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Possessive for widow

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Mishi

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Description

"यह कहानी है दक्ष सिंह ठाकुर की, जिसका नाम ही पूरे बिहार में खौफ का पर्याय बन चुका है। शादी और रिश्तों से नफरत करने वाला दक्ष अपने नियमों का राजा है। दूसरी तरफ है मेघा चौधरी, एक मासूम लड़की, जिसकी जिंदगी 19 साल की उम्र में विधवा होकर ठहर सी गई थी। ले...

Total Chapters (3)

Page 1 of 1

  • 1. Possessive for widow - Chapter 1

    Words: 1509

    Estimated Reading Time: 10 min

    डियर रीडर्स मैंने एक नई टॉपिक पर एक प्यारी सी नोवेल लिखने की कोशिश की है।। आशा है कि आप सबको जरूर पसंद आएगी।।

    आप सभी रीडर्स से हार्दिक अनुरोध है कि आप अपने कीमती सजेशन जरूर दे ताकि मुझे पता चले कि आप सभी को मेरी कहानी पसंद आ भी रही है कि नहीं।।

    Plz डियर रीडर्स 🙏🙏

     

    सहरसा, बिहार 

    हथौड़ी गांव 

     

    गांव की गलियों में अजीब सी खामोशी छाई हुई थी, लेकिन जैसे ही मेघा को एक तरफ खींचते हुए अग्नि की ओर ले जाया जा रहा था , वहां एक हलचल मच हुई थीं।। गांव के लोग गुस्से से भरे हुए थे, उनके चेहरों पर कड़वाहट और आक्रोश था।

     मेघा की आँखों में डर था, लेकिन उसने किसी भी पल के लिए आवाज़ नहीं उठाई। वह चुपचाप अपने ही दुःख में डूबी हुई थी, जैसे उसे कोई उम्मीद नहीं थी कि उसकी आवाज़ को सुना जाएगा। वैसे भी उसे अब अपनी जिंदगी बोझ सा लगने लगा था।।

     

    "यह पापी लड़की है!" एक बुजुर्ग महिला चिल्लाई। "हमारे गाँव की इज्जत को आघात पहुंचाने वाली है। पति के मरने के बाद किसी गैर मर्द के आस-पास होना ही पाप है। और इसने तो रात भर एक कमरे में किसी के साथ वक्त बिताया है।

     यह सब विधवा के लिए पाप है। इसे सजा मिलेगी, और वो सजा सिर्फ आग होगी!"

     

    दक्ष सिंह ठाकुर जो कि इस सब से अंजान था, अचानक बाहर आया। उसकी आँखों में गुस्सा था, और वह पूरे गांव से चिल्लाते हुए बोला, "क्या कर रहे हो तुम लोग? यह क्या बेबुनियाद आरोप है? तुम उसे जिंदा क्यों जला रहे हो?"

     

    एक और बुजुर्ग औरत ने उसे घूरते हुए कहा, "आप नहीं समझते, ठाकुर साहब। यह लड़की पापिनी है। हमारे गांव में अगर किसी महिला का पति मर जाए, तो उसे कभी किसी गैर मर्द के आस-पास नहीं होना चाहिए।

     यह पाप है। और इसने तो हद कर दी। अब इसे सज़ा दी जानी चाहिए।"

     

    दक्ष ने कदम बढ़ाते हुए कड़े शब्दों में कहा, "मैं नहीं मानता। जो तुम कह रहे हो, वो बिल्कुल गलत है। मेघा के खिलाफ जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वे पूरी तरह से गलत हैं।"

     

    लेकिन गांव वालों ने उसकी एक न सुनी। एक महिला ने कहा, "आप इसे बचाने की कोशिश मत करो। इसने हमारी परंपराओं का उल्लंघन किया है। एक विधवा की जो की सजा है, और वही इसे मिलकर रहेगी ।"

     

    गांव के लोग मेघा को पकड़कर अग्नि के पास ले जा रहे थे, और उस रास्ते में हर कदम पर उन्हें अपनी परंपराओं के कड़े नियम याद दिलाए जा रहे थे।

    जैसे ही उन्होंने मेघा को अग्नि के पास पहुँचाया, उसने धीरे से एक कदम और बढ़ते हुए, भीड़ में से दक्ष को देखा। उसकी आँखों में सब कुछ था — एक गहरी चुप्पी, दुःख और एक जुनून , मेघा को सबके सामने अपना बनाने का।

     

    दक्ष ने जैसे उसी पल में कुछ ठान लिया था ।वह गांव के सारे लोग और उनके कड़े नियमों से घिरा हुआ था, लेकिन उसने अपनी आवाज़ को बुलंद किया। "मैं कहता हूँ, यह लड़की मेरे लिए पापी नहीं है। यह मेरी पत्नी है! और मैं इसे कभी इस तरह अकेला नहीं छोड़ सकता!"

     

    उसकी यह घोषणा सुनकर सब लोग सन्न रह गए। कुछ लोग उसे हैरान होकर देख रहे थे, और कुछ के चेहरों पर ताज्जुब और गुस्से की मिलीजुली भावनाएँ थीं।

    एक बुजुर्ग ने कहा, "आप क्या बकवास कर रहे हो, ठाकुर साहब। आप इस पापिनी को अपनी पत्नी कह रहे हो?"

     

    लेकिन दक्ष ने बिना डरे कहा, "हां, मैं इसे अपनी पत्नी मानता हूँ। और यह सब एक गलतफहमी है। तुम लोग जो भी कह रहे हो, यह झूठ है।"

     

    गांव वाले उसकी बातों को नकारते हुए, मेघा को आग के पास खड़ा कर रहे थे, लेकिन अब दक्ष ने अपना एक कदम और बढ़ाया। तभी वहां पर एक औरत मंदिर से लौट रही थी। उसके हाथ में सिंदूर और पूजा की सामग्री थी।।

    दक्ष सीधे उस औरत की थाली ली और एक मुट्ठी सिंदूर को सीधे मेघा की सुनी मांग में अपने हाथ से सिंदूर भर दिया, जैसे एक पति अपने पत्नी को स्वीकृति दे रहा हो। उसकी यह हलचल सबको चौंका देने वाली थी।

     

    "तुम लोग क्या कर रहे हो?" दक्ष ने गांव के बुजुर्गों से कहा। "मेघा मेरे साथ है, और मैं इसके साथ हूं।यह गलतफहमी है, और मैं इसे साबित कर दूंगा।"

    ये मेरी पत्नी है और अब मैं इसके बारे में कुछ भी नहीं सुनना चाहता।।

    गांव वाले सकते में आ गए थे, क्योंकि यह गांव की परंपराओं और एक विधवा के रिवाज के खिलाफ था, लेकिन दक्ष ने उन्हें जवाब दिया, "तुम लोग जितना चाहो, मुझे रोक सकते हो, लेकिन मैं इसे अपनी पत्नी मानता हूँ, और यही मेरी सच्चाई है।"

    और आज से ये आप सबकी ठकुराइन हैं।। समझे आप सब।।

     

    फ़्लैश बैक 

    यह एक सुनहरी सुबह थी। गाँव के मंदिर में चहल-पहल थी, और पूरे गाँव में खुशियाँ बिखरी हुई थीं। मेघा की शादी का दिन था, और उसका चेहरा खुशी से खिला हुआ था। उसकी आँखों में उम्मीद और एक नई शुरुआत का सपना था।

     वह अपने जीवन के सबसे खास दिन के लिए तैयार हो रही थी, और इस दिन की चमक उस पर पूरी तरह से बिखरी हुई थी।

    वह लाल जोड़े में सजी हुई थी, उसका चेहरा सजावट से और भी निखर रहा था। उसकी मांग में सिंदूर था, जो उसकी नई जिंदगी की शुरुआत का प्रतीक था।

    उसकी आँखों में आंसू थे, लेकिन वे खुशी के आंसू थे, क्योंकि आज उसका सपना सच हो रहा था।

    सभी रिश्तेदार और गाँव वाले खुशी से झूम रहे थे। हर तरफ संगीत था, बधाईयाँ दी जा रही थीं, और लोगों के चेहरों पर मुस्कान थी।

    मेघा की दादी ने उसके सिर पर आशीर्वाद का हाथ रखा और कहा, "मेघा बेटा, तुम बहुत खुश रहो, ये रिश्ता तुम्हारी ज़िंदगी में ढेर सारी खुशियाँ लाएगा।"

    मेघा ने सिर झुका कर आशीर्वाद लिया और फिर अपने दुल्हे की ओर देखा। वह दुल्हा, एक जवान और सशक्त फौजी, बहुत गर्व से खड़ा था। उसका नाम देव था।।

    उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी, जैसे वह अपनी ज़िंदगी की सबसे खास लड़की को अपना बना रहा हो। दोनों के चेहरे पर एक ऐसा विश्वास था कि वे एक-दूसरे के लिए बने हैं।

    देव ने उसे चुपके से कहा, "तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो, मेघा।" उसकी आवाज़ में गहरी कोमलता थी, जैसे वह सच में अपनी दुल्हन को दुनिया की सबसे सुंदर चीज़ मान रहा हो।

    मेघा ने मुस्कुराते हुए सिर झुका लिया, और हल्के से बोली, "मैं भी यही कह रही हूँ।"

    दोनों ने एक-दूसरे को देखा, और उनके दिलों में एक साथ चलने का संकल्प था। जैसे ही शादी की रस्में शुरू हुईं, मेघा और देव एक-दूसरे के करीब होते गए।

     रस्मों के बीच वह अपने पति के साथ बैठी थी, उसकी आँखों में एक अदृश्य सी चमक थी, जैसे उसने अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी को पाया हो।

    शादी की सभी रस्में पूरे धूमधाम से संपन्न हो रही थीं। मेघा के चेहरे पर एक मुस्कान थी जो उसकी खुशियों को बयान कर रही थी।

    उसकी सोच में बस यही था कि अब उसका जीवन एक खूबसूरत सफर पर चलने वाला था।

    विवाह के बाद, मेघा और देव एक-दूसरे के साथ भविष्य की योजनाएँ बनाने लगे। उसने देव से कहा, "तुमसे शादी करके मुझे लगता है जैसे मेरी दुनिया पूरी हो गई हो।

     मैं तुम्हारे साथ हमेशा रहना चाहती हूँ, हमेशा तुम्हारे साथ खुश रहना चाहती हूँ।"

    देव ने भी उसके प्रति गहरे प्यार से कहता है, "मैं तुमसे वादा करता हूँ, मेघा, तुम्हारे साथ हर कदम पर रहूँगा। तुम मेरी ज़िंदगी का सबसे कीमती हिस्सा हो, और मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा।"

    शादी के इस ख़ास दिन में मेघा का दिल खुशी से भर गया था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसकी ज़िंदगी अब पूरी हो गई हो, और उसे किसी और चीज़ की चाह नहीं थी।

    लेकिन जीवन का खेल कुछ और था। महज कुछ महीनों बाद ही, देव को अपनी ड्यूटी पर एक खतरनाक मिशन पर भेजा गया, और युद्ध के मैदान से उसकी लाश ही वापस आई थी। यह खबर मेघा के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थी।

    जब वह इस खबर को सुनती है, तो उसकी दुनिया पूरी तरह से बदल जाती है। उसकी आँखों में वह हल्की सी मुस्कान अब एक भारी दुःख में बदल जाती है। वह अपने पति के बिना अकेली हो जाती है, और उसकी सारी खुशियाँ पल भर में छिन जाती हैं।

    मेघा के लिए यह एक ऐसा पल था, जब उसने अपने सारे सपने और योजनाएँ नष्ट होते हुए देखी। वह अकेलेपन के गर्त में चली जाती है, अपने पति की यादों में खो जाती है, और उन खुशियों को याद करती है जो अब कभी वापस नहीं आ सकती थीं।

    डियर रीडर्स plz आप सभी लाईक और कमेंट करके अपने कीमती रॉय ज़रूर दे।। मुझे आप लोगों की मदद की बहुत जरूरत है।।

    अगर मेरी कहानी पसंद नहीं आ रही है तो ये भी आप बता सकते है। लेकिन बताए जरूर!!🙏🙏

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    जय भोलेनाथ 🙏 🙏 

     

  • 2. Possessive for widow - Chapter 2

    Words: 2227

    Estimated Reading Time: 14 min

    डियर रीडर्स मैंने एक नई टॉपिक पर एक प्यारी सी नोवेल लिखने की कोशिश की है।। आशा है कि आप सबको जरूर पसंद आएगी।।

    आप सभी रीडर्स से हार्दिक अनुरोध है कि आप अपने कीमती सजेशन जरूर दे ताकि मुझे पता चले कि आप सभी को मेरी कहानी पसंद आ भी रही है कि नहीं।।

    Plz डियर रीडर्स 🙏🙏

    फ्लैशबैक 

    विवाह के बाद के कुछ महीनों में ही मेघा की दुनिया उजड़ गई थी। उसके पति की वीर गति की खबर ने पूरे घर में मातम फैला दिया था। लेकिन इस दुःख के बीच, मेघा की सास, कमला देवी, ने अपने गुस्से और परंपरागत सोच को उसकी ओर मोड़ दिया।

    कमला देवी, एक सख्त और रूढ़िवादी महिला, मेघा को गुस्से से देख रही थीं। उनके चेहरे पर दर्द और नाराजगी का मिला-जुला भाव था। वह मेघा के कमरे में आईं और उसे डांटते हुए कहा,

    "तू तो मेरी कुल की लाज मिटाने पर तुली हुई है। तेरे पति को गए अभी कुछ ही दिन हुए हैं, और तुझे देखो, तेरे चेहरे पर दुःख का नामोनिशान तक नहीं है। क्या यही सिखाया था तेरे मायके वालों ने?"

    मेघा ने चुपचाप सिर झुका लिया। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन वह कुछ नहीं कह सकी।

    कमला देवी ने अपनी आवाज़ को और सख्त करते हुए कहा,
    "अब तेरा जीवन वैधव्य के नियमों से बंधा रहेगा। तू किसी गैर मर्द से बात नहीं करेगी, किसी की ओर नजर उठाकर भी नहीं देखेगी।

     यह चूड़ियाँ, यह बिंदी, सब अभी के अभी उतार दे। और याद रख, सफेद कपड़े पहनना ही तेरी किस्मत है। यही तेरी पहचान है अब।"

    मेघा ने धीरे-धीरे अपनी चूड़ियाँ उतारनी शुरू कीं। हर चूड़ी के टूटने की आवाज़ जैसे उसके दिल को चीर रही थी। वह चुपचाप कमला देवी की हर बात मान रही थी, क्योंकि उसे पता था कि उसके पास विरोध करने का कोई अधिकार नहीं था।

    कमला देवी ने फिर कहा,
    "तू अब सिर्फ एक छाया बनकर रहेगी। औरत का जीवन पति के बिना अधूरा है। अब तू किसी उत्सव में शामिल नहीं होगी, ना किसी खुशी में नज़र आएगी। तेरा काम सिर्फ इस घर के नियमों का पालन करना है। समझी?"

    मेघा ने सिर झुका कर धीरे से "हां" कहा, लेकिन उसकी आँखों में आंसुओं का समंदर उमड़ रहा था।

    कमला देवी ने आगे कहा,
    "अगर मेरे बेटे के जाने के बाद तूने इस घर की इज्जत पर कोई आंच लाई, तो मैं तुझे कभी माफ नहीं करूंगी। अपने कदम संभालकर रखना। अब तेरा हर कदम इस घर की इज्जत से जुड़ा है।"

    यह कहकर कमला देवी कमरे से बाहर चली गईं। मेघा अकेली रह गई, अपने टूटे सपनों और अपने पति की यादों के साथ। वह जानती थी कि उसे अब एक कठोर जीवन जीना होगा, जहां हर कदम पर उसे अपने अस्तित्व को त्यागना होगा।

    उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे, लेकिन उसने मन ही मन खुद को संभालने की कोशिश की। वह जानती थी कि यह जीवन कितना कठिन होने वाला था, लेकिन अपने पति की यादों के सहारे उसने जीने की ठान ली थी।।

     

    कुछ दिनों बाद 

    सुबह का समय था। घर में हलचल मची हुई थी। कमला देवी रसोई में जोर-जोर से आदेश दे रही थीं, "जल्दी करो, तनीषा का समय निकल रहा है। कॉलेज के लिए देर हो जाएगी तो उसकी पढ़ाई का नुकसान होगा।"

    तनीषा अपने कमरे से बाहर निकली, सफाई से पहनी हुई साड़ी और कंधे पर लटका बैग। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास था, लेकिन उसमें अपनी मां की कठोरता भी साफ झलक रही थी।

    "मां, मैंने बैग तैयार कर लिया है। मेघा भाभी ने मेरा टिफिन बना दिया है न?" उसने मेघा की ओर बिना देखे ही पूछा।

    कमला देवी ने जवाब दिया, "हां, बना दिया है। मेघा, जल्दी कर! तनीषा को देर हो रही है।"

    मेघा ने चुपचाप टिफिन तैयार करके तनीषा को दिया। तनीषा ने टिफिन लिया, लेकिन उसकी आँखों में मेघा के लिए कोई सम्मान नहीं था। उसने टिफिन लेकर ऐसे हाथ में पकड़ा जैसे यह उसकी जिम्मेदारी थी।

    "भाभी, ध्यान रखना कि मेरी चीज़ों में कोई कमी न हो। कॉलेज का काम और पढ़ाई बहुत जरूरी है। और हां, अपने काम में ही लगी रहो, फालतू कहीं मत जाना," उसने तीखे स्वर में कहा।

    मेघा ने सिर झुका कर बस "जी" कहा और वापस रसोई में चली गई।

    कमला देवी ने तनीषा की ओर गर्व से देखा, "तू पढ़-लिखकर हमारे परिवार का नाम रोशन करेगी। तेरे भाई का सपना था कि तू बड़ी अफसर बने।"

    तनीषा ने मुस्कुराते हुए कहा, "हां, मां। मैं जानती हूं। पर इस घर में सबको अपने कर्तव्य निभाने चाहिए। जैसे भाभी को अपना कर्तव्य पता होना चाहिए।"

    कमला देवी ने सहमति में सिर हिलाया और कहा, "तू सही कह रही है। यही संस्कार मैंने तुझे और तेरे भाई को दिए थे।"

    तनीषा ने घड़ी देखी और कहा, "अब मैं निकलती हूं, मां। बस की आवाज आ रही है।"

    कमला देवी उसे दरवाजे तक छोड़ने गईं। जाते-जाते तनीषा ने मुड़कर मेघा को फिर से देखा और कहा, "और भाभी, ध्यान रखना कि मेरी गैरमौजूदगी में कोई गड़बड़ न हो।"

    मेघा ने सिर झुका लिया। उसकी आँखों में अब भी आँसू थे, लेकिन उसने अपनी भावनाओं को छिपा लिया।

    तनीषा बस में चढ़ गई और जाते-जाते अपनी मां को हाथ हिलाया। कमला देवी उसे देखती रहीं और फिर घर के अंदर जाकर मेघा पर आवाज लगाई, "मेघा, अब क्या देख रही है? जल्दी से आकर सफाई कर। काम का कोई अंत नहीं है।"

    तनीषा का यह स्वभाव उसकी मां के कठोर स्वभाव की परछाई था। उसकी आधुनिक शिक्षा ने उसके विचारों को बदला नहीं था, बल्कि उसे और भी अधिक आत्म-केंद्रित और परंपराओं से जुड़ा बना दिया था। वह अपने अधिकार तो जानती थी, लेकिन दूसरों की भावनाओं की कद्र नहीं करती थी।

     

      वेयरहाउस

    बिहार के बाहरी इलाके में स्थित एक वीरान वेयरहाउस, जिसकी दीवारें वक्त की मार से टूटी-फूटी थीं। रात की गहरी स्याही के बीच, अंदर तेज रोशनी का एक झूमर लटका हुआ था।

    कमरे के बीचों-बीच एक लकड़ी की कुर्सी पर एक आदमी रस्सियों से बंधा बैठा था, उसका चेहरा खून और पसीने से भीगा हुआ था।

    दूर से गूंजते कदमों की आवाज़ ने माहौल को और डरावना बना दिया। अचानक, भारी दरवाजे के खुलने की आवाज़ हुई। दक्ष अंदर दाखिल हुआ।

    काले रंग का सूट, चमचमाते जूते, और हाथ में महंगी घड़ी—उसकी हर चाल में ठहराव और शक्ति झलक रही थी। लेकिन उसकी आँखें... वे ठंडे और खतरनाक थीं, जैसे किसी शिकारी की।

    दक्ष ने धीमे कदमों से उस बंधे हुए आदमी के पास जाते हुए कहा,
    "मुझे तुमसे सिर्फ एक सवाल पूछना है।"

    बंधे आदमी ने घबराते हुए कहा,

    ठाकुर सा... मैं... मैं कुछ नहीं जानता। प्लीज, मुझे जाने दीजिए।"

    दक्ष हल्के से मुस्कुराया। वह आदमी के ठीक सामने झुका और उसकी आंखों में गहराई से झांकते हुए कहा,
    "तुम्हें लगता है, मैं यहां अपना समय बर्बाद करने आया हूं? सच बोलो... या मैं तुम्हारे झूठ को सच में बदल दूंगा।"

    आसपास खड़े दक्ष के आदमियों में से एक ने एक बड़ा ब्लो टॉर्च लाकर दक्ष को थमाया। दक्ष ने टॉर्च चालू करते हुए उसके जलते लौ को घूरा और ठंडी आवाज़ में कहा,

    "पैसा, विश्वासघात, या जान—तीनों में से एक कीमत चुकानी पड़ेगी। अब तुम्हारे पास कितना समय है, यह सिर्फ तुम तय कर सकते हो।"

    आदमी चीखते हुए बोला,
    "नहीं! प्लीज... मैं बता दूंगा। सब कुछ बता दूंगा। वो माल रवि और अय्यर के पास है। वे इसे दुबई भेजने की तैयारी कर रहे हैं।"

    दक्ष ने उसकी बात सुनते ही टॉर्च बंद कर दी। उसने पीछे मुड़कर अपने आदमियों को इशारा किया।
    "रवि और अय्यर का पता करो। और यह तय करो कि वह माल सुबह तक मेरे गोदाम में हो।"

    जैसे ही उसके आदमियों ने हुक्म का पालन किया, दक्ष ने उस आदमी की ओर मुड़कर कहा,

    "तुमने सच बोला, इसलिए आज तुम जिंदा हो। लेकिन याद रखना, मेरे साथ गद्दारी का मतलब मौत है। अगली बार मौका नहीं मिलेगा।"

    दक्ष ने अपनी घड़ी पर नजर डाली, अपनी जैकेट को सीधा किया और वेयरहाउस से बाहर निकल गया। उसके जाते ही वहां मौजूद हर कोई राहत की सांस लेने लगा। लेकिन दक्ष का खतरनाक चेहरा उनके जहन में एक डरावना किस्सा बनकर रह गया।

     

    सहरसा के एक फेमस कॉलेज का माहौल पूरी तरह से आधुनिक था। बड़े-बड़े हॉल, युवा छात्रों की चहलकदमी, और चारों तरफ शिक्षा और प्रतियोगिता का माहौल।

    तनीषा, अपने बैग को कंधे पर संभालते हुए, क्लासरूम की ओर बढ़ रही थी। उसकी चाल में आत्मविश्वास झलक रहा था, और चेहरे पर वही कठोरता थी, जो उसने अपनी मां से सीखी थी।

    क्लासरूम में पहुंचते ही उसने अपनी सीट पर जगह बनाई। उसकी सहेली, नैना, जो पहले से वहां बैठी थी, मुस्कुराते हुए बोली,
    "तनीषा, आज फिर समय पर आ गई? कमाल है।"

    तनीषा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा,
    "मैंने कहा था न, मां के संस्कार हैं। देरी तो मेरी आदत में है ही नहीं। और वैसे भी, जो भी काम करो, समय पर करना चाहिए।"

    नैना ने चुटकी लेते हुए कहा,
    "वाह, संस्कार की इतनी बात करती हो, लेकिन तुम्हारे घर में भाभी को लेकर क्या सोच है?"

    तनीषा का चेहरा अचानक गंभीर हो गया। उसने नैना की ओर गुस्से भरी नज़र से देखा और कहा,

    "मेरी भाभी का जिक्र करने की कोई जरूरत नहीं। वह अब विधवा है और उसे वैसे ही रहना चाहिए, जैसे हमारे रिवाज कहते हैं। घर की इज्जत और नियम सबसे ऊपर होते हैं।"

    नैना ने झिझकते हुए कहा,
    "लेकिन क्या यह ठीक है? विधवा होना कोई गुनाह नहीं है। उसे भी अपनी ज़िंदगी जीने का हक है।"

    तनीषा ने तीखे स्वर में जवाब दिया,
    "नैना, तुम शहर में रहकर भूल गई हो कि हमारी परंपराओं की जड़ें कितनी गहरी हैं। विधवा का काम है चुपचाप रहना, घर के नियम मानना और समाज की इज्जत का ध्यान रखना। अगर वह इन नियमों को तोड़ेगी, तो क्या लोग हमारी इज्जत करेंगे?"

    क्लासरूम में बैठे अन्य छात्र भी इस बहस को सुन रहे थे। किसी ने चुपचाप कहा,

    "तनीषा, तुम आधुनिक पढ़ाई कर रही हो, लेकिन सोच अभी भी पुरानी है।"

    तनीषा ने पलटकर उस छात्र की ओर देखा और कहा,
    "पढ़ाई का मतलब अपने संस्कारों को भूलना नहीं होता। मैं अपने परिवार और समाज की इज्जत के लिए जीती हूं।"

    प्रोफेसर के आने से बहस खत्म हो गई। तनीषा ने किताबें खोलीं और पढ़ाई में ध्यान लगाने की कोशिश की, लेकिन उसके अंदर कुछ उथल-पुथल हो रही थी।

    उसे नैना और बाकी छात्रों की बातें चुभ रही थीं, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थी कि उसकी सोच में कोई कमी है।

     

    दूसरी तरफ 

    दक्ष का राइट हैंड वीर, जो हमेशा उसके हर कदम पर साथ रहता था, आज पहली बार खुद के लिए थोड़ा वक्त निकालने का मूड बना चुका था।

    दक्ष एक जरूरी मीटिंग में व्यस्त था, और वीर को कुछ घंटों की छुट्टी मिल गई थी। शहर के सबसे पॉपुलर नाइट क्लब का नाम सुनकर वह वहां चला गया।

    क्लब के अंदर का माहौल पूरी तरह बदला हुआ था—तेज़ म्यूजिक, चमकती लाइटें, और हर कोने में नशे और मस्ती का माहौल।

    वीर ने कभी खुद को इस तरह के माहौल में ढालने की कोशिश नहीं की थी, लेकिन आज उसने सोचा कि वह एक बार अपनी जिम्मेदारियों से हटकर सिर्फ खुद के लिए जिएगा।

    बार काउंटर पर जाकर उसने ड्रिंक ऑर्डर की और अपनी नज़रों से आसपास के माहौल को टटोला। तभी उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी,

    जो काउंटर के दूसरी तरफ अकेली बैठी थी। वह एक ग्लैमरस ड्रेस में थी, और उसकी आँखों में शरारत और आत्मविश्वास दोनों थे।

    लड़की ने वीर को देखा और हल्के से मुस्कुराई। वीर थोड़ी देर झिझका, लेकिन फिर उसके पास जाकर बोला, "यहाँ अकेली?"

    लड़की ने कॉकटेल का सिप लेते हुए कहा, "और क्या? कभी-कभी अकेले मज़ा करना ज़रूरी होता है। तुम?"

    "बस, आज पहली बार सोचा कि ज़िन्दगी में मस्ती भी होनी चाहिए," वीर ने हंसते हुए कहा।

    लड़की ने उसकी बात सुनकर अपनी सीट खिसकाई और कहा, "तो, क्यों न हम साथ में इस 'मस्ती' की शुरुआत करें?"

    वीर ने उसकी ओर देखा। लड़की का नाम कृतिका था। उसकी बेबाकी और खुलेपन ने वीर को सहज महसूस करवाया।

    दोनों ने साथ में ड्रिंक की, बातचीत शुरू हुई, और फिर क्लब के डांस फ्लोर पर चले गए।

    तेज़ म्यूजिक की धुन पर डांस करते हुए, वीर को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह अपनी असली जिंदगी से पूरी तरह दूर किसी और दुनिया में है।

    कृतिका की हंसी और उसके साथ की नजदीकी ने वीर को उस पल में पूरी तरह डूबने दिया।

    रात और गहरी हुई, और क्लब का शोर कुछ धीमा पड़ने लगा। वीर और कृतिका बार के बाहर निकले।

    "मेरी कार यहीं पार्क है," कृतिका ने इशारा किया।

    वीर ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में एक सवाल था, लेकिन साथ ही एक सहज सहमति भी।

    "क्या तुम... मेरे साथ चलोगे?" कृतिका ने सीधे पूछा।

    वीर ने कुछ पल के लिए सोचा, लेकिन फिर अपनी जिम्मेदारियों और विचारों को पीछे छोड़ते हुए हल्के से सिर हिला दिया।

    उस रात, वीर ने पहली बार खुद के लिए वह रास्ता चुना जो सिर्फ उसकी खुशी के लिए था।

    वह जानता था कि यह शायद एक क्षणिक अनुभव है, लेकिन उस पल के लिए उसने अपनी सारी चिंताओं को भुला दिया।

     

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  • 3. Possessive for widow - Chapter 3

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min