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! फिर भी तुमको चाहूंगा !

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जयपुर की गुलाबी शामों में, वेदांत ओबेरॉय, एक नामी बिजनेसमैन, सान्वी के पैरों में गिड़गिड़ाता है, अपने प्यार की भीख माँगता हुआ। लेकिन सान्वी, पत्थर-सी बेरुखी के साथ, उसके प्यार को ठुकरा देती है, कहती है कि वह सिर्फ उसकी प्रॉपर्टी के लिए थी। वेदांत का...

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Page 1 of 1

  • 1. ! फिर भी तुमको चाहूंगा ! - Chapter 1

    Words: 2853

    Estimated Reading Time: 18 min

    जयपुर, राजस्थान,, गुलाबी शहर की शामें हमेशा से ही रोमांटिक होती हैं, लेकिन आज की यह शाम वेदांत ओबेरॉय के लिए एक काला अध्याय बन चुकी थी। शहर की हलचल से दूर, उनके लग्जरी अपार्टमेंट की बालकनी में, जहां से जयपुर के पुराने किले की झलक दिखती थी, वेदांत और सान्वी के बीच का यह सीन खेल रहा था। हवा में हल्की ठंडक थी, सूरज डूब चुका था और आसमान में तारे चमकने लगे थे, लेकिन वेदांत के दिल में अंधेरा छा रहा था। अपार्टमेंट की बालकनी पर रखी लकड़ी की कुर्सियां और टेबल पर रखी वाइन की बोतल, जो कभी उनके प्यार की शामों का हिस्सा होती थी, आज गवाह बन रही थी एक दर्दनाक ब्रेकअप की। वेदांत, एक नामी बिजनेसमैन, जिसकी कंपनी जयपुर से लेकर दिल्ली तक फैली हुई थी, आज एक साधारण इंसान की तरह टूटा हुआ था। उसकी महंगी शर्ट गीली हो चुकी थी आंसुओं से, और उसके चेहरे पर वह कॉन्फिडेंस गायब था जो बोर्डरूम में दुश्मनों को घुटने टेकने पर मजबूर कर देता था। सान्वी, एक साधारण सी लड़की, जो तीन साल पहले वेदांत की जिंदगी में आई थी, आज पत्थर की मूर्ति की तरह खड़ी थी। उसकी आंखों में कोई भाव नहीं था, बस एक ठंडी उदासीनता।

    "क्यों सान्वी... क्यों कर रही हो यार ऐसा? हमारा प्यार इतना गहरा था, तो क्यों कह रही हो यह सब? आई लव यू बच्चे, आई लव यू सो मच, तो क्यों मेरे प्यार को ठुकरा रही हो...!!" वेदांत की आवाज कांप रही थी। वह सान्वी के पैरों के पास बैठा हुआ था, जैसे कोई बच्चा अपनी मां से माफी मांग रहा हो। उसके हाथ सान्वी की सैंडल्स को छू रहे थे, और वह रोते हुए गिड़गिड़ा रहा था। उसके आंसू फर्श पर गिरकर छोटे-छोटे धब्बे बना रहे थे। जयपुर की इस शाम में, जहां से दूर आमेर किले की लाइट्स चमक रही थीं, वेदांत का यह रूप देखकर लगता था कि दुनिया का सबसे मजबूत आदमी भी प्यार के आगे कमजोर पड़ जाता है। उसकी सांसें तेज चल रही थीं, छाती ऊपर-नीचे हो रही थी, और वह बार-बार सान्वी की ओर देखकर उम्मीद कर रहा था कि शायद वह पिघल जाए। लेकिन सान्वी खड़ी थी, हाथ बांधे हुए, दिल को पत्थर बनाए। उसकी आंखों में कोई तरलता नहीं थी, बस एक ठंडी चमक। वह जानती थी कि यह सीन कितना दर्दनाक है, लेकिन उसने खुद को तैयार कर लिया था।

    वेदांत ओबेरॉय, जयपुर का वह नाम जिसका जिक्र होते ही बिजनेस की दुनिया में सम्मान की लहर दौड़ जाती थी। उसकी कंपनी ओबेरॉय ग्रुप, रियल एस्टेट और होटल्स में लाखों का कारोबार करती थी। लेकिन आज वह एक मामूली सी लड़की के पैरों में बैठा गिड़गिड़ा रहा था। हां, यह बेहद अजीब था, लेकिन प्यार क्या-क्या नहीं करवा देता? वेदांत को याद आ रही थीं वे शामें जब वह और सान्वी इसी बालकनी पर बैठकर घंटों बातें करते थे। सान्वी की हंसी, उसके स्पर्श, सब कुछ आज एक सपना लग रहा था। उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, झर-झर बह रहे थे, जैसे कोई बांध टूट गया हो। वह बार-बार सान्वी के पैरों को छूकर कह रहा था, "बच्चे, प्लीज... मत करो ऐसा।"

    सान्वी ने ठंडी सांस ली। उसके मन में उथल-पुथल थी, लेकिन वह दिखाना नहीं चाहती थी। "हटो, वेदांत, छोड़ो मेरे पैर। नहीं करती हूं मैं तुमसे प्यार... छोड़ो मेरे पैरों को... आई जस्ट हेट यू...!" उसकी आवाज में बेरुखी थी, जैसे कोई अनजान से बात कर रही हो। वह पीछे हट गई, उसके पैरों से वेदांत के हाथ छूट गए। वेदांत एक बार फिर टूट गया। उसका दिल जैसे किसी ने चाकू से चीर दिया हो। वह जमीन पर ही बैठा रहा, सिर झुकाए, और रोने लगा। "बच्चे... ऐसा... ऐसा क्यों कह रही हो...!" उसकी आवाज में दर्द था, कांपती हुई, जैसे कोई मर रहा हो।

    वह धीरे से खड़ा हुआ। उसके पैर लड़खड़ा रहे थे। उसने सान्वी के चेहरे की ओर हाथ बढ़ाया, उसे छूने की कोशिश की, शायद उसकी आंखों में देखकर समझाना चाहता था। लेकिन सान्वी ने झट से उसका हाथ झटक दिया। उसकी आंखों में गुस्सा चमक रहा था। "डॉन्ट टच मी... स्टे अवे फ्रॉम मी...! यू डॉन्ट अंडरस्टैंड दैट आई डॉन्ट लव यू... आई जस्ट हेट यू वेदांत ओबेरॉय...!!!" उसकी आवाज तेज हो गई थी, जैसे कोई चीख रही हो। बालकनी की दीवारों से आवाज गूंज रही थी। वेदांत पीछे हट गया, उसके चेहरे पर सदमा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह वही सान्वी है जो कल तक उसके सीने से लगकर सोती थी।

    "सान्वी... क्यों... क्यों इतनी रूड बन रही हो... देखो आज के दिन ऐसा मजाक मत करो... मैं मर जाऊंगा यार तुम्हारे बिना...!" वेदांत फिर से बच्चे की तरह गिड़गिड़ाने लगा। उसने अपने हाथ जोड़ लिए, आंखों में आंसू भरे हुए। वह याद कर रहा था उनके पहले मिलने की शाम, जयपुर के किसी कैफे में, जहां सान्वी की मुस्कान ने उसे मोह लिया था। तीन साल का रिश्ता, कितने सपने, कितनी यादें, सब आज बिखर रहे थे। वह बार-बार सान्वी की ओर देख रहा था, उम्मीद में कि शायद वह हंस पड़े और कहे कि मजाक था। लेकिन सान्वी का चेहरा पत्थर की तरह था।

    सान्वी ने गहरी सांस ली। अब समय आ गया था सच्चाई बताने का। उसने अपनी आंखें बंद कीं, फिर खोलीं और बोली, "मुझे तुमसे मोहब्बत नहीं है। मैंने बस तुम्हारे पैसों के लिए पिछले तीन सालों से तुम्हारे साथ नाटक किया, झूठे प्यार का। यह सब बस दिखावा था। मुझे लगा बिना शादी के ही तुमसे सारी प्रॉपर्टी अपने नाम करवा लूंगी, पर तुमने तो मुझे मौका ही नहीं दिया। और शादी के लिए प्रपोज कर दिया। उस दौरान भी मैंने सोचा था कि तुमसे प्रॉपर्टी के पेपर्स साइन करवा लूंगी, पर तुम्हारे इतने समझदार सेक्रेटरी अभी कोई भी फाइल्स बिना रीड किए तुम तक पहुंचाते ही नहीं थे। मुझे अभी तक गिल्ट है कि मैं तुम्हारी प्रॉपर्टी अपने नाम नहीं करवा पाई..."

    वेदांत स्तब्ध रह गया। उसके कानों में घंटियां बज रही थीं। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या सुन रहा है। तीन साल का प्यार, सब झूठ? उसकी आंखें फैल गईं, मुंह खुला रह गया। "अच्छा तो प्रॉपर्टी चाहिए सान्वी... लो बताओ कहां साइन करने है मैं अभी कर देता हूं... पर तुम मुझसे ऐसे मत कहो कि तुम मुझसे प्यार नहीं करती। एक बार कह दो यू लव मी, फिर तुम जहां कहोगी मैं वहां साइन कर दूंगा। मेरा सब कुछ तुम्हारा ही तो है बच्चे... बस मुझे तो तुम चाहिए...!!!" उसकी आवाज में अब हताशा थी, वह तैयार था सब कुछ देने को, बस सान्वी को खोना नहीं चाहता था। वह अपनी जेब से पेन निकालने लगा, जैसे अभी पेपर्स लाकर साइन कर देगा। उसके मन में बस एक विचार था - सान्वी को वापस पाना।

    लेकिन सान्वी ने सिर हिलाया। "नहीं मुझे अब कुछ नहीं चाहिए... बस तुम मुझे अपने इस प्यार के जाल से मुक्ति दे दो। मैं तुमसे प्यार नहीं करती हूं तो भूल जाओ मुझे, बस मैं यही चाहती हूं...!!!" उसकी आवाज में अब थोड़ी थकान थी, लेकिन दृढ़ता वैसी ही। वह जानती थी कि वेदांत नहीं मानेगा, लेकिन उसे यह सब खत्म करना था। बालकनी पर हवा तेज हो गई थी, सान्वी के बाल उड़ रहे थे, लेकिन वह अडिग खड़ी थी।

    "सान्वी मोहब्बत हो तुम मेरी, मैं तुम्हें नहीं भुला सकता... मुझे बस तुम चाहिए... तुम सिर्फ मेरी बनकर रहो...!!!!" वेदांत अब गुस्से में आ गया। उसने सान्वी की बाहों को पकड़ लिया, उसकी पकड़ मजबूत थी, जैसे कभी छोड़ना नहीं चाहता। उसके चेहरे पर गुस्सा चढ़ रहा था, आंखें लाल हो गईं। वह याद कर रहा था उन पलों को जब सान्वी उसके साथ होती थी, लेकिन अब सब बदल चुका था।

    "क्यों...? क्यों रहूं मैं तुम्हारी बनकर? क्या मैं तुम्हारी रखैल हूं... जो तुम्हारी...!!!" सान्वी इससे आगे कुछ कहती, तभी वेदांत के हाथों का एक जोरदार थप्पड़ सान्वी के गालों पर पड़ गया। आवाज इतनी तेज थी कि बालकनी पर गूंज गई। सान्वी ने अपने गाल पर हाथ रखा, दर्द से आंखें बंद हो गईं। वह वेदांत की तरफ नजरें उठाकर देखने लगी। वेदांत गुस्से से तमतमा रहा था, उसकी सांसें तेज चल रही थीं, मुट्ठियां भिंची हुईं। "चुप करो... बिल्कुल चुप... तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई मेरी मोहब्बत के बारे में कुछ भी बकवास कहने की? मोहब्बत करता हूं तुमसे बस इसलिए तुम्हारे सामने गिड़गिड़ा रहा हूं... वरना वेदांत ओबेरॉय के सामने खड़ा रहने की किसी की औकात नहीं है...!!!"

    वेदांत गुस्से से सान्वी के चेहरे को घूरने लगा। उसके मन में अब दर्द और गुस्से का मिश्रण था। वह सोच रहा था कि कैसे सब कुछ बदल गया। सान्वी ने कुछ पल यू ही उसे देखा, उसके गाल पर लाल निशान पड़ गया था, लेकिन वह डरी नहीं। फिर अचानक वह मुस्कुरा उठी। मुस्कान में व्यंग्य था, जैसे कह रही हो कि यही तो तुम हो। "वेदांत ओबेरॉय... एक यह कारण भी है कि मैं तुमसे नफरत करने लगी हूं। तुम जिस चीज को चाहते हो उसे बस अपना बनाना यह तुम्हारा जुनून बन जाता है। और तुम मुझे बस अपना बनाना चाहते हो इसलिए तुमने मुझे भी बाजार में बिकने वाली चीज ही समझ लिया है। और क्या ही गलत बोला मैंने? तुम चाहते हो मैं सिर्फ तुम्हारी बन जाऊं, तुम मुझे नहीं देख रहे हो मैं क्या चाहती हूं? तुम मुझ पर जबरदस्ती अपनी मोहब्बत थोप रहे हो। तुम्हारी यह जो मोहब्बत है वह तुम्हारे बिस्तर पर आकर खत्म हो जाएगी इसलिए मुझे तुम्हारी सो कॉल्ड मोहब्बत में कोई इंटरेस्ट नहीं है, अंडरस्टैंड...!!!"

    सान्वी ने वेदांत की आंखों में आंखें डालकर बेहद गुस्से से कहा। उसकी आवाज में अब तीखापन था, जैसे हर शब्द चुभ रहा हो। वह याद कर रही थी उन दिनों को जब वेदांत की जुनूनी नजरें उसे असहज कर देती थीं। वेदांत की पकड़ ढीली पड़ गई। वह पीछे हट गया, उसके चेहरे पर अब शर्मिंदगी थी। "ऐसा कुछ नहीं है... मेरी मोहब्बत तुमसे शुरू और तुम पर खत्म है। मेरा दिल कोई कैलेंडर नहीं है जो हर महीने के साथ हर लड़की चेंज करता रहूंगा...!!!" उसके चेहरे पर गंभीर भाव थे, आंखों में जुनून और पागलपन। वह सच बोल रहा था, कम से कम खुद को तो यही लगता था। लेकिन सान्वी को विश्वास नहीं था।

    "अच्छा? मुझसे पहले कितनी लड़कियों के साथ थे तुम... बताओ जरा कितनी लड़कियों के साथ रातें बिता चुके हो...!!!" सान्वी ने वेदांत के चेहरे को एकटक देखते हुए कहा। वेदांत चुप हो गया। उसने कुछ नहीं कहा। उसका सारा गुस्सा एकदम ठंडा पड़ गया। वह अतीत में खो गया, जहां कई चेहरे थे, कई रातें, लेकिन अब सब धुंधला लग रहा था। उसकी आंखें नीची हो गईं, हाथ कांपने लगे।

    "नहीं है कोई जवाब? ओह सॉरी मैं तो भूल गई थी, इतनी लड़कियों के साथ रातें बिताई हैं कि संख्या कैसे याद रहेगी। कपड़ों से ज्यादा तो तुम लड़कियां बदल चुके हो...!!!" सान्वी ने एक व्यंग्य से भरी मुस्कान के साथ कहा। उसकी मुस्कान में दर्द था, लेकिन वह छिपा रही थी। वह जानती थी वेदांत का पास्ट, जयपुर की पार्टियों में उसकी कहानियां मशहूर थीं। वेदांत ने सिर झुकाया, लेकिन फिर उठाया। "सान्वी बच्चे... वो पिछली बातें थीं। तुम्हारे आने के बाद मैंने किसी लड़की की तरफ देखना तक छोड़ दिया है...!!!" वह सान्वी के करीब जाने लगा, उसके कदम धीरे-धीरे थे, जैसे डर रहा हो।

    सान्वी ने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया। "करीब मत आओ मेरे... तुम्हारे छूने से भी नफरत उठती है मुझे... और क्या कहा, मेरे आने के बाद किसी लड़की को देखा तक नहीं है? देखोगे भी कैसे क्योंकि मैंने तुम्हें खुद को छूने ही नहीं दिया था। अगर तुम्हारी मुझे लेकर हसरत पूरी हो जाती तो तुम मुझे भी छोड़ देते, पर मैंने तुम्हें तुम्हारे मनसूबों में कामयाब ही नहीं होने दिया...!!!" सान्वी ने एक तिरछी मुस्कान के साथ कहा। उसकी आंखों में अब आंसू चमक रहे थे, लेकिन वह रो नहीं रही थी। वह मजबूत बनी हुई थी। वेदांत रुक गया, उसके मन में अब सिर्फ पछतावा था। वह सोच रहा था कि काश वह अपना पास्ट बदल पाता।

    "बच्चे ऐसा कुछ नहीं है... तुम मुझे इतना गलत क्यों समझ रही हो... मेरी बात सुनो, हम बैठकर बात करते हैं। मैं तुम्हें समझाता हूं सबकुछ, जैसे हम हमेशा एक-दूसरे को समझाते हैं, एक-दूसरे की सुनते हैं...!!!" वेदांत ने आंखों में नमी लिए कहा। वह बालकनी की कुर्सी की ओर इशारा कर रहा था, जहां वे घंटों बैठकर बातें करते थे। लेकिन सान्वी ने सिर हिलाया। "नहीं मुझे अब कुछ नहीं सुनना... सब कुछ खत्म हो गया है... आई हेट यू... यह लो तुम्हारी अंगूठी...!!!" सान्वी ने हाथ की उंगली से अंगूठी निकाली और वेदांत के चेहरे पर दे मारी। अंगूठी उसके गाल से टकराकर फर्श पर गिर गई, चमकती हुई। वह उसे घूरते हुए देखती रही, फिर वहां से निकल गई। वेदांत पत्थर की मूर्ति सा उसे देखता रह गया। उसकी आंखों से आंसुओं की बूंदें लगातार गिर रही थीं। वह सान्वी को तब तक देखता रहा जब तक वो उसकी नजरों से ओझल नहीं हो गई। फिर वह अचानक ही चिल्ला पड़ा - "सान्वी...!!!"

    लेकिन यह चीख सिर्फ शुरुआत थी। वेदांत बालकनी पर ही गिर पड़ा, घुटनों के बल। उसके हाथ फर्श पर थे, और वह रो रहा था, जोर-जोर से। जयपुर की रात अब गहरा रही थी, लेकिन उसके दिल में अंधेरा पहले से ज्यादा था। वह याद कर रहा था सान्वी से पहली मुलाकात। वह जयपुर के एक फैशन इवेंट में थी, जहां वेदांत गेस्ट था। सान्वी की सादगी ने उसे आकर्षित किया था। तीन साल, कितनी डेट्स, कितने ट्रिप्स - माउंट आबू से लेकर गोवा तक। हर जगह सान्वी उसके साथ थी। लेकिन अब सब झूठ लग रहा था। वह सोच रहा था कि क्या सच में सान्वी ने सिर्फ पैसों के लिए सब किया? उसके मन में सवाल घूम रहे थे - क्यों नहीं पहचाना मैं? क्यों अंधा था प्यार में?

    वह उठा, अंगूठी को उठाया और उसे देखने लगा। यह वह अंगूठी थी जो उसने सान्वी को प्रपोज करते समय दी थी, जयपुर के रामबाग पैलेस में। कितना रोमांटिक था वह पल, लेकिन अब दर्द दे रहा था। वह बालकनी की रेलिंग पर टेक लगा, बाहर देखने लगा। शहर की लाइट्स चमक रही थीं, लेकिन उसकी दुनिया अंधेरी थी। "सान्वी... क्यों किया तुमने ऐसा?" वह बुदबुदा रहा था। उसके मन में अब गुस्सा आ रहा था खुद पर। वह एक बिजनेसमैन था, जो डील्स में कभी धोखा नहीं खाता, लेकिन प्यार में धोखा खा गया।

    सान्वी बाहर निकली, अपार्टमेंट से। उसकी कार पार्किंग में खड़ी थी। वह अंदर बैठी, स्टेयरिंग पकड़ा और रोने लगी। अब तक जो मजबूत बनी थी, वह टूट गई। लेकिन क्यों? वह सोच रही थी कि क्या सच में पैसों के लिए सब किया? नहीं, शुरुआत में शायद हां, लेकिन बाद में प्यार हो गया था। लेकिन वेदांत का जुनून, उसका पास्ट, सब ने उसे डरा दिया था। वह नहीं चाहती थी रखैल बनना। "सॉरी वेदांत... लेकिन यह जरूरी था," वह बुदबुदाई। कार स्टार्ट की और निकल गई जयपुर की सड़कों पर।

    वेदांत अंदर आया, अपार्टमेंट में। कमरा खाली लग रहा था। सान्वी की चीजें अभी भी थीं - उसकी ड्रेस अलमारी में, उसका परफ्यूम टेबल पर। वह परफ्यूम को सूंघा, और फिर रोने लगा। वह सोफे पर बैठ गया, सिर हाथों में थामे। "मैं क्या करूं अब?" वह सोच रहा था। उसका फोन बजा, सेक्रेटरी का था, लेकिन वह नहीं उठाया। दुनिया से कट गया था वह। रात भर वह यू ही बैठा रहा, यादों में खोया। सुबह हुई, जयपुर की धूप बालकनी पर पड़ी, लेकिन वेदांत का दिल अभी भी अंधेरे में था। वह उठा, आईने में खुद को देखा - आंखें सूजी हुईं, चेहरा थका हुआ। "मैं नहीं हारूंगा," वह बोला। लेकिन दिल जानता था कि हार चुका है।

    सान्वी घर पहुंची, अपना छोटा सा फ्लैट। वह बिस्तर पर गिर पड़ी, रोने लगी। उसके मन में वेदांत का चेहरा घूम रहा था - गिड़गिड़ाता हुआ, रोता हुआ। "क्यों किया मैंने ऐसा?" लेकिन वह जानती थी जवाब। वेदांत का प्यार जुनून था, जो उसे कैद कर देता। वह आजाद रहना चाहती थी। फोन पर मैसेज आया वेदांत का - "प्लीज वापस आ जाओ।" लेकिन उसने डिलीट कर दिया।

    दिन बीतते गए, लेकिन वह सीन वेदांत के दिमाग में बार-बार आता। वह काम पर जाता, लेकिन मन नहीं लगता। मीटिंग्स में खोया रहता। सेक्रेटरी पूछता, लेकिन वह चुप। सान्वी भी काम पर जाती, लेकिन रातें अकेली काटती। दोनों के दिल टूटे थे, लेकिन कोई वापस नहीं लौटा। जयपुर की शामें अब उदास लगतीं। वेदांत बालकनी पर अकेला बैठता, सान्वी को याद करता। "आई लव यू बच्चे," वह बुदबुदाता। लेकिन सान्वी दूर थी, अपनी जिंदगी में।

    एक दिन वेदांत ने फैसला किया। वह सान्वी के घर गया। दरवाजा खटखटाया। सान्वी ने खोला, चौंक गई। "तुम?" वेदांत ने कहा, "बात करनी है।" सान्वी ने अंदर आने दिया। वे बैठे, चुप। फिर वेदांत बोला, "मैं समझ गया हूं। तुम्हारी खुशी में मेरी खुशी है। माफ कर दो मुझे।" सान्वी की आंखें भर आईं। "मैंने झूठ बोला था। पैसों के लिए नहीं, लेकिन तुम्हारा जुनून डराता था।" वे बातें कीं, घंटों। पुरानी यादें, दर्द, सब। आखिर में वेदांत बोला, "अगर तुम चाहो तो मैं दूर रहूंगा।" सान्वी ने सिर हिलाया, "नहीं, शायद हम दोस्त बन सकते हैं।" लेकिन दोनों जानते थे कि प्यार वापस नहीं आएगा।

    जयपुर की रात फिर गहराई, लेकिन अब थोड़ी उम्मीद थी। वेदांत लौटा, दिल हल्का। सान्वी सोई, शांत। सीन खत्म हुआ, लेकिन जिंदगी जारी थी।