दो राजकुमारों की ऐसी कहानी, जहाँ एक है आग और एक है पानी।
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Disclaimer - इस कहानी के सभी पात्र पूर्णतः काल्पनिक एवं मौलिक हैं । इसका किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से मेल केवल एक संयोग मात्र होगा ।
इस कहानी का उद्देश्य किसी के भी विचारों धार्मिक भावनाओं को आहत करना नहीं है । ये कहानी केवल मनोरंजन के लिए लिखी गई है तो कृपया मनोरंजन की दृष्टि से ही पढ़ें ।
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रात का समय,
आसमान में काले घने बादल छाए हुए थे और रह रह कर बिजली चमक रही थी । साथ में घनघोर बारिश भी हो रही थी । इसी बारिश में वो कोई पुराने फैक्ट्री जैसी जगह थी जहां से किसी के चीखने की आवाजें आ रही थीं ।
वो चीखें बहुत ही हृदय विदारक थीं । धीरे - धीरे उन चीखों में मिला हुआ दर्द बढ़ता जा रहा था और ऐसा लग रहा था कि उस शख्स के साथ आसमान भी रो रहा है ।
उस फैक्ट्री के अंदर एक महिला और एक पुरुष आराम से सोफे पर बैठे हुए थें । महिला की उम्र 45 - 46 साल रही होगी तो वहीं पुरुष की उम्र 50 - 51 साल ।
वो दोनों आराम से बैठ कर सामने हो रहे तमाशे के मजे ले रहे थें या यूं कहें कि तमाशा किया ही इन दोनों ने था । उनके सामने एक 15 - 16 साल का लड़का एक बंधा हुआ था ।
उसके हाथ और पैर रस्सियों के जरिए दीवारों से बंधे हुए थे । अंधेरा होने की वजह से उसका चेहरा नजर नहीं आ रहा था लेकिन उसकी चीखों में उसका दर्द साफ महसूस हो रहा था ।
उसके पीछे कुछ हट्टे कट्टे आदमी खड़े थे जो उस पर कोड़े बरसाए जा रहे थे । उस लड़के के शरीर पर बहुत सारे घाव बन चुके थे और जगह जगह से खून रिस रहा था लेकिन उस महिला और उस पुरुष को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था ।
ऐसा लग रहा था मानो उस लड़के की चीखों से इन दोनों को सुकून मिल रहा हो ।
कुछ समय बाद वो लड़का बेहोश हो गया तो उस महिला ने खड़े होते हुए कहा, " इसकी खातिरदारी रुकनी नहीं चाहिए । "
उनके आदमियों ने हां में सिर हिला दिया तो वो आदमी भी उठ खड़ा हुआ और वो दोनों वहां से चले गए । उनके जाने के बाद उन आदमियों ने अपनी गर्दन उस लड़के की ओर घुमा ली जो बेहोश होकर झूला हुआ था ।
2 साल बाद,
सुबह का समय था जब एक लड़का आराम से सड़क पर चलता जा रहा था । उसकी उम्र कोई 17 - 18 साल के आस - पास रही होगी । उसके चेहरे पर एक अलग ही नूर था ।
उसने अपने कानों में मैग्नेटिक इयररिंग्स पहने हुए थे । उसके मुंह पर एक मास्क था । उसने सफेद रंग की शर्ट के साथ काले रंग की पैंट पहन रखी थी और साथ में एक काले रंग का ब्लेजर पहन रखा था ।
ब्लेजर की बाजुओं को उसने कोहनी तक मोड़ रखा था । उसके पैरों में सफेद रंग के स्नीकर्स थे । उसकी पीठ पर एक स्कूल बैग टंगा हुआ था ।
उसके बाएं हाथ में एक काले रंग की स्पोर्ट्स वॉच थी और दाएं हाथ में कलावा बंधा हुआ था । उसके गले में सोने के चैन जैसा कुछ दिख रहा था लेकिन बता पाना मुश्किल था कि वो चैन ही था या कुछ और ।
उस लड़के के बाल सलीके से सेट थे और उसने अपने कानों में हेडफोन पहन रखा था । उसे आस पास के लोगों से कोई मतलब नहीं था ।
वो तो बस म्यूजिक सुनते हुए, सामने की ओर देखते हुए , अपने हाथ अपने पैंट्स की पॉकेट में डाले हुए आगे बढ़ रहा था लेकिन तभी कोई उसका पैंट पकड़ कर उसे खींचने लगा ।
उस लड़के ने अपनी सर्द नजरें उस ओर घुमाईं तो वहां पर एक छोटी सी बच्ची खड़ी थी जिसकी उम्र कोई 5 - 6 साल के आस पास रही होगी ।
उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे । उसने मैले से कपड़े पहने हुए थे और उसके बाल भी पूरी तरह से बिखरे हुए थे । उसे देख कर उस लड़के की आंखें नॉर्मल हो गईं । उसने अपने हेडफोन उतार कर गले में लटका लिये और उस बच्ची के पास बैठ गया ।
उसने उस बच्ची के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा, " क्या हो गया बच्चा ? आप ऐसे रो क्यों रहे हो ? "
उस बच्ची ने रोते हुए ही कहा, " भैया, बहुत जोर की भूख लगी है । कुछ खाने को दे दो । "
उस बच्ची के शब्द सुन कर उसे लड़के की आंखों में आंसू आ गए लेकिन उसने उन्हें साफ करके कहा, " ओह ! तो आपको भूख लगी है । अच्छा तो बताओ क्या खाओगी आप ? "
उस बच्ची ने मासूमियत कहा, " जो भी आप खिला दो, भैया । "
उस लड़के ने उस बच्ची के आंसू पोंछते हुए कहा, " ओ के, तो चलो, आज हम छोले भटूरे खाएंगे । क्या कहती हो ? "
छोले भटूरे का नाम सुनते ही उस बच्ची के आँखों में चमक आ गई । उसने बड़ी सी मुस्कान के साथ अपनी गर्दन हां में हिला दी तो उस लड़के ने उस बच्ची का हाथ पकड़ा और दूसरी ओर बढ़ गया ।
वो लड़का उस बच्ची को लेकर एक रेस्टोरेंट में चला गया । वो दोनों एक टेबल पर पहुंचे तो लड़के ने एक कुर्सी खींच कर उस बच्ची से कहा, " बैठो ! "
उस बच्ची ने खुद को प्वाइंट करके कहा, " मैं ! "
तो उस लड़के ने कहा, " तुम्हारे अलावा मैं किसी और को यहां लेकर आया हूं क्या ! "
उस बच्ची ने कहा, " नहीं । " तो लड़के ने कहा, " तो तुम्हें ही कहूंगा न ! "
उस बच्ची ने अपनी नजरें झुका लीं तो उस लड़के ने कहा, " अब बैठ जाओ । "
वो बच्ची उस कुर्सी पर बैठ गई और आस पास की चीज़ें देखने लगी । वो हर चीज को बड़े ही कौतूहल से देखे जा रही थी और वो लड़का उसकी हरकतों को देख कर हंस रहा था ।
तभी ना जाने उसके दिमाग में क्या आया कि उसने अपना फोन निकाला और चुपके से उस बच्ची की एक फोटो खींच कर किसी को कुछ मैसेज कर दिया ।
फिर उसने अपना फोन पॉकेट में रखा और वापस से उस लड़की को देख कर मुस्कुराने लगा । इतने में वेटर वहां आ गया ।
उस वेटर ने उस लड़के को देख कर हल्के से अपना सिर झुका दिया तो उस लड़के ने भी अपना सिर हां में हिला दिया ।
वेटर ने मेन्यू उस लड़के की ओर बढ़ाते हुए बहुत ही आदर के साथ कहा, " आप क्या लेना पसंद करेंगे सर ? "
उस लड़के ने मेन्यू लिया और कुछ चीज़ों का ऑर्डर दे दिया । ऑर्डर लेकर वेटर वहां से चला गया । उसके जाने के बाद वो लड़का फिर से उस बच्ची को देखने लगा ।
उसने उस बच्ची को देखते हुए नम आंखों के साथ अपने मन में खुद से ही कहा, " कितनी अच्छी होती है न कॉमन लोगों की लाइफ ! भले ही गरीबी हो, दुख हो, लेकिन छोटी छोटी बातों से खुशी भी तो मिल जाती है । हमें तो वो भी नसीब नहीं होती । "
थोड़ी देर बाद जब उस बच्ची ने इधर उधर देखने के बाद उस लड़के की ओर देखा तो उस लड़के ने मुस्कराते हुए कहा, " क्या हुआ, क्या देख रह थी इतनी देर से ? "
उस लड़की ने कहा, " वो, मैं कभी यहां आई नहीं हूं । "
उस लड़के ने कहा, " अब तो आ गई न ! "
उस बच्ची ने कहा, " हां ! "
उस लड़के ने कहा, " तो अब इधर उधर देखना बंद करो और खाना खाओ । "
उस बच्ची ने इधर उधर देखते हुए कहा, " पर खाना है कहां ? "
उस लड़के ने पीछे की ओर इशारा करके कहा, " वो आ रहा है । "
उस बच्ची ने अपने पीछे देखा तो वहां 4 वेटर अपने दोनों हाथों में बहुत सी डिशेज लेकर उसी ओर लेकर आ रहे थे ।
उन वेटर्स ने वो सारी प्लेटें वहां लाकर रख दीं और अपना सिर झुका कर वापस चले गए । उन प्लेटों में अलग - अलग तरह की डिशेज थीं जो शायद उस बच्ची ने कभी देखे भी न हों ।
उस बच्ची ने सारे खाने को देखते हुए एक्साइटमेंट के साथ कहा, " इतना सब कुछ, मेरे लिए ! "
उस लड़के ने उस बच्ची के गाल खींचते हुए कहा, " हां, इतना सब कुछ सिर्फ आपके लिए । "
वो बच्ची इतना सारा खाना देख कर खुश हो गई । वो जल्दी से स्प्रिंग रोल्स उठा कर खाने लगी लेकिन उसने अपने हाथ अपने मुंह के पास ही रोक लिये ।
ये देख कर उस लड़के ने कहा, " क्या हुआ ? " तो उस बच्ची ने कहा, " आप मुझसे इसके पैसे तो नहीं लोगे न ! "
उस लड़के ने हंस कर कहा, " नहीं, मैं इसके पैसे आपसे नहीं लूंगा । "
उस बच्ची ने मजे से कहा, " फिर ठीक है । "
उस लड़के ने उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा, " तो अब खाना खाएं । "
उस बच्ची ने कहा, " हम्म ! "
और खाना खाने लगी । वो एक साथ सब कुछ खा रही थी जिससे उसका ध्यान आस पास गया ही नहीं ।
तभी उसकी नजर अपने सामने बैठे लड़के पर पड़ी तो उसने कहा, " आप क्यों नहीं खा रहे हो, भैया ? "
वो लड़का जो किसी सोच में डूबा हुआ था उस बच्ची की आवाज सुन कर होश में आया ।
उसने उस बच्ची से कहा, " मैंने खा लिया है, आप खाओ । "
इतने में उस लड़के के फोन पर कोई मैसेज आया । उस लड़के ने अपना फोन चेक किया और फिर उस बच्ची की ओर देख कर कहा, " अच्छा, आपका नाम क्या है ? "
उस बच्ची ने अपना पूरा ध्यान खाने पर रखते हुए ही कहा, " मेरा नाम खुशी है । "
उस लड़के ने अपनी भौंहें सिकोड़ कर कहा, " सिर्फ खुशी । "
खुशी ने नॉर्मली कहा, " हां, सिर्फ खुशी । "
उस लड़के ने फिर से सवाल करते हुए कहा, " और आपके मम्मी पापा ! "
उस लड़के का सवाल सुन कर खुशी के हाथ पास्ता खाते खाते रुक गए । उसने मायूसी से कहा, " मेरा कोई नहीं है । "
उस लड़के ने फिर से कहा, " तो आप रहती कहां हो ? "
खुशी ने अपने कंधे उचका कर कहा, " कहीं भी रह लेती हूं । "
उस लड़के ने टेबल की ओर थोड़ा सा झुक कर कहा, " देखो खुशी, आप किसी से भी, कोई भी झूठ बोल लो लेकिन अपने मम्मी पापा के होते हुए ये नहीं बोलना चाहिए कि वो जिंदा नहीं हैं । "
खुशी ने हिचकिचाते हुए कहा, " मैं सच बोल रही हूं, भैया । "
उस लड़के ने पीछे होकर अपनी कुर्सी पर पसरते हुए अपने हाथ बांध कर कहा, " रश्मि और विनय, यही नाम है न आपके मम्मी और पापा का । "
उस लड़के के मुंह से अपने माता पिता का नाम सुन कर खुशी को झटका सा लगा । उसके हाथ जहां के तहां रुक गए ।
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कौन था वो लड़का जिसे इतनी कम उम्र में ही इतना सब कुछ झेलना पड़ रहा था ?
कौन था ये लड़का जो खुशी को खाना खिला रहा था ?
उसने खुशी की फोटो क्यों खींची और किसे भेजी ?
उसे खुशी के मां बाप के बारे में कैसे पता चला ?
किसके लिए काम करते थें वो दोनों ?
इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए,
D & V : Princes Beyond Royalty
लाइक, कमेंट, शेयर और फॉलो करना न भूलें ।
लेखक : देव श्रीवास्तव
सुबह का समय था जब रेस्टोरेंट में अपने सामने बैठे लड़के के मुंह से अपने माता पिता का नाम सुन कर खुशी को झटका सा लगा । उसके हाथ जहां के तहां रुक गए ।
उसने उस लड़के की ओर देख कर सवाल करते हुए कहा, " आपको कैसे पता, भैया ?
उस लड़के ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " मतलब आपने झूठ बोला था । "
खुशी ने अपनी नजरें झुका कर कहा, " सॉरी, भैया । "
उसने अपने हाथ भी पीछे खींच लिये थे इसलिए उस लड़के ने कहा, " खाना खाओ । "
खुशी ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, " नहीं । "
उस लड़के ने थोड़ी कड़क आवाज में कहा, " मैंने कहा न, खाओ ! "
उसकी आवाज सुन कर खुशी चुपचाप अपनी नजरें झुकाए खाना खाने लगी ।
ये देख कर उस लड़के ने आराम से कहा, " और अब ये बताओ कि झूठ क्यों बोला । "
खुशी ने अपनी नजरें उठा कर उसकी ओर देखा तो लड़के ने आगे कहा, " और हां, इस बार सच बोलना । ठीक है ! "
खुशी ने धीरे से कहा, " हम्म ! "
उस लड़के ने सीधा होते हुए कहा, " तो चलो बताओ, झूठ क्यों बोला ! "
खुशी ने हिचकिचाते हुए कहा, " वो, वो ! "
उस लड़के ने चिढ़ कर कहा, " अब बोलो भी । "
खुशी ने नम आंखों के साथ सुबकते हुए कहा, " जब भी मैं किसी से बोलती हूं कि मुझे भूख लगी है और उन लोगों को पता चलता है कि मेरे मम्मी पापा जिंदा हैं तो वो लोग मुझे बहुत ही अजीब तरीके से देखते हैं ।
मुझे कुछ खाने को भी नहीं देते और, और अगर मम्मी पापा से मिल लेते हैं तो उन्हें भी बुरा बुरा बोलते हैं । "
उस लड़के ने अपने मन में ही कहा, " वो तो बोलेंगे ही । काम ही ऐसे इंसान के लिए करते थें वो दोनों । अब समझ आ गया होगा कि जो अपनों के सगे नहीं हुए वो उनके क्या खाक सगे होंगे । "
फिर उसने खुशी की ओर देख कर कहा, " इस बार तो सच बोल रही हो न ! "
खुशी ने हां में सिर हिला दिया तो उस लड़के ने कहा, " अच्छा, अगर कोई आपके मम्मी पापा को बुरा बुरा ना बोले और आपको किसी और से खाना मांगने की जरूरत भी ना पड़े, फिर तो आप नहीं कहोगे न, कि आपके मम्मी पापा नहीं हैं । "
खुशी ने अपने आंसुओं को साफ करते हुए कहा, " नहीं । "
उस लड़के ने अपने हाथ टेबल पर रखते हुए कहा, " तो चलो, आज इस बात का इंतेज़ाम कर ही देते हैं कि आपके मम्मी पापा को कोई भी बुरा बुरा न बोले । "
फिर उसने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " क्यों ? "
खुशी ने चमकती हुई आंखों के साथ कहा, " आप ऐसा कर सकते हो ! "
उस लड़के ने सोचते हुए कहा, " हां, कर तो सकता हूं । "
फिर उसने खुशी की ओर देख कर अपनी भौंहें उठा कर कहा, " अगर वो लोग मेरा कहा करने को तैयार हो जाएं तो ! "
खुशी ने तुरंत कहा, " हां, हां, वो लोग जरूर करेंगे । आप जो बोलोगे, वो सब करेंगे । "
उस लड़के ने अपने हर शब्द पर जोर देते हुए कहा, " सिर्फ उनको ही नहीं, आपको भी कुछ करना पड़ेगा । "
खुशी ने खाना निगलते हुए कहा, " मुझे ! "
उस लड़के ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " हां, आपको । "
खुशी ने हिम्मत करके कहा, " क्या करना पड़ेगा ? "
उस लड़के ने उससे कुछ कहने के बजाय उस वेटर को कुछ इशारा किया जो उनका ऑर्डर लेने आया था । उस वेटर ने हां में सिर हिला दिया और अंदर चला गया ।
दो मिनट बाद वो वेटर अपने हाथ में कुछ पैकेट्स लेकर आया और उन्हें उस लड़के की ओर बढ़ा दिया ।
उस लड़के ने वो पैकेट्स खुशी की ओर बढ़ाते हुए कहा, " ये गंदे कपड़े छोड़ कर, ये साफ सुथरे और अच्छे कपड़े पहनने होंगे और हर रोज़ स्कूल भी जाना होगा । बोलिए, करेंगी ! "
खुशी ने वो पैकेट्स लेते हुए खुश होकर कहा, " हां, हां, जरूर करूंगी । "
उस लड़के ने अपनी कुर्सी पर पसरते हुए कहा, " फिर तो टेंशन वाली कोई बात ही नहीं है । आप एक काम करिए, शाम को अपने मम्मी और पापा के साथ यहाँ चली आइए, ठीक है ! "
खुशी ने हां में सिर हिलाते हुए कहा, " हम्म्म ! "
तो उस लड़के ने खड़े होते हुए उस रेस्टोरेंट के मालिक से कहा, " भैया, ये जो खाना खाये इसे खिला दीजिएगा और बाकी का बचा हुआ पैक करके इसे दे दीजिएगा । "
उस आदमी ने मुस्करा कर कहा, " तुम्हें कहने की जरूरत नहीं है कान्हा, सब हो जाएगा । "
कान्हा ने उनके गाल खींचते हुए कहा, " वो तो मुझे पता ही है कि मेरे भैया बहुत अच्छे हैं । "
उसकी बातें सुन कर सभी लोग हंसने लगे और साथ में वो खुद भी । कुछ देर बाद कान्हा ने खुशी की ओर देख कर कहा, " अच्छा तो खुशी, भैया अभी चलते हैं । शाम को फिर मिलेंगे । ओ के ! "
खुशी ने खुश होकर कहा, " हम्म्म ! "
तो कान्हा ने सबकी ओर देखते हुए कहा, " अब मैं चलता हूं । "
उसने बाहर जाते हुए सबकी ओर देख कर कहा, " बाय एवरीवन ! "
बाकी सबने भी उसे बाय कहा तो कान्हा बाहर निकल गया । उसने उस रेस्टोरेंट से निकलते ही फिर से अपने हेडफोन पहन लिये और भावहीन चेहरे के साथ उसी ओर चल दिया जिधर वो पहले जा रहा था ।
कुछ ही देर में वो एक स्कूल के सामने खड़ा था । उस स्कूल के गेट पर बड़े - बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था, सर्वम इंटर कॉलेज, आर्यनगर ( काल्पनिक नाम ) ।
कान्हा ने एक नजर उस कॉलेज के गेट पर डाली और अंदर की ओर बढ़ गया । उसका ऑरा तो नॉर्मल था लेकिन उसके चेहरे पर अभी भी कोई भाव नहीं था ।
जैसे ही वो अंदर आया वैसे ही बहुत से लोगों की नजरें उस पर पड़ीं । उसने स्कूल यूनिफॉर्म ही पहन रखी थी लेकिन उसके गोरे रंग पर वो यूनिफॉर्म बहुत ही फब रही थी ।
तीखे नैन नख्श, कानों में मैग्नेटिक इयररिंग्स, उसके सिल्की बाल जो उसके माथे पर बिखरे हुए थे और उस पर भी मास्क उसे और अट्रैक्टिव लुक दे रहा था ।
वो जहां से गुजरता, वहां के लोग अपने कदम रोक कर, अपना दिल थामे उसे ही देखने लगते थे । लड़कियाँ तो उसे देखते ही खो सी गई थीं क्योंकि वो था ही इतना हैंडसम लेकिन उसे इस सब से कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था ।
उसकी नजरें सिर्फ सामने की ओर थीं । वो चलते हुए सीधा प्रिंसिपल ऑफिस के अंदर चला गया । लगभग पांच से दस मिनट बाद वो वापस आया तो उसके हाथ में उसका आइडेंटी कार्ड था ।
वो वहां से निकला और अपनी क्लास की ओर बढ़ गया लेकिन वो कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि इतने में पांच - छः लड़कों ने उसका रास्ता रोक लिया ।
कान्हा ने ठंडी नजरों से उन सबकी ओर देखा तो उनमें से एक लड़के ने कहा, " क्या मुन्ना, बड़ा गुस्सा भरा हुआ है तेरे अंदर, हां । "
तभी दूसरे लड़के ने कहा, " घूरता है बे, नजरें नीचे कर । "
कान्हा ने बिना कोई बहस किए अपनी नजरें नीचे कर लीं तो उन लड़कों की तो जैसे मन मांगी मुराद पूरी हो गई हो ।
पहले वाले लड़के ने उसका आइडेंटी कार्ड पकड़ते हुए कहा, " नाम क्या है बे तेरा ? "
फिर उसने खुद ही कान्हा का असली नाम पढ़ कर कहा, " विवेक अग्निहोत्री । "
तो विवेक ने कहा, " जी ! "
तभी दूसरे लड़के ने पहले लड़के के कंधों पर हाथ रख कर कहा, " अबे, जब ये कॉलेज के अंदर आया था तो मुझे लगा कि इस बंदे में दम होगा । "
फिर उसने विवेक की ओर देख कर उसका मजाक बनाते हुए कहा, " पर ये तो पानी कम चाय निकला । "
और इसी के साथ वो सभी हंसने लगे । वो सभी हंस रहे थे और गर्दन झुकाए हुए विवेक के के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे ।
उसने धीरे से कहा, " अब मैं जाऊं, सर ! "
पहले लड़के ने कहा, " हां, चले जाना, पर उससे पहले हमारा एक काम करना होगा । "
विवेक ने धीरे से कहा, " क्या सर ? "
उस लड़के ने अपना हाथ विवेक के गर्दन में लपेट कर मेन गेट की ओर इशारा करके कहा, " अभी इस गेट से जो भी सबसे पहले अंदर आएगा उसे तुझे गुलाब का फूल देकर प्रपोज करना होगा । "
ये सुन कर विवेक की आँखें बड़ी हो गईं । उसने पहले मेन गेट की ओर देखा और फिर उस लड़के की तरफ ।
उसने हकलाते हुए उस लड़के से कहा, " सर, पर मैं कैसे... "
उस लड़के ने विवेक की बात काटते हुए कहा, " देख, करना तो तुझे होगा ही । अब तू खुद कर ले तो ठीक, वरना हम जबरदस्ती भी करवा सकते हैं । "
उसने इतना ही कहा था कि इतने में एक लड़का गेट से अंदर आया । उसकी उम्र कोई 25 - 26 साल रही होगी ।
उसने काले रंग के फॉर्मल पैंट के साथ सफेद रंग का प्लेन शर्ट पहना हुआ था । उसके बाएं हाथ में एक चैन वाली घड़ी थी और दाएं हाथ में कलावा बंधा हुआ था ।
उसके पैरों में काले फॉर्मल जूते थे । उसके बात सलीके से सेट थे और उसके चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी । विवेक की नजर जैसे ही उस पर पड़ी, उसकी आँखें डर और हैरानी से बड़ी हो गईं ।
उसने अपने मन में खुद से ही कहा, " ये, ये यहां क्या कर रहे हैं । अगर इन्होंने हमें पहचान लिया तो ! नहीं, नहीं । हम, हम इनके सामने नहीं आ सकते । बिल्कुल नहीं आ सकते । "
अपने मन में ये सब बोल कर वो दूसरी ओर मुड़ने लगा लेकिन इतने में उन दोनों लड़कों ने उसे पकड़ लिया ।
विवेक ने रोनी सी शक्ल बना कर कहा, " सर, मैं खुद एक लड़का हूं । मैं किसी लड़के को प्रपोज कैसे कर सकता हूं ! "
दूसरे लड़के ने कहा, " अब बहुत ज्यादा जुबान चल रही है तेरी ! "
विवेक ने ना में सिर हिला कर कहा, " नहीं, सर । "
उस लड़के ने पास के गमले से एक गुलाब तोड़ कर उसके हाथ में पकड़ाते हुए कहा, " तो चल, अब चुपचाप से ये गुलाब उठा और जाकर उस लड़के को प्रपोज कर । "
विवेक ने कांपते हुए हाथों से वो गुलाब लेते हुए कहा, " ओ के, सर । "
इतना बोल कर वो आगे बढ़ने लगा । वो अभी भी कोशिश कर रहा था कि वो उस लड़के के सामने न जाए इसलिए वो अपने कदम बहुत ही धीरे धीरे बढ़ा रहा था ।
ये चीज उन लड़कों को भी दिखाई दे रही थी इसलिए वो दोनों भी उसके साथ चलने लगे । इस वजह से विवेक को भी जल्दी से वहां जाना पड़ा ।
उसने अपने मन में खुद से ही कहा, " ये लड़के तो मान ही नहीं रहे हैं । "
फिर उसने एक गहरी सांस लेकर कहा, " डी, अब और कोई रास्ता नहीं है । अब जो होगा वो देखा जाएगा । "
वो अपने मन में खुद से ही बातें कर रहा था इसलिए उसे पता ही नहीं चला कि कब वो उस लड़के के पास पहुंच गया ।
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कौन था गेट से अंदर आने वाला लड़का ?
क्या विवेक सच में उसे प्रपोज करेगा ?
इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए,
D & V : Princes Beyond Royalty
लाइक, कमेंट, शेयर और फॉलो करना न भूलें ।
लेखक : देव श्रीवास्तव
सुबह का समय,
सर्वम इंटर कॉलेज, आर्यनगर,
विवेक की रैगिंग करने वाले दोनों लड़के उसके साथ चलने लगे । इस वजह से उसे भी जल्दी से गेट से अंदर आने वाले लड़के के पास जाना पड़ा ।
विवेक ने अपने मन में खुद से ही कहा, " ये लड़के तो मान ही नहीं रहे हैं । "
फिर उसने एक गहरी सांस लेकर कहा, " डी, अब और कोई रास्ता नहीं है । अब जो होगा वो देखा जाएगा । "
वो अपने मन में खुद से ही बातें कर रहा था इसलिए उसे पता ही नहीं चला कि कब वो उस लड़के के पास पहुंच गया ।
वो तीनों उस लड़के से कुछ ही कदमों की दूरी पर थे ।
उन लड़कों ने विवेक के कंधे पर हाथ रख कर कहा, " चल मुन्ना, हो जा शुरू । "
विवेक ने अपनी आँखें बंद की और एक गहरी सांस छोड़ कर आगे बढ़ गया ।
वो उस लड़के के सामने जाकर अपना एक घुटना नीचे करके बैठ गया । अचानक से किसी के सामने आ जाने से उस लड़के ने अपने कदम रोक लिये ।
वो नासमझी से अपने सामने बैठे लड़के को देख रहा था जिसकी गर्दन झुकी हुई थी ।
इससे पहले कि वो कुछ कहता, विवेक ने अपनी गर्दन उठा कर गुलाब उसके सामने करके कहा, " आई लव यू, मिस्टर हैंडसम ! "
ये बात सुनते ही सामने वाले लड़के की आंखें हैरानी से बड़ी हो गईं । वो कुछ कहने को हुआ ही था कि तभी उसकी नजरें विवेक के आंखों पर ठहर गईं क्योंकि विवेक के चेहरे पर मास्क अभी भी था ।
वो लड़का विवेक को ऐसे देख रहा था जैसे कि उसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो और अगले ही पल उसने अपने हाथ बांध कर आराम से कहा, " ये क्या बद्तमीजी है ! "
विवेक ने कुछ कहने के बजाय अपनी नजरें नीची कर लीं । ये देख कर सामने खड़े लड़के ने थोड़ी कड़क आवाज में कहा, " उठो । "
विवेक उठ कर खड़ा हुआ तो उस लड़के ने उसके हाथ से वो गुलाब ले लिया । फिर उसने विवेक का बाजू पकड़ कर कहा, " चलो मेरे साथ । "
और विवेक को लेकर आगे बढ़ गया । विवेक कुछ बोलने को हुआ तो उस लड़के ने आगे बढ़ते हुए ही अपने होठों पर उंगली रख कर उसे चुप रहने का इशारा कर दिया ।
उनके पीछे खड़े दोनों लड़कों ने नासमझी से एक दूसरे की ओर देखा और फिर विवेक और उस लड़के के पीछे चले गए ।
चलते चलते वो लड़का विवेक को एक केबिन, जिसके बाहर असिस्टेंट प्रोफेसर सार्थक निगम का बोर्ड लगा हुआ था, उसमें लेकर गया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और वो दोनों लड़के बाहर ही रह गए ।
उन दोनों ने एक दूसरे का चेहरा देखा और अपने भौंहें उठा दीं । फिर दरवाजे की ओर इशारा करके वो दोनों ही अपने कान दरवाजे पर लगा कर खड़े हो गए । वो बात अलग है कि उन्हें सुनाई कुछ भी नहीं दे रहा था ।
वहीं कमरे के अंदर,
जैसे ही विवेक ने सार्थक को दरवाजा बंद करते हुए देखा, उसने हकलाते हुए कहा, " आई, आई एम सॉरी, सर । वो वो उन लोगों ने... "
लेकिन इससे पहले कि वो अपनी बात पूरी कर पाता, सामने खड़े लड़के ने थोड़ी शांति से कहा, " वी, क्या है ये सब ? और तुम कब से रैगिंग वगैरह को बर्दाश्त करने लगे ? हां ! "
ये सुनते ही विवेक जो किसी खरगोश की तरह सिकुड़ा हुआ था वो नॉर्मल हो गया । उसने आराम से एक चेयर पर बैठते हुए बेफिक्री के साथ कहा, " तो आपने हमें पहचान ही लिया । "
उस लड़के ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " तो, तुम्हें क्या लगता है ! ये मास्क लगा लोगे तो मैं तुम्हें पहचानूंगा नहीं ! सार्थक नाम है मेरा, सार्थक निगम ! तुम किसी को भी बेवकूफ बना सकते हो पर मुझे नहीं । "
विवेक ने बुदबुदाते हुए कहा, " वो तो दिख ही गया । "
सार्थक ने अपनी भौंहें सिकोड़ कर कहा, " क्या कहा तुमने ? "
विवेक ने तुरंत बात बदलते हुए कहा, " कुछ नहीं, सर । आप बोलिए, क्या कह रहे थें आप ? और मुझे यहां क्यों लेकर आए हैं ? "
सार्थक ने थोड़ी चिंता के साथ कहा, " पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम वहां से ऐसे अचानक से गायब क्यों हो गए ! आई मीन हुआ क्या था ? "
विवेक ने एकदम सर्द आंखों के साथ कहा, " कुछ नहीं, सर । बस ये समझ लीजिए कि हमारा वहां से हटने का समय आ गया था, इसलिए हम हट गए । "
ऐसा लग रहा था कि उसके मन में न जाने कितने विचार चल रहे हों ।
फिर भी उसने खुद को कंट्रोल करके बात बदलने के लिए सार्थक से ही सवाल करते हुए कहा, " लेकिन आप यहां कैसे ? "
सार्थक ने हैरानी के साथ अपनी भौंहें उठा कर कहा, " ये सवाल तुम पूछ रहे हो ! लाइक सीरियसली ! जबकि तुम अच्छे से जानते हो कि तुम्हारे अचानक से गायब होने की वजह से मैं कितना डरा हूंगा । "
विवेक ने धीरे से कहा, "आई एम सॉरी, सर । "
सार्थक ने चिढ़ कर ने कहा, " हां, तुम्हारे लिए मैं यहां तक आ गया और तुम मुझे सॉरी बोल रहे हो ! "
विवेक ने मुंह बना कर कहा, " क्या सर, आप भी ! "
सार्थक को भी समझ आ रहा था कि विवेक के मन में बहुत कुछ चल रहा है ।
इसलिए उसने भी बात बदलते हुए कहा, " ठीक तो हो न ! "
विवेक ने भी कहा, " ठीक हूं, सर । "
सार्थक ने ऐसे कहा जैसे कि उसका कितना बड़ा काम पूरा हो गया हो, " सच बोल रहा हूं, जब तुम अचानक से किसी को बिना बताए वहां से गायब हो गए न, तो बहुत बुरा लगा था मुझे लेकिन को इंसीडेंस देखो, मैं भी वहीं पहुंच गया जहां तुम आने वाले थे । "
विवेक ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " लेकिन अभी तो आपने कहा कि आप मेरे लिए आए थें । "
सार्थक ने चिढ़ कर कहा, " अरे छोड़ो उस बात को । द फैक्ट इज, कि किस्मत ने हमें फिर से मिला ही दिया । "
विवेक ने अपनी एक भौंह उठा कर कहा, " किस्मत ! "
सार्थक ने भी अपनी दोनों भौंहें उठा कर कहा, " क्यों ? तुम्हें कोई शक है ! "
सार्थक ने हल्के से हंस कर कहा, " नहीं, नहीं । हमें क्या शक होगा ! "
सार्थक ने अपनी कुर्सी पर बैठते हुए कहा, " गुड ! "
फिर उसने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, " वैसे, किस क्लास में एडमिशन लिया है ? "
विवेक ने नॉर्मली कहा, " 11th में, सर । "
सार्थक ने मुस्करा कर कहा, " हम्म्म, कुछ भी हो पर साल बर्बाद ना हो । "
विवेक ने भी कहा, " बिल्कुल सर । "
सार्थक ने मुंह बना कर कहा, " लेकिन ये क्या, तुमने फिर से क्या मास्क पहन लिया है ? "
विवेक ने हल्के से हंस कर कहा, " आदत सर, इतनी आसानी से नहीं छूटेगी । "
सार्थक ने एक गहरी सांस ली और फिर अपना सिर ना में हिला कर कहा, " तुम नहीं सुधरोगे न ! "
विवेक ने स्टाइल से अपने बालों में हाथ फिरा कर कहा, " बिलकुल नहीं, सर । जो सुधर गया, वो विवेक अग्निहोत्री नहीं । "
सार्थक ने मुंह बना कर कहा, " चलो, चलो, क्लास में जाओ । "
विवेक ने कहा, " ओ के, सर । "
और दरवाज़े की ओर बढ़ गया । उसने अपने हाथ हैंडल की ओर बढ़ाए ही थें की इतने में ना जाने उसके मन में क्या आया कि उसने वापस सार्थक की ओर देख कर कहा, " सर, एक बात और ! "
सार्थक ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " बोलो । "
विवेक ने हिचकिचाते हुए कहा, " वो गुलाब वाली बात ! "
सार्थक ने अपनी आई विंक करके कहा, " उसकी टेंशन मत लो तुम । वो मैंने खुद एक्सेप्ट की है । "
ये सुन कर विवेक के मुंह से निकला, " हां ! "
सार्थक ने लापरवाही से कहा, " अब मुझे ऐसे मत देखो और निकलो यहां से । "
विवेक फिर से कुछ कहने को हुआ ही था कि सार्थक ने कहा, " मुझे दुबारा ना बोलना पड़े । निकलो यहां से ! "
विवेक फिर से कुछ बोलता लेकिन ना जाने उसके दिमाग में क्या आया कि उसने अपना सिर हां में हिलाया और फिर से दरवाजे की ओर पलट गया ।
उसने दरवाजे का लॉक खोल कर धकेला तो दरवाजे के बाहर खड़े दोनों लड़कों को भी धक्का लग गया । वो दोनों संभल नहीं पाए और नीचे जा गिरे ।
उनके गिरने की आवाज सुन कर सार्थक भी तुरंत बाहर आ गया । बाहर आते ही उसकी नजर सामने गिरे हुए दोनों लड़कों पर पड़ी ।
उसने थोड़ी कड़क आवाज में कहा, " तुम दोनों कौन हो और क्लास में होने के बजाय यहां क्या कर रहे हो ? "
उनमें से एक लड़के ने हकलाते हुए कहा, " कुछ नहीं, सर । हम तो, हम तो बस... "
उसकी आवाज मानों बाहर आ ही नहीं रही थी इसलिए सार्थक ने चिढ़ कर कहा, " क्या हम तो, हम तो लगा रखा है ! अभी के अभी क्लास में जाओ । "
उसकी आवाज इतनी कड़क थी कि वो दोनों लड़के तुरंत उठे और अपनी क्लास की ओर भाग गए । विवेक अभी भी वहीं पर खड़ा था ।
सार्थक ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, " ये दोनों तुम्हारे रैगर्स ही हैं न ! "
विवेक ने कुछ कहे के बजाय सिर्फ हां में सिर हिला दिया । सार्थक ने उसके कंधे थपथपा कर कहा, " उनकी टेंशन तुम मत लो । उन्हें तो मैं देख लूंगा । "
विवेक ने एकदम आराम से कहा, " उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी सर । उनके लिए तो मैं खुद ही काफी हूं । "
सार्थक ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " अच्छा ! तो अभी उनकी बात क्यों मानी ? अभी ही उनकी अक्ल ठिकाने लगा सकते थे न ! "
विवेक ने कहा, " नहीं सर, मैं फिर से वही सब नहीं करना चाहता । हां, अगर हालात वैसे ही बन गए तो जरूर मैं भी उसी रूप में आ जाऊंगा लेकिन तब तक जैसा चल रहा है, वैसा चलने देते हैं । "
सार्थक ने हल्के से मुस्करा कर कहा, " जैसी तुम्हारी मर्जी । बस ये याद रखना कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं और आगे भी रहूंगा । "
विवेक ने हल्के से झुक कर कहा, " श्योर सर ! "
और फिर अपने क्लास की ओर बढ़ गया । वो क्लास में जाकर पीछे की एक बेंच पर चुपचाप बैठा हुआ था । उसने किसी से एक शब्द भी नहीं बोला था ।
हां, वो बात अलग है कि मास्क पहनने के बाद भी बहुत सी लड़कियां उसे अप्रोच करने की कोशिश कर रही थीं, क्योंकि उसकी आंखों में भी एक नशा था जो किसी को भी अपना दीवाना बना ले ।
कुछ देर बाद प्रोफेसर क्लास में आए और सबका इंट्रो लेने लगे तब जाकर विवेक ने कुछ बोला ।
उसने अपना इंट्रो देते हुए कहा, " हेलो एवरीवन ! माय नेम इज विवेक अग्निहोत्री । "
इतना बोल कर वो चुप हो गया तो प्रोफेसर नासमझी से उसे देखने लगे और बाकी सारे बच्चों की गर्दन भी उसकी ओर ही घूम गई लेकिन विवेक चुपचाप खड़ा था ।
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क्या चल रहा था विवेक के दिमाग में ?
ऐसा क्या हुआ था जो वो यहां नहीं चाहता था ?
इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए,
D & V : Princes Beyond Royalty
लाइक, कमेंट, शेयर और फॉलो करना न भूलें ।
लेखक : देव श्रीवास्तव
सुबह का समय,
सर्वम इंटर कॉलेज,
विवेक ने अपनी क्लास में अपना इंट्रो देते हुए कहा, " हेलो एवरीवन ! माय नेम इज विवेक अग्निहोत्री । "
इतना बोल कर वो चुप हो गया तो प्रोफेसर नासमझी से उसे देखने लगे और बाकी सारे बच्चों की गर्दन भी उसकी ओर ही घूम गई लेकिन विवेक चुपचाप खड़ा था ।
ये देख कर प्रोफेसर ने कहा, " बस ! हो गया तुम्हारा इंट्रो ? "
इससे पहले कि विवेक कुछ कहता, सार्थक वहां आ गया ।
उसने क्लास के दरवाजे पर खड़े होकर ही प्रोफेसर से कहा, " सर, दो मिनट आप बाहर आ सकते हैं क्या ! "
प्रोफेसर ने एक नजर विवेक को देखा और फिर हां में सिर हिला कर कहा, " जी ! " और बाहर चले गए ।
दो मिनट के बाद वो अंदर आए । उन्होंने विवेक, जो कि अभी तक खड़ा था, उसकी ओर देख कर कहा, " मुझे सर ने तुम्हारे बारे में बता दिया है । तुम बैठ सकते हो । "
विवेक ने कहा, " थैंक यू, सर । "
और फिर से अपनी सीट पर बैठने लगा लेकिन इतने में प्रोफेसर ने कहा, " लेकिन ! "
विवेक नासमझी से उनकी ओर देखने लगा तो प्रोफ़ेसर ने कहा, " तुम्हें अपना मास्क उतारना होगा । ये कोविड का टाइम नहीं है जो तुम इस वक्त भी मास्क लगा कर घूमते हो । "
ये सुनते ही विवेक की नजरें तुरंत दरवाजे की ओर घूम गईं जहां बाहर सार्थक खड़ा था । विवेक उसे देख कर चिढ़ गया तो सार्थक के होठों पर एक चिढ़ाने वाली मुस्कान आ गई ।
विवेक ने प्रोफेसर की ओर देख कर कहा, " सर, ये मेरी आदत है । "
प्रोफेसर ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, " तो आदत बदली भी जा सकती है । "
अब विवेक के पास और कोई ऑप्शन नहीं था । उसने एक गहरी सांस ली और अपना मास्क उतरने लगा । पूरे क्लास की नजरें उस पर ही टिकी हुई थीं ।
जैसे जैसे उसका मास्क हट रहा था वैसे वैसे सभी स्टूडेंट्स की सांसें रुकती सी जा रही थीं । उसके बाईं ओर से मास्क हटते ही सबसे पहले दिखी उसकी जॉ लाइन जो बिल्कुल शार्प थी ।
फिर उसके मक्खन जैसे मुलायम गाल, फिर उसके गुलाबी होंठ और साथ में पतली और लंबी नाक । इसी तरह से उसका पूरा चेहरा नजर आया ।
वो देखने में बहुत ही हैंडसम और क्यूट था । लड़कियां तो लड़कियां, लड़के भी उसे देख कर खुद को कंट्रोल नहीं कर पा रहे थें । सबके मुंह उसे देख कर खुले हुए थे ।
विवेक ने मास्क उतारने के बाद प्रोफेसर की ओर देख कर कहा, " सर, मे आई सीट नाउ ? "
प्रोफेसर, जो खुद उसे देख कर खो से गए थे, उसकी आवाज सुन कर होश में आए ।
उन्होंने हड़बड़ा कर कहा, " हां, हां ! बैठो, बैठो । "
फिर उन्होंने क्लास का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए गला खराश कर कहा, " अटेंशन क्लास ! "
सारे बच्चे प्रोफेसर की ओर घूम गए और विवेक अपनी जगह पर बैठ गया । इतने में उसकी नजर फिर से दरवाजे की ओर गई तो सार्थक अभी भी वहां खड़ा था ।
उसके हाथ में उसका फोन था जिससे वो विवेक की पिक्चर्स क्लिक कर रहा था । जैसे ही विवेक की नजरें उस पर पड़ीं, सार्थक ने उसे स्माइल करके का इशारा किया ।
उसकी हरकतें देख कर विवेक ने चिढ़ कर मुंह बनाया और मुंह फेर कर बैठ गया लेकिन इस बार उसका मुंह और बन गया क्योंकि बाकी क्लास अभी भी मुड़ मुड़ कर उसे देख रही थी ।
ये देख कर उसने अपनी नजरें किताब में गड़ा लीं । वहीं उसकी हरकतें देख कर सार्थक को हँसी आ रही थी । उसने अपना सिर ना में हिलाया और मुस्कराते हुए ही आगे बढ़ गया ।
दोपहर का समय,
सार्थक अपने कैबिन में आया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया । उसने तुरंत अपना फोन निकाला और विवेक की फोटोज किसी अनजान नंबर पर भेज दीं ।
इतने में उसके दरवाजे पर दस्तक हुई जिससे सार्थक हड़बड़ा गया और उसका फोन उसके हाथ से उछल गया । वो तो अच्छा हुआ कि उसने जल्दी से उसे पकड़ लिया वरना उस फोन का कल्याण होना तय था ।
वो चिढ़ कर उठा और दरवाजे की ओर बढ़ गया । दरवाजा खोलते ही उसने कहा, " क्या है ? इस वक्त... "
लेकिन आगे की बात उसके मुंह में ही रह गई क्योंकि सामने विवेक खड़ा था । उसने फिर से मास्क पहन लिया था । उसे देखते ही सार्थक का मुंह अपने आप ही बंद हो गया । वो चुपचाप विवेक को देखे जा रहा था ।
ये देख कर विवेक ने चिढ़ कर अंदर की ओर इशारा किया तो सार्थक साइड हो गया और विवेक तुरंत अंदर आ गया ।
उसने अंदर आते ही सार्थक से सवाल करते हुए कहा, " ये क्या कर रहे थें आप ? "
सार्थक जो दरवाजा बंद कर रहा था उसने विवेक की ओर पलट कर बड़ी ही मासूमियत के साथ कहा, " मैंने क्या किया ? कुछ भी तो नहीं । "
विवेक ने उसे घूरते हुए अपने हाथ बांध कर कहा, " अच्छा ! सर को मेरा मास्क उतरवाने के लिए क्या मेरे भूत ने कहा था ! "
सार्थक ने अपने टेबल के पास जाकर विवेक को पता चले बिना वो फोन छिपाते हुए कहा, " कैसी बातें कर रहे हो तुम ! भूत मरने के बाद बनते हैं, जीते जी नहीं । "
विवेक ने हैरानी के भावों के साथ कहा, " ओह, मुझे तो ये बात पता ही नहीं थी । "
सार्थक ने उसकी बातों में छिपे तंज को समझ कर भी कहा, " अब तो पता चल गई न ! "
विवेक ने अपने हाथ जोड़ कर अपने माथे के पास करके कहा, " जी, बड़ी मेहरबानी आपकी ! "
ये सुन कर सार्थक गर्व से तन गया तो विवेक ने चिढ़ कर कहा, " मजाक खत्म हो गया हो तो सीरियस हो जाइए । "
सार्थक ने तुरंत सीधा होकर कहा, " हो गया । बोलो, क्या हुआ ! "
विवेक ने मुंह बना कर कहा, " सर, प्लीज ! "
इस बार सार्थक ने चिंता के साथ कहा, " क्या हुआ वी ? तुम इतने चिढ़े हुए क्यों हो ?
विवेक ने शिकायती लहजे में कहा, " आप जानते हैं न ! हमें नहीं पसंद है सबका हमें यूं घूर घूर कर देखना । इसीलिए हम हमेशा मास्क में रहते हैं । फिर आप जान बूझ कर ऐसा क्यों करते हैं ? "
सार्थक ने फिर से अपनी हरकतों पर वापस आते हुए कहा, " क्योंकि तुम पागल हो । "
ये सुन कर विवेक के मुंह से निकला, " हां ! "
तो सार्थक ने चिढ़ कर कहा, " हां ! क्या जरूरत है तुम्हें दूसरों के वजह से खुद को तकलीफ देने की ! और... "
फिर उसने विवेक का मास्क हटा कर कहा, " उतारो ये मास्क । क्या दम नहीं घुटता है क्या तुम्हारा इस मास्क में, जो हमेशा इसे अपने मुंह पर चिपका कर घूमते हो ! "
ये सब बोलते हुए उसने वो उस मास्क को डस्ट बिन में डालने ही वाला था कि विवेक ने उसका हाथ पकड़ कर कहा, " सर प्लीज ! "
सार्थक ने एक गहरी सांस लेकर अपना हाथ पीछे खींचते हुए कहा, " अच्छा बाबा, ठीक है । मैं नहीं कहूंगा तुमसे ये मास्क हर जगह हटाने को, लेकिन क्लास में तो हटा सकते हो न ! "
विवेक ने वो मास्क लेकर अपने पॉकेट में डालते हुए कहा, " सर, आप मेरे मास्क के पीछे ही क्यों पड़े रहते हैं ? "
सार्थक ने अपने मन में ही कहा, " अब तुम्हें कैसे बताऊं कि इस चेहरे को देखने को कितनी नजरें तरसती हैं वो भी सिर्फ और सिर्फ इस मास्क के वजह से ! "
उसे खोया हुआ देख कर विवेक ने उसे हिला कर कहा, " सर, कहां खो गए, आप ? "
उसकी हरकतों से सार्थक वापस होश में आया । उसने हड़बड़ा कर कहा, " क, कहीं, कहीं नहीं । कहीं भी तो नहीं । "
विवेक ने उसका सिर छू कर टेम्परेचर चेक करते हुए कहा, " सर, आप ठीक तो हैं न ! "
सार्थक ने थोड़ा पीछे होकर कहा, " हां, हां, मैं बिल्कुल ठीक हूं । मुझे क्या हुआ होगा ? "
विवेक ने मुंह बना कर कहा, " कुछ नहीं, बस कौआ आपके कान ले गया । "
सार्थक ने नासमझी से कहा, " क्या ! "
विवेक ने चिढ़ कर कहा, " कुछ नहीं । "
फिर उसने दरवाजे की ओर बढ़ते हुए कहा, " मैं जा रहा हूं । "
सार्थक ने उसे रोकते हुए कहा, " वी, रुको । "
विवेक ने दरवाजा खोल कर बाहर जाते हुए कहा, " मुझे नहीं रुकना । "
और आगे की ओर बढ़ गया ।
सार्थक ने ना में सिर हिला कर कहा, " ये लड़का भी न ! "
और इसी के साथ उसके होठों पर मुस्कान आ गई ।
शाम का समय,
विवेक की क्लासेज ओवर होते ही उसने अपना बैग उठाया और बाहर की ओर चल दिया । कॉलेज से निकल कर वो फिर से उसी रेस्टोरेंट में पहुंच गया जहां वो सुबह में खुशी को लेकर गया था ।
उसने वहां जाकर देखा तो खुशी अपने माता - पिता के साथ पहले ही वहां आ चुकी थी । उसने विवेक के दिए हुए कपड़े ही पहन रखे थे ।
विवेक ने अभी भी मास्क पहन रखा था लेकिन खुशी की नज़र जैसे ही उस पर पड़ी वो दौड़ कर उसके पास चली गई । विवेक ने भी उसे गले लगा लिया ।
फिर उसने खुशी को खुद से अलग करके कहा, " बहुत अच्छी लग रही हो । "
अब तक ख़ुशी के माता - पिता भी उन दोनों के पास पहुँच चुके थे । विनय (ख़ुशी के पिता) ने कहा, " ये कपड़े इसे आपने ही तो दिए हैं , सर । "
उनकी आवाज सुन आर विवेक का ध्यान अब जाकर उन पर गया । उसने खड़े होते हुए विनय की आंखों में देखते हुए कहा, " अरे, अरे, आप ये कैसी बातें कर रहे हैं, सर ! मेरी हैसियत कहां है आपकी बच्ची को कुछ देने की ! "
विनय ने सहज भावों के साथ कहा, " कैसी बातें कर रहे हैं आप ! "
विवेक ने अपनी एक भौंह उठा कर कहा, " कैसी बातें कर रहा हूं, मैं ! "
और इसी के साथ उसने अपना मास्क उतार दिया । जैसे ही उसका चेहरा विनय और रश्मि के सामने आया, उनकी आंखें डर और हैरानी से बड़ी हो गईं ।
उन दोनों ने कस कर एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया था और वो दोनों ही बुरी तरह से कांपने लगे थे ।
वहीं विवेक ने उनकी आंखों में आंखें डाल कर कहा, " क्या अब भी आप ऐसा ही कहेंगे ! "
विनय ने हकलाते हुए कहा, " तु, तु, तुम, तुम तो ! "
लेकिन इससे पहले कि वो अपनी बात भी पूरी कर पाता, विवेक ने सर्द आवाज में कहा, " बस ! "
उसकी आवाज सुन कर विनय की टूटी फूटी बातें निकलनी भी बंद हो गईं ।
वहीं विवेक ने उसी अंदाज में कहा, " अब सिर्फ हम बोलेंगे । "
फिर उसने खुशी के पास बैठ कर बड़े ही प्यार से कहा, " खुशी बेटा ! "
फिर उसने उस हॉटेल के मालिक की ओर इशारा करके कहा, " आप जरा अंकल के साथ अंदर जाकर खेलोगे ! "
खुशी बेचारी को कहां कुछ समझ आता । विनय और रश्मि ने उसे मना भी करना चाहा लेकिन उससे पहले ही खुशी ने मासूमियत के साथ कहा, " ओ के, भैया । "
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कौन थे विनय और रश्मि ?
वो दोनों विवेक को देख कर डर क्यों रहे थें ?
इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए,
D & V : Princes Beyond Royalty
लाइक, कमेंट, शेयर और फॉलो करना न भूलें ।
लेखक : देव श्रीवास्तव
शाम का समय, रेस्टोरेंट में विनय और रश्मि को चुप कराने के बाद विवेक ने सर्द आवाज में कहा, " अब सिर्फ हम बोलेंगे । " फिर उसने खुशी के पास बैठ कर बड़े ही प्यार से कहा, " खुशी बेटा ! " फिर उसने उस हॉटेल के मालिक की ओर इशारा करके कहा, " आप जरा अंकल के साथ अंदर जाकर खेलोगे ! " खुशी बेचारी को कहां कुछ समझ आता । विनय और रश्मि ने उसे मना भी करना चाहा लेकिन उससे पहले ही खुशी ने मासूमियत के साथ कहा, " ओ के, भैया । " और उछलते कूदते हुए हॉटेल के मालिक के पास चली गई । उन दोनों के अंदर जाने के बाद विवेक फिर से विनय और रश्मि की ओर पलट गया जिनकी आंखों में डर और दहशत साफ झलक रही थी । विवेक ने टेबल की ओर इशारा करके उन दोनों से कहा, " बैठिए । " लेकिन वो दोनों बैठने के बजाय विवेक के सामने हाथ पैर जोड़ते हुए कहने लगे, " हमें, हमें माफ कर दीजिए, सर ! हमसे, हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई । आगे से... " उन्होंने इतना ही कहा था कि विवेक ने अपना हाथ जोर से टेबल पर पटक दिया जिससे विनय और रश्मि की बाकी बातें उनके मुंह में ही रह गईं । विवेक ने फिर से सर्द आवाज में कहा, " बैठिए । " विनय ने फिर से अपने हाथ जोड़ कर कहा, " आप, आप प्लीज हमारी बेटी को कुछ मत करिए । प्लीज सर ! " उसने इतना ही कहा था कि विवेक ने पास में पड़ा हुआ फॉर्क उठा कर उसे जोर से टेबल पर मार कर तेज आवाज में कहा, " हमें भी उन जैसा समझ रखा है क्या ! " उसकी आंखों और आवाज, दोनों में गुस्सा साफ झलक रहा था जिसे महसूस कर विनय और रश्मि अंदर तक कांप गए थे । ये देख विवेक ने अपनी आँखें बंद कर गहरी सांसें लीं और फिर उन दोनों की ओर देख कर कहा, " शांत रहिए । हम आपकी बेटी को कुछ नहीं करेंगे । " फिर उसने वापस से वो फॉर्क टेबल पर मारते हुए कहा, " क्योंकि हम उनके जैसे बिल्कुल नहीं हैं । हमें बच्चों में हमारे दुश्मन नहीं, उनकी मासूमियत दिखाई देती हैं । " विनय जिसकी हालत विवेक को देख कर ही खराब हो रही थी, उसने डरते हुए ही नासमझी से विवेक को देख कर कहा, " तो आप यहां क्यों आए हैं ? " इतने में रश्मि ने भी हिम्मत करके कहा, " और आपने हमारी बेटी को हम तक पहुंचने का रास्ता क्यों बनाया ? " बस, उनके इसी हरकत ने विवेक का गुस्सा और बढ़ा दिया । उसने अपनी नजरें टेबल पर गड़ाते हुए फॉर्क पर टिकाए हुए ही शांत लेकिन बिल्कुल सर्द आवाज में कहा, " एकदम चुप ! " फिर उसने अपने हाथ रोक लिये । उसने अपनी नजरें विनय और रश्मि की ओर करके उसी अंदाज में कहा, " सवाल पूछने का काम हमारा है, आपका नहीं । " फिर उसने अपनी नजरें वापस घुमा ली और वो फॉर्क उस टेबल पर मारते हुए कहा, " वो आप ही थें न, जिसने थोड़े पैसों के लालच में अपने मालिक को धोखा दे दिया । सिर्फ अपने स्वार्थ के चलते हमारे पूरे परिवार को तहस नहस कर दिया । " उसकी आवाज़ में गुस्सा साफ झलक रहा था । उसे ऐसे देख कर उन दोनों ने अपने हाथ जोड़ कर कहा, " हमें माफ कर दीजिए राज... " लेकिन इससे पहले कि वो अपनी बात पूरी कर पातें, विवेक ने वो फॉर्क रख कर अपनी कुर्सी पर पसरते हुए कहा, " अरे, अरे, ये क्या कर रहे हैं आप लोग ? ये मत कीजिए । हम बस ये जानना चाहते हैं कि आपकी ऐसी हालत कैसे हो गई ? " फिर उसने तंज के साथ अपनी एक भौंह उठा कर कहा, " क्या वो सारी काली कमाई खत्म हो गई क्या ? या उन सबने आपके सिर पर से अपना हाथ हटा लिया ? " अब विनय से भी ये सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था । उसने सब कुछ विवेक के ही सिर पर डालते हुए कहा, " हां, उन्होंने हमें निकाल दिया वहां से और हमारे पैसे भी हमें नहीं दिए... " फिर उसने नफरत से कहा, " वो भी सिर्फ और सिर्फ आपके वजह से । " विवेक ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " हमारी वजह से ! " रश्मि ने कहा, " हां, आपके भाई की मौत के बाद आप ही एकमात्र जरिया थे उनके पास, लेकिन आप भी वहां से भाग गए । " विवेक ने उनकी बात पूरी करते हुए कहा, " और इसी वजह से उन लोगों ने आप दोनों को निकाल दिया । " विनय ने अपनी नजरें झुकाए हुए लेकिन उसी नफरत के साथ कहा, " हां, अगर आप भागे नहीं होते तो आज हमारी हालत ऐसी नहीं होती । " विवेक ने अचानक से सामने की ओर झुक कर अपने दाएं हाथ की तर्जनी उंगली को होठों पर रख कर बिलकुल धीमी आवाज में कहा, " शशशश्श ! चुप ! एकदम चुप ! " फिर उसने वापस उसी तरह बैठ कर रौब के साथ कहा, " बोलने को कहा, इसका मतलब ये नहीं कि जो मुंह में आता जाएगा वो बोलते जाएंगे । " उसके मूव्स ऐसे थें कि किसी के भी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ जाए और यही हालत इस वक्त विनय और रश्मि की थी । उन दोनों का तो जैसे मुंह ही सिल गया हो । वहीं विवेक ने आगे कहा, " आप लोगों की ये हालत हुई है आपके वजह से । आप लोगों ने जाकर हमारे दुश्मनों से हाथ मिलाया । " फिर उसने नफरत से कहा, " ये तो हमारे संस्कार हैं जो इस सबके बाद भी हम आप दोनों से तमीज के साथ आप आप कह कर बात कर रहे हैं वरना जो आप लोगों ने किया है न ! उसके बाद तो हम आप लोगों की शक्ल भी न देखें । " फिर उसने वापस उन दोनों की ओर झुक कर कहा, " सच बताइए, ऐसी क्या मजबूरी थी आपकी, जो लोगों को अपने मालिक को धोखा देना पड़ा ! जिन्होंने हमेशा आपका साथ दिया था, हर कदम पर आपके साथ खड़े थें, उनके साथ ऐसा क्यों किया आपने ? " विवेक की बातें सुन कर उन दोनों की आंखों से आंसू बहने लगे थे क्योंकि कहीं न कहीं उन्हें भी इस बात का अंदाजा था कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है । उन दोनों ने रोते हुए अपने हाथ जोड़ कर कहा, " हमें माफ कर दीजिए । हमारे अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे उस वक्त । " विवेक ने भी कहा, " लगता तो यही है । " फिर उसने खड़े होते हुए कहा, " खैर, छोड़िए इन बातों को । हम यहां कुछ और बात करने आए हैं । " विनय ने हल्के से झुक कर कहा, " जी कहिए । " विवेक ने पीछे की ओर पलट कर कहा, " क्या आप फिर से हमारे वही पुराने विश्वासपात्र बन सकते हैं ? " ये सुन कर विवेक और रश्मि की आंखें हैरानी से बड़ी हो गईं । उन दोनों ने अविश्वास के साथ एक दूसरे को देखा और फिर विवेक की ओर देख कर कहा, " आप, आप सच में हमें दूसरा मौका दे रहे हैं ! " विवेक ने कहा, " चाहते तो नहीं थे लेकिन सिर्फ और सिर्फ खुशी के लिए, हां ! " ये सुन कर विनय और रश्मि खुश हो गए लेकिन इतने में ही विवेक ने कहा, " लेकिन... " ये सुनते ही उन दोनों की नजरें फिर से विवेक की ओर घूम गईं तो उसने आगे कहा, " एक बात याद रहे । अगर इस बार भी वही गलती हुई, तो माफी नहीं, हमारी तलवार और आपकी गर्दन होगी । " उन दोनों ने झुक कर कहा, " जी राज... " लेकिन इतने में विवेक ने कहा, " बस ! जो काम दिया जाए, जाकर वो काम करिए । " फिर उसने होटल का मालिक, जो खुशी को लेकर आ रहा था, उसकी ओर देख कर कहा, " मैं चलता हूं, भाई । " फिर वो खुशी के पास, अपने घुटनों के बाल बैठ गया । उसने खुशी के सिर पर हाथ फिरा कर कहा, " चलता हूं, छोटी । फिर मिलेंगे । ओ के ! " खुशी ने भी अपनी गर्दन हिला कर कहा, " ओ के ! " फिर विवेक उठ खड़ा हुआ । वो दरवाजे के बाहर जाकर फिर से अंदर की ओर पलट गया । उसने खुशी को देखते हुए अपना हाथ हिला कर कहा, " बाय ! " खुशी ने भी उछलते हुए कहा, " बाय भैया ! " तो विवेक एक नजर विनय और रश्मि पर डाल कर वहां से निकल गया । उसके जाने के बाद विनय और रश्मि ने ऐसे सांस ली जैसे की कब से उनकी सांसें रोक कर रखी गई हों । वहीं विवेक वहां से निकल कर एक दिशा में बढ़ गया । उसने एक कैब ली और उसमें बैठ कर आगे बढ़ गया । कुछ ही देर में वो कैब एक घर के सामने आकर रुकी । विवेक ने कैब से उतर कर पेमेंट की और अंदर की ओर बढ़ गया । वो घर बहुत बड़ा नहीं था । घर के सामने एक लोहे का गेट था । गेट के अंदर दो कार पार्क करने जितनी जगह थी जहां फिलहाल सिर्फ एक बाइक खड़ी थी । एक तरफ लाइन से गमले रखे हुए थे जिनमें अलग अलग प्रजाति के बहुत सारे फूल थे । उसके बाद अंदर आने के लिए कुछ सीढ़ियां थीं और फिर दरवाजा । दरवाजे के बगल में ही एक बेसिन लगा हुआ था । दरवाजा खुलते ही एक हॉल था । हॉल के एक तरफ किचन था और दूसरे तरफ एक गैलरी थी जहां दो कमरे थे और अंत में एक बाथरूम था । विवेक ने अंदर जाकर गेट को लॉक किया और अंदर की ओर बढ़ गया । उसने बाहर ही हाथ मुंह धुला और अंदर, हॉल में चला गया जहां एक लड़का बैठा हुआ लैपटॉप में कुछ काम कर रहा था । उस लड़के की उम्र 23 - 24 साल रही होगी । विवेक को अंदर आते देख वो लड़का उठा और किचन की ओर बढ़ गया । विवेक ने उसे नहीं देखा था । उसने आकर अपने जूते उतारे और बैग साइड में रख कर सोफे पर पसर कर बैठ गया । वो अभी रिलैक्स कर ही रहा था कि इतने में एक हाथ ने उसकी ओर नींबू पानी का गिलास बढ़ाते हुए कहा, " वी, थोड़ा पानी पी लो । तुम्हें आराम मिलेगा । " विवेक ने वो पानी लिया और एक ही बार में पूरा गिलास खाली कर दिया । वो लड़का खाली गिलास लेकर अंदर चला गया । वहीं विवेक को अब थोड़ा अच्छा महसूस हो रहा था इसलिए वो सीधा होकर बैठ गया । बैठते ही उसकी नजर सामने लैपटॉप पर पड़ी और वो उसमें कुछ देखने लगा । इतने में वो लड़का बाहर आया । उसे देख कर विवेक ने उससे लैपटॉप की ओर इशारा करके कहा, " ये कौन है भाई, जिसे हमें देखने की इतनी चुल मची हुई है ! " वो लड़का कुछ कहने के बजाय उसके बगल में बैठा और लैपटॉप बंद करके साइड में रख दिया । ये देख विवेक नासमझी से उसे देखने लगा तो उस लड़के ने कहा, " तुम्हें बस बिजनेस की और बाकी सबकी पड़ी रहती है । कभी अपने बारे में भी सोच लिया करो । " विवेक ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " और अपने बारे में क्या सोचें हम ? " _______________________ क्या किया था विनय और रश्मि ने जिससे विवेक का परिवार तहस नहस हो गया था ? उनसे धोखा खाने के बाद भी विवेक उन्हें मौका क्यों दे रहा था ? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए, D & V : Princes Beyond Royalty लाइक, कमेंट, शेयर और फॉलो करना न भूलें । लेखक : देव श्रीवास्तव
शाम का समय, विवेक का घर, जब विवेक अपने सामने बैठे लड़के को नासमझी से देखने लगा तो उस लड़के ने कहा, " तुम्हें बस बिजनेस की और बाकी सबकी पड़ी रहती है । कभी अपने बारे में भी सोच लिया करो । " विवेक ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " और अपने बारे में क्या सोचें हम ? " और अपने सॉक्स उतारने लगा लेकिन उस लड़के ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर घुमा लिया । उसने विवेक के बाजुओं को कस कर पकड़ कर कहा, " वी ! कब तक चलेगा ये सब ? " उसके इस हरकत से विवेक ने अपनी आँखें भींच लीं । फिर उसने आंखें खोल कर उस लड़के को देख कर अनजान बनते हुए कहा, " क्या सब ? " उस लड़के ने अपना सिर हां में हिलाते हुए कहा, " क्या सब, मैं बताता हूं क्या सब ! " इतना बोल कर उसने विवेक के ब्लेजर के बटंस खोल दिए । विवेक ने उसके सीने पर हाथ रख कर उसे दूर धकेलते हुए कहा, " भाई ! ये क्या कर रहे हैं, आप ! " उस लड़के ने फिर से आगे बढ़ते हुए कहा, " तुम्हें तुम्हारे ' ये सब ' का जवाब दे रहा हूं । " और उसके शर्ट के बटंस खोलने लगा । विवेक ने उसे रोकने की कोशिश करते हुए कहा, " भाई ! " लेकिन उस लड़के ने भी हार नहीं मानी । उसने विवेक को सीधा करते हुए कड़क आवाज में कहा, " वी ! " लेकिन इतने में विवेक की चीख निकल गई । ये देख कर वो लड़का घबरा सा गया । उसके पैर दो कदम पीछे हो गए । वहीं विवेक अपने बाएं बाजू को पकड़ कर बैठ गया । उस लड़के ने उसके पास बैठ कर चिंता के साथ कहा, " क्या हुआ, वी ? " लेकिन विवेक कुछ बोल ही नहीं रहा था । वो बस अपना हाथ पकड़े हुए उस दर्द को सहन करने की कोशिश कर रहा था । उस लड़के ने उसका हाथ वहां से हटाने को कोशिश करते हुए कहा, " वी, देखने दो मुझे । " विवेक ने मुश्किल से उसे रोकते हुए कहा, " भाई, प्लीज ! " उस लड़के ने गंभीरता के साथ कहा, " वी ! मेरा ये देखना जरूरी है । घाव ज्यादा गहरा हुआ तो प्रॉब्लम हो जाएगी । " विवेक ने उसे कोई जवाब नहीं दिया लेकिन अपने मन में ही कहा, " उस प्रॉब्लम से ज्यादा आपकी डांट सुननी पड़ेगी हमें । " वहीं उस लड़के ने विवेक को जवाब न देता देख कर कहा, " वी, तुम्हें अंकल और आंटी का वास्ता, देखने दो मुझे । " ये सुनते ही विवेक की गर्दन एक झटके से उसकी ओर घूम गई । वो उस लड़के को खा जाने वाली नजरों से घूरने लगा लेकिन उस लड़के को तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था । वो भी ठंडी नजरों से विवेक को घूर रहा था । अब क्योंकि उस लड़के ने विवेक को कसम दे दी थी इसलिए विवेक के पास कोई और ऑप्शन नहीं था । वो चिढ़ के साथ अपना ब्लेजर उतारने लगा । फिर वो अपनी शर्ट उतारने लगा । जैसे जैसे उसके शर्ट के बटंस खुल रहे थे वैसे वैसे उसके सीने पर कुछ निशान नजर आने लगे थे जिनमें से कुछ पुराने थे तो कुछ नए । जैसे ही उसने अपनी शर्ट पूरी तरह से उतारी, उसके हाथों पर पट्टियां नजर नजर आने लगीं जिनसे अब खून रिसने लगा था । ये देखते ही उस लड़के की आँखें बड़ी हो गईं और इसी के साथ उसके मुंह से निकला, " ओ माय गॉड ! " उसने विवेक से सवाल करते हुए कहा, " वी, क्या है ये सब ? " विवेक ने अपनी पट्टी खोलते हुए कहा, " कुछ नहीं । " उस लड़के ने विवेक का हाथ पकड़ लिया । विवेक ने उसकी ओर देखा तो उसने कहा, " तुम फिर से वहां गए थे न ! " विवेक ने कुछ कहने के बजाय उसका हाथ झटक दिया और फिर से अपनी पट्टी खोलने लगा । उस लड़के ने खुद विवेक की पट्टी खोलने के लिए हाथ बढ़ाया तो विवेक ने अपना दायां हाथ पीछे खींच लिया और वो लड़का खुद उसकी पट्टी करने लगा । पट्टी करने के बाद उसने कहा, " वी, जवाब दो मुझे, तुम फिर से वहां गए थे न ! " विवेक ने चिढ़ कर कहा, " हां, गए थे । " उस लड़के ने अपने हाथ की मुट्ठी बनाई और टेबल पर मार कर कहा, " ये दोनों बुड्ढे बुढ़िया को क्या चुल मच जाती है जो कभी भी आ जाते हैं । " विवेक ने उठते हुए कहा, " अब उसमें हम नहीं न कुछ करते हैं । " उस लड़के ने भी उसके सामने खड़े होकर कहा, " पर ये सब कब तक चलेगा, वी ! " फिर उसने विवेक के कंधों पर हाथ रख कर कहा, " छः साल, पूरे छः सालों से तुम ये सब कुछ झेल रहे हो, वो भी अकेले ! आखिर तुम ही क्यों ? " विवेक ने उसका हाथ हटा कर दवाइयां लेते हुए कहा, " क्योंकि हमने ये दर्द, ये तकलीफ खुद चुनी है अपने लिए । क्योंकि अगर हम इसे नहीं सहते, तो उसे सहना पड़ता । " फिर उसने दृढ़ता के साथ कहा, " और हमारे रहते हम उसका बाल भी बांका नहीं होने देंगे । " उस लड़के ने चिढ़ कर उसे अपनी ओर घुमा कर कहा, " पर तुम्हारा क्या, वी ? " विवेक ने अपने कंधे झटक कर कहा, " हमारा क्या है ! हमें वैसे भी वहां की राजनीति में कोई इंटरेस्ट नहीं है । एक बार हम उसे उसका हक दिला दें और वो अपनी सही पहचान के साथ अपनी जिंदगी शुरू कर दे । " फिर उसने दवा खाकर कहा, " फिर हम भी ऐसे ही कहीं अपना ठिकाना बना लेंगे, उन सभी झंझटों से, इन सारी चिंताओं से दूर । " उस लड़के ने उसे पकड़ कर झकझोरते हुए कहा, " वी, पागल मत बनो । उन सब पर तुम्हारा भी उतना ही हक है जितना उसका या बाकी सबका । " विवेक ने चिढ़ कर कहा, " जय भाई, प्लीज ! " फिर उसने दूसरी ओर जाते हुए कहा, " हमें नहीं चाहिए वो हक । वो हक नहीं, एक दलदल है, एक ऐसा दलदल जिसमें एक बार इंसान गया तो कभी निकल नहीं पाएगा, बल्कि और धंसता ही चला जाएगा । " जय ने अपने हाथ बांध कर कहा, " और तुम खुद भी इसी दलदल में हो । " विवेक ने हल्के से व्यंग्य वाली हंसी के साथ कहा, " हम ! हमारा तो कोई वजूद ही नहीं है । मर चुके हैं हम सबके लिए । " उसकी आवाज में एक उदासीनता साफ झलक रही थी । जय ने उसे पकड़ कर फिर से सोफे पर बैठा दिया । उसने भरी हुई आंखों के साथ विवेक की आंखों में देख कर कहा, " वी, क्यों करते हो ऐसी बातें ? " विवेक ने अपनी नजरें फेर कर कहा, " क्योंकि आप हर बार वही सवाल पूछते हैं । " उसके इस बरताव से जय को भी दर्द हो रहा था । उसने कहा, " ठीक है, अब मैं कुछ कहूंगा ही नहीं । " और उठ गया । वो दूसरी ओर जा ही रहा था कि इतने में विवेक ने उसका हाथ पकड़ लिया । जय ने पलट कर पहले अपने हाथ को देखा और फिर विवेक को तो विवेक ने भी नम आंखों के साथ कहा, " अब आप तो ऐसे नाराज मत हो, भाई । " जय फिर से उसके पास बैठ गया । उसने विवेक का चेहरा अपने हाथों में भर कर कहा, " मैं तुमसे नाराज नहीं हूं, वी । मुझे बस तुम्हारी फिक्र है । मुझसे नहीं बर्दाश्त होते तुम्हारे ये जख्म । " विवेक, जो उसकी आंखों में देख रहा था उसने खड़े होकर दूसरी ओर देखते हुए कहा, " अगर ऐसा ही है तो, आप वापस चले ही जाइए, भाई । " जय ने भी खड़े होकर कहा, " नहीं, मैं नहीं जाउंगा । " विवेक ने दूसरी ओर देखते हुए ही कहा, " हमने कहा न, चले जाइए । गलती हमारी ही है । हमें आपको अपने साथ लाना ही नहीं चाहिए था । " जय ने इस बार उसके कान पकड़ कर कहा, " क्या बोला तुमने ? " विवेक ने अपने कान छुड़ाते हुए कहा, " आह ! भाई, क्या कर रहे हैं ! दर्द हो रहा है हमें । " जय ने उसी तरह से कहा, " हां बेटा, जब कोड़े पड़ते हैं तेरे शरीर पर तब दर्द नहीं होता तुझे और अब दर्द हो रहा है ! " उसने इतना ही कहा था कि इतने में विवेक शांत हो गया । उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे । जैसे कि उसे कोई बहुत बड़ा झटका लगा हो । उसे ऐसे देख कर जय ने तुरंत उसके कान छोड़ दिए और उसका चेहरा अपने हाथों में भर कर कहा, " वी, कुछ नहीं हुआ है । सब ठीक है । " विवेक ने उसकी बातों को नजरंदाज करके सामने देखते हुए ही कहा, " भाई, वो कहां है इस वक्त ? " जय ने नासमझी से कहा, " क्या हुआ, वी ? तुम ऐसे क्यों पूछ रहे हो ? " विवेक ने उसकी ओर देख कर कहा, " उसे कुछ हुआ है । कोई चोट लगी है उसे ? " जय ने बड़ी आंखों के साथ कहा, " पर तुम ये कैसे जानते हो ? " विवेक ने घबराहट के साथ कहा, " वो कहीं आस पास ही है । " फिर उसने अपने पैंट को घुटनों तक मोड़ कर जय के सामने करके कहा, " ये देखिए । " उसके घुटनों पर अभी अभी लगी हुई चोट दिखाई दे रही थी । इससे पहले कि जय इस बात पर कुछ कहता, विवेक ने जय से कहा, " आप उसके पास जाइए, भाई और पता लगाइए कि वो यहां, आस पास क्या कर रहा है ! अंकल आंटी ने उसे वहां से कहीं और जाने कैसे दिया, वो भी हमसे कुछ पूछे या कुछ बताए बिना । " जय ने चिंता के साथ कहा, " मैं तो चला जाऊंगा, पर तुम्हारा क्या ? " विवेक ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, " हम ठीक हैं भाई, और वैसे भी वो काम ज्यादा जरूरी है । उसका पता गलती से भी किसी को नहीं चलना चाहिए । " जय ने कहा, " पर वी... " लेकिन विवेक ने उसकी बात को बीच में ही रोक कर कहा, " भाई, आपको एक बार में बात समझ क्यों नहीं आती ! वो हमारी तरह मजबूत नहीं है । हम खुद को संभाल सकते हैं लेकिन वो नहीं । वो ये सब नहीं झेल पाएगा । अगर वो गलती से भी किसी की नजरों में आ गया तो हमारा छः सालों तक ये सब झेलना बेकार हो जाएगा । इसलिए जाइए उसके पास । " जय ने एक गहरी सांस लेकर कहा, " ठीक है । मैं जाता हूं लेकिन जल्दी ही अपना काम खत्म करके वापस लौट आऊंगा । " विवेक ने तुरंत कहा, " हां, हां ! आप आ जाइएगा, लेकिन अभी के लिए उसके पास जाइए । " जय ने विवेक के पैर के पास बैठते हुए कहा, " ठीक है । मैं चला जाऊंगा । " विवेक ने उसे उठाते हुए कहा, " चला जाऊंगा नहीं, अभी के अभी जाइए । " अगले दिन, विवेक आज भी पिछले दिन के तरह ही स्कूल पहुंचा । आज भी उसके मुंह पर मास्क था और उसकी बॉडी लैंग्वेज में भी कोई अंतर नहीं था । _______________________ विवेक के शरीर पर इतने निशान क्यों थें ? उसके हाथ में ये चोट कैसे लगी थी ? वो पिछले छः सालों से ये सब क्यों झेल रहा है ? विवेक के कहां जाने की बात पूछ रहा था जय ? किसकी बातें कर रहे थे वो दोनों ? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए, D & V : Princes Beyond Royalty लाइक, कमेंट, शेयर और फॉलो करना न भूलें । लेखक : देव श्रीवास्तव
सुबह का समय, विवेक आज भी पिछले दिन के तरह ही स्कूल पहुंचा । आज भी उसके मुंह पर मास्क था और उसकी बॉडी लैंग्वेज में भी कोई अंतर नहीं था । वो कॉलेज पहुंच कर सीधे अपने क्लास की ओर बढ़ गया लेकिन सभी लोग उसे ऐसे घूर रहे थे मानों दुनिया का आठवां अजूबा देख लिया हो । विवेक उन सबको नजरंदाज करके आगे बढ़ रहा था लेकिन कल वाले लड़कों ने आज भी उसका रास्ता रोक लिया । जो दो लड़के उसके पीछे पीछे सार्थक के केबिन तक पहुंच गए थे, उनमें से एक विवेक के सामने आकर खड़ा हो गया । उसके अचानक से सामने आने से विवेक को अपने कदम रोकने पड़ गए । उसने चिढ़ कर सामने देखा तो उस लड़के ने अपनी गर्दन टेढ़ी करके और भौंहें उठा कर कहा, " क्यों बे ! तूने क्या जादू चलाया सार्थक सर पर, जो वो तुझे सीधा अपने केबिन में लेते गए । " ये सुन कर विवेक ने अपनी आँखें मींच ली । उसने अपने मन में खुद से ही कहा, " हमें इसी बात का अंदेशा था लेकिन ये सार्थक सर भी ना ! " वो खुद से ये सब बोल ही रहा था कि इतने में उस लड़के ने कहा, " अबे ओ ! " विवेक ने आंखें खोल कर उसकी ओर देखा तो उसने कहा, " जवाब दे, मेरे सवाल का । " विवेक ने विनती करते हुए कहा, " सर, वो कल की बात थी, कल पर ही छोड़ते हैं । " इतने में दूसरे वाले लड़के ने आकर उस लड़के के बगल में खड़े होते हुए कहा, " अरे ऐसे कैसे मुन्ना ! बात भले ही कल की है, पर होगी आज ही क्योंकि कल हमारी तुझसे दुबारा मुलाकात हो ही नहीं पाई थी । " वहीं पहले लड़के ने एक तिरछी मुस्कान के साथ कहा, " लेकिन आज तो हो गई । " विवेक ने एक गहरी सांस छोड़ कर कहा, " तो क्या चाहते हैं आप लोग ! " उसकी आवाज में चिढ़ साफ झलक रही थी इसलिए उस लड़के ने हैरानी के भावों के साथ कहा, " तेरी जुबान भी चलती है ! " विवेक ने अपने मन में ही कहा, " अगर हमें अपनी पहचान छिपानी नहीं होती तब बतातें हम कि हमारी जुबान ही नहीं, हमारे हाथ पैर भी बहुत अच्छे से चलते हैं । " विवेक को जवाब न देता देख कर उस लड़के ने कहा, " क्या बे ! अब बोलती बंद हो गई तेरी ! " विवेक ने मासूम बनते हुए कहा, " सर, मैंने आपका क्या बिगाड़ा है ? क्यों मेरे पीछे पड़े हैं आप लोग ? " उसने इतना ही कहा था कि इतने में पीछे से एक आवाज आई, " क्योंकि तू मेरा कंपटीशन बन कर आया है । " वो आवाज सुन कर दोनों लड़कों की गर्दन विवेक के पीछे की ओर घूम गई । विवेक ने भी अपनी गर्दन उस दिशा में घुमाई तो उसके पीछे एक लड़का खड़ा था । उस लड़के की हाइट भी विवेक के तरह ही छः फीट के आस पास रही होगी । उसने भी बाकी बच्चों के जैसा ड्रेस ही पहना हुआ था लेकिन उसके शर्ट के ऊपरी दो बटंस खुले हुए थे । साथ में उसके गले में एक चैन थी जिसके पेंडेंट में लव लिखा हुआ था । उसके बाल थोड़े लंबे थे जो उसके माथे पर बिखरे हुए थे । उसकी भूरी आंखों में दुनिया जहां का घमंड भरा हुआ था । उसकी शार्प जॉ लाइन उसे और भी अट्रैक्टिव लुक दे रही थी । कुल मिला कर वो बहुत ही हैंडसम और अट्रैक्टिव लग रहा था लेकिन इस सबके बाद भी वो विवेक के आगे कम ही दिखता था । विवेक बिना किसी भाव के उसे देखने लगा । उसके दिमाग में अपने सामने खड़े लड़के की जानकारियां घूम रही थीं जो कि जय ने विवेक को बताई थीं । उसके दिमाग में जय की आवाज, " ये है लव, लव कुशवाहा । उम्र बीस साल है लेकिन खुद को सबका बाप समझता हैं क्योंकि MLA का बेटा है ये और इस बात का घमंड इसमें कूट कूट कर भरा हुआ है । इसके साथ ही इसे अपने रूप का भी बहुत घमंड है और इस बात में कोई दो राय भी नहीं है । सुंदर तो है बंदा लेकिन प्रॉब्लम ये है कि इसे खुद से ज्यादा हैंडसम कोई बर्दाश्त नहीं होता है । अगर इसे कोई ऐसा दिख गया जिसके हैंडसमनेस के चर्चे इससे ज्यादा हो तो वो कुछ किए बिना ही उसका दुश्मन बन जाता है । इसलिए, इससे जितना हो सके, दूर ही रहना । " विवेक अपने मन में ये सब याद कर रहा था । वहीं वो दोनों लड़के तुरंत लव के पास चले गए । पहले लड़के ने विवेक की ओर इशारा करके लव से कहा, " लव, यही है वो लड़का जिसके बारे में हमने तुझे बताया था । " लव ने एक नजर ऊपर से नीचे तक विवेक को स्कैन किया और फिर बिना कुछ कहे विवेक की ओर बढ़ गया । उसने विवेक को आंखों में देख कर कहा, " क्यों बेटा ? जरा मैं भी तो देखूं कि क्या है तेरे इस शक्ल में, जो सब इसके दीवाने हुए पड़े हैं ? " इतना बोल कर वो विवेक का मास्क उतारने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाने लगा लेकिन इससे पहले कि वो विवेक का मास्क पकड़ता, विवेक ने उसका हाथ पकड़ कर कहा, " अब आप कौन हैं ? " ये सुन कर उन दोनों लड़कों की आंखें हैरानी से बड़ी हो गईं । उन दोनों ने विवेक को किसी अजूबे की तरह देखते हुए कहा, " तू इसे नहीं जानता ! ओ माय गॉड ! तू सच में, इसे नहीं जानता ! " लव ने उनकी नौटंकी देख कर कहा, " अपना ड्रामा बंद करो तुम दोनों । " उसकी आवाज सुन कर वो दोनों लड़के चुप हो गए । वहीं लव ने विवेक की ओर देख कर कहा, " और तू, अपना ये मास्क हटा जरा । " विवेक ने एक गहरी सांस ली और कुछ कहे बिना ही धीरे से अपना मास्क हटाने लगा लेकिन इससे पहले कि उसका मास्क हटता, सार्थक वहां पहुंच गया । उसने दूर से ही कहा, " क्या हो रहा है यहां ? " उसकी आवाज सुन कर विवेक ने अपने हाथ जहां के तहां रोक लिये और गर्दन आवाज की दिशा में घुमा ली । उसके साथ साथ बाकी तीनों लड़कों की भी गर्दन उस ओर घूम गई जहां से सार्थक उनकी ओर आ रहा था । उसने सबके पास पहुंच कर लव की ओर देख कर कहा, " क्या कर रहे हो तुम लोग ? " लव ने बिल्कुल आराम से कहा, " कुछ नहीं, सर ! बस इंट्रो ले रहा था अपने जूनियर का । " सार्थक ने एक सरसरी नजर उन तीनों पर डाली और फिर कहा, " ले लिया न ! " लव ने विवेक को देखते हुए बिल्कुल लापरवाही के साथ कहा, " हां सर, ले ही लिया । " सार्थक, जिसे लव की नजरें और उनके पीछे का भाव, दोनों ही दिख रहे थें उसके हाथों की मुट्ठियां कस गई थीं । उसने कड़क आवाज में कहा, " तो अब अपनी अपनी क्लासेज में जाओ । " लव ने उसकी ओर देख कर चिढ़ के भावों के साथ कहा, " जाते हैं सर । इतने हाइपर क्यों हो रहे हैं ? " सार्थक ने उसकी बातों को पूरी तरह से नजरंदाज करके अपने एक एक शब्द पर जोर देते हुए कहा, " मैंने बोला, अपनी अपनी क्लासेज में जाओ । " लव ने फुल एटिट्यूड साथ अपने दोस्तों की ओर देख कर कहा, " चलो बे । " और उनके साथ दूसरी ओर चला गया । सार्थक ने हैरानी के साथ उसी ओर देखते हुए कहा, " ये लैंग्वेज है इनकी ! " विवेक ने उसकी ओर देख कर अपनी भौंहें उठा कर कहा, " लैंग्वेज की बात आप कर रहे हैं ! " सार्थक ने अब अपना ध्यान उसकी ओर लगाया । उसने चिढ़ के साथ कहा, " मैं क्या कर रहा हूं क्या नहीं, वो छोड़ो । तुम बताओ, तुम जो मेरे इतना कहने के बाद भी अपना मास्क हटाने को तैयार नहीं थे वो इस नमूने के सिर्फ एक बार कहने पर अपना मास्क हटाने को तैयार कैसे हो गए । " विवेक ने अपने कंधे उठा कर कहा, " सर, MLA का बेटा है वो जो कि इस कॉलेज के ट्रस्टी भी हैं । उससे भला क्या ही बहस करता मैं । " सार्थक ने एक गहरी सांस लेकर कहा, " ओ के, फाइन ! लेकिन संभल कर, कहीं यहां भी वही हाल ना हो जाए । " विवेक ने आत्मविश्वास के साथ कहा, " नहीं सर, हमारी कोशिश यही है कि यहां ऐसा कुछ ना हो । " सार्थक ने हां में सिर हिला कर कहा, " गुड । " फिर उसने विवेक के कंधे पर हाथ रख कर कहा, " ख्याल रखना अपना । " विवेक ने चिढ़ कर उसका हाथ झटक कर कहा, " हां, हां, पता है । बच्चा नही हूं मैं । " सार्थक ने उसे और चिढ़ाते हुए कहा, " मेरे स्टूडेंट हो, तो तुम्हें बच्चों के जैसे ही ट्रीट करूंगा न ! " विवेक ने और चिढ़ते हुए कहा, " आपसे न, बात करना ही बेकार है । " और अपने क्लास की ओर जाने लगा । इतने में पीछे से सार्थक ने कहा, " देख लेना, एक दिन इन्हीं बातों के लिए तरसोगे तुम । " ये सुन कर विवेक ने अपने कदम रोक लिये । उसने सार्थक की ओर पलट कर कहा, " इन योर ड्रीम्स । " इतना बोल कर वो फिर से आगे की ओर पलटा और तेजी से क्लास की ओर बढ़ गया । वहीं सार्थक ने एक दर्द भरी मुस्कान के साथ कहा, " वो भी पता चल ही जाएगा । " इतना बोल कर वो भी उसी ओर बढ़ गया । क्लास में, विवेक जाकर चुपचाप अपनी जगह पर बैठ गया जहां सारे बच्चे अपने अपने फोन्स में घुसे हुए थे । विवेक भी किसी से कुछ भी कहे बिना अपना फोन निकाल कर कुछ करने लगा जो देख कर ही पता चल रहा था कि ना ही पढ़ाई से रिलेटेड है और ना ही इंटरटेनमेंट से रिलेटेड । कुछ देर बाद, सार्थक भी उसी क्लास में आ गया । उसे देख कर फिर से विवेक का मूड खराब हो गया । वहीं सार्थक के पीछे से प्रिंसिपल भी क्लास में आ गए । उन्होंने सबको इनफॉर्म किया कि अब से इस क्लास की जिम्मेदारी सार्थक की होगी । उनकी बातें सुन कर विवेक का मुंह बन गया लेकिन उसने कहा कुछ भी नहीं । प्रिंसिपल के जाने के बाद वो बिना किसी भाव के बैठ गया लेकिन सार्थक के दिमाग में तो अलग हो खुराफात चल रही थी । प्रिंसिपल के जाते ही उसने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा, " सो स्टूडेंट्स ! माय नेम इज सार्थक निगम एंड फ्रॉम नाऊ ऑन, आई एम योर मैथ्स टीचर । " ये सुन कर बच्चों का कोई खास रिएक्शन नहीं था । उन सबने सिर्फ सार्थक को दिखाने के लिए अपने होठों पर बड़ी सी झूठी मुस्कान सजा ली लेकिन विवेक तो विवेक था । उसने ये सब करने के बजाय अपना मास्क और ठीक कर लिया कि नीचे ना सरक जाए । ये देख कर सार्थक को हँसी आ रही थी जिसे उसने मुश्किल से कंट्रोल किया । फिर उसने गला खराश कर पढ़ाना शुरू किया लेकिन पढ़ाते हुए भी उसका ध्यान विवेक पर ही ज्यादा था । _______________________ क्या चल रहा था लव के मन में ? उसका आना क्या तूफान लाएगा विवेक की जिंदगी में ? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए, D & V : Princes Beyond Royalty लाइक, कमेंट, शेयर और फॉलो करना न भूलें । लेखक : देव श्रीवास्तव
सुबह का समय, सर्वम इंटर कॉलेज, आर्यनगर, जब सार्थक ने पूरी क्लास को बताया कि अब से वो उनका मैथ्स टीचर है तो उन बच्चों का कोई खास रिएक्शन नहीं था । उन सबने सिर्फ सार्थक को दिखाने के लिए अपने होठों पर बड़ी सी झूठी मुस्कान सजा ली लेकिन विवेक तो विवेक था । उसने ये सब करने के बजाय अपना मास्क और ठीक कर लिया कि नीचे ना सरक जाए । ये देख कर सार्थक को हँसी आ रही थी जिसे उसने मुश्किल से कंट्रोल किया । फिर उसने गला खराश कर पढ़ाना शुरू किया लेकिन पढ़ाते हुए भी उसका ध्यान विवेक पर ही ज्यादा था । वहीं विवेक को इस सबसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था । वो तो सार्थक की ओर देख भी नहीं रहा था । उसकी नजरें सिर्फ अपनी कॉपी पर टिकी हुई थीं जिस पर उसकी कलम लगातार चलती जा रही थी । वो अपने काम में लगा हुआ ही था कि इतने में सार्थक उसके पास आकर खड़ा हो गया । उसने धीरे धीरे 2 बार विवेक के कंधे पर टैप किया तो विवेक ने हड़बड़ा कर तुरंत अपनी कॉपी बंद कर ली । फिर उसने सिर उठा कर ऊपर देखा तो सार्थक को सामने देख कर वो नॉर्मल हो गया और सीधा होकर बैठ गया लेकिन सार्थक की आँखें सिकुड़ गईं । उसने तुरंत विवेक की कॉपी उठा ली और जैसे ही उसके पन्ने पलटे, उसकी आँखें बड़ी हो गईं जो डर की वजह से था या हैरानी के वजह से, बता पाना मुश्किल है । फिर वो जल्दी जल्दी उस कॉपी के सारे पन्ने पलटने लगा जिस पर विवेक ने चैप्टर वन से लेकर चैप्टर फाइव तक के सारे प्रॉब्लम्स सॉल्व कर दिए थे । ये सब देख कर उसने फिर से अपनी नजरें विवेक की ओर घुमाईं तो वो अपने हाथ में पेन को घुमाते हुए अपनी नजरें किताब में गड़ा कर बैठा हुआ था । वहीं उसे देखते हुए सार्थक ने अपने मन में ही कहा, " कितने दर्द में था ये जिसे भूलने के लिए ये सारी रात प्रॉब्लम्स सॉल्व करता रह गया । " फिर उसने विवेक को देखते हुए ही बेबसी के साथ कहा, " अब इससे पूछूं भी तो कैसे ! " फिर न चाहते हुए भी उसने विवेक की कॉपी उसके पास रखी और अपनी जगह पर वापस चला गया । विवेक ने भी उसे कुछ नहीं कहा और वापस अपने काम में लग गया । वहीं सार्थक ने एक नजर विवेक पर डाली और फिर अपना सिर झटक कर पढ़ाने पर ध्यान देने लगा । इसके बाद उसने एक बार भी विवेक को देखा भी नहीं । दोपहर में, विवेक कैंटीन में एक टेबल पर अकेले बैठा हुआ था । वो अपने फोन में कुछ काम कर रहा था । इसी समय लव भी अपने दोस्तों के साथ वहां आ पहुंचा । वो अभी कैंटीन के दरवाजे पर ही था कि तभी उसकी नजर विवेक पर पड़ी और इसी के साथ उसकी आंखों में गुस्सा और चेहरे पर चिढ़ के भाव आ गए । उसने अपने दोनों दोस्तों को कोहनी से मार कर सामने देखने का इशारा किया । सामने विवेक को देख कर वो दोनों भी मुस्करा दिए । पहले वाले लड़के ने लव के कान में धीरे से कहा, " यार, मैंने सुना है कि ये लड़का बहुत हैंडसम है । अगर ये तुझसे भी ज्यादा हैंडसम हुआ तो ! " लव ने उसे घूर कर देखा तो वो लड़का चुप हो गया । फिर लव ने सामने विवेक की ओर देख कर कहा, " कोई मेरे जितना हैंडसम हो ही नहीं सकता और अगर है तो फिर... " फिर उसने एक तिरछी मुस्कान के साथ कहा, " उसे मैं यहां टिकने ही नहीं दूंगा । इस पूरे कॉलेज का क्रश मैं हूं, और मैं ही रहूंगा । " उसने अपनी बात पूरी ही की थी कि इतने में कुछ लड़कियां विवेक के पास पहुंच गई । वो सब विवेक से बात करने की कोशिश कर रही थीं लेकिन साथ में वो सब अपने हाथ विवेक के कंधे और पीठ पर चला भी रही थीं । उनकी हरकतों के वजह से विवेक को वहां कंफर्टेबल फील नहीं हो रहा था इसलिए वो वहां से उठ कर बाहर की ओर जाने लगा । वो आगे बढ़ ही रहा था कि इतने में उसका फोन बज उठा । अपना फोन देखने में उसने सामने ध्यान ही नहीं दिया और सामने किसी से टकरा गया । टकराने की वजह से उसका बैलेंस बिगड़ गया और वो पीछे की ओर गिरने लगा लेकिन इससे पहले कि वो गिरता किसी ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया । इस बीच विवेक की आंखें बंद हो गई थीं और वो अपने सामने खड़े शख्स के सीने से जा टकराया था । इस वक्त समय मानो रुक सा गया था लेकिन सच में ऐसा थोड़ी न था । विवेक के बजते हुए फोन की रिंगटोन जैसे ही उसके कानों में पड़ी वैसे ही वो झटके से उस शख्स से दूर हो गया और अब जाकर उसने अपने सामने खड़े शख्स का चेहरा देखा । उसके सामने कोई और नहीं लव खड़ा था जो जलती हुई नजरों के साथ विवेक को घूर रहा था जिससे विवेक को घंटा फर्क नहीं पड़ रहा था । वहीं लव ने उसे घूरते हुए ही कहा, " क्यों बे ! मुंह पर मास्क के साथ साथ आंखों पर पर्दा भी डाल रखा है क्या ! " विवेक ने अपनी नज़रें नीचे करके कहा, " आई एम सॉरी, सर ! " और उसी तरह से बाहर की ओर जाने लगा । लव कुछ और कहने के लिए पीछे की ओर मुड़ा ही था कि इतने में किसी ने आकर विवेक के कान पकड़ लिये । उसने काले रंग की पैंट के साथ काले ही रंग का शर्ट पहना हुआ था जिसके ऊपरी दो बटंस खुले हुए थे । शर्ट की बाजुएं भी उसके कोहनी तक मुड़ी हुई थीं । उसके बाएं हाथ में एक काली घड़ी थी जिसकी कीमत अच्छी खासी थी । उसके पैरों में काले रंग के जूते थे । उसके बाल पसीने से भीगे होने के कारण माथे पर बिखरे हुए थे । कुल मिला कर वो बहुत ही अट्रैक्टिव लग रहा था । ये शख्स कोई और नहीं, जय था । उसने विवेक के कान खींचते हुए कहा, " मैं तब से कॉल कर रहा हूँ । तुमसे कॉल नहीं अटेंड किया जा रहा है ! " विवेक ने अपने कान छुड़ाते हुए कहा, " भाई, पहले कान छोड़ो मेरा । दर्द हो रहा है मुझे । " जय ने उसके कान छोड़ दिए तो विवेक अपने कान सहलाने लगा । फिर जय ने उसका हाथ पकड़ लिया और वो दोनों आगे बढ़ गए । वहीं उनके पीछे, लव उन दोनों को जाते हुए देख रहा था । इतने में उसके एक दोस्त ने सामने देखते हुए ही उसके कान के पास कहा, " अबे, ये कौन है ? " इस बीच उसने अपना पूरा लोड लव के ऊपर डाल दिया था इसलिए लव ने चिढ़ के साथ अपनी गर्दन उसकी ओर घुमाई लेकिन उस लड़के का सारा ध्यान तो सामने जा रहे विवेक पर था । ये देख कर लव ने चिढ़ के साथ कहा, " मेरा चाचा है । " ये सुनते ही उस लड़के की गर्दन लव की ओर घूम गई और उसके मुँह से निकला, " हां ! " लव ने चिढ़ के साथ ही उसका हाथ झटक कर कहा, " क्या हां ! मैं भी तो उसे पहली बार ही देख रहा हूं न ! " ये सुन कर वो लड़का तुरंत पीछे हो गया और अपना सिर खुजाते हुए इधर उधर देखने लगा । लव ने उसे नजरंदाज करके एक नजर उस ओर डाली जिधर अभी अभी विवेक और जय गए थे और फिर अपना सिर झटक कर दूसरी ओर चला गया । वहीं कैंटीन से बाहर आने के बाद विवेक और जय बिलकुल नॉर्मल तरीके से आगे बढ़ रहे थें । वो दोनों कॉलेज बिल्डिंग से बाहर आते ही पार्किंग की ओर बढ़ गए और सीधे उनकी कार में जाकर बैठे । कार में बैठते ही उन दोनों ने कार लॉक कर दिया । फिर विवेक ने सीधे जय की ओर देख कर बेसब्री से कहा, " क्या हुआ भाई ? कैसा है वो ? कहां है ? आप मिले उससे ? " जय ने उसे शांत कराते हुए कहा, " अरे वी शांत, शांत हो जाओ । " विवेक ने उसी बेसब्री से कहा, " अरे कैसे शांत हो जाएं ! हम ही जानते हैं कि हमने खुद को उसके पास जाने से कैसे रोका है । " जय ने कहा, " मैं जानता हूं, वी और मुझे हमेशा से इस बात का अंदाजा है कि तुम किस तकलीफ को खुद में समेटे बैठे हो लेकिन डरने वाली कोई बात नहीं है । वो ठीक है । " विवेक ने कन्फर्म करते हुए कहा, " पक्का न ! " जय ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा, " हां, मैं खुद उससे मिल कर आया हूं । " विवेक ने अब जाकर थोड़ा रिलैक्स होकर कहा, " फिर, ठीक है । " जय ने कहा, " हम्म ! " इतने में फिर से विवेक ने सवाल करते हुए कहा, " लेकिन उसे हुआ क्या था ? " जय ने आराम से कहा, " कुछ नहीं । वो अपने स्कूल के साथ टूर पर आया हुआ था । " विवेक ने अपनी आँखें बड़ी करके कहा, " यहां, आर्यनगर में ! " जय ने कहा, " नहीं, पास वाले जिले में ! तो बस वहीं ट्रिप के दौरान उसे वो चोट लग गई थी । " विवेक ने कहा, " पर हमें पता लगे बिना वो यहां आया कैसे ? " जय ने आराम से कहा, " तुम्हारा ही भाई है वो, लक्षण भी तो तुम्हारे जैसे ही होंगे ! " विवेक ने कहा, " यानी कि अंकल आंटी को बताए बिना गया था वो । " जय ने उसकी ओर देख कर अविश्वास से कहा, " ओ हो !तो अपनी हरकतें पता हैं जनाब को । " विवेक ने उसे साइड आईज से देखते हुए कहा, " हो गया ! " जय ने उसके लुक्स को नजरंदाज करके कहा, " हम्म्म ! " विवेक ने कहा, " तो ये बताइए कि स्कूल ट्रिप में ऐसी चोट कैसे लग गई उसे । " जय ने फिर से उसी लहजे में कहा, " क्योंकि तुम दोनों हरकतों से भी एक जैसे ही हो । " विवेक ने नासमझी से कहा, " क्या मतलब ? " जय ने कहा, " कछुए को बचाने के चक्कर में खुद को चोट लगा ली उसने । " विवेक ने कन्फ्यूजन के साथ कहा, " कछुआ ! " जय ने कहा, " हाँ, वो सभी पार्क में रुके हुए थे । जहाँ सारे बच्चे अपनी मौज मस्ती में लगे हुए थे, वहाँ ये महाराज चुपचाप साइड में बैठे हुए सड़क निहार रहे थें और तभी उनकी नजर पड़ी एक छोटे से कछुए पर, जो सड़क पार कर रहा था लेकिन उसके ऊपर से एक कार गुजरने वाली थी । " फिर उसने एक गहरी सांस छोड़ कर कहा, " बस उसे ही बचाने के लिए ये जनाब दौड़ पड़ें और उसी बीच उन्हें ये चोट लग गई । " _______________________ क्या चल रहा था लव के मन में ? क्या सार्थक विवेक के बारे में जानता था ? कौन था विवेक का भाई जिसकी उसे इतनी फिक्र थी ? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए, D & V : Princes Beyond Royalty लाइक, कमेंट, शेयर और फॉलो करना न भूलें । लेखक : देव श्रीवास्तव