**कहानी की नायिका है मासूम और ख़ूबसूरत Ishita. उसके चाँद जैसे चेहरे पर सजी हेज़ल ग्रीन आँखें और होंठों पर छोटा-सा तिल उसे भीड़ में सबसे अलग और अनोखा बनाते हैं। Ishita का दिल सपनों और छोटी-छोटी खुशियों से भरा है। उसे हँसना, दोस्तों के साथ वक़्त बिताना... **कहानी की नायिका है मासूम और ख़ूबसूरत Ishita. उसके चाँद जैसे चेहरे पर सजी हेज़ल ग्रीन आँखें और होंठों पर छोटा-सा तिल उसे भीड़ में सबसे अलग और अनोखा बनाते हैं। Ishita का दिल सपनों और छोटी-छोटी खुशियों से भरा है। उसे हँसना, दोस्तों के साथ वक़्त बिताना और अपने भाई Rohan की शरारतों से लड़ना–झगड़ना बहुत पसंद है। उसकी ज़िंदगी उतनी ही सामान्य है जितनी किसी और लड़की की… पर शायद किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। उसकी हर मुस्कान पर नज़रें गड़ाए बैठा है एक शख़्स—reyansh singh rathod . 6 फीट से भी लंबा, गहरी आँखों में बसी अंधेरी खामोशी और चेहरे पर ऐसा रौब कि सामने वाला झुक जाए। Veer को पाने की सनक किसी दीवानगी से कम नहीं। वह Ishita की हर सांस, हर धड़कन, हर नज़र पर अपना हक़ चाहता है। उसकी मोहब्बत इश्क़ से ज़्यादा जुनून है, और जुनून जब हद पार करता है तो इश्क़ क़ैद बन जाता है। इस कहानी में मासूमियत और सनक का टकराव होगा… और ये टकराव सिर्फ़ Ishita की ज़िंदगी ही नहीं, उसकी रूह तक बदल देगा।**
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सुबह की सुनहरी धूप खिड़की से छनकर कमरे में उतर रही थी। हल्की किरणें बिस्तर पर सोई उस नाज़ुक-सी लड़की के चेहरे पर पड़ रही थीं। गुलाबी होंठ, लंबी पलकें और मासूमियत से भरा चेहरा… नींद में भी वो इतनी प्यारी लग रही थी कि लगता था जैसे कोई गुड़िया सपनों में खोई हो।
नीचे से माँ की आवाज़ गूंजी—
“Ishu… उठ जा बेटा, आज तेरे कॉलेज का पहला दिन है। कब तक सोएगी?”
लेकिन ऊपर कमरे में कोई हलचल न हुई।
माँ ने फिर आवाज़ दी—
“रोहन… बेटा, जा ज़रा अपनी बहन को जगा दे, कब तक सोती रहेगी।”
सीढ़ियों पर चढ़ते हुए भाई ने शरारती मुस्कान के साथ कहा—
“ठीक है मम्मा… मैं जगाता हूँ इसे।”
रोहन के दिमाग़ में शैतानी सूझी। वो धीरे से बहन के कमरे में घुसा, मोबाइल स्पीकर से ज़ोर-ज़ोर का गाना कनेक्ट किया और कान के पास बजा दिया।
“धड़ाम!”
इशिता हड़बड़ा कर उठ बैठी, नींद से बोझिल आँखें मलते हुए चिल्लाई—
“भैया! ये क्या है…? आप सब लोग मेरी नींद के दुश्मन हो!”
रोहन हंसते-हंसते लोटपोट हो गया।
“अरे पगली, कॉलेज का पहला दिन है… अब तो उठ जा राजकुमारी।”
इशिता गुस्से और नखरे से भरी चेहरा बना कर तकिये से अपने भाई को मारने लगी।
लेकिन सच ये था कि इशिता जितनी मासूम थी उतनी ही खूबसूरत भी।
उसकी हेज़ल ग्रीन आँखें किसी को भी रोक कर देखने पर मजबूर कर देती थीं। होंठों के किनारे एक छोटा-सा तिल उसे और भी ख़ास बनाता था। गोरी-चिट्टी त्वचा, नाज़ुक हाथ, और इतनी कोमल कि लगता था जैसे कोई उसे छू भी ले तो लाल हो जाए।
इशिता सच में ऐसी थी… जिसे देखकर कोई भी पागल हो सकता था।
शायद… कोई पहले ही हो चुका था।
रोहन मुस्कुराते हुए बोला—
“चल मेरी मिर्ची, अब सोने का नाटक बंद कर। उठ और चमक धमक कर तैयार हो जा।”
इशिता मुँह बना कर बोली—
“आपको तो बस मुझे सताने में मज़ा आता है।”
फिर धीरे-धीरे उठकर आईने में देखने लगी। धूप अब उसके चेहरे को और भी चमका रही थी… और शायद यहीं से उसकी नई कहानी शुरू होने वाली थी।
इशिता धीरे-धीरे उठकर तैयार होने के लिए बाथरूम में चली गई।
कुछ देर बाद बाहर आई तो उसके रूप का नज़ारा ही अलग था।
उसने लाल रंग की नेट की लॉन्ग कुर्ती पहनी थी, जिसके कपड़े से उसकी पतली-सी कमर हल्की झलक रही थी। नीचे जीन्स, कानों में छोटे झुमके, होंठों पर हल्की-सी लिप बाम की चमक और आँखों में थोड़ा-सा काजल… बस इतना ही काफी था। उसे मेकअप की ज़रूरत ही कहाँ थी।
आईने के सामने खड़ी होकर खुद को देखती हुई बोली—
“हाय… कितनी सुंदर लग रही हूँ मैं!”
फिर शरारती अंदाज़ में खुद को ही फ्लाइंग किस दे दी और हँस दी।
बस्ता उठाकर जब नीचे आई तो रोहन ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और मज़ाक उड़ाते हुए बोला—
“आज तो मेरी मिर्ची सच में मिर्ची लग रही है… वैसे तू कुछ भी पहन ले, लगेगी तो हमेशा बंदरिया ही।”
इशिता ने मुँह फुलाकर कहा—
“देखा ना मम्मा… भईया फिर से मुझे चिढ़ा रहे हैं।”
इतने में उसकी माँ उर्वशी जी बाहर आईं, हल्की-सी साड़ी पहने, चेहरे पर ममता भरी मुस्कान। उन्होंने रोहन को कान पकड़ते हुए कहा—
“बेटा, क्यों सारी दुनिया का काम छोड़कर अपनी बहन को ही तंग करता रहता है?”
रोहन हँसते हुए बोला—
“अरे मम्मा, यही तो मेरा काम है।”
तभी उसके पापा, सत्याम मिश्रा, अख़बार हाथ में लिए बाहर आए और जैसे ही बेटी को देखा, उनकी आँखें चमक उठीं।
“अरे मेरी बिटिया रानी तो आज बिल्कुल परी लग रही है।”
इशिता दौड़कर पापा से लिपट गई और मासूमियत से मुस्कुराई—
“आप ही सबसे अच्छे हो पापा…”
उस पल घर का माहौल हंसी-खुशी से भर गया।
लेकिन इशिता को कहाँ पता था कि घर के इस सुरक्षित दायरे से बाहर उसकी ज़िंदगी में कोई खामोश साया पहले से मौजूद है, जो आज से उसकी हर साँस पर नज़र रखने वाला था…
रोहन दर्द से चिल्लाया—
“अरे मम्मा छोड़ो ना कान, ऊँच… दर्द हो रहा है!”
सत्याम जी हँसते हुए बोले—
“इतना बड़ा हो गया है, फिर भी बहन को परेशान करता है… यही तेरी सज़ा है।”
ये सुनकर इशिता खिलखिला कर हँस पड़ी और पापा भी उसके साथ हँसने लगे। दोनों बाप–बेटी की हँसी देख उर्वशी जी भी मुस्कुराए बिना न रह पाईं।
उर्वशी जी ने आखिरकार उसका कान छोड़ते हुए कहा—
“वैसे आज तेरा इंटरव्यू नहीं है?”
रोहन ने अकड़ते हुए बालों में हाथ फेरा और थोड़ा attitude के साथ बोला—
“हाँ मम्मा, Asia की top company VSR में है… tension मत लो, हो ही जाएगा।”
जैसे ही ‘VSR’ का नाम इशिता के कानों में पड़ा, उसका चेहरा एकदम गंभीर हो गया। दिल की धड़कन जैसे थोड़ी तेज़ हो गई। उसे अचानक एक अजीब-सी बेचैनी ने घेर लिया…
पर क्यों?
वो खुद भी समझ नहीं पा रही थी।
रोहन ने हाथ हिलाते हुए कहा—
“अरे कहां खो गई मिर्ची? चल, नाश्ता करते हैं। मम्मा ने तेरे फेवरेट आलू के परांठे बनाए हैं।”
कहते ही उसने इशिता का हाथ पकड़ा और खींचकर डायनिंग टेबल पर बिठा दिया।
टेबल पर गर्मागर्म परांठों की खुशबू फैल गई, जिससे इशिता की मासूम आँखों में चमक आ गई।
“वाह मम्मा… आज तो मज़ा आ जाएगा।” उसने मुस्कुराते हुए कहा और पहली बाइट मुँह में डाल ली।
मासूम घर, हँसी–मज़ाक, प्यार से भरा माहौल…
लेकिन शायद इशिता को नहीं पता था कि उसके घर के बाहर कोई और भी है, जो उसकी इस हँसी को अपने पागलपन की जकड़ में लेने के लिए तैयार बैठा है।
नाश्ता खत्म होते ही रोहन ने जल्दी से कार की चाबी उठाई।
“चल इशु, ready हो जा… नहीं तो first day pe ही late हो जाएगी।”
इशिता ने अपने बैग का zip check किया और धीरे-धीरे पीछे की सीट पर बैठ गई।
रोहन ड्राइविंग सीट पर था, सामने उसके पापा–मम्मा खड़े मुस्कुरा रहे थे।
गाड़ी स्टार्ट होते ही घर से बाहर निकली…
लेकिन किसी ने नहीं देखा कि उसी मोड़ पर, पेड़ की छाया में खड़ा कोई अनजान साया उनकी हर हरकत देख रहा था।
उसकी नज़रें सिर्फ़ इशिता पर थीं।
वो गाड़ी की खिड़की से झाँकती हुई उसकी मासूम आँखों और मुस्कुराते होंठों को देख रहा था।
जैसे ही गाड़ी आगे बढ़ी… उसकी आँखों की पुतलियाँ हल्की-सी सिकुड़ गईं।
“अब से… हर कदम पर, हर पल… मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
उसने बुदबुदाते हुए अपने होंठों पर हल्की मुस्कान रखी और पीछे-पीछे चल पड़ा।
कुछ देर बाद गाड़ी कॉलेज के गेट पर रुकी।
इशिता ने पहली बार अपने नए कॉलेज को देखा—
ऊँची बिल्डिंग, हरे-भरे लॉन और चारों तरफ़ चहल-पहल।
उसकी आँखें चमक उठीं, जैसे कोई बच्ची पहली बार मेले में पहुँची हो।
“वाह… बिल्कुल फिल्मों जैसा लग रहा है…”
उसने खिड़की से बाहर झाँकते हुए कहा।
पर उसे कहाँ पता था कि ये film अब उसकी ज़िंदगी का सबसे खतरनाक chapter लिखने वाली थी।
राेहन ने इशु को कॉलेज के गेट पर उतारा।
“ऑल द बेस्ट, इंटरव्यू अच्छा से देना,” इशु मुस्कुराकर बोली।
“थैंक यू, छोटी… और तुम भी ध्यान रखना। पहली बार कॉलेज जा रही हो न… किसी से ज़्यादा बातें मत करना,” रोहन ने हल्की सख़्त आवाज़ में कहा।
इशु बस मुस्कुरा कर सिर हिला देती है।
रोहन गाड़ी घुमाकर चला जाता है, और इशु वहीं खड़ी होकर कॉलेज के ऊँचे गेट्स और सुंदर बिल्डिंग्स को देखती रह जाती है। उसकी आँखों में चमक आ जाती है—जैसे कोई छोटी-सी परी पहली बार अपने पंख फैलाकर नई दुनिया को देखने जा रही हो।
वो धीरे-धीरे कदम बढ़ाती है, लेकिन…
दूसरी ओर सड़क पर खड़ी एक काली कार का शीशा थोड़ा-सा नीचे खिसकता है। किसी की निगाहें उसकी हर हरकत को चुपचाप कैद कर रही थीं।
वो आदमी मुस्कुराता है—
मेरी मासूम angel …”
उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी।
उसकी चुप्पी, उसका साया, अब इशु की हर राह का साथी बनने वाला था…
जैसे ही इशिता कॉरिडोर से क्लास की तरफ बढ़ रही थी, अचानक सामने से एक लड़की आकर उससे टकरा गई।
लड़की (हड़बड़ाकर): "Oh sorry sorry! Wo kya h na mere पीछे पागल कुत्ता पड़ गया था, भागते-भागते तुझसे टकरा गई।"
इशिता हँस पड़ी, "कोई बात नहीं… तुम्हारा नाम?"
लड़की (हाथ बढ़ाते हुए): "Riya Purohit. और तुम new admission?"
इशिता हल्की मुस्कान के साथ, "Haan… Ishita Mishra. Art student."
रिया (खुश होकर): "Are wah! Same class… nice to meet you!"
फिर अचानक शरारत से रिया ने इशिता के गाल को pinch कर दिया, रिया हँसते-हँसते बोली –
“तू तो बहुत क्यूट है यार…”
इशा ने बाल झटकते हुए हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया –
“हाँ, ये तो मुझे पता है… मेरी तारीफ़ तो रोज़ सुनने की आदत है।”
फिर मज़ाकिया अंदाज़ में रिया की तरफ़ देखते हुए बोली –
“लेकिन सच कहूँ, तू भी कम सुंदर नहीं है… पहली बार किसी ने मुझे इतनी सीधी-सादी तारीफ़ दी है।”
रिया ने नाटकीय अंदाज़ में हाथ जोड़कर कहा –
“अरे वाह! मतलब हम दोनों ही सुंदरियाँ एक ही क्लास में… अब तो कॉलेज के लड़कों का बुरा हाल होने वाला है।”
दोनों ज़ोर से हँस पड़ीं, और उसी पल उनकी दोस्ती की नींव रखी गई।
इशिता और रिया, दोनों कॉलेज के अंदर नई-नई दुनिया को बड़ी उत्सुकता से देख रही थीं। अभी-अभी एडमिशन लिया था तो हर चीज़ उनके लिए एकदम नई थी। दोनों आपस में हंसते-खिलखिलाते हुए क्लास ढूँढ ही रही थीं कि तभी अचानक एक लड़का सामने से आ गया।
“हाय मिस, आप लोग कुछ ढूँढ रही हैं क्या?” उस लड़के की नज़रें सीधे इशिता पर ही टिक गईं। उसकी आँखों में वही चमक थी जो अक्सर लड़के पहली बार किसी खूबसूरत लड़की को देखकर दिखाते हैं।
रिया ने उसकी आँखों का पीछा किया और तुरंत सब समझ गई। वो हल्की मुस्कान दबाते हुए बोली –
“हाँ, ढूँढ तो रहे हैं… और तुम भी तो कुछ ढूँढ रहे हो शायद? रास्ता खाली करना है तो हट जाओ मिस्टर।”
इतना कहकर रिया ज़ोर से कदम बढ़ाती है और जाते-जाते जानबूझकर उसके पैर पर अपना पैर रख देती है। लड़का जोर से चिल्ला उठा –
“आआह्ह…!!”
दोनों लड़कियाँ ठहाका मारकर हँसते हुए आगे बढ़ जाती हैं। इशिता हँसते-हँसते कहती है –
“रिया! ये क्या किया तुमने? बेचारा दर्द से कराह रहा था।”
रिया शरारती अंदाज़ में आँखें मटकाते हुए बोली –
“अरे ऐसे छिछोरों को मैंने पहले भी बहुत सीधा किया है। अब तू मेरे साथ है तो तुझे प्रोटेक्ट करना मेरी ड्यूटी है न!”
इशिता सिर हिलाते हुए बाल झटककर मुस्कराती है –
“तू भी न रिया…!”
दोनों बातों में मशगूल क्लास की तरफ बढ़ती हैं और आखिरकार अपनी क्लास मिल जाती है। अंदर कदम रखते ही लगभग हर लड़के की नज़रें इशिता पर टिक जाती हैं। उसके चेहरे की मासूमियत, बड़े-बड़े expressive नयन और उसकी सादगी भरी खूबसूरती ने सबका ध्यान खींच लिया था।
क्लास के तीसरे रो में दोनों एक साथ जाकर बैठ जाती हैं। इशिता थोड़ी झिझक के साथ इधर-उधर देखती है तो नोटिस करती है कि कितनी जोड़ी आँखें बार-बार उसी की तरफ उठ रही हैं।
वो धीमे स्वर में रिया से कहती है –
“सब ऐसे क्यों देख रहे हैं यार…”
रिया उसकी बात सुनकर शरारती मुस्कान देती है और कान में फुसफुसाती है –
“क्योंकि तू है ही इतनी cute… और मानना पड़ेगा, entry तो तूने heroine जैसी मारी है।”
इशिता हँसते हुए हल्का सा धक्का देती है –
“पागल…”
दोनों हँस पड़ती हैं और क्लास का पहला दिन उनकी दोस्ती की शुरुआत को और गहरा कर देता है।
क्लासरूम में माहौल अभी-अभी जम रहा था। सारी नज़रें इधर-उधर घूम रही थीं, कुछ नई दोस्तियाँ बन रही थीं, तो कहीं फुसफुसाहट में पुराने स्कूल की बातें। तभी अचानक दरवाज़ा खुला और अंदर आए प्रोफ़ेसर शर्मा—गंभीर से चेहरे के साथ, हाथ में फाइल और ऐनक ठीक करते हुए।
“गुड मॉर्निंग स्टूडेंट्स,” उन्होंने गहरी आवाज़ में कहा। पूरा क्लास एकदम चुप हो गया।
सब छात्र खड़े हो गए और उन्होंने इशारे से बैठने को कहा।
“मैं प्रोफ़ेसर शर्मा हूँ, इस सेमेस्टर आपका इंट्रोडक्टरी लेक्चर लूंगा। सबसे पहले तो आप सबका स्वागत है कॉलेज की इस नई जर्नी में।”
रोल कॉल शुरू हुआ। एक-एक करके सबके नाम पुकारे जाने लगे। जब “इशिता वर्मा” बोला गया, तो पूरी क्लास की आधी नज़रें फिर उसकी ओर घूम गईं। उसकी नीली आँखें, मासूम मुस्कान और कॉन्फिडेंट अंदाज़… हर कोई बस देखता ही रह गया।
पास बैठी रिया हल्का-सा मुस्कुराते हुए धीरे से बोली, “देखा, क्लास तो पहले ही दिन से तुझपे फिदा हो गया।”
इशिता ने आँखें घुमाई और धीमे से फुसफुसाई, “तू भी न… बस चुप रह।”
लेक्चर में आगे प्रोफ़ेसर ने कॉलेज की रूल्स और रूटीन समझाए—
“क्लास अटेंडेंस 75% ज़रूरी है, और सबसे ज़रूरी… आप सबको आने वाले समय में डिसिप्लिन के साथ पढ़ाई करनी होगी। यहाँ सिर्फ नंबर नहीं, बल्कि आपके बिहेवियर पर भी नज़र रखी जाएगी।”
स्टूडेंट्स बीच-बीच में हाँ में सिर हिलाते रहे।
कुछ लड़के, जो बार-बार इशिता की ओर देख रहे थे, अब किताब खोलने का नाटक करने लगे।
रिया ने धीरे से इशिता की कुहनी पर टोकते हुए कहा, “लगता है आने वाला सेमेस्टर तेरे लिए आसान नहीं होगा, सबकी निगाहें तो तुझपे ही अटकी हैं।”
इशिता हल्के-से हँस दी, “अरे छोड़, मुझे किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं यहाँ पढ़ने आई हूँ।”
लेक्चर खत्म होते ही प्रोफ़ेसर ने कहा, “अगली क्लास से सब अपना इंट्रोडक्शन तैयार करके लाएँगे। मैं देखना चाहता हूँ कि आप सबके गोल्स और सपने क्या हैं।”
घंटी बजी और क्लास थोड़ी हलचल से भर गई। कुछ स्टूडेंट्स ग्रुप बनाने लगे, तो कुछ बस इधर-उधर टकटकी लगाकर देखते रहे।
पिछले अध्याय में आपने देखा कि रोहन ने इशु को कॉलेज के गेट पर उतारा और उसे ध्यान रखने को कहा। इशु कॉलेज की बिल्डिंग्स को देखती रह जाती है। सड़क पर खड़ी एक काली कार में बैठा आदमी उसे देखता है और मुस्कुराता है।
इशिता कॉलेज में रिया से टकराती है और दोनों दोस्त बन जाती हैं। एक लड़का इशिता को देखकर आकर्षित होता है, जिसे रिया मज़ा चखाती है। क्लास में सब इशिता को देखते हैं, जिससे वह थोड़ा झिझकती है। प्रोफ़ेसर शर्मा क्लास लेते हैं और कॉलेज के रूल्स बताते हैं।
अब आगे
टीचर सबसे पहले पहली बेंच से शुरू करते हैं।
एक लड़का खड़ा हुआ, घबराते-घबराते बोला—
“सर… मेरा नाम है राहुल, मुझे क्रिकेट खेलना पसंद है।”
पूरी क्लास हँस पड़ी क्योंकि उसकी आवाज़ ऐसे काँप रही थी जैसे रिजल्ट सुनाने आया हो।
रिया ताली बजाकर बोली—
“वाह क्रिकेटर साहब, अगली बार हमारी टीम में भी खेलना।”
सारी क्लास फिर से खिलखिलाकर हँस पड़ी।
फिर बारी-बारी से सब अपने इंट्रो देते गए।
जब एक लड़की खड़ी हुई और बोली, “मुझे गाने का बहुत शौक है,”
तो पीछे से किसी लड़के ने मज़ाक किया—
“तो हमें अभी सुना दो।”
लड़की शरमा गई और बैठ गई।
अब बारी आई रिया की।
रिया पूरे कॉन्फिडेंस से खड़ी हुई, हाथ से बाल झटकते हुए बोली—
“हाय, मैं हूँ रिया। मुझे मस्ती करना, लोगों की टांग खींचना और फ्रेंड्स को परेशान करना बहुत पसंद है।”
क्लास ठहाके मारकर हँसने लगी।
टीचर भी मुस्कुराते हुए बोले—
“वाह, अच्छा है। लेकिन पढ़ाई का भी शौक रखना।”
रिया शरारती अंदाज़ में बोली—
“वो तो इशिता का शौक है सर, मेरा नहीं।”
सारी क्लास हँस पड़ी और इशिता तुरंत उसे घूरने लगी।
अब सबसे बड़ी बारी आई—इशिता की।
पूरी क्लास चुप हो गई।
लड़के बड़े ध्यान से देखने लगे।
इशिता हल्के से खड़ी हुई, थोड़ा नर्वस होते हुए बोली—
“मेरा नाम इशिता है, मुझे किताबें पढ़ना, पेंटिंग करना और… और…”
रिया बीच में बोल पड़ी—
“और सबकी नज़रों में छा जाना!”
क्लास ज़ोर से हँसी।
इशिता शर्म से लाल हो गई और धीरे से रिया को कोहनी मारी।
“तू तो मुझे डुबा ही देगी,” वह फुसफुसाई।
लेक्चर के बाद, जब क्लास खत्म हुई, तो इशिता और रिया बाहर निकलते हुए हँस रही थीं।
रिया बोली—
“देखा, मैंने कहा था न? सबकी नज़रें तुझ पर ही हैं।”
इशिता ने नकली गुस्से से कहा—
“तू चुप रहेगी या नहीं? वरना सच में तुझे क्लासरूम के बाहर छोड़ दूँगी।”
दोनों फिर से खिलखिलाकर हँसने लगीं।
Canteen में हंसी-मज़ाक का शोर गूंज रहा था। हर टेबल पर ग्रुप्स में स्टूडेंट्स बैठे बातें कर रहे थे। रिया और इशिता भी अपने ट्रे लेकर एक कोने की टेबल पर बैठ गईं।
रिया मज़ाकिया अंदाज़ में बोली—
“देख इशिता, ये तेरी entry का असर है… पूरी canteen तुझको ही घूर रही है। और मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे मैं तेरे bodyguard की तरह बैठी हूँ।”
इशिता ने हंसते हुए उसके कंधे पर हल्की सी चपत मारी—
“ओह hello! तू भी कम खूबसूरत नहीं है। बस तेरे confidence से लड़के डर जाते हैं। और तू protect करने का काम भी अच्छे से कर रही है।”
दोनों हंस पड़ीं। तभी पास से तीन–चार लड़के गुजरते हुए उन्हें बार-बार देख रहे थे। उनमें से एक लड़का हिम्मत करके उनकी टेबल के पास रुक गया।
वो थोड़ी हिचकिचाहट के साथ मुस्कुराया—
“Uh… hi! मैं यहाँ बैठ सकता हूँ? Actually canteen में सारी seats almost भरी हैं…”
रिया ने तुरंत उसकी आँखों में घूरते हुए कहा—
“Excuse me? ये जगह reserved है, समझे? और हाँ, ज्यादा smart बनने की कोशिश मत करना।”
लड़का थोड़ा हड़बड़ाया लेकिन फिर भी इशिता को देखकर बोला—
“Actually… मैं बस दोस्ती करना चाहता था। Hi, I’m Kabir.”
इशिता, जो थोड़ी simple और soft nature की थी, हल्की सी मुस्कुराई—
“Hi Kabir.”
रिया ने घूरते हुए उसकी तरफ चम्मच टकराया—
“बस hi bol diya, ab nikal bhi. Dost banna है तो line में लग… पहले मैं हूँ, फिर teacher, फिर बाकी। समझ आया?”
वो लड़का हंसते हुए बोला—
“ठीक है ठीक है, मैं disturb नहीं करूंगा। बस सोचा था… नए session में friends बनाना अच्छा होता है।”
वो हल्की सी awkward हंसी हंसते हुए वहां से चला गया।
रिया ने इशिता की तरफ देखा—
“देखा… यही problem है। सबको तू hi दिखाई देती है। और तू बेचारी sabko polite होकर reply करती रहती है।”
इशिता ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा—
“Arey polite रहना बुरी बात है क्या? और फिर दोस्ती करने में क्या problem है?”
रिया ने हाथ नचाते हुए कहा—
“Problem यह है कि दोस्ती से शुरू होते-होते feelings तक पहुंचने में देर नहीं लगती। और फिर मुझे तेरे ऊपर पहरा देना पड़ेगा।”
दोनों फिर से हंस पड़ीं और बातें करने लगीं।
लेकिन उन्हें क्या पता… canteen के ठीक सामने, थोड़ी दूर वाले dark corner में कोई बैठा था। उसकी cold नज़रें लगातार इशिता पर टिकी थीं।
वो ‘साया’।
उसकी आँखों में अजीब सी चमक और गुस्सा था।
उसके अंदर उथल-पुथल मची हुई थी—
"वो… किसी और से बात क्यों कर रही है? मुस्कुरा क्यों रही है उसके लिए? वो मेरी है… सिर्फ मेरी।"
उसने हाथ की मुट्ठियाँ कस लीं। सामने रखी table पर उसके nails धंस गए। गुस्से की वजह से उसकी साँसे तेज़ हो रही थीं।
उसे अंदर से लग रहा था जैसे किसी ने उसकी चीज़ छीनने की कोशिश की हो।
वो धीरे से बड़बड़ाया—
“मुस्कुराना है तो सिर्फ मेरे लिए… किसी और के लिए नहीं।”
-------- कॉलेज की घंटी बजते ही इशिता बाहर निकलती है। दूर से रोहन अपनी बाइक पर खड़ा उसे देखकर मुस्कुराता है।
रोहन: “चल Mirchi, जल्दी बैठ जा… तो बताओ, कैसा रहा तेरा दिन?”
इशिता पीछे सीट पर बैठते ही उत्साहित होकर बोलती है—
इशिता: “भाई… आज का दिन बहुत अच्छा गया! सब कुछ मज़ेदार था और मेरी एक नई दोस्त बन गई—Riya। सच में, बड़ा मज़ा आया।”
रोहन मुस्कुराते हुए सिर हिलाता है और पूछता है—
रोहन: “अच्छा? तो बाकी सब कैसा रहा?”
इशिता थोड़ी हँसते हुए कहती है—
“सब बढ़िया था। classes smoothly चली और बहुत कुछ नया सीखने को मिला।”
रोहन ध्यान से सुनते हुए मुस्कुराया—
“ठीक है Mirchi, अच्छा लगा सुनकर। अब घर चलते हैं, और वहाँ जाकर आराम से सब बातें बताना।”
इशिता भी मुस्कुराई और कार की सीट पर आराम से बैठ गई।
इशिता: “हाँ भाई, घर पहुँचकर सब विस्तार से बताऊँगी… आज का दिन सच में यादगार था।”
रोहन कार स्टार्ट करता है और धीरे-धीरे घर की ओर निकलते हैं। रास्ते में इशिता अपनी सारी छोटी-छोटी खुशियों और अनुभवों को share करती रही, और रोहन उसे ध्यान से सुनता रहा।
पिछले अध्याय में आपने देखा कि रोहन ने इशु को कॉलेज के गेट पर उतारा और उसे ध्यान रखने को कहा। इशु कॉलेज की बिल्डिंग्स को देखती रह जाती है। सड़क पर खड़ी एक काली कार में बैठा आदमी उसे देखता है और मुस्कुराता है।
इशिता कॉलेज में रिया से टकराती है और दोनों दोस्त बन जाती हैं। एक लड़का इशिता को देखकर आकर्षित होता है, जिसे रिया मज़ा चखाती है। क्लास में सब इशिता को देखते हैं, जिससे वह थोड़ा झिझकती है। प्रोफ़ेसर शर्मा क्लास लेते हैं और कॉलेज के रूल्स बताते हैं।
टीचर सबसे पहले पहली बेंच से शुरू करते हैं। राहुल, जो क्रिकेट खेलना पसंद करता है, घबराते हुए अपना परिचय देता है, जिससे क्लास में हँसी आ जाती है। एक और लड़की, जिसे गाने का शौक है, एक लड़के के मज़ाक का शिकार हो जाती है। रिया पूरे आत्मविश्वास से अपना परिचय देती है, जिससे टीचर भी मुस्कुराते हैं। इशिता थोड़ी झिझकते हुए अपना परिचय देती है, और रिया के मज़ाक से क्लास में फिर हँसी आ जाती है।
क्लास खत्म होने के बाद, इशिता और रिया कैंटीन में जाती हैं। रिया इशिता को बताती है कि सब उस पर ध्यान दे रहे हैं। तभी कबीर नाम का एक लड़का उनकी टेबल पर बैठने की इजाज़त माँगता है, लेकिन रिया उसे भगा देती है। रिया इशिता को सलाह देती है कि वह लड़कों से ज़्यादा विनम्र न रहे, लेकिन इशिता को यह पसंद नहीं आता। इस बीच, एक "साया" नाम का व्यक्ति उन्हें दूर से देख रहा होता है, जो इशिता की किसी और से बात करने पर गुस्सा हो रहा है।
कॉलेज की घंटी बजने पर इशिता बाहर निकलती है, जहाँ रोहन बाइक पर इंतज़ार कर रहा होता है। इशिता उसे अपने दिन के बारे में बताती है, कि उसे मज़ा आया और उसकी एक नई दोस्त, रिया, बन गई है। रोहन सुनकर खुश होता है और वे घर की ओर निकल जाते हैं, जहाँ इशिता बाकी बातें बताएगी।
अब आगे
रोहन और इशिता घर वापस आते हैं। जैसे ही वो अंदर कदम रखते हैं, सबकी नज़र उन पर चली जाती है।
मम्मी सबसे पहले मुस्कुराते हुए पूछती हैं –
"तो, कैसा रहा आज का दिन, इशु?"
इशिता तुरंत ही सोफे पर उछलते हुए बैठ जाती है, चेहरे पर मासूम सी मुस्कान के साथ –
"मम्मा, आज का दिन तो बहुत अच्छा गया! सब लोग बहुत प्यारे थे… और सुनिए, मेरी एक नई दोस्त भी बन गई है, बिल्कुल मेरी ही तरह क्यूट।"
फिर अचानक थोड़ी देर रुककर भौंहें सिकोड़ती है –
"वैसे भैया, आज आपका इंटरव्यू था ना? कैसा गया?"
रोहन हल्का सा सिर झुका लेता है, चेहरा गंभीर बनाकर जैसे बहुत उदास हो। सब लोग चौंककर उसकी तरफ़ देखते हैं। इशिता बेचैन होकर बोल पड़ती है –
"भैया… हुआ क्या? सिलेक्शन नहीं हुआ क्या?"
तभी रोहन अचानक से मुस्कुरा उठता है और शरारत भरी आवाज़ में बोलता है –
"अरे पगली, सिलेक्शन हो गया! पता नहीं शायद मेरी किस्मत ही इतनी अच्छी है कि इतनी बड़ी कंपनी में मुझे जॉब मिल गई!"
सब लोग खुशी से झूम उठते हैं। मम्मी तो तुरंत कह उठती हैं –
"आज तो मिठाई बनेगी!"
इशिता उत्साह से चिल्लाती है –
"हाँ मम्मा, गाजर का हलवा!"
दोनों भाई-बहन हँसते हुए एक-दूसरे को हाई-फाइव कर देते हैं। घर में एक पल के लिए जश्न सा माहौल हो जाता है। मगर किसी को पता नहीं था कि इस नौकरी के पीछे किसका हाथ है… किसकी कंपनी है…
थोड़ी देर बाद इशिता अपने कमरे में चली जाती है। कपड़े बदलकर जब वो नीचे आती है, तभी अचानक गेट की घंटी बजती है।
वो झट से दरवाज़ा खोलती है, पर बाहर कोई नहीं होता। बस एक खूबसूरती से पैक किया हुआ गिफ्ट रखा था, जिस पर एक छोटा सा नोट चिपका हुआ था।
इशिता चौंककर चारों तरफ देखती है, पर सड़क सुनसान थी। उसने गिफ्ट उठाया और जल्दी से अपने कमरे में ले आई।
दिल की धड़कन तेज़ होने लगी थी। उसने पैकेट खोला… अंदर एक छोटा सा टेडी था और वही अजीब सा नोट—
"Angel,
आज तुम्हारा कॉलेज का पहला दिन था, इसलिए माफ किया।
लेकिन याद रखना…
आज के बाद अगर तुम लड़कों से दूर नहीं रही, तो सज़ा मिलेगी।
– तुम्हारा दीवाना"
इशिता ने नोट पढ़ा और उसका चेहरा एकदम बदल गया।
हाथ काँप रहे थे, दिल की धड़कन जैसे छाती से बाहर निकलने को तैयार हो।
वो धीरे-धीरे खिड़की की तरफ बढ़ी और परदा हटाकर बाहर झाँका।
धूप ढल रही थी, शाम का वक़्त था। आसमान नारंगी और सुनहरी रोशनी में नहा रहा था।
बाहर सड़क पर कुछ बच्चे खेल रहे थे, इक्का-दुक्का लोग अपने काम से गुज़र रहे थे।
सब कुछ बिल्कुल सामान्य था… लेकिन इशिता का मन कह रहा था कि सब सामान्य नहीं है।
जैसे कोई है… जो दूर कहीं से उसकी हर हरकत देख रहा है।
उसने धीरे से फुसफुसाकर कहा –
"नहीं… ये सब मेरा वहम है शायद…"
इतना कहकर वो खिड़की से हटने ही लगी थी कि अचानक उसकी नज़र सामने वाले पेड़ के पीछे पड़ी।
ऐसा लगा मानो कोई काली परछाईं वहाँ खड़ी है।
बस कुछ सेकंड के लिए… फिर जैसे गायब हो गई।
इशिता का गला सूख गया। उसने जल्दी से परदा गिराया और कमरे में आकर बिस्तर पर बैठ गई।
हाथों से अब भी वो नोट कसकर पकड़े हुए थी।
उसके दिल की धड़कन तेज़ थी और दिमाग में बार-बार वही सवाल घूम रहा था –
"कौन है ये… जो मुझे रोज़ ऐसे गिफ्ट और नोट्स भेजता है? क्यों मुझे लड़कों से दूर रहने की धमकी देता है?"
इशिता अब भी नोट को कसकर पकड़े बैठी थी, उसका चेहरा डर और बेचैनी से लाल हो चुका था। तभी अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई।
"इशु… अंदर हो?" – ये रोहन की आवाज़ थी।
इशिता एकदम चौंकी। उसने तुरंत गिफ्ट और नोट दोनों को तकिए के नीचे छिपा दिया और चेहरे पर बनावटी मुस्कान लाकर बोली –
"ह…हाँ भैया, आ जाइए।"
रोहन अंदर आया और हँसते हुए बोला –
"अरे, तुम तो ऐसे बैठी हो जैसे किसी ने चोरी पकड़ ली हो। सब ठीक है ना?"
इशिता ने जल्दी से नज़रें झुका लीं –
"हाँ भैया, सब ठीक है… बस थोड़ी थकान है।"
रोहन उसके पास बैठ गया और हल्के से उसके बालों को सहलाकर बोला –
"अच्छा सुनो, मम्मा ने कहा है नीचे आकर हेल्प करो। गाजर का हलवा बन रहा है, और तुम तो जानती हो, तुम्हारे बिना अधूरा रहता है।"
इशिता ने ज़बरदस्ती मुस्कुराकर सिर हिला दिया –
"आ… आती हूँ भैया।"
रोहन संतुष्ट होकर कमरे से बाहर चला गया।
जैसे ही उसका कदम बाहर पड़ा, इशिता ने झट से तकिए के नीचे से नोट निकाला और उसे देर तक घूरती रही।
उसके होठों से हल्की सी फुसफुसाहट निकली –
"तुम कौन हो… और क्यों मुझे हर रोज़ देख रहे हो?"
उसकी आँखों में डर साफ़ झलक रहा था, मगर कहीं न कहीं एक अनजाना अहसास भी था…
जैसे वो सचमुच किसी अदृश्य नज़र के जाल में फँस चुकी हो।
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पिछले अध्याय में आपने देखा कि इशिता कॉलेज में नई दोस्त बनाती है और घर वापस आती है। घर पर रोहन अपने इंटरव्यू में सफल होने की खबर सुनाता है, जिससे सब खुश हो जाते हैं। बाद में, इशिता को एक गुमनाम गिफ्ट और धमकी भरा नोट मिलता है, जिससे वह डर जाती है। वह उस व्यक्ति के बारे में सोचने लगती है जो उसे लगातार नोट भेज रहा है और उसे लड़कों से दूर रहने की चेतावनी दे रहा है। रोहन के पूछने पर वह अपनी बेचैनी छुपा लेती है।
अब आगे
रोहन और इशिता घर वापस आते हैं, जहाँ उनकी माँ इशिता के दिन के बारे में पूछती हैं। इशिता खुशी-खुशी बताती है कि उसका दिन अच्छा बीता और उसकी एक नई दोस्त, रिया, बन गई है। फिर वह रोहन से उसके इंटरव्यू के बारे में पूछती है। रोहन पहले तो उदास होने का नाटक करता है, फिर बताता है कि उसका सिलेक्शन हो गया है। सब बहुत खुश होते हैं और जश्न मनाने का फैसला करते हैं। इशिता अपने कमरे में जाती है और कपड़े बदलकर नीचे आती है, तभी दरवाज़े की घंटी बजती है। वहां कोई नहीं होता, सिवाय एक खूबसूरती से पैक किए हुए गिफ्ट और एक नोट के। नोट में लिखा होता है कि यह उसका पहला दिन था इसलिए उसे माफ किया जा रहा है, लेकिन अगर उसने लड़कों से दूरी नहीं बनाई तो उसे सज़ा मिलेगी। इशिता डर जाती है और खिड़की से बाहर देखती है, जहां सब सामान्य लगता है, पर उसे शक होता है कि कोई उसे देख रहा है। वह एक पेड़ के पीछे एक काली परछाई देखती है। इशिता घबराकर कमरे में वापस आती है और रोहन के आने पर गिफ्ट और नोट छिपा देती है। रोहन उसे नीचे चलकर गाजर का हलवा बनाने में मदद करने के लिए कहता है। रोहन के जाने के बाद इशिता नोट को देखकर सोचती है कि वह कौन है और उसे क्यों देख रहा है।
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डाइनिंग टेबल पर सब इकट्ठा थे। मम्मी ने गरमा-गरम गाजर का हलवा परोसा, पापा अख़बार एक तरफ़ रखकर मुस्कुराते हुए बच्चों की तरफ़ देख रहे थे।
रोहन हलवा खाते हुए बोला –
"मम्मा, ये तो लाजवाब बना है! सच कहूँ तो सिलेक्शन से ज़्यादा खुशी इस हलवे की है।"
सब हँस पड़े।
माहौल हँसी-खुशी से भरा हुआ था… लेकिन इशिता उस हँसी का हिस्सा नहीं बन पा रही थी।
उसके हाथ में चम्मच था, लेकिन हलवे को बार-बार बस घुमाए जा रही थी।
दिल अब भी धड़क रहा था तेज़ी से।
हर थोड़ी देर में उसकी नज़र खिड़की की तरफ़ उठ जाती।
उसे लग रहा था जैसे कोई बाहर पेड़ के पीछे छिपकर अभी भी उसे देख रहा हो।
भले ही वहाँ अब सिर्फ़ अँधेरा और पेड़ की हल्की हिलती शाखाएँ नज़र आ रही थीं, पर इशिता का मन कह रहा था — वो नज़रें अब भी उस पर टिकी हुई हैं।
मम्मी ने गौर किया और बोलीं –
"इशु बेटा, तुमने खाना ढंग से खाया ही नहीं… सब ठीक तो है?"
इशिता चौंक गई और जल्दी से बनावटी मुस्कान लाई –
"हाँ मम्मा… सब ठीक है, बस थोड़ी थकान है।"
रोहन मजाक में बोला –
"नयी दोस्त मिली है कॉलेज में, अब भैया की याद कहाँ रहेगी।"
सब फिर से हँस पड़े, मगर इशिता ने बस हल्की सी मुस्कान दी।
उसके भीतर डर का साया गहराता जा रहा था।
उसने चुपके से अपने हाथ में रखे नैपकिन को कसकर पकड़ा और मन ही मन दोहराया –
"अगर ये सब मेरा वहम नहीं है… तो आखिर कौन है, जो मुझे इतनी नज़दीकी से देख रहा है?"
डिनर खत्म होते ही सब लोग अपने-अपने काम में लग गए। रोहन मोबाइल पर दोस्तों से बातें करने लगा, पापा टी.वी. पर न्यूज़ देखने लगे और मम्मी किचन समेटने में व्यस्त हो गईं।
इशिता चुपचाप अपने कमरे की ओर चली गई।
कमरे का दरवाज़ा बंद करते ही उसने राहत की साँस ली। लेकिन राहत बस एक पल की थी… अगले ही सेकंड उसका मन फिर उसी खिड़की की तरफ़ खिंच गया।
धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हुई वो खिड़की के पास पहुँची।
परदा हटाया और बाहर झाँककर देखने लगी।
बाहर चारों तरफ़ सन्नाटा था। स्ट्रीट लाइट की हल्की पीली रोशनी और दूर जाती गाड़ियों की आवाज़ें ही माहौल में थीं।
कुछ देर तक उसने ध्यान से इधर-उधर देखा, जैसे सचमुच किसी को पकड़ ही लेगी।
तभी अचानक…
हवा में हल्की सी सीटी (whistle) की आवाज़ गूँजी।
इशिता का दिल उछल पड़ा।
उसने घबराकर चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई, लेकिन कोई नहीं दिखा।
वो आवाज़ जैसे खास उसी के लिए थी… बस उसके कानों तक पहुँचने के लिए।
उसके होंठ काँपते हुए फुसफुसाए –
"क…कौन हो तुम…?"
डर की लहर उसके पूरे जिस्म में दौड़ गई।
उसने तुरंत खिड़की बंद की, परदे गिरा दिए और बिस्तर पर आकर बैठ गई।
तकिए में चेहरा छिपाकर लेट गई, जैसे इन आवाज़ों और नज़रों से खुद को बचा लेगी।
आँखें बंद करते ही भी वही सवाल उसे सताता रहा –
"ये कौन है… जो मुझे हर वक़्त देखता है?"
धीरे-धीरे थकान और डर के बीच उसकी आँख लग गई…
पर बाहर कहीं अंधेरे में… किसी की नज़रें अब भी उसी पर टिकी हुई थीं।?
इशिता ने खिड़की बंद कर दी थी, पर हवा की हल्की सरसराहट से परदा हिल रहा था। रात का सन्नाटा कमरे में गहरा चुका था।
वो अपने तकिए से चिपककर गहरी नींद में थी—मिनी कुंभकर्ण की तरह।
कुछ देर बाद…
खिड़की का लैच धीरे से क्लिक की आवाज़ के साथ खुला।
परदा हिला और अंधेरे में एक लंबी परछाईं अंदर दाख़िल हुई।
वो बेहद धीमे कदमों से बिस्तर के पास आया।
साँसें थमी हुईं, आँखें बस उसी पर टिकीं।
नींद में इशिता मासूम-सी लग रही थी—बाल बिखरे हुए, होंठों पर हल्की सी मुस्कान और चेहरा चाँदनी में और भी नाज़ुक।
वो परछाईं कुछ पल वहीं खड़ा होकर बस उसे देखता रहा… जैसे किसी ख़ज़ाने पर नज़रें जमाए बैठा हो।
फिर धीरे से झुककर उसका चेहरा अपनी हथेली से हल्के-से छुआ और बहुत नर्म अंदाज़ में उसके माथे पर किस कर दिया।
इशिता हल्की-सी करवट बदली, होंठों से नींद में बुदबुदाई –
"मम्मा… सोने दो न…"
पर उसकी नींद टूटी नहीं।
वो मिनी कुंभकर्ण की तरह गहरी नींद में खोई रही।
वो परछाईं ठंडी मुस्कान लिए धीरे से फुसफुसाया –
"सो जाओ Angel… अभी तो बस शुरुआत है।"
और फिर उतनी ही ख़ामोशी से वापस खिड़की से बाहर चला गया।
कमरा फिर से शांत हो गया… लेकिन हवा में अब भी उसकी मौजूदगी का एहसास बाकी था।