टाइटल: "Dil Ki Dastak" Part 1 रूहान एक शांत स्वभाव का लड़का था, जिसे किताबों और अपने ख्यालों की दुनिया से बेहद लगाव था। उसकी ज़िंदगी बिल्कुल सीधी-सादी थी जब तक कि उसकी मुलाकात आर्या से नहीं हुई। आर्या, एक जिंदादिल, हंसमुख और बिंदास लड़की… जो ज़िंदगी... टाइटल: "Dil Ki Dastak" Part 1 रूहान एक शांत स्वभाव का लड़का था, जिसे किताबों और अपने ख्यालों की दुनिया से बेहद लगाव था। उसकी ज़िंदगी बिल्कुल सीधी-सादी थी जब तक कि उसकी मुलाकात आर्या से नहीं हुई। आर्या, एक जिंदादिल, हंसमुख और बिंदास लड़की… जो ज़िंदगी को हर पल खुलकर जीना चाहती थी। कॉलेज की लाइब्रेरी में पहली बार जब दोनों की नज़रें मिलीं, तो वक्त जैसे ठहर-सा गया। आर्या ने मुस्कुराते हुए कहा, “इतनी किताबों में गुम रहोगे तो असली ज़िंदगी कब जियोगे, मिस्टर साइलेंट?” रूहान पहली बार किसी लड़की के अंदाज़ से इतना प्रभावित हुआ था। उसे लगा जैसे किसी ने उसके दिल पर धीरे से दस्तक दी हो। लेकिन आर्या की हंसी के पीछे भी एक गहरा राज़ छुपा था… एक ऐसा राज़, जिसे उसने दुनिया से छुपाकर रखा था। Part 2 रूहान उस दिन के बाद बार-बार आर्या के बारे में सोचता रहा। उसकी बातें, उसकी हंसी और उसकी आँखों की गहराई में छिपा हुआ दर्द… सब कुछ उसे परेशान कर रहा था। अगले दिन क्लास में आर्या फिर उसके बगल वाली सीट पर आकर बैठ गई। “तो मिस्टर साइलेंट, आज भी कोई किताब है तुम्हारे पास?” – आर्या ने मजाक किया। रूहान हल्का-सा मुस्कुराया और बोला, “हाँ, लेकिन आज किताब से ज़्यादा मुझे तुम्हारी बातें सुननी हैं।” ये सुनकर आर्या कुछ पलों के लिए चुप हो गई। उसकी आँखों में हल्की नमी थी लेकिन चेहरे पर अब भी वही नकली मुस्कान थी। “तो सुनो… मेरी ज़िंदगी भी किसी किताब से कम नहीं है, बस फर्क इतना है कि उसका हैप्पी एंडिंग अभी तक लिखा ही नहीं गया।” – आर्या ने धीमी आवाज़ में कहा। रूहान चौंक गया। उसने पहली बार महसूस किया कि आर्या का दिल किसी गहरे दर्द से भरा है। उसने हिम्मत जुटाकर कहा – “अगर चाहो तो मैं वो अधूरी किताब पूरी करने में मदद कर सकता हूँ।” आर्या ने उसकी तरफ देखा… और सिर्फ मुस्कुरा दी। लेकिन उस मुस्कान के पीछे छुपा हुआ राज़ अब रूहान के दिल में और भी सवाल जगा गया।Part 3 आर्या और रूहान की मुलाकातें अब रोज़ की आदत बन चुकी थीं। लाइब्रेरी में पढ़ाई से ज़्यादा उनकी बातें होने लगीं। रूहान की दुनिया जो अब तक किताबों तक सीमित थी, उसमें पहली बार रंग भरने लगे। आर्या की हंसी, उसके मजाक, और उसकी नटखट आदतें… सब कुछ उसे जीना सीखा रहे थे। लेकिन कभी-कभी, आर्या अचानक खामोश हो जाती। उसकी आँखें कहीं खो जातीं, और होंठों की मुस्कान जैसे किसी दर्द के बोझ तले दब जाती। एक शाम, कॉलेज कैंपस के गार्डन में दोनों बैठकर बातें कर रहे थे। आर्या आसमान की Part 4 आर्या के सवाल पर रूहान कुछ देर चुप रहा। फिर हल्की-सी मुस्कान के साथ बोला – “शायद मंज़िल हर किसी को नहीं मिलती… लेकिन अगर सफर खूबसूरत हो, तो मंज़िल की कमी नहीं खलती।” आर्या उसकी बात सुनकर चुपचाप उसकी आँखों में देखने लगी। उन आँखों में उसे सुकून भी था और भरोसा भी। कुछ देर बाद उसने धीरे से कहा – “कभी-कभी सफर अधूरा छोड़कर भी जाना पड़ता है,
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रूहान उस दिन के बाद बार-बार आर्या के बारे में सोचता रहा। उसकी बातें, उसकी हंसी और उसकी आँखों की गहराई में छिपा हुआ दर्द… सब कुछ उसे परेशान कर रहा था।
अगले दिन क्लास में आर्या फिर उसके बगल वाली सीट पर आकर बैठ गई।
“तो मिस्टर साइलेंट, आज भी कोई किताब है तुम्हारे पास?” – आर्या ने मजाक किया।
रूहान हल्का-सा मुस्कुराया और बोला,
“हाँ, लेकिन आज किताब से ज़्यादा मुझे तुम्हारी बातें सुननी हैं।”
ये सुनकर आर्या कुछ पलों के लिए चुप हो गई। उसकी आँखों में हल्की नमी थी लेकिन चेहरे पर अब भी वही नकली मुस्कान थी।
“तो सुनो… मेरी ज़िंदगी भी किसी किताब से कम नहीं है, बस फर्क इतना है कि उसका हैप्पी एंडिंग अभी तक लिखा ही नहीं गया।” – आर्या ने धीमी आवाज़ में कहा।
रूहान चौंक गया। उसने पहली बार महसूस किया कि आर्या का दिल किसी गहरे दर्द से भरा है।
उसने हिम्मत जुटाकर कहा –
“अगर चाहो तो मैं वो अधूरी किताब पूरी करने में मदद कर सकता हूँ।”
आर्या ने उसकी तरफ देखा… और सिर्फ मुस्कुरा दी।
लेकिन उस मुस्कान के पीछे छुपा हुआ राज़ अब रूहान के दिल में और भी सवाल जगा गया।Part 3
आर्या और रूहान की मुलाकातें अब रोज़ की आदत बन चुकी थीं। लाइब्रेरी में पढ़ाई से ज़्यादा उनकी बातें होने लगीं।
रूहान की दुनिया जो अब तक किताबों तक सीमित थी, उसमें पहली बार रंग भरने लगे। आर्या की हंसी, उसके मजाक, और उसकी नटखट आदतें… सब कुछ उसे जीना सीखा रहे थे।
लेकिन कभी-कभी, आर्या अचानक खामोश हो जाती। उसकी आँखें कहीं खो जातीं, और होंठों की मुस्कान जैसे किसी दर्द के बोझ तले दब जाती।
एक शाम, कॉलेज कैंपस के गार्डन में दोनों बैठकर बातें कर रहे थे। आर्या आसमान की
Part 4
आर्या के सवाल पर रूहान कुछ देर चुप रहा। फिर हल्की-सी मुस्कान के साथ बोला –
“शायद मंज़िल हर किसी को नहीं मिलती… लेकिन अगर सफर खूबसूरत हो, तो मंज़िल की कमी नहीं खलती।”
आर्या उसकी बात सुनकर चुपचाप उसकी आँखों में देखने लगी। उन आँखों में उसे सुकून भी था और भरोसा भी।
कुछ देर बाद उसने धीरे से कहा –
“कभी-कभी सफर अधूरा छोड़कर भी जाना पड़ता है, रूहान…”
रूहान चौंक गया। उसने पहली बार आर्या की आवाज़ में इतना दर्द महसूस किया।
“तुम कुछ कहना चाहती हो?” – उसने धीरे से पूछा।
आर्या ने नज़रें झुका लीं। उसकी आँखों में आँसू भर आए लेकिन हों
Part 5
उस दिन के बाद रूहान की बेचैनी और बढ़ गई।
वह हर पल सोचता – आखिर कौन-सा राज़ है जो आर्या अपनी हंसी के पीछे छुपा रही है?
एक शाम दोनों कैंपस की कैफेटेरिया में बैठे थे। बारिश हो रही थी और खिड़की के बाहर पानी की बूंदें काँच पर टकरा रही थीं।
रूहान ने धीरे से कहा –
“आर्या, कभी-कभी तुम बहुत दूर चली जाती हो… जैसे अपने ही दर्द में खो जाती हो। क्या तुम मुझ पर भरोसा नहीं करती?”
आर्या ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें नम थीं।
“भरोसा करती हूँ रूहान… शायद जितना खुद पर भी नहीं। लेकिन कुछ सच्च
Part 6
आर्या की आँखों से बहते आँसू देखकर रूहान का दिल काँप उठा।
वह समझ गया था कि अब सच सामने आने वाला है।
आर्या ने भारी साँस लेते हुए कहा –
“रूहान… मैं ज़्यादा वक्त तक यहाँ नहीं रह सकती। मेरी ज़िंदगी… बस थोड़े दिनों की मेहमान है।”
रूहान के हाथ सुन्न पड़ गए। उसने हैरानी से पूछा –
“ये… ये क्या कह रही हो? ऐसा क्यों कह रही हो?”
आर्या ने अपनी नज़रें झुका लीं और धीमी आवाज़ में बोली –
“मुझे हृदय की एक गंभीर बीमारी है। डॉक्टर कह चुके हैं कि चाहे जितना इलाज कर लूँ… शायद मेरे पास सिर्फ कुछ महीने ही बचे हैं।”
ये सुनकर रूहान के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
जिस लड़की ने उसकी ज़िंदगी को रंगों से भर दिया, वही धीरे-धीरे उससे दूर जाने वाली थी।
लेकिन आँसुओं के बीच भी आर्या मुस
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आर्या आँसुओं के बीच मुस्कुराते हुए बोली –
“इसलिए रूहान, मैं हर दिन ऐसे जीती हूँ जैसे ये मेरी ज़िंदगी का आख़िरी दिन हो। मैं चाहती हूँ कि जब तक साँसें हैं, मैं हर पल हँसते हुए बिताऊँ… ताकि लोग मुझे रोते हुए नहीं, मुस्कुराते हुए याद करें।”
रूहान की आँखें भर आईं। उसने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया।
“तुम्हें पता भी है तुमने मुझसे क्या छीन लिया है? तुम कह रही हो तुम्हारे पास वक्त कम है… तो अब मैं तुम्हारे हर पल को अपनी ज़िंदगी बना दूँगा।”
आर्या ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखों में गहरी नमी थी।
“रूहान… मुझे किसी पर बोझ नहीं बनना। मैं चाहती हूँ कि तुम मेरी यादों के साथ आगे बढ़ो, न कि मेरे दर्द के साथ रुको।”
रूहान ने उसकी बात काट दी।
“नहीं आर्या! अब तुम्हारा हर दर्द मेरा है। अगर ज़िंदगी ने हमें थोड़ा ही वक्त दिया है, तो हम उसे हज़ारों सालों के बराबर जीएँगे।”
आर्या पहली बार रोते-रोते हँसी।
“तुम सच में पागल हो, रूहान।”
लेकिन उसके दिल में कहीं गहराई आर्या की बातें सुनकर रूहान की आँखें भीग गईं।
उसने काँपती आवाज़ में कहा –
“आर्या… तुम मेरी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत वजह हो। मैं तुम्हें यूँ हार मानने नहीं दूँगा।”
आर्या ने हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ थाम लिया।
“रूहान… कभी-कभी जंग जीतने से पहले ही तय हो जाती है। मैं तुम्हें सिर्फ ये वादा दिलाना चाहती हूँ कि मेरे जाने के बाद भी तुम कभी अकेले मत रहना। ज़िंदगी से लड़ना… और मुस्कुराना।”
रूहान ने दृढ़ आवाज़ में कहा –
“अगर ज़िंदगी ने तुम्हें मुझसे छीनने की कोशिश की… तो मैं उसे चुनौती दूँगा। तुम्हारा हर सपना पूरा करूँगा।”
उस रात से रूहान ने एक फ़ैसला कर लिया –
आर्या के पास जितना भी वक्त है, वह उसे सबसे खूबसूरत बना देगा।
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Part 8
इसके बाद रूहान ने आर्या को छोटे-छोटे सरप्राइज देने शुरू किए।
कभी उसे अचानक लम्बी ड्राइव पर ले जाता,
कभी बारिश में भीगते हुए गाने गाता,
तो कभी कॉलेज की छत पर बैठकर तारों के नीचे कहानियाँ सुनाता।
आर्या हर पल को जीने लगी। उसकी आँखों में अब भी डर था, लेकिन रूहान की मोहब्बत ने उसके दिल में उम्मीद जगा दी थी।
एक दिन आर्या बोली –
“रूहान… अगर मेरी ज़िंदगी अधूरी रह गई, तो क्या तुम मुझे अपनी किताब की आख़िरी पंक्ति में हमेशा ज़िंदा रखोगे?”
रूहान ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा –
“नहींPart 9
आर्या की आँखों से खुशी के आँसू बह रहे थे।
उसने रूहान की ओर देखते हुए कहा –
“कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी अधूरी ज़िंदगी में कोई इतना खूबसूरत इंसान आ जाएगा… जो मुझे हर लम्हे जीना सिखा देगा।”
रूहान ने उसके आँसू पोंछते हुए मुस्कुराकर कहा –
“आर्या, तुम अधूरी नहीं हो। तुमने मेरी ज़िंदगी पूरी कर दी है। चाहे वक्त कम हो या ज़्यादा… हमारी मोहब्बत हमेशा अनंत रहेगी।”
आर्या ने धीमे से उसका हाथ थामा और बोली –
“अगर सच मेंLast Part
आर्या की बात सुनकर रूहान ने ठान लिया कि अब वह उसके हर ख्वाब को पूरा करेगा।
वह दोनों को एक बकेट लिस्ट बना दी —
समुंदर किनारे सूरज ढलते हुए देखना,
एक छोटे पहाड़ी गाँव में रात तारों के नीचे बिताना,
बारिश में नाचना,
और एक दिन बिना वजह पूरी दुनिया से छुपकर सिर्फ अपने लिए जीना।
रूहान ने हर ख्वाहिश पूरी करवाई।
आर्या हर पल मुस्कुराती रही, जैसे उसने मौत से पहले ज़िंदगी जीत ली हो।
लेकिन समय कभी नहीं रुकता।
एक शाम, जब वे दोनों तारों को देख रहे थे, आर्या ने रूहान के कंधे पर सिर रखकर धीरे से कहा –
“अगर मैं आज ही चली जाऊँ, तो भी मुझे कोई ग़म नहीं… क्योंकि मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी तुम्हारे साथ जी ली है।”
रूहान की आँखें भीग गईं। उसने काँपती आवाज़ में कहा –
“तुम कहीं नहीं जाओगी, आर्या। तुम मेरी साँसों में रहोगी, मेरी हर किताब में रहोगी, मेरी हर दुआ में रहोगी।”
आर्या ने आख़िरी बार उसकी ओर देखा… होंठों पर हल्की मुस्कान थी… और आँखों में सुकून।
कुछ दिनों बाद आर्या ने हमेशा के लिए आँखें बंद कर लीं।
रूहान टूट गया, लेकिन उसने उसका वादा निभाया।
उसने "Dil Ki Dastak" नाम से एक किताब लिखी, जिसमें आर्या के साथ बिताए हर लम्हे को अमर कर दिया।
और जब भी लोग वह किताब पढ़ते, उन्हें ऐसा लगता मानो आर्या आज भी हँस रही हो…
क्योंकि सच्ची मोहब्बत कभी खत्म नहीं होती,
वह सिर्फ इंसानों से यादों और कहानियों में बदल जाती है।