह प्रोफेसर की तरफ देखने लगी। प्रोफेसर ने कहा, "हे! तुम खड़ी हो जाओ। ध्यान कहाँ है तुम्हारा?"

    मीक्षा उन्हें देखकर खड़ी हो गई और अपने हाथ आपस में रगड़ते हुए बोली, "सॉरी सर।"

    प्रोफेसर ने उसकी बात सुनकर उसे घूरना शुरू कर दिया और कहा, "Get out of my class।"

    प्रोफेसर की बात सुनकर सभी लोग मीक्षा की तरफ देखकर हँसने लगे। सबको हँसता देख प्रोफेसर ने एक करारी नज़र पूरे क्लास में घुमाई जिससे सब शांत हो गए। मीक्षा ने एक नज़र पूरी क्लास को देखा और अपनी व्याख्या देने की कोशिश करते हुए कहा, "सर, मेरी बात तो सुनें।"

    प्रोफेसर के बोलने पर मीक्षा को न जाते देख प्रोफेसर गुस्से में बोले, "I said get out।"

    प्रोफ़ेसर की तेज आवाज सुनकर मीक्षा मुँह बनाते हुए क्लास से बाहर चली गई। राम्या को उसके लिए बुरा लगा क्योंकि वह जानती थी कि मीक्षा का ध्यान कहाँ था।

    मीक्षा आकर गार्डन की बेंच पर बैठ गई और अपने चेहरे को अपने हाथों से छुपा लिया क्योंकि वह जानती थी कि वह फाइल कितनी महत्वपूर्ण थी। वह अपने आप से बोली, "हे मातारानी! यह कैसा चक्रव्यूह है जिसमें मैं फंस रही हूँ? ड्यूटी के पहले दिन ही फाइल खराब हो गई। मुझे डॉ. राजपूत की डाँट की चिंता नहीं है, उस पेशेंट की चिंता है। हे मातारानी! कुछ तो करो।"


    रात का समय था।

    मीक्षा आकर्ष के केबिन के बाहर खड़ी थी। उसे अंदर जाने में डर लग रहा था। वह ऊपर देखते हुए बोली, "हे मातारानी! मदद करना।"

    मीक्षा ने आँखें बंद करके दरवाज़ा खटखटाया। तभी अंदर से भारी आवाज़ आई जिसे सुनकर मीक्षा रोने जैसी शक्ल बना ली और अंदर गई। अंदर आकर्ष चेयर पर बैठा हुआ था। आकर्ष ने एक व्हाइट शर्ट और ब्लैक पैंट पहनी हुई थी। उसकी शर्ट इतनी कसी हुई थी कि उसके सिक्स पैक साफ़ दिख रहे थे। वह काम करते हुए इतना हॉट लग रहा था कि मीक्षा के अलावा कोई और लड़की देख लेती तो उसकी दीवानी हो जाती। आकर्ष लैपटॉप में कुछ काम कर रहा था। उसकी उंगलियाँ लैपटॉप पर बहुत तेज़ी से चल रही थीं। उसने सर उठाकर देखने की जहमत भी नहीं की थी क्योंकि वह जानता था कि मीक्षा के सिवा उसके फ़्लोर पर वही आ सकता है जिसके पास अपॉइंटमेंट हो।

    आकर्ष लैपटॉप में देखते हुए उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाया और कहा, "फ़ाइल दो।"

    फ़ाइल का नाम सुनकर मीक्षा की आँखें बड़ी हो गईं और वह अपना सर झुका ली। जब आकर्ष को कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला तो वह लैपटॉप से नज़रें हटाकर उसे देखा और कहा, "सुनाई नहीं दिया? मैंने कहा फ़ाइल दो।"

    मीक्षा ने उसकी आवाज़ सुनकर सर उठाकर देखा और एक लंबी साँस लेकर कहा, "सर, फ़ाइल खराब हो गई।"

    मीक्षा की बात सुनकर आकर्ष, जो बैठा हुआ था, उसकी आँखें छोटी हो गईं और वह गुस्से में उठकर खड़ा हो गया और बोला, "Are you out of your mind? यह मज़ाक का टाइम नहीं है डॉ. मीक्षा! फ़ाइल दो।"

    मीक्षा ने उसकी बात सुनकर उसकी तरफ़ देखा और कहा, "सर, मैं मज़ाक नहीं कर रही हूँ। फ़ाइल सच में खराब हो गई।"

    आकर्ष को उसकी बात सुनकर गुस्सा आ गया और वह उसके पास आकर गुस्से में बोला, "तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया? तुम जानती भी हो वो फ़ाइल कितनी इम्पॉर्टेंट थी?"


    आकर्ष की गुस्से भरी आवाज़ सुनकर मीक्षा की आँखें नम हो गईं और वह बोली, "सर, I am sorry।"

    उसकी सॉरी सुनकर आकर्ष और भड़क गया और उसकी कलाई पकड़ ली जिससे मीक्षा की आह निकल गई। आकर्ष गुस्से में बोला, "तुम्हारी सॉरी से क्या वो फ़ाइल ठीक हो जाएगी? बेवकूफ़ लड़की! तुम ऐसे बनोगी डॉक्टर? तुमसे एक फ़ाइल तो संभाली नहीं गई, तुम पेशेंट कैसे संभालोगी? I think तुम डॉक्टर बनने के काबिल ही नहीं हो। तुम्हारे लिए डॉक्टर बनना सब खेल है पर तुम्हारे खेल में मेरे पेशेंट की जान भी जा सकती है।"

    आकर्ष का एक-एक लफ़्ज़ मीक्षा की रूह को चोट पहुँचा रहा था। वह ऐसी लड़की नहीं थी कि किसी की भी सुन ले, लेकिन आज उसकी गलती थी। अगर उसने वह फ़ाइल ढंग से सही जगह रख दी होती तो आज ऐसा नहीं होता। वह आकर्ष के सामने सर झुकाए खड़ी थी।

    आकर्ष के उसके चुप रहने पर और भड़क रहा था। वह गुस्से में बोला, "तुम जैसी लापरवाह लड़की हॉस्पिटल में रहने के लिए नहीं होती, बल्कि घर में रहकर झाड़ू-पोछा करने के लिए होती है। पता नहीं किस बेवकूफ़ ने तुम्हें ग्रेजुएशन की डिग्री दे दी।"

    आकर्ष की इतनी कड़वी बातें सुनकर मीक्षा से और चुप नहीं रहा गया और वह अपने पक्ष में नम आँखों से बोली, "बस सर, जानती हूँ मुझसे गलती हुई है, लेकिन आप मेरे सपने के बारे में कुछ नहीं बोल सकते।"

    आकर्ष उसकी बात सुनकर उसका मज़ाक उड़ाते हुए बोला, "कौन सा सपना? वो सपना जिसके पहले दिन ही तुमने इतनी इम्पॉर्टेंट फ़ाइल खराब कर दी?"

    मीक्षा आकर्ष की बात सुनकर बोली, "सॉरी सर।"

    आकर्ष उसकी बात सुनकर उसकी कलाई को और जोर से पकड़ा जिससे मीक्षा के हाथ में पहनी घड़ी मीक्षा के हाथ में लग गई जिससे खून रिसने लगा। मीक्षा के मुँह से आह निकल गई। उसकी आँखें दर्द से नम हो गईं। आकर्ष उससे बोला, "ग़लती की है तो सज़ा भी मिलेगी।"

    "सज़ा? कैसी सज़ा?" मीक्षा ने घबराते हुए कहा।

    आकर्ष ने उसकी बात सुनकर उसका हाथ छोड़ दिया जिससे एक बार फिर मीक्षा को दर्द हुआ और वह अपनी आँखें बंद कर ली। आकर्ष उससे बोला, "लाइब्रेरी में वही फ़ाइल रखी है। अब पता नहीं पूरी लाइब्रेरी में कहाँ है। तुम पूरी लाइब्रेरी में उस फ़ाइल को ढूँढकर कल रात तक मुझे लाकर दोगी।"

    आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं और वह घबराते हुए बोली, "सर, ये आप क्या कह रहे हैं? लाइब्रेरी तो इतनी बड़ी है। मैं वो फ़ाइल कैसे ढूँढूँगी? उसे ढूँढने में तो चार दिन मिलेंगे, वो भी कम हैं।"

    आकर्ष ने उसकी बात सुनकर गुस्से में कहा, "अगर तुमने वो फ़ाइल नहीं ढूँढी तो तुम एक महीने के लिए कॉलेज और हॉस्पिटल दोनों से सस्पेंड हो जाओगी। समझी?"

    मीक्षा घबराते हुए बोली, "प्लीज़ सर, ऐसा मत कीजिए। मैं वो फ़ाइल ढूँढूँगी।"

    आकर्ष अपनी चेयर पर बैठते हुए बोला, "गुड। अब दफ़ा हो जाओ और अपने काम पर लग जाओ। कल रात तक मुझे वो फ़ाइल मेरे टेबल पर चाहिए।"

    मीक्षा उसकी बात सुनकर वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद आकर्ष के चेहरे पर डेविल स्माइल आ गई और वह बोला, "अब आएगा मज़ा।"


    फ़्लैशबैक

    वह आदमी गिफ़्ट देखकर बाहर आया और बाहर आकर किसी को फ़ोन करके बोला, "आकर्ष सर, काम हो गया। वो फ़ाइल खराब हो चुकी है।"

    "गुड जॉब।" आकर्ष ने कहा।

    इतना कहकर आकर्ष ने फ़ोन काट दिया और शैतानी हँसी हँसने लगा।


    फ़्लैशबैक एंड।

    आकर्ष सब याद करते हुए खुद से बोला, "वो सब मेरा प्लान था। मेरे होते हुए तुम चैन से कभी नहीं रह पाओगी।"

  • 12. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 12

    Words: 954

    Estimated Reading Time: 6 min

    "वह आदमी उपहार देखकर बाहर आया और बाहर आकर किसी को फ़ोन करके कहा,"आकर्ष सर, काम हो गया। वह फ़ाइल खराब हो चुकी है।"

    "वहाँ से आकर्ष ने कहा,"गुड जॉब।"

    "इतना कहकर आकर्ष ने फ़ोन काट दिया और शैतानी हँसी हँसने लगा।"

    "आकर्ष सब याद करते हुए खुद से बोला,"वो सब मेरा प्लान था। मेरे होते हुए तुम चैन से कभी नहीं रह पाओगी।"


    मीक्षा रात के वक़्त लाइब्रेरी में थी। वहाँ कोई नहीं था, इसलिए वहाँ अँधेरा और सन्नाटा छाया हुआ था। मीक्षा इधर-उधर देखते हुए लाइब्रेरी को एक्सप्लोर कर रही थी, लेकिन अभी उसने फ़ाइल ढूँढना शुरू नहीं किया था। लाइब्रेरी की सारी लाइटें बंद थीं; केवल दो लाइटें जल रही थीं, इसलिए लाइब्रेरी में काफी कम रोशनी थी।

    मीक्षा सामने देखते हुए जा रही थी, तभी वह किसी चीज़ से टकरा गई। वह डरते हुए अपनी आँखें बंद कर ली और जोर-जोर से पढ़ने लगी,"आल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू, आल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू।"

    लेकिन जब उसे कुछ महसूस नहीं हुआ, तो उसने अपनी एक आँख खोलकर उस चीज़ को देखा जिससे वह टकराई थी। वह जिससे टकराई थी, वह टेबल था। टेबल को देखकर उसकी जान में जान आई और वह अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोली,"ओह! मीक्षा, जरा से टेबल से डर गई।"

    उसने पूरी लाइब्रेरी को देखा जो काफी बड़ी थी। उस पूरी लाइब्रेरी को देखकर मीक्षा रोने वाली शक्ल बनाकर बोली,"भगवान! किताब पढ़ते-पढ़ते मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि यह लाइब्रेरी इतनी बड़ी है! कैसे ढूँढूँ उस फ़ाइल को?"

    वह रोने वाली शक्ल बनाकर खड़ी थी, तभी उसने गहरी साँस लेते हुए कहा,"रिलैक्स, मीक्षा अग्रवाल! तुझे यह करना होगा। तुझे साबित करना है उस नकचढ़े बंदर को कि तू बहुत टैलेंटेड है। चल मीक्षा, अब काम पर लग जा।"

    मीक्षा लाइब्रेरी के शुरू के हिस्से में गई और वहाँ सारी फ़ाइलें पढ़कर देखने लगी। वह एक-एक करके सभी फ़ाइलों को चेक कर रही थी। वक़्त तेज़ी से गुज़र रहा था और अब तक मीक्षा फ़ाइल नहीं ढूँढ पाई थी। रात के दो बज चुके थे। मीक्षा फ़ाइल पढ़ रही थी, तभी उसे बाहर से किसी के कदमों की आहट सुनाई दी।

    कदमों की आहट सुनकर मीक्षा के हाथ से फ़ाइल छूटकर गिर गई और उसकी आँखें डर से फैल गईं। वह घबराते हुए बोली,"हे भगवान! यह रात में कौन आ रहा है लाइब्रेरी में? कहीं भूत तो नहीं?"

    मीक्षा भूत सोचकर डर से और बेहाल हो गई और गहरी साँस लेते हुए खुद को समझाते हुए बोली,"रिलैक्स, मीक्षा! भूत वगैरह कुछ नहीं होता। कोई पढ़ने आया होगा लाइब्रेरी में। लेकिन अगर सच में भूत हुआ तो...?"

    वह खुद से सवाल करके खुद ही जवाब दे रही थी। मीक्षा रोने वाली शक्ल बनाकर उन कदमों की आहट महसूस कर रही थी। वह कदमों की आहट अब तेज़ हो रही थी। मीक्षा भागते हुए गेट की तरफ़ छुप गई और अपने दिल पर हाथ रखकर अपनी साँसों की आवाज़ों को कंट्रोल करने लगी।

    तभी मीक्षा को गेट पर परछाई दिखाई दी और उसकी आँखें डर से फैल गईं। उसकी चीख़ न निकले, इसलिए उसने अपने हाथ को मुँह पर रख लिया और उस परछाई को देखने लगी। वह परछाई लाइब्रेरी के अंदर आ गई। वह परछाई लाइब्रेरी में किसी को ढूँढ रही थी। मीक्षा अपने आस-पास देखती है, तभी उसे अपने साइड में एक फ़्लावर पॉट दिखाई दिया। वह उसे अपने हाथ में लेकर धीमे कदमों से उस आदमी के पीछे गई। वह उसके ठीक पीछे खड़ी हो गई।

    वह उस फ़्लावर पॉट को उस आदमी पर मारने वाली थी, कि उससे पहले ही वह आदमी फुर्ती से हाथ बढ़ाकर उसके हाथ से फ़्लावर पॉट छीनकर मीक्षा को दीवार से लगा दिया। यह इतनी जल्दी हुआ कि मीक्षा को कुछ समझ ही नहीं आया। उसने डर की वजह से आँखें बंद कर ली थीं। उसकी साँसों की आवाज़ पूरी लाइब्रेरी में शोर मचा रही थी।

    वह अपनी साँसों को कंट्रोल करके अपनी आँखें खोली और अपने सामने खड़े शख्स को देखकर उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं और उसके मुँह से अनजाने ही निकल गया,"आप...?"

    उसके सामने खड़ा शख्स कोई और नहीं, आकर्ष था, जो मीक्षा को देखने लाइब्रेरी की तरफ़ आया था। वह लाइब्रेरी में आया ही था कि उसे किसी की दबी हुई साँसों की आवाज़ सुनाई दी और उसने फुर्ती से मीक्षा का हाथ पकड़कर उसे रोक लिया। मीक्षा दीवार से लगी हुई थी और आकर्ष ने उसे अपने दोनों हाथों से कैद किया हुआ था और वह एकटक उसकी आँखों में देख रहा था।

    "मीक्षा उसे देखकर उस पर बरसते हुए बोली,"क्या आपका दिमाग खराब है? मुझे पता था आप भूत हैं, लेकिन यह साबित करने की क्या ज़रूरत थी?"

    आकर्ष उसकी बचकानी बातें सुनकर अपनी उंगली उसके होठों पर रख दी। आकर्ष की उंगली को अपने होठों पर महसूस कर मीक्षा की साँसें तेज़ हो गईं। आकर्ष उसकी आँखों में देखकर बोला,"पता है, मैं तुम्हें पसंद नहीं हूँ, तो क्या ऐसे अटैक करोगी मुझ पर? अगर मैं तुम्हारा हाथ नहीं पकड़ता, तो तुमने तो मुझे मारने का पूरा प्लान बना रखा था।"

    आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा की आँखें छोटी हो गईं और उसने आकर्ष को धक्का दिया। आकर्ष इसके लिए तैयार नहीं था, इसलिए वह दो कदम पीछे हट गया। मीक्षा गुस्से में बोली,"मैंने आपको मारने का प्लान नहीं बनाया था, समझे? आप खुद ही यहाँ मुँह उठाकर आधी रात को आ गए।"

    मीक्षा की बदतमीज़ी सुनकर आकर्ष का दिमाग खराब हो गया।

  • 13. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 13

    Words: 955

    Estimated Reading Time: 6 min

    आकर्ष उसकी बचकानी बातें सुनकर अपनी उंगली उसके होठों पर रख दिया। आकर्ष की उंगली को अपने होठों पर महसूस कर मीक्षा की साँसें तेज हो गईं। आकर्ष उसकी आँखों में देखकर बोला, "पता है, मैं तुम्हें पसंद नहीं हूँ, तो क्या ऐसे अटैक करोगी मुझ पर? अगर मैं तुम्हारा हाथ नहीं पकड़ता, तो तुमने तो मुझे मारने का पूरा प्लान बना रखा था।"

    "आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा की आँखें छोटी हो गईं और उसने आकर्ष को धक्का दिया। आकर्ष इसके लिए तैयार नहीं था, इसलिए वह दो कदम पीछे हट गया। मीक्षा गुस्से में बोली, "मैंने आपको मारने का प्लान नहीं बनाया था, समझे? आप खुद यहाँ मुँह उठाकर चले आए, आधी रात को।"

    "मीक्षा की बदतमीज़ी सुनकर आकर्ष का दिमाग खराब हो गया।"

    मीक्षा की बात सुनकर आकर्ष का पारा हाई हो गया क्योंकि आज तक उससे किसी ने ऐसे बात नहीं की थी। उसने मीक्षा की कलाई पकड़कर उसे अपने करीब खींच लिया। मीक्षा उसकी तरफ़ कटी पतंग की तरह खींची चली गई। आकर्ष उसकी कलाई को बहुत टाइट पकड़े हुए था जिससे मीक्षा को दर्द हो रहा था।

    आकर्ष उसकी आँखों में आँखें डालकर कुछ पल रुककर बोला, "अपनी औकात में रहो, वरना औकात दिखाना मुझे अच्छे से आता है।"

    अपनी बात कहकर आकर्ष ने उसे धक्का दे दिया जिससे वह जमीन पर गिर गई और उसकी आह निकल गई। वह अपनी कमर को पकड़कर आकर्ष को घूरने लगी और उसे घूरते हुए जल्दी से बोली, "मुझे मेरी औकात अच्छे से पता है। आप बेशर्म हैं। उस दिन भी मुझे किस किया और अब भी किसी न किसी बहाने मेरे करीब आने की कोशिश कर रहे हैं।"

    आकर्ष उसकी बात सुनकर उसे घूरते हुए बोला, "वह किस गलती से हुई थी, समझी? खुद को इतना स्पेशल मत समझो।"

    मीक्षा उसकी बात सुनकर गुस्से में बोली, "मैं बहुत अच्छे से जानती हूँ, आप लोगों को माँ-बाप सिर्फ़ पैसे में खेलना सिखाते हैं, लेकिन कभी लड़की की इज़्ज़त करना नहीं सिखाते। यह आपकी गलती नहीं है, यह आपके माँ-बाप की गलती है कि उन्होंने आपको कुछ नहीं सिखाया।"

    मीक्षा को पता ही नहीं चला वह अपने गुस्से में कितनी बड़ी बात कह गई। उसने गुस्से में ही सही पर आकर्ष की परवरिश पर सवाल उठाया था। जब मीक्षा का ध्यान आकर्ष की तरफ़ गया तो उसके अंदर डर की लहर दौड़ गई। आकर्ष की आँखें गुस्से में लाल हो रही थीं, उसके हाथों की नसें दिख रही थीं। आकर्ष उसे अपनी लाल आँखों से घूर रहा था।

    अबीर आगे बढ़कर उसकी कलाई पकड़ा और उसे उठाकर दीवार से लगा दिया और चिल्लाते हुए बोला, "तुमने उस दिन की गलती की वजह से मेरी माँ की परवरिश पर सवाल उठा दिया। कोई बात नहीं, अब सवाल उठ ही गया है तो उसे सच साबित कर देता हूँ।"

    मीक्षा तो आकर्ष के चिल्लाने से ही फ्रिज हो चुकी थी। डर की वजह से उसकी आवाज़ ही नहीं निकल रही थी। आकर्ष की धमकी सुनकर उसकी आँखें बड़ी हो गईं। वह कुछ रिएक्ट करती इससे पहले ही आकर्ष उसके होठों को कैप्चर कर लेता है। मीक्षा की आँखें बड़ी हो गईं। वह बिलकुल ब्लैंक हो चुकी थी। जब आकर्ष उसके गाल पर हाथ रखता है और उसके लिप्स को चूसने लगता है तो मीक्षा होश में आती है। उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। वह आकर्ष को धक्का देने की कोशिश करती है, लेकिन आकर्ष उसके दोनों हाथों को ऊपर करके अपने एक हाथ से इंटरवर्ट कर लेता है और मीक्षा को गहराई से किस करने लगता है। आकर्ष ने उसके होठों को काटना शुरू कर दिया था जिससे मीक्षा को दर्द हो रहा था, लेकिन वह चीख नहीं पा रही थी। आकर्ष उसे किस करने में इतना खो गया था उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसकी किस मीक्षा को तकलीफ दे रही है।

    आकर्ष किस कर रहा था तभी उसे अपने गाल पर कुछ गरम महसूस होता है जिससे वह होश में आता है और मीक्षा के होठों को छोड़कर उससे अलग होता है और उसके चेहरे की तरफ़ देखता है। मीक्षा का चेहरा आँसुओं से भरा हुआ था। आकर्ष और मीक्षा की आँखें एक दफ़ा मिलती हैं। मीक्षा की आँखों में आँसू देखकर पता नहीं आकर्ष को क्या फील होता है, वह बिना कुछ कहे वहाँ से चला जाता है।

    उसके जाते ही मीक्षा जमीन पर बैठकर अपने फेस को छुपाकर रोने लगती है और रोते हुए कहती है, "आप बहुत बुरे हैं। आई हेट यू। 😭"

    कुछ देर रोने के बाद मीक्षा अपने आँसू साफ़ करती है और उठकर दुबारा अपनी फाइल ढूँढने लगती है। वक़्त गुज़र रहा था। सुबह के 6 बज चुके थे, लेकिन मीक्षा को अभी तक फाइल नहीं मिली थी। वह अपने सर पर हाथ रखती है और घबराते हुए कहती है, "क्या करूँ अब? फाइल तो मिल ही नहीं रही और 8 बजे से क्लासेज़ हैं। एक काम करती हूँ, क्लासेज़ के बाद फाइल ढूँढ लूँगी। हाँ, यह सही रहेगा। अभी जाकर तैयार हो जाती हूँ।"

    मीक्षा लाइब्रेरी से निकलकर हॉस्टल में आती है। वह रात भर नहीं सोई थी इसलिए उसके सर में दर्द था। वह हॉस्टल में आकर फ्रेश होती है और तैयार होती है। उसने ब्लैक टॉप और जीन्स पहनी थी और अपने बालों की पोनी बनाई थी जिससे कुछ बाल उसके चेहरे पर आ रहे थे, जिसमें वह और भी खूबसूरत लग रही थी।

    कुछ देर में मीक्षा और राम्या कॉलेज कैंटीन में बैठी थीं। मीक्षा के सर में दर्द था इसलिए वह कॉफ़ी पी रही थी। 15 मिनट बाद उनकी क्लास थी। मायरा और राम्या कॉफ़ी पीती हैं और वहाँ से अपनी क्लास के लिए निकल जाती हैं।

  • 14. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 14

    Words: 1143

    Estimated Reading Time: 7 min

    मीक्षा लाइब्रेरी से निकलकर हॉस्टल आई। वह रात भर नहीं सोई थी; इसलिए उसके सिर में दर्द था। हॉस्टल आकर वह फ्रेश हुई और तैयार हुई। उसने ब्लैक टॉप और जीन्स पहनी और बालों की पोनी बनाई थी। कुछ बाल उसके चेहरे पर आ रहे थे, जिसमें वह और भी खूबसूरत लग रही थी।

    कुछ देर बाद मीक्षा और राम्या कॉलेज कैंटीन में बैठी थीं। मीक्षा के सिर में दर्द था, इसलिए वह कॉफी पी रही थी। पन्द्रह मिनट बाद उनकी क्लास थी। मीक्षा और राम्या कॉफी पीकर अपनी क्लास के लिए निकल गईं।


    मीक्षा और राम्या अपनी क्लास में बैठी थीं। प्रोफ़ेसर कुछ प्रश्न पढ़ा रहे थे। मीक्षा का ध्यान पढ़ाई पर नहीं था; वह अभी भी फाइल और कल रात के बारे में सोच रही थी। कुछ देर में प्रोफ़ेसर अपनी क्लास लेकर चले गए।

    उनके जाते ही मीक्षा उठी। मीक्षा को उठते देख राम्या उसकी तरफ देखकर पूछी, "क्या हुआ? खड़ी क्यों हो गई?"

    राम्या की बात सुनकर मीक्षा अपना बैग उठाकर जल्दी से बोली, "राम्या, मुझे नोट्स दे देना। फिलहाल मेरे लिए फाइल ढूँढना ज़्यादा ज़रूरी है, वरना मैं वन मंथ के लिए सस्पेंड हो जाऊँगी।"

    राम्या कुछ पल रुककर बोली, "ठीक है। तू जा। ये क्लासेज़ खत्म होते ही मैं भी आ जाऊँगी तेरी मदद करने। नोट्स की फ़िक्र मत कर, ओके।"

    मीक्षा उसकी बात सुनकर उसे गले लगा लिया और उससे अलग होते हुए बोली, "थैंक्यू यार! तू नहीं होती तो पता नहीं मेरा क्या होता।"

    राम्या उसके सर पर थपकी मारते हुए बोली, "पागल! अब जल्दी जा।"

    मीक्षा एक बार फिर राम्या के गले लगी और उससे अलग होकर भागते हुए क्लास से निकल गई। मीक्षा क्लास से निकलकर लाइब्रेरी आई। लाइब्रेरी में काफी स्टूडेंट्स थे; कुछ पढ़ रहे थे, और कुछ बातें कर रहे थे। मीक्षा गहरी साँस लेकर खुद से बोली, "मुझे रात होने से पहले वो फाइल ढूँढनी पड़ेगी।"

    मीक्षा ने अपनी घड़ी देखी। ग्यारह बज रहे थे। वह समय देखकर अपने काम में लग गई। उसने आधे से ज़्यादा लाइब्रेरी को चेक कर लिया था। वह अभी भी लाइब्रेरी के हर हिस्से को चेक कर रही थी। वक्त तेज़ी से गुज़र रहा था; मीक्षा बहुत थक चुकी थी। वह आराम करने के लिए लाइब्रेरी में ही एक चेयर पर बैठ गई और अपने बैग से पानी निकालकर पीने लगी।

    वह पानी पीकर गहरी साँस ली और एक बार फिर घड़ी देखी। समय देखकर उसकी आँखें फैल गईं और वह घबराते हुए उठकर बोली, "शिट! चार बज गए और अभी तक फाइल नहीं मिली! हे मातारानी! कुछ तो मदद करो! मैं सस्पेंड नहीं होना चाहती! अभी तो मुझे कॉलेज में आए कुछ ही दिन हुए हैं।"

    मीक्षा परेशान होकर अपने सिर पर हाथ रख लिया। तभी वहाँ राम्या आई और मीक्षा को परेशान होते देख उसके पास आई और उससे पूछा, "क्या हुआ? फाइल मिली?"

    राम्या के पूछने पर मीक्षा रोने वाली शक्ल बनाकर ना में सर हिला दी। उसे देखकर लग रहा था जैसे वह अभी रो देगी। राम्या आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और उसकी पीठ सहलाते हुए बोली, "शांत हो जा! मैं आ गई ना! साथ मिलकर ढूँढ लेंगे। मिल जाएगी फाइल! तू परेशान मत हो।"

    राम्या के इतने प्यार से समझाने पर मीक्षा को थोड़ी हिम्मत मिली और उसने अपने सर को हाँ में हिलाया। राम्या उसे देखकर मुस्कुराई और फिर दोनों फाइल ढूँढने लगीं। राम्या और मीक्षा पागलों की तरह लाइब्रेरी का हर कोना चेक कर चुकी थीं, लेकिन वह फाइल उन्हें कहीं नहीं मिली। अब तक रात के नौ बज चुके थे।

    मीक्षा और राम्या लाइब्रेरी के एक टेबल पर सर पकड़कर बैठी थीं क्योंकि वे अब तक पूरी लाइब्रेरी चेक कर चुकी थीं। फाइल नहीं मिलने पर मीक्षा की आँखें नम हो गई थीं। वह नम आँखों से राम्या को देखते हुए बोली, "फाइल तो मिली नहीं! अब क्या करूँ राम्या? मैं एक महीने के लिए सस्पेंड हो जाऊँगी अब।"

    राम्या उसे देखते हुए कुछ पल रुककर बोली, "तू आकर्ष सर से कह देना हमें फाइल नहीं मिली। अब यही एक रास्ता है।"

    मीक्षा उसकी बात सुनकर उसे घूरते हुए बोली, "हाँ! और जैसे वो मेरी बात पर यकीन कर लेंगे।"

    राम्या जल्दी से बोली, "और कोई ऑप्शन है तेरे पास?"

    मीक्षा उसकी बात सुनकर अपना सर झुका लिया। तभी राम्या कुछ पल रुककर बोली, "तू उनसे बात करना, वो समझ जाएँगे। और अब चल, हॉस्टल। तेरी शिफ्ट का टाइम भी होने वाला है।"

    कुछ देर में मीक्षा हॉस्टल रूम से अपनी शिफ्ट के लिए निकल गई। वह आकर्ष के केबिन में आई, लेकिन उसे केबिन में कोई दिखाई नहीं दिया। वह सब तरफ देख रही थी। तभी अचानक किसी ने उसकी कलाई पकड़कर उसे दरवाजे से लगा दिया। अचानक ऐसा होने से मीक्षा कुछ समझ नहीं पाई और डर से अपनी आँखें बंद कर लीं। कुछ देर बाद जब उसे कुछ महसूस नहीं हुआ तो उसने अपनी आँखें खोलीं। आँखें खोलते ही उसकी नीली आँखें आकर्ष की हेज़ल ग्रीन आँखों से मिलीं। आकर्ष तिरछी मुस्कान के साथ उसे देख रहा था। वे दोनों इतने करीब थे कि उनमें हवा गुज़रने की भी जगह नहीं थी।

    आकर्ष को अपने सामने देखकर मीक्षा की आँखें बड़ी हो गईं और वह घबराते हुए बोली, "क्या कर रहे हैं आप? और अचानक मुझे क्यों खींचा?"

    आकर्ष उसकी बातों पर ध्यान नहीं दे रहा था क्योंकि उसकी नज़र मीक्षा के गुलाबी होंठों पर थी। उसने अपने अंगूठे को उसके होंठों पर रखा। उसके ऐसा करते ही मीक्षा की धड़कन तेज हो गई, जो आकर्ष को साफ़ सुनाई दे रही थी। वह अपने अंगूठे से उसके होंठों को सहलाने लगा। वह उसकी आँखों में देखकर कुछ पल रुककर बोला, "तुम्हारे लिप्स बहुत टेस्टी हैं।"

    आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा को कल रात का सीन याद आ गया और ना चाहते हुए भी उसका चेहरा लाल हो गया। उसे ब्लश करते देख आकर्ष के चेहरे पर तिरछी मुस्कान तैर गई और वह उसके लाल हुए चेहरे को देखकर बोला, "आरे यू ब्लशिंग स्वीटहार्ट?"

    आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा ने अपने गालों पर हाथ रखा और घबराते हुए बोली, "नहीं नहीं! मैं क्यों ब्लश करूँगी? थोड़ी तबियत खराब है मेरी।"

    आकर्ष आई रोल करते हुए बोला, "व्हाटएवर! चलो अब काम की बात करते हैं। फाइल दो।"

    आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा की आँखें फैल गईं।

  • 15. Zaalim ishq author_alfariya sheikh.. - Chapter 15

    Words: 904

    Estimated Reading Time: 6 min

    आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा को कल रात का दृश्य याद आ गया और, ना चाहते हुए भी, उसका चेहरा लाल हो गया। उसे ब्लश करते देख आकर्ष के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान तैर गई और वह उसके लाल हुए चेहरे को देखकर बोला, "आरे यू ब्लशिंग स्वीटहार्ट?"

    "आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा ने अपने गालों पर हाथ रखा और घबराते हुए कहा, "नहीं नहीं, मैं क्यों ब्लश करूँगी? थोड़ी तबियत खराब है मेरी।"

    "आकर्ष ने आँखें घुमाते हुए कहा, "व्हाटएवर, चलो अब काम की बात करते हैं। फाइल दो।"

    "आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा की आँखें फैल गईं।"

    आकर्ष के फाइल माँगने पर मीक्षा की आँखें फैल गईं। मीक्षा चुपचाप अपना सर झुका ली। आकर्ष उसके बदलते भावों को ध्यान से देख रहा था। उसके बदलते भाव देखकर आकर्ष के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान तैर गई।

    "आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा ने सर उठाकर आकर्ष की तरफ देखा और एक गहरी साँस लेकर कहा, "सर, वो फाइल पूरी लाइब्रेरी में नहीं मिली।"

    "आकर्ष ने उसकी बात सुनकर साइड ड्रॉअर से एक फाइल निकाली और मीक्षा के ठीक सामने आकर खड़ा हो गया। मीक्षा उस फाइल को समझ नहीं पा रही थी। आकर्ष कुछ पल रुककर बोला, "ये रही फाइल।"

    "आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा की आँखें बड़ी हो गईं और वह घबराते हुए बोली, "मुझे तो ये फाइल कहीं नहीं मिली, फिर आपके पास कैसे?"

    "मीक्षा की बात सुनकर आकर्ष के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान तैर गई और वह उसके आगे-पीछे घूमते हुए बोला, "फाइल मेरे पास ही थी। ये लाइब्रेरी वाली पनिशमेंट सिर्फ तुम्हें सबक सिखाने के लिए थी। ये पनिशमेंट तुम्हें हमेशा याद रहेगी और आगे तुम कोई भी काम सावधानी से करोगी।"

    "आकर्ष जैसे-जैसे बोल रहा था, मीक्षा की आँखें हैरानी से बड़ी होती जा रही थीं। वह आगे बढ़कर उसे घूरते हुए बोली, "आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? आपको पता है ये एक दिन मेरे लिए कितने मुश्किल से गुजरा है? सस्पेंड होने के डर से दिन-रात पागलों की तरह फाइल ढूँढ रही थी और आप मुझे बोल रहे हैं कि ये अपने सबक सिखाने के लिए किया है।"

    "आकर्ष ने उसकी बात सुनकर तिरछा मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हें सबक सिखाना भी तो ज़रूरी था ना, स्वीटहार्ट। अब आकर्ष ने तुम्हारा नुकसान भरने का ठेका थोड़ी ले रखा है। BTW, तुम्हारा सस्पेंशन कैंसिल।"

    "मीक्षा ने उसकी बात सुनकर उसे घूरना शुरू कर दिया। वह जानती थी कि जो होना था, हो गया। अब आकर्ष से बहस करने का कोई फायदा नहीं था। उसे इस बात की खुशी थी कि वह अब सस्पेंड नहीं होगी। वह आकर्ष को देखकर गहरी साँस ली और कुछ पल रुककर बोली, "अब सज़ा पूरी हो गई हो तो ड्यूटी स्टार्ट करें सर।"

    "आकर्ष ने चेयर पर रखा अपना कोट उठाया और मीक्षा को अपने पीछे आने का इशारा किया। मीक्षा उसे जाते देख उसके पीछे चली गई। कुछ देर में मीक्षा और आकर्ष ICU के बाहर आकर रुके।"

    ICU के बाहर एक औरत के चीखने की आवाज़ आ रही थी। उस आवाज़ को सुनते ही मीक्षा की आँखें फैल गईं और वह घबराते हुए जल्दी से बोली, "ये कौन चीख रहा है अंदर?"

    "आकर्ष ने उसकी बात पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दी और ICU का गेट खोलकर अंदर चला गया। आकर्ष को बिना जवाब दिए जाते देख मीक्षा मुँह बना ली और उसके पीछे चली गई। ICU में बेड पर एक प्रेग्नेंट औरत लेटी थी और वह दर्द से चीख रही थी। उस औरत का शरीर चादर से ढका हुआ था। उस औरत के आस-पास सारी नर्सें किसी न किसी काम में लगी थीं और डॉक्टर उसकी डिलीवरी करने की तैयारी कर रही थीं। आकर्ष के अंदर आते ही सब ने सर झुकाकर उसे विश किया और फिर से अपने काम में लग गए।"

    "आकर्ष का ही नियम था - हॉस्पिटल ड्यूटी के वक़्त कोई भी सीनियर आ जाए, कोई उस पर ध्यान नहीं देगा क्योंकि फ़र्ज़ पहले आता है, बाकी सब बाद में।" आकर्ष मीक्षा को लेकर डॉक्टर के पास आया। वह डॉक्टर अच्छी खासी कद-काठी की थीं, उनकी उम्र लगभग 33 साल थी। ये डॉ मधु थीं। आकर्ष उनके पास आकर बोला, "डॉ मधु, क्या आपके दो मिनट हैं?"

    "आकर्ष की बात सुनकर मधु ने उनकी तरफ़ देखते हुए जल्दी से कहा, "जी सर, बोलिए?"

    "मधु की बात सुनकर आकर्ष ने मीक्षा की तरफ़ देखते हुए कहा, "डॉ मधु, ये हैं डॉ मीक्षा, MBBS फर्स्ट ईयर स्टूडेंट। आज इनकी ड्यूटी आपके साथ है।"

    "डॉ मधु मुस्कुराते हुए कुछ पल रुककर बोलीं, "जी सर।"

    "आकर्ष ने मीक्षा को देखकर थोड़ी सख्ती से कहा, "डॉ मीक्षा, कोई गलती नहीं होनी चाहिए, गॉट इट?"

    "मीक्षा ने आकर्ष की बात सुनकर एक नज़र बेड पर तड़पती हुई औरत को देखा और एक गहरी साँस भरकर कहा, "गॉट इट सर।"

    "आकर्ष ने मीक्षा को एक नज़र देखकर डॉ मधु से कहा, "डॉ मधु, इन पर ज़रा ध्यान देना, ये अभी नई हैं।"

    "आकर्ष की बात सुनकर मधु ने अपना सर हिला दिया। आकर्ष मीक्षा को देखकर वहाँ से चला गया। आकर्ष कितना भी बुरा इंसान क्यों ना हो, लेकिन वह अपने काम को लेकर बहुत सीरियस था। वह अपने काम को लेकर कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं करता था। उसका काम उसके लिए उसका पैशन नहीं, उसकी दुनिया था। वह अपने काम से बेहद प्यार करता था।"

  • 16. Zaalim ishq <br>author_alfariya sheikh.. - Chapter 16

    Words: 834

    Estimated Reading Time: 6 min

    आकर्ष ने मीक्षा को एक नज़र देखा और डॉ. मधु से कहा, "डॉ. मधु, इन पर ज़रा ध्यान दीजिए, ये अभी नए हैं।"

    डॉ. मधु ने आकर्ष की बात सुनकर सिर हिलाया। आकर्ष मीक्षा को देखकर वहाँ से चला गया। आकर्ष कितना भी बुरा इंसान क्यों न हो, लेकिन वह अपने काम को लेकर बहुत गंभीर था। वह अपने काम में कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं करता था। उसका काम उसके लिए उसका पैशन नहीं, उसकी दुनिया थी। उसे अपने काम से बेहद प्यार था।

    मीक्षा आकर्ष के केबिन में खड़ी थी और कुछ फाइलें पढ़ रही थी। आकर्ष काफी देर से लैपटॉप पर अपनी उंगलियाँ बड़ी फुर्ती से चला रहा था। उसे देखकर लग रहा था जैसे वह बहुत महत्वपूर्ण काम कर रहा है। वह काम कर रहा था और बार-बार एक नज़र मीक्षा को भी देख रहा था, जो अपनी फाइलें पढ़ने में इतनी व्यस्त थी कि उसने आकर्ष को एक नज़र भी नहीं देखा। वे दोनों काम कर रहे थे, तभी दरवाज़ा खुला। दरवाज़ा खुलने की आवाज़ से दोनों ने उस तरफ देखा।

    बिना अनुमति आए किसी को देखकर आकर्ष की आँखों में गुस्सा उतर आया। वह चिल्लाया, "कौन हो तुम?"

    आकर्ष की आवाज़ सुनकर एक लड़की अंदर आई। उसने घुटनों तक की एक ड्रेस पहनी हुई थी जिसमें उसके गोरे पैर साफ़ दिख रहे थे। उसके लंबे बाल, भूरी आँखें, गुलाबी होंठ थे और उसने अपने चेहरे पर गहरा मेकअप किया हुआ था। उसे देखकर ही लग रहा था कि यह अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद है। यह लीना रॉय थी। लीना आकर्ष के पिता के दोस्त की बेटी थी जो आकर्ष के अधीन काम करती थी और वह आकर्ष से शादी करना चाहती थी जिससे उसे आकर्ष के नाम का रुतबा मिल सके।

    लीना मुस्कुराती हुई आकर्ष की तरफ आई और उसकी गोद में बैठ गई। उसने अपने हाथ आकर्ष की गर्दन में डालकर उसके सीने से लगते हुए कहा, "आकर्ष बेबी, आई मिस यू।"

    मीक्षा दूर बैठी सब देख रही थी। लीना को आकर्ष के इतने करीब देखकर उसकी आँखें फैल गईं। लीना को अपने करीब देखकर आकर्ष की आँखों में गुस्सा उतर आया और उसने एक झटके में उसे गिरा दिया। लीना "ouch" की आवाज़ के साथ जमीन पर गिर गई। मीक्षा, जो उन दोनों को देख रही थी, लीना को गिरते देखकर हँसने लगी और वह जोर-जोर से हँसने लगी। आकर्ष, जो गुस्से से लीना को घूर रहा था, किसी की आवाज़ सुनकर उसकी तरफ देखा। यह पहली बार था जब उसने मीक्षा को हँसते हुए देखा था। वरना मीक्षा ज्यादातर चुप ही रहती थी। वह बिना किसी की परवाह किए जोर-जोर से हँस रही थी। आकर्ष अनजाने में ही सही, उसकी हँसी में खो चुका था।

    किसी की आवाज़ सुनकर लीना पीछे देखी और मीक्षा को घूरते हुए चिल्लाई, "बस कर बेवकूफ़ लड़की! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर हँसने की? जानती भी हो मैं कौन हूँ?"

    लीना की गुस्से भरी आवाज़ सुनकर मीक्षा की हँसी गायब हो गई और उसने अपनी हँसी को कण्ट्रोल करते हुए कहा, "मुझे जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है कि आप कौन हैं।"

    मीक्षा की बदतमीज़ी देखकर लीना ने गुस्से से उस पर एक नज़र डाली और आकर्ष को घूरते हुए कहा, "क्या कर रहे हो आकर्ष? तुमने मुझे क्यों गिराया? इस दो कौड़ी की लड़की के सामने मेरी बेइज़्ज़ती कर दी।"

    लीना की बात सुनकर मीक्षा की आँखें छोटी हो गईं और वह गुस्से में बोली, "आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझे दो कौड़ी की कहने की? जैसी भी हूँ, आपकी तरह गिरी हुई नहीं हूँ।"

    लीना ने उसकी बातें सुनकर अपने हाथों की मुट्ठी बना ली और चिल्लाई, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई लीना रॉय पर हँसने की? अपनी औकात में रहो लड़की और दफ़ा हो जाओ यहाँ से। मुझे आकर्ष के साथ समय बिताना है।"

    लीना की बात सुनकर मीक्षा ने उसे घूरते हुए कहा, "मैं आपकी बात क्यों सुनूँ? जब आकर्ष सर मुझे जाने को कहेंगे, तब जाऊँगी मैं।"

    मीक्षा की बात सुनकर आकर्ष के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान आ गई और वह खड़े होकर लीना से बोला, "बाहर निकल जाओ लीना।"

    आकर्ष की बात सुनकर लीना उसे देखने लगी और बोली, "ये क्या कह रहे हो बेबी? मैं तुमसे मिलने आई थी। इस लड़की को यहाँ से जाने को कहो।"

    आकर्ष लीना को देखते हुए चिल्लाया, "मैंने कहा, बाहर निकल जाओ लीना!"

    आकर्ष की गुस्से भरी आवाज़ सुनकर लीना काँप गई और मीक्षा को घूरते हुए बोली, "छोड़ूँगी नहीं मैं तुम्हें। आज तुम्हारी वजह से इतनी बेइज़्ज़ती हुई है मेरी।"

    वह एक नज़र मीक्षा को देखकर चुपचाप वहाँ से निकल गई क्योंकि वह जानती थी आकर्ष कैसा है। जब उसे गुस्सा आता है तो वह किसी की भी जान ले सकता है। लीना को जाते देख मीक्षा फिर से जोर-जोर से हँसने लगी।

  • 17. Zaalim ishq <br>author_alfariya sheikh.. - Chapter 17

    Words: 836

    Estimated Reading Time: 6 min

    आकर्ष की गुस्से भरी आवाज़ सुनकर लीना काँप गई और मीक्षा को घूरते हुए कहा, "छोड़ूंगी नहीं मैं तुम्हें। आज तुम्हारी वजह से इतनी इंसल्ट हुई है मेरी।"

    "वो एक नज़र मीक्षा को देखकर चुपचाप वहाँ से निकल गई क्योंकि वो जानती थी आकर्ष कैसा है। जब उसे गुस्सा आता है तो वो किसी की भी जान ले सकता है।" लीना को जाते देख मीक्षा एक बार फिर जोर-जोर से हँसने लगी।

    मीक्षा लीना के जाने के बाद जोर-जोर से हँस रही थी। आकर्ष खड़ा उसे एकटक देख रहा था। वो अचानक अपने कदम उसकी ओर बढ़ा दिया। मीक्षा जो हँस रही थी, आकर्ष को अपनी ओर आता देख उसकी हँसी गायब हो गई और उसकी आँखें बड़ी हो गईं। आकर्ष उसकी आँखों में देखते हुए उसके करीब बढ़ रहा था। मीक्षा उसे करीब आता देखकर अपने कदम पीछे लेने लगी। आकर्ष अपने कदम बढ़ा रहा था और वो अपने कदम पीछे ले रही थी। पीछे होते हुए मीक्षा दीवार से लग गई। अब तक आकर्ष उसके करीब आ चुका था। वो निकलने की कोशिश करती है, तो आकर्ष उसे अपने दोनों हाथों के बीच कैद कर लेता है।

    आकर्ष के करीब होने से मीक्षा का दिल बहुत जोर से धड़क रहा था। वो घबराई हुई आँखों से आकर्ष को देखती है। उसकी धड़कन सुनकर आकर्ष के चेहरे पर तिरछी मुस्कान तैर गई और वो उसकी कमर पकड़कर अपने और नज़दीक कर लेता है। मीक्षा के दोनों हाथ आकर्ष के सीने पर आ जाते हैं और वो एकटक आकर्ष को देखने लगती है।

    मीक्षा उससे दूर होने की कोशिश करती है। उसे खुद से दूर जाता देख आकर्ष की आँखें सर्द हो जाती हैं और वो उसकी कमर पर अपनी पकड़ कस लेता है। मीक्षा डरते हुए उसकी आँखों में देखकर कहती है, "Wh-what are you doing?"

    आकर्ष उसके होठों पर अपना अंगूठा रखकर उसकी आँखों में देखते हुए कहता है, "Shhhhhh🤫"

    मीक्षा उसके कहने पर चुप हो जाती है और डरते हुए उसे देखने लगती है। आकर्ष अपने अंगूठे से उसके होठों को मसल रहा था और मीक्षा चुपचाप उसकी आँखों में देख रही थी। आकर्ष अचानक उसके गाल पर हाथ रखता है और उसके होठों को मुँह में भर लेता है। आकर्ष के अचानक ऐसे करने से मीक्षा की आँखें बड़ी हो जाती हैं और उसकी पकड़ आकर्ष की शर्ट पर कस जाती है। आकर्ष धीरे-धीरे उसे किस कर रहा था। आकर्ष उसके गाल को छोड़कर उसके बालों को मुट्ठी में भर लेता है और मीक्षा को और पैशनेटली किस करने लगता है।

    वो किस कर रहा था, तभी अचानक वो मीक्षा के होठों को काटता है। काटते ही मीक्षा होश में आती है। वो भी उसकी किस के साथ बहक चुकी थी। मीक्षा उसे धक्का देती है। आकर्ष जो उसे किस करने में बिज़ी था, अचानक धक्का लगने से वो मीक्षा से दूर हो जाता है और मीक्षा को देखता है जो नम आँखों से उसे घूर रही थी।

    मीक्षा आगे बढ़कर उसका कॉलर पकड़ते हुए उसकी आँखों में देखते हुए कहती है, "How dare you to kiss me?"

    आकर्ष उसकी बात सुनकर तिरछा मुस्कुराता है और एक बार फिर उसके होंठों को कैप्चर कर लेता है और उसे किस करके उससे दूर होकर उसकी आँखों में देखते हुए कहता है, "ऐसे sweetheart।"

    मीक्षा उसके दुबारा किस करने से ब्लैंक हो चुकी थी। वो उसकी आँखों में देखकर अपने आँसू को साफ़ करते हुए चुपचाप वहाँ से निकल जाती है। आकर्ष उसके जाते ही अपने होठों को अपने अंगूठे से साफ़ करता है और तिरछा मुस्कुराते हुए कहता है, "Testy।"

    मीक्षा रोते हुए कॉरिडोर से जा रही थी, तभी उसकी नज़र लीना से मिलती है। लीना उसे देखकर गुस्से में कुछ कहने वाली होती है कि इससे पहले ही मीक्षा उसे इग्नोर करके उसकी साइड से निकल जाती है। खुद को इग्नोर होता देख लीना उसे जाते हुए देखकर खुद से गुस्से में कहती है, "इसकी हिम्मत कैसे हुई मुझे इग्नोर करने की? मैं इसे छोड़ूंगी नहीं।"

    कुछ देर में मीक्षा अपने हॉस्टल के वॉशरूम में थी और बार-बार अपने होठों को पानी से मसल रही थी, जैसे उस पर कोई गंदगी लगी हो। वो काफी देर रगड़ने के बाद अपने होठों को देखती है जो लाल हो चुके थे। उसके कपड़ों से भी आकर्ष के परफ्यूम की खुशबू आ रही थी। वो बेरहमी से अपने कपड़े उतारकर बदलती है और एक नज़र खुद को वॉशरूम के मिरर में देखकर बाहर आती है।

    इस वक़्त रात के 4 बज रहे थे। उसका हॉस्टल हॉस्पिटल से काफी दूर था। वो एक नज़र सोती हुई राम्या को देखती है जो बेखबर सो रही थी। उसका ब्लैंकेट नीचे गिरा हुआ था। मीक्षा को RMCH में आए हुए 2 महीने हो गए थे। इतने टाइम में उसकी और राम्या की काफी अच्छी बॉन्डिंग हो चुकी थी। वो आगे बढ़कर उसके ब्लैंकेट को जमीन से उठाकर उसे ओढ़ा देती है और एक नज़र उसे देखकर अपने बेड पर आकर सो जाती है।

  • 18. Zaalim ishq <br>author_alfariya sheikh.. - Chapter 18

    Words: 875

    Estimated Reading Time: 6 min

    रात के चार बज रहे थे। मीक्षा का हॉस्टल, अस्पताल से काफी दूर था। उसने एकटक सोती हुई राम्या को देखा; वह बेखबर सो रही थी, उसका कंबल नीचे गिर गया था। मीक्षा को आरएमसीएच में दो महीने हो गए थे। इतने समय में उसकी और राम्या की अच्छी बॉन्डिंग हो चुकी थी। वह आगे बढ़ी, जमीन से उसका कंबल उठाया, उसे ओढ़ा दिया और एक नज़र उसे देखकर अपने बिस्तर पर आकर सो गई।


    सुबह, मीक्षा और राम्या कॉलेज कैंटीन में बैठकर कॉफी पी रही थीं। उनकी पहली क्लास तीस मिनट बाद थी। राम्या ने ग्राउंड में क्रिकेट खेल रहे छात्रों को देखा और चहकते हुए मीक्षा से कहा, "मैंने सुना है कॉलेज में फ्रेशर्स पार्टी होने वाली है।"


    मीक्षा ने उसे देखते हुए कुछ पल रुककर कहा, "कॉलेज आए दो महीने बाद फ्रेशर्स पार्टी?"


    राम्या खुश होकर तुरंत बोली, "हाँ, सुनने में तो यही आया है। खैर, जब भी हो, हमें तो जाना है। मैं तो बहुत एक्साइटेड हूँ।"


    मीक्षा ने अपने फ़ोन में कुछ नोट्स चेक करते हुए कहा, "मुझे इंटरेस्ट नहीं है, मैं नहीं जाऊँगी।"


    राम्या की आँखें छोटी हो गईं। उसने मीक्षा का फ़ोन छीनकर टेबल पर रखते हुए नाराज़गी से कहा, "क्यों नहीं जाओगी?"


    मीक्षा ने टेबल से अपना फ़ोन उठाकर फिर से नोट्स चेक किए और कुछ पल रुककर बोली, "मैं आज तक पार्टी वगैरा में नहीं गई। मुझे दिलचस्पी नहीं है। तुम चली जाना।"


    राम्या ने मुँह बनाकर कहा, "अगर तुम नहीं जाओगी तो मैं भी नहीं जाऊँगी।"


    मीक्षा ने तुरंत कहा, "क्यों नहीं जाओगी?"


    राम्या ने अपना फ़ोन उठाकर एक नज़र ग्राउंड में देखा और कुछ पल रुककर बोली, "जब तुम नहीं जाओगी तो मैं अकेले जाकर क्या करूँगी? मुझे नहीं जाना।"


    मीक्षा कभी पार्टी वगैरा में नहीं गई थी। लखनऊ में इतना कुछ allowed ही नहीं था। इसलिए वह अब भी पार्टी में जाने के लिए सहज नहीं थी। इंसान कितने भी बड़े शहर में क्यों न रह ले, लेकिन वह फिर भी अपने शहर की परंपराओं पर चलती थी। जिस मिट्टी में वह पली-बढ़ी, आज भी उस मिट्टी की खुशबू ने कहीं न कहीं उसे इतनी आजादी नहीं दी थी कि वह मुंबई में आज़ाद पंछी बनकर घूम सके।


    वह राम्या के उदास चेहरे को देखकर गहरी साँस ली और कुछ पल रुककर बोली, "अच्छा, ठीक है। चलूँगी मैं भी।"


    राम्या की आँखें बड़ी हो गईं। वह खुशी से चीख उठी और मीक्षा के गले लग गई। राम्या की बचकानी हरकत देखकर मीक्षा नम्रता से सिर हिलाई और कैंटीन में बैठे सभी छात्रों, जो राम्या के चीखने पर उन्हें देख रहे थे, की तरफ़ अपनी आँखें झुकाकर माफ़ी माँगी। उन्होंने उसकी माफ़ी स्वीकार कर ली और अपने काम में लग गए।


    राम्या मीक्षा से अलग होकर तुरंत बोली, "वाह! कितना मज़ा आएगा पार्टी में! मैं तो बहुत एक्साइटेड हूँ।"


    मीक्षा ने अपनी घड़ी में समय देखा। क्लास शुरू होने में सिर्फ़ पाँच मिनट थे। उसने राम्या का हाथ पकड़कर चलते हुए कहा, "वो सब बातें बाद में करेंगे। अभी क्लास शुरू होने में पाँच मिनट बाकी हैं। बस जल्दी चलो।"


    कुछ देर में दोनों अपनी क्लास में बैठी थीं। प्रोफ़ेसर के आने में दो मिनट बाकी थे। सभी लोग गपशप में लगे हुए थे। तभी दरवाज़े पर किसी की हलचल हुई। सभी ने दरवाज़े की तरफ़ देखा। तभी क्लास में, आँखों पर शेड्स लगाए, आकर्ष इंटर हुआ। आकर्ष को देखकर सभी की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। मीक्षा, जो आराम से बैठी थी, आकर्ष को क्लास में देखकर दंग रह गई। आकर्ष के आने से पूरे क्लास में सन्नाटा छा गया था। वह मुंबई के जाने-माने डॉक्टर आकर्ष राजपूत थे। वह कभी अपने अस्पताल से कॉलेज का रुख नहीं करते थे। लड़कियाँ उसे देखकर आहें भर रही थीं, क्योंकि आकर्ष जितना प्रतिभाशाली था, उतना ही सुंदर भी था।


    आकर्ष ने अपने शेड्स उतारे और एक नज़र पूरे क्लास में दौड़ाई। तभी उसे आखिरी टेबल पर मीक्षा दिखाई दी, जो उसे हैरानी से आँखें बड़ी करके देख रही थी। खुद को इस तरह देखा जा रहा देखकर आकर्ष के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई। सभी लड़कियाँ आकर्ष को लालसा से देख रही थीं; कोई अपने बाल सही कर रही थी तो कोई अपने कपड़े। अगर उन्हें पता होता कि आकर्ष आने वाला है, तो वे खूब तैयार होकर आतीं।


    आकर्ष ने उन सबको देखते हुए कुछ पल रुककर कहा, "ध्यान से सुनिए सभी लोग, मुझे तो आप सब जानते ही हैं। मैं डॉक्टर आकर्ष राजपूत हूँ, और मैं यहाँ आप सबकी क्लास लेने आया हूँ। आज से मैं आपको क्लास दूँगा। मुझे आशा है कि आप सब सहयोग करेंगे।"


    सभी ने एक साथ कहा, "जी सर।"


    आकर्ष ने उन सबको देखकर सिर हिलाया और पढ़ाना शुरू कर दिया।

  • 19. Zaalim ishq <br>author_alfariya sheikh.. - Chapter 19

    Words: 1107

    Estimated Reading Time: 7 min

    आकर्ष आकर अपने शेड्स उतारे और एक नज़र पूरे क्लास में दौड़ाई। तभी उसे आखिरी टेबल पर मीक्षा दिखी जो उसे हैरानी से आँखें बड़ी करके घूर रही थी। खुद को इस तरह देखते देखकर आकर्ष के चेहरे पर तिरछी मुस्कान तैर गई। सभी लड़कियाँ आकर्ष को हसरत से देख रही थीं; कोई अपने बाल सही कर रही थी तो कोई अपने कपड़े। अगर उन्हें पता होता आकर्ष आने वाला है, तो वे खूब तैयार होकर आतीं।

    "अटेंशन एवरीवन! मुझे तो आप सब जानते ही हैं। आई एम डॉक्टर आकर्ष राजपूत, और मैं यहाँ आप सबकी क्लास के लिए आया हूँ। आज से मैं आप लोगों को क्लास दूँगा। आई होप कि आप सब कोऑपरेट करेंगे।"

    "जी सर," सभी लोगों ने एक साथ कहा।

    आकर्ष ने उन सबको देखकर अपना सिर हिलाया और पढ़ाना शुरू किया।

    आकर्ष बहुत ही टैलेंटेड प्रोफ़ेसर की तरह एक-एक चीज़ बहुत ही ध्यान से समझा रहा था। उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि उसने आज से पहले कभी किसी को नहीं पढ़ाया। क्लास की सारी लड़कियाँ तो उसे देखकर ही मदहोश हो चुकी थीं। आकर्ष ने पढ़ाते वक़्त एक बार भी मीक्षा को नहीं देखा था; उसके लिए उसका काम पहले आता था। आकर्ष को देखकर मीक्षा का पूरा मन ही खराब हो गया था; उसका ध्यान पढ़ाई में था ही नहीं। आकर्ष, पढ़ाते हुए, जब मीक्षा को देखता है तो उसकी आँखें छोटी हो जाती हैं। मीक्षा का ध्यान आकर्ष पर था ही नहीं, वह तो अपनी नोटबुक में कुछ लिख रही थी।

    मीक्षा जो बड़े ध्यान से कुछ लिख रही थी, अचानक उसे किसी की नज़रों की तपिश महसूस हुई। किसी की नज़रों की गहरी तपिश महसूस करके मीक्षा सर उठाकर देखती है तो उसे अपने ठीक सामने आकर्ष दिखाई देता है, जो सर्द नज़रों से उसे ही घूर रहा था। आकर्ष को देखकर मीक्षा की आँखें हैरानी से बड़ी हो जाती हैं और वह घबराते हुए खड़ी होती है।

    "मिस मीक्षा, आप बताना पसंद करेंगी कि आप अपनी नोटबुक में इतनी शिद्दत से क्या लिख रही हैं जिसकी वजह से आपका ध्यान मेरी क्लास ही नहीं है?" आकर्ष ने उसे अपनी सर्द निगाहों से घूरते हुए भारी आवाज़ में कहा।

    "सॉरी सर," मीक्षा ने डरी-सहमी सी अपनी जगह पर सर झुकाए खड़ी होकर हकलाते हुए कहा।

    "मैंने जवाब माँगा है, आपका सॉरी नहीं," आकर्ष ने उसकी सॉरी सुनकर अपनी सर्द निगाहों से उसे घूरते हुए ज़रा तेज आवाज़ में कहा।

    मीक्षा उसकी बात का कोई जवाब नहीं देती, वह चुपचाप सर झुकाए खड़ी रही। क्लास में हल्के-हल्के हँसने की आवाज़ आ रही थी। सभी लोग मीक्षा को देखकर हँस रहे थे और क्लास की लड़कियों को तो जैसे सुकून ही मिल गया था क्योंकि जब से मीक्षा ने आकर्ष के साथ नाइट शिफ्ट शुरू की थी, तब से ही सारी लड़कियाँ उससे जलती थीं। आखिर कौन नहीं चाहेगा आकर्ष राजपूत के साथ काम करना?

    आकर्ष के जवाब ना देने पर डेस्क पर पड़ी नोटबुक उठाई। आकर्ष के नोटबुक उठाते ही मीक्षा का चेहरा सफ़ेद पड़ गया और वह घबराते हुए आँखें बंद कर लेती है। आकर्ष नोटबुक खोलकर देखता है तो उसकी आँखें सर्द हो जाती हैं और वह गुस्से में नोटबुक को टेबल पर पटकते हुए कहता है, "कम टू माई केबिन।"

    आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा की आँखें खौफ़ से भर जाती हैं। वह जानती थी कि उसने शेर के मुँह में हाथ डाला है और वह शेर इसे छोड़ने के बिलकुल मूड में नहीं है। आकर्ष अपनी बात कहकर वहाँ से जा चुका था। आकर्ष के जाते ही क्लास में सभी लोग मीक्षा को देखकर जोर-जोर से हँसने लगते हैं। सबको खुद पर हँसता देखकर मीक्षा की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वह पलटकर राम्या को देखती है जो परेशानी में उसे ही देख रही थी। मीक्षा उसे एक नज़र देखकर बाहर चली जाती है।

    थोड़ी देर में मीक्षा आकर्ष के केबिन में सर झुकाए खड़ी थी। केबिन का टेंपरेचर गिरा हुआ था। आकर्ष अपनी लाल आँखों से उसे ही घूर रहा था और मीक्षा डर की वजह से बुत बनी खड़ी थी। आकर्ष अपनी चेयर से उठता है और मीक्षा के ठीक सामने हाथ से हाथ बांधकर खड़ा हो जाता है और मीक्षा की कलाई पकड़कर अपनी तरफ़ खींचता है। अचानक आकर्ष के खींचने से मीक्षा संभल नहीं पाती और उसके सीने से जा लगती है।

    आकर्ष उसकी कमर को पकड़कर अपने थोड़े और करीब करता है। अब मीक्षा के दोनों हाथ आकर्ष के सीने पर थे और वह घबराई हुई नज़र से उसकी आँखों में देखने लगती है। आकर्ष उसकी कमर पर हरकत करते हुए कहता है, "क्या मैं तुम्हें वैम्पायर लगता हूँ?"

    मीक्षा ने अपनी नोटबुक में आकर्ष का स्केच बनाया था। स्केच कहना फिर भी गलत होगा, उसने सिर्फ़ कार्टून बनाया था। उस कार्टून के बड़े-बड़े दांत थे और उनमें खून लगा हुआ था। वह बिलकुल वैम्पायर लग रहा था। मीक्षा ने स्केच के पास "आकर्ष राजपूत" लिखा था।

    मीक्षा जो आकर्ष के करीब होने से ही घबरा रही थी, आकर्ष के सवाल पूछने पर वह हड़बड़ाहट में कहती है, "हाँ... मेरा मतलब है... नहीं।"

    मीक्षा का जवाब सुनकर आकर्ष की आँखें छोटी हो जाती हैं और वह उसकी कमर पर अपनी पकड़ कसते हुए कहता है, "अब मैं तुम्हें ऐसा लगता हूँ तो डेमो देना तो बनता है ना।"

    आकर्ष की बात सुनकर मीक्षा उसे ना-समझी में देखने लगती है। वह कुछ सोचती, उससे पहले ही आकर्ष नीचे झुककर उसकी गर्दन पर बाइट करता है। आकर्ष के बाइट करते ही मीक्षा की चीख निकल जाती है और उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। आकर्ष मीक्षा से अलग होकर तिरछी मुस्कराहट से कहता है, "अब लग रहा है ना असली वैम्पायर का बाइट।"

    आकर्ष ने उसे काफी जोर से बाइट किया था। मीक्षा की गर्दन पर रेड बाइट चमक रहा था जिस पर थोड़ा-थोड़ा खून भी लगा था। मीक्षा अपनी गर्दन पर हाथ रखे आकर्ष को घूरते हुए कहती है, "आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझे इतनी जोर से बाइट करने की?"

    आकर्ष उसे तिरछी नज़रों से देखकर कुछ पल रुककर कहता है, "अब तुमने मुझे वैम्पायर कहा था तो डेमो देना तो बनता था ना।"

    "बहुत बुरे हो आप," मीक्षा ने उसे अपनी आँसू भरी आँखों से घूरते हुए कहा।

    आकर्ष उसकी बात सुनकर डेविल स्माइल करते हुए उसकी बाइट वाली जगह को देखकर कहता है, "आई नो। कुछ नया बताओ।"

    मीक्षा आकर्ष की बात का कोई जवाब नहीं देती और चुपचाप वहाँ से निकल जाती है।

  • 20. Zaalim ishq <br>author_alfariya sheikh.. - Chapter 20

    Words: 807

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    आकर्ष ने उसे तिरछी नज़रों से देखकर कुछ पल रुककर कहा था, "अब तुमने मुझे वैम्पायर कहा था, तो डेमो देना तो बनता था ना।"

    "बहुत बुरे हो आप," मीक्षा ने आँसू भरी आँखों से उसे घूरते हुए कहा था।

    आकर्ष ने उसकी बात सुनकर डेविल स्माइल करते हुए उसकी बाइट वाली जगह को देखकर कहा था, "आई नो। कुछ नया बताओ।"

    मीक्षा ने आकर्ष की बात का कोई जवाब नहीं दिया था और चुपचाप वहाँ से निकल गई थी।


    रात का समय था।

    मीक्षा हॉस्टल रूम के वॉशरूम में खड़ी, आईने में अपनी गर्दन देख रही थी। आकर्ष ने जहाँ उसे काटा था, वह जगह अब लाल से नीली हो चुकी थी। वह बार-बार उसे छूकर देख रही थी। उसके ज़हन में बार-बार आकर्ष ही घूम रहा था। वह गुस्से में सर झटककर खुद से बोली थी, "शट अप, मीक्षा अग्रवाल! तुम उनके बारे में क्यों सोच रही हो? शांत हो जाओ, बस रिलैक्स करो। उनके बारे में नहीं सोचना है तुम्हें।"

    खुद में ही बुदबुदाकर मीक्षा वॉशरूम से बाहर आई थी। वह ड्यूटी पर जाने के लिए तैयार हो चुकी थी। उसने बिस्तर पर सो रही राम्या को एक नज़र देखा और बाहर आ गई थी। राम्या और उसे बहुत कम समय ही साथ बिताने को मिलता था। मीक्षा पूरे दिन क्लास में रहती थी और रात को शिफ्ट से देर से आती थी, इसलिए दोनों बहुत कम ही मिल पाती थीं।

    मीक्षा हॉस्टल से निकलकर अस्पताल की ओर आ रही थी। मीक्षा जब भी अस्पताल आती थी, रास्ते में उसे कोई न कोई जरूर नज़र आ जाता था, क्योंकि लोग रात में नाइट ड्यूटी के लिए आते थे। लेकिन आज बहुत शांति थी; दूर-दूर तक कोई नहीं था। यही शांति मीक्षा के दिल में खौफ भर रही थी। आज उसका दिल घबरा रहा था। वह सीधे चलते हुए आ रही थी, तभी अचानक कोई उसके सामने आ गया था।

    अचानक किसी के सामने आने से मीक्षा घबरा गई थी और डर से दो कदम पीछे हटकर सिर उठाकर देखा था।

    उसके सामने दो लंबे-चौड़े लोग खड़े थे। उनका हुलिया देखकर लग रहा था जैसे वे कोई सड़कछाप गुंडे हैं। रोड पर हल्की-हल्की रोशनी थी, जिससे उन दोनों को मीक्षा का चेहरा साफ़ दिख रहा था। मीक्षा अपनी जगह पर ही जम गई थी। एक गुंडे ने मीक्षा को ऊपर से नीचे तक देखते हुए दूसरे गुंडे की तरफ़ देखकर कहा था, "हमें तो सिर्फ़ इसे डराने का ऑर्डर मिला था, लेकिन ये इतनी मस्त है, मुझे तो पता ही नहीं था। चलो, एक काम तो अच्छा हुआ, आज अपनी प्यास बुझा ही लेंगे हम दोनों।"

    दूसरे गुंडे ने पहले गुंडे की बात सुनकर ताली मारकर हंसना शुरू कर दिया था। मीक्षा, जो उनकी बात का मतलब समझ चुकी थी, अपने बैग को अपने सीने से लगाकर पीछे हटने लगी थी। वे दोनों गुंडे इसे देखकर पागल हो रहे थे। मीक्षा ने एक बार आस-पास देखा और एक नज़र उन गुंडों को देखकर पीछे भागी थी। तभी एक गुंडे ने उसकी कलाई पकड़ ली थी और उसे देखकर हंसने लगा था।

    मीक्षा ने उसकी कलाई पकड़ते ही घबराकर अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश की थी और मदद के लिए चिल्लाई थी, "बचाओ! कोई है? Somebody help me!"

    वह चिल्ला रही थी, लेकिन उसकी आवाज़ सुनने वाला आस-पास कोई नहीं था। उसकी चिल्लाने की आवाज़ सुनकर दूर छिपकर खड़ी लीना के चेहरे पर शैतानी मुस्कान खिल गई थी, और वह मुस्कुराते हुए खुद से बोली थी, "बहुत शौक था ना तुम्हें मेरे ऊपर हँसने का? अब पता चलेगा तुम्हें।"

    मीक्षा रोते हुए खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। एक गुंडे ने आगे आकर उसके गले में पहना हुआ स्कार्फ़ उछाल दिया था। उसके स्कार्फ़ निकलने से मीक्षा की आँखों में झर-झर आँसू बहने लगे थे। शायद वह समझ चुकी थी कि उसे कोई बचाने नहीं आएगा। एक गुंडे ने आगे आकर उसे धक्का दिया था, जिससे मीक्षा जमीन पर गिर गई थी और उसके हाथ-पैर ज़ख्मी हो गए थे। लेकिन उसे उस चोट की परवाह नहीं थी; उसे अपनी इज़्ज़त बचाना थी। वह रोते हुए पीछे हटने लगी थी। एक गुंडे ने उसके ऊपर झुकते हुए उसकी टॉप की दोनों स्लीव्स फाड़ दी थीं।

    अचानक हुए हमले से मीक्षा आँखें फाड़कर उसे देखने लगी थी और अपने टॉप की स्लीव्स को पकड़कर पीछे हटते हुए बोली थी, "प्लीज़, मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो।"

    वे दोनों गुंडे उसकी बात सुनकर हँसने लगे थे। उनमें से एक गुंडा हँसते हुए उसके ऊपर झुकने लगा था, और मीक्षा उसे झुकता देखकर और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी थी। वह गुंडा पूरा झुक पाता, उससे पहले ही किसी ने उसके मुँह पर लात मारी थी। अचानक हुए हमले से वह गुंडा दूर जाकर गिर गया था। गिरने की आवाज़ सुनकर मीक्षा सामने देखी थी। सामने खड़े इंसान को देखकर मीक्षा हैरान हो गई थी और उसकी आँखों से और तेज़ी से आँसू बहने लगे थे।