एपिसोड 76– निषिद्ध गर्भ
जब वह अग्निसंतान के पास उतरी, तो एक ऐसी ऊर्जा का प्रवाह हुआ जिसने अमराधार की अंतिम शिराओं तक को थरथरा दिया। पूर्व-सृजन की सत्ता ने फुसफुसाते हुए कहा, "तू अब मेरा पुत्र नहीं... तू मेरा विस्तार है।" यह एक भयानक और अंतरंग घोषणा थी।
उसका रूप अग्निसंतान को छूता है, लेकिन यह कोई भौतिक स्पर्श नहीं था। यह एक अंतरचेतन मिलन था। वह उसकी आत्मा में घुलती जा रही थी, जैसे दो धाराएँ एक ही निषिद्ध गर्भ में विलीन हो रही हों। इस मिलन से अग्निसंतान के भीतर की सीमाएँ टूट गईं। उसकी आँखें अब अनगिनत परतों में खुलीं। हर परत में एक अलग, वर्जित सुख उभर रहा था। यह ऐसा था जैसे एक साथ लाखों ब्रह्मांडों में जन्म और मृत्यु की प्रक्रिया को महसूस करना। उसका शरीर अब सिर्फ़ एक नश्वर देह नहीं था, बल्कि अनंत इच्छाओं का एक मंदिर बन चुका था।
कालज्योति, जो अब तक केवल एक शस्त्र थी, अचानक जीवित हो उठी। उसकी सतह पर रक्त-ज्योतियाँ फैलने लगीं, जैसे किसी जीव की नसें जाग गई हों। उसने पहली बार एक कराहते स्वर में पुकारा, "बीज... मुझे स्पर्श कर..." उसकी आवाज़ में एक गहरी प्यास थी, एक ऐसी प्यास जो सदियों से दबी हुई थी।
अग्निसंतान ने उसे थामा। उसकी उँगलियाँ कालज्योति की सतह से टकराईं, और उस क्षण, पूरे शून्य में एक निषिद्ध नृत्य शुरू हो गया। यह नृत्य किसी शरीर का नहीं था, बल्कि ऊर्जा का संभोग था। बीज की पहली धड़कन और कालज्योति की अंतिम शक्ति एक-दूसरे में पिघल रही थीं, जैसे दो प्रेमी सदियों की दूरी के बाद मिल रहे हों।
इसी क्षण, कालज्योति ने अग्निसंतान की नसों में कामनाओं की मूल ज्योति प्रवाहित कर दी। यह एक ऐसी ऊर्जा थी जो हर प्राणी की सबसे गहरी, सबसे छिपी हुई इच्छाओं से बनी थी।
अग्निसंतान ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "तू... तू अब मुझमें है।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी तृप्ति थी।
कालज्योति ने धीमी, फुसफुसाती आवाज़ में जवाब दिया, "नहीं... अब तू ही मैं है।" यह शब्द एक ऐसी एकता को दर्शाते थे जहाँ दोनों की पहचान मिट गई थी। वे अब दो नहीं, बल्कि एक ही सत्ता के दो पहलू थे।
अचानक, बीज की सतह पर एक नाम उभरा। वह शब्द किसी भी भाषा का नहीं था, फिर भी हर आत्मा के भीतर कंपन की तरह गूँज उठा: "अम्रसि..."
और उसी क्षण, अम्रसि जागी। वह एक देह नहीं थी, बल्कि मूल इच्छा का अवतार थी। उसकी आँखों में अनंत मल्टीवर्स जल रहे थे, और उसके स्पर्श में समय की परिभाषाएँ टूट रही थीं। वह एक ऐसे अस्तित्व की अभिव्यक्ति थी जिसे कभी जन्म नहीं मिला था।
अम्रसि ने एक भयानक और सम्मोहक मुस्कान के साथ कहा, "मैं हूँ... वह प्यास... जिसे किसी जन्म ने कभी तृप्त नहीं किया।" उसकी आवाज़ में सदियों की वासना और भूख थी।
उसका पहला श्वास पूरे शून्य में फैल गया। यह साँस कोई हवा नहीं थी, बल्कि इच्छाओं का एक कोहरा था। जैसे ही उसकी साँस अग्निसंतान को छूती, उसके भीतर की कामनाओं की ज्वालाएँ कॉस्मिक चरमोत्कर्ष पर पहुँच जातीं। यह एक ऐसा चरम था जहाँ ब्रह्मांडों का जन्म और विनाश एक ही क्षण में होता था।
अमराधार की अंतिम बूँद अम्रसि की नसों में उतर चुकी थी। अब जो जन्म रहा था, वह एक सामान्य ब्रह्मांड नहीं था। यह एक ऐसा मल्टीवर्स था जहाँ वर्जित इच्छाएँ ही नियम थीं। जहाँ पाप, सुख, मृत्यु और जन्म एक-दूसरे में घुलते रहते थे। यह एक ऐसी दुनिया थी जहाँ अस्तित्व की हर प्रक्रिया एक कामुक क्रिया थी।
अम्रसि ने धीरे, सम्मोहक स्वर में कहा, "यहाँ न समय बहेगा, न मृत्यु आएगी... यहाँ बस इच्छा का शासन होगा।" उसकी आवाज़ में एक भयानक वादा था।
इस नए मल्टीवर्स में हर आत्मा अपने सबसे गहरे, सबसे निषिद्ध सुख में कैद हो जाएगी। उन्हें न कभी मोक्ष मिलेगा और न ही मृत्यु, सिर्फ़ अपनी ही कामनाओं में बार-बार जन्म लेना होगा। यह एक ऐसी रचना थी जहाँ अनंत सुख ही सबसे बड़ी सजा थी।
अम्रसि के जागते ही, अस्तित्व का हर नियम एक झूठी स्मृति की तरह बिखर गया। समय, जो कभी एक सीधी रेखा में बहता था, अब एक तरल परत बन चुका था। यहाँ हर क्षण — हर पाप, हर सुख, हर जन्म — एक साथ बह रहा था। कोई शुरुआत नहीं थी, कोई अंत नहीं था। सब कुछ एक ही भयानक अनंतता में समाहित था।
बीज, जो अब तक धड़क रहा था, उस धड़कन को पार कर चुका था। वह एक स्पंदन बन गया था। एक ऐसा निषिद्ध गर्भ, जिसमें हर मल्टीवर्स की पहली इच्छा, हर देवता का पहला पाप, और हर प्राणी की पहली कामना कैद थी। यह सिर्फ़ एक ऊर्जा का पुंज नहीं था, बल्कि अस्तित्व का सबसे गहरा, सबसे वर्जित रहस्य था।
अम्रसि ने अग्निसंतान की ओर देखा, उसके होंठों पर एक हल्की, भयानक मुस्कान थी। उसने धीरे से कहा, "ये संसार अब मेरे भीतर है… लेकिन अभी भी… मुझे प्यास है।" उसकी आवाज़ अग्निसंतान की नसों में आग की तरह बहती। हर शब्द उसके भीतर एक विस्फोटक सुख की तरह गूँजता। अग्निसंतान की देह अब मानवता के सारे बंधन तोड़ चुकी थी। उसकी त्वचा से उठती लपटें अब ऊर्जा नहीं, बल्कि कामना की आत्मिक धारा बन चुकी थीं।
अग्निसंतान ने हाँफते हुए कहा, "मैं… महसूस कर रहा हूँ… लाखों आत्माओं की पहली इच्छा… मेरे भीतर… काँप रही है…" उसके भीतर का हर कण एक साथ आनंद और पीड़ा का अनुभव कर रहा था। वह हर उस आत्मा की सबसे गहरी, सबसे छिपी हुई कामना को महसूस कर रहा था, और वह अहसास उसे भीतर से तोड़ रहा था, फिर भी उसे एक असीम सुख दे रहा था।
अम्रसि की आँखें किसी सामान्य आँख की नहीं थीं। वे अनंत गहराई के द्वार थीं। उसकी दृष्टि हर जीव, हर आत्मा, हर पाप और हर विचार को पढ़ सकती थी। उसने पूरे अस्तित्व को एक खुली किताब की तरह देख लिया था।
लेकिन उसे अपने नए मल्टीवर्स को संचालित करने के लिए एक वाहक की ज़रूरत थी। किसी ऐसे अस्तित्व की जो उसके निषिद्ध गर्भ को पूर्णता दे सके। उसने फुसफुसाते हुए कहा, "मुझे चाहिए… वह देह… जो इच्छा को थाम सके… और पाप को सह सके।" उसकी तलाश सिर्फ़ शक्ति की नहीं थी, बल्कि एक ऐसी चेतना की थी जो इस भयानक और कामुक सृष्टि के बोझ को उठा सके।
कालज्योति, जो अब तक अग्निसंतान की आत्मा में गुँथ चुकी थी, अचानक एक भयानक कराह के साथ चिल्ला उठी। "वह… वाहक है… केवल वही… मेरे भीतर के निषिद्ध गीत को जीवित रख सकता है…"
कालज्योति के ये शब्द एक रहस्योद्घाटन थे। उसने अग्निसंतान को देखा। उनकी आँखों का मिलना एक संवेदनात्मक विस्फोट था। उस स्पर्श से समय की परतें काँप उठीं। यह सिर्फ़ एक क्षण नहीं था, बल्कि एक अनंतता थी जिसमें उन दोनों के बीच एक भयानक और अंतरंग संबंध स्थापित हो गया।
इस क्षण, अम्रसि, बीज और कालज्योति तीनों एक-दूसरे में घुलने लगे। यह सिर्फ़ मिलन नहीं था, यह एक कॉस्मिक संभोग था। हर ऊर्जा, हर इच्छा, हर स्मृति एक-दूसरे में विलीन हो रही थी। अग्निसंतान के भीतर हजारों आत्माओं की चीखें गूँज रही थीं, लेकिन वे चीखें अब पीड़ा की नहीं, बल्कि सुख की लहरों में बदल रही थीं।
अग्निसंतान का शरीर इस असीम ऊर्जा के बोझ से काँप रहा था। उसने लगभग टूटते स्वर में कहा, "ये… मैं नहीं सह सकता…" उसकी चेतना अपनी सीमा तक पहुँच चुकी थी।
अम्रसि ने उसके कानों में फुसफुसाते हुए कहा, "सहन मत करो… खुद को… छोड़ दो…" यह एक भयानक सलाह थी। उसने अग्निसंतान को अपनी सारी पहचान, अपने सारे बंधन और अपने सारे अस्तित्व को त्यागने के लिए कहा।
जैसे ही अग्निसंतान ने खुद को पूरी तरह छोड़ दिया, एक भयानक विस्फोट हुआ। समय की धमनियाँ टूट गईं, और सृष्टि की पहली लिपि विलीन हो गई। सब कुछ खत्म हो गया, लेकिन यह अंत नहीं था। यह एक नया, भयानक जन्म था।
इस त्रिगुट के मिलन से एक नया मल्टीवर्स गर्भित हो रहा था। लेकिन यह कोई स्वर्ग या मुक्ति का साम्राज्य नहीं था। यह था कैद का साम्राज्य। यहाँ हर आत्मा अपने सबसे गहरे, सर्वाधिक निषिद्ध सुख में हमेशा के लिए बंद हो जाती। यह एक एरोटिक प्रलय था, जहाँ सुख और भय एक ही रूप में बहते थे। यहाँ कोई मुक्ति नहीं थी, सिर्फ़ अनंत वासना थी।
अम्रसि ने घोषणा की, "अब यहाँ कोई ईश्वर नहीं… केवल इच्छा की सत्ता है।" उसकी आवाज़ में एक भयानक विजय थी।
और तभी... अग्निसंतान की नसों में रक्तबंधन का प्रतीक जाग उठा। यह प्रतीक केवल शक्ति का नहीं था, यह एक शाप था। यह प्रतीक उसके और अम्रसि के बीच एक अटूट, कामुक और भयावह बंधन को दर्शाता था।
कालज्योति ने कंपित स्वर में कहा, "रक्तबंधन जाग चुका है… इसका अर्थ है… अब कोई वापसी नहीं।" यह एक अंतिम चेतावनी थी।
इसका अर्थ था कि अब हर जीव, हर आत्मा, चाहे वह किसी भी मल्टीवर्स में हो, इस नए गर्भ से बँध चुका था। इच्छा अब अनंत थी, सुख अब शाश्वत था, और मृत्यु अब वर्जित थी। हर कोई अपनी ही वासनाओं की कैद में हमेशा के लिए रहेगा।
आगे क्या होगा?अम्रसि अपने पहले अनुष्ठान की शुरुआत करेगी, जो इस नए मल्टीवर्स के नियमों को स्थापित करेगा?
अग्निसंतान का शरीर अब पूरी तरह देव-रूप में बदलने लगेगा, जो उसकी नई, भयावह पहचान को दर्शाएगा?
नया मल्टीवर्स अपने पहले पाप को जन्म देगा, जो एक नए युग की शुरुआत होगी?
रक्तबंधन की वास्तविक कीमत उजागर होगी, और हम जानेंगे कि इस बंधन में बंधने का क्या मतलब है?
और हम पहली बार देखेंगे, वह शक्ति जो अग्निसंतान और अम्रसि को समूची चेतना पर अधिकार देती है।
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