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"चाहा है तुझको..!"

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Sahnila

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"एक रिश्ता जो कभी शुरू ही नहीं हुआ…" दुआ और ताहा का निकाह बचपन में तय हुआ था, पर ताहा ने कभी उसे अपनी दुल्हन नहीं माना। सालों बाद भी जब दुआ अपने घर रुखसत के लिए तैयार हुई, ताहा की दीवारें टूटने का नाम नहीं ले रही थीं। और फिर, बिना कोई औपचारिक तलाक...

Characters

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Dua

Warrior

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Taha

Mage

Total Chapters (7)

Page 1 of 1

  • 1. "चाहा है तुझको..!" - Chapter 1

    Words: 1280

    Estimated Reading Time: 8 min

    उत्तराखंड के बर्फीले सड़कों पर, तेजी से भागती एक कार में एक बीस साल की बेहद खूबसूरत और गोरी लड़की बैठी थी, उसकी आँखें ऐसी थीं कि मछलियाँ दुखी हो कर पानी में छिप जाने की ख्वाइश करती। होंठ इतने कमल और गुलाबी थे कि कमल लज्जित हो कर अपनी पंखुड़ियां समेट लेता, नाक पर जड़ी हीरे की लॉन्ग ऐसी थी जैसे आसमान में टिमटिमाते हुआ कोई तारा। उसके रुखसार पर छेखड़नी करती लटे कुछ गुस्ताख मालूम होती थी, वो जितनी बार उन्हें समेट कर पीछे धकेलती, लटे उस शैतान बच्चे के सामन बाहर निकल आती, जो खेलने के जोश में मां की गोद छोड़ कर भागता है।

    ऊपर से नीचे तक ढाका हुआ लिबास पहने, उसने खुद को एक पतले दुपट्टे से भी ढक रखा था। कार जैसे– जैसे आगे बढ़ रही थी,  उसकी उन दो श्यामली आंखों में चिंता भी बढ़ती जा रही थी।

    उसके हाथ कांप रहे थे और दिल में अजीब सी बेचैनी थी, तभी अचानक कार रुकी और ड्राइविंग सीट पर बैठे ड्राइवर ने कहा, " बीबी साहिबा...आपका ससुराल आ गया।"

    लड़की ने कार की खिड़की से झांक कर एक आलीशान मकान को देखा, बत्तियों से सजे इस आलीशान हवेली जैसा आशियाना पूरे उत्तराखंड में नहीं था, भले ही ये बर्फ से ढकी हुई थी, फिर भी काफी खूबसूरत नजरा था।

    वो उतरी उससे पहले ही किसी ने दरवाजा खोला, ये ड्राइवर था जो उससे इल्तिज़ा करते हुए बोला, " दुआ बीबी जान, सरकार आपकी राह देख रहे हैं।"

    दुआ हिम्मत कर के कार से उतरी। बारह साल बाद वो इस हवेली में कदम रखने वाली थी। पिछली बार जब वो यहां आई थी, वो मात्र आठ साल की थी और उसे यहां दुल्हन की तरह सजा कर लाया गया था। ताहा हैदर की दुल्हन रूप में जब वो हवेली के अंदर दाखिल हुई थी, उसने तेरह साल के ताहा हैदर को देखा, जो उसे नाराजगी से घूर रहा था।

    उन दिनों उसे उतनी समझ नहीं थी कि ताहा उससे नाराज क्यों था? लेकिन उस दिन निकाह के बाद, जैसे – जैसे वक्त गुजरा, दुआ को पता चल गया कि ताहा उसके साथ निकाह कर के खुश नहीं था, बचपन में हुई ये निकाह उसकी जिंदगी का अजाब बन गया था, वो दोनो ईद पर भी मिलते तो ताहा उससे दूरी बना कर ही रहता, इस डर से कि वो निकाह तोड़ देगा या उसे कुछ बुरा कह देगा..दुआ कभी उसके पास नहीं गई।

    लेकिन, आज पंद्रह साल बाद, जब ताहा का कार एक्सीडेंट में पैरों की हड्डियां टूट गई और उसकी देखभाल करने के लिए उसने मां– बाप पास नहीं थे तो अपने सास की इल्तिज़ा कर दुआ उसकी देखभाल के लिए हवेली आ गई।

    वो यहां चार महीने गुजारने वाली थी, इसलिए अपने साथ कुछ कपड़े और जरूरत का सामान लेकर आई थी, जिसे कार से उतारने के बाद, वो झिझकते हुए लोहे के गेट से होकर हवेली के दरवाज़े तक पहुंची। उसने डोर बेल बजाया तो अंदर से एक कड़क और बुलंद आवाज आई, " दरवाजा खुला है।"

    दुआ एक पल को कांप गई, ये वही था, ये आवाज उसके होने वाले शौहर की थी, जो शायद अंदर उसक इंतजार कर रहा हो। उसने आहिस्ते से दरवाजा खोला, अंदर दाखिल हुई और साथ ही अपने बैग को भी साथ खींच लिया।

    अंदर आने पर उसने सामने व्हील चेयर पर बैठे एक नौजवान शख्स को देखा, वो लगभग पच्चीस साल का लग रहा था, उसने हॉस्पिटल के कपड़े पहन रखे थे। उसका चेहरा उतरा हुआ था, लेकिन फिर भी वो काफी खूबसूरत लग रहा था, अक्सर उसकी मां ताहा को देखती तो कहती ’ मेरा बेटा बेटियों की तरह खूबसूरत है ’। उनकी ये बात झूठ भी नहीं थी।

    लेकिन उसकी आंखों से देखने का अंदाज, अचानक बदल गया। वो ठंडा और अधिक ठंडा होने लगा, उसने दुआ से नजरें फेर ली। दोनो अर्से बाद एक दूसरे के सामने आए थे, लेकिन दोनों के दिल में दूरियां वैसी की वैसी ही थी। ताहा ने कभी उसे अपने बीबी का दर्जा नहीं दिया, वो उसके पास एक कॉल तक नहीं करता था, सालों से दुआ अपने मां – बाप से इस बारे में झूठ बोलती आ रही थी कि  ताहा ने उससे फोन पर बात कर की है।

    दुआ ने अदब से सिर नीचे किया, अपने दुपट्टे को सिर पर संभाला और आहिस्ते लहजे में बोली, " अस्सलाम आलेकुम।"

    ताहा उसकी ओर घूरता रहा, उसने उसके सलाम का जवाब तक नहीं दिया और स्पष्ट किंतु तल्ख अंदाज में कहा, " सपने मत सजाना, अम्मी ने अपनी कसम ना दी होती तो तुम यहां कभी ना होती और मेरी खिदमत करने के लिए तुम्हे तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं...मै अपना ख्याल रख सकता हूं। हवेली में बहुत से कमरे हैं, कोई भी एक कमरा चुन लो और मेरे सामने मत आना।"

    उसकी इन बातों ने दुआ को तोड़ कर बिखेर दिया, उसका दिल अंदर ही अंदर चीखे मारने लगा, उसकी आंखो से आंसू एक बूंद टपकी और अगले ही पल वो पलट कर दरवाजे के बाहर निकल गई।

    ताहा को उसके जाने से कोई खास फर्क नहीं पड़ा, लेकिन वो दरवाजे और दुआ के बैग को कई पलों तक घूरता रहा। अंत में उसने अपने घर के हेल्पर को आवाज लगाई, " सालार.. यहां आओ।"

    अपने कमरे में सोने जाने वाला सालार भगाता हुआ नीचे आया, ताहा के सामने खड़ा हुआ और पूछा, " जी हुजूर।"

    "मुझे कमरे में ले चलो।", ताहा ने बाहर निकली लड़की की फिक्र किए बगैर कहा और अंदर अपने कमरे में चला गया। चुकी उसका एक दिन पहले ही एक्सीडेंट हुआ था, इसलिए वो नीचे वाले कमरे में ही शिफ्ट हो गया था। जिसकी खड़की बाहर बागीचे में खुलती थी।

    दूसरी ओर दुआ, अपने बहने वाले आंसुओं को ताहा के सामने जाया नहीं करना चाहती थी, इसलिए वो तेजी से बागीचे में दौड़ी और एक सुनहरी रौशनी के नीचे बैठ कर सुबकने लगी। ताहा के कहे एक – एक लफ्ज़ अब तक उसके कानो में शोर कर रहे थे, जिससे उसका दिल तड़प रहा था।

    ताहा ने अपने व्हील चेयर को खिसकाए खिड़की तक लाया और सालार से कहा, " तुम जाओ।"

    सालार चला गया तो ताहा चुपचाप बैठा आसमान को घूरने लगा, तभी उसकी नजर दुआ पर पड़ी, जो उसके बागीचे में बैठी अपने आंसू पोंछ रही थी। बिना किसी भाव के वो उसे निहारता रहा, फिर हाथ आगे बढ़ा कर खिड़की बंद की और व्हील चेयर के पहियों को खिसकाते हुए बेड तक ले आया।

    बिना किसी के मदद के उसने खुद को मुश्किल से बिस्तर पर बिठाया और फिर ब्लैंकेट खींच कर लेट गया। आंखे बंद करने से पहले उसने बेड लैंप का स्विच भी ऑफ कर दिया और कमरे का हीटर भी ऑन कर दिया।

    वो इतना शांत और सहज था, जैसे उसे ठंड में रोती अपनी बीबी के आंसुओं से कोई फर्क ही ना पड़ रहा हो।

    इधर ठंड में बैठी दुआ ने जब महसूस किया कि हल्की बर्फबारी शुरू होने लगी है तो उसने खुद को अपनी अम्मी की बात याद दिलाई और मन ही मन दोहराया, " बेटा हमने आपका निकाह आपके दादा जान की खुशी के लिए करवाई, उन्होंने मरने से पहले आप दोनो का रिश्ता तय किया था और यही उनकी आखिरी इक्षा थी, तो कोशिश करना कि कब्र में सोए..आपके दादाजान का दिल ना टूटे, इस रिश्ते की हिफाजत करना आपकी जिम्मेदारी है, एक औरत ही रिश्ते को जोड़ कर रखती है। ताहा के रवैया आपके लिए ठंडा है तो कोई बात नहीं...आप अपनी मुहब्बत की गर्मी से उनका दिल पिघलाने की कोशिश कीजिए। निकाह के फैसले तो रब के घर होती है...हम इसे बदल नहीं सकते...जाइए ताहा के पास, उसकी बीवी हैं आप, उनकी खिदमत करना अपना फर्ज है, उनका दिल जीतने की कोशिश कीजिए।"

    पढ़ने वाले, कृपया मुझे फॉलो कर लें और कमेंट भी करें, प्लीज प्लीज… प्लीज।

  • 2. "चाहा है तुझको..!" - Chapter 2

    Words: 1143

    Estimated Reading Time: 7 min

    पिछले अध्याय में, आपने देखा कि एक खूबसूरत युवती, दुआ, अपने ससुराल में एक आलीशान हवेली में आती है। उसका निकाह ताहा हैदर से बचपन में ही हुआ था, लेकिन उनके रिश्ते में दूरी रही। ताहा एक दुर्घटना के बाद देखभाल के लिए उसकी मदद मांगता है। दुआ हवेली में आती है, लेकिन ताहा उससे दूरी बनाए रखता है और उसे उसकी सेवा करने के लिए नहीं कहता। दुआ का दिल टूट जाता है, लेकिन वह ताहा की देखभाल करने के लिए हवेली में रहती है, जबकि ताहा उदासीन रहता है।

    अब आगे

    --------

    तीन महीने बाद–

    ताहा के पैर अब काफी ठीक थे, वो चल सकता था। हालांकि उसे कभी – कभी बैसाखी की जरूरत पड़ती थी। इन तीन महीनों में ताहा और दुआ दोनो एक साथ रहें, उसके निकाह में होने के बावजूद, दुआ को उसके कमरे में जाने की इजाजत नहीं थी। ना ही ताहा के सामने आने की, इन तीन महीनों में कई बार उन दोनो का आमना सामना हुआ, लेकिन बातचीत के नाम पर दुआ ने उसे सिर्फ सलाम ही किया, जिसके जवाब में ताहा कुछ भी नहीं कहता था।

    आज सुबह से ताहा कहीं गया हुआ था, इसलिए दुआ ने घर के थोड़े बहुत कामों को संभाला, फिर जा कर अपने कमरे में किताबों को पढ़ने लगी। शाम तक उसने अपने यूनिवर्सिटी एग्जाम की तैयारी की, फिर उसे झपकी आने लगी तो उठ कर कीचन में गई और खुद के लिए एक कॉफी बना ली।।

    जब वो किचन से निकलने वाले थी, अचानक किसी ने उसे पीछे से गले लगाया। दुआ घबरा गई, उसके हाथ से कॉफी का कप छुटा ओर अगले ही पल उसने खुद को उस आलिंगन से आजाद करते हुए दूर किया।

    "कौन..हो..!", इससे पहले की वो अपना सवाल पूरा कर पाती, उसने सामने ताहा को देखा, उसकी लाल आंखें मदहोशी से भरा हुआ था, लड़खड़ाते कदम और बेचैन हालत में वो ऐसा लग रहा था, मानो उसने नशा किया हो।

    दुआ को हैरानी हुई, भला वो नशा कैसे कर सकता है? क्या उसे नहीं पता कि इस्लाम में नशा करना जायज नहीं? दुआ के पैरों से तले जमीन खिसग गई थी आज, वो समझती थी कि ताहा भले ही उससे मुहब्बत नहीं करता, उसे सोने बीवी नहीं मानता पर एक नेक इंसान है...लेकिन उसकी ये गलतफहमी आज दूर गई थी, बीते पंद्रह सालों में पहली बार उसे एहसास हुआ था कि ताहा उसके लिए काबिल नहीं।

    ताहा लड़खड़ता हुआ उसके करीब आया, अपनी बाहों को आगे बढ़ा कर दुआ के कमर के चारों जानिब रख लिया। वो इस बात से इनकार नहीं कर सका कि दुआ बचपन से ही खूबसूरत थी, उसके चेहरे पर हूरों जैसी नूर बरसाती थी, आंखो में सितारों सी चमक थी और शायद जन्नत के फूलों सा उसका होंठ था।

    निकाह के बाद, पहली बार ताहा उसके इतने करीब था कि दोनो के बीच हवा गुजरने तक की जगह नहीं थी। उसकी सांसे थम रही थी, दिल धड़क रहा था और आंखो में हया उतर आई।



    ताहा भेल ही नशे में था पर वो उसका शौहर था, उसने उसके नजदीकी को इनकार नहीं किया, उसे डर था कि अगर वो उसके करीब होने से घबराई या नापसंदगी जाहिर की तो उनके रिश्ते के बीच की दूरियां कभी खत्म नहीं हो सकेंगी, इसलिए उसने धीरे से अपना सिर उसके सीने पर रख कर एक अनकही सी सहमति जाता दी।

    ताहा जो कुछ हद तक होश में था, उनसे दुआ के इस इशारे के साथ ही, उसे अपनी बाहों में उठाया और लेकर उसी कमरे की तरफ बढ़ गया, जहां तीन महीनों से दुआ अकेली रह रही थी।

    दुआ को बिस्तर पर बिठाते हुए उसने उसके सिर से धीरे – धीरे दुप्पटा खींचा, फिर उसके बंधे हुए जुल्फों को खोल कर पुश्त पर बिखेर दिया। उसकी सारी हरकतों के दौरान दुआ ने अपनी आंखे बंद रखी, लेकिन जब ताहा ने उसे बिस्तर पर लिटाया और खुद उसके होंठो को चूमने के लिए नीचे झुका, दुआ ने अपनी आंखे खोल दी।

    दुआ डरी हुई थी, ताहा की अधीर जज्बातों से, उसके हथेलियों के नीचे दबी अपनी कलाइयों के दर्दों से और ताहा के अंदर हुए अचानक इस बदलाव से।

    कमरे के मद्धम रौशनी में, दोनो की नजरें मिली, ताहा अपने नीचे लेटी दुआ के मासूम चेहरे को निहारता रहा। वो देख सकता था कि दुआ घबराई हुई है, फिर भी उसने अपने सिर को जरा सा नीचे किया और उसके गाल पर अपने होंठ रखते हुए धीरे से बोला, " मुझसे सवाल हो रहा है कि मैं शौहर का हक अदा क्यों नहीं कर रहा..तो क्या हम आज से ही शुरुआत करें? तुमने अपने पेरेंट्स से मेरी शिकायत लगाई है ना? तो मेरा फर्ज बनता है कि मैं तुम्हारे पहले हकूक से शुरुआत करूं।"

    कहते हुए ताहा अचानक गंभीर हो गया, उसने सिर उठाया। दुआ के हैरान और जर्द चेहरे पर एक नजर देखते हुए उसने अपने पॉकेट से एक चेक बाहर निकाली और दुआ के माथे पर रखते हुए बोला, " ये रहा तुम्हारा हकमहर। इस्लाम में बीबी के साथ पहली गुजरने से पहले ये मेहर अदा करनी होती है ना...हमारे निकाह के वक्त कितना महेर रखा गया था, मुझे याद नहीं! तो इसमें अपने मन चाही रकम भर लेना।"

    दुआ की आंखो में आंसू आ गए, उसका दिल अंदर ही कांप उठा और अगले ही पल उसने लड़खड़ाते जबान में पूछा, " क्यों.. क.. क्यों? ऐसा क्यों कर रहे हैं आप.. ताहा। हक मेहर अदा करने का ये तर..तरीका सही तो नहीं..!"

    ताहा के चेहरे पर एक तल्ख मुस्कान छा गई, उसने दुआ को नफरत भरी निगाह से देखा, " मुझे हकूक पूरे करने के ऐसे ही तरीके आते हैं। हमारा निकाह हो गया, तुम मेरे घर में आ गई, मैंने तुम्हारा हकमेहर भी अदा कर दिया अब बस शौहर होने का फर्ज पूरा करना है, चलो..जल्दी ही इसे भी निपटा लेते हैं, मुझे तुम्हारे साथ ज्यादा देर तक नहीं रहना।"

    इतना कहते हुए ताहा ने, अचानक दुआ के कमीज के बटन पर अपनी उंगलियों रखी और उन्हें खोलने की कोशिश करने लगा। दुआ जो कि अभी भी उसके नरफत, गुस्से और इस ज़हालत का वजह समझ नहीं पा रही थी, उसने उसका हाथ पकड़ा और एकदम से चीख पड़ी, "ताहा..!"

    "क्यों क्या हुआ? तुम ऐसा नहीं चाहती? शिकायत नहीं लगाया थी अपने अम्मी अब्बू से इस बारे में? मेरी अम्मी से शिकायत नहीं की थी कि मैं तुम्हारे साथ एक बिस्तर पर नहीं सोता? तुम्हारे साथ खाना भी खाता, तुम्हारे साथ बातें नहीं करता..।", ताहा दांत पीसते हुए गुस्से से बोले जा रहा था, दुआ ने डर से अपने चेहरे को बाहों से छुपा लिया और आहिस्ते से सुबकने लगी।

    उसके रोने की आवाज से, ताहा को कुछ खास असर नहीं हुआ, उसने उसके बाजुओं को पकड़ा और आंखो में खून लिए चिल्ला पड़ा, " अब तुम्हे बीबी होने का फर्ज नहीं निभाना? क्या बिस्तर पर अपने शौहर को इनकार कर रही हो?"

    प्लीज़ समीक्षा करते रहिए, फॉलो भी कर लीजिए, मेरी रिक्वेस्ट है.. प्लीज, प्लीज, प्लीज।

    (क्रमशः)

  • 3. "चाहा है तुझको..!" - Chapter 3

    Words: 1044

    Estimated Reading Time: 7 min

    उसके रोने की आवाज से, ताहा को कुछ खास असर नहीं हुआ, उसने उसके बाजुओं को पकड़ा और आंखो में खून लिए चिल्ला पड़ा, " अब तुम्हे बीबी होने का फर्ज नहीं निभाना? क्या बिस्तर पर अपने शौहर को इनकार कर रही हो?"

    घबराई हुई दुआ, ताहा के इस बरताव पर रो भी ना सकी, उसने ताहा के सीने पर हाथ रख के उसे खुद से दूर धकेला और उठ कर बिस्तर के कोने पर सिमट गई, " ताहा अपने मेरी ओर कदम बढ़ाया तो मैं घरवालों को बता दूंगी कि आपका रवैया मेरे साथ जिस तरह का है।"

    "बेहतरीन उपाय है, जाओ कह दो।", ताहा संभालते हुए बोला, सहमी हुई दुआ के गाल आंसुओं से भींग गए, उसने ताहा से नजरें फेर ली। उसे अपने ही शौहर से घृणा होने लगी थी। ताहा उसके दिल में तब से था, जब से उन दोनो का निकाह हुआ था, पर आज उसे सच में अफसोस हुआ कि उसने ताहा को चाहा।

    ताहा के सुंदर चेहरे पर ठंडक का भाव था। उसकी आँखें काली और ठंडी लग रही थीं। जब वह उसके पास से गुजरा, तो उसने दुआ पर एक नज़र भी नहीं बख्शा। उसने अपना कॉलर ढीला किया और बिना किसी हड़बड़ी के खड़ा कुछ सोचता रहा।

    दुआ ने कंबल को अपनी मुट्ठी में कस लिया। उसने गहरी साँस ली और अपने अगले शब्दों पर ध्यान से विचार किया, फिर धीरे से कहा, " ताहा..ऐसा क्यों कर रहे हो? हमारा निकाह हुआ है...हम बीवी हैं आप..."

    ताहा ने पीछे मुड़ने से पहले अपने शर्ट को ठीक किया, फिर उसने अपनी भौंहें उठाई और अपनी आँखें दुआ पर टिका दीं। दुआ ने सहज रूप से बात करना बंद कर दिया।

    ताहा के हाव-भाव से उसकी भावनाएँ ज़ाहिर नहीं हो रही थीं, लेकिन उसकी आँखों में नफरत के भाव स्पष्ट थे, हालाँकि, दुआ को उससे निकलने वाली एक अवर्णनीय और प्रभावशाली आभा महसूस होने लगी थी, जिससे वह बहुत ज्यादा बेचैनी महसूस कर रही थी।

    ताहा की नज़रे धीरे-धीरे दुआ के असाधारण सुंदर चेहरे पर घूम गईं। जब उसने देखा कि वह घबराने लगी है, तो उसके होठों के कोने धीरे-धीरे ऊपर उठे, और उसने जवाब दिया, "निकाह? क्या तुम इसी निकाह की बात कर रही हो? जो मेरी मर्जी के खिलाफ बचपन में तब कर दिया गया, हम मेरी उम्र खेलने और पढ़ने की थी? तुम्हारे साथ हुए इस निकाह के कारण जमाना मुझ पर कितना हंसता था तुम जानती हो?"

    दुआ सदमे से स्तब्ध रह गया। इसका क्या मतलब था? क्या वो कम उम्र की नहीं थी? नफरत का ऐसा कारण! यकीनन ताहा झूठ बोल रहा था।

    ताहा ने दुआ की आँखों में खालीपन देखा। जब उसे समझ में आया कि वह क्या कहना चाह रही है, तो उसने व्यंग्यात्मक और भद्दे तरीके से जवाब दिया, " मै इस निकाह के ढोंग से और तुम्हारी मौजूदगी से तंग आ चुका हूं, ऊपर से तुम्हारी बीबी बनने की शिकायतें..मै नहीं बनना चाहता तुम्हारा शौहर, मुझे इस रिश्ते पर खुन्नस आता है, मेरा खून जलता है। इसलिए, मै ताहा हैदर इसी वक्त तुम्हे तला.."

    कहते हुए अचानक ताहा रुक गया, उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके जुबान को पकड़ लिया हो, वो उस एक शब्द "तलाक" को अपने जुबान से बाहर ना निकाल सका। उसकी नजर दुआ पर थी जो उसके आखिरी अधूरे लफ्ज पर बिल्कुल कांप गई। ताहा के हिमाकत से दुआ की हड्डियों में सिहरन पैदा हो गई। उसके चेहरे से खून सूख गया और उसके हाथ काँपने लगे।

    हालाँकि ताहा ने शराब के नशे में उसे चूमा था और उसके करीब आने की पहले पहल की थी, लेकिन अब जब ताहा बात तलाक तक ले आया तो दुआ का दिल टूट कर बिखर गया, वो अपनी जिंदगी के उस लम्हे में थी, जब उसे ताहा के मुंह से वो लफ्ज सुनने से बेहतर मौत का फरमान सुनना अच्छा लगता।

    ताहा दो कदम दुआ पास गया,  उसकी लंबी और पतली उंगलियों ने दुआ की ठुड्डी को ऊपर की ओर उठा दिया, फिर दुआ चेहरे पर एक नज़र डाली और डरावने अंदाज़ में कहा, "मैं चाहता हूं कि तुम मेरी जिंदगी से निकल जाओ..चली जाओ मेरे घर से।"

    वो उसे तलाक ना दे सका, हालंकि ये उसने हाथ ने था..फिर भी उसके जबान ने साथ ना दिया, जबकि ताहा ने कभी इस रिश्ते में उम्मीद नहीं पाली थी।

    इतना कह ताहा ने दुआ के पीले पड़े चेहरे को झटक दिया और कमरे से बाहर चला गया। दुआ टूट चुकी थी, उसकी हिम्मत ने जवाब दे दिया था, उसका निकाह बर्बाद हो गया, ताहा ने सब कुछ तबाह कर दिया था।

    उसकी आंखो से एक बूंद आंसू गिरी, उस ठंडे आंसू ने उसके दिल को ऐसा तड़पाया की, वो बिस्तर से उठी, वाशरूम की ओर भागी, वहां वुज़ू किया और कमरे में लौट आई। फर्श पर ज़ाज़िम बिछाई और सिर को दुपट्टे से इस तरह ढक लिया की उसके सारी जुल्फ दुपट्टे के पीछे छुप गई।

    जब वो काबा शरीफ की ओर मुंह कर के ज़ाज़िम पर खड़ी हुई, उसकी लबों से एक लफ्ज़ निकला  "अल्लाह" और दोनो आंखे आंसुओं से भर गई। उस रात उसके जिस्म ने नमाज़ नहीं पढ़ी थी, बल्कि उसके आंसुओं ने सजदा किया।

    नमाज पढ़ने के बाद उसने दुआ के लिए हाथ उठाया तो आंसू छलक कर उसकी हथेलियों पर गिरते रहें, उसके कब थरथराते रहें, दिल कांपता रहा और रूह तड़पड़ी रही,  लेकिन जबान से एक लफ्ज़ ना निकला।



    वो आधी रात तक मुसल्ले (नमाज पढ़ने का आसन) पर बैठी रोती रही, दुआएं मांगती रही, अपने लिए रहमत की इल्तिज़ा करती रही। आखिर में वो थक कर वहीं ज़ाज़िम पर सिमट कर लेट गई और धीमे– धीमे अपने रब से कहने लगी, " ए मेरे रब, मुझे इस्तेक़ामत (ताकत) दे, मै जानती हूं कि तू हर चीज पर कादिर है, मेरे लिए सबकुछ ना मुमकिन होता जा रहा है, मगर तेरे लिए कुछ भी मुश्किल नहीं। तू मेरे दिल का हाल जानता है..मेरे अल्लाह, मेरे लिए आसानी कर। तू कुन कहे तो फयकुन हो जाता है, मुझ पर रहम फरमा मेरे मालिक...रहम फरमा दे। कोई फरिश्ता भेज मेरे मौला..जो मेरे दिल में सुकून भर दे...मेरे गम मिटा दे।"

    रोते, सिसकते, तड़पते हुए उस काली रात में थकी हुई दुआ की आंखो में धीरे– धीरे नींद उतर आया, भरी आंखों को बंद कर वो अपने रब को पुकारते हुए वहीं सो गई।

    अगले भाग के लिए कॉमेंट करें.. प्लीज।

    (क्रमशः)

  • 4. "चाहा है तुझको..!" - Chapter 4

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    फजर का वक्त होते ही, दुआ के फोन का आलार्म बजा, जो हर रोज इसी वक्त पर बजा करता था, ताकि वो अपने दिन की शुरुआत अल्लाह के आगे सजदों से कर सके, पर आज जब अलार्म की पहली रिंग बजी, दुआ हड़बड़ा कर उठी, उसने खिड़की के बाहर खुले आसमान पर नजर डाली तो देखा, अभी भी सूरज नहीं निकला था।

    रोने के कारण थकी और सूझी हुई, उसकी आंखो में जागते ही आंसू भर आए, उसने वापस वज़ू किया और फ़जर की नमाज अदा की। इस घर में ये उसका आखरी नमाज था, उसका दिल रोया, आंखे रोई पर ताहा  से उसे इश्क कितना भी क्यों ना हो? उसके दिल ने गवारा ना किया कि वो ताहा के साथ एक छत के नीचे रहे।

    उसने सूरज निकलने से पहले ही अपना सामना पैक कर लिया और सूटकेस खींचते हुए घर के चौखट तक आ गई, उसने कदम बाहर निकालने से पहले भी कई दफा सोचा पर, अब इस रिश्ते में बचाने जैसा कुछ बाकी ही नहीं था।

    उसने अपने दिल पर पत्थर रख लिया और बाहर चली गई, ताहा की निशानी के तौर पर वो अपना टूटा हुआ दिल ले जा रही थी, जो इस दुनिया में अब कोई जोड़ नहीं सकता था।

    ________________________

    दुआ का मायका आधे घंटे के रास्ते पर था, वो उदासी में कैब करना भूल गई थी और इतनी सुबह की टैक्सी वाला भी नजर नहीं आ रहा था, सड़क पर सूटकेस के साथ तन्हा खड़ा रहना, उसके दिल में अजीब बेचैनी पैदा करने लगा।

    मदद के लिए चारों जानिब कोई भी नहीं था, सर्दी का मौसम बीतने लगा था किन्तु हवाओं में अभी ठंडक थी, जो दुआ के बुर्के और हिजाब को अपने साथ उड़ाने की कोशिश कर रही थी।

    तभी वहां से कुछ लड़के मोटरसाइकल पर शोर करते हुए गुजरे, ठंडा इलाका था, अक्सर नवजवान लोग यहां राइडिंग करने आया करते थे।

    दुआ सहम कर पीछे हो गई, हालंकि उनकी बाइक की स्पीड काफी तेज थी, जिससे वो रुके नहीं, पर नजर तो उनकी भी दुआ पर पड़ी ही थी।

    कुछ दो मिनट बाद, वो बाइकर वापस उसकी ओर आते दिखे, ये देख दुआ का गला सुख गया, उसने अपने तेजी से धड़कते दिल पर हाथ फेरा और खुद को हिम्मत देने की कोशिश की....

    हालांकि वो बाइकर उसके करीब पहुंचते, उससे पहले ही उसके सामने एक कार आ कर रुकी, बेशक! उसने पहली नजर में कार पहचान लिया, पर कार से जो शख्स निकला, उसे देख दुआ हैरान रह गई।

    ये ताहा था, वो ड्राइविंग सीट से निकल कर, उदास और सपाट चेहरे के साथ उसकी ओर बढ़ा। लेकिन, उसका यहां अचानक आना हैरानी की बात थी, क्या ताहा ने उसे घर से निकलते हुए देख लिया था? क्या उसे दुआ को घर से निकल जाने का फरमान सुना कर सुकून की नींद नहीं सो जाना चाहिए था?

    अपने ख्यालों को निचोड़ते हुए, अब दुआ के दिल से उन लड़कों का खौफ बिल्कुल ही निकल चुका था, ताहा कितना भी बुरा हो...उन लड़कों से उसकी हिफाजत जरूर करेगा।

    ताहा उसकी ओर बढ़ रहा था तो दुआ के दिल में फिर से एक उम्मीद जाग गई, लेकिन ताहा ने उसके सूटकेस की उठाया और उसे कार के डिग्गी में रखते हुए ठंडे लहजे में बोला, " बैठो...मै नहीं चाहता कि तुम बाहर अकेली जाओ और तुम्हारे साथ कुछ होने पर मेरे और  तुम्हारे घर वाले मुझे ब्लेम करें। मै तुम्हारी वजह से मजीद अपनी जिंदगी में परेशानी और तकलीफें नहीं बढ़ाना चाहता।"

    क्या वो उसे छोड़ने जाने के इरादे से आया था? ना कि मना  कर  वापस घर ले जाने के इरादे से! दुआ उदासी से छोटे– छोटे कदम उठाने लगी, उसे चलने का भी दिल नहीं कर रहा था, भला उस लड़की में उस वक्त ताकता कैसे आती जब उसका घर बेवजह ही टूट रहा हो?

    "जल्दी करो, मेरे पास तुम्हारे ऊपर बर्बाद करने की वक्त नहीं है।", ताहा के तल्ख आवाज से दुआ ने कदमों की गति बढ़ा दी, वो ड्राइविंग सीट के बगल वाले दरवाजे को खोलने लगी तो ताहा ने सख्त लहजे में कहा, " पीछे बैठो..मुझे तुम्हारे साथ नहीं बैठाना। यह सीट तुम्हारे लिए नहीं है।"

    दुआ का हाथ दरवाजे पर ही कांप गया, ताहा उसकी ओर देखे बगैर कार के अंदर बैठा और स्टीयरिंग पर उंगलियों को फिराने लगा। दुआ को शर्म आई, उसे अपने किरदार पर लज्जा आई की वो ताहा की मदद लेने की मजबूर है।

    पर थी तो वो दुआ ही..उसका दिल नर्म था, बिल्कुल किसी चिड़िया की तरह। उसने सब्र का दामन थाम लिया और कार के पीछे वाले सीट पर चुपचाप जा कर बैठ गई।

    ताहा खामोशी से बैठा फ्रंट मिरर से उसे देखता रहा, जब तक कि उसने सीट बेल्ट ना लगा लिया, ताहा ने कार स्टार्ट नहीं की।

    कार चली तो दुआ को अजीब सी घुटन हुई, उसे ताहा की मौजूदगी खल रही थी, ये खामोशी उनके रिश्ते की सच्चाई थी और ये घटते हुए रस्ते...उनके रिश्ते की घटती हुई कहानी लिख रही थी।

    दुआ खुद को रोक ना सकी, उसकी आंखो से आंसू बहे तो उसने कार की खिड़की के शीशे नीचे कर लिए और खिड़की पर ठुड्ढी टिकाए उन सर्द हवाओं से अपने आंसू की वजह छुपाने लगी।

    ठंडी हवाओं ने कार के अंदर भी ठंडी बढ़ा दी, ताहा ने पतली शर्ट के अलावा कोई गर्म कपड़ा नहीं पहना था, जिससे उसे सर्दी लगी पर उसने दुआ को खिड़की बन्द करने के लिए नहीं कहा, हालांकि वो फ्रंट मिरर से दुआ को भी कांपते हुए देख पा रहा था।

    ___________________

    दुआ का घर आते ही, उसने कार रोक दी। दुआ एक पल भी उस कार में ना रुकते हुए उतरी, इससे पहले की ताहा कार की डिग्गी से उसका सूटकेस निकालता, दुआ ने उसकी मदद लिए बगैर अपना सूटकेस निकाला और नजरें नीचे किए ताहा को देखे बिना ही बड़ी अदब से उसे अलविदा कहा, " ख़ुदा हाफ़िज़ ताहा।"

    ताहा की निगाहें बेसख्ता ऊपर उठी, उसने दुआ को इस तरह देखने की जहमत पहली बार की थी, लेकिन दुआ पीठ फेर चुकी थी, वो आखरी दफा उसका चेहरा भी ना देख सका और सब कुछ यहीं खत्म हो गया।

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  • 5. "चाहा है तुझको..!" - Chapter 5

    Words: 1138

    Estimated Reading Time: 7 min

    बेटी घर लौट आई, मां के सीने पर सिर रखा और आंसू बहाएं, पर जुबान से कहा कुछ नहीं। दिन भर रोती रही, सिसकती रही, तड़पती रही।

    बाप ने सिर पर हाथ फेर कर वजह जाननी चाही तो तड़प पर उनके गोद में सिर रख लिया और कहा, " ताहा..मेरे साथ नहीं रहना चाहते, उन्होंने मुझे घर छोड़ने का हुक्म दे दिया है..बाबा।"

    उसकी आवाज़ कमज़ोर और क्षीण थी, उसके पिता तुरन्त चुप हो गये, जबकि उसकी माँ स्तब्ध रह गयी।

    काफी समय बीतने के बाद उसकी मां आखिरकार अपनी आवाज वापस पा सकीं। उन्होंने अविश्वास में पूछा, "तुम कह रही हैं कि ताहा तुम्हारे साथ तीन महीने गुजारने के बाद साथ नहीं रहना चाहता, जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता? बल्कि घर से भी निकाल दिया?"

    उसके पिता की भी भौहें सिकुड़ गईं। हालाँकि, वह आखिरकार एक व्यापारी थे, और शांत रहने में सक्षम थे, उन्होंने पूछने से पहले पानी बेटी के पीले पड़े चेहरे को देखा और कोमल लहजे में पूछा,  "दुआ, क्या तुम्हारे और ताहा के बीच कुछ हुआ था? झगड़े की वजह क्या है?"

    पिछले तीन महीनों से, दुआ अपने दिमाग में बार-बार इस सवाल को दोहरा रही थी। हालांकि, चाहे उसने कितना भी सोचा हो, वह इसका जवाब नहीं ढूंढ पाई।

    उसकी मां आयशा ने दुआ के चेहरे पर उलझन भरी नज़रो से देख और खुद को रोक नहीं पाईं। उन्होंने कहा, "तुम ताहा को फ़ोन क्यों नहीं करतीं और उससे अच्छी तरह बात क्यों नहीं करतीं? मियां बीबी में झड़ने होना आम बात है दुआ..ऐसे घर नहीं छोड़ा करते।"

    "नहीं।", दुआ ने बिना कुछ सोचे-समझे आपत्ति जताई, " मैने खुद से घर नहीं छोड़ा अम्मी, उसने मुझसे कहा कि मैं उसके घर से चली जाऊं, वो मेरा चेहरा तक बर्बशत नहीं कर पाते, तो आप मेहरबानी कर के मुझे इसके लिए फोर्स ना करें, बचपन में निकाह कर के आप लोग ने वैसे ही मेरी जिंदगी खत्म कर दी है।"

    वह ताहा के व्यक्तित्व को अच्छी तरह जानती थी। उसके जैसा आदमी जो बहुत ही घमंडी और दबंग था। एक बार जब वह कुछ तय कर लेता है, तो कोई भी उसका मन नहीं बदल सकता। चूँकि उसने तय कर लिया था कि वह उससे साथ निकाह में नहीं रहेगा तो कभी नहीं रहेगा, इन हालतों  में अगर वह अपनी सारी गरिमा त्याग कर उसके साथ रहने चली भी जाएगी, तो भी ताहा  उससे कभी प्यार नहीं करेगा, बल्कि उसके लिए ताहा का तिरस्कार और भी बढ़ जाएगा।

    "क्या हम उसे ऐसे ही निकाह तोड़ने देंगे? तुम्हारा क्या होगा? आगे कौन तुमसे शादी करने को तैयार होगा? तुम परिवार के लिए शर्म की बात बन जाओगी!", उसकी मां आयशा ने अपना डर जताया।

    दुआ अपनी मां की डांट-फटकार सुनकर चुप रही। कुछ समय बाद, उसके पिता, जो अब तक चुप थे, ने दुआ की और देखा और सीधे कहा, "थोड़े समय के लिए विदेश, अपने मां के घर चली जाओ। जब यह मामला शांत हो जाए तो वापस आना।"

    यद्यपि उनका स्वर हल्का था, फिर भी यह एक निर्विवाद आदेश था।

    हालाँकि उसके पिता ने उसे कुछ समय के लिए विदेश जाने के लिए कहा था, लेकिन दुआ जानती थी कि यह समय बहुत लंबे समय तक चलेगा...

    फिर भी, उसे 'नहीं' कहने का अधिकार नहीं था। उसने उनकी बात मान ली और अपनी मां के साथ कमरे की तरफ चली गई।

    ___________________

    अगले दिन, दुआ ने अपना सामान पैक किया और अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से यह बहाना बनाकर कि वह पढ़ाई करने जा रही है, अमेरिका के लिए रवाना हो गयी।

    हालाँकि निकाह टूटने की बात सार्वजनिक नहीं की गई, लेकिन सामाजिक दायरा इतना छोटा था कि कुछ ही दिनों में हर कोई इस बारे में बातेंकरने लगा। अंत में, जो अफवाह सच निकली वह यह थी कि दुआ और ताहा ने निकाह खत्म करने का फैसला किया।

    हालांकि लोगों ने बातें बनना शुरू कर दी, कुछ ने ताहा को दोषी ठहराया तो कुछ लोगों ने दुआ के किरदार पर उंगली उठाई।

    जब तक उसके किरदार की कहानी, दुआ के कानों तक पहुंची, तब तक दो सप्ताह से अधिक समय बीत चुका था। इस दौरान, ताहा ने उससे बिल्कुल भी संपर्क नहीं किया।

    इस घटना के बाद, दुआ ने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से भी बातचीत बंद कर दिया और फैसला किया कि वो दुबारा ताहा के मुहब्बत में कभी नहीं पड़ेगी, अगर उनका कभी सामना हुआ भी तो वो उसे एक अजनबी की तरह देखेगी, जैसे उसकी जिदंगी में ताहा का कोई वजूद ही ना रहा हो।

    तीन साल बाद–

    तीन साल पलक झपकते ही बीत गए, दुआ अपनी जिदंगी में आगे बढ़ गई, उसने अमेरिका में जर्नलिज़म की पढ़ाई की और आखिर कर घर लौटने का समय हो गया।

    तीन साल बाद, जब दुआ उत्तराखंड के एयरपोर्ट से बाहर निकली, तो उसके परिवार का ड्राइवर, अंकल मोहन, पहले से ही प्रवेश द्वार पर उसका इंतजार कर रहें थें। उन्होंने उसे देखा और जल्दी से उसका स्वागत करने के लिए दौड़े, फिर उसका सामान ले लिया।

    "दुआ बिटिया, आप इस लंबे सफर से थक गई होंगी। है ना?", उनके सवाल पर दुआ ने हल्के से अपना सिर हिलाया और जवाब में मुस्कुराने लगी।

    जैसे ही कार चौड़ी सड़कों पर तेजी से चली, दुआ ने खिड़की नीचे की और कार से बाहर देखने लगी।

    तीन साल में उत्तराखंड बहुत बदल गया था, ऊंची-ऊंची इमारतें खड़ी हो गई थीं और आबादी भी बढ़ गई थी। सबसे ज़्यादा ध्यान आकर्षित करने वाली जो चीज थी, वो थी एक्ट्रेस "आशी" का विज्ञापन जो हर सड़क और चौराहे पर लगे हुए थे।

    आशी एक सुंदरी थी, जिसने हाल के वर्षों में विश्व सुंदरी का खिताब जीत कर भारत का नाम गौरवित किया था। विदेश में रहते हुए भी, दुआ ने उसके बारे में सुना और वो लड़की उसके काफी अच्छी लगी थी।

    जब कार लाल बत्ती पर रुकी, तो दुआ ने अपनी नज़र एक विशाल शॉपिंग मॉल के बाहर टंगे आशी के विशाल पोस्टर पर डाली। उसकी आँखें सुंदर और भावपूर्ण थीं, जिसके साथ एक प्यारी सी मुस्कान भी थी। वह वाकई बहुत खूबसूरत थी।

    दुआ ने कुछ क्षण तक गहरी सोच में डूबे हुए पोस्टर को देखा, फिर नजरें फेर लीं।

    जैसे ही वह घर पहुंची, उसे आराम करने का मौका नहीं दिया गया और उसके बाबा उसे पुनः बाहर ले आए।

    यह उसके पिता के बिजनेस पार्टनर, मिस्टर जैन फारूक की जन्मदिन पार्टी थी। सभी आमंत्रित मेहमान अमीर और धनी थे। दरवाजे पर पहुंचते ही दुआ ने अपने बाबा के हाथ पकड़े और पूछा, " बाबा हम यहां क्यों आए हैं? मै इन लोगों को जानती भी नहीं।"

    "बेटा...यहां मैं तुम्हे किसी से मिलवाने लाया हूं, हमने फैसला किया है कि हम ताहा से तुम्हारा खोला करवाएंगे और तुम्हारी दूसरी जगह निकाह करेंगे। लोगों ने बहुत बातें बना ली, अब मैं और बातें नहीं सुन सकता।", दुआ के बाबा रहमान साहब ने अपनी बेटी को समझाया, हालांकि वो साफ तौर से अपने फैसले को उस पर थोप रहे थे।

    (क्रमशः)

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  • 6. "चाहा है तुझको..!" - Chapter 6

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

  • 7. "चाहा है तुझको..!" - Chapter 7

    Words: 1108

    Estimated Reading Time: 7 min

    तीन साल के भीतर, दुआ के पिता की सी.यू कॉरपोरेशन के प्रबंधन में दरारें दिखने लगी थीं। ताहा के साथ उसका निकाह टूटने के बाद, मिस्टर हाशिम की सी.यूं कंपनी  और भी ज़्यादा समस्याओं से घिर गई। सी.यू कॉरपोरेशन का भाग्य फिलहाल अधर में लटका हुआ था, और अगर आगे कोई निवेश नहीं हुआ, तो कंपनी को दिवालिया होने से कोई भी बचा नहीं सकता था।

    कंपनी को बचाने के लिए, दुआ हाशिम को यह सुनिश्चित करना था कि वह उसके बाबा द्वारा खोजे गए, उसके नए हमसफर पर अच्छा प्रभाव डाले। ताकि उसके पिता को एक निवेश मिल सके और सी.यू कंपनी बच जाए।

    "दुआ, हालाँकि मिस्टर जैन तुमसे थोड़े बड़े हैं, लेकिन वे बहुत सझे हुए और मेच्योर इंसान हैं। वे तुम्हारे साथ अच्छे से पेश आयेंगे। सबसे जरूरी बात यह है कि उनके पास दो कंपनियों हैं। तुम उनसे अच्छी तरह मिलना और बात करना, बचकानी मत बन जाना।",

    जब दुआ ने अपने पिता के निर्देश सुने तो उसने अचानक भौहें सिकोड़ लीं और अपने होंठ भींच लिए। उसके मुंह से केवल तीन ही शब्द निकला , " ठीक है बाबा।"

    उसकी आज्ञाकारिता ने मिस्टर हाशिम को संतुष्ट किया। उन्होंने उसे पकड़ लिया और भीड़ के बीच से होते हुए मिस्टर जैन फारूक के पास ले गए।

    मिस्टर जैन मध्यम कद के थे और उनकी उम्र लगभग दुआ के पिता जितनी ही थी। उनका पेट गोल था और उनकी आँखें धुंधली थीं, क्योंकि उनके आंखों पर मोटा चश्मा लगा हुआ था। जब उनकी नज़र दुआ पर पड़ी, तो उन्होंने उसे सिर से पैर तक खुलेआम देखा।

    परिचय का इंतज़ार किए बिना, वह जल्दी से आगे बढ़ा और दुआ का हाथ पकड़ लिया,  "मिस दुआ, आप वाकई उतनी ही खूबसूरत हैं जितनी कि आपके बाबा ने मुझे बताया था!"

    दुआ ने भौंहें सिकोड़ीं, वो अपना हाथ चाह कर भी पीछे ना खींच सकी। लेकिन इससे पहले कि वह कोई जवाब दे पाती, हॉल के प्रवेश द्वार पर अचानक हंगामा मच गया।

    दुआ ने सहजता से नज़र घुमाई और उसकी नज़र उस आदमी पर टिक गई जो भीड़ में सबसे अलग खड़ा था। उसकी आँखें बादाम की तरह सुंदर आकार की थीं, थोड़ी ऊपर की ओर उठी हुई। बोलचाल की भाषा में, वैसी आंखो को अमरपक्षी की आँखें कहा जाता था। उसकी नाक का पुल ऊँचा था और होंठ पतले थे। वह उदासीन दिख रहा था जैसे कि कुछ भी उसे परेशान नहीं कर सकता, और उसके चारों ओर एक ठंडी, निर्दयी आभा थी।

    उसके बगल में एक बेहद खूबसूरत महिला खड़ी थी। उसका हाथ उसकी कोहनी में फंसा हुआ था और वह उस पर आराम से झुकी हुई थी। उसकी मुस्कान उसकी आँखों तक पहुँच रही थी, और वह बहुत प्यारी लग रही थी।

    उसने उस महिला को पहचान लिया। वह कोई और नहीं बल्कि बेहद लोकप्रिय विश्व सुंदरी आशी थी, जिसका चेहरा सड़कों और बिलबोर्ड पर हर जगह छपा हुआ था।

    जहाँ तक आदमी का सवाल है.... वो ताहा था, जो उस लड़की के यूं करीब था मानो वो उसकी बीबी हो।

    दुआ जानती थी कि लौटने के बाद, उसे फिर से ताहा का समाना करना होगा, लेकिन यह उतनी जल्दी होगा, उसे पता नहीं था। अजीब बात है,उसके दिल में एक अवर्णनीय भावना उमड़ पड़ी। वह यह नहीं बता सकी कि यह भावना घबराहट थी या प्रत्याशा।

    ताहा और आशी जैसे ही अंदर आए, भीड़ ने उन्हें घेर लिया और वे उसकी दिशा में बढ़ने लगे।

    ताहा ने भीड़ से बाहर देखने के लिए नजरें उठाई और अचानक उसकी नजर दुआ पर पड़ी, जो उसे ही देख रही थी। दोनो की नजरें मिली और दुआ अपनी धडकनों को काबू  में ना रख सकी।

    हालाँकि, अगले ही पल, ताहा ने ऐसा व्यवहार किया जैसे उसने कुछ भी नहीं देखा हो। उसने अपनी नज़रें हटा लीं और उसके पास से होते हुए आशी के साथ चला गया।

    दुआ ने अपने भीतर उभरे आत्म-उपहास को छिपाने के लिए अपनी आँखें नीची कर लीं। उसने सोचा था कि दोबारा मिलने पर शायद ताहा, उससे बात करने की कोशिश करें। लेकिन वह उसे अनदेखा करके चला गया जैसे वह वहां कभी थी ही नहीं।


    "दुआ, मिस्टर जैन आपसे बात कर रहे हैं। उनसे बात कीजिए।", मिस्टर हाशिम के शब्दों ने दुआ को उसकी कल्पना से बाहर निकाला। उसने अपना संयम वापस पाने के लिए चुपचाप गहरी साँस ली और अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेरी। उसने अपना सिर झुकाया और धीरे से पूछा, "हाँ? आप कुछ कह रहे थे?"



    जैन फारूक को उसका विनम्र व्यवहार बहुत पसंद आया और वह इतनी जोर से मुस्कुराये कि उनकी आंखें लगभग बंद हो गई।

    मिस्टर हाशिम ने देखा कि स्थिति किस तरह से बदल रही थी और उन्होंने अपनी बेटी की ओर सिर हिलाकर सहमति जताई। इसके बाद, उन्होंने जाने का बहाना बनाया, लेकिन इससे पहले उन्होंने दुआ को एक चेतावनी दी कि वो इस अवसर को हाथ से न जाने दें।

    अपने बाबा के जाने के बाद, दुआ ने चुपचाप अपना हाथ मिस्टर जैन की पकड़ से छुड़ा लिया और मुस्कुराते हुए कहा, " यहाँ बहुत शोर है। क्यों न हम किसी शांत जगह बैठ कर बात कर लें।"

    उसका सुझाव बिल्कुल जैन की इच्छा के अनुरूप था। उन्होंने उत्सुकता से सिर हिलाया, "चलो अभी चलते हैं।"

    हालाँकि, दुआ ने उसे रोक दिया, "मिस्टर जैन, मुझे वॉशरूम जाना है। क्या आप पहले वहाँ जा सकते हैं और मेरा इंतज़ार कर सकते हैं?"

    "हाँ, ज़रूर, ज़रूर.. जल्दी आओ! मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ।"..

    मिस्टर जैन से छुटकारा पाने के बाद, दुआ ने अपनी थकी हुई भौंहों को रगड़ा। उसने अपने सामने भीड़ पर नज़र डाली और एक गुज़रते हुए वेटर से जूस का गिलास उठाया। उसने खुद को एक अगोचर कोने में घसीटा और बैठ गई।

    कुछ समाजसेवी लोग उसके बगल वाले बूथ में बैठ गए और शैंपेन पीते हुए बातें करने लगे।

    "आज मिस्टर ताहा की प्लस वन मिस आशी है। मुझे हैरानी होती है कि आखिर आशी इतनी भाग्यशाली कैसे हो गई! मुझे लगता है कि वह ताहा का ध्यान आकर्षित करने में कामयाब रही। आशी ने विश्व सुंदरी बनने के लिए ताहा का सहारा लिया है।"...

    "खैर, मुझे तो उस लड़की पर तरस आता है, जिससे ताहा ने अपना निकाह खत्म किया। मुझे लगता है ताहा को आशी जैसी फेमस लड़कियां पसन्द है, या फिर उस लड़की में कोई खोट होगा। किसी और लड़के के चक्कर में पड़ गई होगी...या हो सकता हो उस लड़की ने भी आशी की तरह ताहा को फंसाया हो।"....

    वहां तीन लोग थे, जिनमें से एक आखरी ने कहा, " बातें बनाना तो आसान है, हो सकता है ताहा में कोई दोष हो, आजकल के लड़के बीवियां नहीं चाहते, वह चाहते हैं हर रात अलग-अलग लड़कियों के साथ रहें। मुझे तो ताहा का किरदार भी..नापाक ही लगता है।"

    समीक्षा याद से करें।

    (क्रमशः)