अयान की मोहब्बत या ज़िद, जिसने हुमैरा को बंदा निकाह के रिश्ते में जबरदस्ती... किया हुमैरा अपनाएगी इस जिद भरी मोहब्बत को किया-लगता है क्या होगा इस रिश्ते का अंजाम। 2nd लीड... आयेशा का बरसों का इंतजार और हैदर का इनकार- क्या आयेशा अपने... अयान की मोहब्बत या ज़िद, जिसने हुमैरा को बंदा निकाह के रिश्ते में जबरदस्ती... किया हुमैरा अपनाएगी इस जिद भरी मोहब्बत को किया-लगता है क्या होगा इस रिश्ते का अंजाम। 2nd लीड... आयेशा का बरसों का इंतजार और हैदर का इनकार- क्या आयेशा अपने बरसों की मोहब्बत को भूल पाएगी? या हैदर अपनाएगा आयेशा की इस बरसों पुरानी चाहत को ? 3rd हशिर और रिज़ा का नोकझोंक भरा रिश्ता क्या ये अपनी मंज़िल पाएंगे या दो ख़ानदानों की जंग इन मासूमों की मोहब्बत का ख़ात्मा कर देगी? 4th... सानिया अनजान है अपनी मोहब्बत से, और शोइब के लिए सानिया सिर्फ दोस्त- क्या ये दोनों समझ पाएंगे अपनी फीलिंग्स और क्या कर पाएंगे ये एक प्यार भरे रिश्ते का आगाज़? जानने के लिए सुनिए हमारी नई ऑडियोबुकः Dastane_e_Jununiyaat
Page 1 of 1
एक लडकी डरी-सहमी एक कमरे में बैठी है। तभी दरवाज़ा खुलता है और एक लाडका अंदर आता है।
वो लाडकी जो दरी बेढी है वो है हमारी नॉवेल की हिरोइन हुमैरा खान
हुमैरा जैसे ही देखती है कि कोई अंदर आया है, वो घबरा जाती है और पीछे हट जाती है।
ओर दरवाजा खोल कर जों अंदर आया है वो है हमारी कहानी का हीरो अयान अहमद खान
अयान उसकी आँखों में देखते हुए कहता है:
"डरने की जरूरत नहीं है..."
उसके चेहरे पर सख्ती तो थी, लेकिन आँखों में एक अजीब सा सुकून था। हुमैरा अब भी काँप रही थी।
उसकी आवाज़ कांपते हुए निकली
"आपने मुझे किडनैप क्यूँ किया है मुझे यहा कियो लाए हो
अयान कुछ पल खामोश रहा, फिर ठंडी आवाज़ में बोला:
"तुमसे कुछ बातें करनी हैं... तुम मेरे जिंदगी में दखल दे चुकी हो, और अब तुम्हें समझना होगा कि
अयान खान से टकराने का मतलब क्या होता है."
हुमैरा धीरे-धीरे अयान के सामने बोलने लगी। उसने कहाः
देखो मे तुम्हें नहीं जानती तुम sayad galat इंसान को उठा कर ले आये हों मे तो कभी कुछ ग़लत नही की प्लीज मुझे यहाँ से जाने दो
अयान ने उसकी आँखों में देखा और मुस्कुराया
अयान जेसे ही हुमैरा के पास आया हुमैरा डरके आयन कों अपने हाथ से पीछे करने लागी अयान ने हुमैरा का हाथ पकडा
"हिम्मत है तुम में... इसी लिए तुम यहां हो. अब तुम मेरी दुनिया का हिस्सा बन चुकीं हों."
ओर अयान अहमद खान का कोई कुछ बीगार सके दुनिया मे ऐसा कोई पैदा नही हुआ
हुमैरा सन्न रह गई। ये आदमी आखिर चाहता क्या है?
आयन उसके करीब आ कर बोला याद है आज से एक महिने पहले तुमने किसी कों thappad मारा था
ये सुनते ही हुमैरा कों याद आया की वो कॉलेज se निकल रहीं थी तभी उसके समने एक कार आ कर रुकी जिसमें से एक आदमी बाहर आया
उसके face पर मास्क लगा था उसकी कार के निचे एक बिल्ली का bacha आ गया था humaira ये देखते से उस कार ke पास आयी तभी अयन के bodyguard नें हुमैरा को रोक दिया humaira आगे जाना चाहती थीं पर वो bodyguard ने जाने नहीं दिया इतनी देर मे वो बिल्ली का bacha मर गाया ये देख कर हुमैरा गुस्से मे पीछे मुड़ी और वो एक इन्सान से टकरा गई
हुमैरा नहीं जानती थीं ये इंसान कोंन है हुमैरा नें बिना सोंचे समझे उस इंसान को एक थापर मार दी ओर कहने लगी तुम्हें कितने बेरहम हों तुम्हें अल्लाह का खौफ नही है
इधर अयान जों कॉल पर किसी से बात कर रहा था वो हैरान हो गया जिस इंसान पर पूरी इंडिया का कोई भी इन्सान एक उंगली नही उठा सकता उस पर एक लडकी ने हाथ उठाया
पर अजीब ये था की अयान जो किसी की ऊँची आवाज तक बर्दास्त नहीं करता उस पर एक ladki ने हाथ उठाया ओर वो चुप खड़ा है ये देखते ही अयान क़ा right hand रेहान shocked हो गया ओर डरते हुआ दिल मे सोचने लगा इस ladki को तो अब कोइ नहीं बचा सकता पर ayaan शान्त खडा था
अयान की जब से नजर हुमैरा पर पडी वो हुमैरा कों देखते ही रह गया हुमैरा थी ही इतनी सुन्दर प्यारी बड़ी बड़ी आंखे खुले लंबे बाल अयान हुमैरा मे खोया हुआ था पर फिर जेसे hi उसे याद आया इस लड़की नें उस par हाथ उठाया है
ये सोचते ही अयान की आंखे बड़ी हों गयी आयन कों पीछे से रेहान कि आवाज ayi सर हमे जाना होगा ये सुनते ही अयान ने पीछे मुड़ कर देखा ओर ओर रेहान कों अपनी काली गहरी आँखों से देखा रेहान तों ये देखते ही डर गया उसके मुह से एक सब्द नही निकला इतने मे अयान वापस हुमैरा की तरह मुड़ते हुए अपने मास्क हटाया जब तक हुमैरा वाहा से जा चुकी थीं
हुमैरा को जेसे ही ये याद आया वो बोलने लगी तो तुम थे उस दिन वो आदमी
देखो मेरी तुम से कोइ दुश्मनी नहीं है उस दिन मे गुस्से मे थी तुम चाहो तो मुझे 10 thappad मार लो पर यहा से जाने दो मुझे डर लाग रहा है
अयान उसकी और देखते हुए शान्त आवाज मे बोला मिस रेड don't worry मे आपको thappad नहीं मरूंगा पर अपको याद रहेगा अपने किस पर हाथ उठाया था अब आप मेरी दुनिया मे आ ही गयी हों तो यहा से जाना impossible है हुमैरा ये सुनते ही हैरान हो गई उसकी आँखों के आंसू रुक ही नहीं रहें थे
आयन ने जब देखा उसकी मिस रेड बहुत दर रहीं है अयान नें बाहर जाना ही साही समझा ऐसा नही है की अयान हुमैरा से बदला नहीं ले सकता था वो तो एक सेकंड मे हुमैरा कों उसकी ग़लती पर बरबाद कर सकता था
पर ऐसा था की अयान की पहली नजर मे ही हुमैरा पसन्द आ गयी थीं आयन नें इस एक महीने मे बहुत सोचा की वो हुमैरा से दूर रहें अयान किसी कों अपनी कमजोरी नहीं बनाना चाहता था पर आयन के दिमाग से हुमैरा निकल ही नही रहीं थीं और एक दिन जब अयान अपने ऑफिस से बहार आया उसने देखा कि एक लडकी रेड ड्रेस मे उसके साइड से निकल रहीं है
उस लड़की का duppta अयान की तरफ उड़ रहा था उस लड़की नें रेड ड्रेस पहना था अयान के मुह से तुरंत निकाला मिस रेड बिना उस पर ध्यान दिए अयान कों उस व्रत असास हुआ कि ये उसकी मिस रेड है अयान ने उस waqt ही सोच लिया था
76
अब ये लड़की सिर्फ अयान खान की बन कर रहेंगी अयान नें जेसे ही हुमैरा के पीछे जाने का सोचा उठने मे अयान नें देखा की humaira ने एक ladke का हाथ पकडी है ओर वो बहुत मुस्करा के उस ladke से बात कर रही है अयान कों बहुत गुस्सा आया अयान नें उसी वक्त right hand कों कॉल किय ओर कहा सामने जो लडकी जा रही है उसे किडनैप कर लो ओर उसके साथ जो लड़का है उसे भी उठवा लो
आयन का right hand रेहान नें जेसे ही देखा की अयान किसी लडकी को उठवाने क़ा बोल रहा वो हैरान था अयान कों कभी किसी लड़की से मतलब नही रहा वो हमेशा से लड़कियों से दूर रहना पसन्द करता था फिर रेहान नें आपने सपने से बाहर आते हुए जल्दी ही वहां खड़े गार्ड को ऑर्डर दिया
उसके बाद हुमैरा किडनैप हो गयी थीं और उसके साथ जों लडका वो कहा है इसका अभी तक किसी कों कोइ ख़बर नही थीं
हुमैरा रूम मे अकेली दर रही थीं उसने जेसे ही देखा की दरवाजा खुल रहा है वो डरने लगी इतने मे एक 55 ऐज कि औरत अंदर आयी ओर बोली बेबी ज़ी खाना खा लीजिये हुमैरा ने उस औरत को देखा ओर जल्दी से उस के पास आ कर बोली आंटी मुझे बचा लो ye लोग मुझे किडनैप कर के लाए है
मुझे अपने फॅमिली ke पास जाना है वो औरत डरने लगी वो अयान गुस्से को बहुत अछे से जानती थी अयान ने उसे सिर्फ खाना डे कर आने को कहां था वो औरत डरते हुए बोली बेटा मे तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती मुझे जाना होगा बोल कर वो औरत जल्दी से वहाँ से निकल गयी
हुमैरा फिर नीचे बेढ कर रोने लगी ओर सोचने लगी मे कहा फस गई हू या अल्लाह मुझे बचा ले humaira कब रोते रोते सो गई उसे पता ही नहीं चाला
उधर अयान एक रूम मे बेढ़ा था उसके साथ रेहान था रेहान ने बोला सिर मेम के साथ जों लड़का था वो मेम क़ा भाई शोएब है ये सुनते ही अयान को जेसे दिल मे एक अजीब सी खुसी मेहसूस हुईं उसने कहा मुझे मिस रेड ki ऑल डिटेल्स ला कर दो रेहान ने
जेसे ही अयान के मुह से हुमैरा के लिये मिस रेड सूना वो हैरान हों गया अयान किसी को निक नेम दे ये रेहान के लिए थोड़ा shocking था
"रेहान इतना तो समझ गया था कि यह लड़की ही अब उसकी लेडी बॉस है, क्योंकि कोई लड़की आयान पर हाथ उठाए और आयान उसे आसानी से जाने दे-यह तो नामुमकिन था।
आयान ने जैसे ही देखा कि रेहान अभी भी वहीं खड़ा है, रेहान की तरफ देखते हुए कहा, 'अब तुम अपने ख़यालों से बाहर आओगे या मुझे निकालना पड़ेगा?"
"ये सुनते ही रेहान के होश उड़ गए। उसके होंठों से आवाज़ नहीं निकली, और बिना पल भर रुके वह तेज़ी से वहाँ से भाग गया।"
"30 मिनट बाद, रेहान आयान के पास आया। रेहान के हाथ में एक फाइल थी। उसने वह फाइल आयान को थमाई और फिर जल्दी से वहाँ से भाग गया।"
"आयान ने फ़ाइल खोली, और जैसे ही उसकी नज़र सामने रखी तस्वीर पर पड़ी, वो कुछ लम्हों के लिए सन्न रह गया। तस्वीर में हुमैरा एक छोटी सी बिल्ली को मोहब्बत से थामे हुए थी, उसके लंबे काले बाल हौले-हौले चेहरे पर गिर रहे थे, और उसके मासूम मुस्कान में ऐसा नूर था जो आयान के दिल को अजीब सी गर्मी दे गया। उसकी आँखों का क़ाजल, उसके हँसने का अंदाज़-हर एक छोटी सी बात आयान के लिए एक नई दुनिया का दरवाज़ा खोल रही थी।"
"आयान ने फ़ाइल का पन्ना पलटा और हुमैरा की हर एक तफ़सील ग़ौर से पढ़ने लगा। उम्र 21 साल, क़द 5.3 फुट, कॉलेज में B. A. की तालीम हासिल कर रही थी... उसके ख़ानदान में अब्बू का नाम शाहनवाज़ ख़ान, अम्मी का नाम फ़ाइज़ा बेगम, छोटी बहन रीज़ा और बड़ा भाई शोएब था। घर में उसकी फुफू भी रहती थीं, जिनका कुछ वजहों से कई साल पहले तलाक़ हो गया था, और फुफू की एक बेटी थी-सानीय़ा।"
"ये सब पढ़ते ही आयान के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान और साथ ही गुस्से की एक परछाई उभर आई। उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी। धीमे लफ़्ज़ों में वो बुदबुदाया - 'ओह... तो तुम हमारे दुश्मन की बेटी हो...
"आयान ये सब जानने के बाद अच्छे से समझ गया था कि हुमैरा को अपने पास ज़्यादा वक़्त तक बिना किसी रिश्ते के रोक पाना नामुमकिन है। आख़िर वो भी एक शान-ओ-शौकत वाले, अमीर ख़ानदान से ताल्लुक़ रखती थी। आयान चाहता तो दुनिया की हर चीज़ हासिल कर सकता था, मगर हुमैरा के सामने वो अपनी devil side nahi dikhana chahata tha
"फिर उसके ज़ेहन में एक ख़याल बिजली की तरह आया, और जैसे ही वो सोच पूरी हुई, आयान के होंठों पर हल्की सी मुस्कुराहट खिल उठी - वो मुस्कुराहट
मानो वो पहले ही आने वाले खेल का अंजाम जान चुका हो।"
"आयान तेज़ कदमों से उस कमरे की तरफ बढ़ा, जहाँ उसने हुमैरा को छोड़ कर गया था। जब उसकी नज़र हुमैरा पर पड़ी, तो दो लम्हों के लिए जैसे दुनिया ही थम गई। हुमैरा एक कोने में डरी हुई, आँखें लाल और आँसुओं से भरी, रोती-रोती बैठी थी, और शायद अनजाने में सो गई थी। उसे खबर भी नहीं थी कि कोई गहरी निगाहों से उसकी हर हरकत को देख रहा था।"
Ayan ke dil me ek ajeeb si larazish hui - ek taraf uska gussa aur curiosity, aur doosri taraf ek shafqat bhara ehsaas jo usne kabhi mehsoos nahi kiya tha.
"आयान धीरे-धीरे हुमैरा की तरफ आया, और झुका, उसके बालों को जो चेहरे पर गिर रहे थे, प्यार से हटा दिया। यह छोटा सा एहसास ही हुमैरा के दिल में बिजली की तरह उतर गया। अपने इतने करीब किसी को देखकर उसके शरीर में अचानक खौफ का एक झटका दौड़ गया, और reflexively उसने आयान को धक्का दे दिया, खुद को दूर करने के लिए।"
"आयान, जो इस सब के लिए बिलकुल तैयार नहीं था, अचानक 2-3 कदम पीछे हट गया। जैसे ही उसने महसूस किया कि हुमैरा ने उसे धक्का दिया, उसके चेहरे पर गुस्सा और काबू के बीच का अजीब सा मिश्रण चमक उठा। उसने मजबूती से हुमैरा का हाथ थाम लिया, और उसकी आँखों में रोशनी और साये का एक अनजाना सा मेल दिख रहा था।"
"हुमैरा का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, जैसे सीने से बाहर निकल आएगा। उसके चेहरे पर डर की लकीरें साफ़ झलक रही थीं, बड़ी-बड़ी आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं। उसकी पलकों की कंपकंपी, होंठों की थरथराहट... सब उसकी बेबसी बयान कर रहे थे। उसकी आवाज़ काँपते हुए निकली:"
"कोई है! प्लीज़... मुझे बचाओ ! मेरी मदद करो!"
हुमैरा की चीख़ में दहशत साफ़ झलक रही थी, उसकी आवाज़ चार दीवारों से टकराकर गायब हो रही थी।
आयान ने होंठों पर हल्की सी मुस्कुराहट सजाई, मगर आँखों में गुस्से की झलक साफ़ थी।
धीमे लेकिन ठहरे हुए लहजे में उसने कहाः "कर लो जितनी कोशिश करनी है, Miss Red... तुम्हारी ये पुकार इन दीवारों से बाहर नहीं जाएगी। यहाँ तुम्हारी आवाज़ सुनने वाला... सिवाय मेरे और कोई नहीं।"
ye bol kar aayan ne हुमैरा ka hath choda jese hi aayan ne हुमैरा ka hath choda हुमैरा 2 kadam piche ho gayi
हुमैरा और ज़्यादा सहम गई। उसके होंठ काँपने लगे, आँखों से आँसू लगातार बह रहे थे। डर इतना बढ़ चुका था कि उसकी रूह तक काँप उठी।
उसकी आवाज़ टूटी-टूटी और बेक़रार थीः
"आयान ने थोड़ी सी सख़्ती के साथ कहा, 'मेरे पास ये सब सुनने का वक़्त नहीं है... तुम्हें याद होगा जब तुम यहाँ आई थी, तुम्हारे साथ तुम्हारा भाई था।"
ये सुनते ही हुमैरा के होश उड़ गए। उसकी आवाज़ तेज़ी से काँप रही थी, और वह चिल्लाती हुई बोली, 'मेरा भाई... भाई कहाँ है! मुझे बताओ... क्या-क्या किया तुमने उनके साथ?!""
हुमैरा की तेज़ आवाज़ सुनते ही आयान के कदम भारी क़दमों की तरह गूंजे और वो उसकी तरफ बढ़ आया। उसके करीब आते ही माहौल में सन्नाटा छा गया।
आयान ने झुककर, अपनी गहरी और ठंडी आवाज़ में कहाः
"मुझे तेज़ आवाज़ बिल्कुल बर्दाश्त नहीं... और मेरी मौजूदगी में तो हरगिज़ नहीं। याद रखो, Miss Red तुम्हारी आवाज़ सिर्फ़ मेरे कानों तक पहुँचना चाहिए, और किसी तक नहीं।"
"पर हुमैरा फिर भी डरी नहीं। उसने जिद्द से कहा, 'बताओ ! मेरा भाई ठीक है? उन्हें कुछ हुआ तो... मैं तुम्हारी जान ले लूंगी !""
"आयन ने कहा तुम खुद मेरी क़ैद में हो... और अपने भाई के लिए मेरी जान लोगी? वह, मिस रेड..."
हुमैरा ने गुस्से में लगभग चिल्लाते हुए कहा, "यह क्य़ा मिस Red-Miss Red लगा रखा है? मेरा नाम है हुमैरा ! समझे तुम?"
आयान ने हल्की सी मुस्कान के साथ उसकी आँखों में देखा और धीमे लहज़े में बोला, "तुम्हें पता है, हुमैरा का मीनिंग क्या होता है?"
हुमैरा ने थोड़ी देर रुककर सोचा, फिर बोली, "सुर्ख... लाल रंग."
आयान ने हल्का-सा मुस्कुराते हुए, अपनी ठंडी और पैनी नज़रों से हुमैरा की तरफ देखा और बोलाः तुम अब ना यहा से कहीं जा सकती हो ना कोइ तुम्हें यहा से निकाल सकता है
हुमैरा के चेहरे पर डर तो था, लेकिन उस डर के पीछे गुस्सा और हिम्मत की तेज़ लपटें भी जल रही थीं। उसने बिना एक पल गँवाए तेज़ी से जवाब दियाः
"कैद में हूँ तो क्य़ा हुआ, आयान खान... मेरी साँसें अब भी मेरे साथ हैं। और मैं अपने भाई के लिए कुछ भी कर सकती हूँ... तुम्हारी जान लेना तो बहोत छोटी बात होगी."
"हुमैरा के चेहरे पर गुस्से और हिम्मत का मेल था। उसने तेजी से जवाब दिया,"
"तुम जितना मासूम मुझे समझ रहे हों, उतना मासूम मैं नही हु!
बात मेरी फॅमिली पर आयी तों तुम मेरे वो रूप देखोगे जों कीसी नें आज तक नही देखा मेरे भाई को कुछ हुए, तो याद रखना... मैं तुम्हे छोड़ूंगी नहीं!"
हुमैरा की ये बात सुनकर आयान कुछ पल के लिए ख़ामोश हो गया। उसकी नज़रों में एक अजीब-सी चमक उभरी-गुस्से और ख्वाहिश का मिला-जुला रंग। वो हुमैरा के करीब झुककर, अपनी भारी और ठंडी आवाज़ में बोलाः
"ओह मिस रेड... तुम मेरी कैद में हो, और मैं तुम्हें अपनी दुनिया का हिस्सा बना चुका हूँ। तुम जो भी कहना चाहो, कह दो... लेकिन एक बात याद रखना- जो चीज़ आयान खान की क़ैद में आ जाए, उसे दुनिया की कोई ताक़त आज़ाद नहीं कर सकती।"
"अभी तक तुम्हारा भाई सही-सलामत है... पर ज्यादा देर नहीं रहेगा।'
ये सुनते ही हुमैरा का रंग फिर से उड़ गया, और वह बोली, 'तुम्हारी दुश्मनी तो मेरे साथ है... मैंने तुम्हें थप्पड़ मारा... मेरे भाई को किडनैप क्यों किया? उन्हें छोड़ दो!""
**" आयान ने शांत लेकिन सख़्त टोन में कहा, 'छोड़ दूँगा... पर एक शर्त है, मिस रेड
हुमैरा ने तेज़ आवाज़ में पूछा, 'क्या चाहते हो तुम?'
आयान ने उसकी आँखों में गहरी नज़र डालकर कहा, 'तुम्हें चाहता हूँ... सिर्फ़ तुम्हें।'
ये सुनते ही हुमैरा हैरानी से आयान को देखने लगी, 'तुम क्या कह रहे हो?''''**
"आयान ने शांत, लेकिन गहरी आवाज़ में जवाब दिया, 'तुम अपने भाई को बचाना चाहती हो... तो तुम्हें अभी इसी वक्त मुझसे निकाह करना होगा।"
**"ये सुनते ही हुमैरा गुस्से में चिल्लाई,
'बिलकुल नहीं! कभी नहीं! तुम पागल हो गए हो?
निकाह कोई मज़ाक नहीं है... मैं तुमसे निकाह नहीं करूँगी, समझे तुम !'
आयान हुमैरा के करीब आया और थोड़ी सख़्ती के साथ बोला,
'तुम्हारी एक छोटी बहन है न... जो इस वक़्त कॉलेज में होगी।"**
"ये सुनते ही हुमैरा के चेहरे पर गुस्सा और तनाव का मिलन हो गया। उसने तेज़ आवाज़ और आँखों में बिजली सी चमकते हुए बोला,
'तुम पागल आदमी ! दूर रहो! मेरे भाई और बहनों से तुम क्यों डराते हो?
ना... मुझे... मुझे पता है मेरे भाई तुम्हारे पास नहीं हैं... तुम झूठ बोल रहे हो ! वह फाइटर है... देखना, वह मुझे बचाएँगे !'"'"
"आयान को ये सब बातें सुनकर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई। वैसे भी, हुमैरा की हिम्मत और जज़्बा देखकर उसे ये तसल्ली थी कि ये लड़की सिर्फ मासूम नहीं, बल्कि उसके टकराव की काबिल है। ये सोचते ही आयान के मन में अनजाने में बहुत खुशी भर गई।"
"हुमैरा मन ही मन सोचने लगी- उसका भाई, हैदर, एक मजबूत शख्सियत वाला इंसान था; ताकतवर, हिम्मती, और किसी भी मुश्किल का सामना करने वाला।"
वैसे भी, हर लड़की के लिए उसका भाई ही हीरो होता है। और यहाँ तो हैदर था-एक ऐसा इंसान जिसकी सच में मजबूत और बहादुर शख़्सियत किसी से छुपी नहीं थी। और कही ना कही humaira की सोच बिल्कुल सच भी थीं शोएब बहुत स्ट्रॉन्ग पर्सनैलिटी क़ा था
अगर आयान के bodyguard में खड़े लोग हैदर पर पीछे से हमला न करते, तो आयान कभी भी उसे क़ैद नहीं कर पाता।
हुमैरा कॊ एहसास हुआ कि उसके भाई की ताक़त और हिम्मत ही अब उसकी सबसे बड़ी आशा है।
"उसका भाई सुरक्षित होगा... ये आयान खान उसके भाई थ का कुछ भी बिगड़ नहीं सकता।"
"आयान ने गहरी नज़र से हुमैरा की तरफ़ देखा और अपने फ़ोन की स्क्रीन उसके सामने कर दी। पहले वीडियो में उसने देखा-उसका भाई हैदर एक गंभीर कमरे में कैद था, उसके हाथों में रस्सियाँ बंधी हुई थीं। वह बेहोश था।"
"फिर दूसरा वीडियो चलाया गया-इस बार humaira ki दोनों बहनें, रिज़ा और सानिया, एक जगह खड़ी थीं और एक गाड़ी उनके बिलकुल करीब आकर रुक गई थी।"
"ये मंजर देखकर हुमैरा की रूह कांप उठी। उसके होंठ भी काँपने लगे और साँसें तेज़ हो गईं।"
मेरी बहने तुम किया कर रहें हों वो दोनो मासूम है छोटी है
"आयान की आवाज़ में एक सख्त और डरावनी ख़ामोशी थी,
"ज़रा सोचो... अगर ये गाड़ी तुम्हारी बहनों को कुचल दे तो? और अगर तुम्हारा भाई इस क़ैद से कभी न निकल पाए तो? अब फ़ैसला तुम्हारे हाथ में है... मुझसे निकाह, या अपनी भाई-बहनों की मौत।"
"हुमैरा मजबूत लड़की थी, मगर अपने भाई-बहनों के लिए उसका दिल पिघल गया। उसकी आँखों से आँसू बह निकले, और वह रोती हुई, बेगुनाह सी आवाज़ में बोली: 'ख़ुदा के लिए... मेरी ज़िन्दगी बर्बाद मत करो... मैं तुमसे माफ़ी चाहती हूँ... मगर मेरे भाई-बहनों को छोड़ दो। उनका क्या कसूर है?""
"देखो... मुझे और मेरे भाई-बहनों को जाने दो, प्लीज़ ।"
"आयान ने एक सर्द मुस्कुराहट के साथ उस पर नज़र डाली, फिर अपनी गहरी आवाज़ में बोला, 'एक औरत यहाँ आएगी... जो लिबास देगी, उसे पहन लेना। वरना तुम खूब जानती हो कि अंजाम क्या होगा।"
"ये कहकर आयान वहाँ से चला गया। थोड़ी देर बाद, एक औरत कमरे में दाखिल हुई, उसके हाथ में एक सुंदर सा बॉक्स था। उसने चुपचाप वह बॉक्स हुमैरा के सामने रखा और चली गई।"
"काँपती उँगलियों से हुमैरा ने बॉक्स खोला... अंदर एक निकाह का जोड़ा रखा था-ऑफ-व्हाइट रंग का कुर्ती और गरारा सेट। उसका दिल उस वक़्त टुकड़े-टुकड़े हो गया, क्योंकि यही वही जोड़ा था, जिसे उसने अपने सपनों me aapne निकाह के लिए सोचा था।" साथ ही उस बॉक्स मे एक सुर्ख लाल रंग का दुपट्टा भी रखा था
"हुमैरा ने आँसुओं भरी निगाहों से उस जोड़े को देखा और दिल ही दिल में सोचा:
'या अल्लाह... यह कैसा इम्तिहान है... जिसमें मेरी मासूमियत भी क़ैद हो गई है और मेरे सपने भी।"
"उसके आँसू झिलमिला रहे थे, उसके होंठों से बस एक ही लफ़्ज़ निकला- 'या रब...
थोड़ी देर बाद हुमैरा वह जोड़ा पहने हुए, खामोशी से कुर्सी पर बैठी थी। तभी एक औरत कमरे में दाख़िल हुई। उसने आदाब से कहा:"
"बेबी जी... ये ज़ेवरात आपको मालिक ने भेजे हैं। और कहा है कि आपको पूरी तरह तैयार करना है।"
"हुमैरा ने सिर्फ़ एक नजर उठाकर उस औरत को देखा-वो नजर दर्द, गुस्से और बेबसी से भरी हुई थी। फिर चुपचाप वापस झुककर बैठ गई। औरत समझ गई थी कि यह लड़की रज़ामंद नहीं है, लेकिन खान के फ़ैसले के आगे कोई भी कुछ नहीं कह सकता था।"
"उस औरत ने धीरे-धीरे हुमैरा के लंबे, घने बाल संवारें... फिर उसके कानों में खूबसूरत चांदबली पहनाईं, गले में असली मोतियों का हार डाला। हाथों में चूड़ियाँ, पैरों में पायल, माथे पर बिंदी और आँखों में हल्का सा काजल लगाया। बस एक हल्की सी लिपस्टिक लगी, क्योंकि इस चेहरे को किसी आभूषण, किसी श्रृंगार की ज़रूरत ही नहीं थी-हुमैरा खुद एक नूर थी।"
"मगर... उसके चेहरे पर मुस्कान नहीं, सिर्फ़ आँसुओं का साया था।
जब औरत ने उसे देखा तो प्यार भरी दुआ दीः 'अल्लाह आपका नसीब रोशन करे... खान की बीवी बनने जा रही हैं आप, हमारी ख़ानी।""
"ये लफ़्ज़ सुनकर हुमैरा की आँखों से आँसुओं का एक कतरा गिरा। उसने दिल ही दिल में सोचा:"
"यह कैसा नसीब है मेरे मौला? जिससे नफ़रत थी, आज उसी के साथ क़ैद में अपनी ज़िन्दगी गुज़रनी है..."
"और फिर उसने अपने आँसू पोंछते हुए, चुपचाप अपने रब से दुआ कीः
'या अल्लाह ! मैं तेरी बंदी हूँ... बेशक तेरा लिखा हुआ बेहतरीन है। तेरे फ़ैसले पर यक़ीन रखती हूँ। पर मेरे मौला, मुझे हिम्मत देना... मुझे अपने ईमान पर कायम रखना। मैं यह ज़िन्दगी कभी नहीं चाहती थी... मगर अगर यही मेरा नसीब है, तो मैं सब्र करूँगी। तू मेरा साथ देना, मौला..."
"उस वक़्त हुमैरा एक दुल्हन कम, और एक मज़लूम रूह ज़्यादा लग रही थी-जो अपने रब के सामने सिर्फ़ दुआ और सब्र के सहारे खड़ी थी।"
"आयान हुमैरा की आँखों में आँसू नहीं देखना चाहता था, पर साथ ही वह उसे खुद से दूर भी नहीं जाने दे सकता था। वह अच्छी तरह जानता था कि अगर आज उसने ज़बरदस्ती नहीं की, तो उसकी मिस रैड कभी उसकी नहीं बन सकती।"
"थोड़ी देर बाद आयान कमरे में आया। उसकी नज़र जैसे ही हुमैरा पर पड़ी, वह हुमैरा को देखते ही रह गया। हुमैरा का वह ऑफ़ व्हाइट ड्रेस और रेड दुपट्टा आयान की आँखों में ठहर गया; वह थोड़ी देर वहीं एक जगह रुककर हुमैरा की निहारता रहा।" अयान नें मन ही मन सोचा मिस रेड नहीं नहीं ये तो meri miss रेड है
"हुमैरा सिहमी नज़रों से आयान की ओर मुड़ी। आज आयान भी बहुत smart और शानदार लग रहा था। कुछ पल के लिए हुमैरा अपनी सारी दुश्मनी भूल ही गई। आयान ने आज ऑफ़ व्हाइट कलर की शेरवानी पहनी थी, और उसकी बॉडी बहुत ही आकर्षक लग रही थी।"
**" आयान ने जैसे ही देखा कि uski miss red उसकी और देख रही है, उसकी मुस्कुराहट में हल्का सा शरारती चमक आ गई। उसने प्यार से कहा, 'होने वाली बेगम, हम आपके ही हैं... आप जब चाहो, जितना चाहो, हमें देख सकती हो। देख ही नही ब्लकि ओर भी बहुत कुछ कर सकती हो अब तो ज़िन्दगी भर के लिए हम सिर्फ़ आपके हैं।'
इतना कहकर उसने हुमैरा की ओर देखते हुए आँख मारी, जैसे बिना शब्दों के ही सब कुछ कह दिया हो।
हुमैरा को जेसे ही खयाल आया वो अभीं किया कर रही थी
हुमैरा ने नज़रें झुका लीं, और उसके दिल में अजीब सा काँपता हुआ एहसास उठा-थोड़ी झिझक, थोड़ी घबराहट, और एक हल्की सी गर्माहट जिसने उसके पूरे बदन को छू लिया।"**
"आयान हुमैरा के करीब आकर बोला,
'तुम बहुत प्यारी लग रही हो... आज तुम आयान अहमद खान की लग रही हो। यह रूप, यह रंग, यह सज़ावट, यह खूबसूरती-सब सिर्फ़ आयान अहमद खान के लिए है। आज तुम्हारा यहाँ होना, सिर्फ आयान खान के लिए है।"
आयान हुमैरा का हाथ पकड़कर धीरे-धीरे आगे बढ़ा। जैसे ही उसने हुमैरा का हाथ थामा, हुमैरा डर गई और अपने हाथ को छुड़ाने लगी।
"क्या कर रहे हो तुम ! मेरा हाथ छोड़ो!" उसने घबराहट से कहा।
आयान ने मुस्कुराते हुए मुड़कर उसकी तरफ देखा और शांत लेकिन सख़्त आवाज़ में कहा,
"चुपचाप चलो।"
लेकिन हुमैरा थोड़ी देर के लिए रुक गई, आंखों में डर और बेचैनी के साथ बोली,
"देखो... हाथ छोड़ो मेरा। मैं... मैं कहीं नहीं जाऊँगी। मुझे नहीं जाना। तुम्हारे साथ यह सही नहीं है। निकाह में तो परिवार होता है, ना? यहाँ तो मेरा कोई नहीं है। निकाह तो माँ-बाप के प्यार और दुआओं के साथ होता है, ना? यहाँ तो कोई भी नहीं है। मैं ऐसे कैसे तुमसे निकाह कर सकती हूँ? मुझे और मेरे भाई को यहाँ से जाने दो।"
हुमैरा की नज़रों में डर, झिझक और बेचैनी थी, लेकिन उसके दिल में एक अनजाना सा असर भी उठ रहा था-आयान की मौजूदगी, उसकी आवाज़, और उसका यह करीब होना, सब कुछ उसके जज़्बातों को हिला रहा था।
आयान ने हुमैरा की आँखों में गहरी नज़र डालते हुए धीरे-धीरे कहा, "यहाँ मैं हूँ... और तुम हो। यहाँ मेरे लिए तुम हो... और तुम्हारे लिए मैं हूँ।"
हुमैरा उस पल की अनजाने एहसास में खो गई। उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं, और दिल के अंदर एक अजीब सी गर्माहट फैल गई।
आयान ने उसके करीब कदम बढ़ाए, उसकी नज़रों में देख कर कहा
"तुम मेरे लिए काफ़ी हो... और तुम्हारे लिए मैं हूँ। आज से, अभी से, तुम्हारी फैमिली भी मैं ही हूँ, तुम्हारा सहारा भी मैं हूँ। तुम्हारा दिन मुझसे शुरू होगा, और रात भी मेरे साथ खत्म होती है। तुम्हारा होना, तुम्हारा हर पल, मेरे लिए है... समझी तुम?"
हुमैरा की आँखों में आँसू निकलने लगे। उसके दिल में का एहसास था। आयान की हर नज़र, हर शब्द, उसे भीतर तक झकझोर रहे थे।
फिर हुमैरा को लेकर नीचे लाया गया और एक कुर्सी पर बिठा दिया गया। सामने एक मौलाना बैठे थे, जिन्हें शायद यहाँ ज़बरदस्ती लाया गया था। वहीं थोड़ी दूरी पर हैदर भी बैठा था, जिसकी नज़रें बड़ी तवज्जो से हुमैरा पर ठहरी हुई थीं। हैदर, आयान के बड़े अब्बा का बेटा था। बरसों पहले उसके अब्बा-अम्मी का इंतिक़ाल एक दर्दनाक हादसे में हुआ। उस हादसे के बाद जब हैदर बिल्कुल तन्हा और बेसहारा रह गया था, तब आयान ने ही उसे संभाला।
आयान ने उसका हाथ थामकर उसे गिरने नहीं दिया। उसी दिन से हैदर के दिल में ये बात बैठ गई कि उसकी ज़िंदगी, उसका सहारा और उसका सब कुछ सिर्फ़ आयान है। अब आयान ही उसके लिए भाई भी था, रहबर भी और सरपरस्त भी।
आयन नें जेसे ही देखा की हैदर की निगाहें हुमैरा पर है आयन नें भारी आवाज मे कहा
"मेरी मलकियत से अपनी नज़रें हटाओ । अरशद, बेशक तुम हमारे कलेजे के टुकड़े हो, लेकिन हमारी मालिक़ा पर किसी और की नज़र हमसे बर्दाश्त नहीं।"
आयान के लफ़्ज़ सुनते ही हैदर ने बिना देर किए सिर झुकाकर कहा -
"भाईजान, आप ग़लत समझ रहे हैं। भाभी तो माँ की तरह होती हैं... और माँ की तरफ़ इंसान की नज़र सिर्फ़ सुकून से उठती है, किसी और नीयत से नहीं। आपकी अमानत की हिफ़ाज़त करना ही मेरे लिए इज़्ज़त है।"
हैदर की आँखों में सच्चाई साफ़ झलक रही थी।
हैदर ने आगे कहा
"और हम तो बस ये देख रहे थे कि आज तक हमारा वो भाई, जिसे लड़कियों के क़रीब आने से भी परेशानी रही है... वो आज किसी से निकाह करने जा रहा है। बेशक इस बात पर यक़ीन करना पहले थोड़ा मुश्किल था, लेकिन यहाँ आकर समझ आया कि मेरे भाई की पसंद वाक़ई लाजवाब है।"
हैदर के चेहरे पर सच्ची मुस्कान थी। उसने आदर से सिर झुकाया और कहा
"मैं सच में आपके लिए और भाभीअम्मी के लिए दिल से बहुत खुश हूँ।"
ये सुनते ही हुमैरा हैरान होकर उस लड़के की तरफ़ देखने लगी। उसकी आँखों में ताज्जुब और हल्की सी झिझक साफ़ झलक रही थी।
हैदर को जैसे ही एहसास हुआ कि हुमैरा की निगाहें उस पर पड़ी हैं, उसने फौरन बहुत अदब से झुककर सलाम किया और नरम लहजे में बोला
“भाभीअम्मी, मैं आपका बड़ा देवर हूँ... हैदर ख़ान। आपसे मिलके सच मे बहुत खुशी हुई"
हुमैरा बस उस शख़्स को देखती रह गई। उसके दिल में कई सवाल थे, मगर जुबान जैसे ख़ामोश हो गई। उसने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप अपनी गहरी निगाहों से आरशद को देखती रही।
हुमैरा ने चुपचाप नज़र उठाकर पहले मौलाना की तरफ़ देखा, फिर आयान की ओर। दिल के किसी कोने में वो जानती थी कि वो यहाँ आ तो गई है, मगर ये निकाह उसका इरादा नहीं था।
उसकी आँखों में लाचारी थी, उसने एक बार फिर आयान की तरफ़ बेबस निगाहों से देखा, जैसे ख़ामोशी में कुछ कहना चाह रही हो।
आयान उसकी आँखों को पढ़ रहा था, वो समझ चुका था कि हुमैरा क्या कहना चाह रही है। मगर आयान की नज़रों में सख़्ती और फ़ैसले की मज़बूती थी। उसने धीरे से अपना हाथ मोबाइल की तरफ़ उठाकर इशारा किया।
ये इशारा देखते ही हुमैरा का कलेजा काँप उठा। डर उसकी रगों में समा गया। उसे ऐसा लगा जैसे आयान कह रहा हो-"तुम्हारे पास कोई और रास्ता नहीं... सिर्फ़ वही जो मैंने चुना है।"
हुमैरा आँसुओं से भरी आँखों के साथ वहाँ चुपचाप बैठी रही। उसकी जुबान खामोश थी, मगर दिल से वो बस अपने अल्लाह से रहाई की दुआ माँग रही थी
उधर आयान ने उसकी ख़ामोशी और बेबस नज़रों को देखा, मगर उसका चेहरा ठंडा और सख़्त रहा। उसने मौलाना की तरफ़ देखा और भारी, सक़्त आवाज़ में कहा
"निकाह शुरू कीजिए।"
मौलाना साहब ने किताब खोली और बिस्मिल्लाह पढ़कर निकाह की रस्म शुरू की।।
सबसे पहले मौलाना ने हुमैरा की तरफ़ रुख किया और कहाः "बेटी हुमैरा ख़ान, बिन्ते शनावाज़ ख़ान, क्या आप आयान अहमद ख़ान, बिन अहमद रसीद ख़ान, से मेहर एक करोड़ रुपये नक़द पर निकाह क़बूल करती हैं?"
हुमैरा की पलकों से आँसू ढलक पड़े। दिल की धड़कनें तेज़ थीं। उसने झुकी नज़रों और काँपते होंठों से कहा:
"क़बूल है।"
मौलाना ने वही सवाल तीन बार दोहराया और हर बार हुमैरा की टूटी मगर साफ़ आवाज़ आईः
.क़बूल है... क़बूल है।"
फिर मौलाना ने आयान की तरफ़ नज़र उठाई और गहरी आवाज़ में कहा:
"आयान अहमद ख़ान, बिन अहमद रसीद ख़ान, क्या आप हुमैरा ख़ान, बिन्ते शनावाज़ ख़ान, से मेहर एक करोड़ रुपये नक़द पर निकाह क़बूल करते हैं?"
आयान ने बिना किसी झिझक, पूरे एतमाद और ठहराव के साथ कहाः
तीन बार वही सवाल दोहराया गया और हर बार आयान की आवाज़ गूँजीः .. क़बूल है... क़बूल है।"
फिर मौलाना ने दोनों के लिए दुआ की और कहाः
"निकाह मुकम्मल हुआ। अल्लाह इस रिश्ते को रहमत और बरकत से भर दे।"
गवाह के तौर पर आयान की तरफ़ से हैदर ख़ान मौजूद था। उसने अपने भाई की तरफ़ देखकर दिल से मुस्कुराते हुए कहाः "भाईजान, अल्लाह आप दोनों को हमेशा सलामत और ख़ुश रखे।"
निकाह की दुआ के बाद कमरे में हल्की रौनक और सरगोशियाँ फैल गईं। आयान के चेहरे पर सख्ती के पीछे छुपा सुकून साफ़ झलक रहा था।
रेहान आगे बढ़ा,
उसने आदर से आयान की तरफ़ देखा और हँसते हुए कहा "सर, मुबारक हो! आखिरकार हमें भी हमारी लेडी बॉस मिल गई।"
हैदर ये सुनकर मुस्कुराया,
और आयान ने रेहान को तीखी नज़र से देखा लेकिन होंठों के कोने पर हल्की सी मुस्कान आ ही गई।
हुमैरा इस सबको ख़ामोशी से देख रही थी, उसका दिल अब भी भारी था, मगर आस-पास का माहौल बदलता हुआ महसूस हो रहा था।
हुमैरा जानती थी कि अब वो चाह कर भी इस रिश्ते से बाहर नहीं निकल सकती। उसने ये रिश्ता भले ही मजबूरी में कबूल किया हो, मगर निकाह की अहमियत को वो बहुत अच्छे से समझती थी।
उसे अपनी अम्मी की बातें याद आ रही थीं-अम्मी हमेशा सिखाती थीं कि निकाह अल्लाह का हुक्म है, और अल्लाह के हुक्म से कभी पीछे नहीं हटा जा सकता। या अल्लाह आगे तू ही मेरी मदद करना
हुमैरा के दिल में दर्द तो था, मजबूरी भी थी, मगर साथ ही ये एहसास भी था कि अब ये रिश्ता सिर्फ़ उसका नहीं रहा, बल्कि अल्लाह की तरफ़ से लिखा गया एक फ़ैसला है... और इस फ़ैसले को वो नकार नहीं सकती।
"आयान हुमैरा के करीब आया, हल्की सी झुककर बड़ी अदब और मोहब्बत से उसने धीमी आवाज़ में कहा 'निकाह मुबारक, मिस रेड।' हुमैरा का दिल एक पल को जैसे थम-सा गया। उसकी आँखों में डर और बेचैनी के साथ-साथ एक अजीब-सी नर्मी भी उभर आई थी।"
आयान ने इशारे से एक मुलाज़िमा को बुलाया और नर्मी से कहा कि हुमैरा को आराम के लिए कमरे में ले जाया जाए और उसके लिए खाना भी लगवा दिया जाए। हुमैरा हल्की-हल्की चाल से उस कमरे की ओर बढ़ी, दिल में अब भी सवाल और डर लिए।
उधर आयान दूसरे कमरे में पहुँचा जहाँ हैदर पहले से बैठा था। हैदर ने आयान की तरफ़ देखा और बोला,
mere भाई को उसकी पहली मोहब्बत मुबारक निकाह मुबारक
"भाईजान, आपने निकाह तो कर लिया है, लेकिन आने वाले तूफ़ान से आप वाक़िफ़ हैं। हवेली में जब आपके निकाह की ख़बर फैलेगी तो तूफ़ान उठेगा ही। और एक तूफ़ान तो भाभी अम्मी के घर भी उठेगा... जिससे आप बखूबी वाक़िफ़ हैं।"
आयान ने हैदर की बात सुनकर गहरी साँस ली, उसकी नज़रों में जज़्बात और सोचों का समंदर साफ़ झलक रहा था।
आयान ने गहरी निगाहों से अरशद की तरफ देखा, उसकी आवाज़ में रोब और जज़्बा साफ़ झलक रहा था।
"मैं हर तूफ़ान से वाक़िफ़ हूँ... लेकिन ऐसा कोई तूफ़ान नहीं है जो आयान अहमद खान को हिला सके। हवेली में जो भी होना है, सब मैं संभाल लूँगा। और रही बात मिस रेड के घर की... तो मैं अच्छी तरह जानता हूँ उनके घर वाले उनसे कितनी मोहब्बत करते हैं। हाँ, वो नाराज़ होंगे, लेकिन अपनी बेटी के शौहर के ख़िलाफ़ साज़िश कर सकें, ऐसे नहीं हैं। मैं उन्हें अच्छी तरह पहचानता हूँ।"
आयान कुछ पल रुका, उसकी आँखों में हल्की-सी चमक और लहजे में गहरी कड़वाहट उतर आई।
"साज़िश की रिवायत... तो हमारी हवेली में है।"
ये कहते ही उसने अरशद की तरफ़ देखा। कमरे में एक ऐसी ख़ामोशी छा गई जैसे चारों दीवारें भी इस बातचीत की गवाह बन रही हों।
अरशद ने आयान की तरफ़ बढ़ते हुए गहरी आवाज़ में कहा, "भाईजान, जो भी हो... मैं आपके साथ हूँ, और हमेशा रहूँगा।"
ये कहते ही हैदर ने आयान को गले लगा लिया। दोनों भाइयों के दरमियान का ये लम्हा ख़ामोशियों से भरा हुआ था, लेकिन उस ख़ामोशी में वफ़ादारी, भाईचारा और गहरी मोहब्बत साफ़ महसूस हो रही थी।
आयान ने हैदर के कंधे पर हाथ रखा, फिर उसे गले लगाकर अलग हुआ और गंभीर लहजे में बोला,
"मैं तुम्हारी भाभी को लेकर कल हवेली आऊँगा। ध्यान रहे... सब तैयारियाँ पूरी होनी चाहिए। और मिस रेड के घरवालों को भी कल हवेली पर अदब से बुलाया जाए। हाँ... और मेरा साला शहाब... उसे ख़ास ख्याल से उनके घर तक छोड़कर आना। याद रहे, भूखा शेर बहुत ख़तरनाक होता है... बेहोशी में ही सही, लेकिन उसे उसके घर तक पहुँचाना ज़रूरी है।"
हैदर ने हल्की मुस्कान के साथ सिर झुकाया और बोला, "भाईजान... आप तो मुझे खूंख़ार शेर के सामने छोड़ रहे हैं। आखिर मैं आपका प्यारा छोटा भाई हूँ... ज़रा मेरा भी तो सोचा होता।"
आयान ने हैदर की ओर देखा, उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान उभर आई।
"अब तो रिश्तेदार बन गए हैं वो लोग हमारे... अब तो मेल-मुलाक़ात होती ही रहेगी।"
ये कहकर आयान कमरे से बाहर निकल गया।
हैदर ने एक गहरी नज़र आयान की तरफ़ डाली और खुद से बोला,
"चल हैदर बेटा... लग जा काम पर।"
आयान सीधा उस कमरे की तरफ़ बढ़ा जहाँ उसने हुमैरा को भेजा था।
दरवाज़ा खोलते ही उसने देखा – हुमैरा सोफ़े पर ख़ामोशी से बैठी थी। उसके सामने खाना सजा हुआ था, मगर उसने एक निवाला भी नहीं छुआ था।
आयान धीमे क़दमों से उसकी तरफ़ बढ़ा और नरम लेकिन रोबदार आवाज़ में बोला,
"मिस रेड, क्या हुआ? तुमने अब तक खाना क्यों नहीं खाया?"
हुमैरा ने जैसे ही आयान की आवाज़ सुनी, उसका दिल एक पल को थम गया। डर की एक लहर उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। फिर उसने काँपती आवाज़ में कहा,
"तुमने कहा था... निकाह के बाद मेरे भाई को छोड़ दोगे। मेरा भाई कहाँ है? बताओ मुझे!"
आयान ने हुमैरा की तरफ़ गहरी नज़रों से देखा और ठंडे लहजे में बोला, "तुम्हारा दिल-ओ-जान सलामत है। तुम्हारा भाई तुम्हारे घर छोड़ा जा रहा है।"
हुमैरा ने आयान की ओर देखा, उसकी आँखों में बेबसी और यक़ीन न करने का अक्स था।
"मुझे तुम पर भरोसा नहीं है..."
आयान ने क़रीब आकर धीमी मगर वज़नदार आवाज़ में कहा, “अब मैं ही तुम्हारा मुहाफ़िज़ हूँ, तुम्हारा मेहरम हूँ... और तुम्हें मुझ पर यक़ीन नहीं है?"
हुमैरा ने आयान की तरफ़ से अपनी नज़रों को हटा लिया और टूटी हुई आवाज़ में बोली,
"मेहरम का मतलब जानते हो तुम? जानते हो ना कि तुमने मुझे मजबूर किया था इस निकाह के लिए..."
उसकी आँखों में आँसू भर आए थे, और कमरे की फ़िज़ा में एक भारी ख़ामोशी छा गई थी।
आयान ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला, स्क्रीन खोली और हुमैरा के सामने रखते हुए गहरी आवाज़ में बोला, "देखो... तुम्हारा भाई सही-सलामत तुम्हारे घर छोड़ा जा चुका है।"
हुमैरा की नज़रें मोबाइल की स्क्रीन पर जमीं। वीडियो में साफ़ दिख रहा था – हुमैरा का भाई हैदर, जिसे दो आदमी सहारा देकर उसके घर के दरवाज़े के पास छोड़ रहे थे। घर का दरवाज़ा खुला और अंदर से उसकी अम्मी बाहर आईं, हैदर को देखकर फौरन उसे अपने गले से लगा लिया।
यह मंज़र देखते ही हुमैरा की आँखों में भर आई नमी बह निकली। उसका सीना जैसे भारी बोझ से आज़ाद हो गया। उसने एक गहरी राहत की साँस ली और धीमे लहजे में बुदबुदाई, "शुक्र है..."
कमरे की फ़िज़ा में उसकी सुकून-भरी साँसों की आवाज़ गूँज गई। आयान ने उस पल को गौर से देखा, उसकी आँखों में एक अजीब-सी नरमी और इश्क़ की हल्की चमक उभर आई।
आयान ने हुमैरा की तरफ़ देखते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहा, "तो बेगम, आप ख़ुद खाना खाएँगी या मुझे अपने हाथों से खिलाना पड़ेगा? वैसे ये भी तो एक रस्म है न? चलो... आज आपको मैं अपने हाथों से खाना खिलाता हूँ।”
हुमैरा का चेहरा डर से तना, उसकी साँसें तेज़ हो गईं। उसने
फौरन घबराई हुई आवाज़ में कहा,
"न-नहीं... मैं खुद खा लूँगी।"
वो जल्दी से उठी, प्लेट अपने सामने खींची और जल्दबाज़ी में खाने लगी। आयान ने ये मंज़र देखा और होंठों पर हल्की मुस्कान आ गई। वो जानता था कि हुमैरा उसके कहने पर कभी नहीं खाएगी, लेकिन इस तरह... मजबूरी में वो खा लेगी। और हुआ भी वही।
हुमैरा ने जैसे ही निवाला मुँह में डाला, उसकी आँखों से आँसू छलक आए। खाना बेहद तेज़ था, जबकि वो सामान्यतः तेज़ खाना खा लेती थी। लेकिन ये खाना आयान के कहे मुताबिक़ और भी ज़्यादा मसालेदार बनवाया गया था।
हुमैरा ने चुपचाप एक रोटी बहुत मुश्किल से खत्म की और फिर थाली आगे सरका दी।
"मेरा... हो गया।"
उसके होंठ काँप रहे थे, आँखों में आँसू थे, चेहरा तपिश से लाल हो रहा था। मगर उसने आयान की ओर देखने की हिम्मत न की। वो अपने दर्द और जलन को छुपाना चाहती थी।
आयान, जो सामने बैठा उसे गहरी निगाहों से देख रहा था, समझ नहीं पा रहा था कि हुमैरा को क्या हो रहा है।
आख़िरकार जब हुमैरा ने पानी का दूसरा गिलास उठाकर एक ही सांस में पी लिया, तो आयान के चेहरे पर समझ की झलक आ गई।
वो हल्के से मुस्कुराया,
"तो मिस रेड... आपको तेज़ लग रही है।"
आयन का right hand रेहान नें जेसे ही देखा की अयान किसी लडकी को उठवाने क़ा बोल रहा वो हैरान था अयान कों कभी किसी लड़की से मतलब नही रहा वो हमेशा से लड़कियों से दूर रहना पसन्द करता था फिर रेहान नें आपने सपने से बाहर आते हुए जल्दी ही वहां खड़े गार्ड को ऑर्डर दिया
उसके बाद हुमैरा किडनैप हो गयी थीं और उसके साथ जों लडका वो कहा है इसका अभी तक किसी कों कोइ ख़बर नही थीं
हुमैरा रूम मे अकेली दर रही थीं उसने जेसे ही देखा की दरवाजा खुल रहा है वो डरने लगी इतने मे एक 55 ऐज कि औरत अंदर आयी ओर बोली बेबी ज़ी खाना खा लीजिये हुमैरा ने उस औरत को देखा ओर जल्दी से उस के पास आ कर बोली आंटी मुझे बचा लो ye लोग मुझे किडनैप कर के लाए है
मुझे अपने फॅमिली ke पास जाना है वो औरत डरने लगी वो अयान गुस्से को बहुत अछे से जानती थी अयान ने उसे सिर्फ खाना डे कर आने को कहां था वो औरत डरते हुए बोली बेटा मे तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती मुझे जाना होगा बोल कर वो औरत जल्दी से वहाँ से निकल गयी
हुमैरा फिर नीचे बेढ कर रोने लगी ओर सोचने लगी मे कहा फस गई हू या अल्लाह मुझे बचा ले humaira कब रोते रोते सो गई उसे पता ही नहीं चाला
उधर अयान एक रूम मे बेढ़ा था उसके साथ रेहान था रेहान ने बोला सिर मेम के साथ जों लड़का था वो मेम क़ा भाई शोएब है ये सुनते ही अयान को जेसे दिल मे एक अजीब सी खुसी मेहसूस हुईं उसने कहा मुझे मिस रेड ki ऑल डिटेल्स ला कर दो रेहान ने
जेसे ही अयान के मुह से हुमैरा के लिये मिस रेड सूना वो हैरान हों गया अयान किसी को निक नेम दे ये रेहान के लिए थोड़ा shocking था
"रेहान इतना तो समझ गया था कि यह लड़की ही अब उसकी लेडी बॉस है, क्योंकि कोई लड़की आयान पर हाथ उठाए और आयान उसे आसानी से जाने दे-यह तो नामुमकिन था।
आयान ने जैसे ही देखा कि रेहान अभी भी वहीं खड़ा है, रेहान की तरफ देखते हुए कहा, 'अब तुम अपने ख़यालों से बाहर आओगे या मुझे निकालना पड़ेगा?"
"ये सुनते ही रेहान के होश उड़ गए। उसके होंठों से आवाज़ नहीं निकली, और बिना पल भर रुके वह तेज़ी से वहाँ से भाग गया।"
"30 मिनट बाद, रेहान आयान के पास आया। रेहान के हाथ में एक फाइल थी। उसने वह फाइल आयान को थमाई और फिर जल्दी से वहाँ से भाग गया।"
"आयान ने फ़ाइल खोली, और जैसे ही उसकी नज़र सामने रखी तस्वीर पर पड़ी, वो कुछ लम्हों के लिए सन्न रह गया। तस्वीर में हुमैरा एक छोटी सी बिल्ली को मोहब्बत से थामे हुए थी, उसके लंबे काले बाल हौले-हौले चेहरे पर गिर रहे थे, और उसके मासूम मुस्कान में ऐसा नूर था जो आयान के दिल को अजीब सी गर्मी दे गया। उसकी आँखों का क़ाजल, उसके हँसने का अंदाज़-हर एक छोटी सी बात आयान के लिए एक नई दुनिया का दरवाज़ा खोल रही थी।"
"आयान ने फ़ाइल का पन्ना पलटा और हुमैरा की हर एक तफ़सील ग़ौर से पढ़ने लगा। उम्र 21 साल, क़द 5.3 फुट, कॉलेज में B. A. की तालीम हासिल कर रही थी... उसके ख़ानदान में अब्बू का नाम शाहनवाज़ ख़ान, अम्मी का नाम फ़ाइज़ा बेगम, छोटी बहन रीज़ा और बड़ा भाई शोएब था। घर में उसकी फुफू भी रहती थीं, जिनका कुछ वजहों से कई साल पहले तलाक़ हो गया था, और फुफू की एक बेटी थी-सानीय़ा।"
"ये सब पढ़ते ही आयान के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान और साथ ही गुस्से की एक परछाई उभर आई। उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी। धीमे लफ़्ज़ों में वो बुदबुदाया - 'ओह... तो तुम हमारे दुश्मन की बेटी हो...
"आयान ये सब जानने के बाद अच्छे से समझ गया था कि हुमैरा को अपने पास ज़्यादा वक़्त तक बिना किसी रिश्ते के रोक पाना नामुमकिन है। आख़िर वो भी एक शान-ओ-शौकत वाले, अमीर ख़ानदान से ताल्लुक़ रखती थी। आयान चाहता तो दुनिया की हर चीज़ हासिल कर सकता था, मगर हुमैरा के सामने वो अपनी devil side nahi dikhana chahata tha
"फिर उसके ज़ेहन में एक ख़याल बिजली की तरह आया, और जैसे ही वो सोच पूरी हुई, आयान के होंठों पर हल्की सी मुस्कुराहट खिल उठी - वो मुस्कुराहट
मानो वो पहले ही आने वाले खेल का अंजाम जान चुका हो।"
"आयान तेज़ कदमों से उस कमरे की तरफ बढ़ा, जहाँ उसने हुमैरा को छोड़ कर गया था। जब उसकी नज़र हुमैरा पर पड़ी, तो दो लम्हों के लिए जैसे दुनिया ही थम गई। हुमैरा एक कोने में डरी हुई, आँखें लाल और आँसुओं से भरी, रोती-रोती बैठी थी, और शायद अनजाने में सो गई थी। उसे खबर भी नहीं थी कि कोई गहरी निगाहों से उसकी हर हरकत को देख रहा था।"
Ayan ke dil me ek ajeeb si larazish hui - ek taraf uska gussa aur curiosity, aur doosri taraf ek shafqat bhara ehsaas jo usne kabhi mehsoos nahi kiya tha.
"आयान धीरे-धीरे हुमैरा की तरफ आया, और झुका, उसके बालों को जो चेहरे पर गिर रहे थे, प्यार से हटा दिया। यह छोटा सा एहसास ही हुमैरा के दिल में बिजली की तरह उतर गया। अपने इतने करीब किसी को देखकर उसके शरीर में अचानक खौफ का एक झटका दौड़ गया, और reflexively उसने आयान को धक्का दे दिया, खुद को दूर करने के लिए।"
"आयान, जो इस सब के लिए बिलकुल तैयार नहीं था, अचानक 2-3 कदम पीछे हट गया। जैसे ही उसने महसूस किया कि हुमैरा ने उसे धक्का दिया, उसके चेहरे पर गुस्सा और काबू के बीच का अजीब सा मिश्रण चमक उठा। उसने मजबूती से हुमैरा का हाथ थाम लिया, और उसकी आँखों में रोशनी और साये का एक अनजाना सा मेल दिख रहा था।"
"हुमैरा का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, जैसे सीने से बाहर निकल आएगा। उसके चेहरे पर डर की लकीरें साफ़ झलक रही थीं, बड़ी-बड़ी आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं। उसकी पलकों की कंपकंपी, होंठों की थरथराहट... सब उसकी बेबसी बयान कर रहे थे। उसकी आवाज़ काँपते हुए निकली:"
"कोई है! प्लीज़... मुझे बचाओ ! मेरी मदद करो!"
हुमैरा की चीख़ में दहशत साफ़ झलक रही थी, उसकी आवाज़ चार दीवारों से टकराकर गायब हो रही थी।
आयान ने होंठों पर हल्की सी मुस्कुराहट सजाई, मगर आँखों में गुस्से की झलक साफ़ थी।
धीमे लेकिन ठहरे हुए लहजे में उसने कहाः "कर लो जितनी कोशिश करनी है, Miss Red... तुम्हारी ये पुकार इन दीवारों से बाहर नहीं जाएगी। यहाँ तुम्हारी आवाज़ सुनने वाला... सिवाय मेरे और कोई नहीं।"
ye bol kar aayan ne हुमैरा ka hath choda jese hi aayan ne हुमैरा ka hath choda हुमैरा 2 kadam piche ho gayi
हुमैरा और ज़्यादा सहम गई। उसके होंठ काँपने लगे, आँखों से आँसू लगातार बह रहे थे। डर इतना बढ़ चुका था कि उसकी रूह तक काँप उठी।
उसकी आवाज़ टूटी-टूटी और बेक़रार थीः
"आयान ने थोड़ी सी सख़्ती के साथ कहा, 'मेरे पास ये सब सुनने का वक़्त नहीं है... तुम्हें याद होगा जब तुम यहाँ आई थी, तुम्हारे साथ तुम्हारा भाई था।"
ये सुनते ही हुमैरा के होश उड़ गए। उसकी आवाज़ तेज़ी से काँप रही थी, और वह चिल्लाती हुई बोली, 'मेरा भाई... भाई कहाँ है! मुझे बताओ... क्या-क्या किया तुमने उनके साथ?!""
हुमैरा की तेज़ आवाज़ सुनते ही आयान के कदम भारी क़दमों की तरह गूंजे और वो उसकी तरफ बढ़ आया। उसके करीब आते ही माहौल में सन्नाटा छा गया।
आयान ने झुककर, अपनी गहरी और ठंडी आवाज़ में कहाः
"मुझे तेज़ आवाज़ बिल्कुल बर्दाश्त नहीं... और मेरी मौजूदगी में तो हरगिज़ नहीं। याद रखो, Miss Red तुम्हारी आवाज़ सिर्फ़ मेरे कानों तक पहुँचना चाहिए, और किसी तक नहीं।"
हुमैरा ने बिना आयन की तरफ देखे कहा, "मुझे कुछ मिठा चाहिए।"
आयन ने उसकी तरफ देखा, धीरे-धीरे उसके करीब आते हुए कहा, "क्या मे जों मिठा समझ रहा हू तुम्हें वही चाहिये तुम समझ रही होना आयन की निगाहें हुमैरा के होतो के तरफ थे
पहले तो हुमैरा को आयन की बात समझ नहीं आई, लेकीन हुमैरा ने जेसे ही अयान की निगाहों की तरफ़ देखा हुमैरा अयान कीं 2 मीनिंग बातो को समझ कर वहा से जल्दी से दो कदम पीछे हो गई।
फिर आयन ने अपनी जेब से एक खजूर का पैकेट निकाला और उसकी ओर बढ़ाया, और कहा, "तुम्हें पता है, यह हमारे निकाह का तबारुक है।"
ये सुनते ही हुमैरा ने खजूर की तरफ देखा और दिल ही दिल में सोचा:
"यह मेरी सालों पुरानी ख्वाहिश थी... अल्लाह! मेरी शादी का तबारुक खजूर हो... यह हमारे नबी की सुन्नत है... मेरी ख्वाहिशें शायद पूरी हो गईं। निकाह का जोड़ा मेरी पसंद का मिला, और तबारुक भी...
हुमैरा अभी भी परेशान और हैरान थी। बस जो पसंद का नहीं मिला, वो है... शौहर। ऐसा क्यों, मेरे मौला? कल तक जिस नाम से भी वाकिफ नहीं थी, वो आज मेरा महरम है।
आयन ने देखा कि हुमैरा खजूर की तरफ देख रही है। धीरे से उसने अपना हाथ हुमैरा की ओर बढ़ाया और कहा, "खाइए।"
हुमैरा ने खजूर लेने की कोशिश की, लेकिन आयन ने अपनी कड़क आवाज़ में कहा, "शौहर हूँ आपका miss red
अपने हाथों से आपको खिला सकता हूँ।" हक है मुझे आप पर
हुमैरा ने जैसे ही पीछे हटने की कोशिश की, आयन ने उसे अपने पास खींच लिया और धीरे से कहा, "चुपचाप खा लीजिए... वरना अगर मैं जबरदस्ती खिलाऊँगा, तो आपको पसंद नहीं आएगा।"
हुमैरा ने चुपचाप आयन के हाथों से खजूर खा लिया। आयन ने देखा कि हुमैरा अभी भी ज़्यादा डर रही है, तो उसने धीरे से उसका हाथ छोड़ दिया।
हुमैरा तुरंत दो कदम पीछे हो गई, उसकी आंखों में हल्की घबराहट थी।
आयन ने धीरे से कहा, "आप सो जाइए..."
फिर बिना कुछ और कहे, वह खुद कमरे से बाहर निकलने की तरफ बढ़ा। उसके कदम भारी थे, लेकिन दिल में हल्की राहत भी थी।
आयन जानता था कि हुमैरा को इस रिश्ते के लिए थोड़ा वक्त चाहिए। वह जबरदस्ती कुछ भी नहीं करना चाहता था, पर हुमैरा को अपने पास रखने के लिए सिर्फ़ यही रास्ता बचा था।
जैसे ही आयन नीचे आया, वह सीधे अपने स्टडी रूम की तरफ बढ़ा।
दरअसल, यह घर, जिसमें वह अब था, आयन की पर्सनल हवेली थी।
यह वही जगह थी जहाँ आयन अक्सर आता था जब उसे सुकून और अकेलेपन की जरूरत होती थी। इस हवेली में किसी को भी आने की permission नहीं थी। सिर्फ़ आयन की फैमिली के कुछ खास लोग ही यहाँ आ सकते थे-जैसे उसके दोनों भाई अर्शद और हशीर।
हशीर, आयन के चाचा का बेटा था, और उसके बारे में कहानी में आगे चलकर विस्तार से बताया जाएगा।
यह हवेली, उसकी सुरक्षा, उसकी निज़ात और उसकी दुनिया का एक अलग ही हिस्सा थी-जहाँ सिर्फ़ वही और उसके भरोसेमंद लोग ही आ सकते थे।
वहीँ कमरे में हुमैरा आज बहुत थक गई थी।
जैसे ही वह बेड पर आई, उसकी आंखों पर नींद का परदा उतर गया और वह गहरी नींद में सो गई, उसे पता ही नहीं चला कि समय कैसे बीत गया।
आयन शायद रात के दो बजे के करीब कमरे में आया।
जैसे ही उसकी नजर हुमैरा के सोते हुए मासूम चेहरे पर पड़ी, उसके होंठों पर एक हल्की और नाजुक मुस्कान खिली।
वह धीरे से वॉशरूम गया, वहां से कपड़े बदलकर, हुमैरा के पास आया और अपने बिस्तर पर लेट गया।
हुमैरा, जो दिन भर आयन से दूर भागती रही थी, अब नींद में अनजाने में आयन के पास सोयी थी
अयान नें हुमैरा कों आपने करीब किया और अपनी बाहों मे जाकर लिया
रात की इस खामोशी में, आयन की बाहों में सुकून और इत्तमीनान के साथ सोते हुए देखा
और मुस्करा के कहाः finally अब आप हमेशा के लिये मेरी हो miss red
आयन भी हुमैरा को देखते हुए, न जाने रात के किस पहर में सो गया।
आयन की नींद सुबह साढ़े सात बजे खुली। वैसे तो वह रोज़ सुबह पाँच बजे उठ जाता था, पर आज वह बहुत देर तक सोया।
और शायद इसलिए भी कि उसकी बाहों में उसकी मिस रेड थी, वह बेहद सुकून और राहत की नींद सो पाया।
आयन ने हुमैरा को बहुत ही नाजुक और धीरे-धीरे अपनी बाहों से दूर किया, ताकि उसकी नींद टूटे नहीं।
फिर उसने ध्यान से हुमैरा को कंबल में अच्छे से ढक दिया, जैसे
कोई अपनी सबसे कीमती चीज़ की हिफाज़त कर रहा हो।
आयन ने फिर जिम की तरफ़ कदम बढ़ाए,
हुमैरा, जो इतनी आराम से सो रही थी, उसकी नींद सुबह नौ बजे खुली।
शुरू में वह खुद को अजनबी कमरे में देख कर थोड़ी घबराई, उसकी आंखों में आश्चर्य और हल्की डर की झलक थी।
लेकिन जैसे ही कल की घटनाओं की याद उसके दिल में आई, उसका चेहरा उदासी और हल्के ग़म से भर गया।
दिल में हल्की बेचैनी उठी-वह जानती थी कि जो कल हुआ, वो उसके और आयन के बीच की नयी हकीकत है।
कुछ देर बाद अयान जो gym se रूम मे आया था हुमैरा को पलंग पर बैठा देख
वह पलंग की तरफ़ बढ़ा, उसकी नजरों में हल्की गंभीरता और थोड़ी मुस्कान झलक रही थी। धीरे से उसने कहा, "मिस रेड... आप तो बहुत देर से उठती हैं। आदत सुधार लीजिए, अब आपकी शादी हो गई है।"
हुमैरा झट से आयन की तरफ देखा और चीखते हुए बोली, "मुझे कल तक पता ही नहीं था कि मेरी दुनिया इतनी जल्दी बदल जाएगी!
एक पागल आदमी मेरी हँसती खेलती ज़िंदगी में तूफ़ान ले आएगा, और मैं इतनी देर से ही उठती हूँ! तो अगर तुम्हें मुझसे इतनी परेशानी है, तो य़े तुम्हारी परेसानी है मेरी नही समझे तुम
आयन, जो धीरे-धीरे हुमैरा के करीब आया था, उसकी आंखों में हल्की गंभीरता के साथ बोला, "मैंने आपको पहले भी बताया था, मुझे किसी की ऊँची आवाज़ सुनने की आदत नहीं।
और याद रखिए, मैं आपका शौहर हूँ... इसलिए मुझसे आदर और इज्ज़त के साथ बात कीजिए।"
अगर मे आपको आदब सिखाने प़र आ गया तों अपको बिल्कुल पसन्द नही आयेंगा
आयन कि आवाज मे जों धमकी थी हुमैरा अछे से समझ गयी थी
फिर आयन ने हुमैरा की तरफ देखकर कहा, "जाइए और फ्रेश हो जाइए, वहाँ आपके लिए कपड़े रखे हैं।"
हुमैरा ने यह सुनते ही जल्दी-जल्दी अपनी तरफ़ बढ़ते हुए वॉशरूम की ओर दौड़ लगाई,
हुमैरा कुछ देर बाद कमरे में दाखिल हुई। उसके कदम बेहद हल्के थे, जैसे किसी अजनबी जगह में कोई अनजान परिंदा उतरता हो। उधर आयान फ़ोन पर किसी से बातें कर रहा था, इस क़दर मशगूल कि उसने हुमैरा की मौजूदगी तक महसूस न की।
लेकिन जैसे ही उसकी रूह को आहट का एहसास हुआ, वो पलटा और अचानक सीधा हुमैरा से टकरा गया।
हुमैरा का दिल ज़ोर से धड़क उठा-जैसे सीने से बाहर निकल आएगा। वो डर के मारे अपनी पलकों को मज़बूती से भींचकर खड़ी रह गई।
आयान जो अपने ख़यालों में गुम था, उसने हुमैरा को गिरते देखा तो झट से अपनी मज़बूत बाहों में थाम लिया। उस लम्हे में, हुमैरा को पहली बार अपने चारों तरफ़ एक अजीब-सा सुकून और क़ैद दोनों महसूस हुआ।
उसने हिम्मत करके आँखें खोलीं, और जब देखा कि वो आयान की बाहों में है-उसकी साँसें तेज़ हो गईं। उसके गाल सुर्ख़ पड़ गए, और वो बेचैनी से उससे दूर होने लगी।
मगर आयान के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान उभर आई। उसने हुमैरा को और मज़बूती से अपनी बाहों में कैद कर लिया। उसकी आवाज़ धीमी थी, मगर उसमें एक ऐसा असर था कि हुमैरा का दिल काँप उठा।
"Miss Red... मैं आपको खा नहीं जाऊँगा। तो यूँ हर बार मुझसे भागना छोड़ दीजिए। मैं आपका शौहर हूँ... आपका मेहरम। और मेहरम होने के नाते... आपको सबसे क़रीब से देखने, थामने का हक़ सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा है।"
हुमैरा ने डरते-डरते काँपती हुई आवाज़ में कहाः
"Please... मुझे छोड़ दीजिए।"
आयान ने उसकी बेचैनी को महसूस किया और नर्मी से उसे आज़ाद कर दिया। हुमैरा फ़ौरन दो-तीन क़दम पीछे हट गई, उसकी साँसें तेज़ थीं और दिल अभी भी धड़कनों की जंग लड़ रहा था।
आज उसने लाल रंग का अनारकली पहना हुआ था, जिस पर सफ़ेद चिकनकारी का नफ़ीस काम झिलमिला रहा था। कपड़े की नर्मी और रंग की गहराई उसकी मासूम सूरत को और भी निखार रही थी।
हुमैरा इस पोशाक में वाक़ई हुस्न की मूरत लग रही थी। उसके गालों की लाली लाल अनारकली से मेल खा रही थी और आँखों की झिझक उसके सौंदर्य को और भी मोहक बना रही थी।
आयान की निगाहें जैसे उस पर ठहर गई हों। चाहे वो कितनी भी कोशिश करता, मगर नज़रें हुमैरा से हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं। उसकी आँखों में एक अजीब-सा जादू था-कभी हुकूमत करने वाला गुरूर, कभी हक़ जताने वाली नर्मी... और कहीं गहराई में छुपी मोहब्बत की चमक।
हुमैरा को महसूस हुआ कि आयान की नज़रें उस पर जमी हैं, तो उसका दिल और भी घबराने लगा। वो झेंपकर नीचे देखने लगी, जैसे अपनी ही पलकों में पनाह तलाश रही हो।
हुमैरा ने थोड़ी हिम्मत जुटाकर घबराई हुई आवाज़ में कहा: "मुझे आपसे बात करनी है।"
आयान ने बिना नज़रें झुकाए उसकी आँखों में देखते हुए कहाः "कहो, मिस रेड।"
हुमैरा के होंठ काँपे, मगर उसने हिम्मत करके कहाः "मुझे आपसे... कुछ चाहिए।"
आयान के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आई। उसने गहरी साँस ली और धीमे मगर ठोस लहजे में बोला: "तुम मुझसे दो चीज़ों के अलावा जो चाहो माँग सकती हो।"
हुमैरा हैरान होकर बोलीः "वो दो चीज़ें?"
आयान ने उसकी आँखों में गहराई से देखते हुए कहाः "एक... मेरी जान। जो पहले ही तुम्हारी है। और दूसरा... तलाक़ । जो इस जनम में आयान अहमद ख़ान तुम्हें हरगिज़ नहीं देगा।"
ये कहते हुए उसकी आवाज़ में वो अहद था, जो पत्थर पर लकीर की तरह अटल हो। फिर उसने थोड़ा झुककर उसकी ओर देखा और नरमी से कहाः “अब बताओ, इसके अलावा तुम्हें क्या चाहिए... हुक्म करो।"
हुमैरा नें कहाः "मुझे... अपनी फ़ैमिली से मिलना है प्लीज़, मेरी अम्मी-अब्बू बहुत परेशान होंगे। मैं कभी उनसे इतनी दूर नहीं रही हूँ।"
आयान ने गहरी नज़र से उसे देखा, फिर हल्की-सी मुस्कान के साथ बोलाः
"सोचा नहीं था कि मेरी मिस रेड पहली बार मुझसे कुछ माँगेंगी तो वो अपने शौहर से कुछ और नहीं, बल्कि अपनी फैमिली माँगेंगी।"
वो हल्का-सा हँस पड़ा, मगर उस हँसी में तंज़ भी था और कसक भी।
फिर आयान ने उसकी ओर झुककर धीमी लेकिन ठोस आवाज़ में कहाः
"घबराओ मत... तुम्हारी फैमिली को हमारे निकाह की खबर पहुँच चुकी है। और जहाँ तक मिलने की बात है... तो तुम तैयार हो जाओ, हम उनसे ही मिलने जा रहे है
ये सुनकर हुमैरा के चेहरे पर एक पल को चमक-सी आई, लेकिन अगले ही पल उसका दिल तेज़ धड़कने लगा-सोच में डूब गई कि उसका सामना कैसे होगा अम्मी-अब्बू से इस नए रिश्ते के बाद।
थोड़ी देर बाद
एक मादे कमरे के दरवाज़े पर खटखटाता हुआ दिखाई दिया, हाथों में एक नाजुक और बेहद खूबसूरत डिब्बा लिए हुए। आयान ने वह डिब्बा उसके हाथों से लिया और फिर कमरे का दरवाज़ा बंद कर अंदर आया।
उसकी नज़र सीधी हुमैरा पर पड़ी जो खामोशी से बिस्तर पर बैठी थी। आयान पास आया और उसके सामने एक छोटा-सा डब्बा रखते हुए बोलाः
"ये तुम्हारे लिए है..."
हुमैरा ने चौंककर उसकी ओर देखा और सिर हिलाते हुए कहाः "मुझे नहीं चाहिए..."
आयान की आँखों में हल्की-सी शरारत तैर गई। वो झुककर गहरी आवाज़ में बोलाः "तो बताओ, ये तुम खुद पहनोगी... या मैं अपने हाथों से पहनाऊँ?"
हुमैरा का चेहरा लाल पड़ गया। उसने जल्दी से डब्बा ले लिया और खोलकर देखा-अंदर एक नाजुक-सी चेन थी जिस पर बेहद खूबसूरत डिज़ाइन में "AH" लिखा हुआ था। उसने चुपचाप उस चेन को अपने गले में डाल लिया।
आयान ने हुमैरा की तरफ देखते हुए नरमी से कहा, "पहले मेरे साथ नाश्ता कर लीजिए, मिस रेड। आज का दिन बहुत लंबा होने वाला है... और मुझे ये बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होगा कि मेरी बीवी भूखी रहे।"
थोड़ी देर में एक मेड ने ट्रे में नाश्ता लगाकर रखा। हुमैरा का बिल्कुल मन नहीं था खाने का, मगर उसे पता था कि आयान उसकी बात नहीं मानेगा। उसने चुपचाप जल्दी-जल्दी कुछ निवाला खा लिए।
आयान दूर बैठा उसे गौर से देख रहा था। जैसे ही उसने खाना ख़त्म किया, आयान ने हल्की मुस्कान के साथ कहा-"अब मेरी बारी है, और आप बस यहीं शांति से बैठी रहिए... कहीं मत जाइए।"
हुमैरा हल्की-सी घबरा गई, पर कुछ बोली नहीं। उसने चुपचाप अपनी नजरें झुका लीं।
हुमैरा को यह सुनते ही बहुत गुस्सा आया। “मैं क्यों यहाँ शांत बैठे रहूँ? यह आदमी तो पागल है!" - वह मन ही मन सोच रही थी। लेकिन कुछ बोली नहीं, क्योंकि वह अच्छी तरह जानती थी कि अगर वह कुछ कहे भी तो आयान वही करेगा जो वह खुद करना चाहेगा। हुमैरा का गुस्सा तो बहुत बढ़ा, लेकिन उसने चुप्पी ही साध ली।
कुछ देर बाद आयान ने आराम से नाश्ता किया
आयान ने गहरी नज़र से उसे देखा और धीमे से मुस्कराकर कहाः "बेगम... आज शादी के बाद पहली बार आप अपनी फैमिली से मिलने जा रही हैं। नई नवेली दुल्हन की तरह तैय्यार हो जाइए। मैं पाँच मिनट में आता हूँ।"
ये कहकर वो वॉशरूम में चला गया।
हुमैरा को तैयार होने का कोई शौक़ नहीं था। मगर अपने अम्मी-अब्बू से मिलने की तड़प इतनी गहरी थी कि उसने बहस करना सही नहीं समझा। वो dressing table के सामने जाकर बैठी।
वहाँ पहले से रखी हुई चूड़ियाँ उसने अपने हाथों में डाल लीं, हल्की-सी लिपस्टिक लगाई, आँखों में नर्म-सा काजल, और कानों में खूबसूरत सी बालियाँ।
आईने में झाँकते ही वो खुद हैरान रह गई- बिना चाहत के ही वो आज सच में एक ग़ज़ब की दुल्हन लग रही थी।
आयान जैसे ही वॉशरूम से बाहर आया, उसकी नज़र सीधे हुमैरा पर जा ठहरी।
लाल अनारकली में सजी, नाजुक-सा श्रृंगार किए, गले में उसकी दी हुई चेन पहने... वो किसी हसीन ख्वाब से कम नहीं लग रही थी।
आयान के होंठों पर खुद-ब-खुद मुस्कान आ गई। उसने गहरी आवाज़ में कहा:
"आप... आज सचमुच बेहद खूबसूरत लग रही हैं।"
हुमैरा का चेहरा लाल पड़ गया। उसने नज़रें झुका लीं।
आयान ने उसके पास आते हुए कहाः
"चलिए... आज सब से मिलते हैं। और हाँ, आपके ससुराल वालों से भी आपको मिलवाना है।"
ये सुनकर हुमैरा के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। उसने थोड़ी घबराहट से आयान की ओर देखा। उसकी आँखों में जैसे सौ सवाल थे।
आयान ने उसके उस मासूम चेहरे को देखते हुए हल्के-से मुस्करा कर कहाः
"घबराइए मत, मैं साथ हूँ न... बस चलिए।"
हुमैरा ने जल्दी से अपना दुपट्टा सिर पर डाल लिया। ये छोटा-सा लम्हा देखकर आयान का दिल पिघल गया। उसे लगा उसकी ये छोटी-सी बेगम न सिर्फ़ मासूम है बल्कि तहज़ीब और अदब के सारे क़ायदे भी जानती है।
आयान और हुमैरा दोनों नीचे आए। नीचे एक काले रंग की BMW खड़ी थी। आयान ने आगे बढ़कर हुमैरा को पैसेंजर सीट पर बिठाया और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। कार के अंदर दोनों बिल्कुल शांत थे, एक-दूसरे से कुछ कहे बिना। लेकिन आयान की नज़रें लगातार हुमैरा पर ही टिकी थीं।
हुमैरा, जो सिर्फ़ कार से बाहर देख रही थी, । वह अपनी ही सोच में उलझी हुई थी-कैसे वह अपनी फैमिली का सामना करेगी। उसका दिल अपनी फैमिली से मिलने के लिए बेताब था, लेकिन मिलने के बाद आने वाले तूफ़ान से वह डरी हुई थी।
थोड़ी देर बाद आयान की कार एक बहुत बड़ी हवेली के सामने रुक गई।
यह हवेली दिल्ली की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी हवेली थी, जो सालों पहले बनाई गई थी। बावजूद इसके, इसे देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि यह पुरानी है। हर दीवार, हर खिड़की, हर कोना अपनी शान और ऐतिहासिक गौरव के साथ खड़ा था। हवेली में आधुनिक सुविधाओं की भी कमी नहीं थी, और हर साल इसकी मरम्मत होती थी ताकि यह हमेशा अपनी भव्यता और गरिमा बनाए रखे। ओर आज हवेली बहुत खूबसूरत सजी हुईं थी ये सब सजावट अरशद नें करवाया था अपनी भाभी अम्मी कीं आने की खुसी मे पर जब पूरे घर वालों को पता चाला अयान नें निकाह कर लिये सब घर वाले हैरान थे पर इस वक़्त घर का कोई भी इंसान नही जानता था अयान नें निकाह किस से किया है
वर्तमान समय मै:-) हुमैरा एक पल को हवेली को देखती रह गई
उसने घबराकर आयान की ओर देखा और बोली:
"आप... मुझे यहाँ क्यों ले आए? आपने कहा था ना, मेरी फैमिली से मिलवाओगे।"
आप कहां लाए हो मुझे
आयान ने उसकी ओर गंभीर नज़र डालते हुए कहाः
"बेगम, अंदर आइए... पूरी फैमिली हमारा इंतज़ार कर रही है।"
आयान ने बाहर आकर हुमैरा के पास का गेट खोला और हल्का हाथ बढ़ाया।
लेकिन हुमैरा ने उसका हाथ नहीं थामा। वो खुद आगे बढ़ी और गेट से बाहर आई।
आयान की नज़रें गुस्से से जल उठीं। उसने ठंडी, मगर डराने वाली आवाज़ में कहा:
"आप अपनी फैमिली से मिल तो रही हैं, लेकिन याद रखिए...
दुनिया की कोई ताक़त आपको आयान अहमद ख़ान से दूर नहीं कर सकती।
अगर किसी ने हिम्मत की, तो मैं पूरी दुनिया जला दूँगा। और अगर आप मुझसे दूर जाने की कोशिश करेंगी... तो मैं आपके हर रिश्ते, हर क़रीबी को तबाह कर दूँगा। ये वादा है-आयान अहमद ख़ान का।"
हुमैरा का दिल तेजी से धड़कने लगा।
उसकी आँखों में डर और थरथराहट थी,
आयान की ये सख़्ती और मोहब्बत-दोनों उसके सामने इतनी ताक़तवर लग रही थीं कि वो कुछ कह नहीं पाई।
हुमैरा और आयन जैसे ही हवेली के अंदर आये, हुमैरा की नज़रें जिन लोगों को को देखना चाहती थी उसकी फॅमिली वहा नही थी
लेकिन उसने चारों ओर देखा, उसे कोई भी अपना परिचित चेहरा नजर नहीं आया।
आयान ने उसे महसूस किया और उसकी तरफ़ मुँह करके कहा, "ससुराल वाले रास्ते में हैं, बेगम। थोड़ा सब्र कीजिए, जब तक आप मेरी फैमिली से मिलें।"
फिर उसने धीरे से हुमैरा का हाथ थामा और उसे अंदर की तरफ़ ले गया।
जैसे ही हुमैरा हवेली के अंदर कदम रखी, उसकी नज़रें चारों ओर घूमीं।
आगे बहुत से लोग आयान का इंतजार कर रहे थे।
आयान की माँ, फाइज़ा बेगम, ने जैसे ही देखा कि आयान अपनी बहू को साथ लाया है,
उसके चेहरे पर खुशी की चमक फैल गई।
फाइज़ा बेगम ने हंसते हुए कहा,
"आज आयान, तुमने हमारी वर्षों की मुराद पूरी कर दी ! माशाल्लाह... कितनी चाँद जैसी खूबसूरत है हमारी बहू।"
फाइज़ा बेगम मुस्कुराते हुए हुमैरा की तरफ़ बढ़ीं।
उन्होंने हल्की हँसी के साथ कहा, "नहीं, नहीं... बस बहू नहीं! आज से मेरी एक नहीं, दो बेटियाँ हैं।"
ये कहकर वो हुमैरा के करीब आईं और उसे अपने बाहों में भर लिया।
हुमैरा थोड़ी देर के लिए चौंकी, फिर उसकी आँखों में नर्म मुस्कान आ गई।
फाइज़ा बेगम ने हुमैरा के सिर पर हाथ रखकर धीरे-धीरे दुआ दी। उनकी आवाज़ में सच्ची मोहब्बत और अपनापन झलक रहा था।
हुमैरा को अचानक से वही अहसास हुआ जो हुमैरा को अपनी माँ के पास बैठते हुए होता था
एक गहरी सुरक्षा और सुकून की गर्माहट, जो केवल माँ के करीब होने पर महसूस होती है।
उस पल हुमैरा के दिल में एक अजीब-सा सुकून फैल गया।
फाइज़ा बेगम थोड़ी पीछे हो कर आयान की तरफ़ देखते हुए मुस्कुराईं और बोलीं, "अगर तुम्हें निकाह ही करना था तो ऐसा चुपचाप क्यों किया, आयान? हमें बता देते, हम धूमधाम से करते।"
इतने में हवेली के विशाल हॉल में एक कड़क और ज़ोरदार आवाज़ गूंजी-
"ये कैसी हरकत है, आयान ! ये कौन सा तरीका है बहू को घर लाने का? घर में बता देते, बस ऐसे क्यों?"
हुमैरा की धड़कन बढ़ गई। उसने धीरे-धीरे मुड़ कर देखा-वो हाफ़िज़ ख़ान, आयान के दादा, हवेली में सबसे बड़े और रौबदार इंसान की तरह खड़े थे।
सभी लोग अपने स्थान पर खड़े रह गए। हाफ़िज़ ख़ान की सख़्त, गहरी और वज़नदार आवाज़ में ऐसा दबदबा था कि पूरे हॉल में हर कोई शांत हो गया।
आयान अपने दादा की ओर देखते हुए ठंडी और पक्की आवाज़ में बोला,
"मैं अपनी फैसले लेने के लिए आज़ाद हूँ। मुझे किसी की इज़्ज़त की जरूरत नहीं है।"
हॉल में खामोशी छा गई।
थोड़ा मुस्किल हों रहा है इसलिये पहले अयान की फॅमिली से आपको मिलवाते है
सबसे पहले मिलिये आयान की अम्मी से -फाइज़ा बेगम। वो एक बहुत ही प्यारी और मोहब्बत करने वाली औरत है, जिनकी मुस्कान में अपनापन और गर्माहट झलकती है
आयान के आब्बू अहमद खान दिखने में थोड़े सख़्त, लेकिन दिल से बेहद नर्म।
आयान की छोटी बहन आयशा । बहुत चुलबुली, शरारती और मस्तीखोर। वह हर मौके पर हँसी-मज़ाक करती रहती थी।
आयेशा केवल अपने भाई आयान से डरती है।
आयान के चाचा माजिद खान एक समझदार और शांत स्वभाव वाले इंसान थे।
उनकी पत्नी, चाची रानी, बहुत ही सभ्य औरत
उनका एक बेटा था हाशिर,
हाशिर में थोड़ी मस्ती और नटखटपन भी था, जो घर के माहौल को हल्का बनाता था।
आयान के बड़े पापा और बड़ी अम्मी का इंतकाल पहले ही हो चुका था।
उनका एक बेटा है हैदर,
जिस से हम अयान ओर हुमैरा के निकाह के व्यक्त मिल चुके है
चलिए, कहानी की ओर बढ़ते हैं।
जैसे ही आयान ने कहा, "मैं अपने फैसले लेने के लिए आज़ाद हूँ" यह सुनते ही आयान के दादा गुस्से में आयान की ओर देखकर बोले, “आयान, तुम भूल रहे हो कि हम कौन हैं।"
आयान ने अपने दादा की तरफ देखते हुए शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कहा, "मुझे अच्छे से पता है कि आप मेरे दादा हैं। और मैं आपको बता दूँ कि बेशक़ परिवार में हर निर्णय आपका होता है, लेकिन मेरी ज़िन्दगी में नहीं। मेरी ज़िन्दगी पर सिर्फ़ मेरा हुक्म चलेगा-आयान अहमद खान का।"
"आप तो मेरी शादी की बात सुनते ही घर में कहर ले आए! जब आपको पता चलेगा कि मेरी बेगम कौन है, तो शायद आपको हार्ट अटैक न आ जाए।"
यह सुनते ही हाल में तूफ़ान आने से पहले ही शांति छा गई।
आयान के दादा ने फिर हुमैरा की ओर देखा और अपनी सख्त आवाज़ में कहा, "कौन है ये लड़की?"
आयान ने थोड़ी नरमी के साथ लेकिन दृढ़ता से कहा, "आवाज़ थोड़ी कम करें, दादा शाहब। यह मेरी बीवी हैं- हुमैरा आयान खान। जिस पर कोई उंगली नहीं उठा सकता, और आप अभी आवाज़ उठा रहे हैं।"
यह सुनते ही हुमैरा ने आयान की ओर देखा। वह बहुत डर रही थी। आयान के दादा की ऊँची आवाज़ सुनकर पहले वह आयान के पीछे छुप गई। लेकिन जैसे ही आयान ने कहा, "मेरी बीवी हुमैरा आयान खान है," हुमैरा ने उसकी ओर देखा। यह एक अजीब सा एहसास था जो हुमैरा के अंदर उमड़ रहा था-डर, राहत और गर्व ये केसी फिलिंग थी हुमैरा य़े अभी तो समझ नही पर राही थी
घर में बहस चल ही रही थी, तभी हवेली के बाहर एक कार आकर रुकी। कुछ ही देर बाद एक मुलाज़िम अंदर आया और बोला, "मालिक, सहनवाज़ खान की फैमिली बाहर आई है।"
यह सुनते ही अहमद खान ने हैरानी से कहा, "सहनवाज़ खान, सालों बाद यहाँ!"
आयान मन ही मन सोचने लगा, "लो आ गए ससुराल वाले... अब कहानी में धम-ताना होने वाला है।"
वहीं हुमैरा, जैसे ही अपने अब्बू का नाम सुनती है, अचानक मुड़कर पीछे की ओर देखने लगती है। आयान ने हुमैरा का हाथ कसकर पकड़ लिया, जैसे डर रहा हो कि वह कहीं गायब न हो जाए। हुमैरा चाहकर भी अपना हाथ आयान के हाथ से छुड़ाना चाहती थी, लेकिन आयान की मजबूत पकड़ ने उसे ऐसा करने ही नहीं दिया। हुमैरा के लिए यह पल आसान नहीं था-वो उलझन और डर के बीच फंसी हुई थी, और आयान की पकड़ उसे थामे हुए थी।
आयान के दादा, हाफ़िज़ खान ने कहा, "उन्हें आदब के साथ अंदर लाएँ।"
कुछ ही देर बाद, शहनवाज़ खान की फैमिली अन्दर आयी
शहनवाज़ खान, हुमैरा के अब्बू,
उनके पीछे हुमैरा की अम्मी, ज़ीनत बेगम,
हुमैरा का भाई, शोएब शहनवाज़ खान,
और हुमैरा की छोटी बहन, रिज़ा,
उनसे कुछ दूरी पर खड़ी थी।
हुमैरा की फूफू, रज़िया बेगम, अपनी बेटी सानिया का हाथ थामे हुए थीं।
जैसे ही हुमैरा ने अपनी फ़ैमिली को देखा, वह आयान की ओर मुड़ी और अपनी निगाहों से मानो उससे अपने हाथ को छोड़ देने की मिनतें करने लगी। हुमैरा की आँखों में बेबसी साफ़ झलक रही थी। उसकी निगाहों में वो दर्द देखकर आयान ने उसका हाथ धीरे से छोड़ दिया।
हुमैरा बिना किसी देरी के दौड़ती हुई अपने अब्बू, शहनवाज़ खान से जाकर गले लग गई। आयान की पूरी फैमिली हैरानी से इस नज़ारे को देख रही थी, सबकी आँखों में ताज्जुब था।
हुमैरा अपने अब्बू से लिपटकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। यह देख शहनवाज़ खान ने हुमैरा के सिर पर हाथ रखा और रँधे हुए लहजे में बोले,
"मेरी शहज़ादी की आँखों में आँसू... ये हमसे बर्दाश्त नहीं होगा। हमारी जान!"
हुमैरा ने अपने अब्बू की आँखों में देखा, जो नम हो चुकी थीं। अपनी काँपती हुई आवाज़ में उसने कहा, "अब्बू... हमें माफ़ कर दीजिए। हम डर गए थे... लेकिन अब हम बिल्कुल नहीं रोएँगे। हम तो आपके शेरनी हैं। आपने हमें कभी कमज़ोर पड़ना नहीं सिखाया।"
फिर हुमैरा ने शहनवाज़ खान से थोड़ी दूरी पर अपनी अम्मी, ज़ीनत बेगम, को खड़ा देखा। वह जल्दी से उनके पास गई और उनसे गले लग गई। इस बार हुमैरा की आँखों में आँसू नहीं थे, लेकिन उनकी नज़रों में माँ से जुदाई और तड़प साफ़ झलक रही थी।
इसके बाद हुमैरा अपने भाई और बहन से मिली। शोएब, उसका भाई, हुमैरा को देखते ही उसकी पेशानी को चूमते हुए बोला, "प्रिंसेस... हम आपकी हिफ़ाज़त नहीं कर पाए। हमें माफ़ कर दीजिए। लेकिन अब हम आपसे वादा करते हैं- आपकी मरज़ी के ख़िलाफ़ कोई भी आपको किसी चीज़ के लिए मजबूर नहीं कर पाएगा।"
हुमैरा ने अपने भाई की आँखों में देखा और काँपती आवाज़ में मुस्कुराते हुए बोली, "भाई... आप माफ़ी मत माँगिए। आप तो हमारे हीरो हो न? और हीरो पर कमज़ोरी अच्छी नहीं लगती।"
इसके बाद हुमैरा की नज़र पीछे गई, जहाँ उसकी फूफू, रज़िया बेगम, दरवाज़े पर खड़ी थीं। उन्होंने अब तक हवेली में क़दम तक नहीं रखा था और अपनी बेटी सानिया को भी अंदर नहीं आने दिया था।
यह देखकर हुमैरा ने आवाज़ लगाई, "फूफू... आप अपनी बेटी से नहीं मिलेंगी? आप इतनी दूर क्यों खड़ी हैं?"
यह सुनते ही रज़िया बेगम ने अपने हाथ फैलाए। हुमैरा दौड़कर उनके गले से जा लिपटी। रज़िया बेगम ने उसे चूमते हुए कहा, "तुम्हारे लिए तो, बेटी, हम यह दुनिया भी छोड़ दें। मगर यह हवेली... यह चौखट... यहाँ हमें दर्द के सिवा कभी कुछ नहीं मिला। लेकिन जहाँ तक तुम्हारी बात है, तुम्हारे लिए हम इस हवेली में भी क़दम रख देंगे।"
यह कहकर रज़िया बेगम अंदर चली आईं।
हुमैरा उनकी बात सुनकर कुछ हैरान रह गई। उसके दिल में सवालों का तूफ़ान था, लेकिन इस वक़्त वह उन्हें समझने की हालत में नहीं थी। फिर उसने सानिया की ओर रुख किया और अपनी बहन जैसी कज़न से जाकर मिली।
जैसे ही रज़िया बेगम ने अपने क़दम हवेली के अंदर रखे, यह देख कर आयान की पूरी फैमिली हैरान रह गई। इस हवेली की चौखट जिसे उन्होंने सालों से ठुकराया था, आज उसी पर क़दम रखते देख सबकी निगाहें उन पर टिक गईं।
लेकिन इन सब में जो सबसे ज़्यादा हैरान था, वह था हैदर। उसकी नज़र अनायास ही सानिया की ओर उठी। और न जाने क्या सोचते ही उसकी आँखों में अजीब सा यादों का सैलाब उमड़ आया। वो यादें जो उसने शायद दिल के किसी कोने में दफ़्न कर दी थीं, अचानक ज़िंदा हो उठीं।
शहनवाज़ ख़ान गुस्से से तमतमाते हुए सीधे आयान के सामने आए और बिना एक लफ़्ज़ कहे धाड़ से आयान को एक थप्पड़ जड़ दिया।
ये नज़ारा देख कर वहाँ मौजूद हर शख़्स दंग रह गया। पूरे हॉल में एक दम से खामोशी छा गई, जैसे साँसें थम गई हों। मगर किसी की हिम्मत न हुई बीच में बोलने की।
आयान ने कुछ पल तक अपने चेहरे पर हाथ रखा, फिर अपनी लाल होती आँखों से शहनवाज़ ख़ान की तरफ़ घूरते हुए गरजती आवाज़ में कहा:
"मुझ पर हाथ उठाने की हिम्मत की है आपने... आयान अहमद ख़ान ने आज तक किसी को इतनी इज़्ज़त बख़्शी नहीं। अगर आप मेरी मिस रेड के वालिद न होते, तो आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते कि मैं क्या कर जाता!"
आप मेरी मिस रेड के वालिद न होते, तो आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते कि मैं क्या कर जाता !"
आयान की ये बात सुनकर शुयैब, हुमैरा का भाई, गुस्से से तिलमिला उठा।
वो एकदम आगे बढ़ा, आयान की आँखों में आँखें डालकर बोलाः
"और जो नज़रे हमारी बहन की ओर उसकी मर्जी के बगैर उठी हैं... उन्हें मिटाना भी हम अच्छी तरह जानते हैं!"
इतना कहकर शुयैब ने आयान का कॉलर मज़बूती से पकड़ लिया।
ये नज़ारा देखकर सबके दिल दहल उठे - हवा में गुस्से और टकराव की बिजली कौंध रही थी।
इतने में अचानक हाफ़िज़ ख़ान यानी आयान के दादा की भारी और गूंजती आवाज़ पूरे हॉल में गूंज उठीः
इतने में अचानक हाफ़िज़ ख़ान यानी आयान के दादा की भारी और गूंजती आवाज़ पूरे हॉल में गूंज उठीः
"ये क्या हो रहा है! हम अभी ज़िंदा हैं... और जब तक हम ज़िंदा हैं, इस घर में कोई अपनी हदें पार नहीं करेगा।"
हाफ़िज़ ख़ान के कहने पर शहनवाज़ ख़ान ने अपने बेटे शुयैब को पीछे खींचा, जबकि अहमद ख़ान ने आयान को दूर किया। दोनों घरों के लोग अब एक-दूसरे को आग बरसाती नज़रों से देख रहे थे।
एक वक़्त था जब इन दोनों ख़ानदानों के लोग एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे, और आज का वक़्त ये है कि एक-दूसरे की जान के पीछे पड़े हैं।
एक वक़्त था जब शहनवाज़ ख़ान और अहमद ख़ान को लोग जिगरी दोस्त कहा करते थे, जहाँ एक का नाम लिया जाता था, वहाँ दूसरे का ज़िक्र अपने आप जुड़ जाता था।
दोनों की दोस्ती मिसाल मानी जाती थी।
लेकिन आज का वक़्त देखो - वही दोनों दोस्त अब सिर्फ़ गुस्से की नज़रों से एक-दूसरे को देख रहे थे।
आँखों में मोहब्बत की जगह नफ़रत और तंज की चिंगारियाँ जल रही थीं।
हुमैरा ये सब देख कर अपनी फुफु के गले लग गई, काँपती हुई जैसे पूरे हालात से डर गई हो। उसकी आँखों में हैरानी साफ झलक रही थी।
वो अपनी फुफु की बातों को याद कर रही थी- "इस हवेली से हमें सिर्फ़ दर्द मिला है" - और अब उसी फुफु के कदम हवेली के अंदर थे।
हुमैरा की समझ से बाहर था कि आखिर चल क्या रहा है। उसका दिल तेज़ धड़क रहा था,।
उसके लिए ये सब किसी अधूरे राज़ की तरह था, जहाँ डर, उलझन और हैरानी सब एक साथ उसकी रगों में दौड़ रहे थे।
इधर हफ़िज़ ख़ान की सख़्त और गूँजती हुई आवाज़ पूरे कमरे में भर गई-
"सब शांति से बैठ जाओ!"
शहनवाज़ ख़ान बैठना तो नहीं चाहते थे, लेकिन अपने से बडो की बात टालना उनकी फ़ितरत में नहीं था। उन्होंने एक गहरी नज़र शोएब पर डाली और भारी साँस लेते हुए बैठ गए। बाक़ी सब भी चुपचाप अपनी जगह ले लिए।
हफ़िज़ ख़ान की आँखों में
इशारे पर आयान और हुमैरा को सबके बुलाया।
हुमैरा तो दर रहीं थी प़र उसने अपने आब्बू तरफ देखा जिन्होने हुमैरा को आगे जाने का इशारा किया
माहौल में सन्नाटा पसरा हुआ था। हफ़िज़ ख़ान ने सीधा सवाल किया-
", ये निकाह तुम्हारी मरज़ी से हुआ है?"
ये सुनकर हुमैरा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसकी आँखें डर से बड़ी हो गईं। उस पल उसके कानों में आयान के वही खौफ़नाक अल्फ़ाज़ गूंज उठे-
"अगर तुम मुझसे दूर हुई, तो मैं तुम्हारे अपने सबको तुमसे हमेशा के लिए दूर कर दूँगा।"
उसका गला सूख गया, होंठ काँपने लगे। वो ख़ामोश रही।
हफ़िज़ ख़ान की नज़रें अब आयान पर टिकीं।
आयान ने ठंडी और मज़बूत आवाज़ में कहा-
"हम दोनों ने अपनी मरज़ी से निकाह किया है, हमारी रज़ामंदी थी।"
ये सुनते ही शोएब जैसे आग बबूला हो गया। वो एक झटके में उठ खड़ा हुआ और ज़ोर से चिल्लाया-"ये हो ही नहीं सकता ! मेरी प्रिंसेस मुझे अपनी हर छोटी-बड़ी बात बताती है। मैं मान ही नहीं सकता कि वो आयान को पसंद कर सकती है!"
शोएब तेज़ क़दमों से हुमैरा के पास आया, उसकी आँखों में गुस्सा नहीं, बल्कि बेबसी झलक रही थी। वो काँपती आवाज़ में बोला-
"बोलो प्रिंसेस! तुम्हें किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है। तुम्हारा भाई यहीं है। सच्चाई कहो।"
हुमैरा की आँखें भर आईं। उसने झुकी हुई, काँपती आवाज़ में कहा-
"भाई... आयान सही कह रहे हैं।"
ये सुनते ही शोएब के चेहरे का रंग उड़ गया। जैसे उसके दिल के सौ टुकड़े हो गए हों। उसका सीना तेज़-तेज़ उठने लगा। आँसू उसकी आँखों में तैरने लगे लेकिन गुस्से ने उन आँसुओं को बाहर नहीं आने दिया। वो चीख पड़ा-
"तुम झूठ बोल रही हो ! ये सच नहीं हो सकता! कल तक जो बहन अपनी हर बात मुझसे शेयर करती थी, वो इतनी बड़ी बात मुझसे छुपा ले-ये कभी नहीं हो सकता ! बताओ...
आयान ने तुम्हें धमकाया है न? बोलो प्रिंसेस, सच बताओ!"
दादा साहब ने शोएब को हाथ से इशारा करते हुए सख्ती से कहाः "शोएब! बस करो... शांति से बैठो।"
फिर वो धीरे-धीरे हुमैरा की तरफ़ बढ़े। उनकी आवाज़ में रौब था लेकिन लहजा नरम, "देखो बच्ची, सच बताओ। यहाँ हम सबसे बड़े हैं। यहाँ न आयान और न कोई और तुम्हें डरा सकता है। तुम खुलकर बोलो।"
हुमैरा की आँखें भर आईं। उसने काँपते हुए अपनी नज़रें उठाईं और आयान की तरफ़ देखा। लेकिन उसी पल उसकी पलकें झुक गईं-जैसे दिल ने कुछ और कहा हो और जुबान पर ताले लगे हों।
इतने में रज़िया बेगम, यानी उसकी फूफू, तेज़ क़दमों से हुमैरा के पास आईं। उनकी आँखों में गुस्सा और दर्द दोनों थे। उन्होंने हुमैरा का चेहरा पकड़कर कठोर आवाज़ में कहा:
"तुम शहनवाज़ ख़ान की बेटियाँ हो! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई आयान ख़ान से डरने की? कुछ साल पहले मैंने इस हवेली में सब कुछ खोया था, लेकिन अब तुम्हें मैं रज़िया बनने नहीं दूँगी... समझी?"
रज़िया बेगम की आँखों से आँसू छलक पड़े लेकिन उनकी आवाज़ अभी भी लोहे जैसी मज़बूत थी। उन्होंने हुमैरा का हाथ कसकर पकड़ा और कहा:
"सच बताओ! तुम्हें तुम्हारी फूफू की क़सम है। और अगर अब तुमने झूठ बोला... तो मेरी लाश देखोगी!"
ये सुनते ही हुमैरा का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसकी साँसें अटकने लगीं। उसने काँपती हुई आवाज़ में कहना शुरू किया-
"कल... कल जो हुआ... सबको सच बता रही हूँ..."
और फिर उसने पूरी दास्तान सबके सामने सुना दी-कैसे आयान ने उसकी मरज़ी के बिना उसे निकाह में बाँध लिया।
ये सुनते ही पूरा घर सकते में आ गया। जैसे किसी ने ज़मीन हिला दी हो। सबकी नज़रें एक साथ आयान पर टिक गईं।
फायज़ा बेगम-आयान की अम्मी सीधे बेटे के पास आईं। उनके चेहरे पर दर्द और गुस्से का तूफ़ान था। बिना एक पल गँवाए उन्होंने आयान को लगातार तीन ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिए। थप्पड़ों की आवाज़ पूरे कमरे में गूंज उठी।
फायज़ा बेगम चीखती हुई बोलीं:
"मेरी परवरिश में कहाँ कमी रह गई थी, आयान? बताओ! मैंने तुम्हें हमेशा औरतों की इज़्ज़त करना सिखाया। फिर मेरा बेटा किसी लड़की की ज़िंदगी से कैसे खेल सकता है?"
उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। वो थरथराती आवाज़ में बोलीं:
"बोलो आयान! जवाब दो मुझे... बोलो!!"
आयान ने अपनी अम्मी की तरफ़ देखा। आवाज़ ठंडी और भारी।
"अम्मी... जब मैं पहली बार हुमैरा से मिला, मुझे नहीं मालूम था वो कौन है। बस पहली नज़र में उसने मेरे दिल पर ऐसा असर किया... कि मैं खुद को खो बैठा। उस वक़्त मुझे सिर्फ़ इतना पता था कि मैं उसे खोना नहीं चाहता।"
उसने लंबी साँस ली और पल भर को खामोश हो गया। फिर उसकी आवाज़ में कसक और गुस्सा दोनों उतर आए।
"लेकिन... जब मैंने उसे किसी और लड़के के साथ देखा, अम्मी... तो मैं बर्दाश्त नहीं कर पाया। मेरा खून जल उठा। मैं पागल हो गया। मैं कुछ करना ही नहीं चाहता था, अम्मी, पर उस वक़्त मेरी मोहब्बत मेरी दुश्मनी बन गई।"
उसके शब्दों के साथ कमरे की हवा भारी होती चली गई। सबकी नज़रें आयान पर जमी थीं।
आयान ने सिर झुका लिया और टूटी हुई आवाज़ में बोलाः
"फिर... जब मुझे पता चला कि हुमैरा किस खानदान से है... तो दिल टूट गया। मुझे यक़ीन हो गया कि वो मेरी कभी नहीं हो सकती। अम्मी... मैं कुछ नहीं करना चाहता था... पर मैं अपनी मोहब्बत के हाथों मजबूर हो गया।"
आयान की आँखें हुमैरा पर टिक गईं। उसका चेहरा दर्द और कसक से भरा था।
"मैं सच में मिस रेड से... बहुत मोहब्बत करता हूँ।"
ये नज़ारा वाक़ई दिलचस्प था। आयान अहमद ख़ान... वो शख़्स, जो कभी किसी के सामने झुकना तो दूर, सीधी आँख मिलाने वाला भी नहीं छोड़ता था, आज अपनी ही अम्मी के सामने एक मासूम बच्चे की तरह खड़ा था।
उसकी आँखों में कसूरवार बेटा झलक रहा था, और लहजे में वो मासूमियत... जैसे किसी बच्चे से उसकी सबसे प्यारी चॉकलेट छीन ली जाए और वो रो-रोकर उसे वापस माँग रहा हो।
और वो "चॉकलेट" कोई और नहीं... बल्कि हुमैरा थी। वो हुमैरा, जिसे वो दिलो-जान से चाहता था।
अगर इस वक़्त का ये मंज़र कोई बाहर का देख लेता... तो यक़ीन ही नहीं करता कि ये वही आयान अहमद ख़ान है-जिसके नाम से लोग काँपते हैं, जिसके गुस्से से पूरा शहर थरथराता है।
मगर आयान की मोहब्बत झूठी नहीं थी।
ये उसकी आँखों से, उसकी काँपती हुई आवाज़ से और उसके हर एक अल्फ़ाज़ से साफ़ झलक रही थी।
हुमैरा अपनी जगह ख़ामोश खड़ी थी।
उसके दिल में तूफ़ान था, मगर चेहरे पर सन्नाटा।
आयान की काँपती हुई आवाज़ और उसके अल्फ़ाज़... जैसे सीधे हुमैरा के दिल की गहराइयों को छू रहे थे। एक पल को उसके जिस्म में अजीब सी गर्माहट दौड़ गई, जैसे किसी ने उसे मोहब्बत की चादर में लपेट लिया हो।
लेकिन... अगले ही पल उसकी आँखों के सामने कल का मंज़र घूम गया-आयान की ज़बरदस्ती, उसका डर, उसका बेबसी से चुप रहना।
उसके होंठ काँपे, दिल कसक उठा और आँखों में नमी उतर आई।
उसने हिम्मत जुटाई... और आयान की तरफ़ से अपनी नज़रें फेर लीं।
जैसे अपने दिल को समझा रही हो -
आयान धीरे-धीरे रज़िया बेगम के क़रीब आया।
उसकी आँखों में बचपन की मासूमियत और आज का दर्द दोनों साथ झलक रहे थे।
"आप तो मुझे बचपन से जानती हैं न, बड़ी अम्मी...?"
उसकी आवाज़ में वह बच्चा बोल रहा था, जो हर ज़िद में बड़ी अम्मी की गोद में पनाह पाता था।
"बेशक आप सालों से मुझसे दूर हैं... लेकिन उस वक़्त तो मेरी हर ख़्वाहिश पूरी करने वाली आप ही थीं।"
हुमैरा ने ये लफ़्ज़ सुने तो सन्न रह गई।
"बड़ी अम्मी...?"
उसका दिल जोर से धड़का-आयान और फूफी का रिश्ता क्या है?
सिर्फ हुमैरा ही नहीं, सानिया भी हैरान थी।
वो आयान और उसके खानदान को जानती तक नहीं थी, लेकिन आयान की ज़बान से अपनी माँ के लिए "बड़ी अम्मी" सुनकर वो पत्थर की मूर्ति सी खड़ी रह गई।
आयान की आवाज़ भर्रा गई-
"बड़ी अम्मी... आज भी मेरी एक ही ज़िद है। प्लीज़... मेरी हुमैरा को मुझसे दूर मत कीजिए। मैं उसे सच में अपनी जान से भी ज़्यादा चाहता हूँ।"
रज़िया बेगम ने आयान की तरफ़ एक नज़र डाली-वो नज़र जिसमें मोहब्बत की कशिश नहीं, बल्कि सालों पुराना दर्द और गुस्सा झलक रहा था।
उनकी कड़कती हुई आवाज़ ने पूरे हॉल का सन्नाटा चीर दियाः "सालों पहले... मैंने मोहब्बत की दुआओं और वादों पर यक़ीन करना छोड़ दिया था।
तुम जिस हवेली से हो... वहाँ की हवा में सिवाय धोखे और मजबूरी के कुछ नहीं बहता।"
उन्होंने आयान की आँखों में सीधी नज़र डालकर कहा-"तो बेहतर होगा, आयान अहमद खान... तुम हुमैरा से दूर रहो। समझे?"
इतने में आयान के दादा, बाबा शहाब की गरजती हुई आवाज़ गूंजी-
"ये घर हमारा है... और यहाँ का हर फ़ैसला लेना हमारा इख़्तियार है!"
पूरा हॉल सन्नाटे में डूब गया।
शहनवाज़ खान धीरे-धीरे उठकर बाबा शहाब के सामने आए।
उनकी आवाज़ दर्द से भारी थीः
"सालों पहले... हमने अपनी ही बहन की ज़िंदगी बर्बाद होते अपनी आँखों से देखी थी, बाबा शहाब।
लेकिन अब... नहीं!
अब हम अपनी बेटी के साथ वैसा जुल्म कभी नहीं होने देंगे।"
इतना कहना था कि अहमद खान- आयान के अब्बू-गुस्से से आगे बढ़े।
उनके चेहरे पर गुस्सा साफ़ झलक रहा था।
"भूलो मत शहनवाज़!"
उनकी आवाज़ दीवारों से टकराकर गूंज उठी।
"रज़िया ने... अपनी मर्जी से ये घर छोड़ा था। और तो और... जब भाईजान का इंतिक़ाल हुआ, तब भी वो एक नज़र अपने शौहर का आख़िरी दीदार करने तक नहीं आई थी।"
अहमद खान ने सीधे रज़िया बेगम की ओर उंगली उठाई-"आज तुम इस घर में खड़ी होकर हमें कसूरवार ठहरा रही हो? भूल गईं... इस हवेली से मुँह मोड़ने का फ़ैसला तुम्हारा अपना था!"
ये सुनते ही शाहनवाज़ ख़ान का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा।
उन्होंने गरजती आवाज़ में कहा
"अहमद ख़ान ! मेरी बहन की तरफ़ उंगली उठाने से पहले सौ बार सोच लेना।
तुम्हारे ख़ानदान ने उसे कितने धोखे दिए हैं। और जिस भाई के इंतिक़ाल पर मेरी बहन के ना आने से तुम ताने दे रहे हो... उस भाई का धोखा शायद तुम भूल गए हो! अगर तुम्हें याद नहीं, तो देख लो हैदर की तरफ़ - ये ज़िंदा सबूत, तुम्हारे भाई रशीद का धोका उसकी नजायज़ औलाद
ये सुनते ही हैदर का सर शर्म से झुक गया, उसकी निगाहें ज़मीन पर टिक गईं।
अहमद ख़ान की सख़्त और भारी आवाज़ पूरे कमरे में गूंज उठी
"ख़बरदार शाहनवाज़! अगर तुमने हमारे भाई के बेटे को नजायज़ कहा, तो हमसे बुरा कोई न होगा।"
इतने में रज़िया बेग़म आगे बढ़ीं। उनकी भारी आवाज़ में दर्द और शिकवा साफ़ झलक रहा था -
"आपको ये लड़का, जो आपके भाई की नजायज़ औलाद है, अपनी जान से भी प्यारा है... मगर मेरी बेटी सानिया का क्या?
कभी आपने उसकी तरफ़ नज़र उठाकर भी देखा? बचपन से वो अपने बाप की मोहब्बत को तरसती रही है... और ये सब सिर्फ़ इस हैदर की वजह से ! आपका भाई जितना बड़ा धोखेबाज़ था, उससे कहीं ज़्यादा धोखा तो आप लोगों ने दिया... जिसने मेरे जाते ही इस घर में आपके भाई के नजायज़ रिश्तों को मुझसे और मेरी बेटी से ज़्यादा अहमियत दी!"
अहमद ने रज़िया की तरफ़ देखते हुए भारी आवाज़ में कहा "तुम जानती थीं रज़िया... हैदर अपने अम्मी-अब्बू के इंतिक़ाल के बाद बिल्कुल अकेला रह गया था। बताओ, हम उसे अपने से कैसे दूर कर देते? वो हमारा लहू था... हमारा फ़र्ज़ था उसे अपने पास रखना।"
रज़िया बेग़म ने गहरी नज़रों से अहमद की आँखों में झाँका, उनकी आवाज़ दर्द और शिकवे से काँप उठी -
"तो फिर अहमद भाई... आपने इस लड़के को अपने क़रीब करके मुझे और मेरी बेटी को दूर करना सही समझा? आप तो कहा करते थे ना... कि आप अपने भाई से ज़्यादा मुझसे वाबस्ता हैं, मेरा साथ कभी नहीं छोड़ेंगे। फिर ऐसा बड़ा धोखा कैसे दे गए आप लोग मुझे?"
सालों पुराने राज़ और शिकवे उस वक़्त ज़ख़्म की तरह खुल गए थे।
बरसों बाद सवाल-जवाब की ये घड़ी सामने आई थी... और किसी ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि ये बातें इस तरह बेनक़ाब होंगी।
सानिया एक तरफ़ खड़ी थी, उसका जिस्म काँप रहा था। आज जो सच उसने सुना, उसने उसकी रूह तक हिला दी। उसकी अम्मी और अब्बू की जुदाई... उसका टूटा हुआ घर... सबकी जड़ एक ही शख़्स था - हैदर।
सानिया की आँखों में आंसू थे, मगर वो रो न सकी। उसका दिल सख़्त हो चुका था। नज़र जैसे ही हैदर पर पड़ी, अंदर से नफ़रत का सैलाब उमड़ आया।
हैदर ने जब सानिया की वो ठंडी, नफ़रत भरी नज़र देखी तो उसके सीने में दर्द उठा।
लेकिन सानिया के लिए अब ये मायने नहीं रखता था कि हैदर बेक़सूर है या नहीं। उसके लिए बस इतना ही काफ़ी था कि अगर हैदर न होता, तो रशीद और रज़िया बेग़म कभी जुदा न होते।
जब भी सानिया, हुमैरा और शाहनवाज़ ख़ान के दरमियान बाप-बेटी वाली मोहब्बत देखती, तो उसके दिल में कसक उठती। उसे अपने अब्बू की याद बड़ी शिद्दत से आती थी। वो सोचती "काश मेरे पास भी वो साया होता, जो मुझे इस तरह अपने गले से लगा लेता... काश मेरे बचपन की तन्हाई को कोई भर देता..."
उसे लग रहा था कि उसके बचपन का हर ज़ख़्म, उसकी हर तन्हाई, उसकी हर कसक का असली कसूरवार बस हैदर ही है।
आज उसे एहसास हो रहा था कि अगर हैदर न होता, तो शायद उसका बचपन भी मासूमियत और मोहब्बत से भरा होता... शायद उसके पास भी वो साया होता, जिसे देखकर वो खुद को अधूरा महसूस न करती।
इतने में अयान के दादा हाफ़िज़ ख़ान की भारी और गूंजती हुई आवाज़ आई।
सानिया अपनी सोच से बाहर निकली।
हाफ़िज़ ख़ान ने कहा
"बेशक हमारा बेटा अब हमारे दरमियान नहीं है, उसकी आख़िरी निशानी हमसे दूर रही, मगर हमारी निगाहें हमेशा उस पर रही हैं।
हम हमेशा उसकी हिफ़ाज़त करते आए हैं।
ये वक़्त पुराने गिले-शिकवे निकालने का नहीं है... ये वक़्त है हुमैरा और अयान की ज़िंदगी के फैसले करने का।"
यह सुनते ही शाहनवाज़ ख़ान बोले -
"ये निकाह मेरी बेटी हुमैरा की मरज़ी से नहीं हुआ! और हम हुमैरा को यहाँ से ले जा रहे हैं। खुला के काग़ज़ भी भिजवा दिए जाएँगे।"
ये सुनते ही अयान बेक़ाबू-सा होकर शाहनवाज़ ख़ान के सामने आ खड़ा हुआ। उसकी आँखों में ज़िद साफ़ झलक रही थी।
अयान ने कहा -
"आप मेरी बीवी को मुझसे दूर नहीं ले जा सकते ! और अगर कोशिश भी की... तो मैं क्या कर जाऊँगा, इसका अंदाज़ा भी आप नहीं लगा पाएँगे।
(वो हुमैरा की तरफ़ बढ़ा और उसके क़दमों में बैठ गया।)
"सिर्फ़ एक मौका... सिर्फ़ एक मौका चाहता हूँ मैं!
उसके बाद अगर आप यहाँ से जाना चाहेंगी तो मैं आपको कभी नहीं रोकूँगा।
निकाह में हो आप मेरी... बिना मुझे एक मौक़ा दिए, आप यहाँ से नहीं जा सकतीं, हुमैरा।"
ये शायद पहली बार था जब अयान ने हुमैरा को सीधे उसके नाम से पुकारा था।
अब तक वो हमेशा उसे "मिसेज़ रेड", "मेरी बीवी" या "मेरी बेग़म" कहकर बुलाता आया था।
लेकिन आज जब उसके होंठों से नर्म लहजे में निकला "हुमैरा..."
तो हुमैरा का दिल अजीब-सी धड़कन से भर उठा।
उसके सीने में हलचल सी होने लगी।
ये एहसास नया था... अनजाना था... और गहरा भी।
गुस्से, खौफ़ और बेबसी के बीच भी उसके दिल में एक नर्म-सी चुभन और अनकही फ़ीलिंग पैदा हो गई।
हुमैरा की जुबान जैसे बंद हो गई थी। वो कुछ कह नहीं पा रही थी।
बस अपनी नमी-नमी आँखों से शाहनवाज़ ख़ान की तरफ़ मुड़ी... और चुपचाप निगाहों ही निगाहों में उनसे सवाल करने लगी "मैं क्या करूँ अब्बू...?"
शाहनवाज़ ख़ान ने एक गहरी नज़र अयान पर डाली। फिर धीमे लहजे में बोले
"ठीक है। हुमैरा तुम्हें एक मौक़ा देंगी।
मगर याद रहे अयान... अगर मेरी शहज़ादी को ज़रा-सा भी दर्द पहुँचा... तो ये शाहनवाज़ ख़ान भूल जाएगा कि तुम कौन हो।"
हॉल में सन्नाटा छा गया।
शाहनवाज़ ख़ान ने गहरी सांस लेकर सबके सामने ऐलान किया
"आज से तीन महीने बाद ये बैठक दुबारा होगी। और अगर उस दिन हुमैरा यहाँ से जाना चाहेगी... तो अयान, तुम उसे रोक नहीं सकोगे। बल्कि तुम्हें उसे तलाक़ देनी होगी।"
ये सुनते ही अयान की आँखों में गुस्से की चिंगारी भड़क उठी। "तलाक़... कभी नहीं।" उसने मन ही मन सोचा। "तीन महीने... तीन महीने बहुत हैं। इस दौरान मैं 'मिस रेड' को अपने प्यार के आगे झुकने पर मजबूर कर दूँगा।"
लेकिन अगले ही लम्हे उसने अपने ही ख़यालात सुधारे -"नहीं... अब मैं miss red को मजबूर नहीं करूँगा। मगर उससे ये ज़रूर करवा दूँगा कि वो अपने दिल से मुझे चाहने लगे।"
ये सुनते ही शोएब, शाहनवाज़ ख़ान के सामने आकर गुस्से में बोला
"अब्बू! आप ऐसे कैसे कर सकते हो? मेरी प्रिंसेस अभी बहुत छोटी है... और उसे एक अजनबी ख़ानदान में कैसे छोड़ सकते हैं? इस मजबूरी के रिश्ते में वो कैसे रह पाएगी? मैं उसे अकेला इस इंसान के साथ नहीं छोड़ सकता!"
अयान ने शोएब की तरफ़ देखते हुए ठंडी आवाज़ में कहा
"तुम भूल रहे हो शोएब शाहनवाज़... तुम्हारी बहन अब मेरे निकाह में है। मैं उसका मेहरम हूँ।"
शोएब ने अयान की आँखों में गहराई से देखा और चुनौती भरे लहजे में बोला
"क्या गारंटी है कि इन तीन महीनों में ये इंसान मेरी बहन को कोई नुक़सान नहीं पहुँचाएगा? मुझे इस पर भरोसा नहीं है।"
अयान आगे बढ़ा और उसकी ओर देखते हुए कहा
"गारंटी चाहिए तुम्हें...?"
शोएब ने बिना झिझक के जवाब दिया -
"हाँ! बहन के बदले बहन।"
ये सुनते ही अयान का खून खौल उठा। aayan kuch kahta us se phle holl me ek or awaz aayi
Ye awaz thi hashir ki
हाशिर (अयान का चाचा मजीद का बेटा) भी गुस्से से चीख पड़ा
"अगर मेरी बहन का नाम भी जुबान पर लिया तो, शोएब... तुझे ज़िंदा नहीं छोडूंगा!"
Hashir or ayesha sage bhai behan nahi the par hashir or ayesha bachpan se hi sage bhai behan ki tarah hi rahe hai or hashir apne bade papa ki beti ayesha se beinteha behno waki mohabbat karta hai
शोएब ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा
"मेरा कुछ बिगाड़ सको इतनी तुम्हारी औक़ात नहीं है। और रही बात तुम्हारी बहन की... तो याद रखो, दुश्मन की बहन भी हमारे लिए बहन ही होती है। शोएब शाहनवाज़ इतना गिरा हुआ नहीं कि किसी की बहन पर ग़लत नज़र डाले। बहन... बहन होती है, ये हम अच्छे से जानते हैं।"
वो पलटकर बोला
"अगर हमारी बहन यहाँ रहेगी... तो अयान अहमद ख़ान की बहन हमारे साथ जाएगी।"
ये सुनते ही अयान की बहन आयशा कुछ पल के लिए सन्न रह गई।
सारा हॉल खामोश हो गया।
तभी अयान की अम्मी, फ़ाइज़ा बेगम ने अपनी सख़्त आवाज़ में कहा
"हमें मंजूर है। हमारी बेटी आयशा आज से तीन महीने तुम्हारे साथ रहेगी। लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि तुम में से कोई भी उसे कभी नुक़सान नहीं पहुँचाएगा।"
शोएब ने सिर झुका लिया और गहरी आवाज़ में बोला
"शोएब शाहनवाज़ अपनी बात का पक्का है। मैं आपकी बेटी को अपनी बहन की जगह ले जा रहा हूँ। उसकी इज़्ज़त का पूरा ख़याल रखा जाएगा। हमारे खून में गद्दारी नहीं है। बहन के बदले बहन ले जा रहा हूँ... और वादा करता हूँ कि तीन महीने बाद आपकी बेटी सही-सलामत आपके घर होगी।"
ये सुनते ही आयशा ने एक नज़र हैदर की ओर डाली।
आयशा बचपन से ही हैदर को पसंद करती थी, लेकिन हैदर ने कभी उसकी इस फ़ीलिंग की तरफ़ ध्यान नहीं दिया।
उसकी आँखों में आँसू थे, दिल में हज़ारों सवाल... मगर अगले ही पल उसने अपने दिमाग़ को काबू में किया और सिर झुकाकर अपनी अम्मी के फ़ैसले का सम्मान किया।
हैदर जानता था कि आयशा उसी को देख रही है। वो आयशा की फ़ीलिंग्स से अच्छी तरह वाक़िफ़ था।
बचपन से ही उसे एहसास था कि आयशा का दिल उसी के लिए
धड़कता है... मगर हैदर ने खुद को हर रिश्ते से दूर कर रखा था। पूरे घर में वो सिर्फ़ अयान से बातें करता था, बाक़ी किसी से ज़्यादा बोलचाल नहीं रखता।
हवेली में रहते हुए भी उसने खालीपन की दीवार अपने चारों तरफ़ खड़ी कर ली थी।
हैदर ने मन ही मन कहा
"आयशा... दिल तो चाहता है तुम्हें रोक लूँ, अपनी बाँहों में छुपा लूँ...
मगर हक़ जताने का हक़ कभी पाया ही नहीं।
मैं तो एक सूखी वीरान ज़मीन हूँ... और तुम उस पर खिला हुआ नाजुक फूल।
अगर तुम मेरी तरफ़ बढ़ीं... तो तुम्हारी ज़िंदगी में सिर्फ़ कांटे और दर्द भर दूँगा।
मैं ये गुनाह कैसे करूँ कि तुम्हारी मासूम मुस्कान मेरी उदासियों की क़ैदी बन जाए?
नहीं... मैं तुम्हें चाहकर भी अपना नहीं बना सकता। तुम्हारी खुशियाँ मेरी मोहब्बत से कहीं ज़्यादा क़ीमती हैं।"
फिर हाफ़िज़ ख़ान ने उठकर कहा
"तो तय रहा... आज से तीन महीने बाद हुमैरा से पूछा जाएगा कि वो क्या चाहती है। और हमारी बेटी आयशा तब तक उनके घर रहेगी। दोनों ख़ानदान... दोनों बेटियों का पूरा ख़याल रखेंगे।" or dono bachi kuch apni family se bat nahi karengi taki wo in kuch waqt me ek naye parivar me acjust ho sake ye hidayat humera beta apke liye jyda hai kiuki aayesha ko to loot kar yuhi ana hai par ye apka sasural hai dil se ek bar apne is naye parivar ko apnane ki koshish jarur kijiyenga hame umid hai ki ap hamri is bat ka man rakhengi...
ये कहकर हाफ़िज़ ख़ान आयशा के पास आए। उनकी आँखों में मोहब्बत और फ़ख़ दोनों झलक रहे थे।
उन्होंने नर्मी से कहा
"हमें फ़ख़ है अपनी इस बेटी पर... जो अपनी माँ के एक कहने पर अनजान घर जाने को तैयार हो गई।
मगर बेटा, तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नहीं। जहाँ तुम जा रही हो, वो ख़ानदान अजनबी ज़रूर है... लेकिन हमारा उनसे पुराना नाता रहा है।
बेशक आज दुश्मनी है, मगर हमें यक़ीन है कि वो लोग तुम्हें कोई नुक़सान नहीं पहुँचाएँगे।"
आयशा ने आँसू रोकते हुए अपनी पलकों को झुका लिया और धीमी आवाज़ में बोली
"जी दादा शाहाब..."
आयशा का दिल इस वक़्त बस एक ही आवाज़ सुनना चाहता था... और वो आवाज़ थी हैदर की। उसने दिल ही दिल में
फुसफुसाया-
"काश... एक दफ़ा तुम मुझे आवाज़ दो, हैदर। क्या तुम्हें मुझे एक अंजान घर भेजते वक्त ज़रा सा भी डर नहीं लगता? तुम्हारा दिल मेरे लिए क्यों कोई गवाही नहीं देता..."
हाशीर आयशा के पास आया, उसकी आँखों में हल्की si nami थी, पर आवाज़ में थोड़ी सख़्ती भी थी-"Ae chipkali... तू ऐसे कैसे यहाँ से दूर जाने को मान गई? Ek bar bol de... tu nahi jaana chahti?"
आयशा chidte हुए बोली-
"Ae chamkadar... khabardaar! जो तूने मुझे chipkali कहा! Tujhee lagta hai... main apni marzi ke bina kahi jaungi?
Bilkul nahi!"
Fir hashir bola matalb tu sach me ja rahi hai
आयशा मुस्कुराई और आँखों में हल्की nami लिए बोली-
"Hashir bhai... main janti hoon ek anjan ghar 3 mahine rehna hai... lekin me khud ye karna chahati hu kiya pata mere door jane se haider ko meri kami mehsoos ho jayee...
Aayesha haider ko psnd karti hai ye bat sirf hashir janta tha
हाशीर ने उसकी तरफ़ देखते हुए हल्के ढंग से थपकी दी और
मुस्कुराया-
"Bas... apni smartness aur bravery ka dhyan rakhna, chipkali. Aur yaad rakhna... main hamesha yaha hoon, chahe door bhi hoon par tera ye bhai hamesha tere sath hai...
आयशा की आँखों में छोटी सी नमी और प्यार की चमक थी।
उसने धीरे से कहा-
"Main ja rahi hoon... lekin tum jaante ho... mera dil hamesha yaha hai... tumhare saath." Or suno meri almari se kuch bhi utha kar apni wo gandi gandi dikhne wali girlfriend ko kuch dena mat wrna me tumhara sir fod dungi smjhe or sabka khayal rakhna or meri chachi ko jyda preean mat karna
Hashir ne aayesha ka mata chuma or kaha acha hua ye log tumhe le ja rahe kuch time to me ghar me sukoon se rahunga
तभी आयन आयशा के पास आया। उसकी आँखों में गहरी गंभीरता और आवाज़ में sakhti थी, पर उसमें छुपा प्यार साफ़ झलक रहा था। उसने बोला-"तुम आयन अहमद खान की बहन हो, आयशा। याद रखो... तुम्हें किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है। Tum jab chaho, hum tumhare paas honge. Samjhi?"
आयशा ने उसकी तरफ़ देखते हुए हल्की मुस्कान दी
उसने धीरे से कहा-
"भाई, मुझे पता है... main jaanti hoon. Agar main patal mein bhi chali jaaun... to bhi aapke bodyguards mera peecha nahi chhodenge.
फिर आयशा और हुमैरा दोनों अपनी-अपनी फ़ैमिली से गले मिलीं।
दुआओं और आँसुओं के साथ हुमैरा के घरवाले आयशा को अपने साथ लेकर निकल पड़े।
उधर हुमैरा के दिल में एक अजीब-सी बेक़रारी थी। आज का तूफ़ान उसके लिए बहुत बड़ा था। उसकी नज़रों के सामने सब कुछ उलझा हुआ था। उसने एक नज़र पूरे ख़ानदान पर डाली... और फिर उसकी नज़रें अयान से जा मिलीं।
अयान ख़ामोश खड़ा था, मगर उसकी आँखों में हुमैरा के लिए एक गहरी मोहब्बत साफ़ झलक रही थी।
अयान ख़ामोश खड़ा था, मगर उसकी आँखों में हुमैरा के लिए एक गहरी मोहब्बत साफ़ झलक रही थी।
तभी दादा शाहाब (बाबा शाहाब) की मज़बूत आवाज़ गूंजी -"फ़ाइज़ा बहू... आज से अयान की बीवी का ख़याल रखने की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है।"
ये कहकर वो अपने कमरे की तरफ़ चले गए।
एक-एक करके बाक़ी सब भी अंदर चले गए।
फ़ाइज़ा बेगम हुमैरा को अपने कमरे में ले आईं।
उन्होंने बड़ी नर्मी और मोहब्बत से अपने हाथों से हुमैरा को खाना खिलाया।
हुमैरा हैरान थी कि एक अनजान घर में भी कोई औरत उसे इतनी मोहब्बत से अपना बना सकती है।
दिन भर की हलचल और थकावट के बाद शाम के सात बज चुके थे।
Faiza begam ने कहा "हुमैरा, अब तुम आराम करो।"
हुमैरा पलंग पर लेट गई।
फ़ाइज़ा बेगम उसके सिर पर प्यार से हाथ फेर रही थीं...
और हुमैरा को नींद ने अपनी आगोश में ले लिया।
इधर आयशा, जो शहनवाज़ ख़ान की फैमिली के साथ आई थी, उसे गेस्ट रूम में लाया गया।
हुमैरा का घर भी अयान के घर से छोटा नहीं था, इसलिए आयशा को वहाँ किसी तरह की परेशानी महसूस नहीं हुई।
हाँ, उसके दिल में थोड़ी बेचैनी थी...
फ़िर ayesha अपना बेग ढूँढने लगी जो आते वक़्त आयेशा नें गाड़ी मे रखवाली थी आयेशा को कपड़े बदलने थे, मगर वो यहाँ किसी को जानती नहीं थी, इसलिए किससे कहे यही सोच रही थी।
तभी उसके कमरे में हुमैरा की अम्मी, ज़ीनत बेगम आईं।
उन्होंने एक नौकर को बुलाकर आयशा का बैग कमरे में रखवाया और नर्मी से बोलीं -
"तुम्हें अगर कुछ भी लगे तो तुम हमे आवाज दे देना हमारा kamra साइड मे ही है..
ये कहकर ज़ीनत बेगम पीछे मुड़ीं ही थीं कि आयशा ने उनका हाथ पकड़ लिया।
आयशा की आँखों में सच्चाई झलक रही थी, उसने भावुक होकर कहा
"आंटी... आप हुमैरा भाभी के लिए परेशान हो ना?
लेकिन अब चिंता मत कीजिए। वहाँ वो बिल्कुल सुरक्षित हैं। वहाँ मैरी अम्मी हैं, जो उन्हें कभी अकेला महसूस नहीं होने देंगी... चाची हैं, जो बहुत नेक और मोहब्बत करने वाली हैं... और अयान भाई भी हैं।
मैंने पहली बार उनकी आँखों में सिद्दत वाली मोहब्बत देखी है।
देखना, हुमैरा भाभी हमेशा खुश रहेंगी।"
ये सुनते ही ज़ीनत बेगम, जिन्होंने अब तक अपने आँसू रोके हुए थे, पलटकर आयशा से गले लग गईं और फूट-फूटकर रोने लगीं। उनकी आवाज़ में नर्मी और दर्द मिला हुआ था। वो कहने लगीं "मेरी बच्ची कभी मुझसे दूर नहीं रही... वो बहुत मासूम है। मैं उसे छोड़ तो आई हूँ... मगर एक माँ का दिल ही जानता है कि आज मैं कितनी बेचैन हूँ।"
आयशा ने उनके आँसू पोंछते हुए कहा
"आंटी... आप मत रोइए, प्लीज़। मुझे आपको रोता देखना अच्छा नहीं लगता।"
ज़ीनत बेगम ने आयशा की ओर देखा, उसके सिर पर प्यार से हाथ रखा और बोलीं
ज़ीनत बेगम ने आयशा की ओर देखा, उसके सिर पर प्यार से हाथ रखा और बोलीं "मैं तुम्हारे लिए खाना भेज देती हूँ... तुम खाना खाकर आराम करना।"
Aayesha ne man hi man kaha bhabi ki ammi to bahut pyari hai
दूसरे दिन सुबह का वक़्त था। हुमैरा अभी भी फ़ायज़ा बेगम के कमरे में सोई हुई थी। रात को आयान वहीं आया था, मगर जब उसने हुमैरा को गहरी नींद में पाया तो ख़ामोशी से वापस अपने कमरे चला गया।
सुबह जब फ़ायज़ा बेगम कमरे में दाख़िल हुईं तो उन्होंने अपनी बहू को मासूमियत से सोता हुआ देखा। वो मोहब्बत से मुस्कुरा उठीं और नर्मी से हुमैरा के सर पर हाथ फेरा। हुमैरा नींद में ही बड़बड़ाई - "अम्मी... बस पाँच मिनट और... फिर उठ जाऊँगी..."
ये सुनकर फ़ायज़ा बेगम की आँखों में ममता और गहराई भर आई। उन्होंने हौले से कहा "उठ जाओ बेटा, अब सुबह के आठ बज गए हैं... यहाँ सब लोग नौ बजे नाश्ता साथ करते हैं। अब तुम भी इस ख़ानदान का हिस्सा हो। अभी तुम पर कोई ज़िम्मेदारी नहीं है, लेकिन धीरे-धीरे इस घर को अपना समझने की कोशिश करना।"
हुमैरा ने जैसे ही आँखें खोलीं, झेंपते हुए उठ बैठी। सामने अम्मी जैसी शफ़क़त से भरी फ़ायज़ा बेगम को देख कर वो नर्म आवाज़ में बोली -
"I'm sorry ... मुझे पता ही नहीं चला कि ये आप है"
फ़ायज़ा बेगम ने हुमैरा के सर पर शफ़क़त से हाथ रखा और नरम लहजे में बोलीं
"कोई बात नहीं बेटा... तुम मेरे लिए बिलकुल मेरी अपनी बेटी आयशा जैसी ही हो।"
ये सुनते ही हुमैरा की आँखें नम हो गईं। उसने झिझकते हुए कहा
"लेकिन... मेरी वजह से आप अपनी बेटी से दूर हो गई हैं ना?"
फ़ायज़ा बेगम ने मुस्कुराते हुए सर ना में हिलाया और बोलीं
"नहीं ... तुम भी मेरी अपनी औलाद जैसी हो। और रही बात आयशा की... तो वो तो शैतान की नानी है ! देखना, पूरे घर वालों को एक-एक कर परेशान करेगी।"
हुमैरा ने हैरत से उनकी तरफ़ देखा, तो फ़ायज़ा बेगम हल्के हँसी में बोलीं -
"मगर मुझे उसकी टेंशन नहीं है। वहाँ रज़िया आपा हैं... तुम्हारी फूफ़ी। चाहे वो माने या न माने, लेकिन आयशा की बड़ी अम्मी हैं । और जिस तरह उन्होंने आयान कों बचपन में मोहब्बत की थी... मेरा दिल जानता है, उसी तरह आयशा से भी बेहिसाब मोहब्बत करेंगी।"
फ़ायज़ा बेगम ने जाते-जाते हुमैरा के हाथ में कुछ कपड़े रखे और मुस्कुराकर कहा
"बेटा, तैयार होकर नीचे आना... सब नाश्ता इंतज़ार कर रहे होंगे।"
ये कहकर वो कमरे से निकल गईं।
उधर आयशा जो सुबह आठ बजे ही उठ चुकी थी, आज उसे अपनी अम्मी की बहुत याद आ रही थी। वो खामोशी से दिल ही दिल में बुदबुदाई -
"अम्मी... आप तो मुझे रोज़ इसी वक़्त जगाया करती थीं, मगर आज देखो... मैं बिना आपके जगाए ही उठ गई। लेकिन आप... आप यहाँ नहीं हो।"
इतने में कमरे में हल्की सी आहट हुई। एक नौकरानी ने आकर कहा
"बीबी, आपको नीचे नाश्ते पर बुलाया है...
आयशा ने जल्दी से कपड़े सँवारे और नीचे चली गई। वहाँ डाइनिंग टेबल पर सब लोग चुपचाप बैठे हुए थे,
मगर किसी की नज़र किसी से नहीं मिल रही थी। जैसे ही आयशा होल में आयी, उसने सबको सलाम किया और पास की खाली कुर्सी पर जाकर बैठ गई।
यह देखकर सानिया का चेहरा तमतमा उठा। वो गुस्से से टेबल से उठ खड़ी हुई।
रज़िया बेगम ने रोकते हुए कहा
"सानिया, बैठ जाओ!"
मगर सानिया तुनक कर बोली
"अम्मी, मुझे उस घर के हर इंसान से नफ़रत है... मैं कमरे में जा रही हूँ।"
रज़िया बेगम की आवाज़ सख़्त हो गई
"कोई कहीं नहीं जाएगा... सब ख़ामोशी से नाश्ता करेंगे।"
टेबल पर एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। सब लोग चुपचाप खाना खाने लगे। सानिया की नज़रें बार-बार आयशा पर टिक जातीं, मगर आयशा बिल्कुल बेअसर रही। आख़िर वो आयान अहमद ख़ान की बहन थी... इतनी आसानी से कोई उसे परेशान कर ले, ये नामुमकिन था।
नाश्ते के बाद सब अपने-अपने कामों में लग गए।
उधर आयान के घर में भी नाश्ते के टेबल प़र सब थे। फ़ायज़ा बेगम ने हुमैरा को आयान के ठीक बग़ल वाली कुर्सी पर बिठाया। पूरे वक़्त आयान की नज़रें बस हुमैरा पर ही जमी रहीं।
नाश्ते के बाद जब सब उठे तो हुमैरा चुपचाप फ़ायज़ा बेगम के पीछे-पीछे चल दी। यह देखकर आयान हैरत में पड़ गया। कल तक हुमैरा उसकी अम्मी को जानती भी नहीं थी, और आज... आज तो ऐसे चिपक गई थी जैसे बरसों का नाता हो। सबसे अजीब बात ये थी कि हुमैरा ने एक बार भी आयान की तरफ़ नज़र नहीं डाली।
आयान धीरे-धीरे किचन में दाखिल हुआ। वहाँ फ़ायज़ा बेगम और हुमैरा ओर अयान कि चाची हिना मौजूद थीं।
आयान ने चुपचाप अपनी अम्मी की तरफ़ नज़र डाली, फिर हल्की सी झिझक के साथ बोला "अम्मी... मेरी बीवी को मेरे कमरे में भेज दीजिए... एक कप चाय के साथ।"
ये कहते हुए उसकी आवाज़ में हुक्म भी था और एक अनकहा डर भी। वो बिना रुके, बिना अपनी अम्मी का जवाब सुने ही बाहर निकल गया।
असल में आयान को डर था... कहीं अम्मी "ना" न कह दें।
आयान की चाची, हिना बेगम, ने हुमैरा की तरफ़ देख कर नरमी से कहा
"बेटा, बेफ़िक्र रहो। ये रिश्ता तुम्हारे लिए वाक़ई मुश्किल है, लेकिन बिना मौक़ा दिए पीछे हटना ग़लत होगा। और जहाँ तक आयान की बात है... जितना बुरा तुम उसे समझ रही हो, वो उतना बुरा नहीं है।"
हुमैरा ने हल्की झिझक के साथ फ़ायज़ा बेगम की तरफ़ देखा।
फ़ायज़ा बेगम ने उसकी तरफ़ ममता भरी नज़रों से देखा और पलकों के इशारे से उसे हामी दी। हुमैरा ने सर झुकाकर चुपचाप चाय बनाई और ट्रे उठाकर किचन से बाहर चली गई।
जैसे ही हुमैरा गई, हिना बेगम ने फ़ायज़ा बेगम की तरफ़ देखते हुए कहा
"बाजी, हम तो हुमैरा को अपनी बेटी की तरह मोहब्बत दे रहे हैं... लेकिन हमारी आयशा का क्या?"
दरअसल, हिना बेगम की कोई बेटी नहीं थी। अल्लाह ने उन्हें सिर्फ़ एक बेटा, हाशिर दिया था। दिल में हमेशा एक बेटी की ख़्वाहिश रही, मगर तक़दीर ने ये नेमत नहीं दी। इसी वजह से जब आयशा इस दुनिया में आई, तो हिना बेगम ने उस पर माँ की तरह बेहिसाब मोहब्बत लुटाई।
तीनों बच्चे-आयान, आयशा और हाशिर-सब बराबर थे, हिना बेगम के लिए कोई फरक नहीं था। आयान बचपन से ही कम बोलने वाला और शांत स्वभाव का था, जबकि आयशा हमेशा हिना बेगम के करीब रही, उनके स्नेह और ममता की छांव में पलती रही। हाशिर भी बराबर का हिस्सा था, मगर हिना बेगम की नजरों में तीनों का प्यार बराबर बंटा हुआ था।
इस तरह, चाहे आयशा की असली अम्मी फ़ायज़ा बेगम हों या चाची हिना, मोहब्बत और अपनापन हर जगह बराबर था। तीनों बच्चों के दिलों में हिना बेगम के लिए गहरा प्यार और सम्मान था,
बेशक, घर में एक और बच्चा था हैदर। हैदर बचपन से ही सबसे अलग और दूर रहने वाला था। वह किसी से ज़्यादा बात नहीं करता था। जब भी फ़ायज़ा बेगम या हिना बेगम उसके पास आतीं, हैदर उनसे बात तक नहीं करता। धीरे-धीरे हैदर सभी से दूर होता गया। उसके लिए सिर्फ़ बड़ा भाई आयान ही भरोसे और बातचीत का ज़रिया था।
कुछ सालों बाद हैदर को बोर्डिंग स्कूल भेजना पड़ा। घर के लोग उसे भेजना नहीं चाहते थे, मगर हैदर की यह ज़िद थी कि वह वहां पढ़ना चाहता है। आखिरकार, घर के सभी सदस्यों को उसकी इस इच्छा को मानना पड़ा और हैदर को बोर्डिंग स्कूल भेज दिया गया।
इस तरह, हैदर का बचपन ख़ामोशी से बीता और बाकी घर के माहौल से वह धीरे-धीरे दूर होता गया।
Vartman samay me
Faiza begam ne hina begam ko jawab diya tum to janti ho apni chulbuli shehzadi ko hame aayesha ke liye nahi shahanawaz bhai ki family ke liye darna chahiye aayesha unki nak me dum kar dengi...
Ye sunte hi hina begam thora muskura di
हुमैरा नहीं जानती थी कि आयान का रूम कौन सा है। वह डर और झिझक के साथ इधर-उधर देख रही थी। अचानक, वह किसी से टकरा गई। हाथों में रखी चाय गिरने से बची और उसने ऊपर नजर उठाकर देखा।
वहाँ हासीर खड़ा था, जो हुमैरा को घूर रहा था। हुमैरा ने झिझकते हुए उससे पूछा -
"भाई, क्या आप बता सकते हैं कि आयान jii का रूम कौन सा है?"
हासीर गुस्से में बोला
"मेरी बहन आज यहाँ नहीं है आपके वजह से, और आप उम्मीद करती हैं कि मैं आपकी मदद करूँ?"
दरअसल, हासीर कल से ही बहुत गुस्से में था, जब आयशा यहाँ से गई थी। बेशक आयशा हासीर की सगी बहन नहीं थी, प़र hashir ओर ayesha की ऐज सैम थी ओर दोनों बचपन से साथ थे और दोनों अक्सर लड़ते-झगड़ते रहते थे लेकिन, चाहे कितनी ही लड़ाई हो, बचपन से ही हासीर और आयशा एक-दूसरे के क्राइम पार्टनर की तरह थे। हमेशा साथ रहते,
हैदर वहीं से जा रहा था। वैसे तो हैदर कभी घर के किसी मसले में बोलता नहीं था, लेकिन हासीर को इस तरह चिल्लाते देख उसने अपनी सख्त आवाज़ में कहा
"हासीर! क्या तुम अपनी तमीज़ भूल गए हो? दुबारा इसी लहज़े में bhabi ammi से बात मत करना, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
हासीर, जो हैदर को घर के मामलों में बोलते देख रहा था, हैरान रह गया। जैसे ही उसने सुना कि हैदर हुमैरा के लिए ऐसा कह रहा है, उसकी आँखें फैल गईं।
दरअसल, हैदर कभी घर वालों से बात नहीं करता था, रिश्ते भी बहुत कम बनाए रखता था। और अब, वही हैदर, अपनी सख़्ती और तेज़ आवाज़ में हुमैरा के लिए खड़ा हो गया था-उसके लिए यह पल जैसे किसी ख्वाब से कम नहीं था।
फिर हैदर ने अपनी नज़रों को झुका कर हुमैरा की ओर देखा और धीमे, मगर सख्त लहजे में कहा
"ऊपर से तीसरा फ़्लोर पूरा भाई का है। आप वहीं चली जाइए।"
हुमैरा ने सर झुकाया और चुपचाप ऊपर की ओर बढ़ गई। कदम कदम पर उसके दिल में हल्की घबराहट थी,
हुमैरा आयान के कमरे के सामने खड़ी हुई और थोड़ी झिझक रही थी। पाँच मिनट तक वहीं खड़ी रही, दिल की धड़कनें तेज़ हो रही थीं। फिर हल्की सी हिम्मत जुटाकर उसने दरवाज़ा खटखटाई।
अंदर से आयान की आवाज़ आई
"मिस रेड, अंदर आईए।"
यह सुनते ही हुमैरा का दिल जोर से धड़कने लगा। धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए वह अंदर आई। उसके हाथ कांप रहे थे,
आयान ने हुमैरा के हाथों से चाय का कप लिया और एक ही बार में पी गया। फिर अपनी हस्की वॉइस में बोला "मिस रेड, मुझे चाय थोड़ी गरम पसंद है। अगली बार दरवाज़े के बाहर पाँच मिनट खड़ी होकर इंतज़ार मत कीजिए, सीधे अंदर आ जाइए। आप मेरी बीवी हैं, मेरा हक़ है कि आप मेरे कमरे में बिना इज़ाज़त आएं। बल्कि, ये कमरा अब आपका भी है, ध्यान रहे।"
Aayan ne fir kaha to miss red hamra room kesa hai bataiye
कमरा वाकई बहुत खूबसूरत था। दीवारें हल्के ऑफ-व्हाइट और ग्रे रंग के मिलाप में रंगी हुई थीं, जो कमरे को शांत और आरामदायक अहसास दे रही थीं। बड़ी खिड़कियों से रोशनी सीधे कमरे में आती और हल्की हवा का झोंका पूरे कमरे को ताजगी और सुकून से भर देता।
पर्दे मुलायम और हल्के कपड़े के थे, जो कमरे को खुला और हल्का महसूस करवा रहे थे। फर्नीचर साधारण पर बेहद खूबसूरत था-लकड़ी और हल्के रंगों का संगम, जो सादगी और सौंदर्य का perfect balance बना रहा था।
बेड के ऊपर हल्का ग्रे हेडबोर्ड था, और उसके बगल में छोटे और simple लैंप थे, जो कमरे को cozy और आरामदायक बनाते थे। कमरे के एक कोने में study table और chair रखी थी, जो स्टाइलिश भी दिखती थी और इस्तेमाल में भी सुविधाजनक थी।
हुमैरा थोड़ी देर बस कमरे की सुंदरता और सादगी में खोई रही। दिल में हल्की खुशी और हैरत दोनों थी। यह कमरा बिल्कुल उसकी पसंद का था-सादा, elegant
यह पूरा फ्लोर ही आयान का था। यहाँ किसी को आने की इजाज़त नहीं थी।
हुमैरा ने मन ही मन सोचा – “हमारी पसंद शायद बिल्कुल मिलती है... पहले निकाह के कपड़े, फिर खजूर, फिर वह चेन, और अब यह कमरा।"
फिर हुमैरा ने धीरे से आयान की ओर देखते हुए कहा "यहाँ सब सही है, सिवाए मेरे... "
आयान ने हुमैरा की ओर देख कर गहरी आवाज़ में कहा "तुम दिल से मुझे एक मौका नहीं दे सकती क्या?"
हुमैरा ने डर और मजबूरी के साथ आयान की ओर देख कर जवाब दिया
"क्या आपने मुझसे मेरी मर्जी पूछी थी निकाह के वक़्त?"
आयान गुस्से में हुमैरा के पास आया और ज़ोर से कहा
"अब तुम मानो या नहीं, शरीक-ए-हयात हो मेरी, और अब तुम्हें इस आयान अहमद खान से कोई जुदा नहीं कर सकता।"
हुमैरा थोड़ी डर गई, पर फिर भी उसने आयान की आँखों में झांकते हुए जवाब दिया -
"आप भूल रहे हैं... मैं अपने अब्बू की शहज़ादी हूँ, मैं आपसे नहीं डरती।"
हुमैरा थोड़ी डर गई। जैसे ही उसने दो कदम आगे बढ़ाए, उसका दुपट्टा सोपै के कोने में फँस गया। उसे लगा कि वह अब गिर जाएगी। डर के मारे उसने तुरंत अपनी आँखें बंद कर ली।
पर उसे यह पता नहीं था कि आयान अहमद खान के होते हुए, अब हुमैरा कभी गिर नहीं सकती
हुमैर ने झिझकते हुए आयन की तरफ़ देखा, फिर धीरे-धीरे उससे दूर होने की कोशिश की।
लेकिन आयन ने उसे और कसकर पकड़ा और गंभीर, लेकिन हल्के मुस्कुराहट भरे लहजे में बोला-"बुरी बात है, Miss Red... अगर कोई आपकी मदद करे, तो आपको उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए। Chalo, आप न कहो तो मैं khud apna shukriya le लेता हूँ।”
इतना कहते ही आयन हुमैर के करीब आया और उसके गालों को हल्के से चूम लिया।
हुमैर ने जैसे ही ये महसूस किया, उसकी आँखों में अनजाने में आंसुओं की झलक सी आ गई। दिल की धड़कन तेज़ हो गई, और वह खुद को संभाल नहीं पा रही थी। उसकी साँसें तेज़, और दिल जैसे उसके काबू में ही नहीं था।
फिर आयन ने धीरे से हुमैर को छोड़ दिया। हुमैर, कुछ संभलते हुए, जल्दी से आयन के कमरे से बाहर भाग गई। उसके कदम तेज़ और दिल की धड़कन अनियंत्रित थी। वह खुद भी समझ नहीं पा रही थी कि ये कैसी उलझन थी, ये कौन-सी फीलिंग थी जो उसके अंदर अचानक उठ गई थी।
हुमैर के मन में कशमकश चल रही थी-एक ओर आयन की नज़दीकी और सुरक्षा का एहसास, तो दूसरी ओर उसकी अपनी तसल्ली और डर। दिल में हल्का सा डर, हल्की सी घबराहट, और साथ ही anjani si felling...
हुमैर नीचे की ओर तेज़ कदमों से भाग gayi
Aayan ne ye dekh man hi man kaha aaj jis insan se door ja rahi ho miss red loot kar is aayan ahmed khan ke pas hi aungi tum...
Ye rista chahe tumhari margi se nahi baana par sadiyo se tum sirf meri thi
Tum jab mujhe mili thi me nahi janta tha tum kon ho par bina jane hi meri mohabbat mujhe ahsas kara chuki thi tum meri apni ho or jab jana tumhe to pata chala tum to bachpan se meri hi amanat thi akhir milna toh tumhe mujhse hi tha ye kah kar aayan thora muskuraya or apne kam me lag gya
जैसे ही हुमैरा नीचे उतरी, अचानक हैदर से टकरा गई।
हैदर ने हल्की चौंकते हुए कहा-
Are you okey...?
Aap thik hai na apko kahi lagi to nahi bhabi ammi...
Humera ne jawab diya yes I'm okey...
हुमैर ने झट से सिर झुकाया और किचन की ओर बढ़ी। दिल में हल्की घबराहट और बेचैनी थी,
Fir usse dyan aaya कि इन दिनों हैदर सिर्फ़ उसी और आयन से ही बात करता था।
Ghar ki kisi bhi insan se haider bat karte kbhi nazar nahi aaya
हुमैर किचन में आई। उसने थोड़ी देर फ़ायज़ा बेगम और हीना बेगम से बात की। दोनों कुछ काम निपटाकर किचन से बाहर चली गईं। हुमैर अब किचन में अकेली aapne liye coffe bana rahi थी।
इसी समय अहमद शाहाब अंदर आए। हुमैर ने उन्हें देखकर कहा-"आपको कुछ चाहिए?"
अहमद शाहाब ने गंभीर आवाज़ में कहा- faiza kaha hai hame chai pini thi
वो बाहर जाने ही वाले थे कि हुमैर ने जल्दी से जवाब दिया-"मैं बना देती हूँ,
अहमद शाहाब ने कहा-
"नहीं, तुम्हें परेशानी उठाने की ज़रूरत नहीं है। hamne tumse kuch kam kaha or pata chala tumhare khandan ne ham par tumhe presan karne ka ilzam laga diya हम फ़ायज़ा को देख लेंगे, या किसी मुलाज़िम को कह देंगे।"
इतना कहकर वह बाहर चले गए।
Humera ye sun kar thora dard se boli ajib hai is parivar ke log koi itni mohabbat krta hai ki jan nishar karne ko tyar rahta or koi itni nafrat ki ek chai ke liye bhi tana mar ke chala gaye...
दस दिन बीत चुके थे, और हुमैर अभी भी फाइज़ा बेगम के साथ उनके कमरे में ही सोती थी। हाँ, दिनभर में अयान उसे दस बार अपने कामों से अपने कमरे में बुला लिया करता था, लेकिन हुमैर अब भी अयान से ज्यादा बात नहीं करती थी; वह सिर्फ उसके सवालों का जवाब देती थी।
धीरे-धीरे पूरी फैमिली हुमैर के साथ घुलमिल गई थी। हुमैर इतनी प्यारी और आदाब वाली थी बस एक हाशीर ही था, जो हुमैर से बिल्कुल बात नहीं किया करता था।
हुमैर सुबह उठ कर फाइज़ा बेगम के साथ नाश्ते बनाने में उनकी मदद कर रही थी। बेशक हुमैर को अभी ज्यादा कुछ बनाना नहीं आता था, पर जितना वह कर सकती थी, उतना वह फाइज़ा बेगम की मदद कर रही थी। जबकि हिना बेगम और फाइज़ा बेगम हमेशा उसे किचन का काम करने से मना करते थे।
कुछ देर बाद सभी डाइनिंग टेबल पर बैठे थे। हुमैर ने हफिज़ खान की तरफ देखते हुए कहा, "दादा शाहब, तीन दिन बाद से मेरा कॉलेज शुरू हो जाएगा। मैं अपना कॉलेज दुबारा शुरू करना चाहती हूँ।"