शतरंज - द गेम ऑफ ब्लड एक ऐसी रात जब खुशियाँ मातम में बदल गईं... एक ऐसा जन्मदिन, जिसने जिंदगी की कहानी ही बदल दी। सान्वी राजपूत की दुनिया रोशनी और प्यार से भरी थी। उसके वकील पिता, राजीव सिंह राजपूत, अपनी बेटी के 18वें जन्मदिन की खुशियों में डूबे... शतरंज - द गेम ऑफ ब्लड एक ऐसी रात जब खुशियाँ मातम में बदल गईं... एक ऐसा जन्मदिन, जिसने जिंदगी की कहानी ही बदल दी। सान्वी राजपूत की दुनिया रोशनी और प्यार से भरी थी। उसके वकील पिता, राजीव सिंह राजपूत, अपनी बेटी के 18वें जन्मदिन की खुशियों में डूबे थे। पर उसी शाम, जब पूरा परिवार हँसी-खुशी केक काट रहा था, एक घिनौने अपराध का साया उनके दरवाजे पर आ पड़ा। एक मंत्री के बिगड़े हुए बेटे ने, जिसके खिलाफ राजीव ने एक बलात्कार का केस लिया था, उनके घर को गोलियों से छलनी कर दिया। सामने उसकी आँखों के, उसके परिवार को मौत के घाट उतार दिया गया। फिर आई उसकी बारी। उसे जिंदा जलाकर जंगल में फेंक दिया गया, यह सोचकर कि अब सब खत्म हो गया है। पर मौत भी उस आग को बुझा नहीं पाई, जो अब सान्वी की रगों में दौड़ रही थी। राख से उठकर, एक साल बाद वह बदला लेने के लिए वापस आई है। उसके दिल में अपनों को खोने का दर्द है और आँखों में बदले की ज्वाला। लेकिन क्या वह अपने दुश्मनों को हरा पाएगी, जो सत्ता और ताकत के नशे में चूर हैं? और क्या उसकी यह जंग सिर्फ एक मोहरे को हटाने की है, या यह "शतरंज - द गेम ऑफ ब्लड" का सिर्फ पहला दांव है?
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अध्याय 1: आग और आँसू
सुबह की पहली किरण, खिड़की से छनकर, रेशमी चादर की तरह बिस्तर पर सोई हुई सांवी राजपूत के चेहरे पर पड़ रही थी। उसकी आँखें बंद थीं, लंबी पलकें किसी शांत झील की तरह दिख रही थीं। काले, घने बाल उसके कंधे और तकिए पर बिखरे हुए थे, और गुलाबी होंठों पर हल्की सी मुस्कान थी। वह आज अठारह साल की हो रही थी, और उसका चेहरा किसी देवी की तरह निर्मल और सुंदर था।
तभी, कमरे का दरवाज़ा धीरे से खुला और उसकी माँ, देवयानी राजपूत, अंदर आईं। उनके चेहरे पर एक कोमल मुस्कान थी।
"सांवी, बेटी… उठ जाओ," देवयानी ने प्यार से उसके माथे पर हाथ फेरा। "आज तुम्हारा जन्मदिन है, और तुम अभी तक सो रही हो?"
सांवी ने करवट ली और अपनी माँ की आवाज़ सुनकर मुस्कुरा दी। "बस पाँच मिनट और, माँ।"
"नहीं, मेरी राजकुमारी," देवयानी ने कहा, "आज का दिन बहुत खास है। तुम्हारे पापा और आरव भैया तुम्हारे लिए कुछ खास लेकर आए हैं।"
आरव, सांवी का बड़ा भाई, जो खुद भी कानून की पढ़ाई कर रहा था, अपने पिता राजीव सिंह राजपूत की तरह एक वकील बनना चाहता था। राजीव, एक ऐसे वकील थे, जिनका नाम ईमानदारी और न्याय के लिए पूरे शहर में मशहूर था।
सांवी तुरंत उठी और अपनी माँ को गले लगा लिया। "मैं जानती हूँ, माँ, आज का दिन सबसे अच्छा होगा।"
लेकिन सांवी और उसका परिवार इस बात से अनजान था कि आज का दिन उनके लिए एक भयानक तूफान लेकर आने वाला था। राजीव ने हाल ही में एक बहुत ही संवेदनशील केस लिया था – शहर के सबसे प्रभावशाली मंत्री के बेटे, रोहन माथुर, के खिलाफ एक बलात्कार का मामला।
शाम को, पूरा घर रोशनी से जगमगा रहा था। हॉल में गुब्बारे और रंग-बिरंगी सजावट थी। अन्या, सांवी की आठ साल की छोटी बहन, खुशी से चारों तरफ भाग रही थी।
"सांवी दीदी, जल्दी आओ! केक कट करना है," अन्या ने चिल्लाया।
सांवी अपनी नई ड्रेस में बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसका चेहरा खुशी से चमक रहा था। केवल परिवार के सदस्य ही जन्मदिन मना रहे थे। सब मिलकर तालियाँ बजा रहे थे और "हैप्पी बर्थडे टू यू" गा रहे थे।
जब सांवी ने केक काटने के लिए चाकू उठाया, तभी दरवाज़े की घंटी बजी। सबने एक-दूसरे की तरफ देखा। देवयानी दरवाज़ा खोलने गईं।
जैसे ही उन्होंने दरवाज़ा खोला, सामने का नज़ारा देख उनकी आँखें डर से फैल गईं। दरवाज़े पर रोहन माथुर, वही क्रूर और घमंडी लड़का, अपने दो गुंडों के साथ खड़ा था। उसके चेहरे पर एक दुष्ट मुस्कान थी।
"अरे, ये तो वकील साहब का घर है," रोहन ने व्यंग्य से कहा। "लगता है यहाँ कोई पार्टी चल रही है।"
देवयानी पीछे हट गईं। राजीव तुरंत वहाँ आए। "तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" उन्होंने सख्त आवाज़ में पूछा।
"वकील साहब," रोहन ने कहा, "आपको पता है मैं यहाँ क्यों आया हूँ। उस लड़की का केस वापस ले लो।"
"मैं सच्चाई का सौदा नहीं करता," राजीव ने जवाब दिया। "तुमने जो किया है, उसकी सज़ा तुम्हें ज़रूर मिलेगी।"
रोहन की आँखें लाल हो गईं। "तुम अपनी बेटी का जन्मदिन मना रहे हो, और मैं तुम्हें तुम्हारे परिवार के साथ मौत दे रहा हूँ।"
अगले ही पल, रोहन ने बंदूक निकाली और राजीव पर गोली चला दी। देवयानी ने चिल्लाते हुए उन्हें बचाने की कोशिश की, लेकिन दूसरी गोली उनके सीने में लगी। आरव ने रोहन पर झपटने की कोशिश की, लेकिन तीसरी गोली ने उसे वहीं गिरा दिया। अन्या, जो यह सब देख रही थी, डर के मारे कोने में छिप गई थी, लेकिन रोहन ने उसे भी नहीं बख्शा। उसने अन्या के साथ बहुत बुरी तरीके से रेप किया वह रोती रही चिल्लाती रही संवि उसे बचाने की कोशिश करती रही पर स्वामी को गुंडे लोग पकड़े हुए थे। और जब अन्य अधमरी हालत में पहुंच गई तो रोहन ने उसे भी गोली मार दी और हंस कर बोला संवि से अब तेरी भी यही हालत होगी और उसे घसीटते हुए अपनी गाड़ी में बैठा लिया संवि चिल्लाती रही कि मुझे अपने पापा के पास जाने दो पर रोहन और उनके साथ ही लोग हंसते रहें और उसे एक सुनसान जंगल में लेकर पहुंच गए।
जब वह लोग जंगल पहुंचे वह संवि को घसीटते हुए जंगल के बीचो-बीच लेकर गए। और उसे जमीन पर धकेल दिया संवि रोती रही कि मुझे यहां से जाने दो मुझे छोड़ दो पर रोहन लोग और उसके साथ ही लोग हंसते रहे और कहीं कि तू तो बड़ी अच्छी माल है। तेरे बाप ने एक लड़की का रेप केस लिया था अब देख उसकी दोनों बेटियों के साथ हम लोगों भी इस लड़की के तरह हालात करेंगे हम ।
सांवी की आंखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
रोहन ने सांवी की तरफ देख कर एक क्रूर मुस्कान दी। "तुम्हारे पिता ने बहुत बहादुरी दिखाई, लेकिन अब देखो वह कहां है।
और बीच में हीजंगल ही में सब लोगों ने संवि का रेप किया। संवि रोती रही चिल्लाती रही कि मुझे छोड़ दो मुझे जाने दो पर उन लोगों के दिल में जरा सा भी रहम नहीं आया।
"तुम्हारे परिवार ने मेरे रास्ते में आने की कोशिश की," रोहन ने हँसते हुए कहा। "अब तुम भी उनकी तरह खत्म हो जाओगी।"
तभी रोहन ने एक पेट्रोल का डिब्बा निकाला और सांवी के शरीर पर डाल दिया। "तुम जिंदा जलोगी, और कोई तुम्हारी मदद नहीं कर पाएगा।"
उसने लाइटर जलाया और सांवी के शरीर पर फेंक दिया। आग की लपटें तुरंत सांवी के शरीर को निगलने लगीं। सांवी ने दर्द से चीखा, लेकिन कोई उसकी मदद के लिए नहीं था। और फिर रोहन और उसके साथ ही लोग संवि को वहीं छोड़कर चले गए संवि चिल्लाती रही सिखाती रही उसके दिल में जीने की चाहत थी। हुआ जीना चाहती थी और अपने परिवार की मौत कब बदला लेना चाहती थी उसके बाप का और उसका पूरा सल्तनत डूबा कर।
अचानक, आसमान में काले बादल छा गए और तेज़ बारिश शुरू हो गई। बारिश की बूंदों ने आग की लपटों को धीरे-धीरे बुझा दिया, लेकिन तब तक सांवी का शरीर पूरी तरह से जल चुका था। उसकी त्वचा झुलस गई थी, लेकिन उसके चेहरे को कोई आंच नहीं आई थी।
जब जंगल के आदिवासियों ने उसे उस हालत में देखा, तो वे डर गए, लेकिन फिर उन्होंने हिम्मत करके उसे उठाया और अस्पताल ले गए। सांवी को महीनों तक कोमा में रखा गया। जब वह होश में आई, तो उसकी आँखों में आंसू नहीं थे, बल्कि बदले की आग जल रही थी।
उसे अपने परिवार की हत्या और अपने साथ हुई हैवानियत का हर पल याद था। उसका सुंदर शरीर अब जले हुए घावों से भरा हुआ था, लेकिन उसकी आत्मा अब और भी मजबूत हो गई थी। वह अब वह प्यारी, मासूम सांवी नहीं थी। वह अब एक ऐसी लड़की थी, जो अपने परिवार की मौत का बदला लेने के लिए कुछ भी कर सकती थी।
Aariv राज सिंह शेखावत, एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही बड़े-बड़े अपराधी भी कांप जाते हैं। वह सिर्फ एक इंसान नहीं, बल्कि एक चलती-फिरती मौत है। उसके पास न तो कोई परिवार है और न ही कोई पहचान। बचपन से ही सड़कों पर पला-बढ़ा, उसने गरीबी और अत्याचार को करीब से देखा था। यही कारण है कि उसके दिल में कोई दया नहीं बची थी।
वह अंडरवर्ल्ड का सबसे बड़ा माफिया है। लोग उसे 'शैडो किंग' के नाम से जानते हैं। वह सुपारी लेकर हत्याएं करता है। उसके लिए किसी की जान लेना उतना ही आसान है, जितना साँस लेना। वह नशीली दवाओं और हथियारों का सबसे बड़ा डीलर है। वह खुद अपनी फैक्ट्री में हथियार बनाता है और उन्हें दुनिया भर में बेचता है।
उसकी आँखें गहरी और खाली हैं, जैसे उनमें कोई भावना न हो। उसके चेहरे पर हमेशा एक अजीब सी शांति होती है, जो उसके अंदर के तूफान को छुपाती है। वह बहुत कम बोलता है, लेकिन जब बोलता है तो उसकी आवाज़ किसी धारदार तलवार की तरह होती है। आर्यन सिर्फ पैसे और ताकत के लिए जीता है, और जो कोई भी उसके रास्ते में आता है, वह उसे खत्म कर देता है। उसके लिए, दुनिया एक खेल का मैदान है, और वह इस खेल का सबसे खतरनाक खिलाड़ी है।
सांवी के साथ जो कुछ हुआ, उसके बाद क्या आपको लगता है कि वह रोहन से बदला ले पाएगी? क्या बदले का रास्ता उसके लिए सही होगा या गलत?
नमस्ते, मेरे प्यारे पाठकों!
मैं आप सभी से यह कहना चाहती हूँ कि यह कहानी मैंने बहुत मेहनत और प्यार से लिखी है। मैं उम्मीद करती हूँ कि आप इसे पसंद कर रहे होंगे। आपकी पसंद ही मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा है।
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अध्याय 2: राख और रंज
सुबह की पहली किरण, खिड़की से छनकर, एक सफेद चादर की तरह अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी, जहाँ सांवी लेटी हुई थी। उसकी आँखें खुली थीं, लेकिन उनमें कोई चमक नहीं थी, बस एक खालीपन था। वह अपनी छत को लगातार एकटक देख रही थी, जैसे वहाँ कोई जवाब ढूंढ रही हो।
"यह सब... कैसे हुआ?" उसके होंठों से फुसफुसाहट निकली।
एक साल हो चुका था। पूरा एक साल। सांवी को यकीन नहीं हो रहा था कि यह सच है। उसके दिमाग में अभी भी पिछले साल का जन्मदिन घूम रहा था। वो केक, वो हँसी, वो उसके परिवार की आँखों में खुशी... और फिर, वो बंदूक की आवाज़, चीखें, और आग। सब कुछ एक भयानक सपने की तरह लग रहा था, एक ऐसा सपना जो कभी खत्म नहीं होगा।
वह धीरे से अपना हाथ उठाने की कोशिश करती है, लेकिन दर्द की एक लहर उसके पूरे शरीर में दौड़ जाती है। वह अपने जले हुए हाथों को देखती है, जिन पर गहरे, भयानक निशान थे। उसका शरीर, जो कभी इतना सुंदर और निर्मल था, अब राख और घावों का ढेर बन चुका था। सिर्फ़ उसका चेहरा ही बचा था, जिस पर कोई निशान नहीं था। यह बात उसे और भी दर्द देती थी कि उसका चेहरा तो वैसा ही था, लेकिन उसके अंदर की आत्मा पूरी तरह से जलकर राख हो चुकी थी।
सांवी की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। वह अपना चेहरा तकिए में छिपा लेती है और सिसकना शुरू कर देती है। "भगवान... यह सब मेरे साथ ही क्यों हुआ? आपने मुझसे मेरा सबकुछ छीन लिया... मेरा परिवार, मेरी ज़िंदगी... सब कुछ। प्लीज़... मुझे वापस कर दो..."
लेकिन कोई जवाब नहीं आया, सिवाए उसकी अपनी ही चीखों और सिसकियों के। वह रोती रही, जब तक उसके गले से आवाज़ निकलना बंद न हो गई। उसका दिल दुख और निराशा से भर चुका था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह यहाँ क्यों है और क्या कर रही है।
रात का अँधेरा, मुंबई की रोशनी
शाम के सात बजे थे। मुंबई का एक नाइट क्लब, जो शहर के सबसे अमीर और ताकतवर लोगों के लिए जाना जाता था, अपनी पूरी चमक में था। लोग हँस रहे थे, बातें कर रहे थे, और शराब पी रहे थे। लेकिन इस क्लब के ऊपर वाले फ्लोर पर, जहाँ सिर्फ़ खास लोगों की एंट्री थी, माहौल बिल्कुल अलग था।
अरीव राज सिंह शेखावत एक केबिन में बैठा था। उसके सामने दो विदेशी क्लाइंट बैठे थे, जिनके चेहरे पर पसीना और डर साफ दिख रहा था। अरीव के चेहरे पर हमेशा की तरह एक अजीब सी शांति थी, लेकिन उसकी आँखों में एक तूफान छुपा हुआ था।
"तो, मेरा ड्रग सप्लाई क्यों नहीं हुआ?" अरीव ने अपनी गहरी और शांत आवाज़ में पूछा। "तुम लोगों ने सोचा कि तुम मुझसे - कर पाओगे और मुझे पता भी नहीं चलेगा?"
उनमें से एक क्लाइंट ने डरते हुए कहा, "नहीं, सर... हमें खेद है... कुछ तकनीकी समस्या थी..."
इससे पहले कि वह कुछ और कह पाता, अरीव ने अपनी जेब से एक बंदूक निकाली। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी, जो किसी शैतान की मुस्कान से कम नहीं थी। उसने बिना किसी हिचकिचाहट के, दोनों क्लाइंट को सीधे सिर में गोली मार दी। 'फटाक!' की दो आवाज़ों के साथ, वे दोनों ज़मीन पर ढेर हो गए।
अरीव ने शांत होकर बंदूक वापस अपनी जेब में रखी और आराम से वापस सोफे पर बैठ गया। वह अपनी शराब का गिलास उठाकर उसमें से एक घूँट लेता है, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
उसी समय, उसका असिस्टेंट और दोस्त, रोहित, कमरे में आया। वह अपने दोस्त की यह हरकत देखकर मन ही मन सोच रहा था, 'यह सनकी कभी शांत नहीं होता। हर काम बंदूक से ही करता है। क्या हम इन्हें धमकाकर भी काम नहीं करवा सकते थे?'
चारों तरफ़ खड़े बॉडीगार्ड्स डरे हुए थे। उनमें से एक ने हिम्मत करके कहा, "सर... लाशें..."
अरीव ने अपनी नज़र बिना उठाए, शांत आवाज़ में कहा, "कचरा साफ़ करो यहाँ से।"
रोहित, अरीव के सामने वाले सोफे पर बैठ जाता है। "यह करने की ज़रूरत नहीं थी, अरीव।"
"मुझे सिखाने की कोशिश मत कर," अरीव ने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में कोई गुस्सा नहीं था। "मैं जानता हूँ कि मैं क्या कर रहा हूँ।"
रोहित ने सिर हिलाया। "हाँ-हाँ, ठीक है। कभी-कभी तो मुझे भी तुझसे डर लगता है।"
अरीव ने एक हल्की सी मुस्कान दी। "अच्छी बात है।"
वे दोनों चुपचाप बैठे रहे। कुछ देर बाद, अरीव उठ खड़ा हुआ। "चलो, अब यहाँ से चलते हैं।"
बाहर निकलते ही, अरीव अपनी काली, शानदार कार की तरफ़ बढ़ता है। कार किसी जेट की तरह लग रही थी। वह अपनी सीट पर बैठता है और गाड़ी को स्टार्ट करता है। रोहित उसके बगल में बैठ जाता है।
गाड़ी मुंबई की सड़कों पर भागने लगती है। अरीव अपने ब्लैक मेंशन की तरफ़ जा रहा था। मेंशन दूर से ही एक विशाल, काली छाया की तरह दिख रहा था। वह बिल्कुल अरीव की तरह था—अँधेरा, शक्तिशाली, और रहस्यमय। जैसे-जैसे गाड़ी आगे बढ़ रही थी, अरीव की आँखों में एक अजीब सी चमक आ रही थी, जैसे वह कुछ और ही सोच रहा हो। उसके लिए, यह दुनिया बस एक खेल थी, और वह इस खेल का सबसे बड़ा खिलाड़ी था।
आधी रात का सन्नाटा, और मुंबई की जगमगाती रोशनी में एक काली, विशाल इमारत खड़ी थी, जो किसी किले से कम नहीं थी। यही था अरीव राज सिंह शेखावत का मेंशन। जैसे ही गाड़ी मेंशन के गेट से अंदर दाखिल हुई, रोहित ने गहरी साँस ली। "फाइनली... अब थोड़ा सुकून मिलेगा।"
अरीव ने बिना कोई जवाब दिए गाड़ी से बाहर क़दम रखा। उसकी चाल में वही शांति थी, जो उसके चेहरे पर हमेशा रहती थी। दोनों मेंशन के अंदर दाखिल हुए। अंदर का माहौल भी बाहर जैसा ही था—शक्तिशाली और रहस्यमय। अरीव सीधे सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गया, बिना पीछे मुड़े।
"तुम डिनर करोगे क्या?" रोहित ने पीछे से आवाज़ दी।
"नहीं," अरीव ने एक शब्द में जवाब दिया, और ऊपर चला गया।
अरीव अपने कमरे में गया। उसका कमरा उसकी शख्सियत का आईना था। चारों तरफ़ काला रंग हावी था, लेकिन उसमें एक शान थी। कमरे की दीवारें गहरे काले रंग की थीं, और फर्श पर काले और सुनहरे रंग की टाइलें बिछी थीं, जो मंद रोशनी में चमक रही थीं। खिड़कियों पर काले और सफेद रंग के भारी पर्दे लटके थे, जो पूरे कमरे को बाहर की दुनिया से अलग कर रहे थे। एक बड़ी सी किंग साइज़ बेड कमरे के बीच में रखी थी, जिस पर सिर्फ़ काली चादर और तकिए थे।
अरीव ने अपने कपड़े उतारे और सीधे बाथरूम में चला गया। उसका बाथरूम भी उसके कमरे जैसा ही था, काले और सफेद संगमरमर की दीवारों के साथ। वह शॉवर के नीचे खड़ा हो गया। ठंडे पानी की बौछार उसके लंबे, काले बालों से होते हुए उसके मजबूत, गठीले शरीर पर गिर रही थी। उसकी चौड़ी छाती पर कुछ पुराने, धुंधले निशान थे, जो शायद बचपन के संघर्ष की निशानी थे। उसकी सिक्स-पैक एब्स, मजबूत हाथ और पैरों की मांसपेशियों से उसकी ताकत का अंदाज़ा लगाया जा सकता था। पानी की बूँदें उसके शरीर पर मोतियों की तरह चमक रही थीं। वह अपनी आँखें बंद करके बस पानी को महसूस कर रहा था, जैसे पानी उसके अंदर के तूफ़ान को शांत कर रहा हो।
कुछ देर बाद, वह शॉवर से बाहर आया और अपनी काली रंग की तौलिया लपेटकर अपने विशाल वॉर्डरोब की तरफ़ बढ़ गया। वॉर्डरोब किसी छोटे कमरे की तरह था, जिसमें सिर्फ़ काले, सफेद और ग्रे रंग के कपड़े लटके थे। अरीव ने एक काली टी-शर्ट और एक काली ट्रैक पैंट निकाली और पहन ली। उसका चेहरा बिल्कुल शांत था, जैसे अभी-अभी उसने किसी का खून न किया हो।
अरीव नीचे डाइनिंग हॉल में आया। डाइनिंग हॉल भी काले रंग का था, और बीच में एक लंबी, काली लकड़ी की मेज रखी थी। रोहित पहले से ही वहाँ बैठा हुआ था, मोबाइल पर कुछ देख रहा था।
"अरीव, आज तो डिनर कर ले। कब तक बस शराब पर रहेगा?" रोहित ने उसे देखकर कहा।
अरीव ने कोई जवाब नहीं दिया और अपनी जगह पर बैठ गया। तभी एक हाउस हेल्पर, एक युवा लड़की, खाने की ट्रे लेकर आई। वह धीरे-धीरे अरीव की तरफ़ बढ़ रही थी। जैसे ही वह अरीव के पास पहुँची, उसके पैर फिसल गए और पूरी खाने की ट्रे अरीव की गोद में गिर गई। वह लड़की जानबूझकर अरीव की गोद में गिर पड़ी, जैसे उसे यकीन हो कि अरीव उसे कुछ नहीं कहेगा।
अरीव ने उसे तुरंत झटक दिया। उसके चेहरे पर जो शांति थी, वह ग़ायब हो गई और उसकी जगह गुस्सा आ गया। उसकी आँखें लाल हो गईं।
"तुम... तुम पागल हो क्या?" अरीव ने दहाड़ते हुए कहा। "तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम...?"
रोहित भी हैरान था। उस लड़की के चेहरे पर डर की जगह एक मुस्कान थी, जो पल भर में ग़ायब हो गई।
"इसे यहाँ से बाहर निकालो... अभी!" अरीव ने गुस्से से चिल्लाया।
दो बॉडीगार्ड तुरंत आए और उस लड़की को घसीटते हुए बाहर ले गए। वह लड़की रोती रही, "नहीं... सर... मुझे माफ़ कर दो..."
अरीव अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। उसकी भूख मर चुकी थी। वह गुस्से में वापस अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया।
"अरे, अरीव... रुक तो सही। खाना तो खा ले," रोहित ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन अरीव ने उसकी बात अनसुनी कर दी।
रोहित ने सिर पकड़ लिया। "हे भगवान! यह आदमी क्या है? थोड़ी देर पहले - किया, अब एक छोटी सी बात पर इतना गुस्सा हो गया। इसका दिमाग़ सही जगह पर नहीं है।"
वह खुद से ही बड़बड़ाता रहा और फिर खाना खाने बैठ गया।
नए सबेरे का दर्द
अगली सुबह, अस्पताल के कमरे में सांवी को डिस्चार्ज मिलने की तैयारी हो रही थी। उसके पास न तो पैसे थे, न ही कोई ठिकाना। अस्पताल वालों ने उसे कुछ कपड़े दिए और बाहर छोड़ दिया। सांवी एक बार भी पीछे मुड़े बिना, बस चलती रही। उसके मन में सिर्फ़ एक ही जगह थी जहाँ वह जाना चाहती थी—उसका घर।
वह कई घंटों तक चलती रही, उसके पैर दर्द कर रहे थे, लेकिन वह रुकी नहीं। जब वह अपनी गली में पहुँची, तो उसकी आँखें डर और दुख से चौड़ी हो गईं। उसका सुंदर घर, जो कभी हँसी और खुशी से भरा रहता था, अब सिर्फ़ राख का एक ढेर था। दीवारें काली हो चुकी थीं, और खिड़कियों से धुआँ निकल रहा था। उसका दिल दर्द से फट रहा था। वह चुपचाप खड़ी हो गई, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन उसके होंठों पर कोई आवाज़ नहीं थी।
"मेरा... घर..." उसने फुसफुसाते हुए कहा। "सब कुछ ख़त्म हो गया।"
वह वहाँ से मुड़ी और धीरे-धीरे एक अपार्टमेंट की तरफ़ चली गई, जिसे उसके पापा ने उसके 18वें जन्मदिन पर उसे तोहफ़े में दिया था। यह उनका एक छोटा-सा सीक्रेट था। उनके पास बहुत पैसा था, लेकिन उनके पापा चाहते थे कि सांवी के पास अपनी एक जगह हो, जहाँ वह अकेले रह सके, जब उसे ज़रूरत हो।
सांवी ने पुरानी चाबी निकाली और दरवाज़ा खोला। अपार्टमेंट खाली था, लेकिन साफ-सुथरा था। शायद उसके पापा ने इसे पहले से ही तैयार करवा रखा था। जैसे ही वह अंदर आई, वह दरवाज़ा बंद करके ज़मीन पर बैठ गई और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।
"पापा... भइया... मम्मी... अन्या..." उसकी आवाज़ दर्द से भरी थी। "आप लोग मुझे छोड़ कर क्यों चले गए? मैंने क्या ग़लती की थी? प्लीज़... वापस आ जाओ... मैं अकेली हूँ... बहुत अकेली।"
उसका दिल टूट चुका था। उसके पास अब कुछ नहीं बचा था, सिवाए उन भयानक यादों के और बदले की एक जलती हुई आग के।
लंदन की उड़ान
अगले दिन सुबह, अरीव और रोहित लंदन जाने के लिए प्राइवेट जेट में बैठे थे।
रोहित ने अपनी सीट बेल्ट बाँधते हुए कहा, "भाई, एक बात बता। उस लड़की के साथ ऐसा क्या हुआ था जो तू इतना भड़क गया?"
अरीव ने बिना उसकी तरफ़ देखे कहा, "कुछ नहीं।"
"कुछ नहीं? तू तो उस पर ऐसे भड़का था जैसे वो तेरी गर्लफ्रेंड हो, और उसने किसी और के साथ डेट पर जाने की बात कर दी हो," रोहित ने हँसते हुए कहा।
अरीव ने उसकी तरफ़ घूरकर देखा, "अपनी बकवास बंद कर।"
"अरे! मैं तो बस मज़ाक़ कर रहा था," रोहित ने कहा। "पर सच में, तू लड़कियों से इतना दूर क्यों रहता है? मुझे तो लगता है तुझे 'लड़कियों से दूर रहने वाला बाबा' का ख़िताब दे देना चाहिए।"
अरीव ने सिर हिलाया। "तू कभी सुधरेगा नहीं।"
"और तू कभी बदलेगा नहीं," रोहित ने पलटकर कहा। "यार, हम लंदन जा रहे हैं। कुछ तो एक्साइटेड हो। वहाँ तो तुझे कुछ अच्छी-खासी लड़कियों से मिलने का मौक़ा मिलेगा।"
अरीव ने अपनी आँखें बंद कर लीं। "काम पर ध्यान दे, रोहित। हम वहाँ गंस बेचने जा रहे हैं, लड़कियों से मिलने नहीं।"
"अरे! काम के साथ थोड़ा मज़ा भी तो कर सकते हैं," रोहित ने कहा। "तू हमेशा इतना बोरिंग क्यों रहता है?"
अरीव ने एक गहरी साँस ली। "कभी-कभी तुझे भी जान से मारने का मन करता है।"
रोहित हँसने लगा। "यही तो हमारी दोस्ती है, भाई। तू मुझे - की धमकी देता है, और मैं उसे मज़ाक़ समझता हूँ।"
जेट ने उड़ान भरी, और दोनों दोस्तों की यह अजीब और ख़तरनाक दोस्ती एक नए शहर की ओर बढ़ चली।
क्या बदला लेने की यह आग सांवी को उसके लक्ष्य तक पहुँचा पाएगी, या वह रास्ते में ही जलकर ख़त्म हो जाएगी? और क्या अरीव का दिल कभी किसी के लिए धड़केगा, या वह हमेशा के लिए एक कठोर दिलवाले व्यक्ति की तरह ही रहेगा?.
अध्याय 3: बादलों के पार, आग की तलाश
जेट की रफ़्तार से लंदन की ओर बढ़ते हुए, राहुल ने अरीव की तरफ़ देखा। बाहर चमकते तारे किसी अनगिनत हीरों की तरह लग रहे थे, लेकिन अरीव की आँखों में वही गहरा खालीपन था।
"भाई," रोहित ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में छेड़ना शुरू किया, "तू लड़कियों से इतना दूर क्यों रहता है? अब तो 28 साल का हो गया है... शादी-वादी के बारे में भी तो सोच।"
अरीव ने खिड़की से बाहर देखते हुए अनसुना कर दिया।
"अरे यार, मेरी बात तो सुन," राहुल ने उसकी बाँह पकड़कर कहा। "अगर तू इस उम्र में शादी नहीं करेगा, तो तेरे बच्चे आगे चलकर तेरे को 'पापा जी' नहीं, 'दादा जी' ज़रूर कहेंगे!" राहुल अपनी बात पर ज़ोर से हँसा।
अरीव ने धीरे से उसकी तरफ़ घुमा, उसकी आँखें ठंडी और चेतावनी भरी थीं। "मुँह बंद रख, वर्ना तुझे यहीं मार डालूँगा। बहुत ज़्यादा ज़ुबान चलने लगी है तेरी आजकल।" उसकी आवाज़ में हल्की सी गुर्राहट थी।
रोहित, जो बीच में बैठा सब सुन रहा था, अपनी हँसी नहीं रोक पाया। "हाँ... हाँ... अब मुझे भी मार दे! तू तो आजकल मक्खियाँ भी तलवार से मारता है।"
अरीव ने दोनों को बारी-बारी से घूरकर देखा। कमरे में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया।
"अच्छा बाबा... अब से नहीं कहूँगा," राहुल ने हाथ जोड़ते हुए कहा, उसकी हँसी अब दबी हुई थी।
"हाँ... हाँ... माफ़ कर दो 'महाराज'," रोहित ने भी होंठों को भींचते हुए कहा।
कुछ घंटे बाद, जेट लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरा। बाहर लंबी काली कारों की कतार उनका इंतज़ार कर रही थी। अरीव और रोहित बीच वाली काली मर्सिडीज़ में बैठ गए।
"सर, कहाँ जाना है?" ड्राइवर ने पूछा।
"ऑफिस चलो," रोहित ने जवाब दिया।
लंदन की सुबह धुंधली थी। शहर जाग रहा था, लेकिन अरीव की मौजूदगी में उसके दफ्तर में हमेशा एक अजीब सा खौफ पसरा रहता था। वह सिर्फ़ एक माफिया ही नहीं था, बल्कि दुनिया के टॉप बिजनेसमैन में से एक भी था। उसकी कंपनी अलग-अलग सेक्टर में फैली हुई थी और अपनी परफेक्शन और डेडलाइन के लिए जानी जाती थी। कर्मचारियों को अच्छी सैलरी मिलती थी, लेकिन गलती करने की कोई गुंजाइश नहीं थी।
दूसरी तरफ़, मुंबई में सांवी एक अदद नौकरी की तलाश में भटक रही थी। जली हुई चमड़ी और डरे हुए चेहरे के साथ, उसे हर जगह निराशा ही हाथ लग रही थी। आखिरकार, एक छोटे से पिज़्ज़ा डिलीवरी शॉप के मालिक ने उस पर थोड़ी दया दिखाई। उसे हर दिन ₹500 मिलते थे, जो उसके गुज़ारे के लिए काफ़ी नहीं थे। बिना किसी आईडी या डॉक्यूमेंट के, और ऐसे शरीर के साथ, उसे कोई और काम देने को तैयार नहीं था।
लंदन में अरीव का ऑफिस एक गगनचुंबी इमारत की 83वीं मंजिल पर था। प्राइवेट लिफ्ट से रोहित के साथ ऊपर पहुँचते ही, उन्हें कर्मचारियों की दबी हुई फुसफुसाहट सुनाई दी।
"अब क्या करना है?" रोहित ने केबिन में बैठते ही पूछा। "ज़ेवियर से मिलना है क्या?"
अरीव की आँखें ठंडी चमक उठीं। "उसने मेरे काम में घुसने की कोशिश की है। उसे मैं छोडूँगा नहीं... वो जान से मरेगा।"
उसने अपने डेस्क पर पड़ी फ़ाइलों को उठाना शुरू कर दिया। हर रिपोर्ट, हर डेटा को बारीकी से देखने लगा।
रात होते ही, अरीव अपने लंदन के मेंशन के लिए रवाना हो गया। यह मेंशन मुंबई वाले से बिल्कुल अलग था—शांत, सफेद रंग का, और आधुनिक कला से सजा हुआ। दोनों दोस्तों ने साथ में खाना खाया और सोने चले गए।
लेकिन रात के 2:00 बजे, मेंशन पर अचानक हमला हो गया। गोलियों की आवाज़, धमाके... सब कुछ पल भर में तहस-नहस हो गया। यह हमला ज़ेवियर ने करवाया था।
अरीव गुस्से से आगबबूला हो गया। उसने तुरंत अपने गार्ड्स को जवाबी कार्रवाई करने का आदेश दिया, लेकिन तब तक ज़ेवियर गायब हो चुका था, अंडरग्राउंड।
"अब हमें चलना चाहिए," रोहित ने कहा, उसकी आवाज़ में चिंता थी। "हमारे असैसिन उसे ढूँढ लेंगे।" अरीव के पास भाड़े के हत्यारों की एक बहुत बड़ी फ़ौज थी, जिसे वह खुद कड़ी निगरानी में प्रशिक्षित करवाता था।
"नहीं," अरीव ने कहा, उसकी आवाज में दृढ़ता थी। "मैं उसे खुद अपने हाथों से मारूँगा।"
कुछ दिन बाद, अरीव ने ज़ेवियर को ढूँढ निकाला और उसे ऐसी मौत दी, जो शायद ही किसी ने सोची होगी। अपना हिसाब बराबर करने के बाद, वह भारत, मुंबई के लिए रवाना हो गया।
मुंबई में, एक हफ़्ता बीत चुका था। सांवी को पिज़्ज़ा डिलीवरी की नौकरी से भी निकाल दिया गया था। मालिक और दूसरे कर्मचारी उसके जले हुए शरीर की वजह से असहज महसूस करते थे। उन्हें वह अनहाइजीनिक लगती थी।
उधर, लंदन से अरीव की फ़्लाइट रात के 6:00 बजे मुंबई में लैंड हुई। एयरपोर्ट से सीधे वह अपने मेंशन के लिए रवाना हो गया।
जैसे ही रोहित और अरीव मेंशन पहुँचे, रोहित ने ज़ोर से आवाज़ लगाई, "भाई, मुझे बहुत भूख लगी है! खाना लगाओ उन्हें जल्दी से... मैं नहा कर आता हूँ!"
तभी एक गार्ड ने घबराते हुए कहा, "मालिक... हमारे यहाँ कोई मेड नहीं है खाना बनाने के लिए।"
"क्या?" रोहित और अरीव दोनों एक साथ चौंक गए।
"जी मालिक," गार्ड ने बताया, "उस दिन जब सर ने उस लड़की को भगा दिया था, उसके बाद से कोई मेड यहाँ काम नहीं करना चाहती।"
रोहित ने अरीव की तरफ़ देखा, उसका मुँह खुला हुआ था। "तेरे वजह से अब मैं भूखा मरूँगा!" उसने मज़ाकिया लहजे में कहा, लेकिन उसकी आँखों में सच में भूख दिख रही थी।
अरीव ने अपने गार्ड से कहा, "कोई ऐसी लड़की को ढूँढो, जो बिल्कुल खूबसूरत न हो और जिसे खाना अच्छा बनाना आता हो।"
"ठीक है, सर," गार्ड कहकर चला गया।
अगले दिन, अख़बार में एक विज्ञापन छपा: "शेखावत मेंशन में खाना बनाने के लिए मेड की आवश्यकता है। गैर-खूबसूरत महिला को प्राथमिकता।"
सांवी ने वह विज्ञापन देखा। यह उसके लिए एक मौका था। वह हिम्मत करके इंटरव्यू के लिए पहुँच गई। मेंशन के गार्डन में, एक आदमी उसका इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही उसने सांवी का चेहरा देखा, वह थोड़ा हिचकिचाया।
"देखिए, मैं आपको यह नौकरी नहीं दे सकता," गार्ड ने कहा। "आप बहुत सुंदर हैं, और हमारे मालिक को सुंदर लड़कियाँ पसंद नहीं हैं। इश्तिहार में साफ़ तौर पर लिखा है कि जो लड़की खूबसूरत न हो, वही काम कर सकती है।"
सांवी ने गहरी साँस ली और फिर अपने दुपट्टे को थोड़ा हटाया, अपना जला हुआ हाथ दिखाया। उसका चेहरा अब भी खूबसूरत था, लेकिन उसके हाथ और बाकी शरीर की झलक देखकर गार्ड की आँखें फैल गईं।
"मेरा... मेरा शरीर..." सांवी ने धीमी आवाज़ में कहा।
गार्ड ने कुछ पल उसे देखा और फिर कहा, "ठीक है। मैं आपको यह काम देता हूँ। आपको यहीं रहना होगा और तीनों टाइम का खाना बनाना होगा... दो लोगों का—रोहित सर का और अरीव सर का। आप अपना खाना भी बना सकती हैं।"
अगला सवाल:
क्या होगा जब अरीव और सांवी का पहली बार आमना-सामना होगा? क्या अरीव, जो सुंदर लड़कियों से नफ़रत करता है, सांवी के जले हुए शरीर और खूबसूरत चेहरे के विरोधाभास को समझ पाएगा? और क्या इस अजीबोगरीब माहौल में कोई रिश्ता पनप पाएगा?
अध्याय 4: नई शुरुआत और पुरानी यादें
सुबह के धुँधलके में, जब आसमान में सूरज की हल्की-हल्की किरणें फैल रही थीं, सांवी पहली बार उस विशाल शेखावत मेंशन के सामने खड़ी थी। चारों तरफ़ ऊँची-ऊँची दीवारें, लोहे का भारी गेट और उसके ऊपर लगे सुनहरे शेर के चिन्ह ने उसे जैसे बता दिया था कि यह जगह उसकी दुनिया से बहुत अलग है।
उसके मन में अजीब-सी घबराहट थी—उम्मीद भी थी कि शायद यहाँ से उसके जीवन की एक नई शुरुआत हो सके, और डर भी था कि कहीं उसके अतीत का दर्द और बदले की आग उसे फिर से न तोड़ दे।
गार्ड ने उसे देखा और पास आने का इशारा किया।
"मैं… मैं यहाँ काम करने आई हूँ," सांवी ने हिचकिचाते हुए कहा। उसके हाथों ने दुपट्टे को कसकर लपेट लिया, मानो वह अपने सारे जले हुए ज़ख्मों और दर्द को दुनिया से छुपाना चाहती हो।
गार्ड ने उसकी आँखों में एक पल झाँका और फिर उसे हेड सर्वेंट के ऑफिस की तरफ़ ले गया।
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हेड सर्वेंट से पहली मुलाकात
ऑफिस में एक मध्यम उम्र का आदमी बैठा हुआ था। उसकी आँखों में गंभीरता थी, पर चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान। वह कागज़ात देख रहा था, पर जैसे ही गार्ड ने दरवाज़ा खोला, उसने नज़रें उठाईं।
"आ जाइए," उसने कहा। "मेरा नाम सुरेश है। मैं यहाँ का हेड सर्वेंट हूँ।"
उसने हाथ के इशारे से सांवी को बैठने को कहा।
सांवी धीरे-धीरे बैठ गई। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं।
"तो, आप ही नई मेड हैं?" सुरेश ने फाइल पलटते हुए कहा।
"जी…" सांवी की आवाज़ धीमी थी।
सुरेश ने कागज़ बंद किया और सीधे उसकी तरफ़ देखा।
"आपको यहाँ रहकर अरीव सर और रोहित सर दोनों के लिए तीनों टाइम का खाना बनाना होगा।"
"जी… ठीक है।"
"एक बात और," सुरेश ने गला साफ़ किया। "हमारे सर्वेंट क्वार्टर में सिर्फ़ पुरुष कर्मचारी रहते हैं। इसलिए मैंने आपके लिए मेंशन के बेसमेंट वाला कमरा तैयार करवाया है। वहाँ आप आराम से रह सकती हैं।"
सांवी ने सिर हिलाया। "मैं समझ गई।"
सुरेश कुछ पल रुका, फिर धीरे से बोला—
"देखिए, अरीव सर बहुत सख्त इंसान हैं। खासकर… उन्हें लड़कियों से ज़्यादा मेलजोल पसंद नहीं है। आप उनसे जितना दूर रह सकें, उतना अच्छा है।"
सांवी के दिल में हल्की-सी टीस उठी। क्या हर जगह लड़कियों के लिए यही नियम होता है? पर उसने अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया।
"मैं इस बात का ध्यान रखूँगी," उसने संयम से कहा।
"अच्छा है," सुरेश ने मुस्कुराकर कहा। "वैसे अभी सर लोग ऑफिस गए हुए हैं, रात को ही लौटेंगे। आप चाहें तो डिनर की तैयारी कर लें। और अगर आपको भूख लगी हो, तो अपने लिए भी कुछ बना सकती हैं।"
"नहीं… मुझे अभी भूख नहीं है।"
"ठीक है, तो आप अपना सामान रख लीजिए।"
उसने चाबी दी और गार्ड को इशारा किया कि सांवी को उसके कमरे तक छोड़ आए।
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नया कमरा और पुरानी यादें
कमरा देखकर सांवी चकित रह गई। दीवारों पर नीला और सफेद पेंट, सुंदर कालीन, और बिस्तर पर सफेद पर्दों का घेरा। बालकनी में सफेद गुलाब खिले थे और एक लकड़ी का झूला भी रखा था।
गार्ड के जाने के बाद वह चुपचाप जाकर झूले पर बैठ गई। ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी।
अचानक उसे अपना बचपन याद आया—
कैसे वह अपनी माँ की गोद में सर रखकर घर के झूले पर सो जाती थी।
कैसे उसके पापा और भाई उसे हँसते-खेलते जगाते थे।
कैसे पापा हर बार माँ को डाँटते थे—
"मेरी बेटी से यह सब काम मत करवाओ, मेरी गुड़िया कहीं जल गई तो कितना दर्द होगा!"
और अब… वही हाथ जले हुए थे, वही चेहरे पर गहरे ज़ख्म थे।
उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े। उसने दबी आवाज़ में कहा—
"मैं उन लोगों से कैसे बदला लूँगी…?"
धीरे-धीरे वह रोते-रोते झूले पर ही सो गई।
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भयावह सपना
उसकी नींद टूटी गोलियों की आवाज़ से। वह पसीने से तरबतर थी। उसके मन में वही पुरानी तस्वीर उभर आई—उसकी बहन के साथ हुई बर्बरता, उसकी असहायता, उसका रोना, उसका चिल्लाना।
वह काँपते हुए उठी और शीशे में खुद को देखा।
"चाहे कुछ भी हो… चाहे मुझे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े… मैं बदला ज़रूर लूँगी।"
उसने दुपट्टे को कसकर लपेटा, ताकि उसके जले हुए निशान छुप जाएँ।
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किचन में पहली बार
शाम के छह बजे वह किचन में पहुँची। वहाँ पहले से कुछ सर्वेंट मौजूद थे।
"ये अरीव सर का डाइट प्लान है," एक कुक ने उसे दिया।
"और रोहित सर के लिए…?"
"वो तो हर दिन बदलता है। आज पनीर के पराठे और खीर चाहिए।"
फिर सब लोग चले गए, क्योंकि शाम के बाद सिर्फ़ कुक को रहने की अनुमति थी।
सांवी ने काम शुरू किया। सब्ज़ियों को काटते-काटते उसे माँ की याद आ गई।
"माँ, मुझे भी खाना बनाना सीखना है," वह बचपन में कहा करती थी।
पर पापा हमेशा मना करते—
"मेरी बेटी से यह सब काम मत करवाना।"
सांवी ने अपने हाथों की ओर देखा। अब तो ये हाथ सचमुच जल चुके हैं।
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रोहित की भूख और कॉमेडी
रात के साढ़े आठ बजे रोहित और अरीव घर लौटे।
"भाई! खाना लगा दो, मैं तो भूख से मर रहा हूँ!" रोहित हॉल में चिल्लाया।
सांवी चुपचाप खाना लगाती रही।
रोहित टेबल पर बैठा और जैसे ही खुशबू आई, वह मुस्कुरा उठा।
"वाह! ये खुशबू तो गजब है। देखने में भी बढ़िया लग रहा है। चलो अब खाकर देखते हैं।"
अरीव अपने शांत अंदाज़ में चेयर पर बैठ गया।
"भाई, अगर खाना अच्छा निकला तो मैं कुक को बोनस दूँगा," रोहित बोला।
अरीव ने ठंडी नज़र से उसे देखा। "तू बोनस देगा?"
"हाँ तो! मेरी भी कोई इज़्ज़त है इस घर में या नहीं?"
"तेरी इज़्ज़त तेरे पेट से शुरू होकर पेट पर ही खत्म हो जाती है," अरीव ने सूखा ताना मारा।
रोहित ने मुँह फुला लिया। "भाई, आप हमेशा मेरी टाँग खींचते हो।"
सांवी किचन से सब सुन रही थी। उसके होंठों पर पहली बार हल्की-सी मुस्कान आई।
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रुद्राक्ष और उदय की चर्चा
डिनर के दौरान अरीव ने कहा—
"रुद्राक्ष और उदय कल इंडिया आ रहे हैं। उनके रूम क्लीन करवा देना।"
रोहित की आँखें चमक उठीं। "क्या! रुद्राक्ष भैया आ रहे हैं? वाह!"
फिर उसने थोड़ा नखरा किया। "पर उन्होंने मुझे कॉल क्यों नहीं किया?"
"रुद्राक्ष के साथ उदय भी आ रहा है," अरीव ने जोड़ा।
"हूँह!" रोहित ने मुँह बिचकाया। "उस उदय का क्या काम है यहाँ? हमेशा मुझे ही परेशान करता रहता है।"
अरीव ने उसकी बात नज़रअंदाज़ कर दी।
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रात का सन्नाटा
डिनर के बाद दोनों भाई अपने-अपने कमरे में चले गए।
सांवी ने बर्तन धोए, फिर चुपचाप एक रोटी खाई। उसे ज़्यादा खाने का मन ही नहीं था। हादसे के बाद से ही उसका पेट जैसे भूख भूल चुका था।
वह कमरे में लौटकर बिस्तर पर लेट गई। पर नींद उसे कहाँ आने वाली थी?
उसके मन में अतीत की परछाइयाँ थीं, डर था, दर्द था और बदले की आग थी।
उसने आँखें बंद कीं और दबी आवाज़ में कहा—
"हे भगवान, मुझे हिम्मत देना… ताकि मैं अपने परिवार के साथ न्याय कर सकूँ।"
बाहर हवाएँ चल रही थीं। सफेद गुलाबों की खुशबू कमरे में फैल रही थी।
पर सांवी का दिल अब भी अंधेरे और तूफ़ान से भरा था।
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सवाल
क्या सांवी अपने अतीत के दर्द को भुलाकर नई शुरुआत कर पाएगी?
या फिर अरीव और उसके भाइयों की दुनिया में उसका आना एक नए तूफ़ान की शुरुआत होगी?
अध्याय 5: अरीव की पहली झलक
सुबह के 4:30 बजे, साँवी की नींद टूट गई। यह उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया था। बाहर ठंडी हवा चल रही थी और कमरे में फैली सफेद गुलाबों की ख़ुशबू मन को थोड़ी शांति दे रही थी। वह बिस्तर से उठी, बालकनी में गई और अपने दुपट्टे से शरीर को अच्छी तरह से ढँक लिया, ताकि उसके जले हुए घाव और निशान किसी को दिखाई न दें। फिर वह नहाने के लिए चली गई।
जब वह किचन में पहुँची, तो वहाँ पूरा सन्नाटा था। स्टाफ अभी तक नहीं आया था, और वे 8 बजे से पहले आते भी नहीं थे। साँवी ने फ्रिज पर लगा अरीव का डाइट प्लान देखा: "सुबह 5 बजे जिम में प्रोटीन शेक।" उसने बिना देर किए शेक बनाना शुरू कर दिया। उसे याद आया कि रोहित के लिए भी शेक ले जाना है। उसने दो ग्लास तैयार किए और जिम की तरफ़ चल दी। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। वह मन ही मन सोच रही थी कि यहाँ काम करना आसान नहीं है, खासकर तब, जब घर के नियम बहुत सख्त हों।
जिम में पहली मुलाकात
दरवाजे पर पहुँचकर उसने हल्की-सी दस्तक दी, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आया। उसने हिम्मत करके दरवाज़ा खोला और अंदर क़दम रखा।
सामने का नज़ारा देखकर साँवी के क़दम रुक गए। अरीव शर्टलेस, सिर्फ़ बॉक्सर पहने हुए, खिड़की की तरफ पीठ करके खड़ा था। वह किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था। उसकी मजबूत, चौड़ी पीठ पर उसकी मांसपेशियाँ साफ़ दिखाई दे रही थीं। उसके भीगे हुए बाल माथे पर बिखरे थे। वह फ़ोन पर कह रहा था, "रुद्राक्ष! मुझे तुम्हारी एक भी बात नहीं सुननी। तुम्हें इंडिया आना ही होगा, और उदय भी तुम्हारे साथ आएगा।"
साँवी ने तुरंत अपनी नज़रें झुका लीं। तभी उसकी नज़र रोहित पर पड़ी, जो एक कोने में वर्कआउट कर रहा था। रोहित ने झुकी हुई नज़रों वाली साँवी को देखा और धीरे से मुस्कुराया। साँवी ने बिना एक शब्द कहे शेक के ग्लास टेबल पर रखे और तेज़ी से जिम रूम से बाहर निकल गई।
वह किचन में भागी और अपने दिल पर हाथ रखकर गहरी साँस ली। उसका चेहरा पूरी तरह लाल हो गया था। उसे वही नज़ारा बार-बार याद आ रहा था। उसके दिमाग में बस एक ही ख़याल था: "यह सब तुम्हारे लिए नहीं है, साँवी। तुम इन सब चीज़ों के लायक नहीं हो। तुम्हें कोई नहीं अपनाएगा, कोई नहीं चाहेगा।"
इन विचारों ने उसके दिल को चोट पहुँचाई। उसकी आँखों से एक आँसू की बूँद गाल पर लुढ़क गई। उसने जल्दी से आँसू पोंछे और खुद को समझाया कि उसे अपनी भावनाओं को काबू में रखना होगा। उसका मक़सद बदला लेना था, न कि किसी की ख़ूबसूरती देखकर दिल बहलाना। अगले ही पल, वह खाने की तैयारी में जुट गई।
उसने अरीव के लिए सैंडविच, फ्रूट सैलेड और जूस बनाया। तभी उसने रोहित का एक नोट देखा जो फ्रिज पर चिपका हुआ था। "आज मुझे छोले भटूरे खाने हैं।"
साँवी के चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान आ गई। यह शायद उसके जन्मदिन के बाद उसकी पहली मुस्कान थी। उसे दोनों भाइयों में एक अजीब-सा अंतर दिखा। एक एकदम शांत और बर्फ़ की तरह था, जबकि दूसरा नटखट और चुलबुला।
अरीव का कमरा और उसका राज
अरीव जिम से वापस आया और सीधे अपने कमरे की तरफ़ चला गया। उसकी एक आदत थी कि वर्कआउट के बाद वह हमेशा शावर लेता था और उसके तुरंत बाद उसे कॉफी चाहिए होती थी।
साँवी ने कॉफी बनाई और उसे लेकर अरीव के कमरे की ओर चल दी। वह कमरे के दरवाज़े पर पहुँची और उसने धीरे से दस्तक दी, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। उसे लगा कि अरीव शावर ले रहा होगा। उसने दरवाज़ा खोला और अंदर चली गई।
अंदर शावर की आवाज़ आ रही थी। साँवी ने पूरे कमरे पर एक नज़र डाली। कमरे का इंटीरियर काला, सुनहरा और सफ़ेद था, जो बहुत ही शानदार लग रहा था। लेकिन एक चीज़ ने उसकी नज़र खींच ली। बेड के ठीक ऊपर एक बड़ा-सा शीशा लगा हुआ था।
"यह कैसा इंसान है जो अपने बेड के ऊपर शीशा लगाता है?" साँवी ने मन ही मन सोचा। तभी उसकी नज़र कमरे की दीवारों पर लगी तस्वीरों पर पड़ी। सब तस्वीरें अरीव की ही थीं, लेकिन एक तस्वीर ने उसे हिला दिया।
तस्वीर में अरीव एक काले रंग की किंग साइज़ चेयर पर बैठा हुआ था, एकदम राजा की तरह। उसने सिर्फ़ काले रंग की पैंट पहनी हुई थी और उसका बायाँ कंधा खुला हुआ था जिस पर साँप का एक टैटू बना हुआ था। उसके बाल बिखरे हुए थे और उसके एक हाथ में एक काले रंग का साँप था जिसका मुँह उसने अपने हाथों से पकड़ा हुआ था। दूसरे हाथ में रेड वाइन का ग्लास था। पूरे कमरे में काले और लाल रंग का कॉम्बिनेशन था। तस्वीर को देखकर साँवी डर गई। "यह कैसा इंसान है जो साँप को अपने हाथ में लेता है?"
तस्वीर को देखते ही साँवी के हाथों से कप गिरते-गिरते बचा। वह तुरंत कॉफी टेबल पर कप रखकर तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गई।
रोहित की उत्सुकता और साँवी का दर्द
बाहर आकर साँवी ने गहरी साँस ली। उसका दिल अभी भी धड़क रहा था। तभी उसे नीचे से रोहित की आवाज़ आई, "मिस! मेरे लिए नाश्ता लगा दो।"
साँवी तुरंत सीढ़ियों से नीचे भागी और डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगाने लगी। रोहित पहली बार साँवी को क़रीब से देख रहा था। उसने मुस्कुराते हुए पूछा, "आपका नाम क्या है?"
साँवी ने बहुत धीरे से जवाब दिया, "साँवी।"
"ओह," रोहित ने कहा और अपनी सीट पर बैठ गया। तभी वह उत्सुक होकर बोला, "एक बात पूछूँ? मेरा भाई तो ख़ूबसूरत लड़कियों को घर में काम पर रखना पसंद नहीं करता। तो आप यहाँ कैसे आ गईं?"
साँवी यह सवाल सुनकर चौंक गई। उसके चेहरे पर डर की एक लहर दौड़ गई। उसने अपनी नज़रें झुका लीं और कोई जवाब नहीं दिया। रोहित ने साँवी के चेहरे को देखा, और फिर उसकी नज़रें उसके दुपट्टे से ढके हुए हाथों पर पड़ीं। उसे साँवी के जले हुए हाथ दिख गए।
रोहित ने अपनी गलती महसूस की और तुरंत कहा, "सॉरी! मुझे आपसे यह सवाल नहीं पूछना चाहिए था। मुझे माफ़ कर दीजिएगा।" उसके चेहरे पर पछतावा साफ़ दिख रहा था।
साँवी ने धीरे से सिर उठाया और कहा, "कोई बात नहीं।" उसने अपनी भावनाओं को छुपाया और चुपचाप किचन में चली गई।
रुद्राक्ष और उदय का आगमन
तभी अरीव नीचे हॉल में आया। वह पूरी तरह से काले सूट में था और कमर पर बंदूक लगाए हुए था। वह सीधे अपनी किंग-साइज़ कुर्सी पर बैठ गया।
उसने रोहित से कहा, "आज रुद्राक्ष भाई और उदय इंडिया आ रहे हैं। तुम्हें उन्हें एयरपोर्ट से लाने जाना है।"
रोहित की आँखें ख़ुशी से चमक उठीं। "सच में! रुद्राक्ष भैया आ रहे हैं! वाह! पर उन्होंने मुझे कॉल क्यों नहीं किया?"
"रुद्राक्ष के साथ उदय भी आ रहा है," अरीव ने दोबारा कहा।
"हूँह!" रोहित ने मुँह बिचकाया। "उस उदय का क्या काम है यहाँ? वह हमेशा मुझे ही परेशान करता रहता है।"
अरीव ने रोहित की बात को नज़रअंदाज़ किया और नाश्ता करने लगा। दोनों भाई नाश्ता करके अपनी-अपनी काली BMW कार में बैठकर निकल गए—एक ऑफिस की ओर, दूसरा एयरपोर्ट की ओर।
घर में अब सिर्फ़ साँवी थी और बाकी स्टाफ़, जो सुबह 8 बजे आ चुके थे। साँवी ने अपने जले हुए हाथ देखे और उसके दिल में एक टीस उठी। उसे अपने माँ-बाप और भाई की याद आई। वह अब कुछ भी खाने की इच्छा नहीं रखती थी। उसने सारे बर्तन धोए और चुपचाप अपने कमरे में चली गई।
वह बालकनी में झूले पर बैठ गई। ठंडी हवा चल रही थी और सफ़ेद गुलाबों की महक उसके मन को शांति दे रही थी, पर उसका दिल अभी भी दर्द, ग़म और बदले की आग से जल रहा था। उसने आँखें बंद कीं और अपने परिवार को याद किया।
क्या साँवी की ज़िंदगी में ये दोनों भाई उसके पुराने रिश्तों की तरह एक नई शुरुआत लेकर आएँगे? जानने के लिए पढ़ते रहिए अगला अध्याय...
अध्याय 6: ख़ामोशी और एक नई परछाई
दोपहर का वक़्त था। मेंशन की गलियों में हमेशा की तरह सन्नाटा पसरा हुआ था। अरीव और रोहित सुबह ही बाहर निकल गए थे—किसी मीटिंग और पुराने दोस्तों को एयरपोर्ट से लाने। स्टाफ अपनी-अपनी ड्यूटी में लगा हुआ था, लेकिन मेंशन का आकार इतना बड़ा था कि भीड़ होने पर भी अकेलापन महसूस होता था।
किचन में काम करते हुए साँवी की नज़रें बार-बार बाहर खिंच रही थीं। बर्तन खनकते, भाप उठती, लेकिन उसका ध्यान जैसे कहीं और था। उसकी आँखों में अब भी रात का डर बैठा था—वही भयानक सपने, वही गोलियों की आवाज़ें, वही जलती हुई चीखें। उसने सिर झटककर खुद को सँभालने की कोशिश की।
“आज का दिन शांत रहना चाहिए…” उसने खुद से बुदबुदाया।
लेकिन तभी, बालकनी की ओर से एक अजीब-सी सरसराहट सुनाई दी। ऐसा लगा जैसे किसी भारी जानवर के कदमों से घास हिल रही हो। साँवी का दिल धक-धक करने लगा।
वह धीरे-धीरे बाहर निकली और गार्डन की ओर बढ़ी। धूप हल्की पड़ चुकी थी, पेड़ों की छाँव में एक ठंडी नमी थी। तभी उसकी नज़र पड़ी—घास के बीच बैठा एक काला साया।
वह पैंथर था। विशाल, चमचमाती काली खाल वाला। उसका नाम वही था, जिसे रात में उसने दूसरों की बातों में सुना था—अब्र।
अब्र शांति से बैठा था, उसकी आँखें बंद थीं, मानो ध्यान में लीन हो। लेकिन उसके चेहरे पर एक गहरी उदासी की परत साफ झलक रही थी। साँवी वहीं ठिठक गई। उसके मन में डर भी था, लेकिन उसी डर के पीछे एक अजीब-सी खिंचाव भी।
उसने एक पल को खुद को सँभाला और दबे पाँव उसकी ओर बढ़ी। उसका दुपट्टा हवा में हल्का-सा लहराया।
“तुम यहाँ अकेले क्यों बैठे हो?” साँवी की आवाज़ फुसफुसाहट जैसी थी।
अब्र ने अपनी काली पलकों को धीरे से उठाया। उसकी आँखें—गहरी, ठंडी, लेकिन अजीब तरह से समझदार—सीधे साँवी की आँखों में उतरीं। साँवी को लगा जैसे वह उसके दिल का सारा दर्द पढ़ रहा हो।
उसने हिम्मत करके अपने दुपट्टे को सरकाया और अपने जले हुए हाथ आगे कर दिए।
“देखो… ये जल गए हैं। बहुत दर्द होता है। लेकिन… हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, है ना?”
अब्र धीरे-धीरे उठा। उसकी विशाल देह घास पर लहराती-सी चली आई। साँवी का दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि उसे लगा जैसे वो सुनाई देगा। लेकिन डर की जगह भीतर एक अजीब-सी शांति उतर रही थी।
अब्र ने उसके हाथों को सूँघा। साँवी की साँसें थम गईं। अगले ही पल, अब्र ने धीरे से उसकी हथेली को अपनी जीभ से छुआ। जैसे उसके ज़ख्मों को ढाँप लेना चाहता हो।
साँवी की आँखों से आँसू बह निकले। उसे अपने भाई की याद आ गई—वो भाई जो हमेशा कहता था,
“जानवरों से दोस्ती करो, वो इंसानों से ज्यादा वफ़ादार होते हैं।”
साँवी घुटनों पर बैठ गई। उसके होंठ काँप रहे थे।
“तुम्हें भी अकेलापन सताता है ना? मुझे भी… बहुत।”
अब्र ने उसकी आँखों में देखा और एक हल्की-सी आवाज़ निकाली—न तो दहाड़, न गुर्राहट—बस एक उदास-सी ध्वनि, जैसे सहमति में सिर हिला रहा हो।
उस पल, साँवी को लगा जैसे उसे एक खामोश साथी मिल गया हो।
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शाम का समय
शाम ढलते ही मेंशन की रौनक लौट आई। सामने से दो कारें आकर रुकीं। पहली कार से रोहित और अरीव उतरे, दूसरी से दो और चेहरे बाहर आए—रुद्राक्ष और उदय।
रोहित जैसे ही रुद्राक्ष को देखकर दौड़ा, उसकी आवाज़ गूँज उठी—
“भाई!!!”
दोनों ने गले लगाया। अरीव हल्की मुस्कान के साथ बगल में खड़ा रहा।
उदय ने आते ही रोहित को छेड़ दिया—
“अरे, तुम अभी भी इतने ही बच्चे हो क्या? ज़रा भी बड़े नहीं हुए!”
रोहित ने तुरंत मुँह फुला लिया।
“उदय! तुम अपनी बकवास बंद करो।”
सब हँस पड़े। तभी हेड सर्वेंट सुरेश आया और बोला,
“सर, आपके कमरे तैयार हैं।”
रुद्राक्ष ने सिर हिलाकर कहा, “धन्यवाद, सुरेश।
सुरेश झुककर चला गया।
तभी अरीव कहता है। हमें अंदर चलना चाहिए भाई चलिए वहीं बैठकर बात करते हैं तभी रोहित कहता है अतीव सही कह रहा है भाई चलिए अंदर।
उसी वक्त, डाइनिंग हॉल से नाश्ते की ट्रे लेकर साँवी आई। सफेद सलवार-कुर्ते में, सिर झुकाए हुए।
रुद्राक्ष की नज़र उस पर ठहर गई।
“अरे, ये कौन है?” उसने रोहित से पूछा।
“यही तो हमारी नई कुक है, साँवी,” रोहित ने मुस्कुराकर कहा।
साँवी ने सिर झुकाया और धीमे स्वर में बोली, “नमस्ते।”
“नमस्ते,” रुद्राक्ष ने जवाब दिया। उसकी आँखें साँवी के शांत चेहरे पर टिक गईं।
“तुम बहुत अच्छा खाना बनाती हो। रोहित ने हमें तुम्हारे खाने के बारे में रास्ते भर बहुत बताया है। हम भी तुम्हारे हाथ के खाने को जरूर खाना चाहेंगे।
साँवी ने हल्की-सी मुस्कान दी, फिर नज़रें झुका लीं।
रुद्राक्ष ने सहजता से पूछा,
“कहाँ की रहने वाली हो?”
“दिल्ली।”
“ओह… और तुम्हारा परिवार?”
सवाल सुनते ही साँवी का चेहरा उतर गया। उसकी आँखों में वही पुराना दर्द तैर गया। उसने तुरंत मुँह फेर लिया और ट्रे लगाने लगी।
रुद्राक्ष को अपनी भूल का एहसास हुआ।
“सॉरी, मुझे ये नहीं पूछना चाहिए था।”
साँवी ने कुछ नहीं कहा। बस चुपचाप टेबल पर खाना सजाने लगी।
अरीव ने इशारे से रुद्राक्ष को शांत किया। वह जानता था कि साँवी की खामोशी के पीछे कोई गहरी कहानी छिपी है। वह उससे बात नहीं करता था पर उसके पास इतना तजुर्बा था कि वह किसी को भी देखकर उसका अस्तित्व बता दे।
इसी बीच रोहित फिर बीच में आ गया।
संवि मैंने सुबह में फ्रिज में एक चैट लगाया था खाने का क्या वह सारे खान बने हैं आज।
संवि कहती है हां मैंने सारे खाने बनाए हैं सर।
साँवी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
“टेबल पर हैं, सर।”
रोहित उछल पड़ा।
“वाह! तुम बहुत अच्छी हो। मैंने सोचा था तुम भी मेरे भाई की तरह बहुत गंभीर होगी।”
उसकी मासूमियत पर साँवी के होंठों पर एक हल्की मुस्कान तैर गई। उसे अपने छोटे बहन की याद आ गई, जो हमेशा ऐसे ही उसे छेड़ती था।
रुद्राक्ष ने गौर किया कि जहाँ उसके सवालों पर साँवी चुप्पी ओढ़ लेती थी, वहीं रोहित के सामने वह सहज हो जाती थी।
रुद्राक्ष मन ही मन में सोचता है की रोहित उसके साथ हमेशा से रह रहा है इसीलिए वह उसके साथ सहज है।
और यह बात सच भी थी जब वह पहले पहली बार यहां आई थी वह किसी के साथ सहज नहीं थी।
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अब्र की मौजूदगी
जैसे ही सब लोग बातों में लगे थे, तभी बाहर से एक भारी-सी आहट आई। गार्डन से सीधा डाइनिंग हॉल की खिड़की तक काली परछाई चली आई।
सबके सिर मुड़े—वह अब्र था।
वह शांत भाव से चलता हुआ सीधे साँवी के पीछे आकर खड़ा हो गया। उसकी काली आँखें कमरे के हर व्यक्ति को देख रही थीं, लेकिन उसका ध्यान सिर्फ साँवी पर था।
उदय ने उसे देखते ही डरकर कुर्सी पीछे खिसकाई।
“ये… ये यहां क्यों है भाई! इसे तो अब तक ब्लैक मेंशन में चले जाना चाहिए था? और ये इस लड़की के पीछे-पीछे क्यों घूम रहा है?”
उसने हँसते हुए जोड़ा,
“मुझे तो लग रहा है, ये अभी हम सबको खा जाएगा। और ये लड़की कौन है जिसके पीछे ये ऐसे मंडरा रहा है?”
उदय डरते हुए संवि से कहता है ।है देवी इसे मेरे पास से हटाइए।
रोहित खिलखिलाकर हँसा।
“अरे उदय, डरपोक कहीं के! ये अरीव का पालतू ब्लैक पैंथर है। अब तेरे कहने से इसे कोई घर से बाहर थोड़ी ना निकाल देगा। यह भी हमारे फैमिली मेंबर के जैसा है। और देखो, इसे साँवी बहुत पसंद आ गई है।”
अरीव ने गहरी नज़र से अब्र को देखा। सचमुच, पैंथर का सारा ध्यान साँवी पर था। जैसे वह उसकी पहरेदारी कर रहा हो।
साँवी थोड़ा घबराई, लेकिन उसकी आँखों में डर नहीं था। उसने धीरे से अब्र के सिर पर हाथ रखा।
“अब्र, सब ठीक है… तुम जाओ।”
लेकिन अब्र वहीं बैठ गया। उसकी भारी साँसों की आवाज़ पूरे कमरे में गूँज रही थी।
उदय अब भी काँपते हुए बोला,
“भाई, मैं तो कह रहा हूँ, इसे बाँध दो कहीं। नहीं तो एक दिन किसी का हाथ-पाँव खा जाएगा।”
अरीव ने सख्ती से कहा,
“अब्र किसी को नुकसान नहीं पहुँचाता। जब तक वो चाहे।”
साँवी ने हल्की आवाज़ में जोड़ा,
“ये नुकसान नहीं करेगा।”
कमरे में एक पल को खामोशी छा गई। सबके चेहरे पर हैरानी थी।
रुद्राक्ष ने ध्यान से साँवी और अब्र को देखा। उसकी आँखों में गहरी सोच उतर आई—मानो वह समझ रहा हो कि इन दोनों के बीच कुछ ऐसा है, जिसे शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता।
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रात की खामोशी
रात को सब अपने-अपने कमरों में चले गए। लेकिन साँवी के कमरे के बाहर अब्र का साया मंडराता रहा।
साँवी बिस्तर पर बैठी थी। उसके हाथों की जलन फिर से यादों को कुरेदने लगी। माँ की मुस्कान, भाई की शरारत, पापा का कहा—
“मेरी गुड़िया से कभी ये सब काम मत करवाना, वरना उसके हाथ जल जाएँगे।”
उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
“पापा… देखिए, अब मेरे हाथ सचमुच जल चुके हैं। अब मुझे कोई अपनी बेटी नहीं कहेगा।”
तभी उसने दरवाज़े के पास आहट सुनी। अब्र भीतर आ गया। उसकी काली आँखें सीधे साँवी की आँखों से मिलीं।
साँवी पहले तो घबरा गई, लेकिन अब्र ने धीरे से उसके पास आकर उसके जले हुए हाथ को चाट लिया। आँसुओं से भीगी साँवी हौले से मुस्कुराई।
“तुम… तुम मेरे साथ हो, ना?”
अब्र ने हल्की दहाड़ जैसी आवाज़ निकाली, मानो कह रहा हो—“हाँ।”
साँवी ने उसका सिर सहलाया और फूट-फूटकर रो पड़ी। अब्र फर्श पर लेट गया, उसकी साँसें कमरे में गूँज रही थीं।
आधी रात को जब भयानक सपनों ने साँवी को फिर झकझोरा, अब्र उठ गया। उसने अपने पंजे से उसके कंधे को हल्का-सा छुआ, जैसे कह रहा हो—“डरो मत।”
साँवी काँपते हुए उसके पास सिमट गई। उसने अब्र की गरम साँसों में खुद को छुपा लिया। पहली बार, उसे लगा कि वह अकेली नहीं है।
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एक अनकहा रिश्ता
सुबह जब वह जागी तो अब्र कमरे में नहीं था। लेकिन उसके दिल में अजीब-सी शांति थी।
उसने खिड़की से बाहर देखा। घास पर ओस की बूंदें चमक रही थीं, और थोड़ी दूर अब्र आराम से लेटा था।
साँवी के होंठों पर हल्की मुस्कान तैर गई।
“मेरे घाव शायद कभी नहीं भरेंगे… लेकिन अब मैं अकेली नहीं हूँ।”
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✨ क्या अब्र की यह दोस्ती साँवी की ज़िंदगी में नया मोड़ लाएगी? और क्या रुद्राक्ष व उदय के आने से अरीव और साँवी के बीच अनजाना रिश्ता बदल जाएगा?
अध्याय 7: राख और प्रतिशोध की आहट
रात का समय था। हवेली के डाइनिंग हॉल में असाधारण शांति पसरी हुई थी। ऊँचे-ऊँचे झूमरों से निकलती सुनहरी रोशनी पूरे हॉल को जगमगा रही थी। बाहर की ठंडी हवा और अँधेरा मानो इस सन्नाटे को और गहरा बना रहे थे।
लंबी मेज़ पर पाँच लोग बैठे थे—अरीव, साँवी, रुद्राक्ष, रोहित और उदय। मेज़ पर तरह-तरह के व्यंजन सजाए हुए थे।
रोहित ने खाने की प्लेट देखकर ठहाका लगाया—
“भाई, ये चिकन इतना सख़्त क्यों है? मुझे लग रहा है जैसे रसोइए ने इसे डम्बल समझकर जिम कर लिया हो।”
साँवी ज़ोर से हँस पड़ी। उसके होंठों पर खिली वह मासूम मुस्कान माहौल को अचानक हल्का कर गई। अरीव ने उसकी ओर देखा, और अनजाने ही उसकी आँखों में नरमी आ गई। उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान उभर आई।
रुद्राक्ष चुपचाप बैठा था। उसकी आँखें जैसे किसी गहरी याद में खोई हुई थीं। उदय हमेशा की तरह चौकस निगाहों से चारों तरफ़ देख रहा था, मानो खतरे की आहट सूँघ रहा हो।
यह सब किसी सामान्य पारिवारिक डिनर जैसा लग रहा था, लेकिन यह शांति तूफ़ान से पहले की खामोशी थी।
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हमला
अचानक बाहर से एक भयानक धमाका हुआ। पूरी हवेली की खिड़कियाँ हिल उठीं। काँच की खनखनाहट ने सबको चौंका दिया।
उसके तुरंत बाद गोलियों की आवाज़ गूँजी। बाहर तैनात गार्ड्स चीखते हुए गिरने लगे।
“क्या हो रहा है!” साँवी की चीख उभरी।
इससे पहले कि कोई कुछ समझता, बिजली चली गई। हॉल घुप अँधेरे में डूब गया। भारी झूमर ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगा और कुछ ही पल बाद धड़ाम की आवाज़ के साथ टूटकर नीचे गिर पड़ा। टुकड़े चारों तरफ़ बिखर गए।
दरवाज़े धड़ाम से खुले। नक़ाबपोश हमलावरों का झुंड अंदर घुस आया। उनके हाथों में बंदूकें चमक रही थीं। उनके बीच खड़ा उनका लीडर ज़रा आगे बढ़ा। ऊँचा कद, काले कपड़े, चेहरे पर नक़ाब—बस आँखें चमक रहीं थीं।
उसकी आवाज़ ठंडी और गूँजदार थी—
“आज तुम्हारे गुनाहों का हिसाब होगा।”
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रुद्राक्ष पर इल्ज़ाम
उसकी नज़र सीधी रुद्राक्ष पर टिक गई। उसने बंदूक की नली उसकी ओर करते हुए दहाड़ा—
“मेरी बहन की मौत तुम्हारी वजह से हुई! तुमने उसे धोखा दिया और उसने अपनी जान ले ली!”
साँवी ने सदमे से रुद्राक्ष की ओर देखा।
“ये क्या कह रहा है…?”
रुद्राक्ष का चेहरा सख़्त हो गया। उसने गहरी आवाज़ में कहा—
“नहीं! उसकी मौत मेरी वजह से नहीं हुई। मैंने उसे धोखा नहीं दिया। मैंने… मैंने समझाने की बहुत कोशिश की थी। वो अपने ही हालातों से टूटी थी, मैं दोषी नहीं हूँ।”
लीडर ने ठहाका मारा।
“झूठ! तुम जैसे लोग हमेशा बहाने बनाते हो। मेरी बहन का खून तुम्हारे सर है।”
रुद्राक्ष ने फिर ज़ोर देकर कहा—
“नहीं! मैं कसम खाता हूँ, मैंने उसे कभी तकलीफ़ नहीं दी। उसकी मौत… मेरी वजह से नहीं थी!”
उसकी आँखों में अपराधबोध नहीं, बल्कि सच्चाई की चमक थी। उसी क्षण अरीव, उदय और साँवी सब समझ गए कि यह इल्ज़ाम ग़लतफ़हमी है। रुद्राक्ष दोषी नहीं है।
लेकिन लीडर सुनने को तैयार नहीं था। उसका चेहरा ग़ुस्से से तमतमा उठा।
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लड़ाई की शुरुआत
“गोली मारो इसे!” उसने चिल्लाया।
बस इतना कहना था कि पूरा हॉल गोलियों की बौछार से गूँज उठा। गार्ड्स चीखते हुए गिरने लगे। हर तरफ़ गोलियों की आवाज़ और धुएँ की गंध भर गई।
अरीव तुरंत हरकत में आ गया। उसने साँवी को एक तरफ़ धकेला और खुद ज़मीन पर लुढ़क गया। अंधेरे में उसने गन निकाली और निशाना साधा।
धड़ाम! एक हमलावर गिर पड़ा।
धम-धम-धम! बाकी हमलावर चारों ओर से फायरिंग करने लगे। मेज़, कुर्सियाँ और दीवारें गोलियों से छलनी हो रही थीं।
अरीव ने साँवी को अपनी ओर खींचा।
“झुको! सर झुकाकर रहो!”
साँवी काँपते हुए उसके कंधे से चिपक गई।
उदय भी मोर्चा संभाल चुका था। उसने अपनी पिस्तौल निकाली और गोलियों की गूँज के बीच लगातार फायर किया। रोहित डर से चीख रहा था, लेकिन बीच-बीच में उसकी घबराई हुई बातें माहौल को अजीब-सा हल्का कर देती थीं।
“भाई… मैं तो मरने से पहले भी शादी नहीं कर पाया!” वह चिल्लाया, और गोली चलाते हुए उदय ने खीझकर कहा—
“चुप कर, वरना सच में तेरी शादी कभी नहीं होगी!”
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अरीव की चालाकी
अंधेरे और धुएँ में अरीव ने जगह-जगह छुपते हुए लड़ाई लड़ी। वह कभी मेज़ के पीछे सरकता, कभी टूटे झूमर के पास से गोली चलाता। उसकी गन की हर गोली सटीक थी।
एक-एक कर हमलावर गिरते गए। लेकिन उनकी संख्या इतनी ज़्यादा थी कि लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रही थी।
लीडर आग-बबूला हो चुका था। उसने चिल्लाकर कहा—
“पूरी हवेली जला दो!”
उसके आदमियों ने पेट्रोल फेंकना शुरू कर दिया। मोटे परदे, लकड़ी की दीवारें और फर्नीचर पल भर में आग पकड़ने लगे।
यह सब देखकर संवि बहुत डर गई और उसे अपना पास्ट याद आने लगा। वह पसीने से तरबतर हो रही थी।
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हवेली जलती है
लपटें आसमान छूने लगीं। धुआँ चारों ओर फैल गया। गार्ड्स की चीखें गूँजने लगीं।
अरीव ने साँवी का हाथ कसकर पकड़ा।
“यहाँ से निकलना होगा, अभी!”
उदय, रोहित और रुद्राक्ष भी पास आ गए। सबने पीछे का रास्ता पकड़ा। लेकिन आग और गोलियों के बीच रास्ता आसान नहीं था।
भागते हुए अरीव ने कई और गोलियाँ चलाईं। धुएँ में उसकी आँखें लाल हो गई थीं, लेकिन उसका निशाना अब भी सही था।
लीडर जाते-जाते पीछे मुड़ा और दहाड़ा—
“यह तो बस शुरुआत है! हर दिन तुम्हें मेरी बहन की मौत की याद दिलाऊँगा।”
इसके बाद वह अपने आदमियों के साथ रात की अँधेरी छाया में गुम हो गया।
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क्लिफहैंगर
पीछे पूरी हवेली जलकर राख में बदल रही थी। भारी दरवाज़े गिर रहे थे, दीवारें ढह रही थीं।
साँवी ने डरते-डरते जलती हवेली की ओर देखा। उसकी आँखों में आँसू थे।
अरीव ने उसका हाथ कसकर पकड़ा।
“अब हमें जंगल की तरफ़ जाना होगा… यही एक रास्ता है।”
पाँचों लोग भागते हुए हवेली के पीछे फैले अँधेरे जंगल में घुस गए।
पीछे रह गई सिर्फ़ राख, धुआँ और प्रतिशोध की आहट।
"जंगल की ठंडी रात और अनकहा सहारा""
हवेली की दीवारों पर गूंजती गोलियों की आवाज़ अब भी उनके कानों में पड़ी हुई थी। धुएँ की हल्की गंध, टूटी खिड़कियों से उड़ती धूल और पीछे छूटते कदमों की आहट—सब मानो पीछा कर रही हो। साँवी, अरीव, रुद्राक्ष, रोहित और उदय, पाँचों अपनी साँसों को काबू में रखते हुए भागते-भागते आखिरकार जंगल के भीतर तक आ पहुँचे।
पेड़ों की लम्बी कतारें, चारों तरफ़ फैला अंधेरा और ठंडी हवा—सब मिलकर उन्हें डरा भी रहे थे और राहत भी दे रहे थे। डर इसलिए कि अब सामने क्या आने वाला है, किसी को नहीं पता… और राहत इसलिए कि कम से कम जान बचाकर निकल तो आए।
साँवी हाँफती हुई एक पेड़ के पास रुकी। उसका सीना तेज़ी से उठ-गिर रहा था। उसने चारों ओर देखा और धीरे से बुदबुदाई—
“हम… सच में बच गए…”
अरीव, जो सबसे आगे चल रहा था, अचानक ठहर गया। उसने पलटकर सबको देखा। उसका चेहरा अभी भी कठोर और गंभीर था, लेकिन उसकी आँखों में हल्की-सी नमी छिपी थी, जिसे किसी ने नोटिस नहीं किया।
“सब ठीक हो?” उसने संक्षेप में पूछा।
“ठीक तो हैं,” रुद्राक्ष ने थकी-थकी हँसी के साथ कहा, “लेकिन हवेली छोड़कर अब हम टार्ज़न बन गए हैं। बस बेल पकड़कर झूलना बाकी है।”
रोहित हँस पड़ा, “हाँ और तू टार्ज़न नहीं, चिम्पांज़ी लगेगा।”
थकान से टूटी साँसों के बीच भी सबके होंठों पर मुस्कान आ गई। डर और तनाव के बीच यह छोटी-सी हँसी किसी मरहम जैसी लगी।
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जंगल का पहला पड़ाव
कुछ देर बाद सबने एक खुली जगह देखी। पेड़ों के बीच घिरा छोटा-सा मैदान, चारों तरफ़ झाड़ियों की सरसराहट और ऊपर आसमान में झिलमिलाते तारे।
“यहीं रुकते हैं,” अरीव ने धीमे लेकिन ठोस स्वर में कहा।
सब वहीं बैठ गए। थके हुए शरीर अब और आगे बढ़ने की ताक़त नहीं रखते थे। उदय ने ज़मीन से कुछ सूखी लकड़ियाँ खींचीं, और आग जलाने की कोशिश करने लगा।
रुद्राक्ष वहीं घास पर लेटकर आसमान को देख रहा था। उसने हँसते हुए कहा,
“भाई, हवेली का AC और रजाई छोड़कर अब यहाँ झींगुर और मच्छरों के बीच सोना पड़ेगा। सच में, हमारी किस्मत देखो।”
रोहित ने मज़ाक में कहा,
“क्यों? तू तो कहता था ना, adventure चाहिए… अब मिल रहा है adventure।”
साँवी मुस्कुरा तो दी, लेकिन उसके चेहरे पर अब भी चिंता साफ़ झलक रही थी। उसने धीरे से अरीव की तरफ़ देखा, जो पेड़ों के बीच लगातार चौकन्ना होकर खड़ा था।
“हम कब तक यहाँ रहेंगे?” उसने धीमी आवाज़ में पूछा।
अरीव ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में वह ठंडी गंभीरता थी, जिससे साँवी अक्सर घबरा जाती थी, लेकिन आज उसी गंभीरता ने उसे भरोसा दिया।
“जब तक मेरा असिस्टेंट बाकी बॉडीगार्ड्स के साथ हमें लेने नहीं आता।”
साँवी ने सिर हिलाया। उसके मन में डर कम तो नहीं हुआ, लेकिन यह जानकर सुकून मिला कि कोई इंतज़ाम ज़रूर होगा।
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अचानक साँवी का दर्द
जैसे-जैसे रात गहराने लगी, ठंडी हवा ने सबको कंपा दिया। आग की हल्की आँच से ही कुछ राहत मिल रही थी।
तभी साँवी का चेहरा अचानक बदल गया। उसके माथे पर पसीना आ गया और पेट के निचले हिस्से में तेज़ दर्द उठने लगा। उसने अपनी साँस रोककर दर्द छुपाने की कोशिश की।
“सब ठीक है?” रोहित ने उसे देखा।
“हाँ… मैं ठीक हूँ,” साँवी ने तुरंत जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज़ काँप रही थी।
अरीव, जो अब तक सबकुछ चुपचाप देख रहा था, उसकी तरफ़ बढ़ा। उसकी तेज़ निगाहें सबकुछ भांप चुकी थीं।
“तुम्हें दर्द हो रहा है,” उसने ठंडे स्वर में कहा।
साँवी की आँखें झुक गईं। वह कुछ कह नहीं पाई। उसके लिए यह पहली बार था होश में आने के बाद… और उसके भीतर डर भी था और झिझक भी।
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अरीव की देखभाल
अरीव ने बिना कुछ और पूछे ज़मीन पर बैठकर उसे सहारा दिया।
“लेट जाओ,” उसने संक्षेप में कहा।
साँवी हिचकिचाई, लेकिन दर्द इतना बढ़ चुका था कि वह विरोध न कर सकी। धीरे-धीरे लेट गई।
अरीव ने अपनी जैकेट उतारी और घास पर बिछा दी। फिर उसका सिर अपनी गोद में रख दिया। उसकी उँगलियाँ हल्के-से उसके बालों को छू रही थीं—न देखभाल का इज़हार, न कोई कोमल शब्द, बस ठंडी चुप्पी में छिपी हुई गर्माहट।
“पानी लाओ,” उसने उदय से कहा।
रोहित तुरंत उठकर पास की थैली से बोतल निकाल लाया। अरीव ने बोतल उसके होठों से लगाई।
“थोड़ा-थोड़ा पीओ,” उसने सख़्त लेकिन धीमी आवाज़ में कहा।
फिर उसने आग के पास जाकर कुछ सूखे कपड़े और पत्ते जुटाए, ताकि जगह थोड़ी आरामदायक बन सके।
साँवी की आँखों में आँसू आ गए। यह वही अरीव था, जो हमेशा ठंडी, निष्ठुर नज़रों से देखता था… लेकिन आज उसके हाथों में अनकही कोमलता थी।
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भाइयों जैसा सहारा
रुद्राक्ष पास बैठा था। उसने धीरे से कहा,
“साँवी, ये कोई शर्म की बात नहीं। हर लड़की को ये झेलना पड़ता है। तू अकेली नहीं है।”
साँवी ने उसे आँसुओं से भीगी नज़र से देखा।
उदय ने भी सहारा देते हुए कहा,
“हाँ, और तू समझे कि तू हमारी बहन जैसी है। हम सब यहीं हैं तेरे साथ।”
रोहित ने माहौल हल्का करने की कोशिश की।
“और अगर भगवान ने हमें लड़कियों की जगह बनाया होता, तो हमें भी यही सब झेलना पड़ता। सच कहूँ तो, भगवान ने हमें बड़ी मुश्किल से बचा लिया।”
यह सुनकर सब हँस पड़े। हँसी हल्की थी, लेकिन उस तनाव और दर्द को कुछ पल के लिए दूर ले गई।
साँवी भी हँस पड़ी—आँसुओं के बीच आई यह हँसी उसकी थकान को तोड़ गई।
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रात का सन्नाटा और डर
धीरे-धीरे आग की लपटें कम होने लगीं। चारों तरफ़ जंगल का सन्नाटा छा गया। झींगुरों की लगातार आवाज़, उल्लू की हूट और पत्तों की सरसराहट—सब मिलकर माहौल और डरावना बना रहे थे।
साँवी अब अरीव की गोद में लेटी थी। दर्द थोड़ा कम हुआ था, लेकिन थकान से उसकी आँखें भारी हो रही थीं। अरीव चुपचाप उसकी ओर देख रहा था। उसके चेहरे पर वही ठंडी गंभीरता थी, लेकिन अंदर कहीं उसकी साँसें तेज़ थीं।
बाकी तीनों आग के पास बैठे बातचीत कर रहे थे, लेकिन उनकी आवाज़ें धीरे-धीरे नींद में डूबती चली गईं।
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क्लिफहैंगर
अचानक पेड़ों के पीछे से हल्की सरसराहट हुई।
अरीव की आँखें तुरंत चौकन्नी हो गईं। उसने धीरे से साँवी का सिर नीचे रखा और खड़ा हो गया।
पेड़ों के बीच से एक धुंधली परछाई हिलती-डुलती दिखी। रुद्राक्ष ने भी देख लिया।
“भाई… कुछ तो है वहाँ।”
उदय और रोहित ने हथियार संभाले। सबकी साँसें थम गईं।
अंधेरे में एक काली आकृति पेड़ों के बीच ठहर गई। दूर से उसकी आँखों में अजीब-सी चमक दिख रही थी।
अरीव के चेहरे पर अब ठंडक नहीं, बल्कि कठोर क्रोध था।
उसने धीरे से फुसफुसाया—
“समर राणा के आदमी…”
साँवी की आँखें डर से फैल गईं। सबको एहसास हो गया—
“खतरा अभी टला नहीं है…”
अध्याय 8: जंगल की खामोशी में पनपता एक एहसास
एक अनकहा पहरेदार
रात घिर चुकी थी। चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा था, लेकिन हर पत्ते की सरसराहट, हर परछाई, अरीव को किसी खतरे का अहसास दिला रही थी।
अचानक उसने फुसफुसाया –
अरीव (तनाव भरी आवाज़ में): “समर राणा के आदमी…”
उसके होंठों से निकले ये तीन शब्द हवा में बर्फ़ जैसे जम गए।
रुद्राक्ष, रोहित और उदय ने बिना पल गंवाए अपनी बंदूकें तान दीं। साँवी का दिल धक-धक करने लगा। उसकी साँसें जैसे गले में अटक गईं।
पेड़ों के पीछे से एक काली परछाई धीरे-धीरे आग की रोशनी में आई। सभी उँगलियाँ ट्रिगर पर कस गईं।
पर अगले ही पल, सन्नाटा टूटा।
वह कोई दुश्मन नहीं, बल्कि अब्र था – वो काला पैंथर जो हवेली से उनके साथ वफ़ादारी निभाता चला आ रहा था। उसकी चमकती खाल पर आग की हल्की लपटें पड़ रही थीं, और उसकी आँखें सीधे साँवी को ढूँढ रही थीं।
रोहित (राहत की साँस छोड़ते हुए हँस पड़ा):
“हे भगवान! मेरी तो जान ही निकल गई थी… लगा था आज जंगल में कब्र बनने वाली है हमारी। और ये निकला – अपना हीरो!”
सबकी साँसें ढीली पड़ गईं। लेकिन साँवी की आँखों में आँसू थे – डर और थकान दोनों से।
अब्र बिना रुके, सीधे साँवी के पास आया। वह धीरे से उसके ठंडे हाथ पर अपना सिर रगड़ता है, जैसे कह रहा हो – “मैं हूँ ना।” फिर उसके पास ही गोल होकर बैठ जाता है, अपनी गर्मी से उसे ढकते हुए।
रुद्राक्ष इस नज़ारे को देख मुस्कुरा देता है।
वह अपनी जैकेट उतारकर धीरे से साँवी पर डाल देता है।
रुद्राक्ष (धीमी आवाज़ में):
“लगता है अब्र को भी पता चल गया है कि हमारे घर में अब एक छोटी बहन है। अब तुझे ठंड नहीं लगेगी।”
उदय, जो हमेशा अब्र से डरता था, इस पल भावुक हो गया। उसने आग में लकड़ियाँ डालीं और बुदबुदाया –
उदय: “हाँ… अब हमारी बहन को कोई तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए।”
साँवी के दिल में अजीब-सा सुकून उतर आया। पहली बार उसे महसूस हुआ कि वह सच में अकेली नहीं है।
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: अंधेरी रात और अनकहा रिश्ता
रात और गहरी हो चुकी थी।
रोहित, रुद्राक्ष और उदय आग के पास थककर सो चुके थे।
जंगल में बस झींगुरों की आवाज़ और आग की चटखने की ध्वनि थी।
साँवी अरीव की गोद में सिर रखे लेटी थी। उसका दर्द कम हुआ था, लेकिन थकान और कमजोरी से शरीर टूट रहा था। उसकी आँखें बंद थीं, मगर नींद उससे कोसों दूर थी।
अरीव आसमान की ओर देख रहा था। तारे झिलमिला रहे थे, मगर उसकी नज़र कहीं और थी। उसका एक हाथ अनजाने में साँवी के बालों को सहला रहा था – जैसे उसकी रक्षा की अनकही कसम ले रहा हो।
साँवी को उसका स्पर्श महसूस हुआ। उसे लगा जैसे किसी ने उसके अंदर की सारी घबराहट खींच ली हो। उसने धीरे-से अपनी आँखें खोलीं। आग की लपटों में अरीव का चेहरा और भी सख्त और खूबसूरत लग रहा था।
साँवी (धीमी काँपती आवाज़ में):
“मुझे लगा था… मैं आज मर जाऊँगी… पहले हवेली में आग… फिर ये जंगल…”
अरीव उसकी तरफ देखे बिना बोला –
अरीव (गहरी आवाज़ में):
“जब तक मैं ज़िंदा हूँ, तुम्हें कोई छू भी नहीं सकता। तुम्हारी तरफ देखने वाले की आँखें निकाल लूँगा।”
उसके शब्दों में कठोरता थी, लेकिन एहसास किसी मुलायम परदे जैसा था।
साँवी की आँखों से आँसू की एक बूँद बह निकली।
अरीव ने पहली बार उसकी तरफ देखा। वह कुछ क्षण चुप रहा, फिर अपनी उंगली से बहुत धीरे से आँसू पोंछ दिया।
उसका स्पर्श इतना कोमल था कि साँवी का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
अरीव (धीमे स्वर में, उसकी आँखों में देखते हुए):
“सो जाओ। सुबह हमें आगे बढ़ना है।”
साँवी कुछ नहीं बोली। उसकी आँखें बस अरीव की आँखों में अटक गईं। जंगल की खामोशी, आग की हल्की रौशनी, और उनकी चुप्पी… दोनों के बीच एक नया रिश्ता लिख रही थी।
धीरे-धीरे साँवी ने आँखें बंद कर दीं और अरीव की गोद में ही सो गई।
लेकिन अरीव की आँखों से नींद कोसों दूर थी। पूरी रात उसने आग और जंगल दोनों पर नज़र रखी – अपने भाइयों और साँवी की रक्षा करते हुए।
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: सुबह का सच
पंछियों की चहचहाहट और पत्तों पर पड़ती धूप ने सुबह की आहट दी।
रोहित, रुद्राक्ष और उदय धीरे-धीरे उठने लगे।
लेकिन उसी समय, साँवी भी हिली और उसके कपड़े देखकर सब ठिठक गए।
उसकी ड्रेस खून से भीगी हुई थी।
साँवी का चेहरा शर्म और डर से लाल हो गया। उसने जल्दी से खुद को समेटना चाहा, पर कमजोरी से उसका हाथ काँप रहा था। उसे ऐसा लग रहा था मानो शरीर से सारा खून बह गया हो।
साँवी (टूटती आवाज़ में, अरीव से फुसफुसाकर):
“मैं… मैं ठीक नहीं हूँ…”
उसकी साँसें तेज़ हो गईं, चेहरा पीला पड़ चुका था।
अरीव तुरंत उसके पास आया। उसने उसकी हालत को एक नज़र में समझ लिया।
बिना कुछ कहे उसने उसे अपनी गोद में उठा लिया।
साँवी (कमज़ोर आवाज़ में):
“नहीं… सब देख लेंगे…”
अरीव (सख़्ती लेकिन नरमी के साथ):
“चुप रहो। अभी तुम्हारी इज़्ज़त और जान – दोनों मेरी जिम्मेदारी है।”
उसने अपनी शॉल से उसे ढक दिया, ताकि किसी की नज़र उसके कपड़ों पर न पड़े।
रुद्राक्ष, रोहित और उदय ने उसकी हालत देखी, लेकिन कुछ नहीं कहा। उनके चेहरों पर चिंता साफ थी, पर वे समझ गए कि अरीव उसे संभाल रहा है।
अरीव ने धीरे-धीरे जंगल के पिछले रास्ते की तरफ कदम बढ़ाए।
हर कदम के साथ उसकी बाँहों में काँपती साँवी का सिर उसके सीने से लग रहा था।
साँवी आँखें बंद किए, बेहद कमज़ोर आवाज़ में बोली –
साँवी: “अरीव… अगर मैं… बची नहीं तो?”
अरीव रुक गया। उसकी आँखों में गुस्सा और दर्द दोनों उतर आए।
अरीव (दाँत भींचकर):
यह बेकार की बातें करना बंद करो ऐसा कुछ नहीं होगा। तभी संवि रहती है पर मुझे बहुत दर्द हो रहा है। अतीव कहता है। जल्दी हम लोग जंगल से बाहर निकल जाएंगे उसके बाद सब ठीक होगा।
साँवी की आँखों में आँसू आ गए। वह अरीव की छाती से और कसकर लग गई।
उस पल उसे महसूस हुआ – वो चाहे कितनी भी अकेली क्यों न हो, अरीव के रहते उसे कोई छू भी नहीं सकता।
जंगल के पीछे से निकलते सूरज की सुनहरी रोशनी उन दोनों पर पड़ रही थी।
थके, टूटे, मगर साथ चलते हुए… उनका रिश्ता अब अनकहे वादों से बंध चुका था।
पर संवि के दिल में एक डर था। तब क्या होगा जब सबको मेरी असलियत पता होगी। क्या सब कोई मुझे इसी तरह व्यवहार करेंगे। जब ऐसी लड़की को दुनिया से कर नहीं करती तो यह लोग मुझे कैसे स्वीकार करेंगे।
फ़ार्महाउस का रास्ता
जंगल का सीना चीरकर अरीव के कदम आगे बढ़ रहे थे। उसकी चाल में वही रफ़्तार थी, वही सधा हुआ अंदाज़, लेकिन आज उसके कंधे पर दुनिया का सबसे कीमती बोझ था—साँवी। उसकी बाँहों में सिमटी साँवी की बेजान देह उसे हर पल यह एहसास दिला रही थी कि वक़्त रेत की तरह फिसल रहा है।
साँवी की आँखें बंद थीं, चेहरा पीला पड़ चुका था और होंठ सूखे थे। उसकी हल्की साँसें अरीव के सीने से टकराकर उसे और बेचैन कर रही थीं।
रुद्राक्ष, रोहित और उदय उसके पीछे-पीछे चल रहे थे। उनके चेहरों पर थकान, चिंता और एक अनजाना डर साफ़ झलक रहा था।
रोहित (हाँफती हुई आवाज़ में): “भाई… और कितनी दूर? साँवी… वो ठीक तो है न?”
अरीव (बिना रुके, दाँत भींचकर): “चुप रहो और चलते रहो।”
उसकी आवाज़ में हुक्म था, लेकिन उसके पीछे छिपी घबराहट को रुद्राक्ष ने महसूस कर लिया था। उसने रोहित के कंधे पर हाथ रखा, जैसे उसे हिम्मत दे रहा हो।
साँवी के दिल में एक धुँधला-सा डर तैर रहा था। बेहोशी और होश के बीच झूलती हुई वह सोच रही थी— 'अगर आज सबको मेरा सच पता चल गया तो? क्या तब भी ये लोग मुझे ऐसे ही अपनाएँगे? एक ऐसी लड़की, जिसे समाज कभी इज़्ज़त नहीं देता… क्या अरीव मुझे स्वीकार करेगा?' यह सोच उसके ज़ख़्मों से ज़्यादा तकलीफ़ दे रही थी।
तभी दूर से गाड़ियों के इंजन की आवाज़ सुनाई दी।
उदय (चौकन्ना होकर): “आवाज़… कोई आ रहा है।”
सबने तुरंत अपनी बंदूकें संभाल लीं। अरीव एक घने पेड़ की आड़ में हो गया, साँवी को अपने सीने से और कसकर चिपकाते हुए।
कुछ ही पलों में दो काली SUV गाड़ियाँ उनके सामने आकर रुकीं। उनमें से अरीव का सबसे भरोसेमंद असिस्टेंट, करन, कुछ बॉडीगार्ड्स के साथ उतरा।
करन (घबराहट से): “सर! आप ठीक हैं? हम कब से आपको ढूँढ रहे थे।”
अरीव ने कोई जवाब नहीं दिया। वह तेज़ी से गाड़ी की तरफ बढ़ा।
अरीव (सख़्त आवाज़ में): “फ़ार्महाउस चलो! जल्दी!”
उसने पीछे का दरवाज़ा खोला और साँवी को अपनी गोद में लिए अंदर बैठ गया। उसने एक पल के लिए भी उसे खुद से अलग नहीं किया। रुद्राक्ष, रोहित और उदय भी तुरंत दूसरी गाड़ी में बैठ गए।
गाड़ियाँ धूल उड़ाती हुई तेज़ी से आगे बढ़ गईं।
कार के अंदर का मंज़र
कार तेज़ी से भाग रही थी। अरीव ने साँवी का सिर अपनी गोद में रखा हुआ था। वह लगातार उसके चेहरे को देख रहा था, जैसे अपनी आँखों से उसकी साँसों की डोर को थामे हुए हो।
अचानक साँवी ने आँखें खोलीं। उसकी नज़रें धुँधली थीं। उसने अरीव का चेहरा देखा और कमज़ोर आवाज़ में फुसफुसाई।
साँवी: “मेरा… मेरा सच… किसी को… मत बताना…”
और इतना कहते ही उसकी आँखें पलट गईं और वह पूरी तरह बेहोश हो गई। उसके शरीर से बहता खून और शरीर से हो रहा रक्तस्राव अब जानलेवा साबित हो रहा था।
अरीव (चीख़कर): “साँवी! आँखें खोलो! साँवी!”
उसकी आवाज़ में पहली बार ऐसी बेबसी और डर था जिसे सुनकर दूसरी गाड़ी में बैठे रुद्राक्ष का दिल भी काँप गया।
अरीव (ड्राइवर पर चिल्लाते हुए): “करन! गाड़ी और तेज़ चलाओ! अगर इसे कुछ हुआ तो मैं किसी को नहीं छोडूँगा!”
उसकी आँखों में आँसू नहीं थे, पर चेहरा किसी जलती हुई आग जैसा लाल हो चुका था। उसने अपनी जैकेट उतारकर साँवी को ढक दिया और उसे सीने से लगा लिया, जैसे उसे अपनी साँसें देना चाहता हो।
दूसरी गाड़ी में रोहित फूट-फूटकर रो रहा था।
रोहित (सिसकते हुए): “भाई… साँवी को कुछ नहीं होगा न? वो… वो हमारी वजह से इस हाल में है।”
रुद्राक्ष (गहरी आवाज़ में): “शांत हो जा रोहित। हमें हिम्मत रखनी होगी। अरीव उसे कुछ नहीं होने देगा।”
लेकिन रुद्राक्ष की अपनी आवाज़ भी काँप रही थी। उदय खामोश बैठा था, उसकी मुट्ठियाँ भिंची हुई थीं, और आँखों में समर राणा के लिए नफ़रत उबल रही थी। उन चारों भाइयों के दिल में आज एक ही डर था—साँवी को खो देने का डर।
फ़ार्महाउस पर
गाड़ियाँ एक बड़े, सुनसान फ़ार्महाउस के सामने रुकीं। वहाँ पहले से ही एक डॉक्टर अपनी टीम के साथ तैयार खड़ा था।
अरीव दरवाज़ा खुलते ही साँवी को अपनी बाँहों में उठाए बाहर निकला और लगभग दौड़ते हुए घर के अंदर बने एक कमरे की तरफ़ भागा जो उसका कमरा था, जहाँ मेडिकल की सारी सुविधाएँ मौजूद जो अरीव करवाई थी अपने असिस्टेंट से कह कर।
डॉक्टर: “सर, आपको बाहर रुकना होगा।”
अरीव ने साँवी को बेड पर लिटाया, लेकिन उसका हाथ छोड़ने को तैयार नहीं था।
अरीव (आँखों में ख़ून लिए): इसे चेक करो इसे इतनी ब्लीडिंग क्यों हो रही है।
डॉक्टर के ज़ोर देने पर वह बाहर निकला। दरवाज़ा बंद हो गया।
अब बाहर सिर्फ़ चार भाई और एक खामोश इंतज़ार था। अरीव दीवार से टिककर खड़ा हो गया, उसकी नज़रें बंद दरवाज़े पर गड़ी थीं। रोहित ज़मीन पर बैठकर रो रहा था, रुद्राक्ष और उदय उसे चुप कराने की नाकाम कोशिश कर रहे थे।
हर गुज़रता पल उन्हें किसी सज़ा जैसा लग रहा था। हवेली का जलना, गोलियों की आवाज़, जंगल का सफ़र—सब कुछ भूल चुका था। अब ज़हन में सिर्फ़ एक ही चेहरा था—साँवी का। और दिल में एक ही दुआ—उसकी सलामती की।
पाठकों के लिए आज का सवाल:
अरीव की कठोरता के पीछे छिपी यह खामोश परवाह और साँवी का उस पर बढ़ता भरोसा, क्या इन दोनों के बीच एक नए रिश्ते की शुरुआत है? आपको क्या लगता है, क्या अरीव कभी अपने एहसासों को ज़ाहिर कर पाएगा? अपने जवाब कमेंट्स में ज़रूर बताएँ!
मेरे प्यारे दोस्तों,
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अध्याय 9, सीन 2: खामोश पहरा और अनकहे वादे
डॉक्टर की चेतावनी और छिपा हुआ सच
जंगल से भागते-भागते, खून और डर से भीगे उस लंबे सफ़र के बाद, आखिरकार उन्हें एक सुरक्षित जगह मिल पाई थी। लेकिन साँवी की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी।
घंटों की बेचैन प्रतीक्षा के बाद जब डॉक्टर कमरे से बाहर आया, तो चारों भाई लगभग एक साथ उठ खड़े हुए। उनकी आँखों में डर, बेचैनी और उम्मीद एक साथ भरी हुई थी।
डॉक्टर का चेहरा गंभीर था। उसकी पेशानी पर हल्की पसीने की बूंदें जमी थीं। उसने गहरी साँस ली और धीरे-धीरे कहा—
डॉक्टर:
"पेशेंट की हालत अभी स्थिर है... लेकिन बेहद नाज़ुक है।"
चारों भाइयों की धड़कनें जैसे थम सी गईं।
रोहित (घबराई आवाज़ में):
"मतलब... मतलब ख़तरे से बाहर है न?"
डॉक्टर ने उसकी आँखों में देखते हुए सिर हिलाया,
"अभी कह नहीं सकता। उन्हें बहुत ज़्यादा शारीरिक और मानसिक तनाव से गुज़रना पड़ा है। शरीर में कमजोरी पहले से ही थी... और इसी वजह से खून की कमी खतरनाक स्तर तक पहुँच गई।"
रुद्राक्ष ने गुस्से में कदम आगे बढ़ाए,
"लेकिन हुआ कैसे? इतनी हालत कैसे बिगड़ गई?"
डॉक्टर ने नज़रें झुका लीं। उसकी आवाज़ धीमी और सधी हुई थी—
"कुछ बातें हैं जो मैं आपको साफ़ नहीं बता सकता। इतना समझ लीजिए कि उन्हें लंबे समय से सही पोषण और आराम नहीं मिला... और यह अचानक का तनाव उनकी हालत को और बिगाड़ गया।"
फिर उसने चेतावनी दी—
"उन्हें पूरी तरह से आराम की ज़रूरत है। हल्का सा भी तनाव... उनकी जान के लिए खतरा बन सकता है।"
ये सुनकर सबके कंधे जैसे ढीले पड़ गए। उन्हें राहत भी थी कि साँवी जिंदा है, और डर भी कि उसकी ज़िंदगी अब धागे पर टंगी हुई है।
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भाइयों का संकल्प और अपराध बोध
कमरे में सन्नाटा छा गया।
रोहित ने अचानक अपनी आँखों से आँसू पोंछे और टूटी हुई आवाज़ में कहा—
"यह सब... हमारी वजह से हुआ है। अगर वो हमारी ज़िंदगी में न आती... अगर हमने उसे अपने झगड़े, अपने दुश्मनों के बीच न खींचा होता... तो आज वो यूँ मौत से लड़ नहीं रही होती।"
उसके शब्दों में पश्चाताप था।
रुद्राक्ष ने उसका कंधा पकड़कर झकझोर दिया,
"पागल है क्या तू? यह हमारी वजह से नहीं... हमारे दुश्मनों की वजह से हुआ है। गलती उन लोगों की है, जिन्होंने उसे निशाना बनाया।"
उसकी आँखों में आग जल रही थी।
"आज से... साँवी सिर्फ हमारी कुक नहीं। वो हमारी ज़िम्मेदारी है। हमारी बहन है।"
उदय ने गहरी साँस लेकर सिर हिलाया। उसकी आवाज़ गहरी और सख़्त थी—
"और उसकी हिफाज़त हम चारों मिलकर करेंगे। चाहे इसके लिए हमें अपनी जान क्यों न देनी पड़े।"
कमरे का माहौल भारी था। हवा में एक अनकही कसम घुल चुकी थी।
लेकिन तभी सबकी नज़र अरीव पर गई। वह अब तक खामोश खड़ा था। उसकी मुट्ठियाँ इतनी ज़ोर से भींची हुई थीं कि नसें साफ़ दिख रही थीं। उसकी आँखों में भावनाओं का तूफ़ान था, लेकिन होंठ बंद थे।
कुछ कहे बिना, वह मुड़कर वहाँ से चला गया।
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अरीव का खामोश इकरार
कमरे का दरवाज़ा धीरे से खुला। अरीव ने अंदर कदम रखा।
मद्धम रोशनी में साँवी बेहोश लेटी थी। उसके चारों ओर मशीनों की हल्की बीप-बीप गूँज रही थी। हाथ में लगी ड्रिप से धीरे-धीरे दवा उसके शरीर में उतर रही थी।
अरीव कुछ पल दरवाज़े पर ही खड़ा रहा, जैसे हिम्मत जुटा रहा हो। फिर धीरे-धीरे उसके पास आया और बिस्तर के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया।
उसकी आँखें साँवी के चेहरे पर टिकी थीं। चेहरा पीला पड़ चुका था, होंठ सूख चुके थे। लेकिन उस चेहरे में मासूमियत और नर्मी अभी भी थी।
अरीव को अचानक याद आया, वो आखिरी पल जब साँवी ने बेहोश होने से पहले काँपती आवाज़ में कहा था—
"मेरा सच... किसी को... मत बताना..."
उसका सीना कसक उठा।
वह भीतर ही भीतर सोचने लगा—
अरीव (मन की आवाज़):
"तुम्हारा सच क्या है, साँवी? मुझे नहीं जानना। लेकिन इतना जानता हूँ कि आज के बाद तुम्हारी हर तकलीफ... हर डर... और हर सच... मेरी अमानत है। तुम अकेली नहीं हो।"
उसने धीरे से हाथ बढ़ाकर साँवी के माथे पर बिखरे बालों को हटाया। उसके स्पर्श में एक अनकही कोमलता थी, जो उसके कठोर स्वभाव से बिल्कुल उलट थी।
उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी, मानो साँवी ही सिर्फ़ सुन सके—
अरीव:
"जब तक तुम अपनी आँखें नहीं खोलती... मैं यहीं हूँ। तुम्हारे पास।"
उसने उसकी हथेली को धीरे से अपने हाथ में लिया। उसकी पकड़ मज़बूत थी, जैसे वादा कर रही हो—
"अब तुम्हें कभी गिरने नहीं दूँगा।"
बाहर बरामदे में हवा हल्के-हल्के पेड़ों से टकरा रही थी। लेकिन कमरे के भीतर, अरीव की खामोश निगाहें और साँवी की हल्की साँसे... एक नए रिश्ते की नींव रख रही थीं।
अध्याय 9, : नींद से जागी नाज़ुक धड़कन
कमरे में रात गहराती जा रही थी। खिड़की से छनकर आती हल्की-सी चाँदनी बिस्तर पर पड़ रही थी। मॉनिटर की बीप-बीप आवाज़ और ड्रिप से गिरती बूँदों की टिक-टिक, माहौल को और ज्यादा गंभीर बना रही थी।
अरीव उसी तरह कुर्सी पर बैठा था, बिना पलक झपकाए साँवी को देखता हुआ। उसकी आँखों में थकान भी थी, बेचैनी भी। लेकिन उठने का नाम नहीं ले रहा था।
अचानक, साँवी की पलकों में हल्की-सी हरकत हुई। उसके होंठ सूखे थे, गला प्यास से चिपका हुआ। उसने धीमे से कराहते हुए आँखें खोलने की कोशिश की।
अरीव एकदम आगे झुक गया। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
साँवी (बहुत धीमी आवाज़ में):
"पानी..."
अरीव ने तुरंत पास रखी बोतल से गिलास भरा और सावधानी से उसके होंठों से लगाया। उसके हाथ काँप रहे थे, लेकिन उसने इस तरह थामा जैसे कहीं ज़्यादा ज़ोर से पकड़ने से वो टूट न जाए।
कुछ घूँट पानी पीते ही साँवी ने आँखें खोलीं। उसकी नज़र सीधी अरीव पर पड़ी। वो कुछ पल उसे देखती रही—जैसे समझ नहीं पा रही हो कि यह सपना है या हकीकत।
साँवी (टूटी आवाज़ में):
"आप...?"
अरीव ने उसकी आँखों में देखा। उसके होंठ खुले, लेकिन शब्द बाहर नहीं निकले। बस सिर हिलाकर इतना कहा—
"मैं यहीं था। तुम्हारे पास।"
साँवी की आँखें भीग गईं। उसकी पलकें काँपीं। उसने कोशिश की बोलने की—
"मैं... बोझ बन गई... आप सबके लिए..."
अरीव का चेहरा कठोर हो गया, लेकिन आँखों में दर्द झलक रहा था। वह झुककर उसके बहुत पास आया और धीमी आवाज़ में कहा—
"ऐसा दोबारा मत कहना। तुम बोझ नहीं हो। तुम्हारी जगह... यहाँ है। हमारे बीच।"
साँवी की आँखें नम होकर चमक उठीं। उसने रुँधे गले से कहा—
"लेकिन सच... अगर सबको पता चला..."
अरीव ने उसका हाथ पकड़ लिया, कसकर। उसकी आवाज़ में वह दृढ़ता थी, जो किसी कसम से कम नहीं थी।
"तुम्हारा सच... किसी को नहीं पता चलेगा। यह वादा है। और जब तक मैं हूँ, कोई तुम्हें छू भी नहीं पाएगा।"
फ्लैशबैक।
जब डॉक्टर ने कहा कि कुछ ऐसी बातें में जो मैं आपसे नहीं बता सकता तभी अरीव डॉक्टर को अपनी लाइब्रेरी में आने के लिए कहता है।
डॉ अब बताओ क्या बात है। डॉक्टर दर से काट रहा था क्योंकि अतीव आंखें बहुत लाल थी और वह बहुत डरावना दिख रहा था उसके बैक में एक गन खुशी हुई थी जिसे वह अपनी बैक से निकाल कर टेबल पर रखता है और चेयर पर जाकर बैठ जाता है और कहता है डॉक्टर से अब सच-सच बताओ कि उसकी ऐसी हालत क्यों हो गई।
डॉक्टर कहता है सर उनके साथ रेप किया गया है। आज से लगभग 1 साल पहले। पर वह कमजोर है और वह अपनी दवाई टाइम पर नहीं ले रही है और मुझे लगता है कि वह कोमा में भी थी। सर उनकी बॉडी पूरी तरीके से जली हुई है सिर्फ उनका चेहरा और थोड़ा बहुत हाथ और पैर सही सलामत बचे हुए हैं। उनका न्यूट्रिशंस की जरूरत है और अच्छीदेखभाल की। उन्हें स्ट्रेस नहीं लेना है उनको शायद रात में पैनिक अटैक भी आते हैं। मुझे उनकी मेंटल हेल्थ के लिए सही नहीं है।अतीव का फ्लैशबैक।
कमरे में कुछ देर खामोशी छा गई। सिर्फ़ दोनों की साँसों की आवाज़ थी।
साँवी धीरे-धीरे आँखें बंद करने लगी। उसके होंठों पर हल्की-सी थकी हुई मुस्कान आ गई।
"धन्यवाद... अरीव..."
अरीव उसकी पलकों के बंद होते ही पीछे टिक गया। उसके चेहरे पर राहत भी थी और एक अनजाना डर भी—
"अगर यह मुझे छोड़कर चली गई... तो?"
लेकिन उसी पल उसने मन ही मन ठान लिया—
"अब यह मेरी लड़ाई है। और मैं इसे हारने नहीं दूँगा।"
दरवाज़े के बाहर रोहित, रुद्राक्ष और उदय खामोशी से यह सब देख रहे थे। उनकी आँखों में अजीब-सी तसल्ली थी—क्योंकि उन्होंने पहली बार अपने सख़्त भाई अरीव को इतना नरम देखा था।
अध्याय 10: अहसास, इल्ज़ाम और एक अनकहा डर
सुबह की हल्की धूप कमरे में फैल रही थी। कई दिनों बाद साँवी ने आँखें खोलीं। उसके चेहरे पर थकान तो थी, पर अब उतनी बेबसी नहीं दिख रही थी। कमरे का माहौल हल्का करने के लिए रोहित हाथ में ट्रे लेकर आया। ट्रे पर गर्मागर्म चिकन सूप रखा था।
वह बड़े गंभीर अंदाज़ में बोला, “साँवी, देखो, तुम्हारे लिए स्पेशल सूप। मैंने खुद अपनी निगरानी में बनवाया है। डॉक्टर ने कहा है कि कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए। एक-एक चम्मच पीना है।”
लेकिन जैसे ही उसने नर्वस होकर चम्मच बढ़ाया, उसका हाथ काँप गया और थोड़ा सूप बिस्तर पर गिर गया। दरवाज़े पर खड़े उदय हँसते हुए बोला, “रहने दे रोहित! तू देखभाल करेगा तो ये ठीक होने की जगह नए ज़ख्म लेकर अस्पताल पहुँच जाएगी। चम्मच पकड़ना नहीं आता और चला है नर्स बनने।”
रोहित झेंप गया और झल्लाते हुए बोला, “चुप कर तू! मैं बस थोड़ा नर्वस हूँ। साँवी, तुम इसकी बातों पर ध्यान मत देना।”
साँवी इतने दिनों में पहली बार हल्के से मुस्कुराई। उस मुस्कान ने कमरे का सारा बोझ हल्का कर दिया। रोहित और उदय दोनों चुप रह गए। उन्हें महसूस हुआ कि इस लड़की की एक मुस्कान के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं।
बाहर बगीचे में अरीव खामोश खड़ा था। रुद्राक्ष उसके पास आया और सीधे पूछा, “क्या तुम साँवी से प्यार करते हो, अरीव?”
अरीव चौंका और नज़रें फेरकर बोला, “ये कैसा सवाल है? वो मेरी ज़िम्मेदारी है। उसने जो सहा है, उसके बाद मुझे उससे बस हमदर्दी है।”
रुद्राक्ष हल्की हँसी के साथ बोला, “हमदर्दी? जब डॉक्टर ने कहा कि वो नाज़ुक है, तो तुम्हारी आँखों में हमदर्दी नहीं, खौफ़ था। उसे खो देने का डर। जब वो बेहोश थी, तुम उसके पास ऐसे बैठे थे जैसे तुम्हारी दुनिया ही उजड़ गई हो। इसे हमदर्दी नहीं, मोहब्बत कहते हैं।”
अरीव ने गुस्से में कहा, “नहीं! मैं उससे मोहब्बत नहीं करता। ये बस… एक लगाव है।”
लेकिन उसके शब्दों से ज़्यादा उसकी आँखों में कुछ और था, जिसे वह खुद भी मानने से डर रहा था।
रुद्राक्ष ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “ठीक है, जैसे तुम कहो। लेकिन याद रखना, एक दिन तुम्हें खुद मानना पड़ेगा कि ये लड़की तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत भी है और सबसे बड़ी कमज़ोरी भी।”
कुछ देर बाद रुद्राक्ष सबको अलविदा कहकर चला गया। उसने कहा कि ज़रूरी काम है, पर संपर्क में रहेगा।
उस रात अरीव ने अपने असिस्टेंट करन को बुलाया। उसका चेहरा सख़्त था। उसने कहा, “समर राणा की बहन अनन्या… उसकी मौत का सच चाहिए। पुलिस रिपोर्ट नहीं, असली सच। पता करो उस रात क्या हुआ था, किसके साथ थी, और किसको फ़ायदा हुआ। समर क्यों रुद्राक्ष को दोषी मानता है, ये मुझे जानना है।”
करन ने सिर झुकाकर हामी भरी। मिशन शुरू हो चुका था।
रात गहराती गई। अचानक साँवी की चीख ने सन्नाटे को तोड़ दिया। वह बुरे सपने में फँसी काँप रही थी। पसीने से भीगी हुई बार-बार बुदबुदा रही थी, “नहीं… मुझे छोड़ दो… आग… सब जल रहा है… बचाओ…”
अरीव दौड़कर उसके कमरे में पहुँचा। उसने देखा कि साँवी पैनिक अटैक में है। वह उसे अपनी बाँहों में भरकर धीरे-धीरे कहने लगा, “श्श्श… साँवी, मैं यहीं हूँ। तुम सुरक्षित हो। कोई तुम्हें कुछ नहीं करेगा। आँखें खोलो, देखो मुझे।”
लेकिन उस रात पैनिक का असर गहरा था। साँवी रोती रही और अचानक अपने दिल का बोझ खोल दिया। उसकी टूटती आवाज़ ने कमरे की हवा तक भारी कर दी।
“तुम्हें पता है, अरीव… मेरे जनमदिन वाले दिन… मेरी आँखों के सामने मेरे माँ-पिता, मेरा भाई… सबको मार दिया गया। मेरी छोटी बहन के साथ दरिंदों ने बलात्कार किया। फिर… फिर उन्होंने मेरे साथ भी वही किया। और इतना ही नहीं… मुझे जंगल में जिंदा जला दिया। मैं आज भी उस आग की जलन महसूस करती हूँ। क्यों… क्यों मैं बच गई? क्या मुझे बदला नहीं लेना चाहिए? क्या मुझे उन जानवरों को सज़ा नहीं देनी चाहिए?”
उसका शरीर काँप रहा था। वह बार-बार चीखते हुए वही बातें दोहरा रही थी। पैनिक अटैक के कारण उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी। अरीव ने उसे संभालने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह शांति में नहीं आ पा रही थी।
अंत में उसने डॉक्टर से दिलाए गए ट्रैंक्विलाइज़र का इंजेक्शन उठाया। बड़ी सावधानी से उसने साँवी की गर्दन में वह इंजेक्शन लगा दिया। कुछ ही पलों में साँवी रोते-रोते गहरी नींद में चली गई।
अरीव उसके पास बैठा रहा। उसके काँपते हाथ धीरे-धीरे उसकी पकड़ ढीली छोड़ते गए। उसने उसकी सोती हुई सूरत को देखा और मन ही मन बुदबुदाया, “मैं वादा करता हूँ साँवी… तुम्हारा बदला मैं तुम्हारे साथ मिलकर लूँगा। तुम्हें न्याय दिलाकर रहूँगा। जब तक मैं ज़िंदा हूँ, तुम्हें फिर कभी अकेला नहीं होने दूँगा।”
उस रात खामोश कमरे में दो धड़कनें थीं – एक साँवी की थकी हुई और दूसरी अरीव की, जिसमें अब सिर्फ़ एक इरादा धड़क रहा था: न्याय।
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अध्याय का सवाल
क्या अरीव का यह वादा उसे और साँवी को सुकून देगा, या यह मोहब्बत और बदले की आग उन्हें और गहरे अंधेरे में ले जाएगी?
फ़ार्महाउस के लिविंग एरिया में माहौल काफ़ी हल्का था। साँवी की तबीयत में सुधार के साथ, घर में एक सुकून भरी शांति लौट आई थी। वह धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़ी हो रही थी और भाइयों का मज़ाक-मस्ती उसे मुस्कुराने की वजह दे रहा था।
दोपहर में, जब सब साथ बैठे थे, तब अरीव ने अपना फ़ोन रखते हुए एक घोषणा की।
अरीव (गंभीर आवाज़ में): “शाम तक मेरे एक बिज़नेस पार्टनर, मिस्टर मेहरा की बेटी यहाँ आ रही है। उसका नाम रिया है। वह कुछ महीने हमारे साथ रहकर बिज़नेस के गुर सीखना चाहती है।”
उसने साँवी की तरफ़ देखा, जो पास ही खड़ी थी।
अरीव: “साँवी, गेस्ट रूम तैयार करवा देना और देख लेना कि उसे किसी चीज़ की कमी न हो।”
साँवी ने धीरे से सिर हिलाया, “जी।”
जैसे ही अरीव किसी ज़रूरी कॉल के लिए वहाँ से हटा, रोहित और उदय ने एक-दूसरे को देखा और उनकी शैतानी शुरू हो गई।
रोहित (फुसफुसाते हुए उदय से): “बिजनेस पार्टनर की बेटी? बिज़नेस सीखने आ रही है या भाई को पटाने?”
उदय (मुस्कान दबाते हुए): “मुझे तो दूसरा वाला ज़्यादा सही लग रहा है। नाम क्या बताया? रिया? देखना, पूरी मेकअप की दुकान बनकर आएगी। उसे बिज़नेस के ‘B’ का तो पता नहीं होगा, पर ब्यूटी पार्लर का पूरा पता ज़रूर मालूम होगा।”
रोहित (हँसते हुए): “सही कहा! और भाई भी देखो, कैसे हुक्म दे रहे थे— ‘किसी चीज़ की कमी न हो’। अरे, उसे बिज़नेस सीखना है, ब्राइडल फोटोशूट नहीं करवाना है यहाँ।”
साँवी उनकी बातें सुनकर हल्की-सी मुस्कुरा दी। इन दोनों की नोक-झोंक अब उसकी आदत बन चुकी थी।
रिया का आगमन
शाम ढल चुकी थी। फ़ार्महाउस की बत्तियाँ जल उठी थीं और बाहर एक ठंडी हवा चल रही थी। तभी एक चमचमाती स्पोर्ट्स कार आकर पोर्च में रुकी।
दरवाज़ा खुला और उसमें से हाई हील्स की खट-खट करती आवाज़ के साथ रिया मेहरा ने कदम बाहर रखा। वह वाकई किसी फ़ैशन मैगज़ीन के कवर पेज से उतरी हुई लग रही थी। महँगी डिज़ाइनर ड्रेस, चेहरे पर परफ़ेक्ट मेकअप की मोटी परत, और आँखों में एक अजीब-सा घमंड। उसके चलने का अंदाज़ बता रहा था कि उसे अपनी ख़ूबसूरती पर बहुत नाज़ है।
रोहित और उदय, जो दरवाज़े पर ही खड़े थे, उसे देखकर एक-दूसरे को कोहनी मारी। उदय ने धीरे से कहा, “देख, मैंने कहा था न! मेकअप की दुकान आ गई।”
साँवी मेहमान के स्वागत के लिए पानी का गिलास लेकर आगे बढ़ी। उसका सिर झुका हुआ था, और शरीर हमेशा की तरह दुपट्टे और फुल स्लीव्ज़ वाले सलवार-सूट से ढका हुआ था।
रिया की नज़र जैसे ही साँवी पर पड़ी, वह एक पल को ठिठक गई। साँवी के चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था, फिर भी उसकी मासूमियत और प्राकृतिक सुंदरता चाँद की तरह चमक रही थी। रिया के दिल में जलन की एक तेज़ लहर उठी। उसे यह बात बर्दाश्त नहीं हुई कि बिना किसी ताम-झाम के कोई लड़की उससे ज़्यादा ख़ूबसूरत कैसे लग सकती है। उसने यह नोटिस नहीं किया कि साँवी का शरीर पूरी तरह से ढका हुआ क्यों है।
उसने अपनी जलन को घमंड के नीचे छिपाया और तिरस्कार भरी नज़रों से साँवी को देखा।
रिया (अकड़ के साथ): “ऐ लड़की, खड़ी-खड़ी क्या देख रही है? नौकरानी है न? जा, मेरा सामान उठाकर मेरे कमरे में रख।”
उसकी आवाज़ इतनी कड़वी थी कि साँवी का हाथ काँप गया। उसने कुछ कहने के लिए मुँह खोला, पर शब्द बाहर नहीं आए।
इससे पहले कि रिया कुछ और कहती, उदय और रोहित उसके सामने आ गए। उनके चेहरे से मज़ाक पूरी तरह गायब हो चुका था और आँखों में गुस्सा साफ़ झलक रहा था।
उदय (ठंडी मुस्कान के साथ): “माफ़ करना, शायद तुम्हें कोई ग़लतफ़हमी हो गई है।”
रोहित (रिया की आँखों में देखते हुए, तंज़ कसते हुए): “हाँ, दरअसल फ़ार्महाउस में नया चेहरा देखकर तुम थोड़ा कंफ्यूज़ हो गई होगी। चलो, हम तुम्हारा परिचय करवाते हैं।”
उसने साँवी के कंधे पर बहुत प्यार से हाथ रखा और उसे थोड़ा आगे किया।
रोहित: “रिया, यह साँवी है। हमारी बहन। शायद अरीव भाई तुम्हें बताना भूल गए हैं कि यहां हमारी बहन भी रहती है ।
‘बहन’ शब्द सुनकर रिया का चेहरा देखने लायक था। उसका रंग उड़ गया, आँखें शर्मिंदगी और हैरानी से फैल गईं। उसे अपनी कही बात कानों में ज़हर की तरह घुलती हुई महसूस हुई। उसे समझ नहीं आया कि वह इस स्थिति पर क्या प्रतिक्रिया दे।
साँवी की आँखों में आँसू थे—अपमान के नहीं, बल्कि उस अपनेपन के जो उसे उन दोनों भाइयों से मिला था। आज उसे फिर एहसास हुआ कि वह अब अनाथ नहीं है।
ज़हर भरी मुस्कान
रिया अब उसी घर में रहने लगी थी। मीठे लहजे और चतुराई से उसने सबका भरोसा जीतने की कोशिश शुरू कर दी। बाहर से वह एक मासूम बिज़नेस-लर्नर लगती, पर अंदर ही अंदर उसके इरादे ज़हरीले थे।
वह अक्सर साँवी के आसपास बातें करती जो उसके दिल पर चोट कर जातीं।
“तुम्हें पता है, साँवी,” रिया ने एक दिन ठंडी मुस्कान के साथ कहा, “अरीव जैसे आदमी किसी मज़बूत और परफेक्ट लड़की को चाहते हैं। तुम्हारी तरह टूटी हुई और अतीत से दाग़ी हुई लड़की को कोई दिल से कबूल नहीं करेगा। प्यार तुम्हारे हिस्से में लिखा ही नहीं है।”
साँवी के होंठ काँप उठे। उसने जवाब नहीं दिया, लेकिन रिया की बातें उसके दिल में तीर की तरह धँस गईं।
उस रात साँवी अकेली कमरे में बैठी थी। अँधेरे में उसकी आँखें आँसुओं से भर गईं। वह खुद से ही बुदबुदाने लगी –
“काश… उस दिन मैं भी मर गई होती। काश आग ने मुझे पूरी तरह निगल लिया होता। क्यों मैं बच गई? क्यों मुझे ज़िंदा रहना पड़ा? माँ-पापा, भाई… बहन… सबको मार दिया गया, और मैं आज तक साँस ले रही हूँ। क्या मैं ज़िंदा रहने लायक भी हूँ?”
वह रोते-रोते फूट पड़ी। उसके हाथ काँप रहे थे। उसने तकिये में मुँह छिपाकर चीख दबाई।
उसी वक़्त अरीव दरवाज़े पर आया। उसकी सिसकियाँ सुनकर वह ठिठक गया। धीरे से अंदर आया और देखा कि साँवी खुद को कोसते हुए टूट चुकी है।
वह पास बैठा और धीरे से बोला, “साँवी… खुद को मत कोसो। तुम्हारा बचना कोई गुनाह नहीं है। शायद ऊपरवाला तुम्हें इसलिए बचा कर लाया है… ताकि तुम अपने परिवार के लिए न्याय हासिल कर सको। तुम्हें टूटना नहीं है, तुम्हें लड़ना है।”
साँवी ने आँसुओं से भरी आँखों से उसकी तरफ़ देखा। उसकी आवाज़ काँप रही थी –
“लेकिन… मैं बहुत कमज़ोर हूँ अरीव। मैं डरती हूँ… मैं जीना नहीं चाहती।”
अरीव ने उसके कंधों को पकड़कर मजबूती से कहा, “तुम्हारी हर साँस तुम्हारे परिवार के नाम है। मैं वादा करता हूँ… तुम अकेली नहीं हो। तुम्हारे बदले की इस लड़ाई में मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हें न्याय दिलाकर ही दम लूँगा।”
साँवी उसकी बातों में सुकून ढूँढ रही थी, लेकिन उसके दिल की गहराई में रिया के शब्द ज़हर बनकर अब भी गूंज रहे थे – “तुम जैसी लड़की को कोई दिल से मोहब्बत नहीं करेगा।”
वह नहीं जानती थी कि उसकी यह टूटन और रिया की चालें आने वाले दिनों में उसके और अरीव के बीच कैसी आँधियाँ खड़ी करने वाली हैं।
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अध्याय का सवाल
क्या साँवी अपने दर्द और आत्मग्लानि से बाहर निकल पाएगी, या रिया की चालें उसके हौसले को पूरी तरह तोड़ देंगी?
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🌑अध्याय 11: ज़हर भरे शब्द और आने वाले तूफ़ान की आहट
फ़ार्महाउस की सुबहें अब पहले जैसी शांत नहीं थीं। हवा में एक अजीब-सी बेचैनी घुल गई थी, जिसका नाम रिया था। वह अपनी मीठी बातों और बनावटी व्यवहार से अरीव के सामने एक आदर्श मेहमान बनी हुई थी, लेकिन उसकी असली नज़र साँवी पर थी, जो उसके वजूद को एक चुनौती की तरह लगती थी।
रिया का ज़हरीला वार
एक सुबह, साँवी किचन में सबके लिए नाश्ता बना रही थी। वह अपने काम में डूबी हुई थी कि तभी रिया वहाँ आई। उसके हाथ में कॉफ़ी का एक महँगा कप था और चेहरे पर एक सोची-समझी मुस्कान।
"गुड मॉर्निंग, साँवी," उसने शहद घुली आवाज़ में कहा।
साँवी ने बिना नज़र उठाए धीरे से कहा, "गुड मॉर्निंग।"
रिया उसके पास आकर काउंटर पर टिक गई, जैसे कुछ देख रही हो। फिर अचानक, जैसे उसका पैर फिसला हो, उसने अपने हाथ का खौलता हुआ कॉफ़ी का कप ज़मीन पर गिरा दिया। गर्म कॉफ़ी छिटककर साँवी के पैरों के ठीक पास गिरी। साँवी एक झटके से पीछे हटी, उसकी आँखों में एक पल को वही पुराना डर कौंध गया—आग और जलने का डर।
"ओह माय गॉड! I'm so sorry!" रिया ने हैरान होने का नाटक करते हुए कहा। "मेरा पैर फिसल गया। तुम्हें चोट तो नहीं लगी?"
साँवी ने काँपते हुए "नहीं" में सिर हिलाया और खुद को संभालने की कोशिश की।
रिया नीचे झुकी और कप के टुकड़े उठाते हुए बोली, "तुम्हें इन सब चीज़ों की आदत नहीं है न? मेरा मतलब है, तुम बहुत सिंपल हो। थोड़ा ध्यान रखा करो। पता है, अरीव को अपने आसपास के लोग बिल्कुल परफेक्ट चाहिए होते हैं। स्ट्रांग, कॉन्फिडेंट, अपने लेवल के... ऐसी... बेचारी टाइप लड़कियाँ नहीं।"
'बेचारी'—यह एक शब्द साँवी के दिल और दिमाग़ में किसी पिघले हुए शीशे की तरह उतर गया। उसने नज़र उठाकर रिया को नहीं देखा, बस चुपचाप ज़मीन साफ़ करने के लिए कपड़ा उठाने लगी। उसका मौन रिया के लिए एक जीत जैसा था। वह अपनी ज़हरीली मुस्कान के साथ वहाँ से चली गई, साँवी को अपने ही विचारों की आग में जलता हुआ छोड़कर।
अनन्या की डायरी का रहस्य
उसी दोपहर, अरीव अपने स्टडी रूम में बेचैन होकर टहल रहा था। पिछले कुछ दिनों से उसने महसूस किया था कि साँवी उससे बच रही है। वह उससे नज़रें नहीं मिलाती थी, ज़रूरत से ज़्यादा चुप रहती थी और उसके आसपास होने पर असहज हो जाती थी। अरीव को समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है, और यह अनिश्चितता उसे गुस्सा दिला रही थी।
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई और करन अंदर आया। उसके चेहरे पर गंभीरता थी।
"सर, एक ज़रूरी जानकारी मिली है," उसने कहा और एक पुरानी, चमड़े के कवर वाली डायरी मेज़ पर रख दी।
"यह क्या है?" अरीव ने पूछा।
"सर, यह अनन्या, यानी समर राणा की बहन की पर्सनल डायरी है। हमारी टीम को उसके पुराने सामान से मिली है।"
अरीव ने डायरी उठाई और उसके पन्ने पलटने लगा। अंदर की लिखावट बहुत सुंदर थी, लेकिन शब्द दर्द और डर से भरे थे। कुछ पन्ने पढ़ने के बाद अरीव के चेहरे के भाव सख़्त हो गए।
डायरी में साफ़ लिखा था कि अनन्या रुद्राक्ष से नहीं, बल्कि किसी और से प्यार करती थी, जिसका ज़िक्र उसने 'V' नाम से किया था। उसने लिखा था कि 'V' बहुत ताक़तवर और ख़तरनाक है, और वह उससे दूर जाना चाहती है पर जा नहीं पा रही। उसने यह भी लिखा था कि उसे अपने भाई समर के जुनूनी स्वभाव से डर लगता है, जो उसकी ज़िंदगी के हर फ़ैसले को कंट्रोल करना चाहता है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि डायरी के आखिरी के कुछ पन्ने किसी ने बड़ी बेरहमी से फाड़ दिए थे।
"यह 'V' कौन है?" अरीव ने डायरी बंद करते हुए पूछा।
"हम पता लगा रहे हैं, सर। लेकिन इतना साफ़ है कि रुद्राक्ष सर को फँसाया जा रहा है। कहानी कुछ और ही है," करन ने जवाब दिया।
अरीव की मुट्ठियाँ भिंच गईं। यह मामला जितना सीधा दिख रहा था, उतना ही पेचीदा था। उसने करन को 'V' के बारे में जल्द से जल्द पता लगाने का आदेश दिया। उसका दिमाग़ अब एक नई पहेली में उलझ चुका था।
एक अनचाही पार्टी की साज़िश
शाम को, जब अरीव अपनी सोच में डूबा हुआ था, रिया उसके पास आई। उसके हाथ में एक टैबलेट था और चेहरे पर बिज़नेस वाली गंभीरता।
"अरीव, हमें एक बहुत बड़ी बिज़नेस डील मिलने वाली है," उसने उत्साहित होते हुए कहा। "ओबेरॉय इंडस्ट्रीज़ के मालिक, मिस्टर विक्रम ओबेरॉय हमारे प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट करने के लिए तैयार हैं। यह डील हमारे लिए गेम-चेंजर हो सकती है।"
अरीव ने बिना ज़्यादा रुचि दिखाए कहा, "अच्छी बात है।"
"लेकिन एक प्रॉब्लम है," रिया ने कहा। "मिस्टर ओबेरॉय बहुत पुराने ख़्यालों के हैं। वह कोई भी बड़ी डील ऑफ़िस में नहीं, बल्कि एक सोशल माहौल में फ़ाइनल करना पसंद करते हैं। मैंने सोचा है कि क्यों न हम कल रात फ़ार्महाउस पर एक छोटी-सी पार्टी रखें? सिर्फ़ उनके और कुछ ज़रूरी लोगों के लिए। यह डील पक्की करने का सबसे अच्छा मौक़ा है।"
अरीव को पार्टी का विचार बिल्कुल पसंद नहीं आया। घर का माहौल पहले ही तनावपूर्ण था और साँवी की हालत ठीक नहीं थी। "अभी यह सब ज़रूरी नहीं है, रिया।"
"प्लीज़, अरीव," रिया ने ज़ोर देते हुए कहा। "यह मेरे करियर के लिए भी बहुत ज़रूरी है। मैं यह डील तुम्हारे लिए हासिल करना चाहती हूँ। बस एक शाम की बात है। प्लीज़ मना मत करो।"
रिया के ज़ोर देने पर और बिज़नेस के फ़ायदे को देखते हुए अरीव को बेमन से हाँ कहना पड़ा। "ठीक है, जैसा तुम्हें सही लगे। इंतज़ाम देख लेना।"
रिया की आँखों में जीत की चमक आ गई। उसे वह मौक़ा मिल गया था जिसका उसे इंतज़ार था। वह नहीं जानती थी कि वह अनजाने में एक ऐसे तूफ़ान को दावत दे रही है, जो उन सबकी ज़िंदगी को तबाह कर सकता है।
अकेलेपन की गहरी रात
उस रात, फ़ार्महाउस में सब कुछ शांत था। लेकिन साँवी के कमरे में एक ख़ामोश तूफ़ान उमड़ रहा था। रिया के सुबह कहे गए शब्द—'परफेक्ट', 'स्ट्रांग', 'बेचारी'—बार-बार उसके ज़हन में हथौड़े की तरह बज रहे थे।
वह हिम्मत करके अपने कमरे के आईने के सामने खड़ी हुई। उसके हाथ काँप रहे थे। उसने धीरे से अपना दुपट्टा कंधे से सरकाया। चाँदनी की हल्की रोशनी में, उसके जले हुए शरीर के निशान और भी भयानक लग रहे थे। हर एक दाग उसे उस रात की याद दिला रहा था—आग, चीखें, और वह दर्द जो उसकी आत्मा तक को जला गया था।
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
"मैं... मैं सच में टूटी हुई हूँ," वह खुद से फुसफुसाई। "एक ऐसा खिलौना जिसे कोई कभी नहीं अपनाएगा। रिया सही कह रही थी... अरीव जैसे इंसान को मैं कैसे पसंद आ सकती हूँ? मुझमें ऐसा क्या है? सिर्फ़ दर्द, दाग़ और एक भयानक अतीत।"
उसका आत्म-सम्मान पूरी तरह से बिखर चुका था। वह खुद से नफ़रत करने लगी थी। उसका दिल चाह रहा था कि वह चीखे, चिल्लाए, लेकिन उसकी आवाज़ गले में ही घुट गई।
वह आईने के सामने और खड़ी नहीं रह सकी। कमज़ोरी से उसके पैर लड़खड़ा गए और वह ज़मीन पर ढह गई। उसने अपने घुटनों में सिर छिपा लिया और सिसकने लगी। उसे किसी सहारे की ज़रूरत थी, किसी ऐसे इंसान की जो उसे बताए कि वह जैसी भी है, अनमोल है। उसकी आँखें दरवाज़े की तरफ़ उठीं, एक पल को उसे लगा कि शायद अरीव आएगा... शायद वह उसकी तकलीफ़ महसूस कर पाएगा।
लेकिन कोई नहीं आया।
अरीव अपने स्टडी रूम में अनन्या की डायरी के रहस्य में उलझा हुआ था, और साँवी अपने कमरे में अकेलेपन और दर्द से लड़ रही थी।
रोते-रोते उसकी आँखें भारी हो गईं और वह उसी ठंडे फर्श पर, अपने बिखरे हुए वजूद के साथ, दर्द की गहरी नींद में डूब गई। वह उस रात दुनिया में सबसे अकेली थी, और उसे इस बात का एहसास नहीं था कि आने वाला कल उसकी ज़िंदगी का सबसे भयानक दिन होने वाला था।
पाठकों के लिए आज का सवाल:
रिया की बुलाई इस अनचाही पार्टी में एक नया और खतरनाक मेहमान आने वाला है, जबकि साँवी अपने आत्म-सम्मान को पूरी तरह खो चुकी है। आपको क्या लगता है, इस पार्टी में ऐसा क्या होगा जो सबकी ज़िंदगी बदलकर रख देगा? क्या अरीव उस तूफ़ान को रोक पाएगा जिसे वह खुद अनजाने में दावत दे चुका है?
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अध्याय 12: एक ख़ूबसूरत तोहफ़ा और दहलीज़ पर खड़ा अतीत
पार्टी की शाम जैसे-जैसे करीब आ रही थी, फ़ार्महाउस में एक अलग ही रौनक थी। गार्डन में तैयारियां चल रही थीं, और घर के अंदर उत्साह का माहौल था। रोहित और उदय इस बात पर बहस कर रहे थे कि कौन ज़्यादा हैंडसम लगेगा, जबकि रुद्राक्ष उन्हें देखकर बस मुस्कुरा रहा था।
एक ख़ामोश इंकार
तीनों भाई लिविंग एरिया में बैठी साँवी के पास आए, जो चुपचाप एक किताब के पन्ने पलट रही थी।
"साँवी, तैयार हो जाओ," रोहित ने उत्साहित होकर कहा। "आज तुम्हें देखकर सब हैरान रह जाएँगे।"
साँवी ने धीरे से किताब बंद की और नज़रें झुकाकर बोली, "मैं... मैं पार्टी में नहीं आऊँगी।"
तीनों एक पल को चुप हो गए।
"क्यों?" रुद्राक्ष ने बहुत नरमी से पूछा। "क्या हुआ? तबीयत ठीक नहीं है?"
"नहीं, मैं ठीक हूँ," साँवी ने धीमी आवाज़ में कहा। "बस... मुझे अच्छा नहीं लगता इतने सारे लोगों के सामने आना। मैं... मैं सहज महसूस नहीं करती।" उसकी आवाज़ में एक गहरी उदासी और खुद के लिए एक झिझक थी।
"अरे, ये क्या बात हुई!" उदय ने उसके पास बैठकर कहा। "तुम हमारी मेहमान नहीं, परिवार हो। और परिवार साथ में रहता है। तुम अकेली ऊपर कमरे में रहोगी और हम नीचे पार्टी करेंगे? ये तो ग़लत बात है।"
"प्लीज़, मान जाओ न साँवी," रोहित ने बच्चों की तरह ज़िद की। "हम सब तुम्हारे साथ रहेंगे। तुम्हें एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ेंगे।"
लेकिन साँवी के चेहरे पर वही इंकार था। उसकी आँखों में लोगों का सामना करने का डर साफ़ दिख रहा था।
यह देखकर उदय को एक विचार आया। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "अच्छा ठीक है। तुम पार्टी में नहीं आना चाहती तो कोई बात नहीं, ज़बरदस्ती नहीं करेंगे। लेकिन एक शर्त है।"
साँवी ने सवालिया नज़रों से उसे देखा।
"शर्त यह है कि अगर तुम पार्टी में नहीं आ रही, तो अभी हमारे साथ शॉपिंग पर चलोगी। बोलो, मंज़ूर है?" उदय ने शरारत से कहा।
साँवी ने फिर मना करने के लिए मुँह खोला, लेकिन रोहित और रुद्राक्ष ने भी उदय का साथ दिया। तीनों उसे मनाने में जुट गए। आख़िरकार, उनके इतने प्यार और ज़िद के आगे साँवी को हार माननी पड़ी। उसने बहुत धीरे से "हाँ" में सिर हिलाया।
दूर खड़ी रिया यह सब देख रही थी और उसका चेहरा गुस्से और जलन से लाल हो रहा था। उसने मन ही मन सोचा, 'हद है! सुबह से मैं कह रही हूँ कि मुझे शॉपिंग पर जाना है, लेकिन किसी के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी। और इस गँवार, जली हुई लड़की के लिए सब ऐसे भाग रहे हैं जैसे ये कोई राजकुमारी हो। है क्या इसमें ऐसा जो मुझमें नहीं?'
जैसे ही तीनों भाई साँवी को लेकर बाहर निकले, रोहित ने उदय से धीरे से कहा, "चल, अच्छा हुआ। 'मेकअप की दुकान' से तो बचे। उसके साथ जाते तो पूरा मॉल ख़रीदना पड़ता और हमारा क्रेडिट कार्ड ICU में चला जाता।" यह सुनकर उदय और रुद्राक्ष दोनों हँस पड़े।
एक अनमोल तोहफ़ा
शॉपिंग मॉल पहुँचकर तीनों भाइयों ने साँवी को एक बड़ी दुकान में लगभग खींच ही लिया। वे बच्चों की तरह उत्साहित थे और उसके लिए एक से बढ़कर एक ड्रेस निकाल रहे थे। साँवी बस चुपचाप खड़ी थी, उसे यह सब किसी सपने जैसा लग रहा था।
तभी वहाँ अरीव आ गया। उसे देखकर सब चौंक गए।
"भाई, आप यहाँ?" रोहित ने पूछा।
"एक ज़रूरी काम था," अरीव ने संक्षेप में जवाब दिया, लेकिन उसकी नज़रें साँवी पर थीं, जो इतने सारे कपड़ों के बीच असहज लग रही थी।
वह बिना कुछ कहे साँवी की तरफ़ बढ़ा और उसका हाथ पकड़कर उसे एक अलग, हाई-एंड डिज़ाइनर स्टोर में ले गया। भाइयों ने एक-दूसरे को देखा और चुपचाप पीछे हो लिए।
अरीव ने सेल्सगर्ल को एक ड्रेस लाने का इशारा किया। कुछ ही पलों में वह एक बेहद ख़ूबसूरत, फ़्लोर-लेंथ ब्लैक गाउन लेकर आई, जिसकी आस्तीनें पूरी थीं और गले का डिज़ाइन बहुत ही शालीन था।
"यह ट्राई करो," अरीव ने साँवी से कहा।
साँवी ने गाउन को देखा और फिर उसके प्राइस टैग पर उसकी नज़र गई। उसकी आँखें फैल गईं। "नहीं... यह... यह बहुत महँगा है। मैं यह नहीं ले सकती।"
अरीव ने उसकी आँखों में झाँका। उसकी आवाज़ गहरी और नरम थी। "मैंने क़ीमत नहीं, तुम्हारे लिए आराम देखा है।"
उसके इस एक वाक्य ने साँवी के दिल को छू लिया। वह समझ गई कि अरीव ने जानबूझकर फुल स्लीव्ज़ वाला गाउन चुना था ताकि उसके ज़ख्मों के निशान ढक जाएँ। यह सिर्फ़ एक ड्रेस नहीं थी, यह उसकी तकलीफ़ को समझने वाला एक ख़ामोश एहसास था। साँवी की आँखों में आँसू आ गए।
इसके बाद रोहित, उदय और रुद्राक्ष ने भी उसे कई और ख़ूबसूरत ड्रेस दिलवाईं, और पहली बार साँवी को महसूस हुआ कि उसके पास सच में एक ऐसा परिवार है जो उससे बहुत प्यार करता है।
बालकनी से दिखता सच
रात हो चुकी थी। फ़ार्महाउस का गार्डन जगमगा रहा था। हल्की-हल्की संगीत की धुन और मेहमानों के हँसने की आवाज़ें आ रही थीं।
साँवी अपनी बालकनी में अँधेरे में खड़ी, नीचे चल रही पार्टी को देख रही थी। अरीव, उदय, रुद्राक्ष और रोहित, चारों भाई ब्लैक थ्री-पीस सूट में बेहद आकर्षक लग रहे थे। उनके हाथों में वाइन के गिलास थे और वे अपने बिज़नेस पार्टनर्स के साथ बातचीत कर रहे थे।
तभी साँवी की नज़र रिया पर पड़ी, जो एक बोल्ड रेड ड्रेस पहने अरीव के बिल्कुल बगल में खड़ी थी। वह हर किसी से ऐसे मिल रही थी, जैसे वही उस पार्टी की होस्ट हो। यह नज़ारा देखकर साँवी के दिल में एक तेज़ दर्द उठा। उसने सोचा, 'वो कितनी परफेक्ट है... और मैं? मैं तो इस लायक भी नहीं हूँ कि उन सबके साथ नीचे जाकर खड़ी भी हो सकूँ। रिया सही कहती थी... अरीव की दुनिया मुझसे बहुत अलग है।'
वह अपनी टूटी हुई क़िस्मत पर आँसू बहाने ही वाली थी कि तभी उसकी नज़र फ़ार्महाउस के मेन गेट पर पड़ी।
एक शानदार गाड़ी आकर रुकी और उसमें से एक शख़्स बाहर निकला। उसका चेहरा जाना-पहचाना था... इतना जाना-पहचाना कि साँवी की साँसें गले में ही अटक गईं।
उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा, हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। वह कोई और नहीं, राहुल था। वही राहुल, जिसने उसकी आँखों के सामने उसके पूरे परिवार को गोलियों से भून दिया था।
साँवी ने देखा, रिया भागकर गेट पर गई और राहुल को गले लगा लिया। "राहुल! तुम आ गए! मुझे लगा था तुम नहीं आओगे।"
"तुम्हारी पार्टी हो और मैं न आऊँ, ऐसा हो सकता है क्या?" राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा। वह अपने पिता की तरफ़ से मिस्टर ओबेरॉय के प्रतिनिधि के तौर पर आया था।
यह देखकर साँवी के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। उसका सबसे भयानक सपना, उसका अतीत, आज दरवाज़े पर आकर खड़ा हो गया था।
डर के मारे उसका पूरा शरीर काँपने लगा। वह एक पल भी वहाँ और नहीं रुक सकी। वह तेज़ी से पीछे मुड़ी, बालकनी का दरवाज़ा अंदर से बंद किया और भागकर अपने कमरे का दरवाज़ा भी लॉक कर लिया। वह दरवाज़े से पीठ लगाकर ज़मीन पर बैठ गई, उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं और आँखों के सामने उस ख़ूनी रात का मंज़र घूम रहा था।
उसका दुश्मन, उसके परिवार का क़ातिल, उसी छत के नीचे था... और इस बात से वह पूरी तरह बेख़बर थी कि आगे क्या होने वाला है।
साँवी ने जैसे ही गेट पर राहुल को देखा, उसकी साँसें थम गईं। उसका शरीर बर्फ़ की तरह ठंडा पड़ गया। डर से काँपते हुए उसने तुरंत बालकनी का दरवाज़ा बंद किया और तेज़ी से भागकर अरीव के कमरे में घुस गई।
कमरे में घुसते ही उसने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया। आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसके पैरों में इतनी कंपकंपी थी कि वह संभल भी नहीं पा रही थी। डर के मारे उसने अरीव के बिस्तर के पीछे जाकर खुद को छुपा लिया। दोनों हथेलियों से मुँह दबाकर वह फूट-फूटकर रोने लगी।
“अभी अरीव आएगा… अभी वो मुझे इस डर से निकाल लेगा। बस थोड़ी देर और सह लो, साँवी।”
उसका दिल बार-बार यही कह रहा था।
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उधर नीचे पार्टी ज़ोरों पर थी। मेहमान वाइन और म्यूज़िक का मज़ा ले रहे थे। रिया, राहुल का हाथ पकड़कर गर्व से अरीव के पास लाई।
“अरीव,” रिया ने बड़ी अदा से कहा, “मिलो, ये है मेरा बेस्ट फ्रेंड राहुल। मुंबई के MLA का बेटा। और मेरे लिए तो ये फैमिली से भी बढ़कर है।”
राहुल ने आत्मविश्वास से मुस्कुराकर हाथ बढ़ाया।
अरीव ने ठंडे चेहरे से हाथ मिलाया, “हाय।”
बस इतना कहकर वह तुरंत रुद्राक्ष की ओर बढ़ गया।
रिया का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। “हद है! मेरे बेस्ट फ्रेंड से ठीक से बात तक नहीं कर सकता? अकड़ू कहीं का।”
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रोहित और उदय की कॉमेडी
थोड़ी दूरी पर खड़े रोहित और उदय राहुल को देखकर हँसी रोक नहीं पा रहे थे।
रोहित फुसफुसाया, “भाई, ये कौन है? चप्पल गंजू लग रहा है।”
उदय हँसते हुए बोला, “अबे नहीं, ये तो MLA का बेटा नहीं, MLA का पंचर है।”
दोनों ने हाथ से मुँह दबाकर हँसना शुरू किया।
रोहित ने फिर कहा, “इसको देखकर तो लगता है जैसे शादी में आया है या लाइन में राशन लेने।”
उदय बोला, “मुझे तो ये भी लग रहा है कि MLA के घर का वॉचमैन प्रमोशन पाकर पार्टी में आ गया।”
दोनों की हँसी देखकर पास के वेटर तक मुस्कुराने लगे।
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रिया-राहुल का छुपा रिश्ता
अरीव का रवैया देखकर रिया और भी झल्ला गई। उसने राहुल का हाथ पकड़ा और भीड़ से थोड़ा दूर ले जाकर बोली,
“देखा? कितना रूखा है। तुम्हें देखना तक पसंद नहीं आया।”
राहुल ने उसकी कमर पर हाथ रखा और हँसकर कहा, “तो क्या हुआ? मुझे उसकी परवाह नहीं। तू तो मेरी है ना।”
रिया ने हल्की मुस्कान दी, “तू भी न…”
फिर दोनों ने एक कोना पकड़कर जल्दी से एक-दूसरे को किस किया।
उसी समय रोहित और उदय फिर उधर झाँकने लगे।
रोहित बोला, “ओ भाई, ये तो गुलाब जामुन है—ऊपर से रेड ड्रेस, नीचे से मिठाई का टब।”
उदय बोला, “और ये राहुल? कॉम्बो पैक।”
दोनों फिर हँस-हँसकर लोटपोट हो गए।
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रुद्राक्ष की नज़र
दूसरी ओर, रुद्राक्ष यह सब ध्यान से देख रहा था। उसके चेहरे पर हल्की गंभीरता थी। “कुछ गड़बड़ है… राहुल और रिया का रिश्ता सिर्फ़ दोस्ती नहीं है। मुझे इसे याद रखना होगा।”
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अरीव की बेचैनी
अरीव भीड़ के बीच मुस्कुरा रहा था, बिज़नेस पार्टनर्स से बातें कर रहा था, लेकिन उसका दिल बार-बार ऊपर कमरे की ओर खिंच रहा था। उसे भीतर से लग रहा था कि साँवी ठीक नहीं है।
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कमरे में साँवी
उधर, अरीव के कमरे में बिस्तर के पीछे बैठी साँवी रोते-रोते काँप रही थी। उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं। वह हर आहट पर चौंक जाती, जैसे डर हो कि कहीं राहुल अंदर न आ जाए।
“अगर उसने मुझे यहाँ देख लिया तो? नहीं… नहीं… बस अरीव आ जाए। वही मुझे बचा सकता है।”
उसकी सिसकियाँ धीरे-धीरे कमरे की ख़ामोशी में घुल रही थीं।
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नीचे पार्टी की रौनक और हँसी-ठिठोली थी। ऊपर, एक कमरे में साँवी का अतीत उसके सामने खड़ा था।
एक तरफ़ राहुल और रिया का राज़ छुपा था, दूसरी तरफ़ साँवी का डर।
और बीच में अरीव—जिसका दिल बार-बार उसे ऊपर बुला रहा था…
दूसरी तरफ
फ़ार्महाउस की पार्टी अपने चरम पर थी। हल्के संगीत की धुनें, हँसी की आवाज़ें और महँगी वाइन की खुशबू हवा में घुली हुई थी। बिज़नेस टाइकून, पॉलिटिशियन और नामी हस्तियाँ चारों तरफ़ खड़ी बातचीत कर रही थीं।
रिया दूर से खड़ी अरीव को देख रही थी—ब्लैक थ्री-पीस में बेहद आकर्षक, लोगों के बीच भी उसकी शख़्सियत सबसे अलग चमक रही थी। रिया के दिल में जलन और चाहत दोनों थी।
उसने धीरे से अपने वेटर से कहा, “ड्रिंक में मिलाना… बस थोड़ी देर में ये मेरे क़ाबू में होगा।”
वेटर ने सिर झुका दिया और ट्रे में एक गिलास में नज़र न आने वाला पाउडर डाल दिया।
अरीव, क्लाइंट से बात करते-करते उस ड्रिंक को उठा लेता है। वह एक ही घूँट में पी जाता है।
कुछ देर सब ठीक था, लेकिन फिर उसकी साँसें तेज़ होने लगीं। आँखें लाल हो गईं। हाथों में कंपन और नसों में अजीब सा तनाव भर गया।
वह समझ गया—“किसी ने मुझे ड्रग्स दिया है।”
वह किसी से कुछ कहे बिना, भीड़ से निकलकर तेज़ी से सीढ़ियाँ चढ़ता है और अपने कमरे की तरफ़ बढ़ जाता है।
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कमरे में घुसते ही वह ऑटो-लॉक टाइमर ऑन कर देता है ताकि सुबह से पहले कोई अंदर न आ सके।
फिर वह बाथरूम की ओर भागता है।
शॉवर ऑन करके वह ठंडे पानी के नीचे खड़ा हो जाता है।
पानी उसके चौड़े कंधों से बहता है, लेकिन शरीर की गर्मी और बेचैनी कम नहीं होती।
वह सामने की दीवार पर मुक्का मारता है।
“कंट्रोल करो, अरीव… खुद को संभालो…”
लेकिन दवा का असर उसके अंदर ज्वालामुखी की तरह फूट रहा था।
धीरे-धीरे वह अपनी शर्ट उतार देता है, बालों से पानी टपकता है और उसकी साँसें अनियंत्रित होती जाती हैं।
लगभग एक घंटे तक वह शॉवर में खड़ा रहता है, लेकिन बेचैनी कम होने की बजाय और बढ़ती जाती है।
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दूसरी ओर, सान्वी उसी कमरे के भीतर सो गई थी—आँसुओं से थकी हुई।
उसकी नींद अचानक टूटी जब उसने बाथरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनी।
वह उठकर बैठ गई। उसकी आँखें अब भी सूजी हुई थीं।
अगले ही पल उसने अरीव को देखा—कमर पर सिर्फ़ एक काला तौलिया, भीगे बालों से पानी टपक रहा था, और उसके चेहरे पर अजीब सा तनाव था।
सान्वी का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा।
“वो यहाँ कैसे अब मैं क्या करूंगी? अगर उसने मुझे देख लिया तो…”
अरीव ने अचानक उसकी तरफ़ देखा और ठिठक गया।
“सान्वी…? तुम यहाँ?”
सान्वी का चेहरा रोने से लाल था।
उसकी आँखों में डर और मासूमियत थी।
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टकराव
अरीव खुद को काबू करने की कोशिश करता है।
वह गहरी साँस लेता है, लेकिन ड्रग्स का असर उसके शरीर को संवि की तरफ खींच रहा था।
उसने जल्दी से आगे बढ़कर सान्वी का दुपट्टा पकड़ लिया।
सान्वी घबरा गई।
उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं।
संवि रहती है आप यह क्या कर रहे हैं। अतीव कहता है आई एम सॉरी संवि मैं खुद पर काबू नहीं कर पा रहा हूं प्लीज मुझे माफ कर दो। और वह संवि को किस करने लगता है एक दीप पैशनेट किस। संवि अतीव उसे छूटने की बहुत कोशिश करती है पर छूट नहीं पाती। अरीव के हाथ संवि के पूरे बॉडी पर चल रहे थे। अरीव संवि को गोद में उठाकर अपने बेड में पटक देता है संवि धीरे-धीरे पीछे की शक्ति जाती है और कहती है प्लीज छोड़ दीजिए सर हमको ऐसा मत कीजिए। पर अरीव को कोई होश नहीं था वह संवि के पैर पकड़ के अपनी तरफ खींच लेता है और उसके ऊपर शहर जाता है और उसके कॉलर बोन पर किस करने लगता है। संवि उसके पूरे बॉडी पर नाखूनों के निशान बनते जा रही थी उसे धकेलना की कोशिश कर रही थी और चिख रही थी कि प्लीज मुझे छोड़ दीजिए। इस पल अरीव संवि के सूट को खींचकर फाड़ देता है और उसके साथ जबरदस्ती करने लगता है। संवि उसे बहुत हटाने की कोशिश करती है। पर वह एक नाजुक लड़की एक नौजवान को कैसे हटा सकती थी। अतीव संवि कि सर से सर मिलते हुए। आई एम सॉरी सनी प्लीज मेरी हेल्प कर दो मैं खुद पर कंट्रोल नहीं कर पा रहा हूं आई एम रियली सॉरी इस वक्त वह संवि के अंदर इंटर करता है और सामने की सीख निकल जाती है और उसकी आंखों से आंसू क्यों नहीं लगते हैं।
अब संवि शांत हो चुकी थी। पर अरीव अभी उसे पर वैसे ही हावी था। अब सुबह के 3:00 बज रहे थे संवि थक चुकी थी। पर अतीव पर ड्रेस का असर कम नहीं हुआ था। संवि तो रात के 1:00 ही बेहोश हो गई थी। कुछ देर बाद अरीव शांति से अलग होकर उसके बगल में सो जाता है दोनों एक पतली व्हाइट सिल्क के सदर से ढके हुए थे। दोनों के जिसमें एक भी कपड़ा नहीं था।
अगली सुबह
संवि खुद को और अरीव को एक साथ एक बिस्तर पर देखी है अरीव संवि के कमर में हाथ रखकर सोया हुआ था उसे संवि बेड के सीलिंग के ऊपर वाले मिरर में देख रही थी। और सोचती है कि यहां भी मेरे साथ वही हुआ।
अरीव जी इतने बड़े इंसान है क्या वह मुझे अपनाएंगे या मुझे छोड़ देंगे मैं तो खूबसूरत भी नहीं।
अगली कहानी में क्या होगा जब अरीव को होश आएगा क्या वह संवि को अपना आएगा या उसे छोड़ देगा। और जब घर वालों को यह बात पता लगेगी तब क्या होता है।
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❓सवाल: क्या अरीव अपने होश और दिल दोनों को संभाल पाएगा, या रिया की साज़िश उनकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए अंधेरे में धकेल देगी?
📖अध्याय 13: एक बिखरा हुआ सवेरा और अनजाना सफ़र ---
🌅 सीन वन: एक टूटा हुआ भरोसा और अनकही दूरी
सुबह की पहली किरण ने कमरे के शीशों को पार करते हुए दीवारों पर सुनहरे धागे बुन दिए थे। एक नई सुबह, एक नया दिन, लेकिन साँवी के लिए यह एक और दर्दनाक रात की कड़वी सुबह थी। वह धीरे-धीरे अपनी नींद से जागी, लेकिन उसकी आँखें खुलते ही दिल की धड़कनें तेज हो गईं। छत पर लगे बड़े से आईने में, धुंधली सुबह की रोशनी में, उसे अपना और अरीव का अक्स साफ़ दिखाई दिया।
वह और अरीव—एक ही चादर के नीचे। अरीव का हाथ अभी भी उसकी कमर पर मजबूती से रखा हुआ था, मानो वह कोई कीमती चीज़ हो, जिसे वह खोना नहीं चाहता। लेकिन साँवी के लिए यह नज़ारा किसी खौफनाक सपने से कम नहीं था। रात के वो भयावह पल, जो उसने किसी तरह पीछे धकेल दिए थे, अब एक-एक करके उसकी आँखों के सामने नाच रहे थे। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, और उसके पूरे शरीर में एक सिहरन दौड़ गई।
उसके मन ने चीखकर कहा, "क्या मैं सचमुच इतनी बदनसीब हूँ कि हर बार मेरी इज़्ज़त से खेला जाता है? क्या मेरा वजूद सिर्फ़ इस्तेमाल होने के लिए बना है?"
उसके कानों में रिया की कड़वी बातें गूंजने लगीं। "अरीव की दुनिया तुमसे बहुत अलग है, साँवी। तुम जैसी लड़कियाँ इस्तेमाल करने की चीज़ होती हैं, बीवी बनाने की नहीं।" रिया के शब्द तीर की तरह उसके दिल में धंसते जा रहे थे।
शायद रिया सही थी। अरीव जैसा एक शक्तिशाली और अमीर आदमी, जिसके इशारे पर पूरा शहर हिल सकता था, वह उस जैसी एक टूटी हुई, जली हुई लड़की को क्यों अपनाएगा? कल रात की घटना उसके लिए सिर्फ़ एक क्षणिक ग़लती थी, एक रात का जुनून। उसे अब सब कुछ साफ़-साफ़ दिख रहा था। वह केवल एक मोहरा थी, जिसे अरीव ने इस्तेमाल किया और अब फेंक दिया था।
उसका दिल बुरी तरह बिखर गया था। एक पल के लिए उसने सोचा कि वह अरीव को जगाए और उससे पूछे कि उसने ऐसा क्यों किया, लेकिन फिर उसे लगा कि शायद अरीव के पास कोई जवाब नहीं होगा, या अगर होगा भी तो वह उसे और ज़्यादा दुख देगा।
कुछ देर बाद, जब सूरज की किरणें कमरे में पूरी तरह फैल चुकी थीं, अरीव की नींद टूटी। उसका सिर बुरी तरह फटा जा रहा था, जैसे किसी ने हथौड़े मारे हों। आँखों पर ज़ोर डालते हुए उसने उठने की कोशिश की, लेकिन दिमाग़ की नसें दर्द से सुन्न थीं। पिछली रात की कोई बात उसे याद नहीं थी। सिर्फ़ एक धुंधली सी तस्वीर थी, जिसमें साँवी का चेहरा दिख रहा था, लेकिन वह भी किसी ग़लती की तरह उसके दिमाग़ से फिसल रहा था।
जैसे ही उसकी नज़र बिस्तर पर पड़ी, वह ठिठक गया। सफ़ेद चादर पर कुछ गहरे लाल धब्बे थे, जो खून जैसे लग रहे थे। पास ही एक फटा हुआ दुपट्टा पड़ा था, जिस पर फूलों का डिज़ाइन बना हुआ था। यह नज़ारा देखकर उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। एक अजीब सी बेचैनी उसके दिल में घर कर गई।
वह तुरंत बिस्तर से उतरकर बाथरूम की ओर दौड़ा। वहाँ का नज़ारा देखकर उसकी धड़कनें तेज़ी से दौड़ने लगीं। गीला फ़र्श, पानी के बीच खून के कुछ धब्बे और हवा में फैली हुई एक अजीब सी महक... उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। उसके दिमाग़ में बस एक ही सवाल घूम रहा था, "यह क्या हुआ? क्यों मुझे कुछ याद नहीं?"
उसका दिमाग़ सुन्न हो गया। उसके हाथ काँप रहे थे। उसने तुरंत अपने सबसे करीबी दोस्त और बिज़नेस पार्टनर, रुद्राक्ष, को फ़ोन लगाया। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी घबराहट थी।
"रुद्राक्ष... अभी आओ! तुरंत!" अरीव ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।
रुद्राक्ष कुछ ही देर में फार्महाउस पहुँच गया। अरीव ने उसे पूरा मंज़र दिखाया—बिस्तर पर खून के धब्बे, बाथरूम में गीला फ़र्श और फटा हुआ दुपट्टा। रुद्राक्ष ने पूरी बात समझी और अपनी मेडिकल जानकारी का इस्तेमाल करते हुए कुछ चीज़ों की जाँच की।
"अरीव, यह खून है," रुद्राक्ष ने शांत आवाज़ में कहा, "और यह कोई मामूली चोट नहीं है। मुझे लगता है, तुम्हारी ड्रिंक में कुछ मिलाया गया था। यह किसी दवा का असर है।"
यह सुनकर अरीव का दिमाग़ घूम गया। उसका दिमाग़ पिछले कुछ घंटों की यादों को जोड़ने की कोशिश करने लगा। अचानक उसे रिया का चेहरा याद आया, उसकी मुस्कान और उसकी आँखों की चमक।
"रिया का अंत मैं खुद करूँगा!" अरीव ने ज़हर जैसी आवाज़ में कहा। उसकी आँखों में अब पश्चाताप की आग के साथ-साथ बदले की ज्वाला भी धधक रही थी। "अगर साँवी को कुछ हुआ तो मैं उसे ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा।"
उसका गुस्सा सिर्फ़ रिया पर नहीं था, बल्कि खुद पर भी था। वह अपने अंदर की उस बेबसी और नाकामी से जूझ रहा था, जिसकी वजह से उसने एक निर्दोष लड़की का जीवन बर्बाद कर दिया था। उसका दिल बेबस और असहाय महसूस कर रहा था। उसकी एक ग़लती ने उसकी दुनिया बदल दी थी।
अरीव ने तुरंत अपने गार्ड्स को बुलाया और आदेश दिया, "पूरा फार्महाउस खंगालो। हर कोना चेक करो। मुझे साँवी चाहिए, ज़िंदा!"
लेकिन नतीजा साफ़ था। गार्ड्स ने पूरी जगह छान मारी, लेकिन साँवी का कोई निशान नहीं मिला। सिक्योरिटी कैमरे में कैद तस्वीर देखकर अरीव के होश उड़ गए। रात के अँधेरे में, पीछे के दरवाज़े से एक लड़की, जो दिखने में साँवी जैसी थी, बाहर निकल रही थी।
अरीव की आँखें गुस्से से लाल हो गईं, जैसे खून उतर आया हो। उसने तुरंत अपने फ़ोन से पुलिस को कॉल किया। "पूरी मुंबई छान मारो! अगर उसे कुछ हुआ, तो मैं किसी को ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा।"
अरीव की यह बात रिया भी सुन रही थी, जो फार्महाउस में छिपी हुई थी। अरीव की आवाज़ में ज़हर और जुनून था। उसका चेहरा पीला पड़ चुका था। वह जानती थी कि अरीव का गुस्सा सिर्फ़ धमकी नहीं है। उसने तुरंत रोहन को कॉल किया, "मुझे यहाँ से निकलना होगा, वरना अरीव मुझे जला देगा।" उसकी आवाज़ में डर और हताशा साफ थी।
अरीव वहीं बैठा रहा, अपने हाथों में सिर थामे। एक क्षण में उसने अपनी दुनिया को बिखरते हुए देख लिया था। उसकी ज़िंदगी में पहली बार उसे इतना गहरा पश्चाताप और बेबसी महसूस हो रही थी। वह अपनी ताक़त और रुतबे के बावजूद आज इतना कमज़ोर महसूस कर रहा था। उसकी एक ग़लती ने साँवी का भविष्य, और शायद उसका अपना भी, अँधेरे में धकेल दिया था। वह जानता था कि अब उसकी ज़िंदगी का एकमात्र मकसद साँवी को ढूँढ़ना और अपने किए की सज़ा पाना है।
साँवी ने अपनी नई ज़िंदगी में पूरी तरह से खुद को ढाल लिया था। वह हर रोज़ सुबह उठती, हरमीत कौर के लिए चाय बनाती, और फिर स्कूल जाने की तैयारी करती। वह बच्चों के बीच ख़ुश रहने का दिखावा करती, लेकिन रात के अंधेरे में उसकी असलियत बाहर आ जाती। चाँदनी रात में वह अक्सर छत पर जाकर बैठती और मुंबई के उस फार्महाउस को याद करती, जहाँ उसके साथ इतना बड़ा धोखा हुआ था। उसकी आँखों से आँसू रुकते नहीं थे, और हर आँसू के साथ उसके दिल में अरीव और रिया के लिए नफ़रत और भी गहरी होती जाती।
हरमीत कौर, जो उसकी माँ की तरह उसका ख्याल रखती थीं, साँवी के दर्द को समझती थीं। उन्होंने एक रात साँवी को रोते हुए देखा और उसके सिर पर हाथ रखकर पूछा, "क्या हुआ, मेरी बच्ची? क्या कोई बात तुम्हें परेशान कर रही है?"
साँवी ने रोते हुए कहा, "बीबीजी, कुछ सपने थे जो टूट गए। कुछ रिश्ते थे जो बिखर गए।"
हरमीत कौर ने उसे गले लगाया और कहा, "टूटे हुए सपनों को फिर से जोड़ा जा सकता है, और बिखरे हुए रिश्तों को अगर आप चाहें तो फिर से संवारा जा सकता है।"
साँवी ने इस बात पर कोई जवाब नहीं दिया। उसके मन में एक ही बात थी— "अब मैं कभी किसी पर भरोसा नहीं करूँगी।" हरमीत कौर ने यह महसूस किया कि साँवी का दिल चोट खाया हुआ है, और उन्होंने उसे ज़्यादा कुरेदना ठीक नहीं समझा। उन्होंने बस इतना कहा, "कोई बात नहीं, जब तुम्हें लगे कि तुम तैयार हो, तो मुझसे बात करना।"
छह महीने बाद: एक भयानक अंजाम और बदलता अरीव
मुंबई में छह महीने बाद भी साँवी का कोई सुराग नहीं मिला था। शहर की हर दीवार, हर अख़बार, हर न्यूज़ चैनल पर उसकी तस्वीर छाई हुई थी। पुलिस और अरीव के लोग लगातार उसकी तलाश में थे, लेकिन वह कहीं नहीं मिली।
अरीव पहले जैसा नहीं रहा था। उसकी आँखें हमेशा लाल और गुस्से से भरी रहतीं। वह न तो ठीक से खाता था और न ही सोता था। उसका सारा ध्यान केवल साँवी को ढूँढने पर था। उसने अपने लोगों को धमकी दी थी कि अगर साँवी नहीं मिली तो वह उन्हें जिंदा नहीं छोड़ेगा। उसके अंदर का प्यार अब नफ़रत में बदल गया था। वह हर पल सोचता, "साँवी कहाँ है? और अगर मैं उसे ढूँढ लेता हूँ, तो मैं उससे क्या कहूँगा?"
रिया, जो छह महीने से फार्महाउस के बेसमेंट में कैद थी, उसे अब अरीव की नफ़रत का शिकार होना पड़ रहा था। रुद्राक्ष अरीव के कहने पर उसे रोज़ टॉर्चर करता। एक दिन जब अरीव उसके पास आया तो रिया ने हिम्मत कर के कहा, "अरीव, प्लीज मुझे जाने दो। मैंने जो किया, उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।"
अरीव ने उसे नफ़रत भरी आँखों से देखा और कहा, "तुम्हारी शर्मिंदगी से मेरा टूटा हुआ दिल वापस नहीं जुड़ सकता। तुमने मुझसे मेरा प्यार छीना है। मैं तुम्हें माफ़ नहीं करूँगा।"
अरीव ने रुद्राक्ष को आदेश दिया, "आज के बाद यह ज़िंदा नहीं होनी चाहिए।"
रिया डर से काँप उठी और चिल्लाने लगी, "अरीव, प्लीज, प्लीज!" लेकिन अरीव ने उसकी एक न सुनी और चला गया।
रुद्राक्ष ने अरीव के आदेश का पालन किया, और उसी रात बेसमेंट में रिया का अंत हो गया। उसके बाद से अरीव और भी ज़्यादा खतरनाक हो गया। उसकी आँखों में अब केवल बदला और साँवी को ढूँढने की बेचैनी थी। उसके लोग साँवी की तलाश में लगे हुए थे। रुद्राक्ष ने आकर अरीव को बताया कि वह पंजाब में कुछ लोगों के पास जाँच-पड़ताल कर रहा है। अरीव ने तुरंत पंजाब जाने का फ़ैसला किया।
एक अनजाना मिलन: प्यार या दर्द?
पंजाब पहुँचकर अरीव की बेचैनी और भी बढ़ गई थी। वह साँवी को ढूँढने के लिए हर गली, हर चौराहे पर भटक रहा था। एक शाम जब वह एक चाय की दुकान पर बैठा था, तो उसने देखा कि एक स्कूल से बच्चे बाहर आ रहे हैं। उसकी नज़र एक शिक्षिका पर पड़ी जो बच्चों को विदा कर रही थी। अरीव की नज़र उसी पर टिक गई। यह कोई और नहीं, बल्कि साँवी थी।
अरीव के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। छह महीने बाद साँवी को देखकर वह खुशी और सदमे से पागल हो गया। वह तुरंत दुकान से बाहर भागा और साँवी की तरफ़ बढ़ने लगा।
साँवी ने जब अचानक अरीव को अपनी तरफ़ आते देखा, तो उसका चेहरा पीला पड़ गया। उसकी आँखें नफ़रत और दर्द से भर गईं। उसने सोचा, "यह यहाँ क्या कर रहा है?"
अरीव उसके पास पहुँचकर रुक गया। उसकी आँखों में पश्चाताप और प्यार का मिलाजुला भाव था। उसने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा, "साँवी! तुम... तुम यहाँ हो?"
साँवी ने बिना कोई जवाब दिए उसे एक थप्पड़ मारा और कहा, "तुमसे मुझे कोई बात नहीं करनी।"
अरीव ने अपना गाल सहलाते हुए कहा, "साँवी, मेरी बात सुनो।"
साँवी ने गुस्से से कहा, "मैंने सब सुन लिया है। मेरा यकीन और मेरा भरोसा टूट गया है। तुम जाओ यहाँ से।"
अरीव ने उसका हाथ पकड़ लिया। "प्लीज़, साँवी। एक बार मेरी बात तो सुनो।"
साँवी ने रोते हुए अपना हाथ छुड़ाया और कहा, "मुझे कुछ नहीं सुनना। तुम मेरी ज़िंदगी से चले जाओ।"
तभी हरमीत कौर, जो साँवी के पास थीं, उन्होंने अरीव से पूछा, "कौन हो तुम और क्यों मेरी बच्ची को परेशान कर रहे हो?"
अरीव ने उनसे कुछ नहीं कहा और बस साँवी को देखा। साँवी ने हरमीत कौर का हाथ पकड़ा और कहा, "बीबीजी, चलिए यहाँ से।"
वे दोनों वहाँ से चली गईं और अरीव उन्हें जाते हुए देखता रहा। उसका दिल टूट गया था, लेकिन उसे उम्मीद थी कि साँवी उसे माफ़ कर देगी। वह उनका पीछा करते हुए उनके घर तक पहुँचा और छिपकर देखता रहा। उसने देखा कि साँवी और हरमीत कौर एक छोटे से घर में रहती हैं।
रात में जब साँवी सो रही थी, तो उसे पेट में दर्द हुआ। यह दर्द इतना तेज़ था कि वह चिल्ला उठी। हरमीत कौर घबरा गईं और उसे तुरंत अस्पताल ले गईं। अरीव जो बाहर था, उसने साँवी की आवाज़ सुनी और तुरंत अस्पताल पहुँचा।
डॉक्टर ने साँवी को जाँचने के बाद हरमीत कौर को बताया, "घबराने की कोई बात नहीं है। यह सब प्रेग्नेंसी के कारण हो रहा है।"
अरीव जब यह सुनता है, तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है। क्या यह सच है कि साँवी प्रेग्नेंट है? और अगर हाँ, तो क्या वह अपने बच्चे के साथ उसे माफ़ कर पाएगी?
इस कहानी में और क्या हो सकता है? क्या साँवी अरीव को माफ़ कर देगी? या फिर वह अपने बच्चे के साथ अपनी ज़िंदगी अकेले बिताएगी?
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अध्याय 14: एक बेबस सच और अनचाहा बंधन
🌅 सीन वन: अस्पताल में एक गहरा सदमा
अरीव के कानों में डॉक्टर के शब्द हथौड़े की तरह गूंज रहे थे। "प्रेग्नेंसी के कारण..." यह सुनते ही उसकी दुनिया थम-सी गई। वह अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पा रहा था। वह धीरे-धीरे गलियारे से उस कमरे की ओर बढ़ा जहाँ साँवी थी। उसके दिल में एक तूफान उमड़ रहा था—खुशी, पछतावा, गुस्सा, और एक अजीब सी बेचैनी।
साँवी बिस्तर पर लेटी थी, उसकी आँखें नम थीं और उसके चेहरे पर दर्द की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं। हरमीत कौर उसके पास बैठी थीं, उनका हाथ साँवी के माथे पर था, मानो वह उसके दर्द को कम करने की कोशिश कर रही हों। तभी दरवाज़े पर अरीव की परछाई पड़ी।
साँवी ने आँखें खोलीं और अरीव को सामने देखकर उसकी साँसें अटक गईं। उसने अपने चेहरे पर एक कठोरता लाने की कोशिश की, जैसे वह अपने अंदर के डर को छुपाना चाहती हो। अरीव ने कमरे में प्रवेश किया, उसकी आँखों में ढेर सारे सवाल थे। वह सीधे साँवी के पास गया और उसकी आँखों में देखते हुए, धीमी, काँपती हुई आवाज़ में बोला, "साँवी... क्या तुम... क्या तुम मेरे बच्चे की माँ बनने वाली हो?"
साँवी का दिल एक पल के लिए रुक गया। उसकी आँखों में एक पल के लिए दर्द और फिर नफरत भर आई। उसने अपनी आवाज़ में सारी ताकत बटोरते हुए कहा, "किसकी बात कर रहे हो? तुम्हारा बच्चा? इस बात की तुम उम्मीद भी कैसे कर सकते हो? मैंने अपना सब कुछ खो दिया है और उसकी वजह सिर्फ़ तुम हो!"
अरीव का चेहरा पीला पड़ गया। "साँवी... मुझे पता है कि तुम गुस्से में हो, लेकिन यह सच है। मैंने अभी डॉक्टर को सुना।"
"हाँ," साँवी ने अपनी आवाज़ तेज़ करते हुए कहा, "मैंने तुम्हें कहा था कि मैं तुमसे नफरत करती हूँ। मैंने उस रात जो भी हुआ, उसे एक बुरे सपने की तरह भुला दिया है, और यह बच्चा... यह बच्चा तुम्हारा नहीं है।"
हरमीत कौर ने उन दोनों के बीच की तनाव भरी खामोशी को महसूस किया। उन्होंने अरीव की तरफ़ देखा, "तुम कौन हो? और क्यों मेरी बच्ची को परेशान कर रहे हो?"
अरीव ने हरमीत कौर को देखा, फिर अपनी आँखों को साँवी पर टिका दिया। उसके दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी। वह जानता था कि साँवी झूठ बोल रही है। उसकी आँखों में झूठ नहीं था, बल्कि दर्द था। उस दर्द ने अरीव के दिल में भी एक गहरा घाव कर दिया।
अरीव ने धीरे से कहा, "साँवी, तुम झूठ बोल रही हो। मैं जानता हूँ। तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो।"
"मैं तुमसे कुछ भी क्यों छुपाऊँगी?" साँवी ने अपनी मुट्ठी भींचते हुए कहा, "मुझे कुछ नहीं सुनना। तुम जाओ यहाँ से।"
अरीव ने एक गहरी साँस ली, "साँवी, तुम इस बात को समझो। अगर यह सच है, तो हमें बात करनी होगी। हम इस बच्चे को एक नया जीवन देंगे।"
"नहीं!" साँवी चिल्लाई, "इस बच्चे को तुम्हारी ज़रूरत नहीं है! मुझे भी नहीं है! तुम चले जाओ!"
अरीव कुछ और नहीं बोला। वह बस अपनी मुट्ठी भींचकर वहाँ से चला गया। बाहर आते ही उसने असिस्टेंट को फ़ोन लगाया, "रौनक... तुम जानते हो कि क्या करना है।"
रौनक ने बिना कोई सवाल पूछे, "जी सर" कहा। अरीव जानता था कि साँवी उसे कभी सच नहीं बताएगी, लेकिन वह सच जानना चाहता था। वह अपने बच्चे को अकेला नहीं छोड़ सकता था।
🌅 सीन टू: एक सच जो बेबस कर गया
अगले दिन, अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद, साँवी और हरमीत कौर घर वापस आ गईं। साँवी शांत थी, लेकिन अंदर से टूट चुकी थी। वह जानती थी कि अरीव इतनी आसानी से हार नहीं मानेगा। कुछ ही घंटों बाद, अरीव के लोग अस्पताल पहुँचे और डॉक्टर से मिले। उन्होंने डॉक्टर से साँवी का ब्लड सैंपल और कुछ अन्य रिपोर्ट्स ले लीं।
रौनक ने अरीव को फ़ोन पर बताया, "सर, सब कुछ मिल गया है। मैं तुरंत इसे डीएनए टेस्ट के लिए भेज रहा हूँ।"
अरीव ने ठंडी आवाज़ में कहा, "जल्द से जल्द रिपोर्ट चाहिए, रौनक।"
अगले कुछ दिनों तक, अरीव बेचैनी में रहा। उसकी आँखें हर पल फ़ोन पर थीं। दो दिन बाद, रौनक ने उसे फ़ोन किया, "सर... रिपोर्ट आ गई है।"
अरीव का दिल धक से रह गया। "क्या... क्या रिपोर्ट है?"
"सर... डीएनए मैच हो गया है। वह आपका ही बच्चा है।"
अरीव की साँसें तेज़ हो गईं। उसके दिल में खुशी और पछतावे का एक अजीब सा मिश्रण था। वह जानता था कि उसने एक बहुत बड़ी गलती की थी, लेकिन अब उसके पास एक मौका था उस गलती को सुधारने का।
वह तुरंत साँवी के घर की ओर भागा। जब वह वहाँ पहुँचा, तो उसने देखा कि साँवी हरमीत कौर के साथ बैठी थी। उसके चेहरे पर उदासी थी। अरीव ने बिना सोचे समझे घर के अंदर प्रवेश किया। साँवी उसे देखकर चौंक गई।
"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" साँवी ने गुस्से से कहा।
अरीव ने उसके सामने हाथ जोड़े, "साँवी, प्लीज... मैंने डीएनए रिपोर्ट देखी है। मैं जानता हूँ कि यह सच है। यह मेरा बच्चा है।"
साँवी की आँखें भर आईं। उसने अरीव को देखा और कहा, "तुम्हें लगता है कि सिर्फ़ एक रिपोर्ट से सब कुछ ठीक हो जाएगा? तुम्हें लगता है कि मैं इतनी आसानी से तुम्हें माफ़ कर दूँगी?"
"मैं तुमसे माफ़ी नहीं माँग रहा हूँ," अरीव ने शांत आवाज़ में कहा, "मैं तुमसे बस इतना चाहता हूँ कि तुम मेरे साथ मुंबई चलो। हम इस बच्चे को एक परिवार देंगे।"
साँवी ने अपना सिर हिलाया, "नहीं! मैं तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाऊँगी। मैंने अपनी नई ज़िंदगी बना ली है। मैं यहाँ खुश हूँ।"
अरीव ने साँवी का हाथ पकड़ा और उसकी आँखों में देखा। "तुम खुश नहीं हो, साँवी। मैं जानता हूँ। तुम मुझसे नफ़रत करती हो, लेकिन क्या तुम इस बच्चे को मुझसे दूर रख सकती हो? क्या तुम उसे एक पिता का प्यार नहीं देना चाहती?"
"तुमने मेरा भरोसा तोड़ा है," साँवी ने रोते हुए कहा, "तुमने मेरा दिल तोड़ा है। मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती।"
अरीव ने उसका हाथ और कसकर पकड़ा, "साँवी... मेरी बात सुनो। मैं जानता हूँ कि मैंने बहुत बड़ी गलती की है। मैं इसके लिए हर पल पछता रहा हूँ, लेकिन मैं तुम्हें और इस बच्चे को नहीं छोड़ सकता। तुम मेरे साथ मुंबई चलो, प्लीज़।"
"मैं नहीं जाऊँगी!" साँवी ने ज़ोर से कहा।
"तुम्हें जाना पड़ेगा," अरीव ने अपनी आवाज़ में एक कठोरता लाते हुए कहा। उसकी आँखें लाल हो गई थीं। "यह मेरा बच्चा है, और मैं उसे यहाँ इस छोटे से शहर में नहीं रहने दूँगा। तुम मेरे साथ चलोगी।"
साँवी ने घबराकर हरमीत कौर की तरफ़ देखा। हरमीत कौर ने अरीव को देखा और कहा, "अगर साँवी नहीं जाना चाहती, तो तुम उसे ज़बरदस्ती नहीं कर सकते।"
अरीव ने हरमीत कौर को अनदेखा करते हुए साँवी को उठाया और उसे गाड़ी की तरफ़ ले जाने लगा। साँवी चिल्लाने लगी, "छोड़ो मुझे! मैं नहीं जाऊँगी! बीबीजी... बचाओ!"
हरमीत कौर ने अरीव को रोकने की कोशिश की, लेकिन अरीव ने उन्हें धक्का दे दिया। साँवी बेबस होकर रो रही थी। उसे लग रहा था कि वह एक बार फिर उसी अंधेरे में जा रही है, जहाँ से वह किसी तरह बाहर निकली थी।
अरीव ने साँवी को अपनी गाड़ी में बैठाया और मुंबई की ओर चल दिया। साँवी की आँखों में आँसू थे, और उसका दिल नफ़रत और डर से भरा हुआ था। उसे लग रहा था कि यह अरीव सिर्फ़ अपने बच्चे के लिए उसे वापस ले जा रहा है, और उसका दिल और भी ज़्यादा टूट गया।
🌅 सीन थ्री: मुंबई में एक नया इंतज़ार
मुंबई पहुँचकर अरीव ने साँवी को अपने आलीशान घर में लेकर आया। वही घर जहाँ रिया ने उसे धोखा दिया था। साँवी ने चारों तरफ़ देखा, उसकी आँखों में एक अजीब सी उदासी थी। वह घर की चकाचौंध को देखकर भी उदास थी। अरीव ने उसे एक कमरे में ले जाकर कहा, "यह तुम्हारा कमरा है। तुम यहाँ आराम कर सकती हो।"
साँवी ने बिना कोई जवाब दिए उसे देखा। "तुम्हें क्या लगता है? कि तुम मुझे यहाँ लाकर मेरी ज़िंदगी को फिर से ठीक कर दोगे? तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकते। तुमने जो किया है, उसकी सज़ा तुम्हें ज़रूर मिलेगी।"
अरीव ने साँवी को देखा। उसकी आँखों में एक अजीब सी मायूसी थी। "मैं जानता हूँ, साँवी। मैं अपनी सज़ा भुगत रहा हूँ, लेकिन इस बच्चे का क्या कसूर है? मैं उसे एक अच्छी ज़िंदगी देना चाहता हूँ।"
साँवी ने मुँह मोड़ लिया। "तुम्हें सिर्फ़ अपने बारे में सोचना आता है। तुम्हें कभी मेरे बारे में ख्याल नहीं आया कि मैं कहाँ हूँ, किस हालत में हूँ। तुमने मेरा यकीन तोड़ दिया है।"
अरीव ने कमरे से बाहर जाने से पहले कहा, "साँवी, मैं तुम्हें माफ़ करने के लिए समय दूँगा। लेकिन यह जान लो कि मैं अब तुम्हें कभी अकेले नहीं छोड़ूँगा।"
कमरे में अकेले रहकर साँवी ने अपने पेट पर हाथ रखा। वह अपने बच्चे के बारे में सोचने लगी। उसे पता था कि अरीव का बच्चा है, लेकिन वह उस सच को स्वीकार नहीं कर पा रही थी। उसका दिल अरीव के लिए नफ़रत से भरा था। वह अपने बच्चे के साथ क्या करेगी? क्या वह अरीव को माफ़ कर देगी?
अगले कुछ दिन, अरीव साँवी का ख्याल रखने की कोशिश करता रहा। वह हर रोज़ उसके लिए नया खाना बनवाता, उसे हर तरह की सहूलियत देता, लेकिन साँवी उससे बात नहीं करती थी। वह चुपचाप रहती, मानो वह उस घर में एक कैदी हो।
एक शाम, जब साँवी बालकनी में बैठी थी, तो अरीव उसके पास आया। "साँवी... क्या तुम मुझसे सच में इतनी नफरत करती हो?"
"हाँ," साँवी ने सीधे उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "मैं तुमसे नफ़रत करती हूँ। तुम्हें मेरे साथ यहाँ जबरदस्ती नहीं लाना चाहिए था।"
"मैंने तुम्हें ज़बरदस्ती नहीं लाया है," अरीव ने कहा, "यह हमारे बच्चे के लिए ज़रूरी था।"
"यह सिर्फ़ तुम्हारा बहाना है," साँवी ने अपनी आँखें फेर लीं।
अरीव ने एक गहरी साँस ली, "साँवी, मैं अपनी ज़िंदगी में पहली बार इतना बेबस महसूस कर रहा हूँ। मैं तुम्हें चाहता हूँ और इस बच्चे को भी।"
साँवी ने फिर से उसे देखा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। क्या अरीव सच कह रहा था? या यह भी एक झूठ था?
अरीव ने साँवी का हाथ पकड़ा, "प्लीज़, साँवी, मुझे एक मौका दो। मैं तुम्हें साबित कर दूँगा कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ।"
"प्यार?" साँवी ने हँसते हुए कहा, "तुम्हारा प्यार सिर्फ़ मुझे इस्तेमाल करने के लिए था। मुझे तुमसे कोई प्यार नहीं चाहिए।"
अरीव का दिल टूट गया। वह जानता था कि साँवी को माफ़ करना आसान नहीं होगा, लेकिन वह हार नहीं मानने वाला था। उसे पता था कि उसे साँवी का दिल फिर से जीतना होगा, और इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार था।
क्या अरीव साँवी का दिल जीत पाएगा? क्या साँवी उसे माफ़ कर देगी? या फिर यह नफ़रत और दूरी हमेशा उनके बीच रहेगी? क्या साँवी अपने बच्चे के लिए अरीव को एक मौका देगी?
अध्याय 15: एक बेबस सच और अनचाहा बंधन
🌅 सीन वन: एक बेबस रिश्ता
मुंबई के आलीशान घर में साँवी एक बंदी की तरह महसूस कर रही थी। हालाँकि उसके पास हर सुविधा थी, लेकिन उसका मन बेचैन था। वह अरीव से दूरी बनाए रखती थी, उसकी आँखें अरीव को देखते ही नफ़रत से भर जाती थीं। अरीव भी यह जानता था, इसलिए उसने उसे ज़्यादा परेशान नहीं किया, लेकिन उसके हर एक काम में साँवी का ख्याल दिखता था। उसके खाने-पीने से लेकर उसके आराम तक, हर चीज़ का ध्यान रखा जाता था।
एक दिन, जब साँवी अपने कमरे में बैठी थी, तो अरीव दरवाज़े पर आया। उसने धीरे से कहा, "साँवी, मुझे पता है कि तुम मुझसे बात नहीं करना चाहती, लेकिन आज एक ज़रूरी बात करनी है।"
साँवी ने बिना उसकी तरफ़ देखे कहा, "क्या बात है?"
"कल हमारी शादी है," अरीव ने कहा। साँवी ने सिर उठाया और उसकी तरफ़ देखा। उसकी आँखों में गुस्सा था।
"शादी? किसलिए?" साँवी ने चिल्लाते हुए कहा, "तुम्हें लगता है कि तुम मुझसे शादी करके सब कुछ ठीक कर दोगे? मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती!"
अरीव ने शांत आवाज़ में कहा, "यह सिर्फ़ तुम्हारे लिए नहीं है, साँवी। यह हमारे बच्चे के लिए है। मैं उसे दुनिया के सामने एक पहचान देना चाहता हूँ। मैं नहीं चाहता कि वह बिना पिता की पहचान के बड़ा हो। और तुम भी जानती हो कि यह शादी ज़रूरी है।"
साँवी की आँखों में आँसू आ गए। वह जानती थी कि अरीव सही कह रहा था, लेकिन उसका दिल इस सच को स्वीकार नहीं कर पा रहा था। उसने रोते हुए कहा, "तुमने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया है, अरीव। और अब तुम मुझसे यह सब करने के लिए कह रहे हो?"
"मैंने तुम्हें बर्बाद नहीं किया है, साँवी," अरीव ने उसके पास आकर कहा, "मैंने तुम्हें एक नया जीवन दिया है, हमारे बच्चे के साथ। मैं अपनी हर गलती का पश्चात्ताप कर रहा हूँ, लेकिन प्लीज़, इस बच्चे के लिए मान जाओ।"
साँवी ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बस अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे वह उस पल को महसूस नहीं करना चाहती थी। अरीव ने एक गहरी साँस ली और कमरे से बाहर चला गया।
अगले दिन, घर में सब लोग तैयार थे। हरलीन ने साँवी को समझाया, "साँवी, यह सब तुम्हारे बच्चे के लिए है। तुम्हें अरीव को माफ़ कर देना चाहिए।"
साँवी ने हरलीन को देखा और कहा, "बीबी जी, आप नहीं समझती हैं। उसने जो किया है, उसे माफ़ करना मेरे लिए बहुत मुश्किल है।"
"मैं जानती हूँ, लेकिन क्या तुम अपने बच्चे को एक परिवार नहीं दोगी?" हरलीन ने पूछा।
साँवी ने फिर से आँखें बंद कर लीं। उसने मन ही मन सोचा कि शायद हरलीन सही कह रही थी। उसे अपने बच्चे के लिए यह कदम उठाना पड़ेगा।
🌅 सीन टू: एक नए जीवन की शुरुआत
अरीव और साँवी ने एक सादे समारोह में शादी कर ली। न कोई दिखावा था, न कोई शोर-शराबा। बस कुछ गिने-चुने लोग वहाँ मौजूद थे। शादी के बाद, अरीव साँवी को अपने कमरे में लेकर गया। वह कमरा जो हमेशा से अरीव के लिए बहुत खास था।
साँवी ने चारों तरफ़ देखा। कमरा बहुत सुंदर था, लेकिन उसे वहाँ घुटन महसूस हो रही थी। अरीव ने उसे देखा और कहा, "साँवी, मुझे पता है कि तुम इस रिश्ते से खुश नहीं हो, लेकिन मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि मैं तुम्हें कभी निराश नहीं करूँगा।"
साँवी ने कोई जवाब नहीं दिया और वह चुपचाप बिस्तर पर बैठ गई। और उसे पार्टी वाली रात को याद करने लगी यह वही बिस्तर था जहां वह और अरीव एक साथ थे।अरीव ने एक गहरी साँस ली और बालकनी में चला गया।
अरीव के बड़े भाई, रुद्र, ने कमरे में आकर साँवी से बात की। "साँवी, मुझे पता है कि तुम अरीव से बहुत नाराज़ हो, लेकिन क्या तुम उसे माफ़ करने की कोशिश नहीं कर सकती?"
"भैया, आप नहीं समझ सकते," साँवी ने कहा।
"मैं समझ सकता हूँ, साँवी," रुद्र ने कहा, "मैंने अपनी आँखों से देखा है कि अरीव तुम्हारे बिना कितना परेशान था। वह हर दिन तुम्हारे बारे में सोचता था। वह अपनी हर गलती का पश्चात्ताप कर रहा है।"
साँवी ने कोई जवाब नहीं दिया। वह बस चुपचाप बैठी रही। रुद्र ने उसे समझाया और फिर कमरे से बाहर चला गया।
कुछ देर बाद, अरीव वापस आया। उसने देखा कि साँवी बिस्तर पर सो गई थी। वह उसके पास गया और उसके माथे को छुआ। साँवी ने आँखें खोलीं और अरीव को देखकर तुरंत उठ बैठी।
"सो जाओ, साँवी," अरीव ने कहा, "मैं तुम्हें परेशान नहीं करूँगा।"
साँवी ने फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं। अरीव ने बिस्तर पर बैठकर साँवी की तरफ़ देखा। उसे उस रात की याद आई, जब उसने साँवी के साथ जो कुछ भी किया था। उसकी आँखों में पश्चात्ताप था।
🌅 सीन थ्री: एक अजीब सा रिश्ता
अगले कुछ दिन, अरीव ने साँवी का ख़ास ख्याल रखा। वह हर रोज़ सुबह उठकर उसके लिए नाश्ता बनाता, उसे ऑफिस छोड़ने जाता और हर शाम जल्दी घर आता। साँवी भी यह सब देखती थी, लेकिन उसकी नफ़रत अभी भी कम नहीं हुई थी।
एक दिन, जब साँवी छत पर बैठी थी, तो अरीव उसके पास आया। "साँवी, एक बात पूछूँ?" अरीव ने कहा।
साँवी ने बिना उसकी तरफ़ देखे कहा, "हाँ।"
"तुम मुझसे इतनी नफ़रत क्यों करती हो?" अरीव ने पूछा।
"तुम जानते हो क्यों," साँवी ने कहा।
"मैं नहीं जानता," अरीव ने कहा, "मैं जानता हूँ कि मैंने एक बहुत बड़ी गलती की है, लेकिन क्या तुम मुझे माफ़ नहीं कर सकती?"
"माफ़?" साँवी ने एक तीखी आवाज़ में कहा, "तुमने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया, अरीव! तुम मेरी ज़िंदगी में क्यों आए?"
अरीव ने एक गहरी साँस ली और कहा, "साँवी, तुम जो कुछ भी कहोगी, मैं स्वीकार करूँगा, लेकिन यह जान लो कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। और मैं तुमसे हमारे बच्चे से भी ज़्यादा प्यार करता हूँ।"
साँवी ने उसकी तरफ़ देखा। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। "तुम झूठ बोल रहे हो," उसने कहा।
"मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ," अरीव ने कहा, "मैं तुम्हें साबित कर दूँगा।"
कुछ दिन बाद, घर में उदय और रोहित आए। दोनों ने साँवी को देखा और उदय ने कहा, "भाभी, आप बिलकुल भी मुस्कुरा नहीं रही हैं।"
"हाँ," रोहित ने कहा, "क्या हुआ? भैया ने परेशान किया?"
साँवी ने कोई जवाब नहीं दिया। उदय और रोहित ने अरीव की तरफ़ देखा और दोनों हँसने लगे। "भैया, लगता है भाभी आप से नाराज़ हैं," उदय ने कहा।
अरीव ने उन दोनों को देखा और कहा, "तुम दोनों चुप हो जाओ।"
रोहित ने कहा, "भैया, आपको भाभी को मनाना पड़ेगा।"
अरीव ने हँसते हुए कहा, "मैं मानता हूँ।"
अगले कुछ दिन, अरीव ने साँवी को मनाने के लिए तरह-तरह के तरीक़े अपनाए। वह रोज़ रात को उसके लिए शायरी लिखता और उसे पढ़कर सुनाता। एक रात, जब साँवी सोने जा रही थी, तो अरीव ने कहा:
आँखों में तुम्हारी नफ़रत है, पर दिल में प्यार की एक बूँद है।
यह प्यार कभी खत्म नहीं होगा, यह तो एक गहरा समंदर है।
तुमने मुझे दूर किया, पर मैं हमेशा तुम्हारे पास रहूँगा।
यह मेरा वादा है, कि मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा।
साँवी ने आँखें बंद कर लीं। उसे पता था कि अरीव सच कह रहा था, लेकिन वह उसे माफ़ नहीं कर पा रही थी।
🌅 सीन फोर: एक नया एहसास
साँवी के गर्भ में बच्चे के छह महीने पूरे हो चुके थे। उसका पेट बाहर आने लगा था। अरीव उसके बेबी बंप का बहुत ख्याल रखता था। वह रोज़ रात को उस पर तेल मालिश करता, उसे चूमता और उससे बातें करता।
एक रात, साँवी बिस्तर पर लेटी थी, और अरीव उसके पेट पर हाथ फेर रहा था। "साँवी, तुम ठीक तो हो ना?" अरीव ने पूछा।
"हाँ," साँवी ने कहा, "मैं ठीक हूँ।"
"तुम मुझसे बात नहीं करती हो," अरीव ने कहा, "क्या तुम अब भी मुझसे नाराज़ हो?"
साँवी ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बस अपनी आँखें बंद कर लीं।
अगले दिन, जब साँवी सो रही थी, तो अरीव ने देखा कि वह बेचैनी में थी। वह उसके पास गया और उसके माथे को छुआ। "साँवी, क्या हुआ?"
साँवी ने आँखें खोलीं और अरीव को देखा। "कुछ नहीं," उसने कहा।
"तुम मुझसे झूठ बोल रही हो," अरीव ने कहा, "तुम ठीक नहीं हो। मुझे पता है।"
साँवी ने अपनी मुट्ठी भींच ली। "मैं तुमसे नफ़रत करती हूँ," उसने कहा।
अरीव ने उसके हाथ को पकड़ा और कहा, "साँवी, मुझे पता है कि तुम मुझसे नफ़रत करती हो, लेकिन क्या तुम मुझे एक मौका नहीं दोगी? मैं अपनी गलतियों को सुधारना चाहता हूँ।"
साँवी ने अरीव को देखा और कहा, "तुमने मेरा भरोसा तोड़ दिया है।"
अरीव ने उसके हाथ को कसकर पकड़ा, "साँवी, मैं तुम्हें साबित कर दूँगा कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ। मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा।"
उस रात, साँवी ने अरीव के साथ सोने की अनुमति दे दी। अरीव ने उसे गले लगाया और धीरे से उसके बालों को सहलाया। साँवी भी अरीव के सीने से लगकर सो गई।
क्या साँवी अरीव को माफ़ कर पाएगी? क्या यह बेबस रिश्ता एक नए रिश्ते की शुरुआत बनेगा? क्या अरीव का प्यार साँवी के दिल में फिर से जगह बना पाएगा?
सुबह की ठंडी हवा कमरे में फैल रही थी। खिड़की से छनकर आती धूप ने दीवार पर सुनहरे धब्बे बना दिए थे। साँवी की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। उसका सिर अरीव की चौड़ी छाती पर टिका हुआ था, और उसकी साँसें अरीव की साँसों के साथ लय बना रही थीं। बाहरी सुकून उसके भीतर उठ रहे तूफ़ान को दबा नहीं पा रहा था।
रात की यादें बार-बार उसके सामने आ रही थीं। नफ़रत की परतें अब भी ज़िंदा थीं, लेकिन उन पर एक नया, अनजाना एहसास उग आया था – दर्द और सुरक्षा का मिश्रण।
वह धीरे से अरीव की बाँहों से खुद को अलग कर खड़ी हो गई। खिड़की तक जाकर बाहर झाँका। हर पेड़, हर हवा का झोंका उसे अपने अतीत की याद दिला रहा था। आँसू उसकी आँखों में भर आए।
उसने खुद को सँभालते हुए अरीव को जगाया।
साँवी (काँपती आवाज़ में): "अरीव… मुझे तुमसे एक बात कहनी है।"
अरीव नींद से उठते हुए बैठ गया। उसकी आँखों में गहराई और सतर्कता दोनों थीं।
अरीव: "हाँ, साँवी। कहो।"
साँवी ने एक लंबी साँस खींची।
साँवी: "मैं तुम्हें माफ़ कर दूँगी… लेकिन मेरी एक शर्त है।"
अरीव की आँखों में जिज्ञासा और तनाव की झलक आई।
अरीव: "क्या शर्त?"
साँवी की नज़रें काँपते हुए उससे मिलीं।
साँवी: "रिया का बेस्ट फ्रेंड राहुल… वही जिसने मेरे पूरे परिवार को ख़त्म कर दिया। उसने और उसके MLA बाप ने मेरे और मेरी बहन के साथ… इंसानियत को शर्मसार किया।"
उसकी आवाज़ टूट गई। आँसू बह निकले। उसके होंठ काँप रहे थे।
साँवी (सिसकते हुए): "उसने हमें नशा दिया… हमारी ज़िंदगी छीन ली… अरीव, तुम्हें राहुल को मारना होगा। और सिर्फ़ मारना नहीं… पूरे देश के सामने उसके और उसके बाप की सच्चाई उजागर करनी होगी।"
अरीव ने उसकी बाँहों को थामा, उसकी आँखों में गहराई से देखा।
अरीव (सख्त आवाज़ में): "मैं वादा करता हूँ, साँवी। तुम्हारी शर्त पूरी होगी। राहुल और उसके MLA बाप को उनके हर गुनाह की सज़ा मिलेगी। और पूरी दुनिया देखेगी।"
साँवी की आँखों में पहली बार उम्मीद की चमक थी।
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माफ़िया भाइयों की बैठक
रात को अरीव ने अपने भाइयों – रुद्र, उदय और रोहित – को बुलाया। कमरे में धुआँ, शराब और खामोशी का मिश्रण था। चारों भाइयों के बीच तनाव हवा की तरह तैर रहा था।
अरीव ने साँवी की पूरी दास्तान सुनाई। राहुल और MLA की हैवानियत सुनकर सबका खून खौल उठा।
रुद्र (मुट्ठी भींचते हुए): "उस कुत्ते राहुल को जिंदा नहीं छोड़ूँगा।"
उदय (गुस्से से): "हम उसे तड़पाकर मारेंगे।"
रोहित (आँखों में आग के साथ): "इस बार खून की होली खेलनी होगी।"
अरीव ने शांत लेकिन खौफ़नाक लहजे में कहा –
अरीव: "हाँ… मौत तो होगी। लेकिन पहले उन्हें वही दर्द चखाना है जो उन्होंने दिया। उनकी औलादों, उनके साम्राज्य, उनकी सत्ता… सबको हम राख कर देंगे।"
भाइयों ने सिर झुका कर हामी भरी। अब यह सिर्फ़ एक परिवार की लड़ाई नहीं थी। यह माफ़िया के खून का बदला था।
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अंधेरे की सवारी
अगली शाम, चारों भाई काले सूट में, ठंडी आँखों और खतरनाक चाल के साथ खड़े थे। 40 काली SUVs हवाओं को चीरती हुई MLA के आलीशान बंगले की ओर बढ़ रही थीं। हर गाड़ी से हथियारबंद बॉडीगार्ड उतर रहे थे।
बाहर पार्टी का शोर था, रोशनी, हँसी और शराब का नशा। अंदर ग़म का तूफ़ान आने वाला था।
अरीव ने हवाओं में गन चलाकर सबको सन्न कर दिया।
अरीव (गरजते हुए): "आज कोई नहीं बचेगा।"
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MLA और राहुल का अंत
MLA मंच पर खड़ा था, चेहरे पर घमंड और शराब की लालिमा।
MLA (हँसते हुए): "कौन हो तुम? जानते हो मैं कौन हूँ? MLA हूँ मैं। मुझे कोई छू नहीं सकता।"
अरीव ने उसकी ओर इशारा किया।
अरीव: "तेरी ताक़त आज तेरी मौत बनेगी।"
रुद्र ने गोली चलाई। MLA की छाती छिद गई। वह चीखते हुए ज़मीन पर गिर पड़ा।
राहुल भागने लगा, लेकिन रोहित और उदय ने उसे पकड़ लिया।
रोहित (हँसते हुए): "भाग कहाँ रहा है, नशेड़ी कुत्ते? मौत तेरे सामने खड़ी है।"
उदय: "तेरा हिसाब आज खत्म होगा।"
उसे अरीव के सामने घसीट कर लाया गया।
अरीव (ठंडी निगाहों से): "तुमने मेरी साँवी की ज़िंदगी बरबाद की। अब सज़ा मिलेगी।"
राहुल काँपते हुए गिड़गिड़ाने लगा।
राहुल: "प्लीज़, मुझे छोड़ दो… मैं MLA का बेटा हूँ। तुम मुझे नहीं मार सकते।"
अरीव (गरजते हुए): "तेरे MLA बाप की लाश तेरे सामने पड़ी है। अब तेरी बारी है।"
उसने राहुल की गर्दन दोनों हाथों से पकड़ी और धीरे-धीरे दबाने लगा। राहुल की चीखें पार्टी हॉल में गूँज उठीं। भीड़ सन्न खड़ी थी।
अरीव: "साँवी, तुम्हारी शर्त पूरी।"
और एक झटके में राहुल की गर्दन टूट गई। उसका शरीर निढाल होकर ज़मीन पर गिर पड़ा।
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सच का तूफ़ान – मीडिया का सामना
उस खून से सनी रात के बाद, अरीव ने एक और बड़ा कदम उठाया। उसने मीडिया को बुलाया।
लाखों दर्शकों के सामने, कैमरों के बीच, उसने सारी सच्चाई बयान की।
अरीव (टीवी चैनलों पर लाइव):
"यह MLA, जो जनता का नेता कहलाता था… दरअसल इंसानियत का कसाई था। उसका बेटा राहुल मासूम लड़कियों की ज़िंदगी बरबाद करता रहा। पुलिस, सिस्टम सब बिके हुए थे। आज मैंने उनके गुनाहों का हिसाब ले लिया। यह गोली और यह खून उनकी सज़ा है।"
पूरा देश देख रहा था। सोशल मीडिया, टीवी चैनल, हर जगह बस एक ही नाम गूँज रहा था – अरीव और उसका बदला।
भीड़ MLA और राहुल की लाशें देखकर हैरान थी, लेकिन जनता के दिलों में एक अजीब-सी राहत थी। उन्हें लगा जैसे किसी ने उनके गुस्से को आवाज़ दी हो।
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एक नई शुरुआत
साँवी ने दूर से यह सब देखा। उसके दिल का बोझ उतर चुका था। अरीव के लिए उसका दिल अब नफ़रत से नहीं, बल्कि भरोसे और मोहब्बत से भरा था।
उसने अरीव के पास जाकर धीमे स्वर में कहा –
साँवी: "अरीव, मैंने तुम्हें गलत समझा था। तुम मेरी ढाल हो… मेरी ताक़त।"
अरीव ने उसे गले से लगा लिया।
अरीव: "अब सब ठीक है, साँवी। अब कोई तुम्हें छू भी नहीं पाएगा।"
दोनों की आँखों में नया सवेरा था। खून और आँसुओं की रात के बाद उनके लिए एक नई ज़िंदगी इंतज़ार कर रही थी।
क्या साँवी और अरीव का यह नया रिश्ता सचमुच हमेशा के लिए रहेगा? क्या उनका प्यार सभी पुरानी नफरतों और दर्द को मिटा पाएगा?
अध्याय 16: एक नई सुबह और एक अनचाहा एहसास 💖
🌅 सीन वन: घर में खुशी का माहौल
खूनी रात के बाद, अरीव की हवेली में एक नई सुबह का सूरज उगा था। घर की हवा में अब नफ़रत नहीं, बल्कि सुकून और खुशहाली की महक थी। साँवी के चेहरे पर पहली बार एक सच्ची मुस्कान थी, जिसने पूरे घर को रोशन कर दिया था। अरीव, रुद्र, उदय और रोहित, सभी साँवी का बहुत ख़्याल रखते थे। उनके लिए साँवी सिर्फ़ अरीव की पत्नी नहीं, बल्कि उनके घर की रौनक थी।
हर सुबह, अरीव अपने हाथों से साँवी के लिए चाय बनाता और उसके साथ बालकनी में बैठ कर बातें करता। उदय और रोहित अपनी शरारतों से साँवी को हँसाते रहते थे, जबकि रुद्र दूर से ही उन सबको देखकर मुस्कुराता था। हवेली में अब सिर्फ़ मर्दों का राज नहीं था, बल्कि साँवी की मौजूदगी ने उसे एक सच्चे परिवार का एहसास दिया था।
एक दिन, जब साँवी अपने कमरे में बैठी थी, तो अरीव उसके लिए खाने की प्लेट लेकर आया। "साँवी, तुम ठीक से खा नहीं रही हो," उसने प्यार से कहा। साँवी ने अरीव की तरफ़ देखा और पहली बार उसकी आँखों में प्यार की झलक दिखी। "मैं ठीक हूँ, अरीव। बस कुछ ख़ास खाने का मन नहीं कर रहा।"
यह सुनकर अरीव, उदय और रोहित तुरंत एक-दूसरे को देखने लगे। "भाभी, आपकी फ़रमाइश बताइए," उदय ने शरारत से कहा। "हम आपको चाँद-तारे तोड़ कर ला देंगे!" रोहित ने भी साथ दिया। साँवी उनकी बातें सुनकर हँसने लगी। "मुझे कुछ नहीं चाहिए," उसने कहा। "बस आप सब लोग मेरे साथ रहें।"
🌅 सीन टू: भाइयों का प्यार और शॉपिंग का मज़ा
शाम को, सभी भाई साँवी के साथ शॉपिंग पर जाने की तैयारी कर रहे थे। अरीव ने साँवी से पूछा, "तुम्हें कुछ चाहिए, साँवी?" साँवी ने धीरे से कहा, "हाँ, कुछ मैटरनिटी कपड़े ख़रीदने हैं।" यह सुनकर सभी भाई उत्साहित हो गए।
शॉपिंग मॉल पहुँचकर, अरीव ने साँवी का हाथ पकड़ा और उसे कपड़ों की दुकान में ले गया। रुद्र, उदय और रोहित दूर से ही दोनों को देख रहे थे। "भैया, लगता है भाभी को मनाने में कामयाबी मिल गई," उदय ने कहा। "हाँ, यार," रोहित ने मुस्कुराते हुए कहा, "इनकी जोड़ी कितनी अच्छी लग रही है।" रुद्र ने उन्हें देखकर कहा, "तुम दोनों चुप रहो, उनकी प्राइवेसी का ख़्याल रखो।"
अरीव ने साँवी के लिए कई सुंदर और आरामदायक कपड़े चुने। साँवी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे कौन सा रंग लेना चाहिए। "अरीव, मुझे समझ नहीं आ रहा," उसने कहा। अरीव ने हँसते हुए कहा, "जो भी तुम्हें पसंद हो, वह ले लो। और जो तुम्हें पसंद न हो, वो भी ले लो।" उसकी इस बात पर साँवी मुस्कुरा दी।
कपड़ों की शॉपिंग के बाद, चारों भाई और साँवी ने एक शानदार रेस्टोरेंट में डिनर किया। उदय और रोहित ने खाने के दौरान भी मज़ाक करना नहीं छोड़ा। "भाभी, आप तो सिर्फ़ हमारे भाई की ही नहीं, बल्कि हम सबकी भी भाभी हैं," उदय ने कहा। "हाँ, सही कह रहा है," रोहित ने जोड़ा, "और भाभी, आप तो हमारी 'पसंदीदा' भाभी हैं।" साँवी ने हँसते हुए कहा, "पसंदीदा? क्या आप लोगों की और भी भाभियाँ हैं?" सभी भाई हँसने लगे, और अरीव ने प्यार से साँवी के गाल पर हाथ फेरा।
🌅 सीन थ्री: रुद्र और एक अजनबी लड़की
डिनर के बाद, सब लोग घर के लिए निकल गए, सिवाय रुद्र के। रुद्र को एक ज़रूरी बिज़नेस मीटिंग के लिए ऑफिस जाना था। रात के 9 बज रहे थे जब वह अपनी गाड़ी में बैठा और निकल पड़ा। अचानक, उसकी गाड़ी के सामने एक लड़की भागती हुई आई और उसकी गाड़ी से टकरा गई। रुद्र ने तुरंत ब्रेक लगाया और गाड़ी से बाहर निकला।
"क्या तुम ठीक हो?" रुद्र ने पूछा। लड़की डर से काँप रही थी और उसके पीछे कुछ गुंडे भाग रहे थे। "प्लीज़... मुझे बचा लो," उसने काँपती हुई आवाज़ में कहा। रुद्र ने लड़की के पीछे देखा और समझ गया कि मामला क्या है। उसने तुरंत लड़की को अपनी गाड़ी में बैठाया और गुंडों का सामना करने के लिए तैयार हो गया।
"कौन हो तुम?" एक गुंडे ने गुस्से से पूछा। "मुझे इस लड़की को चाहिए।" रुद्र ने शांत, लेकिन ख़तरनाक लहजे में कहा, "तुमने ग़लत जगह पंगा ले लिया है।" अगले ही पल, रुद्र ने उन गुंडों पर हमला कर दिया। उसकी एक-एक चाल इतनी सटीक और जानलेवा थी कि कुछ ही देर में सभी गुंडे ज़मीन पर पड़े थे।
गुंडों से निपटने के बाद, रुद्र अपनी गाड़ी में बैठा और लड़की को देखा। वह डर से अभी भी काँप रही थी। "तुम्हारा नाम क्या है?" रुद्र ने पूछा। "मीरा," लड़की ने धीरे से कहा। "मैं अपनी शादी से भाग रही थी... वह लोग मुझे ज़बरदस्ती शादी करवा रहे थे।"
रुद्र ने उसे शांत किया और अपने घर लेकर चला गया। उसे पता था कि मीरा को अब कोई ख़तरा नहीं होगा। हवेली पहुँचकर, उसने मीरा को एक कमरे में ले जाकर बैठाया और उसे पानी दिया। मीरा ने रुद्र को देखा, उसकी आँखों में डर की जगह अब आभार था। "आपने मेरी जान बचाई," उसने कहा। "अब तुम सुरक्षित हो, मीरा," रुद्र ने कहा। "चिंता मत करो।"
क्या मीरा का आना, रुद्र की ज़िंदगी में कोई नया बदलाव लाएगा? क्या यह सिर्फ़ एक इत्तेफ़ाक़ था, या एक नए रिश्ते की शुरुआत?