यह सिर्फ़ चार दोस्तों की कहानी नहीं है, बल्कि उस सच्चाई की कहानी है जिसे हर लड़का अपनी ज़िंदगी में महसूस करता है। एक ऐसी कहानी जो आपको हँसाएगी, रुलाएगी और शायद यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे क्या लड़के सच में नहीं रोते हैं पढ़िए मेरी रचन... यह सिर्फ़ चार दोस्तों की कहानी नहीं है, बल्कि उस सच्चाई की कहानी है जिसे हर लड़का अपनी ज़िंदगी में महसूस करता है। एक ऐसी कहानी जो आपको हँसाएगी, रुलाएगी और शायद यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे क्या लड़के सच में नहीं रोते हैं पढ़िए मेरी रचना बॉयज डॉन'टी क्रि यह इमोशन अपनेपन दोस्ती प्यार परिवार सेक्सुअलिटी का ऐसा संगम है जिसमें जिंदगी के हर उतार-चढ़ाव को दर्शाया गया है जिसे पढ़ने के बाद आपको लगेगा, की क्या ये मेरी जिंदगी तो नहीं कही ये मैं तो नहीं इसलिये पढ़िए boys don't cry and i hope you guys like it.
मीरा
Heroine
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SURAYAVANSHI College
Morning 10 am
कॉलेज का कैंपस किसी नई दुनिया जैसा लग रहा था।
बरेली की भीषण गर्मी और रिक्शों-ट्रकों के काले धुएं से
कोसों दूर, यहाँ की हवा में एक अजीब सी ताजगी और
मिट्टी की सोंधी खुशबू थी। हरे-भरे, घने पेड़ों की शाखाएं
आपस में गुंथी हुई एक प्राकृतिक सजाबट बना रही थीं।
दूर लॉन की घास काटने की मशीन की आवाज़ और
पक्षियों का कलरव एक अजीब सी सिम्फनी बना रहा था।
अमित ने गहरी सांस ली। यह हवा उसके फेफड़ों में एक
नई उम्मीद भर रही थी।
अमित अपने पिता, श्री वर्मा के साथ हॉस्टल के विशाल
लोहे के गेट के अंदर घुसा। उनके पिता के एक हाथ में
अमित का भारी सूटकेस था और दूसरे हाथ में एक छोटा
थैला। उनके माथे पर पसीने की बूंदें थीं, न सूटकेस के
बोझ से, बल्कि उस भावनात्मक उथल-पुथल से जो हर
पिता को अपने बेटे को पहली बार घर से दूर छोड़ने पर
होती है।
"देख बेटा," श्री वर्मा ने अपना स्वर थोड़ा भारी करते हुए
कहा, उनकी नजरें उस विशाल इमारत पर टिकी थीं जो
अगले चार साल अमित का घर होनी थी, "अब तेरी
ज़िंदगी का सबसे इम्पोर्टेन्ट फेज शुरू हो रहा है। यहीं से
तेरे भविष्य की नींव पड़नी है। खूब मन लगाकर पढ़ना
और... कोई गड़बड़ मत करना। समझा?"
अमित ने सिर्फ सिर हिलाया, आँखें नीची किए। उसके
गले में एक गांठ-सी अटक गई थी। वह जानता था कि
'गड़बड़' शब्द में उसके पिता ने कितना कुछ पैक कर
दिया था। उसे पता था कि उसके पिता की उम्मीदें कितनी
ऊँची और नाजुक थीं, जैसे काँच के बर्तन। उसने हमेशा
अपनी पहचान एक शांत, संयमित और आज्ञाकारी लड़के
की बना रखी थी। पर अंदर ही अंदर, एक डर था। क्या
वह वाकई इन उम्मीदों का बोझ उठा पाएगा? कहीं यहाँ,
इस आज़ाद माहौल में, वह खुद को खो न दे?
"चलो, तुम्हारा रूम देखते हैं और सामान रख देते हैं,"
पिता ने कहा और दोनों उस लंबी कॉरिडोर वाली इमारत
में चल पड़े।
कमरा नंबर 205 ढूंढने में ज्यादा देर नहीं लगी। कमरा
सादा था लेकिन साफ-सुथरा। चार बेड, चार डेस्क और चार
अलमारियाँ। पिता ने सूटकेस बेड के पास रख दिया और
चारों तरफ एक नजर दौड़ाई।
"ठीक-ठाक है जगह," उन्होंने कहा, "अब मैं चलता हूँ।
तेरी माँ अकेले घर पर है। तुझे सेटल होने में दो-तीन दिन
लगेंगे, मैं फिर किसी काम से आया तो मिलूंगा।"
अमित के मन में एक ठंडी लहर दौड़ गई। यही वह पल
था जिसका उसे डर था। अब वह सचमुच अकेला था।
"हाँ... ठीक है पापा," उसने धीरे से कहा।
श्री वर्मा ने एक पल के लिए अमित की आँखों में देखा।
उनकी अपनी आँखें थोड़ी नम थीं। उन्होंने अमित के कंधे
पर हाथ रखा। "ध्यान रखना अपना। हफ्ते में एक बार
फोन जरूर करना। और याद रखना, तू यहाँ सिर्फ एक
चीज के लिए है - पढ़ाई।"
"जी पापा," अमित ने कहा।
एक आखिरी बार उसे देखकर, श्री वर्मा तेजी से मुड़े और
कॉरिडोर की ओर चल दिए। अमित दरवाजे पर खड़ा
होकर देखता रहा, जब तक कि उनकी पतली कमीज
और झुके कंधों की छवि कोने पर मुड़कर गायब नहीं हो
गई। एक गहरी खालीपन ने उसे घेर लिया। वह अब अपने
दम पर था।
इसी उदासी और नएपन के मिश्रित अहसास में वह कॉरिडोर में निकला, बिना किसी दिशा के, तभी अचानक एक ऊँचा, तगड़ा लड़का, अपने हेडफोन पर जोरदार म्यूजिक सुनता हुआ, कोने से तेजी से मुड़ा और सीधा अमित से जा टकराया। धड़ाम!
अमित के हाथों की किताबें और फाइलें हवा में उछलीं और ज़मीन पर बिखर गईं।
"अरे बाप रे! सॉरी यार, बिल्कुल ध्यान नहीं था!" लड़के ने तुरंत अपने हेडफोन उतारे और मदद के लिए झुकते हुए कहा। उसकी आवाज़ में एक ऊर्जा थी। वह अमित से कद में लंबा था, उसके चौड़े कंधे और मजबूत बाजू एक एथलीट की तरह लग रहे थे।
"कोई... कोई बात नहीं," अमित ने थोड़ा सहमा हुआ, किताबें समेटते हुए कहा।
"नया स्टूडेंट लगता है? मैं भी अभी-अभी आया हूँ। बाय द वे, आई एम रवि," लड़के ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा। उसकी पकड़ मजबूत थी। उसकी आँखों में एक चालाक भरी चमक थी।
"अमित," अमित ने अपना परिचय दिया।
"बढ़िया! चल, मैं तेरे सामान में हाथ लगा देता हूँ। तेरा रूम कौन सा है?"
"205।"
"अच्छा! मेरा भी 205 है, Buddy we are roommates । चलो, साथ चलते हैं," रवि ने अमित के सूटकेस का एक हेंडल अपने हाथ में ले लिया।
जैसे ही वे दोनों कॉरिडोर में आगे बढ़े, उनकी नजर एक दृश्य पर पड़ी। एक लड़का सीधे फर्श पर, दीवार से टेक लगाए बैठा था। उसकी गोद में एक स्केचबुक थी और उसकी उंगलियाँ एक चारकोल पेंसिल को तेजी से घुमा रही थीं। वह पूरी तरह से तल्लीन था।
रवि ने अमित की ओर देखा और एक भौंहे ऊपर चढ़ाई। फिर, उसने जोर से बोला, "हेलो? नए लोगों का स्वागत करो यार!"
लड़के ने बिना सिर उठाए, अपनी ड्राइंग पर ध्यान केंद्रित किए हुए ही जवाब दिया, "हाय, आई एम नवीन। स्वागत है।" उसकी आवाज़ धीमी और गहरी थी।
रवि ने अमित की ओर मुस्कुराते हुए देखा और फिर नवीन की ओर इशारा करते हुए चुटकी ली, "लुक्स लाइक वी हैव एन आर्टिस्ट हियर। होप ही नोज़ हाउ टू फिक्स ए सर्किट आल्सो!"
इस बार नवीन ने धीरे से सिर उठाया। उसकी आँखें बड़ी और विचारशील थीं। उसने एक हल्की, समझदारी भरी मुस्कान बिखेरी। "सर्किट अगर डिजाइन अच्छा हो तो ही फिक्स होता है। डिजाइन की समझ तो मेरे पास है ही," उसने शांत भाव से कहा और फिर से अपनी स्केचबुक में खो गया।
रवि हल्के से हँसा। तभी, एक नई आवाज़, तेज और थोड़ी परेशान, उन तक पहुँची।
"गाइस! एक्सक्यूज़ मी!"
एक तीसरा लड़का, जिसके एक हाथ में टैबलेट और दूसरे में एक बड़ा रूमाल था, तेजी से उनकी ओर बढ़ा। उसके चेहरे पर फ्रस्ट्रेशन था।
"क्या तुम लोग बता सकते हो, क्या यही रूम नंबर 205 है? वही जिसका लॉक टूटा हुआ है? मैंने केयरटेकर को मैसेज भी कर दिया है लेकिन अभी तक कोई रिस्पॉन्स नहीं आया। यह बिल्कुल भी लॉजिकल नहीं है। फर्स्ट डे पर ही रूम अनलॉक्ड छोड़ देना..." उसने बिना रुके कह डाला। फिर रुका, "ओह, और बाय द वे, आई एम राहुल।"
रवि ने उसकी परेशानी देखकर हँसी लगाई और उसके कंधे पर हाथ रख दिया। "अरे रिलैक्स बडी! इट्स जस्ट ए लॉक। वी विल फिक्स इट लेटर। पहले नए दोस्त तो बना लेते हैं। ये है अमित, और वो फ्लोर पर बैठा पिकासो है नवीन। और मैं हूँ रवि।"
राहुल ने एक गहरी सांस ली। उसने अपने टैबलेट की स्क्रीन ऑफ की। "आई नो, आई नो। बट सिक्योरिटी इज अ प्राइमरी कंसर्न। खैर, तुम सब ही मेरे रूममेट्स लगते हो। 205, है न?"
अमित ने हाँ में सिर हिलाया। उसकी अभी-अभी जो उदासी थी, वह थोड़ी कम हुई। यहाँ आए अभी कुछ ही देर हुई थी और उसे तीन नए चेहरे मिल चुके थे। एक जोशीला रवि, एक शांत नवीन, और एक व्यवस्थित राहुल।
रवि ने राहुल के टूटे लॉक वाले दरवाजे को जोर से धक्का दिया। "देखते हैं इसकी क्या प्रॉब्लम है।"
नवीन ने अपनी स्केचबुक बंद की और उठ खड़ा हुआ। राहुल ने अपना टैबलेट safely बैग में रखा।
चारों लड़के, एक दूसरे से इतने अलग, उस टूटे दरवाजे के सामने खड़े होकर एक-दूसरे को देखते रहे। एक पल के लिए सन्नाटा छा गया, और फिर अचानक, बिना कुछ कहे, वे सभी मुस्कुरा दिए। अमित ने महसूस किया कि पिता के जाने के बाद की खालीपन अब इन नए, अजीबोगरीब लोगों की मौजूदगी से थोड़ी भरने लगी थी।
उन्हें क्या मालूम था कि यह टकराव, यह मुलाकात, और यह टूटा हुआ ताला, आने वाले चार सालों की उस अनकही कहानी की पहली पंक्तियाँ लिख रहा था। वे नहीं जानते थे कि यही चार अलग-अलग धागे, उलझने और सुलझने, टूटने और जुड़ने की उन ढेरों कहानियों को बुनने वाले थे, जो उनकी ज़िंदगी का सबसे ज़रूरी, सबसे रंगीन और सबसे यादगार हिस्सा बनने वाली थीं।
कैंटीन की ओर जाते हुए रास्ता एक नए अनुभव से कम नहीं था। हर तरफ groups में खड़े छात्रों की आवाज़ें गूंज रही थीं। कहीं कोई क्रिकेट की बात कर रहा था तो कहीं कोई पिछले सेमेस्टर के पेपर की चिंता में डूबा हुआ था। रवि तो हर दो कदम पर किसी न किसी से टकरा रहा था और "यार! लॉन्ग टाइम!" जैसे dialogues बोल रहा था, भले ही वह उन्हें पहली बार देख रहा हो।
"तू तो यहाँ का बादशाह लगता है," अमित ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अरे यार, दोस्त बनाने का यही तो तरीका है। पहले दिन से ही सबको अपना बना लो," रवि ने गर्व से कहा।
नवीन चुपचाप चल रहा था, लेकिन उसकी नज़रें हर पेड़, हर इमारत के आर्किटेक्चर पर थीं, मानो वह सबकुछ अपनी स्केचबुक में उतार रहा हो। राहुल अपने फोन पर कैंपस मैप देख रहा था और बता रहा था, "कैंटीन अगले ब्लॉक में है, पाँच मिनट की वॉक पर।"
जैसे ही वे कैंटीन के पास पहुँचे, खाने की महक ने उनकी नाक के बालों को झिंझोड़ दिया। यह महक बरेली के घर जैसी नहीं थी, यहाँ तले हुए समोसों, दाल और किसी अनजान सब्जी का मिश्रण था।
कैंटीन विशाल थी। सैकड़ों छात्र एक साथ बैठकर खा रहे थे, बातें कर रहे थे और हँस रहे थे। शोर इतना था कि पास बैठे व्यक्ति की बात सुनने के लिए भी चिल्लाना पड़ता।
"चलो पहले टोकन लेते हैं," राहुल ने व्यवस्थित तरीके से कहा।
टोकन काउंटर पर एक लंबी लाइन थी। लाइन में खड़े होकर अमित ने अपने आस-पास नज़र दौड़ाई। उसे लगा जैसे वह एक ऐसे महासागर में आ गया हो जहाँ हर तरफ अलग-अलग रंग की मछलियाँ तैर रही हों।
कोई western clothes में था तो कोई traditional पोशाक में। कोई english की तेज रफ्तार बातें कर रहा था तो कोई देशी अंदाज़ में।
"क्या लेना है?" टोकन काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने बिना सिर उठाए पूछा।
"चार थाली," रवि ने जोर से कहा।
"पहले पैसे दो, 200 रुपए," व्यक्ति ने उदास आवाज़ में कहा, किसी ने उससे उसकी किडनी मांग ली हो।
राहुल ने तुरंत पर्स निकाला, लेकिन रवि ने उसका हाथ रोक दिया। "अरे यार, पहला दिन है। मेरा ट्रीट है," और उसने नोट गिनकर दे दिए।
थाली लेकर वे एक कोने की मेज की ओर बढ़े। बैठते ही रवि ने पहला कौर मुँह में डाला और आँखें बंद कर लीं। "वाह! Hostel की दाल का तो कोई जवाब नहीं।"
अमित ने भी खाना शुरू किया। स्वाद उतना बुरा नहीं था जितना उसने सोचा था, लेकिन घर जैसा भी नहीं था। यह स्वाद उसे धीरे-धीरे एहसास दिला रहा था कि अब उसकी ज़िंदगी बदल चुकी है।
"तो अमित, तू कहाँ से है?" रवि ने चावल खाते हुए पूछा।
"बरेली। और तुम?"
"मैं दिल्ली से। क्रिकेट एकेडमी में खेलता था, लेकिन पापा ने मन ही मन में इंजीनियर बनाना तय कर रखा था," रवि ने थोड़ी निराशा के साथ कहा।
"मैं बेंगलुरु से हूँ," राहुल ने कहा, "मेरे पापा सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं।"
सबकी नज़र नवीन पर टिक गई, जो चुपचाप खाना खा रहा था। उसने सिर उठाया, "मैं देहरादून से। पहाड़ों से।"
"तू इंजीनियरिंग क्यों कर रहा है? तुझे तो आर्टिस्ट बनना चाहिए," रवि ने पूछा।
नवीन मुस्कुराया, "पापा का कहना है कि art से पेट नहीं भरता। उनकी इच्छा है कि मैं आर्किटेक्ट बनूँ। ताकि कला और पैसा दोनों साथ रहें।"
अमित ने महसूस किया कि हर कोई किसी न किसी उम्मीद का बोझ लिए हुए था। शायद यही इस उम्र की सबसे बड़ी सच्चाई थी।
अचानक कैंटीन के दरवाजे पर शोर मचा। कुछ senior छात्रों का एक समूह अंदर आया। उनकी body language से ही पता चल रहा था कि वे कैंपस के 'बड़े भाई' हैं। उन्होंने नए छात्रों को देखकर मुस्कुराहट बिखेरी, जो नए लोगों के लिए डर का कारण बन गई।
"लगता है ragging का सीजन शुरू हो गया," राहुल ने धीरे से कहा।
"चिंता मत करो," रवि ने अभिमान से कहा, "मैं handle कर लूंगा। खेल-खेल में सब settle कर दूंगा।"
खाना खत्म करके जैसे ही वे उठे, एक senior ने उन्हें आवाज़ दी, "ओए नए लोग! इधर आओ।"
चारों ने एक-दूसरे की ओर देखा। अमित का दिल धड़क रहा था। रवि आगे बढ़ा, "चलो यार, मिलते हैं हमारे बड़े भाइयों से।"
Senior ने उन्हें देखकर पूछा, "कौन कौन से रूम में हो?"
"205," राहुल ने जवाब दिया।
"अच्छा, तो आज रात हमारी मुलाकात होगी," senior ने रहस्यमय अंदाज में कहा और चला गया।
उसकी बात सुनकर नवीन की स्केचबुक लगभग हाथ से छूट गई। राहुल का चेहरा गंभीर हो गया। रवि अभी भी मुस्कुरा रहा था, लेकिन अब उसकी मुस्कान में थोड़ी अनिश्चितता थी।
शाम ढल रही थी। कैंपस की लाइट्स जलने लगी थीं। अमित ने खिड़की से बाहर देखा। उसने सोचा कि इस समय बरेली में उसकी माँ उसके लिए प्रार्थना कर रही होगी। उसके पिता अखबार पढ़ते हुए उसकी चिंता कर रहे होंगे।
वह अपने नए दोस्तों के साथ हॉस्टल की ओर लौटा। आने वाली रात उन सबके लिए एक नई चुनौती लेकर आ रही थी। लेकिन अब वे अकेले नहीं थे। उनकी अलग-अलग कहानियाँ अब एक साथ जुड़ चुकी थीं।
राहुल ने कहा, "आज रात सावधान रहना होगा।"
रवि ने कंधे झटक दिए, "जो होगा देखा जाएगा। अभी तो मैं सोने जा रहा हूँ।"
नवीन ने अपनी स्केचबुक निकाली और कुछ ड्रॉ करने लगा, शायद वह अपने डर को कागज पर उतार रहा था।
अमित अपने कमरे में लौटा। उसने पिता का दिया हुआ सूटकेस खोला। सबसे ऊपर एक छोटा सा packet था, जिसपर उसकी माँ ने लिखा था - "बेटा, जब तकला लगे, ये मेरे हाथ का बना हुआ आचार खाना।"
अमित की आँखें नम हो गईं। उसे एहसास हुआ कि घर की दूरी शायद मीलों में नहीं, बल्कि दिल के एक कोने में बस जाती है।
उसने packet को छाती से लगाया और खिड़की से बाहर तारों को देखने लगा। यहाँ का आकाश भी बरेली से अलग था - ज्यादा साफ, ज्यादा चमकीला।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। बाहर senior छात्रों की आवाज़ आई, "कोई है अंदर? हमें अंदर आने की अनुमति चाहिए!"
अमित का दिल जोर से धड़का। यह शुरुआत थी - नए जीवन की, नए डर की, नई उम्मीदों की। उसने गहरी सांस ली और दरवाजा खोलने के लिए बढ़ा। आखिरकार, hostels life की असली initiation अब शुरू होने वाली थी।
शाम ढल चुकी थी और हॉस्टल में एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी, वह खामोशी जो किसी आने वाले तूफान का संकेत देती है। नए छात्र अपने कमरों में दुबके हुए थे, हर कदम की आहट पर चौंक जाते। अमित, राहुल, नवीन और रवि अपने कमरे में बैठे आने वाले सेमेस्टर की किताबों को व्यवस्थित करने का नाटक कर रहे थे, जबकि उनका ध्यान पूरी तरह से दरवाज़े पर टिका था।
तभी अचानक, दरवाज़े पर जोर का धक्का लगा और वह जोर से खुल गया। एक लंबा, दबंग दिखने वाला सीनियर अंदर घुसा। उसकी नज़रें उन दोनों को ऐसे घूर रही थीं जैसे शिकारी अपने शिकार को देखता है।
"चल, निकलो सब! सब के सब कीड़े एकसाथ होंगे । रैगिंग का टाइम हो गया है। रूफटॉप पर चलो, सबका परफॉर्मेंस है आज!" वह गुर्राया, उसकी आवाज़ में एक ऐसा अहंकार था जो साल भर के सीनियर होने के गलत फायदे से आता है।
अमित का दिल धक्-धक् करने लगा। राहुल ने अपने चश्मे को ठीक किया, एक ऐसी आदत जो उसके तनाव में होने का संकेत थी। वे बाहर निकले तो रवि और नवीन भी अपने कमरों से निकल रहे थे, दूसरे सीनियर्स द्वारा धकेले जा रहे थे। रवि के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था। उसकी भौहें तनी हुई थीं और जबड़े की मांसपेशियां फड़क रही थीं। नवीन शांत था, लेकिन उसकी आँखों में एक स्पष्ट डर था। चारों ने बिना कुछ कहे एक-दूसरे को देखा, एक मूक बातचीत जिसमें सिर्फ चिंता और अनिश्चितता का आदान-प्रदान हुआ।
जब वे हॉस्टल की छत पर पहुँचे, तो वहाँ का माहौल देखकर सब हैरान रह गए। उन्हें जिस डरावने, गंभीर समारोह की उम्मीद थी, वहाँ उसका नामोनिशान तक नहीं था। एक बड़ा सा म्यूजिक सिस्टम लगा था जिस पर कोई पॉप गाना बज रहा था। कुछ नए लड़के शर्माते हुए, धीमी आवाज़ में उस पर थिरक रहे थे। लेकिन मजा ले रहे सिर्फ सीनियर्स थे। वे एक कोने में खड़े होकर ठहाके लगा रहे थे, अपने से छोटे लड़कों को हँसी-मज़ाक का सामान बना रहे थे, उन्हें बेतुके काम करने के लिए मजबूर कर रहे थे।
इन सबके बीच में एक लड़का था जो साफ तौर पर इन सबका लीडर लग रहा था। लंबा, दमदार आवाज़ वाला, वह हँस-हँसकर आदेश दे रहा था और हर किसी को बेवकूफ़ बना रहा था। बाद में पता चला कि उसका नाम आर्पित था और वह मैकेनिकल ब्रांच का सेकेंड ईयर स्टूडेंट था।
रवि यह सब देखकर अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पा रहा था। उसकी आँखें लाल हो गईं थीं और उसके हाथ मुट्ठियों में बंद हो गए थे, उसकी नसें तन कर बाहर आ गई थीं। यह मस्ती नहीं, उसके लिए यह दबंगों का तमाशा था। राहुल ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा और फुसफुसाया, "रिलैक्स, ब्रो। इट्स जस्ट फॉर फन। बस करके चले जाएंगे।"
पर रवि ने उसकी तरफ देखा तक नहीं। उसकी नज़रें सीधे आर्पित पर जमी हुई थीं, जैसे कोई बाघ अपने शिकार पर नज़र गड़ाए हुए हो।
जब अमित की बारी आई, तो आर्पित ने उसे एक बेतुका टास्क दिया। "ओए चश्मा! सुन! तू यहाँ एक ड्रामा करके दिखा कि तू एक पागल केला है जो क्रिकेट खेलना चाहता है!"
आसपास के सभी सीनियर्स ठहाका लगा पड़े। अमित का चेहरा लाल हो गया। वह डरा हुआ था, शर्मिंदा था। उसने घबराते हुए, टूटी-फूटी हरकतें करनी शुरू कीं, जिससे सीनियर्स और जोर से हँस पड़े। रवि के लिए यह देखना और बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था। वह सहनशीलता की अपनी सीमा पार कर चुका था।
फिर आर्पित की नज़र रवि पर पड़ी। "अरे! ये तो हमारा माचो मैन आ गया! लगता है इस बॉडीबिल्डर को कुछ नहीं आता नाचना। चलो, दिखाओ कोई किलर मूव्स! वो भी ऐसे जैसे तेरी बॉडी में करंट लग गया हो!"
रवि ने एक पल भी नहीं लगाया। उसने कुछ नहीं सोचा। उसके अंदर का गुस्सा एक विस्फोट की तरह फूट पड़ा। वह आगे बढ़ा, अपना दायाँ हाथ पीछे ले जाया और सीधे आर्पित के चेहरे पर एक जोरदार मुक्का जड़ दिया। धप्प!
आवाज़ इतनी तेज थी कि म्यूजिक की आवाज़ भी दब गई। आर्पित पीछे की ओर लड़खड़ाया, उसके नाक से खून बहने लगा। म्यूजिक बंद हो गया। वहाँ पूरी तरह से सन्नाटा छा गया। हवा तक जम गई लगती थी। सारे सीनियर्स हैरान थे, उनकी हँसी गायब हो चुकी थी। कोई कुछ नहीं बोल रहा था। किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि कोई फ्रेशर इतनी हिम्मत दिखा सकता है।
तभी, नीचे से एक कर्कश आवाज़ सुनाई दी जिसने सबको हकीकत में वापस ला दिया। "यह क्या शोर है? छत पर कौन है? सब नीचे उतरो!"
वार्डन साहब थे।
आवाज़ सुनते ही सबकी स्थिति बदल गई। अब डर सीनियर्स के चेहरों पर था। सारे लड़के इधर-उधर भागने लगे, सीढ़ियों की ओर दौड़े, एक-दूसरे को धकेलते हुए। आर्पित भी, अपना चेहरा पकड़े, दर्द से कराहता हुआ भीड़ में खो गया।
रवि, अमित, राहुल और नवीन ने भी मौके का फायदा उठाया। वे भीड़ के साथ मिलकर भाग निकले। अमित का दिल जोरों से धड़क रहा था, राहुल बुदबुदा रहा था, "ओह माई गॉड, ओह माई गॉड," और नवीन उनके पीछे-पीछे सीढ़ियाँ दो-दो at a time उतर रहा था। वे किसी तरह अपनी मंजिल की ओर भागे, दीवारों के सहारे छिपते हुए, और आखिरकार अपने कमरे के दरवाजे तक पहुँच गए। अंदर घुसते ही राहुल ने तुरंत दरवाजा बंद कर दिया और ताला लगा दिया।
सब सांस भर रहे थे, उनके सीने धड़क रहे थे। कोई पकड़ा नहीं गया था। उस रात, हॉस्टल की छत पर एक ऐसा शो शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया था, जिसे कोई नहीं भूलने वाला था। चारों ने एक-दूसरे की ओर देखा। डर था, लेकिन उसके साथ ही एक अजीब सा रोमांच भी था। रवि ने अपना मुक्का खोला, जो अब थोड़ा सूज गया था।
उसने आँखें बंद कर लीं। "मुझे माफ़ करना," उसने फुसफुसाया।
अमित ने उसके कंधे पर हाथ रखा। "नहीं... शायद तुमने सही किया।"
लेकिन सब जानते थे कि यह खत्म नहीं हुआ था। यह सिर्फ एक शुरुआत थी। आर्पित और रवि के बीच की यह लड़ाई अब एक नई कहानी का पहला पन्ना बन चुकी थी, और अगले अध्याय का अंत किसी के लिए भी अच्छा नहीं होने वाला था। रात की खामोशी अब और भी भारी लगने लगी थी।
सुबह की नरम धूप खिड़कियों की जाली को पार करके कमरे में छनकर आ रही थी, जो कल रात के सन्नाटे और डर को धीरे-धीरे भगा रही थी। हॉस्टल के गलियारों में अलार्म क्लॉक्स की पुरज़ोर आवाज़ें गूँज रही थीं और नलों से पानी के गिरने की आवाज़ें आ रही थीं। कल की घबराहट और भागदौड़ के बाद, आज का दिन कुछ हद तक सामान्य लग रहा था। चारों दोस्त तैयार होकर एक साथ कॉलेज की मुख्य इमारत की ओर चले।
उनकी पहली कक्षा 'इंजीनियरिंग फिजिक्स' की थी। प्रोफेसर ने लेक्चर शुरू किया, और देखते ही देखते हर कोई अपनी भूमिका में खप गया। राहुल ने अपनी नोटबुक और तीन अलग-अलग रंग के पेन निकाले। प्रोफेसर के हर शब्द, हर फॉर्मूले को उसने बड़े ही सलीके से लिखा। उसकी आँखें बोर्ड पर इस कदर टिकी हुई थीं, मानो पलक झपकते ही कोई ज़रूरी नोट छूट जाएगा। उसके चेहरे पर एकाग्रता साफ़ झलक रही थी।
उसके ठीक बगल में नवीन अपनी नोटबुक के किनारे-किनारे छोटे-छोटे डूडल्स बना रहा था। कभी वह प्रोफेसर की तरफ देखता, कभी खिड़की से बाहर उड़ती चिड़ियों को निहारने लगता, जैसे उसका दिमाग उनके साथ ही उड़ रहा हो। अमित पूरी कोशिश कर रहा था कि वह हर बात समझ सके, लेकिन प्रोफेसर की बातें उसे किसी दूसरी ही दुनिया की भाषा लग रही थीं। वहीं, रवि पूरे लेक्चर में अपना फोन छुपा-छुपाकर देख रहा था। उसकी नज़रें कभी बोर्ड पर जातीं, तो कभी सीधे घंटे की सूई पर टिक जातीं, जैसे वह समय बीतने का इंतज़ार कर रहा हो।
क्लास खत्म होते ही, जैसे ही वे बाहर निकले, उनका सामना प्रोफेसर शर्मा से हुआ, जो गलियारे में खड़े किसी से बात कर रहे थे। प्रोफेसर ने रवि को देखते ही एक पल के लिए अपनी आँखें सिकोड़ीं, जैसे उनके दिमाग में कोई तार जुड़ गया हो। एक क्षण के लिए लगा कि वे कुछ कहेंगे, लेकिन उन्होंने अपनी बात रोक ली और मुस्कुरा कर पूछा, "बॉयज़, फर्स्ट क्लास कैसी रही?"
राहुल ने तुरंत जवाब दिया, "सर, इट वॉज़ अ बिट फास्ट। समझने में थोड़ी प्रॉब्लम हुई।"
प्रोफेसर शर्मा की मुस्कान गहरी हो गई। "इंजीनियरिंग स्पीड के बारे में नहीं है, बेटा," उन्होंने कहा, "यह लॉजिक के बारे में है। धीरे-धीरे समझ आएगी। तुम सबमें पोटेंशियल है, बस इसे सही दिशा में लगाना है।" उनकी नज़र एक बार फिर रवि पर से गुज़री और फिर वे आगे बढ़ गए। उस नज़र में एक सूक्ष्म चेतावनी थी, जिसे केवल रवि और अमित ने ही महसूस किया।
दोपहर के लंच ब्रेक में चारों दोस्त कैफेटेरिया के एक शोरगुल भरे कोने में बैठे। खाने के दौरान शुरुआती बातचीत हल्की-फुल्की और मस्ती भरी थी, लेकिन धीरे-धीरे वह गहरी होती गई। एक दूसरे को जानने की इच्छा बढ़ने लगी।
अमित ने धीरे से कहा, "मैं बरेली से हूँ। मेरे पापा चाहते हैं कि मैं पढ़-लिखकर एक स्टेबल सरकारी नौकरी करूँ। यही उनके लिए सब कुछ है।" उसकी आवाज़ में एक हल्का दबाव था।
राहुल ने आगे बताया, "मेरा बड़ा भाई अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। मेरे घर वालों की नज़रें अब मुझ पर हैं। उन्हें लगता है कि मैं उससे भी बड़ा करके दिखाऊंगा।" उसने एक लंबी सांस ली, जैसे उस कसावट को महसूस कर रहा हो।
नवीन ने अपनी नोटबुक निकाली, जिसमें उसने क्लास में बनाए हुए छोटे-छोटे स्केच दिखाए। "मुझे तो ये सब करना ही पसंद है," वह बोला, "पेंटिंग, स्केचिंग... लेकिन मेरे घर वालों को लगता है कि यह सब वक्त की बर्बादी है। उनके लिए तो सिर्फ मार्क्स और जॉब मायने रखते हैं।"
रवि चुपचाप अपना खाना खाता रहा, सबकी बातें सुन रहा था। जब अमित ने सीधे उसकी तरफ देखकर पूछा, "और तू, रवि? तू कहाँ से है? तेरे घर वाले क्या करते हैं?"
रवि ने खाने की प्लेट को देखते हुए, बिना सिर उठाए, जवाब दिया, "यहाँ-वहाँ। कोई खास बात नहीं है। इट्स
अ लॉन्ग स्टोरी।" उसके जवाब में एक तीखी उदासी और एक दीवार-सी थी, जिसे तोड़ना आसान नहीं था। अमित ने उस आवाज़ में छिपे दर्द को भाँप लिया और समझ गया कि अभी उसके दोस्त के अंदर की दुनिया में जाने
का वक्त नहीं आया है। उसने सवाल आगे नहीं बढ़ाया।
लेकिन वह शायद उसकी मज़बूरी समझ रहा था कुछ ऐसा था जो रवि ने अपने दिल के किसी कोने में छिपा रखा था, जिसे वह अभी शेयर करने की हालत मे नहीं था।
लंच की हलचल के बाद का समय हॉस्टल में एक सुस्त सी खामोशी ले आया था। कैफेटेरिया का शोर अब लाइब्रेरी की शांति की ओर बढ़ते छात्रों के समूहों में बदल गया था। अमित, राहुल और नवीन भी उन्हीं में से एक थे। रवि, जैसा कि अब उनकी आदत सी बनती जा रही थी, बिना कुछ कहे ही गायब हो गया था—शायद अपने गुस्से या अपने डर से अकेले में निपटने।
"कल का फिजिक्स का चैप्टर मुझे बिल्कुल समझ नहीं आया," नवीन ने अपनी स्केचबुक को बैग में दबाते हुए कहा। "शायद लाइब्रेरी में कोई रेफरेंस बुक मिल जाए।"
"हाँ, और मुझे प्रोजेक्ट के लिए कुछ रिसर्च पेपर्स चाहिए," राहुल ने अपने टैबलेट को चेक करते हुए जोड़ा।
अमित चुपचाप चल रहा था, उसका दिमाग अभी भी दोपहर की बातचीत में ही उलझा हुआ था। रवि के चेहरे पर आई वह झलक, जब उसने अपने घर के बारे में पूछा था, वह अमित से नजर नहीं आ रही थी। वह इतना मुश्किल क्यों था?
लाइब्रेरी की विशाल, गोथिक इमारत सामने आई, जिसका पुराना पत्थर का फ़र्श सैकड़ों पैरों के घिसने से चिकना हो गया था। जैसे ही वे भारी लकड़ी के दरवाज़े की ओर बढ़े, दरवाज़ा अंदर से खुला और एक लड़की किताबों के एक विशाल, अस्थिर ढेर के पीछे से निकली। वह ढेर उसकी ठुड्डी तक आ रहा था, और वह उसे संभालने की कोशिश कर रही थी।
अमित और लड़की एक दूसरे को देख नहीं पाए। एक जोरदार टक्कर हुई, और किताबें हवा में उछलकर ज़ोर से फर्श पर बिखर गईं, पन्नों की सरसराहट की आवाज़ गूँज उठी।
"ओह! I'm so sorry!" लड़की ने तुरंत कहा, उसकी आवाज़ में वास्तविक शर्मिंदगी थी। वह तुरंत झुकी, अपने लंबे बाल किताबों पर बिखर गए।
"नहीं-नहीं, गलती हमारी थी! हमने देखा ही नहीं," अमित ने जल्दी से कहा, तुरंत झुककर उसकी मदद करने लगा। राहुल भी तुरंत मदद के लिए झुक गया, जबकि नवीन हैरानी से खड़ा रहा।
जब लड़की ने शर्म से लाल हुए गालों के साथ सिर उठाया, तो अमित की नज़र सीधे उसकी आँखों से टकराई। वे बड़ी, भूरी और अविश्वसनी रूप से जीवंत थीं, और उनमें एक ऐसी चंचल चमक थी जो पूरी तरह से उसकी शर्मिंदगी के खिलाफ थी। उसके चेहरे पर एक भोली, माफी माँगती हुई मुस्कान थी।
"सच में, कोई बात नहीं," अमित ने फिर से कहा, कुछ किताबें उठाकर उसे सौंपते हुए। उसने देखा कि वे सभी कंप्यूटर साइंस और ग्राफिक डिजाइन की किताबें थीं। "मैं अमित हूँ। और ये मेरे दोस्त हैं, राहुल और नवीन। हम भी फर्स्ट ईयर में हैं।"
लड़की ने उन तीनों को देखा, उसकी मुस्कान थोड़ी और खिल उठी। "हाय। मैं रिया हूँ। मैं भी फर्स्ट ईयर में ही हूँ, कंप्यूटर साइंस। ये किताबें... बस एक साइड प्रोजेक्ट के लिए।" उसने हल्के से कंधे उचकाए।
यहीं पर चीजें बदल गईं।
"रिया! तू यहाँ क्या कर रही है?"
आवाज़ तीखी, रोंगटे खड़े कर देने वाली और बेहद परिचित थी। एक सन्नाटा छा गया। अमित ने धीरे-धीरे सिर उठाया। दरवाज़े पर, चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ, अर्पित खड़ा था। उसकी नजर पहले रिया पर गई, फिर अमित और उसके दोस्तों पर। उसकी आँखों की चमक तुरंत एक जहरीले, संकीर्ण संदेह में बदल गई। उसके जबड़े की मांसपेशियाँ फड़क रही थीं।
रिया सहम सी गई। उसकी आरामदेह मुस्कान गायब हो गई, उसकी जगह एक डरी हुई, सतर्क अभिव्यक्ति ने ले ली। "भैया... मैं बस... ये लोग... मेरी मदद कर रहे थे। किताबें गिर गई थीं।"
'भैया' शब्द हवा में लटक गया। अमित ने राहुल की ओर देखा, जिसकी आँखें फैल गई थीं। नवीन का मुँह खुला का खुला रह गया था। रिया। अर्पित की बहन। यह टुकड़ा जहाज़ के एक बड़े पज़ल में फिट हो गया। रवि का अचानक, विस्फोटक गुस्सा, जो सिर्फ रैगिंग से कहीं ज्यादा लग रहा था... अब उसका एक संभावित कारण सामने था। शायद अर्पित ने रिया का नाम लिया था, कोई ऐसी बात कही थी जिसने रवि के अंदर का कोई बटन दबा दिया था।
अर्पित ने उन तीनों को एक जानलेवा नजर से देखा, मानो वे कीड़े-मकोड़े हों। उसने आगे बढ़कर रिया की कलाई पकड़ ली, जोर से, निर्दयतापूर्वक। "तुझे याद है पापा ने क्या कहा था?" उसने सिसकियाँ भरी आवाज़ में कहा, उसकी आवाज़ एक खतरनाक फुसफुसाहट में बदल गई जो सिर्फ उसे ही सुनाई दे रही थी, पर वह इतनी तीखी थी कि अमित सुन सकता था। "इन गंदे हॉस्टल वालों से दूर रहना। चल, अभी चलते हैं।"
उसने 'गंदे' शब्द पर जोर दिया, उसे एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया। रिया ने एक अंतिम बार पलटकर देखा। इस बार, उसकी आँखों में कोई मुस्कान या शर्मिंदगी नहीं थी। केवल शर्म, एक गहरी बेबसी और एक मूक माफी थी जो उसने अमित की ओर भेजी। फिर वह अपने भाई के कड़े पकड़ के साथ खिंचती चली गई, उसके कदम लड़खड़ा रहे थे।
तीनों दोस्त वहीं खड़े रहे, जैसे जमीन ने उनके पैरों को जकड़ लिया हो। उनके और लाइब्रेरी के बीच अब किताबों का एक बिखरा हुआ किला पड़ा था, जो उस अप्रत्याशित टक्कर का सबूत था। हवा में सवालों का बोझ था। रवि को यह पता था? क्या यही उसके गुस्से की असली वजह थी? और सबसे बड़ा सवाल: अब क्या? अर्पित अब सिर्फ एक ढीठ सीनियर नहीं रह गया था जिसे एक पंच मार दिया गया था। वह अब एक बहन का ओवरप्रोटेक्टिव भाई था, जिसने उन्हें एक खतरनाक दुश्मन के रूप में चिह्नित कर दिया था। यह साधारण सी मुलाकात अब उनकी कॉलेज लाइफ की सबसे बड़ी उलझन बन गई थी, और तूफान का एक नया केंद्र उनके सामने आ खड़ा हुआ था।
रिया से हुई उस मुलाकात के बाद का दिन एक अजीब-सी भारी खामोशी में बीता। चारों दोस्तों के बीच बातचीत का सिलसिला टूट-सा गया था। हर कोई अपने-अपने विचारों में डूबा हुआ था। रवि का गुस्सा और अर्पित की बहन रिया का होना... यह एक ऐसा विस्फोटक मिश्रण था जो किसी भी पल भड़क सकता था, और सबको इसका अहसास था।
अगले दिन, दोपहर के लंच के समय, कैफेटेरिया की हलचल के बीच वे चारों एक टेबल पर बैठे थे। खाना उनकी प्लेटों पर ठंडा पड़ रहा था, क्योंकि कोई भी खाने में दिलचस्पी नहीं ले रहा था। तभी, एक परिचित, अप्रिय आवाज़ ने हवा को काट दिया।
"ओह, देखो तो ज़रा! हमारे छोटे-छोटे F-E-A-R-S!" अर्पित अपने दो-तीन साथियों के साथ उनकी टेबल के पास आ खड़ा हुआ। उसके चेहरे पर एक घिनौनी, उकसाऊ मुस्कान थी, जो सीधे-सीधे रवि को निशाना बना रही थी। "कल तो मेरी बहन से मिलकर बहुत brave बन रहे थे न? अब सबकी हिम्मत जवाब दे गई?"
राहुल, हमेशा की तरह शांति बनाए रखना चाहता था। उसने डिप्लोमैटिक तरीके से कहा, "भाई साहब, यह मामला खत्म हो चुका है। इसे और आगे बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है।"
"खत्म?" अर्पित ने एक ठंडी, खतरनाक हँसी हँसी। उसने अचानक राहुल के सीने को जोर से धक्का दे दिया, जिससे वह पीछे की ओर लड़खड़ाया। "अभी तो ये शुरू भी नहीं हुआ है। तुम्हारे इस 'हीरो' दोस्त को," उसने रवि की ओर इशारा करते हुए कहा, "अपने घर के संस्कार याद नहीं रहे। पर मैं उसे याद दिला दूँगा। ज़ोर-ज़बरदस्ती करने वालों को उनकी औकात दिखाना मेरा काम है।"
यह सीधा रवि के परिवार, उसकी पृष्ठभूमि पर एक प्रहार था। रवि की मुट्ठियाँ तन गईं, उसके नाखून उसकी हथेलियों को चुभ रहे थे। उसकी आँखें अब जलते हुए अंगारों की तरह थीं, जिनमें सिर्फ और सिर्फ क्रोध था। "अपनी ज़ुबान संभाल कर बोल," रवि ने गहरी, कंपकंपाती आवाज़ में चेतावनी दी, उसका सारा शरीर तनाव से कठोर हो गया था।
"क्या कर लेगा?" अर्पित ने उसकी ओर कदम बढ़ाया, उसके चेहरे पर अहंकार की परत चढ़ी हुई थी। "फिर से मुक्का मारेगा? याद रख, यह तेरा घर नहीं है। यह हॉस्टल है। और यहाँ... मैं रूल करता हूँ।" उसने दबाव डालते हुए रवि के कंधे पर हाथ रख दिया, एक तरह से उसे नीचा दिखाने के लिए।
वह आखिरी तिनका था।
रवि ने बिना एक पल सोचे-विचारे, जानवरों जैसी ताकत से अर्पित के हाथ को झटक दिया और उस पर झपट पड़ा। नवीन और अमित ने तुरंत हस्तक्षेप किया, उसे पीछे से पकड़ने की कोशिश की, "रवि, नहीं! रुक जा!" पर रवि के आक्रोश के आगे उनकी ताकत कुछ भी नहीं थी। अर्पित के दोस्तों ने भी हलचल शुरू कर दी, एक ने रवि को धक्का दे दिया।
और फिर, एक पल में, सब कुछ नियंत्रण से बाहर हो गया।
यह एक पूर्ण युद्ध का दृश्य था। प्लेटें ज़मीन पर गिरकर चकनाचूर हो गईं, कुर्सियाँ पलट गईं, और पूरा कैफेटेरिया चीखों, गालियों और टकराव की आवाज़ों से गूँज उठा। अमित ने एक सीनियर को जोरदार धक्का दिया जो रवि के पीछे से उसे पकड़ रहा था। राहुल, जो हमेशा शांति का पक्षधर था, अब अपने दोस्तों की रक्षा के लिए मैदान में कूद पड़ा था। नवीन ने अपना गिटार बैग एक तरफ फेंका और एक सीनियर को रोकने की कोशिश करने लगा, जो अमित की ओर बढ़ रहा था। यह सिर्फ एक लड़ाई नहीं थी; यह उन सभी के बीच जमा हुए तनाव, डर और गुस्से का एक जबरदस्त विस्फोट था।
तभी, एक तीखी, कर्णभेदी सीटी की आवाज़ ने पूरे हॉल को चीर दिया।
"ये क्या अय्याशी चल रही है यहाँ!"
डीन गर्ग, अपने पूरे कदम पर खड़े, दरवाजे पर मौजूद थे, उनका चेहरा गुस्से से लाल था। उनके पीछे प्रोफेसर शर्मा खड़े थे, उनके चेहरे पर गहरी निराशा और कठोरता थी।
लड़ाई तुरंत बंद हो गई, जैसे किसी ने स्विच बंद कर दिया हो। सभी अपनी-अपनी जगह पर जमे रहे, हाँफते हुए, कपड़े फटे हुए, चेहरे पर नाराजगी और अब डर के भाव लिए हुए।
डीन गर्ग की आवाज़ गर्जना की तरह गूँजी, "तुम सब, अभी, इसी वक्त, मेरे ऑफिस में पहुँचो!" उनकी नज़र पहले रवि, अमित, राहुल और नवीन पर पड़ी, फिर अर्पित और उसके गुंडों पर। प्रोफेसर शर्मा की निगाहें अमित और उसके दोस्तों पर टिकी थीं, और उनमें एक ऐसी निराशा थी जो किसी डांट से भी ज्यादा चुभ रही थी।
चारों दोस्तों को डीन के ऑफिस की ओर ले जाया गया। वे चुपचाप चल रहे थे, केवल उनकी सांसों की तेज आवाज़ और दिल की धड़कनें ही सुनाई दे रही थीं। उन्हें पता था कि यह सिर्फ एक धमकी या चेतावनी नहीं होने वाली थी। यह एक बहुत बड़ी मुसीबत की शुरुआत थी, और वे उसके सीधे निशाने पर थे।
लड़ाई खत्म होने के बाद का दृश्य अब बदल चुका था, और चारों दोस्त सीधे डीन गर्ग के ऑफिस में खड़े थे, जहाँ पूरे कमरे में एक भारी सन्नाटा छाया हुआ था, एक ऐसा सन्नाटा जो अभी-अभी छत पर हुए शोर-शराबे और लड़ाई के कोलाहल से भी कहीं ज़्यादा गहरा और भारी था। डीन गर्ग अपनी बड़ी सी और आलीशान कुर्सी पर गंभीर मुद्रा में बैठे हुए थे, और उनके चेहरे पर साफ तौर पर गुस्सा झलक रहा था। वहीं दूसरी ओर, प्रोफेसर शर्मा अपनी सामान्य और शांत नज़रों के साथ, पूरे घटनाक्रम को ध्यान से देखते हुए, कमरे के एक कोने में चुपचाप खड़े थे।
"तो, gentlemen," डीन गर्ग ने अपनी गहरी और गंभीर आवाज़ में कहना शुरू किया, जिससे कमरे का माहौल और भी ज़्यादा डरावना हो गया, "क्या अब आप में से कोई मुझे यह बताएगा कि आप लोगों ने college के first day पर ही इतनी बड़ी trouble क्यों खड़ी कर दी? और यह सब करने का आदेश किसने दिया था? किसके कहने पर यह सब हुआ?"
राहुल, जो हमेशा की तरह तुरंत जवाब देने को तैयार था, ने तुरंत आगे आकर कहना शुरू किया, "सर, हम लोग तो बस..." लेकिन उसकी बात पूरी भी नहीं हो पाई कि डीन ने अपना गुस्सा दिखाते हुए उसे बीच में ही रोक दिया। "चुप रहो!" डीन की आवाज़ में कड़वाहट थी, "मुझे अभी तुम्हारा बहाना नहीं चाहिए। मुझे सही जवाब चाहिए, और वह जवाब राहुल नहीं देगा।"
डीन के इतना कहते ही राहुल तुरंत शांत हो गया। उसने सिर नीचा कर लिया, और उसकी आँखों में साफ निराशा झलक रही थी। वह समझ गया था कि आज उसका तर्कसंगत logic और बहस करने का तरीका यहाँ बिल्कुल भी काम नहीं आने वाला था।
इसके बाद डीन गर्ग की गुस्सैल नज़रें सीधे रवि पर टिक गईं, मानो वह उसकी आत्मा तक पढ़ना चाहते हों। "रवि," उन्होंने सीधे और सख़्त स्वर में पूछा, "क्या तुम इस सबके बारे में कुछ कहना चाहोगे? क्या तुम्हारे पास कोई जवाब है?"
रवि ने अपना सिर ऊँचा रखा और बिना किसी डर या झिझक के सीधा खड़ा रहा। उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास था और कोई भय नहीं था। उसने स्पष्ट शब्दों में कहा, "सर, यह लड़ाई मेरी ही वजह से शुरू हुई थी। मैंने ही सबसे पहले अर्पित को मारा था। मैं अपनी गलती छिपा नहीं रहा हूँ।"
"क्यों?" डीन ने तुरंत पूछा, उनकी आवाज़ तीखी हो गई, "तुमने ऐसा क्यों किया? कारण बताओ।"
"क्योंकि वह हमें ragging के नाम पर परेशान कर रहा था," रवि ने गुस्से से भरी आवाज़ में जवाब दिया, "और उसने हमारे बारे में कुछ ऐसी बातें कहीं जो हमें बिल्कुल पसंद नहीं आईं। उसने हद पार कर दी थी, सर।"
डीन गर्ग ने गहरी साँस ली और अपनी नाक पर लगा चश्मा ठीक किया, मानो वह अपने गुस्से पर काबू पा रहे हों। फिर उन्होंने धीरे परंतु खतरनाक स्वर में कहा, "तो क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारी पसंद और नापसंद के आधार पर तुम किसी को punch कर सकते हो? क्या तुम्हें पता है कि इस तरह के actions के क्या serious consequences हो सकते हैं? क्या तुमने उसके बारे में सोचा?"
तभी, कोने से प्रोफेसर शर्मा ने अपनी हमेशा की तरह शांत और संयत आवाज़ में बातचीत में हस्तक्षेप किया। "रवि," उन्होंने पूछा, "क्या तुम सच में जानते हो कि ragging का असली मतलब क्या होता है? क्या तुम्हें लगता है कि इस तरह की हिंसा उसका सही जवाब है?"
रवि ने कुछ नहीं कहा। वह बस चुपचाप खड़ा रहा, शायद प्रोफेसर के सवालों पर सोच रहा था या शायद अपने गुस्से में ही अटका हुआ था।
इसके बाद प्रोफेसर शर्मा ने बाकी तीनों दोस्तों की तरफ देखा, उनकी नज़रें एक-एक कर सब पर पड़ीं। "और तुम तीनों?" उन्होंने पूछा, "क्या तुम भी इस सब में शामिल थे? तुमने भी लड़ाई में हिस्सा लिया?"
अमित, जो अब तक चुप था, उसने हिम्मत जुटाई और आगे बोला, "सर, हम लोग बस... अपने दोस्त का साथ दे रहे थे। हम उसे अकेला नहीं छोड़ सकते।"
यह सुनते ही डीन गर्ग का गुस्सा फिर से भड़क उठा। उन्होंने अपनी कुर्सी की बाँह पर ज़ोर से हाथ मारा और गरजते हुए कहा, "साथ दे रहे थे? क्या तुम्हें पता है कि इस तरह का 'साथ' तुम सबकी पढ़ाई और career दोनों बर्बाद कर सकता है! तुम सब college के first day पर ही इतना बड़ा drama कर रहे हो! तुम सब expel हो सकते हो! क्या तुम्हें इसकी समझ है?"
"सर," प्रोफेसर शर्मा ने एक बार फिर डीन गर्ग को शांत करने की कोशिश की, "मैं आपसे request करता हूँ। मुझे लगता है, इन लड़कों ने गलती तो की है, पर इन्हें एक मौका देना चाहिए। यह पहला दिन है, और ये अभी college के माहौल में ढल भी नहीं पाए हैं।"
डीन गर्ग कुछ पलों के लिए चुप हो गए, गहरी सोच में डूबे हुए। वह प्रोफेसर शर्मा की बात और लड़कों के चेहरे देख रहे थे। फिर अंततः उन्होंने अपना फैसला सुनाया। "ठीक है," उन्होंने कहा, "प्रोफेसर शर्मा की बात मानते हुए, मैं तुम सबको एक मौका देता हूँ। लेकिन यह कोई ordinary मौका नहीं है। सुनो: अगले तीन दिनों के लिए तुम hostel से suspend रहोगे। तुम्हें hostel छोड़ना होगा। और उसके बाद, अगले एक पूरे महीने तक, हर दिन शाम को college के library की सफाई करोगे। बिना किसी शिकायत के। और अगर मुझे इस दौरान एक भी शिकायत मिली... चाहे वह किसी भी छोटी बात की क्यों न हो... तो समझ लेना, तुम्हारा college career यहीं पर खत्म हो जाएगा। मैं साफ़ कह रहा हूँ।"
चारों दोस्तों ने सिर नीचा कर लिया। उन्होंने बिना एक भी शब्द कहे, डीन के ऑफिस से बाहर निकल आए। बाहर corridor का माहौल भी भारी था, और हवा में अभी भी तनाव साफ़ महसूस हो रहा था। रवि ने धीरे से अमित की तरफ देखा, और अमित ने चुपचाप, बिना कुछ कहे, उसे एक छोटा सा हौसला भरा nod दिया, जैसे वह बिना शब्दों के ही कह रहा हो कि 'घबराओ मत, हम सब साथ हैं, और हम इससे भी पार आ जाएँगे'।
और इस तरह, अब ये चारों दोस्त एक नई मुसीबत में फँस चुके थे, और उन्हें अब मिलकर, एकजुट होकर, इस नई challenge का सामना करना था।
डीन गर्ग के ऑफिस से बाहर निकलने के बाद, चारों दोस्त कॉरिडोर में चुपचाप खड़े थे, और उनके बीच का सन्नाटा इतना गहरा और भारी था कि उनकी हर साँस की आवाज़ भी तेज़ और साफ सुनाई दे रही थी। हॉस्टल में तीन दिन की suspension और एक पूरे महीने तक रोजाना library की duty - यह एक ऐसी सजा थी जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी और जिसके बारे में सोचकर ही उनका मन भारी हो रहा था।
आखिरकार राहुल ने सबसे पहले चुप्पी तोड़ी, और उसकी आवाज़ में गुस्सा और निराशा दोनों का मिश्रण साफ झलक रहा था। "Great job, Ravi," उसने कहा, "तेरी ही वजह से आज हम सब इस बड़ी trouble में आ गए हैं। मुझे पहले से ही पता था कि तू कुछ न कुछ ऐसा करेगा जो हम सबके लिए मुसीबत खड़ी कर देगा।"
यह सुनते ही रवि ने तेजी से राहुल की तरफ पलटकर देखा, उसकी आँखों में चिंगारी सी दौड़ गई। "तो मैं क्या करता?" उसने जवाब दिया, "क्या मैं उसे हमें गाली देने देता? तू हमेशा logical बात करता है, लेकिन उस सीनियर के सामने कोई logic काम नहीं आ रहा था। वहाँ तो सिर्फ अपना सम्मान बचाने की बात थी।"
"हाँ, और उसे punch मारना भी तेरा कोई logical step नहीं था!" राहुल ने चिल्लाकर जवाब दिया, अपना गुस्सा जाहिर करते हुए, "अब हम आगे क्या करेंगे? अगर मेरे घर वालों को इस suspension के बारे में पता चला तो क्या होगा? तू सोचता है सब तेरी तरह बिना सोचे-समझे काम करते हैं?"
तभी नवीन, जो हमेशा की तरह शांत और संयत था, ने बीच में बोलकर दोनों को रोकने की कोशिश की। "Bro, we are all in this together," उसने कहा, "अब एक दूसरे को blame करने और लड़ने-झगड़ने का कोई फायदा नहीं है। हम सबने मिलकर ही तो यह decision लिया था।"
वहीं अमित, जो अब तक खामोश खड़ा सब सुन रहा था, धीरे से रवि के पास आया। उसने रवि के कंधे पर हाथ रखा और धीरे से पूछा, "रवि, क्या तुम सच में ठीक हो? मुझे लगता है कि तुम्हारा यह गुस्सा सिर्फ उस सीनियर के लिए नहीं था। तुम्हारे मन में कुछ और है जो तुम बाहर निकाल रहे हो।"
रवि ने गुस्से में अपना सिर हिलाया और वहाँ से चले जाने का प्रयास किया। "मुझे अभी अकेला छोड़ दो," उसने कहा, "मैं किसी से बात करने के मूड में नहीं हूँ।"
लेकिन अमित ने उसका हाथ पकड़ लिया, उसे रोकते हुए। "सुनो," अमित ने दृढ़ता से कहा, "हम लोग तेरी वजह से अकेले यहाँ नहीं हैं। हम सब एक दूसरे की वजह से यहाँ हैं। हमने मिलकर ही तो उस लड़ाई में एक दूसरे का साथ दिया था। अब हम सब एक ही टीम में हैं, और टीमें एक दूसरे से लड़कर नहीं, बल्कि एक साथ मिलकर आगे बढ़ती हैं।"
उस रात, चारों दोस्तों ने अपने-अपने परिवार वालों को फोन call किया, और हर किसी के लिए यह बात करना बेहद मुश्किल और दिल तोड़ने वाला अनुभव था। अमित ने अपनी माँ को फोन पर बताया कि वह और उसके दोस्त तीन दिन के लिए suspend हो गए हैं। उसकी माँ की आवाज़ में साफ चिंता और निराशा झलक रही थी, "बेटा, तुम ऐसे लड़कों के साथ क्यों रहते हो जो तुम्हें मुसीबत में डाल देते हैं? क्या तुम्हें अपनी पढ़ाई और future की कोई चिंता नहीं है?"
राहुल के पिता ने फोन पर उससे पूछा, "Is this what you do there? Waste my money and time?" और यह सुनकर राहुल का दिल टूट गया, वह कुछ जवाब नहीं दे पाया, बस फोन को सुनता रहा।
जब रवि ने अपने पिता को call किया, तो उसके पिता ने सीधे उसे फटकार लगाते हुए कहा, "I knew it. मैंने पहले ही कहा था कि तुम अपना ध्यान पढ़ाई पर नहीं लगाओगे। तुमने मेरा नाम खराब कर दिया।"
नवीन ने यह सब अपने बड़े भाई को बताया। उसके भाई ने, जो खुद college का अनुभव रखता था, सिर्फ इतना कहा, "You guys need to stick together. Don't let this small setback break your friendship. This is the time you need each other the most."
अगले दिन, चारों दोस्त एक साथ कॉलेज की लाइब्रेरी में पहुँचे। उनके कंधों पर suspension और family की निराशा का बोझ था, लेकिन उनके चेहरे पर एक-दूसरे के प्रति भरोसा और एकजुटता की भावना भी थी। उन्हें अब पता था कि इस मुश्किल घड़ी में उनके पास एक-दूसरे के अलावा और कोई नहीं है, और उन्हें इस challenge को मिलकर ही पार करना होगा।
डीन के ऑफिस से निकलने के बाद का दिन बीता और अगली दोपहर को चारों दोस्त एक साथ लाइब्रेरी के रास्ते पर चल रहे थे, उनके हाथों में झाड़ू और बाल्टी जैसे सफाई के सामान का बोझ था, और उनके चेहरों पर suspension का गुस्सा और library duty की शर्मिंगी साफ़ झलक रही थी, जब तक कि रास्ते में उन्हें अर्पित और उसका पूरा गैंग नहीं मिल गया।
अर्पित अपनी एक क्लासमेट के साथ जोर-जोर से हँस रहा था, और जैसे ही उसकी नज़र अमित और उसके दोस्तों पर पड़ी, उसने एक और जोरदार ठहाका लगाया, मानो उसे दुनिया का सबसे मजेदार मजाक दिख गया हो।
"अरे देखो तो! कौन आए हैं," अर्पित ने जानबूझकर ताना मारते हुए कहा, "आ गया मज़ा, Hero Hindustani? चले थे hero बनने, और अब बन गए cleaner!"
उसकी यह बात सुनते ही रवि के चेहरे का रंग बदल गया, उस पर खून सवार हो गया, और उसकी मुट्ठियाँ अपने आप ही भींच गईं। "अपनी ज़ुबान संभाल," रवि ने गुस्से से दहाड़ते हुए कहा, उसकी आवाज़ में कंपन था।
लेकिन अर्पित और उसके दोस्त और भी जोर से हँसने लगे, उनकी हँसी और भी ज्यादा चिढ़ाने वाली थी। "अरे, गुस्सा क्यों हो रहा है?" अर्पित ने फिर से छेड़ा, "ये तो तुम्हारा नया job है। Hero का job खत्म और cleaner का शुरू। तुम्हें इसकी आदत डाल लेनी चाहिए।"
यह सुनते ही रवि ने कुछ नहीं सोचा और वह तेजी से अर्पित की तरफ बढ़ा, लेकिन तभी राहुल, अमित और नवीन ने मिलकर उसे पकड़ लिया, उसे आगे बढ़ने से रोक दिया। "रवि, रुक जा!" राहुल ने जोर से कहा, "यह वही चाहता है कि तू फिर से गुस्से में आकर कुछ कर बैठे और हम सब और बड़ी मुसीबत में फंस जाएं।"
"हाँ, हाँ," अर्पित ने उसे और भड़काने की कोशिश की, "भाग जा fresher, वरना फिर से कुछ हो जाएगा और तुझे library की भी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।"
रवि अपने दोस्तों के कसते हुए हाथों से छूटने की कोशिश करने लगा, वह गुस्से से पागल हो चुका था, और उसकी आँखों में वही rage था जो उस रात छत पर लड़ाई के दौरान दिखाई दिया था। वह सीधे अर्पित को घूर रहा था, लेकिन उसके बाकी तीनों दोस्त भी उसे देख रहे थे, और उनकी आँखों में एक साफ सवाल था, "क्या तुम फिर से वही पुरानी गलती दोहराना चाहते हो? क्या तुम हमें फिर से उसी मुसीबत में डालोगे?"
यह सवाल रवि को एक पल के लिए रोकने में कामयाब रहा। उसने अपने दोस्तों की तरफ देखा, जो उसे मजबूती से पकड़े हुए थे, और उसे एहसास हुआ कि वे सिर्फ उसे रोक नहीं रहे थे, बल्कि उसे खुद से और बड़ी मुसीबत से बचा रहे थे। उसने फिर से अर्पित की तरफ भागने की कोशिश की, लेकिन इस बार उसके दोस्त उसे पूरी तरह से रोकने में कामयाब रहे।
अर्पित और उसके गैंग की हँसी उनके कानों में गूंज रही थी, पर रवि अब चुप हो गया था। उसे एहसास हो रहा था कि वह सिर्फ अर्पित से नहीं लड़ रहा है, बल्कि उन सभी लोगों और हालातों से भी लड़ रहा है जो उसका और उसके दोस्तों का मज़ाक उड़ा रहे थे, और इस लड़ाई को अकेले नहीं, बल्कि अपने दोस्तों के साथ मिलकर ही जीता जा सकता है।
रात के 9 बज चुके थे, और कॉलेज की लाइब्रेरी में लगे tubelights एक-एक कर बुझ रहे थे, जिससे पूरा कमरा धीरे-धीरे अँधेरे में डूबता जा रहा था। झाड़ू-पोंछा करते हुए अमित, राहुल, नवीन और रवि की कमर और हाथ दुखने लगे थे, उनके कपड़ों पर धूल की मोटी परत जम गई थी और चेहरे पसीने से भीग चुके थे। जैसे ही आख़िरी लाइट बुझी, उन्हें एहसास हुआ कि वे बुरी तरह थक चुके हैं और उनकी हालत खराब हो चुकी है।
"अब और नहीं होता," नवीन ने अपने हाथ से झाड़ू नीचे रखते हुए कहा, अपनी कमर को सीधा करते हुए, "लगता है मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी में आज तक इतनी मेहनत नहीं की जितनी आज एक ही दिन में कर दी।"
रवि ने अपने चेहरे पर लगा पसीना अपनी आस्तीन से पोंछते हुए कहा, "Bro, I'm starving। मेरा पेट तो ढोलक की तरह बज रहा है, और मुझे लग रहा है कि अगर मुझे अभी कुछ नहीं मिला तो मैं यहीं गिर जाऊँगा।"
राहुल ने अपनी घड़ी देखी, उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिख रही थीं। "It's past 9. हॉस्टल का gate तो बंद हो गया होगा, और हमारे पास न तो phone है और न ही कोई पैसे। अब हम कहाँ जाएँगे? क्या करेंगे?"
to be Continued ----
अमित ने अँधेरे में चारों तरफ देखा, कॉलेज का पूरा campus अब शांत और डरावना लग रहा था, जैसे कोई भूतहा जगह हो। "मुझे लगता है," उसने धीरे से कहा, "हमें आज रात यहीं रुकना पड़ेगा। हमारे पास और कोई चारा नहीं है।"
वे सब लाइब्रेरी से बाहर आए और रात के गहरे अँधेरे में canteen की तरफ चले, उम्मीद कर रहे थे कि शायद वहाँ कुछ बचा हुआ खाना मिल जाए। Canteen पूरी तरह से बंद थी, और सिर्फ़ एक-दो बत्तियाँ ही जल रही थीं, जो उजाला करने के बजाय और डरावना माहौल बना रही थीं। वे बाहर एक बेंच पर बैठ गए, और रात की ठंडी हवा उनके शरीर की थकान को थोड़ा कम कर रही थी, पर भूख अभी भी सता रही थी।
"यार, अगर हमें कोई security guard या teacher देख लेगा तो क्या होगा?" नवीन ने चिंतित स्वर में पूछा, "क्या वे हमें फिर से punish करेंगे?"
रवि ने हँसते हुए कहा, "Then we'll say we're hungry and we have nowhere to go." उसकी बात सुनकर सब हँसने लगे, और उस हँसी में एक बेबसी थी, लेकिन एक अजीब सी आज़ादी भी थी, जैसे वे सभी rules और expectations से दूर, सिर्फ़ चार दोस्त थे, जो एक-दूसरे का साथ दे रहे थे और इस मुश्किल घड़ी में भी हँस सकते थे।
राहुल ने अपनी jacket उतारकर ज़मीन पर बिछा दी। "हमें यहाँ से जाने का कोई रास्ता नहीं मिला," उसने कहा, "तो हम यहीं रुक जाते हैं। कम से कम हम साथ तो हैं।"
अमित ने अपनी जेब में हाथ डाला, जिसमें सिर्फ एक पुराना टिकट था, और उसे याद आया कि अगर उसके पास अभी कुछ पनीर होता तो कितनी राहत मिलती। "काश," उसने धीरे से कहा, "मेरे पास कुछ खाने को होता, तो हम सबका पेट भर जाता।"
सब चुप हो गए। रात का अँधेरा, भूख की तकलीफ और शरीर की थकान ने मिलकर उनके बीच की सारी दीवारों को तोड़ दिया था। रवि ने अपने घुटनों पर सिर रख लिया और बोला, "You know what? आज मुझे सच में पता चला कि real life कितनी tough होती है, और कैसे छोटी-छोटी चीजों की कदर करनी चाहिए।"
राहुल ने, जो हमेशा logical बातें करता था, आज पहली बार कोई तर्क नहीं दिया। उसने बस हाँ में सिर हिलाया, समझदारी भरी चुप्पी के साथ। नवीन ने अपनी जैकेट निकाली और सबके ऊपर डाल दी, "हमेशा ठंडी हवा में बैठना अच्छा नहीं होता, especially जब पेट खाली हो।"
उस रात, चारों दोस्त खाली पेट, लेकिन एक-दूसरे का साथ और हौसला लिए, canteen की बेंच पर ही सो गए। उन्हें पता था कि वे सब एक ही नाव में सवार हैं, और आज की इस रात ने उन्हें सिर्फ़ भूख और मुश्किलों का एहसास नहीं कराया था, बल्कि एक-दूसरे के साथ होने की ताकत और दोस्ती का असली मतलब भी समझाया था।
रात के 11 बज चुके थे, और कॉलेज का पूरा campus एक गहरी, शांत नींद में डूबा हुआ था, जहाँ सिर्फ़ ठंडी हवा के झोंके और दूर कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें ही सुनाई दे रही थीं। कैंटीन के ठंडे फर्श पर बेंच पर, धूल और थकान से लथपथ चारों दोस्त एक-दूसरे से सटकर सोए हुए थे, उनकी गहरी नींद उनके सिर पर लटकी suspension और library duty की चिंता को भी पीछे छोड़ चुकी थी, मानो वे सारी परेशानियाँ कुछ पलों के लिए गायब हो गई हों।
तभी अमित को लगा जैसे कोई उसे धीरे से हिला रहा हो, उसकी नींद टूटी और उसने आँखें खोलीं, और सामने रिया को खड़े पाया, जिसकी आँखों में चिंता और दया दोनों साफ़ झलक रही थीं। अमित हड़बड़ी में उठकर बैठ गया, और उसकी अचानक हुई हरकत से बाकी तीनों की भी नींद खुल गई, जो अभी भी नींद में ही डूबे हुए थे।
"यार, कौन है?" रवि ने नींद में धुंधली आँखों से पूछा, और जैसे ही उसने सामने तीन लड़कियों को देखा, उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। वह और बाकी दोस्त, अपने बिखरे हुए बालों और धूल से सने गंदे कपड़ों के साथ, एकदम से शर्मिंदा हो गए, मानो उन्हें कोई ऐसी हालत में देख लिया गया हो जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी।
रिया ने धीरे से मुस्कुराकर कहा, "तुम लोग सो रहे थे, मैंने disturb तो नहीं किया न? मुझे तुम्हारी ही classmates ने बताया कि तुम सब यहाँ हो, और मैं सोच भी नहीं पा रही थी कि तुम लोगों ने रात कहाँ और कैसे काटी होगी।"
राहुल तुरंत उठकर खड़ा हो गया, उसके चेहरे पर चिंता साफ़ दिख रही थी। "रिया, you shouldn't be here," उसने जल्दी से कहा, "इस वक्त बाहर रहना सेफ नहीं है। अगर कोई देख लेता तो तुम्हारी भी problems हो सकती थीं।"
रिया ने उसके डर और चिंता को महसूस किया, पर फिर भी मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारे ही friends ने मुझे बता दिया था कि तुम लोगों के साथ क्या हुआ है। और मुझे लगा कि तुम सब भूखे होगे, इसलिए मैं चली आई।" उसने अपने हाथ में लिए दो बड़े pizza boxes को आगे बढ़ाया। "और ये मेरे दो पागल दोस्त हैं—तान्या और प्रिया। इन्होंने भी मेरा साथ दिया है।"
तान्या ने धीरे से मुस्कुराकर नवीन की तरफ़ देखा। वह एक confident लड़की थी, जिसके चेहरे पर कोई घबराहट नहीं थी, बल्कि एक अजीब सी उत्सुकता थी। उसकी नज़र नवीन के बैग पर पड़ी, जिसमें उसकी स्केच बुक्स दिख रही थी। "तुम स्केचिंग करते हो?" उसने सीधे सवाल किया। नवीन थोड़ा हैरान हुआ, पर उसने सिर हिलाकर हाँ कह दिया। "मुझे भी स्केच पसंद है," तान्या ने कहा, "शायद एक दिन तुम्हारा आर्ट देखने को mile।"
प्रिया, जो अब तक चुपचाप खड़ी थी, राहुल के पास आई। उसकी आँखें बहुत गहरी और समझदार थीं, मानो वह सब कुछ भाप लेती हों। "यह सब तुम्हारे लिए logical नहीं होगा, है ना?" प्रिया ने धीरे से पूछा। राहुल ने उसकी तरफ़ देखा, उसका logical brain तेजी से घूम रहा था, यह सोचने की कोशिश कर रहा था कि इस सवाल का क्या मतलब है। "कभी-कभी logic से ज्यादा emotions की ज़रूरत होती है," प्रिया ने कहा और एक कोमल मुस्कान के साथ मुड़ गई।
रिया ने अमित की तरफ देखा और पूछा, "Are you okay?" अमित ने धीरे से हाँ में सिर हिलाया। उसे लगा जैसे रिया की आवाज़ सुनकर उसकी सारी थकान और चिंता एक पल में दूर हो गई हो, और उसके मन में एक नई उम्मीद जग गई हो।
वे सब बेंच पर बैठ गए और पिज़्ज़ा के टुकड़े उठा लिए। उस पिज़्ज़ा का स्वाद दुनिया की किसी भी delicacy से ज़्यादा स्वादिष्ट लग रहा था, शायद भूख की वजह से, या फिर उस पल की खुशी की वजह से। वे सब चुपचाप खा रहे थे, लेकिन उनके बीच एक अदृश्य बातचीत शुरू हो गई थी, जो उनकी आँखों और मुस्कुराहटों के जरिए चल रही थी।
रवि ने रिया से पूछा, "How did you know we were here? हमने तो किसी को नहीं बताया था।"
"मैं और मेरी दोस्त late-night में कभी-कभी library में study करते हैं," रिया ने बताया, "तो हमें पता चला कि तुम यहाँ हो, और हमने सोचा कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए।"
"तुम लोगों ने बहुत हिम्मत का काम किया," अमित ने कहा, "इस वक्त यहाँ आना, और हमारे लिए खाना लाना... यह कोई छोटी बात नहीं है।"
"तुम लोग भी तो अपनी दोस्ती के लिए लड़ रहे थे," रिया ने कहा, उसकी आवाज़ में गर्व था, "तुम अकेले नहीं हो, और हमेशा याद रखना कि दोस्ती सिर्फ़ मुसीबत में ही नहीं, बल्कि हर पल साथ देती है।"
उस रात, कैंटीन की ठंडी हवा में सिर्फ़ पिज़्ज़ा का स्वाद नहीं था, बल्कि एक नई शुरुआत का एहसास भी था, एक ऐसी शुरुआत जो उनकी जिंदगी को नई दिशा देने वाली थी। लड़कों ने अपनी मुश्किलों और डर के बारे में खुलकर बात की, और लड़कियों ने उन्हें हिम्मत और समझदारी से सुनकर उनका हौसला बढ़ाया। जब लड़कियाँ वापस जाने लगीं, तो सबने एक-दूसरे को धन्यवाद कहा, और उन आँखों में एक वादा था कि यह मुलाकात आखिरी नहीं थी। उस रात, कैंटीन में एक नई दोस्ती और एक नया रिश्ता शुरू हो गया था, जो उनकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदलने वाला था, और उन्हें एक-दूसरे के और करीब लाने वाला था।
सुबह के 5 बज रहे थे। कॉलेज का पूरा campus एक ठंडी और ताज़ी हवा में डूबा हुआ था, पक्षियों की चहचहाट धीरे-धीरे शुरू हो रही थी और सूरज की पहली किरणें धीरे से जमीन को छू रही थीं। कैंटीन के बेंच पर, चारों दोस्त अभी भी गहरी नींद में सोए हुए थे, उनकी धूल भरी टी-शर्ट और बिखरे हुए बाल उनकी पिछली रात की थकान की कहानी कह रहे थे।
तभी, पास में कदमों की आहट सुनाई दी। यह कोई और नहीं, बल्कि डीन गर्ग थे, जो अपनी नियमित jogging की attire में थे। उनके चेहरे पर वही गंभीरता थी, पर उनकी चाल में एक अलग ही शांति थी। जब उनकी नजर लड़कों पर पड़ी जो वहाँ सोए हुए थे, तो वे कुछ पल के लिए रुक गए, हैरानी से उन्हें देखते हुए।
उन्होंने देखा कि रवि सबसे आगे सो रहा था, उसकी साँसें गहरी चल रही थीं। डीन ने धीरे से अपना हाथ बढ़ाया और रवि के सिर पर हल्के से थपथपाया, ताकि वह धीरे से जाग जाए।
"अबे हट ना, सोने दे..." रवि ने नींद में बड़बड़ाते हुए कहा और करवट बदलकर फिर से सोने की कोशिश की।
डीन के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई, मानो उसे यह देखकर अच्छा लगा हो। उन्होंने दोबारा, थोड़ा जोर से, रवि के सिर पर हाथ मारा। इस बार रवि पूरी तरह जग गया। जैसे ही उसने आँखें खोलीं और सामने डीन गर्ग को देखा, उसकी नींद एक पल में पूरी तरह उड़ गई। उसका मुँह खुला का खुला रह गया, और वह डर के मारे तुरंत उठकर खड़ा हो गया, मानो उसे बिजली का झटका लगा हो।
"तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो?" डीन ने पूछा। उनकी आवाज़ में गुस्सा नहीं, बल्कि एक अजीब सी निराशा और थोड़ी हैरानी थी।
अमित, राहुल और नवीन भी उस हलचल से जग गए। राहुल ने जल्दी से हड़बड़ाते हुए कहा, "सर, हॉस्टल बंद हो गया था और... और हम library की cleaning करके बहुत थक गए थे। हमारे पास जाने के लिए और कोई जगह नहीं थी।"
डीन गर्ग ने चारों की हालत देखी, उनके धूल से सने गंदे कपड़े, थके हुए चेहरे और बिखरे बाल। उन्हें एहसास हुआ कि इन लड़कों ने सच में रात भर मेहनत की होगी और अब यहाँ आराम कर रहे हैं।
"मुझे तुम्हारी इस हरकत से बिल्कुल खुशी नहीं हुई," डीन ने कहा, उनकी आवाज़ में अब भी कड़की थी। "लेकिन जिस तरह से तुम एक साथ हो, एक-दूसरे का साथ दे रहे हो, वह देखकर मुझे लगा कि तुम्हारे बीच की दोस्ती सिर्फ लड़ने-झगड़ने के लिए नहीं है।"
उन्होंने गहरी साँस ली और कहा, "ठीक है, सुनो। तुम्हारे तीन दिन का hostel suspension मैं cancel करता हूँ। तुम लोग अब हॉस्टल जा सकते हो और आराम कर सकते हो।"
चारों दोस्तों ने हैरानगी से एक-दूसरे को देखा। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि डीन ने अपना फैसला बदल दिया है और उन्हें माफ कर दिया है।
"लेकिन," डीन गर्ग की आवाज़ में फिर से सख्ती आ गई, "तुम्हारी एक महीने की college library और canteen cleaning duty की सजा waive नहीं होगी। वह अपनी जगह पर बरकरार रहेगी। तुम्हें अपनी गलती की सजा भुगतनी होगी।"
चारों ने हाँ में सिर हिलाया। वे जानते थे कि यह एक दूसरा मौका था और उन्हें इसे संभालना होगा। डीन वहाँ से चले गए, और चारों दोस्त एक-दूसरे को देख रहे थे, उनकी आँखों में राहत थी और एक-दूसरे के लिए सम्मान भी। वे उठे और हॉस्टल की तरफ चल दिए, उनके कदमों में एक नई उम्मीद और जोश था।
हॉस्टल पहुँचते ही, वे सब अपने-अपने कमरों में भागे। न तो उन्हें अब थकान महसूस हो रही थी और न ही भूख। उन्हें बस fresh होकर कॉलेज जाने की जल्दी थी। बाथरूम में जाकर उन्होंने एक लंबी shower ली, पानी की बौछारों ने उनकी थकान और धूल दोनों को बहा दिया। उन्होंने नए कपड़े पहने, रवि ने अपने बिखरे हुए बालों को कंघी से ठीक किया और नवीन ने अपनी जैकेट झाड़कर तैयार हो गया। राहुल ने अपना बैग उठाया और अमित को आवाज़ दी, "Let's go, guys. आज से तो कम से एक नयी शुरुआत करेंगे।
(लेकिन ये तो वक्त हीं बताने वाला है की चारो दोस्तों के लिए future मे क्या होने वाला है, मैं तो बस राइटर हूँ i hope सब अच्छा हीं ho🥹)
हॉस्टल से निकलने के बाद, चारों दोस्त चुपचाप कॉलेज की तरफ बढ़ रहे थे। सुबह की नरम धूप उनके चेहरों पर पड़ रही थी, पर उसकी गर्माहट उन तक नहीं पहुँच पा रही थी। आज हवा में एक अजीब सी tension थी, जो उनके हर कदम के साथ बढ़ती जा रही थी। उनकी लड़ाई और सज़ा की खबर पूरे कॉलेज में आग की तरह फैल चुकी थी, और यह बात हर कोई जानता था। कैंपस का माहौल आज बिल्कुल अलग था - जहाँ कल तक लोग उन्हें सामान्य नज़रों से देखते थे, आज हर कोई उन्हें घूर रहा था। कुछ लोग उन्हें अजीब निगाहों से देख रहे थे, तो कुछ उनसे दूरी बना रहे थे, मानो वे कोई संक्रामक बीमारी हों।
"यार, ये सब ऐसे क्यों देख रहे हैं," नवीन ने फुसफुसाते हुए कहा, अपनी आवाज़ को इतना धीमा रखते हुए कि केवल उसके तीनों दोस्त ही सुन पाएँ। उसकी आँखें जमीन की ओर टिकी हुई थीं, मानो वह उन सभी टकटकी लगाए हुए लोगों से बचने की कोशिश कर रहा हो।
"क्या हुआ? क्या हम कोई circus के clowns हैं?" रवि ने गुस्से में कहा, उसकी आवाज़ में चिढ़ थी। उसकी मुट्ठियाँ अपने आप भींच गईं, और उसने आँखें उठाकर उन लोगों की ओर देखा जो उन्हें देख रहे थे। उसकी नज़रों में एक चुनौती थी, मानो वह कह रहा हो कि अगर किसी में हिम्मत है तो सामने आकर बोले।
"नहीं, हम वो boys हैं जिन्होंने पहले दिन ही fight की," राहुल ने बिना किसी emotion के सपाट स्वर में कहा। उसकी आवाज़ में कोई उत्तेजना नहीं थी, बस एक सपाट, तथ्यात्मक स्वर था। "अब हमारी यह identity बन गई है। लोग हमें इसी नज़र से देखेंगे।" उसने कहा, मानो यह एक mathematical equation हो जिसे वह solve कर रहा हो।
तभी, कॉरिडोर में आगे बढ़ते हुए उनकी मुलाकात रिया, तान्या और प्रिया से हुई। रिया ने उन्हें देखकर मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसके चेहरे पर साफ़ चिंता झलक रही थी। उसकी आँखें बड़ी थीं और उनमें एक डर साफ़ दिख रहा था, मानो वह जानती हो कि यह मुलाकात उनके लिए नई परेशानियाँ ला सकती है।
"अमित, क्या तुम ठीक हो?" रिया ने धीरे से पूछा, उसकी आवाज़ में डर और परवाह दोनों थे। उसने अमित की ओर देखा, मानो उसकी आँखों में कोई जवाब ढूँढ रही हो।
अमित ने हाँ में सिर हिलाया। उसे अच्छा लगा कि कोई उसकी परवाह कर रहा है, खासकर रिया। उसने महसूस किया कि उसका दिल थोड़ी तेजी से धड़क रहा है, और उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई थी।
तान्या नवीन के पास आई। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "I heard तुम लोग कल यहाँ नहीं थे। सब ठीक तो है न?" उसकी आवाज़ में एक स्वाभाविक curiosity थी, और उसकी मुस्कान में एक warmth थी जो नवीन को सुकून दे रही थी।
नवीन ने सिर हिलाया। तान्या ने उसकी notebook को देखा, जिस पर उसने कुछ sketches बनाए थे। "तुम बहुत creative हो," उसने कहा, उसकी आँखों में सच्ची दिलचस्पी थी।
"तुम भी," नवीन ने कहा। "तुम music पसंद करती हो, है न?" उसने पूछा, मानो वह इस बातचीत को आगे बढ़ाना चाहता हो।
"और तुम art," तान्या ने कहा। उनकी बातों में एक अजीब सी connection था, जैसे दो अलग-अलग दुनियाएँ एक ही धागे में बँध गई हों। उनके बीच एक silence छा गया, पर वह awkward नहीं था, बल्कि comfortable था, मानो दोनों एक-दूसरे को बिना शब्दों के समझ रहे हों।
प्रिया राहुल के पास आई। "मैं मानती हूँ कि यह सब illogical था," उसने कहा, उसकी आवाज़ में एक गंभीरता थी। "लेकिन मुझे तुम लोग पसंद हो।" राहुल ने हैरानी से उसे देखा, मानो उसने कोई गलत calculation कर दी हो। "इंसानी emotions को समझना बहुत difficult होता है," प्रिया ने आगे कहा। "मुझे लगता है कि तुम्हारी logical thinking तुम्हें इसमें मदद कर सकती है।" उसकी आँखों में एक चमक थी, मानो वह राहुल के दिमाग में चल रहे thoughts को पढ़ रही हो।
जैसे ही वे बात कर रहे थे, रवि की नज़र दूर खड़े अर्पित पर पड़ी। अर्पित उसे देख कर मुस्कुरा रहा था, जैसे वह रवि को उकसा रहा हो। उसकी मुस्कान में एक घृणा और तिरस्कार था जो रवि के गुस्से को भड़का रहा था। रवि की मुट्ठियाँ भींच गईं, और उसके जबड़े tight हो गए। उसने रिया की तरफ देखा, और फिर अर्पित की तरफ। उसे लगा कि वह एक बहुत ही अजीब स्थिति में है। वह उस लड़के से नफ़रत करता था, लेकिन उसकी बहन से बात करके उसे अच्छा लग रहा था। यह contradiction उसे परेशान कर रहा था, और उसके मन में एक तूफान सा उठ खड़ा हुआ था।
तभी, अर्पित गुस्से में उनकी तरफ आया। उसके कदम तेज और आक्रामक थे, और उसके चेहरे पर एक गहरा गुस्सा था। "रिया! तुम्हें याद नहीं मैंने क्या कहा था? इनसे दूर रहना।" उसकी आवाज़ में एक धमकी थी, और उसने रिया का हाथ पकड़ लिया, उसे खींचते हुए।
रिया ने शांत आवाज़ में कहा, "Bhaiya, यह मेरे classmates हैं। हम बस बात कर रहे थे।" उसकी आवाज़ में डर था, पर उसमें एक दृढ़ता भी थी।
अर्पित ने रिया का हाथ और जोर से पकड़ लिया और उसे खींचने लगा। "चलो, यहाँ से। मैंने कहा था इनसे दूर रहना।" उसकी आवाज़ और तेज हो गई थी, और उसके चेहरे का गुस्सा साफ़ झलक रहा था।
रिया ने अपनी ताकत से अपना हाथ झटका दिया। उसकी आँखों में गुस्सा था, और उसके चेहरे पर एक determination थी जो पहले कभी नहीं देखी गई थी। "Enough, Bhaiya!" उसने ज़ोर से कहा। "आप पापा बनने की कोशिश मत करो। मुझे भी अपने फैसले लेने का हक है।" उसकी आवाज़ में एक जोश था, और उसने सीना तान कर अपने भाई का सामना किया।
अर्पित हैरान रह गया। उसने कभी नहीं सोचा था कि रिया उसके सामने ऐसे बोलेगी। उसकी नज़रों में गुस्सा, हैरानी और शर्मिंदगी थी। उसने एक बार अमित और उसके दोस्तों को देखा, मानो वह उन्हें चुनौती दे रहा हो, और फिर बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद एक भारी silence छा गया, जिसे तोड़ते हुए अमित ने पूछा, "अब हम क्या करेंगे?" उसकी आवाज़ में थोड़ी घबराहट थी, और उसकी आँखों में एक अनिश्चितता थी।
"हम बस class में जाएंगे," राहुल ने कहा, उसकी आवाज़ में पहले जैसी ही logical शांति थी। उसने सीधा सा जवाब दिया, मानो यही सबसे obvious solution हो।
रवि ने एक गहरी साँस ली और कहा, "नहीं, हम class में जाएंगे और दिखाएंगे कि हम सिर्फ़ लड़ते ही नहीं हैं। हम यहाँ पढ़ने आए हैं।" उसकी आवाज़ में एक नया जोश था, और उसकी आँखों में एक चमक थी जो पहले नहीं थी। उसने महसूस किया कि अब सिर्फ़ लड़ाई नहीं, बल्कि अपनी काबिलियत दिखाने का वक्त आ गया है।
चारों दोस्तों ने एक-दूसरे को देखा, और उनकी आँखों में एक नया संकल्प था। वे जानते थे कि आने वाला वक्त आसान नहीं होगा, पर अब वे एक साथ थे, और उनमें एक नई ताकत आ गई थी। वे class की ओर बढ़े, उनके कदमों में एक नया आत्मविश्वास था, और उनके दिलों में एक नई उम्मीद जगी थी।
कॉलेज का सबसे बड़ा lecture hall पूरी तरह से भरा हुआ था, हर सीट पर एक छात्र बैठा था और हवा में एक गंभीरता छाई हुई थी। आज उनकी Electrical Engineering की class थी, जिसे प्रोफेसर शर्मा लेते थे। प्रोफेसर शर्मा अपनी शांत, लेकिन सख्त आवाज़ के लिए जाने जाते थे, और आज का माहौल इस बात का सबूत था। सब खामोश थे, क्योंकि उन्हें पता था कि आज कोई मज़ाक नहीं चलेगा, बस पढ़ाई और सीखना होगा।
प्रोफेसर ने lecture शुरू किया, ब्लैकबोर्ड पर equations लिखते हुए, और फिर अचानक बीच में ही रुक गए। उनकी आँखें पूरे हॉल में घूम रही थीं, हर छात्र के चेहरे को जाँचती हुई। "आज मैं सिर्फ़ theory नहीं पढ़ाऊँगा," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ में एक चुनौती थी। "मैं देखना चाहता हूँ कि आप सब कितना smart हैं, कितना जानते हो।"
उनकी नज़र सबसे पहले राहुल पर पड़ी, जो पीछे की सीट पर बैठा था। "तुम, पीछे वाले लड़के," उन्होंने पूछा, "What is Ohm's law?"
राहुल ने बिना एक सेकंड सोचे जवाब दिया, उसकी आवाज़ स्पष्ट और आत्मविश्वास से भरी थी, "Sir, Ohm's law states that the voltage across a conductor is directly proportional to the current flowing through it, provided all physical conditions and temperatures remain constant." उसका जवाब बिल्कुल perfect था, हर शब्द सही। प्रोफेसर ने मुश्किल से ही सिर हिलाया, पर उनकी आँखों में एक संतोष था।
फिर उनकी नज़र नवीन पर पड़ी, जो अपनी notebook में कुछ sketches बना रहा था। "तुम, आर्टिस्ट।" उन्होंने तंज कसा। "बताओ, how does an inductor work?"
नवीन हड़बड़ा गया। उसका दिमाग एकदम खाली हो गया, मानो सब कुछ भूल गया हो। उसने कुछ-कुछ बोलने की कोशिश की, पर शब्द ही नहीं आ रहे थे। तभी, तान्या ने, जो उसके पास बैठी थी, धीरे से, पर साफ़ आवाज़ में कहा, "Sir, it stores energy in a magnetic field when current passes through it." नवीन ने तान्या की तरफ़ हैरानगी से देखा, और प्रोफेसर ने उसकी बात को स्वीकार कर लिया, हल्का सा सिर हिलाया।
"गुड," प्रोफेसर ने कहा। फिर उन्होंने अमित को देखा, जो nervous हो रहा था। "And you? What is a capacitor?"
अमित को कुछ याद नहीं आ रहा था। उसके माथे पर पसीना आ गया, और उसकी आवाज़ काँप रही थी। तभी, रिया ने, जो उसके बगल में बैठी थी, धीरे से कहा, "An electrical device." अमित ने उसकी तरफ़ देखा और उसने मुस्कुराकर सिर हिलाया, फिर थोड़ा confident होकर बोला, "सर, it's an electrical device that stores energy in an electric field." प्रोफेसर ने हाँ में सिर हिलाया, और अमित ने राहत की साँस ली, मानो बड़ी मुसीबत से बच गया हो।
तभी, प्रोफेसर शर्मा ने रवि की तरफ़ देखा, जो chewing gum चबा रहा था। "तुम, जिन्होंने मेरे rules तोड़े हैं। बताओ, what is an ideal circuit?"
रवि ने अपने मुँह से chewing gum निकाली और थोड़ा arrogant अंदाज़ में कहा, "Sir, that's a hypothetical concept, it doesn't exist in real life. Real circuits always have some resistance or imperfection." पूरा हॉल हँसने लगा, मानो यह कोई मज़ाक हो। प्रोफेसर ने उसकी तरफ़ गंभीरता से देखा, और उनकी आँखों में निराशा थी, पर वह कुछ नहीं बोले।
"और तुम, लड़की," उन्होंने प्रिया की तरफ़ देखकर पूछा। "What is the resistance in a wire?"
प्रिया ने धीरे से, लेकिन आत्मविश्वास से जवाब दिया, "Sir, resistance is the opposition to the flow of current. It depends on the length, cross-sectional area, and material of the wire." राहुल ने उसकी तरफ़ हैरानी से देखा, उसका logical brain एक पल के लिए process कर रहा था कि उसने इतना perfect और detailed जवाब कैसे दिया।
क्लास खत्म होने के बाद, बाहर निकलकर राहुल ने कहा, "My mind is still processing it. How can a question about a circuit become a philosophical debate?" उसकी आवाज़ में हैरानी थी, मानो वह अभी भी उस question और answer को समझने की कोशिश कर रहा हो।
नवीन ने रिया और तान्या की तरफ़ देखा, उसकी आँखों में thankfulness थी। "तुम्हारे बिना तो मैं आज सजा जरूर पाता," उसने कहा, उसकी आवाज़ में एक sincerity थी।
"हाँ," अमित ने रिया की तरफ़ देखकर कहा, उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी। "Thanks, you saved me." उसने कहा, मानो वह उसकी मदद के लिए हमेशा thankful रहेगा।
रिया ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "It's okay. हम सब एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं।" उसकी आवाज़ में warmth थी, और उसकी बातों ने सबके दिलों को छू लिया। उन्हें लगा कि अब वे अकेले नहीं हैं, बल्कि एक team हैं, जो हर मुसीबत का सामना एक साथ कर सकती है।
रिया, तान्या और प्रिया क्लास के बाद नेक्स्ट लेक्चर के लिए हाल मे जा रही थी।
तभी पीछे से किसी ने उन्हें आवाज़ दी उन्होंने मुड़के देखा तो वह राहुल था।
वह दौड़ के उनके पास आया , और प्रिया से बोला क्या मुझे तुम्हारा नंबर मिल सकता है।
रिया और तान्या एक दूसरे को देखने लगी, रिया ने सोचा मैं तो इसे पढ़ाकू समझती थी ये तो बड़ा तेज़ निकला।
राहुल बोला - मुझे तुमसे कुछ नोट्स और इम्पोर्टेन्ट टॉपिक्स के बारे मे पूछना है।
रिया ने अपना सिर पकड़ लिया, उसने कुछ ज़ायदा हीं expect कर लिया था।
प्रिया बोली एक हीं मुलाक़ात मे नंबर ये कुछ ज़ायदा हीं हो गया, पहले जनाब डेट पर तो ले चलो।
राहुल का सिर चकरा गया, उसे आज पता लगा की लड़कियों को डेट पर भी ले जाना होता है।
क्लास खत्म होने के बाद, चारों दोस्त कॉरिडोर में इकट्ठा हुए, और राहुल की बात पर हँस रहे थे। राहुल का सिर चकरा रहा था, मानो उसने कोई बहुत बड़ी गलती कर दी हो। उसके चेहरे पर एक अजीब सी घबराहट थी, और वह बार-बार अपने चश्मे को ठीक कर रहा था।
"यार, date? Seriously?" राहुल ने माथे पर हाथ रखकर कहा, उसकी आवाज़ में एक असमंजस था। "क्या date का कोई protocol होता है? क्या steps follow करने होते हैं? क्या मुझे कोई algorithm learn करना चाहिए?"
नवीन हँसते हुए बोला, उसकी आँखों में एक चमक थी। "Of course, bro. तुम date पर जाते हो, लड़कियों को कॉफी पिलाते हो, बातें करते हो, और फिर तुम उनसे notes माँगते हो। यही तो standard procedure है!" उसने मजाक में कहा, राहुल के कंधे पर थपथपाते हुए।
रवि ने राहुल को tease करते हुए कहा, उसकी आवाज़ में एक हल्की झल्लाहट थी। "बेटा, ये logical नहीं है। Girls don't go on dates to give out notes। वे बातचीत करने आती हैं, हँसने आती हैं, enjoy करने आती हैं। तुम्हें भी अपने equations और formulas से बाहर निकलना होगा।"
अमित ने राहुल को समझाया, उसकी आवाज़ में एक शांतिपूर्ण स्नेह था। "राहुल, मुझे लगता है प्रिया तुम्हारे साथ time बिताना चाहती है। तुम बस उसके साथ बात करो, उसे जानो। तुम्हारी तरह की logic की जरूरत नहीं है, बस थोड़ा natural हो जाओ।"
आखिरकार हिम्मत जुटाकर, राहुल ने प्रिया को मैसेज किया: "Hello Priya. This is Rahul. I was wondering if you would be interested in accompanying me for a cup of coffee this evening. My treat. Regards, Rahul."
उसने send बटन दबाया और एक लंबी सांस छोड़ी, मानो कोई बहुत बड़ा काम कर दिया हो। फोन को जेब में रखने भी नहीं दिया कि वाइब्रेट होने लगा। प्रिया का नाम स्क्रीन पर चमक रहा था। वह कॉल कर रही थी!
राहुल का दिल धड़कना बंद सा हो गया। उसने घबराकर अपने दोस्तों की तरफ देखा, जो उत्सुकता से उसका मुंह ताक रहे थे। "ये लो... कॉल कर दिया! Ab kya karoon? Protocol define nahin hai!"
"उठा ले ना, बेवकूफ!" रवि ने उसे धक्का दिया।
राहुल ने कांपते हाथों से कॉल रिसीव की। "Hello? Priya? Yes. This is Rahul speaking." उसकी आवाज़ एकदम फंसी हुई थी।
फोन के दूसरे छोर से प्रिया की मधुर हंसी सुनाई दी। "Regards? Really, Rahul? यह कोई official meeting invite थोड़ी है!"
राहुल और घबरा गया। "I... I apologise for the formal tone. My social interaction algorithms are a bit outdated."
प्रिया फिर से हंसी। "चलो कोई बात नहीं। कॉफी के लिए थोक में invite करो ना। मेरी दोस्तें भी आएंगी – रिया और तान्या। और तुम अपने तीनों partners-in-crime को भी ले आना। हम group date पर चलेंगे।"
राहुल के दिमाग में एक error message कौंध गया। GROUP DATE? उसकी सारी planning fail हो गई। उसने बिना सोचे-समझे जवाब दे दिया, "Affirmative. I will inform the squad. We will assemble at the designated location at 1700 hours."
प्रिया की तरफ से एक आह भरी सुनाई दी। "राहुल, तुम्हारे लिए...!"
तभी, फोन में एक दूसरी, थोड़ी परिचित और बहुत ही शरारती आवाज़ आई। रिया ने प्रिया से फोन ले लिया था। "अरे मेरे प्यारे बच्चे! अपनी mummy se baat करो! अब जल्दी से phone अपने Mr. Dabang रवि को दो। हमें उससे भी बात करनी है!"
राहुल हैरानी से फोन रवि की तरफ बढ़ा दिया। रवि ने मजाक में आंखें तरेरीं, फोन लिया और बोला, "Hello? Kaun hai jo itni jaan se pukaar raha hai?"
रिया ने दूसरी तरफ से चिल्लाकर कहा, "तू फटाफट अपने उन दोनों दोस्तों को भी ले आना! हम लोग आज group date pe ja rahe hain! समझा, मेरे sher?"
रवि की आँखें चमक उठीं। उसने फोन अपने कंधे से दबाया और अपने दोस्तों की ओर मुस्कुराते हुए देखा। "चलो बच्चों, तैयारी करो! आज हमारी first official diplomatic mission है। और राहुल... तेरी programming में थोड़े bugs निकले हैं, पर कोई बात नहीं, हम तेरे back-up हैं।"
राहुल ने राहत की सांस ली। उसे एहसास हुआ कि अब वह अकेला नहीं था। उसके पास एक टीम थी, और शायद, इसी टीम के साथ, वह इस 'डेट' नामक अनजाने algorithm को भी crack कर लेगा।
उस शाम, वे सब एक local cafe में मिले। cafe का माहौल आरामदायक था, हल्की background music बज रही थी, और हवा में कॉफी की खुशबू थी। अमित, रवि, नवीन, राहुल और रिया, तान्या और प्रिया - सब एक बड़ी table पर बैठे थे। माहौल थोड़ा awkward था, लेकिन धीरे-धीरे बातचीत शुरू होने लगी और सब ठीक होने लगा।
राहुल ने प्रिया से बात करना शुरू किया, उसकी आवाज़ थोड़ी काँप रही थी। "तुम्हें लगता है कि हमें Ohm's law के बारे में और पढ़ना चाहिए? मुझे लगता है कि professor ने कुछ important points छोड़ दिए। शायद हम एक study group बना सकते हैं..."
प्रिया मुस्कुराई, उसकी आँखों में एक कोमलता थी। "Rahul, हम यहाँ Ohm's law के बारे में बात करने नहीं आए हैं। हम यहाँ एक-दूसरे को जानने के लिए आए हैं। तुम बताओ, तुम्हें पढ़ाई के अलावा और क्या पसंद है? क्या तुम्हारे कोई hobbies हैं?"
तभी, नवीन और तान्या अपनी दुनिया में खो गए। वे दोनों music और art के बारे में गहरी बातचीत कर रहे थे। नवीन ने अपनी कॉपी में कुछ sketches निकाले, जो उसने क्लास के दौरान बनाए थे। तान्या उन्हें देख रही थी, उसके चेहरे पर प्रशंसा का भाव था। "This is amazing," उसने कहा, उसकी आवाज़ में उत्साह था। "You should be an artist। तुममे real talent है।"
अमित और रिया ने चुपचाप एक कोने में बैठकर अपनी पढ़ाई के बारे में बात की। रिया ने अमित को समझाया कि engineering को सिर्फ़ marks के लिए नहीं, बल्कि कुछ नया सीखने और create करने के लिए करना चाहिए। "तुम्हें क्या करना पसंद है?" रिया ने पूछा, उसकी आँखों में एक genuine curiosity थी।
अमित ने अपनी आँखों में कुछ चमक के साथ जवाब दिया, "मुझे बच्चों को पढ़ाना पसंद है। मैं हर weekend एक local community center में जाता हूँ और वहाँ के बच्चों को पढ़ाता हूँ। उन्हें कुछ सिखाने में एक अलग ही satisfaction मिलता है।"
रवि, जो अब तक शांत बैठा था, उन सबको देखकर कुछ confuse हो गया। उसे लगा कि वह इन सब से बहुत दूर है। उसके पास कोई Tanya नहीं थी जिससे वह अपने art के बारे में बात कर सके, और न ही कोई Priya थी जिसे वह समझ सके। उसके चेहरे पर एक उदासी छा गई, और उसने अपनी cold coffee की glass को घुमाया। उसके पास सिर्फ एक ही राज़ था, जिसे वह किसी को नहीं बता सकता था, एक ऐसा दर्द जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। उसने देखा कि सब खुश हैं, बातें कर रहे हैं, और वह अकेला महसूस कर रहा था, मानो उसके लिए इस खुशनुमा माहौल में कोई जगह नहीं थी।
कैफे में माहौल हल्का और खुशनुमा था। नरम रोशनी और हल्की जैज़ संगीत ने एक आरामदायक वातावरण बनाया हुआ था। राहुल और प्रिया के बीच हल्की-फुल्की बहस चल रही थी, जिसमें प्रिया राहुल के तार्किक तर्कों को मानवीय भावनाओं से काट रही थी। नवीन और तान्या अपनी दुनिया में खोए हुए थे, किसी गाने की धुन पर बात कर रहे थे, और तान्या नवीन के स्केचबुक में बनाए चित्रों को देखकर मुग्ध हो रही थी। अमित और रिया की बातें गहरी थीं, वे शिक्षा और सामाजिक सेवा के बारे में चर्चा कर रहे थे। रवि भी बैठा था, लेकिन उसकी नज़रें खिड़की के बाहर थीं। वह अपने दोस्तों को खुश देखकर मुस्कुरा रहा था, पर उसकी आँखों में एक अजीब सी बेचैनी थी, जैसे कोई पुराना घाव फिर से हरकर रहा हो।
तभी, रवि की नज़र सड़क पर पड़ी। एक चमचमाती काली स्पोर्ट्स बाइक तेज़ी से कैफे की तरफ आ रही थी। बाइक चलाने वाले ने हेलमेट पहना था, हेलमेट का mirror open था आँखों पर काला चश्मा चढ़ा रखा था, और उसकी चाल में एक अजीब सी बेपरवाही और अहंकार झलक रहा था। उसके अंदाज़ और बाइक के शोर ने रवि के अंदर के गुस्से को फिर से जगा दिया।
'ये तो वही है,' रवि ने मन ही मन सोचा, उसकी भौहें तन गईं। 'एक नंबर का लफ़ंगा लग रहा है। बिल्कुल अपने बाप जैसा...' यह सोचते ही उसके जहन में एक पुरानी, दर्दनाक याद कौंध गई, लेकिन उसने खुद को संभाला।
वह समझ गया कि अर्पित यहाँ रिया को देखकर फिर से कोई बखेड़ा खड़ा करेगा। रवि की मुट्ठियाँ अनायास ही भींच गईं, उसकी नसों में गुस्सा दौड़ने लगा। उसने सोचा, 'आज इसकी हड्डियाँ ही तोड़ देता हूँ। इसकी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की?'
उसने अपने दोस्तों की तरफ नहीं देखा और अचानक उठकर कैफे से बाहर निकल गया, उसके कदमों में एक ठोस जुनून था।
अमित ने उसे जाते देखा, और चिंतित स्वर में पूछा, "Ravi, where are you going? कुछ हुआ क्या?"
पर रवि ने कोई जवाब नहीं दिया। वह सीधा उस जगह की तरफ बढ़ा, जहाँ अर्पित अपनी बाइक पार्क कर रहा था। अर्पित ने अभी हेलमेट निकाला ही था और अपने बालों को ठीक कर रहा था, जब रवि उसके सामने आ खड़ा हुआ, उसकी मुद्रा चुनौतीपूर्ण थी।
सड़क पर सन्नाटा छा गया। रवि, गुस्से में लाल-पीला, अर्पित के ठीक सामने खड़ा था। अर्पित ने रवि को देखा, उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, सिर्फ अहंकार और घृणा थी। उसने एक दम्भभरी मुस्कुराहट दी और हेलमेट को अपनी बाइक पर रख दिया।
"क्या हुआ, fresher?" अर्पित ने तंज कसते हुए कहा, उसकी आवाज़ में छिपा व्यंग्य साफ़ झलक रहा था। "लगता है जेल की हवा खाकर भी तुझे अक्ल नहीं आई। फिर से मुसीबत मोल लेने आ गया?"
रवि ने अपनी मुट्ठी और तेजी से भींच ली, उसके जबड़े तन गए। "अपनी ज़ुबान संभाल कर बात कर, अर्पित," उसने गुर्राते हुए कहा। "तेरी वजह से हम सब मुसीबत में पड़े हैं, और तुझे इसकी कोई परवाह भी नहीं है।"
"मेरी वजह से?" अर्पित ने जोर से हँसते हुए कहा, उसकी हँसनी में एक कर्कशता थी। "You are the one who threw the first punch, you idiot. और हाँ, मुझे पता है तुम सब यहाँ क्या कर रहे हो। मेरी बहन के साथ?" उसकी नज़र कैफे की तरफ गई, जहाँ से रिया, तान्या और प्रिया चिंतित मुद्रा में बाहर आ रही थीं। "तुम लोग उससे दूर रहो। समझे?"
रवि ने अर्पित की तरफ देखा, उसकी आँखों में गुस्सा तो था ही, लेकिन अब एक गहरा दर्द और संकल्प भी था। "तू नहीं बताएगा कि हम किससे बात करें और किससे नहीं। रिया खुद अपने फैसले ले सकती है।"
तभी रिया सामने आ गई, उसका चेहरा पीला पड़ गया था। "भैया, बस करो! यह सब क्या है?" उसकी आवाज़ में डर और निराशा का मिश्रण था।
अर्पित ने रिया की तरफ तेजी से मुड़कर देखा। "तुम इनसे बात क्यों कर रही हो? मैंने तुम्हें कहा था, इन लोगों से दूर रहो। ये तुम्हारे लायक नहीं हैं।"
"और मैंने तुम्हें कहा था कि मेरे decisions में दखल मत दो," रिया ने दृढ़ता से जवाब दिया, though her voice trembled slightly. "तुम हमेशा से ऐसे ही रहे हो—हर चीज़ पर control चाहते हो। पहले पापा पर, अब मुझ पर!"
यह सुनते ही अर्पित का चेहरा बदल गया। रिया के शब्दों ने उसे झकझोर दिया seemed to hit a raw nerve. उसकी आँखों में अहंकार के स्थान पर एक क्षणिक हैरानी और फिर तीव्र क्रोध आ गया।
रवि ने एक बार फिर अर्पित की तरफ देखा, उसकी मुट्ठी उठने वाली थी। तभी अमित और राहुल उसके पास आए और उसे दोनों तरफ से पकड़ लिया। "Ravi, stop! बस करो!" अमित ने उसे समझाते हुए कहा, उसकी आवाज़ में डर था। "हमें कोई और trouble नहीं चाहिए। Dean ने हमें माफ़ किया है, इसे फिर से बर्बाद मत करो।"
नवीन, जो उनके पीछे खड़ा था, ने शांत परंतु दृढ़ स्वर में कहा, "Bro, it's not worth it. यह लड़ाई हमें और नीचे गिरा देगी।"
रवि ने अपने दोस्तों की तरफ देखा, उनकी आँखों में चिंता और समर्थन था। उसका गुस्सा धीरे-धीरे शांत होने लगा। उसने एक गहरी, काँपती हुई साँस ली और पीछे हट गया, अपनी मुट्ठियाँ धीरे-धीरे खोलते हुए।
अर्पित, जो यह सब देखकर हैरान और शायद थोड़ा निराश था, फिर से हँसने लगा, लेकिन इस बार उसकी हँसनी में पहले जैसा आत्मविश्वास नहीं था। "सही है। He's all talk and no action. वापस जाओ, fresher। अपनी जगह याद रखो।"
रवि ने अर्पित को एक last बार घूर कर देखा, but this time, there was no rage, just a cold, steely resolve. वह वापस कैफे की तरफ मुड़ गया, उसके पीछे उसके तीनों दोस्त थे, एक living shield की तरह। उसने रिया की तरफ देखा, जिसने उसे धन्यवाद और खेद के मिश्रित भाव से सिर हिलाया।
उस रात, कैफे के बाहर एक लड़ाई हुई, लेकिन यह सिर्फ़ शब्दों और भावनाओं की थी। और शायद, इस बार, रवि ने सीख लिया था कि कभी-कभी लड़ने से ज्यादा मुश्किल और ज्यादा बहादुराना काम अपने गुस्से पर काबू पाना और अपनों की खातिर खुद को रोकना होता है। उसकी नजर में अर्पित के प्रति घृणा तो अब भी थी, पर अब उसमें एक ठंडी शांति भी थी। वह जान गया था कि असली लड़ाई अर्पित से नहीं, बल्कि खुद के अंदर के उस गुस्से से है जो उसे बार-बार गलत रास्ते पर धकेलता है।
अगले दिन की सुबह, चारों दोस्त हॉस्टल के बाहर नोटिस बोर्ड के पास खड़े थे। सुबह की ठंडी हवा और धूप की किरणों ने एक नई शुरुआत का एहसास दिलाया, लेकिन उनके चेहरे पर अभी भी पिछली रात की tension झलक रही थी। राहुल अपनी class schedule को गहनता से देख रहा था, मानो कोई complex equation solve कर रहा हो। नवीन अपनी notebook में कुछ doodles बना रहा था, शायद उसकी कल्पनाएँ तान्या और संगीत के इर्द-गिर्द घूम रही थीं। अमित चुपचाप खड़ा था, उसकी नज़रें जमीन पर टिकी हुई थीं, शायद वह रिया और कल की बातों को ही दोहरा रहा था।
तभी रवि की नज़र नोटिस बोर्ड पर लगे एक बड़े, रंगीन poster पर पड़ी। उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था, "College Cricket Team Selection Trials - Show Your Talent!" रवि की आँखें एक पल में चमक उठीं। उसके चेहरे पर एक ऐसी खुशी और उत्साह था जो पिछले कुछ दिनों की सारी उदासी को मिटाता हुआ लग रहा था। उसने तुरंत poster को अपने दोस्तों की ओर घुमाया।
"यार! देखो ये!" रवि ने एक्साइटमेंट में कहा, उसकी आवाज़ में एक नई जान आ गई थी। "कॉलेज की क्रिकेट team के लिए selection trials हो रहे हैं! मुझे तो try करना ही है। मैं मौका नहीं चूकने वाला!"
राहुल ने अपना चश्मा ठीक करते हुए रवि की तरफ देखा, उसकी आवाज़ में practicality थी। "पर तुम्हारी तो suspension चल रही है, रवि। अगर तुम्हें पकड़ लिया गया, तो और मुसीबत हो जाएगी।"
"हाँ, पर मैं किसी को बोलूँगा नहीं," रवि ने जोश से कहा, उसकी आँखों में एक दृढ़ संकल्प था। "मैं बस trials दूँगा और चला आऊँगा। कोई नहीं जान पाएगा। अरे, अमित!" उसने अमित की तरफ रुख किया। "तू भी मेरे साथ चल। तू तो school level पर अच्छा खेलता था ना? तेरी bowling भी decent है।"
अमित ने रवि की तरफ देखा, वह हैरान और थोड़ा झिझक रहा था। "नहीं यार, मैं क्यों...? मैंने तो काफी time से खेला भी नहीं है। और वैसे भी—"
"अरे चल ना, yaar!" रवि ने उसे बीच में ही रोक दिया, उसने अमित का हाथ पकड़ लिया। "तेरे बिना मैं नहीं जाऊँगा। हम दोनों together जाएंगे। तुझे पता है, cricket... ये मेरी सबसे बड़ी passion है। स्कूल में मैंने captaincy भी की थी। ये मेरा chance है खुद को prove करने का, सिर्फ लड़ाकू के अलावा कुछ और दिखाने का।"
रवि के शब्दों और उसके चेहरे के उत्साह ने अमित को मना लिया। उसने एक छोटी सी मुस्कुराहट के साथ हाँ में सिर हिला दिया। उसे रवि के साथ जाना अच्छा लग रहा था, क्योंकि उसने रवि को पिछले कई दिनों में पहली बार इतना उत्साहित और जीवंत देखा था।
वे दोनों क्रिकेट ग्राउंड की तरफ तेजी से चल पड़े। ग्राउंड पर पहले से ही बहुत सारे लड़के warm-up कर रहे थे, गेंदबाजी कर रहे थे, और बल्लेबाजी का अभ्यास कर रहे थे। रवि की आँखों में वही पुरानी चमक लौट आई थी, जो किसी true sportsman की आँखों में होती है, जब वह अपने मैदान में होता है।
"चल, अमित," रवि ने कहा, उसने अपने कंधे पर बल्ला टिकाया। "आज हम इन सबको दिखाएंगे कि हम सिर्फ़ लड़ाई ही नहीं जानते, बल्कि cricket भी खेल सकते हैं। हमें भी कुछ आता है!"
दोनों ने अपना नाम रजिस्टर में लिखवाया और warm-up करने लगे। जब trials शुरू हुए, तो रवि ने batting skills दिखाईं। उसने एक के बाद एक शॉट मारे—drive, cut, pull। उसकी timing और power देखकर coach और selectors भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। हर कोई उसकी तरफ देख रहा था। उसे देखकर लग रहा था कि वह कोई professional player है, जिसे मैदान की हर बारीकी का ज्ञान है।
तभी, प्रिया, तान्या और रिया, चुपचाप audience की पंक्तियों में आकर बैठ गईं। उनकी आँखें भी रवि पर टिकी हुई थीं, जो confidence के साथ crease पर खड़ा batting कर रहा था।
जब अमित की batting की बारी आई, तो उसकी nervousness साफ दिख रही थी। उसके हाथ काँप रहे थे। रवि ने बाउंड्री के पास से उसे हौसला दिया, "शाबाश, अमित! बस eye on the ball रखना! तू कर सकता है!"
अमित ने एक-दो गेंदों को सावधानी से छोड़ा, timing पकड़ने की कोशिश की। और फिर, तीसरी गेंद पर, उसने अपने पैर आगे बढ़ाए, पूरे force के साथ बल्ला घुमाया, और गेंद को सीधे long-on के ऊपर से एक ज़ोरदार six मारा! गेंद boundary के पार जाकर गिरी।
जैसे ही गेंद आसमान में गई, रिया अपनी सीट से एकदम खड़ी हो गई और ज़ोर से सीटी बजाई। "वाह! क्या शॉट है, अमित!" उसने उत्साह से चिल्लाया, उसके चेहरे पर गर्व झलक रहा था।
पास में बैठी एक अन्य लड़की ने रिया को देखा और मजाकिया अंदाज में कहा, "Chill, girl, these are just trials। इतना excite मत हो।"
तान्या ने मुस्कुराते हुए प्रिया के कान में फुसफुसाया, "Haa bhai, khush kyo nahi hogi? Uske hero ne six mara hai na!"
अमित ने boundary की तरफ मुड़कर देखा और रिया की मुस्कुराहट और तालियों पर शर्माते हुए खुद भी मुस्कुरा दिया। उसे देखकर अब कोई नहीं कह सकता था कि वह nervous है। उसकी आँखों में भी आत्मविश्वास चमक रहा था।
उस शाम, दोनों दोस्त थके हुए पर संतुष्ट, वापस हॉस्टल लौट रहे थे। वे नहीं जानते थे कि उनका selection होगा या नहीं, लेकिन उन्हें पता था कि उन्होंने अपना best दिया था। सबसे बढ़कर, उन्हें यह जानकर गहरी खुशी थी कि वे दोनों एक साथ मैदान में उतरे थे, एक दूसरे का हौसला बढ़ाया था, और कम से कम आज के लिए, सिर्फ क्रिकेट के हीरो बने थे। रवि के चेहरे पर एक अलग ही तेज था, मानो उसे अपनी पहचान का एक नया पहलू मिल गया हो।