______________ Anvita's POV___ “दो मिनट में तुम मर जाओगे।” जिस आदमी की मौत का वक्त मैं ने अभी-अभी बताया था, उस ने एक स्ट्रिपर की गर्दन से चेहरा हटा कर मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैं कोई झंझट या पूरी तरह पागल हूँ। सब मुझे वैसे ही देखते थे… और फिर हमेशा मर... ______________ Anvita's POV___ “दो मिनट में तुम मर जाओगे।” जिस आदमी की मौत का वक्त मैं ने अभी-अभी बताया था, उस ने एक स्ट्रिपर की गर्दन से चेहरा हटा कर मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैं कोई झंझट या पूरी तरह पागल हूँ। सब मुझे वैसे ही देखते थे… और फिर हमेशा मर जाते थे, बिना इस बात पर पछताए कि उन्होंने मेरी बात को सीरियस क्यों नहीं लिया। या शायद उन्हें पछतावा ठीक उस सेकंड में होता था, जब गोली उन के सिर में घुसती थी और उन की ज़िंदगी बह कर निकल जाती थी। “तू कौन है, कमीनी?” उस ने पूछा, उस का लहजा गाढ़ा था। उस की आँखों में घिन साफ झलक रही थी, जब कि डिस्को लाइट्स बारी-बारी से हरी, लाल और नीली चमक रही थीं। “मैं?” मैं मुस्कुरा दी, क्योंकि मुझे हमेशा लगता था कि मरने वाले को आख़िरी पल में खुश चेहरे देखने का हक है। “अन्विता। लेकिन कुछ लोग मुझे मौत की दूत कहते हैं।” उस की कंचे सी काली आँखें चौड़ी हो गईं। हर किसी की आँखें वैसे ही हो जाती थीं, जब उन्हें अहसास होता था। “मौत की दूत?” मैं ने सिर हल्का तिरछा किया। अपनी कलाई पलटी और ब्लैक वॉच पर नज़र डाली, फिर वापस उस की ओर देखा। “तुम तीस सेकंड में मरोगे।” उस ने स्ट्रिपर को इतनी ताक़त से धक्का दिया कि वो दूसरे क्लबर से जा टकराई, जिसे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उस की रात अब बर्बाद होने वाली है। “छोडूंगा नहीं!” वो पूरी ताक़त से दहाड़ा और बिजली की रफ़्तार से खड़ा हो गया। वो अपनी जेब से कुछ निकालने ही वाला था कि तभी एक ज़ोरदार धमाका हुआ। कमरा सन्नाटे में डूब गया। गर्म छींटे मेरे चेहरे पर बिखर गए और फिर ज़मीन पर गिरते शरीर की आवाज़ गूँजी। क्लब में अफरातफरी मच गई। चीखें, धक्का-मुक्की और लोगों के बेतहाशा भागते कदमों की आवाज़। ये किसी आम क्राइम सीन जैसा नहीं था। ये माफ़िया गैंगवार का हिस्सा था—और दस मिनट में यहाँ से लाश का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा। मैं ने नीचे उस की ओर देखा।
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Anvita's POV___
“दो मिनट में तुम मर जाओगे।”
जिस आदमी की मौत का वक्त मैं ने अभी-अभी बताया था, उस ने एक स्ट्रिपर की गर्दन से चेहरा हटा कर मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैं कोई झंझट या पूरी तरह पागल हूँ। सब मुझे वैसे ही देखते थे… और फिर हमेशा मर जाते थे, बिना इस बात पर पछताए कि उन्होंने मेरी बात को सीरियस क्यों नहीं लिया। या शायद उन्हें पछतावा ठीक उस सेकंड में होता था, जब गोली उन के सिर में घुसती थी और उन की ज़िंदगी बह कर निकल जाती थी।
“तू कौन है, कमीनी?” उस ने पूछा, उस का लहजा गाढ़ा था। उस की आँखों में घिन साफ झलक रही थी, जब कि डिस्को लाइट्स बारी-बारी से हरी, लाल और नीली चमक रही थीं।
“मैं?” मैं मुस्कुरा दी, क्योंकि मुझे हमेशा लगता था कि मरने वाले को आख़िरी पल में खुश चेहरे देखने का हक है। “अन्विता। लेकिन कुछ लोग मुझे मौत की दूत कहते हैं।”
उस की कंचे सी काली आँखें चौड़ी हो गईं। हर किसी की आँखें वैसे ही हो जाती थीं, जब उन्हें अहसास होता था। “मौत की दूत?”
मैं ने सिर हल्का तिरछा किया। अपनी कलाई पलटी और ब्लैक वॉच पर नज़र डाली, फिर वापस उस की ओर देखा। “तुम तीस सेकंड में मरोगे।”
उस ने स्ट्रिपर को इतनी ताक़त से धक्का दिया कि वो दूसरे क्लबर से जा टकराई, जिसे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उस की रात अब बर्बाद होने वाली है।
“छोडूंगा नहीं!” वो पूरी ताक़त से दहाड़ा और बिजली की रफ़्तार से खड़ा हो गया। वो अपनी जेब से कुछ निकालने ही वाला था कि तभी एक ज़ोरदार धमाका हुआ। कमरा सन्नाटे में डूब गया। गर्म छींटे मेरे चेहरे पर बिखर गए और फिर ज़मीन पर गिरते शरीर की आवाज़ गूँजी।
क्लब में अफरातफरी मच गई। चीखें, धक्का-मुक्की और लोगों के बेतहाशा भागते कदमों की आवाज़। ये किसी आम क्राइम सीन जैसा नहीं था। ये माफ़िया गैंगवार का हिस्सा था—और दस मिनट में यहाँ से लाश का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा।
मैं ने नीचे उस की ओर देखा। उस की आँखें अब भी खुली थीं और माथे के बीच से खून रिस रहा था। “आत्मा को शांति मिले।”
मैं ने नाम नहीं लिया, क्योंकि मुझे कभी उन के नाम जानने की परवाह नहीं होती थी। मेरे लिए बस उन के चेहरे की तस्वीर काफ़ी थी। शायद इस से बार-बार मौत बाँटने का बोझ थोड़ा हल्का लगता था।
और सच कहूँ तो, जिन-जिन को मैं ने मौत सुनाई थी, चौदह साल की उम्र से अब तक—उन में कोई मासूम नहीं था। ज़्यादातर तस्कर, नशा बेचने वाले, बलात्कारी या कातिल थे। किसी न किसी तरह, सब अपने अंजाम के लायक थे।
लेकिन मैं भी उन से बहुत अलग नहीं थी।
भले मैं ने कभी किसी को अपने हाथों से नहीं मारा, लेकिन क्रिमिनल्स से जुड़ कर मेरे हाथ भी खून से सने थे।
यही वो दुनिया थी जिस में मैं पैदा हुई थी—एक ऐसी दुनिया जहाँ इंसानी खून बहाना शादियों और पार्टी में जानवर काटने से ज़्यादा अलग नहीं माना जाता था। एक ऐसी दुनिया जहाँ मैं सिर्फ मौत की दूत थी, मर्दों को बहकाने वाली… और किसी दिन अपने पापा, धनतेज प्रवल के लिए एक सौदे का औज़ार। वो गोवा की क्राइम फैमिली का खूनी सरगना था—और मैं उस की बेटी। उस की इकलौती बेटी।
मैं ने उस आदमी की निस्तेज लाश के पास रखी गोल टेबल से व्हिस्की उठाई, अपने लिए एक पैग डाला।
बाहर से फिर एक धमाका सुनाई दिया। मैं ने आराम से अपना पैग गटक लिया और गले में उठती जलन को महसूस करते हुए पल भर का सुकून लिया।
“अन्विता!” दूर से पापा के राइट हैंड, विभव की आवाज़ आई। उस की आवाज़ में बेचैनी थी। बाहर चीखें और गोलियों की गूँज सुन कर साफ था कि हालात गड़बड़ होने वाले हैं। लेकिन मेरी दुनिया में हालात तो हमेशा ही गड़बड़ रहते थे।
मैं ने खुद के लिए एक और पैग डाला और फिर दूसरे हाथ से उस आदमी की आँखें बंद कर दीं और बाहर निकलने को मुड़ी।
तभी मेरी नज़र उस से टकराई। खून जमाने वाली, बर्फ़-सी नीली आँखें। मेरी साँस थम गई और जिस्म जैसे पत्थर हो गया। मैं धीरे से हाँफ गई। अभय शेरावत बस बारह कदम दूर खड़ा था। चेहरे पर स्याह शिकन, दोनों हाथ सूट की जेबों में—जिस का रंग मैं क्लब की मंद रोशनी में साफ़ नहीं देख पाई।
उस की ऊँचाई दूर से ही डरावनी थी। मुझे यक़ीन था कि पास खड़ा होने पर वो मुझ से कहीं ऊपर होगा। मेरी नज़र अनायास ही उस के सीने और चौड़े कंधों पर गई। उस का गठीला और मज़बूत शरीर देख कर यक़ीन करना मुश्किल था कि वो चालीस साल का है।
और उस का चेहरा—मैं भूल ही नहीं सकती थी। मेरे परिवार के दुश्मन का चेहरा।
मैं उस से पहले कभी नहीं मिली थी, लेकिन पापा के ऑफिस में उस की कई तस्वीरें लगी थीं और वो न्यूज़ में कई बार आ चुका था, अपनी मशहूर व्हिस्की ब्रांड की वजह से—वही व्हिस्की, जिसे मैं तीन मिनट पहले पी चुकी थी। वो गोवा के सब से बड़े क्लबों का मालिक होने के लिए भी मशहूर था।
दूसरे शब्दों में, उसे गोवा का एक अमीर बिज़नेसमैन माना जाता था।
मेरे होंठों से लगभग हँसी फूट ही पड़ी, क्योंकि इस दुनिया में हम ही जानते थे कि वो असल में क्या था—अँधेरे से भरा हुआ, गंदा, नीच और खून चूसने वाला। मेरे बाप… और मुझ से ज़रा भी अलग नहीं था।
जब मैं ने आज का काम करने के लिए हामी भरी थी, मुझे पता था ये उस का ही क्लब है—हालाँकि मेरे पास कोई और चारा भी नहीं था। अपने पापा के बेरहम अहंकार को किनारे रख दूँ, तो भी मैं यहाँ इसलिए आई थी क्योंकि मुझे ये जानना था कि क्या ये कमीना(लाश) सचमुच उतना ही अजर-अमर है जितना लोग कहते हैं।
अभय की आँखें अब भी मुझ पर टिकी थीं—दूर से मुझे परखने की कोशिश करती हुईं। जैसे वो जानता था कि मैं कौन हूँ और सतर्क हो गया था। उस की निगाह मेरे चेहरे से सीने तक गई, फिर मेरे पूरे जिस्म पर घूमी। उस की आँखों में ऐसी आग थी कि जिस हिस्से पर भी ठहरती, वहाँ जलन-सी महसूस होती। सच कहूँ तो उस पल मुझे लगा कि उस से भिड़ने की बजाय उस के साथ चिपक जाना ही आसान होगा।
लानत है! लगता है मेरा दिमाग वाकई खराब हो गया है! इतनी ज़्यादा उम्र के बंदे की ओर खिंच रही हूं?
⋙ (...To be continued…) ⋘
मैं ने अपनी जाँघों के बीच छिपी हुई .45 निकाली—जान-बूझ कर थोड़ा हौलेपन और अदा के साथ, ताकि अभय का ध्यान भटक सके, जब कि मेरी नज़रें उस की आँखों से टस से मस न हुईं। वो बेहद चालाक आदमी था—अगर मैं ज़रा भी नज़रें हटाती तो पता नहीं क्या कर डालता।
मेरे होंठों पर हल्की शैतानी मुस्कान तैर गई जब मैं ने उस घातक हथियार को उठा कर सीधा अभय की ओर तान दिया। तभी उस का एक आदमी अंदर आया। उस ने बंदूक निकाली और मेरी ओर तानी, लेकिन अभय ने लापरवाही से हाथ हिला कर इशारा किया और उस ने गन नीचे कर ली।
क्या वो मुझे उकसा रहा था? क्या उसे लगता था कि मैं उसे मारने की हिम्मत नहीं करूँगी? वो आखिर सोच क्या रहा था? मैं ने चेतावनी देने के लिए पिस्टल हिलाई, लेकिन उलटा असर हुआ। वो मेरी तरफ़ बढ़ने लगा।
मेरे हाथ काँपने लगे। पिस्टल अचानक बहुत भारी लगने लगी। एक ठंडी सनसनाहट दिमाग तक चढ़ गई और उस के हर कदम के साथ मुझे अपने कानों में ही धड़कनों की गूंज सुनाई देने लगी।
ये ठीक नहीं हो रहा। मैं ट्रिगर क्यों नहीं दबा पा रही?
उस की मौजूदगी इतनी दबंग और डरावनी थी कि जैसे वो अपने आसपास की हर चीज़ पर कब्ज़ा कर रहा हो—मुझ पर भी।
मेरे पाँव पीछे हटने को बेचैन थे, लेकिन मैं ने खुद को रोका। मैं उसे हरगिज़ नहीं दिखाना चाहती थी कि उस का मुझ पर इतना असर है!! मुझे नफ़रत हो रही थी कि इस बेरहम अपराध-सम्राट की मौजूदगी मुझे इतना तोड़ रही है। अगर मेरे बाप, धनतेज प्रवल को इस का अंदाज़ा हो गया तो वो मुझे कोसते-कोसते शैतान तक पहुँचा देंगे।
मेरे दिमाग़ का तूफ़ान अभी थमा भी नहीं था कि मेरी गन किसी कठोर चीज़ से जा लगी। अब मेरे और अभय शेरावत के बीच बस मेरी तनी हुई बाँह और वो .45 थी।
अभय के जबड़े की मांसपेशियाँ फड़कीं। उस की आँखों में आग दहक रही थी और गर्दन की नसें उभर आई थीं।
“क्या चाहती हो, लड़की?” उस की आवाज़ गहरी थी, लहजा बेहद रुखा और घना—ठीक वैसा ही जैसा उस आदमी का था, जिस का खून कुछ मिनट पहले मेरे चेहरे पर बिखरा था। फर्क बस इतना था कि इस आवाज़ में वो तीखापन था जो मेरी धड़कनों को और तेज़ कर रहा था।
मैं सोच क्या रही थी? मैं गोवा के सब से खतरनाक अपराध सरगना के सामने खड़ी थी और फिर भी मेरे दिमाग में इंद्रधनुष और भारी आवाज़ वाले इफ़ेक्ट्स घूम रहे थे। खुद को सँभाल, अन्विता।
“अगर तुम ने एक कदम भी और बढ़ाया, तो मैं गोली मार दूँगी।” मैं ने कहा। और मैं सचमुच ऐसा ही करने को तैयार थी। भले मुझे अपने हाथ खून से रंगने से नफ़रत थी, लेकिन मारे जाने से अच्छा था मार देना।
और हमारे इस खूनी संसार में, मौत हमेशा रहम मानी जाती थी—उस यातना से बेहतर, जिस में औरतों को अगवा कर, नशा दे कर, बार-बार उन की सहमति के बिना इस्तेमाल किया जाता था। और जितना मैं ने सुना था, अभय शेरावत जैसा आदमी और भी बहुत कुछ कर सकता था।
वो कुछ कहने ही वाला था कि तभी किसी ने हमारी तरफ़ गोली चला दी—उस का दिमाग़ बस एक इंच से बचा। हम दोनों झुक गए। मैं ने नज़र दौड़ाई तो देखा कि शूटर कोई और नहीं बल्कि विभव था।
अभय ने सूट की जेब से कुछ निकालने की कोशिश की। मैं ने उस के हाथ पर लात मारी और भागने लगी, लेकिन उस के मज़बूत, गर्म हाथों ने मेरी टाँग पकड़ ली। घबराहट में मैं ने दूसरी टाँग से उसे लात मारनी चाही, लेकिन उस ने उसे भी जकड़ लिया और इतनी तेज़ी से अपनी तरफ़ खींचा कि मेरी .45 ज़मीन पर गिर गई।
विभव और बाकी लड़के तभी फायरिंग रोक गए जब उन्होंने देखा कि मैं पकड़ ली गई हूँ। अभय ने मुझे कस कर अपनी बाहों में लपेट लिया था। ये सही वक़्त तो नहीं था, लेकिन उस के जिस्म की गरमाहट मेरे होश उड़ा रही थी। उस की मिट्टी जैसी खुशबू मेरी नाक में घुल गई—मेरे दिमाग़ ने उस के परफ्यूम की परतें खोलना शुरू कर दीं: चंदन की लकड़ी, पचौली और गुलाब की लकड़ी।
“लड़की को छोड़ दो,” विभव ने भारी आवाज़ में कहा। वो लंबा-चौड़ा आदमी था, उस का बहुत बड़ा पेट और घुँघराले काले बाल थे।
“क्यूँ छोड़ूँ?” अभय ने पूछा। उस की आवाज़ की ठंडक ने मेरी रीढ़ में सिहरन भर दी, “तुम ही लोग तो मेरे इलाक़े में घुसे हो।”
“मुझे ले लो, लड़की को छोड़ दो।”
“नहीं!” मैं ने सिर हिलाया– “नहीं…ऐसा मत…”
“अब तुम मेरी हो,” अभय गरजा।
“जब तक मैं न कहूँ, तुम मुँह नहीं खोलोगी।” उस की पकड़ मेरी गर्दन पर कस गई। फिर उस ने विभव की तरफ़ देखा— “अपना हथियार नीचे रखो।”
मैं ने दोबारा सिर हिला कर विभव को इशारा किया कि बंदूक मत गिराना। वो कुछ पल हिचकिचाया, लेकिन फिर धीरे-धीरे अपनी बंदूक़ ज़मीन पर रख दी।
“अच्छा। अब बताओ, किस के लिए काम करती हो, लड़की? प्रवल?”
“ये नाम कभी नहीं सुना,” मैं ने झूठ बोला। पापा ने हमेशा कहा था कि ऐसे हमलों में राज़ छुपाना ही सब से बड़ी जीत है। उन के शब्दों में—चाहे मैं मर ही क्यों न जाऊँ, बस इतना होना चाहिए कि हमारे परिवार और दुश्मनों के बीच खुला युद्ध न छिड़े। मरना मंज़ूर था, पर उन्हें धोखा देना नहीं। यहाँ तक कि उन की बेटी को भी माफ़ी नहीं मिलती।
“एक बात समझ लो, मैं तुम दोनों को जिंदा जाने नहीं दूंगा।”
आगे जो हुआ उस के लिए मैं तैयार नहीं थी। न कोई चेतावनी, न धमाका। बस एक धप्प और फिर ख़ून, जो विभव के सीने से फैलने लगा। उस की आँखों से ज़िंदगी धीरे-धीरे गायब हो गई।
मैं हमेशा सोचती थी कि विभव अमर है—ठीक पापा और इस अपराध सम्राट की तरह जिस ने अभी मेरी गर्दन को लोहे की तरह जकड़ा हुआ था। मैं चीखना चाहती थी, चिल्लाना चाहती थी, पर उसे ज़मीन पर खून में लथपथ देखते ही मेरी सारी ताक़त जैसे खत्म हो गई थी।
“याद रखना,” अभय ने भारी स्वर में कहा– “अगली बार जब मैं तुम्हें देखूँगा, तो वो तुम्हारी मौत का दिन होगा।”
मैं ने सिर हिलाते हुए आँसुओं को रोक लिया था—वो आँसू जो विभव के लिए थे—और मन ही मन अभय शेरावत से कहा।
अगली बार जब मैं तुम्हें देखूंगी तो वो तुम्हारी मौत का दिन होगा!
⋙ (...To be continued…) ⋘
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Abhay's POV___
औरतों को मारने में मुझे कभी परेशानी नहीं हुई। वजह सीधी है—मेरे दुश्मनों का कोई जेंडर नहीं होता।
लेकिन अब तक किसी औरत ने इतनी हिम्मत नहीं की थी कि मेरे ऊपर बंदूक़ तान दे। और वो नन्ही सी लड़की, जिस की पीठ मेरे सीने से सटी हुई थी, ऐसा करने वाली पहली थी।
उस ने सिर्फ़ बंदूक़ ही नहीं तानी, मुझे लात मार कर गिराने की भी कोशिश की।
सिर्फ़ इस सोच से कि मैं ने उस की लात खाई, मेरी नसों में एड्रेनालिन दौड़ गया। मैं ने अपनी बाहें उस की पतली गर्दन पर और कस दीं, उसे ये चेतावनी देते हुए कि ज़रा सी ग़लत हरकत की तो साँसें रोक दूँगा।
उस के लंबे बालों से स्ट्रॉबेरी और लैवेंडर की खुशबू आ रही थी, जो कमरे में फैली शराब, मौत और बारूद की बदबू पर भारी पड़ रही थी। मैं ने उस के बाल अपनी हथेलियों में लपेट कर पीछे खींचे, जितना दर्द दे सकूँ उतना दिया।
वो मेरी पकड़ में सख़्त हो गई, शायद डर को छुपाने की कोशिश कर रही थी जो उस की काँपती टाँगों से साफ़ झलक रहा था। मैं सोच रहा था, क्या ये मन ही मन मुझे कोस रही है या कसम खा रही है कि मुझे मारेगी?
उस का ऐसा सोचना अजीब नहीं होता—भले ही उस के बचने के चांस उतने ही कम थे जितने मेरे उस के जिस्म से खेल कर उसे तोड़ देने के।
“जाओ,” मैं उस के कान में भर्राई आवाज़ में फुसफुसाया– “उसे बता देना कि मैं आ रहा हूँ।”
वो संभल कर दो क़दम पीछे हटी, जैसे अब भी भरोसा नहीं था कि मैं सचमुच उसे जाने दे रहा हूँ। और वो सही थी—मैं कभी किसी को ऐसे ही नहीं छोड़ता था। कम से कम मेरे नाम की कोई याद तो रहनी ही चाहिए।
“रुको!”
वो विभव के सामने ठिठक गई। मैं ने उसे तुरंत पहचान लिया था—धनतेज प्रवल का सब से भरोसेमंद आदमी।
और बेशक, सिर्फ़ धनतेज ही इतना दुस्साहसी हो सकता था कि मेरे लोगों को मारने की कोशिश करे। मैं समझ गया था, ये संदेश है—कि मैं गोवा में अपनी पकड़ छोड़ कर उसे सत्ता सौंप दूँ। जब से मैं अठारह की उम्र में माफिया का मुखिया बना था, वो मेरे पीछे पड़ा था। वो मुझ से बस दस साल बड़ा था, पर उसे लगता था कि मैं गोवा पर राज करने के लिए बहुत छोटा हूँ। उस के हिसाब से या तो मैं गठबंधन कर उस का सेवक बनूँ, या फिर कुर्सी छोड़ दूँ।
लेकिन शेरावत खानदान में कभी किसी ने प्रवल परिवार को पावर नहीं सौंपी थी और मैं भी ऐसा नहीं करने वाला था।
मेरे चाचा—भगवान उन की आत्मा को शांति दे—कुछ और ही चाहते थे। लालच में आ कर उन्होंने धनतेज प्रवल से हाथ मिला लिया, ताकि मुझे गिरा कर उस कमीने को गद्दी थमा दे।
मेरे पास कोई और चारा नहीं बचा था सिवाय इस के कि अपने ही चाचा के टुकड़े-टुकड़े कर डालूँ और उस की लाश का संदेश उन सब को भेजूँ जिन्होंने हिम्मत की थी मुझे गिराने की।
धनतेज प्रवल भी उन आदमियों में से एक था जिसे मैं ने अपने ‘स्पेशल ह्यूमन-लिंब पैकेज’ भेजे थे। उस के बाद कुछ साल तक उस ने खामोश रह कर अच्छे बच्चे जैसी हरकत की, मगर हाल ही में वो फिर से मेरी टांग पर चढ़ने लगा था। उस गंदे चूहे को जल्दी ही रास्ते से हटाना ज़रूरी था।
क्योंकि विभव यहाँ मौजूद था, मुझे पूरा यक़ीन था कि ये लड़की भी किसी न किसी तरह से धनतेज से जुड़ी है। मैं ने सुना था कि उस की मरी हुई बीवी से उसे एक बेटी हुई थी, लेकिन कुछ ही हफ़्तों बाद ख़बर फैल गई कि बच्ची भी माँ के साथ मर गई। और ये लड़की धनतेज से ज़रा भी नहीं मिलती थी, तो दोनों के रिश्तेदार होने की संभावना बेहद कम थी।
धनतेज लम्बा-चौड़ा, दुबला मगर दरिंदा-सा आदमी था, जिस के बाल और आँखें दोनों काले, उस की आत्मा जितने।
जब कि लड़की औसत क़द की थी, बाल तो काले ही मगर आँखों का रंग ग्रे और उसके कर्व्स साफ़ बताते थे कि वो डाइटिंग करने वालों में से नहीं थी। उफ़! वो कर्व्स!!!
उस की ब्लैक स्लिट ड्रेस जिस तरह उन पर चिपकी हुई थी, मेरा ध्यान बुरी तरह भटका रही थी। मैं गिन नहीं सकता कि कितनी बार मैं ने दिमाग़ में सोचा था उसे बार-काउंटर पर पलट कर, ड्रेस ऊपर खींच कर, उस का सारा नशा उतार देने का।
लेकिन अभी मेरे आदमी की लाश फ़र्श पर पड़ी थी और पुलिस के आने से पहले मुझे सब साफ़ करना था। मैं अपनी हवस पूरी करने का रिस्क नहीं ले सकता था—ख़ास कर उस के साथ जो शायद सोच ही रही थी कि मेरी गर्दन काट कर कैसे भागे।
पर मानना पड़ेगा—उस के साथ सोना अब तक का सब से शानदार एहसास होता।
मैं ने जैकेट से चाकू निकाला और विभव की लाश के पास गया। घुटनों के बल झुक कर उस की दाईं तर्जनी उंगली पकड़ी और उस पर चाकू रख दिया। दुश्मनों के शरीर के हिस्से काट कर भेजना मेरा सिग्नेचर था, लेकिन अब जब वो मर चुका था, इस में कोई मज़ा नहीं था। मुझे तो जीते-जागते शिकार को तड़पाना ज़्यादा पसंद था।
⋙ (...To be continued…) ⋘
“लो,” मैं ने चाकू लड़की की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा। “इसे काटो।”
उस के मुँह से हल्की सिसकारी निकली और आँखें डर से फैल गईं। वो अब बहुत मासूम लग रही थी, जब कि अभी कुछ मिनट पहले तक एक लाश के पास बैठ कर शराब पी रही थी। कहाँ गई वो अकड़ जो उस ने मुझ पर बंदूक़ तानते वक़्त दिखाई थी?
“मैं…नहीं कर सकती।” उस की आवाज़ बेहद कमज़ोर थी।
“बच्ची।” मैं उठ कर उस के पास गया और इतना करीब खड़ा हुआ कि मैं पूरी तरह उस पर छा गया, “मैं तुम्हें कोई चॉइस नहीं दे रहा।”
“और मैं ने भी तुम से कोई चॉइस मांगी।” इस बार उस ने गरज कर विरोध किया, जैसे कोई बिल्ली अपने शिकारी को डराती है। लेकिन असल में शिकारी मैं था और वो शिकार। उस ने आँखें बंद कीं, गला साफ़ किया और फिर मुझे घूरा। “मैं नहीं करूँगी।”
मेरे होंठों पर एक टेढ़ी मुस्कान उभरी। किसी लड़की ने पहली बार मेरे हुक्म को ठुकराने की हिम्मत की थी, जब से मैं आदेश देने लायक़ हुआ था। वो हर सीमा लाँघ रही थी। मुझे ग़ुस्सा आना चाहिए था, लेकिन उस की जुर्रत मुझे अजीब तरह से मज़ेदार लग रही थी। मैं जानना चाहता था कि उसे कितना दबाऊँगा तो वो टूटेगी।
“या तो तुम इसे काटो…या फिर मैं तुम्हें सज़ा दूँ।”
“सज़ा दो।” उस की निगाहें मेरे सीने से गर्दन तक गईं और फिर धीरे-धीरे ऊपर उठते हुए मेरी आँखों से टकराईं। उस के चेहरे का आधा हिस्सा सूखे खून से सना हुआ था और बदलती रोशनी में उस की आँखें कई रंग ले रही थीं।
मेरे अंदर से आवाज़ आई– काश तुम्हें अंदाज़ा होता कि मैं कितने तरीक़ों से सज़ा दे सकता हूँ। पर वो सब मैं अगली बार के लिए बचा कर रखूँगा, क्योंकि मुझे एहसास है कि हम फिर जल्द ही मिलने वाले हैं।
“ठीक है फिर।” मैं उस के पीछे गया और उस के बालों को मुट्ठी में लपेट लिया, दो बार, ताकि सिर्फ़ उस के कंधे तक की लंबाई ही मेरी पकड़ से बाहर रहे। चाकू के एक तेज़ वार में उस की कमर तक गिरती ज़ुल्फ़ें कटकर सिर्फ़ कंधे तक रह गईं। उस के बाल अब और भी अच्छे लग रहे थे, एक नखरीली लड़की के लिए एकदम मुफ़ीद।
मैं झुक कर उस के कानों तक पहुँचा और रूखी आवाज़ में फुसफुसाया—“धनतेज से कह देना, जल्द ही उस का सिर मेरे हाथ में होगा।”
वो झट से मेरी तरफ़ घूमी। उस की आँखें डर से फैल गई थीं। सीना इतनी तेज़ी से उठ-गिर रहा था जैसे उसके भीतर कोई ज्वालामुखी फूट रहा हो।
“धनतेज का इस सब से कोई लेना-देना नहीं है।”
“क्या सच में?” मैं ने उस का जबड़ा पकड़ कर उस का चेहरा अपनी तरफ़ खींच लिया– “एक बार और झूठ बोलोगी, तो तुम्हारी ज़ुबान तुम्हारे मुँह से उतनी तेज़ निकलेगी जितनी तेज़ी से उस का सिर उस की गर्दन से गिरेगा।”
उस ने अपना सिर इधर-उधर झटका, मेरे शिकंजे से निकलने की कोशिश की। लेकिन मैं ने उसे कोई मौका नहीं दिया।
“मैं ने सुना है लोग कहते हैं तुम अमर हो।” उस ने हल्की, मगर क्रूर मुस्कान दी– “शायद मैं साबित कर दूँ कि वो सब ग़लत हैं।”
अचानक मुझे एक स्प्रे की आवाज़ सुनाई दी और मिर्च का जलनभरा एहसास मेरी आँखों में उतर आया। उसी पल उस के भागने की पदचाप गूँजी।
“हरामज़ादी—” मैं दाँत पीस कर बड़बड़ाया, आँखें मलने से खुद को रोकने की कोशिश कर रहा था। तभी और कदमों की भारी आहट आई। आवाज़ से ही पहचान गया कि ये मिहिर है।
“भाई!” उस ने पुकारा। मैं उस की नज़रों का बोझ अपने ऊपर महसूस कर सकता था, “मैं उसे पकड़ लाता हूँ।”
वो जाने ही वाला था कि मैं ने उस का हाथ पकड़ कर रोक लिया।
आँखों से आंसू निकल रहे थे, मैं आँखें खोलने की कोशिश कर रहा था ताकि मिर्च की जलन से बच सकूँ। शुक्र था उस ने एसिड इस्तेमाल नहीं किया।
“जाने दे।”
उस ने मुझे ऐसे देखा मानो उसे और तफ़सील चाहिए। हालाँकि वो अड़तीस का था—सिर्फ़ दो साल मुझ से छोटा और मुझ से तीन इंच लंबा—फिर भी वो सोलह की उम्र से ही मेरा राइट हैंड था। वो बेहतरीन सलाह देता था और एक बार तो सिर्फ़ मेरी तरफ़ घूरने की वजह से किसी आदमी की आँखें निकाल दी थीं।
मेरे दो और भाई थे—दर्शित और अन्वय। दर्शित मिहिर से तीन साल छोटा था, उतना ही ख़ूंख़ार और ताक़तवर, लेकिन उस की वफ़ादारी पूरे दिल से नहीं थी। सच कहें तो वो तो जैसे ज़मीन पर शैतान का खेल खेलने आया था।
अन्वय बिल्कुल अलग निकला—जिसे बस पार्टी करनी थी, शराब पीनी थी और गोवा की आधी लड़कियों को अपने बिस्तर में घसीटना था। मुझे इस बात से फ़र्क़ नहीं पड़ता था कि वो अपने फुर्सत के वक़्त में क्या करता है, मगर साला मेरे सिर पर जितनी मुसीबतें उस के कारण आईं, उतनी तो दुश्मनों से भी नहीं आई थीं।
“फ़िलहाल उसे छोड़ दो।” मैं ने निगाह अपने आदमी की लाश की ओर घुमाई। उस के माथे से खून का बहाव रुक चुका था, नसें सूख चुकी थीं और मुझे लगा अगर टॉर्च मारूँ तो इस का दिमाग़ साफ़ दिखाई देगा। “पहले इस गंदगी को साफ़ करो।”
मेरा भाई अब भी अपनी नीली आँखों से—जो बिल्कुल साफ़ आसमान जैसी थीं, मेरी ही तरह—मुझे जिज्ञासा से देख रहा था, जैसे कुछ कहना चाहता हो पर सोच रहा हो कि बोले या नहीं।
“पता लगाओ वो लड़की कौन है।”
“अन्विता प्रवल।” मिहिर ने बिना रुके जवाब दिया– “धनतेज प्रवल की बेटी।”
“क्या? उस की बेटी तो मर गई थी?”
“नहीं।” मिहिर की आवाज़ में एक व्यंग्य-सा था– “धनतेज, चालाक कमीना है! उस ने उसे सालों तक छुपा कर रखा। उस ने अब तक हमारे दो आदमियों को मरवा दिया है। वो चार और मौतों का समय भी तय कर चुकी है।” वह रुका– “लोग उसे ‘मौत’ कहते हैं।”
मैं ने मिहिर पर गुस्सैल नज़र डाली– “तू ने ये सब मुझ से छुपाया?”
उस ने पूरी बेपरवाही के साथ चेहरा बना लिया– “मैं इंतज़ार कर रहा था कि पूरी जानकारी इकट्ठी कर लूँ, फिर तुम्हें बताऊँ।”
“इतना वक़्त नहीं है।” मैं ने अपनी मुट्ठी में अब भी फँसे अन्विता के कटे बालों को और ज़ोर से दबाया।
मेरे और धनतेज में बस एक फ़र्क़ था। मैं अपने क़रीबी लोगों को हर हाल में सुरक्षित रखता था, जब कि वो हरामी अपनी बेटी को भी हथियार बना लेता था—उसी तरह जैसे इक्कीस साल पहले अपनी पत्नी को एक बच्चा पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया, जब कि जानता था कि वो इस बोझ से मर जाएगी।
सही कहा जाए तो अब मुझे यकीन हो गया था कि वो उस की ही बेटी थी क्योंकि उस की आँखें सेम उस की माँ अलीना जैसी थीं। वो मरी नहीं थी, बल्कि बड़ी हो कर अपनी माँ की तरह एक ख़ूबसूरत औरत बन गई थी। और अब वो अपने बाप का हथियार थी।
मैं उस हथियार को अपना बना लूँगा—और उसी से प्रवल खानदान का नामो-निशान मिटा दूँगा।
मैं सोचता हुआ बड़बड़ाया – “उसे ढूँढ कर मेरे पास ला।”
⋙ (...To be continued…) ⋘
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Anvita's POV____
अभय शेरावत को मारा जा सकता है और मेरे लिए यही जानना काफ़ी था।
वह भी बाक़ी हर घमंडी अपराध सम्राट की तरह था—औरतों को नीचा समझने और अपने आप को अजेय मानने वाला। अफ़सोस, उस की मौत भी एक औरत के हाथों तय हो चुकी थी।
मेरे हाथों।
मैं ने अपने बालों को छु कर अपने नए हेयरकट को महसूस किया। शायद मैं उसे मारने से पहले शुक्रिया भी कहूँगी।
मुझे अपने लंबे बाल कभी पसंद नहीं थे, लेकिन मेरे पापा को अजीब सा जुनून था। जब भी वो नशे में होते, मुझे ‘अलीना’ बुलाते। मैं अक्सर सोचती कि क्या यही मेरी माँ का नाम था। अगर था, तो क्या वह सच में उस से प्यार करते थे? अगर करते थे, तो मुझे उन के बारे में कुछ बताते क्यों नहीं?
इन सवालों के साथ-साथ अभय की सूरत भी दिमाग़ में घूम रही थी। मैं सोच रही थी, उस की नीली चुभती हुई आँखें कितनी फीकी पड़ जाएँगी जब मैं उस की जान निचोड़ लूँगी? उस का बड़ा शरीर ज़मीन पर कितनी ज़ोर से गिरेगा जब मेरी गोली उस की खोपड़ी में सुराख़ बनाएगी और उस का होश हमेशा के लिए ग़ायब हो जाएगा।
मैं ने कसम खाई थी कि कभी अपने हाथ खून से नहीं रंगूँगी। लेकिन अगर इस का मतलब गोवा को एक क्रूर तानाशाह से आज़ाद करना था, तो मैं ख़ून की नदियाँ बहाने को भी तैयार थी।
गोवा को माफिया के ज़हरीले राज से छुटकारा दिलाना सिर्फ़ अभय तक सीमित नहीं था। मेरा बाप भी उस से कम नहीं था। मगर मैं अपने ही पिता के सिर में गोली नहीं उतार सकती थी। उस के साथ क्या करना है, ये बाद में सोचने की बात थी—पहले उस की पावर का इस्तेमाल कर अभय और उस के पूरे गिरोह को मिटाना ही मेरा प्लान था। कम से कम अब मुझे पता था कि वह कोई अमर इंसान नहीं है।
बल्कि उसे भी टपकाया जा सकता है।
और ये पता करने के लिए विभव की जान की कीमत देनी पड़ी थी।
वो लंबे अरसे से पापा का वफ़ादार था—मेरे जन्म से लगभग छह साल पहले से। हालाँकि उस की प्यास भी पापा जैसी ही थी, लेकिन वह उन का सब से वफ़ादार कुत्ता था—जैसा कि पापा उसे हमेशा कहते थे। मुझे लगता था पापा ऐसा कह कर अपना रुतबा जताते हैं।
मैं ने सोचा था पापा को विभव की मौत पर दुःख होगा। सोचा था वह ग़ुस्से से पागल हो जाएँगे और पूरे अभय गिरोह पर कहर बरपाएँगे। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। बस फ़ोन पर ‘ठीक है’ कहा और कॉल काट दी। पाँच मिनट बाद उन्होंने मुझे एक एड्रेस और तस्वीरें भेजीं, जिन का टैग था—आज रात का दूसरा काम।
दूसरा काम एक छह साल का बच्चा और उस की माँ थी। उस आदमी की बीवी और बेटा जिसे मैं ने दो घंटे पहले अपनी आँखों के सामने मरते देखा था। मैं ने सुना, वह औरत अपने बेटे का नाम पुकारते हुए चीख रही थी।
“लोकित!” वह अँधेरे में चीखी, जब पापा के तीन गुर्गे उसे उस के सफ़ेद ईंटों वाले घर से घसीटते हुए बाहर ले जा रहे थे। उस घर से गुलाब के बगीचे का नज़ारा दिखता था। लोकित—ये पहली बार था कि मैं ने किसी का नाम उस की मौत की ख़बर देने से पहले सुना था।
हल्की रात की हवा ने मेरी त्वचा को छुआ और फूलों की ख़ुशबू से हवा भर गई। मैं ने अपनी आँखें बंद कीं और ख़ुद को एक साधारण दुनिया में जीती हुई कल्पना करने लगी। एक ऐसी दुनिया, जहाँ मैं फूल उगाती, गुड़ियों से खेलती, बजाय ये सीखने के कि किसी इंसान को एक ही वार में कैसे मारा जाए।
मैं ने आँखें खोलीं तो दबी-दबी सिसकियों और पैरों की आहट सुनी। पापा के गुर्गों ने माँ और बेटे को मेरे सामने पटक दिया, मेरी क्षणिक शांति भंग हो गई। गुलाब की महक अचानक लाशों और बिखरे दिमाग़ों की सड़ांध में बदल गई। मुझे मतली आने लगी।
मुझे इस से ज़िंदगी नफ़रत है!
माँ अपने बेटे की तरफ़ घिसट कर गई और उसे कस कर बाहों में भर लिया। वह बच्चा मासूम आँखों से मुझे देख रहा था, जिन में चाँदनी की हल्की चमक झिलमिला रही थी। मैं ने सोचा, शायद माँ का प्यार ऐसा ही होता है—रक्षा करने वाला, क़ुर्बान हो जाने वाला।
“तुम कौन हो? हम से क्या चाहते हो?”
उस की आवाज़ काँप रही थी, हाथ थरथरा रहे थे, लेकिन बेटे को पकड़ते हुए उस की आँखों की धार ऐसे चुभ रही थी जैसे कोई जंगली रीछ अपने बच्चे की रखवाली कर रहा हो। अफ़सोस, वह असली रीछ नहीं थी और उस पर तनी बंदूकें उस के पंजों से कहीं ज़्यादा और कहीं तेज़ वार कर सकती थीं।
मैं वही करना चाहती थी जो हमेशा करती थी—उन की मौत का वक़्त सुना कर बाक़ी काम पापा के आदमियों पर छोड़ देना।
लेकिन माँ-बेटे पर एक नज़र डालते ही सब बदल गया—बेटे की आँखों में मासूमियत, जिसे शायद पता भी नहीं था कि अभी उस की जान जाने वाली है और माँ की आँखों में सच्चा डर और ग़म, जिन से आँसू लगातार टपक रहे थे। शायद उसे ये भी नहीं मालूम था कि उस का पति अब इस दुनिया में नहीं है।
मेरी साँस अटक गईं, जैसे फेफड़ों में हवा ही अटक गई हो।
मुझे नफ़रत है, मुझे ये ज़िंदगी बेहूदा लगती है!
“मुझे माफ़ करना…” मैं ने हिचकिचाते हुए कहा– “अलविदा।”
यही शब्द मैं कह पाई और फिर उन से पीठ फेर ली। पापा के आदमियों ने बंदूकें तानीं।
“प्लीज़, मत करो।” उस की आवाज़ टूटी हुई चीख़ में बदल गई थी – “मुझे मार दो, बस मेरे बेटे को छोड़ दो। मैं तुम से विनती करती हूँ।”
मेरा सिर घूमने लगा था। अब तक देखे गए सभी मरे हुए मर्दों की तस्वीरें आँखों के सामने चमक उठी थीं। उन सब से मुझे नफ़रत थी। लेकिन उन में कभी कोई बच्चा या मासूम औरत नहीं थी। मैं इसे सहन नहीं कर सकती थी। लोकित का शव देखने का ख़्याल ही मुझे बीमार करने लगा।
वह इस के लायक़ नहीं था।
वह मौत का हकदार नहीं था।
मैं अपना पेट पकड़ कर उन की तरफ़ घूम गई।
“गोली मत चलाना!” घबराहट मेरे पेट से उठ कर गले में आ गई– “गोली मत चलाना, सुन रहे हो?”
गुर्गों के चेहरों पर हैरानी फैल गई, जैसे किसी ने उन पर मास्क चढ़ा दिया हो। शायद उन्हें लगा मैं पागल हो गई हूँ।
⋙ (...To be continued…) ⋘
“अगर तुम ने गोली चलाई तो मैं तुम्हें ही उड़ा दूँगी।” अब मुझ से बर्दाश्त नहीं हो रहा था। अपने लिए जो घृणा मैं ने हमेशा महसूस की थी, पापा के लिए जो गहरी नफ़रत बचपन से भीतर पाल रखी थी, सब गले में भर आई था। मेरा गला सिकुड़ने लगा और मैं झुक गई, सब उगल देने के लिए।
आख़िरी बार मैं ने किसी काम पर उल्टी तब की थी जब मैं ने पहली बार किसी को मरते देखा था—ग्यारह साल पहले। वह मेरा दसवाँ जन्मदिन था। पापा ने मुझे ज़बरदस्ती दिखाया था कि कैसे उन्होंने एक आदमी का गला फाड़ डाला। जब मैं ने डर कर नज़रें फेर लीं, तो उन्होंने मुझे पनिश किया—पहली बार मुझे बाहर पानी से भरे ताल में सुलाया। उस के बाद क्या हुआ, मुझे याद नहीं। पर तीन दिन बाद मैं अस्पताल में जागी थी, ऊपर पापा का झुका हुआ चेहरा देख कर—वही चेहरा जिस पर सख़्त शिकन थी और उन्होंने मुझे पुकारा था—“बुज़दिल।”
पापा के आदमियों में से एक—एन्ज़ो—जिस की मांसपेशियाँ शरीर से भी बड़ी लगती थीं और दाढ़ी इतनी लंबी थी कि चोटी बन जाए, अब भी माँ और बेटे पर बंदूक ताने खड़ा था। उस वक़्त मेरे होश मेरे बस में नहीं रहे। शरीर जैसे अपने आप चल पड़ा। उस के पास गई और गन पकड़ ली।
“अगर इन पर गोली चलाई, तो तुम ख़ुद भी मरोगे।”
एन्ज़ो ने हिकारत से मुँह बिचकाया– “ये क्या कर रही है हरामज़ादी?”
मैं ने उस की गन उस की ओर पॉइंट कर दी– “मुझे एक बार और हरामज़ादी कह कर देख। ये तेरे मुँह से निकला आख़िरी शब्द होगा।”
कुछ देर उस के चेहरे पर हिचकिचाहट रही।
“मैं तेरे लिए काम नहीं करता, लड़की। तेरे बाप के लिए करता हूँ।” उस ने बंदूक की तरफ़ घूरा।
“मेरे बाप की ग़ैर-मौजूदगी में मेरे ही हुक्म चलते हैं।” मैं ने बंदूक की सेफ्टी हटाई– “तुझे लगता है मैं मार नहीं सकती? कोशिश कर के देख।”
एन्ज़ो और मैं ने एक-दूसरे की आँखों में पाँच मिनट तक नफ़रत से नज़रें गड़ाए रखीं। फिर वह ठठाकर बोला, “तुझे सिर्फ़ तेरे बाप की वजह से छोड़ रहा हूँ।”
उस ने बाक़ी आदमियों को सिर हिला कर इशारा किया और वे सब कार की तरफ़ लौट गए।
मैं उस की ओर देखे बगैर, माँ से बोली, “ये शहर छोड़ दो… और कभी वापस मत आना।”
“धन्यवाद।” वह सिसकियों से भीगी आवाज़ में बोली– “बहुत-बहुत धन्यवाद।”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि कहने के लिए कुछ था ही नहीं। मेरे पास सोचने के लिए और बातें थीं—जैसे पापा को क्या बहाना दूँगी कि मैं ने उन के आदेश की ख़िलाफ़वर्ज़ी क्यों की? और मेरे बाल… धिक्कार है, मैं सोच रही थी कि वो इस पर क्या प्रतिक्रिया देंगे। जितना वो मेरे बालों को ले कर जुनूनी रहते थे, मुझे पूरा यक़ीन था कि अगर मैं अभय शेरावत को मारने की कोशिश में मर भी जाऊँ, तो वो मेरे बालों का मातम ज़्यादा करेंगे, मेरी मौत का कम।
दो घंटे बाद, कार पुरानी प्रवल हवेली के सामने रुकी। हवेली, हवेली से ज़्यादा रामसे ब्रदर्स की भूतहा फिल्मों का क़िला लगती थी। एक ऊँची काली इमारत, जिस में पुराने ज़माने के काले खंभे और जर्जर चूना-पत्थर की दीवारें थीं। मौसम गर्मियों का था, फिर भी वहाँ ठंडक थी और चारों तरफ़ ताज़ी कटी घास और गीली मिट्टी की गंध बिखरी हुई थी।
बचपन से मैं वहीं रहती आई थी लेकिन उस घर का नज़ारा अब भी मेरी रूह में ऐसे रेंगता था जैसे खून चूसने वाले कीड़े। और मेरी रीढ़ में सिहरन भर देता था।
लगता था मानो हर उस इंसान का भूत, जिसे हम ने मारा था, रात को हमें डराने आ जाएगा। मैं जल्दी से अंदर घुस गई, क्योंकि बाहर घुटन होती थी।
अंदर हैवानी कराहें सुनाई दे रही थीं। सीढ़ियाँ चढ़ते और दालान तक पहुँचते ही समझ आ गया ये कैसी आवाज़ है और किस से आ रही है। मैं उस गंदे शोर से बचपन से ही वाक़िफ़ थी, जब से मैं ये जानने लायक़ हुई कि गंदगी क्या होती है।
मैं ने दरवाज़े पर हल्की दस्तक दी, ताकि उन्हें मेरे आने का एहसास हो जाए, फिर चाँदी का हैंडल घुमा कर अँधेरे में दाख़िल हो गई। वहाँ मुश्किल से ही चिमनी की मद्धम आग से रोशनी हो रही थी। काले जूते, एक काला थ्री-पीस सूट, ला हाई हील्स और एक काली ड्रेस ज़मीन पर बिखरे पड़े थे, मानो कोई नक़्शा बना रहे हों—जो मुझे सीधा बैठक तक ले गए, जहाँ एक औरत मेरे बाप, धनतेज प्रवल, पर इस तरह सवार थी जैसे उस की ज़िंदगी इसी पर टिकी हो। उस की चीख़ती हुई कराहें फिर से मेरे गले तक उल्टी खींच लाईं। ये इस हफ़्ते की पाँचवीं औरत थी।
“पापा।”
वह औरत रुक गई और मेरी तरफ़ देखने लगी। उस की आँखें हल्की रोशनी में चमक रही थीं। मेरी नज़र कमरे के उस कोने में लगे स्विच पर गई। मुझे लाइट ऑन कर देनी चाहिए थी, लेकिन… वह नज़ारा देखने की कोई इच्छा नहीं थी। मुझे लगा अगर मैं ने देखा, तो उल्टी कर दूंगी और उस रात मैं पहले ही बहुत उल्टी कर चुकी थी।
पापा ने उसे अपने पास से हटाया और जल्दी से ज़मीन पर पड़ा गाउन उठा लिया। कम से कम उन में थोड़ी-सी शर्म बाकी थी। लेकिन उस औरत में ऐसा कुछ नहीं था। उस के चेहरे पर एक सेडक्टिव स्माइल थी। उस ने जान-बूझ कर अपने कपड़े उठाने का अंदाज़ ऐसा रखा जैसे मुझे चिढ़ाना चाहती हो।
जब वह मेरे पास से गुज़री, तो उस ने मुस्कान और चौड़ी कर दी और आँख से इशारा किया। इस के बाद कमरे से चली गई।
मैं ने तभी लाइट ऑन की, जब पक्का यक़ीन हो गया कि मेरे बाप ने कपड़े पहन लिए हैं।
उन्होंने शराब की बोतल उठाई, गिलास में डाली और उस कुर्सी पर बैठ गए — वही कुर्सी जिस पर शायद ना जाने कितनी औरतें उन के साथ बैठ चुकी थीं।
“इधर आओ, बच्ची।” उन की आवाज़ शांत थी, लेकिन उतनी ही डरावनी। वे किसी धीमे ज़हर की तरह थे। उन की बातों से कभी समझ नहीं आता था कि वे खुश हैं या गुस्से में।
मैं सावधानी से पास गई और उन के सामने फर्श पर बैठ गई। उन्होंने मेरे बालों में हाथ फेरा। उन की आँखों में अंधेरा उतर आया। जैसा कि तय था, उन्हें मेरे नए बाल पसंद नहीं आए। लेकिन मुझे बहुत अच्छे लग रहे थे। जब अभय ने मेरे आधे बाल काट दिए थे, तो उस के लिहाज़ से वह सज़ा थी, लेकिन मेरे लिए तोहफ़ा। लगा था जैसे मैं ने
बाप से अलग होने का अपना सफर शुरू कर दिया है।
⋙ (...To be continued…) ⋘
पापा की गहरी आँखें कुछ पल तक मेरे बालों पर टिकी रहीं, फिर उन्होंने मेरी ठुड्डी पकड़ ली। शुरुआत में नरमी से, जैसा वो हमेशा करते थे जब मैं उन का कहा मानती थी। लेकिन अचानक उन की पकड़ कस गई, उन का खुरदुरा हाथ मेरी त्वचा में धँसने लगा।
“तुम ने मेरी बात नहीं मानी।”
मेरे सीने में तुरंत कसाव-सा हुआ, दिल दब कर रह गया और खून जैसे रुक गया।
“ऐसा नहीं है, पापा।” मैं ने कोई बहाना नहीं सोचा था, कुछ भी नहीं, लेकिन उस से फ़र्क नहीं पड़ता। क्योंकि मैं चाहे कुछ भी कहती, उन का अहंकार मेरी हर बात को कुचल देता।
“बिल्कुल नहीं।” उन के लहजे में ज़हर घुला था, जैसे वो मन ही मन मुझे कोस रहे हों कि मैं बेटा नहीं पैदा हुई जो उन के खूनी साम्राज्य की गद्दी सँभाल सके। कभी-कभी उन की निगाहें देख कर मुझे भी अफ़सोस होता था कि मैं बेटा क्यों नहीं हूँ, मगर दूसरी बार मैं शुक्र मनाती कि कम से कम मैं उन की तरह राक्षस तो नहीं बनूँगी। क्योंकि मैं बेटा नहीं बेटी हूँ।
एक बेटी—जो इस खूनी अंडरवर्ल्ड का अंत करेगी।
उन्होंने हाथ हटाया, व्हिस्की का गिलास उठाया और खड़े हो गए– “अंदर आओ।”
पीछे का दरवाज़ा खुला और नौकर बर्तन और भाप उड़ाती केतली ले कर भीतर आए। मैं झट से खड़ी हो गई। दिल में उठ रहा गुस्सा आँसुओं में बदलना चाहता था, लेकिन मैं उन्हें बाहर नहीं आने दे सकती थी। कमज़ोरी दिखाना मेरे लिए मना था।
पापा को हमेशा किसी और को तकलीफ़ देने में एक अजीब-सी खुशी मिलती थी। मैं उन्हें वो खुशी नहीं दे सकती थी, इसलिए पत्थर-सी खड़ी रही और देखती रही कि नौकर कैसे कटोरों में उबलता पानी भरते हैं। मैं ने उन के कहने का इंतज़ार नहीं किया। बारह साल की उम्र से ही मैं ने इंतज़ार करना छोड़ दिया था।
जैसे ही मेरे पाँव पानी में गए, जलन की लहर पूरे जिस्म में दौड़ गई। गला चीख के लिए फड़का, आँखों में आँसू भर आए। दर्द था—भयानक दर्द—लेकिन दिल का दर्द उस से कहीं ज़्यादा था। मैं ने आँखें बंद कीं, मुट्ठियाँ भींच लीं और सब सह गई।
दस मिनट बाद पानी ठंडा पड़ने लगा। मैं बाहर निकली, फिर उन के इशारे पर नौकरों ने और पानी उबाला और फिर से कटोरे में उड़ेल दिया। मुझे दोबारा पैर डालने पड़े।
ये सिलसिला एक घंटे तक चला। फिर उन्होंने तय किया कि आज की सज़ा यहीं ख़त्म। मेरी नज़र घड़ी पर पड़ी—सफ़ेद दीवार पर टंगी घड़ी। ग्यारह बज कर तीस मिनट हो रहे थे, लगभग आधी रात। जब मैं ने पैर बाहर निकाले, तो वो इतने नर्म और दुखते हुए थे जैसे ज़रा-सी चोट से छिल जाएँगे या मोमबत्ती की तरह पिघल जाएँगे।
पहली दफा जब पापा ने मुझे उबलते पानी में खड़ा किया था, तो मैं इतना रोई थी और दर्द इतना असहनीय था कि कई हफ्तों तक ठीक से चल नहीं पाई थी।
आज भी दर्द था, पर अब मैं इतनी मज़बूत हो गई थी कि अपने आँसू भीतर छिपा कर बिना एक बूंद गिराए बाहर निकल आई।
“अन्विता।” सीढ़ियों तक पहुँचते ही उन की आवाज़ गूँजी। मैं पलट कर खड़ी हो गई, ध्यान से, ताकि जले हुए पैरों को और चोट न पहुँचे।
पश्चाताप वो चीज़ थी जो मेरे पापा के दिल में कभी जगह नहीं पा सकी थी। उन की आँखों में हमेशा अँधेरा ही अँधेरा होता था।
“मैंने आज एक कॉन्ट्रैक्ट साइन किया है।” उन्होंने शराब का एक और घूँट लिया– “तुम्हारी शादी तय हो गई है।”
मेरी दुनिया थम-सी गई, नब्ज़ रुक गई। उन के शब्द दिमाग़ में गूंजते रहे।
“तुम्हारी शादी हो रही है।”
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फोयर से आती हँसी मेरे कानों में ज़हर घोल रही थी। पापा ने मुझे यह तो बता दिया था कि उन्होंने मेरा सौदा किसी ज़मीन-जायदाद की तरह कर दिया है, लेकिन ये नहीं बताया कि मेरा होने वाला पति कौन होगा।
मेरी नज़र बर्फ़ की बाल्टी पर गई जिस में बंद पड़ी व्हिस्की की बोतलें सजी थीं। सुनहरे और काले रंग से सजे हमारे डाइनिंग हॉल की मेज़ पर बैठी मैं लार निगलती हुई खुद को रोक रही थी कि कहीं हाथ बढ़ा कर पूरी बोतल ही न पी जाऊँ। दिल में बेचैनी और जिज्ञासा दोनों थीं—आख़िर मैं अपने... कहने में भी शर्म आती है... नए मालिक से मिलने जा रही थी। बस यही गाँठ थी जो मेरे पेट में कस कर बैठ गई थी।
अपने बाप देखते हुए, मुझे हैरानी होती अगर मेरा दूल्हा सचमुच शादी लायक इंसान निकल आता। लेकिन फोयर से आती गहरी, बूढ़ी आवाज़ ने सारी उम्मीदों को चूर-चूर कर दिया था।
एक बवंडर मेरे दिमाग़ को उसी जगह ले गया जहाँ इसे बिल्कुल नहीं होना चाहिए था—अभय शेरावत के पास। ऐसा नहीं कि मैं उसे चाहती थी, लेकिन वो चालीस का था, यानी मेरी उम्र से लगभग दोगुना। फिर भी अपनी उम्र से कहीं यंग दिखता था—पीछे को सलीके से सेट किए हुए काले बाल और सूट के नीचे से झलकती मज़बूत मांसपेशियाँ।
“हे भगवान, मैं सोच क्या रही हूँ?”
मेरी रीढ़ में झुरझुरी दौड़ गई। जैसे-जैसे फोयर से आती आवाज़ें पास आ रही थीं, मेरा डर और बढ़ता गया। फिर वो कमरे में दाख़िल हुआ—महेंद्र नाथ—पापा के साथ। मेरा जबड़ा नीचे गिर गया। वो मेरे पापा का अंडरबॉस थे, उम्र में पापा से लगभग छह साल बड़ा। उस का एक बेटा भी था, मुझ से दस साल बड़ा। मैं ने सोचा, अच्छा होगा अगर पापा इस के बेटे से शादी करवा रहे हों।
उम्मीद बहुत कम थी, मगर मैं ने उस आख़िरी धागे को कसकर पकड़े रखा।
“अन्विता।”
पापा ने पुकारा और मैं खड़ी हो गई, हमारे मेहमान—या कहें मेरे होने वाले पति का स्वागत करने। चेहरे पर मैं ने बेहद सभ्य, मगर झूठी मुस्कान चिपका ली और हाथों को सामने जोड़ लिया, जब कि पेट बेचैनी से मरोड़ खा रहा था।
महेंद्र मेज़ तक आया और मेरे कंधे पर अपना घिनौना हाथ रख दिया, “तुम हमेशा की तरह खूबसूरत हो, मेरी अन्विता।”
उस का हाथ अब भी मेरे कंधे पर था और अंगूठा रगड़ रहा था, जैसे मेरे पूरे जिस्म को कोई इशारा भेज रहा हो।
मुझे उल्टी आ जाएगी। मैं ने सोचा। होंठों पर खिंची मुस्कान टूट कर ग़ुस्से में बदल न जाए, बस इसी डर से मैं हर पल चौकन्नी रही, “हमारे घर में आप का स्वागत है।”
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“ये घर जल्द ही तुम्हारा नहीं रहेगा, मेरी जान।” उस की आँखें मेरे सीने पर टिक गईं। जब कि मैं ने हरे रंग का डिज़ाइनर टर्टलनेक और निट ड्रेस पहनी थी—कुछ भी भड़काऊ नहीं। फिर भी उस का जानवरों-सा बर्ताव मुझे चीर रहा था।
“तुम्हारा घर मेरे साथ होगा, मेरे महल में।”
वो शेख़ी बघार रहा था जैसे कोई बहुत बड़ा कारनामा कर लिया हो।
उस की बात अचानक पूरी तरह साफ़ हो गई—तुम्हारा घर मेरे साथ होगा, मेरे महल में।
मैं ने झटके से हाथ खींच लिया और उस से दो कदम दूर हो गई। नज़र पापा पर गई—उन की शक्ल पर चमकती मुस्कान थी।
“तुम्हारी शादी इन से एक महीने में होगी, मेरी बच्ची।” पापा ने कहा– “तारीख़ तय हो चुकी है।”
मैं कई कदम पीछे हटती गई जब तक कि मेरी पीठ कंक्रीट की सफ़ेद दीवारों पर लटकते सुनहरे परदों से जा टकराई।
“मैं ये शादी नहीं करूँगी।” यह विरोध मेरे मुँह से निकल पड़ा था, इस से पहले कि मैं खुद को रोक पाती।
“हाँ, तुम करोगी, अन्विता।” पापा ने सख़्ती से कहा– “अब ड्रामा बहुत हुआ, चलो खाना खाते हैं।”
“मैं इन से शादी नहीं करूँगी।” मैं ने दोहराया। इस बार आवाज़ पहले से भी ज़्यादा ऊँची और तीखी थी। आँखों में जलन होने लगी, खून सिर की ओर दौड़ गया, जैसे मैं अभी चिल्ला दूँगी। “मैं इस हरामी बुड्ढे से शादी नहीं करूँगी, पापा।”
महेंद्र नाथ और पापा—दोनों की आँखें फट गईं। उस घुटनयुक्त संगठन में औरतों पर ढेरों नियम थोपे गए थे और उन सब का निचोड़ बस यही था: औरत को ‘सभ्य’ रहना चाहिए। और सभ्य होने का मतलब मर्दों के हिसाब से बस इतना था कि औरतें रोबोट हों—बच्चे पैदा करने की मशीनें। इसलिए मुझे मालूम था कि मेरी गाली सुन वो इतने हैरान क्यों हो गए। शायद दो सौ साल से उन्होंने किसी औरत के मुँह से ऐसा शब्द नहीं सुना था।
“सुना आप ने, पापा?” मेरी आवाज़ काँप रही थी, खुद मेरे कानों में भी टूटती-सी लग रही थी। “मुझे मार दीजिए, जो करना है कीजिए, लेकिन मुझे ऐसे आदमी से शादी करने को मजबूर मत कीजिए जो मेरी उम्र से लगभग तीन गुना बड़ा है।” मैं रुकी और पापा की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगी। मुझे नहीं पता था कि मैं क्या चाहती, पर उस मौत जैसे सन्नाटे से तो कुछ भी बेहतर होता। दो जोड़ी आँखें हैरानी और ग़ुस्से से मुझ पर जमी हुई थीं।
शायद महेंद्र नाथ अपना पहला सदमा झेल चुका था, क्योंकि सदियाँ बीत जाते ही, वो मेरी तरफ़ बढ़ा।
“तुझे तहज़ीब सिखानी पड़ेगी, कमीनी।” उस ने हाथ उठाया, लेकिन मुझे थप्पड़ मारने से पहले ही पापा ने उस का नाम पुकारा।
“वो अभी आप की नहीं है, मिस्टर महेंद्र।” पापा की आवाज़ समुद्र से भी शांत थी– “अपनी बेटी को मैं खुद सँभालूँगा।”
एक पल को लगा जैसे वो मेरी तरफ़दारी कर रहे हैं, पर सच तो ये है कि चुप्पी के भीतर ही तूफ़ान पल रहा था।
वो बिना एक नज़र डाले डाइनिंग रूम से निकल गए। मैं धीरे से एक कुर्सी पर बैठ गई, दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था जैसे सीने से बाहर कूद जाएगा। दिमाग़ बेकाबू था—पापा लौट कर आए तो क्या करेंगे?
दरवाज़ा तुरंत फिर चरमराया। पापा लौट आए थे, एंज़ो और कुछ आदमी साथ थे। मेरी नज़र एंज़ो के हाथ पर गई—वो एक कोड़ा पकड़े था, जैसे अभी-अभी अस्तबल से निकाल लाया हो।
खौफ़ ने मेरे पूरे शरीर को धर-दबोचा।
क्या ये मुझे उसी से मारेंगे?
हथेलियाँ पसीने से तर हो गईं, टाँगें काँपने लगीं, तलवे फिर से जल उठे।
“पापा—” शब्द होंठों से निकल ही रहे थे कि एंज़ो और दो आदमियों ने मुझे पकड़ लिया। उन्होंने मुझे डाइनिंग टेबल पर झुका दिया और पापा ने मेरी पीठ पर कोड़ा बरसाना शुरू कर दिया। एक, दो, तीन, चार… पचास। उस के बाद का मुझे ज़्यादा याद नहीं।
मेरी पीठ जल रही थी, आँसू अपनी मर्ज़ी से बह निकलने को बेचैन थे। और दिल में जो थोड़ी-सी मोहब्बत उस आदमी के लिए बची थी—वो भी हमेशा के लिए मर गई।
मैं ने दर्द के बीच अपनी नम आँखों से पापा की तरफ़ देखा। लेकिन वहाँ बस अंधेरा, नफ़रत और ग़ुस्सा था। कोई पछतावा नहीं। वो हमेशा मानते थे कि उन का सब से बड़ा दुश्मन अभय है। पर असली दुश्मन तो पछतावा था—और उस से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया।
मेरी नज़र फिर महेंद्र नाथ पर गई। उस की आँखों में गंदी सी खुशी थी और पीले दाँत चमक रहे थे जब वो ज़ोर-ज़ोर से हँस रहा था। उस की जंगली हँसी मेरे कानों में गूँजती रही, यहाँ तक कि जब मैं सीढ़ियाँ चढ़ कर अपने कमरे में पहुँची और दरवाज़ा बंद कर लिया।
कमरे में अँधेरा फैला हुआ था, बस खिड़की से चाँदनी की एक धार तलवार की तरह भीतर चुभ रही थी। मैं वो रोशनी भी नहीं चाहती थी—अँधेरे में ही रहना बेहतर था। वही सोचते हुए जो मैं पिछले इक्कीस साल से सोचती आई थी। वही महसूस करते हुए जो ऐसे हर दिन महसूस करती थी।
मुझे भागना होगा।
माथे से पसीना टपकने लगा, रीढ़ में सिहरन रेंग गई और दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा—जैसे उसे भी सीने से भागना हो। ठीक वैसे ही जैसे मुझे इस घर से, इस दुनिया से भागना था। मुझे भागना था। भागना था मुझे!!!
कमरा अचानक साँस रोक देने जितना तंग लगने लगा। मैं ने गला दबाया और खिड़की की ओर बढ़ी। बस एक ही ख़्याल दिमाग़ में घूम रहा था कि भागना है।
लेकिन फिर होश आया—मैं अपनी चादर को खिड़की पर क्यों बाँध रही हूँ?
मैं नीचे क्यों उतर रही हूँ?
कहाँ जाउंगी मैं?
मैं अँधेरी सुनसान सड़क पर नंगे पाँव चलती रही—पीठ का दर्द हर नस में तीर की तरह दौड़ रहा था, साँसें उखड़ी हुई थीं और आँसू आँखों को धुँधला बना रहे थे। धत्त।
फिर मैं ट्रेफिक वाली सड़क तक पहुँची। वहाँ चमक रहा था गुलाबी और नीले रंग का साइनबोर्ड—शेरावत नाइट क्लब।
ये क्या बकवास है? मैं यहाँ क्यों आ गई?
क्यों चलते-चलते उसी भीड़ में घुस गई, जो पसीने और शराब की गंध से भरी हुई है?
अचानक!
नीली आँखें भीड़ के बीच से मुझे घूर रही थीं।
वो नीली आँखें मेरे दुश्मन की थीं—अभय शेरावत।
⋙ (...To be continued…) ⋘
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Abhay's POV____
सब से पहले मेरी नज़र उस के बालों की नोक पर गई, जो उस के कंधे से छू रहे थे। ज़्यादातर मर्द औरतों को लंबे बालों में पसंद करते हैं, लेकिन मुझे हमेशा अलग चाहिए था—छोटे बाल और स्मोकी आइज़, यही मेरी कमज़ोरी थी। और वो ठीक वैसी ही लगी जब मेरे क्लब में दाख़िल हुई, बेख़ौफ़।
अन्विता मुझे इतनी बेवकूफ़ नहीं लगती थी कि साँपों के बिल में खुद चल कर आ जाए। तो इस के पीछे बस दो वजह हो सकती थीं।
एक: कोई जाल, जो शायद धनतेज प्रवल ने बिछाया था।
दो: वो बेवकूफ़ ही थी।
मैं ने पहले वाले विकल्प को मानना ही बेहतर समझा, क्योंकि दूसरा न सिर्फ़ नामुमकिन था बल्कि दुश्मन को कभी कमज़ोर नहीं आंकना चाहिए। और वैसे भी, मेरे दुश्मन दोस्तों से कहीं ज़्यादा थे।
हमारी निगाहें एक-दूसरे में जमी हुई थीं—उस की सतर्क, मेरी परखती हुई। उस की ग्रे आँखें डिस्को की रोशनी में एक उदासी के साथ चमक रही थीं। पलकों पर नमी थी, काला मस्कारा आँखों के नीचे फैला हुआ था। वो बिल्कुल वैसी नहीं दिख रही थी जैसी पिछले हफ़्ते पहली बार दिखी थी।
मेरी नज़र उस के पैरों पर गई और तब देखा कि वो नंगे पाँव थी। इस से पहले कि मैं अपनी नज़रें हटाता, दर्शित ने उस की कनपटी पर पिस्तौल तान दी। उस ने मेरी ओर देखा और मैं ने बस सिर हिलाया, इशारा किया कि उसे मेरे ऑफिस में ले जा। उस ने बंदूक नीचे की और उस की कमर से लगा दी। मुझे परवाह नहीं थी कि किसी औरत के जिस्म का कौन-सा हिस्सा छुआ जा रहा है, लेकिन मैं ने ख़ुद को सँभाला और उन के पीछे-पीछे वी.आई.पी. सेक्शन की ओर बढ़ा।
जब हम ऑफिस में दाख़िल हुए, नीली, लाल और हरी रौशनी की जगह मद्धम सफ़ेद रोशनी ने ले ली। दर्शित और अन्विता मेरी महोगनी टेबल के सामने रुक गए और मैं उन से आगे बढ़ कर अपनी ब्लैक लेदर चेयर पर बैठ गया। फिर मैं ने अन्विता को और गौर से देखा। सोचा कि उन दो वजहों के अलावा एक और वजह भी जोड़ दूँ—तीन: इसे मुझ से कुछ चाहिए।
हालाँकि उस के बिखरे और बेसहारा हालात देख कर ये सब से मुमकिन वजह लग रही थी, फिर भी एहतियात बरतना ज़रूरी था। एक प्रवल पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता, ख़ास कर उस पर जो मर्दों को बहला-फुसला कर उन की मौत लिख दे।
“कपड़े उतारो।” मैं ने सादा लहजे में कहा।
अन्विता ने तुरंत सिर उठाया– “क्या?”
मैं ने कुर्सी पर टिकते हुए अपनी बात दोहराई। “कपड़े उतारो।”
क्योंकि मुझे पक्का करना था कि उस के पास कोई हथियार नहीं छुपा है। वजह बताने की ज़रूरत नहीं थी।
अन्विता ने मुझे एक-आध मिनट तक घूरा। शायद उसे समझ आ गया था कि मेरा इशारा क्या है, क्योंकि वो दर्शित की तरफ़ मुड़ी, “क्या तुम्हें लगता है मैं दो मर्दों के बीच अकेले अपने कपड़े उतार कर कन्फर्ट फील करूँगी?”
उस ने फिर मेरी तरफ़ देखा, मैं बोला – “जब तुम ने मेरे आदमी मरवाए थे तब तुम्हें एक से ज़्यादा मर्दों के सामने कपड़े उतारने में कोई परेशानी नहीं थी।”
उस ने थकी हुई साँस छोड़ी– “ठीक है।”
उस ने झुकने की कोशिश की लेकिन अचानक रुक गई और होंठ दबा लिए, जैसे किसी दर्द को रोक रही हो। मुझे लगा कुछ गड़बड़ है।
मैं ने दर्शित को जाने का इशारा किया। उस ने मुझे ऐसे घूरा जैसे कह रहा हो कि उस का मन नहीं है। वो कमबख्त हमेशा जानता था कि मेरा धैर्य कैसे तोड़ा जाए।
“यहाँ से दफ़ा हो जा,” मैं गुर्रा कर बोला।
उस ने अन्विता को शक़ से देखा और फिर बाहर निकल गया।
ये कहना कि मैं ने उसे इसलिए बाहर भेजा क्योंकि अन्विता उस की मौजूदगी से असहज थी, बेहतर बहाना होगा, लेकिन सच ये है कि मैं किसी भी हाल में नहीं चाहता था कि वो उसे नंगी देखे। चाहे अन्विता चाहती या नहीं, मैं ने दर्शित को बाहर भेज ही देना था।
अन्विता ने अपनी हरी ड्रेस नीचे खींची और पैरों से उतार दी। अब बस ब्लैक लैस वाली पैंटी और ब्रा रह गए थे। मुझे खुद को रोकना मुश्किल हो रहा था।
मेरा दिमाग सुन्न हो गया और खून सीधा कमर के नीचे दौड़ पड़ा। कमबख़्त, सिर्फ़ उसे देख कर ही मेरा बुरा हाल हो रहा था।
“जेंटल मैन बनो और मुझे इस तरह घूरना बंद करो जैसे निगल जाओगे,” अन्विता ने भौंह उठा कर दृढ़ता से कहा– “ये शराफत नहीं है,”
मेरे होंठों पर एक विकृत-सी मुस्कान आ गई, “तुम से किस ने कहा मैं शरीफ हूँ?”
चूँकि वो धनतेज की बेटी थी, उसे शायद मेरे नाम और पहचान का अंदाज़ा था। तो इस का ये सोचना भी अपमानजनक था कि मैं शरीफ हूँ।
“कभी ये ग़लतफ़हमी मत पालना।”
उस ने तंज़ भरे अंदाज़ में सिर हिलाया।
“बहुत मन है इस बात पर बहस करने का कि तुम शरीफ हो या नहीं, पर मैं यहाँ किसी और वजह से आई हूँ।” उस की निगाह मेरे सामने काले सोफ़े पर गई– “क्या मैं बैठ सकती हूँ?”
मुझे मानना पड़ा कि वो जितनी ख़तरनाक थी उतनी ही तमीज़दार भी। एक ऐसे आदमी की बेटी हो कर, जो सुअर से भी बदतर था।
“बैठ सकती हो।” मैं ने इशारा किया।
वो सोफ़े की ओर चली तो उस की पीठ मेरी नज़र टिक गई। वहाँ सूजे हुए लाल निशान थे—स्पष्ट था कि किसी ने उसे चोट पहुँचाई थी। किसी ने मेरी ‘नन्हीं’ पर हाथ उठाया था।
हैरानी की बात थी कि जिस वासना ने अभी मुझे घेर रखा था, वो तुरंत गुस्से में बदल गई। जबड़े भींच गए, दाँत किटकिटा उठे। किस हरामी ने हिम्मत की थी मेरी चीज़ पर हाथ डालने की?
“तुम्हारी पीठ को क्या हुआ?” मैं ने सख़्ती से पूछा।
वो सोफ़े तक पहुँची और ठिठक कर पलटी– “कुछ नहीं।” फिर बैठ गई और दीवारों को देखने लगीं, जिन का रंग उस की आँखों जैसा था। उस ने नज़रें बचा कर झूठ बोला था।
“मुझ से झूठ मत बोलो, नन्हीं।” मेरी आवाज़ खून की प्यास से भारी हो चुकी थी। मैं चेयर से उठा, उस के पास गया और उसे सोफ़े से खींच कर खड़ा किया। फिर उस की पीठ देखी। लाल और बैंगनी लकीरें आपस में उलझी हुई थीं और उन के चारों ओर की चमड़ी गहरी लाल हो चुकी थी।
मैं ने उंगलियाँ उन पर फेरीं तो उस की त्वचा पर रोंगटे खड़े हो गए।
⋙ (...To be continued…) ⋘
“ये किस ने किया?” मैं ने दोबारा पूछा, इस बार मेरी आवाज़ में शेर की दहाड़ गूँज रही थी।
अन्विता ने सूखे गले से कहा, “ये कुछ नहीं है।”
लेकिन वो बहुत कुछ था। अब सब समझ में आने लगा था—कि मेरी धमकी के बावजूद भी वो मेरे अड्डे तक कैसे आ गई थी, वो भी नंगे पाँव, पीला चेहरा और धुँधली आँखें लिए।
“सुनो, नन्हीं।” मैं ने उस की ठोड़ी ऊपर उठा कर सीधा उस की आँखों में देखा।
“जिस दिन मुझे पता चल गया कि तुम्हारे साथ ये किस ने किया, वही उs का आख़िरी दिन होगा।” ये वादा मैं ने दिल से किया था और इसे जल्द पूरा भी करूँगा—इस में कोई शक़ नहीं था।
उस ने हल्की-सी मुस्कान दी—न ज़्यादा चमकीली, न ज़्यादा फीकी। “तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है कि मैं घायल हूँ? तुम ने तो मुझे मारने की कसम खाई है, याद है?”
उस का सीने मेरे बहुत क़रीब था और जैसे चुंबक खिंचते हैं, मैं उस की ओर खिंच रहा था।
“मैं तुम्हें तोड़ूँगा … और फिर मार दूँगा।”
मैं ने उस का निचला होंठ अंगूठे से छुआ। वो गुलाबी, मुलायम और भरे हुए होंठ थे।
“तब तक, सिर्फ़ मेरा हक है—” मैं उस के कान तक झुका और फुसफुसाया—“तुम्हें छूने का।”
मैं ने उस की साँस थमती सुनी, गले से धीमी-सी आवाज़ निकली। वही प्रतिक्रिया जिस की मुझे चाह थी। लेकिन अगले ही पल वो मुझ से पीछे हट गई।
“मैं तुम्हारी या किसी की नहीं हूँ। मैं यहाँ एक ही मक़सद से आई हूँ—और तुम्हें मेरी मदद करनी होगी।”
मैं ने अनमनेपन का भाव ओढ़ा और अपनी मेज़ पर बैठ गया।
“तुम्हारा बाप धनतेज मेरी गैंग का दुश्मन है, जिस का सरगना मैं हूँ। तो तुम मुझ से मदद क्यों माँग रही हो?”
“क्योंकि तुम ही एक हो जो उस आदमी को मार सकते हो जिसे मैं मारना चाहती हूँ।” वो सोफ़े के किनारे बैठ गई– “मेरे बाप का उस से कोई मुकाबला नहीं है; दोनों बिल्कुल एक जैसे हैं।”
क्या वो मेरे साथ कोई खेल खेल रही थी? उस का बाप ही गोवा में अकेला था जो मुझे चुनौती दे सकता था। हालाँकि, अगर वो चूहे की तरह छुपा न होता, तो मैं उसे अब तक मार चुका था।
“मान लो कि मैं तुम्हारी मदद कर दूँ और जिसे तुम मारना चाहती हो, उसे मार भी दूँ… तो मुझे ये क्यों करना चाहिए?”
“क्योंकि हमारा एक ही मक़सद है,” उस ने दृढ़ स्वर में कहा– “तस्वीर अभी धुंधली है, तुम शायद नहीं देख पा रहे, लेकिन एक दिन तुम्हें दिख जाएगा कि मैं तुम्हारे ही पक्ष में हूँ।”
मेरे गले में हँसी अटक गई और मैं हँस पड़ा।
“तुम मेरे पक्ष में हो? हफ़्ता भर पहले तुम ने मुझ पर गन तानी थी, नन्ही परी! और तुम्हारी वजह से मेरे इतने आदमी मरे हैं जितने कभी खुले युद्ध में नहीं मरे।”
“मुझे पता है।”
“अगर सच में पता है, तो मुझे बताओ आखिर तुम्हें मेरी मदद किसलिए चाहिए। फिर शायद मैं सोचूँ।”
वो बेशक धनतेज की बेटी थी—चालाक, चतुर, खतरनाक! लेकिन मैं तो इस खेल में उस वक्त से था जब वो पैदा भी नहीं हुई थी।
उस ने भारी साँस छोड़ी। “मैं तब तक नहीं बता सकती जब तक तुम मदद का वादा न करो।”
“मैं अंधे वादे नहीं करता।”
“मैं बदले में तुम्हें कुछ और दूँगी,” उस ने हड़बड़ी में कहा।
मैं ने हँसी दबाई। मुझे उस में कुछ ख़ास ऑफ़र नज़र नहीं आ रहा था, सिवाय उस के जिस्म के।
कसम से, उस की जैतूनी-सी त्वचा पर पड़े उन निशानों से मुझे नफ़रत थी। मुझे बस पता लगाना था कि उसे किस हरामी ने चोट पहुँचाई, इस के बदले में उस की मदद करना मेरे लिए अच्छा सौदा था।
“मुझे बता दो किस ने तुम्हें ये ज़ख़्म दिए, और..”
“मैं तुम्हें धनतेज प्रवल दूँगी।”
मेरी ऑंखें एक झटके में उस पर टिक गईं। क्या वो मज़ाक कर रही थी या मुझे फँसाने आई थी? लेकिन उस का चेहरा बिल्कुल सख़्त था, आँखों में भरी आग सच्ची थी। मुट्ठियाँ कस कर भींची हुई थीं। मुझे अब जवाब मिल गया था—उसे किस ने चोट पहुँचाई।
उसे मैं मौत से भी बदतर सज़ा दूँगा। इस की पीठ पर जितने वार पड़े, हर एक का दुगना उसे लौटाऊँगा। लेकिन उस से पहले, मुझे इस लड़की को अपना बनाना है।
“तुम सच में अपने बाप को मेरे हवाले करना चाहती हो?”
उस ने सिर हिलाया– “हाँ।”
मैं तिरस्कारपूर्वक हँसा, “तुम्हें लगता है मैं मान लूँगा कि तुम अपने ही बाप को धोखा दोगी?”
अन्विता एक बच्ची थी, शायद दिखने में नहीं, लेकिन सोच में। उसे लगा था मैं इतनी आसानी से उस की बातों के झाँसे में आ जाऊँगा।
“तुम्हें मानना होगा,” उस ने साहस से जवाब दिया– “क्योंकि सिर्फ़ मैं ही उसे तुम्हारे पास पहुँचा सकती हूँ और मैं हमेशा अपने शब्दों पर कायम रहती हूँ।”
प्रवल लोग अकड़ू होते हैं। वो एक-दूसरे का गला काट सकते हैं, एक-दूसरे का ख़ून पी सकते हैं, लेकिन किसी और को अपने बीच दख़ल नहीं करने देते। और मेरी ये नन्हीं अन्विता, उन्हीं में से थी।
मेरे होंठों पर शैतानी मुस्कान फैल गई, “साबित कर दो, फिर मैं तुम्हारी मदद करूँगा।”
उस की आँखों में संकल्प की आग जल रही थी। उस के चेहरे की कठोरता को मैं पढ़ पा रहा था।
“तुम जो चाहोगे, वो करूँगी।”
“अगर मैं तुम्हारा ख़ून माँग लूँ तो?”
“मुझे परवाह नहीं। मैं ने इतना ख़ून खो दिया है कि अब और कितना खो दूँ, फ़र्क़ नहीं पड़ता।”
अन्विता बहुत साहसी थी—इतनी कि ये साहस उस के लिए ख़ुद ख़तरा बन सकता था।
मैं खड़ा हुआ और कमरे के कोने में रखे छोटे-से फ़्रिज़ की ओर गया।
“पिछली बार तुम्हें मेरी शराब पसंद आई थी, है ना?”
मैं ने फ़्रिज़ से आधी भरी बोतल और दो छोटे गिलास निकाले और उसकी तरफ़ बढ़ाया।
उस ने गिलास की ओर देखा, फिर मुझे।
“मुझे नहीं पीनी।”
“मैं ने तुम से पूछा नहीं।”
मैं ने एक गिलास उस के हाथ में ठूँसा और उस में भूरे रंग की शराब भर दी। अपने लिए भी एक भर लिया।
“इस धंधे में एक बात तो तुम्हें पता होनी चाहिए—शराब शेयर करना सौदा पक्का करने का तरीका है।”
उस ने गिलास को नाक तक ला कर सूँघा, फिर हिचकते हुए होंठों तक ले गई।
गर्म, कड़वा तरल उस की जीभ और गले से उतरते ही उस का चेहरा बिगड़ा, फिर भी उस ने निगल लिया।
“इस का मतलब है कि अब हमारा सौदा पक्का हो गया?” उस ने गिलास नीचे करते हुए पूछा– “क्या अब तुम मेरी मदद करोगे?”
मैं उसे देख कर मुस्कराया, फिर पलट कर अपनी सीट पर लौटा।
“उस से पहले एक और शर्त है।”
⋙ (...To be continued…) ⋘
“मेरे साथ खेल मत खेलो, अभय।”
“मैं खेल नहीं रहा, लेकिन मैं कभी भी अन्विता जैसी लड़की के साथ लापरवाह नहीं हो सकता।”
उस के हाथ गुस्से से काँप रहे थे और आँखों से जहर टपक रहा था। “बताओ, शर्त क्या है?”
“शाबाश लड़की।” मैं ने एक ही घूँट में अपना पैग खत्म किया और खाली गिलास मेज़ पर रख दिया– “तुम्हें मुझ से शादी करनी होगी।”
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Anvita's POV____
उस रात मैं ने अपनी इच्छा के विरुद्ध शैतान से सौदा कर लिया और मुझे महसूस हो रहा था कि इस की कीमत मुझे अपनी जान से चुकानी पड़ेगी।
जब मैं एक घंटे पहले शेरावत क्लब में दाख़िल हुई थी, मुझे खुद नहीं मालूम था कि मैं यहाँ क्या करने आई हूँ या क्यों आई हूँ। लेकिन जैसे ही मेरी मुलाक़ात अभय से हुई, दिमाग़ में एक चमक सी कौंधी। एक तीर से दो शिकार, यही तो मुझे करना था।
मेरे सामने दो दानव थे जिन्हें मुझे मिटाना था—मेरा बाप और अभय। सुना था कि अभय निर्दयी और ख़ूंख़ार है, लेकिन मेरी नज़र में वह मेरे बाप के सामने फ़रिश्ता लगता था। मसलन, अगर मैं ने बाप के क्लब पर हमला किया होता, तो वे मुझे देखते ही गोली मार देते, पर अभय ने ऐसा नहीं किया था।
एक तरफ़, उसे मेरी चोट की परवाह थी; दूसरी तरफ़, वो मेरा बाप था जिस ने मुझे चोट पहुँचाई थी। मैं दो शैतानों के बीच फँसी हुई थी और अब मुझे कम बुरे शैतान का चुनाव करना था—अभय। मैं उस का इस्तेमाल अपने बाप को खत्म करने में करूँगी क्योंकि मैं खुद उन के ख़ून से अपने हाथ नहीं रंगना चाहती थी। फिर अभय को भी मार डालूँगी और इस हरामज़ादे अंडरवर्ल्ड को जला कर राख कर दूँगी—चाहे मैं भी उसी आग में क्यों न जल जाऊँ।
मुसीबत ये थी कि अभय मुझे शादी के लिए मजबूर कर रहा था और मुझे चिता पर लेट जाना पसंद था पर उस से शादी कभी नहीं।
“तुम पागल हो।”
उस के होंठ एक टेढ़ी मुस्कान में ढल गए—इतनी खतरनाक मुस्कान कि ख़ुद शैतान भी देख कर काँप उठे।
“जानता हूँ। अगर पागल न होता तो एक प्रवल को शादी के लिए क्यों पूछता?”
“सपने देखो, मैं तुम्हारे साथ कीचड़ में नहीं लोटूँगी।”
उस ने अपने सलीके से संवरे हुए काले बालों पर हाथ फेरा, नज़रें मेरे चेहरे पर थीं और फिर धीरे-धीरे मेरे खुले सीने पर उतर आईं। मैं ने जताया जैसे मुझे उस की पैनी निगाहों का असर नहीं हो रहा। मैं बिखर नहीं सकती थी। अभी नहीं।
“तुम्हें आज रात आराम करना चाहिए। मैं नहीं चाहता कि हमारी शादी में तुम बेहोश हो जाओ।”
हे भगवान, अभी इसी वक़्त मैं इस आदमी की छाती में चाकू घोंपना चाहती हूँ!
“तुम ने मेरी बात सुनी नहीं क्या?” मैं तेज़ी से बोली– “हम दोनों की शादी कभी नहीं हो सकती। मेरा जवाब है—नहीं।”
“कोई मुझे ना नहीं कहता, नन्ही।”
मैं व्यंग्य से बोली, “तो मुझे पहली समझो। मैं ने तुम से वादा किया है कि मैं तुम्हें धनतेज प्रवल दूँगी और मैं कभी अपना वादा नहीं तोड़ती।”
“मुझे क्यों नहीं यक़ीन होता?” उस ने शंकायुक्त आँखों से घूरा। सच तो ये है कि वह इतना जवां दिखता था कि यक़ीन करना मुश्किल था, चालीस का है। मेरे भीतर एक टीस उठी जब याद आया कि पिछली बार जब वह मेरे पीछे खड़ा था, उस के जिस्म की गर्मी और सख्ती ने मुझे छू लिया था। धत्त तेरी!
“तुम प्रवल हो और प्रवल कभी अपने वादों पर नहीं टिकते।”
वह सही कह रहा था, मैं प्रवल थी और हमारे बारे में यही मशहूर था कि हम इस गंदी दुनिया में अक्सर अपने वादों से मुकर जाते हैं। और ये भी सच है कि मैं ने उस से बाकी सच्चाई छिपा ली थी—कि उस का इस्तेमाल कर के अपने पिता को गद्दी से उतारते ही उसे भी मार डालूँगी। मगर, अपने दिए वादे से नहीं मुकरने वाली थी मैं।
“मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि तुम मुझ पर यक़ीन करते हो या नहीं, लेकिन मैं तुम से शादी नहीं करने वाली।” एक नियम मैं ने सीखा था—जब कभी किसी कुख्यात माफ़िया सरगना से सौदा करना हो तो कभी भी हताश मत दिखो। बस पेशकश रख दो और फिर उसे बाक़ी की बातें गुर्राते हुए खुद कहने दो, ठीक वैसे जैसे कुत्ता हड्डी के लिए करता है।
“अगर तुम्हें मेरे सौदे से सहमत होना है, तो तुम जानते हो मुझे कहाँ ढूँढना है।” मैं गद्दी से उठी, अपनी ड्रेस उठाई और पहन ली– “हैव ए गुड इवनिंग अभय शेरावत।”
अभय ने मेरे कहे का कोई जवाब नहीं दिया; बल्कि वह गहरी सोच में डूबा हुआ लग रहा था। जब मैं उस के ऑफिस से निकलने वाले लोहे के दरवाज़े की ओर बढ़ी, उस की आँखें अपनी पीठ पर चुभती महसूस कीं। मेरे मन का एक हिस्सा चाहता था कि वह मुझे रोक ले और मेरे सौदे को मान ले। जैसे ही वापस हवेली लौटने का ख़याल आया, मेरे पेट में अजीब-सी घबराहट और बेचैन तितलियाँ उड़ने लगी थीं।
जैसे ही मैं ने दरवाज़ा खोला, गहरे नीले रंग की आँखें सामने आ खड़ी हुईं—वह चेहरा अभय से बेहद मिलता-जुलता था। वह रास्ते को इस तरह रोक कर खड़ा था कि कोई जगह बची ही नहीं थी जिस से मैं निकल पाती। मैं ने सुना था कि अभय के तीन भाई हैं। जो मुझे बंदूक तानकर क्लब के अंदर लाया था, वह एक था। उस का चेहरा तो इन दोनों जैसा नहीं था, लेकिन आँखों का वही गहरा नीला रंग था।
इस शख़्स के पास गन नहीं थी, लेकिन मांसल काया देख कर अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि इसे डराने के लिए हथियार की ज़रूरत ही नहीं। लगता था जैसे वह बिना मेहनत के किसी का भी सिर तोड़ कर चूरमा बना सकता है। दरवाज़े से हटने के बजाय वह वहीं जमा रहा, मानो मुझे इशारा कर रहा हो कि वापस अंदर जाओ।
मैं पलटी तो देखा कि अभय के होंठों पर एक हल्की-सी शैतानी मुस्कान तैर रही थी, वैसी ही जैसी किसी पिशाच के चेहरे पर खून पीने के बाद आती है।
“क्या तुम्हें और कुछ कहना है?”
अभय ने अपनी भौंह हल्की सी उठाई– “बहुत कुछ कहना है। शुरू करते हैं इस बात से कि तुम उस दरवाज़े से बाहर नहीं जाओगी।”
“तुम मुझे क़ैद करना चाहते हो?” सच्चाई ने मुझे जोरदार तमाचा जड़ा। मैं खुद अपने पैरों से नर्क में चली आई थी और अब ज़िंदा लौटने के आसार कम थे।
“क्या मेरे पास तुम्हें बंधक बनाने की कोई वजह है, हाँ?” अभय की आवाज़ में झुंझलाहट थी, जब वह अपनी मेज़ छोड़ कर मेरी ओर बढ़ा। उस की ख़ुशबू मेरी साँसों में भर गई और मुझे मदहोश करने लगी।
⋙ (...To be continued…) ⋘
“मेरा इरादा तो तुम्हें अपनी पत्नी बनाने का है।” उस के लहजे में मज़ाक और तिरस्कार झलक रहा था, जैसे मैं कोई मूर्ख हूँ।
मेरे पापा मुझे हमेशा “मूर्ख” कहते थे। इस पल उन से पहली बार पूरी तरह सहमत महसूस हुई थी मैं। जिस हिम्मत और दृढ़ निश्चय के साथ मैं इस क्लब में दाख़िल हुई थी, वह अब पसीने के साथ जिस्म से बह रहा था।
“तुम मुझ से चाहते क्या हो?”
अभय की मुस्कान और चौड़ी तथा गहरी हो गई। उस ने मेरा चेहरा अपने हाथों में थामा और अपने होंठ मेरे कानों तक ला कर फुसफुसाया। उस की तपती साँसों ने मेरी त्वचा सुलगा दी थी।
“सब कुछ।”
उस की आवाज़ मेरे कानों में गूँजी और मेरे पैरों में कंपन होने लगी। पीठ फिर से दर्द करने लगी और दिमाग़ इस हालत से निकलने का रास्ता खोजने में उलझ गया। अभय बदनाम था औरतों पर अपने नशे का ज़हर आज़माने और उन की तस्करी करने के लिए। और मैं सिर्फ़ कोई औरत नहीं थी, मैं तो उस के सब से खूँख़ार दुश्मन की बेटी थी। अगर उस ने मुझे क़ैद कर लिया तो मेरे साथ क्या होगा, ये सिर्फ़ ऊपर वाला ही जानता था।
मैं ने जितना हो सकता था उतना आत्मविश्वास दिखाने की कोशिश की।
“मैं यहाँ अपनी मर्ज़ी से आई हूँ।” मेरी आवाज़ में आई दरार मुझे धोखा दे गई– “तुम्हें मुझे क़ैद करने की ज़रूरत नहीं है, न ही मुझ से शादी करने की। बस मेरी डील मान लो और मैं तुम्हारी हो जाऊँगी।”
कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया जिस ने मेरे सीने में तूफ़ान खड़ा कर दिया।
“तुम्हारी मर्ज़ी उसी वक़्त ख़त्म हो गई थी जब तुम मेरे क्लब में दाख़िल हुई थी।”
आख़िरकार अभय ने चुप्पी तोड़ी, उस की बातों ने मेरे पेट में मरोड़ पैदा कर दिया।
“नहीं, तुम्हारी मर्ज़ी तो तब ही ख़त्म हो गई थी जब मेरी निगाह तुम पर पड़ी। मैं वैसे भी तुम्हें लेने आ ही रहा था। मुझे तुम्हारी डील की ज़रूरत नहीं है वो पाने के लिए जो मैं चाहता हूँ, जैसे मुझे तुम्हारी इजाज़त की ज़रूरत नहीं है तुम्हें अपना बनाने के लिए।”
उस ने अपना अंगूठा मेरे होंठों पर फेरा—इतनी नरमी से, जैसे उस ने अभी-अभी मेरी आज़ादी छीन कर मुझ पर कोई अहसान किया हो।
अब कोई रास्ता नहीं बचा था। उस की बातों ने मेरी तक़दीर मोहरबंद कर दी थी। लेकिन मैं चुपचाप खड़ी हो कर उसे मेरी उँगली में अंगूठी पहनाने का मौक़ा नहीं देने वाली थी।
अगर बातों से काम नहीं बनेगा, तो शायद मेरे पैर मदद करेंगे।
पहली बार मुझे अपने बाप के ज़िद्दी लड़ाकू प्रशिक्षण की अहमियत समझ आई।
“ठीक है।” मैं ने जबरन मुस्कान ओढ़ ली ताकि अपने अगले क़दम को छिपा सकूँ, “तुम मुझे पा सकते हो, लेकिन मुझे कपड़े बदलने होंगे।”
अभय की हँसी में शक साफ़ झलक रहा था। बेशक, शक तो होना ही था—वह जानता था कि मैं इतनी आसानी से उस का कहा नहीं मानूँगी। और यही तो मैं उसे सोचवाना चाहती थी।
“अगर मेरे साथ चाल चली तो उस की क़ीमत तुम्हारी जान होगी। भूलना मत।” उस ने अपने भाई की ओर देखा।
“इसे ले जा।”
जैसे ही अभय ने पीठ मोड़ी, मैं उस के भाई की तरफ़ मुड़ी और चेहरे पर सब से चालाक मुस्कान लाई। लेकिन उस के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया। वो शायद उस किस्म का आदमी था जिसे शायद जान लेने के अलावा किसी और चीज़ में मज़ा नहीं आता था। वह दरवाज़े से हट गया ताकि मैं निकल जाऊँ। यह उस की गलती थी।
मैं ने अपने हाथ उस की आँखों में दे मारे और उस के गुप्तांग पर जोरदार लात मारी। वह कराह उठा और मैं ने उसे धकेल कर दूर किया और तुरंत भाग खड़ी हुई। पीठ अभी भी दर्द कर रही थी, लेकिन एड्रेनलिन ने शरीर पर क़ब्ज़ा कर लिया था।
[ writer's note :- एड्रेनलिन (Adrenaline) एक हॉर्मोन और न्यूरोट्रांसमीटर है, जो शरीर को अचानक तनाव, डर या उत्साह की स्थिति में तुरंत ऊर्जा और ताक़त देता है।
👉 इसे ही “फाइट या फ्लाइट” (Fight or Flight) हॉर्मोन कहते हैं। ]
जैसे ही मैं ऑफिस की सीढ़ियाँ उतरने लगी, कानों में ज़ोरदार संगीत गूंजने लगा। मुझे नहीं पता कि अभय या उस का भाई मेरे पीछे दौड़े या नहीं और मैं ने मुड़ कर देखने की कोशिश भी नहीं की। क्योंकि ऐसा करने से रफ़्तार धीमी होती और पकड़े जाने का ख़तरा बढ़ जाता। मैं नाचते हुए झुंड में समा गई, उन के बीच से रास्ता बनाती हुई भागी। झिलमिलाती लाइट्स आँखों पर इस क़दर पड़ रही थीं कि मुझे इन्हें संकुचित करना पड़ा ताकि रोशनी का असर कम हो सके।
भीड़ के आख़िरी हिस्से में पहुँचते ही क्लब का काँच का दरवाज़ा नज़रों में आया। मैं ने राहत की साँस ली और ठान लिया कि चाहे जो हो, वहाँ तक पहुँच कर ही रहूँगी।
“बस एक कदम और अन्वि… तुम ये कर सकती हो।” मैं ने खुद से कहा।
दरवाज़े का चौकोर हैंडल पकड़ा और जब उसे खोलने वाली थी, मज़बूत बाँहें मेरी कमर के चारों ओर कस गईं। पूरा शरीर तन गया।
वही परिचित वाइट मस्क और पचौली की ख़ुशबू हवा में घुल गई।
“तुम्हें लगता है मुझ से बच निकलना इतना आसान है?” उस की भारी आवाज़ मेरे कानों में गूँज गई।
“गुड गर्ल बनो, अन्विता… और भागने की कोशिश मत करो।”
उस का दूसरा हाथ मेरी कमर से सरकता हुआ ऊपर आया और गर्दन को जकड़ लिया। साँसें थमने लगीं, लेकिन लड़ने की ताक़त अब मुझ में नहीं थी।
वो दरवाज़ा धुँध में गुम हो गया, संगीत धीमा पड़ गया और आँखों के सामने बस एक चेहरा उभरा—मेरा अपना चेहरा, जो मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था।
मेरे पाँव शरीर का वज़न उठाने से हार गए। बरसों बाद एक अजीब-सी शांति ने मुझे घेर लिया था। मुझे पता था कि ये मेरा अंत है… और ये सब से सुकून देने वाली बात थी।
अँधेरा मुझे अपनी ओर बुला रहा था और मैं ने कोई विरोध नहीं किया।
अपनी बाँहें फैला दीं… और उसे गले लगा लिया।
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मैं ने कभी नहीं सोचा था कि स्वर्ग की महक सिगरेट और शराब जैसी होगी। या शायद मैं स्वर्ग में नहीं, बल्कि नर्क में थी।
मैं ने आँखें खोलने की कोशिश की, लेकिन ये बहुत भारी लग रही थीं, मानो मेरी हों ही न। बैकग्राउंड में आवाज़ें सुनाई दे रही थीं—भारी, मर्दाना आवाज़।
⋙ (...To be continued…) ⋘
एक गीला तौलिया मेरी गर्दन पर लगाया गया और तभी मेरी आँख खुली, लेकिन बस दो सैकेंड के लिए।
धुंधला-सा चेहरा मेरे करीब था, उस की आँखों का रंग साफ़ नहीं दिखा, पर मुझे महसूस हुआ कि वो जिज्ञासा से मेरे चेहरे को परख रही थीं। फिर उस ने कुछ बुदबुदाया, जिसे मैं समझ नहीं पाई। पर आवाज़ सुनते ही पहचान गई–– “अभय शेरावत।”
मेरी आँखें बंद हो गईं और अंधेरा छा गया।
जब दोबारा होश आया तो ठंडे, नरम हाथ मेरी पीठ पर कुछ मल रहे थे। मैं पेट के बल लेटी थी, छत की ओर पीठ कर के, एक अनजान बिस्तर पर। यह आरामदायक था, मेरे अपने बिस्तर से कहीं ज़्यादा गर्म। मैं ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं और कमरे का जायज़ा लिया। कमरे में ज़्यादा कुछ नहीं था, बस बिस्तर के सामने एक सागवान की ड्रेसिंग टेबल और एक स्टैंडिंग लैंप जल रहा था। खिड़कियों पर चेरी जैसे लाल परदे टंगे थे, जो ऊपर छाए लाल कैनोपी और गद्देदार हेडबोर्ड से मेल खाते थे।
मेरी नज़र सीने पर आई तब अहसास हुआ कि मैं बिल्कुल निर्वस्त्र थी, यहाँ तक कि अंडरवियर भी नहीं। मैं ने करवट लेने की कोशिश की, मगर जो भी मेरी पीठ पर मरहम लगा रहा था उस ने अपना वज़न डाल कर रोक दिया।
“हिलो नहीं; तुम्हारे घाव अभी भरे नहीं हैं।”
मैं स्थिर रही और सिर घुमा कर उस की तरफ़ देखा। उस के बाल कौए जैसे काले थे, जूड़े में बंधे हुए। नीली आँखें, बिलकुल अभय जैसी, और चेहरा उतना ही सख़्त। उम्र में मुझ से बड़ी नहीं लग रही थी।
“तुम कौन हो और मैं कहाँ हूँ?” पता नहीं यह पूछना सही था या नहीं, ख़ास कर उस इंसान से जिस ने शायद न जाने कब से मेरे ज़ख्मों का ध्यान रखा। और यह पूछना कि मैं निर्वस्त्र क्यों हूँ, मूर्खता होती––मरहम लगाने के लिए तो कपड़े उतारने ही पड़ते हैं।
“शेरावत हवेली। तुम क्लब में बेहोश हो गई थीं और बॉस ने सोचा तुम्हें घर ले आना ही बेहतर होगा।” उस ने समझाया– “वो किसी औरत को घर लाने वाले इंसान नहीं हैं, तो मुझे लगता है कि तुम उन के लिए अहमियत रखती हो।”
वो नीच इंसान। ज़ाहिर है मैं उस के लिए ज़रूरी हूँ, क्योंकि मुझे ज़िंदा रख कर सिर्फ़ मेरे बाप के बारे में जानकारी निकालना चाहता है।
“तुम्हारा बॉस कहाँ हैं?”
उस ने तौलिये से मेरी पीठ को हल्के हाथ से पोंछा, फिर उसे पानी के कटोरे में डाल दिया और बिस्तर से उठ गई।
“अब तुम करवट ले सकती हो,” उस ने कहा, मेरे सवाल को अनदेखा करते हुए।
“पहनने के लिए कुछ है?”
उसने बेड के सामने ड्रेसिंग टेबल की ओर सिर हिलाया, जहाँ गोवा के सब से बड़े फैशन स्टोर के ढेरों शॉपिंग बैग रखे थे।
“उन में कुछ मिलेगा।” उस ने कटोरा उठाया और कमरे से निकलने लगी, मगर दरवाज़े पर रुक गई।
“बॉस अच्छे हैं, लेकिन उन में सब्र नहीं। कोई चाल चलने की कोशिश मत करना। उन की बात मानो, तो तुम्हें चोट नहीं पहुँचेगी।” उस ने पीछे मुड़ कर मुझे देखा और कमरे से चली गई।
शायद मेरा सिर बहुत बुरी तरह चोटिल हो गया था, तभी तो मैं ने उस की चेतावनी का ग़लत मतलब निकालने का फ़ैसला किया। मैं ने ठान लिया––मैं अभय को बार-बार उकसाऊँगी, जब तक कि उस के पास मुझे मार डालने या आज़ाद करने के अलावा कोई और रास्ता न बचे।
मैं बहुत सावधानी से उठी, पीठ को चोट न लगे इस का ध्यान रखते हुए, लेकिन अजीब बात थी––कहीं कोई दर्द ही नहीं था। जैसे कि मुझे कभी कोड़े पड़े ही न हों। लानत है! यहाँ कितने समय से पड़ी हूँ? यह पूछना ही भूल गई।
मैं ड्रेसिंग टेबल के पास गई और वहाँ रखे कपड़ों में कुछ आरामदायक खोजने लगी।
एक सिल्वर कलर की डिनर ड्रेस थी, पीछे से बिल्कुल खुली, साथ में हील्स। दूसरी एक ब्लैक ड्रेस थी, बिना आस्तीन की और इतनी बड़ी स्लिट के साथ कि अगर पहन लिया तो सब कुछ दिख जाए। मैं ने दूसरे बैग देखे। उन में और भी कपड़े थे, ज़्यादातर स्ट्रिपर्स के लिए डिज़ाइन किए गए लग रहे थे। मुझे कपड़ों के ज़्यादा खुलेपन से कोई ऐतराज़ नहीं था, लेकिन इस वक्त मेरा शरीर किसी भी तरह अच्छा महसूस नहीं कर रहा था।
आख़िरी बैग में ढेरों पैंटी और ब्रा थीं! धत्त तेरी! मुझे बस दो टी-शर्ट्स और ओवरसाइज़ शॉर्ट्स चाहिए।
खैर, मैं ने एक थॉन्ग पैंटी पहनी और अपना सीना ढकने के लिए खुद को बाहों में लपेट लिया क्योंकि वो ब्रा पहनने से अच्छा था कि मैं पहनूँ ही ना।
मैं जिस कमरे से निकली, उस के बाहर का गलियारा इतना सफ़ेद था कि शायद स्वर्ग भी इतना सफ़ेद न हो। बस दीवारों पर टंगे ब्लैक-इंक पोर्ट्रेट्स उस की सफेदी को भंग कर रहे थे। आस-पास कोई और कमरा नहीं दिखा, लेकिन एक सीढ़ी थी जो शायद नीचे जाती थी।
मैं सीढ़ियाँ उतरने लगी, तभी हल्की-हल्की आवाज़ें सुनाई दीं। कोने में अभय, क्लब में मिले दो भाई और तीन और आदमी आपस में बात कर रहे थे। उन्होंने अभी तक मुझे नहीं देखा था, लेकिन मैं आख़िरी कुछ सीढ़ियों पर रुक गई।
उन में से एक ने मेरी ओर देखा तो अभय को इशारा किया। उस की नज़र मुझ पर पड़ी, तो आईब्रोज़ सिकुड़ गईं और आँखें क्रोध से लाल हो उठीं। अभय नीली जींस और सफेद टी-शर्ट में था, जिस से उस के मसल्स और भी उभरे हुए थे। मुझे मानना पड़ा कि वह उन सादे कपड़ों में बेहद कयामत लग रहा था।
मैं ने पहले कभी उस के हाथ और गर्दन पर बने टैटू नहीं देखे थे। अब तक वो हमेशा फुल स्लीव शर्ट में ही नज़र आया था—न्यूज़ में हो या मेरी उस से पहले की दो मुलाकातों में।
टैटू आम-से काले पत्तों, लाल गुलाबों और सफ़ेद खोपड़ियों का था—उस के जैसे आदमी के लिए बिल्कुल मुफ़ीद।
वह मेरी ओर आया, कलाई पकड़ी और इतनी तेज़ी से ऊपर घसीट ले गया कि मुझे लगभग दौड़ना पड़ा। उस ने मुझे कमरे में धकेला और दरवाज़ा ज़ोर से बंद कर दिया।
“तुम ने ये करने का सोचा भी कैसे?”
“क्या किया मैं ने?”
समझ नहीं आया कि उसे गुस्सा इस बात का था कि मैं कमरे से निकली, या इस बात कि उसे लगा मैं उस की बातें सुन रही थी।
उस की नज़रें मेरे सीने पर अटक गईं, फिर धीरे-धीरे नीचे तक फिसल गईं।
“तुम मेरे घर में ऐसे नहीं घूम सकती, बस एक छोटे से कपड़े के टुकड़े में और बिना ब्रा के।”
मेरे होंठों से हल्की हँसी फूट गई।
“वाह, यह तो बड़ा ख्याल रखा जा रहा है—ज़रा सोचो, तुम ने मुझे अपने ऑफिस में नंगा होने को कहा था, ज़्यादा समय नहीं हुआ है।”
“खुद को बहुत होशियार समझती हो, लेकिन तुम हो नहीं।”
⋙ (...To be continued…) ⋘
अभय ने मेरे हाथ मेरी छाती से हटाए और बेहयाई से अपनी नज़रें गड़ा दीं, जैसे उसे पूरा हक़ हो। मुझे नफ़रत थी कि मेरा शरीर उस की नज़रों पर यूँ प्रतिक्रिया दे रहा था।
“मैं ने तुम्हें इस की इजाज़त नहीं दी,” मैं चिल्लाई– “मैं ने तुम्हारी पत्नी बनने की हामी नहीं भरी थी।”
“मुझे तुम्हारी इजाज़त की ज़रूरत नहीं, नन्हीं परी।” उस ने पलट कर कहा– “मैं जो चाहूँ, ले लेता हूँ—तुम्हें भी।”
हाँ, यही तो एक सच्चे शेरावत का अंदाज़ था—अहंकारी और मालिकाना।
“तो अब क्या करें?” मैं ने उसके और करीब कदम बढ़ाए। शेर अक्सर इंसानों पर तभी हमला करते हैं जब डर महसूस कर लेते हैं—अभय भी उन घमंडी जानवरों से अलग नहीं था और मैं भी नहीं। “अगर मुझे भी तुम से कुछ चाहिए तो?”
उस ने मेरा गला पकड़ लिया, इतना हल्का कि मेरी जान न जाए, मगर इतना मज़बूत कि मेरे गाल जलने लगे और शरीर पिघलने को बेताब हो गया।
“तुम्हें बस माँगना है, नन्हीं।” वह और करीब झुका, यहाँ तक कि मेरी छाती उसकी कठोर ऐब्स से सट गई। बस इतनी नज़दीकी में ही मैं सिहर उठी, जैसे चरम पर पहुँच जाऊँगी।
“मैं ने माँगा था, तुम ने मना कर दिया।”
“क्योंकि तुम ने मुझे सही जवाब नहीं दिया। तुम्हारी पीठ पर ऐसे निशान किस ने छोड़े, छोटी?” उस की गहरी आँखें मेरी आँखों में जमी थीं, उसे देख कर लग रहा था कि बस नाम सुनते ही बंदूक उठा लेगा और जंग छेड़ देगा।
“मैं बताऊँगी, पर पहले मुझे पक्का यक़ीन होना चाहिए कि तुम मेरे साथ हो।”
भले ही मैं तुम्हारे साथ नहीं हूँ।
“ठीक है।” उस ने गला छोड़ दिया– “तुम यहीं रहोगी, जब तक मुझे बताती नहीं कि तुम्हें किस ने चोट पहुँचाई।”
“अगर मुझे यहाँ रहना है, तो कुछ आरामदायक कपड़े चाहिए होंगे।” ये शब्द मेरे मुँह से निकल चुके थे, इस से पहले कि मैं रोक पाती। ये मैं ने क्या कह दिया? क्यों मैं ने उस के पास रुकने का विचार भी किया?
अभय कमरे से बाहर गया और सलीके से तह किए कपड़ों के एक ढेर के साथ लौटा, सारे काले और सफेद।
“ये पहन लो।”
क्या वे उस के कपड़े थे? उन में उस की खुशबू आ रही थी। क्या मैं सचमुच अभय के कपड़े पहनने वाली थी? मैं ज़रूरत से ज़्यादा उत्साहित हो रही थी—जब कि कैद करने वाले के कपड़े पहनने में तो बिल्कुल भी उत्साह नहीं होना चाहिए।
“ये चलेंगे ना?” उस ने पूछा।
“फिलहाल काम चल जाएगा।” मैं ने जवाब दिया, कपड़े खोल कर देखे तो सब डिज़ाइनर ब्रांड के थे, बिल्कुल वैसे ही जैसे मुझे पसंद थे। पता चला अभय और मेरी एक चीज़ कॉमन थी—गोवा की अंधेरी दुनिया के अलावा।
वो दीवार से टिक कर मुझे देख रहा था, जब मैं उस के लाए कपड़ों में से एक काली ढीली शॉर्ट्स और एक ओवरसाइज़ स्लीव-लेस टी-शर्ट पहन रही थी।
“तुम ने मुझे शुक्रिया नहीं कहा, नन्ही।”
सच तो ये है कि मैं ने तो अब तक ये भी ध्यान नहीं दिया था कि वो मुझे “नन्हीं” कह कर बुलाता था। मैं कोई बच्ची नहीं थी, और ख़ास कर उस की तो बिल्कुल नहीं। और मुझे नफ़रत थी कि वह इस में मज़ा ले रहा था।
“मुझे लगता है तुम मेरा नाम जानते हो।”
अभय ने कंधे उचकाए– “जानता हूँ।”
“तो मुझे मेरे नाम से बुलाओ।”
“नहीं बुलाऊँगा।”
मैं ने उसे घूरा, सोच रही थी कि वहाँ तक पहुँचने और उस की गरदन दबा कर जान निकालने में मुझे कितनी ताक़त खर्च करनी पड़ेगी। कमीना साइकोपैथ।
“तो मुझे तुम्हें ‘डैडी’ कहना चाहिए, क्योंकि तुम ज़बरदस्ती मुझे नन्ही बुलाते हो।”
उस की आँखें शरारत से चमक उठीं, जैसे उस ने उस शब्द का कोई और मतलब निकाल लिया हो। “मुझे ये सुनना अच्छा लगा।”
खिड़की से आती धूप उस की सफेद शर्ट पर बिखर रही थी और उस की छाती पर बने टैटू की हल्की झलक दिखा रही थी—इतनी कि मेरी साँसें एक पल को थम गईं। हे भगवान, ये उम्रदराज़ आदमी जानलेवा ढंग से खूबसूरत है और मुझे ये मानने में कोई शर्म नहीं आ रही।
“तुम वाक़ई नीच इंसान हो, पता है तुम्हें?” मैं ने भौंहें चढ़ा कर कहा और वैनिटी पर बैठ गई– “मैं यहाँ कितने दिनों से हूँ?”
मैं ने दराज़ खोल कर ब्रश ढूँढ़ना शुरू किया।
“एक हफ़्ता।”
मैं ने इतनी तेज़ी से सिर उठाया कि गर्दन की हड्डियाँ चटकने लगीं। “एक हफ़्ता?”
जागने के बाद से मैं इतनी कंफर्टेबल थी कि पापा का ख्याल ही नहीं आया। वो तो अभी मुझे ढूँढ़ रहे होंगे और जब उन्हें पता चलेगा कि मैं असल में कहाँ हूँ, तब भगवान ही जानता है वो क्या करेंगे।
दोनों परिवारों के बीच जंग—ये तो मैं ने उस रात घर से निकलते वक्त सोचा भी नहीं था। मेरा गला रेगिस्तान की तरह सूख गया और मैं तुरंत खड़ी हो गई। “मेरे पापा... वो मुझे ढूँढ़ रहे होंगे।” मैं ने उस की आँखों में देखा।
“सोचो क्या होगा अगर उन्हें पता चल गया कि तुम ने मुझे मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उठा लिया और मुझ से शादी कर ली।”
अभय ने आँखें सिकोड़ कर मुझे ऐसे देखा जैसे मैं बकवास कर रही हूँ। “धनतेज प्रवल?”
“हाँ।” मैं ने सिर हिलाया– “तुम्हें मुझे वापस ले जाना होगा, प्लीज़। वो मुझे ढूँढ़ने के लिए किसी भी हद तक चले जाएँगे। जितनी जल्दी वो मुझे देखेंगे, उतना अच्छा होगा।”
“किस के लिए अच्छा होगा, नन्हीं?”
मेरे भीतर झुंझलाहट आग की तरह फैल गई। “तुम्हारे लिए। मेरे लिए। हम स बके लिए।”
मैं ने अपने ऊपर गुज़री हर सज़ा को दबाने की कोशिश करते हुए आँखें बंद कर लीं। अब पता नहीं वो मुझे क्या सज़ा देने वाले थे।
“प्लीज़, मुझे वापस ले चलो।”
“नहीं।”
मेरी आँखें चौड़ी हो गईं जब वो पास आया और मेरे ऊपर साया बन कर खड़ा हो गया।
“नन्हीं, अब मैं तुम्हारा मालिक हूँ। और अगर तुम्हें किसी आदमी से डरना चाहिए, तो वो मैं हूँ।” वो सही था, मेरे बाप तक ने उस जैसी दहशतगर्द शख़्सियत हासिल नहीं की थी। उस की पहचान ही दहशतनाक बुरे सपने की तरह थी।
“जब तक मैं न कहूँ तुम्हें कोई आज़ादी नहीं मिलेगी। समझी?”
शैतान। यही एक शब्द था जो मैं अभय के लिए इस्तेमाल कर सकती थी। लेकिन अजीब ये था कि उस की धमकियाँ डराने के बजाय मुझे सुकून दे रही थीं। मैं ने शारीरिक दर्द और अंदरूनी पीड़ा को बहुत गहराई से झेला था। मुझे शक था कि मेरे अपने बाप ने जो तकलीफ़ दी थी, उसे कोई और पार कर पाएगा—यहाँ तक कि कोई राक्षस भी नहीं।
⋙ (...To be continued…) ⋘
मैं ने शारीरिक दर्द और अंदरूनी पीड़ा को बहुत गहराई से झेला था। मुझे शक था कि मेरे अपने बाप ने जो तकलीफ़ दी थी, उसे कोई और पार कर पाएगा—यहाँ तक कि कोई राक्षस भी नहीं।
“यस।”
“गुड। अब बैठो।”
जैसे वह मुझे अपनी आज्ञाकारी बच्ची बनाना चाहता था, मैं भी वैसे ही मेकअप टेबल पर बैठ गई। मैं बस यह पूछने ही वाली थी कि क्या उस ने कभी मेरी माँ से मुलाक़ात की है, तभी बाहर से एक कोमल स्त्री स्वर गूँजा—
“अभय!”
उस आवाज़ को पहचानते ही अभय के चेहरे पर घृणा छा गई, मानो वह किसी ऐसी औरत की हो जिसे वह पास भी नहीं देखना चाहता—या शायद यह मेरी ही चाह थी कि वह उसे न देखे।
“लो, तुम यहाँ हो।” उस की आवाज़ कमरे में घुसने से पहले ही मौजूदगी का ऐलान कर चुकी थी। वनीला और जैस्मिन की खुशबू उस के साथ अंदर आई; ऐसी महक जो किसी को गहरी नींद में ले जा कर सब से मीठे सपने दिखा दे।
वह डिज़ाइनर टू-पीस पैंट और टॉप में थी, पैरों में लाल हील्स और उस के लंबे काले बाल कमर से भी नीचे तक लटक रहे थे। काश मैं कह पाती कि मुझे अपने लंबे बालों की याद आती है; पर नहीं। फिर भी उस के लहराते बाल देख कर एक पल को सोचा, क्या अभय को ऐसे बालों वाली औरतें पसंद हैं? आईने में अपनी कंधे तक की लटों को देख मैं ने अनजाने में आह भरी।
“मैं ने तुम्हें बहुत मिस किया,” उस ने अभय को गले लगाते हुए कहा और मुझे पूरी तरह अनदेखा कर गई। मुझे वह बिल्कुल नहीं भायी और यह सिर्फ़ जलन की वजह से नहीं था। उस की सुंदरता और चमक मुझे उतना नहीं डरा रही थी… क्या सच में?
“तुम गोवा कब लौटी?” अभय ने आलिंगन तोड़ते हुए पूछा।
“एक घंटा पहले, सोचा सब से पहले तुम से मिल लूँ।” उस ने ऐसे खिलखिला कर कहा जैसे कोई लड़की पहली बार अपने क्रश से मिल रही हो।
“तुम्हें पहले अपने बाप से मिलना चाहिए था।”
“क्यों? अपने मंगेतर से मिलने में क्या बुराई है?”
मंगेतर?
मेरी आँखें चौड़ी हो गईं और उसी क्षण अभय की निगाह मुझ से मिली। अगले पल उस ने उस लड़की का हाथ पकड़ा और उसे कमरे से खींच ले गया—ठीक वैसे ही जैसे मुझे खींच कर कमरे में लाया था।
यह सोचना मेरी बेवकूफी थी कि अभय शेरावत जैसा अमीर, हैंडसम आदमी अब तक कुंवारा होगा। अगर था भी तो, मेरी जैसी लड़की को क्यों घास डालेगा? उस के पास तो हसीनाएं थीं
मैं उसे पसंद नहीं करती थी, मगर मानना पड़ेगा, अगर करती भी, तो भी वो मुझे घास नहीं डालने वाला था।
मैं ने गहरी साँस ली और ध्यान फिर से मेकअप टेबल की दराज़ों पर केंद्रित किया, कोशिश करने लगी कि पिछले एक मिनट की याद मिटा डालूँ।
पूरा मंजर मेरे सीने में तेज़ाब बन कर जलने लगा था, इतना कि मैं बे-वजह शारीरिक दर्द महसूस करने लगी। एक दराज़ से ब्रश निकाल कर मैं ने बाल सँवारने शुरू किए, जब कि मन ही मन अभय शेरावत को मारने के अलग-अलग तरीक़े सोच रही थी।
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Abhay's POV____
मुझे अन्विता प्रवल को कैद में रखने से पहले अंदाज़ा लगा लेना चाहिए था कि
वह मुझे कितना पागल बना देगी। उस के हुस्न की तस्वीर मेरे दिमाग़ को सुन्न कर देती थी और खुद को काबू में रखने के लिए मुझे खून से सनी लाशों और कटे हुए अंग-अवयवों के बारे में सोचना पड़ता था, ताकि जब वह मुड़ कर खड़ी हो तो मैं उस के गोल-मटोल हिप्स पर हाथ मारने से बच सकूँ।
कमबख़्त, उस के बारे में सोचते ही फिर से मेरा जिस्म सख़्त और बेक़रार होने लगा था। ऐसी कमर और ऐसा शरीर देख कर यह कोई अचरज नहीं रहा कि अन्विता ने मेरे कुछ आदमियों को अपने जाल में फँसा कर मौत के घाट उतार दिया था। आय थिंक अगर धनतेज प्रवल ने उन्हें न मारा होता तो शायद मैं खुद ही मार डालता—ठीक वैसे ही जैसे मैं उन सब की यादें मिटा देना चाहता था, जो उस समय गलियारे में खड़े हो कर उसे कमरे से बाहर निकलते देख रहे थे।
सीढ़ियों पर उस का वह नज़ारा ऐसा था कि मैं चाहता था उस की एक पर्सनल तस्वीर या पेंटिंग बनवा लूँ, जिसे सिर्फ़ मैं देख सकूँ।
धिक्कार है मुझ पर, अगर किसी और ने मेरी अन्विता को नंगी आँखों से फिर देखा तो मैं उन्हें मार ही डालूँगा। भगवान कसम, चाहे वो मेरा भाई ही क्यों न हो।
तभी मेरे नाम की पुकार ने मुझे झकझोर कर अपने ख्याल से बाहर ला दिया। मैं भूल ही गया था कि यजना यहीं मेरे पास खड़ी है। मैं उसे अन्विता के कमरे से खींच कर बाहर हॉल तक ले आया था, ताकि उस की गंदी सोच मेरी नन्ही अन्विता को छू भी न पाए। लेकिन फिर भी मैं उस की मौजूदगी को भूल गया क्योंकि उन छोटे कपड़ों में अन्विता की कमर का मटकना मुझे सताए जा रहा था।
मैं ने अन्विता से बस दो बार मुलाक़ात की थी, पर उस की मौजूदगी हर उस औरत से भारी थी जिसे मैं ने बे-लिबास देखा या बिस्तर पर पाया था। यहाँ तक कि इस झल्लाई हुई औरत से भी।
“तुम ने बताया नहीं कि तुम्हारी अगली रखैल धनतेज प्रवल की बेटी है,” यजना ने बाँहें सीने पर मोड़ते हुए पूछा– “बताओ, क्या वह मुझ से बेहतर है बिस्तर में?”
मेरे भीतर गुस्सा भड़का। मुझे नफ़रत हुई जब यजना ने अन्विता को रखैल कहा, ज बकि असल में यह नाम उसी पर फबता था।
“क्यों? क्या अब तुम अपनी काबिलियत बढ़ाने के लिए गोवा के आधे मर्दों के साथ सोने का इरादा रखती हो?”
उस ने आँखें घुमाईं– “अरे चलो भी, जैसे तुम तो गोवा की आधी औरतों के साथ कभी सोए ही नहीं।”
यह उस की तरफ़ से महज़ बढ़ा-चढ़ा कर कही गई बात थी। साफ़ था कि वह चाहती थी मैं अपने पुराने किस्से छेड़ूँ ताकि उसे फिर से उम्मीद मिल सके। लेकिन मैं ऐसा नहीं करने वाला था।
मैं बोला – “मुझे पूरा यक़ीन है तुम्हारा नंबर मुझ से कहीं ज़्यादा है।”
“जाओ, मुझे क्या,” यजना ने हाथ लहरा दिया। मुझे उस की लंबे नकली नाखूनों से नफ़रत थी, वैसे भी मुझे उस की हर चीज़ से चिढ़ थी। उस की हर बात नकली थी—उस का बर्ताव, होंठ, लंबे बाल, सीना, और पिछवाड़ा सब। साला, मैं ने उस से ज़्यादा नकली इंसान कभी नहीं देखा।
“तो, बिना बताए यहाँ आने की कोई वजह?” मेरी आवाज़ में खीज़ छुपाए नहीं छुप रही थी।
“क्यों? अपने मंगेतर से मिलने के लिए मुझे इजाज़त लेनी होगी क्या?”
⋙ (...To be continued…) ⋘
मुझे उस की एक और बात से नफ़रत थी—उस का वहम।
“मैं अब तुम्हारा मंगेतर नहीं हूँ, यजना।” मैं ने छह महीने पहले ही सगाई तोड़ दी थी, जब मुझे पता चला कि वह अपने जिम इंस्ट्रक्टर के साथ सो रही थी। मैं ने उस से शादी की हामी उस के बाप के साथ किए गए सौदे की वजह से भरी थी, लेकिन धोखा ऐसी चीज़ जो मैं कभी बर्दाश्त नहीं करता था।
सगाई टूटने के बाद यजना अपने उसी जिम इंस्ट्रक्टर के साथ शिकागो चली गई, बिना अपनी करतूत पर ज़रा सा भी पछतावा दिखाए। मैं उन्हें ढूँढ निकला था और आमतौर पर मैं उस कमीने इंस्ट्रक्टर को मार डालता जिस ने मेरी औरत को छुआ था। मगर सच कहूँ तो मैं ने कभी यजना को सचमुच अपनी औरत माना ही नहीं था, इसलिए उस का खून अपने हाथों पर नहीं लगाया। हालाँकि, मैं ने यह ज़रूर सुनिश्चित कर दिया कि वह हरामी कभी अपने औज़ार का इस्तेमाल न कर सके—क्योंकि उस ने मेरी मंगेतर के साथ सो कर हद पार कर दी थी।
“बेबी।” वो मुँह फुला कर बोली और मुझे और भी घिन आई– “मैं ने ग़लती की थी, माफ़ कर दो ना? क्या हम फिर से साथ नहीं हो सकते, सब भुला नहीं सकते?”
उस के साथ खड़े रहना ही थकाऊ था और ऊपर से उस ने कभी माफ़ी तक नहीं माँगी, बस ऐसे मेरे घर चली आई जैसे कुछ हुआ ही न हो। “अगर बस यही कहने आई हो तो दोबारा मेरे घर मत आना। मेरे पास इस बकवास के लिए वक़्त नहीं है।”
“बेबी—”
“मुझे ये मत कहो!” मेरी आवाज़ शांत मगर ज़हर से भरी थी– “दरवाज़ा बंद कर के निकल जाओ।” उस की आँखों में पानी भर आया, पर मुझे कोई परवाह नहीं थी। मैं पलट कर अन्विता के कमरे की ओर बढ़ चला।
“क्या यह सब उस कमीनी प्रवल की बेटी की वजह से है?”
उस के सवाल पर मेरे क़दम थम गए।
“अगली बार अगर उसे कमीनी कहा, तो यह तुम्हारी ज़ुबान से निकला आख़िरी शब्द होगा,” मैं ने बिना पलटे कहा।
“क्या यह बदतमीज़ी नहीं है?” सीढ़ियों से अन्विता की आवाज़ आई। मुझे पता ही नहीं चला कि वह वहाँ खड़ी थी। वह मुझे सीधा देखती हुई नीचे उतर रही थी।
“मतलब, जिस औरत को तुम ने कभी जाना ही नहीं, उसे कमीनी कहना—क्या यह बदतमीज़ी नहीं है?”
वह मेरे पास से गुज़री और मेरी नज़रें बस इस पर टिक गईं कि मेरी ढीली शॉर्ट्स और बिना बाजू की टी-शर्ट उस पर कितनी फिट बैठ रही थी। उस ने अपने बालों को बॉब स्टाइल में कर रखा था और मैं शर्त लगा सकता था कि इस के बदन की नेचुरल ख़ुशबू स्ट्रॉबेरी जैसी है। मैं मुड़ कर उसे और देखने से खुद को रोक नहीं पाया, जब कि वह यजना की तरफ़ बढ़ रही थी।
“आप से मिल कर अच्छा लगा, मैं अन्विता प्रवल।” उस ने हाथ बढ़ा कर यजना से हैंडशेक करने की कोशिश की, मगर यजना ने हिकारत से उस का हाथ झटक दिया। अन्विता के चेहरे पर एक पागलपन वाली मुस्कान उभरी और उस ने हाथ वापस खींच लिया।
“मुझे पता है तुम कौन हो,” यजना ने ज़हर उगला – “कुछ लोग तुम्हें ‘मौत’ कहते हैं, मगर मैं तुम्हें बस एक वैश्या मानती हूँ।”
“रियली?” अन्विता की वह पागल मुस्कान और चौड़ी हो गई, जिस से उस का चेहरा बिल्कुल सनकी लगने लगा। मैं सचमुच मन ही मन पागलखाने को कॉल करने की सोच रहा था—और शायद मैं भी उतना ही सनकी था, क्योंकि मुझे उस का वह कातिल-जादूगरनी वाला चेहरा बेहद अच्छा लग रहा था।
“मुझे तो ‘मौत’ कहलाना ज़्यादा पसंद है।”
“सुन #डी।” यजना उस के और करीब आ गई। इतनी कि दोनों के कपड़े आपस में रगड़ खा रहे थे। अगर यजना ने आठ इंच की हील न पहनी होती तो दोनों की लंबाई बराबर होती। “मैं तुझे कुछ बताना चाहती हूँ।” वह झुक कर अन्विता के कान में कुछ फुसफुसाई।
मेरे पूरे जिस्म में जिज्ञासा फैल गई। यजना हमेशा से साइको थी और मुझे अंदाज़ा भी नहीं था कि वह अन्विता से क्या बकवास कर रही थी, पर मैं दख़ल नहीं दे सका—या शायद देना ही नहीं चाहता था।
यजना ने अपनी बात पूरी की और पीछे हट गई, फिर पागलपन से हँसने लगी। दूसरी ओर अन्विता के चेहरे पर वही सख़्त भाव बने रहे, जिन्हें मैं न समझ पाया कि वह गुस्सा था, सदमा था या कुछ और।
“तो।” यजना ने अन्विता की टी-शर्ट से कुछ काल्पनिक धूल हटाते हुए कहा– “अच्छी वैश्या बन कर अभय का दिल बहलाना।”
उस के चेहरे पर ऐसा भाव था मानो उस ने कोई जंग जीत ली हो।
“सुना नहीं अभय ने क्या कहा था कि अगली बार अगर तुम ने मुझे कमीनी कहा तो तुम्हारी ज़ुबान आख़िरी बार हिलेगी?” अन्विता ने मेरी ओर देखे बिना कहा, मगर मुझे लगा मानो वह सीधे मुझे ही नाकाबिल बता रही हो, जैसे मैं अपनी बात पर टिकता ही नहीं। “बस एक बार और मुझे ये शब्द बोल कर दिखा दो, मैं खुद तुम्हारी ज़ुबान उखाड़ दूँगी।” जिस अंदाज़ में उस ने यह कहा, उस से साफ़ लग रहा था कि वह सचमुच कर डालेगी। शायद यजना को भी यही महसूस हुआ, तभी उस की चमक तुरंत मिट गई। उस ने मुझे एक क्षणिक नज़र डाली और फिर हार मान कर हॉल से चली गई।
अन्विता ने तब तक इंतज़ार किया जब तक यजना पूरी तरह आँखों से ओझल नहीं हो गई। फिर घूम कर मेरी तरफ़ आई। “तुम्हें ये शोहरत कैसे मिल गई, अगर तुम सिर्फ़ धमकियाँ देते हो और कोई अमल नहीं करते?” उस ने सिर हिलाते हुए व्यंग्य किया था।
वो हद से ज़्यादा हिम्मती थी और मुझे बिल्कुल पसंद नहीं था कि वह मुझे चुनौती दे। मैं उसे यह सब करने क्यों दे रहा था? “अगर मैं ने अपने शब्दों को सच किया होता, तो तुम अब तक मर चुकी होती।”
“लेकिन मैं ज़िंदा हूँ। इस का मतलब साफ़ है।” उस के चेहरे पर एक टेढ़ी, सनकी मुस्कान उभरी– “अगर मैं ने ऐसा वादा किया होता, तो सच में तुम्हें मार डालती।”
“तो क्यों नहीं किया?” मैं ने धीमे और ठहरे क़दमों से उस की ओर बढ़ते हुए पूछा– “मैं अब तक ज़िंदा क्यों हूँ?”
मेरे हर क़दम पर वह पीछे हटती रही, जब तक उस की पीठ दीवार से टकरा नहीं गई।
“तुम ज़िंदा हो क्योंकि मैं तुम्हें ज़िंदा रहने दे रही हूँ।” उस की साँसें तेज़ हो गईं जब मैं ने अपना शरीर उस के ऊपर झुका दिया, उसे दीवार और अपने बीच क़ैद कर लिया।
“जब तक मुझे तुम से वो सब नहीं मिलता जो मैं चाहती हूँ, तुम्हें मरने की इजाज़त नहीं है।”
उस की ग्रे आँखें मुझ पर टिकी थीं, उस के गाल पिघले लोहे की तरह लाल हो रहे थे। मैं ने उस का चेहरा हथेली में थाम लिया।
“जानती हो, बच्ची, मैं तुम्हें क्यों ज़िंदा रखे हुए हूँ?”
उस ने हौले से सिर हिलाया, उस की नज़रें अब भी मेरी नज़रों में बँधी थीं।
“मैं बताता हूँ।” मैं ने उस की कमर थाम ली और उसे इतना पास खींचा कि मेरा निचला जिस्म उस के पैर से टकराने लगा। मैं सख़्त था और मुझे यक़ीन था कि वह इसे महसूस कर रही होगी। “मैं तुम्हें इसलिए ज़िंदा रख रहा हूँ क्योंकि तुम्हारे साथ मुझे और भी बहुत कुछ करना है तुम्हें मारने से पहले। तुम्हें कितनी अलग-अलग पोज़िशन में देखना चाहता हूँ मैं… और जब तक मैं तुम्हारे मुँह से अपना नाम चीखते हुए न सुन लूँ, तब तक तुम्हें मरने की इजाज़त नहीं है।” मैं ने यह उस के कान में फुसफुसाया और अपने होंठ उस के कान से छुआ दिए।
⋙ (...To be continued…) ⋘