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“राजमहल की मोहब्बत

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Divya Sharma CHIKKU

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"एक राजकुमारी… चार राजकुमार… और एक ऐसा राजमहल जहाँ प्यार भी इम्तिहान है और चाहत भी खतरा। सनाया, जो चारों भाइयों की रानी बन चुकी है, क्या सबको बराबर प्यार कर पाएगी? या नियति की भविष्यवाणी उनका प्यार तोड़ देगी?" राजमहल की ऊँची दीवारों के पीछे छुप...

Total Chapters (17)

Page 1 of 1

  • 1. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 1

    Words: 1046

    Estimated Reading Time: 7 min

    एक लडकी जिसने इस वक्त शादी का जोडा पहन रखा था जल्दी जल्दी वो अपने बैंग मे डाल रही थी तभी उसने देखा बेंड पर एक किताब रखी है वो भी उसने बैंग मे उठा कर रख ली सब हो जाने के बाद उसने देखा उसका फोन बज रहा है उसने फोन स्वीच ऑफ कर के बेंग में डाल दिया
    उसने कमरे से बाहर निकल कर इधर उधर देखा कोई देख तो नही रहा उसने देखा बाहर कोई नही है तो उसने चैन की सांस ली फिर वो छुपते छुपाते घर के बेक Door तक पहुंच गई जब उसनेबैक Door पर सिक्योटी गाड देखा उसने जल्दी से एक पत्थर उठाया और झाडीयो की तरफ फेंक दिया सिक्योटी गार्ड ने झाडियो में हलचल महसूस हुई तो वो देखने चला गया इसी बात का फायदा उठा कर वो लडकी पीछे वाले दरवाजे से बाहर निकल आई बाहर निकलने के बाद उस लडकी ने ध्यान से आसपास देखा कोई देख तो नहीं रहा ओर पास मे खडी बाइक स्टाट कि और बैठ के निक्ल गई बाइक सीधा एयरपोट पर रोकी इयरपोट पर सब उसे अजीब नजरो से देख रहे थे[ अरे भाई देखे गे क्यू नही जब कोई लडकी एयरपोर्ट पट शादी का लहगा पहन कर जाएगी तो वो भी अकेले कामन सी बात है मन मे सवाल तो आएंगे ही] एयरपोट पर इस समय एक लडकी अपना लगेज और स्पोट्स बैग लेकर खडी थी वह लडकी ने उस लडकी से दोनो बेंग लिये और उसे जल्दी से थैंक्यू बोला फिर बिना कुछ कहे एयरपोट के अंदर च चली गई जबकी दूसरी लडकी अब भी समझ ने कि कोशीश कर रही थी कि आखीर उसके साथ अभी हुआ तो क्या हुआ लेकिन जैसे ही उस लडकी को समझ आया कि उसके साथ क्या हुआ है उसने अपना sir हिला दिया और फिर वो एयरपोट से बाहर चली गई जबकि एयरपोर्ट के अंदर जाने वाली लडकी ने इ स पर कोई ध्यान नहीं दिया वो सीधा वाशरूम में चली गई उसने देखा कोई वाशरूम में उसे देख तो नहीं रहा है फिर वो जल्दी से एक वाशरूम में चली गई अपना बैंग लेकर जब वह लडकी बाहरआइ तो बिल्कुल अलग लग रही थीं क्योंकि उसने अब शादी का जोडा उतारकर नारमल कपडे पहन लिये थे उस समय उस लडकी ने क्राप टाप के साथ ShORTS पहने थे जिसे उसकी गौरी कमर साफ दिख र रही थी उस ड्रेस में लडकी का फिगर खुल के दिख रहा था लडकी बहुत ही सुंदर लग रही थी और पेरो मे वाइट शुज लडकी किसी माडल की तरह दिख रही थी इस समय उसके एक हाथ मे उसका लगेज बैग दूसरे मे स्पोट्स बैग था फिर वो लडकी जल्दी से चैकइन करके एरोप्लेन मे बैठ गई
    ऐरोप्लेनमे बैठने के बाद ही उसे चैन की सांस आई क्योंकि ऐरोप्लेन उडान भर चुका था फिर भी उसे बहुत डर लग रहा था कही वो पकडी ना जाए
    अब वह क्योंकि सैफ थी उसने सोचा स्ट्रेस भगाने के लिए अपना ध्यान भटकाए जाए इसलिए उस ने अपने र्पस से एक बुक निकाली और एयरहोस्टेस से एक कप काफी मांगी जब एयरहोसटेस काफी लेकर आई तो लडकी ने अपनी प्यारी से आवाज मे थेंक्यू बोला
    जिस पर इयरहोस्टेस ने भी मुसकारते हुए
    welcome कहा
    फिर वह एयर होस्टेस वहा से चली गई
    जबकि वह लडकी बुक पढते हुए काफि पीने लगी
    लेकिन पच्चीस मिन्ट बाद ही प्लेन हिलने लगा तभी लडकी के कानो में आवाज सुनाई दी जो प्लेन के स्पीकर से आ रही थी
    अटेंशन एवरीवन मे इस प्लेन का केपटन बोल रहा हू मै आप सब से विनती करता हू कि आप सभी अपना अपना पैराशूट पहन लिजिए कयोंकि प्लेन मे तकनिकि खराबी होने के कारण प्लेन कभी भी क्रेश हो सकता है
    इतना सुनते ही वह लडकी और प्लेन मे जो लोग थे सभी घबराने लगे तो अपनी जान बचाने के लिए ही घर से भाग कर अपनी शादी छोड कर आई थी और यहां मेरी जान पहले ही जा रही है भगवान मुझे बचा लो लडकी ने कहा साथ ही साथ दूसरे यात्रियों ने भी यही कहा
    लडकी ने कहा सनाया तुझे क्या जरूरत थी घर छोडकर आने की चल छोड कर आई
    जी हां बिल्कुल सही समझे आप लोग ये है हमारी कहानी की मेंन फिमेल लीड, इनका नाम है सनाया मल्होत्रा, और हां इनकी आज शादी थी.

    लेकिन यह अपनी शादी से भाग आई क्योंकि इन्हें इनके परिवार में कोई प्यार नहीं करता. इनके परिवार में इनके पापा ने इनकी शादी अपने बिजनेस के फायदे के लिए एक उम्र में इनसे बडे
    आदमी से तय कर दी लेकिन इन्हें यह शादी नहीं करनी थी क्योंकि इससे इनके पापा को फायदा होता और यह अपने पापा से प्यार नहीं करती अगर वह उन्हें प्यार करती तो शायद हो सकता है कि उनकी बात मान कर शादी कर लेती लेकिन इनकी इनके घर में नहीं चलती, इनके पापा एक लालची इंसान हैं, इसलिए इन्हें भागकर आना
    पडा क्योंकि इनकी फैमिली में इनके पापा की ही चलती है.

    आई तो आई कम से कम भाग कर एरोप्लेन में जरूरी बैठना था ट्रेन में चली जाती, बस में चल जाती, कार में चल जाती इंडिया में ही कहीं चल जाती
    जब मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि.

    मैंने एक ब्राइडल गाउन पहना हुआ था.

    मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि मैं यहां कैसे आई! मेरे कपडे कैसे चेंज हुए! मैं बेड से खडी हुई और आसपास देखा यह कमरा बहुत ही आलीशान था!

    मैं एक किंग साइज बेड पर लेटी हुई थी फिर मैंने देखा कि सामने मिरर लगा हुआ है, मैं मिरर के पास गई जब मैंने मिरर में अपना चेहरा देखा तो मैं हैरान हो गई मैं.

    इतनी सुंदर कैसे हो गई मैंने खुद से सवाल किया मैं कभी
    , कभी माथा, कभी चीन तो कभी गला मैं अपने चेहरे को हर जगह से छू रही थी.

    मैंने अपने हाथ देखे, मेरे हाथ और पैर भी सुंदर थे मेरा फिगर भी बहुत ही अच्छा है.

    लेकिन यह कैसे हो सकता है! मैं तो प्लेन से जंप करने के लिए एक पैराशूट ले रही थी! फिर मैं यहां कैसे आ गई! क्या हमें बचा लिया गया है? मैंने खुद से ही सवाल किया लेकिन मेरी ऐसी हालत क्यों हो रखी है! यह मैं तो नहीं हूं!
    मेरा चेहरा कहां गया! मेरे चेहरे को क्या हुआ. मैंने खुद से ही सवाल किया.

  • 2. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 2

    Words: 1641

    Estimated Reading Time: 10 min

    जब मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि.

    मैंने एक ब्राइडल गाउन पहना हुआ था.

    मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि मैं यहां कैसे आई! मेरे कपडे कैसे चेंज हुए! मैं बेड से खडी हुई और आसपास देखा यह कमरा बहुत ही आलीशान था!

    मैं एक किंग साइज बेड पर लेटी हुई थी फिर मैंने देखा कि सामने मिरर लगा हुआ है, मैं मिरर के पास गई जब मैंने मिरर में अपना चेहरा देखा तो मैं हैरान हो गई मैं.

    इतनी सुंदर कैसे हो गई मैंने खुद से सवाल किया मैं कभी गाल, कभी माथा, कभी चीन तो कभी गला मैं अपने चेहरे को हर जगह से छू रही थी.

    मैंने अपने हाथ देखे, मेरे हाथ और पैर भी सुंदर थे मेरा फिगर भी बहुत ही अच्छा है.

    लेकिन यह कैसे हो सकता है! मैं तो प्लेन से जंप करने के लिए एक पैराशूट ले रही थी! फिर मैं यहां कैसे आ गई! क्या हमें बचा लिया गया है? मैंने खुद से ही सवाल किया लेकिन मेरी ऐसी हालत क्यों हो रखी है! यह मैं तो नहीं हूं!

    मेरा चेहरा कहां गया! मेरे चेहरे को क्या हुआ. मैंने खुद से ही सवाल किया.

    फिर मैंने अपने दिमाग पर जोर डाला तब मुझे याद आया कि उस समय जब मैंने पैराशूट लिया तो वह एक आखिरी पैराशूट था! बगल में ही मैंने देखा कि एक औरत अपने बच्चे को लेकर गोद में खडी हुई है उसके पास एक ही पैराशूट है बच्चा तकरीबन दस- 12 साल का होगा!

    उसकी मां वह पैराशूट बच्चे को देते हुए बोल रही थी कि जाओ! जल्दी जाओ! लेकिन बच्चा नहीं जा रहा था वह अपनी मां से चिपका हुआ था. और उसकी आंखों में आंसू थे जब मैंने यह देखा तो पूछा कि आप दोनों क्यों नहीं जा रहे तो उन्होंने हमें बताया कि पैराशूट सिर्फ हमारे पास एक ही है.

    और हम दो लोग हैं हम एक पैराशूट में दो लोग नहीं जा सकते. मुझे उनकी प्रॉब्लम समझ में आ गई. फिर मैं सोचने लगी कि यह दोनों मां बेटे एक दूसरे से कितना प्यार करते हैं.

    और एक मेरा परिवार है जो अपने फायदे के लिए मेरी शादी मेरी उम्र से बडे आदमी से कराने जा रहे थे.

    मुझे तो कोई प्यार नहीं करता मेरे ना रहने पर कोई रोने वाला भी नहीं होगा इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं यह पैराशूट उन्हें दे दूंगी.

    प्लेन में बस कुछ log बचे थे वह भी जा रहे थे फिर मैंने लास्ट में जब सिर्फ हम तीन लोग ही बजे तो मैंने उनसे कहा कि यह पैराशूट आप ले लीजिए.

    लेकिन वह नहीं मानी और कहा कि तुम्हारे घर में भी तुम्हारा ध्यान रखने वाले लोग होंगे उन्हें क्या जवाब देंगे हम.

    फिर मैंने उनसे कहा था कि जब तक भगवान की मर्जी नहीं होती तब तक कोई भी ऊपर नहीं जाता शायद मेरा समय आ गया है वैसे भी मेरे लिए रोने वाला कोई नहीं है.

    मेरे बहुत मनाने के बाद ही उन्होंने वह पैराशूट लिया फिर मैंने देखा कि उसकी

    Maa ने अपने बेटे को नीचे धक्का दिया और बोला चलो जल्दी से कुद जाओ.

    उसका बेटा कूद गया फिर उसकी मां वापस मेरे पास आई और कहा यह लो तुम भी कुछ जाओ.

    मैंने कहा नहीं में ऐसा नहीं कर सकती और जबरदस्ती मैंने उन्हें भी टे पैरासूट पहना कर कुदवा दिया.

    अब एरोप्लेन में सिर्फ मैं ही बची थी एरोप्लेन किसी भी समय क्रैश हो सकता था.

    मैं बस अपनी आंखें बंद कर कर अपनी सीट पर बैठ गई और सभी यादें याद करने लगी जो मेरी जिंदगी में अच्छी होंगी.

    लेकिन मेरे पास कोई भी अच्छी याद नहीं थी इसलिए मैंने भगवान से कहा भगवान अगर आप मुझे दोबारा जन्म देना चाहते हैं तो मुझे इस बार ऐसी जगह या फिर ऐसे परिवार में जन्म देना जो मुझे बहुत प्यार करते हो.

    क्योंकि मैं अपने हिसाब का दुख पहले ही झेल चुकी हूं और मैंने आंखें बंद कर ली.

    उसके बाद पता नहीं क्या हुआ और एक ब्लास्ट की आवाज मेरे कानों में गूंजी लेकिन मैंने आंखें नहीं खोली मुझे बहुत ही दर्द हो रहा था और मैं अंधेरे में चली गई.

    इसका मतलब मैं मर गई.

    लेकिन अगर मैं मर गई तो मैं यहां कैसे हूं? मैंने खुद से सवाल किया!

    शायद भगवान ने मुझे यह दूसरा जन्म दिया हो.

    मैंने खुद से ही सवाल जवाब किए. फिर मैंने खुद को देखा मैं दिखने में बहुत ही सुंदर थी. लेकिन मेरी शादी किससे हुई?

    मुझे याद नहीं आ रहा फिर मैंने दिमाग पर जोर डालने की कोशिश की तो मुझे पता चला कि मैं इस राज्य की राजकुमारी हूं यहां पर रानियों का शासन होता है.

    यहां पर रानिया ही सब कुछ होती है. वही परिवार की मुखिया होती है. मतलब यहा पर औरतें ही शासन करती है.

    वाह!

    मतलब यह बहुत ही अच्छी जगह है. मैंने खुद से कहा.

    फिर मैं इस शरीर से जूडी यादे याद करने की कोशिश करने लगी. तो मुझे याद आया कि यह. थोडा थोडा करके मेरे पास सब यादें आ गई.

    तब मुझे याद आया कि यहां पर एक औरत एक से ज्यादा आदमियों से शादी करती है यही इनका नियम है.

    क्या?

    लेकिन फिर मेरी शादी मैंने खुद से सवाल किया और दिमाग पर जोर डालने की कोशिश की तभी मुझे याद आया कि आज मेरी शादी है या फिर हो गई मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.

    फिर धीरे धीरे कर कर मैंने आंखें बंद कर ली और थोडा आराम करने की कोशिश की.

    थोडी देर बाद मैंने फिर से याद करने की कोशिश की तो मुझे याद आया कि थोडा करके मेरे पास सब यादें आ गई.

    तब मुझे याद आया कि यहां पर एक औरत एक से ज्यादा आदमियों से शादी करती है यही इनका नियम है.

    क्या?

    लेकिन फिर मेरी शादी मैंने खुद से सवाल किया और दिमाग पर जोर डालने की कोशिश की तभी मुझे याद आया कि आज मेरी शादी है या फिर हो गई मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.

    फिर धीरे धीरे कर कर मैंने आंखें बंद कर ली और थोडा आराम करने की कोशिश की.

    थोडी देर बाद मैंने फिर से याद करने की कोशिश की तो मुझे याद आया कि मेरी भी शादी आज ही हो चुकी है और मेरे चार पति हैं.

    क्या? चार पति मैं तो मुश्किल से शादी से बचकर ही भागी थी अब यहां चार पति अब मैं क्या करूं! भगवान आपने मुझे चार पति दे दिए मेझे तो एक भी नहीं चाहिए था.

    मुझे तो बस हमेशा जिंदगी भर अकेले ही रहना था मैंने खुद से ही कहा मुझे अपनी किस्मत पर अब रोना आ रहा था.

    थोडी देर बाद मैंने देखा की दरवाजा खुला और चार हैंडसम आदमी अंदर आए. मैं उन्हें देखकर घबरा गई और पीछे जाने लगी लेकिन इससे उन चारों लोगों को कोई फर्क नहीं पडा.

    वो मेरे पास आए और मुझे बेड पर धक्का Diya और खुद मेरे चारों तरफ बैठ गए.

    उनमें से एक ने कहा शनाया मुझे पता है कि तुम्हें यह शादी नहीं करनी थी लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते क्योंकि हम तुम्हें पसंद करते हैं और तुम्हें अब हमारे साथ ही अपनी पूरी जिंदगी काटनी होगी.

    चाहे तुम कैसे भी काटो तुम्हें पहली बार देखकर ही हम तुम्हें पसंद करने लग गए थे हम तुम्हारे बारे में ज्यादा तो नहीं जानते लेकिन धीरे- धीरे कर कर हम एक दूसरे को जान लेंगे.

    उन्होंने कहा मैं बेड से उठने की कोशिश करने लगी तो उन्होंने कहा ऐसे नहीं आज हमारी सुहागरात है तुम भूल गई हो मुझे बहुत ही घबराहट हो रही थी मुझे तो इनके नाम भी नहीं पता सुहागरात क्या खाक मनाएंगे मैंने अपने मन में कहा. मैं उन से अपने आप को छुडाने की कोशिश कर रही थी लेकिन जब उन्होंने यह

    देखा तो कहा कोई बात नहीं सनाया.

    हमे भी पता है कि तुम हम सब को एक साथ नहीं संभाल पाओगी.

    लेकिन कोई बात नहीं उनमें से एक ने कहा और फिर दूसरे और तीसरे को इशारा किया चलने के लिए. और कहां क्योंकि हमारे चारों की शादी ही तुमसे हुई है.

    और हमें पता है कि तुम हम सब को अभी एक साथ नहीं संभाल सकती क्योंकि फिल्हाल तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है.

    इसलिए आज तुम हमारे सबसे बडे भाई को संभालो उनमें से एक ने कहा और बाकी तीनों

    एक साथ बाहर चले गए और दरवाजा बंद कर दिया.

    वह लडका जो सबसे आखरी में बचा था शायद वह उनका बडा भाई है मैंने अपने मन में सोचा.

    सबसे बडे भाई ने देखा कि मैं अभी भी पीछे हट रही हूं तो उसने मुझे जबरदस्ती अपनी गोद में उठा लिया.

    हे भगवान!

    इतना खतरनाक आदमी और उसकी शादी मुझसे! मुझे तो यह सोचकर ही डर लग रहा है.

    भगवान मैंने तो आपको एक अच्छी सी जिंदगी देने के लिए कहा आपने मुझे कहां चार लोगों की पत्नी बनाकर नर्क में भेज दिया है.

    मैंने खुद से ही कहा उसके बाद उस लडके ने मुझे गोद में उठाया और मुझे लेकर कमरे से बाहर निकल गया थोडी देर बाद वह रुका और दरवाजा खोला.

    मैंने देखा कि यह कमरा बहुत ही बडा है और इसकी सजावट भी बहुत अच्छी है बहुत ही आलीशान कमरा है और तो और इसे बिल्कुल सुहागरात की सेज की तरह सजाया गया है.

    मुझे घबराहट होने लगे मैं उसकी गोदी से उतरने के लिए झटपटा रही थी लेकिन उस आदमी को कोई फर्क नहीं पडा.

    वह बिस्तर की तरफ चल दिया मैं बार बार खुदको उससे छुडाने की कोशिश कर रही थी.

    उस आदमी ने मेरी एक न मानी और मुझे बिस्तर पर लेटा दिया. में मन ही मन भगवान से प्रेयर कर रही थी कि एक सपना और कुछ ना हो. मैंने देखा वह आदमी मेरे ऊपर आ रहा है. जबकि मैं उसे रोकने की पुरी कोशिश कर रही.

    जब उसने देखा मैं उसे रोक रही हूं तो उसने मेरे हाथ बांध दिए.

    यह तुम क्या कर रहे हो मैं चिल्लाई

  • 3. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 3

    Words: 1051

    Estimated Reading Time: 7 min

    देखो मुझसे दूर रहो!

    लेकिन उसने फिर भी मुझे कोई जवाब नहीं दिया और मेरे पास आने लगा.

    देखो मैं कह रही हूं मुझे छोड दो मेरी तुमसे शादी हुई इसका मतलब यह नहीं है कि तुम जो चाहे वह मेरे साथ कर सकते हो. दूर रहो मुझसे. पागल इंसान.

    मैं फिर से चिल्लाई लेकिन उस इंसान पर मेरे चिल्लाने का कोई फर्क नहीं पडा मैं एक भावहीन चहरे के साथ मुझे देख रहा था. जब मैंने उसे इस तरह से अपने आप को देखते हुए देखा तो पता नहीं क्यों लेकिन मेरे अंदर घबराहट होने लगे.
    छोडो मुझे देखो मैं आखरी बार बोल रही हूं. तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा इसलिए जितना जल्दी हो सके मुझे छोड दो!
    तुम मुझे जानते नहीं हो मैंने कहा!

    देखो अगर मैंने तुम्हें कुछ कर दिया तो फिर बाद में मुझे कुछ मत कहना! लेकिन उस आदमी पर मेरी किसी भी बात का कोई असर नहीं पडा.

    मैं अपने हाथ पैर चला नहीं पा रही थी क्योंकि उसने मेरे हाथ इन जंजीरों से बांध दिए थे.
    जबकि इस समय उसने मेरे पैर अपने हाथों से पकड रखे थे.

    और अपने पुरे शरीर का भार मेरे ऊपर डालते हुए मुझ से चिपकते हुए मेरे ऊपर लेट गया.
    तभी मैंने देखा कि वह अपना चेहरा मेरे चेहरे के पास ला रहा है.

    मैं समझ गई कि इस इंसान का इरादा क्या है, जो कि बिल्कुल ही सच निकला क्योंकि इस समय उस इंसान के होंठ मेरे होंठों के ऊपर है.

    मुझे सांस लेने में बहुत समस्या हो रही है ऐसा लग रहा है कि यह इंसान मेरी पुरी सांसों को मुझसे छीनकर अपने अंदर ले रहा हो.
    जब उस इंसान ने देखा कि मुझे सांस लेने में दिक्कत हो रही है तो उसने मुझे छोड दिया.
    कुछ देर बाद मैंने अपनी सांसें संभाली.

    तब मैंने उस इंसान से चिल्लाते हुए कहा.

    छोडो मुझे!

    पागल इंसान!

    देखो मैं कह रही हूं! छोड दो मुझे नहीं तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा में चिल्लाई. लेकिन उस पर मेरे कुछ भी कहने का असर नहीं पड रहा था.

    क्योंकि मैं अभी भी उस इंसान के कब्जे

    मैं किसी भी पल रो सकती थी. लेकिन में अपने आप को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी उसके सामने रो कर.

    लेकिन जैसे की वह आदमी अपने होश में ही नहीं था. मुझे घूर कर देख रहा था मुझे बहुत शर्म आ रही थी.

    तभी मैने देखा कि उसने जो इतनी देर से मेरे पैर पकड रखे थे उन्हें छोड दिया फिर वह जाकर मुझसे कुछ दूर खडा हो गया.
    मैं उठना चाहती थी और यहां से भाग जाना चाहती थी लेकिन भले ही मेरे पैर इस समय आजाद हो लेकिन मेरे हाथ तो अभी भी बंधे हुए थे.

    तभी मैंने देखा कि वह मुझ से थोडा दूर जा रहा है.

    मैंने सोचा चलो शुक्र है मैं बच गई मैंने अपने मन में भगवान का लाख लाख शुक्र किया कि मैं बच गई. लेकिन मेरी यह खुशी ज्यादा देर तक नहीं चली क्योंकि वह मेरे ऊपर से उठ कर अपनी बेल्ट खोलने लगा.

    क्य
    मैं अपने मन में चिल्लाई यह पागल आदमी अब क्या कर रहा है यह अपनी बेल्ट क्यों खोल रहा है कहीं यह मुझे मारने तो नहीं वाला मैं चिल्लाई लेकिन अपने मन में.

    फिर मैंने कहा!

    तत तु तुम तो तुम क्या कर रहे हो मेरे मुंह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे इसीलिए मैं तुतला कर बोल रही थी.

    मैं आदमी मुझे देख कर मुस्कुराया.

    यह ऐसे मुस्कुरा क्यों रहा है कहीं यह सच में मुझे मारने तो नहीं वाला.
    मैंने अपने मन में कहा. लेकिन फिर मैंने देखा कि उसने अपनी बेल्ट निकाल कर एक तरफ रख दि.

    बैंक गॉड( मैंने अपने मन में कहा)

    नहीं! नहीं!

    नहीं!

    प्लीज ये मत करो.

    मैं उस पर चिल्लाई.


    ये!

    त.

    त!

    तुम क्या कर रहे हो?

    मैंने घबराहट में तुतला कर बोला.

    क्योंकि वो आदमी फिर से मेरे पास आ रहा था.

    तभी मुझे एहसास हुआ कि वह बिल्कुल मेरे पास खडा है और उसने मेरे कान में कहा बेबी डर क्यों रही हो आज नहीं तो कल हमारे बीच यह सब होना हि है तो फिर आज क्यों नहीं.
    जितनी जल्दी हमारे बीच यह सब होना उतना ही अच्छा है.

    नहीं नहीं प्लीज मत करो आप जो कुछ भी कहेंगे मैं वो सब करूंगी लेकिन प्लीज ये सब मत कीजिए. प्लीज! मैंने रोते हुए कहा.

    बार फिर मेरे ऊपर आ लेकिन इस समय वह इंसान एक बार गया था और साथ ही साथ अब उस इंसान के होंठ मेरी गर्दन पर भी चलने लगे थे.

    लेकिन फिर भी वह आदमी अपना काम करता रहा
    प्लीज!

    मैं गिडगिडाई!

    जब मैंने देखा कि अभी भी इस आदमी पर मेरी बातों का कोई असर नहीं पड रहा है तो फिर मैंने कहा ठीक है.

    लेकिन अगर इस सब के बाद भी मैं भाग गयी तब तुम क्या करोगे.

    हां ये बिल्कुल सही है वैसे भी इस शरीर की मूल मालकीन की मृत्यु इसीलिए ही तो हुई थी क्योंकि उसे लगा था कि यह एक राजनीतिक विवाह है क्योंकि वह कभी भी इन भाइयों से नहीं मिली थी
    इसलिए उसे नहीं पता था कि यह चारों आदमी इससे प्यार करते हैं. क्योंकि इस शरीर के मूल मालिक की यादो और अभी कुछ देर पहले जो इन चारों भाइयों ने जो मुझे कहा उस के अनुसार इस शरीर के मूल मालिक को इनके बारे में कुछ भी नहीं पता था.

    इतना सोचने के बाद जब मैंने उस आदमी को देखा तो ऐसा लगा कि वह किसी भी पल मेरी जान ले लेगा.

    लेकिन यह आदमी अभी भी मुझे गुस्से से घुर ही रहा है.

    थोडी देर बाद उसने मुंह खोला और
    कहा तब मैं तुम्हें हमेशा के लिए इन जंजीरों में बांध दूंगा.

    क्या?

    नहीं, नहीं, नहीं प्लीज मेरे पास एक अच्छा विचार है.

    और वह क्या है? उसने व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा! मैंने उसके व्यंग्यात्मक लहजे को नजरअंदाज किया.

    और कहा अगर तुम अभी मुझे छोड दो.

    तो मैं तुम्हें वचन देने के लिए तैयार हूं
    कि मैं हमेशा तुम्हारी पत्नी रहूंगी तुम्हारे सिवा और तुम्हारे तीनों भाइयों के सिवा मैं किसी दूसरे आदमी से शादी नहीं करूंगी और कभी भी भागने की कोशिश नहीं करूंगी.

    लेकिन उसके लिए पहले तुम्हें मुझे छोडना होगा मैंने कहा और उसकी तरफ देखने लगी.

    ऐसा लग रहा है जैसे वह सोच रहा हो. कि क्या जवाब दिया जाए?

    थोडी देर बाद उसने जवाब दिया

  • 4. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 4

    Words: 1219

    Estimated Reading Time: 8 min

    थोडी देर बाद उस आदमी ने जवाब दिया.

    और कहा ठीक है!

    मैं यह सुनकर खुश हो गई कि चलो कम से कम अभी के लिए तो मेरी जान बची लेकिन मेरी यह गलतफैहमी जल्द ही दूर हो गई.

    क्योंकि वह फिर से अपना काम करने
    लगा मतलब मेर पास आने लगा मैंने उसे दूर धकेला और कहा अब तुम क्या कर रहे हो.

    उस आदमी ने कहा!

    मैंने कहा कि मैं तुम्हें आज छोड दूंगा इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारे साथ कुछ नहीं कर सकता.

    उसने कहा और मेरे बगल में आ कर लेट गया.

    और कहा मैंने तुम्हारी बात सुन ली है अब तुम्हें भी मेरी बात सुननी होगी वरना यहीं पर हमेशा के लिए जंजीरों में बंधी रहना.
    उसने कहा में उसके इस तरह कहने से डर गई मुझे अब डर लग रहा था कि कहाँ पह सच में मुडझे पूरी जिंदगी इन जंजीरों में बांध कर ही ना रखें.

    फिर उसने कहा में सिर्फ तुम्हें जंजीरों से ही बांधकर नहीं रखूंगा बल्कि हमेशा के लिए इस बैड पर जी जंजीरों दिख रही है ना तुम्हें इन्हीं से बांधकर रहूंगा.

    जब तक मेरा दिल नहीं मानता उसने कहा मैं डर गई.

    लेकिन फिर उसने कहा क्योंकि तुमने मुझे बचन दिया है इसलिए मैं तुम्हें छोड लेकिन सिर्फ आज के लिए इसका मतलब यह नहीं मैं तुम्हें कभी भी नहीं पाऊंगा उस आदमी ने कहा और मुझे गले लगा कर सो गया.

    पता नहीं कब मुझे नींद आ गई और मैं सो गई.

    सुबह जब मैं उठी तो देखा! बेड पर सारे जगह फूल बिखरे पडे हैं जो हमारी पहली रात की निशानियां है मुझे उस आदमी पर बहुत गुस्सा आ रहा था.
    मैंने देखा मेरे हाथों की जंजीर भी खुली हुई है और कमरे में रोशनी आ रही है

    एक

    कितना घिनौना आदमी है वह. मैंने अपने आप से कहा.

    मेरे शरीर बहुत दुख रहा है मैंने कहा मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे शरीर पर एक बुलडोजर चला दिया गया हो.

    क्योंकि वह आदमी रात भर मुझे पकड कर लेटा रहा और अब मुझ में उठने की बिलकुल भी हिम्मत नहीं है
    मैं ऐसे ज्यादा देर तक नहीं लेटी रह सकती क्योंकि कभी भी किसी भी पल उन चारों भाइयों में से कोई भी आ सकता है और मैं तब नहीं बचुगी.

    इसीलिए में जैसे तैसे कर कर खडी हुई मैंने पूरा कमरा देखा और बाथरूम ढूंढने लगी मुझे जल्दी ही बाथरूम भी मिल गया.

    मैं अपने आपको जैसे तैसे संभालते हुए बाथरूम तक पहुंची मैंने देखा बाथरूम में अपने आप ही गर्म पानी तैयार हो गया है और इसमें सुगंधित तेल और इत्र भी मिला हुआ है मैं उसमें जाकर लेट गई.
    फिर मैंने देखा कि पास ही में एक लेप का कटोरा भी रखा हुआ है शायद उन्हें पता था कि हमारी फर्स्ट Night के बाद मुझे इसकी जरूरत पडेगी मैंने वह कटोरा देखा यह एक दर्द निवारक था.

    इससे मेरे शरीर को दर्द से छुटकारा मिलेगा इसलिए मैंने वह लेप लगा लिया और बाथटब में ही लेटी रही बाथटब में लेटे- लेटे मुझे कब नींद आ गई मुझे पता ही नहीं चला.

    जब मैंने दोबारा आंखें खोली तो देखा कि मैं बिस्तर पर थी लेकिन इस बार ही यह कमरा पहले वाला जैसा नहीं लग

    रहा था.
    पजाब मैंने इधर उधर नजर घुमाई तो देखा यह कमरा भी बाकी कमरों की तरह ही आलीशान था.

    फिर मैंने महसूस किया कि मेरे शरीर में अब बिल्कुल भी दर्द नहीं है शायद यह उस लेप का ही कमाल था मुझे नहीं पता ऐसा लेप कहां से मिला होगा उन्हें.

    फिर मैंने देखा की मुझे कपडे भी पहना दिए गए थे. छोडो भी मेरे पांचों पतियों में से ही किसी का काम होगा! मैंने
    अपने आप से कहा.

    थोडी देर बाद में खुद से ही तैयार हो गई और मैंने देखा कि कमरे का दरवाजा खुल रहा है और उसमें से एक पैर अंदर आया.

    फिर मैंने देखा कि एक हाथ ने दरवाजे का हैंडल पकड रखा है और वह धीरे धीरे चलते हुए अंदर आया यह आदमी दिखने में बहुत ही हैंडसम. एक मिनट मैंने अपने आप से कहा!

    तभी मुझे याद आया कि यह भी मेरे पतियों में से ही एक है जब उसने मुझे खुद को देखते हुए देखा तो वह
    मुस्कुराया और चलते हुए दरवाजा बंद करने के बाद मेरे पास आया अब यह क्यों दरवाजा बंद कर रहा है मैंने अपने आप से कहा.

    कहीं यह सिर्फ यह भी तो मुझे बिस्तर पर नहीं ले जाना चाहता मैंने अपने मन में कहा.

    वह आदमी मेरे पास आया और कहा! क्या अब तुम सही महसूस कर रही हो.

    मुझे पता है कि उस दवाई की वजह तुम्हें दर्द में सहायता मिलेगी उसने कहा मैंने उसे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा ऐसा लगा जैसे उसने मेरा प्रश्न समझ लिया
    हो और फिर उसने कहा.

    मैं एक डॉक्टर हूं क्या? मैंने उससे कहा वह बोला हां. मेरा नाम! चलो छोडो! तुम्हें तो पता ही होगा! उसने कहा मैंने कहा नहीं मुझे नहीं पता फिर वह मुझे देखने लगा मैंने कहा मुझे तुम में से किसका भी नाम नहीं पता फिर उसने कहा और तुम्हें हमारा नाम क्यों नहीं पता.

    मैंने कहा क्योंकि हम कभी मिले नहीं फिर उस आदमी ने कहा कोई बात नहीं अब तो हम मिल लिए हैं.

    वैसे भी इसमें हमारी भी गलती है
    क्योंकि हमने जब से तुम्हें देखा था तब से हम तुम्हें अपना बनाना चाहते थे.

    क्योंकि हम चारों ने तुम्हें एक साथ ही देखा इसलिए हम चारों को भी तुम पसंद आ गई और हम तुम से विवाह करना चाहते थे.

    क्या? लेकिन कैसे मैंने तो तुम्हें आज तक नहीं देखा मैंने उससे प्रश्न किया. वह बोला कोई बात नहीं तुम्हें यह सब बाद में पता चल जाएगा.

    उसने कहा फिर ठीक है वैसे भी आज तो हमें वापस हमारे राज्य जाना होगा.
    मैंने कहा! क्या?

    लेकिन हमारे यहां तो लडकियों के घर ही उनका पति रहता है उसने कहा तुमने सही समझा कि यहां पर लडकियों के घर ही उनका पति रहता है क्योंकि तुम्हारे राज्य में और बाकी सभी राज्यों में भी औरतों का शासन है.

    लेकिन हमारे राज्य में ऐसा नहीं है वहां पर भी औरतें ही शासन करती थी लेकिन वह पहले की बात है अब वहां पर आदमियों का शासन है.

    क्या इसका मतलब की औरतों को अपने जूती के तले दबा दिया जाता है?
    मैंने कहा! उसने कहा नहीं ऐसा नहीं है वहां पर भी यहां की तरह औरतें ही शासन करती थी.

    मैंने कहा तो फिर आपने ऐसा क्यों कहा कि वहां आदमियों का शासन है उसने कहा क्योंकि हम तुम्हारे आदमी है इसलिए हमारा वहां पर शासन है.

    क्या? मैं कुछ समझी नहीं! मैंने उससे कहा वह हंसा और कहा कोई बात नहीं धीरे- धीरे तुम्हें सारी बातें समझ आ जाएंगी उसने कहा और फिर उसने पूछा अब तुम हमारे साथ घर चल रही हो मतलब हमारे राज्य.
    मैंने कहा हां ठीक है लेकिन मुझे उनमें से( पतियों) किसी के बारे में भी कुछ नहीं पता क्योंकि यह एक राजनीतिक विवाह था.

    सब मुझे बताना चाहते थे. लेकिन मैंने किसी से भी उनके बारे में बात करने से मना कर दिया क्योंकि मैं उनसे शादी नहीं करना चाहती थी क्योंकि मुझे कभी भी राजनीतिक विवाह नहीं करना था. मैं अपनी मर्जी से अपना विवाह करना चाहती थी लेकिन क्योंकि मैं इस राज्य की राजकुमारी थी इसलिए मुझे यह विवाह करना पडा मैंने अपने आप से कहा.

  • 5. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 5

    Words: 1226

    Estimated Reading Time: 8 min

    इसी तरह मेरे माता- पिता और मेरे पतियों के बीच बातें होती रही.

    जबकि मुझे अब उनकी बातों से बहुत ही खुशी हो रही है क्योंकि मुझे उनकी बातों में मेरे लिए प्यार और चिंता दिखाई दे रहे हैं लेकिन मैं अब बहमनी साम्राज्य के बारे में ज्यादा जानकारी इकट्ठा नहीं कर सकी क्योंकि उन्होंने अब मेरे बारे में बातें करना शुरू कर दिया है.
    मैंने अपने आप से ही यह वादा कर लिया है की मैं अब मेरे पास जो परिवार है उसकी देखभाल करूंगी और किसी को भी यह पता नहीं चलने दूंगी की असली सनाया जो कि इस शरीर की मूल मालकिन थी उसकी मृत्यु तो उसकी शादी के दिन ही हो गई थी क्योंकि मैं जानती हूं की इससे सभी लोगों को कितनी तकलीफ और दुख होगा.

    अब काफी समय हो गया है और उनकी बातें भी समाप्त हो गई है.

    मतलब कि अब मुझे अपने इस नए परिवार को छोडकर जाना होगा.
    कुछ समय बाद ही वह पल भी आ गया जिसका मुझे इस शरीर मैं आने के बाद तकलीफ होगी.

    अब हमारे जाने का समय हो गया है. महारानी!

    मेरे पतियों ने मेरी माता से कहा और सबसे आज्ञा ली लेकिन पता नहीं क्यों इस क्षण मेरी आंखों से आशु की एक धारा निकल पडी मुझे नहीं पता की ऐसा क्यों है लेकिन शायद यह इस शरीर के मूल मालिक की वजह से है क्योंकि उसे भी अपना परिवार छोड कर कहीं नहीं जाना था.

    जब मेरे पतियों एवं मेरे परिवार वालों ने
    देखा की मेरी आखों से आशु वह रहे हैं तो मेरी माता ने आगे आकर मुझे गले हमें लगा लिया लेकिन उनकी आंखों में हल्की सी नमी आ गई.

    जोकि उन्होंने जल्द ही छुपा भी लिए. क्योंकि वह इस राज्य की महारानी है और महारानी. के आंखों में उन्हें आंसू लाने की इजाजत नहीं होती.

    इसे तरह मेरी माता के बाद मेरे पिता ने मुझे गले लगाया फिर मेरी बहन ने भी मुझे अपने गले लगा लिया.

    फिर मैंने देखा की एक छोटा सा क्यूट सा बच्चा अपने नन्हे नन्हे नन्हे कदमों
    से दौडता हुआ मेरे पास आप रहा है जबकि उसके पीछे उसकी नैनी और कुछ सेविका आएं और सेवक भी आ रहे हैं.

    जब मैंने उस छोटे और क्यूट से बच्चे को देखा तो मैंने अपने दिमाग पर जोर डालकर याद करने की कोशिश की तो मुझे याद आया कि यह बच्चा मेरी बडी बहन और इस राज्य की मुकुट राजकुमारी अनामिका का बेटा है. मैंने देखा की वह छोटा सा बच्चा दौडते दौडते गिरने ही वाला है जब मैंने यह देखा तो मैं चिल्लाई!

    मिथिल.

    लेकिन तभी मैंने देखा की विरेंद्र जीजा
    जी ने उसे पकड लिया है तब मेरी जान में जान आई मिथिल मेरी तरफ देखते हुए अपनी बच्चों जैसी स्माइल करते हुए मुस्कुराया जबकि उसकी आंखों में आशु. जब मैंने यह देखा तो मैं उसके पास आई और वीरेंद्र जीजा जी से मिथिल को अपनी गोद में ले लिया और उसके गाल पर Kiss करते हुए कहा!

    मिथिल आप दौड क्यों रहे थे अभी आप गिर जाते और आपको चोट लग जाती तो आपको बहुत दर्द होता इसलिए आगे से ऐसे दौडते हुए मत आन ठीक है मैंने कहा!

    जबकि मिथिल अभी भी रो रहा था मैंने
    जब यह देखा तो मिथिल से पूछा कि क्या उसे चोट लगी है मिथिल ने अपना सिर ना मिलाया फिर क्या हुआ मैंने मिथिल से पूछा.

    मैथिल ने कहा.

    मासी क्या आप अपने मिथिल को छोड कर हमेशा के लिए कहीं जा रहे हो मैंने कहा.

    यह आपसे किसने कहा.

    मिथिल ने रोते हुए ही जवाब दिया कि मैंने कुछ लोगों को यह कहते हुए सुना इस लिए मैं आपके पास आ गया. मैंने मिथिल को अपनी गोद से नीचे उतारा और खुद भी घुटनों के बल नीचे बैठ गई और कहां.

    बेटा मैं अब अपने प्रतियों के साथ रहूंगी
    इसलिए मुझे जाना पडेगा. तो मिथिल में रोते हुए ही सवाल किया. लेकिन शादी के बाद तो लडके ही लडकियों के घर रहने आते हैं ना. मैंने यह सुनीता आदी से सुना था जब वह बात कर रही थी इसीलिए मैंने आपकी शादी में कोई रुकावट पैदा नहीं की.

    लेकिन अगर मुझे यह पहले पता होता तो मैं कभी भी आपकी शादी नहीं होने देता और आपको हमेशा हमेशा के लिए अपने पास रखता! मुझे समझ नहीं आ रहा था की में मिथिल को कैसे समझाऊं की मुझे
    जाना पडेगा.

    लेकिन तभी मेरी मां सामने आई और मिथिल से कहा बेटा आपकी बुआ को अपने राज्य को बचाने के लिए दूसरे राज्य में जाना पड रहा है लेकिन आप फिकर मत करो आपका जब भी मन होगा आप अपनी मासी से मिलने, उनके राज्य में चले जाना या फिर आपकी मासी आपसे मिलने के लिए आ जाएगी.

    सभी के बहुत मनाने पर मिथिल माना तब मैंने उसे गोद में लिया और कहा अपना ख्याल रखना और उसके माथे पर एक Kiss किया.

    लेकिन जब मैंने अपनी पत्तियो को देखा तो उनकी आंखें भयानक लग रही थी लेकिन मैंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और सब से मिलने के बाद में रथ पर सवार हो गई.

    मैंने देखा कि हमारे आगे और पीछे बहुत बडी सेना है.

    जिनके पास तरह- तरह के हथियार है मेरे पतियों के पास भी ऐसे ही हथियार होंगे मुझे इसका अंदाजा था मैंने किसी से कुछ नहीं कहा और जाकर अपने पति के साथ जो कि राजा था. बहमनी साम्राज्य का! उसके साथ रथ में बैठ गई
    मेरे बाकी के तीन पति घोडे पर सवार हो गए.

    यह सब घोडे पर क्यों नहीं जा रहे हैं या फिर यह रथ पर क्यों नहीं आ रहे मैंने अपने आप से कहा जबकि मेरे पति ने कुछ नहीं कहा जो कि बहमनी साम्राज्य का राजा था और भाव हीन चेहरे के साथ आगे देखते रहा.

    फिर हमारी सेनाओं के साथ हम चल दिए मैंने देखा कि हमारे राज्य भी बहुत ही सुंदर है हाँ मुझे पता है. लेकिन मैंने यह सब अपनी यादों से देखा.
    लेकिन अब में अपनी खुद की आंखों से इसे देख सकती हूं.

    हमने. दिन के भीतर ही अपने राज्य की सीमा पार कर लि.

    और अब संधेरा होने वाला था लेकिन फिर भी वह चलते रहे. उन्होंने ना तो कहीं बीच में शिविर डाला बस तीनों समय के खाने के लिए रुके जबकि मैं रथ में ही सोई क्योंकि खाने के अलावा हमारा दस्ता कहीं भी नहीं रुका वह रात में भी सफर करते रहे.

    जब भी मुझे थकान होती तो मेरा यह पति जो कि एक राजा भी है मुझे रथ में ही सुला देता में भी कोई आपत्ती नहीं कर सकी क्योंकि मैं बहुत ही ज्यादा थकी हुई थी.

    यह रथ वैसे भी बहुत ही आरामदायक है यह अंदर से बहुत ही बडा है रास्ते में कभी- कभी मेरा यह पति खुद घोडे पर बैठता जबकि तीनों भाइयों में से कोई एक मेरे साथ अंदर रथ में आ जाता.

    दो दिन बाद मैंने देखा कि! अब हम एक जंगल में पहुंच चुके हैं और सभी की बातों से मुझे यह पता चला कि! इस जंगल को पार करने के बाद हम
    बहमनी साम्राज्य के प्रवेश द्वार पर पहुंच जाएंगे इसका मतलब यह है कि हम कल रात तक बहमनी साम्राज्य में होंगे.

    सेना यहां पर सिविर डालने का काम कर रही है.

    जब मैंने आसपास देखा! तो देखा! कि यह बहुत ही सुंदर जगह है यहां पर अलग- अलग तरह के वृक्ष है यह सभी जादुई वृक्ष है.
    स्टीकर, और रेटिंग देना न भूलें.

  • 6. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 6

    Words: 1369

    Estimated Reading Time: 9 min

    जब मैंने अपने सामने इतना सुंदर और जादुई दृश्य देखा तो मेरे होंठ अपने आप ही एक कोमल मुस्कान में बदल गए मैंने पीछे मुड़ कर देखा।

    मेरे पीछे मेरे 4 पति खड़े थे और उन चारों की नजरें मेरे ऊपर ही थी यह देखकर मेरे गालों पर अपने आप ही लाल हो गए।

    लेकिन क्योंकि मेरा चेहरा सामने दिख रहे दृश्य की तरफ था इसीलिए मेरी पीठ उन चारों की तरफ थी जिससे वह मेरा चेहरा नहीं देख सकते थे।

    तभी मुझे पीछे से आवाज सुनाई थी कि एक सैनिक चलता हुआ उन चारों की तरफ आया और उनसे कहा महाराज एक बार आप सभी इंतजाम देख लीजिए क्या आपको यह ठीक लग रहे हैं एक सैनिक ने कहा।

    फिर उन चारों भाइयों ने आपस में धीरे-धीरे कुछ बातें की जो मुझे नहीं सुनाई दी लेकिन उसके बाद मैंने कदमों की आवाज खुद से दूर जाती हुई महसूस की।
    जब मुझे उन कदमों की आवाज खुद से दूर जाती हुई महसूस हुई!

    तो मैंने एक चैन की सांस ली और खुद से ही कहा शुक्र है! यह चारों अभी तो यहां नहीं है। कम से कम मुझे इसी बहाने कुछ देर अकेले खुली हवा में रहने का मौका तो मिलेगा !

    नहीं तो वह चारों भाई ही मुझसे हमेशा चिपके हुए रहते हैं। मैंने यह कहा हि था कि मुझे मेरे कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ उस हाथ को महसूस करते ही में डर गई और एकदम से पीछे मुड़ गई।
    मैंने देखा कि मेरे पीछे बाकी के तीन भाई तो चले गए थे लेकिन उनमें से एक अभी भी वही खड़े होकर मुझे घूर कर देख रहा था।

    उसके इस तरह घूरने से में बहुत ही बेचैन महसूस कर रही थी इसलिए मैंने उससे कहा तुम मुझे ऐसे घूर क्यों रहे हो।

    तो उसने कहा कि !

    क्या हम सभी तुम्हें खुली हवा में सांस नहीं लेने दे रहे हैं या फिर हमेशा ही तुम से चिपके हुए हैं जो तुम अभी यह कह
    रही थी।

    क्या हमने तुम्हें कैद कर रखा है।

    मैंने उसे अपने साथ चलने के लिए कहा क्योंकि हमारे पास में ही एक अद्भुत सा दिखने वाला झरना है!

    हो। यह झरना अद्भुत है! इसलिए नहीं है कि यहां का वातावरण बहुत अच्छा है! यह इसलिए अद्भुत है क्योंकि इस झरने से गिरने वाला पानी चमकीला है

    मैंने उस आदमी से कहा !
    देखो ! तभी उस आदमी ने कहा !

    शौर्य! क्या? मेरा नाम शौर्य है! शौर्य ने मुझे देखते हुए कहा ! फिर उसने कहा मुझे तुमसे कुछ बात करनी है! शौर्य ने कहा और शौर्य और मैं वहीं बैठ गए।

    मैंने देखा कि कितना सुंदर दृश्य था हमारे सामने धरना बह रहा था।

    और झरने के किनारे शौर्य और मैं एक तरफ बैठे हुए थे।

    शौर्य ने अचानक ही मुझसे कहा शनाया मुझे पता है कि! तुम्हें यह शादी नहीं करनी थी।

    तुम्हें पता है सनाया पहले हम तुम्हें जानते तक नहीं थे।

    जान सकते भी कैसे दें कभी तुमसे मुझे मिले ही नहीं थे।

    और ना ही हम कभी तुम्हारे राज्य में आए।

    मेरे भाई को बहुत क्राम होते हैं क्योंकि
    वह राजा है वैसे मैंने तुम्हें उसका नाम नहीं बताया ना ।

    मैंने कहा नहीं!

    मैंने बहुत ही धीरे से कहा वह मुझे देख कर मुस्कुराया और कहा मुझे माफ करना।

    हम ही तुम्हें अपना नाम नहीं बता पाए वैसे भैया ने तो तुम्हें नाम बता ही दिया होगा।

    मैंने कहा नहीं वह मुझे अजीब निगाहों से देख रहा था।
    मैंने कहा में सच कह रही हूं फिर शौर्य ने कहा अगर तुम कहती हो तो में मान लेता हूं।

    फिर उसने कहा तुम्हें पता है हमारा भाई हमारे बहमनी साम्राज्य का राजा है उसे राजा बनने के लिए बहुत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि बड़ा बेटा ही राजा बन सकता है।

    पहले वहां की रानी हमारी मां हुआ करती थी वह ही सारा राजपाट संभालती थी।

    और मेरी मां से पहले मे
    रे नाना मेरे नाना ने साम्राज्य मेरी मां को दे दिया क्योंकि
    वह उनकी इकलौती बेटी थी।

    जब मेरे नाना की मृत्यु हुई तब हम बहुत छोटे थे हमें नहीं पता था कि क्या कैसे होता है लेकिन जब हमारी मां और पिता की मृत्यु हुई तब हम सबको सिर्फ हमारे सबसे बड़े भाई ने ही संभाला।

    वैसे उनका नाम अश्वत है हमारे साम्राज्य के राजा हैं यह तो तुम्हें मैंने बताइए दिया वह सबके साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं उन्हें ज्यादा बातें करना पसंद नहीं है।
    क्या?

    मैंने अपने मन में सोचा ज्यादा बातें करना पसंद नहीं है तो वह कौन था जो मुझे पूरी रात भर परेशान करता रहा।

    थोड़ी देर बाद शौर्य ने कहा !

    पता है सुनाया हमने पहली बार तुम्हें अपनी शादी में ही देखा था। क्या सच में ?

    मैंने अपने मन में कहा हां शायद तुम हमारा विश्वास ना करो शौर्य ने कहा जैसे वह मेरे मन की बात समझ गया
    लेकिन फिर तुम मुझे कैसे जानते हो मैंने शौर्य से कहा।

    सही सवाल किया।

    शौर्य मुझे देख कर मुस्कुराया और कहा!

    तुम जानती हो कि हमारे राज्य के बारे में अगर एक भी खबर हमारे राज्य से बाहर जाती है तो फिर वह इंसान कभी भी जिंदा नहीं रहता ।

    मैंने कहा हां मुझे यह पता है फिर उसने आगे कहा तो फिर तुम्हें यह भी
    पता होगा कि हमारा राज्य में कोई भी अपनी मर्जी के बिना आ या जा नहीं सकता।

    मैंने कहा हां मुझे पता है फिर शौर्य ने कहा एक बार जब मेरे भैया राज्य के किसी मामले के कारण से राज्य से दूर गए थे तब वहां पर कुछ लोग जो नाचते गाते हैं तुम्हें उन लोगों के बारे में पता होगा मैंने कहा हां ! वह परियां होती हैं।

    जो की तरह तरह की चीजों की जानकारी सभी लोगों में बाटती हैं जो कि अमूल्य हो के बारे में दूसरे राज्यों
    में जा जाकर बताती है क्योंकि उन्हें ऐसा करना पसंद है वह मुझे देख कर मुस्कुराया और कहा हमने पहली बार तुम्हारे बारे में उनसे ही सुना था!

    मैंने अपने मन में कहा क्या?

    ऐसे कैसे हो सकता है लेकिन उससे आगे शौर्य ने मुझे सोचने नहीं दिया और अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा !

    यह परियां हमेशा कुछ ना कुछ बताती रहती है जो कि अमूल्य हो और तुम्हारी खूबसूरती इस पूरे द्वीप में अमूल्य है इस
    वजह से वह तुम्हारे बारे में भी बताती है।

    क्योंकि तुम्हारी खूबसूरती अमूल्य है तुम्हारे जितना सुंदर इस पूरे संसार में कोई नहीं है मैंने कहा सच में वह मुझे देख कर मुस्कुराया और कहा शायद तुम भी नहीं जानती सनाया कि तुम कितनी सुंदर हो ।

    फिर उसने कहा सनाया उस समय मेरे भाई ने भी इन बातों पर ध्यान दिया है क्योंकि यह परीया कभी भी कुछ भी बकबास नहीं करती यह हमेशा सत्य कहती हैं।

    और इन परियों का यह शौक है कि जो कुछ भी अमूल्य होता है चाहे वह हीरा मोती जवाहरात राज्य या फिर कुछ भी हो मैं सब के बारे में बताती हैं।

    मैंने कहा हां मुझे भी ज्यादातर जानकारियां इन्हीं परियों की मदद से मिलती हैं!

    वह मुझे देख कर मुस्कुराया और कहा फिर उसके बाद जब भैया वापस राज्य आए तो फिर उन्होंने जो जासूस हमारे
    राज्य में जासूसी कर रहा था उसे ढूंढने का कार्य शुरू कर दिया और वह कार्य हम तीनों भाइयों के पास आ गया।

    मैंने कहा आपका और उस जासूस का मुझ से क्या लेना देना है शौर्य मुझे देख कर मुस्कुराया और कहा तुम बहुत उत्सुक रहती हो सनाया ।

    मैंने कहा शायद फिर उसने कहा मैं बता रहा हूं!

    लेकिन तुम्हें मुझे बीच में टोकना नहीं चाहिए नहीं तो मेरा ध्यान भटक जाएगा और मैं कहानी छोड़ कर कहीं कोई और काम ही ना करने लग जाऊं।

    कैसा काम मैंने बहुत ही मासूमियत से पूछा वह मुझे देख कर मुस्कुराया और मेरा हाथ पकड़ लिया। और कहा हमारी शादी पुरी करने में। क्या ?

    शौर्य ने कहा!

    लेकिन फिक्र मत करो हम यह सब हमारे राज्य जाने के बाद करेंगे उसने कहा!

    लेकिन तुम ऐसे कैसे कर सकते हो
    तुम्हारे बड़े भाई ने मुझसे कहा था कि वह अभी इंतजार करेगा शौर्य ने कहा वह बड़े भाई ने कहा था हमने नहीं!

    क्या?

    इसका मतलब मुझे इन तीनों भाइयों के लिए भी कुछ सोचना पड़ेगा मैंने अपने मन में कहा

  • 7. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 7

    Words: 1151

    Estimated Reading Time: 7 min

    शनाया को जब यह पता चला की !

    उसके बाकी 3 पति कभी भी उसके साथ कुछ भी कर सकते हैं तो वह डर गई!

    और सोचने लगी कि मुझे इन तीनों के लिए भी कुछ इंतजाम करना पड़ेगा ताकि यह तीनों मुझसे दूर रहें।

    लेकिन फिलहाल तो शनाया को शौर्य की इन बातों से ध्यान हटाना जरूरी था इसलिए उसने शौर्य से पूछा !

    वैसे शौर्य यह जो पोशाक है यह मुझे बहुत ही पसंद आई है तुम्हें पता है यह किसने बनाई है।
    शौर्य जो मुझे किस कर रहा था वह रुक गया और अपनी आंखों में चमक लिए मुझे देखने लगा ।

    मैंने सोचा चलो कम से कम में बच गई फिर शौर्य बैठ गया और मुझे अपने पास ही बिठा लिया!

    और कहा!

    शनाया तुम्हें यह पोशाक सच में पसंद आई मैंने कहा हां यह तो बहुत ही सुंदर है फिर अपने मन में कहा ऐसी पोशाक तो पृथ्वी पर ही मिलती हैं जैसी अभी मैंने डाल रखी हैं।

    फिर शौर्य ने कहां तुम्हें पता है यह पोशाक किसने बनाई है मैंने कहा नहीं मुझे कैसे पता होगा! शौर्य ने का यह पोशाक भैया ने बनाई है
    मैंने कहा! क्या?

    शौर्य ने कहा हां तुम्हें पता है मेरे भाई राजा होने के साथ-साथ और भी बहुत से कार्य करते हैं।

    जैसे कि उन्हें पोशाक बनाना पसंद है लेकिन वह बहुत कम ही पोशाक बनाते हैं और यह सिर्फ हम चारों भाइयों को ही पता है तुम्हें पता है।

    मैं अपने तीनों भाइयों का सभी कार्य संभालता हूं!

    जैसे कि अभी तुमने देखा कि मेरे भाई महाराज है और उन्हें कपड़े बनाना पसंद है यह उनकी होबी है।
    मैंने कहा यह तो बहुत अच्छी बात है लेकिन फिर शौर्य ने कहा लेकिन क्योंकि मेरा गाई महाराज है इसलिए वह अपने राजकाज के अलावा कोई कार्य नहीं कर सकता।

    इसीलिए यह कार्य में करता हूं मेरे भाई मुझे पोशाकों की डिजाइन बना कर देता है और में उन्हें सिलवा देता हूं मैंने कहा यह तो बहुत ही अच्छा है मैं सच में उसकी तारीफ करना चाहती थी।

    लेकिन जब कल रात वाला दृश्य मेरे आंखों के सामने आया तो मुझे गुस्सा आया मैंने अपने मन में कहा छोड़ो वैसे भी उसने एक पोशाक ही तो बनाई है।

    कोन सा कोई पहाड़ तोड़ दिया ।
    लेकिन फिर भी मैं उसकी तारीफ कर रही थी क्योंकि ऐसी पोशाक बनाना सच में आसान नहीं है और वह भी यहां पर ।

    जो कि पृथ्वी नहीं है पृथ्वी पर अगर ऐसे कपड़े बन जाए तो उसे फैशन हिमाइनिंग का डिजाइनर ऑफ द ईयर का अवार्ड मिल जाएगा और बहुत ही फेमस हो जाएगा।

    लेकिन यहां पर वह राजा है और उसे तलवार चलाना और राजकाज करना पड़ता है।

    फिर शौर्य ने कहा तुम्हें पता है मेरा दूसरा भाई क्या करता है?
    उसने कहा!

    वह हमारा सेनापति है मैंने कहा सच में शौर्य ने कहा हां।

    अब मुझे शौर्य की बातों में दिलचस्पी होने लगी!

    क्योंकि किसी को भी नहीं पता था की बहमनी साम्राज्य के चारों भाई क्या काम करते हैं।

    और भले ही बहमनी साम्राज्य के लोगों को पता हो कि चारों भाई किस पद पर हैं।

    लेकिन उन्हें यह नहीं पता होगा कि वह चारों उस पद के अलावा भी और क्या कार्य करते हैं।

    यही वजह थी कि मुझे उसकी बातों में दिलचस्पी होने लगी।
    मैंने शौर्य से कहा!

    शौर्य सच में तुम्हारे भाई तो बहुत ही कमाल के हैं।

    सूर्य ने कहा मुड़झे पता है कि वह बहुत ही होनहार है।

    में अपने राजसी कार्यों के अलावा भी अपने खुद के कार्य करते हैं।

    सच में शौर्य!

    मुझे बताओगे तुम्हारे बाकी भाई क्या कार्य करते हैं। राजसी कार्यों के अलावा।

    जब मैंने यह कहा तो शौर्य के होठों पर अपने आप ही एक शैतानी मुस्कुराहट आ गई।
    फिर सो जा ने मुझसे कहा कि ठीक है मैं तुम्हें उनके बारे में बताने के लिए तैयार हूं लेकिन तुम्हें उसके बदले में मुझे कुछ देना होगा।

    लेकिन में तुम्हें क्या दे सकती हूं मेरे पास तो तुम्हें देने के लिए फिलहाल कुछ भी नहीं है।

    शौर्य ने कहा!

    सोव लो जब तक तुम मुझे कुछ नहीं दोगी में तुम्हें नहीं बताऊंगा।

    मैंने कहा ठीक है मैं कुछ सोचती हूं जो मेरे पास हो सबसे कीमती और वह में तुम्हें दे सकूं ।

    मैं सोच रही थी कि मेरे इस शरीर के मूल मालिक के पास सबसे ज्यादा कीमती क्या है ?

    तब मुझे याद आग्रर कि इस शरीर के मूल मालिक के पास सबसे ज्यादा कीमती क्या है ?

    तब मुझे याद आया कि इस शरीर के मूल मालिक को चित्रकला करना बहुत पसंद है और
    साथ ही साथ मुझे भी चित्रकला करना बहुत पसंद है।

    मैंने खुश होते हुए शौर्य से कहा ! ठीक है!

    में तुम्हारा एक चित्र बनाऊंगी अगर तुमने मुझे सब के बारे में बताया तो !

    शौर्य ने कहा मुझे चित्र नहीं मुझे कुछ और चाहिए लेकिन अगर तुम मुझे अपने हाथों से बना हुआ चित्र भी भेट करोगी !

    तो मैं तुम्हें बताने को तैयार हूं लेकिन मेरी एक शर्त है उस चित्र में मैं और तुम दोनों होनी चाहिए
    मैंने कहा ठीक है!

    शौर्य मुझे देख कर मुस्कुराया और कहां!

    लेकिन मेरी साथ ही साथ एक और शर्त भी है मैंने कहा !

    अब वह क्या है?

    मैंने तुम्हें अपनी उंगली क्या दी तुम तो मेरा पूरा हाथ ही पकड़ ने लग गए !

    इस बार मैंने सीधा उसके मुंह पर ही कह दिया !

    शौर्य मुझे देखकर हंसा और कहा अरे तुम तो गुस्सा हो गई मेरी नक्चडी बिल्ली !

    मैंने कहा मुझे बिल्ली मत कहो मैं बिल्ली नहीं हु
    शौर्य ने कहा अच्छा मुझे पता है तुम मेरी बिल्ली हो।

    मैंने कहा में बिल्ली नहीं हूं ! शौर्य ने कहा तुम्हारी हरकतें बिल्ली जैसी है !

    अभी देखो कैसे तुम मुझे नोचने आने वाली थी।

    मैंने कहा मैंने कब तुम्हें नोचा !

    शौर्य ने कहा मैं तुम्हें बताऊं तुमने मुझे कब सोचा मैंने कहा हां बताओ व मैंने तुम्हे नोचा शौर्य ने कहा!

    यह देखो मैंने देखो।

    जब मैं शौर्य से पीछे हटाने की कोशिश कर रही
    थी जिस वजह से शायद मेरे नाखून शौर्य को लग गए।

    फिर मैंने शौर्य से कहा! लेकिन यह तो तुम्हारी गलती है ना! तुम कहीं भी मेरा हाथ कैसे पकड़ सकते हो।

    शौर्य ने कहा !

    सचमुच में तुम्हारा हाथ कहीं भी नहीं पकड़ सकता लेकिन हम अपने कक्ष में तो कर सकते हैं ना!

    तुम ! मुझे तुमसे बात ही नहीं करनी !

    मैंने गुस्से में मुंह फुला लिया शौर्य ने का अच्छा ठीक है! बाबा !
    नहीं कर रहा अब नहीं करूंगा मैं तुम्हें अब और नहीं चिढ़ाउगा ठीक है!

    सॉरी!

    गौर्य ने बच्चों जैसा मुंह बनाकर अपने कान पकड़ते हुए मुझसे सॉरी कहा !

    मुझे उसे देख कर उस पर प्यार आ गया और मैंने कहा ठीक है!

    फिर

    शौर्य ने कहा चलो ठीक है अब बताओ तुम किसके बारे में जानना चाहती हो!

    मैंने कहा मैं तुम चारों भाइयों के बारे में जानना चाहती हूं शौर्य ने कहा ठीक है।

  • 8. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 8

    Words: 1123

    Estimated Reading Time: 7 min

    मेरे कहने पर कि मैं शौर्य और बाकी तीनों पतियों के बारे में जानना चाहती हूं.

    शौर्य ने कहा ठीक है!

    फिर शौर्य ने कहा अच्छा अभी तो तुम्हें स्नान करना था ना देखो मैंने सारे इंतजाम करा दिए हैं.

    मैंने देखा शौर्य ने झरने के नीचे पानी के पास परदे लगवा दिए हैं जबकि सभी सैनिक दूसरी तरफ बहुत ही दूरी पर मुंह करके अपने हाथों से रोशनी निकाल रहे हैं और वह रोशनी पुरे झरने को घेर रही हैं.
    मुझे नहाने का मन हो रहा है इतने अच्छे वातावरण में मैं ऐसे कभी नहीं नहाई लेकिन क्योंकि यहां पर पहरेदारी है और कोई भी हमारी तरफ नहीं देख सकाता इसलिए में नहा सकती हूं और मुझे कुछ भी फिक्र करने की जरूरत नहीं है.

    लेकिन फिर भी मुझे बहुत शर्म आ रही थी मैंने शौर्य से कहा ठीक है तुम जाओ मैं नहाती हूं शौर्य ने कहा क्यों मैं तुम्हारा पति हूं मैं बैठ नहीं सकता.

    मैंने कहा देखो तुम चले जाओ शौर्य बोला नहीं मैं बैठ रहा हूं

    हमारे बहुत बहस के बाद शौर्य का रुकना तय हुआ. लेकिन मैं भी कम समझदार नहीं थी मैं.
    मन में कहा तुम मेरे साथ नहाना चाहते हो ना अब देखो!

    मैंने कडा और नौकरानीयों ने हमारे लिए जो झोपडी की तरह बनाया तंबू तैयार किया था उसमें उसमें चले गए मैंने शौर्य से कहा तुम दूसरी तरफ जाओ.

    सौर्य ने ज्यादा जिद न करते हुए दूसरी तरफ चला गया और मैं ने दूसरे कपडे बदल लिए ताकि मैं आराम से नहा सकूं और कोई मुझे देख भी ना सके.

    जब मैं बाहर निकली तो शौर्य का मुंह खुला रह गया और उसने कहा तुमने यह कपडे क्यों डाले हैं मैंने कहा क्यों नहाना नहीं है और वैसे भी हम बाहर है अगर किसी ने मुझे देख लिया तो क्या होगा?

    शौर्य ने कहा लेकिन यहां पर तो सब सुरक्षा है और तो तुम मेरे साथ तो होगी ही.

    अगर वहां कुछ होता है तो मैं हूं ना संभालने के लिए!

    मैंने कहा नहीं!

    शौर्य के बहुत जिद करने पर भी मैं नहीं मानी.

    और ऐसे ही तालाब में उतर गई मैंने देखा कि यहां तालाब का पानी ठंडा है जो मुझे बहुत ही सुकून दे रहा है मैं तालाब में लेट गई और मेरा शरीर तालाब के ऊपर तैरने लगा.
    तभी

    शौर्य मेरे पास आ गया और इस समय उसने वस्त्र के नाम पर सिर्फ कुछ ही कपडे डाल रखे थे मुझे शौर्य को देखकर बहुत ही शर्म आ रही थी.

    मैंने कहा शौर्य तुम यह क्या कर रहे हो जाओ जल्दी से अपने पुरे वस्त्र डालकर आओ या फिर दूसरी तरफ जाओ.

    लेकिन शौर्य नहीं माना और मुझे अपने साथ ही पानी में खींच लिया और कहा! मैंने कहा तो था हम साथ में नहाएंगे मैंने कहा ठीक है.

    अब नहा लिया मुझे जाना है लेकिन शौर्य नहीं माना और वह खुद मुझे नहलाने के लिए ले आया और अपनी बाहें मेरी चारों तरफ फैला दी शौर्ट ने मेरे साथ ही डुबकी लगाई.

    इस समय मुझे यह क्यूट सा शौर्य नहीं बल्कि एक शैतान शौर्य दिख रहा था.

    लेकिन में क्या कर सकती हूं मैंने ही इस मुसीबत को बुलाया है शौर्य ने Kiss करते हुए जब देखा कि मुझे सांस लेने की जरूरत है तो शौर्य ने मुझे छोड दिया और पानी के बाहर ले आया.

    मैंने लंबी- लंबी सांसे ली और अपना सिर सूर्य के कंधों पर रख दिया शौर्य ने भी मुझे बाहों में पकड लिया.
    मैंने शौर्य से कहा बस अब और नहीं.

    नहीं! नहीं! फिर अपने मन में कहा!

    वैसे भी इन सभी भाइयों को तो मौका ही चाहिए होता है.

    मेरे मना करने पर शौर्य ने कहा ठीक है फिर हम अपने अपने तंबू में चले गए लेकिन मैंने जब अपने तंबू में कदम रखा तो देखा कि वहां पर पहले से ही निखिल खडा है.

    निखिल मेरा दूसरा पति है जब मैंने निखिल को खडे देखा तो फिर मैंने जल्दी से अपने आसपास तोलिए को लपेट लिया जबकि दासिया बाहर चली गई फिर निखिल मेरे पास
    आया और मेरे हाथ से तोलिया लेकर उसने मुझे सुखाया और फिर एक पोशाक देकर कहा इसे पहन कर आओ मैंने भी निखिल से ज्यादा बात करना इस समय सही नहीं समझा इसीलिए मैंने वह पोशाक ली और तंबू में बने कपडे चेंज करने वाले स्थान पर चली गई फिर निखिल वहीं पर बैठ गया.

    मैं अपनी पोशाक बदल कर बाहर आई. और देखा कि निखिल अभी भी यहीं बैठा हुआ है मैंने पहले तो अपने मन को मनाया की निखिल अपने दूसरे भाइयों की तरह नहीं है.

    निखिल ने जब देखा कि मैंने सिर्फ अपने कपडे के बदले थे जबकि मेरे बाल अभी भी गिले थे तो उसने मेरा हाथ पकडा और मुझे ले जाकर शीशे के सामने बैठा दिया और खुद तोलिए से
    मेरे बाल साफ करने लगा मेरे बाल साफ करने के बाद निखिल ने मेरे गहने मुझे पहनाए और फिर मेरे बाल खुले ही छोड दिए.

    फिर मेरा हाथ पकड कर मुझे बाहर ले आया जहां पर बाकी के तीन भाई भी इकट्ठे हो रखे थे वहां पर आग जल रखी थी और पास में ही गद्दे पडे हुए थे, हमारे बैठने के लिए थे.

    जबकि गद्दों से थोडी दूर पर बाकी जगह पर भी और गधे पडे हुए थे शायद वह सेवकों और सैनिकों के बैठने के लिए है.

    मैंने ध्यान से जगह को देखा तो बहुत ही सारे तंबू लगा रखे थे क्योंकि बहुत सारी सेना हमारे साथ थी क्योंकि अश्वत एक. राजा था
    राजा को बिना सुरक्षा के कहीं नहीं भेजा जा सकता.

    निखिल ने मेरा हाथ पकडा और कहा चलों में निखिल के साथ चलदी निखिल ने मुझे लाकर अब चारों के बीच में बिठा दिया मैं भी वहीं बैठ गई.

    मैंने देखा सभी सैनिक और नौकरानी आपनी- अपनी बातों में लगे हुए हैं जबकि हम यहां आगे की तरफ बैठे हुए थे इस समय चारों भाइयों के चेहरे पर ही सीरियस एक्सप्रेशन थे.

    उन्होंने मुझे बीच में बैठा कर मुझसे कहना शुरू किया उनमें से निखिल ने ही कहना शुरू किया और कहा सनाया अब तुम सिर्फ एक राजकुमारी नहीं रह गई हो तुम हमारी पत्नी और साथ ही साथ बहमनी साम्राज्य की रानी भी बन गई हो इसीलिए तुम्हारे कोई कर्तव्य भी है जो कि तुम्हें सीखने पडेंगे या फिर तुम्हें उन्हें करना ही होगा.

    मेरी मतलब तुम समझ रही हो ना! मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहना चाहता है. जब उन्होंने देखा कि मुझे समझ नहीं आ रहा है! तो उन्होंने ज्यादा बात करना सही नहीं समझा और बैठ गए फिर थोडी देर बाद एक नौकरानी हमारे पास आई और कहा!

    महाराज खाना लग चुका है कृपया खाना खा लीजिए फिर हम पांचो उठ गए और खाने की टेबल तक. पहुंच गए हमने देखा कि वहां बहुत ही सारा खाना अलग रखा है.

  • 9. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 9

    Words: 1030

    Estimated Reading Time: 7 min

    खाने की टेबल पर पहुंचने के बाद मैंने देखा कि वहां पर पांच कुर्सियां लगी हुई है में समझ गई कि यह हम पांचों के लिए ही हैं.

    फिर बीच वाली सबसे अकेली कुर्सी जो वहां पर थी उस पर अश्वत ने बैठने से पहले मुझे बैठा दिया और सभी चारों भाई अगल- बगल बैठ गए हमने खाना खाना शुरू किया.

    खाना बहुत ही स्वादिष्ट था ऐसी स्वादिष्ट व्यंजन हमारे राज्य में नहीं थे ना ही बाकी के राज्य में
    क्योंकि बाकी के राज्यों की स्पेशल खाना भी राजपरिवार के लोग खाते थे.

    लेकिन मैंने देखा कि हमारी दुनिया के बने खाने की तुलना यहां का खाना नहीं कर सकता क्योंकि भले ही यह खाना बहुत ही स्वादिष्ट क्यों न हो किन्तु यहां पर बिल्कुल वैसा ही खाना जैसा कि पृथ्वी पर मिलता है नहीं है. साथ ही यहाँ पर पृथ्वी की तरह अलग अलग प्रकार के खाने भी नहीं है.

    हमारे खाना खाने के बाद हम उठ गए और थोडी देर ठहलने के लिए आसपास ही चले गए जबकि सैनिक भी हमारे आस पास ही थे हम ज्यादा दूर नहीं गए ताकि हम सैनिक की नजर से दूर. ना हो थोडी देर बाद हम वापस आ गए.
    मैंने देखा कि बीच में एक बहुत ही बडा तंबू लग रखा है जबकि उसके आसपास छोटे- छोटे तंबू लग रखे हैं.

    मैं समझ गई कि यह तंबू राजा के लिए ही होगा लेकिन फिर मेरा तंबू कहां है जब चारों भाइयों ने मुझे अपने आप को ऐसे देखते हुए देखा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड लिया.

    और चारों के चारों उस बडे से तंबू में घुसगए. मैंने देखा तंबू को बहुत ही आलीशान ढंग से सजाया गया था जबकि बीच में एक बडा सा बेड था इस बेड पर कम से कम अठहत्तर लोग सो आराम से सो सकते थे लेकिन इतना बडा बेड क्यों है मैंने अपने आप से सवाल किया.
    लेकिन जल्द ही इस सवाल का जवाब भी मुझे मिल गया जब चारों भाइयों से से दो बेड पर जाकर लेट गए जबकि दो अभी भी खडे थे फिर उन्होंने मुझे देखा और निखिल मेरे पास आया.

    और मेरे गहने उतारने लगा जबकि बाकी दो भाई अपने कपडे उतार रहे थे और अश्वत कुछ दस्तावेज देख रहा था बाकी दो भाई आराम से अभी भी लेटे हुए थे जबकि निखिल ने मेरे गहने निकालने के बाद अपने कपडे उतारने शुरू कर दिए.

    अश्वत्थ फिर मेरे पास आया और मुझे एक पोशाक दी. मैंने वह पोशाक ली और पहनने के लिए कक्ष में बने ही अलग से Room में चली गई और. ड्रेस मैंने देखा कि यह बहुत ही सेक्सी ड्रेस थी मुझे बहुत शर्म आ रही थी इसलिए में वहीं खडी रही और बाहर नहीं आई काफी समय बीत जाने के बाद जब अश्वद शौर्य निखिल और आर्यन ने देखा जिस जगह में कपडे बदल रही थी मैं अभी भी वही खडी हूं.

    ती निखिल चलते हुए मेरे पास आया और मुझे उस कक्ष से बाहर निकाल कर ले आया मुझे बहुत ही शर्म आ रही थी क्योंकि मैंने इस तरह के कपडे डाल रखे थे लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकती थी.

    निखिल मुझे पकड कर बाहर लाया और मैंने देखा कि अश्वत्थ ने भी अपने ऊपर के कपडों के बिना ही बेड पर आ चुका है मुझे बहुत ही घबराहट हो रही थी.

    कहीं आज यह चारों के चारों एक साथ ही मुझे अपना ना बना ले फिर भी मैं धीर- धीरे कदम चलती हुई बेड के पास मुझे निखिल ले आया.

    जब चारों ने देखा कि मैं अभी बेड पर नहीं आ रही हूं तो फिर शौर्य और आर्यन ने एक दूसरे को देखा और अचानक मेरा हाथ पकड कर मुझे बेड पर खींच लिया ऐसे खींचे जाने से मैं एकदम बेड पर गिर गई और मेरी पोशाक अस्त व्यस्त हो गई
    मुझे बहुत ही शर्म आ रही थी मैंने जल्दी से खुद को एक चादर में लपेटना चाहा.

    लेकिन तब तक अश्वत्थ ने वह चादर पकड ली क्योंकि शायद उसे पता चल गया था कि में क्या करना चाह रही हूं.

    लेकिन जब निखिल ने अपने तीनों भाइयों को ऐसे करते देखा, तो उसने कहा आप सब शायद भूल गए हैं कि हमें सनाया से जरूरी बात करनी थी.

    उसके इस तरह बोलने पर सभी भाइयों को भी याद आ गया कि वह कुछ जरूरी बात करना चाहते थे इसलिए वह सभी सीरियस एक्सप्रेशन के साथ बैठ गए.

    और मुझे भी अपने बीच में बैठा लिया मेरे एक तरफ निखिल था एक तरफ भास्वत एक तरफ शौर्य और एक तरफ आर्यन में उन सब के बीच में बैठी हुई श्रीवर्थन ने फिर निखिल को इशारा किया तो निखिल ने कहना शुरू किया.

    देखो सनाया हम तुम से बाहर भी यह बात करना चाहते थे लेकिन क्योंकि यह बाहर बहुत सारे लोग थे इसलिए हम यह बात नहीं कह सके लेकिन अब तुम्हें यह बात कह सकते हैं क्योंकि हम चारों के सिवाय इस कक्ष में कोई नहीं है. इसलिए हमें अब बात करनी होगी मुझे समझ नहीं आ रहा था यह इतने सीरियस एक्सप्रेशन के साथ चारों के चारों भाई मुझे क्यों देख रहे हैं जैसे कि मैंने कुछ गलत कर दिया हो या फिर में कोई मुजरिम हूं.

    लेकिन मैंने बीच में कुछ भी कहना ठीक नहीं समझा तब शौर्य ने निखिल से कहा भाई आप क्या कर रहे हैं आप सनाया को डरा रहे हैं ऐसे तो वह डर जाएगी आप आराम से प्यार से भी तो बात कर सकते हैं.

    बीच में ही आर्यन ने कहा तुझे पता नहीं कि अश्वत्थ भाई और निखिल भाई हमेशा ऐसे ही बात कर सकते हैं इनके चेहरे पर कभी कोई भाव होना मुश्किल ही है.

    शौहों से सजाक उडाते हुए कहा हां हां यह सब तो पता नहीं कैसी शक्ल लेकर घूमते रहते हैं जैसे कि किसी ने इनका कीमती सामान चुरा लिया हो शौर्य के ऐसे बोलने पर निखिल और अश्वत्थ ने शौर्य को घूर कर देखा.

    मैंने अपने मन में कहा वैसे तो इन चारों को मुझसे जरूरी बात करनी थी लेकिन अब पता नहीं इन्हें क्या हो गया जो इन्हें मजाक सुज रहा है वैसे शौर्य और आर्यन ने सही कहा है मुझे भी ऐसा ही लगता है कि मैंने इनका कोई कीमती सामान चुरा लिया है जो यह ऐसे चेहरे बनाएं

  • 10. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 10

    Words: 1128

    Estimated Reading Time: 7 min

    सनाया उन चारों भाइयों के बीच बैठी हुई थी और उसका दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था जैसे उसकी छाती से बाहर निकल जाएगा। कमरे का वातावरण अचानक भारी हो गया था। बाहर से छनकर आती मशालों की पीली-लाल रोशनी तंबू की मोटी दीवारों पर अजीब सी आकृतियाँ बना रही थी। हर झोंके के साथ कपड़े की दीवारें हिलतीं और मानो उसमें छिपे अनजाने चेहरे सनाया को घूरने लगते। भीतर एक गहरी खामोशी थी, इतनी कि उसकी अपनी सांसें ही उसके कानों को चुभ रही थीं। चारों राजकुमारों की निगाहें उसी पर टिकी हुई थीं। निखिल का चेहरा गम्भीर और कठोर था, जैसे उसने जीवन में कभी मुस्कुराना सीखा ही न हो। अश्वत्थ की तलवार जैसी ठंडी और पैनी नज़रों ने उसे जकड़ लिया था, मानो वह उसकी आत्मा तक को पढ़ लेना चाहता हो। शौर्य बार-बार होंठों पर आती हंसी को दबाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी आँखों की शरारत साफ दिखाई दे रही थी। आर्यन बेचैन होकर अपनी उंगलियां चटका रहा था, उसकी आँखों में कोई अनकहा डर और अधीरता साफ झलक रही थी।

    सनाया को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ये लोग उससे किस तरह की बात करने वाले हैं। उसके मन में अनगिनत सवाल उठ रहे थे—क्या वे सच में उसके साथ कुछ गलत करने वाले हैं, या फिर कोई ऐसा रहस्य है जो उसकी पूरी ज़िंदगी बदल सकता है? उसका मन भागकर इस अजनबी जगह से निकल जाने को कर रहा था, लेकिन उसके पाँव ज़मीन से चिपक गए थे। तभी निखिल ने धीरे-धीरे बोलना शुरू किया, "सनाया, तुम सोच रही होगी कि हम तुम्हारे साथ इतने रहस्यमयी ढंग से क्यों पेश आ रहे हैं। लेकिन सच तो यह है कि तुम हमारे लिए केवल एक अतिथि नहीं हो। तुम इस राज्य की भविष्यवाणी का हिस्सा हो।"

    उसकी आवाज़ में इतनी गहराई थी कि सनाया का कलेजा बैठ गया। उसके होंठ कांप रहे थे। वह कुछ बोलना चाहती थी लेकिन शब्द उसके गले में ही अटक गए। अश्वत्थ ने अपनी भयानक गंभीर आवाज़ में आगे कहा, "बहुत समय पहले हमारे राज्य के महायाजक ने यह भविष्यवाणी की थी कि एक दिन दूसरी दुनिया से एक कन्या हमारे बीच आएगी। वही कन्या इस राज्य के भाग्य का फैसला करेगी। वही तय करेगी कि राजसिंहासन पर कौन बैठेगा और कौन हमेशा के लिए इतिहास में खो जाएगा।"

    यह सुनते ही सनाया का शरीर जैसे सुन्न हो गया। उसे याद आया कि कैसे अचानक वह इस अजीब दुनिया में आई थी—वह पल जब अचानक धरती फटी और वह इस दुनिया में आ गिरी थी। कैसे उसे यहां की हर चीज अजनबी और अजीब लगी थी। कहीं यह सब सचमुच उसी भविष्यवाणी से जुड़ा हुआ तो नहीं? उसकी सांसें भारी हो गईं। उसने खुद को स्थिर करने के लिए हाथों को कसकर पकड़ लिया।

    तभी शौर्य ने उसका हाथ धीरे से थाम लिया और आधी मुस्कान के साथ बोला, "घबराओ मत, हम तुम्हें नुकसान पहुंचाने नहीं आए हैं। लेकिन हमें सच जानना है कि आखिर तुम ही वो लड़की हो न जिसके बारे में कहा गया था?" उसकी आवाज़ में नर्मी थी, लेकिन शब्दों में एक चुनौती भी छिपी थी।

    आर्यन ने तुरंत गंभीर स्वर में कहा, "और अगर हां, तो तुम्हें हमें चुनना होगा। तुम्हें बताना होगा कि हममें से कौन इस सिंहासन का असली वारिस बने।"

    यह सुनकर सनाया स्तब्ध रह गई। चारों भाई उसे गहरी निगाहों से देख रहे थे। उनकी आँखों में उम्मीद भी थी और डर भी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे पूरा तंबू उसकी ओर झुक आया हो और वह अकेली इस बड़े रहस्य के बीच फंस गई हो। उसके होंठ कांपने लगे। उसने धीमी आवाज़ में कहा, "लेकिन मैं तो साधारण सी लड़की हूं। मैं कोई भविष्यवाणी का हिस्सा कैसे हो सकती हूं?"

    अश्वत्थ ने उसकी आंखों में सीधा देखते हुए कहा, "यही तुम्हें समझना होगा। जबसे तुम यहां आई हो, हमारे जीवन में बदलाव आ गया है। हमारे बीच जो मतभेद थे, उन्हें तुमने ही कम किया है। तुम्हारी उपस्थिति ही इस भविष्यवाणी की गवाही है।"

    इतना कहते ही अचानक बाहर से तेज़ आवाज़ आई। सैनिकों के कदमों की आहट गूंज उठी। मशालों की परछाइयाँ कांपने लगीं। एक दूत अंदर घुसा और घबराई हुई आवाज़ में बोला, "महाराज, दुश्मनों ने अचानक हमला कर दिया है।"

    चारों भाई तुरंत सतर्क हो गए। निखिल ने तलवार उठा ली, उसकी आँखें चमक रही थीं जैसे किसी शेर की हों। अश्वत्थ ने अपने दस्तावेज़ और नक्शे समेट लिए, उसका चेहरा और कठोर हो गया। शौर्य की शरारत अचानक गायब हो गई और उसकी जगह गंभीरता ने ले ली। आर्यन बेचैन होकर सबसे पहले दरवाजे की ओर दौड़ा। चारों तुरंत तैयार हो गए। लेकिन जाने से पहले निखिल झुककर सनाया के करीब आया, उसकी सांसें सनाया के गाल से टकराईं और उसने धीमे स्वर में कहा, "हम अभी लौटकर आते हैं। लेकिन याद रखना, तुम्हें फैसला करना ही होगा। तुम्हारा फैसला हमारी किस्मत तय करेगा।"

    इतना कहकर चारों भाई तंबू से बाहर निकल गए। उनके कदमों की आहट दूर होती गई और बाहर युद्ध की आवाज़ें गूंजने लगीं—तलवारों की टकराहट, सैनिकों की चीखें और घोड़ों की हिनहिनाहट।

    सनाया वहीं अकेली बैठी रह गई। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसका पूरा शरीर पसीने से भीग गया था। वह सोच रही थी कि आखिर वह किस मुसीबत में फंस गई है। उसकी आंखों के सामने चारों भाइयों के चेहरे घूमने लगे—निखिल की गंभीरता, अश्वत्थ की कठोरता, शौर्य की मस्ती और आर्यन की बेचैनी। क्या वह सच में इस राज्य की किस्मत का फैसला करने वाली है?

    उसे लग रहा था मानो उसका गला सूख गया है। उसने पानी का कटोरा उठाया लेकिन उसके हाथ कांपने लगे और पानी आधा ज़मीन पर गिर गया। तभी अचानक उसे महसूस हुआ कि कोई तंबू के अंदर आया है। तंबू की मशाल अचानक बुझ गई और अंदर घना अंधेरा छा गया। उसने पलटकर देखा तो सामने एक काली छाया खड़ी थी।

    उस छाया की आंखें लाल अंगारों जैसी चमक रही थीं। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ी और उसकी आवाज़ गूंज उठी, "सनाया, इन चारों पर भरोसा मत करना। सच कुछ और है।"

    सनाया की सांस रुक गई। उसने कांपते स्वर में पूछा, "तुम… तुम कौन हो?"

    छाया ने और करीब आकर कहा, "मैं वो हूं जो इस राज्य की असली हकीकत जानता है। तुम्हें जो बताया गया है, वह अधूरा सच है। असलियत इससे कहीं ज्यादा डरावनी है।"

    सनाया ने चौंककर पूछा, "मतलब? क्या भविष्यवाणी झूठी है?"

    छाया ने ठंडी हंसी हंसते हुए कहा, "भविष्यवाणी झूठी नहीं है, लेकिन तुम्हें यह नहीं बताया गया कि वह कन्या केवल चुनने के लिए नहीं आएगी। वह खुद इस युद्ध का कारण बनेगी। तुम ही वह चाबी हो जिसके लिए चारों भाई एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाएंगे।"

    सनाया के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। बाहर युद्ध की आवाज़ और तेज़ हो रही थी, और अंदर यह रहस्य उसके दिल को छलनी कर रहा था।

  • 11. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 11

    Words: 1068

    Estimated Reading Time: 7 min

    तंबू के भीतर घुप्प अंधेरा फैला हुआ था। मशाल बुझ चुकी थी और बस बाहर से आती युद्ध की गूंज ही सुनाई दे रही थी। सनाया के दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि मानो पूरी दुनिया उसे सुन सकती थी। सामने खड़ी वह काली छाया धीरे-धीरे और नज़दीक आ रही थी। उसकी लाल चमकती आँखें अंधेरे को चीरती हुई सनाया की आत्मा तक पहुंच रही थीं।

    “तुम… तुम कौन हो?” सनाया ने कांपते स्वर में दोहराया।

    छाया ठंडी हंसी हंसी। “मैं वह हूं जो तुम्हें सच दिखाने आया है। जिन चार भाइयों को तुम अब तक अपना रक्षक समझती रही हो, वही तुम्हारे सबसे बड़े शत्रु हैं। उनकी नज़रों में तुम कोई कन्या नहीं, बल्कि एक पुरस्कार हो, एक चाबी… जिसके सहारे वे सिंहासन हथियाना चाहते हैं।”

    सनाया का गला सूख गया। वह याद करने लगी—निखिल की गंभीर आंखें, अश्वत्थ की तलवार जैसी नज़रें, शौर्य की चंचलता और आर्यन की बेचैनी। क्या यह सब सिर्फ छलावा था?

    लेकिन तभी उसके भीतर से एक और आवाज़ उठी। नहीं… सब झूठ नहीं हो सकता। निखिल के स्पर्श में, उसकी बातों में कुछ सच्चाई थी। शौर्य की हंसी में अपनापन था। आर्यन की आंखों में डर सिर्फ सत्ता का नहीं था, उसमें कुछ और छिपा था। और अश्वत्थ, उसकी कठोरता के पीछे भी एक जिम्मेदारी झलकती थी।

    छाया और करीब आ गई। “उनकी बातों में मत आना, सनाया। अगर तुमने गलत चुनाव किया, तो यह राज्य ही नहीं, तुम्हारी आत्मा भी नष्ट हो जाएगी।”

    इतना कहकर वह छाया धुएं की तरह तिरती हुई गायब हो गई। अचानक मशाल फिर से जल उठी, मानो कुछ हुआ ही न हो।

    सनाया सांस रोककर बैठी रही। उसका दिल अब भी कांप रहा था। तभी तंबू का परदा तेज़ी से हिला और चारों भाई भीतर घुसे। उनके कपड़े खून और धूल से सने हुए थे, तलवारें अब भी चमक रही थीं। बाहर युद्ध का शोर धीरे-धीरे थम चुका था।

    निखिल ने आते ही पूछा, “तुम ठीक हो ना, सनाया?” उसकी आंखों में पहली बार चिंता साफ दिखाई दी।

    सनाया उसे देखती रही। वह चाहकर भी कुछ कह न सकी। उसकी आंखें भर आईं और उसने धीमी आवाज़ में कहा, “यहां कोई था… कोई काली छाया। उसने कहा कि तुम सब मुझसे झूठ बोल रहे हो।”

    चारों भाइयों के चेहरे एक साथ बदल गए। अश्वत्थ का जबड़ा कस गया, शौर्य की हंसी गायब हो गई, आर्यन की आंखें और बेचैन हो उठीं, और निखिल ने तलवार को ज़मीन में गाड़ते हुए कहा, “तो वो यहां तक आ ही गया।”

    सनाया ने कांपते स्वर में पूछा, “कौन था वो?”

    निखिल उसके पास आया और उसके कंधों पर हाथ रखकर बोला, “वो अंधकार का दूत है, सनाया। वही हमारा असली शत्रु है। वही चाहता है कि तुम हमसे दूर हो जाओ, ताकि यह भविष्यवाणी कभी पूरी न हो सके। तुम ही हमारी ताकत हो, और वही तुम्हें तोड़ना चाहता है।”

    सनाया ने उसकी आंखों में झांका। पहली बार उसे लगा कि निखिल का कठोर चेहरा सिर्फ एक मुखौटा है। उसकी आंखों में एक गहरी तड़प थी, जैसे वह शब्दों से कहीं ज्यादा कहना चाहता हो।

    अचानक शौर्य ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की। वह हंसते हुए बोला, “भाई, तुम इतने गम्भीर क्यों हो जाते हो? अगर छाया आई भी थी, तो भाग गई। अब हमारी प्यारी सनाया हमारे साथ सुरक्षित है।” इतना कहकर उसने सनाया का हाथ थाम लिया और बोला, “डर मत, हम सब तेरा साथ देंगे।”

    आर्यन ने धीरे से कहा, “लेकिन सच यह है कि समय बहुत कम है। सनाया को जल्दी फैसला करना होगा। अगर उसने देरी की, तो पूरा राज्य खतरे में पड़ जाएगा।”

    सनाया की आंखों में आंसू आ गए। उसने फुसफुसाकर कहा, “मैं… मैं नहीं जानती क्या करूं।”

    निखिल ने उसकी ठुड्डी उठाई और गंभीर स्वर में कहा, “दिल की सुनो, सनाया। दिमाग धोखा दे सकता है, लेकिन दिल नहीं।”

    उस पल, उनके बीच एक अजीब खामोशी छा गई। सनाया को लगा मानो समय ठहर गया हो। बाहर की आवाजें, युद्ध का शोर, सब गायब हो गया। बस वह और निखिल—उसकी आंखों की गहराई में डूबी हुई।

    धीरे-धीरे निखिल उसके और करीब आ गया। उसका चेहरा इतना पास था कि सनाया उसकी सांसें अपने चेहरे पर महसूस कर सकती थी। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, लेकिन इस बार डर से नहीं, बल्कि किसी अज्ञात आकर्षण से। उसने खुद को रोकना चाहा, लेकिन उसकी आंखें बंद हो गईं।

    अगले ही क्षण, निखिल ने उसके होंठों को छू लिया। एक हल्का, लेकिन गहरा चुंबन—जिसमें अनकहे भाव, छिपी हुई तड़प और अनंत वचन थे। सनाया का दिल जैसे पिघल गया। उसकी उंगलियां अनजाने में निखिल की बांह पर कस गईं।

    शौर्य और आर्यन ने एक-दूसरे की ओर देखा और मुस्कुराए, लेकिन अश्वत्थ ने अपनी आंखें फेर लीं। उसके चेहरे पर कठोरता बनी रही, लेकिन भीतर कुछ और ही चल रहा था।

    जब निखिल पीछे हटा, तो सनाया की सांसें भारी थीं। उसका चेहरा लाल था और आंखों में नमी। उसने धीरे से कहा, “अगर मैं सचमुच इस भविष्यवाणी का हिस्सा हूं… तो मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती।”

    निखिल ने उसके माथे को छूते हुए कहा, “और मैं वादा करता हूं, चाहे कितनी भी लड़ाई क्यों न हो, मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।”

    बाहर फिर से युद्ध के नगाड़े बजने लगे। चारों भाइयों ने तुरंत हथियार थाम लिए। लेकिन इस बार सनाया का दिल बदल चुका था। वह अब केवल एक डरी-सहमी लड़की नहीं रही। उसने तय कर लिया था कि अगर यह उसकी किस्मत है, तो वह भागेगी नहीं। वह लड़ेगी—अपने लिए, इस राज्य के लिए और शायद… निखिल के लिए।अचानक बाहर से ढोल की आवाज़ गूँजी। एक और दूत दौड़ता हुआ आया—“महाराज! दुश्मनों ने पीछे हटते-हटते किले पर हमला कर दिया है। हमें तुरंत वहाँ पहुँचना होगा।”

    चारों भाई तुरंत तैयार हो गए। निखिल ने जाते-जाते सनाया की ओर गहरी नज़र डाली और कहा, “हम लौटेंगे… और फिर तुमसे तुम्हारा दिल भी सुनेंगे और तुम्हारा फैसला भी।”

    सनाया वहीं खड़ी रह गई, उसका दिल अब भी निखिल की गर्माहट से भरा था। मगर उसके मन के कोने में वह रहस्यमयी छाया की आवाज़ गूंज रही थी—“इन चारों पर भरोसा मत करना। सच कुछ और है।”

    वह सोचने लगी—क्या उसका दिल निखिल को चुन रहा है, लेकिन किस्मत उसे किसी और रास्ते पर ले जाएगी? और अगर सच सामने आया तो क्या निखिल का प्यार भी उसके साथ रहेगा, या यह सिर्फ़ एक मोह का पल था?

    उसके दिल में हज़ारों सवाल उठ रहे थे, और बाहर युद्ध की गड़गड़ाहट इस रहस्य को और गहरा बना रही थी।

  • 12. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 12

    Words: 1354

    Estimated Reading Time: 9 min

    सनाया अब अकेली खड़ी थी। बाहर युद्ध की आहट धीरे-धीरे थम चुकी थी। तंबू के भीतर मशालों की लौ मद्धम जल रही थी। तभी तंबू का पर्दा हटा और चारों राजकुमार अंदर आए। उनके चेहरे थके हुए थे, तलवारों पर अब भी खून की बूंदें जमी हुई थीं, लेकिन उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।

    निखिल सबसे पहले उसके पास आया। उसकी गहरी नज़रें सीधे सनाया की आँखों में उतर गईं। वह धीरे से बोला,
    “हमारे लिए सबसे बड़ा युद्ध बाहर नहीं… बल्कि तुम्हारे दिल में है, सनाया।”

    सनाया काँप उठी। निखिल ने उसका हाथ पकड़कर अपने होंठों से छू लिया। उसके स्पर्श ने सनाया के पूरे अस्तित्व को झकझोर दिया।

    अश्वत्थ पीछे नहीं रहा। वह उसके करीब आया और उसके चेहरे को अपनी उंगलियों से छूते हुए बोला,
    “तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं कि तुम्हारे बिना हम चारों अधूरे हैं।”

    सनाया की साँसें तेज़ हो गईं। शौर्य ने शरारती मुस्कान के साथ उसकी कमर में हाथ डाल लिया और उसे अपनी ओर खींचते हुए बोला,
    “अब डरना मत, ये रात सिर्फ़ हमारी है।”

    आर्यन ने आगे बढ़कर उसके बालों को सहलाया और उसकी गर्दन पर झुकते हुए फुसफुसाया,
    “तुम ही हमारी रूह हो… और आज हम ये साबित कर देंगे।”

    सनाया के चारों ओर जैसे आग का घेरा बन गया था। चारों तरफ बस उनकी साँसें, उनकी गर्माहट, उनकी नज़दीकियाँ।

    निखिल ने उसके होंठों को अपने होंठों से कैद कर लिया। एक गहरी, लंबी किस… जिसमे उसकी सारी मजबूरी और चाहत घुल गई।
    अश्वत्थ ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा और उसे और करीब खींच लिया।
    शौर्य उसकी कलाई पकड़कर उसे अपने सीने से सटा रहा था।
    आर्यन उसकी आँखों में खोकर बार-बार उसके चेहरे को चूम रहा था।

    सनाया की धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि मानो उसका दिल बाहर आ जाएगा। उसका पूरा शरीर इन चारों के बीच पिघल रहा था।

    किसी की उँगलियाँ उसके बालों में उलझी थीं, कोई उसकी कमर को थामे था, कोई उसके होंठों को चूम रहा था, तो कोई उसके गले पर अपनी गर्म साँसें छोड़ रहा था।

    सनाया अब विरोध नहीं कर रही थी। उसके भीतर का डर पिघल चुका था… उसकी जगह एक गहरी चाहत ने ले ली थी।

    चारों भाइयों के बीच बंधी हुई, वह एक पल के लिए भूल गई कि वह कौन है, कहाँ से आई है। बस याद रह गया था कि वह उनकी है… और वे उसके।

    उस रात तंबू के बाहर सन्नाटा था, पर भीतर धड़कनों का तूफ़ान। मशाल की लौ काँप रही थी, जैसे वह भी इस अजीब लेकिन गहरे मिलन की गवाह बन रही हो।
    सनाया का दिल अब भी तेजी से धड़क रहा था। चारों भाइयों की मौजूदगी ने जैसे पूरे माहौल को बदल दिया था। मशाल की हल्की रोशनी उनके चेहरों पर पड़कर अजीब सा आकर्षण पैदा कर रही थी।

    सबसे पहले निखिल उसके पास आया। उसकी गहरी आँखों में चाहत साफ झलक रही थी। उसने सनाया का हाथ अपने हाथों में लिया और धीरे-धीरे अपनी उंगलियों से उसके नर्म हाथों पर लकीरें खींचने लगा।
    “तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं, सनाया… जब तुम हमारे सामने होती हो तो हमें दुनिया की हर जीत छोटी लगती है।”

    यह कहते ही उसने सनाया को अपनी बाहों में समेट लिया। उसका चेहरा उसके करीब लाकर उसके होंठों पर अपना स्पर्श छोड़ दिया। यह किस उतनी ही गहरी थी जितनी गहरी उसकी आँखें। सनाया ने खुद को पूरी तरह उसके आगोश में खोते हुए पाया।

    तभी अश्वत्थ पीछे से उसके करीब आया। उसने सनाया की पीठ पर हाथ रखा और उसकी नज़दीकियों में डूबते हुए बोला,
    “निखिल ने तुम्हें चूमा… लेकिन तुम्हारे चेहरे की मासूमियत अभी भी मेरी है।”
    उसने उसके गालों को अपनी हथेलियों में थामा और उसके माथे, आँखों और गालों पर लंबे चुंबन दिए। सनाया की साँसें अनियंत्रित हो रही थीं।

    शौर्य हमेशा की तरह सबसे शरारती था। वह मुस्कुराता हुआ सनाया की कमर में हाथ डालकर उसे अचानक अपनी ओर खींच लाया।
    “इतनी नज़दीकी से देखूँ तो तुम्हारी धड़कनें भी मेरी होंगी।”
    उसने उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए। उसकी गर्म साँसों ने सनाया को अंदर तक सिहरन से भर दिया। वह उसकी पकड़ में कांप उठी।

    आर्यन, जो अब तक बस उसे निहार रहा था, धीरे-धीरे आगे बढ़ा। उसने उसके बालों को सहलाते हुए कहा,
    “तुम्हारे बिना हमारी जिंदगी अधूरी है… और आज हम तुम्हें ये एहसास कराएंगे।”
    उसने उसके माथे पर होंठ रखे, फिर धीरे-धीरे उसकी ठोड़ी उठाकर उसकी आँखों में देखा और उसके होंठों को लंबे समय तक कैद कर लिया।

    अब सनाया चारों तरफ से उनके बीच घिरी हुई थी। किसी के हाथ उसकी कमर पर, किसी की उंगलियाँ उसके गालों पर, कोई उसके होंठों पर था तो कोई उसके बालों में उलझा था।

    वह अब किसी एक की नहीं रही… बल्कि चारों की चाहत का हिस्सा बन चुकी थी।

    निखिल ने उसकी ठुड्डी उठाई और उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा,
    “अब तुम हमारी हो, सनाया… हमेशा के लिए।”
    उसके होंठों ने फिर से उसे चूम लिया, इस बार और गहराई से।

    अश्वत्थ ने उसके कंधों को सहलाया और उसे अपनी ओर खींचते हुए उसकी गर्दन पर गर्म चुंबन छोड़े।
    शौर्य ने हँसते हुए उसकी हथेलियों को पकड़ा और अपने सीने पर रख दिया, जिससे सनाया उसकी धड़कनों को महसूस कर सके।
    आर्यन ने उसके बालों को पीछे हटाकर उसकी गर्दन से लेकर उसके गले तक अपने होंठ फिरा दिए।

    सनाया पूरी तरह पिघल चुकी थी। उसकी धड़कनें तेज़, उसकी साँसें भारी और उसकी आँखों में चाहत का समंदर।

    उस रात, मशाल की हल्की लौ उनकी परछाइयों को दीवारों पर नचा रही थी। चारों भाइयों की बाँहों में बंधी सनाया ने पहली बार महसूस किया कि चाहत का रूप कैसा होता है—मीठा, तीखा और पिघलाने वाला।

    वह अब उनकी थी। और वे उसके।
    कमरे के चारों तरफ़ हल्की-हल्की रोशनी फैली हुई थी। मशालें टिमटिमा रही थीं और उस रोशनी में सनाया के चेहरे की मासूम चमक और भी निखर रही थी। वह चारों भाइयों के बीच खड़ी थी—निखिल, अश्वत्थ, शौर्य और आर्यन। चारों की नज़रें सिर्फ़ उस पर थीं, जैसे वह उनकी ज़िंदगी की इकलौती चाहत हो।

    निखिल का पल

    सबसे पहले निखिल उसके करीब आया। उसकी गहरी आवाज़ कमरे की ख़ामोशी को तोड़ते हुए बोली—
    “सनाया, तुम्हारी धड़कनें अब मेरी हैं।”

    उसने उसका हाथ थामा और उसकी हथेली पर होंठ रखे। सनाया की आँखें बंद हो गईं। निखिल ने धीरे-धीरे उसका चेहरा अपनी ओर खींचा और उसके होंठों को अपने होंठों में कैद कर लिया। किस धीमी थी, लेकिन गहरी… इतनी कि सनाया को लगा उसकी सांसें उसके अंदर घुल गई हैं।
    उसके हाथ उसकी कमर पर कस गए और वह उसे अपने सीने से ऐसे लगाकर खड़ा हो गया जैसे पूरी दुनिया से छुपाना चाहता हो।

    अश्वत्थ का पल

    जैसे ही निखिल पीछे हटा, अश्वत्थ आगे आया। वह हमेशा गंभीर रहता था, पर आज उसकी आँखों में भी चाहत थी। उसने सनाया की ठोड़ी उठाई और उसकी आँखों में गहराई से देखा।
    “तुम्हारी मासूमियत मुझे दीवाना बना देती है…”

    उसने धीरे से उसके बालों को सहलाया और उसके माथे पर होंठ रखे। फिर धीरे-धीरे उसकी आँखों, गालों और गर्दन तक उतरता चला गया। उसके होंठों का स्पर्श सनाया को कंपकंपा रहा था। वह पूरी तरह उसके आगोश में सिमट गई।

    शौर्य का पल

    अब बारी थी शौर्य की। वह हमेशा सबसे शरारती था। उसने मुस्कुराते हुए सनाया की कमर में हाथ डाला और उसे अचानक अपनी ओर खींच लिया।
    “तुम्हारी धड़कनों की रफ़्तार मुझे पागल कर देती है।”

    उसने उसकी गर्दन पर अपने गर्म होंठ रख दिए। सनाया की साँसें तेज़ हो गईं। शौर्य ने उसकी हथेलियों को पकड़कर अपने सीने पर रखा।
    “सुनो… ये धड़कनें अब सिर्फ़ तुम्हारे नाम हैं।”
    सनाया उसकी बाँहों में काँप उठी। उसकी आँखें बंद थीं और होंठों पर धीमी कराह थी।

    आर्यन का पल

    सबसे आखिर में आर्यन उसके पास आया। वह अब तक चुपचाप उसे देख रहा था। उसने धीरे-धीरे उसके बाल पीछे हटाए और उसकी ठोड़ी उठाकर बोला—
    “तुम्हारे बिना हम अधूरे हैं, सनाया। और आज हम तुम्हें पूरा कर देंगे।”

    उसने उसके होंठों पर एक लंबा, गहरा और डूबता हुआ चुंबन दिया। इतना गहरा कि सनाया खुद को पूरी तरह खो बैठी। आर्यन के हाथ उसकी पीठ पर घूम रहे थे, और उसका आलिंगन इतना कसाव भरा था कि सनाया को लगा वह उससे कभी अलग नहीं होगी।

  • 13. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 13

    Words: 1113

    Estimated Reading Time: 7 min

    चाहत की हदें

    रात बीत चुकी थी, लेकिन कमरे में अब भी हल्की-हल्की महक और साँसों की गूंज बाकी थी। मशाल की लौ धीमी हो चुकी थी और खिड़की से आती ठंडी हवा सनाया के चेहरे से खेल रही थी।

    सनाया चारों भाइयों के बीच लेटी थी। उसके गाल अब भी लाल थे, होंठ काँप रहे थे और आँखें नींद से भारी थीं, लेकिन उसके दिल में एक अलग सुकून था।

    निखिल का साया

    निखिल उसके बहुत करीब था। उसने धीरे से उसका हाथ थामा और अपनी उंगलियों में कैद कर लिया।
    “सनाया, अगर कभी हमें छोड़कर जाने का सोचना भी… तो ये हाथ थाम लेना। मैं कभी तुम्हें जाने नहीं दूँगा।”

    सनाया ने उसकी आँखों में देखा और हल्की मुस्कान दी। निखिल झुककर उसके होंठों को छू गया। इस बार किस गहरी नहीं थी, बल्कि नर्म और सुकून देने वाली।

    अश्वत्थ की गहराई

    अश्वत्थ ने धीरे से उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। उसके हाथ उसकी बालों में डूब गए।
    “तुम्हारी मासूमियत मेरी कमजोरी है, सनाया। तुम मेरे पास रहो… बस यही दुआ करता हूँ।”

    उसके शब्दों में इतनी गहराई थी कि सनाया की आँखें नम हो गईं। उसने खुद को अश्वत्थ की छाती से लगा लिया और उसकी धड़कनों को महसूस करने लगी।

    शौर्य की शरारत

    अचानक शौर्य ने उसकी ठोड़ी पकड़कर ऊपर किया और शरारती अंदाज़ में बोला—
    “इतनी जल्दी आँखें क्यों बंद कर रही हो? अभी तो रात बाकी है।”

    उसने बिना इंतज़ार किए उसके होंठों को चूम लिया। किस इस बार धीमा नहीं था… बल्कि तेज़, जुनूनी और बेबाक। उसकी बाँहें इतनी कसाव भरी थीं कि सनाया को लगा वह उसमें घुलती चली जा रही है।

    आर्यन की चाहत

    आर्यन अब तक चुपचाप देख रहा था। उसने अचानक सनाया को अपनी ओर खींचा और उसकी कमर में हाथ डालकर फुसफुसाया—
    “तुम्हारे बिना हमारी ज़िंदगी अधूरी है। आज के बाद तुम्हारे आँसू सिर्फ़ हमारी आँखों में होंगे, और तुम्हारी मुस्कान हमारी साँसों में।”

    उसने उसके गले पर होंठ रखे और धीरे-धीरे गर्दन से होते हुए उसके कंधों तक उतर गया। सनाया की साँसें तेज़ हो चुकी थीं।


    ---

    चारों की दीवानगी

    अब सनाया उनके बीच थी। चारों उसे अलग-अलग तरह से चाह रहे थे।

    निखिल उसकी हथेलियों को चूम रहा था।

    अश्वत्थ उसकी आँखों को सहला रहा था।

    शौर्य उसके होंठों से खेल रहा था।

    आर्यन उसकी गर्दन पर अपनी चाहत छोड़ रहा था।


    सनाया खुद को रोक नहीं पा रही थी। उसका दिल कह रहा था—
    “ये चारों मेरे लिए ही बने हैं… और मैं इनकी हूँ।”


    ---

    पलकों में बंद चाहत

    कुछ ही देर में चारों भाइयों ने उसे अपने आलिंगन में ऐसे जकड़ लिया कि सनाया को लगा वह अब कभी उनसे दूर नहीं जाएगी।

    उसके चारों ओर सिर्फ़ उनके प्यार, उनकी गर्माहट और उनकी धड़कनों की आवाज़ थी।

    उस रात न सिर्फ़ उनके होंठ और हाथ जुड़े… बल्कि उनकी आत्माएँ भी एक हो गईं।

    कमरे की दीवारें, हवा और रोशनी भी उनकी चाहत की गवाह बन गईं।
    रात आधी से भी ज़्यादा गुज़र चुकी थी, मगर कमरे में अब भी एक अजीब-सी गर्माहट और चाहत की सुगंध फैली हुई थी। खिड़की से आती ठंडी हवा पर्दों को हिला रही थी, और मशाल की झिलमिलाती लौ उनकी परछाइयों को दीवारों पर नचा रही थी।

    सनाया थकी हुई, मगर खुश थी। चारों भाइयों के बीच लेटी हुई उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसकी ज़िंदगी पूरी हो गई हो। उसकी साँसें कभी धीमी, कभी तेज़ हो रही थीं—उनकी नज़दीकियों ने उसके दिल की धड़कनों को किसी अनसुने गीत की तरह बेचैन कर दिया था।


    ---

    निखिल की नरमी

    निखिल ने उसका हाथ थाम रखा था। उसकी उंगलियों की हल्की पकड़ सनाया के दिल तक उतर रही थी।
    वह झुककर धीरे-धीरे उसकी हथेली पर किस करने लगा—पहले अंगूठे पर, फिर हर उंगली पर।
    “तुम्हारा हर एहसास मेरी रूह में बसा है, सनाया। मैं तुम्हें खोने का ख्याल भी बर्दाश्त नहीं कर सकता।”

    उसके शब्द सुनकर सनाया की आँखें भीग गईं। उसने खुद निखिल के गालों को छुआ और धीरे से उसे चूम लिया। उस किस में मासूमियत भी थी और तड़प भी।


    ---

    अश्वत्थ की गहराई

    अश्वत्थ ने उसकी बालों में अपनी उंगलियाँ फेरीं। उसकी गहरी आवाज़ कानों में गूंज उठी।
    “तुम्हारी मासूम मुस्कान ही मेरी सबसे बड़ी ताकत है। जब तक मैं ज़िंदा हूँ, कोई तुम्हें छू भी नहीं पाएगा।”

    उसने धीरे से सनाया का चेहरा अपनी छाती से लगाया। सनाया उसकी धड़कनों को सुनते-सुनते खो सी गई। उसके लिए यह पल किसी सपने जैसा था—जहाँ सिर्फ़ सुकून था और चाहत का समंदर।


    ---

    शौर्य की शरारत

    लेकिन यह शांति ज़्यादा देर नहीं टिक सकी। शौर्य हमेशा की तरह शरारती था। उसने अचानक सनाया की ठोड़ी उठाई और उसकी आँखों में गहराई से झाँकते हुए बोला—
    “इतनी जल्दी थक गई? अभी तो आग बाकी है…”

    उसने बिना इंतज़ार किए उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उसकी किस धीमी नहीं थी, बल्कि तेज़, जुनूनी और पागलपन से भरी हुई। उसकी बाँहों ने सनाया को कसकर जकड़ लिया, मानो उसे कभी छोड़ना ही न चाहता हो। सनाया की साँसें तेज़ हो गईं, उसका चेहरा लाल हो उठा और वह खुद को शौर्य की बाँहों में पिघलता महसूस करने लगी।


    ---

    आर्यन की चाहत

    आर्यन अब तक सब देख रहा था। उसकी आँखों में आग भी थी और प्यार भी। उसने अचानक सनाया को अपनी ओर खींचा। उसकी मजबूत बाँहों का दबाव सनाया को काँपने पर मजबूर कर रहा था।
    वह उसके कान के पास झुककर फुसफुसाया—
    “तुम्हें पता है, तुम्हारी हर साँस पर मेरा हक़ है… आज से हमेशा के लिए।”

    उसके शब्दों के साथ ही उसके होंठ सनाया की गर्दन पर उतर आए। वह धीरे-धीरे उसकी त्वचा पर अपनी चाहत का निशान छोड़ता जा रहा था। सनाया की आँखें बंद हो गईं और उसके होंठों से हल्की कराह निकल गई।


    ---

    चाहत का संगम

    अब सनाया चारों भाइयों के बीच थी—

    निखिल उसकी हथेलियों और उंगलियों को चूम रहा था।

    अश्वत्थ उसके माथे और आँखों को सहला रहा था।

    शौर्य उसके होंठों से बेबाकी से खेल रहा था।

    आर्यन उसकी गर्दन और कंधों पर अपनी चाहत की छाप छोड़ रहा था।


    सनाया खुद को रोक नहीं पा रही थी। उसकी साँसें बेकाबू थीं, उसका शरीर चारों की बाँहों में काँप रहा था। उसने सोचा—
    “क्या किसी लड़की को इतना प्यार मिल सकता है? क्या ये सपना है या हकीकत?”

    चारों भाइयों ने उसे अपने आलिंगन में कसकर जकड़ लिया। वह अब उनके बीच घुल चुकी थी।


    ---

    रूह का मिलन

    कमरे की दीवारें, झिलमिलाती मशालें और ठंडी हवा सब इस पल के गवाह थे। उस रात न सिर्फ़ उनके होंठ और हाथ जुड़े थे, बल्कि उनकी आत्माएँ भी एक हो गई थीं।

    सनाया के दिल में अब कोई डर नहीं था—बस एक ही अहसास था कि वह इन चारों की है… और ये चारों सिर्फ़ उसके।

  • 14. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 14

    Words: 1060

    Estimated Reading Time: 7 min

    हदों से आगे

    रात अब ढल चुकी थी, मगर कमरे में चाहत की तपिश अब भी बाकी थी। मशाल की लौ धीमी हो गई थी, लेकिन उसके उजाले में पाँचों परछाइयाँ अब भी आपस में घुली-मिली थीं।

    सनाया थकी हुई थी, मगर उसके चेहरे पर एक अनोखी चमक थी। उसकी साँसें अब भी तेज़ चल रही थीं। चारों भाइयों की बाँहों का स्पर्श उसे बार-बार एहसास दिला रहा था कि वह अकेली नहीं है।


    ---

    निखिल का सुकून

    निखिल ने धीरे से सनाया को अपनी छाती से लगाया। उसकी उंगलियाँ सनाया के बालों को सहला रही थीं।
    “तुम्हारी मासूमियत मुझे पागल कर देती है, सनाया। तुम्हें देखता हूँ तो लगता है, दुनिया की सारी दौलत, ताकत बेकार है अगर तुम मेरे साथ हो।”

    उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी नरमी थी। उसने उसके माथे पर किस किया। सनाया मुस्कुराई और उसकी गर्दन पर अपना चेहरा रखकर गहरी साँस भरने लगी।


    ---

    शौर्य का पागलपन

    शौर्य ने दोनों को देखा और शरारती मुस्कान दी। उसने अचानक सनाया को खींचकर अपनी गोद में बिठा लिया।
    “बस इतने में ही खुश हो जाओगी? अभी तो बहुत कुछ बाकी है…”

    उसने सनाया की कमर पर कसकर पकड़ बनाई और उसके होंठों पर फिर से टूट पड़ा। उसकी किस तेज़ और पागलपन से भरी हुई थी। सनाया की साँसें थमने लगीं। उसका चेहरा तप गया और होंठ काँपने लगे।


    ---

    आर्यन का जुनून

    आर्यन ने उसकी गर्दन पकड़ी और धीरे-धीरे उसके कंधों पर होंठ रख दिए। उसका हर स्पर्श सनाया की रूह तक उतर रहा था।
    “तुम्हारे बिना अब एक पल भी नहीं जी पाऊँगा… तुम मेरी आदत बन चुकी हो।”

    वह उसके कान में ये कहते हुए और पास खिंचता गया। सनाया काँप रही थी, उसकी उंगलियाँ आर्यन की पीठ पर कसती जा रही थीं।


    ---

    अश्वत्थ की गहराई

    अश्वत्थ अब तक खामोश था, मगर उसकी आँखों में गहरी आग थी। उसने धीरे से सनाया का चेहरा पकड़ा और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला—
    “तुम्हारी हर धड़कन पर मेरा नाम लिखा है। आज से तुम सिर्फ़ हमारी हो… और कोई हक़दार नहीं।”

    उसने उसके होंठों पर हल्की मगर लंबी किस दी। सनाया के बदन में झुरझुरी दौड़ गई।


    ---

    चाहत का समंदर

    चारों भाई अब उसके चारों तरफ़ थे—

    निखिल उसके माथे और हथेलियों पर नरमी से किस कर रहा था।

    शौर्य उसकी कमर पकड़कर उसे अपने पास खींचे हुए था।

    आर्यन उसकी गर्दन और कंधों पर अपनी छाप छोड़ रहा था।

    अश्वत्थ उसकी आँखों और होंठों पर अपनी गहराई उतार रहा था।


    सनाया का दिल अब काबू में नहीं था। उसकी साँसें तेज़, होंठ काँपते हुए और आँखें बंद थीं। उसने सोचा—
    “मैं किसे अपना कहूँ? ये चारों मेरी जान बन चुके हैं।”

    उसकी हल्की कराहें कमरे में गूंज रही थीं, और चारों भाई उसे अपने-अपने अंदाज़ में पागलपन से चूम रहे थे।


    ---

    रूह का मिलन

    उस रात चाहत हदों से आगे निकल गई। चारों भाइयों ने उसे इतना प्यार दिया कि सनाया को लगा उसकी आत्मा भी उनके आलिंगन में पिघल गई है।

    मशाल बुझ चुकी थी, मगर कमरे में उनके मिलन की गर्मी अब भी बाकी थी। बाहर चाँद बादलों में छिप गया, जैसे उनकी चाहत को गुप्त रखने का वादा कर रहा हो।

    सनाया के दिल में अब कोई सवाल नहीं था—
    वह जान चुकी थी कि उसकी किस्मत हमेशा इन चारों भाइयों से बंध चुकी है।
    रात की खामोशी अब सन्नाटे में बदल चुकी थी। कमरे में जलती मशाल की राख ठंडी हो रही थी, मगर सनाया और चारों भाइयों के दिलों की आग अब भी बुझी नहीं थी।

    सनाया चारों की बाँहों में घिरी हुई थी— जैसे वो अब उनकी कै़दी बन चुकी हो, मगर यह कै़द उसे दुनिया का सबसे बड़ा सुकून दे रही थी।


    ---

    अश्वत्थ की कसमें

    अश्वत्थ ने धीरे से सनाया का चेहरा अपनी हथेली में लिया। उसकी गहरी आँखों में दर्द और प्यार दोनों थे।
    “सनाया… तुम जानती हो ना, अगर तुम हमें छोड़कर चली गई तो हम ज़िंदा नहीं रह पाएँगे।”

    उसकी आवाज़ काँप रही थी। उसने उसकी हथेली पर हल्की किस की। सनाया की आँखों में आँसू चमकने लगे।


    ---

    आर्यन की तड़प

    आर्यन ने उसका आँसू देखा और बेचैन होकर उसे गले से लगा लिया।
    “नहीं, रोओ मत… हमें तुम्हारी मुस्कान चाहिए। तुम्हारी ये आँखें कभी भी आँसुओं से नहीं भरनी चाहिए। अगर तुम रोई, तो हमारी सारी दुनिया रो पड़ेगी।”

    उसने उसके गालों पर किस करते हुए उसके आँसू पोंछे। उसकी पकड़ इतनी कसकर थी कि लगा मानो सनाया कभी उससे दूर न हो सके।


    ---

    शौर्य का जुनून

    शौर्य ने हल्के गुस्से से कहा—
    “सनाया, तुम्हें हमारी होनी ही होगी… चाहे ये दुनिया हक़ दे या न दे। हम चारों एक हैं, और तुम्हें चारों से ही प्यार करना होगा। हमें कोई बाँट नहीं सकता।”

    उसके शब्दों में पागलपन था, मगर उसी पागलपन में गहरी मोहब्बत भी छिपी थी। उसने सनाया की कमर पकड़कर उसे अपने करीब खींचा और उसके होंठों पर तेज़, प्यासा किस कर दिया।

    सनाया की साँसें थम गईं। उसकी देह काँप उठी।


    ---

    निखिल का सुकून

    निखिल ने सबको रोकते हुए सनाया की हथेलियाँ थाम लीं।
    “सनाया, हम चारों तुम्हें सिर्फ़ पाना ही नहीं चाहते… हम तुम्हें अपनी आत्मा तक में बसाना चाहते हैं। अगर तुम चाहो तो हम आज कसम खा लें— चाहे कुछ भी हो जाए, हम हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे। चारों तुम्हारे चारों तरफ़ खड़े रहेंगे, तुम्हारी ढाल बनकर।”

    उसकी आवाज़ में सच्चाई थी। उसकी उंगलियों का स्पर्श सनाया के दिल को गहराई तक छू गया।


    ---

    सनाया की उलझन

    सनाया चारों को देख रही थी। उसका दिल तेज़ धड़क रहा था।
    वो सोच रही थी—
    “क्या ये मुमकिन है? क्या मैं सच में चारों से एक साथ प्यार कर सकती हूँ? क्या ये पाप है या मेरी किस्मत?”

    उसकी आँखों से आँसू बह निकले, मगर इस बार ये आँसू डर के नहीं थे… ये आँसू प्यार के थे।

    उसने धीरे से कहा—
    “मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाऊँगी… चाहे दुनिया मुझे गुनहगार ही क्यों न कहे। मैं तुम्हारी हूँ… सिर्फ़ तुम्हारी।”


    ---

    चाहत का समर्पण

    उसके ये शब्द सुनते ही चारों भाइयों ने उसे कसकर अपनी बाँहों में भर लिया।

    निखिल ने उसके माथे पर किस किया।

    आर्यन ने उसके आँसू चूम लिए।

    शौर्य ने उसके होंठों पर पागलपन से अपनी चाहत उतारी।

    अश्वत्थ ने उसकी आँखों में झाँककर कहा— “अब तुम कभी अकेली नहीं रहोगी।”


    सनाया ने खुद को उनके हवाले कर दिया। उस रात चाहत और इश्क़ ने मिलकर कसम खाई— अब यह रिश्ता कभी टूटेगा नहीं।

  • 15. Jana na chod kr ( a reborn story) - Chapter 15

    Words: 1306

    Estimated Reading Time: 8 min

    आज महल में पहली बार ऐसा नज़ारा था। चारों राजकुमार अपने-अपने रुतबे के साथ खड़े थे, और उनके बीच राजकुमारी सनाया थी—अब केवल राजकुमारी नहीं, बल्कि उन चारों की पत्नी।

    महल की संगमरमर की फर्श पर बिछी रेशमी कालीन, दीवारों पर सुनहरी नक्काशी और झूमरों की चमक सब उसकी शान बढ़ा रहे थे। जैसे पूरा राजमहल उसके स्वागत में सजा हो।

    सनाया ने भारी गहनों और लाल जोड़े में प्रवेश किया। उसकी चाल में नर्मी थी, पर चेहरे पर राजसी गरिमा। यह वही लड़की थी जिसे कभी चारों भाइयों ने अपने दिल में जगह दी थी, और अब किस्मत ने उसे सबकी रानी बना दिया।

    निखिल आगे बढ़ा, और उसके हाथ को थामकर बोला—
    “तुम अब इस महल की धड़कन हो। तुम्हारे बिना ये दीवारें खाली लगेंगी।”

    अश्वत्थ ने गहरी नज़रों से देखा—
    “तुम सिर्फ हमारी नहीं, इस राज्य की भी रक्षा कवच हो।”

    शौर्य ने हँसते हुए कहा—
    “पर हमारे लिए, तुम हमेशा हमारी सनाया रहोगी… वो जो हमें पूरा करती है।”

    और आर्यन, जो सबसे भावुक था, उसकी आँखों में आँसू आ गए।
    “तुम्हें अपनी पत्नी कहने का सौभाग्य हमें मिला है, यही हमारे जीवन की सबसे बड़ी जीत है।”

    सनाया चारों ओर देखती रही। वह जानती थी कि उसका रिश्ता साधारण नहीं था। वह अब चारों भाइयों की जीवनसंगिनी थी—उनकी राजमहल की रानी।

    कमरे के बीच रखे विशाल शाही पलंग पर उसने चारों की ओर देखा। उसकी आँखों में झिझक भी थी और प्रेम भी। और चारों भाइयों की नज़रें साफ़ कह रही थीं—
    “अब यह महल ही नहीं, तुम्हारा दिल भी हमारा राज्य है।”

    उसी क्षण बाहर राजमहल की तोपों से सलामी दी गई। पूरा राज्य गूँज उठा—
    “महारानी सनाया की जय हो…!”

    लेकिन इस जयघोष के बीच, एक पुराना भविष्यवाणी ग्रंथ अचानक अपने आप खुल गया।
    उस पर लिखा था—
    “अगर राजमहल की रानी चारों के साथ रह गई तो राज्य अमर होगा। पर अगर उसने दिल से केवल एक को चुना… तो बाकी तीन का विनाश निश्चित है।”

    सनाया ने उस पन्ने को पढ़ा और उसकी साँसें थम गईं।
    क्या यह प्यार ही राज्य को बचाएगा या यह प्यार राज्य को बर्बाद कर देगा…?राजमहल आज फूलों से सजा था। लाल गुलाब की पंखुड़ियाँ सीढ़ियों पर बिछी थीं, संगमरमर की दीवारों पर रेशमी परदे लटकाए गए थे। झूमरों की सुनहरी रोशनी महल को किसी स्वप्न जैसा बना रही थी।

    चारों राजकुमार—निखिल, अश्वत्थ, शौर्य और आर्यन—राजसी पोशाकों में खड़े थे। उनकी आँखों में गर्व भी था और प्रेम भी। महल का हर दरबारी आज यही देख रहा था कि किस तरह एक राजकुमारी, सनाया, अब सिर्फ़ उनकी महारानी नहीं, बल्कि चारों की जीवनसंगिनी थी।

    सनाया लाल जोड़े और भारी गहनों में कमरे में दाख़िल हुई। उसका चेहरा शर्म से झुका था, लेकिन उसकी आँखों में राजसी आत्मविश्वास झलक रहा था। जैसे पूरे महल की ताक़त उसी से निकल रही हो।

    चारों ने बारी-बारी से उसके पास आकर उसका हाथ थामा।

    निखिल ने उसकी हथेलियों पर चूमा और कहा—
    “अब यह हाथ सिर्फ़ हमारे राज्य को नहीं, हमारे दिलों को भी थामेगा।”

    अश्वत्थ ने उसकी आँखों में देखा—
    “तुम्हारी नज़रें हमें साहस देती हैं।”

    शौर्य ने मुस्कुराकर उसके गाल पर उंगली फिराई—
    “और तुम्हारी मुस्कान हमारी जान है।”

    आर्यन ने काँपती आवाज़ में कहा—
    “तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूँ, सनाया।”


    सनाया का चेहरा लाल हो उठा। चारों भाइयों की निकटता उसे एक साथ सुरक्षित भी कर रही थी और भीतर आग भी लगा रही थी। महल का शाही पलंग आज सिर्फ़ आराम की जगह नहीं था—यह उनके रिश्ते की शुरुआत का साक्षी बनने वाला था।

    वह धीरे-धीरे बैठी, और चारों उसके चारों ओर। मोमबत्तियों की लौ झिलमिला रही थी, कमरे में हल्की चंदन की खुशबू घुली थी। सनाया की साँसें तेज़ हो रही थीं। उसका दिल मानो कह रहा था कि वह अब सिर्फ़ राजमहल की रानी नहीं, बल्कि चारों की धड़कन बन चुकी है।

    जब शौर्य ने उसका घूंघट उठाया, तो महल की घंटियाँ बजीं। सनाया की पलकें काँप उठीं। चारों ने एक-एक करके उसे अपनी बाहों में समेटा—कोई उसके बालों को सहला रहा था, कोई उसके हाथों को पकड़ रहा था, कोई उसके चेहरे को छू रहा था, और कोई उसकी कमर को थामे हुए था। उस पल में वह खुद को बाँटी नहीं, बल्कि चार गुना प्यार से भरी हुई महसूस कर रही थी।

    लेकिन तभी…

    महल की सबसे पुरानी हवेली का दरवाज़ा अपने आप खुला। वहाँ रखी भविष्यवाणी की किताब अपने आप हवा में पलटने लगी।

    सनाया ने देखा—
    पन्ने पर लिखा था:
    “अगर राजमहल की रानी ने अपना दिल चारों में बराबर बाँटा तो यह राज्य अमर रहेगा। लेकिन अगर उसका दिल किसी एक की ओर झुका… तो बाकी तीन का पतन निश्चित है।”

    सनाया के हाथ काँप गए। उसकी आँखों में आँसू आ गए।
    चारों भाइयों ने उसे पकड़ा और पूछा—
    “क्या हुआ, प्राणेश्वरी?”

    सनाया बोली नहीं। उसने बस उस किताब की ओर इशारा किया। चारों भाइयों ने पढ़ा और उनके चेहरे का रंग उड़ गया।

    अब महल की दीवारें भी मानो साज़िशें फुसफुसा रही थीं।
    क्या यह प्रेम राज्य को बचाएगा या बर्बाद करेगा?
    क्या सनाया सच में चारों को बराबर अपना पाएगी?
    जैसे ही महल की रस्में पूरी हुईं, सनाया को चारों ने अपने साथ राजसी शयनकक्ष की ओर ले जाया। कमरे की छत से लटकता सोने का झूमर, रेशमी परदे, गुलाब की पंखुड़ियाँ और अगरबत्ती की हल्की महक… यह सब किसी सपने जैसा लग रहा था।

    सनाया पलंग पर बैठी थी। उसके गाल शर्म से लाल थे और दिल जोर से धड़क रहा था।
    निखिल उसके पास झुका, उसकी हथेली पकड़कर धीरे से बोला—
    “आज से तुम्हारा हर सुख, हर दुःख हमारा है।”
    उसने धीरे से उसकी हथेलियों पर अपने होंठ रख दिए।

    अश्वत्थ पीछे नहीं रहा। उसने सनाया के घूंघट को हल्का-सा हटाया और उसकी आँखों में देखते हुए कहा—
    “तुम्हारी नज़रों में पूरा संसार है, राजकुमारी।”
    उसके बोलते ही सनाया की पलकों ने झुककर उसकी बात को मानो स्वीकार कर लिया।

    शौर्य ने और आगे बढ़कर सनाया की कमर थाम ली। उसकी साँसें सनाया के गालों को छू रही थीं।
    “तुम्हारी ये मुस्कान हमारी जान ले लेगी…” उसने फुसफुसाया और धीरे से उसके गालों पर होंठ रख दिए।

    आर्यन सबसे अंत में उसके करीब आया। उसकी आवाज़ काँप रही थी, लेकिन दिल की गहराई साफ झलक रही थी।
    “सनाया, मैं अधूरा था… और तुमने मुझे पूरा किया।”
    उसने सनाया को अपनी बाहों में समेट लिया।

    सनाया उस पल चारों ओर से घिरी हुई थी—हर ओर प्यार, हर ओर जुनून, हर ओर सुरक्षा।
    उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। उसके अंदर चाह और डर दोनों एक साथ जाग रहे थे।

    मोमबत्तियों की लौ टिमटिमाई और जैसे ही चारों ने उसे अपनी बाहों में और कसकर खींचा, सनाया की साँसें थम-सी गईं। उसकी रगों में बिजली दौड़ गई। उसकी उंगलियाँ अनायास ही चारों भाइयों को छूने लगीं—कभी किसी के कंधे पर, कभी किसी के सीने पर, कभी किसी की हथेली पर।

    कमरे में सिर्फ़ उनकी साँसों की आवाज़ थी।
    पलंग की चादरें फूलों की खुशबू से महक रही थीं।
    सनाया ने खुद को पल भर को बंद आँखों के साथ समर्पित कर दिया।

    लेकिन तभी—

    महल के पुराने हिस्से से आती हवा ने शयनकक्ष का परदा जोर से हिलाया। एक किताब हवा से खुली और पन्ने अपने आप पलटे।
    सनाया की नज़र उस पर गई और वह सिहर उठी।

    उस पन्ने पर लिखा था—
    “अगर रानी का दिल बराबर बंटा तो राज्य अमर होगा। लेकिन अगर उसने किसी एक को अधिक चाहा, तो बाकी तीन भाइयों का पतन होगा।”

    सनाया का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। आँसू उसकी आँखों में भर आए।
    चारों भाइयों ने एक साथ उसके आँसू देखे और बोले—
    “क्या हुआ प्रिय?”

    सनाया काँपती आवाज़ में बोली—
    “शायद हमारा प्यार ही हमारी सबसे बड़ी परीक्षा है…”

    चारों एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे। उनकी आँखों में डर भी था और जुनून भी। और उसी डर के बीच सनाया को और कसकर अपनी बाँहों में समेट लिया, जैसे कह रहे हों—
    “चाहे नियति क्या कहे, हम तुम्हें कभी बाँटेंगे नहीं… तुम हमारी हो।”

  • 16. “राजमहल की मोहब्बत - Chapter 16

    Words: 1185

    Estimated Reading Time: 8 min

    महल की रात चाँदनी से नहाई हुई थी। महल के गलियारों में शांति थी लेकिन सनाया का दिल तेज़ धड़क रहा था। चारों भाई उसे घेरे खड़े थे — उनकी आँखों में चाहत और लबों पर मुस्कान थी।

    राजकुमार अर्जुन ने उसकी उँगलियाँ थाम लीं।
    “तुम हमारी हो, सनाया,” उसने धीमे स्वर में कहा।
    वहीं विक्रांत ने उसके कंधों पर हाथ रखकर उसके कानों में फुसफुसाया — “आज की रात सिर्फ़ हमारी होगी।”

    सनाया के गाल लाल हो गए। धीरे-धीरे चारों ने उसे अपनी बाँहों में लिया। एक-एक कर सबने उसे करीब खींचा, उसकी साँसें गहरी होती चली गईं। महल के बड़े कमरे में उनकी नज़दीकियाँ हवा को और गर्म कर रही थीं। उसके लबों पर चारों की बारी-बारी से चाहत उतरती रही। सनाया के लिए ये पल किसी सपने से कम न था।

    पर तभी…

    उसकी नज़र कमरे के कोने में रखी पुरानी दीवार पर पड़ी, जहाँ धुंधली-सी एक निशानी उभरी हुई थी। जैसे किसी ने उसे वहाँ बुलाया हो। सनाया चारों की बाँहों से धीरे से निकलकर उस ओर बढ़ी।

    “कहाँ जा रही हो?” समर ने पूछा।

    “मुझे…कुछ खींच रहा है,” सनाया ने कांपती आवाज़ में कहा।

    वहाँ दीवार के पीछे एक छोटा-सा रास्ता छुपा था, जिसे शायद कोई और नहीं जानता था। सब उसके पीछे-पीछे गए। रास्ता महल की गुप्त पुस्तकालय तक ले गया। पुराने पन्नों, मिट्टी और दीपक की हल्की गंध फैली हुई थी।

    सनाया आगे बढ़ी और एक पुरानी तिजोरी पर हाथ रखा। जैसे ही उसने छुआ, तिजोरी अपने आप खुल गई। अंदर एक मोटी किताब रखी थी, जिस पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था —

    “वह राजकुमारी, जो चारों राजकुमारों के दिल की रानी होगी।”

    सनाया ने कांपते हाथों से पन्ना पलटा। उसमें लिखा था कि सदियों पहले एक भविष्यवाणी की गई थी — “राजमहल की धरती पर जन्म लेगी एक कन्या, जिसका नाम सनाया होगा। वह चारों राजकुमारों का दिल बाँटेगी और उनका प्यार ही उसे महारानी बनाएगा।”

    चारों भाई स्तब्ध खड़े थे।
    “मतलब… तुम्हारा नाम पहले से ही यहाँ लिखा था?” रुद्र ने हैरानी से कहा।

    सनाया की आँखों में आँसू थे, लेकिन होंठों पर मुस्कान भी। “तो ये सब इत्तेफ़ाक़ नहीं था… हमारी मोहब्बत तो किस्मत में लिखी थी।”

    चारों भाइयों ने उसे एक साथ गले से लगा लिया। महल की उस रहस्यमयी रात में उनका प्यार और भी गहरा हो गया। अब उन्हें यक़ीन हो गया था कि यह रिश्ता सिर्फ़ दिल का नहीं, बल्कि भाग्य का लिखा हुआ बंधन है।
    सवेरा हुआ। महल के प्रांगण में शंख बज रहे थे, पर चारों राजकुमारों और सनाया के दिलों में रात का राज़ अब भी ताज़ा था।

    वो भविष्यवाणी सबने पढ़ी थी, लेकिन अब सवाल था — क्या ये बात सिर्फ़ पाँचों तक ही सीमित रहेगी?

    सनाया चारों भाइयों के साथ राजमहल के आँगन में पहुँची। वहाँ रानियाँ, मंत्री और सैनिक सब मौजूद थे। अचानक ही एक पुराने दरबारी ने उस किताब को उनके हाथों में देख लिया।

    “ये… ये तो वही किताब है!” उसने काँपते स्वर में कहा।
    सबकी निगाहें उन पर टिक गईं।

    विक्रम ने कठोर आवाज़ में कहा, “इस किताब में हमारी किस्मत लिखी है, और ये तय है कि सनाया हमारी महारानी बनेगी।”

    दरबारियों में हलचल मच गई। कुछ ने सिर झुकाकर हामी भरी, तो कुछ बड़बड़ाने लगे —
    “कैसे हो सकता है? एक स्त्री चार-चार राजकुमारों की रानी?”
    “ये परंपरा के खिलाफ़ है…”

    सनाया का दिल बैठ गया, लेकिन अर्जुन ने उसका हाथ थाम लिया।
    “डरो मत, हम हैं न। हमारी मोहब्बत पर कोई शक नहीं करेगा।”

    पर तभी, महल के दरवाज़े से एक भारी आवाज़ गूंजी —
    “मगर मोहब्बत से ज़्यादा ताक़तवर सत्ता होती है।”

    सबने पलटकर देखा। दरवाज़े पर खड़ा था महल का पुराना दुश्मन – महाराज विक्रमादित्य का भाई, राघव, जिसे सालों पहले राजमहल से निकाल दिया गया था।

    उसकी आँखों में जलन और चेहरा क्रोध से भरा था।
    “अगर ये राज़ सच है कि सनाया चारों की रानी बनेगी… तो समझ लो, ये राज्य मेरा सपना कभी पूरा नहीं होगा। मैं इस बंधन को स्वीकार नहीं करूँगा!”

    महल की फिज़ा अचानक भारी हो गई।

    सनाया काँप गई, लेकिन समर ने उसे अपनी बाँहों में भर लिया।
    “तुम हमारी किस्मत हो, और तुम्हें कोई हमसे दूर नहीं कर सकता।”

    चारों भाइयों ने तलवारें उठाईं और राघव की ओर बढ़े। पर सनाया ने आगे बढ़कर सबको रोक लिया।
    उसने दृढ़ स्वर में कहा —
    “ये रिश्ता किस्मत का है, और किस्मत से कोई नहीं लड़ सकता। चाहे पूरी दुनिया हमारे खिलाफ़ हो जाए, मैं चारों की हूँ… और रहूँगी।”

    उसकी बात सुनकर पूरा दरबार सन्न रह गया।

    चारों भाइयों की आँखों में आँसू थे, उन्होंने उसे कसकर गले से लगा लिया।
    उस पल में सबको लगा कि उनका रिश्ता सिर्फ़ प्रेम नहीं, बल्कि किस्मत की ताक़त है।

    लेकिन राघव की आँखों में जलती नफ़रत ने साफ़ कर दिया था — अब आने वाले अध्यायों में महल शांति से नहीं रहने वाला।
    रात का सन्नाटा पूरे राजमहल को घेर चुका था। हवाओं में अजीब-सी बेचैनी थी।
    चारों भाई सनाया को अपने बीच में बैठाए हुए थे। दिन भर की उथल-पुथल ने उसे थका दिया था, मगर भाइयों का साथ उसे सहारा दे रहा था।

    अर्जुन ने उसके माथे पर चुम्बन रखते हुए कहा —
    “अब चाहे जो हो, हम पाँचों कभी जुदा नहीं होंगे।”

    विक्रम ने उसकी आँखों में देखते हुए जोड़ा —
    “तुम सिर्फ़ हमारी महारानी नहीं, हमारी रूह हो सनाया।”

    सनाया ने आँसू भरी मुस्कान के साथ चारों को गले लगाया। उस पल उनका मिलन सिर्फ़ रोमांस नहीं, बल्कि एक वादा था — हर तूफ़ान का सामना साथ में करने का।

    💞 कमरे में एक गहरी नज़दीकी छा गई… चारों भाई बारी-बारी से उसका हाथ थामते, उसके आँसू पोंछते, उसके चेहरे को अपने करीब लाते। सनाया का दिल डगमगाता, पर उसी पल उसे यक़ीन होता कि उसकी तक़दीर वाक़ई इन चारों से ही बंधी है।

    लेकिन इसी रात, महल की ऊँची मीनार में खड़ा था राघव। उसकी आँखों में जलन की आग थी।

    उसने अपने गुप्तचरों को इकट्ठा किया और धीमी आवाज़ में कहा —
    “ये पाँचों सोचते हैं कि किस्मत ने इन्हें मिला दिया… लेकिन मैं किस्मत की लकीर मिटाना जानता हूँ। कल सुबह दरबार में एक ऐसा सच उजागर करूँगा, जिससे ये रिश्ता सबकी नज़रों में पाप बन जाएगा।”

    उसने किताब के पुराने पन्नों में छुपा हुआ एक रहस्य निकाला —
    भविष्यवाणी का दूसरा हिस्सा।
    जिसमें लिखा था —
    “अगर राजकुमारी चार राजकुमारों से विवाह करेगी, तो या तो राज्य समृद्ध होगा… या फिर रक्त की नदियाँ बहेंगी।”

    राघव मुस्कुराया —
    “बस! यही मेरी जीत का रास्ता है। मैं पूरे राज्य को यक़ीन दिलाऊँगा कि ये रिश्ता विनाश लेकर आएगा।”

    🌙 उधर, सनाया को नींद नहीं आ रही थी।
    वो चारों भाइयों के बीच लेटी थी, पर उसके दिल में हलचल थी। उसने धीरे से कहा —
    “अगर दुनिया हमें अलग कर दे तो?”

    समर ने उसकी ठुड्डी उठाकर कहा —
    “दुनिया लाख कोशिश कर ले, पर हमारी मोहब्बत किस्मत है… और किस्मत को कोई नहीं बदल सकता।”

    चारों ने एक साथ उसके माथे पर चुंबन रखा। सनाया ने अपनी आँखें बंद कर लीं।
    उस पल उसे लगा मानो उनका रिश्ता सिर्फ़ शरीरों का नहीं, बल्कि आत्माओं का बंधन है।

    लेकिन उन्हें नहीं पता था कि सुबह होते ही राघव उनकी दुनिया हिला देने वाला था।

  • 17. “राजमहल की मोहब्बत - Chapter 17

    Words: 1015

    Estimated Reading Time: 7 min

    दरबार में तूफ़ान ✨

    सुबह का सूरज राजमहल की ऊँचाईयों को सुनहरी रोशनी से नहला रहा था। पर अंदर का माहौल बिल्कुल शांत नहीं था। राघव महल के दरबार में अपने गुप्तचरों के साथ पहुंचा। उसकी आँखों में आग थी और चेहरे पर मुस्कान नहीं, बल्कि नफ़रत की झलक।

    “सभी को सूचित किया जाता है!” राघव की आवाज़ गूंज उठी।
    “राजमहल में आज एक बड़ा राज़ उजागर होने जा रहा है। राजकुमारी सनाया ने चारों भाइयों से विवाह किया है… और यह रिश्ता विनाश लेकर आएगा।”

    दरबारियों में हलचल मच गई। मंत्री और दरबारी एक-दूसरे को देखकर हक्के-बक्के रह गए। कुछ लोग चिल्लाने लगे—
    “कैसे हो सकता है! चार भाइयों से विवाह… ये तो परंपरा के खिलाफ़ है!”
    “महल में अशांति फैल जाएगी!”

    सनाया के हाथ काँपने लगे, लेकिन अर्जुन ने तुरंत उसके हाथ थाम लिए।
    “डरो मत, हम सब साथ हैं। तुम्हारी ताक़त हमारी मोहब्बत में है।”

    विक्रम ने पीछे से जोड़ते हुए कहा—
    “हमारा प्यार किसी की ज़बान या सोच से नहीं बदलेगा। सनाया हमारी रानी है और हमारी किस्मत।”

    सनाया ने आँसू भरी मुस्कान के साथ कहा—
    “मैं जानती हूँ… हमारी मोहब्बत सिर्फ़ हमारी नहीं, यह किस्मत की बनाई हुई है। चाहे दुनिया कुछ भी कहे, मैं अपने दिल की सुनूँगी।”

    चारों भाई एक साथ उसके पास आए। उनके कदमों की गूंज ने पूरे दरबार को थर्राने पर मजबूर कर दिया। अर्जुन ने उसके माथे पर फुसफुसाया—
    “तुम हमारी हो, सनाया। यही सच है।”
    समर ने धीरे से कहा—
    “हमारे प्यार को कोई मिटा नहीं सकता। यह पहले से लिखा गया भाग्य है।”

    राघव की नज़रों में अब घबराहट थी। उसने तलवार उठाई, पर चारों भाई एक साथ खड़े हो गए, जैसे उनकी छाया एक हो गई हो।

    सनाया ने फिर से अपनी आँखें बंद कीं। उसने अपने दिल की गहराई से कहा—
    “अगर हमारी मोहब्बत किस्मत है, तो कोई भी ताक़त इसे नहीं तोड़ सकती। मैं चारों के साथ हूँ… हमेशा।”

    राजमहल के दरबार में एक पल की सन्नाटे के बाद, जनता और दरबारियों ने धीरे-धीरे समझना शुरू किया कि सनाया और चारों भाइयों का प्यार केवल प्रेम नहीं, भाग्य का लिखा हुआ बंधन है।

    राघव के चेहरे पर अब नफ़रत और भी गहरी हो गई, पर चारों भाइयों और सनाया की एकता ने उसे साफ़ कर दिया था—रात का अंधेरा राजमहल पर छाया हुआ था। हवाएँ भी जैसे भय और बेचैनी लेकर बह रही थीं। राघव अपने गुप्तचरों के साथ महल के दरवाज़ों के पास पहुँच गया। उसकी आँखों में नफ़रत की आग और चेहरे पर क्रोध साफ़ था।

    “आज ये रिश्ता सबके सामने तोड़ूंगा,” उसने फुसफुसाया।

    अचानक दरवाजे टूटे और सैनिकों का हमला शुरू हो गया। तलवारों की टकराहट और शोर से महल का माहौल भयावह हो गया।

    सनाया काँप रही थी, लेकिन अर्जुन ने उसे कसकर अपने पास खींच लिया।
    “डरो मत, हम सब तुम्हारे साथ हैं। हमारी मोहब्बत और हमारी ताक़त तुम्हें बचाएगी।”

    विक्रम और समर ने मिलकर सनाया की आँखों में देखा।
    “तुम सिर्फ़ हमारी रानी नहीं, हमारी रूह हो। कोई हमें जुदा नहीं कर सकता।”

    चारों ने एक साथ तलवारें उठाईं और राघव की ओर बढ़े।
    सनाया ने उनके हाथ पकड़े और अपने दिल की आवाज़ सुनी—
    “आप सब मेरी ताक़त हो, और मैं हमेशा आपके साथ रहूँगी।”

    महल के गलियारों में रोमांस और रोमांच दोनों साथ थे।
    चारों भाई बारी-बारी से सनाया को अपने पास खींचते, उसकी साँसों की गहराई महसूस करते और उसे प्यार का एहसास दिलाते।

    राघव ने अपनी सेना के साथ आक्रमण किया, पर चारों भाइयों की एकता और सनाया की हिम्मत ने हमला रोक दिया। हर बार जब कोई बढ़ता, आरव और समर ने उसे पीछे धकेला, विक्रम और अयान ने सनाया को सुरक्षित रखा।

    सनाया ने धीरे से कहा—
    “हमारा प्यार सिर्फ़ हमारे लिए नहीं, यह हमारे भाग्य का हिस्सा है। कोई भी ताक़त इसे तोड़ नहीं सकती।”

    चारों भाइयों ने उसे गले लगाते हुए कहा—
    “हमें पता है, सनाया। तुम हमारी रानी, हमारी मोहब्बत और हमारी ताक़त हो। यही हमारी जीत है।”

    राघव घबराया, उसने अपनी तलवार फेंकी और पीछे हट गया। उसकी आँखों में अब डर साफ़ था।
    महल के हवाओं में सनाया की मुस्कान गूँज उठी, और चारों भाइयों ने अपने हाथों में उसका हाथ थाम लिया
    छिपा हुआ सच ✨

    महल पर आए तूफ़ान को गुज़रे कुछ ही दिन हुए थे। लेकिन सनाया के दिल में अब भी बेचैनी थी। रात का सन्नाटा उसे रह-रहकर किसी ओर खींचता था।

    उस रात जब सब सो गए, सनाया धीरे-धीरे कदमों से महल की पुरानी तिजोरी की ओर बढ़ी। दरवाज़ा चरमराया और अंदर अंधेरा पसरा था। एक दीपक जलाकर उसने दीवारों पर हाथ फेरा। तभी अचानक एक पुराना नक्शा उसके सामने गिरा।

    नक्शे पर लिखा था—
    “राजकुमारी सनाया का भाग्य – चार शेर, एक रानी।”

    उसकी साँसें तेज़ हो गईं। इसका मतलब क्या था? क्या ये सचमुच उसके और चारों भाइयों का लिखा हुआ रिश्ता था?

    इतना सोच ही रही थी कि पीछे से अयान ने उसे अपनी बाँहों में भर लिया।
    “तुम अकेली यहाँ क्यों आई हो, सनाया?”

    सनाया की धड़कनें और तेज़ हो गईं।
    “मैं... मुझे कोई खिंचाव यहाँ ले आया। और देखो... ये राज़।”

    अयान ने नक्शा पढ़ा, फिर मुस्कुराते हुए उसकी आँखों में देखा।
    “तो ये सब इत्तेफ़ाक़ नहीं है। हमारी मोहब्बत, हमारी किस्मत... सब पहले से लिखा था।”

    इतना कहते ही विक्रम, अर्जुन और समर भी वहाँ आ पहुँचे। चारों ने नक्शा देखा और एक-दूसरे की ओर देखा।
    विक्रम ने कहा—
    “तो यही कारण था कि जब तुम पहली बार हमारे जीवन में आईं, हमें लगा जैसे हम तुम्हें पहले से जानते हैं।”

    अर्जुन ने सनाया की हथेलियों को थाम लिया।
    “तुम सिर्फ हमारी रानी नहीं, बल्कि हमारी किस्मत हो।”

    उस पल भावुकता और रोमांस एक साथ घुल गए।
    चारों भाई बारी-बारी से सनाया को अपने करीब खींचते, उसकी साँसों की खुशबू महसूस करते और उसे यक़ीन दिलाते कि उनका रिश्ता सिर्फ़ मोहब्बत नहीं, बल्कि भाग्य का बंधन है।

    सनाया की आँखों से आँसू निकल पड़े, मगर होंठों पर मुस्कान थी।
    “तो यही हमारी कहानी है... किस्मत ने हमें जोड़ा है। कोई भी ताक़त हमें अलग नहीं कर सकती।”

    चारों ने एक साथ उसे गले लगाया।
    उस आलिंगन में न सिर्फ़ रोमांस था, बल्कि एक अटूट यक़ीन—
    “हम सब मिलकर ही पूरे हैं।”