**कहानी की नायिका है मासूम और ख़ूबसूरत Ishita. उसके चाँद जैसे चेहरे पर सजी हेज़ल ग्रीन आँखें और होंठों पर छोटा-सा तिल उसे भीड़ में सबसे अलग और अनोखा बनाते हैं। Ishita का दिल सपनों और छोटी-छोटी खुशियों से भरा है। उसे हँसना, दोस्तों के साथ वक़्त बिताना... **कहानी की नायिका है मासूम और ख़ूबसूरत Ishita. उसके चाँद जैसे चेहरे पर सजी हेज़ल ग्रीन आँखें और होंठों पर छोटा-सा तिल उसे भीड़ में सबसे अलग और अनोखा बनाते हैं। Ishita का दिल सपनों और छोटी-छोटी खुशियों से भरा है। उसे हँसना, दोस्तों के साथ वक़्त बिताना और अपने भाई Rohan की शरारतों से लड़ना–झगड़ना बहुत पसंद है। उसकी ज़िंदगी उतनी ही सामान्य है जितनी किसी और लड़की की… पर शायद किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। उसकी हर मुस्कान पर नज़रें गड़ाए बैठा है एक शख़्स—veeransh singh rathod . 6 फीट से भी लंबा, गहरी आँखों में बसी अंधेरी खामोशी और चेहरे पर ऐसा रौब कि सामने वाला झुक जाए। Veer को पाने की सनक किसी दीवानगी से कम नहीं। वह Ishita की हर सांस, हर धड़कन, हर नज़र पर अपना हक़ चाहता है। उसकी मोहब्बत इश्क़ से ज़्यादा जुनून है, और जुनून जब हद पार करता है तो इश्क़ क़ैद बन जाता है। इस कहानी में मासूमियत और सनक का टकराव होगा… और ये टकराव सिर्फ़ Ishita की ज़िंदगी ही नहीं, उसकी रूह तक बदल देगा।**
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सुबह की सुनहरी धूप खिड़की से छनकर कमरे में उतर रही थी। हल्की किरणें बिस्तर पर सोई उस नाज़ुक-सी लड़की के चेहरे पर पड़ रही थीं। गुलाबी होंठ, लंबी पलकें और मासूमियत से भरा चेहरा… नींद में भी वो इतनी प्यारी लग रही थी कि लगता था जैसे कोई गुड़िया सपनों में खोई हो।
नीचे से माँ की आवाज़ गूंजी—
“Ishu… उठ जा बेटा, आज तेरे कॉलेज का पहला दिन है। कब तक सोएगी?”
लेकिन ऊपर कमरे में कोई हलचल न हुई।
माँ ने फिर आवाज़ दी—
“रोहन… बेटा, जा ज़रा अपनी बहन को जगा दे, कब तक सोती रहेगी।”
सीढ़ियों पर चढ़ते हुए भाई ने शरारती मुस्कान के साथ कहा—
“ठीक है मम्मा… मैं जगाता हूँ इसे।”
रोहन के दिमाग़ में शैतानी सूझी। वो धीरे से बहन के कमरे में घुसा, मोबाइल स्पीकर से ज़ोर-ज़ोर का गाना कनेक्ट किया और कान के पास बजा दिया।
“धड़ाम!”
इशिता हड़बड़ा कर उठ बैठी, नींद से बोझिल आँखें मलते हुए चिल्लाई—
“भैया! ये क्या है…? आप सब लोग मेरी नींद के दुश्मन हो!”
रोहन हंसते-हंसते लोटपोट हो गया।
“अरे पगली, कॉलेज का पहला दिन है… अब तो उठ जा राजकुमारी।”
इशिता गुस्से और नखरे से भरी चेहरा बना कर तकिये से अपने भाई को मारने लगी।
लेकिन सच ये था कि इशिता जितनी मासूम थी उतनी ही खूबसूरत भी।
उसकी हेज़ल ग्रीन आँखें किसी को भी रोक कर देखने पर मजबूर कर देती थीं। होंठों के किनारे एक छोटा-सा तिल उसे और भी ख़ास बनाता था। गोरी-चिट्टी त्वचा, नाज़ुक हाथ, और इतनी कोमल कि लगता था जैसे कोई उसे छू भी ले तो लाल हो जाए।
इशिता सच में ऐसी थी… जिसे देखकर कोई भी पागल हो सकता था।
शायद… कोई पहले ही हो चुका था।
रोहन मुस्कुराते हुए बोला—
“चल मेरी मिर्ची, अब सोने का नाटक बंद कर। उठ और चमक धमक कर तैयार हो जा।”
इशिता मुँह बना कर बोली—
“आपको तो बस मुझे सताने में मज़ा आता है।”
फिर धीरे-धीरे उठकर आईने में देखने लगी। धूप अब उसके चेहरे को और भी चमका रही थी… और शायद यहीं से उसकी नई कहानी शुरू होने वाली थी।
इशिता धीरे-धीरे उठकर तैयार होने के लिए बाथरूम में चली गई।
कुछ देर बाद बाहर आई तो उसके रूप का नज़ारा ही अलग था।
उसने लाल रंग की नेट की लॉन्ग कुर्ती पहनी थी, जिसके कपड़े से उसकी पतली-सी कमर हल्की झलक रही थी। नीचे जीन्स, कानों में छोटे झुमके, होंठों पर हल्की-सी लिप बाम की चमक और आँखों में थोड़ा-सा काजल… बस इतना ही काफी था। उसे मेकअप की ज़रूरत ही कहाँ थी।
आईने के सामने खड़ी होकर खुद को देखती हुई बोली—
“हाय… कितनी सुंदर लग रही हूँ मैं!”
फिर शरारती अंदाज़ में खुद को ही फ्लाइंग किस दे दी और हँस दी।
बस्ता उठाकर जब नीचे आई तो रोहन ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और मज़ाक उड़ाते हुए बोला—
“आज तो मेरी मिर्ची सच में मिर्ची लग रही है… वैसे तू कुछ भी पहन ले, लगेगी तो हमेशा बंदरिया ही।”
इशिता ने मुँह फुलाकर कहा—
“देखा ना मम्मा… भईया फिर से मुझे चिढ़ा रहे हैं।”
इतने में उसकी माँ उर्वशी जी बाहर आईं, हल्की-सी साड़ी पहने, चेहरे पर ममता भरी मुस्कान। उन्होंने रोहन को कान पकड़ते हुए कहा—
“बेटा, क्यों सारी दुनिया का काम छोड़कर अपनी बहन को ही तंग करता रहता है?”
रोहन हँसते हुए बोला—
“अरे मम्मा, यही तो मेरा काम है।”
तभी उसके पापा, सत्याम मिश्रा, अख़बार हाथ में लिए बाहर आए और जैसे ही बेटी को देखा, उनकी आँखें चमक उठीं।
“अरे मेरी बिटिया रानी तो आज बिल्कुल परी लग रही है।”
इशिता दौड़कर पापा से लिपट गई और मासूमियत से मुस्कुराई—
“आप ही सबसे अच्छे हो पापा…”
उस पल घर का माहौल हंसी-खुशी से भर गया।
लेकिन इशिता को कहाँ पता था कि घर के इस सुरक्षित दायरे से बाहर उसकी ज़िंदगी में कोई खामोश साया पहले से मौजूद है, जो आज से उसकी हर साँस पर नज़र रखने वाला था…
रोहन दर्द से चिल्लाया—
“अरे मम्मा छोड़ो ना कान, ऊँच… दर्द हो रहा है!”
सत्याम जी हँसते हुए बोले—
“इतना बड़ा हो गया है, फिर भी बहन को परेशान करता है… यही तेरी सज़ा है।”
ये सुनकर इशिता खिलखिला कर हँस पड़ी और पापा भी उसके साथ हँसने लगे। दोनों बाप–बेटी की हँसी देख उर्वशी जी भी मुस्कुराए बिना न रह पाईं।
उर्वशी जी ने आखिरकार उसका कान छोड़ते हुए कहा—
“वैसे आज तेरा इंटरव्यू नहीं है?”
रोहन ने अकड़ते हुए बालों में हाथ फेरा और थोड़ा attitude के साथ बोला—
“हाँ मम्मा, Asia की top company VSR में है… tension मत लो, हो ही जाएगा।”
जैसे ही ‘VSR’ का नाम इशिता के कानों में पड़ा, उसका चेहरा एकदम गंभीर हो गया। दिल की धड़कन जैसे थोड़ी तेज़ हो गई। उसे अचानक एक अजीब-सी बेचैनी ने घेर लिया…
पर क्यों?
वो खुद भी समझ नहीं पा रही थी।
रोहन ने हाथ हिलाते हुए कहा—
“अरे कहां खो गई मिर्ची? चल, नाश्ता करते हैं। मम्मा ने तेरे फेवरेट आलू के परांठे बनाए हैं।”
कहते ही उसने इशिता का हाथ पकड़ा और खींचकर डायनिंग टेबल पर बिठा दिया।
टेबल पर गर्मागर्म परांठों की खुशबू फैल गई, जिससे इशिता की मासूम आँखों में चमक आ गई।
“वाह मम्मा… आज तो मज़ा आ जाएगा।” उसने मुस्कुराते हुए कहा और पहली बाइट मुँह में डाल ली।
मासूम घर, हँसी–मज़ाक, प्यार से भरा माहौल…
लेकिन शायद इशिता को नहीं पता था कि उसके घर के बाहर कोई और भी है, जो उसकी इस हँसी को अपने पागलपन की जकड़ में लेने के लिए तैयार बैठा है।
नाश्ता खत्म होते ही रोहन ने जल्दी से कार की चाबी उठाई।
“चल इशु, ready हो जा… नहीं तो first day pe ही late हो जाएगी।”
इशिता ने अपने बैग का zip check किया और धीरे-धीरे पीछे की सीट पर बैठ गई।
रोहन ड्राइविंग सीट पर था, सामने उसके पापा–मम्मा खड़े मुस्कुरा रहे थे।
गाड़ी स्टार्ट होते ही घर से बाहर निकली…
लेकिन किसी ने नहीं देखा कि उसी मोड़ पर, पेड़ की छाया में खड़ा कोई अनजान साया उनकी हर हरकत देख रहा था।
उसकी नज़रें सिर्फ़ इशिता पर थीं।
वो गाड़ी की खिड़की से झाँकती हुई उसकी मासूम आँखों और मुस्कुराते होंठों को देख रहा था।
जैसे ही गाड़ी आगे बढ़ी… उसकी आँखों की पुतलियाँ हल्की-सी सिकुड़ गईं।
“अब से… हर कदम पर, हर पल… मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
उसने बुदबुदाते हुए अपने होंठों पर हल्की मुस्कान रखी और पीछे-पीछे चल पड़ा।
कुछ देर बाद गाड़ी कॉलेज के गेट पर रुकी।
इशिता ने पहली बार अपने नए कॉलेज को देखा—
ऊँची बिल्डिंग, हरे-भरे लॉन और चारों तरफ़ चहल-पहल।
उसकी आँखें चमक उठीं, जैसे कोई बच्ची पहली बार मेले में पहुँची हो।
“वाह… बिल्कुल फिल्मों जैसा लग रहा है…”
उसने खिड़की से बाहर झाँकते हुए कहा।
पर उसे कहाँ पता था कि ये film अब उसकी ज़िंदगी का सबसे खतरनाक chapter लिखने वाली थी।
राेहन ने इशु को कॉलेज के गेट पर उतारा।
“ऑल द बेस्ट, इंटरव्यू अच्छा से देना,” इशु मुस्कुराकर बोली।
“थैंक यू, छोटी… और तुम भी ध्यान रखना। पहली बार कॉलेज जा रही हो न… किसी से ज़्यादा बातें मत करना,” रोहन ने हल्की सख़्त आवाज़ में कहा।
इशु बस मुस्कुरा कर सिर हिला देती है।
रोहन गाड़ी घुमाकर चला जाता है, और इशु वहीं खड़ी होकर कॉलेज के ऊँचे गेट्स और सुंदर बिल्डिंग्स को देखती रह जाती है। उसकी आँखों में चमक आ जाती है—जैसे कोई छोटी-सी परी पहली बार अपने पंख फैलाकर नई दुनिया को देखने जा रही हो।
वो धीरे-धीरे कदम बढ़ाती है, लेकिन…
दूसरी ओर सड़क पर खड़ी एक काली कार का शीशा थोड़ा-सा नीचे खिसकता है। किसी की निगाहें उसकी हर हरकत को चुपचाप कैद कर रही थीं।
वो आदमी मुस्कुराता है—
मेरी मासूम angel …”
उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी।
उसकी चुप्पी, उसका साया, अब इशु की हर राह का साथी बनने वाला था…
जैसे ही इशिता कॉरिडोर से क्लास की तरफ बढ़ रही थी, अचानक सामने से एक लड़की आकर उससे टकरा गई।
लड़की (हड़बड़ाकर): "Oh sorry sorry! Wo kya h na mere पीछे पागल कुत्ता पड़ गया था, भागते-भागते तुझसे टकरा गई।"
इशिता हँस पड़ी, "कोई बात नहीं… तुम्हारा नाम?"
लड़की (हाथ बढ़ाते हुए): "Riya Purohit. और तुम new admission?"
इशिता हल्की मुस्कान के साथ, "Haan… Ishita Mishra. Art student."
रिया (खुश होकर): "Are wah! Same class… nice to meet you!"
फिर अचानक शरारत से रिया ने इशिता के गाल को pinch कर दिया, रिया हँसते-हँसते बोली –
“तू तो बहुत क्यूट है यार…”
इशा ने बाल झटकते हुए हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया –
“हाँ, ये तो मुझे पता है… मेरी तारीफ़ तो रोज़ सुनने की आदत है।”
फिर मज़ाकिया अंदाज़ में रिया की तरफ़ देखते हुए बोली –
“लेकिन सच कहूँ, तू भी कम सुंदर नहीं है… पहली बार किसी ने मुझे इतनी सीधी-सादी तारीफ़ दी है।”
रिया ने नाटकीय अंदाज़ में हाथ जोड़कर कहा –
“अरे वाह! मतलब हम दोनों ही सुंदरियाँ एक ही क्लास में… अब तो कॉलेज के लड़कों का बुरा हाल होने वाला है।”
दोनों ज़ोर से हँस पड़ीं, और उसी पल उनकी दोस्ती की नींव रखी गई।
इशिता और रिया, दोनों कॉलेज के अंदर नई-नई दुनिया को बड़ी उत्सुकता से देख रही थीं। अभी-अभी एडमिशन लिया था तो हर चीज़ उनके लिए एकदम नई थी। दोनों आपस में हंसते-खिलखिलाते हुए क्लास ढूँढ ही रही थीं कि तभी अचानक एक लड़का सामने से आ गया।
“हाय मिस, आप लोग कुछ ढूँढ रही हैं क्या?” उस लड़के की नज़रें सीधे इशिता पर ही टिक गईं। उसकी आँखों में वही चमक थी जो अक्सर लड़के पहली बार किसी खूबसूरत लड़की को देखकर दिखाते हैं।
रिया ने उसकी आँखों का पीछा किया और तुरंत सब समझ गई। वो हल्की मुस्कान दबाते हुए बोली –
“हाँ, ढूँढ तो रहे हैं… और तुम भी तो कुछ ढूँढ रहे हो शायद? रास्ता खाली करना है तो हट जाओ मिस्टर।”
इतना कहकर रिया ज़ोर से कदम बढ़ाती है और जाते-जाते जानबूझकर उसके पैर पर अपना पैर रख देती है। लड़का जोर से चिल्ला उठा –
“आआह्ह…!!”
दोनों लड़कियाँ ठहाका मारकर हँसते हुए आगे बढ़ जाती हैं। इशिता हँसते-हँसते कहती है –
“रिया! ये क्या किया तुमने? बेचारा दर्द से कराह रहा था।”
रिया शरारती अंदाज़ में आँखें मटकाते हुए बोली –
“अरे ऐसे छिछोरों को मैंने पहले भी बहुत सीधा किया है। अब तू मेरे साथ है तो तुझे प्रोटेक्ट करना मेरी ड्यूटी है न!”
इशिता सिर हिलाते हुए बाल झटककर मुस्कराती है –
“तू भी न रिया…!”
दोनों बातों में मशगूल क्लास की तरफ बढ़ती हैं और आखिरकार अपनी क्लास मिल जाती है। अंदर कदम रखते ही लगभग हर लड़के की नज़रें इशिता पर टिक जाती हैं। उसके चेहरे की मासूमियत, बड़े-बड़े expressive नयन और उसकी सादगी भरी खूबसूरती ने सबका ध्यान खींच लिया था।
क्लास के तीसरे रो में दोनों एक साथ जाकर बैठ जाती हैं। इशिता थोड़ी झिझक के साथ इधर-उधर देखती है तो नोटिस करती है कि कितनी जोड़ी आँखें बार-बार उसी की तरफ उठ रही हैं।
वो धीमे स्वर में रिया से कहती है –
“सब ऐसे क्यों देख रहे हैं यार…”
रिया उसकी बात सुनकर शरारती मुस्कान देती है और कान में फुसफुसाती है –
“क्योंकि तू है ही इतनी cute… और मानना पड़ेगा, entry तो तूने heroine जैसी मारी है।”
इशिता हँसते हुए हल्का सा धक्का देती है –
“पागल…”
दोनों हँस पड़ती हैं और क्लास का पहला दिन उनकी दोस्ती की शुरुआत को और गहरा कर देता है।
क्लासरूम में माहौल अभी-अभी जम रहा था। सारी नज़रें इधर-उधर घूम रही थीं, कुछ नई दोस्तियाँ बन रही थीं, तो कहीं फुसफुसाहट में पुराने स्कूल की बातें। तभी अचानक दरवाज़ा खुला और अंदर आए प्रोफ़ेसर शर्मा—गंभीर से चेहरे के साथ, हाथ में फाइल और ऐनक ठीक करते हुए।
“गुड मॉर्निंग स्टूडेंट्स,” उन्होंने गहरी आवाज़ में कहा। पूरा क्लास एकदम चुप हो गया।
सब छात्र खड़े हो गए और उन्होंने इशारे से बैठने को कहा।
“मैं प्रोफ़ेसर शर्मा हूँ, इस सेमेस्टर आपका इंट्रोडक्टरी लेक्चर लूंगा। सबसे पहले तो आप सबका स्वागत है कॉलेज की इस नई जर्नी में।”
रोल कॉल शुरू हुआ। एक-एक करके सबके नाम पुकारे जाने लगे। जब “इशिता वर्मा” बोला गया, तो पूरी क्लास की आधी नज़रें फिर उसकी ओर घूम गईं। उसकी नीली आँखें, मासूम मुस्कान और कॉन्फिडेंट अंदाज़… हर कोई बस देखता ही रह गया।
पास बैठी रिया हल्का-सा मुस्कुराते हुए धीरे से बोली, “देखा, क्लास तो पहले ही दिन से तुझपे फिदा हो गया।”
इशिता ने आँखें घुमाई और धीमे से फुसफुसाई, “तू भी न… बस चुप रह।”
लेक्चर में आगे प्रोफ़ेसर ने कॉलेज की रूल्स और रूटीन समझाए—
“क्लास अटेंडेंस 75% ज़रूरी है, और सबसे ज़रूरी… आप सबको आने वाले समय में डिसिप्लिन के साथ पढ़ाई करनी होगी। यहाँ सिर्फ नंबर नहीं, बल्कि आपके बिहेवियर पर भी नज़र रखी जाएगी।”
स्टूडेंट्स बीच-बीच में हाँ में सिर हिलाते रहे।
कुछ लड़के, जो बार-बार इशिता की ओर देख रहे थे, अब किताब खोलने का नाटक करने लगे।
रिया ने धीरे से इशिता की कुहनी पर टोकते हुए कहा, “लगता है आने वाला सेमेस्टर तेरे लिए आसान नहीं होगा, सबकी निगाहें तो तुझपे ही अटकी हैं।”
इशिता हल्के-से हँस दी, “अरे छोड़, मुझे किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं यहाँ पढ़ने आई हूँ।”
लेक्चर खत्म होते ही प्रोफ़ेसर ने कहा, “अगली क्लास से सब अपना इंट्रोडक्शन तैयार करके लाएँगे। मैं देखना चाहता हूँ कि आप सबके गोल्स और सपने क्या हैं।”
घंटी बजी और क्लास थोड़ी हलचल से भर गई। कुछ स्टूडेंट्स ग्रुप बनाने लगे, तो कुछ बस इधर-उधर टकटकी लगाकर देखते रहे।
पिछले अध्याय में आपने देखा कि रोहन ने इशु को कॉलेज के गेट पर उतारा और उसे ध्यान रखने को कहा। इशु कॉलेज की बिल्डिंग्स को देखती रह जाती है। सड़क पर खड़ी एक काली कार में बैठा आदमी उसे देखता है और मुस्कुराता है।
इशिता कॉलेज में रिया से टकराती है और दोनों दोस्त बन जाती हैं। एक लड़का इशिता को देखकर आकर्षित होता है, जिसे रिया मज़ा चखाती है। क्लास में सब इशिता को देखते हैं, जिससे वह थोड़ा झिझकती है। प्रोफ़ेसर शर्मा क्लास लेते हैं और कॉलेज के रूल्स बताते हैं।
अब आगे
टीचर सबसे पहले पहली बेंच से शुरू करते हैं।
एक लड़का खड़ा हुआ, घबराते-घबराते बोला—
“सर… मेरा नाम है राहुल, मुझे क्रिकेट खेलना पसंद है।”
पूरी क्लास हँस पड़ी क्योंकि उसकी आवाज़ ऐसे काँप रही थी जैसे रिजल्ट सुनाने आया हो।
रिया ताली बजाकर बोली—
“वाह क्रिकेटर साहब, अगली बार हमारी टीम में भी खेलना।”
सारी क्लास फिर से खिलखिलाकर हँस पड़ी।
फिर बारी-बारी से सब अपने इंट्रो देते गए।
जब एक लड़की खड़ी हुई और बोली, “मुझे गाने का बहुत शौक है,”
तो पीछे से किसी लड़के ने मज़ाक किया—
“तो हमें अभी सुना दो।”
लड़की शरमा गई और बैठ गई।
अब बारी आई रिया की।
रिया पूरे कॉन्फिडेंस से खड़ी हुई, हाथ से बाल झटकते हुए बोली—
“हाय, मैं हूँ रिया। मुझे मस्ती करना, लोगों की टांग खींचना और फ्रेंड्स को परेशान करना बहुत पसंद है।”
क्लास ठहाके मारकर हँसने लगी।
टीचर भी मुस्कुराते हुए बोले—
“वाह, अच्छा है। लेकिन पढ़ाई का भी शौक रखना।”
रिया शरारती अंदाज़ में बोली—
“वो तो इशिता का शौक है सर, मेरा नहीं।”
सारी क्लास हँस पड़ी और इशिता तुरंत उसे घूरने लगी।
अब सबसे बड़ी बारी आई—इशिता की।
पूरी क्लास चुप हो गई।
लड़के बड़े ध्यान से देखने लगे।
इशिता हल्के से खड़ी हुई, थोड़ा नर्वस होते हुए बोली—
“मेरा नाम इशिता है, मुझे किताबें पढ़ना, पेंटिंग करना और… और…”
रिया बीच में बोल पड़ी—
“और सबकी नज़रों में छा जाना!”
क्लास ज़ोर से हँसी।
इशिता शर्म से लाल हो गई और धीरे से रिया को कोहनी मारी।
“तू तो मुझे डुबा ही देगी,” वह फुसफुसाई।
लेक्चर के बाद, जब क्लास खत्म हुई, तो इशिता और रिया बाहर निकलते हुए हँस रही थीं।
रिया बोली—
“देखा, मैंने कहा था न? सबकी नज़रें तुझ पर ही हैं।”
इशिता ने नकली गुस्से से कहा—
“तू चुप रहेगी या नहीं? वरना सच में तुझे क्लासरूम के बाहर छोड़ दूँगी।”
दोनों फिर से खिलखिलाकर हँसने लगीं।
Canteen में हंसी-मज़ाक का शोर गूंज रहा था। हर टेबल पर ग्रुप्स में स्टूडेंट्स बैठे बातें कर रहे थे। रिया और इशिता भी अपने ट्रे लेकर एक कोने की टेबल पर बैठ गईं।
रिया मज़ाकिया अंदाज़ में बोली—
“देख इशिता, ये तेरी entry का असर है… पूरी canteen तुझको ही घूर रही है। और मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे मैं तेरे bodyguard की तरह बैठी हूँ।”
इशिता ने हंसते हुए उसके कंधे पर हल्की सी चपत मारी—
“ओह hello! तू भी कम खूबसूरत नहीं है। बस तेरे confidence से लड़के डर जाते हैं। और तू protect करने का काम भी अच्छे से कर रही है।”
दोनों हंस पड़ीं। तभी पास से तीन–चार लड़के गुजरते हुए उन्हें बार-बार देख रहे थे। उनमें से एक लड़का हिम्मत करके उनकी टेबल के पास रुक गया।
वो थोड़ी हिचकिचाहट के साथ मुस्कुराया—
“Uh… hi! मैं यहाँ बैठ सकता हूँ? Actually canteen में सारी seats almost भरी हैं…”
रिया ने तुरंत उसकी आँखों में घूरते हुए कहा—
“Excuse me? ये जगह reserved है, समझे? और हाँ, ज्यादा smart बनने की कोशिश मत करना।”
लड़का थोड़ा हड़बड़ाया लेकिन फिर भी इशिता को देखकर बोला—
“Actually… मैं बस दोस्ती करना चाहता था। Hi, I’m Kabir.”
इशिता, जो थोड़ी simple और soft nature की थी, हल्की सी मुस्कुराई—
“Hi Kabir.”
रिया ने घूरते हुए उसकी तरफ चम्मच टकराया—
“बस hi bol diya, ab nikal bhi. Dost banna है तो line में लग… पहले मैं हूँ, फिर teacher, फिर बाकी। समझ आया?”
वो लड़का हंसते हुए बोला—
“ठीक है ठीक है, मैं disturb नहीं करूंगा। बस सोचा था… नए session में friends बनाना अच्छा होता है।”
वो हल्की सी awkward हंसी हंसते हुए वहां से चला गया।
रिया ने इशिता की तरफ देखा—
“देखा… यही problem है। सबको तू hi दिखाई देती है। और तू बेचारी sabko polite होकर reply करती रहती है।”
इशिता ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा—
“Arey polite रहना बुरी बात है क्या? और फिर दोस्ती करने में क्या problem है?”
रिया ने हाथ नचाते हुए कहा—
“Problem यह है कि दोस्ती से शुरू होते-होते feelings तक पहुंचने में देर नहीं लगती। और फिर मुझे तेरे ऊपर पहरा देना पड़ेगा।”
दोनों फिर से हंस पड़ीं और बातें करने लगीं।
लेकिन उन्हें क्या पता… canteen के ठीक सामने, थोड़ी दूर वाले dark corner में कोई बैठा था। उसकी cold नज़रें लगातार इशिता पर टिकी थीं।
वो ‘साया’।
उसकी आँखों में अजीब सी चमक और गुस्सा था।
उसके अंदर उथल-पुथल मची हुई थी—
"वो… किसी और से बात क्यों कर रही है? मुस्कुरा क्यों रही है उसके लिए? वो मेरी है… सिर्फ मेरी।"
उसने हाथ की मुट्ठियाँ कस लीं। सामने रखी table पर उसके nails धंस गए। गुस्से की वजह से उसकी साँसे तेज़ हो रही थीं।
उसे अंदर से लग रहा था जैसे किसी ने उसकी चीज़ छीनने की कोशिश की हो।
वो धीरे से बड़बड़ाया—
“मुस्कुराना है तो सिर्फ मेरे लिए… किसी और के लिए नहीं।”
-------- कॉलेज की घंटी बजते ही इशिता बाहर निकलती है। दूर से रोहन अपनी बाइक पर खड़ा उसे देखकर मुस्कुराता है।
रोहन: “चल Mirchi, जल्दी बैठ जा… तो बताओ, कैसा रहा तेरा दिन?”
इशिता पीछे सीट पर बैठते ही उत्साहित होकर बोलती है—
इशिता: “भाई… आज का दिन बहुत अच्छा गया! सब कुछ मज़ेदार था और मेरी एक नई दोस्त बन गई—Riya। सच में, बड़ा मज़ा आया।”
रोहन मुस्कुराते हुए सिर हिलाता है और पूछता है—
रोहन: “अच्छा? तो बाकी सब कैसा रहा?”
इशिता थोड़ी हँसते हुए कहती है—
“सब बढ़िया था। classes smoothly चली और बहुत कुछ नया सीखने को मिला।”
रोहन ध्यान से सुनते हुए मुस्कुराया—
“ठीक है Mirchi, अच्छा लगा सुनकर। अब घर चलते हैं, और वहाँ जाकर आराम से सब बातें बताना।”
इशिता भी मुस्कुराई और कार की सीट पर आराम से बैठ गई।
इशिता: “हाँ भाई, घर पहुँचकर सब विस्तार से बताऊँगी… आज का दिन सच में यादगार था।”
रोहन कार स्टार्ट करता है और धीरे-धीरे घर की ओर निकलते हैं। रास्ते में इशिता अपनी सारी छोटी-छोटी खुशियों और अनुभवों को share करती रही, और रोहन उसे ध्यान से सुनता रहा।
पिछले अध्याय में आपने देखा कि रोहन ने इशु को कॉलेज के गेट पर उतारा और उसे ध्यान रखने को कहा। इशु कॉलेज की बिल्डिंग्स को देखती रह जाती है। सड़क पर खड़ी एक काली कार में बैठा आदमी उसे देखता है और मुस्कुराता है।
इशिता कॉलेज में रिया से टकराती है और दोनों दोस्त बन जाती हैं। एक लड़का इशिता को देखकर आकर्षित होता है, जिसे रिया मज़ा चखाती है। क्लास में सब इशिता को देखते हैं, जिससे वह थोड़ा झिझकती है। प्रोफ़ेसर शर्मा क्लास लेते हैं और कॉलेज के रूल्स बताते हैं।
टीचर सबसे पहले पहली बेंच से शुरू करते हैं। राहुल, जो क्रिकेट खेलना पसंद करता है, घबराते हुए अपना परिचय देता है, जिससे क्लास में हँसी आ जाती है। एक और लड़की, जिसे गाने का शौक है, एक लड़के के मज़ाक का शिकार हो जाती है। रिया पूरे आत्मविश्वास से अपना परिचय देती है, जिससे टीचर भी मुस्कुराते हैं। इशिता थोड़ी झिझकते हुए अपना परिचय देती है, और रिया के मज़ाक से क्लास में फिर हँसी आ जाती है।
क्लास खत्म होने के बाद, इशिता और रिया कैंटीन में जाती हैं। रिया इशिता को बताती है कि सब उस पर ध्यान दे रहे हैं। तभी कबीर नाम का एक लड़का उनकी टेबल पर बैठने की इजाज़त माँगता है, लेकिन रिया उसे भगा देती है। रिया इशिता को सलाह देती है कि वह लड़कों से ज़्यादा विनम्र न रहे, लेकिन इशिता को यह पसंद नहीं आता। इस बीच, एक "साया" नाम का व्यक्ति उन्हें दूर से देख रहा होता है, जो इशिता की किसी और से बात करने पर गुस्सा हो रहा है।
कॉलेज की घंटी बजने पर इशिता बाहर निकलती है, जहाँ रोहन बाइक पर इंतज़ार कर रहा होता है। इशिता उसे अपने दिन के बारे में बताती है, कि उसे मज़ा आया और उसकी एक नई दोस्त, रिया, बन गई है। रोहन सुनकर खुश होता है और वे घर की ओर निकल जाते हैं, जहाँ इशिता बाकी बातें बताएगी।
अब आगे
रोहन और इशिता घर वापस आते हैं। जैसे ही वो अंदर कदम रखते हैं, सबकी नज़र उन पर चली जाती है।
मम्मी सबसे पहले मुस्कुराते हुए पूछती हैं –
"तो, कैसा रहा आज का दिन, इशु?"
इशिता तुरंत ही सोफे पर उछलते हुए बैठ जाती है, चेहरे पर मासूम सी मुस्कान के साथ –
"मम्मा, आज का दिन तो बहुत अच्छा गया! सब लोग बहुत प्यारे थे… और सुनिए, मेरी एक नई दोस्त भी बन गई है, बिल्कुल मेरी ही तरह क्यूट।"
फिर अचानक थोड़ी देर रुककर भौंहें सिकोड़ती है –
"वैसे भैया, आज आपका इंटरव्यू था ना? कैसा गया?"
रोहन हल्का सा सिर झुका लेता है, चेहरा गंभीर बनाकर जैसे बहुत उदास हो। सब लोग चौंककर उसकी तरफ़ देखते हैं। इशिता बेचैन होकर बोल पड़ती है –
"भैया… हुआ क्या? सिलेक्शन नहीं हुआ क्या?"
तभी रोहन अचानक से मुस्कुरा उठता है और शरारत भरी आवाज़ में बोलता है –
"अरे पगली, सिलेक्शन हो गया! पता नहीं शायद मेरी किस्मत ही इतनी अच्छी है कि इतनी बड़ी कंपनी में मुझे जॉब मिल गई!"
सब लोग खुशी से झूम उठते हैं। मम्मी तो तुरंत कह उठती हैं –
"आज तो मिठाई बनेगी!"
इशिता उत्साह से चिल्लाती है –
"हाँ मम्मा, गाजर का हलवा!"
दोनों भाई-बहन हँसते हुए एक-दूसरे को हाई-फाइव कर देते हैं। घर में एक पल के लिए जश्न सा माहौल हो जाता है। मगर किसी को पता नहीं था कि इस नौकरी के पीछे किसका हाथ है… किसकी कंपनी है…
थोड़ी देर बाद इशिता अपने कमरे में चली जाती है। कपड़े बदलकर जब वो नीचे आती है, तभी अचानक गेट की घंटी बजती है।
वो झट से दरवाज़ा खोलती है, पर बाहर कोई नहीं होता। बस एक खूबसूरती से पैक किया हुआ गिफ्ट रखा था, जिस पर एक छोटा सा नोट चिपका हुआ था।
इशिता चौंककर चारों तरफ देखती है, पर सड़क सुनसान थी। उसने गिफ्ट उठाया और जल्दी से अपने कमरे में ले आई।
दिल की धड़कन तेज़ होने लगी थी। उसने पैकेट खोला… अंदर एक छोटा सा टेडी था और वही अजीब सा नोट—
"Angel,
आज तुम्हारा कॉलेज का पहला दिन था, इसलिए माफ किया।
लेकिन याद रखना…
आज के बाद अगर तुम लड़कों से दूर नहीं रही, तो सज़ा मिलेगी।
– तुम्हारा दीवाना"
इशिता ने नोट पढ़ा और उसका चेहरा एकदम बदल गया।
हाथ काँप रहे थे, दिल की धड़कन जैसे छाती से बाहर निकलने को तैयार हो।
वो धीरे-धीरे खिड़की की तरफ बढ़ी और परदा हटाकर बाहर झाँका।
धूप ढल रही थी, शाम का वक़्त था। आसमान नारंगी और सुनहरी रोशनी में नहा रहा था।
बाहर सड़क पर कुछ बच्चे खेल रहे थे, इक्का-दुक्का लोग अपने काम से गुज़र रहे थे।
सब कुछ बिल्कुल सामान्य था… लेकिन इशिता का मन कह रहा था कि सब सामान्य नहीं है।
जैसे कोई है… जो दूर कहीं से उसकी हर हरकत देख रहा है।
उसने धीरे से फुसफुसाकर कहा –
"नहीं… ये सब मेरा वहम है शायद…"
इतना कहकर वो खिड़की से हटने ही लगी थी कि अचानक उसकी नज़र सामने वाले पेड़ के पीछे पड़ी।
ऐसा लगा मानो कोई काली परछाईं वहाँ खड़ी है।
बस कुछ सेकंड के लिए… फिर जैसे गायब हो गई।
इशिता का गला सूख गया। उसने जल्दी से परदा गिराया और कमरे में आकर बिस्तर पर बैठ गई।
हाथों से अब भी वो नोट कसकर पकड़े हुए थी।
उसके दिल की धड़कन तेज़ थी और दिमाग में बार-बार वही सवाल घूम रहा था –
"कौन है ये… जो मुझे रोज़ ऐसे गिफ्ट और नोट्स भेजता है? क्यों मुझे लड़कों से दूर रहने की धमकी देता है?"
इशिता अब भी नोट को कसकर पकड़े बैठी थी, उसका चेहरा डर और बेचैनी से लाल हो चुका था। तभी अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई।
"इशु… अंदर हो?" – ये रोहन की आवाज़ थी।
इशिता एकदम चौंकी। उसने तुरंत गिफ्ट और नोट दोनों को तकिए के नीचे छिपा दिया और चेहरे पर बनावटी मुस्कान लाकर बोली –
"ह…हाँ भैया, आ जाइए।"
रोहन अंदर आया और हँसते हुए बोला –
"अरे, तुम तो ऐसे बैठी हो जैसे किसी ने चोरी पकड़ ली हो। सब ठीक है ना?"
इशिता ने जल्दी से नज़रें झुका लीं –
"हाँ भैया, सब ठीक है… बस थोड़ी थकान है।"
रोहन उसके पास बैठ गया और हल्के से उसके बालों को सहलाकर बोला –
"अच्छा सुनो, मम्मा ने कहा है नीचे आकर हेल्प करो। गाजर का हलवा बन रहा है, और तुम तो जानती हो, तुम्हारे बिना अधूरा रहता है।"
इशिता ने ज़बरदस्ती मुस्कुराकर सिर हिला दिया –
"आ… आती हूँ भैया।"
रोहन संतुष्ट होकर कमरे से बाहर चला गया।
जैसे ही उसका कदम बाहर पड़ा, इशिता ने झट से तकिए के नीचे से नोट निकाला और उसे देर तक घूरती रही।
उसके होठों से हल्की सी फुसफुसाहट निकली –
"तुम कौन हो… और क्यों मुझे हर रोज़ देख रहे हो?"
उसकी आँखों में डर साफ़ झलक रहा था, मगर कहीं न कहीं एक अनजाना अहसास भी था…
जैसे वो सचमुच किसी अदृश्य नज़र के जाल में फँस चुकी हो।
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पिछले अध्याय में आपने देखा कि इशिता कॉलेज में नई दोस्त बनाती है और घर वापस आती है। घर पर रोहन अपने इंटरव्यू में सफल होने की खबर सुनाता है, जिससे सब खुश हो जाते हैं। बाद में, इशिता को एक गुमनाम गिफ्ट और धमकी भरा नोट मिलता है, जिससे वह डर जाती है। वह उस व्यक्ति के बारे में सोचने लगती है जो उसे लगातार नोट भेज रहा है और उसे लड़कों से दूर रहने की चेतावनी दे रहा है। रोहन के पूछने पर वह अपनी बेचैनी छुपा लेती है।
अब आगे
रोहन और इशिता घर वापस आते हैं, जहाँ उनकी माँ इशिता के दिन के बारे में पूछती हैं। इशिता खुशी-खुशी बताती है कि उसका दिन अच्छा बीता और उसकी एक नई दोस्त, रिया, बन गई है। फिर वह रोहन से उसके इंटरव्यू के बारे में पूछती है। रोहन पहले तो उदास होने का नाटक करता है, फिर बताता है कि उसका सिलेक्शन हो गया है। सब बहुत खुश होते हैं और जश्न मनाने का फैसला करते हैं। इशिता अपने कमरे में जाती है और कपड़े बदलकर नीचे आती है, तभी दरवाज़े की घंटी बजती है। वहां कोई नहीं होता, सिवाय एक खूबसूरती से पैक किए हुए गिफ्ट और एक नोट के। नोट में लिखा होता है कि यह उसका पहला दिन था इसलिए उसे माफ किया जा रहा है, लेकिन अगर उसने लड़कों से दूरी नहीं बनाई तो उसे सज़ा मिलेगी। इशिता डर जाती है और खिड़की से बाहर देखती है, जहां सब सामान्य लगता है, पर उसे शक होता है कि कोई उसे देख रहा है। वह एक पेड़ के पीछे एक काली परछाई देखती है। इशिता घबराकर कमरे में वापस आती है और रोहन के आने पर गिफ्ट और नोट छिपा देती है। रोहन उसे नीचे चलकर गाजर का हलवा बनाने में मदद करने के लिए कहता है। रोहन के जाने के बाद इशिता नोट को देखकर सोचती है कि वह कौन है और उसे क्यों देख रहा है।
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डाइनिंग टेबल पर सब इकट्ठा थे। मम्मी ने गरमा-गरम गाजर का हलवा परोसा, पापा अख़बार एक तरफ़ रखकर मुस्कुराते हुए बच्चों की तरफ़ देख रहे थे।
रोहन हलवा खाते हुए बोला –
"मम्मा, ये तो लाजवाब बना है! सच कहूँ तो सिलेक्शन से ज़्यादा खुशी इस हलवे की है।"
सब हँस पड़े।
माहौल हँसी-खुशी से भरा हुआ था… लेकिन इशिता उस हँसी का हिस्सा नहीं बन पा रही थी।
उसके हाथ में चम्मच था, लेकिन हलवे को बार-बार बस घुमाए जा रही थी।
दिल अब भी धड़क रहा था तेज़ी से।
हर थोड़ी देर में उसकी नज़र खिड़की की तरफ़ उठ जाती।
उसे लग रहा था जैसे कोई बाहर पेड़ के पीछे छिपकर अभी भी उसे देख रहा हो।
भले ही वहाँ अब सिर्फ़ अँधेरा और पेड़ की हल्की हिलती शाखाएँ नज़र आ रही थीं, पर इशिता का मन कह रहा था — वो नज़रें अब भी उस पर टिकी हुई हैं।
मम्मी ने गौर किया और बोलीं –
"इशु बेटा, तुमने खाना ढंग से खाया ही नहीं… सब ठीक तो है?"
इशिता चौंक गई और जल्दी से बनावटी मुस्कान लाई –
"हाँ मम्मा… सब ठीक है, बस थोड़ी थकान है।"
रोहन मजाक में बोला –
"नयी दोस्त मिली है कॉलेज में, अब भैया की याद कहाँ रहेगी।"
सब फिर से हँस पड़े, मगर इशिता ने बस हल्की सी मुस्कान दी।
उसके भीतर डर का साया गहराता जा रहा था।
उसने चुपके से अपने हाथ में रखे नैपकिन को कसकर पकड़ा और मन ही मन दोहराया –
"अगर ये सब मेरा वहम नहीं है… तो आखिर कौन है, जो मुझे इतनी नज़दीकी से देख रहा है?"
डिनर खत्म होते ही सब लोग अपने-अपने काम में लग गए। रोहन मोबाइल पर दोस्तों से बातें करने लगा, पापा टी.वी. पर न्यूज़ देखने लगे और मम्मी किचन समेटने में व्यस्त हो गईं।
इशिता चुपचाप अपने कमरे की ओर चली गई।
कमरे का दरवाज़ा बंद करते ही उसने राहत की साँस ली। लेकिन राहत बस एक पल की थी… अगले ही सेकंड उसका मन फिर उसी खिड़की की तरफ़ खिंच गया।
धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हुई वो खिड़की के पास पहुँची।
परदा हटाया और बाहर झाँककर देखने लगी।
बाहर चारों तरफ़ सन्नाटा था। स्ट्रीट लाइट की हल्की पीली रोशनी और दूर जाती गाड़ियों की आवाज़ें ही माहौल में थीं।
कुछ देर तक उसने ध्यान से इधर-उधर देखा, जैसे सचमुच किसी को पकड़ ही लेगी।
तभी अचानक…
हवा में हल्की सी सीटी (whistle) की आवाज़ गूँजी।
इशिता का दिल उछल पड़ा।
उसने घबराकर चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई, लेकिन कोई नहीं दिखा।
वो आवाज़ जैसे खास उसी के लिए थी… बस उसके कानों तक पहुँचने के लिए।
उसके होंठ काँपते हुए फुसफुसाए –
"क…कौन हो तुम…?"
डर की लहर उसके पूरे जिस्म में दौड़ गई।
उसने तुरंत खिड़की बंद की, परदे गिरा दिए और बिस्तर पर आकर बैठ गई।
तकिए में चेहरा छिपाकर लेट गई, जैसे इन आवाज़ों और नज़रों से खुद को बचा लेगी।
आँखें बंद करते ही भी वही सवाल उसे सताता रहा –
"ये कौन है… जो मुझे हर वक़्त देखता है?"
धीरे-धीरे थकान और डर के बीच उसकी आँख लग गई…
पर बाहर कहीं अंधेरे में… किसी की नज़रें अब भी उसी पर टिकी हुई थीं।?
इशिता ने खिड़की बंद कर दी थी, पर हवा की हल्की सरसराहट से परदा हिल रहा था। रात का सन्नाटा कमरे में गहरा चुका था।
वो अपने तकिए से चिपककर गहरी नींद में थी—मिनी कुंभकर्ण की तरह।
कुछ देर बाद…
खिड़की का लैच धीरे से क्लिक की आवाज़ के साथ खुला।
परदा हिला और अंधेरे में एक लंबी परछाईं अंदर दाख़िल हुई।
वो बेहद धीमे कदमों से बिस्तर के पास आया।
साँसें थमी हुईं, आँखें बस उसी पर टिकीं।
नींद में इशिता मासूम-सी लग रही थी—बाल बिखरे हुए, होंठों पर हल्की सी मुस्कान और चेहरा चाँदनी में और भी नाज़ुक।
वो परछाईं कुछ पल वहीं खड़ा होकर बस उसे देखता रहा… जैसे किसी ख़ज़ाने पर नज़रें जमाए बैठा हो।
फिर धीरे से झुककर उसका चेहरा अपनी हथेली से हल्के-से छुआ और बहुत नर्म अंदाज़ में उसके माथे पर किस कर दिया।
इशिता हल्की-सी करवट बदली, होंठों से नींद में बुदबुदाई –
"मम्मा… सोने दो न…"
पर उसकी नींद टूटी नहीं।
वो मिनी कुंभकर्ण की तरह गहरी नींद में खोई रही।
वो परछाईं ठंडी मुस्कान लिए धीरे से फुसफुसाया –
"सो जाओ Angel… अभी तो बस शुरुआत है।"
और फिर उतनी ही ख़ामोशी से वापस खिड़की से बाहर चला गया।
कमरा फिर से शांत हो गया… लेकिन हवा में अब भी उसकी मौजूदगी का एहसास बाकी था।
पिछले अध्याय में आपने देखा कि इशिता कॉलेज में नई दोस्त बनाती है और रोहन के इंटरव्यू में सफल होने की खबर से घर में खुशी का माहौल होता है। इशिता को एक गुमनाम गिफ्ट और धमकी भरा नोट मिलता है।
रोहन के इंटरव्यू में सफल होने की खुशी में परिवार जश्न मनाता है। इशिता को एक और गिफ्ट और नोट मिलता है, जिसमें उसे लड़कों से दूर रहने की चेतावनी दी जाती है। वह डर जाती है और महसूस करती है कि कोई उसे देख रहा है। उसे एक सीटी की आवाज़ भी सुनाई देती है, जिससे उसका डर और बढ़ जाता है। बाद में, एक परछाईं इशिता के कमरे में घुसती है, उसे किस करती है और फुसफुसाती है, "सो जाओ Angel… अभी तो बस शुरुआत है।"
अब आगे
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सुबह की हल्की धूप परदों से छनकर कमरे में आ रही थी।
अलार्म लगातार बज रहा था, पर मिनी कुंभकर्ण इशिता तो वैसे ही बिस्तर से चिपकी पड़ी थी।
आख़िरकार मम्मी की तेज़ आवाज़ आई –
"इशु! कॉलेज नहीं जाना क्या? उठ जाओ अब!"
करवट बदलते हुए इशिता ने मुँह बिचकाया –
"बस पाँच मिनट और…"
लेकिन थोड़ी देर बाद जब ज़बरदस्ती उठी, तो उसे अजीब सा एहसास हुआ।
जैसे नींद तो खुल गई थी, पर दिमाग में हल्का-सा बोझ और बेचैनी थी।
वो चेहरे पर हाथ फेरते हुए बुदबुदाई –
"पता नहीं… नींद तो गहरी आई थी, लेकिन लग रहा है जैसे कोई… कोई मेरे पास था…"
आईने के सामने खड़े होकर उसने बाल सँवारे, पर अचानक रुक गई।
माथे पर हाथ फेरते हुए उसे कुछ अजीब-सा लगा, जैसे किसी ने बहुत हल्के से छुआ हो।
उसने जल्दी से सिर झटक दिया और हँसते हुए खुद से कहा –
"पागल हो गई हूँ मैं… रात में सपना देखा होगा।"
लेकिन अंदर कहीं न कहीं उसका दिल मानने को तैयार नहीं था।
कपड़े बदलते वक्त भी बार-बार उसकी नज़र खिड़की पर जा रही थी।
जैसे खिड़की अब उसके कमरे की सबसे डरावनी चीज़ बन चुकी हो।
नींद से उठकर तैयार होने के बाद इशिता नीचे आई।
मम्मी पहले से ही नाश्ते की प्लेट टेबल पर लगा रही थीं।
"आ गई महारानी! कॉलेज का पहला हफ़्ता है, टाइम से जाना चाहिए ना?" – मम्मी ने प्यार से टोका।
रोहन अख़बार पढ़ते हुए हँस पड़ा –
"अरे मम्मा, इसे टाइम का कहाँ पता चलता है? ये तो सोने की इंटरनेशनल क्वीन है।"
इशिता ने भौंहें सिकोड़ते हुए भाई की तरफ़ देखा और शरारती अंदाज़ में बोली –
"भैया, आप तो जलते हो मुझसे।"
रोहन हँसते हुए बोला –
"हाँ हाँ, तेरी नींद से जलूँगा मैं! सच में, तेरे लिए अलार्म भी हार मान लेता है।"
सबके बीच हल्की-फुल्की हँसी का माहौल बना रहा।
पापा ने टिफ़िन का डिब्बा पकड़ा और इशिता की तरफ़ बढ़ाया –
"लो बेटा, कॉलेज में कुछ मत छोड़ना, सब खाना।"
इशिता ने सिर हिलाया, पर उसकी नज़रें बार-बार खिड़की की तरफ़ खिंच रही थीं।
वो खामोश-सी बैठी, प्लेट में रखा नाश्ता उठाकर बस mechanically खाने लगी।
मम्मी ने गौर किया और प्यार से पूछा –
"क्या हुआ इशु? इतनी चुप क्यों हो? कल तो बहुत बातें कर रही थी।"
इशिता ने हल्की मुस्कान लाकर कहा –
"कुछ नहीं मम्मा… बस थोड़ा थकी हुई हूँ।"
रोहन ने तुरंत छेड़ा –
"थकी हुई? या फिर रात भर किसी से गपशप कर रही थी?"
इशिता ने तुरंत सिर झुका लिया।
दिल की धड़कन अनजाने डर से तेज़ हो गई।
वो जानती थी… रात में उसने किसी से बात नहीं की थी, लेकिन कोई… कोई तो था जो उसके पास आया था।
माँ: "रोहन, रुक बेटा… ऑफिस का पहला दिन है न तेरा, ज़रा दही-शक्कर खा ले।"
रोहन मुस्कुराते हुए मम्मी की ओर बढ़ा।
रोहन: "ठीक है माँ, ले आइए।"
माँ ने अपने हाथ से उसे दही-शक्कर खिलाया और ढेर सारा आशीर्वाद दिया।
तभी रोहन ने हँसते हुए कहा—
रोहन: "चल अब, मिर्ची… तुझे कॉलेज छोड़ देता हूँ।"
सोफ़े पर बैठी इशिता तुरंत चिढ़ते हुए बोली—
इशिता: "कभी तो नाम से बुला लिया करो, हर वक्त मिर्ची… मिर्ची…"
रोहन ने हँसते हुए आगे बढ़कर उसकी नाक दबा दी और प्यार से कहा—
रोहन: "अरे, तू मेरी मिर्ची है… तो मिर्ची ही बोलूँगा न!"
इशिता हल्का सा मुँह फुलाकर रह गई, मगर अंदर ही अंदर मुस्कान दबा न पाई।
रोहन सीधा पापा के पास जाता है और झुककर उनके पैर छूता है,
“आशीर्वाद दीजिए पापा।”
पापा मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ रखते हैं,
“खुश रहो बेटा, पहला दिन है ऑफिस का… मेहनत से काम करना।”
फिर इशिता भी धीरे से आगे बढ़कर पापा के पैर छूती है,
“आशीर्वाद पापा।”
पापा उसकी मासूमियत देख मुस्कुरा उठते हैं,
“हमारी गुड़िया को भी हमेशा खुश रहना चाहिए।”
इशिता शर्म से हल्की सी मुस्कान देती है। तभी रोहन हँसते हुए उसकी ओर देखता है,
“चलो Mirchi… नहीं तो लेट हो जाएगी।”
दोनों दरवाजे की ओर बढ़ते हैं। इशिता मुड़कर एक नज़र पापा और मम्मी की ओर डालती है, फिर जल्दी से निकल जाती है।
बाहर कार तैयार खड़ी थी। रोहन ने दरवाज़ा खोला और इशिता को बैठाया।
“पहले तुझे कॉलेज छोड़ दूँगा, फिर ऑफिस निकल जाऊँगा,” उसने गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा।
गाड़ी से उतरकर Ishita ने अपने बालों को ठीक किया और बैग कंधे पर टाँग लिया। Rohan ने हॉर्न देकर इशारा किया—
"Ja mirchi, apna dhyaan rakhna. Main nikalta hoon office ke liye."
Ishita मुस्कुराते हुए बोली—"Haan, jao… aur meri tension mat lena."
गाड़ी जैसे ही मोड़ी, Ishita कॉलेज के गेट से अंदर बढ़ी। पहली बार का माहौल अब थोड़ा जाना-पहचाना लग रहा था। कैंपस की हलचल, इधर-उधर भागते स्टूडेंट्स, और चारों ओर की चहक उसे और भी एक्साइट कर रही थी।
तभी उसकी नज़र सामने पड़ी—Riya!
कल ही क्लास में मिली थी और झट से दोस्त बन गई थी। Riya भी नए एडमिशन से आई थी, तो दोनों के बीच एक अपनापन-सा जुड़ गया था।
Ishita ने हाथ हिलाया—"Hey Riya!"
Riya भी भागते हुए उसके पास आई और बोली—
"Thank God tum aa gayi! Mujhe laga main akeli hi bore ho jaaungi aaj."
Ishita हँसते हुए बोली—
"Pagal, main tumhe aise akela thodi chhodne wali hoon."
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पिछले अध्याय में आपने देखा कि इशिता को एक गुमनाम गिफ्ट और धमकी भरा नोट मिलता है। परिवार रोहन के इंटरव्यू में सफल होने का जश्न मनाता है, और इशिता को एक और उपहार और चेतावनी मिलती है। रात में, एक परछाई इशिता के कमरे में घुसती है और उसे छूती है।
सुबह, इशिता को रात की घटना के बारे में बेचैनी महसूस होती है। परिवार के साथ नाश्ता करते समय वह गुमसुम रहती है। रोहन उसे कॉलेज ले जाता है। कॉलेज में, उसे अपनी नई दोस्त रिया मिलती है।
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दूसरा दिन था इशिता का कॉलेज में। सुबह-सुबह वो और उसकी दोस्त रिया साथ में क्लास की ओर जा रही थीं। कल का डर और घबराहट कहीं पीछे छूट चुकी थी, आज उसके चेहरे पर थोड़ी ताजगी और हल्की-सी मुस्कान थी।
क्लासरूम के अंदर जाते ही, सबकी नज़र एक पल को उस पर टिक गई। इशिता की सादगी और मासूमियत में एक अलग ही आकर्षण था। कुछ लड़के उसकी टेबल के पास आकर casually बात करने लगे।
“हाय, तुम न्यू स्टूडेंट हो न? मैं अजय हूँ… अगर किसी नोट्स की ज़रूरत हो तो बता देना।”
इशिता हल्की-सी झेंप गई, “थ…थैंक यू…”
उससे पहले कि कोई और कुछ कहे, एक दूसरा लड़का बोला –
“वैसे आज के लेक्चर थोड़े tough होते हैं, अगर समझ न आए तो हम help कर देंगे।”
रिया तुरंत बीच में बोल पड़ी, थोड़ा attitude से –
“Thanks, but हम manage कर लेंगे।”
लड़के हँसते हुए चले गए लेकिन इशिता की मासूम आँखों में ये सब नया था। उसे ये छोटा-सा attention अच्छा भी लगा और अजीब भी।
लेकिन क्लास के कोने में कोई एक मास्क पहने लड़का बैठा था। लंबा-सा कद, गहरी आँखें और खामोश सा चेहरा। वो इशिता को बस घूर रहा था, उसकी हर हरकत पर नज़र गड़ाए। जब उसने इशिता को लड़कों से बात करते देखा, तो उसके चेहरे पर हल्का-सा गुस्सा और कसाव आ गया। उसकी मुट्ठियाँ धीरे-धीरे भींच गईं।
लेक्चर खत्म होने के बाद, इशिता washroom जाने के लिए बाहर निकली। रिया उसे पीछे से बोल पड़ी –
“जल्दी आना, मैं यहीं wait कर रही हूँ।”
इशिता जैसे ही खाली कॉरिडोर में मुड़ी, अचानक पीछे से किसी ने उसका हाथ ज़ोर से पकड़ा और खींचकर एक खाली क्लासरूम में घसीट लिया।
“आहh… कौन हो tum? छोड़ो मुझे!” इशिता घबराकर चीख पड़ी।
दरवाज़ा जोर से बंद हुआ। सामने वही मास्क पहना हुआ लंबा लड़का खड़ा था। उसकी आवाज़ भारी और गुस्से से भरी थी –
“बहुत शौक है न तुम्हें लड़कों से हँसने-बोलने का, angel?”
इशिता की धड़कनें बेकाबू थीं। उसकी आँखें डर से फैल गईं।
“क…क्या बकवास कर रहे हो tum? मैं किसी को जानती भी नहीं…”
वो लड़का और पास आ गया, उसके और इशिता के बीच की दूरी बेहद कम रह गई।
“अब से सिर्फ मेरी नज़र में रहोगी… समझीं tum?”
उसने Ishita को दीवार से सटा दिया। उसकी साँसें Ishita के चेहरे पर गरम लग रही थीं।
“Tum samajhti kyun nahi, Angel?” उसकी भारी आवाज़ में ग़ुस्सा भी था और दर्द भी।
“Jab tum un ladko ke saath hasti ho, baat karti ho, mujhe kuch andhar se tod deta hai. Tum sirf meri ho… sirf meri.”
Ishita ने तेज़ी से सिर हिलाया,
“Mujhe jaane do, ye sab pagalpan hai—”
लेकिन Mystery man का control अब टूट चुका था। उसने Ishita का चेहरा पकड़कर उसे और पास खींच लिया। Ishita का दिल तेज़ धड़क रहा था, उसकी साँसें अटक गईं।
उसकी आँखों में जलती हुई चाहत थी। अगले ही पल उसने Ishita के होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
पहले वो हल्का-सा स्पर्श था, लेकिन अगले ही पल वो गहरा और possessive lip kiss बन गया। Ishita हैरान रह गई, उसकी पलकों से आँसू फूट पड़े। वो छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, मगर Mystery man ने उसकी कमर कसकर पकड़ रखी थी।
“Main tumse door nahi reh sakta, Angel…” उसने उसके होंठों के बीच बुदबुदाया।
“Ab tum meri ho… hamesha ke liye.”
Ishita की साँसें टूट चुकी थीं, उसकी आँखें बंद हो गईं। उसका दिमाग़ डर और confusion से भर चुका था—ये लड़का कौन है? और उसकी आँखों में इतना पागलपन क्यों है?इशिता डर के मारे काँप उठी।
"क…कौन हो तुम? मुझे क्यों बार-बार पीछा करते हो?" उसने धीरे से कहा।
वो एक कदम और करीब आया, उसकी नज़रों में पागलपन और तड़प साफ झलक रही थी।
"Angel…" उसने बहुत धीमी लेकिन ठंडी आवाज़ में कहा, "tumhe samajh kyu nahi aata… tum sirf meri ho."
इशिता का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन वो उसके और भी करीब आ गया। उसकी साँसें उसके गाल को छूने लगीं।
और फिर… अचानक उसने उसका चेहरा थाम लिया और उसके नाज़ुक गाल पर एक जबरन किस रख दी।
इशिता की आँखें हैरानी और डर से फैल गईं। वो उसे धक्का देकर पीछे हट गई, आँसू भर आए थे उसकी आँखों में।
"Pagal ho tum… mujhe akela chhodo!" उसने काँपती आवाज़ में कहा।
लेकिन वो हल्की सी मुस्कान के साथ बोला, "Chahe tum ro lo, gussa ho jao… par tum meri ho, aur main tumhe kisi aur ke paas jaane nahi dunga."उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि Ishita छुड़ा भी नहीं पा रही थी।
“Angel… tumhe lagta hai main tumhe kisi aur ke saath baatein karne dunga?” उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन उसमें खतरनाक कसक थी।
Ishita काँप उठी। “Mujhe… mujhe chhod do please… meri dost Riya mujhe dhund rahi hogi…” उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े।
वो हल्की हँसी के साथ और झुक आया, उसका चेहरा Ishita के बेहद करीब था। “Tum samajh kyu nahi paati? Main tumhe chhod hi nahi sakta… aur na chhodunga…”
Ishita ने आँखें भींच लीं, उसके आँसू उसकी शर्ट पर गिर रहे थे। वो डर और बेबसी के बीच काँप रही थी, जबकि वो उसे अपनी बाहों में और कसता जा रहा था, जैसे उसे दुनिया से छुपाकर हमेशा अपने पास कैद करना चाहता हो।
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पिछले अध्याय में आपने देखा कि इशिता को एक अज्ञात उपहार और धमकी भरा नोट मिलता है, परिवार रोहन की सफलता का जश्न मनाता है, और इशिता को एक और उपहार और चेतावनी मिलती है। रात में, एक छाया इशिता के कमरे में प्रवेश करती है। सुबह इशिता बेचैन रहती है, फिर कॉलेज जाती है जहाँ उसकी मुलाकात रिया से होती है।
दूसरे दिन इशिता कॉलेज जाती है और उसके दोस्त बनते हैं। उसे कुछ अवांछित ध्यान मिलता है। एक मुखौटाधारी व्यक्ति उसे पकड़ता है और एक कमरे में ले जाता है। वह इशिता को बताता है कि वह केवल उसकी है और उसे चूमता है। इशिता डर जाती है और भागने की कोशिश करती है, लेकिन वह उस पर और नियंत्रण कर लेता है।
अब आगे
Ishita (रोते हुए, दबी आवाज़ में): “Please… mujhe chor do… meri dost intezaar kar rahi hogi…”
लेकिन mask वाला उसके और भी करीब आया, उसके आँसू अपनी उँगलियों से पोंछते हुए, मानो उसकी रुलाई भी उसे रोक नहीं पा रही थी।
उसी वक़्त बाहर से Riya की आवाज़ सुनाई दी—
Riya: “Ishitaaa! Kaha ho tum?!”
Ishita अचानक डर से और ज़्यादा कांप गई। Mask वाला उसे एक झटके में दीवार से हटाकर परछाइयों में ग़ायब हो गया। Ishita सांसें फूलते हुए नीचे बैठ गई, उसके होंठ अभी भी काँप रहे थे।
कुछ देर बाद Riya वहाँ पहुँची। Ishita ने जल्दी से चेहरा दूसरी तरफ कर लिया ताकि उसकी हालत नज़र न आए।
Riya (गुस्से में, हाथ पकड़कर): “Yaha kya kar rahi thi? Main tumhe dhoond dhoond ke pagal ho gayi!”
Ishita ने हिम्मत जुटाई, आँसू छुपाते हुए बोली—
Ishita (बहुत धीमे स्वर में): “Kuch nahi… बस… tabiyat kharab ho gayi… ghar jana hai mujhe.”
Riya ने शक की नज़र से उसे देखा लेकिन Ishita का डर इतना साफ़ था कि उसने उस पल और कुछ पूछना ठीक नहीं समझा।
रिया उसे लेकर बाहर आ गई। जल्दीबाज़ी में इशिता बिना किसी को कुछ बताए सीधे घर पहुँच गई।
घर वाले उसे अचानक चुप और डरी-सहमी देखकर परेशान हो गए, लेकिन उसने कुछ भी नहीं बताया।
अपने कमरे में जाकर वो सीधे वॉशरूम में गई, शॉवर ऑन किया और ज़मीन पर बैठ गई। पानी उसके पूरे जिस्म पर गिर रहा था और उसके साथ उसकी आँखों से आँसू लगातार बहते रहे।
वो घंटों वहीं बैठी रही, कांपती रही, रोती रही… उसके होंठ अब भी काँप रहे थे, जैसे उस अजनबी का स्पर्श मिट ही नहीं रहा था।
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और उधर कुर्सी पर बैठते हुए सोचना शुरू किया—
“कौन था वो…? यहाँ पहले कभी देखा नहीं… लेकिन उस नज़र में कुछ तो था।”
उसके दिल की धड़कनें अब भी तेज़ थीं।
कियारा ने इंटरकॉम उठाया और अपने असिस्टेंट से बोली—
“अभी-अभी जो लड़का यहाँ से गुज़रा था, उसके बारे में पता करो। किस डिपार्टमेंट से है, कब जॉइन हुआ। मुझे सब जानकारी चाहिए।”
उसकी आवाज़ प्रोफेशनल थी, पर उसके दिल की बेचैनी छुपी नहीं रह पा रही थी।
ऑफिस का लंच टाइम था, सब लोग जल्दी-जल्दी अपने-अपने काम निपटा रहे थे। रोहन कॉरिडोर से फाइलें लिए तेज़ी से निकल रहा था, तभी अचानक उसकी टक्कर एक लड़की से हो गई।
लड़की का हाथ में रखा पर्स गिर गया और उसकी फाइलें ज़मीन पर बिखर गईं। वो हल्के से झुकी उन्हें उठाने लगी। रोहन भी तुरंत झुक गया और दोनों के हाथ एक ही फाइल पर एक साथ आ गए।
लड़की ने ऊपर देखा—गहरी काली आँखें, चेहरे पर मासूमियत और हल्की सी हैरानी। उसने मिनी स्कर्ट और सफेद शर्ट पहनी थी, पैरों में हाई हील्स थीं। उसकी खूबसूरती देखने लायक थी।
कुछ पल के लिए दोनों की नज़रें टकरा कर रुक सी गईं। लड़की मानो रोहन में खो गई हो। उसका दिल धड़कनों से तेज़ चलने लगा।
रोहन ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा,
“सॉरी, मिस।”
उसके बाद उसने फाइलें उसके हाथ में दीं और सीधा आगे बढ़ गया।
लड़की वहीं खड़ी रह गई, उसकी आँखें रोहन को जाते हुए देखती रहीं। उसके होंठों पर एक हल्की मुस्कान थी, जैसे उसे पहली नज़र में कुछ खास महसूस हुआ हो।ऑफिस के कॉरिडोर में हुई उस हल्की-सी टक्कर ने उस लड़की का दिल जैसे थाम लिया था। रोहन की गहरी आँखें और ठंडी-सी “सॉरी मिस…” कहते हुए उसके यूँ गुजर जाना, उसकी रूह तक उतर गया।
लड़की धीरे-धीरे अपने केबिन में वापस आयी, जहाँ बड़ी-सी ग्लास वाली खिड़की से धूप अंदर आ रही थी। वह मैनेजर थी— एवाना। नाम जितना अनोखा, उसकी शख़्सियत उतनी ही आकर्षक। मिनी स्कर्ट और सफेद शर्ट के साथ हाई हील्स ने उसके कॉन्फिडेंस को और निखारा था, पर इस वक्त उसका सारा ध्यान एक अजनबी चेहरे पर अटका हुआ था।
अपनी घूमने वाली कुर्सी पर बैठकर वह फाइल खोलने की कोशिश करती, पर पन्नों के अक्षर धुंधले हो जाते। उसकी सोच बस वहीं अटक गयी थी—
"वो कौन था? इतना रफ़ लेकिन कितना खिंचाव था उसकी नज़रों में…"मैम, वो मिस्टर रोहन हैं। दो दिन पहले ही हमारी कंपनी में जॉइन किया है। सीनियर एनालिस्ट के तौर पर।”
एवाना ने भौंहें उठाई, “रोहन?” नाम ज़ुबान पर लेते ही एक अजीब-सा खिंचाव महसूस हुआ।
“कैसा है वो?”
असिस्टेंट मुस्कराया,
“काफी खुशमिज़ाज और फ्रेंडली नेचर है उनका। सबसे जल्दी घुलमिल जाते हैं। स्टाफ भी कह रहा था कि बंदा मज़ाक भी अच्छे करता है, और काम में भी तेज़ है।”
एवाना चुप हो गई। उसकी आँखों में हल्की-सी चमक थी, जैसे किसी ने उसके दिन की थकान चुरा ली हो। वो सोचने लगी—
“ये रोहन... इतना अलग क्यों लगा मुझे?”
वो अपनी कुर्सी पर पीछे टिक गई, लेकिन उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान तैर आई थी।
थोड़ी देर सोचने के बाद उसने इंटरकॉम उठाया और अपने असिस्टेंट से बोली,
"Mr. Rohan को मेरे केबिन में भेज दीजिए, मुझे उनसे एक रिपोर्ट डिस्कस करनी है।"
कुछ ही देर में दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई।
"May I come in, Ma’am?" Rohan ने अंदर आते हुए कहा।
एवाना ने चेयर से उठकर उसकी ओर देखा, चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी।
"Yes, please come in," उसने अपनी ही स्टाइल में कहा।
Rohan जैसे ही अंदर आया, उसे थोड़ी हैरानी हुई—
"ओह... आप यहाँ मैनेजर हैं?" उसके लहज़े में आश्चर्य और थोड़ी संकोच झलक रही थी।
एवाना ने शांति से उसकी ओर देखते हुए कुर्सी पर बैठते हुए कहा,
"Exactly, मैं ही इस डिपार्टमेंट की मैनेजर हूँ।"
Rohan झट से थोड़ा गंभीर होते हुए बोला—
"मुझे सच में माफ़ कर दीजिए, उस दिन जो टकराव हुआ... मैंने सोचा भी नहीं था कि आप मेरी मैनेजर होंगी।"
एवाना उसकी साफ़गोई और सच्चे एक्सप्रेशन देखकर मुस्कुरा दी।
"चिंता मत कीजिए, मिस्टर Rohan... मुझे भी कभी-कभी अचानक मुलाक़ातें याद रह जाती हैं।"
Rohan ने अपनी वही ख़ुशमिज़ाज अदा में कहा—
"तो फिर अच्छी बात है, मेरी वजह से आपको याद रखने लायक एक पल तो मिला।"
एवाना हँसी दबाने की कोशिश करती रही लेकिन उसकी आँखों में एक अलग ही चमक आ गई थी।
उसने फ़ाइल खोलते हुए कहा—
"अब काम की बात करें, Mr. Rohan... देखते हैं आपकी रिपोर्ट्स कितनी impressive हैं।"
Rohan हल्की मुस्कान के साथ बोला—
"Impress करना तो मेरा फ़ितरत में है, Ma’am।"
एवाना उसकी frankness पर चुपचाप नज़रें झुका लेती है, लेकिन उसके दिल में अब भी वही सवाल था—क्या ये मुलाक़ात महज़ इत्तेफ़ाक़ थी या किसी नए किस्से की शुरुआत?
पिछले अध्याय में आपने देखा कि इशिता पर एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा हमला किया गया था और रिया द्वारा बचाया गया था। इशिता सदमे में है और घर वापस चली जाती है, जबकि कियारा उस व्यक्ति की पहचान जानने की कोशिश करती है जिसने इशिता पर हमला किया था। इस बीच, रोहन ऑफिस में एवाना से मिलता है और वे एक दूसरे को पसंद करते हैं।
अब आगे
कमरे में सिर्फ़ एक टेबल लैंप की हल्की पीली रोशनी जल रही थी। चारों तरफ़ अंधेरा पसरा था, इतना कि बाहर की हल्की सी आवाज़ भी दिल की धड़कनों को और तेज़ कर दे। कमरे की दीवारें पुरानी और नमी से भरी हुई थीं, मानो बरसों से किसी ने इन्हें छुआ तक न हो।
टेबल पर एक बड़ा कैनवास रखा था। उस पर ब्रश की धीमी–धीमी चाल चल रही थी। ब्रश पकड़ने वाला आदमी लम्बा था, काले कपड़ों में ढका हुआ, चेहरा छाया में छिपा हुआ। उसकी आँखें सिर्फ़ कैनवास पर टिकी थीं, जहाँ धीरे–धीरे एक लड़की का चेहरा उभर रहा था।
वह लड़की कोई और नहीं, बल्कि इशिता थी। उसकी मासूम आँखें, उसके होंठों की हल्की मुस्कान, हर रेखा में वही उतर रही थी। ऐसा लग रहा था मानो उस आदमी के हर स्ट्रोक के साथ इशिता की आत्मा इस कैनवास में क़ैद होती जा रही हो।
उसने ब्रश रोका, पेंटिंग को गहराई से देखा और होंठों पर एक धीमी, डरावनी मुस्कान खिंच गई। उसके स्वर में एक अजीब–सी मोहब्बत और सनक झलक रही थी। वह धीरे से बोला—
“Angel…”
आवाज़ इतनी गहरी थी कि दीवारों में गूँज गई।
“तुम नहीं जानती, पर तुम मेरी हो। हमेशा से मेरी।”
वह उंगलियों से पेंटिंग के होंठों को छूता है, मानो सचमुच इशिता को छू रहा हो।
फिर हौले से बुदबुदाया—
“जल्द ही, Angel… तुम्हें मेरे पास आना ही होगा। कोई नहीं रोक सकता।”
अचानक हवा का एक झोंका खिड़की से आया और लैंप की लौ डगमगा गई। रोशनी कुछ पल के लिए बुझी और जैसे ही लौ दोबारा जल उठी, पेंटिंग की आँखें और ज़्यादा जीवित सी लगने लगीं—मानो इशिता वहीं से उसे देख रही हो।
वो आदमी फिर से हँसा… एक पागलपन भरी हँसी के साथ।
और कमरे की ख़ामोशी और भी भारी हो गई।
रोहन जैसे ही ऑफिस से घर लौटा, थका हुआ सा दरवाज़े पर बैग रखकर सीधा मम्मी से बोला,
“मम्मी, इशु कहाँ है? अभी तक नीचे नहीं आई?”
मम्मी किचन से बाहर आईं और थोड़ा परेशान से बोलीं,
“पता नहीं बेटा, जबसे कॉलेज से लौटी है, अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकली। मैंने दो–तीन बार आवाज़ भी दी, खाने को बुलाया, पर उसने बहाना बना दिया। कह रही थी कि भूख नहीं है।”
रोहन ने माथे पर शिकन डालते हुए कहा,
“क्या? हमारी इशु और खाना मना कर दे, ये तो गड़बड़ है मम्मी। ज़रूर कुछ हुआ है।”
मम्मी ने लंबी सांस लेकर कहा,
“हाँ बेटा, मैंने भी बहुत कोशिश की उससे बात करने की, पर उसने दरवाज़ा तक नहीं खोला। अब तू ही जा और देख ले, शायद तुझसे कुछ कह दे।”
रोहन बिना वक्त गँवाए सीढ़ियाँ चढ़कर सीधा इशिता के कमरे की ओर बढ़ा। दरवाज़ा हल्का सा बंद था। उसने धीरे से खटखटाया,
“इशु… दरवाज़ा खोलो, मैं हूँ।”
भीतर से धीमी और थकी हुई आवाज़ आई,
“भैया… मैं बस आराम कर रही हूँ। कुछ नहीं हुआ।”
रोहन का दिल धक् से रह गया। उसकी बहन की आवाज़ में कमजोरी साफ झलक रही थी। उसने थोड़ा ज़ोर देकर कहा,
“दरवाज़ा खोलो इशु, वरना मैं तोड़ दूँगा।”
आख़िरकार दरवाज़ा खुला। सामने खड़ी इशिता के चेहरे पर पीलापन था, आँखें सुर्ख़ थीं और माथे पर हल्का पसीना चमक रहा था।
रोहन तुरंत उसके पास जाकर बोला,
“अरे इशु, ये तेरी हालत क्या है? तूने पहले क्यों नहीं बताया कि तबीयत खराब है?”
इशिता ने नज़रें झुका लीं और हल्की सी मुस्कान जबरदस्ती खींचते हुए बोली,
“कुछ नहीं भैया, बस ज़रा बुखार है… कॉलेज से लौटी तो थोड़ी कमजोरी लगी, इसलिए कमरे में आकर लेट गई।”
रोहन ने उसका हाथ पकड़कर चौंकते हुए कहा,
“हाथ तो जल रहा है तेरा… सच में तेज़ बुखार है इशु। तू झूठ क्यों बोल रही थी? भूखी भी है न?”
इशिता चुप रही, उसकी आँखों में हल्की नमी तैर गई। शायद कॉलेज में कुछ ऐसा हुआ था जो वो बताना नहीं चाह रही थी।
रोहन ने उसका माथा सहलाते हुए प्यार से कहा,
“तू पगली है क्या? हम सब तेरे अपने हैं, तू अकेली क्यों सह रही है? चल, पहले दवा खा और कुछ हल्का सा खा ले। बाकी बात बाद में करेंगे।”
इशिता ने अनमने ढंग से सिर हिलाया और बिस्तर पर बैठ गई। रोहन ने नीचे जाकर मम्मी को आवाज़ दी,
“मम्मी, दवा और हल्का खाना लेकर आइए, इशु को तेज़ बुखार है।”
मम्मी भी जल्दी से ऊपर आईं और इशु के सिर पर हाथ रखते हुए बोलीं,
“देखा बेटा, कह रही थी ना कुछ गड़बड़ है। तू तो छुपा रही थी।”
इशु बस धीमी आवाज़ में बोली,
“माफ़ करना मम्मी… सच में भूख नहीं थी।”
रोहन ने उसकी तरफ़ देखते हुए कहा,
“अब बहाने नहीं। दवा खाएगी और आराम करेगी। मैं यहीं हूँ तेरे पासदवाई और सूप खाकर इशिता आखिरकार बिस्तर पर लेट गई थी। रोहन उसके माथे पर हाथ रखकर देखता रहा — सचमुच हल्का बुखार था।
रोहन ने धीरे से उसके बाल सहलाए, "सो जा इशु… सुबह तक सब ठीक हो जाएगा।"
उसकी मम्मी दरवाज़े पर खड़ी होकर बोलीं, "ध्यान रखना इसका, बड़ी नाज़ुक है।"
रोहन ने सिर हिलाया और उसके ऊपर कंबल ओढ़ा दिया। फिर कमरे की बत्ती धीमी करके बाहर निकल गया।
रात गहरी हो चुकी थी। घर के सब लोग गहरी नींद में थे। लेकिन उस कमरे की खिड़की से ठंडी हवा के साथ किसी अजनबी की परछाई भीतर सरक आई। वही लंबा कद वाला रहस्यमयी आदमी, जो अंधेरे में ही घुल जाता था।
वो इशिता के सिरहाने खड़ा हो गया। उसके चेहरे पर नज़र डालते ही होंठों पर एक अजीब-सी मुस्कान फैल गई।
उसने झुककर धीरे से उसके माथे को छुआ — गर्म था।
वो फुसफुसाया,
"तो… मेरी एंजल बीमार हो गई? बस… एक छोटी-सी किस से इतना असर? तब क्या होगा, जब मैं पूरे जहान की तरह तुम्हारी रग-रग में उतर जाऊँगा?"
उसकी आवाज़ इतनी गहरी थी कि अगर इशिता जाग रही होती तो कांप जाती। लेकिन बुखार की थकान ने उसे बेहोशी जैसी नींद में रखा।
वो आदमी पलभर उसके चेहरे को देखता रहा, फिर धीरे से उसकी पलकों पर झुक गया… उसके कानों के पास सिहरन-सी भरी सांस छोड़ी और बोला,
"सो जाओ एंजल… अभी वक़्त नहीं आया… मगर बहुत जल्द… तुम्हें मेरा होना सीखना पड़ेगा।"
उसके कदमों की आहट उतनी ही रहस्यमयी थी जितनी उसकी मौजूदगी। जैसे वो कभी आया ही नहीं था।
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पिछले अध्याय में आपने देखा कि इशिता पर एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा हमला किया गया था। इशिता सदमे में है। इस बीच, रोहन ऑफिस में एवाना से मिलता है।
अब आगे, एक कमरे में, एक आदमी इशिता की एक पेंटिंग बना रहा है और उसे अपनी 'एन्जिल' बुला रहा है। रोहन इशिता के कमरे में जाता है क्योंकि वह बीमार लगती है और उसे बुखार है। रात में, वही आदमी इशिता के कमरे में आता है, उसे छूता है और धीरे से उसके कानों में फुसफुसाता है।
Now Next
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रात का सन्नाटा ऐसा था जैसे पूरी दुनिया सो चुकी हो, सिर्फ़ कहीं दूर से धीमे-धीमे पियानो की धुन गूंज रही थी। खिड़की से आती उस आवाज़ ने इशा का दिल तेज़ धड़काना शुरू कर दिया। वो आवाज़ सामान्य नहीं थी… उसमें कुछ था, कुछ ऐसा जो उसकी रूह तक को झकझोर दे रहा था।
और उसी पियानो पर बैठा एक परछाई-सा इंसान गा रहा था… उसकी आवाज़ भारी, खौफ़नाक और फिर भी अजीब-सी मोहब्बत से भरी हुई।
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**“तू मेरी है… और मेरी ही रहेगी,
तेरे कदम जहाँ भी जाएँगे, मेरी परछाई साथ चलेगी।
हज़ारों भीड़ में भी, तेरी साँसों की गंध पहचान लूँगा,
तेरे होंठ किसी और के नाम से हिलते देखे… तो उसी पल सबका खून बहा दूँगा।
तेरे जिस्म पर हक़ सिर्फ़ मेरा है,
तेरी रूह तक को अपनी कैद में रखूँगा।
तू भागेगी, छुपेगी, चीखेगी—
पर याद रख… मैं तेरे दिल की धड़कन हूँ,
मुझसे भागकर कहाँ जाओगी… जब जीना भी मुझसे जुड़ा है।”**
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इशा की आँखें काँप उठीं। उसे लगने लगा जैसे ये गाना सिर्फ़ उसके लिए गाया जा रहा हो। उस आवाज़ में पागलपन था, सनक थी, और वो डर भी… जो मोहब्बत से कहीं ज़्यादा खतरनाक था।
उसकी उँगलियाँ काँपते हुए खिड़की बंद करने बढ़ीं, मगर तभी वो धुन और ऊँची हो गई, जैसे कोई कह रहा हो—
“अब तेरे पास लौटने का कोई रास्ता नहीं, इशा…
तू मेरी थी, मेरी है… और हमेशा मेरी रहेगी।”
सुबह की हल्की धूप खिड़की से अंदर आई। इशिता ने हड़बड़ा कर आँखें खोलीं। वो तुरंत उठकर चारों ओर देखने लगी—कमरा बिलकुल वैसा ही था, दरवाज़ा बंद, खिड़की आधी खुली। "ये सब… सपना था?" उसने अपने आप से बुदबुदाया।
फिर हाथ से अपना माथा छुआ, सच में बुखार था। दिल तेज़ धड़क रहा था लेकिन उसने खुद को समझाया—
"नहीं… ये बस बुखार का वहम था, मैंने कुछ भी नहीं देखा।"
वो उठी, पानी पीया और वापस लेट गई। दिमाग़ बार-बार वही भारी आवाज़ दोहराने लगा — एंजेल… एंजेल… पर उसने खुद को ज़बरदस्ती रोक दिया।
उसने तकिए में मुँह छुपाकर कहा —
"मैं पागल नहीं हूँ, मुझे बस आराम चाहिए।"
और ऐसे उसने सबको इग्नोर कर दिया, जैसे कल रात कुछ हुआ ही न हो। चुपचाप छत को घूर रही थी, जैसे खुद से लड़ रही हो कि जो कुछ उसने रात में महसूस किया वो हक़ीक़त था या महज़ वहम। तभी दरवाज़ा धीरे से खुला और रोहान हाथ में ट्रे लिए अंदर आया। ट्रे में हल्दी मिला हुआ गर्म दूध रखा था, जिसकी खुशबू कमरे में फैल गई।
रोहान उसकी ओर देख मुस्कुराया, लेकिन चेहरे पर हल्की चिंता भी झलक रही थी।
“क्यों ओ मिर्ची, कैसी हो अब? रात से ही सो नहीं पाई क्या?” उसने पास आकर उसकी पेशानी पर हाथ रखा। बुखार अब भी हल्का था।
इशिता धीरे से बैठ गई और ज़बरदस्ती मुस्कुराई, “मैं ठीक हूँ भैया… बस नींद नहीं आई। तबीयत थोड़ी भारी लग रही है।”
“तो फिर ये ले, हल्दी वाला दूध बना के लाया हूँ। माँ कह रही थी इससे बुखार जल्दी उतर जाएगा।” रोहान ने ग्लास उसकी ओर बढ़ाया।
इशिता पहले तो थोड़ा मना करने लगी, “भैया… अच्छा नहीं लगेगा अभी।”
पर रोहान ने उसकी आँखों में गहराई से देखते हुए कहा, “शरारतें बहुत कर ली तूने, अब ज़िद मत कर। मिर्ची, पी ले ये। तुझे अच्छा लगेगा।”
उसके लहजे में प्यार और चिंता दोनों थे। इशिता ने चुपचाप ग्लास पकड़ लिया और छोटे-छोटे घूँट भरते हुए पी गई।
गर्म दूध उसके गले से उतरते ही भीतर तक सुकून पहुँचा। लेकिन उसके चेहरे पर अब भी वही गुमसुम-सी सोच थी।
रोहान ने गौर किया और पास बैठकर बोला, “किस बात की टेंशन ले रही है? कल से अजीब-सी लग रही है तू। कुछ बताना चाहती है क्या?”
इशिता ने तुरंत नज़रें चुरा लीं और मजबूरी में मुस्कुराकर बोली, “कुछ नहीं भैया… सच में बस बुखार और थकान है।”
पर भीतर ही भीतर उसका दिल अब भी उस रहस्यमयी अहसास को याद कर रहा था—वो फुसफुसाती आवाज़, वो एहसास कि कोई उसके बेहद क़रीब था।
क्यों, कैसी है मेरी mirchi? अब ठीक लग रहा है या अभी भी चक्कर आ रहे हैं?" उसने उसके माथे पर हाथ रखकर तापमान चेक किया।
इशा ने धीरे से सिर हिलाया, "बस… थोड़ा भारी लग रहा है, लेकिन मैं ठीक हूँ।"
भाई ने गंभीर होकर कहा, "देख, अगर तबीयत सही नहीं है तो आज कॉलेज मत जा। एक दिन आराम कर ले, नोट्स मैं किसी से ले आऊँगा।"
इशा कुछ सोच ही रही थी कि तभी उसका मोबाइल वाइब्रेट हुआ। उसने उठाकर देखा— Riya Calling. कॉल उठाते ही दूसरी तरफ से रिया की आवाज़ तेज़ी से गूंजी,
"इशु! तू अभी तक तैयार नहीं हुई? आज कॉलेज में बहुत बड़ी अनाउंसमेंट होने वाली है। सबको बुलाया है, इम्पॉर्टेन्ट है बहुत। जल्दी निकल, मैं तेरा इंतज़ार कर रही हूँ।"
रिया ने इतना कहकर बिना कोई बहाना सुने कॉल काट दिया। इशा ने गहरी सांस ली, फिर अपने भाई की तरफ देखा,
"भाई… मुझे जाना पड़ेगा। सच में ज़रूरी है।"
भाई ने हल्की झुंझलाहट से सिर हिलाया, "ठीक है, लेकिन ध्यान से। मैंने सुबह तेरे लिए हल्दी वाला दूध बनवाया है, वापस आकर पूरा पीना पड़ेगा।"
इशा ने मुस्कुराकर हामी भरी।
थोड़ी देर बाद वो वॉर्डरोब के सामने खड़ी हुई। ज़्यादा भारी कपड़े पहनने का मन नहीं था, तो उसने एक स्टाइलिश shrug निकाला, जिसके नीचे हल्का-सा टॉप और जींस थी। आईने में खुद को देखकर उसने हल्की-सी lip balm लगाई। होंठ गुलाबी-से चमकने लगे और चेहरे पर सादगी भरी सुंदरता खिल गई। उसकी मासूमियत और थकान के बावजूद उस पल वो और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी।
आईने में खुद को देखकर वो सोच में डूब गई — आज आखिर कॉलेज में ऐसी कौन-सी अनाउंसमेंट होने वाली है…?
“अरे मेरी मिर्ची… कैसी है अब? बुखार तो कम हुआ न?” उसने पास आकर उसका माथा छूते हुए पूछा।
इशिता ने हल्की मुस्कान दी, “हाँ भैया… अब ठीक लग रहा है।”
भाई ने राहत की साँस ली और फिर नज़रों से उसे देखते हुए बोला, “तो चल अब उठ… नाश्ता कर ले। खाली पेट कॉलेज जाएगी तो फिर बुखार बढ़ जाएगा। पहले खाना खा ले, फिर मैं तुझे छोड़ दूँगा।”
इशिता थोड़ी झिझकी, “अभी… भैया… मन नहीं कर रहा।”
“अरे बस बहाना मत कर। चल उठ, नाश्ता कर ले। फिर मैं खुद गाड़ी निकालकर तुझे कॉलेज छोड़ आऊँगा। ज़्यादा दूर नहीं है, आराम से पहुँच जाएंगे।”
इतना कहकर उसने प्यार से उसका हाथ पकड़ा और मुस्कुराते हुए कहा, “चल मिर्ची, मेरी बात मान। आज कॉलेज में कुछ बड़ा होने वाला है न? तो तुझे फिट रहना पड़ेगा।”
इशिता ने मान लिया। उसने धीरे से सिर हिलाया और बिस्तर से उठ बैठी।
“ठीक है भैया… चलिए,” उसने हँसते हुए जवाब दिया।
भाई ने उसके सिर पर हल्की चपत लगाई, “बस यही तो चाहिए था!”
फिर वो दोनों नीचे नाश्ते की टेबल पर आ गए। माँ ने पहले से उसके लिए उसके पसंद के आलू के पराठे बनाए हुए थे। इशिता ने मुस्कुराकर प्लेट उठाई। खाने के बाद उसका भाई खुद गाड़ी स्टार्ट कर उसे कॉलेज छोड़ने चला गया।
रास्ते में दोनों हँसी-मज़ाक करते रहे, लेकिन इशिता के मन में कहीं न कहीं कॉलेज में होने वाली बड़ी घोषणा को लेकर हल्की बेचैनी भी बनी रही।
कॉलेज के गेट पर गाड़ी रुकते ही इशिता ने बाहर झाँका। सुबह की रौनक शुरू हो चुकी थी। छात्र-छात्राएँ इधर-उधर आते-जाते दिख रहे थे। तभी गेट के पास खड़ी रिया उसे देखकर हाथ हिलाने लगी।
“इशु!” रिया ने आवाज़ लगाई।
इशिता मुस्कुराई और गाड़ी से उतरते हुए बोली, “हाय रिया!”
रिया दौड़ती हुई उसके पास आई और बिना कोई औपचारिकता किए बोली, “आख़िरकार आ ही गई! चल जल्दी चल, आज कुछ बड़ा होने वाला है। सबका ध्यान कॉलेज की तरफ है।”
इशिता हँस पड़ी, “तू तो हमेशा इतनी एक्साइटेड रहती है!”
रिया ने आँख मारते हुए कहा, “अरे यार, ऐसी चीज़ रोज थोड़े होती है! और फिर… आज सबकी नज़रें हम पर भी होंगी, समझी?”
इशिता ने हल्का झेंपते हुए सिर हिलाया।
“वैसे…” रिया ने धीरे से उसकी तरफ झुकते हुए कहा, “तू आज बहुत सुंदर लग रही है। ये shrug और ये हल्का-सा टॉप… uff! कोई भी देखेगा तो उसका दिल धड़क जाएगा।”
इशिता ने मुस्कुराकर बाल ठीक किए और झेंपते हुए बोली, “बस कर यार!”
“अरे सच में! चल अब क्लास की तरफ चलते हैं… और हाँ, आज ध्यान रखना… सबकी नज़रें तुझ पर रहेंगी!” रिया ने शरारती अंदाज़ में आँखें घुमाईं।
दोनों हँसते हुए कॉलेज के अंदर की तरफ बढ़ गईं। इशिता का मन अभी भी थोड़ी घबराहट और उत्सुकता से भरा था, लेकिन रिया की दोस्ती ने उसे हल्का कर दिया। वो जानती थी — चाहे कुछ भी हो, रिया उसके साथ है।क्लास में अभी सभी छात्र अपनी जगह बैठ ही रहे थे कि अचानक दरवाज़ा खुला और प्रिंसिपल सर अंदर आ गए। उनका चेहरा गंभीर था, लेकिन आवाज़ में एक अधिकार झलक रहा था।
“सभी छात्र ध्यान दें!” उन्होंने गहरी आवाज़ में कहा।
पूरी क्लास चुप हो गई।
“आज दोपहर में एक ज़रूरी घोषणा की जाएगी। आप सबको हॉल में इकट्ठा होना है। समय पर पहुँचें… और ध्यान रहे, यह सबके लिए महत्वपूर्ण है।”
इतना कहकर उन्होंने इधर-उधर देखा, जैसे सबकी प्रतिक्रिया पर नज़र रख रहे हों। फिर बिना किसी और बात के बाहर निकल गए।
कुछ पल तक क्लास में सन्नाटा छाया रहा। फिर धीरे-धीरे फुसफुसाहट शुरू हो गई।
“अरे यार, आखिर होगा क्या?”
“कहीं कोई बड़ा इवेंट तो नहीं?”
“सुना है नए प्रोजेक्ट के बारे में बताने वाले हैं!”
“या फिर कोई स्पेशल गेस्ट आने वाला है!”
इशिता चुपचाप सबकी बातें सुनती रही। रिया उसके कान में फुसफुसाई, “देखा! मैंने कहा था न कुछ बड़ा है! चल न जल्दी चलकर देखे!”
इशिता ने उसकी तरफ मुस्कुराकर सिर हिलाया, लेकिन मन में हल्की घबराहट थी। वो सोच रही थी — आख़िर ऐसा क्या है जिसके लिए पूरे कॉलेज को बुलाया गया है?
कुछ ही देर में क्लास के सारे छात्र हॉल की तरफ बढ़ गए। चलते समय इशिता ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई — कई छात्र उससे मुस्कुराकर बातें कर रहे थे, तो कई ऐसे थे जो चुपचाप उसकी तरफ देख रहे थे।
रिया ने उसका हाथ पकड़कर कहा, “डर मत… जो भी होगा, हम साथ हैं!”
इशिता ने धीरे से उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दिया। लेकिन मन के किसी कोने में ये सवाल अभी भी गूँज रहा था —
“आख़िर आज क्या होने वाला है…?”
हॉल में सब बैठ चुके थे। हल्की फुसफुसाहट चल रही थी कि आखिर आज की बड़ी घोषणा क्या होगी। तभी प्रिंसिपल स्टेज पर आए। माइक संभालते ही उन्होंने गंभीर आवाज़ में कहा —
“साइलेंस… प्लीज़!”
हॉल में एकदम सन्नाटा छा गया। सबकी नज़रें प्रिंसिपल पर टिक गईं।
उन्होंने फिर कहा,
“आज हमारे कॉलेज में एक बहुत महत्वपूर्ण दिन है। आज हम सबके सामने हमारे कॉलेज के नए मालिक का स्वागत करेंगे। आप सब समय पर यहाँ पहुँचे, इसके लिए धन्यवाद। कृपया स्वागत कीजिए…”
इतना कहकर प्रिंसिपल पीछे हटे। दरवाज़ा खुला और अंदर काले सूट में कुछ लोग दाखिल हुए। उनके हाथों में बंदूकें थीं। पूरा हॉल एक पल को चुप हो गया।
उनके बीच में एक ऐसा आदमी चल रहा था जिसे देखते ही सबकी साँसें थम गईं। लंबा कद, चौड़े कंधे, मजबूत बाइसेप्स, आत्मविश्वास से भरी चाल… उसकी आँखों में ऐसा तेज था कि जैसे सामने वाले को घूरकर बाँध ले। उसका चेहरा बेहद आकर्षक, नुकीली जबड़े की हड्डियाँ, हल्की दाढ़ी… और पूरे हॉल में उसकी उपस्थिति का असर छा गया।
लड़कियाँ एक-दूसरे को देखकर फुसफुसाने लगीं —
“हाय… क्या banda है!”
“क्या personality है यार!”
“इतना हैंडसम… हमने तो सोचा ही नहीं था!”
कई लड़कियाँ उसे देखने के लिए गर्दन लंबी कर रही थीं। कुछ तो आपस में मुस्कुराकर इशारों से बातें कर रही थीं।
वो सीधे स्टेज पर गया और वहाँ खड़ा हो गया। जैसे ही वो खड़ा हुआ, पीछे बैठी लड़कियों से आवाज़ें उठीं —
“हाय क्या banda है!”
“क्या personality है यार!”
“सच में… uff!”
प्रिंसिपल ने माइक पकड़ा और मुस्कुराकर कहा,
“ये हैं हमारे कॉलेज के नए मालिक — VSR!”
पूरा हॉल एक बार फिर फुसफुसाहट से भर गया।
किसी ने धीरे से कहा, “क्या ये वही VSR है?”
दूसरी आवाज़ आई, “अरे हाँ… एशिया का most eligible bachelor और सबसे powerful बिज़नेस टायकून!”
इशिता रिया के कान में धीरे से बोली,
“भैया भी तो किसी VSR कंपनी में काम करते हैं… क्या ये वही कंपनी का मालिक है?”
रिया ने आँखें गोल करके फुसफुसाया,
“देख न इशु… कितना मनमोहक है! ये तो पूरी तरह से फ़िल्म वाला हीरो लगता है!”
VSR के साथ उसका पर्सनल असिस्टेंट भी था—रिहान। वो भी कम नहीं दिख रहा था—स्मार्ट, सधा हुआ, आत्मविश्वास से भरा। लड़कियाँ उसकी तरफ भी देखने लगीं, लेकिन VSR की मौजूदगी ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया।
इशिता की आँखें बड़ी हो गईं। उसके मन में सवाल भी थे और अचरज भी—
ये इतना हैंडसम… इतना पॉवरफुल… क्या सच में कॉलेज के मालिक हैं?
रिया ने मुस्कुराकर उसकी तरफ झुकते हुए कहा,
“तैयार रह… आज पूरा कॉलेज इनके बारे में बातें करेगा!”
इशिता बस चुप रह गई। उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। सामने खड़ा वो आदमी जैसे किसी फिल्म का किरदार हो… और उसकी मौजूदगी ने पूरे माहौल को बदल दिया था।
पिछले अध्याय में, आपने देखा कि इशिता बीमार थी और उसके भाई ने उसकी देखभाल की। फिर, वह उसे कॉलेज छोड़ने गया, जहाँ उसकी दोस्त रिया ने उसका स्वागत किया। रिया ने बताया कि आज कुछ खास होने वाला है और सभी इशिता की ओर देख रहे हैं। प्रिंसिपल ने एक महत्वपूर्ण घोषणा करने के लिए छात्रों को हॉल में इकट्ठा होने के लिए कहा। छात्रों को आश्चर्य हुआ कि क्या हो रहा है। हॉल में, प्रिंसिपल ने कॉलेज के नए मालिक, वीएसआर का स्वागत किया। वीएसआर एक शक्तिशाली और आकर्षक व्यक्ति था। रिया और इशिता इस पर चकित थे।
अब अगला
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हॉल में शोर थोड़ा थमा ही था कि इशिता की नज़र अनायास VSR पर टिक गई। उसका दिल जैसे धड़कना भूल गया।
वो सोचने लगी — ये चेहरा… ये आँखें… कहीं तो देखा है… कहीं… कहीं…
अचानक उसकी नज़र सीधे VSR की नज़रों से टकरा गई। दोनों की आँखें जैसे एक पल को थम गईं। इशिता का चेहरा लाल हो गया। झट से उसने नज़रें नीचे कर लीं। हाथ काँपने लगे।
उधर VSR की आँखों में भी एक अलग चमक उभरी। उसके होंठों पर एक हल्की-सी, रहस्यमयी मुस्कान खेल गई — जैसे वो इशिता को पहचानता हो… जैसे कोई राज़ उसके अंदर छुपा हो।
लेकिन आसपास बैठे किसी ने उस मुस्कान को नहीं देखा। बस उसके साथ खड़ा उसका असिस्टेंट रिहान उस मुस्कान को ध्यान से देख रहा था। उसकी आँखों में हल्की चिंता और आश्चर्य झलक रहा था, जैसे वो समझ गया हो कि मालिक ने किसी खास को पहचान लिया है।
इशिता ने अपने आप को सँभाला। उसने सिर और झुका लिया, लेकिन दिल की धड़कनों को शांत कर पाना मुश्किल हो रहा था।
इतने में प्रिंसिपल ने माइक उठाया और मुस्कुराकर VSR की तरफ बढ़ा दिया।
“अब मैं हमारे कॉलेज के नए मालिक VSR को आमंत्रित करता हूँ कि वे आप सब से कुछ बातें करें,” उन्होंने कहा।
VSR ने माइक पकड़ा। पूरा हॉल उसकी तरफ देखने लगा। उसकी आवाज़ धीमी लेकिन बेहद प्रभावशाली थी।VSR ने माइक पकड़ा। उसकी आँखों में आत्मविश्वास और ठहराव था। जैसे वो यहाँ सिर्फ बोलने नहीं, सबको अपने अंदाज़ में चलाने आया हो। उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
“सुनो सब…”
हॉल में एकदम सन्नाटा छा गया। उसकी आवाज़ गहरी थी और उसमें ऐसा असर था कि बिना देखे भी सब सुन रहे थे।
“अब से यहाँ कुछ नए नियम लागू होंगे। ये कॉलेज कोई मस्ती करने की जगह नहीं है… ये उन लोगों के लिए है जो अपने आप को बदलना चाहते हैं, अपने लक्ष्य तक पहुँचना चाहते हैं। जो इन्हें नहीं मानेंगे… उन्हें खुद ही सोचना पड़ेगा कि आगे क्या करना है।”
वो एक पल रुका। सब उसकी तरफ देख रहे थे।
“पहला नियम — कोई भी लड़का किसी लड़की को यूँ ही घूरते नहीं मिलेगा। आँख उठाकर देखना… सीधे दंड मिलेगा। कॉलेज में सम्मान ज़रूरी है, समझे?”
लड़कियों के बीच हलचल हुई। कुछ ने एक-दूसरे की तरफ देखा।
“दूसरा — क्लास में अनुशासन रहेगा। जो बेवजह शोर करेगा, हंगामा करेगा, उसका नाम सीधे कॉलेज से कट जाएगा।
तीसरा — यहाँ हर छात्र को अपने काम पर फोकस करना होगा। यहाँ फ़ालतू बातें, इधर-उधर घूमना… सब बंद। जो काम करेगा… वही आगे जाएगा।
चौथा — अजीब नियमों से डरने की ज़रूरत नहीं। ये नियम आपके लिए हैं… ताकि आप अपने डर से बाहर निकलें।
पाँचवा — कोई भी छात्र किसी की निजी ज़िंदगी में बिना वजह दखल नहीं देगा। जो करेगा… उसके लिए सख्त कार्रवाई होगी।
छठा — यहाँ हर किसी का सम्मान रहेगा। जो अपने साथियों का सम्मान करेगा, वही कॉलेज में आगे बढ़ेगा।
बस एक बात और…”
वो मुस्कुराया। उसकी मुस्कान में एक रहस्य था।
“ये नियम कड़े हैं, लेकिन ज़रूरत से ज्यादा नहीं। जो अपने लक्ष्य के लिए यहाँ आया है… उसे डरने की कोई वजह नहीं। जो यहाँ बेवजह का ध्यान भटकाएगा… उसे खुद पता चल जाएगा कि नियम तोड़ने की क्या कीमत होती है।”
उसने हल्का सिर झुकाया, जैसे सब पर नज़र डाल रहा हो। लड़कियाँ उसकी बातों से प्रभावित थीं, लेकिन डर भी रही थीं। लड़कों में फुसफुसाहट शुरू हो गई।
इशिता चुपचाप बैठी थी। उसका दिल धड़क रहा था। नियम सुनकर वो थोड़ा सहम गई थी… लेकिन VSR की आवाज़ में ऐसा आकर्षण था कि उसकी नज़रें बार-बार उसी की तरफ चली जा रही थीं।
रिया ने फुसफुसाकर कहा, “देख… कितना स्टाइलिश है! लेकिन नियम भी कितने अजीब हैं यार!”
इशिता ने बस हल्का सिर हिलाया… पर उसके दिमाग में बस एक सवाल घूम रहा था —
ये कौन है… और इसे सब पर इतना कंट्रोल कैसे है?
हॉल में VSR की आख़िरी नज़र एक बार फिर इशिता पर पड़ी… उसकी रहस्यमयी मुस्कान जैसे कह रही हो —
“तुम अलग हो… तुम्हें मैं पहचानता हूँ…”
इशिता का मन किसी अनजान डर और आकर्षण के बीच उलझता जा रहा था।
दूसरी तरफ
रोहन का ऑफिस बड़ा और शानदार था। हर तरफ चमकदार काँच की दीवारें, महंगे फर्नीचर और आधुनिक सजावट। लेकिन ऑफिस के अंदर का माहौल उससे बिल्कुल अलग था।
लंच ब्रेक के बाद रोहन अपने कुछ दोस्तों – पुरुष और महिला साथियों – के साथ आराम से बैठा हँस-हँस कर बातें कर रहा था। किसी ने उसके कंधे पर हाथ मारा, तो कोई उसके मज़ाक पर खिलखिला कर हँस पड़ा।
लड़कियाँ तो जैसे उसकी हर बात पर फिदा थीं। कोई उसके बालों पर हाथ फेरने का मज़ाक कर रही थी, कोई आँखों से इशारे कर रही थी। एक लड़की तो बार-बार कहती—
“रोहन… तुम तो कमाल हो यार… तुमसे बात करके तो दिन बन जाता है!”
दूसरी ने हँसते हुए कहा, “तुम्हें देख कर तो लग रहा है कोई हीरो सेट से बाहर आ गया!”
रोहन भी पीछे नहीं था। वो हँसते हुए जवाब देता—
“अरे… बस यार! इतना मत चिढ़ाओ… वरना मैं काम भूल जाऊँगा!”
लेकिन उसी समय ऑफिस के एक कोने से दो जोड़ी आँखें सबको घूर रही थीं। वो कोई और नहीं… स्टाफ मैनेजर एवाना थी। उसकी आँखों में जलन और नाराज़गी साफ दिख रही थी।
एवाना ने कुछ देर सबको देखा, फिर बिना कुछ कहे तेज़ क़दमों से बाहर निकल गई।
सबकी बातें एकदम रुक गईं। कुछ लोग असहज होकर इधर-उधर देखने लगे।
थोड़ी देर बाद एवाना वापस अंदर आई। उसकी आवाज़ में गुस्सा साफ था।
“ये ऑफिस है… कोई तुम्हारा घर नहीं! दिनभर गप्पें मार रहे हो? काम करने आए हो या मस्ती?”
सबकी नज़रें झुक गईं।
वो सीधे उन लड़कियों के पास गई और बोली—
“और तुम लोग… इतना समय पास करोगी तो पीछे रह जाओगी। जितना जरूरी है उतना ही बोलो… काम करो!”
फिर उसकी नज़र फाइलों पर गई।
“मालहोत्रा प्रोजेक्ट की फाइल… और बाकी दो प्रोजेक्ट की रिपोर्ट… आज ही पूरे करके जमा करनी है। कोई बहाना नहीं चलेगा। समझे?”
सभी चुप थे। किसी ने कुछ कहने की हिम्मत नहीं की।
एवाना ने आख़िर में एक बार सबकी तरफ देखकर कहा—
“ये ऑफिस है… यहाँ काम की कीमत है। बाकी सब बाद में। अब चलिए… काम पर लगिए!”
इतना कहकर वो अपने केबिन में चली गई।
रोहन ने उसकी तरफ देखा। उसके मन में हल्की मुस्कान थी, पर साथ ही वो समझ गया — एवाना कितनी गंभीर है।
उधर, एवाना अपने केबिन में जाकर कुर्सी पर बैठी। उसकी आँखों में अब भी रोहन का चेहरा घूम रहा था। व
कमरे की हवा ठंडी और सुस्त थी। केवल एक बूंद-सी लालटेन बीच में टिमटिमा रही थी, बाकी सब कुछ अँधेरे में डूबा हुआ। दीवार पर एक बड़ा सफ़ेद कैनवास जड़ा हुआ था — और उसके सामने एक लंबा-सा आदमी बैठा था, झुका हुआ, ब्रश उसके हाथ में धीरे-धीरे चल रहा था।
धीरे-धीरे स्ट्रोक से एक चेहरा उभर रहा था — पहली नज़र में ऐसा लगता कि किसी परफेक्ट, कोई रुख़सान, पर जैसे ही वह और भी गहराई से देखता, रेखाएँ और ज़्यादा पहचान देतीं। उस चेहरे की आँखें, उसके होंठ, गाल की नाज़ुक शेड — सब कुछ इतनी बारीकी से उभर रहा था कि देखने वाला भी जैसे शांत हो जाए।
आदमी ब्रश थामे रहता, कभी-कभी पीछे हटकर पेंटिंग को टकटकी से देखता, फिर वापस लौटकर कुछ और झुर्रियां, कुछ और हाइलाइट जोड़ देता। उसके हाव-भाव में ऐसा लग रहा था जैसे हर स्ट्रोक उसके भीतर किसी आवाज़ को शांत कर रहा हो।
धीरे-धीरे कैनवास पर नक़्क़ाशी पूरी हुई — और फिर सामने आया वही चेहरा। इशिता की आँखों की मूरती, उसके होंठों की नाज़ुकता — वो वही थी। आदमी जैसे ही अंतिम डैश भरता है, उसने अचानक पीछे से जोर से हँस दिया। उसकी हँसी इतनी तेज़ थी कि कमरे की खामोशी चकनाचूर हो गई।
हँसी के साथ ही उसने एक तीखा सीटी का साउंड भी दिया — तेज़, नुका-सा। उस सीटी ने कमरे में एक अजीब-सा सिहरन फैला दिया; सुनने वाले के कानों में जैसे किसी ने अलार्म बजे दिया हो। हँसी मज़ेदार नहीं थी — उसमें एक तरह का तिरस्कार, एक तरह की जीत, और एक गहरा सायको-सा आनंद था।
वो खड़ा हुआ, कैनवास के सामने आकर एक कदम और करीब था; उसकी परछाई दीवार पर और गहरी हुई। उसने मेटल के डिब्बे से एक छोटी लौ निकालकर पेंटिंग के आस-पास की धब्बों को हल्का सा जलाया, और फिर धीमी, गहरी आवाज़ में बोला — उसकी आवाज़ में कहीं न कहीं नफ़ासत भी थी, पर साथ में कड़वी सनक भी।
“तुम देखते क्यों हो… सभी कहते हैं कि किसी की खूबसूरती से आँखें चकाचक हो जाती हैं, पर मैंने उसकी रूह देखी है, और रूह ने मुझसे कहा — वो मेरी है।
तुम्हें पता है, Angel — एक किस से क्या होता है? एक किस... बस एक छोटा-सा बीज होता है। मैं ने उसे छुआ… और वह फूट पड़ी है, जैसे फूल धरती पर अपने सारे रंग खो दे।”
उसने धीरे-धीरे पैंटिंग के होंठों के पास उँगली चलाकर कहा —
“तुम्हारी मुस्कान से दुनिया खूबसूरत थी, पर मैं चाहता हूँ कि वह सिर्फ मेरे लिए मुस्कुराए। जब पूरा जहान मेरी तरह हो जाएगा, तब देखना — कैसे हर सधने वाली साँस मेरे नाम का राग गाती है।”
आदमी की आँखें पेंटिंग से उठीं और कमरे के कोने-कोने को घेरते हुए, ऐसे घुमीं जैसे हर जगह उस लड़की की झलक ढूँढ रहे हों। फिर उसकी निगाह ज़मीन पर रखी कुछ पुराने कट-पैपर पर अटकी — इशिता की कई तस्वीरें, कुछ स्कैच, और अजीब नोट्स, जैसे कोई रात-दिन उसके बारे में लिखता रहा हो।
वह झट से कैमरे-सा मोबाइल निकालता है और उस पेंटिंग की तरफ़ झुककर धीरे से हवा में एक शीशा सा फुसफुसाता हुआ गुनगुनाया — उसकी आवाज़ में अब शायरी की तरह ताल आई:
“तुम्हारी आवाज़ की नर्म झंकार,
मेरे भीतर की रातों का उजाला कर दे।
जब तुम मुस्कुराओगी, तो शबनम भी शर्मा कर छुप जाएगी।
तुम मेरी रहो, Angel — वरना मैं उस दुनिया को रौंद दूँगा,
जिसे तुम मेरी चाहत से दूर कर देगी।”
शायरी में कोई रोमांटिक मिठास नहीं थी — वह कड़वी, अधर में बसी धमकी जैसा था। उसकी आँखों में चमक बदल रही थी — प्यार-सा कुछ भी था पर उसकी सीमा पर डर और धमक भी मौजूद थी।
वो फिर अचानक जोर से हँसा और अपने होंठों से तेज़ सीटी की तरह फिर से आवाज़ निकाली — हवा में सुई चुभती-सी आवाज़। जैसे ही उसने ब्रश नीचे रखा, उसने कैनवास को फिर एक बार देखा और फुसफुसाया —
“जल्दी आओगी… जल्दी ही… तब मैं तुम्हें अपने रंगों में रंग दूँगा, Angel. तब सारी दुनिया देखेगी… तू मेरी है।”
कमरे की चारों दीवारों पर लगी हर पेंटिंग में वही चेहरा था।
कहीं हल्की-सी मासूम मुस्कान, कहीं गुस्से से भरी आँखें, कहीं आँसुओं में डूबी निगाहें—हर तस्वीर ऐसे लग रही थी जैसे अभी ज़िंदा होकर कैनवस से बाहर आ जाएगी।
हर ब्रश स्ट्रोक में जुनून था, हर रंग में उसकी धड़कनों की गूँज। देखने वाले को ऐसा महसूस हो कि पेंटिंग में कोई लड़की साँस ले रही है, उसकी आँखें पलक झपकाएँगी और होंठ अभी बोल पड़ेंगे।
वो शख़्स धीरे-धीरे एक-एक पेंटिंग के पास जाता, अपनी उँगलियों से नक़्श छूता मानो उस लड़की के चेहरे को महसूस कर रहा हो। होंठों पर हल्की-सी खतरनाक मुस्कान और आँखों में सनक की चमक साफ़ झलक रही थी।
“तुम मेरी हो… हमेशा से मेरी। किसी और की आँखों में देखने की हिम्मत मत करना… वरना…”
उसके मन के भीतर यही आवाज़ गूंज रही थी, लेकिन वो जुबान से नहीं कहता, बस पेंटिंग की तरफ़ घूरता रहा।
कुछ देर तक कमरे में खामोशी पसरी रही, सिर्फ़ उसकी साँसों की आवाज़ थी। फिर अचानक उसने गहरी साँस ली, दरवाज़े की ओर बढ़ा और ज़ोर से धड़ाम कर के दरवाज़ा बंद कर बाहर निकल गया।
जैसे अपनी सनक को चारदीवारी में क़ैद कर गया हो… लेकिन असल में वो सनक हर पल उसके साथ थी।
उधर, इशिता गहरी नींद में थी।
अचानक उसके माथे पर पसीने की बूंदें झिलमिलाने लगीं, सांसें तेज़ हो गईं। सपने में उसने देखा—
वो एक अँधेरे कमरे में है… चारों तरफ़ ऊँची-ऊँची दीवारें, जिन पर अजीब-सी परछाइयाँ दौड़ रही थीं।
कमरा बिल्कुल वही था जहाँ अभी-अभी कोई जुनूनी शख्स पेंटिंग बना रहा था।
इशिता डर के मारे दरवाज़े को जोर से धक्का देती है—पर दरवाज़ा हिलता तक नहीं।
उसके दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं। अचानक उसने देखा, कमरे के कोने से एक परछाई धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रही थी।
वो परछाई लंबी, डरावनी… और उसकी ओर झुकती जा रही थी।
इशिता की साँस गले में अटक गई।
वो चिल्लाने की कोशिश करती है, पर आवाज़ तक नहीं निकलती।
जैसे ही वो परछाई उसे छूने वाली होती है—
इशिता जोर से हाँफते हुए, पसीने से भीगी आँखें खोल देती है।
उसका दिल जोर से धड़क रहा था।
उसने कमरे के चारों तरफ़ देखा—सब कुछ सामान्य था।
पर वो अभी भी काँप रही थी।
उसने खुद को कंबल में लपेटते हुए गहरी सांस ली और बुदबुदाई—
“थैंक गॉड… ये सिर्फ़ सपना था।”
इशिता ने गहरी साँस ली, चादर को कसकर अपने कंधों तक खींच लिया और धीरे-धीरे उठकर पानी का गिलास मुंह तक ले आई। एक-एक घूँट उसने जड़क लिया, ठंडी पानी की लहरी गले में उतरते ही कुछ साँसें थमी-सी लगीं।
वो अपने आप से बोली, नहीं… सिर्फ़ सपना था। कोई मुझे क़ैद नहीं कर सकता।
आँखों में अब भी थोड़ी थकान थी, पर होठों पर ज़बरदस्ती मुस्कान खींच ली। ठीक हूँ मैं… बस थोड़ा सा बुखार था।
थोड़ी देर तक उसने खिड़की के पार देख लिया — बाहर सुबह की मुलायम रोशनी फैल रही थी। सब सामान्य लग रहा था। इशिता ने खुद को मनाया, चादर ठीक की, फिर धीरे से फर्श पर पैरों के बल उतरी और बिस्तर पर वापस सिर रखकर आँखे बंद कर ली।
लेकिन जैसे ही उसने कुछ पल चैन की साँस ली, खिड़की के बाहर एक हल्की-सी परछाई दिखी — बिलकुल धीमी, दूर से। परछाई ने एक पल ठहर कर इशिता की खिड़की की तरफ देखा। इशिता ने आँखें फटीं, पर उसने खुद को समझाया — ये फिर से वहम है… और आँखें फिर बंद कर लीं।
पर परछाई ने जाते-जाते एक फुसफुसाहट सी की—बमुश्किल कानों तक पहुँचे बोल, पर इतनी साफ:
“जल्दी ही… सपना सच होगा, मेरी Angel.”
इशिता के सीने में कुछ ठोस-सा उभरा। उसने चिल्लाने की कोशिश की—पर आवाज़ नहीं आई। उसने फिर खिड़की की ओर देखा; पर अब वहाँ खाली अँधेरा था। कोई शख्स, कोई परछाई—कुछ भी साफ़ नज़र नहीं आ रहा था। काली हूडी और केप ने उसे अँधेरे में एक रूप दे दिया था; चेहरे की रेखाएँ अंडर-शैडो में छिपी हुईं थीं।
इशिता ने ज़ोर से अपने आप को हिलाया और बोली, नहीं, यह सब मेरे बुखार की वजह से था। मैं भय नहीं मानूँगी।
थोड़ी देर तक उसने खुद को बैचेन-पन से निजात दिलाने की कोशिश की, फिर पानी की बोतल और एक हल्की-सी मुस्कान के साथ पलंग पर लेट कर आँखें बंद कर ली।
कहीं दूर, गली में—काली हूडी टोपी सिर पर खींचे हुए वही शख़्स धीरे-धीरे चल पड़ा। उसका कदम शांत, उद्देश्य स्पष्ट। उसने झट से कैप की टोपी की बनियान ठीक की, फिर फोन से कुछ टाइप किया—फिर एक छोटा-सा सीटी जैसा साउंड निकालते हुए उसने हवा में हल्का-सा फूँका।
रात के रास्ते सूने थे। उसने कार की तरफ़ बढ़ते हुए अपने चेहरे को और अँधेरे में डुबो दिया। उसके हाथ ने दरवाज़े का हैंडल पकड़ा — कोई परिचय नहीं, कोई शोर नहीं — सिर्फ़ वही पुरानी सीटी की धुन, जो पलक झपकते ही गली में गूँज उठी।
कार में बैठते ही उसने पायलट की तरह इंजन ऑन किया, और वही सीटी-सी धुन उसके होंठों से निकलने लगी — हल्की, कतरन-सी, उसी ताल पर जो उसने रात में पेंटिंग वाले कमरे में सीटी के साथ बजाई थी। रेडियो बजने लगा, साउंड-स्केप में राहत नहीं—बस एक अजीब, चिरकालिक धुन।
वो गा रहा था—आवाज़ ठंडी, पर इरादा गरम:
“तुम मेरी हो जाओगी, मेरी Angel, मैं तुझे हासिल करूँगा,
जो भी दूर ले जाएगा—मैं उसे मिटा दूँगा।
तेरा नाम मेरी साँसों में गुंजेगा, हर राह मेरी तरफ मुड़ेगी,
तू चाहे जितनी दूर भागे—मैं तेरे पीछे उतर जाऊँगा।”
उसका सुर किसी रोमांटिक गाने जैसा नहीं था—यह किसी कसाव, किसी पक्की कसमें जैसा था; हर शब्द के साथ उसकी गाड़ी तेज़ होती गई। शहर की रोशनी उसके सामने बिखरती गई और धुन बार-बार वही सीटी-सा मोटिफ़ दोहराती रही।
वो मुस्कुराया—एक छोटी-सी, रहस्यमयी मुस्कान, जो कानों में कुछ अलग सा संदेश छोड़ जाती थी। उसके पास बैठे सहचालक, जिसे शायद ही कोई देख पाए—वो पूरी तरह से एक shadows में रहकर एक्ट कर रहा था। फिर वह गाड़ी को एक साइड लेन में मोड़ता है, रेड लाइट से पहले ही स्मूदली निकला और शहर की उदास-सी गलियों में घुल गया।
उसने फिर से धीमे से गुनगुनाया—वह गीत, वही शेर, जो किसी पुराने जज्बे से निकल रहा था:
“तुम्हारी सूरत मेरी तिजोरी है, तुम्हारी हँसी मेरी तिलस्मी कुंजी,
मैं जब भी चाहूँ, हर वह दुनिया तुझ पर झुकेगी—मेरी Angel, मेरी।”
और जैसे ही शहर के किनारे वो गुम हुआ, उसकी आवाज़ ठंडी हवा में घुल कर कमज़ोर पड़ गई—पर उसके शब्द वसा-सा कहीं दिल में छू कर रह गये।
वो सीटी की धुन कुछ देर गूँजी, फिर बंद हो गयी। कार का साइलेंस, उसकी सांस की आवाज़, और उसकी उस छोटी-सी मुस्कान की याद… बस वही रह गयी।सुबह की हल्की धूप खिड़की से छनकर इशिता के कमरे में आ रही थी। इस बार अलार्म की ज़रूरत नहीं पड़ी—वो खुद उठ चुकी थी। उसने अलमारी से एक प्यारी-सी पिंक कलर की नेट वाली अनारकली निकाली, जिसमें कमर की झलक हल्की-सी दिखाई दे रही थी। बालों को खुला छोड़ दिया, आँखों में हल्का-सा काजल, होठों पर शाइनी-सी ग्लॉस और गालों पर स्वाभाविक-सी लाली।
ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर उसने आईने में खुद को निहारा, एक फ्लाइंग किस दी और हँसते हुए बोली—
“क्या लग रही है तू आज, इशु… पूरा कॉलेज हिल जाएगा तुझ पर।”
कंधे पर बैग डाला और सीढ़ियाँ उतरने लगी। तभी नीचे से उसका भाई अख़बार मोड़ते हुए बोला—
“अरे वाह… सूरज आज वेस्ट से निकला क्या? हमारी ‘मिर्ची’ खुद से उठ गई, वो भी टाइम पर… और तो और, इतनी तैयार भी हो गई!”
इतना सुनते ही उसकी मम्मी ने उसे हल्का-सा चपत लगाया और बोलीं—
“चुप कर, हर वक्त मेरी बच्ची को परेशान करता रहता है।”
इशिता शरारती अंदाज़ में मम्मी को गले लगाते हुए बोली—
“देखा Mumma… आपका लाडला हमेशा मेरी टाँग खींचता है। मुझे कोई समझता ही नहीं इस घर में।”
मम्मी हँस दीं और उसके बालों को सहलाते हुए बोलीं—
“अच्छा अच्छा, अब रो मत मेरी राजकुमारी। चल, पहले नाश्ता कर ले फिर कॉलेज निकलना।”
भाई पीछे से फिर मुस्कुराया—
“हाँ, पहले नाश्ता कर ले मैडम, फिर मैं छोड़ देता हूँ तुम्हें। वरना फिर से तेरी रिया का फोन आएगा और तू भागते-भागते जूते हाथ में लेकर निकलेगी।”
इशिता ने नाक सिकोड़ते हुए बैग टेबल पर पटका और बोली—
“मिर्ची हूँ मैं… याद रखना।”
उसके इस अंदाज़ पर घर का माहौल हँसी से भर गया।इशिता जैसे ही मम्मी से लिपटी, तभी पीछे से उसके पापा अंदर आते हैं और मज़ाक़िया अंदाज़ में कहते हैं—
“वाह! सारा प्यार अपनी मम्मी को ही दोगी क्या? हमें भी चाहिए थोड़ा।”
इतना सुनते ही इशिता तुरंत भागकर पापा के गले लग जाती है।
“लव यू पापा… मेरी जान पापा पे ही तो टिकी है।”
पापा मुस्कुराकर उसके माथे को चूमते हैं और कहते हैं—
“हम्म… अब बात बनी। वैसे हमारी इशु तो आज सच में बहुत प्यारी लग रही है। कहीं कॉलेज वाले लड़के-लड़कियाँ जल न जाएँ।”
इशिता शरारती अंदाज़ में पापा की कमर में हाथ डालकर बोली—
“जलें तो जलें, मुझे क्या? मैं तो पापा की प्रिंसेस हूँ।”
मम्मी वहीं खड़ी मुस्कुराती रहीं और बोलीं—
“अरे हाँ, प्रिंसेस ही तो है मेरी… देखो इसे, । ज़रा-सा बुखार हो जाए तो पूरी रात जाग-जाग कर देखभाल करनी पड़ती है।”
भाई भी पीछे से हँसते हुए बोला—
“हाँ, और फिर सुबह-सुबह नखरे दिखाती है ये मिर्ची। सबको परेशान करके फिर सीढ़ियों से ऐसे उतरती है जैसे कोई रैंप वॉक कर रही हो।”
इशिता ने आँखें तरेरते हुए कुशन उठाया और भाई पर फेंक दिया—
“बस कर वरना आपके दूध में मिर्च डाल दूँगी।”
सब हँसने लगे।
घर का पूरा माहौल हँसी-ठिठोली से भर गया था। सच ही तो था—इशिता घर की सबसे छोटी और सबसे लाडली थी। मम्मी-पापा और भाई, तीनों ने उसे बड़े नाज़ो से पाला था। शायद इसी वजह से वो थोड़ी नटखट भी थी और सबकी जान भी।
पिछले अध्याय में, आपने देखा कि इशिता एक बुरे सपने के बाद जागी। उसे एक छाया दिखी और एक अस्पष्ट आवाज़ सुनाई दी, जिसने उसे बताया कि उसका सपना जल्द ही सच होगा। उसने डर को दूर करने की कोशिश की। फिर, उसने खुद को तैयार किया। कहीं दूर, काली हुडी पहने एक आदमी ने एक गीत गुनगुनाया, जिसमें इशिता को हासिल करने की बात कही गई थी। आदमी ने कार में सवार होकर शहर छोड़ दिया, एक अजीब-सी धुन बजाते हुए और इशिता की ओर बढ़ते हुए। इशिता ने कॉलेज जाने के लिए तैयार होकर घर वालों के साथ हँसते-खेलते नाश्ता किया।
अब आगे
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डाइनिंग टेबल पर गरमागरम नाश्ते की खुशबू फैली हुई थी। मम्मी ने सबके सामने प्लेट में आलू के परांठे पर मक्खन का टुकड़ा रखा।
मम्मी: "लो सब, गरम-गरम खाओ।"
इशिता ने जैसे ही पहला कौर लिया, उसके मुँह से सीधा निकल पड़ा—
"म्म्म… Mummaaa… I love you! आप दुनिया की बेस्ट शेफ़ हो।"
भाई हँसते हुए बोला—
"तेरे लिए तो रोज़ ही स्पेशल डिश बनती है। कभी हमारे लिए भी बोल दिया कर मम्मी को।"
पापा ने मज़ाक में अख़बार मोड़ते हुए कहा—
"अरे तू क्यों जल रहा है? ये हमारी गुड़िया है, तो स्पेशल ट्रीटमेंट तो मिलेगा ही।"
इशिता ने मुँह फुलाकर कहा—
"बस बस… अब सब मेरे पीछे ही पड़ो। अच्छा नहीं है न… मैं चुपचाप खा रही थी।"
मम्मी मुस्कुराते हुए उसके गाल खींच देती हैं।
"मेरी प्यारी राजकुमारी।"
नाश्ता निपटते ही भाई ने उठकर कहा—
"चल मिर्ची,मैं तुझे ड्रॉप कर देता हू कॉलेज। गाड़ी तैयार है।"
इशिता ने बैग उठाया और पापा-मम्मी को गले लगाकर बोली—
"बाय Mumma… बाय Papa… लव यू! जल्दी लौट आऊँगी।"
पापा ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा—
"ख़्याल रखना… और हाँ, पढ़ाई में मन लगाना। सिर्फ़ मस्ती नहीं।"
इशिता आँख मारते हुए बोली—
"Yes boss!"
भाई ने उसके हाथ से बैग खींच लिया—
"चल, ज़्यादा फ़िल्मी डायलॉग मत मार, नहीं तो कॉलेज लेट हो जाएगी।"
दोनों हँसते-ठिठोलते गाड़ी तक पहुँचे। इशिता सीट पर बैठी खिड़की से बाहर देख रही थी। हवा उसके खुले बालों को उड़ा रही थी। उसके मासूम चेहरे पर उत्साह भी था और एक अजीब-सी बेचैनी भी… जैसे उसे खुद पता न हो कि आज का दिन उसके लिए कितना अलग होने वाला है।
रास्ते में ट्रैफ़िक फँस गया था। गाड़ियाँ स्लो—स्लो चल रही थीं, हॉर्न का शोर और लोगों की बेतरह जल्दबाज़ी का मिक्सचर। रोहन गाड़ी में थोड़ी-थपकी पैर रख कर बैठा था और इशिता खिड़की से बाहर झांक रही थी।
इसी बीच दाएँ तरफ़ से एक काला SUV आ कर हमारी कार के पास रुक गया। बाहर से देखने पर तो बस काली बॉडी, टिंटेड शीशे—कुछ भी साफ़ नज़र नहीं आ रहा था। पर जैसे ही इशिता ने नज़र घुमाई, उसने महसूस किया कि SUV के अंदर से कोई उसे घूर रहा है।
बाहर से तो जैसे खाली सीटें हों, पर फिर भी उस नज़रों में एक अजीब-सी पकड़ थी — बिलकुल ठंडी और लगातार। इशिता की उड़ती सांसें थम-सी गईं। उसका दिल अचानक तेज़ धड़कने लगा।
टीवी या फिल्म वाली बात न थी — वो केवल महसूस कर रही थी कि कोई उसी की तरफ़ देख रहा है, सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी को। उसकी आँखें SUV की तरफ़ जकड़ी रहीं। हाथ काँपने लगे।
रोहन ने देखा कि इशिता की निगाहें अचानक अक्सर किसी एक जगह पर टिक जाती हैं। उसने दाएँ तरफ़ देखा और SUV को नज़र में आते ही बेमन से मुस्कुरा कर बोला—
“क्या हुआ क्या सोच रही है तो फिर से कोई मस्ती करने के बारे में तो नहीं सोच रही ।
इशिता ने शब्दों को दबाते हुए धीरे से कहा—
“कुछ नहीं… बस… मुझे लगा कोई… बस कुछ ख्याल ही था।”
पर अंदर से उसके होंठों तक एक ठंडी-सी बेचैनी पहुँच चुकी थी। SUV के अंदर जो चेहरे की परछाई दिख रही थी — वही चेहरा उसकी यादों में बार-बार लौट रहा था।
तभी ट्रैफ़िक खुला और गाड़ियाँ धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगीं। SUV भी रुक के पीछे निकल गई, पर उसकी चाल ऐसी थी कि जैसे वह जानबूझकर इंशिता को आख़िरी बार देख रहा हो। इशिता की नज़रें उसने पीछा करते हुए देखीं—और SUV की अंदर की परछाई ने एक बार फिर धीरे-धीरे सिर हिलाकर ऐसा इशारा किया मानो कह रहा हो — “जल्दी ही मिलेंगे, Angel.”
इशिता के होठों से एक आह सी निकली। उसने खुद को क़ायम रखा, पर अंदर से उसके पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई थी।
रोहन ने उसकी कलाई थामा और थोड़ा तेज़ आवाज़ में बोला—
“कुछ बोल ना… अगर कुछ लगे तो अभी कह दे, मैं वहीं रोक दूँगा।”
इशिता ने झटक कर सिर हिलाया—“नहीं, नहीं… कुछ नहीं भैया। बस… चलो ना।”
लेकिन दिल के किसी कोने में अब एक बूंद सी दरार आ चुकी थी — उसने महसूस कर लिया था कि कोई नज़रें उसे लगातार देख रही हैं, और वो नज़रें सिर्फ़ दोस्ती नहीं, कुछ और थीं।
ट्रैफ़िक क्लियर होते ही रोहन ने गाड़ी थोड़ी स्पीड में बढ़ाई। इशिता ने खिड़की से बाहर देखा, SUV कहीं भी नज़र नहीं आ रही थी। उसने गहरी सांस ली और खुद को समझाने की कोशिश की कि शायद उसने ज़्यादा सोच लिया था।
पर उसे क्या पता—वो काली SUV पीछे कहीं ट्रैफ़िक के बीच से निकलकर अब उनकी गाड़ी को ही फॉलो कर रही थी। न बहुत पास, न बहुत दूर। इतनी दूरी पर कि किसी को शक न हो, लेकिन नज़रें लगातार उसी कार पर टिकी रहें।
SUV के शीशे के पीछे बैठा शख़्स बिल्कुल चुप था। उसकी उँगलियाँ स्टेयरिंग पर हल्के-हल्के बज रही थीं, पर निगाहें टस से मस नहीं हो रही थीं। वो सिर्फ़ इशिता को देख रहा था—मानो हर पल उसकी साँसों पर नज़र रख रहा हो।
उधर रोहन फुर्सत से रेडियो पर गाना बदल रहा था और कह रहा था—
“देखो, आज टाइम से पहुँच जाएंगे।
इशिता ने हल्की मुस्कान ज़रूर दी, पर उसका मन अब भी बेचैन था। उसे लग रहा था जैसे कोई उसकी परछाई को पकड़ कर पीछे से घूर रहा है। उसने अनजाने में पर्स की स्ट्रैप और कस कर पकड़ ली।
लेकिन वो कुछ बोली नहीं।
रोहन ने भी गौर नहीं किया।
दोनों भाई-बहन हँसते-बतियाते कॉलेज की तरफ बढ़ते रहे…
और पीछे, उस काली SUV की मौजूदगी सन्नाटे में ढकी रही।
पिछले अध्याय में, आपने देखा कि इशिता को एक बुरा सपना आता है और एक रहस्यमय आवाज़ सुनाई देती है। वह डर को दूर करने की कोशिश करती है और कॉलेज जाने के लिए तैयार होती है। काली हुडी पहने एक आदमी उसे हासिल करने के लिए एक गीत गाता है और शहर छोड़ देता है। इशिता अपने परिवार के साथ नाश्ता करती है और कॉलेज के लिए निकलती है।
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SUV के शीशे के पीछे बैठे उस शख़्स की आँखें अजीब चमक रही थीं। वो लगातार इशिता की झलक देखे जा रहा था, मानो उसकी हर हरकत को अपने ज़हन में कैद कर लेना चाहता हो।
उसके होंठों पर धीमी, पागलपन भरी हँसी तैर गई—
"मेरी एंजल… इतनी मासूम… इतनी नाज़ुक… तुम्हें तो खुदा ने सिर्फ़ मेरे लिए ही बनाया है। तुम जहाँ जाओगी, मैं तुम्हारे पीछे-पीछे रहूँगा। तुम मुस्कुराओगी तो सिर्फ़ मेरे लिए, और रोओगी… तो भी सिर्फ़ मेरी वजह से।"
उसने गाड़ी की स्पीड थोड़ी कम की, ताकि रोहन की कार से ज़्यादा दूरी न बढ़ जाए। उसकी उँगलियाँ स्टेयरिंग पर नाच रही थीं, मानो किसी अनजानी धुन पर ताल दे रही हों।
"तुम्हें लगता है ये बस तुम्हारा डर है, तुम्हारा वहम है… पर नहीं इशिता, ये तो हक़ीक़त है। तुम्हें कोई और छू भी नहीं सकता, देख भी नहीं सकता। जल्द ही तुम्हें मैं अपनी दुनिया में खींच लूँगा… और फिर वहाँ से बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं होगा।"
SUV के अंदर अंधेरा और खामोशी थी। सिर्फ़ उसकी आवाज़, उसकी साँसें और उसके पागलपन से भरे ख्याल गूंज रहे थे।
बाहर, रोहन और इशिता अब भी हँसते-बोलते कॉलेज की ओर जा रहे थे, उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि उनकी हर पल की हँसी किसी के दिल में आग बनकर जल रही थी।
गेट पर पार्क करते ही रोहन ने इंजन बंद किया। कॉलेज की सुबह की हल्की-हल्की हल्की सर्दी हवा थी और गेट के बाहर छात्रों की हलचल। इशिता खिड़की से बाहर झाँकते हुए गहरी सांस ली—ठीक वही सांस जो किसी नई शुरुआत से पहले ली जाती है।
जैसे ही वे गेट पर उतरे, रिया पहले से ही वहाँ खड़ी झल्ला रही थी—हाथ हवा में लहराती हुई।
“इशु! यहाँ आ गईँ आखिर!” वह दौड़ते हुए आई और इशिता को जोर से गले लगा लिया।
इशिता ने मुस्कुराकर कहा, “रूको रूको—हाय! तू तो बिलकुल फ़िल्मी एंट्री दे रही थी।”
फिर दोनों जाके अपनी क्लास में बैठ गए ।
जैसे ही छात्रों ने अपनी सीटें संभालीं, प्रोफेसर ने क्लास का ध्यान खींचा।
“सभी शांत हो जाएँ, लेक्चर शुरू होने वाला है।”
इशिता और रिया धीरे-धीरे अपनी नोटबुक खोलकर बैठ गईं। इशिता का ध्यान अब पढ़ाई में लगना शुरू हो गया था, पर उसके मन में अभी भी सुबह की हल्की बेचैनी बनी हुई थी।
प्रोफेसर ने अपने परिचय के साथ क्लास को पढ़ाई की दिशा में ले जाना शुरू किया। विषय आसान था, लेकिन प्रोफेसर का अंदाज़ इतना आकर्षक था कि इशिता और बाकी छात्र ध्यान से सुनने लगे।
चारों तरफ़ हल्की-हल्की सरसराहट थी—कुछ लोग नोट्स ले रहे थे, कुछ अपने मोबाइल में लेक्चर से जुड़े नोट्स चेक कर रहे थे। इशिता ने खुद को पूरी तरह पढ़ाई में झोंक दिया, और रिया भी उसकी बगल में नोट्स लिखते हुए मुस्कुरा रही थी।
कुछ देर बाद प्रोफेसर ने क्लास में प्रश्न पूछना शुरू किया। इशिता ने ध्यान से उत्तर दिए, उसकी स्मार्ट और स्पष्ट बातों से रिया की आँखों में गर्व झलक रहा था।
बाहर, काले SUV की परछाई कॉलेज से दूर हो चुकी थी। इशिता को अभी भी कुछ समझ नहीं आया था, और रोहन ऑफिस में अपनी चिंता में खोया था। क्लास में हर चीज़ सामान्य लग रही थी—पर किसी को नहीं पता था कि ये सामान्य सुबह किसी बड़ी कहानी की शुरुआत भर थी।
लेक्चर का समय धीरे-धीरे बीत रहा था, और इशिता खुद को शांत महसूस कर रही थी। पढ़ाई में डूबते हुए वह भूल गई थी कि सुबह उसकी नजरें और दिल कहाँ तक बेचैन थे।
उधर रोहन का ऑफिस
आज ऑफिस में माहौल बिल्कुल अलग था। बड़ी मीटिंग थी—एक बड़ी डील साइन होने वाली थी और मीटिंग हॉल में हर कोई अपनी जगह पर बैठा हुआ था।
एवाना फिर से अपनी कॉन्फिडेंट और बोल्ड अदा में हॉल में आई। उसकी चाल, उसके लुक्स—सब कुछ आत्मविश्वास से भरा हुआ था।
“आज सबको समझना पड़ेगा कि काम केवल दिखावा नहीं, परिणाम से होता है।” उसने अंदर आते ही हल्का सा मुस्कुराया।
रोहन भी आज पूरी तरह हैंडसम लग रहा था—सूट में, जेंटलमैन जैसा, बाल जेल से सेट किए हुए। उसकी मुस्कान और आंखों में हल्की चमक—सारी लड़कियों की निगाहें बस उसी पर टिक गईं।
मीटिंग स्टार्ट हुई। हर कोई अपनी प्रेजेंटेशन दे रहा था। एक के बाद एक स्लाइड दिख रही थी। लेकिन एवाना किसी की भी प्रेजेंटेशन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थी। उसने हर पॉइंट पर सवाल उठाए, सुधार सुझाए। सबके चेहरे पर हल्की-हल्की चिंता, पर रोहन के चेहरे पर आत्मविश्वास।
फिर रोहन की बारी आई। उसने अपनी प्रेजेंटेशन शुरू की। स्लाइडें क्लियर थीं, डेटा परफेक्ट था, और रोहन की बातों का अंदाज़ ऐसा कि हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया।
एवाना की निगाहें लगातार उसकी तरफ़ टिक गई थीं। उसका आत्मविश्वास, उसकी समझदारी, उसकी स्मार्टनेस—सब कुछ उसे आकर्षित कर रहा था।
सारी लड़कियां भी धीरे-धीरे चुपचाप उसकी प्रेजेंटेशन देख रही थीं।
“वो… रोहन है ही स्मार्ट,” किसी ने धीरे से कहा।
प्रेजेंटेशन खत्म होते ही रोहन ने मुस्कुराते हुए कहा,
“It's over।”
मीटिंग हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। सभी खुश थे, लेकिन सबकी निगाहें एवाना की तरफ़ थीं—देखने के लिए कि उसने कैसे रिएक्ट किया।
एवाना ने थोड़ी देर चुप्पी साधी, फिर उसने कहा—
“Impressive। आज से तुम इस प्रोजेक्ट के लीड हो और मेरे Assistant Manager बन गए हो।”
हॉल में हर किसी का मुंह खुला का खुला रह गया। लड़के जल रहे थे—कैसे एक ही दिन में रोहन ने मैनेजर को इतना प्रभावित कर दिया!
रोहन ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया।
“Thank you, ma’am,” उसने विनम्रता और आत्मविश्वास के साथ कहा।
एवाना ने उसकी तरफ़ देखा, उसकी आँखों में हल्की चमक थी—कुछ कह रही थी, लेकिन शब्दों में नहीं। रोहन की स्माइल, उसका आत्मविश्वास, और उसकी स्मार्टनेस—सभी ने देखा। आज का दिन ऑफिस में हमेशा याद रखा जाएगा।
पिछले अध्याय में, आपने देखा कि इशिता को एक बुरा सपना आता है, उसके बाद वह कॉलेज के लिए तैयार होती है, और एक रहस्यमय व्यक्ति उसका पीछा करता है। इशिता कॉलेज पहुँचती है और अपनी सहेली रिया और प्रोफेसर के साथ क्लास में बैठ जाती है। साथ ही, रोहन ऑफिस में है और मीटिंग के लिए तैयार है।
अब आगे
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कॉलेज की छुट्टी हो चुकी थी। सारे स्टूडेंट्स अपने-अपने ग्रुप्स में हँसते-बोलते गेट से बाहर निकल रहे थे। रिया और ईशिता भी गेट के पास खड़ी थीं, बातें करते हुए।
तभी अचानक एक चमचमाती रेड स्पोर्ट्स कार गेट के सामने आकर ज़ोर से ब्रेक मारती है। आवाज़ इतनी तेज़ थी कि आसपास सबकी नज़र वहीं टिक गई।
रिया चौंककर बोली—
“अबे ओए! क्या बदतमीज़ी है ये?”
कार का दरवाज़ा खुला और बाहर निकला एक लड़का, जिसने हेल्मेट पहन रखा था। लंबा, स्मार्ट और बिल्कुल डैशिंग बॉडी लैंग्वेज।
हेल्मेट उतारते ही रिया की आँखें चमक उठीं।
“अरे... तू? कब आया?”
लेकिन उस लड़के की नज़रें तो बस एक जगह अटकी हुई थीं—ईशिता पर। उसकी नज़रें इतनी गहरी और लगातार थीं कि ईशिता घबराकर पल भर के लिए ज़मीन देखने लगी।
रिया तुरंत हँसते हुए बोली—
“अब मेरी दोस्त को ताड़ना ख़त्म हो गया हो तो बता, यहाँ कैसे?”
लड़के ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
“मेरी पढ़ाई पूरी हो गई है। अब डैड चाहते हैं कि यहीं उनके साथ बिज़नेस स्टार्ट करूँ। और वैसे... तूने मेरी इस अप्सरा से तो मिलाया ही नहीं। चल, मैं खुद मिल लेता हूँ।”
उसने हाथ आगे बढ़ाया और कहा—
“Hi, मेरा नाम शिवम जिंदल है… और आपका?”
ईशिता थोड़ी हिचकिचाई। उसके गालों पर हल्की सी लाली आ गई। धीरे से हाथ मिलाते हुए बोली—
“मेरा नाम ईशिता मिश्रा है।”
शिवम ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
“Nice name… जैसी सूरत वैसा नाम।”
कुछ पलों के लिए वो उसकी आवाज़ और आँखों में ही खो गया था। उसकी नज़रें इतनी गहरी थीं कि जैसे दुनिया थम गई हो।
इतने में रिया ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा—
“ओए, तूने तो मेरी दोस्त के साथ भी फ्लर्टिंग स्टार्ट कर दी? बताऊं अभी तुझे…!”
शिवम ने तुरंत हाथ जोड़ लिए और हँसते हुए बोला—
“गलत मत समझ पगली! बस… first impression अच्छा होना चाहिए न।”
ईशिता चुपचाप खड़ी थी, उसकी धड़कनें थोड़ी तेज़ थीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्यों इस नए चेहरे की नज़रें इतनी गहरी और अजीब लग रही थीं।
मगर कोई था जिसकी नजर उनपे थी वो इशिता को उसके साथ हंसते मुस्कुराते देख gusse से जल रहा था ।काली SUV का शीशा थोड़ा नीचे सरकता है। अंदर बैठा शख्स अपनी ठंडी, पैनी आँखों से बस ईशिता को देख रहा था। उसकी उंगलियाँ बार-बार स्टीयरिंग पर थाप दे रही थीं जैसे कोई धुन बज रही हो। होंठों पर खतरनाक, आधी मुस्कान…
धीरे से बुदबुदाया—
"Angel… आज फिर किसी और से हाथ मिलाया तुमने।
किसी और से बात की तुमने।
ये हक… सिर्फ मेरा है। सिर्फ मेरा!"
उसकी आवाज़ में जुनून था, जैसे हर शब्द कसम की तरह हो।
"तुम समझती क्यों नहीं?
तुम्हारी हँसी… तुम्हारी मासूमियत… तुम्हारी साँसें तक मेरी हैं।
कभी किसी और की ओर देखना तो छोड़ दो,
अगर तुम्हारे आस-पास भी कोई परिंदा फड़फड़ाया…
तो उसकी साँसे तक छीन लूँगा।"
पर इसकी सजा तो तुम्हे मिलनी चाहिए न वरना तुम कैसे समझोगी गलतियां जब सुधारोगी।
उसकी आवाज में अलग सा जुनून था ।
उसने पीछे की सीट पर रखी एक अधूरी ईशिता की स्केच उठाई, उसे हाथों से सहलाते हुए बोला—
"तुम सोचती हो ये सब यूँही है?
नहीं Angel… ये खेल नहीं, जुनून है।
जल्द ही तुम्हें एहसास होगा…
तुम्हारा होना अब मेरे बिना मुमकिन नहीं।"
SUV स्टार्ट हुई। इंजन की आवाज़ गूंजते ही वीर ने आख़िरी बार खिड़की से ईशिता को देखा।
उसकी आँखों में वो पागलपन था जो किसी भी हद तक जा सकता था।
धीरे से होंठों से सरकते शब्द—
"Tum meri ho, Angel… aur main tumhe duniya ke saare rishton se छीन लूंगा… chahe tumhe ये manzoor ho ya na ho."
रिया के शिवम भोट दिनों बाद मिल रहे थे इसलिए बाते कर रहे थे इशिता बस दोनों को देख रही थी ।
रिया ने बोला वैसे घरवालों को पता है तू यहां आया हुआ है । शिवम ने बोला नहीं मैं उन्हें सरप्राइस देने वाला हूं ।
फिर शिवम ने कहा—
“चलो, घर चलते हैं। मुझे यकीन है… सब अचानक मुझे देखकर surprise हो जाएंगे।
और वैसे भी, सबसे पहले तुम्हारे पास आया हूँ।”
थोड़ी देर बाद शिवम ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
“If you don’t, I’ll drop you.”
ईशिता थोड़ी देर मना करती रही, लेकिन फिर रिया के जोर देने पर सीट पर बैठ गई।
ईशिता ने अपनी सीट बेल्ट कसते हुए मन ही मन सोचा—
पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कुछ बुरा होने वाला है उसके मन में घबराहट हो रही थी ।
सड़क पर कार धीरे-धीरे चल रही थी। शिवम की नज़रें पीछे के मिरर में लगातार ईशिता पर टिक रही थीं।
रिया समझ रही थी उसका भाई पहली नजर में इशिता का दीवाना हो गया है ।
वो ये सोच के मन ही मन खुश हो रही थी ।
कुछ ही देर में वे ईशिता के घर पहुँच गए। शिवम ने हल्की मुस्कान दी और कहा—
“देखा, safe और sound।”
ईशिता कार से उतरती है ओर thank यू बोलती है ।
शिवम बोलता है your welcome ओर मुस्कुराता है फिर कार स्टार्ट करता है और धीरे-धीरे वहाँ से चला जाता है।
ईशिता घर पहुँचते ही अपनी बैग रखती है और गहरी सांस लेती हुई कहती है—
“मम्मा, पानी ला दो यार… आज बहुत थक गई हूँ।”
उसकी माँ तुरंत हंसते हुए पानी लेकर आती हैं।
“अरे मेरी बिटिया, दिन कैसा गया?”
ईशिता ने थोड़ी मुस्कान दी और बैठते हुए कहा—
“अच्छा तो गया मम्मा, पर बहुत लंबा और थकाने वाला था।”
माँ उसकी थकान देखकर कहती हैं—
“चलो, थोड़ा आराम कर लो। अभी तुम्हारा खाना भी तैयार है।”
ईशिता पानी पीते हुए सोचती है—
"आज का दिन… काफी मस्त और नया था।
क्यों लगता है कोई हर पल मुझे देख रहा है ।
थोड़ी देर पानी पीकर उसने अपनी बैग रखी और धीरे-धीरे कमरे की तरफ चली गई,
माँ पीछे से मुस्कुराती हुई कहती हैं—
“चलो मेरी परी, आराम कर लो।