"तुम ही हो मेरी मंज़िल" 🩵 Part 1 शहर की हलचल और भीड़भाड़ से दूर, पहाड़ों के बीच बसा हुआ छोटा-सा कस्बा था — सूरजपुर। यहीं रहती थी आयरा। सादा, शर्मीली, लेकिन बेहद ख्वाबों से भरी हुई लड़की। उसकी दुनिया किताबों और अपनी डायरी तक ही सिमटी हुई थी। उधर, आरव…... "तुम ही हो मेरी मंज़िल" 🩵 Part 1 शहर की हलचल और भीड़भाड़ से दूर, पहाड़ों के बीच बसा हुआ छोटा-सा कस्बा था — सूरजपुर। यहीं रहती थी आयरा। सादा, शर्मीली, लेकिन बेहद ख्वाबों से भरी हुई लड़की। उसकी दुनिया किताबों और अपनी डायरी तक ही सिमटी हुई थी। उधर, आरव… एक अमीर खानदान से ताल्लुक रखने वाला, दिलफेंक और निडर लड़का। शहर से आया था, लेकिन ज़िंदगी को बस एक खेल समझकर जीता था। पहली मुलाक़ात भी कुछ अजीब-सी रही। बारिश का मौसम था। आयरा किताब हाथ में लिए बस स्टॉप पर खड़ी थी, तभी एक कार उसके पास आकर रुकी। खिड़की से झाँकते हुए आरव ने मुस्कराकर कहा – “लगता है किताबें भीगने वाली हैं, क्यों न आपको लिफ्ट दे दूँ?” आयरा ने तिरछी नज़र डाली और धीमे से बोली – “किताबें भीग जाएँगी तो सूख जाएँगी… लेकिन भरोसा गलत जगह कर लिया तो कभी नहीं सूख पाएगा।” आरव हक्का-बक्का रह गया। पहली बार किसी लड़की ने उसकी बात का जवाब इतनी सख़्ती से दिया था। लेकिन शायद… यही बेबाक़ी उसे खींचने लगी। उस दिन से आरव की दिलचस्पी बढ़ने लगी आयरा में, और आयरा… चाहकर भी उसकी आँखों की चमक को नज़रअंदाज़ नहीं कर पा रही थी।Part 2 बारिश का मौसम धीरे-धीरे खत्म हो गया था, लेकिन उस दिन की मुलाक़ात का असर अब भी दोनों के दिलों पर बाकी था। आरव, जो अब तक हर लड़की को सिर्फ़ एक खेल समझता था, पहली बार किसी की सख़्त बात पर भी मुस्कुरा रहा था। उसकी आँखों में एक नया जुनून था — आयरा को समझने का, उसे जानने का। --- कुछ दिन बाद… कस्बे की लाइब्रेरी में आयरा बैठी किताब पढ़ रही थी। तभी अचानक सामने वाली कुर्सी पर कोई बैठ गया। उसने देखा, वही मुस्कुराता हुआ चेहरा – आरव। “तुम?” आयरा ने हैरानी से कहा। आरव ने मासूमियत से जवाब दिया – “किताबें पढ़ना सीख रहा हूँ।” आयरा ने भौंहें चढ़ाईं – “तुम्हें किताबों में दिलचस्पी कब से हो गई?” आरव ने धीमे से फुसफुसाकर कहा – “जबसे मैंने जाना कि किताबों में छुपी नज़रों को पढ़ना ज़्यादा मुश्किल है।” आयरा का चेहरा हल्का-सा लाल पड़ गया। उसने किताब बंद कर दी और उठ खड़ी हुई। “तुमसे बहस करने का वक़्त नहीं है मेरा।” लेकिन आरव ने झट से किताब उठाई और बोला – “तो फिर दोस्ती करने का वक़्त निकाल लो।” आयरा रुक गई। दिल के किसी कोने में हल्की-सी मुस्कान उभरी, मगर होंठों तक पहुँचने से पहले ही उसने खुद को रोक लिया। “दोस्ती…? सोचूँगी।” इतना कहकर वो बाहर चली गई। --- आरव ने पहली बार महसूस किया कि उसका दिल किसी के “सोचूँगी” पर अटक गया है। वो लड़की सच में अलग थी। आयरा ने भी उस रात अपनी डायरी में लिखा – "पता नहीं क्यों, उसकी मुस्कान याद आ रही है। डर लगता है… कहीं ये मुस्कान मेरे ख्वाबों में न उतर जाए।" --- 👉
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तुम ही हो मेरी मंज़िल
Part 3
अगले दिन सुबह, सूरजपुर की गलियों में मेले का माहौल था।
हर साल की तरह कस्बे में बसंत उत्सव मनाया जा रहा था। रंग-बिरंगी झालरें, झूले, मिठाइयों की खुशबू और बच्चों की खिलखिलाहट से पूरा शहर रौशन था।
आयरा अपनी सहेलियों के साथ मेले में आई थी।
वो हंसी-खुशी में खोई थी कि अचानक पीछे से आवाज़ आई –
“तो… क्या सोच लिया? दोस्ती करोगी या अभी भी सोचोगी?”
वो पलटकर देखती है – आरव हाथ में गुब्बारे लिए खड़ा था।
उसकी मुस्कान उतनी ही शरारती और आँखें उतनी ही गहरी।
आयरा ने भौंहें उठाकर कहा –
“तुम यहाँ भी आ गए?”
आरव ने गुब्बारे उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा –
“क्योंकि कहीं भी जाऊँ, दिल कहता है… तुम यहीं मिलोगी।”
आयरा का चेहरा एक पल को थम-सा गया।
उसने गुब्बारे ले लिए, लेकिन होंठों से निकला –
“बस दोस्ती… इससे ज़्यादा कुछ मत समझना।”
आरव ने मुस्कुराकर हाथ बढ़ाया –
“डील पक्की! दोस्ती से शुरुआत, मंज़िल तक जाने का रास्ता खुद तय कर लेगा।”
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उस दिन से दोनों की दोस्ती सचमुच शुरू हो गई।
लाइब्रेरी में किताबें पढ़ना
सड़क किनारे चाय पीना
झील के किनारे बैठकर बातें करना
हर मुलाक़ात में दोनों के बीच एक अनकहा सा रिश्ता पनप रहा था।
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एक शाम, झील के पास बैठते हुए आरव ने अचानक पूछा –
“आयरा, अगर कभी तुम्हें लगा कि तुम्हारे ख्वाब अधूरे रह जाएँगे… तो क्या करोगी?”
आयरा ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा –
“मैंने हमेशा ख्वाब देखे हैं, मगर पूरा होने की उम्मीद किसी से नहीं रखी। शायद इसीलिए टूटा हुआ ख्वाब मुझे डराता नहीं।”
आरव उसे देखता रह गया।
उसके दिल में हलचल होने लगी।
ये लड़की अलग थी – वो उसे बदल रही थी, उसके भीतर की सच्चाई को जगाती जा रही थी।
आयरा ने मुस्कुराकर कहा –
“अब मेरी बारी… तुम्हें क्या डराता है?”
आरव ने गहरी सांस ली और धीमे से कहा –
“तुम्हें खो देने का…”
आयरा का दिल ज़ोर से धड़क उठा।
उसके पास कोई जवाब नहीं था।
बस झील की लहरें उस पल के गवाह बन गईं।
Part 4
दोस्ती को कुछ महीने बीत चुके थे।
आरव और आयरा अब हर छोटे-बड़े लम्हे में एक-दूसरे का साथ ढूँढने लगे थे।
आरव, जो पहले लापरवाह और बेफिक्र लड़का था, अब हर काम सोच-समझकर करता, ताकि आयरा को बुरा न लगे।
वहीं आयरा, जो हर किसी से दूरी बनाए रखती थी, अब अनजाने में आरव की मौजूदगी ढूँढने लगी थी।
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एक शाम, कस्बे में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन था।
स्टेज पर अलग-अलग प्रस्तुतियाँ हो रही थीं।
आयरा अपनी सहेलियों के साथ बैठी थी, जब अचानक एनाउंसमेंट हुआ –
“अगला परफॉर्मेंस… मिस्टर आरव।”
सभी ने तालियाँ बजाईं।
आयरा चौंक गई। आरव और स्टेज?
वो तो किताब खोलने तक में बहाना बनाता था।
लेकिन आरव माइक्रोफोन लेकर स्टेज पर आया।
उसने गहरी सांस ली और बोला –
“ज़िंदगी में कभी-कभी कोई ऐसा इंसान मिलता है, जो हमें हमारी हकीकत से मिलवा देता है। आज मैं उसी इंसान के लिए कुछ कहना चाहता हूँ…”
पूरी भीड़ चुप हो गई।
आरव ने सबके सामने कविता-सी बातें कहना शुरू किया।
> “कभी सोचा न था कि भीड़ में कोई यूँ अपना लगेगा,
नज़रें मिलते ही जैसे आईना सामने खड़ा हो।
वो खामोश रहती है, मगर उसकी आँखें कह देती हैं सब कुछ…
शायद अब मुझे भी मानना पड़ेगा… मोहब्बत यूँ ही नहीं होती।”
आयरा की आँखें भर आईं।
उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
भीड़ तालियों से गूंज उठी, मगर आयरा बस उसे देखे जा रही थी।
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कार्यक्रम खत्म होने के बाद, आयरा अकेले झील किनारे खड़ी थी।
आरव धीरे-धीरे उसके पास आया।
“तो… कैसा लगा मेरा पहला इज़हार?” उसने मुस्कुराकर पूछा।
आयरा ने नज़रें झुका लीं।
“तुम्हें सबके सामने ये करने की ज़रूरत नहीं थी।”
आरव ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा –
“मुझे दुनिया को बताना था कि मेरा दिल अब किसी और का नहीं… सिर्फ़ तुम्हारा है।”
आयरा के होंठ काँपने लगे, आँखों में आँसू भर आए।
वो कुछ पल खामोश रही और फिर धीरे से बोली –
“आरव… मुझे मोहब्बत पर भरोसा नहीं था। लेकिन आज… तुमने यक़ीन दिला दिया।”
उसने पहली बार आरव की ओर हाथ बढ़ाया।
उस पल, चाँदनी रात में, दोनों का रिश्ता दोस्ती से आगे बढ़कर मोहब्बत की राह पकड़ चुका था।Part 5
आयरा और आरव की मोहब्बत अब पूरे कस्बे की चर्चा बन चुकी थी।
जहाँ भी दोनों साथ नज़र आते, लोगों की निगाहें ठहर जातीं।
आरव को फर्क नहीं पड़ता था, मगर आयरा को डर सताता था।
वो जानती थी कि उसके परिवार वाले रूढ़िवादी सोच के थे।
उनके लिए “इज़्ज़त” सबसे बड़ी चीज़ थी, और किसी अमीर खानदान के लड़के से उसका रिश्ता मंज़ूर होना आसान नहीं था।
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एक शाम, आयरा अपने घर की छत पर बैठी थी।
डायरी खोली और लिखा –
"दिल तो चाहता है कि बस उसकी बाँहों में सिमट जाऊँ… मगर हकीकत बार-बार कहती है कि ये रिश्ता उतना आसान नहीं होगा। क्या होगा जब घरवालों को पता चलेगा?"
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इसी बीच आरव ने अपने परिवार से बात करने का फैसला किया।
उसने साहस जुटाकर अपने पापा से कहा –
“पापा, मुझे एक लड़की से मोहब्बत है… और मैं उसी से शादी करना चाहता हूँ।”
उसके पापा ने हैरानी से पूछा –
“कौन है वो लड़की?”
जब आरव ने आयरा का नाम लिया, तो कमरे में सन्नाटा छा गया।
पापा की आवाज़ कड़क हो गई –
“तुम्हें होश भी है? हम एक नामी खानदान से हैं और वो लड़की… एक साधारण परिवार से। ये रिश्ता कभी मंज़ूर नहीं होगा।”
आरव ने गुस्से में कहा –
“पापा, मुझे उसका दिल चाहिए… उसकी हैसियत नहीं।”
लेकिन उसके पापा ने साफ़ मना कर दिया।
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दूसरी ओर, आयरा के घर भी बातें पहुँच चुकी थीं।
उसके अब्बा ने सख़्ती से कहा –
“तुम्हारा उससे कोई रिश्ता नहीं होगा। वो लड़का तुम्हारे लिए ठीक नहीं।”
आयरा की आँखों से आँसू बह निकले।
वो अपने कमरे में भागी और तकिये में मुँह छिपाकर रो पड़ी।
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उसी रात, झील के किनारे दोनों मिले।
आरव ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा –
“आयरा, हम दोनों की दुनिया हमें अलग करना चाहती है… लेकिन मैं कसम खाता हूँ, तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊँगा।”
आयरा ने काँपती आवाज़ में कहा –
“आरव… अगर मोहब्बत को निभाना है, तो हमें लड़ना पड़ेगा। आसान नहीं होगा।”
आरव ने उसका हाथ कसकर थाम लिया –
“तुम मेरी मंज़िल हो… और मंज़िल पाने के लिए मैं हर जंग लड़ने को तैयार हूँ।”