ये कहानी है शिवांश ओर मन्नत कि मन्नत कों नहीं पता कि उसकी शादी उसके पापा ने किस कारण इतनी जल्दी कर दी ..वो एकदम मासूम सी ... वही दूसरी तरह शिवांश रुद बेहेवियर वाला लेकिन अंदर से उतना ही सॉफ्ट ओर केयर करने वाला लेकिन शिवांश क्या उसे कभी बता पायेगा... ये कहानी है शिवांश ओर मन्नत कि मन्नत कों नहीं पता कि उसकी शादी उसके पापा ने किस कारण इतनी जल्दी कर दी ..वो एकदम मासूम सी ... वही दूसरी तरह शिवांश रुद बेहेवियर वाला लेकिन अंदर से उतना ही सॉफ्ट ओर केयर करने वाला लेकिन शिवांश क्या उसे कभी बता पायेगा अपनी मन का प्यार ? शिवांश अपने पापा कि मौत का बदला लेने के लिए हर मुमकिन कोसिस करता है लेकिन वो इन सब मे मन्नत कों नहीं घसीटना चाहता है ।। क्या वह इन सब मे सफल हो पायेगा उनका प्यार क्या न्या मोड़ लेगा . पढ़ते रहिये
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मन्नत और शिवांश की कहानी
दिल्ली शहर, रात का वक्त - देसाई मेंशन
दिल्ली की चमकती रातों में देसाई मेंशन रोशनी से जगमगा रहा था। आज इस घर की इकलौती बेटी, मन्नत देसाई की शादी थी। मन्नत, अपने होने वाले पति शिवांश मित्तल के साथ मंडप में बैठी थी। पंडित जी मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे, और हवा में पवित्रता का एहसास था। मन्नत की शादी उसके पिता के दोस्त के बेटे, शिवांश के साथ तय हुई थी।
लेकिन मन्नत के मन में सवालों का तूफान था। उसे नहीं पता था कि उसके पिता, धर्मेश जी, इतनी जल्दबाजी में उसकी शादी क्यों कर रहे थे। और उससे भी हैरान करने वाली बात - शादी में दूल्हे का परिवार गायब था। न कोई रिश्तेदार, न कोई हंसी-मजाक, सिर्फ शिवांश अकेला। मन्नत चुप रही, पर उसका दिल बेचैन था।
कन्यादान और विदाई
पंडित जी ने आहुति डालते हुए कहा, "कन्यादान के लिए वधु के माता-पिता आगे आएं।" धर्मेश जी भावुक होकर आगे आए और मन्नत का कन्यादान किया। एक-एक करके सभी रस्में पूरी हुईं, और शादी संपन्न हो गई।
विदाई का समय आया। धर्मेश जी ने मन्नत को गले लगाया, उसकी मांग में सिंदूर देखा, और आंसुओं के साथ कहा, "बेटी, हमेशा खुश रहना।" मन्नत की आंखें भी नम थीं। शिवांश ने उसका हाथ थामा और उसे अपनी चमकती मर्सिडीज में बिठाया। जैसे ही गाड़ी चली, मन्नत का घर, उसकी गलियां, सब पीछे छूटने लगे। उसकी सिसकियां हवा में गूंज रही थीं।
शिवांश ने मन्नत की सिसकियां सुनीं। वह चुप रहा, पर उसका चेहरा तनाव से भरा था। जब मन्नत के आंसू नहीं रुके, तो उसने अपनी जेब से रूमाल निकाला और उसे थमा दिया। मन ही मन सोचा, “ये आंसू... क्या जरूरत है इतने ड्रामे की?”
मित्तल मेंशन का सन्नाटा
गाड़ी मित्तल मेंशन पहुंची। लेकिन वहां शादी का कोई माहौल नहीं था। न रोशनी, न सजावट, बस एक अजीब सा सन्नाटा। शिवांश कार से उतरा और ठंडे लहजे में बोला, "उतरो।"
मन्नत अपने भारी लहंगे को संभालते हुए उतरी। उसका दिल अब भी सवालों से भरा था। शिवांश की रूखी आवाज ने उसे और उलझन में डाल दिया। वह धीरे-धीरे चलने लगी, लहंगा उसकी राह में रुकावट बन रहा था। शिवांश ने उसकी ओर देखा तक नहीं।
मित्तल मेंशन का दरवाजा एक नौकर, रघु, ने खोला। हॉल में कुछ लोग बैठे थे। जैसे ही उनकी नजर मन्नत और शिवांश पर पड़ी, सबके चेहरे पर हैरानी छा गई।
अमृता जी का प्यार
हॉल में शिवांश की दादी, अमृता चौहान, थीं। 58 साल की उम्र में भी उनकी आंखों में गर्मजोशी थी। सफेद साड़ी में वह बेहद सौम्य लग रही थीं। अपने पोते को दुल्हन के साथ देखकर उनकी आंखें खुशी से चमक उठीं। उन्होंने रघु से कहा, "जल्दी से आरती की थाल लाओ, मेरा शिवांश अपनी बहू लाया है!"
रघु थाल ले आया। अमृता जी ने उत्साह से आरती शुरू की, पर तभी एक कड़क आवाज गूंजी, "रुकिए, मां!" यह शिवांश के पिता, रविंदर मित्तल, थे। गुस्से में बोले, "एक महीने बाद शिवांश की शादी मेरे दोस्त रणजीत ठाकुर की बेटी गुंजन से तय थी। ये सब क्या है? मैं अपने वादे नहीं तोड़ता।"
शिवांश ने ठंडे, कठोर लहजे में जवाब दिया, "मुझे आपके सवालों का जवाब देना जरूरी नहीं, मिस्टर मित्तल। आपके दोस्त को क्या कहना है, वो आपकी समस्या है।" उसने मन्नत का हाथ पकड़ा और कमरे की ओर बढ़ गया। अमृता जी ने उसे पुकारा, पर वह रुका नहीं।
मन्नत के मन में उथल-पुथल थी। ये घर, ये लोग, ये गुस्सा... आखिर हो क्या रहा है?
कमरे में तनाव
कमरे में पहुंचते ही शिवांश ने मन्नत का हाथ झटके से छोड़ दिया। मन्नत लड़खड़ा गई, उसकी आंखें नम हो गईं। वह कुछ कहना चाहती थी, पर शिवांश तेजी से बाथरूम की ओर चला गया।
मन्नत ने कमरे को देखा। ग्रे रंग की दीवारें, गोल मास्टर बेड, और ग्रे कंफर्टर - सब कुछ आधुनिक, पर ठंडा। वह मिरर के सामने बैठी और खुद को देखने लगी। मांग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र, और भारी ज्वैलरी। उसने धीरे-धीरे ज्वैलरी उतारनी शुरू की।
शिवांश स्लीवलेस टी-शर्ट और लोअर में बाहर निकला, हाथ में तौलिया लिए बाल पोंछते हुए। मन्नत ने मिरर में उसे देखा। उसकी भूरी आंखें अब भी गुस्से से लाल थीं। वह उठकर जाने लगी, पर शिवांश को लगा कि वह उसे इग्नोर कर रही है। उसने मन्नत का हाथ पकड़ा और उसे अपनी ओर खींच लिया।
मन्नत कन्फ्यूज थी। तभी शिवांश का फोन बजा। उसने मन्नत को छोड़ा और बालकनी की ओर चला गया। फोन पर आवाज आई, "बॉस, काम हो गया।" शिवांश ने मुस्कराते हुए कहा, "गुड। उसका अच्छे से ध्यान रखो। मैं आता हूं।"
शिवांश का अंधेरा चेहरा
एक सुनसान कोठरी में शिवांश एक कुर्सी पर बैठा था। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं, सिर्फ एक डरावनी मुस्कान। हाथ में बंदूक थी। सामने एक आदमी गिड़गिड़ा रहा था, "बॉस, माफ कर दीजिए। ऐसा फिर नहीं होगा।"
शिवांश ने ठंडे लहजे में कहा, "शिवांश मित्तल दूसरा मौका नहीं देता। राणा को पता चलना चाहिए कि मेरी दुश्मनी क्या होती है।" उसकी बंदूक गरजी, और वह आदमी ढेर हो गया। शिवांश ने अपने बॉडीगार्ड को इशारा किया, "इसे भूखे मगरमच्छों को फेंक दो।"
उसने खन्ना से कहा, "मुझे राणा का कॉन्ट्रैक्ट जल्द चाहिए।"
"ओके, बॉस," खन्ना ने जवाब दिया।
मन्नत का दर्द
मित्तल मेंशन में मन्नत अपने मन में सोच रही थी, मैंने कितने सपने देखे थे... कोई इतना बेरहम कैसे हो सकता है? तभी दरवाजा बजा। उसने खोला तो सामने अमृता जी थीं।
"बेटा, मैं अंदर आ जाऊं?" अमृता जी ने मुस्कराकर पूछा।
"आइए ना, आंटी," मन्नत ने कहा।
"आंटी नहीं, मां," अमृता जी ने मन्नत के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा। मन्नत की आंखें भर आईं। "मां," कहकर वह रो पड़ी। "मुझे कभी मां का प्यार नहीं मिला। आपसे वो कमी पूरी हो गई।"
मन्नत अमृता जी से गले लग गई। अमृता जी ने कहा, "ये कपड़े ले लो, इन्हें पहनकर नीचे आ जाओ। और हां, शिवांश दिल का बुरा नहीं है। उसे बचपन से मां-पापा का प्यार नहीं मिला, इसलिए वह कठोर हो गया। मुझे यकीन है, तुम उसके दिल में जगह बना लोगी।"
मन्नत मन ही मन सोचने लगी, राक्षस जैसा इंसान... क्या ये कभी बदल पाएगा?
अमृता जी के जाने के बाद, मन्नत कपड़े बदलने जा रही थी कि उसे दरवाजे पर एक छोटी बच्ची दिखी। उसने उसे प्यार से बुलाया, "आ जा, बेटा।"
जी के जाने के बाद, मन्नत कपड़े बदलने ही जा रही थी कि दरवाजे पर एक छोटी बच्ची खड़ी दिखी। गोल चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखें और हाथ में स्केचबुक।
मन्नत मुस्कराई और प्यार से बोली,
“आ जा बेटा…”
बच्ची झटपट दौड़कर आई और मन्नत के गले लग गई।
“आप बहुत प्यारी हो, भाभी! देखो, मैंने आपकी तस्वीर बनाई है।”
उसने स्केचबुक आगे बढ़ाई। उसमें मन्नत को दुल्हन के लिबास में बनाया गया था। मन्नत की आँखें नम हो गईं।
“तुम्हारा नाम क्या है, गुड़िया?” मन्नत ने पूछा।
“अन्वी,” बच्ची ने मासूम मुस्कान के साथ कहा।
“सब मुझे भैया की परी कहते हैं।”
“भैया?” मन्नत ने हैरानी से दोहराया।
तभी अमृता जी कमरे में लौटीं और हल्की मुस्कान के साथ बोलीं,
“हाँ बेटा, ये अन्वी है… शिवांश के बड़े भाई और भाभी की बेटी। हादसे में दोनों चले गए थे। तब से ये हमारे साथ है।”
मन्नत चौंक गई। उसने अन्वी को सीने से लगाते हुए कहा,
“मतलब… ये हमारी भतीजी है?”
अमृता जी ने सिर हिलाया।
“हाँ, और हमारी जान भी। शिवांश बाहर से जितना कठोर है, अन्वी उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है। वो उसे अपनी जान से भी ज़्यादा चाहता है, पर जताता नहीं।”
अन्वी ने मासूमियत से मन्नत की साड़ी पकड़ी और बोली,
“तो अब आप मेरी मम्मा होंगी न?”
मन्नत की आँखें भर आईं। उसने अन्वी को कसकर गले लगाया और बोली,
“हाँ, बिल्कुल… मैं हमेशा तुम्हारी मम्मा रहूँगी।”
तभी अमृता जी अन्वी को हाथ पकड़ते हुये कहती है चलो बेटा अब रात बहुत हो गयी और चाची को भी रेस्ट कर दो...तुम भी सो जाओ ..
अन्वी मासूमियत के साथ अमृता जी के साथ चलने लगती है ..अमृता जी एक मुस्कराहट के साथ मन्नत को देखती है फिर कमरे से चली जाती है
मन्नत एक लाइट पिंक सूट पहनकर वाशरूम से आती है लेकिन उसके मन मे बहुत सवाल थे
मन्नत सोने की कोसिस करती है लेकिन् उसके मन मे चल रहें तूफान उसे सोने नहीं दे रहें थे ...
मन्नत बिस्तर पर लेटी, लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। कमरे की नर्म रोशनी में, उसका मन अन्वी की मासूम मुस्कान और अमृता जी की बातों में उलझा हुआ था। अन्वी की आवाज़—“भैया की परी,” “आप मेरी मम्मा होंगी न?”—उसके दिल में गहरे उतर गई थी। साथ ही, शिवांश का नाम सुनकर उसका मन और बेचैन हो उठा। ..
शिवांश… कहाँ है वो?
रात के 2:30 बजे, मित्तल मेंशन में सन्नाटा पसरा था। मन्नत बिस्तर पर बैठी थी, उसकी आंखें नींद से बोझिल थीं, लेकिन मन की बेचैनी उसे सोने नहीं दे रही थी। तभी दरवाजे के खुलने की तेज आवाज ने उसे चौंका दिया। शिवांश अंदर आया। उसका चेहरा पत्थर सा सख्त था, और उसकी काली शर्ट पर हल्के खून के धब्बे चांदनी की रोशनी में साफ दिख रहे थे। उसकी आंखें गुस्से और थकान से लाल थीं, जैसे वह किसी जंग से लौटा हो।
मन्नत का दिल जोर से धड़कने लगा। उसने हिम्मत जुटाकर पूछा, "शिवांश, ये... ये खून? तुम ठीक हो?" उसकी आवाज में डर और चिंता थी।
शिवांश ने उसकी ओर एक ठंडी नजर फेंकी और बिना जवाब दिए अपने जूते उतारने लगा। उसकी चुप्पी मन्नत को और डरा रही थी। उसने फिर से कहा, "शिवांश, बताओ ना, क्या हुआ? तुम इतनी रात को कहां थे?"
शिवांश ने एकदम से उसकी ओर देखा, और उसकी आंखों में एक डरावनी चमक थी। वह मन्नत के पास आया, इतना करीब कि मन्नत को उसकी सांस की गर्मी महसूस हुई। "मन्नत," उसने धीमी, खतरनाक आवाज में कहा, "कुछ सवालों के जवाब तुम्हारे लिए अच्छे नहीं। चुप रहो, और जो देखा, उसे भूल जाओ।"
मन्नत का गला सूख गया। उसने अपने डर को दबाते हुए कहा, "मैं तुम्हारी पत्नी हूं, शिवांश। मुझे हक है जानने का।"
शिवांश के होंठों पर एक कुटिल मुस्कान उभरी। "हक?" उसने ठहाका लगाया, जो कमरे में गूंज गया। "तुम्हें लगता है कि तुम मेरे अंधेरे को समझ सकोगी? मन्नत, ये दुनिया तुम्हारी मासूमियत के लिए नहीं बनी।" वह पलटा और बाथरूम की ओर चला गया, लेकिन उसकी आवाज अभी भी मन्नत के कानों में गूंज रही थी।
मन्नत ने अपने कांपते हाथों को देखा। उसका दिल चीख रहा था, मैंने किससे शादी कर ली? क्या ये इंसान है, या कोई राक्षस?
रात और गहरा गई। मन्नत ने बाथरूम के दरवाजे की ओर देखा, जहां से पानी की आवाज आ रही थी। लेकिन तभी उसे अपने फोन पर एक अनजान नंबर से मैसेज आया। उसने डरते-डरते फोन उठाया। मैसेज में लिखा था: "शिवांश मित्तल वो नहीं, जो दिखता है। सावधान रहना।"
मन्नत का दिल और तेजी से धड़कने लगा। उसने फोन को कसकर पकड़ा और मैसेज को बार-बार पढ़ा। कौन है ये? और ये क्या जानता है? उसने जवाब टाइप करने की कोशिश की, लेकिन तभी बाथरूम का दरवाजा खुला, और शिवांश बाहर निकला। उसने काली टी-शर्ट और लोअर पहना था, और उसके गीले बालों से पानी टपक रहा था। उसने मन्नत के हाथ में फोन देखा और उसकी भौंहें सिकुड़ गईं।
"किससे बात कर रही हो?" उसकी आवाज में शक था।
मन्नत ने जल्दी से फोन छिपाया और कहा, "क... कुछ नहीं, बस टाइम देख रही थी।" लेकिन शिवांश की नजरें उसकी आंखों को भेद रही थीं। वह धीरे-धीरे मन्नत के पास आया और उसका फोन छीन लिया। मन्नत ने विरोध करने की कोशिश की, लेकिन शिवांश ने एक ही झटके में फोन खोलकर मैसेज पढ़ लिया।
उसके चेहरे पर एक खतरनाक शांति छा गई। "ये क्या है, मन्नत?" उसने फोन मन्नत की ओर फेंका और बोला, "मेरे पीठ पीछे जासूसी? तुम्हें लगता है तुम मुझसे खेल सकती हो?"
मन्नत की आंखें नम हो गईं। "मैंने कुछ नहीं किया, शिवांश। ये मैसेज अपने आप आया। मैं बस... मैं बस सच जानना चाहती हूं।"
शिवांश ने एक कदम और आगे बढ़ाया, और मन्नत सहमकर पीछे हट गई। लेकिन तभी उसने रुककर गहरी सांस ली। उसकी आंखों में गुस्सा था, लेकिन कहीं न कहीं एक हल्की सी बेचैनी भी। वह पीछे हटा और बोला, "सो जाओ, मन्नत। और ये फोन बंद रखो।" वह खिड़की की ओर चला गया और बाहर अंधेरे को घूरने लगा।
जानने के लिए पढ़ते रहिये..आगे क्या मोड़ लाएगी कहानी
सुबह की मासूमियत
सुबह मन्नत की आंखें जल्दी खुल गईं। रात की घटना ने उसे और बेचैन कर दिया था। वह रसोई में गई, जहां अमृता जी पहले से मौजूद थीं। अन्वि भी वहां थी, अपने छोटे से स्केचबुक में कुछ ड्रॉ कर रही थी।
"भाभी!" अन्वि ने मन्नत को देखकर चिल्लाया और दौड़कर उससे लिपट गई। "देखो, मैंने तुम्हारा चित्र बनाया!" उसने एक रंग-बिरंगा स्केच दिखाया, जिसमें मन्नत एक साड़ी में मुस्करा रही थी।
मन्नत की आंखें नम हो गईं। उसने अन्वी को गले लगाया और कहा, "ये तो बहुत सुंदर है, मेरी गुड़िया।" उस पल में उसे थोड़ा सुकून मिला। अमृता जी ने मुस्कराकर कहा, "बेटा, तू इस घर की रौनक है। अन्वि को तो तुझसे प्यार हो गया।"
मन्नत ने हल्की सी मुस्कान दी, लेकिन उसका मन अब भी रात की बातों में उलझा था।
दोपहर का समय था। मन्नत बगीचे में अन्वी के साथ थी। अन्वि एक छोटी सी गेंद उछाल रही थी, और मन्नत उसे हंसते हुए देख रही थी। तभी शिवांश वहां आया। काला कुर्ता, आंखों में थकान, और चेहरा वही सख्त, जो मन्नत को हमेशा थोड़ा डराता था। लेकिन आज उसकी आंखों में कुछ अलग था—शायद एक हल्की सी चमक।
अन्वि ने उसे देखकर चिल्लाया, "भैया! गेंद खेलो ना!" शिवांश ने एक पल को अनन्या की ओर देखा, फिर बिना कुछ बोले गेंद उठाकर धीरे से फेंक दी। उसकी हल्की सी मुस्कान मन्नत को अजीब लगी। ये वही शिवांश था, जो रात को घर में साये की तरह चुपचाप घूमता था, जिसकी एक नजर से सब सहम जाते थे।
खेलते-खेलते अन्वी ने गेंद मन्नत की ओर फेंकी। मन्नत ने हंसते हुए गेंद पकड़ी और वापस फेंकी, लेकिन गलती से गेंद शिवांश के सिर पर जा लगी। अन्वी जोर से हंस पड़ी। मन्नत का चेहरा डर से सफेद पड़ गया। उसने सोचा, अब तो गया! लेकिन शिवांश ने गेंद उठाई, एक भौंह उठाकर मन्नत की ओर देखा और कहा, "ये क्या, मन्नत? मेरे खिलाफ साजिश?"
मन्नत हक्का-बक्का रह गई। शिवांश का लहजा मजाकिया था, लेकिन उसकी आंखों में वही रहस्यमयी गहराई थी। "स... सॉरी, वो गलती से..." मन्नत ने हकलाते हुए कहा।
शिवांश ने गेंद अन्वि कि । ओर फेंकी और धीरे से कहा, "गलती? ह्म्म, देखता हूं कितनी गलतियां और करोगी।" उसकी आवाज में हल्की सी धमकी थी, लेकिन चेहरे पर एक मुस्कान भी, जो मन्नत को समझ नहीं आ रही थी।
खेल खत्म हुआ तो अनन्या थककर बगीचे के कोने में जाकर बैठ गई। शिवांश और मन्नत बेंच पर बैठे। मन्नत ने हिम्मत जुटाकर पूछा, "आप हमेशा इतने... गंभीर क्यों रहते हैं?"
शिवांश ने एक ठंडी नजर मन्नत पर डाली, फिर पेड़ों की ओर देखते हुए कहा, "जिंदगी ने ज्यादा हंसने का मौका नहीं दिया, मन्नत। जो दिखता हूं, वो बनना पड़ा है।" उसने एक पल रुका, फिर मन्नत की ओर देखा। "पर शायद... तुम्हारे साथ थोड़ा कम गंभीर हो सकता हूं। लेकिन ज्यादा उम्मीद मत करना।"
मन्नत का दिल धक् से रह गया। ये क्या था? नरमी या फिर वही सख्ती का मुखौटा? उसने बस सिर हिलाया, और शिवांश की हल्की सी मुस्कान बगीचे की शांति में कहीं खो गई।
बगीचे की शांति में शिवांश की आखिरी बात मन्नत के दिमाग में गूंज रही थी। "ज्यादा उम्मीद मत करना।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सा मिश्रण था—नरमी और सख्ती का, जैसे कोई दीवार खड़ी हो, जो टूटना चाहती हो, पर अभी पूरी तरह तैयार न हो। मन्नत ने चुपचाप उसकी ओर देखा, उसकी आंखों में कुछ ढूंढने की कोशिश की, लेकिन शिवांश का चेहरा फिर से उसी ठंडे मुखौटे में ढल गया।...
उसी शाम, मन्नत ने हॉल में वही पुरानी डायरी देखी, जो शिवांश की मां की थी। उसने अमृता जी से पूछा, "मां, क्या मैं इसे पढ़ सकती हूं?"
अमृता जी ने उदास मुस्कान के साथ कहा, "बेटा, वो शिवांश की मां की आखिरी निशानी है। लेकिन अगर तुम्हें लगता है कि इससे तुम्हें कुछ समझ आएगा, तो पढ़ लो।"
मन्नत ने डायरी उठाई, लेकिन उसे खोलने की हिम्मत नहीं हुई। उसे लगा कि शायद इस डायरी में शिवांश के अंधेरे का जवाब है। लेकिन तभी उसे एक् आहट सुनाई दी—बगीचे में कोई था। वह खिड़की की ओर गई, और उसे साफ दिखा—एक काला कोट पहने कोई शख्स अंधेरे में छिप रहा था।
क्या ये शिवांश का राज है? या कोई और खतरा? मन्नत ने डायरी को सीने से लगाया और ठान लिया कि वह सच का पता लगरात के ग्यारह बजे थे। मित्तल मेंशन में सन्नाटा पसरा था, सिवाय हल्की सी हवा के, जो खिड़कियों से टकराकर अजीब सी सनसनाहट पैदा कर रही थी। मन्नत अपने कमरे में बिस्तर पर बैठी थी, शिवांश की मां की डायरी उसके सामने खुली थी। उसने डायरी की पहली पंक्ति पढ़ी थी, लेकिन उसका मन बार-बार बगीचे में दिखे उस काले कोट वाले शख्स की ओर जा रहा था। वो कौन था? और वो मैसेज... क्या वो सचमुच मुझे चेतावनी देना चाहता है?
मन्नत ने डायरी बंद की और खिड़की की ओर देखा। बगीचे में चांदनी की रोशनी में पेड़ों की छायाएं डरावनी आकृतियां बना रही थीं। तभी उसे फिर से वही आहट सुनाई दी—हल्की सी खटपट, जैसे कोई चुपके से चल रहा हो। उसका दिल जोर से धड़का, लेकिन इस बार उसने ठान लिया कि वह डर को हावी नहीं होने देगी। उसने एक शॉल लपेटा, अपने फोन की टॉर्च जलाई, और चुपके से बगीचे की ओर चल पड़ी।
बगीचे में हवा ठंडी थी, और पत्तों की सरसराहट मन्नत के कानों में गूंज रही थी। उसने टॉर्च की रोशनी इधर-उधर घुमाई, लेकिन कुछ दिखाई नहीं दिया। तभी, एक पेड़ के पीछे से उसे फिर वही काला कोट नजर आया। वह शख्स तेजी से बगीचे के पिछले हिस्से की ओर बढ़ रहा था। मन्नत का मन डर से कांप रहा था, लेकिन उसने हिम्मत जुटाकर उसका पीछा किया।
बगीचे के आखिरी छोर पर एक पुराना, जर्जर गेट था, जो हमेशा बंद रहता था। उस शख्स ने गेट खोला और अंधेरे में गायब हो गया। मन्नत ने गेट के पास पहुंचकर देखा—वहां एक ताला टूटा हुआ पड़ा था, और गेट के दूसरी ओर एक पतली सी पगडंडी थी, जो जंगल की ओर जा रही थी। उसने एक पल के लिए सोचा कि वापस लौट जाए, लेकिन फिर उस अनजान मैसेज की बात याद आई: शिवांश मित्तल वो नहीं, जो दिखता है।
वह गेट पार करके पगडंडी पर चल पड़ी। कुछ ही कदमों के बाद उसे एक छोटी सी झोपड़ी दिखी, जिसके बाहर एक मद्धम सी लालटेन जल रही थी। उसने सावधानी से झोपड़ी की खिड़की से झांका। अंदर वही काले कोट वाला शख्स था। वह एक पुराने टेबल पर बैठा था, और उसके सामने कुछ कागजात बिखरे हुए थे। मन्नत ने ध्यान से देखा—उन कागजातों में कुछ तस्वीरें थीं, और उनमें से एक में शिवांश का चेहरा साफ दिख रहा था।
तभी उस शख्स ने अचानक सिर उठाया, जैसे उसे मन्नत की मौजूदगी का अहसास हो गया हो। मन्नत ने जल्दी से खुद को छिपाया, लेकिन उसका पैर एक टहनी पर पड़ गया, और एक तेज खटके की आवाज हुई। वह शख्स तेजी से बाहर निकला और बोला, "कौन है वहां?"
मन्नत का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वह भागने की कोशिश करने लगी, लेकिन उसका पैर कीचड़ में फंस गया। उस शख्स ने उसे देख लिया और उसकी ओर बढ़ा। जैसे ही वह मन्नत के करीब पहुंचा, उसने अपना चेहरा ढकने वाला स्कार्फ हटाया। मन्नत की सांसें थम गईं। वह शख्स कोई और नहीं, बल्कि रवि था—शिवांश का पुराना दोस्त, जिसे मन्नत ने शादी में एक बार देखा था।
"मन्नत?" रवि ने आश्चर्य और चिंता के साथ कहा। "तुम यहां क्या कर रही हो? ये जगह सुरक्षित नहीं है!"
मन्नत ने कांपती आवाज में पूछा, "रवि, तुम? और ये तस्वीरें... ये सब क्या है? तुम शिवांश के बारे में क्या जानते हो?"
रवि ने उसे जल्दी से झोपड़ी के अंदर खींच लिया और दरवाजा बंद कर दिया। उसने गहरी सांस ली और बोला, "मन्नत, तुम बहुत गहरे पानी में उतर रही हो। शिवांश... वो एक खतरनाक खेल खेल रहा है। मैं तुम्हें सब कुछ बताना चाहता हूं, लेकिन अभी वक्त नहीं है। अगर उसने तुम्हें मेरे साथ देख लिया, तो..."
तभी बाहर से किसी के भारी कदमों की आवाज आई। रवि ने मन्नत को चुप रहने का इशारा किया और उसे एक पुराने ट्रंक के पीछे छिपने को कहा। दरवाजा खुला, और मन्नत ने देखा—वहां शिवांश खड़ा था। उसकी आंखें गुस्से से लाल थीं, और उसके हाथ में एक चमकता हुआ चाकू था।
"रवि," शिवांश की आवाज में ठंडी क्रूरता थी। "तुमने मेरे साथ धोखा करने की हिम्मत कैसे की?"
डायरी का पहला सच
मन्नत की सांसें थम गई थीं। वह ट्रंक के पीछे सिकुड़ी हुई थी, लेकिन उसकी आंखें डायरी की ओर गईं, जो उसने शॉल में छिपा रखी थी। शिवांश और रवि के बीच तीखी बहस शुरू हो गई थी। रवि ने कहा, "शिवांश, मैं बस सच सामने लाना चाहता हूं। तुम जो कर रहे हो, वो गलत है। तुम्हें मन्नत को इस सब में नहीं घसीटना चाहिए!"
शिवांश ने चाकू को और कसकर पकड़ा। "मन्नत का इससे कोई लेना-देना नहीं। और तुम... तुमने मेरे परिवार को पहले ही बर्बाद किया। अब मेरी पत्नी को भी?"
मन्नत के दिमाग में सवालों का तूफान उठ रहा था। परिवार को बर्बाद? ये क्या बात कर रहे हैं? उसने चुपके से डायरी खोली और टॉर्च की हल्की रोशनी में पढ़ना शुरू किया। पहली पंक्ति ने ही उसका दिल दहला दिया:
"मेरा बेटा, शिवांश, उस रात घर नहीं लौटा। मैंने उसे चेतावनी दी थी कि वो उस आदमी से दूर रहे, लेकिन उसकी जिद... मुझे डर है कि वो उसी रास्ते पर चल पड़ा, जिसने हमारे परिवार को तबाह किया।"
मन्नत की नजरें तेजी से पन्नों पर दौड़ रही थीं। डायरी में एक नाम बार-बार आ रहा था—विक्रम राठौर। वह कौन था? और शिवांश का उससे क्या रिश्ता था? तभी उसकी नजर एक तस्वीर पर पड़ी, जो डायरी के बीच में चिपकी थी। उसमें एक जवान शिवांश था, और उसके बगल में वही काले कोट वाला आदमी, रवि। लेकिन तस्वीर में एक और चेहरा था—एक आदमी, जिसके चेहरे पर गहरी उदासी थी। नीचे लिखा था: "विक्रम, तुमने मेरे बेटे को क्यों चुना?"
एक अनजाना खतरा
तभी झोपड़ी के बाहर तेज हवा का एक झोंका आया, और लालटेन बुझ गई। अंधेरे में शिवांश और रवि की आवाजें और तेज हो गईं। मन्नत ने सुना, रवि ने कहा, "शिवांश, मैंने तुम्हारी मां को वादा किया था कि मैं तुम्हें बचाऊंगा। लेकिन तुम उस राक्षस के साथ जा मिले। विक्रम राठौर तुम्हें बर्बाद कर देगा!"
शिवांश ने गुस्से में चिल्लाया, "तुम्हें कुछ नहीं पता, रवि! उसने मेरे पिता को मारा। मैं उसे छोडूंगा नहीं!" उसकी आवाज में दर्द और गुस्सा एक साथ था।
मन्नत का दिमाग सुन्न हो गया। विक्रम राठौर ने शिवांश के पिता को मारा? और शिवांश का खून से सना होना... क्या वो बदला ले रहा है? तभी उसका फोन वाइब्रेट हुआ। उसने डरते-डरते स्क्रीन देखी—वही अनजान नंबर। मैसेज में लिखा था: "झोपड़ी से निकलो, मन्नत। अभी।"
मन्नत ने घबराहट में इधर-उधर देखा। शिवांश और रवि अब भी बहस में डूबे थे। उसने चुपके से ट्रंक से निकलकर पीछे का दरवाजा खोला और बाहर की ओर भागी। लेकिन जैसे ही वह पगडंडी पर पहुंची, उसे किसी ने पीछे से कसकर पकड़ लिया। उसने चीखने की कोशिश की, लेकिन एक मजबूत हाथ ने उसका मुंह दबा दिया।
"शांत रहो," एक ठंडी, अनजानी आवाज उसके कानों में गूंजी। "मैं विक्रम राठौर हूं। और तुम, मन्नत, मेरे लिए बहुत कीमती हो।"
To be continued
सुबह मित्तल मेंशन में मन्नत अपने कमरे में थी, लेकिन उसका चेहरा पीला पड़ गया था। रात की घटना ने उसे तोड़ दिया था। विक्रम ने उसे छोड़ दिया था, लेकिन उसकी आखिरी बातें मन्नत के दिमाग में गूंज रही थीं: "शिवांश को बताओ कि मैं उसका इंतजार कर रहा हूं। और तुम... तुम उसका सबसे बड़ा हथियार हो।"
मन्नत ने डायरी को फिर से खोला। अब उसे समझ आ रहा था कि शिवांश का अंधेरा सिर्फ उसका नहीं, बल्कि उसके परिवार का है। वह विक्रम राठौर के खिलाफ एक जंग लड़ रहा था, लेकिन क्यों? और रवि इसमें कहां फिट होता है?
उसने ठान लिया कि वह शिवांश से सच पूछेगी, चाहे कुछ भी हो जाए। वह बगीचे में गई, जहां शिवांश अनवी के साथ बैठा था। अनन्या हंस रही थी, और शिवांश उसकी बातों पर मुस्करा रहा था। मन्नत ने एक गहरी सांस ली और उसके पास गई।
"शिवांश," उसने दृढ़ आवाज में कहा, "हमें बात करनी है। अभी।"
शिवांश ने उसकी ओर देखा, और उसकी आंखों में वही अनजानी चमक थी। "ठीक है, मन्नत," उसने कहा। "लेकिन याद रख, कुछ सच तुम्हें तोड़ सकते हैं।"
मन्नत ने उसकी आंखों में देखा और बोली, "मैं तैयार हूं
सुबह की धूप मित्तल मेंशन के बगीचे में फैली हुई थी।अन्वी अपनी गेंद के साथ खेल रही थी, लेकिन मन्नत और शिवांश की नजरें एक-दूसरे पर टिकी थीं। मन्नत की आंखों में दृढ़ता थी, और शिवांश का चेहरा शांत, लेकिन गंभीर था। हवा में एक अजीब सी खामोशी थी, जैसे कोई तूफान आने वाला हो।
"शिवांश," मन्नत ने गहरी सांस लेकर कहा, "मैं अब और इंतजार नहीं कर सकती। मुझे सच चाहिए। रात को बगीचे में वो शख्स... रवि... और वो विक्रम राठौर। ये सब क्या है? तुम किस जंग में उलझे हो?"
शिवांश ने एक पल के लिए अपनी आंखें बंद कीं, जैसे दर्द को दबाने की कोशिश कर रहा हो। फिर उसने धीरे से कहा, "मन्नत, तुम सच जानना चाहती हो? ठीक है, लेकिन ये सच तुम्हें बदल देगा।"
वह मन्नत को बगीचे के एक कोने में ले गया, जहां एक पुराना बेंच था। अन्वी अब भी दूर खेल रही थी, और उसकी हंसी हवा में गूंज रही थी। शिवांश ने बैठते हुए कहा, "मेरे पिता, राघव मित्तल, इस शहर के सबसे बड़े बिजनेसमैन थे। लेकिन उनकी मौत कोई हादसा नहीं थी। उन्हें विक्रम राठौर ने मारा।"
मन्नत की सांस रुक गई। "विक्रम राठौर? लेकिन क्यों?"
शिवांश की आंखों में गुस्सा और दुख एक साथ उभर आए। "विक्रम मेरे पिता का पार्टनर था। वो एक क्रूर इंसान है, मन्नत। उसने मेरे पिता को सिर्फ इसलिए मारा क्योंकि वो उसकी गैरकानूनी गतिविधियों का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे। ड्रग्स, हथियार, और... इंसानी तस्करी। मेरे पिता ने उसका विरोध किया, और इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।"
मन्नत का गला सूख गया। "और तुम? तुम उस रात कहां थे, शिवांश? तुम्हारी शर्ट पर खून..."
शिवांश ने उसकी ओर देखा, और उसकी आंखों में एक गहरी उदासी थी। "मैं ये बात् तुम्हे समय् आने पर् हि बता दुगा मैं विक्रम को बर्बाद कर दूंगा। हर उस गलत काम को खत्म कर दूंगा, जो वो करता है।"
मन्नत ने कांपते हाथों से शिवांश का हाथ पकड़ा। "तो तुम... तुम बदला ले रहे हो? लेकिन ये खून, ये हिंसा... ये सही है?"
शिवांश ने उसका हाथ छुड़ाया और खड़े हो गए। "सही या गलत, मन्नत, ये मेरी जंग है। और मैं इसे अकेले लड़ूंगा। तुम इसमें मत पड़ो।"
मन्नत ने गुस्से और निराशा में कहा, "मैं तुम्हारी पत्नी हूं, शिवांश! मैं तुम्हें अकेले नहीं छोड़ सकती। और रवि? वो इसमें कहां फिट होता है?"
शिवांश ने एक ठंडी सांस ली। "रवि मेरा दोस्त था। लेकिन उसने मेरी मां को वादा किया था कि वो मुझे इस रास्ते से रोकने की कोशिश करेगा। वो चाहता है कि मैं विक्रम को छोड़ दूं, लेकिन मैं नहीं रुक सकता।"
मन्नत की आंखें नम हो गईं। "और मैं? मैं तुम्हारे लिए क्या हूं, शिवांश? सिर्फ एक पत्नी, जिसे तुम अंधेरे में रखना चाहते हो?"
शिवांश ने उसकी ओर देखा, और इस बार उसकी आंखों में एक अनजानी कोमलता थी। "तुम मेरे लिए वो रोशनी हो, मन्नत, जिसे मैं खोना नहीं चाहता। इसलिए मैं तुम्हें इस अंधेरे से दूर रखना चाहता हूं।"
डायरी का दूसरा पन्ना
उसी रात, मन्नत ने फिर से डायरी खोली। शिवांश की बातों ने उसे थोड़ा सुकून दिया था, लेकिन उसका मन अभी भी उलझा हुआ था। डायरी के अगले पन्ने ने उसे और चौंका दिया। शिवांश की मां ने लिखा था:
"विक्रम ने राघव को मारने के बाद मुझे धमकी दी थी। उसने कहा कि अगर मैंने पुलिस को कुछ बताया, तो शिवांश को भी नहीं छोड़ेगा। मैंने अपने बेटे को बचाने के लिए चुप्पी साध ली। लेकिन मुझे डर है कि शिवांश उस रात की सच्चाई जान चुका है। वो विक्रम के पीछे पड़ गया है, और मुझे डर है कि ये जंग उसे भी ले डूबेगी।"
मन्नत ने डायरी को सीने से लगाया। उसे अब समझ आ रहा था कि शिवांश का गुस्सा और उसका अंधेरा सिर्फ बदले की आग नहीं, बल्कि अपने परिवार को खोने का दर्द भी था। लेकिन तभी उसे एक और पन्ने पर कुछ अजीब सा लिखा दिखा—एक कोड: VR-13/9. इसके नीचे लिखा था, "ये वो जगह है, जहां सारी सच्चाई दफन है।"
मन्नत का दिमाग तेजी से चलने लगा। VR... विक्रम राठौर? और 13/9 क्या है? कोई तारीख, जगह, या कुछ और? उसने ठान लिया कि वह इस कोड का मतलब पता करेगी।
एक नया खतरा
अगली सुबह, मन्नत ने रवि को फोन किया। उसने रात की घटना के बाद रवि का नंबर ढूंढ लिया था। रवि ने फोन उठाते ही कहा, "मन्नत, तुम ठीक हो? मैंने तुम्हें चेतावनी दी थी कि उस झोपड़ी से निकल जाओ।"
मन्नत ने जल्दी से पूछा, "रवि, VR-13/9 क्या है? और विक्रम राठौर का असली मकसद क्या है?"
रवि की आवाज में घबराहट थी। "मन्नत, तुम बहुत गहरे जा रही हो। VR-13/9 एक पुराना गोदाम है, जहां विक्रम अपने गैरकानूनी सामान को छिपाता है। लेकिन तुम वहां मत जाना। वो जगह खतरनाक है।"
मन्नत ने जिद की। "मुझे बताओ, रवि। मुझे सच जानना है।"
रवि ने एक लंबी सांस ली। "ठीक है। लेकिन मैं तुम्हें अकेले नहीं जाने दूंगा। आज रात 10 बजे, मैं तुम्हें उस गोदाम के बाहर मिलूंगा।"
गोदाम का रहस्य
रात को मन्नत ने चुपके से घर से निकलने का फैसला किया। उसने शिवांश को बताया कि वह अपनी सहेली से मिलने जा रही है। शिवांश ने उसकी ओर शक भरी नजरों से देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। मन्नत ने अपनी शॉल में डायरी छिपाई और गोदाम की ओर चल पड़ी।
गोदाम शहर के बाहरी इलाके में एक सुनसान जगह पर था। वहां पहुंचते ही मन्नत को रवि मिला, जो पहले से इंतजार कर रहा था। उसने मन्नत को एक टॉर्च दी और बोला, "जो भी करो, चुप रहना। विक्रम के आदमी यहां हो सकते हैं।"
दोनों गोदाम के पीछे एक टूटे हुए दरवाजे से अंदर घुसे। अंदर का माहौल ठंडा और डरावना था। चारों ओर लकड़ी के बक्से और पुराने कंटेनर बिखरे हुए थे। मन्नत ने टॉर्च की रोशनी में एक बक्से पर लिखा देखा: VR-13/9. उसने रवि को इशारा किया, और दोनों ने मिलकर बक्सा खोला।
अंदर कुछ पुरानी फाइलें, तस्वीरें, और एक छोटा सा लॉकर था। मन्नत ने एक तस्वीर उठाई—उसमें शिवांश के पिता, राघव मित्तल, और विक्रम राठौर एक साथ खड़े थे, लेकिन उनके चेहरों पर तनाव साफ दिख रहा था। फाइलों में कुछ कागजात थे, जिनमें एक गैरकानूनी सौदे की बात थी। और लॉकर में... एक छोटा सा डायल था, जिसे खोलने के लिए एक कोड चाहिए था।
तभी बाहर से किसी के कदमों की आवाज आई। रवि ने मन्नत को छिपने का इशारा किया। दोनों एक बड़े बक्से के पीछे छिप गए। दरवाजा खुला, और वहां विक्रम राठौर खड़ा था। उसकी आवाज ठंडी और खतरनाक थी। "मुझे पता था, रवि, तुम मेरे पीछे पड़ जाओगे। लेकिन इस बार तुमने गलत इंसान को चुना।"
मन्नत का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। तभी उसका फोन फिर से वाइब्रेट हुआ। उसने स्क्रीन देखी—वही अनजान नंबर। मैसेज में लिखा था: "लॉकर का कोड: 1993. खोलो, और सच सामने आएगा।"
मन्नत ने रवि को इशारा किया, और दोनों ने चुपके से लॉकर की ओर बढ़ने की कोशिश की। लेकिन तभी विक्रम की नजर उन पर पड़ गई। उसने एक पिस्तौल निकाली और बोला, "मन्नत, तुमने गलत खेल खेल लिया।"
तभी एक तेज आवाज गूंजी—शिवांश की। "विक्रम!" वह गोदाम के दरवाजे पर खड़ा था, और उसके हाथ में भी एक पिस्तौल थी। "मेरी पत्नी को छूने की हिम्मत मत करना।"
एक नया मोड़
मन्नत की सांसें थम गई थीं। शिवांश और विक्रम आमने-सामने थे, और दोनों की आंखों में आग थी। रवि ने मन्नत को खींचकर एक बक्से के पीछे ले गया। मन्नत ने कांपते हाथों से लॉकर खोला। अंदर एक छोटा सा डायरी थी, और उसमें लिखा था: "राघव की मौत मेरी गलती थी। मैंने विक्रम को रोका, लेकिन वो नहीं माना। शिवांश, मेरे बेटे, मुझे माफ कर देना।"
मन्नत की आंखें नम हो गईं। यह शिवांश की मां की आखिरी चिट्ठी थी। लेकिन तभी गोली की आवाज गूंजी। मन्नत ने घबराकर बाहर देखा—शिवांश जमीन पर था, और उसकी बांह से खून बह रहा था। विक्रम हंस रहा था। "तुम हार गए, शिवांश।"
मन्नत ने चीखते हुए शिवांश की ओर दौड़ने की कोशिश की, लेकिन रवि ने उसे रोक लिया। "मन्नत, रुको! हमें अभी भागना होगा!"
लेकिन मन्नत ने रवि को धक्का दिया और शिवांश के पास पहुंच गई। उसने शिवांश का चेहरा अपने हाथों में लिया और रोते हुए कहा, "शिवांश, तुम ठीक हो ना?"
शिवांश ने कमजोर आवाज में कहा, "मन्नत... डायरी... उसमें सच है। उसे बचाओ।"
विक्रम ने फिर से पिस्तौल तानी, लेकिन तभी पुलिस की सायरन की आवाज गूंजी। विक्रम का चेहरा पीला पड़ गया। वह भागने की कोशिश करने लगा, लेकिन पुलिस ने उसे घेर लिया। रवि ने मन्नत को बताया, "मैंने पुलिस को पहले ही बुला लिया था।"
एक नई शुरुआत?
शिवांश को अस्पताल ले जाया गया। मन्नत उसके बगल में बैठी थी, और उसकी आंखें अब भी नम थीं। डायरी उसके हाथ में थी। पुलिस ने विक्रम को गिरफ्तार कर लिया था, और रवि ने मन्नत को बताया कि उसने शिवांश की मां के वादे को निभाने के लिए ये सब किया था।
शिवांश ने धीरे से मन्नत का हाथ पकड़ा। "मुझे माफ कर दो, मन्नत। मैं तुम्हें इस सब में नहीं घसीटना चाहता था।"
मन्नत ने उसकी आंखों में देखा और कहा, "शिवांश, अब कोई अंधेरा नहीं। हम साथ में हर सच का सामना करेंगे।"
लेकिन जैसे ही मन्नत ने डायरी का आखिरी पन्ना खोला, उसका चेहरा पीला पड़ गया। वहां लिखा था: "विक्रम अकेला नहीं था। उसका एक साथी अभी भी मित्तल मेंशन में है।"
कहानी अभी खत्म नहीं हुई। मित्तल मेंशन में छिपा वो साथी कौन है? क्या मन्नत और शिवांश इस नए खतरे का सामना कर पाएंगे? अगले भाग में होगा एक और बड़ा खुलासा।
To be continued